HINDI- कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ For CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. अधजल गगरी छलकत जाए-(कम गुणवाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है)- श्याम बातेंतो ऐसी करता है जैसे हर विषय में मास्टर हो,वास्तव में उसे किसी विषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-अधजल गगरी छलकत जाए।

2. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईखेत-(समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ)-सारा साल तुमने पुस्तकें खोलकर नहीं देखीं। अबपछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

3. आम के आम गुठलियों के दाम-(दुगुना लाभ)-हिन्दी पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकरनौकरी पर पदोन्नति कर सकते हैं, दूसरे हिन्दी के उच्च साहित्य का रसास्वादन कर सकते हैं, इसेकहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।

4. ऊँची दुकान फीका पकवान-(केवल
ऊपरी दिखावा करना)- कनॉटप्लेस के अनेक स्टोर बड़े प्रसिद्ध है, पर सब घटिया दर्जे का माल बेचतेहैं। सच है, ऊँची दुकान फीका पकवान।

5. घर का भेदी लंका ढाए-(आपसी फूट के कारण भेदखोलना)-कई व्यक्ति पहले कांग्रेस में थे, अबजनता (एस) पार्टी में मिलकर काग्रेंस की बुराईकरते हैं। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।

6. जिसकी लाठी उसकी भैंस-(शक्तिशाली की विजय होती है)- अंग्रेजों ने सेना के बल पर बंगाल परअधिकार कर लिया था-जिसकी लाठी उसकी भैंस।

7. जल में रहकर मगर से वैर-(किसी के आश्रय मेंरहकर उससे शत्रुता मोल लेना)- जो भारत मेंरहकर विदेशों का गुणगान करते हैं, उनके लिएवही कहावत है कि जल में रहकर मगर से वैर।

8. थोथा चना बाजे घना-(जिसमें सत नहीं होता वहदिखावा करता है)- गजेंद्र नेअभी दसवीं की परीक्षा पास की है, औरआलोचना अपने बड़े-बड़े गुरुजनों की करता है।थोथा चना बाजे घना।

9. दूध का दूध पानी का पानी-(सच और झूठका ठीक फैसला)- सरपंच ने दूध
का दूध,पानी का पानी कर दिखाया, असली दोषी मंगूको ही दंड मिला।

10. दूर के ढोल सुहावने-(जो चीजें दूर सेअच्छी लगती हों)- उनके मसूरी वाले बंगले की बहुत प्रशंसा सुनते थे किन्तु वहाँ दुर्गंध के मारे तंग आकर हमारे मुख से निकल ही गया-दूर के ढोलसुहावने।

11. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी-(कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना)- सारा दिन लड़के आमों केलिए पत्थर मारते रहते थे। हमने आँगन में से आमका वृक्ष की कटवा दिया। न रहेगा बाँस, नबजेगी बाँसुरी।

12. नाच न जाने आँगन टेढ़ा-(काम
करना नहीं आना और बहाने बनाना)-जब रवींद्र नेकहा कि कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आजसमय नहीं है’। फिर किसी दिन कहा तो कहने लगा,‘आज मूड नहीं है’। सच है, नाच न जाने आँगनटेढ़ा।

13. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख-(माँगेबिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने परसाधारण भी नहीं मिलती)- अध्यापकों ने माँगों केलिए हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला ? इनसेतो बैक कर्मचारी अच्छे रहे,उनका भत्ता बढ़ा दिया गया। बिन माँगे मोती मिले,माँगे मिले न भीख।

14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती ­किसी का मेहमान बनना)-एक अमेरिकन कहनेलगा, मैं एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अध्ययन करूँगा। मैंने मन में कहा, अजबआदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान।

15. मन चंगा तो कठौती में गंगा-(यदि मन पवित्र हैतो घर ही तीर्थ है)-भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही ईशस्तुति करो। मनचंगा तो कठौती में गंगा।

16. दोनों हाथों में लड्डू-(दोनों ओर लाभ)- महेंद्रको इधर उच्च पद मिल रहा था और उधरअमेरिका से वजीफा उसके तो दोनों हाथों में लड्डू थे।

17. नया नौ दिन पुराना सौ दिन-(नई वस्तुओंका विश्वास नहीं होता, पुरानी वस्तु टिकाऊहोती है)- अब भारतीय जनता का यह विश्वास हैकि इस सरकार से तो पहली सरकार फिर भी अच्छी थी। नया नौ दिन, पुराना नौ दिन।

18. बगल में छुरी मुँह में राम-राम-(भीतर सेशत्रुता और ऊपर से मीठी बातें)-साम्राज्यवादी आज भी कुछ
राष्ट्रों को उन्नति की आशा दिलाकर उन्हें अपनेअधीन रखना चाहते हैं, परन्तु अब सभी देश समझगए हैं कि उनकी बगल में छुरी और मुँह में राम-रामहै।

19. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-
(शरारती समझाने से वश में नहीं आते)- सलीमबड़ा शरारती है, पर उसके अब्बा उसे प्यार सेसमझाना चाहते हैं। किन्तु वे नहीं जानतेकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे किए जानेवाला कार्य स्थायी फलदायक होता है)- विनोबा भावेका विचार था कि भूमि सुधार धीरे-धीरे औरशांतिपूर्वक लाना चाहिए क्योंकि सहज पकेसो मीठा होय।

समास

समास
समास 6 प्रकार के होते है-

  1. अव्ययों भाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. कर्मधारय समास
  4. द्वंद्व समास
  5. द्विगु समास
  6. बहुब्रीहि समास

1.अव्ययी भाव समास :- इस समाज में प्रथम पद अव्यय एवं दूसरा पद संज्ञा होता है सम्पूर्ण पद में अव्यय के अर्थ की ही प्रधानता रहती है पूरा शब्द क्रिया – विशेषण के अर्थ में (अव्यय की भांति )व्यवहत होता है
उदाहरण :-

यथाशक्ति= शक्ति के अनुसार
प्रत्यक्ष =अक्ष के समक्ष
प्रतिदिन = हरेक दिन
नियोग =ठीक तरह से योग
आजानुबाहु = जानू से बहू तक
प्रत्येक = एक एक के प्रति
हाथों -हाथ =हाथ के बाद हाथ
रातों -रात =रात के बाद रात
घर- घर =घर के बाद घर
एक- एक =एक के बाद एक
लूटमलूट =लूट के बाद लूट
मारामारी = मारने के बाद मार
एकाएक =एक के तुरंत बाद एक
आमरण =मृत्यु तक

  1. तत्पुरुष समास :-

जिस समास का अंतिम पद (उत्तर पद ) की प्रधानता रहती है, पहला पद विशेषण होता है | कर्ता कारक और संबोधन को छोड़कर शेष सभी कारकों में विभक्तियां लगाकर इसका समास विग्रह होता है

उदाहरण:-

गगनचुंबी – गगन चूमने वाला
चिड़ीमार -चिड़िया मारने वाला
करुणा -पूर्ण करुणा से पूर्ण

लुप्त पद कारक चिन्ह ;- शब्दों के मध्य I विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है शब्दों का विग्रह करते समय वापस जोड़ देते हैं कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर सभी कारक समास में होते हैं

कर्म कारक तत्पुरुष समास:- इसे कर्म कारक विभक्ति को का लोप कर देते हैं

उदहारण:-

पक्षधर- पक्ष को देने वाला
दिल तोड़ -दिल को तोड़ने वाला
जितेंद्रिय -इंद्रियों को जीतने वाला
शरणागत – शरण को आया हुआ

करण तत्पुरुष समास:- करण कारक विभक्ति से या द्वारा का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

गुणयुक्त:-गुणों से युक्त
आंखों देखी -आंखों द्वारा देखी हुई
रत्नजडित- जड़ित रत्नों से जड़ित
रेखांकित -रेखा द्वारा अंकित
दस्तकारी -दस्त से किया गया कार्य हस्तलिखित- हाथों द्वारा लिखित

संप्रदान तत्पुरुष समास:- संप्रदान कारक की व्यक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

शपथपत्र- शपथ के लिए पत्र
गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
घुड़शाला -घोड़ों के लिए शाला
हथकड़ी- हाथों के लिए कडी
रंगमंच -रंग के लिए मंच
सत्यग्रह- सत्य के लिए आग्रह
यज्ञशाला -यज्ञ के लिए शाला.
देशभक्ति -देश के लिए भक्ति

अपादान तत्पुरुष समास :-
अपादान कारक की विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
जाति भ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
देश निकला – देश से निकलना
गर्वशून्य -गर्व से शून्य
गुणरहित – गुणों से रहित

सम्बन्ध तत्पुरुष समास :- सम्बन्ध कारक का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
मतदाता – मत का दाता
जगन्नाथ – जगत का स्वामी
फुलवाड़ी – फूलो की वाड़ी
भूकंप – भू का कंपन
नरेश – नर का ईश
लोकनायक- लोक का नायक

अधिकरण तत्पुरुष समास:- अधिकरण कारक की विभक्ति (में ,मैं पर) का लोप करने से बनता है

उदाहरण:-

आप-बीती –अपने पर बीती
गृह -प्रवेश– घर में प्रवेश
सिरदर्द –सर में दर्द
वनवास –वन में वास
कविपुंगल– कवियों में पूंगल विद्वान हरफनमौला– प्रत्येक कला में खुशल

3.कर्मधारय समास:-

इस समाज में विशेषण विशेष्य उपमान उपमेय का संबंध होता है उपमान जिसके द्वारा तुलना की जाए उसमें जिसकी तुलना करते हैं
उदाहरण
नीलकमल नील (विशेषण) कमल (विशेष्य)

खुशबू -खुश है जो बू( अच्छी है जो गंघ) हताश हद है जो आशा

कालीमिर्च -काली है जो मिर्च
पूर्णांक -पूरा है जो अंक
महात्मा -महान है जो आत्मा
सज्जन -सत है जो सज्जन
पितांबर- पीला है जो अंबर
कमलेश -कमल के समान अक्ष
मृगनैनी – मृग की तरह आंखें
राजीवलोचन -राजीव के समान लोचन
चर्मसीमा -चर्म है जो सीमा

  1. दिगु समास:- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा पद संज्ञा होता है और जिसमें समुदाय का बोध होता है वह दिगु द्विगु समास कहलाता है

उदाहरण:-

पंचानन- पाचन का समाहार
तिराहा -तीन राहों का समाहार
तिरंगा -तीन रंगों का समाहार
त्रिवेदी -तीन वेदों का समूह
तिलोकी- तीन लोगों का समूह
त्रिमूर्ति -तीन मूर्ति का समूह
सप्ताह – 7 दिनों का समूह
सतसई -सात सौ दोहों का समूह
नवरत्न -नौ रत्नों का समूह
शताब्दी- 2 वर्षों का समूह
चौपड़ -चार पड़ेगा समूह
षष्ट भुज- 6 भुजाओं वाला
चौराहा -चारों राहो वाला

  1. द्वंद समास:-

जिसके दोनों पद प्रधान हो दोनों संख्याएं तथा विशेषण हो वह द्वंद्व समास कहलाता है जिसमें दोनों शब्द मुख्य होते हैं पूर्व पद और उत्तरपद दोनों मुख्य होते हैं तथा ग्रह समय इन के मध्य समुच्चयबोधक शब्द का प्रयोग किया जाता है एवं समस्त पद में अधिकतर योजक चिन्ह का प्रयोग करते हैं

उदाहरण:-
रामकिशन राम और किशन
लव कुश लव और कुश
भला बुरा भला और बुरा

इतरेतर द्वंद्व समास:-
इस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं साथ में अपना अलग अलग अस्तित्व रखते हैं जैसे माता पिता मां बाप पढ़ा लिखा भाई बहन इस समाज में और तथा एवं शब्दों का प्रयोग किया जाता है

उदाहरण :-

माता और पिता
मां और बाप
पढ़ा और लिखा
भाई और बहन

समाहार द्वंद्व समास:-
इस समास में समाहार समूह का बोध करने हेतु दो मुख्य प्रतिनिधि शब्दों का प्रयोग किया जाता है नोट इसमें आदि इत्यादि समुच्चयबोधक होते हैं

उदाहरण:-
चाय-वाय
चाय पानी
कपड़े लेते
अगल बगल
अड़ोस-पड़ोस
हाथ-पांव
खानपान
इसमें चाय आदि ,कपड़े आदि, अड़ोस आदि ,रात आदि

विकल्प द्वंद समास:-
समास में या अथवा समुच्चयबोधक का प्रयोग किया जाता है इस समाज के अधिकतर पद या शब्द विपरीत होते हैं

उदाहरण :-

यश-अपयश

एक-दो
पाप -पुण्य
सुख-दुख
सो -दो सो
लाख -दो लाख

दन्व्द समास के उदाहरण ‌-

समस्त पद समास-विग्रह

माता-पिता माता और पिता

दिन-रात दिन और रात

पिता-पुत्र पिता और पुत्र

भाई-बहन भाई और बहन

पति-पत्नी पति और पत्नी

देश-विदेश देश और विदेश

गुण-दोष गुण और दोष

पाप-पुण्य पाप और पुण्य

राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण

अपना -पराया अपना और पराया

जीवन-मरण जीवन और मरण

अन्न-जल अन्न और जल

चावल-दाल चावल और दाल

चराचर चर और अचर

गंगा-यमुना गंगा और यमुना

हानि-लाभ हानि और लाभ

सुख-दु:ख सुख और दु:ख

भला-बुरा भला और बुरा

नर-नारी नर और नारी

अमीर-गरीब अमीर और गरीब

हाथ-पैर हाथ और पैर

दूध-दही दूध और दही

  1. बहुव्रीहि समास :-

इस समाज में कोई भी शब्द प्रदान नहीं होता है दोनों सब मिलकर एक नया अर्थ प्रकट करते हैं जैसे पितांबर इसके 2 पद है पित्त प्लस अंबर इसमें पहला पद विशेषण दूसरा पद संग है अतः इसे कर्मधारय समास होना चाहिए था लेकिन बहुव्रीहि मैं पितांबर का विशेष अर्थ पीत वस्त्र धारण करने वाले श्रीकृष्ण से लिया जाएगा

उदाहरण:-

लंबोदर लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश
दशमुख 10 है जिसके मुख अर्थात रावण

