Planning Method of Teaching

🔅योजना विधि- किसी काम को करने से पहले हम अपनी capacity,knowledge & time के according एक प्लान को निश्चित करते है। जैसे- हम अपनी पढ़ाई को पूरी करने के लिए unacedemy का subscription लिए अब किस समय मे किस educator से कैसे पढेंगे फिर कब मुझे self study करनी है ये सब का एक शेड्यूल बनेगे फिर उसके according पढ़ाई करेगे । 🔅इस योजना विधि में किलपेट्रिक के अनुसार- शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए (लक्ष्य निर्धारण) इसमे अनुभव (experience) होना जरूरी है ।जैसे- हम उस काम को सही तरीके से कर सकते है जिसमे हमारा अनुभव पहले से है। अगर हमारे पास पढ़ाने का अनुभव है तभी हम बच्चे को सही तरीके से पढ़ा सकते है या बालक को कैसे पढाये जिससे जल्दी समझ सके इसमे हमारा अनुभव help करता है। 🌸योजना विधि के गुण – योजना बनाने से हमारे अंदर अमूर्त्त सोच / तर्कशक्ति का विकास होता है। इससे हमारा काम सिस्टमेटिक तरीके से easy हो जाता है जिससे हमे संतुष्टि मिलती है। इसमें निरीक्षण करने की क्षमता बढ़ती है। योजना बनाने से समय की सदुपयोग होता है जिससे हमारे दिमाग पर बोझ नही लगता है। इसमें सहज रूप से किसी भी परिस्तिथियों को संभालने की क्षमता बढ़ती है।और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इसमें हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इसमे क्रियात्मक और सृजनात्मक क्षमता का गुण बढ़ता है। 🌸योजना विधि के सिद्धांत🌸- समस्या (टास्क) का उत्पन्न होना, कार्य को चुनना,योजना करना, योजना को क्रियान्वयन करना, कार्य का निर्णय और कार्य का निष्कर्ष (लेखा-जोखा) करना। 👉🏻बैकन के अनुसार:- गणित सभी विज्ञान का प्रवेश द्वार एवं कुंजी है। 👉🏻हॉगबैन के द्वारा :- गणित संस्कृति का दर्पण है। 👉🏻 बर्नार्ड शो के द्वारा :- तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शाक्तिशाली साधन है। 👉🏻 आईंस्टीन के द्वारा :- गणित उस मानव का प्रतिफल है,जो अनुभव से स्वतंत्र है और सत्य के अनुरूप है। 👉🏻पियर्स के द्वारा :- गणित एक विज्ञान ही है,जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकले जाते है। 🌸योजना विधि के दोष :- हर विषय मे योजना करके पढ़ाई नही हो सकती है। अगर planing करके काम नही कर पाते है तो replaning करके उस काम को कर सकते है। 🌸 पूजा कुमारी🌸


🔆योजना विधि🔆
▪️इस विधि को किलपेट्रिक द्वारा दिया गया ।
▪️कार्य को सही तरीके से आसान बनाने के लिए हम योजना बनाते है।
किसी भी कार्य को करने से पहले हम उसकी एक planning अपनी capacitiy,time और knowledge के हिसाब से करते हैं।
▪️जब भी हम अपने कार्य को सफल तरीके से करना चाहते है तो उसके लिए हमे अपने अनुभव के आधार पर अपना मकसद पूरा कर सकते हैं।
▪️ हमारा मकसद या हमारी शिक्षा का संप्रयोजन होना चाहिए और उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमारे पास एक योजना होना बहुत ज़रूरी है।
यदि हम बिना योजना के आधार पर किसी कार्य को करते हैं तो हम अपने कार्य को कभी भी सफल तरीके से पूरा नहीं कर पाएंगे।
▪️शिक्षण के कार्य में शिक्षक को अपने अनुभव के आधार पर एवम् समय क्षमता और ज्ञान के हिसाब से एक योजना बनानी चाहिए जिससे शिक्षण कार्य को सही तरीके से और सफल तरीके से पूरा कर सकते है।
▪️हम अपनी प्रायकिता के आधार पर अपनी capacity,time और knowledge को manage कर अपने कार्य को सफल बना सकते है।
( यदि हम अपने मकसद को या उद्घेश्य को पूरा करना चाहते है तो हम अपना वर्तमान कार्य को बेहतरीन तरीके से करने में सफल होंगे।)

🔅योजना विधि के गुण➖
1 तर्क शक्ति का विकास होता है।
2 अमूर्त चिंतन का विकास कर पाते है।
3 निरीक्षण क्षमता का विकास होता हैं।
4 अनुभव द्वारा सीखने को बढावा मिलता है।
5 सहज रूप से हमारे अंदर परिस्थिति को संभालने की क्षमता बढ़ती है।
6 निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो जाता है ।
इन सभी गुणों को एक सार रूप में कह सकते है कि योजना विधि द्वारा क्रियात्मक और सृजनात्मकता का विकास होता है।
🔅योजना बनाने के चरण➖
1 समस्या उत्पन्न करना ( स्थिति या task)
2 समस्या या चुनना ( कार्य का चयन)
3 योजना बनाना
4 योजना क्रियान्वयन (निष्पादन)
5 कार्य का निर्णय (मूल्यांकन)
6 कार्य का लेखा जोखा ( Reporting और recording)

🔅 विभिन्न कथन➖
▪️बेकन➖ गणित सभी विज्ञान का प्रवेश द्वार की कुंजी है।
▪️ बर्नाड शॉ➖ तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है।
▪️होगबेन➖ गणित संस्कृति का दर्पण है।
▪️ आइंस्टीन➖गणित उस मानव चिंतन का प्रतिफल है ,जो अनुभव से स्वतंत्र है और सत्य के अनुरूप है।
▪️ रॉबर्ट पियर्स➖गणित एक विज्ञान ही है जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

🔅योजना विधि के दोष➖ हर विषय या हर कार्य को इस विधि द्वारा कर पाना संभव नहीं है क्योंकि हमें उसके लिए उस कार्य में या विषय में अनुभव होना काफी जरूरी है।
▪️सभी कार्य की planning नहीं कर पाते है क्योंकि किसी कार्य को करने में ज्यादा समय लगता है किसी कार्य में कम।

उपर्युक्त विधि से यह निष्कर्ष निकलता है कि योजना विधि बहुत ही अच्छी विधि है जिसका आप अपनी कार्य की प्राथमिकता के आधार पर अपनी क्षमता,ज्ञान समय के हिसाब से एक योजना बनाकर अपने कार्य को सफल रूप से कर पाएंगे ओर कार्य के सफल होने पर निश्चित ही हमारा उद्देश्य पूरा हो जाता है। ✍🏻वैशाली मिश्रा


🌈 योजना विधि
इस विधि का प्रयोग किसी काम को करने के लिए किया जाता है| कि काम को किस तरह से करना चाहिए जिससे किसी प्रकार की कठिनाई न आये और काम को अच्छी तरह कर दिया जाए|
🌟योजना विधि के लाभ|
👉 योजना विधि मे तर्क शक्ति का विकास होता है|
👉 इस विधि मे अमूर्त चिंतन शक्ति का विकास होता है|
👉 सहज रूप से परिस्थिति को समझ लेते है|
👉 निरिक्षण क्षमता का विकास होता है |
👉 क्रियात्मक विकास होता है|
👉सृजनात्मक विकास होता है|
🌈योजना विधि के सिध्दांत
⭐समस्या उत्पन्न होना|
⭐कार्य का चुनाव करना|
⭐योजना बनाना|
⭐योजना क्रियान्वयन करना|
⭐कार्य निर्णय करना| ⭐कार्य का लेखा- जोखा करना |
🌈 योजना विधि के दोष
👉कुशल शिक्षक की आवश्यकता होती है|
👉कभी समय का अधिक उपयोग होता है👉 कई चीजों मे इस विधि का उपयोग नही कर सकते है|

💥रोजन बेकन- गणित सभी विज्ञान का द्वार एवं कुश्ती है|
💥 हाॅगवेन- गणित सभ्यता व संस्कृति का दर्पण है|


🌼योजना विधि 🌼
हम किसी भी कार्य को करने से पहले उसके बारे मे सोचते हैं क्या कार्य, कैसे होगा कितना समय लगेगा, कार्य अपनी क्षमता के अनुसार है या नहीं फिर हम उसको करने के लिए चरणबद्ध तरीका अपनाते के हैं वही हमारी योजना है।

👉योजना विधि के प्रवर्तक किलपेट्रीक थे

शिक्षा मे योजना सप्रयोजन (कारण ) के होनी चाहिए। जैसे हम सीटेट को पास कराने के लिए अनअकेडमी पर पढ रहे हैं।

योजना अनुभव के आधार पर होनी चाहिए

योजना विधि के गुण –

इससे बालक मे तर्क शक्ति का विकास होता है।
अमूर्त चिंतन का विकास होता है क्योंकि इसमे पहले योजना बनाते है फिर उसका क्रियान्वयन करते हैं
निरीक्षण क्षमता बढती है क्योंकि बालक स्वयं अपने कार्य का अवलोकन करता है
अनुभव द्वारा सीखने को बढावा मिलता है
सहज रूप से परिस्थिति को संभालने की क्षमता बढती है
निर्णय लेने की क्षमता बढती हैं।
क्रियात्मक और सृजनात्मक विकास होता है।

योजना विधि के सिध्दांत –

1) समस्या उत्पन्न होना
2) कार्य को चुनना अर्थात् दिए गए कार्य मे उपयुक्त कार्य का चुनाव करना
3)योजना बनाना -चुने हुए कार्य को पूर्ण करने के लिए योजना बनाना
4) योजना का क्रियान्वयन – बनी हुयी योजना के अनुसार कार्य को करना
5) कार्य का निर्णय -कार्य पूर्ण होने के पश्चात निष्कर्ष निकालना की कार्य सही हुआ या गलत
6) कार्य का लेखा जोखा -कार्य सही होने पर उसकी भविष्य मे पडने वाली आवश्यकता को देखते उसको लिखना। यदि कार्य गलत हुआ है तो उसकी कमियो को लिखना ताकि भविष्य मे गलती दोहरायी न जाए

बेकन के अनुसार गणित सभी विज्ञानो का प्रवेश द्वार एवं कुंजी है
हाॅगबेन के अनुसार गणित संस्कृति का दर्पण हैं।

बनार्ड शो के अनुसार तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन हैं।

आइसंटाइन के अनुसार गणित उस मानव चिंतन का प्रतिफल है जो अनुभव से स्वतंत्र हैं और सत्य के अनुरूप है

पियर्स के अनुसार गणित एक विज्ञान है जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

दोष –
हर विषय के लिए योजना नहीं बना सकते हैं
कुशल अध्यापक की आवश्यकता होती है

रवि कुशवाहा


✳️योजना विधि✳️

🌸 यह विधि किलपैट्रिक द्वारा दी गई है ।🌸

🔅इस विधि से हम किसी भी कार्य को सही तरीके से पूर्ण कर सकते हैं।
🔸 कार्य को संपादित करने से पहले हम एक खाका या योजना बनाते हैं ।
🔸इस योजना में हम क्षमता के अनुसार अपने ज्ञान का उचित प्रयोग करते हुए समय के अंदर कार्य को कैसे संपन्न करें इस पर चिंतन करते हैं।

🔸 शिक्षक इस विधि का प्रयोग कर पाठ को कक्षा में पढ़ाने से पहले एक योजना का निर्माण करता है जिससे वह अपने अनुभवों का प्रयोग कर शिक्षण कार्य को पूर्ण करता है और छात्रों की समस्या को हल करता है।

🔶 योजना विधि के सिद्धांत
1.समस्या उत्पन्न होना

  1. कार्य चुनना
    3.योजना बनाना
    4.योजना क्रियान्वयन
    5.कार्य का निर्णय
    6.कार्य का लेखा-जोखा

🔶योजना विधि के गुण 1.तर्कशक्ति
2.अमूर्त चिंतन
3.निरीक्षण क्षमता
4.अनुभव द्वारा सीखना
5.सहज रूप से परिस्थिति को 6.निर्णय लेने की क्षमता

  1. क्रियात्मक सृजनात्मक

🔶योजना विधि के दोष

1.इस विधि से सभी कार्य को कर पाना संभव नहीं है कुछ कार्यों को करने का समय निर्धारित नहीं हो सकता क्योंकि कुछ कार्य को करने में कम तथा कुछ को ज्यादा समय लगता है
2.कई कार्यो में अनुभव की कमी हो जाती है

  1. इस विधि में कुशल शिक्षकों की आवश्यकता होती है।

🌸 बेकन – गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार एवं कुंजी है ।
🌸 हागबेग- गणित संस्कृति का दर्पण है ।
🌸 बर्नार्ड- तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है।
🌸 पीयर्स – एक विज्ञान है जिससे सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
🌸 आइंस्टीन- गणित उस मानव चिंतन का प्रतिफल है जो अनुभव से स्वतंत्र है और सत्य के अनुरूप है।।

धन्यवाद
वंदना शुक्ला


Teaching Learning Method

🔆शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया🔆

▪️हम शिक्षण को ज्ञान और कौशल के संप्रेषण के रूप में देखते हैं।

🔅ज्ञान और कुशलता –
यदि हम अपने सीखे हुए ज्ञान को एक real implementation या उसमे वास्तविक बदलाव कर लेते है तो वहीं कुशलता कहलाती है।
▪️यदि बच्चे से practically कोई काम करवाकर सिखाया जाए फिर उस काम का या उस ज्ञान का implementation किया जाएगा तभी ज्ञान से कुशलता तक जाने की अधिगम प्रक्रिया पूर्ण होगी।
▪️इस प्रक्रिया में सिखाने वाला – सीखने वाले को प्रभावित करता है।, सीखने वाला इसलिए प्रभावित होता है है क्योंकि सीखने के प्रति रुचि, अभिप्रेना की भावना जागृत होती है , और वह उस समय सिखाने वाले (शिक्षक) के व्यक्तित्व, भाव,विचार या उसकी सोच ।सीखने वाले (छात्रों) को ज्यादा प्रभावित कर जाते है।
यदि शिक्षक और छात्र एक दूसरे से प्रभावित या जुड़े नहीं होंगे तो अधिगम कार्य कभी सही नहीं हो पाएगा।
▪️शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे सिखाने वाला (शिक्षक) सीखने वाले(छात्र) के लिए विभिन्न परिस्थिती या माहौल या वातावरण में विभिन्न साधनों और विधियों का प्रयोग कर या निर्माण कर अपने शिक्षण कार्य का सही उद्देश्य प्राप्त कर पाते है।
*शैक्षिक या ज्ञान का वातावरण शिक्षक व छात्र दोनों के द्वारा ही विकसित किया जाना चाहिए।
▪️शिक्षण का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक सीखने वाला नहीं सीख जाता और उसके व्यवहार में वांछित परिवर्तन नहीं हो जाता।
यदि हम बच्चो को सीखना चाहते है तो उसे शिक्षा से जुड़ा हुआ माहौल या वातावरण दे और छात्रों द्वारा भी वह माहौल वातावरण बना रहना चाहिए ,तभी हम बेहतर और पूर्ण रूप से सीखा पाएंगे।

🔅 शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है
इसमें हम शिक्षण को सभी के योगदान से , सक्रिय होकर सामाजिक रूप से आगे बढाते है।

” शिक्षण को कई आधारो में बांटा गया है”
🔅उद्देश्य की दृष्टि के आधार पर➖

(1) ज्ञानात्मक – यह हमारी बौद्धिक ज्ञान,समझ ,सोच विचार को अपने जीवन में जोड़ने का एक आधार है।

(2) क्रियात्मक – यह हमारे ज्ञान को शारीरिक और मानसिक रूप से अपने कार्यों में प्रयोग लाने का एक आधार है।

(3) भावनात्मक- जो भी ज्ञान का हम प्रयोग किए है या कार्य में लाए है वह ज्ञान भावनात्मक रूप से या पूरे मन से बच्चो के साथ जुड़ा हुआ होने का आधार है।

▪️यदि आपके पास ज्ञान है लेकिन उस ज्ञान का प्रयोग या उस पर कार्य नहीं क्या गया है तो उस ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है।
और यदि आपके पास ज्ञान है और आप उस ज्ञान का प्रयोग भी किए लेकिन यह ज्ञान आपके भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ा हुआ है तो हमारा उद्देश्य (ज्ञान को सीखना) कभी पूरा नहीं हो पाएगा।
यदि हम अपने गया पर कार्य करे और वह भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ होगा तब हमारा उद्देश्य निश्चित ही पूरा हो जाएगा।

🔅 स्तर के दृष्टि के आधार पर➖

(1) स्मृति स्तर – जो भी हम सीखना चाहते है वह पूर्ण रूप से स्मृति में रखा जाए।

(2) बोध स्तर- जो भी सीखा हुआ ज्ञान हमारी स्मृति में है उस ज्ञान की समझ भी होना काफी जरूरी है ।
हम अपने स्मृति के ज्ञान की समझ को किसी परिस्थिति में बेहतर रूप से समझ भी पाए।
(3) चिंतन – जो भी ज्ञान हमारी स्मृति में बैठ गया है, उसे समझते हुए उस पर चिंतन करके उस ज्ञान को और निखारा जा सकता है।

✍🏻 वैशाली मिश्रा


शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया=√
शिक्षण अधिगम एक व्यापक मानसिक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है, इसमें निरंतरता का गुण पाया जाता है और विभिन्न चरणों से गुजर कर यह प्रक्रिया संपन्न होती है।।
🌈१) ज्ञान और कौशल से संप्रेषण==
जब व्यक्ति का वर्तमान व्यवहार , ज्ञान का भंडार तथा कुशलताएं उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती है , उसे नवीन ज्ञान का संचय करने और कौशल अर्जित करने की आवश्यकता होती है, अर्थात् एक शिक्षक द्वारा विधि, साधन और तौर तरीकों के माध्यम से सीखने की परिस्थिति का निर्माण करके छात्र की उसके प्रभाव से सहायता करना।।।
✍️एक अच्छे शिक्षण का तब तक कोई अर्थ नहीं है, जब तक –
1️⃣ जब तक कि छात्र ( सीखने वाला) , अच्छे से सीख न जाए ।
2️⃣जब तक कि छात्र के व्यवहार में वांछित परिवर्तन नहीं हो जाता हैं।।
🌈 शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है==

शिक्षक द्वारा दिए गए ज्ञान का उद्देश्य छात्र को सामाजिक रूप से जोड़ कर शिक्षण प्राप्त कराना है , शिक्षक का उद्देश्य ज्ञान के साथ में छात्र में सामाजिकता का भी विकास करना होना चाहिए। ।
✍️सामाजिक उद्देश्य प्राप्त करने के निम्न चरण है=
1️⃣ ज्ञानात्मक —
ज्ञानात्मक अधिगम का उद्देश्य अधिगमकर्ता ( छात्र) के संज्ञानात्मक व्यवहार में परिवर्तन लाना है, इस व्यवहार में ज्ञानेन्द्रियो तथा मस्तिष्क की भूमिका मुख्य रहती है, विभिन्न प्रकार की बौद्घिक और मानसिक क्रियाएं जैसे – सोचना , कल्पना करना, तर्क करना , स्मरण करना , वर्णन ओर व्याख्या करना तथा सामान्यीकरण करना आदि अधिगम आते हैं।।
2️⃣ क्रियात्मक —
क्रियात्मक अधिगम का उद्देश्य अधिगमकर्ता ( छात्र) के क्रियात्मक या मनोशारीरिक व्यवहार में परिवर्तन लाना है । विभिन्न प्रकार की क्रियाएं जैसे – चलना , दौड़ना, कूदना , नाचना, खाना पीना , गाना आदि अधिगम आते हैं।।
3️⃣ भावात्मक —
भावात्मक अधिगम का उद्देश्य छात्र के भावात्मक व्यवहार में परिवर्तन लाना है। इसमें शिक्षक ओर छात्र की भावनाएं एक – दूसरे से जुड़ी होती हैं, अगर व्यक्ति का भाव अच्छा नहीं होगा तो आत्मिक संतुष्टि नहीं आएगी। विभिन्न प्रकार की क्रियाएं जैसे- दुखी या सुखी होना , डरना , प्रेम , घृणा आदि आते है।।
✍️ सिर्फ ज्ञान जरूरी नहीं है उसके साथ में क्रिया और भाव भी होना चाहिए।✍️

🌈 स्तर के दृष्टिकोण से==
स्तर के तीन चरण होते है-
1️⃣ स्मृति स्तर —
स्मृति का स्तर ” हरबर्ट ” ने दिया था। स्मृति का उपयोग शिक्षक द्वारा दिए गए ज्ञान को स्मृति में स्थापित करना या उसको स्मृति में बनाए रखना। अर्थात् जो भी हमारे द्वारा सीखा जाता है उसे स्मृति में बनाए रखना।।
2️⃣ बौध स्तर–
बोध का स्तर ” मॉरिसन ” के द्वारा दिया गया था। बोध – समझ का होना । अर्थात् हमारे द्वारा स्मृति के ज्ञान को समझना या उसका बोध होना ।
3️⃣ चिंतन स्तर–
चिंतन का स्तर ” हंट ” के द्वारा दिया गया था। चिंतन- तर्क करना। अर्थात् तार्किक रूप से स्मृति का चिंतन करना ।
“स्मृति के ज्ञान को बोधात्मक रूप से समझकर तार्किक रूप से चिंतन करना ।”

✍️ ANAMIKA RATHORE


✍️शिक्षण अधिगम प्रक्रिया✍️

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दो महत्वपूर्ण निष्कर्ष है, जो सीखने वाले मे उक्त प्रक्रिया द्वारा दिखायी देते है!
1)ज्ञान(किसी भी क्रिया को करने का तरीका और क्रिया के चरणों का हमारे मष्तिष्क मे स्थान होना या हमारी स्मृति मे समझ के अनुसार उसका स्थायित्व होना!)

