CDP important facts of stages of child development part 2

बाल्यावस्था
(Childhood)
✨✨✨✨

Statement…..✍️

कॉल एवं ब्रुश के अनुसार………,✍️

“बाल्यावस्था को जीवन का अनोखा काल कहा जाता है।”

“वास्तव में माता- पिता के लिए बाल विकास की इस अवस्था को समझ पाना बहुत कठिन है।”

रॉस के अनुसार………,✍️

“बाल्यावस्था की मिथ्या परिपक्वता या छद्म में परिपक्वता कहा जाता है।”

स्ट्रेग के अनुसार……….,✍️

“शायद ही ऐसा कोई खेल हो जो 10 वर्ष का बालक ना खेला हो।”

किलपैट्रीक के अनुसार………,✍️

“बाल्यावस्था को प्रतिद्वंदात्मक समाजीकरण कहा है।”

जॉन सिंपसन के अनुसार………,✍️

“बाल्यावस्था वह अवस्था है जिसमें एक व्यक्ति के बुनियादी दृष्टिकोण, मूल्य आदि बहुत सीमा तक निर्धारित हो जाता है।”

बाल्यावस्था की विशेषताएं
✨✨✨✨✨✨✨✨

1. शारीरिक विकास में स्थिरता……. रॉस के अनुसार✍️

2. मानसिक विकास में स्थिरता……. रॉस के अनुसार✍️

3. मानसिक योग्यताएं में वृद्धि।

4. वास्तविक जगत से संबंध…… रॉस के अनुसार✍️

5. जिज्ञासा की प्रबलता।

6. रचनात्मक कार्य में आनंद।

7. समूह की भावना का विकास……. रॉस के अनुसार✍️

8. नैतिक गुणों का विकास……. स्ट्रेंग के अनुसार✍️

9. संग्रह करने की प्रवृत्ति।

10. बिना उद्देश्य घूमने की भावना।

11. काम शक्ति की न्यूनता।

12. रूची में परिवर्तन…… कॉल/ब्रुश के अनुसार

13. सामूहिक भावना का विकास।

14. बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास।

15. संवेग का प्रदर्शन।

Notes by Shreya Rai……✍️🙏

🔆बाल्यावस्था➖
(Childhood)

✨कॉल एवं ब्रुश के अनुसार.

“बाल्यावस्था को जीवन का अनोखा काल कहा जाता है।”

“वास्तव में माता- पिता के लिए बाल विकास की इस अवस्था को समझ पाना बहुत कठिन है।”

✨रॉस के अनुसार.

“बाल्यावस्था की मिथ्या परिपक्वता या छद्म में परिपक्वता कहा जाता है।”

✨स्ट्रेग के अनुसार.

“शायद ही ऐसा कोई खेल हो जो 10 वर्ष का बालक ना खेला हो।”

✨किलपैट्रीक के अनुसार.

“बाल्यावस्था को प्रतिद्वंदात्मक समाजीकरण कहा है।”

✨जॉन सिंपसन के अनुसार

“बाल्यावस्था वह अवस्था है जिसमें एक व्यक्ति के बुनियादी दृष्टिकोण, मूल्य आदि बहुत सीमा तक निर्धारित हो जाता है।”

❇️बाल्यावस्था की विशेषताएं

*1शारीरिक विकास में स्थिरता……. *रॉस के अनुसार

  1. मानसिक विकास में स्थिरता……. *रॉस के अनुसार

3 मानसिक योग्यताएं में वृद्धि।

4.वास्तविक जगत से संबंध…… *रॉस के अनुसार

5.जिज्ञासा की प्रबलता।

6 रचनात्मक कार्य में आनंद।

7 समूह की भावना का विकास..(रॉस के अनुसार)

8.नैतिक गुणों का विकास. (स्ट्रेंग के अनुसार)

  1. संग्रह करने की प्रवृत्ति।
  2. बिना उद्देश्य घूमने की भावना।

11काम शक्ति की न्यूनता।

  1. रूची में परिवर्तन…… कॉल/ब्रुश के अनुसार
  2. सामूहिक भावना का विकास।
  3. बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास।
  4. संवेग का प्रदर्शन।

✍️

Notes By Vaishali Mishra

CDP Methods to develop motivation

🔆अभिप्रेरणा को विकसित करने वाली विधियां
(Methods to develop motivation)➖

✨फ्रेंक्सन के अनुसार प्रभावी अधिगम प्रभावी अभिप्रेरणा पर निर्भर करता है।

▪️अर्थात जितनी अच्छी प्रेरणा होगी उतना ही बेहतर सीखना होगा।

▪️यह विधियां निम्नानुसार है।
📍1 पुरस्कार और दंड
📍2 प्रशंसा और निंदा
📍3 सफलता और असफलता
📍4 प्रतियोगिता और सहयोग
📍5 प्रगति का ज्ञान
📍6 आकांक्षा का स्तर
📍7 नवीनता
📍8 रुचि
📍9 आवश्यकता का ज्ञान
📍10 कक्षा का वातावरण

❇️1 पुरस्कार और दंड (rewards and punishment)➖

🔹इसके अनुसार अच्छे कार्यों के लिए छात्रों को पुरस्कार दिया जाना चाहिए और गलत कार्यों के लिए दंड दिया जाना चाहिए।

🔹पुरस्कार और दंड दोनों का ही प्रयोग उचित परिस्थिति या उचित समय, उचित तरीके अर्थात सीमित मात्रा या संतुलित रूप में देना चाहिए।

🔹शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों को अभिप्रेरित करने के लिए पुरस्कार एवं दंड प्रदान करना एक महत्वपूर्ण प्रविधि है छात्रों द्वारा सही एवम अच्छा कार्य किए जाने पर उन्हें किसी प्रकार का पुरस्कार प्रदान करना अथवा सम्मानजनक स्थिति प्रदान करने से प्रोत्साहन मिलता है तथा वह पुनः क्रियाशील होने के लिए प्रेरित होते हैं।

🔹इसके विपरीत छात्रों द्वारा गलत या अवांछनीय कार्य करने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है या किसी अन्य प्रकार का दंड दिया जाता है तू भी भविष्य में इस प्रकार का कोई भी गलत कार्य ना करने का मन बना लेते हैं , और इस प्रकार से भी सही कार्य के प्रति प्रेरित होते हैं।
पुरस्कार और दंड दोनों से ही छात्रों की अभिप्रेरणा को बढ़ाया जा सकता है

❇️2 प्रशंसा और निंदा (praise and censure)➖

🔹छात्र के अच्छे कार्यों के लिए प्रशंसा और बुरे कार्यों के लिए निंदा होनी चाहिए।

🔹विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करने में प्रशंसा अधिक प्रभावशाली होती है। प्रेरणा की यह सुदृढ़ता व्यक्तिगत विद्यार्थियों में भिन्न-भिन्न होती है। उचित अवसर पर ही प्रशंसा का प्रयोग करना चाहिए।

🔹अतः इस प्रविधि का प्रयोग आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार किया जाए तो इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा शिक्षार्थी की अभिप्रेरणा में वृद्धि होती है।

❇️3 सफलता और असफलता (success and failure)➖

🔹सफलता मिलने पर व्यक्ति आगे बढ़ता है तथा असफल होने पर व्यक्ति का मनोबल टूट जाता है।

🔹सफलता की प्राप्ति पुनर्बलन का कार्य करती है जिससे व्यक्ति अधिक उत्साह और आत्मविश्वास के साथ पुनः कार्य को करने में अभिप्रेरित होता है। सफलता सभी को अभिप्रेरणा प्रदान करती हैं तथा इससे व्यक्ति अपनी योग्यता और क्षमता का आकलन करके आगे के लिए लक्ष्य निर्धारित करता है।

🔹असफलता सफलता के विपरीत होती है किंतु यह यह भी अभिप्रेरक के रूप में कार्य करती है। कई छात्र असफलता को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं तथा अधिक परिश्रम और उत्साह के साथ सफलता को प्राप्त करने के लिए अभी प्रेरित होते हैं। इस प्रकार असफलता का भय भी अभी प्रेरक के रूप में कार्य करता है।

🔹हर प्राणी को सफलता असफलता दोनों ही जीवन में प्राप्त होती रहती है।

❇️4 प्रतियोगिता और सहयोग (competition and cooperation)➖

🔹प्रतियोगिता एक अच्छा प्रेरक है इस भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति अपने कार्यों के लिए मेहनत करता है।

🔹लेकिन जब भी अधिकता में दिया जाता है तो बच्चों में जलन की भावना भी आ जाती है।

🔹बिना सहयोग की भावना के मनुष्य का कार्य चलना सामाजिक जीवन में संभव नहीं है।

🔹मनुष्य में अपने आप को एक दूसरे से श्रेष्ठ दिखलाने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है इसीलिए कक्षा में छात्र अपने सहपाठी साथियों से अधिक अंक पाना चाहते हैं छात्रों की है भावनाओं से अधिक परिश्रम करने की अभी प्रेरणा प्रदान करती हैं अत: शिक्षक प्रतियोगिता के माध्यम से छात्रों को अधिक सीखने और अधिक परिश्रम करने के प्रति अभिप्रेरित कर सकते हैं।

🔹सामूहिक प्रतियोगिता में छात्रों में उचिया उच्चतम स्थान प्राप्त करने के साथ सहयोग की भावना भी जागृत होती है जिससे उन्हें मिलजुल कर कार्य करने का प्रोत्साहन मिलता है। तथा यह सामाजिक कौशल एवं लोकतांत्रिक भावना के विकास को भी प्रोत्साहन देता है।

❇️5 प्रगति का ज्ञान (knowledge of progress)➖

🔹प्रविधि का ज्ञान होने से व्यक्ति को निरंतर आगे बढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है।

🔹जैसे जब हम परीक्षाएं टेस्ट आदि में अच्छा करते हैं तो हमारे अंदर सकारात्मक सोच आने लगती है और हमारे तौर तरीका तथा किसी भी चीज को देखने का नजरिया सकारात्मक हो जाता है।

🔹छात्रों को अपनी प्रगति के बारे में जानकारी हो जाने पर उनकी कार्य की गति में तीव्रता और उसे करने के ढंग में दृढ़ता आ जाती है । तथा उनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।

🔹छात्रों को उनकी प्रगति के बारे में जानकारी प्रदान करने के कई तरीके हो सकते हैं।
जैसे शिक्षक द्वारा उनकी प्रगति की निरंतर जानकारी प्रदान करते रहना, कई तरह की मासिक परीक्षाओं का आयोजन, तथा उनके परिणामों से छात्रों को अवगत कराना, प्रदत्त कार्य जैसे असाइनमेंट के लिए ग्रेट प्रदान करना, अन्य शैक्षणिक क्रियाकलाप जैसे निबंध प्रतियोगिता, पहेली इत्यादि का परिणाम बता कर छात्रों को अभिप्रेरित किया जा सकता है।

❇️6 आकांक्षा का स्तर(level of aspiration)➖

🔹बार-बार सफलता मिलने से व्यक्ति के अंदर आकांक्षा का स्तर बढ़ जाता है।

🔹व्यक्ति अपने जीवन में कुछ निर्धारित लक्ष्यों को पाने की लालसा रखता है तथा उन तक पहुंचने के लिए विभिन्न उपाय और प्रयास करता है यह व्यक्ति की आकांक्षाएं होती है तथा उनका उच्चतर स्तर ही व्यक्ति का आकांक्षा स्तर कहलाता है व्यक्ति का आकांक्षा स्तर जितना उच्च होता है जीवन में वह उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त करता है। किंतु यह सफलता उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त होती है जो अपने लक्ष्य का निर्धारण वास्तविकता को देखते हुए करते हैं क्योंकि से प्राप्त करवाना व्यक्तियों की योग्यताओं क्षमता एवं वातावरण पर निर्भर करता है।

🔹आकांक्षा की प्रेरणा होने से व्यक्ति को सफलता की सीढ़ियां प्राप्त होने लगती है। इसी प्रकार शिक्षक भी छात्रों को अपना आकांक्षा स्तर ऊंचा बनाए रखने की प्रेरणा देता है तब भी अधिक क्रियाशील और प्रोत्साहित रहते हैं।

❇️7 नवीनता/ नयापन (novelty)➖
🔹यहां पर नवीनता से तात्पर्य ऐसे परिवर्तन या विविधता से है जिसका संबंध व्यक्ति के जीवन से होता है ।

🔹एक शिक्षक का कर्तव्य होता है कि वह बच्चों के अधिगम प्रक्रिया के प्रति रुचि को कम ना होने दें।

🔹जिसके लिए शिक्षक को नई शिक्षण विधियों एवं सहायक सामग्रियों , पाठ्यवस्तु शैक्षिक तकनीकों आदि का प्रयोग करना चाहिए।

🔹नवीनता व्यक्ति की इच्छाओं जिज्ञासाओ एवं अन्य आवश्यकताओं की संतुष्टि में सहायक होती हैं।

🔹किसी विषय की नवीन तथ्यों का उद्घाटन कर शिक्षक विद्यार्थियों में विषय के प्रति उत्सुकता और रूचि उत्पन्न कर सकता है । किसी भी कार्य में नवीनता का संचार होने से रुचि के भाव जागृत होते रहते हैं।

🔹क्योंकि जब भी हम किसी कार्य को करते हैं यदि उसे एक ही तरीके से करते हैं तो उस कार्य में हमारी रुचि नहीं रहती तथा उस कार्य को करने में ना ही हमें आनंद आता है और हम उस काम से ऊब जाते हैं

❇️8 रुचि (interest)➖

🔹रुचि से बढ़कर कुछ नहीं होता इसके अभाव में शिक्षक के सभी प्रयास विफल हैं।

🔹रुचि रही तो किसी भी चीज को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात आपको सफलता दिलाने में साथ लग जाती है।

🔹विद्यार्थी जिस कार्य में अधिक रुचि लेता है, उसमें उसकी अधिक अभिप्रेरणा होगी और अभिप्रेरणा से वह कार्य शीघ्र एवं भली-भांति सीखा जा सकेगा। अतः शिक्षक को विद्यार्थियों की रुचियों को पहचान कर तद्नुरूप शिक्षण कार्य करना चाहिए।

❇️9 आवश्यकता का ज्ञान(knowledge of need) ➖

🔹प्रत्येक छात्र की कुछ आवश्यकताएं है।
🔹तथा कुछ मूल्य व आदर्श होते हैं।

🔹शिक्षक छात्रों की इन आवश्यकता तथा कुछ मूल्यों व आदर्शों को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य करता है तो बच्चे पूर्ण रूप से अभी प्रेरित रहते है।

जो दृष्टिकोण अभिक्षमता उद्दीपन का कार्य करता है।

❇️10 कक्षा कक्ष का वातावरण(environment of classroom)➖

🔹एक अभी प्रेरक होता है व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।

🔹जब कक्षा का वातावरण बच्चों के लिए सहज होता है तो वह पूर्ण रूप से अभिप्रेरित रहते हैं।

🔹कक्षा का वातावरण शिक्षण के व्यवहार से तथा उस वातावरण में प्रेरणा और आनंद महसूस होना जरूरी है।

🔹कक्षा में बाह्य एवं आन्तरिक अभिप्रेरणा दोनों ही आवश्यक होती हैं। वाहय प्रेरणा का सम्बन्ध विद्यार्थियों के बाहय वातावरण से होता है, जबकि आन्तरिक प्रेरणा का सम्बन्ध उनकी रुचियों, अभिरुचियों, दृष्टिकोण और बुद्धि आदि से होता है।

✍️ Notes By Vaishali Mishra

Date-11/05/2021
Batch-SuperTet
Topic-Methods to develop Motivation

🐣फ्रेंडसन के अनुसार÷ प्रभावी अधिगम प्रभावी प्रेरणा पर निर्भर करता है।
अर्थात जितनी अच्छी प्रेरणा होती है उतना ही बेहतर सीखना होता है।

👀पुरस्कार एवं दंड👀
इसके अनुसार छात्रों को उनके अच्छे कार्य के लिए पुरस्कार दिया जाना चाहिए और गलत कार्यों के लिए दंड दिया जाना चाहिए;
पुरस्कार के द्वारा छात्रों में उत्साह बढ़ता है किंतु पुरस्कार उचित समय में उचित प्रकार से दिया जाए तभी वह प्रभावित होता है अन्यथा महत्वहीन हो जाता है,
इसी प्रकार दंड भी छात्रों में गलत कार्य को करने से रोकने के लिए एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा उन्हें उचित उचित मार्ग वाह सही प्रतिक्रिया करवा सकते हैं किंतु दंड का भी अपना एक उचित समय होता है अन्यथा वह भी महत्वहीन हो जाता है।
किसी एक छात्र को दंड व पुरस्कार प्रदान करने से वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित होते हैं वह गलत कार्य को करने से बचते हैं और वह अपने भावी जीवन में गलत कार्यों को करने से बचते हैं।

पुरस्कार एवं दंड के द्वारा बालक के भावी जीवन की नींव तैयार की जा सकती है अर्थात इसके द्वारा एक बेहतर वालों को और उच्च स्तर पर ले जाया जा सकता है वही अपराधी बालक व समस्यात्मक बालक को सही मार्ग पर लाया जा सकता है उनके जीवन को भी उच्च स्तर पर ले जाया जा सकता है।

👀प्रशंसा एवं निंदा👀
छात्र के अच्छे कार्य के लिए उसकी प्रशंसा होनी चाहिए और बुरे कार्य के लिए निंदा होनी चाहिए किंतु बालक की अत्यधिक प्रशंसा व अत्यधिक निंदा करने से वह भ्रमित और कुंठित हो सकता है जो बालक के अधिगम में बाधा उत्पन्न कर सकता है,वा बालक स्वयं को समाज से पृथक करने की कोशिश करने लगता है,अत:एक शिक्षक को प्रशंसा वा निंदा दोनों का प्रयोग उचित रूप से किया जाना चाहिए।

👀सफलता और असफलता👀
सफलता मिलने का मनोबल बढ़ता है और व्यक्ति आगे बढ़ता है, सफलता प्राप्त होने पर व्यक्ति का मनोबल टूट जाता है वहां से उत्साहित हो जाते हैं वह मनोबल टूट जाता है।
किंतु व्यक्तिगत सफलता से भी सकता है यदि उसे उसके कार्य को बेहतर करने के लिए अभिप्रेरित करें।

