मनोवैज्ञानिक को खेल-खेल में याद करें

Vaishali Mishra

सब चालीसा सुनकर , रचना की कविराय।
टेट सीटेट को ध्यान दे, कलम लीन्ह उठाय।। *चौपाई*

जय साइको विज्ञान उजागर,
साईक लोगस से भरा है गागर।

विलियम वुन्ट अति बिशाला,
लिपजिंग मध्य खोली प्रयोगशाला।

टिचनर,वुन्ट संरचनावादी,
विलियम जेम्स प्रकार्य वादी।

वाटशन जी ब्यवहार के ज्ञाता,
कोहलर वर्थिमर गेस्टाल्ट दाता।

थार्नडाइक सम्बन्धवाद को जाना,
तत्परता अभ्यास प्रभाव बखाना।

प्रयत्न भूल विधि के तुम दाता,
उद्दीपक-अनुक्रिया के तुम ज्ञाता।

सूझ सुल्तान कोहलर ने लाया,
स्किनर क्रिया प्रसूत सिखाया।

प्राचीन अनुबंधन पावलव ने लाया ,
भोजन घंटी में सम्बन्ध समझाया।

उपलब्धि अभिप्रेरण एटकिन्सन जाना,
आवश्यक्ता पदानुक्रम मैंसलो ने माना।

पठन विकृति को कहते डिस्लेक्सिया,
अधिगम विकृति डिस्फेजिया।

लेखन विकृति डिसग्राफिया कहलाई,
गणित विकृति डिस्केलकुलिया भाई।

किंडरगार्टन बच्चो का बगीचा,
फ्रॉबेल ने इसको प्रेम से सीचा।

बुनियादी शिक्षा गांधी जी को भाया,
प्रोजेक्ट प्रणाली किल पैट्रिक ने लाया।

खेल विधि मोरेनो ने बताया,
मांटेसरी विधि मारिया ने बताया।

गोलमैन संवेग का सिद्धांत लाया,
गाल्टन ने बुद्धि पर कदम बढ़ाया।

मूर्त अमूर्त सामाजिक बुद्धि,
प्राप्त किये थार्नडाइक सिद्धि।

प्रथम माप बिने बुद्धि का किन्हा,
टर्मन बुद्धि-लब्द्धि दे दिन्हा।

क्रियात्मक बुद्धि सेग्विन ने बनाया,
मंद बुद्धि को माप भी दिखाया।

एक कारक विने बुद्धि बताई,
द्विकारक स्पियरमैन ने लाई।

त्रियामी गिल्फोर्ड का भाई,
थार्नडाईक बहुकारक समझाई।

गार्डनर जी बहु बुद्धि के दाता,
वर्ट-वर्नन पदानुक्रमिक के ज्ञाता।

तरल ठोस बुद्धि कैटेल को जानो,
तीन कारक स्पियरमैन का मानो।

समूह करक थर्स्टन ने बताया,
पास एलॉन्ग अलेक्जेंडर ने बनाया।

बैटरी परिक्षण भाटिया में दीन्हा,
विने-साइमन परिक्षण विने ने कीन्हा।

व्यक्तित्व शब्द से पर्सोना आया,
हिंदी में अर्थ मुखौटा लाया।

आलपोर्ट समायोजन में समझाये,
खुशमिजाज व्यक्तित्व ही भाये।

सिग्मंड फ्रायड मनोविश्लेषी,
चेतन अर्ध अचेतन अभिलेखी

इड ईगो सुपर आपबखाना,
मूल प्रबृत्ति जीवन मृत्यु माना।

इरोस शब्द जीवन का मूलक,
थैनटास है मृत्यू समूलक।

नवमनोविश्लेषण जब आया,
एडलर,युंग,हार्नी,ने मिल गाया।

हिप्पोक्रिटस प्रथम प्रकार बताया,
शारीरिक द्रब्य में सब पाया।

क्रेश्चमर शरीर गठन को जाना,
स्थूल,कृश, पुष्ट,विशाल को माना।

शेल्डन ने भी शरीर को गाया,
एण्डो, मोसो,एक्टोमाँर्फी पाया।

मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग का जानो,
अंतर्मुखी बहिर्मुखी को मानो।

नैतिक विकास कोहल्बर्ग का भाई,
विकासवाद लैमार्क ने लायी।

TAT मॉर्गन मरे को अति भाया,
स्याही धब्बा विधि ऱोर्शा ने लाया।

सोलह कारक कैटेल का जानो,
CAT बेल्लाक का ही मानों।

MPPI मापनी हाथवे का भाई,

जो पढ़े यह साइको चालीसा
टेट सीटेट में पास ही दिखा।।

CDP – New approach of Elementary Education

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿SUPERTET BATCH
DATE -20 MAY
🍄 प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास 🍄
20वीं शताब्दी को बालको की शताब्दी कहा जाता है

🏵🏵अखिल भारतीय सर्वेक्षण संस्थान-1978🏵🏵

👉इस सर्वे मे निम्नलिखित बातें सामने आयी-

  1. 9% स्कूल के पास अपना भवन नहीं हैं |
  2. 41% स्कूल मे ब्लैक बोर्ड नहीं हैं |
  3. 72% स्कूल मे पुस्तकालय नहीं हैं |
  4. 89% स्कूल मे शौचालय नहीं हैं |

🍁 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986🍁

👉लागू-1987 मे लागू किया |

👉ओपरेशन ब्लैक बोर्ड का प्रावधान किया गया |

🍁 प्रारंभिक विद्यालय के लिए न्यूनतम सामग्री होना आवश्यक हैं 🍁

न्यूनतम अध्यापक सामग्री–

  1. पाठ्यपुस्तक
  2. पाठ्यक्रम
  3. अध्यापक
  4. निर्देशिका

खेल सामग्री–

  1. फुटबॉल ⚽
  2. बॉलीबॉल🏀
  3. रस्सी कूदने के लिए

वाद्य यंत्र–

  1. हारमोनियम
  2. तबला

🍁ओपरेशन ब्लैक बोर्ड🍁

➡लागू- 1987 किया गया

➡ धारा – 45 के अंतर्गत 6-14 वर्ष के सभी छात्र- छात्राओ को 10 वर्ष तक अनिवार्य शिक्षा मिले |

➡ यह प्राथमिक विद्यालय के लिए क्लास 1-8 तक के लिए था

🍁🍁 संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1992)🍁🍁

➡इसमें ओपरेशन ब्लैक बोर्ड को प्राथमिक विद्यालयों से बढ़ाकर उच्च प्राथमिक स्तर तक कर दिया गया

➡ लागू -1992 में किया गया |

➡ बाद मे इसे हर उम्र के हर स्तर की शिक्षा में लागू किया गया |

🍁 राष्ट्रीय साक्षरता मिशन 🍁

➡लागू -1988

➡ किसके द्वारा लागू किया गया- तत्कालीन प्रधानमंत्री- राजीव गांधी द्वारा

➡ प्रौढ़ को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए प्रत्येक राज्य की राजधानी में शुरू किया गया

🌿🌿 📝📝Notes BY- निधि तिवारी 🌿🌿

☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘

🌏 प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास(New approach of Elementary Education) ➖

🛑 बीसवीं शताब्दी को बालकों की शताब्दी कहा जाता है |

🛑 ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड➖

💠 धारा 45 के अंतर्गत सभी छात्र छात्राओं को अगले 10 वर्ष के अंतर्गत अनिवार्य शिक्षा मिले |

💠 अखिल भारतीय सर्वेक्षण संस्थान 1978 ने अपने सर्वे में पाया कि

1) 9% स्कूल के पास अपना स्वयं का भवन नहीं था |

2) 41 % स्कूल में ब्लैक बोर्ड नहीं था |

3) 72% विद्यालय के पास पुस्तकालय नहीं था |

4)1% विद्यालय में शौचालय नहीं था |

इन सभी समस्याओं को देखते हुए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना की शुरुआत की गई |

💠 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का प्रावधान किया गया तथा 1987 में लागू किया गया |
जिसमें कहा गया कि प्राथमिक विद्यालय के लिए न्यूनतम सामग्री होना आवश्यक है |