2)कौशल ( किसी भी क्रिया या कार्य के प्राप्त ज्ञान का उपयोग करने की योग्यता को कौशल कहते है)

✍️ ज्ञान एवं कौशल का संबंध परस्पर एक दूसरे से होता है! ज्ञान से ही हम कौशल करने के योग्य बनते है और कौशल से ही ज्ञान का स्थायित्व और उसके प्रभाव का हमे पता चलता है!
का
✍️शिक्षण अधिगम प्रक्रिया मे शिखाने वाले को चाहिए कि वो एक प्रभावशाली वातावरण का निर्माण करके ज्ञान का संप्रेषण शिक्षार्थियों के समक्ष करे, और शिक्षार्थियों को भी ये चाहिए कि वे निर्मित वातावरण मे समायोजन करके ज्ञानार्जन करे!

✍️शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का कोई महत्त्व नहीं है जब तक कि अधिगम कर्ता शिक्षा को पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं करलेता है, अर्थात उसके व्यवहार मे अधिगम पश्चात वांछनीय परिवर्तन देखने को नहीं मिलता है!

✍️अगर जिस अधिगम की योजना बनाकर शिक्षक अपने ज्ञान का संप्रेषण कर्ता है और अधिगम कर्ता मे और अधिगम कर्ता के व्यवहार मे वांछनीय परिवर्तन दिख जाता है तो वहां शिक्षण एक सार्थक क्रिया के रूप मे समझा जाता है!

✍️शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया भी है जिसमे समाज के विभिन्न पहलुओं का योगदान होता है जिनकी सहायता से अधिगम सुगम रूप से संचालित होता है!✍️

शिक्षण प्रक्रिया को दो रूपों मे बांटा गया है!
1)शिक्षण के उद्देश्य
2)शिक्षण के स्तर

1)शिक्षण के उद्देश्य – इसका मतलब है कि हमे क्यो शिक्षण ग्रहण करना है ये विचार हमारे मष्तिष्क मे बिना किसी उलझन के स्थिर होनी चाहिए!

इसके भी 3 पक्ष है जो कि निम्‍न है
👉) ज्ञानात्मक पक्ष
👉) क्रियात्मक पक्ष
👉) भावात्मक पक्ष

👉) ज्ञानात्मक पक्ष के अंतर्गत हम ये समझ सकते है कि हम किसी वस्तु, क्रिया, या स्थान का स्मृति है उसकी मानसिक समझ है लेकिन हमने उस मानसिक समझ का कभी प्रयोग नहीं किया!

👉) क्रियात्मक पक्ष के अंतर्गत जो ज्ञान हम अर्जित करते है उसका प्रयोग मे लाना उसकी मदद से अपने कार्यों और जीवन संबंधी समस्याओं का समाधान करना!

👉) भावनात्मक पक्ष के अंतर्गत वो क्रियाएं आती है जिनमे हम अपने ज्ञान एवं क्रिया को एक समर्पण भाव से करते है!

2) शिक्षण के स्तर – शिक्षण के स्तर का निर्माण ज्ञान के अधिगम की विभिन्न क्रियाओं द्वारा हुआ है!
जो कि निम्‍न प्रकार है
👉) स्मृति स्तर
👉) बोध स्तर
👉) चिंतन स्तर

👉स्मृति स्तर – इस स्तर मे मष्तिष्क द्वारा किसी मूर्त ज्ञान को अमूर्त स्थायित्व मे लाना, अर्थात किसी ग्यान को स्थिर रखना स्मृति है!

👉) बोध स्तर – इस स्तर मे प्राप्त ज्ञान का स्थायित्व समझ और भावनाओं के सहसम्बंध के साथ होना बोध स्तर को दर्शाता है!

👉) चिंतन स्तर – इस स्तर मे शिक्षार्थी के मन मष्तिष्क मे स्मृति, बोध के साथ किया गया चिंतन शिक्षार्थी को रचनात्मकता की और प्रेरित करता है और रचनात्मक कौशलो की व्रद्धी करता है!

👉यहा हम निष्कर्ष दे सकते है कि ज्ञान और कौशलों को संप्रेषित करने की क्रिया ही अधिगम कह लाती है! 👈

ASHWANY DUBEY


शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया
ज्ञान और कौशल के सम्प्रषण
बच्चों मे ज्ञान बस नही होना चाहिए उनमे कौशल का विकास होना चाहिए
सिखाने वाला हो जो सिखने वाले को प्रभावित
करे
तथा सिखाने वाला सिखाने के लिए अलग -अलग तरह की विधियों, साधनों, तथा तौर- तरीके का प्रयोग करके ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करे जिससे बच्चा सीखे
☀ शिक्षण का तब तक कोई अर्थ नही है जब तक सीखने वाला सीख नही जाता तथा उसके व्यहार मे वांछित परिवर्तन नही हो जाए
☀शिक्षण के प्रकार
(1) उद्देश्य के आधार पर 👉ज्ञानात्मक उद्देश्य ज्ञानात्मक अधिगम का उद्देश्य बच्चों की सोचने
की शक्ति का विकास करना विभिन्न प्रकार की बौद्धिक और मानसिक क्रिया -तर्क करना, सोचना, आदि
👉क्रियात्मक उद्देश्य
किसी चीज को शारीरिक, मानसिक दोनों
रुप से कार्य मे लाना जैसे- चलना, कूदना, दौड़ना आदि अधिगम मे आते हैं
👉 भावात्मक उद्देश्य
भावात्मक अधिगम का उद्देश्य इसमें शिक्षक और
छात्र की भावना एक दूसरे से जुड़ी होनी चाहिए प्यार, सुख, दुख
आदि
🌟स्तर के दृष्टिकोण से
1 . स्मृति स्तर बच्चों को स्मति क्षमता के अनुसार उनको सीखना चाहिए ज्ञान को स्मृति मे स्थापित करना

  1. बौध स्तर –
    किसी के बारे मे ज्ञान बस नही होना समझ का होना अवश्यक है
  2. चिंतन स्तर-
    चिंतन – तर्क करना अर्थात् तार्किक रूप से स्मृति का चिंतन करना
  3. ✒Menka patel

✴️✴️ शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया ✴️✴️
◾ शिक्षण को हम ज्ञान और कौशल के सम्प्रेषण के रूप में देखते हैं
यदि हम अपने सीखें हुए ज्ञान का प्रयोग वास्तविक बदलाव के लिए करते हैं तो वहीं कौशल है
◾ यदि बच्चे को कोई भी कार्य उस से स्वंय करवाया जायेगा तो ज्ञान से कौशल तक जाने की अधिगम प्रक्रिया होती है
◾ इस प्रक्रिया में सिखाने वाला सिखने वाले को प्रभावित करता है। अर्थात सिखने के प्रति रूचि अभिप्रेरणा की भावना सिखने के लिए वातावरण आदि सिखाने वाला निर्माण करता है। वह उस समय शिक्षक के विचार भाव और उसकी सोच से प्रभावित होता है
यदि शिक्षक और छात्र एक दूसरे से प्रभावित या जुड़ नहीं पाते है तो अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली नहीं होगी।
◾ शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक छात्रों के लिए विभिन्न प्रकार की परिस्थिती या वातावरण में विभिन्न प्रकार की अधिगम सामग्री या साधनों और विभिन्न विधियों का प्रयोग करके या निर्माण करके अपने शिक्षण को सही उद्देश्य तक पहुंचाने का कार्य करता है
◾ शैक्षिक या ज्ञान का वातावरण शिक्षक और छात्र दोनों के लिए विकसित किया जाना चाहिए।
◾ शिक्षण का तब तक कोई अर्थ नहीं होता है जब तक सिखने वाले ने कुछ सिखा नहीं है और अपने व्यवहार में वांछित परिवर्तन नहीं किया है।
यदि हम छात्रों को कुछ सिखाना चाहते हैं तो हमें उनके लिए ऐसा वातावरण निर्मित करना चाहिए जिस में वो सीख सकते हैं तभी वो बेहतर रुप से सीख सकते हैं
◾ शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है
इसमें हम शिक्षण को सभी के योगदान से सक्रिय होकर सामाजिक रूप से समूह में रह कर सिखाते हैं
✴️✴️ शिक्षण को कई आधारों में बांटा गया है ✴️✴️
◾ उद्देश्य के आधार पर ➖

  1. ज्ञानात्मक ➖ यह हमारी बौद्धिक ज्ञान,समझ, सोच, विचार को अपने जीवन में जोड़ने का एक आधार है।
    2.क्रियात्मक➖ यह हमारी शारीरिक मानसिक रूप से अपने कार्यो में प्रयोग में लाने का एक आधार है।
    3.भावात्माक➖ जो भी ज्ञान का हम प्रयोग करके कार्य में लाते हैं वह भावात्मक रूप से जुड़े होने का आधार है।
    यदि आपके पास ज्ञान है लेकिन उस ज्ञान का प्रयोग नहीं किया गया है तो उस ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है
    और यदि आपके पास ज्ञान है और आप उस ज्ञान का प्रयोग भी करते हैं लेकिन यह ज्ञान आपके भावात्मक रूप से नहीं जुड़ा है तो हमारा उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकता है।
    यदि हम अपने ज्ञान पर कार्य करें और वह भावात्मक रूप से जुड़ा हुआ होगा तब हमारा उद्देश्य निश्चित ही पूरा हो पाएगा।
    ✴️✴️ स्मृति के दृष्टिकोण से ✴️✴️
    1.स्मृति संयंत्र➖ जो भी हम सिखना चाहते हैं वह पूर्ण रूप से स्मृति में रहता है।
  2. बोध स्तर➖ जो ज्ञान हमने सीखा है उस ज्ञान की समझ होना काफी जरूरी है।
  3. चिन्तन स्तर➖ जो भी ज्ञान हमारी स्मृति में बैठ गया है उसे समझते हुए उस पर चिन्तन करके उस ज्ञान को और अधिक विश्लेषित करना होता है।
    📝📝 Gudiya Chaudhary 📝📝

Analysis and Synthesis Method Notes

🌸विश्लेषण और संश्लेषण विघि: ”किसी चीज के बारे मे गहराई से जानना ” किसी बात के अलग अलग पहलू पर चर्चा करना ही विश्लेषण कहलाता है ।ये सारे छोटे छोटे भाग किसी एक को परिपूर्ण करती है ।इकठ्ठी की गई वस्तु को अलग अलग भाग मे divide करके उसके बारे मे गहराई से जानना ही विश्लेषण विधि है । (उदाहरण – गणित विषय का कोई पश्न मे क्या दिया है ,और क्या दिया है ,क्या ज्ञात करना ह ,कैसे ज्ञात हो सकता है ,एैसै विश्लेषण करके उसके आखिरी उत्तर तक पहुँच जाते है ।) 🌸1 यह एक अनुसंधान विधि है जिसके अन्तर्गत किसी एक वस्तु को टुकडों में बाटकर उसे गहराई तक खोज कर उसका research करते है ।🌹2🌹यह विधि जटिल से सरल की ओर चलती है :- अर्थात कोई वस्तु या पकरण यदि जटिल है उसे विश्लेषित करके उसका सरलीकरण करते है। 🌺3🌺अग्यात से ग्यात की ओर : जो चीज नही पता है उसके बारे मे गहराई से खोज कर जो पता है उसकी ओर चलते है। विश्लेषण विधि के गुण :- (1)इस विधि से बच्चे की तर्क शक्ति का विकास होता है। (2) इस विधि के द्वारा बच्चे की खोज करने की क्षमता का विकास होता है।(3) इस विधि के द्वारा बच्चों में एक समस्या को लेकर उस समस्या को अलग-अलग पहलू में सोच कर उसका समाधान करने की आदत विकसित होती हैं। यदि किसी व्यक्ति में विश्लेषण करने की क्षमता है तो किसी भी वे डिसीजन को ले पाएंगे🌺 विश्लेषण विधि के दोष:- (1) समय अधिक लगता है ।2) अधिकतर क्षति की जरूरत होती है जो छोटे बच्चों के पास नहीं होती इसीलिए विधि छोटे बच्चों के लिए अनुपयोगी है🌺 🌸🌸संश्लेषण विघि🌸🌸 किसी समस्या को टुकड़ों में या भाग में या अलग-अलग करके उसे इकट्ठा या एकत्रित करना ही संश्लेषण कहलाता है । यह विधि विश्लेषण विधि के ठीक विपरीत होता है। अर्थात अनेक को एक कर देना कि संश्लेषण है। किसी समस्या के छोटे-छोटे टुकड़ों का समाधान करके पुणे एकत्रीकरण करना ही संश्लेषण कहलाता है। उदाहरण – जैसे हम हिंदी विषय में बच्चे को पहले वर्णमाला को सिखाते हैं फिर उसके बाद शब्द बनाना या वाक्य बनाना सिखाया जाता है। 🌺 संश्लेषण विधि के गुण🌺 (1) यह विधि ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाती है अर्थात जो पता है उसका प्रयोग करके जो नहीं पता है उसकी प्राप्ति की जाती है।(2) इस विधि में किसी समस्या का हल कर एकत्रित करने के लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है। 🌺 विश्लेषण -संश्लेषण विधि। विश्लेषण और संश्लेषण विधि के ठीक बिल्कुल विपरीत है किसी भी समस्या के निश्चित समाधान तक पहुंचने के लिए दोनों का होना जरूरी है अर्थात विश्लेषण और संश्लेषण एक दूसरे के पूरक हैंl 🌸prof yung ke sbdo ke anusar🌸 – “संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है” अर्थात संश्लेषण विधि म जो ज्ञात है से जो ज्ञात नहीं है अर्थात अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं।🌸 manisha gupta 🌸


विश्लेषण और सन्श्लेषण विधि :- (1) विश्लेषण विधि :- किसी चीज को बहुत गहराई से जानना उसको छोटे छोटे टुकडो़ में विभाजित कर उसके बारे में परीक्षण करना ही विश्लेषण है साधारण भाषा में कहा जाये तो माथापच्ची करना या पन्चायत करना | जैसे क्या गणित में क्षेत्रमिती के प्रश्नों को अलग अलग करके Solution निकालना | अर्थात (1) जटिल को सरल बनाना… (2) अज्ञात से ज्ञात की ओर जाना… (3) तर्क शक्ति का विकास होना… विश्लेषण विधि अनुसंधान विधि है इसमें विश्लेषण की क्षमता होती है जिसमें किसी परिणाम को लेना सरल हो जाता है.. …. सन्श्लेषण विधि:- किसी चीज के अलग अलग टुकडो़ को एकत्रित करना ही सन्श्लेषण है यह विधि विश्लेषण के विपरीत है अर्थात इसमें (1) ज्ञात से अज्ञात की ओर जातें हैं..(2) सरल से जटिल की ओर…(3) तर्क शक्ति का विकास होता है….दोनों विधियों में समानता :- (1) जितने भी point लिए गए हैं उनको साथ लेकर चले तो वो सफल परीक्षण होगा.. (2) सही परीक्षण वही होगा जिसका विश्लेषण और सन्श्लेषण सभी पक्षों के अनुसार किया गया हो… दोनों विधियों में तुलना :- (1) दोनों एक दूसरे के विपरीत है… (2) दोनों विधि वैज्ञानिक है परंतु विश्लेषण अनुसंधान विधि है.. (3) परिणाम के लिए दोनों विधियों का होना आवश्यक है… (4) जो शिक्षक छात्रों को समस्या का हल को विश्लेषण विधि द्वारा समझाने की कोशिश करते हैं वहीं सफल शिक्षक होते हैं.. (5) युन्ग के अनुसार ” सन्श्लेषण से सूखी से तिनका निकाला जाता है लेकिन विश्लेषण में तिनका खुद बाहर निकल जाता है….🌺🌺🌺🌺 रश्मि सावले 🌺🌺


● विश्लेषण ( Analytical Method ):-

◆ विश्लेषण से अभिप्राय है कि किसी समस्या को छोटे – छोटे भागों में विभाजित करके उसका अध्ययन करना और किसी निष्कर्ष पर पहुँचना । संश्लेषण से अभिप्राय है विश्लेषित तथ्यों को इकट्ठा करना और अभीष्ट परिणाम प्राप्त करना ।

◆ रसायन शास्त्र में पानी ( H20 ) को हाईड्रोजन व ऑक्सीजन में विभाजित करना विश्लेषण है । इसके विपरीत ऑक्सीजन का किसी विशेष ताप या दबाव पर संयुक्त कर पानी बनाना संश्लेषण है । संश्लेषण और विश्लेषण एक – दूसरे के पूरक हैं ।

◆ संश्लेशण में हमें कुछ तथ्य ज्ञात होते हैं और उनकी सहायता या उन्हें संयुक्त करके हम एक निष्कर्ष पर पहुच सकते हैं जो पहले अज्ञात था । इस प्रकार संश्लेषण ज्ञात से क्या अज्ञात की ओर बढ़ता है ।

◆ मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक यह मानते है , कि मनुष्य की बौद्विक किया का अन्तिम सोपान संश्लेषण विश्लेषण के उद्देश्य को पूरा करता है ।

● संश्लेषण विधि ( Synthesis Method ):-

◆ विश्लेषण विधि के विपरीत हैं । इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की तरफ जाते है ।

◆ संश्लेषण में एक तथ्य की सत्यता की जाँच होती है । परन्तु इससे पाठ का सही तथा वास्तविक ढाँचा ज्ञात नही होता है । इस प्रकार संश्लेषण विधि साध्य सिद्ध करती है लेकिन उसकी व्याख्या नही करती । इसके द्वारा विश्लेषण विधि से प्राप्त तथ्य की जाँच की जा सकती है ।

संश्लेषण विधि के गुण :-
• यह विधि विश्लेषण विधि से सरल है तथा हल या निष्कर्श निकालने की विधि से अधिक स्थान नही घेरती ।
• विश्लेषण विधि के पश्चात संश्लेषण विधि का उपयोग आवश्यक है ।
• ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर करने का सिद्वान्त मनोवैज्ञानिक है तथा विद्यार्थियों के लिए असुविधाजनक है ।
• अध्यापक के कार्य को इस विधि ने अत्याधिक सरल बना दिया है ।
• इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान विद्यार्थियों के द्वारा स्वयं ढूढाँ हुआ नही होता इसलिए वह स्थायी नही होता । यह विधि केवल सिद्ध कर सकती है , समझा नही सकती ।
• किसी साध्य अथवा समस्या का हल इस विधि से ज्ञात नही किया जा सकता ।
• इस विधि से छात्रों की तर्कशक्ति तथा सोचने की शक्ति का विकास नही हो सकता ।

🇧 🇾- ᴊᵃʸ ᴘʳᵃᵏᵃˢʰ ᴍᵃᵘʳʸᵃ


🔆 विश्लेषण एवं संश्लेषण विधि🔆

  • किसी विषय को गहराई से जानने,उस विषय के अलग अलग पहलू पर चर्चा करते है या जब हम उस विषय का पूरी तरह से विश्लेषण कर लेते है तब हम उस विषय के बारे में संपूर्ण या परिपूर्ण जानकारी को एकत्र कर लेते है।

✴️ विश्लेषण विधि ➖ गणिततीय दृष्टिकोण से यदि हम किसी समस्या के समाधान को निकालना चाहते हैं तो उसके लिए हम उस समस्या का विश्लेषण यानि कि उस समस्या के दुकड़े दुकड़े कर या उस अलग अलग करते हुए समाधान निकलते है।
▪️जब हम समस्या का समाधान खोजते है तो समाधान को खोजने में के लिए हम उस समस्या का विश्लेषण करते हैं जिसके फलस्वरूप हमे समस्या का समाधान मिल जाता है।
▪️यह विधि एक अनुसंधान है क्योंकि इसमें हल को खोजने पर बल दिया जाता है।( खोज करना या समस्या पर माथा पच्ची या दिमाग लगाकर या उस समस्या पर पंचायत कर या कहे विश्लेषण कर उस समस्या का उचित समाधान निकाला जा सकता है।)
▪️किसी भी विषय या वस्तु जो हमे जटिल लगती है उनको सरल बनाने के लिए ,इसके साथ ही जो विषय या चीजे जो हम नहीं जानते है या हम उससे अज्ञात है, उन्हें जानने के लिए या उन्हें ज्ञात करने के लिए इस विधि को प्रयोग में लाते हैं।
▪️ इसके द्वारा हम अपनी तर्क शक्ति को भी विकसित कर पाते है ।जैसे कि यदि हमारे पास कोई समस्या होती है तो उसके समाधान निकालने के लिए उस समस्या पर तर्क लगाते है।

✴️ संश्लेषण विधि➖

जब हमारे पास कोई समस्या होती है या हम किसी वस्तु या विषय के बारे में जानना चाहते है तब हम उस समस्या के दुकड़े या जो अलग अलग रूप से बटी हुई है उन्हें पुनः से एकत्रित करना ही संश्लेषण कहलाता है।

🔅 जब हम संश्लेषण से विश्लेषण की ओर जाते है तो हमे इस सकारात्मक बिंदु का भी ध्यान रखना चाहिए-

