राष्ट्रीय (नई) शिक्षा नीति-2020 के प्रमुख बिंदु [NEP-2020] और संबंधित प्रश्न

यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है। इससे पहले 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति थी, जिसे 1992 मे संशोधित किया गया था।

नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Enprolment Ratio–GER) को शत प्रतिशत (100%) लाने का और केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।

इस नई शिक्षा नीति, 2020 के घोषणा के साथ ही मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय (Human Resource Management Department-HRMD) का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय (Education Department-ED) कर दिया गया है।

राष्ट्रीय ( नई ) शिक्षा नीति-2020 के प्रमुख बिंदु ( स्कूली शिक्षा के संदर्भ में )


• स्कूली शिक्षा के लिए शैक्षणिक ढांचे और पाठ्यक्रम रूपरेखा एक 5+3+3+4 डिज़ाइन से होगी। जिसके तहत क्रमशः

फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) : आंगनवाड़ी/प्री-स्कूल के 3 साल + प्राथमिक के 2 साल (कक्षा 1-2) 3 से 8 वर्ष के बच्चों सहित।
प्रीपरेटरी स्टेज (preparatory stage) : 3 साल (कक्षा 3-5) 8 से 11 वर्ष के बच्चों सहित।
मिडिल स्कूल स्टेज (middle school stage) : 3 साल (कक्षा 6-8) 11 से 14 वर्ष के बच्चों सहित।
सेकेंड्री स्टेज (secondary stage) : 4 साल (कक्षा 9-12) 14 से 18 वर्ष के बच्चों सहित ( 2 फेज में, यानी पहले फेज मे कक्षा 9 और 10 और दूसरे फेज में 11 और 12)।
• द डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा) पर बुनियादी साक्षरता और संख्या-ज्ञान पर उच्चतर-गुणवत्ता वाले संसाधनों का एक राष्ट्रीय भंडार उपलब्ध कराया जाएगा।

• पाठयक्रम के विषय-वस्तु को प्रत्येक विषय में कम करके इसे बेहद बुनियादी चीज़ों पर केन्द्रित किया जाएगा।

• विद्यार्थियों को विशेष रूप से माध्यमिक विद्यालय मे अध्ययन करने के लिए अधिक लचीलापन और विषयों के चुनाव के विकल्प दिए जाएंगे इनमें शारीरिक शिक्षा, कला और शिल्प तथा व्यावसायिक विषय भी शामिल होंगे।

• नई शिक्षा नीति 2020 में त्रि-भाषा फ़ॉर्मूले को लागू किया जाएगा। 3 भाषाओं के विकल्प राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से छात्रों के स्वयं के होंगे, जिनमें से कम से कम 3 मे 2 भारतीय भाषाएं हो।

• विद्यार्थियों को कम उम्र में ‘सही को करने’ के महत्व को सिखाया जाएगा और नैतिक निर्णय लेने के लिए एक तार्किक ढाँचा दिया जाएगा।

• स्कूल शिक्षा के लिए एक नया और व्यापक राष्ट्रीय पठचर्या रूपरेखा एनसीएफएसई ( National Curriculum Framework For School Education-NCFSE) 2020-21 तैयार किया जाएगा और इसे सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा।

• प्रस्तावित राष्ट्रीय आकलन केंद्र, एनसीईआरटी (National Council Of Educational Research and Training) और एससीईआरटी ( State Council Of Educational Research and Training-SCERT) के मार्गदर्शन में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सभी विद्यार्थियों के स्कूल आधारित आकलन के आधार पर तैयार होने वाले और अभिभावक को दिए जाने वाले प्रगति कार्ड को पुरी तरह से नया स्वरूप दिया जायेगा।

• यह प्रगति कार्ड एक समग्र, 360-डिग्री, बहु-आयामी कार्ड होगा जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी के संज्ञानात्मक, भावात्मक, साइकोमोटर डोमेन में विकास का बारीकी से किये गए विश्लेषण का विस्तृत विवरण, विद्यार्थियों की विशिष्टताओं समेत दिया जाएगा। इसमें स्व-मूल्यांकन, सहपाठी मूल्यांकन, प्रोजेक्ट कार्य और खोज-आधारित अध्ययन में प्रदर्शन, क्विज, रोल प्ले, समूह कार्य, पोर्टफोलियो आदि शिक्षक मूल्यांकन सहित शामिल होगा।

• एमएचआरडी ( Ministry Of Human Resource Department-MHRD) के तहत एक मानक-निर्धारक निकाय के रूप में एक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र (National Assessment Centre-NAS) परख (Performance Assessment, Review, and Analysis of Knowledge for Holistic Development-PARAKH) स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है जो भारत के सभी मान्यता प्राप्त स्कूल बोर्डों के लिए विद्यार्थी आकलन एवं मूल्यांकन के लिए मानदंड, मानक और दिशनिर्देश बनाने जैसे मूल उद्देश्यों को पूरा करेगा।

• शिक्षकों को ऐसी शिक्षण विधि जो विद्यार्थियों के लिए अधिक प्रभावी हो को अपनाने के लिए सम्मानित किया जाएगा।

• वर्ष 2021 तक एनसीटीई (National Council For Teacher Education-NCTE) द्वारा एनसीईआरटी के परामर्श से नई शिक्षा नीति 2020 के सिद्धांतों के आधार पर एक नवीन और व्यापक अध्यापक शिक्षा हेतु, राष्ट्रीय पाठचर्या रूपरेखा, एनसीएफटीई ( National Curriculum Framework For Teacher Education-NCFTE ) 2021 तैयार की जाएगी और सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएगी।

• नई शिक्षा नीति, 2020 विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों (Children With Special Needs-CWSN) या दिव्यांग बच्चों को किसी भी अन्य बच्चों के समान अवसर प्रदान करने के लिए सक्षम तंत्र बनाने के महत्त्व को भी पहचानती है।

• भारत सरकार सभी लड़कियों और साथ ही ट्रांसजेंडर छात्रों को गुणवत्तपूर्ण और न्यायसंगत शिक्षा प्रदान करने की दिशा में देश की क्षमता का विकास करने हेतु एक ‘ जेंडर-समावेशी निधि’ का गठन करेगी।

• एसईडीजी ( Socio Economically Disadvantaged Group-SEDG) के अंतर्गत अनुसूचित जाति और जनजातियों के शैक्षणिक विकास में असमानताओं को दूर करने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

• हर राज्य/जिले को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वह ‘बाल भवन’ स्थापित करे जहां हर उम्र के बच्चे सप्ताह में एक या अधिक बार जा सकें और कला, खेल और करियर संबंधी गतिविधियों में भागीदारी कर सकें।

• संपूर्ण राज्य के सार्वजनिक विद्यालयी प्रणाली के सेवा प्रावधान और शैक्षिक संचालन की ज़िम्मेदारी स्कूल शिक्षा निदेशालय की होगी जिसमें डिईओ ( District Education Officer-DEO), बीईओ ( Block Education Officer-BEO) आदि भी शामिल हैं।

