Principles of the project policy:

प्रयोजना नीति के छह प्रकार के सिद्धांत हैं-

सद्योश्यता का सिद्धांत

क्रियाशीलता का सिद्धांत

वास्तविकता का सिद्धांत

उपयोगिता का सिद्धांत

स्वतंत्रता का सिद्धांत

सामाजिक विकास का सिद्धांत

प्रत्येक प्रयोजना के नियोजन एवं नियमन करने के लिए इन सिद्धांतों पर विशेष रूप से बल दिया जाता है।

six types of principles of the project policy:

 1.Principle of subservience

 2.Principle of action

 3.Theory of reality

 4.Principle of utility

 5.Principle of freedom

 6.Social development theory

 Special emphasis is laid on these principles for planning and regulation of every project.

Stages of Evaluation Process

मूल्यांकन प्रक्रिया के 6 सोपान निम्नलिखित हैं

1. उद्देश्यों का चयन और निर्माण

2.व्यवहार में वंचित परिवर्तन के संदर्भ में उद्देश्यों का परिभाषीकरण

3. मूल्यांकन के उपकरण और तकनीक का चयन

4. आंकड़ों का संग्रहण

5. परिणामों की संख्या

6. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार के लिए परिणामों का मूल्यांकन।

Following are 6 steps of the evaluation process.

1. Selection and construction of objectives.

2. Defining objectives with reference to deprived change in behavior

3. Selection of evaluation tools and techniques.

4. Data Collection

5. Number of results

6. Evaluation of results to improve the teaching learning process.

Braille method

ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है,जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है।इस पद्धति का आविष्कार 1824 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। जो खुद एक नेत्रहीन व्यक्ति थे।

ब्रेल प्रणाली में 64 डॉट पैटर्न या वर्ण होते हैं प्रत्येक वर्ण एक अक्षर,अक्षरों का संयोजन,एक सामान्य शब्द या एक व्याकरणिक संकेत का प्रतिनिधित्व करता है।

The Braille method is a type of script that is used to touch and treat blind people around the world.This method was invented in 1824 by Louis Braille, a blind French writer.Who himself was a blind man.

The Braille system consists of 64 dot patterns or characters including no dots at all for word space. Each character represents a letter,a combination of letters, a common word or a grammatical sign.

Problem Solving Method

समस्या समाधान विधि – Problem Solving Method 

समस्या समाधान विधि ( problem solving method )

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method) इस विधि के जनक प्राचीन काल के अनुसार सुकरात व सेंट थॉमस तथा आधुनिक समय के अनुसार जॉन डीवी है। समस्या उस समय प्रकट होता है, जब लक्ष्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा आती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं है।समस्या-समाधान विधि मनोविज्ञान के कोहलर अंतर्दृष्टि सिद्धांत पर आधारित है।

समस्या समाधान का अर्थ ( Meaning of problem resolution )

विद्यार्थियों को शिक्षण काल में अनेक समस्याओं या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिनका समाधान उसे स्वयं करना पड़ता है। समस्या समाधान का अर्थ है लक्ष्य को प्राप्त करने आने समस्याओं का समाधान  इसको समस्या हल करने की विधि भी कहते हैं।

व्याख्यान प्रदर्शन विध

व्याख्यान विधि

समस्या समाधान विधि परिभाषा ( Problem Resolution Method Definition )

वुडवर्थ (Woodworth) “समस्या-समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसन हों तो समस्या आती ही नहीं।”

स्किनर (Skinner) “समस्या-समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सर्जनात्मक चिंतन तथा तर्क दोनों होते हैं।”

यदि हम किसी निश्चित लक्ष्य पर पहुँचना चाहते हैं, पर किसी कठिनाई के कारण नहीं पहुँच पाते हैं, तब हमारे समक्ष एक समस्या उपस्थित हो जाती है। यदि हम इस कंठिनाई पर विजय प्राप्त करके अपने लक्ष्य पर पहुँच जाते हैं, तो हमें अपनी समस्या का समाधान कर लेते हैं। इस प्रकार, समस्या समाधान का अर्थ है-कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके लक्ष्य को प्राप्त करना।

स्किनर के अनुसार- “समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती प्रतीत होती कठिनाइयों पर विजय पाने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं के बावजूद सामंजस्य करने की विधि है।”

“Problem-solving is a process of overcoming difficulties that appear to interfere with the attainment of a goal. It is a procedure of making adjustments in spite of interferences.” -Skinner

