45. CDP – Learning Theories PART- 1

अधिगम

अधिगम का शाब्दिक अर्थ होता है सीखना।लेकिन यह एक बहुत व्यापक शब्द है अधिगम जन्मजात प्रवृति से प्रेरित होता है। जब व्यक्ति पुराने अनुभव के साथ नई परिस्थिति से संतुष्ट नहीं होता  तब उसको अधिगम की आवश्कता होती है। यदि व्यक्ति नई परिस्थिति से संतुष्ट है तो उसका कोई अधिगम नही होगा।

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अधिगम की परिभाषा निम्न अनुसार है:

🌺 स्किनर के अनुसार: व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया अधिगम है।

🌺 क्रो एंड क्रो के अनुसार:ज्ञान और अभिवृति की प्राप्ति ही अधिगम है।

🌺गेट्स के अनुसार:अधिगम अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है।

🌺गुथरी के अनुसार: अधिगम किसी परिस्थिति के भिन्न ढंग से कार्य करने की क्षमता है जो परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभवों के कारण आती है।

🌺वुडवर्थ के अनुसार: अधिगम अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार के कुछ परिमार्जन है जो कम से कम समय के  लिए प्राणी के द्वारा धारण किया जाता है।

🌺मर्फी के अनुसार: सीखना व्यवहार और दृष्टिकोण दोनो का परिमार्जन है।

🌺 गिलफोर्ड के अनुसार: व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम है।

🌺 कॉल्विन के अनुसार:पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभवों द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।

🌺हिलगार्ड के अनुसार:सीखना वह प्रक्रिया है जिसमे नई क्रिया का जन्म होता है अथवा सामने आई परिस्थिति के अनुकूल उसमे उचित परिवर्तन किया जाता है।

🌺कुप्पुस्वामी के अनुसा: अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव एक परिस्थिति में उसके अंतः क्रिया के परिणाम के रूप में व्यव्हार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है जो कुछ अंश तक स्थिर उन्मुख रहता है तथा जीव के सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।।।

✍🏻✍🏻✍🏻Notes by raziya khan✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

🔆 अधिगम 

▪️अधिगम का सार्थक अर्थ सीखना है जो व्यापक प्रक्रिया है तथा जन्मजात प्रवृत्ति से अधिगम को प्रेरणा मिलती है अर्थात जन्मजात अधिगम को प्रेरणा देने वाला पहला कहा जाता है।

▪️जब पुराना अनुभव के आधार पर नई परिस्थिति को संतुष्ट नहीं कर पाता तब हमें एक नई समाधान की जरूरत होती है और वही समाधान की जरूरत या आवश्यकता ही अधिगम है।

▪️जिस व्यक्ति को जितना ज्यादा अनुभव

होगा उसको उतनी ही कम अधिगम की आवश्यकता होगी।

▪️जब व्यक्ति पुराने अनुभवों के आधार पर नई परिस्थिति द्वारा अपनी प्रवृत्तियों को संतुष्ट नहीं कर पाता तब वह नहीं परिस्थितियों में समायोजन करने लगता है और यही समायोजन में अधिगम प्राप्त करता है।

▪️कई मनोवैज्ञानिक ने अधिगम के अर्थ को निम्न अनुसार परिभाषित किया।

✨स्किनर के अनुसार  

व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया अधिगम है।

✨क्रो एंड क्रो के अनुसार

ज्ञान और अभिवृत्ति की प्राप्ति ही अधिगम है।

✨गेट्स के अनुसार 

अधिगम, अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है।

✨गुथरी के अनुसार

अधिगम, किसी परिस्थिति में भिन्न ढंग से कार्य करने की क्षमता है जो परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभवों के कारण आती है।

✨वुडवर्थ के अनुसार

अधिगम, *अनुभव के परिणाम स्वरुप* प्राणी के *व्यवहार* में कुछ *परिमार्जन* है जो कम से कम *कुछ समय* के लिए प्राणी के द्वारा *धारण* किया जाता है।

✨मर्फी के अनुसार

सीखना, *व्यवहार और दृष्टिकोण* दोनों का *परिमार्जन* है।

✨गिलफोर्ड के अनुसार

व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन अधिगम है।

✨कॉल्विन के अनुसार

पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभवों द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।

✨हिलगार्ड के अनुसार

सीखना वह प्रक्रिया है जिसमें नई क्रिया का जन्म होता है अथवा सामने आई परिस्थिति के अनुकूल उसमें उचित परिवर्तन किया जाता है।

✨कुप्पुस्वामी के अनुसार

अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव, एक परिस्थिति में उसके अंतः क्रिया के परिणाम के रूप में, व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है, जो कुछ अंश तक स्थिर उन्मुख रहता है तथा जीव के सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।

✍️

       Notes By-‘Vaishali Mishra’

✳️ अधिगम

💐अधिगम का अर्थ होता है सीखना ।

💐अधिगम एक व्यापक शब्द है ।

💐अधिगम जन्मजात प्रवृत्ति से प्रेरित होता है यह व्यक्ति के पुराने अनुभव के साथ में परिस्थिति के  संतुष्ट नहीं होता है तब अधिगम की आवश्यकता होती हैं। 

💐विभिन्न मनोवैज्ञानिक के अनुसार अधिगम की परिभाषा निम्न प्रकार दी हुई है।

🌻 स्किनर के अनुसार:-व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया अधिगम है।

🌻क्रो .क्रो के अनुसार —

ज्ञान और अभिवृत्ति की प्राप्ति ही अधिगम है।

🌻ग्रेटस के अनुसार —

अधिगम अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध हैं। 

🌻गुथरी के अनुसार —

अधिगम किसी परिस्थिति में भिन्न ढंग से कार्य करने की क्षमता है जो परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभवों के कारण आती है।

🌻 मरफी के अनुसार—

सीखना ,व्यवहार और दृष्टिकोण दोनों का परिमार्जन है।

🌻 कॉल्विन के अनुसार—

पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।

🌻 गिलफोर्ड के अनुसार—

व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन अधिगम है।

🌻 हिलगार्ड के अनुसार—

सीखना वह प्रक्रिया है जिसमें नई क्रिया का जन्म होता है अथवा सामने आए परिस्थिति के अनुकूल उसमें उचित परिवर्तन किया जाता है।

🌻 कुप्पूस्वामी के अनुसार—

अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव एक परिस्थिति में उसके अंतर क्रिया के परिणाम के रूप में व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है जो कुछ अंश तक स्थिर उन्मुख रहता है तथा जीव के समान व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।

Notes By:- Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 ♦️अधिगम–

🌲 अधिगम का मतलब होता है। सीखना।। 

♦️सीखना व्यापक अर्थ होता है ।

♦️यह जन्मजात प्रवृत्ति प्रेरक होते हैं ।

♦️पुराने अनुभव में नई परिस्थिति के ज्ञान से संतुष्ट नहीं कर पाते हैं

 या समायोजन में कठिनाई होती है ।तब हमें अधिगम की आवश्यकता होती है ।

💥💥💥💥💥💥💥💥

विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिकों द्वारा अधिगम की परिभाषा निम्न प्रकार से दी गई है।

🌴 स्किनर के अनुसार– व्यवहार की अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया अधिगम  है।

🌴 क्रो एवं क्रो के अनुसार–

 ज्ञान और अभिवृत्ति  की प्राप्ति अधिगम है ।

🌴गेट्स के अनुसार– अधिगम अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है।

🌴 गुथरी के अनुसार –अधिगम किसी परिस्थिति में भिन्न रंग से कार्य करने की क्षमता है। जो परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभव के कारण आती है ।

🌴वुडवर्थ के अनुसार– अधिगम अनुभव के परिणाम स्वरुप प्राणी के व्यवहार में कुछ  परिमार्जन है। जो कम से कम कुछ समय के लिए प्राणी द्वारा धारण किया जाता है ।

🌴मर्फी के अनुसार – सीखना व्यवहार और दृष्टि को दोनों का परिमार्जन है।

🌴 कॉल्विन के अनुसार– पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।

🌴 गिलफोर्ड के अनुसार– व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन अधिगम है ।

🌴हिल गार्ड के अनुसार –सीखना वह प्रक्रिया है। जिसमें नई क्रिया का जन्म होता है। अथवा सामने आई परिस्थिति के अनुकूल इसमें उचित परिवर्तन किया जाता है।

🌴 कुप्पूस्वामी के अनुसार– अधिगम वह प्रक्रिया है ।जिसके द्वारा एक एक जीव एक परिस्थिति में उसके अंतः क्रिया के परिणाम के रूप में व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है ।तो कुछ अंत तक स्थिर अनुभव करता है ।तथा जीव की सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है ।

🌺💥💥🌴💥🌺♦️♦️

Notes by poonam sharma📚📚📚

☘️🌼 अधिगम 🌼☘️

अधिगम का अर्थ होता है -सीखना। अधिगम एक प्रक्रिया है, जो जीवन- पर्यंत चलती रहती है एवं जिसके द्वारा हम कुछ ज्ञान अर्जित करते हैं या जिसके द्वारा हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है।

🟣 विभिन्न  मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अधिगम की परिभाषा निम्न प्रकार से दी गई है।

🌼 स्किनर के अनुसार➖ “व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया अधिगम है”।

🌼 क्रो एंड क्रो के अनुसार➖”सीखना आदतों ज्ञान और अभिवृत्तियों  का अर्जन है”।

🌼 गेटस के अनुसार➖”अधिगम अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है”।

🌼 गुथरी के अनुसार➖”अधिगम किसी परिस्थिति में भिन्न ढंग से कार्य करने की क्षमता है जो परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभवों के कारण आती है”।

🌼 मर्फी के अनुसार➖”सीखना व्यवहार और दृष्टिकोण दोनों का परिमार्जन है”।

🌼काॅल्विन के अनुसार➖ “पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं”।

🌼 गिलफोर्ड के अनुसार➖ “व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन अधिगम है”।

🌼 हिलगार्ड के अनुसार ➖”सीखना वह प्रक्रिया है जिसमें नई क्रिया का जन्म होता है अथवा सामने आए परिस्थिति के अनुकूल उसमें उचित परिवर्तन किया जाता है।”

🌼कुप्पूस्वामी के अनुसार➖ “अधिगम प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक चीज एक परिस्थिति में उसके अंतः क्रिया के परिणाम के रूप में व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है जो कुछ अंश तक स्थित रहता है तथा जीव के समान व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।”

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

अधिगम

अधिगम का शाब्दिक अर्थ होता है सीखना

यह एक बहुत व्यापक शब्द है 

अधिगम की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है।

अधिगम जन्मजात प्रवृत्ति से प्रेरित होता है। अर्थात अधिगम के लिए जन्मजात प्रवृत्ति प्रेरक का कार्य करती है।

जब व्यक्ति पुराने अनुभवों के द्वारा नई परिस्थिति को संतुष्ट नहीं कर पाता है तब उसे अधिगम की आवश्यकता होती है।

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अधिगम की परिभाषाएं

स्किनर के अनुसार  

व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया अधिगम है।

क्रो एंड क्रो के अनुसार

ज्ञान और अभिवृत्ति की प्राप्ति ही अधिगम है।

गेट्स के अनुसार 

अधिगम, अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है।

गुथरी के अनुसार

अधिगम, किसी परिस्थिति में भिन्न ढंग से कार्य करने की क्षमता है जो परिस्थिति के अनुसार पूर्व अनुभवों के कारण आती है।

वुडवर्थ के अनुसार

अधिगम, *अनुभव के परिणाम स्वरुप* प्राणी के *व्यवहार* में कुछ *परिमार्जन* है जो कम से कम *कुछ समय* के लिए प्राणी के द्वारा *धारण* किया जाता है।

मर्फी के अनुसार

सीखना, *व्यवहार और दृष्टिकोण* दोनों का *परिमार्जन* है।

गिलफोर्ड के अनुसार

व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन अधिगम है।

कॉल्विन के अनुसार

पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभवों द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।

हिलगार्ड के अनुसार

सीखना वह प्रक्रिया है जिसमें नई क्रिया का जन्म होता है अथवा सामने आई परिस्थिति के अनुकूल उसमें उचित परिवर्तन किया जाता है।

कुप्पुस्वामी के अनुसार

अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव, एक परिस्थिति में उसके अंतः क्रिया के परिणाम के रूप में, व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है, जो कुछ अंश तक स्थिर उन्मुख रहता है तथा जीव के सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।

Notes by Ravi kushwah

44. CDP – Erikson theory of psychosocial development PART- 2

☘️ किशोरावस्था☘️

पहचान बनाम पहचान भ्रांति 

अंह पहचान बनाम भूमिका भ्रांति 

(Ego identity vs role confusion)

Age➖12-20 वर्ष

🟣 किशोरों में सामाजिकता के विभिन्न पहलुओं विकसित होते हैं जिससे वह अपनी एक सुदृढ़ पहचान बनाने में सक्षम होते हैं।

एरिक्सन का कहना है कि किशोर अपनी पहचान बना लेते हैं या भूमिका भ्रांति से उत्पन्न होने वाले अपनी समस्या का समाधान कर लेते हैं तो उसमें “कर्तव्यनिष्ठा” नामक सामाजिक शक्ति आती है।

“कर्तव्यनिष्ठता”

    किशोरों में समाज की विचारधारा मानक शिष्टाचार के अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता

एरिक्सन के अनुसार किशोरों में कर्तव्यनिष्ठ था उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करता है।

☘️ 6-तरुण वयस्कता 

आत्मीयता बनाम अलगाव, घनिष्ठता बनाम ,विलगन

(Intimacy vs isolation)

Age➖20-30 वर्ष

🟣 इस उम्र में व्यक्ति विवाह के प्रारंभिक पारंपरिक जीवन में प्रवेश जीवन करते है।

इस अवस्था में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीवन शुरू कर देता है समाज के सदस्य भाई-बहन अन्य संबंधी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है।

  व्यक्ति स्वयं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है।

  अगर व्यक्ति इन सभी कार्यों में सक्षम नहीं हो पाता है तो व्यक्ति अपने आप में खोया रहता है और दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाता है इसे अलगाव या विलगन कहा जाता है।

   विलयन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का व्यवहार मनो विकारी और गैर सामाजिक हो जाता है।

☘️ मध्य वयस्कता

उत्पादकता बनाम स्थिरता,जननात्मकता,बनाम स्थिरता

(Productivity vs sustainability)

Age ➖ 30-65 वर्ष

इसमें व्यक्ति में उत्पादकता की भावना आ जाती है वह भावी पीढ़ी के कल्याण के बारे में सोचता है।

समाज को उन्नत बनाने की कोशिश करता है तथा स्वयं/ परिवार की सुख सुविधा का ध्यान रखता है। और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है

मनोसामाजिक शक्ति- “देखभाल”

  व्यक्ति दूसरों की सुख- सुविधा और कल्याण के बारे में भी सोचता है।

☘️ परिपक्वता (Matwity)

संपूर्ण बनाम निराशा

(Integrity vs Despair)

Age➖65 से जीवन की अंतिम अवस्था तक

🟣 इसमें व्यक्ति स्वास्थ्य ,परिवार एवं समाज के साथ समायोजन अपनी उम्र के लोगों के साथ व्यवहारिक संबंध स्थापित करते हैं।

  अनेक चुनौतियों का सामना करते हैं व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यान न देकर अतीत की सफलता /असफलता का मूल्यांकन करता है।

 एरिक्सन  कहते हैं कि कोई भी मनो सामाजिक संस्कृतिक उत्पन्न नहीं होती है।

वास्तव में परिपक्वता ही प्रमुख मनोसामाजिक शक्ति है अब वास्तव में आप परिपक्व होते हैं।

  कुछ व्यक्ति जो जिंदगी में असफल होते हैं वह इस अवस्था में उस चिंता के कारण निराश ग्रस्त रहते हैं अपने जीवन को भार समझते हैं निराशा दुश्चिंता बनी रहती है मानसिक विषाद से ग्रस्त होते हैं।

📚📚✍🏻 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

मनोसामाजिक विकास की अवस्थायें- 

📍5 किशोरवास्था: अहं पहचान बनाम भूमिका संभ्रान्ति/  पहचान बनाम पहचान भ्रांति

(Adolescence: Ego identity versus role canfusion)  

📍6 तरूण वयस्कावस्था: आत्मीयताबनाम अलगाव /घनिष्ठ बनाम विलगन (Early adulthood: intimacy versus isolation)

📍7 मध्यवयस्कावस्था: जननात्मक्ता बनाम स्थिरता/उत्पादकता बनाम स्थिरता (middle adulthood: Productivity versus Sustabilitiy) 

📍8 परिपक्वता  सम्पूर्णता बनाम निराशा (maturity: Integlity versus despair) 

❇️5. किशोरावस्था : अहं पहचान बनाम भूमिका भ्रान्ति-

 ▪️किशोरों में सामाजिकता की विभिन्नता की समझ विकसित होती है जिससे वह अपनी एक सुदृढ़ पहचान बनाने में सक्षम होते है।

▪️ एरिक्सन के अनुसार किशोरावस्था 12 वर्ष से लगभग 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में किशोरों में दो प्रकार के मनोसामाजिक पहलू विकसित होते है। प्रथम है- अहं पहचान नामक धनात्मक पहलू तथा द्वितीय है- भूमिका भ्रन्ति 

▪️एरिक्सन का मत है कि जब किशोर अहं पहचान बनाम भूमिका संभ्रान्ति से उत्पन्न होने वाली समस्या का समाधान कर लेता है तो उसमें कर्तव्यनिष्ठता नामक विशिष्ट मनोसामाजिक शक्ति (pyychosocial strength) का विकास होता है। यहाँ कर्तव्यनिष्ठता का आशय है- किशोरों में समाज में प्रचलित विचारधाराओं, मानकों एवं शिष्टाचारों के अनुरूप् व्यवहार करने की क्षमता। एरिक्सन के अनुसार किशोरों में कर्त्तव्यनिष्ठता की भावना का उदय होना उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करता है।

❇️6. तरूण वयास्कावस्था: घनिष्ठ बनाम विकृति-

▪️ मनोसामाजिक विकास की इस छठी अवस्था में व्यक्ति विवाह का आरंभिक पारिवारिक जीवन में प्रवेश करता है। यह अवस्था 20 से 30 वर्ष तक की होती है। इस अवस्था में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीविकोपार्जन प्रारंभ कर देता है तथा समाज के सदस्यों, अपने माता-पिता, भाई-बहनों तथा अन्य संबंधियों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है। इसके साथ ही वह स्वयं के साथ भी एक घनिष्ठ संबंध स्थापित करता हैं, किन्तु इस अवस्था का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि जब व्यक्ति अपने आप में ही खोये रहने के कारण अथवा अन्य किन्हीं कारणों से दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाता है तो इसे बिलगन कहा जाता है। विलगन (isolation) की मात्रा अधिक हो जाने पर व्यक्ति का व्यवहार मनोविकारी या गैर सामाजिक हो जाता है। 

❇️7. मध्य वयास्कावस्था: जननात्मका बनाम स्थिरता-

▪️ मनोसामाजिक विकास की यह सातवीं अवस्था है, जो 30 से 65 वर्ष की मानी गई है। एरिक्सन का मत है कि इस स्थिति में प्राणी में जननात्मकता की भावना विकसित होती है,

 ▪️जिसका तात्पर्य है व्यक्ति द्वारा अपनी भावी पीढ़ी के कल्याण के बारे में सोचना और उस समाज को उन्नत बनाने का प्रयास करना जिसमें वे लोग (भावी पीढ़ी के लोग) रहेंगे।

▪️ व्यक्ति में जननात्मक्ता का भाव उत्पन्न न होने पर स्थिरता उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है, जिसमें व्यिक्त् अपनी स्वयं की सुख-सुविधाओं एवं आवश्यकताओं को ही सर्वाधिक प्राथमिका देता है। 

▪️जब व्यक्ति जननात्मकता एवं स्थिरता से उत्पन्न संघर्ष का सफलतापूर्वक समाधान कर लेता है तो इससे व्यक्ति में देखभाल नामक एक विशेष मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है। देखभाल का गुणविकसित होने पर व्यक्ति दूसरों की सुख-सुविधाओं एवं कल्याण के बारे में सोचता है। 

❇️8. परिपक्वता: अहं सम्पूर्णता बनाम निराशा-

 ▪️मनोसामाजिक विकास की यह अंतिम अवस्था है। यह अवस्था 65 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र तक की अवधि अर्थात् मृत्यु तक की अवधि को अपने में शामिल करती है। सामान्यत: इस अवस्था को वृद्धावस्था माना जाता है, जिसमें व्यिक्त् को अपने स्वास्थ्य, समाज एवं परिवार के साथ समयोजन, अपनी उम्र के लोगों के साथ संबंध स्थापित करना इत्यादि अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस अवस्था में व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यान न देकर अपने अतीत की सफलताओं एवं असफलताओं का स्मरण एवं मूल्यांकन करता है। 

▪️एरिक्सन के अनुसार इस स्थिति में किसी नयी मनोसामाजिक शक्ति की उत्पत्ति नहीं होती है। एरिक्सन के मतानुसार परिपक्वता ही इस अवस्था की प्रमुख मनोसामाजिक शक्ति है। इस अवस्था में व्यक्ति वास्तविक अर्थों में परिपक्व होता है, किन्तु कुछ व्यक्ति जो अपनी जिन्दगी में असफल रहते है। वे इस अवस्था में चिन्तित रहने के कारण निराशाग्रस्त रहते हैं तथा अपने जीवन को भारस्वरूप समझने लगते हैं। यदि यह निराशा और दुश्चिन्ता लगातार बनी रहती है तो वे मानसिक विषाद से ग्रस्त हो जाते है। 

▪️इस प्रकार स्पष्ट है कि एरिक्सन के अनुसार मनोसामाजिक विकास की आठ अवस्थायें है जिनसे होते हुये क्रमश: मानव का व्यक्तित्व विकसित होता है। 

✍️

    Notes By-‘Vaishali Mishra’

☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️ किशोरावस्था(Adolescence)  पहचान बनाम पहचान  भ्रांति /अहम पहचान बनाम भूमिका   भ्रांति (Ego identity vs Role confusion 12 to 20 y)–

 🌍 किशोरों में सामाजिकता के  विभिन्न पहलू विकसित होते हैं। जिससे वह अपनी एक समृद्ध पहचान बनाने में सक्षम  होते हैं। एरिक्सन का कहना है कि जब किशोर अपनी पहचान बना लेता है ।यह भूमिका भ्रांति से उत्पन्न होनेवाले समस्या का समाधान कर लेता है। तो उसमें कर्तव्यनिष्ठा नामक सामाजिक शक्ति आ जाती है ।

“कर्तव्यनिष्ठ”

 किशोरों में समाज की विचारधारा मानक शिष्टाचार के अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता ।

💥एरिक्सन के अनुसार– जो किशोरों में कर्तव्यनिष्ठ पता होती है ।यह उनके व्यक्तित्व के विकास को इंगित करता है  ।

➡️तरुण वयस्कता Early adulthood /आत्मीयता बनाम अलगाव/ घनिष्ट  बनाम विलगन (20 to 30 )

इस उम्र में व्यक्ति विवाह के प्रारंभिक  पारिवारिक जीवन में प्रवेश करता है इस अवस्था में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपना जीविकोपार्जन शुरू कर देता है। समाज के सदस्य भाई-बहन अन्य संबंधी के साथ घनिष्ठ  संबंध स्थापित करता है ।स्वयं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है।

 अगर व्यक्ति इन सभी कार्यों में सक्षम नहीं हो पाता तो व्यक्ति अपने आप में ही हुए रहता है। दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर  सकता है।  इसे अलगाव या विलन कहा जाता है।

🌲 विलगन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का व्यवहार मनोविकार और गैर सामाजिक हो जाता है।

 ➡️मध्य वयस्कता / उत्पादकता बनाम स्थिरता /जनन आत्मक बनाम स्थिरता (productive vs sustainability 30 to 65 y)

💥इस समय पर लोगों में उत्पादकता की भावना आ जाती है भावी पीढ़ी के कल्याण के बारे में सोचने लगते हैं समाज को उन्नत बनाने की की कोशिश करते हैं ।

इस अवस्था में व्यक्ति स्वयं के तथा परिवार की सुख सुविधाओं का ध्यान रखता है और अपनी आवश्यकता के बारे में ही सोचता है ।

💥मनोसामाजिक–  शक्ति देखभाल जिससे दूसरे की सुख सुविधा के बारे में सोचने लगता है ।

🌲अगर 30 65 में उत्पादक  ना हो तो स्थिरता आ जाती है। स्थिरता यह जीवन में संघर्ष करने के लिए मजबूर कर देता है।

➡️ परिपक्वता( maturity) संपूर्णता बनाम निराशा ( Identity vs despair 65 से जीवन की अंतिम अवस्था तक/ वृद्धावस्था) 

🌲व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य समाज परिवार के साथ संयोजन करना पड़ता है। और अपने उम्र के लोगों के साथ व्यवहारिक संबंध स्थापित करते हैं ।

💥इस उम्र में अनेक चुनौतियां का सामना भी करना पड़ता है ।

💥इस अवस्था में व्यक्ति भविष्य के बारे में ना सोच कर वहां भूतकाल अतीत से प्राप्त सफलताओं तथा असफलताओं को स्मरण करता है ।और उनका मूल्यांकन करता है ।

🌍एरिकसन कहते हैं ।कि कोई मनोसामाजिक संस्कृति उत्पन्न नहीं होती ।

वास्तव में परिपक्वता ही प्रमुख मनोसामाजिक  शक्ति है अब वास्तव में आप परिपक्व होते हैं। कुछ व्यक्तिगत जिंदगी में असफल होते हैं।  इस अवस्था में उस चिंता के कारण  निराशा ग्रस्त रहते हैं। वह अपने जीवन को बाहर समझने लगते हैं और

 निराशा दुश्चिंता बनी रहती है। 

🌲मानसिक विषाद से  ग्रस्त होते हैं।

☘️☘️🌴🌴🌻🌻🦚🦚🌺🌺🌲🌲💥♦️♦️📚Notes by poonam sharma

🌸🔅एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत🔅🌸➖️➖️➖️➖️➖️

🌸एरिक्सन के अनुसार मनोसामाजिक सिद्धात कई चरणों में होते हैं मनोसामाजिक से आशय

  🔅मन +समाज➖️

🔅मन – व्यक्तिगत सोच

🔅समाज -चारों ओर का वातावरण

🌲एरिक्सन के अनुसार मन का व्यक्तित्व एक बार में नहीं होता यह चरणों में होता है इसके 8 चरण होते हैं➖️

🌲शैशवावस्था

(0से 1 वर्ष) विश्वास अविश्वास

🌲प्रारंभिक बाल्यावस्था( 1 से 3 वर्ष

)स्वायत्तता बनाम शर्म लज्जा सिलता

🌲खेल की अवस्था (3 से 6 वर्ष)

 पहल शक्ति बनाम अपराध बोध

पहल शक्ति वनाम दोषिता 

 🌲स्कूल अवस्था (6 से 12 वर्ष )

परिश्रम उधम बनाम हीनता भावना

 🌲किशोरावस्था  -( 12 से 20 )

पहचान बनाम पहचान भ्रांति अहं पहचान बनाम भूमिका भ्रांति

🌲तरुण व्यस्तता  – आत्मीयता बनाम अलगाव

घनिष्टता बनाम विलगन( 20 से 30 वर्ष)

🌲मध्य व्यस्तता- उत्पादकता बनाम स्थिरता,जनन आत्मक बनाम स्थिरता (30 से 65 वर्ष)

🌲परिपक्वता -संपूर्णता बनाम निराशा (65 – जीवन की अंतिम अवस्था)

🌲शैशवावस्था( 0 से 1 बार )

विश्वास बनाम अविश्वास

यह अवस्था  फ्राइडे के मनो लैंगिक सिद्धांत के मुखावस्था से समानता रखती है

✏️एरिक्शन का मानना है कि इस व्यवस्था जीरो से 1 वर्ष रहती है परीक्षण के अनुसार बच्चे में धनात्मक विकास होता है बच्चों को स्वयं एवं दूसरों के प्रति विश्वास आस्था श्रद्धा की भावना जागृत होती है इससे व्यक्ति का स्वास्थ्य व्यक्तित्व का विकास होता है

अगर मां के द्वारा समुचित पालन पोषण नहीं बुआ और मां बच्चों की तुलना में दूसरे कार्यों में व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है तो बच्चों में  हीनता ,अविश्वास, डर,आशंका ,ऋणात्मक, गुण विकसित होने लगते हैं

फिर उन्होंने कहा कि जब शेष अवस्था में बच्चा विश्वास बना अविश्वास के द्वंद का ठीक-ठीक सही ढंग से विकास कर लेता है तो उसमें आशा नामक मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है

आशा का मतलब यह एक ऐसी शक्ति है जिसके कारण बच्चों में अपने अस्तित्व या जो उसका सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से समझने की क्षमता विकसित करता है

🌲प्रारंभिक बाल्यावस्था (1-3year)

स्वायत्तता बनाम शर्मा

लज्जा शीलता➖️

✏️यह फ्रॉयड के मनौलैंगिक विकास के गुदावश्था से समानता रखते हैं

अगर माता-पिता अपना नियंत्रण रखते हुए स्वयं से कार्य करने की अनुमति देते हैं तो बालक स्वतंत्र रूप से विकसित होता है तथा धनात्मक विकास होता है

माता-पिता अपना नियंत्रण रखकर इच्छा अनुसार कार्य करने दे बालकों को

 अगर माता-पिता बच्चों को स्वतंत्र रूप से नहीं छोड़ेंगे तो बच्चों में लज्जा शीलता आ जाती है और उसको अपने ऊपर शक हो जाता है आत्म हीनता अपने ऊपर शक करने लगता है यह स्वस्थ व्यक्तित्व की निशानी नहीं है

✏️एरिक्शन के अनुसार जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम लज्जा शीलता के द्वंद को दूर कर लेता है तो उसमें जो शक्ति उत्पन्न होता है जो मनौ सामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है उसे इच्छाशक्ति का नाम दिया गया

 इच्छा शक्ति    इसका आशय ऐसी शक्ति से है जिसके कारण बच्चे अपनी रूचि के अनुसार स्वतंत्र होकर कार्य करता है तथा साथ ही उसमें आत्म नियंत्रण, आत्म संयम, का गुण भी आता है

🌲खेल अवस्था पहल बनाम अपराध बोध पहल शक्ति बनाम दोशिता (3-6year)➖️

इस उम्र में  बच्चा ठीक ढंग से बोलना, चलना,दौड़ना,खेलना,कूदने,नए कार्य करना, घर से बाहर अपने साथियों के साथ मिलकर नई नई जिम्मेदारी निभाने लगता है

 इन सब से बच्चों को खुशी मिलती है

इस उम्र में बच्चे को पहली बार यह लगने लगता है कि कोई जिंदगी का  मकसद है उस मकसद या लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है

 लेकिन इसके विपरीत जब अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक कार्य में भाग लेने से रोक दिया जाता है अथवा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य के लिए इन कार्य के लिए उन्हें दंडित किया जाता है तो बच्चों में अपराध की भावना जागृत होने लगती है

इस प्रकार के बच्चों में लैंगिक नपुंसकता और निष्क्रियता की प्रकृति जन्म लेती है

✏️एरिक्शन के अनुसार जब बच्चा पहलशक्ति बनाम        दोषिता का सफलतापूर्वक कर लेता है

तो उसमें “उद्देश्य “नामक नई मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है

 🌲स्कूल अवस्था परिश्रम बनाम हीनता भावना➖️

✏️यह फ्रॉयड की मनोलेंगिक विकास की अवस्था वेयश्कता की अवस्था है इसमें पहली बार औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं आसपास के लोगों के व्यवहार कैसे बातचीत करना है

व्यावहार कौशल सीखते हैं उनमें परिश्रम की भावना आती है

उनमें शिक्षक पास पड़ोस से भी परिश्रम की भावना विकसित होती है

लेकिन अगर यह नहीं हुआ किसी कारणवश तो स्वयं की क्षमता पर संदेह करने लगते हैं

आत्म हीनता की भावना

अगर परिश्रम बनाम हीनता में संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो  “समर्थता “नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है

🌲किशोरावस्था   (12-20)

पहचान बनाम पहचान

अहं पहचान बना भूमिका भ्रान्ति➖️

किशोरावस्था में सामाजिकता में विभिन्न पहलू विकसित होते हैं जिसमें वह अपनी एक सूद्रढ पहचान बनाने में सक्षम होते हैं

✏️एरिक्सन का कहना है   कि जब किशोरावस्था  अपनी पहचान बना लेता है या भूमिका भ्रांति से उत्पन्न होने वाले समस्या को समाधान कर लेता है

तो उसमें “कर्तव्यनिष्ठा” नामक सामाजिक शक्ति आती है

कर्तव्यनिष्ठा मतलब    -किशोरों में समाज की विचारधारा मानक शिष्टाचार के अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता को कहते हैं

✏️एरिक्सन कहते है किशोरों में कर्तव्यनिष्ठा उनके व्यक्तित्व का विकास को इंगित करता है

🌲तरुण आवश्यकता(20-30) आत्मीयता बनाम अलगाव घनिष्ठता बनाम बिलगन

 ➖️इस उम्र में व्यक्ति विवाह की प्रारंभिक पारिवारिक जीवन में प्रवेश  करते हैं इस अवस्था में स्वतंत्र रूप से जीविकोपार्जन शुरू कर देते हैं

 समाज के सदस्य, भाई-बहन,अन्य संबंधी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है इसके साथ साथ व्यक्ति स्वयं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है

अगर व्यक्ति इन कार्यों में समझ नहीं हो पाती है तो व्यक्ति अपने आपको में खोए रहते हैं दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाते हैं इसे अलगाव या बलगन कहा जाता है

 अगर बिलगन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का व्यवहार मनो विकारी और गैर सामाजिक हो जाता है

🌲मध्यव्यश्कता (30-65)

उत्पादकता बनाम स्थिरता जननात्मक बनाम स्थिरता ➖️इस उम्र में बच्चों में उत्पादकता की भावना

 भावी पीढ़ी के लिए कल्याण समाज को उन्नत बनाने की कोशिश

स्वयं परिवार की सुरक्षा सुविधा अपनी आवश्यकता आदि का विकास होने लगता है

मनोसामाजिक शक्ति “देखभाल” नामक शक्ति का विकास होता है

व्यक्ति दूसरों की खुशी सुख सुविधा और कल्याण के बारे में सोचता है अगर 30 से 65 में उत्पादक ना हो तो उसमें स्थिरता आ जाती है जीवन से संघर्ष करने पर मजबूर कर देता है

🌲परिपक्वता( 65-जीवन पर्यन्त)➖️

 संपूर्णता बनाम निराशा

➖️ इस अवस्था  को वृद्धावस्था भी बोलते हैं

यह जीवन की अंतिम अवस्था होती है

इसमें स्वास्थ्य परिवार समाज के साथ समायोजन करना है इस उम्र में अपनी उम्र के लोगों के साथ व्यावहारिक संबंध स्थापित करते हैं

 उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है

 इस अवस्था में व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यान ना देकर अतीत की अवस्थाओं पर याद करते हैं

✏️एरिक्सन कहते हैं➖️ कि कोई मनोसामाजिक संस्कृति उत्पन्न नहीं होती है वास्तव में परिपक्वता ही प्रमुख मनोसामाजिक सकती है वास्तविक वास्तव में आप ही परिपक्व होते हैं कुछ व्यक्ति जो जिंदगी में असफल होते हैं इन अवस्था चिंता के कारण निराश ग्रस्त रहते हैं अपने जीवन को भार समझते हैं निराशा दुश्चिंता बनी रहती है मानसिक विषाद से ग्रस्त होते हैं

Notes by sapna yadav📝📝📝📝📝📝📝

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🈵 एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत➖ 

एरिक्सन ने मनोसामाजिक विकास की 8 अवस्थाएं बताई हैं इन 8 अवस्थाओं में अलग-अलग प्रकार से मनुष्य का व्यक्तित्व विकास होता है जो कि निम्न प्रकार से है ➖

1) विश्वास बनाम अविश्वास (शैशावस्था) ➖0-1 वर्ष 

2)  स्वतंत्रता बनाम शर्म ( प्रारंभिक बाल्यावस्था) ➖1 – 3 वर्ष 

3) पहल शक्ति बनाम अपराध बोध (खेल अवस्था ) ➖3 – 6 वर्ष

4)  परिश्रम बनाम हीन भावना (स्कूल अवस्था) ➖ 6 – 12 वर्ष 

5) पहचान बनाम  भूमिका भ्रांति (किशोरावस्था ) ➖12 – 20 वर्ष 

6) आत्मीयता बनाम अलगाव (तरुण वयस्कता) ➖ 20 – 30 वर्ष 

7) उत्पादकता बनाम स्थिरता( मध्य व्यस्कता)  ➖ 30 – 65 वर्ष

 8) संपूर्णता बनाम निराशा ( परिपक्वता) ➖ 65 से जीवन की अंतिम अवस्था तक 

📛 पहचान बनाम पहचान भ्रांति / अहम् पहचान बनाम भूमिका भ्रांति ( Ego identity vs role confusion

किशोरावस्था( Adolescence) ➖ 12 – 20 वर्ष

किशोरों में सामाजिकता के विभिन्न पहलू विकसित होते हैं जिससे वह अपनी एक सुदृढ़ पहचान बनाने में सक्षम होते हैं |

      एरिक्सन का कहना है कि जब किशोर अपनी पहचान बना लेता है या भूमिका भ्रांति से उत्पन्न होने वाली समस्या का समाधान कर लेता हैं तो उसमें “कर्तव्यनिष्ठता” नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है  |

       “कर्तव्यनिष्ठाता ” किशोरों में समाज की विचारधारा, मानक, शिष्टाचार के अनुरूप कार्य करने की क्षमता के अनुसार होती है |

    एरिक्सन कहते हैं कि किशोरों में कर्तव्यनिष्ठाता उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करता है |

📛 आत्मीयता बनाम अलगाव/  घनिष्ठता बनाम विलगन (Intimacy vs isolation)

तरुण वयस्कता Early adulthood) ➖ 20 -30 वर्ष 

इस उम्र में  व्यक्ति विवाह के प्रारंभिक पारिवारिक जीवन में प्रवेश करता है इस अवस्था में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीविकोपार्जन शुरू कर देता है और उसके साथ-साथ समाज के सदस्य भाई-बहन एवं अन्य संबंधी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है तथा व्यक्ति स्वयं  के साथ भी घनिष्ट संबंध स्थापित कर लेता है |

        अगर व्यक्ति इन कार्यों में सक्षम नहीं हो पाता है तो वह अपने आप मेंही खोए  रहता है एकाकीपन में चला जाता है खुद को अकेला महसूस करता है तथा दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाता है इसे अलगाव या विलगन कहा जाता है |

             विलगन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का व्यवहार मनोविकारी और गैर सामाजिक हो जाता है  |

📛 उत्पादकता बनाम स्थिरता/  जननात्मकता बनाम स्थिरता ( Productivity vs sustainability) 

मध्यवयस्कता  ( Middle adulthood)➖ 

30 – 65 वर्ष

इस उम्र में व्यक्ति उत्पादकता की भावना में रहता है भाभी पीढ़ी के कल्याण के बारे में सोचता है समाज को उन्नत बनाने की कोशिश करता है और  परिवार एवं स्वयं की सुख सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश करता है |

       एरिक्सन कहते हैं कि यहां  “देखभाल” नामक मनोसामाजिक शक्ति का जन्म होता है  जिसके कारण व्यक्ति दूसरों के सुख सुविधा और कल्याण के बारे में सोचता है |

    एरिक्सन कहते हैं कि यदि इसके विपरीत उत्पादकता ना हो तो इस उम्र में स्थिरता आ जाती है जो संघर्ष करने पर मजबूर कर देता है |

 📛 संपूर्णता बनाम निराशा 

 परिपक्वता (Maturity) ➖65 से जीवन की अंतिम अवस्था तक

इस अवस्था में व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य, परिवार और समाज के साथ समायोजन करना पड़ता है |

     अपनी उम्र के लोगों के साथ पारिवारिक संबंध स्थापित करते हैं उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तथा व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यान ना देकर अतीत की सफलता और असफलता का मूल्यांकन करता है  |

          एरिक्सन कहते हैं कि  इस अवस्था में कोई मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न नहीं होती है वास्तव में परिपक्वता ही प्रमुख शक्ति है |अब वास्तव में व्यक्ति परिपक्व होता है |

         इसके  विपरीत कुछ व्यक्ति जो जिंदगी में असफल होते हैं तो भी इस अवस्था में चिंता के कारण निराशाग्रस्त रहते हैं वे उनके जीवन  को भार समझते हैं उनमें सदैव निराशा और दुश्चिंता बनी रहती है तथा मानसिक विषाद से ग्रस्त होते हैं  |

नोट्स बाय  ” रश्मि सावले “

🍀🌼🌸🌺🌻🌹🍀🌼🌸🌺🌻🌹🍀🌼🌸🌺🍀🌼🌸🌺🌻🌹

एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत

एरिक्सन ने अपने मनोसामाजिक सिद्धांत मे व्यक्ति की आठ अवस्थाओं का वर्णन किया है

1. शैशवावस्था -जन्म से लेकर 1 वर्ष तक

विश्वास बनाम अविश्वास

2. प्रारंभिक बाल्यावस्था -1 वर्ष से 3 वर्ष तक

स्वतंत्रता बनाम शर्म

3. खेल अवस्था- 3 से लेकर 6 वर्ष तक

पहल शक्ति बनाम दोषिता

4.  स्कूल अवस्था- 6 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक

परिश्रम बनाम हीनता

5. किशोरावस्था- 12 से 20 वर्ष तक

पहचान बनाम पहचान भ्रांति

अहं पहचान बनाम भूमिका भ्रांति

Ego identity Vs role confusion

इस अवस्था में किशोरों में सामाजिकता के विभिन्न पहलु विकसित होते हैं। जिससे वह अपनी एक सुदृढ़ पहचान बनाने में सक्षम होते हैं

एरिक्सन का कहना है कि जब किशोर अपनी पहचान बना लेता है या भूमिका भ्रांति से उत्पन्न होने वाली समस्या का समाधान कर लेता है तो उसमें *कर्तव्यनिष्ठता* नामक मनोसामाजिक शक्ति आती है।

कर्त्तव्यनिष्ठता –  किशोरों में समाज की विचारधारा ,मानक, शिष्टाचार के अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता

एरिक्सन के अनुसार, किशोरो में कर्तव्यनिष्ठता उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करती है।

6. तरुण वयस्कता -20 से 30 वर्ष तक

आत्मीयता बनाम अलगाव

घनिष्ठता बनाम विलगन/अकेलापन

इस उम्र में व्यक्ति विवाह के प्रारंभिक पारिवारिक जीवन में प्रवेश करता है।

इस अवस्था में स्वतंत्र रूप से जीविकापार्जन शुरू कर देते हैं।

समाज के सदस्य ,भाई-बहन ,अन्य संबंधी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है।