🧿 न्यूनतम सामग्री ➖

1) अध्यापक सामग्री➖ पाठ्यपुस्तक, पाठ्यक्रम, अध्यापक, और निर्देशिका आदि |

2) खेल सामग्री➖
फुटबॉल ,वॉलीबॉल ,रस्सी और खेल से जुड़ी हुई अन्य सामग्रियां |

3) भवन ➖
दो बड़े कमरे,शौचालय, श्यामपट्ट ,दरी आदि |

4) वाद्य यंत्र ➖
हारमोनियम, तबला आदि |

5) कक्षा शिक्षण सामग्री➖
शैक्षिक चार्ट, मानचित्र, प्रोजेक्ट संबंधी सामग्री आदि |

ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड प्राथमिक विद्यालय 1- 8 के विद्यालय के लिए था |

🛑 संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 ➖

ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड को प्राथमिक विद्यालय से बढ़ाकर उच्च प्राथमिक स्तर तक कर दिया गया |

बाद में इसे हर कक्षा के लिए कर दिया गया |

1987 ➖ प्राथमिक विद्यालय
1992 ➖ उच्च प्राथमिक विद्यालय
1992 के बाद विश्व विद्यालय स्तर |

🛑 राष्ट्रीय साक्षरता मिशन( 5 मई 1988 ) ➖

इस मिशन के तहत प्रौढ़ को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए प्रत्येक राज्य की राजधानी में इसका शुभारंभ किया गया |
तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी ने इस मिशन का शुभारंभ किया |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

☘💐🌸🌺🌻🌼☘💐🌸🌺🌼☘💐🌸🌺🌻🌼☘💐🌸🌺🌻🌼

Batch-SuperTet
Date-20/05/2021
Time-7:45@m

🗿Topic-new approach of elementary education
🗿(प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास)

🎉बीसवीं शताब्दी को बालकों की शताब्दी कहा जाता है।

🎊प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास के अंतर्गत देखा गया कि अगर सरकार द्वारा बालों को शिक्षा दी जाती है तो आप ना ही आगे बढ़ पा रहे हैं और ना ही बच्चे पढ़ाई में रुचि दिखा रहे हैं, इसलिए बालकों के लीची का पढ़ाई के प्रति जागरूक करने के लिए सरकार की तरफ से नए नए प्रयास किए गए इसके माध्यम से बालकों वा अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जा सके वा साथ ही बालको की शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न की जा सके, इसलिए ऐसा कदम उठाया गया।

🎊इन नवीन प्रयासों के अंतर्गत कुछ प्रयास किए गए जिसमें अनेक प्रकार के ऑपरेशन चलाए गए जिनमें मुख्य “आपरेशन ब्लैक बोर्ड”था।

🕳️धारा/अनुच्छेद 45-(निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा)-इसके अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के सभी छात्र छात्राओं को 10 वर्ष के भीतर जब तक वह 14 साल के ना हो जाए तब तक उन्हें निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाए।

🕳️1978 में ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड अभियान के तहत”अखिल भारतीय सर्वेक्षण संस्थान”के द्वारा एक सर्वे किया गया।

🕳️इस सर्वे में पाया गया कि अधिकतम विद्यालयों में 9% स्कूलों के पास बच्चों को बैठाने का भवन का निर्माण ही नहीं किया गया (अर्थात शिक्षा देने का उचित स्थान ही निर्धारित नहीं था)

💨41 % विद्यालय में ब्लैक बोर्ड की नहीं था , अर्थात शिक्षा मौखिक रूप से दी जाती रही होगी।

💨72% विद्यालयों में पुस्तकालयों का अभाव था।

💨89 %विद्यालयों में बालक एवं बालिकाओं के शौच के लिए शौचालय की उचित व्यवस्था ही नहीं थी जिसकी वजह से लोग अपनी बेटियों को विद्यालय भेजने से कतराते थे।

💯🔥नोट÷अर्थात उपरोक्त कथनों से यह स्पष्ट होता है कि ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड सिर्फ एक अभियान ना होकर शिक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा के स्तर में इसका उद्देश्य सिर्फ ब्लैकबोर्ड उपस्थित कराना ही नहीं था बल्कि शिक्षा के स्तर को शुरू हुआ सुधार करना भी था वर्षा के साथ लोगों के बीच व समाज में जागरूकता फैलाना नहीं था जिसके द्वारा लोग शिक्षा से जुड़ सके एवं सुशिक्षित , विकासशील राष्ट्र का निर्माण किया जा सके।

🗿new education policy 1986🗿
( राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986)

✍️राष्ट्रीय शिक्षा नीति नीति होती है जिसमें बिना किसी धर्म जाति लिंग आदि के भेदभाव के बिना राष्ट्र राष्ट्र के लोगों को एक मानकर के पूरे राष्ट्र की शैक्षिक गतिविधियों का संचालन वा निर्माण होता है।

💯🔥नोट÷ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड कार्यक्रम मुख्यता प्राथमिक विद्यालयों के लिए था। कक्षा (0-5).., या कक्षा (0-8)

✍️इस शिक्षा नीति(1986) के तहत ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का प्रावधान किया गया

✍️इस नीति को लागू-1987 में किया गया।

✍️ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के अंतर्गत या बोला गया कि”प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में अधिगम प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए न्यूनतम आखिरी होना आवश्यक है।

✍️न्यूनतम समाधि से तात्पर्य है कि;

👁️अध्यापन सामग्री÷इसके अंतर्गत पाठ्यपुस्तक, पाठ्यक्रम, अध्यापक व निर्देशिका का होना आवश्यक है।

👁️खेल सामग्री÷इसके अंतर्गत फुटबॉल ,वॉलीबॉल वा रस्सी (बालिकाओं के लिए) का होना आवश्यक है ।

👁️भवन निर्माण÷इसके अंतर्गत कम से कम 2 बड़े कमरे होने चाहिए
👁️विद्यालय में एक साफ सुथरा शौचालय होना चाहिए

👁️कक्षा कक्ष में एक श्यामपट्ट अवश्य होना चाहिए

👁️बालक एवं बालिकाओं के बैठने के लिए दरी की व्यवस्था होनी चाहिए।

👁️वाड्य यंत्र कम से कम हारमोनियम एवं तबला अवश्य होना चाहिए।

👁️कक्षा शिक्षण सामग्री
विद्यालय में शैक्षिक चार्ट, ग्लोब वा मानचित्र अवश्य होना चाहिए।

🗿संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992🗿
🎉🎉(Programme of action)🎉🎉

✍️इसमें पिछली शिक्षा नीति में लाए गए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड की सफलता को देखकर इस अभियान को प्राथमिक विद्यालय से बढ़ाकर उच्च प्राथमिक स्तर तक कर दिया गया, और धीरे-धीरे जब यह पाया गया कि या अभियान सफल रहा है तो इस ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड को शिक्षा के स्तर में लागू कर दिया गया।

✍️ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का संबंध निम्नलिखित विद्यालयों से था; इनमें
🔥 प्राथमिक विद्यालय
🔥माध्यमिक विद्यालय
🔥उच्च माध्यमिक विद्यालय
🔥विश्वविद्यालय इत्यादि।

🗿राष्ट्रीय साक्षरता मिशन🗿

✍️राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को 5 मई सन 1988 में लागू किया गया।

✍️इस मिशन की शुरुआत प्रौढ़ को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए किया गया प्रयास था।

💯🔥नोट÷
☠️साक्षरता (कम से कम शिक्षित)से तात्पर्य है कि कम से कम कितना पढ़ा हुआ कि समान स्तर पर वह अपना नाम, ग्राम, वादे इत्यादि चीजों को एवं लिख सकें।

☠️शिक्षित (अधिकतम शिक्षित) से तात्पर्य है कि अधिकतम पढ़ा हुआ, अर्थात जिसके द्वारा अन्य व्यक्तियों,वा समाज को साक्षर बना सके साथ ही साथ देश के उत्थान में अपना योगदान दे सकें।

