Emotional development for child development and pedagogy different stages

Date -29/05/2021
Time- 9:00 am

🎄🎄🎄🎄🎄🎄

👩‍🎤संवेगात्मक विकास➖

अंदर से गति करना या उत्तेजित होना

वूडवर्थ➖संवेग मानव की उत्तेजित दशा है |
👉 संवेग दो प्रकार का होता है➖

  1. बुरे ➖ क्रोध, घृणा, इर्ष्या, भय
  2. अच्छे ➖ प्रेम, हर्ष, आनंद, करुणा, दया 👶 🧒शैशवावस्था मे संवेगात्मक विकास➖
  3. जन्म से उत्तेजना ही संवेग है |
  4. दो वर्ष की उम्र तक सभी संवेग उत्पन्न हो जाते है
  5. शुरू मे संवेग अस्पष्ट रहता है, धीरे धीरे स्पष्टता आती है |
  6. शुरू मे संवेग अनिश्चित होता है |
    5.शुरू मे संवेग तीव्र होता हैं |
  7. शिशु मे संवेगात्मक अभिव्यक्ति का विकास धीरे धीरे होता है | 🟢 एलिस क्रो➖ शिशु अपनो से बड़ो का संवेगात्मक व्यवहार का अनुकरण करता है, यही कारण है कि उसे उन सब बातों से डर नही लगता है जिनसे उनसे बड़े लोगो को डर लगता है |
    🟢 जोन्स ➖ 2 वर्ष के शिशु को सांप से डर नही लगता क्योकि उनमे भय नाम का संवेग विकसित नही हुआ होता है लेकिन वही शिशु 3 वर्ष का होने पर अंधेरे व जानवर से डरने लगता है क्योकि डर नाम का संवेग विकसित हो जाता है |

👦👧 बाल्यावस्था मे संवेगात्मक विकास 🟢 क्रो एंड क्रो➖ सम्पूर्ण बाल्यावस्था मे संवेग की अभिव्यक्ति मे निरंतर परिवर्तन होते है |

  1. संवेग स्पष्ट और निश्चित होता है |
  2. संवेग की तीव्रता मे अपेक्षाकृत कमी होती है |
  3. बच्चे का संवेग, परिवार, विद्यालय और शिक्षक से प्रभावित होता है |
  4. टोली, समूह या गैंग मे रहने के कारण बालक मे ईर्ष्या, घृणा, द्वेष आदि वाधित संवेग भी आ सकते है |

👨👩 किशोरावस्था मे संवेगात्मक विकास➖
1 . दया, प्रेम, क्रोध, करुणा आदि संवेग स्थाई हो जाते है |

  1. शारीरिक, शक्ति का उसकी संवेगात्मक रुचि और व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है |
  2. किशोर बहुत चिंता मे रहता है जिसके कारण इंसान क्रोधी और चिड़चिड़ा हो जाता है |

📝📝नोटस बाय निधि तिवारी🌿🌿🌿

Factors Effecting Motivation

Date – 28/05/2021
Time – 8:00 am

🙆‍♂️अभिप्रेरणा के उत्तरदायी कारक
🟢 जान पी डीसेकी ने अभिप्रेरणा देने वाले चार कारकों का वर्णन किया है ➖

  1. उत्तेजना
  2. आकांक्षा
  3. प्रोत्साहन
  4. दंड/ अनुशासन

🙆‍♂️उत्तेजना
उत्तेजना व्यक्ति को सक्रिय करने के लिए आवश्यक घटक है |
यह हमे शक्ति प्रदान करती है |

🤸‍♀️ उत्तेजना के तीन स्तर होते है ➖

  1. उच्च स्तर
  2. मध्य स्तर
  3. निम्न स्तर

व्यक्ति को उत्तेजना किन स्त्रोत से मिलती है➖

  1. आंतरिक उत्तेजना स्त्रोत ➖ शारीरिक आवश्यकता
  2. बाह्य उत्तेजना स्त्रोत➖ वातावरण से उत्तेजना

🙆‍♂️ आकांक्षा ➖ किसी कार्य के लिए हम जितनी अपेक्षा रखते है, वास्त्विकता के आधार पर रखते है |

🙆‍♂️ प्रोत्साहन ➖
🟢 हल एंड स्पेन्सर ने कहा प्राणी की क्रियाओं को लक्ष्य अथवा प्रोत्साहन द्वारा प्रेरित किया जा सकता है

🙆‍♂️ दण्ड और अनुशासन
दण्ड उद्दीपन के समान होता है दण्ड किसी व्यवहार को रोकने के लिए होता है |
दण्ड उतना ही दिया जाना चाहिए जिससे उद्देश्य की प्राप्ति हो जाये |

🤸‍♀️ दण्ड के दो रूप होते है ➖

  1. उस व्यक्ति को दण्ड दिया जाये जिसने गलत व्यवहार किया है, जिससे भविष्य मे उस व्यवहार की पुन:वृत्ति ना करे |
  2. अन्य व्यक्ति के समक्ष इसलिए दण्ड दिया जाता है जिससे वह व्यक्ति भी ऐसा व्यवहार न करे |

🎄 दण्ड अनुशासन का ही रूप होता है दण्ड उस समय विशेष उपयोगी होता हैं जब पुरुस्कार के साथ प्रयुक्त किया जाये |
अच्छे व्यवहार की प्रशंसा और बुरे व्यवहार के लिए दण्ड |

🙆‍♂️अधिगम मे अभिप्रेरणा का स्थान ➖

  1. बालक के व्यवहार मे परिवर्तन
  2. बालक के चरित्र का निर्माण
  3. ध्यान केंद्रित करने मे सहायता
    🟢 क्रो एंड क्रो ➖ शिक्षक बालक को प्रेरित करके उन्हें अपने ध्यान को पाठ्य विषय पर केंद्रित करने मे सहायता दे सकता है |
  4. मानसिक विकास
    🟢 क्रो एंड क्रो➖ प्रेरक छात्र को सीखने की क्रिया में प्रोत्साहन देता है |
    🎄इससे ज्ञान अर्जन बेहतर तरीके से कर पायेगा जिससे मानसिक विकास अच्छे से होगा |
  5. रुचि का विकास
    🟢थॉमसन ➖ प्रेरणा, छात्र मे रुचि उत्पन्न करने की कला है |
  6. अनुशासन की भावना का विकास होता है |
  7. सामाजिक गुण का विकास
  8. अधिक ज्ञान का अर्जन
  9. तीव्र ज्ञान का अर्जन
  10. व्यक्ति विभिन्नता के हिसाब से प्रगति |

📝📝नोटस बाय ➖ निधि तिवारी🌿🌿🌿

Mid day meal and education in personal life

Date -27/05/2021
Day- wedenesday, 7:45am

👩‍🎤 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना ➖
लागू ➖ अगस्त, 2004
उद्देश्य ➖
👉महिला दर को बढाना, जाति/ अनुसूचि जनजाति को शिक्षा प्रदान करना |
👉 पिछड़ी जाति को शिक्षा प्रदान करना
🟢 शिक्षा का माध्यम ➖ उच्च प्राथमिक शिक्षा के लिए आवासीय योजना
इसके तरह कर्मचारियों की संख्या 14
एक वार्डन
3 फुल टाइम टीचर ( महिला/ पुरुष)
3 पार्ट टाइम टीचर ( महिला/ पुरुष)
1 लेखाकार ( महिला/ पुरुष)
3 चौकीदार
3 रसोइया ( महिला/ पुरुष)

👩‍🎤” स्कूल चलो ” अभियान ➖
लागू➖ 2006
👉6-14 वर्ष के बच्चे को अनिवार्य रूप से शिक्षा प्रदान करना

👩‍🎤 माध्यान भोजन ( mid day meal 🍴🍱 MDM)
🍳 लागू हुआ ➖ 15 अगस्त, 1995
🍳 शुरूआत ➖ तमिलनाडु से हुई
🍳 इस योजना के तहत प्राथमिक विद्यालय मे 80% से अधिक बच्चे को व्यवस्था कराई जाती थी |
🍳बच्चों को गेँहू तथा चावल 3kg बांटा जाता था
🍳 जब स्कूल🎒📚 शुरू हुए तब स्कूल मे खिलाया नही जाता था, बस गेँहू , चावल दिया जाता था |
👩‍🎤 सुप्रीम कोर्ट से आदेश आया – 28 नबम्वर 2001 मे |
🎊अब सभी विद्यालयो मे पका पकाया भोजन दिया जाने लगा |
🎊उत्तरप्रदेश मे MDM 24 sep, 2004 से शुरुआत हुआ
🎊बाद मे 6-8 की क्लास के लिए भी शुरुआत की गयी |
🎊 उच्च प्राथमिक में शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े बालक मे – october 2007, से शुरुआत की गयी |
🎊अन्य शेष विद्यालय मे- शिक्षा अप्रैल 2008 तक शुरू हो गयी |

👩‍🎤 प्राथमिक शिक्षा का क्षेत्र ➖
🎄 व्यक्तिगत जीवन मे शिक्षा
🎄 सामान्य जीवन मे शिक्षा
🎄 राष्ट्रीय जीवन मे शिक्षा

🎄व्यक्तिगत जीवन मे शिक्षा ➖

  1. जीवन मे आवश्यकता की पूर्ति
  2. आत्म- निर्भर बनने मे समर्थ
  3. सुविधाओ की प्राप्ति
  4. व्यवसायिक कुशलताओ की प्राप्ति
  5. व्यक्तित्व का विकास
  6. भावी जीवन का निर्माण
  7. अच्छे नागरिक का निर्माण

🎄 सामान्य जीवन मे शिक्षा ➖

  1. बालक का सामाजिक शिक्षा
  2. सभ्यता संस्कृति का विकास
  3. राष्ट्रीय भावना का विकास
  4. सामाजिक सुधार कर सके

🎄 राष्ट्रीय जीवन मे शिक्षा➖

  1. नेत्रत्व का विकास
  2. कर्तव्यों की पूर्ति
  3. कुशल श्रमिक का विकास
  4. समाज कल्याण की भावना

📝📝नोटस बाय निधि तिवारी🌿🌿🌿

Social development for child development and pedagogy

Date- 27MAY2021
Class time: 9AM

👨‍👨‍👦Social Development-👨‍👨‍👧‍👧

Meaning of Social Development is – Maturity in Social Realtionships

Society a place to learn an accepted behavior model; Without Social intraction a child development is incomplete.