समस्या समाधान के स्तर (Levels of Problem-Solving)

तर्क, समस्या के समाधान का आवश्यक अंग है। समस्या का समाधान, चिन्तन तथा तर्क का उद्देश्य है। स्टेर्नले ग्रे के अनुसार- “समस्या समाधान वह प्रतिमान है, जिसमें तार्किक चिन्तन निहित होता है।” समस्या समाधान के अनेक स्तर हैं। कुछ समस्यायें बहुत सरल होती हैं, जिनको हम बिना किसी कठिनाई के हल कर सकते हैं, जैसे—पानी पीने की इच्छा । हम इस इच्छा को निकट की प्याऊ पर जाकर तृप्त कर सकते हैं। इसके विपरीत, कुछ समस्यायें बहुत जटिल होती हैं, जिनको हल करने में हमें अत्यधिक कठिनाई होती है; उदाहरण के लिये रेगिस्तान में किसी विशेष स्थान पर जल-प्रणाली स्थापित करने की इच्छा है। इस समस्या का समाधान करने के लिये अनेक उपाय किये जाने आवश्यक हैं; जैसे-पानी कहाँ से प्राप्त किया जाये ? उसे उस विशेष स्थान कैसे पहुँचाया जाये ? उसके लिये धन किस प्रकार प्राप्त किया जाये ? इत्यादि। इन समस्याओं को हल करने के बाद ही पानी की मुख्य इच्छा पूरी की जा सकती है।

समस्या समाधान की विधियाँ (Methods of Problem-solving)

स्किनर (Skinner) ने समस्या समाधान’ की निम्नलिखित विधियाँ बताई हैं-

1. प्रयास एवं त्रुटि विधि (Trial & Error Method) – इस विधि का प्रयोग निम्न और उच्च कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में थार्नडाइक (Thorndike) का बिल्ली पर किया जाने वाला प्रयोग उल्लेखनीय है। बिल्ली अनेक गलतियाँ करके अन्त में पिंजड़े से बाहर निकलना सीख गई।

2. वाक्यात्मक भाषा विधि (Sentence Language Method)- इस विधि का प्रयोग मनुष्य के द्वारा बहुत लम्बे समय से किया जा रहा है। वह पूरे वाक्य बोलकर अपनी अनेक समस्याओं का समाधान करता है और फलस्वरूप प्रगति करता चला आ रहा है। इसलिये, वाक्यात्मक भाषा को सारी सभ्यता का आधार माना जाता है।

3. अनसीखी विधि (Unlearned Method) – इस विधि का प्रयोग निम्न कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, मधुमक्खियों की भोजन की इच्छा, फूलों का रस चूसने से और खतरे से बचने की इच्छा, शत्रु को डंक मारने से पूरी हो जाती है।

4. वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) – आज का प्रगतिशील मानव अपनी समस्या का समाधान करने के लिये वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करता है। हम इसका विस्तृत वर्णन कर रहे है।

5. अन्तर्दृष्टि विधि (Insight Method)- इस विधि का प्रयोग उच्च कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में कोहलर (Kohler) का वनमानुषों पर किया जाने वाला प्रयोग उल्लेखनीय है।

समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि (Scientific Method of Problem-Solving)

स्किनर (Skinner) के अनुसार, समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि में निम्नलिखित छः सोपानों (Steps) का अनुकरण किया जाता है—

1. समस्या को समझना (Understanding the Problem) – इस सोपान में व्यक्ति यह समझने का प्रयास करता है कि समस्या क्या है, उसके समाधान में क्या कठिनाइयाँ हैं या हो सकती हैं तथा उनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है ?

2. जानकारी का संग्रह (Collecting Information)- इस सोपान में व्यक्ति समस्या से सम्बन्धित जानकारी का संग्रह करता है। हो सकता है कि उससे पहले कोई और व्यक्ति उस समस्या को हल कर चुका हो। अतः वह अपने समय की बचत करने के लिये उस व्यक्ति द्वारा संग्रह किये गये तथ्यों की जानकारी प्राप्त करता है।

3. सम्भावित समाधानों का निर्माण- (Formulating Possible Solutions) – इस सोपान में व्यक्ति, संग्रह की गई जानकारी की सहायता से समस्या का समाधान करने के लिये कुछ विधियों को निर्धारित करता है। वह जितना अधिक बुद्धिमान होता है, उतनी ही अधिक उत्तम ये विधियाँ होती हैं। इस सोपान में सृजनात्मक चिन्तन (Creative Thinking) प्रायः सक्रिय रहता है।

