#9. CDP – Pre-Operational Stage – Social development

*सामाजिक विकास (2-6 years)* 

बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहां के मानदंडों के हिसाब से उसका विकास होता है

 *Exa.* पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना जिससे उसका सोशल डेवलपमेंट होता है

✍🏾 1.बच्चा विश्वास और अविश्वास की भावना खुद विकसित करता है l

✍🏾2. बच्चा स्वायत्तता की भावना विकसित होती है

      Exa. खुद से काम करने लगते हैं,अपने हिसाब से काम करने लगती है अपने तौर-तरीकों से काम करना

✍🏾 3.बच्चा अन्वेषण शुरू कर देता है l

• Exa. खिलौनों की तोड़ मरोड़ करने लगते हैं

• लाइट को चालू बंद करना

• टीवी चालू बंद करना

• चीजों को खोलकर उसका खोजबीन करने लगते हैं l

• जानने के लिए जिज्ञासु होते हैं

✍🏾4.. बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर फैलना शुरू कर देता है।

Exa.बच्चा समाज में अच्छा बुरा कुछ भी सीख सकता है कहने का तात्पर्य क्या समाज के दायरे में जब जोड़ता है तो कुछ भी सीख सकता है

✍🏾5.. बच्चे बच्चियां बिना किसी लिंगभेद के एक साथ खेलते हैं सक्रिय रूप से भाग लेते हैं भौतिक उर्जा का उपयोग करते हैं l

✍🏾6. दूसरों को सहयोग करना सीख जाते हैं l

✍🏾7. सामान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनाना सीख जाते ।

✍🏾8. बच्चे परी, राजा,रानी, पशु की कहानी में रुचि लेने लगते हैं

✍🏾9.. बच्चों में नकारात्मकता भी 3 से 6 साल में बढ़ जाती है ये सामाजिक परिस्थिति का उत्पाद है

✍🏾10. लड़कियां लड़कों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती है l

✍🏾11. बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन की मांग करता है l

  🏵️🏵️Notes by Sharad Kumar patkar🌺🌺

💐💐2-6 year  में सामाजिक विकास💐💐💐

🍃🍃🍃 बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहां के मानदंडों के हिसाब से उसका व्यक्तित्व विकास होता है

.🍃🍃 बच्चा विश्वास और अविश्वास की भावना खुद से विकसित करता है. 

जैसे बच्चा अपने परिवार वालों पर विश्वास करता है जैसी बात जानता है उन पर विश्वास करता है और जिसे वह नहीं जानता उस पर वह अविश्वास दिखाता है

🍃🍃🍃 बच्चों में स्वायत्त की भावना विकसित होती है

🍃🍃🍃🍃 इसमें बच्चा खुद से अपने कार्यों को करने की जिद करता है वह खुद से खाना ,खाना पानी पीना यहां तक की मम्मी के साथ काम करने की जिद करता है

🍃🍃🍃🍃 बच्चा अन्वेषण शुरू कर देता है

आपने देखा होगा कि इस एज में बच्चा अपने खिलौनों को तोड़ता है उसे में देखता  है क्या कैसा है

🍃🍃🍃🍃🍃 बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर खेलना शुरू कर देता है जब बच्चा सामाजिक वातावरण में जाता है तो बच्चा वहां से सिर्फ सकारात्मक सोच ही नहीं ग्रहण करता वह नकारात्मक सोच भी ग्रहण करता है

🍃🍃🍃🍃🍃 बच्चे /बच्चियां बिना किसी लिंगभेद के एक साथ खेलते हैं सक्रिय रूप से भाग लेते हैं 

🍃🍃🍃🍃 दूसरों को सहयोग करना सीख जाते हैं

🍃🍃 इस एज में बच्चा दूसरों का अनुकरण करता है बच्चा दिखता है कि मां जो काम कर रही है उसमें बच्चा अपना हाथ बटाने की कोशिश करता है

🍃🍃🍃🍃 इस उम्र में बच्चा समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनाना सीख जाता है

🍃🍃🍃 बच्चे परी ,राजा ,रानी ,पशु की कहानी में रुचि लेते हैं

🍃🍃🍃 बच्चों में नकारात्मकता भी 3 से 4 साल में बढ़ जाती है यह सामाजिक परिस्थिति के उत्पाद हैं

🍃🍃🍃🍃 बच्चियां बच्चों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती हैं

🍃🍃🍃🍃 बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन (समर्थन )की मांग करता है

sapna sahu 🍃🍃🍃💠💠💠🙏🙏🙏🙏📚📚🖋️🖋️🖋️🔷🔷🔷

🍁🍁 पूर्व बाल्यावस्था 🍁🍁

 🌺   सामाजिक विकास🌺

✍🏻 बच्चा एक सामाजिक परिवेश में पैदा होता है, जहां उसका व्यक्तित्व विकास सामाजिक मानदंडों के द्वारा होता है।

👉 बच्चे में विश्वास और अविश्वास की भावना खुद विकसित होती है।

👉 बच्चे में स्वायत्तता(Autonomy) की भावना विकसित होती है।

👉 वह अन्वेषण करना शुरू कर देते हैं।

👉 बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर फैलना शुरू हो जाता है, क्योंकि इस उम्र में बच्चा अपने परिवार से बाहर निकल कर आस-पड़ोस के लोगों से मिलता है तथा वहां से कुछ अच्छी बातें और कुछ बुरी बातें भी सीख लेता है।

👉 बच्चे या बच्चियां बिना किसी लिंगभेद के और बिना किसी भेदभाव के एक साथ खेलना शुरू कर देते हैं तथा वह सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और अपनी भौतिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं।

👉 दूसरों को सहयोग करना सीख जाते हैं।

👉 समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनाना सीख जाते हैं।

👉 बच्चे परी राजा और रानी तथा पशुओं की कहानी में रुचि लेते हैं क्योंकि इस उम्र में बच्चा कल्पना में होते हैं तथा जिज्ञासु होते हैं।

👉 इस उम्र के बच्चों में नकारात्मकता की भावना भी 3 से 6 साल के बीच बढ़ जाती है, यह सामाजिक परिस्थितियों का एक उत्पाद है, क्योंकि वह अपने परिवेश में नकारात्मकता को देखते और सुनते हैं तो वही सीख लेते हैं और अनुकरणीय हो जाते हैं।

👉 लड़कियों खेलने की तुलना में लड़कों पर ज्यादा हावी होती है।

👉 बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन की मांग करता है।

           🌟🌟🌟🌟🌟

NOTES BY 

             Shashi Chaudhary.

            🙏🙏🙏🙏🙏

पूर्व बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

(Social development in preoperational stage) (2 से 6 वर्ष)

↪️ बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है, वहां के मानदंडों के हिसाब से उसके व्यक्तित्व का विकास होता है।

↪️ बच्चे विश्वास और अविश्वास की भावना को खुद विकसित करते हैं।

↪️ इस अवस्था में बच्चा अन्वेषण करना शुरू कर देता है।

↪️ बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर फैलना शुरू हो जाता है।

↪️ बच्चे/बच्चियां बिना किसी लिंग भेद-भाव के एक साथ खेलते हैं, सक्रिय रुप से भाग लेते हैं, भौतिक उर्जा का उपयोग करते हैं।

↪️ दूसरों को सहयोग करना सीख जाते हैं।

↪️ समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों के साथ मित्रता करना सीख जाते हैं।

↪️ बच्चे परी, राजा-रानी, पशु-पक्षी इत्यादि की कहानियों में रुचि लेते हैं।

↪️ बच्चों में नकारात्मकता भी 3 से 6 साल की उम्र में बढ़ जाती है।

↪️ लड़कियां लड़कों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती हैं।

↪️ बच्चा अपनी बात को पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन की मांग करता है।

🔚

         🙏

📝🥀Notes by Awadhesh Kumar🥀

पूर्व बाल्यावस्था [ 2 – 6  वर्ष ] में 

  बच्चों का सामाजिक विकास 

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहां के मानदंडों के हिसाब से उसके व्यक्तित्व का विकास होता है , जैसे  :-

👉  इस उम्र में बच्चे विश्वास और अविश्वास की भावना स्वयं ही विकसित कर लेते हैं।

अर्थात् बच्चे अपने आप से ही किसी भी व्यक्ति , चीजों के प्रति विश्वास करने , न करके की भावना बना लेते हैं जैसे कोई व्यक्ति उनके घर परिवार आदि का बहुत खास और अच्छा भी होगा पर कई बच्चे ऐसे लोगो के पास नही जाते हैं, या जाने पर रोते हैं।

👉  इस उम्र में बच्चों में स्वायत्तता की भावना विकसित हो जाती है।

अर्थात् बो खुद से करने की हठ करने लगते हैं, जैसे मैं खुद से नहा लूंगा / खाना खा लूंगा/ न बन सकने बाले काम के लिये भी बोलेंगे कि मुझसे बन जायेगा, हम करेंगे आदि ।

👉   इस उम्र में बच्चे अन्वेषण करना शुरू कर देते हैं।

हम जानते हैं कि बच्चे छोटे वैज्ञानिक होते हैं , जिज्ञासु होते हैं, उन्हें हर चीज के बारे में जानना होता है, स्वयं करके भी देखते हैं अतः हमें बच्चों की जिज्ञासु प्रवृत्ति को कुंठित नहीं करना चाहिये औऱ न ही कभी उनके प्रश्नों के गलत जवाब देने चाहिये बल्कि हमेशा उन्हें उचित समय पर उचित उत्तर देना चाहिये।

👉    बच्चे का सामाजिक वातावरण घर – परिवार से फैलना /  बढ़ना शुरू होता जाता है।

इस उम्र में बच्चों के सामाजिक परिवेश का दायरा परिवार के अलावा पड़ोस, विद्यालय, खेल का मैदान आदि के तौर पर बढ़ता है।

👉   इस उम्र में बच्चे – बच्चियां बिना किसी लिंगभेद के एक साथ खेलते हैं , सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और भौतिक ऊर्जा का उपयोग भी करते हैं।

 👉   इस उम्र में बच्चे दूसरों का सहयोग करना सीख जाते हैं।

जैसे अपने घर में सबके साथ उनको काम करवाने की इच्छा होती है छोटे – छोटे काम भी करते हैं, बिगाड़ते भी हैं, पड़ोसियों के घर भी छोटे रूप में सहयोग करते हैं आपने विद्यालयी परिवेश में भी सहायता करते हैं।

👉    इस उम्र में बच्चे समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनाना सीख जाते हैं।

अर्थात् बच्चे अपने समान उम्र,  रहन – सहन, भाषा , बातचीत , व्यक्तित्व आदि के आधार पर अपनी मित्र मंडली बनाते हैं।

👉   इस उम्र में बच्चे परियों , राजा – रानी , पशुओं की कहानियों में रुचि रखते हैं।

     क्योंकि  बच्चे जिज्ञासु होते हैं तो उन्हें अपने से बड़ों द्वारा सुनाई जाने बाली काल्पनिक या वास्तविक कहानियां रूचिकर लगतीं हैं।

👉   इस उम्र में बच्चों में नकारात्मकता भी 3 – 6 साल में बढ़ जाती है और यह सामाजिक परिस्थिति का ही उत्पाद है।

अर्थात् बच्चों में अनुकरण की प्रवृति प्रबल होती है तो जैसा बो अपने परिवेश में देखेंगे, सुनेंगे वैसा ही ग्रहण करेंगे , इसीलिये बच्चों को नकारात्मक वातावरण से दूर रखकर एक सकारात्मक और खुशहाल माहौल में रखना चाहिये ताकि उनका सकारात्मक रूप से उचित विकास हो सके।

👉    इस उम्र में बच्चियां , लड़कों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती हैं।

हम जानते हैं कि लड़कियां, लड़कों की तुलना में 2 वर्ष पूर्व ही परिपक्व होतीं जातीं है तो इसी तौर पर बो इस उम्र में भी खेलने, समझ रखने आदि सब में लड़कों की अपेक्षा आगे होतीं हैं।

👉   इस उम्र में बच्चे अपनी बात को पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन ( समर्थन )  की मांग करते हैं।

अर्थात् बच्चों को अपनी जिस भी बात पर अपने बड़ों से सहमति लेनी होगी या कोई काम करना होगा तो वह अपने समाज ( बड़ों से ) सहमति  या समर्थन पाने की जिद भी करते हैं।