हिंदी छन्द के प्रश्न for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. छन्द सूत्रम किसकी रचना है ?
   (अ) आचार्य विश्वनाथ
   (ब) पाणिनि
   (स) आचार्य पिङ्गल
   (द) इनमें से कोई नहीं
2. छन्द का प्रथम उल्लेख किसमें किया गया है ?
   (अ) ऋग्वेद
   (ब) यजुर्वेद
   (स) महाभारत
   (द) इनमें से कोई नहीं
3. छन्द के कितने अंग होते है ?
   (अ) चार
   (ब) छह
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
4. छन्द के कितने भेद होते हैं  ?
   (अ) दो
   (ब) तीन
   (स) चार
   (द) इनमें से कोई नहीं
5. गणों की संख्या कितनी होती है  ?
   (अ) पाँच
   (ब) चार
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
6. रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ ।
    जाहि निकारो गेह ते,  कस न भेद कहि देइ।।
     प्रस्तुत पंक्ति में कौन- सा छंद है ?
   (अ) सोरठा
   (ब) उल्लाला
   (स) रोला
   (द) दोहा
7. कोई भी छंद किसमें विभक्त रहता है  ?
   (अ) चरण
   (ब) यति
   (स) चरण और यति दोनों
   (द) इनमें से कोई नहीं
8. सम मात्रिक छंद का उदाहरण है –
   (अ) दोहा
   (ब) चौपाई
   (स) सोरठा
   (द) उपरोक्त तीनो
9. रचना के आधार पर दोहे से उल्टा छंद  है ?
   (अ) रोला
   (ब) सोरठा
   (स) उल्लाला
   (द) बरवै
10. सुनु सिय सत्य असीस हमारी  है।
      पूजहिं मन कामना तुम्हारी।।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) चौपाई
   (द) इनमें से कोई नहीं
11. जिस छंद के पहले और तीसरे चरण में 11-11 एवं दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं , तुक मध्य में होता है, वह कौन- सा छंद है  ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) रोला
   (द) उल्लाला
12. निम्न में से कौन-सा छंद सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) चौपाई
   (ब) गीतिका
   (स) हरिगीतिका
   (द) दोहा
13. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद का उदाहरण है ?
   (अ) तोमर
   (ब) आल्हा
   (स) राधिका
   (द) उल्लाला
14. विषम मात्रिक छंद नहीं  है –
   (अ) कुण्डलिया
   (ब) छप्पय
   (स) सोरठा
   (द) इनमें से कोई नहीं
15. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) बरवै
   (ब) दोहा
   (स) सोरठा
   (द) रोला
16. निम्न में से एक मात्रिक छंद नहीं  है ?
   (अ) अरिल्य
   (ब) तोमर
   (स) रूपमाला
   (द) घनाक्षरी
17. किसको पुकारे यहाँ रोकर अरण्य बीच ,
      चाहे जो करो शरण्य शरण तिहारे हैं। 
      इन पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) घनाक्षरी
   (स) देवघनाक्षरी
   (द) उल्लाला
18. चौपाई छन्द में  कुल कितनी मात्राएँ होती हैं  ?
   (अ) 16
   (ब) 32
   (स) 64
   (द) इनमें से कोई नहीं
19. मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़इ गिरिवर गहन।
      जसु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल दहन।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) बरवै
   (द) रोला
20. दोहा और रोला को मिलाने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) कुण्डलिया
   (स) हरिगीतिका
   (द) गीतिका
21. अवधि शिला का उर पर था गुरु भार।
       तिल-तिल काट रही थी, दृग जल धार।
       प्रस्तुत पंक्तियों में  कौन-सा छंद है –
   (अ) दोहा 
   (ब) उल्लाला 
   (स) बरवै 
   (द) सोरठा
22. निराला की कविता ‘जूही की कली ‘ किस छंद का उदाहरण है ?
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
23. वीर (आल्हा) किस जाति का छंद  है ?
   (अ) वर्णिक 
   (ब) मात्रिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) मिश्रित्त 
24. हम जो कुछ देख रहे हैं, सुन्दर है सत्य नहीं है।
      यह दृश्य जगत भासित है, बिन कर्म शिवत्व नहीं।
   (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (ब) 10-10 वर्णों की यति से 20 वर्णों वाला वर्णिक छंद है। 
   (स) 13-13 मात्राओं की यति से 26 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
25. वर्ण या मात्रा से प्रतिबन्ध रहित छंद कहलाता है –
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
26. चरण में वर्णों की संख्या (आरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा 
   (ब) मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा-बसंततिलका 
   (स) शार्दूलविक्रीड़ित- इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता
   (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित 
27. चरण में वर्णों की संख्या (अवरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) तोटक-मालिनी-बसंततिलका-मत्तगयन्द 
   (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक 
   (स) मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक-बसंततिलका 
   (द) बसंततिलका-मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक
28. चरण में मात्राओं की संख्या (कम से अधिक) के आधार पर मात्रिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) हरिगीतिका-रोला-गीतका-चौपाई 
   (ब) रोला-गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका 
   (स) गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका-रोला 
   (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका 
29. सम मात्रिक छंद है –
   (अ) हरिगीतिका 
   (ब) उल्लाला 
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
30.  तुलसी राम  नाम सम मीत न आन।
       जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।
       कवि समाज को बिरवा चले लगाय।
       सींचन की सुधि लीजै मुरझि न जाय।।
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) चौपाई 
   (ब) बरवै 
   (स) दोहा
   (द) इनमें से कोई नहीं 
31.  रोला और उल्लाला के मिलने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलियाँ  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
32. 22 से 26 वर्ण तक के छंद को कहते हैं –  
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलिया  
   (स) सवैया 
   (द) कवित्त (घनाक्षरी) 
33.  नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारामंडल है। 
       बंदी विविध बिहंग शेषफण सिंहासन है। 
       हे शरणदायिनी देवि तू करती सबकी त्राण है। 
       हे मातृभूमि संतान हम तू जननी तू प्राण है। 
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) कुण्डलिया  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मत्तगयन्द 
   (द) छप्पय  

34. वह कौन-सा छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 -15 की यति से 31 वर्ण होते हैं और चरण के अंत में गुरु होता   है।  
   (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
   (ब) सवैया  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

35.  “धूल भरे अति शोभित स्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।” प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दुर्मिल सवैया  
   (ब) घनाक्षरी  
   (स) मालती (मत्तगयन्द)
   (द) इनमें से कोई नहीं 

36.  “पुर तै निकासी रघुबीर बधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।”
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) उपेन्द्रवज्रा  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मालती(मत्तगयन्द) 
   (द) दुर्मिल सवैया  

37.  वह कौन-सा छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में 14-12 की यति से 26 मात्राएँ होती है ,अंत में लघु-गुरु होता है ?
   (अ) घनाक्षरी  
   (ब) छप्पय  
   (स) गीतिका 
   (द) हरिगीतिका  

38.  दण्डक छंद का उदाहरण है –
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) मालती (मत्तगयन्द ) 
   (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

39.  रूपमाला और रोला निम्न में से किस छंद के उदाहरण हैं ?
   (अ) सम मात्रिक छंद  
   (ब) अर्द्धसम मात्रिक छंद  
   (स) विषम मात्रिक छंद 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
40.  सेनापति का ऋतु  वर्णन किस छंद में लिखा गया है – 
   (अ) सवैया  
   (ब) छप्पय  
   (स) कवित्त (मनहरण )
   (द) मंदाक्रांता  

छंद प्रश्नावली का उत्तर 
1. (स) आचार्य पिङ्गल
2. (अ) ऋग्वेद
3. (स) आठ
4. (ब) तीन
5. (स) आठ
6. (द) दोहा
7. (स) चरण और यति दोनों
8. (ब) चौपाई
9. (ब) सोरठा
10. (स) चौपाई
11. (ब) सोरठा
12. (द) दोहा
13. (द) उल्लाला
14. (स) सोरठा
15. (द) रोला
16. (द) घनाक्षरी
17. (ब) घनाक्षरी
18. (स) 64
19. (ब) सोरठा
20. (ब) कुण्डलिया
21. (स) बरवै 
22. (स) मुक्तक 
23. (ब) मात्रिक 
24. (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
25. (स) मुक्तक 
26. (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित (11,14,17,19 वर्ण)
27. (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक (23,15,14,12 वर्ण)
28. (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका (16,24,26,28 मात्राएँ )
29. (अ) हरिगीतिका (प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ)
30. (ब) बरवै ( विषम चरण में 12 मात्राएँ,सम चरण में 7 मात्राएँ )
31. (स) छप्पय 
32. (स) सवैया 
33. (द) छप्पय  
34. (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
35. (स) मालती (मत्तगयंद) (प्रत्येक चरण में 23 वर्ण, 8 भगण, अंत में 2 गुरु )
36. (द) दुर्मिल सवैया  (प्रत्येक चरण में 24 वर्ण, 8 सगण)
37. (स) गीतिका 
38. (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
39. (अ) सम मात्रिक छंद  
40. (स) कवित्त (मनहरण )

संधि-विच्छेद के 50 महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न=01. ‘प्रेरणास्पद’ शब्द का संधि-विच्छेद होगा –
(अ) प्रेरणा + स्पद
(ब) प्रेरणा + आस्पद
(स) प्रेरणा + पद
(द) प्रेरणा + अस्पद
👉(ब)

प्रश्न=02. इनमें कौन सा संधि शब्द सही है –
(अ) दिक् + मंडल – दिग्मंडल
(ब) अन् + ऋत – अनृत
(स) मातृ + इच्छा – मातृच्छा
(द) देवी + अवतरण – देव्यावतरण
👉(ब)

प्रश्न=03. इनमें से कौन सा संधि शब्द सही है –
(अ) एक + एक – एकेक
(ब) रवि + इन्द्र – रविन्द्र
(स) अति + अधिक – अत्याधिक
(द) वर्षा + ऋतु – वर्षर्तु
👉(द)

प्रश्न=04. इनमें से कौन सा संधि-विच्छेद गलत है –
(अ) संस्कृत – सम् + कृत
(ब) तद्धित – तत् + धित
(स) नीरस – निः + रस
(द) अनेक – अन् + एक
👉(ब)

प्रश्न=05. ‘गवाक्ष’ शब्द का सही संधि-विच्छेद होगा –
(अ) गव + अक्ष
(ब) गौ + अक्ष
(स) गो + अक्ष
(द) गवा + अक्ष
👉(स)

प्रश्न=06. इनमें से किस विकल्प में सही संधि-विच्छेद है –
(अ) अपेक्षा = अपि + ईक्षा
(ब) सरोज = सर + ओज
(स) पावक = पौ + अक
(द) जगन्नाथ = जग + नाथ
👉(स)

प्रश्न=07. इनमें से किस शब्द का संधि-विच्छेद सही नहीं है –
(अ) न्यून = नि + ऊन
(ब) अजंत = अज + अन्त
(स) मतैक्य = मत + ऐक्य
(द) महर्षि = महा + ऋषि
👉(ब)

प्रश्न=08. ‘अभीप्सा’ का सही संधि-विच्छेद है –
(अ) अभि + इप्सा
(ब) अभी + इप्सा
(स) अभि + ईप्सा
(द) अभी + ईप्सा
👉(स)

प्रश्न=09. ‘यथेष्ट’ का सही संधि-विच्छेद है –
(अ) यथा + इष्ट
(ब) यथ + इष्ट
(स) यथा + ईष्ट
(द) यथ + ईष्ट
👉(अ)

प्रश्न=10. किस शब्द की संधि सही नहीं है –
(अ) परि + ईक्षा = परीक्षा
(ब) अभि + इष्ट = अभिष्ट
(स) वसुधा + एव = वसुधैव
(द) वि + आप्त = व्याप्त
👉(ब)

प्रश्न=11. उद्धार में कोनसी संधि है?
(अ) विसर्ग
(ब) अयादि
(स) व्यंजन
(द) गुण
👉(स)

प्रश्न=12. सूर्योष्मा में कोनसी संधि है?
(अ) यण
(ब) गुण
(स) वृद्धि
(द) यण
👉(ब)

प्रश्न=13.वाड्मय मे कोनसी संधि है?
(अ) वृद्धि
(ब) स्वर
(स) व्यंजन
(द) अयादि
👉(स)

प्रश्न=14. उल्लास मे कोनसी संधि है?
(अ) विसर्ग
(ब) व्यंजन
(स) स्वर
(द) अयादि
👉(ब)

प्रश्न=15. नायक मे कोनसी संधि हे?
(अ) विसर्ग संधि
(ब) अयादि संधि
(स) यण संधि
(द) गुण संधि
👉(ब)

प्रश्न=16.’सरोज ‘का सन्धि विच्छेद है?
(अ) सर:+ज
(ब) सरो+ज
(स) सरो:+ज
(द) सर+ओज
👉(अ)

प्रश्न=17.’दुर्ग ‘शब्द का सन्धि विच्छेद है?
(अ) दुर्+ग
(ब) दु:+ग
(स) दुर+ग
(द) दु:+उर्ग
👉(ब)

प्रश्न=18.दीर्घ संधि का उदाहरण है?
(अ) नरेंद्र
(ब) पृथ्वीश
(स) एकैक
(द) नयन
👉(ब)

प्रश्न=19. ‘सम्+ चय’ का सन्धि पद करता होगा?
(अ) संचय
(ब) सञ्चय
(स) (अ ) तथा (ब )दोनों
(द) केवल (अ)
👉(स)

प्रश्न=20.’उज्ज्वल’ का सन्धि पद होगा?
(अ) उज्+ ज्वल
(ब) उत्+ज्वल
(स) उत:+ज्वल
(द) उ:+ज्वल
👉(ब)

प्रश्न=21. उज्ज्वल का सही संधि विच्छेद होगा?
(अ) उत्+ज्वल
(ब) उज् + वल
(स) उज्+ज्वल
(द) उज+ज्वल
👉(अ)

प्रश्न=22. श्रवण शब्द का सही संधि विच्छेद है?
(अ) शर+वन
(ब) श्रव्+ ण
(स) श्रव् +अन
(द) श्रव+ न
👉(स)

प्रश्न=23. सन्धि विच्छेद जे+ अन्ति से कौनसा शब्द बनता है?
(अ) जयंती
(ब) जयन्ति
(स) जयन्ती
(द) जायन्ति
👉(ब)

प्रश्न=24. मन्वन्तर शब्द में कौनसी संधि है?
(अ) यण संधि
(ब) दीर्घ संधि
(स) गुण संधि
(द) अयादि संधि
👉(अ)

प्रश्न=25. मृदा+ औषधि से बनने वाला सही शब्द है?
(अ) मृदौषधि
(ब) मृदोषधि
(स) मृदौषधी
(द) मृदौषघि
👉(अ)

प्रश्न=26. हरीश में कौन सी संधि है ।
(अ) गुण संधि
(ब) वृद्धि संधि
(स) दीर्घ संधि
(द) यण संधि
👉(स)

प्रश्न=27. अन्वीक्षा शब्द का संधि विच्छेद होगा ।
(अ) अन+ ईक्षा
(ब) अनव + ईक्षा
(स) अनु + ईक्षा
(द) अन + वीक्षा
👉(स)

प्रश्न=28. किस शब्द में विसर्ग संधि है ।
(अ) दिग्दर्शन
(ब) व्याप्त
(स) नीरव
(द) इत्यादि
👉(स)

प्रश्न=29. पवन शब्द का संधि विच्छेद होगा ।
(अ) पव+ वन
(ब) पो+ अन
(स) पौ + अन
(द)पव+ न
👉(ब)

प्रश्न=30. हिंदी संधि को कितने भागों में बांट सकते हैं ।
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पांच
👉(ब)

प्रश्न=31. कामायनी का संधि विच्छेद होगा
(अ) काम+आनी
(ब) काम+अयनी
(स) काम+आयनी
(द) कामय+नी
👉🏻(ब)

प्रश्न=32 मणीन्द्र में कौनसी संधि है
(अ) दीर्घ संधि
(ब) गुण संधि
(स) यण संधि
(द) अयादि संधि
👉🏻(अ)

प्रश्न=33 सम्मोहन का संधि विच्छेद होगा
(अ) स+मोहन
(ब) सम्+मोहन
(स) सम+मोहन
(द) स:+मोहन
👉🏻(ब)

प्रश्न=34 दुष्प्रकृति में संधि है
(अ) स्वर संधि
(ब) व्यंजन संधि
(स) विसर्ग संधि
(द) प्रकृतिभावसंधि
👉🏻(स)

प्रश्न=35.स्वर संधि के कितने भेद होते हैं।
(अ) 3
(ब) 4
(स) 5
(द) 6
👉(स)

प्रश्न=36.विसर्ग संधि कहते हैं:-
(अ) विसर्ग से,स्वर के मेल के कारण हुए विकार को।
(ब) विसर्ग से, व्यंजन के मेल के कारण हुए विकार को।
(स) विसर्ग से ,स्वर या व्यंजन के मेल के कारण हुए विकार को।
(द) विसर्ग, से विसर्ग के मेल के कारण हुए विकार को।
👉(स)

प्रश्न=37.’जगदम्बा ‘ शब्द मे प्रयुक्त संधि हैं।
(अ) स्वर संधि
(ब) अयादि संधि
(स) गुण संधि
(द) व्यंजन संधि
👉(द)

प्रश्न=38. ‘व्यायाम’ मे कौनसी संधि हैं।
(अ) यण संधि
(ब) गुण संधि
(स) व्रृदि संधि
(द) अयादि संधि
👉(अ)

