राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (National Curriculum Framework 2005) NCF for CTET/ STATE TETs/KVS/DSSSB etc

NCF 2005 का मुख्य उद्देश्य जीवन एवं ज्ञान के मध्य की दूरी को कम करना था इस प्रक्रिया में बच्चों के विद्यालय जीवन को बाहरी जीवन से जोड़ना चाहिए।
NCF 2005 को प्राथमिक शिक्षा में लागू किया गया था इस अधिगम प्रक्रिया के माध्यम से विद्यार्थियों को रटने की प्रणाली से मुक्त कराना था ताकि विद्यार्थियों का चहुंमुखी विकास हो सके।
इसके अलावा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया “बाल केंद्रित” हो ऐसी विषय सामग्री का उपयोग किया जाए जिससे प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण हो सके।
National curriculum framework 2005 का निर्माण NCERT द्वारा किया गया था एवं इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया था इसका प्रमुख लक्ष्य “आत्मज्ञान” अर्थात विद्यार्थियों को अलग-अलग अनुभवों का अवसर देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी होती है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता और कौशल होते हैं तो हर विद्यार्थियों को उसे व्यक्त करने का मौका प्रदान किया जाना चाहिए।

बालकों को क्या और क्या और कैसे पढ़ाया जाए, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 इन्हीं विषयों पर ध्यान केंद्रित कराने हेतु एक दस्तावेज है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (NCF 2005) का उद्धरण रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध “सभ्यता और प्रगति” से हुआ है।जिसमें उन्होंने बताया है कि सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी है।राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषाओं में किया गया है।यह विद्यालय शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफ़ेसर यशपाल की अध्यक्षता में देश की चुनी हुई, विशेषज्ञों, विद्वानों ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा।


Principles of NCF 2005(मार्गदर्शी सिद्धांत)
NCF 2005 के 5 मार्गदर्शक सिद्धांत है।

  1. ज्ञान को स्कूल के बाहर जीवन से जोड़ा जाए।
  2. पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त ।
  3. पाठ्य चर्चा पाठ्यपुस्तक केंद्रित न रह जाए।
  4. कक्षा कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए एवं इसे लचीला बनाया जाए।
  5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो या राष्ट्रीय महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

NCF 2005 के अंग/भाग-
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा को 5 भागों में बांटकर वर्णित किया गया है ।

  1. परिप्रेक्ष्य
  2. सीखना का ज्ञान
  3. पाठ्य चर्चा के क्षेत्र, स्कूल की अवस्थाएं एवं आकलन
  4. विद्यालय व कक्षा का वातावरण
  5. व्यवस्थागत सुधार

NCF 2005 की प्रमुख सुझाव/ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 की मुख्य विशेषता-
NCF 2005 के अनुसार प्राथमिक स्तर पर भाषा का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए।
शिक्षण सूत्र जैसे ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग हो।
सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
अभिभावकों को सख्त का संदेश दिया जाएगी बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
बच्चों को स्कूल से बाहर जीवन से तनाव मुक्त वातावरण प्रदान करना।
अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव अर्थात अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षा के समान प्रस्तुत करता है ।
खेल आनंद बाद सामूहिक ताकि भावना के लिए है ,रिकॉर्ड बनाने बाद तोड़ने की भावना को बढ़ावा ना दें
पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौंदर्य बोध को बढ़ावा दें।
शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुंचाए जाएं।
शिक्षण अधिगम परिस्थितियों में मातृभाषा का प्रयोग।
सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रखा जाए।
समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें।
कल्पना का मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करें।
सह शैक्षणिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
मानसिक स्तर एवं योग्यता के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्धारण हो
शांति शिक्षा को बढ़ावा- महिलाओं के प्रति आदर एवं जिम्मेदारी का दृष्टिकोण विकसित करने की कार्यक्रम का आयोजन करना।
बालकों के चहुंमुखी विकास पर आधारित पाठ्यचर्या हो।
सभी विद्यार्थियों हेतु समावेशी वातावरण तैयार करना ।

NCF 2005 में शिक्षक के प्रति दृष्टिकोण
शिक्षक ज्ञान का स्त्रोत नहीं अपितु एक ऐसा सुगमकर्ता है, जो सूचना को अर्थ/ बोध में बदलने की प्रक्रिया में विविध उपायों द्वारा बच्चों हेतु सहायक हो।

NCF 2005 में बच्चों के प्रति दृष्टिकोण
प्रत्येक बच्चे की सीखने की गति/ प्रकृति अलग होती है सभी बच्चे सक्रिय रूप से पूर्व ज्ञान एवं उपलब्धि सामग्री/ गतिविधियों के आधार पर अपने लिए अर्थ निर्माण करते हैं।

NCF 2005 भाषा के प्रति दृष्टिकोण
बच्चों में भाषा समझने, अभिव्यक्त करने की क्षमता जन्मजात होती है।

NCF 2005 गणित की प्रति दृष्टिकोण
बच्चे गणित की मूल संरचना को समझने अंकगणित, बीजगणित, रेखा गणित, त्रिकोणमिति के सभी मूल तत्व समस्या समाधान की अनेक युक्तियां अर्थात सामान्य, परिमाण, स्थिति विश्लेषण, अनुमान लगाना, पुष्टि करना आदि पद्धति मुहैया कराते हैं।