4. सम्भावित समाधानों का मूल्यांकन (Evaluating the Possible Solutions) – इस सोपान में व्यक्ति निर्धारित की जाने वाली विधियों का मूल्यांकन करता है। दूसरे शब्दों में, वह प्रत्येक विधि के प्रयोग के परिणामों पर विचार करता है। इस कार्य में उसकी सफलता आँशिक रूप से उसकी बुद्धि तथा आंशिक रूप से संग्रह की गई जानकारी के आधार पर निर्धारित की जाने वाली विधियों पर निर्भर रहती है।

5. सम्भावित समाधानों का परीक्षण (Testing Possible Solutions) – इस सोपान में व्यक्ति उक्त विधियों का प्रयोगशाला में या उसके बाहर परीक्षण करता है।

6. निष्कर्षों का निर्णय-Forming Conclusions- इस सोपान में व्यक्ति अपने परीक्षणों के आधार पर विधियों के सम्बन्ध में अपने निष्कर्षों का निर्माण करता है। परिणामस्वरूप, वह यह अनुमान लगा लेता है कि समस्या का समाधान करने के लिये उनमें से कौन-सी विधि सर्वोत्तम है।

7. समाधान का प्रयोग (Application of Solution)- इस सोपान का उल्लेख क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) ने किया है। व्यक्ति अपने द्वारा निश्चित की गई सर्वोत्तम विधि को समस्या का समाधान करने के लिये प्रयोग करता है।

8. यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति, समस्या का समाधान करने में सफल हो। इस सम्बन्ध में स्किनर के अनुसार- “इस विधि से भी भविष्यवाणियाँ बहुधा गलत होती हैं और गलतियाँ हो जाती हैं।”

“Even with this method, predictions are often inaccurate and errors are still made.” -Skinner

समस्या समाधान विधि का महत्व (Importance of Problem-Solving Method)

मरसेल का कथन है— “समस्या समाधान की विधि का शिक्षा में सर्वाधिक महत्व है।”

“The process of problem-solving is of the utmost importance in education.” – Mursell

छात्रों की शिक्षा में समस्या समाधान की विधि का महत्व इसके अनेक लाभों के कारण है। कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं—(1) यह उनमें स्वयं कार्य करने का आत्मविश्वास उत्पन्न करती है। (2) यह उनके विचारात्मक और सृजनात्मक चिन्तन एवं तार्किक शक्ति का विकास करती है। (3) यह उनकी रुचि को जाग्रत करती है। (4) यह उनको अपने भावी जीवन की समस्याओं का समाधान करने का प्रशिक्षण देती है। (5) यह उनको समस्याओं का समाधान करने के लिये वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग का अनुभव प्रदान करती है। इन लाभों के कारण क्रो एवं क्रो का सुझाव है—“शिक्षकों को समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। केवल तभी वे शुद्ध स्पष्ट और निष्पक्ष चिन्तन का विकास करने के लिये छात्रों का प्रदर्शन कर सकेंगे।”

समस्या समाधान विधि के महत्व (Importance of problem solving method )

समस्या समाधान विधि मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक विधि है। समस्या विद्यार्थी के पाठ्यवस्तु से संबंधित होती है। इसमें छात्र को करके, सीखने के अवसर उपलब्ध होते हैं। 

इस विधि में विद्यार्थी के सामने एक समस्या रखी जाती है और विद्यार्थी उसका हल ढूंढने के लिए प्रयास करता है। अध्यापक हल ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।

अन्वेषण विधि

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps of Problem Solving Method)

Problem solving method in teaching, इस विधि की अनुपालन करते समय सर्वप्रथम समस्या की पहचान की जाती है। समस्या को हल करने के लिए समस्या समाधान विधि के चरण को पालन करते हुए हम अपनी समस्या का निराकरण कर अपनी लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।

  • समस्या की पहचान

a.   समस्या का स्पष्ट विवरण अथवा समस्या कथन

b.   समस्या का स्पष्टीकरण विद्यार्थियों द्वारा आपस में चर्चा

c.   समस्या का परिसीमन समस्या का क्षेत्र निर्धारित करना

  • परिकल्पना का निर्माण – जांच एवं परीक्षण के लिए परिकल्पना का निर्माण।
  • प्रयोग द्वारा परीक्षण – परिकल्पनाओं का परीक्षण करना
  • विश्लेषण
  • समस्या के निष्कर्ष पर पहुंचना