व्यक्ति स्वयं के साथ भी घनिष्ठ  संबंध स्थापित करता है।

अगर

व्यक्ति इन कार्यों को करने में सक्षम नहीं हो पाता है।

तो व्यक्ति अपने आप में खोया रहता है।

दूसरों के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाता है।

इसे ही अलगाव या विलगन कहा जाता है।

विलगन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का व्यवहार मनोविकारी और गैर सामाजिक हो जाता है।

7. मध्यवयस्कता -30 से 65 साल तक

उत्पादकता बनाम स्थिरता

जननात्मकता बनाम स्थिरता

इस उम्र में व्यक्ति में

उत्पादकता की भावना

भावी पीढ़ी के कल्याण की सोच

समाज को उन्नत बनाने की कोशिश करना

स्वयं और  परिवार की सुख सुविधाओं का ध्यान रखना

अपनी आवश्यकता को पूरा करने की कोशिश करता है।

अगर 

व्यक्ति 30 से 65 साल की उम्र में उत्पादक ना हो तो उसके जीवन में स्थिरता आ जाती हैं जो व्यक्ति को जीवन से संघर्ष करने पर मजबूर कर देती है।

एरिक्सन का कहना है कि जब व्यक्ति उत्पादक बन जाता है तब उसमें *देखभाल* की मनोसामाजिक शक्ति आती है।

देखभाल -व्यक्ति दूसरों की सुख सुविधाओं और कल्याण के बारे में  सोचता है।

8.  परिपक्वता या वृद्धावस्था – 65 वर्ष से जीवन की अंतिम अवस्था तक

संपूर्णता बनाम निराशा

इस अवस्था में व्यक्ति

अपने स्वास्थ्य, परिवार एवं समाज के साथ समायोजन 

करता है

अपनी उम्र के लोगों के साथ व्यावहारिक संबंध स्थापित करते हैं।

अनेक चुनौती का सामना करता है।

व्यक्ति अपने भविष्य की ओर ध्यान न देकर अतीत की सफलता असफलता का मूल्यांकन करता है।

एरिक्सन कहते हैं कि इस अवस्था में कोई मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न नहीं होती है

वास्तव में परिपक्वता ही प्रमुख मनोसामाजिक शक्ति हैं अब वास्तव में आप परिपक्व होते हैं।

कुछ व्यक्ति जो जिंदगी में असफल होते हैं वह इस अवस्था में उस चिंता के कारण निराशाग्रस्त हो जाते हैं

अपने जीवन को भार समझते हैं

निराशा और दुश्चिंता बनी रहती है

मानसिक विषाद से ग्रस्त होते हैं।

Notes by Ravi Kushwah

🌼🌸 Erik Erikson 🌸🌼

🌼🌸 एरिक एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत 🌸🌼

✳️ शैशवास्था

विश्वास बनाम अविश्वास

जन्म से 1 वर्ष

✳️ प्रारंभिक बाल्यावस्था

     स्वायत्तता बनाम शर्म

     1-3 वर्ष

✳️ खेल अवस्था

     पहल बनाम अपराध बोध।    

     3-6 वर्ष     

✳️ स्कूल अवस्था

     परिश्रम /उद्यम बनाम हीन भावना

     6-12 वर्ष

✳️ किशोरावस्था adolescence

पहचान बनाम पहचान भ्रांति  

अहं पहचान बनाम भूमिका भ्रांति

Ego Identity versus role confusion

Age 12-20 years

🔺 किशोरों में सामाजिकता के विभिन्न पहलु विकसित होते हैं जिससे वह अपनी एक सुदृढ़ पहचान बनाने में सक्षम होते हैं।

एरिक्सन का कहना है कि जब किशोर अपनी पहचान बना लेता है या भूमिका भ्रांति से उत्पन्न होने वाले समस्या का समाधान कर लेता है तो उसमें कर्तव्यनिष्ठता नामक मनोसामाजिक शक्ति आती है ।

कर्तव्यनिष्ठता

 किशोरों में समाज की विचारधारा, मानक, शिष्टाचार के अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता।

 एरिक्सन के अनुसार किशोरों में कर्तव्यनिष्ठता उनके व्यक्तित्व विकास को इंगित करता है।

✳️ तरूण व्यस्क था early adulthood

आत्मीयता बनाम अलगाव घनिष्ठता बनाम विलगन 

Intimacy vs isolation

 20-30  वर्ष

इस उम्र में व्यक्ति विवाह के प्रारंभिक पारिवारिक जीवन में प्रवेश करते हैं।

इस अवस्था में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपना जीवकोपार्जन शुरू कर देते हैं।

समाज के सदस्य भाई-बहन अन्य संबंधी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है।

व्यक्ति स्वयं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है।

 अगर व्यक्ति में इन सभी कार्यों में सक्षम नहीं हो पाता तो व्यक्ति अपने आप में खोया रहता है।

 दूसरे के साथ संतोषजनक संबंध कायम नहीं कर पाता इसे अलगाव या विलगन कहा जाता है।

विलगन की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति का व्यवहार मनोविकारी और गैर समाजिक हो जाता है।

✳️ मध्य व्यस्कता  middle adulthood

उत्पादकता बनाम स्थिरता 

जननात्मकथा बनाम स्थिरता

30-65 वर्ष

– उत्पादकता की भावना होती है।

 – अपनी भावी पीढ़ी के कल्याण की सोचती है ।

– समाज को उन्नत बनाने की कोशिश करते हैं ।

– स्वयं परिवार की सुख सुविधा को ध्यान में रखते हैं।

– अपने समाज को उन्नत बनाते हैं । 

अगर इन सभी कार्यों में सक्षम हो जाता है तो उसके अंदर “देखभाल “नामक समाजिक शक्ति का सृजन होता है ।

देखभाल — व्यक्ति दूसरों की सुख सुविधा और कल्याण के बारे में सोचता है।

अगर 30 से 65 वर्ष में उत्पादकता बाद ना हो तो स्थिरता जाती है स्थिरता जीवन में संघर्ष करने पर मजबूर कर देता है।

✳️ वृद्धावस्था /परिपक्वता maturity

 संपूर्णता बनाम निराशा

Integrity vs despair

65 से जीवन की अंतिम अवस्था तक 

-इस उम्र में व्यक्ति स्वास्थ्य, परिवार एवं समाज के साथ फिर से समायोजन करने लगता है।

– अपने उम्र के लोगों के साथ व्यवहारिक संबंध स्थापित करते हैं।

– अनेक चुनौती का सामना करना।

– व्यक्ति भविष्य की ओर ध्यान न देकर अतीत की सफलता असफलता का मूल्यांकन करता

 है।

– इस उम्र में अतीत के बारे में चर्चा करना सुखद होता है अगर साकारात्मक जीवन रहा है तो अपनी सारी बातों को लोगों से साझा करता है।

एरिक्सन के अनुसार इस समय उन्में कोई मनोसामाजिक संस्कृति  उत्पन्न नहीं होती।

 वास्तव में परिपक्वता ही प्रमुख मनोसामाजिक शक्ति है अब वास्तव में आप परिपक्व होते हैं।

 कुछ व्यक्ति जो जिंदगी में असफल होते हैं वे इस अवस्था  में उस चिंता के कारण निराशाग्रस्त रहते है।

अपने जीवन को भार समझने लगते हैं।

 निराशा , दुश्चिंता बनी रहती है।

 मानसिक  निषाद से ग्रस्त होते हैं।

 धन्यवाद 

वन्दना शुक्ला 🌺

43. CDP – Erikson theory of psychosocial development PART- 1

23 मार्च 2021……………शनिवार

            TODAY CLASS 

  एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत

———————————————–

मन➖हमारा व्यक्तिगत सोच

समाज➖हमारे चारो ओर का वातावरण 

🙏इन दोनो का संबंध ही एक इन्सान का अस्तीत्व है🙏

➖प्रत्येक मनोवैज्ञानिक मे जिन्होने भी व्यक्तित्व के बारे मे बात की सब ने बताया। तब एरिक्सन ने बोला मानव का व्यक्तित्व एक बार में विकसित नहीं होता यह चरणों में विकसित होता है इन्होंने कुल 8 अवस्थाएं बताएं हैं

 इन  8 अवस्थाओं में अलग-अलग प्रकार से मनुष्य का व्यक्तित्व विकास होता हैजो निम्नलिखित है….

(1)➖शैशवावस्था (0 से 1वर्ष) विश्वास बनाम अविश्वास

(2)➖ प्रारंभिक बाल्यावस्था(1 से 3वर्ष) स्वायत्तता बनाम शर्म

(3)➖ खेल की अवस्था(3 से 6 वर्ष) पहलशक्ति बनाम अपराध बोध

(4)➖ स्कूल अवस्था(6 से 12 वर्ष) परिश्रम बनाम उद्यमिता/ हीनता

(5)➖ किशोरावस्था (12 से 20 वर्ष ) पहचान बनाम पहचान भ्राति /भुमिका भ्राति

(6)➖ तरूपा वयस्कता (20 से 30 वर्ष) घनिष्ठता /आत्मीयता बनाम अलगाव

(7)➖ मध्यव्यस्क्ता  (30 से 65 वर्ष) उत्यादक्ता बनाम स्थिरता

(8)➖ वृद्धावस्था/ परिपक्वता (65. से जीवन के अंत तक) संपूर्णता बनाम निराशा

🔥1️⃣ शैशवावस्था ( 0 से 1वर्ष ) विश्वास बनाम विश्वास

➖ यह प्रथम अवस्था फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांत के व्यक्तित्व विकास की प्रथम अवस्था (मुख अवस्था) से समानता रखती है

➖ एरिकसन की मान्यता है कि शैशवावस्था की आयु जन्म से 1 वर्ष रहती है ।इस उम्र मे जब माँ के द्वारा बच्चे की देखभाल जब पर्याप्त मात्रा में की जाती है तो

➖एरिक्सन के अनुसार :—बच्चों में धनात्मक विकास होती है तब बच्चों को स्वयं एवं दूसरों के प्रति विश्वास, आस्था, श्रद्धा की भावना जागृत होती है इससे बच्चों का स्वस्थ्य व्यक्तित्व का विकास होता है

❎ लेकिन इनके विपरीत

➖ मां के द्वारा अगर समुचित पालन पोषण नहीं है तो मां बच्चों की तुलना में दूसरे कार्य हो और व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है तो ऐसे में बच्चों में अविश्वास हीनता डर असम का एशिया का जन्म हो जाएगा तो बच्चों के अंदर ऋणात्मक गुण आ जाता है 

➖ एरिकसन:—-

 जब शैशवावस्था में बच्चा विश्वास बना और विश्वास का द्वंद का समाधान सही ढंग से कर लेता है तो उसमें “आशा “नामक मनो सामाजिक शक्ति  विकसित होती है ये एक ऐसी समझ,शक्ति है जिसके कारण बच्चों में अपने अस्तित्व एवं उनके सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से समझने की क्षमता विकसित करता है

🔥2️⃣ प्रारंभिक बाल्यावस्था (1 से 3 वर्ष ) स्वायत्तता बनाम शर्म/ लज्जा

➖ यह फ्रायद के मनोलैंगिक विकास के ( गुदा अवस्था) से समानता रखती है

➖ माता पिता अपने नियंत्रण रखते हुए बच्चे को इच्छा अनुसार कार्य करने दे

❎लेकिन इसके विपरीत

➖माता-पिता बच्चों को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाए तो लज्जाशीलता आ जाएगी और अपने ऊपर शक होने लगेगा ,आत्म हीनता आ जाती है, जो यह स्वस्थ व्यक्तित्व की निशानी नहीं है

➖एरिक्सन के अनुसार:—

जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम  लज्जाशीलता के द्वंद को दूर कर लेता है इसमें जो मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है उसे (इच्छाशक्ति )का नाम दिया।

➖ इच्छा शक्ति से इसका आशय एक एसी शक्ति से है जिसके कारण बच्चा अपनी रूचि के अनुसार स्वतंत्र होकर कार्य करता है तथा साथ ही उसमें आत्मनियंत्रण /आत्म संयम का गुण भी आता है

3️⃣खेल की अवस्था (3 से 9 वर्ष ) पहल शक्ति बनाम अपराध बोध/ दोषित 

➖ यह फ्राइड के मनो लैंगिक विकास की तीसरी अवस्था लैंगिक प्रधानाअवस्था से मिलती है

➖ इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलना, खेलना, चलना ,दौड़ना, नए कार्य करना ,घर के बाहर अपने साथियों के साथ मिलकर नई नई जिम्मेदारी निभाने लगता है

➖ इन सब से बच्चे को खुशी मिलती है पहली बार उनको लगता है कि उनकी जिंदगी का कोई मकसद है। उन्हें उस मकसद दिया लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए।

❎ लेकिन इसके विपरीत

➖ जब अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक कार्य में भाग लेने से रोक दिया जाता है अथवा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य के लिए अगर दंडित किया जाता है तो उसे अपराध बोध की भावना जन्म लेने लगती है

➖ इस प्रकार के बच्चों में लैंगिक नपुंसकता और निष्क्रियता की प्रवृत्ति जन्म लेती है

➖ एरिक्सन के अनुसार:—

जब बच्चा पहल सकती बनाम दोषित का सफलतापूर्वक हल कर लेता है तो उसमें “उद्देश्य “नामक नई मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है

🔥4️⃣ स्कूल अवस्था (6 से 12 वर्ष)  परिश्रम उधम बनाम हीन भावना

➖ यह फ्राइड की मनो लैंगिक विकास की अवयक्त अवस्था से जुड़ा है

➖ पहली बार बच्चे औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं आसपास के लोगों से व्यवहार सिखना ,कैसे बातचीत करना है, व्यवहार कौशल कैसा होना चाहिये, उनमें परिश्रम की भावना आती है, शिक्षक ,पास -परोस से भी परिश्रम की भावना विकसित होती है

❎ लेकिन इसके विपरीत

अगर किसी कारण बस यह नहीं हुआ तो बच्चा स्वयं की क्षमता पर संदेह करने लगता है जिससे उसमें आत्म  हीनता की भावना आ जाती है, स्वस्थ्य व्यक्तित्व बाधक हो जाएगा 

➖ एरिक्सन के अनुसार:—

अगर बच्चा परिश्रम बनाम हीनता के संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो “सामर्थ्यता” नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है

🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥

✍✍✍Notes by:— संगीता भारती✍✍ ✍

🔆 एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत

(Erickson =Psycho +Social Theory)

एरिक्सन के मनोसामाजिक विकास की आठ अवस्थाएं बताई गई है इन अवस्था में अलग-अलग प्रकार से मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास होता है।

🔆 मनोसामाजिक विकास की अवस्थायें-

▪️प्रत्येक मनोवैज्ञानिक ने अपने-अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की विकास की कुछ अवस्थायें बतायी है, जो क्रमश: एक के बाद एक आती है और उनसे होकर मानवीय व्यक्तित्व क्रमश: विकसित होता जाता है। इसी क्रम में एरिक्सन ने भी मनोसामाजिक विकास की आठ अवस्थाये बतायी है, जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार से मानवीय व्यक्तित्व विकसित होता है। इन अवस्थाओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-

📍1शैशवावस्था: विश्वास बनाम अविश्वास (infancy: trust versus mistrust) 

📍2 प्रारंभिक बाल्यावस्था: स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता/स्वतंत्रता बनाम शर्म  (Early childhood: Autonomy versus shame) 

📍3 खेल अवस्था: पहल शक्ति बनाम दोषिता/पहल बनाम अपराध बोध (play age: initiative versus guilt) 

📍4 स्कूल अवस्था: परिश्रम बनाम हीनता/उद्यम बनाम हीनता (school age: indurtriy versus injeriority)

 इनका  वर्णन निम्न अनुसार है

❇️1 शैशवावस्था: विश्वास बनाम अविश्वास-

▪️ एरिक्सन के अनुसार मनोसामाजिक विकास की यह प्रथम अवस्था है, जो क्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की व्यक्तित्व विकास की प्रथम अवस्था मुख्यावस्था से बहुत समानता रखती है।

▪️ एरिक्सन की मान्यता है कि शैशवावस्था की आयु “जन्म से लेकर लगभग 1 साल” तक ही होती है। 

▪️इस उम्र में माँ के द्वारा जब बच्चे का पर्याप्त देखभाल की जाती है, उसे भरपूर प्यार दिया जाता है तो एरिक्सन के अनुसार बच्चे में सर्वप्रथम धनात्मक गुण विकसित होता है। यह गुण है- बच्चे का स्वयं तथा दूसरों में विश्वास तथा आस्था की भावना का विकसित होना। यह गुण आगे चलकर उस बच्चे के स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास में योगदान देता है

▪️, किन्तु इसके विपरीत यदि माँ द्वारा बच्चे का समुचित ढंग से पालन-पोषण नहीं होता है, माँ बच्चे की तुलना में दूसरे कार्यों तथा व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है तो इससे उस बच्चे में अविश्वास, हीनता, डर , आशंका, ईष्र्या इत्यादि ऋणात्मक अहं गुण विकसति हो जाते हैं, जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करते है। 

▪️एरिक्सन का मत है कि जब शैशवास्था में बच्चा विश्वास बनाम अविश्वास के द्वन्द्व का समाधान ठीक-ठीक ढंग से कर लेता है तो इससे उसमें “आशा” नामक एक विशेष मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है। 

▪️आशा का अर्थ है-” एक ऐसी समझ या शक्ति जिसके कारण शिशु में अपने अस्तित्व एवं स्वयं के सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से समझने की क्षमता विकसित होती है। 

❇️2 प्रारंभिक बाल्यावस्था: स्वतंत्रता बनाम लज्जा शीलता-

 ▪️ मनोसामाजिक विकास की दूसरी अवस्था है, जो लगभग 2 साल से 3 साल की उम्र तक की होती है। यह फफ्रायड के मनोलैंगिक विकास की “गुदाअवस्था” से समानता रखती है। 

▪️एरिक्सन का मत है कि जब शैशवावस्था में बच्चे में विश्वास की भावना विकसित हो जाती है तो इस दूसरी अवस्था में इसके परिणामस्वरूप् स्वतंत्रता एवं आत्मनियंत्रण जैसे शीलगुण विकसित होते है। स्वतंत्रता का अर्थ यहाँ पर यह है कि माता-पिता अपना नियंत्रण रखते हुये स्वतंत्र रूप से बच्चों को अपनी इच्छानुसार कार्य करने दें। जब बच्चे को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाता है तो उसमें लज्जाशीलता, व्यर्थता अपने ऊपर शक, आत्महीनता इत्यादि भाव उत्पन्न होने लगते हैं, जो स्वस्थ व्यक्तित्व की निशानी नहीं है। 

▪️एरिक्सन के अनुसार जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता के द्वन्द्व को सफलतापूर्वक दूर कर देता है तो उसमें एक विशिष्ट मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे उसने “इच्छाशक्ति (will power) नाम दिया है। 

▪️एरिक्सन के अनुसार इच्छा शक्ति से आशय एक ऐसी शक्ति से है, जिसके कारण बच्चा अपनी रूचि के अनुसार स्वतंत्र होकर कार्य करता है तथा साथ ही उसमें आत्मनियंत्रण एवं आत्मसंयम का गुण भी विकसित होता जाता है। 

❇️3. खेल अवस्था:- पहलशक्ति बनाम दोषिता-

▪️ मनोसामाजिक विकास की यह तीसरी अवस्था फ्रायड के मनोलैंगिक विकास की लिंगप्रधानवस्था से मिलती है। यह स्थिति 4 से 6 साल तक की आयु की होती है। 

▪️इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलना, चलना, दोड़ना इत्यादि सीख जाते है। इसलिये उन्हें खेलने-कूदने नये कार्य करने, घर से बाहर अपने साथियों के साथ मिलकर नयी-नयी जिम्मेदारियों को निभाने में उनकी रूचि होती है। इस प्रकार के कार्य उन्हें खुशी प्रदान करते है। और उन्हें इस स्थिति में पहली बार इस बात का अहसास होता हघ्ै कि उनकी जिन्दगी का भी कोई खास मकसद या लक्ष्य है, जिसे उन्हें प्राप्त करना ही चाहिये।

▪️ किन्तु इसके विपरीत जब अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक कार्यों में भाग लेने से रोक दिया जाता है अथवा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य की इच्छा व्यक्त किये जाने पर उसे दंडित किया जाता है तो इससे उसमें अपराध बोध की भावना का जन्म होने लगती है।  

▪️इस प्रकार के बच्चों में लैंगिक नपुंसकता एवं निष्क्रियता की प्रवृति भी जन्म लेने लगती है। 

▪️एरिक्सन के अनुसार जब बच्चा पहलशक्ति बनाम दोषिता के संघर्ष का सफलतापूर्वक हल खोज लेता है तो उसमें उद्देश्य नामक एक नयी मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है। इस शक्ति के बलबूते बच्चे में अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करने की क्षमता तथा साथ ही उसे बिना की सी डर के प्राप्त करने की सामथ्र्य का भी विकास होता है।

❇️4. स्कूल अवस्था: परिश्रम बनाम हीनता-

 ▪️मनोसामाजिक विकास की यह चौथी अवस्था 6 साल की उम्र से आरंभ होकर लगभग 12 साल की आयु तक की होती है। यह फ्रायड के मनोलैंगिक विकास की अव्यक्तावस्था से समानता रखती है। इस अवस्था में बच्चा पहली बार स्कूल के माध्यम से औपचारिक शिक्षा ग्रहण करता है। अपने आस-पास के लोगों, साथियों से किस प्रकार का व्यवहार करना, कैसे बातचीत करनी है इत्यादि व्यावहारिक कौशलों को वह सीखता है, जिससे उसमें परिश्रम की भावना विकसित होती है। यह परिश्रम की भावना स्कूल में शिक्षकों तथा पड़ौंसियों से प्रोत्साहित होती है, 

▪️किन्तु यदि किसी कारणवश बच्चा स्वयं की क्षमता पर सन्देह करने लगता है तो इससे उसमें आत्महीनता कीभावना आ जाती है, जो उसके स्वस्थ व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है। किन्तु यदि बच्चा परिश्रम बनाम हीनता के संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो उसमें सामथ्र्यता नामक मनोसामाजिक  शक्ति विकसित होती है। 

▪️सामथ्र्यता का अर्थ है- किसी कार्य का पूरा करने में शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं का समुचित उपयोग करना है।

✍️

     Notes By-‘Vaishali Mishra’

*एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत* ➖

*मनोसामाजिक = मन + समाज*

(मन➖व्यक्तिगत सोच)

(समाज➖चारो ओर का वातावरण )

💐एरिक्सन ➖ मानव का व्यक्तित्व एक बार में विकसित नहीं होता यह चरणों में विकसित होता है।

 इन्होंने कुल 8 चरण बताएं हैं—

1️⃣ शैशवावस्था ( 0 से 1वर्ष )

       *विश्वास 🆚 अविश्वास*

यह अवस्था *फ्रायड के मनोलैंगिक सिद्धांत के*  _*मुखावस्था*_ से समानता रखती है।

 एरिकसन की मान्यता है कि शैशवावस्था की आयु 0 से 1 वर्ष रहती है ।

🧠एरिक्सन के अनुसार :➖

बच्चों में *धनात्मक विकास होती है तब बच्चों को स्वयं एवं दूसरों के प्रति विश्वास, आस्था, श्रद्धा की भावना जागृत होती है इससे बच्चों का स्वस्थ्य व्यक्तित्व का विकास* होता है।

 लेकिन इनके विपरीत🕳️

मां के द्वारा अगर समुचित पालन पोषण नहीं है तो *मां अगर बच्चों की तुलना में दूसरे कार्य हो और व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है, तो ऐसे में बच्चों में अविश्वास, हीनता, डर , असमंजस का जन्म हो जाएगा जिससे बच्चों के अंदर ऋणात्मक गुण* आ जाता है ।

🧠एरिकसन :➖

 जब शैशवावस्था में बच्चा विश्वास और अविश्वास के द्वंद का समाधान सही ढंग से कर लेता है, तो उसमें *”आशा” नामक मनो सामाजिक शक्ति का विकसित* होती है।

 ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके कारण बच्चों में अपने अस्तित्व एवं उनके सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से समझने की क्षमता विकसित होती है।

 2️⃣प्रारंभिक बाल्यावस्था (1 से 3 वर्ष ) 

*स्वायत्तता 🆚शर्म/लज्जाशीलता*

 *यह फ्रायड के मनोलैंगिक विकास के ( गुदावस्था) से समानता रखती है*।

अगर माता-पिता अपना नियंत्रण रखते हुए बच्चों को स्वयं से कार्य करने की अनुमति देते हैं, तो बालक स्वतंत्र रूप से विकसित होता है तथा उसमें धनात्मक विकास होता है।

लेकिन इसके विपरीत🕳️

माता-पिता के द्वारा बच्चों को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाए तो लज्जाशीलता आ जाएगी और अपने ऊपर शक होने लगेगा ,आत्म हीनता आ जाती है, जो की स्वस्थ व्यक्तित्व की निशानी नहीं है

🧠एरिक्सन के अनुसार :➖

जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम  लज्जाशीलता के द्वंद को दूर कर लेता है, तो *उसमें जो मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है, उसे (इच्छाशक्ति )* का नाम दिया।

 इच्छा शक्ति से इसका आशय एक एसी शक्ति से है, जिसके कारण बच्चा अपनी रूचि के अनुसार स्वतंत्र होकर कार्य करता है। साथ ही उसमें आत्मनियंत्रण /आत्म संयम का गुण भी आता है।

3️⃣खेल की अवस्था (3 से 9 वर्ष ) पहल शक्ति 🆚 अपराध बोध/ दोषित 

यह *फ्रायड के मनोलैंगिक विकास की  लैंगिक प्रधानाअवस्था* से मिलती है।

 इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलना, खेलना, चलना ,दौड़ना, नए कार्य करना ,घर के बाहर अपने साथियों के साथ मिलकर नई-नई जिम्मेदारी निभाने लगता है।

 इन सब से बच्चे को खुशी मिलती है ।पहली बार उनको लगता है कि उनकी जिंदगी का कोई मकसद है। उन्हें उस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए।

 लेकिन इसके विपरीत🕳️

 जब अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक कार्य में भाग लेने से रोक दिया जाता है अथवा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य के लिए अगर दंडित किया जाता है तो उसमें अपराध बोध की भावना जन्म लेने लगती है।

 इस प्रकार के *बच्चों में लैंगिक नपुंसकता और निष्क्रियता की प्रवृत्ति जन्म* लेती है।

🧠एरिक्सन के अनुसार :➖

जब *बच्चा पहल शक्ति बनाम अपराध बोध का सफलतापूर्वक हल कर लेता है तो उसमें “उद्देश्य “नामक नई मनोसामाजिक शक्ति का विकास* होता है।

4️⃣ स्कूल अवस्था (6 से 12 वर्ष) 

 *परिश्रम/उधम 🆚 हीन भावना*

यह *फ्रायड की मनोलैंगिक विकास की   अव्यक्तता की अवस्था* से जुड़ा है।

 पहली बार बच्चे औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। आस-पास के लोगों से व्यवहार सिखना ,कैसे बातचीत करना है, व्यवहार कौशल कैसा होना चाहिये, उनमें परिश्रम की भावना आती है, शिक्षक ,पास-पड़ोस से भी परिश्रम की भावना विकसित होती है

 लेकिन इसके विपरीत🕳️

अगर किसी कारण बस *यह नहीं हुआ तो बच्चा स्वयं की क्षमता पर संदेह करने लगता है, जिससे उसमें आत्म  हीनता की भावना आ जाती है, स्वस्थ्य व्यक्तित्व बाधक* हो जाता है। 

🧠एरिक्सन के अनुसार :➖

अगर बच्चा *परिश्रम बनाम हीनता के संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो “सामर्थ्यता” नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास* होता हैं। 

⏩⏩⏩⏩⏩⏩⏩⏩⏩

🥰🥰 Deepika Ray 🥰🥰

🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌤️🌤️🌤️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

🔴💐💐*एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत💐💐🌴🌸

*मनोसामाजिक = मन + समाज*

(मन – मव्यक्तिगत सोच)

(समाज-चारो ओर का वातावरण )

💐एरिक्सन÷ मानव का व्यक्तित्व एक बार में विकसित नहीं होता यह चरणों में विकसित होता है।

 इन्होंने कुल 8 चरण बताएं हैं-

1💐. शैशवावस्था ( 0 से 1वर्ष )

       *विश्वास /अविश्वास*

यह अवस्था *फ्रायड के मनोलैंगिक सिद्धांत के*  _*मुखावस्था*_ से समानता रखती है।

 एरिकसन की मान्यता है कि शैशवावस्था की आयु 0 से 1 वर्ष रहती है ।

🔴एरिक्सन के अनुसार,”

बच्चों में *धनात्मक विकास होती है तब बच्चों को स्वयं एवं दूसरों के प्रति विश्वास, आस्था, श्रद्धा की भावना जागृत होती है इससे बच्चों का स्वस्थ्य व्यक्तित्व का विकास* होता है।”

👉🏻 लेकिन इनके विपरीत

मां के द्वारा अगर समुचित पालन पोषण नहीं है तो *मां अगर बच्चों की तुलना में दूसरे कार्य हो और व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है, तो ऐसे में बच्चों में अविश्वास, हीनता, डर , असमंजस का जन्म हो जाएगा जिससे बच्चों के अंदर ऋणात्मक गुण* आ जाता है ।

🔴एरिकसन ,”

 जब शैशवावस्था में बच्चा विश्वास और अविश्वास के द्वंद का समाधान सही ढंग से कर लेता है, तो उसमें *”आशा” नामक मनो सामाजिक शक्ति का विकसित* होती है।”

 ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके कारण बच्चों में अपने अस्तित्व एवं उनके सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से समझने की क्षमता विकसित होती है।

 🔴प्रारंभिक बाल्यावस्था (1 से 3 वर्ष ) 

*स्वायत्तता शर्म/लज्जाशीलता*

 *यह फ्रायड के मनोलैंगिक विकास के ( गुदावस्था) से समानता रखती है*।

अगर माता-पिता अपना नियंत्रण रखते हुए बच्चों को स्वयं से कार्य करने की अनुमति देते हैं, तो बालक स्वतंत्र रूप से विकसित होता है तथा उसमें धनात्मक विकास होता है।

👉🏻लेकिन इसके विपरीत

माता-पिता के द्वारा बच्चों को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाए तो लज्जाशीलता आ जाएगी और अपने ऊपर शक होने लगेगा ,आत्म हीनता आ जाती है, जो की स्वस्थ व्यक्तित्व की निशानी नहीं है

🔴एरिक्सन के अनुसार ,”

👼🏻जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम  लज्जाशीलता के द्वंद को दूर कर लेता है, तो *उसमें जो मनोसामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है, उसे (इच्छाशक्ति )* का नाम दिया।

 इच्छा शक्ति से इसका आशय एक एसी शक्ति से है, जिसके कारण बच्चा अपनी रूचि के अनुसार स्वतंत्र होकर कार्य करता है। साथ ही उसमें आत्मनियंत्रण /आत्म संयम का गुण भी आता है।

3.💐खेल की अवस्था (3 से 9 वर्ष ) पहल शक्ति  अपराध बोध/ दोषित 

यह *फ्रायड के मनोलैंगिक विकास की  लैंगिक प्रधानाअवस्था* से मिलती है।

 इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलना, खेलना, चलना ,दौड़ना, नए कार्य करना ,घर के बाहर अपने साथियों के साथ मिलकर नई-नई जिम्मेदारी निभाने लगता है।

 इन सब से बच्चे को खुशी मिलती है ।पहली बार उनको लगता है कि उनकी जिंदगी का कोई मकसद है। उन्हें उस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए।

 लेकिन इसके विपरीत

   👉🏻  जब अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक कार्य में भाग लेने से रोक दिया जाता है अथवा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य के लिए अगर दंडित किया जाता है तो उसमें अपराध बोध की भावना जन्म लेने लगती है।

 इस प्रकार के *बच्चों में लैंगिक नपुंसकता और निष्क्रियता की प्रवृत्ति जन्म* लेती है।

🟢एरिक्सन के अनुसार ,”

जब *👼🏻बच्चा पहल शक्ति बनाम अपराध बोध का सफलतापूर्वक हल कर लेता है तो उसमें “उद्देश्य “नामक नई मनोसामाजिक शक्ति का विकास* होता है।

4. स्कूल अवस्था (6 से 12 वर्ष) 

 🟢*परिश्रम/उधम हीन भावना*

👉🏻यह *🧑🏻‍✈️फ्रायड की मनोलैंगिक विकास की   अव्यक्तता की अवस्था* से जुड़ा है।

   पहली बार बच्चे औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। आस-पास के लोगों से व्यवहार सिखना ,कैसे बातचीत करना है, व्यवहार कौशल कैसा होना चाहिये, उनमें परिश्रम की भावना आती है, शिक्षक ,पास-पड़ोस से भी परिश्रम की भावना विकसित होती है

 👉🏻इसके विपरीत

अगर किसी कारण बस *यह नहीं हुआ तो बच्चा स्वयं की क्षमता पर संदेह करने लगता है, जिससे उसमें आत्म  हीनता की भावना आ जाती है, स्वस्थ्य व्यक्तित्व बाधक* हो जाता है। 

🔴एरिक्सन के अनुसार ,”

अगर बच्चा *परिश्रम बनाम हीनता के संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो “सामर्थ्यता” नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास* होता हैं। “

                    🌸🌸

📖🖊️💐Notes byshikha tripathi💐💐

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🈵 एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत ( Erickson’s psycho  social theory) 

एरिक्सन के मनोसामाजिक विकास की  8 अवस्थाएं बतायी है इन 8 अवस्थाओं में अलग-अलग प्रकार से मनुष्य का व्यक्तित्व विकास होता है |

📛  विश्वास बनाम अविश्वास  ( Trust v/s Mistrust) ➖ शैशावस्था ( जन्म से एक वर्ष) 

यह अवस्था फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांत के व्यक्तित्व विकास की प्रथम अवस्था  “मुखावस्था”  से संबंध रखती है |

यदि  बच्चों की  माँ के द्वारा भरपूर देखभाल होती है तो बच्चे का धनात्मक विकास होता है जिससे बच्चों में दूसरों और स्वयं के प्रति आस्था, श्रद्धा और विश्वास की भावना जागृत होती है जिससे बच्चों का स्वस्थ व्यक्तित्व का विकास होता है |

               इसके विपरीत यदि मां के द्वारा बच्चे का किसी वजह से समुचित पालन  पोषण नहीं हो पाता है मां बच्चों की तुलना में दूसरे कार्यों या व्यक्तियों को प्राथमिकता देती है तो ऐसी स्थिति में बच्चे अविश्वास की भावना के शिकार हो जाते हैं उन पर आशंका ,ईर्ष्या ,हीनता  , डर, आदि ऋणात्मक गुणों का विकास होने लगता है  |

                   एरिक्सन का मत है कि जब  शैशावस्था में बच्चा विश्वास बनाम  अविश्वास के द्वन्द्व का समाधान ठीक ढंग से कर लेता है तो उसमें  ” आशा ”  नामक मनोसामाजिक शक्ति विकसित होती है |

       आशा एक ऐसी शक्ति है जिसके कारण बच्चों में अपने अस्तित्व एवं उनके सांस्कृतिक परिवेश को सार्थक ढंग से  समझने की क्षमता विकसित होती है  |

📛स्वायत्ता / स्वतंत्रता बनाम शर्म  (Autonomy v/s Shame) ➖प्रारंभिक बाल्यावस्था (Early Childhood)  (1 – 3 वर्ष) 

 यह अवस्था में फ्रायड के  मनोलैंगिक विकास की गुदा अवस्था से सामानता रखती है |

   एरिक्सन ने कहा है कि यदि माता-पिता अपना नियंत्रण रखते हुए बच्चे को अपनी इच्छाशक्ति के अनुसार कार्य करने दें ,यदि बच्चों को स्वतंत्र ना छोड़ा जाए तो उनमें लज्जाशीलता,अपने ऊपर शक ,आत्म हीनता ,आदि गुणों का विकास होता है जो कि स्वस्थ व्यक्तित्व का गुण नहीं है |

       उनके अनुसार जब बच्चा स्वतंत्रता बनाम लज्जाशीलता के द्वन्द्व को दूर कर लेता है तो इससे सामाजिक शक्ति उत्पन्न होती है उसे ” इच्छाशक्ति” का नाम दिया गया है |

इसका आशय है कि  जिसके कारण बच्चा अपनी रूचि के अनुसार स्वतंत्र होकर कार्य करता है तो उसमें आत्मनियंत्रण और आत्मविश्वास का गुण विकसित होती है |

📛 पहल / पहल शक्ति बनाम  अपराध बोध  / पोषिता  ➖  खेल अवस्था( 3 -6वर्ष  ) 

इस अवस्था को फ्रायड के मनोविश्लेषण विकास की तीसरी अवस्था के समान ”  प्रधान अवस्था”  के समान माना गया है |

    इस उम्र तक बच्चे ठीक ढंग से बोलना ,चलना ,दौड़ना आदि शारीरिक क्रियाएं प्रारंभ कर देते हैं | खेलने कूदने में रुचि रखने लगते हैं नए कार्य करने लगते हैं और अपने साथियों के साथ मिलकर नई जिम्मेदारियों को निभाने लगता है सबसे बच्चे को खुशी मिलती है  |

       पहली बार उनको लगता है कि उनकी जिंदगी का कोई मकसद है उन्हें उस मकसद या लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए |

         लेकिन अभिभावकों द्वारा बच्चों को सामाजिक  कार्य में भाग लेने में  रोका जाता है तथा बच्चे द्वारा इस प्रकार के कार्य के लिए उन्हें दंडित किया जाता है तो उन में अपराध बोध की भावना विकसित होती है |

        अगर स्कूल में बच्चे को अलग-अलग प्रकार से बच्चों में लैंगिक नपुसंकता और निष्क्रियता की प्रवृत्ति जन्म लेने लगती है  |

एरिक्सन का मत है कि जब बच्चा पहल शक्ति बनाम पोषित सफलतापूर्वक हल कर लेता है तो उसमें” उद्देश्य  “नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है |

📛 परिश्रम / उद्यम बनाम हीन भावना ➖ स्कूल अवस्था( 6 से 12 वर्ष) 

यह अवस्था फ्रायड के मनो लैंगिक विकास की अवस्था  अव्यक्तावस्था से मिलती जुलती है  |

बच्चे पहली बार  औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं  |

आसपास के लोगों से व्यवहार सीखते हैं और इससे उनका व्यवहार, उनके बात करने का तरीका आदि सभी से लोगों के व्यवहार को सीखते हैं |  तो उनमें परिश्रम की भावना आती है |

शिक्षक, पास पड़ोस से, भी परिश्रम की भावना विकसित होती है लेकिन यदि किसी  कारणवश बच्चा स्वयं की क्षमता पर संदेह करने लगता है  |

       तो उसमें आत्महीनता की भावना विकसित होती है और स्वस्थ व्यक्तित्व की हानि होती है |

 अगर  बच्चा इस अवस्था के संघर्ष से सफलतापूर्वक बाहर निकल जाता है तो उसमें सामर्थ्य  नामक मनोसामाजिक शक्ति का विकास होता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🌻🌼🌸🌺🌹🍀🌻🌼🌸🌺🌹🍀🌻🌼🌸🌺

42. CDP – Socialization Process PART- 3

🔆 समाजीकरण की एजेंसियां:-

                                              निम्नानुसार हैं।

1 परिवार

2 विद्यालय

3 सहकर्मी समूह

4 संचार मीडिया

उपर्युक्त चारों एजेंसियों का वर्णन निम्न प्रकार है।

❇️एजेंसी 1.परिवार:-

▪️हर बच्चा एक परिवार में पैदा होता है। अर्थात बच्चे की पहली दुनिया परिवार है। घर या परिवार पहली सामाजिक एजेंसी है जिसके साथ बच्चा संपर्क में आता है। परिवार के अन्य सदस्यों, माता-पिता, भाई-बहन और अन्य लोगों के साथ बातचीत, बच्चे के व्यक्तित्व और उसके सामाजिक व्यवहार पर एक स्थायी प्रभाव डालती है।

▪️बच्चों की सामान्य या आधारिय आदतों में परिवार के माता पिता की भूमिका रहती है वह लैगिक भूमिका  जो भी अंतर या भेदभाव है उसको समझते हुए बच्चे की मार्गदर्शन में सहयोग करते हैं और मूल्यों को सिखाते हैं जो बच्चे के जीवन भर साथ चलते हैं।

▪️परिवार में हम व्यक्तिगत ,भावनात्मक और अनौपचारिकता सीखते हैं।

❇️ एजेंसी 2. विद्यालय :-

▪️परिवार के बाद स्कूल एक ऐसा साधन है जहां पर बालक का सामाजिक कारण होता है स्कूल में विभिन्न प्रकार के बालक शिक्षा प्राप्त करने आते हैं बाला की विभिन्न परिवारों के बालक तथा शिक्षकों के बीच रहते हुए सामाजिक प्रतिक्रिया करता है जिससे उसका समाजीकरण तीव्र गति से होने लगता है स्कूल में रहते हुए बालक को जहां एक और विभिन्न विषयों की प्रत्यक्ष शिक्षा द्वारा सामाजिक नियमों रीति-रिवाजों परंपराओं मान्यताओं विश्वासों तथा आदर्शों एवं मूल का ज्ञान होता है वहीं दूसरी ओर से स्कूल की विभिन्न सामाजिक योजनाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास होता रहता है इस दृष्टि से परिवार की भांति स्कूल भी बालक के समाजीकरण की मुख्य एजेंसी है।

▪️विद्यालय में बच्चे बौद्धिक विकास होता है  एवं  वे कई औपचारिकता सीखते हैं।

▪️विद्यालय ही सामाजिक व्यवस्था में अनुकूलन स्थापित करने में सहयोग करता है।

❇️ एजेंसी 3.सहकर्मी समूह :-

▪️प्रत्येक बालक अपने साथियों के साथ खेलता है तो खेलते समय जाती ऊंच-नीच तथा अन्य प्रकार के भेदभाव से ऊपर उठकर दूसरे बालकों के साथ अंतः क्रिया द्वारा आनंद लेता है इस कार्य में उनके साथ ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

▪️परिवार उनके अंतर्गत बच्चे का सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण होता है जबकि सहकर्मी समूह या दोस्तों के बीच सामाजिक विकास ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।

▪️बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है उसके परिवार में हुआ समाजीकरण अल्पकालीन हित को प्रभावित करता है जबकि सहकर्मी समाज द्वारा हुआ समाजीकरण बच्चे के दीर्घकालीन हित को प्रभावित करता है।

❇️ एजेंसी 4. संचार मीडिया – Mass Media

▪️वर्तमान समाज में, Mass Media एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

▪️मीडिया ऑडियो विजुअल और प्रिंट के माध्यम से जानकारी प्रदान करता है। Mass media संचार के सभी उपकरणों जैसे कि टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र, पत्रिकाओं, फिल्मों और रिकॉर्ड्स को संदर्भित करता है।

