19. CDP – Abstract Operational Stage PART- 6

🔆किशोरावस्था के चरण या किशोरावस्था की उपअवस्थाएं➖

किशोरावस्था के निम्न तीन चरण है:-

1 पूर्व किशोरावस्था /प्रारंभिक किशोरावस्था(12 से 14 वर्ष)
2 मूल किशोरावस्था (14 से 16 वर्ष)
3 अंतिम किशोरावस्था (16 से 18 वर्ष)

यह तीनों ही चरण अत्यंत महत्वपूर्ण है और तीनों ही एक दूसरे से अलग भी हैं।

💠1 पूर्व किशोरावस्था/ प्रारंभिक किशोरावस्था (12 से 14 वर्ष) ➖

यह शुरुआती अवस्था का समय है जिसमें बच्चा बड़ा हो रहा होता है अर्थात इस समय बच्चे में होने वाले कई परिवर्तन की शुरुआत इसी अवस्था में होती है।
यह परिवर्तन कई रूप में देखे जा सकते हैं जैसे: –

⚜️ अचानक से शारीरिक विकास में तेजी झलक ने लगती हैं।
⚜️ आवाज में भारीपन या आधार बनने लगता है।

⚜️ पेर व हाथों की लंबी हड्डियों का विकास तीव्रता से होता है।
⚜️ इस अवस्था में किशोर किशोरियों की लंबाई 8 से 9 इंच तक प्रतिवर्ष बढ़ जाती है।
⚜️ इस उम्र में बच्चे अपने समूह में जाने की चेष्टा करने लगते हैं।
⚜️ सामाजिक विकास तीव्र होने लगता है अर्थात बच्चे की जो अपने आसपास के बारे में समझ है वह बढ़ने लगती है।
⚜️ यौन विकास में गतिशीलता आने लगती है।

कई अभिभावक असामान्य व्यवहार को स्वीकार नहीं करते और बच्चे को दोषी ठहराते हैं जिससे इस चरण में बच्चे घबरा जाते हैं परिणाम स्वरूप जो भी सामाजिक सांस्कृतिक सीमा और यौन इच्छाओं में संतुलन व सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं ।

बच्चों में इस अवस्था में होने वाले यह परिवर्तन अत्यंत ही आवश्यक है जोकि होना निश्चित है इन्हें नकारा नहीं जा सकता यह बच्चों के शारीरिक परिवर्तन मानसिक परिवर्तन विकास का ही हिस्सा है विकास में बच्चे के जो भी भाव, विभिन्न प्रकार की सोच या विचार व समझ व नए ज्ञान को जानने की जिज्ञासा भी रहती है जिसे जानना और समझना उनके लिए जरूरी है।
इसीलिए माता पिता को यह ध्यान रखना है कि वह बच्चे का पूरी तरह से और सही तरीके से मार्गदर्शन करें ।अभिभावक समय-समय पर बच्चों का अवलोकन करते रहे और जो भी परिवर्तन या जो भी चुनौतिया आ रही है उन्हे स्वीकारे करे।

💠 2 मूला अवस्था (14 से 16 वर्ष)➖

अब बच्चा पूर्व में प्राप्त हुए सभी परिवर्तनों को आगे लेते हुए बढ़ता है।
इस अवस्था में कई परिवर्तन निम्न रूप में देखे जा सकते हैं।

⚜️ यह चरण बच्चे के शारीरिक ,भावनात्मक, बौद्धिक या मानसिक क्षमता के विकास को दर्शाता है।

⚜️ इस चरण में यौन लक्षणों का विकास जारी रहता है।

⚜️ किशोरो व किशोरियां कई शारीरिक अंगों में परिपक्वता को प्राप्त करने लगता है उनके प्रजनन अंग शुक्राणु उत्पन्न करने में सक्षम होने लगते हैं।

⚜️ इस उम्र में बच्चे अपने आप को अभिभावक या माता-पिता से दूर रखने लगते हैं या उनसे दूरी बना लेते हैं उनको यह लगने लगता है कि उनमें जिस तरह के परिवर्तन हो रहे हैं वह उन परिवर्तनो के बारे में अपनी बातों को नहीं रख पाते हैं।

⚜️ वह प्राय: आदर्शवादी बनने की कोशिश करते हैं उनमें जो भी आंतरिक व बाह्य परिवर्तन जो होते हैं वह स्वयं ही उसे जानते हैं किसी अन्य को नहीं बताना चाहते है।
यौन विकास को जानने की इच्छा निरंतर उनमें बढ़ती जाती है।

⚜️ यह चरण में बच्चो का साहस व प्रयोग से भरा हुआ होता है।
बच्चे का साहस व प्रयोग किस दिशा में आगे बढ़ेगा यह उसके वातावरण एवं अभिभावक पर निर्भर करता है।

⚜️इस उम्र के प्रत्येक बच्चे में विपरीत लिंग और समवय समूह से संबंध रखना चाहता है।

⚜️ इस चरण में बच्चा अपने अस्तित्व को जानना चाहता है और समाज में अपना योगदान भी किसी ना किसी रूप में देना चाहता है ।

⚜️ बच्चे की मानसिकता और जटिल हो जाती है अर्थात किसी भी कार्य या विषय के बारे में अपनी अमूर्त सोच या उसके बारे में बारीकी से सोचने लग जाते है।
सोच कि यह सकुलता भावनाओ से आती है।

⚜️ उनकी यह भावनाएं और घनिष्ठ वह गहरी हो जाती हैं।

⚜️ किसी भी कार्य या विषय के प्रति स्वयं निर्णय लेने की शक्ति बढ़ जाती है।

💠 3 अंतिम किशोरावस्था/ किशोरावस्था का अंतिम चरण( 16 से 18 वर्ष) ➖
इस चरण में भी कई परिवर्तन दिखाई देते हैं जो कि निम्न है:-

⚜️ यौन लक्षणों का पूरी तरह से विकास हो जाता है।
⚜️ यौन अंग प्रौढ़ कार्यकलाप में पूर्णत:सक्षम हो जाते है।

⚜️ समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने लगते हैं।

⚜️ कई बार उनकी सोच या विचार वास्तविकता या सच्चाई से बिल्कुल परे या अलग होती है।

⚜️ अब बच्चे में मित्रों के चयन की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है वह अपने मित्रों को खुद से चुनने लगते हैं।

⚜️ इस उम्र में बच्चे अपने जीवन के लक्ष्य को समझने लगता है हालांकि वह अभी भी कई वर्षों तक अपने अभिभावक पर निर्भर रहते हैं।

⚜️ अब वह सही गलत की पहचान के अंतर को समझ पाता है अर्थात उन्हें अब नैतिकता का ज्ञान होता है।

⚜️ भविष्य के लिए अभिलाषी हो जाते हैं।

⚜️ अपने कार्य के लिए वह अभिभावकों एवं समाज का पारस्परिक समर्थन चाहते है जिससे उनके कार्य का बेहतर रूप से संपादन हो सके।

✍️
“Notes By-Vaishali Mishra”

किशोरावस्था के तीन चरण या किशोरावस्था की अवस्थाएं

किशोरावस्था को तीन चरणों में बांटा गया है
1.प्रारंभिक या पूर्व किशोरावस्था -12 से 14 वर्ष
2.मूल किशोरावस्था- 14 से 16 वर्ष
3.अंतिम या उत्तर किशोरावस्था या किशोरावस्था का अंतिम चरण -16 से 18 वर्ष

  1. प्रारंभिक किशोरावस्था

यह 12 से 14 वर्ष की अवधि होती है।
इस चरण में शारीरिक विकास अचानक तेज झलकता है यह परिवर्तन अलग-अलग किशोरों में अलग-अलग होता है
पैर और हाथ की लंबी हड्डियों का विकास तीव्रता से होता है।
किशोर की लंबाई 8 से 9 इंच तक प्रति वर्ष बढ़ जाती है।
12 से 14 वर्ष में बच्चे अपने समूह में जाने की चेष्टा करने लगते हैं।
इस अवस्था में तीव्र सामाजिक विकास होता है।
गतिशील यौन विकास होता है।
कुछ अभिभावक इस सामान्य व्यवहार को स्वीकृत नहीं करते हैं और बच्चों को दोषी ठहराते हैं इस चरण में बच्चे घबरा जाते हैं और सामाजिक सांस्कृतिक सीमा और यौन इच्छाओं में संतुलन या समायोजन नहीं कर पाते हैं।

  1. मूल अवस्था-(14-16 वर्ष)

शारीरिक भावनात्मक बौद्धिक क्षमता के विकास को दर्शाता है।
इस चरण में यौन लक्षण का विकास जारी रहता है।
और उनके प्रजनन अंग शुक्राणु उत्पन्न करने में सक्षम होने लगते हैं।
इस उम्र में किशोर अपने आप को माता-पिता से दूर रखने लगते है।
वह प्रायः आदर्शवादी बनते हैं और यौन विकास को जानने की इच्छा निरंतर बढ़ती जाती है।
यह चरण बच्चों के साहस और प्रयोग से भरा होता है।
प्रत्येक किशोर अपने विपरीत लिंग और समवयस्क समूह से संबंध रखना चाहता है।
14 से 16 वर्ष में बच्चा अपने अस्तित्व को जानना चाहता है और समाज में योगदान भी करता है।
बच्चे की मानसिकता जटिल हो जाती है।
इससे उसकी भावना गहरी और घनिष्ठ हो जाती है।
निर्णय लेने की शक्ति आ जाती है।

  1. किशोरावस्था का अंतिम चरण-(16-18 वर्ष)

यौन लक्षण पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं
इनके यौन अंग प्रौढ़ कार्यकलाप में पूर्णतः सक्षम हो जाते हैं।
समाज में अलग पहचान बनाने लगते हैं।
कई बार उनकी यह पहचान वास्तविकता से परे होती है।
अब मित्रों के चयन की प्रवृत्ति होती है।
किशोर अपने जीवन के लक्ष्य को समझने लगता है।
हालांकि अभी भी कहीं वर्षों तक अभिभावक पर ही निर्भर रहता है।
अब वह सही गलत की पहचान कर पाता है
नैतिकता का विकास होता है
भविष्य के लिए अभिलाषी हो जाते हैं।
अपने कार्य के लिए वह अपने अभिभावक एवं समाज का समर्थन चाहते हैं ताकि उनके कार्य का संपादन हो।

Notes by Ravi kushwah

💐 किशोरावस्था के तीन चरण💐

1 पूर्व किशोरावस्था 12 से 14 year
2 मूल किशोरावस्था 14 से 16 year
3 अंतिम किशोरावस्था 16 से 18 year

1 पूर्व किशोरावस्था प्रारंभिक किशोरावस्था 12 से 14 वर्ष👉 इस चरण में शारीरिक विकास अचानक तेज झलकता है अलग-अलग किशोरों में अलग-अलग होता है पैर और हाथ की लंबी हड्डी का विकास तीव्रता से होता है किशोर की लंबाई 8 से 9 इंच तक प्रति वर्ष बढ़ जाती है
इस एज में बच्चे अपने समूह में जाने की चेष्टा करने लगते हैं
तीव्र सामाजिक विकास होता है गतिशील यौन विकास होता है
कुछ अभिभावक इस सामान्य व्यवहार को स्वीकृत नहीं करते हैं और बच्चों को दोषी ठहराते हैं इस चरण में बच्चे घबरा जाते हैं और सामाजिक संस्कृति सीमा और यौन इच्छाओं में संतुलन नहीं कर पाते हैं

2 मूल किशोरावस्था 14 से 16 वर्ष👉 शारीरिक भावनात्मक बौद्धिक क्षमता के विकास में दर्शाता है इस चरण में यौनलक्षण का विकास जारी है और उनके प्रजनन अंग शुक्राणु उत्पन्न करने में सक्षम होने लगते हैं
मूल अवस्था में किशोर अपने आप को माता-पिता से दूर रखने लगता है
वह प्रायः आदर्शवादी बनते हैं और एवं विकास को जानने की इच्छा निरंतर बढ़ती जाती हैं

यह चरण साहस और प्रयोग से भरा होता है
प्रत्येक किशोर अपने विपरीत लिंगी और समवयस्क समूह से संबंध रखना चाहता है
14 से 16 में बच्चा अपने अस्तित्व को जानना चाहता है और समाज में योगदान भी करता है

बच्चे की मानसिकता जटिल हो जाती है
इससे उसकी भावना गहरी और घनिष्ठ हो जाती है
निर्णय लेने की शक्ति आ जाती है💐किशोरावस्था का अंतिम चरण💐

1 यौन लक्षण पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं
2 इनके यौन अंग प्रौढ़ कार्यकलाप के में पूर्णता सक्षम हो जाते हैं
3 समाज में अलग पहचान बनाने लगते हैं
4 कई बार उनकी यह पहचान वास्तविकता से परे होती हैं
5 अब मित्रों के चयन की प्रवृत्ति होती हैं
6 किशोर जीवन के लक्ष्य को समझने लगते हैं
7 हालांकि अभी भी कई वर्षों तक अभिभावक पर निर्भर रहते हैं
8 अब वह सही गलत की पहचान कर पाते हैं
9 नैतिकता का विकास होता है
10 भविष्य के अभिलाषी हो जाते हैं
11 अपने कार्य के लिए वह अभिभावकों एवं समाज का समर्थन चाहते हैं ताकि उनके कार्य का सम्मान हो

sapna sahu🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃

🏵️ किशोरावस्था के तीन चरण होते हैं 🏵️
1- पूर्व किशोरावस्था-12-14 वर्ष
2-मूल किशोरावस्था-14-16 वर्ष
3-अंतिम किशोरावस्था-16-18
🌺 पूर्व किशोरावस्था/ प्रारंभिक किशोरावस्था 12-14
💫इस चरण में शारीरिक विकास अचानक के झलकता है पर यह परिवर्तन अलग- अलग किशोरों में अलग- अलग होता है।
💫पैर और हाथ की लंबी हड्डियों का विकास तीव्र होता है।
💫किशोर की लंबाई 8.9इंच तक प्रतिवर्ष बढ़ती है, 12 से 14 वर्ष में ज्यादा बढ़ती है।
💫14 वर्ष के बच्चे अपने समूह में जाने के चेष्टा करने लगते हैं।
💫इस अवस्था में तीव्र सामाजिक विकास, गतिशील यौन विकास होता है।
💫इस सामान्य व्यवहार को स्वीकृति नहीं करते हैं और बच्चे को दोषी ठहराने लगते हैं इस चरण में बच्चे घबरा जाते हैं और सामाजिक संस्कृत सीमाऔर यौन इच्छाओ विकास की इच्छा को संतुलन नहीं कर पाते हैं।
❇️❇️मुल किशोरावस्था 14-16❇️❇️
❇️शारीरिक भावात्मक बौद्धिक क्षमता विकास मैं दर्शाता है।
❇️इस चरण में यौन लक्षण का विकास जारी है और इसमें उनसे प्रजनन शुक्राणु उत्पन्न करने में सक्षम होने लगते हैं इस उम्र किशोर अपने माता पिता से दूर रहेंने लगते हैं।
❇️ वह प्रायःआदर्शवादी बनने और यौन विकास के जाने की इच्छा निरंतर बढ़ती जाती है यह चरण साहस और प्रयोग से भरा होता है।
❇️प्रत्येक किशोर अपने विपरीत लिंग और सामान्य समूह से संबंध रखना चाहता है।
❇️14-16 में बच्चा अपने अस्तित्व को जानना चाहता है चाहता है और समाज के योगदान में भीकरते है।
की मानसिकता जटिल हो जाती है निर्णय लेने की शक्ति आ जाती है।

🏵️ किशोरावस्था का अंतिम चरण 16-18वर्ष🏵️
🏵️यौन लक्षण पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं इनके यौन अंग प्रौढ़ कार्य कार्यक्रम में पूर्णतःसक्षम हो जाते हैं।
🏵️कई बार उनकी ये पहचान वास्तविक से परे होते हैं अब उनमें मित्रों का चयन की प्रवृत्ति आती है। किशोरावस्था जीवन के लक्षण को समझने लगते हैं।
हालांकि अभी भी कई वर्षों तक अभिभावक पर निर्भर रहते है।
🏵️नैतिकता का विकास होता है, ऐसी हो जाते हैं अपने कार्य के लिए योजना बनाने लगते हैं।
🙏✍️Notes by Laki ✍️🙏

18. CDP – Abstract Operational Stage PART- 5

🔆 किशोरावस्था शिक्षा की महत्वपूर्ण विशेषताएं

बच्चे का जीवन दो अलग-अलग नियम से विकसित होता है।
🔹 सहज परिपक्वता का नियम
🔹सीखने का नियम

⚜️ सहज परिपक्वता का नियम➖ कुछ चीजें उम्र बढ़ने के साथ ही अर्थात शारीरिक व मानसिक परिपक्वता उम्र बढ़ने के साथ खुद-ब-खुद आ जाती है ।
⚜️सीखने का नियम ➖कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हम सीखते हैं तभी आती हैं अन्यथा नहीं।

यह दोनों ही महत्वपूर्ण है।
✳️कुछ चीजें ऐसी है जो सहज परिपक्वता से आती है लेकिन हम उनको सीखने के नियम से जल्दी सीखना चाहते हैं जिससे कुछ ना कुछ परेशानी या कनफ्लिक्ट आते ही आते हैं।

✳️कई बार कुछ बच्चे जो शारीरिक क्षमता 20 से 22 वर्ष की उम्र में जो प्राप्त करनी चाहिए वह अब सीखने के नियम की मदद से 11 से 12 वर्ष की उम्र में ही प्राप्त कर लेते हैं ।

✳️सहज परिपक्वता बहुत महत्वपूर्ण होती है जिसे हम ज्यादा प्रायिकता या वेल्यू नहीं देते सीखने के नियम के साथ-साथ सहज परिपक्वता का होना भी बहुत जरूरी है।
अर्थात कुछ चीजें हमारे अंदर स्वत: या सहज या ऑटोमेटिक रूप से हमारे अंदर आते हैं और कुछ चीजों को हम सीखने के माध्यम से विचार करके अपने अंदर लाते हैं।

✳️यदि हम बच्चे को जल्दी-जल्दी विकसित करने के लिए कई बार जल्दी-जल्दी कुछ भी सीखा देते हैं अर्थात बालक के समुचित विकास के लिए हमें जल्दी-जल्दी कुछ भी नहीं सिखाना चाहिए।

✳️किसी भी काम को कितनी या उचित मात्रा में करना है यह अत्यंत महत्वपूर्ण है लेकिन जब हम अपनी क्षमता से अधिक मात्रा में किसी भी कार्य को कर तो लेते हैं लेकिन उस कार्य को पूरा करने की जो समझ है वह समझ का प्रभाव ज्यादा महत्वपूर्ण या असरदार नहीं होता या अभाव रहता है।

✳️प्रत्येक कार्य को करने का एक निश्चित क्रम या चरण होता है यदि कार्य को क्रमानुसार या एक के बाद एक सही रूप से किया जाए तो कार्य सफल होता है तथा साथ ही उस कार्य की समझ भी असरदार या प्रभावी और महत्वपूर्ण होती है।

✳️कई बार हम एक समय में एक से अधिक कार्य कर लेते हैं लेकिन कार्य तो हो जाता है लेकिन वास्तविक रूप से इसका विपक्ष देखा जाए तो हमें किसी भी क्षेत्र में कोई भी विशिष्टता या मुख्यता हासिल नहीं हो पाती।
✳️ दुनिया में हर प्राणी हर चीज हर कार्य में निपुण नहीं हो सकता हर व्यक्ति की किसी ना किसी कोई एक कार्य में विशिष्टता निश्चित होती है।
✳️ जब हम किसी कार्य को जल्दी सफल रूप से पूरा करना चाहते हैं और उस कार्य में असफल हो जाते हैं जिससे हमें निराशा होती है तो परिणाम स्वरूप हम दूसरे कार्य को करने लग जाते हैं यदि हम जो कार्य कर रहे हैं उसको पूरी लगन ,धैर्य और मेहनत से किया जाए तो निश्चित ही उस कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

✳️सीखना कोई यांत्रिक कार्य नहीं है जो लगातार चलता ही रहेगा। सीखना एक ऐसी चीज है यदि हम सीखने के दौरान सहज नहीं है तो कभी भी नहीं सीख पाएंगे।
मस्तिष्क कोई यांत्रिक वस्तु नहीं है उसकी कुछ सीमाएं हैं।

✳️सीखने का कार्य तभी अच्छा होगा जब हम सहज रूप से कार्य को सीखेंगे यदि हम असहज रूप से कार्य को कर भी लेते हैं तो वह कार्य को केवल अपनी स्मृति में रख पाएंगे बल्कि उससे कुछ सीख नहीं पाएंगे।

✳️जब कोई बात या कार्य हमारे जैसी यह हमारे अनुकूलित होती हैं तभी वह बात बेहतर रूप से समझ आती है।

✳️बालक जब सहज रूप से अपनी सभी मानसिक अवस्थाएं पार करता है तभी वह स्वस्थ व योग्य नागरिक बन पाता है ।
ना तो कोई व्यक्ति एकाएक बुद्धिमान बनता है और ना ही एकाएक परोपकारी।
बल्कि बुद्धि अनुभव के साथ बढ़ती है और अनुभव को सहज वातावरण में ही प्राप्त किया जाता है।

