CDP – Learning Theories PART- 19

🔆 ब्रूनर का अधिगम सिद्धांत

🔹” Two word theory of instruction” यह पुस्तक ब्रूनर द्वारा लिखी गई।

🔹इस पुस्तक में ब्रुनरने कुछ संप्रत्य प्रकट किए हैं और बताया कि वृद्धि, विकास एवं अधिगम में कुछ ऐसी चीजें होती है जो हमारे अंदर कई बेहतर रूप में संप्रत्यय का निर्माण करती है।

📍1 बौद्धिक विकास
(i)व्यवस्थापकीय अवस्था
(ii)मूर्ताअवस्था
(iii) प्रतीकात्मक अवस्था

📍2 खोजपूर्ण अधिगम

📍3 संप्रत्यय निर्माण

📍4 भाषा विकास

📍5 मूल अधिगम

🔹ब्रूनर के अधिगम सिद्धांत के अंतर्गत संप्रत्यय निर्माण किस तरह से या किस किस चरण में होता है या किन किन रूपों में होता है उसको इस उपर्युक्त तरह से बांटकर बताया जा सकता है।

🌀1 बौद्धिक विकास बौद्धिक विकास को तीन चरणों में बांटा गया है

✨1 व्यवस्थापकीय अवस्था

🔸बौद्धिक विकास की इस अवस्था में बच्चा बिना बोले क्रियाएं करने लगता है।
जैसे घुटनों के बल चलना
किसी वस्तु को पकड़ने के लिए हाथ पैर चलाना यह लाना।

🔸इस अवस्था में बच्चों को किसी भी प्रकार की क्रिया करने के लिए किसी भी अन्य व्यक्ति के द्वारा बोलना नहीं पड़ता वह बिना बोले ही स्वयं से उन क्रियाओं को करने लगता है।

✨2 मूर्ताअवस्था

🔸इस अवस्था में बालक मूर्त रूप से ज्ञान प्राप्त करता है।
🔸मूर्त रूप से तात्पर्य है कि बच्चा जिस भी चीज को प्रत्यक्ष रूप से देखता है उस चीज को प्रत्यक्ष रूप में देख कर उसकी मूर्त कल्पना कर ज्ञान प्राप्त कर लेता है।।

🔸बच्चा व्यवस्थापकीय अवस्था में प्रत्यक्षीकरण द्वारा क्रिया करता है जबकि मूर्त अवस्था में प्रत्यक्षीकरण द्वारा मूर्त कल्पना कर वह अपने पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त करता है।

🔸अर्थात मूर्तअवस्था में बच्चा किसी भी चीज को मूर्त रूप में देखता है और उस पर अपनी कल्पना या समझ लगाकर उस मुर्त वस्तु के बारे में जानता है।

🔸जैसे बच्चे कई बार कुछ चीजें जैसे लकड़ी या पेंसिल को मुंह में देने लगता है लेकिन जब वह उसे प्रत्यक्ष रूप से देखता है तो उस पर अपनी समझ लगाकर यह जान जाता है कि यह वस्तु खाने योग्य नहीं है।

✨3 प्रतीकात्मक अवस्था
🔸 बच्चा भाषा चिन्ह या संकेतों के द्वारा किसी भी चीज का संबंध वस्तुओं और विचारों से जोड़ता है।

🔸यह बौद्धिक विकास की एक अवस्था है जिसमें बालक अपने अनुभव को भाषा से संबंध करता है अर्थात उस वस्तु को ,उसी वस्तु की भाषा से जोड़ता है और उस आधार पर उसके बारे में बताता है।

🔸अर्थात विशेष रूप में भी समझा जा सकता है की भाषा को अनुभव से जोड़ता है और हमारी भाषा अनुभव से ही बनती है।

🔸अर्थात किसी भी दिए गए संकेतों की मदद से हम अपने अनुभव के माध्यम से चीजों को जोड़ते हैं और अनुभव को अपनी भाषा में परिवर्तित कर लेते हैं और संकेतों के द्वारा अपने विचारों से जोड़ लेते हैं।

🔹ब्रूनर का कहना है कि बालक प्रारंभ में क्रियाओं के द्वारा चिंतन और फिर प्रतिबिंब द्वारा चिंतन और बाद में संकेतों या शब्दों द्वारा चिंतन करते हैं। इस अवस्था में बालक अपनी अनुभूतियों को ध्वन्यात्मक संकेतों (भाषा) के माध्यम से व्यक्त करता है। यह अमूर्त चिंतन की अवस्था होती है।

🌀2 खोजपूर्ण अधिगम

🔹शिक्षा का अन्वेषण विधि मे बहुत महत्व स्पष्ट किया है।

🔹किसी भी कार्य को यदि हम खोज करते हैं या उस कार्य को खुद से या स्वयंसे करते हैं या उस कार्य के पास हमारे अनुभव होते हैं तो उस कार्य के बारे में हमारे अंदर सृजनात्मकता की वृद्धि होती है।

🔹अर्थात अन्वेषण या खोज करने से बालक की सृजनात्मकता में वृद्धि होती है। जिसके फलस्वरूप स्मृति चिंतन या निर्णय शक्ति का भी विकास होता है।

🌀3 संप्रत्यय निर्माण

🔹ब्रूनर के अनुसार बच्चे में संप्रत्यय निर्माण शैश अवस्था में होने लगता है।

🔹लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे संप्रत्यय के संगठन में सामंजस्य होने लगता है।
अर्थात किसी भी चीज के प्रति एक समय के बाद नजरिया बदलने लगते हैं या उस चीज का संप्रत्यय निर्माण के संगठन में सामंजस्य धीरे-धीरे होने लग जाता है।

🌀4 भाषा विकास

🔹भाषा का विकास विचारों को सुगमता देता है

🔹भाषा विकास पर संस्कृतिकरण अर्थात व्यक्ति के रहन-सहन खान-पान वातावरण रीति रिवाज समाज के नियम आदि का विशेष प्रभाव पड़ता है।या यह सभी भाषा विकास को प्रभावित करते हैं।

🔹भाषा ज्ञान नहीं है बल्कि ज्ञान को दिखाने या व्यक्त करने या बताने या जताने का एक तरीका है।

🔹भाषा से विचारों का मौखिककरण होता है।

🔹अर्थात हम अपने विचारों को भाषा के माध्यम से ही मौखिक रूप से या बोलकर व्यक्त कर पाते हैं।

🌀5 मूल अधिगम

🔹मूल अधिगम का अर्थ नवीन संप्रत्यय एवं तर्क वाक्य का ज्ञान होता है।

🔹ब्रूनर के सिद्धांत में ज्ञान की सर्वोत्तम विधि खोज पूर्ण या अन्वेषण विधि है।

❇️ब्रूनर के शिक्षण सिद्धांत की विशेषताएं

⚜️1 अधिगम आधारित

🔸इस सिद्धांत में हर समय अधिगम के आधार पर बात की गई है कि किस प्रकार से अधिगम को बेहतर किया जाए।

⚜️2 ज्ञान की संरचना

🔸ज्ञान व विषय वस्तु से अधिगम को सरल बनाते हैं अर्थात जिस व्यक्ति के पास ज्ञान व विषय वस्तु नहीं है उसके लिए सीखना मुश्किल होगा और जिसके पास ज्ञान और विषय वस्तु है उसके लिए सीखना आसान होगा।

⚜️3 तारगम्यता या क्रमबद्धता

🔸एक क्रम में या एक चरण में स्टेप बाय स्टेप चीजों को सीखना।

⚜️4 पुनर्बलन

🔸शिक्षण में पुनर्बलन करने के लिए कई चीजों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे कई चीजें जब हम अपने पर्यावरण से जोड़कर या उसके साथ संबंध स्थापित करते हैं जिससे हमें पुनर्बलन प्राप्त होता है।

❇️ब्रूनर के सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता

🌺1 बच्चे की ज्ञान और आयु का ध्यान रखेंगे
शिक्षक जिस भी प्रकार का शिक्षण कार्य करेगा उसमें बच्चे के ज्ञान और आयु का पूर्ण रुप से ध्यान रखा जाए।

🌺2 पूर्व अधिगम
शिक्षण कार्य के दौरान शिक्षक को बच्चे के पूर्व अधिगम से नवीन अधिगम जोड़कर शिक्षण कार्य करा सकते हैं।

🌺3 सक्रिय इस सिद्धांत के द्वारा अन्वेषण या खोज विधि का उपयोग करके बच्चों की सक्रिय भागीदारी रहती हैं। अर्थात बच्चे स्वयं किसी भी कार्य को करके सीख सकते हैं।

🌺4 प्रतीक रूप मे अवलोकन
शिक्षण कार्य के दौरान किसी भी पाठ या विषय को पढ़ाते समय उसको समझाने के लिए कई प्रतीको से या कई संकेतों का प्रयोग करके छात्रों द्वारा अवलोकन करने पर ज्ञान प्रदान किया जा सकता है

🌺5 ज्ञान की संरचना
किसी भी ज्ञान की रचना में ज्ञान व विषय वस्तु से अधिगम को सरल बनाया जा सकता है।

🌺6 क्रमबद्धता किसी भी विषय वस्तु के बारे में बताते वक्त उस वस्तु के ज्ञान को एक क्रमबद्ध रूप में अर्थात एक चरण के रूप में यह स्टेप बाय स्टेप बच्चों के समकक्ष प्रस्तुत किया जाए ।

🌺7 पुनर्बलन

शिक्षण में पुनर्बलन करने के लिए कई चीजों का प्रयोग किया जाता है यह चीजें बच्चे अपने पर्यावरण से जोड़ कर उसके साथ संबंध स्थापित कर लेते हैं जिससे उन्हें पुनर्बलन प्राप्त होता है।

🌺8 अन्वेषण
अन्वेषण विधि के माध्यम से बच्चे किसी भी कार्य को खुद करके या स्वयं के द्वारा करके सक्रिय रूप से सीखते हैं।

🌺9 नए शिक्षण कौशल या नई शिक्षण रणनीतियां

🌺10 अनुभव के आधार पर अभ्यास

✍️Notes By-'Vaishali Mishra'

CDP – Learning Theories PART- 18

🔆अधिगम का साइन /चिन्ह गेस्टाल्ट सिद्धांत

▪️यह सिद्धांत टोलमैन द्वारा प्रतिपादित किया गया।

▪️यह सिद्धांत गेस्टाल्ट थ्योरी से प्रेरित है गेस्टाल्ट का अर्थ होता है पूर्णाकार।

▪️टोलमैन कहा कि सिद्धांत का आधार पूर्णाकारवाद है।

▪️मानव का व्यवहार किसी न किसी उद्देश्य होता है।

▪️अधिगम का जो चिह्न सिद्धांत है उसके अंतर्गत अधिगम के चिन्ह और आशा को टोलमैन ने अधिक महत्व दिया।

▪️उनके अनुसार उद्दीपन व्यक्ति में उसी समय उत्पन्न होता है जब वह उसकी आवश्यकता और उसके उद्देश्य पूर्ति में सहायक हो।

▪️यदि हमारे आस पास कोई उद्दीपक है और वह हमारी किसी भी प्रकार की कोई आवश्यकता है यदि वह उसमे  सहायक नहीं है और ना ही किसी तरह से हमारी आवश्यकता की पूर्ति  कर रहा है तो उस उद्दीपक का कोई महत्व नहीं है।

▪️अर्थात व्यक्ति की जरूरत के हिसाब से ही उसका उद्दीपक कार्य करता है या उस प्रभावित करता है।

🔸जैसे यदि हमें भूख नहीं लगे और हमारे सामने भोजन (उद्दीपक) रख दिया जाए तो भोजन (उद्दीपक) का कोई मतलब नहीं है।

▪️टोलमैन की मान्यता है कि मानव का व्यवहार उद्देश्य  पूर्ण होता है।

▪️अधिगम के चिन्ह तथा आशा को अधिक महत्व दिया गया।

▪️चिह्न से तात्पर्य संकेत या प्रतीक से है जिनके द्वारा हमारा अधिगम होता है।

▪️किसी भी चीज के चिन्ह या संकेत या प्रतीक तथा आशा या उम्मीद या अपेक्षाओं से ही या उसके हिसाब से कार्य होने पर ज्ञात होता है कि हम किस प्रकार का अधिगम कर रहे हैं।

▪️इनके अनुसार उद्दीपक में अर्थ तभी होता है जब वह व्यक्ति की आवश्यकता और उद्देश प्राप्ति में सहायक हो।

▪️यदि कोई चीज हमारे उद्देश्य आवश्यकता में मददगार साबित ना हो तो उसका उद्दीपक में कोई अर्थ नहीं निकलेगा।

▪️टोलमैन का यह मत प्रायोजन वादी मनोविज्ञान पर आधारित है।

▪️प्रयोजन वादी से तात्पर्य किसी उद्देश्य मकसद से है जिसको पूरा किया जाना है।

▪️प्रयोजन को किसी क्रिया को सीखने का केंद्र बिंदु माना जाता है।

✨जी.लेस्टर एडरसन ने कहां है कि

🔸टोलमैन के सिद्धांत में सिर्फ गतियों का ही अधिगम प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि चिन्हों/ संकेतों / प्रतीकों और आशाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

▪️गतियां हमेशा एक जैसी नहीं होती हम परिस्थिति के हिसाब से ही हम किसी गति या क्रिया को करते हैं।

 ▪️टोलमैन ने संज्ञानात्मक संरचना को महत्व दिया उन्होंने कहा कि व्यवहार की जरूरत है लेकिन व्यवहार ऐसा हो जो कि “उद्देश्यात्मक व्यवहार” हो।

▪️अर्थात व्यवहार किसी उद्देश्य या किसी लक्ष्य या किसी तथ्य से जुड़ा हो।

▪️इनकी सिद्धांत को प्रयोजन के कारण और अलग अलग नाम से भी जाना गया।

🌀चिन्ह गेस्टाल्ट सिद्धांत

🌀संभावना सिद्धांत

🌀ज्ञानात्मक सिद्धांत

▪️टोलमैन अपने सिद्धांत का प्रतिपादन पशु और मनुष्य में उद्देश्यात्मक प्रेरक, युद्ध की ओर तथा कुछ निबंधों में किया।

▪️टोलमैन का मत किसी भी चीज की समझ  पर बल या जोर देता है।

▪️जैसे जब हमें कोई चीज या बात ज्ञात नहीं होती है या उसका पता नहीं होता है लेकिन हम धीरे-धीरे उस चीज या बात को जानने की जरूरत होती है तो उसके लिए हम मेहनत करते हैं जिससे हमारे दिमाग को संकेत मिलता है कि हमें यह सीखना है या उस चीज या उस बात को जानना है जिसके फलस्वरूप हम सीखना प्रारंभ कर देते हैं जिससे हमारी आवश्यकता की पूर्ति होती जाती है और हम सीख जाते हैं।

▪️किसी चीज या बात को जानने के लिए हमें एक तरीका चाहिए होता है और यही तरीका हमारी उद्दीपन में सूज बुझ को लगाने से प्राप्त होता है।

▪️टॉल मैन के मत के अनुसार चिन्ह का अवबोध महत्वपूर्ण है। (क्या करना है?)

▪️अवबोध  से तात्पर्य है कि हमें यह पता होना चाहिए कि हमें किस चीज की जरूरत है?या किस चीज के बारे में क्या जानकारी चाहिए? तथा उस चीज के चिन्हों या इशारों एवम उस चीज की आवश्यकताओं का भी पता होना चाहिए।

▪️अवबोध हो जाने पर उस चीज की उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कई विधियों या तरीकों का ज्ञान होना भी आवश्यक या जरूरी है। (कैसे करना है?)