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र महत्वपूर्ण तथ्य

  1. वाइगोत्स्की के अनुसार, समीपस्थ विकास का क्षेत्र है– बच्चे के द्वारा स्वतन्त्र रूप से किए जा सकने वाले तथा सहायता के साथ करने वाले कार्य के बीच अन्तर
  2. समाजीकरण एक प्रक्रिया है– मूल्यों, विश्वासों तथा अपेक्षाओं को अर्जित करने की
  3. कोह्लबर्ग के सिद्धान्त की प्रमुख आलोचना क्या है? – कोह्लबर्ग ने पुरुषों एवं महिलाओं की नैतिक तार्किकता में सांस्कृति विभिन्नताओं को महत्व नहीं दिया
  4. एक अच्छा विद्यालय वह है– जो बालक के सामाजिक स्तरीकरण को समझे तथा कक्षा के वातावरण को प्रगतिशील व प्रेरणास्पद बनाए
  5. गार्डनर के बहुबुद्धि के सिद्धान्त के सिद्धान्त के अनुसार, वह कारक जो व्यक्ति के ‘आत्मबोध’ हेतु सर्वाधिक योगदान देगा, वह हो सकता है– अन्त:वैयक्तिक
  6. वाइगोत्स्की तथा पियाजे के परिप्रेक्ष्यों में एक प्रमुख विभिन्नता है– भाषा एवं चिन्तन के बारे में उनके दृष्टिकोण
  7. समावेशी शिक्षा के पीछे मूलाधार यह है कि– समाज में विभिन्नता है और विद्यालयों को इस विभिन्नता के प्रति संवेदनशील होने के लिए समावेशी होने की आवश्यकता है
  8. उच्च प्राथमिक विद्यालय की गणित अध्यापिका के रूप में आप विश्वास करती हैं कि– विद्यार्थियों की गलतियाँ उनके चिन्तन में अन्तर्दृष्टियाँ उपलब्ध कराती हैं
  9. एक बच्चे को सहारा देने की मात्रा एवं प्रकार में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है– बच्चे के निष्पादन का स्तर
  10. शिक्षण का विकासात्मक परिप्रेक्ष्य शिक्षकों से यह माँग करता है कि वे– विकासात्मक कारकों के ज्ञान के अनुसार अनुदेशन युक्तियों का अनुकूलन करें
  11. बुद्धि की स्पीयरमैन परिभाषा में कारक ‘g’ है– सामान्य बुद्धि
  12. वैयक्तिक अन्तरों का ज्ञान शिक्षकों की मदद किसमें करता है? – सभी शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं का आकलन करने और उसके अनुरूप उन्हें पढ़ाने में
  13. कक्षा में शिक्षार्थियों से कहा गया है कि वे अपने समाज के लिए क्या कर सकते हैं– इसे दर्शाने के लिए एक नोटबुक में अपने कार्य की विविध शिल्पकृतियों को संयोजित करें। यह किस प्रकार की गतिविधि है? – पोर्टफोलियो आकलन
  14. रेनजुली प्रतिभाशाली की अपनी….. परिभाषा के लिए जाने जाते हैं। – त्रि-वृत्तीय
  15. अधिगम निर्योग्यता वाले शिक्षार्थियों द्वारा एक पूर्ण और उत्पादक जीवन जीने के अवसरों को बढ़ाने का सबसे सही तरीका है– विविध कौशलों और युक्तियों का शिक्षण करना जिसे सभी सन्दर्भों में लागू किया जा सकता है
  16. व्याख्या, अनुमान और/अथवा नियन्त्रण प्राक्कल्पना….. के लक्ष्य हैं। – वैज्ञानिक पद्धति
  17. संवेगात्मक बुद्धि, बहुबुद्धि सिद्धान्त के किस क्षेत्र के साथ सम्बन्धित हो सकती है? – अन्तर्वैयक्ति और अन्त:वैयक्तिक बुद्धि
  18. राजेश गणित की समस्या को हल करने के लिए पूरी तरह से संघर्ष कर रहा है। उसका आन्तरिक बल जो उसे उस समस्या को पूरी तरह से हल करने के लिए विवश करता है,….. के रूप में जाना जाता है। – प्रेरक
  19. गेट्स के अनुसार, ”अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन ही….. है।” – सीखना
  20. अपने आपको प्रेम करने की प्रवृत्ति को क्या कहते हैं? – नार्सिसिज्म की प्रवृत्ति
  21. मनुष्य की बुद्धि आगे की पीढ़ियों में संक्रमित होती है।…..का कार्य इस जन्मजात योग्यता के विकास के लिए उपयुक्त् परिस्थितियों का निर्माण करना है। – वातावरण
  22. पूरे आवृत्ति वितरण के प्रतिनिधित्व करने वाले मान को….. कहा जाता है। – केन्द्रवर्ती प्रमाप का मान
  23. ”बालक एक ऐसी पुस्तक है जिसका शिक्षक को आद्योपान्त अध्यन करना चाहिए।” उपरोक्त कथन किसके द्वारा दिया गया है? – रूसो
  24. बाल मनोविज्ञान के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में मुख्य स्थान है– बालक का
  25. बाल्यावस्था की प्रमुख मनोवैज्ञानिक विशेषता क्या है? – सामूहिकता की भावना
  26. 140 से अधिक बुद्धिलब्धि (IQ) वाले बच्चों को किस श्रेणी में रखेंगे? – प्रतिभाशाली
  27. ”सृजनशीलता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक क्रिया है।” उपरोक्त कथन किसके द्वारा दिया गया है? – क्रो एण्ड क्रो
  28. ‘प्रयास और भूल’ सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं– थॉर्नडाइक
  29. ‘सीखने के पठार’ के निराकरण के लिए क्या नहीं करना चाहिए? – उसे दण्डित करना चाहिए
  30. जिस वक्र रेखा में प्रारम्भ में सीखने की गति तीव्र होती है और बाद में यह क्रमश: मन्द होती जाती है, उसे कहते हैं– उन्नोदर वक्र (Convex Curve)
  31. वैयक्तिक भिन्नता का क्या अर्थ है? – कोई दो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक योग्यता और संवेगात्मक दशा में समान और एक जैसे नहीं होते हैं
  32. रुचि का सम्बन्ध है– अवधान
  33. सीखे हुए ज्ञान, कौशल या विषय का अन्य परिस्थितियों में उपयोग करने को कहते हैं– सीखने का स्थानान्तरण
  34. ”स्मृति सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है।” उपरोक्त कथन किसका है? – वुडवर्थ
  35. संवेग की उत्पत्ति….. से होती है। – मूल प्रवृत्तियों
  36. अभिप्रेरण के लिए अकसर….. शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। – आवश्यकता
  37. ”चिन्तन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है।” चिन्तन की यह परिभाषा किसने दी? – रॉस
  38. एक व्यक्ति के ”जीवन में नाम व प्रशंसा कमाने की इच्छा” किस प्रकार का अभिप्रेरक है? – आन्तरिक अभिप्रेरक
  39. ”हम में से कुछ लोग, कुछ जो लम्बे हैं तथा कुछ जो छोटे हैं, कुछ जो गोरे हैं तथा कुछ जो काले हैं, कुछ लोग मजबूत हैं तथा कुछ कमजोर हैं।” यह कथन किस स्थापित सिद्धान्त पर आधारित है? – वैयक्तिक विभिन्नता पर
  40. संपुष्ट कार्यक्रम जरूरी होते हैं– प्रतिभाशाली बालकों के लिए

समास

समास
समास 6 प्रकार के होते है-

  1. अव्ययों भाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. कर्मधारय समास
  4. द्वंद्व समास
  5. द्विगु समास
  6. बहुब्रीहि समास

1.अव्ययी भाव समास :- इस समाज में प्रथम पद अव्यय एवं दूसरा पद संज्ञा होता है सम्पूर्ण पद में अव्यय के अर्थ की ही प्रधानता रहती है पूरा शब्द क्रिया – विशेषण के अर्थ में (अव्यय की भांति )व्यवहत होता है
उदाहरण :-

यथाशक्ति= शक्ति के अनुसार
प्रत्यक्ष =अक्ष के समक्ष
प्रतिदिन = हरेक दिन
नियोग =ठीक तरह से योग
आजानुबाहु = जानू से बहू तक
प्रत्येक = एक एक के प्रति
हाथों -हाथ =हाथ के बाद हाथ
रातों -रात =रात के बाद रात
घर- घर =घर के बाद घर
एक- एक =एक के बाद एक
लूटमलूट =लूट के बाद लूट
मारामारी = मारने के बाद मार
एकाएक =एक के तुरंत बाद एक
आमरण =मृत्यु तक

