Teaching methods Notes

शिक्षण विधियां और प्रविधियां  {Teaching methods}

शिक्षण विधियां और प्रविधियां पठन-पाठन को आनन्दमय एवं रुचिकर बनाते हैं| शिक्षण का अर्थ होता है- अध्ययन करना। और विधि का अर्थ है- तरीका। अर्थात वह तरीके जिनका प्रयोग करते हुए शिक्षक छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है उन्हें शिक्षण विधियां कहते हैं शिक्षण विधियों का संबंध विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण से है।

शिक्षण विधियों के निर्धारण एवं चयन का आधार पाठ्यवस्तु होती है। पाठ्यवस्तु की प्रकृति के आधार पर ही  शिक्षण विधियों का प्रयोग होता है। प्रस्तुतीकरण के ढ़ग को शिक्षण विधि कहते हैं । 

शिक्षण विधियों के उपयोग में शिक्षण प्रविधियों की सहायता ली जाती है जैसे कथन करना,  उदाहरण देना, व्याख्या करना आदि| एक शिक्षण विधि में  अन्य  कई शिक्षण प्रविधियों का उपयोग किया जाता है|

प्रमुख शिक्षण विधियां और उनके प्रतिपादक 

शिक्षण को छात्रों हेतु रुचिकर बनाने के लिए शिक्षकों द्वारा अनेक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है। उनमें से कुछ प्रमुख शिक्षण विधियां और उनके प्रतिपादक  निम्नांकित है-

प्राचीन काल से वर्तमान तक शिक्षण विधियों और प्रविधियों का प्रयोग होता आ रहा है तथा नवीन-नवीन शिक्षण विधियों और प्रविधियों का अविष्कार होता आ रहा है।  इनमें प्रमुख शिक्षण विधियां निम्नांकित है-

पाठशाला विधि

यह सबसे प्राचीन शिक्षण विधि है। जिसमें शिष्य गुरु के समीप शिक्षण कार्य करता था। इसमें छात्रों को नियमित दिनचर्या का पालन करना होता था तथा यम-नियम, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि नियमों का पालन करना होता था। पाठशाला विधि को व्यक्तिगत शिक्षण विधि भी कहा जाता है।पाठशाला विधि में संस्कारों की शिक्षा दी जाती है, पुरुषार्थ चतुष्टय की शिक्षा प्रदान की जाती है तथा  जीवन के महत्व को समझाया जाता है।

विश्लेषणात्मक विधि

विश्लेषणात्मक विधि में शिक्षक संपूर्ण पाठ को कुछ भागों में बांट लेता है तथा उसके पश्चात सभी भागों का वर्णन करता है यह विधि पूर्ण से अंत की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है व्याकरण तथा कहानी शिक्षण करते समय इस विधि का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। इस विधि के द्वारा बड़े तथा जटिल विषय भी आसानी से समझाया जा सकते है| विश्लेषणात्मक विधि के द्वारा  विषय को विस्तारपूर्वक समझाया जा सकता है।

संश्लेषणात्मक विधि

संश्लेषण विधि में छोटे-छोटे विषयों को जोड़कर पढ़ाया जाता है संश्लेषण तथा विश्लेषण दोनों विधियां आपस में संबंध रखती हैं। संश्लेषण विधि में हम विषय को खंडों में विभाजित करके उस विषय का अध्ययन करते हैं परंतु विश्लेषण विधि में विषय को खंडों में विभक्त करने के स्थान पर समन्वय किया जाता है। संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर शिक्षण सूत्र का प्रयोग होता है संश्लेषण विधि को मनोवैज्ञानिक विधि भी कहा जाता है।

व्याख्यान विधि

व्याख्यान विधि में शिक्षक मौखिक एवं लिखित रूप से छात्रों को सूचनाएं प्रदान करता है। शिक्षक सक्रिय रूप से अपने विचारों को प्रकट करता है तथा छात्र शिक्षक की सभी बातों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं और जरूरत पड़ने पर संपूर्ण जानकारी लिखते भी हैं।व्याख्यान  विधि में  कथन प्रविधि प्रवचन प्रविधि चॉक तथा वार्ता प्रविधि का  भी प्रयोग किया जाता है। व्याख्यान  विधि में छात्र एवं शिक्षक का संबंध भावात्मक रूप से जुड़ा होता है।  इस विधि विषय की विस्तार पूर्वक व्याख्या हो पाती है। शिक्षक अच्छे उदाहरण देकर विषय को रोचक तथा प्रेरणादायक बना सकते हैं । व्याख्यान विधि के द्वारा विषय को कम समय में पढ़ाया जा सकता है। 

प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि

प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि  आधुनिक विधि मानी जाती है।  शिक्षा में सामाजिक प्रवृत्ति के फल स्वरुप प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि का विकास हुआ है। इसके प्रवर्तक डब्ल्यू एच किलपैट्रिक है, जो जॉन डीवी के शिष्य थे। किलपैट्रिक ने कहा है कि  शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए जो जीवन को समर्थ बना सके। प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि अनुभव केंद्रित होती है।  छात्रों  के समाजिक करण पर प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि  विशेष बल देती है। सामाजिक विषयों के शिक्षण में इसे भली प्रकार प्रयुक्त किया जा सकता है। इस विधि से छात्रों को मौलिक चिंतन, क्रियाओं तथा अनुभव द्वारा सीखने का अवसर मिलता है। प्रोजेक्ट विधि में  छात्र अधिक क्रियाशील रहता है और स्वयं अनुभव करके सीखता है।

बेसिक शिक्षा विधि

बेसिक शिक्षा विधि को वर्धा योजना भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश में वर्धा शिक्षा या बेसिक शिक्षा तथा मध्य प्रदेश में विद्या मंदिर योजना सब इसी प्रकार के  ही नामांतर है। बेसिक शिक्षा विधि के प्रतिपादक महात्मा गांधी हैं। गांधी जी ने अनुभव किया कि प्रचलित शिक्षा प्रणाली हमारे देश की समस्याओं का निदान करने में असमर्थ है। उन्होंने एक ऐसी शिक्षा योजना का निर्माण किया जो देश के निर्धनता, निरक्षरता, परतंत्रता और शिक्षा प्रणाली की नीरसता को मिटा डाले इस पृष्ठभूमि में उन्होंने चार मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का अवलंबन किया-

(१) आत्म शिक्षण

(२) क्रिया द्वारा सीखना

(३) अव्ययिक शिक्षा

(४) श्रम के प्रति आदर।

खेल विधि

खेल विधि का श्रेय श्री कार्डवेल कुक को है कुक ने अपनी पुस्तक प्ले-वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी पढ़ाने के संबंध में की है। खेल विधि में खेल के विषय में अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।शीलर और हरबर्ट का  अतिरिक्त शिक्षा का सिद्धांत लॉर्ड क्रिम्स का  शक्ति वर्धन का सिद्धांत कार्लग्रूस का भावी जीवन की तैयारी का सिद्धांत तथा यूनान के प्राचीन दार्शनिक अरस्तु का रेचन का सिद्धांत आदि खेल के प्रसिद्ध सिद्धांत है। खेल को परिभाषित करते हुए ग्यूलिक ने अपनी पुस्तक फिलासफी आफ प्ले मे लिखा है- जो कार्यक्रम अपनी इच्छा से स्वतंत्रता पूर्वक करें वही खेल है।

आगमन विधि

आगमन विधि में अध्यापक विभिन्न उदाहरण देते हुए, सिद्धांत अथवा संप्रत्यय का स्पष्टीकरण करता है और इस आधार पर निश्चित परिणाम निष्कर्षों की व्याख्या करता है। इस विधि का प्रयोग व्याकरण शिक्षण में अधिक किया जाता है। आगमन विधि के जनक फ्रांसिस बेकन को माना जाता है। आगमन विधि में मूर्त से अमूर्त, विशेष से सामान्य, स्थूल से सूक्ष्म आदि शिक्षण सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है।

निगमन विधि

निगमन विधि का जनक अरस्तु को माना जाता है। निगमन विधि में अध्यापक पहले संप्रत्यय अथवा सिद्धांत बतलाता है, फिर संबंधित उदाहरणों और दृष्टांतों के सहारे उसकी व्याख्या करता है। निगमन विधि आगमन विधि के विपरीत है । निगमन विधि में शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय होते हैं।

हरबर्ट विधि

हरबर्ट विधि के सम्बन्ध में यह धारण है कि, समस्त ज्ञान बाहर से शिक्षार्थी को दिया जाता है और वह ज्ञान संचित  होता रहता है। यदि नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बंधित कर दिया जाये, तो शिक्षार्थी को सीखने में सुगमता होती है। सीखने की परिस्थितियों में इकाइयों को तर्कसंगत प्रस्तुत करना चाहिए। इकाई की क्रियाओं को एक क्रम में सम्पादित करना चाहिए। इसके लिए हरबर्ट ने पाँच सोपानों को दिया है इन सोपानों को पंचपदी भी कहा जाता है-  

हरबर्ट विधि में पंचपदी
  प्रस्तावना     प्रस्तुतिकरण
  व्यवस्था   तुलना
  मूल्यांकन 

मांटेसरी विधि

मांटेसरी विधि के जन्मदाता मारिया मांटेसरी है । इन्होंने अपने  विधि में इस बात पर अधिक बल दिया है, कि छात्रों को अपने अधिगम उद्देश्यों का स्पष्ट रूप से बोध होना चाहिए। शिक्षण में छात्रों की आवश्यकताओं को प्रधानता दी जानी चाहिए, जिससे वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें। मांटेसरी विधि के शिक्षण के चक्रीय योजना के प्रारुप में पाँच सोपानो का अनुसरण किया जाता है-  (१) योजना    (२) प्रस्तुतिकरण    (३) परिपाक     (४) व्यवस्था    (५) वर्णन। 

मारीसन के इन सोपानों का उपयोग बोध स्तर के शिक्षण के लिए किया जाता है, जबकि हरबर्ट के पाँच पदो का उपयोग स्मृति स्तर पर ही किया जाता है। 

मूल्यांकन विधि

मूल्यांकन विधि का प्रतिपादन  बी.एस. ब्लूम ने दिया है। इसमें शिक्षण तथा परीक्षण उद्देश्य केन्द्रित होता है। शिक्षण के लिए आयोजित सभी शिक्षकों की क्रियायें उद्देश्य केन्द्रित होनी चाहिए।

मूल्यांकन विधि अर्थ विद्यालय द्वारा हुए बालकों के व्यवहार परिवर्तन के विषय में साक्षियों का संकलन करना  तथा उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया है।

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया और शिक्षण विधियाँ Teaching Learning Process and Teaching Methods

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया ( Shikshan Adhigam Prakriya ) और सीखना चारों ओर के परिवेश से अनुकूलन में सहायता करता है। किसी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में कुछ समय रहने के पश्चात् हम उस समाज के नियमों को समझ जाते हैं और यही हमसे अपेक्षित भी होता है। हम परिवार, समाज और अपने कार्यक्षे त्र के जिम्मे दार नागरिक एवं सदस्य बन जाते हैं। यह सब सीखने के कारण ही सम्भव है। हम विभिन्न प्रकार के कौशलों को अर्जित करने के लिये सीखने का ही प्रयोग करते हैं। परन्तु सबसे जटिल प्रश्न यह है कि हम सीखते कैसे हैं?

