Factors Effecting to Learning notes by India’s top learners

📖 📖 शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक 📖 📖

ऐसे कारक जो किसी ना किसी रूप में बालक की शिक्षा को प्रभावित करते हैं। वह उसके द्वारा किए गए कार्यों में या तो अपना सहयोग देते हैं, या बाधा उत्पन्न करते हैं। वह सभी शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारकों के अंतर्गत आते हैं।

ऐसे कारक हो जो बच्चे को सीखने में प्रभावित करते हैं। उन्हें दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है, जो कि निम्नलिखित हैं ~
● व्यक्तिगत कारक,
● पर्यावरणीय कारक / वातावरणीय कारक।

यही दो कारण बालक को सीखने में या तो योगदान देते हैं। और यही कारक बच्चो के अधिगम में बाधा भी उत्पन्न कर सकते हैं। इन कारकों का वर्णन निम्नलिखित तथ्यों के द्वारा हम कर सकते हैं~

🌺 🌿 🌺 व्यक्तिगत कारक 🌺 🌿 🌺

जब बच्चा किसी कार्य को करता है या किसी कार्य को सीखता है। तो उस कार्य में उसके स्वयं के द्वारा कई प्रकार के कारक होते हैं। जो बाधा उत्पन्न करते हैं, या उस में सहयोग देते हैं। ऐसे कारकों को ही व्यक्तिगत कारक के अंतर्गत रखा जाता है। जिनका वर्णन निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से किया गया है~

🍃🍂 प्रेरणा में कमी~
एक व्यक्ति या बच्चे के सीखने में अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। क्योंकि बालक अगर प्रेरित नहीं होगा, तो वह सीखने में कई प्रकार की कठिनाइयों को महसूस कर सकता है। लेकिन वही बालक अगर किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित होगा। तो वह हजारों कठिनाइयां आने के पश्चात भी अपने कार्यों में बाधा उत्पन्न नहीं होने देगा। अतः सीखने की क्रिया में अभिप्रेरणा की कमी किसी भी प्रकार से नहीं होनी चाहिए।

🍂🍃 रूचि में कमी~
जिस प्रकार से बच्चे के सीखने में प्रेरणा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ठीक उसी प्रकार से रुचि भी बच्चे के सीखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। जिस कार्य के प्रति बच्चों को करने में रूचि होती है वह कार्य है। निश्चित ही पूर्ण रूप से उत्साहित होकर संपन्न करेंगे, लेकिन उसी के विपरीत जिस कार्य को करने में बच्चे की रुचि नहीं होती है। वह उस कार्य को नहीं कर पाएगा इसीलिए हमें बच्चों को जिस प्रकार के भी कार्य करवाए जाने चाहिए। उनमें हमें रुचि उत्पन्न करना अति आवश्यक है। तभी हम बच्चे का सीखने के प्रति ध्यान आकर्षित कर पाएंगे।

🍃🍂 आत्मविश्वास में कमी~
एक बच्चे के शिक्षण प्रक्रिया करने के अंतर्गत या किसी भी प्रकार के कार्य को करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत ही अति आवश्यक है। क्योंकि बिना आत्मविश्वास के संसार में कोई भी व्यक्ति किसी भी कार्य को करने के लिए उत्साहित नहीं रहता है, क्योंकि अगर बच्चे में आत्मविश्वास की कमी हो जाएगी। उसे स्वयं के ऊपर ही विश्वास नहीं रहेगा, कि मैं इस कार्य को कर पाऊंगा। तो निश्चित ही वह बालक उस कार्य को नहीं कर पाएगा। किसी भी कार्य को करने के लिए आत्मविश्वास का होना जरूरी होता है।

🍂🍃 शारीरिक अंग एवं तत्व ~
हम सभी यह भली-भांति जानते हैं, कि अगर हम किसी कार्य को करना चाहते हैं। तो उसके लिए हमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से तत्पर रहना अति आवश्यक होता है। अगर कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से पीड़ित है, तो वह कार्यों को करने में असमर्थ रहेगा। कई बार बच्चे उदास होते हैं, एवं अत्यधिक कार्य करने से वह थकान भी महसूस करते हैं, जिससे कि उनका शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। और वह कार्यों को नहीं कर पाते हैं। तो बच्चे के सीखने में शारीरिक अंगों एवं तत्वों का भी उचित रहना आवश्यक है। यह भी उसे प्रभावित करते हैं।

🍃🍂 उम्र एवं परिपक्वता~
बच्चे की सीखने की प्रक्रिया में आयु एवं परिपक्वता प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देती है, क्योंकि हम सभी जानते हैं, कि किसी भी कार्य को करने के लिए एक आयु सीमा होती है। एवं उस आयु सीमा में हमें उम्र के आधार पर परिपक्वता भी प्राप्त हो जाती है। उचित आयु एवं परिपक्वता के चलते ही मानव का सर्वागीण विकास हो पाता है। समय से पूर्व एवं समय के पश्चात कार्यों को करने व समझने में कई बार परिस्थितियां अनुकूलित नहीं रहती है। अतः हम कह सकते हैं, कि उम्र एवं परिपक्वता भी बच्चे के सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

🍂🍃 किसी चीज या व्यक्ति के प्रति संवेदना व धारणा~
जब बालक किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अपने विचार प्रस्तुत करता है। तो वह किसी आधार पर यह विचार प्रस्तुत करता है। इन आधारों को कई बार धारणा का रूप दे देता है। वह किसी वस्तु के प्रति अपनी धारणा बना लेता है कि यह वस्तु उचित नहीं है, या यह वस्तु उचित है। इस प्रकार की धारणाएं भी बच्चे के सीखने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। एवं बच्चे के सीखने में उसकी संवेदनाएं व ज्ञानेंद्रियों का भी योगदान होता है। बच्चा अपनी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से भी अपने वातावरण को पहचानता है, या वह विषय वस्तु को। जो कि उसके सीखने में सहायक है। वह उसमें भी अपनी इंद्रियों एवं धारणाओं को संबंधित रखता है।

🍃🍂 करके सीखने की योग्यता~
जब बच्चा किसी कार्य को होते हुए देखता है। एवं उसी कार्य को वह अपने द्वारा करता है। तो उसे विषय वस्तु का ज्ञान स्थाई रूप से प्राप्त हो जाता है। वह उस किए गए कार्य में आगे करने मे किसी भी प्रकार की त्रुटियों को नहीं करता है। अतः बच्चे के सीखने में स्वयं के द्वारा करके सीखना अति आवश्यक भूमिका निभाता है। बच्चा अपने जीवन में किसी भी प्रकार के कार्य को वह स्वयं से करेगा। तो उसका अनुभव उसे जीवन पर्यंत रहेगा। वह उस कार्य को कभी भूल नहीं सकता है। अतः हमें बच्चे को जो भी कार्य कराए जाने चाहिए। वह तो एवं उसके द्वारा ही कराना होगा।

🌻 🌿 🌻 पर्यावरणीय कारक 🌻 🌿 🌻

ऐसे कारक जो बच्चे के सीखने में अपना योगदान देते हैं, लेकिन अगर परिस्थितियां विपरीत हो जाए तो वह बच्चे के सीखने में बाधा भी उत्पन्न करते हैं। जो कि उसके आसपास के वातावरण या पर्यावरण से जुड़े हुए होते हैं। उन कारकों को पर्यावरणीय कारक या वातावरणीय कारक के अंतर्गत रखा जाता है~

🍂🍃 शिक्षक, माता-पिता एवं मित्र~
बच्चे की शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक माता-पिता एवं उसके संगी-साथी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्योंकि बच्चा सबसे अधिक अपने माता-पिता के संपर्क में ही रहता है। अगर माता-पिता का आपसी संबंध यह व्यवहार उचित होगा। तो उसका प्रभाव बच्चे के सीखने की प्रक्रिया में भी पड़ेगा। ठीक अगर उसके विपरीत हम माता-पिता अनुचित व्यवहार करेंगे तो उसका भी प्रभाव बच्चे के ऊपर पड़ेगा। एवं परिवार के पश्चात बालक अपने शिक्षक एवं मित्रों के संपर्क में आता है। अतः उनका भी बच्चे के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। शिक्षक का अनुकरण बच्चा करता है। अतः शिक्षण कराते समय शिक्षक को उचित व्यवहार व तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। क्योंकि शिक्षक हमेशा आदर्श व्यापार करता है, और उसी का अनुकरण बच्चा करता है। इसमें मित्रों का भी महत्वपूर्ण सहयोग रहता है। और उनका व्यवहार भी बच्चे के जीवन में योगदान देता है।

🍃🍂 प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण~
बच्चा की शिक्षण प्रक्रिया में बाहरी कारकों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। क्योंकि जितना बालक अपने परिवार से सीखता है। उतना ही वह बाहरी दुनिया से भी सीखता है। जिस प्रकार का व्यवहार उसके सामाजिक क्षेत्र में किया जाता है। वह भी उसी प्रकार का व्यवहार करेगा। बालक की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से ही हम यह ज्ञात कर सकते हैं, कि बालक सीखने में किस प्रकार से तत्पर है। अतः बच्चे की सामाजिक स्थिति, सांस्कृतिक स्थिति एवं प्राकृतिक स्थिति उसके अनुकूल होने चाहिए। अगर परिस्थितियां प्रतिकूल होंगी तो वह उसके सीखने में बाधा उत्पन्न करेगी।

🍂🍃 मीडिया एवं संचार का प्रभाव~
इस बात से हम सभी भलीभांति परिचित हैं, कि आज के समय में मीडिया एवं संचार का कितना उपयोग किया जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रूप से संचार के माध्यमों पर ही निर्भर है। इसी से प्रभावित होकर बच्चे भी इनका उपयोग करने से वंचित नहीं है, मीडिया के माध्यम से हमें कई प्रकार की जानकारियां प्राप्त होती है। हम उन सूचनाओं का आदान प्रदान करते हैं। अतः बच्चा भी इन सभी से बहुत कुछ सीख सकता है। ठीक इसी के विपरीत अगर बच्चा इनका अनुचित उपयोग करें, तो उसका बच्चे के जीवन पर भी गलत प्रभाव पड़ेगा। अतः बच्चे की सीखने की प्रक्रिया में मीडिया एवं संचार का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

उपर्युक्त सभी सभी तथ्य बच्चे के सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चा इनसे पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। अतः हमें इन सभी तथ्यों को बच्चों के अनुकूल करना होगा। इनके प्रतिकूल परिस्थितियां होने पर बच्चे का सर्वांगीण विकास नहीं होगा। उसके विकास में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होगी।

📚 📚 📕 समाप्त 📕 📚 📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

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🌀 *शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक*🌀 ऐसे कारक जो हमारे शिक्षा को प्रभावित करते है या बच्चों की शिक्षा में बाधा डालते हैं जो कि निम्नलिखित है ☑️ *व्यक्तिगत कारक* ➖ व्यक्तिगत कारक म यह कह सकते हैं कि इसमें बच्चे की खुद की या किसी की भी स्वयं की समस्या होती है जिस कारण से वह शिक्षा में शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता है ▪️ *प्रेरणा की कमी* ➖ इसमें बच्चे को सही मार्गदर्शन ना मिल पाने के कारण भी प्रेरणा में कमी आती है कभी-कभी वह अपने काम के प्रति प्रेरित नहीं होता है या तात्कालिक , पारिवारिक किसी कारण किसी भी समस्या के कारण वह प्रेरित नहीं होता है जिस कारण से वह शिक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करता हैं। ▪️ *रुचि में कमी* ➖ जब जब बच्चे किसी काम में रुचि नहीं लेते हैं या किसी भी समस्या के कारण अपने कार्य को या शिक्षण प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाते हैं ▪️ *आत्मविश्वास में कमी*➖ कई बार क्या होता है कि जब हम कोई लक्ष्य बनाते हैं तो हमारे मन में तर्क वितर्क चलता है हम इस कार्य को कर सकते हैं या नहीं यह कार्य कैसे होगा कैसे करेंगे इस प्रकार के कई प्रश्न हमारे मन में चलते हैं अगर किसी कारण बस हम फेल कर गए तो हमारे विश्वास में कमी आ जाती है ▪️ *उदासी*➖ हमारे परिवार में या हमारे आसपास या व्यक्तिगत किसी भी प्रकार की शारीरिक बीमारी हो जाने के कारण हम कभी-कभी उदासी महसूस करते हैं या जैसे किसी कार्य के लिए घर से निकलते हैं कोई कुछ बोल दिया तो हम यह धारणा बना लेते हैं कि इसकी वजह से आज हमारा काम नहीं हुआ और उदास हो जाते हैं ▪️ *थकान*➖ जब कभी हमारे ऊपर अतिरिक्त भार दे दिया जाता है या काम करते-करते बच्चे थक जाते हैं तो वह थकान का लचीलापन का अनुभव करते हैं ▪️ *उम्र और परिपक्वता*➖ कभी-कभी क्या होता है कि कुछ बच्चे उम्र से पहले या यह कह सकते हैं कि समय से पहले वह परिपक्व हो जाते हैं तो काफी जटिलताओं का अनुभव करते हैं बच्चे का उम्र से पहले परिपक्वता आ जाना भी एक प्रकार से शिक्षा को प्रभावित करने वाला कारक है क्योंकि जिस समय में जो कार्य करना चाहिए अगर वह उस समय में नहीं होता है तो वह हमारे कार्य को फिर प्रभावित करता है ▪️ *किसी चीज के प्रति धारणा*➖ बच्चों के मन में कभी-कभी गलत धारणाएं बैठ जाती हैं किसी चीज के प्रति जो कि उनको आगे बढ़ने से रोकती है ▪️ *भावनात्मक स्थिति*➖ उपयुक्त वातावरण ना होने के कारण आपस में परिवार में विवाद होने के कारण बहुत खुशी एवं किसी भी दुख के कारण भावनात्मक स्थिति कभी-कभी खराब हो जाती है जो कि शिक्षा में बहुत ज्यादा प्रभाव डालती है ▪️ *करके सीखना*➖ जब बच्चा कभी किसी चीज को अपने से करता है तो हो सकता है कि वह उस कार्य को करने में सफल ना हो जिससे वह प्रभावित होता है आगे उस कार्य को करने में या असफलता के कारण उसको डर बन जाता है जो कि उसके शिक्षा को प्रभावित करता है ▪️ *किसी तथ्य के प्रति रवैया*➖ किसी घटना या तथ्य के हो जाने के कारण बच्चा कभी-कभी अच्छा व्यवहार या रवैया नहीं दिखाता है या उसका सही तरीके से व्यवहार नहीं रहता है जो कि उसकी शिक्षा प्रक्रिया में बाधा डालता हैं। 🔆 *शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक*🔅 ▪️ *शिक्षक ,साथी और माता-पिता*➖ शिक्षक साथी और माता-पिता इनके साथ संबंध और सहयोग एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान करता है ▪️ *परिवेश ( प्राकृतिक सांस्कृतिक सामाजिक* ➖ यह सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित करती है परिवेश बच्चे के विकास और स्थिति के अनुकूल होना चाहिए। ▪️ *मीडिया प्रभाव* ➖ जानकारी आदान प्रदान करने का प्रमुख स्रोत है इसलिए यह कारक शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है । धन्यवाद 🙏

✍️ बाय प्रज्ञा शुक्ला

📚📒 शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक ( factors Effecting to learning)📚📒

💫 ऐसे कारक जो हमारी शिक्षा को प्रभावित करते हैं या बच्चों की शिक्षा में बाधा डालते हैं यह कारक निम्न हो सकते हैं-

💠 व्यक्तिगत कारक➖
व्यक्तिगत कारक में यह कह सकते हैं कि इसमें बच्चे की खुद की या किसी की भी स्वयं की समस्या होती है जिस कारण से वह शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता है।

💫 प्रेरणा की कमी ➖
इसमें बच्चे को सही मार्गदर्शन ना मिल पाने के कारण भी प्रेरणा में कमी आती है कभी-कभी वह अपने काम के प्रति प्रेरित नहीं होता है या परिवारिक इसी कारण किसी समस्या के कारण वह प्रेरित नहीं होता है जिस कारण से वह शिक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करता है।

💫 रुचि की कमी ➖
जब बच्चे किसी भी काम में रुचि नहीं लेते हैं या किसी भी समस्या के कारण अपने काम को या शिक्षण प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाते हैं जब बच्चे की किसी कार्य के प्रति रुचि नहीं होती तो वह सीख भी नहीं सकते हैं और ना ही बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं रुचि बच्चों के शिक्षण को प्रभावित करती है।

💫 आत्मविश्वास की कमी ➖
कई बार ऐसा होता है कि जब हम कोई लक्ष्य बनाते हैं तो हमारे मन में तर्क वितर्क चलता रहता है हम ऐसे कार्य को कर सकते हैं या इस कार्य को नहीं कर सकते यह कार्य कैसे होगा कैसे करेंगे इस प्रकार के कई प्रश्न हमारे मन में चलते रहते हैं अगर किसी कारण बस हम उस कार्य को करने में असफल हो जाते हैं तो हमारा विश्वास भी कम हो जाता है यानी हमारे आत्मविश्वास में कमी आ जाती है।

💫 उदासी ➖
हमारे परिवार में या हमारे आसपास या व्यक्तिगत किसी भी प्रकार की शारीरिक बीमारी हो जाने के कारण हम कभी कभी उदासी महसूस करते हैं या जैसे किसी कार्य के लिए घर से निकलते हैं कोई कुछ बोल दिया तो हम यह धारणा बना लेते हैं कि इसकी वजह से आज हमारा काम नहीं हुआ और हम उदास हो जाते हैं।

💫 थकान ➖
जब कभी हमारे ऊपर अतिरिक्त भार दे दिया जाता है या काम करते-करते बच्चे थक जाते हैं तो वह थकान का लचीलापन महसूस या अनुभव करते हैं।

💫 उम्र और परिपक्वता ➖
कभी-कभी क्या होता है कि कुछ बच्चे उम्र से पहले या यह कह सकते हैं की समय से पहले वह परिपक्व हो जाते हैं तो काफी जटिलताओं का अनुभव करते हैं बच्चे का उम्र से पहले परिपक्वता आ जाना भी एक प्रकार से शिक्षा को प्रभावित करने वाला कारक है क्योंकि जिस समय में जो कार्य करना चाहिए अगर वह उस समय में नहीं होता है तो वह हमारे कार्य को प्रभावित करता है।

💫 किसी चीज़ के प्रति धारणा ➖
बच्चों के मन में कभी-कभी गलत धारणाएं बैठ जाती है किसी चीज के प्रति जोकि उनको आगे बढ़ने से रोकती हैं।

💫 भावात्मक स्थिति ➖
उपर्युक्त वातावरण ना होने के कारण आपस में परिवार में विवाद होने के कारण बहुत खुशी एवं किसी भी दुख के कारण भावनात्मक स्थिति कभी-कभी खराब हो जाती है जो कि शिक्षा में बहुत ज्यादा प्रभाव डालती है।

💫करके सीखना ➖
जब बच्चा कभी किसी चीज को अपने से करता है तो हो सकता है कि वह उस कार्य को करने में सफल ना हो जिससे वह प्रभावित होता है आगे उस कार्य को करने में या असफलता के कारण उसको डर बन जाता है जोकि उसकी शिक्षा को प्रभावित करता है।

💫 किसी तथ्य के प्रति रवैया ➖
किसी घटना या तथ्य के हो जाने के कारण बच्चा कभी-कभी अच्छा व्यवहार या रवैया नहीं दिखाता है या उसका सही तरीके से व्यवहार नहीं रहता है जोकि उसकी शिक्षा प्रक्रिया में बाधा डालता है।

🔰 शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक🔰

💫 शिक्षक,साथी और माता-पिता➖
शिक्षक साथी और माता पिता इनके साथ संबंध और सहयोग एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान करता है।

💫 परिवेश (प्राकृतिक सांस्कृतिक सामाजिक कारक➖
यह सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित करती हैं परिवेश बच्चे के विकास और स्थिति के अनुकूल होना चाहिए।

💫 मीडिया का प्रभाव ➖
जानकारी आदान प्रदान करने का प्रमुख स्रोत है इसलिए यह कारक शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🔆 *शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक*
बच्चों को शिक्षा के रूप में प्रभावित करने वाले कारक बहुत हो सकते हैं जैसे में बच्चे के किए गए कार्य में सहयोग देना या बाधा उत्पन्न करना यह सब है शिक्षा को प्रभावित करने के कारक में ही आएंगे।

ऐसे कारक जो बच्चे को सीखने में प्रभावित करता है उन्हें जो प्रकार से बताया गया है जोकि निम्नलिखित हैं।
⚜️ व्यक्तिगत कारक
⚜️ पर्यावरणीय कारक या वातावरणीय कारक ।
ये सभी तथ्य हैं जो बच्चे को शिक्षा में प्रभावित करते हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

💐 *व्यक्तिगत कारक*
ऐसे कार्य जो बच्चों के कार्य में बाधा उत्पन्न होते हैं या उनसे उनको सहयोग मिलता है ऐसे कारक व्यक्तिगत कारक के अंतर्गत आते हैं जिसका वर्णन नीचे दिया गया है।

⚜️ प्रेरणा की कमी
एक बच्चे के सीखने में अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान होता है बालक अगर अभी प्रेरित नहीं होगा तो उसे सीखने में कई कठिनाइयों का महसूस करता है लेकिन अगर वही कार्य को सीखने में रुचि लेता है या प्रेरित होता है तो कितनी भी कठिनाई आती हैं और कितनी भी बघाए होने के बावजूद भी वह क्रिया को सीखने में अभिप्रेरणा की कमी किसी भी प्रकार से नहीं होती है।

⚜️ रुचि में कमी
जिस प्रकार से बच्चे के सीखने में प्रेरणा या रुचि का महत्वपूर्ण भूमिका होती है ठीक उसी प्रकार से बच्चे के सीखने में रुचि का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है अगर बच्चे किसी कार्य के प्रति रुचि होते हैं तो वह कार्य जल्दी सीख जाते हैं अगर वह किसी कार्य को करने में रुचि नहीं होते हैं उन्हें व कठिन लगता है और उन्हें सीखने में भी समय लगता है लेकिन हमें बच्चों से कार्य करवाना चाहिए उनमें रुचि उत्पन्न करवाना अति आवश्यक है हमें बच्चे के सीखने के लिए ध्यान आकर्षित करना चाहिए जिससे वह सीखे।

⚜️ आत्मविश्वास में कमी
बच्चे अगर कोई कार्य करते हैं तो उन्हें आत्मविश्वास की कमी नहीं होनी चाहिए अगर आत्मविश्वास की कमी होती है उनमें वह किसी कार्य को नहीं कर पाते हैं क्योंकि किसी भी कार्य को करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत ही आवश्यक होता है आत्मविश्वास के बिना कोई भी व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए उत्साहित नहीं रहता है अगर बच्चे में आत्मविश्वास की कमी आ जाएगी तो उसे स्वयं से ऊपर की विश्वास से ही हट जाता है जिससे वह कार्य को नहीं कर पाते हैं तो हमें उन बालक को उस कार्य को करने लिए उत्साहित करना चाहिए जिससे वह कार्य को करने के लिए उनमें आत्मविश्वास जागरूक हो।

⚜️ उदासी एवं थकान
जब बच्चे कार्य करते हैं तो उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से तैयार रहना आवश्यक होता है अगर कोई व्यक्ति या बच्चे शारीरिक रूप से पीड़ित है यहां उन्हें कोई बीमारी है तो वह उस कार्य को करने में असमर्थ होते हैं और इससे वजह से कई बार बच्चे उदास हो जाते हैं और अत्यधिक कार्य करने में और थकान भी महसूस करते हैं जिससे कि उनका शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वह कार्य को नहीं कर पाते हैं बच्चे के सीखने में यदि उस कार्य को करने में प्रभावित करते हैं जैसे कोई बच्चे को कोई परेशानी होती है तो वह उतना काम नहीं कर पाते हैं जितना उन्हें करना चाहिए।

⚜️ उम्र और परिपक्वता
बच्चे जब कोई कार्य करते हैं तो उसे सीखने की प्रक्रिया में आए हुए एवं परिपक्वता प्रत्यक्ष रूप से योगदान देती है क्योंकि हम जानते हैं कि किसी भी कार्य करने के लिए आयु सीमा होती है उससे सीमा में हम रहकर ही उम्र के आधार पर ही करते हैं जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है बालक में परिपक्वता भी प्राप्त होती है उचित और अनुचित का भी बालक को ज्ञान होता है आयु एवं परिपक्वता के चलते ही मानव का सर्वागीण विकास हो पाता है समय से पूर्व एवं समय के पश्चात कार्यों को करने व समझने के कई बार परिस्थितियां अनुकूल रहती है तो हम कह सकते हैं कि उम्र एवं परिपक्वता भी बच्चे के सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है उम्र के पहले अगर कोई कार्य सीख जाते हैं वह भी हानिकारक है और उम्र के बाद भी सीखते हैं तो वह भी हानिकारक है। जैसे बड़े होते हैं बातों को समझने लगते हैं।

⚜️ किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा—
जब कोई व्यक्ति या बालक के किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तो वह आधार या विचार प्रस्तुत कर पाते हैं किसी वस्तु के प्रति अपना धारणा बना लेते हैं जो कि उचित और अनुचित दोनों होता है यह वस्तु उचित भी होता है और अनुचित भी होता है और यह सब धारणाएं बच्चे के सीखने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान देती है बच्चे के सीखने में उसकी संवेदनाएं और ज्ञान इंद्रियों का भी विकास होता है वह अपनी इंद्रियों के माध्यम से ही अपने वातावरण को पहचानते हैं जो कि सीखने में सहायक होता है।

⚜️ भावनात्मक स्थिति
बच्चों के उपयुक्त वातावरण ना होने के कारण उन्हें अपने परिवार में वाद विवाद होने कारण बहुत खुशी एवं किसी भी दुख के कारण भावनात्मक स्थिति कभी कभी खराब हो जाती है जो कि शिक्षा में बहुत तेज ज्यादा प्रभाव डालती है जैसे घर में कोई माता-पिता के बीच में झगड़ा ही हो या पास हो जिससे बच्चों पर भावनात्मक स्थिति खराब होती हैं।

⚜️ करके सीखने की योग्यता
बालक किसी कार्य को करते हुए देखते हैं तो वह उसी कार्य को स्वयं के द्वारा करना चाहते हैं जिससे उनमें ज्ञान स्थाई रूप से प्राप्त हो जाता है वह उस कार्य को आगे भी करना चाहते हैं और उस कार्य में त्रुटि नहीं करना चाहते हैं बच्चे स्वयं के द्वारा करके सीखते हैं जो कि उनके लिए बहुत ही आवश्यक भूमिका निभाते हैं बच्चा अपने जीवन में किसी भी प्रकार के कार्य को स्वयं करना चाहते हैं जिससे उनका अनुभव भी बढ़ता है जिसे वह अपने आगे जीवन में प्राप्त याद रखते हैं और वह उस कार्य को कभी नहीं भूल सकते जो बच्चे स्वयं से कार्य करते हैं इसलिए हमें बच्चे को खुद से स्वयं कार्य करवाना चाहिए जिससे वह उसके द्वारा सीख सकें।

🔆 *शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक* जो बच्चे के सीखने में योगदान देते हैं लेकिन किसी परिस्थिति के कारण होते हैं उन्हें सीखने में बाधा उत्पन्न होती है जो कि उनके आसपास के वातावरण या पर्यावरण से जुड़े होते हैं उन कारणों को पर्यावरणीय कारक या वातावरणीय कारक के अंतर्गत आते हैं।

⚜️ शिक्षक ,साथी और माता-पिता— बच्चे की शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक साथी और माता-पिता का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि बच्चा सबसे ज्यादा अपने माता-पिता के संपर्क में ही रहते हैं क्योंकि उनका सबसे ज्यादा अपने माता पिता के साथ ही बिताते हैं और माता-पिता भी बच्चे को अच्छे से जानते हैं क्योंकि उनका ज्यादा समय उन्हीं के साथ गुजरता है माता-पिता बच्चे को आपसी संबंध भी सिखाते हैं कि किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए तो उस पर उनका प्रभाव बच्चे के सीखने की प्रक्रिया में भी पड़ता है ठीक उसी तरह है जब वे माता-पिता का विपरित अनुचित व्यवहार करते हैं तो उसका प्रभाव बच्चे के ऊपर पड़ता है परिवार के बाद माता-पिता शिक्षक एवं मित्रों के साथ ज्यादा समय बिताते हैं जो कि उनके जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है शिक्षक का अनुकरण करते हैं जैसे-जैसे शिक्षा के उचित व्यवहार व तकनीकों का प्रयोग करना सिखाते हैं या करते हैं उसी से बच्चों का अनुकरण करके सीखते हैं क्योंकि शिक्षा का आदर्श व्यव्हार करते हैं और उसी तरह बच्चा भी करते हैं मित्र का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है और उनका व्यवहार बच्चे की जीवन में बहुत योगदान देता है और बहुत ही आवश्यक है जो कि उन्हें विकास की सुविधा प्रदान करता है ।

⚜️ परिवेश ( प्राकृतिक सांस्कृतिक सामाजिक)—
बच्चे की शिक्षा ने प्रक्रिया में बाहरी कारकों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है जितना बालक अपने परिवार मित्र और शिक्षक से सीखता है उतना ही वह अपने बाहरी दुनिया से भी सीखता है जिस प्रकार से व्यवहार देखने को मिलता है वह उसके सामाजिक क्षेत्र में किया जाता है वह उसी प्रकार का व्यवहार भी करता है बालको को सामाजिक एवं सांस्कृतिक के स्थिति एवं प्रकृति की स्थिति उनके अनुकूल होना चाहिए स्थितियां अनुकूल होंगी तो उनके सीखने में बाधा उत्पन्न भी करती है।

⚜️ मीडिया प्रधान
यह हम अच्छे से जानते हैं कि आज के समय में मीडिया एवं संचार कितना योगदान देता है बच्चों के सीखने में प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रूप से संचार माध्यमों पर ही निर्भर रहते हैं इससे बच्चे में इसका उपयोग करने से भी वंचित नहीं है क्योंकि मीडिया के माध्यम से ही हमें कई प्रकार की जानकारियां भी प्राप्त होती है सूचनाएं भी मिलती है जो कि हम आदान-प्रदान भी करते हैं बच्चा इन्हीं सब से बहुत कुछ सीख सकते हैं अगर उसका अच्छी तरीके से उन्हें अनुचित उपयोग किया जाए तो उसके जीवन भर भी गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा अगर वह अनुचित उपयोग करेंगे तो उसका गलत ही प्रभाव पड़ सकता है इसलिए बच्चे को सीखने की प्रक्रिया में मीडिया एंड संचार का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है
बच्चे के सीखने में सभी चीजें बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान निभाते हैं इन सभी तथ्यों से बच्चे सीखते ही हैं जिससे उनका सर्वागीण विकास से हो पाता हैं इसलिए यह सभी कार्य शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

Noted By:-Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏🙏➡️

शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक

ऐसे कारक जो बालक की अधिगम प्रक्रिया को किसी न किसी रूप से प्रभावित करते हैं शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक कहलाते हैं

शिक्षा को प्रभावित करने वाला व्यक्तिगत कारक

ऐसा कारक जो बालक के स्वयं के कारण किसी न किसी रूप से उसकी अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है व्यक्तिगत कारक कहलाता है

शिक्षा को प्रभावित करने वाले व्यक्ति कारक निम्न है

प्रेरणा की कमी -जब हम किसी कार्य को करते हैं अगर उस कार्य को करने के लिए हमारा उत्साह अच्छा है तो हम उस कार्य को आसानी से कर सकते हैं लेकिन यदि उस कार्य को करने के लिए हमारे प्रेरणा और उत्साह अच्छा नहीं है या उसमें कमी है तो हम उस कार्य को आसानी से नहीं कर सकते हैं उसमें कुछ न कुछ बाधा उत्पन्न होती है

रूचि में कमी -यदि किसी कार्य में हमारी रुचि अच्छे होते हैं तो हम उस कार्य में अपना 100 प्रतिशत योगदान करते हैं और अपनी पूरी क्षमता से उस कार्य को करते हैं यदि किसी कार्य में हमारी रुचि नहीं होती है उस कार्य को हम अपनी क्षमता के अनुसार नहीं कर पाते हैं इस प्रकार रुचि बालक के अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करती है

आत्मविश्वास में कमी -यदि किसी कार्य को करते समय हमें खुद पर विश्वास नहीं होता है या हमें विफलता का डर होता है तो हम उस कार्य को अच्छे से नहीं कर पाते हैं यदि कार्य में हम हमारा आत्मविश्वास अच्छा है तो हम उस कार्य को बेहतर ढंग से कर पाते हैं

उदासी -यदि हम किसी कारण वंश उदास होते हुए किसी कार्य को करते हैं तो उस कार्य को हम अच्छी प्रकार से नहीं कर पाते हैं अपना पूरा योगदान नहीं दे पाते है

थकान- यदि हमारा शरीर थका हुआ है और दिमाग बोल रहा है कि हमे उस कार्य को करना है लेकिन शरीर उस कार्य को करने में हमारा साथ नहीं दे पाता है और अब हम उसे अपनी क्षमता के अनुसार नहीं कर पाते हैं

उम्र और परिपक्वता -यदि हम अपनी उम्र से अधिक क्षमता का कार्य करते हैं तो उसे ठीक प्रकार से नहीं कर पाते या उसमें कुछ ना कुछ कारण से त्रुटियां रह जाती है ।

किसी चीज की संवेदना और धारणा- यदि हमारी धारणा/ संप्रत्यय किसी वस्तु के प्रति अच्छी नहीं बन पाती हैं तो हम उसके प्रति बेहतर प्रतिक्रिया नहीं कर पाते हैं।
जैसे किसी पब्लिकेशन की बुक मैं बहुत ज्यादा गलतियां होती हैं या उसका प्रस्तुतीकरण अच्छा नहीं होता है तो उसके बारे में हमारी यह धारणा बन जाती है और जब भी उस पब्लिकेशन से कोई अच्छी बुक आती है फिर भी हम उसे नहीं पढ़ते हैं क्योंकि उस पब्लिकेशन के प्रति हमारी धारणा गलत बनी हुई है

भावनात्मक स्थिति -यदि किसी कार्य के प्रति हमारी भावना है /हमारे इमोशन अच्छे नहीं है तो अब उस कार्य को ठीक प्रकार से नहीं कर पाते हैं।

करके सीखने की योग्यता -कहीं बालको में अनेक ऐसी प्रतिभा होती है जिसे वे बेहतर ढंग से कर सकते हैं लेकिन अपनी आलसी प्रवृति के कारण वह उस कार्य को करते नहीं और अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं

किसी तथ्य के प्रति रवैया- यदि हमारा शिक्षा के प्रति रवैया अच्छा नहीं है तो भी हम अच्छी प्रकार से अधिगम नहीं कर सकते हैं।

शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक-

वह कारक जो बालक के अधिगम प्रक्रिया को जो बालक की व्यक्तिगत न होते हुए भी प्रभावित करती हैं पर्यावरणीय कारक कहलाते हैं

शिक्षक साथी और माता-पिता-
शिक्षक साथी और माता-पिता के साथ संबंध और सहयोग एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान करता है क्योंकि ज्यादातर समय बालक इन सभी के साथ बिताता है

परिवेश ( प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक)-
यह सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित प्रभावित करते हैं प्रवेश बच्चे के विकास और स्थिति के अनुकूल होना चाहिए

मीडिया का प्रभाव-
जानकारी का आदान प्रदान करने का प्रमुख साधन मीडिया है यह बालक के अधिगम प्रक्रिया को बहुत प्रभावित करता है

इसलिए यह सभी कारक शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है।

Notes by Ravi kushwah

💥 बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक💥

🌟 बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हो सकते हैं।

🎄मुख्य रूप से बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करने वाले दो कारक होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं :-

1️⃣ शिक्षा को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत कारक।
2️⃣ शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक।

1️⃣ शिक्षा को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत कारक :-
🔥ऐसी कार्य जो बच्चों के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं तथा उनमें नकारात्मकता पैदा करते हैं। ऐसे कारक व्यक्तिगत कारक के अंतर्गत आते हैं।

🌳 व्यक्तिगत कारक के प्रकार :-
🔥व्यक्तिगत कारक अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जिसमें से कुछ कारकों को निम्नलिखित रूप में दर्शाया जा रहा है :-

💥प्रेरणा की कमी
💥 रुचि में कमी
💥आत्मविश्वास में कमी
💥उदासी एवं थकान
💥उम्र और परिपक्वता
💥किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा
💥भावनात्मक स्थिति
💥करके सीखने की योग्यता

💥प्रेरणा की कमी :-
🌸किसी भी बच्चे या व्यक्ति विशेष को किसी कार्य को सीखने या करने के लिए अभिप्रेरणा का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है अगर हमारे अंदर किसी कार्य को करने के लिए अभिप्रेरणा और रुचि नहीं होगी तो हम प्रेरित नहीं होंगे और हमें आसान कार्य भी कठिन लगेगा तथा हम वह कार्य कर नहीं पाएंगे।

💥 रुचि में कमी :-
🌸जैसा कि हम जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति विशेष को किसी कार्य को सीखनी है करने में प्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान है ठीक उसी प्रकार उसी का भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है अगर बच्चे को किसी कार्य के प्रति रुचि नहीं है तो वह कार्य नहीं सीख सकता तथा अगर बच्चे में उस कार्य को करने के प्रति रुचि है तो वह जल्द से जल्द सीख लेता है तथा उसे कठिन भी नहीं लगता है इसलिए हमें ऐसे ऐसे रुचि पूर्ण कार्य करवाते रहना चाहिए जिससे बच्चे का ध्यान आकर्षित हो तथा उन्हें सीखने में परेशानी का सामना ना करना पड़े।

💥आत्मविश्वास में कमी :-
🌸 आत्मविश्वास, यह एक प्रकार की ऐसी आंतरिक शक्ति है जो हर एक व्यक्तियों में रहना अति आवश्यक है आत्मविश्वास के बिना कोई भी व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए उत्साहित नहीं रहता है जैसे कि अगर बच्चे में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है तो उनका स्वयं से विश्वास हट जाता है तथा वह किसी कार्य को नहीं कर पाते तथा अपने कार्य में आत्मविश्वास और जागरूक नहीं हो पाते हैं।

💥उदासी एवं थकान :-
🌸जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हम कोई कार्य कर रहे होते हैं तो उस समय हमें शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से तैयार रहना अति आवश्यक होता है अगर कोई बच्चा शारीरिक रूप से पीड़ित है या उसे कोई बीमारी है या वह दिन भर का थका हुआ है तो वह कितना भी आसान कार्य क्यों ना हो उसे करने में उसे असावधानी महसूस जरूर होती है। इसलिए हमें किसी कार्य को करने के लिए शारीरिक तथा मानसिक रूप से भी तैयार रहना अति आवश्यक होता है।

💥उम्र और परिपक्वता :-
🌸होने लगता है आयु एवं परिपक्वता की योगदान से ही व्यक्ति के सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास होता है। कोई भी कार्य समय से पूर्व या समय के बाद नहीं हो पाता है।ठीक उसी प्रकार सीखना भी होता है कि अगर हम समय से पहले कुछ सीख जाते हैं तो भी हानिकारक है और समय से ज्यादा बाद सीखेंगे तभी भी हानिकारक होगा इसलिए हमें अपने कार्य समय-समय पर ही करना चाहिए।

💥किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा :-
🌸जब भी कोई बालक या व्यक्ति किसी विषय वस्तु को देख लेते हैं तो उस विषय या व्यक्ति के प्रति उनके मन में अनेकों प्रकार के विचार उत्पन्न होने लगते हैं।इसमें ज्ञानेंद्रियों का भी विकास होता है। और फिर उस वस्तु के प्रति अपनी उचित या अनुचित का धारणा बना लेते हैं जो कि सीखने में अत्यंत सहायक होता है।

💥भावनात्मक स्थिति :-
🌸 कई बार हमें देखने को मिलता है कि बच्चों की अनुकूल उनके परिवार में परिवेश ना होने के कारण तथा परिवार में हर वक्त वाद विवाद होने के कारण उन बच्चों की भावनात्मक स्थिति खराब होने लगती है जो कि शिक्षा में बहुत ही ज्यादा प्रभाव डालती है जैसे कि घर में माता-पिता के बीच झगड़ा हो और बच्चे ने सुन लिया तो उसे भी मानसिक परेशानी होता ही होता है। इसलिए बच्चे की शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए हमें अपनी परिवार परिवेश में भावनात्मक स्थिति भी शुद्र रखने की आवश्यकता है।

💥करके सीखने की योग्यता :-
🌸जैसा कि हम सभी जानते हैं।जो कार्य हम खुद से करके सीखते हैं।वह कार्य हम कभी भूलते नहीं और अच्छे से समझ में भी आ जाता है।बालक एक जिज्ञासु प्राणी है वह किसी भी कार्य को करते हुए देखते हैं तो करना चाहते हैं मतलब उन्हें हर एक चीज का प्रत्यक्ष रूप से प्रैक्टिकल करने की जिज्ञासा रहती है।बच्चे स्वयं करके भी सीखते हैं यह उनके लिए बहुत ही आवश्यक भूमिका निभाते हैं तथा उनका अनुभव बढ़ाते हैं और जीवन भर याद रहते हैं इसलिए हमें बच्चों को करके सीखने का मौका दिया जाना चाहिए जिसे विनय ने चीजों और तौर-तरीकों का खोज कर सके तथा उनकी स्मरण शक्ति बढ़ती रहे।

2️⃣ शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक :-

💥 शिक्षक, साथी और माता पिता
💥 परिवेश (सामाजिक – सांस्कृतिक)
💥 मीडिया प्रभाव

💥शिक्षक, साथी और माता पिता :-
🌸इन सभी के साथ संबंध व सहयोग बच्ची को एक तनाव मुक्त वातावरण और उसे संतुलित विकास का सुविधा प्रदान करता है।

💥 परिवेश (सामाजिक – सांस्कृतिक) :-यह सारी स्थितियां शिक्षा को सीधा प्रभावित करती हैं। परिवेश बच्चों के विकास एवं स्थिति अनुकूल होनी चाहिए।

💥 मीडिया प्रभाव :-
🌸 मीडिया का हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही बड़ा योगदान है।इसके द्वारा हम अपनी जानकारी आदान प्रदान करते हैं इसलिए यह कारक शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार हैं।

🔥🔥Notes by :- Neha Kumari 😊

🙏🙏🙏🙏धन्यवाद्🙏🙏🙏🙏

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🌀 *शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक*🌀

💫 *व्यक्तिगत कारक*➖

1️⃣ *प्रेरणा की कमी*➖ प्रेरणा की कमी एक महत्वपूर्ण कारक है जो बालक की शिक्षा को प्रभावित करती है। किसी बच्चे में
कुछ करने के लिए इच्छा, प्रेरणा से ही उत्पन्न होती है । यदि बालकों को प्रेरणा नहीं मिलती तो उनका किसी भी कार्य को करने में मन नहीं लगता है और भी बेहतर नहीं सीख पाते हैं।

2️⃣ *रुचि में कमी*➖

छात्रों में रुचि में कमी एक महत्वपूर्ण कारक है जो शिक्षा को प्रभावित करती है यदि बच्चों को पढ़ने में रुचि नहीं रहेगी तो उनका ध्यान पढ़ाई में नहीं लगेगा और भी बेहतर नहीं सीख पाएंगे।

3️⃣ *आत्मविश्वास में कमी*➖ आत्मविश्वास की कमी भी एक छात्र को उसकी योग्यता व क्षमता के आधार पर ज्ञान का निर्माण करने में बाधा उत्पन्न करती है बहुत अधिक आत्मविश्वास भी एक छात्र की कमजोरियों को स्वीकार करने और सुधारने से रोक सकता है। एक छात्र में आत्मविश्वास का होना बहुत ही आवश्यक है।

4️⃣ *उदासी* ➖ उदासी भी एक ऐसा कारक है जो शिक्षा को प्रभावित करता है यदि बच्चे किसी भी कारण से उदास हैं तो उनका मन यह रूचि शिक्षा में नहीं रखता है।

