Errors in Mathematics- Ignorance Forgetfulness Biasedness

अज्ञानता के कारण त्रुटियां- अज्ञानता के कारण त्रुटियां छात्रों द्वारा निर्देशों या मैनुअल को ठीक से न पढ़ने के कारण होती हैं। यदि छात्र सावधानी से काम करें, तो ऐसी त्रुटियां दूर की जा सकती हैं।

भूल-चूक के कारण त्रुटियां- छात्रों द्वारा गलत तरीके से 0.1 के स्थान पर 0.01 लिखना या 7.3 के स्थान पर 3.7 लिखना, आदि त्रुटियों को सावधानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

पूर्वाग्रह के कारण त्रुटियां- पूर्वाग्रह को पसंद करने के कारण उत्पन्न त्रुटियां इसमें शामिल हैं। इस तरह की त्रुटियों को व्यक्तिवाद के अवसरों को दूर करके और माप उपकरण या विधि को उद्देश्य बनाकर नियंत्रित जा सकता है

§  Errors due to Ignorance- Errors due to ignorance are committed by the students on not seeing the instructions or manual properly. Such errors can be removed if the students work carefully.

§  Errors due to Forgetfulness -Sometimes the students erroneously write 0.01 in place of 0.1, or write 3.7 in place of 7.3, etc. Such errors can be controlled by carefulness

§  Errors due to Biasedness- The errors arising due to prejudice or, liking of the measurer are included in it. Such errors can be removed by removing the opportunities of subjectivity and making the measurement tool or method objective

Micro teaching in Mathematics

सूक्ष्म-शिक्षण के पाँच कौशल हैं।

·   ज्ञान और अनुभव को एकीकृत करने का कौशल

·   बाल केंद्रित सीखने की सुविधा प्रदान करने का कौशल

·   शिक्षार्थियों को पूछताछ के लिए प्रोत्साहित करने का कौशल

·   शिक्षार्थियों में अवलोकन विकसित करने का कौशल

·   सीखने के साथ प्रदर्शन कला को एकीकृत करने का कौशल।

There are five skills of micro teaching in Mathematics.

·   skill of integrating knowledge and experience

·   skill of facilitating child centric learning

·   skill of encouraging learners to enquire

·   skill of developing observation in learners

Abacus

Abacus
अबेकस का उपयोग गिनती, जोड़ और घटाव के साथ-साथ गुणन और विभाजन जैसे अधिक जटिल कार्यों को सरल गणित सिखाने के लिए किया जा सकता है। यह भिन्न के लिए और वर्गमूल और घनमूल निकालने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
एक शिक्षण सहायक उपकरण है। गिनतारा की सहायता से प्राथमिक स्तर के बच्चों को संख्या का ज्ञान दिया जाता है।

गिनतारा से बच्चों को कैसे पढ़ाया जाता है?
गिनतारा में प्रत्येक लाइन में अनेकों प्लास्टिक के छोटे-छोटे केंद्र जैसी आकृति लगी रहती है। उस गेंद को एक तरफ से दूसरे तरफ बढ़ा दिया जाता है तथा बालकों को बोला जाता है कि अब इसकी गिनती करने के लिए। जिससे बालकों की संख्या के गिनती पर पकड़ आती है।

फिर पूछा जाता है कि पहले कितना गेंद थे और अब कितना केंद्र शेष रह गए हैं इससे बच्चों के जोड़ एवं घटाओ जैसी गणितीय कौशल का विकास होता है।

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि प्राथमिक स्तर पर बालकों को संख्या क्या ज्ञान देने हेतु गिनतारा एक उपयोगी उपकरण है जिसकी सहायता से प्राथमिक स्तर के बच्चों को आसानी से जोड़ एवं घटाव का ज्ञान दिया जा सकता है।

आज के इस लेख में हमलोगों ने गिनतारा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को पढ़ा। हम लोगों ने जाना है कि- गिनतारा क्या होता है? गिनतारा क्या है? गिनतारा की आकृति कैसी है? साथ ही साथ हम लोगों ने यह भी जाना कि गिनतारा की सहायता से बच्चों को कैसे पढ़ाया जाता है?

Abacus
Abacus can be used to teach simple mathematics to counting, addition and subtraction as well as more complex tasks such as multiplication and division. It can also be used for fractions and for finding square roots and cube roots.
is a teaching aids tool. With the help of Gintara, the knowledge of numbers is given to the children of primary level.

How are children taught by Gintara?
In the Gintara, each line has several small centers shaped like plastic ones. The ball is pushed from one side to the other and the boys are told to count it now. Due to which the count of the number of children gets caught.

Then it is asked how many balls were there before and now how many centers are left, this develops the children’s mathematical skills like addition and subtraction.

In this way, we can say that counting is a useful tool to give knowledge of numbers to the children at the primary level, with the help of which the knowledge of addition and subtraction can be given to the children of the primary level easily.

In today’s article, we read important things related to Gintara. We have known that – what is a count-tara? What is a counter? What is the shape of Gintara? At the same time, we also learned that how children are taught with the help of Gintara?

Geoboard

जिओबोर्ड क्या होता है? [What is Geoboard]

जियो-बोर्ड एक गणितीय मैनिपुलेटर है जिसका उपयोग समतल ज्यामिति जैसे परिधि, क्षेत्रफल एवं  और त्रिभुज या अन्य बहुभुज की विशेषताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसमें एक बोर्ड होता है, जिसमें एक निश्चित संख्या में कील आधे जड़े होते हैं, जिसके चारों ओर रबर से बने जियो-बैंड लिपटे होते हैं।

Geoboard (जिओबोर्ड) लकड़ी का बना एक बोर्ड होता है। जिस पर अनेकों कील लगे होते हैं।

Geoboard (जिओबोर्ड) पर रबड़ बैंड या धागे के इस्तेमाल करके बच्चों को खुली एवं बंद आकृति को सिखाया जाता है।

जिओबोर्ड प्राथमिक स्तर पर गणित के शिक्षण हेतु काफी उपयोगी उपकरण है। इसकी सहायता से बच्चों को त्रिभुज, वर्ग, आयत जैसी ज्यामितीय आकृतियों के बारे में बताया जाता है।

जिओबोर्ड की सहायता से बालकों को कैसे पढ़ाया जाता है?

चित्र के माध्यम से समझते हैं कि जिओबोर्ड की सहायता से बालकों को कैसे पढ़ाया जाता है?

ऊपर के चित्र में हम लोगों ने देखा कि जिओबोर्ड पर लगे कील पर रबड़ बैंड या धागे की सहायता से विभिन्न प्रकार की द्विविमीय ज्यामिति आकृति को बनाया जाता है जिससे प्राथमिक स्तर के बच्चे ज्यामिति आकृति को आसानी से सीखते हैं।

जिओबोर्ड क्या है? What is Geoboard

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि प्राथमिक स्तर के बच्चों के लिए गणित के ज्यामितीय शिक्षण के लिए जिओबोर्ड काफी उपयोगी उपकरण है।

Notes :- जिओबोर्ड की सहायता से केवल द्वि – विमीय (2D) आकृति को ही पढ़ाया जा सकता है। इसकी सहायता से त्रि-विमीय (3D) आकृति को नहीं पढ़ाया जाता है।

What is Geoboard? [What is Geoboard]
Geo-board is a mathematical manipulator used to find the perimeter, area and features of triangles or other polygons in plane geometry. It consists of a board with a certain number of nails half-stretched, around which are wrapped geo-bands made of rubber.

Geoboard is a board made of wood. On which many nails are attached.

Using a rubber band or thread on a geoboard, children are taught to draw open and closed shapes.

Geoboard is a very useful tool for teaching mathematics at the primary level. With the help of this, children are told about geometrical shapes like triangle, square, rectangle.

How are children taught with the help of geoboard?

Let us understand through pictures how children are taught with the help of Geoboard?
In the above picture we have seen that various types of two dimensional geometry shapes are made with the help of rubber band or thread on the nail mounted on the geoboard, so that the children of primary level learn the geometry shape easily.

What is Geoboard? What is Geoboard

Thus we can say that Geoboard is a very useful tool for teaching geometrical mathematics to elementary level children.

Notes: – With the help of Geoboard, only two-dimensional (2D) figures can be taught. With its help, three-dimensional (3D) figures are not taught.

वेन हीले के ज्यामितीय चिंतन का स्तर | Ven Hele’s Geometrical Thinking Level

वेन-हिले के सिद्धांत के अनुसार, ज्यामिति में सोचने या समझने के पाँच स्तर हैं:

स्तर 0 – चाक्षुषीकरण

स्तर 1 – विश्लेषण

स्तर 2 – अमूर्तता/अनौपचारिक  निगमन

स्तर 3 – औपचारिक  निगमन/ निगमन

स्तर 4 – दृढ़ता

According to the Van Hiele’s theory, there are five levels of thinking or understanding in geometry:

Level 0 – visualization

Level 1 – Analysis

Level 2 – Abstraction

Level 3 – Deduction

Level 4 – Rigor

वेन हीले के ज्यामितीय चिंतन का स्तर

वेन हीले नीदरलैंड के गणितज्ञ थे। बालक ज्यामिति को किस तरह से सीखते हैं। इसके विभिन्न स्तरों को उन्होंने बताया है।

Ven Hele’s Geometrical Thinking Level

उन्होंने प्रतिरूपों को 5 स्तर में विभाजित किया है :-

स्तर 0- चाक्षुषीकरण या मानसिक चित्रन (Visualization)

स्तर 1- विश्लेषण (Analysis)

स्तर 2- अनौपचारिक निगमन (Informal Deduction)

स्तर 3- औपचारिक निगमन (Formal Deducation)

स्तर 4- दृढ़ता (Rigor)