शिक्षण क्या है?

शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण सबसे प्रमुख हैं। शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया हैं। शिक्षण शब्द शिक्षा से बना हैं जिसका अर्थ हैं ‘ शिक्षा प्रदान करना‘। शिक्षण की प्रक्रिया मानव व्यवहार को परिवर्तित करने की तकनीक हैं अर्थात् शिक्षण का उद्देश्य व्यवहार परिवर्तन हैं।

शिक्षण एवं अध्ययन, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बहुत से कारक शामिल होते हैं। सीखने वाला जिस तरीके से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए नया ज्ञान, आचार और कौशल को समाहित करता है ताकि उसके सीख्नने के अनुभवों में विस्तार हो सके, वैसे ही ये सारे कारक आपस में संवाद की स्थिति में आते रहते हैं।

पिछली सदी के दौरान शिक्षण पर विभिन्न किस्म के दृष्टिकोण उभरे हैं। इनमें एक है ज्ञानात्मक शिक्षण, जो शिक्षण को मस्तिष्क की एक क्रिया के रूप में देखता है। दूसरा है, रचनात्मक शिक्षण जो ज्ञान को सीखने की प्रक्रिया में की गई रचना के रूप में देखता है। इन सिद्धांतों को अलग-अलग देखने के बजाय इन्हें संभावनाओं की एक ऐसी श्रृंखला के रूप में देखा जाना चाहिए जिन्हें शिक्षण के अनुभवों में पिरोया जा सके। एकीकरण की इस प्रक्रिया में अन्य कारकों को भी संज्ञान में लेना जरूरी हो जाता है- ज्ञानात्मक शैली, शिक्षण की शैली, हमारी मेधा का एकाधिक स्वरूप और ऐसा शिक्षण जो उन लोगों के काम आ सके जिन्हें इसकी विशेष जरूरत है और जो विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं।

अधिगम क्या है?

सीखना या अधिगम (learning) एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाऐं एवं उपक्रियाऐं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है।

उदाहरणार्थ – छोटे बालक के सामने जलता दीपक ले जानेपर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए, हाथ नहीं बढ़ाता है, वरन् उससे दूर हो जाता है। इसीविचार को स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है।

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया

सीखना चारों ओर के परिवेश से अनुकूलन में सहायता करता है। किसी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में कुछ समय रहने के पश्चात् हम उस समाज के नियमों को समझ जाते हैं और यही हमसे अपेक्षित भी होता है। हम परिवार, समाज और अपने कार्यक्षे त्र के जिम्मे दार नागरिक एवं सदस्य बन जाते हैं। यह सब सीखने के कारण ही सम्भव है। हम विभिन्न प्रकार के कौशलों को अर्जित करने के लिये सीखने का ही प्रयोग करते हैं।

1. अनुभव, क्रिया-प्रतिक्रिया, निर्देश आदि प्राणी के वयवहार में परिवर्तन लाते रहते है। यह अधिगम का व्यापक अर्थ है।
2. सामान्य अर्थ-व्यव्हार में परिवर्तन होना या सीखना होता है।
3. गिल्फोर्ड -” व्यवहार के कारण में परिवर्तन होना अधिगम है ” ( अधिगम स्वय व्यव्हार में परिवर्तन का कारण है)।
4. स्किनर -” व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया ही अधिगम है “।
5. काल्विन -“पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा परिवर्तन ही अधिगम है “।
6. अधिगम की पूरक प्रक्रिया विभेदीकरण या विशिष्टीकरण भी मानी गई है। जैसे -खिलोने के सभी घटकों को अलग कर फिर से जोड़ना।
7. अधिगम सदैव लक्ष्य-निर्दिष्ट व सप्रयोजन होता है। यदि अधिगम के लक्ष्यों को स्पस्ट और निश्चित कथन में दिया जाये तो अधिगमकर्ता के लिए अधिगम अर्थपूर्ण तथा सप्रयोजन होगा।
8. अधिगम एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जैसे विकास।
9. अधिगम व्यक्तिगत होता है अर्थात प्रत्येक अधिगमकर्ता अपनी गति से,रूचि, आकांक्षा, समस्या, संवेग, शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य आदि के आधार पर सीखता है। इसमें अभिप्रेरनात्मक करना भी होते है।
10. अधिगम सृजनात्मक होता है अर्थात अधिगम ज्ञान व अनुभवों का सृजनात्मक संश्लेषण है।

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक

बालक के लिए कारक :- 1. सिखने की इच्छा 2. शैक्षिक प्रष्ठभूमि 3. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 4. परिपक्वता 5. अभिप्रेरणा 6. अधिगम कर्ता की अभिवृति 7. सिखने का समय व अवधि और 8.बुद्धि

अध्यापक के लिए कारक :- 1. अध्यापक का विषय ज्ञान, 2. शिक्षक का व्यवहार 3. शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान 4. शिक्षण विधि 5. व्यक्तिगत भेदों का ज्ञान 6. शिक्षक का व्यक्तित्व 7. पाठ्य-सहगामी क्रियाएं और 8. अनुशासन की स्थिति

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के नियम

पावलाव, स्किनर आदि ने जिस प्रकार अधिगम सिद्धांतवादों का प्रतिपादन किया उसी प्रकार थार्नडायिक ने अधिगम के नियमो का प्रतिपादन किया है-

1. तत्परता का नियम: जब तक कोई अधिगम कर्ता सिखने के लिए अपने मन से तत्पर नहीं है तब तक अधिगम कठिन है।

2. अभ्यास का नियम: क्युकी शिक्षा,शिक्षण और अधिगम का मूल उद्देश्य विद्यार्थिओं में व्यवहारगत परिवर्तन लाना है। अतः व्यवहार में निरंतर अभ्यास न होने पर उसे भूल जाते है अतः अभ्यास अधिगम में बहुत महत्वपूर्ण है।

3. प्रभाव का नियम: जिस बात की जीवन उपयोगिता जितनी अधिक होगी बालक सिखने के लिए उतना ही अधिक प्रभावित होगा। साथ ही पूर्वज्ञान के प्रभाव में भी वह नए ज्ञान का अधिगम करता है।

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के सिद्धांत

साहचर्यवादी –

1. अनुकरण सिद्धांत – अनुकरण का सिद्धांत प्लेटो और अरस्तु की उपज है। इसके अनुसार अधिगम की प्रक्रिया में सुनी हुई बात की अपेक्षा देखि हुई या किसी परिस्थिति में घटित हुई बात का प्रभाव अधिक होता है। यही करना है की विद्यार्थी शिक्षक का अनुकरण (नक़ल) करते है।

2. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत – थार्नडायिक इस सिद्धांत के प्रणेता है। उनके अनुसार अधिगम, परिस्थिति और उसके परिणामों क बीच पारस्परिक संबंधो का परिणाम है। किसी कार्य को करने का प्रयत्न तो कोई भी कर सकता है किन्तु उसमे सुधर मस्तिस्क की विशेष प्रक्रिया है। मस्तिस्क विकसित होता जाता है और जीरो-इरर की स्थिति आदर्श होती है। नए प्रयोग और नेई खोज आदि के लिए इस सिद्धांत अत्यंत उपयोगी है।

व्यव्हारवादी –

1. पावलाव का सिद्धांत – इसे पावलाव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत / क्लासिकी अनुबंध / शाश्त्रीय अनुबंध सिद्धांत वाद भी कहते है, यह व्यव्हार वादी सिद्धांत है। इसको मानने वालों में पावलाव,स्किनर, वाटसन आदि है। पावलाव ने कुत्तों पर, स्किनर ने चूहों पर, और वाटसन ने खरगोश के बच्चो पर प्रयोग किये। इस सिद्धांत में – ” स्वाभाविक उद्दीपक के साथ कृत्रिम उद्दीपक को इस प्रकार अनुबंधित किया जाता है की अनुक्रिया अंत में कृत्रिम उद्दिपक से ही अनुबंधित रह जाती है। इसलिए इसे उद्दीपन-अनुक्रिया -सिद्धांत भी कहते है। अधिगम की दृष्टि से देखें तो बालक को लोरी सुनाना, प्रशंसा करना आदि उद्दीपक से धीरे-धीरे जो अनुक्रिया होती है वह अंततः आदत बन जाती है . अर्थात उत्तेजक द्वारा उत्प्रेरण का इस सिद्धांत में बड़ा महत्त्व है।.

2. स्किनर का सिद्धांत – इसे क्रियाप्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत भी कहते है। यह एक अधिगम प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधिगम अनुक्रिया को अधिक संभाव्य और द्रुत बनाया जाता सकता है। स्किनर की मान्यता है की मानव का समग्र व्यवहार क्रियाप्रसूत पुनर्बलन है। जब कोई बात किसी व्यव्हार के किसी रूप को पुनर्बलित करती है तो उस व्यव्हार की आवृति अधिक होती है। प्रबलन जीतना अधिक शक्तिशाली होगा व्यवहार की आवृति उतनी ही अधिक होगी। प्राकृतिक प्रबलन सबसे अधिक शक्तिशाली होते है। अभिवृतिया, जीवन -मूल्य आदि कृत्रिम है परन्तु स्थाई प्रबलन है।

गेस्टाल्टवादी –

1. सूझ का सिद्धांत – व्यव्हार वादी वैज्ञानिकों ने पशु-पक्षियों पर प्रयोग निष्कर्ष मानव के अधिगम से जोड़े जो अधिगमकर्तायों को स्वीकार नहीं था। इन वैज्ञानिकों का मानना है की कुछ सभ्यता तो हो सकती है लेकिन मानव का अधिगम पूरी तरह पशु-पक्षियों के अधिगम की भांति नहीं हो सकता, अधिगम सदैव प्रयोजनपूर्ण होता है। और पशु पक्षियों पर किये जाने वाले कई प्रयोग पूरी तरह कृत्रिम वातावरण पर आधारित होते है। यह सिद्धांत ज्ञान के उद्देश्पुर्ती पर बल अधिक नहीं देता है बल्कि कौशल के विकास पर अधिक बल देता है। सूझ द्वारा अधिगम सिद्धांत केलिए कोहलर ने प्रयोग किये है।

शिक्षण अधिगम या सीखने के नियम

मुख्य नियम: सीखने के मुख्य नियम तीन है जो इस प्रकार हैं –

1. तत्परता का नियम – इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए पहले से तैयार रहता है तो वह कार्य उसे आनन्द देता है एवं शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत जब व्यक्ति कार्य को करने के लिए तैयार नहीं रहता या सीखने की इच्छा नहीं होती हैतो वह झुंझला जाता है या क्रोधित होता है व सीखने की गति धीमी होती है।