▪️कई कार्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है, बल्कि इसके साथ साथ दुनिया भर से छवियों, घटनाओं, शैलियों और फैशन का एक त्वरित प्रसारण भी है।

🔆समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका:-

▪️बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार के बाद स्कूल और स्कूल में विशेष रूप से शिक्षक आता है। प्रत्येक समाज के कुछ विश्वास, दृष्टिकोण, मान्यताएं, कुशलताएं और परंपराएं होती हैं। जिनको ’संस्कृति’ के नाम से पुकारा जाता है। यह संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित की जाती है और समाज के लोगों के आचरण को प्रभावित करती है। शिक्षक का सर्वश्रेष्ठ कार्य है इस संस्कृति को बालक को प्रदान करना। यदि वह यह कार्य नहीं करता है तो बालक का समाजीकरण नहीं कर सकता है। शिक्षक, माता-पिता के साथ बालक के चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करने में अति महत्वपूर्ण कार्य करता है।

▪️कक्षा में, खेल के मैदान में, साहित्यक और सांस्कृतिक क्रियाओं में शिक्षक सामाजिक व्यवहार के आदर्श प्रस्तुत करता है। बालक अपनी अनुकरण की मूल प्रवृति के कारण शिक्षक के ढंगों, कार्यों, आदतों और नीतियों का अनुकरण करता है। अतः शिक्षक को सदैव सतर्क रहना चाहिए, उसे कोई ऐसा अनुचित कार्य या व्यवहार नहीं करना चाहिए, जिसका बालक के ऊपर गलत प्रभाव पड़े। अतः बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने के लिए शिक्षक को मुख्यतः निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

✓ अभिभावक शिक्षक सहयोग

✓स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना

✓सामाजिक आदर्श

✓स्कूल की परंपरा

✓सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन

🔸अभिभावक शिक्षक सहयोगः- 

समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने के लिए शिक्षक का सर्वप्रथम कार्य यह है कि वह बालक के माता-पिता से संपर्क स्थापित करके उसकी रूचियों तथा मनोवृत्तियों के विषय में ज्ञान प्राप्त करे एवं उन्हीं के अनुसार उसे विकसति होने के अवसर प्रदान करे।

🔸स्वस्थ प्रतियोगिता की भावनाः- 

बालक के समाजीकरण में प्रतियोगिता का महत्वपूर्ण स्थान होता है। पर ध्यान देने की बात है कि बालक के समाजीकरण के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता का होना ही अच्छा है। अतः शिक्षक को बालक में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित करनी चाहिए।

🔸सामाजिक आदर्शः- 

शिक्षक को चाहिए कि वह कक्षा तथा खेल के मैदानों एवं सांस्कृतिक और साहित्यिक क्रियाओं में बालक के सामने सामाजिक आदर्शों को प्रस्तुत करें। इन आदर्शों का अनुकरण करके बालक का धीरे-धीरे समाजीकरण हो जाएगा।

🔸स्कूल की परंपराएं:- 

स्कूल की परंपराओं का बालक के समाजीकरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह बालक का स्कूल की परंपराओें में विश्वास उत्पन्न करे तथा उसे इन्हीं के अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करे।

🔸सामूहिक कार्य को प्रोत्साहनः- 

शिक्षक को चाहिए कि वह स्कूल में विभिन्न सामाजिक योजनाओं के द्वारा बालकों को सामूहिक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने के अवसर प्रदान करे। इन क्रियाओं में भाग लेने से उसका समाजीकरण स्वतः ही हो जाएगा।

✍️

      Notes By-‘Vaishali Mishra’

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🚫    समाजीकरण की एजेंसियां ➖

एजेंसियां अर्थात ऐसे स्त्रोत जो हमें किसी चीज की जानकारी प्रदान करते हैं और उन जानकारियों के माध्यम से व्यक्ति का सामाजिकरण प्रभावित होता है |

समाजीकरण की  एजेंसियों को चार भागों में विभाजित किया गया है ➖ 

💮 परिवार

💮  विद्यालय 

💮 सहकर्मी संबंध

💮  संचार मीडिया

📛 परिवार ➖

परिवार प्राथमिक एजेंसी के अंतर्गत आता है इसको प्राथमिक एजेंट  भी कहते हैं जिसके माध्यम से बच्चा अपनी दैनिक जीवन की आदतों को जैसे भोजन करना, सोना, कपड़े पहनना, ब्रश करना ,नहाना आदि सभी आदतों को सीखता है |

          माता-पिता से लैंगिक भूमिका में मार्गदर्शन प्राप्त होता है जिसमें बच्चे मूल्यों को सीखते हैं और उनका जीवन भर पालन करते हैं अर्थात मूल्य जीवन भर चलते रहते हैं |

📛 विद्यालय ➖ 

विद्यालय परिवार के बाद आता है अर्थात  विद्यालय में परिवार के बाद सामाजीकरण होता है |

 परिवार के बाद बच्चे का समाजीकरण विद्यालय में होता है जिसमें अलग-अलग प्रकार के बच्चे आते हैं जिनकी अपनी संस्कृति और तौर तरीके होते हैं |

  विद्यालय के माध्यम से बच्चे, शिक्षक, एवं सहपाठी तीनों का संघ विकसित होता है आपस में काम करते हैं विद्यालय पूरी तरीके से स्थिर वयस्क जीवन के लिए तैयार करता है जिसके कारण सामाजिक व्यवस्था में अनुकूलन करते हैं |

जो घर में सीखना होता है वह अनौपचारिक व्यक्तिगत और भावनात्मक होता है लेकिन विद्यालय में बच्चे बौद्धिक और | औपचारिक रूप से सीखते हैं |

📛 सहकर्मी समूह , ➖

इसमें बच्चे अपने सम आयु समूह के साथ खेलते हैं उनके सीखने का स्तर एक समान होता है जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं उनके लिए परिवार सामाजिक विकास में कम महत्वपूर्ण हो जाता है | तथा मित्र अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं बच्चा अधिकांश समय दोस्तों के बीच व्यतीत करने लगता है बच्चों के बीच व्यतीत करने लगता है |

 जिससे परिवार के विपरीत अल्पकालीन हित प्राप्त करता है जो बच्चे के समजिक  आर्थिक प्रभाव छोड़ देते हैं |

💮 संचार मीडिया➖

संचार मीडिया का प्रभाव प्रद्योगिकी के साथ साथ जो चीजों को बताता है  |जैसे – रेडियो, संगीत ,टेलीविजन, समाचार पत्र, तकनीकी, नई चीजें ,इंटरनेट, आदि सब जन संचार मीडिया के मुख्य अवयव है जो  हमारे सामाजिक प्रभावित करते हैं |

🉐  बच्चे के समाजीकरण में शिक्षक की भूमिका ➖

बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से शुरू होती है जिसका विद्यालय द्वितीयक स्रोत है  जिसमे शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति होती है जिसमें विश्वास, दृष्टिकोण,मान्यताएं , कुशलताएं और परंपराएं  होती है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती हैं |

 बच्चों का समाजीकरण  माता-पिता के बाद शिक्षक से प्रभावित होता है जिसमें शिक्षक का कार्य है कि सभी बच्चों को संस्कृति दे |

  बच्चों में समाजीकरण तभी संभव है जब उनमें उचित संस्कृति का विकास होगा, यदि बच्चे की संस्कृति ठीक नहीं है, उचित नहीं है तो बच्चे का समाजीकरण भी उचित नहीं होगा |

            ऐसी स्थिति में शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे को कक्षा में, खेल के मैदान में, सांस्कृतिक कार्य में उचित व्यवहार को सिखाए |

                उनकी संस्कृति को सुधारने में अनिवार्य रूप से अपनी भूमिका अदा करें  |

क्योंकि वह अनुकरण करता है वह शिक्षक के ढंग, कार्य ,आदत और  नीति आदि सभी  क्रियाकलापों का अनुकरण करता है इसलिए  शिक्षक की सतर्कता बहुत आवश्यक है  |

इसलिए शिक्षक को चाहिए कि वह ऐसा कार्य ना करें जिससे बच्चे का समाजीकरण प्रभावित हो | 

यदि शिक्षक समाजीकरण  की प्रक्रिया को तीव्र करना चाहते हैं तो उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है ➖

📛 अभिभावक शिक्षक सहयोग➖

 समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए बच्चे के माता-पिता से बातचीत करना बहुत आवश्यक है और जरूरी है जिससे बच्चे की सूची, व्यवहार मनोवृति ,उसके जीवन जीने के तरीके ,माता-पिता का व्यवहार, परिवार का व्यवहार ,और उसके तौर-तरीके, रीति- रिवाज, संस्कृति, आदि सभी आदतों को जानना बहुत आवश्यक है क्योंकि यह जाने बिना  शिक्षक समाजीकरण विकसित नहीं कर सकते हैं |

📛 स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना ➖

बच्चे के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित करना अति आवश्यक है जिसमें ईमानदार और परिपक्वता विशेष रुप से झलकती हों, जिसमें इमानदारी की तीव्र रूप से वृद्धि हो  |

इसके विपरीत यदि स्वास्थ्य प्रतियोगिता नहीं होगी तो इससे समाजीकरण प्रभावित होगा तथा  इससे शिक्षक तीव्र और कुशल समाजीकरण का विकास नहीं कर सकता है   |

📛 सामाजिक आदर्श➖

 शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे को खेल के मैदान, सामाजिक सांस्कृतिक क्रिया ,व्यवहार और कक्षा – कक्ष में सामाजिक आदर्श प्रस्तुत करें जिससे बच्चे के व्यवहार में बदलाव हो सके और उसमें सामाजिक आदर्श स्थापित हो सके क्योंकि बच्चे शिक्षक अनुकरण करते हैं यदि शिक्षक आदर्श प्रस्तुत नहीं करेगा तो  समाजीकरण ही प्रक्रिया संभव  नहीं है और इससे बच्चे के सफल समाजीकरण की कल्पना करना भी वर्जित है |

📛 स्कूल की परंपरा➖

 स्कूल की परंपरा को उन्नत बनाए रखने के लिए बच्चों में विश्वास जागृत करना अति आवश्यक है और ऐसे विश्वास को जागृत करना अनिवार्य है जिसके बच्चे अनुसरण कर सके और उसका पालन कर सकें तभी बच्चे का समाजीकरण  सफल रूप से हो सकता है |

📛 सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन➖

 शिक्षक को बच्चे के सामूहिक कार्य को उत्साहित करना अति आवश्यक है जैसे – योजना बनाना ,तौर तरीके सिखाना, सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेना ,आदि सभी को प्रोत्साहित करना अनिवार्य है जिससे बच्चे का सर्वांगीण विकास हो सके और उचित समाजीकरण हो सके   |

  नोट्स बाय➖  रश्मि सावले

,, 🍀🌻🌻🌼🍁🌺🌸🌺🌸🌼🌻🍀🌹🍁🌺🌸🌼🌻🍀👪समाजीकरण की एजेंसियां👨‍👩‍👦

 समाजीकरण की एजेंसियां निम्न है

1परिवार

2विद्यालय 

3सहकर्मी संबंध 

4 संचार मीडिया

 परिवार:-  परिवार बच्चे की पहली दुनिया होती है बच्चा  अपने परिवार से बहुत कुछ सीखता है भोजन करना कपड़े पहनना आदि चीजें सीखता है माता पिता बच्चों को लैंगिक भूमिका में मार्गदर्शन करते हैं

 परिवार में जो सिखाया जाता है वह आजीवन एवं हितकर होता है बच्चे उन मूल्यों को सीखते हैं जो जीवन भर चलते हैं

परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है एवं मां उसकी प्रथम गुरु होती हैं 

 विद्यालय:- परिवार के बाद विद्यालय हैं जहां बच्चे का सामाजकरण होता है यहां पर अलग-अलग परिवार के बच्चे आते हैं और उन्हें समान प्रकार से शिक्षा दी जाती हैं

 बच्चे👉  शिक्षक

        👇

….. सहपाठी

विद्यालय बच्चों को स्थिर वयस्क जीवन के लिए तैयार करता है

सामाजिक व्यवस्था में अनुकूलन विद्यालय सिखाता है

 घर में सीखना व्यक्तिगत भावनात्मक या अनौपचारिक कहलाता है

विद्यालय में सीखना बौद्धिक एवं औपचारिक कहलाता है

 सहकर्मी  संबंध:-  सहकर्मी समूह में एक ही उम्र के बच्चे समान स्थिति के बच्चे होते हैं जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं परिवार सामाजिक विकास में कम महत्वपूर्ण होता जाता है और दोस्त ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं

 बच्चा दोस्ती में समय बिताता है इससे जो भी सीखते हैं परिवार के विपरीत अल्पकालीन हित के लिए होता है

 बच्चा तात्कालिक खुशी के लिए कुछ भी कर लेते हैं

लेकिन कभी-कभी यह किसी किसी में दीर्घकालिक प्रभात छोड़ देती है

4 मास मीडिया:-  मास मीडिया में विभिन्न प्रकार आते हैं 

रेडियो:-  वीडियो के द्वारा हम घर बैठे दूर-दूर की जानकारी प्राप्त करते हैं

 संगीत:- संगीत के माध्यम से मनुष्य अपना मनोरंजन करता है वह अपनी थकावट को दूर करता है

 टेलीविजन :- टेलीविजन की मनोरंजन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है टेलीविजन के द्वारा हम अन्य देशों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं

न्यूज़ चैनल:- न्यूज़ चैनल के माध्यम से विदेश की जानकारियां प्राप्त करते हैं कहां पर किस प्रकार की घटना हो रही है यह भी जानकारी हमें प्राप्त होती हैं

 समाचार पत्र:- समाचार पत्र के माध्यम से देश विदेश हमारे शहर में कौन सी घटनाएं घट रही है यह जानकारी प्राप्त होती है

 तकनीकी 

नई चीजें

 इंटरनेट:- इंटरनेट ने तो पूरी दुनिया में धमाल मचा रखा है इसके बिना आज व्यक्ति अपनी कल्पना भी नहीं करता इंटरनेट के माध्यम से हम किसी भी देश का भ्रमण कर सकते हैं

                              , कोरोना के समय में तो इंटरनेट एक वरदान साबित हुआ है इंटरनेट के माध्यम से ही अनेक व्यक्ति अपने घरों में  बैठकर काम करते रहे और विद्यार्थियों को घर में ही शिक्षण की व्यवस्था हो गई( online classes)

 समाजीकरण में शिक्षकों की भूमिका

बच्चा परिवार से विद्यालय में जाता है एवं वह शिक्षकों के संपर्क में रहकर विद्यालय में सामाजिकता का पाठ सीखता है विद्यालय में ही बच्चा संस्कृति, विश्वास ,दृष्टिकोण ,मान्यता,        कुशलता ,परंपरा आदि की जानकारी प्राप्त करता है

संस्कृति:- विद्यालय में  संस्कृति हस्तांतरण होती है बच्चे में संस्कृति बच्चों के आचरण को प्रभावित करती है

बच्चों को सही संस्कृति देना शिक्षक का कार्य है

यदि संस्कृति नहीं आएगी तो सामाजिकरण नहीं हो सकता है

शिक्षक और माता-पिता  साथ मिलकर  बच्चे के चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करते हैं

बच्चा अनुकरण करता है वह शिक्षक के तौर तरीके उनके  ढंग, कार्य ,आदत एवं नीतियों का अनुसरण करता है इसलिए शिक्षक को किसी भी प्रकार का अनुचित कार्य नहीं करना चाहिए 

ना ही बच्चों के सामने अपशब्द बोलना चाहिए बच्चे  अपनी नकारात्मक  धारणा बना लेते हैं शिक्षकों को बच्चों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए

समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए शिक्षक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

 अभिभावक शिक्षक सहयोग:- 

1 रुचि:- बच्चों की रचनाओं के बारे में माता-पिता से चर्चा करेंगे एवं मिलकर उसे आगे बढ़ाएंगे

2 व्यवहार:- बच्चों के बहार के बारे में माता-पिता से चर्चा करेंगे

3 मनोवृति 

4 पास्ट लाइफस्टाइल को जानेंगे  समझेंगे 

5 माता-पिता का व्यवहार परिवार का वातावरण यह सब जाने बिना हम बच्चे को विकसित नहीं कर सकते हैं

  स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना:-  

हमें बच्चो में स्वस्थ्य  प्रतियोगिता की भावना को विकसित करना चाहिए ताकि बच्चे में अच्छे विचार तर्क करने की क्षमता विकसित हो सके

 सामाजिक आदर्श:- बच्चा जन्म से ही समाज में रहता है कि वह वह समाज की बनाए आदर्शों का अनुसरण करता है

 स्कूल की परंपरा:- स्कूल की परंपरा है कि वह बच्चों को हमेशा उन्नति के मार्ग पर पहुंचाएं बच्चों में विश्वास की भावना को जागृत करें और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करें

 सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन:-  हमें बच्चों को सामूहिक कार्य करने में आगे बढ़ाना चाहिए समूह में कार्य करने से बच्चों में सामाजिकता की भावना आती है एवं बच्चे योजना बनाना तौर-तरीके सीखते हैं जिससे उनका संपूर्ण विकास होता है

सपना साहू 

💠💠💠💠💠💠💠💠💠🌴🌴🌴🌴🌳🌳🌳🌳

🌷🌸👩‍❤️‍💋‍👨👨‍👩‍👦‍👦👨‍👩‍👦‍👦👨‍👩‍👦‍👦👩‍❤️‍💋‍👨👩‍❤️‍💋‍👨🌷🌸🌲🌴💦🌸🌸🌸🌸🌸

🟢👨‍👩‍👦‍👦👩‍❤️‍💋‍👨समाजीकरण की एजेंसियां÷

एजेंसियां अर्थात ऐसे स्त्रोत जो हमें किसी चीज की जानकारी प्रदान करते हैं और उन जानकारियों के माध्यम से व्यक्ति का सामाजिकरण प्रभावित होता है |

समाजीकरण की  एजेंसियों को चार भागों में विभाजित किया गया है।

🔴परिवार

🔴 विद्यालय 

🔴 सहकर्मी संबंध

🔴संचार मीडिया

🟢परिवार ÷

परिवार प्राथमिक एजेंसी के अंतर्गत आता है। इसको प्राथमिक एजेंट  भी कहते हैं।

 जिसके माध्यम से बच्चा अपनी दैनिक जीवन की आदतों को जैसे भोजन करना, सोना, कपड़े पहनना, ब्रश करना ,नहाना आदि सभी आदतों को सीखता है |

          👩‍❤️‍💋‍👨माता-पिता से लैंगिक भूमिका में मार्गदर्शन प्राप्त होता है जिसमें बच्चे मूल्यों को सीखते हैं और उनका जीवन भर पालन करते हैं अर्थात मूल्य जीवन भर चलते रहते हैं |

🟢विद्यालय ÷

विद्यालय परिवार के बाद आता है अर्थात  विद्यालय में परिवार के बाद सामाजीकरण होता है |

 👨‍👩‍👦‍👦परिवार के बाद बच्चे का समाजीकरण विद्यालय में होता है जिसमें अलग-अलग प्रकार के बच्चे आते हैं जिनकी अपनी संस्कृति और तौर तरीके होते हैं |

  विद्यालय के माध्यम से बच्चे, शिक्षक, एवं सहपाठी तीनों का संघ विकसित होता है आपस में काम करते हैं।

      विद्यालय पूरी तरीके से स्थिर वयस्क जीवन के लिए तैयार करता है जिसके कारण सामाजिक व्यवस्था में अनुकूलन करते हैं |

जो घर में सीखना होता है वह अनौपचारिक व्यक्तिगत और भावनात्मक होता है। लेकिन विद्यालय में बच्चे बौद्धिक और  औपचारिक रूप से सीखते हैं |

🟢सहकर्मी समूह ÷

इसमें बच्चे अपने सम आयु समूह के साथ खेलते हैं उनके सीखने का स्तर एक समान होता है जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं उनके लिए परिवार सामाजिक विकास में कम महत्वपूर्ण हो जाता है | तथा मित्र अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं बच्चा अधिकांश समय दोस्तों के बीच व्यतीत करने लगता है बच्चों के बीच व्यतीत करने लगता है |

           जिससे परिवार के विपरीत अल्पकालीन हित प्राप्त करता है जो बच्चे के समजिक  आर्थिक प्रभाव छोड़ देते हैं |

🔴 संचार मीडिया÷

संचार मीडिया का प्रभाव प्रद्योगिकी के साथ साथ जो चीजों को बताता है  |जैसे – रेडियो, संगीत ,टेलीविजन, समाचार पत्र, तकनीकी, नई चीजें ,इंटरनेट, आदि सब जन संचार मीडिया के मुख्य अवयव है जो  हमारे सामाजिक प्रभावित करते हैं |

🔴  बच्चे के समाजीकरण में शिक्षक की भूमिका ÷

बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से शुरू होती है जिसका विद्यालय द्वितीयक स्रोत है  जिसमे शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति होती है जिसमें विश्वास, दृष्टिकोण,मान्यताएं , कुशलताएं और परंपराएं  होती है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती हैं |

 बच्चों का समाजीकरण  माता-पिता के बाद शिक्षक से प्रभावित होता है जिसमें शिक्षक का कार्य है कि सभी बच्चों को संस्कृति दे |

  बच्चों में समाजीकरण तभी संभव है जब उनमें उचित संस्कृति का विकास होगा, यदि बच्चे की संस्कृति ठीक नहीं है, उचित नहीं है तो बच्चे का समाजीकरण भी उचित नहीं होगा |

        ऐसी स्थिति में शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे को कक्षा में, खेल के मैदान में, सांस्कृतिक कार्य में उचित व्यवहार को सिखाए |

       उनकी संस्कृति को सुधारने में अनिवार्य रूप से अपनी भूमिका अदा करें  |

क्योंकि वह अनुकरण करता है वह शिक्षक के ढंग, कार्य ,आदत और  नीति आदि सभी  क्रियाकलापों का अनुकरण करता है इसलिए  शिक्षक की सतर्कता बहुत आवश्यक है  |

इसलिए शिक्षक को चाहिए कि वह ऐसा कार्य ना करें जिससे बच्चे का समाजीकरण प्रभावित हो | 

👉🏻यदि शिक्षक 🧑‍🏫समाजीकरण  की प्रक्रिया को तीव्र करना चाहते हैं तो उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है ।

🔴अभिभावक शिक्षक सहयोग÷

समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए बच्चे के माता-पिता से बातचीत करना बहुत आवश्यक है और जरूरी है जिससे बच्चे की सूची, व्यवहार मनोवृति ,उसके जीवन जीने के तरीके ,माता-पिता का व्यवहार, परिवार का व्यवहार ,और उसके तौर-तरीके, रीति- रिवाज, संस्कृति, आदि सभी आदतों को जानना बहुत आवश्यक है क्योंकि यह जाने बिना  शिक्षक समाजीकरण विकसित नहीं कर सकते हैं |

🔴स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना ÷

बच्चे के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित करना अति आवश्यक है जिसमें ईमानदार और परिपक्वता विशेष रुप से झलकती हों, जिसमें इमानदारी की तीव्र रूप से वृद्धि हो  |

          इसके विपरीत यदि स्वास्थ्य प्रतियोगिता नहीं होगी तो इससे समाजीकरण प्रभावित होगा तथा  इससे शिक्षक तीव्र और कुशल समाजीकरण का विकास नहीं कर सकता है   |

🔴सामाजिक आदर्श÷

 शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे को खेल के मैदान, सामाजिक सांस्कृतिक क्रिया ,व्यवहार और कक्षा – कक्ष में सामाजिक आदर्श प्रस्तुत करें जिससे बच्चे के व्यवहार में बदलाव हो सके और उसमें सामाजिक आदर्श स्थापित हो सके क्योंकि बच्चे शिक्षक अनुकरण करते हैं यदि शिक्षक आदर्श प्रस्तुत नहीं करेगा तो  समाजीकरण ही प्रक्रिया संभव  नहीं है और इससे बच्चे के सफल समाजीकरण की कल्पना करना भी वर्जित है |

🔴 स्कूल की परंपरा÷

स्कूल की परंपरा को उन्नत बनाए रखने के लिए बच्चों में विश्वास जागृत करना अति आवश्यक है और ऐसे विश्वास को जागृत करना अनिवार्य है जिसके बच्चे अनुसरण कर सके और उसका पालन कर सकें तभी बच्चे का समाजीकरण  सफल रूप से हो सकता है |

🔴 सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन÷ शिक्षक को बच्चे के सामूहिक कार्य को उत्साहित करना अति आवश्यक है 

         जैसे – योजना बनाना ,तौर तरीके सिखाना, सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेना ,आदि सभी को प्रोत्साहित करना अनिवार्य है जिससे बच्चे का सर्वांगीण विकास हो सके और उचित समाजीकरण हो सके   |

 📖🖊️Notes by shikha tripathi💐🌷🌸

🌌🍀🍀सामाजीकरण की एजेंसिया🍀🍀🌌

निम्नलिखित हैं➖️

 🔅परिवार

🔅विद्यालय

 🔅सहकर्मी संबंध

🔅संचार मीडिया

🌲 ⚜️परिवार ➖️   यह प्राथमिक एजेंट होता है क्योंकि परिवार से ही बच्चा सीखने की शुरुआत करता है जैसे कपड़े पहनना, ब्रश करना,बातचीत करना,कई प्रकार की क्रिया करना यहीं से शुरू करता है 

              परिवार के माध्यम से ही बच्चा  यह सब कुछ कार्य सीखता है

        माता पिता

माता पिता के द्वारा ही हम  लैंगिक भूमिका में मार्गदर्शन करते हैं इन्हीं के द्वारा हम मूल्यों को सीखते हैं और हमारे साथ जीवन भर यही मूल्य चलते जाते हैं

🌲⚜️विद्यालय    ➖️परिवार से हम सामान्य गुण सीखते हैं उसके उसके बाद जब हम विद्यालय जाते हैं तो विद्यालय हमारे व्यस्त जीवन के लिए हम को तैयार करते हैं और सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल बनाता है

(⚜️घर में सीखना  ➖️      व्यक्तिगत,भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक होता है

⚜️विद्यालय में सीखना➖️ बौद्धिक औपचारिक होता है)

🌲⚜️सहकर्मी समूह  ➖️  एक उम्र के बच्चे एक साथ रहते हैं और उनकी स्थिति समान होती है जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं इसके लिए परिवार सामाजिक विकास महत्वपूर्ण होता है

और उनके सहकर्मी मित्र ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं और दोस्तों के साथ बच्चे ज्यादा समय बिताना पसंद करते हैं

दोस्तों के साथ मिलकर कार्य करना यह दीर्घकालीन नहीं होता है अल्पकालीन होता है परिवार के विपरीत यह अल्पकालीन हित को प्रभावित करता है लेकिन यह जो तत्कालीन हित हैं वह कुछ हित दीर्घकालीन व्यवहार छोड़ देते हैं जैसे कोई अच्छी बुरी आदत पकड़ लेना।

🌲⚜️मास मीडिया ➖️इसमें रेडियो,संगीत, टेलीविजन,न्यूज़ चैनल,समाचार पत्र,तकनीकी नई चीजें इंटरनेट आदि यह सब इस में आते हैं

इन सब का काम प्रभावित करना होता है इन सब के माध्यम से बच्चों को सूचनाओं का आदान प्रदान किया जाता है इससे सामाजीकरण मे बच्चे को सहायता मिलती है

सामाजीकरण में शिक्षकों की भूमिका सामाीकरण मे पहले परिवार आता है और फिर विद्यालय मे विद्यालय में सामाजीकरण शिक्षक कराता है शिक्षक,समाज से जुड़ा है समाज, की अपनी संस्कृति होती है संस्कृति में कई चीज जुड़ी हुई हैं जैसे विश्वास,मान्यता,कुशलता,परंपरा, दृष्टिकोण यह सब संस्कृति का हिस्सा है

यह सब संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती है

 यह सब संस्कृति बच्चों के आचरण को प्रभावित करती है तो शिक्षक का इसमें प्रमुख कार्य होता है कि बच्चे को सही तरीके से देना बच्चों को सही तरीके से बताना यह शिक्षक का महत्व पूर्ण कार्य होता है

अगर संस्कृति सही नहीं आई बच्चों में तो उसका सामाजीकरण सही तरीके से नहीं हो सकता है इसमें शिक्षक बच्चे को चरित्र व्यक्तित्व का विकास माता-पिता के साथ लेते हैं

 कक्षा में खेल के मैदान संस्कृति के कार्य में इत्यादि में जो सामाजिक व्यवहार होता है उसमें शिक्षा का अच्छा होना चाहिए     

 क्योंकि बच्चा शिक्षक का अनुकरण करता है जैसा शिक्षा का ढंग कार्य ,आदत ,नीति करेगा तो इन सब में शिक्षक को सतर्क रहना चाहिए और खुद भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो अनुकूल हो

🌌⚡️समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए शिक्षकों ने अपने बातोंका ध्यान रखना चाहिए⚡️🌌➖️➖️➖️

 🌲🔅 एक अभिभावक शिक्षक सहयोग➖️ सामाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने के लिए बच्चों के माता पिता उससे मिले उनके सहयोग से बच्चों की रुचि जानने बच्चों के व्यवहार ,मनोवृति, लाइफस्टाइल, को समझना अगर शिक्षक इन सब को नहीं जानेंगे तो बच्चे का विकास नहीं कर सकते हैं

🌲🔅स्वस्थ्य प्रतियोगिता की भावना ➖️    विद्यार्थी के अंदर स्वस्थ प्रतियोगिता जगानी है प्रतियोगिता गलत नहीं होती है अच्छी होती है लेकिन जब तक कि वह अच्छी हो प्रतिस्पर्धा की भावना जागृत ना करें बच्चे में प्रतियोगिता स्वस्थ होनी चाहिए इसमें उन बच्चों के अंदर द्वेष भावना जैसी भाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए बच्चे एक-दूसरे से अच्छे अच्छे कार्य अच्छी अच्छी आदत सीखे ना कि बुरी आदते अच्छे कार्य को देखकर उनके अंदर देश भावना उत्पन्न नहीं होनी चाहिए

🌲🔅सामाजिक आदर्श ➖️शिक्षक बच्चे को सामाजिक आदर्श करें क्योंकि बच्चा शिक्षकों के सामाजिक आदर्श का अनुकरण करता है सबके अपने-अपने क्षेत्र में आदर्श होते हैं और बच्चे उसी को देख कर ही सीखता है

🌲🔅स्कूल की परंपरा ➖️स्कूल का वातावरण अच्छा होना चाहिए स्कूल की परंपरा को अनंत रखना उस समय विश्वास जागृत करना अगर परंपरा अच्छी रहेगी तो बच्चा भी अच्छा सीखेगा

🌲🔅सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन➖️ शिक्षकों को समूह में रहना चाहिए क्योंकि समूह की योग्यता तौर तरीका अलग ही  है समूह में रहने से उसके तौर तरीके से बच्चे सीखते हैं इस प्रकार का समूह में व्यापार करता है उसी प्रकार से सीखता है

Notes by sapna yadav📝📝📝📝📝📝📝

26/03/2021…………friday 

         सामाजिकरण की एजेंसियां 

हमारे जीवन भर में सामाजिकरण होता है, हमारे जीवन के चरण के दौरान समाजीकरण के सबसे  प्रभावशाली एजेंट निम्नलिखित है….

(1) परिवार 

(2)विद्यालय 

(3)सहकर्मी संबंध

(4) संचार मीडिया

🔥 यह सभी हमें हमारी सामाजिकरण कराने में सहायक होते हैं

(1) परिवार➖

इसे सामाजिकरण के प्राथमिक एजेंट बोलते हैं ।यह बच्चे की पहली दुनिया है इसमें बच्चे अपने दैनिक जीवन की जरूरतें सीखते हैं 

 जैसे  ➖स्वयं से खाना ,कपड़े पहनना ,सोने  जैसी आदत प्रशिक्षण की प्रारंभिक भावना विकसित करता है 

अर्थात :–परिवार का वातावरण, संस्कृति ,सदस्यों का आचरण ,शिक्षा स्तर ,आर्थिक स्तर, पारिवारिक संरक्षण ,सहयोग ,पालन पोषण आदि बालकों के सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है ।बालक अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के जैसा आचरण तथा व्यवहार करने का प्रयास करता है

 माता-पिता बच्चों को समाज में उपयुक्त माने जाने वाले अपने लैंगिक भूमिकाओं में मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।बच्चे मूल्यों को सीखते हैं जो जीवन भर चलता है

(2) विद्यालय➖

बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। इन्हें द्वितीय एजेंट बोलते हैं।

 परिवार के बाद शिक्षण संस्था समाजीकरण का कार्यभार संभालते हैं यह इस स्थान पर है कि विभिन्न परिवारों के बच्चे एक सामान्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए इकट्ठा होते हैं बच्चे शिक्षकों के साथ और सहपाठियों के बीच स्कूल में संबंध का एक सेट विकसित करते हैं स्कूल बच्चे को एक स्थिर व्यस्त जीवन के लिए तैयार सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल होने में मदद करता है

 यह कहा गया है कि➖ घर पर सीखना व्यक्तिगत, भावनात्मक और अनौपचारिक स्तर से है

 जबकि स्कूल➖ में सीखना मूल रूप से बौद्धिक और औपचारिक रूप से है

(3) सहकर्मी समूह➖

बच्चों के समाजीकरण के लिए सहकर्मी समूह भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इन्हें तृतीय एजेंडा कहा गया

सहकर्मी समूह के सदस्य आमतौर पर एक ही उम्र के बच्चे होते हैं और सामान स्थिति रखते हैं ।जैसे जैसे बड़े होते हैं ,परिवार उनके सामाजिक विकास में कम महत्वपूर्ण हो जाता है बच्चे अपने सहकर्मी समूहों के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं और अपने कंपनी में ज्यादा समय बिताते हैं हालांकि सहकर्मी में समूह आमतौर पर परिवार के विपरीत केवल अल्पकालीन हितों को प्रभावित करता है जिसका जिसका दीर्घकालिक । यह बच्चे के  अच्छे हित में भी हो सकते हैं और बुरे हित में भी होता है यह बच्चे के अच्छे हित में भी हो सकते हैं और बुरे हित में भी

(4) संचार मीडिया➖

मीडिया प्रभाव प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ तेजी से बढ़ा है पिछली शताब्दी के बाद रेडियो, गति चित्र, संगीत , टेलीविजन, न्यूज़ चैनल, समाचार पत्र ,तकनीकी नई चीजें

 इंटरनेट सामाजिकरण के महत्वपूर्ण एजेंटा बन गए हैं इन्हें चतुर्थ एजेंट भी हो जाता है ।मास मीडिया ने दुनिया भर की संस्कृतियों और मानदंडों को पेश किया, जिससे बच्चे की जागरूकता में काफी मदद मिली। सामाजिकरण परिवार ,सहकर्मी समूह और स्कूल के एजेंट आमतौर पर एक समाज और एक संस्कृति का हिस्सा होते हैं लेकिन बड़े पैमाने पर मीडिया समाजिक दुनिया में किसी के संपर्क में आ जाता है

🔥 सामाजिकरण में शिक्षकों की भूमिका

बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार के बाद स्कूल और स्कूलों में विशेष रूप से शिक्षक आते हैं।

 प्रत्येक समाज के कुछ विश्वास, दृष्टिकोण, मान्यताएं , कुशलता है और परंपराएं होती है ।जिनको ,संस्कृति, के नाम से पुकारा जाता है यह संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरित की जाती है और समाज के लोग के आचरण को प्रभावित करती है शिक्षक का सर्वश्रेष्ठ कार्य है बच्चों को यह संस्कृति प्रदान करना यदि वह वह कार्य करने में असफल हो जाते हैं तो बालक का सामाजिक कारण नहीं हो सकता है शिक्षक माता पिता के साथ बालक के चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करने में अति महत्वपूर्ण कार्य करता है

कक्षा में , खेल के मैदानों में ,साहित्य और संस्कृति क्रियाओं में शिक्षक सामाजिक व्यवहार के आदर्श प्रस्तुत, करते हैं बालक अपने अनुकरण की मूल प्रवृत्ति के कारण शिक्षक के ढन्गो ,कार्यों,विषय वस्तु, आदतों और नीतियों का अनुकरण करता है अतः शिक्षक को सदैव सतर्क रहना चाहिए उन्हें ऐसा अनुचित कार्य या व्यवहार नहीं करना चाहिए इसका गलत प्रभाव बालक के ऊपर पर है अतः बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने के लिए शिक्षक को मुख्यतः निम्न बातों पर ध्यान रखना चाहिए

🔥अभिभावक शिक्षक सहयोग➖

समाजीकरण की प्रक्रिया को तेज गति प्रदान करने के लिए शिक्षक का सर्वप्रथम कार्य यह है कि बालक के माता-पिता से संपर्क स्थापित करके उसकी रुचियां और मनोवृति के विषय में ज्ञान प्राप्त करें एवं उन्हीं के अनुसार उसे विकसित होने का अवसर प्रदान करें

🔥 स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना➖

बालक के समाजीकरण में प्रतियोगिता का महत्वपूर्ण स्थान होता है पर ध्यान देने की बात है कि बालक के समाजीकरण के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता का होना ही अच्छा है। अतः शिक्षक को बालक में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित करनी चाहिए

🔥 सामाजिक आदर्श➖

शिक्षा को चाहिए कि वह कक्षा तथा खेल के मैदानों एवं संस्कृति और साहित्य क्रियाओं में बालकों के सामने सामाजिक आदर्शों को प्रस्तुत करें। इन आदर्शों का अनुकरण करके बालक का धीरे-धीरे सामाजिकरण हो जाएगा।

🔥 स्कूल की परंपराएं➖ स्कूल की परंपराओं का बालक के समाजीकरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है ।अतः शिक्षक को चाहिए कि वह बालक स्कूल की परंपराओं में विश्वास उत्पन्न करें तथा इसे इन्हें के अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करें।

🔥 सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन➖

शिक्षक को चाहिए कि वह स्कूल में विभिन्न सामाजिक योजनाओं के द्वारा बालक को को सामूहिक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करें इन क्रियाओं में भाग लेने से उसका सामाजिकरण सोता ही हो जाएगा

➖ उपयुक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक बालक के समाजीकरण को प्रभावित करता है शिक्षक का स्नेह, पक्षपात ,बुरे व्यवहार ,दंड आदि का बालक पर कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता है और उसका सामाजिक विकास उत्तम या विकृत हो जाता है। यदि शिक्षक मित्रता और सहयोग में विश्वास करता है तो बच्चों में भी इन गुणों का विकास होता है यदि शिक्षक छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को दंड देता है तो उनके सामाजिकरण में संस्कृत नेता आ जाती है यदि शिक्षक अपने छात्रों के प्रति सहानुभूति रखता है तो छात्रों का सामाजिकरण सामान्य रूप से होता है

notes by:–✍ संगीता भारती✍

🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥

🌼☘️ समाजीकरण की एजेंसियां☘️🌼

🟣 बालक जन्म के समय कोरा पशु होता है जैसे-जैसे और समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्थाओं के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता रहता है वैसे वैसे वह अपनी पार्श्विक प्रवृत्तियों परिवर्तन करते हुए सामाजिक आदर्शों मूल्यों को सिखाता रहता हैं।

🟣इस प्रकार बालक के समाजीकरण की यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है बालक के समाजीकरण में उसके निम्नलिखित का महत्वपूर्ण योगदान होता है जैसे–

🌼 परिवार

🌼 विद्यालय

🌼 सहकर्मी संबंध

🌼 संचार मीडिया

🌼 परिवार➖ बालक के समाजीकरण के विभिन्न तत्वों में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान है इसका कारण यह है कि प्रत्येक बालक का जन्म किसी न किसी परिवार में ही  होता है

   जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है वैसे वैसे वह अपने माता-पिता, भाई-बहन तथा परिवार के अन्य सदस्यों के संपर्क में आते हुए प्रेम सहानुभूति, सहनशीलता तथा सहयोग आदि अनेक सामाजिक गुणों को सीखता रहता है।

  यही नहीं वह अपने परिवार में रहते हुए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार के आदर्शों,  रीति-रिवाजों, परंपराओं तथा मान्यताओं एवं विश्वासों को भी धीरे-धीरे सीखता जाता है।

🌼 विद्यालय➖ बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है इसे हम बालक के सामाजिक विकास की द्वितीय एजेंसी भी कह सकते हैं।

   स्कूल विविध परिवारों के बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते हैं बालक इन विभिन्न परिवारों के बालक तथा शिक्षकों के बीच रहते हुए सामाजिक प्रतिक्रिया करता है जिससे उसका सामाजीकरण तेज गति से होने लगता है।

    स्कूल के विविध सामाजिक योजनाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास होता रहता है इस दृष्टि से परिवार तथा पड़ोस की भांति स्कूल भी बालक के समाजीकरण का प्रमुख साधन है।

🌼 सहकर्मी समूह➖ एक उम्र के बच्चे एक साथ रहते हैं और उनकी स्थिति समान होती है जैसे- जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं इसके लिए परिवार सामाजिक विकास महत्वपूर्ण होता है।

    बालक के साथ ही प्रत्येक बालक अपने साथियों के साथ खेलते हैं वह खेलते समय जाति-पाति , ऊंच – नीच तथा अन्य प्रकार के भेदभाव से ऊपर उठकर दूसरे बालकों के साथ अंतः क्रिया  कर आनंद लेना चाहते हैं इस कार्य व उनके साथी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

🌼 संचार मीडिया➖ इसमें रेडियो ,संगीत, टेलीविजन ,न्यूज़, चैनल समाचार, पत्र, तकनीकी नई चीजें इंटरनेट आदि यह सब आते हैं। जो हमारे सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।

  🌼☘️  बच्चों के समाजीकरण में शिक्षक की भूमिका☘️🌼

अध्यापक भी बच्चों के व्यक्तिगत व सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है स्कूल शिक्षा एक औपचारिक साधन है तथा क्रमबद्ध रूप से बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करता है वास्तव में स्कूल बच्चों को वहां से उठाता है जहां से उसका परिवार उसे छोड़ता है।

    अध्यापक शिक्षा के द्वारा बच्चों पर वह सांस्कृतिक मूल्य पैदा करता है जो इस समाज व संस्कृति में मान्य  होता है स्कूल में खेल प्रक्रिया द्वारा बच्चे सहयोग, अनुशासन, सामूहिक कार्य आदि सीखते हैं इस प्रकार स्कूल बच्चों में आधारभूत सामाजिक व्यवहार तथा व्यवहार के सिद्धांतों की नींव डालता है।

    इसके साथ शिक्षक के स्नेह, पक्षपात ,अच्छे और बुरे व्यवहार आदि का बच्चे पर प्रभाव पड़ता है वह कक्षा और खेल के मैदान में, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक प्रयोग में बालकों के सामने सामाजिक व्यवहार के आदर्श प्रस्तुत करता है बालक अपने अनुकरण की मूल प्रवृत्तियों के कारण शिक्षकों के कार्यों, आदतों, और नीतियों का अनुसरण करता है अतः वह अध्यापक का कर्तव्य बन जाता है कि बच्चे के सामान आदर्श प्रस्तुत करें क्योंकि अध्यापक के कथनों तथा कार्यों की छाप बालक पर लग जाती है।