  1. तत्पुरुष समास :-

जिस समास का अंतिम पद (उत्तर पद ) की प्रधानता रहती है, पहला पद विशेषण होता है | कर्ता कारक और संबोधन को छोड़कर शेष सभी कारकों में विभक्तियां लगाकर इसका समास विग्रह होता है

उदाहरण:-

गगनचुंबी – गगन चूमने वाला
चिड़ीमार -चिड़िया मारने वाला
करुणा -पूर्ण करुणा से पूर्ण

लुप्त पद कारक चिन्ह ;- शब्दों के मध्य I विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है शब्दों का विग्रह करते समय वापस जोड़ देते हैं कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर सभी कारक समास में होते हैं

कर्म कारक तत्पुरुष समास:- इसे कर्म कारक विभक्ति को का लोप कर देते हैं

उदहारण:-

पक्षधर- पक्ष को देने वाला
दिल तोड़ -दिल को तोड़ने वाला
जितेंद्रिय -इंद्रियों को जीतने वाला
शरणागत – शरण को आया हुआ

करण तत्पुरुष समास:- करण कारक विभक्ति से या द्वारा का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

गुणयुक्त:-गुणों से युक्त
आंखों देखी -आंखों द्वारा देखी हुई
रत्नजडित- जड़ित रत्नों से जड़ित
रेखांकित -रेखा द्वारा अंकित
दस्तकारी -दस्त से किया गया कार्य हस्तलिखित- हाथों द्वारा लिखित

संप्रदान तत्पुरुष समास:- संप्रदान कारक की व्यक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

शपथपत्र- शपथ के लिए पत्र
गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
घुड़शाला -घोड़ों के लिए शाला
हथकड़ी- हाथों के लिए कडी
रंगमंच -रंग के लिए मंच
सत्यग्रह- सत्य के लिए आग्रह
यज्ञशाला -यज्ञ के लिए शाला.
देशभक्ति -देश के लिए भक्ति

अपादान तत्पुरुष समास :-
अपादान कारक की विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
जाति भ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
देश निकला – देश से निकलना
गर्वशून्य -गर्व से शून्य
गुणरहित – गुणों से रहित

सम्बन्ध तत्पुरुष समास :- सम्बन्ध कारक का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
मतदाता – मत का दाता
जगन्नाथ – जगत का स्वामी
फुलवाड़ी – फूलो की वाड़ी
भूकंप – भू का कंपन
नरेश – नर का ईश
लोकनायक- लोक का नायक

अधिकरण तत्पुरुष समास:- अधिकरण कारक की विभक्ति (में ,मैं पर) का लोप करने से बनता है

उदाहरण:-

आप-बीती –अपने पर बीती
गृह -प्रवेश– घर में प्रवेश
सिरदर्द –सर में दर्द
वनवास –वन में वास
कविपुंगल– कवियों में पूंगल विद्वान हरफनमौला– प्रत्येक कला में खुशल

3.कर्मधारय समास:-

इस समाज में विशेषण विशेष्य उपमान उपमेय का संबंध होता है उपमान जिसके द्वारा तुलना की जाए उसमें जिसकी तुलना करते हैं
उदाहरण
नीलकमल नील (विशेषण) कमल (विशेष्य)

खुशबू -खुश है जो बू( अच्छी है जो गंघ) हताश हद है जो आशा

कालीमिर्च -काली है जो मिर्च
पूर्णांक -पूरा है जो अंक
महात्मा -महान है जो आत्मा
सज्जन -सत है जो सज्जन
पितांबर- पीला है जो अंबर
कमलेश -कमल के समान अक्ष
मृगनैनी – मृग की तरह आंखें
राजीवलोचन -राजीव के समान लोचन
चर्मसीमा -चर्म है जो सीमा

  1. दिगु समास:- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा पद संज्ञा होता है और जिसमें समुदाय का बोध होता है वह दिगु द्विगु समास कहलाता है

उदाहरण:-

पंचानन- पाचन का समाहार
तिराहा -तीन राहों का समाहार
तिरंगा -तीन रंगों का समाहार
त्रिवेदी -तीन वेदों का समूह
तिलोकी- तीन लोगों का समूह
त्रिमूर्ति -तीन मूर्ति का समूह
सप्ताह – 7 दिनों का समूह
सतसई -सात सौ दोहों का समूह
नवरत्न -नौ रत्नों का समूह
शताब्दी- 2 वर्षों का समूह
चौपड़ -चार पड़ेगा समूह
षष्ट भुज- 6 भुजाओं वाला
चौराहा -चारों राहो वाला

  1. द्वंद समास:-

जिसके दोनों पद प्रधान हो दोनों संख्याएं तथा विशेषण हो वह द्वंद्व समास कहलाता है जिसमें दोनों शब्द मुख्य होते हैं पूर्व पद और उत्तरपद दोनों मुख्य होते हैं तथा ग्रह समय इन के मध्य समुच्चयबोधक शब्द का प्रयोग किया जाता है एवं समस्त पद में अधिकतर योजक चिन्ह का प्रयोग करते हैं

उदाहरण:-
रामकिशन राम और किशन
लव कुश लव और कुश
भला बुरा भला और बुरा

इतरेतर द्वंद्व समास:-
इस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं साथ में अपना अलग अलग अस्तित्व रखते हैं जैसे माता पिता मां बाप पढ़ा लिखा भाई बहन इस समाज में और तथा एवं शब्दों का प्रयोग किया जाता है

उदाहरण :-

माता और पिता
मां और बाप
पढ़ा और लिखा
भाई और बहन

समाहार द्वंद्व समास:-
इस समास में समाहार समूह का बोध करने हेतु दो मुख्य प्रतिनिधि शब्दों का प्रयोग किया जाता है नोट इसमें आदि इत्यादि समुच्चयबोधक होते हैं

उदाहरण:-
चाय-वाय
चाय पानी
कपड़े लेते
अगल बगल
अड़ोस-पड़ोस
हाथ-पांव
खानपान
इसमें चाय आदि ,कपड़े आदि, अड़ोस आदि ,रात आदि

विकल्प द्वंद समास:-
समास में या अथवा समुच्चयबोधक का प्रयोग किया जाता है इस समाज के अधिकतर पद या शब्द विपरीत होते हैं