🌹✍️Notes by –  जूही श्रीवास्तव ✍️🌹

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास

बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहां के मानदंडों के हिसाब से उसका व्यक्तित्व विकास होता है।

बच्चे *विश्वास और अविश्वास* की भावना खुद विकसित करते हैं।

जैसे कोई बच्चा किसी व्यक्ति से बहुत अधिक लगाव रखता है और किसी व्यक्ति से बहुत अधिक डरता है यह बच्चे का उस व्यक्ति विशेष के प्रति विश्वास या अविश्वास की भावना के कारण होता है।

इस अवस्था में बच्चों में *स्वायत्तता* की भावना विकसित होती है।

अर्थात बच्चे हर कार्य को अपने हिसाब से या खुद से स्वतंत्र रूप में करना चाहते हैं। वह अपने कार्य में किसी दूसरों का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं।

इस अवस्था में बच्चा *अन्वेषण* शुरू कर देता है।

जैसे बच्चा खेलते समय खिलौनों को तोड़ता है, जोड़ता है, उन्हें खोलता है और फिर से बंद करने की कोशिश करता है 

यह बच्चे की खोज की प्रवृत्ति के कारण होता है वह इस समय जिज्ञासु होता है। वह अपने परिचितों से अनेक प्रकार के सवाल- जवाब करता है कि यह क्या है? यह क्यों है? यह कैसे होता है? आदि।

इस अवस्था में बच्चे का *सामाजिक वातावरण* घर के बाहर *फैलना* शुरू कर देता है अर्थात अब बच्चा परिवार से बाहर निकलकर पास पड़ोस के लोगो से,अपने समान छोटे बच्चों से मिलता है और उनसे कुछ अच्छा और कुछ बुरा भी  सीखता है।

इस अवस्था में बच्चे और बच्चियां *बिना किसी लिंगभेद के एक साथ खेलते हैं*। सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और भौतिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं।

इस अवस्था में बच्चे *दूसरों का सहयोग* करना सीख जाते हैं जैसे कोई बच्चा अपनी मां को रोटी बनाते देखता है तो वह भी रोटी बनाने का प्रयास करता है।

इस सहयोग की भावना के कारण बच्चे किसी काम को बिगड़ते हैं और बनाते हैं।

*समान व्यक्तित्व लक्षण* वाले बच्चे को *दोस्त बनाना* सीख जाते हैं। जैसे जो बच्चे उसके साथ खेलते हैं वह उसके अच्छे मित्र बन जाते हैं

बच्चे *परी, राजा -रानी ,पशु -पक्षियों* की *कहानी में रुचि* रखते हैं क्योंकि इस समय वह जिज्ञासु होते हैं वह यह जानने के लिए अधिक उत्सुक रहते हैं कि कहानी में आगे क्या होगा।

बच्चों में *नकारात्मकता* भी 3 से 6 साल में *बढ़* जाती है यह *सामाजिक परिस्थिति* का ही *उत्पाद* है। क्योंकि बच्चा पास पड़ोस से केवल अच्छी बातें ही नहीं सीखता है वह कुछ बुरी बातें भी सीख जाता है।

इस अवस्था में लड़कियां लड़कों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती है।

इस अवस्था में बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए *सामाजिक अनुमोदन* अर्थात *समर्थन* की मांग करता है।

Notes by Ravi kushwah

*पूर्व बाल्यावस्था।  (02- 06)वर्ष*➖

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*बच्चों का सामाजिक विकास*⬇️

● बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहाँ के मानदंडों के हिसाब से उसका व्यक्तिगत विकास होता है।

जैसे–

1●  बच्चें विश्वास औऱ अविश्वास की भावना    

       खुद विकसित करता है।

2 ● बच्चों में स्वायत्त की भावना विकसित होती  

      है।

3 ● बच्चा अन्वेषण शुरू कर देता है।

4 ● बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर 

      फैलना शुरू कर देता है।

5● बच्चें /बच्चियां बिना लिंग – भेद के एक साथ खेलते है  सक्रिय रूप से भाग लेते है भौतिक ऊर्जा का उपयोग भी करते है।

6● दुसरो का सहयोग करना सीख जाते है।

7● समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनना सिख जाते है।

8● इस उम्र में बच्चे परिया ,राजा-रानी ,पशु की कहानी में रुचि लेते है।

9● बच्चों में नकारात्मक भी 3-6 साल में बढ़ जाती है यह सामाजिक परिस्थितियों का उत्पाद है।

10● लड़कियां लड़को की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती है।

11● बच्चा अपनी बात पृरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन की मांग करता है।

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

😊😊😊😊

✒️✒️ आनंद चौधरी 📋📋

*🌸पूर्व बाल्यावस्था में सामाजिक विकास🌸*

*( social development in early childhood)* 

*(2-6 वर्ष)*

*Date-15 february 2021*

👉 बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहां के मानदंडों के हिसाब से उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। 

★ पूर्व बाल्यावस्था में निम्न प्रकार से बच्चे के व्यक्तित्व विकास होता है—

1. बच्चा, विश्वास और अविश्वास की भावना खुद विकसित करता है।

(जैसे- विश्वास न होने पर बच्चा गर्म पानी में हाथ डालता है तो उसका हाथ जल जाता है फिर हाथ जलने पर उसे विश्वास हो जाता है कि यह पानी गर्म है और इसमें हाथ नहीं डालना चाहिए।) 

2. बच्चे में स्वायत्तता की भावना विकसित होती है।

( मतलब बच्चा इस उम्र में अपनी मां या अपने आसपास के लोगों को जो भी काम करते देखता है वह उसे खुद भी करने की कोशिश करता है चाहे वह काम उससे सही हो या गलत।) 

3. इस उम्र में बच्चा अन्वेषण/ खोज करना शुरू कर देता है। 

(मतलब जब बच्चे के पास में कोई खिलौना होता है तो वह उसे खेलते वक्त उसके सभी पार्ट्स को अलग-अलग कर देता है और फिर वह उन्हें जोड़ने की कोशिश करता रहता है।) 

4. बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर फैलना शुरू हो जाता है। 

 (मतलब अब बच्चा द्वितीयक सामाजिकरण में प्रवेश कर रहा है और इसमें वह परिवार के अलावा पड़ोस तथा पार्क में जाकर सामाजिकरण करता है जिससे उसमें सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों प्रकार के सोच विकसित होती है।)  

5. बालक  एवं बालिका बिना किसी लिंग भेद के एक साथ खेलते हैं तथा सक्रिय रूप से भाग लेते हैं भौतिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। 

6. बच्चे दूसरों का सहयोग करना सीख जाते हैं। 

(जैसे पापा ने कहा एक गिलास पानी ला कर कर दो तो तुरंत ले आते हैं।) 

7. समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनाना सीख जाते हैं। 

(मतलब जैसा बच्चे को पसंद है वैसा ही उसके दोस्त भी पसंद करते हो।) 

8. इस उम्र में बच्चा परी, राजा-रानी, पशुओं की कहानी में रुचि लेने लगता हैं (क्योंकि यह उम्र बच्चे की जिज्ञासु प्रवृत्ति की उम्र होती है।

उसके मन में ऐसा करने से क्या होगा? और आगे क्या होगा? जैसे अनेक प्रकार के प्रश्न मन में उठते है।) 

9. बच्चे में नकारात्मकता भी 3 से 6 साल में साल में बढ़ जाती है। और यह नकारात्मकता सामाजिक परिस्थिति का उत्पाद है। 

 (मतलब बच्चा अपने आसपास के लोगों को जैसा करते देखता हैं वह वैसा ही सीखता हैं। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही चीजें बच्चा समाज से ही सीखता है और आगे चलकर क्या सही क्या गलत की समझ भी उसे समाज से ही मिलती है।) 

10.  इस उम्र में लड़कियां लड़कों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती है। 

( मतलब लड़कियां, लड़कों को खेल-खेल में उठाकर पटक भी देती है।) 🤣

11. बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन की मांग करता है। 

(मतलब बच्चा अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए जो चाहता है उसके लिए उसे समाज अनुमति दें यही बच्चा चाहता है।) 

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

🔆 पूर्व बाल्यावस्था 🔆

  🌀 सामाजिक विकास (2-6 years)🌀

💫बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वही के मापदंडो़ के हिसाब से उसका व्यक्तित्व विकास होता है |

1. बच्चे विश्वास और अविश्वास की भावना खुद विकसित करता है जब बच्चा किसी को जानता है तो उस पर विश्वास करता है और नही जानता है तो अविश्वास करता है |

2. बच्चो में स्वायत्ता की भावना विकसित होती है बच्चो मे स्वयं या खुद में कोई भी कार्य को करने की जिद्द होती है वह अपने माता – पिता या परिवार में करता है |

3. बच्चा अन्वेषण शुरू कर देता है |

4. बच्चे का सामाजिक वातावरण घर को बाहर फैलना शुरू कर देता है जब बच्चा अपने परिवार से बाहर निकलकर आस – पास पडो़सी के लोगो से मिलता है तो बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनो प्रभाव पड़ता है |

5. बच्चे / बच्चियाँ बिना किसी लिंग भेद के एक साथ खेलते है सक्रिय रूप से भाग लेते है भौतिक उर्जा का उपयोग करते है |

6. दूसरों को सहयोग करना सीख जाते है |

7. समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चो को दोस्त बनाना सीख जाते है |

8. बच्चे परी राजा रानी पशु की कहानी में रूचि रखते है |

9. बच्चो में नकारात्मकता भी 3-6 साल में बढ़ जाती है ये सामाजिक परिस्थिति का उत्पाद है |

10. लड़कियाँ लड़का की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती है |

11. बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन की मांग करता है |

Notes by – Ranjana Sen

🔆पूर्व बाल्यावस्था (0 से या जन्म से 2 वर्ष ) में सामाजिक विकास➖

🔸 बच्चा जिस सामाजिक परिवेश में पैदा होता है वहां के मानदंडों के हिसाब से उसका व्यक्तित्व विकास होता है

.🔸 बच्चा विश्वास और अविश्वास की भावना खुद से विकसित करता है. 

जैसे बच्चा अपने परिवार वालों पर विश्वास करता है जैसी बात जानता है उन पर विश्वास करता है और जिसे वह नहीं जानता उस पर वह अविश्वास दिखाता है

🔸 बच्चों में स्वायता की भावना विकसित होती है

🔸 इसमें बच्चा खुद से अपने कार्यों को करने की जिद करता है वह खुद से खाना ,खाना पानी पीना यहां तक की मम्मी के साथ काम करने की जिद करता है

🔸बच्चा अन्वेषण शुरू कर देता है

आपने देखा होगा कि इस एज में बच्चा अपने खिलौनों को तोड़ता है उसे में देखता  है क्या कैसा है

🔸 बच्चे का सामाजिक वातावरण घर के बाहर खेलना शुरू कर देता है जब बच्चा सामाजिक वातावरण में जाता है तो बच्चा वहां से सिर्फ सकारात्मक सोच ही नहीं ग्रहण करता वह नकारात्मक सोच भी ग्रहण करता है

🔸 बच्चे /बच्चियां बिना किसी लिंगभेद के एक साथ खेलते हैं सक्रिय रूप से भाग लेते हैं 

🔸 दूसरों को सहयोग करना सीख जाते हैं

🔸 इस एज में बच्चा दूसरों का अनुकरण करता है बच्चा दिखता है कि मां जो काम कर रही है उसमें बच्चा अपना हाथ बटाने की कोशिश करता है

🔸 इस उम्र में बच्चा समान व्यक्तित्व लक्षण वाले बच्चों को दोस्त बनाना सीख जाता है

🔸बच्चे परी ,राजा ,रानी ,पशु की कहानी में रुचि लेते हैं

🔸 बच्चों में नकारात्मकता भी 3 से 4 साल में बढ़ जाती है यह सामाजिक परिस्थिति के उत्पाद हैं

🔸 बच्चियां बच्चों की तुलना में खेलने में ज्यादा हावी होती हैं

🔸 बच्चा अपनी बात पूरी करने के लिए सामाजिक अनुमोदन (समर्थन )की मांग करता है

✍️ 

Notes By-Vaishali Mishra

#8. CDP – Sensory motor Sub-stages and Conceptual & Mental development in Pre-Operational Stage