  • जब भी हम किसी विषय या किसी वस्तु के बारे में जानना चाहते हैं तो उसके लिए कई समस्या सामने आती है इन समस्याओं के समाधान निकालने से हमे जी परिणाम प्राप्त होते है वह win win situation में हो , यानि कि जब भी कोई बात बताई जाए या पता की जाए तो अंत में उसका जो भी परिणाम प्राप्त हो उससे बताने वाले ओर पूछने वाले या समझने वाले दोनों का ही फायदा या जीत हो या दूसरे रूप में कहे जी भी परिणाम प्राप्त हो वह दोनों के सकारात्मक पक्ष के लिए हो।
    ➖जैसे कि यदि कोई शिक्षक अपनी बातो को छात्रों को बताता है या उन तक input करता है और फिर उसे छात्रों द्वारा प्राप्त कर output दे देता है तो यहां पर शिक्षक और छात्र दोनों को ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते है जो कि दोनों के पक्ष में होंगे।
    ▪️जब भी हम किसी विषय का संश्लेषण करते है तो हम उस विषय के प्रत्येक बिंदु या दुकड़ो को या हर पहलु को या सभी पक्षों पर विश्लेषण कर इन सभी का पुनः एकत्रिकरण कर या मिलाकर उस विषय का उचित रूप से निर्माण या संश्लेषण कर पाते है।

🔅 विश्लेषण और संश्लेषण में अंतर➖
▪️दोनों ही एक दूसरे पर पूरी तरह से निर्भर या विपरीत है इसलिए इन दोनों का ही होना जरूरी है यदि दोनों में से कोई भी रुक गया तो सही तरह से कार्य नहीं हो पायेगा।
▪️यह विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि है ।इसमें अन्वेषण क्षमता या अनुसंधान या खोज करने की क्षमता का विकास होता है। इसमें छात्रों की अन्तर्दृष्टि का विकास होता है।
▪️जब भी हम किसी समस्या का विश्लेषण करते है तो हमे उस समस्या का उचित प्रकार से संश्लेषण कर समाधान निकाल लेते है।

🔅 युंग का कथन है कि किसी भूसे के ढ़ेर से एक छोटे से दुकड़े को निकालना संश्लेषण है जबकि भूसे के ढेर से दुकड़े का खुद से निकालना या प्राप्त दुकड़ा विश्लेषण कहलाता है।
हम संश्लेषण में ज्ञात से अज्ञात और विश्लेषण में इसके विपरित अज्ञात से ज्ञात की ओर जाते है।
▪️यदि हम किसी विषय या वस्तु का विश्लेषण नहीं कर रहे होते है तब हम दिए हुए विश्लेषण के आधार पर ही अपना विश्लेषण लगाकर उस विषय या वस्तु का संश्लेषण कर पाते हैं।

✍🏻 वैशाली मिश्रा


विश्लेषण- यह विषय वस्तु को विभिन्न तरीको से विभक्त करके उसमें सामिल संरचना को समझने की योग्यता है
किसी एक चीज को गहराई से जानना
और जटिल चीजो को सरल बनाना तथा कुछ चीजों को आपको पता नहीं उसे पता करना चाहते हैं
इससे बच्चों में तर्क शक्ति
का विकास होता है
संलेषण- इसमें प्राप्त उद्देश्य की प्राप्ति हर से बच्चों का सामाजिक अध्ययन विषय के प्रति
सकारात्मक दृष्टिकोण
विकसित होता है
संश्लेषण में हमे कुछ तथ्यों कि जानकारी होती है Menka patel


💫विश्लेषण विधि :-
किसी भी चीजों के बारे में जानने या समझने के लिए उसे टुकड़ों – टुकड़ों में विभाजित करके उस पर विश्लेषण करके उसके तथ्यों को समझने की कोशिश करते हैं,ये विधि, विश्लेषण विधि कहलाती है।

💫विश्लेषण विधि के गुण :-
🏝️ये विधि ज्ञात से अज्ञात की ओर चलती है।

🏝️यह एक प्रकार से अनुसंधानात्मक विधि कहलाती है,क्योंकि इस विधि में छात्र सक्रिय रूप से खोज करते हुए अपने समस्याओं को खुद से सुलझाने में सक्षम हो पाते हैं।

🏝️इस विधि में किसी भी चीज के हर एक पहलू को गहराई से जानने पर जोर दिया जाता है।इसे रचनात्मक विधि भी कहा जा सकता है।

🏝️इस विधि में बच्चे को भरपूर मौका दिया जाता है,जिससे उनमें चिंतन शक्ति का विकास होता है,उनमें किसी बात को लेकर किसी भी समस्या का समाधान ढूंढने की क्षमता भी विकसित होती है।

🏝️इस विधि के अन्तर्गत बच्चे अपनी तार्किक चिंतन शक्ति का प्रयोग करते हैं,जिससे उनमें चिंतन करने की क्षमता का विकास होता है।इसे एक प्रकार से समस्या समाधान विधि भी बोला जा सकता है।

💫विश्लेषण विधि के दोष :-
🏝️इस विधि में कार्य करने में समय अधिक लगता है।

🏝️इसमें अधिकतर तर्क शक्ति की आवश्यकता होती है,इसलिए ये विधि छोटे बच्चो के लिए अनुपयोगी हो सकती है।

💫संश्लेषण विधि :-
🏝️किसी भी समस्या को छोटे -२ भागों में करके उसे एकत्रित करना अथवा अनेक को एक करना ही,संश्लेषण विधि कहलाता है।

संश्लेषण विधि के गुण :-
🏝️ये विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत होता है।

🏝️ये विधि ज्ञात से अज्ञात जी ओर के जानेवाली विधि है, इसके द्वारा हमे जो पता है उसका उपयोग करके को नहीं पता है उसे खोज करने की कोशिश करते हैं।

💫इस विधि के अन्तर्गत प्रोफेसर YUNG के द्वारा कहा गया कि :-
🌅संश्लेषण विधि सूखी घास से तिनका बाहर निकालने जैसा है,बल्कि विश्लेषण विधि से तिनका घास से स्वयं ही बाहर निकल आता है।

नेहा कुमारी☺️


विश्लेषण == किसी विषय पर बहुत गहराई से जानकारी प्राप्त करना। अर्थात् किसी विषय पर उसे छोटे- छोटे भागो में विघटित करके विषय की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना। तथा यह विषय की संपूर्ण जानकारी सुदृढ होगी।
जैसे- जब बच्चा स्कूल में एडमिशन लेता है तब उसके सामने बहुत से ऑप्शन होते है जिनमे से वो सभी को उनके गुणों के आधर पर विघटित करके एक स्कूल को सेलेक्ट करता है ।।।
✍️ विश्लेषण जटिल चीजों को सरल बनाता है।
✍️यह अज्ञात चीजों से ज्ञात पर ले जाता है।
✍️इससे तर्कशक्ति का विकास होता है , बच्चे में सोचने तथा तर्क करने की क्षमता का विकास होता है।
संश्लेषण== किसी विषय पर उसको छोटे छोटे भागो में बांटकर परीक्षण करके एक तर्क पर पहुंचना । अर्थात् बच्चो के द्वारा किसी विषय की समस्या के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करके एक निश्चित हल पर पहुंचना ही संश्लेषण है।।।
जैसे – बच्चा जब बच्चे को कोई खिलौना चाहिए होता है तो वह चिंतन करके तर्क लगाता है कि मेरे रोने पर पापा मुझे खिलौना दिला देंगे ,इसमें पापा उसे खिलौना कब दिला देंगे उस समस्या का उसने एक हल निकाल लिया ।।।
✍️ समस्याओं के सभी पहलु को पुनः एकत्रित करके हल निकालना।
✍️ यह ज्ञात से अज्ञात की जाती हैं।
✍️इसमें बच्चे के पास पूर्व ज्ञान होता है जिसके आधार पर एक तर्क पर पहुंचना।
विश्लेषण- संश्लेषण विधि ==किसी विषय की समस्या को बहुत गहराई से जानकर संपूर्ण परीक्षण करके एक तर्क पर पहुंचना या सभी हलो को पुनः एकत्रित करके एक हल प्राप्त करना या पहले विघटित ( तोड़कर) करके फिर जोड़ना ही विश्लेषण- संश्लेषण विधि हैं।✍️✍️
युंग के अनुसार== ‘ सुखी घास में से तिनका निकालना’ अर्थात् घास में से तिनका अलग करना संश्लेषण होगा और घास को विघटित करने पर तिनका स्वयं बाहर आ जाए उसे विश्लेषण कहेंगे।
✍️ अनामिका राठौर ✍️


ःविशलेषण विघि और सशलेषण विघि 🌸🌸🌸🌸
विश्लेषण विघि को अनुसघान विधि भी बोलते है ः
ःविशलेषण मतलब टुकड़ों में बाटना ः
विश्लेषण विधि में समस्या को टुकड़े टुकड़े में बाटना जो स्थित रहती है उसको भागो में करना
विश्लेषण की क्षमता होती हैं तो हम निणय सही तरीके से ले सकते हैं इससे हमारा तक् सक्ति का विकास होता है इसमें हम कोई भी बात को डिटेल में प्रस्तुत करते है
इस विघि मे दिमाग भी ज्यादा लगाना पड़ता है ज्यादा सोचते हैं जिससे तक् सक्ति का विकास होता है
ःजटिल से सरल 🌸🌸🌸🌸
इस विघि में कोई काय् को जटिल से सरल की ओर करते हैं जैसे -आज क्लास है कल भी होगा परसो भी होगा बाद में फिर बाद में क्लास प्रतिदिन होती है
ःअज्ञात से ज्ञात 🌸🌸🌸
इसमे पहले जो नही जानते है उसके बारे में बात करेगे और फिर जो जानते है उसके बारे में विश्लेषण करेगे
ःइस विधि में टुकड़े टुकड़े जो किये गये उसे एकत्रित करके समस्या से जुड़ी हुई जितने भी पुव्र ज्ञान है सभी को मिलाकर एकत्रित करते है
ः win win situation को विश्लेषण का साकारातमक परिणाम हैः win win situation matlab मतलब दोनों तरफ से विश्लेषण और सशलेषण दोनों है दोनों पक्षों में होगा तब साकारातमक होगा ः
ःसशलेषण विघि 🌸🌸🌸🌸
ःसशलेषण विधि मतलब जोड़ना ः
ःटुकडो मे बाटना उसको एकत्रित करना ही सशलेषण कहलाता है
ःविशलेषण के विपरीत होता है सशलेषण
ःसशलेषण करना बहुत ही आवश्यक है
ःसशलेषण में एकपक्षीय निणय लेना गलत है विश्लेषण के बाद अगर सशलेषण नही करते है तो कोई भी सही निणय नही ले पाते है जितनी भी बातें है जैसे u academy पे पहले अच्छे से विश्लेषण किये कोन सर से पढना हैं और कब पढना है उसके बाद शसलेषण कि हमे अब दिपक सर से ही cdp पढना है
ःविशलेषण सशलेषण ये दोनों एक दूसरे के पूरक भी बोलते हैं मगर opposite भी बोलते हैं
किसी चीज को output तक पहुँचना विश्लेषण के बाद सशलेषण करना जरुरी है दोनों पक्षों के कुछ साकारातमक है तो नाकारातमक भी है ः
YUNG के अनुसार ः 🌸🌸🌸
ःविशलेषण विधि में सवय से घास से तिनका निकालना पड़ता है
ःसशलेषण विधि में सुखी घास से तिनका निकलता है
ःज्ञात से अज्ञात
ःबच्चो को पढाने के लिए दोनों विघि सही है मगर देखेगे बच्चो के आवश्यकता के अनुसार जहा जो जरूरत हो उसी के माध्यम से बच्चो को ज्ञान देगे 🌸🌸🌸

NEHA ROY 🙏🙏🙏🙏


विश्लेषण विधि= विश्लेषण विधि का अर्थ है…. किसी चीज को बहुत गहराई से जानना

🌸 किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़े में बहुत बांटना या इकट्ठी की गई वस्तुओं को अलग अलग भागों में बांटना व उनका परिक्षण करना विश्लेषण विधि कहलाता है |✍✍✍✍✍✍

1) किसी वस्तु या चीज की पुरी तरह विश्लेषण करने से उनके छोटे छोटे पार्ट के बारे में जानकारी सुदृढ़ हो जाती हैं ✍

2) विश्लेषण किए बिना कोई भी उसका सारांश नहीं निकल सकता ✍

3) जब कोई भी चीज हमारे लिए जटिल होती है और उसे हम सरल बनाना चाहते हैं या जो चीजें पता नहीं है उसके बारे में जानना ही विश्लेषण करना है✍

4) विश्लेषण हमारे लिए एक अनुसंधान विधि है क्योंकि इसमें ( माथापच्ची व पंचायत) दिमाग ज्यादा लगाना पड़ता हैं✍
5) विश्लेषण विधि से पढ़ाने का मतलब है किसी पाठ को अलग अलग भागों में बांटना व विश्लेषण करना ✍

संश्लेषण विधि= विश्लेषण विधि का विपरीत संश्लेषण विधि है
1) किसी भी वस्तु को जिसे छोटे छोटे टुकड़े में बांटा गया हो उस सभी छोटे टुकड़े को फिर से एकत्रित करना संश्लेषण विधि है

2) इसमें किसी भी समस्या का हल उस समस्या से जुड़ी हुई जितनी भी पूर्व ज्ञान सुचनाएं है उसे मिलाकर हम उस समस्या का हल करते हैं✍

“Yung ” ने कहा है कि…..
संश्लेषण विधि से सुखी घास से तिनका निकाला जा सकता है लेकिन विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आता है✍✍✍✍✍✍

विश्लेषण व संश्लेषण में अन्तर……..
1) ये दोनों एक दूसरे के विपरीत है 1
2) विपरीत है इसलिए दोनों का होना जरूरी है 1
3) ये दोनो वैज्ञानिक विधि है परन्तु विश्लेषण अनुसंधान विधि है जो बहुत महत्वपूर्ण है✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍

🌸🌸Varsha sharma🌸🌸


🔶विश्लेषण विधि और संश्लेषण विधि 🔸
✳️ विश्लेषण विधि (analysis)

🔅विश्लेषण विधि वह विधि है जिसके द्वारा हम किसी भी समस्या या विषय वस्तु को टुकड़ों में विभाजित करके उसके एक-एक पहलू का निरीक्षण करते हैं हम समस्या को खंडों में करके उसके पीछे छुपे तर्कों को खोजते हैं और अनुसंधान करते हैं।

जटिल वस्तु को सरल वस्तु बनाते हैं।और अज्ञात वस्तु को ज्ञात की ओर ले जाते हैं।

सरल शब्दों में हम ब्रेनस्टॉर्मिंग करते हैं अपने दिमाग की माथापच्ची करते हैं इसके द्वारा हम अपनी तर्क वितर्क लगाते हैं तर्क शक्ति को बढ़ाते हैं चिंतन को बढ़ाते हैं ।

🔅 संश्लेषण विधि🔅

संश्लेषण विधि में जो समस्या को हमने टुकड़ों में किया है उसे जोड़ कर समाधान निकलते हैं उन्हें एकत्रित करते हैं।
संश्लेषण विधि में हमें दोनों पहलुओं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पर विचार करना चाहिए कि किसी भी स्थिति में परिणाम win win में हो किसी को नुकसान ना हो संश्लेषण के समय हमें प्रत्येक बिंदु को अपने निष्कर्ष में शामिल करना चाहिए।
संश्लेषण और विश्लेषण दोनों विधि एक दूसरे से विपरीत हैं।

इसीलिए दोनों ही विधि आवश्यक हैं दोनों विधि मनोवैज्ञानिक विधि है।

धन्यवाद
वंदना शुक्ला

CTET & TETs TEACHING METHODS ALL SUBJECTS

CTET & TETs TEACHING METHODS / CTET & TETs शिक्षण की विधियाँ

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। “शिक्षण विधि” पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है।