• राज्य में अकादमिक मानकों और पाठ्यक्रम सहित शैक्षणिक मामले एससीईआरटी ( State Council Of Educational Research and Training-SCERT) के नेतृत्व में होंगे, जो कि एक संस्थान के रूप में सदृढ़ किया जाएगा।

राष्ट्रीय ( नई ) शिक्षा नीति-2020 के प्रमुख बिंदु ( उच्चतर शिक्षा के संदर्भ में )


• समग्र और बहु-विषयक शिक्षा के लिए आई.आई.टी., आई.आई.एम. आदि के तर्ज पर, मेरू (Multidisciplinary Education and Research Universities-MERU) नामक मॉडल सार्वजनिक विश्वविद्यालयो की स्थापना की जाएगी।

• श्रेणीबद्ध मान्यता की एक पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से, कॉलेजों को ग्रेडेड स्वायत्तता देने के लिए एक चरणबद्ध प्रणाली स्थापित की जाएगी।

• 2030 तक प्रत्येक जिले मे या उसके नज़दीक कम से कम एक बड़ा बहु-विषयक उच्चतर शिक्षा संस्थान (Higher Education Institute-HEI) होगा।

• संस्थानों को अपने कार्यक्रमों की सीटें, पहुंच और सकल नामांकन अनुपात बढ़ाने के एवं जीवनपर्यंत सीखने के अवसरों को मुहैया कराने हेतु मुक्त दूरस्थ शिक्षा और ऑनलाइन कोर्स को संचालित करने का अवसर होगा, बशर्ते उन्हें ऐसा करने के लिए मान्यता प्राप्त हो।

• नई शिक्षा नीति, 2020 में स्नातक उपाधि 3 या 4 वर्ष की अवधि की होगी, जिसमें उपयुक्त प्रमाण पत्र के साथ निकास के कई विकल्प होंगे। उदाहरण के तौर पर, व्यावसायिक तथा पेशेवर क्षेत्र सहित किसी भी विषय अथवा क्षेत्र में 1 साल पुरा करने पर सर्टिफ़िकेट या 2 साल पुरा करने पर डिप्लोमा या 3 साल के कार्यक्रम के बाद स्नातक की डिग्री।

• भारत को वहनीय लागत पर उच्चतर शिक्षा प्रदान करने वाले वैश्विक अध्ययन के गंतव्य के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा।

• छात्रों को विभिन्न उपायों के माध्यम से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अन्य छात्रों की योग्यता को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाएगा।

• वर्ष 2025 तक, स्कूल और उच्चतर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा का अनुभव प्रदान किया जाएगा।

• नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत एक आईआईटीआई (Indian Institute of Translation and Interpretation-IITI) की स्थापना की जायेगी।

• शास्त्रीय, आदिवासी और लुप्तप्राय भाषाओं सहित सभी भारतीय भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास नए जोश के साथ किये जाएंगे।

• शिक्षा के विभिन्न आयामों को बेहतर बनाने के लिए प्रोद्योगिकी के सभी प्रकार के प्रयोग व एकीकरण को समर्थन दिया जाएगा एवं अंगीकृत किया जाएगा, बशर्ते कि वृहद स्तर पर लागू करने से पहले इनका प्रासंगिक संदर्भों में ठोस एवं पारदर्शी ढंग से आंकलन किया गया हो।

• स्कूल और उच्चतर शिक्षा दोनों की ई-शिक्षा आश्यकताओं पर ध्यान देने के लिए मंत्रालय में डिजिटल बुनियादी ढांचे डिजिटल सामग्री और क्षमता निर्माण की व्यवस्था करने के उद्देश्य के लिए एक समर्पित इकाई की स्थापना की जाएगी।

संबंधित प्रश्न

1. भारत में पहली राष्ट्रीयशिक्षा नीति की घोषणा किस वर्ष की गई थी?

 उत्तर-  1968 

2. भारत देश में सबसे  सन 1968 में पहली शिक्षा नीति किसके द्वारा शुरू की गई थी?

 उत्तर-  इंदिरा गांधी

3. भारत में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा किस वर्ष की गई थी?

 उत्तर-  1986

4.  भारत में नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा कितने वर्षों के बाद  की गई?

 उत्तर-  34 वर्ष

5. नई शिक्षा नीति 2020 को कब तक लागू  हो जाएगी?

उत्तर- 2021-2022 

6. नई शिक्षा नीति 2020 के मसौदा समिति(Drafting Committee) के अध्यक्ष कौन हैं?

 उत्तर- डॉ कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन 

7. नई शिक्षा नीति 2020 को किस दिल के अंतर्गत जारी किया गया?

 उत्तर- NHEB

8. भारत में नई शिक्षा नीति 2020 को कैबिनेट की मंजूरी कब मिली?

उत्तर-  29 जुलाई 2000

9. नई शिक्षा नीति 2020 को किस शिक्षा नीति की जगह पर लागू किया गया है?

 उत्तर-  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

10.  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंदर कितनी आयु वर्ग तक के बच्चों को शिक्षा के अधिकार कानून 2009 के अंदर रखा गया है?

 उत्तर- 03-18 साल की आयु वर्ग को

11. नई शिक्षा नीति 2020 में कौन सी भाषा को कक्षा 5 तक खत्म कर दिया गया है?

 उत्तर-  अंग्रेजी 

12. नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार पांचवी कक्षा तक की शिक्षा किस भाषा में होगी?

 उत्तर-  मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा

13.  नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार कौन सी कक्षा तक की शिक्षा को, मातृभाषा,  स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा में कराया जाएगा?

 उत्तर-  कक्षा 5

14. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य किस वर्ष तक3-18  आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चों को गुणवत्तापूर्ण व समावेशी शिक्षा प्रदान करना है?

 उत्तर-  वर्ष 2030 तक

15.  किस वर्ष तक स्कूली शिक्षा में 100% GER (Gross Enrolment Ratio) के साथ माध्यमिक स्तर तक ’Education For All’ का लक्ष्य रखा गया है?

उत्तर-  वर्ष 2030 तक

16. भारत के शिक्षा मंत्रालय के पहले शिक्षा मंत्री कौन होंगे?

 उत्तर-  रमेश पोखरियाल निशंक

17. नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, शिक्षा पर, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का कितने प्रतिशत खर्च किया जाएगा?

 उत्तर-  6%

18. मेडिकल और लो एजुकेशन को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एकल निकाय के रूप में, किस आयोग का गठन किया जाएगा?

 उत्तर- HECI

19.  स्कूल पाठ्यक्रम के 10+2  पैटर्न के स्थान पर अब कौन सा पैटर्न होगा?

 उत्तर-  5+3+3+4 पैटर्न

20. नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार वोकेशनल कोर्स किस कक्षा से शुरू किए जाएंगे?

 उत्तर-  कक्षा 6 से

21.  देश में शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए किस संगठन की स्थापना की जाएगी?

 उत्तर-  नेशनल रिसर्च फाउंडेशन

22. नई शिक्षा नीति के अनुसार इतना तक कितने वर्ष  का कर दिया गया है?