👀प्रतियोगिता एवं सहयोग👀
प्रतियोगिता एक अच्छा बेहतर प्रेरक है इस भावना से प्रेरित होकर बालक अपने कार्य को बेहतर करने के लिए मेहनत करता है किंतु कई बार प्रतियोगिता से बालकों में आपस में एक दूसरे के लिए जलन वा गलत भावना आ जाती है किंतु यदि स्वस्थ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए तो इससे बालक आपस में एक दूसरे से सीखते है वा अधिगम रुचिकर हो जाता है।

👀सहयोग👀
सहयोग की भावना को जाग्रत करना परम आवश्यक है इसके द्वारा एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहता है,वा एक साथ अनेक क्रिया कलापों में सहभागी होता है।

👀प्रगति का ज्ञान👀
बालक को उसकी प्रगति का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा बालक को आगे बढ़ने में निरंतर प्रोत्साहन मिलता रहता है क्योंकि इसके द्वारा एक व्यक्ति को यह ज्ञात होता है कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में जिस प्रकार से मेहनत कर रहा है उसके फल स्वरुप वह किस स्तर पर पहुंच रहा है अर्थात उसके अंदर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लगन आ जाती है वा उसको सकारात्मक पुनर्बलन मिलता है।

👀आकांक्षा का स्तर👀
विद्यार्थी को बारंबार सफलता मिलने से उसके अंदर आकांक्षा का स्तर बढ़ जाता है आत्मविश्वास की भावना बेहतर ढंग से जाग्रत हो जाती है जिसके द्वारा अन्य किसी भी कार्य को करने के लिए रहता है ईमानदारी, लगन रुचि और मेहनत वा सक्रियता के साथ कार्य को करता है।

👀नवीनता👀
एक शिक्षक का परम कर्तव्य है कि वह बच्चों के अधिगम प्रक्रिया के प्रति रुचि कम ना होने दें, बच्चों को यदि शिक्षक को बेहतर अधिगम कराना है तो उन्हें प्रत्येक बाल नए-नए तरीकों नई-नई शिक्षण विधियां नये विचारों एवं सहायक सामग्री का प्रयोग करते रहना चाहिए जिसके द्वारा कुछ बालक में उसके प्रति रुचि जाग्रत हो जाती है और वह विषय उसके लिए बोझिल, नीरस ना होकर रुचि पूर्ण हो जाता है।

👀रुचि👀
बालक के अधिगम को सफल बनाने के लिए एक विषय वस्तु बालक की रूचि का होना आवश्यक है क्योंकि रुचि से बढ़कर कुछ नहीं है, किसके अभाव में शिक्षक के द्वारा उस विषय वस्तु को प्रस्तुत करने के लिए गए प्रत्येक प्रयास विफल हो जाएंगे।

👀आवश्यकता👀
आवश्यता का ज्ञान प्रत्येक छात्र की अपनी आवश्यकता होती है उनका मूल होता आदर्श होते हैं, स्वयं का दृष्टिकोण होता है अभिक्षमता होती है तो यह सभी मिलकर प्रोत्साहन को बढ़ाने का कार्य करते हैं।
अर्थात आवश्यकता एक महत्वपूर्ण मनोभाव है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए अभिप्रेरित होता है।

👀कक्षा का वातावरण👀
कक्षा का वातावरण अच्छा अभिप्रेरक होता है, कक्षा का वातावरण बालक के सीखने पर वा अधिगम पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है क्योंकि एक अच्छे वातावरण में एक बेहतर और सुगम अधिगम कराया जा सकता है और वास्तविक एवं सफल भी होता है।

written by Shikhar Pandey 🐦

Method to develop motivation
✨✨✨✨✨✨✨✨✨

फ्रेंडसन के अनुसार,

प्रभावी अधिगम, प्रभावी प्रेरणा पर निर्भर करते हैं। अर्थात्
जितनी अच्छी प्रेरणा होगी उतना ही बेहतर सीखना होगा।

1. पुरस्कार और दंड
✨✨✨✨✨✨

इसके अनुसार अच्छे कार्यों के लिए छात्रों को पुरस्कार दिया जाना चाहिए तथा गलत कार्यों के लिए दंड। पुरस्कार और दंड दोनों ही प्रेरणा के स्रोत हैं।
जब बच्चों के अच्छे कार्यों पर उनको पुरस्कार दिया जाता है तो वह ज्यादा उत्साहित होते हैं और उस कार्य को और अच्छे से करते हैं। वही यदि गलती करते हैं तो उन्हें दंड भी देना चाहिए जिससे वह भविष्य में उस गलती को दोबारा ना दोहराए और उसको सुधारे। दंड एक सकारात्मक प्रेरणा होती है इससे विद्यार्थियों का हित होता है।

2. प्रशंसा और निंदा
✨✨✨✨✨✨

छात्र के अच्छे कार्यों के लिए प्रशंसा होनी चाहिए और बुरे कार्यों के लिए निंदा होनी चाहिए। विद्यार्थियों को प्रेरित करने में प्रशंसा अधिक प्रभावशाली होती है शिक्षक को चाहिए कि उचित अवसर पर ही प्रशंसा का प्रयोग करें।और यदि बच्चा कोई गलत कार्य कर रहा है तो उसकी निंदा भी करनी चाहिए।

3. सफलता और असफलता
✨✨✨✨✨✨✨✨

सफलता मिलने पर व्यक्ति आगे बढ़ता है और असफल होने पर मनोबल टूट जाता है। हर प्राणी में सफलता और असफलता दोनों जीवन में प्राप्त होते हैं। शिक्षक को चाहिए कि समस्त कक्षा के लिए सफलता के लक्ष्य निर्धारित करें जिन की प्राप्ति सुगमता से हो सके। यदि छात्रों का लक्ष्य लाभप्रद है तो वह सफलता प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होता है और यदि असफलता की प्राप्ति होगी तो उसका मनोबल टूट जाता है। परंतु कई बार बच्चा अपनी असफलता से भी सीखता है अपनी भूल को सुधार कर, अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।

4. प्रतियोगिता एवं सहयोग
✨✨✨✨✨✨✨✨

प्रतियोगिता एक अच्छा प्रेरक है। इस भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति अपने कार्य को मेहनत से करता है। बिना सहयोग की भावना के मनुष्य का कार्य चलना सामाजिक जीवन में संभव नहीं है। बच्चों के सीखने के लिए शिक्षक प्रतियोगिता एवं सहयोग की मदद लेते हैं लेकिन शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रतियोगिता सकारात्मक हो और बच्चे एक दूसरे से सहयोग की भावना रखें ना की जलन की।

5. प्रगति का ज्ञान
✨✨✨✨✨

प्रगति का ज्ञान होने से व्यक्ति को आगे बढ़ने में निरंतर प्रोत्साहन मिलता है। बच्चों ने कितना सीखा है और कितना सीखना बाकि है उसका ज्ञान उसको होना चाहिए जिससे वह निरंतर मेहनत करके आगे बढ़ने की कोशिश करेगा।

6. आकांक्षा का स्तर
✨✨✨✨✨✨

बार-बार सफलता मिलने पर व्यक्ति की आकांक्षा का स्तर बढ़ जाता है।

7. नवीनता
✨✨✨

एक शिक्षक का कर्तव्य होता है कि वह बच्चों की अधिगम प्रक्रिया के प्रति रुचि को कम ना होने दें। नई शिक्षण विधियों एवं सहायक सामग्रियों का प्रयोग कर शिक्षक बच्चों में अधिगम के लिए रुचि विकसित कर सकता है।

8. रुचि
✨✨

रुचि से बढ़कर कुछ नहीं है। इसके अभाव में शिक्षक के सारे प्रयास विफल है और यदि रुचि है तो बच्चा सीखने के लिए उत्सुक रहता है। विद्यार्थी जिस कार्य में अधिक रुचि लेता है उसमें उसकी अधिक अभिप्रेरणा होगी और उस कार्य को शीघ्र एवं भली- भांति सिख सकेगा। शिक्षक को विद्यार्थियों की रुचियों को पहचान कर उसके अनुसार ही शिक्षण कार्य करना चाहिए।

9. आवश्यकता का ज्ञान
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प्रत्येक छात्र की कुछ आवश्यकता होती है। उनके कुछ मूल आदर्श होते हैं। प्रत्येक बच्चे का अपना दृष्टिकोण होता है। अभिप्रेरणा उद्दीपन का कार्य करता है। बिना आवश्यकता के बच्चे / व्यक्ति किसी भी विषय में ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।
जैसे- भूख लगी तो भोजन को प्राप्त करने के लिए प्रयास करेंगे। यहां भूख, भोजन की आवश्यकता का ज्ञान है।

10. कक्षा का वातावरण
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कक्षा का वातावरण अच्छा अभिप्रेरक होता है। यह व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। शिक्षक के व्यवहार से प्रेरणा और आनंद महसूस होना जरूरी है।

कक्षा में बाह्य एवं आंतरिक अभिप्रेरणा दोनों ही आवश्यक होती है बाह्य अभिप्रेरणा का संबंध विद्यार्थियों के बाह्य वातावरण से होता है जबकि आंतरिक प्रेरणा का संबंध उनकी रूचि, अभिरुचि, दृष्टिकोण और बुद्धि आदि से होता है यह प्राकृतिक अभिप्रेरणा होती है। इसके लिए शिक्षण विधि की आवश्यकता का ज्ञान, आत्म प्रदर्शन का अवसर, योग्यता अनुसार देना चाहिए।

Notes by Shreya Rai…….✍️🙏

CDP Law of Spearman on Thinking

🔆चिंतन के विषय में स्पीयर मैन के नियम ➖

📍चिंतन जटिल मानसिक प्रक्रिया है।
📍चिंतन जटिल के साथ नियमित है।
📍ऐसी व्याख्या करने के लिए स्पीरमैन ने कुछ नियम प्रतिपादित किए

✨स्पीयर मैन के अनुसार➖
☄️1 संबंधों का पृथक्करण(separation of relationship)
☄️2 सह संबंधों का प्रथक्करण (separation of correlation)

🌀1 संबंधों का पृथक्करण➖

🔹चिंतन का प्रथम नियम है।
🔹चिंतन की प्रक्रिया में जब हम चिंतन करते हैं तो हमारे सामने अनेक वस्तु उपस्थित होते हैं तब हम उस वस्तु से कुछ संबंध जरूर स्थापित कर देते हैं इसे ही वास्तविक संबंध माना गया है।

🔹हम जिस चीज को अपनी नजरिया या दृष्टिकोण से देखते हैं वही हमारा उस वस्तु के साथ वास्तविक संबंध है और यही वस्तुओं के साथ स्थापित उचित संबंध है।

🔹स्पीयर मैन के अनुसार इन वास्तविक संबंध पर निम्नलिखित संबंधों का विशेष प्रभाव पड़ता है।
📍1 गुण
📍2 कालगत संबंध
📍3 स्थान गत संबंध
📍4 कार्य कारण संबंध
📍5 वस्तुगत संबंध
📍6 निर्माणात्मक संबंध
📍7 अन्य संबंध

❇️1 गुण (quality)➖

प्रत्येक वस्तु का अपना गुण होता है उस गुण के साथ उस वस्तु का विशिष्ट संबंध होता है।

जैसे रसगुल्ला का वास्तविक संबंध मीठा से है।
आइसक्रीम का संबंध ठंडा होने से।

⚜️2 कालगत संबंध (time relationship)➖

कुछ वस्तु या तथ्यों के बीच कालगत मतलब समय का संबंध होता है।
जैसे हमारी क्लास 8am पर होती है तो उस समय से हमारा संबंध है।
इस प्रकार कई कार्य ऐसे होते हैं जो हम अपने नियमित समय पर करते हैं तथा उस समय के साथ हमारा संबंध स्थापित हो जाता है।

⚜️3 स्थानगत संबंध (local relationship)➖
वस्तुओं के स्थानगत संबंध उन वस्तुओं के स्थान के संबंध के वजह से एक निश्चित चिंतन में शामिल होते हैं।

जैसे फूलो के बारे में बात करने से उसके स्थान अर्थात बगीचे का होना।
दवाइयों का मेडिकल स्टोर पर मिलना
मिठाइयों का हलवाई की दुकान पर मिलना

⚜️4 कार्य कारण संबंध (work casual relationship)➖

वस्तु और तथ्यों के बीच एक कार्य होता है तो दूसरा कारण।
जैसे भूख के लिए भोजन खाते हैं।
अर्थात भोजन खाना कार्य और भूख एक कारण है

⚜️5 वस्तुगत संबंध (object relationship)➖

दो या दो से अधिक वस्तु के बीच का आपसी संबंध वस्तुगत संबंध कहलाता है।
जैसे : ताले का उसकी चाबी के साथ संबंध
⚜️6 निर्माणात्मक संबंध (formative relationship)➖

कुछ वस्तुएं किसी अन्य सामग्री में बनी होती हैं इन वस्तुओं का संबंध सामग्री से है।
जो संबंध होता है उसे निर्माणात्मक संबंध कहते हैं।

जैसे मकान बनाने के लिए सीमेंट और पत्थर का होना ।
अर्थात मकान का संबंध सीमेंट, पत्थर से हैं।
लकड़ी की टेबल का संबंध लकड़ी से।

⚜️7 अन्य संबंध (other relationship)➖

कुछ मानसिक संबंध भी होते हैं
जिसे विचारात्मक संबंध भी कहते हैं।

विचारात्मक के आधार पर किसी वस्तु से निम्न संबंध होते हैं।
1 समानता का संबंध
2 समीपता का संबंध
3 नियोजन का संबंध

कई चीजों के प्रति संबंध इस प्रकार होते हैं कि हम उसे मानसिक रूप से संबंध स्थापित कर लेते हैं अर्थात उस वस्तु के बारे में जब बात की जाती है तो उसे हम अपने मानसिक रूप से किसी भी समानता के साथ जोड़कर या उसके समीप होकर उसका उसी प्रकार से नियोजन करते हैं।

🌀2 सह संबंधों का पृथक्करण (separation of correlation)

🔹कभी-कभी तथ्यों को संबंधों के संकेत के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है इस स्थिति में संबंधों का प्रथक्करण हो जाता है।

❇️चिंतन के सिद्धांत➖
मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

📍1 केंद्रिय सिद्धांत (Central theory)
📍2 पेशीय सिद्धांत (muscles theory)

🌺1 केंद्रीय सिद्धांत➖

🔸यह मुख्यत: मानसिक क्रिया पर आधारित होता है।
🔸यह सिद्धांत मानता है कि चिंतन प्रक्रिया मस्तिष्क पर निर्भर करती है मस्तिष्क के केंद्र में जब तक चिंतन के आधार पर जटिल समस्या का निवारण करते हैं तब हम यह कह सकते हैं कि चिंतन के लिए मस्तिष्क की क्रियाएं बहुत आवश्यक होती हैं।

🌺2 पेशीय सिद्धांत➖

🔸यह मुख्यतः शारीरिक क्रियाओं पर आधारित होता है।
🔸चिंतन के समय शारीरिक क्रियाएं भी होती हैं व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक ने कहा है कि चिंतन हमारी मौन वाणी है चिंतन के समय स्वर यंत्र के साथ अन्य शारीरिक क्रियाएं भी होती हैं।

✍️ Notes By Vaishali Mishra

चिंतन के विषय में स्पीयर मैन के नियम

Law of spearman for thinking

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

चिंतन जटिल मानसिक प्रक्रिया है।
यह जटिल के साथ-साथ नियमित है। चिंतन की जटिल प्रक्रिया में विश्लेषण और संश्लेषण और इस प्रकार पृथक्करण और संगठन ये दोनों प्रक्रिया सम्मिलित है। संश्लेषण आत्मक दृष्टि से ज्ञान का संगठन होता है जिसका आधार स्मृति एवं कल्पनाएं हैं। तथा विश्लेषणात्मक दृष्टि से कल्पनाओं का आधार पृथक्करण है। इसे व्याख्या करने के लिए स्पीयरमैन कुछ नियम प्रतिपादित किए।

  1. संबंधों का पृथक्करण (spearman of relationship)
  2. सह – संबंधों का पृथक्करण(spearman of relationship)

1. संबंधों का पृथक्करण
(Spearman of relationship)

यह चिंतन का प्रथम नियम है। यह चिंतन बताता है कि चिंतन की प्रक्रिया में जब हमारे सामने अनेक वस्तु उपस्थित होता है तो हम उसमें कुछ संबंध जरूर स्थापित कर लेते हैं। इन संबंधों का आधार आकार, दूरी, व निकटता आदि होता है।
इसे ही वास्तविक संबंध माना गया है।

spearman के अनुसार वास्तविक संबंध पर निम्नलिखित का विशेष प्रभाव पड़ता है…..