*🌸संवेदी पेशीय अवस्था*

*( sensory motor stage) (0-2 वर्ष)🌸*

👉इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदना और शारीरिक क्रिया की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है। 

👉 बच्चा जन्म लेता है तो उसके अंदर सहज क्रियाएं होती है। 

सहज क्रिया और ज्ञानेंद्रियों की सहायता से बच्चा ध्वनि, स्पर्श, रस, गंध आदि का अनुभव प्राप्त करता है। 

👉इन अनुभवों के पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की विशेषता से परिचित हो जाता है। 

👉 इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पियाजे  महोदय ने इस अवस्था को 6 उपअवस्थाअो में बांट दिया है जो निम्न प्रकार है—

1.  *सहज क्रियाओं की अवस्था* ( spontaneous action stage) 

( जन्म से 30 दिन तक) 

👉 इस अवस्था में बच्चा सहज क्रियाएं करता है

2. *प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था* ( stage of major circular circular response) 

( 1 माह से 4 माह तक) 

👉 इस अवस्था में बच्चा थोड़ी-थोड़ी अनुक्रियाएं करने लगता है, पुनरावृति करने लगता है

 इस अवस्था में खुशनुमा मुस्कान करता है और उसके भाव को देखा भी जा सकता है। 

3. *गौण वृत्तिय अनुक्रियाओ की अवस्था* ( stage of secondary circular response) 

( 4 माह से 8  माह तक ) 

👉 पहले बच्चा प्रमुख चीजों को महसूस करता था लेकिन इस अवस्था में सभी चीजों को महसूस करने लगता है। 

👉 गौण वृत्तिय अनुक्रियाओं की अवस्था बच्चे के चहुमुखी विकास को और ज्यादा मजबूती प्रदान करती है। 

जैसे चीजों को व्यवस्थित करने लगता है खिलौने को उल्टा है तो सीधा कर देता है। 

4. *गौण स्कीमा के सामंजस्य की अवस्था* ( co-ordinate stage of secondary schema) 

( 8 से 12 माह माह) 

👉 इस अवस्था में गौण वृत्तीय अनुक्रिया को समझ कर उन पर प्रतिक्रिया करने लगता है। 

5. *तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था* ( Phase III response response stage) 

 ( 12 से 18 माह) 

👉 अब बच्चा अनेक चित्रों पर प्रतिक्रिया करने लगता है अलग-अलग क्षेत्रों में इंटरेक्शन और अधिक बढ़ता है। 

6. *मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था* ( stage of discovery of new means new means means by mental support) 

( 18 से 24 माह माह) 

👉 इस अवस्था में नई-नई चीजें बच्चे के दिमाग में चलने लगती है और वह नए तथ्यों पर चीजों को समझने लगता है नए-नए तरीके से चीजों/तथ्यों को खोजने लगता है.

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

*🌸पूर्व बाल्यावस्था में अवधारणात्मक विकास*

*(Conceptual development in early childhood)*

*(2-6 वर्ष) 🌸*

👉 इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है जिसे बाद में दोहराया जाता है और यह एक ऐसी विविधता होती है जो पूरी उम्र चलती है मतलब अब बच्चा जो सीख रहा हैं वह कभी नहीं छूटेगा या भूलेंगे.

 जैसे-खाना खाना। 

👉 खुद से खाना खाना, खुद से स्नान करना, खुद से कपड़े पहनना, बालों को ब्रश करना, खिलौनों के साथ खेलना, उछलना-कूदना, आदि सीख जाता हैं. 

👉 यह सारे गुण अच्छी तरह से 5 से 6 साल तक आ जाते हैं.

🌸 इस अवस्था में बच्चा खिलौनों से खेलना सीख जाता है इसी वजह से 2 से 6 वर्ष की अवस्था को खेलने की अवस्था कहा जाता है.

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

*🌸 पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक या मानसिक विकास*

*( mental development in early childhood)*

*(2-6 वर्ष) 🌸*

👉 बौद्धिक विकास 2 वर्ष के बाद थोड़ा तेज हो जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चा नई-नई चीजों को देखना या खोजना स्टार्ट कर देता हैं और नए-नए अनुभव प्राप्त करता हैं। 

 *विशेषताएं*:-

1. बच्चे शारीरिक या सामाजिक वास्तविकता की अवधारणा को समझना शुरू कर देते हैं.

2. 6 वर्ष की उम्र तक आकार, रंग,समय,दूरी इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित होने लगती है.

3. इस उम्र में बच्चे की स्मृति तेज होती है।

बच्चा रटकर याद रखना सीख जाता है.

4. अब रचनात्मकता का भी विकास होता है.

5. ध्यान की अवधि 7 मिनट से 20 मिनट तक बढ़ जाती है.

6. भाषा में प्रतीकों का प्रयोग करने लगता है.

7. पर्यावरण की समझ बढ़ती है इसी कारण बच्चा  प्रश्न करने लगता है या जिज्ञासु होता है.

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

🕵️ जीन पियाजे के अनुसार🕵️

             🙇  (0- 2 year)🙇

             💥संवेदी पेशीय अवस्था💥       

       💞(Sensory motor stage)💞

💦इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदना शारीरिक क्रिया के सहायता से ज्ञान अर्जित करता है;

बच्चा जन्म लेता है तो उसके अंदर सहज क्रियाएं होती है।

💦सहज क्रिया और ज्ञानेनद्रियो की सहायता से बच्चा रस ,ध्वनि ,गंध का अनुभव प्राप्त करता है;

💦इन अनुभवो की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपको की विशेषता से परिचित हो जाता है;

💦इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस अवस्था को ६- उप- अवस्था में बांट दिया ÷

💨१-सहज क्रियाओं की अवस्था

जन्म से 30 दिन तक

💨२-प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था-

1 महीने से 4 महीने तक

💨३- गौण वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था

4 महीने से 8 महीने तक

💦इस अवस्था में और भी अनुक्रियाएं करने लगता है।

💦जो भी वस्तु उसके सामने अगल-बगल होती है उसके प्रति सजग होने लगता है।

💨४÷ स्कीमा की सामंजस्य की अवस्था÷

💦8 महीने से 12 महीने तक

💦इस अवस्था में परिचित व्यक्ति के साथ खेलना भी शुरू कर देता है।

💦५-तृतीय वित्तीय अनु क्रियाओं के अवस्था

💨इसमें 12 महीने से 18 महीने तक रखा गया है;

💨मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था÷

💨18 से 24 महीने तक रखा गया है।

      🌸अवधारणात्मक विकास🌸

            🌷 ( 2 से 6 वर्ष )🌷

💦इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है, जिसे बाद में दोहराया जाता है।

💦खुद से भोजन किया अन्य खाद्य पदार्थ खाना।

खुद से कपड़े पहनना, स्नान करना बालों को कंघी करना वा  दांतो मैं ब्रश करना इत्यादि।

💦खिलौने के साथ खेलना, उछलना कूदना वह दौड़ लगाना आदि।

💦यह सारे को अच्छी तरह से 5 से 6 साल तक आ जाते हैं।

                🧠 🌸बौद्धिक विकास🌸🧠

     🧠💞  ( Mental Development)💞🧠

💦बौद्धिक विकास 2 साल के बाद थोड़ा तेज हो जाता है कि कि उस उम्र में बच्चे नई नई चीजों को देखना या खोजना शुरू कर देता है और नया नया अनुभव प्राप्त करता है।

 🗣️विशेषताएं÷

💦बच्चा शारीरिक सामाजिक वास्तविकता की अवधारणा को समझना शुरू कर देता है।

💦6 साल की उम्र तक आकार, रंग, समय, दूरी, इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित होने लगती है।

💦इस उम्र में बच्चे की स्मृति तेज होती है बच्चा रटकर याद रखना सीख जाता है।

💦अब रचनात्मकता का भी विकास होता है।

💦ध्यान की अवधि 7 मिनट से बढ़कर 20 मिनट तक हो जाती है।

💦भाषा में प्रतीकों का उपयोग करने लगता है‌।

💦पर्यावरण की समाज में बढ़ती है (ज्यादा पसंद करता है)।

🧠 Written by-$hikhar pandey

🤵🏻‍♂जीन पियाजे के अनुसार🤵🏻‍♂

(0-2 year)👼🏻

🌻 संवेदी पेशीय अवस्था🌻

   (Sensory-notes stage)

🪐 इस अवस्था में बालक👼🏻 केवल अपने संवेदना और शारीरिक  क्रिया की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है।

🪐 बच्चा👼🏻 जब जन्म लेता है तो उसके अंदर सहज क्रियाएं होती हैं।

🪐 सहज क्रिया और ज्ञानेंद्रियों की सहायता से बच्चा👼🏻 रस, ध्वनि, गंध का अनुभव प्राप्त करता है।

🪐इन अनुभवों की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपक को की विशेषता से परिचित हो जाता है।

🪐 इस अवस्था में शिशुओं👼🏻 का संज्ञानात्मक विकास 6उप अवस्था से होकर गुजरता है।

👉🏼 सहज क्रियाओं की अवस्था➖ यह जन्म से 30 दिन  तक की अवस्था होती है इस अवस्था में बालक मात्र प्रतिवर्त क्रियाएं (Reflex Activities) करता है।

👉🏼 प्रमुख वित्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था➖यह अवस्था 1 से 4 माह की अवस्था होती है इस अवस्था में शिशु की प्रतिवर्ती क्रियायें उनकी अनुभूतियों द्वारा कुछ हद तक परिवर्तित होती है।

👉🏼 गौण वृतीय अनु क्रियाओं की अवस्था➖यह अवस्था 4 से 8 महीने की अवधि की होती है इस अवस्था में शिशु वस्तुओं को उलट ने पलटने तथा छूने पर अपना अधिक  ध्यान देता है।

👉🏼गौण इसकी स्कीमा की सामंजस्य की अवस्था➖यह अवस्था 8 से 12 माह तक चलती है इस अवस्था में बालक उद्देश्य तथा उस पर पहुंचने के साधन में अंतर करना प्रारंभ कर देता है।

👉🏼 तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था➖यह अवस्था 12 महीने से 18 महीने तक की अवस्था होती है इस अवस्था में बालक वस्तुओं के गुणों को प्रयास एवं त्रुटि विधि से समझने की कोशिश करता है।

👉🏼 मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज अवस्था➖यह अंतिम अवस्था है जो 18 से 24 माह तक की अवस्था होती है यह व्यवस्था होती है जिसमें बालक वस्तुओं के बारे में चिंतन करना प्रारंभ कर देता है।

🌻 अवधारणात्मक  विकास🌻

🌻(2-6 year)🌻

🪐 इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है जिसे बाद में दोहराया जाता है।

🪐 खुद से खाना खाना आ जाता है।

🪐 खुद से कपड़ा पहनना, स्नान करना, दांतों में ब्रश करना और बालों में कंघी  करना आ जाता है।

🪐 खिलौनों के साथ खेलना, उछलना, कूदना वह दौड़ लगाना आदि।

🪐 यह सारे गुण अच्छी तरह से 5 से 6 साल तक आ जाते हैं।

💫 पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक व मानसिक विकास (2-6 years)💫

🪐 बौद्धिक विकास 2 वर्ष के बाद थोड़ा तेज हो जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चा👼🏻नई नई चीजों को देखना या खोजना स्टार्ट कर देता है और नए नए अनुभव प्राप्त करता है।

🌻🌻 विशेषताएं🌻🌻

🪐 बच्चे👼🏻 शारीरिक व सामाजिक व स्थिरता की अवधारणा को समझना शुरू कर देते है।

🪐6 वर्ष की उम्र🧍🏻 तक के बच्चे  आकर, रंग, समय ,दूरी इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित करने लगता है।

🪐 इस उम्र में बच्चे🧍🏻 की स्मृति तेज होती है बच्चा रटकर याद करना सीख जाता है।

🪐 अब रचनात्मकता का भी विकास होता है।

🪐 ध्यान की अवधि 7 मिनट से 20 मिनट तक बढ़ जाती है।

🪐 भाषा में प्रतीकों का उपयोग करने लगता है।

🪐 पर्यावरण की समझ बढ़ती है और ज्यादा प्रश्न भी करने लगते हैं।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

संवेदी पेशीय अवस्था की उप अवस्थाएं

इस अवस्था में बालक केवल अपनी *संवेदना*  और *शारीरिक क्रिया* की सहायता से *ज्ञान अर्जित* करता है।

जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके अंदर *सहज कियाऐ*  होती    है।

*सहज क्रियाओं और ज्ञानेंद्रियों* की सहायता से बच्चा किसी ध्वनि, स्पर्श, रस ,गंध ,का *अनुभव* प्राप्त करता है।

इन *अनुभवों की पुनरावृति* के कारण वातावरण में उपस्थित *उद्दीपकों  की विशेषता से परिचित* होता है।

पियाजे ने इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए संवेदी पेशीय अवस्था को छ उप अवस्थाओं में विभाजित किया है।

1. सहज क्रियाओं की अवस्था -जन्म से 30 दिन तक 

2. प्रमुख वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था  -1 से 4 महीने तक

3. गौण वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था – 4से 6 महीने तक

4. गौण स्कीमा की सामंजस्य की अवस्था -8 से 12 महीने तक

5. तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था-12 से 18 महीने तक

6. मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था- 18 से 24 महीने तक

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में अवधारणात्मक विकास

इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है जिसे बाद में दोहराया जाता है।

खुद से खाना खाना 

खुद से कपड़े पहनना 

स्नान करना 

बालों को संवारना 

खिलौने के साथ खेलना अर्थात इस अवस्था को खेल की अवस्था या खेलने की अवस्था या खिलौने की आयु कहा जाता है 

उछलना ,कूदना आदि

यह सारे गुण अच्छी तरह से 5 से 6 साल तक आ जाते हैं।

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में बौद्धिक विकास

बौद्धिक विकास दो साल के बाद थोड़ा तेज हो जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चा नई- नई चीजों को देखना या खोजना प्रारंभ कर देता हैं और नए- नए अनुभव प्राप्त करता है

बौद्धिक विकास की विशेषताएं-

बच्चे शारीरिक, सामाजिक वास्तविकता की अवधारणा को समझना शुरू कर देते हैं

6 साल की उम्र तक आकार, रंग ,समय, दूरी इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित होने लगती है

इस उम्र में बच्चों की स्मृति तेज होती हैं बच्चा रटकर याद रखना सीख जाते हैं

अब रचनात्मकता का भी विकास होता है।

ध्यान की अवधि 7 से 20 मिनट तक बढ़ जाती है अर्थात अब बालक 7 से 20 मिनट तक एक स्थान पर ध्यान केंद्रित कर सकता है

भाषा में प्रतीकों का उपयोग करने लगता है

पर्यावरण की समझ बढ़ती है जिससे वह ज्यादा प्रश्न करने लगता है।

Notes by Ravi kushwah

*🌸संवेदी पेशीय अवस्था*

*( sensory motor stage) (0-2 वर्ष)

✍🏾इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदना और शारीरिक क्रिया की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है। 

✍🏾बच्चा जन्म लेता है तो उसके अंदर सहज क्रियाएं होती है। 

सहज क्रिया और ज्ञानेंद्रियों की सहायता से बच्चा ध्वनि, स्पर्श, रस, गंध आदि का अनुभव प्राप्त करता है। 

✍🏾इन अनुभवों के पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की विशेषता से परिचित हो जाता है। 

✍🏾 इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पियाजे  महोदय ने इस अवस्था को 6 उपअवस्थाअो में बांट दिया है जो निम्न प्रकार है—

1.  *सहज क्रियाओं की अवस्था* ( spontaneous action stage) 

( जन्म से 30 दिन तक) 

✍🏾इस अवस्था में बच्चा सहज क्रियाएं करता है

2. *प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था* ( stage of major circular circular response) 

( 1 माह से 4 माह तक) 

✍🏾इस अवस्था में बच्चा थोड़ी-थोड़ी अनुक्रियाएं करने लगता है, पुनरावृति करने लगता है

 इस अवस्था में खुशनुमा मुस्कान करता है और उसके भाव को देखा भी जा सकता है। 

3. *गौण वृत्तिय अनुक्रियाओ की अवस्था* ( stage of secondary circular response) 

( 4 माह से 8  माह तक ) 

✍🏾 पहले बच्चा प्रमुख चीजों को महसूस करता था लेकिन इस अवस्था में सभी चीजों को महसूस करने लगता है। 

✍🏾 गौण वृत्तिय अनुक्रियाओं की अवस्था बच्चे के चहुमुखी विकास को और ज्यादा मजबूती प्रदान करती है। 

जैसे चीजों को व्यवस्थित करने लगता है खिलौने को उल्टा है तो सीधा कर देता है। 

4. *गौण स्कीमा के सामंजस्य की अवस्था* ( co-ordinate stage of secondary schema) 

( 8 से 12 माह माह) 

✍🏾 इस अवस्था में गौण वृत्तीय अनुक्रिया को समझ कर उन पर प्रतिक्रिया करने लगता है। 

5. *तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था* ( Phase III response response stage) 

 ( 12 से 18 माह) 

✍🏾अब बच्चा अनेक चित्रों पर प्रतिक्रिया करने लगता है अलग-अलग क्षेत्रों में इंटरेक्शन और अधिक बढ़ता है। 

6. *मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था* ( stage of discovery of new means new means means by mental support) 

( 18 से 24 माह माह) 

✍🏾इस अवस्था में नई-नई चीजें बच्चे के दिमाग में चलने लगती है और वह नए तथ्यों पर चीजों को समझने लगता है नए-नए तरीके से चीजों/तथ्यों को खोजने लगता है.

*🧑‍⚕️🧑‍⚕️पूर्व बाल्यावस्था में अवधारणात्मक विकास*

*(Conceptual development in early childhood)*

*(2-6 वर्ष) 🧑‍⚕️🧑‍⚕️

✍🏾 इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है जिसे बाद में दोहराया जाता है और यह एक ऐसी विविधता होती है जो पूरी उम्र चलती है मतलब अब बच्चा जो सीख रहा हैं वह कभी नहीं छूटेगा या भूलेंगे.

 जैसे-खाना खाना। 

✍🏾 खुद से खाना खाना, खुद से स्नान करना, खुद से कपड़े पहनना, बालों को ब्रश करना, खिलौनों के साथ खेलना, उछलना-कूदना, आदि सीख जाता हैं. 

✍🏾 यह सारे गुण अच्छी तरह से 5 से 6 साल तक आ जाते हैं.

✍🏾इस अवस्था में बच्चा खिलौनों से खेलना सीख जाता है इसी वजह से 2 से 6 वर्ष की अवस्था को खेलने की अवस्था कहा जाता है.

✍🏾पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक या मानसिक विकास*

*( mental development in early childhood)*

*(2-6 वर्ष) 👇

✍🏾बौद्धिक विकास 2 वर्ष के बाद थोड़ा तेज हो जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चा नई-नई चीजों को देखना या खोजना स्टार्ट कर देता हैं और नए-नए अनुभव प्राप्त करता हैं। 

 *विशेषताएं*:-

1. बच्चे शारीरिक या सामाजिक वास्तविकता की अवधारणा को समझना शुरू कर देते हैं.

2. 6 वर्ष की उम्र तक आकार, रंग,समय,दूरी इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित होने लगती है.

3. इस उम्र में बच्चे की स्मृति तेज होती है।

बच्चा रटकर याद रखना सीख जाता है.

4. अब रचनात्मकता का भी विकास होता है.

5. ध्यान की अवधि 7 मिनट से 20 मिनट तक बढ़ जाती है.

6. भाषा में प्रतीकों का प्रयोग करने लगता है.

7. पर्यावरण की समझ बढ़ती है इसी कारण बच्चा  प्रश्न करने लगता है या जिज्ञासु होता है.

Notes by SHARAD KUMAR PATKAR

🔆संवेदी गामक अवस्था (0से 2वर्ष) की छ: उप अवस्थाए ➖

▪️इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदना और शारीरिक क्रिया की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है बच्चा जन्म लेता है तो उसके अंदर कई सहज क्रियाएं होती है।

▪️सहज क्रिया और ज्ञानेंद्रियों की सहायता से बच्चा ध्वनि, स्पर्श, रस ,गंध का अनुभव कर पाता है।

▪️इन अनुभवों की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपक ओं की विशेषता से परिचित हो जाता है।

▪️इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर जीन पियाजे ने संवेदी गामक अवस्था को छ: उपअवस्था में बांट दिया है।

🔹1 सहज क्रियाओं की अवस्था 

(Spontaneous action stage)

* जन्म से 30 दिन तक ।

🔹 2 प्रमुख वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था (stages of major circular response)

*1माह से 4 माह

🔹3 गौण वृत्तिय अनु क्रियाओं की अवस्था( stages of secondary circular response) 

*4 माह से 8 माह

🔹 4 गौण स्कीमा की सामंजस्य की अवस्था (coordination stages of secondary schema)

*8 माह से 12 माह

🔹 5 तृतीय वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था (phase III  response  stage)

*12 माह से 18 माह

🔹 6 मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था 

(Stages of Discovery of new measure by mental support)

*18 माह से 24 माह 

🔅2 से 6 वर्ष की अवस्था में अवधारणात्मक विकास (conceptual development)

* इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है।

*जिसे बाद में दोहराया जाता है

*खुद से खाना खा सकते हैं

* खुद से कपड़े पहन सकते हैं।

*स्नान करना वह बालों को ब्रश करना जानते हैं

*खिलौने के साथ बच्चा खेलता है इसीलिए इसे खेल की अवस्था भी कहा जाता है।

*बच्चे उछलना ,कूदना जैसी कई क्रियाएं करते हैं।

उपर्युक्त सारे गुण अच्छी तरह से 5 से 6 वर्ष तक बच्चे में आ जाते हैं।

🔅2 से 6 वर्ष की अवस्था में बौद्धिक विकास ➖

बौद्धिक विकास 2 साल के बाद थोड़ा तेज हो जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चे कई नई चीजों को देखना या खोजना आरंभ कर देते हैं और नए अनुभव प्राप्त करते हैं।

▪️ विशेषताएं – 

*बच्चे शारीरिक सामाजिक वास्तविक की अवधारणा को समझना शुरू कर देते हैं ।

*6 साल की उम्र तक आकार, रंग, समय, दूरी इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित होने लगती है।

*इस उम्र में बच्चे की स्मृति तेज हो जाती है बच्चा रटकर याद करना सीख जाता है।

*इस अवस्था में रचनात्मकता का भी विकास होने लगता है।

*भाषा में वे कई प्रतीकों का प्रयोग करने लगते हैं।

*पर्यावरण की समझ बढ़ती है अर्थात जिज्ञासु प्रवृत्ति के या ज्यादा प्रश्न करने लगते हैं।

✍🏻

    Notes By-Vaishali Mishra

♦️ संवेदी पेशीय अवस्था ♦️

♦️ Sensory motor stage ♦️

▪️यह अवस्था 0 से 2 वर्ष तक की होती है यानी कि जब बच्चा पैदा होता है तब से लेकर 2 वर्ष तक की अवस्था संवेदी पेशीय  अवस्था कहलाती है।

▪️इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदना और शारीरिक क्रिया की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है।

▪️ जब बच्चा जन्म लेता है तब उसके अंदर सहज क्रियाएं होती है जैसे कुछ भी होने पर रोना, किसी भी चीज को हाथ में लेकर सीधे मुंह में डालना यह उसकी सहज क्रिया है।

▪️ सहज क्रिया और अपनी ज्ञानेंद्रियों की सहायता से बच्चा जैसे ध्वनि, स्पर्श, रस, गंध का अनुभव प्राप्त करता है ।

▪️इन अनुभवों के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की विशेषता से परिचित हो जाता है।

▪️इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जीन पियाजे ने इस अवस्था को 6 उप अवस्था में विभाजित किया।

🔹 जीन पियाजे द्वारा दी गई 6 उप अवस्था

1️⃣ सहज क्रियाओं की अवस्था

Spontaneous action stage

▪️यह अवस्था जन्म से 30 दिन तक की होती है।

▪️ इस अवस्था में बालक मुख्यता क्रंदन के द्वारा अपनी प्रतिक्रियाएं करता है।

 2️⃣ प्रमुख वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

Stage of major circular response

▪️1 – 4 माह /months

▪️इस अवस्था में बालक थोड़ी-थोड़ी अनुक्रिया करने लगता है ।

▪️वह अपनी मां और पिता को पहचान जाता है।

 ▪️चीजों की पुनरावृति करने लगता है।

▪️ खुशनुमा मुस्कान देता है।

3️⃣ गौण वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

Stage of secondary circular response

▪️4 – 8 माह /months

▪️इस अवस्था में बालक जो भी चीज साथ में पाता है उसको मुंह में डालकर वह क्या है यह अनुमान लगाने की कोशिश करता है।