✳️सीखने का नियम भी तभी कार्य करेगा जब उसमें सहज परिपक्वता का नियम का समर्थन होगा या उस कार्य के लिए अनुकूलित होगा।

✳️पहले व्यक्ति में न्यून या निम्न कोटि की इच्छाएं जागृत होती है और जब इन इच्छाओं की समुचित रूप से तृप्ति या संतुष्टि हो जाती है तब जाकर ही उच्च कोटि की इच्छाओं का प्रादुर्भाव या जन्म या उद्गम या शुरुआत होती है।
✳️हर व्यक्ति की इच्छा हो कभी समाप्त नहीं होती एक छोटी या निम्न कोटि की इच्छा की पूर्ति होने पर आगे की इच्छाएं जन्म लेते हैं यह इच्छाएं जीवनपर्यंत चलती रहती है
✳️ यह मानसिक परिपक्वता के नियम के अनुसार है इसी प्रकार से चरित्र में स्थाई गुणों का विकास होता है।

✳️किशोरावस्था बचपन या बाल्यवस्था और युवावस्था के बीच का परिवर्तन काल है जिसको मानव जीवन की एक पृथक अवस्था के रूप में मान्यता केवल बीसवीं शताब्दी में मिल पाई है ।
पहले हजारों सालों तक बचपन – युवावस्था – बुढ़ापा। इन्हीं तीन अवस्थाओं से गुजरते थे ।

✳️ग्रामीण संस्कृति की यह वास्तविकता भी थी कि परिवार को चलाना या कमाने के संदर्भ में व्यक्ति पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में सीधे ही प्रौढ़ावस्था में कहा जाता था अर्थात बचपन से सीधे प्रौढ़ावस्था में आते थे।

✳️कई पूर्व समय में बच्चे अपने माता पिता के साथ कामों में हाथ बटाते थे और जैसे ही बचपन को पार कर लेते थे तो उनका विवाह करा दिया जाता था और वह अपनी जिम्मेदारी को संभालने के लिए बाध्य किया जाता था ।

✳️अब कई नई सामाजिक और आर्थिक धारणा की वजह से काफी परिवर्तन हुआ है।

❇️ बीसवीं शताब्दी से पूर्व – 🔸
कई कु प्रथाएं जैसे बाल विवाह, जल्दी-जल्दी या कम उम्र में बड़ी बड़ी जिम्मेदारी लेना, किशोरावस्था जैसी कोई अवस्था ना हो या बच्चे सीधे ही बचपन को पार करके प्रौढ़ावस्था की ओर बढ़ते थे।

🔸कई बच्चों का बाल विवाह करा दिया जाता था जिससे विवाहित बालक बालिका केवल जिम्मेदारियों को या कार्य को लेकर ही प्रौढ़ होते थे ना कि शारीरिक रूप से।

❇️ बीसवीं शताब्दी के पश्चात –
🔸कई परिवर्तन हुए बच्चे में जिम्मेदारी देरी से आती है लेकिन बच्चे का मानसिक विकास केवल जिम्मेदारियां कार्य को लेकर ही प्रौढ नहीं होता बल्कि साथ ही हार्मोनल परिवर्तन व शारीरिक परिवर्तन के साथ साथ प्रौढ़ होता है।

✳️कभी कभी देखा जाता है कि व्यक्ति का शरीर तो समयानुसार परिपक्व या हार्मोन परिवर्तन हो जाता है लेकिन वह मानसिक रूप से अपने आप को परिपक्व नहीं मानते हैं और इस परिपक्वता को प्राप्त करने की देरी में विवाह जैसे कार्य भी देरी से या कभी नहीं भी करते हैं।

✳️जब यह माना जाता है कि मानसिक रूप से तैयार नहीं है तो ऐसा नहीं है कि शारीरिक विकास या हार्मोन परिवर्तन में भी देरी होगी वह निरंतर या समय अनुसार चलता ही रहेगा शारीरिक परिवर्तन या हार्मोनल परिवर्तन में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता बल्कि अपने कार्य को अभिप्रेरित रूप से सही दिशा, सही समय ,सही रूप व सही ढंग से जरूर किया जा सकता है।

✍️
➖Notes By-Vaishali Mishra

🔆 किशोरावस्था शिक्षा की महत्वपूर्ण विशेषताएं ➖

बालक का जीवन दो महत्वपूर्ण नियमों से परिपक्व होता है —-

1) सहज परिपक्वता का नियम

2) सीखने का नियम

बालक के समुचित विकास के लिए उसे जल्दी-जल्दी कुछ भी सिखा नहीं देना चाहिए अन्यथा जो भी सीखा हुआ है वह भी अच्छे से प्रयोग नहीं कर पाएगा और उसे भी नहीं सीख पाएगा |

सीखने का कार्य अच्छा तभी होता है जब वह सहज रूप से होता है यदि हम किसी कार्य को सीखने में सहज नहीं है तो वह सीखने में योगदान नहीं दे सकता है बालक जब सहज रूप से अपनी सभी मानसिक अवस्थाएँ पार करता है तभी वह स्वस्थ और योग्य नागरिक बन पाता है अन्यथा वह योग्य नागरिक नहीं बन सकता है |

ना तो कोई व्यक्ति एकाएक बुद्धिमान बनता है ना तो परोपकारी |
हमारी अथवा बच्चों की बुद्धि अनुभव के साथ बढ़ती है |

जैसे यदि किसी बच्चे को यह बताया जाता है कि आग से खतरा है तब वह आग से नहीं डरता है लेकिन यदि उसका हाथ आग से जल जाता है तो वह समझ जाता है कि आग से खतरा है क्योंकि उसने यह स्वयं अनुभव किया है |

किशोरावस्था के बच्चों में पहले न्यूनकोटि की इच्छा जागृत होती है जिनकी समुचित रूप से तृप्ति या पूर्ति हो जाती है तब जाकर उच्च कोटि की इच्छाओं का प्रादुर्भाव होता है |
जैसे किसी व्यक्ति को पहले साइकिल चाहिए जब उसके बाद साइकिल आ जाती है तब वह मोटरसाइकिल की इच्छा और जब मोटरसाइकिल की इच्छा पूरी हो जाती है वह कार की इच्छा करता है यदि इस प्रकार बच्चों की जो इच्छाएं हैं वे कभी खत्म नहीं होती है नियमित रूप से बढ़ती जाती है बच्चों की निम्न कोटि की इच्छाएं पूरी हो जाती है तभी उनमें उच्च कोटि की इच्छाओं का जन्म होता है |

इन सभी इच्छाओं का जागृत होना मानसिक परिपक्वता के नियम के अनुसार है इसी प्रकार से चरित्र में स्थाई गुणों का विकास होता है |

किशोरावस्था बचपन और युवावस्था के बीच का परिवर्तन काल है जिसको मानव जीवन की एक पृथक अवस्था के रूप में मान्यता केवल बीसवीं शताब्दी में मिल पाई है |

बीसवीं शताब्दी पहले समाज में कुप्रथा थे जिसको बाल विवाह के नाम से जाना जाता है जिसमें बच्चों को समय से पहले प्रौढ़ बनाया जाता था |

उस समय बचपन अवस्था , प्रौढ़ और बुढापा ही होता था|

जिसमें बीसवीं शताब्दी से कुछ परिवर्तन हुआ और किशोरावस्था का जन्म हुआ |

🍀 बीसवीं शताब्दी से पहले बाल विवाह करके जिम्मेदारियों का बोझ डाला जाता था |
और किशोरावस्था जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था जिसमें बच्चे बचपन से सीधी प्रौढ़ होते थे |
लेकिन जब बच्चों के बालविवाह में परिवर्तन हुआ और उस प्रथा का विनाश किया गया तथा जिम्मेदारियों का बोझ भी बच्चे के सिर से कम हो गया नई सामाजिक और आर्थिक बदलाव की वजह से समाज में काफी परिवर्तन हुआ है शिक्षा और रोजगार की खोज में भी लोगों में जागरूकता का विकास हुआ |

जिनका सीधा प्रभाव बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास दोनों पर पड़ता है यदि बच्चा अपने माता पिता के साथ नहीं है तो उसका बाहरी वातावरण श्रसे संपर्क होना निश्चित है जिसका प्रभाव बच्चे के भावी जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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किशोरावस्था की शिक्षा की महत्वपूर्ण विशेषताएं

बालक का जीवन दो महत्वपूर्ण नियमों से परिपक्व होता हैं

  1. सहज परिपक्वता का
  2. सीखने का नियम

बालक की समुचित विकास के लिए हमें उसे जल्दी-जल्दी कुछ भी नहीं सिखाना चाहिए।
जैसे कई बार ऐसा होता है बालक या बालक के माता-पिता बालको से कम उम्र में यह अपेक्षा करने लग जाते हैं कि उनके बालक इतने परिपक्व हो गए हैं कि मोटरसाइकिल चला सकते हैं लेकिन वह बालक मानसिक रूप से तो परिपक्व हो जाता है लेकिन शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं हो पाता है। और वह मोटरसाइकिल चलाना सीखते समय दुर्घटनाग्रस्त हो जाते।

सीखने का कार्य अच्छा तभी होता है जब वह सहज रूप से होता है।
जैसे कि जब हमें भूख लगती हैं तो हम सहज रूप से खाना खाते हैं लेकिन जब हमें भूख नहीं लग रही होती हैं और हमें जबरदस्ती खिलाया जाए तो वह हमारे पेट में अपच करेगा।

बालक सहज रूप से अपनी मानसिक अवस्थाएं पार करता है तभी वह स्वस्थ और योग्य के नागरिक बन पाता है।

ना तो कोई व्यक्ति एकाएक बुद्धिमान होता है ना तो परोपकारी।
हमारी अथवा बच्चे की बुद्धि भी अनुभव के साथ बढ़ती हैं।
उसकी बुद्धि अनुभव के साथ बढ़ती है पहले न्यून कोटि की इच्छा जागृत होती है जब बाद में इनकी समुचित रूप से तृप्ति होती है तब उच्च कोटि की इच्छा का प्रादुर्भाव या उत्पन्न होती है।
जैसे जब हम पहली बार किसी कार्य को करते हैं तो उस कार्य को हम बहुत ही सतर्कता के साथ करते हैं लेकिन जब हम उसी कार्य को दोबारा करते हैं तो पहले हुआ अनुभव हमारे काम आता है और हम उस कार्य को पहले की तुलना में जल्दी और आसानी से कर लेते हैं।
ऐसे ही जब किसी छोटे कार्य में सफलता हासिल कर लेते हैं तो हम और दूसरे बड़े कार्यों को करने का प्रयास करते हैं।

यह मानसिक परिपक्वता के नियम के अनुसार है।

इसी प्रकार से चरित्र में स्थायी गुणों का विकास होता है।

किशोरावस्था, बचपन और युवावस्था के बीच का परिवर्तन काल है जिसको मानव जीवन की एक पृथक अवस्था के रूप में मान्यता केवल बीसवीं शताब्दी में मिल पाई।
नई सामाजिक और आर्थिक धारणा की वजह से काफी परिवर्तन हुआ है।
बीसवीं शताब्दी से पहले बचपन, युवावस्था, बुढ़ापा आदि अवस्थाएं चलती थी लेकिन किशोरावस्था की अवधारणा या संप्रत्यय नहीं थी। उस समय बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं प्रचलित थी। जिसके कारण बालकों का विवाह कम उम्र में हो जाता था तो उनको जल्दी जिम्मेदारी आ जाती थी इसके कारण वह बचपन से सीधे प्रौढ़ हो जाते थे। वह जिम्मेदारी के कारण मानसिक रूप से तो परिपक्व हो जाते थे लेकिन शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं हो पाते थे। शारीरिक परिपक्वता उनमें बाद में आती थी। हार्मोनल परिवर्तन बाद में होते थे।
बीसवीं शताब्दी के बाद किशोरावस्था की अवधारणा या संप्रत्यय आया । अब बाल विवाह जैसी कुप्रथाए समाप्त हो गई है जिससे बाल को पर जिम्मेदारी थोड़ी देरी से आती है।
लेकिन हार्मोनल परिवर्तन पहले हो जाते हैं और मानसिक परिपक्वता बाद में आती है।

इस समय बालक शिक्षा और रोजगार की खोज में पलायन करते हैं।

Notes by Ravi kushwah

17. CDP – Abstract Operational Stage PART- 4

💐💐 किशोरावस्था की समस्याएं💐💐

👉 किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है

👉 इस अवस्था में बच्चों की हड्डियों में दृढ़ता आती है

👉 इस बीच में भूख बहुत अधिक लगती है क्योंकि यह एक शारीरिक परिपक्वता की अवस्था होती है इसलिए हमें अपने शरीर के पोषण के लिए भूख अधिक लगती है

👉 कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है

👉 इसके कारण बच्चों में शरीर में स्थित ग्रंथियों में स्त्राव होता है इससे बहुत सारी यौन क्रियाएं बालक अनायास ही करने लगते हैं

👉 भाव का विकास होता है भाव के अंदर आवेश तीव्र भी होता है

👉 अपनी स्नेह पसंद श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार होते हैं

👉 किशोर बालक सदा असाधारण काम करना चाहते हैं वह दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है जब तक वह इस कार्य में सफल हो जाते हैं वह अपने जीवन को सार्थक मानते हैं

👉 ढींगे मारने की प्रगति किशोरावस्था में अत्यधिक होती है( बड़ी-बड़ी बातें करते हैं)

👉 किशोरावस्था में नए नए प्रयोग बच्चे करते रहते हैं

👉 किशोरावस्था में बच्चों को दूर-दूर घूमने की रुचि रहती है( Jaise long drive per Jana )

👉 किशोरावस्था में बच्चों का बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है

👉 बच्चों की चिंतन शक्ति अच्छी हो जाती है इसलिए उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना आवश्यक
है( बच्चों को बच्चों को इस प्रकार के कार्य दिए जाएं जिसमें वह अपनी बुद्धि एवं तर्क का यूज़ करें)

👉 किशोरावस्था में बच्चों को अभिनय करना भाषण देना लेख लिखना इन सबके सहज रुचि होती है इसलिए सिर्फ मां बाप से काम नहीं चलेगा बल्कि कुशल शिक्षकों के द्वारा किशोर का बौद्धिक विकास अनेक साधनों की सहायता से करना अनिवार्य है

👉 किशोर बालक में सामाजिक भावना प्रबल होती है वह समाज में सम्मान के साथ जीना चाहता है वह अभिभावकों से सम्मान की आशा करता है( जैसे आपने देखा होगा कि बहुत से बच्चे कहते हैं कि उनके पड़ोसी ने उन्हें स्वयं नहीं बोला है इसलिए वह उनके यहां किसी भी फंक्शन में नहीं जाएंगे क्योंकि उन्होंने पापा को बोला है)

👉 लेकिन अगर उनसे आप 8 से 10 साल ke बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं तो बच्चे की मानसिक ग्रंथियां उत्पन्न हो जाती हैं आपकी मानसिक और शारीरिक शक्ति का hras होता है अनेक मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं

🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃sapna sahu 🍃🍃🍃🍃🍃🍃

💫🌸 किशोरावस्था की समस्याएं🌸💫

🌻 किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है।

🌻 इस अवस्था में बच्चों के हड्डियों में दृढ़ता आती है।

🌸 इस उम्र में भूख अधिक लगती है।

🌸कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है।

🌻 इसके कारण बच्चों के शरीर में स्थित ग्रंथियों का स्त्राव होता है इससे बहुत सारे यौन क्रियाएं बालक अनायास ही करने लगता है।

🌻 भाव का विकास होता है भाव के अंदर आवेग तीव्र होता है।

🌻अपने स्नेह ,पसंद, श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार होते है।

🌻 किशोर बालक सदा असाधारण काम करना चाहता है ताकि दूसरों को ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो सके।

🌻 जब तक वह इस कार्य में सफल हो पाता है वह अपने जीवन को सार्थक मानते है।

🌻 डींगे मारने की प्रगति किशोरावस्था में अधिक होती है।

🌻दूर-दूर घूमने की रूचि होती है और अपने हम उम्र के बच्चों के साथ रहना पसंद करते हैं।

🌻 बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है।

🌻उनकी चिंतन शक्ति अच्छी हो जाती है इसलिए उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कर देना आवश्यक है।

🌻 अभिनव करना ,भाषण देना, लेख लिखना इन सब की सहज रुचि होती है।

🌻इसलिए कुशल शिक्षकों के द्वारा किशोर के बौद्धिक विकास अनेक साधनों की सहायता से कराना अनिवार्य है।

🌻 किशोर बालक में सामाजिक भावना प्रबल होती है वह समाज में सम्मान के साथ जीना चाहता है वह अभिभावकों से सम्मान की आशा करता है जैसे आपने देखा होगा कि बहुत से बच्चे कहते हैं कि उनके यहां किसी भी फंक्शन में नहीं जाएंगे क्योंकि उन्होंने पापा को बोला है।

🌻 लेकिन अगर उनमें आप 8 से 10 साल के बच्चों की तरह व्यवहार करते है तो बच्चे की मानसिक ग्रंथियां उत्पन्न हो जाती हैं आपकी मानसिक और शारीरिक शक्ति का हर्ष होता है और मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚✍🏻

🔆 किशोरावस्था की समस्याएं ➖

🎯 किशोर अवस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है |

🎯 इस अवस्था में बच्चों की हड्डियों में दृढ़ता आती है |

🎯 इस उम्र में भूख काफी लगती है |

🎯 कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है |

🎯 इसके कारण बच्चों के शरीर में स्थित ग्रंथियों में स्त्राव होने लगता है बहुत सारी यौन क्रियाएँ बच्चा अनायास ही करने लगता है |

🎯 इस उम्र में भाव का विकास होता है और भाव के अंदर बहुत तीव्र होता है | जो उनको चाहिए जिससे उनको प्रेम है या श्रद्धा है वह उसको पाने के लिए आतुर रहता है |

🎯 अपने स्नेह, पसंद ,और श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार होते हैं वे अपनी अमूर्त सोच का प्रयोग नहीं कर पाते हैं कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं |

🎯 किशोर बालक सदैव असाधारण काम करना चाहते हैं वह दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं जब तक वह इस कार्य में सफल हो पाते हैं अपने जीवन को सार्थक मानते हैं ऐसा नहीं होने पर अपने जीवन को निरर्थक लगते हैं |

🎯 डींग मारने की प्रवृत्ति किशोरावस्था में अधिक होती है |

🎯 वह हमेशा नए नए प्रयोग करता है |

🎯 दूर-दूर घूमने की रूचि रहती है |

🎯 बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है |

🎯 उनकी चिंतन शक्ति अच्छी हो जाती है |

🎯 इसलिए उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना आवश्यक है |

🎯 अभिनय करना ,भाषण देना,, लेख लिखना,,इन सब की सहज रूचि होती है |

🎯 इसलिए कुशल शिक्षकों के द्वारा किशोर के बौद्धिक विकास अनेक साधनों की सहायता से करना अनिवार्य है |

🎯 किशोर बालक में सामाजिक भावना प्रबल होती है समाज में सम्मान के साथ जीना चाहता है | अपने अभिभावकों से भी सम्मान आशा करता है |

🎯 लेकिन अगर उनसे आप 8-10 जैसे बच्चों की तरह समान व्यवहार नहीं करते हैं तो उनमें द्वेष की मानसिक ग्रंथियाँ उत्पन्न हो जाती है आपकी मानसिक और शारीरिक शक्ति की हानि होने लगती है और उसके साथ-साथ मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🌼🤔🤔🤔🤔🌼🌸🌻🍀🌼🌸🍀🍀🌻🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼

🦹🏻‍♂️🙎🏻‍♂️🔥 किशोरावस्था की समस्याएं🔥🙎🏻‍♂️🦹🏻‍♂️

🔸 किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है।

🔸 इस अवस्था में बच्चों की हड्डियों में दृढ़ता आती है।

🔸 इस उम्र में भूख काफी लगती है

🔸किशोरावस्था में कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है।

🔸 इसके कारण बच्चों के शरीर में स्थित ग्रंथियों में स्त्राव होता है इससे बहुत सारी यौन क्रियाएं बालक अनायास ही करने लगता है।

🔸 किशोरावस्था में बच्चों में भाव का विकास होता है भाव के अंदर आवेश तीव्र भी होता है।

🔸 किशोरावस्था में बालकों में स्नेह पसंद श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार होते हैं।
🔸
किशोर बालक सदैव असाधारण काम करना चाहते हैं अर्थात कुछ अलग हटकर ही करते हैं जिससे वह दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं।

🔸 किशोरावस्था में बालक मारने की डींग मारने की प्रवृत्ति अत्यधिक होती है।
🔸 इस अवस्था में बालक हमेशा कुछ न कुछ नए प्रयोग करते रहता है।

🔸 दूर-दूर घूमने की रुचि रहती है बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है

🔸 उनकी चिंतन शक्ति अच्छी हो जाती है इसीलिए उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना आवश्यक है।