प्रश्न=39.’बहिरंग’ शब्द मे कौनसी संधि हैं।
(अ) व्यंजन संधि
(ब) दीर्घ संधि
(स) विसर्ग संधि
(द) गुण संधि
👉(स)

प्रश्न=40. सौजन्य शब्द का संधि विच्छेद होगा –
(अ) सु + जन्य
(ब) सजन + य
(स) सुजन + य
(द) स : +जन्य
👉(स)

प्रश्न=41. वैभव शब्द में संधि होंगी –
(अ) अयादि
(ब) वृद्धि
(स) गुण
(द) दीर्घ
👉(अ)

प्रश्न=42. नि + अस्त की संधि होगी –
(अ) नि:अस्त
(ब) न्वस्त
(स) न्यस्त
(द) नस्त
👉(स)

प्रश्न=43. दीर्घ संधि का रूप नहीं हैं –
(अ) अ +आ
(ब) इ + इ
(स) उ + उ
(द) ए ए
👉(द)

प्रश्न=44. अ + इ में संधि होती हैं
(अ) दीर्घ
(ब) गुण
(स) वृद्धि
(द) यण
👉(ब)

प्रश्न=45.’ प्रेरणास्पद ‘ शब्द का संधि-विच्छेद होगा
(अ) प्रेरणा+ स्पद
(ब) प्रेरणा + आस्पद
(स) प्रेरणा + पद
(द) प्रेरणा + अस्पद
👉(ब)

प्रश्न=46. ‘ उज्ज्वल ‘ का सही संधि – विच्छेद होगा
(अ) उत, + ज्वल
(ब) उज, + वल
(स) उज, + ज्वल
(द) उज, + जवल
👉(अ)

प्रश्न=47.इनमे से किस शब्द की संधि अशुद्ध हैं
(अ) देवी + अवतरण = देव्यवतरण
(ब) स्त्री + उपयोगी = स्त्रीयोपयोगी
(स) अधि + अधीन = अध्यधीन
(द) सत, + मार्ग = सन्मार्ग
👉(ब)

प्रश्न=48.निम्न में से किस शब्द की संधि सही है
(अ) राम + ईश = रमेश
(ब) उत्तर + अयन = उत्तरायन
(स) ध्वनि + अर्थ = ध्वन्यार्थ
(द) पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
👉(द)

प्रश्न=49.’ यथेष्ट ‘ का सही संधि-विच्छेद हैं
(अ) यथा + इष्ट
(ब) यथ + इष्ट
(स) यथा + ईष्ट
(द) यथ + ईष्ट
👉(अ)

प्रश्न=50. निष्कलंक का संधि विच्छेद
(अ) निष्+कलंक
(ब) निश+ कलंक
(स) निस+ कलंक
(द) निः+ कलंक
👉(द)

Samas – समास Notes for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

समास की परिभाषा (Samas definition in Hindi) Hindi Grammar Samas

अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है। दूसरे अर्थ में- कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना ‘समास’ कहलाता है।

अथवा,

जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समास कहलाता है।

अथवा,

दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द (Samasik Shabd) कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास (Samas) कहलाता है।

समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: ‘एकपदीभावः समासः’।

समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।

समास की प्रक्रिया से बनने वाले शब्द को समस्तपद (samastpad) या सामासिक शब्द कहते हैं; जैसे- देशभक्ति, मुरलीधर, राम-लक्ष्मण, चौराहा, महात्मा तथा रसोईघर आदि।

सामासिक शब्द क्या होता है :-

समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।

जैसे :- राजपुत्र 

समस्तपद का विग्रह करके उसे पुनः पहले वाली स्थिति में लाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह (samas-vigrah)  कहते हैं; जैसे- देश के लिए भक्ति; मुरली को धारण किया है जिसने; राम और लक्ष्मण; चार राहों का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के लिए घर आदि।

समास-विग्रह Samas-Vigrah:

सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किय जाते हैं उसे समास-विग्रह कहते हैं।

जैसे :- माता-पिता = माता और पिता।

समस्तपद में मुख्यतः दो पद होते हैं- पूर्वपद तथा उत्तरपद
पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे-
पूजाघर(समस्तपद) – पूजा(पूर्वपद) + घर(उत्तरपद) – पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र(समस्तपद) – राजा(पूर्वपद) + पुत्र(उत्तरपद) – राजा का पुत्र (समास-विग्रह)

समास और संधि में अंतर

Difference between Samas and Sandhi :- दो या दो से अधिक शब्दो के मेल को समास कहते है । दो वर्ण या अक्षरो के मेल को संधि कहते है । अर्थात शब्दों से बने संक्षिप्त रूप को समास कहते हैं। तथा वर्णों के मेल से बने संक्षिप्त रूप को संधि कहते हैं। समास दो शब्दों का मेल है और संधि दो वर्णों का।

  • संधि में दो वर्णों का योग होता है किन्तु समास में दो शब्दों का।
  • संधि में दो वर्णों के मेल में विकार संभव है किन्तु समास में ऐसा नहीं है।
  • संधि में शब्दों की कमी नहीं की जाती भले ही ध्वनि में परिवर्तन हो जाता है जबकि समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिए जाते हैं।
  • आवश्यक नहीं की जहाँ-जहाँ समास हो वहां संधि भी हो।
  • संधि में शब्दों को अलग करने को संधि-विच्छेद कहते हैं जबकि समास में इसे समास-विग्रह कहते हैं। जैसे कि लम्बोदर का संधि विच्छेद होगा – लम्बा+उदर जबकि समास विग्रह होगा – लम्बा है उदर जिसका।

संधि-विच्छेद और समास-विग्रह में अंतरDifference in Sandhi-Vichched aur Samas-Vigrah:- सन्धि विच्छेद मे जो वर्ण मिले हुए थे उनको अलग अलग कर दिया जाता है। समास विग्रह मे हटाए गये शब्दो को वापस लिखा जाता है।

समास के भेद (Types of Samas in Hindi) Hindi Grammar Samas

समास के मुख्य सात भेद है:-
(1)तत्पुरुष समास Tatpurus Samas
(2)कर्मधारय समास Karmdharay Samas
(3)द्विगु समास Dvigu Samas
(4)बहुव्रीहि समास Bahubreehi Samas
(5)द्वन्द समास Dwand Samas
(6)अव्ययीभाव समास Avyavibhav Samas
(7)नञ समास Nay Samas

 प्रमुख समासपद की प्रधानता
1.अव्ययी भाव समासपूर्व पद प्रधान होता है |
2.तत्पुरुष समास मेंउत्तर पद प्रधान होता है |
3.कर्मधारय समास मेंउत्तर पद प्रधान होता है |
4.द्विगु समास मेंउत्तर पद प्रधान होता है |
5.द्वंद समास मेंदोनों पद प्रधान होते है |
6.बहुव्रीहि समास मेंदोनों पद अप्रधान होते हैं |

(1)तत्पुरुष समास :-

Tatpurus Samas – जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।

जैसे- Example of Tatpurus Samas

तुलसीकृत= तुलसी से कृत
शराहत= शर से आहत
राहखर्च= राह के लिए खर्च
राजा का कुमार= राजकुमार

Tatpurush Samas Examples in Hindi

तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।

तत्पुरुष समास के भेद Types of Tatpurus Samas

तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i)कर्म तत्पुरुष Karm Tatpurus Samas
(ii)करण तत्पुरुष Karan Tatpurus Samas
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष Sampradan Tatpurus Samas
(iv)अपादान तत्पुरुष Apadan Tatpurus Samas
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष Sambandh Tatpurus Samas
(vi)अधिकरण तत्पुरुष Adhikaran Tatpurus Samas

(i)कर्म तत्पुरुष या (द्वितीया तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ कर्म कारक के चिह्न (को) लगे हों। उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Example of Karm Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग (को) प्राप्त
कष्टापत्र – कष्ट (को) आपत्र (प्राप्त)
आशातीत – आशा (को) अतीत
गृहागत – गृह (को) आगत
सिरतोड़ – सिर (को) तोड़नेवाला
चिड़ीमार – चिड़ियों (को) मारनेवाला
सिरतोड़ – सिर (को) तोड़नेवाला
गगनचुंबी – गगन को चूमने वाला
यशप्राप्त – यश को प्राप्त
ग्रामगत – ग्राम को गया हुआ
रथचालक – रथ को चलाने वाला
जेबकतरा – जेब को कतरने वाला

(ii) करण तत्पुरुष या (तृतीया तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ करण कारक की विभक्ति (से/द्वारा) लगी हो। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Example of Karan Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
वाग्युद्ध – वाक् (से) युद्ध
आचारकुशल – आचार (से) कुशल
तुलसीकृत – तुलसी (से) कृत
कपड़छना – कपड़े (से) छना हुआ
मुँहमाँगा – मुँह (से) माँगा
रसभरा – रस (से) भरा
करुणागत – करुणा से पूर्ण
भयाकुल – भय से आकुल
रेखांकित – रेखा से अंकित
शोकग्रस्त – शोक से ग्रस्त
मदांध – मद से अंधा
मनचाहा – मन से चाहा
सूररचित – सूर द्वारा रचित

(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष या (चतुर्थी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ सम्प्रदान कारक के चिह्न (को/के लिए) लगे हों। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Examples of Sampradan Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
देशभक्ति – देश (के लिए) भक्ति
विद्यालय – विद्या (के लिए) आलय
रसोईघर – रसोई (के लिए) घर
हथकड़ी – हाथ (के लिए) कड़ी
राहखर्च – राह (के लिए) खर्च
पुत्रशोक – पुत्र (के लिए) शोक
स्नानघर – स्नान के लिए घर
यज्ञशाला – यज्ञ के लिए शाला
डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
गौशाला – गौ के लिए शाला
सभाभवन – सभा के लिए भवन
लोकहितकारी – लोक के लिए हितकारी
देवालय – देव के लिए आलय

(iv)अपादान तत्पुरुष या (पंचमी तत्पुरुष)- जिसका प्रथम पद अपादान के चिह्न (से) युक्त हो। उसे अपादान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Example of Apadan Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
दूरागत – दूर से आगत
जन्मान्ध – जन्म से अन्ध
रणविमुख – रण से विमुख
देशनिकाला – देश से निकाला
कामचोर – काम से जी चुरानेवाला
नेत्रहीन – नेत्र (से) हीन
धनहीन – धन (से) हीन
पापमुक्त – पाप से मुक्त
जलहीन – जल से हीन

(v)सम्बन्ध तत्पुरुष या (षष्ठी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ संबंधकारक के चिह्न (का, के, की) लगी हो। उसे संबंधकारक तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Examples of Sambandh Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
विद्याभ्यास – विद्या का अभ्यास
सेनापति – सेना का पति
पराधीन – पर के अधीन
राजदरबार – राजा का दरबार
श्रमदान – श्रम (का) दान
राजभवन – राजा (का) भवन
राजपुत्र – राजा (का) पुत्र
देशरक्षा  – देश की रक्षा
शिवालय – शिव का आलय
गृहस्वामी – गृह का स्वामी

(vi)अधिकरण तत्पुरुष या (सप्तमी तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ अधिकरण के चिह्न (में, पर) लगी हो। उसे अधिकरण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Examples of Adhikaran Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
विद्याभ्यास – विद्या का अभ्यास
गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
नरोत्तम – नरों (में) उत्तम
पुरुषोत्तम – पुरुषों (में) उत्तम
दानवीर – दान (में) वीर
शोकमग्न  – शोक में मग्न
लोकप्रिय – लोक में प्रिय
कलाश्रेष्ठ – कला में श्रेष्ठ
आनंदमग्न  – आनंद में मग्न

(2)कर्मधारय समास:-

Karmdharay Samas : जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- वह समास जिसमें विशेषण तथा विशेष्य अथवा उपमान तथा उपमेय का मेल हो और विग्रह करने पर दोनों खंडों में एक ही कर्त्ताकारक की विभक्ति रहे। उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
सरल शब्दों में- कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।

पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के समान’ आदि आते है।

समानाधिकरण तत्पुरुष का ही दूसरा नाम कर्मधारय है। जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ ‘कर्मधारयतत्पुरुष’ समास होता है।

कर्मधारय समास की निम्नलिखित स्थितियाँ होती हैं-
(a) पहला पद विशेषण दूसरा विशेष्य : महान्, पुरुष =महापुरुष
(b) दोनों पद विशेषण : श्वेत और रक्त =श्वेतरक्त
भला और बुरा = भलाबुरा
कृष्ण और लोहित =कृष्णलोहित
(c) पहला पद विशेष्य दूसरा विशेषण : श्याम जो सुन्दर है =श्यामसुन्दर
(d) दोनों पद विशेष्य : आम्र जो वृक्ष है =आम्रवृक्ष
(e) पहला पद उपमान : घन की भाँति श्याम =घनश्याम
व्रज के समान कठोर =वज्रकठोर
(f) पहला पद उपमेय : सिंह के समान नर =नरसिंह
(g) उपमान के बाद उपमेय : चन्द्र के समान मुख =चन्द्रमुख
(h) रूपक कर्मधारय : मुखरूपी चन्द्र =मुखचन्द्र
(i) पहला पद कु : कुत्सित पुत्र =कुपुत्र

Examples of Karmdharay Samas

समस्त-पद विग्रह
नवयुवक – नव है जो युवक
पीतांबर – पीत है जो अंबर
परमेश्र्वर – परम है जो ईश्र्वर
नीलकमल – नील है जो कमल
महात्मा  -महान है जो आत्मा
कनकलता – कनक की-सी लता
प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
देहलता – देह रूपी लता
लालमणि – लाल है जो मणि
नीलकंठ – नीला है जो कंठ
महादेव – महान है जो देव
अधमरा  -आधा है जो मरा
परमानंद – परम है जो आनंद

(Karmdharay Samas Examples in Hindi)

कर्मधारय तत्पुरुष के भेद

Types of karmdharay Samas

कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है-
(i)विशेषणपूर्वपद
(ii)विशेष्यपूर्वपद
(iii)विशेषणोभयपद
(iv)विशेष्योभयपद

(i)विशेषणपूर्वपद :- इसमें पहला पद विशेषण होता है।
Examples of Visheshanpurva pad Karmdharay Samasजैसे- पीत अम्बर= पीताम्बर
परम ईश्वर= परमेश्वर
नीली गाय= नीलगाय
प्रिय सखा= प्रियसखा

(ii) विशेष्यपूर्वपद :- इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है।
Examples of Visheshyapurva Pad Karmdharay Samasजैसे- कुमारी (क्वाँरी लड़की)
श्रमणा (संन्यास ग्रहण की हुई )=कुमारश्रमणा।

(iii) विशेषणोभयपद :-इसमें दोनों पद विशेषण होते है।
Examples of Visheshanobhaya Pad Karmdharay Samasजैसे- नील-पीत (नीला-पी-ला ); शीतोष्ण (ठण्डा-गरम ); लालपिला; भलाबुरा; दोचार कृताकृत (किया-बेकिया, अर्थात अधूरा छोड़ दिया गया); सुनी-अनसुनी; कहनी-अनकहनी।

(iv)विशेष्योभयपद:- इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।

Examples of Visheshyobhaya Pad Karmdharay Samas
जैसे- आमगाछ या आम्रवृक्ष, वायस-दम्पति।

कर्मधारयतत्पुरुष समास के उपभेद (Subtypes of karmdharay Samas)

कर्मधारयतत्पुरुष समास के अन्य उपभेद हैं- (i) उपमानकर्मधारय (ii) उपमितकर्मधारय (iii) रूपककर्मधारय

जिससे किसी की उपमा दी जाये, उसे ‘उपमान’ और जिसकी उपमा दी जाये, उसे ‘उपमेय’ कहा जाता है। घन की तरह श्याम =घनश्याम- यहाँ ‘घन’ उपमान है और ‘श्याम’ उपमेय।

(i) उपमानकर्मधारय- इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता हैं। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद, चूँकि एक ही कर्ताविभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय-लक्षण का होता है।
अन्य उदाहरण- विद्युत्-जैसी चंचला =विद्युच्चंचला।