जैसे बच्चे के घर में कुछ हुआ है जैसे लड़ाई, इत्यादि को देखकर बच्चे के मन में उदासी छा जाती है और यह उदासी बच्चे की सीखने में बाधा उत्पन्न करता है।

5️⃣ *थकान*➖ थकान भी बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करते हैं यदि बच्चे थकान महसूस कर रहे हैं । यदि बच्चे को जरूरत से ज्यादा कार्य दे दिया जाए तो बच्चे उस कार्य को करते-करते थकान महसूस करने लगते हैं। जिससे वे नहीं सीख पाते हैं।

6️⃣ *उम्र और परिपक्वता*➖ समय से पहले बच्चों का परिपक्व होना भी शिक्षा को प्रभावित करता है। बच्चे को सही समय में ही परिपक्व होना चाहिए क्योंकि कोई भी कार्य का स्तर आयु के आधार पर ही रखा जाता है।

7️⃣ *किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा*➖

कभी-कभी बच्चों में किसी भी चीज या कार्य के प्रति एक संप्रत्यय बन जाता है यह धारणा गलत भी हो सकती है और सही भी लेकिन यदि बच्चों के मन में किसी चीज के प्रति गलत धारणाएं बन जाती है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बच्चे कुछ गलत सुन लेते हैं तो उसी के आधार पर अपनी धारणा बना लेते हैं जो उनकी सीखने को प्रभावित करता है।

8️⃣ *भावनात्मक स्थिति*➖ भावनात्मक स्थिति भी सीखने की गति में वृद्धि करती है कोई भी ज्ञान बच्चे के खुशी या संतुष्टि के अनुकूल होती है तभी बच्चा बेहतर सीख पाते हैं और यदि वह ज्ञान बच्चे के लिए संतोषप्रद नहीं होता है तो वह सीखने में बाधा उत्पन्न करता है। इसलिए किसी बच्चे की भावना भी शिक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

9️⃣ *करके सीखने की योग्यता*➖
जब बच्चा किसी कार्य को स्वयं से करता है तो उस कार्य को आसानी से सीख जाता है और यदि वह उस कार्य को स्वयं नहीं करता है केवल सुन और समझ लेते हैं लेकिन उस कार्य को खुद से करके नहीं देखते हैं तो वे उस कार्य को करने में असफल हो जाते हैं जो उनकी शिक्षा को प्रभावित करता है।

🔟 *किसी तथ्य के प्रति रवैया*➖ किसी तथ्य के प्रति रवैया भी बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करता है। यदि बच्चे ने किसी तथ्य को लेकर उसका व्यवहार या रवैया अच्छे से नहीं रहता है तो यह व्यवहार भी उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता है।

💫 *शिक्षा को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारक*💫

1️⃣ *शिक्षक ,साथी और माता-पिता*➖ इनके साथ संबंध और सहयोग एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान करता है छात्रों के व्यवहार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।शिक्षक माता-पिता और साथियों के साथ संबंध भी एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय कारक हैं जो बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करता है।

2️⃣ *परिवेश (प्राकृतिक सांस्कृतिक, सामाजिक)*➖ बच्चे की शिक्षा में परिवेश भी एक महत्वपूर्ण कारक है जो प्रभावित करता है प्राकृतिक कारक जैसे बच्चे के आसपास की जलवायु वायुमंडल स्थितियां आदि आते हैं जो कि बच्चे की सीखने को प्रभावित करते हैं सांस्कृतिक कारक जैसे बच्चे की संस्कृति भी सीखने को प्रभावित करता है सामाजिक परिवेश में विशेष रुप से घर का वातावरण शामिल होता है जो बच्चे के सीखने को प्रभावित करता है।

यह सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित करती हैं परिवेश जो है, बच्चों के विकास और स्थिति के अनुकूल होनी चाहिए।

3️⃣ *मीडिया का प्रभाव*➖ मीडिया जानकारी आदान प्रदान करने का प्रमुख स्रोत है इसलिए यह कारक शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार हैं।

✍🏻notes by manisha gupta ✍🏻

🔆 शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक ➖

🎯 व्यक्तिगत कारक➖

व्यक्तिगत कारक वो है जो व्यक्ति के खुद के होते हैं और जिनसे शिक्षा प्रभावित होती है क्योंकि जो व्यक्तिगत कारक हैं उनको व्यक्ति स्वयं क्रिएट या उत्पन्न करता है |

बालक की शिक्षा को प्रभावित करने वाले विभिन्न प्रकार के व्यक्तिगत कारक हैं जो कि निम्न है ➖

🔅प्रेरणा की कमी ➖

यदि किसी कार्य को सीखने के प्रति हमारी प्रेरणा नहीं है तो हम उस कार्य को लग्न के साथ नहीं करते हैं और यदि उस कार्य के प्रति हमारी प्रेरणा है तो हम उस कार्य को पूरी लग्न और ईमानदारी के साथ करते हैं अर्थात प्रेरणा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है जिसका योगदान शिक्षा में प्रमुख रूप से है |

🔅 रुचि में कमी ➖

यदि किसी कार्य को करने में हमें रुचि नहीं है तो इससे भी हमारी शिक्षा प्रभावित होती है क्योंकि किसी भी कार्य को बिना रूचि के नहीं किया जा सकता है |
जैसे यदि किसी की रूचि शिक्षक बनने के प्रति है और उसे जबरदस्ती पुलिस का कार्य करवाया जाता है तो वह व्यक्ति पुलिस की जिम्मेदारी को उतने अच्छे से नहीं निभा सकता जितनी वो शिक्षक की जिम्मेदारी को निभा सकता है क्योंकि उसे पुलिस बनने के प्रति रूचि नहीं है |

🔅 आत्मविश्वास में कमी ➖

किसी बच्चे को या किसी व्यक्ति को स्वयं में आत्मविश्वास नहीं है तो वह किसी भी कार्य को पूरा नहीं कर सकता है और अपनी शिक्षा में संपूर्ण योगदान नहीं दे सकता है जिससे उसकी शिक्षा प्रभावित हो सकती है |
जैसे यदि हमें शिक्षक प्रतियोगिता को उत्तीर्ण करना है तो हमें स्वयं पर आत्मविश्वास होना जरूरी है कि हां हम कर सकते हैं लेकिन यदि हमें स्वयं में आत्मविश्वास नहीं है तो हम शिक्षक प्रतियोगिता को उत्तीर्ण नहीं कर सकते हैं |
और इस प्रकार से हमारी शिक्षा प्रभावित होती है इसलिए आत्मविश्वास में कमी भी शिक्षा को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है |

🔅 उदासी ➖

उदासी भी किसी न किसी प्रकार से हमारी शिक्षा को प्रभावित करने का एक महत्वपूर्ण कारक है उदाहरण के लिए यदि हमारा मन किसी कारण से उदास है तो इससे भी पढ़ाई में मन नहीं लगता है या पढ़ाई करने का मन नहीं करता है और इससे भी शिक्षा प्रभावित होती है |

🔅 थकान ➖

थकान शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की हो सकती है शारीरिक थकान अत्यधिक कार्य करने से होती है और मानसिक थकान मस्तिष्क पर अधिक जोर देने पर हो जाती है जिससे हमारा मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है इससे भी शिक्षा प्रभावित होती है और यह शिक्षा को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है |

🔅 उम्र की परिपक्वता ➖

परिपक्वता शिक्षा को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित करती है सकारात्मक परिपक्वता वह है जो उचित समय पर /सही समय में सही उम्र के साथ आती है और नकारात्मक परिपक्वता वह है जो समय से पहले और उम्र से पहले ही आ जाती है जैसे कई लोग अपने आप को समय से पहले परिपक्व दिखाना चाहते हैं जो कि उनके आने वाले जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए परिपक्वता सही समय पर सही उम्र के साथ आए तभी वह अच्छा परिणाम दिखाती है अन्यथा उसके नकारात्मक परिणाम भी होते हैं और इस प्रकार से हमारी शिक्षा प्रभावित होती है |

🔅 किसी चीज के प्रति संवेदना ➖

अर्थात किसी चीज के प्रति धारणा बनाना जो कि शिक्षा को बहुत प्रभावित करती है |
जैसे कोई पुस्तक किसी पब्लिकेशन से प्रकाशित होती है जो कि उस पब्लिकेशन के प्रति हमारी गलत धारणा है तो वह बदलती नहीं है और उस पुस्तक से पढ़ने का मन नहीं करता है जो कि शिक्षा को बहुत अधिक प्रभावित कर सकता है या करता है |

🔅 भावनात्मक स्थिति ➖

किसी भी कार्य के प्रति यदि हमारी भावना है तो उससे भी पढ़ाई में मन नहीं लगता जैसे किसी कार्य में या किसी चीज में हम असफल हो जाते हैं तब भी पढ़ाई में मन नहीं लगता है इससे हमारी शिक्षा प्रभावित होती है क्योंकि असफल हो जाने के बाद व्यक्ति दुखी ,कुंठित और परेशान रहता है जिससे शिक्षा प्रभावित होती है इसके विपरीत यदि व्यक्ति की संवेदना जखुशी मैं है तब भी व्यक्ति का पढ़ाई में मन नहीं लगता है और इस प्रकार भी शिक्षा प्रभावित होती है |

🔅 करके सीखने की योजना ➖

करके सीखने की योजना से भी शिक्षा प्रभावित होती है जैसे हम कुछ भी करके सीखते हैं तो हमारा ज्ञान स्थाई हो जाता है और नहीं करते हैं तो हम उसे जल्द ही भूल जाते हैं और इस प्रकार भी शिक्षा प्रभावित होती है |

🔅 किसी तथ्य के प्रति रवैया ➖

हमें किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उस लक्ष्य के प्रति अपने तरीके को को देखना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले उस लक्ष्य के प्रति, तरीका कैसा है रवैया कैसा है हम जो व्यवहार करते हैं वह कैसा है यदि यह हमें पता नहीं होगा तब भी उससे हमारी शिक्षा प्रभावित होती है जो कि हमारे व्यक्तिगत कारक है इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार होते हैं |

व्यक्तिगत कारक वो है जिन्हें व्यक्ति खुद उत्पन्न करता है जो व्यक्ति की शिक्षा को को आंतरिक रुप से प्रभावित करते हैं |

🎯 शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक ➖

🔅 शिक्षक ,साथी, और माता-पिता ➖

यदि शिक्षक साथी और माता-पिता इन सभी स्तर पर बच्चे के प्रति व्यवहार अच्छा है तो बच्चा एक अच्छे प्रकार से ग्रोथ कर सकता है और उसका मानसिक तनाव भी कम हो सकता है |
अर्थात माता-पिता ,शिक्षक और साथी इन सब के साथ संबंध है और सहयोग अच्छा है तो एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान की जा सकती है |

🔅 परिवेश (प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक,) ➖

जो हमारी प्रकृति है हमारी संस्कृति है या हमारी सामाजिकता है जो शिक्षा को सीधे प्रकार से प्रभावित करती है |
अर्थात यह सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित करती है इसके साथ-साथ परिवेश एक बच्चे के विकास में और साथ ही साथ बच्चे की स्थिति के अनुकूल होना चाहिए अन्यथा इससे बच्चे की शिक्षा में बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा |

🔅 मीडिया का प्रभाव➖

मीडिया जानकारी साझा करने या जानकारी आदान प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है इसलिए यह कारक भी शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने में जिम्मेदार है |
इन सभी की जिम्मेदारी है कि बच्चे की शिक्षा में जितना प्रभावी है जितनी जानकारी है। कितनी आवश्यकता है कितना,नहीं है इन सभी बातों का मुख्य रुप से ध्यान रखा जाए अन्यथा वर्तमान स्थिति में बच्चे की शिक्षा में बहुत अधिक प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि वर्तमान स्थिति में मीडिया की भूमिका बहुत अधिक प्रभावी है

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

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🌊शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक🌀
(Factor Effecting to learning)

ऐसे कारक जो किसी न किसी रूप में बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करता है या बधा पहुंचाती है। इसके निम्न कारक हो सकते हैं ………

💐व्यक्तिगत कारक ( individual factor)-इसमें बच्चे के खुद की कमी होता है, इनके अनेकों वजह हो सकते हैं जो बच्चे के शिक्षा को प्रभावित करते हैं अतः शिक्षा को प्रभावित करने के निम्नलिखित कारक है………..

🌲प्रेरणा की कमी…..
किसी भी कार्य को करने का मन नहीं है , में भी एक प्रेरणा की कमी हो सकती हैं कभी कभी बच्चों को तत्कालिक या परिवारिक reason के कारण motion नहीं मिल पाते हैं। जिसके कारण व शिक्षा को प्रभावित करते हैं।

🌾रुचि में कमी……..
जब हम किसी कार्य को करते हैं तो अपनी रुचि से।अगर हमें रुचि है तो हम उस कार्य को दिलचस्पी से करते हैं नहीं तो उस काम को करने में मन नहीं लगता हैं। जैसे-गणित, विज्ञान, संस्कृत, इत्यादि। अलग-अलग विषयों का अध्ययन करते हैं क्योंकि उनमें हमारा interest हैं और हम 100%भी देते हैं जिस विषय में रुचि नहीं होती हैं उनमें अच्छा नहीं कर पाते हैं।

🌻आत्मविश्वास में कमी………
किसी कार्य को करने के लिए खुद पर भरोसा नहीं है या विफलता का डर लगता हैं तो हम उस कार्य को करने में अवश्य ही विफल हो जायेंगे। अगर हमें उस कार्य को करने का आत्मविश्वास है तो हम अवस्य ही सफल हो जायेंगे।

😯उदासी…..
यदि हम किसी कारण वश उदास है और कोई कार्य करना चाहते हैं तो हम उस कार्य को करने की कोशिश करते हुए भी पूरा नहीं कर पायेंगे।

😥थकान……
मान लीजिए कि हम थके हुए है चाहे मानसिक या शारीरिक रूप से और हम किसी कार्य को करना चाहते हैं तो थकान के कारण उस कार्य को पूरा/अच्छे से नहीं कर पायेंगे।

🧔उम्र या परिपक्वता…..
कई बार हम किसी कार्य को करना चाहते हैं और वह ठीक से नहीं कर पाते हैं त्रुटियां भी हो जाती हैं तो इसका मतलब उस उम्र में परिपक्वता नहीं होती हैं।

🌸किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा………
यदि किसी वस्तु के प्रति हमारी धरणा या संप्रत्यय अच्छी नहीं बन पाती है तो हम उस कार्य को करने में बेहतर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते हैं।

⭐भावनात्मक स्थिति………
यदि किसी कार्य के प्रति हमारा भाव अच्छा नहीं है तो हम उस कार्य को ठीक तरह से नहीं कर पाते हैं

🌳करके सीखने की योग्यता…….
कई बालक प्रतिभाशाली होते हैं वह हर क्षेत्र में बेहतर करता है लेकिन कभी-कभी आलसी प्रवृत्ति के कारण उस कार्य को बेहतर नहीं कर पाते हैं।

🌊किसी तथ्य के प्रति रवैया
यदि किसी कार्य के प्रति अटेम्प्ट/रवैया अच्छा नहीं है तो हम उस कार्य को अच्छे से नहीं कर सकते हैं।

🌹शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक………
बच्चों के शिक्षा को प्रभावित करने वाले केवल व्यक्तिगत कारक ही नहीं ,अपितु पर्यावरणीय कारक भी बच्चों क के शिक्षा को प्रभावित करते हैं।

👩‍🏫शिक्षक साथी और माता-पिता……
शिक्षक साथी और माता – पिता के साथ संबंध और सहयोग एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान करता है। क्योंकि बच्चा इन्हीं सब के साथ अधिकतर समय व्यतीत करते हैं।

🌀परिवेश (प्राकृतिक ,सांस्कृतिक, सामाजिक) -…..
प्राकृतिक ,सांस्कृतिक, सामाजिक ये सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित करते हैं ।
परिवेश बच्चों के विकास और साथ-साथ बच्चों के स्थिति के अनुकूल होनी चाहिए।

⛽🚨मीडिया का प्रभाव…..
आजकल जो हम डिजिटल सेवा का उपयोग कर रहे हैं वह कहीं ना कहीं मीडिया का प्रभाव है।
अर्थात जानकारी आदान प्रदान करने का प्रमुख स्रोत है। इसलिए यह कारक शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
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Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸🌺🙏

🔆 शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक 🔆
(factors affecting to learning)
▶ शिक्षा को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत कारक -: इसमें बच्चों के स्वयं की समस्याएं होती है जो शिक्षा को प्रभावित या बाधा उत्पन्न करती है |
प्रेरणा की कमी, रुचि में कमी, आत्मविश्वास में कमी, उदासी, थकान, उम्र और परिपक्वता, किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा, भावनात्मक स्थिति, करके सीखने की योग्यता, किसी भी तथ्य के प्रति रवैया,
◼ प्रेरणा की कमी ➖ प्रेरणा की कमी तब होती है जब बच्चों को सही मार्गदर्शन ना मिल पाना जिससे बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है उनमें प्रेरणा की कमी दिखाई देती है जिससे बच्चे अपने कार्य के प्रति प्रेरित नहीं होते हैं इससे वह समस्या का कारण बनते है और शिक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करता है |
◼ रुचि में कमी ➖ जब बच्चा किसी कार्य को करने के लिए रूचि नहीं लेता है वह कार्य को अपनी क्षमता के अनुसार भी नहीं कर पाता है जिससे वह शिक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करता है अगर बच्चे मे कार्य को करने में रुचि है तो वह कार्य करेगा |
◼ आत्मविश्वास की कमी ➖ अगर बच्चे में किसी कार्य को करने में खुद पर आत्मविश्वास नहीं है तो वह उस कार्य को नहीं कर पाएगा और हमेशा डरता ही रहेगा हर बच्चे में आत्मविश्वास होना बहुत ही जरूरी है वह अपने कार्यों को बेहतर रूप से कर सकते हैं |
◼ उदासी ➖ यदि बच्चा किसी का कार्य को करने मे किसी कारणवश उदास है वह कार्य को नहीं कर पा रहा है जिससे वह कार्य करने में अपना स्वयं का पूरे योगदान नहीं दे पा रहा है से बहुत उदास रहता है |
◼ थकान ➖ जब बच्चा कार्य करता है और ऊपर से अतिरिक्त कार्य और दे दिया जाता है जिससे उस पर भार पड़ता है वह कार्य को धीरे धीरे करता है थका हुआ महसूस करता है वह दिमाग बोलता है हमें उस कार्य को करना है उस कार्य को करने के लिए शरीर साथ नहीं देता है वह कार्य को नहीं कर पाता है|
◼ उम्र और परिपक्वता ➖ यदि बच्चा कार्य करता है और उम्र से अधिक कार्य करता है तो वह अच्छे से नहीं कर पाते हैं जैसे- जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है परिपक्वता आने लगती है तो वह कार्य करने लगते हैं परिपक्वता भी बच्चो में सीखने की भूमिका महत्वपूर्ण है|
◼ किसी चीज के प्रति संवेदना और धारणा ➖ किसी वस्तु के प्रति धारणा गलत बन जाती है जिसके कारण वह आगे नहीं बढ़ पाते है खुद का बेहतर नहीं दे पाता है जैसे किसी पब्लिकेशन की बुक है उसमें बहुत सारी गलती है जिससे बच्चे को गलत धारणा बना दी है कि वह बुक नहीं पढ़ते उसमें बहुत गलतियां हैं वह पब्लिकेशन के प्रति गलत धारणा बन गई है |
◼ भावनात्मक स्थिति ➖ किसी कार्य के प्रति हमारी भावना अच्छी नहीं है तो वह कार्य अच्छे से नहीं कर पाते हैं भावनात्मक स्थिति हमें शिक्षा में सफल भी बनाती है और असफल भी यह हमें समझना चाहिए |
◼ करके सीखने की योग्यता ➖ करके सीखने के लिए योग्यता जैसे कि बच्चों को सब आता है पर खुद से करके नहीं देखता है जिससे वह शिक्षा से प्रभावित होता है जब तक खुद से नहीं करेंगे चाहे जितना भी ज्ञान हो उसकी योग्यता में कमी ही रहेगी वह आलसी प्रवृति का होगा अपना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएगा |
◼ किसी भी तथ्य के प्रति रवैया ➖ बच्चों का किसी के प्रति तरीका या बर्ताव कैसा है यह उसके व्यवहार से समझ आता है जिससे वह दूसरे के प्रति किसी तथ्य को लेकर के कैसा रवैया रखता है जैसे बच्चे का शिक्षा के प्रति रवैया अच्छा नहीं है तो मैं अच्छे से शिक्षण अधिगम नहीं कर पाएगा |
▶ शिक्षा को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक ➖ बालकों को शिक्षा के प्रति प्रभावित करने वाले बाहरी कारक :-
◼ शिक्षा साथी और माता-पिता ➖ शिक्षा साथी और माता-पिता के साथ जो संबंध या सहयोग एक बच्चे को तनाव मुक्त वातावरण और उसके विकास की सुविधा प्रदान करता है क्योंकि बच्चे अधिकतम समय कक्षा एवं अपने माता-पिता के साथ व्यतीत करती है |
◼ परिवेश प्राकृतिक सांस्कृतिक सामाजिक ➖ इसमें आसपास का वातावरण पड़ोसी के सभी आते हैं सभी स्थितियां शिक्षा को सीधे प्रभावित करती है परिवेश बच्चे के पास और स्थिति के अनुकूल होना चाहिए |
◼ मीडिया का प्रभाव ➖ बच्चों में कई प्रकार की जानकारी का आदान प्रदान करने के लिए प्रमुख महत्वपूर्ण होता है क्योंकि बच्चों पर इसका प्रभाव बहुत ही अधिक पड़ता है शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है |
Notes by – Ranjana Sen

Mental Development in ChildHood notes by India’s top learners

बाल्यावस्था में मानसिक विकास

👉बाल्यावस्था में मानसिक विकास तीव्र गति से होता है 👉बालक में रुचि, चिंतन ,स्मरण, निर्णय ,समस्या समाधान आदि गुणों का स्वत: ही विकास हो जाता है

🔥क्रो एंड क्रो -जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है तब उसकी मानसिक शक्तियो और योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है

1.संवेदना और प्रत्यक्षीकरण-

👉इस अवस्था में बालक ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करना प्रारंभ करते हैं बाल्यावस्था में बालक अपनी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करके प्रत्यक्षीकरण करने लग जाते हैं
👉 इस अवस्था में बालक में जिज्ञासा बढ़ने लगती हैं बाल्यावस्था में बालक के पास प्रश्नों का अंबार लगा हुआ होता है वह बहुत ज्यादा प्रश्न पूछना चाहता है और किसी चीज को जानना चाहता है।
👉समय, स्थान ,आकार, गति, दूरी से संबंधित प्रत्यक्षीकरण बाल्यावस्था के शुरुआत में विकसित नहीं होता है लेकिन धीरे-धीरे शुरू हो जाता है अंत के वर्षों तक प्रत्यक्षीकरण विकसित हो जाता है

2.संप्रत्यय निर्माण-

👉इस अवस्था में बालक प्रत्यक्ष अनुभव अर्थात मूर्त्त चिंतन के द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सिख जाता है
👉चित्र या फोटोग्राफ को देखकर उसके बारे में एक संप्रत्यय विकसित करता है या एक निश्चित धारणा का निर्माण कर लेता है अर्थात जैसे बालक टीवी में spider-man ,शक्तिमान ,जूनियर जी ,क्रिश आदि को देखता है तो वह उनके जैसा करने की कोशिश करता है उनके जैसा बनना चाहता है इस प्रकार उसके मस्तिष्क में उनके प्रति धारणा बन जाती है
👉इस अवस्था में बालक नये संप्रत्यय का निर्माण करता है और साथ ही पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देता है।

3.स्मरण शक्ति का विकास-

👉इस अवस्था में बालक में रटने की क्षमता आने लगती है
👉बालक की ग्रहण शक्ति का विकास तीव्र हो जाता है
👉इस अवस्था में बालक पंक्तियों को दोहराना और कहानी के अर्थों को समझना शुरू कर देता है
👉किसी फिल्म या कहानी का 75% या तीन चौथाई या 3/4 भाग तक सुनाने में सफल हो जाता है

4.समस्या समाधान की क्षमता का विकास-

👉इस अवस्था में बालक मूर्त्त चिंतन करने योग्य हो जाता है
👉इस अवस्था में बालक दिन ,तारीख, पैसा आदि सभी समस्याओं का समाधान करने लगता है
👉इस अवस्था में बालक दैनिक प्रयोग में होने वाले छोटे-छोटे कामों को समझने लगता है जैसे फोन की या मोबाइल की बैटरी 20% कम होने पर मोबाइल को चार्ज लगाना ,कहीं बाहर जाते समय अपनी जरूरत की वस्तुओं चीजों को स्वयं ले जाना या रखना अदि कार्य करने लगता है।

Notes by Ravi kushwah

💥💥 *बाल्यावस्था में मानसिक विकास* 💥💥

🌟 बाल्यावस्था में मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।

🌟बालक में रुचि चिंतन स्मरण शक्ति निर्णय समस्या समाधान योग्यता का स्वतः विकास हो जाता है।

🦚 *क्रो एंड क्रो के अनुसार :-*

🌸 जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है। उसकी मानसिक शक्तियों योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है।

💥 *संवेदना व प्रत्यक्षीकरण :-*

🌟 इस अवस्था में बालक अपने ज्ञान इंद्रियों के प्रयोग द्वारा संवेदना व प्रत्यक्षीकरण का अनुभव या कार्य करने लगते हैं।

🌟 किस अवस्था में बालक को की किसी कार्य या वस्तु के प्रति उनकी जिज्ञासा बहुत अधिक होती है जिसे भी अनेक प्रकार के सवाल जवाब करते हैं तथा हर एक व्यक्ति या वस्तु के बारे में जानने की इच्छा रखते हैं।

🌟 इसके अतिरिक्त, इस अवस्था में बालक को में समय संख्या,आकार,गति,दूरी इन सभी चीजों का प्रत्यक्षीकरण से विकास नहीं हो पाता है। लेकिन ससमय धीरे-धीरे अंतिम चरण तक इसका पूर्ण विकास हो जाता है।

*💥 संप्रत्यय निर्माण :* –

🌟 इस अवस्था में बालक वास्तविक तथा अमूर्त अनुभव द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीखने लगते हैं।

🌟 इस अवस्था में बालक को में चित्र,फोटोग्राफ,टेलीविजन या अन्य किसी भी प्रकार का दृश्य देखकर भी उन चीजों के प्रति उनमें संप्रत्यय निर्माण होने लगता है। उनके मस्तिष्क में इन चीजों के प्रति धारणा बनने लगती है और वह इस प्रकार के कार्यों के करने में रुचि लेने लगते हैं तथा कोशिश करते हैं।

🌟 इस अवस्था में बालकों के मन में नए-नए संप्रत्यय विकसित होते हैं तथा पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देने की क्षमता विकसित होती है तथा उन्हें नवीन रूप देने में सक्षम हो जाते हैं।

*💥 स्मरण शक्ति का विकास* :-

🌟 इस अवस्था में बालको में रटने की क्षमता आ जाती है।
🌹 दूसरे शब्दों में,इस अवस्था में उनमें ग्रहण कौशल का तीव्र विकास हो जाता है।

🌟 इस अवस्था में बालक किसी भी कही सुनी गई बात को अच्छी तरह से दोहराना इस जाते हैं।

🌟 इस अवस्था में बालक किसी भी फिल्म या नाटक का 75% तक भाग सुनने – सुनाने में सफल हो जाता है।

💥 *समस्या समाधान योग्यता का विकास :-*

🌟 इस अवस्था में बालक मूर्ति चिंतन करने योग्य हो जाते हैं।

🌟 इस अवस्था में बालक अपने दैनिक जीवन की हर एक छोटी से छोटी जरूरतों को जानने या पहचानने की क्षमता रखता है।

🌟 अवस्था में बालक दिन,तारीख,पैसा इत्यादि की समस्याओं को भी समाधान करना सीख जाते हैं

🔥Notes by :- Neha Kumari ☺️

🙏🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏🙏

🙏🙏🦚💥🌟🌸🌺🔥🔥🌺🌸🌟💥🦚🙏🙏

📚📒 मानसिक विकास (mental development)📚📒

🔰 बाल्यावस्था( childhood)➖

बाल्यावस्था में मानसिक विकास तेज गति से होता है बालक में रुचि चिंतन स्मरण निर्णय समस्या समाधान आदि गुणों का स्वतः ही विकास होता है।

💫 क्रो एण्ड क्रो के अनुसार ➖

जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है तब उसकी मानसिक शक्तियों और योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है।

💫 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➖

🔸ज्ञान इंद्रियों का उपयोग प्रारंभ कर देते हैं

🔸 जिज्ञासा बनने लगती है

🔸 समय स्थान आकार गति दूरी से संबंधित प्रत्यक्षीकरण बाल्यावस्था के शुरुआत में विकसित नहीं होता है लेकिन धीरे धीरे शुरू हो जाता है

🔸अंत के वर्षों तक प्रत्यक्षीकरण विकसित हो जाते हैं।

💫 सम्प्रत्यय का निर्माण ➖

🔸 प्रत्यक्ष अनुभव के द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीख जाता है।

🔸 चित्र फोटोग्राफ देखकर उसके बारे में एक संप्रत्यय विकसित करना या एक निश्चित धारणा का निर्माण कर लेना

🔸 नए संप्रत्यय का निर्माण करता है और साथ ही पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देता है।

💫स्मरण शक्ति का विकास ➖

🔸 रटने की छमता आने लगती है

🔸 ग्रहण शक्ति का विकास तीव्र हो जाता है

🔸पंक्तियों को दोहराना और कहानी के अर्थ को समझना शुरू कर देता है

🔸 किसी फिल्म या कहानी का 75% या 3/4 भाग तक सुनाने में सफल हो जाता है।

💫 समस्या समाधान क्षमता का विकास ➖

🔸 मूर्त चिंतन करने योग्य हो जाता है

🔸दिन तारीख पैसा इत्यादि समस्या का समाधान करने लगता है

🔸 दैनिक प्रयोग में होने वाले छोटे-छोटे कार्य को समझने लगता है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🌺🌺 बाल्यावस्था में मानसिक विकास🌺🌺
(Mental development in childhood)

🌀 बाल्यावस्था में मानसिक विकास तेज गति से होती है

🌀बालक में रुचि ,चिंतन ,स्मरण, निर्णय समस्या समाधान आदि गुणों का स्वत: ही विकास होता है

🌺 क्रो एंड क्रो के अनुसार–

जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है तब उसकी मानसिक शक्तियों और योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है

💥 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण

🌼 ज्ञानेंद्रियों का उपयोग प्रारंभ कर देता है
🌼 बच्चों में किसी भी चीज को जानने की समझने की जिज्ञासा बढ़ने लगती है
🌼 समय, स्थान ,आकार ,जाति, दूरी से संबंधित प्रत्यक्षीकरण बाल्यावस्था की शुरुआत में विकसित नहीं होता लेकिन धीरे-धीरे शुरू हो जाता है
🌼 अंत के वर्षों तक प्रत्यक्षीकरण विकसित हो जाते हैं

💥 संप्रत्यय निर्माण➖

🌼 प्रत्यक्ष अनुभव के द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीख जाते हैं
🌼 चित्र/फोटोग्राफ देखकर उसके बारे में एक संप्रत्य विकसित कर लेते हैं या मूर्त चीजों के बारे में धारणा का निर्माण कर लेते हैं
🌼नए संप्रत्यय का निर्माण करते हैं और साथ ही और पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देते हैं

💥 स्मरण शक्ति➖

🌼 रटने की क्षमता आने लगती है
🌼 ग्रहण शक्ति का विकास तीर गति से हो जाता है
🌼 पंक्तियों को दोहराना और कहानी के अर्थ को समझना शुरू कर देते हैं

💥 समस्या समाधान की क्षमता का विकास➖

🌼 मूर्त चिंतन करने के योग्य हो जाते हैं
🌼 दिन ,तारीख जैसे आदि समस्या का समाधान करने लगता है
🌼 दैनिक प्रयोग में होने वाले छोटे-छोटे काम को समझने लगता है

🖊️🖊️📚📚 Notes by.,….
Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️

🔆 बाल्यावस्था में मानसिक विकास🔆

💫 बाल्यावस्था में मानसिक विकास तेज गति से होता है |
बालक में रूचि, चिंतन ,स्मरण, समस्या समाधान ,आदि गुणों का स्वत: विकास होता है इस अवस्था में बच्चा क्यों ,कैसे वाले प्रश्नों के हल खोजने लगता है मूर्त चीजों के प्रति अपनी तर्कशक्ति विकसित करने लगता है तथा वह अपने तर्क को खोजने का प्रयास करने लगता है |

क्रो एवं क्रो के अनुसार ” जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है तब उसके मानसिक शक्तियों और योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है ” |

🎯 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➖

1) इस उम्र में बच्चा ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करने लगता हैं और हर बात को समझने लगता है |

2) किसी चीज के प्रति जिज्ञासा बढ़ने लगती है बच्चे जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं तथा क्यों ,कैसे के उत्तर खोजने लगते हैं |

3) अंत की वर्षों तक बच्चे में प्रत्यक्षीकरण अर्थात इसका अर्थ क्या है इसकी क्या परिभाषा है आदि विकसित हो जाता है प्रत्यक्षीकरण बाल्यावस्था की शुरुआत में विकसित नहीं होती है लेकिन धीरे-धीरे स्थित हो जाती है |

🎯 संप्रत्यय निर्माण ➖

1) प्रत्यक्ष प्रभाव के द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीख जाता है और चिंतन करने लगता है |

2) किसी चीज को चित्र या फोटोग्राफ के माध्यम से अपने मन में प्रत्यक्ष अनुभव करने लगता है उसका अनुमान लगाने लगता है और उसके प्रति अपनी निश्चित धारणा का संप्रत्यय विकसित कर लेता है |

3) इसलिए इस उम्र में बच्चे के मन में मीडिया मोबाइल वीडियो गेम इमेज आदि का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है उन वीडियो के प्रति अपनी धारणा विकसित कर लेता हैं नए संप्रत्यय का निर्माण होता है और साथ ही पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देता है अर्थात बच्चे किसी चीज को देखकर जैसे अपने मन में धारणा बनाते हैं उनका संप्रत्यय भी वैसे संप्रदाय का निर्माण भी वैसे ही होता है |

🎯 स्मरण शक्ति ➖

1)इस उम्र में रखने की क्षमता आने लगती है अर्थात किसी चीज के प्रति अपना संप्रत्यय निर्माण करके उस चीज को रखने में अपना कन्सनटेशन। न कर लेते हैं |
2) ग्रहण करने की शक्ति का विकास होने लगता है किसी चीज के प्रति समझ विकसित करने लगता है |

3) किसी चीज या किसी फिल्म की कहानी का 3/4 भाग या 75% भाग सफल हो जाता है|

4) इस समय में बच्चा पंक्तियों को दोहराने और कहानी के अर्थ को समझना शुरू कर देता है |

🎯 समस्या समाधान की क्षमता का विकास ➖

1) मूर्त चिंतन करने योग्य हो जाता है वह किसी भी चीज के प्रति अपनी धारणा बना कर या एक इमेज बनाकर उसका मूर्त चिंतन करने लगते हैं |

2) बच्चा दिन तारीख पैसा आदि की समस्या का समाधान करने लगता है अर्थात बच्चे को कैलेंडर,घड़ी आदि को समझने में समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है |

3) बच्चे में दैनिक जीवन में होने वाले छोटे छोटे काम को समझने लगता है अर्थात काम के प्रति जिम्मेदारी समझने लगते हैं |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮 ➖𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

🌼🌸🌺🌻🌼🌸🌺🌻🌼🌸🌺🌻🌼🌸🌺

🥀🌾बाल्यावस्था में मानसिक विकास🥀🌾

🌻बाल्यावस्था में मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।

🌷बालक में रुचि ,चिंतन ,स्मरण- शक्ति ,निर्णय ,समस्या समाधान की योग्यता का विकास स्वत:ही हो जाता है।

🌸बाल्यावस्था के संदर्भ में क्रो एंड क्रो का स्टेटमेंट~~~

👉इनके अनुसार जब बालक लगभग 6 साल का हो जाता है तो उसकी मानसिक शक्तियों, योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है।

🌈संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ~~

इस अवस्था में बच्चे अपने ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग प्रारंभ कर देता है। बच्चों का जिज्ञासा बढ़ने लगती है, किसी भी वस्तु या चीजों को जानने की इच्छा बच्चों में काफी अधिक होने लगता हैं। अनेक प्रकार के सवाल पूछते हैं जिसका जवाब देना मुश्किल हो जाता है।

⭐समय,स्थान, आकार, गति, दूरी से संबंधी प्रत्यक्षीकरण बाल्यावस्था के शुरुआत में विकसित नहीं होती हैं लेकिन धीरे-धीरे विकसित हो जाते हैं।

💥अंत के वर्षों तक बच्चों में प्रत्यक्षीकरण विकसित हो जाते हैं।

🌈संप्रत्यय निर्माण ~~

👉बच्चे प्रत्यक्ष अनुभव (जैसे -जो सामने है उसकी चीजों को समझना तथा जो सामने नहीं है उनको नहीं समझना) के द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीख जाता है।

🌾🥀इस उम्र में बच्चे चित्र या ग्राफिकल चीजों के माध्यम से किसी निश्चित धारणा का निर्माण कर लेते हैं मतलब बच्चों को ऐसा लगता है कि जो भी वीडियो में दिखा रहा है वह सही है।

🌻इस उम्र में बच्चों पर यूट्यूब, वेब- सीरीज ,वीडियो का धारणा का निर्माण कर लेते हैं।

🌺🔥यह इसी समय विकसित हो जाते हैं लेकिन इसका रिप्रेजेंटेशन किशोरावस्था में झलकते हैं।

🌷🌿बच्चे इस समय में नए संप्रत्यय का निर्माण और साथ ही पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देता है।

🌈स्मरण शक्ति ~~~~

👉इस उम्र में बच्चों को रटने की क्षमता विकसित होने लगती है इस समय बच्चे शब्द, वाक्य, सेंटेंस ,छोटे कविता, इत्यादि को रटने की प्रवृत्ति होती हैं।

🌸गहन शक्ति का विकास तीव्र हो जाता है।

🌾💥इस समय बच्चे किसी वस्तु या चीजों की जड़ तक पहुंचने की कोशिश करता हैं।

🌺🔥इस समय में बच्चे पंक्तियों को दोहराना और कहानी के अर्थ को समझना शुरू कर देते हैं।

🥀🌿इस अवस्था में बालक किसी भी कहानी या फिल्म को लगभग 75% या 3 / 4 भाग तक सुनाने में सफल हो जाते हैं।

🌈समस्या समाधान की क्षमता का विकास ~~~

🌾🌸इस समय में बालक मूर्त चिंतन करने के योग्य हो जाता है
दिन तारीख पैसा या इस तरह के अलग-अलग समस्या का समाधान करने लगता है इस समय में बच्चे समस्या पर हावी होते हैं समस्या को समाधान करने के लिए बच्चे में जिज्ञासा होती है वह अपनी सूझबूझ के साथ समस्या का समाधान निकालते हैं

⭐🌻दैनिक उपयोग में होने वाले छोटे-छोटे काम को समझने लगता है।

🌾🌿अपने दिनचर्या में जो भी कार्य है उनको वह अच्छी तरह से पूर्ण करने के लिए कैपेबल हो जाते हैं।
🌿🌾Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸🌺🙏

🔆 *बाल्यावस्था में मानसिक विकास है—*
⚜️ बालक में रूचि चिंतन स्मरण शक्ती निर्णय समस्या समाधान योग्यता का स्वतः विकास हो जाता है।
⚜️इस अवस्था में मानसिक विकास तीव्र गति से होता है

⚜️ *क्रो एंड क्रो के अनुसार*
जब बालक लगभग 6वर्ष का हो जाता है उसकी मानसिक शक्तियों योगिता का पूर्ण विकास हो जाता है

⚜️ *संवेदना का प्रत्यक्षीकरण—*
⚜️इस अवस्था में बालक के अपने ज्ञान इंद्रियों के प्रयोग द्वारा संवेदना व प्रत्यक्षीकरण का अनुभव या कार्य करने लगते हैं।
⚜️ इस अवस्था में बालक को अगर किसी कार्य में रुचि है या उन्हें किसी वस्तु में जिज्ञासा है तो वह बहुत बार सवाल पूछते हैं जब तक उनके सवालों का जवाब ना मिल जाए यह क्यों है कैसे हुआ किसका है यह सब जानने की इच्छा रखते हैं और तब तक पूछते ही रहते हैं जब तक उन्हें इन बातों का जवाब ना मिल जाए कभी-कभी बच्चे ऐसा भी सवाल पूछ लेते हैं जो हमें पता भी नहीं रहती है।

⚜️ इस अवस्था में बालको में समय ,संख्या, आकार, गति, दूरी इन सभी चीजों का प्रत्यक्षीकरण से विकास नही हो पाता है लेकिन धीरे-धीरे अंतिम चरण तक इसका पूर्ण विकास हो जाता है जैसे बच्चे को यह पता चल जाता है कि यहां से कहीं जाने में कितना दूरी होगा या फिर वह इस संख्या उसकी कितनी होगी यह सब जानकारी हो जाता हैं।

⚜️ *संप्रत्यय निर्माण—*
इस अवस्था में बालक के वास्तविक या अमूर्त अनुभव द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीखने लगते हैं।

⚜️ इस अवस्था में बालकों में चित्र फोटोग्राफ टेलीविजन या अन्य किसी भी प्रकार का दृश्य देखकर उन चीजों के प्रति उनमें संप्रत्य निर्माण होने लगता है उनके मस्तिष्क में इन चीजों के प्रति धारणा भी बनने लगती है और बच्चे इस तरह के कार्य करने के लिए रुचि भी लेते हैं और कोशिश भी करते हैं क्योंकि बच्चे को अगर दृश्य दिखाकर या श्रव्य के माध्यम से अगर बताया जाए तो वह जल्दी सीखते हैं और
बहुत दिनों तक उस चीज को याद भी रखते हैं इसलिए बच्चे इससे के माध्यम से पढ़ाने से बच्चे ज्यादा रुचि लेते हैं और ज्यादा सीखते भी हैं।

⚜️ इस अवस्था तक आते-आते बालकों में नए-नए संप्रदाय भी विकसित होते हैं तथा पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देने की क्षमता विकसित होती है तथा उन्हें नवीन रूप देने में सक्षम हो पाते हैं जैसे किसी चीज को पुराने तरीके से सीखते हैं मगर उस चीज का नया रूप दे देते हैं।

⚜️ *स्मरण शक्ति का विकास—* इस अवस्था में बालकों में रटने की क्षमता आ जाती है कुछ भी चीजों को वह रटकर याद कर लेते हैं जैसे बिहार के मुख्यमंत्री कौन है तो नीतीश कुमार हैं।

⚜️ इस अवस्था में उन्हें ग्रहण कौशल का तीव्र विकास होता है। बहुत जल्दी आसानी से किसी चीज को ग्रहण कर लेते हैं अगर किसी चीज को उनको हम बताते हैं जैसे कोई विषय के बारे में भी तो बहुत आसानी से उस चीज को कैच कर लेते हैं।

⚜️ इस अवस्था में बालक किसी भी कहीं सुनाएं सुनी गई बात को अच्छी तरह से दोहराना सीख जाते हैं जैसे किसी चीज को अगर हम बात करते हैं किसी से भी बात करते हैं घर में या बाहर भी तू चीज को सुनते हैं समझते हैं और उस चीज को दोहराना भी सीख जाते हैं।

⚜️ इस अवस्था में बालक के किसी भी फिल्म या नाटक का 75%या 3/4 तक भाग सुनने सुनाने में सफल हो जाता है जैसे जो चीज वह देखते हैं या सुनते हैं उस चीज को अपने वाक्य में प्रस्तुत करते हैं।