1. गुण (quality)
✨✨✨✨✨

प्रत्येक वस्तु का अपना गुण होता है और उस गुण के साथ उस वस्तु का विशिष्ट संबंध होता है। जैसे- रसगुल्ला मीठा होता है मीठापन रसगुल्ले का विशेष गुण है इसी प्रकार नींबू खट्टा होता है खट्टापन नींबू का विशेष गुण है जिसको किसी भी दशा में पृथक्करण नहीं किया जा सकता।

2. कालगत संबंध (time relationship)

कालगत संबंध वस्तुओं के बीच समय का वास्तविक संबंध है।
उदाहरण-
यदि हमें ट्रेन से सफर करना है तो उस ट्रेन का प्लेटफार्म पर आने का एक निश्चित समय होता है। यदि ट्रेन का समय 9:40 है तो ट्रेन 9:40 पर ही प्रतिदिन आएगी और हमें 9:40 पर प्लेटफार्म पर उपस्थित रहना होगा।

3. स्थानगत संबंध (local relationship)

वस्तुओं के स्थानगत संबंध उन वस्तुओं के स्थान के संबंध के वजह से एक निश्चित चिंतन में शामिल होते हैं।
उदाहरणार्थ-
ताला और चाबी। ताला और चाबी दोनों वस्तुओं का संबंध विशेष होता है।

4. कार्य कारण संबंध (work causal relationship)

वस्तुओं और तथ्यों के बीच एक कार्य होता है तो दूसरा कारण होता है। प्रत्येक क्रिया किसी ना किसी कारणवश होती है। यदि वर्षा हो रही है तो आसमान में बादल अवश्य होगा। जिसमें बादल वर्षा का कारण है।इसी प्रकार किसी घटना का उसके कारण विशेष से वास्तविक संबंध कार्य कारण संबंध कहलाता है।

5. निर्माणात्मक संबंध (formative relationship)

कुछ वस्तुएं किसी अन्य सामग्री से बनी होती है इन वस्तुओं का संबंधित सामग्री से जो संबंध होता है उसे निर्माणात्मक संबंध कहते हैं। इस प्रकार निर्माणक एवं निर्मित वस्तु के मध्य एक अभिन्न तथा वास्तविक संबंध पाया जाता है। जैसे कुर्सी का लकड़ी से, घड़े का मिट्टी से वास्तविक संबंध।

अन्य संबंध (other relationship)

कुछ मानसिक संबंध भी होते हैं। इसे विचारात्मक संबंध भी कहते हैं। इनके निम्नलिखित आधार हो सकते हैं….

1.समानता का संबंध

इसके अंतर्गत विभिन्न वस्तुओं में गुणों की समानता के आधार पर चिंतन का जन्म होता है।

2.समीपता का संबंध

वस्तुओं के समीप रहने पर उसमें संबंध बोध होता है। जैसे- चांद व तारे।

3. नियोजनात्मक संबंध

कुछ संबंध नियोजन के आधार पर होते हैं। जैसे भाई और बहन के मध्य नियोजनात्मक संबंध है।

2. सह- संबंधों का पृथक्करण
(Spearman off co- relationship)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

कभी-कभी तथ्यों को संबंधों के संकेत के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है इस स्थिति में संबंधों का पृथक्करण हो जाता है। जैसे-
मूली का रंग सफेद और गाजर का..?
उत्तर- लाल

चिंतन के सिद्धांत (theory of thinking)

  1. केंद्रीय सिद्धांत(Central principal)
  2. पेशीय सिद्धांत(muscles principal)

1. केंद्रीय सिद्धांत

चिंतन के क्षेत्र में केंद्रीय सिद्धांत सबसे पहला सिद्धांत है जिसका जन्म संरचनावाद तथा विकास गेस्टाल्टवाद से हुआ है। यह सिद्धांत मानता है कि चिंतन प्रक्रिया मस्तिष्क पर निर्भर करती है मस्तिष्क के केंद्र जब चिंतन के आधार पर जटिल समस्या का समाधान करते हैं तब यह कह सकते हैं कि चिंतन के लिए मस्तिष्क की क्रियाएं बहुत आवश्यक है।

2. पेशीय सिद्धांत

चिंतन में केवल मस्तिष्क ही नहीं बल्कि परिधीय संरचना की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिधीय सिद्धांत में पेशीय क्रियाओं को प्रमुखता दी गई है। चिंतन के समय एक और स्वर यंत्र की क्रिया पर बल दिया जाता है तो दूसरी ओर अन्य शारीरिक क्रिया पर भी।

वाटसन के अनुसार, “चिंतन हमारी मौन वाणी है।”

Notes by Shreya Rai…..✍️🙏

Important facts of stages of child development part 1

💨🐥Date-8/05/2021🐥
💨🐥Batch-UPTET🐥
💨🐥Time 9:00@m🐥
🎉Topic-Different stages of Child Development🎉

🎊बाल विकास के विभिन्न चरण🎊
🎉(Different stages of Child Development)🎉
🌟शैशवावस्था(Infancy)

✨बाल्यावस्था(Childhood)

🔥किशोरावस्था(Adolescence)

🌟शैशवावस्था (Infancy)
☃️शैशवावस्था का अवस्था है जो जन्म के पश्चात प्रारंभ हो जाती है अर्थात बालक जब मां के गर्भ से बाहरी वातावरण में आ जाता है।
(After the birth of baby, Infancy stage started and it’s baby called infant.)

☃️शैशवावस्था को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था बताई गई है।
(Infancy is the Basic and important stage of Child in their own life because in this stage if u more over control or instruct child So it’s good for their own life future.)
☃️शैशवावस्था महत्वपूर्ण अवस्था इसलिए बताई गई है, क्योंकि इस काल में शिशु का जितना अधिक निर्देशक और नियंत्रण किया जाता है, बच्चे के भावी जीवन की सफलता इसी पर निर्भर करती है।

☃️अर्थात बच्चों में हम जिस प्रकार के गुणों का विकास करेंगे बच्चा उसी के अनुरूप समाज में अंत:क्रिया करेगा।

🐦क्रो एवं क्रो के अनुसार 🐦
☃️उन्होंने कहा कि बीसवीं शताब्दी बालक की शताब्दी है, क्योंकि इस शताब्दी में बालक के विकास को लेकर विस्तृत और गहन अनुसंधान किए गए हैं और यह निष्कर्ष निकाला गया कि शैशवावस्था जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था है।

🐣वैलेंटाइन के अनुसार🐣
☃️शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है।

🐤थार्नडाइक के अनुसार🐤
☃️3 से 6 वर्ष की आयु का बालक प्राय अर्द्ध स्वप्नों की अवस्था में रहता है।

🐦फ्राइड के अनुसार 🐦
☃️व्यक्ति को अपने भावी जीवन में जो कुछ भी बनना होता है वह 4 से 5 वर्ष की अवस्था में बन जाता हैं।

🐥वाटसन के अनुसार🐥
☃️शैशवावस्था में सीखने की गति और विकास की सीमा अवस्था से अधिक होती है।

🐣गैसल के अनुसार🐣
प्रथम 6 वर्ष में, बालक, बाद के 12 वर्ष का दुगना सीख जाता है।

🐦गुड एंड एन एफ के अनुसार🐦
☃️व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है उसका आधार 3 वर्ष की आयु तक हो जाता है।
अर्थात मानसिक विकास का आधार (नींव) 3 वर्ष की उम्र तक तैयार हो जाती है।

✨शैशवावस्था की विशेषताएं निम्नलिखित हैं✨
🔥(Characteristics of Infancy)🔥
👀शैशवावस्था में शारीरिक विकास में तीव्रता होती है।

👀शैशवावस्था में मानसिक विकास में भी तीव्रता होती है।

👀शैशवावस्था को”सीखने का आदर्श काल”कहा जाता है।

👀शैशवावस्था में सीखने की प्रक्रिया में भी तीव्रता होती है।

👀शैशवास्था में बालक की कल्पनाओ में सजीवता होती है, अर्थात व निर्जीव वस्तु को भी सजीव मानकर उसके साथ सजीव जैसा व्यवहार करता है।

👀शैशवावस्था में बालक दूसरों पर निर्भर रहता है।

👀शैशवावस्था को आत्म प्रेम वा स्वमोह की अवस्था की कहते हैं।

👀शैशवावस्था में नैतिक गुणों का अभाव होता है।

👀शैशवावस्था मूल प्रवृत्ति पर आधारित होती है।

👀शैशवावस्था में शिशु काम शक्ति का प्रदर्शन करता है (जैसे÷हाथ या पैर का अंगूठा चूसना, स्तनपान करना इत्यादि)

👀शैशवास्था में सीखने की प्रक्रिया अनुकरण द्वारा होती है।

👀शैशवास्था में जिज्ञासा की प्रवृत्ति होती है।

👀शैशवावस्था में दोहराने की प्रवृत्ति होती है।

👀शैशवावस्था में बालक अंतर्मुखी व्यक्तित्व का होता है।

👀शैशवावस्था में शिशु संवेगो का प्रदर्शन करता है। ✨ बाल्यावस्था✨ ✨ Childhood✨

👀बाल्यावस्था में विकास की गति थोड़ी धीमी हो जाती है और यह गति धीमी होना आवश्यक भी है क्योंकि मंद गति के कारण विकास में मजबूती आती है।

👀इस अवस्था को समूह प्रियता की अवस्था भी कहते हैं।

🎉🎉written by Shikhar Pandey 🐦🙏

🔆 बाल विकास की प्रमुख अवस्थाएं➖

📍 शैशवावस्था( Infancy)
📍 बाल्यावस्था( Childhood)
📍 किशोरावस्था (Adolescence)

❇️शैशवावस्था➖

⚜️ शैशवावस्था विकास क्रम की महत्वपूर्ण अवस्था है यह अवस्था शिशु जन्म के बाद प्रारंभ होती है।

⚜️ क्योंकि इस काल में शिशु का जितना ज्यादा निर्देशक और नियंत्रण किया जाता है बच्चों के भावी जीवन की सफलता उसी पर निर्भर करती है।

✨ क्रो एंड क्रो के अनुसार➖ बीसवीं शताब्दी बालक की शताब्दी है क्योंकि इस शताब्दी में बालक के विकास को लेकर व्यवस्थित और गहन संशोधन किए गए हैं निष्कर्ष निकला कि शैशवावस्था जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था है।

✨ वैलेंटाइन के अनुसार➖ शैशवावस्था अवस्था सीखने का आदर्श काल है।

✨ थार्नडाइक के अनुसार➖ 3 से 6 वर्ष की आयु का बालक अर्द्ध स्वपनावस्था अवस्था में रहता है।

✨ फ्राइड के अनुसार➖ व्यक्ति को जो कुछ भी बना होता है 4 से 5 वर्षों में बन जाता है।

✨ वाटसन के अनुसार➖ शैशवावस्था में सीखने की गति और विकास की सीमा अन्य अवस्थाओं से अधिक होती है।

✨ गैसल के अनुसार ➖प्रथम 6 वर्ष बालक के बाद के 12 वर्षों का दुगना सीख जाता है।

✨ गुड एन एफ के अनुसार➖ व्यक्ति का जितना मानसिक विकास होता है उसका आधार 3 वर्ष की आयु तक हो जाता है।

🌀शैशवावस्था की विशेषताएं➖

⚜️शैशवावस्था में शिशु का शारीरिक विकास तीव्रता होती है

⚜️शैशवास्था मैं शिशु का मानसिक विकास तीव्रता से होता है।

⚜️शैशवास्था को सीखने का आधार काल कहते हैं।

⚜️शैशवास्था मैं सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता आती है।

⚜️ शैशवावस्था में कल्पना में सजीवता होती है।

⚜️शैशवावस्था में शिशु दूसरों पर निर्भर रहता है।

⚜️शैशवावस्था मैं शिशु के अंदर आत्म प्रेम / स्वमोह की भावना होती है ।

⚜️शैशवास्था शिशु के अंदर नैतिक गुणों का अभाव होता है।
⚜️ शैशवास्था मैं शिशु अपने मूल प्रवृत्ति के आधार पर व्यवहार करता है।

⚜️शैशवावस्था शिशुओं के अंदर काम शक्ति का प्रदर्शन होता है।

⚜️शैशवावस्था मैं शिशु जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है।

⚜️शैशवावस्था मैं शिशु के अंदर दोहराने की प्रवृत्ति होती है।

⚜️शैशवावस्था मैं शिशु संवेगों का प्रदर्शन करता है।

❇️बाल्यावस्था➖

⚜️बाल्यावस्था में विकास की गति थोड़ी धीमी हो जाती है धीमी होना आवश्यक है क्योंकि मंद गति के कारण उसके विकास में मजबूती आती है।

⚜️ बाल्यावस्था को गैंग Age भी बोला जाता है।

✍🏻
Notes By”Vaishali Mishra”

🌼☘️ बाल विकास की प्रमुख अवस्थाएं☘️🌼

💫 शैशवावस्था( Infancy)
💫 बाल्यावस्था( Childhood)
💫 किशोरावस्था (Adolescence)

💫 शैशवावस्था➖

🔸 शैशवावस्था विकास क्रम की महत्वपूर्ण अवस्था है यह अवस्था शिशु जन्म के बाद प्रारंभ होती है।

🔸 क्योंकि इस काल में शिशु का जितना ज्यादा निर्देशक और नियंत्रण किया जाता है बच्चों के भावी जीवन की सफलता उसी पर निर्भर करती है।

☘️ क्रो एंड क्रो के अनुसार➖ बीसवीं शताब्दी बालक की शताब्दी है क्योंकि इस शताब्दी में बालक के विकास को लेकर व्यवस्थित और गहन संशोधन किए गए हैं निष्कर्ष निकला कि शैशवावस्था जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था है।

🌼 वैलेंटाइन के अनुसार➖ शैशवावस्था अवस्था सीखने का आदर्श काल है।

☘️ थार्नडाइक के अनुसार➖ 3 से 6 वर्ष की आयु का बालक अर्द्ध स्वपनावस्था अवस्था में रहता है।

🌼 फ्राइड के अनुसार➖ व्यक्ति को जो कुछ भी बना होता है 4 से 5 वर्षों में बन जाता है।

☘️ वाटसन के अनुसार➖ शैशवावस्था में सीखने की गति और विकास की सीमा अन्य अवस्थाओं से अधिक होती है।

🌼 गैसल के अनुसार ➖प्रथम 6 वर्ष बालक के बाद के 12 वर्षों का दुगना सीख जाता है।

☘️ गुड एम एफ के अनुसार➖ व्यक्ति का जितना मानसिक विकास होता है उसका आधार 3 वर्ष की आयु तक हो जाता है।

🎉🎉 शैशवावस्था की विशेषताएं🎉🎉

🟣 शैशवावस्था में शिशु का शारीरिक विकास तीव्रता होती है

🟣शैशवास्था मैं शिशु का मानसिक विकास तीव्रता से होता है।

🟣शैशवास्था को सीखने का आधार काल कहते हैं।

🟣शैशवास्था मैं सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता आती है।

🟣 शैशवावस्था में कल्पना में सजीवता होती है।

🟣 शैशवावस्था में शिशु दूसरों पर निर्भर रहता है।

🟣शैशवावस्था मैं शिशु के अंदर आत्म प्रेम / स्वमोह की भावना होती है ।

🟣शैशवास्था शिशु के अंदर नैतिक गुणों का अभाव होता है।

🟣 शैशवास्था मैं शिशु अपने मूल प्रवृत्ति के आधार पर व्यवहार करता है।

🟣 शैशवावस्था शिशुओं के अंदर काम शक्ति का प्रदर्शन होता है।

🟣शैशवावस्था मैं शिशु जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है।

🟣शैशवावस्था मैं शिशु के अंदर दोहराने की प्रवृत्ति होती है।

🟣शैशवावस्था मैं शिशु संवेगों का प्रदर्शन करता है।

💫 बाल्यावस्था➖

🟣बाल्यावस्था में विकास की गति थोड़ी धीमी हो जाती है धीमी होना आवश्यक है क्योंकि मंद गति के कारण उसके विकास में मजबूती आती है।

🟣 बाल्यावस्था को गैंग Age भी बोला जाता है।

✍🏻📚📚 Notes by…… Sakshi Sharma📚📚✍🏻

Authors and books of psychology child development

BY- NEHA GUPTA

Some important Writers and their Books Of Psychology ( मनोविज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण लेखक और उनकी पुस्तकें)📝

  1. जीन पियाजे – _The psychology of Intelligence,,
    Language and Thought of the child,,
    Child conception of the world ,,
    Moral judgement of the child
  2. क्रेपलिन – pathology of brain
  3. विलियम जेम्स- Principle of Psychology,, Interpritation of dream ,,Psychology of the study of Man
  4. कोहलर- Mentality of Apes
  5. थार्नडाइक- Educational psychology,, Animal intelligence,, The measurement of Intelligence
  6. गिजूभाई- Daydream
  7. मैक्स वर्दीमर – Production thinking,, Phenomeno book
  8. आर. ए. डेविस – Psychology of learning
  9. रूसो-Emile
  10. रॉबर्ट गैने – Condition of learning
  11. कोफ्का – Theory of gestalt’s
  12. पावलव- Conditioned Reflexes
  13. विलियम maikdugal- Outline psychology
  14. सिगमंड फ्रायड- Beyond the pleasure principle
  15. गोडार्ड- The meaning of Intelligence
  16. स्किनर – Science and Human Behaviour
  17. युन्ग – Motivation of Behaviour
  18. टॉल मैन- Intelligence of Behaviour
  19. अल्फ्रेड बिने-Mental Fatigue
  20. जॉन डीवी- How We Think
  21. रूडोल्फ गोल काय- Psychologia
  22. अल्बर्ट बंडूरा- Social Foundation Thought and Action
  23. गोलमैन- Emotional Intelligence
  24. सुधीर कक्कड़- Childhood and Society in India,, Hindu Psychology
  25. गार्डनर मरफी- In the Mind of Man
  26. दुर्गानंद सिन्हा- Indian village in Asian ,,In a Third World Country: The Indian Experiences
  27. क्लीफोर्ड बीयर्स – A Mind That Found Itself
  28. अब्राहम मौस्लो – Motivation and Personality
  29. प्लेटो- The Republic
  30. जॉन अमोस कौमेनियस – Orbic Victous
  31. गेसेल – Infancy and Human Growth,, Guidance of Mental Growth

By -Neha Gupta..📝☺️

CDP Means of Thinking

🔆चिंतन के साधन➖
(Means of thinking)

निम्नानुसार है।
📍1 प्रति बोधन
📍2 प्रतिमान
📍3 संप्रत्यय
📍4 भाषा
📍5 संकेत एवं चिन्ह
📍6 सूत्र

🌀1 प्रतिबोधन (Enlignment)➖

▪️यदि कोई शिक्षक बच्चों को आपस में झगड़ते हुए देखता है तो उस स्थिति में शिक्षक अपने अनुभव से यह जानने की कोशिश करता है कि झगड़े का मुख्य कारण क्या है ? अर्थात वह इस झगड़े की मुख्य वजह या जड़ का पता बच्चों के व्यवहार को अवलोकन करके पता करता है और साथ ही साथ इससे यह भी मालूम चलता है कि इस वक्त लड़ाई किस प्रकार से बंद करवाई जा सकती है या उसे किस तरह से सुधारा जा सकता है।