▪️व्यक्ति जब कभी किसी की क्रिया या काम को  सीखते या अधिगम करता  है तो सबसे पहले समस्या या काम को सीखने में समाधान हेतु प्रयुक्त उपयुक्त अनेक तत्व एकत्रित करता है। 

और उस पर प्रतिक्रिया करने लगता है।  (तत्वों का संग्रह) 

▪️इन सब सही उद्दीपक का चयन करने हैं बुद्धि का प्रयोग करते हैं।

▪️इनके अनुसार अधिगम का अर्थ अलग-अलग उद्दीपन के संबंधों को पहचानना है।

▪️किसी भी कार्य को पूरा करने में उसका उद्देश्य तय या निर्धारित किया जाता है तथा उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कई सारे छोटे-छोटे उद्दीपक होते हैं हम इन्हीं उद्दीपको के बीच संबंध स्थापित करके एक उचित व सही उद्दीपक प्राप्त हो जाने पर उस उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया करने लग जाते हैं जिससे हमारे उद्देश्य की पूर्ति हो जाती है अर्थात उद्देश्य पूरा होते ही हम काम को पूरा और सफल रूप से करना सीख जाते हैं।

▪️संबंधों को पहचानने के बाद प्रतिक्रिया करते हैं इन प्रतिक्रियाओं का आधार उद्देश का प्रत्यक्षीकरण है।

▪️उद्देशय के प्रत्यक्षीकरण से तात्पर्य है कि हम उस उद्देश्य की स्थिति या उसके मकसद को समझेंगे जिसके आधार पर ही हम प्रतिक्रिया करेंगे।

▪️वास्तव में उद्देश्यों को प्रत्यक्ष रूप से देखना या समझना ही हमें उचित और सही व प्रभावी उद्दीपक का चयन कर पाने में मदद करता है जिसके परिणाम स्वरूप उचित व प्रभावी उद्दीपक के प्रति भी   उचित व प्रभावी प्रतिक्रिया  हो पाती हैं।

▪️अर्थात जैसा उदीपक होगा उसकी वैसी ही प्रतिक्रिया होगी।

❇️ साइन या चिन्ह गेस्टाल्ट सिद्धांत की विशेषताएं ➖

🔹1 यह संज्ञानात्मक रचना पर बल देता है इसमें चिन्ह, आशा तथा लक्ष्य पर बल दिया जाता है।

🔹2 यह अनुकरण मनोविज्ञान पर बल देता है।

▪️जब हम संज्ञानात्मक संरचना के लिए अपने स्वयं का प्रत्यक्षीकरण करते हैं जिसके लिए हमें कई संकेतों को देखते हैं एवं कई एकत्रित तत्वों को देखकर या चुनकर समस्या का समाधान करना चाहते हैं तो विभिन्न परिस्थिति में जिस प्रकार के संकेतों वह तत्व और विधियों का सही और प्रभावी रूप से प्रयोग किया जाता है उसी तत्व ,संकेतों और विधियों का अनुकरण कर लेते हैं।

🔹3 सीखने वाला अनुक्रिया का अधिगम उद्दीपक के प्रत्यक्ष ज्ञान से करता है।

▪️हमारा उद्देश्य क्या है ?या हम क्या कर रहे हैं अर्थात उद्देश को प्रत्यक्ष रूप से देखने के आधार पर ही हम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्पष्ट व उचित अनुक्रिया करते हैं और कार्य को भलीभांति सीख जाते हैं।

🔹4 व्यवहार का परिणाम लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है।

▪️अर्थात हमें जैसा व्यवहार करते हैं और उसके फल स्वरुप जैसा परिणाम प्राप्त होता है वही परिणाम में लक्ष्य प्राप्ति में सहायता करता है।

❇️गेस्टाल्ट सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता ➖

⚜️1छात्रों को अधिगम में दी जाने वाली क्रिया के उद्देश्य प्राप्ति के साधन आदि का स्पष्टीकरण दें।

▪️जिसके फलस्वरूप यह स्पष्ट होगा कि उद्दीपन क्यों हो रहा है? या उसकी क्या वजह है?

⚜️2 कक्षा के मानसिक और शारीरिक स्तर तथा आकांक्षा या उम्मीद या इच्छाओ का ध्यान रखें।

🔆ब्रूनर का अधिगम सिद्धांत➖

▪️पियाजे के विचार के अनुगामी और विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रवर्तक ब्रूनर को ही माना जाता है।

▪️ब्रूनर ने बौद्धिक विकास के नए संप्रत्यय का निर्माण किया ।

▪️सीखने हेतु इस पाठ योजना में ब्रूनर द्वारा विकसित प्रतिमान (मॉडल)1956 में प्रस्तुत किया गया।

▪️इन्होंने पाठ योजना प्रतिमान को सूचना प्रकरण के मुख्य सिद्धांत या स्रोत के रूप में बताया।

उनका कहना था कि किसी भी चीज की शुरुआत की प्लानिंग या योजना से होती है।

▪️ब्रूनर और अन्य लोगो ने यह जानने की कोशिश की कि मानव अपने प्रत्यय की रचना कैसे करता है?

▪️हमारे आसपास या पर्यावरण की जो वस्तुएं हैं उन वस्तुओं के बीच के परस्पर संबंधों को मनुष्य कैसे देखता है?

▪️जिस प्रकार से व्यक्ति वस्तु के बीच परस्पर संबंध को देखता है वह समझता है या उसका उस वस्तु के प्रति जैसा नजरिया या दृष्टिकोण होता है उसी के हिसाब से वह अपने दिमाग में उस वस्तु का संप्रत्यय का निर्माण कर लेता है।

▪️अर्थात हम जैसा माहौल दिया जाता है हम उसी माहौल या परिस्थिति के हिसाब से किसी वस्तु के संप्रत्यय का निर्माण कर लेते हैं।

✍️

      Notes By-‘Vaishali Mishra’

🌼☘️ अधिगम का चिन्ह गेस्टास्ट थ्योरी ☘️🌼

प्रतिपादक ➖ टॉलमैन

🔸 इस सिद्धांत का आधार पूर्णाकारावाद  है।

🔸 मानव का व्यवहार किसी न किसी उद्देश्य से होता है।

🔸 टॉलमैन की मान्यता है कि मानव का व्यवहार उद्देश्य पूर्ण होता है।

🔸 अधिगम के चिन्हों को अधिक महत्व देते है।

🔸इसके अनुसार उद्दीपन में अर्थ तभी होता है जब वह व्यक्ति की आवश्यकता और उद्देश्य प्राप्ति में सहायक हो।

🔸 टॉलमैन का यह मत प्रयोजनवादी मनोविज्ञान पर आधारित है।

🔸 प्रयोजन को किसी क्रिया को सीखने का केंद्र बिंदु बनाते हैं।

🌼 जी लेस्टर एडरसन➖ टॉलमैन के सिद्धांत में सिर्फ गतियों का ही अधिगम प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि चिन्हो (संकेत) एवं प्रतीक और आशाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

🔸 टॉलमैन  संज्ञानात्मक संरचना को महत्व दिया उन्होंने उद्देश्यात्मक व्यवहार की बात की।

🔸 इनके थ्योरी को प्रयोजन के कारण और अलग अलग नाम से भी जाना गया।

💫 चिन्ह गेस्टोल्ट सिद्धांत

💫 संभावना सिद्धांत

💫 ज्ञानात्मक सिद्धांत

🔸 टॉलमैन के मत के अनुसार चिन्ह का अवबोध महत्वपूर्ण है।

🔸 उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विधियों का ज्ञान होना जरूरी है।

🔸जब कभी किसी क्रिया का अधिगम करता है सबसे पहले समस्या समाधान हेतु अनेक तत्व एकत्र करता है और उस पर प्रतिक्रिया करता है।

🔸 प्रतिक्रिया का आधार उद्देश्यों का प्रत्यक्षीकरण है।

🌼 साइन गेस्टाल्ट सिद्धांत की विशेषता➖

🟣 संज्ञानात्मक संरचना पर बल देता है इसमें आशा लक्ष्य पर बल दिया जाता है।

🟣यह अनुकरण मनोविज्ञान पर भी बल देता है।

🟣सीखने वाला अनुक्रिया करता है वह अधिगम उद्दीपन के प्रत्यक्ष ज्ञान से प्राप्त करता है।

🟣व्यवहार का परिणाम लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है।

🌼☘️ गेस्टाल्ट सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता🌼☘️

🔸छात्रों को अधिगम दी जाने वाली क्रिया के उद्देश्य प्राप्ति के साधन आदि का स्पष्टीकरण कर दे।

🔸 कक्षा के मानसिक और शारीरिक स्तर तथा आकांक्षा का ध्यान रखें।

🌼☘️ ब्रेनर का अधिगम सिद्धांत🌼☘️

🔸 प्याजे के विचार के अनुगामी और विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रवर्तक हैं इन्होंने बौद्धिक विकास के नए संप्रत्यय का निर्माण किया।

🔸 सीखने हेतु इस पाठ योजना में ब्रूनर द्वारा विकसित प्रतिमान 1956 मैं प्रस्तुत किया गया।

🔸पाठ योजना ,प्रतिमान, सूचना प्रकरण का प्रमुख स्रोत है।

🔸 ब्रूनर और अन्य ने जानने की कोशिश की मानव  अपने प्रत्यय की रचना कैसे करता है?

🔸 पर्यावरण की वस्तुओं के बीच में परस्पर संबंध को मानव कैसे देखता है?

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚🟣

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🎾 अधिगम का चिन्ह सिद्धांत या साइन (sign) गेस्टाल्ट सिद्धांत➖

💠 इस सिद्धांत का प्रतिपादन टाॅलमैन  ने किया था |

यहाँ पर गेस्टाल्ट का अर्थ पूर्णाकार है |

 इसलिए इस सिद्धांत का आधार पूर्णाकारवाद है |

💠 टाॅलमैन ने कहा कि मानव का व्यवहार कुछ ना कुछ उद्देश्य से व्यक्त होता है अर्थात उनकी मान्यता है कि मानव का व्यवहार उद्देश्य पूर्ण होता है |

उन्होंने बताया कि व्यक्ति जो भी व्यवहार करता है वह अपने उद्देश्य के अनुसार करता है जैसा उद्देश्य होगा वैसा ही मनुष्य का व्यवहार होगा अर्थात व्यवहार उद्देश्य पर आधारित होता है |

💠 टाॅलमैन अधिगम में चिन्ह (संकेत, और, प्रतीक)  और आशा को अधिक महत्व देते हैं |

उनके अनुसार उद्दीपन में अर्थ तभी होता है जब वह व्यक्ति की आवश्यकता और उद्देश्य में सहायक हो |

💠 टाॅलमैन का यह मत  “प्रयोजनवादी मनोविज्ञान” पर आधारित है टाॅलमैन प्रयोजन को किसी क्रिया को सीखने का केंद्र बिंदु मानते हैं |

अर्थात व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसका एक उद्देश्य अवश्य होता है और उसी उद्देश्य के अनुसार क्रिया करता है और क्रिया के अनुसार ही एक प्रयोजन का निर्माण करता है जिसे टाॅलमैन ने प्रयोजनवादी मनोविज्ञान कहा है |

💠  जी लेस्टर एंडरसन के अनुसार➖

” उन्होंने कहा कि टाॅलमैन के सिद्धांत में सिर्फ गतियों को ही  अधिगम प्राप्त नहीं किया जा सकता है बल्कि चिन्हों (संकेत , प्रतीक) और आशाओं का भी अध्ययन किया जाता है |”

💠 टाॅलमैन ने भी “संज्ञानात्मक संरचना” को महत्व दिया  है लेकिन इन्होंने “उद्देश्ययात्मक व्यवहार ” की बात की है  |

अर्थात व्यक्ति के अधिगम का कुछ ना कुछ उद्देश्य होता है और उसी के उसके अनुसार व्यवहार किया जाता है |

💠 इनके थ्योरी या सिद्धांत को प्रयोजन के कारण अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है जैसे

चिन्ह गेस्टाल्ट सिद्धांत 

संभावना सिद्धांत 

ज्ञानात्मक सिद्धांत आदि |

💠 टाॅलमैन ने अपने सिद्धांत में कहा कि चिन्ह का अवबोध, उसका ज्ञान या  या उसके संबंध में जानकारी महत्वपूर्ण है उस उद्देश्य को समझना जरूरी है कि वह क्या है????

उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विधियों का ज्ञान होना जरूरी है कि उद्देश्य को कैसे प्राप्त करना है |

💠 जब कभी किसी क्रिया का अधिगम किया जाता है तो सबसे पहले समस्या समाधान हेतु अनेक तत्व एकत्रित यह जाते हैं और उस पर प्रतिक्रिया करते हैं उस पर अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं जिससे की समस्या समाधान के प्रति सजगता बनी रहे |

💠 अधिगम का अर्थ अलग-अलग उद्दीपन के बीच संबंध हो को पहचानना है | प्रतिक्रिया का आधार उद्देश्यों का प्रत्यक्षीकरण है जिससे उद्दीपक उत्पन्न होगा और वही हमारे उद्देश्य प्राप्ति का कारण होगा |

📛 चिन्ह सिद्धांत की विशेषताएं➖

💠 यह सिद्धांत  संज्ञानात्मक संरचना पर बल देता है इसमें चिन्ह, आशा तथा   लक्ष्य पर बल दिया जाता है  |

💠  यह सिद्धांत अनुकरण मनोविज्ञान की बात करता है की समस्या को हल करने का नजरिया क्या है उस समस्या को हम किस प्रकार से व्यक्त करते हैं उसको किस प्रकार से सोचते हैं और अपनी समझ के अनुसार कैसी प्रतिक्रिया देते हैं  |

💠 सीखने  वाला अनुक्रिया का अधिगम उद्दीपन के प्रत्यक्ष ज्ञान से करता है जैसा प्रत्यक्षीकरण होगा वैसी प्रतिक्रिया होगी |

💠 यह सिद्धांत व्यवहार के  परिणाम या लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है अर्थात प्रत्यक्षीकरण के अनुसार प्रतिक्रिया  होगी  |  अर्थात्  हमारा उद्देश्य होगा ,,व्यवहार का परिणाम लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है अर्थात प्रत्यक्षीकरण के अनुसार प्रतिक्रिया जैसी होगी  वैसा ही हमारा उद्देश्य भी होगा  |

🎾 गेस्टाल्ट सिद्धांत की  शैक्षिक उपादेयता ➖

💠 शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को अधिगम  में दी जाने वाली क्रिया के उद्देश्य प्राप्ति के साधन आदि का स्पष्टीकरण कर दें |

 इससे उद्दीपन की स्पष्टता का ज्ञान होगा |

💠 यह सिद्धांत के अनुसार शिक्षक कक्षा के मानसिक व शारीरिक स्तर पर आकांक्षा का ध्यान रखें | जिससे बच्चे उद्देश्य प्राप्त करने की आशा को बनाए रखें |

🔥 ब्रूनर का सिद्धांत 🔥

 पियाजे के विचार के अनुगामी और विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रवर्तक ब्रूनर को माना जाता है |

 इन्होंने बौद्धिक विकास के नए संप्रत्यय  का निर्माण  किया |

सीखने हेतु पाठयोजना  में ब्रुस द्वारा विकसित प्रतिमान 1956 में प्रस्तुत किया गया  |

एवं उन्होंने ने कहा कि यह पाठ योजना प्रतिमान सूचना प्रकरण का प्रमुख स्रोत है |

 ब्रूनर और अन्य ने यह जानने की कोशिश की,,,,कि मानव अपने किसी प्रत्यय की रचना कैसे आता है  |

पर्यावरण की वस्तुओं के बीच परस्पर संबंध को मनुष्य कैसे देखता है क्योंकि मनुष्य का वस्तुओं के बीच संबंध जैसा होगा वैसा ही उसका प्रत्यय या कॉन्सेप्ट निर्माण होगा  |

व्यक्ति को जैसा वातावरण या माहौल मिलेगा वैसे ही उसका प्रत्यय निर्माण होगा और वह उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करेगा | |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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अधिगम का चिन्ह सिद्धांत या साइन (sign) गेस्टाल्ट सिद्धान्त

इस सिद्धांत का प्रतिपादन टाॅलमैन  ने किया था |

यहाँ पर गेस्टाल्ट का अर्थ पूर्णाकार है | 

इस सिद्धांत का आधार पूर्णाकारवाद है |

टाॅलमैन ने कहा कि मानव का व्यवहार कुछ न कुछ उद्देश्य से व्यक्त होता है अर्थात उनकी मान्यता है कि मानव का व्यवहार उद्देश्य पूर्ण होता है |

उन्होंने बताया कि व्यक्ति जो भी व्यवहार करता है वह अपने उद्देश्य के अनुसार करता है जैसा उद्देश्य होगा वैसा ही मनुष्य का व्यवहार होगा अर्थात व्यवहार उद्देश्य पर आधारित होता है |

टाॅलमैन अधिगम में चिन्ह (संकेत, और, प्रतीक)  और आशा को अधिक महत्व देते हैं |

वह उद्दीपन ही सार्थक होता है जो व्यक्ति की आवश्यकता और उद्देश्य में सहायक हो |

टाॅलमैन का यह मत  “प्रयोजनवादी मनोविज्ञान” पर आधारित है टाॅलमैन प्रयोजन को किसी क्रिया को सीखने का केंद्र बिंदु मानते हैं |

अर्थात व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसका एक उद्देश्य अवश्य होता है और उसी उद्देश्य के अनुसार क्रिया करता है और क्रिया के अनुसार ही एक प्रयोजन का निर्माण करता है जिसे टाॅलमैन ने प्रयोजनवादी मनोविज्ञान कहा है |

 जी लेस्टर एंडरसन के अनुसार

” उन्होंने कहा कि टाॅलमैन के सिद्धांत में सिर्फ गतियों को ही  अधिगम प्राप्त नहीं किया जा सकता है बल्कि चिन्हों (संकेत , प्रतीक) और आशाओं का भी अध्ययन किया जाता है |”

 टाॅलमैन ने भी “संज्ञानात्मक संरचना” को महत्व दिया  है लेकिन इन्होंने “उद्देश्ययात्मक व्यवहार ” की बात की है  |

अर्थात व्यक्ति के अधिगम का कुछ न कुछ उद्देश्य होता है और उसी के  अनुसार व्यवहार किया जाता है |

इनके थ्योरी या सिद्धांत को प्रयोजन के कारण अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है जैसे

चिन्ह गेस्टाल्ट सिद्धांत 

संभावना सिद्धांत 

ज्ञानात्मक सिद्धांत आदि |

टाॅलमैन ने अपने सिद्धांत में कहा कि चिन्ह का अवबोध, उसका ज्ञान या  उसके संबंध में जानकारी महत्वपूर्ण है उस उद्देश्य को समझना जरूरी है कि वह क्या है?

उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विधियों का ज्ञान होना जरूरी है कि उद्देश्य को कैसे प्राप्त करना है |

 जब कभी किसी क्रिया का अधिगम किया जाता है तो सबसे पहले समस्या समाधान हेतु अनेक तत्व एकत्रित करते हैं और उस पर प्रतिक्रिया करते हैं उस पर अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं जिससे की समस्या समाधान के प्रति सजगता बनी रहे |

अधिगम का अर्थ अलग-अलग उद्दीपन के बीच संबंध हो को पहचानना है | प्रतिक्रिया का आधार उद्देश्यों का प्रत्यक्षीकरण है जिससे उद्दीपक उत्पन्न होगा और वही हमारे उद्देश्य प्राप्ति का कारण होगा |

चिन्ह सिद्धांत की विशेषताएं

1.यह सिद्धांत  संज्ञानात्मक संरचना पर बल देता है इसमें चिन्ह, आशा तथा   लक्ष्य पर बल दिया जाता है  |

2. यह सिद्धांत अनुकरण मनोविज्ञान की बात करता है की समस्या को हल करने का नजरिया क्या है उस समस्या को हम किस प्रकार से व्यक्त करते हैं उसको किस प्रकार से सोचते हैं और अपनी समझ के अनुसार कैसी प्रतिक्रिया देते हैं  |

3. सीखने  वाला अनुक्रिया का अधिगम उद्दीपन के प्रत्यक्ष ज्ञान से करता है जैसा प्रत्यक्षीकरण होगा वैसी प्रतिक्रिया होगी |

4. यह सिद्धांत व्यवहार के  परिणाम या लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है अर्थात प्रत्यक्षीकरण के अनुसार प्रतिक्रिया  होगी  |  अर्थात्  हमारा उद्देश्य होगा ,,व्यवहार का परिणाम लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है अर्थात प्रत्यक्षीकरण के अनुसार प्रतिक्रिया जैसी होगी  वैसा ही हमारा उद्देश्य भी होगा  |

गेस्टाल्ट सिद्धांत की  शैक्षिक उपादेयता 

1. शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को अधिगम  में दी जाने वाली क्रिया के उद्देश्य प्राप्ति के साधन आदि का स्पष्टीकरण कर दें |

इससे उद्दीपन की स्पष्टता का ज्ञान होगा |

2.इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षक कक्षा के मानसिक व शारीरिक स्तर पर आकांक्षा का ध्यान रखें | जिससे बच्चे उद्देश्य प्राप्त करने की आशा को बनाए रखें |

ब्रूनर का सिद्धांत 

पियाजे के विचार के अनुगामी और विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रवर्तक ब्रूनर को माना जाता है |

इन्होंने बौद्धिक विकास के नए संप्रत्यय  का निर्माण  किया |

सीखने हेतु पाठयोजना  में ब्रूनर द्वारा विकसित प्रतिमान 1956 में प्रस्तुत किया गया  |

एवं उन्होंने ने कहा कि यह पाठ योजना प्रतिमान ,सूचना प्रकरण का प्रमुख स्रोत है |

 ब्रूनर और अन्य ने यह जानने की कोशिश की,,,,कि मानव अपने किसी प्रत्यय की रचना कैसे आता है  |

पर्यावरण की वस्तुओं के बीच परस्पर संबंध को मनुष्य कैसे देखता है क्योंकि मनुष्य का वस्तुओं के बीच संबंध जैसा होगा वैसा ही उसका प्रत्यय या कॉन्सेप्ट या संप्रत्यय निर्माण होगा  |

व्यक्ति को जैसा वातावरण या माहौल मिलेगा वैसे ही उसका प्रत्यय निर्माण होगा और वह उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करेगा | |

Notes by Ravi kushwah

*अधिगम का चिह्न सिद्धांत – गेस्टाल्ट सिद्धांत*

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

इस सिद्धांत के प्रतिपादक टॉलमेन थे। यहां गेस्टाल्ट का अर्थ पूर्णाकार है। टालमेन के इस सिद्धांत का आधार पूर्णाकारवाद है। 

         इनकी मान्यता है कि मानव का व्यवहार उद्देश्य पूर्ण होता है। अधिगम के चिन्ह तथा आशाओं को वह अधिक महत्व देता है। 

        उन्होंने बताया कि व्यक्ति जो भी व्यवहार करता है वह अपने उद्देश्य के अनुसार करता है जैसा उद्देश्य होगा वैसा ही मनुष्य का व्यवहार होगा अर्थात् व्यवहार उद्देश्य पर आधारित होता है।

टालमेन का यह मत प्रयोजनवादी मनोविज्ञान पर आधारित है। प्रयोजन को किसी क्रिया को सीखने का केंद्र बिंदु मानते हैं।

*जी. लेस्टर एंडरसन के अनुसार*…..✍️

 “टालमैन के सिद्धांत में केवल गतियों का ही अधिगम नहीं प्राप्त किया जाता है बल्कि चिन्हों या आशाओं का भी अधिगम प्राप्त किया जाता है। 

टालमैंन ने संज्ञानात्मक संरचना को महत्व दिया। इन्होंने उद्देश्य आत्मक व्यवहार की बात की।

इनकी थ्योरी को प्रयोजन के कारण और अलग – अलग नाम से भी जाना गया है………….

1.) चिह्न पूर्णाकारवाद (sign gestalt theory)

2 .) संभावना सिद्धांत(expectancy theory)

3 .) ज्ञानात्मक सिद्धांत(cognitive theory)

टॉलमैन के मत के अनुसार……✍️

चिह्न का अवबोध महत्वपूर्ण है।

उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विधियों का ज्ञान होना जरूरी है।

जब कभी किसी क्रिया का अधिगम करता है सबसे पहले समस्या समाधान हेतु अनेक तत्व एकत्र करता है। इन तत्वों के अनुरूप हम प्रतिक्रिया करते हैं। अधिगम का अर्थ विभिन्न उद्दीपनो के संबंधों को पहचानना है। व्यक्ति की प्रतिक्रिया का आधार, आशाओं एवं उद्देश्यों का प्रत्यक्षीकरण है।

*अधिगम का चिन्ह सिद्धांत की विशेषताएं*

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

1. यह सिद्धांत संज्ञानात्मक रचना पर बल देता है इसमें चिन्ह आशा तथा लक्ष्यों का निवेश होता है।

2. भौतिक विज्ञान मैं ग्रामाणु का विशेष महत्व है या अनुकरण मनोविज्ञान में लिया गया है।

3. सीखने वाला अनुक्रियाओं का अधिगम उद्दीपनों के प्रत्यक्ष ज्ञान के रूप में करता है।

4. यह सिद्धांत व्यवहार के परिणाम या लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता है।

*गेस्टाल्ट सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता*

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

1. शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को अधिगम दी जाने वाली क्रिया के उद्देश्य प्राप्ति के साधन आदि का स्पष्टीकरण कर दे।

2. कक्षा का मानसिक और शारीरिक स्तर तथा आकांक्षा का ध्यान रखें।

*ब्रूनर का सिद्धांत*

💫💫💫💫💫💫

पियाजे के विचार के अनुगामी और विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रवर्तक ब्रूनर को माना जाता है।

इन्होंने बौद्धिक विकास के नए संप्रत्यय का निर्माण किया। 

सीखने हेतु पाठ योजना में ब्रूनर द्वारा विकसित प्रतिमान 1956 ई. में प्रस्तुत किया गया।

पाठ योजना प्रतिमान, सूचना प्रकरण का प्रमुख स्रोत है।

ब्रूनर और अन्य ने जानने की कोशिश की  कि मानव अपने प्रत्यय की रचना कैसे करता है।

पर्यावरण की वस्तुओं के बीच के परस्पर संबंध को मनुष्य कैसे देखता है।

*Notes by Shreya Rai*……..✍️🙏

Teaching methodology part 5

✨पुनर्बलन का अर्थ होता हैं आंतरिक बल अर्थात छात्रों में शिक्षण-प्रक्रिया में रुचिपूर्ण भाग लेने के लिए उन्हें बल देना अर्थात उन्हें प्रेरित करना। जिससे छात्र अनुक्रिया कर सकें। इसमें पुनर्बलन उद्दीपन का कार्य करता हैं और इस इस उद्दीपन हेतु छात्र उचित अनुक्रिया करते हैं। पुनर्बलन कौशल द्वारा छात्रों के मनोबल और उनके आत्मविश्वास में वृद्धि करने का कार्य किया जाता हैं। यह छात्रों को आंतरिक रूप से बदलने में उनकी सहायता करता हैं। जिससे वह अपनी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बना सकें। इसके द्वारा छात्रों में सकारात्मक सोच का भी विकास किया जाता हैं।

✨पुनर्बलन कौशल द्वारा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जाता हैं और छात्राध्यापकों में इसका विकास कर उनमें कुशल शिक्षक के गुणों का समावेश किया जाता हैं।

✨छात्रों को अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करना पुनर्बलन कौशल कहलाता हैं। इसके द्वारा छात्रों को प्रेरित करने का कार्य किया जाता हैं जिससे वह कक्षा में सक्रिय रहें और पूछे गए उत्तरों का उत्सुकता के साथ जवाब दें सामान्यतः पुनर्बलन छात्रों के मनोबल में वृद्धि करने का उत्तम मार्ग एवं साधन हैं। पुनर्बलन कौशल (Reinforcement Skill) का प्रयोग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के निर्माण में सहायता प्रदान करता हैं।

✨पुनर्बलन के प्रकार (Types of Reinforcement)➖
📍1 सकारात्मक पुनर्बलन कौशल
📍2 नकारात्मक पुनर्बलन कौशल

⚜️1 सकारात्मक पुनर्बलन कौशल –

इस प्रकार के पुनर्बलन के प्रयोग से छात्रों में सकारात्मक पक्ष के साथ उनसे अनुक्रिया करवाई जाती हैं। सकारात्मक पुनर्बलन में छात्रों को प्रेरित करने के लिए उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया जाता हैं। जिससे वह परिस्थिति दुबारा आने पर वह उचित अनुक्रिया दे सकें। इस उद्दीपन की प्रस्तुति करने से उनके अनुक्रिया देने की उम्मीद में वृद्धि होती हैं। सकारात्मक पुनर्बलन का छात्रों में प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है-

🔹1 शाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन कौशल 🔹2 अशाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन कौशल

🌀1 शाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन कौशल➖

🔹छात्रों में अधिगम को स्थाई करने के लिए शिक्षक सकारात्मक कदम उठाता है जिसके लिए वह
शाब्दिक पुनर्बलन में छात्रों को सकारात्मक शब्दों के माध्यम से प्रेरित किया जाता हैं।
जैसे उनके उत्तर देने में उनको शाबासी देना, अच्छा, बहुत अच्छा , उत्तम ,बिल्कुल सही आदि।

🔹शिक्षक द्वारा उत्साहवर्धक शब्दों का प्रयोग करना।

🔹शिक्षक विद्यार्थी के जो सुझाव होते हैं उसका समर्थन करता है।

🌀2अशाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन कौशल ➖

🔹अशाब्दिक पुनर्बलन में छात्रों को बिना शब्द प्रयोग किए उनके मनोबल में वृद्धि की जाती हैं।
जैसे – सही उत्तर देने में छात्र को देखकर मुस्कुराना, उनकी पीठ थप-थपाना, उनके उत्तरों को श्यामपट्ट पर लिखना आदि।

⚜️2 नकारात्मक पुनर्बलन कौशल –

इस प्रकार के पुनर्बलन में छात्रों की ऐसी अनुक्रिया को रोकने का प्रयास किया जाता हैं जो उनके शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के लिए हानिकारक होती हैं। छात्रों का ऐसा व्यवहार जो उनके शिक्षण में उनको हानि पहुचाने का कार्य करता है। इनको दूर करने के लिए नकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग किया जाता हैं।
जैसे- दण्ड देना, गुस्सा करना आदि। नकारात्मक पुनर्बलन भी दो प्रकार के होते हैं।
🔹1 शाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन
🔹2 अशाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन

🌀1 शाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन➖

शाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन में शब्दों के माध्यम से छात्रों पर गुस्सा किया जाता हैं जैसे- मूर्ख कहना, बेवकूफ, गलत बात, अक्ल ही नहीं है आदि। जिससे वह दुबारा वो अनुक्रिया ना करें।

🌀2 अशाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन➖

अशाब्दिक में बिना शब्दो का प्रयोग किए अनुक्रिया को रोकने का प्रयास किया जाता हैं जैसे- आँखे दिखाना, गुस्से से देखना, किताब पटकना , हाथ दिखाकर डंडे देने के इशारे करना, आंखें तिरछी करके देखना आदि।

🔹कई बार नकारात्मक पुनर्बलन देने पर उसका प्रभाव सकारात्मक होता है लेकिन दिया गया पुनर्बलन नकारात्मक ही कहलाएगा।

✨पुनर्बलन कौशल के घटक ➖

1 प्रशंसा करना
2 हाव भाव से तारीफ करना
3 विचार के प्रति सहमति
4 सुझाव का समर्थन
5 पुनर्बलन का समुचित प्रयोग करना
6 सही उत्तर को श्यामपट्ट पर लिखना
7 नकारात्मक अशाब्दिक कथन
8 नकारात्मक शाब्दिक कथन
9 सकारात्मक अशाब्दिक कथन
10 सकारात्मक शाब्दिक कथन

✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'

शिक्षण कौशल के प्रकार

💫💫💫💫💫💫💫💫 *(Part - 3)*

3. पुनर्बलन कौशल

(Reinforcement skill)

💫💫💫💫💫💫💫

पुनर्बलन कौशल से अभिप्राय ऐसे उद्दीपन से है जिनके प्रस्तुतीकरण से अनुक्रिया होने की आशा बढ़ जाती है। इन उद्दीपन में पुरस्कार, शाबाशी, रोमांच कक्षा इत्यादि आते हैं। शिक्षण प्रक्रिया में पुनर्बलन का तात्पर्य उद्दीपन का प्रयोग करना और उससे अनुक्रिया की संभावना को बढ़ाना है।

पुनर्बलन कौशल दो प्रकार के होते हैं….

  1. सकारात्मक /धनात्मक पुनर्बलन कौशल
  2. नकारात्मक /ऋण आत्मक पुनर्बलन कौशल

1. सकारात्मक/धनात्मक पुनर्बलन कौशल

सकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग छात्रों में सकारात्मक पक्ष के लिए किया जाता है। इसके लिए शिक्षक छात्रों को प्रेरित करने के लिए पुरस्कार से सम्मानित करते हैं जिससे बच्चा दोबारा किसी समस्या का समाधान करने के लिए सकारात्मक अनुक्रिया दे।

सकारात्मक पुनर्बलन का छात्रों में दो प्रकार से प्रयोग किया जाता है…

A . शाब्दिक

इसमें बच्चों को शब्दों के माध्यम से प्रेरित किया जाता है। अधिगम को स्थाई करने के लिए शिक्षक सकारात्मक कदम उठाते हैं। शिक्षक बालकों के सुझाव का समर्थन करते हैं और उत्साहवर्धक शब्दों का प्रयोग करते हैं। जैसे बच्चे ने किसी प्रश्न का उत्तर सही-सही दिया है तो उसको शाबाशी देना, अच्छा, बहुत अच्छा आदि।

B. अशाब्दिक

इसमें संकेतों का प्रयोग करके पुनर्बलन दिया जाता है। जैसे मुस्कुराना, सिर हिलाना, विद्यार्थियों की पीठ को थपथपाना आदि।

2. नकारात्मक /ऋण आत्मक पुनर्बलन कौशल

इस प्रकार के पुनर्बलन में छात्रों की ऐसे अनुक्रिया को रोकने का प्रयास किया जाता है जो उनके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए हानिकारक होती है। छात्रों में नकारात्मकता को दूर करने के लिए ऋण आत्मक पुनर्बलन का प्रयोग किया जाता है जैसे दंड देना, गुस्सा करना ।

नकारात्मक पुनर्बलन भी दो प्रकार के होते हैं……

A. शाब्दिक

अधिगम को स्थाई करने के लिए नकारात्मक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे मूर्ख, बेवकूफ आदि कहना।

इसमें बच्चों को आलोचना महसूस होती है और यह नकारात्मक है। इस पुनर्बलन का प्रयोग नहीं करने की कोशिश करनी चाहिए।

B. अशाब्दिक

अशाब्दिक पुनर्बलन में गुस्से से देखना, हाथ दिखाकर डंडे से मारने का इशारा करना, आंखें तिरछी करके देखना आदि।

पुनर्बलन कौशल के घटक

💫💫💫💫💫💫💫💫

पुनर्बलन कौशल के निम्नलिखित घटक है…..