4️⃣ गॉड स्कीमा की सामंजस्य की अवस्था

Co-ordinate stage of secondary schema

▪️8 -12 माह /months

▪️परिवार के अन्य सदस्यों को पहचानने लगता है ।

▪️खेलने लगता है ,समझने के साथ उस पर क्रिया करने लगता है।

5️⃣ तृतीय वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

Third phase response

▪️12 -18 माह /months

▪️ अपनी चीजों के प्रति लगाव होना शुरू हो जाता है ,बच्चे अपने खिलौनों को किसी को नहीं देते हैं उसी को लेकर अपनी नित्य क्रिया करते हैं जैसे कि सोएंगे तो अपने खिलौनों के साथ ही सोएंगे, भोजन करेंगे तो अपने खिलौनों के साथ में ही भोजन करेंगे यहां तक कि अपने खिलौने को भी भोजन कराएंगे आदि। 

▪️इस अवस्था में बालक में जलन होने लगती है अगर उसकी माता किसी दूसरे बच्चे को गोद में ले लेती है तो वह रोने लगता है उसमें जलन की प्रवृति आ जाती है ।

▪️दुश्चिंता 

6️⃣ मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था

Stage of discovery of new means by mental support

▪️18 -24 माह / months

▪️ इस समय बालक अपने बुद्धि के हिसाब से नई नई चीजों की खोज करता है। जैसे अपने खिलौनों को खोलेगा फिर उसको जुड़ेगा । तोड़-जोड़ करके कुछ नई चीज बनाने का प्रयास करता है।

♦️♦️ पूर्व बाल्यावस्था में अवधारणात्मक विकास♦️♦️

🔸2 – 6 वर्ष की अवस्था

🔸इस उम्र में एक विविधता विकसित होती है जिसे बाद में दोहराया जाता है। या यह कहे कि इस उम्र में जो बालक चीज  सकता है उसे वह अपने जीवन काल में दोहराता है।

 🔸जैसे खुद से खाना खाना 

🔸खुद से कपड़े पहनना 

🔸स्नान करना 

🔸बालों को ब्रश करना

🔸 खिलौनों के साथ खेलना यह कार्य खुद से धीरे-धीरे करने लगता है या करना सीखता है।

🔹बालक इस उम्र में खिलौनों के साथ खेलता है इसलिए इसे खेल की अवस्था कहते हैं ।

🔸 बालक इस उम्र में उछलना, कूदना, चप्पल या जूते पहनना यह सारे गुण अच्छी तरीके से 5 से 6 साल तक सीख जाता हैं।

🌺🌺 पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक  विकास 🌺🌺

🔸इस अवस्था में बालक की बुद्धि अब बढ़ती है क्योंकि वह नई – नई चीजों को देखना शुरु करता है।

🔸 बौद्धिक विकास 2 साल के बाद थोड़ा तेज हो जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चे नई-नई चीजों को देखना या खोजना शुरू कर देता है और नए-नए अनुभव प्राप्त करता है।

🔸 शैशवावस्था में बच्चा चीजों को ग्रैस्प करता है चाहे उसे समझे या नहीं लेकिन पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक विकास तेजी से होता है तो जो चीजें वह देखता है उसे  सीखता है और उसे सीखने के साथ-साथ याद भी करता चलता है।

🔸शैशवावस्था में जो चीजें उसने देखी या सुनी वह उसे आगे के जीवन काल में याद नहीं रहती लेकिन बाल्यावस्था में जो चीजें वह सीखता है सुनता है देखता है वह उसे आगे के वर्षों में आगे की अवस्थाओं में भी याद रहती है।

⭐ विशेषताएं ⭐

🔹बच्चे शारीरिक / सामाजिक वास्तविकता की अवधारणा को समझना शुरू कर देते हैं।

🔸 6 साल की उम्र तक बालक में कुछ समझ विकसित हो जाती है जैसे उन्हे आकार,रंग, समय , दूरी इत्यादि चीजों की अवधारणा विकसित होने लगती है।

🔹 इस उम्र में बच्चे की स्मृति तेज होती है बच्चा रटकर भी याद रखना सीख जाता है।

🔸 अब रचनात्मकता का भी विकास होता है ध्यान की अवधि 7 मिनट से 20 मिनट तक बढ़ जाती है।

🔹भाषा में प्रतीकों का उपयोग करने लगता है सिंबल्स, इशारों का प्रयोग करता है ।

🔸पर्यावरण की समझ बढ़ती है रात दिन चक्र के बारे में पूछता है।

🔹 ज्यादा प्रश्न करने लगता है, अपने पर्यावरण मैं देखी जाने वाली वस्तुओं के बारे में प्रश्न करता है।जैसे बादल क्यों बनते हैं बारिश क्यों होती है चंदा कहां रहता है आदि

✳️2 से 6 वर्ष की अवस्था बहुत महत्वपूर्ण अवस्था मानी जाती है।

धन्यवाद

 वंदना शुक्ला द्वारा

#7. CDP – Pre-Operational Stage – Physical development

*🌸पूर्व बाल्यावस्था( early childhood) (2-6 वर्ष)/ पूर्व संक्रियात्मक अवस्था( pre-operational stage) (2-7 वर्ष)*

*Date-12 february 2021🌸*

*★संक्रिया*- बच्चा 2 वर्ष तक खुद से कोई एक्टिविटी नहीं कर सकता लेकिन 2 वर्ष के बाद वह खुद से क्रियाएं करने लगता है जैसे चलना, दौड़ना,खेलना यह सभी क्रियाएं बच्चा करने लगता है इन्हीं एक्टिविटीज को संक्रिया कहते हैं। 

👉 बच्चे के एक्टिविटी से ही उसका सर्वांगीण विकास होता है अगर बच्चा दौड़ते, खेलते वक्त गिर जाता है तो इसमें भी उसका शरीर मजबूत व उसमें परिस्थिति से उबरने की क्षमता का विकास होता है और उन्हें ऐसी स्थिति में कभी रोक-टोक नहीं करनी चाहिए उसे एक्टिविटी करने देना चाहिए लेकिन उस पर नजर रखना जरूरी है।

*👉फ्रायड महोदय के अनुसार* बच्चा जो कुछ भी बनता है वह 5-6 वर्ष की उम्र में बन जाता है। यह कथन इसी आधार पर कहा गया है कि बच्चे 2 वर्ष से 6 वर्ष के बीच में  जो भी एक्टिविटी करते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण होती है जिससे उनका आगे के भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता लगाया जा सकता है कि आगे बच्चा क्या कर सकता है। 

*🌸पूर्व बाल्यावस्था में शारीरिक विकास*

*(Physical development in early childhood)* 

👉 बच्चे में जो वृद्धि शैशवावस्था में होती है वह 2 वर्ष से 6 वर्ष में नहीं होती है मतलब शैशवावस्था में वृद्धि की दर तीव्र होती है एवं पूर्व बाल्यावस्था के आते तक यह वृद्धि कम/धीमी हो जाती हैं। 

👉 इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास बच्चे के पैर का होता है बच्चे का पैर उसकी पूरी लंबाई का आधा होता है। 

👉 इस समय सिर का विकास शैशवावस्था की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। 

👉 जन्म के समय बच्चे का वजन 6 से 8 पाउंड या 2.5 किलोग्राम से 4 किलोग्राम के बीच लगभग होता है। 

 ★जन्म के समय बच्चे की लंबाई 19 से 21 इंच या 48 से 54 सेंटी मीटर तक लगभग होती है

👉 1 वर्ष के बच्चे का वजन 17 से 19 पाउंड या लगभग 8 किलोग्राम होता है। 

★ 1 वर्ष के बच्चे की लंबाई 24 से 27 इंच या 61 से 68 या 69 सेंटीमीटर के बीच लगभग होती है

👉 3 वर्ष के बच्चे का वजन 33 पाउंड या 15 किलोग्राम लगभग होता है। 

★3 वर्ष के बच्चे की लंबाई 38 इंच या 96 से 97 सेंटीमीटर लगभग होती है। 

👉 5 वर्ष के बच्चे का वजन 43 पाउंड या 20 किलोग्राम लगभग होता है। 

★ 5 वर्ष के बच्चे की लंबाई 43 इंच या 110 सेंटीमीटर लगभग होती है। 

👉 हालांकि बच्चे का वजन कई तथ्यों पर निर्भर करता है जैसे माता-पिता की लंबाई पोषण/वातावरण( Nurture), बीमारी आदि। 

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸

🌻🌺🌺🌻🌺🌺🌻

💥पूर्व संक्रियावास्था/ पूर्व बाल्यावस्था/ Pre childhood stage (2-6)💥

🌻🌺🌺🌻🌺🌺🌻

🌈💫 यह  संक्रिया से पहले की अवस्था है । इस अवस्था मे बच्चा      ज्यादा शारीरिक क्रियाये करता है, बच्चा अपने संवेगों को छिपाने लगता है। बच्चा यहा पर ज्यादा क्रियाये करने लगता है, उछाल कूद मचाने लगता है ।

🌈💫 शारीरिक विकास💫

💥👉 बच्चो में जो वृद्धि शैशवावस्था में थी वह बाल्यावस्था में नही होती है।

💥👉 इस उम्र में बच्चा पैरो से ज्यादा क्रियाये करता है इसलिए इस अवस्था में पैरो ज्यादा तेजी से होता है।

💥👉 बच्चे के पैरों की लंबाई शरीर की लंबाई की आधी होती हैं। 

💥👉 उस अवस्था मे बच्चे के सिर का विकास थोड़ा कम होता है।

💥👉 नवजात शिशु का वजन – 6 – 8 पाउंड  (3-4kg)।

और लंबाई – 50 cm ( 19-21 इंच)

💥👉 1 से 2 साल के बच्चे का वजह – 17 से 18 पाउण्ड( लगभग 8 kg)

और लंबाई (28 से 29 इंच)

💥👉 3 साल के बच्चे का वजन 33 पाउण्ड ( 15 – 16 kg)

और लंबाई – 38 इंच (100cm)

🌈🌈💫 इस अवस्था मे लड़कियों की लंबाई और वजन लड़को की अपेक्षा कम होती है।

💥👉5 साल के बच्चे का वजन – 43 पाउण्ड ( 20 kg)

लंबाई – 43इंच (110 cm)

🌈🌻🌻 हालांकि बच्चे जा वजन कई तथ्यों में निर्भर करता है।

💥 यह अनुवांशिक भी होता है जैसे – माता पिता की लंबाई अगर ज्यादा होती है तो बच्चे की लंबाई भी होती है।

💥 यह वातावरण पर भी निर्भर करता है।

💥 यह बीमारी का भी कारण भी होता है, यह गर्भ से भी हो जाता है, और जन्म के बाद किसी घटना के कारण भी हो जाता है। जो प्रभाव डालता है।

📚📚📚📚📚Notes by Poonam sharma📚📚🌺

🌸 *बाल्यावस्था में विकास* ➖  

🍃 संक्रिया➖ ✨ इस अवस्था में बच्चा अनेक क्रियाएं करता है   खेलना, कूदना ,उछलना ,भागन जैसी अन्य क्रिया करता है।   

                                                           ✨इस अवस्था  में बालक का शारीरिक विकास अधिक होता है, बच्चा खेलता अधिक है इसलिए उसका पैर का विकास होता है इस अवस्था में बालक पैर से ही ज्यादा  उपयोग करता है 🍃 

✨इस अवस्था में बौद्धिक विकास शैशवास्था की अपेक्षा कम  होता है ।                              

 ✨अवस्था में बालक को खेल कूद ने नहीं रोकना चाहिए   क्योंकि बच्चे जितना खेल लेंगे उतना ज्यादा मजबूत बनते हैं और समस्याओं को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम होते हैं।  

🌸 *बाल्यावस्था मे शारीरिक विकास*➖      

✨ इस अवस्था में बौद्धिक विकासशैशवाअवस्था की अपेक्षा कम होता है ।

✨ सबसे ज्यादा विकास पैर का होता है और बच्चों में पैर की पूरी लंबाई शरीर की   आधी होती है।          ।     

✨जन्म के समय बच्चे का वजन 6से 8 पाउंड होता है लंबाई19  से 21 इंच

 ✨एक साल का बच्चे का वजन 8 kg होता है लंबाई 24 से 27 इंच होती है। 

✨ 3 साल के बच्चे‍ की बच्चे का वजन 33 पाउंड लंबाई 38 इंच। वजन 15 किलो और लंबाई 96 से सेंटीमीटर होती हैं।                                                                     ✨लड़कियों की लंबाई और वजन लड़कों की अपेक्षा कम होता है।                                                                     5 वर्ष में बच्चे का वजन 40 पाउंड लंबाई 43 इंच वजन 20 केजी लंबाई 110 सेंटीमीटर होती है

 🌸🌸

🙏🙏🙏

Notes By – Lucky

🌺2 से 6 साल(पूर्व बाल्यावस्था)🌺

✒️

 शारीरिक विकास:- पूर्व बाल्यावस्था में शारीरिक वृद्धि उतनी तेजी से नहीं होती है जितनी कि शैशवावस्था में होती है, इस अवस्था में बच्चे किसी भी कार्य को गतिविधि के माध्यम से उस  कार्य को संक्रियाओं से सीखते हैं।

🔥 इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास बच्चों के पैरों का होता है और बच्चों का पैर उनकी लंबाई का आधा होता है।

🔥 इस उम्र में बच्चों के सिर का विकास थोड़ा कम होता है।

🔥 जन्म के समय शिशु का 

                 वजन 6 से 8 पाउंड

                 लंबाई 19 से 21 इंच

🔥 1 साल के बच्चे का 

                   वजन 8 kg..