▪️अर्थात शिक्षक समस्याओं को अवलोकन करने के बाद उसका कारण जानने के उपरांत उसमें रेक्टिफाय करते हैं।

▪️अतः इस तरह समस्या को देखकर समझ कर उसके कारणों को समझना और उसके समाधान के बारे में सोचना है चिंतन के अंदर प्रतिबोधन है।

▪️प्रतिबोधन के माध्यम से उत्तेजना मिलती है ताकि बेहतर चिंतन हो सके।

▪️जब हम किसी समस्या को केवल सुनकर उस पर चिंतन करते हैं तो वह इतना प्रभावी नहीं होता जितना कि हम उस समस्या को खुद से अनुभव करके ।खुद से देख कर ,समझ कर ,अनुभव करते हैं अर्थात जब हम उस समस्या या कार्य में शामिल होते हैं तो उस समस्या को बेहतर रूप से देख पाते हैं और उसे समझ कर उसके कारणों को जानकर एक उचित समाधान निकालने के लिए उस समस्या पर बेहतर रूप से उत्तेजित रूप से चिंतन कर पाते हैं जिसके फलस्वरूप समस्या का उचित समाधान प्राप्त हो जाता है।

🌀2 प्रतिमान (pattern)➖

▪️व्यक्ति के पूर्व अनुभव एक प्रतिमान के रूप में विद्यमान रहते हैं।

▪️यह प्रतिमान किसी चीज़ को दर्शाने वाली कोई अन्य नमूना, वस्तु, सोच, लिखाई, इत्यादि हो सकते हैं।

▪️यह प्रतिमान इतने शक्तिशाली होते हैं कि पूर्व अनुभव और प्रत्यक्ष में बहुत कम अंतर रहता है।

▪️मनोविज्ञान का पहला ऐसा मानना था कि किसी व्यक्ति के चिंतन में प्रतिमान का कोई प्रयोग नहीं किया जाता हैं।

▪️लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान में यह स्पष्ट हो चुका कि वर्तमान के चिंतन में प्रतिमान या पैटर्न है, और यही पैटर्न हमारे पूर्व अनुभव से बनते हैं जिनके आधार पर ही हम वर्तमान स्थिति पर चिंतन करते हैं।

🌀3 संप्रत्यय (Concept)➖

▪️प्रत्येक घटना या वस्तु का प्रति व्यक्ति के मन में होता है। जो चिंतन प्रक्रिया में सहायक होता है।

▪️कोई भी घटना या वस्तु हमें लंबे समय तक तब तक याद रहती है जब हम उस घटना के बेसिक फंडामेंटल या उसके मूल आधारभूत को समझ लेते हैं।

▪️चिंतन का महत्वपूर्ण साधन संप्रत्यय है जिनके द्वारा हमें संपूर्ण ज्ञान का बोध होता है। जैसे हाथी शब्द को सुनकर हमारे मस्तिष्क में हाथी से संबंधित संप्रत्यय जाग जाता है , और संपूर्ण ज्ञान का आभास होने लगता है अर्थात संप्रत्यय के माध्यम से चिंतन की प्रक्रिया सशक्त होती है।

▪️किसी भी वस्तु प्रत्यय के आधार पर हम उस वस्तु का वर्गीकरण करते हैं। यदि हमारे पास किसी वस्तु का संप्रत्यय होता है तो उसके चिंतन में कम समय लगता है।

🌀 4 भाषा (language)➖

▪️जब हम किसी भी विषय पर चिंतन करते हैं तो स्वयं से बातचीत करते हैं और इसी बातचीत में अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं।

▪️अर्थात जब हम स्वयं से बातचीत, भाषा के माध्यम से चिंतन में मदद करता है ।चिंतन को आंतरिक भाषण भी कहते हैं।

▪️चिंतन की प्रक्रिया में व्यक्ति मन ही मन भाषा एवं प्रत्यय का प्रयोग करता है जिसके फलस्वरूप उसके कंठ में अनेक गतियां होती हैं यही आंतरिक भाषण है।

▪️भाषा के अभाव में चिंतन करना लगभग असंभव होता है क्योंकि भाषा चिंतन सामग्री को जुटाने में सहायक होता है। भाषा एक ऐसा माध्यम होता है जिसकी सहायता से व्यक्ति अपने विचारों, इच्छाओं को सामाजिक रूप से स्वीकृत मानकों के रूप में अभिव्यक्त करता है। मनुष्य की अभिव्यक्ति के लिए भाषा यह शब्द का होना अति आवश्यक है।

▪️बच्चे भाषा की जगह इशारो एवं प्रतीकों का प्रयोग करना सीख जाते हैं यही कारण है कि छोटे बच्चे (नवजात शिशु) तरह-तरह ध्वनियों के माध्यम से माता पिता को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। बच्चों के द्वारा बलबलाना , छोटे शब्दों का प्रयोग करना यह स्पष्ट करता है कि भाषा ज्ञान की प्राप्ति और प्रयोग के लिए ऐसा करते हैं।

▪️कई अध्ययनो से यह ज्ञात नहीं हुआ है कि चिंतन करते वक्त व्यक्ति के जीभ और स्वर यंत्र में भी पेशीय संकुचन होता है।

🌀5 संकेत एवं चिन्ह (sign and symbol)➖

▪️प्रतीक एवं चिन्ह मूक रहते हुए भी अपना अर्थ स्पष्ट और व्यक्त करने में समर्थ होते हैं।
सड़क पर बने हुए चिन्ह या प्रतीक सही गति एवं सुरक्षा को स्पष्ट करते हैं। जिससे समय और शक्ति की बचत होती है।
बालक विद्यालय के घंटे और घंटा मे अंतर कर लेता है क्योंकि उसे सुनकर उसकी चिंतन शक्ति अर्थ लगाती है । इसी प्रकार से गणित में +,-,÷,× के चिन्ह अर्थ स्पष्ट करते है कि हमें क्या करना है?

▪️बोरिंग, लैंगफील्ड और बेल्ट ने लिखा भी है कि

▪️प्रतीक एवं चिन्ह मोहरे एवं गोटियां है जिनके द्वारा चिंतन का महान खेल खेला जाता है इनके बिना यकीन महत्वपूर्ण एवं सफल नहीं होता।

🌀6 सूत्र (formula)➖

▪️हमारी प्राचीन परंपरा रही है कि हम ज्ञान को छोटे-छोटे रूपों में एकत्रित करके संचित करते हैं।
इनमें गणित और विज्ञान के सूत्र आते है।
भारती ज्ञान संस्कृत के श्लोकों में संचित हैं जिसकी व्याख्या से अपार ज्ञान प्रकट होता है। किसी भी प्रकार की सूत्र को देखकर हमारी चिंतन शक्ति उसमें नहीं संपूर्ण ज्ञान को प्रकट करती है।

▪️अर्थात चिंतन को सूत्र के सहारे किसी भी तथ्यों को विकसित किया जा सकता है।

❇️चिंतन के लिए अनुकूल परिस्थितियां➖

▪️चिन्तन की अनुकूल परिस्थितियाँ या प्रभावित करने वाली दशाएँ। अच्छे चिन्तन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ या प्रभावित करने वाली दशाएँ निम्नलिखित हैं

⚜️(1) सबल प्रेरणा (Strong Motivation)➖

चिन्तन की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए प्रेरणा बहुत आवश्यक है। प्रेरणा की अनुपस्थिति में दोषमुक्त एवं व्यवस्थित चिन्तन सम्भव नहीं है। वस्तुतः चिन्तन की शुरुआत किसी समस्या से होती है। यह समस्या चिन्तन के लिए स्वत: ही एक प्रेरणा का कार्य करती है। व्यक्ति का सम्बन्ध समस्या से जितना, गहरा होगा, वह उसके समाधान हेतु उतनी ही गम्भीरता से कार्य करेगा। बाहरी प्रेरणाएँ जितनी अधिक सबल होंगी, चिन्तन भी उतना ही अधिक प्रबल होगा। इस प्रकार, प्रामाणिक चिन्तन के लिए सबल प्रेरणाएँ पर्याप्त रूप से सहायक समझी जाती हैं।

⚜️(2) रुचि (Interest)➖

रुचि, चिन्तन को प्रभावित करने वाली एक मुख्य दशा है। रुचि होने पर व्यक्ति सम्बन्धित समस्या के समाधान हेतु पूर्ण मनोयोग से प्रयास करता है। अपनी आदत के मुताबिक अरोचक विषयों से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु चिन्तन करने के लिए या तो व्यक्ति प्रचेष्ट ही नहीं होगा और यदि अनमने मन से चेष्टा करेगा भी तो उसे पूर्ण नहीं करेगा।

⚜️(3) अवधान (Attention)➖

चिन्तन के पूर्व और चिन्तन की प्रक्रिया के दौरान सम्बन्धित समस्या की ओर व्यक्ति का अवधान (ध्यान) होना चाहिए। समस्या पर अवधान केन्द्रित न होने से चिन्तन करना सम्भव नहीं हो पाता।

⚜️(4) बुद्धि का विस्तृत क्षेत्र (Broad area of Intelligence)➖

चिन्तन का बुद्धि से सीधा सम्बन्ध है। चिन्तन एक बौद्धिक या मानसिक प्रक्रिया है; अतः बुद्धि का क्षेत्र या मात्रा चिन्तन में सहायक होती है। बुद्धि से सम्बन्धित तीनों पक्ष-अन्तर्दृष्टि, पूर्वदृष्टि तथा पश्चात् दृष्टि के सम्यक् एवं समन्वित प्रयोग से चिन्तन की सफलता सुनिश्चित होती है। देखने में आया है कि अधिक बुद्धिमान व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक सफल चिन्तक बन जाता है।

⚜️(5) सतर्कता (Vigilence)➖

वैध चिन्तन के लिए सतर्कता एक अनुकूल दशा है। चिन्तन के दौरान सतर्कता बरतने से भ्रान्त धारणाओं तथा गलतियों से बचा जा सकता है। इसके अलावा सतर्कता नवीन उपायों तथा विधियों का भी ज्ञान कराती है, जिन्हें आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है।

⚜️(6) लचीलापन (Flexibility)➖

चिन्तन में लचीलापन अनिवार्य है। व्यक्ति की मनोवृत्ति में लचीलापन रहने से चिन्तन में स्वतन्त्रता आती है। रूढ़िगत एवं अन्धविश्वास से युक्त चिन्तन संकुचित एवं सीमित रह जाता है। चिन्तन में देश-काल एवं पात्रानुसार परिवर्तन आने चाहिए। स्पष्टतः यह चिन्तन में लचीलेपन के गुण से ही सम्भव है। |

⚜️(7) समय की सीमा का कठोर होना/ पर्याप्त समय (Enough Time)–

चिन्तन के लिए समय की पाबन्दी लगाना उचित नहीं है। चिन्तन करते समय चिन्तक को यह ज्ञात नहीं रहता कि उसे किसी समस्या पर विचार करने में कितना समय लगेगा। अतः चिन्तन में स्वाभाविकता लाने के लिए समय की सीमा कठोर नहीं होनी चाहिए। चिन्तन के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध रहना चाहिए।

⚜️(8) रोकना /स्थगित करना (pouse/ cance)➖

किसी भी विषय पर या समस्या पर चिंतन करने के लिए उस विषय पर कब रोकना है? या कितने विराम की आवश्यकता है ?इस बात का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है।
यदि किसी भी समस्या पर लगातार चिंतन किया जाता है तो समस्या का समाधान इतना प्रभावी नहीं होता अर्थात जब समस्या पर चिंतन किया जाता है तो बीच-बीच में विराम या रोकना भी महत्वपूर्ण होता है जिससे बेहतर रूप से समस्या का समाधान निकाला जा सके।

⚜️(9) संवेग (emotion) ➖
जब कोई भी बात हमारे इमोशन या हमारे संवेग या भाव से जुड़ी होती हैं तब उस विषय पर या उस बात पर हम बहुत ही व्यापक और गहराई से चिंतन कर पाते हैं।

अर्थात जिस भी बात में हमारे संवेग होते हैं उसमें चिंतन की प्रक्रिया बहुत प्रबल होती है।

⚜️(10)भाषा (language)➖

किसी भी समस्या पर चिंतन करने के लिए भाषा का महत्व पूर्ण योगदान होता है क्योंकि जब उस विषय पर हम चिंतन करते हैं तो अपने मन ही मन उस पर बातचीत करते हैं और यही बात चीत भाषा है जो हमारे चिंतन में मदद करती है।

⚜️(11) प्रत्यय (concept)➖

यदि कोई भी कार्य हमारे पूर्व अनुभव अर्थात हमारे प्रत्यय से जुड़ा होता है तो उस कार्य को हम बेहतर रूप से उस पर चिंतन कर उसे प्रभावी रूप से पूरा कर पाते हैं।

किसी भी वस्तु का संप्रत्य जब हमारे दिमाग में विकसित होता है तो उस वस्तु के शब्द को सुनते हैं उससे संबंधित समस्त संप्रत्य हमारे दिमाग में आ जाते हैं जिससे उस वस्तु का समस्त ज्ञान प्रकट हो जाता है।

⚜️(12) सामाजिक संपर्क (social contact)➖

व्यक्ति समाज के बीच जन्म लेता है और समाज के अन्य लोगों के साथ परस्पर क्रियाएं करता है अर्थात जब हम समाज के विभिन्न में लोगों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं तो उनके साथ जुड़ने से कई बातों एवम उनके कई विचारों को जानते हैं तथा कई विचारों को जानने में मदद मिलती है और यही विचार हमारी चिंतन में उपयोगी होते हैं।

⚜️(13) प्रत्यक्ष अनुभव (direct experience)➖

किसी भी वस्तु या कार्य का जब हमें प्रत्यक्ष अनुभव अर्थात सामने से जो अनुभव या खुद से कर के जो अनुभव होता है तो उस वस्तु का ज्ञान या उस कार्य को हम प्रभावी रूप से पूरा कर पाते हैं क्योंकि यह कार्य हम पूर्व में कर चुके अर्थात उस कार्य के बारे में हमारे पास अनुभव जिसे हम किसी भी स्थिति में आसानी से पूरा कर सकते हैं।

✍️ Notes By "Vaishali Mishra"

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐 चिंतन के साधन ( Means of thinking) –

🌈 प्रति बोधन (Enlightenment) –

💐समस्या को देखकर समझ कर उसका कारण का समझना और उसके समाधान के बारे में सोचना ही चिंतन के अंदर प्रति बोधन है ।
प्रतिवेदन के माध्यम से उत्तेजना मिलती है। ताकि चिंतन बेहतर हो सके।

🌈 प्रतिमान ( pattern) –

💐 व्यक्ति की जो पूर्व अनुभव प्रतिमान रूप में विद्यमान रहते हैं। यह प्रतिमान इतने शक्तिशाली होते हैं कि इन में और प्रत्यक्ष में बहुत कम अंतर रहता है।

🌈Concept( प्रत्यय)–

💐 प्रत्येक घटना आपको या वस्तु का प्रत्यय के मान में होता है। जो चिंतन प्रक्रिया में सहायक होता है।
प्रत्यय के आधार पर वस्तुओं का वर्गीकरण करते हैं ।अगर हमारे पास प्रत्यय हैं तो चिंतन में कम समय लगेगा ।

🌲जैसे हमें विकास के बारे में चिंतन करना है तो हमें विकास का कांसेप्ट क्लियर होना यह होना चाहिए।

🌈 भाषा ( language)–

💐 स्वयं से बातचीत भाषा के माध्यम से चिंतन में मदद करते हैं।
चिंतन के आंतरिक भाषण भी कहते हैं। चिंतन करते वक्त जीभ स्वर यंत्र में भी पेशी संकुचन होता है।

🌈 संकेत एवं चिन्ह–

💐 संकेत किसी खेल या क्रियात्मक अनुक्रिया के लिए उद्दीपन का कार्य करती है।

🌈 सूत्र ( formula) –

💐 विज्ञान और गणित में चिंतन के सूत्रों के सहारे तथ्यों को विकसित किया जाता है।

🌍 चिंतन के लिए अनुकूल परिस्थिति( Eavarable situation for thinking) –

🌈 सशक्त प्रेरणा ( story motivation )–

💐 चिंतन में प्रेरणा की आवश्यकता होती है।

♦️ प्रेरणा के अभाव में व्यवस्थित और नियंत्रित चिंतन संभव नहीं है।
♦️ चिंतन समस्या का समाधान करते हैं ।
♦️समस्या समझाने की प्रेरणा जितनी प्रबल चिंतन उतना ही सशक्त होगा।

♦️ प्रेरणा से उत्साह रहता है। और थकान नहीं होती है।

🌈 धयान और रुचि–

💐 चिंतन में ध्यान का होना आवश्यक है। ध्यान अगर नहीं है तो रुचि नहीं है ।तो चिंतन नहीं हो सकता। इसलिए चिंतन के लिए ध्यान और रुचि का होना आवश्यक है।

🌈 सतर्कता और लचीलापन –

💐 अगर हम किसी चीज पर चिंतन करना चाहते हैं तो उसके प्रति सतर्क होना और लचीला होना आवश्यक है।

🌈 बुद्धि का विस्तृत क्षेत्र–

💐 चिंतन में अंतर्दृष्टि जरूरी है। व्यक्ति में लचीलापन बुद्धि से आएगा और बुद्धि अंतर्दृष्टि से आएगी । इसलिए किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए बुद्धि का विस्तृत क्षेत्र होना अति आवश्यक है।

🌈 समय की कठोर सीमा न होना–

💐 चिंतन करते समय ,समय सीमा कठोर नही होना चाहिए। कोई बांड नहीं होना चाहिए ,कि इस प्रश्न का उत्तर आपको 2 मिनट में देना है। या इस सब्जेक्ट को इतनी समय में पूरा करना है। इससे चिंतन होना संभव नहीं है।

🌈 pouse/ cancel रोकना / स्थगित करना–

💐 चिंतन में किस जगह पर रुकना है किस जगह पर चीजों को स्थगित करना है इसका भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।

🌈 संवेग ( Emotion) –

💐 संवेग का भी चिंतन में बहुत महत्व है।

🌈 भाषा( Language)–

💐 भाषा के माध्यम से भी कई प्रकार से चिंतन किया जाता है।
चिंतन में भी भाषा का उपयोग होता है।