(ii) उपमितकर्मधारय- यह उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है, अर्थात इसमें उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा। जैसे- अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव; नर सिंह के समान =नरसिंह।

किन्तु, जहाँ उपमितकर्मधारय- जैसा ‘नर सिंह के समान’ या ‘अधर पल्लव के समान’ विग्रह न कर अगर ‘नर ही सिंह या ‘अधर ही पल्लव’- जैसा विग्रह किया जाये, अर्थात उपमान-उपमेय की तुलना न कर उपमेय को ही उपमान कर दिया जाय-
दूसरे शब्दों में, जहाँ एक का दूसरे पर आरोप कर दिया जाये, वहाँ रूपककर्मधारय होगा। उपमितकर्मधारय और रूपककर्मधारय में विग्रह का यही अन्तर है। रूपककर्मधारय के अन्य उदाहरण- मुख ही है चन्द्र = मुखचन्द्र; विद्या ही है रत्न = विद्यारत्न भाष्य (व्याख्या) ही है अब्धि (समुद्र)= भाष्याब्धि।

(Hindi Grammar Samas)

(3)द्विगु समास Dvigu Samas :-

जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु कर्मधारय समास कहलाता है।
इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा जाता है। इसका पहला पद संख्यावाची और दूसरा पद संज्ञा होता है। Examples of Dvigu Samas जैसे-

समस्त-पद विग्रह
सप्तसिंधु – सात सिंधुओं का समूह
दोपहर – दो पहरों का समूह
त्रिलोक – तीनों लोको का समाहार
तिरंगा – तीन रंगों का समूह
दुअत्री  – दो आनों का समाहार
पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समूह
पंजाब – पाँच आबों (नदियों) का समूह
पंचरत्न  -पाँच रत्नों का समूह
नवरात्रि  – नौ रात्रियों का समूह
त्रिवेणी – तीन वेणियों (नदियों) का समूह
सतसई – सात सौ दोहों का समूह

(Dvigu Samas Examples in Hindi)

द्विगु के भेद

Types of Dvigu Samas

इसके दो भेद होते है- (i)समाहार द्विगु और (ii)उत्तरपदप्रधान द्विगु।

(i)समाहार द्विगु:- समाहार का अर्थ है ‘समुदाय’ ‘इकट्ठा होना’ ‘समेटना’ उसे समाहार द्विगु समास कहते हैं।
Examples of Samahar Dvigu Samas जैसे- तीनों लोकों का समाहार= त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार= पंचवटी
पाँच सेरों का समाहार= पसेरी
तीनो भुवनों का समाहार= त्रिभुवन

(ii)उत्तरपदप्रधान द्विगु:- इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्यावाची। इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता।
उत्तरपदप्रधान द्विगु के दो प्रकार है-
(a) बेटा या उत्पत्र के अर्थ में; जैसे- दो माँ का- द्वैमातुर या दुमाता; दो सूतों के मेल का- दुसूती;
(b) जहाँ सचमुच ही उत्तरपद पर जोर हो; जैसे- पाँच प्रमाण (नाम) =पंचप्रमाण; पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)= पँचहत्थड़।

द्रष्टव्य- अनेक बहुव्रीहि समासों में भी पूर्वपद संख्यावाचक होता है। ऐसी हालत में विग्रह से ही जाना जा सकता है कि समास बहुव्रीहि है या द्विगु। यदि ‘पाँच हत्थड़ है जिसमें वह =पँचहत्थड़’ विग्रह करें, तो यह बहुव्रीहि है और ‘पाँच हत्थड़’ विग्रह करें, तो द्विगु।

(4)बहुव्रीहि समास Bahuvreehi Samas :-

समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो, तब उसे बहुव्रीहि समास कहते है।

दूसरे शब्दों में- जिस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही प्रधान हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
जैसे- दशानन- दस मुहवाला- रावण।

जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। ‘नीलकंठ’, नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद ‘शिव’ का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।

इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।

Examples of Bahuvreehi Samas

समस्त-पद विग्रह
प्रधानमंत्री – मंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
पंकज – (पंक में पैदा हो जो (कमल)
अनहोनी – न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)
निशाचर – निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
चौलड़ी – चार है लड़ियाँ जिसमे (माला)
विषधर – (विष को धारण करने वाला (सर्प)
मृगनयनी – मृग के समान नयन हैं जिसके अर्थात सुंदर स्त्री
त्रिलोचन – तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव
महावीर – महान वीर है जो अर्थात हनुमान
सत्यप्रिय  – सत्य प्रिय है जिसे अर्थात विशेष व्यक्ति

(Bahuvreehi Samas Examples in Hindi)

तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर-

Difference in Tatpurush and Bahuvreehi Samas तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है।
जैसे- ‘पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )’ कर्मधारय तत्पुरुष है तो ‘पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)’ बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। ‘पीताम्बर’ का तत्पुरुष में विग्रह करने पर ‘पीला कपड़ा’ और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर ‘विष्णु’ अर्थ होता है।

बहुव्रीहि समास के भेद Types of Bahuvreehi Samas

बहुव्रीहि समास के चार भेद है-
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहि
(iv) व्यतिहारबहुव्रीहि

(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि :- इसमें सभी पद प्रथमा, अर्थात कर्ताकारक की विभक्ति के होते है; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति-रूपों में भी उक्त हो सकता है।

Examples of Samanadhikaran Bahuvreehi Samas

जैसे- प्राप्त है उदक जिसको =प्राप्तोदक (कर्म में उक्त);
जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त);
दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त);
निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त);
पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर;
मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला;
नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त);
चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी;
सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।

(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि :-समानाधिकरण में जहाँ दोनों पद प्रथमा या कर्ताकारक की विभक्ति के होते है, वहाँ पहला पद तो प्रथमा विभक्ति या कर्ताकारक की विभक्ति के रूप का ही होता है, जबकि बादवाला पद सम्बन्ध या अधिकरण कारक का हुआ करता है।

Examples of vyadhikaran Bahuvreehi Samas

जैसे- शूल है पाणि (हाथ) में जिसके =शूलपाणि;
वीणा है पाणि में जिसके =वीणापाणि।
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहिु:- जिसमें पहला पद ‘सह’ हो, वह तुल्ययोगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि कहलाता है।
‘सह’ का अर्थ है ‘साथ’ और समास होने पर ‘सह’ की जगह केवल ‘स’ रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो ‘सह’ (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है।

Examples of Tulyayog Bahuvreehi Samas

जैसे- जो बल के साथ है, वह=सबल;
जो देह के साथ है, वह सदेह;
जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार;
जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।

(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि:-जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो, उसे व्यतिहारबहुव्रीहि कहा जाता है।
इ समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि ‘इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई’।

Examples of vyatihaar Bahuvreehi Samas

जैसे- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्का-मुक्की;
घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी;
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती।
इसी प्रकार, खींचातानी, कहासुनी, मारामारी, डण्डाडण्डी, लाठालाठी आदि।

इन चार प्रमुख जातियों के बहुव्रीहि समास के अतिरिक्त इस समास का एक प्रकार और है। जैसे-
प्रादिबहुव्रीहि- जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है।
जैसे- कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप;
नहीं है रहम जिसमें = बेरहम;
नहीं है जन जहाँ = निर्जन।

तत्पुरुष के भेदों में भी ‘प्रादि’ एक भेद है, किन्तु उसके दोनों पदों का विग्रह विशेषण-विशेष्य-पदों की तरह होगा, न कि बहुव्रीहि के ढंग पर, अन्य पद की प्रधानता की तरह। जैसे- अति वृष्टि= अतिवृष्टि (प्रादितत्पुरुष) ।

द्रष्टव्य- (i) बहुव्रीहि के समस्त पद में दूसरा पद ‘धर्म’ या ‘धनु’ हो, तो वह आकारान्त हो जाता है।
जैसे- प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा;
सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा;
आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा।

(ii) सकारान्त में विकल्प से ‘आ’ और ‘क’ किन्तु ईकारान्त, उकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्र्चितरूप से ‘क’ लग जाता है।
जैसे- उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क;
अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क;
ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक;
साथ है पति जिसके; सप्तीक;
बिना है पति के जो = विप्तीक।

बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ

बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है-

(i) यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है।
(ii)इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
(iii)इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
(iv)इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
(v) इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।

बहुव्रीहि समास-संबंधी विशेष बातें

(i) यदि बहुव्रीहि समास के समस्तपद में दूसरा पद ‘धर्म’ या ‘धनु’ हो तो वह आकारान्त हो जाता है। जैसे-
आलोक ही है धनु जिसका वह= आलोकधन्वा

(ii) सकारान्त में विकल्प से ‘आ’ और ‘क’ किन्तु ईकारान्त, ऊकारान्त और ॠकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्चित रूप से ‘क’ लग जाता है। जैसे-
उदार है मन जिसका वह= उदारमनस्
अन्य में है मन जिसका वह= अन्यमनस्क
साथ है पत्नी जिसके वह= सपत्नीक

(iii) बहुव्रीहि समास में दो से ज्यादा पद भी होते हैं।

(iv) इसका विग्रह पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है। यानी पदों के क्रम को व्यवस्थित किया जाय तो एक सार्थक वाक्य बन जाता है। जैसे-
लंबा है उदर जिसका वह= लंबोदर
वह, जिसका उदर लम्बा है।

(v) इस समास में अधिकतर पूर्वपद कर्त्ता कारक का होता है या विशेषण।

(5)द्वन्द्व समास Dwand Samas:-

जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ लगता हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।

Examples of Dwand Samas

समस्त-पद विग्रह
रात-दिन = रात और दिन
सुख-दुख = सुख और दुख
दाल-चावल = दाल और चावल
भाई-बहन  = भाई और बहन
माता-पिता = माता और पिता
ऊपर-नीचे = ऊपर और नीचे
गंगा-यमुना = गंगा और यमुना
दूध-दही = दूध और दही
आयात-निर्यात = आयात और निर्यात
देश-विदेश = देश और विदेश
आना-जाना  =आना और जाना
राजा-रंक = राजा और रंक

(Dwand Samas Examples in Hindi)

पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (Hyphen (-) का प्रयोग होता है।

द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है। द्वन्द्व और तत्पुरुष से बने पदों का लिंग अन्तिम शब्द के अनुसार होता है।

द्वन्द्व समास के भेद

Types of Dwand Samas द्वन्द्व समास के तीन भेद है-
(i) इतरेतर द्वन्द्व
(ii) समाहार द्वन्द्व
(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व

(i) इतरेतर द्वन्द्व-: वह द्वन्द्व, जिसमें ‘और’ से सभी पद जुड़े हुए हो और पृथक् अस्तित्व रखते हों, ‘इतरेतर द्वन्द्व’ कहलता है।

इस समास से बने पद हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते है; क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने होते है।
Examples of Itaretar Dwand Samas जैसे- राम और कृष्ण =राम-कृष्ण
ऋषि और मुनि =ऋषि-मुनि
गाय और बैल =गाय-बैल
भाई और बहन =भाई-बहन
माँ और बाप =माँ-बाप
बेटा और बेटी =बेटा-बेटी इत्यादि।

यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद न केवल प्रधान होते है, बल्कि अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रखते है।

(ii) समाहार द्वन्द्व-समाहार का अर्थ है समष्टि या समूह। जब द्वन्द्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़े होने पर भी पृथक-पृथक अस्तित्व न रखें, बल्कि समूह का बोध करायें, तब वह समाहार द्वन्द्व कहलाता है।

समाहार द्वन्द्व में दोनों पदों के अतिरिक्त अन्य पद भी छिपे रहते है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते है।
Examples of Samahar Dwand Samas जैसे- आहारनिद्रा =आहार और निद्रा (केवल आहार और निद्रा ही नहीं, बल्कि इसी तरह की और बातें भी);
दालरोटी=दाल और रोटी (अर्थात भोजन के सभी मुख्य पदार्थ);
हाथपाँव =हाथ और पाँव (अर्थात हाथ और पाँव तथा शरीर के दूसरे अंग भी )
इसी तरह नोन-तेल, कुरता-टोपी, साँप-बिच्छू, खाना-पीना इत्यादि।

कभी-कभी विपरीत अर्थवाले या सदा विरोध रखनेवाले पदों का भी योग हो जाता है। जैसे- चढ़ा-ऊपरी, लेन-देन, आगा-पीछा, चूहा-बिल्ली इत्यादि।

जब दो विशेषण-पदों का संज्ञा के अर्थ में समास हो, तो समाहार द्वन्द्व होता है।
जैसे- लंगड़ा-लूला, भूखा-प्यास, अन्धा-बहरा इत्यादि।
उदाहरण- लँगड़े-लूले यह काम नहीं कर सकते;
भूखे-प्यासे को निराश नहीं करना चाहिए;
इस गाँव में बहुत-से अन्धे-बहरे है।

द्रष्टव्य- यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दोनों पद विशेषण हों और विशेषण के ही अर्थ में आयें तब वहाँ द्वन्द्व समास नहीं होता, वहाँ कर्मधारय समास हो जाता है। जैसे- लँगड़ा-लूला आदमी यह काम नहीं कर सकता; भूखा-प्यासा लड़का सो गया; इस गाँव में बहुत-से लोग अन्धे-बहरे हैं- इन प्रयोगों में ‘लँगड़ा-लूला’, ‘भूखा-प्यासा’ और ‘अन्धा-बहरा’ द्वन्द्व समास नहीं हैं।

(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व:-जिस द्वन्द्व समास में दो पदों के बीच ‘या’, ‘अथवा’ आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे हों, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते है।

इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय ‘वा’, ‘या’, ‘अथवा’ का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है।

Examples of vaikalpik Dwand Samas जैसे-
धर्म या अधर्म= धर्माधर्म
सत्य या असत्य= सत्यासत्य
छोटा या बड़ा= छोटा-बड़ा

(6) अव्ययीभाव समास Avyavibhav Samas:-

अव्ययीभाव का लक्षण है- जिसमे पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।

इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रतिदिन, यथासम्भव, यथाशक्ति, बेकाम, भरसक इत्यादि।

अव्ययीभाववाले पदों का विग्रह- ऐसे समस्तपदों को तोड़ने में, अर्थात उनका विग्रह करने में हिन्दी में बड़ी कठिनाई होती है, विशेषतः संस्कृत के समस्त पदों का विग्रह करने में हिन्दी में जिन समस्त पदों में द्विरुक्तिमात्र होती है, वहाँ विग्रह करने में केवल दोनों पदों को अलग कर दिया जाता है।

जैसे- प्रतिदिन = दिन-दिन
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम- क्रम के अनुसार
यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
बेखटके- बिना खटके के
बेखबर- बिना खबर के
रातोंरात- रात ही रात में
कानोंकान- कान ही कान में
भुखमरा- भूख से मरा हुआ
आजन्म- जन्म से लेकर
पूर्वपद-अव्यय + उत्तरपद = समस्त-पद विग्रह
प्रति + दिन = प्रतिदिन प्रत्येक दिन
आ + जन्म = आजन्म जन्म से लेकर
यथा + संभव = यथासंभव जैसा संभव हो
अनु + रूप = अनुरूप रूप के योग्य
भर + पेट = भरपेट पेट भर के
हाथ + हाथ = हाथों-हाथ हाथ ही हाथ में

(Avyavibhav Samas Examples in Hindi)

अव्ययीभाव समास की पहचान के लक्षण:- अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जा सकती हैं-
(i) यदि समस्तपद के आरंभ में भर, निर्, प्रति, यथा, बे, आ, ब, उप, यावत्, अधि, अनु आदि उपसर्ग/अव्यय हों। जैसे-
यथाशक्ति, प्रत्येक, उपकूल, निर्विवाद अनुरूप, आजीवन आदि।