🎉प्रत्येक राज्य की राजधानी में या मिशन शुरू किया गया था।

🎉तात्कालिक प्रधानमंत्री”राजीव गांधी” जी के द्वारा चलाया गया था।

धन्यवाद
💤Presented by -Shikhar pandey💤

CDP Motivation and learning part 1

🏵🏵🏵🏵🏵🏵
Date: 19may
अधिगम में अभिप्रेरणा

बच्चे को पढ़ाते वक़्त अभिप्रेरणा एक बहुत बड़ी समस्या मानी जाती हैं
प्रत्येक मानवीय कार्य के तह में किसी ना किसी रूप में अभिप्रेरणा अवश्य रहती है|
अभिप्रेरणा के विभिन्न रूप
🍁सीखने की सुनहरी सड़क ( स्वर्ण पथ)
🍁सीखने का हृदय
🍁अधिगम की अनिवार्य स्थिति
🍁अधिगम का प्रमुख कारक

अध्यापक की यह बड़ी समस्या ही बच्चे के रूप को समझे, आवश्यकता को समझे, बच्चे के मनोरथ और शौक को समझे, और उन कारको के मद्देनजर निर्देशन देने की कोशिश करें|

MOTIVATION शब्द की उत्पत्ति Motum शब्द से हुई— Motum शब्द लटिन भाषा का शब्द है इसका अर्थ है insight to action ( गति karna)

विद्यार्थी में पढाई मे या अन्य कार्य में रुचि पैदा करना या जोश भरने की, कला शिक्षक के पास होना, अभिप्रेरित करने मे मदद करता है|
इच्छा ➡ऊर्जा➡प्रेरक शक्ति ➡गतिशील

🏵अभिप्रेरणा की महत्वपूर्ण परिभाषायें 🏵
🟢स्किनर– विद्यालय मे सीखने के लिए अभिप्रेरणा का अर्थ अपेक्षित व्यवहार के लिए प्रोत्साहित करना, आरंभ करना, जारी रखना तथा दिशा प्रदान करना होता हैं|

🟢गुड— अभिप्रेरणा क्रिया को प्रारंभ करने, जारी रखने और नियंत्रित रखने की प्रक्रिया हैं|

🟢 वूडवर्थ– अभिप्रेरणा व्यक्ति की वह दशा हैं जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती हैं|

🟢गेट्स व अन्य— अभिप्रेरणा प्राणी के भीतर की वह शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दशाये है, जो उसे विशेष प्रकार की क्रिया करने के लिए प्रेरित करती हैं|

🟢जॉनसन–अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाकलापो का प्रभाव हो, जो प्राणी के व्यवहार को इंगित और निर्देशित करती है

🟢 गिल्फोर्ड— अभिप्रेरणा एक विशेष आंतरिक कारक या दशा हैं, जिसमे क्रिया को आरंभ करने एवं बनाये रखने की प्रक्रिया होती हैं|

🟢बर्नार्ड— अभिप्रेरणा द्वारा उन विधियों की खोज की जाती है, जो बालक को विद्यालय द्वारा प्रदत्त अधिगम के लिए इच्छुक बनाती है|

🟢पी. टी. युंग— प्रेरणा व्यवहार को जागृत करने, क्रिया के विकास को संबोधित करने और क्रिया के तरीको को नियमित करने की प्रक्रिया हैं|

🏵🍁अभिप्रेरणा के विभिन्न परिभाषा को विश्लेषण करने पर निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते है|🍁🏵

  1. प्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को उत्तेजित करते है, व्यवहार का संचालन प्रेरणा के द्वारा ही होता है|
  2. प्रेरणा व्यक्ति के अंदर शक्ति परिवर्तन से प्रारंभ होती है|
  3. प्रेरणा क्रियाशीलता का धोतक ( संकेत) होता है|
  4. प्रेरणा मे आप भावनात्मक प्रदर्शन करते है जो कि संवेगों से जुड़ी होती है|
  5. प्रेरणा साधन है साध्य नही|
  6. प्रेरणा एक शक्ति है जो क्रिया को प्रारंभ करती है|
  7. प्रेरणा प्राणी की आंतरिक अवस्था है|
  8. प्रेरणा एक कल्पनात्मक प्रक्रिया है जो व्यवहार को निर्धारित करती है|
  9. प्रेरणा पर शारीरिक, मानसिक, बाह्य और आंतरिक परिस्तिथि प्रभाव पड़ता है|

🌿🌿 Notes by 📝📝निधि तिवारी🌿🌿

CDP physical development in childhood

Date-18/05/2021
Batch-UPTET
time-9:00@m
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास
(Physical Development of Child hood)

भार(Weight)-बालक और बालिका दोनों का वजन बढ़ने लगता है और भार 80 से 95 पौंड तक हो जाता है।

ऊंचाई{Height}-ऊचाई बहुत धीमी बढ़ती है और ऊंचाई में 10 -12 इंच की ही वृद्धि होती है।

सिर का आकार और मस्तिष्क का भार
(Size of Head and weight of brain)

9वर्ष की आयु में सिर का आकार प्रौढ़ शरीर का 90% तक हो जाता है।

10वर्ष की आयु में सिर का आकार प्रौढ़ के शरीर के सिर के आकार का 95%हो जाता है।

9 वर्ष की आयु में मस्तिष्क का भार कुल भार का 90% तक हो जाता है।

दांत
{Development of Teeth}
6 वर्ष की आयु से दूध के दांत गिरने प्रारंभ हो जाते हैं और 11 से 12 वर्ष की आयु तक सारे दूध के दांत टूट जाते हैं;
इसी समय से स्थाई दांत आने लगते हैं।

हड्डियां
{Bones}
छोटी-छोटी हड्डियों के बनने के कारण हड्डियों की संख्या 270 से बढ़कर 350 तक हो जाती है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
(Some important Facts about childhood)

नव वर्ष की आयु तक मांसपेशियों का भार 27 %
वा
12 वर्ष की आयु तक मांसपेशियों का भार 33% विकसित हो जाता है।

हृदय की धड़कन
नोट- एक सामान्य वस्तु मनुष्य के हृदय की धड़कन 1 मिनट में 72 बार धड़कती है।

6 वर्ष की अवस्था में हृदय की धड़कन 1 मिनट में 100 बार धड़कती है।

12 वर्ष की अवस्था में हृदय की धड़कन 1 मिनट में 85 बार धड़कने लगती है।

12 वर्ष के बाद की उम्र से ही यौन अंगों का विकास भी हो जाता है अर्थात उनके जनना विकसित हो जाते हैं।
जीव विज्ञान की भाषा में बालक और बालिकाओं इस अवस्था को Puberty age कहते हैं।

hand written by Shikhar Pandey 🐦🐦

CDP Theories of Learning in Education

☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘

🥎 शिक्षा में निर्मितवाद के सिद्धांत ➖

निर्मितवाद के सिद्धांतों को दो भागों में बांटा गया है

🩸 पियाजे का संज्ञानात्मक निर्मितवाद

🩸 सामाजिक निर्मितवाद

🔥 पियाजे का संज्ञानात्मक निर्मितवाद ➖

जीन पियाजे का कार्य संज्ञानात्मक निर्मितवाद का आधार है |
जिसमें किस प्रकार शिक्षार्थी वैयक्तिक रूप से अपने संसार में बौद्धिक संरचनाओं को स्वीकार करते हैं |
अर्थात इसमें व्यक्ति या बालक अपनी समझ के अनुसार अपने संज्ञान के अनुसार चिंतन करते हुए किसी तथ्य के बारे में विचार करता है |
इस पूरे परिप्रेक्ष्य में व्यक्ति या बालक किसी तथ्य का अर्थ अकेला ही निकालता है वह अपनी अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए अपने खुद की समझ का प्रयोग करता है |इसके लिए

शिक्षक को छात्रों में विशेष कार्यों में कठिनाई प्रस्तुत करते हुए संज्ञानात्मक परिवर्तन करना चाहिए, जिससे कि बालक अपने कठिनाई स्तर का पता लगा सके और अपनी समझ के अनुसार कठिनाई स्तर को कम करते हुए अपनी मानसिक प्रक्रिया में परिवर्तन ला सके |
यदि ऐसा होता है तो संज्ञानात्मक निर्मित का सफल परीक्षण होगा |

🔥 सामाजिक निर्मितवाद➖

सामाजिक निर्मितवाद ने कहा कि व्यक्ति एवं सामाजिक के दो भाग हैं इसे किसी भी अर्थ पूर्ण रूप से अलग नहीं देखा जा सकता है |
अर्थात व्यक्ति दूसरों की उपस्थिति में ज्ञान की संरचना करता है और पर्यावरण के अलग-अलग रूप, संप्रत्यय ,उसके प्रति ज्ञान, सृजन करने की ओर परखने कि विधियों से नियंत्रित करते हैं | |