⚜️ *समस्या समाधान योग्यता का विकास —*
इस अवस्था में बालक अपने दैनिक जीवन की हर एक छोटी से छोटी जरूरतों को जानने या पहचानने की क्षमता रखते हैं जैसे बच्चे को क्या चाहिए नहीं चाहिए उन्हें क्या चीज की जरूरत है कैसे चीज को पूरा कर सकते हैं यह सब उनमें क्षमता आ जाती है।

⚜️ इस अवस्था में बालक के मूर्त चिंतन करने योग्य हो जाते हैं इस अवस्था में बालक के किसी चीज को देख कर उस पर चिंतन विचार विमर्श करते हैं कैसे उस चीज को किया जाए नहीं किया जाए उसके बारे में चिंतन भी करते हैं।

⚜️ इस अवस्था में बालक दिन तारीख पैसा इत्यादि की समस्याओं को भी समाधान करना सीख जाते हैं।
⚜️ इस अवस्था में बालक के अपने बड़ों की बातें सुनकर प्रत्यक्ष रूप से उस पर विचार विमर्श करते हैं और अपने बड़ों का सहायता करना भी चाहते हैं उनमें उतनी समझ नहीं होती है फिर भी वह अपने बड़ों का समस्या समाधान करते हैं जितना उनसे हो पाता है उनमें उतनी समझ में नहीं होती है मगर फिर भी वह करते हैं।

Notes By—Neha Roy🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌷🌷 मानसिक विकास 🌷🌷

बाल्यावस्था में बच्चे का मानसिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है :-

बाल्यावस्था में बच्चे का मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। बालक में रुचि , चिंतन , स्मरण , निर्णय , समस्या , समाधान आदि गुणों का स्वतः ही विकास हो जाता है।

🌲🌺 क्रो & क्रो के अनुसार :-

जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है तब उसकी मानसिक शक्तियों और योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है।

1. संवेदना और प्रत्यक्षीकरण :-

👉ज्ञानेंद्रियों का उपयोग प्रारंभ
👉जिज्ञासा बढ़ने लगती है
👉समय , स्थान , आकर , गति , दूरी से संबंधित प्रत्यक्षीकरण बाल्यावस्था की शुरुआत में विकसित नहीं होता लेकिन धीरे-धीरे शुरू हो जाता है।
👉बाल्यावस्था के अंत के वर्षों तक प्रत्यक्षीकरण विकसित हो जाता है।

2. संप्रत्यय निर्माण :-

👉प्रत्यक्ष अनुभव के द्वारा संप्रत्यय निर्माण करना सीख जाता है।
👉चित्र / फोटोग्राफ देखकर उसके बारे में एक संप्रत्यय विकसित करना तथा निश्चित धारणा का निर्माण कर लेना।
👉नये संप्रत्यय का निर्माण करता है और साथ ही पुराने संप्रत्यय को नवीन रूप देता है।

3. स्मरण शक्ति :-

👉रटने की क्षमता आने लगती है।
👉ग्रहण शक्ति का विकास तीव्र हो जाता है।
👉पंक्तियों को दोहराना और कहानी के अर्थ को समझना शुरू कर देता है।
👉किसी भी फिल्म या कहानी का ” 75% , 3/4 ” भाग तक सुनाने में सफल हो जाता है।
अर्थात बाल्यावस्था में बच्चे की यादाश्त क्षमता बहुत तीव्र हो जाती है।

4. समस्या समाधान की क्षमता का विकास :-

👉मूर्त चिंतन करने योग्य हो जाता है।
👉दिन , तारीख , पैसा आदि का समाधान करने लगता है।
👉दैनिक प्रयोग में होने वाले छोटे-छोटे काम को समझने लगता है।

🌺✒️ Notes by- जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

cognition and Emotion notes by India’s top learners

📚 अनुभूति और भावना ( feeling / cognition and Emotion)📚

🎲 अनुभूति- किसी एहसास को ही हम अनुभूति कहते हैं। यह शारीरिक रूप से स्पर्श दृष्टि या गंध सुंघने से हो सकती है या विचारों से पैदा होती है।

💫 अनुभूति आमतौर पर सीखने और तर्क के मनोवैज्ञानिक प्रसंस्करण को संदर्भित करता है। इसमें स्मृति योजना समस्या समाधान और धारणा से संबंधित अमूर्त गतिविधियों में स्वभाविक भागीदारी शामिल है।

🎲 संज्ञानात्मक कार्य उनके बारे में अधिक जागरूकता के बिना या बाहरी इनपुट मे सीधे जवाब हो सकते हैं

💠 किसी विशेष कार्य को पूरा होने तक बाहर के व्यवधानों को बंद करने के लिए संज्ञानात्मक विकल्प नाना शामिल है।

💠 अनुभूति अनुभव का समानार्थी है प्रत्यक्ष ज्ञान या निरीक्षण और प्रयोग से प्राप्त ज्ञान को नए अर्थ में प्रयुक्त होकर समीक्षात्मक प्रतिमान के रूप में स्थापित करते हैं ।

💫 अनुभूति मे जो सुख दुखात्मक बोध होता है।

💠 भावना- भावना वस्तुतः ऐसी प्रक्रिया है जिसे व्यक्ति उद्दीपक द्वारा अनुभव करता है संवेदनात्मक अनुभव संवेदन चेतन उत्पन्न करने की अत्यंत प्रारंभिक स्थिति है।

💫 भावना मन की कल्पना खयाल विचार आपके मन में क्या विचार है आपकी कल्पना क्या है आपके ख्याल क्या है।

💠 भावना अनुभूति को बदलती हैं

💠भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती है।

💫 शारीरिक परिवर्तन जैसे चेहरे के भाव इशारे दिल की धड़कन रक्तचाप इत्यादि चीजों से भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है

💫 परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

💠 अनुभूति और जानकारी में अन्तर-

💫जो दिल से पता है वह अनुभूति जो दिमाग को पता है वह जानकारी है

💫अनुभूति का आधार अनुभव होता है और जानकारी का आधार ज्ञान होता है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🔆 अनुभूति और भावना/ संज्ञान और संवेग 🔆

🎯अनुभूति वह एहसास है जिसको हम प्रकट नहीं कर सकते हैं अर्थात हम उसको सिर्फ महसूस कर सकते हैं अनुभूति को छिपाया भी जा सकता है और भावना को प्रकट किया जा सकता है जैसे प्रेम को प्रकट नहीं किया जा सकता लेकिन प्रेम के जरिए हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं |

🎯 अनुभूति किसी एहसास को कहते हैं यह शारीरिक रूप से स्पर्श दृष्टि या कोई गंध सूंघने से हो सकती है या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती है |

🎯 अनुभूति को छुपाया जा सकता है लेकिन यदि वह अनुभूति भावनाओं में बदल गई तो हम उसको रोक नहीं सकते प्रकट होने से | जैसे कई बार हमें अनुभूति ना होने पर भी भावनाओं को प्रकट करना पड़ता है अर्थात अनुभूति को छुपा सकते हैं इसे दिखाने के लिए भावनाओं का सहारा लेना पड़ता है |

🎯 भावनाएं अनुभूति को बदलती है जैसे यदि हमें किसी के प्रति प्रेम है या किसी चीज के प्रति लगाव है या किसी चीज को जो हमारा लक्ष्य उसको पाने के बाद जो सफलता मिलती है वह हमारी अनुभूति है और उस अनुभूति के जरिए हम अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं लेकिन यदि हम असफल हो जाते हैं तो उससे हमारी अनुभूति भी बदल सकती है और उसके अनुसार हमारी भावनाएं भी बदल सकती हैं |

🎯 भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती है जैसे यदि यदि हमें किसी चीज के प्रति अनुभूति है तो वह बदल नहीं सकती जैसे किसी बचपन की याद के प्रति हमारी अनुभूति तो रहती है लेकिन भावनाएं धीरे-धीरे बदलती जाती हैं और वे नए रूप में प्रकट होने लगती हैं अर्थात भावनाओं के नजरिए बदल जाते हैं |

🎯 व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तन जैसे चेहरे की भाव, इशारे, दिल की धड़कन, रक्तचाप ,इत्यादि चीजों से भावनाओं के प्रभाव को देखा जा सकता है |

🎯 व्यक्ति की परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |
अर्थात्
कई बार अनुभूति समान होने पर भी उसको स्थिति के अनुसार अपनी भावनाओं में व्यक्त करना ही एक शिक्षित व्यक्ति की विशेषताएं है अर्थात परिपक्वता और शिक्षा स्थिति अनुसार भावनाओं का संतुलन करना सिखाती है |

🎯 भावनाएं तत्कालिक होती हैं क्षणिक होती हैं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं बदलती रहती है |

🎯 अनुभव भावनाओं से बनता है तथा अनुभूति, अनुभव से उत्पन्न होती है |
अर्थात हम कह सकते हैं कि ज्ञान के द्वारा हम अनुभव को प्राप्त करते हैं जो हमारीभावनाओं से बनता है और उस अनुभव के जरिए हमारी अनुभूति उत्पन्न होती है |

🎯 अनुभूति मन में हलचल है और जानकारी दिमाग में कोई चीज के प्रति है अर्थात जो दिल को पता है वह अनुभूति है और जो दिमाग को पता है वह जानकारी है |
या हम कह सकते हैं कि अनुभूति का आधार अनुभव है तथा जानकारी का आधार ज्ञान है किसी भी चीज के प्रति दिमाग की आवश्यकता होती है वो जानकारी है और दिल में जो अनुभव है वह अनुभूति को व्यक्त करता है |

🎯 अनुभूति और भावना के संदर्भ में हमारी ज्ञानेंद्रियां एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए संदेश देने की क्या करना है और क्या नहीं करना है |

🎯 जानकारी तर्कशक्ति के अनुसार आती है जो भावनाओं में व्यक्त होती है लेकिन तर्कशक्ति अनुभूति को बदल नहीं सकती अभिव्यक्ति के रूप में प्रकट होती हैं |
अनुभूति छिपाई जा सकती है लेकिन जो तर्क शक्ति के अनुसार अनुभूति भावनाएं में प्रकट होती है कई परिस्थिति में अनुभव के आधार पर भावनाएं प्रकट होने लगती है और कई परिस्थितियों में अनुभूति के अनुसार भावनाएं व्यक्त होती हैं |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🌺🌼🌸🌻🌺🌼🌸🌻🌺🌼🌸🌻🌺🌼🌸🌻🌺🌼🌸

😍😡🤩 अनुभूति और भावना 🥳🤗☺️😊
🤪😂😔😒☹️🥺😬😧
Cognition/ Feeling and Emotion
😔😱🥴संज्ञान और संवेग😡🥰

जब हमने किसी बच्चे को भरी सर्दी में ठिठुरते हुए देखा तो हमने उसे एक कंबल दे दिया तो यह हमारे उस बच्चे के प्रति *भावना* प्रकट होती हैं

अब यदि हमें कंबल देने के बाद जो एहसास या जो हमने महसूस किया उसे हम अपनी *अनुभूति* बोल सकते हैं

🔥हम अपनी *अनुभूति *को बताने के लिए या व्यक्त करने के लिए *भावनाओं* का प्रयोग करते हैं

भावना मतलब इमोशन अर्थात् इमोजी 🥴🥰😡🙄🥺☹️😒🤗🥳😲🤩😍🤔

जैसे जो हम व्हाट्सएप पर चैट करते हुए किसी के लिए जो इमोजी यूज़ करते हैं उसे हम अपने इमोशन या भावना बोल सकते।

*अनुभूति * द्वारा हम हमारे किसी के प्रति प्रेम, स्नेह ,अपनत्व को दर्शाते हैं जैसे वात्सल्य मां का अपने बच्चे के प्रति प्रेम जो दिखते नहीं हुए भी उसके (मां) के अंतरमन मन होता है

अब यदि मां अपने बच्चे के प्रति प्रेम को किसी न किसी रूप में बाहर प्रदर्शित करती हैं या जो माध्यम से प्रदर्शित करते हैं वह उसकी *भावना *होती हैं। 🤩😍🤗

🔥🔥अनुभूति 🔥🔥

👉अनुभूति किसी एहसास को कहते हैं यह शारीरिक रूप से स्पर्श, दृष्टि या गंध सूखने से हो सकती है या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से पैदा हो सकती है
👉अनुभूति आंतरिक होती हैं
👉अनुभूति को आप छिपा सकते हैं इसे दिखाने के लिए भावनाओं का सहारा लिया जाता है।

🤩🤩भावना 🤗🤗

👉हम अपनी अनुभूति को भावनाओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं
👉भावनाऐ बाहरी या बाह्य होती है
👉भावनाएं ,अनुभूति को बदलती हैं
(किसी के प्रति हमारी भावनाएं बदलती रहती है तो कभी-कभी उसके प्रति हमारी अनुभूति भी बदल जाती है और जैसे-जैसे हम भावनाओं को दिखाते हैं वैसे ही हमारी अनुभूति हो जाती है
जैसे जब हम पहली बार अनअकैडमी प्लेटफार्म से जुड़े थे तो हम अपनी भावनाओं को अपने साथ लाए थे कि हम कैसे करेंगे, कैसे पढ़ेंगे ,कैसे सीखेंगे ,किस प्रकार अंतः क्रिया करेंगे।लेकिन जब आपने यहां कुछ समय बिताया और यहां के अध्यापकों से हमने जो सिखा का उनसे ,जो जाना उससे हमें यहां के अध्यापकों और प्लेटफार्म से एक अनुभूति शुरू हो गई)
👉भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती हैं
👉शारीरिक परिवर्तन जैसे चेहरे के भाव, इशारे, दिल की धड़कन ,रक्तचाप इत्यादि चीजों से भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है।

⭐परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

⭐भावनाओं के कारण हमें अनुभव होता है और अनुभव से हमें अनुभूति आती है

⭐अनुभूति और जानकारी में अंतर
अनुभूति का आधार अनुभव है जबकि जानकारी का आधार ज्ञान है
अर्थात जो दिल को पता है वह हमारे अनुभूति है और
जो दिमाग को पता है वह हमारी जानकारी है।

Notes by Ravi kushwah

💥 अनुभूति और भावना💥
(Feeling and emotion)

🔰 अनुभूति वह एहसास है जिसको हम प्रकट नहीं कर सकते अर्थात उसको सिर्फ महसूस कर सकते हैं

🔰यह शारीरिक रूप से स्पर्श दृष्टि या गंध सूंघने से हो सकती है या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती हैं

🔰 अनुभूति को आप छुपा सकते हैं इसे दिखने के लिए भावनाओं का सहारा लिया जाता है

🔰 भावनाएं अनुभूति को बदलती है

🔰 भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती हैं

🔰 व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तन जैसे चेहरे के भाव, इशारे, दिल की धड़कन इत्यादि चीजों से भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है

🔰 परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

💥 अनुभूति और जानकारी में क्या अंतर है➖

🔰 अनुभूति का आधार अनुभव है जब की जानकारी का आधार ज्ञान है
अर्थात जो दिल को पता होता है वह अनुभूति है और जो दिमाग को पता होता है वह जानकारी है

🖊️🖊️📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️

🔥🤪🤣🤭🥺😡🧐☹️😏😢🙈😱🙉🥰🙊😍😜

🔥 *अनुभूति और भावना* 🔥

🦚🌹 *अनुभूति* 🌹🦚

💥अनुभूति किसी एहसास को कहते हैं।यह शारीरिक रूप से स्पर्श,दृष्टि या गंध सूंघने से हो सकती है।या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती है।अनुभूति को आप दिखा सकते हैं।इसे दिखने के लिए भावनाओं का सहारा लेना पड़ता है।

🦚🌹 *भावना* 🌹🦚

💥शारीरिक परिवर्तन,जैसे :- चेहरे का भाव,इशारे,दिल की धड़कन,उच्च रक्तचाप इत्यादि।चीजों से भावना का प्रभाव देखा जा सकता है।
परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

🔥भावनाएं अनुभूति को बदलती है। जैसे कि हमें किसी चीज के प्रति प्रेम लगाओ या अनुभूति होता है तो हम उस चीज का हासिल करना चाहते हैं तो हमारी अनुभूति होती है हम अपनी अनुभूति का प्रयोग करके उन चीजों को हासिल कर लेते हैं तो उन पर हमारी भावनाओं का अधिकार होता है।

🔥भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रहती है। जैसे कि हमारा किसी चीज के प्रति प्रेम या लगाओ है और उसे प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य है तो उसे प्राप्त करने के बाद जो हमें अनुभूति मिलती है उसी अनुभूति के जरिए हम अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं लेकिन वहीं यदि हम अपने कार्यों में असफल हो जाते हैं तो हमारी भावनाएं बदल जाती हैं।

🔥 कई बार ऐसा भी होता है की भावनाएं बदलने के बाद भी हमें किसी चीज के प्रति अनुभूति रहती है तो वह बदल नहीं पाती जैसे कि हमारी बचपन की यादों से जुड़ी अनुभूति जो कि आज की भावनाओं में भी उनका बदलाव नहीं हो पाया है ना ही हो पाएगा उसकी अनुभूति हमारे अंदर ज्यों की त्यों है और दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है।

💥 *अत : अनुभूति को व्यक्त करने के लिए हम भावनाओं का प्रयोग करते हैं* ।

🐶जैसे कि :- अनेक प्रकार की इमोजीज 😂🤪😱🧐🤩🥳😢🤗🤭🤥🤫😡🥰🤣🤪👹🥺🙈🙉🙊

🥳🥳 परंतु कई बार ऐसा होता है कि अनुभूति समान होने पर भी उसकी स्थिति के अनुसार अपनी भावनाओं में व्यक्त करना ही एक शिक्षित व्यक्ति की विशेषताएं हैं अर्थात परिपक्वता व शिक्षा स्थिति के अनुसार भावनाओं में संतुलन करना सिखाती हैं।🐣🐣

🔥🔥Notes by :- Neha Kumari 😊

🙏🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏🙏

🔆 *अनुभूति और भावना*
Feeling and Emotion
संज्ञान और संवेग भी बोलते हैं।

🎯जब हम किसी छोटे बच्चे को देखते हैं कि वह भुखा हैं तब हम उसे खाने को कुछ दे देते हैं तो हमें उसके प्रति भावना प्रकट होती है। यदि जब हम उसे खाने को कुछ दे देते हैं जब जो हमारे मन में जो एहसास होती है या जो हम महसूस करते हैं हम उसे अनुभूति कहते हैं।

हम अपनी अनुभूति को बताने के लिए या व्यक्त करने के लिए भावनाओं का प्रयोग करते हैं। जैसे इमोजी का भी इस्तेमाल करते हैं👌👌👌😃😃😃😁😁😁।

अनुभूति के द्वारा किसी के प्रति प्रेम स्नेह को दिखाते हैं जैसे मां अपने बच्चे को पीटती भी है दुलार भी करती है यह सब अनुभूति के माध्यम से ही होते हैं।

जब हमें किसी के प्रति प्रेम या लगाव हो जाता है तब हम जो प्रदर्शित करते हैं वह भावना होती है।

➡️ अनुभूति
🎯अनुभूति किसी एहसास को कहते हैं यह शारीरिक रूप से स्पर्श, दृष्टि या गंघ सुधने से हो होती है या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती है।
🎯 अनुभूति को आप छुपा सकते हैं इसे देखने के लिए भावनाओं का सहारा लिया जाता है।
🎯 अनुभूति आंतरिक होती है।

➡️ भावना
🎯भावनाएं अनुभूति को बदलती है।
🎯 अपनी अनुभूति को भावनाओं को माध्यम से ही प्रदर्शित करते हैं।
🎯 भावनाएं बाहरी होती है।
🎯 भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती है।
हमारी भावनाएं बदलती रहती है।हमारी अनुभूति भी बदल जाती है जैसे जैसे भावनाएं दिखाते हैं वैसे वैसे हमारी अनुभूति भी बदल जाती है जैसे हमारी भावनाएं जब हम पढ़ते हैं या कुछ भी सीखते हैं तो अपनी भावनाओं के साथ पढ़ते हैं जैसे जो चीज सीखें कैसे सीखे हैं कैसे कार्य करना है यह सब जानने के बाद है हमारी अनुभूति शुरू हो जाती है

➡️ शारीरिक परिवर्तन
शारीरिक परिवर्तन जैसे जैसे चेहरे के भाव इशारे दिल की धड़कन रक्तचाप इत्यादि चीजों से भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है।
🎯 परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में भूमिका निभाते हैं।
🎯 अनुभुति को नहीं देख सकते हैं।
🎯 भावनाओं के कारण हमें अनुभव होता है और अनुभव से ही हमें अनुभूति होती है।

➡️ अनुभूति और जानकारी में अंतर—
अनुभूति का आधार अनुभव है जबकि जानकारी का आधार ज्ञान है।
जो दिल को पता है वह अनुभूति है जो दिमाग को पता है वह जानकारी है।

Notes By :-Neha Roy

🌹🍀❣️अनुभूति और भावना❣️🍀🌹

🦚 अनुभूति🦚

अनुभूति से तात्पर्य है किसी चीज का एहसास होना,
जब हम किसी गरीब व्यक्ति को देखते हैं उसे देखकर हमारे मन में उसे मदद करने की जो इच्छा होती है वह भावना है ,और उसकी मदद करने के बाद जो हमें एहसास होता है वह हमारी अनुभूति है!

👉🏻 इन अनुभूतियों को हम भावनाओं के माध्यम से दिखाते हैं!

❄️ उदाहरण के तौर पर-/
हम व्हाट्सएप या फेसबुक पर अपनी अनुभूतियों को भावनाओं के माध्यम से इमोजी के रूप में दिखाते हैं 👇🏻

😞😟😒😏😕☹️😖😫🥺😢😭😡😳😱🤭🤫🤔😬🙄😯🥱😴🤐😷🤠🤨😎🤩🤗😇😍😘🙄😁😜

👆🏻 इन इमोजी से आपको भावनाएं प्रकट हो रही होंगी यह भावनाएं अनुभूति के कारण आ रही है, जैसी अनुभूति होगी हम वैसी भावनाएं प्रकट कर सकेंगे !

🐤 अर्थात,
हम कह सकते हैं
कि अनुभूति किसी एहसास को कहते हैं,यह शारीरिक रूप से स्पर्श ,दृष्टि या गंध सूंघने से हो सकती है या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती है!

🐔 अनुभूति को आप छुपा सकते हैं, इसे दिखाने के लिए भावनाओं का सहारा लिया जाता है ,
जैसा कि उपरोक्त इमोजी में दर्शाया गया है……

🦚भावना🦚–/

💗भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती है–/
अक्सर ऐसा होता है कि हमारी भावनाएं बदल जाती हैं लेकिन हमारी अनुभूति बरकरार रहती है जैसे हमारे जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण पल जिन की अनुभूति हमें जीवन भर रहती है–
हालांकि उन पलों के प्रति हमारी भावनाएं बदल चुकी हैं लेकिन जब याद करते हैं तो वह फीलिंग आती है अर्थात अनुभूति होती है!

🥰 शारीरिक परिवर्तन जैसे चेहरे के भाव ,इशारे दिल की धड़कन ,रक्तचाप इत्यादि चीजों से भावना के प्रवाह को देखा जा सकता है!

🥰 परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं-/

जब बच्चे छोटे होते हैं और शिक्षा विहीन होते हैं तो वह अपनी भावनाओं ko जल्दी व्यक्त करते हैं उनका अपनी भावनाओं पर कंट्रोल नहीं रहता है और जैसे ही बच्चा बड़ा होकर परिपक्व हो जाता है वह शिक्षित हो जाता है तो वह भावनाओं को इतनी जल्दी व्यक्त नहीं करता है vah अपनी समझदारी के साथ उन भावनाओं को व्यक्त करता है!

🐣 अनुभव-/
भावनाओं से अनुभव जागृत होता है और अनुभव से अनुभूति का जन्म होता है

🐥 अनुभूति और जानकारी में अंतर-/

1️⃣ अनुभूति-/

❤️जो दिल को पता है वह अनुभूति है !

💖अनुभूति का आधार अनुभव है!

2️⃣ जानकारी-/

😎जो दिमाग को पता है वह जानकारी है!

📖जानकारी का आधार ज्ञान है!

💞 रितु योगी💕

🙏🏻✍🏻🙏🏻✍🏻🙏🏻

😛😄अनुभूति और भावना🤩🥰

😋🤪😫Cognition/Feeling or Emotion.🙈😝😜

💩अनुभूति ~~
जब हम किसी वृद्ध व्यक्ति को जो सड़क के किनारे भीख मांगते हैं और वह भूख से बेचैन है उनको खाने के लिए कुछ दिए। यह हमारा उस वृद्ध व्यक्ति के प्रति भावना था। तथा खाना देने के बाद जो हमें एहसास हुआ, वह हमारी अनुभूति है।
अर्थात हम कह सकते हैं कि भावना से अनुभूति/फिलिंग आती है। जैसे-अनुभूति को प्रदर्शित करने के लिए Emotion/इमोजी🤣😄😁☺️🥰🤩😛🤔😨🥵का प्रयोग करते हैं।

😁🙈भावना / इमोशंस -आउटर (बहारी) होती है जबकि अनुभूति / फिलिंग – इनर (आंतरिक) होती है।

🤑🤓अनुभूति ~~ किसी एहसास को कहते हैं यह शारीरिक रूप से स्पर्श, दृष्टि ,या सूंघने से हो सकती है । विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती है।

🙉😺जरूरी नहीं है कि भावना और अनुभूति एक जैसे चलें।

🙈😛अनुभूति को आप छिपा सकते हैं इसे दिखाने के लिए भावनाओं का सहारा लिया जाता है।

🌻🌸भावना अनुभूति को बदलती है जैसे-कोई व्यक्ति किसी से प्यार करते हैं और उसका शादी कहीं और हो जाता है तो उस व्यक्ति का भावना बदल गया और धीरे-धीरे उनके अनुभूति भी बदल गई।

🥰⭐भावना बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती है।

🍁🌾शारीरिक परिवर्तन जैसे – चेहरे का भाव ,इशारे ,दिल की धड़कन, रक्तचाप इत्यादि चीजों से भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है।

🙍परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

🍃💮भावना के कारण हमें अनुभव होता है और अनुभव से हमें अनुभूति आती है।

🌲अनुभूति और जानकारी में अंतर ~~

🌊अनुभूति का आधार अनुभव है, जबकी जानकारी का अधार ज्ञान है।
अर्थात जो दिल को पता है वह हमारे अनुभूति है और जो दिमाग को पता है वह जानकारी है।

🌻⭐🌸🌈🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

अनुभूति और भावना
🌷 Cognition / Feeling & Emotion 🌷

🌺 अनुभूति Cognition (feeling) :-

अनुभूति किसी एहसास को कहते हैं यह शारीरिक रूप से स्पर्श , दृष्टि या गंध सूंघने से हो सकती है या विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से होती है।

अनुभूति को आप छुपा सकते हैं इसे दिखाने के लिए भावनाओं का सहारा लिया जाता है।

हमारी आंतरिक दशा को अनुभूति कहते हैं । अनुभूति को भावनाओं से प्रत्यक्ष करते हैं।

🌺भावना Emotion :-

👉 भावनाएं अनुभूति को बदलती हैं।
👉भावनाएं बदलने के बाद भी अनुभूति विद्यमान रह सकती है जैसे :-
शारीरिक परिवर्तन में, चेहरे के भाव , इशारे , हृदय की धड़कन , रक्तचाप इत्यादि चीजों से भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है।
👉 परिपक्वता और शिक्षा भावनाओं की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भावनायें हमारी बाह्य दशा होती हैं। जो हम बाहरी रूप से प्रकट करके अपनो अनुभूति को सिखाते हैं।

🌷अनुभूति और जानकारी में अंतर होता है जैसे :-

👉जो दिल को पता है वह अनुभूति , जो दिमाग को पता है वह जानकारी।
👉अनुभूति का आधार अनुभव है ,जानकारी का आधार ज्ञान है।

🌺✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव। ✒️🌺

Mental development in Infancy notes by India’s top learners

📚🔰 मानसिक विकास ( mental development)📚🔰

📖 शैशवास्था ➖

💫 सोरेन्सन ➖ जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रतिमाह और प्रति वर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती हैं।

🎲 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण➖
ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं

संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन

अपरिचित अपरिचित का भेज दो-तीन तीन वर्ष में होता है

इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है

किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है

🎲 सम्प्रत्यय निर्माण ➖
शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती

धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है

प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है।

🎲 स्मरण शक्ति का विकास ➖

जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है

प्रारंभ में बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है

5-6 वर्ष में बच्चा पूर्व सुनी कहानियां या पूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं

🎲 समस्या समाधान क्षमता का विकास ➖

सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है

बच्चे का सुक्ष्म विचार नहीं होता है

स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है।

📝🔰 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🔥🐣 मानसिक विकास🐣🔥

🐣संवेदना व प्रत्यक्षीकरण।
🐣 संप्रत्यय निर्माण।
🐣 स्मरण शक्ति का विकास।
🐣 समस्या समाधान योग्यता का विकास।

🌹💥शैशवावस्था 💥🌹

📚सोरेन्सन के अनुसार :-

🔥जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन,प्रतिमाह और प्रतिवर्ष बढ़ता है, वैसे – वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है।

💥संवेदना व प्रत्यक्षीकरण :-

🌸 ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है।

🌸 संवेदना व प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन।

🌸२-३ वर्षों में परिचित तथा अपरिचित का भेद होने लगता है।

🌸 इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाते हैं।

🌸 किसी भी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है।

💥संप्रत्यय निर्माण :-

🌸 शैशवावस्था के आरंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है।

🌸 धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है।

🌸 प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है।

💥स्मरण शक्ति का विकास :-

🌸 जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुभव नहीं होता।

🌸प्राय: बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है।

🌸 5 से 6 वर्ष की उम्र में पूर्व में सुनी गई कहानी या पूर्व अनुभव को सुनाने में सामर्थ होते हैं।

💥समस्या समाधान की क्षमता का विकास :-

🌸 सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता बच्चों में ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है।

🌸 इस उम्र में बच्चों में सूक्ष्म में विचार नहीं होता।

🌸 इस उम्र में उनमें स्थूल विचारों में सक्षम होने लगता है।

🦚🦚समाप्त🦚🦚

🔥🔥Notes by :- Neha Kumari 😊

🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏

🔥🔥💥💥🔥🔥

🌾🌷Mental development🌸💥
🌻मानसिक विकास🥀

🌷शैशवावस्था ~~

🌾🌸शैशवावस्था के संबंध में सोरेन्सन का कथन~~जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन ,प्रतिमास,और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे – वैसे उसकी मानसिक शक्तियों भी बढ़ती है।

🌺🥀संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ~~

🌻ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है इसका मतलब ये नहीं है कि आंख, कान ,नाक ,जीव, त्वचा, जन्म के समय बच्चे में नहीं आते है।
🌈संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन । मतलब संवेदना जो बाद में होता है वो इस समय में नहीं आ पाती है। जैसे ~दर्द होगा तो बच्चा रोएगा पर बता नहीं पाएगा कि किस जगह चोट लगा है।

👉🌈बच्चों में परिचित और अपरिचित का भेद 2 से 3 साल में आ जाता है ।
👉2 साल तक वस्तु स्थायित्व का गुण आ जाता है ।

👉बच्चे इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है।
👉 किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है।

🥀🌺सम्प्रत्यय निर्माण~~~

🔥⭐शैशवावस्था में प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है।
🌿🥀बच्चा इस समय में अपने कार्य को concept से नहीं कर पाते हैं।

⭐धीरे-धीरे बच्चों में विभेद करने की योग्यता विकसित होती है जैसे- बच्चा किसी दो वस्तु मैं अंतर करने की योग्यता विकसित होती है।

🌺🥀प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर समान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करता है। मतलब बच्चा छोटे-छोटे चीजों से, (object) से निष्कर्ष निकालने की कोशिश करता है।

💥🌷स्मरण शक्ति ~~

🥀🌺जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं है।

💥बच्चा इस समय खाली स्लेट की तरह होता हैं।

🌿⭐प्रारंभ में बच्चों के स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है मतलब बच्चों को जितना सा सिखाया जाता है वह उतना ही बोल पाते हैं।

🌿⭐5 से 6 वर्ष में पूर्व सुनी कहानी, पूर्व अनुमान को सुनाने में समर्थ होती है।

🌈समस्या समाधान की क्षमता का विकास ~~~

🌿💥🌺सामान्य बातों पर सोचने, चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता, ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है।

🌾🌸बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है।
🥀🌷बच्चे इस समय में स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है।

🙏🌻🌿🌾Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸🌺🙏

📖 📖 मानसिक विकास 📖 📖

🌻🌿🌻 शैशवावस्था में बालकों का मानसिक विकास 🌻🌿🌻

📝 सोरेन्सन के अनुसार मानसिक विकास की परिभाषा ~
जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन, प्रतिमाह, प्रतिवर्ष बढ़ता है, वैसे- वैसे उसकी मानसिक शक्तियों की बढ़ती है।

🍂🍃 संवेदना / प्रत्यक्षीकरण~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण की शक्ति का विकास:-

👉🏻 शैशवावस्था में बालक की ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं। वह चीजों को या किसी भी अन्य पदार्थों को छूता तो है, मगर उससे जैसी अभिव्यक्ति एक सामान्य मनुष्य करता है, वैसी अभिव्यक्ति बालक नहीं कर पाता है। क्योंकि बालक में संवेदना का विकास पूर्ण रूप से नहीं होता है।

👉🏻 बालक चीजों के बारे में समझ नहीं पाता है। व उसे ज्ञान नहीं होता है, जिसके कारण वह संवेदनाएं और प्रत्यक्षीकरण में पीछे हो जाता है।

👉🏻 परिचित एवं अपरिचित का भेद 2 से 3 वर्ष में होता है~ बालक 2 वर्ष से पूर्व किसी भी प्रकार से ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग नहीं कर पाता है। वह चीजों को महसूस नहीं कर पाता है। लेकिन 2 से 3 वर्ष के बीच बालको में यह विकास होने लगता है। वह परिचित व्यक्तियों व अपरिचित व्यक्तियों दोनों में अंतर समझने लगता है।

👉🏻 इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है~ शैशवावस्था के अंत तक बालक यह जाने लगता है, कि वह कहां रह रहा है? वह अपने आसपास के स्थानों को पहचानने लगता है। और वह पूर्ण रूप से अपने वातावरण से परिचित हो जाता है। उसे यह ज्ञान देता है, कि मेरे आस-पास किस प्रकार की वस्तुएं है। इसी के चलते बालक में वस्तु स्थायित्व का गुण भी प्रदर्शित होने लगता है।

👉🏻 किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है~ बालक के सामने कई प्रकार की स्थितियां आती है, कई बार बालक स्थितियों को समझने में असमर्थ हो जाता है। वह समझ नहीं पाता है। लेकिन इस अवस्था में बालक हर प्रकार की स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने का प्रयास करता है।

🍃🍂 संप्रत्यय निर्माण~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में संप्रत्यय निर्माण की योग्यता का विकास:-

👉🏻 शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता नहीं होती है~ बालक ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से चीजों से अपना संबंध बनाता है। उन्हें महसूस करने की कोशिश करता है, लेकिन उसके बाद वह उन चीजों के बारे में अपना संप्रत्यय निर्माण नहीं कर पाता है। क्योंकि शैशवावस्था में बालक में यह योग्यता नहीं होती है, कि वह किसी भी प्रकार का संप्रत्यय निर्माण कर पाए।

👉🏻 विभेद करने की योग्यता का विकास ~ बालक धीरे-धीरे वस्तुओं में व्यक्तियों में व अन्य चीजों में अंतर स्पष्ट करने लगता है। उसमें यह योग्यता विकसित होती है, कि इस चीज में एवं दूसरी चीज में किस प्रकार का अंतर है। अर्थात बच्चे में विभेद की योग्यता विकसित होने लगती है। बच्चा अपने माता-पिता एवं परिवारिक व्यक्तियों को तो जानता है। लेकिन उनके अलावा भी अन्य व्यक्तियों में भी अंतर स्थापित कर लेता है।

👉🏻 प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव~ बच्चा कई प्रकार चीजों को देखता है। उन्हें समझने का प्रयास करता है। तत्पश्चात वह उनसे संबंधित अनुभव प्राप्त करता है। इस अनुभव के आधार पर वह एक सामान्य से निष्कर्ष निकालने का भी प्रयास करता है। बालक इसी प्रकार के कार्य को होते हुए देखता है। उससे वह अनुभव के माध्यम से एक अपना संप्रत्यय निर्माण करता है।

🍂🍃 स्मरण शक्ति का विकास~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में स्मरण शक्ति का विकास:-

👉🏻 जन्म के समय स्मरण शक्ति का संबंध~
जब बालक अपनी मां के गर्भ से जन्म लेता है, उस समय बच्चे में किसी भी प्रकार की स्मरण शक्ति नहीं होती है। क्योंकि उसे कोई अनुभव नहीं होता है। हम जानते हैं, कि बच्चा अनुभव से ही स्मरण शक्ति प्राप्त करता है। लेकिन जन्म से पहले बच्चे में किसी भी प्रकार के अनुभव ऐसे अनुभव नही होते है, जो कि उसके जन्म के पश्चात के वातावरण में होते हैं। अतः बच्चे में जन्म के समय स्मरण शक्ति नहीं पाई जाती हैं।

👉🏻 प्रारंभ में स्मरण शक्ति रटन्त होती है~
जन्म के पश्चात जब बालक अपने बाहरी वातावरण के संपर्क में आता है। तो उसकी स्मरण शक्ति इस प्रकार की होती है, कि जैसा उसे बोलने के लिए कहा जाएगा वह उसी प्रकार की बातों को बोलेगा। अर्थात कहने का अर्थ यह है, कि बालक में रखने जैसी प्रवृत्ति होती है। जिस प्रकार हम एक तोते को चीजें हटवा देते हैं। उसी प्रकार बालक भी चीजों को रख लेता है।

👉🏻 पूर्व अनुभवों को सुनने में समर्थता~
जब बालक 5 से 6 वर्ष की आयु में होता है, तब वह पूर्व में सुनी हुई कहानियों एवं बातों को अपने अनुभवों के द्वारा बताने का प्रयास करता है, वह पूर्व मैं हुए अनुभवों को सुनाने में समर्थ होता है। वह पुरानी बातों को याद करके हमें बताने का प्रयास करता है।
उदाहरण के लिए वह कभी किसी जगह पर घूमने गया हो, तो कुछ समय के पश्चात हम उससे पूछ है, कि हम कहीं गए थे? तो वह बता पाता है, कि हम इस जगह पर गए थे। इस तरह की स्मरण शक्ति का विकास बच्चे में होने लगता है।

🍃🍂 समस्या समाधान की योग्यता का विकास~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में समस्या समाधान कौशल की योग्यता का विकास:-

👉🏻 सोचने व तर्क करने की क्षमता का विकास~
बच्चे में ढाई से 3 वर्ष के बीच सामान्य बातों में भी चिंतन करने का विकास होने लगता है। वह हर छोटी-छोटी चीजों में सोचने लगता है। उन पर विचार करने का प्रयास करता है, और अपना तर्क भी लगाता है। कई बार बालक हम से कई प्रकार के प्रश्नों को पूछता है। ऐसा क्यों हुआ? ऐसा किस लिए हुआ? कब होगा? कैसे होगा? इस तरह के प्रश्न बालक करने लगता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं, कि बालक में समस्या समाधान की योग्यता विकसित होने लगी है।

👉🏻 सूक्ष्मता से विचार नहीं कर पाता है~
बालक में से शैशवावस्था के चलते चीजों के बारे में जानने का प्रयास तो करता है, लेकिन उन चीजों मैं बस सूक्ष्मता से चिंता नहीं कर पाता है। केवल वह उत्सुक रहता है, लेकिन उनके बारे में जनता से चिंतन नहीं कर पाता है। वह केवल उसके बाहरी चीजों को ही देख पाता है।

👉🏻 बालक इस अवस्था में चीजों के बारे में अपने विचारों को कुछ इस प्रकार से विकसित करता है~
● स्थूल से सूक्ष्म की ओर,
● ज्ञात से अज्ञात की ओर,
● मूर्त से अमूर्त की ओर,
इत्यादि सभी के आधार पर बालक शैशवावस्था में अपनी समस्या समाधान की योग्यता को विकसित करता है। और धीरे-धीरे इसका विकास बड़ता जाता है।

📚 📚 📘 समाप्त 📘 📚 📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

🌻🌷🌿🙏🏻🌺🌻🌷🌿🙏🏻🌺🌻🌷🌿🙏🏻🌺🌻🌷🌿🙏🏻
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🔆 मानसिक विकास

➡️ सोरेन्स के अनुसार:-
जैसे-जैसे शिशु प्रति माह प्रति दिन और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है।

⚜️ संवेदना व प्रत्यक्षीकरण—
ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है कह सकते हैं कि बच्चे में आंख, कान, जीभ, त्वचा जन्म के समय बच्चे में नहीं आते हैं।

⚜️ संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन— इस समय बच्चे को यह नहीं पता है कि जब उन्हें चोट लगती है तो कहां चोट लगी है और कैसे चोट लगी चीज का उन्हें ज्ञान नहीं होता है।

⚜️ परिचित परिचित का भेद 2- 3 वर्ष में होता है
ः2 साल तक के बच्चे में वस्तु स्थायित्व का गुन आ जाता है।
बच्चे इस अवस्था तक अपने पराए में अंतर करने लगते हैं अगर बच्चे जो उन्हें पसंद नहीं होता है तो उन्हें देखकर वह छिप जाते हैं नहीं तो अपना चेहरा का हाव भाव से उनको दिखाते हैं।
ः अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है।
ः किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करते हैं।

⚜️ संप्रत्यय निर्माण—
शैशवास्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है।
इस समय कार्य को करने में सक्षम नहीं होते हैं।
ः धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है जैसे बच्चा दो चीजों में अंतर करना सीख जाता है उसे क्या चाहिए नहीं चाहिए इसकी समझ में आ जाती है।

ः प्रत्याक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करता है बच्चे किसी चीज को देखकर निष्कर्ष निकालते हैं।

⚜️ स्मरण शक्ति का विकास —
ः जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान ही नहीं होता है। बच्चे मे इस उनके स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है।
ः प्रारंभ में बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है जो बच्चे को दे दो वह उसी चीज को रटते रहते हैं जो उसे चाहिए उसी चीज को बोलते रहेंगे जब तक नहीं मिलता है उसी चीज को बोलते रहते हैं।
ः 5 से 6 वर्ष में पूर्व सुनी कहानी पूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं जैसे बच्चे को कोई कहानी सुना दिया जाए उसी चीज को सोचकर उस चीज को आगे कहानी बनाकर या अनुभव करके उस चीज को बताने में समर्थ होते हैं।

⚜️ समस्या समाधान की क्षमता का विकास —
ः सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता 2 से ढाई साल से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है। बच्चे जब 2 से ढाई साल या 3 साल के होते हैं तब वह सोचते हैं उन्हें क्या चाहिए नहीं चाहिए वह कुछ सोच कर ही चिंतन करते हैं वह बदमाशी भी करते हैं या किसी चीज को छुपा देते हैं तर्क लगाते हैं या उन्हें पढ़ने का जब मन नहीं रहता है तो वह कुछ ना कुछ बहाना करते हैं।
ः। बच्चों का सूक्ष्म विचार नही होता है।
ः स्थूल विचार में सक्षम होने लगते हैं। बड़े विचार में वह धीरे-धीरे सक्षम होने लगते हैं और अपने कार्य को आसानी से करने लगते हैं।

Notes By:-Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🔆 बच्चे का मानसिक विकास 🔆

🎯 शैशवावस्था में मानसिक विकास ➖

सारेन्सन के अनुसार ➖

जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रति माह और प्रतिवर्ष पड़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है |

अर्थात जब बच्चा जन्म लेता है तो उसकी मानसिक शक्तियां कमजोर होती है वह प्रतिदिन बढ़ती जाती है उम्र के साथ आती है इस अवस्थाओं को 4 अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है ➖

🔅 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➖

1) इस समय में बच्चे की ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हुई धीरे-धीरे विकसित होने लगती है |

2) संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन होता है क्योंकि वह किसी बात को समझने में असमर्थ रहना है अनुभव तो करता है लेकिन उसे प्रकट नहीं कर पाता है |

