CDP- Thinking & Problem Solving for CTET & State TETs

🔆चिंतन और समस्या समाधान➖

▪️समस्या के समाधान के समय जब चिंतन किया जाता है तो चिंतन की अवस्था तर्क वाली होती है अर्थात जो भी समस्या होती है उससे जुड़े हुए विभिन्न तर्क हम प्रयोग करते हैं और अनेक प्रकार के चिंतन से एक उचित समाधान के लिए अनेक साधन भी जुटाने लगते हैं।

▪️समस्या के हल के समय चिंतन का प्रभावित रूप तर्क  है जब तक समस्या का हल नहीं निकल जाता उस पर चिंतन जारी रखते हैं।

▪️समस्या की स्थिति या प्रकृति को परिभाषित करने के लिए कई मनो वैज्ञानिक ने अपने अनेक तथ्य प्रस्तुत किए।

❇️समस्या➖

▪️जब हमारे सामने समस्या होती है तो हम अपने आप को उत्तेजक स्थिति में पाते हैं।

▪️उत्तेजक अर्थात किसके क्रिया को करने के लिए प्रेरणा या पुनर्बलन मिलता है और जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता तब तक हम उत्तेजक स्थिति में ही रहते है।

✨जॉनसन के अनुसार➖

🔹समस्या की उत्पत्ति कब होती है जो व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित होता है।

परंतु उसके प्रारंभिक प्रयत्न इस लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते है।

✨एंड्रियाज ने समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तविक समस्या तभी होती है जब उनमें यह मुख्य रूप से निम्न पांच बातें दिखाई देती हैं।

🔸1  प्राणी के समक्ष एक या एक से अधिक लक्षय होने चाहिए।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिसमें उस समस्या से जुड़े हुए कई लक्ष्य अर्थात किसी भी समस्या को पूरा करने में कई छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और उन्हें पूरा करने में ही असल समस्या का उचित समाधान प्राप्त होता है।

🔸2 प्राणी को विभिन्न प्रकार के उत्तेजक संकेत मिलते हैं।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिसमें कई प्रकार के उत्तेजक संकेत अर्थात समस्या को पूरा करने के लिए कई प्रकार का पुनर्बलन या प्रेरणा मिलती है जिसकी वजह से हम उस समस्या को किसी भी हाल में यह किसी भी परिस्थिति में उसका समाधान प्राप्त करना चाहते हैं

🔸3 प्राणी विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करता है।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिस समस्या पर एक प्रकार से नहीं अपितु विभिन्न प्रकार से या कई तरीकों से प्रतिक्रिया की जाए अर्थात समस्या  का उचित समाधान प्राप्त करने के लिए उस पर कई रूपों में प्रतिक्रिया की जाए।

🔸4 अलग-अलग प्रतिक्रियाओं के साथ पूर्व अनुभव के कारण विभिन्न प्रकार की तीव्रता के साथ सीखता है।

🔸5 प्राणी को त्रुटिपूर्ण एवं सत्य प्रतिक्रिया का ज्ञान होता है।

▪️वास्तविक समस्या वही है जिसमें समस्या में होने वाली गलतियां या जो त्रुटियां है तथा जो सही प्रतिक्रिया है उसका हमें पूर्ण रूप से ज्ञान हो तथा उन्ही प्रतिक्रियाओं पर एक उचित तरीके से क्रिया करें

▪️अर्थात किसी भी समस्या के प्रति हम कितने गंभीर हैं वही वास्तविक समस्या है।

▪️किसी भी प्रकार की समस्या चाहे वह जटिल हो या सरल ।यदि समस्या जटिल है और उस समस्या के प्रति हम गंभीर हैं अर्थात हमारी समस्या उपयुक्त 5 बिंदुओं से परिपूर्ण है उस परिस्थिति में समस्या का समाधान खोजने के लिए हम अपने तर्क का प्रयोग करते हैं ।

▪️अर्थात मानव की तार्किक शक्ति को समस्या समाधान के साधन के रूप में कहा गया है।

           कोई भी वास्तविक समस्या

                       ⬇️

              तार्किक शक्ति  प्रयोग

                       ⬇️

            समाधान निकालना

▪️जब भी कोई वास्तविक समस्या होती है तब उस पर हम अपनी तार्किक शक्ति का प्रयोग कर उस वास्तविक समस्या का उचित समाधान निकाल लेते हैं।