✍️Here, According to Crow & Crow✍️
“A newborn child is neither a social animal nor an antisocial but in this state he is not able to live for long.”

👶1stMonth- Does not recognize human voice

👶2ndMonth- Only recogniz a human voice

👶3rd Month- Start recogniz his Mother 🤱

👶4thMonth- Looks closely & attentivly at the people around him👀 if anyone play with him he enjoys that thing and start playing with them

👶5th-6th Month – Start differentiating between his known & unknown ones
And also Able to find the difference between Love ♥️and Anger😡

👶7th-8th Month- Start imitating the Spoken words 👂

👶9th-10thMonth- Start imitating the behavior of his Closed ones.
(So it’s necessary to all the parents to behave well in front of the children at this phase👨‍👩‍👧‍👦)

👶12Month- In thi he starts Obedience Behavior
If his father/mother has forbidden him to do any work, he will not.

👦2nd year- Become a active member of family and start participating in the family works 🏃

👦3rd Year- start playing with other children’s.🤸⛹️

👦4th year- In that phase he start showing “EGOCENTRIC” nature.
He starts going to the “PLAY school Kinder Garden ” and establishes new social relationships.
& Also it’s a very critical phase a of children’s life because this type of phase ; increases the confidence of the child and can also infuse the inferiority complex in the child.
so it’s necessary to all the parents that they can’t do that type of thing which can hit a children’s mind too hard.

(#As Sir explained with a example
“The child must be admitted to other children of the same level)

👦🏻5thYear- start Exchanging his things with others

Social Development in Childhood-👧🏼👦🏻

  1. Child enters Primary school
  2. Start ADJUSTING in new Environment
  3. Active Member in school activities & start participating
  4. A PLAYGROUND/GAMES- its a best place to develope Social Norms in a child
  5. At that he Respect but also ridicule

..✍️✍️Notes By- Yash SONI ✍️✍️

Date -27/05/21
Time-9:00 am
🍁सामाजिक विकास🍁
सामाजिक विकास का अर्थ ➖ सामाजिक संबंधों मे परिपक्वता प्राप्त करना है |

अभिप्राय ➖ समाज स्वीकृत व्यवहार प्रतिमान को सीखने का स्थान है |

🟢 क्रो एण्ड क्रो
जन्मजात शिशु ना तो सामाजिक प्राणी होता है और ना ही आसमाजिक प्राणी होता हैं | लेकिन इस अवस्था मे वह अधिक समय तक नहीं रह पाता हैं |

1st month ➖ वह मानव की आवाज को नही पहचानता है |

2nd month ➖ केवल मानव की आवाज को पहचानता है

3rd month ➖ वह अपनी माँ को पहचानने लगता है

4th month ➖ शिशु अपने पास वाले व्यक्ति को बड़े ध्यान से देखता है और यदि कोई व्यक्ति उसके साथ खेलता है तो वह भी खेलता है और मुस्कुराता है |

5th-6th month ➖ परिचित और अपरिचित व्यक्ति को ध्यान से देखता है व पहचानने लगता है |
प्रेम व क्रोध मे अंतर करने लगता है |

7-8 month ➖शिशु बोले जाने वाले आवाज का अनुकरण करता हैं |

9-10 month ➖ किये जाने व्यवहार का अनुकरण करता हैं |

12th month ➖ मना किये जाने वाले कार्य को नहीं करता है |

2nd year ➖ परिवार का सक्रिय सदस्य हो जाता है और पारिवारिक कार्यो मे भाग भी लेना प्रारंभ कर देता है

3rd year ➖ अन्य बच्चों के साथ खेलने लगता है |

4th year ➖ शिशु का व्यवहार आत्मकेंद्रित होता है अब बच्चा प्ले स्कूल 🎒📚/ kindergarden मे जाने लगता है जहाँ वह नये सामाजिक संबंध स्थापित करता है |

5 mth year ➖ बच्चा अपनी वस्तुओ का आदान- प्रदान करना व सांझा करना सीख जाता है |

🍁बाल्यावस्था मे सामाजिक विकास🍁

  1. अब बच्चा प्राथमिक विद्यालय मे प्रवेश लेता है |
  2. नये वातावरण मे समायोजन
  3. विद्यालय के क्रियाकलाप
  4. सबसे बड़ी समाजिकता खेल के मैदान मे होती है |
  5. शिक्षक सम्मान करता है लेकिन उपहास भी करता है |

🍁 किशोरावस्था 🍁

  1. दूसरो के सामने श्रेष्ठता, बेहतर वेश- भूषा, श्रृंगार करने लगता है |
  2. समाजिकता, प्रेम, स्नेह, संवेग, सहानुभूति, सहनशील, सदभावना जैसे गुण आ जाते है |
  3. असफलता होने पर समाजिकता विकास अवरुद्ध होती है |

📝📝 नोटस बाय निधि तिवारी 🌿🌿🌿🌿

Theories of motivation for child development and pedagogy

Date – 26 may ,2021
Day – Wednesday

अभिप्रेरणा के सिद्धांत
🎄 कुछ प्रश्न जन्म लेते है हमारे दिमाग मे कि ➖
👉 प्रमुख प्रेरणा तंत्र क्या है और यह तंत्र कैसे प्रेरित करता है?
👉अलग- अलग प्रेरणा आपस मे कैसे संबंधित हैं?
👉प्रेरित व्यवहार मे किस प्रकार परस्पर प्रतिक्रिया होती है?

➡ बहुत सारे मनोवैज्ञानिक ने इन प्रश्नो के उत्तर खोजने के लिये अनेक सिद्धांत की रचना की ➖

🟢 मेकडुगल का मूल प्रवत्ति सिद्धांत ( Basic Nature Theory)
👉 इनका कहना था कि कोई भी व्यवहार जो हम करते है यह मूल प्रवत्ति से प्रेरित होने पर ही किया जाता है |

🟢 अनुवांशिकी पैटर्न का सिद्धांत ( Heredity pattern)
👉Lorenz ( लॉरेंज) ने बताया कि प्रेरणा अनुवांशिकी होता है |

🟢 मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत
👉 यह सिद्धांत सिगमंड फ्रायड के द्वारा दिया गया
👉 इनके अनुसार व्यक्ति के व्यवहार को अचेतन प्रेरक प्रभावित करता है ➖ चेतन और अचेतन
💃 इदम् ( Id) ➖ खुद का आनंद चाहता है |
💃 अहम् ( Ego) ➖ यह वास्तविकता पर काम करता है |
💃 परम् अहम् ( Super Ego) ➖ यह आदर्शवादी पर आधारित है |

🟢 मास्लो का आवश्यकता अनुक्रम सिद्धांत ➖

  1. शारीरिक आवश्यकता (Physical need)
  2. सुरक्षा की आवश्यकता (Safety requirements)
  3. प्यार एवं संबंधों की आवश्यकता (Need for Love and Belonging)
  4. आत्मसम्मान की आवश्यकता (Self-respect Requirements)
  5. आत्मबोध (Self-actualization)

🎄शारीरिक आवश्यकता (Physical need) ➖ मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता उसकी शारीरिक संतुष्टि होती है जिसके अभाव में वह जीवन व्यतित करने की कल्पना तक नही कर सकता। जैसे -भोजन, पानी, क्रियाशीलता, विश्राम इत्यादि |

🎄 सुरक्षा की आवश्यकता (Safety requirements) ➖जब व्यक्ति को उसकी प्रथम चरण की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है तो तब उसको अपने अस्तित्व की चिंता होने लगती है वह अपने अस्तित्व की महत्ता को जानने लगता है जिस कारण वह अपने जीवन-मृत्यु के संबंध में सोचने लगता हैं। अपने जीवन को स्थिरता प्रदान करने के लिए उसे इस दूसरे चरण की आवश्यकता महसूस होती हैं।

🎄 प्यार एवं संबंधों की आवश्यकता (Need for Love and Belonging)
व्यक्तियों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता होती है वह इन समस्त आवश्यकताओं की प्राप्ति अकेले रहकर नही कर सकता। जिस कारण वह अपने परिवार का निर्माण करता है एवं समाज के साथ विभिन्न प्रकार के संबंधों की स्थापना करता है जैसे- पत्नी,भाई,बहन,प्यार,दोस्त आदि।

🎄आत्मसम्मान की आवश्यकता (Self-respect Requirements)
प्यार और संबंधों की आवश्यकता की पूर्ति हो जाने के पश्चात उसे समाज मे गौरवपूर्ण तरीके से जीवनयापन करने हेतु आत्मसम्मान की आवश्यकता महसूस होती है जिस कारण वह एक गौरवपूर्ण पद प्राप्त करने और दूसरे से अपनी एक अलग पहचान बनाने अर्थात खुद को विशिष्ट दिखाने की आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रयास करता हैं |

🎄आत्मबोध (Self-actualization)
मनुष्य को आत्मबोध तब होता है जब वह अपने चारों चरणों की पूर्ति कर लेता हैं। इसमे व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्तियों को जान लेता है एवं उसे आंतरिक संतुष्टि की प्राप्ति हो जाती है।

🏵 अभिप्रेरक के प्रकार ( Types of Motivator)
👉 जन्मजात अभिप्रेरक – भूख, प्यास, निंदा, विश्राम
👉 अर्जित अभिप्रेरक – समाजिकता, रुचि, प्रतिष्ठा
👉 स्वभाविक अभिप्रेरक – खेलना, बात करना
👉 कृत्रिम अभिप्रेरक – पुरुस्कार, दण्ड, प्रशंसा
👉 जैविक अभिप्रेरक – संवेग – भय, क्रोध, भूख, प्रेम, दुख, खुशी
👉 सामाजिक अभिप्रेरक – प्रतिष्ठा, सम्मान, रचनात्मकता, पुरुस्कार
👉 उपलब्धि अभिप्रेरक – अधिक सफलता के लिए किया जाने वाला कार्य
🟢 मन और फर्नाल्ड 🟢
👉 उपलब्धि अभिप्रेरक से तात्पर्य श्रेष्ठता का विशेष स्तर प्राप्त करना

👉 अनुमोदन अभिप्रेरक – व्यक्ति ऐसे कार्यो को करता है जिसमे उनकी सराहना और प्रशंसा हो |

🏵 अभिप्रेरित व्यवहार की विशेषताएँ 🏵
👉 इन व्यवहार के लक्षण को जानना आवश्यक है ताकि अध्यापक को कक्षा मे अपनी अभिप्रेरणा की विधियों के प्रभाव और उपयोगिता का वास्तविक ज्ञान हो |

🏵 अभिप्रेरित व्यवहार के मुख्य लक्षण 🏵

  1. ध्यान केंद्रित करना
  2. उत्सुकता
  3. निरंतरता
  4. आवश्यकता की पूर्ति
  5. क्रिया केंद्रित प्रक्रिया
  6. बैचेनी दूर होना
  7. शक्ति संचालन

📝📝📝 नोटस बाय – निधि तिवारी🌿🌿🌿

🛑 अभिप्रेरणा के सिद्धांत➖

जब हम अभिप्रेरणा की बात करते हैं तो हमारे मन में उससे संबंधित कुछ प्रश्न जन्म लेते हैं जैसे—

प्रमुख प्रेरणा तंत्र क्या है और यह तंत्र कैसे प्रेरित करता है???