🔸 किशोरावस्था में बालकों को अभिनय करना, भाषण देना, लेख लिखना इन सब की सहज रुचि होती है।
इसीलिए कुशल शिक्षकों के द्वारा किशोरों के बौद्धिक विकास अन्य साधनों की सहायता से करना अनिवार्य है
उनको उचित मार्गदर्शन की अति आवश्यकता होती है

🔸 किशोर बालकों में सामाजिक भावना प्रबल होती है ।
वह समाज में सम्मान के साथ जीना चाहता है तथा वह अपने अभिभावकों से भी सम्मान की आशा करता है।

🔸 लेकिन अगर आप उनसे 8 या 10 साल के बच्चे जैसे व्यवहार करते हैं तो उनके मन में द्वेष की मानसिक ग्रंथियां उत्पन्न हो जाती हैं जिससे मानसिक और शारीरिक शक्ति का ह्रास होता है जिसके कारण उनमें मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। 🙎🏻‍♂️🦹🏻‍♂️🙎🏻‍♂️🦹🏻‍♂️🙎🏻‍♂️🦹🏻‍♂️🙎🏻‍♂️

🌻🌼Notes by
Shashi chaudhary🌼🌻

किशोरावस्था की समस्याएं

किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है।
इस अवस्था में बच्चों की हड्डियों में दृढ़ता आती है।
इस उम्र में भूख काफी लगती हैं ।
कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है।
इसके कारण बच्चे के शरीर में स्थित ग्रंथियों में स्त्राव होता है इससे बहुत सारी यौन क्रियाए बालक अनायास ही करने लगता है।
अपने स्नेह पसंद श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार होते हैं।
किशोर बालक सदा असाधारण काम करना चाहते हैं वह दूसरों का ध्यान अपनी और आकर्षित करना चाहते हैं जब वह इस कार्य में सफल हो पाते हैं तो वह अपने जीवन को सार्थक मानते हैं।
डींग मारने की प्रवृत्ति किशोरावस्था में अत्यधिक होती है।
वह हमेशा नए नए प्रयोग करता है दूर-दूर तक की रुचि रहती है।
बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है।
उनकी चिंतन शक्ति अच्छी हो जाती है इसलिए उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना चाहिए।
अभिनय करना, भाषण देना ,लेख लिखना इन सब की सहज रुचि होती है।
इसलिए कुशल शिक्षकों के द्वारा किशोर के बौद्धिक विकास अनेक साधनों की सहायता से करना अनिवार्य है।
किशोर बालक में सामाजिक भावना प्रबल होती है वह समाज में सम्मान के साथ जीना चाहता है वह अभिभावकों से भी सम्मान की आशा करता है।
लेकिन अगर उनसे आप 8 से 10 साल जैसे बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं तो उन्हें द्वेष की सामाजिक ग्रंथियां उत्पन्न हो जाती है उनकी मानसिक और शारीरिक शक्ति का ह्रास होता है।
अनेक मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

Notes by Ravi kushwah

✨ किशोरावस्था की समस्या ✨
❇️किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता कि अवस्था है।
इस अवस्था में बच्चों के हड्डियों में दृढ़ता आती है।
इस उम्र में भूख अधिक लगती है।
❇️कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है।
❇️इसके कारण बच्चों के शरीर में स्थित ग्रंथियों मिश्रा होता है बहुत सारी यौन क्रिया बालक अनायास ही करने लगता है।
❇️भाव का विकास होता है भाव के अंदर आवेग तीव्र होता है।
❇️अपने स्नेह, पसंद और श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहता है।
❇️सदा असाधारण काम करना चाहता है ताकि दूसरों की ध्यान उसके और आकर्षित हो।
❇️जब वह इस कार्य में सफल हो पाता है तब वह अपने जीवन को सार्थक मानते हैं ।
❇️डींगे की मरने की प्रवृत्ति की किशोरो में अधिक होती है।
❇️दूर -दूर घूमने की रूची होती है और अपने हम उम्र के बच्चों के साथ रहना पसंद करते हैं।
❇️बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है।उनको उनके बौद्धिक विकास के अनुसार ही कार्य देनी चाहिए। किशोरों को बच्चे ना समझे और और ना ही अधिक समझदार, अधिक परिपक्व।
❇️उनकी चिंतन शक्ति अच्छी हो जाती है। इस लिए उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना आवश्यक है।
❇️अभिनय करना भाषण देना ,लेख लिखना इन सब की सहज रूचि होती है।
❇️इसलिए प्रसन्न शिक्षकों के द्वारा किशोर के बौद्धिक विकास उनके शंन संसाधनों की सहायता करना अनिवार्य है।
❇️किशोर बालक में सामाजिक भावना प्रबल होती है वह समाज के सम्मान के साथ देना चाहते हैं। और वह अपने अभिभावक के साथ भी सम्मान की आशा करते हैं।
❇️लेकिन अगर उनसे आप 8 – 10 जैसे बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं द्वेष की मानसिक ग्रंथियां है जो उत्पन्न हो जाती हैं और मानसिक आदर्श शक्ति शारीरिक शक्ति का हार्ष होता है और मानसिक रोग उत्पन्न हो जाता है।
📓📓✍️ Notes by Laki 🍃✍️🙏

किशोरावस्था की समस्या

💥💥💥💥💥💥💥💥

👉 किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था होती है।

👉 इस अवस्था में बच्चों की हड्डियों में दृढ़ता आती है।

👉 इस उम्र में बच्चों को भूख काफी लगती है।

👉 कामुकता की अनुभूति बच्चों में 13 साल में होने लगती है अतः जिसके कारण बच्चों के शरीर में स्थित ग्रंथियों में स्राव होता है जिससे बहुत सारी यौन क्रियाएं बच्चे अनायास ( बिना सोचे - समझे ) ही करने लगते हैं।

👉 इस अवस्था में भाव का विकास होता है और भाव के अंदर आवेग की तीव्रता भी होती है।

👉 इस अवस्था में बच्चे अपने स्नेह / प्रेम , पसंद , श्रद्धा की चीजों को पाने के लिए सब कुछ त्याग करने को तत्पर रहते हैं।

👉 किशोर बच्चे सदा असाधारण काम करना चाहते हैं , और दूसरों का ध्यान भी अपनी और आकर्षित करना चाहते हैं अतः जब तक वह इस कार्य में सफल होते हैं वह अपने जीवन को सार्थक मानते हैं।

👉 डींग मारना / बड़ी-बड़ी बातें करना या दिखावा करने की प्रवृत्ति किशोरावस्था में अत्यधिक होती है।

👉 किशोर बच्चे हमेशा नए – नए प्रयोग करते रहते हैं।

👉 इस अवस्था में बच्चों को दूर-दूर घूमने की रुचि होती है।

👉 किशोरावस्था में बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है।

👉 किशोरावस्था में बच्चों की चिंतन शक्ति अच्छी / तीव्र हो जाती है। अतः चिंतन शक्ति तीव्र विकसित होने की विशेषता में ही उन्हें पर्याप्त बौद्धिक कार्य आवश्य देने चाहिये।

👉 इस उम्र में बच्चों में अभिनय करना , भाषण देना , लेख- लिखना आदि इन सब की सहज रुचि होती है। इसलिए कुशल शिक्षकों के द्वारा किशोरों का बौद्धिक विकास अनेक साधनों के सहयोग से करना अनिवार्यतः होना चाहिए।

👉 किशोर बच्चों में सामाजिक भावना प्रबल होती है और वह समाज में अपने एक अलग सम्मान के साथ जीना चाहते हैं तथा अपने अभिभावकों से भी सम्मान पाने की आशा करते हैं।

👉 लेकिन किशोरावस्था में यदि बच्चों से आप 8 – 10 साल के बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं तो उनमें द्वेष की मानसिक ग्रंथियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और वह अपनी मानसिक एवं शारीरिक शक्ति का ह्रास कर देते हैं

अंततः उनमें शारीरिक के साथ-साथ अनेक मानसिक रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं।

🌺✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️🌺

#16. CDP – Abstract Operational Stage PART-3

*🌸किशोरावस्था की समस्या🌸*

  *(problem of adolescence)*

Date-24.february 2021

👉 यह एक संवेदनशील अवधि है जब व्यक्ति में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं यह परिवर्तन इतने  आकस्मिक और तीव्र होते हैं कि समस्याओं का जन्म हो जाता है. 

👉 किशोर इन परिवर्तनों का अनुभव तो करते हैं लेकिन प्रायः इन परिवर्तनों को समझने में असमर्थ होते हैं. 

👉 इस अवस्था में उनके पास इन परिवर्तनों को समझने का कोई वैज्ञानिक स्त्रोत नहीं रहता, लेकिन इन परिवर्तनों को समझने की जिज्ञासा होती है इसके लिए वह अपने आयु समूह या  समवयस्क की मदद लेते हैं या कई बार गुमराह करने वाले सस्ते साहित्य और वीडियो देखते हैं. 

👉 ऐसी स्थिति में गलत सूचनाएं मिलने के कारण किशोर अक्सर कई भ्रांतियों के शिकार हो जाते हैं  जिसके कारण व्यक्तित्व के विकास पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. 

👉  किशोरों में समस्या इसलिए भी आती है क्योंकि विपरीत लिंग के प्रति जागृत, रुचि को ठीक से नहीं समझ पाते हैं. 

👉1. इस अवस्था में किशोरों में माता-पिता से दूर रहने की प्रवृत्ति पाई जाती है. 

2. सम आयु समूह से गहरा मेल-मिलाप होता है. 

 उपरोक्त दोनों कारण उनके मन में संशय और चिंता पैदा करते हैं। 

 माता-पिता या परिजनों के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चे को समवयस्क समूह की तरफ उन्मुख होना पड़ता है। 

👉 प्रायः देखा गया है कि किशोर सम आयु के दबाव के सामने विवश हो जाते हैं और बिना परिणाम के सोचे अनुचित कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं कुछ किशोर गलत आदतें जैसे-सिगरेट, शराब, मादक द्रव्य का सेवन करने लगते हैं और कुछ यौनाचार की तरफ आकर्षित हो जाते हैं. 

👉 किशोरावस्था को मनुष्य का बसंत काल कहा जाता है क्योंकि इस अवस्था में नई-नई चीजें का अनुभव होता है. 

👉 किशोरावस्था में सभी प्रकार की मानसिक शक्ति का विकास हो जाता है. भाव के विकास के साथ अमूर्त सोच की कल्पना का विकास होता है. 

👉 किशोरों में सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है. 

👉 किशोर नए-नए व ऊंचे-ऊंचे आदर्श को अपनाने लगते हैं. 

👉 बालक के भविष्य में जो कुछ भी होना होता है उसकी पूरी रूपरेखा किशोरावस्था में बन जाती है जाती है. 

👉अपनी परिस्थिति के अनुसार कई बच्चे धन कमाने लगते हैं. 

👉 इस अवस्था में किशोरों में अलग-अलग कला में रुचि बढ़ती बढ़ती है जैसे-चित्रकारी, खेल, लेखन आदि। 

👉 इस अवस्था में बच्चा सभी क्षेत्रों में महानता प्राप्त करना चाहता है और इन में सफलता प्राप्त करना चाहना जीवन की सफलता मानता है. 

👉 जो बच्चे किशोरावस्था में समाज सुधारक के सपने देखते हैं वह आगे चलकर राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं. 

🌸 कई मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर स्पष्ट किया है कि -” क्योंकि किशोरावस्था कामवासना की अवस्था है तो इसके कारण बच्चा खुद में नई शक्ति का अनुभव करता है वह सौंदर्य, बहादुरी और महानता के कार्य करने की प्रेरणा इस शक्ति से लेता है।”

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

💫🌻 किशोरावस्था की समस्या🌻💫

🪐 एक संवेदनशील अवधि है जो व्यक्ति में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं ,यह परिवर्तन इतनी आकस्मिक और तीव्र होते हैं कि समस्याओं का जन्म हो जाता है।

🪐 किशोर इन परिवर्तनों का अनुभव  तो करते हैं लेकिन प्राय: इसे समझने में असमर्थ होते हैं।

🪐अभी तक उनके पास इन परिवर्तनों को समझने का कोई वैज्ञानिक स्रोत नहीं रहता है।

🪐 लेकिन जिज्ञासा होती है इस वजह से इसके लिए वह अपने आयु समूह (सम वयस्क) की मदद लेते हैं या कई बार गुमराह किया (भटकने) वाले सस्ते साहित्य या वीडियो देखते हैं।

🪐गलत सूचनाएं मिलने के कारण अक्सर कई भ्रांतियों के शिकार हो जाते हैं व्यक्तित्व के विकास पर कुप्रभाव पड़ता है।

🪐किशोर में समस्या इसलिए भी आती है क्योंकि विपरीत लिंग के प्रति जागृत रुचि को ठीक से नहीं समझ पाते हैं।

🌼 मां बाप से दूर हटने की प्रवृत्ति होने लगती है।

🌼 सब आयु समूह से गहरा मेल मिलाप करने लगते हैं।

🌻लेकिन माता-पिता या परिजनों के उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चों को संभव एक समूह की तरफ उन्मुख होना ही पड़ता है।

🪐प्राया यह देखा जाता है कि किशोर सम समूह के दबाव के सामने विवश हो जाते हैं और बिना परिणाम के सोचे अनुचित कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं, कुछ सिगरेट, शराब, मादक द्रव्य का सेवन करने लगते हैं और कुछ यौनाचार की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।

🌻 किशोरावस्था को मनुष्य के जीवन का बसंत काल माना जाता है।🌻

🪐सभी प्रकार के मानसिक शक्ति का विकास हो जाता है भाव के विकास के पास अमूर्त सोच की कल्पना का विकास होता है।

🪐 सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है नए-नए ऊंचे ऊंचे आदर्शों को अपनाने लगते हैं।

🪐 बालक के भविष्य में जो कुछ भी होना होता है उसकी पूरी रूपरेखा किशोरावस्था में बन जाती हैं।

🪐जो बच्चे किशोरावस्था में समाज सुधारक के सपने देखते हैं वह आगे चलकर राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं।

🪐कई मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है “क्योंकि किशोरावस्था कामवासना की अवस्था है तो इसके कारण बच्चे खुद में नई शक्ति का अनुभव करते हैं वह सुंदर बहादुरी और महानता कार्य करने की प्रेरणा इस शक्ति से लेते हैं।”

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

किशोरावस्था की समस्याएं

💥💥💥💥💥💥💥

किशोरावस्था एक संवेदनशील अवधि है ।

जब व्यक्ति में इतने महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं तब ये परिवर्तन इतनी आकस्मिक , तीव्र होते हैं कि समस्याओं का जन्म हो ही जाता है।

किशोर इन परिवर्तनों का अनुभव तो करते हैं लेकिन प्रायः इन परिवर्तनों को समझने में असमर्थ रहते हैं।

किशोरावस्था तक उनके पास इन परिवर्तनों को समझने का कोई वैज्ञानिक स्रोत नहीं रहता है लेकिन जिज्ञासा होती है तो इसके लिए वह अपने आयु समूह या   समवयस्क की मदद लेते हैं या कई बार गुमराह करने वाले सस्ते साहित्य या वीडियो देखते हैं जिनसे गलत सूचनाएं मिलने के कारण अकसर कई भ्रांतियों के शिकार हो जाते हैं जिससे उनके व्यक्तित्व विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

किशोरों में समस्या इसलिए भी आती है क्योंकि विपरीत लिंग के प्रति जागृत रुचि को किशोरावस्था में  ठीक से नहीं समझ पाते हैं।

 किशोरावस्था में मां – बाप से दूर हटने की प्रवृत्ति हो जाती है।

किशोरावस्था में सम आयु समूह से गहरा मेल मिलाप बढ़ता है।

ऐसे विचार उनके मन में संशय और चिंता पैदा करते हैं लेकिन माता-पिता या परिजनों की उचित मार्गदर्शन के अभाव में बच्चों को समवयस्क समूह की तरफ उन्मुख होना पड़ता है।

प्रायः देखा गया है कि किशोर सम आयु के दबाव के सामने विवश हो जाते हैं और बिना परिणाम के सोचे समझे अनुचित कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं जैसे :-   कुछ सिगरेट , शराब , मादक द्रव्यों का सेवन करने लगते हैं और कुछ यौनाचार की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।

🏵️ किशोरावस्था को मनुष्य के जीवन का बसंत काल माना जाता है। 🏵️

किशोरावस्था में सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों का विकास हो जाता है , मन के विकास के साथ अमूर्त सोच की कल्पना का विकास हो जाता है।

सभी प्रकार के,  सौंदर्य के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है।

किशोरावस्था में बच्चे नई-नई , ऊंचे – ऊंचे आदर्शों को अपनाते हैं।

बालक के भविष्य में जो कुछ भी होता है उसकी पूरी रूपरेखा किशोरावस्था में बन जाती है।

किशोरावस्था में ही कई बच्चे धन / आय कमाने लगते हैं।

किशोरावस्था में अलग-अलग कक्षा में रुचि बढ़ती है और इन सभी में महानता प्राप्त करना चाहता है तथा इन सब  में सफलता प्राप्त करना वह जीवन भर की सफलता मानता है।

जो बच्चे किशोरावस्था में समाज सुधारक के सपने देखते हैं वह आगे चलकर समाज सुधारक / राजनीति के क्षेत्र में आते हैं।

कई में मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है कि क्योंकि,  किशोरावस्था कामवासना की अवस्था है तो इसके कारण बच्चे खुद में नई शक्ति का अनुभव करता है। वह सुंदर ,  बहादुरी और महानता के कार्य करने की प्रेरणा इस शक्ति से लेता है।

✍️ Notes by –  जूही श्रीवास्तव✍️

#15. CDP – Abstract Operational Stage PART-2

🌺🌺🌻🌻🌻🌻🌺🌺

किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण –

🌻🌻🌺🌺🌺🌺🌻🌻

🌈💥शरीरिक परिवर्तन- किशोरावस्था में शरीरिक परिवर्तन तीव्र होते है। विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होते हैं। जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं जिसका सीधा सम्बन्ध यौन विकास से है।

💫 बच्चे की मानसिक स्थिति के अनुसार शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

🌈💥 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन- 

👉  किशोरावस्था  मानसिक ,भौतिक और भावात्मक परिपक्वता के विकास की भी अवस्था है। 

👉 इस अवस्था में बच्चा माता पिता पर वक बच्चे की तरह निर्भर रहना चाहता है। और प्रौढ की तरह स्वतंत्र भी रहना चाहता है।

👉 इस अवस्था मे विपरीत लिंग की ओर आकर्षित भी होता है। 

👉 इस अवस्था में बच्चे के अंदर तनाव ज्यादा होता है चिड़चिड़ा पन ज्यादा होता है थोड़ी थोड़ी सी बातों में उसे गुस्सा आता है ।  

👉इसे अन्य नाम से भी जानते हैं जैसे – तनाव की अवस्था, वीर पूजा , संघर्ष की अवस्था, जीवन का अनोखा काल तूफान की अवस्था अन्य कई नामो से जाना जाता है।

👉इस अवस्था की अत्यंत संवेदनशील माना जाता है।

🌈💥 सामाजिक सांकृतिक परिवर्तन-

 👉 इस अवस्था मे बच्चा समाज की बातों को बहुत गहराई से देखता है। समाज से मेलजोल बनाता है। 

 👉समाज मे किशोरों की भूमिका को परिभाषित नही किया गया है। जिसके फलस्वरूप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आ जाता है । वह समझ नही पता है कि उसे किस स्थिति में किस तरह से निराकरण करना चाहिये।

👉किशोरों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज द्वारा कोई महत्व नहीं दिया जाता है जिसके कारण यही है कि बच्चा गलत दिशा में जा रहा है। उम्र की परिपक्वता से पहले ही वह चीज़ों को कर रहा है और सीख रहा है।

👉 बच्चे में इस अवस्था मे कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जिसके कारण बच्चे में तनाव की,तथा क्रोध की प्रवृत्ति उत्तपन्न होती है ।

👉किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

🌺🌹📚📚Notes by Poonam sharma💥💥💥

🔆 किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण ➖

किशोरावस्था शारीरिक, भावनात्मक और क्रियात्मक व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है इसमें चाहे शारीरिक परिवर्तन , या मानसिक परिवर्तन हो उनमें बहुत तीव्र गति से परिवर्तन होता है  | 

🎯 शारीरिक परिवर्तन➖

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं और विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त होते हैं इसका सीधा संबंध यौन विकास से होता है | किशोरावस्था में ऐसे परिवर्तन होते हैं जो इससे पहले कभी नहीं होते हैं किशोरावस्था में जो भी परिवर्तन होते हैं वे हार्मोनल विकास के परिवर्तन के कारण होते हैं जिनका प्रभाव गौंण यौन लक्षणों के साथ-साथ शारीरिक परिवर्तन से होता है |

🎯 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन➖

🍀किशोरावस्था मानसिक ,भौतिक, और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है |

🍀इस अवस्था में बच्चे छोटे बच्चे की तरह दूसरों पर निर्भर रहने की या अपने माता-पिता पर निर्भर रहने की उपेक्षा करता है वे निर्भर नहीं रहना चाहते हैं बल्कि प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं क्योंकि अभी  वह ना ही बच्चा है और ना ही बड़ा हुआ है उसमें अच्छी तरह से परिपक्वता नहीं आई है |