 उत्तर- 3-4  वर्ष

23. किसे बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF)  बनाया जा रहा है, जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रही है?

 उत्तर-  ई पाठ्यक्रम

24.  नई शिक्षा नीति 2020 में, किस वर्ष तक नेशनल मिशन के माध्यम से फाउंडेशन लर्निंग एंड न्यूमैरिक्स स्किल्स को बनाए रखने का लक्ष्य रखा गया है?

 उत्तर- वर्ष 2025

25. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की शुरुआत किस वर्ष की गई थी?

 उत्तर- 1988

26. ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’ नामक कार्यक्रम किस वर्ष लागू किया गया था?

 उत्तर-   वर्ष 1987-88  में

27. राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (NCTE) की स्थापना कब हुई?

 उत्तर- 1995 

28. Indira Gandhi National open University (IGNOU) की स्थापना कब हुई?

 उत्तर- 1985

29. नई शिक्षा नीति 2020 को लागू करने वाला भारत का पहला राज्य है?

 उत्तर-  कर्नाटक

30.  कर्नाटक राज्य ने नई शिक्षा नीति 2020 को कब तक लागू करने की घोषणा की है?

उत्तर- 20 अगस्त

31. किस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 1992 में संशोधन किया गया था?

 उत्तर-  द्वितीय शिक्षा नीति 

32. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूली शिक्षा को कितने स्तर पर बांटा गया है ?

उत्तर- तीन स्तर

33. नई शिक्षा नीति किसकी अध्यक्षता में तैयार की गई है?

 उत्तर- के. कस्तूरीरंगन

34. नई शिक्षा नीति 2020 के प्रौद्योगिकी के उपयोग पर विचारों के मुक्त आदान-प्रदान को एक मंच प्रदान करके प्रदान करने के लिए किस की स्थापना की जाएगी?

 उत्तर-  National education Technology forum

35. नई शिक्षा नीति किस संस्थान के सशक्तिकरण की अनुशंसा करती है?

 उत्तर- CABE

36. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस कब मनाया जाता है?

 उत्तर- 24 जनवरी 

37. विश्व विद्यार्थी दिवस कब मनाया जाता है?

 उत्तर-  15 अक्टूबर

38. भारत के इतिहास में अब तक कितनी बार शिक्षा नीति आ चुकी है?

 उत्तर-  तीन बार (1968- इंदिरा गांधी के समय, 1986- राजीव गांधी के समय तथा 2020- नरेंद्र मोदी की सरकार के समय)

39. 1986 में जो शिक्षा नीति लागू की गई थी, उसमें बदलाव कब किया गया था?

 उत्तर-  1992 में

40. मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर क्या हो गया है?

 उत्तर-  शिक्षा मंत्रालय

41. मई 2016 में किसकी अध्यक्षता में ‘नई शिक्षा नीति के विकास के लिए समिति’ ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की?

उत्तर- स्वर्गीय श्री टी. एस. आर.सुब्रमण्यम

42. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, शिक्षक ग्रेड तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पाठ पढ़ाने में सक्षम होगा ?

उत्तर- ग्रेड 5

43. किस वर्ष तक, शिक्षण के लिए न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड होने जा रही है?

उत्तर- 2030

44. जून 2017 में नवगठित प्रारूपण NEP 2020 के अध्यक्ष थे?

उत्तर- डॉ. के. कस्तूरीरंगन

45. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात कितना प्रतिशत बढ़ाया जाएगा?

उत्तर- 50%

Cognitive theory of Jean Piaget जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

संज्ञान का अर्थ 

संज्ञान का अर्थ उन सारीमानसिक क्रियाओं से है जिसका सम्बन्ध चिंतन ,समस्या समाधान, भाषा सम्प्रेषण तथा और भी बहुत सारे मानसिक क्रियाओं से है .

निस्सर के अनुसार -“संज्ञान संवेदी सूचनाओं (Sensory Information) को ग्रहण करके उसका रूपांतरण,विस्तारण,संग्रहण,पुनर्लाभ तथा इसके समुचित प्रयोग करने से होता है .”

                                      परिचय 

डॉ. जीन पियाजे (१८९६ -१९८० ) एक मनोवैज्ञानिक थे और मूल रूप से एक प्राणी विज्ञानं के विद्वान् थे .उनके कार्यो ने उन्हें एक मनोवैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्धी दिलवाई थी .जीन पियाजे संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों में सर्वाधिक प्रभावशाली माने जाते है .पियाजे का जन्म 9 अगस्त सन 1896 को स्विट्जरलैंड में हुआ था .उन्होंने जंतु विज्ञान में पीएचडी की उपाधि धारण की .मनोविज्ञान के प्रशिक्षण के दौरान वे अल्फ्रेड बिने के प्रयोगशाला में बुद्धि-परिक्षण पर जब कार्य कर रहे थे .उसी समय उन्होंने विभिन्न आयु के बच्चों के द्वारा चारो ओर के बाह्य जगत के बारे में ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया का अध्ययन करना शुरू कर दिया उनकी 1923 से 1932 के बीच पांच पुस्तके प्रकाशित हुई जिनमे उन्होंने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किया .पियाजे के सिद्धांत की प्रमुख मान्यता यह है कि बालक के ज्ञान के विकास में वह खुद एक सक्रिय साझेदार की भूमिका अदा करता है और वह धीरे-धीरे वास्तविकता के रूप को समझाने लगता है .

      पियाजे ने बुद्धि के विषय में अपना तर्क दिया कि बुद्धि जन्म जात नहीं होती है .उन्होंने इससे पूर्व में प्रचलित कारक का कि बुद्धि जन्मजात होती है का खंडन किया .जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे उसका कार्य क्षेत्र भी बढ़ता है और बुद्धि का विकास भी संभव होता है .प्रारम्भ में बच्चा केवल सरल संप्रत्ययो को ही सीखता है और जैसे-जैसे उसका अनुभव बढ़ता है बुद्धि का विकास होता है,आयु बढ़ती है वैसे-वैसे वह जटिल संप्रत्ययों को भी सीखता है .

      जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत 

संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से सम्बंधित एक विशद सिद्धांत है .पियाजे का मानना था कि व्यक्ति के विकास में उसका बचपन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है .पियाजे का सिद्धांत ‘विकासी अवस्था सिद्धांत कहलाता है .यह सिद्धांत ज्ञान की प्रकृति के बारे में है और बतलाता है कि मानव कैसे ज्ञान क्रमशः इसका अर्जन करता है,कैसे इसे एक-एक कर जोड़ता है और कैसे इसका उपयोग करता है .

      व्यक्ति वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है .अर्थात पहचानता है,प्रतीकों की सहायता से उन्हें समझाने की कोशिश करता है तथा सम्बंधित वास्तु/व्यक्ति के सन्दर्भ में अमूर्त चिंतन करता है .उक्त सभी प्रक्रियाओं से मिलकर उसके भीतर एक ज्ञान भण्डार या संज्ञानात्मक संरचना उसके व्यवहार को निर्देशित करती .इस प्रकार हम कह सकते है कि कोई भी प्रकार के उद्दीपकों से प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता ,पहले वह उन उद्दीपकों को पहचानता है,ग्रहण करता है,उसकी व्याख्या करता है .इस प्रकार हम कह सकते है कि संज्ञानात्मक संरचना वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों और व्यवहार के बीच मध्यस्थता का कार्य करता है .