उदाहरण :-

यश-अपयश

एक-दो
पाप -पुण्य
सुख-दुख
सो -दो सो
लाख -दो लाख

दन्व्द समास के उदाहरण ‌-

समस्त पद समास-विग्रह

माता-पिता माता और पिता

दिन-रात दिन और रात

पिता-पुत्र पिता और पुत्र

भाई-बहन भाई और बहन

पति-पत्नी पति और पत्नी

देश-विदेश देश और विदेश

गुण-दोष गुण और दोष

पाप-पुण्य पाप और पुण्य

राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण

अपना -पराया अपना और पराया

जीवन-मरण जीवन और मरण

अन्न-जल अन्न और जल

चावल-दाल चावल और दाल

चराचर चर और अचर

गंगा-यमुना गंगा और यमुना

हानि-लाभ हानि और लाभ

सुख-दु:ख सुख और दु:ख

भला-बुरा भला और बुरा

नर-नारी नर और नारी

अमीर-गरीब अमीर और गरीब

हाथ-पैर हाथ और पैर

दूध-दही दूध और दही

  1. बहुव्रीहि समास :-

इस समाज में कोई भी शब्द प्रदान नहीं होता है दोनों सब मिलकर एक नया अर्थ प्रकट करते हैं जैसे पितांबर इसके 2 पद है पित्त प्लस अंबर इसमें पहला पद विशेषण दूसरा पद संग है अतः इसे कर्मधारय समास होना चाहिए था लेकिन बहुव्रीहि मैं पितांबर का विशेष अर्थ पीत वस्त्र धारण करने वाले श्रीकृष्ण से लिया जाएगा

उदाहरण:-

लंबोदर लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश
दशमुख 10 है जिसके मुख अर्थात रावण

Teaching Method of Child Psychology / शिक्षा मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ

शिक्षा मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ-

शिक्षा मनोविज्ञान के तहत अध्ययन की अनेक विधियां हैं। इन विधियों में कुछ प्राचीन हैं तो कुछ नई विधियां है। सभी विधियां एक दूसरे से अलग हैं और इनमें से विधियों के नाम और उनके प्रवर्तकों के संबंध में सवाल पूछे जाते हैं। ये वे विधियां हैं जिनमें से सवाल लगातार आते रहे हैं। सभी परीक्षाओं में ये विधियां समान रूप से उपयोग साबित हुई हैं।

1 अन्त:दर्शन विधि
प्रवर्तक:- विलियम वुंड तथा टिचनर
अन्त:दर्शन का अर्थ है अंदर की ओर देखना। इस विधि में स्वयं के व्यवहार का अवलोकन किया जाता है। यह मनोविज्ञान की सबसे प्राचीन विधि बताई जाती है। इसे आत्मनिरीक्षण विधि भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति स्वयं की मानसिक क्रियाओं का अध्ययन करता है।
2 बहिर्दर्शन विधि
प्रवर्तक:- जेबी वाटसन
वाटसन व्यवहारवाद के जनक थे। इस विधि में अन्य किसी व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।
3 जीवनवृत विधि
प्रवर्तक:- टाइडमैन
इस विधि में केस हिस्ट्री पर ध्यान दिया जाता है। यह विधि चिकित्सा क्षेत्र में अत्यंत उपयोगी है, लेकिन आजकल इसका उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में भी किया जाने लगा है। इस विधि का मुख्य उददेश्य व्यक्ति के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारणों की खोज करना है।
जैसे कोई बच्चा पढऩे में बहुत कमजोर या बहुत तेज है तो इस विधि से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि इसके पीछे कारण क्या है।
4 मनोविश्लेषण विधि
प्रवर्तक:- सिग्मंड फ्रायड
यह विधि मन के विश्लेषण पर आधारित है और इसमें व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन किया जाता है।
5 प्रश्नावली विधि
प्रवर्तक:- वुडवर्थ
इस विधि के माध्यम से एक ही समस्या पर अनेक व्यक्तियों की राय ली जाती है। यानि एक ही समस्या पर विभिन्न व्यक्तियों के विचार जाने जाते हैं।
6 समाजमीति विधि
प्रवर्तक:- जेएल मोरिनो
इस विधि का प्रयोग समाज मनोविज्ञान में किया जाता है। यह एक नवीन विधि है।
7 प्रयोगात्मक विधि या परीक्षण विधि
प्रवर्तक:- विलियम वुण्ट
इस विधि में चरों और घटनाओं के मध्य सम्बन्धों की की खोजबीन की जाती है। यानी चरों और घटना के बीच सम्बंध का पता लगाया जाता है।
8 रेटिंग स्केल विधि
सर्वप्रथम प्रयोग इंडियाना की न्यू होम कॉलोनी में किया गया
इस विधि में किसी व्यक्ति के व्यवहार एवं विशिष्ट गुणों का मूल्यांकन उसके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों से उनके विचार लेकर किया जाता है। यानि किसी व्यक्ति के बारे में उसके साथियों से पूछकर पता लगाया जाता है कि उसका व्यवहार कैसा है और ऐसा है तो क्यों है।

कुछ प्रमुख विधियों का निम्नानुसार विशेष वर्णन किया गया है :-
आत्म निरीक्षण विधि (अर्न्तदर्शन विधि)
आत्म निरीक्षण विधि को अर्न्तदर्शन, अन्तर्निरीक्षण विधि (Introspection) भी कहते है। स्टाउट के अनुसार ‘‘अपना मानसिक क्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन ही अन्तर्निरीक्षण कहलाता है।’’ वुडवर्थ ने इस विधि को आत्मनिरीक्षण कहा है। इस विधि में व्यक्ति की मानसिक क्रियाएं आत्मगत होती हे। आत्मगत होने के कारण आत्मनिरीक्षण या अन्तर्दर्शन विधि अधिक उपयोगी होती हे।

लॉक के अनुसार – मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण।

परिचय : पूर्वकाल के मनोवैज्ञानिक अपनी मस्तिष्क क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये इसी विधि पर निर्भर थे। वे इसका प्रयोग अपने अनुभवों का पुनः स्मरण और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिये करते थे। वे सुख, दुख, क्रोध और शान्ति, घृणा और प्रेम के समय अपनी भावनाओं और मानसिक दशाओं का निरीक्षण करके उनका वर्णन करते थे।
अर्थ : अन्तर्दर्शन का अर्थ है- ‘‘अपने आप में देखना।’’ इसकी व्याख्या करते हुए बी.एन. झा ने लिखा है ‘‘आत्मनिरीक्षण अपने स्वयं के मन का निरीक्षण करने की प्रक्रिया है। यह एक प्रकार का आत्मनिरीक्षण है जिसमें हम किसी मानसिक क्रिया के समय अपने मन में उत्पन्न होने वाली स्वयं की भावनाओं और सब प्रकार की प्रतिक्रियाओं का निरीक्षण, विश्लेषण और वर्णन करते हैं।’’

गुण
मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि : डगलस व हालैण्ड के अनुसार – ‘‘मनोविज्ञान ने इस विधि का प्रयोग करके हमारे मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि की है।’’

अन्य विधियों में सहायक : डगलस व हालैण्ड के अनुसार ‘‘यह विधि अन्य विधियों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों नियमों और सिद्धांन्तों की व्याख्या करने में सहायता देती है।’’

यंत्र व सामग्री की आवश्यकता : रॉस के अनुसार ‘‘यह विधि खर्चीली नहीं है क्योंकि इसमें किसी विशेष यंत्र या सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है।’’

प्रयोगशाला की आवश्यकता : यह विधि बहुत सरल है। क्योंकि इसमें किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है।

रॉस के शब्दों में ‘‘मनोवैज्ञानिकों का स्वयं का मस्तिष्क प्रयोगशाला होता है और क्योंकि वह सदैव उसके साथ रहता है इसलिए वह अपनी इच्छानुसार कभी भी निरीक्षण कर सकता है।’’