🍀इस अवस्था में बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जिसके कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है |

🍀इस अवस्था में बच्चे के अंदर अत्यधिक गुस्सा, अत्यधिक चिड़चिड़ापन और  समायोजन की क्षमता कम पाई जाती है इसलिए इसमें बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है |

🍀इस अवस्था को तूफान की अवस्था संघर्ष की अवस्था तनाव की अवस्था या बीज पूजा आदि नाम से भी जाना जाता है क्योंकि  इस अवस्था में बच्चे तनाव से ग्रसित होते हैं और स्वयं में संघर्ष करते हैं अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करते हैं इसलिए इस अवस्था को संघर्ष की अवस्था कहा जाता है |

🍀 यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गई है क्योंकि इसमें बच्चे अत्यधिक भावुक होते हैं और स्वयं को माता-पिता से दूर रखना चाहते हैं यदि वे माता पिता के साथ मानसिक रूप से सहज नहीं होते हैं तो वह दूसरों का सहारा लेते हैं जहां उन्हें मानसिक रूप से सहज महसूस होता है |

🎯 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन➖

🍀 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है इसके फलस्वरूप बच्चा खुद को बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच अपने आपको असमंजस की स्थिति में पाता है यहां तक की माता-पिता भी अपने बच्चों से प्रत्यक्ष रूप से विचार – विमर्श नहीं करते हैं जिसके कारण बच्चा अपने प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश करता है लेकिन उसके प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं रहता इसलिए बच्चा अपने आप से बाल्यावस्था और प्रौढ़ अवस्था के बीच असमंजस की स्थिति में पाता है |

🍀 किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है बच्चे अपनी खुद की पहचान बनाना चाहते हैं वे अपना वजूद बनाना चाहते हैं खुद को योग्य बनाना चाहते हैं यदि उनकी प्रशंसा नहीं होती है तो वे स्वयं को हीन दृष्टि से देखने लगते हैं क्योंकि उनकी मनोवैज्ञानिक  आवश्यकताओं को महत्व नहीं दिया जाता है  |

🍀 यदि बच्चे के परिवर्तन या स्वभाव को समाज स्थान नहीं देता है या उनकी उपेक्षा की जाती है उनके पक्ष  की अवहेलना की जाती है तो ऐसी स्थिति में बच्चे में क्रोध और तनाव की प्रकृति उत्पन्न होती है |

🍀 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल रहती है क्योंकि इसमें बच्चे अत्याधिक भावुक होते हैं और अपने भावनात्मक व्यवहार के कारण निर्णय लेने लगते हैं जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव होते हैं |

नोट्स बाय ➖ रश्मि सावले

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💫💫🌺 किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण🌺💫💫

🌼🌻 शारीरिक परिवर्तन➖

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होता है विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करता है इसका सीधा संबंध यौन विकास से है।

👉🏼 किशोरावस्था को शारीरिक विकास का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है।

🌼🌻 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन➖ किशोरावस्था मानसिक, भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की व्यवस्था है।

👉🏼 छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं।और प्रौढ़ व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

👉🏼 विपरीत लिंग के प्रति आकर्षक होते हैं।

👉🏼

बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है उसे छोटी सी छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता है।

👉🏼किशोरावस्था को अन्य नाम से भी जाना जाता है जैसे- तनाव की अवस्था, संघर्ष की अवस्था, तनाव की अवस्था, वीर पूजा, और संधि काल और कई अन्य नामों से जाना जाता है।

👉🏼 यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी जाती है।

🌼🌻 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन➖

👉🏼 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है।

जिसके फलस्वरूप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में जाता है।

👉🏼 किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

👉🏼 क्रोध, तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

👉🏼 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

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 किशोरावस्था की प्रकृति और लक्षण

     🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

👉 किशोरावस्था  तीव्र शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

👉 किशोरावस्था में कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोनल विकास के कारण होते हैं।

👉किशोरावस्था में बालक अपने माता-पिता से थोड़ी दूरी बना लेते हैं क्योंकि वह उनसे स्वतंत्र रूप से अपनी आंतरिक बातों को शेयर नहीं कर पाते हैं या वह सहज नहीं होते हैं इसीलिए वह अपने सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करना पसंद करते हैं क्योंकि वहां वह अपनी बातों को करने में सहज अनुभव करते है।

👉   व्यवहार में स्थिरता इसी अवस्था में आती है।

 ✍🏻किशोरावस्था को अन्य नामों से भी जाना जाता है।

 जैसे:-  उलझन की आयु, वीर पूजा

           तनाव की अवस्था, तूफान की         अवस्था, संघर्ष की अवस्था।

▫️ किशोरावस्था को “स्वर्ण काल” भी कहते हैं।

🔥 शारीरिक परिवर्तन🔥

▫️ किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

▫️ विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं जिसका सीधा संबंध यौन विकास से है।

▫️ किशोरावस्था में लड़कों की आवाज में परिवर्तन जैसे आवाज भारी हो जाना।

🔥🔥 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन🔥

▫️ किशोरावस्था मानसिक भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है।

▫️ इस अवस्था में  बालक छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं, वह अपने कार्य स्वयं करना पसंद करते हैं किसी अन्य का हस्तक्षेप उन्हे अच्छा नहीं लगता है।

▫ प्रौढ़ व्यक्ति के तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

▫️ किशोरावस्था में बालकों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वह भावी जीवनसाथी की तलाश भी करते हैं।

▫️ इस अवस्था में बालक व बालिकाओं को सजना और सवरना बहुत पसंद होता है।

▫️ किशोरावस्था में बालक मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

         🌺🌺🌺🌺🌺🌺

🔥 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन

👉 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप में परिभाषित नहीं कर सकता है।

👉 फल स्वरुप 12 से 18 में बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आता है।

👉 किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज के द्वारा नहीं दिया जा सकता है।

👉 क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

👉 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल हो जाती।

👉 किशोरावस्था में बालक को समूह का नेतृत्व करना बहुत अच्छा लगता है।

      🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌻Notes by :-

               Shashi chaudhary🌻

🌻 किशोरावस्था के प्रवृत्ति और लक्षण 🌻

आस्था के प्रवृत्ति और लक्षण हर अवस्था की अपेक्षा बिल्कुल अलग होते हैं इस अवस्था में बच्चे में भावात्मक,  सामाजिक ,मानसिक परिवर्तन के कारण इनके प्रवृत्ति अलग होती है। 

प्रवृत्ति- लक्षण-इस अवस्था में बच्चों में कुछ अलग करने की प्रवृत्ति दिखने लगती है इस अवस्था में बच्चे कुछ नया और अपना नाम करना चाहते हैं,।इस अवस्था में बच्चे परिपक्व और अपरिपक्व होते हैं इस अवस्था में बच्चों में बिगड़ने और बनने के  लक्षण  दिखने लगती है।

🌻 शारीरिक परिवर्तन 🌻

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं इसका सीधा संबंध यौन विकास से होता है किशोरावस्था ऐसी परिवर्तन होते हैं जो इससे पहले कभी नहीं हुए होते हैं किशोरावस्था में भी जो भी परिवर्तन होते हैं हार्मोनल में विकास के कारण होते हैं जिनका प्रभाव गौण  यौन और लक्षण के साथ शारीरिक परिवर्तन में होता है।

✨✨ मनोवैज्ञानिक परिवर्तन ✨✨

🌻 किशोरा आस्था मानसिक या भौतिक और भावात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है।

 किशोर छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

 इस अवस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है। में परीवर्तन हार्मोन के कारण तो होते ही हैं ,पर जो जो स्वतंत्रता और प्यार उन्हें अपने परिवार से मिलना चाहिए ना मिलने के कारण भी , इस आकर्षक को बढ़ावा मिलता है। बच्चे जहां पर आप उसे तंत्र महसूस करते हैं और को महत्व दिया जाता है उसे  अच्छा समझने लगते हैं।

🌻बच्चे मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं इसलिए इन्हें तनाव की अवस्था संघर्ष की अवस्था तूफान की अवस्था और वीर पूजा की अवस्था में क्या कहा जाता है।

🌻 अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गई है।

 🌺💫 सामाजिक परिवर्तन 💫🌺

💫समाज किशोर की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करते हैं

💫फल स्वरुप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आता है

💫किशोर की मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

💫इसलिए उनमें तनाव क्रोध की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।

 अन्य अवस्था की अपेक्षा किशोरावस्था में उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है क्योंकि शैशवास्था  की तरह इस अवस्था में भी शारीरिक मानसिक व बौद्धिक विकास अधिक तीव्र होता है।

✍️✍️,Notes by Laki 🙏🙏🙏

💐💐 किशोरावस्था की प्रवृति और लक्षण💐💐

                   🍃🍃शारीरिक परिवर्तन🍃🍃

👉 किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होता है विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रश्न परिपक्वता को प्राप्त करते हैं इसका सीधा संबंध यौन विकास से होता है

             🍃🍃मनोवैज्ञानिक परिवर्तन🍃🍃

👉 किशोरावस्था मानसिक भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है

👉 किशोरावस्था  के बच्चे छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं यह बच्चे कौन व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं

👉 किशोरावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है जैसे लड़के का लड़की के प्रति एवं लड़की का लड़के के प्रति आकर्षण होना

👉 किशोरावस्था में बच्चा बहुत से कारणों से बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है

बच्चे में अनेक प्रकार के अंतर्द्वंद आते हैं जिससे बच्चा बहुत ही तनाव महसूस करता है

👉 किशोरावस्था को तनाव की अवस्था ,संघर्ष की अवस्था, तूफान की अवस्था, वीर पूजा, क्रोध की अवस्था ,उत्तेजना की अवस्था एवं दिवास्वप्न की अवस्था कहा जाता है

👉  किशोरावस्था को अत्यंत संवेदनशील अवस्था मानी गई है

🍃🍃🍃🍃 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन

👉समाज किशोरों की भूमिकाओं को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है

👉 फल स्वरुप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था  के बीच असमंजस की स्थिति में आ जाता है( इस उम्र में बच्चा ना तो बच्चा रहता है और ना ही वह पूरी तरह परिपक्व होता है)

 👉 किशोर की मनोवैज्ञानिक अवस्था को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है

👉 किशोरावस्था में क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है

👉 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है

🍃🍃🍃🍃🍃🍃sapna sahu

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*किशोरावस्था की प्रकृति और लक्षण*

👾किशोरावस्था  तीव्र शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

🥺 किशोरावस्था में कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोनल विकास के कारण होते हैं।

🥶किशोरावस्था में बालक अपने माता-पिता से थोड़ी दूरी बना लेते हैं क्योंकि वह उनसे स्वतंत्र रूप से अपनी आंतरिक बातों को शेयर नहीं कर पाते हैं या वह सहज नहीं होते हैं इसीलिए वह अपने सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करना पसंद करते हैं क्योंकि वहां वह अपनी बातों को करने में सहज अनुभव करते है।

😒   व्यवहार में स्थिरता इसी अवस्था में आती है।

 ✍🏻किशोरावस्था को 

 उलझन की अवस्था/वीर पूजा /तनाव की अवस्था, तूफान की अवस्था/ संघर्ष की अवस्था/स्वर्ण काल भी कहते हैं।

 *शारीरिक परिवर्तन*

💪🏻 किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

🤯 विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं जिसका सीधा संबंध यौन विकास से है।

🤢🥴 किशोरावस्था में बालक के गौण शारीरिक परिवर्तन देखे जा सकते है |

 *मनोवैज्ञानिक परिवर्तन*

🧠😍💪🏻 किशोरावस्था मानसिक भावनात्मक और शारीरिक परिपक्वता के विकास तीव्र होती है।

 🦹🏻‍♂️👸🏻इस अवस्था में  बालक छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं, वह स्वतंत्रता पसंद करते हैं किसी अन्य का हस्तक्षेप उन्हे अच्छा नहीं लगता है।

🥳🤓 प्रौढ़ व्यक्ति के तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

🧐👀 किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं  में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वह अच्छे दोस्त की तलाश करते हैं।

🥰 इस अवस्था में बालक व बालिकाओं को अच्छा दिखाना बहुत पसंद होता है।

🧠 किशोरावस्था में बालक मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

*सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन*

👨‍👨‍👧‍👧 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप में परिभाषित नहीं कर सकता है। फलस्वरुप 12 से 18 में बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आता है।

 😭किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज के द्वारा नहीं पूरा किया जाता है।

😡क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

👶🏻किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती हैं |

📝Note by :- Deepika Ray

🌸🌸किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण🌸🌸

 1.शारीरिक परिवर्तन-  किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं विकास की प्रक्रिया के कारण  अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं इसका सीधा संबंध  यौन विकास से है

👩‍🔬- मनोवैज्ञानिक परिवर्तन-

 🌟🌟किशोरावस्था ,मानसिक ,भौतिक ,और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की व्यवस्था है।

💫 छोटे बच्चे की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहता है।

💫  प्रौढ़ व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

💫 विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है।

💫 बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

💫 तनाव की अवस्था, संघर्ष की भावना ,तूफान की अवस्था ,वीर पूजा, आदि…….

💫यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गई है।

 🌸  सामाजिक  सांस्कृतिक परिवर्तन 🌸

💥 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिमार्जित नहीं करता है।

💥 फलस्वरुप बच्चा, बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था (12 -18 )के बीच असमंजस की स्थिति में आ जाता है।

💥  किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

💥 इस समय क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

💥 किशोरावस्था की अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

 by suchi Bhargava

किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

🌹  शारीरिक परिवर्तन :-

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं ।और विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होते हैं जो व्यक्तिगत परिपक्वता को प्राप्त करते हैं ।

अतः इस परिपक्वता का सीधा संबंध यौन विकास से होता है।

 🌹  मनोवैज्ञानिक परिवर्तन  :-

  🏵️  किशोरावस्था मानसिक , भौतिक , भावनात्मक परिपक्वता के विकास की भी अवस्था है।

        🏵️ अतः किशोरावस्था में किशोर बच्चे , छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं बल्कि प्रौढ़  की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

🏵️  किशोरावस्था में किशोरों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है।

🏵️ इस अवस्था में बच्चे मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं।

🏵️ अतः किशोरावस्था को –

👉 तनाव की अवस्था

👉 संघर्ष की अवस्था

👉 तूफान की अवस्था

👉 वीर पूजा की अवस्था

आदि भी कहा जाता है।

🏵️ किशोरावस्था अत्यंत संवेदनशील अवस्था मानी गई है।

किशोरावस्था में सामाजिक , सांस्कृतिक परिवर्तन

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

किशोरावस्था में बच्चों में विभिन्न प्रकार के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होते हैं क्योंकि उनके समाज का स्तर बढ़ता है – भिन्न – भिन्न लोगों से मिलते हैं और इस अवस्था में वह विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों से भी परिचित होते हैं जैसे :-

👉  समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है।

अर्थात किसी भी कार्य या बातचीत आदि में यदि किशोरावस्था के बच्चे भूमिका देते हैं अपनी बात रखते हैं तो समाज उनकी बात को या उनकी सोच को महत्व नहीं देते हैं।

👉 फलस्वरुप बच्चा स्वयं को बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में पाता है।

 अर्थात किशोरावस्था में बच्चे कुछ हद तक अपनी सामाजिक परिवेश से परिचित हो जाते हैं और जब वह किसी चर्चा में या काम में अपनी भूमिका देते हैं और नहीं मानी जाती है समाज के द्वारा तब हुआ है अपने बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस रहते हैं।

👉 किशोरों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

अर्थात किशोरावस्था के बच्चों में जो मनोवैज्ञानिक आवश्यकता होती है जैसे किसी तथ्य पर अपनी बात रखने की,  नई-नई जानकारियां जानने की दूसरों से साझा करने की अपनी मन की बात दूसरों से साझा करने की आदि विभिन्न प्रकार की बातों को समाज महत्व नहीं देता है।

👉 इस अवस्था में किशोरों में क्रोध , तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।

अर्थात किशोरावस्था में जब बच्चों की मन की बात नहीं सुनी जाती है या उनकी बात को सही या गलत में फर्क ना करके उनको शांत करवा दिया जाता है ।

अतः जिससे किशोरों में क्रोध और तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।

👉 किशोरावस्था में अन्य अवस्थाओं के अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

जैसे कि विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने में , चीजों को पाने में कुछ काम करने में , किसी से लगाव हो तो बहुत घनिष्ठ, ऐसे अनेक कामों में किशोरावस्था में अवस्थाओं की अपेक्षा उत्तेजना और भावना बहुत प्रबल होती है।

🌺✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️🌺

#14. CDP – Abstract Operational Stage PART-1

💫🌻 किशोरावस्था  (Adulthood)👫🌻💫

🌺अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था /औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था🌺

🌻किशोरावस्था तीव्र शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

🌻कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोन विकास के कारण होता है कुछ ग्रंथियां एकाएक सक्रिय होती हैं।

🌻 यह अवस्था युवावस्था अथवा परिपक्वावस्था तक रहती है यह सतत प्रक्रिया है इसे बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य का संधि काल  (Transitional period)कहते हैं।

🌻यह सब परिवर्तन यौन विकास से सीधे जुड़े हैं इस अवधि में गौण यौन लक्षणों के साथ शारीरिक  परिवर्तन नजर आने लगते हैं।

🌻 इस उम्र में हार्मोन के परिवर्तन के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है।

🌻किशोर बच्चे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं एक बच्चे की तरह माता-पिता पर निर्भर करने की उपेक्षा करता है तथा प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहता है।

🌻 वह अपने माता-पिता से दूरी बनाने लगता है। अपनी सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करने लगता है

🌺 व्यावहारिक परिवर्तन🌺

🪐 स्वतंत्रता➖ किशोरों में मानसिक स्वतंत्रता की प्रबल भावना होती है वह बड़ों के आदेशों, विभिन्न परंपराओं, रीति-रिवाजों और अंधविश्वासों के बंधन में ना बंद कर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।

🪐 पहचान➖ इस उम्र में बच्चे दूसरों से अलग बनने की कोशिश करते हैं।और वह यह भी सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि जो वह बता रहे हैं यह कर रहे हैं वह सही है।

🪐 आकर्षण➖ आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं विषम लिंग के प्रति अपने आप को काफी आकर्षित रूप से कार्य करते हैं कई तरह का पहनावा या कई तरह के तरीकों से आकर्षक बनना चाहते हैं।

🪐

समवयस्क समूह पर निर्भरता➖

इस उम्र में बच्चे समवयस्क समूह पर निर्भर रहने लगते हैंकिसी समूह का सदस्य होते हुए भी किशोर केवल एक या दो बालकों से घनिष्ठ संबंध रखता है जो उसका परम मित्र होता है और उनसे वह अपनी समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से बातचीत करता है।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

🌺🌺🌺🌺🌻🌻🌺🌺

किशोरावस्था (Adolescence)/ अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था/ औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था-

🌈👉 किशोरावस्था तीव्र शरीरिक, भावात्मक और व्यवहारात्मक संबंधी परिवर्तन होता है।

          कई परिवर्तन शरीर मे होने वाले हार्मोनल विकास के कारण होते हैं। कुछ ग्रंथियां एकाएक सक्रिय होती है।

🌈👉 ये सब परिवर्तन यौन विकास से सीधे जुड़े हैं। इस अवधि में गौण यौन लक्षणों के साथ शारीरिक परिवर्तन नज़र आने लगते हैं।

🌈👉 इस उम्र में हार्मोनल परिवर्तन के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है।

🌈👉इस अवस्था मे बच्चा अपनी अलग पहचान बनाने लगता है।

🌈👉 इस अवस्था में एक बच्चे की तरह माता पिता पर निर्भर रहना चाहता है और एक प्रौढ की तरह स्वतंत्र रहना चाहता है।

🌈👉 बच्चा इस अवस्था में अपने माता पिता से दूरिया बनाने लगता है। अपने समवयस्क समूह में अधिक समय व्यतीत करता है।

🌺💥व्यावहारिक परिवर्तन💥

1️⃣ स्वतंत्रता-   किशोरों की जो मानसिक स्थिति बहुत ही सक्रिय होती है । उसके लिए रीतिरिवाज कोई मायने नही रखते हैं। वह अंधविश्वास और परंपराओ में नही बंधना चाहता है वह स्वतंत्र जीवन जीना चाहता है।

2️⃣👉 पहचान- किशोरावस्था में बच्चा अपनी पहचान अलग बनाना चाहता है। वह समाज मे खुद को सबसे अलग दिखाना चाहता है। ताकि लोग उसी को देखे और उसी की तारीफ करे।

3️⃣👉 आकर्षण- किशोरावस्था में कुछ हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जिससे बच्चे विषम लिंग की ओर आकर्षित होने लगता है। आकर्षण पहनावा या और कई तरह की चीज़ों के प्रति होने लगता है।