2. अभ्यास का नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति जिस क्रिया को बार-बार करता है उस शीघ्र ही सीख जाता है तथा जिस क्रिया को छोड़ देता है या बहुत समय तक नहीं करता उसे वह भूलने लगताहै। जैसे‘- गणित के प्रष्न हल करना, टाइप करना, साइकिल चलाना आदि। इसे उपयोग तथा अनुपयोग का नियम भी कहते हैं।

3. प्रभाव का नियम – इस नियम के अनुसार जीवन में जिस कार्य को करने पर व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है या सुख का या संतोष मिलता है उन्हें वह सीखने का प्रयत्न करता है एवं जिन कार्यों को करने पर व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पडता है उन्हें वह करना छोड़ देता है। इस नियम को सुख तथा दुःख या पुरस्कार तथा दण्ड का नियम भी कहा जाता है।

गौण नियम: सीखने के गौण नियम पांच है जो इस प्रकार हैं

1. बहु अनुक्रिया नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने किसी नई समस्या के आने पर उसे सुलझाने के लिए वह विभिन्न प्रतिक्रियाओं के हल ढूढने का प्रयत्न करता है। वह प्रतिक्रियायें तब तक करता रहता है जब तक समस्या का सही हल न खोज ले और उसकी समस्यासुलझ नहीं जाती। इससे उसे संतोष मिलता है थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।

2. मानसिक स्थिति या मनोवृत्ति का नियम – इस नियम के अनुसार जब व्यक्ति सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है तो वह शीघ्र ही सीख लेता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार नहीं रहता तो उस कार्य को वह सीख नहीं सकेगा।

3. आंशिक क्रिया का नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी समस्या को सुलझाने के लिए अनेक क्रियायें प्रयत्न एवं भूल के आधार पर करता है। वह अपनी अंर्तदृष्टि का उपयोग कर आंषिक क्रियाओं की सहायता से समस्या का हल ढूढ़ लेता है।

4. समानता का नियम – इस नियम के अनुसार किसी समस्या के प्रस्तुत होने पर व्यक्ति पूर्व अनुभव या परिस्थितियों में समानता पाये जाने पर उसके अनुभव स्वतः ही स्थानांतरित होकर सीखने में मद्द करते हैं।

5. साहचर्य परिवर्तन का नियम – इस नियम के अनुसार व्यक्ति प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य परिस्थिति में या सहचारी उद्दीपक वस्तु के प्रति भी करने लगता है। जैसे-कुत्ते के मुह से भोजन सामग्री को देख कर लार टपकरने लगती है। परन्तु कुछ समय के बाद भोजन के बर्तनको ही देख कर लार टपकने लगती है।

अधिगम की परिभाषा और अर्थ – अधिगम की प्रक्रिया और महत्पूर्ण विशेषताएँ

अतः एक अच्छा विद्यार्थी सीखने के हर मौके को एक अच्छा अवसर मानकर उसका उपयोग करता है। सीखने की पूर्व उल्लिखित विभिन्न विधियाँ या प्रकार सीखने के बारे में कुछ मूल विचार प्रकट करते हैं। व्यक्तित्व, रुचि या अभिवृत्तियों में आने वाले परिवर्तन सीखने के कतिपय प्रकारों के परिणामस्वरूप होते हैं। यह बदलाव एक जटिल प्रक्रिया के साथ होते हैं। सीखने में उन्नति के साथ आप में सीखने की क्षमता विकसित हो ती है। अगर आप सीखते हैं तो आप एक बेहतर व्यक्ति, कार्यशैली में लचीले और सत्य को सराहने की निपुणता वाले बन जाते हैं।

CTET & TETs TEACHING METHODS ALL SUBJECTS

CTET & TETs TEACHING METHODS / CTET & TETs शिक्षण की विधियाँ

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। “शिक्षण विधि” पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है।