अलग-अलग प्रेरणा आपस में कैसे संबंधित है????

प्रेरित व्यवहार में किस प्रकार परस्पर प्रतिक्रिया होती है????

आदि इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए अलग मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनेक सिद्धांत बताए हैं जो कि निम्न है ➖

🌏मेक्डूगल का मूल प्रवृत्ति सिद्धांत ➖

सिद्धांत के प्रतिपादक मेक्डूगल, जेम्स और बर्ट को माना जाता है इनका कहना है कि कोई भी व्यवहार मूल प्रवृत्ति से प्रेरित होने पर ही किया जाता है |

🌏 अनुवांशिकी पैटर्न का सिद्धांत ➖

यह सिद्धांत लॉरेंज जी द्वारा दिया गया है जिसमें उन्होंने कहा कि प्रेरणा अनुवांशिक होता है |

🌏 मनोविश्लेषण वादी सिद्धांत सिद्धांत ➖

मनोविश्लेषण वादी सिद्धांत के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड हैं जिनके अनुसार व्यक्ति के व्यवहार को अचेतन प्रेरक प्रभावित करता है व्यक्ति का व्यवहार मूल प्रवृत्ति और अचेतन मन पर निर्भर होता है |

इस सिद्धांत में उन्होंने तीन अवस्थाओं का वर्णन किया है➖

इदंम (Id)

अहम (Ego)

परम अहम (Super ego)

💠 इदंम ➖

इसमें व्यक्ति खुद का आनंद चाहता है वह तत्कालिक सुख की प्राप्ति करना चाहता है वह अपने स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए क्षणिक सुख की प्राप्ति चाहता है |

💠 अहम् ➖

इसमें व्यक्ति वास्तविकता पर काम करता है |

💠 परम अहम ➖

इसमें व्यक्ति आदर्शवादी होता है |

🌏 मास्लो का आवाश्यकता अनुक्रम का सिद्धांत➖

💠 मास्लो ने अपने सिद्धांत में बताया कि मनुष्य की आवश्यकताएं पूरी ना होने वाली समस्त जरूरत है जो व्यवहार को प्रभावित करती हैं |
व्यक्ति सभी जरूरतें पूरी नहीं हो सकती क्योंकि जरूरतें अनेक होती है इसलिए व्यक्ति उनकी प्राथमिकता तय करता है फिर उनको पूरा करता है |

💠 मनुष्य की अनेक जरूरत होती है लेकिन इसका निष्पादन क्रमवार उसकी प्राथमिकता के अनुसार से होता है बिना जरुरत के व्यक्ति कुछ नहीं करता है जरूरत ही व्यक्ति की समस्या है जो एक पूरी होते ही दूसरी उत्पन्न हो जाती है |

💠 निम्न स्तर की जरूरत है यदि निम्न स्तर पर ही पूरी हो जाती है तो व्यक्ति आगे कदम उठा सकता है |

💠 यदि किसी व्यक्ति के अंदर मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य उपस्थित है तो वह पदानुक्रम पर जरूर प्रगति करता है |

मौस्लो के अनुसार आवश्यकता को 5 स्तर में बांटा गया है ➖

1) निम्न स्तर की आवश्यकता जैसे ➖ भूख, प्यास, नींद ,सेक्स आदि |

2) सुरक्षा की आवश्यकता जैसे➖ नौकरी स्वास्थ्य संसाधन, प्रॉपर्टी आदि |

3) तदात्मिकता संबंध जैसे ➖दोस्ती, परिवार, जीवन साथी आदि |

4) आत्मसम्मान की आवश्यकता

5) स्वप्रत्यक्षीकरण

🛑 अभिप्रेरणा के प्रकार➖

1) जन्मजात अभिप्रेरक
जैसे भूख ,प्यास, नींद, आराम आदि |

2) अर्जित अभिप्रेरक
सामाजिकता, रुचि ,प्रतिष्ठा आदि |

3) स्वाभाविक अभिप्रेरक
खेलना ,बात करना आदि |

4) कृत्रिम अभिप्रेरक
पुरस्कार , दंड आदि |

5) जैविक अभिप्रेरक
संवेग को जैविक अभिप्रेरक में रखा गया है जैसे भय, क्रोध,मोह, प्रेम आदत |

6) सामाजिक अभिप्रेरक
प्रतिष्ठा ,सम्मान ,रचनात्मकता आदि |

7) उपलब्धि अभिप्रेरक
मन और फर्नाल्ड के अनुसार ➖
उपलब्धि अभिप्रेरक से तात्पर्य श्रेष्ठता का विशेष स्तर प्राप्त करना है |

8) अनुमोदन अभिप्रेरक
व्यक्ति ऐसे कार्यों को करता है जिनसे उनकी सराहना और प्रशंसा होती है |

🛑 अभिप्रेरित व्यवहार की विशेषताएं ➖

इन व्यवहारों के लक्षण को जाना आवश्यक है ताकि अध्यापक को कक्षा में अपनी अभिप्रेरणा की विधियों के प्रभाव और उपयोगिता का वास्तविक ज्ञान हो पाए |

🌏 अभिप्रेरित व्यवहार के मुख्य लक्षण ➖

1) ध्यान केंद्रित करना

2) उत्सुकता

3) निरंतरता

4)आवश्यकता की पूर्ति

5) क्रिया केंद्रित प्रक्रिया

6) बेचैनी दूर होना

7) शक्ति संचालन

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

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Evaluation

Date -25/05/2021

🎄 मूल्यांकन ( EVOLUTION) 🎄

🍁सतत् मूल्यांकन ( Continueous evolution)

सीखने सिखाने की प्रक्रिया, उसके साथ जो मूल्यांकन होता है, सतत् मूल्यांकन कहलाता है |

जैसे- प्रतिदिन मूल्यांकन, साप्ताहिक मूल्यांकन, मासिक मूल्यांकन, अर्द्धवार्षिक मूल्यांकन, वार्षिक मूल्यांकन इत्यादि |

🍁व्यापक मूल्यांकन🍁

👉बच्चों के हर पहलू का मूल्यांकन |
👉 बेंजामिन ब्लूम ने व्यापक मूल्यांकन के तीन पक्ष बताये थे –

  1. संज्ञानात्मक डोमेन – ज्ञान, समझ, इत्यादि|
  2. क्रियात्मक डोमेन – क्रिया का करना |
  3. भावात्मक डोमेन – भाव

🍁निर्माणत्मक मूल्यांकन / रचनात्मक मूल्यांकन ( formative assesment) 🍁

👉बालक के अधिगम को जानना, समझना और उसमे सुधार करना रचनात्मक मूल्यांकन कहलाता है |

🍁योगत्मक मूल्यांकन/ संकलित मूल्यांकन/ आंकलित मूल्यांकन ( summative assesment)🍁

👉 ऐसा मूल्यांकन जो शिक्षण प्रक्रिया के अंत मे मूल्यांकन किया जाता है |

👉 संविधान लागू – 26/01/1950
अनुच्छेद 45- 6-14 वर्ष के बच्चों को 10 वर्ष के अंदर अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा दी जाए|

🍁 सर्व शिक्षा अभियान (2001) 🍁

👉 भारत सरकार द्वारा बनाई गयी योजना – 9 वी पंच वर्षीय योजना चल रही थी इसके तहत — वित्तीय खर्च केंद्र सरकार (85%) और राज्य सरकार (15%) मिलकर खर्च करेगी |
👉 10 वी पंच वर्षीय योजना मे – केंद्र सरकार (75%) और राज्य सरकार ( 25%)
👉 वर्तमान मे केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही 50-50% वित्तीय खर्च देती है |
👉 इस योजना से 192 मिलियन बच्चो और 600 जिलों को लाभ मिला |

🍁 जिला प्राथमिक कार्यक्रम 🍁
Prumary District program ( DPEP) -1994
👉उद्देश्य –

  1. शिक्षा को सार्वभौमिक ( सभी लोगो तक पहुचना)
  2. गुणवत्ता मे सुधार
  3. प्राथमिक शिक्षा म सुधार Note 🌿🌿 DPEP के लिए भारत मे वित्तीय सहायता के लिए–
  4. UNICEF
  5. नीदरलैंड बैंक
  6. IDA ( International Development authority) नोटस बाय 📝📝 निधि तिवारी🌿🌿 y

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🌏 सतत मूल्यांकन ( Continuous Evaluation) ➖

ऐसा मूल्यांकन जिसमें सीखने सिखाने की प्रक्रिया के साथ ही साथ मूल्यांकन होता है सतत मूल्यांकन कहलाता है |

💠 सतत मूल्यांकन के प्रकार➖

1) प्रतिदिन मूल्यांकन

2)साप्ताहिक मूल्यांकन

3) मासिक मूल्यांकन

4) अर्धवार्षिक मूल्यांकन

5) वार्षिक मूल्यांकन

🌏 व्यापक मूल्यांकन( Comprehensive Evaluation) ➖

ऐसा मूल्यांकन जिसमें बच्चों के हर पक्ष का मूल्यांकन किया जाता है | बच्चे की प्रत्येक गतिविधि कि बच्चे कि कक्षा में स्तर कैसा है वह किस पक्ष में कमजोर है किस पक्ष में उसको समस्या है आदि सभी कमियों का पता लगाने और उन्हें पता लगाकर दूर करने के लिए बच्चों का व्यापक मूल्यांकन किया जाता है जो कि कक्षा कक्ष के दौरान या अन्य गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है |