3) परिचित अपरिचित का भेद
2-3 वर्ष में समझने लगता है बच्चे अपने परिवार की व्यक्तियों एवं आस-पड़ोस के करीबियों, रहने को समझने लगता है |
4) इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है |

5) वर्ष की उम्र तक किसी भी स्थिति में अंदर के अर्थ समझने की कोशिश करने लगता है |

6) अर्थात इस अवस्था में बच्चे की संवेदनाएं पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाती है |

🎯 संप्रत्यय निर्माण ➖

1) शैशावस्था के प्रारंभ में संप्रत्यय निर्माण की योग्यता विकसित नहीं हो पाती है |

2) धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है |

जन्म के समय बच्चे के पास कोई अर्थ नहीं होता है लेकिन धीरे-धीरे सीखता, और अपनी योग्यता विकसित करता है |

3) प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव है उसके आधार पर सामान निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है |

🎯 स्मरण शक्ति का विकास➖

जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि जन्म के समय बच्चे कोरी स्लेट की तरह होता है धीरे-धीरे अनुकरण करके सीखता है |

2) प्रारंभ में बच्चे के स्मरण शक्ति शक्ति तोते की तरह होती है जो सिखाया जाता है वही सीखता है |

3) लगभग 5 से 6 वर्ष के बीच बच्चा पूर्व में सुनी हुई कहानी अपूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं |

🎯 हमारा समस्या समाधान की योग्यता का विकास ➖

1) बच्चा जन्म के समय कोई भी समस्या समाधान नहीं करता है समस्या को समस्या के समाधान में सक्षम नहीं हो पाता है लेकिन वह 3 से 4 वर्ष की उम्र में अपना मस्तिष्क लगाने लगता है |

2) सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से तीन वर्ष के बीच शुरू होने लगती है वह तथ्यात्मक चिंतन नहीं कर पाता है |

3) बच्चे का सूक्ष्म में विचार नहीं हो पाता है वह विभेद नहीं करता है वह महीनता के साथ सोच नहीं सकता है वह सूक्ष्म विचार करने में सक्षम नहीं हो पाता है |

4) स्थूल विचारों में तत्कालिक विचारों में सक्षम होने लगता है अर्थात हम कह सकते हैं कि बच्चा इस अवस्था में संवेदी गाम अवस्था में होता है और इस अवस्था में वस्तु स्थायित्व का प्रदर्शन होने लगता है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🌻🌼🌼🍀🍀🌺🌺🌸🌸🌼🌼🌻🌻

🌷 मानसिक विकास 🌷

शैशवावस्था में बच्चे का मानसिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है :-

*🌺 ” सॉरेन्सन ” के अनुसार :-*

जैसे – जैसे शिशु प्रतिदिन ,प्रतिमास , प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे – वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती जाती हैं।

*1.🌲 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण :-*

👉इस समय ज्ञानेंद्रियां पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती है।

अर्थात इस उम्र में बच्चे अपनी ज्ञानेन्द्रियों का पूर्ण रूप से अनुभव (अहसास) नहीं समझ पाते हैं।

👉संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन होता है
इस समय बच्चे अपनी संवेदनाओं को प्रत्यक्ष (बाहरी) रूप से नहीं बता पाते हैं।

👉परिचित और अपरिचित का भेद 2-3 वर्ष में होता है।
अपने पराये का भेद समझने लगता है।

👉इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है । अर्थात बच्चे अपने आसपास के वातावरण, लोगों से परिचित हो जाते, पहचानने लगते हैं।

👉किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है।अर्थात बच्चा हर स्थिती को जानने , समझने और मतलब जानने की कोशिश करता है।

*2. 🌲 संप्रत्यय निर्माण :-*

👉शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है ।

👉धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है।

👉प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करता है।

*3. 🌲 स्मरण शक्ति का विकास :-*

👉जन्म के समय स्मरणशक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है।
इस समय बच्चा स्मरणशक्ति (याद) का अनुमान नहीं लगा पाता है।

👉प्रारंभ में बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह (रटन्त विद्या) होती है ।
अर्थात इस समय जब बच्चे को जो भी याद करवा देते , सिखा देते हैं बच्चा बिल्कुल उसी तरह याद करलेता है।

👉5 – 6 वर्ष में बच्चे पूर्व में सुनी हुयी कहानियों , पूर्व अनुभवों को सुनाने में समर्थ होते हैं।
अर्थात इस समय बच्चा जो पहले सुनता है, देखता है, करता है उसे याद हो जाता है तो अब वह उसे अपने शब्दों में दूसरों को सुनाने लगता है।

*4. ,🌲 समस्या समाधान की क्षमता का विकास :-*

👉सामान्य बातों पर सोचने , चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता “ढाई से 3” साल के बीच शुरू होने लगती है।

👉बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है।
अर्थात इस उम्र बच्चा बहुत ज्यादा गहराई से नहीं सोच पाता है।

👉स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है।
बताया गया है कि सूक्ष्म रूप से नहीं सोच पाता अर्थात वह अपनी छोटी उम्र के अनुसार अपनी सोच विचार के आधार पर छोटे , साधारण रूप से विचार करने में सक्षम हो जाता है।

🌺✒️ Notes by- जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

🌹मानसिक विकास🌹

शैशवावस्था में मानसिक विकास

🌹सोरेनसन के अनुसार🌹👈
-जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रति माह और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है

अर्थात जब बच्चा जन्म लेता है तो उसकी मानसिक शक्तियां कमजोर होती है वह प्रतिदिन बढ़ती है उम्र के साथ आती इस अवस्था को 4 अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है

(1) संवेदना और प्रत्यक्षीकरण
(2) संप्रत्यय निर्माण
(3) स्मरण शक्ति का विकास
(4) समस्या समाधान की क्षमता का विकास

🌹(1)संवेदना और प्रत्यक्षीकरण

🌸इस समय में बच्चे ज्ञानेंद्रियों विकसित नहीं होती l —अर्थात इस उम्र में बच्चे अपने ज्ञानेंद्रियों का पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर पाते l

🌸 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन l—अर्थात इस समय बच्चे अपनी संवेदना ओं को प्रत्यक्ष रूप से नहीं बता पाते l

🌸परिचित /अपरिचित का भेद दो-तीन वर्ष में होता है l— इस समय बच्चे अपने परिवार के सभी सदस्यों को पहचानने लगते हैं और अनजान लोगों से घबरा जाते हैं l

🌸 इस अवस्था के अंत तक वातावरण में परिचित हो जाना l— इस अवस्था के अंत तक बच्चा वातावरण से परिचित हो जाता है जैसे आदर्श का पालन करना माता-पिता के कार्यों में सहायता करना

🌸 किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करना l — अर्थात छोटे-बड़े में भेद करना चित्रों के बारे में बात करना/ पूछना /अक्षर लिखना /वस्तुओं को कर्म में रखना सीखने लगते हैं

(2)🌹संप्रदाय निर्माण

🌸शैशवावस्था के प्रारंभ से यह योग्यता विकसित नहीं होती l— इस समय बालक कार्य करने में सक्षम नहीं होते l

🌸 धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती हैl— अर्थात छोड़ के बरे में भेद करना सीख लेते हैंl

🌸 प्रत्याक्षीकरण संबंधी अनुभव l— अर्थात बालक बहुत प्रकार के चीजों को देखता है उसे समझने का प्रयास करता है जिसके बाद बालक कुछ अनुभव प्राप्त करता है l

🌹(3) स्मरण शक्ति का विकास

🌸 जन्म के समय स्मरण शक्ति का संबंध l—
अर्थात बालक जब जन्म लेता है उस समय बालक में किसी भी प्रकार का स्मरण शक्ति नहीं होती है lबालक कोरी स्लेट की तरह होते हैं जो आगे चलकर धीरे-धीरे अपने वातावरण से अनुकरण सीखते हैं l

🌸 बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है l— अर्थात बालक को जो कुछ सिखाया जाता है वही बोलते हैं l
🌸 5 से 6 वर्ष पूर्व मैं सुनी हुई कहानियों, पूर्व अनुभवों को सुनाने में समर्थ होते हैं l— बालक कुछ समय पहले सुनी हुई कहानियों को दूसरों के सामने सुनाने में समर्थ होते हैं l

(4)🌹 समस्या समाधान की क्षमता का विकास

🌸 सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है l— शिशु वाक्यों की रचना वस्तुओं का नाम बताना, अपनी आवश्यकताओं को बताना ,वस्तुओं यथा स्थान पर रखना सीख जाते हैं l

🌸 बच्चे बच्चे का सोच विचार नहीं होते l— बालक के इस उम्र मैं सही ढंग से सोचने की क्षमता विकसित नहीं होती l

🌸 स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है l— अर्थात बालक में क्षेत्र समिति तथा सीखने की गति तीव्र होती है
💐 ✍️NOTE BY —SANGITA BHARTI✍💐

🤔 मानसिक विकास🤔
शैशवावस्था

सोरेनसन 👉अनुसार जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रति माह और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती जाती हैं

🤔संवेदना और प्रत्यक्षीकरण🤔

1 ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं:- शैशवावस्था में हमारी ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं जिससे हम किसी प्रकार का अनुभव कर सकते हैं

2 संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन : शैशवावस्था में हमारी संवेदनाएं पिछड़ी हुई होती हैं हम किसी कार्य को करते हैं और तुरंत ही उसे भूल जाते हैं

3 परिचित अपरिचित का भेद 2 से 3 वर्ष में होता है:- शैशवावस्था में बच्चे जिस से परिचित होते हैं उन्हीं के पास जाते हैं तथा जिन से परिचित नहीं होते हैं उसके पास में जाने पर वह रोज रोने लगते हैं 3 से 4 वर्षों में बच्चे व्यक्तियों को पहचाने लगते हैं जो हमारे आसपास होते हैं उन्हें बच्चे जानने लगते हैं

4 शैशवावस्था की अवस्था के अंत तक बच्चे वातावरण से परिचित हो। :- बच्चे अपने परिवेश को समझने लगते हैं उस पर समायोजन करना सीख लेते हैं

5 किसी स्थिति को अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है

6 संवेदना पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती हैं:-

🤔संप्रत्यय निर्माण🤔
शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है:- शैशवावस्था के प्रारंभ में संप्रत्यय निर्माण की योग्यता विकसित नहीं होती है

धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती जाती है

प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर इस सफलता निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है

🤔 स्मरण शक्ति का विकास🤔

जन्म के समय में शक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है

बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है

5 से 6 वर्ष में पूर्व सुनी कहानी पूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं बच्चे तो दुनिया में कहानियों को सुना सकते हैं एवं नई कहानी के साथ उसका संबंध है जोड़ सकते हैं
🤔 समस्या समाधान की क्षमता का विकास🤔

सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करना:- सामान्य की बातों को लेकर बच्चे सोचने लगते हैं उसमें तर्क उतारकर करने लगते हैं उसके बारे में चिंतन करने लगते हैं क्या क्यों कैसे क्वेश्चन आने लगते हैं बच्चों के मन में

बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है बच्चा छोटी-छोटी बातों पर विचार नहीं कर सकता है

स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है बच्चा बड़ी बातों पर अपनी समाज एवं विचार देने के लिए सक्षम होने लगता है

🙏🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏🙏

❇✴ मानसिक विकास ❇✴
शैशवावस्था में बालको का मानसिक विकास ➡
सोरेन्सन के अनुसार :- जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रतिमाह और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी पड़ती है |
🔅 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➡ बच्चे की ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है शारीरिक अवस्था में इस समय में संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण मे पिछडा़पन होता है | इस उम्र में संवेदना नहीं होती है |
दसवीं माह से 1 वर्ष तक वह बोलने का अनुकरण करता है |
दूसरे वर्ष से शब्द व वाक्य बोलने लगता है |
परिचित अपरिचित का भेद 2 से 3 वर्ष में होता है |
किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है|
🔅 संप्रत्यय निर्माण ➡
शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है जब बच्चा जन्म के समय शिशु का पूर्णतया अविकसित होता है और वह अपने वातावरण को नहीं जानता है शैशवावस्था में शिशुओ की मानसिक योग्यता का विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है |
बच्चों में धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होने लगती है तीसरी वर्ष में पूछे जाने पर अपना नाम बताने लगता है छोटी छोटी कविता या कहानी सुनाता है और अपने शरीर के अंग पहचानने लगता है चौथे वर्ष तक वह चार पांच तक गिनती गिनना अक्षर लिखना जानने लगता है और पांचवे वर्ष मे शिशु हल्की और भारी वस्तुओं में अंतर करने लगता है व विभिन्न रंग पहचानने लगता है वह अपना नाम लिखने लगता है | भार आयतन में अन्तर नही कर पाता हैं |
प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रदान करता है |
🔅स्मरणशक्ति का विकास ➡ जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं है जो बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है तो कुछ क्रियाएं करने लगता है बच्चा जन्म से 3 माह तक शिशु केवल अपने हाथ पैर हिलाता है भूख लगने पर रोना हिचकी लेना दूध पीना कष्ट का अनुभव करना चौकना चमकदार चीजों को देखकर आकर्षित होना या कभी-कभी हंसना आदि क्रियाएं करता है |
प्रारंभ में बच्चे की स्मरणशक्ति तोते की तरह होती है |
पांच से छह वर्ष में बच्चा इस समय में पूर्व में सुनी कहानी पूर्व अनुभव को सुनाने मे समर्थ होते हैं |
🔅समस्या समाधान की क्षमता का विकास ➡ सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से तीन साल के बीच शुरू होने लगती है |
बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है
धीरे-धीरे स्थूल विचार में सक्षम होने लगते है |
इस प्रकार शैशवावस्था में मानसिक विकास शीघ्रता से होता है इस अवस्था में बच्चे कल्पना जगत में रहते हैं वे अधिकतर अनुभव निरीक्षण व अनुभव द्वारा सीखते हैं |
Notes by – Ranjana Sen

Why child fail to achieve success into school performance notes by India’s top learners

: 📚📚 बच्चे विद्यालय के प्रर्दशन में सफलता प्राप्त करने में कैसे असफल रहते हैं 📚📚

✌️ इसके कई कारण हैं

💠 आत्मविश्वास की कमी ➖
आत्मविश्वास की कमियां विफलता का डर एक छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन से रोक सकती है नए कौशल हमें हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।

💠 खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीयता ➖
प्रत्येक बच्चे को स्कूल में प्रवेश करने से पहले दिन से ही बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए की अपनी पढ़ाई गृह कार्य या अन्य कार्य के लिए मित्रों या दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय खुद करना चाहिए।

💠इच्छा और प्रेरणा की कमी ➖
सक्षम होते हुए भी इच्छा या प्रेरणा मैं कमी के कारण बच्चे कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं काम का आनंद नहीं लेते हैं फिर कार्य असफल हो जाता है

💠 पढ़ने या समझने की खराब स्थिति ➖
अगर एक बच्चा सामान्यतः पढ़ने के कार्य में प्रयुक्त होने वाले भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ हो तो तेज दिमाग के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्टता को नहीं पा सकते हैं।

💠 माता पिता की भागीदारी में कमी ➖
माता-पिता की भागीदारी बच्चों के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है कम उम्र के दौरान माता पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

💠 अनुचित संगठनात्मक कौशल ➖
बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी में कु प्रबंध या कुसंगठित है तो यह बच्चे के सीखने की गति को अव्यवस्थित करते हैं।

💠 अन्य कारक➖

साथियों का दबाव

बहुत ज्यादा संरक्षण में रखना

माता-पिता की बड़ी उम्मीदें

सामाजिक स्तर पर परेशानी

किसी भी दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🔆 *क्यों और कैसे बचे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं—*

⚜️ आत्मविश्वास की कमी:-
आत्मविश्वास की कमी के कारण बच्चे भी सफलता का डर महसूस करते हैं उनके कौशल और क्षमता गठन को रोक देती है जिससे वह नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कार्य को करने के लिए बच्चे में धैर्य बहुत जरूरी है धैर्य अगर नहीं रह पाएंगे तो बच्चे उस कार्य को नहीं कर पाएंगे। बहुत से ऐसे बच्चे होते हैं जो किसी कार्य को जल्दबाजी में करना चाहते है क्योंकि उनमें धैर्य की कमी होती है।

⚜️ खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीय —
प्रत्येक बच्चे को स्कूल में प्रवेश करने से पहले दिन से ही यह सिखाना चाहिए कि बच्चे अपने पढ़ाई गृह कार्य अन्य कार्य के लिए मित्रों या दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय खुद करना चाहिए। बच्चे को अपना काम स्वयं करना चाहिए किसी पर आश्रित नहीं होना चाहिए अगर किसी पर आश्रित रहेंगे तो हम उन्हीं पर बुरी तरीके से आश्रीत हो जाएंगे इसलिए हमें खुद से कार्य करने चाहिए खुद पर कार्य करने से हमारे अंदर आत्मविश्वास भी उत्पन्न होती है किसी कार्य करने के लिए उत्सुक भी होते हैं।

⚜️ इच्छा और प्रेरणा की कमी—
बच्चे किसी कार्य को करने में रुचि नहीं लेते हैं तो कार्य करने में उन्हें आनंद भी नहीं आता है अगर वह किसी कार्य को करने में रुचि लेते हैं तभी वह किसी कार्य में आनंद भी ले पाते हैं सक्षम होते हुए भी इच्छा या फिर ना में कमी के कारण बच्चे कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं उन्हें काम में आनंद नहीं आता है फिर उनका कार्य सफल नही हो पाता है।

⚜️ पढ़ने या समझने की खराब स्थिति—
अगर एक बच्चा समांतर पढ़ने में कार्य में प्रयुक्त होने वाले भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ हो तो तेज दिमाग होने के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्टा को नहीं समझ सकते हैं इसलिए बच्चे को गृह कार्य उतना ही देना चाहिए जिससे वह पढ़ने मे उनकी खराब स्थिति ना बने।

⚜️ माता-पिता की भागीदारी में कमी—
माता-पिता की भागीदारी भी बच्चों के अधीन में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि सबसे ज्यादा बच्चे अपने माता-पिता के पास ही समय गुजारते हैं कम उम्र के दौरान ही माता पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है माता-पिता को बचपन में ही बच्चे को अच्छे ज्ञान बताने चाहिए उन्हें कार्य में रुचि उत्पन्न कर आनी चाहिए जिससे बच्चे को कार्य करने में जिज्ञासा उत्पन्न हो उन्हें भारी ना लगे।

⚜️ अनुचित संगठनात्मक कौशल—
बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी में खूब प्रबंध या को संगठित हो तो यह बच्चे के सीखने की गति को अवस्थित करते हैं इसलिए बच्चे को अच्छे वातावरण उपलब्ध करवाना चाहिए।

🔆 अन्य कारक —
साथियों का दबाव— बच्चे स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने का कारण उनके साथियों का दबाव भी है उनके साथी उन्हें स्कूल में बहुत परेशान करते हैं जिससे वह अपने कार्य को सही तरीके से नहीं कर पाते हैं।

⚜️ उसमें ज्यादा संरक्षण में रखना- बच्चे स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने के कारण उनमें ज्यादातर संरक्षण में रखना भी होता है।

⚜️ माता-पिता की बड़ी उम्मीदें— जैसे माता-पिता की बहुत बड़ी उम्मीदें पहले से ही होती है जिसके कारण है बच्चे स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं इसलिए हमें बच्चे से उतनी ही उम्मीद रखनी चाहिए जितनी वह क्षमता के अनुसार हो।

⚜️ सामाजिक स्तर पर परेशानी— बच्चों को स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं करना सामाजिक स्तर पर परेशानी भी होती है कई बच्चे ऐसे होते हैं जो समाज में समायोजन नहीं कर पाते हैं।

⚜️ किसी दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप— बच्चे स्कूल में अच्छा प्रदर्शन इसलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप ज्यादा होती है।

Notes By:-Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌷🌷 *क्यों और कैसे बच्चे शाला प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं 🌷* 🌷

3. 🌺 आत्मविश्वास की कमी. :-*

आत्मविश्वास की कमी या डर, एक छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन से रोक सकती है , तो नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।
अर्थात बच्चों में जब स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता है तो उनमें डर बना रहता है कि कहीं हम असफल तो नहीं हो जायेंगे उनका यही डर और क्षीण आत्मविश्वास बच्चों के शैक्षिक क्षेत्र में असफलता का कारण बनता है। अतः अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों में धैर्य , आत्मविश्वास और होंसला बढ़ाना चाहिये।

*4. 🌺खुद से ज्यादा दूसरे पर विश्वसनीयता। :-*

प्रत्येक बच्चे को विद्यालय में प्रवेश करने के पहले दिन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि अपनी पढ़ाई , अपने गृह कार्य या अन्य कार्यों के लिए मित्रों परिवार या दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय खुद करना चाहिए।
बच्चे अपने कार्य स्वयं से न करके बल्कि दूसरों पर निर्भर रहते हैं जो कि उनकी असफलता का कारण बनता है।अतः बच्चों में स्वयं से जिम्मेदारी पूर्वक अपने कार्य पूरा करने की प्रवृत्ति जगानी चाहिये।

*5. 🌺इच्छा और प्रेरणा की कमी :-*

सक्षम होते हुए भी इच्छा या प्रेरणा में कमी के कारण बच्चे अपने कार्यों में दिलचस्पी नहीं दिखाते , काम का आनंद नहीं लेते , फिर कार्य में असफल हो जाते हैं।
बच्चे कर सकते हैं लेकिन यदि उनमें कोई भी कार्य करने की इच्छा नहीं है या बे कार्यों के प्रति प्रेरित नहीं होंगे तो असफल होंगे इसीलिए बच्चों में कार्यों के प्रति दिलचस्पी, इच्छा और प्रेरणा का विकास करते रहना चाहिए।

*6. 🌺पढ़ने और समझने की खराब स्थिति :-*

अगर एक बच्चा सामान्यतः पढ़ने के कार्यों में प्रयुक्त होने वाली भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ है तो तेज दिमाग होने के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्टता को नहीं पा सकते हैं।
उत्कृष्ट (Excellent) बच्चा भी गलत भाषा या वातावरण के प्रभाव से शैक्षिक रूप से disappointed विचलित हो जाता है और असफल हो जाता है, अतः बच्चे की सफलता के लिए उचित भाषा और वातावरण प्रदान करना चाहिये।

*7. 🌺माता-पिता की भागीदारी में कमी. :-*

माता-पिता की भागीदारी बच्चों के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है एवं कम उम्र के दौरान भी माता पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
अतः बच्चे अपने माता पिता और परिवार से सबसे पहले सीखते हैं इसीलिए माता पिता और परिवार की बच्चे के शैक्षिक सफलता में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

*8. 🌺अनुचित संगठनात्मक कौशल :-*

बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी में यदि कुसंबद्धता या कुसंगठितता है तो यह बच्चे की सीखने की गति को आव्यवस्थित करते हैं।
अतः बच्चों के दैनिक जीवन में समयबद्धता और सुव्यवस्थित कार्य करने की आदत होगी तो प्रत्येक बच्चा सफल होता है।

*9. 🌺अन्य कारक :-*

👉 साथियों का दबाव
👉 बहुत ज्यादा संरक्षण (अनुशासन) में रखना
👉 माता पिता के बड़ी उम्मीदें (अपेक्षाएं )
👉 सामाजिक स्तर पर परेशानी
👉 किसी दूसरे के द्वारा निरंतर हस्तक्षेप।

*🌺✒️Notes by- जूही श्रीवास्तव*✒️🌺

🔆 क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में असफल रहते हैं 🔆

🎯 आत्मविश्वास की कमी ➖

यदि बच्चे के आत्मविश्वास में कमी है तो बच्चे की असफलता की ज्यादा अवसर होगें |
बच्चे में यदि विफलता का डर उत्पन्न हो गया तो वह छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन करने से क्षमता गठन करने से रोक सकती है क्योंकि डर एक ऐसी चीज है जिसको बच्चे ने खुद क्रिएट किया है यह अर्जित है जन्मजात नहीं है डर को दूर भी किया जा सकता है |
इसके लिए नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है यदि धैर्य है तो इंसान कभी हार नहीं सकता है |

🎯 खुद से ज्यादा दूसरों पर आत्मविश्वास ➖

आज के युग की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह दूसरों पर विश्वास करता है और यही असफलता का सबसे बड़ा कारण है इसलिए बच्चे को स्कूल के पहले दिन से यह सिखाना चाहिए कि दूसरों पर विश्वास कभी ना करें चाहे वह उसका दोस्त, सहपाठी ,शिक्षक, परिवार या उसके माता-पिता में से कोई भी हो खुद पर विश्वास करना सीखें |

अर्थात प्रत्येक बच्चे को स्कूल में प्रवेश करने के पहले दिन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि अपनी पढ़ाई के लिए ,गृह कार्य के लिए या अन्य कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय खुद करना चाहिए |

🎯 इच्छा और प्रेरणा की कमी ➖

यदि किसी कार्य की आवश्यकता है तो उस आवश्यकता को पूरा करने के लिए रुचि और अभिप्रेरणा की आवश्यकता होती है और यदि प्रेरणा और इच्छा नहीं है तो आवश्यकता पूरी नहीं हो सकती |

अर्थात सक्षम होते हुए भी इच्छा अभिप्रेरणा में कमी के कारण बच्चे कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाते काम या आनंद नहीं लेते है और असफल हो जाते हैं |

🎯 पढने या समझने की खराब स्थिति ➖

यदि बच्चे सामने जो पढ़ाई कराई जाती है वह ठीक नहीं है और पढ़ाई में प्रयोग होने वाली भाषा ठीक नहीं है और वह उस भाषा को समझने में असमर्थ है तो बच्चा प्रतिभाशाली होने के बाद भी नहीं समझ पाएगा और वह पीछे हो सकता है |
अर्थात अगर एक बच्चा सामान्यतः पढ़ने के कार्य में प्रयुक्त होने वाले भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ है तो तेज दिमाग होने के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्टता को नहीं पा सकते हैं |

🎯 माता-पिता की भागीदारी में कमी ➖

माता-पिता की भागीदारी बच्चे के अध्ययन में बहुत अधिक प्रभाव डालती है, बच्चे के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है कम उम्र के दौरान माता-पिता की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है जो बच्चे को तथ्य सोचने या सोचने समझने के लिए उपयोगी साबित हो सकती है |

🎯 अनुचित संगठनात्मक कौशल ➖

बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी में कुप्रबंध या कुसंगठित है तो उससे बच्चे की सीखने की गति अव्यवस्थित हो सकती हैं |

क्योंकि यदि बच्चा पढ़ने में स्वयं को कुसमायोजित या कुप्रबंधित समझता है तो उसके सीखने में एक बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न कर सकते हैं |

🎯 अन्य कारक ➖

इसके बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे ➖
1) साथियों के दबाव के कारण भी सीखने का एक मेजर फैक्टर है यदि बच्चे के सीखने में साथियों का दबाव है तो बच्चे उससे कुछ भी नहीं कर पाते हैं और भी पीछे हो जाते हैं |

2) बच्चों को बहुत ज्यादा संरक्षण में रखना जो कि ठीक नहीं है इससे बच्चे के सीखने में बाधा उत्पन्न होती है और वे सीख नहीं पाते हैं या हम कह सकते हैं कि उनकी सीखने पठार आ जाता है |

3) माता-पिता की बड़ी उम्मीदें माता-पिता की सीखने में बड़ी उम्मीदें बच्चे के सीखने में है बाधा उत्पन्न करती है माता-पिता का सबसे बड़ा कारण है कि वे बच्चों से ज्यादा उम्मीद करते हैं कि अव्वल दर्जे से पास होगें |

4) सामाजिक स्तर पर परेशानी बच्चे की असफलता का कारण उसका सामाजिक स्तर है सामाजिक का परेशानी जिससे बच्चे के आत्मविश्वास में कमी हो जाती है और वह दुनिया को अपने नजरिये से देखता है कि वह असफल ही होगा इसलिए उसके असफल होने की ज्यादा चांसेस प्राप्त होते हैं |

5) किसी दूसरे के द्वारा हस्तशिल्प बच्चे के कार्य में यदि दूसरों द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है तो जुड़ जाती है अर्थात उनकी चिड़चिड़े की प्रवृत्ति हो जाती है जिससे उनके सीखने में बाधा उत्पन्न हो सकती है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

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👨‍👨‍👧‍👧👨‍👨‍👧‍👧क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं 👨‍👨‍👧‍👧👨‍👨‍👧‍👧

💥 आत्मविश्वास की कमी :-

🐣 आत्मविश्वास की कमी या विफलता का डर एक छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन को रोक सकती है नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।

💥 खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीयता :-

🐣 प्रत्येक बच्चे को स्कूल में प्रवेश करने से पहले दिन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि अपने पढ़ाई गृह कार्य या अन्य कार्य के लिए मित्रों या दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद अपने कार्य करना चाहिए ।

💥 इच्छा और प्रेरणा की कमी :-

🐣 सक्षम होते हुए भी इच्छा या प्रेरणा में कमी होने के कारण बच्चों को कार्य में दिलचस्पी नहीं होती वे दिलचस्पी नहीं दिखाते तथा कार्य का आनंद नहीं लेते और फिर कार्य में असफल हो जाते हैं।

💥 पढ़ने या समझने की खराब स्थिति :-

🐣 अगर एक बच्चा सामान्यत: पढ़ने के कार्य में प्रयुक्त होने वाले भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ हो तो तेज दिमाग के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्टता को नहीं प्राप्त कर सकतें।

💥 माता-पिता की भागीदारी में कमी :-

🐣 माता-पिता की भागीदारी बच्चों के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है कम उम्र के दौरान ही माता पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है तथा उम्र बढ़ने के साथ-साथ भी माता-पिता की भागीदारी तथा सहयोग की आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें हम सबसे अधिक जानकारी तथा अनुभव प्राप्त होता है।

💥 अनुचित संगठनात्मक कौशल :-

🐣 बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी में कुप्रबंध या कुसंगठित हो तो यह बच्चे की सीखने की गति को व्यवस्थित कर देती है।

💥अन्य कारक :-

🐣 साथियों का दबाव।

🐣बहुत ज्यादा संरक्षण में रखना।

🐣 माता-पिता की बड़ी उम्मीदें।

🐣सामाजिक स्तर पर परेशानी।

🐣 किसी दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप।

💥💥समाप्त 💥💥

🔥🔥Notes by :- Neha Kumari ☺️

🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏

🌹🌹🌸🌸🌹🌹

🌈🌾🌻क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं💥🔥🌻

🌈🥀(1) आत्मविश्वास की कमी ~~~~

🌸🌺बच्चों को खुद के ऊपर अविश्वास होना आत्माविश्वास की कमी का महत्वपूर्ण तथ्य है।

💥⭐आत्मविश्वास की कमी या विफलता का डर एक छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन से रोक सकती है मतलब बच्चों को अपने मन में यह filling आए कि यह कम हमसे नहीं हो पाएगा, तो बच्चा वास्तव में उस कार्य को करने में सफल नहीं होंगे।

🌷🌺नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है अर्थात बच्चे धैर्य को बनाए रखें।

👉बच्चों को धैर्य रखने की प्रेरणा देते रहें।

🌈🌻(2) खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीयता~~

🌾🥀बचपन से ही बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि अपने गृह कार्य, किताब ,कॉपी इत्यादि पर दूसरे बच्चों या शिक्षक ,परिवार वाले से उम्मीद ना करें ।खुद पर भरोसा रखें।प्रत्येक बच्चों को स्कूल में प्रवेश करने के पहले दिन से ही यह सिखाया जाना चाहिए।

🥀🌿खुद के शरीर से ज्यादा किसी पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।

⭐🌻(3) इच्छा और प्रेरणा की कमी ~~~~

🔥🌸सक्षम होते हुए भी इच्छा या प्रेरणा में कमी अगर है तो इसके कारण बच्चे कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाते ,कम का आनंद नहीं लेते, फिर कार्य असफल हो जाता है।

🌿🌻किसी भी आवश्यकता को पूरा करने के लिए दो चीजों की जरूरत होती हैं।
👉(1) रुचि
👉(2) प्रेरणा
✌️इन दोनों में से किसी एक में कमी होने से बच्चे असफलता की ओर अग्रसर होने लगती हैं।

🌈(4) पढ़ने या समझने की खराब स्थिति ~~~~

🌷🥀अगर एक बच्चा सामान्यतः पढ़ने के कार्य में प्रयुक्त होने वाले भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ है तो तेज दिमाग होने के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्ठता को नहीं पा सकते हैं। मतलब बच्चा जिस परिवेश में है उस जगह के भाषा या वातावरण को समझना अति आवश्यक है नहीं तो बच्चे में विपरीत प्रतिक्रिया की संभावना बन सकती हैं। जिससे बच्चे में असफलता की प्रवृत्ति आवश्यक हो सकता हैं।

🌈(5) माता-पिता की भागीदारी में कमी ~~

💥🌺माता-पिता की भागीदारी बच्चों के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है कम उम्र के दौरान माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

🌈(6) उचित संगठनात्मक कौशल ~~~

👉🌾बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी में कुप्रबंध या कुसंगठित है तो यह बच्चो के सिखाने की गति को अव्यवस्थित करते हैं।

🌈(7) अन्य कारक ~~~

1️⃣⭐बच्चों पर कई बार साथियों का दबाव होता हैं।
2️⃣🌸बच्चों को बहुत ज्यादा संरक्षण में रखा जाता है।

3️⃣🌿माता-पिता की बड़ी उम्मीदें भी बच्चों को शिक्षण में प्रभावित करते हैं।

4️⃣🌾किसी दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप से बच्चे के शिक्षण अधिगम में बांधा उत्पन्न करता हैं।
🌷🥀🥀Notes by-SRIRAM PANJIYARA 💥🌺🙏

क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में असफल हो जाते हैं🤔🤔🤔

🤔 आत्मविश्वास की कमी🤔

आत्मविश्वास की कमी या विफलता का डर एक छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन से रोक सकते हैं नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है यदि हममे आत्मविश्वास की कमी होती है तो हम किसी भी कार्य को नहीं कर पाते हैं भले ही उसकी क्षमता हमारे अंदर होती है

खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीयता🤔

बच्चों को स्कूल में प्रवेश करने के पहले दिन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि अपनी पढ़ाई गृह कार्य अन्य कार्य के लिए मित्रों या किसी दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद से करना चाहिए खुद से किया हुआ कार्य हमें आत्मविश्वास एवं प्रसन्नता देता है एवं हम उसको बहुत अच्छी तरीके से सीख जाते हैं यदि हमें कोई चीज नहीं आती है तो हमें खुद टीचर से पूछना चाहिए यह नहीं सोचना चाहिए कि आगे वाला व्यक्ति जब पूछेगा तो हम उसी में समझ लेंगे

🤔इच्छा और प्रेरणा कि कमी🤔

सक्षम होते हुए भी इच्छा प्रेरणा में कमी के कारण बच्चे कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं काम का आनंद नहीं लेते हैं फिर कार्य में असफल हो जाते हैं हमें किसी कार्य को करना है तो उसे पूरी लगन एवं इच्छाशक्ति से करना चाहिए तभी हम उस कार्य में सफल होना है

🤔पढ़ने या समझने की खराब स्थिति🤔

अगर एक बच्चा सामान्य पढ़ने के कार्य में प्रयुक्त होने वाली भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ है तो तेज दिमाग होने के बावजूद भी बच्चों उत्कृष्टता को नहीं पा सकते हैं
बच्चा जो भाषा समझता है यदि उसे उस प्रकार का वातावरण नहीं मिलता है तो वह उसे नहीं सीख सकता

🤔 माता-पिता की भागीदारी में कमी🤔

माता-पिता की भागीदारी बच्चों के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है कम उम्र के दौरान माता पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है
आजकल देखा जाता है कि माता-पिता दोनों ही बहुत व्यस्त होते हैं बच्चे को बहुत कम समय दे पाते हैं परंतु हमें उनको समय देना चाहिए

🤔अनुचित संगठनात्मक कौशल🤔

बच्चे के पढ़ाई और जिंदगी में कुप्रबंधन या कुसंगठित है तो यह बच्चे के सीखने की गति को अव्यवस्थित करती है

🤔अन्य कारक🤔
साथियों का दबाव
बहुत ज्यादा संरक्षण में रखना:- माता पिता अपने बच्चों को बहुत ही पाबंदी में रखते हैं जिससे बच्चे क्रिएटिविटी नहीं दिखा पाते हैं

माता पिता के बड़ी उम्मीद है;- माता पिता अपने बच्चों से बहुत ज्यादा ही उम्मीद रखते हैं कि मेरा बेटा इतने नंबर लेकर आएगा मेरा बेटा यह बनेगा परंतु वह यह नहीं सोचते हैं कि बेटे की रूचि किस चीज में है

सामाजिक स्तर पर परेशानी
किसी दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप

🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏

🔆क्यो और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में असफल रहते है|🔆
▶ आत्मविश्वास की कमी ➖ आत्मविश्वास जब खुद में होगा तो कुछ होगा तो कुछ में होगा तो कुछ होगा तो कुछ खुद में होगा तो कुछ होगा तो कुछ में होगा तो कुछ होगा तो कुछ भी कार्य कर सकता है अगर आत्मविश्वास नहीं है तो कोई कार्य करने में भी असमर्थ होता है उसमें आत्मविश्वास की कमी होती है जब बच्चा आत्मविश्वास की कमी या विफलता का डर एक छात्र को उसके कौशल और क्षमता गठन से रोक सकती है नए कौशल हासिल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है अगर आत्मविश्वास है अगर ज्यादा उसविषय की जानकारी नहीं है और आत्मविश्वास है कि मैं यह कार्य करूंगा तो उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है और हर कार्य में सफल होता है |
▶ खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीयता ➡ बच्चों को खुद से ज्यादा दूसरों पर विश्वसनीयता रखना घातक सिद्ध हो सकता है बच्चे कभी खुद आत्मनिर्भर नहीं बन सकेंगे अगर दूसरों पर हर कार्य में विश्वास रखता है दूसरों से उम्मीद नहीं रखनी चाहिए प्रत्येक बच्चों को हमेशा शिक्षा दे कि जब बच्चा स्कूल में प्रवेश करता है तो पहले दिन से ही यही सिखाया जाना चाहिए कि वह अपनी पढ़ाई गृह कार्य अन्य कार्य के लिए मित्रों पर दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय खुद करना चाहिए जिससे बच्चे आत्मनिर्भर बनेंगे और हर क्षेत्र में आगे भी बढ़ेंगे |
▶ इच्छा और प्रेरणा की कमी ➖ किसी कार्य या गतिविधि को करने में रुचि नहीं है और मोटिवेशन भी नहीं है तो असफलता तो होगी ही अगर आपको किसी चीज की आवश्यकता है तो रूचि होगी तो उससे प्रेरणा भी मिलेगी जिससे बच्चा सक्षम होते हुए भी इच्छा और प्रेरणा में कमी के कारण बच्चे कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखाते काम का आनंद नहीं देते फिर कार्य असफल हो जाता है
▶ पढने या समझने की खराब स्थिति ➡ अगर एक शिक्षक कक्षा में अलग भाषा का प्रयोग करें तो बच्चे को पढ़ने और समझने में बच्चों पर खराब स्थिति का प्रभाव पड़ेगा अगर एक बच्चा सामान्यतः पढ़ने के कार्य मे प्रयुक्त होने वाली भाषा या वातावरण को समझने में असमर्थ है तो तेज दिमाग होने के बावजूद भी बच्चे उत्कृष्टता मे नहीं जा सकते | हर क्षेत्र में आगे आगे में आगे आगे नहीं बढ़ सकते | अगर सही भाषा का प्रयोग करके पढ़ाया जाए तो बच्चे हर क्षेत्र में आगे में आगे हर क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे और सफल भी होगे |
▶ माता-पिता की भागीदारी में कमी ➖ जब बच्चा छोटा होता है तो उसे माता-पिता या परिवार का योगदान होना बहुत ही आवश्यक है माता-पिता की भागीदारी बच्चो के अध्ययन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है जब बच्चा कम उम्र के दौरान माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है |
▶ अनुचित संगठनात्मक कौशल ➡ बच्चों की पढ़ाई और जिंदगी में कुप्रबंधता या कुसंगठिता है तो यह बच्चे के सीखने की गति अव्यवस्थित करते है |
▶ अन्य कारक ➡
इसमें बच्चों को साथियों का दबाव पड़ता है|
बहुत ज्यादा संरक्षण में रखना |
माता-पिता की बडी उम्मीदें |
सामाजिक स्तर पर परेशानी |
किसी दूसरे के द्वारा हस्तक्षेप करना |
Notes by – Ranjana sen

How children think and learn part 1 notes by India’s top learners

🥀🌷How children think and learn🌻🌿
🌾बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं🌺

🌻कोई भी बच्चा विरासत में मिली प्रवृत्ति के साथ पैदा होता है। मतलब बच्चों में अनुवांशिक का गुण अपने पूर्वजों से मिलता है।

🥀पर्यावरण में मुख्य रूप से व्यस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जैसे- बच्चा बड़ा होता है तो बच्चे का ज्ञान ( knowledge) भी बढ़ता जाता है।

🔥बच्चे के बड़े होने से निरीक्षण क्षमता ( observation power) बढ़ता है।

🌸जब बच्चा बड़ा होता है तो बच्चे को अलग-अलग अनुभव(experience ) का सामना करना पड़ता है।
और उसकी सीखने या समझने की क्षमता के अनुसार आगे बढ़ता है।

🌾 सोच ~~~~~~

🌻प्रत्येक बच्चे अलग-अलग गति से विकसित होते हैं। मतलब किसी दो बच्चे या दो से अधिक बच्चे का सोच एक जैसा नहीं हो सकता है।

🌿🌷बच्चों को चीजों के प्रति दृष्टिकोण अलग- अलग होता है। कुछ चीजें मिलती जुलती हो सकती है, लेकिन उनका नजरिया अलग होता है।

🌸🌾बच्चों में अवसरों और अनुभवों का अहम योगदान होता है जब हम बच्चों को अवसर देते हैं तो बच्चा अपने अनुभव से अपना सोच विकसित करते हैं।

🥀🔥जो बच्चा सोच रहा है उनके सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है वह बच्चा अपने भाषा से सोच का विकास करता है। सोचने की क्षमता विकसित होता है।

⭐भाषा से विचार या तथ्य व्यवस्थित हो जाते हैं कहा जाता है कि व्यक्ति के भाषा से उनके ज्ञान, विचार ,अनुभव का पता चलता है। अगर भाषा अच्छा नहीं हो तो उनका सोच विचार भी अच्छा नहीं हो सकता।

🌻🌺बच्चों में सोच से समस्या सुलझाने के कौशल विकसित होते हैं।

🌾🌸कार्य को पूरा करने की असमर्थता ~

🌷🌿इस अवस्था में किसी भी कारणवश बच्चे अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं तो एक शिक्षक की जिम्मेदारी है,
इसके लिए छात्र को प्रोत्साहित करें और कार्य पूरा करवाएं,
चाहे कार्य कितना भी कठिन क्यों ना हो।

🌸🌾विलंब या खराब समय प्रबंधन~

🌻🥀बच्चे का समय प्रबंधन ठीक नहीं है, कार्य अंतिम समय में करता है, देर से करते हैं।

शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों को कम उम्र से ही अच्छे गृह कार्य और अध्ययन की आदतों को प्रोत्साहित करें।

🙏🥀🌻Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸🌺🙏

🌹🦚🌹How children think & learn🌹🦚🌹

🐣👨‍👨‍👧‍👧 बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं👨‍👨‍👧‍👧🐣

🌟 कोई भी बच्चा विरासत में मिली प्रकृत्ति एवं गुण के साथ पैदा होता है। जो कि उन्हें अपने माता-पिता और पूर्वजों द्वारा प्राप्त होता है।

🌟 पर्यावरण मुख्य रूप से व्यस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

💥 जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है।वैसे-वैसे उसका…..