प्रयोग प्रदर्शन विधि —

  • प्राथमिक स्तर के बालकों को भौतिक एवं जैविक पर्यावरण अध्ययन विषय के पाठों के अंतर्गत आए प्रयोग प्रदर्शन को स्वयं करके बच्चों को दिखाना चाहिए ।
  • छात्रों को भी यथा संभव प्रयोग करने तथा निरिक्षण करने का अवसर देना चाहिए ।
  • इस विधि से शिक्षण कराने पर करके सीखने के गुण का विकास होता है ।
    प्रयोग – प्रदर्शन विधि की विशेषता :-
  • यह विधि छात्रों को वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
  • इस विधि में छात्र सक्रिय रहते है तथा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पाठ का विकास होता है ।
  • छात्रों की मानसिक तथा निरिक्षण शक्ति का विकास होता है ।
  • विषय वस्तु सरल, सरस, बोधगम्य तथा स्थायी हो जाती है ।
    प्रयोग-प्रदर्शन विधि को प्रभावी बनाने के तरीके —
  • प्रयोग प्रदर्शन ऐसे स्थान पर करना चाहिए जहाँ से सभी बालकों को आसानी से दिख सके ।
  • छात्रों को प्रयोग करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए ।
  • इस विधि का शिक्षण कराते समय अध्यापक को सक्रिय रहकर छात्रों द्वारा प्रयोग करते समय उनका उचित मार्गदर्शन करना चाहिए ।
  • कक्षा में प्रयोग करने से पहले अध्यापक को एक बार स्वयं प्रयोग करके देख लेना चाहिए ।
  • प्रयोग से संबंधित चित्र, महत्वपूर्ण सारांश एवं निष्कर्ष श्यामपट्ट पर लिखना चाहिए ।
    प्रयोग-प्रदर्शन विधि के दोष —
  • इस विधि से शिक्षण कराने पर सभी छात्रों को समान अवसर नहीं मिलते ।
  • इस विधि में व्यक्तिगत समस्या के समाधान का अवसर छात्रों को नहीं मिलता ।
  • प्रयोग करते समय कुछ छात्र निष्क्रिय बैठें रहते है ।
  • कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर यह विधि प्रभावी नहीं रहती ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि
  • प्रोजेक्ट (योजना) विधि शिक्षण की नवीन विधि मानी जाती है। इसका विकास शिक्षा में सामाजिक प्रवृत्ति के फलस्वरूप हुआ। शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए जो जीवन को समर्थ बना सके। इसके प्रवर्तक जान ड्यूबी के शिष्य डब्ल्यू0एच0 किलपैट्रिक थे।
  • परिभाषा -“प्रोजेक्ट वह सह्रदय सौउद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है ।” – किलपैट्रिक
    ” प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है ।” – प्रो• स्टीवेंसन
    ” क्रिया की एक ऐसी इकाई जिसके नियोजन एवं क्रियान्वन के लिए क्रिया स्वयं ही उत्तरदायी हो ।” – पारकर
  • इस विधि में कोई कार्य छात्रों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है ।
  • प्रोजेक्ट विधार्थियों के जीवन से संबंधित किसी समस्या का हल खोजने के लिए किया जाने वाला कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के चरण :–
  • परिस्थिति उत्पन्न करना – इसमें बालकों की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है ।
  • प्रायोजना का चुनाव – प्रोजेक्ट के चुनाव में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है ।
  • प्रायोजना का नियोजन – इसके अंतर्गत प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना पड़ता है ।
  • प्रायोजना का क्रियान्वन – इस स्तर पर शिक्षक कार्यक्रम की योजना के अनुसार सभी छात्रों को आवंटित करता है ।
  • प्रायोजना का मूल्यांकन – प्रायोजना की क्रियान्विती पूर्ण होने पर छात्र तथा शिक्षक इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि कार्य में कहा तक सफलता मिली ।
  • प्रायोजना का अभिलेखन – इस चरण के अंतर्गत प्रायोजना से संबंधित सभी बातों का उल्लेख किया जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के गुण –
  • यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित विधि है जिसमें बालक को स्वतंत्रतापूर्वक सोचने, विचारने, निरिक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है ।
  • प्रोजेक्ट संबंधी क्रियाएं सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है । इस कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है ।
  • इस विधि में छात्र स्वयं करके सीखते है, अतः प्राप्त होने ज्ञान स्थायी होता है ।
  • प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखा जाता है ।
    प्रोजेक्ट (योजना) विधि के दोष –
  • इस विधि द्वारा सभी प्रकरणों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता ।
  • इस विधि में प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है ।
  • प्रायोजना विधि अधिक खर्चीली है ।
  • इस विधि में अधिक समय लगता है ।
    प्रक्रिया विधि (Learning by doing)
  • इस विधि को क्रिया द्वारा सीखना भी कहते है।
  • शिक्षा में क्रिया को प्रधानता देने वाले प्रथम शिक्षाशास्त्री कमेनियस थे । उनके अनुसार क्रिया करना बालक का स्वाभाविक गुण है, अतः जो भी शिक्षा प्रदान की जाए, वह क्रिया के द्वारा प्रदान की जाए ।
  • शिक्षाविद पेस्टालाजी ने क्रिया द्वारा सीखने पर बल दिया है ।
  • पेस्टालाजी के शिष्य फ्रोबेल ने प्रसिद्ध शिक्षण विधि किंडरगार्टन का आविष्कार किया । यह खेल और प्रक्रिया द्वारा शिक्षा देने की विधि है ।
  • प्रक्रिया विधि बालकों के प्रशिक्षण में क्रियाशीलता के सिद्धांत को स्वीकार करती है ।
  • प्रोजेक्ट विधि, मान्टेसरी विधि, किंडरगार्टन विधि इस पर आधारित है ।
  • प्रक्रिया विधि जैविक एवं भौतिक पर्यावरण विषय के अध्ययन के लिए उपयुक्त विधि है ।
    प्रक्रिया विधि के गुण —
  • यह विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं ।
  • प्रक्रिया विधि में वस्तुओं के संग्रह, पर्यटन, अवलोकन, परीक्षण के विषयों में विशेष रूप से विचार करती है ।
  • बालकों में करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है ।
    प्रक्रिया विधि के दोष —
  • प्रकिया विधि में स्वतंत्र अध्ययन होने के कारण वास्तविक (यथार्थ) अध्ययन नहीं हो पाता ।
  • प्रक्रिया विधि विषय केन्द्रित तथा शिक्षक केन्द्रित नहीं है जबकि शिक्षण में दोनों की आवश्यकता है ।
    सम्प्रत्यय प्रविधि
  • “सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । ” – बोरिंग, लैंगफील्ड और वील्ड ।
  • सम्प्रत्यय किसी देखी हुई वस्तु या मन का प्रतिमान है । ” – रास
  • ” सम्प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है जिसे शब्द या शब्द समूहों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है । सम्प्रत्यय का आधार अनुभव होता है ।” – क्रो एंड क्रो
  • सम्प्रत्यय बालक के व्यवहार को निर्धारित करते हैं । उदाहरण के लिए बालक मस्तिष्क में परिवार का सम्प्रत्यय (मानसिक प्रतिमा) यदि अच्छा और अनुक्रम विकसित हुआ है, तो बालक अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा और परिवार से संबंधित सभी कार्य उत्तरदायित्व से करेगा । परिवार के सभी सदस्यों का आदर करेगा तथा परिवार में वह प्रत्येक प्रकार से समायोजित होगा ।
    सम्प्रत्यय निर्माण प्रविधि —
    सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है । यथा —
    1. निरिक्षण – निरिक्षण के द्वारा बच्चें किसी वस्तु के सम्प्रत्यय का निर्माण करता है ।
    2. तुलना – छात्र निरिक्षण द्वारा बनें विभिन्न सम्प्रत्ययों में तुलना करता है ।
    3. पृथक्करण – छात्र दो सम्प्रत्ययों के बीच समानता और भिन्नता की बातों को पृथक करता है ।
    4. सामान्यीकरण – इसमें छात्र किसी वस्तु का सम्प्रत्यय (प्रतिमा) का स्पष्ट रूप धारण कर लेता है ।
    5. परिभाषा निर्माण – छात्र के उपर्युक्त चारों स्तरों से गुजरने के बाद वास्तविक सम्प्रत्यय का निर्माण उसके मन में बनता है ।
  • सम्प्रत्यय निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक – ज्ञानेन्द्रियाँ 2. बौद्धिक क्षमता 3. परिपक्वता 4. सीखने के अवसर 5. समायोजन 6. अन्य कारक – अनुभवों के प्रकार, लिंग, समय आदि ।
    अनुसंधान विधि (Discovery Methods)
  • इस विधि को खोज या अन्वेषण विधि भी कहते हैं ।
  • प्रो• एच• ई• आर्मस्ट्रांग ने विज्ञान शिक्षण विधि में इस अनुसंधान विधि का सुत्रपात किया ।
  • इस विधि का आधार आर्मस्ट्राग ने हरबर्ट स्पेन्सर के इस कथन पर रखा कि ” बालकों को जितना संभव हो, बताया जाए और उनको जितना अधिक संभव हो, खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।”
  • इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय करना है ।
  • इस विधि में छात्र पर ज्ञान उपर से लादा नही जाता, उन्हें स्वयं सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है ।
  • अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बच्चे को कम से कम बताएं और उसे स्वयं अधिक से अधिक सत्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें ।
    अनुसंधान विधि की कार्यप्रणाली —
  • इस विधि में छात्र के सामने कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है । प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है ।
  • आवश्यकता पड़ने पर बालक परस्पर वाद विवाद करते हैं, प्रश्न पुते हैं तथा पुस्तकालय में जाकर पुस्तक देखते है ।
    अनुसंधान विधि के गुण —
  • बालको को स्वयं करके सीखने को प्रेरित करती है ।
  • छात्रों में वैज्ञानिक अभिरूचि तथा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है ।
  • छात्रों में स्वाध्याय की आदत बनती है ।
  • छात्र क्रियाशील रहते है, जिससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता है ।
  • छात्रों में परिश्रम करने की आदत पड़ जाती है ।
  • छात्रों में आत्मानुशासन, आत्म संयम तथा आत्मविश्वास जागृत होता है ।
  • सफलता प्राप्त करने पर छात्र उत्साही होते है तथा उन्हें प्रेरणा मिलती हैं ।
    अनुसंधान विधि के दोष —
  • छोटी कक्षाओं के लिए अनुसंधान विधि उपर्युक्त नहीं है क्योंकि तार्किक व निरिक्षण शक्ति का विकास छोटे बच्चों में नहीं हो पाता ।
  • इस शिक्षण विधि में मंद बुद्धि विधार्थी आगे नही बढ़ पाते हैं तथा पाठ्यक्रम धीरे – धीरे आगे बढ़ते है ।
  • यह विधि प्रतिभावान बच्चों के लिए उपयुक्त है । पूरी कक्षा के लिए नहीं ।
  • प्राथमिक स्तर के बालक समस्या का विश्लेषण करने में असमर्थ होते है ।
    पर्यटन विधि
  • पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष ज्ञान देने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि में छात्रों को का की चारदीवारी मे नियंत्रित शिक्षा न देकर स्थान – स्थान पर घुमाकर शिक्षा दी जाती है ।
  • पर्यटन के द्वारा बच्चें स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं ।
  • पेस्टालाॅजी पर्यटन विधि के जन्मदाता माने जाते हैं । यद्यपि महान दार्शनिक रूसो ने भी पर्यटन को बालकों की शिक्षा का एक प्रमुख साधन माना है ।
    पर्यटन विधि के लाभ —
  • कक्षा तथा प्रयोगशाला में पढ़ी हुई बातों, तथ्यों, वस्तुओं, सिद्धांतों एवं नियमों का बाह्य जगत में आकर स्पष्टीकरण करने का अवसर मिलता है ।
  • पर्यटन विधि द्वारा विज्ञान शिक्षण को सरल, बोधगम्य तथा आकर्षक बनाया जा सकता है ।
  • पर्यटन विधि द्वारा छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
  • पर्यटन विधि से छात्र मिलकर काम करना सीखते है ।
  • छात्र अपने ज्ञान को क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित करना सीखते है ।
  • इस विधि में छात्र पर्यटन के साथ – साथ मनोरंजन होने के कारण बालक मानसिक रूप से थकते नहीं है ।
    पर्यटन विधि के दोष —
  • इस विधि द्वारा प्रत्येक प्रकरण का अध्ययन संभव नहीं है ।
  • इसकी सफलता के लिए शिक्षक तथा छात्रों में सहयोग जरूरी है ।
  • पर्यटन के लिए उचित मात्रा में धन की जरूरत होती है ।
    प्रयोगशाला विधि
  • इस विधि में छात्र प्रयोगशाला में स्वयं करके सीखना सिद्धांत पर सीखता है अर्थात छात्र स्वयं प्रयोग करता है, निरिक्षण करता है और परिणाम निकालता है । इससे छात्र सक्रिय रहते है ।
  • इस विधि में छात्र को कोई शंका या कठिनाई होती है, तो शिक्षक उसका समाधान करता है ।
  • इस विधि में छात्र अधिकतम सक्रिय रहता है जबकि शिक्षक निरीक्षण करते रहते है ।
    प्रयोगशाला विधि के लाभ —
  • प्रयोगशाला विधि करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि में छात्रों में निरिक्षण, परीक्षण, चिंतन, तर्क आदि कुशलताओं का विकास किया जा सकता है जो विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य है ।
  • छात्रों को अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग का अवसर मिलता है । इस प्रकार प्राप्त इन अधिक स्थाई होता है ।
  • प्रयोगशाला विधि द्वारा छात्रों को वैज्ञानिक विधियों में प्रशिक्षित कर सकते हैं ।
  • इस विधि द्वारा वैज्ञानिक अभिवृद्धि का विकास किया जा सकता है ।
    प्रयोगशाला विधि के दोष —
  • प्रयोगशाला विधि में छोटी कक्षाओं के छात्र कठिनाई महसूस करते हैं ।
  • इस विधि से उच्च स्तर का शिक्षण ही संभव हैं ।
  • अध्यापक के सक्रिय न होने पर यह विधि सफल नही हो सकती ।
  • यह विधि अंत्यत खर्चीली हैं ।
    अवलोकन विधि
  • इस विधि में छात्र स्वयं निरिक्षण कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
  • विज्ञान शिक्षण में छात्र प्रत्येक संभावित तथ्य को देखकर, छूकर, स्पर्श करके और चख कर निरीक्षण करता है, जिसके आधार पर वस्तुओं अथवा पदार्थों के गुणों का वर्णन करने में समर्थ होते हैं ।
  • अवलोकन विधि में निरीक्षण करने की प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित, सबल व प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है ।
    अवलोकन विधि के गुण – –
  • इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी तथा स्पष्ट होता है ।
  • यह विधि स्वयं करके सीखने पर आधारित होने के कारण विषय को रोचक बनाती हैं ।
  • इस विधि में छात्रों को स्वतंत्र रूप से देखने, सोचने तथा तर्क करने का अवसर मिलता है ।
  • छात्रों की विचार प्रकट करने, अभिव्यक्ति प्रकट करने की प्रवृत्ति का विकास होता है ।
  • छात्रों में करके सीखने की आदत का विकास होता है ।
    अवलोकन के समय ध्यान देने योग्य बातें – –
  • छात्रों को अवलोकन हेतु प्रेरित करने से पहले अध्यापक को स्वयं भलीभाँति अवलोकन करना चाहिए ।
  • अवलोकन के सभी कार्य प्रजातांत्रिक वातावरण में होने चाहिए ।
  • आवश्यकतानुसार अध्यापक को अवलोकन के समय बीच – बीच में प्रश्न करते रहना चाहिए
    अवलोकन विधि के गुण – –
  • हर स्तर पर अवलोकन नही कर सकते ।
  • समूह का आकार बड़ा होने पर सभी छात्र प्रदर्शन को नहीं देख पाते हैं जिससे वे अवलोकन नहीं कर पाते ।
  • एक ही समय में कई प्रयोग प्रदर्शन दिखाए जाते हैं जिससे छोटी कक्षाओं के छात्र समझ नहीं पाते ।
    प्रश्नोंत्तर परिचर्चा विधि ( Discussion Methods )
  • प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि का प्रयोग की रूपों में होता है जैसे – वाद विवाद, विचार गोष्ठी, दल चर्चा आदि ।
  • इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब सभी विधार्थियों को विचार विमर्श में सीधे रूप में सम्मिलित करना संभव हो ।
  • इस विधि में कुछ छात्र दिए गए विषय या समस्या के विभिन्न पक्षों पर संक्षेप में भाषण तैयार करते हैं तथा शिक्षक की अध्यक्षता में भाषण देते हैं ।
  • भाषण के उपरान्त शिक्षक शेष छात्रों से प्रश्न आमंत्रित करता है ।
  • जहाँ कहीं जरूरत होती है, शिक्षक सही उत्तर देने में संपूर्ण कार्यक्रम में मार्गदर्शन करता हैं
    प्रश्नोत्तरी परिचर्चा विधि के गुण – –
  • इस विधि में छात्रों में आत्माभिव्यक्ति का विकास होता है ।
  • इस विधि में छात्रों में नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण मिलता हैं ।
  • छात्रों में व्यापक दृष्टिकोण का विकास होता हैं ।
  • आलोचनात्मक चिंतन, तर्क आदि क्षमताओं का विकास किया जा सकता है ।
  • परस्पर सहयोग करने की भावना का विकास होता हैं ।
    प्रश्नोत्तर परिचर्चा विधि के दोष – –
  • प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों की अभिव्यक्ति स्तर की नहीं होती है, अतः प्रयोग करना कठिन होता हैं ।
  • प्रश्नोंत्तर विधि में पाठ्यवस्तु का विकास धीमी गति से होता है ।
  • इस विधि में एक अच्छे पुस्तकालय की सुविधा होनी चाहिए ताकि विधार्थी विचार विमर्श से पहले अध्ययन कर सकें ।
  • इस विधि का प्रयोग करने के लिए कुशल व योग्य शिक्षकों की आवश्यकता होती है ।
    वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
  • यह ह्युरिस्टिक विधि की तरह है जो काम करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • इस विधि से छात्रों में समस्या हल करने की क्षमता विकसित होती है ।
  • यह विधि छात्रों में चिंतन तथा तर्कशक्ति का विकास करती हैं ।
  • “समस्या विधि निर्देश की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौती पूर्ण स्थितियों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिनका समाधान करना आवश्यक है ।” – वुड
    समस्या समाधान विधि के चरण —
  • समस्या विधि का चयन – अध्यापक व विधार्थी मिलकर समस्या का चयन करते हैं ।
  • समस्या चयन का कारण — विधार्थियों को बताया जाता है कि समस्या का चयन क्यों किया गया है ?
  • समस्या को पूर्ण करना – समस्त विधार्थी अध्यापक के मार्गदर्शन में समस्या के समाधान हेतू कार्य करते है ।
  • समस्या को हल करना — अंत में विधार्थी समस्या का हल खोज लेते है, यह हल प्रामाणिक या परिलक्षित लक्ष्यों पर आधारित होता हैं ।
  • हर या समाधान का प्रयोग — विधार्थी प्रामाणिक समाधान का प्रयोग करते हैं ।
    समस्या समाधान विधि के गुण —
  • समस्या समाधान विधि विधार्थियों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास करती हैं ।
  • इस विधि में छात्र सामुहिक निर्णय लेना सीखते हैं ।
  • छात्रों में वैज्ञानिक ढंग से चिंतन करने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  • यह विधि स्वाध्याय का विकास करती हैं तथा प्रशिक्षण प्रदान करती है ।
  • यह विधि छात्रों की भावी योजनाओं के समस्याओं को हल करने का प्रशिक्षण देती हैं ।
    समस्या समाधान विधि के दोष
  • समस्या समाधान विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं के लिए नहीं किया जा सकता हैं ।
  • इस विधि में जरूरी नहीं है कि विधार्थियों द्वारा निकाले गए परिणाम संतोषजनक हो ।
  • इस विधि का प्रयोग कुशल अध्यापक ही कर सकते हैं, सामान्य स्तर के अध्यापक नहीं ।
  • इस विधि में पर्याप्त समय लगता हैं ।
     गणितीय दृष्टिकोण से समस्या समाधान विधि —
  • गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
  • अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
  • समस्या प्रस्तुत करने के नियम —
  • समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
  • उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
  • समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
  • समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
  • समस्या लम्बी हो तो उसके दो – तीन भाग कर चाहिए ।
  • नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
  • समस्या निवारण विधि के गुण –
  • इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
  • इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
  • उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
  • समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं
  • समस्या समाधान विधि के दोष
  • जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
  • बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं
  • खेल विधि —
  • खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
  • सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
  • फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल – खेल में दिया जाना चाहिए ।
    खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
  • गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
    खेल विधि के गुण —
  • मनोवैज्ञानिक विधि – खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
  • सर्वांगीण विकास — खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
  • क्रियाशीलता – यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • सामाजिक दृष्टिकोण का विकास – इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
  • स्वतंत्रता का वातावरण – खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं
  • रूचिशील विधि – यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
    खेल विधि के दोष –
  • शारीरिक शिशिलता
  • व्यवहार में कठिनाई
  • मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
    आगमन विधि –
  • इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं
  • यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
  • इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है । उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
    आगमन विधि के गुण —
  • यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
  • इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
  • नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
  • इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
  • यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
    आगमन विधि के दोष —
  • यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
  • आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
  • छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
    निगमन विधि
  • इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
  • इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है
    निगमन विधि के गुण —
  • बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
  • यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
  • ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
  • ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
  • इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
  • इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
    निगमन विधि के दोष —
  • निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
  • इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
  • इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
  • नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
    आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष —
  • आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
  • प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
    विश्लेषण विधि (Analytic Method) —
  • विश्लेषण शब्द का अर्थ है – किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग – अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
  • यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
  • इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।
    संश्लेषण विधि
  • संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
  • संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
  • इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।
    विश्लेषण – संश्लेषण विधि —
  • दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
  • जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
  • “संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।” – प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।
    योजना विधि
  • इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
  • उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।
    योजना विधि के सिद्धांत — समस्या उत्पन्न करना, , कार्य चुनना, योजना बनाना, योजना कार्यान्वयन, कार्य का निर्णय, कार्य का लेखा
  • योजना विधि के गुण —
  • बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
  • क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।
    योजना विधि के दोष –
    इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।
    क्या आप जानते है ?
  • गणित सभी विज्ञानों का प्रवेश द्वार एवं कुंजी हैं – बैकन
  • गणित संस्कृति का दर्पण है – हाॅग बैन
  • तार्किक चिंतन के लिए गणित एक शक्तिशाली साधन है – बर्नार्ड शाॅ
  • गणित क्या है, यह उस मानव चिंतन का प्रतिफल है, जो अनुभवों से स्वतन्त्र तथा सत्य के अनुरूप है – आइन्सटीन
  • गणित एक विज्ञान है जिसकी सहायता से आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं – पियर्स
  • आगमन विधि गणित में सूत्रों की स्थापना हेतु उत्तम विधि हैं । आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर सिद्धांत लागू होता हैं ।
  • विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर अग्रसर हैं ।
  • त्रिकोणमिति गणित में मौखिक कार्य का सर्वाधिक महत्व छात्रों के मानसिक विकास करने में हैं ।
  • यदि विज्ञान की रीढ़ की हड्डी गणित हटा दिया जाए, तो सम्पूर्ण भौतिक सभ्यता निःसंदेह नष्ट हो जाएगी – यंग