प्रयोग प्रदर्शन विधि —

  • प्राथमिक स्तर के बालकों को भौतिक एवं जैविक पर्यावरण अध्ययन विषय के पाठों के अंतर्गत आए प्रयोग प्रदर्शन को स्वयं करके बच्चों को दिखाना चाहिए ।
  • छात्रों को भी यथा संभव प्रयोग करने तथा निरिक्षण करने का अवसर देना चाहिए ।
  • इस विधि से शिक्षण कराने पर करके सीखने के गुण का विकास होता है ।
    प्रयोग – प्रदर्शन विधि की विशेषता :-
  • यह विधि छात्रों को वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
  • इस विधि में छात्र सक्रिय रहते है तथा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पाठ का विकास होता है ।
  • छात्रों की मानसिक तथा निरिक्षण शक्ति का विकास होता है ।
  • विषय वस्तु सरल, सरस, बोधगम्य तथा स्थायी हो जाती है ।
    प्रयोग-प्रदर्शन विधि को प्रभावी बनाने के तरीके —
  • प्रयोग प्रदर्शन ऐसे स्थान पर करना चाहिए जहाँ से सभी बालकों को आसानी से दिख सके ।
  • छात्रों को प्रयोग करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए ।
  • इस विधि का शिक्षण कराते समय अध्यापक को सक्रिय रहकर छात्रों द्वारा प्रयोग करते समय उनका उचित मार्गदर्शन करना चाहिए ।
  • कक्षा में प्रयोग करने से पहले अध्यापक को एक बार स्वयं प्रयोग करके देख लेना चाहिए ।
  • प्रयोग से संबंधित चित्र, महत्वपूर्ण सारांश एवं निष्कर्ष श्यामपट्ट पर लिखना चाहिए ।
    प्रयोग-प्रदर्शन विधि के दोष —
  • इस विधि से शिक्षण कराने पर सभी छात्रों को समान अवसर नहीं मिलते ।
  • इस विधि में व्यक्तिगत समस्या के समाधान का अवसर छात्रों को नहीं मिलता ।
  • प्रयोग करते समय कुछ छात्र निष्क्रिय बैठें रहते है ।
  • कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर यह विधि प्रभावी नहीं रहती ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि
  • प्रोजेक्ट (योजना) विधि शिक्षण की नवीन विधि मानी जाती है। इसका विकास शिक्षा में सामाजिक प्रवृत्ति के फलस्वरूप हुआ। शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए जो जीवन को समर्थ बना सके। इसके प्रवर्तक जान ड्यूबी के शिष्य डब्ल्यू0एच0 किलपैट्रिक थे।
  • परिभाषा -“प्रोजेक्ट वह सह्रदय सौउद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है ।” – किलपैट्रिक
    ” प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है ।” – प्रो• स्टीवेंसन
    ” क्रिया की एक ऐसी इकाई जिसके नियोजन एवं क्रियान्वन के लिए क्रिया स्वयं ही उत्तरदायी हो ।” – पारकर
  • इस विधि में कोई कार्य छात्रों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है ।
  • प्रोजेक्ट विधार्थियों के जीवन से संबंधित किसी समस्या का हल खोजने के लिए किया जाने वाला कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के चरण :–
  • परिस्थिति उत्पन्न करना – इसमें बालकों की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है ।
  • प्रायोजना का चुनाव – प्रोजेक्ट के चुनाव में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है ।
  • प्रायोजना का नियोजन – इसके अंतर्गत प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना पड़ता है ।
  • प्रायोजना का क्रियान्वन – इस स्तर पर शिक्षक कार्यक्रम की योजना के अनुसार सभी छात्रों को आवंटित करता है ।
  • प्रायोजना का मूल्यांकन – प्रायोजना की क्रियान्विती पूर्ण होने पर छात्र तथा शिक्षक इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि कार्य में कहा तक सफलता मिली ।
  • प्रायोजना का अभिलेखन – इस चरण के अंतर्गत प्रायोजना से संबंधित सभी बातों का उल्लेख किया जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के गुण –
  • यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित विधि है जिसमें बालक को स्वतंत्रतापूर्वक सोचने, विचारने, निरिक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है ।
  • प्रोजेक्ट संबंधी क्रियाएं सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है । इस कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है ।
  • इस विधि में छात्र स्वयं करके सीखते है, अतः प्राप्त होने ज्ञान स्थायी होता है ।
  • प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखा जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के दोष –
  • इस विधि द्वारा सभी प्रकरणों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता ।
  • इस विधि में प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है ।
  • प्रायोजना विधि अधिक खर्चीली है ।
  • इस विधि में अधिक समय लगता है ।
    प्रक्रिया विधि (Learning by doing)
  • इस विधि को क्रिया द्वारा सीखना भी कहते है।
  • शिक्षा में क्रिया को प्रधानता देने वाले प्रथम शिक्षाशास्त्री कमेनियस थे । उनके अनुसार क्रिया करना बालक का स्वाभाविक गुण है, अतः जो भी शिक्षा प्रदान की जाए, वह क्रिया के द्वारा प्रदान की जाए ।
  • शिक्षाविद पेस्टालाजी ने क्रिया द्वारा सीखने पर बल दिया है ।
  • पेस्टालाजी के शिष्य फ्रोबेल ने प्रसिद्ध शिक्षण विधि किंडरगार्टन का आविष्कार किया । यह खेल और प्रक्रिया द्वारा शिक्षा देने की विधि है ।
  • प्रक्रिया विधि बालकों के प्रशिक्षण में क्रियाशीलता के सिद्धांत को स्वीकार करती है ।
  • प्रोजेक्ट विधि, मान्टेसरी विधि, किंडरगार्टन विधि इस पर आधारित है ।
  • प्रक्रिया विधि जैविक एवं भौतिक पर्यावरण विषय के अध्ययन के लिए उपयुक्त विधि है ।
    प्रक्रिया विधि के गुण —
  • यह विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं ।
  • प्रक्रिया विधि में वस्तुओं के संग्रह, पर्यटन, अवलोकन, परीक्षण के विषयों में विशेष रूप से विचार करती है ।
  • बालकों में करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है ।
    प्रक्रिया विधि के दोष —
  • प्रकिया विधि में स्वतंत्र अध्ययन होने के कारण वास्तविक (यथार्थ) अध्ययन नहीं हो पाता ।
  • प्रक्रिया विधि विषय केन्द्रित तथा शिक्षक केन्द्रित नहीं है जबकि शिक्षण में दोनों की आवश्यकता है ।
    सम्प्रत्यय प्रविधि
  • “सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । ” – बोरिंग, लैंगफील्ड और वील्ड ।
  • सम्प्रत्यय किसी देखी हुई वस्तु या मन का प्रतिमान है । ” – रास
  • ” सम्प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है जिसे शब्द या शब्द समूहों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है । सम्प्रत्यय का आधार अनुभव होता है ।” – क्रो एंड क्रो
  • सम्प्रत्यय बालक के व्यवहार को निर्धारित करते हैं । उदाहरण के लिए बालक मस्तिष्क में परिवार का सम्प्रत्यय (मानसिक प्रतिमा) यदि अच्छा और अनुक्रम विकसित हुआ है, तो बालक अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा और परिवार से संबंधित सभी कार्य उत्तरदायित्व से करेगा । परिवार के सभी सदस्यों का आदर करेगा तथा परिवार में वह प्रत्येक प्रकार से समायोजित होगा ।
    सम्प्रत्यय निर्माण प्रविधि —
    सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है । यथा —
    1. निरिक्षण – निरिक्षण के द्वारा बच्चें किसी वस्तु के सम्प्रत्यय का निर्माण करता है ।
    2. तुलना – छात्र निरिक्षण द्वारा बनें विभिन्न सम्प्रत्ययों में तुलना करता है ।
    3. पृथक्करण – छात्र दो सम्प्रत्ययों के बीच समानता और भिन्नता की बातों को पृथक करता है ।
    4. सामान्यीकरण – इसमें छात्र किसी वस्तु का सम्प्रत्यय (प्रतिमा) का स्पष्ट रूप धारण कर लेता है ।
    5. परिभाषा निर्माण – छात्र के उपर्युक्त चारों स्तरों से गुजरने के बाद वास्तविक सम्प्रत्यय का निर्माण उसके मन में बनता है ।
  • सम्प्रत्यय निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक – ज्ञानेन्द्रियाँ 2. बौद्धिक क्षमता 3. परिपक्वता 4. सीखने के अवसर 5. समायोजन 6. अन्य कारक – अनुभवों के प्रकार, लिंग, समय आदि ।
    अनुसंधान विधि (Discovery Methods)
  • इस विधि को खोज या अन्वेषण विधि भी कहते हैं ।
  • प्रो• एच• ई• आर्मस्ट्रांग ने विज्ञान शिक्षण विधि में इस अनुसंधान विधि का सुत्रपात किया ।
  • इस विधि का आधार आर्मस्ट्राग ने हरबर्ट स्पेन्सर के इस कथन पर रखा कि ” बालकों को जितना संभव हो, बताया जाए और उनको जितना अधिक संभव हो, खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।”
  • इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय करना है ।
  • इस विधि में छात्र पर ज्ञान उपर से लादा नही जाता, उन्हें स्वयं सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है ।
  • अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बच्चे को कम से कम बताएं और उसे स्वयं अधिक से अधिक सत्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें ।
    अनुसंधान विधि की कार्यप्रणाली —
  • इस विधि में छात्र के सामने कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है । प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है ।
  • आवश्यकता पड़ने पर बालक परस्पर वाद विवाद करते हैं, प्रश्न पुते हैं तथा पुस्तकालय में जाकर पुस्तक देखते है ।
    अनुसंधान विधि के गुण —
  • बालको को स्वयं करके सीखने को प्रेरित करती है ।
  • छात्रों में वैज्ञानिक अभिरूचि तथा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है ।
  • छात्रों में स्वाध्याय की आदत बनती है ।
  • छात्र क्रियाशील रहते है, जिससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता है ।
  • छात्रों में परिश्रम करने की आदत पड़ जाती है ।
  • छात्रों में आत्मानुशासन, आत्म संयम तथा आत्मविश्वास जागृत होता है ।
  • सफलता प्राप्त करने पर छात्र उत्साही होते है तथा उन्हें प्रेरणा मिलती हैं ।
    अनुसंधान विधि के दोष —
  • छोटी कक्षाओं के लिए अनुसंधान विधि उपर्युक्त नहीं है क्योंकि तार्किक व निरिक्षण शक्ति का विकास छोटे बच्चों में नहीं हो पाता ।
  • इस शिक्षण विधि में मंद बुद्धि विधार्थी आगे नही बढ़ पाते हैं तथा पाठ्यक्रम धीरे – धीरे आगे बढ़ते है ।
  • यह विधि प्रतिभावान बच्चों के लिए उपयुक्त है । पूरी कक्षा के लिए नहीं ।
  • प्राथमिक स्तर के बालक समस्या का विश्लेषण करने में असमर्थ होते है ।
    पर्यटन विधि
  • पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष ज्ञान देने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि में छात्रों को का की चारदीवारी मे नियंत्रित शिक्षा न देकर स्थान – स्थान पर घुमाकर शिक्षा दी जाती है ।
  • पर्यटन के द्वारा बच्चें स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं ।
  • पेस्टालाॅजी पर्यटन विधि के जन्मदाता माने जाते हैं । यद्यपि महान दार्शनिक रूसो ने भी पर्यटन को बालकों की शिक्षा का एक प्रमुख साधन माना है ।
    पर्यटन विधि के लाभ —
  • कक्षा तथा प्रयोगशाला में पढ़ी हुई बातों, तथ्यों, वस्तुओं, सिद्धांतों एवं नियमों का बाह्य जगत में आकर स्पष्टीकरण करने का अवसर मिलता है ।
  • पर्यटन विधि द्वारा विज्ञान शिक्षण को सरल, बोधगम्य तथा आकर्षक बनाया जा सकता है ।
  • पर्यटन विधि द्वारा छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
  • पर्यटन विधि से छात्र मिलकर काम करना सीखते है ।
  • छात्र अपने ज्ञान को क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित करना सीखते है ।
  • इस विधि में छात्र पर्यटन के साथ – साथ मनोरंजन होने के कारण बालक मानसिक रूप से थकते नहीं है ।
    पर्यटन विधि के दोष —
  • इस विधि द्वारा प्रत्येक प्रकरण का अध्ययन संभव नहीं है ।
  • इसकी सफलता के लिए शिक्षक तथा छात्रों में सहयोग जरूरी है ।
  • पर्यटन के लिए उचित मात्रा में धन की जरूरत होती है ।
    प्रयोगशाला विधि
  • इस विधि में छात्र प्रयोगशाला में स्वयं करके सीखना सिद्धांत पर सीखता है अर्थात छात्र स्वयं प्रयोग करता है, निरिक्षण करता है और परिणाम निकालता है । इससे छात्र सक्रिय रहते है ।
  • इस विधि में छात्र को कोई शंका या कठिनाई होती है, तो शिक्षक उसका समाधान करता है ।
  • इस विधि में छात्र अधिकतम सक्रिय रहता है जबकि शिक्षक निरीक्षण करते रहते है ।
    प्रयोगशाला विधि के लाभ —
  • प्रयोगशाला विधि करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि में छात्रों में निरिक्षण, परीक्षण, चिंतन, तर्क आदि कुशलताओं का विकास किया जा सकता है जो विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य है ।
  • छात्रों को अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग का अवसर मिलता है । इस प्रकार प्राप्त इन अधिक स्थाई होता है ।
  • प्रयोगशाला विधि द्वारा छात्रों को वैज्ञानिक विधियों में प्रशिक्षित कर सकते हैं ।
  • इस विधि द्वारा वैज्ञानिक अभिवृद्धि का विकास किया जा सकता है ।
    प्रयोगशाला विधि के दोष —
  • प्रयोगशाला विधि में छोटी कक्षाओं के छात्र कठिनाई महसूस करते हैं ।
  • इस विधि से उच्च स्तर का शिक्षण ही संभव हैं ।
  • अध्यापक के सक्रिय न होने पर यह विधि सफल नही हो सकती ।
  • यह विधि अंत्यत खर्चीली हैं ।
    अवलोकन विधि
  • इस विधि में छात्र स्वयं निरिक्षण कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
  • विज्ञान शिक्षण में छात्र प्रत्येक संभावित तथ्य को देखकर, छूकर, स्पर्श करके और चख कर निरीक्षण करता है, जिसके आधार पर वस्तुओं अथवा पदार्थों के गुणों का वर्णन करने में समर्थ होते हैं ।
  • अवलोकन विधि में निरीक्षण करने की प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित, सबल व प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है ।
    अवलोकन विधि के गुण – –
  • इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी तथा स्पष्ट होता है ।
  • यह विधि स्वयं करके सीखने पर आधारित होने के कारण विषय को रोचक बनाती हैं ।
  • इस विधि में छात्रों को स्वतंत्र रूप से देखने, सोचने तथा तर्क करने का अवसर मिलता है ।
  • छात्रों की विचार प्रकट करने, अभिव्यक्ति प्रकट करने की प्रवृत्ति का विकास होता है ।
  • छात्रों में करके सीखने की आदत का विकास होता है ।
    अवलोकन के समय ध्यान देने योग्य बातें – –
  • छात्रों को अवलोकन हेतु प्रेरित करने से पहले अध्यापक को स्वयं भलीभाँति अवलोकन करना चाहिए ।
  • अवलोकन के सभी कार्य प्रजातांत्रिक वातावरण में होने चाहिए ।
  • आवश्यकतानुसार अध्यापक को अवलोकन के समय बीच – बीच में प्रश्न करते रहना चाहिए
    अवलोकन विधि के गुण – –
  • हर स्तर पर अवलोकन नही कर सकते ।
  • समूह का आकार बड़ा होने पर सभी छात्र प्रदर्शन को नहीं देख पाते हैं जिससे वे अवलोकन नहीं कर पाते ।
  • एक ही समय में कई प्रयोग प्रदर्शन दिखाए जाते हैं जिससे छोटी कक्षाओं के छात्र समझ नहीं पाते ।
    प्रश्नोंत्तर परिचर्चा विधि ( Discussion Methods )
  • प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि का प्रयोग की रूपों में होता है जैसे – वाद विवाद, विचार गोष्ठी, दल चर्चा आदि ।
  • इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब सभी विधार्थियों को विचार विमर्श में सीधे रूप में सम्मिलित करना संभव हो ।
  • इस विधि में कुछ छात्र दिए गए विषय या समस्या के विभिन्न पक्षों पर संक्षेप में भाषण तैयार करते हैं तथा शिक्षक की अध्यक्षता में भाषण देते हैं ।
  • भाषण के उपरान्त शिक्षक शेष छात्रों से प्रश्न आमंत्रित करता है ।
  • जहाँ कहीं जरूरत होती है, शिक्षक सही उत्तर देने में संपूर्ण कार्यक्रम में मार्गदर्शन करता हैं
    प्रश्नोत्तरी परिचर्चा विधि के गुण – –
  • इस विधि में छात्रों में आत्माभिव्यक्ति का विकास होता है ।
  • इस विधि में छात्रों में नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण मिलता हैं ।
  • छात्रों में व्यापक दृष्टिकोण का विकास होता हैं ।
  • आलोचनात्मक चिंतन, तर्क आदि क्षमताओं का विकास किया जा सकता है ।
  • परस्पर सहयोग करने की भावना का विकास होता हैं ।
    प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि के दोष – –
  • प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों की अभिव्यक्ति स्तर की नहीं होती है, अतः प्रयोग करना कठिन होता हैं ।
  • प्रश्नोंत्तर विधि में पाठ्यवस्तु का विकास धीमी गति से होता है ।
  • इस विधि में एक अच्छे पुस्तकालय की सुविधा होनी चाहिए ताकि विधार्थी विचार विमर्श से पहले अध्ययन कर सकें ।
  • इस विधि का प्रयोग करने के लिए कुशल व योग्य शिक्षकों की आवश्यकता होती है ।
    वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
  • यह ह्युरिस्टिक विधि की तरह है जो काम करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि से छात्रों में समस्या हल करने की क्षमता विकसित होती है ।
  • यह विधि छात्रों में चिंतन तथा तर्कशक्ति का विकास करती हैं ।
  • “समस्या विधि निर्देश की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौती पूर्ण स्थितियों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिनका समाधान करना आवश्यक है ।” – वुड
    समस्या समाधान विधि के चरण —
  • समस्या विधि का चयन – अध्यापक व विधार्थी मिलकर समस्या का चयन करते हैं ।
  • समस्या चयन का कारण — विधार्थियों को बताया जाता है कि समस्या का चयन क्यों किया गया है ?
  • समस्या को पूर्ण करना – समस्त विधार्थी अध्यापक के मार्गदर्शन में समस्या के समाधान हेतू कार्य करते है ।
  • समस्या को हल करना — अंत में विधार्थी समस्या का हल खोज लेते है, यह हल प्रामाणिक या परिलक्षित लक्ष्यों पर आधारित होता हैं ।
  • हर या समाधान का प्रयोग — विधार्थी प्रामाणिक समाधान का प्रयोग करते हैं ।
    समस्या समाधान विधि के गुण —
  • समस्या समाधान विधि विधार्थियों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास करती हैं ।
  • इस विधि में छात्र सामुहिक निर्णय लेना सीखते हैं ।
  • छात्रों में वैज्ञानिक ढंग से चिंतन करने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  • यह विधि स्वाध्याय का विकास करती हैं तथा प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
  • यह विधि छात्रों की भावी योजनाओं के समस्याओं को हल करने का प्रशिक्षण देती हैं ।
    समस्या समाधान विधि के दोष
  • समस्या समाधान विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं के लिए नहीं किया जा सकता हैं ।
  • इस विधि में जरूरी नहीं है कि विधार्थियों द्वारा निकाले गए परिणाम संतोषजनक हो ।
  • इस विधि का प्रयोग कुशल अध्यापक ही कर सकते हैं, सामान्य स्तर के अध्यापक नहीं ।
  • इस विधि में पर्याप्त समय लगता हैं ।
     गणितीय दृष्टिकोण से समस्या समाधान विधि —
  • गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
  • अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
  • समस्या प्रस्तुत करने के नियम —
  • समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
  • उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
  • समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
  • समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
  • समस्या लम्बी हो तो उसके दो – तीन भाग कर चाहिए ।
  • नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
  • समस्या निवारण विधि के गुण –
  • इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
  • इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
  • उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
  • समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं
  • समस्या समाधान विधि के दोष
  • जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
  • बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं
  • खेल विधि —
  • खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
  • सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
  • फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल – खेल में दिया जाना चाहिए ।
    खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
  • गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
    खेल विधि के गुण —
  • मनोवैज्ञानिक विधि – खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
  • सर्वांगीण विकास — खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
  • क्रियाशीलता – यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • सामाजिक दृष्टिकोण का विकास – इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
  • स्वतंत्रता का वातावरण – खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं
  • रूचिशील विधि – यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
    खेल विधि के दोष –
  • शारीरिक शिशिलता
  • व्यवहार में कठिनाई
  • मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
    आगमन विधि –
  • इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं
  • यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
  • इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है । उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
    आगमन विधि के गुण —
  • यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
  • इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
  • नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
  • इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
  • यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
    आगमन विधि के दोष —
  • यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
  • आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
  • छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
    निगमन विधि
  • इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
  • इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है
    निगमन विधि के गुण —
  • बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
  • यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
  • ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
  • ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
  • इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
  • इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
    निगमन विधि के दोष —
  • निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
  • इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
  • इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
  • नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
    आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष —
  • आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
  • प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
    विश्लेषण विधि (Analytic Method) —
  • विश्लेषण शब्द का अर्थ है – किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग – अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
  • यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
  • इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।
    संश्लेषण विधि
  • संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
  • संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
  • इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।
    विश्लेषण – संश्लेषण विधि —
  • दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
  • जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
  • “संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।” – प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।
    योजना विधि
  • इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
  • उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।
    योजना विधि के सिद्धांत — समस्या उत्पन्न करना, , कार्य चुनना, योजना बनाना, योजना कार्यान्वयन, कार्य का निर्णय, कार्य का लेखा
  • योजना विधि के गुण —
  • बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  • क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।
    योजना विधि के दोष –
    इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।
    क्या आप जानते है ?
  • गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार एवं कुंजी हैं – बैकन
  • गणित संस्कृति का दर्पण है – हाॅग बैन
  • तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है – बर्नार्ड शाॅ
  • गणित क्या है, यह उस मानव चिंतन का प्रतिफल है, जो अनुभवों से स्वतन्त्र तथा सत्य के अनुरूप है – आइन्सटीन
  • गणित एक विज्ञान है जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं – पियर्स
  • आगमन विधि गणित में सूत्रों की स्थापना हेतु उत्तम विधि हैं । आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर सिद्धांत लागू होता हैं ।
  • विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर अग्रसर हैं ।
  • त्रिकोणमिति गणित में मौखिक कार्य का सर्वाधिक महत्व छात्रों के मानसिक विकास करने में हैं ।
  • यदि विज्ञान की रीढ़ की हड्डी गणित हटा दिया जाए, तो सम्पूर्ण भौतिक सभ्यता निःसंदेह नष्ट हो जाएगी – यंग

शिक्षण विधियों की कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • पाठ योजना (पंचपदी) के प्रवर्तक – हरबर्ट स्पेन्सर
  • इकाई योजना के प्रवर्तक – मारिसन
  • खेल विधि के प्रवर्तक – काल्डवेन कुक
  • खोज/अनुसंधान/ अन्वेषण/ह्युरिस्टिक विधि के प्रवर्तक – प्रो• आर्मस्ट्राग
  • अभिक्रमिक अनुदेशन विधि के जन्मदाता – बी• एफ• स्किनर
  • प्रोजेक्ट/ प्रायोजना विधि के प्रवर्तक – किलपैट्रिक
  • प्रयोगशाला विधि स्वयं करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष इन देने के सिद्धांत पर आधारित है । (पेस्टालाजी)
  • अवलोकन विधि से छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
  • अनुसंधान विधि से छात्रों में खोज प्रवृत्ति का उदय होता है ।
  • समस्या समाधान विधि में छात्रों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास होता है ।
  • छोटी कक्षाओं में अधिकतर प्रयोग प्रदर्शन विधि का प्रयोग उचित होता है ।
  • बड़ी कक्षाओ में प्रयोगशाला विधि का प्रयोग किया जाना उचित है ।
  • प्रयोग प्रदर्शन विधि से शिक्षण कराने में बालकों में करके सीखने के गुण का विकास होता हैं
  • प्रायोजना विधि में कोई कार्य बालकों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं हर करने का प्रयास करते हैं ।
  • प्रक्रिया विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं । बालक स्वतः स्वभाविक रूप से क्रियाशील होता हैं ।
  • सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । सम्प्रत्यय वे विचार है जो वस्तुओं, घटनाओं तथा गुणों का उल्लेख करते हैं ।
  • सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है – निरिक्षण, तुलना, पृथक्करण, सामान्यीकरण तथा परिभाषा निर्माण । व्याख्यान विधि सबसे सरल व प्राचीन विधि है ।छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि – खेल मनोरंजन विधि
  • रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – विश्लेषण विधि
  • बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन निगमन विधि
  • नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन विधि
  • स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि – अनुसंधान विधि
  • मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि – खेल विधि
  • ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि – विश्लेषण विधि
  • सर्वाधिक खर्चीली विधि – प्रोजेक्ट विधि
  • बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि – समीकरण विधि
  • सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि – आगमन विधि
  • प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि – खेल विधि
  • वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि – विश्लेषण विधि
  • गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
  • शिक्षण एक त्रि – ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
  • व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
  • बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
  • प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।

सामान्य विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्य अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में —