4️⃣👉 समवयस्क समूहों पर निर्भरता-   माता पिता अपने और बच्चे के बीच एक दायरा बना के रखते हैं जिससे बच्चे अपनी बात अपने माता पिता से नही कह पाते हैं उन्हें अपनी बात को कहने के लिए अपने साथियों या समवयस्को की आवश्यकता होती है। वे अपने साथियों से अपनी बात आसानी से कह पाते हैं क्यों उनकी बात को महत्वता दी जाती है।

📚📚NOTES BY  POONAM SHARMA🌹🌹🌹🌹

🏵️ किशोरावस्था संक्रियात्मक अवस्था/औपचारिक

           अर्मुत संक्रियात्मक अवस्था 🏵️12-18 

🍃🍃किशोरावस्था तीव्र शारीरिक भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

कई परिवर्तन शारीरिक होने के हार्मोन विकास का कारण होते हैं‌।

🍃🍃कुछ ग्रंथियां एकाएक सक्रिय होती हैं , जींस के कारण व्यवहार में अलग परिवर्तन दिखने लगते हैं।

🍃🍃इस अवस्था में यह गौण यौन लक्षणों के साथ शारीरिक  परिवर्तन नजर आने लगते हैं।

🍃🍃किशोर बच्चे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं।

🍃🍃इस अवस्था में एक बच्चे की तरह माता-पिता पर निर्भर रहनाना और एक प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं ।

🍃🍃माता-पिता से थोड़ी दूरी बनाने लगते हैं, अपनी आयु  समूह में अधिक समय व्यतीत करने लगते हैं।

           ✍️व्यवहार में परिवर्तन✍️

🌻स्वतंत्रता 🌻

इस अवस्था में बच्चे स्वतंत्र रहना चाहते हैं किसी प्रकार का बंधन उन्हें पसंद नहीं होता उनको धार्मिक रीति रिवाज में बंधे लगने लगते  रहना है वह स्वतंत्र रहना चाहते है, उनको  रीति रिवा, विश्वास से दूर रहने लगते हैं।

🌺 पहचान 🌺

इस अवस्था में बच्चे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं,चाहते हैं कि उनको उनके नाम से जाना जाए उनके व्यवहार से जानि जाए अपनी कोई एक विशेषता दिखाना चाहते हैं जिससे उनका सम्मान हो ।

🌼आकर्षण 🌸

इस अवस्था में अनेक प्रकार के हार्मोन परिवर्तन के कारण बच्चे बच्चे  भी विषलैंगिक के तरफ  आकर्षित होते हैं,।,उनको अपनी अच्छी चीज है दिखाना चाहते हैं जिससे वह उन्हें पसंद करें।

 🌼 समवयस्क समूह पर निर्भरता 🌸

इस अवस्था में बच्चे समवयस्क समूह निर्भर रहतेते हैं ,क्योंकि वहां पर अपने आप को स्वतंत्र महसूस करते हैं और अपनी बातों को रख सकते हैं। घर में ये स्वतंत्रता नहीं मिलती है और अपनी बात नहीं कर पाते हैं, इसलिए वह अपने समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।

✍️✍️📓✍️✍️ Notes by Laki 🙏🙏

🔆 किशोरावस्था ( Adolescence) / अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Abstract operation stage) /औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था ( Formal opration Stage)  ➖ 12 – 18 वर्ष 

🍀 किशोरावस्था शारीरिक, भावनात्मक ,और क्रियात्मक व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चा अपने आप को अकेला फील करता है उसके शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत बड़ा बदलाव आता है  जिसके लिए वह दूसरों पर निर्भरता व्यक्त करने लगता है | 

 🍀इस अवस्था में बहुत सारे परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोनल विकास के कारण होते हैं कुछ ग्रंथियां एकाएक सक्रिय होती है यह सब परिवर्तन यौन विकास से सीधे जुड़े हुए होती हैं इस गतिविधि में गौंण यौन लक्षणों के साथ शारीरिक परिवर्तन नजर आने लगती है जो इससे पहले कभी नजर नहीं आते रहते हैं लेकिन किशोरावस्था में खुलकर नजर आने लगते हैं |

🍀 इस उम्र में हार्मोनल परिवर्तन के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है यह इस अवस्था का सबसे बड़ा गुण है क्योंकि इससे पहले बच्चा अपने समलिंगी समूह में अपना समय व्यतीत करता है लेकिन किशोरावस्था में  हार्मोनल परिवर्तन के कारण वह अपने विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण को रोक नहीं पाता है |

🍀 किशोर बच्चे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं अपने आपको व्यस्को की भांति प्रदर्शित करने की चाह में रहते हैं वह खुद को अधिक शक्तिशाली मानने लगते हैं |

🍀 एक बच्चे की तरह माता-पिता पर रहने निर्भर रहने की उपेक्षा करते हैं तथा प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं इस अवस्था में ना तो वो अधिक परिपक्व रहता है ना ही अधिक नासमझ रहता है लेकिन उसमें अभी निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं हो पाता है उसमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास किशोरावस्था के अंत तक हो जाता है |

🍀 इस अवस्था में बच्चे अपने माता-पिता से दूरी बनाने लगते हैं और अपने सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करने लगते हैं |

🛑 किशोरावस्था में व्यवहारिक परिवर्तन ➖

🎯 स्वतंत्रता ➖

इस अवस्था में बच्चे अपने आप को स्वतंत्र रखने की कोशिश करते हैं वह अपने माता-पिता से स्वतंत्र रहने की कोशिश करता है और इसके लिए उनसे ददूरी भी बनाने भी लगता है तथा अपना समय अपने सम आयु समूह के साथ व्यतीत करने लगता है वह चाहता है कि में खुद अपना निर्णय लूं क्योंकि वह अपने आप को वयस्कों की भांति संबोधित करने लगता है लेकिन उसमें पूरी तरह से परिपक्वता नहीं आ पाती है और इसी कारण से कई बच्चे ऐसा कार्य कर लेते हैं कि जिसका भुगतान उन्हें प्रौढ़ावस्था में या जीवन भर करना पड़ता है  |

🎯 पहचान ➖

  इस अवस्था में बच्चा अपनी खुद की अलग पहचान बनाना चाहता है अपना वजूद बनाना चाहते हैं अपने अस्तित्व को निखारना चाहता है और इसके लिए भी वह अन्य से अलग योग्य दिखाना चाहते हैं जो उनके स्वयं से जुड़ा हो | बच्चा चाहता है कि लोग उसकी तारीफ करें उस पर अपने विचार व्यक्त करें जिसके लिए वह अपने स्वयं की पहचान बनाने की कोशिश करता है |

🎯 समवयस्क  समूहों पर निर्भरता ➖

इस अवस्था में  माता पिता अपने बच्चों से एक सीमा या एक दायरा बनाकर रखते हैं  जिससे बच्चे अपनी बातों को उनसे  व्यक्तिगत तौर पर व्यक्त नहीं कर पाते  हैं जिसका सहारा उनको  उन्हें अपने मित्रों या अपने किसी  ऐसे व्यक्ति से करना पड़ता है  जिससे वह  मानसिक रूप से  सहज महसूस करते हैं  वह  समय-समय पर उनके प्रति अपना विश्वास व्यक्त करते हैं अपने मित्र समूह में अधिक रहने लगते हैं  बच्चे चाहते हैं कि उनके विपरीत लिंग समूह को समाज स्वीकार करें वे चाहते हैं कि समाज उनकी बातों को उनके काम और उनकी सोच को बढ़ावा दें |

🎯 आकर्षण ➖

 इस अवस्था में बच्चे विपरीत लिंग के प्रति रुचि दिखाते हैं और भी आकर्षण और प्रेम में अंतर समझ नहीं पाते हैं जिनका प्रभाव उनकी शारीरिक विकास पर पड़ता है एवं मानसिक विकास पर भी पड़ता है बच्चे का आकर्षण कई चीजों के प्रति होता है वह खुद को सहज महसूस करवाना की कोशिश करता है और इसके लिए कई तरह की चीजों की प्रति आकर्षित होने लगता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻

🔆 किशोरावस्था /अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था /औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था(12 से 18 वर्ष) ➖

🔹किशोरावस्था तीव्र शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

🔹कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोन विकास के कारण होता है कुछ ग्रंथियां एकाएक सक्रिय होती हैं।

🔹 यह अवस्था युवावस्था अथवा परिपक्वावस्था तक रहती है यह सतत प्रक्रिया है इसे बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य का संधि काल  (Transition period)कहते हैं।

🔹यह सब परिवर्तन यौन विकास से सीधे जुड़े हैं इस अवधि में गौण यौन लक्षणों के साथ शारीरिक  परिवर्तन नजर आने लगते हैं।

🔹 इस उम्र में हार्मोन के परिवर्तन के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है।

🔹किशोर बच्चे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं एक बच्चे की तरह माता-पिता पर निर्भर करने की उपेक्षा करता है तथा प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहता है।

🔹 वह अपने माता-पिता से दूरी बनाने लगता है। अपनी सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करने लगता है

❇️ व्यावहारिक परिवर्तन➖

🪐⚜️स्वतंत्रता➖ किशोरों में मानसिक स्वतंत्रता की प्रबल भावना होती है वह बड़ों के आदेशों, विभिन्न परंपराओं, रीति-रिवाजों और अंधविश्वासों के बंधन में ना बंद कर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।

⚜️ पहचान➖ इस उम्र में बच्चे दूसरों से अलग बनने की कोशिश करते हैं।और वह यह भी सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि जो वह बता रहे हैं यह कर रहे हैं वह सही है।

⚜️ आकर्षण➖ आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं विषम लिंग के प्रति अपने आप को काफी आकर्षित रूप से कार्य करते हैं कई तरह का पहनावा या कई तरह के तरीकों से आकर्षक बनना चाहते हैं।

⚜️

समवयस्क समूह पर निर्भरता➖

इस उम्र में बच्चे समवयस्क समूह पर निर्भर रहने लगते हैंकिसी समूह का सदस्य होते हुए भी किशोर केवल एक या दो बालकों से घनिष्ठ संबंध रखता है जो उसका परम मित्र होता है और उनसे वह अपनी समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से बातचीत करता है।

✍🏻

*Notes by :- Vaishali Mishra*

*किशोरावस्था  (Adulthood)* :-

 *अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था /औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था* 

✍🏾किशोरावस्था तीव्र शारीरिक, *भावनात्मक और व्यवहार* संबंधी परिवर्तन का काल है।

✍🏾कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोन विकास के कारण होता है *कुछ ग्रंथियां एकाएक सक्रिय होती हैं।* 

✍🏾यह अवस्था युवावस्था अथवा परिपक्वावस्था तक रहती है यह *सतत प्रक्रिया* है इसे बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य का संधि काल  *(Transitional period)कहते हैं।* 

✍🏾यह सब परिवर्तन यौन विकास से सीधे जुड़े हैं इस अवधि में *गौण यौन लक्षणों के साथ शारीरिक  परिवर्तन नजर आने लगते हैं।* 

✍🏾इस उम्र में *हार्मोन* के परिवर्तन के कारण विपरीत *लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है।* 

✍🏾किशोर बच्चे अपनी *अलग पहचान बनाना* चाहते हैं एक बच्चे की तरह माता-पिता पर निर्भर करने की उपेक्षा करता है तथा *प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना* चाहता है।

✍🏾 वह अपने *माता-पिता से दूरी बनाने लगता है।* अपनी सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करने लगता है

 🏵️ *व्यावहारिक परिवर्तन* 🍿

✍🏾 *स्वतंत्रता:-* किशोरों में मानसिक स्वतंत्रता की प्रबल भावना होती है वह बड़ों के *आदेशों, विभिन्न परंपराओं, और रीति-रिवाजों और अंधविश्वासों के बंधन में ना बंद* कर स्वतंत्र *जीवन व्यतीत* करना चाहते हैं।

✍🏾 *पहचान* :- इस उम्र में बच्चे *दूसरों से अलग बनने की कोशिश करते हैं।* और वह यह भी सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि जो वह बता रहे हैं यह कर रहे हैं वह सही है।

 *✍🏾आकर्षण* :- आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं विषम *लिंग* के प्रति अपने आप को काफी आकर्षित रूप से कार्य करते हैं कई तरह का पहनावा या कई तरह के तरीकों से आकर्षक बनना चाहते हैं।

 ✍🏾 **समवयस्क समूह पर निर्भरता:-** 

इस उम्र में बच्चे *समवयस्क समूह* पर निर्भर रहने लगते हैं किसी समूह के सदस्य होते हुए भी किशोर *केवल एक या दो बालकों से घनिष्ठ संबंध रखता है* जो उसका परम मित्र होता है और उनसे वह अपनी समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से बातचीत करता है।

 *Notes* by Sharad Kumar patkar

#13. CDP – Concrete Operational Stage- Social Development & Educational Effect

उत्तर बाल्यावस्था  6/7 – 12 वर्ष में

     सामाजिक विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

👉इस उम्र में बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेता है और उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

 👉इस उम्र में बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

👉इस उम्र में बच्चों में अपने बड़ों की बात न मानने की शिकायत होती है।

👉इस उम्र में बच्चे बड़ों के द्वारा तय किये गये मानकों को अस्वीकार करते हैं।

👉इस उम्र में लड़के ,  लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

👉इस उम्र में लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित हो जाता है।

👉इस उम्र में बच्चों में सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेज से होता है।

🌻   अतः इस उम्र को ” Gang Age /  गिरोह की अवस्था “भी कहा जाता है।  🌻

🌺 उत्तर बाल्यावस्था में बच्चों पर शैक्षिक प्रभाव 🌺

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

👉 इस उम्र में बच्चों को अच्छा / बेहतर विद्यालयी वातावरण देना चाहिए जहां उनको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिल सके।

👉 बच्चों को घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

👉 बच्चों को खेल , सांस्कृतिक गतिविधि , पिकनिक / भ्रमण  आदि में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए।

👉 लड़के , लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए।

👉 बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

👉बच्चों को बड़े – बुजुर्गों से मिलने -जुलने का मौका दिया जाना चाहिए।

👉जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हों या क्रोधित हों  तो , उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिये।

👉 बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिये और उनके साथ अपना विश्वास भी व्यक्त करना चाहिये।

👉 याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य तो , बच्चों को प्रयोग के अवसर दिए जाने चाहिये।

🏵️✍️Notes by –  जूही श्रीवास्तव✍️🏵️

*🌸उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास🌸* *(social development in late childhood)* 

*(6-12 वर्ष)*

*या*

*मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास ( social development in concrete operational period)* 

*(7-11 वर्ष)*

*Date-20 february 2021*

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

👉 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है. 

( मतलब पूर्व बाल्यावस्था में बच्चा परिवार एवं पड़ोस तक ही सीमित रहता है लेकिन उत्तर बाल्यावस्था मे बच्चे का लोगों से मेल-जोल का दायरा या उसके सामाजिक परिवेश का दायरा बड़ा हो जाता है वह अब परिवार एवम् पड़ोस के अलावा विद्यालय तथा खेल के मैदान में भी जाने लगता है और वह विद्यालय तथा खेल के मैदान में अन्य साथियों के साथ अंतः क्रिया करता है। 

१. बच्चें समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं। 

( समलैंगिक मतलब लड़का, लड़कों के साथ तथा लड़की, लड़कियों के साथ खेलना व रहना पसंद करती हैं।) 

२. बड़ों की बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती हैं। 

( मतलब बच्चा अपने हिसाब से, उसे जो अच्छा लगता है वही करता है। किसी की बात नहीं मानता.) 

३. बच्चा, बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को अस्वीकार करता है।

(बड़े, बच्चों के हित में जो भी अच्छा फैसला लेते हैं बच्चा उसे ना मानकर अपनी ही मनमानी करने लगता है) 

४. इस उम्र में लड़के, लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं। 

( मतलब यह कि लड़कियों को कुछ कहा जाए तो वे मान लेती हैं लेकिन लड़के उसे ना मानकर उसके खिलाफ जाते है।) 

५. इस उम्र में लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है। 

६. सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है। 

( मतलब बच्चा जब तक पूर्व बाल्यावस्था में था वह परिवार तथा पड़ोस में ही अंत:क्रिया करता था लेकिन अब उसका दायरा बढ़ गया है वह बाहर निकलने लगा है तो समाज से अधिक मेल-जोल होने के कारण उसमें सामाजिक चेतना का विकास होने लगता है एवं वह चीजों को और अधिक समझने लगता है) 

👉 इस अवस्था को  *गैंग एज/ गिरोह की अवस्था* भी कहा जाता है। 

( क्योंकि बच्चा बाहरी वातावरण में जाकर विद्यालय एवं खेल के मैदान में दोस्त बनाने लगता है साथियों के साथ रहने लगता है। ) 

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*🌸 शैक्षिक प्रभाव* 🌸

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

👉 उत्तर बाल्यावस्था पर पड़ने वाले शैक्षिक प्रभाव निम्नलिखित है-

१. बच्चे को अच्छा विद्यालयी वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उसकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए। 

२. घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए। 

( ताकि बच्चा बिना डर या झिझक के कुछ नया सीख सके एवं कर सके। ) 

३. खेल, सांस्कृतिक गतिविधि, पिकनिक भ्रमण में में भाग लेने का अवसर दिया जाना चाहिए। 

( ताकि बच्चा नई-नई चीजों को जाने,समझे और उनके प्रति अपनी सोच को विकसित करें।) 

४. लड़के, लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए। 

( लड़का हो या लड़की दोनों के प्रति एक जैसी सोच रखें जिससे उनके नजरिए मे किसी भी प्रकार का कोई मतभेद या द्वन्द्व उत्पन्न ना हो। ) 

५. बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए। 

(  मतलब जिस वक्त शिक्षक/बड़े बच्चों से बात कर रहे हो तो बच्चों को लगना चाहिए कि सबके हित में बात हो रही है, इससे बच्चों में भी लोकतंत्र की भावना का विकास होगा। ) 

६. बच्चों को बड़ों से मिलने-जुलने का मौका देना चाहिए। 

( बड़ों से मिलने- जुलने पर बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास होगा तथा बच्चे मे सही-गलत के बीच अंतर की समझ का विकास होगा।) 

७. जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिए। 

(डांट-फटकार या पिटायी से बच्चा गलत दिशा में भी जा सकता है या उसकी मानसिक स्थिति और भी ज्यादा खराब हो सकती है।) 

८. बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें और उनपे अपना विश्वास व्यक्त करें। 

९. याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य है उन्हें भी अपने अनुसार जीने का हक है। 

१०. बच्चों को प्रयोग के अवसर दिए जाने चाहिए। ताकि वे अपनी खोज प्रवृत्ति का विकास कर सके। 

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

🌺🌺🌺🌻🌻🌺🌺🌺

💥  उत्तर बाल्यावस्था ( 6-12 )में बालक का सामाजिक विकास-

🌈💫 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है।

🌈💫 उसका समाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

🌈💫 बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

🌈💫 इस अवस्था मे बात न मानने की शिकायत ज्यादा होती है।

🌈💫 बच्चे बड़ो के तय किये गए मानको को अस्वीकार करते हैं।

🌈💫 लड़के लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

🌈💫 इस अवस्था मे लड़को के समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

🌈💫 इस उम्र में सामाजिक चेतना का विकास अधिक होता है।( गिरोह की अवस्था , स्कूल की अवस्था) 

🌺🌺शैक्षिक प्रभाव 🌺🌺

🌈💫बच्चे को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए । जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका दिया जाए।

🌈💫 घरो औऱ विद्यालयो में सुरक्षा औऱ आज़ादी दी जानी चाहिए।

🌈💫 खेल ,सांस्कृतिक गतिविधि , पिकनिक , भ्रमण आदि में  भी बच्चो को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

🌈💫लड़के और लड़कियों में तुलना नही करना चाहिए इससे बच्चे में हींन भावना पैदा होती है।

🌈💫 बच्चो से बात चीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखिए।

🌈💫 बच्चों को बड़ो से मिलने के मौके दिया जाना चाहिए।

🌈💫 जब बच्चे भावात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति या समझदारी से समझाये।

🌈💫बअच्छे के व्यक्तित्व जा सम्मान करें और उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें।

🌈💫याद रखे बच्चे भी हमारी तरह समाज के सदस्य हैं।

🌈💫 बच्चो को प्रयोग के अवसर प्रदान किये जायें।

📚📚 Notes by POONAM SHARMA🌺🌺🌺🌺

उत्तर बाल्यावस्था/मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बालक का समाजिक इस विकास (mental development in later childhood stage)

⭐इस अवस्था में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है इसलिए इसे ‘School Age’ भी कहते हैं। इस समय बालक सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

⭐ इस अवस्था में बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

⭐ बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती है।

⭐ बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को स्वीकार करता है।

⭐ लड़के लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

⭐ लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

⭐ सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है। इसलिए इस अवस्था को *गिरोह की अवस्था (Gange Age)*कहते हैं।

🌿 शैक्षिक प्रभाव (educational effect)

#️⃣बच्चों को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देना चाहिए।

#️⃣ घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

#️⃣ खेल सांस्कृतिक गतिविधियां पिकनिक भ्रमण में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए।