बैंजामिन ब्लूम ने व्यापक मूल्यांकन को 3 पक्षों में बताया है➖

💠 संज्ञानात्मक डोमेन ➖

1) ज्ञान
2) अवबोध
3) अनुप्रयोग
4) विश्लेषण
5) संश्लेषण
6) मूल्यांकन

💠 भावात्मक डोमेन➖

1) अभिग्रहण/ प्राप्त करना
2) अनुक्रिया / प्रतिक्रिया
3) मूल्य निरूपण / बातों का महत्व
4) संगठन / आयोजन करना
5) निरूपण

💠 क्रियात्मक डोमेन➖

1) उत्तेजना / आवेग
2) नियंत्रण
3) सामंजस्य /समन्वय
4) स्वाभाविक /अनुकूलन
5) आदत निर्माण /गठन/ उन्नति

🌏 निर्माणात्मक/ रचनात्मक मूल्यांकन ➖

बालक के अधिगम को जानना समझना और उसमें सुधार करना रचनात्मक मूल्यांकन कहलाता है |

🌏 योगात्मक / संकलित / आकलित मूल्यांकन➖

ऐसा मूल्यांकन जो शिक्षण प्रक्रिया के अंत में किया जाता है |
जिसके आधार पर बच्चों का वार्षिक परीक्षा परिणाम निकाला जाता है यह मूल्यांकन बच्चों के ग्रेड पर आधारित होता है जिसमें बच्चों की उपलब्धि का पता लगाया जा सकता है कि बच्चे उन्हें क्या किया है लेकिन इस प्रकार के मूल्यांकन में बच्चों की उपलब्धि में सुधार नहीं किया जा सकता है |
संविधान के अनुच्छेद 45 के अंतर्गत 6 – 14 वर्ष की सभी बच्चों को 10 वर्ष के भीतर अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा दी जाए |

🌏 सर्व शिक्षा अभियान (2001) ➖

भारत सरकार की

🧿 नौवीं पंचवर्षीय योजना

इस योजना के अन्तर्गत वित्तीय खर्च जो कि केंद्र और राज्य सरकार क्रमशः 85% और 15% मिलाकर खर्च करेगी |

🧿 10वीं दसवीं पंचवर्षीय योजना➖

इस योजना के तहत केंद्र सरकार 75% और राज्य सरकार 25% खर्च करेगी |

लेकिन वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार 50% का खर्च कर रहे जिससे 192 मिलीयन बच्चे 600 जिलों में लाभान्वित हुए हैं|

🌏 जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम ( DEEP) 1994 ➖

💠 उद्देश्य

1) शिक्षा का सार्वभौमीकरण अर्थात सभी लोगों तक शिक्षा पहुचाना

2)गुणवत्ता में सुधार

3) प्राथमिक शिक्षा में सुधार
जिसमें खर्च का बंटवारा केंद्र सरकार द्वारा 85% और राज्य सरकार द्वारा 15% करोगे |

इसमें भारत को वित्तीय सहायता इसके लिए 3 देशों ने प्रदान की|

1) UNICF

2) नीदरलैंड बैंक

3) IDAS

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮 ➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🍀💐🌺🌸🌼🌹🍀💐🌸🌺🌼☘💐🌼☘🌺🍀💐🌺🌸🌼☘

Batch-supertet
Time-7:45
Topic-Continous and comprehensive evaluation

सतत् मूल्यांकनContinuous Evaluation)

सीखने सिखाने की प्रक्रिया के साथ ही जो मूल्यांकन होता है वह सतत मूल्यांकन कहलाता है।

सतत मूल्यांकन अर्थात निरंतर मूल्यांकन करना।

इस प्रकार के मूल्यांकन में बालक के अधिगम के साथ-साथ वा दौरान की गई गतिविधियों वासी के ज्ञान का निरंतर रूप से मूल्यांकन किया जाता है।

इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के मूल्यांकन होते हैं

प्रतिदिन मूल्यांकन
सप्ताहिक मूल्यांकन
मासिक मूल्यांकन
अर्द्धवार्षिक मूल्यांकन
वार्षिक मूल्यांकन

व्यापक मूल्यांकन

इसके अंतर्गत बच्चों के प्रत्येक पक्षों का मूल्यांकन किया जाता है।

बेंजामिन ब्लूम ने व्यापक मूल्यांकन के 3 पक्ष बताए थे, जो निम्नलिखित हैं
1- संज्ञानात्मक डोमेन
2-क्रियात्मक डोमेन
3-भावात्मक डोमेन

संज्ञानात्मक डोमेन -इसके अंतर्गत बालक के ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है, अर्थात बालक ने शिक्षण प्रक्रिया के दौरान कितना सीखा है ।

क्रियात्मक डोमेन इसके अंतर्गत बालक ने सीखे हुए ज्ञान का उपयोग या कार्य किया है या नहीं।

भावात्मक डोमेन इसके अंतर्गत बालक ने सीखे हुए ज्ञान के आधार पर जो भी कार्य किया है उसके प्रति उसका भाव किस प्रकार का है,

बालक के अंदर किसी भी एक प्रकार के डोमेन के होने से कोई महत्व नहीं होता है बल्कि बालक के अंदर व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत तीनों प्रकार के डोमेन का होना आवश्यक है, तभी अधिगम पूर्ण वा सफल माना जाता है।

जैसे हम सभी क्लास में अधिगम के किराए के द्वारा सीखते हैं फिर उस पर गतिविधि अर्थात उस पर नोट्स बनाना, प्रश्नों को हल करना वाउस पर टिप्पणी करना, वीडियो बनाना और इन सब कार्यों को करने के पीछे का भाव एक बेहतर और कुशल शिक्षक बनना है साथ ही अपनी नोट्स बा वीडियो के माध्यम से अन्य विद्यार्थियों की मदद करना है।

निर्माणात्मक मूल्यांकन/रचनात्मक मूल्यांकन
इसके अंतर्गत बालक के अधिगम को जानना, समझना और उसकी अधिगम में हो रहे त्रुटियों को दूर करना (अर्थात निदानात्मक मूल्यांकन के द्वारा समस्या का पता लगाना व उपचारात्मक शिक्षण के द्वारा उसका सुधार करना )वा सुधार करना, बेहतर करना रचनात्मक मूल्यांकन कहलाता है।

योगात्मक मूल्यांकन/आंकलित मूल्यांकन

यह एक ऐसा मूल्यांकनहै जो शिक्षण प्रशिक्षण प्रक्रिया के अंत में किया जाता है ।

इस प्रकार के मूल्यांकन में छात्र के अधिगम को प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि उसके परिणाम को देखते हैं कि वर्ष पर कितना छात्र ने सीखा।

देश में संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू होने के बाद से अनुच्छेद 45 के अंतर्गत-राज्य संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष के भीतर सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करेगा।

सर्व शिक्षा अभियान (2001)

भारत सरकार द्वारा चलाए गए इस मिशन का उद्देश्य”सब पढ़े सब बढ़े से था”अर्थात शिक्षा को संपूर्ण भारत में फैलाने से था।

इस अभियान के प्रारंभ होने के समय देश में नववी पंचवर्षीय योजना चल रही थी ।

इस अभियान में होने वाला वित्तीय खर्च, का अनुमोदन 85% का केंद्र सरकार के द्वारा वाह 15% राज्य सरकार द्वारा दिया जाएगा।

इसके बाद दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार का वाहन 75 % वह राज्य सरकार का 25 प्रतिशत खर्च वहन करेगी।

वर्तमान समय में 50% केंद्र सरकार व 50% राज्य सरकार खर्च वहन करती है।

इसका प्रभाव यह हुआ कि लगभग 192 मिलियन छात्र 600 जिलों के लाभान्वित हुए इस योजना के अंतर्गत।

जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम 1994
District CTET primary education policy
उद्देश्य-शिक्षा का सार्वभौमीकरण करना अर्थात शिक्षा को बिना किसी भेदभाव के जन-जन तक पहुंचाना।

शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता ।

प्राथमिक शिक्षा में सुधार करने की आवश्यकता।

इस योजना के अंतर्गत 85% केंद्र सरकार खर्च वहन करेगी वाह 15% राज्य सरकार खर्च वहन करेगी।

UNICEF (United nation and international children’s education fund)
भारत में जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के लिए वित्तीय सहायता दी गई,वो निम्नलिखित हैं-
,1-यूनिसेफ द्वारा
2-नीदरलैंड द्वारा
3-, IDA (international development authority) इन तीनों ने मिलकर वित्तीय सहायता दी।

धन्यवाद

शिखर पाण्डेय ✍️

CDP Sources of Motivation

Date -24/05/2021
Day monday

🏵 अभिप्रेरणा के स्रोत 🏵

👉कई ऐसे शब्द है जो अभिप्रेरणा से किसी किसी ना किसी अर्थ मे जुड़े हुए हैं |
👉 इन शब्दों का उचित प्रयोग करने के लिए शब्दों को या अर्थों को समझना बहुत आवश्यक है , तो अभिप्रेरणा की सम्पूर्ण प्रक्रिया को समझ पाना कठिन है |

🏵 प्रेरणा के चार स्रोत होते हैं 🏵

  1. आवश्यकता ( Need)
  2. चालक ( Drive)
  3. उद्दीपन ( Stimulus)
  4. प्रेरक ( Motivator )

🍁 आवश्यकता (Need) 🍁

प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकता होती है जिसके अभाव मे उसका अस्तित्व असंभव है |
जैसे – जल, वायु, भोजन इत्यादि |
👉 यदि इस आवश्यकता की पूर्ति नही हो तो शरीर मे तनाव होता है, असंतुलन उत्पन्न होता है , इससे वह और भी ज्यादा क्रियाशील हो जाता है |

🟢 बेरिंग, लैंगफिल्ड और वील्ड 🟢
👉 आवश्यकता शरीर की कोई जरूरत या अभाव है, जिसके कारण शारीरिक असंतुलन या तनाव उत्पन्न होता है इस तनाव मे ऐसा व्यवहार उत्पन्न करने की प्रवात्ति होती है जिससे आवश्यकता के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला असंतुलन समाप्त हो जाता है |

🍁 चालक (Drive) 🍁

👉प्राणी की आवश्यकताये उनसे संबंधित चालक को जन्म देती है |
जैसे – हमारी आवश्यकता भोजन है तो इसके लिए चालक भूख हैं
👉 चालक प्राणी को एक निश्चित क्रिया या व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है |
जैसे – प्यास, पानी पीने के लिए प्रेरित करता है |

🟢 बेरिंग, लैंगफील्ड व वील्ड 🟢
👉 चालक शरीर की आंतरिक क्रिया या दशा है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरित करता है |