                   लम्बाई 24  से 27 इंच

🔥 3 साल के बच्चे का

                 वजन 33 पाउंड ( 15kg) 

🔥   लंबाई 38 इंच (100 cm)

🔥 5 साल में एक बच्चे के

                               लंबाई 43 इंच                                               

                             वजन 43 पाउंड

✍🏻 बच्चों का वजन और लंबाई कई चीजों पर निर्भर करती हैं।

🔥 उनके माता-पिता की लंबाई

🔥 उनका पोषण

🔥 उनकी बीमारी इत्यादि।

            🌺🌺🌺🌺🌺

 Notes by

       SHASHI CHOUDHARY

       🙏🙏🙏🙏🙏🙏

💐पूर्व बाल्यावस्था (पूर्व संक्रियावस्था)💐 pre-operational stage( 2-6 year)

 पूर्व बाल्यावस्था को की व्यवस्था स्फूर्ति की अवस्था भी कहते हैं

 इस अवस्था में बच्चे अनेक प्रकार की संक्रिया करते हैं इस अवस्था में बच्चे बहुत ही दौड़ते भागते चलते आदि शारीरिक क्रिया करते हैं

  बच्चों  का इस उम्र में खेलना बहुत जरूरी होता है खेलने से बच्चे कभी-कभी गिर जाते हैं और उन्हें चोट भी लग जाती है परंतु उससे हमें घबराना नहीं चाहिए बच्चे में यदि चोट लगती है तो उस चोट के लिए प्रतिरोधक क्षमता अपने आप ही उत्पन्न हो जाती है आप देखेंगे कि कुछ दिनों बाद वह ठीक हो जाती है परंतु चोट के डर से हमें बच्चे को खेलने से नहीं रोकना चाहिए

 शारीरिक विकास( physical development)

 बच्चों में जो वृद्धि दर शैशवावस्था में होती है वह 2 से 6 साल में नहीं होती

इस उम्र में बच्चे के पैर का विकास सबसे ज्यादा होता है

 बच्चे का पैर उसकी पूरी लंबाई का आधा होता है

इस समय में सिर का विकास थोड़ा कम होता है

👌👌 जन्म के समय 

 वजन—-.  6 se 8  pound

लंबाई—– 19 se. 21 inch

👌👌👌1 साल का बच्चा

 वजन— 8 kg 

 लंबाई—-24 – 27 inch

👌👌👌 3  साल में बच्चा

 वजन—-. 33  pound.  15 kg 

 लंबाई—- 38 inch 96 cm ke  लगभग

👌👌👌👌5 साल में बच्चा

 भजन—- 43 inch. 20 kg 

लंबाई—–43 inch. 110 cm 

note – बच्चे का वजन कई तथ्यों पर निर्भर करता है माता-पिता की लंबाई पोषण बीमारी आदि पर

🔰💠🔰💠🔰💠🔰🍃🍃🍃🍃📝📝📝📚📚📚🖋️🖋️🖋️sapna sahu🍃🍃🍃🍃🍃🍃🖋️🖋️🖋️📚📚📚📚📝📝📝📝💫💫 पूर्व संक्रियावास्था/पूर्व बाल्यावस्था💫💫 (2-6)

🌻यह संक्रिया से पहले की अवस्था है इस अवस्था में बच्चा ज्यादा शारीरिक क्रियाएं करता हैं।

🌻 बच्चा अपने संवेगों को छिपाने लगता है बच्चा यहां पर ज्यादा क्रियाएं करने लगता है उछल कूद मचाने लगता है।

🌻 शारीरिक विकास🌻👫

🌸 बच्चों में जो वृद्धि दर शैशवास्था  में थी वह 2 से 6 साल में नहीं होती है।

🌺 इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास पैर का होता है।

🌸 बच्चे का पैर उसकी पूरी लंबाई का आधा होता है।

🌺 इस समय में सिर का विकास थोड़ा कम होता है।

🌻 3 साल के बच्चे का वजन 33 पाउंड (15 kg) लंबाई 38 इंच( 96.5cm)

🌻 5 साल के बच्चे का वजन 43 पाउंड( 20kg) लंबाई फुट43  इंच (110cm)

🌸हालांकि बच्चे का वजन कई तत्वों पर निर्भर करता है।

🌻 बच्चे के माता-पिता की लंबाई

🌻 उसका वातावरण

🌻 उसकी बीमारी

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

⚡पूर्व बाल्यावस्था/पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(Pre-Operational Stage)

🌹🌹🌹🌹🌹🌹12 Feb 2021🌹🌹

💪 शारीरिक विकास (Physical Development)

❇️ बच्चों में जो वृद्धि दर शैशवावस्था में होती थी। वह 2 से 6 साल में नहीं होता है।

❇️ इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास *पैर(Leg)* का होता है; और बच्चे का पैर उनकी “पूरी लंबाई का आधा” होता है।

❇️ इस समय में सिर का विकास थोड़ा कम होता है।

❇️ 3 साल के बच्चे का वजन 33 पाउंड अथवा 15 किलो तथा लंबाई 38 इंच या लगभग 100 सेमी होता है।

❇️ 5 साल के बच्चे का वजन 43 पाउंड या 20 किलोग्राम तथा लंबाई 43 इंच या 110 सेंटीमीटर होता है।

       🍂 हालांकि बच्चे का वजन कई बातों पर निर्भर करता है; जैसे- माता-पिता की लंबाई, पोषण (nurture), बीमारी इत्यादि।

♀️ पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे की शारीरिक विकास से संबंधित सारणी प्रस्तुत है-

आयु                               वजन                             लंबाई

जन्म के समय        6 से 8 पाउंड या 3 किग्रा         19 से 20 इंच या 50 सेमी

1 से 2 वर्ष           17 से 18 पाउंड या 8 किग्रा       28 से 29 इंच या 72 सेमी

3 वर्ष                  33 पाउंड या 15 किग्रा               38 इंच या 100 सेमी

5 वर्ष                  43 पाउंड या 20 किग्रा               43 इंच या 110 सेमी

  🔚

         🙏

📝🥀Notes by Awadhesh Kumar🥀

*पूर्व संक्रियावास्था/पूर्व बाल्यावस्था (2-6)* 

👉यह संक्रिया से पहले की अवस्था है इस अवस्था में बच्चा ज्यादा *शारीरिक क्रियाएं करता हैं।* 

👉बच्चा अपने संवेगों को छिपाने लगता है बच्चा यहां पर ज्यादा क्रियाएं करने लगता है *उछल कूद मचाने लगता है।* 

👉 शारीरिक विकास🌻👫

👉 बच्चों में जो वृद्धि दर शैशवास्था  में थी वह *2 से 6 साल* में नहीं होती है।

👉इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास पैर का होता है।

👉बच्चे का पैर उसकी पूरी लंबाई का *आधा* होता है।

👉इस समय में *सिर* का विकास थोड़ा *कम* होता है।

👉3 साल के बच्चे का *वजन 33 पाउंड (15 kg) लंबाई 38 इंच( 96.5cm)* 

👉 5 साल के बच्चे का वजन *43 पाउंड( 20kg) लंबाई फुट43  इंच (110cm)* 

👉 *हालांकि बच्चे का वजन कई तत्वों पर निर्भर करता है।

👉बच्चे के माता-पिता की लंबाई

👉 उसका वातावरण

👉उसकी बीमारी

Notes by….. SHARAD KUMAR PATKAR

पूर्व बाल्यावस्था /पूर्व संक्रियात्मक अवस्था

यह अवस्था 2 से 6 वर्ष की होती है।

संक्रिया का अर्थ होता है कुछ ना कुछ अंत:क्रिया होना।

जब बच्चा शैशवावस्था में होता है तब  वातावरण के साथ अन्तःक्रिया कम करता है।

लेकिन जब बच्चा 2 से 6 वर्ष के बीच में होता है तो वह वातावरण के साथ विभिन्न प्रकार की अंतः क्रिया करता है वह इधर-उधर घूमता रहता है बिना किसी कारण के।

इस उम्र में बालकों में ऊर्जा अधिक होती है।

इस समय बच्चा गिरता उठता रहता है।

इस समय बच्चे को ज्यादा बंधेज में नहीं रखना चाहिए बस थोड़ा सा ध्यान जरूर रखना चाहिए ताकि कोई क्षति ना हो।

बच्चे को खेलने के लिए खुला छोड़ना चाहिए।

पूर्व बाल्यावस्था पूर्व /संक्रियात्मक अवस्था में शारीरिक विकास

बच्चों में जो वृद्धि दर शैशवावस्था में थी वह अब 2 से 6 साल में नहीं होती हैं।

इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास पैर का होता है

और बच्चे का पैर उसकी पूरी लंबाई का आधा होता है

इस समय सिर का विकास थोड़ा कब होता है।

जन्म के समय बालक का वजन और लंबाई

वजन- 6-8 पाउंड या 2.5 -3.50 किलोग्राम

लंबाई – 19-21 या 50 सेंटीमीटर

होती है।

1 साल बाद बालक का वजन और लंबाई

वजन-8 किलोग्राम या 17से 18 पाउंड

लंबाई- 24-27 इंच या लगभग 60-68 सेंटीमीटर

होती हैं।

3 साल के बच्चे का वजन और लंबाई

वज़न-33 पाउंड या 15 किलोग्राम

लंबाई- 38 इंच या 96-97 सेंटीमीटर

होती हैं।

5 साल के बच्चे का वजन और लंबाई

वज़न- 43 पाउंड या 20 किलोग्राम

लंबाई- 43 इंच या 110 सेंटीमीटर

होती है।

हालांकि बच्चे का वजन कहीं तत्वों पर निर्भर करता है जैसे माता-पिता की लंबाई ,

उसका पोषण 

और बीमारी आदि पर।

Notes by Ravi kushwah

🌺🌺  पूर्व बाल्यावस्था  🌺🌺

🌺🌺 Pre operational stage 🌺🌺

*  2 – 6 वर्ष 

*इस अवस्था को पूर्व संक्रियावस्था भी कहते हैं।

*संक्रिया से तात्पर्य – क्रिया से है इस उम्र में बालक विभिन्न प्रकार की क्रियाएं स्वयं से करने लगता है जैसे चलना , खेलना, कूदना ,दौड़ना कुछ पाने के लिए दो तीन वस्तुओं को एक दूसरे के ऊपर रखकर उसके ऊपर चढ़ना।

*इस समय में अगर हम बालक को पानी लाने के लिए कहते हैं तो वह पानी लाने के लिए दौड़ जाते हैं कि हम सबसे पहले पानी लाकर देंगे।