जीवन इतिहास विधि या व्यक्ति अध्ययन विधि

व्यक्ति अध्ययन विधि (Case study or case history method) का प्रयोग मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानसिक रोगियों, अपराधियों एवं समाज विरोधी कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिये किया जाता है। बहुधा मनोवैज्ञानिक का अनेक प्रकार के व्यक्तियों से पाला पड़ता है। इनमें कोई अपराधी, कोई मानसिक रोगी, कोई झगडालू, कोई समाज विरोधी कार्य करने वाला और कोई समस्या बालक होता है।

मनोवैज्ञानिक के विचार से व्यक्ति का भौतिक, पारिवारिक व सामाजिक वातावरण उसमें मानसिक असंतुलन उत्पन्न कर देता है। जिसके फलस्वरूप वह अवांछनीय व्यवहार करने लगता है। इसका वास्तविक कारण जानने के लिए वह व्यक्ति के पूर्व इतिहास की कड़ियों को जोड़ता है।

इस उद्देश्य से वह व्यक्ति उसके माता पिता, शिक्षकों, संबंधियों, पड़ोसियों, मित्रों आदि से भेंट करके पूछताछ करता है। इस प्रकार वह व्यक्ति के वंशानुक्रम, पारिवारिक और सामाजिक वातावरण, रूचियों, क्रियाओं, शारीरिक स्वास्थ्य, शैक्षिक और संवेगात्मक विकास के संबंध में तथ्य एकत्र करता है

जिनके फलस्वरूप व्यक्ति मनोविकारों का शिकार बनकर अनुचित आचरण करने लगता है। इस प्रकार इस विधि का उद्देश्य व्यक्ति के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारण की खोज करना है। क्रो व क्रो ने लिखा है ‘‘जीवन इतिहास विधि का मुख्य उद्देश्य किसी कारण का निदान करना है।’’

बहिर्दर्शन या अवलोकन विधि
बहिर्दर्शन विधि (Extrospection) को अवलोकन या निरीक्षण विधि (observational method) भी कहा जाता है। अवलोकन या निरीक्षण का सामान्य अर्थ है- ध्यानपूर्वक देखना। हम किसी के व्यवहार,आचरण एवं क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को बाहर से ध्यानपूर्वक देखकर उसकी आंतरिक मनःस्थिति का अनुमान लगा सकते है।

एडवर्ड एल. थार्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत- A Complete Discussion

एडवर्ड एल. थार्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत के विभिन्न नाम :-

  1. उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धांत
  2. प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत
  3. संयोजनवाद का सिद्धांत
  4. अधिगम का बन्ध सिद्धांत
  5. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत
  6. S-R थ्योरी

महत्वपूर्ण तथ्य :-

=> यह सिद्धांत प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ‘एडवर्ड एल. थार्नडाइक’ द्वारा प्रतिपादित किया गया।

=> यह सिद्धांत थार्नडाइक द्वारा सन 1913 ई. में दिया गया।

=> थार्नडाइक ने अपनी पुस्तक “शिक्षा मनोविज्ञान” में इस सिद्धांत का वर्णन किया हैं।

=> थार्नडाइक ने अपना प्रयोग भूखी बिल्ली पर किया।

=> भूखी बिल्ली को जिस बॉक्स में बन्ध किया उस बॉक्स को “पज़ल बॉक्स”(Pazzle Box) कहते हैं।

=> भोजन या उद्दीपक के रूप में थार्नडाइक ने “मछली” को रखा।

थार्नडाइक का प्रयोग :-
थार्नडाइक ने अपना प्रयोग भूखी बिल्ली पर किया। बिल्ली को कुछ समय तक भूखा रखने के बाद एक पिंजरे(बॉक्स) में बन्ध कर दिया। जिसे “पज़ल बॉक्स”(Pazzle Box) कहते हैं। पिंजरे के बाहर भोजन के रूप में थार्नडाइक ने मछली का टुकड़ा रख दिया। पिंजरे के अन्दर एक लिवर(बटन) लगा हुआ था जिसे दबाने से पिंजरे का दरवाज़ा खुल जाता था। भूखी बिल्ली ने भोजन (मछली का टुकड़ा) को प्राप्त करने व पिंजरे से बाहर निकलने के लिए अनेक त्रुटिपूर्ण प्रयास किए। बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक का काम कर रहा था ओर उद्दीपक के कारण बिल्ली प्रतिक्रिया कर रही थी।उसने अनेक प्रकार से बाहर निकलने का प्रयत्न किया।एक बार संयोग से उसके पंजे से लिवर दब गया। लिवर दबने से पिंजरे का दरवाज़ा खुल गया ओर भूखी बिल्ली ने पिंजरे से बाहर निकलकर भोजन को खाकर अपनी भूख को शान्त किया। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को बार- बार दोहराया। तथा देखा कि प्रत्येक बार बिल्ली को बाहर निकलने में पिछली बार से कम समय लगा ओर कुछ समय बाद बिल्ली बिना किसी भी प्रकार की भूल के एक ही प्रयास में पिंजरे का दरवाज़ा खोलना सीख गई। इस प्रकार उद्दीपक ओर अनुक्रिया में सम्बन्ध स्थापित हो गया।

थार्नडाइक के नियम :-

मुख्य नियम :-

  1. तत्परता का नियम :-
    यह नियम कार्य करने से पूर्व तत्पर या तैयार किए जाने पर बल देता है। यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर या तैयार होता है, तो उसे शीघ्र ही सीख लेता है। तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित होती है। ध्यान केंद्रित करने मेँ भी तत्परता सहायता करती है।
  2. अभ्यास का नियम :-
    यह नियम किसी कार्य या सीखी गई विषय वस्तु के बार-बार अभ्यास करने पर बल देता है। यदि हम किसी कार्य का अभ्यास करते रहते है, तो उसे सरलतापूर्वक करना सीख जाते है। यदि हम सीखे हुए कार्य का अभ्यास नही करते है, तो उसको भूल जाते है।
  3. प्रभाव (परिणाम) का नियम :-
    इस नियम को सन्तोष तथा असन्तोष का नियम भी कहते है। इस नियम के अनुसार जिस कार्य को करने से प्राणी को सुख व सन्तोष मिलता है, उस कार्य को वह बार-बार करना चाहता है और इसके विपरीत जिस कार्य को करने से दुःख या असन्तोष मिलता है, उस कार्य को वह दोबारा नही करना चाहता है।