      जीन पियाजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया. पियाजे के अनुसार बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता है और परिमार्जित होता रहता है .पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत को विकासात्मक सिद्धांत भी कहा जाता है .चूँकि उनके अनुसार ,बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओं से होकर गुजरता है, इसलिए इसे अवस्था सिद्धांत भी कहा जाता है .

       पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के पद 

पियाजे ने अपने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में दो पदों का उपयोग करते है .संगठन और अनुकूलन .हालाँकि एन पदों के अलावा भी पियाजे ने कुछ अन्य पदों का प्रयोग अपने संग्यांत्मक विकास में किया है .

1.संगठन ( Organization) संगठन से तात्पर्य प्रत्याक्षिकृत तथा बौद्धिक सूचनाओं को सही तरीके से बौद्धिक संरचनाओं में व्यवस्थित करने से है जो इसे वाह्य वातावरण के साथ समायोजन करने में उसके कार्यों को संगठित करता है .व्यक्ति मिलने वाली नयी सूचनाओं को पूर्व निर्मित संरचनाओं के साथ संगठित करने की कोशिश करता है,परन्तु कभी-कभी इस कार्य में सफल नहीं हो पाता है,तब वह अनुकूलन करता है .

2.अनुकूलन (Adaptation) पियाजे के अनुसार अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिसमे बालक अपने को बाहरी वातावरण के साथ समायोजन करने की कोशिश करता है .यह एक जन्मजात,प्रवृत्ति है जिसके अंतर्गत दो प्रक्रियाएं सम्मिलित है .

आत्मसातीकरण (Assimilation) मूल रूप से आत्मसातीकरण एक नयी वास्तु अथवा घटना को वर्तमान अनुभवों में सम्मिलित करने की प्रक्रिया है .उदहारण के लिय यदि एक बालक के हाथ में टॉफी रख दिया जाता है तो वह तुरंत मुह में डाल देता है .क्योंकि उसे यह पता है कि टॉफी एक खाद्य वास्तु है .यहाँ बालक ने अनुकूलन के द्वारा खाने की क्रिया को आत्मसात कर रहा है .अर्थात पुरानी बौद्धिक क्रिया को नवीन क्रिया के साथ समायोजित करता है .अनुकूलन की यह प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती रहती है .

      जीन पियाजे के शब्दों में “नए अनुभव का आत्मसात कारण करने के लिए अनुभव के स्वरूप में परिवर्तन लाना पड़ता है .जिसे वह पुराने अनुभव के साथ मिलाजुलाकर संज्ञान के एक नए ढांचे को पैदा करना पड़ता है .इससे बालक के नए अनुभवों में परिवर्तन होते है .

समाविष्टिकरण /समंजन (Accommodation) समाविष्टिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानसिक प्रिक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है .पियाजे कहते है कि बालक आत्मसात्करण और समाविशितिकरण की प्रक्रियाओं के बीच संतुलन कायम करता है .जिससे वह वातावरण के साथ समायोजन कर सके .उदहारण के लिए जब बालक को टॉफी के स्थान पर रसगुल्ला देते है तो बालक यह जानता है,टॉफी मीठी होती है पर वह अपने मानसिक संरचना में परिवर्तन लाता है ,और इसमे नयी बातें जोड़ता है कि टॉफी और रसगुल्ले दोनों अलग-अलग खाद्य पदार्थ है जबकि दोनों का स्वाद मीठा है .

      आत्मसातीकरण तथा समविश्तिकरण तभी संभव है जब वातावरण के उद्दीपक बालक के बौद्धिक स्तर के अनुरूप होते है .

      समविश्तिकरण को आत्मसातीकरण की एक पूरक प्रक्रिया माना जाता है .बालक अपने वातावरण या परिवेश के साथ समायोजित होने के लिए सहारा अवस्यकतानुसार लेते है .

3.स्किमेता (Schemata) पियाजे के अनुसार अनुभव या व्यवहार को संगठित करने की ज्ञानात्मक संरचना को सकीमेटा कहते है .एक नवजात शिशु में सकीमेटा एक सहज प्रक्रिया है,जैसे शिशु की चूसने की प्रक्रिया बच्चा जैसे ही बाहरी दुनिया के साथ अंत-क्रिया करना प्रारम्भ करता है ,इन सकीमेटा में परिवर्तन तेजी से होना शुरू हो जाता है .सकीमेटा के सहारे बच्चा धीरे-धीरे समस्या समाधान के नियम तथा वर्गीकरण करना सीख लेता है .इस तरह सकीमेटा का सम्बन्ध मानसिक संक्रिया से है .

4.संज्ञानात्मक सरंचना (Cognitive Structure) पियाजे ने मानसिक योग्यताओं के सेट को संज्ञानात्मक संरचना की संज्ञा दी है .भिन्न-भिन्न आयु में बालकों की संज्ञानात्मक संरचना भिन्न-भिन्न हुआ करती है .बढ़ती हुई आयु के साथ यह संज्ञानात्मक संरचना सरल से जटिल बनती जाती है .

5.मानसिक संक्रिया /प्रचालन (Mental Operation) मानसिक संक्रिया का अर्थ संज्ञानात्मक सरंचना की सक्रियता से है जब बालक किसी समस्या का समाधान करना शुरू करता है तो मानसिक संरचना सक्रिय बन जाती है .इसे ही मानसिक संक्रिया या मानसिक प्रचालन कहते है .

 6. स्कीम्स (Schemes) पियाजे के सिद्धांत का यह संप्रत्यय वास्तव में मानसिक संक्रिया संप्रत्यय का बाह्य रूप है .जब मानसिक संक्रिया बाह्य रूप अभिव्यक्त होता है तो इसी अभिव्यक्त रूप को स्कीम्स कहते है .

7.स्कीम (Schema) पियाजे के अनुसार स्कीमा का अर्थ ऐसी मानसिक संरचना है,जिसका सामान्यीकरण संभव हो .यह संप्रत्यय वस्तुह संज्ञानात्मक संरचना तथा मानसिक प्रचलन के संप्रत्ययों के गहरे रूप से सम्बद्ध है .

8.विकेंद्रीकरण (Decentring) इस संप्रत्यय का सम्बन्ध यथार्थ चिंतन से है .विकेंद्रण का अर्थ है कि कोई बालक किसी समस्या के समाधान के सम्बन्ध में किस सीमा तक वास्तविक ढंग से सोच विचार करता है .इस संप्रत्यय का विपरीत अत्मकेंद्रण है .शुरू में बालक आत्मकेंद्रित रूप से सोचता है और बाद में उम्र बढ़ने पर विकेन्द्रित ढंग से सोचने लगता है .