🌈 प्रत्यय ( concept)–

💐 चिंतन के लिए प्रत्यय का होना भी आवश्यक है ।जब तक कोई प्रत्यय नहीं होगा चिंतन का होना संभव नहीं है।

🌈 सामाजिक संपर्क( social contect) –

💐 सामाजिक संपर्क का भी चिंतन में विशेष महत्व है ।समाज के लोगों से मिलना बातचीत करना के माध्यम से भी चिंतन किया जाता है।

🌈 प्रत्यक्ष अनुभव (direct obsarvation) –

💐 चिंतन में प्रत्यक्ष अनुभव का होना भी जरूरी है ।यदि प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है ।तो भी चिंतन होना संभव नहीं है।

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 Notes by poonam sharma

Social learning theory of Albert bandura

🔆अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत➖

✨प्रतिपादक- अल्बर्ट बंडूरा (संज्ञान वादी)

 ✨निवासी- कनाडा

 ✨जन्म- 4 दिसंबर 1925

✨सिद्धांत दिया– 1977 में

✨ बंडूरा द्वारा किए गए प्रयोग-

बॉर्बी डॉल, जीवित जोकर

“समाज द्वारा मान्य व्यवहार को अपनाने तथा अमान्य व्यवहार को त्यागने के कारण ही यह सामाजिक अधिगम सिद्धांत कहलाया”

 ❇️सामाजिक अधिगम का अर्थ➖

 🔸दूसरों को देखकर उनके अनुरूप व्यवहार करने के कारण व दूसरों के व्यवहार को अपने जीवन में उतारने तथा समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहारों को धारण करने तथा अमान्य व्यवहारों को त्यागने का कारण ही सामाजिक अधिगम है।

🔸 इस सिद्धांत में अनुकरण द्वारा सीखा जाता है 

❇️अल्बर्ट बंडूरा  ने अपने सिद्धांत में 4 पद बताएं

📍1 1 अवधान(attention)

📍2 धारण(except /hold/retention)

📍3 पुनः प्रस्तुतीकरण(representation)

📍4 पुनर्बलन (reinforcement)

⚜️1 अवधान- निरीक्षण करता का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए मॉडल आकर्षित, लोकप्रिय, रोचक व सफल होना चाहिए।

⚜️2 धारण- व्यक्ति व्यवहारों को अपने मस्तिष्क में प्रतिमाओं के रूप में व शाब्दिक वर्णन के रूप में ग्रहण कर लेता है।

⚜️3 पुनः प्रस्तुतीकरण- जिसको हम ध्यान से देखकर धारण करते हैं और धारण करने के बाद उसे पुनः प्रस्तुतीकरण करेंगे।

⚜️4 पुनर्बलन- जहां सकारात्मक पुनर्बलन मिलने पर हम उस कार्य को दोबारा करेंगे और नकारात्मक पुनर्बलन मिलने पर हम उस व्यवहार को दोबारा नहीं करेंगे।

▪️दूसरों के व्यवहार को देखकर सीखना सामाजिक अधिगम कहलाता है

 ▪️जिसको देखकर बालक व्यवहार करना सीखता है उसे प्रतिमान कहते हैं ।

▪️बंडूरा द्वारा बनाए गए सामाजिक अधिगम सिद्धांत में व्यक्ति अपने आपको निम्न क्रियाओं द्वारा संतुलित रखता है। 

🌺1.स्व नियंत्रण –अपने स्वयं के व्यवहारों को देखकर निरीक्षण करना।

🔹a.स्व निरीक्षण

🔹b.विवेकपूर्ण निर्णय

🔹c.स्वअनुक्रिया

▪️जब हम कोई भी कार्य करते हैं यदि उस कार्य को हम स्वयं से निरीक्षण करके और खुद की बुद्धि विवेक का प्रयोग कर निर्णय लेते हैं तो उस कार्य को करने में होने वाली क्रिया भी स्वयं करते हैं जिससे संपूर्ण कार्य पर नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है।

▪️जैसे किसी परिस्थिति में हमें कभी कई बार गुस्सा आता है लेकिन उस गुस्से पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए उस  स्थिति में हम अपने बुद्धि विवेक से किसी भी कार्य के प्रति क्या सही है क्या गलत है इस पर अनुक्रिया करते हैं और यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम दूसरों के इशारों पर क्रिया करते हैं या दूसरों के इशारों पर नाचते हैं।

🌺2.स्वयं निर्देशन –

▪️अधिगमकर्ता स्वयं निर्देशन द्वारा अपने व्यवहार को निर्देशित करने की प्रभावी युक्ति का प्रयोग कर सकते हैं।

🌺3 स्वयं पुनर्बलन-

▪️नकारात्मक व सकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा भी व्यक्ति अपने व्यवहारों को निर्देशित कर सकता है।

❇️सामाजिक अधिगम का शैक्षिक महत्व

(Educational importance of social learning)➖

☄️1  शिक्षक छात्रों के सामने आदर्श व्यवहार वाले प्रतिमान प्रस्तुत करें।

▪️शिक्षक छात्रों के सामने जैसा माहौल या वातावरण देगा बच्चे भी वैसे वातावरण में या उस माहौल में ढल जाएंगे।

क्योंकि बच्चा जैसा देखताखता है वैसा ही उसका अनुकरण करता है तथा उसके अनुरूप अपने आप को डालने का प्रयास करता है।

☄️2   बुरे व्यवहार उपस्थित ना होने दें।

बालक अच्छे-बुरे में विभेद करने में अपने को असमर्थ पाता है। यही कारण है कि यदि प्रतिमान बुरा व्यवहार करता है तो बालक अनुकरण द्वारा उसे सीख लेता है। अतः विद्यालय या कक्षा-कक्ष स्थितियों में प्रतिमान अर्थात् बुरे व्यवहार को उपस्थित नहीं करना चाहिये।

▪️उदाहरण के लिये विद्यालय में बालकों के सामने शिक्षक को धूम्रपान नहीं करना चाहिये। शिक्षक को आक्रामक व्यवहार से बचना चाहिये।

 ☄️3 स्वयं नियंत्रण की विधि अपनाएं।

किसी भी कार्य को करने में उसका स्व नियंत्रण या खुद से नियंत्रण रखने वाली विधि उस कार्य के लिए क्या उचित है या अनुचित है इस तरीके को अपनाया जा सकता है।

☄️ 4अध्यापक विश्वास दृढ़ या मजबूत करने वाले संदेश दे ।

▪️अध्यापक द्वारा बच्चों को यह संदेश दिया जाए कि किस प्रकार से हम विश्वास को  मजबूत रख सकते हैं। अर्थात उनके सामने इस प्रकार के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए जाएं यह उनके कार्य को इस प्रकार सराहना दी जाए जिससे उनके अंदर किसी भी कार्य को करने में विश्वास बढ़े।

✍️

       Notes By-‘Vaishali Mishra’

*सामाजिक अधिगम का सिद्धांत*

*(Theory of social learning)*

✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ इस सिद्धांत के प्रतिपादक *अल्बर्ट बंडूरा (Albert bandura)* थे।

▪️ अल्बर्ट बंडूरा कनाडा के निवासी थे।

▪️ इनका जन्म 4 दिसंबर 1925 में हुआ था।

▪️ बंडूरा ने सामाजिक अधिगम का सिद्धांत 1977 में दिया था।

▪️ इन्होंने अपना प्रयोग बेबीडॉल एवं जीवित जोकर (फिल्म) पर किया।

*सामाजिक अधिगम का अर्थ*

*(Meaning of social learning)*

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ दूसरों को देखकर उसके अनुरूप व्यवहार करना।

▪️ दूसरों के व्यवहार को अपने जीवन में उतारना।

▪️ समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार को धारण करना और अमान्य व्यवहार को त्यागना।

▪️ इस सिद्धांत के अनुसार, अवलोकन, अनुकरण (नकल) और आदर्श व्यवहार के प्रतिमान के माध्यम से एक- दूसरे से सीखा जाता है।

▪️ सामाजिक अधिगम सिद्धांत को व्यवहारवाद और संज्ञानात्मक अधिगम सिद्धांतों के बीच की योजक कड़ी कहा जाता है क्योंकि यह सिद्धांत *ध्यान (attention), स्मृति (memory),* और *प्रेरणा (motivation)* तीनों को संयोजित करता है। इसलिए अल्बर्ट बंडूरा को प्रथम *मानव व्यवहार संज्ञानवादी* कहते हैं।

▪️ बंडूरा ने सामाजिक अधिगम के सिद्धांत में 4 पद दिए हैं…..

(1). ध्यान या अवधान 

(2). धारण या अवधारण

(3). पून: प्रस्तुतीकरण

(4) पुनर्बलन

*(1). ध्यान या अवधान (attention)*

✨✨✨✨✨✨✨✨

शिक्षक को चाहिए कि शिक्षार्थी को पढ़ाते समय विषय वस्तु को आकर्षक तथा प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करें ताकि शिक्षार्थियों का ध्यान केंद्रित हो।

*(2).धारण या अवधारण*

*(Retention/accept/hold)*

✨✨✨✨✨✨✨✨

शिक्षक को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि अधिगम के लिए प्रस्तुत किए गए विषय वस्तु को शिक्षार्थी ने कितना ग्रहण किया है।

*(3) . पून: प्रस्तुतीकरण*

*(Representation)*

✨✨✨✨✨✨

यदि छात्रों ने विषय वस्तु को कम सीखा है या अच्छी तरह नहीं सीख पाया है तो शिक्षक को चाहिए कि उस विषय वस्तु को पुनः दोहराते हुए शिक्षण के नए मॉडल, चित्र, चार्ट आदि सामग्री का प्रयोग करें।

*(4). पुनर्बलन*

*(Reinforcement)*

✨✨✨✨✨✨

पुनर्बलन दो प्रकार का होता है सकारात्मक व नकारात्मक। व्यक्ति सकारात्मक पुनर्बलन मिलने पर कार्य को दोबारा करता है वहीं यदि नकारात्मक पुनर्बलन मिलता है तो वह उस कार्य को दोबारा नहीं करता है।

▪️ इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति कुछ क्रियाओं द्वारा खुद को संतुलित रखता है।

*(1). स्व- नियंत्रण(self control)*

स्वयं पर नियंत्रण रखने के लिए व्यक्ति निम्नलिखित क्रियाओं को करता है……

     *1*.  स्व- निरीक्षण (self observation)

        *2*. विवेकपूर्ण निर्णय (rational decision)

               *3*.  स्व- अनुक्रिया (self action)

*(2). स्व-निर्देशित(self direction)*

अधिगमकर्ता स्वयं निर्देशन द्वारा अपने व्यवहार को निर्देशित करने की प्रभावी युक्ति का प्रयोग कर सकते हैं।

*(3). स्व- पुनर्बलन(self reinforcement)*

बच्चा या व्यक्ति सकारात्मक व नकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा अपने व्यवहारों को निर्देशित कर सकता है।

 *सामाजिक अधिगम सिद्धांत का शैक्षिक महत्व (educational importance of social learning theory)*

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

बच्चों के व्यक्तित्व विकास में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत सामाजिक अधिगम वाद है।

▪️ शिक्षक को चाहिए कि छात्रों के सामने अच्छे आदर्श वाले मॉडल प्रस्तुत करें।

▪️ बुरे व्यवहार, अनैतिक मॉडल उपस्थित नहीं होने दें।

▪️ अध्यापक विश्वास को दूर करने वाले संदेश दें और अन्य व्यक्तियों की सफलता दिखाकर छात्रों में स्व- प्रभावशीलता का विकास कर सकते हैं।

▪️ शिक्षक को चाहिए कि स्व- नियंत्रण विधि अपनाएं।

*Notes by Shreya Rai……..✍️🙏*

Date-6/5/2021

Time-9:00@m

   Topic-Socializqtion theory of Albert bandura

      विषय-अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रतिपादक-अल्बर्ट बंडूरा

निवासी-कनाडा

जन्म-4 दिसंबर 1928

सिद्धांत दिया गया वर्ष-1977

अल्बर्ट बंडूरा द्वारा किए गए प्रयोग निम्नलिखित हैं÷

बाबीडाल(गुड़िया), जीवित जोकर इत्यादि

अल्बर्ट बंडूरा के सामाजिक अधिगम का अर्थ निम्नलिखित हैं÷

इस सिद्धांत के अंतर्गत हमें यह सिखाता है कि विद्यार्थी दूसरों को देखकर उसके अनुरूप व्यवहार करता है,

                                                                         दूसरों के व्यवहार को जीवन में उतारना वा उसी के अनुरूप व्यवहार करना अनुकरण द्वारा सीखना कहलाता है।

समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार को धारण करना उसको अपनाना समाज के अच्छे गुणों नैतिक शिक्षा समाज द्वारा बनाए गए मानदंड के अनुरूप उसको अपने आचरण में लाना उसी के अनुरूप व्यवहार करना वह अधिकगम करना।

समाज के अमान्य व्यवहार (जैसे चोरी करना झूठ बोलना धार्मिक भ्रम फैलाना गलत कार्य करना इत्यादि) व्यवहार को अपने आचरण में ना लाना और ना ही उनके अनुरूप कार्य करना।

इस सिद्धांत को अनुकरण द्वारा सीखा जाता है।

(Imitation /Model is the base of  of Albert bandura theory.)

बालक अपनी कक्षा में इस सिद्धांत के द्वारा बेहतर व्यवहार व आचरण का निर्माण कर सकता है, किंतु इसके लिए शिक्षक को विद्यार्थी के समक्ष व समाज में भी अच्छा आचरण करना वह बेहतर ढंग से अपनी प्रतिभा को बनाए रखना चाहिए ताकि विद्यार्थी कक्षा के साथ-साथ समाज में भी अपने शिक्षक के प्रतिमान का अनुसरण या अनुकरण करके सीखता रहे साथ ही वह शिक्षक के साथ बेहतर ढंग से अधिगम में सक्रियता से भाग भी लेता है और इस प्रकार से शिक्षक अधिगम को प्रभावशाली भी बना सकता है साथ-साथ वह विद्यार्थी के जीवन निर्माण में भी अहम भूमिका का रोल अदा कर सकता है, क्योंकि बालक अनुकरण द्वारा सीखता है तो इसके लिए विद्यार्थी के साथ-साथ शिक्षक का भी सद्गुणों से परिपूर्ण होना आवश्यक है तभी वह विद्यार्थी में सब गुणों का विकास करके समाज का कल्याण कर सकता है।

          क्योंकि एक विद्यार्थी अपने जीवन में समाज का एक नागरिक बनता है अर्थात समाज में एक बेचन नागरिक का निर्माण करने के लिए शिक्षक का यह परम कर्तव्य है कि वह बेहतर समाज का निर्माण करने में सहायता करे।

अल्बर्ट बंडूरा ने सिद्धांत में 4 पद दिए हैं, जो निम्नलिखित हैं÷

१- अवधारणा Attention 

२- धारण accept

३-पुन:प्रस्तुतीकरण Re-Presentation

४- पुनर्बलन Reinforcement

१- अवधारणा(Attention)

(In the process of attention, a teacher can motivate to their students and produces new and Valid ,good habbits by  presentation of self model or good behaviour because students  learning throgh Teacher behaviour Imitation.

इसके अंतर्गत शिक्षक विद्यार्थी की रुचि अभिप्रेरणा वाह उसके संज्ञान को ध्यान में रखकर उसके समक्ष अच्छे आचरण प्रस्तुत  करता है जिसके द्वारा वाह बालक के संज्ञान में संप्रत्यय का निर्माण करता है।

२-धारण(Accept)

(A student can accept every nature habits and rules regulations and by their Teachers and they can hold these concepts on their consciousness mind)

 शिक्षक द्वारा विद्यार्थी में कराए गए संप्रत्यय के निर्माण का बालक ने कितना उस अवधारणा या संप्रदाय को अपने मस्तिष्क ज्ञान वह व्यवहार में अधिगम के द्वारा या अनुकरण के द्वारा सीखा है या उस संप्रत्यय अज्ञान का उसके मस्तिष्क में या व्यवहार में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं, उसने  उस ज्ञान यार अवधारणा को किस प्रकार से अनुसरण किया है ,

३-पुनः प्रस्तुतीकरण(Re-Presentation) 

(after the concepts acceptance teachers responsibilities they can check their students ability,concept or knowledge because by the checking process they can make different skills or teaching pattern to gain more knowledge on students mind)

इसके अंतर्गत शिक्षक विद्यार्थी के संप्रत्यय निर्माण के बाद उसमें कितना धारण किया है और कितना अपने व्यवहार में धारण करने के बाद बहुत संप्रदाय या ज्ञान का किस प्रकार से प्रयोग करता है या भविष्य में करेगा इसका पता करने के लिए शिक्षक विभिन्न माध्यमों से उस ज्ञान को विद्यार्थी के द्वारा पुनः प्रस्तुत करण के द्वारा देखता है वा उसकी व उसके व्यवहार में आए परिवर्तन का मूल्यांकन द्वारा या निश्चित करता है कि विद्यार्थी को और कितना अधिगम कराना है।

४-पुनर्बलन( Reinforcement)

(reinforcement is best way to find out  the students learning problems and change their behaviour,by the positive reinforcement.)