स्तर 0- चाक्षुषीकरण या मानसिक चित्रन

  • इस स्तर में छात्राओं ने दिमाग पर चित्रण के अनुसार सीखते हैं बच्चे कोई वस्तु के देखता है तथा अपने दिमाग में सोच कर उसकी आकृति का निर्णय करता है।
  • इस स्तर में को समझाने के लिए वह नहीं लेने सूर्य का प्रयोग किया था तथा आयत को समझाने के लिए दरवाजा का प्रयोग करते थे।

स्तर 1- विश्लेषण

  • इस स्तर में बच्चा आकृतियों के गुणों के आधार पर वस्तु का निर्धारण तुलना तथा वर्गीकरण करने लगता है।
  • यह सीखने का एक तार्किक तथा वैज्ञानिक विधि हैं।

वेन हीले का ज्यामितीय चिंतन का स्तर

स्तर 2- अनौपचारिक निगमन

इस स्तर में बच्चा आकृति का विश्लेषण करने के बाद उसके गुणों के आधार पर निचोर निकालकर पूर्णरूपेण समझने का प्रयत्न करता है।

स्तर 3- औपचारिक निगमन

इस स्तर में बच्चा निचोड़ ग्रहण करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचता है कि इसे किस तरह से निगमित किया जा सके अर्थात इसमें बच्चे सूत्र का प्रयोग करने लगता है।

स्तर 4- दृढ़ता

इस स्तर में बच्चा ज्यामिति आकृति को निगमित करके अपने पूर्ण विश्वास के स्तर को दृढ़ करता है।

Ven Hele’s Levels of Geometric Thinking
Ven Hele was a mathematician from the Netherlands. How do children learn geometry? He has explained its various levels.

Ven Hele’s Geometrical Thinking Level
He has divided the patterns into 5 levels:-
Level 0- Visualization

Level 1- Analysis

Level 2- Informal Deduction

Level 3- Formal Deduction

Level 4 – Rigor

Level 0- Visualization or Visualization
In this level, the students learn according to the drawing on the mind, the child sees an object and decides its shape by thinking in his mind.
To explain in this level, he used not to take Surya and used the door to explain the ayat.


Level 1- Analysis
In this stage, the child begins to determine, compare and classify objects on the basis of the properties of figures.
It is a logical and scientific method of learning.
Wayne Healey’s Level of Geometric Thinking

Level 2- Informal Incorporation
In this stage, after analyzing the shape, the child tries to understand it completely by extracting it on the basis of its properties.

Level 3- Formal Incorporation
In this stage, after taking the squeeze, the child comes to the conclusion that how it can be incorporated, that is, the child starts using the formula in it.

Level 4- Perseverance
In this level the child consolidates his level of absolute confidence by incorporating geometrical figures.

Micro-teaching Cycle

Micro-teaching is a teacher training and faculty development technique whereby the teacher reviews a recording of a teaching session, in order to get constructive feedback from peers and/or students about what has worked and what improvements can be made to their teaching technique.

Steps of the Micro-teaching cycle-

1.    Planning

2.    Teaching

3.    Feedback

4.    Re-Planning

5.    Re-Teaching

6.    Re-feedback

सूक्ष्म-शिक्षण एक शिक्षक प्रशिक्षण और संकाय विकास तकनीक है, जिसके तहत शिक्षक शिक्षण सत्र की रिकॉर्डिंग की समीक्षा करता है, ताकि साथियों और / या छात्रों से रचनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके कि उन्होंने क्या काम किया है और उनकी शिक्षण तकनीक में क्या सुधार हो सकते हैं।

सूक्ष्म-शिक्षण चक्र के चरण-

1.    योजना

2.    शिक्षण

3.    प्रतिक्रिया

4.    पुनः योजना

5.    पुनः शिक्षण

6.    पुनः प्रतिक्रिया

नई शिक्षा नीति, 2020

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई जिसे सभी के परामर्श से तैयार किया गया है। इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा के पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई है। शिक्षा के संबंध में गांधी जी का तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। इन्हीं सब चर्चाओं के मध्य हम देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी। साथ ही क्या यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद ने देखा था?

सबसे पहले ‘शिक्षा’ क्या है इस पर गौर करना आवश्यक है। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत किया जाता है। शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है।

गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस नीति द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है। इसके उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य रखा गया है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य
अंतिम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी जिसमें वर्ष 1992 में संशोधन किया गया था।
वर्तमान नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Eurolment Ratio-GER) को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।
नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय का नाम परिवर्तित कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु
स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान
नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है।
पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) – 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2
तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज (Prepatratory Stage)
तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण – ग्रेड 6, 7, 8 और
4 वर्ष का उच (या माध्यमिक) चरण – ग्रेड 9, 10, 11, 12
NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा।
भाषायी विविधता का संरक्षण
NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।
शारीरिक शिक्षा
विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।
पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार
इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।
कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।
‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for School Education) तैयार की जाएगी।
छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा। इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।
छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।
छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।
शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार
शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।
वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।
उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान
NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)।
विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।
नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग
नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commision of India-HECI) की परिकल्पना की गई है जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा।

HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार निकाय-

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatroy Council-NHERC) : यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा।
सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council – GEC) : यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों का ढाँचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा।
राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council – NAC) : यह संस्थानों के प्रत्यायन का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।
उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council – HGFC) : यह निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा।
नोट: गौरतलब है कि वर्तमान में उच्च शिक्षा निकायों का विनियमन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों के माध्यम से किया जाता है।

देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Reserach Universities – MERU) की स्थापना की जाएगी।
विकलांग बच्चों हेतु प्रावधान
इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये क्रास विकलांगता प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा।
डिजिटल शिक्षा से संबंधित प्रावधान
एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’’ (National Educational Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन योजना एवं प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।
डिजिटल शिक्षा संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो डिजिटल बुनियादी ढाँचे, सामग्री और क्षमता निर्माण हेतु समन्वयन का कार्य करेगी।
पारंपरिक ज्ञान-संबंधी प्रावधान
भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा।

विशेष बिंदु

आकांक्षी जिले (Aspirational districts) जैसे क्षेत्र जहाँ बड़ी संख्या में आर्थिक, सामाजिक या जातिगत बाधाओं का सामना करने वाले छात्र पाए जाते हैं, उन्हें ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र’ (Special Educational Zones) के रूप में नामित किया जाएगा।
देश में क्षमता निर्माण हेतु केंद्र सभी लड़कियों और ट्रांसजेंडर छात्रों को समान गुणवत्ता प्रदान करने की दिशा में एक ‘जेंडर इंक्लूजन फंड’ (Gender Inclusion Fund) की स्थापना करेगा।
गौरतलब है कि 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा हेतु एक राष्ट्रीय पाठ‍्यचर्या और शैक्षणिक ढाँचे का निर्माण एनसीआरटीई द्वारा किया जाएगा।
वित्तीय सहायता

एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।
इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये “ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड” लॉन्च किया।
इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।
ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित “ग्रामीण विश्वविद्यालय” मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।

पूर्ववर्ती शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।


नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ
राज्यों का सहयोगः शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।
महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के महँगी होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
शिक्षा का संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।
फंडिंग संबंधी जाँच का अपर्याप्त होनाः कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं।
वित्तपोषणः वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।
मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं।
निष्कर्ष
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु जिस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंज़ूरी दी है अगर उसका क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी। नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है। 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को सार्वभौमिक बनाना है। स्नातक शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, थ्री-डी मशीन, डेटा-विश्लेषण, जैवप्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के समावेशन से अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी कुशल पेशेवर तैयार होंगे और युवाओं की रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी।

National curriculum framework 2005 Part-1 for CTET & TET by India’s Top Learners

🌼🌼 National curriculum framework 🌼🌼
(राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005)
🌼 रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध “सभ्यता और प्रगति” मे उल्लेख है
🌼 सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी है
🌼🌼ncf-2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषाओं में किया गया है

🌼🌼अब तक का नवीन राष्ट्रीय दस्तावेज है
🌼🌼 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफ़ेसर यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वान ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा

🌼🌼 5 मार्गदर्शक सिद्धांत ncf-2005
🌼1.ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए
🌼2.पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए
🌼3.पाठ्यचर्या ,पाठ्यपुस्तक तक केंद्रित ना रहे
🌼4.कक्षा कक्ष को गतिविधि से जोड़ा जाए और इस को लचीला बनाया जाए
🌼5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को एक पाठ्यक्रम में शामिल करें

🌼🌼 Ncf-2005 के महत्वपूर्ण तथ्य 🌼
🌼1.जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी कम करना, बाहरी जीवन से ज्ञान को जोड़ना
🌼2. Ncf को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना, अधिनियम प्रक्रिया में रटने से मुक्त करना, बच्चों को चहुमुखी विकास करना
🌼 3.बाल केंद्रित शिक्षा ,प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करें
🌼4. ncf-2005 का निर्माण NCERT द्वारा किया गया इसको पूर्ण करने का कार्य निर्देशक प्रोफेसर- कृष्ण कुमार के निर्देशन में किया गया
🌼इसका लक्ष्य “आत्मज्ञान “–अलग अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी है
🌼हर विद्यार्थी को अपनी क्षमता/ कौशल होती है तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए

🌼🌼🌼by manjari soni🌼🌼🌼

🌀 *राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005* *(National curriculum framework 2005)* ★ *रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध ” सभ्यता और प्रगति”से उद्धृत हुआ है* :- 👉 *सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी है*। ✅ ncf-2005 का *अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची*;में दी गई सभी भाषा में किया गया है। 👉 *यह अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है*। ✅ मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर *प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में* देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वानो ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा । ✅ *ncf-2005 के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत* :- 👉 ज्ञान को स्कूल के बाहर जीवन से जोड़ा जाए। 👉 पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए । 👉 पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक तक केंद्रित ना रहे। 👉 कक्षा – कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इस को लचीला बनाया जाए । 👉 राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें। राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करें । 🍀 *ncf-2005 के महत्वपूर्ण तथ्य* 🍀 👉 जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना ,बाहरी जीवन से ज्ञान को जोड़ना। 👉 एनसीएफ को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना , अधिगम प्रक्रिया में रटने से मुक्त करना इससे बच्चे का चहुमुखी विकास होता है । 👉 बाल केंद्रित शिक्षा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण । ✅ *ncf-2005 का निर्माण एनसीईआरटी के द्वारा किया गया इस को पूर्ण करने का कार्य निदेशक प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया* 👉 इसका लक्ष्य “आत्मज्ञान” अलग-अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी है। 👉 हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता /कौशल होती है तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए । धन्यवाद नोट्स बाय प्रज्ञा शुक्ला

*⛳National curriculum framework-2005⛳*
*(राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005*)

*★ रविंद्र नाथ टैगोर* के निबंध *सभ्यता और प्रगति* मे कहा गया है- “सृजनात्मकता उदार बचपन की कुंजी है “।

★ NCF-2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषाओं में किया गया हैं।
👉 यह विद्यालय शिक्षा का अब तक का *सबसे नवीनतम* राष्ट्रीय दस्तावेज है।

★ *मानव संसाधन विकास मंत्रालय* की पहल पर *प्रोफेसर यशपाल* की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वानों ने शिक्षक को नए राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा।

*★ 5 मार्ग दर्शक सिद्धांत*
NCF-2005 के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत निम्नलिखित है-
१. ज्ञान को स्कूल के *बाहरी जीवन* से जोड़ा जाए।

२. पढ़ाई को *रटन्त प्रणाली* से मुक्त किया जाए ।
३. पाठ्यचर्या *पाठ्यपुस्तक तक केंद्रित* ना रहे।

४. कक्षा कक्ष को *गतिविधियों* से जोड़ा जाए और इस को *लचीला* बनाया जाए।

५. राष्ट्रीय *मूल्यों के प्रति आस्थावान* विद्यार्थी तैयार करें *राष्ट्र के महत्व* के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करें।

*★NCF-2005 के महत्वपूर्ण तथ्य*
१. जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना। वास्तविकता और ज्ञान दोनों अलग नहीं है यह दोनों एक ही है और इन्हें बाहरी जीवन से जोड़ना।

२. एनसीएफ को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना,अधिगम प्रक्रिया में रटने से मुक्त करना जिससे बच्चे का चहुंमुखी विकास हो सके।

३. बाल केंद्रित शिक्षा हो प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करें।

४. ncf-2005 का निर्माण *एनसीईआरटी* के द्वारा किया गया इस को पूर्ण करने का कार्य निदेशक *प्रोफेसर कृष्ण कुमार* के नेतृत्व में किया गया।

५ हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता कौशल होते हैं तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए ताकि वह अपनी बात रख सके।
Notes by Shivee Kumari😊
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
____________________________________________________________
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 :-

🌿 राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा की उत्पत्ति रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध “सभ्यता और प्रगति” से हुआ है। इसमें कहा गया है कि सृजनात्मकता, उदार और आनंद बचपन की कुंजी है।

🌿 Ncf 2005 अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है

🌿 Ncf 2005 का अनुवाद भारतीय संविधान की ‘आठवीं अनुसूची’ में दी गई सभी भाषा में किया गया है।

🌿 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफेसर *यशपाल* की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञों अथवा विद्वानों ने शिक्षकों को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा।

NCF 2005 के 5 मार्गदर्शक सिद्धांत :-

1️⃣ ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ा जाए।
2️⃣ पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
3️⃣ पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक तक ही केंद्रित ना रहे।
4️⃣ कक्षा कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए।
5️⃣ राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करना और राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करना।

NCF 2005 के महत्वपूर्ण तथ्य :-

💫 जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना और बाहरी जीवन से जोड़ना।

💫 NCF को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना, अधिगम प्रक्रिया में रटने से मुक्त करना और बच्चे का चहुँमुखी विकास करना।

💫 बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करना।

💫 Ncf-2005 का निर्माण *एनसीईआरटी* के द्वारा किया गया तथा इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक प्रोफेसर *कृष्ण कुमार* के नेतृत्व में किया गया।

💫 इसका लक्ष्य ‘आत्मज्ञान’ कराना अर्थात अलग अलग अनुभव देकर उसे स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करने देना।

💫 Ncf-2005 ने कहा है कि प्रत्येक विद्यार्थी की अपनी क्षमता/कौशल होती है अतः प्रत्येक विद्यार्थियों को अपनी कौशल और क्षमताओं को व्यक्त करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

⭐⭐⭐

समानता का नियम (Law of Resemblance)

जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही उनकी संतान भी होती है।

🗣️ सोरेनसन के अनुसार, “बुद्धिमान माता-पिता की संतान बुद्धिमान, साधारण माता-पिता की संतान साधारण और मंदबुद्धि माता पिता के संतान मंदबुद्धि होते हैं।”

इसी प्रकार शारीरिक रचना की दृष्टि से भी बच्चे माता पिता के समान होते हैं।

उदाहरणार्थ : यदि किसी माता पिता की शरीर रचना गोलाकार है तो उनकी संतानों की भी शरीर रचना गोलाकार होती है और यदि माता-पिता की शरीर रचना चौड़ा है तो उनके संतानों की भी शरीर रचना चौड़ा होगा।

उपर्युक्त सोरेनसन के कथन की सामान्य प्रतिपुष्टि यह है कि “सोरेनसन का नियम अपूर्ण है क्योंकि राजा यह देखा जाता है कि काली माता पिता के संतान गोरे मंदबुद्धि माता-पिता के संतान बुद्धिमान होते हैं।”

विभिन्नता का नियम (Law of Variation)

💫इसमें बालक माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ भिन्न होते हैं।

💫एक ही माता-पिता के दो बच्चे एक दूसरे से समान होते हुए भी बुद्धि, रंग और स्वभाव में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। कभी-कभी उनमें पर्याप्त मानसिक और शारीरिक विभिन्नता पाई जाती है।

सोरेनसन के अनुसार,”इस विविधता का कारण माता पिता की उत्पादक कोषों की विशेषताएं हैं।” उत्पादक कोषों में अनेक पैतृक होते हैं जो विभिन्न प्रकार से संयुक्त होकर एक दूसरे से भिन्न बच्चों का निर्माण करते हैं।
⭐⭐⭐
_______Written By : Awadhesh Kumar__________________

🏵️🏵️ national curriculum Framework 2005 🏵️🏵️
🏵️🏵️ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 🏵️🏵️
🏵️🔹रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध सभ्यता और प्रगति से उद्धृत हुआ है।
🏵️🔹 सृजनात्मकता उधार आनंद बचपन की कुंजी है।
🏵️👉 Ncf-2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषा में किया गया है।
🏵️👉 यह अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है।
🏵️👉मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ, विद्यान ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा।
🔹🏵️🔹 Ncf 2005 के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत:–
🏵️1-ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
🏵️2-पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
🏵️3-पाठ्यचर्या, पाठ्यपुस्तक तक केंद्रित ना रहे।
🏵️4-कक्षा- कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए।
🏵️5-राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें, राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करें।
🔹🏵️🔹 Ncf-2005 के महत्वपूर्ण तथ्य 🔹🏵️🔹
🏵️1-जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी कम करना, बाहरी जीवन से ज्ञान को जोड़ना।
🏵️2-Ncf को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना, अधिगम प्रक्रिया में रटने से मुक्त करना, बच्चे का चौमुखी विकास होता है।
🏵️3-बाल केंद्रित शिक्षा, प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करें।
🏵️4-ncf-2005 का निर्माण एनसीईआरटी के द्वारा किया गया इसको पूर्ण करने का कार्य निर्देशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया।
🏵️5-इसका लक्ष्य “आत्मज्ञान”- अलग अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करना है।
🏵️6-हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता/ कौशल होती है तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए।
🔹🏵️🏵️🏵️🔹
🔹🏵️🔹 Notes by~Vinay Singh Thakur 🔹🏵️🔹
🌸 National curriculum. framework_ 2005🌸
(राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा_ 2005)

🌻 रवीन्द्र नाथ टैगोर के निबंध सभ्यता और प्रगति में ‌‌ “सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी हैं”

🌻 Ncf 2005 के 5 मार्ग का अनुवाद संविधान की 8 वी अनूसुचि में दी गई सभी भाषा में किया गया है।

🌻 यह विद्यालय शिक्षा का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।

🌻 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वनो ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा।

🌻NCf 2005 के 5 मार्गदर्शक सिद्धांत🌻

🌻ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।

🌻पढा़ई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।

🌻 पाठ्यचर्या, पाठ्य-पुस्तक तक केन्द्रित ना रहे।
🌻कक्षाकक्ष ‌को गतिविधियों से जोड़ा जाए और उसको लचीला बनाया जाए।

🌻 राष्ट्रीय ‌ मुल्यो के प्रति आस्थावन विधार्थी तैयार करें राष्ट्र के महत्त्वपूर्ण ‌बिन्दुओ को पाठ्यक्रम में ‌शामिल करें।

🌻NCf 2005 के महत्त्वपूर्ण तथ्य _

🌻जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना और बादरी‌ जीवन से ज्ञान को जोड़ना।
🌻ncf को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना अधिगम प्रक्रिया में रटने से मुफ्त करना,बच्चे का चहुंमुखी विकास होता है।