गौंण नियम :-

  1. बहु-प्रतिक्रिया का नियम :-
    इस नियम के अनुसार जब प्राणी के सामने कोई परिस्थिति या समस्या उत्पन्न हो जाती है तो उसका समाधान करने के लिए वह अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएं करता है,और इन प्रतिक्रियाएं को करने का क्रम तब तक जारी रहता है जब तक कि सही प्रतिक्रिया द्वारा समस्या का समाधान या हल प्राप्त नहीं हो जाता है। प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत इसी नियम पर आधारित हैं।
  2. मनोवृत्ति का नियम :-
    इस नियम को मानसिक विन्यास का नियम भी कहते है। इस नियम के अनुसार जिस कार्य के प्रति हमारी जैसी अभिवृति या मनोवृति होती है, उसी अनुपात में हम उसको सीखते हैं। यदि हम मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो या तो हम उसे करने में असफल होते हैं, या अनेक त्रुटियाँ करते हैं या बहुत विलम्ब से करते हैं।
  3. आंशिक क्रिया का नियम :-
    इस नियम के अनुसार किसी कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करने से कार्य सरल और सुविधानक बन जाता है। इन भागों को शीघ्रता और सुगमता से करके सम्पूर्ण कार्य को पूरा किया जाता है। इस नियम पर ‘अंश से पूर्ण की ओर’ का शिक्षण का सिद्धांत आधारित किया जाता है।
  4. सादृश्यता अनुक्रिया का नियम :-
    इस नियम को आत्मीकरण का नियम भी कहते है। यह नियम पूर्व अनुभव पर आधारित है। जब प्राणी के सामने कोई नवीन परिस्थिति या समस्या उत्पन्न होती है तो वह उससे मिलती-जुलती परिस्थिति या समस्या का स्मरण करता है, जिसका वह पूर्व में अनुभव कर चुका है। वह नवीन ज्ञान को अपने पर्व ज्ञान का स्थायी अंग बना लेते हैं।
  5. साहचर्य परिवर्तन का नियम :-
    इस नियम के अनुसार एक उद्दीपक के प्रति होने वाली अनुक्रिया बाद में किसी दूसरे उद्दीपक से भी होने लगती है। दूसरे शब्दों में, पहले कभी की गई क्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में उसी प्रकार से करना । इसमें क्रिया का स्वरूप तो वही रहता है, परन्तु परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है।थार्नडाइक ने पावलव के शास्त्रीय अनुबन्धन को ही साहचर्य परिवर्तन के नियम के रूप में व्यक्त किया।

हिंदी छन्द के प्रश्न for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. छन्द सूत्रम किसकी रचना है ?
   (अ) आचार्य विश्वनाथ
   (ब) पाणिनि
   (स) आचार्य पिङ्गल
   (द) इनमें से कोई नहीं
2. छन्द का प्रथम उल्लेख किसमें किया गया है ?
   (अ) ऋग्वेद
   (ब) यजुर्वेद
   (स) महाभारत
   (द) इनमें से कोई नहीं
3. छन्द के कितने अंग होते है ?
   (अ) चार
   (ब) छह
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
4. छन्द के कितने भेद होते हैं  ?
   (अ) दो
   (ब) तीन
   (स) चार
   (द) इनमें से कोई नहीं
5. गणों की संख्या कितनी होती है  ?
   (अ) पाँच
   (ब) चार
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
6. रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ ।
    जाहि निकारो गेह ते,  कस न भेद कहि देइ।।
     प्रस्तुत पंक्ति में कौन- सा छंद है ?
   (अ) सोरठा
   (ब) उल्लाला
   (स) रोला
   (द) दोहा
7. कोई भी छंद किसमें विभक्त रहता है  ?
   (अ) चरण
   (ब) यति
   (स) चरण और यति दोनों
   (द) इनमें से कोई नहीं
8. सम मात्रिक छंद का उदाहरण है –
   (अ) दोहा
   (ब) चौपाई
   (स) सोरठा
   (द) उपरोक्त तीनो
9. रचना के आधार पर दोहे से उल्टा छंद  है ?
   (अ) रोला
   (ब) सोरठा
   (स) उल्लाला
   (द) बरवै
10. सुनु सिय सत्य असीस हमारी  है।
      पूजहिं मन कामना तुम्हारी।।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) चौपाई
   (द) इनमें से कोई नहीं
11. जिस छंद के पहले और तीसरे चरण में 11-11 एवं दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं , तुक मध्य में होता है, वह कौन- सा छंद है  ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) रोला
   (द) उल्लाला
12. निम्न में से कौन-सा छंद सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) चौपाई
   (ब) गीतिका
   (स) हरिगीतिका
   (द) दोहा
13. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद का उदाहरण है ?
   (अ) तोमर
   (ब) आल्हा
   (स) राधिका
   (द) उल्लाला
14. विषम मात्रिक छंद नहीं  है –
   (अ) कुण्डलिया
   (ब) छप्पय
   (स) सोरठा
   (द) इनमें से कोई नहीं
15. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) बरवै
   (ब) दोहा
   (स) सोरठा
   (द) रोला
16. निम्न में से एक मात्रिक छंद नहीं  है ?
   (अ) अरिल्य
   (ब) तोमर
   (स) रूपमाला
   (द) घनाक्षरी
17. किसको पुकारे यहाँ रोकर अरण्य बीच ,
      चाहे जो करो शरण्य शरण तिहारे हैं। 
      इन पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) घनाक्षरी
   (स) देवघनाक्षरी
   (द) उल्लाला
18. चौपाई छन्द में  कुल कितनी मात्राएँ होती हैं  ?
   (अ) 16
   (ब) 32
   (स) 64
   (द) इनमें से कोई नहीं
19. मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़इ गिरिवर गहन।
      जसु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल दहन।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) बरवै
   (द) रोला
20. दोहा और रोला को मिलाने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) कुण्डलिया
   (स) हरिगीतिका
   (द) गीतिका
21. अवधि शिला का उर पर था गुरु भार।
       तिल-तिल काट रही थी, दृग जल धार।
       प्रस्तुत पंक्तियों में  कौन-सा छंद है –
   (अ) दोहा 
   (ब) उल्लाला 
   (स) बरवै 
   (द) सोरठा
22. निराला की कविता ‘जूही की कली ‘ किस छंद का उदाहरण है ?
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
23. वीर (आल्हा) किस जाति का छंद  है ?
   (अ) वर्णिक 
   (ब) मात्रिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) मिश्रित्त 
24. हम जो कुछ देख रहे हैं, सुन्दर है सत्य नहीं है।
      यह दृश्य जगत भासित है, बिन कर्म शिवत्व नहीं।
   (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (ब) 10-10 वर्णों की यति से 20 वर्णों वाला वर्णिक छंद है। 
   (स) 13-13 मात्राओं की यति से 26 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
25. वर्ण या मात्रा से प्रतिबन्ध रहित छंद कहलाता है –
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
26. चरण में वर्णों की संख्या (आरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा 
   (ब) मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा-बसंततिलका 
   (स) शार्दूलविक्रीड़ित- इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता
   (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित 
27. चरण में वर्णों की संख्या (अवरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) तोटक-मालिनी-बसंततिलका-मत्तगयन्द 
   (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक 
   (स) मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक-बसंततिलका 
   (द) बसंततिलका-मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक
28. चरण में मात्राओं की संख्या (कम से अधिक) के आधार पर मात्रिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) हरिगीतिका-रोला-गीतका-चौपाई 
   (ब) रोला-गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका 
   (स) गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका-रोला 
   (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका 
29. सम मात्रिक छंद है –
   (अ) हरिगीतिका 
   (ब) उल्लाला 
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
30.  तुलसी राम  नाम सम मीत न आन।
       जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।
       कवि समाज को बिरवा चले लगाय।
       सींचन की सुधि लीजै मुरझि न जाय।।
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) चौपाई 
   (ब) बरवै 
   (स) दोहा
   (द) इनमें से कोई नहीं 
31.  रोला और उल्लाला के मिलने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलियाँ  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
32. 22 से 26 वर्ण तक के छंद को कहते हैं –  
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलिया  
   (स) सवैया 
   (द) कवित्त (घनाक्षरी) 
33.  नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारामंडल है। 
       बंदी विविध बिहंग शेषफण सिंहासन है। 
       हे शरणदायिनी देवि तू करती सबकी त्राण है। 
       हे मातृभूमि संतान हम तू जननी तू प्राण है। 
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) कुण्डलिया  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मत्तगयन्द 
   (द) छप्पय  