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of the Problem Solving Method)

  • विधि से विधार्थी सहयोग करके सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • दाती समस्या को हल करने की प्रक्रिया में शामिल होकर उसे हल करना सीखते हैं।
  • विद्यार्थी परिकल्पना निर्माण करना सीखते हैं और इस प्रक्रिया से उसकी कल्पनाशीलता में वृद्धि होती है।
  • विद्यार्थी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
  • यह विधि विद्यार्थी में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास में सहायक हैं।

समस्या समाधान विधि के दोष Problem resolution method faults

  • इस विधि के प्रयोग में समय ज्यादा लगता है।
  • पाठ्य-पुस्तक का अभाव होता है।
  • इस विधि में त्रुटियाँ प्रभावहीन के कारण होती है।
  • गति धीमी रहती हैं।
  • इस विधि से हर विषय वस्तु का शिक्षण नहीं किया जा सकता है।
  • समस्या उचित रूप से चुनी हुई न हो तो वह असफल रहती हैं।
  • चूंकि इस विधि में प्रायोगिक कार्य भी करना होता है। अतः शिक्षक का प्रायोगिक कार्य में दक्ष होना आवश्यक होता है।

The Grid method

The grid method is a written method of multiplication that involves partitioning numbers into tens and units before they are multiplied. The grid method is also known as the box method. It makes multiplying numbers easier by breaking them into their constituent values and multiplying them step-by-step.

ग्रिड विधि गुणन की एक लिखित विधि है जिसमें गुणा करने से पहले संख्याओं को दहाईओं और इकाइयों में विभाजित करना शामिल है। ग्रिड विधि को बॉक्स विधि के रूप में भी जाना जाता है। यह उनके घटकों कों तोड़कर और संख्याओं को चरण-दर-चरण गुणा को आसान बनाता है।

Learning cycle

 अधिगम चक्र के चार चरण हैं:

  • प्रथम चरण में कक्षाओं को अधिगम, परीक्षण, और अन्य सीखने के अनुभवों के लिए अग्रिम में तैयार करना।
  • दूसरा चरण कक्षाओं में पठन और अन्य सीखने के अनुभवों के दौरान सूचना और विचारों को प्रभावी ढंग से आत्मसात करना है।
  • तीसरा चरण सूचना को अधिकृत करना है, जिसमें आम तौर पर समझ और अवधारणा को बढ़ाने के लिए उस विशेष अधिगम-अनुभव के दौरान नोट्स बनाना शामिल है।
  • चौथा चरण  नोट्स की समीक्षा करना है ताकि अच्छे से सीखा जा सके और अगली कक्षा में इस चक्र को दोहराने के लिए तैयार किया जा सके।

 Four steps of the learning cycle are:

● The first step of the learning cycle is to prepare in advance for classes, readings, tests, and other learning experiences.

● The second step is to absorb information and ideas effectively during classes, readings, and other learning experiences.

● The third step is to capture the information, which typically involves taking notes during that particular learning experience to increase understanding and retention.

● The fourth step is to review your notes to help solidify the learning and prepare for repeating the cycle in the next class.

Lesson plan

Lesson plan is given by john Dewey in 1916. But it was introduced by johan Herbart. A lesson plan is a teacher’s daily guide for what students need to learn, how it will be taught, and how learning will be measured. Lesson plans help teachers be more effective in the classroom by providing a detailed outline to follow each class period.

पाठ योजना 1916 में जॉन  ड्यूवी द्वारा दी गई है। लेकिन इसे जोहान हर्बार्ट द्वारा प्रस्तुत किया गया था। एक पाठ योजना एक शिक्षक की दैनिक मार्गदर्शिका होती है, जिससे पता चलता है कि छात्रों को क्या सिखाया जाएगा, इसे कैसे पढ़ाया जाएगा, और अधिगम को कैसे मापा जाएगा। पाठ योजना प्रत्येक कक्षा की अवधि का पालन करने के लिए विस्तृत रूपरेखा प्रदान करके शिक्षकों को कक्षा को अधिक प्रभावी बनाने में मदद करती है।

Stages of learning when acquiring a new concept

Four distinct stages of learning when acquiring a new concept-

  • Allegorization: A new concept is described figuratively in a familiar context in terms of known concepts. At this stage, learners are not yet able to distinguish the new concept from known concepts. 
  • Integration: Comparison, measurement, and exploration are used to distinguish the new concept from known concepts. At this stage, learners realize a concept is new, but do not know how it relates to what is already known. 
  • Analysis: The new concept becomes part of the existing knowledge base. At this stage, learners can relate the new concept to known concepts, but they lack the information needed to establish the concept’s unique character. 
  • Synthesis: The new concept acquires its own unique identity and thus becomes a tool for strategy development and further allegorization.