👉🏼 यदि शिक्षक समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करना चाहता है तो उन्हें इन बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है।

🟣 अभिभावक शिक्षक सहयोग➖उसे समय-समय पर अभिभावक के संपर्क स्थापित करना चाहिए तथा मिलजुलकर बच्चों के विकास के संबंध में सोचना चाहिए तथा कार्य करना चाहिए।

बालकों /छात्रों के सभी सामाजिक आदर्श स्थापित करना चाहिए।छात्रों को स्कूल की परंपराओं से परिचित कराना चाहिए विभिन्न सामाजिक योजनाओं तथा सामूहिक क्रियाओं के भाग लेने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। बच्चों को सामाजिक सांस्कृतिक व समाज में प्रचलित बातों का ध्यान देना चाहिए।

 🟣 स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना➖ बच्चों के लिए स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित करनी चाहिए जिससे उन्हें इमानदारी और परिपक्वता की भावना विकसित हो।

    इसके विपरीत यदि स्वस्थ प्रतियोगिता नही होगी तो उनमें समाजीकरण का विकास नहीं होगा इससे शिक्षक तीव्र और कुशल समाजीकरण का विकास नहीं कर सकता।

🟣 सामाजिक आदर्श➖ शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों को खेल के मैदान सामाजिक सांस्कृतिक क्रिया व्यवहार और कक्षा -कक्ष वे सामाजिक आदर्श स्थापित कर सके। बालकों के साथ स्नेह तथा सहानुभूति का बर्ताव करना चाहिए।

   अध्यापक को सहयोगियों छात्रों तथा प्रधानाचार्य के साथ मानवीय संबंध स्थापित करना चाहिए। स्कूलों में विभिन्न परिवारों के बच्चे आते हैं ,उनकी संस्कृति भिन्न- भिन्न  होती हैं अतः अध्यापक को बच्चों के अन्त:सांस्कृतिक भावना का विकास करना चाहिए।

🟣 स्कूल की परंपरा➖ स्कूल की परंपरा को उन्नत बनाए रखने की लिए बच्चों में विश्वास जागृत करना अति आवश्यक है और ऐसा विश्वास जागृत करना चाहिए जिसका बालक अनुसरण कर कर अपना सामाजिक विकास कर सके।

🟣 सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन➖सामाजिक योजनाओं तथा सामूहिक प्रयोग में भाग लेने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

     जैसे सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना, योजना बनाना, अच्छे तौर-तरीके सिखाना आदि सभी चीजों में भाग लेना चाहिए जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके तथा व समाज पर एक श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सके।

✍🏻📚📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

41. CDP – Socialization Process PART- 2

👨‍👩‍👦‍👦👬🧖‍♂️👼🏻समाजीकरण👩🏼‍🏫👼🏻

🔴सामाजीकरण की प्रक्रिया:-

बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद से ही प्रारंभ हो जाती हैं बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती हैं परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार के अन्य सदस्यों से अन्तः-क्रियात्मक संबंध स्थापित करता है और उनके व्यवहारों का अनुकरण करता है। इस प्रकार अनुकरण करते हुए जाने अनजाने बालक परिवार के अन्य सदस्यों की भूमिका भी अदा करने लगता है। अनुकरण के आधार पर  ही वह माता-पिता, भाई-बहन आदि की भूमिकाओं को सीखता है। उसके ये व्यवहार धीरे-धीरे स्थिर हो जाते हैं। धीरे-धीरे बालक अपने तथा पिता और अपने तथा माता के मध्य के अंतर को समझने लगता है कि वह स्वयं क्या है? इस प्रकार स्वयं (Self) का विकास होता है जो समाजीकरण का एक आवश्यक तत्व है।

⚫बालक के समाजीकरण करने वाले कारक:-

बालक जन्म के समय कोरा पशु होता है। जैसे-जैसे वह समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्थाओं के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता रहता है वैसे-वैसे वह अपनी पार्श्विक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करते हुए सामाजिक आदर्शों तथा मूल्यों को सीखता रहता है। बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। 

👉🏻👼🏻बालक के समाजीकरण के मुख्य  तत्व निम्नांकित हैं-

🟢परिवार

🟢आयु समूह

🔴पड़ोस

🔴नातेदारी समूह

⚫स्कूल

⚫खेलकूद

🔴जाति

🔴समाज

🔴भाषा समूह

🟢राजनैतिक संस्थाएं और

🟢धार्मिक संस्थाएं।

⏮️बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व:-

👉🏻👼🏻 बालकों के समाजीकरण में बाधा पहुंचाने वाले तत्व इस प्रकार हैं-

🟢सांस्कृतिक परिस्थितियां: 

जैसे जाति, धर्म, वर्ग आदि से संबद्ध पूर्व धारणाएं आदि।

⚫बाल्यकालीन परिस्थितियां: 

जैसे👉🏻 माता-पिता का प्यार न मिलना, माता-पिता में सदैव कलह, विधवा मां, पक्षपात, एकाकीपन तथा अनुचित दंड आदि।

🔴तात्कालिक परिस्थितियां: जैसे निराशा, अपमान, अभ्यास अनियमितता, कठोरता, परिहास और भाई-बहन, मित्र, पड़ोसी आदि की ईर्ष्या।

🔴अन्य परिस्थितियां: जैसे शारीरिक हीनता, निर्धनता, असफलता, शिक्षा की कमी, आत्म विश्वास का अभाव तथा आत्म-निर्भरता की कमी आदि।

📖🖊️Notes by Shikha Tripathi💐💐

🔆 समाजीकरण के मुख्य कारक ➖

▪️सामाजीकरण का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से अंतः क्रिया करता हुआ सामाजिक आदतों, विश्वासों, रीति रविाजों तथा परंपराओं एवं अभिवृत्तियों को सीखता है। इस क्रिया के द्वारा व्यक्ति जन कल्याण की भावना से प्रेरित होते हुए अपने आपको अपने परिवार, पड़ोस तथा अन्य सामाजिक वर्गों के अनुकूल बनाने का प्रयास करता है जिससे वह समाज का एक श्रेष्ठ, उपयोगी तथा उत्तरदायी सदस्य बन जाए तथा उक्त सभी सामाजिक संस्थाएं तथा वर्ग उसकी प्रशंसा करते रहें।

▪️बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद से ही प्रारंभ हो जाती हैं बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती हैं परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार के अन्य सदस्यों से अन्तः-क्रियात्मक संबंध स्थापित करता है और उनके व्यवहारों का अनुकरण करता है। इस प्रकार अनुकरण करते हुए जाने अनजाने बालक परिवार के अन्य सदस्यों की भूमिका भी अदा करने लगता है। अनुकरण के आधार पर  ही वह माता-पिता, भाई-बहन आदि की भूमिकाओं को सीखता है। उसके ये व्यवहार धीरे-धीरे स्थिर हो जाते हैं। धीरे-धीरे बालक अपने तथा पिता और अपने तथा माता के मध्य के अंतर को समझने लगता है कि वह स्वयं क्या है? इस प्रकार स्वयं (Self) का विकास होता है जो समाजीकरण का एक आवश्यक तत्व है।

▪️बच्चा जैसे ही जन्म लेता है उस पर समाज का प्रभाव पड़ने लगता है किंतु जन्म से पूर्व या गर्भ में भी बच्चे पर समाजीकरण का प्रभाव पड़ता है। हालांकि गर्भ में बच्चे का समाजीकरण मां के समाजीकरण यह समाज के प्रति दृष्टिकोण या नजरिए या उनके व्यवहार पर निर्भर करता है अर्थात जन्म से पूर्व बच्चे का समाजीकरण मां के अनुसार निर्देशित होता है।

▪️जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके कुछ समय बाद तक समाज का प्रभाव या समाज की वैलिडिटी वंशानुक्रम के गुण के साथ क्रिया करके जीवन भर के लिए स्थिर हो जाती है।

▪️लेकिन जैसे जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है उसके बाद की जो सामाजिकरण प्रक्रिया है उसकी वैलिडिटी बहुत कम देखने को मिलती है।

▪️बचपन में हमारे परिवार के अन्य जो लोग हमारे संपर्क में आते हैं उनके साथ हमारे संवेग या रिश्तो का जो जुड़ाव है वह काफी मजबूत होता है जिनको हम उम्र बढ़ने पर उनके प्रति जो संवेग या जुड़ाव है  उसे बाद में भी याद रखते हैं अर्थात वह स्थाई  होते हैं।

▪️लेकिन उम्र बढ़ने के साथ हम अपनी कार्य और जरूरतों के अनुसार लोगों से मिलते हैं लेकिन यह बचपन की तुलना में यहां जो जुड़ाव या संवेग इतना मजबूत और स्थाई नहीं होता।

▪️अर्थात कम उम्र में समाजीकरण बहुत गहरा और स्थाई होता है और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है समाजीकरण कम गहरा और स्थायित्व भी घटता जाता है।

▪️जिस समय हम समाज को समझ रहे होते हैं या  समाजीकरण को समझ रहे होते हैं उस समय जब हम समाज से अंत:क्रिया करते हैं तब हम यह जागरूक होते हैं कि हम क्या अंत:क्रिया कर रहे हैं अर्थात सोच समझकर, कारण को जानकर या किसी जरूरत , आवश्यकता के अनुसार या एक व्यवस्थित  योजना अनुरूप ही समाज से अंत:क्रिया करते हैं इस उम्र में समाज में हमारा मानसिक विकास भी काफी हद विकसित व समझने योग्य हो जाता है।

▪️बच्चा जन्म के समय कोरा पशु के समान होता है जैसे-जैसे समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रिया में भाग लेता है।

▪️अपनी प्रवृत्ति को नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी एक समाजीकरण का हिस्सा है।

▪️बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं।

📍 परिवार

📍 आयु समूह मित्र

📍 आस-पड़ोस

📍 नातेदारी समूह

📍 स्कूल खेल का मैदान

📍 जाति समूह

📍 समाज

📍 भाषा समूह

📍 राजनीतिक संस्थाएं

📍 धार्मिक संस्थाएं

❇️ बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व➖

 बालक के समाजीकरण में बाधा पहुंचाने वाले निम्नलिखित कारकों का उल्लेख किया गया है:-

 √ बाल्यकालीन परिस्थितियां :- जैसे मां-बाप से प्यार न मिलना, मां-बाप में परस्पर लड़ाई -झगड़ा, विधवा मां या बिधुर पिता, पक्षपातपूर्ण व्यवहार, अनुचित दंड और सुरक्षा, बच्चे का एकाकीपन आदि।

√ सांस्कृतिक परिस्थितियां:-  जैसे – धर्म, जाति, वर्ग आदि से संबंधित पूर्वाग्रह एवं पूर्वधारणाएं आदि। 

√ तात्कालिक परिस्थितियां :- जैसे – निराशा, कठोरता, अन्याय, अपमान, ईर्ष्या, तुलना करना आदि।

√ अन्य परिस्थितियां :- जैसे आत्म – विश्वास एवं आत्मनिर्भरता का अभाव, बेकार, असफलताएं, शिक्षा का अभाव, शारीरिक हीनता तथा शारीरिक दोष, निर्धनता आदि।

✍️

   Notes By-‘Vaishali Mishra’

25/03/2021…….Thursday 

        TODAY CLASS……

🔰सामाजिकरण के मुख्य कारक🔰

➖बालक के समाजिकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद से ही  शुरू हो जाती है

➖ बच्चे के समाजिकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंतः क्रिया करता है

➖ अंतः क्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है धीरे-धीरे वह व्यवहार उन्हें स्थिर हो जाता है

➖ बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है ।बच्चा जन्म के समय कोरा पशु होता है जैसे जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में विभिन्न प्रकार की सामाजिक फिल्मों में भाग लेता है

➖ अपनी प्रवृत्ति नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी समाजिकरण का होता है

🧒बालक के समाजिकरण के मुख्य  तत्व निम्नलिखित है …

➖परिवार

➖आयु समूह

➖पड़ोस

➖नातेदारी समूह

➖स्कूल

➖खेलकूद, (खेल का मैदान)

➖जाति

➖समाज

➖भाषा समूह

➖राजनैतिक संस्थाएं और

➖धार्मिक संस्थाएं।

🧒 बालक के सामाजिकरण में बाधक तत्व

❎सांस्कृतिक परिस्थितियां….

जैसे ….

➖जाति

➖धर्म

➖वर्ग 

इसमें संबंध पूर्व रूढ़िवादिता/ पूर्वाग्रह धारणाएं

❎बाल्यकालीन परिस्थितियां: 

जैसे…..

➡️माता-पिता का प्यार न मिलना

➡️ माता-पिता में कलह

➡️ परिवार का कुंठित वातावरण

➡️ बच्चों के साथ पक्षपात

➡️ बच्चों का एकाकीपन

➡️ अनुचित दंड

➡️ Single parent , विधवा मां एकल माता पिता

❎तात्कालिक परिस्थितियां: 

जैसे….

➖ निराशा

➖ अपमान

➖ परिहास

➖ ईर्ष्या:– (भाई-बहन, परिवार, समाज, मित्र)

➖ तुलना करना

❎अन्य परिस्थितियां: 

जैसे…..

➖ शारीरिक हीनता

➖निर्धनता

➖ असफलता

➖ शिक्षा की कमी

➖ आत्म विश्वास का अभाव तथा 

➖आत्म-निर्भरता की कमी ।

✍Notes by:— संगीता भारती✍

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

💫समाजीकरण की प्रक्रिया💫

बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म से कुछ दिन बाद शुरू हो जाती हैं।

बालक में समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंत: क्रिया करता है।

अंतः क्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है और धीरे-धीरे वह व्यवहार उसमें स्थिर हो जाता है। बालक लोगों के बीच अंतर समझने लगता है।

बच्चा जन्म के समय कोरा पशु होता है। जैसे-जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है।अपनी प्रवृत्ति को नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी समाजीकरण का हिस्सा है।

🙋‍♂️ बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं:

🌴 परिवार

🌴 आयु समूह

🌴 पास पड़ोस

🌴 नातेदारी समूह

🌴 स्कूल

🌴 खेलकूद

🌴 जाति

🌴 समाज

🌴 भाषा समूह

🌴 राजनैतिक संस्थाएं

🌴 धार्मिक संस्थाएं

💫 बालक के समाजीकरण के बाधक तत्व:

1️⃣ सांस्कृतिक परिस्थिति:

सांस्कृतिक परिस्थिति के अंतर्गत समाजीकरण में बाधा जाति, धर्म, वर्ग ,सबकी संबद्ध पूर्व रूढ़िवादिता पूर्वाग्रह धारणाएं आदि आती हैं।

2️⃣बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थिति:

🌿 माता पिता का प्यार ना मिलना

🌿 माता-पिता का कलह

🌿 परिवार का कुंठित वातावरण

🌿 बच्चों के साथ पक्षपात

🌿 बच्चों का एकाकीपन

🌿 दूसरों के प्रति ईर्ष्या का माहौल

🌿 अनुचित दंड

🌿 विधवा मां/(एकल माता या पिता)

3️⃣ तात्कालिक परिस्थिति:

🔅 निराशा

🔅 अपमान

🔅 परिहास

🔅 ईर्ष्या (भाई-बहन, मित्र, पड़ोसी  की ईर्ष्या)

🔅 तुलना

4️⃣ अन्य परिस्थिति:

शारीरिक हीनता, निर्धनता, असफलता, शिक्षा की कमी, आत्मविश्वास का अभाव, आत्मनिर्भरता की कमी आदि सभी बालक के समाजीकरण के बाधक तत्व हैं।

✍🏻✍🏻Notes by raziya khan✍🏻✍🏻

समाजीकरण के मुख्य कारक

🤾🏋️🤼🤺

▶️  बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद शुरू हो जाती है। बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है। परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंतः क्रिया करता है।

▶️ अंतः क्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है। धीरे-धीरे वह व्यवहार उनमें स्थिर हो जाता है बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है।

▶️ बच्चे जन्म के समय कोरा पशु होता है। जैसे-जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता रहता है वैसे- वैसे वह अपनी पार्श्विक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करके सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों को सीखता है। बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व निम्नलिखित है-

1.परिवार

2.आयु समूह (मित्र)

3.पास- पड़ोस 

4.नातेदारी समूह 

5.स्कूल 

6.खेलकूद (खेल का मैदान)

7.जाति समूह 

8.समाज 

9.भाषा समूह 

10.राजनीतिक संस्थाएं

11.धार्मिक संस्थाएं

बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व

🤺🤼🏋️🤾

 समाजीकरण में बाधा पहुंचाने वाले तत्व इस प्रकार हैं

1️⃣ सांस्कृतिक परिस्थितियां जैसे- जाति, धर्म, वर्ग आदि से संबंध पूर्वधारणाऐं।

2️⃣ बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थितियां जैसे- माता पिता का प्यार न मिलना, माता-पिता में सदैव कलह,परिवार का वातावरण, बच्चों के साथ पक्षपात, बच्चों का एकाकीपन, दूसरों के प्रति ईर्ष्या का माहौल,अनुचित दंड,विधवा मां/एकल माता-पिता आदि।

3️⃣ तत्कालिक परिस्थितियां जैसे-निराशा, अपमान, परिहास, 

भाई- बहन, परिवार, समाज, मित्र आदि से ईर्ष्या, तुलना आदि।

4️⃣ अन्य परिस्थितियां जैसे- शारीरिक हीनता,निर्धनता, असफलता,शिक्षा की कमी,आत्मविश्वास की कमी,

आत्मनिर्भरता की कमी इत्यादि सभी बालक के समाजीकरण के बाधक तत्व है।

Notes by Shreya Rai✍🏻🙏

🌌🌲सामाजीकरण के मुख्य कारक🌲🌌

⚜️ सामाजिक बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ समय बाद से शुरू होती है

⚜️बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार में अंतः क्रिया करता है अंतः क्रिया करने के पश्चात बालक अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका सीखते हैं वह धीरे-धीरे व्यवहार में स्थित हो जाती हैं

 ⚜️बच्चे लोगों के बीच अंदर समझने लगता है बच्चे जन्म के समयकोरा पशु  होता है जैसे जैसे वह समाज अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में रहता है  सामाजिक कार्यों में भाग लेता है

अपनी प्रवृत्ति नियंत्रित करके सामाजिक  आदर्श  एवं मूल्य सीखना भी सामाजीकरण  होता है 

🌸⚡️बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व➖️🌸⚡️

 जो इस प्रकार हैं

🔅परिवार

🔅आयु समूह

🔅पड़ोस

🔅नातेदारी

🔅समूह

 🔅स्कूल

🔅खेल कूद (खेल का मैदान )

🔅जाति

🔅 समाज

🔅भाषा समूह

 🔅राजनीतिक संस्थाएं

🔅धार्मिक संस्थाएं

 🌸💮बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व➖️🌸💮

🍀संस्कृति परिस्थितियां

 जैसे 🔅जाति

🔅 धर्म

🔅वर्ग

 इसमें संबंधित पूर्व रूढ़िवादिता /पूर्वाग्रह

🍀बाल्य कालीन परिस्थितियां➖️

🔅माता-पिता से प्यार ना मिलना

🔅 माता-पिता  कलह

 🔅परिवार का कुंठितवातावरण

🔅बच्चे के साथ पक्षपात

🔅बच्चे का एकाकीपन

🔅अनुचित दंड

🔅एकल माता पिता

🍀 तत्कालीन परिस्थितियां➖️

🔅निराशा

🔅अपमान

🔅परिहास

 🔅ईर्ष्या  (भाई-बहन, 🔅परिवार,समाज, मित्र)

 🔅तुलना करना

🍀 अन्य परिस्थितियों जैसे➖️

🔅शारीरिक   हीनता

 🔅निर्धनता

 🔅असफलता

 शिक्षा की कमी🔅आत्मविश्वास का अभाव

 🔅और आत्मनिर्भरता की कमी

Notes by sapna yadav📝📝📝📝📝📝📝

समाजीकरण के मुख्य कारक

बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद शुरू हो जाती है बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंतः क्रिया करता है

                         ..  अंतः क्रिया के पश्चात  अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को  सीखता है धीरे-धीरे वह व्यवहार उनमें स्थिर हो जाता है बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है

बच्चे जन्म के समय कोरा पशु होता है जैसे जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रिया में भाग लेता है अपनी प्रवृत्ति नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी सामाजीकरण होता है

 बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व

परिवार 

आयु समूह मित्र आस-पड़ोस

 नातेदारी समूह

 स्कूल

खेलकूद खेल का मैदान

 जाति समूह 

समाज 

भाषा समूह

 राजनैतिक संस्थाएं

 धार्मिक संस्थाएं

बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व

1  सांस्कृतिक परिस्थिति:- सांस्कृतिक परिस्थिति में जाति ,धर्म ,वर्ग इनसे संबंधित पूर्व रूढ़िवादिता या पूर्वाग्रह धारणाएं आती हैं

3 बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थिति

 इसमें इस प्रकार के बच्चे आते हैं अपने परिवार की स्थिति के कारण परेशान होते हैं

 माता पिता का प्यार ना मिलना

 माता-पिता का कलह

 परिवार का कुंठित वातावरण

 बच्चों का एकाकीपन

 अनुचित  दंड

 एकल माता पिता

 तात्कालिक  परिस्थिति

निराशा

 अपमान 

परिहास( भाई-बहन ,परिवार, समाज )

 ईर्स्या

तुलना

 अन्य परिस्थिति

 शारीरिक  हीनता

 निर्धनता

 असफलता 

शिक्षा की कमी

 आत्मविश्वास का अभाव 

बेरोजगारी 

आत्मनिर्भरता की कमी

सपना साहू

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🔆🍀 समाजीकरण के मुख्य कारक ➖

💥 बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद ही शुरू हो जाती है जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और अपेक्षाओं को आंतरिक रुप से सीखते हैं और उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीखकर अपने समाज के सक्रिय सदस्य  के रूप में कार्य करता है  |

💥 बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अन्त: क्रिया करता है  |

💥 जब बच्चा अंतः क्रिया करता है और उसके पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है धीरे-धीरे वह व्यवहार में स्थिर हो जाता है बच्चा लोगों के बीच के अंतर को समझने लगता है बच्चे की शैशावस्था और बाल्यावस्था में जो भी क्रियाएं होती है या जो भी वह समाजीकरण करता है वे क्रियाएं होती है जैसे कि  खाना खाना ,नहाना ,पानी पीना, ब्रश करना सीखता है जो की स  कभी भूलता नहीं है अर्थात कहने का तात्पर्य है कि बच्चे की शैशावस्था और बाल्यावस्था में जो क्रियाएं होती है और समाजीकरण होता है वह स्थिर होता है और समाजीकरण का परिपक्व रूप आने वाली अवस्थाओं में देखने को मिलता है |

💥 बच्चा जन्म के समय कोरा पशु होता है जैसे-जैसे वह  समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आता है तो विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है वैसे ही उसका समाजीकरण विस्तृत होता जाता है और वह समाज के मानदंडों का पालन करते हुए समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बन जाता है  |

💥  समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति को नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य भी सीखता है जो कि  समाजीकरण  का एक हिस्सा है |

⭕ समाजीकरण के मुख्य तत्व ➖

🍀 परिवार 

🍀आयु समूह 

🍀 आस – पड़ोस 

🍀 नातेदारी या रिश्तेदारी समूह

🍀  विद्यालय

🍀 खेल का मैदान या खेलकूद

🍀 जाति समूह ➖

जब बच्चा बड़ा होता है तो वह अपनी जाति समूह से एक जुड़ाव महसूस करता है उनका अपनी जाति के प्रति अलग ही नजरिया होता है जिसकी अपनी संस्कृति होती है उसके मानदंडों के अनुसार बच्चे अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं |

🍀 समाज

🍀 धार्मिक संस्थाएं

🍀 राजनैतिक संस्थाएं

⭕ बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व➖

🎯 सांस्कृतिक परिस्थिति ➖

 सांस्कृतिक परिस्थिति के अंतर्गत जैसे-  जाति ,धर्म और वर्ग आदि से संबंधित जो भी  रूढ़िवादिता या पूर्वाग्रह और धारणाएँ जिनसे बच्चे की समाजीकरण में अत्यधिक प्रभाव पड़ता है |

 अर्थात यदि किसी धर्म जाति या वर्ग में  रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रह संबंधी धारणाएं प्रचलित है तो इससे बच्चे का सांस्कृतिक सामाजीकरण बहुत ज्यादा प्रभाव कारी होगा |

🎯 बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थिति ➖

 पारिवारिक परिस्थितियों  के अंतर्गत जैसे माता पिता का प्यार ना मिलना ,माता-पिता का कलह, परिवार का कुंठित वातावरण, बच्चों के साथ पक्षपात ,बच्चे का एकाकीपन ,अनुचित दण्ड, अभिभावकों का एकल होना या एकल माता या पिता आदि सभी कारक बच्चे के समाजीकरण में बाधा उत्पन्न करते हैं |

🎯 तत्कालिक परिस्थिति ➖

 तत्कालिक परिस्थितियां जैसे- निराशा ,अपमान,परिहास,  ईर्ष्या (भाई-बहन परिवार समाज या मित्र के प्रति ) या तुलना करना आदि सब चीजों से बच्चे का समाजीकरण प्रभावित होता है |

🎯 अन्य परिस्थितियां ➖

अन्य परिस्थितियां जैसे – शारीरिक हीनता, निर्धनता, असफलता ,शिक्षा की कमी, आत्मविश्वास का अभाव, बेरोजगारी और आत्मनिर्भरता की कमी आदि सभी समाजीकरण के बाधक तत्व है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🌸🌼🌺🍀🌸🌼🌻🍀💥🌸🌼🌺🌻🍀🌸🌼🌺🌻🍀🌸🌼🌺🌻

☘️🌼 समाजीकरण के प्रमुख कारक🌼☘️

🟣 बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद शुरू हो जाती है बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है परिवार में सदस्यों के रूप में बालक परिवार से अंत:क्रिया करता है।

🟣 अंतः क्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है धीरे-धीरे वह व्यवहार उसमें स्थिर हो जाता है बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है।

बच्चे जन्म के समय कोरा  पशु होते हैं जैसे -जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के रूप संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेते हैं अपनी प्रवृत्ति नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी सामाजिक और का हिस्सा है।

☘️🌼 बालक के समाजीकरण के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं➖

1-परिवार

2-आयु समूह

3-पास- पड़ोस

4-नातेदारी समूह

5-स्कूल

6-जाति समूह

7-समाज

8-भाषा समूह

9-राजनीतिक संस्थाएं

☘️🌼 बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व🌼☘️

सामाजीकरण में बाधा पहुंचाने वाले तत्व इस प्रकार है➖

🌼1- सांस्कृतिक परिस्थिति➖ इसमें जाति ,धर्म ,वर्ग आदि से संबंध पूर्वधारणाऐं।

☘️ 2-बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थिति➖ इसमें बालक को माता -पिता का प्यार करना मिलना। माता-पिता का आपसी कलह, परिवार का कुंठित वातावरण से बच्चों के साथ पक्षपात, बच्चों का एकाकीपन, अनुचित दंड, विधवा मां या एकल माता-पिता आदि।

🌼 तत्कालीन परिस्थिति➖ जैसे अपमान, परिहास ,भाई-बहन, परिवार, समाज, मित्र आदि से ईर्ष्या तुलना आदि।

🌼 अन्य परिस्थिति➖ जैसे शारीरिक हीनता, निर्धनता, असफलता, आत्म विश्वास का अभाव , शिक्षा की कमी, बेरोजगारी , इत्यादि सभी बालक के समाजीकरण के बाधक तत्व है

📚📚✍🏻 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

🌼🌼🌼समाजीकरण के मुख्य कारक🌼🌼🌼

🌼🌼 बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद शुरू हो जाती है। बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है। परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंतः क्रिया करता है।

🌼🌼 अंतः क्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है। धीरे-धीरे वह व्यवहार उनमें स्थिर हो जाता है बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है।

🌼🌼 बच्चे जन्म के समय कोरा पशु होता है। जैसे-जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता रहता है वैसे- वैसे वह अपनी पार्श्विक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करके सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों को सीखता है। बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व इस प्रकार है-

🌼1.परिवार

🌼2.आयु समूह (मित्र)

🌼3.पास- पड़ोस 

🌼4.नातेदारी समूह 

🌼5.स्कूल 

🌼6.खेलकूद (खेल का मैदान)

🌼7.जाति समूह 

🌼8.समाज 

🌼9.भाषा समूह 

🌼10.राजनीतिक संस्थाएं

🌼11.धार्मिक संस्थाएं

🌼🌼बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व🌼🌼

 🌼समाजीकरण में बाधा पहुंचाने वाले तत्व इस प्रकार हैं

🌼1. सांस्कृतिक परिस्थितियां जैसे- जाति, धर्म, वर्ग आदि से संबंध पूर्वधारणाऐं।

🌼2. बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थितियां जैसे- माता पिता का प्यार न मिलना, माता-पिता में सदैव कलह,परिवार का वातावरण, बच्चों के साथ पक्षपात, बच्चों का एकाकीपन, दूसरों के प्रति ईर्ष्या का माहौल,अनुचित दंड,विधवा मां/एकल माता-पिता आदि।

🌼3. तत्कालिक परिस्थितियां जैसे-निराशा, अपमान, परिहास, 

भाई- बहन, परिवार, समाज, मित्र आदि से ईर्ष्या, तुलना आदि।

🌼4.अन्य परिस्थितियां जैसे- शारीरिक हीनता,निर्धनता, असफलता,शिक्षा की कमी,आत्मविश्वास की कमी,

आत्मनिर्भरता की कमी इत्यादि सभी बालक के समाजीकरण के बाधक तत्व है।

🌼🌼🌼🌼🌼manjari soni🌼🌼🌼🌼🌼🌼

👨‍👩‍👧‍👦👩‍❤️‍👨 समाजीकरण के मुख्य कारक 👩‍❤️‍👨👨‍👩‍👧‍👦

♦️ बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद शुरू हो जाती है।

♦️ बच्चे के,समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है,परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंतः क्रिया करता है।

              अंतःक्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर, वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को दिखता है, धीरे-धीरे वह व्यवहार उनमे में स्थिर हो जाता है बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है।

♦️ बच्चा जन्म के समय कोरा पशु होता है,जैसे जैसे वह समाज के अन्य लोगों तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार के सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है।

            अपनी प्रवृति, नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी समाजीकरण का हिस्सा है।

👨‍👩‍👧‍👦👩‍❤️‍👨 बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व निम्नलिखित है।👩‍❤️‍👨👨‍👩‍👧‍👦

🔹 परिवार।

🔹 आयु समूह (मित्र )।

🔹पास पड़ोस।

🔹 नातेदारी समूह।

🔹 स्कूल।

🔹 खेलकूद (खेल का मैदान )

🔹 जाति समूह।

🔹 समाज।

🔹 भाषा समूह।

🔹 राजनीतिक संस्थाएं।

🔹 धार्मिक संस्थाएं।

👨‍👩‍👧‍👦👩‍❤️‍👨 बालक के समाजीकरण के बाधक तत्व👩‍❤️‍👨👨‍👩‍👧‍👦

🔅 सांस्कृतिक परिस्थिति :-

➖ जाति।

➖ धर्म।

➖ वर्ग।

           इन,सबका संबंध पूर्व रूढ़िवादिता/ पूर्वाग्रह धारणाओं से है।

🔅 बाल्यकालीन या पारिवारिक परिस्थिति:-

➖ माता पिता का प्यार ना मिलना।

➖ माता पिता का कलह।

➖ परिवार का कुंठित वातावरण।

➖बच्चों के साथ पक्षपात।

➖ बच्चे का एकाकीपन।

➖ अनुचित दंड।

➖ एकल माता पिता।

📝NOTES BY “AkAnKsHA”📝

✍🏻🤟🏻🤝🏻👍🏻👏🏻🙏🏻✍🏻

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

 सामाजीकरण के मुख्य कारक–

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद से शुरू हो जाती है ।

बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से आरंभ होती है परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अंतः क्रिया करता है।

    अंतः क्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है। धीरे-धीरे वह  व्यवहार उसमें स्थिर हो जाता है। बच्चा लोगों के बीच अंतर समझने लगता है।

🌴  बच्चे जन्म के समय कोरा पशु होता है ।जैसे-जैसे समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आता है। विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रिया में भाग लेता है। 

अपनी प्रवृत्ति नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी समाजीकरण का हिस्सा है।

🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

 बालक के समाजीकरण के मुख्य तत्व निम्नलिखित है।

♦️ परिवार–

 एक बच्चे का सामाजीकरण जन्म के बाद परिवार के द्वारा ही होता है।

♦️आयु समूह –बच्चा जब अपने आयु के बच्चों के साथ समूह में रहता है। तो उस समय भी उसका सामाजीकरण होता है।

♦️ पास पड़ोस– बच्चे जब घर से बाहर जाने लगता है। तो अपने आसपास के लोगों के संपर्क में आता है ।

♦️नातेदारी समूह– बच्चा जब रिश्तेदार चाचा मामा फूफा और कई लोगों के संपर्क में आता है। तब भी उसका सामाजीकरण होता है।  

♦️स्कूल – बच्चा जब स्कूल जाता है। तब उसका द्वितीय सामाजीकरण होता है। वहां पर अलग-अलग संस्कृति के बच्चे अलग-अलग जाति के बच्चों के साथ अंतः क्रिया करता है। जिसके द्वारा उसका सामाजीकरण होता है।

♦️ खेलकूद( खेल का मैदान)– बच्चा जब अपने साथ के बच्चों के साथ खेल के मैदान में जाता है।  तो वह अलग-अलग संस्कृति के तथा भाषा  बोलने वाले बच्चों के साथ खेलता है। तब भी उसका सामाजीकरण होता है।

♦️ जाति समूह– जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है। तो वह अपने परिवार द्वारा अपने जाति के लोगों के साथ जुड़ाव महसूस करता है।

♦️ समाज– बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह समाज के संपर्क में आता है। और अंतर क्रिया करता है ।

♦️भाषा समूह– बच्चा  अपने आसपास के लोगों द्वारा बोली गई भाषा का भी अनुकरण करता है। 

♦️राजनीतिक संस्थाएं 

♦️ धार्मिक संस्थाएं

🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲

बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व –

🌍सांस्कृतिक परिस्थिति– जाति, धर्म ,वर्ग इन सब की संबंध पूर्व रूढ़िवादिता एवं पूर्वाग्रह धारणाएं ।

🌍बाल कालीन या पारिवारिक परिस्थिति– माता पिता का प्यार न मिलना ,माता पिता के बीच  कलह ,परिवार का कुंठित वातावरण ,बच्चों के साथ पक्षपात, बच्चों का अकेलापन, अनुचित दंड, एकल माता या पिता।

🌍 तत्कालीन परिस्थिति – निराशा ,अपमान, परिहास,  ईर्ष्या (भाई बहन ,परिवार ,समाज या मित्र द्वारा )

🌍तुलना करना।

🌴🌺☘️♦️🌍🌻🌺♦️Notes by poonam sharma☘️☘️☘️

बालक के समाजीकरण के

             प्रमुख कारक

💥💥💥💥💥💥💥💥

25 march 2021

बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म के कुछ दिन बाद ही शुरू हो जाती है।

      बच्चों के समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से प्रारंभ होती है , तथा परिवार के सदस्य के रूप में बालक परिवार से अन्तःक्रिया करता है।

अंतःक्रिया के पश्चात अनुकरण के आधार पर वह अपने परिवार के लोगों की भूमिका को सीखता है।

धीरे-धीरे अनुकरण किया हुआ अपना पारिवारिक व्यवहार उनमें स्थिर हो जाता है ।

बच्चे लोगों के बीच अंतर समझने लगते हैं।

बच्चे जन्म के समय कोरा पशु होता है ,  अतः जैसे – जैसे वह समाज के अन्य व्यक्ति तथा सामाजिक संस्था के संपर्क में आते हैं तो बे विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेते हैं।

अपनी प्रवृतियां नियंत्रित करके सामाजिक आदर्श एवं मूल्य सीखना भी सामाजीकरण का हिस्सा है।

👉 बालक के समाजीकरण के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं :-

1.  परिवार :-

जन्म लेने के कुछ समय बाद बच्चों का समाजीकरण सर्वप्रथम परिवार से ही प्रारंभ होता है।

2. आयु समूह  ( मित्र ) :-

जब बच्चे अपने आयु समूह के बच्चों /  मित्रों के साथ संपर्क में रहते हैं तब भी बच्चों को सामाजीकरण होता है। 

3. पास पड़ोस  :-

घर परिवार से बाहरी दुनिया अर्थात मोहल्ला/ पास पड़ोस में लोगों के संपर्क में रहने से भी बच्चों को सामाजीकरण होता है।

4. नातेदारी समूह :-

जब बच्चे अपने रिश्तेदारों के हमउम्र बच्चों के संपर्क में आते हैं तब भी उनका सामाजीकरण होता है।

5.  विद्यालय  :-

बालक का द्वितीयक सामाजिकरण विद्यालय ही होता है। 

अर्थात विद्यालय में विभिन्न संस्कृति ,  परिवार आदि के बच्चों से मिलने पर बच्चों का समाजीकरण होता है।

 6.  खेल का मैदान (खेल कूद) :-

अपने खेल के मैदान में बच्चे विभिन्न प्रकार के बच्चों से मिलते हैं वहां पर बच्चों में परस्पर सहयोग की भावना , प्रेम की भावना आदि का विकास होता है जिसके आधार पर भी बच्चों का समाजीकरण होता है।

7. जाति समूह  :-

जाति समूह के आधार पर भी बच्चों का सामाजीकरण होता है।

8.  समाज  :-

समाज के साथ संबंध स्थापित करने पर , समाज में विभिन्न प्रकार के लोगों से विभिन्न प्रकार के तथ्यों आदि से अंतः क्रिया करने पर भी बच्चों का सामाजीकरण होता है।

9.  भाषा समूह  :-

विभिन्न प्रकार की भाषा समूहों के बीच भी बच्चों का सामाजीकरण होता है।

10.  राजनीतिक संस्थाएं :-

अनेक प्रकार की राजनीतिक संस्थाएं अर्थात विभिन्न वातावरण में रहने पर भी बच्चों का समाजीकरण होता है।

11.  धार्मिक संस्थाएं :-

 बच्चे विभिन्न प्रकार के धार्मिक संस्थाओं में रहते हैं तो बच्चों का एक दूसरे की धार्मिक संस्थाओं के साथ संबंध स्थापित  करने पर भी सामाजीकरण होता है।

बालक के समाजीकरण में बाधक तत्व  

1. सांस्कृतिक परिस्थितियाँ  :-

बालक के समाजीकरण में सांस्कृतिक परिस्थितियां कभी-कभी बाधक होती है जैसे जाती , धर्म , वर्ग आदि से संबंधित पूर्व रूढ़िवादिताएं / पूर्वाग्रह धारणाएं आदि बाधक होती हैं।

2. बाल्यकालीन पारिवारिक परिस्थितियां  :-

जैसे  :- 

माता पिता का प्यार न मिलना ;

माता-पिता के बीच का कलह ;

परिवार का कुंठित वातावरण ;

बच्चों के साथ पक्षपात  ;

बच्चों का एकाकीपन ;

अनुचित दंड ;

एकल माता-पिता का होना   आदि।

3.  तात्कालिक परिस्थितियां  :-

जैसे :-

निराशा 

अपमान 

परिहास 

ईर्ष्या – ( भाई-बहन , परिवार , समाज , मित्र )

 तुलना   आदि।

4.  अन्य परिस्थितियां  :-

जैसी – 

शारीरिक हीनता 

निर्धनता 

असफलता 

शिक्षा की कमी 

आत्मविश्वास का अभाव 

बेरोजगारी 

आत्मनिर्भरता की कमी  आदि।

✍️Notes by जूही श्रीवास्तव✍️

40. CDP – Socialization Process PART- 1

👨‍👨‍👦‍👦 👩‍❤️‍👨  समाजीकरण 👩‍❤️‍👨 👨‍👨‍👦‍👦

 ↔️ अर्थ ➖

🔴 समाजीकरण की ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों,मूल्यों और अपेक्षाओं को आंतरिक रूप से सीखते हैं और उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीखकर,समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता है।

🔵 जब बच्चा जन्म लेता है वह ना तो खुद को जानता है ना समाज को। घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, सब उसके घर परिवार के सदस्य रिश्तेदार के आचरण के अनुकरण से या उसके बताए गए तौर तरीके से मिलता है।

         सीखने की यही प्रक्रिया, समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में, समाजीकरण कहलाती है।

👩‍❤️‍👨 समाजीकरण की परिभाषा 👩‍❤️‍👨

🔅 जॉनसन के अनुसार ➖

 समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है, जो सीखने वाले को समाजिक कार्य करने योग्य बनाता है।

🔅हॉटल और हॉटल के अनुसार ➖

 समाजीकरण वह प्रक्रिया है,जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है।

🔅 ओगबर्न के अनुसार ➖

 समाजीकरण, हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।

🔅 ग्रिन के अनुसार➖

 सामाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषताओं निज स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।

🔅 मेकियोनियस के अनुसार ➖

 समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।

🔅 बोगार्डस के अनुसार ➖

 समाजीकरण एक साथ रहना और काम करना, सीखने की प्रक्रिया है।

👨‍👨‍👦‍👦 समाजीकरण के प्रकार 👨‍👨‍👦‍👦

♦️प्राथमिक सामाजीकरण।

♦️द्वितीयक सामाजीकरण।

♦️प्रत्याशात्मक सामाजीकरण।

♦️ पुनः सामाजीकरण।

♦️ संगठनात्मक समाजीकरण।

♦️ समूह समाजीकरण।

♦️ लैंगिक  समाजीकरण।

♦️ जातीय समाजीकरण।

🔅 प्राथमिक समाजीकरण ➖

 प्राथमिक सामाजीकरण, तत्काल परिवार और मित्र से प्रभावित है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित करता है।

🔅 द्वितीयक सामाजीकरण ➖

 इसमें विद्यालय,पार्क,पास पड़ोस आते है,बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के रूप में उपयुक्त व्यवहार और कौशल को सीखने का माध्यम है।

🔅 प्रत्याशात्मक  सामाजिकरण ➖

 एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद, व्यवसाय, सामाजिक रिश्ते के लिए, पूर्वाभ्यास करता है।

🔅 संगठनात्मक समाजीकरण ➖

 ऐसी प्रक्रिया, जिसमें एक व्यक्ति कर्मचारी संगठनात्मक  भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

🔅समूह समाजीकरण ➖

 वह प्रक्रिया, जो किसी वयस्क  व्यक्ति में पारिवारिक वातावरण के बजाय सहकर्मी समूह भी उनके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