9.पारस्परिक क्रिया (Intraction) पियाजे के अनुसार बच्चों में वास्तविकता को समझने तथा उसकी खोज करने की क्षमता न केवल बच्चों की प्रौढ़ता पर बल्कि उनके शिक्षण पर निर्भर करती है .यह दोनों की पारस्परिक क्रिया पर आधारित होती है .

10.संरक्षण ( Conservation) पियाजे के अनुसार संरक्षण का अर्थ वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को समझने और वास्तु के रंगरूप में परिवर्तन में अंतर करने की प्रक्रिया से है .दुसरे शब्दों में संरक्षण वह प्रक्रिया है,जिसके द्वारा बालक में एक ओर वातावरण के परिवर्तन तथा स्थिरता में अंतर करने की क्षमता और दूसरी ओर वास्तु के रंगरूप में परिवर्तन तथा उसके तत्व में परिवर्तन के बीच अंतर करने की क्षमता से है .

संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ -(Stages of Cognitive Development)

पियाजे के अनुसार जैसे-जैसे संज्ञानात्मक विकास बढ़ता है वैसे-वैसे अवस्थाएँ भी परिवर्तित होती रहती है .किसी विशेष अवस्था में बालक के समस्त ज्ञान-विचारो,व्यवहारों के संगठन से एक सेट (set) यानि समुच्चय तैयार होता है , इन स्कीमाओ का विकास बालक के अनुभव व परिपक्वता पर निर्भर करता है .बालक के संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ होती है .

1.संवेदी पेशीय अवस्था (Sensory Motor Stage) जन्म से दो वर्ष तक 

इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदनाओं और शारीरिक क्रियाओं की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है .बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके भीतर सहज क्रियाएँ होती है .और ज्ञानेन्द्रियो की सहायता से बच्चा वस्तुओं ,ध्वनियों,स्पर्श,रसों एवं गन्धो का अनुभव प्राप्त करता है और इन अनुभवों की पुनार्वृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की कुछ विशेषताओं से परिचित होता है .पियाजे के अनुसार इस अवस्था में शिशुओं का बौद्धिक और संज्ञानात्मक विकास निम्नलिखित छ उप अवस्थाओं से होकर गुजरता है-

a)  सहज क्रियाओं कीअवस्था (जन्म से 3)0 दिन तक : 

इसके अंतर्गत बालक छोटी-छोटी या सहज क्रियाएं भी कर पाता है इसमें इसमें चूसने की क्रिया सबसे प्रबल होती हैl

b) प्रमुख वृत्तीय अनुक्रिया की अवस्था (1 माह से 4 माह तक) :

इस अवस्था में शिशुओं की परिवर्तित क्रियाओं में कुछ परिवर्तन होता है l शिशु अपने को नए वातावरण में अभियोजन करने की कोशिश करता है l वह अपने अनुभवों को दोहराता है lतथा उसमें रूपांतरण लाने का प्रयास करता है l इसे प्रमुख इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह परिवर्तित क्रियाएं प्रमुख होती हैं एवं उन्हें वृत्ति इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन क्रियाओं को बार-बार दोहराते हैं l

c) गौंड वृत्तीय अनुक्रिया की अवस्था:

(4 माह से 8 माह तक) इस अवस्था में शिशु ऐसी क्रियाएं करता है जो रुचकर होते हैं तथा अपने आस-पास के वस्तुओं को छूने की कोशिश करता है l जैसे चादर पर पड़ी खिलौना को पाने के लिए चादर को खींच कर अपने तरफ करता है और फिर खिलौना लेता है l 

d) गौंड स्कीमेता की समन्वय की अवस्था:

(8 माह से 12 माह तक) इस अवधि में शिशु अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सहज क्रियाओं को इच्छा अनुसार प्रयोग कर सीख जाता है l वह वयस्कों द्वारा किए गए कार्यों को अनुकरण करने की कोशिश करता है l जैसे यदि हम बच्चों के सामने हाथ हिलाते हैं तो वह उसी तरह हाथ खिलाता है l वह इस अवधि में स्कीमेता का प्रयोग कर एक परिस्थिति से दूसरे परिस्थिति के समस्या का हल करता है l

e) तृतीय तृतीय अनुक्रिया की अवस्था:

( 12 माह से 18 माह तक) इस अवस्था में बालक प्रयास एवं त्रुटि के आधार पर अपनी परिस्थितियों को समझने की कोशिश करने से पहले सोचना प्रारंभ कर देता है l इस अवधि में बच्चे में उत्सुकता उत्पन्न होती है तथा भाषा का भी प्रयोग करना शुरू कर देता है l

f) मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था: (18 माह से 24 माह तक)

इस अवधि में शिशु प्रतिमा का उपयोग करना सीख जाता है l अब वह खुद ही समस्या का हल प्रतीकात्मक चिंतन क्रिया द्वारा ढूंढ लेता है l इस अवस्था में संज्ञानात्मक विकास के साथ बौद्धिक विकास भी बहुत तेजी से होता है l 

2)पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre Operational stage):

संज्ञानात्मक विकास की पूर्व संक्रियात्मक अवस्था लगभग 2 साल से प्रारंभ होकर 7 साल तक होती है l इस अवस्था में संकेतआत्मक कार्यों की उत्पत्ति तथा भाषा का प्रयोग होता है l पियाजे ने इस अवस्था को दो भागों में बांटा है l 

a) पूर्व प्रत्ययआत्मक काल:( 2 साल से 4 साल तक)

यह अवस्था वस्तुतः परिवर्तन की अवस्था है जिसे खोज की अवस्था भी कहा जाता है l इस अवस्था में बच्चे जो संकेत का प्रयोग करते हैं वह थोड़ी सी अव्यवस्थित होती है l इस अवस्था में बच्चे बहुत सारी ऐसी क्रियाएं करते हैं जिसे इससे पहले वह नहीं कर सकते थे l  जैसे संकेत वचन का प्रयोग कब और कहां किया जाता है l वह शब्दों का प्रयोग कर समस्याओं का समाधान करते हैं l बालक विभिन्न घटनाओं या कार्यों के संबंध में क्यों तथा कैसे जैसे प्रश्नों को जानने में रुचि रखते हैं l वह जिस कार्य को दूसरों के द्वारा होते या करते देखते हैं उस कार्य को करने लगते हैं l उनमें बड़ों का अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है l लड़की अपने पिता का अंकुरण कर गाड़ी चलाने या समाचार पत्र पढ़ने तथा लड़कियां अपनी मां की तरह गुड़ियों को खिलाना तैयार करना जैसे काम करते हैं l इस अवस्था में भाषा का विकास सबसे ज्यादा होता है l जिसके लिए समृद्ध भाषाई वातावरण की जरूरत होती है l 

     पियाजे ने पूर्व प्रत्यात्मक काल दो पर सीमाएं बताई है l

जीववाद : इसमें बालक निर्जीव वस्तुओं को भी सजीव समझने लगता है l उनके अनुसार जो भी वस्तुएं घूमती हैं या हिलती हैं वह वस्तुएं सजीव है जैसे सूरज बादल पंखा वह सभी अपना स्थान परिवर्तित करते हैं पंखा घूमता है इसलिए यह सभी सजीव हैं l