🍁 उद्दीपन ( stimulus) 🍁

👉 जिस किसी वस्तु की आवश्यकता उत्पन्न होने पर उसको पूर्ण करने के लिए चालक उत्पन्न होता है, जिस वस्तु से यह आवश्यकता पूर्ण होती है उसे उद्दीपन कहते है |

🟢 बेरिंग, लैंगफील्ड व वील्ड🟢
👉 उद्दीपन की परिभाषा उस वस्तु, उस स्तिथि या क्रिया के रूप मे की जा सकती है, जो व्यवहार को उत्साहित करती है |

🏵 आवश्यकता, चालक व उद्दीपन मे संबंध 🏵
🟢 हिलगार्ड – आवश्यकता, चालक को जन्म देती है | चालक बढ़े हुए तनाव की दशा है, जो कार्य और प्रारंभिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है, उद्दीपन बाह्य वातावरण की वस्तु होती है जो आवश्यकता को संतुष्ट करती है , और चालक कम हो जाता है |

🍁 प्रेरिक ( Motivator) 🍁

👉 उद्दीपन के अतिरिक्त, चालक, तनाव, आवश्यकता सम्मिलित किये जाते है

🟢 गेट्स व अन्य 🟢
👉 प्रेरक के विभिन्न स्वरूप है और इन को विभिन्न नाम से पुकारा जाता है |
जैसे – आवश्यकता , इच्छा, तनाव, स्वभाविक स्तिथि, निर्धारित प्रवत्ति, अभिवृत्ति, रुचि, उद्दीपक इत्यादि |
👉सभी मनोवैज्ञानिक मतभेद के बाद भी इस बात से सहमत है कि प्रेरक व्यक्ति को विशेष प्रकार के व्यवहार और क्रिया करने के लिए उत्तेजित करता है |

🟢 ब्लेयर, जोन्स और सिम्पसन 🟢
👉 प्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकता से उत्पन्न होने वाली वे शक्तियां है जो व्यवहार को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती है |

👉 प्रेरक एक व्यापक शब्द है तथा इसके विभिन्न रूप है | प्रेरक को आवश्यकता, तनाव, इच्छा रुचि इत्यादि नाम से बुलाया जाता है |
👉 प्रेरक वास्तव मे व्यक्ति को उद्देश्य की प्राप्ति की ओर ले जाता है |

📝📝नोटस बाय – निधि तिवारी 🌿🌿

Date -24/05/2021
Day monday

🌲🔅 अभिप्रेरणा के स्रोत🔅🌲

🔅➖️कई ऐसे शब्द है जो अभिप्रेरणा से किसी किसी ना किसी अर्थ मे जुड़े हुए हैं |
इन शब्दों का उचित प्रयोग करने के लिए शब्दों को या अर्थों को समझना बहुत आवश्यक है , तो अभिप्रेरणा की सम्पूर्ण प्रक्रिया को समझ पाना कठिन है |

⚜️🔅प्रेरणा के चार स्रोत होते हैं 🔅⚜️

  1. आवश्यकता ( Need)
  2. चालक ( Drive)
  3. उद्दीपन ( Stimulus)
  4. प्रेरक ( Motivator ) ⚜️आवश्यकता (Need) ➖️ प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकता होती है जिसके अभाव मे उसका अस्तित्व असंभव है |
    जैसे – जल, वायु, भोजन इत्यादि |
    यदि इस आवश्यकता की पूर्ति नही हो तो शरीर मे तनाव होता है, असंतुलन उत्पन्न होता है , इससे वह और भी ज्यादा क्रियाशील हो जाता है |

✏️बेरिंग, लैंगफिल्ड और वील्ड ➖️
आवश्यकता शरीर की कोई जरूरत या अभाव है, जिसके कारण शारीरिक असंतुलन या तनाव उत्पन्न होता है इस तनाव मे ऐसा व्यवहार उत्पन्न करने की प्रवात्ति होती है जिससे आवश्यकता के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला असंतुलन समाप्त हो जाता है |

⚜️चालक (Drive) ➖️

प्राणी की आवश्यकताये उनसे संबंधित चालक को जन्म देती है |
जैसे – हमारी आवश्यकता भोजन है तो इसके लिए चालक भूख हैं
चालक प्राणी को एक निश्चित क्रिया या व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है |
जैसे – प्यास, पानी पीने के लिए प्रेरित करता है |

✏️ बेरिंग, लैंगफील्ड व वील्ड ➖️
चालक शरीर की आंतरिक क्रिया या दशा है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरित करता है |

⚜️उद्दीपन ( stimulus) ➖️

जिस किसी वस्तु की आवश्यकता उत्पन्न होने पर उसको पूर्ण करने के लिए चालक उत्पन्न होता है, जिस वस्तु से यह आवश्यकता पूर्ण होती है उसे उद्दीपन कहते है |

✏️ बेरिंग, लैंगफील्ड व वील्ड
उद्दीपन की परिभाषा ➖️उस वस्तु, उस स्तिथि या क्रिया के रूप मे की जा सकती है, जो व्यवहार को उत्साहित करती है |

🔅आवश्यकता, चालक व उद्दीपन मे संबंध
हिलगार्ड – आवश्यकता, चालक को जन्म देती है | चालक बढ़े हुए तनाव की दशा है, जो कार्य और प्रारंभिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है, उद्दीपन बाह्य वातावरण की वस्तु होती है जो आवश्यकता को संतुष्ट करती है , और चालक कम हो जाता है |

⚜️ प्रेरक ( Motivator) ➖️

उद्दीपन के अतिरिक्त, चालक, तनाव, आवश्यकता सम्मिलित किये जाते है

✏️गेट्स व अन्य ➖️
प्रेरक के विभिन्न स्वरूप है और इन को विभिन्न नाम से पुकारा जाता है |
जैसे – आवश्यकता , इच्छा, तनाव, स्वभाविक स्तिथि, निर्धारित प्रवत्ति, अभिवृत्ति, रुचि, उद्दीपक इत्यादि |
सभी मनोवैज्ञानिक मतभेद के बाद भी इस बात से सहमत है कि प्रेरक व्यक्ति को विशेष प्रकार के व्यवहार और क्रिया करने के लिए उत्तेजित करता है |

✏️ब्लेयर, जोन्स और सिम्पसन ➖️
प्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकता से उत्पन्न होने वाली वे शक्तियां है जो व्यवहार को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती है |

🔅प्रेरक एक व्यापक शब्द है तथा इसके विभिन्न रूप है | प्रेरक को आवश्यकता, तनाव, इच्छा रुचि इत्यादि नाम से बुलाया जाता है |
प्रेरक वास्तव मे व्यक्ति को उद्देश्य की प्राप्ति की ओर ले जाता है

📝📝📝sapna yadav 📝📝📝

अभिप्रेरणा के स्रोत या चरण निम्नलिखित हैं÷

कई ऐसे शब्द है जो अभिप्रेरणा से किसी ना किसी अर्थ में जुड़े हुए हैं।

आवश्यकता है से अभिप्रेरणा परिवर्तित हो जाती है अर्थात जैसी आवश्यकता होती है वैसी अभिप्रेरणा हो जाती है।

रूचि के अनुसार भी अभिप्रेरणा परिवर्तित हो जाती है अर्थात रुचि भी अभिप्रेरणा से जुड़ी हुई है।

आवश्यकता रुचि वा अन्य शब्दों का उचित प्रयोग करने के लिए शब्दों या उसके अर्थों, अभिप्राय को समझना बहुत आवश्यक है नहीं तो अभिप्रेरणा की संपूर्ण प्रक्रिया को समझ पाना कठिन है।

प्रेरणा के चार स्रोत हैं जो निम्नलिखित हैं÷

1-आवश्यकता

2-चालक

3-उद्दीपन

4-प्रेरक

1-आवश्यकता

प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकता होती है जिसके अभाव में उसका अस्तित्व असंभव है,

जैसे भोजन जल वायु इत्यादि

यदि इस आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है तो शरीर में तनाव उत्पन्न हो जाता है, या असंतुलन उत्पन्न होता है,इससे वह उसकी पूर्ति के लिए क्रियाशील हो जाता है।

बोरिंग, लैंगफील्ड वा वील्ड के अनुसार
आवश्यकता शरीर की आधारभूत जरूरत या अभाव है, जिसके कारण सारे असंतुलन या तनाव उत्पन्न होता है, इस तनाव में ऐसा व्यवहार उत्पन्न करने की प्रवृत्ति होती है जिससे आवश्यकता के फल स्वरुप उत्पन्न होने वाले असंतुलन समाप्त हो जाते हैं।

2-चालक

प्राणी की आवश्यकताएं उनसे संबंधित चालू को जन्म देते हैं।
इसके कुछ उदाहरण निम्नवत है,
आवश्यकता – चालक
भोजन – भूख
सोना – नींद
पानी। प्यास

चालक, प्राणी को एक निश्चित क्रिया या व्यवहार करने के लिए अभिप्रेरित करता है।

जैसे भूख-भोजन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।
प्यास-पानी को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
ठंड – गरम वस्त्र को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।

बोरिंग लैंगफील्ड वा वील्ड के अनुसार
चालक शरीर की आंतरिक क्रिया या मनोदशा है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरित करता है।

3- उद्दीपन
किसी वस्तु की आवश्यकता होने पर उसको पूर्ण करने के लिए चालक उत्पन्न होता है।

जिस वस्तु से यह आवश्यकता पूर्ण होती उसे उद्दीपक कहते हैं।

आवश्यकता – चालक ‌ – उद्दीपन
भोजन। – भूख। -। भोजन(पेटीज,केक,)

बोरिंग लैंगफील्ड वा वील्ड के अनुसार
उद्दीपन की परिभाषा उस वस्तु या स्थिति या क्रिया के रूप में की जा सकती है जो व्यवहार को प्रोत्साहित करती है या निर्देशित करती है।

आवश्यकता चालक व उद्दीपन
हिलगार्ड के अनुसार
आवश्यकता,चालक को जन्म देती हैं, चालक बड़े हुए तनाव की दशा है, जोकि प्रारंभिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है।

उद्दीपन बाहरी वातावरण की वस्तु होती है जो आवश्यकता को संतुष्ट करती है, और आवश्यकता की पूर्ति के बाद चालक कम हो जाता है।