🌺 सभी बच्चों में ज्ञान बढ़ते जाता है।
🌺सभी बालकों में निरीक्षण क्षमता बढ़ती है।
🌺सबमें अलग-अलग अनुभव का सामना करता है।
🌺उसकी सीखने और समझने की क्षमता के अनुसार आगे बढ़ता है।
🌺 प्रत्येक बच्चे अलग-अलग गति से विकसित होते हैं।
🌺उनका चिंताओं के प्रति दृष्टिकोण अलग-अलग होता है।
🌺 इसमें अवसरों और अनुभव का अहम योगदान होता है।
🌺उनके सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है।
🌺 भाषा से विचार तथ्य व्यवस्थित हो जाते हैं।
🌺समस्या सुलझाने के कौशल विकसित होती है।

💥💥 बच्चों के स्कूल प्रबंधन में सफलता प्राप्त करने में असफलता रहने का महत्वपूर्ण कारक💥💥

🔥 कार्य को पूरा करने की असमर्थता :-

🐣 इस अवस्था में किसी भी कारणवश बच्चे अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं तो एक शिक्षक की जिम्मेदारी होती है कि वे छात्रों को प्रोत्साहित करें तथा उन्हें खुद से करके सीखने पर बल दे और कार्य को पूरा करना चाहे तो उन्हें प्रोत्साहित करें तथा मदद करें।

🔥 विलंब या खराब समय प्रबंधन :-

🐣 बच्चे का समय प्रबंधन ठीक नहीं होने के कारण कार्य अंतिम समय में करते हैं तथा विलंब से करते हैं जिसमें शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थी को कम उम्र से ही अच्छे से अच्छे गृह कार्य और अध्ययन की आदतों के लिए प्रोत्साहित करें ताकि मैं आगे चलकर भी अपने कार्यों को सुव्यवस्थित रूप से तथा ससमय कर पाने में सक्षम हो सकें।

💥💥समाप्त 💥💥

🌹🌹Notes by :- Neha Kumari 😊

🔥🔥धन्यवाद् 🔥🔥

📖 📖 बालक कैसे सीखता व सोचता है 📖 📖

🌻🌿🌻 बालक का सीखना 🌻🌿🌻

👉🏻 विरासत में मिली प्रकृति के साथ प्रत्येक बालक पैदा होता है।
अर्थात बालक अपने माता-पिता एवं पूर्वजों से जो गुण प्राप्त करता है, वह उसमें सदेव भी रहते हैं। एवं यह गुण बालक के सीखने एवं सोचने दोनों को ही प्रभावित करते हैं। जिस प्रकार की प्रवृत्ति माता-पिता की एवं पूर्वजों की होगी, बालक अभी कुछ हद तक उसी प्रकार से सोचत आवश्यकता है।

👉🏻 पर्यावरण मुख्य रूप से वयस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
कहने का अर्थ यह है, कि बालक के सीखने व सोचने को पर्यावरण काफी हद तक प्रोत्साहन व समर्थन करता है। बालक जो सीखता है, जैसा बालक सोचता है। वह सब उसके पर्यावरण से ही निश्चित हो जाता है, कि उसके आसपास का वातावरण किस प्रकार का है। वातावरण अच्छा नहीं होगा, तो बालक भी अच्छे विचारों को व्यक्त नहीं करेगा। क्योंकि विचारों को व्यक्त करना सोच पर निर्भर होता है और सोच वातावरण पर निर्भर होती है।

👉🏻 जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है तो उसमें कई प्रकार के परिवर्तन आते हैं वह चीजों को अपने तरीके से समझने लगता है जब बालक बड़ा हो जाता है तो इस के संदर्भ में कुछ मुख्य तथ्य निम्नलिखित है कि वह कैसे सीखता है~
● जब बालक बड़ा हो जाता है। तो उसका ध्यान भी बढ़ता है, क्योंकि वह चीजों को समझने लगता है, और उसके ज्ञान में वृद्धि होती जाती है।

● जब बालक बड़ा होता जाता है। तो वह चीजों को समझने लगता है। और उन चीजों का भी निरीक्षण करता है, कि कार्य किस प्रकार से किया जा रहा है। और निरीक्षण के बाद वह उन चीजों का अवलोकन करता है। निरीक्षण क्षमता होने पर ही बालक अनुकरण कर पाता है, और अनुकरण के माध्यम से वे चीजों को सीखने लगता है।

● बालक अलग-अलग अनुभवों का सामना करता है। वह कई चीजों को देखकर एवं उनको करके सीखता है। उससे उसे कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं, और उनके सीखने समझने की क्षमता के अनुसार वह आगे बढ़ता जाता है। वह अपनी क्षमता के अनुसार अनुभव कर पाता है, और चीजों को समझने में सक्षम हो जाता है।

● कई बार बालक चीजों को अपनी रुचि एवं जिज्ञासा के आधार पर सीखता है। बालक की रूचि जिस कार्य को करने में होगी वह उसी कार्य को करने के लिए जिज्ञासु रहता है। इसीलिए हमें हर चीज को रुचिकर बनाया जाना चाहिए जिससे कि बालक चीजों को जल्दी सीख पाए।

● बालक चीजों को सीखने के लिए कल्पना करता है। कई बालकों में कल्पना करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। और वह चीजों को काल्पनिक तरीके से सीखते हैं, कई बार कल्पना के अभाव में बालक अपने ज्ञान को दूसरों के प्रति या दूसरों के सामने प्रस्तुत नहीं कर पाता है। क्योंकि उसमें काल्पनिक शक्ति का विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है, अर्थात बालक के सीखने में कल्पना का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

🌺🌿🌺बालक कैसे सोचता है 🌺🌿🌺

👉🏻 प्रत्येक बालक में सोचने की गति अलग-अलग विकसित होती है हर बाला के एक ही तरीके से नहीं सोच सकता है। क्योंकि हम जानते हैं, कि प्रत्येक बच्चे में व्यक्तिक विभिन्नता पाई जाती है। तो इसी के आधार पर हर बालक या हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता है, सब में कुछ ना कुछ भी बताएं पाई जाती है।

👉🏻 बच्चों का चीजों के प्रति दृष्टिकोण भी अलग अलग होता है वह हर चीजों के बारे में एक ही जैसे सोच प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं हर बालकों की सोच का आधार अलग अलग होता है वह ऐसी चीजों को अपने अपने नजरिए से देखते हैं और उसी के आधार पर अपने विचार को प्रस्तुत करते हैं।
इसमें अवसरों का अनुभवों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बालक अपने अनुभवों को भी इसी के माध्यम से प्रस्तुत कर पाता है।

👉🏻 बच्चे के सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है, क्योंकि बालक जैसा बोलेगा वैसे ही उसके विचारों में उसकी प्रस्तुति दिखेगी। जैसी भाषा को वह अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करेगा उसके विचार भी वैसे ही होने लगेंगे, अर्थात इससे उसके विचारों मे भी परिवर्तन होगा।
बालक अपनी भाषा के योगदान से ही कई बार समस्याओं को सुलझाने के कौशल भी विकसित कर लेता है अतः हम कह सकते हैं कि बालक के समस्या को सुलझाने में व विचारों को प्रस्तुत करने में एवं समस्या को सुलझाने में भी योगदान होता है।

🌷🌿🌷 क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं 🌷🌿🌷

👉🏻 कार्य को पूरा करने की असमर्थता~ इस अवस्था में बालक किसी भी कारण वर्ष से अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाता है। कार्य को पूरा ना करने के बालक के कई कारण हो सकते हैं। जो कि उसके कार्य में रुकावट पैदा करते हैं जिनमें से कुछ मुख्य निम्नलिखित है~

■ अनुचित वातावरण,
■ पर्याप्त सहायक सामग्रियों का ना होना,
■ उपयुक्त मार्गदर्शक का ना होना,
■ समस्या समाधान के कौशल का पूर्ण रूप से विकसित ना होना,
इत्यादि सभी कारण बालक के कार्य को पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न करते हैं।

एक शिक्षक होने के नाते हमारी जिम्मेदारी होती है, कि हम उन छात्रों को प्रोत्साहन करें कि वह कार्य को पूरा करें । इसके लिए हमें किसी भी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़े या फिर समस्या कितनी भी कठिन क्यों ना हो। हमें बच्चों को यह सिखाना होगा, कि हर समस्या का समाधान किया जा सकता है। इसके लिए हमें उचित वातावरण एवं पर्याप्त सामग्रियां इत्यादि सभी का ध्यान शिक्षक होने के नाते रखना होगा।

👉🏻 विलंब या खराब समय प्रबंधन~ बच्चे का समय प्रबंधन ठीक नहीं होता है। वह कई बार कार्यों को अंतिम समय में करते हैं, अर्थात देर से करते हैं। वह कार्यों की महत्वपूर्णता को नहीं समझ पाते हैं।
शिक्षक की यह जिम्मेदारी होती है, कि वह बच्चों को कम उम्र से ही ऐसे गुणों को विकसित करें। जिससे कि वह गृह कार्य व अध्ययन की आदतों के लिए प्रोत्साहित हो सके।
हमें बच्चों को समय के महत्व को समझाना चाहिए, कि समय का उचित उपयोग करके ही हम हर प्रकार की समस्या का हल निकाल सकते हैं। अतः समय की उपयोगिता को हमें बच्चों को समझाई जाने चाहिए।

📚 📚 📒 समाप्त 📒 📚 📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

🙏🏻🌷🌿🌻🌺🙏🏻🌷🌿🌻🌺🙏🏻🌷🌿🌻🌺🙏🏻🌷🌿🌻

🌻🌹🌻 *how children think and learn* 🌻🌹🌻

📚🧠( *बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं*) 🧠📚

💫 प्रत्येक बच्चा विरासत में मिली प्रवृत्ति के साथ या गुण के साथ पैदा होता है जो उसे अपने माता-पिता या पूर्वजों द्वारा प्राप्त होता है।

💫 बच्चा उस समय से ही सीखने लगता है जब उसने जन्म लिया है उसकी बातचीत उस समय से बाहरी दुनिया में शुरू होती है।

💫 बच्चे में सीखने या सोचने की क्षमता अनुवांशिकता एवं वातावरण से विकसित होती है।

💫 पर्यावरण मुख्य रूप से वयस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अर्थात बच्चे में सोचने व सीखने की क्षमता में अनुवांशिकता एवं पर्यावरण का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

💫 जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं वैसे वैसे उनका………

🍃 ज्ञान भी बढ़ता जाता है।

🍃 निरीक्षण क्षमता भी बढ़ती जाती है।

अर्थात बच्चा अपने आसपास के वातावरण को या आस-पड़ोस, परिवार, के लोगों को देखकर , सुनकर अनुकरण करने लगता है यही अनुकरण की क्रिया सीखने की की प्रवृत्ति को विकसित करता है।

🌀 *उदाहरण*➖ उदाहरण स्वरूप हम ऐसा कह सकते हैं कि किसी भी बच्चे के सामने जब उसके घर में उसके माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों में लड़ाई होती है तो बच्चा उस लड़ाई का कारण तो नहीं जानता है लेकिन उसमें उस लड़ाई के कारण नकारात्मक harmones या नकारात्मक सोच विकसित हो जाती है। अर्थात कहने का तात्पर्य है कि बच्चा जो देखता है या समझता है उसी के आधार पर उसकी सोच भी विकसित हो जाती है।🌀

💫 प्रत्येक बच्चे में बड़े होने के साथ-साथ उनके ज्ञान, निरीक्षण क्षमता में वृद्धि होती है और वह अपने ज्ञान के कारण ही अलग-अलग अनुभवों का सामना करता है और उसके सीखने या समझने की क्षमता के अनुसार ही उन्हें आगे बढ़ाता है। अर्थात बच्चे अनुकरण करके अनुभवों के माध्यम से सीखते हैं।

💠 *बच्चे कैसे सोचते हैं*

💫 सोचना अथवा चिंतन करना एक प्रकार की ज्ञानात्मक प्रक्रिया होती है जो ज्ञान को संगठित करने में मुख्य भूमिका निभाती है।

💫 प्रत्येक बच्चे अलग-अलग गति से विकसित होते हैं। अर्थात प्रत्येक बच्चे में सीखने की क्षमता भिन्न-भिन्न होती है।

💫 प्रत्येक बच्चे का चीजों के प्रति भी दृष्टिकोण अलग अलग होता है।

💫 प्रत्येक बच्चे में चिंतन या सोचने में अवसरों और अनुभवों का अहम योगदान होता है अर्थात जब तक बच्चे को अवसर या अनुभव प्रदान नहीं किए जाएंगे तब तक उनमें चिंतन या सोचने की क्षमता विकसित नहीं होगी।

💫 प्रत्येक बच्चे के चिंतन या सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है। अर्थात बच्चे की जैसी सोच होती है वैसी ही उनकी भाषा होती है।

🌻 भाषा से विचार, तथ्य व्यवस्थित हो जाते हैं। अर्थात सामने वाले आदमी के भाषा को सुनकर ही हम सामने वाले के लिए विचार बना लेते हैं। अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे हमारे विचार होती है, वैसे ही हमारी भाषा होते हैं।

💫 इसी प्रकार प्रत्येक बच्चा समस्याओं, वस्तुओं आदि के विषय में चिंतन करता रहता है। यह चिंतन अनुभवों के माध्यम से होता है।

💫 बालक अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार वस्तुओं को छूकर या देखकर उनके बारे में अनुभव प्राप्त करता है धीरे-धीरे बालक में संप्रत्यय निर्माण होने लगता है और उस समस्या के प्रति चिंतन भी करने लगता है। जिससे बच्चे में समस्या सुलझाने के कौशल विकसित होते हैं।

😞 *क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं*😞

कुछ मूलभूत कारक होते हैं जिसके कारण बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं।

1️⃣ *कार्य को पूरा करने की असमर्थता*➖

💠कारण➖ ‌ ‌इस अवस्था में किसी भी कारणवश बच्चे अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाते है । या किसी भी कार्य को करने में असमर्थ होते हैं।

💠 उपाय➖ इसके लिए एक शिक्षक की यह जिम्मेदारी होती है कि वे छात्रों को उनके कार्यों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करें ,जब तक कि वह पूरा ना हो जाए, चाहे वह कितना भी मुश्किल क्यों ना हो या कठिन क्यों ना हो।

अर्थात किसी भी बच्चे को कार्य उसके क्षमता या योग्यता के अनुसार ही देनी चाहिए यदि वह कार्य बच्चे की आवश्यकता के अनुसार नहीं एवं क्षमता से ऊपर होगा तो बच्चे स्कूल प्रदर्शन में भी असफल हो जाएंगे इसके लिए एक शिक्षक को बच्चे को वही कार्य दिया जाना चाहिए जो उनके योग्यता के अनुसार हो ।

2️⃣ *विलंब या खराब समय प्रबंधन*➖

‌‌ यह भी एक महत्वपूर्ण कारक है जिससे बालक स्कूल प्रदर्शन में असफल रहते हैं।
इस अवस्था में➖कारण

👉🏻 बच्चे का समय प्रबंधन ठीक नहीं होता है और

👉🏻 बच्चे कार्य अंतिम समय में करते हो या देर से करते हैं।

उपाय ➖ इसके लिए शिक्षकों को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थी को कम उम्र से ही अच्छे गृह कार्य और अध्ययन की आदतों को प्रोत्साहित करें क्योंकि कुछ विद्यार्थियों को कार्यों को पूरा करने के अंतिम क्षण या अंतिम दिन पर कार्य करने की आदत होती है। एक शिक्षक को प्रत्येक बच्चे को यह बताना है कि सही समय और सही तरीके का प्रबंधन करें। जिससे वे आगे चलकर भी समय का सदुपयोग और अपने कार्यों को व्यवस्थित रूप से कर पाने में सक्षम या सफल हो सके।

💫💫 समाप्त💫💫

✍🏻✍🏻 Notes by manisha gupta✍🏻✍🏻

📚 How children think and learn ( बच्चें कैसे सोचते और सीखते हैं )📚

💫 सभी बच्चें अपनी विरासत में मिले गुणों और प्रवृत्तियो के पास पैदा होते हैं लेकिन पर्यावरण और मुख्य रूप से वयस्क, बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है , उस बच्चे का ज्ञान भी बढ़ता जाता है। वह अपने आस पास की चीजों का निरीक्षण करने लगता है , नए अनुभवों का सामना करता है और अपनी सीखने और समझने की क्षमता के आधार पर आगे बढ़ने की कोशिश करता है।

💠 प्रत्येक बच्चा एक अलग गति से विकसित होता है और उसका चीजों के प्रति अलग नजरिया होता है। अधिकतर बच्चे पुस्तकों में चित्रों को देखकर कहानियां सुनने की प्रवृत्ति रखते हैं। ये विभिन्नता बच्चों को विरासत में मिली प्रवृत्तियों, अवसरों और अनुभवों की वजह से हो सकती है। यह बच्चों के विचारों और तथ्यों को व्यवस्थित करने में मदद करता है और धीरे धीरे अपने विचारों को विकसित करने के बदले में समस्या के समाधान के कौशल को विकसित करता है।

🔰 बच्चें कैसे विद्यालय के प्रर्दशन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं।

✌️ इसके कारण निम्न हैं।

💠 कार्य को पूरा करने की असमर्थता ➖

इस अवस्था में किसी भी कारण से कोई भी बालक अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाता है तो वह असफल हो जाता है। एक शिक्षक की जिम्मेदारी होती है कि इसके लिए छात्र को प्रोत्साहित करें और कार्य पूरा कराये चाहें कार्य कठिन ही क्यो ना हो।

🎲 विलम्ब या खराब समय प्रबंधन ➖

बच्चें का समय प्रबंधन ठीक नहीं है या कार्य अन्तिम समय में करते हैं या देर से करते हैं। शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों को कम उम्र से ही अच्छे ग्रहकार्य और अध्ययन की आदतों को प्रोत्साहित करें।

📝 Notes by ➖

✍️ Gudiya Chaudhary

🌺🌺🦚 बच्चे कैसे सोचते हैं और कैसे सीखते हैं🦚🌺🌺
(How children thinking and learning)

👉🏼 सोचना एक प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है जो ज्ञान को संगठित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है बालक अपने स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार वस्तुओं को देखकर छूकर उसके बारे में अनुभव प्राप्त करता है धीरे-धीरे बच्चों मैं प्रत्यय निर्माण होने लगता है

👉🏼 कोई भी बच्चा विरासत में मिली प्रवृत्ति के साथ पैदा होता है

👉🏼पर्यावरण प्रमुख रूप से वयस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

👉🏼 जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है उसका ज्ञान बढ़ता जाता है उसकी निरीक्षण क्षमता बढ़ती है और अलग-अलग अनुभव का सामना करता है और उसको सीखता है समझने की क्षमता के अनुसार आगे बढ़ता है

👉🏼 प्रत्येक बच्चे अलग गति से विकसित होते हैं

👉🏼 उनका चीजों के प्रति दृष्टिकोण अलग अलग होता है उनमें अवसरों और अनुभव का आदान योगदान है

👉🏼 उनके सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है भाषा के विचार तथ्य व्यवस्थित हो जाता है

👉🏼 समस्या सुलझाने के कौशल विकसित होते हैं

🌺🌺 क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं🌺🌺

🦚 इसके कारण निम्र है🦚

🌺 कार्य को पूरा करने में असमर्थतता-

इस अवस्था में किसी भी कारणवश बच्चे अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं एक शिक्षक की जिम्मेदारी होती है की इसके लिए छात्र को प्रोत्साहित करें और कार्य पूरा करवाएं चाहे कार्य कठिन ही क्यों न हो

🌺 विलंम्ब या खराब समय प्रबंधन –
बच्चे का समय प्रबंधन ठीक ना होने से उसका कार्य अंतिम समय तक पूरा नहीं हो पाता शिक्षक पर चाहिए कि विद्यार्थियों को कम उम्र से ही अच्छे गृह कार्य और अध्ययन की आदत को प्रोत्साहित करें

🖊️🖊️📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma🖊️🖊️

⭐✨⭐ बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं⭐✨⭐

सोचना or अनुभव करना मानसिक प्रक्रिया है जिससे बालक सीखते जाते हैं

✍🏻 कोई भी बच्चा विरासत में मिली प्रवृत्ति या गुण के साथ पैदा होता है बच्चा अनुवांशिकता के कारण भी सीखता है उनकी प्रवृत्ति या गुण जिस प्रकार के होते हैं उसी प्रकार से सीखते हैं

✍🏻 पर्यावरण मुख्य रूप से वयस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

✍🏻 जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है उसका ज्ञान बढ़ता है- /
जैसे जैसे बच्चों का विकास होता जाता है वैसे वैसे बच्चा अनुकरण के द्वारा सीखता जाता है और उसका ज्ञान का बढ़ता जाता है

✍🏻 निरीक्षण क्षमता बढ़ती है-/ समय और उम्र के साथ साथ बच्चों की निरीक्षण क्षमता भी बढ़ती जाती है वह किसी भी वस्तु निरीक्षण करके सीख सकते हैं

✍🏻अलग अलग अनुभव का सामना करता है-/
और उसकी सीखने समझने की क्षमता के अनुसार आगे बढ़ता है जैसे जैसे उसे ज्ञान हो जाता है चीजों को निरीक्षण करता है अनुभव करके देखता है अनुभवों से सीखता है तो बच्चे की सीखने की समझने की क्षमता में वृद्धि होती है
👉🏻 प्रत्येक बच्चे अलग-अलग गति से विकसित होते हैं -/व्यक्तिगत भिन्नता के कारण प्रत्येक बच्चे अलग-अलग गति से विकसित होते हैं सभी का विकास एक समान नहीं होता

👉🏻 उनका चित्रों के प्रति दृष्टिकोण अलग अलग होता है-/
प्रत्येक बच्चे का चित्रों के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण होता है किसी भी चित्र के बारे में हर एक बच्चे की अलग-अलग धारणाएं होते हैं

👉🏻 इनमें अवसरों और अनुभवों का अहम योगदान होता है-/
बच्चों को कई अवसर मिलते हैं जिसमें वह अनुभव करके बहुत कुछ सीख लेते हैं

👉🏻 उनके सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है बालक जिस प्रकार की भाषा का उपयोग करते हैं उसी के आधार पर उनकी विचारधारा होती है
👉🏻 भाषा से विचार /तथ्य व्यवस्थित हो जाते हैं
बच्चों में भाषा से विचार व्यवस्थित हो जाते हैं बच्चे जैसी भाषा बोलते हैं उसी के अनुकूल उनके विचार हो जाते हैं
👉🏻 समस्या सुलझाने के कौशल विकसित हो जाते हैं बच्चा स्वयं अपने बुद्धि के अनुसार समस्या का समाधान कर सकता है

✨ क्यों और कैसे बच्चे स्कूल प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं✨

👉🏻 कार्य को पूरा करने की असमर्थता-/
इस अवस्था में किसी भी कारणवश बच्चे अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं एक शिक्षक की जिम्मेदारी है कि इसके लिए छात्र को प्रोत्साहित करें और कार्य पूरा करवाएं चाहे वह कार्य कठिन ही क्यों ना हो

👉🏻 विलंब या खराब समय प्रबंधन-/
बच्चे का समय प्रबंधन ठीक नहीं है कार्य अंतिम समय में करते हैं देर से करते हैं
शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों को कम उम्र से ही अच्छे गृह कार्य और अध्ययन की आदतों को प्रोत्साहित करें !

✍🏻ritu yogi✍🏻

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

🌷🌷🧠*बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं* 🧠🌷🌷

🌲🌲 *सीखना* 🌲🌲

👉प्रत्येक बच्चा विरासत / पूर्वजों से मिली प्रवृत्ति / गुण के साथ पैदा होता है।
बच्चों में अपने पूर्वजों, माता – पिता से कुछ विशेष गुण आते हैं। अतः बच्चा अपने इन्हीं पारिवारिक गुणों से भी बहुत कुछ सीखता है जो उसमें जीवन पर्यंत चलता है।

👉बच्चे के आसपास का पर्यावरण , मुख्य रूप से वयस्क बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बच्चा अपने आसपास के वातावरण, अपने से बड़े लोगों के क्रियाकलापों को देखकर, स्वयं अनुकरण करके भी सीखता है।

👉जैसे – जैसे बच्चा बड़ा होता है बच्चे का ज्ञान ही बढ़ता जाता है और बच्चा चीजों का निरीक्षण करने लगता है। “निरीक्षण क्षमता बढ़ती है।” बच्चा अलग अलग अनुभव का सामना करता है।

👉और बच्चा अपनी सीखने / समझने की क्षमता के अनुसार आगे बढ़ता है।
बच्चा जब कुछ देखता है, अनुकरण करता है तो वह हर चीज को सीखता , समझता है इस प्रकार उसमें सीखने, समझने की क्षमताएँ भी बढ़ती जाती हैं।

*🤔🤔 सोचना* 🤔🤔

👉प्रत्येक बच्चे अलग-अलग गति से विकसित होते हैं।
प्रत्येक बच्चे में वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है जिसके आधार पर उनके सोचने की गति का विकास भी भिन्न होता है।

👉उनका चीजों के प्रति दृष्टिकोण अलग अलग होता है।
हर बच्चा भिन्न होने के कारण उनका चीजों, स्थितियों के प्रति द्रष्टिकोण भी भिन्न होता है।

👉इसमें अवसरों और अनुभवों का भी अहम योगदान होता है।
अर्थात बच्चा किस अवसर में है किसी स्थिती में है और बो उस समय कैसा सोच रहा है , अतः अनुभव के आधार पर भी उसकी सोच विकसित होती है।

👉उनके सोचने में भाषा का अत्यंत योगदान होता है।
अर्थात बच्चे जैसी भाषा सुनते , अपनी दिनचर्या में बोलते हैं , उनकी सोच भी वैसी ही बनती है।

👉भाषा से विचार / तथ्य व्यवस्थित हो जाते हैं।
हर बच्चा अपनी भाषा से ही सोचता , विचारता है और इसी आधार पर अपने तथ्यों को व्यवस्थित करता है।

👉समस्या सुलझाने के कौशल विकसित होते हैं।
जब बच्चा अपनी स्थिती के अनुसार सोचता है तो वह उनमें अपनी समस्याओं को सुलझाने का विकास होता है।

🌷*क्यों और कैसे बच्चे शाला प्रदर्शन में सफलता प्राप्त करने में असफल रहते हैं :-* 🌷

**_1. 🌺 कार्य को पूरा करने की* **असमर्थता* :-🌺_*

👉इस अवस्था* में बच्चे किसी भी कारणवश अपने कार्यों को पूरा नहीं कर पाते हैं।

अतः एक शिक्षक की जिम्मेदारी है कि इसके लिए छात्रों को प्रोत्साहित करें और कार्य पूरा करवाएं चाहे कार्य कठिन ही क्यों ना हो।

*2.🌺 विलंब या खराब समय *प्रबंधन :-* 🌺
*
👉बच्चे का समय प्रबंधन ठीक नहीं है ।

👉कार्य अंतिम समय में करते हैं ।

👉देर से करते हैं ।

अतः इस समय शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों को कम उम्र से ही अच्छे गृह कार्य और अध्ययन की आदतों को प्रोत्साहित करें।

🌺 ✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

physical development in adolescence Notes by India’s top learners

📖 📖 शारीरिक विकास 📖 📖

🌺🌺 किशोरावस्था 🌺🌺
( 12-18 वर्ष )

👉🏻 वजन ~ दोनों के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती हैं।

👉🏻 18 वर्ष तक लड़को का भार लड़कियो की तुलना में अधिक होता हो जाता हैं।

🌻🌻 लम्बाई 🌻🌻
👉🏻 18 वर्ष तक लड़को की लम्बाई बढ़ती है।

👉🏻 लड़कियो की लम्बाई 16 वर्ष तक बढ़ती है।

🌿🌿 दाँत 🌿🌿

👉🏻 18 साल तक बालक के दाँत पूर्णतया स्थाई हो जाते है।

👉🏻 18 वर्ष के बाद लड़को व लड़कियो में अक्ल के दाँत आना शुरू हो जाता है।

● सिर व मस्तिष्क का विकास ●

👉🏻 सिर व मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है।

👉🏻 सिर का पूर्ण विकास 15-17 साल तक हो जाता है।
👉🏻 मस्तिष्क का भार 1200-1400 ग्राम तक हो जाता है।

🌲 अन्य परिवर्तन 🌲

👉🏻 ह्रदय की धड़कन घटकर 72/ मिनट हो जाती है ।

👉🏻 18 वर्ष तक लड़को में पुरुषत्व व लड़कियो में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती हैं।

👉🏻 इनके शारीरिक बनावट में अन्तर हो जाता है।

📖 📖 मानसिक विकास ( बौद्धिक विकास ) 📖 📖
Mental development

जितनी भी मानसिक योग्यता व शक्ति इसके अन्तर्गत आता है।

👉🏻 संवेदना/ प्रत्यक्षीकरण ~ बालक अपनी संवेग से अनुभव करता है।
आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा ये संवेदनाए है। इसी से हम अनुभूति करतेहैं। यही संवेदना का निश्चित अर्थ निकालने की चेष्टा करे, वह प्रत्यीकरण का रुप ले लेती हैं।
हम जानते हैं कि हम सब संवेग से अनुभव करते है, पहले चीजों को इनके आधार पर ही समझते हैं।

👉🏻 संप्रत्यय निर्माण ~ यह एक प्रकार का सामान्यीकृत विचार है, जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यीकरण व अनुभव के माध्यम से विपरीत होती हैं।
यह आगमनात्मक तकनीक का प्रयोग करके विकसित होता है।
इसमें संवेदना के बाद बालक अपने संप्रत्यय का निर्माण करता है।

👉🏻 स्मरण शक्ति का विकास ~ यह मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। परिपक्वता व अनुभव के माध्यम से इनका धीरे-धीरे विकास होने लगता है।
इसमें बालक अपनी संवेदना व संप्रत्यय के आधार पर अपनी स्मरण शक्ति का विकास करते हैं, इसी से हम सीखी हुई बातो को याद कर पाते है।

👉🏻 समस्या समाधान की योग्यता का विकास ~ व्यक्ति के समक्ष जो अनेक समस्या होती हैं। उसमें चिंतन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान की योग्यता का विकास होता है।
पूर्व के तीनो बिन्दुओं के बाद बालक समस्या का समाधान करता है।
📚📚📒 समाप्त 📒📚📚
✍🏼 PRIY AHIRWAR ✍🏼

🙏🏻🌺🌿🌻🌷🙏🏻🌺🌿🌻🌷🙏🏻🌺🌿🌻🌷🙏🏻🌺🌿🌻

🌈 शारीरिक विकास 🌈

🦚🦚 किशोरावस्था🦚
(Physical development in adolescence) (12-18)

शरीर विकास की दृष्टि से यहअवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि किशोरावस्था की समाप्ति तक बालक और बालिका उगना शारीरिक परिपक्वता तक प्राप्त कर लेते हैं
किशोरावस्था में होने वाले प्रमुख शारीरिक परिवर्तन निम्नलिखित है

👉🏼 वजन -दोनों के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती है

👉🏼 परंतु किशोरावस्था में बालक व बालिका के भार में अंतर रहता है
👉🏼 किशोरावस्था में भार अस्थियों और मांसपेशियों के विकास के कारण बढ़ता है

🦚 लंबाई 🦚

👉🏼18 वर्ष तक लड़कों की लंबाई बढ़ती है
👉🏼 लड़कियों की लंबाई 16 वर्ष तक बढ़ती है

🦚🦚 दांत🦚🦚

👉🏼 18 साल तक बालक के दांत पूर्णतया स्थाई हो जाते हैं
👉🏼 18 वर्ष के बाद लड़कों और लड़कियों में अकल दांत आना शुरू हो जाते हैं

🦚 सिर व मस्तिष्क का विकास🦚
👉🏼 सिरूबा मस्तिष्क का विकास निरंतर चलता रहता है

👉🏼 सिर का पूर्ण विकास 15-19 साल तक हो जाता है
👉🏼 मस्तिष्क का भार 1200-1400तक हो जाता है

🦚 अन्य परिवर्तन🦚

👉🏼 हृदय की धड़कन घटकर 72/मिनट हो जाती है

👉🏼18 वर्ष तक लड़कों में पुरुषत्व और लड़कियों में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषताएं प्रकट होने लगती हैं

👉🏼 इनके शारीरिक बनावट में अंतर स्पष्ट हो जाता है

👉🏼इस अवस्था में चेहरे की बनावट में आश्चर्यजनक परिवर्तन आता है बालिकाओं की त्वचा में निखार आ जाता है
और बालकों के चेहरे पर दाढ़ी, मूछ आ जाने के कारण उनके चेहरे की कोमलता समाप्त हो जाती है

🌈 मानसिक विकास 🌈
(Mental development)

मानसिक विकास का केंद्र बिंदु बुद्धि है जितनी भी मानसिक योग्यता वह शक्ति इसके अंतर्गत आती है

👉🏼 संवेदना/प्रत्यक्षीकरण-
बालक अपने संवेग से अनुभव करता है
आंख ,कान, नाक ,जीभ त्वचा में संवेदनाएं है। इसी से हम अनुभूति करते हैं यह संवेदना का निश्चित अर्थ निकालने की चेष्टा करें वह प्रत्यीकरण का रूप ले लेती है

👉🏼 संप्रत्यय निर्माण-यह एक प्रकार का सामान्यीकृत विचार है जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यीकरण वाहनों के माध्यम से विपरीत होता है
इसमें संवेदना के बाद बालक अपने संप्रत्यय का निर्माण करता है

👉🏼 स्मरण शक्ति का विकास-
यह मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है परिपक्वता और अनुभव के माध्यम से इनका धीरे-धीरे विकास होने लगता है

👉🏼 समस्या समाधान की योग्यता का विकास-व्यक्ति के समय जो अनेक समस्याएं होती हैं उसमें चिंतन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान की योग्यता का विकास होता है

🖊️🖊️📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma🖊️🖊️

🔆 *शारीरिक विकास*🔆
(12-18 वर्ष)

🌀वजन— दोनों के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती है।

🌀 18 वर्ष तक के बालकों का भार बालिकाओं की तुलना में अधिक होता है।

🎯लम्बाई — लड़कों की लंबाई 18 वर्ष तक बढ़ती , और लड़कियों की लंबाई 16 वर्ष तक बढ़ती है।

🎯दाँत — 18 वर्ष तक बालक के दाते स्थाई हो जाते हैं ।
🌀 18 वर्ष के बाद है बालक और बालिकाओं में अकल के दांत आना शुरू हो जाते हैं।

🎯 सिर व मस्तिष्क—
🌀 सिर का पूर्ण विकास 15-17 साल तक हो जाता है।
🌀 मस्तिष्क का भार— 1200-1400 ग्राम

🎯अन्य परिवर्तन —
किशोरावस्था में हृदय की धड़कन 72/ मिनट हो जाती है।

🎯 18 वर्ष तक लड़कों में पुरुषत्व लड़कियों में स्त्रियों का पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती है।

🎯 बालक और बालिकाओं के शारीरिक बनावट में अंतर भी देखने को मिलता है।

🔆 मानसिक विकास 🔆
संवेदना /प्रत्यक्षीकरण— बालक संवेग के अनुसार अनुभव करते है। आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा ये सभी संवेदनाए हैं। इसी से बालक अनुभूति करते हैं।

🎯 संवेग से अनुभव करते हैं उनके चीजों के आधार पर ही हम समझते हैं।

🎯 संप्रत्यय निर्माण- यह सामान्य विचार है जो व्यक्ति द्वारा एक दूसरे से अलग अलग अनुभव करके सीखते हैं।

🎯 यह आगमन आत्मक तकनीक का प्रयोग करके विकसित होता है।

इसमें बालक अपने संप्रत्यय या विचार का निर्माण करते हैं इसके बाद बालक अपने संप्रदाय का निर्माण करते हैं।

🎯 स्मरण शक्ति का विकास— स्मरण शक्ति से बच्चों में परिपक्वता आती है उसके अनुसार बालक अनुभव करते हैं और धीरे-धीरे वह सीखते हैं इससे बालक में संवेदना और संप्रदाय के आधार पर अपनी शक्ति का विकास करते हैं सीखी हुई बात को याद भी रखते हैं।

🎯 समस्या समाधान की योग्यता का विकास है— बालक की जो सामने समस्या उत्पन्न होती है उसमें बच्चे चिंतन करते हैं तर्क लगाते हैं उस के माध्यम से ही वह समस्या का समाधान कर पाते हैं।

Notes By:-Neha Roy🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🔥🔥किशोरावस्था 🔥🔥

🦚 यह अवस्था मानव जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था है।इसमें हम सबके जीवन में अनेक प्रकार के सामाजिक,सांस्कृतिक,संवेगात्मक और भावनात्मक इत्यादि अनेक प्रकार के परिवर्तन आते हैं। जिसका उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा रहा है :-

💥💥वजन💥💥

🌸इस अवस्था में वजन और भार लड़की और लड़कियों दोनों में सामान तरीके से बढ़ता है।

🌸18 वर्ष तक लड़कों का बाल लड़कियों की अपेक्षा अधिक हो जाता है।

💥💥 लंबाई 💥💥

🌸 लड़कों की लंबाई 18 वर्ष तक बढ़ती रहती है।

🌸 लड़कियों की लंबाई 16 वर्ष तक ही बढ़ती है।

💥💥दांत💥💥

🌸 18 वर्षों तक बालकों के बालक पूर्णत: स्थाई हो जाते हैं।

🌸 18 वर्षों के बाद बालक तथा बालिकाओं में अकल के दांत आने शुरू हो जाते हैं।

💥💥 सिर व मस्तिष्क का विकास💥💥

🌸 सिर व मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है।

🌸 सिर व मस्तिष्क का विकास पूर्णत: 15 से 17 सालों में हो जाता है।

🌸 इस अवस्था तक मस्तिष्क का भार 1200 – 1500 ग्राम तक हो जाता है।

🌸 बालकों की अपेक्षा पहले बालिकाओं में यह सारी परिवर्तन पाए जाते हैं।

💥💥 अन्य परिवर्तन 💥💥

🌸 इस अवस्था में ह्रदय की धड़कन घटकर 72 प्रति मिनट हो जाती है।

🌸 इस अवस्था में आते-आते बालकों में पुरुषत्व तथा बालिकाओं में स्त्रीत्व के गुण विकसित होने लगते हैं।

🌸 इनके शरीर की बनावट मे अंतर आ जाता है।

🌸 बालकों की अपेक्षा बालिकाएं जल्दी परिपक्व हो जाती हैं।

💥💥मानसिक व बौद्धिक विकास💥💥

🔥 मानसिक विकास का केंद्र बिंदु बुद्धि है जितनी भी प्रकार की संवेदनाएं इस में पाई जाती हैं वह इसके अंतर्गत ही आते हैं।

🐭🐣 संवेदना या प्रत्यक्षीकरण 🐣🐭

🌟 बालक अपने संवेग से अनुभव करता है। उसी के आधार पर चीजों को सोचता और समझता है।

🌟 आंख,नाक,कान,जीव,त्वचा आदि ये सारे संवेदनात्मक अंग है। इसी से हम अपनी संवेदना ओं का अनुभव करते हैं। और यह हमारी संवेदनाओं का उचित अर्थ निकालने में हमारी मदद करते हैं।
उसके बाद फिर वह प्रत्यक्षीकरण का अनुभव ले लेती है।

🐭🐣 संप्रत्यय निर्माण🐣🐭

🌟 यह एक प्रकार का सामान्यीकृत व्यवहार है जो कि अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग प्रकार से विचार या अंतः क्रिया प्राप्त कर पाने पर हर एक व्यक्ति में अलग अलग प्रकार से पनपता या विकसित होता है।

🌟 यह आगमनात्मक तकनीक का प्रयोग कर विकसित होता है।

🌟 इसमें संवेदना के बाद बालक अपनी संप्रत्ययों का निर्माण करता है।

🐭🐣 स्मरण शक्ति का विकास🐣🐭

🌟 यह एक ऐसी विकास है जिसका हमारी मानसिक और बौद्धिक शक्ति से अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्ता है जो कि इनके बिना पूर्ण ही नहीं हो सकती।

🌟 जैसे ही परिपक्वता व अनुभव बढ़ती है तो इसका विकास परिपक्वता व अनुभव के माध्यम से धीरे-धीरे होने लगता है।

🌟 इसमें बालक अपनी संवेदना और संप्रत्यय के माध्यम से अपनी स्मरण शक्ति विकसित करते हैं।
इसी के द्वारा हम अपनी सीखी गई बातों को याद रख सकते हैं।

🐭🐣 समस्या समाधान की योग्यता का विकास🐣🐭

🌟 जैसा कि हम सब जानते हैं मानव जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं होती है। जिसमें हमें अनेक प्रकार की समस्या समाधान कौशल और योग्यताओं की आवश्यकता होती है जो कि हम अपनी तर्कशक्ति चिंतन वह अपनी योग्यता द्वारा कर पाते हैं।

💥 संवेदना/प्रत्याक्षीकरण,संप्रत्यय निर्माण, स्मरण शक्ति का विकास तथा समस्या समाधान की योग्यता के विकास द्वारा बालक अपनी क्षमताओं को पहचान पाता है तथा अपन बालक अपनी क्षमताओं को पहचान पाता है तथा उनके संप्रत्यय निर्माण में सहायक होता है।

🌸🐣🌺समाप्त🌺🐣🌸

🔥🔥Notes by :- Neha Kumari ☺️

🙏🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏🙏

🔥🔥🐣🐣🌸🌸🌺🌺🌸🌸🐣🐣🔥🔥

📖📚 शारीरिक विकास 📖📚

💫 किशोरावस्था ( 12-18 वर्ष )

👉 वजन – दोनों के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती है।

👉 18 वर्ष तक लड़कों का भार बालिकाओं की तुलना में अधिक होता है।

💠 लम्बाई 💠

👉 18 वर्ष तक लड़कों की लंबाई बढ़ती है।

👉 लड़कियों की लंबाई 16 वर्ष तक बढ़ती है।

💫 दांत 💫

👉 18 साल तक बालक के दांत पूर्णतया स्थाई हो जाते हैं।

👉 18 वर्ष के बाद लड़कों व लड़कियों में अक्ल के दांत आना शुरू हो जाता है।

💠सिर व मस्तिष्क का विकास 💠

👉 सिर में मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है।

👉 सिर का पूर्ण विकास 15 से 17 साल तक हो जाता है

👉 मस्तिष्क का भार 1200 से 1400 ग्राम हो जाता है

🔰 अन्य परिवर्तन 🔰

👉 हृदय की धड़कन घटकर 72
प्रति मिनट हो जाती है।

👉 18 वर्ष तक लड़कों में पुरुषत्व और लड़कियों में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती है

👉 इनके शारीरिक बनावट में अंतर हो जाता है।

💠💠 मानसिक विकास ( बौद्धिक विकास ) mental development 💠💠

जितनी भी मानसिक योग्यता व शक्ति इसके अंतर्गत आता है।

👉 संवेदना/ प्रत्यक्षीकरण – बालक अपने संवेग से अनुभव करता है।
आंख कान नाक जीभ त्वचा ये संवेदनाएं हैं इसी से हम अनुभूति करते हैं यही संवेदना का निश्चित अर्थ निकालने की चेष्टा करें यह प्रत्यीकरण का रूप लेती है।

हम जानते हैं कि हम सब संवेग से अनुभव करते हैं पहले चीजों को इसके आधार पर ही समझते हैं।

👉 संप्रत्यय निर्माण-
यह एक प्रकार का सामान्यीकृत विचार है जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यीकरण वे अनुभव के माध्यम से विपरीत होती है
यह आगमनात्मक तकनीक का प्रयोग करके विकसित होता है इसमें संवेदना के बाद बालक अपने संप्रत्यय का निर्माण करता है

👉स्मरण शक्ति का विकास-
यह मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है परिपक्वता अनुभव के माध्यम से इनका धीरे-धीरे विकास होने लगता है
इसमें बालक अपनी संवेदना व संप्रत्यय के आधार पर अपनी स्मरण शक्ति का विकास करते हैं इसी से हम सीखी हुई बातों को याद कर पाते हैं।