आत्मकेंद्रितआ:  इसमें बालक यह सोचता है कि यह दुनिया सिर्फ उसी के लिए बनाई गई है l इस दुनिया की सारी चीजें उसी के इर्द-गिर्द घूमती हैं l वह खुद को सबसे ज्यादा महत्व देता है l पियाजे के अनुसार उसकी बोली का लगभग 38% आत्म केंद्रित होता है l

b) अंत प्रज्ञ कॉल : 4 वर्ष से 7 वर्ष तक

इस अवस्था में बालक संकेत तथा चिन्ह को मस्तिष्क में ग्रहण करता है l  पियाजे के अनुसार अंतः प्रज्ञ चिंतन ऐसा चिंतन है जिसमें बिना किसी तार्किक विचार द्वारा प्रक्रिया के किसी बात को तुरंत स्वीकार कर लेना l अर्थात वह किसी समस्या का हल करता है तो उसके समाधान का कारण वह नहीं बता सकता है l समस्या समाधान में सन्निहित मानसिक प्रक्रिया के पीछे छिपे नियमों के बारे में उसकी जानकारी नहीं होती है lपियाजे ने अंतः प्रज्ञ चिंतन की कुछ पर सीमाएं बताइए हैं l

1 इस उम्र के बालकों के विचार अविलोमीय होते है l अर्थात बालक मानसिक क्रम के प्रारंभिक बिंदु पर पुनः लौट नहीं पाता है l जैसे 4 साल के बच्चे से कहा जाए कि तुम्हारी मम्मी अंकित की मौसी है उसी तरह उसकी मम्मी तुम्हारी मौसी होगी यह बात उसे समझ में नहीं आएगी l 

2 पियाजे के अनुसार उस उम्र के बच्चों में तार्किक चिंतन की कमी रहती है जिसे पियाजे ने संरक्षण का सिद्धांत कहा है l जैसे किसी वस्तु के आकार को बदल दिया जाए तो उसकी मात्रा पर उसका कोई प्रभाव नहीं होगा इस बात की समझ उसमें नहीं होती है l

                                               मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

7 वर्ष से 12 वर्ष तक) इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रारंभ कर लेता है एवं वस्तुओं के बीच समानता भिन्नता समझने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है l इस अवस्था में बच्चे का तार्किक चिंतन संक्रियात्मक विचारों का स्थान ले लेता है l  बच्चे अब जोड़ना घटाना गुणा करना और / कर सकते हैं l इस अवस्था में बालकों में संख्या बोध वर्गीकरण क्रमानुसार व्यवस्था किसी भी वस्तु व्यक्ति के मध्य पारस्परिक संबंध का ज्ञान हो जाता है l वह तर्क कर सकता है l संक्षेप में अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने के लिए अनेक नियम को सीख लेता है l 

                                             औपचारिक संक्रिया अवस्था 

यह संज्ञानात्मक विकास की अंतिम अवस्था है जो लगभग 12 वर्ष से 15 वर्ष तक की आयु की अवस्था है l इस अवस्था के दौरान बालक अमूर्त बातों के संबंध में तार्किक चिंतन करने की क्षमता विकसित कर लेता है l इस अवस्था को किशोरावस्था कहा जाता है l बच्चे अब वर्तमान भूत एवं भविष्य के बीच अंतर समझने लगते हैं l  समस्या का समाधान सुव्यवस्थित ढंग से करने लगते हैं l  इस अवस्था में बालक परिकल्पना ए बनाने के योग्य हो जाता है l उसकी व्यवस्था करता है तथा व्याख्यान के आधार पर निष्कर्ष भी निकलता है l अब बालक बड़ों की उत्तरदायित्व लेने के योग्य हो जाता है l पियाजे के अनुसार इस अवस्था में बालकों में बौद्धिक संगठन अधिक क्रम बंद हो जाता है l बालक एक साथ अधिक से अधिक बातों को समझने तथा उसका विचार करने में समर्थ हो जाता है l

     इस तरह पियाजे द्वारा बनाई गई संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की चार अवस्थाएं इस बात का द्योतक हैं कि किसी भी बालक का संज्ञानात्मक विकास चार विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरती है l जिसमें कुछ बालकों का बौद्धिक विकास तीव्र गति से होता है कुछ का औसत गति से तथा कुछ का धीमी गति से l 

पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की शिक्षा में उपयोगिता

  • पिया जी कहते हैं कि जो बच्चे सीखने में धीमे होते हैं उन्हें दंड नहीं देना चाहिए l
  • पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत बालकों के बौद्धिक विकास की प्रक्रिया को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है l
  •  इस सिद्धांत के द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है l
  •  संज्ञानात्मक विकास अवस्था के आधार पर पाठ्यक्रम के संगठन में यह सिद्धांत कार्य मदद पहुंचाती है l
  • संज्ञानात्मक विकास की समुचित व्यवस्था करने में यह सिद्धांत एक सफल आधार प्रदान करता है l
  • पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत शैक्षिक शोध का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है l
  •  बच्चों को अपने आप करके सीखने का अवसर हमें प्रदान करना चाहिए l
  • बच्चा स्वयं और पर्यावरण से अंतः क्रिया द्वारा सीखता है अतः हमें शिक्षकों माता-पिता बच्चे के लिए प्रेरणादायक माहौल का निर्माण करना चाहिए l
  • इस सिद्धांत के आधार पर शिक्षक एवं अभिभावक बच्चों की तार्किक व चिंतन विचार शक्ति को पहचान सकते हैं l

Theory of Behaviorism- Thorndike, Watson, Pavlov, Skinner

व्यवहारवादी साहचर्य सिद्धान्त / Theory of Behaviorism

विविन्न उद्दीपनों के प्रति सीखने वाले की विशेष अनुक्रियाएँ होती हैं इस उद्दीपनों तथा अनुक्रियाओं के साहचर्य से उसके व्यवहार में जो परिवर्तन आते हैं उनकी व्याख्या करना ही इस सिद्धान्त का उद्देश्य होता है। इस प्रकार के सिद्धान्तों के अन्तर्गत थॉर्नडाइक, वाटसन और पावलॉव तथा स्किनर के अधिगम सिद्धान्त आते हैं। 

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त  Thorndike’s Theory of Trial and Error