एक नई अवधारणा प्राप्त करते समय सीखने के चार अलग-अलग चरण-

  • रूपक : एक नई अवधारणा को ज्ञात अवधारणाओं के संदर्भ में एक परिचित संदर्भ में आलंकारिक रूप से वर्णित किया गया है। इस स्तर पर, शिक्षार्थी अभी तक नई अवधारणाओं को ज्ञात अवधारणाओं से अलग करने में सक्षम नहीं हैं।
  • एकीकरण: नई अवधारणा को ज्ञात अवधारणाओं से अलग करने के लिए तुलना, माप और अन्वेषण का उपयोग किया जाता है। इस स्तर पर, शिक्षार्थियों को एक अवधारणा का एहसास होता है कि यह नया है, लेकिन यह नहीं जानता कि यह कैसे पता चलता है जो पहले से ही ज्ञात है।
  • विश्लेषण: नई अवधारणा मौजूदा ज्ञान आधार का हिस्सा बन जाती है। इस स्तर पर, शिक्षार्थी नई अवधारणाओं को ज्ञात अवधारणाओं से संबंधित कर सकते हैं, लेकिन उनके पास अवधारणा के अद्वितीय चरित्र को स्थापित करने के लिए आवश्यक जानकारी का अभाव है।
  • संश्लेषण: नई अवधारणा अपनी विशिष्ट पहचान प्राप्त करती है और इस प्रकार यह रणनीति के विकास और आगे बढ़ने के लिए एक उपकरण बन जाती है।

Errors in Mathematics- Ignorance Forgetfulness Biasedness

अज्ञानता के कारण त्रुटियां- अज्ञानता के कारण त्रुटियां छात्रों द्वारा निर्देशों या मैनुअल को ठीक से न पढ़ने के कारण होती हैं। यदि छात्र सावधानी से काम करें, तो ऐसी त्रुटियां दूर की जा सकती हैं।

भूल-चूक के कारण त्रुटियां- छात्रों द्वारा गलत तरीके से 0.1 के स्थान पर 0.01 लिखना या 7.3 के स्थान पर 3.7 लिखना, आदि त्रुटियों को सावधानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

पूर्वाग्रह के कारण त्रुटियां- पूर्वाग्रह को पसंद करने के कारण उत्पन्न त्रुटियां इसमें शामिल हैं। इस तरह की त्रुटियों को व्यक्तिवाद के अवसरों को दूर करके और माप उपकरण या विधि को उद्देश्य बनाकर नियंत्रित जा सकता है

§  Errors due to Ignorance- Errors due to ignorance are committed by the students on not seeing the instructions or manual properly. Such errors can be removed if the students work carefully.

§  Errors due to Forgetfulness -Sometimes the students erroneously write 0.01 in place of 0.1, or write 3.7 in place of 7.3, etc. Such errors can be controlled by carefulness

§  Errors due to Biasedness- The errors arising due to prejudice or, liking of the measurer are included in it. Such errors can be removed by removing the opportunities of subjectivity and making the measurement tool or method objective

Micro teaching in Mathematics

सूक्ष्म-शिक्षण के पाँच कौशल हैं।

·   ज्ञान और अनुभव को एकीकृत करने का कौशल

·   बाल केंद्रित सीखने की सुविधा प्रदान करने का कौशल

·   शिक्षार्थियों को पूछताछ के लिए प्रोत्साहित करने का कौशल

·   शिक्षार्थियों में अवलोकन विकसित करने का कौशल

·   सीखने के साथ प्रदर्शन कला को एकीकृत करने का कौशल।

There are five skills of micro teaching in Mathematics.

·   skill of integrating knowledge and experience

·   skill of facilitating child centric learning

·   skill of encouraging learners to enquire

·   skill of developing observation in learners