👉 समस्या समाधान की योग्यता का विकास-
व्यक्ति के समक्ष जो अनेक समस्या होती है उसमें चिंतन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान की योग्यता का विकास होता है ।
पूर्व के तीनों बिंदुओं के बाद बालक समस्या का समाधान करता है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🌻🥀Physical development🌻🥀
🌷किशोरावस्था (12 – 18/20/21 )🌺

🌸🌿वजन
– बालक / बालिका के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती है।

🌈18 वर्ष के अंत तक लड़कों का भार लड़कियों की तुलना में अधिक हो जाता है।

💥लंबाई ~~

👉लड़के 18 वर्ष तक लंबे होते हैं।

👉लड़कियां 16 वर्ष तक पूरा हो जाते हैं।

💥🔥दांत ~~

🌿🌸18 साल तक दांत पूर्णतया स्थाई हो जाता है।

🌾लड़के लड़कियों में अक्ल के दांत आना शुरू हो जाते हैं।

🌈सिर /मस्तिष्क ~~~~

🌷सिर/मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है।

🌻सिर का पूर्ण विकास 15 से 17 साल तक हो जाती है।

🌾मस्तिष्क का भार 1200 – 1400 ग्राम तक होता है।

🌿हृदय की धड़कन 72 बार प्रति मिनट हो जाती है।

🌺18 वर्ष तक लड़कों में पुरुषत्व और लड़कियों में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती है।

🌈🌈 Mentel devlopment💥💥
मानसिक विकास / बौद्धिक विकास

🌿🌸बच्चे के मानसिक विकास उसके बुद्धि से होती है अर्थात मानसिक योग्यता या शक्ति से बच्चे में मानसिक विकास होती हैं।

🌻🥀संवेदना और प्रत्यक्षीकरण –

बच्चे में अनुभूति होती है और अनुभूति से संवेदना आती है
आंख ,कान ,नाक ,जीव, और त्वचा। इन पांचों ज्ञानेंद्रियों से हम कुछ ना कुछ अनुभूति करते रहते हैं अलग-अलग ज्ञानेंद्रियों से हम अलग -अलग चीजों की अनुभूति प्राप्त करते हैं।
इनका निश्चित अर्थ निकालने की चेतना करें वह प्रत्यक्षीकरण का रूप ले लेता है।

🙏🌿संप्रत्यय निर्माण ~~~~(concept build)

🌾🌷संप्रत्यय एक प्रकार का सामान्यी कृत विचार है जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यक्षीकरण और अनुभवों के माध्यम से विकसित होते हैं।

🌷🌾आगमनात्मक तकनीक का प्रयोग करके विकसित होता है।

🌺💥स्मरण शक्ति का विकास

यह मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है जो परिपक्वता और अनुभव के माध्यम से इसका धीरे-धीरे विकास होने लगता है।

🌸🌿समस्या समाधान की योग्यता का विकास ~~

🌸💥व्यक्ति के समक्ष जो अनेक समस्या होती है यह जो अलग-अलग समस्या होती है उसमें चिंतन और तर्क की योग्यता का विकास होता है।

🌻🥀🌾Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸💥🌺

🌸🌸 बाल विकास🌸🌸

🌼🌼किशोरावस्था🌼🌼

✍🏻शारीरिक विकास (12- 18 वर्ष)

🌈वजन- दोनों के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती है।

💧 18 वर्ष तक बालों को का भार बालिकाओं की तुलना में अधिक होता है।
💧लम्बाई- लड़कों की लंबाई 18 वर्ष तक बढ़ती है और लड़कियों की लंबाई 16 वर्ष तक बढ़ती है।

🌈 दांत- ▫️ 18 साल तक दांत पूर्णता स्थाई हो जाता है।
▫️ 18 वर्ष के बाद बालक और बालिकाओं में अक्ल दाढ़ आना शुरू हो जाता है।

🌈 सिर/ मस्तिष्क

▫️ सिर या मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है।
▫️ सिर का पूर्ण विकास से 15 से 17 साल तक हो जाता है।
▫️ मस्तिष्क का भार 1200 -1400 ग्राम तक होता है।

🌈अन्य परिवर्तन🌼

▫️ किशोरावस्था में हृदय की धड़कन घटकर 72 बार/ मिनट हो जाती है।
▫️ 18 साल तक लड़कों में पुरुषोत्व और लड़कियों मे स्प्रीत्व की पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती है।
▫️ इनकी शारीरिक बनावट में अंतर स्पष्ट हो जाता है।

🌱🍁मानसिक विकास🍁🌱

1️⃣संवेदना और प्रत्यक्षीकरण- बालक अपने समय के अनुसार अनुभव करते हैं बालक में यह 5 ज्ञानेंद्रियां कान, नाक ,आंख ,जीभ,त्वचा है इन्हीं के आधार पर बालक अनुभूति करते हैं।

▫️ संवेदना का अगर निश्चित अर्थ निकालने की चेष्टा करें तो वह प्रत्यक्षीकरण का रूप ले लेती है।

2️⃣संप्रत्यय निर्माण- यह एक प्रकार का सामान्य कब विचार है जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यक्षीकरण और अनुभवों के माध्यम से विकसित होती है।
▫️ आगमनात्मक तकनीक का प्रयोग करके विकसित होता है।

3️⃣ स्मरण शक्ति का विकास- यह मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है स्मरण शक्ति के साथ-साथ बच्चों में परिपक्वता आती है इसी के अनुसार बालक अनुभव करते हैं और धीरे-धीरे सीखते हैं।

4️⃣ समस्या समाधान की योग्यता का विकास- व्यक्ति के सामने जो समस्याएं उत्पन्न होती है उन पर वह चिंतन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान की योग्यता का विकास करते हैं तथा उसी के माध्यम से समस्या का समाधान भी कर लेते हैं।

🌼🌼🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🌼🌼

✍🏻 NOTES BY
🌸Shashi Choudhary🌸

🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏

*🌷 किशोरावस्था में शारीरिक विकास 🌷*

अध्ययन की दृष्टि से किशोरावस्था 🙁 12 – 18 ) वर्ष

1. 🌺 वजन 🌺

👉किशोरावस्था में किशोर – किशोरियों दोनों के भार में तीव्र गति से वृद्धि होती है।

👉18 वर्ष के अंत तक किशोरों का भार किशोरियों की अपेक्षा बढ़ जाता है।

2. 🌺 लम्बाई 🌺

👉किशोरों की लंबाई 18 वर्ष तक बढ़ती है ।

👉किशोरियों की लंबाई 16 वर्ष तक बढ़ती है।

3. 🌺 दांत 🌺

👉18 वर्ष तक दांत पूर्णतया स्थाई हो जाते हैं ।

👉18 वर्ष के बाद किशोर – किशोरियों में अक्ल के दांत आना शुरु हो जाते हैं।

4. 🌺 सिर और मस्तिष्क 🌺

👉सिर / मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है ।

👉सिर का पूर्ण विकास ( 15 – 17 ) वर्ष तक हो जाता है ।

👉मस्तिष्क का भार “1200 – 1400″ ग्राम तक होता है।

5. 🌺 अन्य परिवर्तन 🌺

👉किशोरावस्था में हृदय की धड़कन घटकर 72 बार प्रति मिनट हो जाती है ।

👉18 वर्ष तक किशोरों में पुरुषत्व और किशोरियों में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती है ।

👉किशोरावस्था में किशोर और किशोरियों के शारीरिक बनावट में अंतर स्पष्ट हो जाता है।

*मानसिक विकास/बौद्धिक विकास* 🧠🧠🧠

बच्चों के मानसिक विकास को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जाता है :-

मानसिक योग्यता/शक्ति, बच्चे के मानसिक विकास के अंतर्गत आती है ।

1. संवेदना और प्रत्यक्षीकरण

संवेदना से ही अनुभूति / अनुभव करते हैं।
” आंख , कान , नाक , जीभ , त्वचा ” ये पांच ज्ञानेन्द्रियों से ही अपनी संवेदनाओं की अनुभूति की जाती है।अतः इसका निश्चित अर्थ निकालने की चेष्टा करें वह प्रत्यक्षीकरण का रूप ले लेती है।
अर्थात जब हमारी संवेदनायें प्रत्यक्ष रूप से होंगी तभी अनुभूति का अहसास होता है।

2. संप्रत्यय निर्माण ( Concept Build )

यह एक प्रकार का सामान्यीकृत विचार है जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यक्षीकरण और अनुभवों के माध्यम से विकसित होती है। अर्थात इसमें बालक अपनी संवेदनाओं के प्रत्यक्षीकरण के बाद अपना संप्रत्यय निर्माण करता है।

3. स्मरण शक्ति का विकास

यह मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। परिपक्वता और अनुभव के माध्यम से इसका धीरे-धीरे विकास होने लगता है।
एक बालक में जब अपनी संवेदनाओं का प्रत्यक्षीकरण और फिर संप्रत्यय निर्माण हो जाता है तब उसमें स्मरण शक्ति का विकास हो जाता है, बच्चे अपनी पुरानी बातों, कार्यों आदि को याद करके नयी स्थिती में अनुभव करते हैं।

4. समस्या समाधान की योग्यता का विकास

व्यक्ति के समक्ष जो अनेक समस्याएं होती हैं उसमें चिंतन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान की योग्यता का विकास होता है।
जब बच्चे में संवेदना का प्रत्यक्षीकरण हो जाता है, संप्रत्यय का निर्माण हो जाता है तथा स्मरण शक्ति का विकास हो जाता है तब बच्चे में समस्या समाधान की योग्यता का विकास हो जाता है। बच्चे के सामने जब कोई स्थिति, समस्या होती है तब बे सोच – विचार करके अपनी समस्या का समाधान कर लेते हैं।

🌺 ✒️✒️Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️✒️✒️🌺🌺🌺

🔰physical devlopment🔰
शारीरिक विकाश

किशोरावस्था:- वजन :- बालक बालिकाओं के बाहर में तीव्र गति से वृद्धि होती है 18 वर्ष के अंत तक लड़कों का भार लड़कियों से अपेक्षाकृत बढ़ जाता है

लंबाई:- 18 वर्ष तक लड़कों की लंबाई लगभग पूर्ण हो जाती है

16 वर्ष तक लड़कियों की लंबाई लगभग पूर्ण हो जाती है

दांत:- दांत 18 साल तक स्थाई हो जाते हैं लड़के लड़कियों के अक्ल के दांत आना शुरू हो जाते हैं

सिर/ मस्तिस्क: 1 सिर मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है
2 सिर का पूर्ण विकास 15 से 17 साल तक हो जाता है
3 मस्तिष्क का भार 12 सौ से 14 सौ ग्राम तक होता है

अन्य परिवर्तन:- 1 ह्रदय की धड़कन घटकर 72 बार प्रति मिनट हो जाती है
2 18 वर्ष तक लड़कों में पुरुषत्व और लड़कियों में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषता प्रकट होने लगती है
3 उनकी शारीरिक बनावट में अंतर स्पष्ट हो जाता है

mental devlopment
मस्तिष्क विकास/ बौद्धिक विकास

मानसिक योग्यता /शक्ति:-
1 संवेदना प्रत्यक्षीकरण:- आंख कान नाक जीभ त्वचा
संवेदना अनुभूति संवेदनाएं

संवेदना का कोई निश्चित अर्थ निकालने की चेष्टा करें वह प्रत्यक्षीकरण का रूप ले लेती है

2 संप्रत्यय निर्माण:- एक प्रकार का सामान्य ज्ञान विचार है जो एक व्यक्ति द्वारा अलग-अलग प्रत्यक्षीकरण और अनुभवों के माध्यम से विकसित होता है

अगनात्मक तकनीक का प्रयोग करके विकसित होता है

3 स्मरण शक्ति का विकास :- मानसिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है परिपक्वता और अनुभव के माध्यम से इसका धीरे-धीरे विकास होने लगता है

समस्या समाधान की योग्यता का विकास:- व्यक्ति के समक्ष जो अनेक समस्याएं होती हैं उसमें चिंतन और तर्कों के माध्यम से समस्या समाधान की योग्यता का विकास होता है

🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏

Articles of Indian Constitution Notes by India’s top learners

📖 📖 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 📖 📖

🌷🌿🌷 भारतीय संविधान में बताए गए कुछ मुख्य अनुच्छेद दिए गए हैं। जिनका वर्णन निम्नलिखित है, कि किस अनुच्छेद के अंतर्गत प्रकार के अधिकार भारतीय नागरिक को प्रदान किए गए हैं~

🍂🍃 अनुच्छेद 28~ राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

🍃🍂 अनुच्छेद 29~ इसके अंतर्गत अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए प्रावधान किए गए हैं~

👉🏻 29 “1,क, अ, A” ~ भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी विभाग के निवासी नागरिक के किसी अनुभाग का जिसको अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार है।
👉🏻 29″ 2 ख, ब, B ” ~ राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाय जाने वाली किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल जाति, धर्म, मूल वंश, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

🍂🍃 अनुच्छेद 30″ 1, क, अ, A”~ धर्म व भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना व प्रशासन का अधिकार होगा।

🍃🍂 अनुच्छेद 30″ 2, ख, ब, B” ~ शिक्षा संस्थानों को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थानों के विरुद्ध इस आधार पर विच्छेद नहीं करेगा। कि वह धर्म व भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।

🍂🍃 अनुच्छेद 45~ राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंद करने का प्रयास करेगा।

🍃🍂 अनुच्छेद 350″ 1,क, अ, A” ~ प्रत्येक राज्य व राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा। और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा। जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है।

📚 📚 📕 समाप्त 📕 📚 📚
✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

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🔆 *भारतीय संविधान के अनुच्छेद*
जिनमें से कुछ अनुच्छेद समावेशी शिक्षा से सम्बन्धित है जो निम्न लिखित है।

⚜️ *संविधान के अनुच्छेद 28*➖

राज्य द्वारा बनाई गई संस्थाओं में कोई “धार्मिक शिक्षा नहीं” दी जाएगी।

⚜️ *संविधान के अनुच्छेद 29*➖
“अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा” के लिए।
इसके दो भाग है।

◼️ *संविधान के अनुच्छेद 29 (1/A/अ)*➖
“भारत की राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिक के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा में या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार” है।

◼️ *संविधान के अनुच्छेद 29 (2/B/ब)*➖

राज्य द्वारा पोषित या राजनीति से सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के किसी भी “नागरिक को केवल मूलवंश, धर्म ,जाति ,भाषा या उनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं” किया जाएगा।

⚜️ *संविधान के अनुच्छेद 30*➖

“शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन” के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार।
इसके दो भाग है।

◼️ *संविधान के अनुच्छेद 30 (1/A/अ)*➖

धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को “अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन” का अधिकार होगा।

◼️ *संविधान केअनुच्छेद 30(2/B/ब)*➖

शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर “विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित” किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में हो।

⚜️ *संविधान के अनुच्छेद 45*➖
राज्य द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से “10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा” देने के लिए उप बंध करने का प्रयास करेगा।
⚜️ *संविधान के अनुच्छेद 350 A*➖

▪️प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी, भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर “मातृभाषा में शिक्षा” के पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो ऐसी सुविधा को उपलब्ध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता हो।

✍🏻
*Notes By-Vaishali Mishra*

💠🌀💠 *भारतीय संविधान के अनुच्छेद* 💠🌀💠

☘️ *अनुच्छेद 28*➖ राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

☘️ *अनुच्छेद 29*➖ इसके अंतर्गत अल्पसंख्यक के हितों के रक्षा के लिए प्रावधान किया गया है।

♻️ *अनुच्छेद 29क/अ/1/A*➖ भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है।

♻️ *अनुच्छेद 29 ख/ब/2/B*➖राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म, मूल वंश, जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

☘️ *अनुच्छेद 30*➖ शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासनों के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार है।

♻️ *अनुच्छेद30अ/A/1*➖ धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों से अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

♻️ *अनुच्छेद 30ख/2/B*➖ शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किस अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।

☘️ *अनुच्छेद 45*➖ राज्य संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।

☘️ *अनुच्छेद 350 क/अ/1/A*➖ प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है।

✍🏻✍🏻 Notes by manisha gupta ✍🏻✍🏻

📚भारतीय संविधान में लिखित अनुच्छेदों में से कुछ अनुच्छेद समावेशी शिक्षा के अंतर्गत आते हैं।जो कि निम्नलिखित हैं :-

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “28” के अंतर्गत :-*

🌸राज्य द्वारा बनाई गई संस्थाओं में कोई “धार्मिक शिक्षा नहीं” दी जाएगी।

🌟 *संविधान का अनुच्छेद “29” के अंतर्गत :-*

🌸अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा” से संबंधित है।

✌️इसके दो भाग है।

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “29 A” के अंतर्गत :-*

🌸भारत की राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिक के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा में या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार” है।

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “29 B” के अंतर्गत :* –

🌸राज्य द्वारा पोषित या राजनीति से सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के किसी भी “नागरिक को केवल मूलवंश, धर्म ,जाति ,भाषा या उनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं” किया जाएगा।

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “30” के अंतर्गत* :-

🌸शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन” के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार।
इसके दो भाग है।

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “30A” के अंतर्गत :-*

धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को “अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन” का अधिकार होगा।

🌟 *संविधान केअनुच्छेद “30 B” के अंतर्गत :-*

🌸शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर “विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित” किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में हो।

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “45” के अंतर्गत :-*

🌸राज्य द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से “10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा” देने के लिए उप बंध करने का प्रयास करेगा।

🌟 *संविधान के अनुच्छेद “350 A” के अंतर्गत :* –

🌸प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी, भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर “मातृभाषा में शिक्षा” के पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो ऐसी सुविधा को उपलब्ध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता।

🌸🌸Notes by :- Neha Kumari 😊

📚 भारतीय संविधान में लिखित अनुच्छेदों में से कुछ अनुच्छेद समावेशी शिक्षा के अंतर्गत आते हैं जो इस प्रकार से हैं ➖

💫 संविधान के अनुच्छेद ” 28″ के अंतर्गत ➖
🔺 राज्य द्वारा बनाये गये संस्थाओं में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

💫 संविधान का अनुच्छेद “29”के अंतर्गत ➖
🔺 अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा की बात की गई है।

✌️इसको दो भागों में बांटा गया है।

💫 संविधान के अनुच्छेद “29A” के अंतर्गत ➖
🔺 भारत के राज्य क्षेत्र के या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा,लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।

💫 संविधान के अनुच्छेद”29B” के अंतर्गत ➖

🔺 राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी भी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म मूलवंश जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वांचित नहीं किया जा सकता है।

💫 संविधान के अनुच्छेद “30” के अंतर्गत ➖

🔺 शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार है।

✌️इसको दो भागों में बांटा गया है।

💫 संविधान के अनुच्छेद “30A” के अंतर्गत ➖

🔺 धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्था स्थापना और प्रशासन का अधिकार दिया गया है।

💫 संविधान के अनुच्छेद “30B” के अंतर्गत ➖

🔺 शिक्षा संस्थानों के सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेदन ही करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है।

💫 संविधान के अनुच्छेद ” 45″ के अंतर्गत ➖

🔺 राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।

💫 संविधान के अनुच्छेद ” 350 A” के अंतर्गत ➖

🔺 प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की प्रर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपलब्ध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।

Thankyou

📝📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

⚜️ *भारतीय संविधान के अनुच्छेद⚜️*

✍🏻भारतीय संविधान के लिखित अनुच्छेदों में से कुछ प्रमुख अनुच्छेद निम्न प्रकार हैं:-

♻️ *अनुच्छेद२८के अंतर्गत_* राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

♻️ *अनुच्छेद २९(Article 29) के अंतर्गत_* अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण।

🌈इसके दो भाग हैं:-

🎯 *अनुच्छेद(२९A/अ/क)_* भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।

🎯 *अनुच्छेद(२९B/ब/ख)_* राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

♻️ *अनुच्छेद30 (Article 30) के अंतर्गत_*
शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार।
इसके दो भाग हैं:-

*🎯 अनुच्छेद(३०A/अ/क)_* धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

🎯 *अनुच्छेद(३०B/ब/ख)_*
शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर “विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित” किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में हो।

♻️ *अनुच्छेद४५(Article 45) के अंतर्गत_*
राज्य द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से “10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा” देने के लिए उप बंध करने का प्रयास करेगा।

♻️ *अनुच्छेद३५०(Article350)के अंतर्गत_*
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी, भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर *”मातृभाषा में शिक्षा”* के पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो ऐसी सुविधा को उपलब्ध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता।

*🌸🙏🏻धन्यवाद्🙏🏻🌸*
📚✍🏻
*Notes by_*
*Mnisha Sky Yadav*

🔶 भारत के संविधान के अनुच्छेद 🔶
🔆संविधान के अनुच्छेद 28 ➡ राज्य द्वारा बनाई गई संस्था में कोई “धार्मिक शिक्षा नहीं” दी जाएगी |
🔆संविधान के अनुच्छेद 29 ➡ अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा के लिए प्रावधान किए गए हैं | इनको दो भागों में विभाजित किया गया |
🔆संविधान के अनुच्छेद 29(1/क/अ/A) ➡
भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किस विभाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है |
🔆संविधान के अनुच्छेद 29(2/ख/ब/B) ➡
राज्य द्वारा पोषित या राजनीति से सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश की किसी भी नागरिक को केवल धर्म मूल वंश जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा |
🔆संविधान के अनुच्छेद 30 ➡
शैक्षणिक संस्थानो की स्थापना और प्रशासनो के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार है इसको दो भागों में विभाजित किया गया है |
🔆संविधान के अनुच्छेद 30 (1/अ/A) ➡
धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों से अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा |
🔆संविधान के अनुच्छेद 30(2/ब/B) ➡
शिक्षा संस्थाओ को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थान के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में हो |
🔆संविधान के अनुच्छेद 45 ➡
राज्य द्वारा इस संविधान के प्रारंभ में 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा |
🔆संविधान के अनुच्छेद 350(A) ➡
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किस राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो ऐसी सुविधा को उपलब्ध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है |
Notes by – Ranjana Sen

🌟💐 भारतीय संविधान के अनुच्छेद💐🌟

💐 भारतीय संविधान में कुछ मुख्य अनुच्छेद समावेशी शिक्षा के अंतर्गत आते है , जिनका वर्णन निम्नलिखित है।

🌟💐 Article 28..💐🌟
🍁 राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

🌟💐Article 29💐🌟
🍁 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की बात करता है.।

🌟💐 Article 29(a)💐🌟

🍁 भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि, संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है।

🌟💐Article 29(b)💐🌟

🍁 राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म, मूल वंश जाति, भाषा, या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

🌟💐 Article 30💐🌟

🍁 शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार।

🌟💐Article 30 (a)💐🌟

🍁 धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

🌟💐Article 30 ( b)💐🌟

🍁 शिक्षा संस्थानों को सहायता देने में राज्य की शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।

🌟💐Article 350(a)💐🌟

🍁 प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर “मातृभाषा” में शिक्षा पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देशन दे सकेगा।

🌟💐Article 45💐🌟

🍁 राज्य संविधान के प्रारंभ में 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेग।

🌟🌟🌟🌟🌟🌟

💐Notes by
✍🏻SHashi choudhary

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🔆 *भारतीय संविधान के अनुच्छेद*

भारतीय संविधान के अनुच्छेद में कुछ वर्णन किए गए हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-
?
🌀 *संविधान के अनुच्छेद 28—*
“राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद 29 (A /1/अ)—*
“भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभव को जिसकी अपनी विशेष भाषा ,लिपि या संस्कृति हो, उसे बनाए रखने का अधिकार है”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद(29/2/ब)—*
“राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी भी संस्था में प्रवेश इसे किसी भी नागरिक को केवल धर्म मूल वंश जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद 30—*
“शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार है”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद 30(1/अ/A )—*
“घर्म या भाषा पर आधारित सभी और अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद 30(B/2/ब)_*
“शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरोध है इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी और संख्यक वर्ग के प्रबंध में है”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद 350A —*
“प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो ऐसी सुविधाओं का प्रबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है”।

🌀 *संविधान के अनुच्छेद 45—*
“राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालको को14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा”।

Notes By:-Neha Roy 💐💐🌻🌻🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

संविधान के अनुच्छेद

अनुच्छेद 29 –

यह अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के लिए है

इस को दो भागों में रखा गया है-
29a और 29b

अनुच्छेद 29 ए
भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी इस अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है

अनुच्छेद 29 बी
राज्य द्वारा पोषित या राजनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म, मूलवंश ,जाति ,भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा

अनुच्छेद 30
इसके अनुसार
शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार है

अनुच्छेद 30 को दो भागों में बांटा गया –
अनुच्छेद 30 ए और अनुच्छेद 30 बी

अनुच्छेद 30a
धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा

अनुच्छेद 30b
शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है

अनुच्छेद 350 ए
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है

अनुच्छेद 28
राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी

अनुच्छेद 45
राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालको को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक, निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा

Notes by Ravi kushwah

🤹‍♀️भारतीय संविधान के अनुच्छेद 🤹‍♀️

भारतीय संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेद है –

🏖अनुच्छेद 28 :-
राज्य द्वारा बनाए गये संस्थानो में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी |

🏝अनुच्छेद 29 :-
इसके अन्तर्गत अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए प्रावधान किए गए हैं |

🌹अनुच्छेद 29 (A) :-
इसके अन्तर्गत भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग के , जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है |

🌹अनुच्छेद 29(B) :-
इसके अन्तर्गत राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म , मूल वंश , जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा |

🏝अनुच्छेद 30:-
इसके अन्तर्गत शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार कि बात करता है |

🌹अनुच्छेद 30 ( A ) :-
इसके अन्तर्गत धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं कि स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा |

🌹अनुच्छेद 30 ( B ) :-
इसके अन्तर्गत शिक्षा संस्थानों को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थानों के विरुद्ध आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंधन में है |

🏖अनुच्छेद 45 :-
इसके अन्तर्गत राज्य इस संविधान की प्रारंभ से 10 वर्ष कि अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का उपबंध करने का प्रयास करेगा |

🏖अनुच्छेद 350 (A) :-
इसके अन्तर्गत प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषा अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षकों के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा कि पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक समझते हैं |

🤹‍ Thank you 🤹‍

Notes by –

Meenu Chaudhary 🌹🌹🌹

⭐भारत के संविधान के अनुच्छेद⭐

🌷अल्पसंख्यक ~ जो लोग काम है उनको कई चीजों से इग्नोर किया जाता हैं उनको मुख्यधारा से जोड़ने की बात करते हैं।

🌷🥀अनुच्छेद 29~ अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा करने की बात करती हैं।

✌️अनुच्छेद 29 को दो भागों में विभाजित किया गया है।

🌻(1) अनुच्छेद 29 (क/A/अ)
🌻(2) अनुच्छेद 29 (ख/ब/B/2)

🌾(1) अनुच्छेद 29 (क/A/अ) ~ भारत के राज्य क्षेत्र में या उसके किसी भाग के निवासी भारत के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है।

🌾(2) अनुच्छेद 29 (ख /ब/B/2) ~ राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म, मूलवंश, जाति ,भाषा या इसमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

🌸अनुच्छेद 30 ~शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों का अधिकार।

✌️अनुच्छेद 30 को दो भागों में बांटा गया है।

🌻(1) अनुच्छेद 30 (अ /क/ A)
🌻(2) अनुच्छेद 30 (ख/ब/B/2)

🌾(1) अनुच्छेद 30 (अ/क/A) ~ धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों की अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का पूर्ण अधिकार होगा ।

🌾(2) अनुच्छेद 30 (ख/ब/B/2) ~ शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी भी संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है।

💥अनुच्छेद 28 ~राज्य द्वारा बनाए गए संस्थाओं में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

💥अनुच्छेद 350 A ~ प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसा निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है।

🌺अनुच्छेद 45~ राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।
🙏🌷🥀Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸🌺🙏

🍀 समावेशी शिक्षा के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 🍀 🔊 *अनुच्छेद 29*➖ यह अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के लिए है । ☑️ *अनुच्छेद 29 A /अ/क/1*➖ भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग के; जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है। ☑️ *अनुच्छेद 29 B/ब/ ख/ 2*➖ राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म, मूल वंश ,जाति ,भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा । ☑️ *अनुच्छेद 30*➖ शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों को अधिकार है। ☑️ *अनुच्छेद 30 अ*➖ धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपने रुचि की शिक्षा संस्थान की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा । ☑️ *अनुच्छेद 30 ब*➖ शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में किसी राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विरोध नहीं करेगा; कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है । ☑️ *अनुच्छेद 350 अ*➖ प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर ,प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी, भाषाई ,अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर ”मातृभाषा” में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं को उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए समझते हैं । ☑️ *अनुच्छेद 28*➖ राज्य द्वारा बनाए गए संस्थाओं में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। ☑️ *अनुच्छेद 45*➖ राज्य ,इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए अनुबंध करने का प्रयास करेगा । धन्यवाद ✍️नोट्स बाय प्रज्ञा शुक्ला

🔆 भारत के संविधान के कुछ अनुच्छेद 🔆

भारत के संविधान के कुछ अनुच्छेदों को समावेशी शिक्षा में शामिल किया गया है जो कि निम्न है ➖

🎯 अनुच्छेद -29 ➖

अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यक वर्ग के हित के संरक्षण की बात कही गई जिसको दो भागों में बताया गया यह विभाजित किया गया है ➖

🌻 अनुच्छेद 29(क) ➖

भारत के राज्य क्षेत्र या उसके निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है |

🌻 अनुच्छेद 29(ख) ➖

राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों के केवल धर्म, मूल वंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी भी आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा |

🎯 अनुच्छेद 30 ➖

शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार की बात कही गई है इसके दो भाग हैं ➖

🌻 अनुच्छेद 30(क) ➖

धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का पूरा अधिकार होगा |

🌻 अनुच्छेद 30(ख) ➖

शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है |

🎯 अनुच्छेद – 28

राज्य द्वारा बनाए गए शिक्षण संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी |

🎯 अनुच्छेद – 45

राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए प्रबंध करने का प्रयास करेगा |

🎯 अनुच्छेद – 350(क) ➖

प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो ऐसी सुविधाओं के उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🌹🌺🌸🌸🌸🌸🌸🌺🌹🌻

✍🏻🌀 भारत के संविधान में समावेशी शिक्षा के अंतर्गत अनुच्छेद🌀✍🏻

💢अनुच्छेद 28–/

इसके अंतर्गत राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी!

💢 भारत के संविधान के अनुच्छेद 29–/

इस अनुच्छेद में
अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने के लिए कहा गया है

अनुच्छेद 29 को दो भागों में बांटा गया है
29a और 29b

💢 अनुच्छेद 29 a/ क/ अ–/
इस अनुच्छेद में भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग अर्थात व्यक्ति को जिसकी अपनी विशेष भाषा , लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है

💢 अनुच्छेद 29 b–/

इसके अंतर्गत राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म ,मूल वंश ,जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा

💢 अनुच्छेद 30–/
इसके अंतर्गत शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों को अधिकार है

अनुच्छेद 30 को भी दो भागों में बांटा गया है

अनुच्छेद 30 a , अनुच्छेद 30 b

💢अनुच्छेद 30a–/
धर्म और भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा

💢अनुच्छेद 30b–/

शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर vibhed नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है

💢 अनुच्छेद 45–/

राज्य संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए प्रबंधन करने का प्रयास करेगा

💢 अनुच्छेद 350 A—/
इसके अंतर्गत प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई, अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है!

✍🏻✍🏻
Notes by
RITU YOGI
✍🏻✍🏻

💢💢🌀🌺🙏🏻🙏🏻🌺🌀💢💢

भारतीय संविधान के अनुच्छेद
🌷 📖✒️📖✒️🌷

भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों को समावेशी शिक्षा में भी शामिल किया गया है जो कि निम्नलिखित हैं :-

1.🌲 अनुच्छेद Article ( 28 )
राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

2.🌲 अनुच्छेद ( 29 )
अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा।

🌺 अनुच्छेद 29 (A, अ, क, 1)
भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिस की अपनी विशेष भाषा , लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है।

🌺 अनुच्छेद 29 (B, ब, ख, 2 )
राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों को केवल धर्म , मूलवंश , जाति , भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता है।

3. 🌲 अनुच्छेद ( 30 )
शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों को अधिकार।

🌺 अनुच्छेद 30 (A, अ, क, 1)
धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि के शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

🌺 अनुच्छेद 30 ( B, ब, ख, 2)
शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में हैं।

4. 🌲 अनुच्छेद 350 ( A )
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी , भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक समझता है।

5.🌲 अनुच्छेद ( 45 )
राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरा करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।

*Notes* *by*
🌺* जूही श्रीवास्तव* 🌺

🙏 समावेशी शिक्षा के अनुच्छेद🙏

अनुच्छेद 29 :- अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा के लिए
अल्पसंख्यक का अर्थ है जो कम संख्या में है ना कि गरीब अनुच्छेद 29 दो भागों में बटा हुआ है 29A/क /अ/1
29B/ब/ ख /2

29 क :- भारत के राज्य क्षेत्र है उससे किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार है

29 ख :- राज्य द्वारा पोषित या राजनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिकों के केवल मूल वंश जाति भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता

अनुच्छेद 30:- शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यक को अधिकार है
या दो भागों में विभाजित है 30 A की 30B

30 A :- धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा

30 B: शिक्षा संस्थान को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थाओं के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है

350 A :- प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा के पर्याप्त न्याय व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं को प्रबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है

अनुच्छेद 28: राज्य द्वारा बनाए गए संस्थानों में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी

अनुच्छेद 45:- राज्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालक को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा

🙏🙏🙏 sapna sahu 🙏🙏🙏

Physical development of of children in initial stage notes by India’s top learners

📖 📖 शारीरिक विकास 📖 📖
( physical development)

🌺 🌺गर्भावस्था व भ्रूणावस्था 🌺 🌺

इसके अंतर्गत तीन अवस्थाएं हैं, जिसमें गर्भ के अंदर ही बालक का विकास होता है। जब बालक मां के गर्भ में ही होता है।

👉🏻 डिंबावस्था ~डिम्ब की अवस्था कहते है।
👉🏻 भ्रूणीय अवस्था ~ इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है।
👉🏻भ्रूणावस्था ~ इस अवस्था में गर्भ मे 2 महीने से लेकर जन्म तक की अवस्था होती है।

🌷🌻🌷 भ्रूणावस्था में लम्बाई ~ 20 इंच,,
भार~ 6 – 7 पोण्ड।

👉🏻 बालक का रंग, त्वचा एवं शरीर के सभी अंगों का निर्माण गर्भ में ही हो जाता है।
👉🏻 माता के गर्भ में ही हम बालक की धड़कन को आसानी से सुन सकते हैं।

🌻🌺🌻 शैशवावस्था 🌻🌺🌻
( अध्ययन की दृष्टि से )
● उम्र – 0 – 5 वर्ष,
● वजन – 6 – 8 पोण्ड, ( 2.5 – 3.5 kg )
बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा वजन कम होता है।
● 19 – 22 इंच, ( 48- 56 cm. )
बालिकाओं की लंबाई भी बालकों की अपेक्षा कम होती है।
● 3 – 4 वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई लड़कों की अपेक्षा अधिक हो जाती है।
● 5 वर्ष के अंत तक वजन – 38 – 40 पोण्ड ( 17 – 18 kg.)

🌲 सिर व मस्तिष्क का विकास~
जन्म के समय बच्चे के सिर का विकास उसके शरीर के विकास का एक चौथाई भाग (1/4) होता है।
🌲 हड्डियों का विकास~
जन्म के समय बालक की हड्डियां मुलायम व लचीले होती है।
जन्म के समय बच्चे में 270 – 300 हड्डियां पाई जाती है। और बाद में हड्डियों की संख्या 206 हो जाती है।
हड्डियों का विकास लड़कों में अपेक्षाकृत लड़कियों से तीव्र होता है।

🌷🌿🌷 अन्य कारक~
बालक के विकास से संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य जो कि निम्नलिखित हैं~
🍂🍃 5 या 6 महीने से बच्चे के दांत निकलना शुरू हो जाते हैं। बच्चों में सबसे पहले नीचे के दांत आते हैं।
🍃🍂 4 वर्ष तक बच्चे के सारे अस्थाई आज निकल जाते हैं। इन अस्थाई दातों की संख्या 20 होती है।
🍂🍃 शिशुओं की धड़कन प्रारंभ में 140/मि. होती है। लेकिन 3 से 4 वर्ष तक 120/मि. हो जाती है। और उसके पश्चात 5 वर्ष तक 100/मि. हो जाती है।
🍃🍂 शैशवावस्था में बच्चों में यौन अंगों का विकास मंद गति से होता है।
🍂🍃 बालक का संपूर्ण विकास शैशवावस्था में ही सबसे तीव्र गति से होता है।

📚📚📘 समाप्त 📘📚📚
✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻
🌻🌿🌺🙏🏻🌷🌻🌿🌺🙏🏻🌷🌻🌿🌺🙏🏻🌷🌻🌿🌺🙏🏻

✍️ शारीरिक विकास✍️
(physical Development)

💐 गर्भावस्था व भ्रूणावस्था 💐

इसके अंतर्गत तीन अवस्थाएं होती है जिसमें गर्भ के अंदर ही बालक का विकास होता है जब बालक मां के गर्भ में ही रहता है।

💎 डिंबावस्था- डिंब की अवस्था कहते हैं।

💎भ्रूणीय अवस्था- इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होता है।
💎भ्रुणावस्था- इस अवस्था में गर्भ में 2 महीने से लेकर जन्म तक की अवस्था होती है।

🌸 भ्रूणावस्था में बच्चे की लंबाई- 20 इंच ,वजन- 6-7 पौण्ड।

💎 बालक का रंग त्वचा एवं शरीर के सभी अंगो का निर्माण गर्भ में ही हो जाता है।
💎 बच्चे की धड़कन की आवाज आसानी से सुना जा सकता है।

🌴 अध्ययन की दृष्टि से
🌻💐 शैशवस्था🌻💐
ःशैशवावस्था की उम्र 0 से 5 साल तक होती है।
वजन -6-8 पोण्ड, (2.5-3.5kg)
बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा वजन कम होती है।
5वर्ष के अन्त में 38-40 पोण्ड(17-18kg)
🌴लम्बाई जन्म के समय-19-22 Inch(48-56cm)
बालिकाओं की लंबाई भी बालकों की अपेक्षा कम होती है।
🌴3-4 वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई लड़कों की अपेक्षा अधिक हो जाती है।

🏵 सिर और मस्तिक 🏵
जन्म के समय बच्चे का सिर का विकास उसके शरीर के विकास का एक चौथाई भाग (1/4) होता हैं।
🌴 बच्चे के मस्तिष्क का वजन-350gm
🏵 हड्डियां🏵
जन्म के समय बालक की हड्डियां मुलायम व लचीले होती हैं।
🌴जन्म के समय बच्चे में 270-300 हड्डियां पाई जाती हैं और बाद में हड्डियों की संख्या 206 हो जाती है।
🌴हड्डियों का विकास लड़कों में अपेक्षाकृत लड़कियों में तीव्र होता है।

🏵अन्य कारक 🏵
बालक के विकास में से संबंधित कुछ अन्य कारक है जो कि निम्नलिखित हैं।
🌴5 या 6 महीने से बच्चे के दांत निकालना शुरू हो जाते हैं बच्चों में सबसे पहले नीचे के दांत आते हैं।
🌴4 वर्ष तक बच्चे के सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं इन अस्थाई दातों की संख्या 20 होती है।
🌴 शिशुओं की धड़कन प्रारंभ में 140 /मि.होती हैं।
🌴3 से 4 वर्ष तक 120/मि.हो जाती हैं।
🌴5 वर्ष तक 100/मि. हो जाती हैं।
🌴 शैशावस्था में बच्चों में यौन अंगों का विकास मंद गति से होता है।
🌴 शैशवावस्था में बच्चे का संपूर्ण विकास सबसे तीव्र गति से होता है।

Notes By :-Neha Roy🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🔆बच्चे का शारीरिक विकास🔆

बच्चे का शारीरिक विकास अनेक अवस्थाओं से होते हुए गुजरता है किसी भी अवस्था को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि जब एक अवस्था पूरी होगी तभी दूसरी अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है इसीलिए बच्चे के शारीरिक विकास के लिए अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने मत अलग-अलग मत दिए हैं लेकिन सामान्य अध्ययन के दृष्टि से विकास की विभिन्न अवस्थाएं होती है जो कि निम्न है

🎯 भ्रूणावस्था ➖

इस अवस्था में बच्चे को तीन अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है ➖

1) डिंम्बावस्था ➖
इस अवस्था में बच्चे का आकार डिम्ब के आकार का होता है अर्थात बच्चा डिंब की अवस्था में होता है |

2) भ्रूणीय अवस्था ➖
इस अवस्था में डिंब का विकास प्राणी के रूप में होता है |

3) भ्रूण अवस्था ➖
गर्भ में 2 महीने से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था है भ्रूण अवस्था में बच्चे की लंबाई लगभग 20 इंच तक होती है तथा भार 6 से 7 पौंण्ड (1 pond =450gm) होता है |
जिसमें त्वचा, रंग सब कुछ का निर्माण हो जाता है तथा बच्चे की धड़कन को आसानी से सुना जा सकता है और एक व्यवस्थित बच्चे का जन्म होता है |

🎯 शैशवावस्था➖ जन्म से लेकर 5 वर्ष तक

1) लम्बाई और वजन ➖

इस अवस्था में बच्चे का जन्म के समय औसत वजन 6-7 पौण्ड और लम्बाई 20 इंच होती है जिसमें बालिकाओं का वजन और लम्बाईअपेक्षाकृत कम होती है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि बच्चे का वजन औसत ही हो किसी का कम तो किसी का अधिक हो सकता है इस अवस्था में बच्चा अलग-अलग प्रकार से विकास करता है |
अध्ययन की दृष्टि से शैशवावस्था को 0 – 5 वर्ष तक माना जाता है 5 वर्ष के अंत तक बच्चों का वजन 38 स- 40 पौण्ड या 17 – 18 kg हो जाता है |
जन्म के समय बच्चे की लंबाई सामान्यता है 19 – 22 इंच (48-56 CM) होती है जिसमें बालिकाओं की लंबाई कम होती है लेकिन 3-4 चार वर्ष के बाद बालिकाओं की लंबाई बालकों से अधिक हो जाती है |

2) बच्चे का सिर और मस्तिष्क➖
बच्चे का सिर जन्म के समय से शरीर के कुल लंबाई का एक चौथाई (1/4)भाग होता है बच्चे का जन्म के समय मस्तिष्क का वजन लगभग 350 ग्राम होता है |

3) हड्डियां ➖
जन्म के समय बच्चे की हड्डियां मुलायम और लचीली होती है जन्म के समय हड्डियों की कुल संख्या 270 होती है क्योंकि वे छोटी होती हैं और बाद में हड्डियां बड़ी हो तथा कम (206) हो जाती है क्योंकि पहले वह लचीली या मुलायम होती है |
लेकिन लड़कों की हड्डियां अपेक्षाकृत अधिक मजबूत होती है इसलिए उनका विकास जल्दी होता है और वह मजबूत होते चले जाते हैं जबकि लड़कियों की हड्डियां मुलायम और लचीली होती हैं |

4) अन्य कारक ➖

∆ दांत निकलना ➖
बच्चे के दांत सामान्यतः है 5 या 6 महीने में निकल जाते हैं सबसे पहले नीचे के दांत निकलना शुरू होते हैं |

∆ 4 वर्ष तक सारे स्थाई दांत निकल आते हैं जिनकी संख्या 20 होती है |

∆ शिशु की धड़कन प्रारंभ में 140 / मिनट होती है 3-4 वर्ष होने पर 120 / मिनट हो जाती है और 5 वर्ष तक 100/ मिनट हो जाती है |

∆ इस उम्र में यौन अंगों का विकास बहुत मंद गति से होता है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌹🌻🍀🌺🌺🌸🌸🌻🌼🍀🌹

शारीरिक विकास (अध्ययन की दृष्टि से)

शैशवास्था-(0-5)
बाल्यावस्था-(5-12)
किशोरावस्था-(12-18)

बालक के शारीरिक विकास को निम्न अवस्था में बांटा गया है-

1.भ्रूणावस्था- बालक के गर्भधारण से लेकर जन्म लेने तक अवस्था भ्रूणावस्था कहलाती है।

इसे हम निम्नलिखित तीन भागों में बांट सकते हैं
1.डिंबावस्था -डिंब की अवस्था
2.भ्रूणीयावस्था- इसमें डिंब का विकास प्राणी के रूप में होता है।
3. भ्रूणावस्था- यह गर्भ में 2 महीने से जन्म लेने तक की अवस्था है

👉भ्रूणावस्था में शिशु की लंबाई 20 इंच और भार 6 से 7 पौंड होता है ‌।
👉इस अवस्था मे शिशु के त्वचा,हाथ,पैर, सिर, रंग आदि संपूर्ण शरीर का निर्माण हो जाता है।
👉 इस अवस्था में बच्चे की धड़कन को आसानी से सुना जा सकता है

2. शैशवास्था(0-5)

शैशवावस्था में शारीरिक विकास निम्न प्रकार होता है-

वजन-
1.जन्म के समय शिशु का वजन 6 से 8 पौंड होता है अर्थात 2.5 से‌ 3.5 किलो
2. बालिकाओं का वजन अपेक्षाकृत कम होता है
3. 5 वर्ष के अंत में वजन 38 से 40 पौंड हो जाता है अर्थात 17 से 18 किलोग्राम हो जाता है

लंबाई-
1.जन्म के समय शिशु की लंबाई 19 से 22 इंच होती है अर्थात 48 से 56 सेंटीमीटर होती है
2.बालिकाओं की लंबाई अपेक्षाकृत बालकों से कम होती है।
3.तीन‌‌ चार वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई लड़कों से अधिक हो जाती है

सिर और मस्तिष्क –
1. बच्चे का सिर जन्म के समय शरीर की कुल लंबाई का एक चौथाई (1/4)होता है
2. जन्म के समय मस्तिष्क का वजन लगभग 350 ग्राम होता है

हड्डियां-
1. जन्म के समय हड्डियां मुलायम और लचीली होती है जन्म के समय हड्डियों की संख्या 270 होती हैं और बाद में मजबूत और जुड़कर 206 ही रह जाती है
2. बालकों की हड्डियों का विकास अपेक्षाकृत तीव्र होता है क्योंकि वह मजबूत होते हैं जबकि लड़कियों की हड्डियां मुलायम होती है क्योंकि वह संवेदनशील होती है

अन्य
1. दांत-
👉शिशु में 5 से 6 महीने में नीचे के दांत निकलना शुरू हो जाते हैं । अर्थात पहले शिशु के नीचे के दांत निकलते हैं उसके बाद ऊपर के दांत निकलते है
👉4 वर्ष तक सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं जिनकी संख्या 20 होती है अर्थात दूध के दांतो की संख्या 20 होती है।

2.धडकन-
👉शिशु की धड़कन प्रारंभ में 140 प्रति मिनट होती हैं
👉3 से 4 साल तक 120 प्रति मिनट हो जाती है जबकि
👉5 साल तक 100 प्रति मिनट हो जाती है

3. इस उम्र में यौन अंगों का विकास मंद होता है।

Notes by Ravi kushwah

🌺 शारीरिक विकास🌺

1- भूणावस्था – इसके अंतर्गत तीन अवस्थाएं होती हैं

🌺 डिम्बावस्था- डिम्ब की अवस्था

🌺भ्रूणीय अवस्था- डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होता है।

🌺भ्रूणवस्था- इस अवस्था मे गर्भ में 2 महीने से लेकर जन्म तक की अवस्था।

1️⃣भ्रूणावस्था में :-
▫️ लम्बाई- 20 inch
▫️ वजन-6 se 7 पोंड
▫️ बालक का रंग वह शरीर के सभी अंगो का निर्माण हो जाता है। ▫️बच्चे की धड़कन की आवाज आसानी से सुना जा सकता है।

2️⃣शैशवास्था :-
▫️वजन- 6-8 pond/3.50kg
▫️ बालिकाओं का वजन अपेक्षाकृत कम होता है।
▫️5 वर्ष के अंत में 38 – 40 पौण्ड/ 17 se 18 kg..