 यह विद्यार्थी और शिक्षक दोनों के लिए ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा एक शिक्षक विद्यार्थी के अंदर हो रहे विकास को और अधिक बढ़ा सकता है वा साथ ही साथ वह विद्यार्थी के सकारात्मक ज्ञान को बढ़ाने विकसित करने में सहायक होता है वह नकारात्मक ज्ञान को विद्यार्थी के जीवन से हटाने का या कम करने का प्रयास करता है।

अल्बर्ट बंडूरा ने सामाजिक अधिगम सिद्धांत कुछ तथ्य बताएं, जो निम्नलिखित है÷

व्यक्ति स्वयं को कुछ क्रियाओं द्वारा संतुलित रखता है जिसके द्वारा वा समाज में किसी भी नई परिस्थिति में समायोजन करना वाह आत्मसात करना सीख जाता है जिसके द्वारा वाह स्वयं को समाज के नियम वा मानदंडों के अनुरूप अनुकूल हो जाता है।

इसके अंतर्गत बंडूरा ने निम्नलिखित तीन प्रकार के सामाजिक अधिगम तथ्य बताएं

१-स्व-नियंत्रण

यह एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा शिक्षक विद्यार्थी के व्यवहार में सामाजिक परिवेश में स्वयं को नियंत्रित रखने की भावना का विकास करता है जिसके द्वारा विद्यार्थी समाज में हिंसा की भावना के प्रति सचेत रहता है और स्वयं को विपरीत परिस्थितियों में स्व नियंत्रण के द्वारा अहिंसा के अनुकूल बनाये रखता है।

स्व नियंत्रण को भी तीन भागों में विभाजित किया गया है

१-स्व निरीक्षण

शिक्षक को विद्यार्थी के कार्यों का वाह उसके अधिगम का निरीक्षण करना चाहिए इसके द्वारा वह ज्ञात कर सकता है कि विद्यार्थी ने अधिगम कितना किया है, वा वह विद्यार्थी के अधिगम में किस प्रकार से सहायता करके अधिगम को पूर्ण कर सकता है।

२-विवेक पूर्ण निर्णय एक शिक्षक को अपने विद्यार्थी के प्रति प्रत्येक परिस्थिति में विवेकपूर्ण ना लेनी चाहिए अर्थात विद्यार्थी के विषय में नीरसता पूर्ण व्यवहार या निर्णय ना करें जिसके द्वारा विद्यार्थी में कुंठा की भावना का विकास हो।

३-स्व अनुक्रिया

एक बेहतर शिक्षक अपने विद्यार्थियों के अधिगम को बेहतर करने के लिए कई बार उनके सामने अच्छे आचरण के मॉडल प्रस्तुत करने के साथ-साथ बहुत सारी अनुक्रिया भी करके दिखाता है वा उनको अनेक प्रकार के अनुक्रिया करने के लिए प्रेरित करता है (जसे-कई बार वह महान लोगों के जीवनी के आधार पर रोलप्ले ,नाटक, अभिनय इत्यादि करवाता है)

सामाजिक अधिगम का शैक्षिक महत्व निम्नलिखित हैं÷

१-छात्रो  के समक्ष शिक्षक अच्छे आदर्श वाले मॉडल प्रस्तुत करके छात्र के अधिगम को व उसके व्यवहार उसके आचरण का बेहतर तरीके से निर्माण कर सकता है।

२-बुरे व्यवहार उपस्थित नहीं होते हैं अर्थात शिक्षक विद्यार्थी के समक्ष एक बेहतर, स्वच्छ निर्मल आचरण प्रस्तुत करता है जिसका विद्यार्थी अनुकरण करके सीखता है।

३-शिक्षक को स्व नियंत्रण बनाए रखना चाहिए अर्थात शिक्षक को किसी भी परिस्थिति में अपना नियंत्रण नहीं होना चाहिए क्योंकि कई बार विद्यार्थी ऐसी क्रियाएं,या  व्यवहार कर बैठता है जिस पर शिक्षक अपना आपा खोकर बालक के साथ अनैतिक व्यवहार कर बैठता है किंतु स्व नियंत्रण के द्वारा वह स्वयं को प्रत्येक परिस्थिति में नियंत्रित रखकर विद्यार्थी के प्रत्येक पहलू का   उसके अनैतिक व्यवहार या क्रिया का कारण पता करने की कोशिश करता है वह उसको सुधार करने मे भी बेहतर ढंग से प्रयासरत रहता है।

अध्यापक को विश्वास को  मजबूत, ढृंढ़ , वह आत्मशाह को बढ़ाने वाले वाले संदेश देने चाहिए , जिसके द्वारा प्रत्येक स्थिति में स्वयं को वह अभिप्रेरित रख सके वाह साथ ही सफलता की ओर अग्रसर हो सके और अपने भावी जीवन में सफलता की प्राप्ति करता रहे।

अध्यापक को विश्वास मजबूत करने के लिए सत्य ,अहिंसा ईमानदारी, नैतिक गुणों के विकास करने के लिए महान व्यक्तियों की जीवनी को वह उनकी आत्मकथाओं का विद्यार्थी के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करके वह कहानियां सुना कर उनको अभिप्रेरित करना चाहिए जिसके द्वारा वह जीवन के किसी भी मोड़ पर संघर्ष एवं नैतिक गुणों के द्वारा किसी भी समस्या का निराकरण कर सके।

धन्यवाद

handwritten by-Shikhar Pandey🙏

☘️🌼 बंडूरा का सामाजिक अधिगम का सिद्धांत🌼☘️

इस सिद्धांत का प्रतिपादन अल्बर्ट बंडूरा नहीं किया

अल्बर्ट बंडूरा कनाडा के निवासी थे।

अल्बर्ट बंडूरा का जन्म 4 दिसंबर सन् 1925 में हुआ था।

उनके सिद्धांत का वर्ष सन् 

1977 में था।

अल्बर्ट बंडूरा ने बॉबी डॉल और जीवित जोकर पर प्रयोग किया।

💫 सामाजिक अधिगम का अर्थ➖ दूसरों को देखकर उसके अनुरूप व्यवहार करना यह सामाजिक अधिगम है।

दूसरों के व्यवहारों को जीवन में उतारना।

समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार को धारण करना और अमान्य व्यवहार को त्यागना।

इस सिद्धांत को अनुकरण द्वारा सीखा जाता है।

☘️ अल्बर्ट बंडूरा ने सिद्धांतों में 4 पद दिए☘️

🔸1-अवधान➖ अधिगम विषय वस्तु को आकर्षक तथा प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करना अवधान कहलाता है।

🔸2-धारण➖ अधिगम के लिए प्रस्तुत किए गए विषय वस्तु को कितना सीखा गया है ‌।

🔸3-पुनः प्रस्तुतीकरण➖ उस वस्तु का अधिगम कम प्रभावशाली हो तो अधिगम की विषय वस्तु को पुनः प्रस्तुत करना चाहिए।

🔸4-पुनर्बलन➖ विषय वस्तु की पुनः प्रस्तुतीकरण के पश्चात यदि बालक अधिगम की प्रतिपुष्टि कर दें तो यह प्रतिपुष्टि का पुनर्बलन है।

✍🏻 बंडूरा के सामाजिक अधिगम सिद्धांत में व्यक्ति खुद को कुछ क्रियाओं द्वारा संतुलित रखता है जिससे तीन भागों में बांटा गया है।

1-स्व नियंत्रण

🔸 स्व निरीक्षण

🔸 विवेकपूर्ण

🔸 स्व अनुक्रिया

2-स्व निर्देशन➖ अधिगमकर्ता स्वयं निर्देशन द्वारा अपने व्यवहार को निर्देशित करने की प्रभावी युक्ति का प्रयोग कर सकते हैं।

3-स्व पुनर्बलन➖ नकारात्मक व सकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा भी व्यक्ति अपने व्यवहारों को निर्देशित कर सकता है।

💫 सामाजिक अधिगम का शैक्षिक महत्व💫

🔸 छात्रों के सामने अच्छा आदर्श वाला मॉडल प्रस्तुत करें।

🔸 बुरे व्यवहार उपस्थित ना होने दें।

🔸 स्व नियंत्रण की विधि अपनाएं।

🔸 शिक्षक विश्वास धारण करने वाला संदेश देकर व अन्य व्यक्तियों का सफलता देखकर छात्रों में स्व प्रभावशीलता का विकास कर सकता है।

🔸

सामाजिक अधिगम का आधार अनुकरण है।

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

CDP importance of motivation in learning

🔆अभिप्रेरणा का सीखने में महत्व (importance of motivation)➖
❇️ 1 अभिप्रेरणा व्यवहार का पथ प्रदर्शन करते हैं।

🔸यह व्यक्ति के व्यवहार को इस प्रकार मोड़ देता है कि संतुष्टि की भावना आ जाए।

🔸अर्थात अभिप्रेरणा से व्यवहार में संतुष्टि होने पर लक्ष्य की प्राप्ति होने में भी संतुष्टि प्राप्त होती है।

🔸हर समय कार्य को पूरा करने में बीच-बीच में या जब छोटे छोटे रूप में हम आगे बढ़ते हैं तब भी हमें संतुष्टि मिलती है।

🔸अर्थात कार्य को करने में जो व्यवहार करते हैं उसमें भी हमे संतुष्टि मिलती है ऐसा आवश्यक नहीं है कि काम पूरा होगा तभी संतुष्टि प्राप्त होगी।

🔸इस तरह से व्यवहार में संतुष्टि मिलने पर हम निश्चित रूप से लक्ष्य को पाने में भी अभी प्रेरित रहते हैं।

❇️2 अभिप्रेरणा व्यवहार में शक्ति का संचार करती है।
🔸अभिप्रेरणा सीखने की शक्ति है।

🔸जीवन में अनेक प्रकार के लक्ष्य होते हैं जो कि कभी भी खत्म नहीं होते हैं इसीलिए लक्ष्य चलते रहते हैं और उनको प्राप्त करने की संतुष्टि हमें तभी मिल सकती है जब हम उस लक्ष्य को पूरा करने में प्रयुक्त व्यवहार में भी संतुष्ट हो जाए ना कि मात्र लक्ष्य को पाने की संतुष्टि के इंतजार में रहे।

🔸यदि हम लक्ष्य प्राप्ति के संतुष्ट होने का इंतजार करेंगे तो हम कभी अपने व्यवहार से संतुष्ट नहीं हो पाएंगे।

🔸लक्ष्य पाने के लिए निरंतर रूप से कार्य को करने की अभिप्रेरणा ही वास्तविक अभिप्रेरणा है।

🔸लक्ष्य को प्राप्त करने पर संतुष्टि होती है लेकिन हर पल या हर क्षण में यदि संतुष्टि मिले तब भी हम लक्ष्य को प्राप्त करने के कार्य में निरंतर रूप से अभिप्रेरित रहते हैं।

🔸लक्ष्य को प्राप्त करने में हम कार्य को करते हुए अभि प्रेरित रूप से करते हैं और इस स्थिति में हम कार्य को बेहतर रूप से करते हुए सीख भी जाते है।

❇️3 पुरस्कार और दंड सीखने के लिए मदद करते हैं।
🔸अभिप्रेरणा के रूप में पुरस्कार और दंड सीखने के लिए मदद करते हैं।

🔸यदि हमारा पूरा ध्यान मात्र हमारे लक्ष्य पर ही होगा केवल हमे लक्ष्य को ही पाना है इस स्थिति में भी हम नहीं सीख पाएंगे।

❇️4 अभिप्रेरणा व्यवहार का चुनाव करती हैं।

🔸लक्ष्य को पाने की स्थिति में यदि हमें यह मालूम हो या उसका चयन इस रूप में करें कि हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में उचित या सही या उपयोगी व्यवहार कौन सा होगा? जिससे कि हमें लक्ष्य की प्राप्ति सही रूप से प्राप्त हो एवं लक्ष्य के दिशा मार्गदर्शन में भी मदद मिलती है।

🔸अर्थात अभिप्रेरणा हमें लक्ष्य को प्राप्त करने में उचित चीजों पर प्रतिक्रिया करने में मदद करती है।

🔸व्यवहार का चुनाव किसी परिस्थिति में उचित प्रतिक्रिया को दर्शाता है।

❇️4 ध्यान केंद्रित करने में सहायक

🔸अभिप्रेरणा विद्यार्थी को प्रेरित करके उन्हें अपने ध्यान को पाठ्यवस्तु में केंद्रित करने में सहायक होती है।

❇️5 अभिप्रेरणा रुचि विकसित करने में सहायक

🔸यदि हमें जिस कार्य को करने में रुचि हो तो इससे हमारी अभिप्रेरणा भी बढ़ जाती है।
यदि हमें सीखने में रुचि होगी तो सफलता भी आसानी से प्राप्त होगी ।
🔸अभिप्रेरणा बच्चों में रुचि विकसित करने की एक कला है।

❇️6 अधिक ज्ञान का अर्जन

🔸अध्यापक विद्यार्थी उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग करके ज्ञान को तीव्र गति से अर्जित करने के लिए अभिप्रेरणा प्रदान कर सकता है।

❇️7 चरित्र निर्माण में सहायता

🔸अध्यापक बच्चों में उत्तम गुणों और आदर्शों को पाने के लिए प्रेरित कर सकता है।

🔸अभिप्रेरणा मात्र यही नहीं है कि लक्ष्य को ही प्राप्त करना है बल्कि इसके साथ साथ हम लक्ष्य प्राप्ति में निरंतर रूप से कार्य करते जाते हैं जिसके फलस्वरूप दिन-प्रतिदिन हमारे व्यवहार में भी निखार आता जाता है अर्थात हमारे जीवन में भी कई उत्तम और आदर्श गुणों का समावेश होता जाता है।

❇️8 सामाजिक गुणों का विकास

🔸सकारात्मक उत्साह के साथ सामुदायिक कार्य में भाग ले सकते हैं। जिसके द्वारा सामाजिक गुण सामुदायिक भावना का विकास होता है।

❇️9 अनुशासन की भावना का विकास

🔸यदि कार्य को करने में हम अभि प्रेरित होते हैं तो हम उस कार्य को करने में हमारे अंदर स्वत: ही अनुशासन की भावना का विकास हो जाता है।

🔸अर्थात अध्यापक ,विद्यार्थी को कार्य करने के लिए प्रेरित करके अनुशासनहीनता को समाप्त कर सकते हैं।

❇️10 व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार प्रगति
उचित प्रेरणा द्वारा

✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'

अभिप्रेरणा का सीखने में महत्व (importance of motivation in learning)✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ अभिप्रेरणा व्यवहार का पथ प्रदर्शन करती है। यह व्यक्ति के व्यवहार को उस प्रकार मोड़ देता है कि संतुष्टि की भावना आ जाती है।

▪️ व्यवहार को नियंत्रित निर्देशित एवं परिवर्तित करने में प्रयोग

शिक्षक प्रशंसा, निंदा, पुरस्कार एवं दंड आदि अभिप्रेरकों का प्रयोग करके बालकों में अवांछित एवं बुरे व्यवहारों को नियंत्रित, निर्देशित एवं परिवर्तित कर सकता है।

▪️ अभिप्रेरणा व्यवहार के चुनाव करती है व्यवहार का चुनाव किसी परिस्थिति में उचित प्रक्रिया को दर्शाती है।

▪️ ध्यान केंद्रित करने में सहायक

अभिप्रेरणा विद्यार्थी को प्रेरित करके उन्हें अपने ध्यान को पाठ्य वस्तु में केंद्रित करने में सहायक होती है। बालक का ध्यान तभी किसी विषय को पढ़ने में केंद्रित हो सकता है जब उसे पढ़ने के लिए प्रेरणा प्रदान की जाए।

▪️ रुचि विकसित करने में सहायक

अभिप्रेरणा बच्चों में रुचि विकसित करने की कला है। शिक्षक बालकों में उनकी आंतरिक प्रेरणा का प्रयोग कर की पढ़ने के प्रति रुचि जागृत कर सकता है। प्रेरणा के द्वारा बालकों में पढ़ने की रुचि उत्पन्न हो जाती है तो अध्ययन कार्य स्वत: सरल हो जाता है।

▪️ अधिक ज्ञान का अर्जन

अध्यापक विद्यार्थियों में उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग करके ज्ञान को तीव्र गति से अर्जित करने के लिए अभिप्रेरित कर सकते हैं।

▪️ मानसिक विकास में सहायक

शिक्षक अभिप्रेरकों का प्रयोग करके बालकों को ज्ञानार्जन के लिए अभिप्रेरित कर सकता है। ज्ञान की प्राप्ति व सीखने की क्रियाओं को प्रोत्साहित करने पर बालकों के मानसिक विकास में सहायता प्राप्त होती है।

▪️ चरित्र निर्माण में सहायक

शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों के चरित्र निर्माण के लिए उन्हें अच्छे गुणों एवं आदर्शों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करें। यदि बालकों की अभिप्रेरणा का उचित निर्देशन किया जाए तो वह अच्छे बुरे गुणों में भेद समझने में समर्थ हो जाएंगे जो कि चरित्र निर्माण के लिए परम आवश्यक है।

▪️ सामाजिक गुणों का विकास

शिक्षक को चाहिए कि शिक्षार्थी को अभिप्रेरित करे कि वह सकारात्मक उत्साह के साथ सामुदायिक कार्य में भाग लें। जिससे बच्चों में सामाजिक गुण/सामुदायिक भावना का विकास होगा।

▪️ अनुशासन की भावना का विकास

शिक्षक शिक्षार्थी को कार्य के लिए प्रेरित करके अनुशासनहीनता को समाप्त कर सकते हैं।

▪️ व्यक्तिगत विभिन्नता के साथ प्रगति

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर बच्चे हर व्यक्ति ने एक दूसरे से व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। शिक्षक को इन विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर बच्चों को अभिप्रेरित करना चाहिए। जिससे सभी बच्चे सीख सकें और सभी बच्चों का विकास हो सके।

Notes by Shreya Rai………✍️🙏

☘️🌼 अभिप्रेरणा का सीखने में महत्व🌼☘️

🔸 अभिप्रेरणा व्यवहार का पथ प्रदर्शन करती है यह व्यक्ति के व्यवहार को उस प्रकार मोड देता है कि संतुष्टि की भावना आ जाती है।

🔸 अभिप्रेरणा व्यवहार में शक्ति का संचार करती है।

🔸 अभिप्रेरणा व्यवहार का चुनाव करती है व्यवहार का चुनाव किस परिस्थिति में उचित प्रतिक्रिया को दर्शाती है।

🔸 ध्यान केंद्रित करने में सहायक होती है अभिप्रेरणा विद्यार्थियों को प्रेरित कर कर उन्हें अपने ध्यान को पाठ्य वस्तु में केंद्रित करने में सहायक होती है।

🔸 रुचि विकास करने में भी सहायक होती है अभिप्रेरणा बच्चों में रुचि विकसित करने की कला है।