. 🔥 सामाजिक और वैयक्तिक मध्यस्थता➖
सामाजिक और वैयक्तिक मध्यस्थता की दो विधियां हैं

1) स्थिति का ज्ञान

2) सामाजिक संस्कृति ज्ञान

, 🥎 आनुभाविकअधिगम ➖

अधिगम अनुभव के माध्यम से घटित होता है अर्थात बच्चे उन वस्तुओं में रूचि लेते हैं जिन्हें वह देख सकता है सुन सकता है स्पर्श कर सकता है या स्वाद ले सकता है |
अर्थात बच्चे का अनुभव मूर्त चीजों के आधार पर होता है वे अमूर्त रुप पर चिंतन नहीं कर सकता है |

💠 अनुभाविक अधिगम की प्रकृति➖
अनुभाविक अधिगम की प्रकृति निम्न कारकों पर निर्भर करती है :—-

☢ करके सीखना➖
अर्थात इस में बालक स्वयं करके सीखता है इसमें कार्य करना और प्रत्यक्ष अनुभव पर बल दिया जाता है |
इस प्रकार के अधिगम में करके सीखने पर बल दिया जाता है अर्थात किसी कार्य का प्रत्यक्ष अनुभव होना अति अनिवार्य है जिससे बच्चे का सीखना स्थाई हो जाता है जैसे प्रयोगशाला कार्य, खेलकूद, वृक्षारोपण इत्यादि |

☢ दैनिक अधिगम के द्वारा व्यक्तिगत अनुभव➖
व्यक्ति का अपने अनुभव की विशेषता प्रारूप और परिणाम से अवगत होना आता है |

☢ अनुभाविक सामाजिक समूह प्रक्रिया ➖

सामाजिक कौशल सीखना अनुभव के विस्तार में मददगार साबित होता है इससे बच्चा अपने समूह में अंत: क्रिया करता है और जिससे कि वाद विवाद के माध्यम से परिचर्चा के माध्यम से विद्यार्थी अपनी समस्याओं काम निवारण करने की सोचता है जिससे उसके अनुभव में जिस कारण होता है |

☢ कक्षा का अनुभव➖

कक्षा में विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से अनेक क्रियाकलाप होते हैं |
सह सहपाठ गतिविधि ,अनेक खेलकूद ,अभिनय ,संगीत और नृत्य इत्यादि सब अनुभव प्रदान करते हैं |

🥎 अधिगम को सुगम बनाने वाले अनुभव ➖

1) उद्भभासन ➖

देखना,,सूंघना,,सस्वाद स्पर्श,
प्रतिक्रिया देना ,,पहचाना आदि |
ज्ञानेंद्रियों के अनुभव के माध्यम से अधिगम को सुगम बनाया जाता है |

2) सहभागिता

3) अभिज्ञान

4) व्याख्या

5) विस्तारण

🌏 संकल्पना मानचित्र➖

संकल्पना मानचित्र एक सक्रिय अधिगम साधन है जिसका शिक्षण में विभिन्न रूप से प्रयोग संभव है इसका नियोजन, संशोधन और मूल्यांकन किया जा सकता है |

🌏 समस्या समाधान➖

समस्या उस परिस्थिति को कहते हैं जिसके लिए व्यक्ति के पास पहले से तैयार प्रतिक्रिया नहीं होती है |

🔥 समस्या समाधान के स्तर ➖
समस्या समाधान के स्तरों को दो भागों में बांटा गया है—

1) सरल स्तर

2) जटिल स्तर

💠 सरल स्तर ➖

सरल स्तर की समस्या का समाधान किया जाता है |
जैसे गर्मी लगने पर पंखा चलाना, प्यास लगने पर पानी पीना आदि |

💠 जटिल स्तर➖

समस्या का समाधान तत्कालिक रूप से नहीं होता है इसके समाधान के लिए कई बाधाओं को पार करना पड़ता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

🌼🌻🌹🌼🌻🌹🌼🌻🌼🌻🌹🌺🌸🌷🌼🌻🥀🌹🌷💐🌺🌸

CDP different type of development part 1

Date-15/05/2021
Batch-UPTET
Time9:00am

Topic-different types of development
बालकों के विभिन्न प्रकार के विकास निम्नलिखित है

1-शारीरिक विकास
शारीरिक विकास के अंतर्गत शरीर के अंगों का विकास होता है।

शरीर के अंगों के आकार में होने वाले परिवर्तन;

शारीरिक कार्य कुशलता

शारीरिक भार
Body weight
नवजात शिशु का भार÷
बालिका का भार-7.15 pound or (6-8 )pound
Kg-3kg 245 gram
बालक का भार-Pound-7.15( 3kg 245gram)

प्रथम 4 से 6 माह में बच्चे का भार दोगुना हो जाता है वा 1 वर्ष के अंत तक भाग 3 गुना हो जाता है।

दूसरे वर्ष में भाग आधा अर्थात 0.5 पाउंड प्रति माह की दर से बढ़ता है।

नवजात शिशु की लंबाई-
नवजात शिशु बालक की ऊंचाई-20.5 इंच होती है ,
और नवजात शिशु बालिका की ऊंचाई-20 इंच होती है।

प्रथम वर्ष में लंबाई 10 से 12 इंच बढ़ती है, और बाद में यह गति धीमी हो जाती है।

सिर का आकार और मस्तिष्क का भार

नवजात शिशु के शरीर का आकार उसकी कुल लंबाई का 1/4(25%) होता है।

प्रथम 2 वर्षों में सिर का आकार तेज गति से बढ़ता है लेकिन इसके बाद गति मंद हो जाती है।

नवजात शिशु के मस्तिष्क का भार 350ग्राम होता है।

प्रथम 2 वर्षों में यह 2 गुना हो जाता है।

5 वर्ष की अवस्था में मस्तिष्क का विकास 80%तक हो जाता है।

दांत

जब शिशु 6 महीने का होता है तो दूध के दांत निकलने प्रारंभ हो जाते है।

सर्वप्रथम नीचे वाले आगे के दो दांत आते हैं।

1 वर्ष के अंत तक 8 दांत हो जाते हैं।

4 से 5 वर्ष की आयु में आये हुए सभी दूध के दांत की संख्या 20 हो जाती है

dental formula=2021/20212=20(2021/20212 =10above +10 below)

Bones
हड्डियां#-जब नवजात शिशु का जन्म होता है तो उसमें तो 270 हड्डियां होती हैं।

यह हड्डियां कोमल और लचीली होती है और इन हड्डियों में कुछ तत्व जैसे-कैल्शियम ,फास्फोरस, इत्यादि होते हैं जिनकी वजह से हड्डियां दिन प्रतिदिन मजबूत होती रहती हैं और इसे अस्थियों का निर्माण कहते हैं।

नवजात शिशु की मांसपेशियों का कुल शारीरिक भार के 23% होता है।

नवजात शिशु के हृदय की धड़कन 1 मिनट में 140 बार धड़कती है।
Thank you
handwritten by-Shikhar Pandey🙏

बालकों में विभिन्न प्रकार के विकास

शारीरिक विकास

शरीर के अंगों का विकास
अंगो के आकार में होने वाले परिवर्तन
शारीरिक कार्य कुशलता

भार-
नवजात शिशु (बालक) का भार-7.15 पाउंड या 3.245 किलोग्राम औसतन:- 6-8
नवजात शिशु बालिका का भार- 7.13 पांउड या 3.240 किलोग्राम
प्रथम 4 से 6 माह में बच्चे का भार दुगना और 1 वर्ष के अंत तक 3 गुना हो जाता है।
दूसरे वर्ष में भार आधा या1/2या 0.5 पौंड प्रति माह की दर से बढ़ता है

लंबाई-
नवजात शिशु बालक की ऊंचाई 20. 5 इंच होती है
नवजात शिशु बालिका की ऊंचाई 20 इंच होती हैं।
प्रथम वर्ष में लंबाई 10 से 12 इंच बढ़ती है बाद में गति धीमी होती है।