4-प्रेरक
उद्दीपन के अतिरिक्त, चालक भी एक प्रकार का प्रेरक होता है, तनाव भी प्रेरक है जो चालक की वजह से उठा (पेट में चूहे कूद रहे खाना जल्दी चाहिए) आवश्यकता भी एक प्रकार का प्रेरक है, वा अन्य सभी सम्मिलित किए जाते हैं।

उदाहरण सीडीपी की क्लास को करने का प्रेरक-किसी एक क्लास को करने के बहुत सारे पैदा होते हैं, किंतुअधिक नंबर लाना ज्यादा आवश्यक है अन्य से।

गेट्स व अन्य -प्रेरक के विभिन्न स्वरूप हैं और इनको विभिन्न नाम से पुकारा जाता है।

जैसे-आवश्यकता, इच्छा, तनाव, रुचि, स्वाभाविक स्थिति, निर्धारित प्रवृत्ति ,अभिवृत्ति इत्यादि।

प्रेरक के विषय में मनोवैज्ञानिकों में अनेक प्रकार के मतभेद उत्पन्न हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं-

कुछ लोगों का मानना था, प्रेरक जन्मजात या वातावरण से अर्जित होता है।

कुछ लोगों का मानना था कि प्रेरक शारीरिक व मानसिक दशा है।

कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना था कि पहले किसी एक निश्चित दिशा में कार्य करने की प्रवृत्ति है।

किंतु सभी मनोवैज्ञानिक किस बात से सहमत हैं कि”प्रेरक व्यक्ति को विशेष प्रकार की क्रिया और व्यवहार के लिए उत्तेजित करता है।

ब्लेयर जोंस और सिम्पसन के अनुसार
प्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकता से उत्पन्न होने वाली वह शक्तियां हैं जो व्यवहार को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती हैं।

अर्थात इन बातों तथ्यों के आधार पर यह बोल सकते हैं कि प्रेरक एक व्यापक शब्द है तथा इसके विभिन्न रूप है, प्रेरक को तनाव रुचि आवश्यकता इच्छा स्वभाविक स्थिति इत्यादि नाम से बुलाया जाता है।

प्रेरक वास्तव में व्यक्ति को उद्देश्य की प्राप्ति की ओर ले जाता है।

धन्यवाद

शिखर पाण्डेय ✍️✍️

CDP- Mental development in childhood

💞Batch-UPTET 💞
DATE- 21/05/2021
TIME-9:00AM
✍️Topic-(Mental development in childhood)
शैशवास्था में मानसिक विकास

🎊४ माह-शिशु अपनी सभी पीड़ा या बात को व्यंजनों की धनिया उत्पन्न कर कर बताने लगता है;

🎊५-६ माह-इस समय से शुरू अपना नाम समझने लगता है, और साथ ही प्रेम व क्रोध में अंतर करने लगता है।

🎊७-८ माह-शिशु अपनी पसंद का खिलौना छांट सकता है , अर्थात जो पसंद का खिलौना होता है वह उसे लेने की कोशिश करता है और जो उसकी पसंद का नहीं होता है उसे फेंक देता है।

🎊९-१०माह-इस समय शिशु से खिलौना छीनने पर वह विरोध प्रकट करने लगता है,
🎉जैसे-रोना ,चिल्लाना ,मारना ,बाल पकड़ना इत्यादि

🎊१वर्ष-शिशु चार अक्षर बोलने लगता है, जैसे- पा , मा , दा ,का इत्यादि
🤷🏻‍♂️नोट-यहां पर वह इन अक्षरों को अलग अलग ही बोलता है किंतु एक शब्द दो बार बोलने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वह पापा या मामा बोल रहा।

🎊 २-वर्ष-बच्चा शुरुआत में धीरे-धीरे अनेक शब्द बोलने लगता है, वह 2 वर्ष के अंत तक लगभग 200 से 272 शब्द बोलने लगता है।

🎊३वर्ष-किसी से पूछने पर अपना नाम बता देता है वह सीधी या लंबी रेखा देख कर उसे बनाने की कोशिश करता है,
🎉जैसे-बच्चे को का बनाने के लिए सिखाया जाता है तो उसे कहते हैं कि एक सीधा डंडा खीचो पहले । फिर उसमें एक अंडा लगा दो ॰। और फिर उसमें एक हंसिया लगा दो ।ॽ और फिर ऊपर एक खड़ा डंडा खींचो दो बन गया” क”

🎉ठीक उसी प्रकार अंग्रेजी के अक्षर जब सिखाए जाते हैं तो उससे बोला जाता है कि एक तिरछी खड़ी लाइन खींचो /फिर दूसरी तरफ ऐसे ही दूसरी खड़ी लाइन खींचो \और फिर बोलते हैं बीच में पेट फाड़ दो – बन गया “A”

🎊४ वर्ष-इस वर्ष में गिनती करने लगता है और साथ ही वह छोटे और बड़े में अंतर करना सीख जाता है,
और साथ ही पढ़ाई के छोटे और बड़े अक्षर पहचानना वा बनाना भी प्रारंभ कर देता है।

🎉जैसे-ऐसे छोटा एप्पल और बड़े एप्पल में अंतर करना।

🎊५ वर्ष-इस उम्र का बच्चा हल्की और भारी वस्तुओं में भी अंतर करने लगता है, अब बालक जटिल शब्दों का प्रयोग करने लगता है और नए शब्दों को देखकर पढ़ने लगता है, साथ ही बड़े-बड़े शब्दों या वाक्यो को भी तोड़ तोड़ कर बोलना शुरू कर देता है।

Written by shikhar pandey 🌸

Batch-UPTET
DATE- 21 MAY 🏵शैशवास्था में मानसिक विकास🏵

🍁4 माह में -शिशु अपनी सभी पीड़ा या बात को व्यंजनों की धनिया उत्पन्न करके बताने लगता है|

🍁5-6 माह-इस समय से शुरू अपना नाम समझने लगता है, और साथ ही प्रेम व क्रोध में अंतर करने लगता है।

🍁 7-8 माह में – शिशु अपनी पसंद का खिलौना छांट लेता है |

🍁9-10 माह में – इस समय शिशु से खिलौना छीनने पर वह विरोध प्रकट करने लगता है,

🍁 1 वर्ष में -शिशु चार अक्षर बोलने लगता है, जैसे- पा , मा , दा ,का इत्यादि

🍁 2 वर्ष में -बच्चा शुरुआत में धीरे-धीरे अनेक शब्द बोलने लगता है, वह 2 वर्ष के अंत तक लगभग 200 से 272 शब्द बोलने लगता है।

🍁3 वर्ष में – इस उम्र में बच्चे किसी के पूछने पर अपना नाम बता देते है वह सीधी या लंबी रेखा देख कर उसे बनाने की कोशिश करता है |

🍁 4 वर्ष में -इस वर्ष में बच्चे गिनती करने लगते है और साथ ही वह छोटे और बड़े में अंतर करना सीख जाता है,
और साथ ही पढ़ाई के छोटे और बड़े अक्षर पहचानना वा बनाना भी प्रारंभ कर देता है।

🍁 5 वर्ष में – इस उम्र का बच्चा हल्की और भारी वस्तुओं में भी अंतर करने लगता है, अब बालक जटिल शब्दों का प्रयोग करने लगता है |

🟢 क्रो एंड क्रो – जब बालक 6 वर्ष का होता है तो मानसिक योग्यता का पूर्ण विकास हो जाता है |

📝📝 नोटस बाय– निधि तिवारी 🌿🌿

CDP Types of motivation

Date-21/05/2021 🏵अभिप्रेरणा के प्रकार🏵

सामान्यतः मनोवैज्ञानिक ने प्रेरणा के दो भागों में बाँटा हैं-

  1. आंतरिक
  2. बाह्य 🍁 आंतरिक अभिप्रेरणा 🍁

👉आंतरिक अभिप्रेरणा में किसी भी अनुक्रिया के लिए बाह्य उद्दीपन की आवश्यकता नहीं होती हैं |
👉 इसमे प्राणी स्वयं की इच्छा से कार्य करता हैं|
👉 इस प्रकार की प्रेरणा स्वयं प्राणी में ही निहित रहती है
👉आंतरिक अभिप्रेरणा से जुड़ी कार्य पर कोई बहाना नही दिया जाता | 🍁 बाह्य अभिप्रेरणा🍁

👉 इस प्रकार की अभिप्रेरणा मे किसी भी अनुक्रिया के लिए बाह्य उद्दीपन की आवश्यकता होती है |
👉प्राणी स्वयं अपनी इच्छा से अनुक्रिया नही करता |
👉 इस प्रकार की अभिप्रेरणा के अंतर्गत प्रसंशा, निंदा, पुरुस्कार, प्रतिद्वंदता, इत्यादि आती है |

🟢 रोबिन्स और होरोक्स के अनुसार-
अधिगम विधि के रूप मे बाह्य अभिप्रेरणा, आंतरिक अभिप्रेरणा से निम्न कोटि का होता है | 🏵मासलो के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार 🏵

  1. जन्मजात अभिप्रेरणा
  2. अर्जित अभिप्रेरणा
  3. व्यक्तिक अभिप्रेरणा
  4. सामाजिक अभिप्रेरणा 🍁 जन्मजात अभिप्रेरणा🍁

👉ये अभिप्रेरणा जन्म से ही पायी जाती है |
👉इसकी संतुष्टि के अभाव मे प्राणी जीवित ही नही रह सकता है , इसलिए इसे शरीर जनित अभिप्रेरणा या प्राथमिक अभिप्रेरणा कहते है |
👉 इस अभिप्रेरणा मे भूख, प्यास, विश्राम, क्रोध, प्रेम, काम- भावना इत्यादि | 🍁 अर्जित अभिप्रेरणा🍁

👉 इस प्रकार की अभिप्रेरणा व्यक्ति शिक्षा, मानसिक, परिपक्वता एवं वातावरण के संपर्क मे आकर प्राप्त होता है |
👉 इस प्रकार ये जन्म से विद्यमान ना होकर वातावरण के संपर्क मे आने से आती है | 🍁 व्यक्तिक अभिप्रेरणा🍁

👉 इस प्रकार की अभिप्रेरणा व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त होती है |
👉 इसमें व्यक्तिगत विभिन्नताएं पायी जाती हैं |
👉 आदत, आकांक्षा का स्तर, जीवन लक्ष्य, रुचि, मनोवृत्ती और अचेतन अभिप्रेरणा इत्यादि 🍁सामाजिक अभिप्रेरणा🍁