🌻बाल केन्द्रीत शिक्षा, प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करे।

🌻NCf 2005 का निर्माण NCf के व्दारा किया गया इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक प्रोफेसर क्रष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया।

🌻हर विधार्थी को अपनी क्षमता/कौशल होती हैं तो हर विधार्थी को उसे व्यकत् करने का मौका दिया जाना चाहिए।

Notes by Puja Murkhe🥰
📚 National Curriculum Framework 2005
( राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005)📚

🎊 Ncf2005 अभी अब तक का,नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है। यह रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध, सभ्यता और प्रगति से उद्धृत हुआ है।

🎊 इसमें कहा गया है, सृजनात्मकता, उदार और आनंद बचपन की कुंजी है।

🎊 Ncf-2005 का अनुवाद, संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषा में किया गया है।

🎊 मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) की पहल पर प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में, देश के चुने हुए विशेषज्ञ, विद्वान ने शिक्षक को, नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा।

📚NCF -2005 के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत📚

🎊 ज्ञान को स्कूल के बाहर ही जीवन से जोड़ा जाए।

🎊 पढ़ाई को रटंत प्रणाली से मुक्त किया जाए।

🎊पाठ्यचर्चा,पाठ्यपुस्तक तक केंद्रित ना रहे।

🎊कक्षा कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इस को लचीला बनाया जाए।

🎊 राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें, और राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करें।

📚NCF-2005, के महत्वपूर्ण तथ्य📚

🎊 जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना यानी व्यक्तिगत विभिन्नता को कम करना।

🎊 बाहरी जीवन से,ज्ञान को जोड़ना।

🎊NCF को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना, बच्चे के चहूमुखी विकास के लिए, अधिगम प्रक्रिया को रखने से मुक्त कराना।

🎊 बाल केंद्रित शिक्षा और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करना।

🎊NCF-2005, हनुमान एनसीईआरटी द्वारा किया गया। इसको पूर्ण करने का कार्य प्रोफेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया।

🎊 इसका लक्ष्य बच्चों को”आत्मज्ञान” देना और अलग-अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति कराना है।

🎊 हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता या कौशल होती है तो हर विद्यार्थियों को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए।

🎊Notes By आकांक्षा🎊
🙏🏻🤗🌸🙏🏻🙏🏻🖊️

📝National curriculum farmework 2005

,(राष्ट्रीय पाठ चर्या रूपरेखा 2005)

🎉 Ncf 2005 अभी तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है। यह रविन्द्र नाथ टैगोर के निबंध ,सभ्यता और प्रगति से उद्ध्रत हुआ है।

🎉इसमें कहा गया है श्राजनात्मकता ,उदार और बचपन कि कुंजी है ।

🎉Ncf 2005 का अनुवाद ,संविधान की 8वी अनुसूची में दी गई सभी भाषाओं में किया गया है।

🎉 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में ,देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वान ने शिक्षकों ने राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा ।

🎉एनसीएफ2005 के 5 मार्गदर्शक सिध्दांत ➖
🔥ज्ञान को विद्यालय के बाहर ही जीवन से जोड़ा जाए।

🔥पढ़ाई को रतंट प्रणाली से मुक्त किया जाए ।

🔥पाठ्यचर्या पाठयपुस्तक, तक केंद्रित ना रहे
🔥कक्षा कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए । और इसे लचीला बनाया जाए।

🔥राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करे ,और राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करे।

🍁महत्व पूर्ण तथ्य ➖

🎉जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना ,यानी व्यक्तिगत विभिन्नता को कम करना।

🎉ज्ञान को बाहरी जीवन से जोड़ना

🎉Ncf को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना ,बच्चे के चहुमुखी विकास के लिए अधिगम प्रक्रिया को रखने से मुक्त कराना ।

🎉 बाल केंद्रित शिक्षा और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करना ।

🎉Ncf 2005 का निर्माण एनसीएफ के द्वारा किया गया । इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया ।

🎉हर विद्यार्थी में अपनी क्षमता /कौशल होती है तो हर विद्यार्थी को उस व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए।

📒📒 Arti savita
🌟 *राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा/NCF –2005 (National Curriculum Freamwoark-2005)*🌟

💫 Ncf-2005 की शुरुआत रवींदरनाथ टैगोर के निबंध “सभ्यता और प्रगति ” से शुरुआत हुई है।

💫 सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी है, यह वाक्य इनके निबंध में कहा गया है।

💫 Ncf-2005 का अनुवाद संविधान की “आठवीं अनुसूची में दी गई तथा सभी भाषा में किया गया है।

💫 अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज।

💫 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर “प्रो. यशपाल”की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ, विद्वान से शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा।

🌟 *NCF के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत:-*

💫 *१.* ज्ञान को विद्यालय या स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।

💫 *२.* पढ़ाई को रटन्त् प्रणाली से मुक्त किया जाए।

💫 *३.* पाठ्यचर्या, पाठयपुस्तक तक केंद्रित ना रहे।

💫 *४.* कक्षा कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए।

💫 *५.* राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें, राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करें।

🌟 *NCF – 2005 के महत्वपूर्ण तथ्य:-*

💫 NCF–जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना और बाहरी जीवन से ज्ञान को जोड़ना।

💫Ncf–2005 को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना और अधिगम प्रक्रिया में रटने से मुक्त करना, जिससे बच्चे का चहुमुखी विकास हो सके।

💫 बाल केंद्रित शिक्षा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करें।

💫Ncf–2005 का निर्माण“NCERT” के द्वारा किया गया, इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक “प्रो. कृष्ण कुमार” के नेतृत्व में किया गया।

💫 इसका लक्ष्य आत्मज्ञान अलग–अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी है।

💫 हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता/कौशल होती है, तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए।

✍️✍️✍️ *Notes by–Pooja* ✍️✍️✍️

🔆 राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा/NCC – 2005 (National curriculum framework – 2005 ) ➖

🍀 Not – 2005 का उद्गम रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध “सभ्यता और प्रगति” से हुआ जिसमें लिखा गया या कहा गया था कि सृजनात्मकता ही उदार आनंद की कुंजी है |

🍀 Ncf – 2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषाओं में किया गया है |

🍀 Ncf – 2005 अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है |

🍀 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर” प्रोफ़ेसर यशपाल” की अध्यक्षता में देश के चुने हुई विशेषज्ञ, या विद्वानों ने शिक्षकों को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा |

🛑 Ncf – 2005 के पॉच मार्गदर्शक सिद्धांत➖

🎯 ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए |

🎯पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए |

🎯 पाठ्यचर्या, पाठ्यपुस्तक तक ही केंद्रित ना रहे |

🎯 कक्षा कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए |

🎯 राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार किए जाए जिसमें राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सके |

⭕ Ncf – 2005 के महत्वपूर्ण तथ्य ➖

🎯 इसके अंतर्गत जीवन एवं ज्ञान के बीच की दूरी को कम करके ज्ञान को बाहरी जीवन से जोड़ा जाए | ताकि बच्चों का चहुंमुखी विकास हो सके |

🎯 ncf-2005 को प्राथमिक शिक्षा में लागू किया जाए, ताकि बच्चे सृजनात्मक हो सके जिससे बच्चे रटन्त प्रणाली से मुक्त हो सके और उनका चौतरफा विकास हो सके |

🎯 शिक्षा बाल केंद्रित हो बच्चे का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो और ऐसे विद्यार्थी का निर्माण हो सके जिनका व्यक्तित्व प्रभावशाली हो सके अर्थात ncf-2005 के अंतर्गत बच्चे की व्यक्तित्व निर्माण की बात कही गई जिससे उनका संपूर्ण विकास हो सके और वे अपनी प्रगति में सहायक हो सके|

🎯 ncf-2005 का निर्माण NCERT द्वारा किया गया था इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक ” प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार” के नेतृत्व में किया गया था एवं इनका प्रमुख लक्ष्य

“आत्मज्ञान” जिसमें बच्चे को अलग अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी है |

एवं हर विद्यार्थी को अपनी-अपनी क्षमता या कौशल होती है तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का अवसर प्राप्त हो सके जिसके लिए शिक्षक क़ा ऐसा माहौल तैयार करना कि बच्चे अपने विचार व्यक्त कर सकें |

नोट्स बाय ➖रश्मि सावले

🌼🍀🌺🌸🍀🌸🌸🌺🌺🌻🌼🌸🌺🍀🌻🌸🌹

(NCF-2005 framework)

National Curriculum framework-2005

रवीन्द्र नाथ टैगोर के निबंध,”सभ्यता और प्रगति”से उद्धित है।

“सृजनात्मकता उदार,आनंद बचपन की कुंजी है।”

(NCF- 2005) राष्ट्रीय पाठ्यचर्या- 2005 का अनुवाद संविधान की 8 वी अनुसूची में किया गया है।

शिक्षक को राष्ट्रीय चुनौतियों के रुप में स्वीकार किया गया;अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है।

“मानव संसाधन विकास मंत्रालय “(MHRD)की पहल पर “प्रोफेसर यशपाल” की अध्यक्षता मैं देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वानों ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा।

NCF-2005 के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत ÷

1- ज्ञान को स्कूल के बाहर जीवन से जोड़ा जाए;

2- पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए;

3-पाठ्यचर्या पाठ पुस्तक- तक केंद्रित ना रहे;

4-कक्षा -कक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए।

5-राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करे,राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल करना।