#️⃣ लड़के लड़कियों की तुलना नहीं करनी चाहिए।

#️⃣ बच्चों से बात करने के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

#️⃣बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका दिया जाना चाहिए।

#️⃣ जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाएं।

#️⃣ बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें जिससे उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें।

#️⃣ याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य हैं।

#️⃣ प्रयोग के अवसर दिया जाए।🔚

        🙏

⭐⭐📝 by – Awadhesh Kumar⭐⭐

_____________________________

🔆 उत्तर बाल्यावस्था/ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (6-12 वर्ष) में सामाजिक विकास ➖

इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उनके सामाजिक परिवेश का दायरा बड़ा हो जाता है वह अलग-अलग लोगों से मिलता जुलता है और उसमें बहुत सारे  बदलाव आने लगते हैं उसके सामाजिक परिवेश में बहुत बड़ा बदलाव आने लगता है समूह बनाने की प्रवृत्ति रखने लगता है और अपने समलिंगी के साथ अपना समय व्यतीत करता है |

🎯 बच्चा समलैंगिक माहौल में रहता है और समूह बनाना सीखता है  |

🎯इस अवस्था में बच्चे में बात ना मानने की शिकायत सबसे ज्यादा होती है |

🎯 बच्चे बड़ों द्वारा तय किए गए मानकों को अस्वीकार करते हैं उन्हें जिस कार्य को करने के लिए मना किया जाता है उसी कार्य को करने में रुचि लेते हैं |

🎯 लड़के, लड़कियों की तुलना में ज्यादा विद्रोही होने लगते हैं |

🎯  लड़कों का समय अधिक व्यवस्थित होता है  |

🎯 इस उम्र में सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है और इसे गैंग एज या गिरोह की अवस्था भी कहते हैं |

🛑 उत्तर बाल्यावस्था में बौद्धिक प्रभाव ➖

🍀 बच्चों को विद्यालय में अच्छा वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका या अवसर दिया जाए |

🍀  घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए ताकि अपने आप को सहज महसूस कर सकें  |

🍀 बच्चों को खेल ,सांस्कृतिक गतिविधियां ,पिकनिक ,भ्रमण, आदि में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए ताकि उनकी प्रतिभा निखर कर आ सके |

🍀लड़की- लड़कियों में तुलना नहीं करना चाहिए अन्यथा उनमें एक दूसरे के प्रति भेदभाव की भावना का जन्म होने लगता है |

🍀  बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए |

🍀 बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका दिया जाना चाहिए ताकि अपने विचार खुलकर व्यक्त कर सकें |

🍀 जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हों  या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिए |

🍀 बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें |

🍀  याद रखें कि बच्चे भी बड़ों की तरह समाज का सदस्य है अन्यथा वे सामाजिक दायरे से अलग भी हो सकते  हैं उनमें  ईर्ष्या का भाव भी उत्पन्न हो सकता है |

🍀  बच्चों को प्रयोग के अवसर दीजिए और उनको सीखने का अवसर अधिक से अधिक मिलना चाहिए |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🍀🌻🌼🌸🍀🌻🌸🌼🍀🌻🌸🌼🍀🌻🌸🌼

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास💧

          🌊  (उत्तर बाल्यावस्था)  6-12year 🌊

इस उम्र में बच्चे स्कूल में प्रवेश लेता है, तो उनका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है;

💫बच्चे समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं;

(समलैंगिक- समान लिंग के साथ;लड़का -लड़का के साथ खेलना, वा लड़की-लड़की के साथ खेलना पसंद करती है)

💫बात ना मानने की शिकायत किस उम्र में सबसे ज्यादा होती है।

(उदाहरण- एक 14 साल का बालक घर से क्रिकेट खेलने के लिए ग्राउंड जाता है उसके पिताजी आते ही उसको मना करते हैं, डांटते हैं पढ़ाई करो पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ फिर खेलना लेकिन वो बच्चा फिर चुराकर जाता है,)

💫बच्चे बड़ों के द्वारा किया गया मानको  को अस्वीकार करते हैं।

💫लड़के, लड़कियों की तुलना  में विद्रोही होने लगते है;

💫लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है;

💫सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है; (गिरोह की प्रवृत्ति या टोली की अवस्था इसी अवस्था को कहते हैं;)

💦🔥मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में शैक्षिक प्रभाव🔥

💫बच्चों को विद्यालय में कक्षा वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देना चाहिए;

💫घर और स्कूल में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए;

💫खेल ,सांस्कृतिक गतिविधियों में या पिकनिक ,भ्रमण इत्यादि जगह में भाग लेने का मौका देना चाहिए;

💫लड़के लड़कियों में  वा  लड़कियां लड़कों में तुलना नहीं करनी चाहिए;

💫बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखिए;

(लोकतांत्रिक-लोकतांत्रिक का अर्थ है यहां अन्य तरीकों से नहीं कि पूरा शिष्टाचार का नियम सिखा दिया जाए बल्कि बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने वह उनसे बातचीत के दौरान अपना नजरिया व शब्द भंडार का उचित व सूझबूझ के साथ प्रयोग करने से है जिससे उनका नजरिया भी वा उनका शब्द भंडार भी उचित वा नैतिक हो।)

💫बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका दीजिए; (उससे प्रत्येक उचित वातावरण से रूबरू करवाइए जिससे वह अपने जीवन में आने वाली हर एक समस्या कठिनाइयों से निपटने में सक्षम हो)

💫जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाएं;

💫बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें, उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें;

               याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य होते हैं।

💫बच्चों को प्रयोग के अवसर अवश्य दीजिए।

💌Notes written by- Shikhar Pandey💌

🌲🌲उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास🌲🌲

                         6-11 वर्ष

 💫 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

💫बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती है।

💫 बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को और अस्वीकार करते हैं।

💫 लड़के  लड़कियों की तुलना में  ज्यादा विद्रोही होने लगते हैं।

💫 लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

💫 सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है इस अवस्था बच्चे अपना गैंग बनाकर रहते हैं। इस लिए  इसलिए इस को गैंग, और गिरोह की अवस्था  कहा जाता है।

             🏵️🏵️ शैक्षिक प्रभाव 🏵️🏵️

✍️बच्चों को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका  दिया जाता हो।

✍️ घर और विद्यालय सुरक्षा को आजादी दी जानी चाहिए।

✍️ खेल संस्कृति गतिविधि पिकनिक , भ्रमण में भाग लेने का मौका देना चाहिए।

✍️ लड़कों लड़कों की तुलना नहीं नहीं करनी चाहिए लोकतंत्र व्यवहार करना चाहिए।

✍️ बच्चों के बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

✍️ बच्चों को बड़ों से  मिलने का मौका देना चाहिए,।

✍️जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से सझाना चाहिए।।

✍️ बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिए हमें उनमें अपना विश्वास व्यक्त करना चाहिए।

✍️ याद रखना  कि बच्चों भी समाज के सदस्य हैं।

✍️ बच्चों को अधिक से अधिक प्रयोग करने के हो अवसर देना चाहिए।

 🏵️🏵️📗📗🖊️notes by Laki✍️✍️📓📓

💫 🌸उत्तर बाल्यावस्था/मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बालक का बौद्धिक प्राप्त🌸💫

🌻 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उनका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

🌻बच्चे समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं वह अपने समूह में नियमों का पालन करते हैं।

🌻 बच्चों में बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे अधिक होती है।

🌻 बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को स्वीकार करते हैं।

🌻 लड़के लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते है।

🌻 लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

🌻 सामाजिक चेतना का विकास बहुत अधिक तेज गति से होता है।

🌻 इस अवस्था को “गैग या गिरोह ‘की अवस्था भी कहा जाता है।

💫🌺 शैक्षिक प्रभाव🌺💫

🪐बच्चे को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया गया चाहिए जहां उसकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिल सके।

🪐 घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

🪐 खेल संस्कृति गतिविधियां पिकनिक, भ्रमण ,में भाग लेने का मौका देना दीजिए।

🪐 लड़के लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए।

🪐जब बच्चा भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांत और समझदारी से समझाना चाहिए।

🪐 बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करें।

🪐 याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य होते हैं।

🪐 बच्चों को प्रयोग के अवसर देने चाहिए।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚✍🏻

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास

इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उनका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

बच्चे समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

अर्थात लड़के लड़कों के साथ रहते हैं और लड़की लड़कीयों के साथ रहती हैं।

बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती है

अर्थात जैसे किसी बच्चे से बोला जाए कि तुम्हें शाम को केवल आधा घंटा खेलना है लेकिन बच्चा आधा घंटे की जगह डेढ़ घंटे तक खेलता है।

बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को अस्वीकार करते हैं।

लड़के ,लड़कियों की तुलना में अधिक विद्रोही होने लगते हैं।

लड़कों के समूह अधिक व्यवस्थित होते हैं

सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है।

इससे बच्चे समूह में रहते हैं उनके समूह को गिरोह कहते हैं

और इस अवस्था को गैंग एज या गिरोह की अवस्था भी कहते हैं।

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था के शैक्षिक  प्रभाव

बच्चों को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देना चाहिए।

घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

खेल, सांस्कृतिक गतिविधि, पिकनिक, भ्रमण में भाग लेने का मौका देना चाहिए।

लड़के लड़कियों मे तुलना नहीं करनी चाहिए।

बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका देना चाहिए।

जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाएं।

बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें। उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें।

याद रखेगी बच्चे भी समाज के सदस्य हैं

बच्चों को प्रयोग के अवसर देना चाहिए।

Notes by Ravi kushwah

🔆उत्तर बाल्यावस्था या 6/7 – 12 वर्ष में

     सामाजिक विकास➖

💠इस उम्र में बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेता है और उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

💠इस उम्र में बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

💠इस उम्र में बच्चों में अपने बड़ों की बात न मानने की शिकायत होती है।

💠इस उम्र में बच्चे बड़ों के द्वारा तय किये गये मानकों को अस्वीकार करते हैं।

💠इस उम्र में लड़के ,  लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

💠इस उम्र में लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित हो जाता है।

💠इस उम्र में बच्चों में सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेज से होता है।

 अतः इस उम्र को ” Gang Age /  गिरोह की अवस्था “भी कहा जाता है।  

🔆उत्तर बाल्यावस्था में बच्चों पर शैक्षिक प्रभाव 

💠इस उम्र में बच्चों को अच्छा / बेहतर विद्यालयी वातावरण देना चाहिए जहां उनको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिल सके।

💠 बच्चों को घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

💠 बच्चों को खेल , सांस्कृतिक गतिविधि , पिकनिक / भ्रमण  आदि में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए।

💠लड़के , लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए।

💠बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

💠बच्चों को बड़े – बुजुर्गों से मिलने -जुलने का मौका दिया जाना चाहिए।

💠जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हों या क्रोधित हों  तो , उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिये।

💠 बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिये और उनके साथ अपना विश्वास भी व्यक्त करना चाहिये।

💠याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य तो , बच्चों को प्रयोग के अवसर दिए जाने चाहिये।

✍️Notes by – Vaishali Mishra

#12. CDP – Concrete Operational Stage- Mental & Emotional Development

उत्तर बाल्यावस्था   ( 6 / 7 – 12 वर्ष )

          बौद्धिक  विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

👉  6 –  12 साल में बच्चा खुद में और बाहरी दुनिया में फर्क समझने लगता है।

👉 बच्चों में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है।

 👉 इस उम्र में बच्चे नई जानकारी के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक होते हैं और नए – नए विचारों को सीखते हैं।

👉 इस उम्र में बच्चों के सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक कुशल हो जाती है।

👉 इस उम्र में बच्चों में तार्किक सोच की क्षमता भी बढ़ जाती है और अब बच्चे तथ्यों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं।

👉 इस उम्र में बच्चों में विज्ञान की कहानियों और यांत्रिक संचालन की रुचि भी बढ़ जाती।

👉 इस उम्र में बच्चों में साहस और निष्ठा की भावना भी बढ़ जाती है।

👉 इस उम्र में बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने लगते हैं।

👉 बच्चे के शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील भय होता है यह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है।

 🌺  उत्तर बाल्यावस्था में  🌺

     भावनात्मक विकास 

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

👉 इस उम्र में बच्चा पूरी तरह से तो नहीं पर कुछ हद तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाता है।

          परन्तु किसी परिस्थिति में अपनी भावनाओं को छुपा भी लेते हैं और किसी में नही भी छुपा पाते हैं ।

👉 इस समय बच्चों की भावनात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित होती है।

👉 इस समय भावनाएं संक्रामक होती है क्योंकि बच्चा दूसरों पर अधिक भरोसा करने लगता है।

👉 इस समय जानवर या अन्य चीज का कल्पनात्मक डर खत्म हो जाता है।

👉 इस उम्र में बच्चों की किसी अन्य बच्चों से या उनके कामों से तुलना करने पर बच्चों में उपहास ईर्ष्या , ignore ,  बहुत अधिक गुस्सा आदि के भाव उत्पन्न होने लगते हैं।

👉 अतः तुलनात्मक पक्षपात से ईर्ष्या जन्म लेती है।

👉 इस समय लड़कियां , लड़कों की अपेक्षा ज्यादा ईर्ष्यावान हो जाती हैं।

 👉 इस समय बच्चों में खुशी , प्रेम , जिज्ञासा , दुःख , स्नेह   आदी आसानी से देख सकते हैं।

                  अर्थात् इस उम्र में बच्चे अपने भावों को छुपाने में बहुत निपुण नहीं होते हैं। 

🌻✍️Notes by –  जूही श्रीवास्तव✍️🌻

🗓️🗓️🗓️🗓️🗓️

  उत्तर बाल्यावस्था

    🔥 बौद्धिक विकास🔥

✍🏻 6 से 12 साल की आयु बच्चा खुद में और बाहरी दुनिया में फर्क को समझ ने लगता है।

✍🏻 बच्चों में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है

अर्थात् इस उम्र में बच्चा प्रकृति के बनाए हुए नियमों से परिचित हो जाते हैं, जैसे:- सर्दी लगना, गर्मी लगना आदि महसूस करने लगते हैं।

✍🏻 इस उम्र में बच्चे नई जानकारियों के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक होते हैं और नए विचारों को सीखते हैं।

✍🏻 बच्चों के सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक कुशल हो जाती है।

✍🏻 बच्चों में तार्किक सोच की क्षमता भी बढ़ जाती है वह तथ्यों के संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगता है।

✍🏻 विज्ञान की कहानियां और यांत्रिक संचालन मैं भी बच्चों की रुचि बढ़ जाती है।

✍🏻 बच्चों के साहस और निष्ठा की भावना भी बढ़ जाती है।

✍🏻इस उम्र में बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने लगते हैं।

✍🏻 बच्चे के शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील वह होती है वह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है।

✍🏻 बच्चे चीजों को तर्कसंगत रूप से देखने लगते हैं तो समस्या का विश्लेषण करना सीख जाते हैं।

🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟

      🌺 भावनात्मक विकास🌺

💫 इस उम्र में बच्चों के भावनात्मक विकास में काफी परिवर्तन आते हैं, बच्चा अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं।

💫 बच्चों की भावनात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित होती है।

💫 इस उम्र में बच्चों की भावनाएं  संक्रामक होती हैं क्योंकि बच्चे दूसरों पर अधिक भरोसा करता है।

💫 इस उम्र में बच्चे जानवर या अन्य चीज को कल्पनात्मक डर खत्म हो जाता है।

💫 इस उम्र में जब  बच्चों की तुलना या उनके कार्यों की तुलना किसी अन्य बच्चों से की जाए या उनका उपहास ईर्ष्या या इग्नोर किया जाता है तो बच्चे गुस्सा करना शुरू कर देते हैं।

💫 अगर माता-पिता के द्वारा बच्चों में पक्षपात किया जाए तो बच्चों में ईर्ष्या  जन्म लेती है।

💫 वरीयताओं के कारण लड़कियां अपने वर्ग में लड़कों से अधिक  ईर्ष्यावान हो जाती हैं।

💫 इस उम्र में बच्चों में खुशी, प्यार जिज्ञासा, दु:ख और स्नेह आदि आसानी से देखे जा सकते हैं।

       🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟

✍🏻Notes by 

         🌼Shashi chaudhary🌼

 🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼

🌻 उत्तर बाल्यावस्था🌻🧍🏻

🌻 बौद्धिक विकास 🧠 🌻

🪐 इस उम्र में 6-12 मैं बच्चा खुद और बाहरी दुनिया में फर्क समझने लगता है

🪐 बच्चे में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है।

🪐बच्चा इस समय नई नई जानकारियों के लिए सबसे अधिक जिज्ञासु होता है नए विचारों को सीखता है।

🪐 बच्चों के सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक विकसित हो जाती है।

🪐बच्चों में तार्किक सोच की क्षमता भी बढ़ जाती है और वह तथ्यों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगता है।

🪐 विज्ञान की कहानियां और यांत्रिक संचालन की रूचि भी बढ़ती है।

🪐 बच्चों में साहस और निष्ठा भी बढ़ जाती है।

🪐 इस समय में बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने लगते हैं।

🪐बच्चों के शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील भय होती है यह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाती है।

🪐 बच्चे चीजों को तर्कसंगत रूप से देखते हैं तो समस्या का विश्लेषण करना सीख जाते हैं।

🌸🌺 भावनात्मक विकास🌺🌸

👉🏼 भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं।

👉🏼 भावनात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित होती है।

👉🏼 भावनाएं संक्रामक होती है क्योंकि बच्चा दूसरों पर अधिक भरोसा करने लगता है।

👉🏼 जानवर या अन्य चीजों का कल्पनात्मक डर खत्म हो जाता है।

👉🏼 उसकी तुलना करने पर उपहास बहुत गुस्सा आने लगता है।

👉🏼 पक्षपात से ईर्ष्या प्रतिस्पर्धा की भावना का जन्म होता है।

👉🏼 लड़कियां लड़कों से ज्यादा ईर्ष्या करने लगती हैं।

👉🏼 खुशी, प्यार, जिज्ञासा, दुख, स्नेह आसानी से देख सकते हैं।

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

🔆 उत्तर बाल्यावस्था या मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (6-12 वर्ष) में बौद्धिक विकास➖

🎯 उत्तर बाल्यावस्था या मूर्त संक्रियात्मक अवस्था  6-12 वर्ष में बच्चे खुद में और बाहरी दुनिया में फर्क या अंतर समझने लगता है |

🎯  बच्चों में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा  12 साल तक विकसित हो जाती है |

🎯 इस समय बच्चे नई जानकारी के लिए सबसे अधिक उत्सुक होते हैं उनके मन में नए विचारों को सीखने की उत्सुकता होती है  बच्चे क्यों और कैसे के सवालों को खोजने की कोशिश करते हैं |

🎯  बच्चों की सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक हो जाती है क्योंकि  वे इस समय मूर्त चीजों के अनुसार अपने उत्तर को खोजने की कोशिश करते हैं उस पर संक्रिया लगाते हैं |

🎯 बच्चों में तार्किक सोच की क्षमता भी बढ़ जाती है और वह तथ्यों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगता है अपने उत्तर को भावनाओं से नहीं बल्कि अपनी तार्किक क्षमता से खोजने की कोशिश करने लगता है |

🎯 विज्ञान की कहानियां और यांत्रिक संचालन की रुचि भी बढ़ती है |

🎯  बच्चों में साहस और निष्ठा भी बढ़ जाती है वह किसी कार्य को पूरे साहस और ईमानदारी से करने की कोशिश करता है |

🎯 इस उम्र में चीजों की समझ तो बढ़ती है लेकिन परिपक्वता नहीं आ पाती है और बच्चे जल्दी विचलित होने लगती है वह किसी भी परिस्थिति में विचलित हो जाते है अर्थात इस समय बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने लगते हैं |

🎯 बच्चे के शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील का भय होता है वह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है क्योंकि वह चीजों को समझने लगता है और उस पर अपनी मूर्त सोच विकसित कर लेता है |

🎯 इस अवस्था के अंत तक बच्चे समस्या का विश्लेषण करना भी सीख जाते हैं |

⭕ उत्तर बाल्यावस्था (6-12 वर्ष) में भावनात्मक विकास➖

🍀  इस अवस्था में बच्चे भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं |

🍀 इस अवस्था में बच्चे की भावनात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित होती है वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करने के साथ-साथ उस पर विचलित होना भी नियंत्रित कर लेते हैं |

🍀  इस अवस्था में बच्चे की भावनाएं संक्रामक होती है क्योंकि बच्चा दूसरों पर अधिक भरोसा करता है  |

🍀  इस अवस्था में बच्चे का जानवर या अन्य चीज के प्रति जो कल्पनात्मक डर होता है वह खत्म हो जाता है |

🍀  बच्चे की किसी से तुलना करने पर उसका उपहास करने , नजर  अंदाज करने, और उपहास करने पर वह खुद में शर्म महसूस करता है और बहुत गुस्सा भी करता है |