लम्बाई – जन्म के समय-19 -20inch
(48 -56 cm)
▫️ बालिकाओं की लंबाई कम होती है।
▫️3-4 वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई अधिक हो जाती है।

🌺सिर और मस्तिष्क:- बच्चे का सिर जन्म के समय शरीर के कुल लम्बाई का 1/4 भाग होता है।

▫️मस्तिष्क का वजन- 350 gm

▫️हड्डियाँ:-
जन्म के समय हड्डियां मुलायम और लचीली होती है।
कुल संख्या :- 270 se 300 तक हड्डियां पाई जाती है और बाद में इन हड्डियों की संख्या 205 हो जाती है।

🌺🌺अन्य कारक🌺🌺

▫️5-6 महीने से नीचे के दांत निकलना शुरू हो जाते हैं अर्थात् पहले बालक के नीचे के दांत निकलना शुरु होता है तत्पश्चात ऊपर के दांत निकलते हैं।

▫️ 4 वर्ष तक बालक के सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं अस्थाई दातों की संख्या 20 होती है।

▫️ शिशु की धड़कन प्रारंभ में 140 प्रति मिनट होती है।

▫️ 3 से 4 वर्ष तक 120 प्रति मिनट होती है।

▫️ 5 साल तक सो प्रति मिनट हो जाती है।

▫ इस उम्र में बालक के यौन अंगों का विकास मंद गति से होता है।

🌺NOTES BY
Shashi chaudhary🌺

🌟🌟🌟🌟🌟🌟

🌈शारीरिक विकास🌈 💥(physical development)💥

⭐गर्भावस्था व भ्रूणावस्था

➡️भ्रूणावस्था तीन प्रकार के होते हैं।

(1) डिंम्बावस्था~(डिंम्ब की अवस्था) भ्रूणावस्था की सबसे पहली अवस्था होती है।

(2) भ्रूणीयअवस्था~(डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होता है)

(3) भ्रूणावस्था~गर्भाशय में 2 महीने से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था होती है।

⭐🌾भ्रूणावस्था में शिशु की लंबाई लगभग 20 इंच तक होती है, तथा भार 6 से 7 पौंड तक होती है।

🌻🌾गर्भावस्था के दौरान शिशु में त्वचा, रंग सभी का निर्माण हो जाता है।

⭐🌾बच्चे की धड़कन को आसानी से सुना जा सकता है।

🌈शैशावस्था 💥
~ शैशावस्था में बच्चे का वजन – 6 से 8 पौंड (2.5 से 3.5 kg) तक लगभग होता है।

🌻बालिकाओं का वजन अपेक्षाकृत कम होता है।

🌺5 वर्ष के अंत में @वजन ~ 38 – 40 पौंड (17 – 18 kg) तक होती हैं।
🌻@लंबाई
~जन्म के समय – 19 से 22 इंच ( 48 से 56 cm) तक होती हैं।

🌸बालिकाओं की लंबाई कम होती है जन्म के समय

🌻🌾3 से 4 वर्ष के बाद बालिकाओं की लंबाई अधिक होती है फिर से 12 वर्ष की अवस्था में लड़कियों की आयु कम होती है लड़कों की तुलना में।
⭐In general लड़कियों की उम्र कम होती है।

⭐🌻सिर और मस्तिष्क~

➡️बच्चे का सिर जन्म के समय शरीर की कुल लंबाई का एक चौथाई होता है।

⭐मस्तिष्क का वजन 350 ग्राम होता है।

🌿🌾हड्डियां~
➡️जन्म के समय हड्डी मुलायम और लचीला होती है
⭐कुल संख्या~ 270 जन्म के समय।
फिर बाद में यह 206 रह जाते हैं।

🌻बालकों का अपेक्षाकृत तेज विकास होता है।

🌈अन्य ~कारक🌻

⭐5वें या 6ठें महीने से नीचे के दांत निकलना शुरू हो जाते हैं।

🌿4 वर्ष तक सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं।
⭐अस्थाई दांतो की संख्या 20 होती है।
⭐🌻शिशु की धड़कन प्रारंभ में 140 प्रति मिनट होती है 3 से 4 साल तक 120 प्रति मिनट हो जाती है। 5 साल तक 100 प्रति मिनट हो जाती हैं।

⭐यौन अंगों का मंद विकास होता है।
🙏🌾🌻Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸🌺🙏

🔰 अध्ययन की दृष्टि से शारीरिक विकास🔰
physical development

1 भ्रूण अवस्था :- गर्भधारण की अवस्था होती है यह तीन प्रकार के होते हैं
a डिंबावस्था ( dimb की अवस्था)

b भ्रूणीय अवस्था (डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होना

c भ्रूणावस्था( गर्भ में 2 महीने से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था)

भ्रूण अवस्था 👉 लंबाई 20 इंच तक होती है एवं
वजन 👉6 से 7 पाउंड तक होता है
त्वचा का रंग सबकुछ का निर्माण हो जाता है बच्चे की धड़कन को आसानी से सुना जा सकता है

शैशयावस्था 👉 1 शैशवावस्था में बच्चे का वजन 6 से 8 पौंड 3:00 से 3:30 किलोग्राम होता है
2 बालिकाओं का भजन अपेक्षाकृत कम होता है
3 5 वर्ष के अंत तक 38से40 पौंड या 17 से 18 किलोग्राम होता है
4 जन्म के समय लंबाई 19 से 20 इंच 48 से 56 सेंटीमीटर हो जाता है
5 बालिकाओं की लंबाई कम होती है
6 3 से 4 वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई लड़कों से ज्यादा हो जाती है

सिर और मस्तिष्क:- बच्चे का सर जन्म के समय शरीर की कुल लंबाई का 1/4 भाग होता है

जन्म के समय बच्चे के मस्तिष्क का वजन 350 ग्राम होता है

हड्डियां:- जन्म के समय बच्चे की हड्डियां मुलायम और लचीली होती हैं

जन्म के समय कुल हड्डियां 270 होती है तथा बाद में यह जुड़ कर 206 हो जाती हैं तथा मजबूत हो जाती है

लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में हड्डियों का विकास तेज होता है

अन्य कारक:- 5से 6 महीने के अंदर नीचे के दांत निकलना शुरू हो जाते हैं( सबसे पहले नीचे के दांत ही निकलते हैं)

4 वर्ष तक सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं अस्थाई दांतो की संख्या 20 होती है

शिशु की धड़कन प्रारंभ में 140 / मिनट की होती है 3 से 4 साल तक 120 / प्रति मिनट हो जाती है तथा 5 साल तक 100/ प्रति मिनट हो जाती है

इस समय योन अंगो का विकास होता है

🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏

🔮🌞शारीरिक विकास 🌞🔮

1- भ्रूण अवस्था- इसे तीन अवस्थाओं में बांटा गया है
1- डिंबा वस्था- यह भ्रूण अवस्था की पहली अवस्था है
2- bhruniya अवस्था- इस अवस्था में डिंब का विकास प्राणी के रूप में होता है
3- भ्रूण अवस्था- यह गर्भ में 2 महीने से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था होती है
🖊️ भ्रूण अवस्था में शिशु की लंबाई 20 इंच होती है,
और शिशु का भजन 6 से 7 pound होता है
🖊️ गर्भावस्था में शिशु की त्वचा, रंग सब कुछ निर्माण हो जाता है
🩺 बच्चे की धड़कन को आसानी से सुना जा सकता है

🚺 शैशवावस्था-/
💢 शैशवावस्था में बच्चे का वजन जन्म के समय 6 से 8 पाउंड
(2.5 से 3.6kg) होता है

💢 बालिकाओं का वजन अपेक्षाकृत कम होता है

💢 5 वर्ष के अंत में वजन 38 से 40 पौंड (17 से 18 किलोग्राम ) हो जाता है!

💢 लंबाई- जन्म के समय शिशु की लंबाई 19 से 22 इंच
( 48 से 56 सेंटीमीटर) होती है!
💢 जन्म के समय बालिकाओं की लंबाई कम होती है
💢 3 से 4 वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई अधिक हो जाती है!

💢 सिर और मस्तिष्क-/
बच्चे का सिर जन्म के समय शरीर की कुल लंबाई का एक चौथाई होता है (1/4)
💢 मस्तिष्क का वजन 350 ग्राम होता है

💢 हड्डियां-/
जन्म के समय शिशु की हड्डियां मुलायम और लचीली होती है कुल हड्डियों की संख्या जन्म के समय 270 ya 300 रहती है बाद में जुड़ कर 206 हो जाती है मुलायम हड्डियां मजबूत हो जाती हैं तो कम हो जाती हैं!
💢 सामान्यत: लड़कों की हड्डियां लड़कियों की तुलना में जल्दी विकसित होती है

💢अन्य कारक💢

दांत- /
✨5 से 6 महीने में नीचे के दांत निकलना शुरू हो जाते हैं

✨ 4 वर्ष तक सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं
अस्थाई दांतो की संख्या 20 होती है!

💢 धड़कन-/

✨ शिशु की धड़कन प्रारंभ में 140 /मिनट होती है

✨3 से 4 साल तक 120 /मिनट हो जाती है

✨ 5 साल तक 100/ प्रति मिनट तक हो जाती है

💢 इस उम्र में यौन अंगों का बहुत धीमी गति से विकास होता है!

✍🏻🌞 रितु योगी🌞✍🏻

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Progressive education notes by India’s top learners