शिक्षण विधियों की कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • पाठ योजना (पंचपदी) के प्रवर्तक – हरबर्ट स्पेन्सर
  • इकाई योजना के प्रवर्तक – मारिसन
  • खेल विधि के प्रवर्तक – काल्डवेन कुक
  • खोज/अनुसंधान/ अन्वेषण/ह्युरिस्टिक विधि के प्रवर्तक – प्रो• आर्मस्ट्राग
  • अभिक्रमिक अनुदेशन विधि के जन्मदाता – बी• एफ• स्किनर
  • प्रोजेक्ट/ प्रायोजना विधि के प्रवर्तक – किलपैट्रिक
  • प्रयोगशाला विधि स्वयं करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है ।
  • पर्यटन विधि छात्रों को प्रत्यक्ष इन देने के सिद्धांत पर आधारित है । (पेस्टालाजी)
  • अवलोकन विधि से छात्रों में निरिक्षण करने की योग्यता का विकास होता है ।
  • अनुसंधान विधि से छात्रों में खोज प्रवृत्ति का उदय होता है ।
  • समस्या समाधान विधि में छात्रों में विचार तथा निर्णय शक्ति का विकास होता है ।
  • छोटी कक्षाओं में अधिकतर प्रयोग प्रदर्शन विधि का प्रयोग उचित होता है ।
  • बड़ी कक्षाओ में प्रयोगशाला विधि का प्रयोग किया जाना उचित है ।
  • प्रयोग प्रदर्शन विधि से शिक्षण कराने में बालकों में करके सीखने के गुण का विकास होता हैं
  • प्रायोजना विधि में कोई कार्य बालकों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं हर करने का प्रयास करते हैं ।
  • प्रक्रिया विधि बाल केन्द्रित विधि है जिसमें बालक को प्रधानता दी जाती हैं । बालक स्वतः स्वभाविक रूप से क्रियाशील होता हैं ।
  • सम्प्रत्यय किसी देखी गई वस्तु की मानसिक प्रतिमा है । सम्प्रत्यय वे विचार है जो वस्तुओं, घटनाओं तथा गुणों का उल्लेख करते हैं ।
  • सम्प्रत्यय निर्माण में बच्चों को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है – निरिक्षण, तुलना, पृथक्करण, सामान्यीकरण तथा परिभाषा निर्माण । व्याख्यान विधि सबसे सरल व प्राचीन विधि है ।छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि – खेल मनोरंजन विधि
  • रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – विश्लेषण विधि
  • बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन निगमन विधि
  • नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि – आगमन विधि
  • स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि – अनुसंधान विधि
  • मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि – खेल विधि
  • ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि – विश्लेषण विधि
  • सर्वाधिक खर्चीली विधि – प्रोजेक्ट विधि
  • बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि – समीकरण विधि
  • सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि – आगमन विधि
  • प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि – खेल विधि
  • वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि – विश्लेषण विधि
  • गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
  • शिक्षण एक त्रि – ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
  • व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
  • बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
  • प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।

सामान्य विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्य अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में —

  • ज्ञान (Knowledge) — छात्रों को उन तथ्यों, सिद्धांतों व विधियों का ज्ञान प्रदान करना है जो विज्ञान से संबंधित हैं । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होगे —
    • A. विज्ञान के नवीन शब्दों की जानकारी प्राप्त कर छात्र वैज्ञानिक भाषा में तथ्यों का वर्णन कर सकेंगे ।
      B. छात्र अपने व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान को प्राप्त व व्यक्त कर सकेंगे ।
      C. वैज्ञानिक परिभाषाएँ तथा सिद्धांतों से परिचित होकर उनमें पारस्परिक संबंध स्थापित कर सकेंगे ।
  • अवबोध (Understanding) — इससे बालक में निम्नलिखित परिवर्तन आएगें – A. छात्र वैज्ञानिक विचारों तथा संबंधों को अपनी भाषा में व्यक्त करता है तथा विभिन्न तथ्यों में परस्पर तुलना कर सकता हैं । B. कारण तथा प्रभाव संबंध को स्पष्ट कर सकता हैं ।
  • ज्ञानापयोग (Application) – छात्र अपरिचित समस्याओं को समझने एवं उन्हें हल करने में सामान्य विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करता है ।
  • कौशल (Skill) — छात्रों में चार्ट एवं चित्र बनाने तथा उनमें प्रयोग करने का कौशल उत्पन्न हो जाता है । इसके अंतर्गत उसमें निम्न परिवर्तन होते हैं —
    A. पर्यावरण से संबंधित तथ्यों व वस्तुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करने की योग्यता प्राप्त करता है ।
    B. उपकरणों को प्रयोग में लाने, परीक्षण करके परिणाम निकालने, उनमें होने वाले दोषों को दूर करने की कुशलता प्राप्त करता हैं ।
  • अभिवृति (Attitude) — A. बालक विभिन्न परिस्थितियों में शीघ्र व सही निर्णय ले सकता है
    B. अंधविश्वासों व पूर्वाग्रहों को वैज्ञानिक विधि से दूर करने में सहायता प्राप्त होती हैं ।
    C. विज्ञान से संबंधित तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करता हैं ।
  • अभिरुचि (Interest) — A. विधालय की वैज्ञानिक प्रवृत्तियों जैसे — विज्ञान मेला, विज्ञान प्रदर्शनी, विज्ञान क्विज आदि में सक्रिय भाग लेता हैं ।
    B. विज्ञान के दैनिक उपयोग संबंधी कार्यों में रूचि लेता हैं ।
  • प्रशंसा (Appreciation) — वैज्ञानिक आविष्कारों एवं खोजों के मानव जीवन में योगदान की प्रशंसा करता है । वैज्ञानिकोंके जीवन की घटनाओं की सराहना कर उनसे प्रेरणा लेता है
    NCERT के शब्दों में हमारे शैक्षिक उद्देश्य वे परिवर्तन है जो हम बालक में लाना चाहते है

    गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन —-
  • ज्ञान – छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
    व्यवहारगत परिवर्तन –
    A. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं
    B. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
    C. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
  • अवबोध — संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
  • कुशलता — विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे
  • ज्ञानापयोग —
    A. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
    B. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
    C. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
  • रूचि :–
    A. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
    B. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
    C. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
    D. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
  • अभिरुचि :–
    A. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
    B. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
    C. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
    D. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
  • सराहनात्मक (Appreciation objectives)
    A. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
    B. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।

विज्ञान शिक्षण के प्रमुख उपकरण —

  • मैजिक लेण्टर्न — इसके द्वारा छोटे चित्रों को बड़ा करके पर्दे पर प्रदर्शित किया जाता है । इसमें पारदर्शी शीशे की स्लाइड प्रयोग में लाई जाती हैं ।
  • एपिस्कोप – इस उपकरण द्वारा पुस्तक, पत्रिका आदि के चित्र, रेखाचित्र तथा ग्राफ आदि के सूक्ष्म रूप को पर्दे पर बड़ा करके दिखाया जाता हैं । इसमें स्लाइड बनाने की आवश्यकता नही पड़ती ।
  • एपिडायस्कोप – इस यंत्र द्वारा मैजिक लेण्टर्न तथा एपिस्कोप दोनों के काम किए जाते हैं ।
  • प्रतिमान (माडल) — जब प्रत्यक्ष वस्तु बहुत बड़ी हो, कि कक्षा में लाना असंभव हो, अथवा इतनी छोटी हो कि दिखाई ही न पड़े, तब माडल का प्रयोग किया जाता है । इंजन, हवाई जहाज, छोटे जीव जन्तु, जीवाणु, इलैक्ट्रोनिक सामान, मानव ह्रदय आदि का अध्ययन माडल के सहयोग से किया जाता हैं ।

Hindi Language & Pedagogy Important Questions – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Hindi Language & Pedagogy Important Questions – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

निर्देश- नीचे दिए गए प्रश्नों के लिए सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए –

1. बच्चों को लिखना सिखाने में सबसे ज्यादा महत्वूर्ण है- 

क) सुन्दर लेखन

ख) वर्तनी की शुद्धता

ग) काव्यात्मक भाषा

घ) विचारों की अभिव्यक्ति 

उत्तर – घ 

बच्चों को लिखना सिखाने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति है क्योंकि बिना विचारों के ना तो बच्चा सोच पाएगा और ना ही अपनी सोच को लिखित रूप दे पाएगा।

( Child Development and Pedagogy: Language and Thought )

2. निम्नलिखित में से कौन-सा सूक्ष्म गतिक कौशल का उदाहरण है?

क) कूदना

ख) लिखना

ग) दौड़ना

घ) चढ़ना

उत्तर – विकल्प ख       

भाषाई कुशलता का संबंध भाषा के चार कौशलों से है श्रवण कौशल, वाचन कौशल, पठन कौशल और लेखन कौशल। ये सभी कौशलों का विकास एक-एक करके स्वाभाविक रूप से भी होता है एवं सही शिक्षण व मूल्यांकन द्वारा भी किया जाता है। भाषा कौशल की अधिगम प्रक्रिया बच्चे के जन्म से ही शुरू हो जाती है जब वह दूसरों को सुनना शुरू कर देता है।

( Child Development and Pedagogy: Hindi Language )

3. इनमे से कौन सा कारक अधिगम को अभिप्रेरित करने वाला है- 

क) बाह्य कारक

ख) विफलता से बचने के लिए प्रेरणा

ग) लक्ष्यों को प्राप्त करने पर व्यक्तिगत संतुष्टि

घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर – ग 

लक्ष्यों को प्राप्त करने पर व्यक्तिगत संतुष्टि अधिगम को भी प्रेरित करती है क्योंकि लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद बच्चे में नया सीखने की रुचि और ज्यादा बढ़ती है।

( Child Development and Pedagogy: Hindi learning and Pedagogy )

4. शिक्षण के दौरान बच्चे के कक्षा-कक्ष व्यवहार के अध्ययन हेतु कौन सी विधि सर्वाधिक उपयुक्त है-

क) अवलोकन

ख) केस स्टडी

ग) साक्षात्कार

घ) प्रश्नावली

उत्तर – विकल्प क 

शिक्षण के दौरान बच्चे के कक्षा कक्ष व्यवहार के अध्ययन हेतु अवलोकन विधि सबसे उपयुक्त है। अवलोकन का अर्थ है देखना, प्रेक्षण, निरीक्षण अर्थात कार्य – करण एवं पारस्परिक संबंधों को जानने के लिए स्वाभाविक रूप से घटित होने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण। 

( Child Development and Pedagogy: Learning – Teaching methods )

5. सतत् एवम् व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है- 

क) सभी विषयों का मूल्यांकन

ख) सह शैक्षिक क्षेत्र का मूल्यांकन

ग) शैक्षिक एवं सह शैक्षिक क्षेत्र का मूल्यांकन

घ) शैक्षिक क्षेत्र का मूल्यांकन

उत्तर – ग 

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से है, जिसमें छात्र के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं। इसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है यह उद्देश्य व्यापक आधारित अधिगम और दूसरी और व्यवहार गत परिणामों के मूल्यांकन तथा निर्धारण की स्वतंत्रता में है। 

व्यापक का अर्थ है कि इस योजना में छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक तथा सह शैक्षिक दोनों ही पक्षों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है क्योंकि क्षमताएं, मनुवृत्तियां और अभिरुचि अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा अन्य रूपों में भी प्रकट करते हैं। अतः यह शब्द विभिन्न साधनों और तकनीकों के अनुप्रयोग के लिए उपयोग किया जाता है तथा इसका लक्ष्य निम्नलिखित अधिगम क्षेत्रों में छात्र के विकास का निर्धारण करना है-

  1. ज्ञान
  2. समझ
  3. विश्लेषण
  4. मूल्यांकन
  5. सृजन
  6. आकलन
  7. मापन
  8. परीक्षण

( Child Development and Pedagogy: Assessment and Evaluation )

6. भाषा का आरंभ निम्न से होता है –

क) शब्द

ख) ध्वनि

ग) अर्थ

घ) स्वरूप

उत्तर – ख 

भाषा मानव जीवन की एक सामान्य एवं सतत प्रक्रिया है। भाषा का आरंभ मानव के जन्म के साथ ही हो जाता है।

 भाषा का आरंभ ध्वनियों से होता है, बच्चा धीरे धीरे परिवार के संपर्क में रहकर आपसी संवादों को सुनकर उनका अनुकरण करता है और इस तरह वह भाषा के क्षेत्र में पारंगत हो जाता है इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि भाषा अनुकरण की वस्तु है तथा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

 ( Hindi : Language Learning and Acquisition) 

7. निम्नांकित में अशुद्ध वर्तनी का चयन कीजिए –

क) सर्वोत्तम

ख) सांसारिक

ग) दिधायु

घ) ज्योत्सना

उत्तर – ग

दिधायु शब्द की शुद्ध वर्तनी दीर्घायु होगी। 

( Hindi Grammar )

8. बच्चे सामाजिक अंतःक्रिया से भाषा सीखते हैं, यह विचार किसका है-

क) जीन पियाजे

ख) स्किनर

ग) पावलाव

घ) वाइगोत्सकी

उत्तर – घ 

वाइगोत्सकी ने बालकों में सामाजिक विकास से संबंधित एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत में उन्होंने बताया कि बालक के हर प्रकार के विकास में उसके समाज का विशेष योगदान होता है। 

( Child Development and Pedagogy:  Piaget, Kohlberg and Vygotsky )

9. वातावरण के अनुसार स्वयं को ढालना क्या कहलाता है – 

क) अनुकूलन

ख) सहकारिता

ग) समायोजन

घ) अनुकरण

उत्तर – विकल्प क  

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के अनुसार संज्ञान प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण, उद्दीपक जगत, बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। समस्या समाधान, विचारों का निर्माण, प्रत्येकक्षण आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती हैं यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं।

संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-

  • (१) संवेदिक पेशीय अवस्था (Sensory Motor) : जन्म के 2 वर्ष
  • (२) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational) : 2-7 वर्ष
  • (३) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational) : 7 से 11वर्ष
  • (४) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational) : 11से 18वर्ष

 ज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया एवं संरचना

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की प्रकिया में मुख्यतः दो बातों को महत्वपूर्ण माना है। पहला संगठन दूसरा अनुकूलन। संगठन से तात्पर्य बुद्धि में विभिन्न क्रियाएँ जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति , चिंतन एवं तर्क सभी संगठित होकर करती है। उदा. एक बालक वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के संबंध में उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएँ पृथक पृथक कार्य नहीं करती है बल्कि एक साथ संगठित होकर कार्य करती है। वातावरण के साथ समायोजन करना संगठन का ही परिणाम है। संगठन, व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को आंतरिक रूप से प्रभावित करता है। अनुकूलन बाह्य रूप से प्रभावित करता है।

( Child Development and Pedagogy:  Piaget, Kohlberg and Vygotsky )

10. एक बहुसांस्कृतिक कक्षा में आप एक भाषा शिक्षक के रूप में किस बात को अधिक महत्व देंगे-

क) बच्चों को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देना

ख) पाठ्य-पुस्तक के प्रत्येक पाठ को भली-भांति समझना

ग) बच्चों को व्याकरण सिखाना

घ) स्वयं शुद्ध भाषा का प्रयोग

उत्तर – विकल्प क  

बहुसांस्कतिक कक्षा में बच्चों को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देने से संज्ञानात्मक विकास व शैक्षणिक संप्राप्ति के बीच सकारात्मक जुड़ाव होता है। साथ ही साथ यह लोगों और विचारों के स्वतंत्र आवागमन को सुचारू रूप से चलाता है तथा रचनात्मक नवाचार को भी बढ़ावा देता है।

( Child Development and Pedagogy: Problems of Diverse Language in the Classroom ) 