🍀 यदि बच्चे से पक्षपात किया जाता है तो उसके मन में ईर्ष्या का जन्म होता है |

🍀 इस अवस्था में लड़कियां लड़कों से ज्यादा ईर्ष्यावान हो जाती है |

🍀 इस अवस्था में बच्चे  में खुशी ,प्यार , जिज्ञासा,दुख और स्नेह आसानी से देखा जा सकता है |

नोट्स बाय ➖ रश्मि सावले

🌻🌼🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸🌼🌻🍀🌸

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🏋️उत्तर बाल्यावस्था में बौद्धिक विकास

(Mental development in later childhood stage)

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿19 Feb 21🌿🌿

🍃 6 से 12 साल में बच्चा *खुद और बाहरी दुनिया में फर्क* समझने लगता है।

🍃 इस अवस्था में बच्चों में *प्राकृतिक नियमों* की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है।

🍃 इस समय बच्चे *नई जानकारी* के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक होते हैं और नए विचारों को सीखते हैं।

🍃 बच्चों के *सीखने और स्मृति की क्षमता* अधिक कुशल हो जाती है।

🍃 बच्चों में *तार्किक सोच की क्षमता* भी बढ़ जाती है और वह तथ्यों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगता है।

🍃 इस अवस्था में बालक का *विज्ञान की कहानियां और यांत्रिक संचालन* की रूचि भी बढ़ जाती है।

🍃 इस अवस्था में बच्चों में *साहस और निष्ठा* भी बढ़ जाती है।

🍃 बच्चे की शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील भय होता है, वह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है।

🍃 चूंकि बच्चा चीजों को तर्कसंगत रूप से देखता है इसलिए समस्या का विश्लेषण करना भी सीख सकता है।

⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐

🏋️उत्तर बाल्यावस्था में भावनात्मक विकास

(Emotional development in later childhood)💐💐💐💐💐💐💐💐💐

🌼 इस अवस्था में बालक *भावनाओं पर नियंत्रण* करना सीख जाता है।

🌼 इस अवस्था में बालक में *भावनात्मक प्रतिक्रिया कम* विचलित होता है।

🌼 इस अवस्था में बालक की भावनाएं संक्रामक होती हैं; क्योंकि बच्चा दूसरे पर अधिक भरोसा करता है।

🌼 इस अवस्था में बालक में जानवर या अन्य चीज का कल्पनात्मक डर खत्म हो जाता है।

🌼 इस अवस्था में बालक की तुलना करने, उपहास करने, अनदेखा (Ignore) करने पर वह जल्दी बहुत गुस्सा करने लगता है।

🌼 इस अवस्था में बालक *पक्षपात से ईर्ष्या को जन्म* देता है।

🌼 लड़कियां, लड़कों से ज्यादा ईर्ष्यावान हो जाती हैं।

🌼 इस अवस्था के बालकों में खुशी, प्यार, जिज्ञासा, दु:ख, स्नेह आसानी से देख सकते हैं।🔚

        🙏

⭐⭐📝 by – Awadhesh Kumar⭐⭐

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मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बौद्धिक विकास

6 से 12 साल में बच्चा खुद और बाहरी दुनिया में फर्क समझने लगता है।

बच्चों में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है अर्थात जैसे उन्हें सर्दी के समय सर्दी लगती है तो वह अपने कोट पहनने लगते हैं और बारिश के समय भीगने से बचते हैं।

इस समय बच्चे नई जानकारी के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक होते हैं नए विचारों को सीखते हैं।

बच्चों के सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक कुशल हो जाती है क्योंकि बच्चा प्रत्यक्ष अनुभव करके सीखता है जो अधिक स्थाई होता है।

बच्चे में तार्किक सोच की क्षमता भी बढ़ जाती है और वह तथ्यों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगता है।

विज्ञान की कहानियां और यांत्रिक संचालन की रूचि भी बढ़ती है।

बच्चों में साहस और निष्ठा भी बढ़ जाती है।

इस समय में बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने लगते हैं।

बच्चे को शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील भय होता है यह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है जैसे छोटा बच्चा जब खाना नहीं खाता है तो उसे बिल्ली कुत्ते चूहे बंदर का भय दिखाकर खाना खिला दिया जाता था लेकिन अब बच्चे में यह भय गायब हो जाता है।

क्योंकि बच्चा अब चीजों को तर्कसंगत रूप से देखता है तो समस्या का विश्लेषण करना भी सीख जाता है।

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में भावात्मक विकास

इस समय भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाता है

भावात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित हो जाती है

भावनाएं संक्रामक होती है क्योंकि बच्चा दूसरों पर अधिक भरोसा करता है

जानवर या अन्य चीज का कल्पनात्मक डर खत्म हो जाता है

उसकी तुलना करने पर उपवास करने पर इगइग्नोर या  उपेक्षा करने पर बहुत गुस्सा होता है।

पक्षपात से ऐसा को जन्म देता है

लड़कियां लड़कों से ज्यादा ईष्र्यावान होती है।

खुशी प्यार जिज्ञासा दुख स्नेह आसानी से देख सकते हैं।

Notes by Ravi kushwah

उत्तर बाल्यावस्था   ( 6 / 7 – 12 वर्ष )

          बौद्धिक  विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

👉  6 –  12 साल में बच्चा खुद में और बाहरी दुनिया में फर्क समझने लगता है।

👉 बच्चों में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है।

 👉 इस उम्र में बच्चे नई जानकारी के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक होते हैं और नए – नए विचारों को सीखते हैं।

👉 इस उम्र में बच्चों के सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक कुशल हो जाती है।

👉 इस उम्र में बच्चों में तार्किक सोच की क्षमता भी बढ़ जाती है और अब बच्चे तथ्यों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं।

👉 इस उम्र में बच्चों में विज्ञान की कहानियों और यांत्रिक संचालन की रुचि भी बढ़ जाती।

👉 इस उम्र में बच्चों में साहस और निष्ठा की भावना भी बढ़ जाती है।

👉 इस उम्र में बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने लगते हैं।

👉 बच्चे के शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील भय होता है यह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है।

  🔆उत्तर बाल्यावस्था मे भावनात्मक विकास 

🔹इस उम्र में बच्चा पूरी तरह से तो नहीं पर कुछ हद तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाता है।

          परन्तु किसी परिस्थिति में अपनी भावनाओं को छुपा भी लेते हैं और किसी में नही भी छुपा पाते हैं ।

🔹 इस समय बच्चों की भावनात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित होती है।

🔹इस समय भावनाएं संक्रामक होती है क्योंकि बच्चा दूसरों पर अधिक भरोसा करने लगता है।

🔹इस समय जानवर या अन्य चीज का कल्पनात्मक डर खत्म हो जाता है।

🔹इस उम्र में बच्चों की किसी अन्य बच्चों से या उनके कामों से तुलना करने पर बच्चों में उपहास ईर्ष्या , ignore या अनदेखा,  बहुत अधिक गुस्सा आदि के भाव उत्पन्न होने लगते हैं।

🔹 अतः तुलनात्मक पक्षपात से ईर्ष्या जन्म लेती है।

🔹इस समय लड़कियां , लड़कों की अपेक्षा ज्यादा ईर्ष्यावान हो जाती हैं।

🔹 इस समय बच्चों में खुशी , प्रेम , जिज्ञासा , दुःख , स्नेह   आदी आसानी से देख सकते हैं।

इस उम्र में बच्चे अपने भावों को छुपाने में बहुत निपुण नहीं होते हैं। 

✍️Notes by – Vaishali Mishra

💐💐  मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में भौतिक विकास💐💐

जब बच्चा 6 से 12 साल का होता है तो वह खुद में और बाहरी दुनिया में फर्क समझने लगता है

बच्चों में प्राकृतिक नियमों की अवधारणा 12 साल तक विकसित हो जाती है

इस समय बच्चे नई जानकारी के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक होते हैं नए विचारों को सीखते हैं

बच्चे के सीखने और स्मृति की क्षमता अधिक कुशल हो जाती है

 बच्चों में तार्किक सोच संज्ञानात्मक सोच की क्षमता बढ़ जाती है और तत्वों को संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं

विज्ञान की कहानियां और यांत्रिक संचालन के प्रति रुचि बढ़ती है

बच्चों में साहस और निष्ठा भी बढ़ जाती है

इस समय बच्चे तत्काल कारणों से ज्यादा विचलित होने  लगते हैं

बच्चे में शुरुआती दिनों में जो कल्पनाशील भय होता है यह 12 साल की उम्र तक गायब हो जाता है

क्योंकि बच्चा चित्रों को दर्द संगत रूप से देखता है तो समस्या का विश्लेषण करना सीख जाता है

            💐 भावनात्मक विकास💐

भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाता है

भावनात्मक प्रतिक्रिया कम विचलित होती हैं

भावना संक्रामक होती है क्योंकि बच्चा दूसरों पर अधिक भरोसा करता है

जानवर या अन्य चीज का  कल्पनात्मक खत्म हो जाता है

उसकी तुलना करने पर उपहास नजर अंदाज करने पर बहुत गुस्सा होता है

पक्षपात से ईर्ष्या को जन्म देता है

लड़कियां लड़कों से  ज्यादा irsyawan हो जाती हैं

खुशी प्यार जिज्ञासा दुःख   आसानी से देख सकते हैं

sapna sahu 🙏🙏🙏🙏

#11. CDP – Concrete Operational Stage- physical development

*उत्तर बाल्यावस्था (6-12 साल)* 

      *मूर्त संक्रियात्मक अवस्था* 

✍️1. यह ऐसी अवधि है जब बच्चे अक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं l

✍️2. इस उम्र में बच्चे नाराज होने लगते हैं माता-पिता नाराज या गुरुजी बच्चे से नाराज होने लगते हैं l

✍️3. यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चे को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है l

✍️4. बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता पिता और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है l

✍️5. इस उम्र में बच्चे के मस्तिष्क के आकार और वजन का विकास लगभग वयस्क के तरह हो जाता है l

✍️6. बच्चे की गतिविधि बढ़ जाती है बच्चे में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो जाती है l

✍️7. इस समय बच्चा घर के बाहर दोस्ती का विकास करता है l

         *शारीरिक विकास ** (physical development)* 

🤾1. इस उम्र में वजन और ऊंचाई विकास थोड़ा कम होता है बच्चे में हो रहे बदलाव को परखा जा सकता है l

👨2. बच्चे इस उम्र में बीमारी से मुक्त होते हैं 

👭3. शारीरिक परिवर्तन के मामले लड़कियां लड़कों से 2 साल आगे होती हैं l

👧4. 11 साल की उम्र में लड़कियां, लड़कों से पूरी तरीके से 1 साल आगे होते हैं l

🦷5. इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं l

🤾6. बच्चों में ताकत सभी अनुपात में शारीरिक विकास,सहनशक्ति और थकान के लिए प्रतिरोध बढ़ जाता हैl

        🏵️🏵️Notes by Sharad Kumar patkar🌺🌺

🔷 उत्तर बाल्यावस्था 6 से 12 वर्ष 

यह  ऐसी अवधि है जब बच्चे अक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं

इस उम्र में बच्चे के मस्तिष्क के आकार और वजन का विकास लगभग  वयस्क की तरह हो जाता है

बच्चे में प्रतिरोध की क्षमता उत्पन्न हो जाती है

यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है बच्चे को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है

इस उम्र में बच्चे नाराज होने लगते हैं माता-पिता या गुरु भी बच्चे से नाराज होने लगते हैं

 बच्चे की गतिविधि बढ़ जाती है

इस उम्र में बच्चा घर से बाहर दोस्ती का विकास करने लगता है

बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता पिता और शिक्षा के परामर्श का बहुत बड़ा योगदान होता है

  🔷🔷 शारीरिक विकास🔷🔷

इस  उम्र में  वजन और ऊंचाई का विकास थोड़ा कम होता है बच्चा में हो रहे बदलाव को आसानी से परखा जा सकता है

इस उम्र में बच्चे बीमारी  से मुक्त होते हैं

शारीरिक परिवर्तन के मामले में लड़कियां लड़कों से 2 साल आगे होती है

11 साल की एज में लड़कियां लड़कों से पूरी  तरीके से 1 साल आगे होती हैं

इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं

 इस उम्र में बच्चा में ताकत सभी अनुपात में शारीरिक विकास सहनशक्ति और थकान के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है

🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃sapna sahu 🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🤗🤗🤗🖋️🖋️🖋️📚📚

🍃🌲 उत्तर बाल्यावस्था 6 से 12 वर्ष 🌲🍃

🏵️🏵️ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7से 12 वर्ष 🏵️🏵️

💫💫 यह ऐसी अवधी है जब बच्चेअक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।

💫💫यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चे की उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

💫💫बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता -पिता और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है।

, 💫💫 इस उम्र में बच्चे अधिक नाराज होने लगते हैं,  शिक्षक और माता-पिता भी बच्चों से नाराज होने लगते हैं।

💫💫 इस उम्र में बच्चे मस्तिष्क के आकार और वजन का विकास लगभग वयस्क की तरह हो जाता है।

💫💫 बजे की गतिविधि बढ़ जाती है बच्चे में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो जाती है।

💫💫 इस समय बच्चे घर से बाहर की दोस्ती का विकास करने लगते हैं।

🌺🌸 उत्तर बाल्यावस्था में शारीरिक विकास 🌸🌺

👭 वजन और लंबाई में विकास थोड़ा कम होता है बच्चों में हो रहे बदलाव को परखा जा सकता है।

👭 इस उम्र तक बीमारियों से अधिकतर मुक्त होते हैं।

👭 शारीरिक परिवर्तन में लड़कियां लड़कों से 2 साल आगे होती हैं।

👭11 साल की उम्र में लड़कियां लड़कों से पूरी तरह से 1 साल आगे होती हैं।

👭इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं।

👭 इस उम्र में बच्चो में ताकत सभी में शारीरिक थकान प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती  है।।

✍️✍️✍️💫by Laki 🍃✍️✍️✍️

🍃🌲 उत्तर बाल्यावस्था 6 से 12 वर्ष 🌲🍃

🏵️🏵️ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7से 12 वर्ष 🏵️🏵️

💫💫 यह ऐसी अवधि है जब बच्चेअक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।

💫💫यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चे की उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

💫💫बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता -पिता और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है।

, 💫💫 इस उम्र में बच्चे अधिक नाराज होने लगते हैं,  शिक्षक और माता-पिता भी बच्चों से नाराज होने लगते हैं।

💫💫 इस उम्र में बच्चे मस्तिष्क के आकार और वजन का विकास लगभग वयस्क की तरह हो जाता है।

💫💫 बजे की गतिविधि बढ़ जाती है बच्चे में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो जाती है।

💫💫 इस समय बचा घर से बाहर की दोस्ती का विकास करने लगते हैं।

🌺🌸 उत्तर बाल्यावस्था में शारीरिक विकास 🌸🌺

👭 वजन और लंबाई में विकास थोड़ा कम होता है बच्चों में हो रहे बदलाव को परखा जा सकता है।

👭 इस उम्र तक बीमारियों से अधिकतर मुक्त होते हैं।

👭 शारीरिक परिवर्तन में लड़कियां लड़कों से 2 साल आगे होती हैं।

👭11 साल की उम्र में लड़कियां लड़कों से पूरी तरह से 1 साल आगे होती हैं।

👭इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं।

👭 इस उम्र में बच्चो में ताकत सभी में शारीरिक थकान प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती  है।।

✍️✍️✍️💫by Laki 🍃✍️✍️✍️

📒✍🏻📒✍🏻📒✍🏻📒✍🏻📒

*17/02/2021*

*उत्तर बाल्यावस्था 6 -12 वर्ष*⬇️

*पियाजे के अनुसार-*

*(मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7 से 12 वर्ष)*

●यह एक ऐसी अवधि  है, जब बच्चे अक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देता है।

● इस अवस्था मे माता- पिता और शिक्षक बच्चों से नाराज होने लगते है । क्योंकि बच्चे का व्यवहार असाधारण  होता है।

●इस अवस्था मे बच्चों को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

●इस अवस्था के बच्चों को पर्याप्त समायोजन के लिए माता -पिता  और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है।

● इस अवस्था मे बच्चें का मस्तिष्क  का आकार और वजन  का विकास लगभग वयस्कों के समान हो जाता है।

●इस अवस्था के बच्चों में गतिविधि बढ़ जाती है।

● बच्चों में प्रतिरोध की भावना का विकास हो जाता है।

●इस अवस्था के बच्चे घर बाहर दोस्ती का विकास करना शुरू कर देते है।

*उत्तर बाल्यावस्था में शारीरिक विकास*➖➖➖

●इस अवस्था के  बच्चों में वजन और लंबाई का विकास थोड़ा कम हो जाता है। 

● इस अवस्था के बच्चों बीमारी से मुक्त होते है। इस समय प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है।

शारीरक परिवर्तन के मामले में लड़किया लड़को से 2 साल आगे होती है।

●11 साल की लड़कियां लड़को से पूरे तरीके से 2 साल आगे होती है।

●इस अवस्था में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते है बच्चों में ताकत सभी अनुपात में शारिरिक विकास, सहनशक्ति और थकान के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

🖋️🖋️आनंद चौधरी📋📋

उत्तर बाल्यावस्था (6-12 वर्ष)/मूर्त संक्रियात्मक अवस्था  (7-11 वर्ष)

यह ऐसी अवधि हैं जब बच्चा अक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देता है

इस उम्र में बच्चे नाराज होने लगते हैं माता- पिता ,गुरु से भी बच्चे नाराज होने लगते हैं।

यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चे को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता पिता और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है।

बच्चों की गतिविधि बढ़ जाती है।

बच्चों में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो जाती

इस समय बच्चा घर के बाहर दोस्ती का विकास करता है।

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में शारीरिक विकास 

इस उम्र में वजन और ऊंचाई का विकास थोड़ा कम होता है।

बच्चों में हो रहे बदलाव को परखा जा सकता है।

इस उम्र में बच्चे बीमारी से मुक्त होते हैं। 

शारीरिक परिवर्तन के मामले में लड़कियां लड़कों से 2 साल आगे होती है।

11 साल की उम्र में लड़कियां लड़कों से पूरी तरीके से 1 साल आगे होती है।

इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं।

बच्चों में ताकत, सभी अनुपात में शारीरिक विकास, सहनशक्ति और थकान के लिए प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है।

Notes by Ravi kushwah

उत्तर बाल्यावस्था   6 – 12 वर्ष  /  

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था  7  –  12  वर्ष

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

यह एक ऐसे अवधि है जब बच्चे अक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।

इस उम्र में बच्चे नाराज होने लगते हैं तथा माता-पिता या गुरु भी बच्चों से नाराज होने लगते हैं।

यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चों को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता पिता और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है।

इस उम्र में बच्चे के मस्तिष्क के आकार और वजन का विकास लगभग वयस्क की तरह हो जाता है।

बच्चों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं।

बच्चों में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो जाती है।

इस समय बच्चा घर के बाहर मित्रता (दोस्ती) का विकास करता है।

🏵️ उत्तर बाल्यावस्था / मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में शारीरिक विकास🏵️

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

इस अवस्था में वजन और ऊंचाई का विकास थोड़ा कम होता है।

इस अवस्था में बच्चों में हो रहे बदलाव को परखा जा सकता है।

इस उम्र में बच्चे बीमारी से मुक्त होते हैं।

शारीरिक परिवर्तन के मामले में लड़कियां , लड़कों से 2 साल आगे होती हैं।

11 साल की उम्र में लड़कियां , लड़कों से पूरी तरीके से 1 साल आगे होती हैं।

इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं।

बच्चों में ताकत सभी अनुपात में शारीरिक विकास सहनशक्ति और थकान के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

🌹✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️🌹

🔆उत्तर बाल्यावस्था (6 – 12 वर्ष ) /  

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था  (7  –  12  वर्ष)➖

🔹यह एक ऐसे अवधि है जब बच्चे अक्सर सबसे अजीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।

🔹इस उम्र में बच्चे नाराज होने लगते हैं तथा माता-पिता या गुरु भी बच्चों से नाराज होने लगते हैं।

🔹यह काफी महत्वपूर्ण समय होता है जब बच्चों को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

🔹बच्चों में पर्याप्त समायोजन के लिए माता पिता और शिक्षक के परामर्श का बड़ा योगदान होता है।

🔹इस उम्र में बच्चे के मस्तिष्क के आकार और वजन का विकास लगभग वयस्क की तरह हो जाता है।

🔹बच्चों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं।

🔹बच्चों में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न हो जाती है।

🔹इस समय बच्चा घर के बाहर मित्रता (दोस्ती) का विकास करता है।

🔆7 से 12 वर्ष  उत्तर बाल्यावस्था / मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में शारीरिक विकास ➖

🔹इस अवस्था में वजन और ऊंचाई का विकास थोड़ा कम होता है।

🔹इस अवस्था में बच्चों में हो रहे बदलाव को परखा जा सकता है।

🔹इस उम्र में बच्चे बीमारी से मुक्त होते हैं।

🔹शारीरिक परिवर्तन के मामले में लड़कियां , लड़कों से 2 साल आगे होती हैं।

🔹11 साल की उम्र में लड़कियां , लड़कों से पूरी तरीके से 1 साल आगे होती हैं।

🔹इस उम्र में बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं।

🔹बच्चों में ताकत सभी अनुपात में शारीरिक विकास सहनशक्ति और थकान के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