🔅   लैंगिक समाजीकरण ➖

 वह व्यवाहर, जो लड़के और लड़कियों में उनके लिंग के हिसाब से उपयुक्त माना जाता है।

           इसमें लड़के, लड़कियों के और लड़कियां, लड़के के गुण सकती है।

🔅जातीय समाजीकरण ➖

 एक बच्चा, अपने जाति समूह के व्यवहार, धारणा,मूल्य दृष्टिकोण प्राप्त करता है।

📝NOTES BY “AkAnKsHa”📝

✍🏻👏🏻👍🏻🤝🏻🤟🏻🙏🏻✍🏻

🔆 समाजीकरण (Socialization)

▪️समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और अपेक्षाओं को आंतरिक रुप से सीखते हैं।

▪️उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीखकर अपने समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करते हैं।

▪️व्यक्ति समाज के साथ परस्पर अंत:क्रिया करते हैं तथा समाज के नियम ,मानदंड का पालन करते है। और एक सामाजिक भूमिका निभाते हुए चीजों को सक्रिय रूप से सीखते हैं ।यह सामाजिक अंत: क्रिया निरंतर चलती रहती है । व्यक्ति समाज से प्रभावित होता है तथा समाज भी व्यक्ति द्वारा प्रवावित होता है अर्थात समाज और व्यक्ति  दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

▪️जब बच्चा जन्म लेता है तब वह ना तो खुद को जानता है और ना ही समाज को।

▪️यदि बच्चा जन्म लेता है तो समाज के विकास में वंशानुक्रम का योगदान किस प्रकार होता है इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि

▪️वंशानुक्रम से आया कोई प्रभाव कब दिखेगा या उम्र पर निर्भर करता है और वह प्रभाव कैसा होगा यह वातावरण पर निर्भर करता है।

▪️इसीलिए जब बच्चा एक निश्चित उम्र में वातावरण के संपर्क में आता है तब उसके इस समाज के प्रभाव को देखा जा सकता है अर्थात जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी बच्चे समाज से प्रभावित होगा।

 ▪️बच्चे को घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए यह सब बच्चे के घर  परिवार के सदस्य ,रिश्तेदार के आचरण के अनुकरण से या उनके द्वारा बताए गए तौर तरीकों से सीखता है।

▪️सीखने की यही प्रक्रिया समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में समाजीकरण कहलाती हैं।

▪️यदि कोई व्यक्ति समाज के बनाए गए वर्तमान समय के मानदंडों नियमों के साथ परस्पर अंतर क्रिया करता है तभी उसका समाज में स्थित होता है अन्यथा वह मात्र एक जीवित व्यक्ति ही बन कर रह जाता है। 

▪️किसी भी व्यक्ति की सामाजिक अंतः क्रिया के बिना कल्पना नहीं की जा सकती । व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए समाज के लोगों के साथ अंतः क्रिया करता है क्योंकि समाज के जो लोग होते हैं वह वर्तमान सामाजिक अंतः क्रिया से अपने व्यक्तित्व, ज्ञान से, इस स्तर पर अपनी भूमिका निभा रहे होते है।

❇️ समाजीकरण की परिभाषा

▪️कई मनोवैज्ञानिकों ने समाजीकरण के संदर्भ में परिभाषाएं दी  है जो कि निम्नानुसार है

✨ जॉनसन के अनुसार

“समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है।”

✨ हाॅर्टल और हॉर्टल के अनुसार 

“समाजीकरण व प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों की अनुकूल बनाता है।”

✨ग्रिन के अनुसार

“समाजीकरण व प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषताओं, निजी स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।”

✨ ओगबर्न के अनुसार

“समाजीकरण हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।”

✨ मेकियोनियस के अनुसार

“समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और  मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।”

✨ बोगार्ड्स के अनुसार

“समाजीकरण एक साथ रहना और काम करना, सीखने की प्रक्रिया है।”

❇️ समाजीकरण के प्रकार 

▪️समाजीकरण के मुख्यत: आठ प्रकार है जो कि निम्नानुसार हैं।

📍1 प्राथमिक समाजीकरण

📍2 द्वितीयक  समाजीकरण

📍3 प्रत्याशात्मक समाजीकरण

📍4 पुनः समाजीकरण

📍5 संगठनात्मक समाजीकरण

📍6 समूह समाजीकरण

📍7  लैगिक समाजीकरण

📍8  जातीय समाजीकरण

उपर्युक्त समाजीकरण का वर्णन निम्न अनुसार है।

🥏 1 प्राथमिक समाजीकरण (Primary socialization)➖

तात्कालिक परिवार और मित्रों से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों के लिए आधार निर्धारित करता है।

🥏 2 द्वितीयक समाजीकरण (Secondary socialization)➖

बालक के उन व्यवहार व कौशलों को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है ।इसमें विद्यालय पार्क ,पड़ोस आदि शामिल हैं।

🥏 3 प्रत्याशात्मक समाजीकरण (Anticipatory socialization) ➖

समाजीकरण की उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें एक व्यक्ति भविष्य के पदों व्यवसाय और सामाजिक रिश्तों के लिए पूर्व अभ्यास करता है।

🥏 4 पुनः समाजीकरण (Resocialization)

पुनः समाजीकरण पूर्व व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों व अनुभवों के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

🥏 5 संगठनात्मक समाजीकरण (Organizational socialization)➖

एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

🥏 6 समूह समाजीकरण 

(Group socialization)➖

वह प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के सहकर्मी समूह पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।

🥏 7 लैंगिक  समाजीकरण

(Gender socialization)➖

उस व्यवहार और व्यवहार के शिक्षण को संदर्भित करता है जो बालक या बालिका के लिंग के आधार पर उपयुक्त माना जाता है ।

लड़के ,लड़कों के गुण और लड़कियां, लड़कियों के गुण सीखती हैं।

🥏 8 जातीय समाजीकरण (Ethnic socializaion)➖

जातीय समाजीकरण को एक विकासात्मक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा बच्चे के एक जातीय समूह के व्यवहार, धारणाओं ,मूल्यो और दृष्टिकोणो को प्राप्त करते हैं।

✍️ Notes By-‘Vaishali Mishra’

👨‍👨‍👦‍👦 👼🏻🤵🏼समाजीकरण 👼🏻👨‍👨‍👦‍👦🤵🏼

 💐अर्थ ÷

समाजीकरण की ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों,मूल्यों और अपेक्षाओं को आंतरिक रूप से सीखते हैं और उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीखकर,समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता है।

 💐जब 👼🏻बच्चा जन्म लेता है वह ना तो खुद को जानता है ना समाज को। घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, सब उसके घर परिवार के सदस्य रिश्तेदार के आचरण के अनुकरण से या उसके बताए गए तौर तरीके से मिलता है।

     सीखने की यही प्रक्रिया, समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में, समाजीकरण कहलाती है।

💐 समाजीकरण की परिभाषा 💐

 ⏮️जॉनसन के अनुसार ,”

समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है, जो सीखने वाले को समाजिक कार्य करने योग्य बनाता है।”

⏮️ हार्टल और हार्टल के अनुसार ,”

समाजीकरण वह प्रक्रिया है,जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है।”

⏮️ ओगबर्न के अनुसार ,”

समाजीकरण, हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।”

⏮️ग्रिन के अनुसार,”

सामाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषताओं निज स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।”

⏮️मेकियोनियस के अनुसार ,”

समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।”

⏮️ बोगार्डस के अनुसार ,”

समाजीकरण एक साथ रहना और काम करना, सीखने की प्रक्रिया है।”

💐💐समाजीकरण के प्रकार 💐

⚫प्राथमिक सामाजीकरण।

🔴द्वितीयक सामाजीकरण।

🔴प्रत्याशात्मक सामाजीकरण।

⚫पुनः सामाजीकरण।

⚫संगठनात्मक समाजीकरण।

🔴समूह समाजीकरण।

🔴 लैंगिक  समाजीकरण।

⚫जातीय समाजीकरण।

🔴प्राथमिक समाजीकरण ÷

प्राथमिक सामाजीकरण, तत्काल परिवार और मित्र से प्रभावित है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित करता है।

🔴 द्वितीयक सामाजीकरण ÷

इसमें विद्यालय,पार्क,पास पड़ोस आते है,बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के रूप में उपयुक्त व्यवहार और कौशल को सीखने का माध्यम है।

🔴 प्रत्याशात्मक  सामाजिकरण ÷

एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद, व्यवसाय, सामाजिक रिश्ते के लिए, पूर्वाभ्यास करता है।

🔴 पुनः सामाजिकरण ÷ 

 पूर्ण व्यवहार पैटर्न को छोड़कर नए लोगों या अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करना।

🔴संगठनात्मक समाजीकरण ÷

 ऐसी प्रक्रिया, जिसमें एक व्यक्ति कर्मचारी संगठनात्मक  भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

🔴समूह समाजीकरण ÷

वह प्रक्रिया, जो किसी वयस्क  व्यक्ति में पारिवारिक वातावरण के बजाय सहकर्मी समूह भी उनके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

⚫ लैंगिक समाजीकरण ÷

 वह व्यवाहर, जो लड़के और लड़कियों में उनके लिंग के हिसाब से उपयुक्त माना जाता है।

    इसमें लड़के, लड़कियों के और लड़कियां, लड़के के गुण सीखती है।

⚫जातीय समाजीकरण ÷

 एक बच्चा, अपने जाति समूह के व्यवहार, धारणा,मूल्य दृष्टिकोण प्राप्त करता है।

💐📖🖊️Notes by Shikha tripathi💐🌲

💮🔅🔅सामाजीकरण🔅🔅💮

🔅🔅समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों ,,मूल्य ,और अपेक्षाओं को आंतरिक रूप से सीखते हैं 

 उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीखकर समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता है

         जब बच्चा जन्म लेता है तो वह है ना तो खुद को जानता है और ना तो समाज को जानता है वह किसी को भी नहीं जानता है

     घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए यह सब उसके घर परिवार के सदस्य, रिश्तेदार ,के आचरण के अनुकरण से ,या उसके बताए गए तौर तरीके से ही सीखते हैं उन्हीं के द्वारा उन्हें  यह व्यवहार मिलता है

       यह सीखने की प्रक्रिया समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में सामाजिकरण कहलाती है

🔆🔅सामाजीकरण की परिभाषा 🔅🔆

🔅✏️जॉनसन के अनुसार ➖️सामाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है

🔅✏️हार्टल और हार्टल के अनुसार ➖️सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है और विवरण के अनुसार सामाजीकरण हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है

 🔅✏️ग्रीन के अनुसार ➖️सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषता और निजी स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है 

🔅✏️मेकियोनियस के अनुसार➖️ सामाजीकरण एक अजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है 

🔅✏️बोगार्डस के अनुसार➖️ सामाजीकरण एक साथ रहना ,और काम करना, सीखने की प्रक्रिया है 

🌲🔅सामाजीकरण के प्रकार 🔅🌲

🌲प्राथमिक सामाजीकरण 

🌲द्वितीयक सामाजीकरण  

🌲प्रत्याशातक सामाजीकरण

🌲पुनः सामाजीकरण 

🌲संगठनात्मक सामाजीकरण 

🌲समूह सामाजीकरण 

🌲लैंगिक सामाजीकरण

🌲जातीय सामाजीकरण 

⚜️🌲प्राथमिक सामाजीकरण ➖️प्राथमिक सामाजीकरण के अंतर्गत तात्कालिक परिवार ,और मित्र से प्रभावित होते हैं और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित करता है 

⚜️🌲द्वितीयक सामाजीकरण ➖️बालक और व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के रूप में उपर्युक्त  है जैसे विद्यालय पास पड़ोस आदि 

⚜️🌲प्रत्याशात्मक सामाजीकरण➖️ एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद, व्यवसाय, सामाजिक ,रिश्ते के लिए जो अभ्यास करता है और प्रत्याशात्मक सामाजिकरण के अंतर्गत आता है

⚜️🌲 पुनः सामाजीकरण➖️ पूर्व व्यवहार पैटर्न को छोड़कर अन्य लोगों या व्यवहार या अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करना पुनः सामाजिकरण के अंतर्गत आता है

 ⚜️🌲संगठनात्मक सामाजीकरण➖️ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है

⚜️🌲 समूह सामाजीकरण➖️ सहकर्मी समूह या पारिवारिक वातावरण की बजाय उसके व्यक्तित्व वातावरण को प्रभावित करता है 

⚜️🌲लैंगिक सामाजीकरण➖️ लिंग के आधार पर उचित व्यवहार सीखने लैंगिक सामाजीकरण के अंतर्गत आता है जैसे लड़का लड़का के गुण सीखेगा और लड़की के जो गुण होते हैं वह लड़की सीखते हैं

 ⚜️🌲जातीय सामाजीकरण ➖️एक बच्चा अपने जातीय समूह के व्यवहार धारणा मूल्य दृष्टिकोण प्राप्त करता है

Notes by sapna yadav📋📋📝📝📝📝📝📝

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🔆🍀 समाजीकरण 🍀🔆

समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों ,मूल्यों और अपेक्षाओं को आंतरिक रुप से सीखते हैं और उचित संज्ञानात्मक व सामाजिक कौशल सीखकर अपने समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता है |

जब बच्चा जन्म लेता है उस समय ना तो वह खुद को जानता है और ना तो वह समाज को |

घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना  चाहिए यह सब उसके घर परिवार के सदस्य, और रिश्तेदार के आचरण के अनुकरण से या उनके द्वारा बताए गए तौर – तरीके से मिलता है |

क्योंकि जैसे जैसे  मनुष्य समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा, मान्यता, आकांक्षा , और आदर्श संस्कृति आदि का पालन करने लगता है |

इस प्रकार सीखने की यही प्रक्रिया समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में समाजीकरण कहलाती है  |

🎯 समाजीकरण की परिभाषाएं➖

⭕ जाॅनसन के अनुसार➖

” समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है |”

⭕ हाॅर्टल और हाॅर्टल के अनुसार➖

” सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है |”

⭕ ग्रीन के अनुसार ➖

” समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषताओं, निज स्वरूप ,और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है |”

⭕ जेम्स ड्रेवर के अनुसार ➖ 

” समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार उस समाज का मान सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है |”

⭕ ओगबर्न के अनुसार ➖

” समाजीकरण हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है |”

⭕ मैकियोनियस के अनुसार➖

” सामाजिकरण एक अजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है |”

⭕ बोगार्डस के अनुसार ➖

” समाजीकरण एक साथ रहना और काम करना सीखने की प्रक्रिया है |”

🎯 समाजीकरण के प्रकार ➖

1) प्राथमिक समाजीकरण

2) द्वितीयक समाजीकरण

3)। प्रत्याशात्मक समाजीकरण

4) पुनः  समाजीकरण

5) संगठनात्मक समाजीकरण

6) समूह समाजीकरण 

7) लैंगिक समाजीकरण

8) जातीय समाजीकरण

⭕ प्राथमिक समाजीकरण➖

 प्राथमिक समाजीकरण में बच्चा तत्काल परिवार और मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित करता है |

⭕ द्वितीयक समाजीकरण➖

 यह प्राथमिक समाजीकरण के बाद आता है जिसके अंतर्गत विद्यालय और पार्क और पड़ोस आदि आते हैं |

 जिसमें बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाया जाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है और इस प्रकार व्यवहार और कौशल को सीखने का माध्यम बनते हैं |

⭕ प्रत्याशात्मक समाजीकरण➖

एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद व्यवसाय या समाजीक रिश्ते के लिए प्रयास करता है तो इस प्रकार के समाजीकरण को प्रत्याशात्मक समाजीकरण कहते हैं |

⭕पुनः समाजीकरण➖

” इसमें व्यक्ति पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों के अनुभव के आधार पर अपने अनुभव को स्वीकार करता है |

⭕संगठनात्मक समाजीकरण➖

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति कर्मचारी के रूप में संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखना है |

⭕ समूह समाजीकरण ➖

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी वयस्क व्यक्ति में पारिवारिक वातावरण की बजाय सहकर्मी समूह भी उसके व्यक्तित्व या व्यवहार को प्रभावित करता है |

⭕ लैंगिक समाजीकरण➖

 वन व्यवहार जो लड़के या लड़की में उनके लिंग के हिसाब से उपयुक्त माना जाता है इसमें लड़की लड़कों के गुण तथा लड़की लड़कियों के गुण सीखते  हैं और यही आवश्यक  है |

अन्यथा यदि लड़के लड़कियों के गुण और लड़कियां लड़कों के गुण सीखने लगेंगे तो हमारे समाज उनके इस व्यवहार को स्वीकार नहीं करेगा |

⭕ जातीय समाजीकरण➖

 एक बच्चा अपनी जाति समूह के व्यवहार धारणा मूल्य और दृष्टिकोण प्राप्त करता है इस प्रकार के समाजीकरण को जातीय समाजीकरण कहा जाता है |

नोट्स बाय ➖रश्मि सावले

🌼🌻👫👬👫👬🌻🌼

💮 Socialization 🌸

  🌸 समाजीकरण 💮

समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों , मूल्य और अपेक्षाओं को आंतरिक रुप से सीखता हैं ।

और उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सिख कर समाज  के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता है ।

समाज आप पर प्रभाव डालता है और आप भी समाज को प्रभावित करते हैं।

 आप समाज में रहते हुए आपस में अंतः क्रिया करते हैं नियम बनाते हैं , मानदंड बनाते हैं , भूमिका निभाते हैं, एक दूसरे से कुछ सीखते हैं और एक दूसरे के साथ सक्रिय कार्य करते हैं ।

जब बच्चा जन्म लेता है उस समय ना तो खुद को जानता है ना ही समाज को जानता है।

घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए यह सब उसके घर परिवार के सदस्य या रिश्तेदार के आचरण के अनुकरण से या उनके बताए गए तौर तरीके से मिलता है , सीखने की यह प्रक्रिया समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में समाजीकरण कहलाती है।

🪂👬👫

मनोवैज्ञानिकों द्वारा समाजीकरण की परिभाषा

🍃 जॉनसन 

समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है ।

🍃 हार्टल और हार्टल

 समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आप को समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है।

☘️ग्रीन के अनुसार

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषताओं निज स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।

☘️ ओगबर्न 

समाजीकरण हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।

🌋मेकियोनियस

समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।

🌋 बोगार्डस 

समाजीकरण एक साथ रहना और काम करना सीखने की प्रक्रिया है ।

✨✨ समाजीकरण के प्रकार✨✨

🚶 प्राथमिक समाजीकरण

 तत्काल परिवार और मित्र से प्रभावित होता है , और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित  करता है। 

👬👬🧑‍🤝‍🧑 द्वितीयक समाजीकरण 

इसमें विद्यालय , पार्क , पास – पड़ोस आता है ।

बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के रूप में उपयुक्त व्यवहार और कौशल को सीखने का माध्यम है ।

👩‍✈️प्रत्याशात्मक समाजीकरण

 एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद, व्यवसाय , सामाजिक रिश्ते के लिए पूर्व अभ्यास करता है।

🎉  पुनः समाजीकरण 

पूर्व व्यवहार पैटर्न को छोड़कर नए लोगों या अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करना।

💫 संगठनात्मक समाजीकरण

 ऐसी प्रक्रिया जिसमें एक व्यक्ति कर्मचारी के रूप में संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

👫🚶 समूह समाजीकरण

वह प्रक्रिया जो किसी वयस्क व्यक्ति में परिवारिक वातावरण के बजाय सहकर्मी समूह भी उसके व्यक्तित्व या व्यवहार को प्रभावित करते हैं ।

👩‍💼🧕👳🤵लैंगिक समाजीकरण 

वह व्यवहार जो लड़के या लड़की में उनके लिंग के हिसाब से उपयुक्त माना जाता है , इसमें लड़के लड़कों के गुण और लड़कियां लड़कियों के गुण सीखते हैं।

🎉🎉 जातीय समाजीकरण

 एक बच्चा अपने जाति समूह के व्यवहार , धारणा , मूल्य , दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।

🌸वन्दना शुक्ला 🌺

🍀🌼🌸🌺🍀🌼🌸🌺🌻🍀🌻🌼🌸🌺🍀🌻🌼🌸🌺

🌼🌼🌼🌼  समाजिकरण🌼🌼🌼🌼

🌼समाजिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति समाजिक मानदंडों ,मूल्य और अपेक्षाओं को आंतरिक रूप से सीखते हैं 

 उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीखकर समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता है

🌼🌼जब बच्चा जन्म लेता है तो वह है ना तो खुद को जानता है और ना तो समाज को जानता है वह किसी को भी नहीं जानता है

🌼🌼 घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए यह सब उसके घर परिवार के सदस्य, रिश्तेदारो के आचरण के अनुकरण से या उनके बताए गए तौर तरीके से ही सीखते हैं उन्हीं के द्वारा उन्हें  यह व्यवहार मिलता है

 🌼🌼यह सीखने की प्रक्रिया समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में समाजिकरण कहलाती है

🌼🌼🌼समाजिकरण की परिभाषा 🌼🌼🌼

🌼🌼जॉनसन के अनुसार :-“समाजिकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है”

🌼🌼हार्टल और हार्टल के अनुसार:- “समाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है और विवरण के अनुसार सामाजीकरण हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है”

 🌼🌼ग्रीन के अनुसार :-“समाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सामाजिक विशेषता और निजी स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है “

🌼🌼मेकियोनियस के अनुसार:-” समाजिकरण एक अजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है “

🌼🌼बोगार्डस के अनुसार:- समाजिकरण एक साथ रहना और काम करना, सीखने की प्रक्रिया है “

🌼🌼🌼समाजिकरण के प्रकार 🌼🌼🌼

🌼1.प्राथमिक समाजिकरण 

🌼2. द्वितीयक समाजिकरण  

🌼3. प्रत्याशात्मक समाजिकरण

 🌼4. पुनः समाजिकरण 

🌼5. संगठनात्मक समाजिकरण 

🌼6. समूह समाजिकरण 

🌼7. लाैंगिक समाजिकरण

🌼8. जातीय समाजिकरण 

🌼🌼🌼प्राथमिक समाजिकरण :- प्राथमिक समाजिकरण के अंतर्गत तात्कालिक परिवार और मित्र से प्रभावित होते हैं और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित करता है 

🌼🌼द्वितीयक समाजिकरण बालक और व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के रूप में उपर्युक्त  है जैसे विद्यालय पास पड़ोस आदि 

🌼🌼प्रत्याशात्मक सामाजिकरण:- एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद, व्यवसाय, सामाजिक रिश्ते के लिए जो अभ्यास करता है और प्रत्याशात्मक समाजिकरण के अंतर्गत आता है

🌼🌼पुनः समाजिकरण:- पूर्व व्यवहार पैटर्न को छोड़कर अन्य लोगों या व्यवहार या अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करना पुनः सामाजिकरण के अंतर्गत आता है

 🌼🌼संगठनात्मक सामाजिकरण:- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है

🌼🌼 समूह सामाजिकरण:- सहकर्मी समूह या पारिवारिक वातावरण की बजाय उसके व्यक्तित्व वातावरण को प्रभावित करता है 

🌼🌼लैंगिक सामाजिकरण:- लिंग के आधार पर उचित व्यवहार सीखने लैंगिक सामाजिकरण के अंतर्गत आता है जैसे लड़का लड़का के गुण सीखेगा और लड़की के जो गुण होते हैं वह लड़की सीखते हैं

 🌼🌼जातीय सामाजिकरण :-एक बच्चा अपने जातीय समूह के व्यवहार धारणा मूल्य दृष्टिकोण प्राप्त करता है

🌼🌼by manjari soni🌼🌼

*समाजीकरण*

(Socialization)

🤾🏋️🤺🤼

समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और अपेक्षाओं को आंतरिक रूप से सीखते हैं और उचित संज्ञानात्मक या सामाजिक कौशल सीख कर समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करते हैं।

         जब बच्चा जन्म लेता है उस समय ना तो खुद को जानता है और न ही समाज को। घर में या समाज में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए यह सब उसके घर परिवार के सदस्य, रिश्तेदार के आचरण के अनुकरण से या उनके बताए गए तौर तरीके से मिलता है। सीखने की यही प्रक्रिया समाज विज्ञान या मनोविज्ञान में सामाजिकरण कहलाती आती है।

समाजीकरण की परिभाषा (definition of socialization)

🤺🏋️🤾🤼

जॉनसन के अनुसार, ✍🏻

” समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को समाजीकरण कार्य करने योग्य बनाता है।”

हार्टल एवम् हार्टल के अनुसार, ✍🏻

“समाजीकरण हुआ प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको समुदाय के आदर्शों के अनुकूल बनाता है।”

ग्रीन के अनुसार, ✍🏻

“सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा समाजिक विशेषताओं, निजी स्वरूप और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।”

W.F. ओगबर्न के अनुसार,  ✍🏻

” समाजीकरण हमारे समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।”

मेकियोनियस के अनुसार,  ✍🏻

“समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है।”

बोगार्ड्स के अनुसार, ✍🏻

“समाजीकरण एक साथ रहना और काम करना सीखने की प्रक्रिया है।”

समाजीकरण के प्रकार

(Type of socialization)

🤼🤺🏋️🤾

समाजीकरण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

1. प्राथमिक समाजीकरण

2. द्वितीयक समाजीकरण

3. प्रत्याशात्मक समाजीकरण

4. पून: समाजीकरण

5. संगठनात्मक समाजीकरण

6. समूह समाजीकरण

7. लैंगिक सामाजीकरण

8. जातीय समाजीकरण

💫 1. प्राथमिक समाजीकरण

(Primary socialization)

तत्काल परिवार और मित्र से प्रभावित है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार निर्धारित करता है।

💫 2. द्वितीयक समाजीकरण

(Secondary socialization)

इसमें विद्यालय, पार्क, पास- पड़ोस आता है बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के रूप में उपयुक्त व्यवहार और कौशल को सीखने का माध्यम है।

💫 3. प्रत्याशात्मक  समाजीकरण

(Anticipatory socialization)

एक व्यक्ति किसी भविष्य के पद, व्यवसाय, सामाजिक रिश्ते के लिए पूर्व अभ्यास करता है। उसे प्रत्याशात्मक सामाजीकरण कहते हैं।

💫 4. पुन:  समाजीकरण

(Re-socialization)

पूर्व बिहार पैटर्न को छोड़कर नए लोगों या अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करना ही पुनः सामाजिकरण कहलाता है।

💫 5. संगठनात्मक समाजीकरण

(Organizational socialization)

ऐसी प्रक्रिया जिसमें एक व्यक्ति कर्मचारी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए अवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

💫 6. समूह समाजीकरण

(Group socialization)

वह प्रक्रिया जो किसी वयस्क व्यक्ति में पारिवारिक वातावरण के बजाय सहकर्मी समूह भी उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करते हैं उसे समूह समाजीकरण करते हैं।

💫 7. लैंगिक सामाजिकरण

(Gender socialization)

वह व्यवहार जो लड़के और लड़की में उनके लिंग के हिसाब से उपयुक्त माना जाता है इसमें लड़के लड़कों के गुण और लड़कियां लड़कियों के गुण सीखते हैं।

💫 8. जातीय समाजीकरण

(Racial socialization)

एक बच्चा अपने जाति समूह के व्यवहार, धारणा, मूल्य या दृष्टिकोण प्राप्त करते हैं।

Notes by Shreya Rai ✍🏻 🙏

39. CDP – Heredity and Environment PART- 11

🔆 शिक्षक के लिए वातावरण का महत्व ➖

❇️1 शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

▪️शिक्षक व छात्र दोनों मिलकर एक शिक्षा का वातावरण या माहौल बनाते हैं जिससे उस वातावरण या माहौल के हिसाब से सायकोलॉजी होती जाती है उसी प्रकार से हम निर्णय कर पाएंगे कि हम सीखेंगे या नहीं।

▪️शिक्षक को बच्चे के लिए सर्वप्रथम एक सहज वातावरण रखना है तथा साथ ही बच्चों के लिए शिक्षा का उत्साही वातावरण रहे यह भी ध्यान रखना है शिक्षक को उत्तम वातावरण की स्पष्ट जानकारी रखना भी अत्यंत आवश्यक है जिसके आधार पर वह उचित और उत्तम वातावरण छात्रों को प्रदान कर पाएंगे जिससे बच्चों के ज्ञान को बढ़ा पाएंगे।

❇️ 2 बालक अपने परिवार ,पड़ोस, मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है शिक्षा इन वातावरण के स्थान को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है।

▪️मात्र बच्चे को उपयुक्त वातावरण में पढ़ा देने से ही बेहतर रूप से छात्र को नहीं सिखा पाएंगे इसीलिए कक्षा कक्ष के वातावरण के साथ-साथ अन्य स्थानों के बारे में भी शिक्षक को ध्यान रखना होगा क्योंकि बच्चे अधिकतर अपना समय यहां पर व्यतीत करते हैं इसीलिए यह वातावरण शिक्षक द्वारा अवलोकन किया जाना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि कक्षा कक्ष का उत्तम वातावरण।

❇️ 3 रूत बेनेडिक्ट के अनुसार

“व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है।”

▪️स्थिति को जानने वाला शिक्षा की बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

▪️एक शिक्षक के रूप में बालक के आदर्शों के अनुरूप जिसका उसके द्वारा पालन किया जा रहा है तथा जो उचित व सही संस्कृति है उसको जानकर वह समझ कर ही छात्रों की संस्कृति को एक सही तरीके से विकसित किया जा सकता है।

▪️प्रत्येक प्राणी विशेष रूप से अपनी संस्कृति से किसी ना किसी रूप से प्रभावित रहते हैं यदि हमारी संस्कृति के विपरीत कोई भी कार्य या बात होती है तो उस कार्य को हम स्वीकार करने में कुछ समय लेते हैं। या जब कभी कभी हमारी संस्कृति के विरुद्ध कार्य किया जाता है या किसी  एक तरह की ही संस्कृति को  ही सभी जगह बढ़ावा दिया जाता है,तो हम उस संस्कृति को या उस व्यक्ति को कभी नहीं स्वीकारते या किसी भी प्रकार की कोई मान्यता नहीं देते हैं।

▪️इसीलिए शिक्षक को प्रत्येक बच्चे की संस्कृति को समान महत्व देना एवं सभी का सम्मान करना और सभी का पालन करना है।

❇️ 4 यूनेस्को  के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वातावरण का बालक की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उससे उनके चरित्र का निर्माण होता है।

▪️ शिक्षक कैसे वातावरण का निर्माण करें जिससे ना केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो बल्कि इसके साथ-साथ चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

▪️व्यक्ति की जैसी भावनाएं जैसे संवेग होते हैं वैसे ही विचार आते हैं और उन्ही विचारों से हम कार्य को करते हैं।इसीलिए शिक्षक को बच्चे की भावनाओं को संतुलित रूप से विकसित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 ▪️यहां संतुलित रूप से  विकास करने से तात्पर्य है कि बच्चों को किस विषय में कहां तक सही प्रकार से सोचना है? या उसकी क्या सीमाएं हैं? कहां तक नहीं सोचना है? इत्यादि और अपनी भावनाओं के संतुलन के साथ कार्य को करना और आगे बढ़ना है।

❇️ 5 अनुकूल वातावरण में ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है।

▪️इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि ,प्रकृति और क्षमता के अनुसार वातावरण प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है।

❇️ 6 वातावरण बालक के विकास की दिशा निर्धारित करता है।

▪️वातावरणीय निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा ,चरित्रवान या चरित्रहीन ,देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा।

❇️ 7 वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति, शिष्ट सामाजिक व्यवहार, कर्तव्यों और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो।

▪️ शिक्षक के रूप में यदि कोई कार्य या बात कहां करनी है और कितनी व किस तरह से करनी है कहां रुकना है कहां बढ़ना है अर्थात हर बात का संतुलन ।यह सभी बातें एक सफल वातावरण को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

▪️व्यक्ति के विचारों  की उचित अभिव्यक्ति हो पाए लेकिन व्यवहार भी सामाजिक बना रहे । अर्थात कक्षा की गरिमा बनी रहे।

अधिकारों का ज्ञान हो लेकिन कर्तव्यों का भी ज्ञान हो।

हमारी जो भी स्वाभाविक प्रवृत्ति है उन पर भी नियंत्रण रखना।

▪️इन सभी गुणों का विकास ,वातावरण का महत्व समझने वाला या जानने वाला शिक्षक ही कर सकता है। जिससे छात्र द्वारा पालन भी किया जाना चाहिए।

❇️ 8 प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर के बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है।

▪️हम जानते हैं कि हर समाज का अपना एक विशिष्ट वातावरण है जिसमें बच्चा रहता है हर क्षण या हर पल शिक्षक छात्र के साथ नहीं रह सकता और इस स्थिति में कई बार बच्चे को उस वातावरण के साथ अनुकूलन करना पड़ता है । इस बात से परिचित होने वाला यदि कोई शिक्षक है तो वह अपनी कक्षा को या विद्यालय को एक लघु समाज का रूप प्रदान करके वह ज्ञान दे सकता है ,जिससे बच्चा अपने आगे आने वाले विस्तृत समाज के साथ बेहतर रूप से अनुकूलन स्थापित कर पाएगा।

▪️शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है इस तरह से ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं।

✨सोरेनसन के अनुसार 

“शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।”

✍️

    Notes By-‘Vaishali Mishra’

💐वातावरण का महत्व💐

 सोरेनसन के अनुसार:-  शिक्षा का उत्तम वातावरण  बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से  उत्तम  शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की  चेष्टा करता है 

बालक अपने परिवार ,पड़ोस, मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है

रुथ बैंडिक्ट  के अनुसार:- व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है

इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है

यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि,

                                                           , वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उससे उनके चरित्र का निर्माण होता है

शिक्षक  ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे ना केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो

 अनुकूल वातावरण मैं ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है

इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि प्रकृति और क्षमता के अनुसार वातावरण प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करता है

वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है:- वातावरण यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा चरित्रवान या चरित्रहीन देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा

वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थिति कर सकता है जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति  शिष्ठ सामाजिक व्यवहार कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो

प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान करके बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है

शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर की शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं

 सोरेनसन के अनुसार:- शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के  सापेक्षिक प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है

सपना साहू 

💠💠💠🌴🌴🌳🌳🌴🌴🌴🌴🌴

वातावरण का महत्व

    🌎🌙🌦️👩‍🏫🕵🏻‍♀️✍🏻🌴🌞

🌞1. सोरेंसन के अनुसार ✍🏻

 शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है। 

         इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

🌞2. बालक अपने परिवार ,पड़ोस, मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है।

        शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है ।

🌞3. रूथ बैंडिक्ट के अनुसार ✍🏻

व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है।

        इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

🌞4.  यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञों का मत है कि वातावरण बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उसके  उनके चरित्र का निर्माण होता है।

         शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे न केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो सके बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

🌞5. अनुकूल वातावरण नहीं जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है।

         इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि, प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण आदान – प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है।

🌞6. वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है। यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, चरित्रवान या चरित्रहीन, देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा।

🌞7. वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति, शिष्ट सामाजिक व्यवहार, कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान, और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो।

🌞8. प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है। बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है। इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक, विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर के बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है ।

📝 शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं।

सोरेनसन के अनुसार ✍🏻

शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Notes  by Shreya Rai  ✍🏻

🎉वंशानुक्रम वा वातावरण के सापेक्ष शिक्षक का महत्व🎉

          💢  वातावरण का महत्व💢

✍️🌸1-सोरेन्सन के अनुसार

🏵️शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है इस बात की जानकारी करने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

🏵️2-बालक अपने परिवार पास -पड़ोस, गली मोहल्ले ,और खेल के मैदानों में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करते हैं,शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित प्रदर्शन करता है।

🌋3-रूथ व बेंडिट के अनुसार

व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है,इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

UNESCO(United Nations Educational, Scientific and Cultural organization)

🏵️यूनेस्को संस्था के अनुसार

यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञो का कहना है कि वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उससे उनके चरित्र का निर्माण होता है,

                                              शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे न केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

🏵️5-अनुकूल वातावरण में ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है;

                                          इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि, प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है।

🏵️6-वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है

वातावरण यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, देश प्रेमी व देशद्रोही, चरित्रवान या चरित्र इत्यादि में क्या ? बनेगा।

🏵️7-वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक÷

विद्यालय में बालकों के लिए शिक्षक एक ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति,शिष्ट सामाजिक व्यवहार ,कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो।

🏵️8-प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर केh बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूल करने की शिक्षा दे सकता है।

🏵️शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकता है।

✍️🌸सोरेन्सन का कथन-शिक्षक के लिए मानव  विकास पर  वंशानुक्रम या वातावरण के सापेक्षिक प्रभाव,और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।

written by-Shikhar

💌💌🙏🙏🙏📩📩

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🔆 वातावरण के महत्त्व में शिक्षक की भूमिका ➖

⭕ सोरेन्सन के अनुसार ➖

” शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है |

अर्थात यदि शिक्षक को अपने बालकों की  कमजोरियों का पता है तो शिक्षक कक्षा में ऐसा वातावरण उत्पन्न करता है जिससे बालकों की बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि हो सके और उनमें नई चीजों की खोज करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सके |

⭕ बालक अपने परिवार,  पड़ोस , मौहल्लै और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है | 

शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है |

अर्थात् शिक्षक को बच्चे के घर के और उसके बाहरी वातावरण के बारे में पता होना अति आवश्यक है तभी शिक्षक बच्चे का सही मार्गदर्शन कर सकता है  और इसके विपरीत यदि शिक्षक को छात्र के अनौपचारिक वातावरण का पता नहीं होगा तो  वह उसका उचित मार्गदर्शन  कर ही नहीं सकता है |

 क्योंकि यदि बच्चे के घर का और उसके आसपास का वातावरण ठीक नहीं होगा तो कक्षा का वातावरण कितने भी अच्छे तरीके से बनाया जाए बच्चा सीखने में असमर्थ ही होगा |

⭕ रूथ बैडिक्ट के अनुसार➖

 व्यक्ति जन्म से ही निश्चित सांस्कृतिक वातावरण रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है |

तथा तथ्य को जाने वाला शिक्षक बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है  |

अर्थात व्यक्ति का जन्म एक समाज में होता है तो उसके समाज की एक निश्चित संस्कृति होती है जिस सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण में बच्चा बड़ा होता है और उसके अनुसार ही वह समाज के मानदंड के अनुसार उसका आचरण धारण करता है  | 

यदि शिक्षक को बच्चे के सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण की जानकारी नहीं होगी तो वह बच्चे का संपूर्ण विकास नहीं कर सकता है उसके सामाजिक सांस्कृतिक विकास में योगदान नहीं कर सकता है |

यदि  शिक्षक बच्चे के सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण के विपरीत अपनी भूमिका प्रदर्शित करता है तो  बच्चे उससे पढ़ने में सहज महसूस नहीं कर पाते हैं  शिक्षा अर्जित करने में असमर्थता व्यक्त करते हैं  और उसके साथ शिक्षा ग्रहण करने में आरामदायक भी नहीं समझते हैं |

 हमारा भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है जिसमें सभी वर्गों को समान रूप से सम्मान दिया जाता है और यदि शिक्षक बच्चे की सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण के बारे में  जानकारी नहीं रख पाता है तो  इससे बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ सकता है |

⭕ यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञों ने का कहना है कि➖

”  वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उससे उनके  चरित्र का निर्माण होता है ऐसी परिस्थिति में शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे ना केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो बल्कि उनके चरित्र निर्माण में  भी सहायक हो |

 क्योंकि शिक्षा का सार्थक अर्थ होता है कि  बालक का सर्वागीण विकास, उसका चारों ओर से चाहे वह सामाजिक ,मानसिक या चाहे वह उसका संवेगात्मक विकास हो सभी प्रकार से विकास होना अनिवार्य है  |

और यह तभी संभव हो पाएगा जब शिक्षक बच्चे की भावनाओं  को सही प्रकार से  समझेगा जिससे बच्चे अपने विचार साझा कर सकें तभी बच्चे के चरित्र का निर्माण हो सकता है |

⭕ अनुकूल वातावरण में ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है |

 इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि, प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है |

अर्थात यदि कक्षा कक्ष या विद्यालय का वातावरण छात्र अनुकूल है जहां उसके विचारों को व्यक्त करने का अवसर दिया जाता हो उसकी रूचि, क्षमता और उसकी सोच आदि को महत्व दिया जाता है तो बच्चे का इस प्रकार के वातावरण में सर्वांगीण विकास हो सकता है जो सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि क्या शिक्षक अपने बच्चों की रुचि आवश्यकता  या उनके विचार को समझता है और उनके अनुसार वातावरण उत्पन्न कर सकता है | यदि यह सब विद्यालय में संभव है तो बच्चे का विकास सर्वांगीण विकास हो होगा और इस प्रकार से बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं |

⭕ वातावरण , विकास की दिशा निर्धारित करता है वातावरण यह बात निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, चरित्रवान या चरित्रहीन ,देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा |

 इस बात को हम इस प्रकार से सिद्ध कर सकते हैं कि यदि दो जुड़वा बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा जाता है तो उनका भी विकास भी वातावरण के अनुरूप ही होता है |

यदि एक बच्चे का वातावरण बहुत अच्छा है और एक बच्चे का वातावरण अच्छा नहीं है तो उनका विकास उनके वातावरण पर ही निर्भर करेगा किक्षकिस प्रकार से बच्चे का विकास होगा |

⭕ वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में  में ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है जिसमें उनके विचारों की उचित अभिव्यक्ति हो उनका शिष्ठ सामाजिक व्यवहार ,कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान तथा स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो |

⭕ प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है |

इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक विद्यालय को एक लघु समाज का रूप प्रदान करके बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है |

क्योंकि हम जानते हैं कि जब बच्चे का जन्म होता है तो वह एक सामाजिक वातावरण का हिस्सा बन जाता है जिसमें समाज केअपने मानदंड होते हैं जिनका पालन करना समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है और इन मानदंडों का पालन करते हुए बच्चा अपने सामाजिक वातावरण में अनुकूलन करता है  |

यदि शिक्षक इस बात को समझता है तो वह अपने विद्यालय या अपने कक्षा कक्ष को एक छोटे समाज के रूप में प्रदान कर सकता है और इससे उनको समाज में अनुकूलन करने की प्रेरणा दे सकता है जिससे वे समाज का हिस्सा बनकर उसमें अपनी भागीदारी था का निर्वाह कर सकें |

🎯   शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण का ज्ञान बहुत आवश्यक है इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय,संतुलित और सर्वांगीण विकास कर सकता है |

 इस संबंध में में  “सोरेन्सन” ने कहा है कि➖

 ” शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है  |”

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🌸🌻🌼🌺🌸🍀🌺🌻🌼🌺🌸🍀🌻🌼🌺🌸🍀🌻🌼

🌲🌴 वातावरण का महत्व🌲🌴

 🤵🏼सोरेंसन के अनुसार ,”

 शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है। 

 👉🏻  इस बात की जानकारी रखने वाला 🧑‍🏫शिक्षक अपने छात्रों 🧑‍💻👩‍💻के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

⚫👼🏻 बालक अपने परिवार ,पड़ोस, मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है।

    🧑‍🏫 शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है ।

🤵🏼 रूथ बैंडिक्ट के अनुसार ,”

व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है।

 इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

⚫यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञों का मत है कि वातावरण बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उसके  उनके चरित्र का निर्माण होता है।

      🧑‍🏫शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे न केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो सके बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

⚫ अनुकूल वातावरण नहीं जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है।

       👉🏻  इस बात को समझने वाला 🧑‍🏫शिक्षक अपने छात्रों👩‍💻🧑‍💻 की रुचि, प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण आदान – प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है।

⚫वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है। यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, चरित्रवान या चरित्रहीन, देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा।

⚫. वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति, शिष्ट सामाजिक व्यवहार, कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान, और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो।

⚫प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है। बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है। इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक, विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर के बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है ।

 🧑‍🏫शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं।

🤵🏼सोरेनसन के अनुसार ,”

शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।

  📝🖊️📖Notes by shikha tripathi📚📕📗

वंशानुक्रम एवं वातावरण के सापेक्ष शिक्षकों के महत्व के अंतर्गत   –     वातावरण का महत्व

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

23 march 2021

👉👉    सोरेन्सन  के अनुसार  :- 

शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है। इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

🌺  बालक अपने परिवार , पड़ोस , मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करते हैं।

       अतः शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित प्रदर्शन करते हैं।

अर्थात् बच्चों का उचित प्रदर्शन करने के लिए शिक्षकों को उनके आसपास के वातावरण को भी परखना होता है जिसके आधार पर शिक्षक बच्चों का उचित मार्गदर्शन / पथ प्रदर्शन कर पाते हैं।

👉👉   रूथ बेंडिक्ट  के अनुसार  :-

व्यक्ति जन्म से एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है ।

       इस तथ्य को जानने वाले शिक्षक बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकते हैं।  

👉👉👉 ( Unesco यूनेस्को )  के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि-  

 वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उनके चरित्र का निर्माण होता है।

       अतः शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे न केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

 🌺  अनुकूल वातावरण में भी जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है ।  

    इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि ,  प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण प्रदान करके आगे बढ़ाने में सहायता प्रदान कर सकता है।

🌺  वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है ।

वातावरण यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा , चरित्रबान या चरित्रहीन , देशप्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा।

🌺  वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण निर्मित कर सकता है जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति , शिष्ट  सामाजिक व्यवहार , कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण आदि गुणों का अधिकतम विकास हो सके।

🌺  प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है ।

बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है ,  इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर के बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की दिशा दे सकता है।

🌺  शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों को ज्ञान होना बहुत महत्वपूर्ण है ।

इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं।

👉 👉  सोरेनसन के अनुसार  :-

शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।

अंततः उपर्युक्त तथ्यों के आधार पे हम समझ सकते हैं कि बच्चों के वातावरण आधारित विकास में शिक्षकों का महत्वपूर्ण स्थान होता है , जिसके आधार पर ही शिक्षक बच्चों को उनमें, उनके संसार , और उनके जीवन में उचित अनुचित  का सही ज्ञान और समझ विकसित करते हैं।

✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️

वातावरण का महत्व ➖

1. सोरेंसन के अनुसार:-

 शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है। 

     इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

2. बालक अपने परिवार ,पड़ोस, मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है।

        शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है ।

3. रूथ बैंडिक्ट के अनुसार :-

व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है।

        इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को उसका सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

4.  यूनेस्को(UNESCO) के कुछ विशेषज्ञों का मत है ➖ वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उसके  उनके चरित्र का निर्माण होता है।

         शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें ,जिससे न केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो सके बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

5. अनुकूलित वातावरण में ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है।

         इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि, प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण का आदान – प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है।

6. वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है। यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, चरित्रवान या चरित्रहीन, देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि में से क्या बनेगा।

7. वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है, जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति, शिष्ट सामाजिक व्यवहार, कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो।

8. प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है। बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है। इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक, विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर के बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है।

 ➡️शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं।

सोरेनसन के अनुसार :-

शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।

DeEPiKa RaY📊📊

Thank you ☺️☺️😊😊

🌌🏵️🏵️वंशानुक्रम एवं वातावरण के सापेक्ष शिक्षकों के महत्व मेंवातावरण का महत्व ➖🏵️🏵️🎇🎇

🌲✏️1. सोरेंसन के अनुसार➖️

 शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है। 

     इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

🌲2. बालक अपने परिवार ,पड़ोस, मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है।

        शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है ।

🌲✏️3. रूथ बैंडिक्ट के अनुसार ➖️

व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्श के अनुरूप ही आचरण करता है।

        इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को उसका सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

🌲4.  यूनेस्को(UNESCO) के कुछ विशेषज्ञों का मत है ➖ वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उसके  उनके चरित्र का निर्माण होता है।

         शिक्षक ऐसे वातावरण का निर्माण करें ,जिससे न केवल बच्चे की भावनाओं का संतुलित विकास हो सके बल्कि उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

🌲5. अनुकूलित वातावरण में ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है।

         इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि, प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण का आदान – प्रदान करके आगे बढ़ने में सहायता प्रदान कर सकता है।

🌲6. वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है। यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, चरित्रवान या चरित्रहीन, देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि में से क्या बनेगा।

🌲7. वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है, जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति, शिष्ट सामाजिक व्यवहार, कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो।

🌲8. प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है। बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है। इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक, विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान कर के बालक को उनके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है।

 🔆🔅शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह के ज्ञान से संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और संतुलित विकास कर सकते हैं।

🔅✏️सोरेनसन के अनुसार ➖️

शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है

Notes by sapna yadav📝📝💮💮💮💮💮💮

🌼 वातावरण का महत्व🌼☘️

☘️🤵🏻 1- सोरेन्सन के अनुसार➖शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है

इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्टा करता है।

☘️2- बालक अपने परिवार, पड़ोस ,मोहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित पथ प्रदर्शन करता है।

☘️3- रूथ बैंडिक्ट के अनुसार➖व्यक्ति जन्म से ही एक विशेष सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदेशों के अनुरूप ही आचरण करता है इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक बालक को अपने सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है।

☘️4- यूनेस्कोंके कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वातावरण का बालकों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उनके चरित्र का निर्माण करता है शिक्षक ऐसा वातावरण का निर्माण करें जिससे न केवल बच्चों की भावनाओं का शब्द विकास हो बल्कि उसके चरित्र निर्माण में भी सहायक हो।

☘️5- अनुकूल वातावरण में ही जीवन का विकास होता है और व्यक्ति आगे की ओर बढ़ता है इस बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रुचि ,प्रवृत्ति और क्षमता के अनुसार वातावरण प्रदान कर सकता है।

☘️ 6-वातावरण विकास की दिशा निर्धारित करता है वातावरण यह निश्चित करता है कि बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा चरित्रहीन या चरित्रवान देश प्रेमी या देशद्रोही इत्यादि बनेगा।

☘️7-वातावरण के महत्व को समझने वाला शिक्षक विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण स्थित कर सकता है जिससे उसमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति, श्रेष्ठ सामाजिक व्यवहार, कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति पर नियंत्रण इत्यादि गुणों का अधिकतम विकास हो सके।

☘️8-प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है बालक को इस वातावरण में अनुकूलन करना पड़ता है इस बात से परिचित होने वाला शिक्षक विद्यालय को लघु समाज का रूप प्रदान करके बालक को उसके विस्तृत समाज के वातावरण में अनुकूलन करने की दिशा दे सकता है।

💫शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का ज्ञान होना आवश्यक है इस तरह संपन्न होकर ही शिक्षक अपने छात्रों का वांछनीय और  संतुलित विकास कर सकता है।

🤵🏻 सोरेन्सन➖ शिक्षक के लिए मानव विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष इस प्रभाव और पारस्परिक संबंध का ज्ञान विशेष महत्व रखता है।

✍🏻📚📚 Notes by…… Sakshi Sharma📚📚✍🏻

38. CDP – Heredity and Environment PART- 10

🔆 वंशानुक्रम एवं वातावरण का शिक्षक के लिए महत्व ➖

▪️शिक्षक के लिए वंशानुक्रम वातावरण दोनों का ही महत्व होता है।

❇️ वंशानुक्रम का महत्व :- 

📍 1 वंशानुक्रम के फल स्वरूप बच्चे में शारीरिक भिन्नता पाई जाती है और शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनकी शारीरिक विकास में योगदान दे सकते हैं।

▪️कुछ बच्चे शारीरिक रूप से तंदुरुस्त ,अच्छी ऊंचाई या कद काठी, साफ रंग रूप वाले या ज्यादा आकर्षक होते हैं वह कक्षा कक्ष में अलग से रहते हैं तथा उन्हें विशेष महत्व या ध्यान दिया जाता है जबकि इसके अलावा कुछ बच्चे काले, शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं वह कक्षा के किसी कार्य में भाग नहीं लेते इस तरह के बच्चों को महत्व या पर ध्यान नहीं दिया जाता है ।

▪️यह बच्चों के बीच में एक धारणा होती है जिसमें एक शिक्षक की बहुत बड़ी भूमिका होती है कि वह बच्चों के साथ किस तरह से कार्य करें जो कि सभी के हित में हो एवं सभी बच्चे के अनुरूप हो। तथा शिक्षक इस शारीरिक  भिन्नता को समझे और जो भी भेदभाव या समस्या आ रही है उसको जानकर या उससे जागरूक होकर दूर करने में अपना योगदान देकर एक उपयुक्त व्यवस्था करे।

📍 2  बालक बालिका में जो भी लैंगिक भेदभाव वंशानुक्रम के कारण होता है जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है। शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है।

▪️हम यह जानते हैं कि कुछ विशेषता या योग्यता या गुण लड़कों में पाए जाते हैं जबकि कुछ विशेषता या योग्यता या गुण लड़कियों में पाए जाते हैं जिसमें वह सहज होते हैं और किसी भी कार्य को अपनी विशेषता योग्यता या गुणों के आधार पर बेहतर रूप से कर पाते हैं।

▪️इसीलिए शिक्षक को यह स्पष्ट रूप से जानकारी या ज्ञान या समझहोनी चाहिए कि बच्चों के अंदर परिपक्वता है जिसमें वह सहज होते हैं और यह भिन्नता उनके लिए उपयुक्त या उनके हिसाब से होती है इसी को ध्यान में रखकर ही उनके लिए विषय के अध्ययन की व्यवस्था करनी चाहिए।

📍3 जन्मजात क्षमता में अंतर 

▪️शिक्षा को इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि बच्चों में जन्मजात क्षमता में अंतर होता है।

▪️शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है।

▪️कुछ बच्चे किसी जन्मजात कारण से किसी कार्य में प्रगति में पीछे हैं तो शिक्षक को इस बात का या बच्चे की जन्म क्षमता को ध्यान में रखकर या उससे जागरूक होकर ही कक्षा कक्ष में विषय के अध्ययन की व्यवस्था का आयोजन करना चाहिए।

📍 4 कुछ विभिन्नताएं विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं।

▪️वंशानुक्रम के फल स्वरुप बच्चों में अनेक प्रकार की विभिन्नताए पाई जाती हैं जो कि उनकी विकास के साथ-साथ अधिक से अधिक स्पष्ट होती जाती हैं शिक्षक बच्चे की इस विभिन्नता का अध्ययन करके बच्चों को उसके अनुरूप शिक्षा देता है।

▪️बच्चों के अंदर में समय के साथ उनकी विभिन्नता स्पष्ट होती है अर्थात जैसे जैसे समय बढ़ता जाता है वैसे वैसे उस समय की जो भी विभिन्नता या विशेषता या गुण हैं वह विकसित होते हैं और हमें स्पष्ट रूप से नजर आने लगते हैं अर्थात वंशानुक्रम के लक्षण समय के साथ दिखाई देते हैं।

▪️शिक्षक को इस विभिन्नता का अध्ययन करके बच्चों के अनुरूप व उनके लिए उचित शिक्षा का आयोजन करना चाहिए।

📍 5 योग्य माता-पिता के अयोग्य बच्चे, अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे ।

▪️इन दोनों ही नियमों की अच्छी तरह समझ या भली-भांति जो शिक्षक इन नियमों को जानता है या अच्छी तरह समझता है या नियमों से जागरूक है तभी वह बच्चे की सही तरीके या उचित रूप से सहायता व उनके साथ उस अनुरूप व्यवहार कर पाएगा ।

▪️माता-पिता की योग्यता और अयोग्यता को देखते हुए हम बच्चे से वैसे ही उम्मीद है या आशा या किसी बच्चे को कम या ज्यादा आंकने लगते हैं कि वह भी उसी प्रकार होंगे जिस प्रकार उनके माता-पिता योग्य और अयोग्य है।

▪️जो कि उचित नहीं है यह शिक्षक को इस नियम के बारे में समझ होनी चाहिए ना कि इस प्रकार से बच्चों की अन्य से तुलना करना चाहिए।

▪️शिक्षक को यह समझना होगा कि ऐसा जरूरी नहीं है कि हर परिस्थिति में हमेशा बच्चे एक जैसे या बिलकुल अपने माता पिता की तरह ही होंगे इसीलिए इन बातों को समझ कर ही अध्ययन कार्य करना चाहिए।

📍 6 वंशानुक्रम की कुछ प्रवृत्ति वांछनीय है जबकि कुछ अवांछनीय 

▪️शिक्षक इन प्रवृत्ति को समझ कर बच्चे के अंदर वांछनीय चीजें या कार्य या बातों का विकसित करना चाहिए और जो भी अवांछनीय कार्य है उसे खत्म करना चाहिए।

▪️किसी भी कार्य की या बात की यह चीज की वांछनीय और अवांछनीय के बीच की समझ शिक्षक के दिमाग में बहुत अच्छी तरह  से स्पष्ट होना चाहिए क्योंकि इसी के आधार पर ही वह बच्चों में अच्छी चीजों (वांछनीय) को आगे बढ़ा सकता है और खराब (अवांछनीय) चीजों को खत्म कर सकता है।

📍 7 सीखने की योग्यता में अंतर

▪️एक शिक्षक के रूप में यह जानना अति आवश्यक है कि जो भी बच्चे धीरे सीखते हैं उनके प्रति सहनशील होना चाहिए और जो भी बच्चे जल्दी सीखते हैं उन्हें अधिक कार्य देना चाहिए ताकि सभी बच्चे एक साथ रहकर या अपनी योग्यता के अनुसार सीख पाए।

📍 8 वुडवर्थ का मानना था कि ग्रामीण (देहात) परिवेश के बच्चे की अपेक्षा शहरी बच्चो की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है।

शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस बच्चे के हिसाब से या उसके अनुसार बना सकता है।

▪️इस बात से हम भलीभांति परिचित हैं कि हमारा वंशानुक्रम जहां का भी है उसी के हिसाब से हमारे अंदर कुछ ना कुछ वैसा ही गुण या स्वभाव होता है।

▪️यदि कुछ बच्चों के माता-पिता शहर या गांव में रहते हैं जहां पर बच्चे का जन्म शहरी या ग्रामीण जगह पर हुआ है तो उस शहर के वृहद रूप एवं ग्रामीण के संक्षिप्त रूप के कारण ही किसी न किसी रूप में बच्चे के मानसिक स्तर के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव को देखा जा सकता है, जिसके अनुसार बच्चा वैसा ही प्रदर्शन या व्यवहार करने लगता है इस बात को नकारा या अनदेखा नहीं किया जा सकता।

✍️

       Notes By-‘Vaishali Mishra’

🤗वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व🤗

               💠बालक के लिए महत्व💠

1 वंशानुक्रम और वातावरण की अध्यक्षता

2 वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

3 वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

4 वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है

5 बालक वातावरण और वंशानुक्रम  की उपज

             💠शिक्षकों के लिए महत्व💠

1 वंशानुक्रम का महत्व:- शारीरिक विभिन्नता जो बच्चे में वंशानुक्रम से होती है शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है

2 बालक बालिका में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपरोक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है

3 जन्मजात क्षमता में अंतर:- शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है

4 कुछ विभिन्नताए विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं इसे अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेंगे

5 योग्य माता पिता के अयोग्य बच्चे और अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे इस नियम को अच्छे से  समझने वाला शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं

6 वंशानुक्रम के कुछ प्रवृत्ति वांछनीय और कुछ अवांछनीय भी होती हैं शिक्षक इन प्रवृत्तियों को समझ कर बच्चों को उनके कार्यों में आगे बढ़ा सकते हैं

 वांछनीय – विकास

 अवांछनीय – 

7 सीखने की योग्यता में अंतर

 जो बच्चे देर से सीखते  है वे सहनशील होते हैं

और जो बच्चे जल्दी सीखते हैं उन्हें और अधिक कार्य दे दिया जाता है

वुडवर्थ :-

             .. ग्रामीण( देहात) परिवेश के बच्चे की अपेक्षा शहरी बालक की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता  आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है

शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस हिसाब से बना सकता है

सपना साहू

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

🌻  वंशानुक्रम और वातावरण का शिक्षकों के लिए महत्व–

🌈 वंशानुक्रम का महत्व

🦚 शारीरिक भिन्नता जो बच्चों में वंशानुक्रम से होती है शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके  शारीरिक योगदान दे सकता है

🦚 बालक बालिकाओं में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है। जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है।

         शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है

🦚 जन्मजात क्षमताओं में अंतर

   शिक्षक कम प्रगति वाले बच्चों को अधिक  प्रगति  करने के लिए सहयोग देता है।

🦚 कुछ विभिन्न बताएं विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं ।इसे अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेंगे।

🦚 योग्य माता-पिता के आयोग बच्चे या अयोग्य माता-पिता की योग्य बच्चे हो सकते हैं।

      इस नियम को अच्छे से समझने वाला शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकता है।

🦚 वंशानुक्रम की कुछ प्रवर्त्ति वांछनीय और  कुछ अवांछनीय होती है। शिक्षक इन  प्रवृत्तियों को समझ कर बच्चों को उनके कार्यों में आगे बढ़ा सकते हैं।

      वांछनीय– विकास 

🦚 सीखने की योग्यता में अंतर

  🌺 जो बच्चे देर से सीखते हैं वह सहनशील होते हैं और जो जल्दी सीखते हैं उन्हें अधिक कार्य दिया जाता है।

👨‍✈️ वुडवर्थ– ग्रामीण परिवेश  के बच्चे की अपेक्षा शहरी बालक की 

मानसिक  स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण उसी हिसाब से बना सकता है।

Notes by poonam sharma

📚📚📚

वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व

*1.बालक के लिए महत्व*

1. वंशानुक्रम और वातावरण अपृथकता 

2. वंशानुक्रम एवं वातावरण का समान महत्व

3. वंशानुक्रम और वातावरण के पारस्परिक निर्भरता

4. वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

5. बालक, वातावरण और वंशानुक्रम की उपज

*2. शिक्षक के लिए महत्व*

A . वंशानुक्रम का महत्व

1. शारीरिक भिन्नता जो बच्चों में वंशानुक्रम से होती हैं शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है। 

2.. बालक बालिका में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है।

3. जन्मजात क्षमता में अंतर होना। इसके लिए शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है। अर्थात जैसे कोई बच्चा मंदबुद्धि की तो यदि अध्यापक को यह पता है कि वह बच्चा मंदबुद्धि है तो अध्यापक छात्र को सामान्य बच्चों के बराबर लाने के लिए कुछ योजना बनाएगा ,उपचार करेगा।

4. कुछ विभिन्नताएं विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं अर्थात जैसे-जैसे बालक बढ़ता जाता है उसकी विभिन्नताएं और अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होती जाती है। इसका अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन कर सकता है।

5. योग्य माता-पिता के अयोग्य बच्चे और अयोग्य के माता-पिता के योग्य बच्चे। इस नियम को अच्छे से समझने वाले शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं ।

6. वंशानुक्रम की कुछ प्रवृत्ति वांछनीय और अवांछनीय भी होती है शिक्षक इन प्रवृत्ति को समझकर वांछनीय प्रवृत्ति का और अधिक विकास कर सकता है जबकि अवांछनीय प्रवृति को समाप्त या खत्म करने की कोशिश करता है।

7. बालकों की सीखने की योग्यता में अंतर होता है शिक्षक योग्यता का पता लगाकर बालकों का अध्ययन अच्छी प्रकार से कर सकता है ।योग्यता में यह अंतर दो प्रकार से हो सकता है

1. देर से सीखने वाले और 2.जल्दी सीखने वाले

देर से सीखने वाले बच्चों के लिए शिक्षक को सहनशील रहना होगा जबकि जल्दी सीखने वाले बच्चों को शिक्षक अधिक कार्य देंगे।

8. वुडवर्थ के अनुसार 

ग्रामीण या देहात परिवेश के बच्चों की अपेक्षा शहरी बालको की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है।

शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस हिसाब से बना सकता है।

Notes by Ravi kushwah

💦🌻🌏👶🏻💫🥀वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व🌴🌵🌏💦

 👶🏻💫बालक के लिए महत्व👶🏻💦💦🌻🌻☃️

1 वंशानुक्रम और वातावरण की अध्यक्षता

2 वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

3 वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

4 वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है

5 बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज

🥀🥀🌻शिक्षकों के लिए महत्व🥀🥀🥀🌻💫💫

➡️वंशानुक्रम का महत्व:-🥀🥀 

शारीरिक विभिन्नता जो बच्चे में वंशानुक्रम से होती है शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है

➡️बालक बालिका में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपरोक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है

➡️जन्मजात क्षमता में अंतर:- शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है

➡️ कुछ विभिन्नताए विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं इसे अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेंगे

➡️योग्य माता पिता के अयोग्य बच्चे और अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे इस नियम को अच्छे से  समझने वाला शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं

➡️वंशानुक्रम के कुछ प्रवृत्ति वांछनीय और कुछ अवांछनीय भी होती हैं शिक्षक इन प्रवृत्तियों को समझ कर बच्चों को उनके कार्यों में आगे बढ़ा सकते हैं

🥀सीखने की योग्यता में अंतर

जो बच्चे देर से सीखते  है वे सहनशील होते हैं।और जो बच्चे जल्दी सीखते हैं उन्हें और अधिक कार्य दे दिया जाता है

🧑🏼‍💼वुडवर्थ के अनुसार,”

“देहाती बालकों की अपेक्षा शहरी बालकों के मानसिक स्तर की श्रेष्ठता, आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है। शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर अपने शिक्षण को उनके मानसिक स्तरों के अनुसार बना सकता है ”

📝📖📚💫notes by shikha Tripathi💫📚🥀🥀🖊️🖊️🖊️🖊️

🔆🔥वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व :- 

(1) बालको के लिए महत्व :-

(A) वंशानुक्रम और वातावरण की अपृथकता |

(B) वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व |

(C) वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता |

(D) वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है |

(E) बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज |

(2) शिक्षको के लिए महत्व 

(A) अनुवांशिकता

(B) वातावरण

✡ शिक्षको के लिए महत्व :- 

(1) वंशानुक्रम का महत्व ➡ 

शारीरिक भिन्नता जो बच्चो मे वंशानुक्रम से होती है शिक्षक इस ज्ञान से सम्पन्न होकर उनके शारीरिक विकास मे योगदान दे सकता है |

(2) बालक और बालिका मे लैंगिक भेद ➡ 

बालक बालिका मे लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होती है जिससे विभिन्न विषयो मे उनकी योग्यता कम या अधिक होती है |

शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है |

(3) जन्मजात क्षमता मे अन्तर ➡ 

शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चो को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है |

(4) विभिन्नताऐ ➡ 

कुछ बच्चो की विभिन्नताए विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती है इसे अध्ययन करके शिक्षक बच्चो के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेगे |

(5) योग्य माता-पिता के अयोग्य बच्चे अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे |

    इस नियम को अच्छे से समझने वाला शिक्षक बच्चो के साथ उचित व्यवहार कर सकते है |

(6) वंशानुक्रम की कुछ प्रवृति — वांछनीय और कुछ अवांछनीय भी होती है |

शिक्षक इन प्रवृति को समझकर बच्चो को उनके कार्यो मे आगे बढा़ सकते है और वांछनीय  प्रवृत्ति विकास कर सकता है और अवांछनीय प्रवृत्तिको समाप्त या खत्म करता है |

(7) सीखने की योग्यता मे अन्तर ➡ 

जो बच्चे जल्दी सीखते है उनको अधिक कार्य देगे और जो बच्चे देर मे सीखते है

तो शिक्षक को सहनशील रहना होगा है |

(8) वुडवर्थ ➡ ग्रामीण (देहात) परिवेश के बच्चे की अपेक्षा शहरी बालक की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है |

    शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस हिसाब से बना सकता है |

Notes by ➖ Ranjana Sen

वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व

 2️⃣ *शिक्षक के लिए महत्व*

( *वंशानुक्रम का महत्व* )

➡️शारीरिक भिन्नता जो बच्चों में वंशानुक्रम से होती हैं। शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है। 

➡️ बालक बालिका में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है ।जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है। शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है।

➡️ जन्मजात क्षमता में अंतर होना। इसके लिए शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है। जैसे कोई बच्चा मंदबुद्धि का हो और अध्यापक को यह पता है कि वह बच्चा मंदबुद्धि है तो अध्यापक छात्र को सामान्य बच्चों के बराबर लाने के लिए कुछ योजना बनाएगा ,उपचार करेगा।

➡️कुछ विभिन्नताएं विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं अर्थात जैसे-जैसे बालक बढ़ता जाता है, उसकी विभिन्नताएं और अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होती जाती है। इसका अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन कर सकता है।

➡️योग्य माता-पिता के अयोग्य बच्चे और अयोग्य के माता-पिता के योग्य बच्चे। इस नियम( प्रत्यास्थता) को अच्छे से समझने वाले शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं ।

➡️ वंशानुक्रम की कुछ प्रवृत्ति वांछनीय और अवांछनीय भी होती है। शिक्षक इन प्रवृत्ति को समझकर वांछनीय प्रवृत्ति का और अधिक विकास कर सकता है, जबकि अवांछनीय प्रवृति को समाप्त करने की कोशिश करता है।

⏩ बालकों की सीखने की योग्यता में अंतर होता है शिक्षक योग्यता का पता लगाकर बालकों का अध्ययन अच्छी प्रकार से कर सकता है ।योग्यता में यह अंतर दो प्रकार से हो सकता है-

A. देर से सीखने वाले 

 B. जल्दी सीखने वाले

➡️देर से सीखने वाले बच्चों के लिए शिक्षक को सहनशील रहना होगा, जबकि जल्दी सीखने वाले बच्चों को शिक्षक अधिक कार्य देंगे।

8. वुडवर्थ के अनुसार :-

“ग्रामीण या देहात परिवेश के बच्चों की अपेक्षा शहरी बालको की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है।

शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस हिसाब से बना सकता है।”

⏩⏩⏩⏩Deepika Ray ⏩⏩⏩⏩

22/03/2021➖➖Monday 

Last class….वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष में  बालक के लिए महत्व

(1) वंशानुक्रम और वातावरण की अपृथक्ता

(2) वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

(3) वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

(4) वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

(5) बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज

        🔰TODAY CLASS…

वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व

➖ में शिक्षक के लिए महत्व

              🌞वंशानुक्रम🌞

➖ वंशानुक्रम का महत्व आज की शिक्षा प्रणाली और बच्चों के जीवन में पड़ने वाले असर और महत्व को हम निम्नलिखित बिंदुओं की सहायता से समझ सकते हैं

✅(1) वंशानुक्रम के असर सभी बच्चों की शारीरिक संरचना मे विभिन्नता:—– जो बच्चों में वंशानुक्रम से होती है शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योगदान दे सकते हैं

✅(2) बालक और बालिकाओं में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है:—- जिसमें विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है जिस के ज्ञान के आधार पर शिक्षक उनकी और बेहतर ढंग से मदद कर सकता है

✅(3) वंशानुक्रम के कारण जन्मजात क्षमता में अंतर:—- शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है जिसके आधार पर उनके समग्र विकास के लिए आवश्यक सहायता की जा सकती है

✅(4) फल स्वरुप बच्चों में अनेक प्रकार की कुछ विभिन्नताए अधिक स्पष्ट होती है:—- तो इससे अध्यन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेंगे

✅(5) बालक बालिकाओं को वंशानुक्रम से प्राप्त अच्छे और बुरे नियम:—- कि यदि किसी के माता-पिता कम  बुद्धिमान हो तो यह जरूरी नहीं कि उसके बच्चे मंदबुद्धि होंगे 

➖योग्य माता-पिता के अयोग्य बच्चे जा अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे इस नियम को अच्छे से समझने वाला शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं 

✅(6) वंशानुक्रम ममें  कुछ प्रवृत्ति:— वांछनीय और कुछ प्रवृत्ति अवांछनीय भी होते हैं

➖ शिक्षक इन प्रवृत्ति को समझकर वांछनीय का विकास करेगा और अवांछनीय को खत्म करेगा

✅(7) सीखने की योग्यता में अंतर:—-

🔰 जो देर से सीखते हैं ➖उनके प्रति सहनशीलता,

🔰 जो जल्दी सीखते हैं➖ उनके उनको अधिक कार्य देंगे

✅(8) वुडवर्थ ➖ग्रामीण (देहात) परिवेश के बच्चे की अपेक्षा शहरी बालक की मानसिक स्तर की श्रेष्ठा आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है

➖ शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस हिसाब से बना सकता है

🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰

✍Notes by:— संगीता भारती✍

              🙏धन्यवाद 🙏

🌼☘️ वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व☘️🌼

(1) बालकों के लिए महत्व➖

(A) वंशानुक्रम और वातावरण का अपृथकता

(B) वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

(C) वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

(D) वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है

(E) बालक वातावरण और वंशानुक्रम का उपज

☘️ शिक्षकों के लिए महत्व☘️

(A) अनुवांशिकता का महत्व

(B) वातावरण का महत्व

🌼 वंशानुक्रम का प्रभाव➖

(A)   शारीरिक भिन्नता में जो बच्चों में 1 सीट अनुवांशिकता में होती है शिक्षक इस ज्ञान को संपन्न होकर उसके शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है।

🌼B-बालक बालिका में लैंगिक भेदभाव वंशानुक्रम के कारण होता है जिसमें विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है। शिक्षक इस ज्ञान से उसके लिए उपयुक्त विषय के अभ्यास की व्यवस्था करता है।

3 जन्मजात क्षमता में अंत➖

जन्मजात क्षमता मैं अंतर शिक्षक कम पवित्र करने वाले बच्चों के अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है।

 🌼कुछ विभिन्नता विकास के साथ अधिक होती है इस अध्ययन करके‌  शिक्षक बच्चों के लिए उपाय करता है।

🌼 योग्य माता -पिता के अयोग्य बच्चे।इस नियम को अच्छे से समझने वाले शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं।

🌼 वंशानुक्रम के कुछ पद्धति वांछनीय और कुछ अवांछनीय नहीं होती है।शिक्षक प्रवृत्ति को समझकर वांछनीय प्रवृत्ति का और अधिक विकास कर सकता है ,जबकि अवांछनीय प्रवृत्ति  को समाप्त करने की कोशिश करता है।

🌼 बालकों को सीखने की योग्यता में अंतर होता है शिक्षक योगिता का पता लगाकर बालकों का अध्ययन अच्छी तरह से कर सकता है योग्यता में यह अंतर दो प्रकार के हो सकते हैं।

1-देर से सीखने वाले

2-जल्दी सीखने वाले

☘️ देर से सीखने वाले बच्चों के लिए शिक्षक को सहनशील  होना चाहिए जबकि जल्दी सीखने वाले बच्चों को शिक्षा का अधिक कार्य देंगे।

🌼8-वुडवर्थ के अनुसार➖

“ग्रामीण या देहात परिवेश के बच्चों की अपेक्षा शहरी बच्चों की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से अनुवांशिकता के कारण होती है शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उस हिसाब से बना सकता है।”

✍🏻📚📚 Notes by… Sakshi Sharma📚📚✍🏻

वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व

👸🏻🧕🏻🕵🏻‍♀️👩‍🏫👰🏻‍♀🦓🐰🐊🦖🐅🦥🐘🪐🌎🌙🌒🌔🌟🌦️☁️🥀🌳🌴🌈🌍

👩‍🏫📚🖋️ शिक्षकों के लिए महत्व

1. वंशानुक्रम का महत्व

🧘‍♀️👩‍🦯🤾🏋️🤼🏄🚵🤺🏇 

 वंशानुक्रम का  हमारे जीवन और शिक्षा  में अनेक महत्व है जो निम्नलिखित है

1. बच्चों में शारीरिक संरचना में विभिन्नता

👨‍👦‍👦👨‍👦👨‍👧‍👧👨‍👨‍👧‍👧👭👫🕺🕴️

शारीरिक विभिन्नता जो बच्चों में वंशानुक्रम से होती है शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में  ध्यान दे सकता है।

2. बालकों और बालिकाओं में लैंगिक भेद

🧍🧍‍♀️👫👨‍👨‍👧‍👧

 बालकों और बालिकाओं में  लैंगिक भेद भी वंशानुक्रम के कारण होता है जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता  कम या अधिक होता है। शिक्षक इस ज्ञान से उसके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है।

3. जन्मजात क्षमता में अंतर होना

👨‍👨‍👦‍👦👨‍👨‍👧‍👦👫👭🧍‍♀️🧍

 वंशानुक्रम के कारण बच्चों की जन्मजात क्षमताओं में अंतर पाया जाता है इसके लिए शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने वाले बच्चों के लिए सहयोग देता है।

4. कुछ विभिन्नताएं विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती है इसे अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेंगे।

5. यदि किसी बच्चे के माता-पिता कम बुद्धि के हो तो यह जरूरी नहीं कि उनके बच्चे भी मंदबुद्धि के ही होंगे। जैसे योग्य माता पिता के अयोग्य बच्चे तथा अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे भी  होते हैं। इस नियम को अच्छे से समझने वाला शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकता है।

6. वंशानुक्रम की कुछ प्रजाति वांछनीय (अच्छी)और कुछ अवांछनीय (बूरी)भी होती है।एक कुशल शिक्षक इन प्रवृत्ति को समझ कर वांछनीय विकास को बढ़ावा देते हैं और और अवांछनीय विकास को खत्म करते हैं।

7. सीखने की योग्यता में अंतर 

🤼🤺🏋️🤾

देर से सीखने वाले छात्रों को सहनशील होकर शिक्षक पढ़ाते हैं और जो छात्र जल्दी सीखते हैं उनको अधिक कार्य देकर विद्यालय के क्रियाकलापों में व्यस्त रहते हैं।

8. वुडवर्थ के अनुसार,📝

“ग्रामीण या देहात  परिवेश की अपेक्षा सहरी बालकों की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता, आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है शिक्षक ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को उनके मानसिक स्तर के अनुसार बना सकता है।”

Notes 📝 by Shreya Rai 🙏

☘️🍍🌸🪂 वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व 🪂🌸🍍☘️

💮बालकों के लिए महत्व

🔸 वंशानुक्रम और वातावरण की आपृथकता 

🔸वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व 

🔸वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता 

🔸वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

🔸 बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज

💮 शिक्षक के लिए महत्व 

1 वंशानुक्रम 

2वातावरण 

🌋 वंशानुक्रम का महत्व शारीरिक भिन्नता जो बच्चों में वंशानुक्रम से होती है।

 शिक्षक इस ज्ञान से संपन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योगदान दे सकता है ।

🪂बालक बालिका में लैंगिक भेद वंशानुक्रम के कारण होता है।

 जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योग्यता कम या अधिक होती है।

 शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषय के अध्ययन की व्यवस्था करता है।

✨ जन्मजात क्षमता में अंतर

 शिक्षक कम प्रगति करने वाले बच्चों को अधिक प्रगति करने के लिए सहयोग देता है ।

🌸 कुछ विभिन्नतांए विकास के साथ अधिक स्पष्ट होती हैं ।

इसे अध्ययन करके शिक्षक बच्चों के लिए उचित शिक्षा का आयोजन करेंगे

💦 कई बार योग्य माता-पिता के अयोग्य बच्चे , अयोग्य माता-पिता के योग्य बच्चे इस नियम को अच्छे से समझने वाला शिक्षक बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं।

🍃 वंशानुक्रम की कुछ प्रवृत्ति वांछनीय और कुछ आवांछनीय  भी होती हैं ।

शिक्षक इस प्रवृत्ति को समझ कर वांछनीय को विकास की ओर अग्रसर सकता है और अवांछनीय को वहीं पर खत्म कर सकता है।

🌟 सीखने की योग्यता में अंतर सीखने की दर अलग-अलग होती है ।

शिक्षक यह समझते हुए जिन बच्चों की दर सीखने की धीमी होती है या जो बच्चे देर से सीखते हैं उनके लिए अपने आप को सहनशील बनाना ।

और जो जल्दी से सीखते हैं उनको और अधिक कार्य देने का कार्य शिक्षक करते हैं।

🕎 वुडवर्थ 

  ग्रामीण परिवेश के बच्चे की अपेक्षा शहरी बालक की मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है ।

शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर शिक्षण को हिसाब से बना सकता है।

धन्यवाद

 वंदना शुक्ला

37. CDP – Heredity and Environment PART- 9

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

🌈 वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध– वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है ।ये एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

     स्वास्थ्य बीज सभी  स्वस्थ्य पौधों का रूप धारण करती है जब वातावरण स्वास्थ्य और संतुलित हो अच्छी खाद, समय से पानी की तैयारी आधी बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

👨‍✈ लैंडिस के अनुसार –  वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन चिंताओं के विकसित करने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं।

    वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है। परिस्थिति या  वातावरण में हमें इस को निवेश करने के अवसर प्रदान करता है।

👨🏼‍💼 मैकाइवर एवं पेज के अनुसार– जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है। किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है। जितनी की दूसरी। कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती हैं।

🌈👨‍✈️ वुडवर्थ & मारेक्विस के अनुसार– व्यक्ति ,वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल होता है। 

    H* E= development

 🦚 शारीरिक ,मानसिक, संवेगात्मक सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।

      बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किस का किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था आज भी है।

          प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं ।लेकिन आधुनिक समय में इनमें परिवर्तन आ गया है। व्यक्ति एक बालक के रूप में, एक युवा के रूप में, एक प्रौढ़ के रूप में ,जो भी सोचता है ,करता है, अनुभव करता है, यह सब वंशानुक्रम के कारण तथा वातावरण दोनों को एक दूसरे का परस्पर प्रभाव पड़ता है।

👨‍✈️🌈 क्रो&क्रो के अनुसार– व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम ना केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

🌈 वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व–  कुछ विद्वानों का कहना है की कुछ गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं है। 

 व्यवहारवादियों  जैसे वाट्सन कोहलबर्ग  इन्होंने कहा है योग्यता क्षमता शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है। इस प्रकार के विचार  को “कट्टरपंथी” कहा गया है।

🌈👨‍✈️ मैकाइवर और पेज के अनुसार –जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है। परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं ।इसमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

🌴🌺 बालक के लिए महत्व–

1️⃣ वातावरण और वंशानुक्रम की अप्रथकता–

🦚 मैकाइवर और पेज के अनुसार –जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों का वातावरण और वंशानुक्रम का दोनों  समान रूप से आवश्यक  है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

2️⃣ वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व–

 वुडवर्थ के अनुसार – यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है। कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।

3️⃣ वंशानुक्रम और वातावरण का पारस्परिक निर्भरता– 

 🦚मोर्स एवं विंगों के अनुसार– मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतर क्रिया का प्रतिफल है।

4️⃣ वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव –

 वुडवर्थ के अनुसार– व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती हैं पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है। कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

5️⃣ बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज है–👨‍✈️ वुडवर्थ के अनुसार– व्यक्ति वंशानुक्रम और वातावरण का योग नहीं  गुणनफल है।

🦚सारांश – बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

📚 गैरेट के अनुसार– इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक-दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌻Notes by Poonam sharma🌴🌴🌴🌴📚📚📚📚

🔆 वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध

▪️वंशानुक्रम और वातावरण बच्चे के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

▪️वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है यह दोनों ही एक दूसरे के पूरक ,एक दूसरे के बिना अधूरे या दोनों एक दूसरे पर निर्भर है।

▪️यदि माता-पिता या पूर्वजों से प्राप्त होने वाले गुण या जीन पर वातावरण का प्रभाव ना हो तो वह जीन या गुण आगे विकसित ही नहीं हो पाएगा।

▪️उसी प्रकार यदि बच्चे को माता-पिता या पूर्वजों से कुछ भी गुण या जीनप्राप्त ना हो और केवल वातावरण  ही उसे आगे ले जाए तो ऐसा भी संभव नहीं है।

▪️अर्थात एक के बिना दूसरे की कोई सार्थकता नहीं है।

▪️वंशानुक्रम वह वातावरण को हम एक तराजू के दो पलड़े की तरह भी समझ सकते हैं जिसमें तराजू को सही तरह से संतुलित करने के लिए दोनों ही पलड़े अर्थात वंशानुक्रम वातावरण का बराबर या संतुलित होना आवश्यक है।

▪️जिस प्रकार स्वास्थ्य बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण करता है जब उसका वातावरण स्वस्थ व संतुलित हो। अच्छी खाद ,समय पर पानी ,धरती की तैयारी आदि सब बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है ।

✨ लैंण्डिस के अनुसार 

वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन क्षमता के विकसित होने के अवसर में वातावरण से मिलते हैं।

वंशानुक्रम हमें “कार्यशील पूंजी” देता है और परिस्थिति हमें इसको “निवेश करने के अवसर” प्रदान करती हैं।

✨ मैकाइवर व पेज के अनुसार

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का(वंशानुक्रम और वातावरण) परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी की दूसरी।

कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

✨ वूडवर्थ व मोरक्विस के अनुसार

व्यक्ति वंशानुक्रम और वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

      H+ E= Development ❎

      H×E = Development ✅

▪️चाहे व्यक्ति का शारीरिक मानसिक या संवेगात्मक इन सभी प्रकार के विकास के लिए वंशानुक्रम व वातावरण दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।

▪️वंशानुक्रम व वातावरण दोनों ही इन सभी विकास को प्रभावित करते हैं इन दोनों के अंतर को विस्थापित या डिस्टिंग्विश नहीं किया जा सकता जिसमें दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है किसका कितना योगदान है?इसकी पृथक रूप से व्याख्या भी नहीं की जा सकती।

▪️बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किस का किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था और आज भी है।