*अपने मन से छोटी छोटी क्रियाएं करने लगते हैं।

* जो प्रत्यक्ष में देखते हैं उससे जुड़े प्रश्न करने लगते हैं जैसे सूरज क्यो उगता है पानी की गिरता है पानी क्यों पीते हैं रात क्यो होती है  आदि।

🌺पूर्व बाल्यावस्था में शारीरिक विकास physical development

* बच्चों में जो वृद्धि दर शैशवावस्था में था वह 2 से 6 साल मे / बाल्यावस्था में नहीं होती।

* इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास पैर का होता है क्योंकि बालक दौड़ते हैं कुदते हैं।

* और बच्चों का पैर उनकी पूरी लंबाई का आधा होता है ।

* इस समय में बच्चे का सिर का विकास थोड़ा कम होता है या यह कहें कि बाल्यावस्था में सिर का  विकास शैशवावस्था की तुलना में कम होता है।

♦️3 साल के बालक का वजन और लंबाई

वजन = 33 पाउंड app ,

           15 kg

 लंबाई = 33 inch

             96 – 97 cm

▪️3 साल की उम्र में लड़की की लंबाई और वजन लड़कों की अपेक्षा कम होता है।

▪️ 6 साल तक की लड़कियों की लंबाई एवं वजन लड़कों की अपेक्षा ज्यादा होता है।

♦️ 5 साल के बच्चे का

 वजन = 43 पाउंड 20 kg

लंबाई =43 inch 110 cm

▪️हालांकि बच्चे का वजन कई तथ्यों पर निर्भर करता है जैसे माता-पिता की लंबाई जो कि उसे heredity  से मिलती है ।

▪️पोषण यानी कि नर्चर एनवायरनमेंट से होता है।

 ▪️और बीमारियां अगर बच्चा बीमार होता है तो भी उसकी वजन एवं लंबाई पर असर पड़ता है।

*धन्यवाद 

*वंदना शुक्ला

🔆  पूर्व बाल्यावस्था/पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( Pre operational stage)➖

2 – 6 वर्ष 

*इस अवस्था को पूर्व संक्रियावस्था भी कहते हैं।

*संक्रिया से तात्पर्य – क्रिया से है इस उम्र में बालक विभिन्न प्रकार की क्रियाएं स्वयं से करने लगता है जैसे चलना , खेलना, कूदना ,दौड़ना कुछ पाने के लिए दो तीन वस्तुओं को एक दूसरे के ऊपर रखकर उसके ऊपर चढ़ना।

🔹 शारीरिक विकास (Physical Development)➖

▪️बच्चों में  जो वृद्धि दर है वह शैशवावस्था की अपेक्षा 2 से 6 वर्ष में नहीं देखी जा सकती।

▪️ इस उम्र में सबसे ज्यादा विकास *पैर(Leg)* का होता है; और बच्चे का पैर उनकी “पूरी लंबाई का आधा” होता है।

▪️इस समय में सिर का विकास थोड़ा कम होता है। 

🔅उम्र के अनुसार बच्चो की लंबाई व वजन➖

⚜️ नवजात शिशु का➖

✓ वजन – 6 से 8 पौंड (15kg लगभग)

 ✓लंबाई- 19 से 21 इंच(48 से 54 से.मी.लगभग)

⚜️ एक साल के बच्चे का➖

✓वजन – 17 से 18 पौंड (8kg लगभग)

✓ लंबाई – 24 से 27 इंच(68 से 69 से.मी.लगभग)

⚜️ 3 साल के बच्चे का➖

✓ वजन – 33 पौंड (15kg लगभग)

✓लंबाई – 38 इंच (96 या 98 से.मी.लगभग)

⚜️5 साल के बच्चे का ➖

✓ वजन- 43 पौंड(20 kg लगभग)

✓लंबाई – 43 इंच (110 से.मी.लगभग)

हालांकि बच्चे का वजन कई बातों पर निर्भर करता है; जैसे- माता-पिता की लंबाई, पोषण (nurture), बीमारी इत्यादि।

✍🏻

  Notes By-Vaishali Mishra

#6. CDP – Cognitive/Emotional/social development in infancy

*🌸शैशवावस्था में संज्ञानात्मक/ बौद्धिक/ मानसिक विकास (0-2 वर्ष)🌸* 

*( Cognitive development in infancy stage)* 

*Date-11 february 2021*

👉इस अवस्था में सामान्यतः बच्चे के संज्ञानात्मक विकास का पता नहीं चलता लेकिन बच्चे का संज्ञानात्मक विकास भी होता रहता है। 

👉 विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे का विकास उनके रखरखाव, आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है। 

👉 बच्चे पर वातावरण का बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है बच्चा यह नहीं समझता है कि वह क्या कर रहा है लेकिन बच्चा उसकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उसके वातावरण से प्रभावित होता है। 

👉 पियाजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल या असफल प्रयास जरूर करते हैं। 

 जैसे सामने रखें खिलौने को पाने की कोशिश करना अगर खिलौना पा ले तो तो सफल प्रयास और ना पा सके तो असफल  प्रयास। 

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

*🌸शैशवावस्था में भावनात्मक/सामाजिक विकास🌸*

*Emotional/social development in infancy*

👉 2 से 3 माह में बच्चे में खुशनुमा मुस्कान दिखने लगती हैl

👉 4 माह तक बच्चा हंसने लगता है। 

👉 2 से 6 माह के बीच दु:ख, क्रोध, डर, आश्चर्य आदि संवेग जाहिर करने लगता है। 

👉  5 से 6 माह तक बच्चा अपने व दूसरे को पहचाने लगता है। 

👉 6 माह तक घर वालों के द्वारा की हुई आवाज को पहचानने लगता है। 

👉 8 से 10 माह में बच्चे अपनी  भावना  को व्यक्त करने लगते हैं। 

👉 10 माह में जल्दी-जल्दी नाराज,खुश, दु:ख के भाव को व्यक्त करने लगता है। 

👉 11 माह में दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है। 

👉 12 महीने तक बच्चा भावना से निकले मतलब या अर्थ को समझने लगता है। 

* 12 माह में ही बच्चा अपनी चीजों के प्रति उत्साह दिखाता है एवं दूसरों की चीजों के प्रति जलन की भावना दिखाता है। 

👉 13 से 18 माह में कौन से व्यक्ति उसके घर वाले हैं जो साथ रहते हैं या बाहर गए हैं को समझने लगता है 

* अपनी चीजों से लगाव बढ़ते जाता है।

👉 18 माह में बच्चे अपनी भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाते हैं

👉 21 माह तक बच्चा थोड़ा स्थित हो जाता है उसकी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाता है। 

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸

🌺🌺🌻🌻🌻🌻🌺🌺

💥 शैशवावस्था में संज्ञानात्मक विकास / मानसिक विकास /बौद्धिक विकास💥

🌈💫0 से 2 वर्ष तक में संज्ञानात्मक विकास भी चलता है।

👉विशेषज्ञ कहते है- बच्चे का विकास उनके रख रखाव और आस पास के वातावरण पर निर्भर करता है।

🌈🌟 वह ये नही समझता है की  वह क्या कर रहा है लेकिन वह जो भी करता है वह अपने आस पास के वातावरण से ही सीखता है।

👉वह सपनी इच्छा शक्ति की पूर्ति के लिए जो भी करता है वह वातावरण से प्रभावित होता है।

🌺पियाजे के अनुसार-

“इनके अनुसार बच्चा अपनी मानसिक क्षमता के आधार पर वातावरण से कुछ न कुछ सीखता रहता है। अगर बच्चे कुछ पब चाहते हैं तो उसके लिए वो सफल / सफल प्रयास करते हैं।

🌈🌟शैशवावस्था में भावात्मक एवं सामाजिक विकास🌟🌈

🌻👉 2 से 3 महीने में बच्चा खुशनुमा मुस्कान करने लगता है।

🌻👉4 महीने में बच्चा अच्छे से खिलखिला के हँसने लगता है।

🌻👉 2 से 6 महीने के बीच दुःख, क्रोध ,आश्चर्य, खुशी को जाहिर करने लगता है।

🌻👉 5से 6 महीने तक अपने और दूसरों को पहचानने लगता है।

🌻👉 6 महीने पूरा होने तक घर वालो के द्वारा बोली गयी आवाज़  को पहचानने  लगता है।

🌻👉8 से 10 महीने के बीच बच्चा अपनी भावना को व्यक्त करने लगता है।( वह घूमने चाहते हैं, खेलना चाहता है।)

🌻👉 10 महीने के अंत तक बच्चा जल्दी जल्दी नाराज़गी ,खुशी ,दुःख की प्रक्रिया को बदलने लगता है।

🌻👉11 महीने में बच्चा दुसरो की भावनाओ को समझने लगता है। कि हम उसे प्यार कर रहे हैं या डांट रहे हैं। जिनमे फर्क समझने लगता है ।

🌻👉12 महीने तक बच्चा दुसरो की भावनाओं के मतलब को समझने लगता हैं। अपनी चीज़ों के प्रति उत्साह और दूसरों से शेयर करने पर जलन ।

🌻👉13 से 18 महीने में बच्चा अपने घर वालो को पहचानने लगता है कि कोन मेरे घर मे ही रहता है और कौन घर के बाहर का है। वह यह भी जानने लगता है कि कोन घर पर है और कौन बाहर गए हैं।

👉 बच्चो को अपनी चीज़ों से लगाव हो जाता है।

🌻👉18 महीने में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है।

🌻👉21 महीने में बच्चा शारीरिक और संवेगात्मक रूप से थोड़ा स्थिर होने लगता है। और उम्र की हिसाब से समझदार हो जाते हैं।

🌈🌟💥Notes by Poonam sharma🌻🌻🌻🌻🌺

**शैशवावस्था में संज्ञानात्मक विकास / मानसिक *विकास /बौद्धिक विकास👨

✍️✍️0 से 2 वर्ष तक* में संज्ञानात्मक विकास भी चलता है।

✍️विशेषज्ञ कहते है- बच्चे का विकास उनके रख रखाव और आस पास के वातावरण पर निर्भर करता है।

✍️ वह ये नही समझता है की  वह क्या कर रहा है लेकिन वह जो भी करता है वह अपने आस- पास के वातावरण से ही सीखता है।

✍️वह सपनी इच्छा शक्ति की पूर्ति के लिए जो भी करता है वह वातावरण से प्रभावित होता है।

🚩 *पियाजे के अनुसार-* 

“इनके अनुसार बच्चा अपनी मानसिक क्षमता के आधार पर वातावरण से कुछ न कुछ सीखता रहता है। अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसके लिए वो असफल / सफल प्रयास करते हैं।

😃😂😪शैशवावस्था में भावात्मक एवं सामाजिक विकास👭

✍️2 से 3 महीने में बच्चा खुशनुमा मुस्कान करने लगता है।

✍️4 महीने में बच्चा अच्छे से खिलखिला के हँसने लगता है।

✍️ 2 से 6 महीने के बीच दुःख, *क्रोध ,आश्चर्य, खुशी* को जाहिर करने लगता है।

✍️ 5से 6 महीने तक अपने और दूसरों को पहचानने लगता है।

✍️6 महीने *पूरा होने तक घर वालो के द्वारा बोली गयी आवाज़*  को पहचानने  लगता है।

✍️8 से 10 महीने के बीच बच्चा अपनी *भावना को व्यक्त* करने लगता है।( वह घूमने चाहते हैं, खेलना चाहता है।)

✍️ 10 महीने के अंत तक बच्चा जल्दी जल्दी *नाराज़गी ,खुशी ,दुःख* की प्रक्रिया को बदलने लगता है।

✍️11 महीने में बच्चा *दुसरो की भावनाओ को समझने लगता है।* कि हम उसे प्यार कर रहे हैं या डांट रहे हैं। जिनमे फर्क समझने लगता है ।

✍️12 महीने तक बच्चा दुसरो की *भावनाओं के मतलब को समझने लगता हैं। अपनी चीज़ों* के प्रति उत्साह और दूसरों से शेयर करने पर जलन ।

✍️ *13 से 18 महीने में बच्चा अपने घर वालो को पहचानने लगता है* कि कौन मेरे घर मे ही रहता है और कौन घर के बाहर का है। वह यह भी जानने लगता है कि कौन घर पर है और कौन बाहर गए हैं।