👉 इस प्रकार की अभिप्रेरणा व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार करने की प्रेरणा देती है |
👉इसके अंतर्गत सामूहिकता, आत्म-गौरव, अध्यात्मिक, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि आती है |

🏵गैरेट के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार🏵

  1. जैविक अभिप्रेरणा
  2. नोवैज्ञानिक अभिप्रेरणा- जैसे भय, क्रोध ,प्रेम, दुख ,आनंद।
  3. सामाजिक अभिप्रेरणा- जैसे आत्म प्रदर्शन, आत्म सुरक्षा।

🏵 थॉमसन के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार🏵

1.स्वभाविक अभिप्रेरणा -जैसे खेल, अनुकरण, सुझाव, सुख प्राप्ति।

  1. कृत्रिम अभिप्रेरणा – जैसे प्रशंसा ,पुरस्कार, दंड , सामूहिक कार्य की प्रेरणा। 📝📝 नोट्स बाय निधि तिवारी 🌿🌿

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🌏 अभिप्रेरणा के प्रकार (Types of Motivation) ➖

सामान्यतः मनोवैज्ञानिकों ने अभिप्रेरणा को दो भागों में बांटा है ➖

1) आंतरिक अभिप्रेरणा

2) बाह्य अभिप्रेरणा

🧿 आंतरिक अभिप्रेरणा ➖

आंतरिक अभिप्रेरणा में किसी भी अनुक्रिया के लिए बाहरी उद्दीपन की आवश्यकता नहीं होती है
इसमें प्राणी के स्वयं की प्रेरणा होती है इस प्रकार की प्रेरणा स्वयं प्राणी में ही निहित होती है |
आंतरिक अभिप्रेरणा से जुड़े कार्य पर एक्सक्यूज नहीं दिया जाता है |

🧿 बाह्य अभिप्रेरणा➖

इस प्रकार की अभिप्रेरणा में किसी भी अनुक्रिया के लिए बाहरी उद्दीपन की आवश्यकता होती है |
प्राणी स्वयं अपनी इच्छा से अनुक्रिया नहीं करता है इस प्रकार की अभिप्रेरणा के अंतर्गत प्रशंसा, निंदा ,पुरस्कार, प्रतिद्वंदिता इत्यादि आते हैं |

🥎 राबिन्स और होरोक्स के अनुसार➖

अधिगम विधि के रूप में बाह्य अभिप्रेरणा, आंतरिक प्रक्रिया से निम्न कोटि का होता है |

🛑 मास्लो के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार➖

मास्लो ने अभिप्रेरणा के चार प्रकार बताए हैं

1) जन्मजात प्रेरणा

2) अर्जित प्रेरणा

3) व्यक्तिगत प्रेरणा

4) सामाजिक प्रेरणा

🧿 जन्मजात प्रेरणा ➖

यह अभिप्रेरणा जन्म से ही पाई जाती है इसकी संतुष्टि के अभाव में प्राढी जीवित नहीं रह सकता है इसलिए इसे शरीर जनित प्रेरणा या प्राथमिक अभिप्रेरणा भी कहते हैं |
इस अभिप्रेरणा में भूख, प्यास, क्रोध, प्रेम काम भावना इत्यादि आते हैं

🧿 अर्जित अभिप्रेरणा➖

इस प्रकार की अभिप्रेरणा व्यक्ति
शिक्षा मानसिक परिपक्वता एवं वातावरण के संपर्क में आकर प्राप्त होता है इस प्रकार जन्म से विद्यमान ना होकर वातावरण के संपर्क में आने से आती है |

🧿 व्यक्तिगत अभिप्रेरणा➖

इस प्रकार की प्रेरणा व्यक्ति के खुद के अनुभव से प्राप्त होती है इसमें व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है |
जैसे आदत ,आकांक्षा का स्तर, जीवन का लक्ष्य ,मनोवृति और अचेतन अभिव्यक्ति, रुचि इत्यादि

🧿 सामाजिक अभिप्रेरणा➖

इस प्रकार की अभिप्रेरणा व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार करने की प्रेरणा देती है उसके अंतर्गत सामूहिक था आत्म गौरव आध्यात्मिक सामाजिक सुरक्षा आती है |

🥎 गैरेट के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार➖
गैरेट ने अभिप्रेरणा के तीन प्रकार बताए हैं

1) जैविक अभिप्रेरणा

2) मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणा

3) सामाजिक अभिप्रेरणा

🧿 जैविक अभिप्रेरणा ➖

इस प्रकार की अभिप्रेरणा जो मनुष्य के शारीरिक आवश्यकता से जुड़ी होती है |

🧿 मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणा➖

इस प्रकार की अभिप्रेरणा जो व्यक्ति के आंतरिक गुणों से होती है इसमें व्यक्ति अपने मानसिक चिंतन का प्रयोग करता है जो व्यक्ति की आंतरिक होती है |

🧿 सामाजिक अभिप्रेरणा➖

इस प्रकार की अभिप्रेरणा में व्यक्ति अपने व्यवहार को सामाजिक नियमों के अनुसार करता है समाज के मानदंडों का पालन करता है और अपने व्यवहार को समाज के अनुरूप बनाता है |
अर्थात ऐसी प्रेरणा जो मनुष्य को सामाजिक व्यवहार करने की के लिए प्रेरित करती है |

🥎 थामसन के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार ➖2

1) स्वाभाविक अभिप्रेरणा

2) कृत्रिम अभिप्रेरणा

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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💤Date-21/05/2021💤
💯Time -8:00@m💯

🔥Topic- Types of motivation🔥
(अभिप्रेरणा के प्रकार)

💨अभिप्रेरणा मुक्ता दो प्रकार की होती हैं, जो निम्नलिखित है
🕳️1 -आंतरिक अभिप्रेरणा (Intransic motivation)
🕳️2- बाह्रय अभिप्रेरणा (Extransic motivation)

💨1- आंतरिक अभिप्रेरणा
(Intransic motivation)
🥀यदि आंतरिक अभिप्रेरणा में किसी भी अनुक्रिया के लिए बाहरी उद्दीपक की आवश्यकता नहीं होती है,
इस प्रकार की प्रेरणा स्वयं प्राणी में ही निहित रहती है।

🥀आंतरिक अभिप्रेरणा से जुड़े कार्यों मे किसी भी प्रकार के बहाने नहीं बनाए जाते हैं बल्कि व्यक्ति स्वयं सक्रिय भागीदारीता के साथ उस कार्य को बेहतर ढंग से करता है।

🐦🐥उदाहरण प्रिया छोटे बच्चे कई बार खुद के मनपसंद खेल खेलने में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि भूख लगी होने पर भी वह भोजन की तरफ नहीं बढ़ते हैं;

🥀आंतरिक अभिप्रेरणा व्यक्ति की रुचि को दर्शाती हैं।

🐥🐦उदाहरण -मनपसंद पकवान मिलने पर स्वत: ही खाने लग जाना किंतु किसी अन्य पकवान को पाने के लिए उसकी विशेषता व गुणों का विश्लेषण करके तत्पश्चात को ग्रहण करना।

💨2- बाह्रय अभिप्रेरणा
(Extransic motivation)

🕳️इस प्रकार की अभिप्रेरणा किसी भी अनुक्रिया के लिए बाहरी उत्पन्न की आवश्यकता होती है।
इसमें प्राणी संयम की इच्छा से अनुक्रिया नहीं करता है।

🥀इस प्रकार अकेले रहना के अंतर्गत प्रशंसा ,निंदा, पुरस्कार, दंड प्रतिद्वंदिता इत्यादि चीजें आते हैं।

🥀बाह्रय अभिप्रेरणा मैं व्यक्ति की स्वयं की रुचि ना होकर बाहरी वस्तु या दाता या कार्य की विशेषता या गुण को देखकर उसके प्रति उत्तेजित होकर अनुक्रिया करता है।

🐥🐦Hot उदाहरण-कोरोना काल के समय में व्यक्ति का मास्क लगाना, सैनिटाइजर का प्रयोग करना बाहरी अभिप्रेरणा के कारण ही है।

🐦🐥उदाहरण-बाजार में जाते वक्त अचानक से कुछ मीठे या अन स्वादिष्ट पकवान की सुगंध आने पर व्यक्ति के मुंह में स्वता ही पानी आ जाना व्यक्ति के द्वारा स्वस्थ को प्राप्त करने के लिए उसकी तरफ अग्रसर होना;
🐥🐦ठीक इसी प्रकार कई बार दुर्गंध आने पर व्यक्ति का स्वता ही अपने मुंह को ढक लेना।

🕺🕺रॉबिंस और हो होरोक्स के अनुसार🕺🕺
💨अधिगम विधि के रूप में बाह्रय अभिप्रेरणा, आंतरिक अभिप्रेरणा से निम्न कोटि का होता है।

😇नोट -आंतरिक व बाह्य अभिप्रेरणा परिस्थिति अनुसार परिवर्तित हो जाती है।

🗿मास्लो के अनुसार, अभिप्रेरणा के प्रकार निम्नलिखित है-
🥀मास्लो ने अभिप्रेरणा को चार भागों में विभाजित किया है-
✍️१-जन्मजात प्रेरणा
✍️2-अर्जित प्रेरणा
✍️3-व्यक्तिगत प्रेरणा
✍️4-सामाजिक प्रेरणा

💨1-जन्मजात प्रेरणा-यह अभिप्रेरणा जन्म से ही पाई जाती है, किस-किस की संतुष्टि के अभाव में प्राणी जीवित नहीं रह सकता इसलिए इसे शरीर जनित अभिप्रेरणा या प्राथमिक अभिप्रेरणा कहा जाता है।

✍️अभिप्रेरणा में भूख- प्यास ,विश्राम , निद्रा ,प्रेम प्यार ,काम भावना इत्यादि आते हैं।

💨२-अर्जित प्रेरणा
✍️इस प्रकार की अभिप्रेरणा व्यक्ति शिक्षा मानसिक परिपक्वता एवं वातावरण के संपर्क में आकर ही प्राप्त होता है, अर्थात यह स्वत: ना होकर वातावरण के संपर्क में आने से आती है।

💨3-व्यक्तिगत अभिप्रेरणा
इस प्रकार के अभी प्रेरक व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त होते हैं, इसमें व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की रुचि व उसका व्यक्तित्व एक दूसरे से आपस में भिन्न होता है।