  • थॉर्नडाइक के अधिगम के सिद्धान्त को प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त, उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धान्त, संयोजनवाद सिद्धान्त तथा अधिगम का सम्बन्ध सिद्धान्त इत्यादि नामों से जाना जाता है। 
  • थॉर्नडाइक ने अपने अधिगम सिद्धान्त से सम्बन्धित एक प्रयोग एक बिल्ली पर किया। उसके एक भूखी बिल्ली को एक विशेष प्रकार के सन्दूक में बन्द कर दिया। इस सन्दूक का दरवाजा एक खटके अथवा चटकनी के दबने से खुलता था। सन्दूक के बाहर मछली का एक टुकड़ा इस प्रकार रखा कि अन्दर से बिल्ली को वह स्पष्ट दिखाई पड़ता रहे। भूखी बिल्ली के लिए मछली का एक टुकड़ा एक उद्दीपन का कार्य करता था। उस टुकड़े को देखकर सन्दूक में बन्द बिल्ली ने अनुक्रिया प्रारम्भ कर दी। बिल्ली ने बाहर निकलने के कई प्रयत्न किए। काफी देर तक बिल्ली सन्दूक के अन्दर ही उछलती-कूदती रही तथा उसके अनेक अनुक्रियाएँ प्रयत्न तथा भूल के आधार पर की। एक बार संयोगवश उसका पंजा फिर सन्दूक के दरवाजे पर पड़ा और वह खुल गया। बिल्ली ने बाहर रखा हुआ मछली का टुकड़ा खा लिया। 
  • थॉर्नडाइक ने उपरोक्त प्रयोग को दोहराया। उसके उसी बिल्ली को भूखा रखकर उसी सन्दूक में बन्द कर दिया। बिल्ली ने फिर पहले जैसे अनुक्रिया प्रारम्भ की तथा संयोगवश उसका पंजा फिर सन्दूक के दरवाजे पर पड़ा और वह बाहर निकलकर मछली का टुकड़ा पाने में कामयाब हो गई। इसी प्रकार थॉर्नडाइक ने इस प्रयोग को कई बार दोहराया। जैसे-जैसे प्रयोग की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे ही बिल्ली कम प्रयास तथा कम भूल करती हुई बाहर निकलती रहीं एवं बिल्ली की गलत अनुक्रियाओं में कमी होती रही। अन्त में एक समय ऐसा आया कि बिल्ली बिना कोई भूल किए सन्दूक का दरवाजा खोलना सीख गई।
  • उपरोक्त प्रयोगों में आधार पर थॉर्नडाइक ने अधिगम के प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति गलतियाँ कर सकता है, किन्तु बार-बार किए गए प्रयासों के बाद वह सीखने में सफल हो जातपा है। इस प्रक्रिया में उद्दीपक की भी प्रमुख भूमिका होती है, उद्दीपक की भी प्रमुख भूमिका होती है, उद्दीपक व्यक्ति को सीखने के लिए प्रेरित करता है। 

प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्व 

  • शिक्षक इस सिद्धान्तके द्वारा ही समझते हैं कि बालक विभिन्न कौशलों को सीखने की प्रक्रिया में गलतियाँ कर सकते हैं। 
  • इस सिद्धान्त के आधार पर बालकों को सीखने के लिए अभिप्रेरित करने पर जोर दिया जाता है। 
  • इस सिद्धान्त के आधार पर बार-बार के अभ्यास से बालक की आदतों में सुधार किया जा सकता है एवं उसकी गलतियों को कम किया जा सकता है। 
  • यह सिद्धान्त अताता है कि सीखने हेतु कार्य को दोहराना आवश्यक है। 

वाटसन एवं पावलॉव का शास्त्रीय अनुबन्ध का सिद्धान्त Classical Conditioning Theory of Watson and Pavlov

वाटसन का प्रयोग Experiment of Watson

  • वाटसन नामक मनोवैज्ञानिक ने स्वयं अपने 11 माह के पुत्र अलबर्ट के साथ एक प्रयोग किया। उसे खेलने के लिए एक खरगोश दिया। बच्चे को उस खरगोश के नरम-नरम बालों पर हाथ फेरना अच्छा लगता था। वाटसन ने बच्चे को कुछ दिनों तक ऐसा करने दिया। कुछ समय पश्चात् वाटसन ने ऐसा किया कि जब बच्चा खरगोश को छुता था वह (वाटसन) एक तरह की डरावनी आवाज पैदा करने लगता था। ऐसा वाटसन ने कुछ दिनों तक किया। परिणाम यह हुआ कि डरावानी आवाज के न किए जाने पर भी बच्चे को खरगोश को देखने से ही डर लगने लगा।इस तरह भय की अनुक्रिया खरगोश (कृत्रिम उद्दीपन) के साथ अनुबन्धित हो गई और इस अनुबन्धन के फलस्वरूप उसने खरगोश से डरना सीख लिया।
  • प्रयोग को आगे बढ़ाने पर देखा गया कि बच्चा खरगोश से ही नहीं बल्कि ऐसी सभी चीजों से डरने लगा जिसमें खरगोश के बाल जैसी-नरमी और कोमलता हो। 

पावलॉव का प्रयोग /शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत (classical conditioning)/ अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत   (Experiment of Pavlov)

  • पावलॉव ने अपने प्रयोग में एक कुत्ते को भूखा रख कर उसे प्रयोग करने वाली मेज के साथ बाँध दिया। उसने उस कुत्ते की लार ग्रन्थियों का ऑपरेशन कर दिया था, जिससे कि उसकी लार की बूँदों को परखनली में एकत्रित कर लार की मात्रा मापी जा सके। 
  • उसने स्वतः चालित यान्त्रिक उपकरणों की सहायता से कुत्ते को भोजन देते की व्यवस्था की। घण्टी बजने के साथ ही कुत्ते के सामने भोजन प्रस्तुत हो जाता था। भोजन को देखकर कुत्ते के मुँह में लार आना स्वाभाविक था। इस लार को पाइप से जुड़े एक परखनली में एकत्रित कर लिया जाता था। इस प्रयोस को कई बार दोहराया गया और एकत्रित लार की मात्रा का माप लिया जाता रहा। 
  • प्रयोग के आखिरी चरण में भोजन न देकर केवल घण्टी की व्यवस्था में भी कुत्ते के मुँह से लार टपकी जिसकी मात्र का माप किया गया। इस प्रयोग के द्वारा यह देखने को मिला कि भोजन सामग्री जैसे प्राकृतिक उद्दीपन के अभाव में भी घण्टी बजने जैसी कृत्रिम उद्दीपन के प्रभाव से कुत्ते ने लार टपकाने जैसी स्वाभाविक अनुक्रिया व्यक्त की। कुत्ते ने यह सीखा था कि जब घण्टी बजती है तब खाना मिलता है। सीखने के इसी प्रभाव के कारण घण्टी बजने पर उसके मुँह से लार निकलना प्रारम्भ हो जाता था। 
  • उपरोक्त प्रयोगों के आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब किसी क्रिया को बार-बार दोहराया जाता है, तो अस्वाभाविक उद्दीपक भी वही प्रतिक्रिया देने लगता है जो स्वाभाविक उद्दीपक देता है। 

शास्त्रीय अनुबन्ध के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्व 

  1. स्वभाव निर्माण उपरोक्त सिद्धान्त के आधार पर बालक में भय, प्रेम एंव घ्रणा के भाव आसानी से उत्पन्न किए जा सकते हैं। 
  2. अभिवृत्ति का विकास  बालक में विशेश प्रकार की अभिवृत्ति के विकास में उपरोक्त सिद्धान्त शिक्षकों की सहायता करता है। 
  3. मानसिक एवं संवेगात्मक अस्थिरता का उपचार मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर बालकों के उपचार में भी उपरोक्त सिद्धान्त प्रभावकारी साबित होता है। 