  • ज्ञान (Knowledge) — छात्रों को उन तथ्यों, सिद्धांतों व विधियों का ज्ञान प्रदान करना है जो विज्ञान से संबंधित हैं । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होगे —
    • A. विज्ञान के नवीन शब्दों की जानकारी प्राप्त कर छात्र वैज्ञानिक भाषा में तथ्यों का वर्णन कर सकेंगे ।
      B. छात्र अपने व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान को प्राप्त व व्यक्त कर सकेंगे ।
      C. वैज्ञानिक परिभाषाएँ तथा सिद्धांतों से परिचित होकर उनमें पारस्परिक संबंध स्थापित कर सकेंगे ।
  • अवबोध (Understanding) — इससे बालक में निम्नलिखित परिवर्तन आएगें – A. छात्र वैज्ञानिक विचारों तथा संबंधों को अपनी भाषा में व्यक्त करता है तथा विभिन्न तथ्यों में परस्पर तुलना कर सकता हैं । B. कारण तथा प्रभाव संबंध को स्पष्ट कर सकता हैं ।
  • ज्ञानापयोग (Application) – छात्र अपरिचित समस्याओं को समझने एवं उन्हें हल करने में सामान्य विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करता है ।
  • कौशल (Skill) — छात्रों में चार्ट एवं चित्र बनाने तथा उनमें प्रयोग करने का कौशल उत्पन्न हो जाता है । इसके अंतर्गत उसमें निम्न परिवर्तन होते हैं —
    A. पर्यावरण से संबंधित तथ्यों व वस्तुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने की योग्यता प्राप्त करता है ।
    B. उपकरणों को प्रयोग में लाने, परीक्षण करके परिणाम निकालने, उनमें होने वाले दोषों को दूर करने की कुशलता प्राप्त करता हैं ।
  • अभिवृति (Attitude) — A. बालक विभिन्न परिस्थितियों में शीघ्र व सही निर्णय ले सकता है
    B. अंधविश्वासों व पूर्वाग्रहों को वैज्ञानिक विधि से दूर करने में सहायता प्राप्त होती हैं ।
    C. विज्ञान से संबंधित तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करता हैं ।
  • अभिरुचि (Interest) — A. विधालय की वैज्ञानिक प्रवृत्तियों जैसे — विज्ञान मेला, विज्ञान प्रदर्शनी, विज्ञान क्विज आदि में सक्रिय भाग लेता हैं ।
    B. विज्ञान के दैनिक उपयोग संबंधी कार्यों में रूचि लेता हैं ।
  • प्रशंसा (Appreciation) — वैज्ञानिक आविष्कारों एवं खोजों के मानव जीवन में योगदान की प्रशंसा करता है । वैज्ञानिकोंके जीवन की घटनाओं की सराहना कर उनसे प्रेरणा लेता है
    NCERT के शब्दों में हमारे शैक्षिक उद्देश्य वे परिवर्तन है जो हम बालक में लाना चाहते है

    गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन —-
  • ज्ञान – छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
    व्यवहारगत परिवर्तन –
    A. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं
    B. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
    C. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
  • अवबोध — संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
  • कुशलता — विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे
  • ज्ञानापयोग —
    A. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
    B. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
    C. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
  • रूचि :–
    A. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
    B. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
    C. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
    D. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
  • अभिरुचि :–
    A. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
    B. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
    C. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
    D. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
  • सराहनात्मक (Appreciation objectives)
    A. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
    B. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।

विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उपकरण —

  • मैजिक लेण्टर्न — इसके द्वारा छोटे चित्रों को बड़ा करके पर्दे पर प्रदर्शित किया जाता है । इसमें पारदर्शी शीशे की स्लाइड प्रयोग में लाई जाती हैं ।
  • एपिस्कोप – इस उपकरण द्वारा पुस्तक, पत्रिका आदि के चित्र, रेखाचित्र तथा ग्राफ आदि के सूक्ष्म रूप को पर्दे पर बड़ा करके दिखाया जाता हैं । इसमें स्लाइड बनाने की आवश्यकता नही पड़ती ।
  • एपिडायस्कोप – इस यंत्र द्वारा मैजिक लेण्टर्न तथा एपिस्कोप दोनों के काम किए जाते हैं ।
  • प्रतिमान (माडल) — जब प्रत्यक्ष वस्तु बहुत बड़ी हो, कि कक्षा में लाना असंभव हो, अथवा इतनी छोटी हो कि दिखाई ही न पड़े, तब माडल का प्रयोग किया जाता है । इंजन, हवाई जहाज, छोटे जीव जन्तु, जीवाणु, इलैक्ट्रोनिक सामान, मानव ह्रदय आदि का अध्ययन माडल के सहयोग से किया जाता हैं ।

Pedagogy / शिक्षा शास्त्र कक्षा सारांश -2

Pedagogy class -2
Teaching methods/formulas
Essentials for best teaching method-
this is the name of all teaching methods

  1. Known to unknown:- whatever we know is the best way to understand an unknown things.
    {link the concepts from previous knowledge}
  2. from easy to complex:- if you know something , it is easy to understand but if you are unknown to something then it is complex for you.
    It depends on place time and situation. It vary person to person.
  3. macro to micro:- macro means large and micro means small.
    Micro is the conclusion/ perfection
    Macro is the deep study or huge knowledge
    Macro is necessary for micro teaching
    4.direct to indirect/ concrete to abstract:- [ pratyaksh – apratyaksh / moort – amoort]
    Link existing things to new things
  4. complete to fraction:- [poorn se ansh]
    When we know complete knowledge about something then only we go for a part
  5. uncertain to certain/ unpredictable to predictable:- in beginning some concepts are uncertain to us but when we got to know about the concept it will be certain to us.
  6. analysis to synthesis:- anylse the all aspects and then conclude it. It is very effective to understand something.
  7. specific to general:- specific things make a general statements . general is a rule.
  8. psychology to logic:- when you aware about the pattern/ psychology then you think is logically.
  9. experience to concept:- experience makes the concept

By – Chahita acharya


● शिक्षण :-

◆ “ शिक्षण एक उद्देश्य निर्देशित किया है”….. स्मिथ
◆ ” शिक्षण पुनर्बलन की आकस्मिकताओं का क्रम है ” ….. स्कीनर
• शिक्षण पशुवत प्रवृत्तियों का परिशोधन है ।
• शिक्षण शिक्षा में उद्देश्य प्राप्ति का साधन है ।
• शिक्षण बालक को संवेग नियंत्रण करना सिखाता है ।
• शिक्षण का मुख्य उद्देश्य बालक में आत्म विश्वास उत्पन्न करना है ।
• शिक्षण बालक में वातावरण के साथ समायोजन की योग्यता विकसित करता है ।

● शिक्षण के सिद्धान्त :-

1.क्रियाशीलता या करके सीखने के सिद्धान्त

  1. अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
  2. रूचि का सिद्धान्त
  3. निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त
  4. नियोजन का सिद्धान्त
  5. व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धान्त
  6. चयन का सिद्धान्त
  7. लोक तांत्रिक सिद्धान्त
  8. आवृति का सिद्धान्त
  9. मनोरंजन का सिद्धान्त
  10. विभाजन का सिद्धान्त

● शिक्षण की प्रविधियाँ :-

  1. प्रश्नोत्तर प्रविधि
  2. वर्णन प्रविधि
  3. व्याख्या या भाषण प्रविधि
  4. स्पष्टीकरण प्रविधि
  5. निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि
  6. उदाहरण प्रविधि
  7. सामूहिक परिचर्चा प्रविधि
  8. प्रयोगार्थ प्रविधि
  9. वाद – विवाद प्रतिक्षि

● शिक्षण की विशेषताएँ :-

◆ शिक्षण किया के आधार पर शिक्षण तीन प्रकार के होते हैं । प्रस्तुतीकरण , प्रदर्शन और कार्य
◆ शिक्षण उद्देश्य के आधार पर शिक्षण तीन प्रकार के हैं । ज्ञनात्मक , भावात्मक , क्रियात्मक
◆ शिक्षण स्वरूप की दृष्टि से शिक्षण दो प्रकार के हैं । वर्णात्मक शिक्षण , उपचारात्मक शिक्षण
◆ शिक्षण को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारक हैं । आनुवांशिकता और वातावरण

प्रमुख शिक्षण सूत्र :-

  1. सरल से कठिन की ओर
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  4. पूर्ण से अंश की ओर
  5. अनिश्चित से निश्चित की ओर
  6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  7. विशिष्ट से सामान्य की ओर
  8. संश्लेषण से विश्लेषण की ओर
  9. अनुभव से तर्क की ओर
  10. मूर्त से अमूर्त की ओर
  11. आगमन से निगमन की ओर
  12. प्रयोग से विवेक की ओर
  13. मनोवैज्ञानिकता से तर्कात्मक क्रम की ओर

🇧 🇾- ᴊᵃʸ ᴘʳᵃᵏᵃˢʰ ᴍᵃᵘʳʸᵃ


“शिक्षण सूत्र”➖इनका प्रयोग बच्चे को बेहतर रूप से सिखाने के लिए किया जाता है।

▪️ज्ञात से अज्ञात की ओर- जो चीजे हमे पहले से पता होती है या ज्ञात होती है उन ज्ञात चीजों की मदद से अज्ञात चीजों को या जो हम नहीं जानते है उन्हें जानना हमारे लिए बहुत आसान हो जाता है।

  • जब भी हम किसी विषय या वस्तु के बारे में बेहतर रूप से बताना चाहते है तो वह विषय या वस्तु उस व्यक्ति से जुड़ी हुई हो,उसकी उस विषय में रुचि हो, उसे कुछ पूर्व ज्ञान हो तब ही आप उसे आसान, प्रभावी और बेहतर और पूर्ण रूप से समझा पाएंगे।

▪️ सरल से जटिल की ओर➖
*दुनिया में किसी भी व्यक्ति स्थान, समय और परिस्थिति के अनुसार ही सरल और जटिल की परिभाषा अलग अलग प्रकार से होती है।
*जब हम चीजों के बारे में जानते है तो वह हमे काफी सरल लगने लगती है और जब हम इन्हीं सरल चीजो के द्वारा जटिल चीजों को जानने का प्रयास करते है तो फिर हमे यह चीजे भी काफी आसान लगने लगती है।
जैसे यदि हम गणित में छोटी छोटी गणना जैसे जोड़, गुणा, भाग,घटाव के बारे में जानते है तो हमे गणित की जटिल प्रक्रिया को समझना आसान हो जाता है।

▪️ स्थूल से सूक्ष्म की ओर➖

  • जब हम किसी चीज के बारे में बड़े रूप में, बेहतर रूप से , स्थूल रूप से जानते है तो उसे संक्षिप्त या सारांश के रूप में या छोटे रूप में बताना काफी आसान हो जाता है।
    *जैसे यदि हम किसी को बताए कि हमारी क्लासेस आज हुई थी,कल हुई थी, परसो हुई थी,आगे भी होगी…तो यह बड़े रूप से जानना हो जाएगा लेकिन इसी बात को हम बोले की हमारी क्लासेस रोज होती है तो यह छोटे रूप में या सूक्ष्म रूप में बताना हो जाता है ।सूक्ष्म रूप से बताने में चीजे आसानी से ओर बेहतर तरीके से समझ आ जाती हैं।
    *जैसे यदि हम बताए कि सभी अभाज्य संख्याएं एक से या खुद से ही विभाजित होती है तो यह सूक्ष्म रूप से बताना होगा लेकिन जब हम यह बोले कि 3 एक अभाजय है और वह 3,1,11,17,19 21….से विभाजित होती है तो यह स्थूल रूप से बताना हो जाता है।

▪️प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष/मूर्त सेअमूर्त➖
जो चीजे हमारे सामने है या प्रत्यक्ष रूप से या मूर्त रूप में होती है उन्हीं के द्वारा जब हम उन चीज़ों के बारे में बताते है जो हमारे सामने नहीं है,अमूर्त है या अप्रत्यक्ष है ,तब वहां बताना काफी आसान हो जाता है।

▪️पूर्ण से अंश की ओर➖
इसमें बच्चे को संपूर्ण ज्ञान से एक अंश की ओर के जय जाता है।
जब हम किसी विषय या वस्तु के बारे में समस्त जानकारी या ज्ञान को जानते है तब ही हम उस विषय के बारे में उसका बेहतर और आसान रूप से अंश बता पाएंगे।विषय के overview से किसी particular अंश को बेहतर तरीके से define किया जा सकता है।

▪️
अनिश्चित से निश्चित की ओर➖जो चीजे हमारे लिए निश्चित नहीं है या अनिश्चित है उन्हीं की द्वारा हम निश्चित चीजों के बारे में बेहतर जान पाते है।

  • जब हमे चीजे पता नहीं होती है या हमारे लिए अनिश्चित होती है लेकिन जब उसे बता दिया जाता है तब वह चीजे हमारे लिए निश्चित हो जाती है।ओर उन्हें समझना काफी आसान और बेहतर हो जाता है।

▪️ विश्लेषण से संश्लेषण की ओर➖किसी भी विषय या वस्तु के बारे में अलग अलग रूप से या टुकड़ों में या छोटे छोटे रूप में या उसका विखंडन करके बताया जाता है तो यह विश्लेषण कहलाता है ओर हम इसी विश्लेषण के द्वारा ही प्राप्त ज्ञान को जब एक सार कर एक रूप से निर्मित कर देते है तब यह संश्लेषण कहलाता है।

▪️ विशिष्ठ से सामान्य की ओर➖
जब किसी विशिष्ठ परिस्थिति में सीखा हुआ ज्ञान हमारे पास होता है तो उसे हम सामान्य रूप से बता पाते है।
जैसे यदि हमारे पास यह विशिष्ठ ज्ञान है कि हमारे यहां पर 1 घंटे के लिए बिजली आज गई थी,कल भी गई थी,परसो भी गई थी ,आगे दो दिन भी जाएगी ,या आगे भी जाती रहेगी यह सब बताने कि बजाय यह बता दिया जाए कि प्रतिदिन हमारे यहां पर बिजली एक घंटा जाती है तो यह सामान्य रूप में बताना हो जाता है। ज्ञान को विशिष्ठ से सामान्य रूप में बताने पर वह ज्ञान सरल ओर बेहतर तरीके से समझने योग्य हो जाता है।

▪️ मनो वैज्ञानिक से तार्किकता की ओर➖जब हमारे दिमाग में या हमारे मन में कोई बात या ज्ञान होता है और जब हम इसी ज्ञान पर तर्क लगाते है तो समझना काफी आसान हो जाता है।

  • जब हम अपने मन के ज्ञान का प्रयोग ,जिसे हमने देखा है उसी ज्ञान का प्रयोग ,जिसे हमने नहीं देखा है उस पर तर्क लगाने लगते है।

▪️ अनुभव से युक्ति की ओर➖
हमारे पास पूर्व से कुछ प्राप्त अनुभव होते है और इन्हीं अनुभव का प्रयोग हम युक्ति या concept को बेहतर तरीके से समझने में प्रयोग करने लगते है।
वैशाली मिश्रा..


शिक्षण सूत्र :- (1) ज्ञात से अज्ञात की ओर :- यह पूर्व ज्ञान पर आधारित है इसमें बच्चे को उस तरीके से सिखाया जाता है जो उनके पूर्व ज्ञान पर आधारित होता है.. (2) सरल से जटिल की ओर :- इसमें किसी विशेष व्यक्ति स्थान समय या समस्या के अनुसार बात की जाती है जो बच्चे के पूर्व ज्ञान पर आधारित होती है… (3) स्थूल से सूक्ष्म की ओर :- स्थूल (बडा़) सुक्ष्म (छोटा) इसमें उदाहरणों के अनुसार किसी विशेष समस्या को पेश किया जाता है और उसके अनुसार निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है जो कि बहुत ही सूक्ष्म होते हैं… (4) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर :- इसमें प्रत्यक्ष उदाहरण के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप को प्रस्तुत किया जाता है और उसके अनुसार परिणाम को प्राप्त किया जाता है… (5) पूर्ण से अश की ओर :- अर्थात किसी विशेष समस्या को पहचान कर उसके भाव को समझकर परिणाम तक पहुँचना ही पूर्ण से अश की ओर होता है… (6) अनिश्चित से निश्चित की ओर :- पहले किसी अनिश्चित वस्तु के बारे में जानना समझना और फिर निष्कर्ष निकालना ही अनिश्चित से निश्चित की ओर जाना है… (7) विश्लेषण से सशलेषण की ओर :- अनेक भागो में तोडकर समझना और एक निष्कर्ष निकालना…. (8) विशिष्ट से सामान्य की ओर :- कोई भी चीज़ एक विशेष स्थिति में सही मानी जाती है उस Situation के अनुसार सामान्यीकृत करना ही विशिष्ट से सामान्य की ओर जाना है.. (8) मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर :- किसी विशेष समस्या को मानसिक रूप से समझकर उसका तर्क लगाना ही मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर जाना है.. (10) अनुभूत से युक्ति युक्त :- अपने ज्ञान के अनुसार किसी Concept को विकसित करने की प्रक्रिया ही अनुभूति से युक्तियुक्त की ओर चलना है…….. 🌺🌺🌺

Rashmi savle🌸🌸🌸🌸


✍️27/08/20,✍️🌸 Topic – Teaching models/formulas 🌸( 1) ज्ञात से अज्ञात की ओर – जब हम किसी पॉइंट के बारे मेँ अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर किसी अज्ञात chiizo के बारे मेँ जानते है। 2- सरल से जटिल – किसी भी सरल यानी आसान बातो को जब हम समझ जाते है तो जटिल यानी मुश्किल chhizze/point/बातें आसान ही जाती है।जैसे:- छोटे – छोटे स्टेप्स (सरल ) से लक्ष्य (जटिल ) को पूरा करना।….. 3)स्थूल से सूक्ष्म :- किसी बड़ी baation की गहनता को जब हम समझ जाते है तो अंत मेँ उसका सार के रूप मे हम सूक्ष्म रूप से समझ सकते है। जैसे -किसी फ़िल्म का ट्रेलर देखकर उस मूवी का आईडिया लग जाना की मूवी कैसी hogi… 4) प्रतयक्ष से अप्रतयक्ष -इसमें चीजे मूर्त रूप से सामने रहती है ओर हम उसके बारे मे अमूर्त रूप से अध्ययन करते है। 5) पूर्ण से अंश की ओर – इसे हम स्थूल से सूक्ष्म रूप मे सम्बंधित करके समझ सकते है। 6)विश्लेषण से संष्लेशन – जब हम अननकेडेमी मे आये पढ़ने तो हमने बहुत सारे टीचर्स को देखा CDP के लिए विश्लेषण किया… फ़िर अंत मे हम 🥰दीपक सर के पास आये (संश्लेषन )….. 7)विशिष्ट से सामन्य – जैसे बिजली आज 5बजे गयी कल, परसो भी जाएगी यह विशिष्ट फ़िर हमने ये सामन्य रूल बना लिया बिजली रोज 5 बजे जाएगी अब। 8) मनोवैज्ञानिक से तार्किकता – किसी टॉपिक पर अपनी मन की विज्ञान / आत्मा से विचार करना फ़िर किसी अवधारणा तक अपनी राय बनाना। 9- अनुभव से युक्ति तक – अनुभव इंसान को उसे अपनेयुक्ति तक pauchane मे सहायक होता है। 10)- अनिश्चित से निश्चित की ओर – जब हम कोई कार्य करते है तो अनिश्चित होती है ( शुरुआत मे ) पर जब हम उसे कर लेते है तो निश्चिता आ जाती है। 🤟🌸 शिक्षन विधी ना सिर्फ हमारे किताब तक सिमित है बल्कि ये हमारे जीवन के हर छोटे बड़े पहलु मे शामिल है… ये हमें जीवन जीने को तरीके को / बच्चे को पढ़ाने (हम भावी शिक्षक को ) के तरीके को एक सुवयवस्थित रूप प्रदान करती है।🤟🌸💥…….