NCF -2005 एन.सी.एफ.-२००५ के महत्वपूर्ण तथ्य÷

उद्देश्य-जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना;और बाहरी जीवन से जोड़ना।

NCf को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना अधिगम प्रक्रिया में रखने से मुक्त करना जिससे बच्चों के चहमुखी विकास संभव हो सके;

बाल केंद्रित शिक्षा, प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चों का निर्माण करे;

NCF-2005 का निर्माण एन.सी.ई.आर.टी(NCERT)के द्वारा किया गया है; इसको पूर्ण करने का कार्य निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया है।

इसका लक्ष्य- “आत्मज्ञान”अलग-अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी थी।

हर विद्यार्थी को उसके व्यक्तित्व को व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए।

✍️लेखनी-शिखर पाण्डेय ✍️

🔆 National curriculum framework 🔆
(राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005)
◼रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध “सभ्यता और प्रगति” मे उल्लेख है
◼सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी है |
◼ Ncf-2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई सभी भाषाओं में किया गया है |
◼अब तक का नवीन राष्ट्रीय दस्तावेज है |
◼मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रोफ़ेसर यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ विद्वान ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देख |
🔅Ncf – 2005 के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत ➖
1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जुड़ा जाए |
2. पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए |
3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक तक केंन्द्रित ना रहे |
4. कक्षा कक्ष को गतिविधि से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए |
5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को एक पाठ्यक्रम में शामिल करें |
🔅 Ncf – 2005 के महत्वपूर्ण तथ्य :-
1⃣ जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी कम करना बाहरी जीवन से ज्ञान को जोड़ना है |
2⃣ Ncf को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना अधिनियम प्रतिक्रिया में रटने से मुक्त करना बच्चों को चहुमुखी विकास करना |
3⃣ बाल केंद्रित शिक्षा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चे का निर्माण करें |
4⃣ Ncf – 2005 का निर्माण NCERT द्वारा किया गया इसको पूर्ण करने का कार्य निर्देशक प्रोफ़ेसर – कृष्ण कुमार के निर्देशन में किया गया |
⭐इसका लक्ष्य आत्मज्ञान अलग-अलग अनुभव अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी है |
⭐हर विघार्थी को अपनी क्षमता कौशल होती है तो हर विघार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए |
Notes by ➖Ranjana sen

🌹 N C F – 2005 🌹

National Curriculum Framework

🌹🌿 राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा – 2005 🌿🌹

🌻 NCF – 2005 उद्धरण हुआ है -:

” रविंद्र नाथ टैगोर ” के निबंध ” सभ्यता और प्रगति ”

से , जिसमें लिखा है कि –

” सृजनात्मकता उदार आनंद बचपन की कुंजी है। ”

🌻 Ncf-2005 का अनुवाद संविधान की ” 8वीं अनुसूची ” में दी गयी सभी भाषा में किया गया है।

🌻 NCF 2005 अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर ” प्रो . यशपाल ” की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विशेषज्ञ , विद्वानों ने शिक्षक को नई राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखा ।

🌻 NCF – 2005 के 5 मार्गदर्शक सिद्धांत :-

1. शिक्षा / ज्ञान को विद्यालय के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए ।

2. पढ़ाई को रटने की प्रणाली से मुक्त किया जाए।

3. पाठ्यचर्या , पाठ्यपुस्तक तक ही केंद्रित ना रहे।

4. कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए और इसको लचीला बनाया जाए ।

5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार करें तथा राष्ट्र के महत्व के बिंदुओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये ।

🌻 NCF – 2005 के महत्वपूर्ण तथ्य / उद्देश्य :-

👉 जीवन और ज्ञान के बीच की दूरी को कम करना और बाहरी जीवन से ज्ञान को जोड़ना ।

👉 NCF को प्राथमिक शिक्षा में लागू करना ,
अधिगम प्रक्रिया को रटने से मुक्त करना ,
जिससे बच्चों का चहुंमुखी विकास होता है।

👉 बाल केंद्रित शिक्षा हो और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले बच्चों का निर्माण करें।

👉 NCF – 2005 का निर्माण NCERT के द्वारा किया गया है।

👉 NCF – 2005 को पूर्ण करने का कार्य निदेशक
” प्रो . कृष्ण कुमार ” के नेतृत्व में किया गया है।

👉 इसका लक्ष्य था :- ” आत्मज्ञान ”
अर्थात अलग – अलग अनुभव देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी है ।

👉 प्रत्येक विद्यार्थी की अपनी एक विशेष क्षमता / कौशल होती है , तो हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का पूर्ण मौका दिया जाना चाहिए।

🌹✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️🌹

Definitions of mathematics pedagogy for CTET and state TET

Mathematics pedagogy की परिभाषाऐ और key words
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आइंस्टींन के अनुसार -“गणित क्या है???यह उसे मानव चिंतन का प्रतिफल है जो अनुभवों से स्वतंत्र है तथा सत्य के अनुरूप है ”
‌Keyword- “मानव चिंतन”

‌लॉक के अनुसार-” गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चे के मन मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है”
‌Keyword- “मन मसि्तष्क मे तर्क”

‌वनार्डिसा के अनुसार -“तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है”
‌Key word- “शक्तिशाली साधन”

‌ यंग के अनुसार -“यदि समस्त विज्ञान में से गणित को हटा दिया जावे तो उसकी उपयोगिता 0 हो जाती है ”

‌मार्शल के अनुसार -“गणित एक ऐसी ऐसी अमूर्त व्यवस्था है का अध्ययन है जो की अमूर्त तत्वों से मिलकर बनी है इन तत्वों को मूर्त रूप से परिभाषित किया जा सकता है”
‌keyword-“अमूर्त व्यवस्था”

‌ गैलीलियो के अनुसार -“यदि गणित वह भाषा है जिसे परमेश्वर संपूर्ण जगत या ब्रह्मांड या ब्रह्मांड को लिख दिया है ”
‌Keyword- “संपूर्ण जगत ”

‌वेदांग ज्योतिषी के अनुसार-” जिस रूप में मयूर ओके सर पर मुकुट शोभा यान होते हैं तथा सड़कों के सिर पर मणिया वही सर्वोच्च स्थान वेदांग नाम से प्रसिद्ध विज्ञानों में गणित का है ”
‌Keyword-“मुकुट और मणिया”

‌लिण्डपे के अनुसार-” गणित भौतिक विज्ञान की भाषा है और निश्चित मानव मस्तिष्क होते हैं सर्पों अन्य कोई भाषा नहीं है”

‌ हाग्वेन के आनुसार-“गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है ”
‌Keyword-“दर्पण”

‌नेपोलियन के अनुसार -“गणित की उन्नति तथा प्रति देश की संपन्नता से संबंधित है ”
‌Keyword-“देश की संपन्नता”

‌जीडब्ल्यूए यंग के अनुसार -“यदि विज्ञान का आधार स्तंभ गणित हटा दिया जावे तो संपूर्ण भौतिक सभ्यता नि: संदेह नष्ट हो जाएगी”
‌Keyword-“आधार स्तंभ ”

‌ रोजर बेकन -“गणित विज्ञान का मुख्य द्वार व कुंजी व कुंजी कुंजी है
‌Keyword-“कुंजी”

‌बैल के अनुसार -“गणित विज्ञान का नौकर है”
‌Keyword-“नौकर”

‌ गॉस के अनुसार-” गणित विज्ञान की रानी है”
‌Keyword-“रानी”

‌ हरदयाल के अनुसार अनुसार-” गणित विज्ञान की जननी है ”
‌Keyword-“जननी”

Notes by manjari soni🌼🌼🌼

CTET & TETs TEACHING METHODS ALL SUBJECTS

CTET & TETs TEACHING METHODS / CTET & TETs शिक्षण की विधियाँ

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। “शिक्षण विधि” पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है।