(ii) यदि समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करे। जैसे-
उसने भरपेट (क्रियाविशेषण) खाया (क्रिया)

(7)नञ समास Nay Samas:-

जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। इसमे नहीं का बोध होता है।
इस समास का पहला पद ‘नञ’ (अर्थात नकारात्मक) होता है। समास में यह नञ ‘अन, अ,’ रूप में पाया जाता है। कभी-कभी यह ‘न’ रूप में भी पाया जाता है।
जैसे- (संस्कृत) न भाव=अभाव, न धर्म=अधर्म, न न्याय= अन्याय, न योग्य= अयोग्य

समस्त-पद विग्रह
अनाचार  -न आचार
अनदेखा  – न देखा हुआ
अन्याय – न न्याय
अनभिज्ञ – न अभिज्ञ
नालायक – नहीं लायक
अचल – न चल
नास्तिक – न आस्तिक
अनुचित – न उचित

Sandhi – सन्धि for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

सन्धि
संधि का अर्थ है– मिलना। दो वर्णोँ या अक्षरोँ के परस्पर मेल से उत्पन्न विकार को ‘संधि’ कहते हैँ। जैसे– विद्या+आलय = विद्यालय। यहाँ विद्या शब्द का ‘आ’ वर्ण और आलय शब्द के ‘आ’ वर्ण मेँ संधि होकर ‘आ’ बना है।
संधि–विच्छेद: संधि शब्दोँ को अलग–अलग करके संधि से पहले की स्थिति मेँ लाना ही संधि विच्छेद कहलाता है। संधि का विच्छेद करने पर उन वर्णोँ का वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है। जैसे– हिमालय = हिम+आलय।
परस्पर मिलने वाले वर्ण स्वर, व्यंजन और विसर्ग होते हैँ, अतः इनके आधार पर ही संधि तीन प्रकार की होती है– (1) स्वर संधि, (2) व्यंजन संधि, (3) विसर्ग संधि।

1. स्वर संधि

जहाँ दो स्वरोँ का परस्पर मेल हो, उसे स्वर संधि कहते हैँ। दो स्वरोँ का परस्पर मेल संस्कृत व्याकरण के अनुसार प्रायः पाँच प्रकार से होता है–
(1) अ वर्ग = अ, आ
(2) इ वर्ग = इ, ई
(3) उ वर्ग = उ, ऊ
(4) ए वर्ग = ए, ऐ
(5) ओ वर्ग = ओ, औ।
इन्हीँ स्वर–वर्गोँ के आधार पर स्वर–संधि के पाँच प्रकार होते हैँ–
1.दीर्घ संधि– जब दो समान स्वर या सवर्ण मिल जाते हैँ, चाहे वे ह्रस्व होँ या दीर्घ, या एक ह्रस्व हो और दूसरा दीर्घ, तो उनके स्थान पर एक दीर्घ स्वर हो जाता है, इसी को सवर्ण दीर्घ स्वर संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+अ/आ = आ
दैत्य+अरि = दैत्यारि
राम+अवतार = रामावतार
देह+अंत = देहांत
अद्य+अवधि = अद्यावधि
उत्तम+अंग = उत्तमांग
सूर्य+अस्त = सूर्यास्त
कुश+आसन = कुशासन
धर्म+आत्मा = धर्मात्मा
परम+आत्मा = परमात्मा
कदा+अपि = कदापि
दीक्षा+अंत = दीक्षांत
वर्षा+अंत = वर्षाँत
गदा+आघात = गदाघात
आत्मा+ आनंद = आत्मानंद
जन्म+अन्ध = जन्मान्ध
श्रद्धा+आलु = श्रद्धालु
सभा+अध्याक्ष = सभाध्यक्ष
पुरुष+अर्थ = पुरुषार्थ
हिम+आलय = हिमालय
परम+अर्थ = परमार्थ
स्व+अर्थ = स्वार्थ
स्व+अधीन = स्वाधीन
पर+अधीन = पराधीन
शस्त्र+अस्त्र = शस्त्रास्त्र
परम+अणु = परमाणु
वेद+अन्त = वेदान्त
अधिक+अंश = अधिकांश
गव+गवाक्ष = गवाक्ष
सुषुप्त+अवस्था = सुषुप्तावस्था
अभय+अरण्य = अभयारण्य
विद्या+आलय = विद्यालय
दया+आनन्द = दयानन्द
श्रदा+आनन्द = श्रद्धानन्द
महा+आशय = महाशय
वार्ता+आलाप = वार्तालाप
माया+ आचरण = मायाचरण
महा+अमात्य = महामात्य
द्राक्षा+अरिष्ट = द्राक्षारिष्ट
मूल्य+अंकन = मूल्यांकन
भय+आनक = भयानक
मुक्त+अवली = मुक्तावली
दीप+अवली = दीपावली
प्रश्न+अवली = प्रश्नावली
कृपा+आकांक्षी = कृपाकांक्षी
विस्मय+आदि = विस्मयादि
सत्य+आग्रह = सत्याग्रह
प्राण+आयाम = प्राणायाम
शुभ+आरंभ = शुभारंभ
मरण+आसन्न = मरणासन्न
शरण+आगत = शरणागत
नील+आकाश = नीलाकाश
भाव+आविष्ट = भावाविष्ट
सर्व+अंगीण = सर्वांगीण
अंत्य+अक्षरी = अंत्याक्षरी
रेखा+अंश = रेखांश
विद्या+अर्थी = विद्यार्थी
रेखा+अंकित = रेखांकित
परीक्षा+अर्थी = परीक्षार्थी
सीमा+अंकित = सीमांकित
माया+अधीन = मायाधीन
परा+अस्त = परास्त
निशा+अंत = निशांत
गीत+अंजलि = गीतांजलि
प्र+अर्थी = प्रार्थी
प्र+अंगन = प्रांगण
काम+अयनी = कामायनी
प्रधान+अध्यापक = प्रधानाध्यापक
विभाग+अध्यक्ष = विभागाध्यक्ष
शिव+आलय = शिवालय
पुस्तक+आलय = पुस्तकालय
चर+अचर = चराचर

इ/ई+इ/ई = ई
रवि+इन्द्र = रवीन्द्र
मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र
कवि+इन्द्र = कवीन्द्र
गिरि+इन्द्र = गिरीन्द्र
अभि+इष्ट = अभीष्ट
शचि+इन्द्र = शचीन्द्र
यति+इन्द्र = यतीन्द्र
पृथ्वी+ईश्वर = पृथ्वीश्वर
श्री+ईश = श्रीश
नदी+ईश = नदीश
रजनी+ईश = रजनीश
मही+ईश = महीश
नारी+ईश्वर = नारीश्वर
गिरि+ईश = गिरीश
हरि+ईश = हरीश
कवि+ईश = कवीश
कपि+ईश = कपीश
मुनि+ईश्वर = मुनीश्वर
प्रति+ईक्षा = प्रतीक्षा
अभि+ईप्सा = अभीप्सा
मही+इन्द्र = महीन्द्र
नारी+इच्छा = नारीच्छा
नारी+इन्द्र = नारीन्द्र
नदी+इन्द्र = नदीन्द्र
सती+ईश = सतीश
परि+ईक्षा = परीक्षा
अधि+ईक्षक = अधीक्षक
वि+ईक्षण = वीक्षण
फण+इन्द्र = फणीन्द्र
प्रति+इत = प्रतीत
परि+ईक्षित = परीक्षित
परि+ईक्षक = परीक्षक

उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ
भानु+उदय = भानूदय
लघु+ऊर्मि = लघूर्मि
गुरु+उपदेश = गुरूपदेश
सिँधु+ऊर्मि = सिँधूर्मि
सु+उक्ति = सूक्ति
लघु+उत्तर = लघूत्तर
मंजु+उषा = मंजूषा
साधु+उपदेश = साधूपदेश
लघु+उत्तम = लघूत्तम
भू+ऊर्ध्व = भूर्ध्व
वधू+उर्मि = वधूर्मि
वधू+उत्सव = वधूत्सव
भू+उपरि = भूपरि
वधू+उक्ति = वधूक्ति
अनु+उदित = अनूदित
सरयू+ऊर्मि = सरयूर्मि
ऋ/ॠ+ऋ/ॠ = ॠ
मातृ+ऋण = मात्ॠण
पितृ+ऋण = पित्ॠण
भ्रातृ+ऋण = भ्रात्ॠण

2. गुण संधि–
अ या आ के बाद यदि ह्रस्व इ, उ, ऋ अथवा दीर्घ ई, ऊ, ॠ स्वर होँ, तो उनमेँ संधि होकर क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है, इसे गुण संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+इ/ई = ए
भारत+इन्द्र = भारतेन्द्र
देव+इन्द्र = देवेन्द्र
नर+इन्द्र = नरेन्द्र
सुर+इन्द्र = सुरेन्द्र
वीर+इन्द्र = वीरेन्द्र
स्व+इच्छा = स्वेच्छा
न+इति = नेति
अंत्य+इष्टि = अंत्येष्टि
महा+इन्द्र = महेन्द्र
रमा+इन्द्र = रमेन्द्र
राजा+इन्द्र = राजेन्द्र
यथा+इष्ट = यथेष्ट
रसना+इन्द्रिय = रसनेन्द्रिय
सुधा+इन्दु = सुधेन्दु
सोम+ईश = सोमेश
महा+ईश = महेश
नर+ईश = नरेश
रमा+ईश = रमेश
परम+ईश्वर = परमेश्वर
राजा+ईश = राजेश
गण+ईश = गणेश
राका+ईश = राकेश
अंक+ईक्षण = अंकेक्षण
लंका+ईश = लंकेश
महा+ईश्वर = महेश्वर
प्र+ईक्षक = प्रेक्षक
उप+ईक्षा = उपेक्षा

अ/आ+उ/ऊ = ओ
सूर्य+उदय = सूर्योदय
पूर्व+उदय = पूर्वोदय
पर+उपकार = परोपकार
लोक+उक्ति = लोकोक्ति
वीर+उचित = वीरोचित
आद्य+उपान्त = आद्योपान्त
नव+ऊढ़ा = नवोढ़ा
समुद्र+ऊर्मि = समुद्रोर्मि
जल+ऊर्मि = जलोर्मि
महा+उत्सव = महोत्सव
महा+उदधि = महोदधि
गंगा+उदक = गंगोदक
यथा+उचित = यथोचित
कथा+उपकथन = कथोपकथन
स्वातंत्र्य+उत्तर = स्वातंत्र्योत्तर
गंगा+ऊर्मि = गंगोर्मि
महा+ऊर्मि = महोर्मि
आत्म+उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग
महा+उदय = महोदय
करुणा+उत्पादक = करुणोत्पादक
विद्या+उपार्जन = विद्योपार्जन
प्र+ऊढ़ = प्रौढ़
अक्ष+हिनी = अक्षौहिनी
अ/आ+ऋ = अर्
ब्रह्म+ऋषि = ब्रह्मर्षि
देव+ऋषि = देवर्षि
महा+ऋषि = महर्षि
महा+ऋद्धि = महर्द्धि
राज+ऋषि = राजर्षि
सप्त+ऋषि = सप्तर्षि
सदा+ऋतु = सदर्तु
शिशिर+ऋतु = शिशिरर्तु
महा+ऋण = महर्ण

3. वृद्धि संधि–
अ या आ के बाद यदि ए, ऐ होँ तो इनके स्थान पर ‘ऐ’ तथा अ, आ के बाद ओ, औ होँ तो इनके स्थान पर ‘औ’ हो जाता है। ‘ऐ’ तथा ‘औ’ स्वर ‘वृद्धि स्वर’ कहलाते हैँ अतः इस संधि को वृद्धि संधि कहते हैँ। जैसे–
अ/आ+ए/ऐ = ऐ
एक+एक = एकैक
मत+ऐक्य = मतैक्य
सदा+एव = सदैव
स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक
लोक+एषणा = लोकैषणा
महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य
पुत्र+ऐषणा = पुत्रैषणा
वसुधा+ऐव = वसुधैव
तथा+एव = तथैव
महा+ऐन्द्रजालिक = महैन्द्रजालिक
हित+एषी = हितैषी
वित्त+एषणा = वित्तैषणा
अ/आ+ओ/औ = औ
वन+ओषध = वनौषध
परम+ओज = परमौज
महा+औघ = महौघ
महा+औदार्य = महौदार्य
परम+औदार्य = परमौदार्य
जल+ओध = जलौध
महा+औषधि = महौषधि
प्र+औद्योगिकी = प्रौद्योगिकी
दंत+ओष्ठ = दंतोष्ठ (अपवाद)

4. यण संधि–
जब हृस्व इ, उ, ऋ या दीर्घ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान स्वर आये, तो इ, ई के स्थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। इसे यण् संधि कहते हैँ।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि इ/ई या उ/ऊ स्वर तो ‘य्’ या ‘व्’ मेँ बदल जाते हैँ किँतु जिस व्यंजन के ये स्वर लगे होते हैँ, वह संधि होने पर स्वर–रहित हो जाता है। जैसे– अभि+अर्थी = अभ्यार्थी, तनु+अंगी = तन्वंगी। यहाँ अभ्यर्थी मेँ ‘य्’ के पहले ‘भ्’ तथा तन्वंगी मेँ ‘व्’ के पहले ‘न्’ स्वर–रहित हैँ। प्रायः य्, व्, र् से पहले स्वर–रहित व्यंजन का होना यण् संधि की पहचान है। जैसे–
इ/ई+अ = य
यदि+अपि = यद्यपि
परि+अटन = पर्यटन
नि+अस्त = न्यस्त
वि+अस्त = व्यस्त
वि+अय = व्यय
वि+अग्र = व्यग्र
परि+अंक = पर्यँक
परि+अवेक्षक = पर्यवेक्षक
वि+अष्टि = व्यष्टि
वि+अंजन = व्यंजन
वि+अवहार = व्यवहार
वि+अभिचार = व्यभिचार
वि+अक्ति = व्यक्ति
वि+अवस्था = व्यवस्था
वि+अवसाय = व्यवसाय
प्रति+अय = प्रत्यय
नदी+अर्पण = नद्यर्पण
अभि+अर्थी = अभ्यर्थी
परि+अंत = पर्यँत
अभि+उदय = अभ्युदय
देवी+अर्पण = देव्यर्पण
प्रति+अर्पण = प्रत्यर्पण
प्रति+अक्ष = प्रत्यक्ष
वि+अंग्य = व्यंग्य
इ/ई+आ = या
वि+आप्त = व्याप्त
अधि+आय = अध्याय
इति+आदि = इत्यादि
परि+आवरण = पर्यावरण
अभि+आगत = अभ्यागत
वि+आस = व्यास
वि+आयाम = व्यायाम
अधि+आदेश = अध्यादेश
वि+आख्यान = व्याख्यान
प्रति+आशी = प्रत्याशी
अधि+आपक = अध्यापक
वि+आकुल = व्याकुल
अधि+आत्म = अध्यात्म
प्रति+आवर्तन = प्रत्यावर्तन
प्रति+आशित = प्रत्याशित
प्रति+आभूति = प्रत्याभूति
प्रति+आरोपण = प्रत्यारोपण
वि+आवृत्त = व्यावृत्त
वि+आधि = व्याधि
वि+आहत = व्याहत
प्रति+आहार = प्रत्याहार
अभि+आस = अभ्यास
सखी+आगमन = सख्यागमन
मही+आधार = मह्याधार
इ/ई+उ/ऊ = यु/यू
परि+उषण = पर्युषण
नारी+उचित = नार्युचित
उपरि+उक्त = उपर्युक्त
स्त्री+उपयोगी = स्त्र्युपयोगी
अभि+उदय = अभ्युदय
अति+उक्ति = अत्युक्ति
प्रति+उत्तर = प्रत्युत्तर
अभि+उत्थान = अभ्युत्थान
आदि+उपांत = आद्युपांत
अति+उत्तम = अत्युत्तम
स्त्री+उचित = स्त्र्युचित
प्रति+उत्पन्न = प्रत्युत्पन्न
प्रति+उपकार = प्रत्युपकार
वि+उत्पत्ति = व्युत्पत्ति
वि+उपदेश = व्युपदेश
नि+ऊन = न्यून
प्रति+ऊह = प्रत्यूह
वि+ऊह = व्यूह
अभि+ऊह = अभ्यूह
इ/ई+ए/ओ/औ = ये/यो/यौ
प्रति+एक = प्रत्येक
वि+ओम = व्योम
वाणी+औचित्य = वाण्यौचित्य
उ/ऊ+अ/आ = व/वा
तनु+अंगी = तन्वंगी
अनु+अय = अन्वय
मधु+अरि = मध्वरि
सु+अल्प = स्वल्प
समनु+अय = समन्वय
सु+अस्ति = स्वस्ति
परमाणु+अस्त्र = परमाण्वस्त्र
सु+आगत = स्वागत
साधु+आचार = साध्वाचार
गुरु+आदेश = गुर्वादेश
मधु+आचार्य = मध्वाचार्य
वधू+आगमन = वध्वागमन
ऋतु+आगमन = ऋत्वागमन
सु+आभास = स्वाभास
सु+आगम = स्वागम
उ/ऊ+इ/ई/ए = वि/वी/वे
अनु+इति = अन्विति
धातु+इक = धात्विक
अनु+इष्ट = अन्विष्ट
पू+इत्र = पवित्र
अनु+ईक्षा = अन्वीक्षा
अनु+ईक्षण = अन्वीक्षण
तनु+ई = तन्वी
धातु+ईय = धात्वीय
अनु+एषण = अन्वेषण
अनु+एषक = अन्वेषक
अनु+एक्षक = अन्वेक्षक
ऋ+अ/आ/इ/उ = र/रा/रि/रु
मातृ+अर्थ = मात्रर्थ
पितृ+अनुमति = पित्रनुमति
मातृ+आनन्द = मात्रानन्द
पितृ+आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ+आज्ञा = मात्राज्ञा
पितृ+आदेश = पित्रादेश
मातृ+आदेश = मात्रादेश
मातृ+इच्छा = मात्रिच्छा
पितृ+इच्छा = पित्रिच्छा
मातृ+उपदेश = मात्रुपदेश
पितृ+उपदेश = पित्रुपदेश