  1. प्रशंसा करना।
  2. हाव भाव से तारीफ करना।
  3. विचार के प्रति सहमति।
  4. सुझाव का समर्थन।
  5. पुनर्बलन का समुचित प्रयोग करना।
  6. सही उत्तर श्यामपट्ट पर लिखना।
  7. नकारात्मक अशाब्दिक कथन।
  8. नकारात्मक शाब्दिक कथन।
  9. सकारात्मक अशाब्दिक कथन।
  10. सकारात्मक शाब्दिक कथन।

Notes by Shreya Rai …..✍️🙏

Education psychology part 5

🔆एक शिक्षक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता या महत्व ➖

⚜️1 अपने आप को समझना

🔸एक शिक्षक में अपने व्यवसाय की अनुकूल योग्यताएं हैं या नहीं उस स्वभाव, जीवन दर्शन, बुद्धि स्तर अपने निर्धारित मूल्य, अध्यापकों एवं अभिभावकों से संबंध ,व्यवहार, चारित्रिक गुण ,अध्यापक योग्यता की समाज में क्या प्रक्रिया है ।अध्यापक की क्या आवश्यकता है आदि सभी बातों की जानकारी कराने में शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की सहायता करता है।

⚜️2 विद्यार्थियों को समझना

🔸सीखने की क्रिया में बालक के व्यक्तित्व की आवश्यकता का ज्ञान अध्यापक के लिए आवश्यक है।
🔸उदाहरण के लिए यदि एक बालक जो अपने साथियों को सदैव तंग करता है, बच्चों को डांटता है साथियों के साथ उपद्रव व्यवहार करता है।

🔸शिक्षा मनोविज्ञान में ज्ञान से ही इन सभी बातों के कारणों का शिक्षक पता लगा सकता है।
प्रत्येक बालक में रुचि, सम्मान, स्वभाव तथा बुद्धि की दृष्टि से भिन्नता पाई जाती है इन व्यक्तिगत भेदो को जानकर शिक्षक शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा मंदबुद्धि तथा कुशल बुद्धि वाले बालकों में भेद या उनकी पहचान कर सकता है।

⚜️3🔸 यदि कोई शिक्षक शिक्षा मनोविज्ञान को जानता है तो वह शिक्षा के दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में सहायक होगा जिसके फलस्वरूप वह बच्चे के मनोवैज्ञानिक दृष्टि को भी जानने में बहुत मददगार या सहयोग करेगा।

⚜️4 🔸शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से शिक्षक किसी भी प्रकार की शैक्षिक प्रस्तुतीकरण को भी प्रभावी बना सकता है।
🔸शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने के ऐसे सिद्धांतों का उल्लेख किया जाता है जिसकी सहायता से अध्यापक अपने शिक्षण की विधियों का निश्चय कर सकें।
🔸शिक्षक को निगमन, अध्ययन ,निरीक्षण, सूत्र के अनुसार अपनी पाठ्य सामग्री को संजोकर छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है।
🔸जैसा कि हम जानते हैं प्रत्येक बालक में सीखने का ढंग अलग होता है शिक्षक को सीखने की क्रिया के मार्गदर्शन का ज्ञान भी शिक्षा मनोविज्ञान से मिल सकता है।

🔸अर्थात कौन सी शिक्षण विधि अपनाई जाए जिससे कि बच्चे का चहुमुखी विकास हो इन सभी बातों की जानकारी शिक्षक को शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा प्राप्त हो सकती है।

⚜️5 बच्चों के प्रति स्नेह ,सहानुभूति में भी शिक्षा मनोविज्ञान बहुत सहायक होता है।

⚜️6 शिक्षा मनोविज्ञान के माध्यम से बच्चों को अभिप्रेरित करते हुए उनमें रुचि जागृत की जा सकती है।

⚜️7 मूल्यांकन

🔸यह जानने के लिए किस शिक्षार्थी नए ज्ञान को प्राप्त करने योग्य है अथवा नहीं अर्थात बालक की ज्ञान की स्थिति पता लगाने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन किया जा सकता है।

🔸अध्यापक जो भी ज्ञान देता है उसका प्रभाव तथा उसके ज्ञान के कारण बालकों में क्या व्यावहारिक परिवर्तन होने हैं इसकी जानकारी शिक्षा मनोविज्ञान ही देता है।
🔸मूल्यांकन के अंतर्गत कौन-कौन सी बातें काम में ली जाए जिससे बालक का संपूर्ण रूप से मूल्यांकन हो जाए यह जानकारी भी शिक्षा मनोविज्ञान प्रदान करता है।

🔸मापन एवं मूल्यांकन की विधियों के माध्यम से यह प्रयास किया जाता है कि बालक की योग्यताओं का सही मापन एवं उसके द्वारा की गई प्रगति का मूल्यांकन भी सही ज्ञात हो सके।

🔆 अधिगम 🔆

🌺अधिगम क्या है?

🌀”अधिगम जीवन पर्यंत चलता है।”

अधिगम जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है बालक जन्म के पश्चात जब अपने वातावरण के संपर्क में आता है तो वातावरण से प्रतिक्रिया करता है। इस दौरान वह नए-नए अनुभव अर्जित करता है।

🌀 “अधिगम उद्देश्य पूर्ण होता है।”

अधिगम उद्देश्य एवं लक्ष्य केंद्रित होता है अगर हमारे पास कोई उद्देश्य नहीं है तो हमारे अधिगम का प्रभाव परिणाम के रूप में दिखाई नहीं देगा ।
जैसे जैसे विद्यार्थी सीखता है वैसे वैसे वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है।

🌀 “अधिगम व्यवहार में परिवर्तन है।”

सीखना किसी भी तरह का हो उसके व्यवहार में आवश्यक ही परिवर्तन होगा ।यह सकारात्मक या नकारात्मक किसी भी रूप में हो सकता है।

🌀 “अधिगम अनुकूलन है।”

अधिगम का अनुकूलन में विशेष योगदान होता है जन्म के बाद कुछ देर तक बच्चा दूसरों पर निर्भर रहता है बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार उसे ढलना पड़ता है वह वातावरण के साथ अधिगम के आधार पर ही अनुकूलन करता है।

🌀 “अधिगम सार्वभौमिक है।”

सीखना किसी एक मनुष्य या देश का अधिकार नहीं यह दुनिया के हर एक कोने में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए अर्थात अधिगम सार्वभौमिक प्रक्रिया है

🌀 “अधिगम विवेकपूर्ण है।”

अधिगम कोई तकनीकी क्रिया नहीं है बल्कि विवेक पूर्ण कार्य है जिसे बिना दिमाग के नहीं सीखा जा सकता इसमें बुद्धि का प्रयोग अति आवश्यक है।

🌀 “अधिगम निरंतर है।”

मनुष्य जीवन भर अधिगम करता है जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती वह कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है यह प्रक्रिया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जीवन भर चलती रहती है। इसमें व्यक्ति के ज्ञान ,अनुभव ,आदतें,रूचियो का विकास होता रहता है।

🌀 “अधिगम खोज करता है।”

अधिगम खोज करता है अर्थात जब भी हम अधिगम करते हैं तो कोई ना कोई नए कार्य की खोज करते हैं तथा उस कार्य का ज्ञान हो जाने पर या उसमें प्रवीण हो जाने पर हम सार्थक अधिगम प्राप्त कर लेते हैं।

🌀 “अधिगम व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों होता है।”

अधिगम की प्रक्रिया व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों होती है जब हम अधिगम करते हैं तो स्वयं के लिए ही नहीं बल्कि इसके साथ साथ दूसरों को समझाने व समझने के लिए अर्थात सामाजिक रूप से भी अधिगम करते हैं।

🌀 “अधिगम एक नया कार्य है।”

अधिगम कोई नया कार्य करना है। Woolworth ने एक शर्त लगाई है कि, सीखना नया कार्य करना तभी है जब की यह कार्य फिर किया जाए और वह दूसरे कार्यों में प्रकट हो।

🌀 “अधिगम अनुभव का एक संगठन है।”

सीखना नए पुराने अनुभवों का संगठन है। जिससे समस्या समाधान किया जाता है। किसी भी चीज का अधिगम करके हम उस चीज के बारे में कई अनुभवों को एकत्रित या संगठित कर लेते हैं और यही संगठित अनुभव अधिगम है।

🌀 “अधिगम वातावरण की उपज है।”

किसी भी प्रकार के अधिगम को प्राप्त करने के लिए हम वातावरण से ही सीखते हैं या वातावरण के विभिन्न क्रियाकलापों या गतिविधियों के द्वारा ही हम अधिगम को सुचारू रूप से सीखते जाते हैं। अर्थात अधिगम को वातावरण की उपज या देन कहा जा सकता है।

✍️
Notes By-‘Vaishali Mishra’

शिक्षक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

वर्तमान समय में शिक्षा की प्राचीन अवधारणा परिवर्तित हो गई है।शिक्षा का तात्पर्य बालकों को केवल सूचना देना ही नहीं बल्कि बालक का सर्वांगीण विकास करना है और यह तभी संभव हो सकेगा जब शिक्षक को बालक के बारे में पूर्ण ज्ञान हो शिक्षा मनोविज्ञान बालक को समझने में शिक्षक की सहायता करता है। क्योंकि शिक्षा मनोविज्ञान में शिक्षा और सीखने संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

1. स्वयं को पहचानने में सहायक

शिक्षा मनोविज्ञान,शिक्षक को स्वयं को पहचानने में भी सहायक होता है।एक शिक्षक का कार्य होता है कि वह बालकों का सर्वांगीण विकास करने में उनकी सहायता करें। इसके लिए शिक्षक में शिक्षण की योग्यता है या नहीं, शिक्षक का स्वभाव, बौद्धिक स्तर, चारित्रिक गुण, नैतिक गुण,छात्रों एवं अभिभावकों के साथ संबंध आदि कैसा है का शिक्षा मनोविज्ञान से ही पता चलता है।

2. बालक को पहचानने में सहायक

शिक्षा मनोविज्ञान,शिक्षक को बालकों को पहचानने में भी सहायता करता है।शिक्षक को शिक्षण करते समय शिक्षार्थियों के मनोभाव को समझना आवश्यक है। प्रत्येक बच्चा एक जैसा नहीं होता है। सभी बच्चे की रूचि, स्वभाव, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक, सामाजिक स्तर अलग अलग होती है। इसलिए उनमें सीखने की क्षमता भी अलग-अलग होती है। यदि शिक्षक को बालकों के बारे में पूर्ण जानकारी होगी तो शिक्षण कार्य करने में आसानी होगी।

3. शिक्षक के दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में सहायक

शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान,शिक्षक के दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में भी सहायक होता है।

4. शैक्षणिक प्रस्तुति में सहायक

शैक्षणिक प्रस्तुति में भी शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान होना अति आवश्यक है। बच्चे को किस प्रकार से,कितनी मात्रा में,क्या और कैसे पढ़ाया जाए जिससे पाठ रुचिकर एवं आकर्षक हो और बच्चा पढ़ने के लिए प्रेरित हो सके।इसके लिए शिक्षक नई-नई विधियों का प्रयोग कर सकता है।

5.बच्चों के प्रति स्नेह, प्रेम, सहानुभूति में सहायक

बच्चों को परिवार के बाद शिक्षक ही होते है जो स्नेह, प्रेम एवं सहानुभूति जताते हैं और उनके अच्छे भविष्य की नीव रखते हैं। बच्चे भी शिक्षक को अपना आदर्श मानते हैं।

6. कौन सी शिक्षण विधि अपनाई जाए कि बच्चे का चहुंमुखी विकास हो

बच्चों का सर्वांगीण/चहुमुखी विकास हो इसके लिए शिक्षक को सही शिक्षण विधि का प्रयोग करना चाहिए। शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान से शिक्षक परिस्थिति और विषय के अनुसार शिक्षण विधि अपनाता है।

7. अभिप्रेरित करते हुए रुचि जागृत करना

शिक्षक को चाहिए कि बच्चों को नई जानकारी सीखने के लिए उनमें रुचि जागृत करना चाहिए। शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान से शिक्षक शिक्षार्थियों को पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। जिससे बच्चा पढ़ने और नई जानकारी को सीखने में रुचि ले।

8. मूल्यांकन की नई- नई तकनीक की खोजना

यह जानने के लिए कि शिक्षार्थी नए ज्ञान को प्राप्त करने योग्य है अथवा नहीं या कितना सीखा है। मूल्यांकन के द्वारा ही पता किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षक छात्रों में वाद- विवाद, प्रतियोगिता,प्रश्नोत्तर विधि,खेल विधि,आदि के माध्यम से मूल्यांकन करता है।

अधिगम

💫💫💫

किसी क्रिया या स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया ही अधिगम है।

अधिगम की झलक💫💫💫💫

अधिगम क्या है?

  1. अधिगम जीवन पर्यंत चलता है।
  2. अधिगम उद्देश्य पूर्ण होता है।
  3. व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम है।
  4. अधिगम विकास है।
  5. अधिगम अनुकूलन है।
  6. अधिगम सार्वभौमिक है।
  7. अधिगम विवेकपूर्ण है।
  8. अधिगम निरंतर है।
  9. अधिगम खोज करना है।

10.अधिगम व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों होता है।

  1. अधिगम एक नया कार्य है।
  2. अधिगम अनुभव का संगठन है।
  3. अधिगम वातावरण की उपज है।

Notes by Shreya Rai ✍️🙏

Teaching methodology part 4

24/04/2021. Saturday TODAY CLASS ... प्रस्तावना कौशल

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💫प्रस्तावना कौशल शिक्षण प्रक्रिया की नींव हैं क्योंकि किसी भी प्रकरण की शुरुआत करने से पूर्व प्रस्तावना प्रश्नों की श्रेणियों का निर्माण किया जाता हैं जिसमें 3-4 प्रश्नों का चयन किया जाता हैं। प्रथम प्रश्न से जिस उत्तर की प्राप्ति होती हैं उसी के आधार पर दूसरे प्रश्न का निर्माण किया जाता हैं। जिससे छात्रों को समझने में सरलता हो सकें और वह सरलता से प्रश्नों के उत्तर दे सकें। छात्राध्यापकों में प्रस्तावना कौशल का विकास कर उनमें छात्रों को समझने की दक्षता का विकास किया जाता हैं।

➖ यह शिक्षण कौशल शिक्षक द्वारा नए पाठ की शुरुआत के समय प्रयोग किया जाता है।

➖ पाठ का प्रस्तुतीकरण जितना आकर्षक और रोचक होगा विद्यार्थी पाठ को उतना ही ध्यान पूर्वक और अधिक केंद्रित होकर पड़ेंगे।

💥 इस को रोचक बनाने के लिए क्या करना चाहिए और कैसे ?

छात्रों का ध्यान केंद्रित करने के लिए पूर्व ज्ञान से वर्तमान कक्षा को जोड़कर इस पर बच्चों के विचार लेकर, प्रश्न पूछ कर, वाद विवाद से किया जा सकता है

इससे नवीन ज्ञान प्रदान करने में सुविधा होगी ,शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति आसानी से होगी।

💥 प्रस्तावना कौशल के घटक

(1) चित्र एवं रेखा चित्र के द्वारा छात्रों को समझाना

(2) कहानियों द्वारा प्रभावशाली शिक्षण को जन्म देना

(3) काव्यांश द्वारा शिक्षक को प्रभावशाली बनाना और विद्यार्थियों को आकर्षित करना

(4) दृश्य श्रव्य साधनों को उपयुक्त रूप से प्रस्तुत करना

(5) क्रमबद्ध रूप से पाठ का विवरण करना

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

Notes by:— संगीता भारती

❇️ प्रस्तावना कौशल

🔹जब हम किसी भी चीज की शुरुआत करते हैं तो उसके बारे में शुरुआत में उसकी प्रस्तावना लिखते हैं।

🔹शिक्षण कौशल में भी प्रस्तावना कौशल का प्रयोग किया जाता है।

🔹किसी भी चीज का शिलान्यास प्रस्तावना ही होता है क्योंकि प्रस्तावना के आधार पर या शिलान्यास के आधार पर ही हम किसी चीज की छवि अपने मानसिक स्तर में बना लेते हैं।
तथा उस प्रस्तावना के आधार पर ही यह समझ विकसित कर लेते हैं कि वह चीज कैसी होगी ? या किस प्रकार की होगी? या उसका कैसा प्रभाव होगा ?