प्रयोग प्रदर्शन विधि —

  • प्राथमिक स्तर के बालकों को भौतिक एवं जैविक पर्यावरण अध्ययन विषय के पाठों के अंतर्गत आए प्रयोग प्रदर्शन को स्वयं करके बच्चों को दिखाना चाहिए ।
  • छात्रों को भी यथा संभव प्रयोग करने तथा निरिक्षण करने का अवसर देना चाहिए ।
  • इस विधि से शिक्षण कराने पर करके सीखने के गुण का विकास होता है ।
    प्रयोग – प्रदर्शन विधि की विशेषता :-
  • यह विधि छात्रों को वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
  • इस विधि में छात्र सक्रिय रहते है तथा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पाठ का विकास होता है ।
  • छात्रों की मानसिक तथा निरिक्षण शक्ति का विकास होता है ।
  • विषय वस्तु सरल, सरस, बोधगम्य तथा स्थायी हो जाती है ।
    प्रयोग-प्रदर्शन विधि को प्रभावी बनाने के तरीके —
  • प्रयोग प्रदर्शन ऐसे स्थान पर करना चाहिए जहाँ से सभी बालकों को आसानी से दिख सके ।
  • छात्रों को प्रयोग करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए ।
  • इस विधि का शिक्षण कराते समय अध्यापक को सक्रिय रहकर छात्रों द्वारा प्रयोग करते समय उनका उचित मार्गदर्शन करना चाहिए ।
  • कक्षा में प्रयोग करने से पहले अध्यापक को एक बार स्वयं प्रयोग करके देख लेना चाहिए ।
  • प्रयोग से संबंधित चित्र, महत्वपूर्ण सारांश एवं निष्कर्ष श्यामपट्ट पर लिखना चाहिए ।
    प्रयोग-प्रदर्शन विधि के दोष —
  • इस विधि से शिक्षण कराने पर सभी छात्रों को समान अवसर नहीं मिलते ।
  • इस विधि में व्यक्तिगत समस्या के समाधान का अवसर छात्रों को नहीं मिलता ।
  • प्रयोग करते समय कुछ छात्र निष्क्रिय बैठें रहते है ।
  • कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर यह विधि प्रभावी नहीं रहती ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि
  • प्रोजेक्ट (योजना) विधि शिक्षण की नवीन विधि मानी जाती है। इसका विकास शिक्षा में सामाजिक प्रवृत्ति के फलस्वरूप हुआ। शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए जो जीवन को समर्थ बना सके। इसके प्रवर्तक जान ड्यूबी के शिष्य डब्ल्यू0एच0 किलपैट्रिक थे।
  • परिभाषा -“प्रोजेक्ट वह सह्रदय सौउद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है ।” – किलपैट्रिक
    ” प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है ।” – प्रो• स्टीवेंसन
    ” क्रिया की एक ऐसी इकाई जिसके नियोजन एवं क्रियान्वन के लिए क्रिया स्वयं ही उत्तरदायी हो ।” – पारकर
  • इस विधि में कोई कार्य छात्रों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है ।
  • प्रोजेक्ट विधार्थियों के जीवन से संबंधित किसी समस्या का हल खोजने के लिए किया जाने वाला कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के चरण :–
  • परिस्थिति उत्पन्न करना – इसमें बालकों की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है ।
  • प्रायोजना का चुनाव – प्रोजेक्ट के चुनाव में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है ।
  • प्रायोजना का नियोजन – इसके अंतर्गत प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना पड़ता है ।
  • प्रायोजना का क्रियान्वन – इस स्तर पर शिक्षक कार्यक्रम की योजना के अनुसार सभी छात्रों को आवंटित करता है ।
  • प्रायोजना का मूल्यांकन – प्रायोजना की क्रियान्विती पूर्ण होने पर छात्र तथा शिक्षक इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि कार्य में कहा तक सफलता मिली ।
  • प्रायोजना का अभिलेखन – इस चरण के अंतर्गत प्रायोजना से संबंधित सभी बातों का उल्लेख किया जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के गुण –
  • यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित विधि है जिसमें बालक को स्वतंत्रतापूर्वक सोचने, विचारने, निरिक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है ।
  • प्रोजेक्ट संबंधी क्रियाएं सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है । इस कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है ।
  • इस विधि में छात्र स्वयं करके सीखते है, अतः प्राप्त होने ज्ञान स्थायी होता है ।
  • प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखा जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के दोष –
  • इस विधि द्वारा सभी प्रकरणों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता ।
  • इस विधि में प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है ।
  • प्रायोजना विधि अधिक खर्चीली है ।
  • इस विधि में अधिक समय लगता है ।
    प्रक्रिया विधि (Learning by doing)
  • इस विधि को क्रिया द्वारा सीखना भी कहते है।
  • शिक्षा में क्रिया को प्रधानता देने वाले प्रथम शिक्षाशास्त्री कमेनियस थे । उनके अनुसार क्रिया करना बालक का स्वाभाविक गुण है, अतः जो भी शिक्षा प्रदान की जाए, वह क्रिया के द्वारा प्रदान की जाए ।
  • शिक्षाविद पेस्टालाजी ने क्रिया द्वारा सीखने पर बल दिया है ।
  • पेस्टालाजी के शिष्य फ्रोबेल ने प्रसिद्ध शिक्षण विधि किंडरगार्टन का आविष्कार किया । यह खेल और प्रक्रिया द्वारा शिक्षा देने की विधि है ।
  • प्रक्रिया विधि बालकों के प्रशिक्षण में क्रियाशीलता के सिद्धांत को स्वीकार करती है ।
  • प्रोजेक्ट विधि, मान्टेसरी विधि, किंडरगार्टन विधि इस पर आधारित है ।
  • प्रक्रिया विधि जैविक एवं भौतिक पर्यावरण विषय के अध्ययन के लिए उपयुक्त विधि है ।
    प्रक्रिया विधि के गुण —
  • यह विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं ।
  • प्रक्रिया विधि में वस्तुओं के संग्रह, पर्यटन, अवलोकन, परीक्षण के विषयों में विशेष रूप से विचार करती है ।
  • बालकों में करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है ।
    प्रक्रिया विधि के दोष —
  • प्रकिया विधि में स्वतंत्र अध्ययन होने के कारण वास्तविक (यथार्थ) अध्ययन नहीं हो पाता ।
  • प्रक्रिया विधि विषय केन्द्रित तथा शिक्षक केन्द्रित नहीं है जबकि शिक्षण में दोनों की आवश्यकता है ।
    सम्प्रत्यय प्रविधि
  • “सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । ” – बोरिंग, लैंगफील्ड और वील्ड ।
  • सम्प्रत्यय किसी देखी हुई वस्तु या मन का प्रतिमान है । ” – रास
  • ” सम्प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है जिसे शब्द या शब्द समूहों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है । सम्प्रत्यय का आधार अनुभव होता है ।” – क्रो एंड क्रो
  • सम्प्रत्यय बालक के व्यवहार को निर्धारित करते हैं । उदाहरण के लिए बालक मस्तिष्क में परिवार का सम्प्रत्यय (मानसिक प्रतिमा) यदि अच्छा और अनुक्रम विकसित हुआ है, तो बालक अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा और परिवार से संबंधित सभी कार्य उत्तरदायित्व से करेगा । परिवार के सभी सदस्यों का आदर करेगा तथा परिवार में वह प्रत्येक प्रकार से समायोजित होगा ।
    सम्प्रत्यय निर्माण प्रविधि —
    सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है । यथा —
    1. निरिक्षण – निरिक्षण के द्वारा बच्चें किसी वस्तु के सम्प्रत्यय का निर्माण करता है ।
    2. तुलना – छात्र निरिक्षण द्वारा बनें विभिन्न सम्प्रत्ययों में तुलना करता है ।
    3. पृथक्करण – छात्र दो सम्प्रत्ययों के बीच समानता और भिन्नता की बातों को पृथक करता है ।
    4. सामान्यीकरण – इसमें छात्र किसी वस्तु का सम्प्रत्यय (प्रतिमा) का स्पष्ट रूप धारण कर लेता है ।
    5. परिभाषा निर्माण – छात्र के उपर्युक्त चारों स्तरों से गुजरने के बाद वास्तविक सम्प्रत्यय का निर्माण उसके मन में बनता है ।
  • सम्प्रत्यय निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक – ज्ञानेन्द्रियाँ 2. बौद्धिक क्षमता 3. परिपक्वता 4. सीखने के अवसर 5. समायोजन 6. अन्य कारक – अनुभवों के प्रकार, लिंग, समय आदि ।
    अनुसंधान विधि (Discovery Methods)
  • इस विधि को खोज या अन्वेषण विधि भी कहते हैं ।
  • प्रो• एच• ई• आर्मस्ट्रांग ने विज्ञान शिक्षण विधि में इस अनुसंधान विधि का सुत्रपात किया ।
  • इस विधि का आधार आर्मस्ट्राग ने हरबर्ट स्पेन्सर के इस कथन पर रखा कि ” बालकों को जितना संभव हो, बताया जाए और उनको जितना अधिक संभव हो, खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।”
  • इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय करना है ।
  • इस विधि में छात्र पर ज्ञान उपर से लादा नही जाता, उन्हें स्वयं सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है ।
  • अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बच्चे को कम से कम बताएं और उसे स्वयं अधिक से अधिक सत्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें ।
    अनुसंधान विधि की कार्यप्रणाली —
  • इस विधि में छात्र के सामने कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है । प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है ।
  • आवश्यकता पड़ने पर बालक परस्पर वाद विवाद करते हैं, प्रश्न पुते हैं तथा पुस्तकालय में जाकर पुस्तक देखते है ।
    अनुसंधान विधि के गुण —
  • बालको को स्वयं करके सीखने को प्रेरित करती है ।
  • छात्रों में वैज्ञानिक अभिरूचि तथा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है ।
  • छात्रों में स्वाध्याय की आदत बनती है ।
  • छात्र क्रियाशील रहते है, जिससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता है ।
  • छात्रों में परिश्रम करने की आदत पड़ जाती है ।
  • छात्रों में आत्मानुशासन, आत्म संयम तथा आत्मविश्वास जागृत होता है ।
  • सफलता प्राप्त करने पर छात्र उत्साही होते है तथा उन्हें प्रेरणा मिलती हैं ।
    अनुसंधान विधि के दोष —
  • छोटी कक्षाओं के लिए अनुसंधान विधि उपर्युक्त नहीं है क्योंकि तार्किक व निरिक्षण शक्ति का विकास छोटे बच्चों में नहीं हो पाता ।
  • इस शिक्षण विधि में मंद बुद्धि विधार्थी आगे नही बढ़ पाते हैं तथा पाठ्यक्रम धीरे – धीरे आगे बढ़ते है ।
  • यह विधि प्रतिभावान बच्चों के लिए उपयुक्त है । पूरी कक्षा के लिए नहीं ।
  • प्राथमिक स्तर के बालक समस्या का विश्लेषण करने में असमर्थ होते है ।
    पर्यटन विधि
  • पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष ज्ञान देने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि में छात्रों को का की चारदीवारी मे नियंत्रित शिक्षा न देकर स्थान – स्थान पर घुमाकर शिक्षा दी जाती है ।
  • पर्यटन के द्वारा बच्चें स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं ।
  • पेस्टालाॅजी पर्यटन विधि के जन्मदाता माने जाते हैं । यद्यपि महान दार्शनिक रूसो ने भी पर्यटन को बालकों की शिक्षा का एक प्रमुख साधन माना है ।
    पर्यटन विधि के लाभ —
  • कक्षा तथा प्रयोगशाला में पढ़ी हुई बातों, तथ्यों, वस्तुओं, सिद्धांतों एवं नियमों का बाह्य जगत में आकर स्पष्टीकरण करने का अवसर मिलता है ।
  • पर्यटन विधि द्वारा विज्ञान शिक्षण को सरल, बोधगम्य तथा आकर्षक बनाया जा सकता है ।
  • पर्यटन विधि द्वारा छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
  • पर्यटन विधि से छात्र मिलकर काम करना सीखते है ।
  • छात्र अपने ज्ञान को क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित करना सीखते है ।
  • इस विधि में छात्र पर्यटन के साथ – साथ मनोरंजन होने के कारण बालक मानसिक रूप से थकते नहीं है ।
    पर्यटन विधि के दोष —
  • इस विधि द्वारा प्रत्येक प्रकरण का अध्ययन संभव नहीं है ।
  • इसकी सफलता के लिए शिक्षक तथा छात्रों में सहयोग जरूरी है ।
  • पर्यटन के लिए उचित मात्रा में धन की जरूरत होती है ।
    प्रयोगशाला विधि
  • इस विधि में छात्र प्रयोगशाला में स्वयं करके सीखना सिद्धांत पर सीखता है अर्थात छात्र स्वयं प्रयोग करता है, निरिक्षण करता है और परिणाम निकालता है । इससे छात्र सक्रिय रहते है ।
  • इस विधि में छात्र को कोई शंका या कठिनाई होती है, तो शिक्षक उसका समाधान करता है ।
  • इस विधि में छात्र अधिकतम सक्रिय रहता है जबकि शिक्षक निरीक्षण करते रहते है ।
    प्रयोगशाला विधि के लाभ —
  • प्रयोगशाला विधि करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि में छात्रों में निरिक्षण, परीक्षण, चिंतन, तर्क आदि कुशलताओं का विकास किया जा सकता है जो विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य है ।
  • छात्रों को अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग का अवसर मिलता है । इस प्रकार प्राप्त इन अधिक स्थाई होता है ।
  • प्रयोगशाला विधि द्वारा छात्रों को वैज्ञानिक विधियों में प्रशिक्षित कर सकते हैं ।