11. इनमें से प्राथमिक स्तर पर भाषा आकलन का सर्वाधिक उचित तरीका है- 

क) किसी पाठ की पांच पंक्तियां पढ़वाना

ख) बच्चों को चित्र वर्णन और प्रश्न पूछने के अवसर देना

ग) बच्चों से पत्र लिखवाना

घ) बच्चों से प्रश्नों के उत्तर लिखवाना 

उत्तर – विकल्प ख 

प्राथमिक स्तर पर भाषा का चित्र वर्णन और प्रश्न पूछने के आधार पर आकलन करना सर्वाधिक उचित है क्योंकि इससे बच्चों के श्रवण कौशल, मौखिक अभिव्यक्ति कौशल, उच्चारण कौशल तथा वाचन कौशल का मूल्यांकन बड़ी ही सरलता से किया जा सकता है जो कि प्राथमिक स्तर पर महत्वपूर्ण होता है।

( Child Development and Pedagogy: Evaluation of Proficiency in Language Comprehension )

12. भाषा शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक – 

क) अनावश्यक है

ख) एकमात्र संसाधन है

ग) साध्य है

घ) साधन है

उत्तर – विकल्प घ

( Child Development and Pedagogy: Teaching Aids )

13. विवेक पढ़ते समय कठिनाई का अनुभव करता है। वह _________ से ग्रस्त है-

क) डिस्कैलकुलिया

ख) अफेजिया

ग) डिस्लेक्सिया

घ) डिसग्राफ़िया

उत्तर – विकल्प ग

डिस्लेक्सिया एक अधिगम विकलांगता है जिसका प्रकटीकरण मुख्य रूप से वाणी या लिखित भाषा के दृश्य अंकन की कठिनाइयों के रूप में होता है, विशेष तौर पर मनुष्य-निर्मित लेखन प्रणालियों को पढ़ने में। यह देखने या सुनने की गैर-नयूरोलोजिकल कमी, या बेकार अथवा अपर्याप्त पाठन निर्देशों जैसे अन्य कारकों से उत्पन्न पाठन कठिनाइयों से अलग है, यह इस बात का सुझाव देता है कि बुद्धि द्वारा लिखित और भाषित भाषाओँ को संसाधित करने में अंतर के कारण डिस्लेक्सिया होती है।

( Child Development and Pedagogy: Remedial Teaching )

Environmental Studies and Pedagogy Important Questions – 3 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Environmental Studies and Pedagogy Important Questions – 3 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Q1. Shivangi loves mangoes. She wants to preserve these for winters. Which one of the following is a good way of preserving them?

  1. Make ‘aam papad’ and pickle
  2. Prepare juice and store in an airtight container
  3. Put in a plastic bag
  4. Store in a refrigerator

Ans- Option A

Reena loves mangoes. She wants to preserve mangoes for winters for which the good ways to make “aam papad” and pickle. When pulp of mango is boiled it kills the microorganisms present in the pulp. A dryer or semisolid aam papad reduces the action of microorganisms, when salt or sugar is added to it is stops the action of enzymes present in it.

Q1. शिवांगी को आम पसंद है। वह आमों को सर्दियों के लिए संरक्षित करना चाहती है। निम्नलिखित में से कौन सा उन्हें संरक्षित करने का एक अच्छा तरीका है?

  1. आम पापड़ और अचार बनाएं
  2. जूस तैयार करें और एक एयरटाइट कंटेनर में रखें
  3. प्लास्टिक की थैली में रखें
  4. रेफ्रिजरेटर में रखें

Ans- विकल्प A

रीना को आम पसंद है। वह सर्दियों के लिए आमों को संरक्षित करना चाहती है जिसके लिए “आम पापड़” और अचार बनाना सबसे अच्छे तरीके हैं। जब आम के गूदे को उबाला जाता है तो यह गूदे में मौजूद सूक्ष्मजीवों को मार देता है। एक सूखा हुआ या हल्का सूखा आम पापड़ सूक्ष्मजीवों की कार्य क्षमता को कम कर देता है, जब इसमें नमक या चीनी मिलाया जाता है, तो इसमें मौजूद एंजाइमों का कार्य बंद हो जाता है।

( EVS- Content : Food ) 

Q2. A person living in New Delhi wants to visit first Bhopal (Madhya Pradesh) and then Ranchi (Jharkhand). The direction of his journey will be-

  1. East and then towards south
  2. West and then towards south
  3. South and then towards east
  4. South and then towards west

Ans- Option C

A person living in New Delhi, wants to visit from Bhopal (Madhya Pradesh) and then Ranchi (Jharkhand) then, the direction which has to travel is south and then towards the east.

Q2. नई दिल्ली में रहने वाला एक व्यक्ति पहले भोपाल (मध्य प्रदेश) और फिर रांची (झारखंड) जाना चाहता है। उनकी यात्रा की दिशा होगी-

  1. पूर्व और फिर दक्षिण की ओर
  2. पश्चिम और फिर दक्षिण की ओर
  3. दक्षिण और फिर पूर्व की ओर
  4. दक्षिण और फिर पश्चिम की ओर

Ans- विकल्प C

नई दिल्ली में रहने वाला एक व्यक्ति भोपाल (मध्य प्रदेश) और उसके बाद रांची (झारखंड) जाना चाहता है, उसे जिस दिशा में यात्रा करनी होगी वह दक्षिण और फिर पूर्व की ओर है।

( Social science – content: Geography )

Q3. Which one of the following strategies seems most appropriate for teaching maps to primary graders?

  1. Drawing of the map by the teacher on the blackboard and asking learners to locate different places
  2. Instructing learners to bring the map of India from their home
  3. Showing an Atlas to learners and asking them to locate different places
  4. Facilitating learners to construct maps of their immediate surroundings by using their own symbols and focusing on relative position and direction of different things

Ans- Option D

Among the different strategies, facilitating learners to construct maps of their immediate surroundings by using their own symbols and focusing on relative position and direction of different things seem to be most appropriate for teaching maps to primary graders.

Q3. प्राथमिक कक्षा में मानचित्र पढ़ाने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी रणनीति सबसे उपयुक्त है?

  1. शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर नक्शा खींचना और शिक्षार्थियों को विभिन्न स्थानों का पता लगाने के लिए कहना
  2. शिक्षार्थियों को अपने घर से भारत का नक्शा लाने का निर्देश देना
  3. शिक्षार्थियों को एटलस दिखाना और उन्हें विभिन्न स्थानों का पता लगाने के लिए कहना
  4. शिक्षार्थियों को अपने स्वयं के प्रतीकों का उपयोग करके, अपने आसपास के नक्शों का निर्माण करना और विभिन्न चीजों की सापेक्ष स्थिति और दिशा पर ध्यान केंद्रित करना

Ans- विकल्प D

विभिन्न रणनीतियों के बीच, शिक्षार्थियों को अपने स्वयं के प्रतीकों का उपयोग करके अपने आसपास के मानचित्रों के निर्माण की सुविधा प्रदान करना और अलग-अलग चीजों की दिशा और दिशा पर ध्यान देना प्राथमिक कक्षा को मानचित्र पढ़ाने के लिए  सबसे उपयुक्त है।

( EVS Pedagogy: Presenting Concepts )

Q4. Bronze is a mixture of two metals. These two metals are-

  1. Copper and zinc
  2. Copper and tin
  3. Copper and iron
  4. Aluminium and tin

Ans- Option B

copper and zinc – brass 

copper and tin – bronze

copper and iron – master alloys

Q4. कांसा दो धातुओं का मिश्रण है। ये दो धातुएँ हैं-

  1. तांबा और जस्ता
  2. तांबा और टिन
  3. तांबा और लोहा
  4. एल्यूमीनियम और टिन

Ans- विकल्प B

तांबा और जस्ता – पीतल

तांबा और टिन – कांस्य

तांबा और लोहा – विशेष मिश्र धातुएं

( Science-content: Material )

Q5. Greenhouse gases do not include-

  1. Carbon dioxide
  2. Carbon monoxide
  3. Nitrous oxide
  4. Methane

Ans- Option B

The primary greenhouse gases in Earth’s atmosphere are water vapour, carbon dioxide, methane, nitrous oxide and ozone.

Q5. ग्रीनहाउस गैसों में शामिल नहीं हैं-

  1. कार्बन डाइऑक्साइड
  2. कार्बन मोनोऑक्साइड
  3. नाइट्रस ऑक्साइड
  4. मीथेन

Ans- विकल्प B

पृथ्वी के वायुमंडल में प्राथमिक ग्रीनहाउस गैसें, जल वाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और ओजोन हैं।

( EVS – Content: Environmental Issues )

Environmental Studies Pedagogy Important Questions – 2 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Environmental Studies Pedagogy Important Questions – 2 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Q1. The chapter in class 5 NCERT EVS textbook titled ‘Sunita in Space’ describes astronaut Sunita Williams’ experiences in a spaceship. What could be the reason / reasons for including this-

  1. The incident gives a peep into the life of an astronaut
  2. This incident describes physical conditions in a spaceship
  3. This incident challenges gender stereotypes
  4. This incident helps in explaining the concept of gravity
  1. Only 4
  2. 1, 2 and 3
  3. 1, 2, 3 and 4
  4. Only 1

Ans- Option B

The chapter titled ‘Sunita in space’ in NCERT EVS textbook could be included as it will give them a peep info life of an astronaut, help them in elucidation of physical condition under a spaceship and this will break gender stereotypes amongst the students.

Q1. कक्षा 5 एनसीईआरटी पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तक के एक अध्याय ‘सुनीता अंतरिक्ष में’ , अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष यान के अनुभवों का वर्णन किया गया है। इसे शामिल करने के / का कारण क्या हो सकते हैं / है –

  1. यह घटना एक अंतरिक्ष यात्री के जीवन की एक झलक देती है
  2. यह घटना एक अंतरिक्ष यान की भौतिक स्थितियों का वर्णन करती है
  3. यह घटना लैंगिक रूढ़ियों को चुनौती देती है
  4. यह घटना गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा को समझाने में मदद करती है
  1. केवल 4
  2. 1, 2 और 3
  3. 1, 2, 3 और 4
  4. केवल 1

Ans- विकल्प B

NCERT EVS पाठ्यपुस्तक में ‘सुनीता अंतरिक्ष में’ नामक अध्याय को शामिल किया जा सकता है, क्योंकि यह बच्चों को एक अंतरिक्ष यात्री के जीवन की झलक देगा, उन्हें एक अंतरिक्ष यान की भौतिक स्थितिओं को समझने में मदद करेगा और इससे छात्रों के बीच लैंगिक असमानता व रूढ़ियों को खत्म करने में मदद मिलेगी।

(EVS Pedagogy: Presenting Concepts)

Q2. Poems and stories are effective in transacting the themes of EVS. This is because poems and stories-

  1. Can be rich depictions of child’s environment
  2. Can provide contextual learning environment
  3. Can explain various abstract concepts effectively
  4. Can nurture creativity and aesthetic sense
  1. 1, 2 and 3
  2. Only 3
  3. Only 2
  4. 1 and 2

Ans- Option A

Poems and stories are effective in transacting the themes of EVS because they provide interest and generalise the useful concepts of environmental issues so that children can learn with interest and motivation.