🔹इसीलिए शिक्षण कौशल में प्रस्तावना द्वारा यह जाना जा सकता है कि यह कितना महत्वपूर्ण है? जिससे यह भी ज्ञात होता है कि शिक्षण कौशल किस प्रकार का है और कितना प्रभावी है।

🔹किसी भी शिक्षण कौशल में शिक्षक द्वारा नए पाठ की शुरुआत के समय प्रस्तावना प्रयोग किया जाता है।

🔹पाठ का प्रस्तुतीकरण जितना आकर्षण और रोचक होगा,विद्यार्थी उतना ही पाठ को ध्यानपूर्वक और अधिक केंद्रित होकर पड़ेगा।

🔹शिक्षक द्वारा नए पाठ की ओर केंद्रित करने व रोचक बनाने के लिए क्या क्या कर सकते है ?
अर्थात शिक्षक द्वारा शिक्षण कार्य को कैसे रोचक बनाया जा सकता है।
इसके लिए निम्न बातों को जानना आवश्यक है

📍छात्रों का ध्यान केंद्रित करने के लिए शिक्षक छात्र के पूर्व ज्ञान से वर्तमान कक्षा को जोड़कर उस पर बच्चों के विचार लेकर ,प्रश्न पूछकर ,वाद विवाद के माध्यम से किया जा सकता है।
इसके परिणाम स्वरूप नवीन ज्ञान छात्रों को प्रदान करने में सुविधा होगी।

📍शिक्षण कौशल का मुख्य उद्देश्य है कि जो भी शिक्षण कार्य शुरू किया जा रहा है उनमें प्रस्तावना कौशल को अपनाया जाए। जिससे जो भी शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं उन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सके।

📍प्रस्तावना को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसके लिए प्रस्तावना कौशल के घटक या अंग को देखना होगा।

🌺 प्रस्तावना कौशल के घटक

🌀1 यदि बच्चों को किसी भी चीज की शुरुआत से उसको रेखा चित्र अथवा चित्र या आकृति के द्वारा समझाया जाए तो छात्रों को समझाना आसान होगा।

क्योंकि जब किसी भी चीज को आकृति के द्वारा या चित्र के द्वारा बनाकर समझाया जाता है तो बच्चों का ध्यान उस आकृति या चित्र पर केंद्रित होता है तथा वह रोचक और प्रभावी रूप से सीख पाते हैं।

🌀2 कहानी द्वारा प्रभावशाली शिक्षण को जन्म देना।

किसी भी प्रकार की शिक्षण कार्यों में यदि कहानियों का प्रयोग किया जाए तो शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चों की रुचि कहानियों में होती है तथा वह कहानियों के माध्यम से शिक्षण में रुचि लेने लगते हैं जिससे शिक्षक का शिक्षण कार्य भी प्रभावशाली हो जाता है।

🌀3 काव्यांश द्वारा शिक्षण को प्रभावशाली बनाना और विद्यार्थियों को आकर्षित करना।

यदि शिक्षक अपने शिक्षण कार्य में काव्यांश अर्थात छोटे-छोटे गीतों के माध्यम से या साहित्य की कलाओं को छोटे-छोटे या अंश के रूप में काव्य की मदद से छात्रों के लिए रुचिकर व प्रभावी बना सकते हैं

🌀4 दृश्य श्रव्य साधनों को उपयुक्त रूप से प्रस्तुत करके।
शिक्षक अपने शिक्षण कार्य में विभिन्न दृश्य श्रव्य साधनों को उपयुक्त रूप से प्रयोग करके शिक्षण को आसान या सरल सुव्यवस्थित एवं उपयोगी और साथ ही साथ बच्चों के लिए प्रभावी व रुचिकर बना सकता है।

जब दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है तो शिक्षण कार्य काफी प्रभावी या असरदार तथा उसके द्वारा प्रदान किया जाने वाला अधिगम स्थाई तथा बच्चों के लिए आनंददायक होता है।

🌀5 क्रमबद्ध रूप से पाठ का विवरण करके

शिक्षण कार्य के दौरान शिक्षक जिस भी पाठ का विवरण कर रहा है उसका एक क्रमबद्ध रूप से अर्थात क्रमानुसार या स्टेप बाय स्टेप विवरण करें तो उसे छात्र को समझने में आसानी होगी तथा वह हर चरण में रुचि लेंगे और धीरे धीरे संपूर्ण पाठ का विवरण आसानी से समझ पाएंगे।

शिक्षक का मुख्य उद्देश्य या मकसद ही है कि किसी भी शिक्षण कौशल में या किसी भी चीज में किसी भी रूप में यदि प्रस्तावना कौशल को अपनाया जाए तो उसकी मदद से शिक्षण कौशल को बच्चे के लिए कहानी कर, रुचिकर और प्रभावी ढंग से बच्चों को नवीन ज्ञान प्रदान किया जा सके अर्थात जो भी शैक्षिक उद्देश निर्धारित किए गए हैं उन्हें प्राप्त किया जा सके।

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Notes By-‘Vaishali Mishra’

शिक्षण कौशल के प्रकार

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(Part – 2)

2. प्रस्तावना कौशल

छात्रों की तुलना में शिक्षकों के पास अधिक ज्ञान होता है, परंतु सभी शिक्षक उस ज्ञान को पाठकों द्वारा छात्रों तक नहीं पहुंचा पाते। इसका कारण यह है कि वे विषय वस्तु को छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप तथा उनके पूर्व ज्ञान से संबंधित नहीं बना पाते हैं।

➡️ शिक्षक द्वारा नवीन पाठ की शुरुआत करने से पूर्व प्रयोग किया जाता है।

➡️ पाठ का प्रस्तुतीकरण जितना आकर्षक होगा या रोचक होगा विद्यार्थी उतना ही ध्यान पूर्वक और अधिक केंद्रित होकर पढ़ता है।

➡️ प्रस्तावना कौशल में प्रस्तावना अधिक लंबी या अधिक छोटी नहीं होनी चाहिए। इसमें 5 से 7 मिनट का समय लग जाता है। इसके प्रयोग से विद्यार्थी पाठ के अध्ययन में रुचि लेते हैं। क्योंकि यह उनके पूर्व ज्ञान से संबंधित होता है।

कैसे?

छात्रों का ध्यान केंद्रित करने के लिए पूर्व ज्ञान से वर्तमान कक्षा को जोड़कर, उस पर बच्चों के विचार लेकर, प्रश्न पूछ कर, वाद विवाद करके, कहानी कह कर या किसी विषय पर उदाहरण देकर किया जाता है। इससे नवीन ज्ञान प्रदान करने में सुविधा होती है।

प्रस्तावना कौशल के घटक

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इसके निम्नलिखित घटक होते हैं……….

1. प्रत्यास्मरण प्रश्न

इसमें ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जिसका जवाब छात्र अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर सरलता से दे सके।

2. निबंधात्मक प्रश्न

ऐसे प्रश्न शिक्षक पूछते हैं और जवाब भी शिक्षक ही देते हैं।

3. आज्ञा पालन प्रश्न

ऐसा प्रश्न जिसका जवाब बालक ‘हां’ या ‘ना’ में दे सके।

4. चित्रों अथवा रेखा चित्रों के द्वारा छात्रों को समझाना यदि छात्रों को चित्रों के द्वारा किसी विषय की जानकारी दी जाती है तो वह अधिक समय तक छात्र के स्मृति में रहती है।

5. कहानी एवं कविता द्वारा

कहानियों एवं कविताओं के द्वारा प्रभावशाली शिक्षण का जन्म होता है। इस विधि से पढ़ाने में छात्र अधिक रूचि लेते हैं और पाठ को सीखने के लिए आकर्षित होते हैं।

6. दृश्य- श्रव्य साधनों का उपयुक्त रूप से प्रस्तुत करना।

7. क्रमबद्ध तरीके से पाठ का विवरण करना।

8. प्रश्नों की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए जिससे बच्चा आसानी से प्रश्नों के जवाब दे सके।

Notes by Shreya Rai ✍️🙏

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📛 प्रस्तावना कौशल 📛

💠 प्रस्तावना कौशल किसी प्रकरण या किसी अवधारणा को स्पष्ट करने की प्रस्तुति का एक माध्यम है |

💠 हम जानते हैं कि शिक्षक और विद्यार्थी में शिक्षक एक सफल मार्गदर्शक का कार्य करता है और विद्यार्थी उस मार्गदर्शन से अपनी समझ विकसित करते हैं तथा उस विकसित हुई समझ के अनुसार अपने विचार प्रस्तुत करते हैं |

💠 शिक्षक विद्यार्थियों का उचित मार्गदर्शन करने के लिए अपने विचार बच्चों के पूर्व अनुभव या उनके पूर्व ज्ञान से जोड़कर दैनिक जीवन की समस्याएं से प्रस्तुत करते हैं |

💠 अपने ज्ञान को प्रस्तुत करने के लिए शिक्षक प्रस्तावना कौशल का उपयोग करता है कि वह अपने शिक्षण में बच्चे के किसी नए कांसेप्ट को विकसित करने के लिए बच्चे के पास कितना पूर्व ज्ञान है उसका अवलोकन करता है और अपनी प्रस्तावना को व्यक्त करता है |

💠 पाठ का या अवधारणा का प्रस्तुतीकरण जितना अच्छा होगा पाठ का प्रस्तुतीकरण भी उतना ही अच्छा होगा जिससे विद्यार्थी शिक्षक के शिक्षण के प्रति रुचि व्यक्त करेंगे और पाठ को एकाग्र चित्त होकर अधिक ध्यान केंद्रित करके पढ़ेंगे |

💠 प्रस्तावना कौशल शिक्षक द्वारा नए पाठ की शुरुआत के समय प्रयोग किया जाता है पाठ का प्रस्तुतीकरण जितना अच्छा होगा या जितना आकर्षक और रोचक होगा विद्यार्थी पाठ को उतना ही ध्यान पूर्वक और अधिक केंद्रित होकर पढ़ेंगे |

🔥 प्रस्तावना कौशल को रोचक बनाने के लिए शिक्षक को क्या करना चाहिए या उसे कैसे करना चाहिए ➖

💠 छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिए शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों के पूर्व ज्ञान को वर्तमान ज्ञान से जोड़ें और उस पर बच्चों के विचार लेकर उनसे प्रश्न पूछ कर वाद विवाद की प्रक्रिया को अपनाएं |
जिससे विद्यार्थी शिक्षक के शिक्षण के प्रति आकर्षित भी होंगे और ध्यान केंद्रित करके शिक्षण भी करेंगे |
जिससे नवीन ज्ञान प्रदान करने में सुविधा होगी और शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति आसानी से होगी |

अर्थात यदि शिक्षक बच्चों से प्रश्न पूछता है वाद विवाद प्रतियोगिता करवाता है उनके पूर्व ज्ञान को नए ज्ञान से जोड़ता है अपने शिक्षण में दैनिक जीवन की सामग्री को प्रस्तुत करता है दृश्य श्रव्य सामग्री प्रस्तुत करता है तो उससे बच्चे को नवीन ज्ञान प्रदान करने में सुविधा होगी और शैक्षिक उद्देश्यों को शिक्षक आसानी से प्राप्त कर सकता है |

📛 प्रस्तावना कौशल के घटक➖

💠 चित्र अथवा रेखा चित्र के द्वारा समझाना ➖

यदि शिक्षक अपने शिक्षण में चित्र का उपयोग करता है बच्चों को चित्रों के माध्यम से समझाता है तो इससे बच्चे को उस पाठ या अवधारणा को समझने में आसानी होती है और ज्ञान स्थाई हो जाता है |

💠 कहानी द्वारा प्रभावशाली शिक्षण को जन्म देना | अर्थात यदि शिक्षक अपने शिक्षण को कहानी के माध्यम से प्रस्तुत करता है तो बच्चे को शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न होती है उसके बारे में जानने की तीव्र इच्छा उत्पन्न उत्पन्न होती है |

💠 काव्यांश द्वारा शिक्षण को प्रभावी बनाना तथा छात्रों का ध्यान आकर्षित करना |

💠दृश्य श्रव्य साधनों का उपयुक्त रूप से उपयोग करना |

💠 क्रमबद्ध रूप से पाठ का विवरण करना | अर्थात ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करना जो पाठ से जुड़े हो यदि ऐसा नहीं होगा तो शिक्षक, शिक्षण को प्रभावी नहीं बना सकता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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Education psychology part 4

शिक्षा मनोविज्ञान

✨स्किनर के अनुसार
मनोविज्ञान शिक्षा का आधारभूत विज्ञान है ।

✨ट्रो के अनुसार
शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक प्रस्तुतियों का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन है।

🔸अर्थात जो भी शैक्षणिक कार्य है उनकी प्रस्तुति या प्रेजेंटेशन का जब मनोवैज्ञानिक ढंग से या दृष्टि से या नजरिए से अध्ययन किया जाता है तब वही अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।

✨”EDUCATION” शब्द अंग्रेजी का एक शब्द है जो कि लैटिन भाषा के एक शब्द ” EDUCATUM” से बना है।
जोकि दो शब्दों से मिलकर बना है।

📍एक :- “E”
📍दूसरा :- “Duco”

E का अर्थ- “अंदर से”
Duco का अर्थ है – “बाहर निकालना।”

🔸”शिक्षा का अर्थ अंतर्निहित योग्यताओं को बाहर निकालकर उसके व्यवहार में परिवर्तन करना है।”

🔸EDUCATION शब्द की उत्पत्ति दो और लैटिन शब्द से मानी जाती है।

✨1 EDUCARE
✨2 EDUCERE

EDUCARE का अर्थ :- “पालन पोषण करना”

EDUCERE का अर्थ :- “आगे बढ़ाना”

🔸”मानव विज्ञान का अध्ययन कर उसमें परिवर्तन या परिमार्जित करना ही शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।”

🔸किसी भी मानव या किसी भी बात या किसी भी विषय मैं हमें कुछ पूर्व जानकारी होती है जिसके आधार पर ही हम उस मानव या बात या विषय के बारे में सही गलत का निर्णय लेते हैं।

🔸लेकिन कभी-कभी जब हमें किसी बात की जानकारी होती है तो हम उस स्थिति में सही या गलत का निर्णय लेने के लिए उस बात या विषय का अध्ययन करते हैं।

🔸और किसी भी विषय पर अध्ययन हम दो प्रकार से करते हैं।
🔸एक वह जिसमें हम जो विषय या बात है उसके वर्तमान पक्ष को देखकर अपने दिमाग में संरक्षित जानकारी से मिलान करते हैं और यदि यह मिलान ठीक नहीं होता है अर्थात वर्तमान अध्ययन और दिमाग में संरक्षित जानकारी के बीच प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है अर्थात हम यह मान लेते हैं कि हमारी जो किसी भी विषय या बात के प्रति पूर्व जानकारी है वह हमारी वर्तमान स्थिति के हिसाब से नहीं है।
और हम वर्तमान स्थिति का तुरंत अध्ययन कर निर्णय ले लेते हैं।

🔸दूसरा वह जिसमें हम किसी विषय या बात पर उसके प्रत्येक या हर एक पहलू को देखते है या परखते या यह विश्लेषण करते हैं अर्थात उस विषय की समस्त पक्षों चाहे वह बीते हुआ समय हो या वर्तमान समय सभी पक्षों का पूर्ण रूप से और उचित तरीके से अध्ययन करते हैं।

🔸तथा उसी अध्ययन के आधार पर अपने दिमाग में संरक्षित जानकारियों से मिलान करके या उचित मिलान हो जाने पर उस विषय या बाद में सही या गलत का निर्णय लेते हैं।

🌀शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति

1शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है।

2 इसमें नियम और सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है।

3 किसी भी वैज्ञानिक पद्धति में उसका अध्ययन किया जाता है और साथ ही साथ निरीक्षण भी किया जाता है।
शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार का अध्ययन है।

4 शिक्षा मनोविज्ञान एक सकारात्मक विज्ञान है जिसमें आगे बढ़ाने ,और चीजों को सही करने की बात अर्थात कब ?क्यों ?कैसे? प्रश्न पूछे जाते हैं या किसी भी चीज के सभी पक्षों या प्रत्येक पहलुओं को जाना जाता है तभी निर्णय लिया जाता है।

5 अतीत की अपेक्षा यह वर्तमान की घटनाओं से ज्यादा संबंधित है।

6 इसमें दिए गए नियम व सिद्धांत सार्वभौमिक होते हैं।

7 इसमें भविष्यवाणी की जा सकती है।

क्योंकि मनोविज्ञान के द्वारा ही हम व्यक्ति के मन का अध्ययन करके या मन के विज्ञान को समझ कर यह पता कर सकते हैं कि वह व्यक्ति भविष्य में क्या करेगा? या क्या बनेगा?या उसकी कैसी सोच होगी? या वह किस प्रकार से कार्य करेगा?

✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'

शिक्षा मनोविज्ञान

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स्किनर के अनुसार…………✍️

“मनोविज्ञान शिक्षा का आधारभूत विज्ञान है।”

ट्रो के अनुसार………. ‌✍️

“शिक्षा मनोविज्ञान, शैक्षणिक प्रस्तुतियों का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन है।”

शिक्षा का अर्थ

Meaning of education

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शिक्षा शब्द की उत्पत्ति ‘शिक्ष्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ सीखना, ज्ञान ग्रहण करना या विद्या प्राप्त करना है।

➡️ शिक्षा शब्द का अंग्रेजी रूपांतरण education है। ‘Education’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के educatum शब्द से हुआ है जिसका अर्थ है शिक्षण कार्य करना।

➡️ Education, educo शब्द से बना है।जहां

E = आंतरिक
Duco= आगे बढ़ना/विकसित करना

अर्थात् आंतरिक शक्तियों का विकास करना।

या आंतरिक योग्यता को बाहर निकालकर व्यवहार में परिवर्तन करना।

➡️ कुछ विद्वानों के अनुसार एजुकेशन शब्द की उत्पत्ति दो अलग-अलग शब्दों से हुई है…..