❇️समस्या समाधान के चरण➖

📍1 समस्या की उपस्थिति

📍2 समस्या को समझना

📍3 समस्या के संबंध में सूचना एकत्रित करना और व्यवस्थित करना

📍4 पूर्व कल्पना का मूल्य निर्धारण करना 

📍5 समाधान को प्रयोग में लाना

❇️शिक्षक द्वारा बालक में चिंतन का विकास➖

✨क्रो एंड क्रो के अनुसार➖

🔹सफल जीवन यापन के लिए स्पष्ट चिंतन की योग्यता आवश्यक है इसीलिए अध्यापक को इस बात का प्रयास करना चाहिए वह बालकों की चिंतन शक्ति का विकास करे।

❇️बालक में चिंतन शक्ति का विकास कैसे करें➖

☄️1अध्यापक प्रोत्साहित करें कि बच्चे अपने विचार प्रकट करें।

▪️जब बच्चे अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तो वो इन विचारों में अपने चिंतन का प्रयोग करते हैं । बच्चे के विचार सही हो या गलत जब विचारों को महत्व या वरीयता मिलती है तो वह सहज महसूस करते हैं और उस पर अधिक व्यापक रूप से चिंतन करते हैं।

☄️2कोतुहल (जिज्ञासा) और रुचि को बच्चों में  जागृत रखना चाहिए।

▪️बालक में चिन्तन शक्ति रुचि पर निर्भर होती है। जब वह किसी उद्दीपक पर ध्यान देगा एवं रुचि प्रदर्षित करेगा तो चिन्तन प्रक्रिया का प्रारम्भ स्वतः ही हो जाता है। इसलिए बालकों में कार्य के प्रति जागरूकता एवं रुचि को जागृत करना चाहिए।

☄️3 उत्तरदायित्व के काम दिए जाएं

जब किसी भी कार्य के प्रति उत्तरदायित्व जिम्मेदारी मिलती है तो उस कार्य के प्रति हमारी owenership या उस कार्य के हम स्वयं मलिक बन जाते हैं और उस कार्य को हम अपने तरीके और अपनी जिम्मेदारी से पूरा करते हैं।

☄️4 भाषा का प्रयोग किया जाए

▪️भाषा ही विचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। बालक के चिन्तन के विकास में भाषा का अत्यधिक महत्व है। अतः शिक्षक को अपने बालकों को सही भाषा का उच्चारण, लिखना एवं वाचन करना सिखाना चाहिए। जब वे भाषा में परिपक्व हो जायेंगे तो चिन्तन प्रक्रिया में सरलता होगी।

☄️5 समस्या समाधान करने को दिया जाए

▪️बालकों की चिन्तन शक्ति का विकास करने के लिये समस्याएँ उत्पन्न करनी चाहिए। ये समस्याएँ बालको के समक्ष इस प्रकार से रखी जायें जैसे वातावरण से स्वतः उत्पन्न हुई हैं। बालक स्वतः ही क्रियाशील होकर चिन्तन करके समस्या का हल खोजेंगे। इसीलिये रूसो ने अध्यापक को पर्दे के पीछे रहने को कहा था। अध्यापक छात्रों को मार्ग-दर्शन देता है और उसी आधार पर वे अपना विकास करते हैं। इस प्रकार से बालक जीवन के प्रति आशावान हो जाते हैं और समस्याओं के प्रति सावधान।

☄️6 कैसे प्रश्न पूछे जाएं जिससे बच्चे चिंतन कर सके।

▪️जब बच्चों से चिंतनशील प्रश्न पूछे जाते हैं तो वह निश्चित ही अपने मानसिक स्तर पर तर्क लगाते हैं और उन प्रश्नों का जवाब देते हैं फल स्वरूप बच्चों की चिंतन शक्ति का विकास होता है।

☄️7 ज्ञान विकसित हो

▪️चिन्तन के विकास के लिये बालकों में ज्ञान के प्रति रुचि एवं लगन उत्पन्न करनी चाहिए। चिन्तन की सहायक सामग्री से विभिन्न प्रकार का ज्ञान होता है, जो चिन्तन प्रक्रिया को मजबूत एवं सफल बनाता है।