By -Akanksha kumari🤘🏻


शिक्षण विधियां :-

🌄एक सुव्यवस्थित शिक्षण अधिगम के लिए अपनाई जाने वाली अत्यंत आवश्यक एवं सुगम शिक्षण विधियां :-

  1. सरल से कठिन की ओर
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  4. पूर्ण से अंश की ओर
  5. अनिश्चित से निश्चित की ओर
  6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  7. संश्लेषण से विश्लेषण की ओर
  8. मूर्त से अमूर्त की ओर
  9. विशिष्ट से सामान्य की ओर
  10. मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर
    11.अनुभूत से युक्तियुक्त की ओर

🌄इन शिक्षण – अधिगम विधियों का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों के अधिगम को बेहतर रूप में प्रेरित करना है,क्योंकि इसमें शिक्षार्थियों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उनकी सक्रिय रूप भागीदारी निहित होती है।

🏝️जैसे कि, हम इस दुनिया में अपने आस – पास जो कुछ भी प्रत्यक्ष या रोजाना की जिंदगी में देखते या अनुभव करते हैं,ये सारे ज्ञात चीजें हैं।इसी के आधार पर हम अपने अनुभवों द्वारा अज्ञात चीजों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाते हैं।

🏝️जैसे जब हम किसी विषय वस्तु के बारे में किसी को बताना चाहते हैं,हम उस चीज़ को उस व्यक्ति को बताने से पहले उसके रुचि और सहज क्षमता ( पूर्व ज्ञान) के बारे में जान लेना चाहिए।क्योंकि,जब व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान से संबंधित करके किसी कार्य को करता या सीखता है तभी एक अच्छी मस्तिष्क कि विकास होती है और बेहतर शिक्षण – अधिगम हो पाती है फिर वह अपनी लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर पाते हैं।

🏝️शिक्षण इस बात पर भी निर्भर होती है कि हम कितना ज्ञान है और उसका उपयोग किस रूप में किया जा रहा है। जैसे कि बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो उनमें तर्क करने या सोचने समझने की क्षमता बहुत कम होती है,धीरे – धीरे, जैसे – जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं तो उनके तर्क – वितर्क और शाब्दिक क्षमता बढ़ने लगती है। इन विधियों में ठीक इसी प्रकार की प्रविधि होती है।

🏝️जैसे कि हम बच्चों को किसी कार्य शिक्षण में अनेक प्रकार की उदाहरणों को प्रस्तुत कर उनमें समस्याओं का समाधान करने की सहज प्रवृति विकसित करते हैं,तथा बच्चे सक्रिय होकर उसे यथावत रूप आत्मसात करने और उसपर विश्लेषण करने में सक्षम हो जाते हैं।इस प्रकार की विधियों द्वारा शिक्षण प्रक्रिया और भी मनोरंजक हो जाती हैं।

🌎इन शिक्षण सूत्रों के द्वारा( प्रयोग कर)हम शिक्षण – अधिगम को मनोरंजक,रूचिपूर्ण और सुव्यवस्थित बनाना चाहिए, तभी बच्चे सक्रिय रूप भागीदारी लेते हुए शिक्षण – अधिगम को रूप से सुव्यवस्थित रूप से आत्मसात् कर पाएंगे।

Neha Kumari


शिक्षण सूत्र (विधि)—-
किसी भी विषय को सीखने के लिए जिस विधि का प्रयोग किया जाता है उसे शिक्षण विधि कहते है!…
शिक्षण विधि के कई प्रकार है~~
१) ज्ञात से अज्ञात की ओर== बच्चे को उसके पूर्वज्ञान की सहायता से अज्ञात ज्ञान तक ले जाना , अर्थात् इसमें बच्चे के पास कुछ पूर्वज्ञान होता है जिससे रिलेट करके बच्चा अज्ञात ज्ञान को समझता है, पूर्वज्ञान के द्वारा अज्ञात को जानने में आसानी होती हैं।
२) सरल से जटिल की ओर== बच्चो को सरल चीजों से रिलेट करके जटिल पर ले जाना अर्थात् जो बच्चे को पता है वह उसके लिए सरल होता है एवं जो बच्चे को नहीं पता है वह उसके लिए जटिल होता है।जैसे समय और परिस्थिति के अनुसार जो काम एक बच्चे के लिए जटिल है वहीं कार्य दूसरे के लिए सरल होगा ।
३) स्थूल से सुष्म की ओर== बच्चो को किसी बात को बड़े पैमाने पर एक्सप्लेन करके समझाकर एक लाइन में उसके सारांश को बताना । किसी टॉपिक पर बड़ा एक्स्पलैनशन करके फिर सुश्म निष्कर्ष तक पहुंचना।
४) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष ==
जो बच्चे के सामने है उससे रिलेट करके जो सामने नहीं है उसके बारे में बताना, अर्थात् जो सामने है वह प्रत्यक्ष ( मूर्त) है तथा जो सामने नहीं है वह अप्रत्यक्ष (अमूर्त) है।
५) पूर्ण से अंश की ओर==
बच्चे को किसी विषय पर चर्चा करने से पहले उसके पूर्ण रूप को बताएंगे फिर उसके भागो के बारे में चर्चा करेंगे ,जैसे – बच्चे को पहले पेड़ को बताएंगे फिर उसके भागो ( पत्ती, शाखा, जड़ इत्यादि) के बारे में बताएंगे।
६)अनिश्चित से निश्चित की ओर==
बच्चे को पहले किसी अनिश्चित वस्तु के बारे में बताना फिर एक निश्चित निष्कर्ष तक जाना ही अनिश्चित से निश्चित की ओर हैं।
७) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर==
किसी विषय को अनेक भागो में तोड़कर समझना और फिर उन्हें जोड़कर एक निष्कर्ष निकालना ही विश्लेषण से संश्लेषण की ओर हैं।
८) विशिष्ट से सामान्य की ओर==
किसी विषय पर अलग अलग विशिष्ट स्तिथि में बाते मानी जाती है उस स्तिथि के अनुसार विशिष्ट बातो का एक सामान्य रूप या निष्कर्ष निकालना ।
९) मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर==
जब हमारे मन में कोई बात होती है उस पर मानसिक रूप से तर्क करके निष्कर्ष निकालना।
९०) अनुभव से युक्ति युक्त की ओर==
हमारे पूर्व अनिभवो का प्रयोग करके हम एक नया कॉन्सेप्ट बना सकते है जो हमें कॉन्सेप्ट को समझने मे मदद करता हैं।

अनामिका राठौर


ःशिक्षण सुत्र 🌸🌸🌸🌸
ःज्ञात से अज्ञात ़
जो बच्चे कोज्ञात होता है उसी के माध्यम से जो ज्ञात नहीं है बच्चे को बताते है इससे बच्चे आसानी से समझ जाते हैं जैसे बच्चे के मन में चित्र बन जाता है आसानी से रिलेट कर पाते है

सरल से जटिल 🌸🌸🌸
बच्चे पहले कोई भी कार्य सरल तरीके से करते हैं बाद में जटिल जैसे -पहले बच्चे क ल म सीखते है बाद में पुरा वाक्य कलम सीखते है
स्थूल से सूक्ष्म 🌸🌸🌸🌸
बड़ा से छोटा
किसी चीज को पहले हम बड़ा करके बताते है बाद में सक्षिपत मतलब छोटा करके बताते है जैसे -कोई पुछेगा क्लास कब कब हैं तो आज है कल हैं परसो हैं ये बड़ा हो गया और उसी को बोलेगे क्लास प्रतिदिन होती हैं ये छोटा

प्रत्यक्ष से प्रमाण 🌸🌸🌸
इसे मुत् से अमुत् भी बोलते है
कोई चीज सामने होती हैं तो बच्चे को समझाने में आसानी होती हैं अप्रत्यक्ष रूप से बताने सामने नहीं होता है
पूण् से अश की 🌸🌸🌸
इसमें बच्चे को सपूण् ज्ञान से अश की ओर जाते हैं जब हम किसी विषय के बारे में जानते हैं तो हम आसानी से बता सकते हैं

अनिशचित से निशिचित 🌸🌸🌸
जब हम किसी काय् को अनिशचित तरीके से जानते हैं उसी को फिर हम निशचित तरीके से करते हैं

विशलेषण से संश्लेषण 🌸🌸🌸🌸
विश्लेषण में किसी चीज को डिटेल में बताते है और सशलेषण में छोटा करके
ःविशलेषण मतलब तोड़ना
ःसशलेषण मतलब जोड़ना

विशिष्ट से सामान्य 🌸🌸🌸🌸
जब हम कोई काय् विशिष्ट तरीके से जानते है उसे सामान्य रुप में बताते है जैसे उसे Drawing बहुत अच्छी आती हैं

मनोविज्ञान से ताकिक्ता 🌸🌸🌸🌸

बच्चे की उतम विघि हैं ः

जब हम अपने मन से सोचते हैं उसपे तक्र करते है समझना काफी आसान हो जाता है

अनुभव से युक्ति 🌸🌸🌸🌸
हमारे पास कुछ अनुभव होते है इसी अनुभव के आधार पर हम
Concept लगाते है और बेहतर तरीके से सीखते हैं

Neha Roy

आगमन विधि और निगमन विधि नोट्स

आगमन विधि ( Inductive Method) आरसतू :- यह विधि शिक्षण अधिगम की सबसे अच्छी विधि है because इस विधि में नये ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है जो अनुसंधान की राह प्रदान करता है इस विधि में चीजों को Attempt करने का अवसर मिलता है लोगों को उस ज्ञान की जरुरत होती है जिससे कुछ नया अविष्कार होता है…. आगमन विधि के key points :-

( 1 ) समस्या को खोजकर हम एक निकर्षण पर पहुचते हैं जिससे आत्मविश्वास में व्रद्धि होती है और यह विधि करके सीखने पर आधारित है…

( 2 ) परिस्थितियों Situation के अनुसार नियम बनाकर उसको implement किया जाता है जिससे रटने की प्रव्रति का अत होता है और अनुभव बढ़ जाता है…

( 3 ) समस्या आने पर हम उसको Explore करते हैं जिससे अनुसंधान किया जाता है और हम Solution तक पहुँच जाते हैं… आगमन विधि की विशेषताएं

Rashmi Savle

🔅आगमन और निगमन विधि🔅

🔆आगमन विधि➖शिक्षण अधिगम की सर्वोत्तम विधि है।यह नए ज्ञान को खोजने के अवसर प्रदान करती है एवं अनुसंधान मार्ग को भी प्रशस्त करती है।
जब हमे किसी चीज की जरूरत होती है या हमे किसी कार्य को पूरा करने में कोई समस्या आती है तो उस जरूरत को पूरा करने या समस्या का समाधान निकालने के लिए खोज करते है जिससे हमे कई सारे नवीन ज्ञान प्राप्त होते है।
* और जब भी हम नए ज्ञान को खोज लेते है या अनुसंधान कर लेते है तो एक निष्कर्ष पर पहुंच जाते है।जिससे हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है,क्योंकि हम खुद से उस कार्य को करते है, उसमे परिस्थिति में शामिल होते है जिससे हमे रटना नहीं पड़ता है ।हमे अनुभव भी प्राप्त हो जाते है।
▪️आगमन विधि के गुण➖
1.नवीन ज्ञान को खोजने का प्रशिक्षण
2.नवीन ज्ञान को अर्जन करने का अवसर प्राप्त होता हैं।
3.मनो वैज्ञानिक विधि है।
4.बच्चो से सामान्य नियम निकलवाए जाते है जिससे उनमें रचनात्मकता, आत्मविश्वास गुणों का विकास होता है।
5.बालक उदाहरणों का विश्लेषण करते हुए सामान्य नियम स्वयं से निकाल लेते है।
6.इसमें सीखा हुआ ज्ञान स्थाई होता है,क्योंकि बच्चा खुद से करके दिखता है।
कार्यरत-
* उदाहरण से नियम की और
*विशिष्ठ से सामान्य की और ( विशिष्ट परिस्थिति से सामान्य की ओर)
* स्थूल से सूक्ष्म की ओर
*ज्ञात से अज्ञात की ओर
*मूर्त से अमूर्त की ओर

▪️ आगमन विधि के दोष➖
1. प्रत्येक विषय को पड़ाने या समझाने के लिए उपयुक्त हो यह संभव नहीं है।
2. आधुनिक समय की कक्षा पद्धति जिसमे हर व्यक्ति को तुरन्त ही कुछ न कुछ चाहिए ही होता है जो आगमन विधि का पूरी तरह से प्रयोग कर पाना संभव नहीं हो पाता है।
.(हर कोई अपने ज्ञान का तुरन्त प्राप्त करना चाहता है जिससे उनकी धैर्य क्षमता भी खत्म होती जाती है।)
3.सीखने में शक्ति व समय अधिक लगता है।
4.केवल सामान्य नियमो की खोज
5.यह विधि स्वयं में अपूर्ण है क्योंकि इसमें खोजे हुए सत्य की परख करने के लिए निगमन विधि की आवश्यकता होती है।
🔆निगमन विधि➖
(Put the value gate the result)
इसमें शिक्षक नियमो का उल्लेख करता है और उन नियमो के आधार पर छात्र सीखता है।
लेकिन छात्र इसमें खुद से कार्य को नहीं करता बल्कि शिक्षक द्वारा बताए गए नियम के आधार पर ही अपने कार्य को पूरा करता है और अपनी जरूरतों को या समस्याओं को पूरा करता है लेकिन उसका यह ज्ञान स्थाई नहीं हो पाता है तथा साथ ही साथ छात्र को अनुभव भी प्राप्त नहीं ही पाता है।
▪️ निगमन विधि के दोष➖
* निगमन विधि से शिक्षण कार्य तेजी से होता है।
*इसमें कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
*उच्च कक्षा के छात्रों के लिए ज्यादा प्रभावी होती है।
* इसमें शिक्षक व छात्र दोनों को कम मेहनत करनी पड़ती है।
*इसमें रटना होता है इसलिए स्मरण शक्ति का विकास होता है।
▪️ निगमन विधि के दोष➖
* रटने को प्रोत्साहित या बढ़ावा देती है जो कि सही नहीं है।
* वैज्ञानिक विधि नहीं है।
* आत्मविश्वास का विकास नहीं होता है।
* नियमो पर आश्रित रहना पड़ता है।

Vaishali

☀️ आगमन विधि ☀️
शिक्षण अधिगम की सर्वोत्तम विधि हैं। सर्वोत्तम मतलब जिसमे सबसे ज्यादा समस्या, परेशानी आती है
जब भी हमे कोई समस्या आती हैं तो हम उसका हल खोजते है हल खोजने के लिए हमे नये ज्ञान का उपयोग करने का अवसर मिलता है और इससे हमारे अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त होता है
अनुसंधान करने के पश्चात् हम निष्कर्ष पर पहुचते है
इसमे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता हैं
इसमे हमे रटना नही पडता हैं क्योंकि हम स्वयं समस्या का हल अपने ज्ञान से अनुसंधान करके निष्कर्ष निकालते है।
इससे ज्ञान ज्यादा स्थाई होता है क्योंकि इसमे हम करते है और हमारे अनुभव इसमें शामिल होते है
यह मनोवैज्ञानिक विधि हैं कयोंकि हम इसमे स्वयं अनुसंधान करके निष्कर्ष निकालते है
प्राथमिक स्तर के अच्छी विधि है
इस विधि से हमारी नियम बनाने की क्षमता का विकसित होती है

इस विधि में हम
उदाहरण से नियम की ओर
विशिष्ट से सामान्य की ओर
स्थूल से सूक्ष्म की ओर
सरल से जटिल की ओर
ज्ञात से अज्ञात की ओर
मूर्त से अमूर्त की ओर चलते हैं

दोष
हर विषय, हर जगह पर पढाने के लिए उपयुक्त नही है।
सभी छात्र और शिक्षक योग्य नहीं हो पाते हैं क्योंकि आजकल सभी कम समय मे बहुत ज्यादा पाने की कोशिश होती है परंतु इसमे समय अधिक लगता है
और खर्च भी ज्यादा होता है

रवि कुशवाहा

—–

आगमन विधि -:

◆ आगमन विधि में सबसे पहले विषय वस्तु से सम्बन्धित उदाहरण दिये जाते हैं और उदाहरणों के आधार पर नियम स्थापित किये जाते हैं ।

◆ यह छात्र केन्द्रित विधि है । यह विधि मूर्त से अमूर्त की ओर , ज्ञात से अज्ञात की ओर , स्थूल से सूक्ष्म की ओर , सरल से कठिन की ओर सिद्धान्त पर कार्य करती है ।

◆ व्याकरण शिक्षण हेतु सर्वोत्तम विधि है । इसे व्याकरण शिक्षण की वैज्ञानिक विधि कहते हैं ।

निगमन विधि -:

◆ इसे सूत्र प्रणाली या संश्लेषण प्रणाली कहते हैं ।

◆ निगमन विधि में पहले नियमों का ज्ञान कराया जाता है फिर उदाहरण दिये जाते हैं ।

◆ उदाहरण के आधार पर समझाया जाता है । इस विधि को सिद्धान्त प्रणाली भी कहते हैं ।

◆ यह शिक्षक केन्द्रित विधि है । इस विधि का प्रयोग उच्च कक्षाओं में किया जाता है ।

◆ निगमन विधि आगमन विधि के ठीक विपरीत कार्य करती है ।
इस विधि का प्रयोग गणित और विज्ञान शिक्षण में किया जाता है l

Jay Prakash Maurya

——

★आगमन विधि★
◆आगमन विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि है, जो काफी सराहनीय है।यह विधि शिक्षन अधिगम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधि हैं।
#शिक्षको की भूमिका:-
●शिक्षक इस विधि द्वारा छोटे बच्चों को कई उदाहरण जैसे; निजी जीवन से जुड़े बातों को लेकर या उसके परिवार, विद्यालय तथा आस-पड़ोस में होने वाली सभी गतिविधियों से जोड़करउन्हें विषय को समझने में सक्षम होते हैं।
● इस प्रकार शिक्षको को करने से बच्चों में स्थायी ज्ञान की प्रवृत्ति होती हैं।
●बच्चों की मानशिक छमता के अनुरूप शिक्षक कार्य करते हैं, ताकि बच्चे आसानी से समझ सकें।
●इस विधि में शिक्षक और छात्र दोनों को सक्रिय रहने की आवश्यकता होती हैं, जिसके कारण ये प्रतिक्रिया सफल होती हैं।
#छात्र की भूमिका:-
●इस विधि द्वारा बच्चे किसी भी वस्तु के बारे में विस्तृत ज्ञान अर्जन प्राप्त कर सकते हैं,जिसमें बच्चे की ज्ञान के दायरा में वृद्धि होती रहती हैं।
●इस विधि मे बच्चे विभिन्न प्रकार के ज्ञान अर्जन करते हैं, जैसे;-
1)किसी भी वस्तु के बारे में जानने की इच्छा जागृत होती हैं।
2)नई चीज सीखने के लिए उत्साहित एवं प्रयास करते हैं।
3)खुद के अनुभवों से तरह-तरह की विधियां को अपनाते हैं।
4)जब बच्चों के सामने कोई कार्य करने में समस्या उत्पन्न होती हैं, तब वो उसे करने के लिए अपना सफल प्रयास जरूर करते हैं।
#इस विधि के गुण:-
1)खोज विधि
2)आत्म विश्वास
3)नियम निर्माण करना
4)स्थायी ज्ञान
5)नई ज्ञान का निर्माण
6)समस्या समाधान
7)निष्कर्ष तक पहुंचाना
8)लक्ष्य निर्धारण करना
9)आवस्यकता का होना
10)मानशिकता शक्ति में वृद्धि
11)विशिष्ट से सामान
12)उदाहरण से नियम
13)मूर्त से अमूर्त
14)स्थूल से सूक्ष्म
#इस विधि के दोष:-
●सभी जगहों पर लागू नहीं होना।
●अधिक समय का लगना।
●ज्यादा खर्च

—–

🌸आगमन विधि- 🌸
🌹आगमन विधि शिक्षण विधि की सबसे अच्छी विधि मानी जाती है ।🌹
🌼इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभवों, उदाहरणों तथा प्रयोगों का अध्ययन कर नियम निकाले जाते है तथा ज्ञात तथ्यों के आधार पर उचित सूझ बुझ से निर्णय लिया जाता है| इसमें शिक्षक छात्रों को अध्ययन
1. प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर,
2. स्थूल से सूक्ष्म की ओर, एवं
3. विशिष्ट से सामान्य की ओर
करवाते है|
4 . मूर्त से अमूर्त की ओर
5 .उदाहरण से नियम की ओर 🌼

🌻उदाहरण के लिए- जब हम बच्चों की संज्ञा पढ़ाते है तो पहले सारे बच्चे से 1,1उदाहरण पुछते है फिर नियम बना कर कहते हैं कि यही संज्ञा है ।।।🌻,,,,,

🌼 निगमन विधि🌼- यह एक आमनोविज्ञान विधि है ।

🌸इसमें छात्र स्वयं नियम नहीं बनाते, बल्कि शिक्षक उन्हें पहले बने नियमों, उदाहरणों, प्रयोगों ओर अनुभवों आदि से अवगत करवा देते है ओर उन्हें कुछ प्रश्नो के हल करके दिखा दिया जाता है|🌸
🌻1. नियम से उदाहरण की ओर
2. सामान्य से विशिष्ट की ओर,
3. सूक्ष्म से स्थूल की ओर.
4. प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर
5.अमूर्त से मूर्त की ओर 🌻
उदाहरण के लिए –
🌹( 1)जब हम बच्चों को संज्ञा के बारे मे पढ़ाना है तो पहले नियम बताते हैं उसके बाद उदाहरण प्रस्तुत करते हैं ।🌹
🌹2) जैसे हमे बिजली विभाग से मेसेज आया की आज शाम को 5 से 7 लाइट नहीं रहेगी तो हमारे मन मे ये नियम बन गया की बिजली नहीं तब हम अपने सारे काम पुरे कर लेते हैं जो भी बिजली से सम्बंधित है –
जैसे- मोबाइल चार्ज करना , मोटर से पानी भरना, हिटर में खाना बना लेना इत्यादि ।🌹
मालती साहु😊

——

Inductive method
This is the best method of teaching
It is parallel to to give chances to explore new ideas and pave the way of research
[ It is based on the situation / need.
Explore things by yourself]
When you complete your research ,you conclude it, – it increases your self confidence.
Without problem there is no exploration and if there is no exploration then there is no research and if there is no research there is no solution.
You will be able tomake the rules.
You gain the permanent knowledge
It is scientific
This is good for children
Example- rule
Particular- general
Macro to micro
Lacks in inductive method:-
It is not suitable to teach all the things.
It is time consuming method
All teacher and students may not be able to fulfill because they don’t have patience, both must be capable.