सिर का आकार व मस्तिष्क का भार-
नवजात शिशु के शरीर का आकार उसकी कुल लंबाई का 1/ 4 या 25%भाग होता है
प्रथम 2 वर्ष में सिर का आकार तेज गति से बढ़ता है लेकिन इसके बाद धीमी गति से बढ़ता है
नवजात शिशु के मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है
प्रथम 2 वर्षों में यह दुगना हो जाता है
5 वर्ष की आयु में वयस्क मस्तिष्क का 80% तक हो जाता है

दांत-
जब शिशु 6 महीने का होता है तो दूध के दांत निकलने प्रारंभ हो जाते हैं
सर्वप्रथम नीचे वाले आगे के 2 दांत आते हैं
1 वर्ष के अंत तक 8 दांत हो जाते
चार-पांच वर्ष की उम्र तक सभी दूध के दांत अर्थात 20दांत निकल जाते

हड्डियां-
जब नवजात शिशु का जन्म होता है तो 270 हड्डियां होती है यह हड्डियां कोमल और लचीली होती हैं जो भली प्रकार से जुड़ी नहीं होती
लेकिन कैल्शियम फास्फोरस जैसे तत्वों के कारण दिन प्रतिदिन हड्डियां मजबूत होती हैं इसे अस्थि निर्माण बोलते हैं

नवजात शिशु का मांसपेशियों का भार कुल भार का 23% होता है
नवजात शिशु के हृदय की धड़कन 1 मिनट में 140 बार धड़कती है।

Notes by Ravi Kushwah

Steps of Thinking Process

Date-14/05/2021
batch-Full batch course on CDP
Topic-चिंतन प्रक्रिया के सोपान

चिंतन की प्रक्रिया में निम्नलिखित चार प्रकार के सोपान हैं÷
१-किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होना(अर्थात किसी लक्ष्य की तरह कार्य करना) जब भी कोई समस्या उत्पन्न होती है तो समस्या समाधान के लिए आगे बढ़ते हैं;
और इस समस्या समाधान में चिंतन का लक्ष्य समस्या को दूर करना होता है।

२-लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास करना, चिंतन में व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है, का प्रयास होता है कि शीघ्र ही लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए वा समस्या का समाधान हो जाए।

३-पूर्व अनुभवों का स्मरण करना, चिंतन में कपूर अनुभव पुनः स्मरण करता है; जिससे उनके आधार पर वर्तमान समस्या का समाधान करने में समर्थ हो सके

४-और अनुभव को वर्तमान समस्या में संयोजित करना।
अर्थात जो व्यक्ति अपने पूर्व अनुभव के आधार पर वर्तमान समस्या का समाधान खोजने का प्रयास करता है तब उसके सामने समस्या के अनेक संभावित समाधान उपस्थित होने लगते हैं।

?बच्चे कैसे सीखते हैं और बच्चे कैसे सोचते हैं?

यदि एक शिक्षक या बाजार लेगी उसके विद्यालय के विद्यार्थी कैसा होता है और वह अपनी सोच या चिंतन के अनुसार कैसे सीखे तो शिक्षक उस विद्यार्थी के मानसिक बौद्धिक विकास को प्रबुद्ध करने में सरलता होगी।

छात्रों के स्मृति करण के स्थान पर संप्रत्यय निर्माण, सामान्यीकरण, समस्या समाधान कौशल, इत्यादि उपलब्ध कराना ताकि उनके विस्तृत बौद्धिक विकास के लिए उचित हो।

छात्र ज्ञान का सुरक्षित भंडारण कर सकें, आवश्यकतानुसार उसका स्मरण कर सकें, एवं परिस्थिति के अनुसार उसका उपयोग कर सकें।

यदि छात्र गीत ज्ञान का प्रयोग नहीं पर स्थिति में कर सकते हैं तो यह उत्तम अधिगम है।

मनोवैज्ञानिकों ने समय-समय पर अलग-अलग प्रयोग वा अलग-अलग अनुभवो से यह जानने का प्रयास किया है कि छात्र कैसे सीखता है,
उसके लिए कुछ सिद्धांत विकसित किए हैं जो निम्नलिखित हैं÷
१- ज्ञान का संरचनावाद या निर्मित वाद

२-अनुभाविक अधिगम

३-संकल्पना मानचित्र

४-समस्या समाधान

५-खोज

१-निर्मित वाद या ज्ञान का संरचनावाद
निर्मित वाद की उत्पत्ति संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक क्षेत्र से हुई है;
निर्मित वाद प्रतिमान-जीन पियाजे वाइगोत्सकी वा जीरोम ब्रूनर
हावर्ड गार्डनर अन्य लोगों के कार्यों पर आधारित है।

जान डीवी÷जॉन डीवी के अनुभव और चिंतन का महत्व और शिक्षा की आवश्यकता से संबंधित विचारों का भी निर्मितवाद पर प्रभाव है।

निर्मित वाद में व्यवस्था का रूपांतरण इसलिए होता है कि अपरिवर्तनीय प्रभाव तथ्य को सुधार सकें।

निर्मित वाद में प्रत्येक छात्र की सक्रियता से पूर्व ज्ञान और नये ज्ञान की अंत: क्रिया से ज्ञान की संरचना होती है।

निर्मित वाद का अर्थ
ज्ञान सिर्फ संज्ञानी प्राणी में होता है उसके बाहर ज्ञान का अस्तित्व नहीं रहता है।

ज्ञान वास्तविकता या यथार्थ की संरचना है।

ज्ञान, सीखने वाले छात्र के द्वारा मन ही मन संरचित किया जाता है किन्तु यह दिखाई नहीं देता है।

सीखने वाला छात्र जब किसी ने स्थिति के संपर्क में आता है तो पूर्व अनुभव के आधार पर नए ज्ञान की संरचना एकीकृत हो जाती है।

निर्मित वाद, पूर्व अधिगम एवं नए अधिगम प्रक्रिया की अंत: क्रिया के माध्यम से प्रत्येक छात्र के द्वारा ज्ञान की संरचना को बता देता है।

handwritten by-Shikhar Pandey🙏

Important facts of child development and pedagogy part 3

🔆किशोरावस्था (adolescence)➖

▪️यह लेटिन भाषा के शब्द adolescere से बना है।

▪️जिसका अर्थ प्रजनन /परिपक्वता का विकसित होना है।

✨स्टैनले हॉल :- तूफान की अवस्था
✨किलपैट्रिक :-जीवन का कठिन काल
✨टीन एच. :-जीवन का बसंत काल
🔸जीवन की सुंदर अवस्था
🔸किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें प्रजनन क्षमता विकसित होती है।
🔸परिपक्वता विकसित होती हैं।
🔸किशोरावस्था चुनौतीपूर्ण अवस्था है।

🔸इस अवस्था की सबसे बड़ी विडंबना है कि बच्चे अपने आप को बड़ा समझते जबकि दूसरे इन्हे बच्चे समझते हैं।

✨स्टेनले हॉल ➖
किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, दबाव ,विरोध झनझावट और तूफानों की अवस्था है।

✨रॉस ➖

किशोरावस्था शैशवावस्था का पुनरवर्तन या पुनरावृति काल है ।

✨किलपेट्रिक➖

इस बात पर कोई मतभेद नहीं हो सकता कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है या कठिन सीढ़ी है।

✨क्रो एंड क्रो➖

किशोरावस्था की वर्तमान की शक्ति या भावी शक्ति हैं यह आशा को प्रदर्शित करता है।

❇️विशेषताएं➖

📍1 घनिष्ठ और व्यक्तिगत मित्र बनाते हैं। वैलेंटाइन
📍2 शारीरिक और मानसिक विकास में तीव्रता।
📍3 व्यवहार में विभिन्नता
📍4 स्थिरता और समायोजन का अभाव
📍5 वीर पूजा की भावना (किसी को आदर्श मानना)
📍6 काम शक्ति का विकास
📍7 अपराध प्रवृति का विकास
📍8 स्वतंत्रता एवं विद्रोह की भावना
📍9 व्यवसाय की चिंता
📍10 रसिया में परिवर्तन
📍11 समाज सेवा की भावना

✍️ Notes By Vaishali Mishra

Current Indian society part 1

🔆प्राचीन समाज में शिक्षा का अर्थ

▪️प्राचीन काल में शिक्षा का अर्थ आत्मज्ञान था।

✨स्वामी विवेकानंद के हिसाब से शिक्षा का महत्व

“जो विचार जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण ,चरित्र निर्माण में सहायक हो वही शिक्षा है।”