💠💠 प्रगतिशील शिक्षा (progressive education) 💠💠 प्रगतिशील शिक्षा शिक्षक की पारस्परिक शैली के लिए एक प्रतिक्रिया है। यह एक शैक्षणिक आन्दोलन है कि समझ सिखाया जा रहा है कि किमत पर सिखने, तथ्यों पर अनुभव को महत्व देता है। 🔷 प्रगतिशील शिक्षा पद्धति को विकसित करने वाले व्यक्ति अमेरिकिन मनोवैज्ञानिक जॉन डी वी है। 🎲 इस शिक्षा का उद्देश्य वैयक्तिक भिन्नता को ध्यान में रखते हुए बालकों का समग्र विकास करना है। ताकि विकास के दौर में कोई भी बालक पीछे ना रह जाए। 🔰 प्रगतिशील शिक्षा में निम्न गुण पाये जाते हैं:- 🎲 करके सिखने पर बल ➖ 🔸हाथ से किये जाने वाले कार्य – इसमें बालक स्वयं समस्या का समाधान निकालने के लिए अभ्यास करके सिखता है। 🔸अनुभाव से सिखना – इसमें बालक अपने अनुभव के माध्यम से समस्या का समाधान निकालता है। 🎲 विषयगत इकाई पर केन्द्रित एकीकृत पाठ्यक्रम – इसमें किसी क्षेत्र विशेष को ध्यान में रखते हुए एकीकृत शिक्षा प्रदान की जाती है। 🎲 शिक्षा में उद्यमिता का एकीकरण – शिक्षा को हमें किसी भी उद्योग से जोड़कर के शिक्षा प्रदान कराते हैं। 🎲 समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिन्तन पर बल – इसमें बालक समस्या के समाधान के लिए उस समस्या के पक्ष और विपक्ष दोनों को ध्यान में रखते हुए ही समस्या का समाधान खोजते हैं। 🎲 सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलो का विकास – इसमें समूह में रह कर के शिक्षा दी जाती है इसमें इस प्रकार से शिक्षा दी जाती जिससे समाज में रहकर के बालक शिक्षा ग्रहण कर सकें और बालक समाज के साथ आपसी सम्बन्धों के साथ शिक्षा ग्रहण कर सकें। 🎲 रटे रटाए ज्ञान के बदले समझदारी और क्रियाकलापों पर आधारित शिक्षा देना – इसमें बालक को रटने के बजाय ऐसा ज्ञान देना चाहिए जिस में बालक अपनी समझ के अनुसार कुछ क्रियाकलाप कर के शिक्षा ग्रहण कर सकें। 🎲 सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक – बालक को सहयोगात्मक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जिस से वह आगे बढ़ सकें। 🎲 सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा – बालकों को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए कि वह समाज में रहकर के अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए निभाई जाएं। 🎲 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्यो के अनुरूप हो – बालक को उसकी निजी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही व्यक्तिगत शिक्षा दी जानी चाहिए जो उसकी जरूरतों को पूरा करने में सहायक हो। 🎲 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक सेवा और सेवा की शिक्षा देने वाली परियोजनाओं को सम्मिलित करना 🎲 विषय सामग्री का चयन करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि इससे भविष्य की किन किन जरुरतों की पूर्ति होगी। 🎲 पाठ्य-पुस्तकों में बंधी बंधाई सामग्री पढ़ाने पर जोर ना देना बल्कि विभिन्न प्रकार की सामग्री पढ़ाने पर बल देना चाहिए। 🎲 बालक को ऐसी शिक्षा दी जाए जो जीवन पर्यन्त चले। 🎲 बालक के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन। 📝📝 Notes by ➖ ✍️ Gudiya Chaudhary 🍀 प्रगतिशील शिक्षा 🍀 🌈 प्रगतिशील शिक्षा के प्रवर्तक *जान डीवी है* प्रगतिशील शिक्षा का का उद्देश्य बालक की शक्तियों का विकास करना है व्यक्तिक विभिन्नता के अनुरूप शिक्षण प्रक्रिया में भी अंतर रखकर इस उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है- ★ प्रगतिशील शिक्षा :- शैक्षिक आंदोलन जोकि निम्नानुसार हैं 🌀 *1 *करके सीखना* ➖ इसमें बच्चा किसी भी कार्य को स्वयं से करता है और प्राप्त होने वाले अनुभवों से सीखता है … 🌀*2 *विषय गत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम*➖ व्यक्तिक विभिन्नता को ध्यान रखते हुए उसी पाठ्यक्रम को पढ़ाना है जिसमें बच्चा रुचि लेता है और उस कार्य को बेहतर तरीके से कर पाता है। 🌀 *3 उद्यमिता का एकीकरण*➖ उद्यमिता अर्थात व्यवसाय बच्चे को किसी ना किसी उद्योग या काम से जोड़ना है जिसमें वह खुद का मालिक हो अर्थात हम यह कह सकते हैं कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जिसमें वह कुछ ना कुछ करके खुद के पैर पर खड़े हो । 🌀 *4 समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल*➖ इसमें बच्चों को किसी भी समस्या में शामिल करना है और फिर उनके विचार मत जाना है इससे उनके अंदर समस्या समाधान करने की क्षमता विकसित होगी कि वह किसी भी समस्या के प्रति आगे आने वाले समय में समस्या समाधान कर पाए । 🌀 *5 सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास*➖ बच्चों को समूह में खेल करवाना , ताकि वह एक दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ,कब किस बात पर कैसी प्रतिक्रिया देना है, आपस में एक दूसरे का सहयोग करना एक दूसरे से बात करना, नैतिक विचारों को समझना, बच्चों को समूह में यह सब कार्य करने के लिए देंगे या खेलने को कहा जाएगा तो वह एक बेहतर सामाजिक कौशल विकास होगा। 🌀 *6 रटे रटाए विद्या के बदले समझ और कार्यन्वन की विद्या को आधार बनाया जाता है* ➖ अर्थात कहने का तात्पर्य है कि बच्चों को हमें बिल्कुल भी रटने पर जोर नहीं देना है बल्कि उन्हें समझ को आधार बनाकर सिखाना है क्योंकि किसी भी चीज को याद करने से वह स्मृति से जल्दी निकल जाती है और जो चीजें हम प्रैक्टिकल या समझ के आधार पर करते हैं वह हमें आसानी से या जल्दी नहीं भूलती हैं । 🌀 *7 सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक*➖ बालको के सहयोगात्मक और सहकारी तकनीकों का विकास करना चाहिए ताकि बच्चा आगे बढ़ सके और सीख सके । 8 👉 *सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा* ➖ कोई भी कार्य हो यदि हम उसे अपनी जिम्मेदारी समझकर करते हैं तो अच्छा होता है इसलिए हमें बच्चों के मन में भी यह सोच पैदा करनी है कि यदि हम उस कार्य को अपना समझ कर करते हैं तो एक ना एक दिन हम उस काम में जरूर बेहतर होंगे इसलिए कार्य को खुद का बास(मालिक) समझकर करना है और घमंड नहीं करना है उस कार्य को हम अच्छे तरीके से करें गे तो निश्चित ही परिणाम परिणाम बेहतर होगा। 9 👉 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्यों के अनुरूप हो । 10 👉 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना चाहिए। 11 👉 विषय सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है कि इससे भविष्य की किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। 12 👉 पाठ्यवस्तु में बधी बधाई सामग्री ना पढ़ाएं विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से पढ़ाने पर जोर दें 13 👉 बच्चों के शैक्षणिक विकास का समय समय पर मूल्यांकन भी करें। 14 👉 ऐसी शिक्षा दें जो बच्चों के जीवन पर्यंत तक काम आए धन्यवाद ✍️ नोट्स बाय प्रज्ञा शुक्ला 📖 📖 प्रगतिशील शिक्षा 📖 📖 (Progressive education) 🌺🌺प्रगतिशील शिक्षा🌺🌺 प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षणिक आंदोलन है, इसके अंतर्गत बच्चों की शिक्षा के संबंधित ही चर्चा की गई है। प्रगतिशील शिक्षा का अर्थ है, कि हम किस प्रकार से बालक को आगे बढ़ा सकते हैं। बालक की शिक्षा को पूर्ण रूप से व्यावहारिक बनाने पर जोर दिया जाता है। बालक रटी रटाई चीजों को एवं किताबी ज्ञान को ही महत्व ना दें। बल्कि अपने दैनिक जीवन से संबंधित विषयों एवं तथ्यों पर भी ध्यान दिया जाए। प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत इन्हीं सभी पहलुओं को महत्व दिया गया है। जिसका वर्णन निम्नलिखित कुछ मुख्य बिंदुओं के आधार पर हैं:- 🍃🍂 करके सीखना~ बालक को किसी भी कार्य को या किसी भी समस्या को स्वयं से करके सीखने में जो अनुभव प्राप्त होते हैं, वह किसी अन्य के द्वारा या देखकर प्राप्त नहीं होते है। अर्थात हम इसको दो बिंदुओं पर आधारित मानते हैं। जो कि निम्नलिखित हैं:- ● हाथ से किए जाने वाले कार्य अर्थात हस्तकला पर जोर दिया जाता है। ● स्वयं से सीखे हुए या प्रयोग किए हुए अनुभवों के आधार पर सीखने पर बल दिया जाता है। 🍂🍃 विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम~ इसके अंतर्गत पाठ्यक्रम को विषय से एकीकृत करके ही पूर्ण कराया जाना चाहिए। क्योंकि अगर एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम नहीं रहेगा। तो बालक विचलित रहेगा, कि उसे शिक्षण प्रक्रिया कहां से प्रारंभ करनी है। और कहां तक पूर्ण करनी है, इसके लिए यह आवश्यक है, कि एक एकीकृत एवं सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम होना चाहिए। 🍃🍂 उद्यमिता का एकीकरण~ उधमिता का अर्थ होता है, कि व्यवसाय से संबंधित है। अर्थात व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से किसी भी रोजगार में लगा रहे हैं। अपना जीवन व्यतीत करने के लिए स्वयं अपने द्वारा ही कार्य कर पाए। उसे अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरी करने के लिए वह अपने द्वारा ही किए गए कार्यों से पूर्ण कर सके। जैसे कि किसी भी प्रकार के छोटे-मोटे उद्योगों के द्वारा बेरोजगार पा सके। स्वयं के ही द्वारा कई उद्योगों व छोटे से कारखानों का निर्माण कर सके। जिससे कि वह अपने जीवन की प्रक्रिया हमें आर्थिक कमी को महसूस ना कर सके। 🍂🍃 समस्या समाधान व आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया जाए~ प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत बालक किसी भी समस्या का समाधान करता है, तो वह उस समस्या के सभी पक्षों पर ध्यान दें। जिससे कि बालक में आलोचनात्मक चिंतन का विकास हो सके। यह समस्या के केवल एक ही पहलू को ना देखें। बल्कि सभी पहलुओं को देखकर किसी भी प्रकार का निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर पाए। 🍃🍂 सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास करना~ बालक में समूह में रहकर कार्य करने की क्षमता भी विकसित की जानी चाहिए। जिससे कि बालक सामूहिक कार्य कर पाए। और सामाजिक कौशलों का भी विकास किया जाना चाहिए। क्योंकि अगर व्यक्ति किसी कार्य को सुव्यवस्थित ढंग से कर तो सकता है। लेकिन अन्य व्यक्तियों के समक्ष में उसे प्रस्तुत नहीं कर पाता है, जिसे हम सामाजिक अलगाव कह सकते हैं। उदाहरण एक व्यक्ति अकेले कमरे में एक बेहतर प्रदर्शन कर सकता है, या वह अकेले ही कमरे में अच्छा नृत्य कर सकता है। लेकिन उसे वही प्रदर्शन या वही नृत्य कुछ लोगों के सामने करने के लिए किया जाए, तो वह नहीं कर पाएगा। अर्थात इसी को हटाने के लिए प्रगतिशील शिक्षा में प्रयास किए गए हैं। 🍂🍃 रटा रटाया ज्ञान के बदले समझदारी व कार्य करना या क्रियान्वयन विद्या को आधार माने~ रटा रटाया ज्ञान अर्थात कहने का अर्थ है, कि केवल किताबी ज्ञान के पर ही बालक की शिक्षा को आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। बल्कि उसके जगह पर उसे उस विषय वस्तु को समझकर व अपने द्वारा किए गए कार्यों में लाना चाहिए। तो उस समस्या का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। क्योंकि वाला कटे हुए ज्ञान की जगह पर किसी कार्य को कर कर सीखेगा, तो उसके लिए अधिक स्थाई ज्ञान हो जाएगा। 🍃🍂 सहयोगात्मक व सहकारी शिक्षण तकनीक~ बच्चों में ऐसी तकनीक या विकसित करें। जो कि उनमें सहयोग की भावना का विकास कर सकें। बालक समूह में कार्य करेंगे तो वह एक दूसरे के साथ सहयोग अवश्य ही करेंगे। अर्थात हमें बच्चों के अंतर्गत एक दूसरे की मदद करने की भावना जागृत किए जाने का कार्य प्रगतिशील शिक्षा के माध्यम से पूर्ण कर सकते हैं। हम बच्चों में सहकारी तकनीक यों को विकसित कर कर उन्हें एक उचित विकास की दिशा दे सकते हैं। 🍂🍃 सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा~ बालकों की शिक्षा में ऐसे विषयों को भी संबंधित हो या जोड़ा जाना चाहिए। जो कि समाज से जुड़े हुए हो, उसी के आधार पर हम उन्हें सामाजिक शिक्षा दे पाएंगे। बच्चों में सामाजिक जिम्मेदारी होना अनिवार्य है, क्योंकि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जीवन व्यतीत करता है, अर्थात उसके अंदर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने की क्षमता होनी चाहिए। इसी तरह लोकतांत्रिक हो पाएगा। अन्य लोगों की भावना को समझ पाएगा, एवं उनके समक्ष भी अपने भाग को प्रस्तुत कर पाएगा। यह सभी प्रावधान हमें प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत मिलते हैं। 🍃🍂 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए, जो निजी लक्ष्य के अनुरूप हो~ प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत शिक्षा दी जानी चाहिए। क्योंकि हर व्यक्ति भिन्न-भिन्न तरीकों से सीखते हैं। व्यक्तियों में व्यक्तिक विभिन्नताएं पाई जाती है। उसी के आधार पर हुआ है। हमें हर व्यक्ति को अलग-अलग शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। जो उस व्यक्ति के लक्ष्य से जुड़ी हुई हो, उसके स्वयं के लक्ष्य के अनुसार होना चाहिए। 🍂🍃 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना~ बालक के पाठ्यक्रम में दैनिक कार्यों को जोड़ा जाना चाहिए, एवं उन कार्यों में समुदाय या सामूहिक कार्यों को करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।षएवं उनमें दूसरों के प्रति सेवा का भाग भी विकसित किया जाना चाहिए। ताकि उनमें सेवा शिक्षा परियोजना का भी विकास हो जाए। इसी तरह बालक के विकास की संपूर्ण प्रक्रिया हो पाएगी। 🍃🍂 विशेष सामग्री का चयन~ बच्चों को इस बात का ज्ञान कराना आवश्यक है, कि वह विषय सामग्री का चयन करने के लिए इस बात पर ध्यान दें, कि भविष्य में इससे किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है, अर्थात उनके भविष्य से संबंधित ही उनको ज्ञान कराने की प्रक्रिया पूर्ण की जाए। ताकि वह भी अपने जीवन के लिए संबंधित कार्य कर सकें। 🍂🍃 पाठ्यवस्तु से संबंधित ज्ञान~ पाठ्यपुस्तक या पाठ्यवस्तु में बनी बनाई सामग्री ना पढ़ाना अर्थात जो पाठ्यवस्तु में दिया हुआ है। बल्कि इसके अलावा विभिन्न प्रकार की शिक्षा सामग्री या नए तरीकों से पढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। ताकि बच्चे कुछ नया सीख सकें। एक ही चीज से सीखने पर व्यक्ति की विशेष वस्तु पर रुचि समाप्त हो जाती है। एवं अगर हम पाठ्य पुस्तक में लिखी हुई चीजों को बच्चे के दैनिक जीवन से संबंधित कार्यों से जुड़े हुए तथ्यों से जोड़ा जाए तो वह उसे रुचि के साथ पड़ेगा। 🍃🍂 शिक्षा ऐसी दे, जो जीवन पर्यंत चले~ प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत बच्चे को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए। जो कि उसे जीवन पर्यंत मददगार साबित हो ना कि ऐसी शिक्षा दें। जो कि सिर्फ तब तक ही बच्चे के साथ रहे जब तक वह पड़ता है, बल्कि उसे पूरे जीवन भर प्रत्येक जगह पर उस व्यक्ति को प्रत्येक समस्या के समाधान में सहायता करें। तभी शिक्षा का सार्थक अर्थ निकलेगा। 🍂🍃 बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन भी करें~ बच्चे के विकास के लिए हमें बच्चे के विभिन्न पहलुओं का विकास करना होगा। तभी हम उसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर पाएंगे। इसके लिए हमें सबसे पहले उसके शिक्षक विकास का मूल्यांकन करना होगा। इस आधार पर हम उस बच्चे की क्षमता का पता लगा सकते हैं, कि उसे किस प्रकार की समस्या है, उसके पश्चात हम उसका उपचार भी कर पाएंगे। 📚📚📘 समाप्त 📘📚📚 ✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻 🌻🌿🌺🙏🏻🌷🌻🌿🌺🙏🏻🌷🌻🌿🌺🙏🏻🌷🌻🌿🌺🙏🏻 💠🌀💠 *प्रगतिशील शिक्षा*( progressive education) 💠🌀💠 प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षणिक आंदोलन है जो 19 वी सदी के अंत में शुरू हुआ था वर्तमान समय में यह विभिन्न रूपों में बनी हुई है। प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए या उनकी रूचि या प्रयास को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए जोर दिया गया है। 🍃🍂 प्रगतिशील शिक्षा आधुनिक शिक्षा पद्धति पर आधारित है *जॉन डीवी को प्रगतिशील शिक्षा पद्धति के पिता माना जाता है* प्रगतिशील शिक्षा एक जटिल पारंपरिक शिक्षा प्रणाली है जो एक विकल्प के रूप में उभर कर आई है प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत बालको का समग्र विकास करना है और इस शिक्षा में बालकों के व्यक्तिगत विभिन्नता को भी ध्यान में रखा गया है ताकि विकास के दौर में कोई भी बालक पीछे ना रह जाए शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न विधियों का प्रयोग भी किया जाता है। 📚 प्रगतिशील शिक्षा में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं➖ 👉🏻1️⃣ *करके सीखने पर बल*➖ 🍃 *हाथ से किए जाने वाले काम* ➖ इसमें बालक स्वयं ही कार्य करता है अर्थात खुद ही समस्या का समाधान निकालने के लिए प्रयास भी करता है और इस प्रकार हाथ से किए जाने वाले काम से वह सीखता है। 🍃 *अनुभवों से सीखना*➖ इसमें बालक विभिन्न अनुभवों के माध्यम से सीखने का कार्य करता है। 👉🏻2️⃣ *विषय गत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम*➖ अर्थात बालकों के व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए ही शिक्षा देना है जिसमें बच्चे की रूचि हो । 👉🏻3️⃣ *उद्यमिता का एकीकरण*➖ अर्थात प्रगतिशील शिक्षा में बच्चे को किसी न किसी व्यवसाय या उद्योग या काम से जोड़ना है जिसमें वह स्वयं कुछ करके भविष्य में अपना जीविकोपार्जन कर सके। 👉🏻4️⃣ *समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल*➖ अर्थात प्रगतिशील शिक्षा में बच्चे को समस्या के समाधान में सम्मिलित करना या समस्या का समाधान निकालने के लिए अवसर प्रदान करना जिससे बालक में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की क्षमता विकसित हो जाए। आलोचनात्मक चिंतन अर्थात समस्या का समाधान निकालते समय बालक किसी भी विषय के पक्ष या विपक्ष चीजों के ऊपर विचार कर सके। 👉🏻5️⃣ *सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास*➖ प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को समूहों में विभाजित करके सामूहिक कार्य जैसे खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाना चाहिए ताकि उनमें एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना विकसित हो जाए। एक दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार , नैतिकता , आदि से बालक में सामाजिक कौशल विकसित होंगे। अर्थात सामाजिक कौशल विकसित होने से बालक समाज के अच्छे नागरिक बन कर समाज के हित के लिए कार्य करेंगे। 👉🏻 *6 रटे रटाए विद्या के बदले समझ और कार्यान्वयन की विद्या को आधार बनाया जाए*➖ अर्थात इसमें हमें बालक को रटन विद्या से दूर रखना है और ऐसी शिक्षा या ज्ञान देना है जिसमें बालक अपने समझ को आधार बनाकर कार्यान्वयन अर्थात कुछ प्रैक्टिकल या क्रियाकलाप करके शिक्षा अर्जित करें। 👉🏻 *7 सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक*➖ इसमें बालक को ऐसी शिक्षा प्रदान करना है जिसमें बालक एक दूसरे का सहयोग करते हुए अधिगम करें और सरकारी शिक्षण तकनीक की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे छात्रों में एक साथ काम या एक छोटे से समूह में विशिष्ट कार्य करने के लिए सक्रियता आए। 👉🏻 *8 सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा*➖ इसमें बालकों को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए कि वह समाज के लिए एक अच्छा नागरिक बनकर समाज में ही रहकर समाज के नियमों का पालन करते हुए अपनी जिम्मेदारियों को समझे । और निष्ठा पूर्ण अपनी जिम्मेदारी को निभाए। 👉🏻 *9 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो व्यक्ति के निजी लक्ष्य के अनुरूप हो*➖ अर्थात इस में बालक को व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो बालक के निजी आवश्यकताओं या जरूरतों को ध्यान में रखते हुए दी जाती है कि बालक को क्या-क्या आवश्यकताएं हैं, यह शिक्षा बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है। 👉🏻 *10 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना*➖ अर्थात इसमें बालकों की शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम ऐसा बनाया जाए जो बालकों की दैनिक जीवन से संबंधित हो और इस पाठ्यक्रम में सामुदायिक सेवा और सेवा शिक्षा परियोजना को भी सम्मिलित करना चाहिए। 👉🏻 *11विषय सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है कि उससे भविष्य की किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी*➖ अर्थात इस में बालकों को अपनी विषय सामग्री का चयन करने का पूर्ण रूप से अवसर दिया जाता है और वह विषय सामग्री का चयन करते समय अपने भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर करता है उसे भविष्य में किस किस चीज की आवश्यकता है। 👉🏻 *12 पाठ्यवस्तु में बंधी बधाई सामग्री ना पढ़ाएं, विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से पढ़ाने पर जोर दें* ➖ अर्थात बालकों को केवल विषय वस्तु से ही ज्ञान लेने पर जोर ना देकर बल्कि विभिन्न प्रकार के शिक्षण सामग्री या विभिन्न तरीकों से पढ़ाने पर जोर देना चाहिए। 👉🏻 *13 प्रगतिशील शिक्षा में शिक्षा ऐसी दे जो जीवन पर्यंत चले*➖ अर्थात बालकों को ऐसी शिक्षा दी जाए जो उनके लिए जीवन पर्यंत काम आए। 👉🏻 *14 बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करें* 📚📚 ✍🏻 Notes by manisha gupta ✍🏻📚 ✍️ प्रगतिशील शिक्षा✍️ 🌸प्रगतिशील शिक्षा के प्रवर्तक जॉन डीवी हैं ।प्रगति शिक्षण में पाठ्यक्रम के रूप में क्रांति के रूप में आए प्रगतिशील शिक्षा को शैक्षिक आंदोलन भी कह सकते हैं आंदोलन का मतलब हुआ जो प्रगति शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को बहुमुखी विकास हो। ंव्यक्तित्व भिन्नता के अनुरूप शिक्षण प्रक्रिया में भी अंतर रखकर इस उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं। 🏵प्रगतिशील शिक्षा बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए है जो कि निम्नलिखित है:- 1. 💎करके सीखना—इसमें बच्चा खुद कार्य करके सीखता है और अपने अनुभव से सीखता है खुद के अंतर्गत कार्य करते हैं। 2. 💎*विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम—* विषय गति कहां पर पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत विभिन्नता को संस्कृत करके एक विकृत करके पढ़ाना चाहिए जिसमें बच्चा रुचि लेता है और उससे बेहतर तरीके से कर पाता है। 3. 💎*उघमिता का एकीकरण—* उद्यमिता का एकीकरण से मतलब है कि बच्चे खुद से कार्य करना सीखे अपना व्यवसाय कर सके अपना बिजनेस से कर सके किसी अभियान के लिए भी कार्य कर सकें ऐसी पढ़ाई हो जो हम किसी न किसी भी विधि में कार्य करें जैसे —वोकेशनल कोर्स 4. 💎*समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल —* अपने बच्चे के समस्या को जानना है उनके अंदर क्या समस्या है समाधान करने की क्षमता विकसित करनी है आलोचनात्मक पक्ष और विपक्ष दोनों होते हैं समझना है उस पर अपनी टिप्पणी दर्ज करना है और उसमें आत्म चिंतन पर बल देना आलोचनात्मक हैं हम दोनों पक्ष रखते हैं सही भी और गलत भी दोनों तरफ से हम अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते हैं। 5. 💎*सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास—* बच्चों से सामूहिक आर्य करवाएंगे जिससे उनके कौशलों का विकास होगा वह एक दूसरे के साथ व्यवहार करना भी सीखते हैं कब किस बात पर कैसी प्रतिक्रिया देना है आपस में एक दूसरे का सहयोग करने से बात करने से नैतिक विचारों से बच्चों को समूह में यह कार्य करने के लिए देंगे खेलने को कहेंगे उनका बेहतर समाजिक कौशल का विकास होगा। 6. 💎 रटे-रटाई विद्या के बदले समाज और कार्य ने 1 की विद्या को आधार बनाया जाता है—* बच्चे को हम बिल्कुल भी रटने पर जोर नहीं देंगे उन्हें समझ के आधार बनाकर दिखाएंगे कोई भी चीज उनको याद करने के नहीं कहेगे क्योंकि उन्हें स्मृति से जल्दी निकल जाती है उनसे हम प्रेक्टीकल और समझ के आधार पर कार्य करें जिससे वह जल्दी भूल नहीं सकते हैं। 7 💎प्रयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक—* बालकों को हम सहकारी शिक्षण तकनीक से उन्हें शिक्षा देंगे जिससे वह प्रगतिशील शिक्षा में स्वास्थ्य माइंड से सीखते हैं और स्वस्थ माइंड से सहयोगात्मक कार्य करने को प्रेरित होते हैं बहुत कम लोग सहयोगात्मक कार्य करते हैं बहुत लोग सिर्फ अपने पर ही सीमित रहते हैं। 8 💎*सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा—* हमें अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए बॉस बनना चाहिए किसी से मांगना नहीं चाहिए खुद को करना चाहिए Boss मतलब जिम्मेदारी लेना चाहिए तब हम बोस बनने। बोस का मतलब है अहंकार नहीं होता है जिम्मेदारी लेना होता है इसलिए कार्य को खुद करना चाहिए घमंड नहीं करना चाहिए अगर हम किसी कार्य को अच्छी तरीके से करते हैं तो उसका परिणाम भी हमें उसका बेहतर ही मिलेगा। 9.💎 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए तो व्यक्ति की निजी लक्ष्य के अनुरूप हो। 10. 💎*दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना चाहिए* प्रगति शिक्षा में हम यह देखते हैं कि कैसे किसी कार्य को करते हैं समझते हैं प्रगतिशील का मतलब है कि बच्चों ने कितना लक्ष्य अपना निर्धारित किया बच्चे उस चीज को जल्दी विकास करते हैं जैसा हम चाहते हैं नहीं तो कोई फायदा नहीं है इसे बचा खुद को कार्य करने का अवसर देते हैं जिससे उनके शैक्षिक विकास होता है। 11.💎 सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है इसे भविष्य की पूर्ति होगी किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी । जो हमारा पढ़ाई है भविष्य की ओर ए पूर्ति करें वह अपनी आवश्यकताओं के लिए समाज की आवश्यकताओं के अनुसार अपने कौशलों में रचनात्मक परिवर्तन कर सके तभी प्रभावी भी होगी। 12.💎पाठ्यवस्तु से संबंधित ज्ञान पाठ्यवस्तु में बंधी बधाई सामग्री ना पढ़ाई विभिन्न प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से बढ़ाने पर जोर दें केवल किताबी कीड़ा ना बनाएं पीपीटी को रटवा ना यह सिर्फ किताब को पढ़ाना यह संतुष्टि नहीं है प्रगतिशील शिक्षा में किताबी लाइन नहीं होनी चाहिए उन्हें वास्तविक जीवन से जोड़कर पढ़ाना चाहिए। 13.💎 शिक्षा ऐसी दे जो जीवन पर्यत चले-प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत बच्चे को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जो उनको जीवन भर इतने मददगार हो जो कि सिर्फ तब तक ही बचे के साथ ना रहे जब तक वह पढ़ते रहे बल्कि उसे पूरे जीवन भर पढ़ते एक जगह पर उससे समस्या समाधान में वह सहायता करें तभी शिक्षा का सार्थक निकलेगा। 14.💎 बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन भी करें- बच्चे के विकास के लिए हमें बच्चे के विभिन्न पहलुओं का विकास करना चाहिए तभी हम उसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर पाएंगे इसके लिए हमें सबसे पहले उसके शिक्षा के विकास का मूल्यांकन करना होगा इस आधार पर हम उस पर बच्चे की क्षमता का पता लगा सकते हैं फिर उसे किस प्रकार की सहायता चाहिए कैसे सहायता देना है हम उस पर उपचार करेंगे। Notes By :-Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🌱🍁प्रगतिशील शिक्षा 🍁🌱 (Progressive education) 🌟 प्रगतिशील शिक्षा के जनक~ “जॉन डी. वी.” 🌲 प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षणिक आंदोलन है इस प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है इस प्रणाली में व्याप्त विभिन्न नेताओं को भी ध्यान में रखा गया है ताकि विकास के दौरान कोई भी बालक पीछे ना रह जाए इसीलिए प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत चीनी सभी पहलुओं को महत्व दिया गया है। 🌟करके सीखना~ इसमें बालक किसी भी कार्य को स्वयं से करके सीखने में जो अनुभव आपके होते हैं उन के माध्यम से सीखता है। इस शिक्षा में हाथ से किए जाने वाले कार्य अर्थात हस्तकला पर अधिक जोर दिया जाता है तथा उससे प्राप्त अनुभवों से बालक सीखता है। 🌟🌱विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम- इसके अंतर्गत पाठ्यक्रम को विशेष एकीकृत करके पूर्ण कराया जाता है। 🌟🌱उद्यमिता का एकीकरण~ “उद्यमिता का अर्थ है कि किसी भी उद्योग से जुडना।” 🌟🌱 समस्या समाधान व आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया जाए ~ प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत बालक समस्या का समाधान करता है तथा समस्या के सभी पक्षों को देखता है और उसमें आलोचनात्मक के बारे में बताता है की क्या सही करने की जरूरत है आलोचनात्मक का अर्थ यह नहीं है कि दोनों में से किसी एक की आलोचना करना अर्थात आलोचनात्मक चिंतन का तात्पर्य है कि उसमें इंप्रूवमेंट करना। 🌟🌱 सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास- प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत बालक को समूह में रहकर कार्य करने की भावना विकसित करना जिससे बालक समूह में कार्य कर सकें और सामाजिक कौशलों का विकास करना जिससे कि वह समाज में रहकर समाज के लोगों के साथ तालमेल उठा सकें। 🌟🌱 रटे रटाए विद्या के बदले समझ को क्रियान्वयन की विद्या को आधार बनाया जाए~ प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत हम बालकों को रतन प्रणाली से दूर रखते हैं और बच्चे को समझ को आधार बनाकर क्रियान्वयन करने पर बल देते है। 🌟🌱 सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीकी:- इसमें बालक को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे बालक एक दूसरे को सहयोग करें। 🌟🌱 सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा- प्रगतिशील शिक्षा में हम बालकों को ऐसी शिक्षा देंगे जिससे वह रह रहे समाज की जिम्मेदारियां को निभाने की क्षमता होनी चाहिए। लोकतांत्रिक भावना का विकास करना जिससे वह समाज मे रह रहे लोगो की भावना को समझ सकें। 🌟🌱 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्य के अनुरूप हो- प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है, हमें उसी के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुरूप ही शिक्षा दी जानी चाहिए। जिससे वह शिक्षा उसके निजी लक्ष्यों सें ज़ुड़ी हो। 🌟🌱 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना- बालक के पाठ्यक्रम में दैनिक कार्य को जोड़ना चाहिए ताकि उनके कार्यों में सामूहिक कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे वह दूसरों के प्रति सेवा की भावना विकसित करें। 🌟🌱 प्रगतिशील शिक्षा में विषय सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है कि इससे भविष्य की किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी उसके अनुसार ही बालक को शिक्षा देते हैं। 🌟🌱 प्रगतिशील शिक्षा में पाठ्यवस्तु में बनी बनाई सामग्री को ना पढ़ाएं विविध प्रकार की शिक्षण सामग्री या तरीके से पढ़ाने पर जोर देते हैं बालक को केवल किताबी ज्ञान ना दें उसे बाहरी वह एक्स्ट्रा ज्ञान दे जिससे बच्चा किताबी कीड़ा ना बन सके। 🌟🌱 प्रगतिशील शिक्षा में बालकों की ऐसी शिक्षा दी जाती है जो उनके जीवन पर्यंत चलती है। बच्चों को नैतिक शिक्षा से जोड़ते हैं तथा बच्चों महमूद सोच को बढ़ावा देकर सृजनात्मकता विकसित करते हैं 🌟🌱 बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करें। 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 ✍🏻NOTES BY:- SHASHI CHOUDHARY 🙏🙏🙏🙏🙏 🔊 प्रगतिशील शिक्षा🔊 प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षणिक आंदोलन है यह 19 वी सदी के अंत में शुरू हुआ था प्रगतिशील शिक्षा कई रूपों में देखने को मिलती है आधुनिक शिक्षा पद्धति के आधार पर जॉन डीवी को प्रगतिशील शिक्षा का पिता माना जाता है प्रगतिशील शिक्षा के विषय में कुछ बिंदु इस प्रकार हैं 1- करके सीखना-/ करके सीखने के अंतर्गत हाथ से किए जाने वाले काम और अनुभवों से सीखना , बालक समस्या का समाधान पाने के लिए वह खुद से उपाय ढूंढता है और खुद से करने पर उसे अनुभवों की प्राप्ति भी होती है जिससे वह सीखता है 2- विषय गत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम 3- उद्यमिता का एकीकरण 4- समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल देना-/ किसी भी वस्तु पर उसके पक्ष या विपक्ष के बारे में सोचना 5- सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास करना 6 रटी रटाई विद्या के बदले समझ और कार्यान्वयन की विद्या को आधार बनाया जाए रटी रटाई शिक्षा नहीं दी जाए क्योंकि ratan विद्या स्थाई नहीं होती समझकर सीखा हुआ स्थाई होता है 7- सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक 8- सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा देनी चाहिए इसके अंतर्गत बच्चे को समाज के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए use अपने आप को समाज के प्रति जिम्मेदार होकर कार्य करना चाहिए बच्चे के अंदर लोकतांत्रिक भावना का विकास करना जिससे वह समाज में लोगों की भावनाओं को भली-भांति समझ सके 9- व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्य के अनुरूप हो 10- दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना चाहिए सामुदायिक से सहयोग की भावना और सेवा शिक्षा से सेवा का भाव जागृत हो 11- विषय सामग्री का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इससे भविष्य की किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए जो उन्हें भविष्य में भी काम आए 12- पाठ्यवस्तु में बंधी बंधाई सामग्री ना पढ़ाएं विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से बढ़ाने पर जोर दें बच्चों को पाठ्यपुस्तक तक ही सीमित ना रखें उन्हें विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्रियों या विभिन्न तरीके से पढ़ाएं जिससे कि उन्हें व्यवहारिक जीवन का ज्ञान भी मिले उन्हें ऐसा ज्ञान दे जो उनके जीवन में हर क्षेत्र में काम आए 13- शिक्षा ऐसी दे जो जीवन पर्यंत चले- बच्चों को ऐसे शिक्षा देनी चाहिए जो जीवन पर्यंत चलें वह किताब तक सीमित ना रहे जिसे वह भूले ना ऐसी शिक्षा जो उन्हें हमेशा याद रहे और वह अपने जीवन में अपने व्यवहार में अपनाकर एक श्रेष्ठ नागरिक बन सकें 14- बच्चों के शैक्षणिक विकास का Notes by✍🏻 ✍🏻ritu yogi ✍🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 प्रगतिशील शिक्षा प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षिक आंदोलन है इसके जनक जॉन डीवी है प्रगतिशील शिक्षा में निम्न बातों पर जोर दिया गया है 1.करके सीखना -जो काम हाथ से किया जाता है जिसे हम खुद करते हैं तो उससे सिखा हुआ ज्ञान अधिक स्थाई रहता है ,अनुभव से सीखना भी अधिक स्थाई रहता है। 2.विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम होना चाहिए 3.बालकों को उद्यमिता का एकीकरण अर्थात व्यवसायिक शिक्षा दी जानी चाहिए (बालकों की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उनमें भविष्य में जीवन निर्वाह करने के लिए आवश्यक कौशल विकसित करें। जिससे कि वह अपना भविष्य का गुजारा आसानी से कर सकें। 4. इसमें समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया गया (बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि उसमें समस्या समाधान करने का कौशल विकसित हो और बालक की आलोचनात्मक क्षमता का विकास अर्थात किसी वस्तु के पक्ष और विपक्ष के बारे में चिंतन करने में सक्षम हो) 5.सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास हो (शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि बच्चों की समूह में कार्य करने की आदत का विकास हो) 6.रटी रटायी विद्या के बदले समझ और क्रियान्वयन की विद्या को आधार बनाया जाए अर्थात बालकों को ऐसी शिक्षा दी जाए जो केवल रटने पर आधारित नहीं होनी चाहिए वह किसी कार्य को समझकर करने वाली होनी चाहिए 7.सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक होनी चाहिए अर्थात बालकों की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि बालकों में आपसी सहयोग की भावना उत्पन्न हो या भावना का विकास हो 8.सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा अर्थात बालकों की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि बालक स्वयं अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार बने।वह अपना बोस स्वयं बने। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि किसी को ज्यादा महत्व नहीं दे सबको बराबर महत्व दिया जाना चाहिए और निष्पक्ष होनी चाहिए। 9.व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्य के अनुरूप हो 10.दैनिक पाठ्यक्रम में सामूहिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना 11.विषय सामग्री का चयन करते समय यह ध्यान रखना अनिवार्य है कि इससे बच्चों की भविष्य की किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होंगी अर्थात विषय सामग्री उनको भविष्य में काम आएगी या नहीं आएगी 12.पाठ्यवस्तु में बंधी बंधाई सामग्री को ना पढ़ाया जाए बल्कि विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से पढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। 13.शिक्षा ऐसी दे जो जीवन पर्यंत चले 14.बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करें ।अध्यापक को समय-समय पर बच्चों के सिखे हुए ज्ञान को जांच करते रहना चाहिए की उसने कितना सीखा। Notes by Ravi kushwah… 🌈प्रगतिशील शिक्षा🌈🌻 (progressive education)🔥 🌈प्रगतिशील शिक्षा में हमेशा बच्चों को आगे बढ़ाने की बात आते हैं 💥प्रगतिशील शिक्षा के प्रवर्तक जॉन डीवी है अतः हम बच्चों को कैसे आगे बढ़ाए ।नीचे दिए गए निम्नलिखित बिंदु अंकित किया गया है 🌾⭐करके सिखना–इसमें बच्चों को हाथ से किए जाने वाले काम तथा अनुभव से किया गया काम को करने के लिए प्रेरित करते हैं। 🌾⭐विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम–इसमें हम बच्चों को विषय से जुड़ी हुई बात को पढ़ाते हैं। 🌾⭐उद्यमिता का एकीकरण करना- बच्चों को इस प्रकार का शिक्षा देंगे ताकि बच्चे अपने दैनिक जीवन में कुछ ना कुछ कार्य करके अपना भरण- पोषण कर सके। 🌾⭐समस्या समाधान तथा आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया जाए। 🌾⭐बच्चों में सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलो का विकास करना चाहिए ताकि बच्चे में एक दूसरे से बातचीत करने का अवसर मिले। तथा समाजिक कौशल का विकास हो सके। 🌾⭐रटी रटाई ज्ञान के बदले समझदारी एवं कार्यन्वन की विद्या को आधार बनाया जाय। 🌾⭐बच्चों को सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा दी जानी चाहिए। ताकि बच्चा सामाज में समायोजन कर सके । और स्वतंत्र रूप से सामाजिक कार्य को जिम्मेदारी के साथ पूरा कर सके। 🌾⭐सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक-इसमें बच्चों को दूसरों के प्रति सहयोग की भावना जागृत करने पर बल देते हैं। 🌾⭐व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो व्यक्ति के निजी लक्ष्य के अनुरूप हो। 🌾⭐दैनिक पाठ्यक्रम मैं समुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना। 🌾⭐विषय सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है कि भविष्य की किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। 🌾⭐पाठ्यवस्तु में बंधी बंधाई सामग्री न पढ़ाए , विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से पढ़ाने पर जोर दें। 💥🌻शिक्षा ऐसी दें जो जीवन -पर्यंत चले। 🌸🌺बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करें। 🙏🌻🌸💥Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌸💥🌺🙏 🔆 *प्रगतिशील शिक्षा*🔆 प्रगतिशील शिक्षा एक तरह का शैक्षिक आंदोलन है। शिक्षा के क्षेत्र में हम शिक्षा को बढ़ते क्रम में यह बढ़ते ग्राफ के रूप में देखना चाहते हैं जिसके लिए हम प्रगतिशील शिक्षा के निम्न बिंदुओं को देखते हैं। ⚜️ *1करके सीखना*➖ ▪️ जो हाथ से पूरे किए जाने वाले कार्य हैं। ▪️ अनुभव से सीखना जब हम किसी कार्य को करते हैं तो उसके अनुभव से सीखते हैं मतलब हम खुद से उससे कार्य को किए हैं किसी से देख व सुनकर नहीं। ⚜️ *2 विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम*➖ ▪️एकीकृत पाठ्यक्रम पढ़ाया जाए लेकिन उसमें विषयगत ईकाईयों का भी ध्यान रखा जाए जैसे यदि कोई विषय या इकाई है उसे ही संश्लेषित करके या एकीकृत करके पाठ्यक्रम में रखा जाए। ⚜️ *3 उधमिता का एकीकरण*➖ ▪️शिक्षा ऐसी हो जिसमें हर व्यक्ति पूरे तरीके से व्यवसाय को प्राप्त कर पाए या किसी न किसी उधमिता को या व्यवसाय को या जो भी रोजगार है उससे जुड़ पाए और उसमें काम कर पाए । ⚜️ *4 समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल*➖ ▪️किसी भी चीज के पक्ष और विपक्ष दोनों को ही समझना और उस पर अपनी टिप्पणी करना आलोचनात्मक चिंतन है। ▪️हम किसी भी चीज की आलोचना उस चीज में बदलाव के लिए करते हैं या उसके प्रति अपनी सोच में बदलाव लाते हैं। ▪️आलोचना से यह मालूम चलता है कि कार्य कहां तक हुआ है और उसे कहां तक पूरा करना है अर्थात किसी भी वस्तु या कार्य के हर एंगल से कार्य के बारे में पता चलता है। ▪️आलोचना चिंतन प्रगतिशील शिक्षा में होना बहुत आवश्यक है यदि यह चिंतन नहीं होगा तो हम किसी भी चीज की केवल एक ही पक्ष को जान पाएंगे दूसरे पक्ष को नहीं और परिणाम स्वरूप हम एक अच्छे व्यक्ति नहीं बन पाएंगे और किसी भी काम में प्रगति नहीं कर पाएंगे। ⚜️ *5 सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास*➖ ▪️यदि किसी बच्चे को प्रगतिशील शिक्षा दी जा रही है तो यह जरूरी होना चाहिए कि हम सामूहिक कार्य करें और सामाजिक कौशल का विकास करें। ▪️कोई भी व्यक्ति अकेले प्रगति नहीं कर सकता है यदि फिर भी प्रगति हुई है तो जरूरी नहीं है कि उसका समाज में एक बेहतर स्थान भी होगा ▪️यदि शिक्षा का उपयोग समूह में व समाज के साथ बेहतर रूप से अंतः क्रिया कर पाते हैं तो इसका मतलब हम अपनी शिक्षा में बेहतर रूप से प्रगति कर रहे हैं। ▪️यदि सामाजिक अंतः क्रिया ही नहीं होगी तो वह किसी भी क्षेत्र में वह शिक्षा बेहतर साबित नहीं होगी। इसीलिए प्रगतिशील शिक्षा में सामाजिक कौशल का विकास करना सामूहिक कार्य में बच्चों को आगे बढ़ाना होगा। ▪️जब हम समूह में कार्य करते हैं तो हमें यह ज्ञात हो जाता है कि हम ज्ञान प्राप्ति में कहां तक सीख पाए है और क्या-क्या सुधार या सीखने की आवश्यकता अभी और है। ⚜️ *6 रटी रटाई ज्ञान के बदले समझदारी व कार्यान्वयन ज्ञान को आधार बनाया जाए*➖ ▪️प्रगतिशील शिक्षा के अनुसार जो शिक्षा है वह केवल किताबी ज्ञान पर या रटे रटाए ज्ञान पर आधारित ना हो बल्कि वह समझी हुई और उस ज्ञान का प्रयोग आप अपने सीखे हुए किसी भी कार्य में कर पाए। ▪️यदि कोई भी चीज रटी रटाई है या उसके भाव को हम नहीं समझ पा रहे हैं तो ऐसी शिक्षा का कोई मतलब नहीं है और वह उसी क्षेत्र तक सीमित रह जाती है। ▪️लेकिन जब चीज समझी जा रही है लेकिन उसका क्रियान्वयन उपयोग नहीं किया जा रहा तो उस ज्ञान का भी कोई अर्थ नहीं है। ⚜️ *7 सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक*➖ ▪️सहयोगात्मक व सहकारी शिक्षण तकनीक छात्रों को एक स्वस्थ मानसिक रूप से सीखने पर वह बड़े स्तर पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। ▪️”Sharing is caring” यदि हम अपने कार्य में दूसरों का भला या सहयोग कर रहे हैं तो हम अपने कार्य में प्रगति कर रहे हैं जबकि इसके विपरीत यदि मदद या सहयोग नहीं कर रहे हैं तो हम अपने कार्य में या ज्ञान में संकीर्ण होते चले जाते हैं। ▪️जब अपने कार्य में दूसरों की सहायता की जाती है तो दूसरों की प्रवृत्ति के साथ-साथ स्वयं की भी प्रगति होती जाती है। ⚜️ *8 सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा*➖ ▪️जो व्यक्ति अपनी सामाजिक जिम्मेदारी संभालते हैं तो अवश्य ही प्रगति करते हैं। ▪️जब हम स्वयं अपने आप को किसी कार्य को करने के प्रति अपनी सोच में मालिक बनते हैं तो उस कार्य को हम अपनी जिम्मेदारी, समय पर, ईमानदारी, लगन और पूरी सत्य निष्ठा, प्रायिकता अनुसार व संतुलन के साथ पूरा करते हैं। तथा कभी भी कार्य के गलत होने पर उस गलती को स्वीकारते हैं और आगे सही प्रकार से करते हैं। ▪️इसीलिए हमें अपनी समाज की चीजों के प्रति स्वयं मालिक बनना है और जो भी सामाजिक जिम्मेदारी है उन्हें पूरी तरह से पूरा करना है। ⚜️ *9 व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्य के अनुरूप हो*➖ ▪️व्यक्तिगत शिक्षा ऐसी दी जाए जो व्यक्ति के निजी या स्वयं के लक्ष्यों को पूरा करें। ▪️हर व्यक्ति अलग अलग है उनकी अलग अलग जरूरत है इसीलिए व्यक्ति की जरूरत के हिसाब से वह उनके लक्ष्य के हिसाब से शिक्षा दी जाए। ▪️यदि बच्चों के लक्ष्य को ध्यान में ना रख कर शिक्षा देंगे तो बच्चा उस कार्य में प्रगति नहीं कर पाएगा क्योंकि वह बच्चे का लक्ष्य ही नहीं है तो ना ही बच्चे का उसमें मन लगेगा और ना ही शिक्षा प्राप्त कर प्रगति कर पाएगा। जिस व्यक्ति की जिस कार्य क्षेत्र में विशेषता या क्षमता है यदि उसी विशेषता या क्षमता में शिक्षा दी जाए तो वह व्यक्ति उस कार्य में बहुत बेहतर रूप से प्रगति हासिल कर पाता है। ⚜️ *10 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक शिक्षा व सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना*➖ ▪️दैनिक पाठ्यक्रम हमारे समाज से व समाज समुदाय के लिए जो सेवा परियोजनाएं या सहयोग है उससे जुड़ा हुआ होना चाहिए ⚜️ *11 विषय सामग्री का चयन करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है या अनिवार्य है कि इससे भविष्य की किन-किन आवश्यकता की पूर्ति होगी*➖ ▪️विषय वस्तु इस प्रकार की ना हो कि वह केवल तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति करें बल्कि विषय सामग्री का चुनाव करते समय इस तरह का हो कि वह भविष्य में समाज के विभिन्न कौशलों के विकास में भी सहायक हो या किसी भी कार्य को करने में सहायता करें। ⚜️ *12 पाठ्यवस्तु में बंधी बंधाई सामग्री ना पढ़ाई जाए बल्कि विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीके से पढ़ाने पर जोर दें*➖ ▪️हर प्रकार के अनुभव, स्थिति, शिक्षण सामग्री या हर प्रकार के शिक्षण तौर-तरीकों को पाठ्यवस्तु या किताबों से नहीं लिखा जा सकता। ⚜️ *13 शिक्षा ऐसी दे जो जीवन पर्यंत चले*➖ ▪️जब भी कुछ सिखाया जाए या शिक्षा दी जाए कि उसका प्रयोग हम अपने जीवन के किसी भी परिस्थिति या किसी भी स्थिति में कर पाए अर्थात व जीवन पर उपयोगी हो या काम में आए। ⚜️ *14 बच्चे के अंदर जो शैक्षिक विकास है उसका समय समय पर मूल्यांकन भी करे*➖ ▪️बच्चे के बौद्धिक या मानसिक विकास का पता लगाने के लिए समय समय पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए। ✍🏻 *Notes By-Vaishali Mishra* ✍️ शारीरिक विकास✍️ (physical Development) 💐 गर्भावस्था व भ्रूणावस्था 💐 इसके अंतर्गत तीन अवस्थाएं होती है जिसमें गर्भ के अंदर ही बालक का विकास होता है जब बालक मां के गर्भ में ही रहता है। 💎 डिंबावस्था- डिंब की अवस्था कहते हैं। 💎भ्रूणीय अवस्था- इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होता है। 💎भ्रुणावस्था- इस अवस्था में गर्भ में 2 महीने से लेकर जन्म तक की अवस्था होती है। 🌸 भ्रूणावस्था में बच्चे की लंबाई- 20 इंच ,वजन- 6-7 पौण्ड। 💎 बालक का रंग त्वचा एवं शरीर के सभी अंगो का निर्माण गर्भ में ही हो जाता है। 💎 बच्चे की धड़कन की आवाज आसानी से सुना जा सकता है। 🌴 अध्ययन की दृष्टि से 🌻💐 शैशवस्था🌻💐 ःशैशवावस्था की उम्र 0 से 5 साल तक होती है। वजन -6-8 पोण्ड, (2.5-3.5kg) बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा वजन कम होती है। 5वर्ष के अन्त में 38-40 पोण्ड(17-18kg) 🌴लम्बाई जन्म के समय-19-22 Inch(48-56cm) बालिकाओं की लंबाई भी बालकों की अपेक्षा कम होती है। 🌴3-4 वर्ष के बाद लड़कियों की लंबाई लड़कों की अपेक्षा अधिक हो जाती है। 🏵 सिर और मस्तिक 🏵 जन्म के समय बच्चे का सिर का विकास उसके शरीर के विकास का एक चौथाई भाग (1/4) होता हैं। 🌴 बच्चे के मस्तिष्क का वजन-350gm 🏵 हड्डियां🏵 जन्म के समय बालक की हड्डियां मुलायम व लचीले होती हैं। 🌴जन्म के समय बच्चे में 270-300 हड्डियां पाई जाती हैं और बाद में हड्डियों की संख्या 206 हो जाती है। 🌴हड्डियों का विकास लड़कों में अपेक्षाकृत लड़कियों में तीव्र होता है। 🏵अन्य कारक 🏵 बालक के विकास में से संबंधित कुछ अन्य कारक है जो कि निम्नलिखित हैं। 🌴5 या 6 महीने से बच्चे के दांत निकालना शुरू हो जाते हैं बच्चों में सबसे पहले नीचे के दांत आते हैं। 🌴4 वर्ष तक बच्चे के सारे अस्थाई दांत निकल जाते हैं इन अस्थाई दातों की संख्या 20 होती है। 🌴 शिशुओं की धड़कन प्रारंभ में 140 /मि.होती हैं। 🌴3 से 4 वर्ष तक 120/मि.हो जाती हैं। 🌴5 वर्ष तक 100/मि. हो जाती हैं। 🌴 शैशावस्था में बच्चों में यौन अंगों का विकास मंद गति से होता है। 🌴 शैशवावस्था में बच्चे का संपूर्ण विकास सबसे तीव्र गति से होता है। Notes By :-Neha Roy🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 *♨️प्रगतिशील शिक्षा क्या है?♨️* प्रगतिशील शिक्षा आधुनिक पद्धति पर आधारित है। *अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी* को प्रगतिशील शिक्षा पद्धति के पिता माना जाता हैं प्रगतिशील शिक्षा एक जटिल पारंपरिक शिक्षा पद्धति है, जी एक विकल्प से उभरकर आई हैं। इस प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है प्रगतिशील शिक्षा (प्रोग्रेसिव एजुकेशन) एक शैक्षणिक आन्दोलन है जो उन्नीसवीं सदी के अन्त में शुरू हुआ था। वर्तमान समय में यह विभिन्न रूपों में बनी हुई है। ‘प्रगतिशील’ शब्द इस शिक्षा को 19वीं शताब्दी के पारम्परिक यूरोपीय-अमेरिकी पाठ्यक्रम से अलग करने के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रगतिशील शिक्षा की जड़ें वर्तमान अनुभव में निहित हैं। *⚜️प्रगतिशील का अर्थ_⚜️* उन्नति की राह पर अग्रसर या जो उन्नति कर रहा हो अधिकांश प्रगतिशील शिक्षा कार्यक्रमों में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं- 🌈करके सीखने पर बल – हाथ के करके पूरा किए जाने वाले परियोजनाएँ, अनुभवात्मक सीख । 🌈विषयगत इकाइयों पर केन्द्रित एकीकृत पाठ्यक्रम का निर्माण करना। 🌈शिक्षा में उद्यमिता का एकीकरण करना। 🌈समस्या समाधान तथा आलोचनात्मक सोच पर बल देना। 🌈समूह कार्य तथा सामाजिक कौशलों का विकास करना। 🌈रटे-रटाए ज्ञान के बजाय समझदारी एवं क्रिया (ऐक्शन) को शिक्षा का लक्ष्य मानना। 🌈सहयोगात्मक (Collaborative) और सहकारी शिक्षण (cooperative learning) परियोजनाएं। 🌈सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र के लिए शिक्षा पर बल देना। 🌈अत्यन्त व्यक्तिगत शिक्षा जो प्रत्येक व्यक्ति के निजी लक्ष्यों के अनुरूप हो। 🌈दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक सेवा और सेवा की शिक्षा देने वाली परियोजनाओं को सम्मिलित करना। 🌈विषय सामग्री का चयन करने के लिए इस बात पर विचार करना कि भविष्य की समाज में किन कौशलों की आवश्यकता होगी। 🌈पाठ्यपुस्तकों में बंधी-बंधायी सामग्री पढ़ने पर जोर न देना बल्कि विविध प्रकार की शिक्षण सामग्री पढ़ने पर बल देना। 🌈जीवनपर्यन्त शिक्षा तथा सामाजिक कौशलों पर बल देना। 🌈 बच्चे के शैक्षणिक विकास के मूल्यांकन के लिए उसके प्रोजेक्ट एवं प्रस्तुतियों का मूल्यांकन करना। *🙏🏻धन्यवाद्🙏🏻* 📚✍🏻 *Notes by~* *Mनिषा Sky Yadav* 🔆 प्रगतिशील शिक्षा या शैक्षिक आंदोलन ➖ प्रगतिशील शिक्षा के जनक जॉन डीवी को माना जाता है प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य है कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाए जो उनको प्रगति की ओर अग्रसर करें | प्रगतिशील शिक्षा व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुरूप शिक्षण प्रक्रिया में अंतर को रखते हुए इस उद्देश्य को पूरा करता है कि बच्चे का किस प्रकार से चहुमुखी या सर्वांगीण विकास हो सकता है | प्रगतिशील शिक्षा मुख्य बिंदुओं पर जोर देता है ➖ 🎯 करके सीखना ➖ 1) हाथ से किए जाने वाले कार्य जैसे चित्रकला ,हस्त कला, मूर्तिकला ,आदि | 2) अनुभव से सीखना | अर्थात किसी कार्य को प्रत्यक्ष रूप से या अनुभव के द्वारा किया जाता है तो उसमें जो ज्ञान प्राप्त होता हवह देखने या सुनने से नहीं मिलता है | 🎯 विषयगत ईकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम ➖ पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो एकीकृत हो अर्थात जो भी पढ़ाया जाए वह अलग अलग प्रकार से संश्लेषित करके पढ़ाया जाए | 🎯 उधमिता का एकीकरण➖ व्यवसाय का एकीकरण करना अति आवश्यक है जिसे भी अपने आप में एक सफल व्यक्ति के रूप में साबित हो सके | अर्थात ऐसी शिक्षा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति पूरे तरीके से व्यवसाय के लिए तैयार हो सके अर्थात वह किसी ना किसी रूप में उधमिता के आधार पर व्यवसाय या रोजगार से जुड़ पाए और अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके यही प्रगतिशील शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है | 🎯 समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल ➖ किसी भी समस्या के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों पर ध्यान देना आलोचनात्मक चिंतन है किसी समस्या के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को देखते हुए तथा उसका समाधान करना चाहिए | अर्थात स्वयं को विपरीत परिस्थिति में रखकर भी सकारात्मक परिस्थिति में उस समस्या का समाधान खोजना चाहिए ना कि उस परिस्थिति के नकारात्मक पहलू पर ध्यान देना चाहिए | 🎯 बच्चे के सामूहिक कार्य और समाजिक कौशलों का विकास करना ➖ अर्थात जो बच्चा प्रगति कर रहा है उसमें सामाजिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास करना है जो प्रगतिशील शिक्षा का महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि बच्चों के ज्ञान का दूसरों के साथ बेहतर तरीके से साझा होना अति आवश्यक है जिसके लिए सामाजिक कौशल का विकास करना अति महत्वपूर्ण है | 🎯 रटे रटाए ज्ञान के बदले समझ आदि कार्यान्वयन को आधार बनाया जाए ➖ अर्थात प्रगतिशील शिक्षा कहता है कि स्वयं की समझ को विकसित करते हुए समझते हुए उसका क्रियान्वयन करना अति आवश्यक है ऐसा नहीं होगा तो जो ज्ञान है उसका कोई अर्थ नहीं होगा | जैसे कोरोना काल में लोगों को मास्क लगाने और सेनेटाइजर का प्रयोग करने की समझ तो है लेकिन उसके क्रियान्वयन नहीं करते हैं उनको पता तो है मास्क लगाना पर लगाते नहीं है अर्थात वह उनके क्रियान्वयन में नहीं है | 🎯 सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीक ➖ क्योंकि हम प्रगतिशील शिक्षा को आगे बढ़ा पाएंगे जब बच्चे का स्वास्थ्य मष्तिक हो और उसमें सहयोगात्मक शिक्षण की भावना हो | और यदि ऐसा नहीं होगा तो उसका मस्तिष्क संकीर्ण हो जाएगा विश्लेषित नहीं हो पाएगा | 🎯 सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा ➖ यदि बच्चों में सामाजिक जिम्मेदारी की भावना का विकास करके और लोकतंत्र की जिम्मेदारी को बताया जाए तो वे प्रगति की ओर अग्रसर होंगे और यदि ऐसा नहीं होगा तो उनकी प्रगति नहीं होगी और प्रगतिशील शिक्षा नहीं हो पाएगी | 🎯 व्यक्तिगत शिक्षा जो प्रत्येक व्यक्ति के निजी लक्ष्यों के अनुरूप हो ➖ अर्थात बच्चों को ऐसी शिक्षा देना जो खुद के एवं दूसरों के जीवन की प्रगति में कार्य करें और उनको व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो उनके निजी लक्ष्यों को पूरा करें | अर्थात शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उनकी आवश्यकता को पूरा करें और उनके कार्यों के अनुरूप हो यदि ऐसा नहीं होगा तो प्रगतिशील शिक्षा नहीं हो पाएगी | 🎯 दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और शिक्षा परियोजना को शामिल करना ➖ अर्थात बच्चों को पाठ्यक्रम के द्वारा यह बताना कि हम एक दूसरे की सहायता करके अपने आप को कैसे निखार सकते हैं और उनको अपनी शिक्षा परियोजना में शामिल करना,तथा बच्चे उस रूप में प्रगति करें जो उनके लिए आवश्यक हो इसके लिए जरूरी है कि वह खुद से अनुभव करके सीखें | 🎯 विषय सामग्री का चयन करते हुए समय ध्यान रखना कि इससे भविष्य के किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी ➖ विषय सामग्री का चयन करने के लिए इस बात का चयन करें कि उनको भविष्य में किन-किन कौशलों की आवश्यकता है अर्थात उनकी आवश्यकता के साथ-साथ उनको भविष्य में किन-किन कौशलों की आवश्यकता होगी ऐसा कौन सा कौशल उनकी आवश्यकता की पूर्ति करता है और उनकी प्रगति में सहायक है क्योंकि तत्कालिक आवश्यकता की पूर्ति से भविष्य की आवश्यकता को पूरा नहीं किया जा सकता है | 🎯 पाठ्यवस्तु में बंधी बधाई सामग्री ना पढ़ाएं विविध प्रकार की शिक्षण सामग्री या तरीके से बढ़ाने पर जोर दें ➖ अर्थात शिक्षा के तौर तरीके, विधियां अलग-अलग सोच के हो सकते हैं उन्हें किताबी कीड़ा ना बनाएं उन्हें अपने अनुभव के आधार पर तथा उदाहरणों के साथ शिक्षण दें जो उनकी प्रगतिशील शिक्षा का एक भाग है | 🎯 ऐसी शिक्षा दें जो जीवन पर्यंत चले ➖ अर्थात ऐसी शिक्षा देना जो उनके तत्कालिक जीवन को नहीं बल्कि जीवन पर्यंत काम आए शिक्षा ऐसी हो जो उनके प्रत्येक पहलू को निखारे | 🎯 बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करें ➖ बच्चों का शैक्षणिक विकास का समय-समय पर अवलोकन करके उनका मूल्यांकन करते रहे जिससे उनके जीवन में प्रगति हो सके| 𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚 🌹🌻🌻🌻🌸🌸🌸🌺🌺🌺🍀🍀🍀🌹 🌻👩🏻‍🎓 *प्रगतिशील शिक्षा Progressive education* 👩🏻‍🎨🌻 🍁🦚🍁 *प्रगतिशील शिक्षा*➖ प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य बालक की शक्तियों का विकास करता है। भिन्न भिन्न रूचियों और योग्यताओ के बालको में विकास भिन्न भिन्न तरह से होता है। इसलिए अध्यापक को बालक की योग्यताओ पर नजर रखते हुए उसे निर्देशित करते है। जिसके अंतर्गत प्रोजेक्ट विधि, समस्या समाधान विधि, क्रिया कार्यक्रम जैसी शिक्षण पद्धतियों को अपनाया जाता है। 🍅 *प्रगतिशील शिक्षा ( शैक्षिक आदोलन) के विषय में कुछ बिंदु निम्न है*:➖ 🎀 *करके सीखना*:- 🍹 हाथ से किए जाने वाले काम :- 👉 इसमें बालक के स्वयं करके सीखने की प्रक्रिया पर जोर दिया जाता है। 🍹 अनुभव से सीखना:- 👉 इसमें बालक के जीवन की क्रियाओं के चारों ओर से सब विषय इस तरह बांध देता है कि क्रियाओं/ अनुभव के द्वारा उनकों ज्ञान प्राप्त हो सकें। 🎀 *विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठयक्रम*:- 👉 इसमें एकीकृत शिक्षा (integrated education) देना है, लेकिन विषय को ध्यान में रखते हुए। जो भी विषयगत इकाई/ किसी topic(विषय) से जुड़े हो/ कोई area हो उसी area पर concentrate/ संश्लेषित/ एकीकृत करके पाठयक्रम देना। 🎀 *उद्यिमता का एकीकरण*:- 👉 ऐसी शिक्षा देना जिससे बच्चे किसी न किसी उद्यिम/ job/ व्यवसाय/ bussiness में हो। इसमें एक centralized प्रक्रिया हो, जिसमें हर बालक को व्यवसाय मिले ऐसा कार्य करे। 🎀 *समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल*:- 👉 ऐसी शिक्षा दे जिससे बच्चे खुद समस्या को solve कर सके। किसी topic पर आलोचना कर सके, मतलब किसी भी पक्ष व विपक्ष दोनों पर बात कर सके। 🎀 *सामुहिक कार्य और सामाजिक कैशल का विकास:*- 👉 बच्चों में हम शिक्षा के माध्यम से ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जिसमें किसी में भेद-भाव की प्रवृति ना आएं, ताकी सभी बच्चे पूर्ण स्वतंत्रता और सहयोग से कार्य कर सके। जिससे बच्चे सामूहिक कार्य भी कर सके और समाजिक कौशल का विकास भी। 🎀 *रटे रटाए विधा के बदले समझ और कार्यन्वन की विधा को आधार बनाया जाए:-* 👉 बच्चे को कभी भी रटने की सलाह न दे, बल्कि बच्चे के लिए ऐसा वातावरण बनाये जिससे बच्चे खुद समझने की कोशिश करेंगा। हमें हर बच्चे को ध्यान में रखते हुए (व्यक्तिगत विभिन्नता) भी सबके according शिक्षण देना जिससे हर बच्चों में intrest जगे, utilize करें और खुद से उसपर कार्य/active भी करे। 🎀 *सहयोगात्मक और सहकारी तकनीक:-* 👉 ये दोनों education बच्चों में एक healthy mind सेट से सीखने के लिए और एक healthy mind set से सीख कर दुनिया को बड़े स्तर पर देख कर आगे बढ़ने/ सहयोग/ collebrate के लिए प्रेरित करती हैं। 🎀 *समाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र की शिक्षा*:- 👉 हमे अपने समाज की जिम्मेदारी को समझना चाहिए, हर कार्य को एक जिम्मेदार नागरिक की तरह या बौस की तरह करना चाहिए। हर शिक्षक कोशिश करता है कि विधालय में ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिससे बच्चे में सामाजिक व्यक्तिगत जिम्मेदारी का विकास हो सके और वह लोकतंत्र के योग्य नागरिक बन सके। 🎀 *व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो प्रत्येक व्यक्ति के निजी लक्ष्य के अनुरूप हो:-* 👉 व्यक्तिगत शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बच्चे की आवश्यकता/ योग्यता/ रूचि को ध्यान में रखते हुए पूरा कर सके और उनके कार्य के according हो। 🎀 *दैनिक पाठयक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना:-* 👉 बालक को पाठयक्रम के द्वारा यह बताये कि हम एक दूसरे की सहायता करके अपने आप को निखार सकते। उसे अपने शिक्षा परियोजना में शामिल कर, बालक को उस रूप में प्रगति करवाएं, जो उसके लिए आवश्यक हैं, जिससे बच्चे खुद से अनुभव करके सीख सके। 🎀 *विषय सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है कि भविष्य में इससे किन किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी*:- 👉 चयन करना जरूरी है क्योंकि बच्चे को भविष्य में किन किन कौशलो की आवश्यकता होगी, ऐसा कौन सा कौशल उनकीं आवश्यकता की पूर्ति करता है और उनकी प्रगति में सहायक है, क्योंकि तत्कालिक आवश्यकता की पूर्ति से भविष्य की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकते। 🎀 *पाठयवस्तु में बंधी बधाई सामग्री ना पढ़ाये, विविध प्रकार के शिक्षण सामग्री या तरीकेसे पढ़ाने पर ज़ोर दे:-* 👉 बच्चों को कभी किताबी कीड़ा ना बनाये, बच्चे के अनुसार शिक्षा दे ऐसे ऐसे उदाहरण दे जो उनके आसपास से या जीवन से जुड़ा हो जिससे बच्चे जल्दी सीख सके और इंट्रेसट जगे। 🎀 *शिक्षा ऐसी दे जो जीवन पर्यंत चले:-* 👉 ऐसी शिक्षा दे जिससे बच्चे के तत्कालिक जीवन को ही नही, बल्कि जीवन पर्यंत काम आ सके। उनके हर पहलू को निखार भी सके। 🎀 *बच्चों के अंदर जो शिक्षा का विकास है उसे समय-समय पर मूल्यांकन भी करे:-* 👉 बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन जरूरी है, तभी हम सही शिक्षा दे पायेंगे। शिक्षक समय-समय पर बच्चों के सीखे हुए ज्ञान को जाँच करते है जिससे पता चलता है कि बच्चे ने कितना सीखा है। 🎄🎄🎄Thanku🎄🎄🎄 📚Noted by Soni Nikku ✍ 🌷 प्रगतिशील शिक्षा 🌷 [ प्रगतिशील शिक्षा के प्रवर्तक:- ” जॉन. डी. वी. ” हैं। ] प्रगतिशील शिक्षा :- प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षिक आंदोलन है , जिसमें बच्चों की शिक्षा संबंधी व्यवस्था को आगे बढ़ाने की बात की जाती है। प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य है कि बच्चों को किस प्रकार से शिक्षा दें, उनको सिर्फ किताबी ज्ञान न देकर बल्कि पाठ्यक्रम से अलग बाहरी ज्ञान से भी जोड़ा जाये, बच्चे अपने दैनिक जीवन के आधार स्वयं प्रतिक्रिया करके अपने अनुभव के आधार पर सीखें, उनमें रटने की प्रवृत्ति न आये बच्चों में व्यवहारिक ज्ञान का विकास हो आदि। प्रगतिशील शिक्षा को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है :- 1. करके सीखना :- अर्थात बच्चे हाथों से किया जाने वाला काम, हस्तकला के आधार पर स्वयं करके सीखें , स्वयं के अनुभव के आधार पर सीखें। 2. विषयगत इकाई पर एकीकृत पाठ्यक्रम। बच्चों की कक्षानुसार उनका पाठ्यक्रम सरल और सुव्यवस्थित होना चाहिए ताकि बो सरलता से पढ़ और समझ सकें। 3. उद्यमिता का एकीकरण। बच्चों को उधमिता के आधार पर भी शिक्षा दी जाए जो कि उनके भविष्य में काम आये। 4. समस्या समाधान और आलोचनात्मक चिंतन पर बल। बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे उनमें समस्या समाधान के गुण भी आयें, तथा वह आलोचनात्मक रूप से भी सोच सकें। 5. सामूहिक कार्य और सामाजिक कौशलों का विकास। बच्चों में समूह में रहकर अपने काम करने की क्षमता और समाज में रहकर अपने कौशलों का विकास करने की शिक्षा भी दी जानी चाहिये। 6. रटे- रटाये विद्या के बदले , समझ और कार्यान्वयन की विद्या को आधार बनाया जाए। प्रगतिशील शिक्षा बच्चों में रटे हुये ज्ञान के बदले स्वयं अनुभव और समझ विकसित करने पर जोर देती है। 7. सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण तकनीकी। बच्चों में सहयोग की भावना तथा सहकारिता शिक्षा का विकास किया जाना चाहिये। 8. सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र शिक्षा। बच्चों में शैक्षिक रूप से अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और लोकतंत्र शिक्षा का विकास करना चाहिये। 9. व्यक्तिगत शिक्षा दी जाए जो निजी लक्ष्य के अनुरूप हो। अर्थात प्रत्येक बच्चे के अनुसार उनको व्यक्तिगत शिक्षा दी जाये जिसमें बच्चे अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकें। 10. दैनिक पाठ्यक्रम में सामुदायिक और सेवा शिक्षा परियोजना शामिल करना। बच्चों में दैनिक अनुभव के आधार पर उनमें सामुदायिक और सेवा शिक्षा का विकास करना चाहिए। 11. विषय सामग्री का चयन करते समय ध्यान रखना अनिवार्य है कि इससे भविष्य की किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। अर्थात बच्चे के विषय सामग्री का इस प्रकार से चयन करना चाहिए जो उनके भविष्य की शैक्षिक, सामाजिक, वास्तविक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करें, उनके जीवन में हर समय काम आये। 12. पाठ्यवस्तु में बंधी बंधाई सामग्री ही न पढ़ाएं , बल्कि विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री या तरीके से बढ़ाने पर जोर दें। अर्थात बच्चों को सिर्फ पाठ्यक्रम आधारित किताबी ज्ञान ही न दें बल्कि उनके पाठ्यक्रम से अलग भी ज्ञान दें ताकि बच्चे का चहुँओर विकास हो सके। 13. शिक्षा ऐसी दें जो जीवन पर्यंत चले। अर्थात बच्चों को सिर्फ कक्षा उत्तीर्ण करने के उद्देश्य से शिक्षा दें, बल्कि ऐसी शिक्षा दें जो उसके जीवन में हर पहलू में जीवन पर्यन्त चले। 14. बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करें। अर्थात समय समय पर बच्चों के शैक्षणिक विकास का मूल्यांकन करते रहना चाहिए ताकि उनकी शैक्षिक कमी और विकास का पता लगता रहे जिसके आधार पर उनका और भी विकास हो सके। Notes by 🌺 जूही श्रीवास्तव 🌺