▪️प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं और अपना अलग-अलग प्रभाव डालते हैं।, लेकिन आधुनिक समय में जैसे-जैसे इसका अध्ययन करते गए वैसे वैसे ही समझ भी आती गई कि व्यक्ति के बालक रूप में ,युवा के रूप में , प्रौढ़के रूप में जो भी सोच या समझ या जो भी अनुभव है वह सब वंशानुक्रम के कारक व वातावरण दोनों का परस्पर प्रभाव पड़ने से है।

✨ क्रो एंड क्रो के अनुसार

व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम से और ना ही केवल वातावरण से होता है वास्तव  में वह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज हैं।

🔆 वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व :-

▪️कुछ विद्वानों का मत है कि व्यक्ति के कुछ गुण वंशानुगत से होते हैं जिन पर वातावरण का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता उन्होंने वंशानुक्रम को वातावरण से सर्वोपरि माना है।

▪️जबकि कुछ विद्वानों या व्यवहारवादियों (वाटसन , गाल्टन) का मत है कि कुछ गुण केवल वातावरण से ही विकसित होते हैं उनमें वंशानुक्रम का कोई भी योगदान नहीं है या मानव की योग्यता, क्षमता व विशेषता में वंशानुक्रम का कोई भी महत्व नहीं है।

▪️यह वंशानुक्रम वातावरण के बीच मतभेद बेबुनियाद है यह दोनों ही अलग-अलग प्रकार के विचार है इस प्रकार के विचार को कंठरपंथी विचार कहा गया है।

✨मैकाइवर और पेज ने इस संदर्भ में कहा कि

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

“हर व्यक्ति के नजरिए या दृष्टिकोण से वंशानुक्रम और वातावरण का अलग-अलग महत्व जिनमें से बालकों के लिए महत्व निम्नानुसार है।

🥏 बालकों के लिए महत्व:-वंशानुक्रम वातावरण का बालकों के लिए महत्व निम्नानुसार देखा जा सकता है।

📍 वंशानुक्रम और वातावरण की  अपृथकता :-

✨  मैकाइवर व पेज के अनुसार :-

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का  परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी की दूसरी।कोई ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती हैं।

📍 वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व:-

✨ वुडवर्थ ने कहा है कि:-

यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।

📍 वंशानुक्रम व वातावरण की पारस्परिक निर्भरता :-

मूल प्रवृत्ति वंशानुक्रम से प्राप्त होती हैं और इन्हीं मूल प्रवृत्तियों का विकास वातावरण में होता है।

✨ इस संदर्भ में  मोर्स एवं विंगो ने कहा है कि:-

मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम वातावरण की अंतः क्रिया का फल है।

📍 वंशानुक्रम व वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है:-

✨ वुडवर्थ ने कहा है कि:-

व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुदा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

📍 बालक वंशानुक्रम वातावरण की उपज है:-

✨ वूडवर्थ ने कहा है कि व्यक्ति वंशानुक्रम और वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

▪️ सारांश:-

बालक के विकास के लिए दोनों का (वंशानुक्रम और वातावरण) समान महत्व एक की भीअनुपस्थिति में विकास असंभव है।

✨ गैरेट के अनुसार:-

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव है और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है ।

✍️

      Notes By-‘Vaishali Mishra’

🌼☘️ वंशानुक्रम एवं वातावरण में संबंध☘️🌼

🌼(Relation in heredity and environment )

🌼 वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है यह एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

🌼 वंशानुक्रम वातावरण का संबंध बिल्कुल बीज तथा खेत के जैसा संबंध है। स्वस्थ बीच तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण कर सकता है जबकि वातावरण स्वस्थ एवं संतुलित हो।

🌼 अच्छी खाद, समय पर पानी, धरती की तैयारी, निराई- गुड़ाई आदि वातावरण की सृष्टि करती है।

🤵🏻‍♂लैण्डिस के अनुसार➖”वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन छात्रों के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं वंशानुक्रम हमें क्रियाशील पूंजी  देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के अवसर प्रदान करता है”।

🧑🏼‍💼 मेकआइवर एवं🧑🏽‍🔬 पेज के अनुसार➖जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यकता है जितनी दूसरी कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

वुडवर्थ 👨🏻‍🔬 एवं  मरेक्रिवस 🤵🏻 के अनुसार➖ व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

 Heredity × environment =Development

🌼शारीरिक मानसिक संवेगात्मक सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में सीमा तक प्रभाव पड़ता है।

🌼 प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं, लेकिन आधुनिक समय में इसमे परिवर्तन आ गया हैं। व्यक्ति एक बालक, युवा ,प्रौढ़  के रूप में जो भी सोचता है ,करता है ,या अनुभव करता है यह सब वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का परस्पर प्रभाव है।

क्रो एंड क्रो के अनुसार➖व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकता और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

🌼☘️ वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व☘️🌼

विद्वानों के अनुसार➖ कुछ गुण वंशानुक्रम होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

☘️ व्यवहारवादी वाटसन तथा गाल्टन➖ योग्यता , क्षमता, शारीरिक विशेषताओं में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है इस प्रकार के विचार को यह भी सच नहीं माना गया है और इसे कट्टरपंथी भी कहा है।

☘️मेकाइवर और पेज➖जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

💫 बालक के लिए महत्व💫

1-☘️ वंशानुक्रम और वातावरण का अपृथकता

मेकाइवर और पेज➖जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

2- ☘️ वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

वुडवर्थ के अनुसार➖यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक रूप से अनिवार्य है।

3- ☘️ वंशानुक्रम और वातावरण के पारस्परिक निर्भरता➖ बच्चों की मूल प्रति का विकास वातावरण में होता है।

मोर्स एवं पिगो के अनुसार➖मानव व्यक्ति की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण के अंत: क्रिया का फल है।

4- ☘️ वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव➖

वुडवर्थ के अनुसार➖व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त करती है कि बहुता वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

5- ☘️ बालक वातावरण और वंशानुक्रम का उपज

वुडवर्थ के अनुसार➖व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त करती है कि बहुता वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

💫🌼  सारांश  🌼💫

बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

गैरेट के अनुसार➖इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रमाण हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

💫 वंशानुक्रम और वातावरण में सम्बन्ध 💫

🔷 वंशानुक्रम एवम् वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं हैं बल्कि ये एक दूसरे के पूरक हैं , एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

🔷 स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण करती है जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित हो , अच्छी खाद, समय पर पानी, धरती की तैयारी आदि बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

🌈💫 लैंडिस के अनुसार :-

” वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन क्षमताओं के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं ,वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के अवसर प्रदान करता है।”

🌈💫 मैकाइवर एवं पेज के अनुसार:-

“जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी दूसरी ,कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती हैं।”

🌈💫 वूडवर्थ एवम् मारेक्विस के अनुसार:-

“व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है। ”     H×E=DEVELOPMENT

    आनुवांशिकता×वातावरण=विकास

🌱🌺शारीरिक मानसिक संवेगात्मक इन सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का इस्तेमाल किया जाता है।

🌱🌺 अनुवांशिकता और वातावरण दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान होता है कोई अधिक कोई कम होता है लेकिन हम इन में अंतर नहीं कर सकते हैं कि किस का कितना योगदान है।

🌱🌺 बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किस का किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था आज भी है।

🌱🌺 प्राचीन समय में  यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं,लेकिन आधुनिक समय में इस में परिवर्तन आ गया है व्यक्ति एक बालक के रूप में,एक युवा के रूप में ,या एक  प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है ,जो भी करता है , या जो अनुभव करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है।

  🌈💫 क्रो एंड क्रो के अनुसार:-

“व्यक्ति का निर्माण न  केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

💦🌍 वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व 💦

🧑‍✈️💦 कुछ विद्वानों का मानना है कि:-कुछ गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है

🧑‍✈️💦व्यवहारवादी (वाटसन, गाल्टन):-योग्यता क्षमता शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है।

वैज्ञानिकों का यह मतभेद है इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी विचार कहा गया है।

🌈💫 मैकाइवर और पेज के अनुसार:-

“जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है, परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है , और ना ही अलग किया जा सकता है।

🙎💦🌱 बालक के लिए महत्व 💦🌱🙎

🔷 वंशानुक्रम और वातावरण की अपृथ्कता

🌈💫 मैकाईवर और पेज के अनुसार:-

“जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है ,इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है, और ना ही अलग किया जा सकता है।”

🔷 वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

🌈💫 बुडवर्थ के अनुसार:-

“यह प्रश्न पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है ,कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।”

🔷 वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

🌈💫 मोर्स एवम् विंगो के अनुसार:-

“मानव व्यवहार कि प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतर क्रिया का फल है।”

🔷 वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

🌈💫 बुडवर्थ के अनुसार:-

“व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है, पर यह बातें इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है ,कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।”

🔷 बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज है

🌈💫 वूडवर्थ के अनुसार:-

“व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।”  

          H×E=Development

💦💫 सारांश 💫💦

💦बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

🌈💫 गैरेट के अनुसार:-

“इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

     💫🌴🌺📝📝📖📖🌺🌴💫

💦✍️ Notes by kailashwati Singh✍️💦

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 

🔆 वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध➖

 वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है ये एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूसरे की कोई सार्थकता नहीं है |

 स्वस्थ बीज होगा  तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण करता है जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित होगा|

 अच्छी खाद ,समय – समय पर पानी, धरती की तैयारी,आदि बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है |

लैण्डिस के अनुसार➖

“वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन क्षमताओं के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं और  वंशानुक्रम कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के लिए अवसर प्रदान करता है |”

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार➖

” जीवन की प्रत्येक घटना दोनों( वंशानुक्रम और वातावरण) का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी दूसरी | कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही कभी अलग की जा सकती है |”

वुडवर्थ और मारेक्विस के अनुसार ➖

” व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं बल्कि गुणनफल है |”

    H + E= D

चाहे शारीरिक ,मानसिक या संवेगात्मक विकास हो इन सब प्रकार के विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है |

 बच्चों के विकास में वंशानुक्रम और वातावरण में किस का किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था और आज भी है  |

प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन आधुनिक समय में इसमें परिवर्तन आ गया है व्यक्ति एक बालक, युवा  , या प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है या करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है |

क्रो एवं क्रो के अनुसार➖

 व्यक्ति का निर्माण ना केवल वंशानुक्रम और ना केवल वातावरण से होता है वास्तव में यह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है |

⭕ वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व ➖

 विद्वानों ने कहा है कि कुछ गुण वंशानुक्रम में होते हैं इस पर वातावरण का कोई योगदान नहीं है  | 

       जबकि व्यवहारवादी जैसे वाटसन और गाल्टन का कथन है कि योग्यता, क्षमता, और शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का कोई योगदान नहीं है |  इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी माना गया है |

” मैकाइवर और पेज “

 ने  वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्ष महत्व के बारे में कहा है कि 

“जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इसमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है |”

💥  वंशानुक्रम और वातावरण का बालक के लिए महत्व ➖

🍀 वंशानुक्रम और वातावरण की अपृथकता ➖

 वंशानुक्रम और वातावरण की अपृथकता के संबंध में  ” मैकाइवर और पेज”  ने कहा है कि ➖

     “जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम  होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है | “

🍀 वंशानुक्रम और वातावरण का सामान महत्व ➖

वंशानुक्रम और वातावरण के समान महत्व के  संबंध में “वुडवर्थ ” ने कहा है कि 

“यह पूछने का कोई अर्थ नहीं है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य हैं |”

🍀 वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता ➖

” योर्स और विंगो ” के अनुसार

 मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण अंतः क्रिया का फल है |

🍀 वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव  में अंतर करना ➖

” वुडवर्थ ” ने कहा है कि 

” व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बातें इतनी भी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुदा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है |

🍀   बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज➖

 “वुडवर्थ ” का कथन है कि

 “व्यक्ति वंशानुक्रम और वातावरण

 दोनों का गुणनफल  है |

सारांश ➖

 “बालक के विकास के लिए दोनोंं का समान महत्व है एक भी अनुपस्थित होने से विकास प्रभावित होता है |

 विकास में  यदि किसी एक की भी अनुपस्थिति है त़ो विकास असंभव है  |

इस के संदर्भ में ” गैरेट “कहा है कि  निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🌺🌼🌻🌸🍀🌼🌺🌻🌸🍀🌼🌺🙈🌸🌸🌻👌🌼

🌴🌻🌴🌻🥀🥀🍄🍄🌵🌜💦🌏🌨️💨

🥀 वंशानुक्रम एवं वातावरण में संबंध🥀

➡️वंशानुक्रम और वातावरण परस्पर रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे के पूरक हैं।

वंशानुक्रम मानव जीवन में एक बीज की तरह है, और वातावरण उस बीज को मिलने वाला खाद-पानी है।

वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है  एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

👉🏻वंशानुक्रम वातावरण का संबंध बिल्कुल बीज तथा खेत के जैसा संबंध है। स्वस्थ बीच तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण कर सकता है जबकि वातावरण स्वस्थ एवं संतुलित हो। अच्छी खाद, समय पर पानी, धरती की तैयारी, निराई- गुड़ाई आदि वातावरण की सृष्टि करती है।

🧑🏼‍💼लैण्डिस के अनुसार,”वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन छात्रों के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं वंशानुक्रम हमें क्रियाशील पूंजी  देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के अवसर प्रदान करता है”।

👉🏻 मेकआइवर एवं पेज के अनुसार,”जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यकता है जितनी दूसरी कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

👉🏻वुडवर्थ 🧑🏼‍💼 एवं  मरेक्रिवस 🧑🏼‍💼 के अनुसार,” व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

 Heredity × environment =Development

👉🏻शारीरिक मानसिक संवेगात्मक सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में सीमा तक प्रभाव पड़ता है।

👉🏻 प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं, लेकिन आधुनिक समय में इसमे परिवर्तन आ गया हैं। व्यक्ति एक बालक, युवा ,प्रौढ़  के रूप में जो भी सोचता है ,करता है ,या अनुभव करता है यह सब वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का परस्पर प्रभाव है।

👉🏻क्रो एंड क्रो के अनुसार,”व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकता और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

➡️ वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व

विद्वानों के अनुसार,” कुछ गुण वंशानुक्रम होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

🧑🏼‍💼व्यवहारवादी वाटसन 🧑🏼‍💼तथा गाल्टन🧑🏼‍💼 योग्यता , क्षमता, शारीरिक विशेषताओं में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है इस प्रकार के विचार को यह भी सच नहीं माना गया है और इसे कट्टरपंथी भी कहा है।

🧑🏼‍💼मेकाइवर और पेज के अनुसार,” जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

👶🏻 बालक के लिए महत्व

➡️वंशानुक्रम और वातावरण का अपृथकता

👉🏻मेकाइवर और पेज के अनुसार,” जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

➡️वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

👉🏻वुडवर्थ के अनुसार ,”यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक रूप से अनिवार्य है।

➡️वंशानुक्रम और वातावरण के पारस्परिक निर्भरता  बच्चों की मूल प्रति का विकास वातावरण में होता है।

🥀👉🏻मोर्स एवं पिगो के अनुसार ,” मानव व्यक्ति की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण के अंत: क्रिया का फल है।

➡️ वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव➖

🥀वुडवर्थ के अनुसार,”👉🏻व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त करती है कि बहुता वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

➡️ बालक वातावरण और वंशानुक्रम का उपज🖊️

👉🏻वुडवर्थ के अनुसार,”व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त करती है कि बहुता वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

 👶🏻

बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

👉🏻गैरेट के अनुसार,”इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रमाण हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

🍄🌻📚📚 Notes by shikha tripathi 📚📚🌻🍄

*वंशानुक्रम एवं वातावरण में संबंध*

*Relation in heredity and environment* 

➡️वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है यह एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

➡️स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण कर सकता है जब वातावरण स्वस्थ एवं संतुलित हो।

 खाद, पानी, मिट्टी की तैयारी, आदि वातावरण की सृष्टि करती है।

💞 *लैण्डिस के अनुसार*➖

वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है तथा विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं। वंशानुक्रम हमें क्रियाशील पूंजी  देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के अवसर प्रदान करता है।

 💞 *मेकआइवर एवं पेज*➖

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक की उतनी ही आवश्यकता है जितनी दूसरे की जिसमें से कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

💞 *वुडवर्थ  एवं  मरेक्रिवस*➖

 व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

Development = Heredity × environment 

Development ≠ Heredity + Environment 

➡️शारीरिक ,मानसिक ,संवेगात्मक सभी के विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का प्रयोग किया जाता है। बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में अंतिम सीमा तक प्रभाव पड़ता है।

➡️प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं, लेकिन आधुनिक समय में इसमे परिवर्तन आ गया हैं। व्यक्ति एक बालक, युवा ,प्रौढ़  के रूप में जो भी सोचता है ,करता है या अनुभव करता है, यह सब वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का परस्पर प्रभाव है।

💞 *क्रो एंड क्रो के अनुसार*➖

व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकता और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

 *वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व*

(Compression Importance of Heredity and Environment )

🚹 *विद्वानों के अनुसार*➖

 कुछ गुण वंशानुक्रम होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

🚹 *व्यवहारवादी (वाटसन तथा गाल्टन)*➖

 योग्यता , क्षमता, शारीरिक विशेषताओं में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है इस प्रकार के विचार को यह भी सच नहीं माना गया है। इसे कट्टरपंथी भी कहा है।

💞 *मेकाइवर और पेज*➖

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है। परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है। इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

*बालक के लिए महत्व*

1- *वंशानुक्रम और वातावरण का अपृथकता* ➖

💞 *मेकाइवर और पेज*➖

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है ।परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है। इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

2- *वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व*

💞 *वुडवर्थ*➖

यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक रूप से अनिवार्य है।

3- *वंशानुक्रम और वातावरण के पारस्परिक निर्भरता*➖

 बच्चों की मूल प्रति का विकास वातावरण में होता है।

💞 *मोर्स एवं पिगो*➖

मानव व्यक्ति की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण के अंत: क्रिया का फल है।

4- *वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव*

💞 *वुडवर्थ*➖

व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त करती है कि बहुता वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

5- *बालक वातावरण और वंशानुक्रम का उपज*

💞 *वुडवर्थ*➖

व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है, पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त करती है कि बहुता वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

 *सारांश (conclusion)*

✝️बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है। एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

💞 *गैरेट*➖

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रमाण हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

🌧️Deepika Ray🌧️

वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध

वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं  एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है

               .  स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण करता है जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित हो अच्छी खाद समय पर पानी   धरती  की तैयारी आदि बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है

 लैंडिस के अनुसार:- वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन क्षमता ओं के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसे निवेश करने की अवसर देता है 

 मेकैवर एवं पेज के अनुसार:- जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है( हेरेडिटी एंड एनवायरमेंट) किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतना ही आवश्यक है जितना दूसरा किसी को भी ना तो हटाया जा सकता है ना ही अलग किया जा सकता है

वुडवर्थ और  marekvis  अनुसार:- व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल होता है

H*E= devlopment 

शारीरिक ,मानसिक ,संवेगात्मक विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है

 वृद्धि—– शारीरिक

 विकास —-over all development

बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किसका किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादात्मक था और आज भी है

प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग हैं लेकिन आधुनिक समय में इस में परिवर्तन आ गया है व्यक्ति एक बालक, युवा, प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है करता है अनुभव करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है

 crow and crow के अनुसार :- व्यक्ति का निर्माण ना केवल वंशानुक्रम और ना केवल  वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है

वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व

 विद्वान गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता

व्यवहारवादी वाटसन तथा galtan के अनुसार:- योग्यता ,क्षमता, शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी कहा जाता है

मेकैवर एवं पेज के अनुसार:- जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है( हेरेडिटी एंड एनवायरमेंट) किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतना ही आवश्यक है जितना दूसरा किसी को भी ना तो हटाया जा सकता है ना ही अलग किया जा सकता है

 बालक के लिए महत्व:- 1वंशानुक्रम और वातावरण की अध्यक्षता

मेकैवर एवं पेज के अनुसार:- जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है( हेरेडिटी एंड एनवायरमेंट) किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतना ही आवश्यक है जितना दूसरा किसी को भी ना तो हटाया जा सकता है ना ही अलग किया जा सकता है

2 वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

 वुडवर्थ के अनुसार :- यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता की व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य हैं

3वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

 मूल प्रवृत्ति -वंशानुक्रम 

विकास-  वातावरण

मोर्स एवं विंगों के अनुसार :- मानव विकास की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतर क्रिया का फल है

4 वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव:-

 वुडवर्थ  के अनुसार:- व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बातें इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है

5 बालक वातावरण और वंशानुक्रम  की  उपज

वुडवर्थ के अनुसार :- यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता की व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य हैं

 सारांश:- बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है

 गैरेट के अनुसार:- इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि  वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य

सपना साहू🌴🌳🌴🌳🌴🌳🌴🌳🌴

वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध

🤱👨‍👦👨‍👩‍👧‍👦 💇🏋️🤼🌴🌄🌧️🌏

वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे  से अलग नहीं है यह एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

   स्वस्थ्य बीज तभी स्वस्थ्य पौधे को धारण करता है जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित हो। अच्छी खाद, समय समय पर पानी, धूप और अच्छी देखभाल बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

लेंडिस के अनुसार📝

वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है। इन क्षमताओं के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं। वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के लिए अवसर प्रदान करता है।

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार,📝

जीवन की प्रत्येक घटना अनुवांशिकता और वातावरण का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी दूसरी। कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

वु़डवर्थ एवम् मारेक्विस के अनुसार,📝

व्यक्ति, वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं बल्कि गुणनफल है।

Heredity+environment ≠ Development ❎

Heredity * environment = Development ✅

शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक, संवेगात्मक, बौद्धिक इत्यादि सभी  विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।

बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में से किसका किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था और आज भी है।

प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन आधुनिक समय में इस में परिवर्तन आ गया है । व्यक्ति एक बालक युवा, प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है करता है या अनुभव करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है।

क्रो एंड क्रो के अनुसार,📝

व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व💫💫

कुछ विद्वान कहते हैं कि कुछ गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं होता।

                  तो वहीं कुछ व्यवहारवादी (वाटसन, गाल्टन) के मत हैं कि योग्यता, क्षमता, शारीरिक विशेषता में वांशनुक्रम का योगदान नहीं है।

इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी कहा गया है ।

बालक के लिए महत्व

1. वांशानुक्रम और वातावरण की अपृथकता🌏🌄👨‍👩‍👧‍👦🌴🌅🌧️💇🏋️🤼🤱👨‍👦

मेकाइबर और पेज के अनुसार,📝

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

2. वंशनुक्रम और वातावरण का सामान महत्व👨‍👩‍👧‍👦🌴🌅🌧️💇🏋️🤼🤱🌏

वुडवर्थ के अनुसार, 📝

यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है। दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।

3. वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता👨‍👦🤱🤼🏋️💇🌧️🌅🌴👨‍👩‍👧‍👦

मोर्स एवम् विंगो के अनुसार,📝

मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतः क्रिया का फल है।

4. वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव🤱👨‍👦🌴👨‍👩‍👧‍👦🌅🌄🌧️🌏💇

वुडवर्थ के अनुसार,📝

व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बातें इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

 सारांश✍🏻

बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

गैरेट के अनुसार,📝

इसमें अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव है और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

✍🏻 Notes by Shreya Rai 🙏🙏

👼🏻🎄 वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध :-

➖ वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं, एक दूसरे के पूरक है एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं  है।

           स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ होने का रूप धारण करती है, जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित रहे अच्छी खाद, समय पर पानी,धरती की तैयारी आदि बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

🟠 लेन्डीस के अनुसार :-

 वंशानुक्रम, हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है इन क्षमताओं  के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के अवसर प्रदान करता है।

🔵 मेकाआइवर  एवं पेज के अनुसार:-

 जीवन की प्रत्येक घटना वंशानुक्रम और वातावरण का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतना ही आवश्यक है जितना दूसरा कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग किया सकती है।

🟣 वुडवर्थ और मारेक्विश के अनुसार:-

➖ व्यक्ति, वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

 ➡️H×E=DEVELOPMENT

🔅 मानव के विकास में, शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।

🔅 बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था,

 आज भी है।

🔅 प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन आधुनिक समय में,, इन में परिवर्तन आ गया है व्यक्ति एक बालक,युवक प्रोढ़ के रूप में जो भी सोचता है करता है अनुभव करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है

♦️क्रो एंड क्रो के अनुसार:-

 व्यक्ति का निर्माण,,न केवल वंशानुक्रम और ना केवल वातावरण से होता है वास्तव में, वह जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

😎 वंशनुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व:-

🔵 कुछ विद्वान के अनुसार :-

 कुछ गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

🟡 व्यवहारवादी  (वाटसन और गाल्टन )के अनुसार :-

 मानव विकास में,योग्यता,क्षमता शारीरिक विशेषता में योगदान नहीं है इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी कहा गया है।

🔵 मैकाइवर और पेज के अनुसार :-

 जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है, परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

🌻 निष्कर्ष ➖

👼🏻 बालक  के लिए महत्व :-

 मैकाइवर और पेज के अनुसार :-

 जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है, परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

🎄👼🏻 वंशनुक्रम और वातावरण का समान महत्व :-

▪️ वुडवर्थ  के अनुसार:-

 पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों(H&E) में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य हैं।

🟠 वंशनुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता:-

➖ मोर्श एवं विगो के अनुसार :-

 मानव व्यवहार की, प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतर क्रिया का फल है।

🌌 वंशनुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव :-

 वुडवर्थ के अनुसार :-

 व्यक्ति  के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

👼🏻🌌🎄 बालक, वातावरण और वंशानुक्रम की उपज :-

 वुडवर्थ के अनुसार:-

 व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बात इतनी पेचीदा  ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

🔚 सारांश 🤗

➖ बालक के विकास के लिए दोनों( वातावरण और वंशानुक्रम)  का सामान महत्व है। एक की अनुपस्थिति में विकास संभव है।

🟠 गैरेट के अनुसार :-

इसके,अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

📝NOTES BY “AkAnKsHa”📝

🎄👼🏻🌌🔅🌻😎🥰🙏🏻✍🏻🤟🏻👏🏻🙌🏻

वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध

वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है 

ये एक दूसरे के पूरक हैं

एक के बिना दूसरे की सार्थकता नहीं है।

स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण करती है जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित हो।

अच्छी खाद ,समय पर पानी, धरती की तैयारी आदि बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

लेण्डिस के अनुसार

वंशानुक्रम हमें *विकसित होने की क्षमता* प्रदान करता है इन *क्षमताओं के विकास होने के अवसर* हमें वातावरण से मिलते हैं। वंशानुक्रम हमें *कार्यशील पूंजी* देता है और परिस्थिति हमें इसको *निवेश* करने के अवसर प्रदान करती हैं।

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों (वंशानुक्रम और वातावरण) का परिणाम होता है। किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी दूसरी। कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

वुडवर्थ और मारेक्विस के अनुसार

व्यक्ति, वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं *गुणनफल* है अर्थात 

*वंशानुक्रम* वातावरण=  संपूर्ण विकास*

H+E=Development   ❌

H *E=Development. ☑️

शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

*बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किसका, किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था और आज भी है।*

प्राचीन समय में यह धारणा भी थी कि दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन आधुनिक समय में इसमें परिवर्तन आ गया है व्यक्ति एक बालक ,युवा, प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है, करता है, अनुभव करता है यह सब दोनों (वंशानुक्रम और वातावरण ) का परस्पर प्रभाव है।

क्रो एंड क्रो के अनुसार

व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और न केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह *जैविकदाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।*

वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व-

कुछ विद्वानों के अनुसार कुछ गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

जबकि

व्यवहारवादी (वाटसन, गाल्टन) के अनुसार व्यक्ति की योग्यता, क्षमता, शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का योगदान नहीं होता है।

लेकिन इनमें से किसी भी मत को स्वीकार नहीं किया गया।

इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी कहा गया है।

मेकाइवर एवं पेज के अनुसार 

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है ‌।परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

वंशानुक्रम और वातावरण के महत्व

1. बालक के लिए महत्व

1. वंशानुक्रम और वातावरण अपृथकता

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और न ही अलग किया जा सकता है।

2. वंशानुक्रम एवं वातावरण का समान महत्व

वुडवर्थ के अनुसार

यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।

3. वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

मूल प्रवृत्ति वंशानुक्रम से मिलती है और इसका विकास वातावरण से होता है।

मोर्स और बिंगो के अनुसार

मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतः क्रिया का फल है।

4. वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

वुडवर्थ के अनुसार

व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती हैं पर यह बात इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती हैं कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है।

5. बालक ,वातावरण और वंशानुक्रम की उपज 

वुडवर्थ के अनुसार

व्यक्ति ,वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

H *E=Development. ☑️

सारांश 

बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

गैरेट के अनुसार

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक-दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

Notes by Ravi kushwah

20/03/2021…..saturday

Today class… वंशानुक्रम और वातावरण (पार्ट 3)

🤱🏞वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध

➖वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है यह एक दूसरे के पूरक है बीज तथा खेत जैसा इनका संबंध है एक – दूसरे के बिना सार्थकता नहीं है ।स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण कर सकता है जब वातावरण स्वस्थ एवं संतुलित हो ।अच्छी खान ,समय पर पानी, धरती की तैयारी निराई -गुड़ाई आदि बीज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है

⭕🕵🏼‍♂️लैंडिस🔘

➖” वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है। इन क्षमताओं को विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलती है, वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसको निवेश करने के अवसर प्रदान करती है ”

⭕🎎 मैकाइवर एवं पेज🔘

➖ “जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतना ही आवश्यक है जितनी की दूसरी कोई भी ना तो हटाए जा सकती है ना ही अलग की जा सकती”

⭕👨‍🏫 वुडवर्थ तथा मारेकिव्स🔘

➖”व्यक्ति, वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नई गुणनफल है”

❎Heridty + environment =development ❌

✅Heridty × environment =development ✔

➖विकास की किसी अवस्था में बालक या व्यक्ति की शारीरिक ,मानसिक और संवेगात्मक विशेषताओं का सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का इस्तेमाल किया जाता है

➖ बालक के निर्माण में वंशानुक्रम और वातावरण का किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह विषय सदैव विवादास्पद था और अब भी है

➖ प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन आधुनिक समय में इस में परिवर्तन आ गया है व्यक्ति एक बालक, युवा, प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है, करता है, अनुभव करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है

🕵🏽‍♂️ क्रो एंड क्रो⛔

➖ व्यक्ति का निर्माण ना केवल वंशानुक्रम और ना केवल वातावरण से होता है वास्तव में यह जैविक्दाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण उपज है

🤱🏞 वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व

⭕विद्वान:—

➖ “कुछ गुण वंशानुगत होते हैं इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं”

⭕ व्यवहारवादी =(वाटसन , गाल्टन)

➖ उन्होंने कहा योग्यता क्षमता शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है अतः व्यवहारवादी और विद्वान दोनों ही आपस में उल्टा बात बोले हैं लेकिन सच्चाई यही है यह जो मतभेद है यह बेबुनियाद है

➖ इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी कहा गया है

⭕⭕बालक के लिए महत्त्व

(1) वंशानुक्रम और वातावरण की अपृथकता 

👨‍🏫मैकाइवर और पेज⛔

➖ जीवन का प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होता है परिणाम के लिए दोनों एक समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है

(2) वंशानुक्रम और वातावरण का सामान महत्व

👨🏼‍💼 वुडवर्थ ⛔

➖ यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन सा अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है

(3) वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

मूल प्रवृत्ति

     ⏫➖➖ विकास वातावरण           

वंशानुक्रम

🕵️‍♂️ मोर्स एवं विंगो⛔

➖ मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण का अंतः क्रिया का फल है

(4) वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

 👨‍💼वुडवर्थ 🔘

➖ व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाले प्रत्येक बाद वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाता है पर यह बातें इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती है कि बहुदा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव है

(5) बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज

👨‍💼वुडवर्थ 🔘

➖ व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है 

    ✅ H×E=Development 

🔰 बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है

👨🏿‍⚕️ गैरेट

➖ इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे के सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है

🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞

 ✍Notes by:—संगीता भारती✍

             🙏 धन्यवाद 🙏

🏵️☘️❇️🌸 वंशानुक्रम और वातावरण में संबंध 🌸❇️☘️🏵️

वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे से अलग नहीं है ये एक दूसरे के पूरक हैं ।

एक के बिना दूसरे की कोई सार्थकता नहीं है। 

स्वस्थ बीज तभी स्वस्थ पौधे का रूप धारण करती है जब वातावरण स्वस्थ और संतुलित है।

 अच्छी खाद , समय पर पानी , धरती की तैयारी आदि बीच के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

☸️ लैंण्डिस का कथन

वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है ।

इन क्षमताओं के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण से मिलते हैं। वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति हमें इसे निवेश करने के अवसर प्रदान करता है।

☢️ मेकाइवर एवं पेज

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों ( वंशानुक्रम और वातावरण ) का परिणाम होता है। किसी भी निश्चित परिणाम के लिए एक उतनी ही आवश्यक है जितनी दूसरी। कोई भी ना तो हटाई जा सकती है और ना ही अलग की जा सकती है।

🇫🇴 वुडवर्थ  और मारेक्विस

 व्यक्ति वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

H+E  = development  ( x )

H×E  = development  (✓ )

 🎡 शारीरिक विकास मानसिक विकास संवेगात्मक विकास 

सभी विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण दोनों शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। 

बच्चों के विकास में वंशानुक्रम या वातावरण में किसका किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है यह पहले भी विवादास्पद था और आज भी है।

प्राचीन समय में यह धारणा थी कि दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन आधुनिक समय में इसमें परिवर्तन आ गया है ।

व्यक्ति एक बालक , युवा , प्रौढ़ के रूप में जो भी सोचता है , करता है , अनुभव करता है यह सब दोनों का परस्पर प्रभाव है।

☸️  क्रो एंड क्रो

व्यक्ति का निर्माण ना केवल वंशानुक्रम और ना केवल वातावरण से होता है वास्तव में वह जैविकदाय और समाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है।

🌳 वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व

विद्वान – कुछ गुण वंशानुगत होते हैं , इस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं है।

 व्यवहारवादी ( गाल्टन , वाटसन) योग्यता , क्षमता , शारीरिक विशेषता में वंशानुक्रम का योगदान नहीं है।

इस प्रकार के विचार को कट्टरपंथी माना गया है।

🕎 मेकाइवर और पेज 

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो घटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

✳️ वंशानुक्रम और वातावरण का बालकों के लिए महत्व

1🔸 वंशानुक्रम और वातावरण की आपृथकता

मेकाइवर और पेज

जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है परिणाम के लिए दोनों ही समान रूप से आवश्यक है इनमें से किसी को ना तो हटाया जा सकता है और ना ही अलग किया जा सकता है।

2 🔸 वंशानुक्रम और वातावरण का समान महत्व

वुडवर्थ — यह पूछने का कोई मतलब नहीं निकलता है कि व्यक्ति के विकास के लिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है दोनों में से प्रत्येक पूर्ण रूप से अनिवार्य है।

3 🔸 वंशानुक्रम और वातावरण की पारस्परिक निर्भरता

 मूल प्रवृत्ति   ———- विकास

      ।                           ।

 वंशानुक्रम              वातावरण

मोर्स एवं विगो

मानव व्यवहार की प्रत्येक विशेषता वंशानुक्रम और वातावरण की अंतः क्रिया का फल है।

4 🔸 वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असंभव

वुडवर्थ — व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है पर यह बातें इतनी पेचीदा ढंग से संयुक्त रहती हैं कि बहुधा वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभाव में अंतर करना असम्भव है।

5 🔸 बालक वातावरण और वंशानुक्रम की उपज 

वुडवर्थ —

H x E = development

बालक वंशानुक्रम और वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।

 💦 सारांश  — 

बालक के विकास के लिए दोनों का समान महत्व है एक की भी अनुपस्थिति में विकास असंभव है।

🔸 गैरेट — इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि वंशानुक्रम और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं और दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।

धन्यवाद

द्वारा वंदना शुक्ला

36. CDP – Heredity and Environment PART- 8

🌴🦚🦚🦚🦚🦚🦚🌴

💫 बालक पर वातावरण का प्रभाव–     

💥 शारीरिक अंतर का प्रभाव

💥मानसिक विकास का प्रभाव

💥बुद्धि पर प्रभाव

💥व्यक्तित्व पर प्रभाव

🌈 प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव–  “क्लार्क के अनुसार”– कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण  वंशानुक्रम न होकर वातावरण होता है।  अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगो की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया । 

               नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम था क्योंकि उनसे श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक सामाजिक या सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध हो पाता ।

🌈 अनाथ बच्चों पर प्रभाव– सामाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारणत निम्न परिवार के होते हैं।लेकिन कल्याण केंद्रों पर उनकी अच्छे से  पालन पोषण किया जाता है उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है। इसप्रकार के वातावरण में रहने वाले बच्चों के संबंध में “वुडवर्थ ने कहा – वे समग्र रूप से अपने माता पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं।

🌈 जुड़वा बच्चो पर प्रभाव– जुडवा बच्चो के शारीरिक लक्षण मानसिक शक्ति शैक्षिक योग्यता में समानता होती है।

👨‍✈️ न्यूमैन ,फ्रीमैन और होल गिंगर ने 20 जोड़े जुड़वा बच्चो को अलग अलग वातावरण में रखा। उनमे वे एक जोड़े के बच्चों को बच्चे को गांव में दूसरे को नगर में रखा। 

    उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है।

      गांव का बच्चा अशिष्ट ,चिंताग्रस्त और कम बुद्धिमान था । और नगर का बच्चा शिष्ट,चिंतामुक्त और अधिक बुद्धिमान थे। 

👨🏼‍💼स्टीफेंस ने कहा कि इस प्रकार के अध्ययन से यह निर्णय कर सकते है कि पर्यावरण का बुद्धि साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है।

🌈 बालक पर बहुमुखी प्रभाव– बालक के बहुमुखी प्रभाव से तात्पर्य है कि बालक में  वातावरण  जिसमें शारीरिक ,मानासिक ,सामाजिक ,संवेगात्मक इत्यादि सभी का बच्चे के विकास में प्रभाव पड़ता है।

     🦚 इसकी पुष्टि एवेरान के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है।इस बालक को जन्म के बाद भेड़िया उठा ले गया था तो उसका पालक पोषण पशुओ के बीच मे हुआ था ।बाद में जब वह 11–12 वर्ष के करीब    हुआ तो उसे शिकारियों ने पकड़ लिया । बालक की  आकृति पशुओं सी थी।  उनके समान हाथ पैर से चलता था । कच्चा मांस खाता था ।   आवाज़ भी वैसे ही निकलता था । उसमे मनुष्य के समान बोलने और विचार की शक्ति नही थी। 

🌈 वातावरण के संचयी प्रभाव का उल्लेख करते हुए “स्टीफेंस” ने लिखा है – एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक प्रदत होता है।अगर बच्चा चतुर माँ बाप के साथ रहता है अधिक समय तक तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है उसका स्तर भी उतना ही गुरते चला जाता है।

 पहली दृष्टि में इसमे पर्यावरण के प्रभाव निःसंदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए की पिता के साथ बच्चे की समानता ,लंबाई में या शरीर की अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश आनुवंशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

📚📚📚📚 Notes by poonam sharma 🌺🌺🌺

🔆  बालक के विकास पर वातावरण का प्रभाव  :-

की

❇️ 5 प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव :- 

✨क्लार्क के अनुसार

कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है।

प्रजाति की श्रेष्ठता के परीक्षण के लिए उन्होंने अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षण लेकर सिद्ध किया कि जिसमे उन्होंने 

नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर कम बताया यह इसीलिए कम था क्योंकि उनमें  स्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक ,सामाजिक या सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

❇️ 6 अनाथ बच्चों पर प्रभाव:-

▪️समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारणत:निम्न परिवार के ही होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है। उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है जिससे इस प्रकार के वातावरण में पलने वाले बच्चे के संबंध में 

✨बुडवर्थ ने कहा है कि 

वे समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे सिद्ध होते है।

❇️ 7 जुड़वा बच्चों पर प्रभाव :- 

▪️जुड़वा बच्चों की शारीरिक लक्षण ,मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है।

▪️लेकिन ✨न्यूमेन , फ्रीमैन और होल जिंगर ने 20 जोड़े जुड़वा बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा।

▪️उनमें से जोड़े के एक बच्चे को – गांव में 

जबकि दूसरे बच्चे को – नगर में रखा।

उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है।

▪️गांव का बच्चा – अशिष्ट, चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान था।

नगर का बच्चा – शिष्ट, चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

✨स्टीफेंस ने कहा कि –

▪️इस प्रकार की अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं की पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक या विशेष प्रभाव पड़ता है।

❇️ 8 बालक पर बहुमुखी प्रभाव:-

▪️वातावरण बालक के शारीरिक ,मानसिक, सामाजिक ,संवेगात्मक इत्यादि को प्रभावित करते हैं।

▪️इसकी पुष्टि एबेरोन के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है ।

▪️इस बालक के जन्म के बाद एक भेड़िया उठाकर ले गया था उसके बाद उसका पालन पोषण जंगली पशुओं के बीच हुआ ।बाद में जब वह 11- 12 वर्ष के करीब हुआ तो उसे कुछ शिकारियों ने पकड़ लिया तब उस बालक में कुछ ऐसे लक्षण देखने को मिले जैसे उसकी आकृति पशुओं की तरह थी, वह पशुओं के समान हाथ पैरों से चलता था, कच्चा मांस खाता था।

उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी।

▪️वातावरण के इन संचयी प्रभाव को उल्लेख करते हुए 

✨स्टीफेंस ने लिखा है कि –

▪️एक बच्चा जितना अधिक उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक उस पर्यावरण की तरफ प्रवृत्त होता है। 

▪️अगर बच्चा चतुर मां-बाप के साथ रहता है तो अधिक समय तक वह भी उतना ही चतुर हो जाता है।

▪️अगर बच्चा हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर भी उतना ही गिरता चला जाता है।

▪️पहली दृष्टि में पर्यावरण के प्रभाव नि: संदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी इस बार होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता लंबाई में या शरीर के अलग-अलग रचना में आयु के साथ बढ़ेगी।

▪️अर्थात उन समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

✍️

     Vaishali Mishra

☘️🌼 बालक पर वातावरण का प्रभाव🌼☘️

1-💫 शारीरिक प्रभाव

2-💫 मानसिक विकास का प्रभाव

3-💫 बुद्धि पर प्रभाव

4-💫 व्यक्तित्व का प्रभाव

5-🌼 प्रजाति की श्रेष्ठता  पर प्रभाव ➖ क्लार्क के अनुसार-कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है, अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया।

🌼 उनमें श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक, सामाजिक या सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

6-☘️🌼 अनाथ बच्चों पर प्रभाव➖ समाज -कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारण निम्न परिवार के होते हैं। लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है। इसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है, इस प्रकार के वातावरण में पलने वाले बच्चों के संबंध में वुडवर्थ ने कहा– वह समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं।

7-🌼☘️ जुड़वा बच्चों पर प्रभाव➖ जुड़वा बच्चों के शारीरिक लक्षण,मानसिक शक्ति और शैक्षणिक योग्यता में समानता होती है।

🌼 न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने 20 जोड़े जुड़वा बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा उनमें से जोड़े के एक बच्चे को गांव में दूसरे को नगर में रखा उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है।

🌼 गांव का बच्चा अशिष्ट, चिंता ग्रस्त और कम बुद्धि वाला था, नगर का बच्चा  शिष्ट ,चिन्ता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

🌼 स्टीफैन्स ने कहा है कि इस प्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव होता है।

8-🌼☘️ बालक पर बहुमुखी  प्रभाव➖वातावरण बालक के शारीरिक ,मानसिक ,सामाजिक, संवेगात्मक आदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है।

🌼 इसकी पुष्टि ‘एवेराॅन के जंगली बालक ‘के उदाहरण से की जा सकती है।

🌼इस बालक को जन्म के बाद भेड़िया उठाकर ले गया उसका पालन पोषण पशुओं के बीच हुआ बाद में वह 11 -12 वर्ष के करीब हुआ तो उसे शिकारियों ने पकड़ लिया। उसकी आकृति पशुओं की -सी थी और वह उनके सामान हाथों पैरों से चलता था।वह कच्चा मांस खाता था उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी।

🌼 वातावरण के संचयी प्रभाव की उल्लेख करते हुए स्वीफेम्स ने लिखा–एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस वातावरण की तरह प्रदृत होता है अगर बच्चा चतुर माता-पिता के साथ रहता है अधिक समय तक तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर उतना ही गिरता चला जाता है।

🌼 पहली दृष्टि में इसमें वातावरण के प्रभाव निस्संदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी इस्वरण करना चाहिए कि पिता के साथ जो बच्चे की समानता है लंबाई में यह शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की बुद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

✍🏻📚📚 Notes by…… Sakshi Sharma📚📚✍🏻

 🌻🌴💫💫💫🌧️⛅🌏💦🌨️☔🌻🌴🌴

🌻बालक पर वातावरण का प्रभाव

🍄शारीरिक प्रभाव

 🍄मानसिक विकास का प्रभाव

🍄बुद्धि पर प्रभाव

🍄व्यक्तित्व का प्रभाव

➡️वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव :-

वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव के संबंध में🧑🏼‍💼 क्लार्क ने अपना मत देते हुये कहा है कि–

कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है।

🧑🏼‍💼क्लार्क 👉🏻ने वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव में अपने विचार अमरीका के कुछ गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया क्लार्क का कहना है कि, नीग्रो प्रजाति की बुद्धि का स्तर इसलिए निम्न है, क्योंकि उनको अमेरिका की श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक, सांस्कृतिक और सामाजिक वातावरण उपलब्ध नहीं होता है।

➡️ वातावरण का अनाथ बच्चों पर प्रभाव :-

समाज कल्याण केन्द्रों में अनाथ और बेसहारा बच्चे आते है। वे साधारणतः निम्न परिवारों से संबंध रखते हैं, लेकिन समाज कल्याण केन्द्रों में उनका अच्छा पालन-पोषण होता है, और उनको एक बेहतर वातावरण भी मिलता है, जिससे उनको अच्छा व्यक्तित्व प्राप्त होता है।

👉🏻वुडवर्थ के अनुसार,”

इस प्रकार के वातावरण में पाले जाने वाले बच्चे समग्र रूप में अपने माता-पिता से अच्छे ही सिद्ध होते हैं।

➡️वातावरण का जुड़वाँ बच्चों पर प्रभाव :-

जुड़वाँ बच्चों के शारीरिक लक्षणों, मानसिक शक्तियों, व्यवहार और शैक्षिक योग्यताओं में, अत्यधिक समानता होती है। लेकिन यदि दोनों बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा जाए तो उनमें पर्याप्त अन्तर होता है।

न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने 20 जोड़े जुड़वाँ बच्चों में प्रत्येक जोड़े के एक बच्चे को गाँव के फार्म पर और दूसरे को नगर में रखा। बड़े होने पर दोनों बच्चों में पर्याप्त अन्तर पाया गया।

👉🏻स्टीफेन्स  के अनुसार,”पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण और उपलब्धि पर अधिक व विशेष प्रभाव पड़ता है।

➡️ वातावरण का बालक पर बहुमुखी प्रभाव :-

वातावरण, मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक सहित सभी गुणों पर गहरा प्रभाव डालता है। इसकी पुष्टि एवेरॉन के जंगली बालक के उदाहरण से की–

एक बच्चे को जन्म के बाद ही भेड़िया उठा ले गया था और उसका पालन-पोषण जंगली पशुओं के बीच में हुआ था। कुछ शिकारियों ने उसे सन 1799 ई. में पकड़ लिया। उस समय उसकी आयु 11 या 12 वर्ष की थी। वह बच्चा पशुओं के समान हाथों-पैरों से चलता था। वह कच्चा मांस खाता था। उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी। उसको मनुष्य के समान सभ्य और शिक्षित बनाने के सब प्रयास विफल हुए।

➡️वातावरण के संचयी प्रभाव की उल्लेख करते हुए   🧑🏼‍💼 स्टीफेन्स ने  लिखा है कि 

👉🏻👶🏻एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस वातावरण की तरह प्रदृत होता है अगर बच्चा चतुर माता-पिता के साथ रहता है अधिक समय तक तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर उतना ही गिरता चला जाता है।

बच्चा जितने अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है, उसका व्यक्तित्व उतना ही उत्तम होगा। हालांकि मनुष्य के व्यक्तित्व और वृद्धि में कुछ प्रभाव आनुवंशिकता भी होता है।

👉🏻वातावरण के प्रभाव निस्संदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ जो बच्चे की समानता लंबाई में या शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

 हालांकि मनुष्य के व्यक्तित्व और वृद्धि में कुछ प्रभाव आनुवंशिकता भी होता है।

         🌴🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌴

🖊️📚📖📝 Notes by shikha Tripathi📖📚🖊️💫💫💫💫

19/03/2021.                  Friday 

Last class ….