▪️जीवन निर्माण (life build) से तात्पर्य हमारा जो जीवन का जो मकसद है उसके दर्शन को समझना।

▪️मनुष्य निर्माण(human build) से तात्पर्य मनुष्य की मानवता का निर्माण होने से है।

▪️चरित्र निर्माण(character build) से तात्पर्य व्यक्ति के नैतिक गुणों से है।

❇️औपचारिक शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा

⚜️औपचारिक शिक्षा (formal education)➖

इसमें शिक्षा देने की योजना तैयार रहती है
जैसे समय, स्थान, अध्यापक, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम आदि यह सभी पूर्व से निर्धारित रहता है जिसके आधार पर शिक्षा दी जाती है।

⚜️अनौपचारिक शिक्षा (informal education)

यह एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है इसमें शिक्षा बहुत ही व्यापक या विस्तृत होती है।

⚜️दूरस्थ शिक्षा (distance education)

🔸दूरस्थ शिक्षा का मतलब दूर रहकर शिक्षा ग्रहण करना।

🔸इसके अंदर शिक्षा प्रदान करने वाले और शिक्षा ग्रहण करने वाले के बीच दूरी रहती है।

❇️कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

🌀वुड के घोषणा पत्र के आधार पर कंपनी ने शिक्षा नीति कब घोषित की ❓

🔹वुड का घोषणा पत्र :- 1 8 5 3

🔹जिसमें आधुनिक भारतीय शिक्षा को विकास की किशोरावस्था कहा गया ।

🔹शिक्षा नीति की घोषणा :- 19 जुलाई 1 8 5 4

🌀मैकाले ने अपना विवरण प्रस्तुत किया ❓

🔹2 फरवरी 1 8 3 5 मैं लॉर्ड विलियम बेंटिक को पत्र विवरण भेजा।

🌀राधा कृष्ण आयोग की नियुक्ति कब हुई ❓

🔹4 नवंबर 1 9 4 8

🌀माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन थे ❓ और उनकी नियुक्ति कब हुई ❓

नियुक्ति :- 23 सितंबर 1 9 5 2
अध्यक्ष :- लक्ष्मण स्वामी मुदालियर

🌀आदर्शवाद को कितने भागों में बांटा गया ❓

मुख्यत: पांच भागों में
📍1 आत्म निष्ठ आदर्शवाद(self-respecting Idea list)
📍2 वस्तुनिष्ठ आदर्शवाद(objective Idealist)
📍3 निरपेक्ष आदर्शवाद(absolute Idealist)
📍4 पाश्चात्य आदर्शवाद (Western Idealist)

✴️1 आत्मनिष्ठ आदर्शवाद

कोई काम जो हम अपने अंदर से या स्वयं से सोच समझकर करते हैं।

✴️2 वस्तुनिष्ठ आदर्शवाद

कुछ विशिष्ट चीजों में से बेहतर चीजों को अपने जीवन में उतारते हैं।

✴️3 निरपेक्ष आदर्शवाद

जो बिल्कुल उचित या सही है तथा सभी के पक्ष में उस कार्य को करते हैं।

✴️4 पाश्चात्य आदर्शवाद

पश्चिमी संस्कृति एक आदर्शवाद बताया गया है।

🌀प्रकृतिवाद (neutralism)/प्रकृति वादी दर्शन

यह दर्शन कि वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्व मानती है इसके अनुसार भौतिक जगत ही सत्य हैं इनके अतिरिक्त और किसी शक्ति का अस्तित्व नहीं है।

“प्रकृति की ओर लौटो :- रूसो”

✍️

Notes By Vaishali Mishra

CDP- Thinking & Problem Solving for CTET & State TETs

🔆चिंतन और समस्या समाधान➖

▪️समस्या के समाधान के समय जब चिंतन किया जाता है तो चिंतन की अवस्था तर्क वाली होती है अर्थात जो भी समस्या होती है उससे जुड़े हुए विभिन्न तर्क हम प्रयोग करते हैं और अनेक प्रकार के चिंतन से एक उचित समाधान के लिए अनेक साधन भी जुटाने लगते हैं।

▪️समस्या के हल के समय चिंतन का प्रभावित रूप तर्क  है जब तक समस्या का हल नहीं निकल जाता उस पर चिंतन जारी रखते हैं।

▪️समस्या की स्थिति या प्रकृति को परिभाषित करने के लिए कई मनो वैज्ञानिक ने अपने अनेक तथ्य प्रस्तुत किए।

❇️समस्या➖

▪️जब हमारे सामने समस्या होती है तो हम अपने आप को उत्तेजक स्थिति में पाते हैं।

▪️उत्तेजक अर्थात किसके क्रिया को करने के लिए प्रेरणा या पुनर्बलन मिलता है और जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता तब तक हम उत्तेजक स्थिति में ही रहते है।

✨जॉनसन के अनुसार➖

🔹समस्या की उत्पत्ति कब होती है जो व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित होता है।

परंतु उसके प्रारंभिक प्रयत्न इस लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते है।

✨एंड्रियाज ने समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तविक समस्या तभी होती है जब उनमें यह मुख्य रूप से निम्न पांच बातें दिखाई देती हैं।

🔸1  प्राणी के समक्ष एक या एक से अधिक लक्षय होने चाहिए।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिसमें उस समस्या से जुड़े हुए कई लक्ष्य अर्थात किसी भी समस्या को पूरा करने में कई छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और उन्हें पूरा करने में ही असल समस्या का उचित समाधान प्राप्त होता है।

🔸2 प्राणी को विभिन्न प्रकार के उत्तेजक संकेत मिलते हैं।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिसमें कई प्रकार के उत्तेजक संकेत अर्थात समस्या को पूरा करने के लिए कई प्रकार का पुनर्बलन या प्रेरणा मिलती है जिसकी वजह से हम उस समस्या को किसी भी हाल में यह किसी भी परिस्थिति में उसका समाधान प्राप्त करना चाहते हैं

🔸3 प्राणी विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करता है।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिस समस्या पर एक प्रकार से नहीं अपितु विभिन्न प्रकार से या कई तरीकों से प्रतिक्रिया की जाए अर्थात समस्या  का उचित समाधान प्राप्त करने के लिए उस पर कई रूपों में प्रतिक्रिया की जाए।

🔸4 अलग-अलग प्रतिक्रियाओं के साथ पूर्व अनुभव के कारण विभिन्न प्रकार की तीव्रता के साथ सीखता है।

🔸5 प्राणी को त्रुटिपूर्ण एवं सत्य प्रतिक्रिया का ज्ञान होता है।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिसमें समस्या में होने वाली गलतियां या जो त्रुटियां है तथा जो सही प्रतिक्रिया है उसका हमें पूर्ण रूप से ज्ञान हो तथा उन्ही प्रतिक्रियाओं पर एक उचित तरीके से क्रिया करें

▪️अर्थात किसी भी समस्या के प्रति हम कितने गंभीर हैं वही वास्तविक समस्या है।

▪️किसी भी प्रकार की समस्या चाहे वह जटिल हो या सरल ।यदि समस्या जटिल है और उस समस्या के प्रति हम गंभीर हैं अर्थात हमारी समस्या उपयुक्त 5 बिंदुओं से परिपूर्ण है उस परिस्थिति में समस्या का समाधान खोजने के लिए हम अपने तर्क का प्रयोग करते हैं ।

▪️अर्थात मानव की तार्किक शक्ति को समस्या समाधान के साधन के रूप में कहा गया है।

           कोई भी वास्तविक समस्या

                       ⬇️

              तार्किक शक्ति  प्रयोग

                       ⬇️

            समाधान निकालना

▪️जब भी कोई वास्तविक समस्या होती है तब उस पर हम अपनी तार्किक शक्ति का प्रयोग कर उस वास्तविक समस्या का उचित समाधान निकाल लेते हैं।