Q2. कहानियां व कविताएं पर्यावरण अध्ययन के विषयों को विद्यार्थियों तक पहुंचाने में प्रभावी हैं। इसकी वजह है कि कविताएं और कहानियाँ –

  1. बच्चे के पर्यावरण का समृद्ध चित्रण कर सकते हैं
  2. प्रासंगिक शिक्षण वातावरण प्रदान कर सकते हैं
  3. विभिन्न अमूर्त अवधारणाओं को प्रभावी ढंग से समझा सकते हैं
  4. रचनात्मकता और सौंदर्य बोध का पोषण कर सकते हैं
  1. 1, 2 और 3
  2. केवल 3
  3. केवल 2
  4. 1 और 2

Ans- विकल्प A

कविताएँ और कहानियाँ EVS के विषयों को सरलता से विद्यर्थियों तक संप्रेषित करने में प्रभावी हैं, क्योंकि वे विषय से सम्बन्धित रुचि प्रदान करती हैं और पर्यावरण के मुद्दों की उपयोगी अवधारणाओं का सामान्यीकरण करती हैं, ताकि बच्चे रुचि और प्रेरणा के साथ उन्हें सीख सकें।

(EVS Pedagogy: Presenting Concepts)

Q3. Which one of the following is not a characteristic feature of the roots of a banyan tree? 

  1. Roots hang down from the branches
  2. They are underground roots
  3. Roots store food
  4. Roots provide support to tree like pillars

Ans- Option C

As the Banyan tree grows, the trunk gains tremendous width and height. Branches produce aerial roots that reach ground, establish themselves in the ground and ultimately unite with the main trunk. Because of its structure, Banyan makes an excellent bonsai.

Q3. निम्नलिखित में से कौन एक बरगद के पेड़ की जड़ों की विशेषता नहीं है?

  1. जड़ें शाखाओं से नीचे लटक जाती हैं
  2. वे भूमिगत जड़ें हैं
  3. जड़ें भोजन का भंडारण करती हैं
  4. जड़ें पेड़ को खंभे की तरह सहारा देती हैं

Ans- विकल्प C

जैसे ही बरगद का पेड़ बढ़ता है, उसका तना काफी चौड़ाई और ऊंचाई हासिल कर लेता है। शाखाएं जमीन तक पहुंचने वाले लंबी जड़ों का उत्पादन करती हैं, खुद को जमीन में स्थापित करती हैं और अंततः मुख्य तने के साथ एकजुट होती हैं। अपनी संरचना के कारण, बरगद एक उत्कृष्ट बोन्साई बनाता है।

( EVS- content: Plants )

Q4. Which of the following makes a correct pair?

  1. Assam – Bihu
  2. Tamil Nadu – Lavani
  3. Orissa – Bharatnatyam
  4. Karnataka – Kathak

Ans- Option A

Q4. निम्नलिखित में से कौन एक सही जोड़ी बनाता है?

  1. असम – बिहू
  2. तमिलनाडु – लावणी
  3. उड़ीसा – भरतनाट्यम
  4. कर्नाटक – कथक

Ans- विकल्प A

( GK and Current Affairs- States and Dance )

Q5. Which of the following is / are tools and techniques of assessment in EVS at primary level-

  1. Project work
  2. Field trip
  3. Journal writing
  4. Concept mapping
  1. 2 and 3
  2. Only 4
  3. 1 and 2
  4. All of these

Ans- Option C

Among the different tools and techniques used in the segment in EVS at primary level project work and field trips are considered essential while journal writing and concept mapping are used at the secondary level.

Q5. निम्नलिखित में से कौन सा / से प्राथमिक स्तर में पर्यावरण अध्ययन में मूल्यांकन के उपकरण और तकनीकें हैं-

  1. परियोजना कार्य
  2. स्थानीय दौरा
  3. पत्रिका/डायरी लेखन
  4. परिकल्पना मानचित्रण
  1. 2 और 3
  2. केवल 4
  3. 1 और 2
  4. ये सभी

Ans- विकल्प C

ईवीएस में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न उपकरणों और तकनीकों में प्राथमिक स्तर में परियोजना कार्य और स्थानीय दौरों को आवश्यक माना जाता है। जबकि पत्रिका लेखन और परिकल्पना मानचित्रण को माध्यमिक स्तर पर उपयोग किया जाता है।

( EVS Pedagogy: Assessment and Evaluation )

Mathematics Pedagogy Important Questions – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Directions- Answer the following questions by selecting the correct / most appropriate options-

Mathematics Pedagogy Important Questions – 1 for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Q1. Who said,”Mathematics is the science which draws necessary conclusions” ? –

  1. Hagber
  2. Locks
  3. Benjamin Pierce
  4. None of these

Ans- Option C

Q1. किसने कहा, “गणित वह विज्ञान है जो आवश्यक निष्कर्ष निकालता है”? –

  1. हैगबर
  2. लौक़्स
  3. बेंजामिन पियर्स
  4. इनमे से कोई नहीं

Ans- विकल्प C

( Mathematics: Language of Mathematics )

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Q2. The main aim of maths teaching in schools is-

  1. Mathematization of thought process of children
  2. To solve the problems given in the textbook
  3. To make children fit for employment
  4. To entertain children through maths

Ans- Option A

The main aim of maths teaching in school is the mathematisation of thought process of children as Mathematics occupy a prominent place in men’s life, from an engineer to technician or labour to finance minister and other businessman, all needed the help of Mathematics according to their requirements. A mathematical approach is essential for any progress. Any approach devoid of mathematical consideration is likely to lead to failure.

Q2. विद्यालय में गणित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है-

  1. बच्चों की विचार प्रक्रिया का गणितीयकरण करना
  2. पाठ्यपुस्तक में दी गई समस्याओं को हल करना
  3. बच्चों को रोजगार के लायक बनाना
  4. गणित के माध्यम से बच्चों का मनोरंजन करना

Ans- विकल्प A

विद्यालय में पढ़ाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों की सोची समझी प्रक्रिया का गणितीयकरण है क्योंकि गणित मनुष्य के जीवन में प्रमुख स्थान रखता है, इंजीनियर से लेकर श्रमिक, वित्त मंत्री और अन्य व्यवसायी तक, सभी को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार गणित की मदद की आवश्यकता होती है। । किसी भी प्रगति के लिए एक गणितीय दृष्टिकोण आवश्यक है। गणितीय दृष्टिकोण से रहित कोई भी दृष्टिकोण का विफलता की ओर ले जाने की संभावना है।

( Mathematics Pedagogy: Place of Mathematics in Curriculum )

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Q3. How a teacher can start for introducing the concept of Area of class 4th students? –

  1. Compare the surface of a leaf, notebook, table etc
  2. Calculate the area of a rectangle by multiplying the length and breadth
  3. Calculate the area of a figure by counting the number of unit squares inside it
  4. Explaining the formula of finding the areas of different figures

Ans- Option A

A teacher can start for introducing the concept of area to primary classes by comparing the surface of a leaf, notebook, table and other life related real objects. When real life objects are used in teaching they enhance the teaching learning process by connecting the real life experiences of a child to the teaching process.

Q3. एक शिक्षक कक्षा 4 में क्षेत्रफल की अवधारणा को कैसे शुरू कर सकता है? –

  1. एक पत्ती, किताब, मेज़ आदि की सतह की तुलना करके
  2. लंबाई और चौड़ाई को गुणा करके एक आयत के क्षेत्रफल की गणना करके
  3. आकृति के अंदर इकाई वर्गों की संख्या की गणना करके एक आकृति के क्षेत्रफल की गणना करके
  4. विभिन्न आकृतियों के क्षेत्रफलों को खोजने का सूत्र बताते हुए

Ans- विकल्प A

एक शिक्षक एक पत्ता, नोटबुक, मेज और अन्य जीवन से संबंधित वास्तविक वस्तुओं की सतह की तुलना करके प्राथमिक कक्षाओं के लिए क्षेत्रफल की अवधारणा को शुरू कर सकता है। जब शिक्षण में वास्तविक जीवन की वस्तुओं का उपयोग किया जाता है तो वे बच्चे के वास्तविक जीवन के अनुभवों को शिक्षण प्रक्रिया से जोड़कर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बनाते हैं।

( Mathematics Pedagogy: Learning of Mathematics )

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Q4. Which of the following is the correct sequence of inductive method?-

1. Generalization

2. Observation

3. Presentation of example

4.Testing and verification

  1. 1234
  2. 1324
  3. 3214
  4. 3421

Ans- Option C

Inductive instruction makes use of student noticing instead of explaining a given concept and following the explanation with examples. The teacher presents students with many examples showing how the concept is used. The intent is for students to “notice” by the way of examples, how the concept works.

This steps of inductive method are-

  • Presentation of example
  • Observation
  • Generalization
  • Testing and verification

Q4. निम्नलिखित में से कौन सा आगमन विधि का सही अनुक्रम है?

1. सामान्यीकरण

2. अवलोकन

3. उदाहरण की प्रस्तुति

4. परीक्षण और सत्यापन

  1. 1234
  2. 1324
  3. 3214
  4. 3421

Ans- विकल्प C

आगमनात्मक निर्देश किसी दी गई अवधारणा को समझाने और उदाहरणों के साथ स्पष्टीकरण का पालन करने के बजाय छात्र को सूचित करने का उपयोग करता है। शिक्षक कई उदाहरणों के साथ छात्रों को समस्या से अवगत कराता है और समझाता है कि अवधारणा का उपयोग कैसे किया जाता है। छात्रों को उदाहरण के माध्यम से समस्या को समझना होता है और समस्या का समाधान निकालना होता है।

आगमनात्मक विधि के ये चरण हैं-

  • उदाहरण की प्रस्तुति
  • अवलोकन
  • सामान्यीकरण
  • परीक्षण और सत्यापन

( Mathematics : Methods of Learning)

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Q5. A teacher is teaching Addition to class II students. Which one of the following is the most suitable strategy to follow? –

  1. Word problems should not be done in class 2nd
  2. Word problems should be used only for the purpose of assessment
  3. Addition should be introduced through word problems
  4. Word problems should be done at the end of the chapter

Ans- Option C

For class second the best method to teach addition is word problems as student will better understand the real world implications of learning addition.

Q5. एक शिक्षक कक्षा II के छात्रों को जोड़ सिखा रहा है। निम्नलिखित में से कौन सी सबसे उपयुक्त विधि है? –

  1. शब्द समस्याओं का प्रयोग द्वितीय श्रेणी में नहीं किया जाना चाहिए
  2. शब्द समस्याओं का उपयोग केवल मूल्यांकन के उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए
  3. शब्द समस्याओं के माध्यम से जोड़ शुरू किया जाना चाहिए
  4. अध्याय के अंत में शब्द समस्याएं होनी चाहिए

Ans- विकल्प C

कक्षा 2 में पढ़ाने के लिए सबसे अच्छी विधि शब्द समस्याएं हैं क्योंकि छात्र जोड़ सीखने के वास्तविक दुनिया के निहितार्थों को बेहतर ढंग से समझेंगे।

( Mathematics Pedagogy: Teaching Methods )

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