1). educare = पालन पोषण करना/शिक्षित करना/ऊपर उठाने से है ‌

2). Educere = आगे बढ़ना

➡️ मानव विज्ञान का अध्ययन उसमें परिवर्तन या परिमार्जन करना ही शिक्षा मनोविज्ञान है।

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति

Nature of educational psychology

💫💫💫💫💫💫💫

  1. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है।
  2. इसमें नियम और सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है।
  3. इसमें वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन/निरीक्षण करते हैं। अत: शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार का अध्ययन है।
  4. यह सकारात्मक विज्ञान है। इसमें कब?, कैसे?,क्यों? आदि प्रश्नो का उत्तर प्राप्त करते हैं।
  5. शिक्षा मनोविज्ञान में अतीत की अपेक्षा वर्तमान की घटना से ज्ञान ज्यादा संबंधित है।
  6. इसका नियम और सिद्धांत सार्वभौमिक होता है।
  7. इससे भविष्यवाणी की जा सकती है।

Notes by Shreya Rai✍️🙏

61. CDP – Learning Theories PART- 17

🌼☘️ कर्ट लेविन  के सिद्धांत की कमियां☘️🌼

🔸गणित के शब्दों की बात की➖ क्षेत्रफल ,जीवन विस्तार ,तलरूप, शक्ति ,संतुलन वास्तव में इन शब्दों को समझना बहुत कठिन है।

🔸 यह सीखने के सिद्धांत के रूप में विकसित नहीं हुआ है अभिप्रेरणा प्रत्यक्षीकरण की बात की गई है, हालांकि लेविन अपने सिद्धांतों का उपयोग सीखने की  परिस्थिति में करना चाहता है।

🔸वातावरण की शक्ति मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करती है क्या व्यक्ति की आंतरिक इच्छाएं आवश्यकता यह उनके व्यवहार को प्रभावित नहीं करती ? बल्कि करती है‌

🔸वास्तव में यह सिद्धांत अधिगम का सिद्धांत नहीं बल्कि मानवीय अभिप्रेरणा के अध्ययन से संबंधित है।

🔸अनुभव से ज्यादा व्यवहार पर बल देता है।

☘️🌼 कर्ट लेविन के सिद्धांत की शैक्षणिक उपादेयता🌼☘️

1-व्यक्तित्व का अध्ययन, सामाजिक ,मनोविज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

2-सीखना जीवन को छोटे-छोटे क्षेत्रों में बांटकर सीखने की प्रक्रिया है।

3-शिक्षण का विशेष महत्व है शिक्षक को चाहिए कि सीखने के लिए उचित वातावरण प्रस्तुत करें।

4-इस सिद्धांत के अनुसार–शिक्षक को प्रभावकारी ढंग से उसके बाद वातावरण उसकी रुचि,  रुचि ,दृष्टिकोण, सीमा ,क्षमता को समझना चाहिए।

5-शिक्षक को ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे कि छात्र के प्रत्यक्षीकरण का क्षेत्र विस्तृत हो।

6-शिक्षण प्रक्रिया के पूर्व बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षक को जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए हर संभव प्रयास होना चाहिए कि छात्र हताश, कुंठा, निराशा ,तनाव से दूर रहे नहीं तो छात्र से अच्छे अधिगम की उम्मीद बेकार है।

7-अभिप्रेरणा अधिगम की अनिवार्य शर्त है जितना अच्छा अभिप्रेरणा उतना अच्छा सीखना। 

8-कक्षा का वातावरण सीखने को प्रभावित करता है उसमें छात्र का भौतिक वातावरण भी महत्वपूर्ण है जिसमें प्रकाश, वायु ,सुगंध सभी शामिल है।

9-यह सिद्धांत रखने का विरोध करता है क्योंकि अंतर्दृष्टि पर बल देता है मस्तिष्क में जबरदस्ती ज्ञान डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए शिक्षण विधि को सुग्राहय बनाना चाहिए।

10- यह सिद्धांत व्यक्ति को महत्व देता है बच्चे की आवश्यकता, क्षमता ,कमी ,वातावरण, उद्देश्य इन सब से परिचित होना जरूरी है।

11- यह सिद्धांत अवरोध को स्वीकार करता है बच्चा शॉर्टकट अपनाना चाहता है व्यक्ति को उचित क्षेत्र में रखने के लिए सशक्त अवरोध की आवश्यकता है।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

कर्ट लेविन का सिद्धांत जोकि संज्ञान वादी है और यह सूज बुझ, ज्ञान व गणितीय गणना की बात करता है।

❇️ कर्ट लेविन के सिद्धांत की कमियां ➖

📍1 इस सिद्धांत के अंतर्गत कई शब्द जैसे क्षेत्रफल, जीवन विस्तार , तलरूप ,शक्ति और संतुलन की बात की गई है।

लेकिन वास्तव में इन शब्दों को समझना बहुत कठिन है।

इन्होंने इस प्रकार यह शब्द प्रयोग किए हैं उन शब्दों का अधिगम सिद्धांत में कोई आवश्यकता नहीं थी अर्थात यह सिद्धांत को बिना किसी आवश्यकता है जरूरत के जटिल बना दिया गया है।

📍2 यह सिद्धांत सीखने के सिद्धांत की तरह विकसित नहीं हुआ

इस सिद्धांत में अभिप्रेरणा (धनात्मक ऋणात्मक  शक्ति) व प्रत्यक्षीकरण पर अधिक जोर दिया गया।

हालांकि लेविन अपने सिद्धांत का उपयोग सीखने की परिस्थिति में ही करना चाहते थे।

📍3 वातावरण की शक्ति मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करती है और यह मत  लेविन के द्वारा कहा गया।

क्या व्यक्ति कि जो  आंतरिक इच्छाएं व आवश्यकता है  उनके व्यवहार को प्रभावित नहीं करती?

 बल्कि ऐसा नहीं है आंतरिक इच्छाएं और आवश्यकता है व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

📍4 वातावरण में यह सिद्धांत अधिगम का सिद्धांत नहीं बल्कि यह मानवीय अभिप्रेरणा के अध्ययन से संबंधित है।

📍5 यह अनुभव से ज्यादा व्यवहार पर बल देता है।

 जिसमें अनुभव में:- मुख्यता अधिगम पर जोर दिया जाता है जबकि व्यवहार में:- मुख्यतः प्रेरणा पर जोर दिया जाता है।

❇️ कर्ट लेविन के सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता या उपयोगिता या महत्वता➖

✨1 यह सिद्धांत व्यक्तित्व का अध्ययन करने से सामाजिक मनोवैज्ञानिक की दृष्टि से इस सिद्धांत का महत्व बढ़ गया है।

अर्थात इस सिद्धांत में व्यक्तित्व का अध्ययन किया गया है जो कि सामाजिक मनोवैज्ञानिक की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

✨2 सीखना जीवन क्षेत्र के छोटे-छोटे क्षेत्र में बांटकर सीखने की प्रक्रिया है।

✨3 शिक्षण का विशेष महत्व शिक्षक को चाहिए कि वह सीखने के लिए  बच्चों के समकक्ष तूउचित वातावरण प्रस्तुत करें

✨4 इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षक को प्रभावकारी  ढंग से बच्चे के वातावरण, उनकी आवश्यकता ,रुचि दृष्टिकोण ,सीमा, क्षमता को समझना चाहिए।

✨5 शिक्षक को ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे कि छात्रों के प्रत्यक्षीकरण का क्षेत्र विस्तृत हो 

 प्रत्यक्षीकरण से तात्पर्य जीवन को देखने का जो नजरिया है या दृष्टिकोण है उसे विस्तृत करने से है।

जिसके परिणाम स्वरुप छात्रों की जीवन लंबा चौड़ा हो जाए अर्थात किसी भी चीज या बात के लिए उसके प्रत्येक पहलू को देखा जाए या किसी भी विषय की गहरी समझ हो जाए।

✨6 बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य जिसको हम सिखाना चाहते हैं उसका मानसिक स्वास्थ्य जालना भी बहुत आवश्यक है यदि बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य नहीं जाना गया तो बच्चे के बेहतर करने की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

अर्थात बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षक को जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए और हर संभव प्रयास होना चाहिए कि छात्र निराशा, हताशा ,कुंठा निराशा ,तनाव से दूर रहे।

अन्यथा छात्र से अच्छे की उम्मीद बेकार है।

✨7 अभिप्रेरणा अधिगम की अनिवार्य शर्त है।

जितनी अच्छी अभिप्रेरणा होगी उतना अच्छा अधिगम होगा तथा साथ ही साथ छात्र में किसी भी चीज को सीखने का उत्साह ध्यान व रुचि उतनी ही अच्छी होगी।

मात्र आवश्यकता है किसी चीज को सीखने के लिए अभिप्रेरणा नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ कुछ और ध्यान और रुचि भी है जिससे हम अधिगम को पाना चाहते हैं या अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना चाहते हैं।

आवश्यकता के साथ-साथ अवरोधक भी एक अभिप्रेरणा का कार्य करता है जब भी हमारे अधिगम के बीच में कुछ अवरोध यह रुकावट है या परेशानी आ जाती हैं तो इन अवरोधों को पार करने के लिए हम अभी प्रेरित रहते हैं अर्थात अवरोध अभिप्रेरणा के रूप में कार्य करता है जिससे हम अधिगम को प्राप्त कर लेते हैं।

✨8 कक्षा का वातावरण या माहौल भी सीखने को प्रभावित करता है इसमें कक्षा का भौतिक वातावरण भी महत्वपूर्ण है।

भौतिक वातावरण जैसे प्रकाश, वायु ,सुगंध बैठने की उचित व्यवस्था, ध्यान भंग करने वाली चीजें इत्यादि महत्वपूर्ण होती हैं।

✨9 मनोवैज्ञानिक वातावरण भी महत्वपूर्ण है मनोवैज्ञानिक वातावरण जैसे स्नेह ,सहयोग इत्यादि।

✨10 यह सिद्धांत रटने का विरोध करता है क्योंकि यह अंतर्दृष्टि पर बल देता है।

किसी भी प्रकार का ज्ञान मस्तिष्क में जबरदस्ती  डालने की कोशिश नहीं करना चाहिए तथा शिक्षक को शिक्षण विधि को सुग्राह्य या आसानी से समझने योग्य या सरलता या प्रभावी बनाना चाहिए।

✨11 यह सिद्धांत व्यक्ति को महत्व देता है।

यह बच्चे की स्व आवश्यकता, स्व इच्छा ,स्व क्षमता  स्व कमी, स्व वातावरण, स्व उद्देश्य  इन सब से परिचित होना जरूरी है।

यदि बच्चा इन सभी चीजों से स्वयं परिचित होगा जिससे वह यह समझ पाएगा कि उसमें क्या कमी है या किस की आवश्यकता है और क्या सुधार किया जाना चाहिए जिससे वह वृद्धि या सही तरीके से अधिगम कर पाए।

✨12 यह सिद्धांत अवरोध को स्वीकार करता है।

लेविन के अनुसार व्यक्ति लक्ष्य तक पहुंचने के लिए छोटे से छोटा रास्ता अपनाना चाहता है जिससे वह अपने लक्ष्य तक शीघ्रता से पहुंचने की कोशिश करता है।

यदि हम छोटे छोटे रास्ते या जल्दबाजी की वजह से लक्ष्य तक पहुंच भी गए तो हम कभी भी अपने लक्ष्य के हिसाब से कुछ भी बेहतर नहीं कर पाएंगे।

हर व्यक्ति को उचित क्षेत्र में रखने के लिए सशक्त अवरोध की भी आवश्यकता है।

✍️

    Notes By-‘Vaishali Mishra’

कर्ट लेविन के सिद्धांत की कमियां

1. लेविन ने गणित के शब्द की बात की जैसे क्षेत्रफल, जीवन विस्तार, तलरूप ,शक्ति ,संतुलन

वास्तव में इन शब्दों को समझना बहुत कठिन है।

2. यह सीखने के सिद्धांत के रूप में विकसित नहीं हुआ।

इसमें अभिप्रेरणा ,प्रत्यक्षीकरण की बात की गई।

हालांकि लेविन अपने सिद्धांत का उपयोग सीखने की परिस्थिति में करना चाहते हैं।

3. वातावरण की शक्ति मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। – लेविन के अनुसार

क्या व्यक्ति की आंतरिक इच्छाऐ ,आवश्यकता   उसके व्यवहार को प्रभावित नहीं करती हैं?

बिल्कुल करती हैं।

4. वास्तव में यह सिद्धांत अधिगम का सिद्धांत नहीं है बल्कि मानवीय अभिप्रेरणा के अध्ययन से संबंधित है।

5. यह  अनुभव से ज्यादा व्यवहार पर बल देता है।

कर्ट लेविन के क्षेत्र सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता

1. व्यक्तित्व का अध्ययन, सामाजिक मनोविज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

2. सीखना जीवन क्षेत्र को छोटे-छोटे क्षेत्र में बांटकर सीखने की प्रक्रिया है।

3. शिक्षण का विशेष महत्व है शिक्षक को चाहिए कि सीखने के लिए उचित वातावरण प्रस्तुत करें।

4. इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षक को प्रभावकारी ढंग से उसके  ( बालक के) वातावरण, उसकी आवश्यकता ,रुचि, दृष्टिकोण ,सीमा, क्षमता को समझना चाहिए।

5. शिक्षक को ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे कि छात्रों के प्रत्यक्षीकरण का क्षेत्र विस्तृत हो। जिससे जीवन लंबा चौड़ा हो जाए।

6. बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षक को जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।

 जिससे हर संभव प्रयास होगा कि छात्र हताशा, निराशा, तनाव से दूर रहे।

7. अभिप्रेरणा, अधिगम की अनिवार्य शर्त हैं।

जितना अच्छी अभिप्रेरणा होगी उतना ही अच्छा सीखना होगा।

अभिप्रेरणा  से छात्र के सीखने में उत्साह होगा, उसका ध्यान ,रुचि आदि होगा।

8. कक्षा का वातावरण सीखने को प्रभावित करता है इसमें कक्षा का भौतिक वातावरण भी महत्वपूर्ण होता है भौतिक वातावरण में उपयुक्त प्रकाश ,अच्छी वायु, सुगंधित वातावरण, बैठने की उचित व्यवस्था , अच्छा श्यामपट्ट आदि आते हैं।

मनोवैज्ञानिक वातावरण में सहयोग ,स्नेह आदि आते हैं।

9. रटने का विरोध करता है क्योंकि अंतर्दृष्टि पर बल देता है 

मस्तिष्क में जबरदस्ती ज्ञान डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

शिक्षण विधि को सुग्राही ( जिसे आसानी से ग्रहण किया जा सके) बनाना चाहिए।

10.  यह सिद्धांत व्यक्ति को महत्व देता है

इससे व्यक्ति की  स्वआवश्यकता,स्वक्षमता,स्वकमी, स्व वातावरण,स्व उद्देश्य इन सब से परिचित होना जरूरी है।

11. अवरोध को स्वीकार करता है अर्थात यदि बच्चा शॉर्टकट अपनाना चाहता है अर्थात परीक्षा में नकल करता है तो उसे उपयुक्त या वांछनीय या जरूरी दंड या अवरोध दिया जाता है।

व्यक्ति को उचित क्षेत्र में रखने के लिए सशक्त अवरोध की आवश्यकता होती है।

Notes by Ravi kushwah

*कर्ट लेविन के सिद्धांत की कमियां*

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

1. कर्ट लेविन ने गणित के शब्द की बात की जैसे क्षेत्रफल, जीवन विस्तार, तल रूप, शक्ति, संतुलन आदि।

          वास्तव में इन शब्दों को समझना बहुत कठिन है।

2. यह सीखने के सिद्धांत के रूप में विकसित नहीं हुआ बल्कि इसमें अभिप्रेरणा, प्रत्यक्षीकरण की बात की गई है।

             हालांकि लेविन अपने सिद्धांत का उपयोग सीखने की परिस्थिति में करना चाहते हैं।

3.  लेविन कहते हैं कि वातावरण की शक्ति मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करती है।

क्या व्यक्ति की आंतरिक इच्छाएं, आवश्यकताएं उनके व्यवहार को प्रभावित नहीं करती है?

बिल्कुल करती है।

4. वास्तव में यह सिद्धांत अधिगम का सिद्धांत नहीं बल्कि मानवीय अभिप्रेरणा के अध्ययन से संबंधित है।

5. यह सिद्धांत अनुभव (अधिगम) से ज्यादा व्यवहार(अभिप्रेरणा) पर बल देता है।

*कर्ट लेविन के सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता*

💫💫💫💫💫💫💫💫💫

1. व्यक्तित्व का अध्ययन, सामाजिक मनोविज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है

2. सीखना, जीवन क्षेत्र को छोटे-छोटे क्षेत्र में  बाटकर सीखने की प्रक्रिया है।

3. शिक्षण का विशेष महत्व है, शिक्षक को चाहिए कि सीखने के लिए उचित वातावरण प्रस्तुत करें।

4. इस सिद्धांत के अनुसार,

 शिक्षक को प्रभावकारी ढंग से उसके वातावरण, उसकी आवश्यकता, रूचि, दृष्टिकोण, सीमा, क्षमता को समझना चाहिए।

5. शिक्षक को ऐसे प्रयास करना चाहिए जिसमें कि छात्रों के प्रत्यक्षीकरण का क्षेत्र विस्तृत हो। जिससे जीवन लंबा चौड़ा हो जाए।

6. बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षक को जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। हर संभव प्रयास होना चाहिए कि छात्र हताशा, कुंठा, निराशा, तनाव से दूर रहे नहीं तो छात्र से अच्छे अधिगम की उम्मीद करना बेकार है।

7. अभिप्रेरणा अधिगम की अनिवार्य शर्त है। जितना अच्छा अभिप्रेरणा (छात्र के सीखने में उत्साह, ध्यान, रूचि इत्यादि)  होगा उतना अच्छा सीखना।

8. कक्षा का वातावरण सीखने को प्रभावित करता है। इसमें कक्षा का भौतिक वातावरण भी महत्वपूर्ण है। जैसे प्रकाश, वायु , बच्चों के बैठने की उचित व्यवस्था इत्यादि।

        मनोवैज्ञानिक वातावरण में सहयोग, स्नेह आदि आते हैं।

9. यह सिद्धांत रटने का विरोध करता है क्योंकि अंतर्दृष्टि पर बल देता है।

मस्तिष्क में जबरदस्ती ज्ञान डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि कोशिश करनी चाहिए कि शिक्षण विधि का प्रयोग करके अधिगम को सुग्राह्य बनाया जाए।

10. यह सिद्धांत व्यक्तित्व को महत्व देता है। बच्चे को स्व -आवश्यकता, स्व- क्षमता, स्व -कमी , स्व- वातावरण, स्व- उद्देश्य आदि सब से परिचित होना जरूरी है।

11. यह सिद्धांत अवरोध को स्वीकार करता है। इसके अनुसार बच्चा शॉर्टकट अपनाना चाहता है। जैसे- परीक्षा में नकल करना। ऐसे में बच्चे को दंड (अवरोध) देना आवश्यक है।

अर्थात व्यक्ति को उचित क्षेत्र में रखने के लिए सशक्त अवरोध की आवश्यकता होती हैं।

*Notes by Shreya Rai* ……. ✍️🙏

April 2021 Covid (Coronavirus) different Symptoms and Treatment

कोरोना महामारी का दौर चल रहा है यह अतिआवश्यक जानकारी है।

In April 2021 Covid (Corona) different Symptoms and Treatment

*शरीर में ब्लड प्रेशर.*

*120 / 80 — Normal*
*130 / 85 — Normal (Control)*
*140 / 90 — High थोड़ा बढ़ा हुआ*
*150 / 95 — Very High बहुत ज्यादा*

*Oxygen Leval)*
*ऑक्सिजन लेव्हल*

ऑक्सिजन ऑक्सिमीटर से चेक करने पर..
*94 – Normal*
*95, 96, 97 se 100 oxygen level बहुत अच्छा.*
*90 ते 93 ऑक्सिजन लेव्हल जरा कम*
*80 ते 89 ऑक्सिजन लेव्हल बहुत कम* डॉक्टर की सलाह पर एडमिट होना चाहिए.