  • इस विधि द्वारा वैज्ञानिक अभिवृद्धि का विकास किया जा सकता है ।
    प्रयोगशाला विधि के दोष —
  • प्रयोगशाला विधि में छोटी कक्षाओं के छात्र कठिनाई महसूस करते हैं ।
  • इस विधि से उच्च स्तर का शिक्षण ही संभव हैं ।
  • अध्यापक के सक्रिय न होने पर यह विधि सफल नही हो सकती ।
  • यह विधि अंत्यत खर्चीली हैं ।
    अवलोकन विधि
  • इस विधि में छात्र स्वयं निरिक्षण कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
  • विज्ञान शिक्षण में छात्र प्रत्येक संभावित तथ्य को देखकर, छूकर, स्पर्श करके और चख कर निरीक्षण करता है, जिसके आधार पर वस्तुओं अथवा पदार्थों के गुणों का वर्णन करने में समर्थ होते हैं ।
  • अवलोकन विधि में निरीक्षण करने की प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित, सबल व प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है ।
    अवलोकन विधि के गुण – –
  • इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी तथा स्पष्ट होता है ।
  • यह विधि स्वयं करके सीखने पर आधारित होने के कारण विषय को रोचक बनाती हैं ।
  • इस विधि में छात्रों को स्वतंत्र रूप से देखने, सोचने तथा तर्क करने का अवसर मिलता है ।
  • छात्रों की विचार प्रकट करने, अभिव्यक्ति प्रकट करने की प्रवृत्ति का विकास होता है ।
  • छात्रों में करके सीखने की आदत का विकास होता है ।
    अवलोकन के समय ध्यान देने योग्य बातें – –
  • छात्रों को अवलोकन हेतु प्रेरित करने से पहले अध्यापक को स्वयं भलीभाँति अवलोकन करना चाहिए ।
  • अवलोकन के सभी कार्य प्रजातांत्रिक वातावरण में होने चाहिए ।
  • आवश्यकतानुसार अध्यापक को अवलोकन के समय बीच – बीच में प्रश्न करते रहना चाहिए
    अवलोकन विधि के गुण – –
  • हर स्तर पर अवलोकन नही कर सकते ।
  • समूह का आकार बड़ा होने पर सभी छात्र प्रदर्शन को नहीं देख पाते हैं जिससे वे अवलोकन नहीं कर पाते ।
  • एक ही समय में कई प्रयोग प्रदर्शन दिखाए जाते हैं जिससे छोटी कक्षाओं के छात्र समझ नहीं पाते ।
    प्रश्नोंत्तर परिचर्चा विधि ( Discussion Methods )
  • प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि का प्रयोग की रूपों में होता है जैसे – वाद विवाद, विचार गोष्ठी, दल चर्चा आदि ।
  • इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब सभी विधार्थियों को विचार विमर्श में सीधे रूप में सम्मिलित करना संभव हो ।
  • इस विधि में कुछ छात्र दिए गए विषय या समस्या के विभिन्न पक्षों पर संक्षेप में भाषण तैयार करते हैं तथा शिक्षक की अध्यक्षता में भाषण देते हैं ।
  • भाषण के उपरान्त शिक्षक शेष छात्रों से प्रश्न आमंत्रित करता है ।
  • जहाँ कहीं जरूरत होती है, शिक्षक सही उत्तर देने में संपूर्ण कार्यक्रम में मार्गदर्शन करता हैं
    प्रश्नोत्तरी परिचर्चा विधि के गुण – –
  • इस विधि में छात्रों में आत्माभिव्यक्ति का विकास होता है ।
  • इस विधि में छात्रों में नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण मिलता हैं ।
  • छात्रों में व्यापक दृष्टिकोण का विकास होता हैं ।
  • आलोचनात्मक चिंतन, तर्क आदि क्षमताओं का विकास किया जा सकता है ।
  • परस्पर सहयोग करने की भावना का विकास होता हैं ।
    प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि के दोष – –
  • प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों की अभिव्यक्ति स्तर की नहीं होती है, अतः प्रयोग करना कठिन होता हैं ।
  • प्रश्नोंत्तर विधि में पाठ्यवस्तु का विकास धीमी गति से होता है ।
  • इस विधि में एक अच्छे पुस्तकालय की सुविधा होनी चाहिए ताकि विधार्थी विचार विमर्श से पहले अध्ययन कर सकें ।
  • इस विधि का प्रयोग करने के लिए कुशल व योग्य शिक्षकों की आवश्यकता होती है ।
    वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
  • यह ह्युरिस्टिक विधि की तरह है जो काम करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि से छात्रों में समस्या हल करने की क्षमता विकसित होती है ।
  • यह विधि छात्रों में चिंतन तथा तर्कशक्ति का विकास करती हैं ।
  • “समस्या विधि निर्देश की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौती पूर्ण स्थितियों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिनका समाधान करना आवश्यक है ।” – वुड
    समस्या समाधान विधि के चरण —
  • समस्या विधि का चयन – अध्यापक व विधार्थी मिलकर समस्या का चयन करते हैं ।
  • समस्या चयन का कारण — विधार्थियों को बताया जाता है कि समस्या का चयन क्यों किया गया है ?
  • समस्या को पूर्ण करना – समस्त विधार्थी अध्यापक के मार्गदर्शन में समस्या के समाधान हेतू कार्य करते है ।
  • समस्या को हल करना — अंत में विधार्थी समस्या का हल खोज लेते है, यह हल प्रामाणिक या परिलक्षित लक्ष्यों पर आधारित होता हैं ।
  • हर या समाधान का प्रयोग — विधार्थी प्रामाणिक समाधान का प्रयोग करते हैं ।
    समस्या समाधान विधि के गुण —
  • समस्या समाधान विधि विधार्थियों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास करती हैं ।
  • इस विधि में छात्र सामुहिक निर्णय लेना सीखते हैं ।
  • छात्रों में वैज्ञानिक ढंग से चिंतन करने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  • यह विधि स्वाध्याय का विकास करती हैं तथा प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
  • यह विधि छात्रों की भावी योजनाओं के समस्याओं को हल करने का प्रशिक्षण देती हैं ।
    समस्या समाधान विधि के दोष
  • समस्या समाधान विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं के लिए नहीं किया जा सकता हैं ।
  • इस विधि में जरूरी नहीं है कि विधार्थियों द्वारा निकाले गए परिणाम संतोषजनक हो ।
  • इस विधि का प्रयोग कुशल अध्यापक ही कर सकते हैं, सामान्य स्तर के अध्यापक नहीं ।
  • इस विधि में पर्याप्त समय लगता हैं ।
     गणितीय दृष्टिकोण से समस्या समाधान विधि —
  • गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
  • अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
  • समस्या प्रस्तुत करने के नियम —
  • समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
  • उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
  • समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
  • समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
  • समस्या लम्बी हो तो उसके दो – तीन भाग कर चाहिए ।
  • नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
  • समस्या निवारण विधि के गुण –
  • इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
  • इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
  • उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
  • समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं
  • समस्या समाधान विधि के दोष
  • जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
  • बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं
  • खेल विधि —
  • खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
  • सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
  • फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल – खेल में दिया जाना चाहिए ।
    खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
  • गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
    खेल विधि के गुण —
  • मनोवैज्ञानिक विधि – खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
  • सर्वांगीण विकास — खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
  • क्रियाशीलता – यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • सामाजिक दृष्टिकोण का विकास – इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
  • स्वतंत्रता का वातावरण – खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं
  • रूचिशील विधि – यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
    खेल विधि के दोष –
  • शारीरिक शिशिलता
  • व्यवहार में कठिनाई
  • मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
    आगमन विधि –
  • इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं
  • यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
  • इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है । उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
    आगमन विधि के गुण —
  • यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
  • इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
  • नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
  • इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
  • यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
    आगमन विधि के दोष —
  • यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
  • आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
  • छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
    निगमन विधि
  • इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
  • इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है
    निगमन विधि के गुण —
  • बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
  • यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
  • ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
  • ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
  • इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
  • इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
    निगमन विधि के दोष —
  • निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
  • इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
  • इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
  • नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
    आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष —
  • आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
  • प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
    विश्लेषण विधि (Analytic Method) —
  • विश्लेषण शब्द का अर्थ है – किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग – अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
  • यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
  • इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।
    संश्लेषण विधि
  • संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
  • संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
  • इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।
    विश्लेषण – संश्लेषण विधि —
  • दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
  • जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
  • “संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।” – प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।
    योजना विधि
  • इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
  • उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।
    योजना विधि के सिद्धांत — समस्या उत्पन्न करना, , कार्य चुनना, योजना बनाना, योजना कार्यान्वयन, कार्य का निर्णय, कार्य का लेखा
  • योजना विधि के गुण —
  • बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  • क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।
    योजना विधि के दोष –
    इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।
    क्या आप जानते है ?
  • गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार एवं कुंजी हैं – बैकन
  • गणित संस्कृति का दर्पण है – हाॅग बैन
  • तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है – बर्नार्ड शाॅ
  • गणित क्या है, यह उस मानव चिंतन का प्रतिफल है, जो अनुभवों से स्वतन्त्र तथा सत्य के अनुरूप है – आइन्सटीन
  • गणित एक विज्ञान है जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं – पियर्स
  • आगमन विधि गणित में सूत्रों की स्थापना हेतु उत्तम विधि हैं । आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर सिद्धांत लागू होता हैं ।
  • विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर अग्रसर हैं ।
  • त्रिकोणमिति गणित में मौखिक कार्य का सर्वाधिक महत्व छात्रों के मानसिक विकास करने में हैं ।
  • यदि विज्ञान की रीढ़ की हड्डी गणित हटा दिया जाए, तो सम्पूर्ण भौतिक सभ्यता निःसंदेह नष्ट हो जाएगी – यंग