5. अयादि संधि–
ए, ऐ, ओ, औ के बाद यदि कोई असमान स्वर हो, तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ तथा ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैँ। जैसे–
ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आयि
ने+अन = नयन
शे+अन = शयन
चे+अन = चयन
संचे+अ = संचय
चै+अ = चाय
गै+अक = गायक
गै+अन् = गायन
नै+अक = नायक
दै+अक = दायक
शै+अर = शायर
विधै+अक = विधायक
विनै+अक = विनायक
नै+इका = नायिका
गै+इका = गायिका
दै+इनी = दायिनी
विधै+इका = विधायिका
ओ/औ+अ = अव/आव
भो+अन् = भवन
पो+अन् = पवन
भो+अति = भवति
हो+अन् = हवन
पौ+अन् = पावन
धौ+अक = धावक
पौ+अक = पावक
शौ+अक = शावक
भौ+अ = भाव
श्रौ+अन = श्रावण
रौ+अन = रावण
स्रौ+अ = स्राव
प्रस्तौ+अ = प्रस्ताव
गव+अक्ष = गवाक्ष (अपवाद)
ओ/औ+इ/ई/उ = अवि/अवी/आवु
रो+इ = रवि
भो+इष्य = भविष्य
गौ+ईश = गवीश
नौ+इक = नाविक
प्रभौ+इति = प्रभावित
प्रस्तौ+इत = प्रस्तावित
भौ+उक = भावुक

2. व्यंजन संधि
व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन के मेल को व्यंजन संधि कहते हैँ। व्यंजन संधि मेँ एक स्वर और एक व्यंजन या दोनोँ वर्ण व्यंजन होते हैँ। इसके अनेक भेद होते हैँ। व्यंजन संधि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैँ–
1. यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के बाद कोई स्वर, किसी भी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह मेँ से कोई वर्ण आये तो प्रथम वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे–
‘क्’ का ‘ग्’ होना
दिक्+अम्बर = दिगम्बर
दिक्+दर्शन = दिग्दर्शन
वाक्+जाल = वाग्जाल
वाक्+ईश = वागीश
दिक्+अंत = दिगंत
दिक्+गज = दिग्गज
ऋक्+वेद = ऋग्वेद
दृक्+अंचल = दृगंचल
वाक्+ईश्वरी = वागीश्वरी
प्राक्+ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
दिक्+गयंद = दिग्गयंद
वाक्+जड़ता = वाग्जड़ता
सम्यक्+ज्ञान = सम्यग्ज्ञान
वाक्+दान = वाग्दान
दिक्+भ्रम = दिग्भ्रम
वाक्+दत्ता = वाग्दत्ता
दिक्+वधू = दिग्वधू
दिक्+हस्ती = दिग्हस्ती
वाक्+व्यापार = वाग्व्यापार
वाक्+हरि = वाग्हरि
‘च्’ का ‘ज्’
अच्+अन्त = अजन्त
अच्+आदि = अजादि
णिच्+अंत = णिजंत
‘ट्’ का ‘ड्’
षट्+आनन = षडानन
षट्+दर्शन = षड्दर्शन
षट्+रिपु = षड्रिपु
षट्+अक्षर = षडक्षर
षट्+अभिज्ञ = षडभिज्ञ
षट्+गुण = षड्गुण
षट्+भुजा = षड्भुजा
षट्+यंत्र = षड्यंत्र
षट्+रस = षड्रस
षट्+राग = षड्राग
‘त्’ का ‘द्’
सत्+विचार = सद्विचार
जगत्+अम्बा = जगदम्बा
सत्+धर्म = सद्धर्म
तत्+भव = तद्भव
उत्+घाटन = उद्घाटन
सत्+आशय = सदाशय
जगत्+आत्मा = जगदात्मा
सत्+आचार = सदाचार
जगत्+ईश = जगदीश
तत्+अनुसार = तदनुसार
तत्+रूप = तद्रूप
सत्+उपयोग = सदुपयोग
भगवत्+गीता = भगवद्गीता
सत्+गति = सद्गति
उत्+गम = उद्गम
उत्+आहरण = उदाहरण
इस नियम का अपवाद भी है जो इस प्रकार है–
त्+ड/ढ = त् के स्थान पर ड्
त्+ज/झ = त् के स्थान पर ज्
त्+ल् = त् के स्थान पर ल्
जैसे–
उत्+डयन = उड्डयन
सत्+जन = सज्जन
उत्+लंघन = उल्लंघन
उत्+लेख = उल्लेख
तत्+जन्य = तज्जन्य
उत्+ज्वल = उज्ज्वल
विपत्+जाल = विपत्जाल
उत्+लास = उल्लास
तत्+लीन = तल्लीन
जगत्+जननी = जगज्जननी

2.यदि किसी वर्ग के प्रथम या तृतीय वर्ण के बाद किसी वर्ग का पंचम वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म) हो तो पहला या तीसरा वर्ण भी पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे–
प्रथम/तृतीय वर्ण+पंचम वर्ण = पंचम वर्ण
वाक्+मय = वाङ्मय
दिक्+नाग = दिङ्नाग
सत्+नारी = सन्नारी
जगत्+नाथ = जगन्नाथ
सत्+मार्ग = सन्मार्ग
चित्+मय = चिन्मय
सत्+मति = सन्मति
उत्+नायक = उन्नायक
उत्+मूलन = उन्मूलन
अप्+मय = अम्मय
सत्+मान = सन्मान
उत्+माद = उन्माद
उत्+नत = उन्नत
वाक्+निपुण = वाङ्निपुण
जगत्+माता = जगन्माता
उत्+मत्त = उन्मत्त
उत्+मेष = उन्मेष
तत्+नाम = तन्नाम
उत्+नयन = उन्नयन
षट्+मुख = षण्मुख
उत्+मुख = उन्मुख
श्रीमत्+नारायण = श्रीमन्नारायण
षट्+मूर्ति = षण्मूर्ति
उत्+मोचन = उन्मोचन
भवत्+निष्ठ = भवन्निष्ठ
तत्+मय = तन्मय
षट्+मास = षण्मास
सत्+नियम = सन्नियम
दिक्+नाथ = दिङ्नाथ
वृहत्+माला = वृहन्माला
वृहत्+नला = वृहन्नला

3. ‘त्’ या ‘द्’ के बाद च या छ हो तो ‘त्/द्’ के स्थान पर ‘च्’, ‘ज्’ या ‘झ’ हो तो ‘ज्’, ‘ट्’ या ‘ठ्’ हो तो ‘ट्’, ‘ड्’ या ‘ढ’ हो तो ‘ड्’ और ‘ल’ हो तो ‘ल्’ हो जाता है। जैसे–
त्+च/छ = च्च/च्छ
सत्+छात्र = सच्छात्र
सत्+चरित्र = सच्चरित्र
समुत्+चय = समुच्चय
उत्+चरित = उच्चरित
सत्+चित = सच्चित
जगत्+छाया = जगच्छाया
उत्+छेद = उच्छेद
उत्+चाटन = उच्चाटन
उत्+चारण = उच्चारण
शरत्+चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत्+छिन = उच्छिन
सत्+चिदानन्द = सच्चिदानन्द
उत्+छादन = उच्छादन
त्/द्+ज्/झ् = ज्ज/ज्झ
सत्+जन = सज्जन
तत्+जन्य = तज्जन्य
उत्+ज्वल = उज्ज्वल
जगत्+जननी = जगज्जननी
त्+ट/ठ = ट्ट/ट्ठ
तत्+टीका = तट्टीका
वृहत्+टीका = वृहट्टीका
त्+ड/ढ = ड्ड/ड्ढ
उत्+डयन = उड्डयन
जलत्+डमरु = जलड्डमरु
भवत्+डमरु = भवड्डमरु
महत्+ढाल = महड्ढाल
त्+ल = ल्ल
उत्+लेख = उल्लेख
उत्+लास = उल्लास
तत्+लीन = तल्लीन
उत्+लंघन = उल्लंघन

4. यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ह’ आये तो उनके स्थान पर ‘द्ध’ हो जाता है। जैसे–
उत्+हार = उद्धार
तत्+हित = तद्धित
उत्+हरण = उद्धरण
उत्+हत = उद्धत
पत्+हति = पद्धति
पत्+हरि = पद्धरि
उपर्युक्त संधियाँ का दूसरा रूप इस प्रकार प्रचलित है–
उद्+हार = उद्धार
तद्+हित = तद्धित
उद्+हरण = उद्धरण
उद्+हत = उद्धत
पद्+हति = पद्धति
ये संधियाँ दोनोँ प्रकार से मान्य हैँ।

5. यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘श्’ हो तो ‘त् या द्’ का ‘च्’ और ‘श्’ का ‘छ्’ हो जाता है। जैसे–
त्/द्+श् = च्छ
उत्+श्वास = उच्छ्वास
तत्+शिव = तच्छिव
उत्+शिष्ट = उच्छिष्ट
मृद्+शकटिक = मृच्छकटिक
सत्+शास्त्र = सच्छास्त्र
तत्+शंकर = तच्छंकर
उत्+शृंखल = उच्छृंखल

6. यदि किसी भी स्वर वर्ण के बाद ‘छ’ हो तो वह ‘च्छ’ हो जाता है। जैसे–
कोई स्वर+छ = च्छ
अनु+छेद = अनुच्छेद
परि+छेद = परिच्छेद
वि+छेद = विच्छेद
तरु+छाया = तरुच्छाया
स्व+छन्द = स्वच्छन्द
आ+छादन = आच्छादन
वृक्ष+छाया = वृक्षच्छाया

7. यदि ‘त्’ के बाद ‘स्’ (हलन्त) हो तो ‘स्’ का लोप हो जाता है। जैसे–
उत्+स्थान = उत्थान
उत्+स्थित = उत्थित

8. यदि ‘म्’ के बाद ‘क्’ से ‘भ्’ तक का कोई भी स्पर्श व्यंजन हो तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है, या उसी वर्ग का पाँचवाँ अनुनासिक वर्ण बन जाता है। जैसे–
म्+कोई व्यंजन = म् के स्थान पर अनुस्वार (ं ) या उसी वर्ग का पंचम वर्ण
सम्+चार = संचार/सञ्चार
सम्+कल्प = संकल्प/सङ्कल्प
सम्+ध्या = संध्या/सन्ध्या
सम्+भव = संभव/सम्भव
सम्+पूर्ण = संपूर्ण/सम्पूर्ण
सम्+जीवनी = संजीवनी
सम्+तोष = संतोष/सन्तोष
किम्+कर = किँकर/किङ्कर
सम्+बन्ध = संबन्ध/सम्बन्ध
सम्+धि = संधि/सन्धि
सम्+गति = संगति/सङ्गति
सम्+चय = संचय/सञ्चय
परम्+तु = परन्तु/परंतु
दम्+ड = दण्ड/दंड
दिवम्+गत = दिवंगत
अलम्+कार = अलंकार
शुभम्+कर = शुभंकर
सम्+कलन = संकलन
सम्+घनन = संघनन
पम्+चम् = पंचम
सम्+तुष्ट = संतुष्ट/सन्तुष्ट
सम्+दिग्ध = संदिग्ध/सन्दिग्ध
अम्+ड = अण्ड/अंड
सम्+तति = संतति
सम्+क्षेप = संक्षेप
अम्+क = अंक/अङ्क
हृदयम्+गम = हृदयंगम
सम्+गठन = संगठन/सङ्गठन
सम्+जय = संजय
सम्+ज्ञा = संज्ञा
सम्+क्रांति = संक्रान्ति
सम्+देश = संदेश/सन्देश
सम्+चित = संचित/सञ्चित
किम्+तु = किँतु/किन्तु
वसुम्+धर = वसुन्धरा/वसुंधरा
सम्+भाषण = संभाषण
तीर्थँम्+कर = तीर्थँकर
सम्+कर = संकर
सम्+घटन = संघटन
किम्+चित = किँचित
धनम्+जय = धनंजय/धनञ्जय
सम्+देह = सन्देह/संदेह
सम्+न्यासी = संन्यासी
सम्+निकट = सन्निकट

9. यदि ‘म्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘म्’ अपरिवर्तित रहता है। जैसे–
म्+म = म्म
सम्+मति = सम्मति
सम्+मिश्रण = सम्मिश्रण
सम्+मिलित = सम्मिलित
सम्+मान = सम्मान
सम्+मोहन = सम्मोहन
सम्+मानित = सम्मानित
सम्+मुख = सम्मुख

10. यदि ‘म्’ के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह मेँ से कोई वर्ण आये तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (ं ) हो जाता है। जैसे–
म्+य, र, ल, व, श, ष, स, ह = अनुस्वार (ं )
सम्+योग = संयोग
सम्+वाद = संवाद
सम्+हार = संहार
सम्+लग्न = संलग्न
सम्+रक्षण = संरक्षण
सम्+शय = संशय
किम्+वा = किँवा
सम्+विधान = संविधान
सम्+शोधन = संशोधन
सम्+रक्षा = संरक्षा
सम्+सार = संसार
सम्+रक्षक = संरक्षक
सम्+युक्त = संयुक्त
सम्+स्मरण = संस्मरण
स्वयम्+वर = स्वयंवर
सम्+हित = संहिता

11. यदि ‘स’ से पहले अ या आ से भिन्न कोई स्वर हो तो स का ‘ष’ हो जाता है। जैसे–
अ, आ से भिन्न स्वर+स = स के स्थान पर ष
वि+सम = विषम
नि+सेध = निषेध
नि+सिद्ध = निषिद्ध
अभि+सेक = अभिषेक
परि+सद् = परिषद्
नि+स्नात = निष्णात
अभि+सिक्त = अभिषिक्त
सु+सुप्ति = सुषुप्ति
उपनि+सद = उपनिषद
अपवाद–
अनु+सरण = अनुसरण
अनु+स्वार = अनुस्वार
वि+स्मरण = विस्मरण
वि+सर्ग = विसर्ग