☄️8 रटने को कम करना।

▪️जब किसी भी समस्या का समाधान चिंतन करके किया जाता है तो उस समस्या के समाधान को लंबे समय तक याद रखा जा सकता है अर्थात कभी भी जरूरत पड़ने पर उस समस्या का प्रयोग किया जा सकता है। क्योंकि जब हम समस्या का समाधान अपने तर्क का प्रयोग करें अपने चिंतन से करते हैं तो वह स्थाई रूप से हमारे मानसिक स्तर में बना रहता है जिससे हमें यह रटना नहीं पड़ता

☄️9 तर्क और वादविवाद करना।

▪️जब बच्चे किसी समस्या पर तर्क और वाद-विवाद करते है तो वह इस तर्क और वाद-विवाद में अपने चिंतन का प्रयोग कर करते हैं जिससे बच्चों की चिंतन शक्ति को विकसित किया जा सकता है।

☄️10 निरीक्षण अनुभव प्रयोग करना।

🎉🎉विषय-चिंतन और समस्या समाधान🎉

👀समस्या के हल के समय चिंतन का प्रभावी रूप जो मस्तिष्क में विचरण करता है वही तर्क कहलाता है।

👀समस्या के आने पर जब तक समस्या का हल या समाधान  ना मिल जाए तब तक चिंतन जारी रहता है।

👀समस्या के प्रकट होने पर व्यक्ति अपने आप में उत्तेजित हो जाते हैं और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए तब तक वह उत्तेजना मनुष्य के मस्तिष्क में विचरित करती रहती है।

🐦जॉनसन के अनुसार÷ समस्या की उत्पत्ति तब होती है जब व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित हो, परंतु उसके प्रारंभिक प्रयत्न लक्ष्य की  प्राप्ति में सहायक होते हैं।

🐦एंन्ड्रियांस के अनुसार÷ समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण

🐣इन्होंने समस्यात्मक स्थिति के विश्लेषण के लिए इसको 5 भागों में बांटा जो निम्नलिखित हैं🐣÷

🐤१-प्राणी के समक्ष एक या अधिक लक्ष्य होने चाहिए;

🐤२-प्राणी को विभिन्न प्रकार के उत्तेजक संकेत मिलते हैं;

🐤३-प्राणी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करना आवश्यक है यदि व्यक्ति उत्तेजित है तो वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रतिक्रिया करेगा।

🐤४-समस्या के प्रति गंभीरता है तो अलग-अलग प्रक्रियाओं के साथ अनुभव के कारण विभिन्न प्रकार के तीव्रता के साथ सीखता है।

🐤५-प्राणी को त्रुटिपूर्ण एवं सत्य प्रतिक्रियाओं का ज्ञान  होता है।

👀यदि आप समस्या के प्रति गंभीर है कि नहीं यदि है तो वह अपनी समस्या को सुलझाने के लिए प्रतिक्रिया करेगा और चिंतन के द्वारा समाधान करेगा।

👀 मानव की तार्किक शक्ति को भी समस्या समाधान के साधन के रूप में कहा गया है।

🐣समस्या समाधान के चरण निम्नलिखित है🐣÷

🐤१-समस्या की उपस्थिति का होना परम आवश्यक है।

🐤२-समस्या को समझना तर्क लगाना कि किस प्रकार की समस्या है व इसके समाधान के लिए क्या, कैसे करना होगा।

🐤३-समस्या के संबंध में सूचना एकत्र करना हो व्यवस्थित करना, और कुछ समस्या को समझाने के लिए उससे संबंधित अनेक प्रकार के तथ्यों सूचनाओं को अलग-अलग जगह से एकत्रित करके एक जगह पर व्यवस्थित करना ताकि जिस जिससे समस्या का समाधान सरलता से किया जा सके।

🐤४-पूर्व कल्पना का मूल्य निर्धारण करना (किसी समस्या के लिए काफी आवश्यक चीजें आ गई हैं अतः उस पर समाधान निकालने का सही प्रतिक्रिया के द्वारा समस्या समाधान करने का तरीका मिल जाता है।

🐤५-समाधान को व तरीकों को प्रयोग में लाना।

🐣शिक्षण द्वारा बालक में चिंतन का विकास🐣

🐦क्रो एवं क्रो के अनुसार🐦

👀सफल जीवन यापन के लिए इस पर चिंतन की योग्यता आवश्यक है इसलिए अध्यापक को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि बालक के चिंतन शक्ति का विकास हो।