34. वह कौन-सा छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 -15 की यति से 31 वर्ण होते हैं और चरण के अंत में गुरु होता   है।  
   (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
   (ब) सवैया  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

35.  “धूल भरे अति शोभित स्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।” प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दुर्मिल सवैया  
   (ब) घनाक्षरी  
   (स) मालती (मत्तगयन्द)
   (द) इनमें से कोई नहीं 

36.  “पुर तै निकासी रघुबीर बधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।”
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) उपेन्द्रवज्रा  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मालती(मत्तगयन्द) 
   (द) दुर्मिल सवैया  

37.  वह कौन-सा छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में 14-12 की यति से 26 मात्राएँ होती है ,अंत में लघु-गुरु होता है ?
   (अ) घनाक्षरी  
   (ब) छप्पय  
   (स) गीतिका 
   (द) हरिगीतिका  

38.  दण्डक छंद का उदाहरण है –
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) मालती (मत्तगयन्द ) 
   (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

39.  रूपमाला और रोला निम्न में से किस छंद के उदाहरण हैं ?
   (अ) सम मात्रिक छंद  
   (ब) अर्द्धसम मात्रिक छंद  
   (स) विषम मात्रिक छंद 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
40.  सेनापति का ऋतु  वर्णन किस छंद में लिखा गया है – 
   (अ) सवैया  
   (ब) छप्पय  
   (स) कवित्त (मनहरण )
   (द) मंदाक्रांता  

छंद प्रश्नावली का उत्तर 
1. (स) आचार्य पिङ्गल
2. (अ) ऋग्वेद
3. (स) आठ
4. (ब) तीन
5. (स) आठ
6. (द) दोहा
7. (स) चरण और यति दोनों
8. (ब) चौपाई
9. (ब) सोरठा
10. (स) चौपाई
11. (ब) सोरठा
12. (द) दोहा
13. (द) उल्लाला
14. (स) सोरठा
15. (द) रोला
16. (द) घनाक्षरी
17. (ब) घनाक्षरी
18. (स) 64
19. (ब) सोरठा
20. (ब) कुण्डलिया
21. (स) बरवै 
22. (स) मुक्तक 
23. (ब) मात्रिक 
24. (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
25. (स) मुक्तक 
26. (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित (11,14,17,19 वर्ण)
27. (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक (23,15,14,12 वर्ण)
28. (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका (16,24,26,28 मात्राएँ )
29. (अ) हरिगीतिका (प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ)
30. (ब) बरवै ( विषम चरण में 12 मात्राएँ,सम चरण में 7 मात्राएँ )
31. (स) छप्पय 
32. (स) सवैया 
33. (द) छप्पय  
34. (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
35. (स) मालती (मत्तगयंद) (प्रत्येक चरण में 23 वर्ण, 8 भगण, अंत में 2 गुरु )
36. (द) दुर्मिल सवैया  (प्रत्येक चरण में 24 वर्ण, 8 सगण)
37. (स) गीतिका 
38. (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
39. (अ) सम मात्रिक छंद  
40. (स) कवित्त (मनहरण )

Child Development & Pedagogy Important Theories & Definitions for CTET/TETs/KVS etc

Child Development & Pedagogy Important Theories & Definitions for CTET/TETs/KVS etc

This notes is brought to you by CTET Qualified Top Learner Neetu Rana.

Neetu Rana

Child Development & Pedagogy Important Theories & Definitions for CTET/TETs/KVS etc

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत और प्रतिपादक for CTET/TETs/KVS etc

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत और प्रतिपादक for CTET/TETs/KVS etc

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बाल विकास और शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत और प्रतिपादक for CTET/TETs/KVS etc

अनुकूलन , आत्मसात्करण , समंजन , संज्ञानात्मक संरचना , मानसिक संक्रिया , स्कीम्स , स्कीमा

अनुकूलन , आत्मसात्करण , समंजन , संज्ञानात्मक संरचना , मानसिक संक्रिया , स्कीम्स , स्कीमा

पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण मना है ।

पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -पकियोओं में बॉटा है।

(i) आत्मसात्करण ( Assimilations )
(ii) समंजन ( Accommodation )

(1) आत्मसात्करण एक ऐसी पक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रिमाओं का सहारा लेता है । यह एक जीव – वैज्ञानिक प्रक्रिया है । आत्मसात्करण को हम इस उदाहरण के माध्यम से भी समझ सकते हैं कि जब हम भोजन करते हैँ तो मूलरूप से भोजन हमारे भीतर नहीं रह पाता है बल्कि भोजन से बना हुआ रक्त हमारी मांसपेशियों मे इस प्रकार समा जाता है कि जिससे हमारी मांसपेशियों की संरचना का आकार बदल जाता है । इससे यह बात स्पष्ट होती है कि आत्मसात्करण की प्रक्रिया से संरचनात्मक परिर्वतन होते हैं ।

पियाजे के शब्दों में ” नए अनुभव का आत्मसात्करण करने के लिए अनुभव के स्वरूप में परिवर्तन लना पड़ता है । जिससे वह पुराने अनुभव के साथ मिलजुलकर संज्ञान के एक नए ढांचे को पैदा करना पड़ता है । इससे बालक के नए अनुभवों में परिर्वतन होते है ।

(2) संमजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है , तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है और उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।

समंजन को आत्मसात्करण की एक पूरक प्रकिया माना जाता है । बालक अपने वातावरण या परिवेश के साथ समायोजित होने के लिए आत्मसात् करण और समंजन का सहरा आवश्यकतानुसार लेते हैं ।

संज्ञानात्मक संरचना ( Cognitiive structure ) : पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक संरचना से तात्पर्य बालक का मानसिक संगठन से है । अर्थात् बुद्धि में संलिप्त विभिन्न क्रियाएं जैसे – प्रत्यक्षीकरण स्मृति, चिन्तन तथा तर्क इत्यादि ये सभी संगठित होकर कार्य करते हैं । वातावरण के साथ सर्मयाजन , संगठन का ही परिणाम है ।