*भौगोलिक वातावरण

*सामाजिक वातावरण

*सांस्कृतिक वातावरण

*मानसिक वातावरण

👉 बालक पर वातावरण का प्रभाव

(1) शारीरिक अंतर का प्रभाव 

(2) मानसिक विकास पर प्रभाव

(3) बुद्धि पर प्रभाव

(4) व्यक्तित्व का प्रभाव

 Today class… वातावरण के प्रकार…..( पार्ट 2)

(5)🥏 प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव क्लार्क के अनुसार:— कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है । 

👉अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें स्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है

(6)🥏 अनाथ बच्चे पर प्रभाव:—

समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारण निम्न परिवार के होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है इस प्रकार के वातावरण में काले जाने वाले बच्चे के संबंध में

👉 वुडवर्थ  ने कहा:— वे समग्र रूप से अपने माता पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं

(7)🥏 जुड़वा बच्चों पर प्रभाव:—

जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है

👉 न्युन्मेन फ्रीमैन और हॉल जिंग:–

इन्होंने 20 जोड़ी जुड़वा बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा उनमें से जोड़ें को एक बच्चे को गांव में और दूसरे बच्चे को नगर में रखा उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है 

👉गांव का बच्चा अशिष्ट, चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान था नगर का बच्चा शिष्ट, चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान थे

👉 स्टेफैंस ने कहा कि:— इस प्रकार के निर्णय से यह पता कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है

(8)🥏 बालक और बहुमुखी प्रभाव

 🥏वातावरण:—

 बालक के शारीरिक ,मानसिक, सामाजिक ,संवेगात्मक आदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है

👉 इसकी पुष्टि एवेरांन के जंगली बालक मोगली के उदाहरण से की जा सकती है

👉 इस बालक को जन्म के बाद भेरिया उठा ले गया ।उसका पालन पोषण पशुओं के बीच हुआ ।बाद में जब वह 11 12 वर्ष के करीब हुआ तो उसे शिकारियों ने पकड़ लिया। बालक की सभी आकृति पशुओं सी थी उनके समान हाथ, पैर से चलता था ,कच्चा मांस खाता था, उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी

🥏 वातावरण के संचायी प्रभाव का उल्लेख करते हुए स्टेफैंस ने लिखा:—

एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस पर्यावरण की तरफ से प्रवृत होता है अगर बच्चा चतुर मां-बाप के साथ रहता है अधिक समय तक वह भी उतना ही चतुर हो जाता है अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है उसका स्तर उतना ही गिरते चला जाता है पहले दृष्टि में इसमें पर्यावरण के प्रभाव निसंदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता लंबाई में या शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

✍Notes by:—संगीता भारती✍

           Thank you 🙏

🌳बालक पर वातावरण का प्रभाव🌳

              🌳प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव🌳

 क्लार्क के अनुसार:- कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण  अनुवांशिकता ना होकर वातावरण है अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक सामाजिक या सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है

          🌳 अनाथ बच्चों पर प्रभाव 🌳

समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारण निम्न परिवार  के होते हैं  लेकिन कल्याण केंद्र पर उनको अच्छे से पालन पोषण किया जाता है साथ ही अच्छा व्यवहार किया जाता है इस प्रकार के वातावरण में पहले वाले बच्चे के संबंध में

 वुडवर्थ ने कहा है वे बालक समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं

        🌳 जुड़वा बच्चों पर प्रभाव 🌳

जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण, मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है

               , न्यूमैन फ्रीमैन और होल जिंगर ने 20 जोड़े जुड़वा बच्चे को अलग अलग वातावरण में रखा इनमें से जुड़े के एक बच्चे को गांव में दूसरे बच्चे को नगर में रखा

                            , उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर था गांव का बच्चा अशिष्ट चिंता युक्त और कम बुद्धिमान था ,जबकि नगर का बच्चा स्वस्थ चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था

  स्टीफेंस ने कहा कि:- इस प्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है

     🌳 बालक पर बहुमुखी प्रभाव 🌳

वातावरण

             1 शारीरिक 

2मानसिक 

3सामाजिक 

4संवेगात्मक 

इसकी पुष्टि  yeveroun के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है

                        , इस बालक को जन्म के बाद भेड़िया उठा ले गया उसका पालन पोषण पशुओं के बीच हुआ बाद में जब वह 11से 12 वर्ष के करीब हुआ तो उसे शिकारियों ने पकड़ लिया

              , बालक की सभी आकृति पशुओं की थी  उनके समान हाथ पेड़ पर चढ़ना और कच्चा मांस खाता था

            , उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी

वातावरण के संचयी प्रभाव का उल्लेख करते हुए स्टीफेंस ने लिखा———- एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस पर्यावरण की तरफ प्राकृत होता है अगर बच्चा चतुर मां-बाप के पास अधिक समय तक रहता है तो वह भी उतना चतुर हो जाता है अगर वह नकारात्मक वातावरण में रहता है तो वह भी उतना ही गिरते चला जाता है

पहली दृष्टि में इसमें पर्यावरण के प्रभाव नहीं निःसंदेश प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की संरचना में आयु के साथ बढ़ती अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है

Nots by सपना साहू 

🌳🌳🌳🌳🌳🌴🌴🌴🌴🌴🍃🍃🍃🍃🍃🖋️🖋️🖋️🖋️

🌼🌼बालक पर वातावरण का प्रभाव🌼🌼

🌼 1. शारीरिक प्रभाव

 🌼2. मानसिक विकास का प्रभाव

🌼3. बुद्धि पर प्रभाव

🌼4. व्यक्तित्व का प्रभाव

🌼🌼🌼वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव :-

🌼वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव के संबंध में क्लार्क ने अपना मत देते हुये कहा है कि:-“कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है।”

🌼🌼क्लार्क ने वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव में अपने विचार अमेरीका के कुछ गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया कि, नीग्रो प्रजाति की बुद्धि का स्तर इसलिए निम्न है, क्योंकि उनको अमेरिका की श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक, सांस्कृतिक और सामाजिक वातावरण उपलब्ध नहीं था।

🌼🌼 वातावरण का अनाथ बच्चों पर प्रभाव :-

🌼समाज कल्याण केन्द्रों में अनाथ और बेसहारा बच्चे आते है। वे साधारणतः निम्न परिवारों से संबंध रखते हैं, लेकिन समाज कल्याण केन्द्रों में उनका अच्छा पालन-पोषण होता है, और उनको एक बेहतर वातावरण भी मिलता है, जिससे उनका व्यक्तित्व अच्छा प्राप्त होता है।

🌼🌼वुडवर्थ के अनुसार:- “इस प्रकार के वातावरण में पाले जाने वाले बच्चे समग्र रूप में अपने माता-पिता से अच्छे ही सिद्ध होते हैं।”

🌼वातावरण का जुड़वाँ बच्चों पर प्रभाव :-

जुड़वाँ बच्चों के शारीरिक लक्षणों, मानसिक शक्तियों, व्यवहार और शैक्षिक योग्यताओं में, अत्यधिक समानता होती है। लेकिन दोनों बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा जाए तो उनमें पर्याप्त अन्तर होता है।

🌼न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने 20 जोड़े जुड़वाँ बच्चों में प्रत्येक जोड़े के एक बच्चे को गाँव के फार्म पर और दूसरे को नगर में रखा। बड़े होने पर दोनों बच्चों में पर्याप्त अन्तर पाया गया।

🌼स्टीफेन्स  के अनुसार:- “पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण और उपलब्धि पर अधिक व विशेष प्रभाव पड़ता है।

🌼🌼🌼 वातावरण का बालक पर बहुमुखी प्रभाव :-

🌼वातावरण, मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक सहित सभी गुणों पर गहरा प्रभाव डालता है। इसकी पुष्टि एवेरॉन के जंगली बालक के उदाहरण से की:-

🌼🌼एक बच्चे को जन्म के बाद ही भेड़िया उठा ले गया था और उसका पालन-पोषण जंगली पशुओं के बीच में हुआ था। कुछ शिकारियों ने उसे सन 1799 ई. में पकड़ लिया। उस समय उसकी आयु 11 या 12 वर्ष की थी। वह बच्चा पशुओं के समान हाथों-पैरों से चलता था। वह कच्चा मांस खाता था। उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी। उसको मनुष्य के समान सभ्य और शिक्षित बनाने के सब प्रयास विफल हुए।

🌼🌼वातावरण के संचयी प्रभाव की उल्लेख करते हुए , स्टीफेन्स ने  लिखा है कि एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस वातावरण की तरह प्रदृत होता है अगर बच्चा चतुर माता-पिता के साथ रहता है  तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर उतना ही गिरता चला जाता है।

🌼बच्चा जितने अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है, उसका व्यक्तित्व उतना ही उत्तम होगा। हालांकि मनुष्य के व्यक्तित्व और वृद्धि में कुछ प्रभाव आनुवंशिकता भी होता है।

🌼🌼वातावरण के प्रभाव नि:संदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ जो बच्चे की समानता लंबाई में या शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

 🌼हालांकि मनुष्य के व्यक्तित्व और वृद्धि में कुछ प्रभाव आनुवंशिकता भी होता है।

         🌼🌼🌼manjari soni🌼🌼🌼

🔆🌲बालक पर वातावरण का प्रभाव🌲🔆

🍀1.शारीरिक प्रभाव

🍀2.मानसिक विकास का प्रभाव

🍀3.बुद्धि पर प्रभाव

🍀4.व्यक्तित्व का प्रभाव

🍀5.वातावरण का प्रजाति की श्रेष्ठतापर प्रभाव➖️✏️ क्लार्क के अनुसार➖️ कुछ प्रजाति की सफलता का कारण अनुवांशिकता ना होकर वातावरण है अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोग प्रजाति के लोगों की बुद्धि परीक्षण लेकर सिद्ध किया कि नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर कम होती है उनकी बौद्धिक स्तर इसलिए होती है क्योंकि उनमें से प्रजाति के समान शैक्षिक सामाजिक या सांस्कृतिक उपलब्ध नहीं हो पाता है

🍀6.अनाथ बच्चों पर प्रभाव ➖️समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे  साधारण निम्न परिवार के होते थे लेकिन कल्याण केंद्र में उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है उसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है इस प्रकार के वातावरण में चलने वाले बच्चे के संबंध में

वुडवर्थ ने कहा वे समग्र रूप से अपने माता पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं

🍀7.जुड़वा बच्चों पर प्रभाव ➖️जुड़वा बच्चों की शारीरिक लक्षण,मानसिक शक्ति,और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है

 🔅✏️न्यूमैन, फ्रीमैन एंड होलसिंगर ➖️ने   20 जोड़े जुड़वा बच्चों को अलग अलग वातावरण मे रखा और उनमें से कुछ जोड़े के एक बच्चे को गांव में और कुछ बच्चों को नगर में रखें उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है गांव का बच्चा अशिष्ट, चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान था और वही नगर का बच्चा शिष्ट,चिंता,मुक्त,और अधिक बुद्धिमान था

🔅✏️स्टीफेंस का मत है ➖️कि इस प्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक प्रभाव पड़ता है

🍀8. बालक पर बहुमुखी प्रभाव➖️ बालक पर वातावरण का बहुत ही प्रभाव पड़ता है जैसे शारीरिक,मानसिक, सामाजिक,संवेगात्मक इत्यादि

 🔅इसकी पुष्टि एवेरान के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है

इस बालक को जन्म के बाद भेड़िया उठाकर ले गया था और उसका पालन पोषण जंगली पशुओं के बीच हुआ था।

कुछ शिकारी ने उसे पकड़ लिया उसकी आयु 11 से 12 वर्ष थी उसके शरीर की आकृति बनावट पशुओं के समान थी।

मनुष्य के समान सोच विचार वह नहीं कर पाता था उसके मनुष्य के समान बनाने में प्रयास किया गया लेकिन सारे प्रयास असफल हो गए तो इसके कहने का मतलब यह है।

कि बहुमुखी प्रभाव बालक पर बहुत ही प्रभाव पड़ता है।

🍀9. वातावरण के संचयी प्रभाव ➖️का उल्लेख करते हुए 🔅✏️स्टीफेंस ने लिखा➖️

एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है और वह उतना ही अधिक पर्यावरण की तरह प्रदत् होता है अगर बच्चा चतुर माता-पिता के साथ रहता है तो वह भी उतना ही चतुर होता है अगर वह हानिकारक या बुरे वातावरण में रहता है तो उसका स्तर उतना ही गिरता चला जाता है

🔅इसीलिए बच्चे को अच्छा वातावरण देना चाहिए जितना अच्छा बच्चे को वातावरण मिलेगा बच्चे उतना ही अच्छा रहेगा

🔅पर्यावरण के प्रभाव में नि :संदेश प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की संरचना में आयु के साथ बढ़ती अर्थात वक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है

📝Notes by sapna yadav 🔆🔆🔆🔆🔆🔆🔆

🌻🌻🌻🌻🌻🌻१९०३२०२१🌻🌻🌻

5️⃣ प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव : प्रजाति की श्रेष्ठता के संबंध में क्लार्क महोदय ने कहा है कि “कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है।”

↪️ प्रजाति की श्रेष्ठता के लिए क्लार्क ने अमेरिका के कुछ गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया।

↪️ क्लार्क के समर्थन में कुछ और मनोवैज्ञानिकों ने कहा कि “निग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।”

6️⃣ अनाथ बच्चों पर प्रभाव : समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे सामान्यत: निम्न परिवार के होते हैं, लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है तो इस प्रकार के वातावरण में पलने वाले बच्चे के संबंध में वुडवर्थ (Wood worth) ने कहा “वे समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं।”

7️⃣ जुड़वा बच्चों पर प्रभाव : 

↪️जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण, मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में सामान्य होती है। 

↪️न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने 20 जोड़े जुड़वा बच्चे को अलग अलग वातावरण में रखा। इनमें से जोड़े के एक बच्चे को गांव में और दूसरे को नगर में रखा। उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनो में पर्याप्त अंतर है।

↪️गांव का बच्चा अशिष्ट,चिंताग्रस्त और कम बुद्धिमान था और नगर का बच्चा शिष्ट, चिंतामुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

👤स्टीफेंस ने कहा कि “इसप्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है।”

8️⃣ बालक पर बहुमुखी प्रभाव : बालक के विकास में वातावरण का कई प्रभाव पड़ता है। जैसे – 1. शारीरिक , 2.मानसिक, 3. सामाजिक, 4.संवेगात्मक इत्यादि।

↪️ इसकी पुष्टि एवेरॉन के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है। 

↪️ इस बालक को जन्म के बाद ही भेड़िया उठाकर ले गया था। उसका पालन पोषण पशुओं के बीच हुआ। 

↪️ बाद में जब वह 11-12 वर्ष का हुआ तो उसे शिकारियों ने पकड़ लिया। बालक की उस समय आकृति पशुओं के जैसा था। 

↪️ वह पशुओं के समान हाथ-पैर से चलता था, कच्चा मांस खाता था।

↪️उसमे मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी।

          वातावरण के संचयी प्रभाव का उल्लेख करते हुए स्टीफेंस ने लिखा कि एक बच्चा जितना अधिकतम वातावरण में रहता है उतना ही उस वातावरण की तरफ प्रवृत्त होता है। अगर वह बच्चा चतुर माता-पिता के साथ अधिक समय तक रहता है तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है। अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर गिरते चला जाता है। पहली दृष्टि में इसमें पर्यावरण के प्रभाव निःसंदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हम यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता, लंबाई में या शरीर के अलग संरचना में, आयु के साथ बढ़ेगी।अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।🔚

        🙏

🌹📝 by – Awadhesh Kumar 🌹🌹

_____________________________

🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️🌶️              

            ⛲बालक पर वातावरण का प्रभाव⛲

    💦  प्रजाति की श्रेष्ठता  पर प्रभाव

🗣️क्लार्क के अनुसार

✍️कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है अमेरिका के गोरे और निग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया;

                         नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें स्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

💦अनाथ बच्चों पर प्रभाव÷

✍️ समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारणत:निम्न परिवार के होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है इस प्रकार के वातावरण में पलने  के संबंध में;

       🗣️  “वुडवर्थ “ने कहा कि वे समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं।

         👬  जुड़वा बच्चों पर प्रभाव👭

✍️जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण, मानसिक शक्ति और शैक्षिक योगिता इत्यादि में समानता होती है।

🗣️न्यूमैन फ्रीमैन और होलजिंगर के अनुसार÷

👬➡️ जुड़वा जोड़े बच्चो पर प्रयोग किया इन्होंने इन जुड़वा जोड़े बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा उसने एक जोड़े के एक बच्चे को गांव में व दूसरे बच्चे को नगर में रखा उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है,

✍️गांव का बच्चा अशिष्ट चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान था, नगर का बच्चा शिष्ट चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

🗣️”स्टीफंस ने कहा है कि इस प्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और  उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है।

  💦 बालक पर बहुमुखी प्रभाव÷

           ⛲ वातावरण⛲

⛲शारीरिक मानसिक सामाजिक संवेगात्मक इत्यादि का प्रभाव पड़ता है।

✍️बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक इत्यादि चीजों पर वातावरण प्रभाव डालता है।

✍️इसकी पुष्टि एवेरान के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है ;

✍️इस बालक को जन्म के बाद ही भेड़िया उठाकर ले गया था और उसका पालन पोषण भी जंगली जानवर के बीच हुआ था कुछ वर्ष बाद जब वह 11 से 12 वर्ष के बीच था तब उसे शिकारियों ने पकड़ लिया था उसके बाद उस बालक में देखा गया कि कि अब उस बालक की आकृति पशुओं सी थी उनके सामान हाथ -पैर दोनों का साथ प्रयोग करके चलता था, कच्चा मांस भी खाता था पशुओं के समान आवाजें भी निकालता था।

उसमें मनुष्य सामान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी।

✍️मनुष्य के रूप में परिवर्तित करने के भरपूर प्रयास किए गए किंतु सभी प्रयास असफल रहे।

✍️वातावरण के संचई प्रभाव का उल्लेख करते हुए स्टीफन्स ने लिखा है कि एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस पर्यावरण की तरफ प्रवृत्त होता है यदि अगर बच्चा चतुर मां-बाप के साथ  अधिक समय तक तो वह उतना ही चतुर हो जाता है; 

और यदि हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर उतना ही गिरते चला जाता है।

✍️पहले  इसमें पर्यावरण के प्रभाव में निसंदेह प्राप्त होते हैं, लेकिन हमें यह स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता लंबाई, में यह शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी। अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

⛲⛲Written by $hikhar pandey⛲⛲

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🔆 बालक पर वातावरण का प्रभाव ➖

 शिक्षाविदों ने अनेक अध्ययन और परीक्षण से यह सिद्ध किया कि बालक के  व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण का व्यापक प्रभाव पड़ता है |

1) शारीरिक अंतर का प्रभाव

2) मानसिक विकास पर प्रभाव

3) बुद्धि पर प्रभाव 

4) व्यक्तित्व का प्रभाव 

5) प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव

6) अनाथ बच्चों पर प्रभाव

7) जुड़वा बच्चों पर प्रभाव

8) बालक पर बहुमुखी प्रभाव

🎯  प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव➖

” क्लार्क ” का मत है कि

 “कुछ प्रजातियों की श्रेष्ठता का कारण  वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है |”

 उन्होंने अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर यह सिद्ध किया कि निग्रो प्रजाति की बुद्धि का स्तर इसलिए कम है क्योंकि उन्हें श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक ,सांस्कृतिक और सामाजिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है |

🎯 अनाथ बच्चों पर प्रभाव➖

 समाज कल्याण केंद्र में अनाथ बच्चे साधारणतया निम्न परिवार के होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छी तरह से पालन पोषण किया जाता है उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है इस प्रकार के वातावरण में पढ़ने वाले बच्चे बच्चे के संबंध में 

वुडवर्थ ने कहा है कि वे

” समग्र रूप से अपने माता पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं |”

🎯 जुड़वा बच्चों पर प्रभाव ➖

जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है |

 लेकिन न्यूमैन, फ्रीमैन, और होलजिंगर  ने 20 जुड़वा बच्चों  बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा |

 उनमें से जोड़े के एक बच्चे को गांव में तथा दूसरे को शहर में रखा उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त व्यापक अंतर था |

 गांव का बच्चा अशिष्ट, चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान  जबकि शहर का बच्चा चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था |

 इसी संबंध में  ” स्टीफैन्स ” कहा कहा है कि

 इस प्रकार के अध्ययन से यह निर्णय नहीं कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है |

🎯 बालक पर बहुमुखी प्रभाव➖

वातावरण का प्रभाव ,शारीरिक,,मानसिक सामाजिक संवेगात्मक, आदि कई रूप से पड़ता है |

इसकी  पुष्टि ऐवरान  के  जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है |

 जिसको जन्म  के बाद भेड़िया उठा ले गया उसका पालन पोषण भी जंगली जानवरों या पशुओं के बीच हुआ|

कुछ समय बाद उसे शिकारियों ने पकड़ लिया जब वह करीब 11- 12 वर्ष का था तब बालक की आकृति पशु जैसी थी जानवरों के सामान हाथ पैर से चलता था |

 कच्चा माल खाता था उसमें  मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी |

 वातावरण के संचयी प्रभाव  का उल्लेख करते हुए ” स्टीफैन्स” ने

 लिखा है कि

”  एक बच्चा जितना अधिक  समय  उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस पर्यावरण की तरह प्रवृत होता है |

 अगर बच्चा  चतुर मां-बाप के साथ रहता है तो अधिक समय तक वो भी उतना ही चतुर हो जाता है |

 इसी प्रकार के अगर बच्चा चतुर मां-बाप के साथ नहीं रहता है |

 इसी प्रकार यदि वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर उतना ही गिर जाता है |

 पहली दृष्टि में उसमें पर्यावरण के प्रभाव निसंदेह प्राप्त होते लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ जो बच्चे की समानता है वह लंबाई में या  शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंशकालिक अनुवांशिकता के कारण होता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🍀🌸🌻🌼🌺🌸🌻🌼🌺🌸🌻🌼🌺🌸🌼🌺🌺

🎄 बालक पर वातावरण का प्रभाव 🎄

🔺 प्रजाति की श्रेष्टता पर प्रभाव :-

 🔹क्लार्क र्क के अनुसार ➖

 कुछ प्रजाति की श्रेष्टता का कारण वंशनुकर्म ना होकर वातावरण है, अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षण लेकर सिद्ध किया।

             नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें स्वयं प्रजाति के समान शैक्षिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

👭 अनाथ बच्चों पर प्रभाव:-

🔹 समाज कल्याण केंद्रों में, अनाथ बच्चे साधारण तौर निम्न परिवार के होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है।

            इस प्रकार के वातावरण में पढ़ने वाले बच्चों के संबंध में “वुडवर्ड”  ने कहा ➖

 वह समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे सिद्ध होते  हैं।

👩‍❤️‍👩 जुड़वा बच्चों पर प्रभाव :-

🔹 जुड़वा बच्चों के शारीरिक लक्षण मानसिक,शक्ति और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है।

                न्यूमैन फ्रीमैन और हॉल जींगर ने 20 जुड़वा बच्चे, को अलग-अलग वातावरण में रखा। उनमें से जोड़े के एक बच्चे को गांव में और दूसरे को शहर में रखा।

            उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है। गांव का बच्चा  अशिष्ट,  चिंतन ग्रस्त और कम बुद्धिमान था नगर का बच्चा शिष्ट, चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

🔹 स्टीफेंस ने कहा ➖

 इस प्रकार के अध्ययन से,हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है।

🤴🏻 बालक पर  बहुमुखी प्रभाव:-

➖ बालक पर वातावरण का शारीरिक,मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक प्रभाव पड़ता है। इसकी पुष्टि, एवरेन के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है :-

▪️ जिसको जन्म के बाद भेड़िया उठाकर ले गया और उसका लालन पोषण जंगली जानवरों के बीच हुआ। 11 -12 बस की आयु में उसे शिकारियों ने पकड़ा तो पाया कि उसकी आकृति  पशु जैसी थी…. सोचने समझने की क्षमता भी पशु के समान थी..

 उसे मनुष्य के सामान बनाने के लिए बहुत सारे प्रयास किए गए, लेकिन सारे प्रयास विफल रहे हैं।

          अंततः,वातावरण के संचयी प्रभाव की उल्लेख करते हुए स्टीफन्स ने कहा ➖

 एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस वातावरण  की तरफ प्रवृत होता है। अगर बच्चा चतुर मां-बाप के साथ रहता है अधिक समय तक वह भी उतना ही चतुर हो जाता है। अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है उसका स्तर उतना ही गिरते चला जाता है।

          पहली दृष्टि में, इसमें पर्यावरण का प्रभाव निसंदेह प्राप्त होता है, लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता, लंबाई में या शरीर से अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी।यानी,उक्त समानता की बुद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।।।

📝नोट्स BY “AkAnKsHA”📝

🤴🏻👻👩‍❤️‍👨🎄💖🤓🙏🏻👏🏻

बालक पर वातावरण का प्रभाव

💥💥💥💥💥💥💥💥

19  march  2021

1. शारीरिक अंतर का प्रभाव

2. मानसिक विकास पर प्रभाव

3. बुद्धि पर प्रभाव

4. व्यक्तित्व का प्रभाव

5. 🌺 प्रजाति की श्रेष्ठता पर वातावरण का प्रभाव  :-

👉 क्लार्क  के अनुसार  :-

कुछ प्रजातियों की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है।

         उन्होंने अमेरिका के गोरे और निग्रो प्रजाति के लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर यह सिद्ध किया है कि  –

निग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनको श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक , सामाजिक या सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

अतः हम जानते हैं मनुष्य पर अनुवांशिकता के साथ –  साथ , वातावरण  का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता और विशेषकर उस वातावरण में उन्हें किस प्रकार का माहौल, संगति मिली है इसका भी व्यापक प्रभाव पड़ता है।

6.  🌺 अनाथ बच्चों पर वातावरण का प्रभाव  :-

समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारणतः निम्न परिवार के होते हैं लेकिन , समाज कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है , उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है ।

        अतः इस प्रकार के वातावरण में पलने वाले बच्चों के संबंध में –

👉 वुडवर्थ  ने कहा है कि  :-

 ऐसे बच्चे समग्र रूप से अपने माता-पिता से अच्छे / बेहतर सिद्ध होते हैं।

अर्थात्  हम जानते कि अनाथ बच्चों में अनुवांशिक गुण भले ही अपने निम्न स्तर के माता – पिता के होते हैं परंतु यदि समाज कल्याण केंद्र जैसे अनेक विशेष संस्थाओं में ऐसे बच्चे रहते हैं तो उनको एक सुशिक्षित, सभ्य, सकारात्मकता पूर्ण वातावरण उपलब्ध होता है तो अनाथ बच्चे भी अपने निम्न स्तर के माता पिता से पैदा होने के बावजूद भी उच्च बौद्धिकता से परिपूर्ण होते हैं।

 7.  🌺 जुड़वा बच्चों पर वातावरण का  प्रभाव  :-

जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण , मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में लगभग समानता होती है।

👉  शिक्षाविद  न्यूमैन  ,  फ्रीमैन , और  होलजिंगर

ने  20 जोड़े  जुड़वा बच्चों को अलग-अलग वतावरण में रखा 

उनमें से जोड़े के 1  बच्चे को गांव के वातावरण में तथा 

दूसरे बच्चे को शहर के वातावरण में रखा ।

तब उन्होंने पाया कि बड़े होने पर दोनों बच्चों में पर्याप्त अंतर है।

            अतः वह बच्चा जो गांव के वातावरण में रहा वह अशिष्ट , चिंताग्रस्त और कम बुद्धिमान था।  तथा

वही बच्चा जो शहर के वातावरण में रहा वह स्वस्थ ,  चिंतामुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

👉 स्टीफेंस  ने कहा है कि  :-

इस प्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक,  विशेष प्रभाव पड़ता है।

8.  🌺बालक पर वातावरण का बहुमुखी प्रभाव  :-

वातावरण का बालक पर बहुमुखी रूप से प्रभाव पड़ता है जैसे कि  – 

शारीरिक 

मानसिक 

सामाजिक 

संवेगात्मक 

आर्थिक        आदि।

👉 इसकी पुष्टि   ‘ एवेरॉन ‘  के  ‘ जंगली बालक ‘  के उदाहरण से की जा सकती है कि :-

इस बालक को जन्म के बाद ही भेड़िया उठा कर ले गया , जिससे उसका पालन – पोषण जंगली पशुओं के बीच हुआ।

बाद में जब वह बालक 11 वर्ष के करीब हुआ तो उसे शिकारियों ने पकड़ लिया।

उस बालक की शारीरिक आकृति तो मनुष्य जाति की ही थी परंतु जंगली पशुओं के साथ रहने से उसके लक्षण पशुओं की भांति होने हो गए थे ।

वह पशुओं के समान हाथ और पैर दोनों से चलता था ,  कच्चा मांस खाता था , पशु के समान आवाजें भी निकालता था।

अंततः उस बालक में मनुष्यों की भांति बोलने और विचार आदि करने की शक्ति नहीं थी।

 👉👉  अतः ये सभी वातावरण का ही प्रभाव है।

🌻🌻   वातावरण के संचयी प्रभाव का उल्लेख करते हुए 

स्टीफेंस ने लिखा है कि  :-

 एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना अधिक ही इस वातावरण की तरफ प्रवृत्त होता है।

यदि कोई बच्चा अधिक समय तक चतुर / बुद्धिमान माता – पिता के साथ रहता है तो वह भी उतना ही चतुर / बुद्धिमान हो जाता है। 

और यदि वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो बच्चे का स्तर उतना ही गिरते चला जाता है।

पहली दृष्टि में इसमें वातावरण के प्रभाव निसंदेह  प्राप्त होते हैं , लेकिन  –

हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता , लंबाई में या शरीर के अलग-अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी।

                अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

अंततः उपर्युक्त सभी तथ्यों के आधार पर हम समझ सकते हैं कि बच्चों के विकास में यदि वातावरण का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है तो अनुवांशिकता का भी अपना एक विशेष प्रभाव पड़ता है।

✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️

बालक पर वातावरण का प्रभाव

🌙🌎🪐🌦️☁️🌟💫🌔💥

5. प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव 🤟

 क्लार्क के अनुसार , कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण होता है। उन्होंने अमेरिका के गोरे और नीग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया।

            नीग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें श्वेत प्रजाति के समान शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

6. अनाथ बच्चों पर प्रभाव 🚶‍♀️🧍

समाज कल्याण केंद्रों में अनाथ बच्चे साधारणत: निम्न परिवार के होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पालन पोषण किया जाता है। उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार के वातावरण में पर ले के संबंध में

 वूडवर्थ ने कहा, कि वे समग्र रूप से अपने माता पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं।

7. जुड़वा बच्चों पर प्रभाव 🧑‍🤝‍🧑🧑‍🤝‍🧑👯👫🧑‍🤝‍🧑

जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण, मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता इत्यादि में समानता होती है।

न्यूमैन, फ्रीमैन एवम् होलजिंगर के मतानुसार, जुड़वा जोड़े बच्चों पर प्रयोग किया। इन्होंने इन जुड़वा जोड़े बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा।

 उन्होंने  एक जोड़े के एक बच्चे को गांव में व दूसरे बच्चे को नगर में रखा उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर है।

 गांव का बच्चा अशिष्ट, चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान था जबकि नगर का बच्चा शिष्ट, चिंता मुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

स्टीफेंस ने कहा कि किस प्रकार के अध्ययन से यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है।

8. बालक पर बहुमुखी प्रभाव 🧘🏃🧗🤼🏇🤺⛷️🏄🪂🔥

वातावरण में बालक पर बहुमुखी प्रभाव पड़ता है जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक इत्यादि।

 इसकी पुष्टि एवेरान के जंगल के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है। 

 बालक के जन्म के बाद उसको भेड़िया उठाकर जंगल में ले गया और उस बच्चे का पालन पोषण जंगली जानवरों के बीच हुआ था। जब वह बच्चा 11 से 12 वर्ष के बीच था तब उसे शिकारियों ने पकड़ लिया था उसके बाद उस बालक में देखा गया कि अब उस बालक की आकृति पशुओं के समान थी उनके सामान हाथ पैर दोनों का साथ प्रयोग करके चलना, कच्चा मांस खाना, पशु के समान आवाज निकालना इत्यादि। अब उस बच्चे में मनुष्य के बच्चे के सामान सोचने समझने और विचार विमर्श करने की क्षमता नहीं थी।

उस बच्चे को मनुष्य के रूप में परिवर्तित करने के भरपूर प्रयास किए गए किंतु सभी प्रयास असफल रहे हैं।

वातावरण के संचई प्रभाव का उल्लेख करते हुए स्टीफैंस ने लिखा कि एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक प्रदत्त होता है अगर बच्चा माता पिता के साथ अधिक रहता है तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका स्तर भी उतना ही निम्न स्तर का हो जाता है।

पहलेे इस में पर्यावरण के प्रभाव नि: संदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ बच्चे की समानता लंबाई में या शरीर की अलग संरचनाओं में आयु के साथ बढ़ेगी अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

Notes by Shreya Rai✍🏻🙏

⚡☀️👥  बालक पर वातावरण का प्रभाव 👥☀️⚡

🏵️ 5  प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव 

क्लार्क  -*-

कुछ प्रजाति की श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है।

 अमेरिका के कुछ गोरे और निग्रो लोगों की बुद्धि परीक्षा लेकर सिद्ध किया।

 कुछ लोगों ने उनका साथ दिया ।

निग्रो प्रजाति की बुद्धि स्तर इसलिए कम है क्योंकि उनमें जो श्वेत प्रजाति है उसके समान शैक्षिक और सामाजिक या सांस्कृतिक वातावरण उपलब्ध नहीं हो पाता।

🎡 6 अनाथ बच्चों पर प्रभाव

 समाज कल्याण केंद्र में अनाथ बच्चे साधारणत: निम्न परिवार के होते हैं लेकिन कल्याण केंद्र पर उनका अच्छे से पोषण किया जाता है ।

उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है ।

इस प्रकार के वातावरण में पलने वाले बच्चे के संबंध में वुडवर्थ ने कहा  –

वे समग्र रूप से अपने माता पिता से अच्छे सिद्ध होते हैं।

☘️ 7 जुड़वा बच्चों पर प्रभाव

 जुड़वा बच्चे के शारीरिक लक्षण , मानसिक शक्ति और शैक्षिक योग्यता में समानता होती है ।

न्यूमैन , फ्रीमैन और होलजिंगर ने 20 जोड़े जुड़वा बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखा।

 उनमें से जोड़े के एक बच्चे को गांव में रखा और दूसरे को शहर में रखा ।

उन्होंने देखा कि बड़े होने पर दोनों में पर्याप्त अंतर था।

 गांव का बच्चा अशिष्ट चिंता ग्रस्त और कम बुद्धिमान था ।

नगर का बच्चा श्रेष्ठ चिंतामुक्त और अधिक बुद्धिमान था।

–*  स्टिफेंस ने कहा कि

 इस प्रकार के अध्ययन से हम यह निर्णय कर सकते हैं कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव पड़ता है और उपलब्धि पर अधिक विशेष प्रभाव पड़ता है।

💦 8 बालक पर बहुमुखी प्रभाव

 बाहरी वातावरण का शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , संवेगात्मक इत्यादि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है ।

इसकी पुष्टि एवेरॉन के जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है ।

इस बालक को जन्म के बाद भेड़िया उठा ले गया था।

 उसका पालन पोषण पशुओं के बीच हुआ ।

बाद में जब वह 11 से 12 वर्ष के करीब हुआ तो उसे शिकारियों ने  पकड़ लिया।

 बालक की तब आकृति पशुओं जैसी थी , पशुओं जैसे हाथ पैर से चलता था , कच्चा मांस खाता था।

 उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी।

वातावरण के संचयी प्रभाव का  उल्लेख करते हुए स्टीफेंस ने लिखा —

एक बच्चा जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक पर्यावरण की तरफ प्रवृत्त होता है ।

अगर बच्चा चतुर मां-बाप के साथ अधिक समय तक रहता है तो वह भी उतना ही चतुर हो जाता है ।

इसी प्रकार अगर वह हानिकारक वातावरण में रहता है तो उसका भी स्तर गिर जाता है ।

पहली दृष्टि में इसमें पर्यावरण के प्रभाव निस्संदेह प्राप्त होते हैं लेकिन हमें यह भी स्मरण होना चाहिए कि पिता के साथ जो बच्चे के समानता है लंबाई में या शरीर के अलग संरचना में आयु के साथ बढ़ेगी ।

अर्थात उक्त समानता की वृद्धि का कुछ अंश अनुवांशिकता की परिपक्वता के कारण होता है।

🌸 धन्यवाद

      द्वारा

      वंदना शुक्ला