❇️समस्या समाधान के चरण➖

📍1 समस्या की उपस्थिति

📍2 समस्या को समझना

📍3 समस्या के संबंध में सूचना एकत्रित करना और व्यवस्थित करना

📍4 पूर्व कल्पना का मूल्य निर्धारण करना 

📍5 समाधान को प्रयोग में लाना

❇️शिक्षक द्वारा बालक में चिंतन का विकास➖

✨क्रो एंड क्रो के अनुसार➖

🔹सफल जीवन यापन के लिए स्पष्ट चिंतन की योग्यता आवश्यक है इसीलिए अध्यापक को इस बात का प्रयास करना चाहिए वह बालकों की चिंतन शक्ति का विकास करे।

❇️बालक में चिंतन शक्ति का विकास कैसे करें➖

☄️1अध्यापक प्रोत्साहित करें कि बच्चे अपने विचार प्रकट करें।

▪️जब बच्चे अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तो वो इन विचारों में अपने चिंतन का प्रयोग करते हैं । बच्चे के विचार सही हो या गलत जब विचारों को महत्व या वरीयता मिलती है तो वह सहज महसूस करते हैं और उस पर अधिक व्यापक रूप से चिंतन करते हैं।

☄️2कोतुहल (जिज्ञासा) और रुचि को बच्चों में  जागृत रखना चाहिए।

▪️बालक में चिन्तन शक्ति रुचि पर निर्भर होती है। जब वह किसी उद्दीपक पर ध्यान देगा एवं रुचि प्रदर्षित करेगा तो चिन्तन प्रक्रिया का प्रारम्भ स्वतः ही हो जाता है। इसलिए बालकों में कार्य के प्रति जागरूकता एवं रुचि को जागृत करना चाहिए।

☄️3 उत्तरदायित्व के काम दिए जाएं

जब किसी भी कार्य के प्रति उत्तरदायित्व जिम्मेदारी मिलती है तो उस कार्य के प्रति हमारी owenership या उस कार्य के हम स्वयं मलिक बन जाते हैं और उस कार्य को हम अपने तरीके और अपनी जिम्मेदारी से पूरा करते हैं।

☄️4 भाषा का प्रयोग किया जाए

▪️भाषा ही विचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। बालक के चिन्तन के विकास में भाषा का अत्यधिक महत्व है। अतः शिक्षक को अपने बालकों को सही भाषा का उच्चारण, लिखना एवं वाचन करना सिखाना चाहिए। जब वे भाषा में परिपक्व हो जायेंगे तो चिन्तन प्रक्रिया में सरलता होगी।

☄️5 समस्या समाधान करने को दिया जाए

▪️बालकों की चिन्तन शक्ति का विकास करने के लिये समस्याएँ उत्पन्न करनी चाहिए। ये समस्याएँ बालको के समक्ष इस प्रकार से रखी जायें जैसे वातावरण से स्वतः उत्पन्न हुई हैं। बालक स्वतः ही क्रियाशील होकर चिन्तन करके समस्या का हल खोजेंगे। इसीलिये रूसो ने अध्यापक को पर्दे के पीछे रहने को कहा था। अध्यापक छात्रों को मार्ग-दर्शन देता है और उसी आधार पर वे अपना विकास करते हैं। इस प्रकार से बालक जीवन के प्रति आशावान हो जाते हैं और समस्याओं के प्रति सावधान।

☄️6 कैसे प्रश्न पूछे जाएं जिससे बच्चे चिंतन कर सके।

▪️जब बच्चों से चिंतनशील प्रश्न पूछे जाते हैं तो वह निश्चित ही अपने मानसिक स्तर पर तर्क लगाते हैं और उन प्रश्नों का जवाब देते हैं फल स्वरूप बच्चों की चिंतन शक्ति का विकास होता है।

☄️7 ज्ञान विकसित हो

▪️चिन्तन के विकास के लिये बालकों में ज्ञान के प्रति रुचि एवं लगन उत्पन्न करनी चाहिए। चिन्तन की सहायक सामग्री से विभिन्न प्रकार का ज्ञान होता है, जो चिन्तन प्रक्रिया को मजबूत एवं सफल बनाता है।

☄️8 रटने को कम करना।

▪️जब किसी भी समस्या का समाधान चिंतन करके किया जाता है तो उस समस्या के समाधान को लंबे समय तक याद रखा जा सकता है अर्थात कभी भी जरूरत पड़ने पर उस समस्या का प्रयोग किया जा सकता है। क्योंकि जब हम समस्या का समाधान अपने तर्क का प्रयोग करें अपने चिंतन से करते हैं तो वह स्थाई रूप से हमारे मानसिक स्तर में बना रहता है जिससे हमें यह रटना नहीं पड़ता

☄️9 तर्क और वादविवाद करना।

▪️जब बच्चे किसी समस्या पर तर्क और वाद-विवाद करते है तो वह इस तर्क और वाद-विवाद में अपने चिंतन का प्रयोग कर करते हैं जिससे बच्चों की चिंतन शक्ति को विकसित किया जा सकता है।

☄️10 निरीक्षण अनुभव प्रयोग करना।

🎉🎉विषय-चिंतन और समस्या समाधान🎉

👀समस्या के हल के समय चिंतन का प्रभावी रूप जो मस्तिष्क में विचरण करता है वही तर्क कहलाता है।

👀समस्या के आने पर जब तक समस्या का हल या समाधान  ना मिल जाए तब तक चिंतन जारी रहता है।

👀समस्या के प्रकट होने पर व्यक्ति अपने आप में उत्तेजित हो जाते हैं और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए तब तक वह उत्तेजना मनुष्य के मस्तिष्क में विचरित करती रहती है।

🐦जॉनसन के अनुसार÷ समस्या की उत्पत्ति तब होती है जब व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित हो, परंतु उसके प्रारंभिक प्रयत्न लक्ष्य की  प्राप्ति में सहायक होते हैं।

🐦एंन्ड्रियांस के अनुसार÷ समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण

🐣इन्होंने समस्यात्मक स्थिति के विश्लेषण के लिए इसको 5 भागों में बांटा जो निम्नलिखित हैं🐣÷

🐤१-प्राणी के समक्ष एक या अधिक लक्ष्य होने चाहिए;

🐤२-प्राणी को विभिन्न प्रकार के उत्तेजक संकेत मिलते हैं;

🐤३-प्राणी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करना आवश्यक है यदि व्यक्ति उत्तेजित है तो वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रतिक्रिया करेगा।

🐤४-समस्या के प्रति गंभीरता है तो अलग-अलग प्रक्रियाओं के साथ अनुभव के कारण विभिन्न प्रकार के तीव्रता के साथ सीखता है।

🐤५-प्राणी को त्रुटिपूर्ण एवं सत्य प्रतिक्रियाओं का ज्ञान  होता है।

👀यदि आप समस्या के प्रति गंभीर है कि नहीं यदि है तो वह अपनी समस्या को सुलझाने के लिए प्रतिक्रिया करेगा और चिंतन के द्वारा समाधान करेगा।

👀 मानव की तार्किक शक्ति को भी समस्या समाधान के साधन के रूप में कहा गया है।

🐣समस्या समाधान के चरण निम्नलिखित है🐣÷

🐤१-समस्या की उपस्थिति का होना परम आवश्यक है।

🐤२-समस्या को समझना तर्क लगाना कि किस प्रकार की समस्या है व इसके समाधान के लिए क्या, कैसे करना होगा।

🐤३-समस्या के संबंध में सूचना एकत्र करना हो व्यवस्थित करना, और कुछ समस्या को समझाने के लिए उससे संबंधित अनेक प्रकार के तथ्यों सूचनाओं को अलग-अलग जगह से एकत्रित करके एक जगह पर व्यवस्थित करना ताकि जिस जिससे समस्या का समाधान सरलता से किया जा सके।

🐤४-पूर्व कल्पना का मूल्य निर्धारण करना (किसी समस्या के लिए काफी आवश्यक चीजें आ गई हैं अतः उस पर समाधान निकालने का सही प्रतिक्रिया के द्वारा समस्या समाधान करने का तरीका मिल जाता है।

🐤५-समाधान को व तरीकों को प्रयोग में लाना।

🐣शिक्षण द्वारा बालक में चिंतन का विकास🐣

🐦क्रो एवं क्रो के अनुसार🐦

👀सफल जीवन यापन के लिए इस पर चिंतन की योग्यता आवश्यक है इसलिए अध्यापक को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि बालक के चिंतन शक्ति का विकास हो।