शिक्षण विधियों की कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • पाठ योजना (पंचपदी) के प्रवर्तक – हरबर्ट स्पेन्सर
  • इकाई योजना के प्रवर्तक – मारिसन
  • खेल विधि के प्रवर्तक – काल्डवेन कुक
  • खोज/अनुसंधान/ अन्वेषण/ह्युरिस्टिक विधि के प्रवर्तक – प्रो• आर्मस्ट्राग
  • अभिक्रमिक अनुदेशन विधि के जन्मदाता – बी• एफ• स्किनर
  • प्रोजेक्ट/ प्रायोजना विधि के प्रवर्तक – किलपैट्रिक
  • प्रयोगशाला विधि स्वयं करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष इन देने के सिद्धांत पर आधारित है । (पेस्टालाजी)
  • अवलोकन विधि से छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
  • अनुसंधान विधि से छात्रों में खोज प्रवृत्ति का उदय होता है ।
  • समस्या समाधान विधि में छात्रों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास होता है ।
  • छोटी कक्षाओं में अधिकतर प्रयोग प्रदर्शन विधि का प्रयोग उचित होता है ।
  • बड़ी कक्षाओ में प्रयोगशाला विधि का प्रयोग किया जाना उचित है ।
  • प्रयोग प्रदर्शन विधि से शिक्षण कराने में बालकों में करके सीखने के गुण का विकास होता हैं
  • प्रायोजना विधि में कोई कार्य बालकों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं हर करने का प्रयास करते हैं ।
  • प्रक्रिया विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं । बालक स्वतः स्वभाविक रूप से क्रियाशील होता हैं ।
  • सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । सम्प्रत्यय वे विचार है जो वस्तुओं, घटनाओं तथा गुणों का उल्लेख करते हैं ।
  • सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है – निरिक्षण, तुलना, पृथक्करण, सामान्यीकरण तथा परिभाषा निर्माण । व्याख्यान विधि सबसे सरल व प्राचीन विधि है ।छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि – खेल मनोरंजन विधि
  • रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – विश्लेषण विधि
  • बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन निगमन विधि
  • नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन विधि
  • स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि – अनुसंधान विधि
  • मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि – खेल विधि
  • ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि – विश्लेषण विधि
  • सर्वाधिक खर्चीली विधि – प्रोजेक्ट विधि
  • बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि – समीकरण विधि
  • सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि – आगमन विधि
  • प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि – खेल विधि
  • वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि – विश्लेषण विधि
  • गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
  • शिक्षण एक त्रि – ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
  • व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
  • बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
  • प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।

सामान्य विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्य अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में —

  • ज्ञान (Knowledge) — छात्रों को उन तथ्यों, सिद्धांतों व विधियों का ज्ञान प्रदान करना है जो विज्ञान से संबंधित हैं । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होगे —
    • A. विज्ञान के नवीन शब्दों की जानकारी प्राप्त कर छात्र वैज्ञानिक भाषा में तथ्यों का वर्णन कर सकेंगे ।
      B. छात्र अपने व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान को प्राप्त व व्यक्त कर सकेंगे ।
      C. वैज्ञानिक परिभाषाएँ तथा सिद्धांतों से परिचित होकर उनमें पारस्परिक संबंध स्थापित कर सकेंगे ।
  • अवबोध (Understanding) — इससे बालक में निम्नलिखित परिवर्तन आएगें – A. छात्र वैज्ञानिक विचारों तथा संबंधों को अपनी भाषा में व्यक्त करता है तथा विभिन्न तथ्यों में परस्पर तुलना कर सकता हैं । B. कारण तथा प्रभाव संबंध को स्पष्ट कर सकता हैं ।
  • ज्ञानापयोग (Application) – छात्र अपरिचित समस्याओं को समझने एवं उन्हें हल करने में सामान्य विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करता है ।
  • कौशल (Skill) — छात्रों में चार्ट एवं चित्र बनाने तथा उनमें प्रयोग करने का कौशल उत्पन्न हो जाता है । इसके अंतर्गत उसमें निम्न परिवर्तन होते हैं —
    A. पर्यावरण से संबंधित तथ्यों व वस्तुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने की योग्यता प्राप्त करता है ।
    B. उपकरणों को प्रयोग में लाने, परीक्षण करके परिणाम निकालने, उनमें होने वाले दोषों को दूर करने की कुशलता प्राप्त करता हैं ।
  • अभिवृति (Attitude) — A. बालक विभिन्न परिस्थितियों में शीघ्र व सही निर्णय ले सकता है
    B. अंधविश्वासों व पूर्वाग्रहों को वैज्ञानिक विधि से दूर करने में सहायता प्राप्त होती हैं ।
    C. विज्ञान से संबंधित तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करता हैं ।
  • अभिरुचि (Interest) — A. विधालय की वैज्ञानिक प्रवृत्तियों जैसे — विज्ञान मेला, विज्ञान प्रदर्शनी, विज्ञान क्विज आदि में सक्रिय भाग लेता हैं ।
    B. विज्ञान के दैनिक उपयोग संबंधी कार्यों में रूचि लेता हैं ।
  • प्रशंसा (Appreciation) — वैज्ञानिक आविष्कारों एवं खोजों के मानव जीवन में योगदान की प्रशंसा करता है । वैज्ञानिकोंके जीवन की घटनाओं की सराहना कर उनसे प्रेरणा लेता है
    NCERT के शब्दों में हमारे शैक्षिक उद्देश्य वे परिवर्तन है जो हम बालक में लाना चाहते है

    गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन —-
  • ज्ञान – छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
    व्यवहारगत परिवर्तन –
    A. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं
    B. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
    C. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
  • अवबोध — संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
  • कुशलता — विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे
  • ज्ञानापयोग —
    A. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
    B. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
    C. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
  • रूचि :–
    A. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
    B. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
    C. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
    D. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
  • अभिरुचि :–
    A. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
    B. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
    C. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
    D. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
  • सराहनात्मक (Appreciation objectives)
    A. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
    B. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।

विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उपकरण —

  • मैजिक लेण्टर्न — इसके द्वारा छोटे चित्रों को बड़ा करके पर्दे पर प्रदर्शित किया जाता है । इसमें पारदर्शी शीशे की स्लाइड प्रयोग में लाई जाती हैं ।
  • एपिस्कोप – इस उपकरण द्वारा पुस्तक, पत्रिका आदि के चित्र, रेखाचित्र तथा ग्राफ आदि के सूक्ष्म रूप को पर्दे पर बड़ा करके दिखाया जाता हैं । इसमें स्लाइड बनाने की आवश्यकता नही पड़ती ।
  • एपिडायस्कोप – इस यंत्र द्वारा मैजिक लेण्टर्न तथा एपिस्कोप दोनों के काम किए जाते हैं ।
  • प्रतिमान (माडल) — जब प्रत्यक्ष वस्तु बहुत बड़ी हो, कि कक्षा में लाना असंभव हो, अथवा इतनी छोटी हो कि दिखाई ही न पड़े, तब माडल का प्रयोग किया जाता है । इंजन, हवाई जहाज, छोटे जीव जन्तु, जीवाणु, इलैक्ट्रोनिक सामान, मानव ह्रदय आदि का अध्ययन माडल के सहयोग से किया जाता हैं ।