Deductive method {nigman vidhi]}
Put the value get the result
It is just opposite of inductive method
It is time saving
Less time more knowledge
Upper class students easily understand by this method
It increases memory
Lack of self confidence

By- Chahita acharya

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✍🏻 शिक्षा जगत मेँ शिक्षा को रुचिकर और सरल बनाने के लिए भिन्न भिन्न शिक्षाबीदो और मनोवैज्ञानिको का अपनी – अपनी अहम् भूमिका है। उन्ही विधियो मेँ से अरस्तु द्वारा दी गयी विधी आगमन विधी और निगमन विधी है (inductive method or deductive method) ✨️आगमन विधी ✨ आगमन विधी, मेँ शिक्षा को सरल और वास्तविक जीवन से सम्बंधित करके चीजो को बताया जाता है। इस विधी के द्वारा एक समस्या दी जाती है और उस समस्या का हल तर्कपूर्ण ढंग से, अपनी सोच, छमता,बुद्धी के आधार पर किया जाता है। बच्चे के स्तर से देखा जाये तो इसमें बच्चा एक खोजकर्ता और अनुशन्धानकर्ता के रूप मेँ कार्य करता है। (जो हमारे देश की रीड की हड्डी है ) इस विधी मेँ हम : उदहारण से नियम स्थूल से सूक्ष्म विशिष्ट से सामान्य ज्ञात से अज्ञात मूर्त से अमूर्त की ओर जाते है।
गुण (आगमन विधी ):- 1) यह विधी करके सिखने पर आधरित है जिससे स्थायी ज्ञान मेँ वृद्धि होती है। 2) इस विधी मेँ बच्चा खुद के अनुसार अन्वेषन करता है जिससे वैयागनिक गुण का विकाश होता है। 3) यह विधी अधिक रूचि पूर्ण होती है। 4) इसमें आत्मविश्वास की भावना का विकास बच्चों के अंदर होता है। 5)रटंतप्रणाली से मुक्ति मिलती है।

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आगमन विधि /निगमन विघि :-

आगमन विधि अरस्तु ने दिया है

आगमन विधि के गुण 🌸🌸🌸🌸
यह एक सवोतम विधि हैं
आगमन विघि न्ई खोज का अवसर देता है जब समसया आती आती हैं तो समस्या समाधान के लिए न्ई न्ई चीजो के बारे में सोचते हैं
खुद से समस्या समाधान करते हैं तो आतम विशवास बढता हैं
आगमन विघि में स्थाई ज्ञान होता है यह रटंत प्रणाली से मुक्त है
ये विधि छोटे बच्चों के लिए हैं
यह मनोवैज्ञानिक विधि हैं
उदाहरण से नियम
विशिष्ट से सामान्य
स्थूल से सूक्ष्म

आगमन विधि के दोष 🌸🌸🌸🌸
प्रत्येक विषय को पढाने या समझाने के लिए उपयुक्त विधि नही है
इस विधि में समय अघिक लगती हैं

निगमन विधि 🌸🌸🌸🌸
निगमन विधि में शिक्षक पहले बच्चो को नियम बताते है फिर उदाहरण बताते है
इस विधि में बच्चे खुद से नहीं करते इसमें शिक्षक द्वारा बताए गए नियम के अनुसार काय करते है
आगमन विधि के उल्टा है निगमन विघि
निगमन विधि के गुण 🌸🌸🌸🌸
निगमन विघि में बच्चो को काय् जल्द करते है जिसमें समय कम लगता है
अधिक ज्ञान प्राप्त करते है
यह विधि बड़ी बच्चो के लिए ज्यादा प्रभावी है
इसमें स्मरण शक्ति का विकास होता है
निगमन विधि दोष 🌸🌸🌸🌸🌸
यह विधि रटंत प्रणाली को बढावा देती हैं
बच्चे खुद से कार्य नही करते है जिससे उनका आत्म विश्वास का विकास नहीं बढता हैं

Neha Roy

—–

आगमन विघि और निगमन विघि : यह विधि अरस्तु के द्वारा दिया गया है आगमन विधि आगमन विधि शिक्षण अधिगम की सबसे सर्वोत्तम विधि है। जिसमें बच्चे समस्या को खोजने के लिए जोर देते हैं। इस विधि के द्वारा ने ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है ,और अनुसंधान करने की क्षमता भी विकसित होती है इस विधि के द्वारा नियम बनाने की क्षमता भी विकसित होती है, और बच्चों में इस विधि के द्वारा आत्मविश्वास की भावना भी विकसित होता है इस विधि से प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है यह विधि रटने पर जोर नही देता है। यह विधि छोटे बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त विधि होती है : 🌸यह विधि उदाहरण से नियम की ओर चलती है, 🌸 विशिष्ट से सामान्य 🌸 स्थूल से सूछ्म की ओर 🌸सरल से जटिल की ओर 🌸 ज्ञात से अज्ञात की ओर🌸 मूर्त से अमूर्त की ओर चलते हैं🌸 आगमन विधि के दोष : हर चीज को इस विधि के द्वारा नही बताया जा सकता है यह विधि शिछक और छात्र के लिये उपयुक्त नही हो पाती है। समय भी बहुत लगता है। 🌸 निगमन विधि : ( अरस्तु) यह विधि नियम से उदाहरण की ओर होती है, 🌸 इस विधि मे छात्र को अधिक अवसर प्राप्त नहीं होता है क्योंकि इस विधि में बच्चों को पहले से ही टीचर नियम बता देते हैं 🌸 कम समय में अधिक ज्ञान 🌸 इस विधि में बच्चों में आत्मविश्वास की भी कमी होती है🌸 निगमन विधि बड़े बच्चों के लिए उपयुक्त होती 🌸 इसमें ज्ञान अस्थाई होता

🌸manisha gupta 🌸🌸

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आगमन विधि……
यह विधि को अरस्तू ने दिया है1
1) यह शिक्षण अधिगम की सवोॅतम विधि है1
2) यह मनोवैज्ञानिक विधि है 1✍
आगमन विधि मे बच्चों को उदाहरण देकर पहले बताया जाता है इसमें बच्चों को नए ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है✍
3) नए ज्ञान की अनुसंधान के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है समस्या का होना..
Kyuki समस्या होगी तभी बच्चे उस समस्या को दूर करने का प्रयास करेंगे व नए अनुभव प्राप्त करेंगे इस प्रकार बच्चे खुद से करके सिखते है✍
4) इस विधि में ज्ञान का अवसर मिलता है व ज्ञान स्थायी हो जाता है✍
5) इस विधि में रटना मना है✍
6) उदाहरण से नियम की ओर ✍
7) विशिष्ट से सामान्य की ओर✍
8) स्थूल से सुक्ष्म की ओर✍
9) प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर✍
10) मूर्त से अमूर्त की ओर✍

आगमन विधि के कमी/ दोष=

1) इसमें समय अधिक लगता है✍
2यह विधि हर चीज को पढाने के लिए उपयुक्त नहीं है✍……………..

varsha sharma……

MATHS PEDAGOGY 60 important Question


प्रश्‍न 1 – विशिष्‍ट से सामान्‍य तथा स्‍थूल से सूक्ष्‍म की आरे शिक्षण सूत्र पर आधारित विधि है।
(a) आगमन विधि
(b) संश्‍लेषण विधि
(c) विश्‍लेषण विधि
(d) निगमन विधि
उत्‍तर – आगमन विधि ।
प्रश्‍न 2 – रेखागणित में कौन से आयाम को प्रमुख स्‍थान दिया जाता है।
(a) आकार
(b) विस्‍तार
(c) स्थिति
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – उपर्युक्‍त सभी ।
प्रश्‍न 3 – गणित शिक्षण के प्रेरणात्‍मक सिद्धान्‍त के सूत्र है।
(a) सक्रियता
(b) सजीवता
(c) उपर्युक्‍त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्‍तर – सजीवता ।
प्रश्‍न 4 – गणित शिक्षण के लिए पाठ योजना का निर्माण आवश्‍यक है।
(a) शिक्षक को पाठ याद होता है।
(b) विषय वस्‍तु का विकास मुख्‍यवस्थित ढंग से किया जाता है।
(c) छात्रों की क्रमजोरियों का पता लगता है।
(d) विषय का गूढ़ अध्‍ययन कराया जा सकता है।
उत्‍तर – विषय वस्‍तु का विकास मुख्‍वस्थित ढंग से किया जाता है।
प्रश्‍न 5 – गणित वि‍षय का सबसे अधिक सम्‍बन्‍ध होता है।
(a) विज्ञान के साथ
(b) नागरिक शास्‍त्र
(c) भूगोल
(d) समाजशास्‍त्र
उत्‍तर – विज्ञान के साथ ।
प्रश्‍न 6 – गणित के नियम व निष्‍कर्ष कैसे होते है।
(a) वस्‍तुनिष्‍ठ
(b) सार्वभौमिक
(c) वस्‍तुनिष्‍ठ व सार्वभौमिक
(d) कोई नही
उत्‍तर – वस्‍तुनिष्‍ठ व सार्वभौमिक ।
प्रश्‍न 7 – वह उद्देश्‍य जो शिक्षक गणित पढ़ाने के बाद कक्षा में ही प्राप्‍त कर लेता है, उसे कहा जाता है।
(a) सांस्‍कृतिक उद्देश्‍य
(b) शिक्षण उद्देश्‍य
(c) सामाजिक उद्देश्‍य
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – शिक्षण उद्देश्‍य ।
प्रश्‍न 8 – गणित शिक्षण में मूल्‍यांकन में ब्‍ल्‍यू प्रिन्‍ट है।
(a) विद्यालय की आधारशिला
(b) प्रश्‍न पत्र निर्माण की आधाशिला
(c) शिक्षण की आधारशिला
(d) छात्रों की आधारशिला
उत्‍तर – प्रश्‍न पत्र निर्माण की आधारशिला ।
प्रश्‍न 9 – वैज्ञानिक विधि पर आधारित उपयुक्‍त विधि है।
(a) योजना विधि
(b) निगमन विधि
(c) अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – उपर्युक्‍त सभी ।
प्रश्‍न 10 – दैनिक पाठ योजना के निर्माण में सम्मिलित होता है।
(a) विषय वस्‍तु का चयन
(b) शिक्षण उद्देश्‍य का निर्धारण
(c) शिक्षण विधियों का निर्माण
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – उपर्युक्‍त सभी ।
प्रश्‍न 11 – सामान्‍य से विशिष्‍ठ का सिद्धांत निम्‍न में से किसमें प्रयोग होता है।
(a) आगम विधि
(b) निगम विधि
(c) संश्‍लेषण विधि
(d) विश्‍लेषण विधि
उत्‍तर – निगम विधि ।
प्रश्‍न 12 – गणित में किस विधि में हम प्राय: सूत्र तथा नियमों की सहायता लेते है।
(a) संश्‍लेषण
(b) विश्‍लेषण
(c) आगम
(d) निगमन
उत्‍तर – निगमन ।
प्रश्‍न 13 – छोटी कक्षाओं में गणित विषय में रूचि उत्‍पन्‍न करने के लिए पढ़ाने का तरीका होना चाहिए
(a) मनोरंजक एवं खेल संबंधी
(b) रटने का
(c) आगम का
(d) निगम का
उत्‍तर – मनोरंजक एवं खेल संबंधी ।
प्रश्‍न 14 – निम्‍न में से किसमें गणित वि‍षय का प्रयोग स्‍पष्‍ट रूप से नही हो रहा है।
(a) लाभ हानि
(b) साइकिल चलाना
(c) सब्जियां खरीदना
(d) उधार लेना
उत्‍तर – साइकिल चलाना ।
प्रश्‍न 15 – यदि एक विद्यार्थी गणित विषय कई बार अनुत्‍तीर्ण हो जाता है तो यह जानने के लिए की गणित की किस विशेष शाखा में वह कमजोर है, निम्‍न में से कौन सी विधि प्रयोग में लेगे ।
(a) लिखित कार्य
(b) मौखिक कार्य
(c) निदानात्‍मक तरीका
(d) उपचारात्‍मक तरीका
उत्‍तर – निदानात्‍मक तरीका ।
प्रश्‍न 16 – छात्र गणितीय गणना में गति प्राप्‍त कर सकते है।
(a) चर्चा या वादविवाद द्वारा
(b) मौखिक कार्य द्वारा
(c) लिखित कार्य द्वारा
(d) अभ्‍यास द्वार
उत्‍तर – अभ्‍यास द्वारा ।
प्रश्‍न 17 – आर्यभट्ट का समाज में योगदान बालक जान रहा है, यह किस उद्देश्‍य की पूर्ति कर रहा है।
(a) अवबोध
(b) अभिवृत्ति
(c) अभिरूचि
(d) व्‍यक्तित्‍व
उत्‍तर – अभिरूचि ।
प्रश्‍न 18 – ताश के पत्‍तों में छिपे अंको के खेल को छात्र अपनी विचारधारा के अनुसार अभिव्‍यक्‍त कर रहा है। वह किस कारण से सम्‍बन्धित है।
(a) व्‍यक्तित्‍व
(b) ज्ञानोपयोग
(c) कौशल
(d) अवबोध
उत्‍तर – व्‍यक्तित्‍व ।
प्रश्‍न 19 – सम विषम संख्‍यओं को बालक सारणीवद्ध कर रहा है, वह किस उद्देश्‍य की प्राप्ति कर र‍हा है।
(a) ज्ञानोपयोग
(b) कौशल
(c) अवबोध
(d) व्‍यक्तित्‍व
उत्‍तर – कौशल ।
प्रश्‍न 20 – गणित विषय के लिए पुरतन स्‍त्रोत के रूप में कौन सा ग्रंथ उपयोगी होगा ।
(a) सामवेद
(b) ऋग्‍वेद
(c) अथर्ववेद
(d) यजुर्वेद
उत्‍तर – ऋग्‍वेद ।
प्रश्‍न 21 – माध्‍यमिक स्‍तर पर अंकगणित शिक्षण विधि है।
(a) प्रायोगिक विधि
(b) विश्‍लेषण व संश्‍लेषण विधि
(c) आगमन निगमन विधि
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – आगमन निगमन विधि ।
प्रश्‍न 22 – हासिल का या हाथ का लगा, सम्‍प्रत्‍यय को गणित में सर्वप्रथम देने वाला कौन था ।
(a) भास्‍कर
(b) ब्रम्‍हगुप्‍त
(c) आर्यभट्ट
(d) श्रीधर
उत्‍तर – श्रीधर ।
प्रश्‍न 23 – छात्र वृत्‍त तथा गोले में तुलना करता है, वह किस उद्देश्‍य की पूर्ति करता है।
(a) ज्ञान
(b) अवबोध
(c) कौशल
(d) ज्ञानोपयोग
उत्‍तर – अवबोध ।
प्रश्‍न 24 – एक अध्‍यापक गणित शिक्षण में अवरोही क्रम का अनुसरण कर रहा है वह किस विधि से प्रेरित है।
(a) प्रयोगशाला विधि
(b) आगमन विधि
(c) संश्‍लेषण विधि
(d) निगमन विधि
उत्‍तर – निगमन विधि ।
प्रश्‍न 25 – प्रयोगशाला विधि किस विधि का विस्‍तृत रूप है।
(a) इकाई विधि
(b) निगमन विधि
(c) संश्‍लेषण विधि
(d) आगमन विधि
उत्‍तर – आगमन विधि ।
प्रश्‍न 26 – किसी खेल के क्षेत्रफल का ज्ञान कराने में सहायक विधि होगी ।
(a) आगमन विधि
(b) निगमन विधि
(c) क्रिया विधि
(d) प्रदर्शन विधि
उत्‍तर – क्रिया विधि ।
प्रश्‍न 27 – किसी वृत्‍त की परिधि व व्‍यास में सम्‍बन्‍ध स्‍थापित करना इसमें कौन सी विधि सहायक होगी ।
(a) संश्‍लेषण विधि
(b) प्रयोगात्मक विधि
(c) आगमन विधि
(d) प्रदर्शन विधि
उत्‍तर – प्रयोगात्‍मक विधि ।
प्रश्‍न 28 – गणित विषय की पाठ्यपुस्‍तकें किस विधि पर आधारित होकर लिखी जाती है।
(a) संश्‍लेषण
(b) प्रयोगात्‍मक
(c) आगमन
(d) प्रदर्शन
उत्‍तर – संश्‍लेषण ।
प्रश्‍न 29 – इकाई उपागम किस शिक्षाविद् ने दिया ।
(a) एचीसन ने
(b) रॉबर्ट बुश ने
(c) एलन ने
(d) मोरिसन ने
उत्‍तर – मोरिसन ने ।
प्रश्‍न 30 – नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए ब्रेल लिपि का प्रतिपादन किसने किया ।
(a) रॉबर्ट ब्रेल ने
(b) फ्रेड ब्रेल ने
(c) लुई ब्रेल ने
(d) तीनों सही
उत्‍तर – लुई ब्रेल ने ।
प्रश्‍न 31 – जेकब एल. मॉरेनो का सम्‍बन्‍ध किस विधि से है।
(a) प्रश्‍नोत्‍तर विधि
(b) सूक्ष्‍म शिक्षण विधि
(c) समाजमिति विधि
(d) व्‍यक्ति अध्‍ययन विधि
उत्‍तर – समाजमिति विधि ।
प्रश्‍न 32 – समस्‍या समाधान विधि का सोपान है।
(a) सूचनाओं का संगहण
(b) समस्‍या की प्रकृति निर्धारण
(c) निष्‍कर्ष निकालना
(d) ऑकड़ो को संगठित करना
उत्‍तर – निष्‍कर्ष निकालना ।
प्रश्‍न 33 – गणित में दृश्‍य श्रव्‍य सामग्री का प्रयोग किया जाता है।
(a) बालकों को लुभाने के लिए
(b) बालकों को विषय से परे ले जाने के लिए
(c) बालकों की रूचि जागृत करने के लिए
(d) बालकों के मनोरंजन के लिए
उत्‍तर – बालकों की रूचि जागृत करने के लिए ।
प्रश्‍न 34 – गणित विषय की विशेषता है।
(a) तर्कपूर्णता
(b) परिणामों की निश्चितता
(c) शुद्धता
(d) सभी
उत्‍तर – सभी ।
प्रश्‍न 35 – चिंता, बोध, तर्कशक्ति, विश्‍लेषण की क्षमता बढ़ाने वाला विषय है।
(a) गणित
(b) समाज विज्ञान
(c) भूगोल
(d) भाषा
उत्‍तर – गणित।
प्रश्‍न 36 – गणितीय निष्‍कर्ष सर्वमान्‍य होते है क्‍योकि
(a) ये सबके विचारों का आदर करते है।
(b) ये तर्क पर आधारित है।
(c) ये परिस्थिति के अनुकूल होते है।
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – ये तर्क पर आधारित है।
प्रश्‍न 37 – शिक्षण उद्देश्‍यों का क्रमिक वर्गीकरण किया गया है।
(a) बेकन द्वारा
(b) शूल्‍टन द्वारा
(c) कॉमेर द्वारा
(d) ब्‍लूम द्वारा
उत्‍तर – ब्‍लूम द्वारा ।
प्रश्‍न 38 – ज्ञान सम्‍बन्‍धी प्राप्‍य उद्देश्‍य के अन्‍तर्गत निम्‍नलिखित में से कौन सा कथन सही है।
(a) गणितीय प्रत्‍ययों का सही अनुप्रयोग
(b) गणितीय चिन्‍ह ठीक ठीक पहचानना
(c) गणित के विकास की जानकारी में रूचि होना
(d) गणितीय सिद्धान्‍त की सही समझ
उत्‍तर – गणितीय सिद्धान्‍तों की सही समझ ।
प्रश्‍न 39 – ब्‍लूम टेक्‍सोनॉमी का अंग नही है।
(a) समझ
(b) बुद्धि
(c) प्रयोग
(d) ज्ञान
उत्‍तर – बुद्धि ।
प्रश्‍न 40 – बीजगणित यथा‍र्थ में है।
(a) अंकगणित
(b) रेखागणित
(c) सामान्‍यीकृत अंकगणित
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – सामान्‍यीकृत अंकगणित ।
प्रश्‍न 41 – गणित की सभी शाखाओं में प्राचीनतम कौन सी है।
(a) रेखागणित
(b) अंकगणित
(c) सांख्यिकी
(d) बीजगणित
उत्‍तर – सांख्यिकी ।
प्रश्‍न 42 – रेखागणित में प्रयोगिक स्‍तर पर प्रयुक्‍त होने वाली शिक्षण विधि है।
(a) आगमन विधि
(b) निगमन विधि
(c) प्रदर्शन विधि
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – प्रदर्शन विधि ।
प्रश्‍न 43 – एक अच्‍छी मूल्‍यांकन विधि वह है जिसमें देखा जाए ।
(a) बालक के व्‍यवहार में परिवर्तन करने की विधि
(b) शिक्षण हेतु अपनाई गई विधि
(c) पाठयवस्‍तु से सम्‍बन्धित विधि
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – बालक के व्‍यवहार में परिवर्तन करने की विधि ।
प्रश्‍न 44 – अनुप्रयोग सम्‍बन्‍धी प्राप्‍य उद्देश्‍य की प्राप्ति होती है, जब छात्र –
(a) सम्‍बन्धित प्रत्‍ययों में भिन्‍नता बताता है
(b) गणितीय अवधारणा की व्‍याख्‍या कर सकता है
(c) समस्‍या हल करने की उपयुक्‍त विधि चुनता है
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – समस्‍या हल करने की उपयुक्‍त विधि चुनता है।
प्रश्‍न 45 – शिक्षण प्रक्रिया का अंतिम सोपान है।
(a) मूल्‍यांकन
(b) उद्देश्‍य
(c) अधिगम
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – मूल्‍यांकन ।
प्रश्‍न 46 – पाठ योजना का भाग नही होते है।
(a) प्राप्‍य उद्देश्‍य
(b) पाठ प्रस्‍तुति योजना
(c) शिक्षा के उद्देश्‍य
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – शिक्षा के उद्देश्‍य ।
प्रश्‍न 47 – गणित के मानसिक सिद्धान्‍त के जन्‍मदाता है।
(a) प्‍लेटो
(b) आर्यभट्ट
(c) न्‍यूटन
(d) सी. वी. रमन
उत्‍तर – प्‍लेटो ।
प्रश्‍न 48 – खोजविधि का प्रतिपादन किसने किया था ।
(a) प्रो. ऑर्मस्‍ट्रांग
(b) किलपैट्रिक
(c) डयूवी
(d) स्किनर
उत्‍तर – प्रो. ऑर्मस्‍ट्रांग ।
प्रश्‍न 49 – निगमन विधि का उपयोग है।
(a) मानसिक क्षमता बढ़ाना
(b) वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना
(c) सूत्र की स्‍थापना करना
(d) सूत्र का प्रयोग करना
उत्‍तर – सूत्र का प्रयोग करना ।
प्रश्‍न 50 – सामान्‍य से विशिष्‍ट की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारति विधि है।
(a) आगमन विधि
(b) निगमन विधि
(c) आगमन – निगमन विधि
(d) विश्‍लेषण विधि
उत्‍तर – निगमन विधि ।
प्रश्‍न 51 – गणित सभ्‍यता और संस्‍कृति का दर्पण है। यह कथन किसने कहा –
(a) बेकन
(b) हॉग्‍बेन
(c) लॉक
(d) डटन
उत्‍तर – हॉग्‍बेन ।
प्रश्‍न 52 – प्राथमिक स्‍तर पर गणित का क्‍या महत्‍व है।
(a) सांस्‍कृतिक
(b) सामाजिक
(c) धार्मिक
(d) मानसिक
उत्‍तर – मानसिक ।
प्रश्‍न 53 – उपलब्धि परीक्षण व नैदानिक परीक्षण में अन्‍तर है।
(a) उद्देश्‍यों का
(b) प्रकृति का
(c) कठिनाई स्‍तर का
(d) कोई नहीं
उत्‍तर – उद्देश्‍यों का ।
प्रश्‍न 54 – मनुष्‍य के जीवन की गतिविधियों में गणित का सार्वाधिक उपयोग होता है, वह है।
(a) सांस्‍कृतिक
(b) मनो‍वैज्ञानिक
(c) सामाजिक और आर्थिक
(d) आर्थिक
उत्‍तर – सामाजिक और आर्थिक ।
प्रश्‍न 55 – कौन सा कार्य अध्‍यापक से संबंधित नही है।
(a) योजना
(b) मार्ग दर्शन
(c) शिक्षण
(d) बजट बनाना
उत्‍तर – बजट बनाना ।
प्रश्‍न 56 – सर्वाधिक प्रभावशाली शिक्षण सामग्री है।
(a) अप्रे‍क्षेपित
(b) प्रत्‍यक्ष अनुभव
(c) प्रेक्षेपित
(d) इनमें से कोई नही
उत्‍तर – प्रत्‍यक्ष अनुभव ।
प्रश्‍न 57 – वस्‍तुनिष्‍ठ परीक्षण की सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण विशेषता है।
(a) विश्‍वसनियता
(b) वैधता
(c) वस्‍तुनिष्‍टता
(d) उपर्युक्‍त सभी
उत्‍तर – उपर्युक्‍त सभी ।
प्रश्‍न 58 – गणित सभी विज्ञानों का द्वार एवं कुंजी है। यह शब्‍द किसने कहा ।
(a) रोजर बेकर ने
(b) हैमिल्‍टन ने
(c) प्‍लेटो ने
(d) बट्रैन्‍ड रसैल ने
उत्‍तर – रोजर बेकर ने ।
प्रश्‍न 59 – गणित के अध्‍ययन से एक बच्‍चे में किस गुण का विकास होता है।
(a) आत्‍मविश्‍वास
(b) तार्किक सोच
(c) विश्‍लेषिक सोच
(d) इनमें से सभी
उत्‍तर – इनमें से सभी ।
प्रश्‍न 60 – प्राथमिक स्‍तर पर गणित का महत्‍व है।
(a) सांस्‍कृतिक
(b) मानसिक
(c) व्‍यावहारिक
(d) आध्‍यात्मिक
उत्‍तर – व्‍यावहारिक ।

pedagogy / शिक्षा शास्त्र कक्षा सारांश -1

“शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाए”
(Basic process of teaching and learning)➖