🐣बालकों में चिंतन की शक्ति का विकास कैसे करें उसके लिए निम्नलिखित तथ्य🐣÷

🐤बालक में चिंतन की शक्ति का विकास करने के लिए अध्यापक को बच्चों को  प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि बालक अपना विचार प्रकट करें।

🐤कौतुहल (जिज्ञासा,) और रुचि, शिक्षक को बच्चों में इसे जागृत रखना चाहिए।

🐤बच्चे को उत्तरदायित्व के काम को सोचना चाहिए अर्थात बच्चों को विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों के छोटे-छोटे कार्य सौंप देने चाहिए, जिससे बालक उत्तरदायित्व को समझने के साथ-साथ उस उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए चिंतन का प्रयोग भी करेंगे।

🐤भाषा का उपयोग बच्चों के द्वारा करवाना चाहिए अर्थात शिक्षक को बच्चों के विचारों को प्रकट करने का अवसर प्रदान करना चाहिए जिसके द्वारा वह अपने मनोभावों को बेहतर ढंग से प्रकट करके अधिगम को रुचिपूर्ण वा सफल बनाने में मदद करेंगे।

🐤समस्या का समाधान करने में बच्चों को सम्मिलित करना चाहिए जिससे बच्चे उस समस्या के बारे में विभिन्न प्रकार के तर्क व चिंतन के द्वारा उस समस्या का समाधान हो सके।

🐤बच्चों से इस प्रकार के प्रश्न पूछने चाहे जिससे वह चिंतन कर सकें।

🐤बच्चे के रटंतु ज्ञान को कम करना चाहिए, उसके ज्ञान को बनाने में उसकी मदद करनी चाहिए, उसको तक वाद-विवाद कराना चाहिए जिससे उसके विचारों को समझा जा सके।

🐤निरीक्षण करना अनुभव करना वा प्रयोग करना सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है चिंतन के लिए;

handwritten by-Shikhar Pandey🙏

*चिंतन और समस्या समाधान*

✨✨✨✨✨✨✨✨

समस्या के हल के समय चिंतन का प्रभावित रूप तर्क है। जब तक समस्या का हल नहीं निकल जाए तब तक उस पर चिंतन जारी रखते हैं।

मनुष्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है इसका कारण है उसका चिंतनशील होना।जीव धारियों में मनुष्य ही सर्वाधिक चिंतनशील है और यही चिंतन मनुष्य और उसके समाज के विकास का कारण है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य के चिंतन शक्तियों को विकसित किया जा सकता है।

मनुष्य के सामने कभी-कभी किसी समस्या का उपस्थित होना स्वभाविक है। ऐसी दशा में वह उस समस्या का समाधान करने के लिए उपाय सोचने लगता है। वह इस बात पर विचार करना प्रारंभ कर देता है कि समस्या का किस प्रकार समाधान किया जा सके। उसके इस प्रकार सोचने या विचार करने की क्रिया को ही चिंतन कहते हैं।

अर्थात्

          “चिंतन विचार करने की वह मानसिक प्रक्रिया है जो किसी समस्या के कारण प्रारंभ होती है और उसके अंत तक चलती रहती है।”

▪️ *समस्या-* जब व्यक्ति के सामने कोई समस्या होती है तो वह उत्तेजित अवस्था में होता है और यह उत्तेजना तब तक रहता है जब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता यानी समस्या का समाधान नहीं कर लेता।

जैसे- भूख लगना समस्या है। जब व्यक्ति भूखा होता है तो वह भोजन को प्राप्त करने के लिए उत्तेजित होता है। भोजन को प्राप्त करना लक्ष्य है।

▪️ *समाधान-* यहां भोजन प्राप्त कर लेना ही समस्या का समाधान है।

*जॉनसन मनोवैज्ञानिक के अनुसार*,

समस्या की उत्पत्ति तब होती है जब व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित हो परंतु उसके प्रारंभिक प्रयत्न लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक है।

*एनाड्रियाज के अनुसार समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण-*

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

इन्होंने समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण करके इसको

पांच भागों में बांटा……

*1.* प्राणी के समक्ष एक या एक से अधिक लक्ष्य होने चाहिए।

*2.* प्राणी को विभिन्न प्रकार के उत्तेजक संकेत मिलते हैं।

*3.* प्राणी विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करता है।

*4.* प्राणी अलग-अलग प्रतिक्रियाओं के साथ पूर्व अनुभव के कारण विभिन्न प्रकार की तीव्रता के साथ सीखता है।

*5.* प्राणी को त्रुटिपूर्ण एवं सत्य प्रतिक्रियाओं का ज्ञान होना चाहिए।

▪️ मानव की तार्किक शक्ति को ही समस्या समाधान के साधन के रूप में कहा गया है।

*समस्या समाधान के चरण*

✨✨✨✨✨✨✨

समस्या समाधान के निम्नलिखित चरण है……

*1. समस्या की उपस्थिति*

समस्या का समाधान करने के लिए सबसे पहले समस्या का उपस्थित होना जरूरी है।

*2. समस्या को समझना*

वास्तव में समस्या क्या है उसको समझना भी आवश्यक है। यदि व्यक्ति को समस्या का बोध ही नहीं होगा कि समस्या है क्या तो उसका समाधान नहीं निकाल सकता।

*3. समस्या के संबंध में सूचना एकत्र करना और व्यवस्थित करना*

जब समस्या का पता चल जाता है तो व्यक्ति उसके बारे में सूचना एकत्र करता है और उसको व्यवस्थित करता है।

*4.* पूर्व कल्पना का मूल्य निर्धारण करना चाहिए।

*5.* समाधान को प्रयोग में लाना

*शिक्षक द्वारा बालक में चिंतन का विकास*

✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

*क्रो एंड क्रो के अनुसार*

सफल जीवन यापन के लिए स्पष्ट चिंतन की योग्यता आवश्यक है इसलिए अध्यापक को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि बालकों की चिंतन शक्ति का विकास हो।

▪️ बालकों में चिंतन शक्ति का विकास कैसे करें?

*(1).*  अध्यापक को चाहिए कि बच्चों के सामने कोई समस्या रखें और उनको प्रोत्साहित करें कि वह समस्या के समाधान के लिए अपना विचार प्रकट करें।

*(2).* कौतूहल (जिज्ञासा/उत्सुकता) और रुचि शिक्षक को बच्चों में जागृत रखना चाहिए। जब बच्चा जिज्ञासु होगा तभी वह समस्या के समाधान के लिए चिंतन करेगा और समस्या का समाधान कर सकेगा।

*(3).* शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों को उत्तरदायित्व के काम सौंपे। जैसे- श्यामपट्ट को साफ करना, कक्षा कक्ष की साफ-सफाई,कक्षा कक्ष में शिक्षक के अनुपस्थिति में वहां की उत्तरदायित्व आदि।

*(4).* भाषा का उपयोग बच्चों के द्वारा करवाना चाहिए। शिक्षक को चाहिए कि बच्चों के सामने कोई समस्या रखें या विषय वस्तु से संबंधित कोई प्रश्न पूछें और बच्चों को उनकी भाषा का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें। जब बच्चा अपने विचारों को प्रकट करने के लिए अपनी भाषा का प्रयोग करता है तो वह उसमें भी चिंतन करता है। जिससे उसके चिंतन शक्ति का विकास होता है।

*(5).*  जो बच्चों के सामने कोई समस्या दी जाती है। तो वह उस समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है।

*(6).* बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछे जिससे वह तार्किक चिंतन करें।

*(7).* बच्चों को पढ़ाते समय हमेशा दैनिक जीवन से संबंधित उदाहरण देकर शिक्षण क्रिया पूर्ण करना चाहिए जिससे बच्चा अपना चिंतन भी लगा सके और उसके ज्ञान में वृद्धि हो।

*(8).*  रटने को कम करना चाहिए और चिंतन पर अधिक बल देना चाहिए।

*(9).* तर्क – वितर्क एवं वाद – विवाद को प्रोत्साहित करना।

*(10).*  बच्चों के सामने जब कोई समस्या आती है तो वह पहले उसका निरीक्षण करता है फिर अपने पूर्व  अनुभव का प्रयोग करके समस्या का समाधान करता है।

*Notes by Shreya Rai……..*✍️🙏