स्किनर का सक्रिय अनुबन्ध का सिद्धान्त/ क्रियाप्रसूत अनुकूलन (operant conditioning)  Conditioning Theory of Skinner

  • स्किनर ने अधिगम के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया उसे सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त कहा जाता है। सक्रिय अनुबन्धन से अभिप्राय एक ऐसी अधिगम प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सक्रिय व्यवहार को सुनियोजित पुनर्बलन द्वारा पर्याप्त बल मिल जाने कारण वांछित रूप में जल्दी-जल्दी पुनरावृत्ति होती रहती है। और सीखने वाला अन्त में सिखाने वाले की इच्छा के अनुरूप व्यवहार करने में समर्थ हो जाता है। 
  • स्किनर ने अपने अधिगम के सिद्धान्त के प्रतिपादन  हेतु सन् 1930 में सफेद चूहों पर एक प्रयोग किया। उसने एक विशेष प्रकार का बॉक्स लिखा, जिसे स्किनर बक्सा कहते हैं। इस बक्से में एक छोटा-सा मार्ग था जिसमें एक लीवर लगा हुआ था जिसका सम्बन्ध एक प्याली में खाने का एक टुकड़ा आ जाता था। चूहा जब इस बक्से में उस मार्ग से छोड़ा जाता था, तो लीवर पर उसका पैर पड़ने से खट की आवाज होती थी। तथा वह आवाज को सुनकर उसकी ओर बढ़ता था, जिससे अन्दर रखी प्याली में उसे खाने का टुकड़ा मिल जाता था। वह खाना उस चूहे के लिए पुनर्बलन का कार्य करता था। बक्से में इस प्रकार की व्यवस्था थी कि उसमें अन्य किसी प्रकार का शोर नहीं होता था। इस क्रिया को बार-बार दोहराया गया। खाना चूहे की लीवर दबाने की क्रिया को बल प्रदान करता था। इस क्रिया में चूहा भूखा होने के कारण अधिक सक्रिय रहता था। 

स्किनर के  सक्रिय अनुबन्ध का शैक्षिक महत्व 

  • स्किनर के सिद्धान्त के आधार पर पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे पदों में बाँटने पर बल दिया जाता है, जिससे अधिगम शीघ्र एवं प्रभावकारी हो जाता है। छात्रों के व्यवहार को वांछित स्वरूप तथा दिशा प्रदान करने में यह सिद्धान्त शिक्षकों की सहयता करता हैं। यह सिद्धान्त बताता है कि यदि छात्रों को उनके प्रयासों के परिमाण का ज्ञान करा दिया जाए तो विद्यार्थी अपने कार्य में अधिक उन्नति कर सकते हैं। 
  • इस सिद्धान्त का प्रयोग अभिक्रमित अधिगम के लिए किया गया है। सक्रिय अनुबन्धन में पुनर्बलन का अत्यधिक महत्व है। पुनर्बलन के अनेक रूप हो सकते हैं, जैसे-दण्ड, पुरस्कार, परिणाम का ज्ञान इत्यादि।

Adaptation, Assimilations, Accommodation , Cognitive structure, Mental operation, Schemes, Schema

जीन पियाजे की थ्योरी के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –

(1) अनुकूलन ( Adaptation ) 

पियाजे के अनुसार बच्चों में अपने वातावरण के साथ समायोजन की प्रवृति जन्मजात होती है । बच्चे की इस प्रवृति को अनुकूलन कहा जाता है । पियाजे के अनुसार बालक अपने प्रारभिंक जीवन से ही अनुकूलन करने लगता है । जब कोई बच्चा वातावरण में किसी उद्दीपक परिस्थितियो के समाने होता है तो उस समय उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएं अलग अलग कार्य न करके एक साथ संगंठित होकर कार्य करती हैं और ज्ञान अर्जित करती हैं। यही क्रिया हमेशा मानसिक स्तर पर चलती है। वातावरण के साथ मनुष्य का जो संबंध होता है उस संबंध को संगठन आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है जबकि अनुकूलन बाहरी रूप से। पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण माना है।

पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -प्रक्रियाओं बांटा गया है।

आत्मसात्करण ( Assimilations )

समंजन ( Accommodation  )

(1) आत्मसात्करण ( Assimilations ) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रियाओं का सहारा लेता है । यह एक जैव वैज्ञानिक प्रक्रिया है । 

(2) समंजन ( Accommodation  ) एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है, तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है। उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।

संज्ञानात्मक संरचना ( Cognitive structure ) : पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक संरचना से तात्पर्य बालक का मानसिक संगठन से है । अर्थात् बुद्धि में संलिप्त विभिन्न क्रियाएं जैसे – प्रत्यक्षीकरण स्मृति, चिन्तन तथा तर्क इत्यादि ये सभी संगठित होकर कार्य करते हैं । वातावरण के साथ सर्मयाजन , संगठन का ही परिणाम है ।

मानसिक संक्रिया ( Mental operation ): बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए जाने वाले चिन्तन को ही मानसिक संक्रिया कहते हैं ।

स्कीम्स ( Schemes ) : यह बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए गए चिन्तन का आभिव्यकत रूप होता । अर्थात् मानसिक संक्रियाओं का अभिव्यक्त रूप ही स्कीम्स होता है ।

स्कीमा ( Schema ) : एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्यीकरण किया जा सके, स्कीमा होता है ।

Some important facts of Jean Piaget’s theory –

(1) Adaptation

According to Piaget, children have an innate tendency to adjust with their environment. This tendency of the child is called adaptation. According to Piaget, the child begins to adapt from his early life. When a child is exposed to any stimulating situation in the environment, at that time his various mental activities work together and acquire knowledge, not doing separate tasks. This action always goes on at the mental level.The relationship that man has with the environment is influenced by the organization internally while adaptation externally. Piaget considered the process of adaptation to be more important.

Piaget divided the whole process of adaptation into two sub-processes.

  1. Assimilations
  2. Accommodation

(1) Assimilation is a process in which the child uses previously learned plans or mental processes to solve a problem. It is a biological process.

(2) Accommodation is a process that is done only for adjustment when the previously learned plan or mental processes do not work. Piaget says that the child strikes a balance between the processes of assimilation and reconciliation. When a child is faced with a new problem, a cognitive imbalance arises in him. To remove that imbalance, he initiates the process of assimilation or adjustment or both.

Cognitive structure: According to Piaget, cognitive structure refers to the mental organization of the child. That is, the various activities involved in the intellect such as perception, memory, thinking and reasoning, etc., all of them work in concert. Engaging with the environment is the result of the organization itself.

Mental operation: The thinking done by the child to solve the problem is called mental operation.

Schemes: This would have been an expression of the thinking done by the child to solve the problem. That is, the manifestation of mental operations is schemas.

Schema: A mental structure that can be generalized is a schema.