✍️Notes by – Vaishali Mishra

#10. CDP – Emotional development in pre-Operational Stage

पूर्व बाल्यावस्था  2 – 6 वर्ष में                          भावनात्मक  विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

पूर्व बाल्यावस्था में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देतीं हैं।

👉   भावनाएं बालकों के जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देतीं हैं।

👉  भावनाएं बालकों के व्यवहार में प्रेरक का काम करते हैं।

👉  भावनाएं बालकों के दैनिक जीवन में खुशियों और दुःख का अनुभव करातीं हैं।

 👉   हमारी भावनायें समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती हैं।

👉  अत्यधिक भावनात्मक स्थिति मनुष्य ( बालकों ) के मानसिक संतुलन को प्रभावित करने के साथ – साथ आपके तर्क और सोच को भी प्रभावित करती है।

👉 भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करतीं हैं।

अर्थात् सामने बाले से हम अपनी बात / मानसिकता को प्रस्तुत करने के लिए भावनाओं का ही सहारा लेते हैं।

🌹   बच्चों में भावना    🌹

💥💥💥💥💥💥💥💥

👉  बच्चों में भावनाएं पैदा होते रहने के साथ – साथ बदलतीं भी रहतीं हैं।

👉   बच्चों में भावनाएं अस्थाई होतीं हैं इसका मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को बहुत तेजी से बदल लेते हैं।

              अर्थात् बच्चे अपनी भावनाओं पर स्थिर नहीं रह पाते हैं क्योंकि बच्चों में चंचलता प्रबल होती है जिसके कारण उनमें भावनाओं की अस्थिरता होती है।

👉    बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद भी उनकी  उत्तेजना में तीव्रता होती है।

👉   बच्चे अपनी भावनाएं छुपाने में असफल होते हैं अतः बो  अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करते हैं जैसे   :-

रोकर 

नाखून कुतरकर 

अंगूठा चूस कर 

कुछ बोलकर 

गुस्सा दिखाकर  आदि।

👉   अतः भावनाएं उम्र के साथ मजबूत और कमजोर भी होती हैं।

      अर्थात् पूर्व बाल्यावस्था में भावनाओं में अस्थिरता होती है और प्रकट भी करते हैं वही वयस्कता में व्यक्ति अधिकतर अपनी भावनाओं को लोगों से छुपा लेते हैं, अपनी भावनाओं पर स्थिर रहते हैं चंचलता बहुत कम होती है और वही प्रौढ़ावस्था / वृद्धावस्था में व्यक्ति अपनी भावनाओं पर अत्यधिक नियंत्रण खो देता है , किसी से गुस्सा होना हो , कुछ बात कहनी हो आदि सब बो जाहिर करते हैं।

अतः इसीलिए भावनाएं उम्र के साथ मजबूत और कमजोर होतीं हैं।

🌹✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️ 🌹

*पूर्व बाल्यावस्था (2-6years)* 

     *(भावनात्मक विकास)* 

इस उम्र में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देती हैं l

✍️1.भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष स्थिति को  सामान्य करने के लिए ऊर्जा देती हैं l

✍️2. भावनाएं हमारे व्यवहार में *प्रेरक* का काम करती हैं l

✍️3. भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव करवाते हैं l

✍️4. समाज में समायोजन को भी प्रभावित करता है l

✍️5.अत्यधिक भावनात्मक स्थिति आपके मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है और आपके तर्क और सोच को विकसित करती हैं l

✍️6. भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करती हैं l

 *बच्चों में भावना:-* 

😲. बच्चों में भावनाएं पैदा होती रहती हैं और बदलती रहती हैं l

😕. भावनाएं अस्थाई हैं l

😞. बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना में तीव्रता होती है l

😭. बच्चे अपनी भावना छुपाने में असफल होते हैं वह अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करते हैं शुरू कर नाखून काट कर अंगूठा चूसकर कुछ बोलकर l

😟. भावनाएं उम्र के साथ मजबूत या कमजोर होती है l 

      Notes by Sharad Kumar patkar

🍀🍀 पूर्व बाल्यावस्था 2 से 6 वर्ष🍀🍀

                       🏵️🏵️ भावात्मक विकास🏵️🏵️

✨✨ इस उम्र में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं व्यक्ति और सामाजिक समायोजन में भी योगदान देती हैं।

✨✨ भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देते हैं।

✨✨ भावनाओं में हमारे व्यवहार में अनेक तरह का काम करती हैं।

✨✨ भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव कराती हैं।

✨✨ समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती हैं।

✨✨ अत्यधिक भावनाएं स्थिति आपके मानसिक संतुलन को भी प्रभावित करती हैं। अधिकार और कर्तव्य को भी प्रभावित करती हैं।

✨✨ भावनाएं व्यक्ति के भी संचार का काम करती हैं।

                  🏵️🏵️ बच्चों में भावना 🏵️🏵️

 👭 बच्चों में भावनाएं पैदा होती रहती हैं और वह बदलती रहती हैं। -जैसे बच्चा कुछ मांगता है तो रोता 😭है जैसे ही वह चीज मिल जाती हो तो बच्चा हंसने🤗 लगता है।

👭 बच्चों में भावनाएं अस्थायी होती हैं। बच्चा भावनाएं बहुत तेजी से बदलता है।

👭 बच्चों में भावनात्मक  अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना में तीव्रता होती है।

👭बच्चे अपनी भावनाओंको छीपाने में असफल होते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करते हैं रोकर, नाखून काट कर ,अंगूठा चूस कर ,और कुछ बोल कर,।

👭भावनाए उम्र के साथ मजबूत और कमजोर होती हैं। 

  ✍️✍️  🍃🍃Notes by Laki 🍃🍃✍️✍️

🔆 पूर्व बाल्यावस्था ( 2-6 वर्ष) में भावात्मक विकास ➖ 

इस उम्र में या इस अवस्था में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन में योगदान देती है यदि व्यक्ति या बच्चे की भावनाएं उस पर प्रबल रूप से हावी हैं तो यह अच्छी बात नहीं है इससे व्यक्ति का जीवन या तो संवर सकता है या फिर बिगड़ भी सकता है भावनाएं व्यक्ति के सामाजिक ,आर्थिक और व्यक्तिगत रूप से उसके समायोजन या अनुकूलन में योगदान देती हैं जिसके कारण वह अपने आने वाले जीवन के लिए फैसला करता है | 

🎯 भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष परिस्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देती है |

🎯 भावनाएं हमारे व्यवहार में प्रेरक का काम करती है जिस प्रकार की हमारी भावनाएं होगीं उसी प्रकार से हम कार्य करेंगे |

🎯 भावनाएं हमारे जीवन में खुशियों का अनुभव  करवाती हैं यदि भावनाएं नहीं होंगी तो व्यक्ति का जीवन निरर्थक हो जाएगा |

 क्योंकि भावनाओं के बिना व्यक्ति का जीवन संभव नहीं है |

🎯 भावनाएं समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती हैं  |

🎯 अत्यधिक भावनात्मक स्थिति व्यक्ति के मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है जो व्यक्ति की सोच और तर्क को विभाजित करती है  |

🎯 भावनाएं व्यक्ति के बीच संचार का काम करती है यदि व्यक्ति की भावनाएं सकारात्मक है तो उसका प्रभाव सकारात्मक होगा  और यदि भावनाएं नकारात्मक है तो उनका प्रभाव भी नकारात्मक होगा |

🛑  बच्चों में भावना ➖ 

⭕ बच्चों में भावनाएं अक्सर उत्पन्न होती रहती है और बदलती रहती है  जैसी परिस्थिति होगी उनकी भावनाएं भी वैसी ही होंगी |

⭕  बच्चों की भावनाएं अस्थाई होती है इसका मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को बहुत तेजी से बदल देता है यदि उसको भूख लगी है तो वह अपनी भावनाओं को रोकर या हंसकर व्यक्त करेगा  |

जैसे यदि बच्चे को भूख लगी है तो वह रोकर व्यक्त करेगा |और

 उसको खाना मिलने के बाद तुरंत ही खुश हो जाता है अर्थात रोने से उसकी भावनाएं खाना मिलने पर तुरंत ही खुशी में बदल जाती हैं |

⭕  पूर्व बाल्यावस्था में बच्चों की भावनाओं में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना में तीव्रता होती है |

⭕ बच्चे अपनी भावनाओं को छिपाने में असफल होते हैं वह अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करते हैं जैसे रोकर, नाखून काट कर अंगूठा चूस कर, |

अर्थात जैसे कि बचपन में मां पिताजी के जेब से पैसे चुराती है या पैसे निकालती है तो बच्चे अपने पिता को बता देते हैं और वही बच्चे बड़े होकर छिपा लेते क्योंकि वह परिपक्व हो जाते हैं |

⭕ कुछ भावनाएं उम्र के साथ मजबूत या कमजोर होती है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🌼🍀🌸🌻🌼🍀🌸🌻🌼🍀🌸🌻🌼🍀🌸🌻🌼🍀🌸🌻

*पूर्व बाल्यावस्था 2 से 6 वर्ष तक*

*(भावनात्मक विकास)*➖➖➖⬇️

 पूर्व बाल्यावस्था में भावनाएं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में अहम भूमिका निभाती।

1= भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष स्थिति को सामान्य करने के लिए ऊर्जा देते हैं।

2=  भावनाएं हमारे व्यवहार में प्रेरक का काम करते हैं।

3= भावना हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव करवाते हैं।

4= हमारी भावनाएं समाज में समायोजन को भी प्रभावित करते हैं।

5= इस अवस्था में अत्यधिक भावनात्मक स्थिति मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है और तर्क और सोच को भी विशेष रूप से प्रभावित करती है ।

6 भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करती है।

  *बच्चों की भावना*⬇️

➖➖➖➖➖➖➖➖

● बच्चों में भावनाएं पैदा होती रहती है और बदलती रहती है।

● भावना का रूप अस्थाई होता है।।

● बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना में तीव्रता आती है।

● बच्चे अपनी भावनाएं छुपाने में असफल होते हैं  वह अप्रत्यक्ष रूप से  प्रस्तुत करते हैं।

● भावना  उम्र के साथ मजबूत या कमजोर होती है|

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

😊😊😊😊

✒️✒️ आनंद चौधरी 📋📋

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में भावात्मक विकास

इस उम्र में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देती है।

भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देती हैं।

भावनाएं हमारे व्यवहार में प्रेरक का काम करती है।

भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव कराती हैं।

समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती है।

अत्यधिक भावात्मक स्थिति आपके मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है और आपके तर्क और सोच को विभाजित करती हैं।

भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करती है।

बच्चों में भावनाएं

बच्चों में भावनाएं पैदा होते रहती हैं और बदलती रहती है।

भावना अस्थाई है इसका मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को बहुत तेजी से बदल देता है।

बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना तीव्रता होती है।

बच्चे अपनी भावना छिपाने में असफल होते हैं वह अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करते हैं जैसे रोककर, नाखून काट कर, अंगूठा चूसकर, कुछ बोल कर।

भावनाएं उम्र के साथ मजबूत या कमजोर होती है।

Notes by Ravi kushwah

⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️

पूर्व बाल्यावस्था (2 से 6 वर्ष) में भावनात्मक विकास (Emotional Development in Preoperational Stage)

⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️16.02.2021⚜️⚜️

इस उम्र में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देती हैं।

☯️ भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देती हैं। 

☯️भावनाएं हमारे व्यवहार में प्रेरक का काम करती हैं।

☯️ भावना हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव करवाते हैं।

☯️ अत्यधिक भावनात्मक स्थिति आपके मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है और आपके तर्क और सोच को विभाजित करती है।

☯️ भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करती हैं।

🚸बच्चों में भावना 

(Emotion in Children)

1️⃣ बच्चों में भावनाएं पैदा होते रहते हैं और बदलते रहते हैं।

2️⃣भावना अस्थाई है इसका मतलब है कि बच्चा अपने भावनाओं को बहुत तेजी से बदल देता है।

3️⃣बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना में तीव्रता होती है।

4️⃣बच्चे अपनी भावना छुपाने में असफल होते हैं वह अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत रहते हैं रोकर, नाखून काटकर, अंगूठा चूसकर, उसका कुछ बोलकर

5️⃣ भावनाएं उम्र के साथ मजबूत या कमजोर होती है।

🔚

         🙏

📝🥀Notes by Awadhesh Kumar🥀

📕 पूर्व बाल्यावस्था🌟

      ✒️ भावनात्मक विकास✒️

🗓️ भावनाएं जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो कि बच्चों में व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देते हैं।

🔥 भावनाएं हमारे जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देती है।

🔥 कामनाएं हमारे व्यवहार के प्रेरक के रूप में कार्य करती है।

🔥 भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव करवाती है अगर भावना ही नहीं होंगी तो जीवन की कल्पना करना भी नहीं कर सकते हैं।

🔥 भावनाएं इस समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती हैं।

🔥 अत्याधिक भावनात्मक स्थिति या मानसिक संतुलन को भी परेशान करती हैं और तर्क एवं सोच को विभाजित करती है।

🔥 भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार के मीडिया के रूप में कार्य करते हैं।

✍🏻 बच्चों में निम्नलिखित भावनात्मक विशेषताएं विकसित होती है।

🌺 भावनाएं अक्सर पैदा होती रहती हैं और बदलती रहती है।

🌺 भावनाएं और स्थाई होती है इसका मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को बहुत तेजी से बदल देता है।

 जैसे कि जब कोई बच्चा 3 साल के बच्चे को  अगर आप उसे चॉकलेट ना दें तो बच्चा रोता है और अगर उसे चॉकलेट देते हैं तो वह खुश हो जाता है।

🌺 पूर्व बाल्यावस्था में बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति ओके बावजूद बच्चों में उत्तेजना की तीव्रता होती है ।

🌺 बच्चे अपनी भावनाओं को छुपाने में और सफल होते हैं क्योंकि बच्चे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, वह अपनी भावनाओं को अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करते हैं ,

जैसे :- रो कर।

🌺 भावनाएं उम्र के साथ बच्चों में भी बदलती रहती है।

🌺 कुछ भावनाएं एक उम्र में मजबूत रहती हैं और एक समय के बाद वह भावनाएं बच्चों में कमजोर पड़ने लगती है।

             📕📕📕📕📕

NOTES BY.

            SHASHI CHAUDHARY

🌟🔥🌟🔥🌟🔥🌟🔥🌟

*🔆पूर्व बाल्यावस्था (2-6years) में भावनात्मक विकास*➖

पूर्व बाल्यावस्था में भावनाएं या संवेग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा यह बच्चो के व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में भी महत्वपूर्ण योगदान देते  हैं। हम इन्हीं भावनाओं की सहायता से ही अपनी अनुभूतियों को व्यक्त कर पाते है।

▪️   भावनाएं बालकों के जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देतीं हैं।

▪️  भावनाएं बालकों के व्यवहार में प्रेरक का काम करते हैं।

▪️  भावनाएं बालकों के दैनिक जीवन में खुशियों और दुःख का अनुभव करातीं हैं।

 ▪️हमारी भावनायें समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती हैं।

▪️अत्यधिक भावनात्मक स्थिति मनुष्य ( बालकों ) के मानसिक संतुलन को प्रभावित करने के साथ – साथ आपके तर्क और सोच को भी प्रभावित करती है।

▪️ भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करतीं हैं।

अर्थात् अन्य किसी से हम अपनी बात को या मानसिकता को प्रस्तुत करने के लिए भावनाओं का ही सहयोग लेते हैं।

🔅बच्चों में भावना 

*बच्चों में भावनाएं पैदा होते रहने के साथ – साथ बदलतीं भी रहतीं हैं।

*  बच्चों में भावनाएं अस्थाई होतीं हैं इसका मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को बहुत तेजी से बदल लेते हैं।

 अर्थात् बच्चे अपनी भावनाओं पर स्थिर नहीं रह पाते हैं क्योंकि बच्चों में चंचलता प्रबल होती है जिसके कारण उनमें भावनाओं की अस्थिरता होती है।

*बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद भी उनकी  उत्तेजना में तीव्रता होती है।

*  बच्चे अपनी भावनाएं छुपाने में असफल होते हैं इसलिए वह अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करते हैं जैसे   :-

रोकर,नाखून कुतरकर ,अंगूठा चूस कर 

,कुछ बोलकर ,गुस्सा दिखाकर  आदि।

* अतः भावनाएं उम्र के साथ मजबूत और कमजोर भी होती हैं।

*अर्थात् पूर्व बाल्यावस्था में भावनाओं में अस्थिरता होती है और प्रकट भी करते हैं वही वयस्कता में व्यक्ति अधिकतर अपनी भावनाओं को लोगों से छुपा लेते हैं, अपनी भावनाओं पर स्थिर रहते हैं चंचलता बहुत कम होती है और वही प्रौढ़ावस्था / वृद्धावस्था में व्यक्ति अपनी भावनाओं पर अत्यधिक नियंत्रण खो देता है , किसी से गुस्सा होना हो , कुछ बात कहनी हो आदि सब कुछ जाहिर करते हैं।

अतः इसीलिए भावनाएं उम्र के साथ मजबूत और कमजोर होतीं हैं।

✍️

Notes By-Vaishali Mishra

⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️

पूर्व बाल्यावस्था (2 से 6 वर्ष) में भावनात्मक विकास (Emotional Development in Preoperational Stage)

⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️16.02.2021⚜️⚜️

इस उम्र में भावनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देती हैं।

☯️ भावनाएं हमें जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देती हैं। 

☯️भावनाएं हमारे व्यवहार में प्रेरक का काम करती हैं।

☯️ भावना हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव करवाते हैं।

☯️ अत्यधिक भावनात्मक स्थिति आपके मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है और आपके तर्क और सोच को विभाजित करती है।

☯️ भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार का काम करती हैं।

🚸बच्चों में भावना 

(Emotion in Children)

1️⃣ बच्चों में भावनाएं पैदा होते रहते हैं और बदलते रहते हैं।

2️⃣भावना अस्थाई है इसका मतलब है कि बच्चा अपने भावनाओं को बहुत तेजी से बदल देता है।

3️⃣बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति के बावजूद उत्तेजना में तीव्रता होती है।

4️⃣बच्चे अपनी भावना छुपाने में असफल होते हैं वह अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत रहते हैं रोकर, नाखून काटकर, अंगूठा चूसकर, उसका कुछ बोलकर

5️⃣ भावनाएं उम्र के साथ मजबूत या कमजोर होती है।

🔚

         🙏

📝🥀Notes by Awadhesh Kumar🥀

📕 पूर्व बाल्यावस्था🌟

      ✒️ भावनात्मक विकास✒️

🗓️ भावनाएं जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो कि बच्चों में व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन में योगदान देते हैं।

🔥 भावनाएं हमारे जीवन में किसी विशेष स्थिति का सामना करने के लिए ऊर्जा देती है।

🔥 कामनाएं हमारे व्यवहार के प्रेरक के रूप में कार्य करती है।

🔥 भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में खुशियों का अनुभव करवाती है अगर भावना ही नहीं होंगी तो जीवन की कल्पना करना भी नहीं कर सकते हैं।

🔥 भावनाएं इस समाज में समायोजन को भी प्रभावित करती हैं।

🔥 अत्याधिक भावनात्मक स्थिति या मानसिक संतुलन को भी परेशान करती हैं और तर्क एवं सोच को विभाजित करती है।

🔥 भावनाएं व्यक्तियों के बीच संचार के मीडिया के रूप में कार्य करते हैं।

✍🏻 बच्चों में निम्नलिखित भावनात्मक विशेषताएं विकसित होती है।

🌺 भावनाएं अक्सर पैदा होती रहती हैं और बदलती रहती है।

🌺 भावनाएं और स्थाई होती है इसका मतलब है कि बच्चा अपनी भावनाओं को बहुत तेजी से बदल देता है।

 जैसे कि जब कोई बच्चा 3 साल के बच्चे को  अगर आप उसे चॉकलेट ना दें तो बच्चा रोता है और अगर उसे चॉकलेट देते हैं तो वह खुश हो जाता है।

🌺 पूर्व बाल्यावस्था में बच्चों में भावनात्मक अभिव्यक्ति ओके बावजूद बच्चों में उत्तेजना की तीव्रता होती है ।

🌺 बच्चे अपनी भावनाओं को छुपाने में और सफल होते हैं क्योंकि बच्चे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, वह अपनी भावनाओं को अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करते हैं ,

जैसे :- रो कर।

🌺 भावनाएं उम्र के साथ बच्चों में भी बदलती रहती है।

🌺 कुछ भावनाएं एक उम्र में मजबूत रहती हैं और एक समय के बाद वह भावनाएं बच्चों में कमजोर पड़ने लगती है।

             📕📕📕📕📕

NOTES BY.

            SHASHI CHAUDHARY

🌟🔥🌟🔥🌟🔥🌟🔥🌟