12. यदि ‘ष्’ के बाद ‘त’ या ‘थ’ हो तो ‘ष्’ आधा वर्ण तथा ‘त’ के स्थान पर ‘ट’ और ‘थ’ के स्थान पर ‘ठ’ हो जाता है। जैसे–
ष्+त/थ = ष्ट/ष्ठ
आकृष्+त = आकृष्ट
उत्कृष्+त = उत्कृष्ट
तुष्+त = तुष्ट
सृष्+ति = सृष्टि
षष्+थ = षष्ठ
पृष्+थ = पृष्ठ

13. यदि ‘द्’ के बाद क, त, थ, प या स आये तो ‘द्’ का ‘त्’ हो जाता है। जैसे–
द्+क, त, थ, प, स = द् की जगह त्
उद्+कोच = उत्कोच
मृद्+तिका = मृत्तिका
विपद्+ति = विपत्ति
आपद्+ति = आपत्ति
तद्+पर = तत्पर
संसद्+सत्र = संसत्सत्र
संसद्+सदस्य = संसत्सदस्य
उपनिषद्+काल = उपनिषत्काल
उद्+तर = उत्तर
तद्+क्षण = तत्क्षण
विपद्+काल = विपत्काल
शरद्+काल = शरत्काल
मृद्+पात्र = मृत्पात्र

14. यदि ‘ऋ’ और ‘द्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘द्’ का ‘ण्’ बन जाता है। जैसे–
ऋद्+म = ण्म
मृद्+मय = मृण्मय
मृद्+मूर्ति = मृण्मूर्ति

15. यदि इ, ऋ, र, ष के बाद स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार, य, व, ह मेँ से किसी वर्ण के बाद ‘न’ आ जाये तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। जैसे–
(i) इ/ऋ/र/ष+ न= न के स्थान पर ण
(ii) इ/ऋ/र/ष+स्वर/क वर्ग/प वर्ग/अनुस्वार/य, व, ह+न = न के स्थान पर ण
प्र+मान = प्रमाण
भर+न = भरण
नार+अयन = नारायण
परि+मान = परिमाण
परि+नाम = परिणाम
प्र+यान = प्रयाण
तर+न = तरण
शोष्+अन् = शोषण
परि+नत = परिणत
पोष्+अन् = पोषण
विष्+नु = विष्णु
राम+अयन = रामायण
भूष्+अन = भूषण
ऋ+न = ऋण
मर+न = मरण
पुरा+न = पुराण
हर+न = हरण
तृष्+ना = तृष्णा
तृ+न = तृण
प्र+न = प्रण

16. यदि सम् के बाद कृत, कृति, करण, कार आदि मेँ से कोई शब्द आये तो म् का अनुस्वार बन जाता है एवं स् का आगमन हो जाता है। जैसे–
सम्+कृत = संस्कृत
सम्+कृति = संस्कृति
सम्+करण = संस्करण
सम्+कार = संस्कार

17. यदि परि के बाद कृत, कार, कृति, करण आदि मेँ से कोई शब्द आये तो संधि मेँ ‘परि’ के बाद ‘ष्’ का आगम हो जाता है। जैसे–
परि+कार = परिष्कार
परि+कृत = परिष्कृत
परि+करण = परिष्करण
परि+कृति = परिष्कृति

3. विसर्ग संधि
जहाँ विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग का लोप हो जाता है या विसर्ग के स्थान पर कोई नया वर्ण आ जाता है, वहाँ विसर्ग संधि होती है।

विसर्ग संधि के नियम निम्न प्रकार हैँ–
1. यदि ‘अ’ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवाँ वर्ण या अन्तःस्थ वर्ण (य, र, ल, व) हो, तो ‘अः’ का ‘ओ’ हो जाता है। जैसे–
अः+किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण, य, र, ल, व = अः का ओ
मनः+वेग = मनोवेग
मनः+अभिलाषा = मनोभिलाषा
मनः+अनुभूति = मनोभूति
पयः+निधि = पयोनिधि
यशः+अभिलाषा = यशोभिलाषा
मनः+बल = मनोबल
मनः+रंजन = मनोरंजन
तपः+बल = तपोबल
तपः+भूमि = तपोभूमि
मनः+हर = मनोहर
वयः+वृद्ध = वयोवृद्ध
सरः+ज = सरोज
मनः+नयन = मनोनयन
पयः+द = पयोद
तपः+धन = तपोधन
उरः+ज = उरोज
शिरः+भाग = शिरोभाग
मनः+व्यथा = मनोव्यथा
मनः+नीत = मनोनीत
तमः+गुण = तमोगुण
पुरः+गामी = पुरोगामी
रजः+गुण = रजोगुण
मनः+विकार = मनोविकार
अधः+गति = अधोगति
पुरः+हित = पुरोहित
यशः+दा = यशोदा
यशः+गान = यशोगान
मनः+ज = मनोज
मनः+विज्ञान = मनोविज्ञान
मनः+दशा = मनोदशा

2. यदि विसर्ग से पहले और बाद मेँ ‘अ’ हो, तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओऽ’ या ‘ओ’ हो जाता है तथा बाद के ‘अ’ का लोप हो जाता है। जैसे–
अः+अ = ओऽ/ओ
यशः+अर्थी = यशोऽर्थी/यशोर्थी
मनः+अनुकूल = मनोऽनुकूल/मनोनुकूल
प्रथमः+अध्याय = प्रथमोऽध्याय/प्रथमोध्याय
मनः+अभिराम = मनोऽभिराम/मनोभिराम
परः+अक्ष = परोक्ष

3. यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ से भिन्न कोई स्वर तथा बाद मेँ कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व मेँ से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र्’ हो जाता है। जैसे–
अ, आ से भिन्न स्वर+वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण/य, र, ल, व, ह = (:) का ‘र्’
दुः+बल = दुर्बल
पुनः+आगमन = पुनरागमन
आशीः+वाद = आशीर्वाद
निः+मल = निर्मल
दुः+गुण = दुर्गुण
आयुः+वेद = आयुर्वेद
बहिः+रंग = बहिरंग
दुः+उपयोग = दुरुपयोग
निः+बल = निर्बल
बहिः+मुख = बहिर्मुख
दुः+ग = दुर्ग
प्रादुः+भाव = प्रादुर्भाव
निः+आशा = निराशा
निः+अर्थक = निरर्थक
निः+यात = निर्यात
दुः+आशा = दुराशा
निः+उत्साह = निरुत्साह
आविः+भाव = आविर्भाव
आशीः+वचन = आशीर्वचन
निः+आहार = निराहार
निः+आधार = निराधार
निः+भय = निर्भय
निः+आमिष = निरामिष
निः+विघ्न = निर्विघ्न
धनुः+धर = धनुर्धर

4. यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और विसर्ग से पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है। जैसे–
हृस्व स्वर(:)+र = (:) का लोप व पूर्व का स्वर दीर्घ
निः+रोग = नीरोग
निः+रज = नीरज
निः+रस = नीरस
निः+रव = नीरव

5. यदि विसर्ग के बाद ‘च’ या ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट’ या ‘ठ’ हो तो ‘ष्’ तथा ‘त’, ‘थ’, ‘क’, ‘स्’ हो तो ‘स्’ हो जाता है। जैसे–
विसर्ग (:)+च/छ = श्
निः+चय = निश्चय
निः+चिन्त = निश्चिन्त
दुः+चरित्र = दुश्चरित्र
हयिः+चन्द्र = हरिश्चन्द्र
पुरः+चरण = पुरश्चरण
तपः+चर्या = तपश्चर्या
कः+चित् = कश्चित्
मनः+चिकित्सा = मनश्चिकित्सा
निः+चल = निश्चल
निः+छल = निश्छल
दुः+चक्र = दुश्चक्र
पुनः+चर्या = पुनश्चर्या
अः+चर्य = आश्चर्य
विसर्ग(:)+ट/ठ = ष्
धनुः+टंकार = धनुष्टंकार
निः+ठुर = निष्ठुर
विसर्ग(:)+त/थ = स्
मनः+ताप = मनस्ताप
दुः+तर = दुस्तर
निः+तेज = निस्तेज
निः+तार = निस्तार
नमः+ते = नमस्ते
अः/आः+क = स्
भाः+कर = भास्कर
पुरः+कृत = पुरस्कृत
नमः+कार = नमस्कार
तिरः+कार = तिरस्कार

6. यदि विसर्ग से पहले ‘इ’ या ‘उ’ हो और बाद मेँ क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है। जैसे–
इः/उः+क/ख/प/फ = ष्
निः+कपट = निष्कपट
दुः+कर्म = दुष्कर्म
निः+काम = निष्काम
दुः+कर = दुष्कर
बहिः+कृत = बहिष्कृत
चतुः+कोण = चतुष्कोण
निः+प्रभ = निष्प्रभ
निः+फल = निष्फल
निः+पाप = निष्पाप
दुः+प्रकृति = दुष्प्रकृति
दुः+परिणाम = दुष्परिणाम
चतुः+पद = चतुष्पद

7. यदि विसर्ग के बाद श, ष, स हो तो विसर्ग ज्योँ के त्योँ रह जाते हैँ या विसर्ग का स्वरूप बाद वाले वर्ण जैसा हो जाता है। जैसे–
विसर्ग+श/ष/स = (:) या श्श/ष्ष/स्स
निः+शुल्क = निःशुल्क/निश्शुल्क
दुः+शासन = दुःशासन/दुश्शासन
यशः+शरीर = यशःशरीर/यश्शरीर
निः+सन्देह = निःसन्देह/निस्सन्देह
निः+सन्तान = निःसन्तान/निस्सन्तान
निः+संकोच = निःसंकोच/निस्संकोच
दुः+साहस = दुःसाहस/दुस्साहस
दुः+सह = दुःसह/दुस्सह

8. यदि विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो विसर्ग मेँ कोई परिवर्तन नहीँ होता है। जैसे–
अः+क/ख/प/फ = (:) का लोप नहीँ
अन्तः+करण = अन्तःकरण
प्रातः+काल = प्रातःकाल
पयः+पान = पयःपान
अधः+पतन = अधःपतन
मनः+कामना = मनःकामना

9. यदि ‘अ’ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और पास आये स्वरोँ मेँ संधि नहीँ होती है। जैसे–
अः+अ से भिन्न स्वर = विसर्ग का लोप
अतः+एव = अत एव
पयः+ओदन = पय ओदन
रजः+उद्गम = रज उद्गम
यशः+इच्छा = यश इच्छा

हिन्दी भाषा की अन्य संधियाँ
हिन्दी की कुछ विशेष सन्धियाँ भी हैँ। इनमेँ स्वरोँ का दीर्घ का हृस्व होना और हृस्व का दीर्घ हो जाना, स्वर का आगम या लोप हो जाना आदि मुख्य हैँ। इसमेँ व्यंजनोँ का परिवर्तन प्रायः अत्यल्प होता है। उपसर्ग या प्रत्ययोँ से भी इस तरह की संधियाँ हो जाती हैँ। ये अन्य संधियाँ निम्न प्रकार हैँ–
1. हृस्वीकरण–
(क) आदि हृस्व– इसमेँ संधि के कारण पहला दीर्घ स्वर हृस्व हो जाता है। जैसे –
घोड़ा+सवार = घुड़सवार
घोड़ा+चढ़ी = घुड़चढ़ी
दूध+मुँहा = दुधमुँहा
कान+कटा = कनकटा
काठ+फोड़ा = कठफोड़ा
काठ+पुतली = कठपुतली
मोटा+पा = मुटापा
छोटा+भैया = छुटभैया
लोटा+इया = लुटिया
मूँछ+कटा = मुँछकटा
आधा+खिला = अधखिला
काला+मुँहा = कलमुँहा
ठाकुर+आइन = ठकुराइन
लकड़ी+हारा = लकड़हारा
(ख) उभयपद हृस्व– दोनोँ पदोँ के दीर्घ स्वर हृस्व हो जाता है। जैसे –
एक+साठ = इकसठ
काट+खाना = कटखाना
पानी+घाट = पनघट
ऊँचा+नीचा = ऊँचनीच
लेना+देना = लेनदेन

2. दीर्घीकरण–
इसमेँ संधि के कारण हृस्व स्वर दीर्घ हो जाता है और पद का कोई अंश लुप्त भी हो जाता है। जैसे–
दीन+नाथ = दीनानाथ
ताल+मिलाना = तालमेल
मूसल+धार = मूसलाधार
आना+जाना = आवाजाही
व्यवहार+इक = व्यावहारिक
उत्तर+खंड = उत्तराखंड
लिखना+पढ़ना = लिखापढ़ी
हिलना+मिलना = हेलमेल
मिलना+जुलना = मेलजोल
प्रयोग+इक = प्रायोगिक
स्वस्थ+य = स्वास्थ्य
वेद+इक = वैदिक
नीति+इक = नैतिक
योग+इक = यौगिक
भूत+इक = भौतिक
कुंती+एय = कौँतेय
वसुदेव+अ = वासुदेव
दिति+य = दैत्य
देव+इक = दैविक
सुंदर+य = सौँदर्य
पृथक+य = पार्थक्य

3. स्वरलोप–
इसमेँ संधि के कारण कोई स्वर लुप्त हो जाता है। जैसे–
बकरा+ईद = बकरीद।

4. व्यंजन लोप–
इसमेँ कोई व्यंजन सन्धि के कारण लुप्त हो जाता है।
(क) ‘स’ या ‘ह’ के बाद ‘ह्’ होने पर ‘ह्’ का लोप हो जाता है। जैसे–
इस+ही = इसी
उस+ही = उसी
यह+ही = यही
वह+ही = वही
(ख) ‘हाँ’ के बाद ‘ह’ होने पर ‘हाँ’ का लोप हो जाता है तथा बने हुए शब्द के अन्त मेँ अनुस्वार लगता है। जैसे–
यहाँ+ही = यहीँ
वहाँ+ही = वहीँ
कहाँ+ही = कहीँ
(ग) ‘ब’ के बाद ‘ह्’ होने पर ‘ब’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ह्’ का लोप हो जाता है। जैसे–
अब+ही = अभी
तब+ही = तभी
कब+ही = कभी
सब+ही = सभी

5. आगम संधि–
इसमेँ सन्धि के कारण कोई नया वर्ण बीच मेँ आ जुड़ता है। जैसे–
खा+आ = खाया
रो+आ = रोया
ले+आ = लिया
पी+ए = पीजिए
ले+ए = लीजिए
आ+ए = आइए।

कुछ विशिष्ट संधियोँ के उदाहरण:
नव+रात्रि = नवरात्र
प्राणिन्+विज्ञान = प्राणिविज्ञान
शशिन्+प्रभा = शशिप्रभा
अक्ष+ऊहिनी = अक्षौहिणी
सुहृद+अ = सौहार्द
अहन्+निश = अहर्निश
प्र+भू = प्रभु
अप+अंग = अपंग/अपांग
अधि+स्थान = अधिष्ठान
मनस्+ईष = मनीष
प्र+ऊढ़ = प्रौढ़
उपनिषद्+मीमांसा = उपनिषन्मीमांसा
गंगा+एय = गांगेय
राजन्+तिलक = राजतिलक
दायिन्+त्व = दायित्व
विश्व+मित्र = विश्वामित्र
मार्त+अण्ड = मार्तण्ड
दिवा+रात्रि = दिवारात्र
कुल+अटा = कुलटा
पतत्+अंजलि = पतंजलि
योगिन्+ईश्वर = योगीश्वर
अहन्+मुख = अहर्मुख
सीम+अंत = सीमंत/सीमांत

Hindi Language & Pedagogy Important Questions – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Hindi Language & Pedagogy Important Questions – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

निर्देश- नीचे दिए गए प्रश्नों के लिए सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए –

1. बच्चों को लिखना सिखाने में सबसे ज्यादा महत्वूर्ण है- 

क) सुन्दर लेखन

ख) वर्तनी की शुद्धता

ग) काव्यात्मक भाषा

घ) विचारों की अभिव्यक्ति 

उत्तर – घ 

बच्चों को लिखना सिखाने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति है क्योंकि बिना विचारों के ना तो बच्चा सोच पाएगा और ना ही अपनी सोच को लिखित रूप दे पाएगा।

( Child Development and Pedagogy: Language and Thought )

2. निम्नलिखित में से कौन-सा सूक्ष्म गतिक कौशल का उदाहरण है?