*PULSE*

*72 Per Minute (Standard) बहुत अच्छा.*
*60 — 80 P.M. (Normal) मध्यम*
*90 ते 120 Pulse बढ़ा हुआ*

*TEMPERATURE*

डिजिटल थरमामीटर से चेक करने पर .

*92 ते 98.6 F (Fever) तक बुखार नही (Normal)*
*99.0 F थोडा बुखार*
*100 .F से 102 F ज्यादा बुखार*
HRCT या chest CT SCAN करने पर.
1. HRCT score: 0 – 8 (Mild Infection).
2.HRCT score: 9 – 18 (Moderate Infection).
3. HRCT score: 19 – 25 गंभीर (Severe Infection) .

उपचार :
1. Mild infections में नार्मल मेडिसिन से ठीक हो सकते है.
2. सेवियर इंफेक्शन के लिए ऑक्सिजन और वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है

HRCT Score मतलब क्या ?
कोरोना इन्फेक्शन के कारण ऑक्सिजन अब्सॉर्ब करने वाली थैलियो पर सूजन आकर उनमें कफ। पानी भरना।
CT SCAN करते समय लंग के 25 भाग करके उसमें से कितने भाग इन्फेक्टेड है यह देखकर उसका स्कोर निकला जाता है।
अर्थात जितना ज्यादा स्कोर उतना ऑक्सीजन लेने में दिक्कत और उतना ही रिस्क ज्यादा।

In April 2021 Covid (Corona) different Symptoms and Treatment

*कोरोना के लिए घर पर आवश्यक चिकित्सा किट:–*

1. पारासिटामोल या डोलो 650 mg SOS leve

2. बीटाडीन गार्गल माउथवॉश के लिए गुनगुने पानी के साथ

3. विटामिन सी जैसे
Tab Limcee 500mg चूसने की दिन में 3 या 4 बार ।।ये बहुत ही शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है बहुत ही कारगर है इममुनिटी बढ़ाता है ।।वायरस को असक्रिय कर देती हैं।

और
Tab विटामिन D3 60k
सप्ताह में एक 4 सप्ताह तक

4.Tab बी कॉम्प्लेक्स साथ मे मल्टीविटामिन एव ट्रेस एलिमेंट्स
जैसे Neurokind plus
रोज एक 10 से 15 दिन तक
इममुनिटी के लिये

5. भाप लेवे -गले मे खराश ठीक एव वायरल लोड कम कर वायरस को असक्रिय कर देता है

6. पल्स ऑक्सीमेटर रखे ऑक्सिजन लेवल देखने के लिए
नॉर्मल 90 से ऊपर होना चाहिए

7. ऑक्सीजन सिलेंडर (केवल आपातकाल के लिए)

8. सास लेने में तकलीफ होतो उल्टा पीठ के बल सोये जिससे फेफड़ो में ऑक्सिजन सर्कुलेशन बढ़ जाता हैं
9 गुनगुने पानी मे नमक के गरारे कर एव गुनगुने पानी मे निम्बू निचोड़ कर दिन में 3 या 4 बार पिये

गहरी साँस लेने के व्यायाम करे

*कोरोना के तीन चरण:-*

1. *केवल नाक में कोरोना* –
रिकवरी का समय आधा दिन होता है,
इसमें आमतौर पर बुखार नहीं होता है और
इसे *असिम्टोमाटिक कहते है |*
इसमें क्या करे :-
स्टीम इन्हेलिंग करे व विटामिन सी लें |

2. *गले में खराश* –
रिकवरी का समय 1 दिन होता है
इसमें क्या करे : –
गर्म पानी का गरारा करें, पीने में गर्म पानी लें, निम्बू पानी लेवे
अगर बुखार हो तो पारासिटामोल लें |
अगर गंभीर हो तो विटामिन सी, बी.
कम्पलेक्स ,डी और एंटीबायोटिक लें |

3. *फेफड़े में खांसी* –
4 से 5 दिन में खांसी और सांस फूलना।
इसमें क्या करें :
गर्म पानी का गरारा करें, पीने में गर्म पानी लें, निम्बू पानी लेवे
विटामिन सी, बी कॉम्प्लेक्स, पारासिटामोल ले
और गुनगुने पानी के साथ नींबू का सेवन करे|
पल्स ऑक्सिमीटर से अपने ऑक्सीजन लेवल की
जाँच करते रहे | अगर आपके पास ऑक्सीमेटर
नहीं हो तो आप किसी भी दवा दुकान से खरीद ले
अथवा
गहरी साँस लेने का व्यायाम करे
अगर समस्या गंभीर हो तो ऑक्सीजन
सिलिंडर मंगाए और डॉक्टर से ऑनलाइन
परामर्श ले |
बहुत ज्यादा तकलीफ होतो एंटीवायरल मेडिसिन चिकित्सक परामर्श से लेवे।

In April 2021 Covid (Corona) different Symptoms and Treatment

*अस्पताल जाने के लिए स्टेज:*
ऑक्सिमीटर से अपने ऑक्सीजन लेवल की
जाँच करते रहे। यदि यह 92(सामान्य 95-100) के
पास जाता है और आपको कोरोना के लक्षण
(जैसे की बुखार, सांस फूलना इत्यादि) हैं तो
आपको ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता
होती है। इसके लिए तुरंत नजदीकी स्वास्थ
सेवा केंद्र पे संपर्क करे व परामर्श ले |

*स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें!*
कृपया अपने परिवार और समाज का
ख्याल रखें | घर पे रहे और सुरक्षित रहे |
*ध्यान दें:*
कोरोनावायरस का pH 5.5 से 8.5 तक
होता है
इसलिए, वायरस को खत्म करने के लिए
हमें बस इतना करना है कि वायरस की
अम्लता के स्तर से अधिक क्षारीय खाद्य
पदार्थों का सेवन करें।
*जैसे कि:*

– *केले*
– *हरा नींबू – 9.9 पीएच*
– *पीला नींबू – 8.2 पीएच*
– *एवोकैडो – 15.6 पीएच*
– *लहसुन – 13.2 पीएच*
– *आम – 8.7 पीएच*
– *कीनू – 8.5 पीएच*
– *अनानास – 12.7 पीएच*
– *जलकुंड – 22.7 पीएच*
– *संतरे – 9.2 पीएच*

*कैसे पता चलेगा कि आप*
*कोरोना वायरस से संक्रमित हैं .?*

1. *गला सुखना*
2. *सूखी खांसी*
3. *शरीर का उच्च तापमान*
4. *सांस की तकलीफ*
5. सिर दर्द
६. बदन दर्द

गर्म पानी के साथ नींबू पीने से वायरस
फेफड़ों तक पहुँचने से पहले ही खत्म
हो जाते हैं |

In April 2021 Covid (Corona) different Symptoms and Treatment

Thank You. Share to your family and Friends.

Education psychology part 3

शिक्षा मनोविज्ञान पार्ट -3

मनोविज्ञान शब्द का प्रयोग सबसे पहले रूडोल्फ गोयकल ने किया था
विलियम जेम्स ने दर्शनशास्त्र से मनोविज्ञान को मुक्त कराया था।
अमेरिका में मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स ही है।
1920 में थार्नडाइक , जुड़, टरमन,फ्रोबेल ने शिक्षा मनोविज्ञान का ओर स्पष्ट रूप पेश किया।
प्रथम शैक्षिक का मनोवैज्ञानिक थार्नडाइक को माना जाता है।
शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का सूत्रपात रूसो ने किया।
शिक्षा संस्कृत की शिक्ष् धातु से बना है।

रूसो के अनुसार
बालक एक पुस्तक के समान है जिसका अध्ययन प्रत्येक अध्यापक को करना चाहिए।

क्रो एंड क्रो के अनुसार
शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक एक व्यक्ति के सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करना है।

फ्रोबेल के अनुसार
शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी जन्मजात शक्तियों का विकास करता है।

Notes by Ravi kushwah

शिक्षा मनोविज्ञान

▪️मनोवैज्ञानिक शब्द का प्रयोग सबसे पहले “रूडोल्फ गोयकल” ने किया था।

▪️”विलियम जेम्स” ने दर्शनशास्त्र से मनोविज्ञान को मुक्त कराया।

▪️अमेरिका में मनोविज्ञान के जनक “विलियम जेम्स” ही है।

▪️शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की शाखा के अंतर्गत 1900 ई. मे उत्पन्न हुई।

▪️1920 में थोर्नडायक ,जुड़, टर्मन, फ्रोबेल ने शिक्षा मनोविज्ञान का और स्पष्ट रूप पेश किया।

▪️प्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक “थोर्नडायक” को माना जाता है।

▪️शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का सूत्रपात “रूसो” ने किया।

▪️शिक्षा संस्कृत की “शिक्ष” धातु से बना है।

✨रूसो के अनुसार

बालक एक पुस्तक के समान है जिसका अध्ययन प्रत्येक अध्यापक को करना चाहिए।

✨क्रो एंड क्रो के अनुसार

शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक एक व्यक्ति के सीखने के अनुभव का वर्णन की ओर व्याख्या करता है।

✨फ्रोबेल के अनुसार

शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी जन्मजात शक्तियों का विकास करता है।

✍️
Notes By-‘Vaishali Mishra’

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

🔆 शिक्षा मनोविज्ञान(Education Psychology)

💠 सर्वप्रथम शिक्षा मनोविज्ञान शब्द का प्रयोग रूडोल्फ गोयकल ने किया था |

💠 विलियम जेम्स ने दर्शनशास्त्र से मनोविज्ञान को मुक्त कराया था |

💠 अमेरिका में मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स ही हैं |

💠 शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की शाखा के अंतर्गत 1900 ईस्वी में उत्पन्न हुई |

💠 1920 में थार्नडाइक, जुड़, टरमन,,और फ्रोबेल, ने शिक्षा मनोविज्ञान का और स्पष्ट रूप पेश किया |
अर्थात मनोविज्ञान को शिक्षा का अभिन्न अंग बताते हुए उस पर कार्य करते हुए यह पता लगाया कि मनोविज्ञान से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है मनोविज्ञान को शिक्षा से कैसे जोड़ा जा सकता है तब 1920 में उन्होंने मनोविज्ञान की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि शिक्षा में शिक्षा मनोविज्ञान जरूरी जिसको दैनिक जीवन से जोड़ा जा सकता है |

💠 प्रथम शैक्षिक मनोविज्ञान
” थार्नडाइक ” को माना जाता है|

💠 शिक्षा में मनोविज्ञान दृष्टिकोण का सूत्रपात
” रूसो “ने किया था |

💠 शिक्षा “संस्कृत” भाषा की “शिक्ष” धातु से बना है |

💠 रूसो के अनुसार ➖

बालक एक पुस्तक के समान है जिसका अध्ययन प्रत्येक शिक्षक को करना चाहिए |

💠 क्रो और क्रो के अनुसार ➖

शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक एक व्यक्ति के अनुभवों का वर्णन करता है |

💠 फ्रोबेल के अनुसार ➖

शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी जन्म जन्मजात शक्तियों का विकास करता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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शिक्षा मनोविज्ञान (education psychology)

💫💫💫💫💫💫💫💫

➡️ “मनोविज्ञान” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रुडोल्फ गोयकल ने किया था।

➡️ विलियम जेम्स ने दर्शनशास्त्र से मनोविज्ञान को मुक्त कराया था।

➡️ अमेरिका में “मनोविज्ञान के जनक” विलियम जेम्स को माना जाता है।

➡️ शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की शाखा के अंतर्गत 1900 ई. में उत्पन्न हुई।

➡️ 1920 ई. में थार्नडाइक,जुड़, टर्मन, फ्रॉबेल ने शिक्षा मनोविज्ञान का और स्पष्ट रूप पेश किया।

➡️ प्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक Thorndike को माना जाता है।

➡️ शिक्षा में मनोविज्ञान दृष्टिकोण का सूत्रपात रूसो ने किया था।

➡️ शिक्षा संस्कृत की “शिक्ष्” धातु से बना है।

परिभाषाएं 💫💫💫💫💫

रुसो के अनुसार………✍️

“बालक एक पुस्तक के समान है जिसका अध्ययन प्रत्येक अध्यापक को करना चाहिए।”

क्रो व क्रो के अनुसार……..✍️

“शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक एक व्यक्ति के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।”

फ्रोवेल के अनुसार………✍️

“शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी जन्मजात शक्तियों का विकास करता है।”

Notes by Shreya Rai ✍️🙏

Teaching methodology part 3

▪️शिक्षण कौशल कई तरीकों से या अलग-अलग रूपों में या भिन्न-भिन्न रूपों में किया जाता है यदि शिक्षण की तरह का होगा तो वह ना ही प्रभावी या असरदार होगा ।

▪️हम सभी प्राणी में व्यक्तिक भिन्नता पाई जाती है इसमें प्रत्येक प्राणी प्रत्येक कार्य को अलग-अलग तरीके से करते हैं इसीलिए इन व्यक्तिक भिन्नता को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को विभिन्न रूप से या अलग-अलग रूप में शिक्षण कौशल को अपनाना चाहिए।

▪️जिसमे भिन्न-भिन्न तरीकों से समझा जा सके इसीलिए शिक्षण कौशलों को कई प्रकारों में बांटा गया है जिसमें से अलग-अलग प्रकार के बच्चे जैसे कुछ समस्यात्मक, कुछ प्रतिभाशाली कुछ विशिष्ट इत्यादि इन सभी विभिन्नताओ को ध्यान में रखना उतना ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना कि शिक्षक के लिए किसी विषय का ज्ञान।

❇️अलग अलग तरीके के शिक्षण कौशल क्यों अपनाना आवश्यक है? ➖

▪️शिक्षक को मात्र विषय का ज्ञान ही नहीं बल्कि इसके साथ-साथ शिक्षण करने का तरीका या विधि भी जानना तथा उसे अपनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

▪️शिक्षकों अपनी कक्षा कक्ष में शिक्षा का एक ऐसा वातावरण या माहौल तैयार करके रखना होता है जिसमें सभी छात्र की पूर्ण रूप से रूचि हो तथा सभी का ध्यान शिक्षक के कार्यों की ओर आकर्षित हो तथा वह शिक्षक के कार्यों से प्रभावित हो ।
साथ ही साथ शिक्षक द्वारा बच्चों को प्रेरित किया जाए किसी भी व्यक्ति में प्रेरणा आवश्यकता के कारण उत्पन्न होती है लेकिन केवल आवश्यकता मात्र से ही प्रेरणा को उत्पन्न किया जाए यह जरूरी नहीं बल्कि यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो भी कार्य किया जा रहा है उसका तरीका कितना प्रभावी या असरदार या रुचि पूर्ण है।
क्योंकि यदि कार्य प्रभावित असरदार या रुचि पूर्ण होगा तभी हम उसके लिए अग्रसर रूप से प्रेरित रहेंगे।

▪️शिक्षण कौशल को कई प्रकारों में बांटा गया है जो कि निम्न अनुसार है।

⚜️1 खोज परक कौशल :-

▪️खोज प्रकार के प्रश्न पूछकर शिक्षक छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और साथ ही उन्हें प्रेरित कर सकता है।

▪️यदि बच्चे से खोजपरक या अनुसंधान या अन्वेषण प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं तो वह निश्चित ही मानसिक रूप से उस पर चिंतन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

▪️शिक्षक द्वारा एक ऐसा माहौल या वातावरण क्रिएट किया जाना चाहिए जिसमें बच्चे की पूर्ण रूप से सक्रिय भागीदारी रहे तथा किसी कारणवश कक्षा ना होने पर भी वह इतने मजबूर और बेसब्र या सकारात्मक रूप से उस कक्षा का इंतजार करें और उन्हें लगे कि कक्षा कब होगी ?