🔸 अधिक ज्ञान का अर्जन करता है अध्यापक विद्यार्थी में उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग करके ज्ञान को तीव्र गति से अर्जित करने के लिए अभिप्रेरणा प्रदान कर सकता है।

🔸 चरित्र निर्माण में सहायता का करता है अध्यापक बच्चों में उत्तम गुण और आदर्श पाने के लिए प्रेरित कर सकता है।

🔸 सामाजिक गुणों का विकास होता है सकारात्मक उत्साह के साथ सामुदायिक कार्य में भाग ले सकते हैं जिसके कारण हमारे अंदर सामाजिक व सामुदायिक भावना का विकास होगा।

🔸 अनुशासन की भावना का विकास होता है अध्यापक विद्यार्थियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करता अनुशासनहीनता को समाप्त कर सकता है।

🔸 व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार प्रगति उचित प्रेरणा का प्रयोग करता है।

📚📚✍🏻 Notes by….. Sakshi Sharma✍🏻📚📚

CDP Types of thinking

🔆 चिंतन के प्रकार (types of thinking)

❇️ तार्किक चिंतन (logical thinking)➖

🔸यह सर्वोच्च प्रकार का चिंतन है क्योंकि इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति अलग-अलग विचारों का प्रयोग करके अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य करता है।
🔸तर्क लगाने के लिए व्यक्ति अलग अलग प्रकार के चिंतन के तथ्य पर सोचता है किसी एक प्रकार के तथ्य पर नहीं।

🔸अर्थात इस चिंतन में कोई व्यक्ति विभिन्न विचारों का प्रयोग किसी विशेष से लक्ष्य को ध्यान में रखकर करता है।

🔸मनुष्य इस प्रकार के चिंतन में एक-दूसरे वस्तु या घटना के मध्य संबंध स्थापित करने का प्रयास करता है।

🔸व्यक्ति किसी वस्तु या घटना या विषय के पक्ष और विपक्ष में तर्क करते हुए एक परिणाम तक पहुंचता है।
🔹जैसे यदि यह मान लिया जाए कि कोई छात्र एक कमरे में टेबल लैंप की रोशनी में पड़ रहा है और अचानक रोशनी बुझ जाती है अब छात्र के सामने समस्या खड़ी हो जाती है कि रोशनी कहां से आए वह पढ़ाई को जारी रख पाए छात्र अपने मन में कई तरह के तर्क करते हुए चिंतन कर सकता है यह सोच सकता है कि बिजली मीटर के बगल का फ्यूज तार जल गया हो या ऐसा भी हो सकता है कि बगल के कमरे का बल्ब जल रहा है तो लैंप फ्यूज हो गया हो।

🔹अत: छात्र बल्ब की जांच करेगा और यह ठीक पाता है कि बल्ब भी ठीक है तो स्पष्टत: वहनिष्कर्ष में पहुंचेगा कि लैंप का होल्डर जिसमें बल्ब लगा है वहीं कुछ खराबी होगी।

🔸इस उदाहरण से तर्कना की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि छात्र किस प्रकार से एक क्रमबद्ध रूप में तर्क करते हुए एक खास परिणाम पर पहुंचता है।

❇️निर्देशित चिंतन (directive thinking)➖

🔸इससे अभिप्राय व्यक्ति की किसी विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाला चिंतन है।

🔸अर्थात इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति का व्यवहार उसकी जीवन की ज्ञात लक्ष्य स्पष्ट लक्ष्य द्वारा निर्देशित होता है।

🔸इस प्रकार के चिंतन दिवास्वपन ,स्वतंत्र ,साहचर्य और कल्पना की उड़ान जैसी अनिर्देशित घटना से परिचालित होते हैं।

❇️परावर्तित चिंतन (reflective thinking)➖

🔸मनुष्य जीवन के विभिन्न पहलुओं और उनमें किए जाने वाले व्यवहार प्रति मानव को सार्थक बनाने के लिए चिंतन करता है।

🔸इस चिंतन के द्वारा जटिल समस्या का समाधान आसानी से होता है क्योंकि पूर्व अनुभव का प्रयोग करते हुए नए ढंग से आने वाली समस्या का समाधान किया जाता है।

✨जिम्बार्डो एवम रुक के अनुसार चिंतन दो प्रकार के होते हैं।
📍1. स्वली चिंतन [autistic thinking]
📍2 यथार्थवादी चिंतन [realistic thinking]

⚜️1 स्वली चिंतन [autistic thinking]➖

🔸यह चिंतन कल्पनात्मक विचार और दिवास्वपन पर आधारित होता है।

🔸स्वली चिंतन वैसे चिंतन को कहा जाता है। जिसमे व्यक्ति अपनी कल्पनाओं और इच्छाओं की अभिव्यक्ति करता है।जैसे यदि कोई छात्र यह कल्पना करता है कि पढाई खत्म हो जाने के बाद वह बड़ा अफसर बनेगा । उसके पास एक सुंदर बंगला होगा । चमचमाती कार होगी । तो यह स्वली चिंतन का उदाहरण है। इसके अंदर किसी समस्याकासमाधान नहीं होता है।

🔸स्वली चिंतन को हम अपने जीवन के अंदर सबसे ज्यादा बार प्रयोग करते हैं। हम अपने जीवन के अंदर जितनी भी कल्पना करते हैं। वह स्वली चिंतन कहलाता है। मतलब की यह एक कल्पना का नाम है। जैसे आप कल्पना करते हैं कि आप कल अपनी पत्नी को घूमाने के लिए लेकर जाएंगे और वहां पर उनके साथ मजे करेंगे । इसके अलावा आप सोचते हैं कि एक दिन आपके पास बहुत सारा धन होगा और आपके पास कई गाड़ियां होगी यह सब स्वली चिंतना के उदाहरण हैं। मतलब कल्पना जिसका तर्क से नहीं है। वह स्वली चिंतन का ही उदाहरण है।

⚜️यर्थाथवादी चिंतन/वास्तविक चिंतन [realistic thinking]➖

🔸इस प्रकार के चिंतन का संबंध वास्तविक परिस्थितियां घटना से होता है जिसकी सहायता से व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करता है।

🔸यह वैसा चिंतन है जिसका संबंध वास्तविकता से होता है। इसके द्वारा किसी समस्या का समाधान किया जाता है। जैसे कोई व्यक्तिकार के अंदर बैठ कर सफर कर रहा है। अचानक उसकी कार रूक जाती है तो उसके दिमाग के अंदर पहला प्रश्न आता है कार कैसे रूकी । फिर वह इस समस्याकेसमाधान के लिए चिंतन करता है। यह चिंतन तीन प्रकार का होता है। यर्थाथवादी चिंतन एक ऐसा चिंतन है जब हमे हमारे दिमाग को किसी एक दिशा के अंदर सोचने के लिए विवश करना पड़ता है। किसी भी तरीके की समस्या यदि हमारी जिंदगी के अंदर आ जाती है।

🔸और उसका हम समाधान करना चाहते हैं तो हमे यर्थाथवादी चिंतन करना होता है। जैसे पीछले दिनों मेरा कम्पयूटर खराब हो गया था तो उसके बाद मैं यह सोचने लगा कि इसको कैसे ठीक किया जा सकता है। और अंत मे वह ठीक नहीं हुआ तो उसके बाद मैं उसे रिपेयर के पास लेकर गया । मतलब आपके जीवन के अंदर जब जब कोई भी समस्या आएगी तब तब यही चिंतना होगा आप भले ही करना ना चाहो लेकिन उसके बाद हो जाएगा ।

▪️यथार्थवादी चिंतन तीन प्रकार के होते हैं।

📍1. अभिसारी चिंतन [convergent thinking]

📍2. सर्जनात्मक चिंतन [creative thinking]

📍3. आलोचनात्मक चिंतन [evaluating thinking]

🌺1. अभिसारी चिंतन [convergent thinking]

किसी दी गई परिस्थिति यह विषय वस्तु में तथ्यों के आधार पर समस्या का समाधान निकालते हैं।

इसी निगमनात्मक चिंतन भी बोला जाता है।

इसमें समस्या का निश्चित समाधान निकल जाता है।

अभिसारी चिंतन को इस उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है।
🔹उदाहरण — जब शिक्षक बालक से प्रश्न करता है कि बताओ उत्तर प्रदेश की राजधानी क्या है??
तो बालक उत्तर देता है कि लखनऊ।
इस प्रश्न का उत्तर एक ही बिंदु पर केंद्रित है, की उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ही है, कोई और नहीं ।
अतः यहाँ पर बालक अभिसारी चिंतन का प्रयोग कर के प्रश्न का उत्तर देता है।

🌺2.सर्जनात्मक चिंतन/अपसारी चिंतन/आगमनात्मक चिंतन [creative thinking]

🔸 इस चिंतन के अंदर व्यक्ति को कुछ तथ्य तो दिए होते हैं उनमे अपनी और से एक तथ्य जोड़कर निष्कर्स निकाला जाता है। जैसे किसी व्यक्ति को कलम का असाधारण प्रयोग करने को कहा जाए । तब व्यक्ति को इसमे अपनी ओर से कुछ जोड़ना होता है।

🔸सर्जनात्मक चिंतन का मतलब आप जानते ही हैं। कुछ नया करना अब कुछ नया करने के अंदर कई चीजे आती हैं। जैसे जेम्स वॉट को भाप इंजन के बारे मे बहुत कुछ पता चल गया था और उसके बाद उसने इंजन के अंदर सुधार करते हुए । एक चलने वाला इंजन तैयार कर दिया ।

🔸अपसारी चिंतन को इस उदाहरण से भी आसानी से समझा जा सकता है।
🔹उदाहरण – जब कक्षा में एक शिक्षक किसी विद्यार्थी से प्रश्न करता है कि यदि तुम्हारे पंख लगे होते तो तुम क्या करते ??
इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर नहीं है अतः ऐसी स्थिति में बालक इसके बारे में कल्पना करेगा और फिर अपने विचार कुछ इस तरह से प्रस्तुत करेगा—

  1. मुझे घूमना बहुत पसंद है अगर मेरे पंख होते तो मैं पूरी दुनियां को सैर करता।
  2. मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त था अब वो विदेश पढ़ने चला गया, अगर मेरे पंख होते तो जब भी मेरा मन होता मैं उससे मिलने चला जाता ।
  3. अगर मेरे पंख होते तो मैं आसमान में पक्षियों के साथ उड़ने की रेस लगाता।
    अतः यहाँ पर बालक ने अपसारी चिंतन का प्रयोग कर के प्रश्न का उत्तर दिया है।

🌺3.आलोचनात्मक चिंतन [evaluating thinking]

🔸किसी घटना को आलोचना की दृष्टि से देखना।
अर्थात घटना की वास्तविकता की जांच पड़ताल करके ही उसके गलत सही को स्वीकार करते हैं ।

🔸किसी वस्तु या तथ्य की सचाई को स्वीकार करने से पहले उसके गुण व दोष को पूरी तरह से परख लेना ही आलोचनात्मक चिंतन का उदाहरण है। हमारे समाज के अंदर कुछ व्यक्ति तो ऐसे हैं जो किसी भी बात को बिना सोचे समझे ही स्वीकार कर लेते हैं। तब यह कहा जा सकता है कि उनमे आलोचनात्मक चिंतन power कमजोर है।

✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'

चिंतन के प्रकार (type of thinking)
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

तार्किक चिंतन (logical thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ यह सर्वोच्च प्रकार का चिंतन है। इस चिंतन में कोई व्यक्ति विभिन्न विचारों का प्रयोग किसी विशिष्ट लक्ष्य को ध्यान में रखकर करता है।

▪️ मनुष्य इस प्रकार की चिंतन में एक दूसरी वस्तु या घटना के मध्य संबंध स्थापित करने का प्रयास करता है।

जैसे-

हम किसी वस्तु को कहीं रखकर भूल जाते हैं तो हम विचार करते हैं कि हमने उस वस्तु को आखिरी बार कहां रखा। हम पूरे दिन भर कहां- कहां गए, किस स्थान पर बैठे, इत्यादि तर्क लगाते हैं और निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि हमने उस वस्तु को अपने कार्यालय में मेज पर छोड़ा है और वह वस्तु वहां जाने पर मिल जाती है। इस प्रकार समस्या का समाधान हो जाता है।
अतः हम कह सकते हैं कि अपनी खोई हुई वस्तु को प्राप्त करने के लिए जो चिंतन का प्रयोग किए, तार्किक चिंतन कहलाता है।

निर्देशित चिंतन (directive thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ इससे अभिप्राय व्यक्ति के द्वारा किसी विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला चिंतन है।

▪️ इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति का व्यवहार उसकी जीवन के ज्ञात लक्ष्य या स्पष्ट लक्ष्य द्वारा निर्देशित होता है।

अनिर्देशित चिंतन ( undirective thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ मनुष्य किसी स्पष्ट उद्देश्य और लक्ष्य के बिना ही निर्देशित हुए चिंतन प्रक्रिया को जारी रखते हैं।

▪️ इस प्रकार के चिंतन प्राय: दिवास्वप्न, स्वतंत्र साहचर्य और कल्पना की उड़ान जैसे अनिर्देशित घटना से परिचित होते हैं।

परावर्तित चिंतन (reflective thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ मनुष्य जीवन के विभिन्न पहलुओं और उनमें किए जाने वाले व्यवहार प्रतिमान को सार्थक बनाने के लिए चिंतन करता है।

▪️ इस चिंतन के द्वारा जटिल समस्या का समाधान आसानी से हो जाता है क्योंकि पूर्व अनुभव का प्रयोग करते हुए नए ढंग से आने वाली समस्या का समाधान किया जाता है।

जिंबार्डो एवम् रुक के अनुसार चिंतन दो प्रकार का होता है………

(1) स्वली चिंतने (autistic thinking)

(2) यथार्थवादी चिंतन (realistic thinking)

(1). स्वली चिंतन (self thinking/autistic thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ यह चिंतन कल्पनात्मक विचार और दिवास्वप्न पर आधारित होता है इससे किसी समस्या का समाधान नहीं होता।

▪️ इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति या बच्चा अपनी कल्पनाओं और इच्छाओं की अभिव्यक्ति करता है।

उदाहरण,
विद्यार्थी सोचता है कि एक दिन हमारी शिक्षा पूरी होगी और हम अच्छी नौकरी करेंगे, उससे नई गाड़ी लेंगे, नया घर लेंगे, शादी करेंगे इत्यादि ‌।

(2). यथार्थवादी चिंतन (realistic thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ इस प्रकार के चिंतन का संबंध वास्तविक परिस्थिति या घटना से होता है जिसकी सहायता से व्यक्ति समस्या का समाधान करता है। जैसे- कोई व्यक्ति कार से सफर कर रहा है और कार रास्ते में अचानक रुक जाती है। तब व्यक्ति के दिमाग में पहला प्रश्न आता है कि कार कैसे रुकी फिर वह इस समस्या के समाधान के लिए चिंतन करता है।

यह तीन प्रकार का होता है……..

(1). अभिसारी चिंतन (convergent thinking)

(2). सृजनात्मक चिंतन (creative thinking)

(3). आलोचनात्मक चिंतन (evaluating thinking)

(1). अभिसारी चिंतन (convergent thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ किसी दी गई परिस्थिति या विषय वस्तु में तथ्यों के आधार पर समस्या का समाधान निकलता है इसे निगमनात्मक चिंतन भी कहते हैं। इससे समस्या का निश्चित समाधान निकलता है।

जैसे- कक्षा 3 के बच्चे से बोला जाए कि 4 और 3 कितना होता है इस समस्या का समाधान बच्चा अभिसारी चिंतन के प्रयोग से कर लेता है।

(2). सृजनात्मक चिंतन/अपसारी चिंतन/आगमनात्मक चिंतन (creative thinking/divergent thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ परिस्थिति के तथ्य के साथ नए तथ्यों विचारों को जोड़कर समस्या समाधान करते हैं।

▪️ इसमें नए तथ्यों का सृजन किया जाता है। जैसे –

कोई कवि, किसी कविता का निर्माण करता है। कोई लेखक, किसी नई बुक को लिखता है। डॉक्टर, सर्जरी करता है। चित्रकार, चित्रकारी करता है। इन सभी में सृजनात्मक चिंतन का प्रयोग किया जाता है।

(3). आलोचनात्मक चिंतन (evaluating thinking)
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ किसी वस्तु या तथ्य की सच्चाई को स्वीकार करने से पहले उसके गुण व दोष को पूरी तरह से परख लेना ही आलोचनात्मक चिंतन का उदाहरण है। हमारे समाज के अंदर कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो किसी भी बात को बिना सोचे समझे ही स्वीकार कर लेते हैं तब यह कहा जा सकता है कि उनमें आलोचनात्मक चिंतन शक्ति कमजोर है।

▪️ इसका सबसे अच्छा उदाहरण है राजनीति। इसमें आलोचनात्मक चिंतन का प्रयोग सबसे अधिक होता है।
एक पार्टी दूसरी पार्टी की बुराई करने के लिए आलोचनात्मक चिंतन का प्रयोग करता है।

Notes by Shreya Rai………..✍️🙏

Batch-Complete Course On Child Development and Pedagogy
Date-5/05/2021
Time-8:00am
Topic-. Different types of Thinking तार्किक चिंतन

तार्किक चिंतन सर्वोच्च प्रकार का चिंतन होता है अर्थात या उच्च स्तरीय चिंतन है।

इस प्रकार के चिंतन में कोई व्यक्ति विभिन्न विचारों का प्रयोग किसी विशिष्ट लक्ष्य को ध्यान में रखकर करता है अर्थात व्यक्ति इस प्रकार के चिंतन का प्रयोग लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार के गतिविधियों, क्रिया कलापों इत्यादि का समावेशन करके करता है।

मनुष्य इस प्रकार के चिंतन में एक दूसरी वस्तु या घटना के मध्य संबंध स्थापित करने का प्रयास करता है।