क) कूदना

ख) लिखना

ग) दौड़ना

घ) चढ़ना

उत्तर – विकल्प ख       

भाषाई कुशलता का संबंध भाषा के चार कौशलों से है श्रवण कौशल, वाचन कौशल, पठन कौशल और लेखन कौशल। ये सभी कौशलों का विकास एक-एक करके स्वाभाविक रूप से भी होता है एवं सही शिक्षण व मूल्यांकन द्वारा भी किया जाता है। भाषा कौशल की अधिगम प्रक्रिया बच्चे के जन्म से ही शुरू हो जाती है जब वह दूसरों को सुनना शुरू कर देता है।

( Child Development and Pedagogy: Hindi Language )

3. इनमे से कौन सा कारक अधिगम को अभिप्रेरित करने वाला है- 

क) बाह्य कारक

ख) विफलता से बचने के लिए प्रेरणा

ग) लक्ष्यों को प्राप्त करने पर व्यक्तिगत संतुष्टि

घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर – ग 

लक्ष्यों को प्राप्त करने पर व्यक्तिगत संतुष्टि अधिगम को भी प्रेरित करती है क्योंकि लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद बच्चे में नया सीखने की रुचि और ज्यादा बढ़ती है।

( Child Development and Pedagogy: Hindi learning and Pedagogy )

4. शिक्षण के दौरान बच्चे के कक्षा-कक्ष व्यवहार के अध्ययन हेतु कौन सी विधि सर्वाधिक उपयुक्त है-

क) अवलोकन

ख) केस स्टडी

ग) साक्षात्कार

घ) प्रश्नावली

उत्तर – विकल्प क 

शिक्षण के दौरान बच्चे के कक्षा कक्ष व्यवहार के अध्ययन हेतु अवलोकन विधि सबसे उपयुक्त है। अवलोकन का अर्थ है देखना, प्रेक्षण, निरीक्षण अर्थात कार्य – करण एवं पारस्परिक संबंधों को जानने के लिए स्वाभाविक रूप से घटित होने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण। 

( Child Development and Pedagogy: Learning – Teaching methods )

5. सतत् एवम् व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है- 

क) सभी विषयों का मूल्यांकन

ख) सह शैक्षिक क्षेत्र का मूल्यांकन

ग) शैक्षिक एवं सह शैक्षिक क्षेत्र का मूल्यांकन

घ) शैक्षिक क्षेत्र का मूल्यांकन

उत्तर – ग 

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से है, जिसमें छात्र के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं। इसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है यह उद्देश्य व्यापक आधारित अधिगम और दूसरी और व्यवहार गत परिणामों के मूल्यांकन तथा निर्धारण की स्वतंत्रता में है। 

व्यापक का अर्थ है कि इस योजना में छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक तथा सह शैक्षिक दोनों ही पक्षों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है क्योंकि क्षमताएं, मनुवृत्तियां और अभिरुचि अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा अन्य रूपों में भी प्रकट करते हैं। अतः यह शब्द विभिन्न साधनों और तकनीकों के अनुप्रयोग के लिए उपयोग किया जाता है तथा इसका लक्ष्य निम्नलिखित अधिगम क्षेत्रों में छात्र के विकास का निर्धारण करना है-

  1. ज्ञान
  2. समझ
  3. विश्लेषण
  4. मूल्यांकन
  5. सृजन
  6. आकलन
  7. मापन
  8. परीक्षण

( Child Development and Pedagogy: Assessment and Evaluation )

6. भाषा का आरंभ निम्न से होता है –

क) शब्द

ख) ध्वनि

ग) अर्थ

घ) स्वरूप

उत्तर – ख 

भाषा मानव जीवन की एक सामान्य एवं सतत प्रक्रिया है। भाषा का आरंभ मानव के जन्म के साथ ही हो जाता है।

 भाषा का आरंभ ध्वनियों से होता है, बच्चा धीरे धीरे परिवार के संपर्क में रहकर आपसी संवादों को सुनकर उनका अनुकरण करता है और इस तरह वह भाषा के क्षेत्र में पारंगत हो जाता है इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि भाषा अनुकरण की वस्तु है तथा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

 ( Hindi : Language Learning and Acquisition) 

7. निम्नांकित में अशुद्ध वर्तनी का चयन कीजिए –

क) सर्वोत्तम

ख) सांसारिक

ग) दिधायु

घ) ज्योत्सना

उत्तर – ग

दिधायु शब्द की शुद्ध वर्तनी दीर्घायु होगी। 

( Hindi Grammar )

8. बच्चे सामाजिक अंतःक्रिया से भाषा सीखते हैं, यह विचार किसका है-

क) जीन पियाजे

ख) स्किनर

ग) पावलाव

घ) वाइगोत्सकी

उत्तर – घ 

वाइगोत्सकी ने बालकों में सामाजिक विकास से संबंधित एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत में उन्होंने बताया कि बालक के हर प्रकार के विकास में उसके समाज का विशेष योगदान होता है। 

( Child Development and Pedagogy:  Piaget, Kohlberg and Vygotsky )

9. वातावरण के अनुसार स्वयं को ढालना क्या कहलाता है – 

क) अनुकूलन

ख) सहकारिता

ग) समायोजन

घ) अनुकरण

उत्तर – विकल्प क  

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के अनुसार संज्ञान प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण, उद्दीपक जगत, बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। समस्या समाधान, विचारों का निर्माण, प्रत्येकक्षण आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती हैं यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं।

संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-

  • (१) संवेदिक पेशीय अवस्था (Sensory Motor) : जन्म के 2 वर्ष
  • (२) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational) : 2-7 वर्ष
  • (३) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational) : 7 से 11वर्ष
  • (४) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational) : 11से 18वर्ष

 ज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया एवं संरचना

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की प्रकिया में मुख्यतः दो बातों को महत्वपूर्ण माना है। पहला संगठन दूसरा अनुकूलन। संगठन से तात्पर्य बुद्धि में विभिन्न क्रियाएँ जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति , चिंतन एवं तर्क सभी संगठित होकर करती है। उदा. एक बालक वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के संबंध में उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएँ पृथक पृथक कार्य नहीं करती है बल्कि एक साथ संगठित होकर कार्य करती है। वातावरण के साथ समायोजन करना संगठन का ही परिणाम है। संगठन, व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को आंतरिक रूप से प्रभावित करता है। अनुकूलन बाह्य रूप से प्रभावित करता है।

( Child Development and Pedagogy:  Piaget, Kohlberg and Vygotsky )

10. एक बहुसांस्कृतिक कक्षा में आप एक भाषा शिक्षक के रूप में किस बात को अधिक महत्व देंगे-

क) बच्चों को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देना

ख) पाठ्य-पुस्तक के प्रत्येक पाठ को भली-भांति समझना

ग) बच्चों को व्याकरण सिखाना

घ) स्वयं शुद्ध भाषा का प्रयोग

उत्तर – विकल्प क  

बहुसांस्कतिक कक्षा में बच्चों को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देने से संज्ञानात्मक विकास व शैक्षणिक संप्राप्ति के बीच सकारात्मक जुड़ाव होता है। साथ ही साथ यह लोगों और विचारों के स्वतंत्र आवागमन को सुचारू रूप से चलाता है तथा रचनात्मक नवाचार को भी बढ़ावा देता है।

( Child Development and Pedagogy: Problems of Diverse Language in the Classroom ) 

11. इनमें से प्राथमिक स्तर पर भाषा आकलन का सर्वाधिक उचित तरीका है- 

क) किसी पाठ की पांच पंक्तियां पढ़वाना

ख) बच्चों को चित्र वर्णन और प्रश्न पूछने के अवसर देना

ग) बच्चों से पत्र लिखवाना

घ) बच्चों से प्रश्नों के उत्तर लिखवाना 

उत्तर – विकल्प ख 

प्राथमिक स्तर पर भाषा का चित्र वर्णन और प्रश्न पूछने के आधार पर आकलन करना सर्वाधिक उचित है क्योंकि इससे बच्चों के श्रवण कौशल, मौखिक अभिव्यक्ति कौशल, उच्चारण कौशल तथा वाचन कौशल का मूल्यांकन बड़ी ही सरलता से किया जा सकता है जो कि प्राथमिक स्तर पर महत्वपूर्ण होता है।

( Child Development and Pedagogy: Evaluation of Proficiency in Language Comprehension )

12. भाषा शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक – 

क) अनावश्यक है

ख) एकमात्र संसाधन है

ग) साध्य है

घ) साधन है

उत्तर – विकल्प घ

( Child Development and Pedagogy: Teaching Aids )

13. विवेक पढ़ते समय कठिनाई का अनुभव करता है। वह _________ से ग्रस्त है-

क) डिस्कैलकुलिया

ख) अफेजिया

ग) डिस्लेक्सिया

घ) डिसग्राफ़िया

उत्तर – विकल्प ग

डिस्लेक्सिया एक अधिगम विकलांगता है जिसका प्रकटीकरण मुख्य रूप से वाणी या लिखित भाषा के दृश्य अंकन की कठिनाइयों के रूप में होता है, विशेष तौर पर मनुष्य-निर्मित लेखन प्रणालियों को पढ़ने में। यह देखने या सुनने की गैर-नयूरोलोजिकल कमी, या बेकार अथवा अपर्याप्त पाठन निर्देशों जैसे अन्य कारकों से उत्पन्न पाठन कठिनाइयों से अलग है, यह इस बात का सुझाव देता है कि बुद्धि द्वारा लिखित और भाषित भाषाओँ को संसाधित करने में अंतर के कारण डिस्लेक्सिया होती है।

( Child Development and Pedagogy: Remedial Teaching )

Hindi: Reading Comprehension- Poetry – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Hindi: Reading Comprehension- Poetry – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

निर्देश- निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिये-

सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी, 

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; 

दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, 

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। 

जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही, 

जाड़े – पाले की कसक सदा सहने वाली,

जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे 

तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।

जनता?हां,लंबी – बड़ी जीभ की वही कसम, 

जनता,सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।

सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?

‘है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?

मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं, 

जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में; 

अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के, 

जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

“सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी, 

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है” कथन में ‘सोने का ताज’ का भाव है-

क) परतंत्रता

ख) स्वतंत्रता

ग) अन्याय

घ) शांति

उत्तर – विकल्प ख 

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है कथन में ‘सोने का ताज’ का भाव स्वतंत्रता से है अर्थात कविता में स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख किया गया है तथा परतंत्र भारत की दशा का वर्णन किया गया है।

‘ वेदना ‘ शब्द का समानार्थी नहीं है-

क) सुख

ख) कष्ट

ग) व्यथा

घ) दुःख

उत्तर – विकल्प क 

कष्ट, व्यथा तथा दुख, तीनों शब्द वेदना के समानार्थी हैं। जबकि सुख का मतलब आनंद है।

( General Hindi: Synonyms / Antonyms )

‘जाड़े – पाले की कसक सदा सहने वाली’ पंक्ति का तात्पर्य है- 

क) अत्यधिक ठंड सहने वाली

ख) अत्यधिक वर्षा सहने वाली

ग) कठिन परिस्थितियों व मुसीबतों का सामना करने वाली

घ) अत्यधिक गर्मी सहने वाली

उत्तर – विकल्प ग 

‘जाड़े – पाले की कसक सदा सहने वाली’ पंक्ति का तात्पर्य कठिन परिस्थितियों व मुसीबतों का सामना करने वाली से है, क्योंकि परतंत्रता के समय जनता ने अनेकों कष्ट तथा दुखों का सामना बिना किसी को अपना दर्द बताए किया है।

समास की दृष्टि से शेष से भिन्न पद है-

क) ठंडी – बुझी

ख) जंतर – मंतर

ग) लंबी – बड़ी

घ) अंग – अंग 

उत्तर – घ

ठंडी – बुझी, जंतर – मंतर, लंबी – बड़ी, तीनों समास द्वंद्व समास के उदाहरण हैं। जबकि अंग – अंग इस समास का उदाहरण नहीं है।

(Hindi Grammar)

जनता क्या बयां नहीं कर पाती –

क) अपनी खुशियों को

ख) अपने दुखों को

ग) अपने आपसी झगड़ों को

घ) अपनी बातों को

उत्तर – विकल्प ख 

अत्याचारों तथा कष्टों से डरी हुई जनता अपने दुखों को भी किसी से भी व्यक्त करने में सहम जाती है। मानो जनता ने इसी को अपना भाग्य मान लिया है।

नाद शब्द का अर्थ है- 

क) तेज़ गर्जन

ख) मधुर आवाज़

ग) मीठी ध्वनि

घ) बाँसुरी की धुन

उत्तर – विकल्प क

 नाद शब्द का अर्थ है तेज़ गर्जन। अर्थात जनता प्रतिशोध की ज्वाला में धधकती हुई तेज़ गर्जन के साथ अपने हक के लिए लड़ने आ रही है।

( Hindi Grammar )

Hindi Grammar Questions -1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Hindi Grammar Questions -1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

शेष शब्दों से भिन्न शब्द पहचानिए-

क) अनधिकृत

ख) अनुचित

ग) अनैतिक

घ) अंतर्निहित

उत्तर – विकल्प घ 

अनधिकृत, अनुचित तथा अनैतिक तीनों शब्द गलत के पर्यायवाची हैं। जबकि अंतर्निहित शब्द का मतलब-अंदर छिपा हुआ है।

मानवता शब्द का विलोम शब्द कौन सा नहीं है-

क) नृशंसता 

ख) निर्दयता

ग) निर्मल

घ) निष्ठुरता

उत्तर – विकल्प ग 

नृशंसता, निर्दयता तथा निष्ठुरता तीनों शब्द मानवता के विलोम हैं। जब की निर्मलता का मतलब शुद्धता, सफाई आदि है।

( General Hindi: Synonyms / Antonyms )

गद्यांश में प्रयुक्त ‘स्वतंत्रता’ शब्द किन उपसर्ग – प्रत्यय से बना है – 

क) स्वा, ता

ख) स्व, ता

ग) स वा, ता

घ) स्वा तन, ता

उत्तर – विकल्प ख

स्व+तंत्र+ता=स्वतंत्रता

उपसर्ग – स्व, प्रत्यय – ता

( Hindi grammar)

‘ सर्वदा ‘ शब्द का पर्यायवाची क्या होगा –

क) निरंतर 

ख) निर्मोह

ग) निर्मम

घ) निर्माण

उत्तर – विकल्प क 

सर्वदा शब्द का मतलब है सदा रहने वाला अर्थात इस का पर्यायवाची निरंतर होगा।

( General Hindi: Synonyms / Antonyms )

‘ ऊँच – नीच ‘ में कौन सा समास है-

क) द्विगु समास

ख) तत्पुरुष समास

ग) द्वंद्व समास

घ) बहुव्रीहि समास

उत्तर – विकल्प ग

जिस समास में समस्तपद के दोनों पद प्रधान हों या दोनों पद सामान हों एवं दोनों पदों को मिलाते समय ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ आदि योजक लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है।  जैसे: ऊँच-नीच : ऊँच और नीच

खरा-खोटा : खरा और खोटा

रुपया-पैसा : रुपया और पैसा

( Hindi: Grammar)