🐣बालकों में चिंतन की शक्ति का विकास कैसे करें उसके लिए निम्नलिखित तथ्य🐣÷

🐤बालक में चिंतन की शक्ति का विकास करने के लिए अध्यापक को बच्चों को  प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि बालक अपना विचार प्रकट करें।

🐤कौतुहल (जिज्ञासा,) और रुचि, शिक्षक को बच्चों में इसे जागृत रखना चाहिए।

🐤बच्चे को उत्तरदायित्व के काम को सोचना चाहिए अर्थात बच्चों को विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों के छोटे-छोटे कार्य सौंप देने चाहिए, जिससे बालक उत्तरदायित्व को समझने के साथ-साथ उस उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए चिंतन का प्रयोग भी करेंगे।

🐤भाषा का उपयोग बच्चों के द्वारा करवाना चाहिए अर्थात शिक्षक को बच्चों के विचारों को प्रकट करने का अवसर प्रदान करना चाहिए जिसके द्वारा वह अपने मनोभावों को बेहतर ढंग से प्रकट करके अधिगम को रुचिपूर्ण वा सफल बनाने में मदद करेंगे।

🐤समस्या का समाधान करने में बच्चों को सम्मिलित करना चाहिए जिससे बच्चे उस समस्या के बारे में विभिन्न प्रकार के तर्क व चिंतन के द्वारा उस समस्या का समाधान हो सके।

🐤बच्चों से इस प्रकार के प्रश्न पूछने चाहे जिससे वह चिंतन कर सकें।

🐤बच्चे के रटंतु ज्ञान को कम करना चाहिए, उसके ज्ञान को बनाने में उसकी मदद करनी चाहिए, उसको तक वाद-विवाद कराना चाहिए जिससे उसके विचारों को समझा जा सके।

🐤निरीक्षण करना अनुभव करना वा प्रयोग करना सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है चिंतन के लिए;

handwritten by-Shikhar Pandey🙏

*चिंतन और समस्या समाधान*

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समस्या के हल के समय चिंतन का प्रभावित रूप तर्क है। जब तक समस्या का हल नहीं निकल जाए तब तक उस पर चिंतन जारी रखते हैं।

मनुष्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है इसका कारण है उसका चिंतनशील होना।जीव धारियों में मनुष्य ही सर्वाधिक चिंतनशील है और यही चिंतन मनुष्य और उसके समाज के विकास का कारण है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य के चिंतन शक्तियों को विकसित किया जा सकता है।

मनुष्य के सामने कभी-कभी किसी समस्या का उपस्थित होना स्वभाविक है। ऐसी दशा में वह उस समस्या का समाधान करने के लिए उपाय सोचने लगता है। वह इस बात पर विचार करना प्रारंभ कर देता है कि समस्या का किस प्रकार समाधान किया जा सके। उसके इस प्रकार सोचने या विचार करने की क्रिया को ही चिंतन कहते हैं।

अर्थात्

          “चिंतन विचार करने की वह मानसिक प्रक्रिया है जो किसी समस्या के कारण प्रारंभ होती है और उसके अंत तक चलती रहती है।”

▪️ *समस्या-* जब व्यक्ति के सामने कोई समस्या होती है तो वह उत्तेजित अवस्था में होता है और यह उत्तेजना तब तक रहता है जब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता यानी समस्या का समाधान नहीं कर लेता।

जैसे- भूख लगना समस्या है। जब व्यक्ति भूखा होता है तो वह भोजन को प्राप्त करने के लिए उत्तेजित होता है। भोजन को प्राप्त करना लक्ष्य है।

▪️ *समाधान-* यहां भोजन प्राप्त कर लेना ही समस्या का समाधान है।

*जॉनसन मनोवैज्ञानिक के अनुसार*,

समस्या की उत्पत्ति तब होती है जब व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित हो परंतु उसके प्रारंभिक प्रयत्न लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक है।

*एनाड्रियाज के अनुसार समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण-*

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इन्होंने समस्यात्मक स्थिति का विश्लेषण करके इसको