💨4-सामाजिक अभिप्रेरणा
✍️इस प्रकार की अभिप्रेरणा समाज मे कुशल ,सभ्य , सामाजिक व्यवहार करने की प्रेरणा देता है।
इसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी सामाजिक अभिप्रेरणा के द्वारा समाज में आत्म गौरव,आत्मसम्मान , प्रतिष्ठा, मान मर्यादा में रहकर प्राप्त करता है साथ ही वह समाज के नियमों का पालन करते हुए सामाजिक नागरिक कहलाता है।

🕺🕺गैरेट के अनुसार अभिक्रिया के प्रकार निम्नलिखित हैं-
गैरेट ने अभिप्रेरणा के के तीन प्रकार बताएं है-
✍️१-जैविक अभिप्रेरणा

✍️२-मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणा

✍️३-सामाजिक अभिप्रेरणा

🐦धन्यवाद 🙏🐥
🐦🐦 हस्तलिखित शिखर पाण्डेय ✍️🐥

CDP physical development in adolescence

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿 CDP UPTET PAPER I & II
DATE -20 MAY

🏵🏵 किशोरावस्था मे शारीरिक विकास 🏵🏵

🍁भार🍁

👉किशोर/किशोरी दोनों का भार बढ़ता है और भार का अंतर 25 पौंड होता है |

🍁 ऊँचाई🍁

👉16 वर्ष की आयु तक किशोरियाँ अधिकतम ऊंचाई ग्रहण कर लेती हैं | लेकिन किशोर 18 वर्ष तक या उसके बाद भी थोड़ा बहुत बढ़ता रहता है |

🍁सिर का आकार / मस्तिष्क का भार🍁

👉 सिर का आकार प्रौढ़ आकार ग्रहण कर लेता है |
👉भार – 1200-1400 ग्राम तक होता है |

🍁 दांत 🍁

👉 दांतो की संख्या 28 हो जाती है |
👉 इसके bad प्रज्ञा दांत ( अकल के दांत ) आने लगते है, इनकी संख्या चार होती है |
👉 ये किशोरावस्था के अंत या प्रौढ़अवस्था के प्रारंभ मे आते है |

🍁हड्डियाँ 🍁

👉 छोटी -छोटी हड्डियों के जुड़ने के कारण हड्डियों की संख्या 206 रह जाती है |

🍁धड़कन 🍁

👉अब ह्रदय की धड़कन 1 मिनट मे 72 बार धड़कती है |
👉अब यौन अंगो का सम्पूर्ण विकास हो जाता है |
👉 मांसपेशियों का कुल भार 44% हो जाता है | 🏵 मानसिक विकास🏵

👉मानसिक विकास का मतलब ज्ञान मे वृद्धि से है |

👉 मानसिक शक्ति, चिंतन, तर्क, समस्या समाधान, निर्णय लेना आदि का विकास मानसिक विकास में शामिल हैं |

🟢 टेलफोर्ड – शिशु जैसे- जैसे प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रति माह, प्रति वर्ष बढ़ता है उसकी शक्तियों मे परिवर्तन आ जाता है |

🍁 प्रथम सप्ताह 🍁

🟢 जॉन लॉक – जब शिशु का जन्म होता है तो उसका मस्तिष्क कोरे कागज़ के समान होता है जिस पर वह धीरे- धीरे अनुभव दिखता है |

🍁 दूसरा सप्ताह🍁

👉 शिशु प्रकाश और चमकीली वस्तु की तरफ आकर्षित होने लगता है |

🍁प्रथम माह 🍁

👉 शिशु को कष्ट या भूख का अनुभव होने पर अलग – अलग प्रकार से रोता है |

🍁द्वितीय माह🍁

👉 शिशु आवाज सुनने के लिए सिर घुमाने लगता है | वह भी ध्वनि उत्पन्न करता है |

🍁 तृतीय माह🍁

👉 बच्चा अपनी माँ को पहचानने लगता है |

🎄🎄 📝📝 Notes BY – निधि तिवारी🌿🌿

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🌏 किशोरावस्था में शारीरिक विकास ➖

🧿 भार ➖ बालक और बालिकाओं दोनों का भार बढ़ता है और भार में 25 पौंड का अंतर बढ़ जाता है |

🧿 ऊंचाई ➖ 16 वर्ष की आयु तक बालिकाएं अधिकतम ऊंचाई ग्रहण कर लेती है लेकिन बालक 18 वर्ष तक उसके बाद भी थोड़ा बहुत बढ़ते रहते हैं |

🧿 सिर का आकार और मस्तिष्क का भार ➖

सिर का आकार प्रौढ़ आकार ग्रहण कर लेता है तथा भार 1200-1400 ग्राम जाता है |

🧿 दांत ➖

दांतों की संख्या 28 हो जाती है इसके बाद प्रज्ञा दांत अर्थात अक्ल के दांत आने लगते हैं जिनकी संख्या 4 होती है |
ये किशोरावस्था के अंत या प्रौढ़ावस्था के प्रारंभ में आते हैं |

🧿 हड्डियां➖

छोटी-छोटी हड्डियों के जुड़ने के कारण हड्डियों की संख्या 206 हो जाती है |

🧿 धड़कन➖

हृदय की धड़कन 1 मिनट में 72 बार धड़कती है |

🧿 किशोरावस्था के अंत तक यौन अंगों का संपूर्ण विकास हो जाता है |

🧿 मांस पेशियों का भार कुल भार का 44% हो जाता है •

🌏 मानसिक विकास ➖

मानसिक विकास का अर्थ ज्ञान में वृद्धि से है अर्थात नए परिस्थिति में ज्ञान को काम में लाने की क्षमता ही मानसिक विकास है |

मानसिक शक्ति, चिंतन ,तर्क, समस्या समाधान ,निर्णय लेना आदि का विकास मानसिक विकास में शामिल होता है |

🧿 टेलफोर्ड ➖

शिशु जैसे-जैसे प्रतिदिन प्रतिसप्ताह, प्रतिमाह प्रतिवर्ष बढ़ता है उसकी शक्तियों में परिवर्तन आ जाता है 1

🧿 प्रथम सप्ताह ➖ जानलाॅक➖ जब शिशु का जन्म होता है तो उसका मस्तिष्क कोरे कागज के समान होता है जिस पर वह धीरे-धीरे अनुभव दिखाता है |

🧿 द्वितीय सप्ताह ➖

शिशु प्रकाश और चमकीली वस्तु की तरह आकर्षित होता है |

🧿 प्रथम माह➖

प्रथम माह में कष्ट या सुख का अनुभव होने पर अलग-अलग प्रकार से रोता है |

द्वितीय माह➖

शिशु आवाज सुनने के लिए सिर घुमाने लगता है तथा वह भी ध्वनि उत्पन्न करता है |

🧿 तीसरे माह ➖

तीसरे में बच्चा अपनी मां को पहचानने लगता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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Date-20/05/2021
Batch-UPTET
Time-9:@m
Topic-किशोरावस्था मे शारीरिक विकास

नोट÷लड़कियों में लड़कों से 2 वर्ष पहले परिपक्वता आ जाती है।

किशोरावस्था में भार
किशोर व किशोरी दोनों ही का भार बढ़ता है और भार में लगभग 25 पाउंड का अंतर होता है।

किशोरावस्था में ऊंचाई
16 वर्ष की उम्र तक किशोरियों की अधिकतम ऊंचाई ग्रहण कर ली जाती है,
किंतु किशोर 18 वर्ष तक या उसके बाद भी थोड़ा बहुत बढ़ते रहते हैं।

किशोरावस्था में सिर का आकार या मस्तिष्क का भार

सिर का आकार प्रौढ़ आकार ग्रहण कर लेता है , अर्थात सिर के आकार में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है।

सिर का भार-12०० ग्राम से 14०० ग्राम तक हो जाता है।

किशोरावस्था में दांत
दांतो की संख्या किशोर व किशोरियों में 28 हो जाती है,
32 में से चार अन्य दांत जो बचे हुए रहते हैं जिनको” प्रज्ञाधात”या अक्ल के दांत बोलते हैं वह किशोरावस्था के अंत में या प्रौढ़ावस्था के प्रारंभ में आ जाते हैं।

किशोरावस्था में हड्डी

बाल्यावस्था में हड्डियां छोटी-छोटी हो जाने के कारण उनकी संख्या बढ़ जाती है किंतु किशोरावस्था में छोटी-छोटी हड्डियों के जुड़ जाने के कारण हड्डियों की संख्या घटकर 206 ही रह जाती है।

किशोरावस्था में हृदय की धड़कन
किशोरावस्था में हृदय की धड़कन 1 मिनट में 72 बार धड़कती है।

बाल्यावस्था में यौन अंगों का विकास शुरू हुआ रहता है किंतु किशोरावस्था में वह विकास पूर्ण हो जाता है।

किशोरावस्था में मांसपेशियों का कुल भार का 44% ही रह जाता है।

किशोरावस्था में मानसिक विकास

किशोरावस्था में मानसिक विकास का मतलब ज्ञान में वृद्धि से है और साथ ही नए परिस्थिति में ज्ञान को उपयोग में लाने की क्षमता से भी है अर्थात इसी समस्या को सुलझा ने या हल करने के लिए प्राप्त किए गए ज्ञान का उपयोग करना।

किशोरावस्था में मानसिक शक्ति, चिंतन, समस्या समाधान, निर्णय लेना,आदि विकास मानसिक विकास में शामिल होता है।

टेलफोर्ड का कथन-शिशु जैसे जैसे दिन प्रतिदिन प्रतिसप्ताह प्रतिमाह प्रतिवर्ष बढ़ता है उसकी शक्तियों में परिवर्तन आता है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित है÷

प्रथम सप्ताह
जान लाक (तबुला रासा के अनुनायी)जब शिशु का जन्म होता है तो उसका मस्त कोरे कागज के समान होता है जिस पर धीरे धीरे अनुभव दिखता है।

दूसरा सप्ताह
दूसरे सप्ताह में शिशु प्रकाश और चमकीली वस्तु की तरफ़ आकर्षित होने लगता है।

प्रथम माह- शिशु को कष्ट यादों का अनुभव होने पर वह अलग-अलग प्रकार से रोदन करता है।

द्वितीय माह-शिशु आवाज सुनने के लिए सिर घुमाने लगता है और वह भी तरह-तरह की ध्वनि उत्पन्न करता है।

तीसरा माह-इस माह में शिशु अपनी मां को पहचानने लगता है और दूर होने पर उनसे रोने लगता है वापस आने पर खुशनुमा मुस्कान करने लगता है।

✍️✍️हस्तलिखित-शिखर पाण्डेय ✍️✍️