जैसे÷कक्षा 2 के विद्यार्थी का 2 अंक व 3 अंकों का जोड़ घटाना सीख लेता है अब वो जब परीक्षा देकर अगली कक्षा में जाएगा तो वह जिस प्रकार से पिछली कक्षा में दो व तीन अंकों का जोड़ घटाना करता था ठीक उसी प्रकार व चार या पांच अंकों का जोड़ घटाना सीखने लगता है ,और करना शुरू कर देता है।
अर्थात व्यक्ति के जीवन में घटित हुई किसी भी घटना का भविष्य में होने वाली घटना से संबंध स्थापित करके उसका निष्कर्ष खोज लेता है। निर्देशित चिंतन

इस प्रकार के चिंतन से अभिप्राय व्यक्ति के द्वारा किसी विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला चिंतन है इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति का व्यवहार उसके जीवन के स्पष्ट लक्ष्य द्वारा निर्देशित होता है।

व्यक्ति के सामने एक लक्ष्य निर्धारित होता है और वह उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए स्वयं को उसके अनुकूल बनाने की कोशिश करता है इसके लिए वह अपने दैनिक जीवन में भी ऐसे क्रियाकलापों को अपना आता है जिसके द्वारा वह लक्ष्य के धीरे-धीरे करीब पहुंचता जाता है,

जैसे÷ कोई विद्यार्थी अपने कक्षा में उच्चतम स्थान प्राप्त करना चाहता है इसके लिए वह सर्वप्रथम एक रणनीति तैयार करता है कि वह किस प्रकार से अध्ययन करें कि उस को उच्चतम स्थान प्राप्त हो और फिर उसी रणनीतियां टाइम टेबल के द्वारा वर्ष भर मेहनत करके तैयारी करता है और परीक्षा में उच्चतम स्थान प्राप्त करता है। अनिर्देशित चिंतन

मनुष्य किसी स्पष्ट उद्देश्य लक्ष्य के बिना ही निर्देशित हुए चिंतन प्रक्रिया को जारी रखते हैं।
इस प्रकार के चिंतन पर्याय दिवास्वप्न, साहचर्य और कल्पना की उड़ान भरता हैं।
अर्थात इस प्रकार के चिंतन में लक्ष्य की प्राप्ति का होना सुनिश्चित नहीं होता है ना ही उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोई गतिविधि या कार्य किया जाता है जिसके द्वारा लक्ष्य की प्राप्ति हो किंतु व्यक्ति क्षणिक आत्म संतुष्टि के लिए इस प्रकार का चिंतन करता है। परावर्ती चिंतन

पूर्व अनुभव किए गए चीजों को नए अनुभव उपयोग किया जाता है।
मनुष्य जीवन के विभिन्न पहलुओं और उन में किए जाने वाले व्यवहार के प्रतिमान को सार्थक बनाने के लिए चिंतन करता है।
चिंतन के द्वारा जटिल समस्या का समाधान आसानी से किया जाता है, क्योंकि पूर्व अनुभव का प्रयोग करते हुए नए ढंग से आने वाली समस्या का समाधान किया जाता है।

जिम्बार्डो एवं रुक ने चिंतन के निम्नलिखित प्रकार बताए हैं÷

१-स्वली चिंतन
यह चिंतन कल्पनात्मक विचार और दिवास्वपन पर आधारित होता है, इससे किसी समस्या का समाधान नहीं होता है।
२-यथार्थवादी
इस प्रकार के चिंतन का संबंध वास्तविक परिस्थिति या घटना से होता है। जिसकी सहायता से किसी का या परिस्थिति का समाधान करता है।

२-यथार्थवादी चिंतन को ३ भागों में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित है÷
२क-अभिसारी÷
किसी दी गई परिस्थिति या विषय वस्तु में तथ्यों के आधार पर समस्या का समाधान निकलता है।
इसे निगमनात्मक चिंतन भी बोलते हैं।
इसमें समस्या का उचित एवं निश्चित समाधान निकल जाता है।

२ख÷सृजनात्मक÷
परिस्थिति के तथ्यों के साथ नए तथ्यों विचारों को जोड़कर समस्या समाधान करते हैं।
इसमें नए तथ्यों का सृजन किया जाता है।
इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति किसी एक समस्या पर अपनी सूझबूझ के द्वारा किसी एक समस्या का अपनी सूझबूझ द्वारा हल निकालने की कोशिश में अनेक प्रकार की खोज व प्रयोग विश्लेषण तार्किक चिंतन इत्यादि विचारों का समाधान बेहतर ढ़ंग से खोज लेता है।

२ग÷आलोचनात्मक
किसी घटना को आलोचना की दृष्टि से देखते हैं।
घटना की वास्तविकता की जांच पड़ताल करके सही गलत को स्वीकार करता है।
इसमें वास्तु घटना या तत्व के गुण दोष की परख की जाती है।
अर्थात इसमें किसी वस्तु के गुण वा दोष दोनों को एक साथ विश्लेषण करके उस पर कोई निष्कर्ष निकाला जाता है जिसके द्वारा यह देखा जाता है कि वह वस्तु मूल्यांकन की दृष्टि से कितने प्रतिशत अपने जगह पर सही है।

written by Shikhar Pandey 🙏

CDP Theory of reinforcement

🌀हल का सिद्धांत/पुनर्बलन का सिद्धांत (theory of reinforcement)➖

✨ सिद्धांत का प्रतिपादन क्लार्क एल हल ने किया।

✨क्लार्क एल हल यूएसए के रहने वाले थे।

✨यह सिद्धांत इन्होंने फोन डाइट में पावलव पर आधारित सिद्धांत पद्धति पर दिया।

✨1915 में “प्रिंसिपल ऑफ बिहेवियर” या व्यवहार का सिद्धांत नामक पुस्तक में पुनर्बलन पर जोर देते हुए हर तथ्य पर जोर दिया गया।

✨प्रयोग :- हमने अपने प्रयोग चूहे एवं बिल्ली पर किए।

✨हल ने थोर्नडायक एवम पावलव की थ्योरी को माना उसको महत्व देकर आगे बढ़ाकर इस थ्योरी को प्रस्तुत किया।

✨सीखना आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता है।।
✨हल के अनुसार प्रत्येक प्राणी अपनी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए प्रयास करता है।

✨सीखने का आधार किसी आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया में होता है।
✨अर्थात कोई भी प्राणी उसी कार्य को सीखता है जिसमें उसकी किसी आवश्यकता की पूर्ति होती है।

✨हम किसी भी कार्य को तभी करते हैं जब हमारी आवश्यकता की पूर्ति होती है और उस आवश्यकता की पूर्ति करने में ही हम उस कार्य को सीख जाते हैं।

✨स्किनर ने सी.एल. हल के सिद्धांत को अधिगम का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत बताया।

✨क्योंकि यह सिद्धांत आवश्यकता और प्रेरणा पर बल देता है इसलिए शिक्षार्थी को प्रेरित करके ही सिखाया जा सकता है।

✨मात्र व्यक्ति की आवश्यकता ही नहीं बल्कि प्रेरणा भी बहुत महत्वपूर्ण होती है अतः आवश्यकता की पूर्ति को प्रेरणा द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।

🌀सी. एल. हल् के पुनर्बलन सिद्धांत का शैक्षिक महत्व➖

⚜️1 शिक्षक द्वारा बच्चे को प्रेरित किया जाना चाहिए।

🔸शिक्षक को बच्चे को उनके लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित किया जाना चाहिए। जिससे वह अभी प्रेरित होकर अपने लक्ष्य को आसानी से एक निश्चित रूप से प्राप्त कर सकें।

⚜️2 यह सिद्धांत पाठ्यक्रम बनाते समय विद्यार्थियों की आवश्यकता पर भी बल देता है।

🔸अर्थात संपूर्ण पाठ्यक्रम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जो बच्चे की क्षमता व आयु या उनकी जरूरत के हिसाब से रखा जाए अर्थात पाठ्यक्रम का निर्माण बच्चे के अनुरूप किया जाना चाहिए।

⚜️3 शिक्षण के दौरान जो भी प्रकरण है उनके उद्देश्य उनका मकसद स्पष्ट होना चाहिए।

🔸अर्थात जो भी प्रकरण बनाए गए हैं उनका क्या उद्देश्य है?या उनका क्या मकसद है? या वह किस आधार पर बनाए गए हैं? या उनके द्वारा हम किस प्रकार के उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं इस बात का ज्ञान स्पष्ट होना चाहिए।

🔸अर्थात हमारे लक्ष्य स्पष्ट होते हैं तो उन लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमारे मुख्य उद्देश्य या मकसद भी स्पष्ट होना चाहिए।

⚜️4 पुरस्कार और दंड की उचित व्यवस्था और अभिप्रेरणा दिया जाना चाहिए।

🔸यदि किसी बच्चे द्वारा कोई कार्य को करने पर यह भय है कि वह कार्य गलत है तो उस बच्चे के साथ कक्षा कक्ष के अन्य बच्चों को भी उस गलत कार्य को करने से रोका जा सकता है।

🔸यदि को गलत बातों पर नियंत्रण करने के लिए उचित पुरस्कार व दंड का प्रयोग किया जाना चाहिए।

🌺 उपनाम :-

📍-प्रबलन का सिद्धांत
📍-अंतरनाद न्यूनता का सिद्धांत
📍-सबलीकरण का सिद्धांत
📍-यथार्थ अधिगम का सिद्धांत
📍-सतत अधिगम का सिद्धांत
📍-क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत
📍-चालक न्यूनता का सिद्धांत।

✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'

पुनर्बलन का सिद्धांत/हल का सिद्धांत
(theory of reinforcement) –
✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ पुनर्बलन का सिद्धांत का प्रतिपादन क्लार्क. एल. हल ने किया था। यह अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे। इन्होंने अपना सिद्धांत थार्नडाइक और पावलव के सिद्धांत के आधार पर दिया था।

▪️ उन्होंने 1915 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम “principle of behaviour” था।

▪️ यह सिद्धांत आवश्यकता पर बल देता है।

▪️ इन्होंने अपना प्रयोग चूहा और बिल्ली पर किया था, क्योंकि इनका प्रयोग थार्नडाइक और पावलव पद्धति पर आधारित था।

▪️ हल के कथन के अनुसार“सीखना आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता है।”

▪️ इनके अनुसार आवश्यकता अधिगम का आधार है अर्थात आवश्यकता ही चालक है। आवश्यकता पूरी होते ही चालक कम हो जाता है जिससे अधिगम की दर कम होने लगती है।

हल के अनुसार,
प्रत्येक प्राणी अपने आवश्यकता को संतुष्ट करने का प्रयास करता है। सीखने का आधार किसी आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया में होता है। कोई भी प्राणी उसी कार्य को सीखता है जिसमें उसके किसी आवश्यकता की पूर्ति होती है।

▪️ स्किनर ने C.L. हल के सिद्धांत को आदर्श एवं अधिगम का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत (ideal and most elegant theory) बताया है क्योंकि यह सिद्धांत आवश्यकता और प्रेरणा पर बल देता है।
इसलिए शिक्षार्थी को प्रेरित करके ही सिखाया जा सकता है।

पुनर्बलन के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व
(Educational importance of reinforcement theory)

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ यह सिद्धांत बालकों में अधिगम के लिए प्रेरणा पर बल देता है।

▪️ इस सिद्धांत के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण बालकों की आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए।

▪️ पढ़ाए गए प्रकरण के उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए।

▪️ बालकों की क्रिया तथा आवश्यकता में मध्य संबंध होना चाहिए।

▪️ अधिगम बालकों की आवश्यकता की पूर्ति करने वाला होना चाहिए।

▪️ पुरस्कार और दंड की व्यवस्था होनी चाहिए।

▪️ लक्ष्य स्पष्ट होने चाहिए।

पुनर्बलन सिद्धांत के अन्य नाम
(Other names of theory of reinforcement)

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

▪️ प्रबलन का सिद्धांत
▪️ अंतर्नोद न्यूनता का सिद्धांत
▪️ सबलीकरण का सिद्धांत
▪️ यथार्थ का सिद्धांत
▪️ सतत अधिगम का सिद्धांत
▪️ क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत
▪️ चालक न्यूनता का सिद्धांत
▪️ उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धांत
▪️ आवश्यकता की कमी पूर्ति का सिद्धांत

Notes by Shreya Rai…….✍️🙏

🔥 Batch-UPTET🔥
Date-4/01/2021
Time-9:00am
🎉 Topic -Theory of Reinforcement🎉
🎊 (पुनर्बलन का सिद्धांत)🎊

🌟सिद्धांत का प्रतिपादन÷ क्लार्क हल के द्वारा किया गया।

🌟क्लार्क हल अमेरिका के मूल निवासी थे।

🌟इन्होंने अपना यह सिद्धांत थार्नडाइक वा पावलाव पद्धति के आधार पर दिया।

🌟इन्होंने 1915 में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम”principle of behaviour था ।

🌟यह आवश्यकता पर बल देता है।

🌟इन्होंने अपना प्रयोग चूहा बिल्ली पर किए थे, क्योंकि इनका प्रयोग पावलव व थार्नडाइक पद्धति को आधार बनाकर किया।

🌟सीखना, आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता है (सिर्फ आवश्यकता पर जोर देने से पुनर्बलन नहीं होगा बल्कि आवश्यकता किस पूर्ति भी होना भी महत्वपूर्ण है तभी पुनर्बलन मिलेगा और अभिप्रेरणा बढ़ेगी।
⭐उदाहरण-यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए सिर्फ सोचते हैं कि मुझे यह परीक्षा पास करनी है तो इससे पुनर्बलन नहीं मिलेगा बल्कि जब आप उस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए परिश्रम लगन व एकाग्रता के साथ उस पर काम करेंगे तो इससे आपका मनोबल बढ़ेगा और जब आप परीक्षा में अच्छा अंक प्राप्त कर लेंगे तो आपका पुनर्बलन के रूप में परिणाम प्राप्त होगा जो कि आपको भविष्य में किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेरित करेगा।

🌟हल का कथन÷हल ने कहा कि”प्रत्येक प्राणी अपनी आवश्यकता को संतुष्ट करने का प्रयास करता है”,
सीखने का आधार किसी आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया में निहित होता है, कोई प्राणी किसी कार्य को तभी करता है जब उसकी उस कार्य से आवश्यकता की पूर्ति होती है।

🌟स्किनर ने हल के”पुनर्बलन सिद्धांत “को अधिगम का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत बताया, इस सिद्धांत को सर्वश्रेष्ठ बताने का कारण यह था कि उन्होंने बताया कि यह सिद्धांत आवश्यकता और प्रेरणा पर बल देता है,
क्योंकि शिक्षार्थी को प्रेरित करके ही सिखाया जा सकता है अन्यथा शिक्षण प्रक्रिया उसके लिए नीरस हो जाएगी। ✨✨ क्लार्क हल के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व✨✨

🌟इनके सिद्धांत में पुनर्बलन है, आवश्यकता के साथ-साथ प्रेरणा की बात भी करता है जिससे बच्चों को सीखने के लिए बेहतर तरीके से प्रेरित किया जाता है और इससे अधिगम सुगम हो जाता है और बच्चे बिना किसी निरसता के सीखने में सक्रिय रुप अधिगम में भाग लेते हैं।

🌟शिक्षक को पाठ्यक्रम बनाते समय विद्यार्थी की आवश्यकता को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम को बनाने में बल देता है, क्योंकि एक बेहतर पाठ्यक्रम तभी हो सकता है जब शिक्षक विद्यार्थी की रूचि उसकी आवश्यकता उसके ज्ञान का स्तर व व किस प्रकार से सीख सकता है इन सब कुछ समझ कर पाठ्यक्रम का निर्माण करता है तो विद्यार्थी उस पाठ्यक्रम को सरलता के साथ सीख लेता है।

🌟शिक्षक द्वारा विद्यार्थी को पढ़ाए जाने वाले प्रकरण या पाठ्यक्रम के उद्देश्य को स्पष्ट होना चाहिए जिससे बच्चे बेहतर ढंग से उस विषय वस्तु को सीख सकें व ग्रहण कर सकें और अपने भावी जीवन में उनका प्रयोग कर सकें ।

🌟पुरस्कार और दंड की व्यवस्था उचित की जाए जिससे विद्यार्थी द्वारा गलत कार्य करने पर दंड दिया जाता है तो वह गलत कार्य करने से बचेगा क्योंकि गलत कार्य करने से उसे दंड की प्राप्ति होगी और साथ ही पुरस्कार देने से बच्चे उस कार्य को बेहतर वा लगन,रुचि के साथ कार्य को ढृंढ़तापूर्वक करेंगे जिससे अधिगम बेहतर होता है और साथ ही उनमें सकारात्मक अभिप्रेरणा का विकास होगा ,
बालकों को पुरस्कार और दंड उचित स्थिति के अनुसार देने के साथ-साथ प्रेरणा भी दी जानी चाहिए किसी भी कार्य को करने के प्रति ऊर्जावान महसूस करते हैं और सीखने में नीरसता भी नहीं रहती और उस कार्य में अपना शत प्रतिशत योगदान देते हैं जिसके द्वारा अधिगम सुगम, स्पष्ट व उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।

🌟शिक्षक को विद्यार्थी के लक्ष्य को ध्यान में रखकर शिक्षण-प्रशिक्षण कराना चाहिए ताकि उसके अधिगम के उद्देश्य की पूर्ति भी होती रहे और अधिगम भी सुचारू रूप से चलता है क्योंकि यदि शिक्षक लक्ष्य को ध्यान में रखकर नहीं कराता है तो बालकों की रुचि प्रेरणा उत्साह इत्यादि सतत रूप से नहीं रहती है ना ही फिर सरगम का कोई महत्व रह जाता है उद्देश्य हो जाता है और फिर धीरे-धीरे शिक्षण प्रशिक्षण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होने लगती है और वह प्रशिक्षण बालकों को बोझिल सा प्रतीत होने लगता है।

⚡⚡अधिगम के उपनाम⚡⚡
💢*प्रबलन का सिद्धांत💢
💢अंतर्नोद का सिद्धांत💢
💢सबलीकरण का सिद्धांत💢
💢यथार्थ का सिद्धांत💢
💢सतत अधिगम का सिद्धांत💢
💢क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत💢
💢चालक न्यूनता का सिद्धांत💢

💢Handwritten by-Shikhar Pandey🙏