पांच भागों में बांटा……

*1.* प्राणी के समक्ष एक या एक से अधिक लक्ष्य होने चाहिए।

*2.* प्राणी को विभिन्न प्रकार के उत्तेजक संकेत मिलते हैं।

*3.* प्राणी विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया करता है।

*4.* प्राणी अलग-अलग प्रतिक्रियाओं के साथ पूर्व अनुभव के कारण विभिन्न प्रकार की तीव्रता के साथ सीखता है।

*5.* प्राणी को त्रुटिपूर्ण एवं सत्य प्रतिक्रियाओं का ज्ञान होना चाहिए।

▪️ मानव की तार्किक शक्ति को ही समस्या समाधान के साधन के रूप में कहा गया है।

*समस्या समाधान के चरण*

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समस्या समाधान के निम्नलिखित चरण है……

*1. समस्या की उपस्थिति*

समस्या का समाधान करने के लिए सबसे पहले समस्या का उपस्थित होना जरूरी है।

*2. समस्या को समझना*

वास्तव में समस्या क्या है उसको समझना भी आवश्यक है। यदि व्यक्ति को समस्या का बोध ही नहीं होगा कि समस्या है क्या तो उसका समाधान नहीं निकाल सकता।

*3. समस्या के संबंध में सूचना एकत्र करना और व्यवस्थित करना*

जब समस्या का पता चल जाता है तो व्यक्ति उसके बारे में सूचना एकत्र करता है और उसको व्यवस्थित करता है।

*4.* पूर्व कल्पना का मूल्य निर्धारण करना चाहिए।

*5.* समाधान को प्रयोग में लाना

*शिक्षक द्वारा बालक में चिंतन का विकास*

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*क्रो एंड क्रो के अनुसार*

सफल जीवन यापन के लिए स्पष्ट चिंतन की योग्यता आवश्यक है इसलिए अध्यापक को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि बालकों की चिंतन शक्ति का विकास हो।

▪️ बालकों में चिंतन शक्ति का विकास कैसे करें?

*(1).*  अध्यापक को चाहिए कि बच्चों के सामने कोई समस्या रखें और उनको प्रोत्साहित करें कि वह समस्या के समाधान के लिए अपना विचार प्रकट करें।

*(2).* कौतूहल (जिज्ञासा/उत्सुकता) और रुचि शिक्षक को बच्चों में जागृत रखना चाहिए। जब बच्चा जिज्ञासु होगा तभी वह समस्या के समाधान के लिए चिंतन करेगा और समस्या का समाधान कर सकेगा।

*(3).* शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों को उत्तरदायित्व के काम सौंपे। जैसे- श्यामपट्ट को साफ करना, कक्षा कक्ष की साफ-सफाई,कक्षा कक्ष में शिक्षक के अनुपस्थिति में वहां की उत्तरदायित्व आदि।

*(4).* भाषा का उपयोग बच्चों के द्वारा करवाना चाहिए। शिक्षक को चाहिए कि बच्चों के सामने कोई समस्या रखें या विषय वस्तु से संबंधित कोई प्रश्न पूछें और बच्चों को उनकी भाषा का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें। जब बच्चा अपने विचारों को प्रकट करने के लिए अपनी भाषा का प्रयोग करता है तो वह उसमें भी चिंतन करता है। जिससे उसके चिंतन शक्ति का विकास होता है।

*(5).*  जो बच्चों के सामने कोई समस्या दी जाती है। तो वह उस समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है।

*(6).* बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछे जिससे वह तार्किक चिंतन करें।

*(7).* बच्चों को पढ़ाते समय हमेशा दैनिक जीवन से संबंधित उदाहरण देकर शिक्षण क्रिया पूर्ण करना चाहिए जिससे बच्चा अपना चिंतन भी लगा सके और उसके ज्ञान में वृद्धि हो।

*(8).*  रटने को कम करना चाहिए और चिंतन पर अधिक बल देना चाहिए।

*(9).* तर्क – वितर्क एवं वाद – विवाद को प्रोत्साहित करना।

*(10).*  बच्चों के सामने जब कोई समस्या आती है तो वह पहले उसका निरीक्षण करता है फिर अपने पूर्व  अनुभव का प्रयोग करके समस्या का समाधान करता है।

*Notes by Shreya Rai……..*✍️🙏

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