▪️छात्रों में रुचि और जिज्ञासा को उत्पन्न करने का सबसे उत्तम तरीका छात्र के पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को जोड़ देना है।

▪️पूर्व ज्ञान जो हम दैनिक जीवन से जोड़कर या जो पूर्व में घटित हो चुका है उससे रिलेट करके या जोड़कर बच्चे को नवीन ज्ञान जो कि शिक्षक द्वारा दिया जाना है उसे समझाया या पढ़ाया जाए तो बच्चे में रुचि और जिज्ञासा की भावना उत्पन्न होती है।

▪️क्योंकि जब हम किसी चीज के बारे में पूर्व में जानते हैं तो उस चीज या कार्य या विषय में हमारी विशेष रूचि और जिज्ञासा उत्पन्न रहती है।

▪️जिस भी विषय को समझाना है उसे विधार्थी के पूर्व ज्ञान से जोड़ने के फल स्वरुप विद्यार्थी किसी भी विषय पर चिंतन करने लगते हैं और उस पर अनेक प्रकार से सोचने पर मजबूर हो जाते हैं।

✨ खोज परक प्रश्न कौशल के घटक :-

▪️यहां घटक से तात्पर्य है कि जिसकी मदद से इस खोज प्रश्न कौशल को पूरा किया जा सके।

🔹यह घटक निम्नानुसार है।

🌀 1 संकेत देना
🌀2 विस्तृत सूचना प्राप्ति
🌀3 पुनः केंद्रीकरण
🌀 4 पुनः प्रेषण
🌀 5 आलोचनात्मक सजगता

🌺 1 संकेत देना :-

▪️कक्षा में विद्यार्थी जिस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थता प्रकट करते हैं तो उनसे शिक्षक द्वारा ऐसे प्रश्न पूछे जाए जिसमें पहले प्रश्न का हल ढूंढने में सहायता मिले।

▪️बच्चे को प्रश्न से संबंधित किसी प्रकार का संकेत या हिंट या क्लू या इशारा दिया जा सके जिससे वह उसकी सहायता से इस प्रश्न का उचित व सही उत्तर दे पाए।

🌺 विस्तृत सूचना प्राप्ति :-

▪️विद्यार्थी कक्षा कक्ष में किसी प्रश्न का पूर्ण रूप से उत्तर नहीं दे पाता है और कभी-कभी कुछ हद तक सही होता है तब इस स्थिति में सही उत्तर प्राप्त करने के लिए शिक्षक को इस प्रकार के प्रश्न कर सकता है कि उत्तर तो छात्र दिया बता दिया जाए लेकिन उसका वर्णन विश्लेषित रूप से या विस्तृत रूप से दिया जाए।

▪️अर्थात उत्तर सही है लेकिन विस्तृत नहीं है तो बच्चों को विस्तृत रूप से समझाने के लिए शिक्षक द्वारा प्रेरित किया जाए।

▪️जब शिक्षक द्वारा प्रेरित किया जाता है तो छात्र अपने दिमाग के डेटाबेस या अपने दिमाग में संरक्षित डांटा को खंगालते हैं या उसका विश्लेषण कर कर उस पर चिंतन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

🌺 पुनः केंद्रीकरण:-

▪️कई बार कक्षा कक्ष में छात्र द्वारा किसी भी प्रश्न का उत्तर विस्तृत रूप से दे देने पर भी उनमें गहराई नहीं होती है तथा शिक्षण पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं होते है।

▪️इस समय शिक्षा विद्यार्थियों का ध्यान अपनी परिस्थिति की ओर आकर्षित कर सकते हैं जिससे वैसी समस्या पैदा हो समस्या से तात्पर्य जो हम सीखना चाहते हैं या अधिगम करना चाहते हैं उसके फल स्वरुप अधिगम का स्थानांतरण संभव हो सके।

▪️अर्थात अगर शिक्षक बच्चे की उत्तर से संतुष्ट ना हो तो अपनी परिस्थिति की ओर आकर्षित करें जिसमें वैसी समस्या पैदा हो ताकि अधिगम स्थानांतरण हो सके।

🌺 4 पुनः प्रेषण :-

▪️शिक्षक कक्षा कक्ष में एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर या दोहरा कर छात्र द्वारा अलग-अलग प्रकार के उत्तर को प्राप्त करने की कोशिश करता है।

▪️जिससे शिक्षक हर बार यह देखता है कि किस बार में कुछ नया है ,कुछ बेहतर है। जब बच्चे को किसी चीज पर या विषय पर बार-बार प्रश्न पूछा जाता है तो बच्चे उस पर अपना चिंतन व तर्क लगाते हैं।
▪️जब भी बच्चे किसी चीज को या विषय पर सोचेंगे तब वह अपने आधारित सोच से बाहर निकलकर कुछ अलग तरीके से या नए तरीके से सोचते व चिंतन करते हैं तथा उस पर अपना तर्क लगाते हैं।

▪️हमारे चेतन मन में जो भी चीजें होती हैं हम उसी के हिसाब से मतलब चेतन मन के हिसाब से चीजों का हल निकालते हैं लेकिन जब मुश्किल है या परेशानी या कोई ड्रॉबैक सामने आते हैं तो हम उस परेशानी या मुश्किल या ड्रॉबैक के प्रेशर या दबाब के साथ उस विषय पर सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप बच्चों की चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति को विकसित किया जा सकता है।

▪️तथा साथ ही साथ शिक्षक द्वारा बच्चों की अधिक से अधिक प्रतिभागिता को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं।

▪️जब बच्चे की प्रतिभागिता रहती है तो वह एक ही प्रश्न के लिए वह सभी चीजों को देखता है और उस पर अपना दिमाग लगाता है और उचित तरीके से विचार करके उसका विश्लेषण करते हुए उसका उत्तर दे देता है।

▪️अर्थात शिक्षक एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर उनमें चिंतन और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं जिससे विद्यार्थियों की प्रतिभागिता को प्रोत्साहन मिलता है।

🌺 5 आलोचनात्मक सजगता:-

▪️क्यों? कैसे ?क्यों नहीं? इन सभी बातों पर बच्चे को अपनी टिप्पणी करने के लिए बोला जाता है।

▪️बच्चे से पूछा जाए कि क्यों ऐसा लगता है? कैसे यह ऐसे हो सकता है ? और क्यों नहीं हो सकता इस तरह के प्रश्न पूछे जाए।

▪️ बच्चे इन सभी बातों का उत्तर अपने किसी ना किसी सकारात्मक सोच या मानसिक स्थिति के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयुक्त कर ता है।

▪️आलोचनात्मक सजगता से यह पता किया जा सकता है कि किसी भी विषय में छात्र की कितनी परिपक्वता है और उस परिपक्वता को धीरे धीरे किस ओर या किस प्रकार से विकसित किया जा सकता है।

▪️अर्थात बच्चों में क्यों? कैसे? इन बातों से प्रश्न पूछने से विश्लेषण की क्षमता बढ़ती है।

✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'

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📛 शिक्षण कौशल के प्रकार

🎾 खोजक प्रश्न कौशल➖

खोजक प्रश्न कौशल को अन्वेषण, खोज या अनुसंधान विधि के नाम से भी जाना जाता है |

इसमें शिक्षक बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछता है जिसमें बच्चों को खोज करना पड़ता है या उनके मन या मस्तिष्क में अमूर्त प्रकार से कार्य करने की शक्ति का विकास होता है |

खोजक प्रश्न कौशल के माध्यम से शिक्षक छात्रों के ध्यान को अपनी ओरआकर्षित कर सकते हैं और बच्चों को प्रेरित कर सकते हैं |

बच्चों में रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए बच्चे के पूर्व ज्ञान को नए ज्ञान से जोड़ सकते हैं और उनमें रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न की जा सकती है यदि ऐसा हुआ तो विद्यार्थी चिंतन करने लगते हैं और अनेक प्रकार से सोचने पर मजबूर हो जाती है अर्थात उनके मन में अमूर्त रूप से तर्क करने की शक्ति का विकास हो जाता है |

🎯 खोजक प्रश्न कौशल के घटक ➖

💠 संकेत देना➖

कक्षा में विद्यार्थी जिन प्रश्नों को हल करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करता है या प्रश्न को करने में विद्यार्थी चिंतन या तर्क नहीं कर पाता है |
तो ऐसी स्थिति में शिक्षक बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछे जिससे बच्चे को अपने पहले प्रश्न का हल खोजने में सहायता मिले |
ऐसी स्थिति में बच्चों के मन में अपने स्वयं के प्रति दृढ़ निश्चय और शिक्षक के प्रति एक विश्वास उत्पन्न होता है |

💠 विस्तृत सूचना प्राप्ति ➖

शिक्षक कक्षा में बच्चों से यदि प्रश्न करता है और बच्चे उस प्रश्न को हल नहीं कर पाते हैं तो शिक्षक बच्चों को संकेत देते हुए यदि बच्चों से कहता है कि आपका उत्तर सही है लेकिन विस्तृत नहीं है और बच्चे को विस्तृत रूप से समझाने के लिए प्रेरित करते हैं |
तब बच्चे अमूर्त चिंतन के माध्यम से प्रश्न का विस्तारित रूप खोजने में अपनी सोच/ तर्क का प्रयोग करते हैं उस प्रश्न को अपने अनुसार अपने स्तर पर खोजने का प्रयास करते हैं और प्रश्न का विस्तारित रूप प्राप्त करते है |

💠 पुनः केन्द्रीकरणं ➖

यदि शिक्षक कक्षा में बच्चों से प्रश्न करता है और बच्चे प्रश्न का उत्तर देते हैं लेकिन शिक्षक बच्चे के उत्तर से संतुष्ट नहीं हो पाता है तो ऐसी स्थिति में शिक्षक बच्चों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए कक्षा में ऐसा माहौल तैयार करता है , बच्चों के समक्ष ऐसी समस्या या परिस्थिति उत्पन्न करति है ताकि बच्चे प्रश्न की खोज कर सकें ,चिंतन कर सके विचार विमर्श कर सकें अर्थात कक्षा में एक्टिव हो सकें |
तो ऐसी परिस्थिति में यदि शिक्षक बच्चों के समक्ष ऐसी समस्या उत्पन्न करता है जिससे कि बच्चे समस्या का हल खोजने में चिंतन करते हैं अपनी अमूर्त शक्ति का प्रयोग करते हैं तो उनकी अधिगम का स्थानांतरण होता है |
अर्थात शिक्षक को बच्चों के समक्ष ऐसी समस्या उत्पन्न करना चाहिए जिससे कि उनके अधिगम का स्थानांतरण हो सके |

💠 पुनः प्रेषण ➖

यदि शिक्षक बच्चों से एक ही प्रश्न को बार बार नए तरीके से पूछ कर उन्हें चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं जिससे विद्यार्थियों की प्रतिभागिता, सृजनात्मकता या रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है या उनकी प्रतिभागिता को प्रोत्साहित करते हैं तो बच्चों का तर्क और अमूर्त चिंतन होता है |

💠 आलोचनात्मक चिंतन ➖

आलोचनात्मक चिंतन के माध्यम से बच्चों में शिक्षक क्यों, कैसे या अन्य प्रकार के प्रश्नों को बढ़ावा देकर वह आलोचनात्मक सजगता को बढ़ावा दे सकता है अर्थात प्रश्न के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए उन प्रश्नों को हल करने में शिक्षक बच्चों की मदद करता है जिससे शिक्षक उनमें आलोचनात्मक सजगता को विकसित करता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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शिक्षण कौशल के प्रकार

शिक्षण कौशल कई प्रकार के होते हैं

शिक्षण कौशल कई प्रकार के क्यों होते हैं?🤔🤔

एक शिक्षक को बच्चों को पढ़ाते समय दो बातें आवश्यक हैं पहली कि वह जिस विषय वस्तु को पढ़ा रहा है उसका शिक्षक को ज्ञान है या नहीं
दूसरी कि वह विषय वस्तु को जिस तरह पढ़ाता है बच्चों को किस तरह सिखाता है उसका सिखाने का तरीका क्या है।
अर्थात क्या पढ़ाना है और कैसे पढ़ाना है?

वैयक्तिक विभिन्नता के कारण प्रत्येक बच्चा अलग-अलग प्रकार से सीखता है। इसीलिए शिक्षक को पढ़ाते समय अलग-अलग प्रकार के तरीकों का उपयोग करना होता है ताकि सभी बच्चे को समझ में आए और सभी सीख सकें।

इसी कारण शिक्षण कौशल अनेक प्रकार के होते हैं।

  1. खोजक प्रश्न कौशल- इस कौशल में अध्यापक खोजक प्रकार के प्रश्न पूछ कर छात्रों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं।
    अध्यापक छात्रों को प्रेरित कर सकता है।
    इस कौशल के द्वारा छात्रों में रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए उनके पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को जोड़ा जाता है।
    जब बच्चों से अनेक प्रकार के खोजक प्रश्न पूछते हैं तो बच्चे उनका जवाब देने के लिए विभिन्न प्रकार से चिंतन करते हैं और वह अनेक प्रकार से सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

खोजक प्रश्न कौशल के घटक

  1. संकेत देना- जब कक्षा में विद्यार्थी जिस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थता जताते हैं तो शिक्षक द्वारा ऐसे प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिससे कि पहले प्रश्न का हल ढूंढने में मदद मिले।

अर्थात् संकेत देने को हम अपनी भाषा में हिंट देना भी बोल सकते हैं।
जैसे बचपन में अध्यापक हमसे पूछते थे कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का नाम क्या है तो हम बताते थे कि डॉ राजेंद्र प्रसाद
लेकिन उसी समय हमारे अध्यापक हमसे दूसरा प्रश्न पूछते थे किस देश के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे तब हम जवाब देते कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इस प्रकार हमें देश के प्रथम प्रधानमंत्री का नाम पंडित जवाहरलाल नेहरू याद आ जाता था।

  1. विस्तृत सूचना प्राप्ति- अध्यापक द्वारा पूछे गए प्रश्न का विद्यार्थी द्वारा प्रश्न का उत्तर सही दिया गया है लेकिन विस्तार से नहीं बताया गया है।
    तो बच्चे को विस्तृत उत्तर देने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  2. पुनः केंद्रीकरण- अगर शिक्षक बच्चे के उत्तर से संतुष्ट नहीं हो तो शिक्षक द्वारा वैसी परिस्थिति उत्पन्न करके बच्चे का ध्यान आकर्षित करें जिससे वैसी समस्या पैदा होगी और बच्चा दोबारा से चिंतन करके उसका उत्तर संगठित रूप से दे और बच्चे में अधिगम का स्थानांतरण हो सके।
  3. पुनः प्रेषण- एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर उनमें चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं।
    अर्थात एक ही प्रश्न के अलग-अलग प्रकार से उत्तर पूछना।
    इससे विद्यार्थी की प्रतियोगिता को प्रोत्साहन मिलता है।
  4. आलोचनात्मक सजगता- आलोचना में हम किसी भी तथ्य के गुण और दोष के बारे में चर्चा करते हैं जानकारी प्राप्त करते हैं
    इससे बालकों में विश्लेषण क्षमता बढ़ती है।

Notes by Ravi kushwah

शिक्षण कौशल के प्रकार
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1. खोजक प्रश्न कौशल /अनुशीलन प्रश्न कौशल/खोज विधि/ अन्वेषण विधि

(Proving /discovery /explore question skill)

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जब शिक्षक शिक्षार्थियों से पाठ्यवस्तु से संबंधित कोई प्रश्न पूछते हैं और शिक्षार्थी प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ रहते हैं तो सही उत्तर प्राप्त करने के लिए शिक्षक जिन प्रश्नों की सहायता लेते हैं उन्हें खोजक प्रश्न कहते हैं।

अर्थात्

➡️ शिक्षक इस प्रकार के प्रश्नों को पूछ कर छात्रों का ध्यान कक्षा कक्ष में आकर्षित कर सकते हैं।

➡️ शिक्षक को चाहिए कि छात्रों को प्रश्नों के उत्तर को ढूंढने के लिए प्रेरित करें।

➡️ इस प्रकार के प्रश्न से छात्रों में रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए उसके पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को जोड़ देते हैं। जिससे विद्यार्थी चिंतन करने लगते हैं और अनेक प्रकार से सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और बच्चों में सृजनात्मकता/रचनात्मकता आती हैं।

उदाहरण,

  1. शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब शिक्षार्थियों द्वारा देने पर शिक्षक को चाहिए कि क्यों, कैसे आदि प्रश्न पूछे ( जैसे ऐसा क्यों हुआ? , यदि ऐसा नहीं होता तो क्या होता?)
  2. यदि आप अपने उत्तर से संतुष्ट हैं तो उसकी पुष्टि/ सत्यापन कीजिए।

खोजक प्रश्न कौशल के घटक

(Component of proving question skill)

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1. संकेत देना/अनुमोदन करना

जब छात्र, अध्यापक द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थता प्रकट करता है तो शिक्षक को छात्रों का आत्मविश्वास बनाए रखने एवं उनकी सहायता के लिए कुछ संकेत देता है अर्थात् इस प्रश्न का थोड़ा सा उत्तर बताते हुए छात्रों को प्रेरित करते हैं कि वह उस उत्तर को पूरा बताएं।

2. विस्तृत/अधिक सूचना प्राप्ति

जब छात्र, अध्यापक के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का अपूर्ण या आंशिक रूप से उत्तर देता है अध्यापक को चाहिए कि छात्र से कहें उत्तर सही है लेकिन विस्तृत नहीं है और प्रश्न के उत्तर को पूर्ण करने के लिए प्रेरित करें।

3. पुनः केंद्रीकरण

अगर शिक्षक बच्चों के उत्तर से संतुष्ट नहीं हो तो उस परिस्थिति की ओर आकर्षित करें जिससे वैसी समस्या पैदा हो ताकि अधिगम स्थानांतरण हो सके।

4. पुनः प्रेषण

शिक्षक, छात्रों से एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर उनमें चिंतन और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं।अर्थात एक ही प्रश्न के अलग-अलग उत्तर पूछना।

5. आलोचनात्मक सजगता

जब छात्रों के द्वारा सही उत्तर प्राप्त होने लगे तो शिक्षक को चाहिए कि क्यों, कैसे आदि प्रश्न पूछ कर छात्रों की सजगता का विकास करे। इससे छात्रों की चिंतन शक्ति /तर्कशक्ति का विकास होता है और उनमें आलोचनात्मक सजगता विकसित होती है।

Notes- by Shreya Rai ✍️🙏