मानसिक संक्रिया ( Mental operation ): बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए जाने वाले चिन्तन को ही मानसिक संक्रिया कहते हैं ।

स्कीम्स ( Schemes ) : यह बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए गए चिन्तन का आभिव्यकत रूप होता । अर्थात् मानसिक संक्रियाओं का अभिव्यक्त रूप ही स्कीम्स होता है ।

स्कीमा ( Schema ) : एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्यीकरण किया जा सके, स्कीमा होता है ।

CTET 2020 Paper 2: Exam Pattern, Complete Syllabus

Paper II (for Classes VI to VIII) Elementary Stage: (Exam Duration – 2.5 hours)

Paper II will be for candidates who intend to teach Classes VI to VIII. The CTET 2020 exam pattern for Paper-II is:

The CTET Syllabus 2020 for Paper II (for classes VI to VIII – Elementary Stage) is:

I. Child Development and Pedagogy 30 Questions

(a) Child Development (Elementary School Child) – 15 Questions

• Concept of development and its relationship with learning

• Principles of the development of children

• Influence of Heredity & Environment

• Socialization processes: Social world & children (Teacher, Parents,Peers)

• Piaget, Kohlberg and Vygotsky: constructs and critical perspectives

• Concepts of child-centered and progressive education

• Critical perspective of the construct of Intelligence

• Multi-Dimensional Intelligence

• Language & Thought

• Gender as a social construct; gender roles, gender-bias and educational practice

• Individual differences among learners, understanding differences based on diversity of language, caste, gender, community, religion etc.

• Distinction between Assessment for learning and assessment of learning;

• School-Based Assessment, Continuous & Comprehensive Evaluation;

• Formulating appropriate questions for assessing readiness levels of learners; for enhancing learning and critical thinking in the classroom and for assessing learner achievement.

(b) Concept of Inclusive education and understanding children with special needs – 5 Questions

• Addressing learners from diverse backgrounds including disadvantaged and deprived

• Addressing the needs of children with learning difficulties, ‘impairment’ etc.

• Addressing the Talented, Creative, Specially abled Learners

(c) Learning and Pedagogy 10 Questions

• How children think and learn; how and why children ‘fail’ to achieve success in school performance.

• Basic processes of teaching and learning; children’s strategies of learning; learning as a social activity; social context of learning.

• Child as a problem solver and a ‘scientific investigator’

• Alternative conceptions of learning in children, understanding children’s ‘errors’ as significant steps in the learning process.

• Cognition & Emotions

• Motivation and learning

• Factors contributing to learning – personal & environmental

II. Language I – 30 Questions

(a) Language Comprehension – 15 Questions

Reading unseen passages – two passages one prose or drama and one poem with questions on comprehension, inference, grammar and verbal ability (Prose passage may be literary, scientific, narrative or discursive)

(b) Pedagogy of Language Development – 15 Questions

• Learning and acquisition

• Principles of language Teaching

• Role of listening and speaking; function of language and how children use it as a tool

• Critical perspective on the role of grammar in learning a language for communicating ideas verbally and in written form;

• Challenges of teaching language in a diverse classroom; language difficulties, errors and disorders

• Language Skills

• Evaluating language comprehension and proficiency: speaking, listening, reading and writing

• Teaching- learning materials: Textbook, multi-media materials multilingual resource of the classroom

• Remedial Teaching

III. Language II – 30 Questions

(a) Comprehension – 15 Questions

Two unseen prose passages (discursive or literary or narrative or scientific) with question on comprehension, grammar and verbal ability

(b) Pedagogy of Language Development – 15 Questions

• Learning and acquisition

• Principles of language Teaching

• Role of listening and speaking; function of language and how children use it as a tool

• Critical perspective on the role of grammar in learning a language for communicating ideas verbally and in written form;

• Challenges of teaching language in a diverse classroom; language difficulties, errors and disorders

• Language Skills

• Evaluating language comprehension and proficiency: speaking, listening, reading and writing

• Teaching – learning materials: Textbook, multi-media materials, multilingual resource of the classroom

• Remedial Teaching

IV. Mathematics and Science – 60 Questions

(i) Mathematics – 30 Questions

(a) Content 20 Questions

• Number System

• Knowing our Numbers

• Playing with Numbers

• Whole Numbers

• Negative Numbers and Integers

• Fractions

• Algebra

• Introduction to Algebra

• Ratio and Proportion

• Geometry

• Basic geometrical ideas (2-D)

• Understanding Elementary Shapes (2-D and 3-D)

• Symmetry: (reflection)

• Construction (using Straight edge Scale, protractor, compasses)

• Mensuration

• Data handling

(b) Pedagogical issues – 10 Questions

• Nature of Mathematics/Logical thinking

• Place of Mathematics in Curriculum

• Language of Mathematics

• Community Mathematics

• Evaluation

• Remedial Teaching

• Problem of Teaching

(ii) Science – 30 Questions

(a) Content – 20 Questions

• Food

• Sources of food

• Components of food

• Cleaning food

• Materials

• Materials of daily use

• The World of the Living

• Moving Things People and Ideas

• How things work

• Electric current and circuits

• Magnets

• Natural Phenomena

• Natural Resources

(b) Pedagogical issues – 10 Questions

• Nature & Structure of Sciences

• Natural Science/Aims & objectives

• Understanding & Appreciating Science

• Approaches/Integrated Approach

• Observation/Experiment/Discovery (Method of Science)

• Innovation

• Text Material/Aids

• Evaluation – cognitive/psychomotor/affective

• Problems

• Remedial Teaching

V. Social Studies/Social Sciences – 60 Questions

(a) Content 40 Questions

History

• When, Where and How

• The Earliest Societies

• The First Farmers and Herders

• The First Cities

• Early States

• New Ideas

• The First Empire

• Contacts with Distant lands

• Political Developments

• Culture and Science

• New Kings and Kingdoms

• Sultans of Delhi

• Architecture

• Creation of an Empire

• Social Change

• Regional Cultures

• The Establishment of Company Power

• Rural Life and Society

• Colonialism and Tribal Societies

• The Revolt of 1857-58

• Women and reform

• Challenging the Caste System

• The Nationalist Movement

• India After Independence

Geography

• Geography as a social study and as a science

• Planet: Earth in the solar system

• Globe

• Environment in its totality: natural and human environment

• Air

• Water

• Human Environment: settlement, transport and communication

• Resources: Types-Natural and Human

• Agriculture

Social and Political Life

• Diversity

• Government

• Local Government

• Making a Living

• Democracy

• State Government

• Understanding Media

• Unpacking Gender

• The Constitution

• Parliamentary Government

• The Judiciary

• Social Justice and the Marginalised

(b) Pedagogical issues – 20 Questions

• Concept & Nature of Social Science/Social Studies

• Class Room Processes, activities and discourse

• Developing Critical thinking

• Enquiry/Empirical Evidence

• Problems of teaching Social Science/Social Studies

• Sources – Primary & Secondary

• Projects Work

• Evaluation