🔅बिना किसी प्रक्रिया के हम कार्य को नहीं सीख सकते हैं।
यदि शिक्षक अपने शिक्षण कार्य को पूरा करते हुए बच्चो को सीखा रहा है और बच्चे उसे पूरी तरह से नहीं सीख पाया है तो शिक्षण का उद्देश्य कभी भी पूरा नहीं होगा।
सभी बच्चो में अधिगम ग्रहण करने की क्षमता या तरीका अलग अलग होता हैं।बच्चे जैसा भी सीखना चाहे उसे समझ आए वैसे ही शिक्षक द्वारा किसी भी तरह से सिखाया जाए।
जब भी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया करवाई जाती है तो उसके द्वारा प्राप्त परिणाम प्रभावी भी होना चाहिए मुख्य रूप से वास्तवीक रूप से teaching कराई जानी चाहिए।
🔅 शिक्षण अधिगम को प्रभावित करने वाले कई मुख्य कारक है जो निम्न प्रकार है➖

1 अनुवांशिकता- यह बहुत ही महत्पूर्ण कारक है क्योंकि बच्चे में कोई चीज आनुवंशिक है तो उसे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

2.पर्यावरण – इसका भी महत्वपूर्ण योगदान है । जहां पर बच्चा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चारो ओर से घिरा या जुड़ा हुआ है वहीं पर्यावरण कहलाता है ।हमारा पर्यावरण में जो भी चीजे है वो वर्चुअली रूप से हमे किसी न किसी रूप में हमारे कार्य को या हमारी परिस्थिति को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से अवश्य ही प्रभावित करती है।

  1. व्यक्तित्व- *यह मुख्य रूप से अनुवांशिकता ओर पर्यावरण पर ही निर्भर करता है इसमें व्यक्तित्व,सोच, चिंतन एवं समझ सब आ जाता हैं,ओर इन्हे पर्यावरण प्रभावित करते है जिससे हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है और हमारा व्यक्तित्व ही शिक्षण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • व्यक्तित्व में अनुवांशिकता की भी महत्व पूर्ण भूमिका होती हैं। जैसे यदि हम शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शामिल लेकिन जब हम मानसिक रूप से किसी और के बारे में सोच रहे हैं तो आपका अधिगम कभी भी पूरा नहीं होगा या आप जी सीखना चाहते है वो कभी भी नहीं सीख पाएंगे।
  1. अनुभव- जब भी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय कोई परेशानी या समस्या आती है तो उस समस्या का समाधान हम अपने अनुभव से निकाल लेते है। अनुभव के द्वारा ही हम प्रक्रिया के अच्छे बुरे को समझ सकते है।
  2. प्रशिक्षण- यदि प्रशिक्षण नहीं होगा तो शिक्षण अधिगम भी प्रभावित होगा ।इसलिए शिक्षक को बच्चे की समझ के अनुसार ,नवीन भिभिन प्रयोग या कई तरह के प्रशिक्षण का प्रयोग करके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी ओर बेहतर बना सकते हैं।
    जैसे –
    ▪️वुडवर्थ के अनुसार – व्यक्ति को नवीन ज्ञान या जो नवीन प्रतिक्रिया है उनको प्राप्त करने की प्रक्रिया ही अधिगम कहलाता है।
    ▪️ क्रो एंड क्रो के अनुसार – अधिगम आदत , अभिवृद्धि और ज्ञान का ही अर्जन है।
    ( यदि हमारे पास कोई ज्ञान है तो हम उस ज्ञान को अपनी अभिवृद्धि या अपनी सोच में रखते है या उस ज्ञान को स्वीकारते है और उस ज्ञान को अपनी आदतों में भी अपनाने लगते है तो वहीं अधिगम अर्जन कहलाता है।
    यदि हम अपने ज्ञान को जानते है और अपनी सोच में भी रखते है लेकिन अपनी आदत में नहीं अपनाते है तो सही अधिगम अर्जन कभी पूरा नहीं होगा।
    सीखना ज्ञानात्मक,प्रभाव आत्मक ओर क्रियात्मक तीनो आधार पर कार्य करता है।
    जिस का हमे ज्ञान होता है वो हमारे सीखने को प्रभावित करता है और उस सीखे हुए ज्ञान को हम अपने कार्य में लेने लगते है।

🔅 व्यक्ति का अधिगम गर्भ से ही शुरू हो जाता हैं ओर बच्चा जैसे ही जन्म ले लेता है तो उसको अधिगम वातावरण के साथ समायोजन करने पर प्राप्त हो जाता हैं।
🔅सीखना➖

▪️सीखना एक प्रक्रिया है जिसके कई चरण से होकर गुजरती है ।
▪️सीखना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमे हम कहीं पर भी किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ मूर्त या अमूर्त रूप से सीखते रहते है।
(जब हम किसी विषय पर सोचते गई है तो हम केवल उस विषय के बारे में विश्लेषण कर रहे होते है।)
▪️ स्थानांतरण- यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है जिसमे हम ज्ञान को किसी न किसी माध्यम से या साधन से या पर्यावरण से प्राप्त ज्ञान को अपने अंदर स्थानांतरित करते है तो सीखते है।
▪️सीखना एक रचनातमकता गैया रचनात्मक प्रक्रिया है।जिसमे हम जब चीजों को सीखते या अपने अंदर समाहित करते है तो उसके लिए कई तरीको गा कई रचनात्मकता का प्रयोग करते है या किसी भी समस्या जा समाधान ढूंढने में भी रचनात्मकता का प्रयोग करते है।
▪️सीखना एक प्रयोजन या एक कारण है।यदि हमारे पास कोई कारण है या कोई प्रयोजन या कोई उद्देश्य है तो हम उसे पूरा करने के लिए हम सीखते है।
▪️सीखना एक अनुकूलन है जब हम सीखते है तो उसे अपनी सोच ,व्यवहार, तौर तरीकों में अनुकूलित या समायोजित करने लगते है और यही सीखना कहलाता है।
▪️सीखना एक विकास है यदि हम किसी कार्य को सीख रहे है तो हमारा विकास हो रहा हैं या हमारे अंदर उस कार्य के गुण विकसित हो रहे है।
▪️सीखना एक परिवर्तन है। जब हम किसी कार्य को सीख रहे है तो हमारे अंदर कोई न कोई परिवर्तन अवश्य होता है।
▪️सीखना सार्वभौमिक है।यदि किसी भी कार्य एक बार सही रूप से सीख लिया जाता है तो वह सार्व भौमिक हो जाता है।सभी जगह ,किसी भी परिस्थिति में अपने सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग कर पाते है।


शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाएं = इस प्रक्रिया के माध्यम से हम student के development के लिए वो हर चीज जो समझने या समझाने मे सहायक है वही शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रिया हैI

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक

(1) अनु्वाशिकता(Heredity):- उम्र के साथ साथ सबका विकास होता है लेकिन सबका समान विकास नहीं होता है इसमें मुख्य भूमिका अनुवाशिकता की होती है

(2) पर्यावरण(Environment ) जहाँ जहाँ हम अपना समय व्यतीत करते हैं वह हमारा environment है |यह प्रत्यक्ष  एवं अप्रत्यक्ष दोनों होता है जैसे अकैडमी मोबाइल फोन आदि.. (3) व्यक्तित्व (Personality) :- व्यक्तित्व हमारे अधिगम की मूल प्रक्रिया है जो कि पर्यावरण और Heridity से मिलती है हर व्यक्ति की personality अलग अलग होती है जो हमारे जीवन के हर part पर dipend करता है..

(4) अनुभव( Experience) :- Teaching learning हमारे अनुभव में important भूमिका का निरवाह करता है….

(5) प्रशिक्षण (Training) :- Teaching Learning में प्रशिक्षण की भी important भूमिका होती है because best training के हम सब कुछ कर सकते हैं अथवा बिना best training के हम कुछ नहीं कर सकते हैं….

(सीखना या Learning)

वुडवर्थ :- नवीन ज्ञान या नवीन प्रतिक्रिया को प्राप्त करने की प्रक्रिया ही अधिगम है…

क्रो अथवा क्रो :- अधिगम ज्ञान अभिव्रति तथा आदतों का अर्जन है…

अधिगम की विशेषताएं:-

1 सीखना एक process है ..

2 सीखना एक Continues निरतंर चलने वाली प्रक्रिया है..

(3) यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है..

(4) सीखना Transfer हो सकता है जो कि शून्य धनात्मक ऋणात्मक हो सकता है..

(5) सीखना ज्ञानात्मक प्रभावातमक क्रियात्मक होता है…

(6) सीखना रचनात्मक है…

(7) सीखना अपने आप में एक प्रयोजन है…

(8) सीखना (Adaptation) अनुकूलन है… सीखना(Development) विकास है…

(9) सीखना परिवर्तन हैं…


शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाऐ

अधिगम प्रक्रिया क्यो आवश्यक है
यदि कोई शिक्षक बच्चों को पढा रहा है तो वह देखता है बच्चो उसका पढाया हुआ कितना सीखा कैसे ग्रहण किया ,यदि बालको ने शिक्षक इनुपुट के आउटपुट दिया तो शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया पूर्ण होती है लेकिन आउटपुट इनपुट के अनुरुप नहीं हुआ तो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पूर्ण नही होती है

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक

आनुवांशिकता – आनुवांशिकता बालक की अधिगम प्रक्रिया को सकारात्मक और नकारात्मक दोनो प्रकार से प्रभावित करती है। यह आवशयक नही है बालक के माता पिता पढने मे अच्छे है तो बालक पढने मे अच्छा होगा या बालक के माता पिता पढने मे अच्छे नहीं है तो बालक अच्छा नही होगा।

वातावरण – वातावरण बालक की अधिगम प्रक्रिया को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। यदि बालक अच्छे वातावरण मे होगा तो अधिगम प्रक्रिया अच्छी होगी या बुरे वातावरण मे होगा अधिगम प्रक्रिया खराब हो सकती है वर्तमान समय मे वर्चुअल वातावरण बालक की अधिगम प्रक्रिया को हर पल प्रभावित करती है

व्यक्तित्व – सभी की रुचि ,कार्य करने का तरीका अलग अलग होती हैं । इससे अधिगम प्रक्रिया प्रभावित होती है ।

अनुभव – अनुभव अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
यदि कोई व्यक्ति पहली बार किसी कार्य को करता है तो उसे पता नहीं रहता है कैसे करना है क्या करना है परन्तु यदि व्यक्ति ने पहले उस कार्य का अनुभव है तो उसे समस्या कम आती है

प्रशिक्षण – प्रशिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सकारात्मक और नकारात्मक दोनो प्रकार से प्रभावित करता है। यदि आपका प्रशिक्षण अच्छे से हुआ है तो आप उस कार्य को अच्छे से कर सकते हैं यदि अच्छे नही हुआ है तो आपको बहुत सारी परेशानीयो का सामना करना पड़ता हैI

अधिगम प्रक्रिया गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है लेकिन जन्म लेने के बाद बालक उसको वातावरण से समायोजित कर लेता है

वुडवर्थ के अनुसार नवीन ज्ञान, नवीन प्रतिक्रिया प्राप्त करने की प्रक्रिया अधिगम है।

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार अधिगम आदतो, ज्ञान और अभिवृत्ति का अर्जन है ।

सीखना एक प्रक्रिया है। अर्थात् सीखना एक चरणबद्ध प्रकिया हैं जैसे हम अन अकेडमी पर पढने के लिए पहले एप इनस्टाल फिर आईडी लगाते हैं फिर टीचर को देखते हैं कौनसै टीचर क्या पढाते है
सीखना निरन्तर चलता है। (यह हर समय, हर स्थान, हर परिस्थिति मे चलता रहता है)
सीखना स्थानान्तरित होता रहता है
सीखना ज्ञानात्मक, प्रभावात्मक और क्रियात्मक है (जैसे हमे पहले अन अकेडमी के बारे मे पता चला (ज्ञान हुआ) फिर उसका प्रभाव देखा और बाद मे उससे पढने लगे )

सीखना रचनात्मक हैं।
सीखना एक प्रायोजन /कारण /उद्देश्य है।
सीखना अनुकूलन है
सीखना विकास है
सीखना परिवर्तन है
सीखना सार्वभौमिक है


【अधिगम】

●अधिगम शब्द का शाब्दिक अर्थ सीखना है ।

◆ अधिगम की परिभाषा –

  1. ” सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है” …..स्कीनर
    2.” अधिगम आदतों , ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है” …… क्रोएण्ड क्रो”
    3.सीखना अनुभव के परिणाम स्वरूप प्रकट होता है”…क्रैन बैक
    4.” अभ्यास और अनुभूति से व्यवहार में होने वाला परिवर्तन अधिगम है “….. लेविस
    5.” नवीन ज्ञान और नवीन प्रक्रियाओं को प्राप्त करने की क्रिया को अधिगम कहते हैं ”…. वुडवर्थ
    6.” अनुभव और प्रशिक्षण के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को अधिगम कहते हैं …. गेट्स
    7.” व्यवहार के कारण व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को अधिगम कहते है” …..गिल्फोर्ड

【वंशानुकम】
वंशानुकम की परिभाषा –

  1. ” वंशानुकम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है ” . .बी.एन.झाँ
    2.” माता – पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का हस्तानान्तरण होना ही आनुवांशिकता है ” ….. जेम्स ड्रेवर
    3.” वंशानुकम माता पिता से संतान को प्राप्त होने वाले गुणों का नाम है ” ….. रूथ
  2. “ वंशनुक्रम में वे सभी बातें सम्मिलित हैं जिनसे व्यक्ति का जीवन आरम्भ हुआ है ” …. वुडवर्थ
    5.“ वंशानुक्रम कमबद्ध पीढ़ियों के बीच उत्पत्ति सम्बन्धी सुविधा जनक शब्द है ” …. थामसन

【वातावरण】
वातावरण की परिभाषा –

  1. ” पर्यावरण वह बाहरी शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है ” ….. रॉस
    2.” पर्यावरण वह हर चीज है जो व्यक्ति के जीने के अलावा उसे प्रभावित करती है ” ….. एनास्टैसी
    3.” वातावरण में वे सभी तत्व आते हैं जिन्हे व्यक्ति को जीवन आरम्भ करने के लिए समय से प्रभावित किया है ” …. वुडवर्थ
    4.” व्यक्ति का वातावरण उन सभी उत्तेजनाओं का योग है जिसको वह जन्म से लेकर मृत्यु तक ग्रहण करता है ” …. बोरिंग

Number System Basics in English

Numbers

In Decimal number system, there are ten symbols namely 0,1,2,3,4,5,6,7,8 and 9 called digits. A number is denoted by group of these digits called as numerals.

Face Value

Face value of a digit in a numeral is value of the digit itself. For example in 321, face value of 1 is 1, face value of 2 is 2 and face value of 3 is 3.

Place Value

Place value of a digit in a numeral is value of the digit multiplied by 10n where n starts from 0. For example in 321:

  • Place value of 1 = 1 x 100 = 1 x 1 = 1
  • Place value of 2 = 2 x 101 = 2 x 10 = 20
  • Place value of 3 = 3 x 102 = 3 x 100 = 300

Types of Numbers

  1. Natural Numbers – n > 0 where n is counting number; [1,2,3…]
  2. Whole Numbers – n ≥ 0 where n is counting number; [0,1,2,3…].
  3. Integers – n ≥ 0 or n ≤ 0 where n is counting number;…,-3,-2,-1,0,1,2,3… are integers.
    • Positive Integers – n > 0; [1,2,3…]
    • Negative Integers – n < 0; [-1,-2,-3…]
    • Non-Positive Integers – n ≤ 0; [0,-1,-2,-3…]
    • Non-Negative Integers – n ≥ 0; [0,1,2,3…]
    0 is neither positive nor negative integer.
  4. Even Numbers – n / 2 = 0 where n is counting number; [0,2,4,…]
  5. Odd Numbers – n / 2 ≠ 0 where n is counting number; [1,3,5,…]
  6. Prime Numbers – Numbers which is divisible by themselves only apart from 1.
  7. Composite Numbers – Non-prime numbers > 1. For example, 4,6,8,9 etc.
  8. Co-Primes Numbers – Two natural numbers are co-primes if their H.C.F. is 1. For example, (2,3), (4,5) are co-primes.

Divisibility

Following are tips to check divisibility of numbers.

  1. Divisibility by 2 – A number is divisible by 2 if its unit digit is 0,2,4,6 or 8.
  2. Divisibility by 3 – A number is divisible by 3 if sum of its digits is completely divisible by 3.
  3. Divisibility by 4 – A number is divisible by 4 if number formed using its last two digits is completely divisible by 4.
  4. Divisibility by 5 – A number is divisible by 5 if its unit digit is 0 or 5.
  5. Divisibility by 6 – A number is divisible by 6 if the number is divisible by both 2 and 3.
  6. Divisibility by 8 – A number is divisible by 8 if number formed using its last three digits is completely divisible by 8.
  7. Divisibility by 9 – A number is divisible by 9 if sum of its digits is completely divisible by 9.
  8. Divisibility by 10 – A number is divisible by 10 if its unit digit is 0.
  9. Divisibility by 11 – A number is divisible by 11 if difference between sum of digits at odd places and sum of digits at even places is either 0 or is divisible by 11.

Tips on Division

  1. If a number n is divisible by two co-primes numbers a, b then n is divisible by ab.
  2. (a-b) always divides (an – bn) if n is a natural number.
  3. (a+b) always divides (an – bn) if n is an even number.
  4. (a+b) always divides (an + bn) if n is an odd number.

Division Algorithm

When a number is divided by another number thenDividend = (Divisor x Quotient) + Reminder

Series

Following are formulaes for basic number series:

  1. (1+2+3+…+n) = (1/2)n(n+1)
  2. (12+22+32+…+n2) = (1/6)n(n+1)(2n+1)
  3. (13+23+33+…+n3) = (1/4)n2(n+1)2

Basic Formulaes

These are the basic formulae:

(a + b)2 = a2 + b2 + 2ab
(a - b)2 = a2 + b2 - 2ab
(a + b)2 - (a - b)2 = 4ab
(a + b)2 + (a - b)2 = 2(a2 + b2)
(a2 - b2) = (a + b)(a - b)
(a + b + c)2 = a2 + b2 + c2 + 2(ab + bc + ca)
(a3 + b3) = (a + b)(a2 - ab + b2)
(a3 - b3) = (a - b)(a2 + ab + b2)
(a3 + b3 + c3 - 3abc) = (a + b + c)(a2 + b2 + c2 - ab - bc - ca)