✍️बच्चो को अपनी चीज़ों से लगाव हो जाता है।

✍️18 महीने में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है।

✍️21 महीने में बच्चा शारीरिक और संवेगात्मक रूप से थोड़ा स्थिर होने लगता है। और उम्र की हिसाब से समझदार हो जाते हैं।

Notes by Sharad Kumar patkar**

*शैशवावस्था में संज्ञानात्मक/ बौध्दिक/ मानसिक विकास*

🤱🏻👶🏻😭😡😁🧠👩🏻‍💻👩🏻‍🏫

⭕0 से 2 वर्ष में संज्ञानात्मक विकास भी चलता है।

✅ *विशेषज्ञ कहते है- बच्चे का विकास उनके रख रखाव और आस पास के वातावरण पर निर्भर करता है।*

⭕वह ये नही समझता है की  वह क्या कर रहा है लेकिन वह जो भी करता है वह अपने आस- पास के वातावरण से ही सीखता है।

⭕वह सपनी इच्छा शक्ति की पूर्ति के लिए जो भी करता है वह वातावरण से प्रभावित होता है।

✅ *पियाजे के अनुसार-* 

“इनके अनुसार बच्चा अपनी मानसिक क्षमता के आधार पर वातावरण से कुछ न कुछ सीखता रहता है। अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसके लिए वो असफल / सफल प्रयास करते हैं।

*शैशवावस्था में भावात्मक एवं सामाजिक विकास* 

👶🏻😭😌😡😁😴👨‍👨‍👧‍👧

*2 से 3 महीने में* :-  बच्चा खुशनुमा मुस्कान करने लगता है।

*4 महीने में* :-  बच्चा अच्छे से खिलखिला के हँसने लगता है।

*2 से 6 महीने में* :-  दुःख, क्रोध ,आश्चर्य, खुशी को जाहिर करने लगता है।

*5 से 6 महीने में* :- अपने और दूसरों को पहचानने लगता है।

⭕6 महीने *पूरा होने तक घर वालो के द्वारा बोली गयी आवाज़*  को पहचानने  लगता है।

*8 से 10 महीने में* :- बच्चा अपनी भावना को व्यक्त करने लगता है।( *वह घूमने चाहते हैं, खेलना चाहता है।*)

⭕10 महीने के अंत तक बच्चा जल्दी जल्दी *नाराज़गी ,खुशी ,दुःख* की प्रक्रिया को बदलने लगता है।

*11 महीने में* :- बच्चा *दुसरो की भावनाओ को समझने लगता है।* कि हम उसे प्यार कर रहे हैं या डांट रहे हैं। जिनमे फर्क समझने लगता है ।

*12 महीने में* :- दुसरो की *भावनाओं के मतलब को समझने लगता हैं। अपनी चीज़ों* के प्रति उत्साह और दूसरों से शेयर करने पर जलन ।

*13 से 18 महीने में* :- बच्चा अपने घर वालो को पहचानने लगता है कि कौन मेरे घर मे ही रहता है और कौन घर के बाहर का है। वह यह भी जानने लगता है कि कौन घर पर है और कौन बाहर गए हैं।

⭕बच्चो को अपनी चीज़ों से लगाव हो जाता है।

*18 महीने में* :-भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है।

*21 महीने में* :- बच्चा शारीरिक और संवेगात्मक रूप से थोड़ा स्थिर होने लगता है। और उम्र की हिसाब से समझदार हो जाते हैं।

🌹🌹🌟Deepika Ray 🌟🌹🌹✅

💫🌺 शैशवावस्था में संज्ञानात्मक विकास तथा भावनात्मक विकास🌸

🍁 0 से 2 वर्ष तक संज्ञानात्मक विकास चलता रहता है।

✒️ विशेषज्ञ कहते हैं की बच्चे का विकास उनके रखरखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।

💫 वह यह नहीं समझते हैं कि वह क्या कर रहे हैं लेकिन उसकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उनके वातावरण से प्रभावित होता है।

🌸✒️ जीन पियाजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण में कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं ,उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल/ असफल प्रयास जरूर करते हैं।

🌸💫 शैशवावस्था में भावनात्मक तथा सामाजिक विकास🌸💫

🍁 2 से 3 महीने मे बच्चा  खुशनुमा मुस्कान करते हैं।

🍁 4 महीने तक बच्चे हंसना शुरू कर देते हैं।

🍁 2 से 6 महीने के बीच बच्चा दुख क्रोध आश्चर्य जाहिर करने लगता है।

🍁 5 से 6 महीने तक बच्चा अपने और दूसरों को पहचानने लगता है।

🍁 6 महीने तक बच्चा घर वालों के द्वारा बोली गई आवाज को पहचानने लगता है।

🍁  8 से 10 महीने में बच्चा अच्छे से अपनी भावना व्यक्त करने लगता है।

🍁 10 महीने में बच्चा अपने संवेग तुरंत बदलते रहते हैं, जैसे जल्दी खुश हो जाना, दुखी हो जाना, नाराज हो जाना इत्यादि।

🍁 11 महीने में बच्चे दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है।

🍁 12 महीने  के करीब बच्चे सिर्फ भावनाओं को ही नहीं समझते बल्कि उस भावनाओं से निकले हुए मतलब को भी समझने की कोशिश करने लगते हैं।

▫️ अपनी चीजों के प्रति उत्साह रखते हैं ।

▫️ दूसरों के साथ अपनी चीजों को शेयर करने में जलन करते हैं।

🍁 13 से 18 महीने तक बच्चे यह समझने लगते हैं कि सामने वालों में कौन घर वाले है जो उनके साथ रहते हैं और कौन बाहर गए हुए हैं।

▫️ बच्चे को अपनी चीजों से लगा बढ़ते जाता है।

🍁 18 महीने में बच्चे भावनाओं के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाते हैं।

🍁 21 महीने तक बच्चे थोड़ा स्थिर हो जाते हैं तथा अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाते हैं।

         💫💫💫💫💫

Notes by 

          SHASHI CHOUDHARY

      🔥🔥🔥🔥🔥🔥

🔆(Infency) शैशवावस्था / संज्ञानात्मक विकास [ बौद्धिक विकास / मानसिक विकास ] (0-2 years) 

💫( 0-2 years ) में संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है |

विशेषज्ञ कहते है कि बच्चे का विकास उनके रख-रखाव और आस-पास के वातावरण पर निर्भर करता है |

  💫वह वे नही समझता है कि वह क्या कर रहे है | लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उनके वातावरण से प्रभावित होता है |

    💫प्याजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते है| उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते है तो उसका सफल / असफल प्रयास जरूर करते है |

💥भावनात्मक / सामाजिक विकास ( शैशवावस्था ) 

Emotional / social development (infancy)

◼ 2-3 महीने में खुशनुमा मुस्कान 

◼ 4 महीने तक हसने लगता है |

◼ 2-6 महीने के बीच दु:ख , क्रोध ,डर , आश्चर्य जाहिर करने लगता है |

◼ 5-6 महीने तक अपने /दूसरे को पहचानने लगता है |

◼ 6 महीने पूरा होने तक घर वालो के द्वारा बोली गयी आवाज की पहचानने लगता है |

◼ 8-10 महीना में बच्चे अपनी भावना व्यक्त करने लगता है |

◼ 10 महीने जल्दी – जल्दी नाराज ,हो जाना और खुश हो जाना, और दुख व्यक्त  करता है |

◼ 11 महीने दूसरो की भावनाओ को समझने लगता है |

◼ 12 महीने तक भावना से निकले मतलब को भी समझता है |

  ▪अपने चीजो के प्रति उत्साह रहता है

  ▪दूसरो से कोई चीज शेयर करने मे जलन करता है |

 ◼ 13-18 महीना अभी उनके कौन से घर वाले है जो साथ रहते है बाहर गए है |

▪बच्चो को अपनी चीजो से लगाव बढ़ते जाता है |

◼ 18 महीने में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाते है |

◼ 21 महीने तक बच्चे थोडा़ स्थिर हो जाते है अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाते है |

Notes by ➖Ranjana sen

💫शैशवास्था में संज्ञानात्मक/बौद्धिक विकास/मानसिक विकास 💫

👼🏻🧠👩🏻‍🎓

🌻 0-2 वर्ष में संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है।

🌻👨🏻‍🔬 विशेषज्ञ कहते हैं-बच्चे का विकास उनके रखरखाव ,और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।

🌻वह यह नहीं समझता कि वह लोग क्या कह रहे हैं लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उसके वातावरण से प्रभावित होता है।

🤵🏻‍♂प्याजे का मानना है-कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं।

🌻 उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफलता/ असफलता प्रयास करते हैं।

💫शैशवास्था मैं भावनात्मक एवं सामाजिक विकास💫

👼🏻😡😢😄😴

🌻 2 से 3 महीने में खुशनुमा मुस्कान देख सकते हैं।

🌻 4 महीने तक हंसने लगता है।

🌻 2 से 6 महीने के बीच दुख😴 क्रोध😡 डर 🥵आश्चर्य😲 जाहिर करने लगता है।

🌻 5 से 6 महीने तक अपनों व दूसरों को पहचाने लगता है।

🌻 8 से 10 महीने के बीच बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगता है।

🌻 10 महीने में बच्चा जल्दी जल्दी नाराज, खुश, दुख करने लगता है।

🌻 11 महीने में दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है।

🌻 12 महीने में बच्चा भावना से निकले मतलब को भी समझता है।अपने चीजों के प्रति उत्सुक होने लगता है दूसरों से शेयर करने में जलन करने लगता है।

🌻 13 से 18 महीने में बच्चा अभी उसके साथ घर वाले हैं जो साथ रहते हैं या बाहर गए हैं उन सब बातों को जानता है। अपनी चीजों के प्रति लगाव बच्चे को हो जाती है।

🌻 18 महीने में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है

🌻21 महीने तक बच्चा थोड़ी स्थिर हो जाता है अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाता है।

✍🏻📚📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

⚡शैशवावस्था में संज्ञानात्मक/बौद्धिक/ मानसिक विकास

(Cognitive/Mental Development in Infancy)

🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴11 feb 2021🌴🌴

🚼 0 से 2 वर्ष में बालक का संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है।

        🍂 विशेषज्ञ कहते हैं कि, “बच्चे का विकास उनके रख-रखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।”

🚼वह यह नहीं समझता कि वह क्या कर रहे हैं लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उनके वातावरण से प्रभावित होता है।

🧔पियाजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल या असफल प्रयास जरूर करते हैं।

⚡शैशवावस्था में भावनात्मक/सामाजिक विकास

(Emotional/social development in infancy)⤵️

➡️ 2 से 3 महीने में बालक खुशनुमा मुस्कान प्रदर्शित करता है

➡️ 4 महीने में बालक हंसने लगता है।

➡️ 2 से 6 महीने बीच बालक दुख, क्रोध, डर, आश्चर्य जाहिर करने लगता है।

➡️ 5 से 6 महीने तक अपने अथवा दूसरों को पहचाने लगता है।

➡️ 6 माह तक घर वालों के द्वारा बोले आवाज की पहचान करने लगता है।

➡️ 8 से 10 महीना में बच्चे अपनी भावना व्यक्त करने लगते हैं।

➡️ 10 महीने मैं जल्दी-जल्दी नाराज, खुश, दु:खी होने लगते हैं।

➡️ 12 महीने तक भावना से निकले मतलब को भी समझता है।

           🍂 अपनी चीजों के प्रति उत्साह

           🍂 दूसरों से शेयर करने में जलन

➡️ 13 से 14 महीना में बालक अभी उनके कौन से घर वाले हैं जो साथ रहते हैं, बाहर गए हैं इत्यादि समझने लगता है।

           🍂 इस अवस्था में बच्चों को अपनी चीजों के प्रति लगाव बढ़ता जाता है।

➡️ 18 महीने में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है।

➡️ 21 महीने में बच्चे थोड़ा स्थिर हो जाते हैं अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाते हैं।🔚

         🙏

📝🥀Notes by Awadhesh Kumar🥀

शैशवावस्था में 

संज्ञानात्मक / बौद्धिक / मनिसिक विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

🌹   0 – 2 वर्ष में बच्चे का संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है।   🌹

                   🌻   विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे का विकास उनके रख –  रखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।  🌻

              🌻   बच्चा यह नहीं समझता है कि वह क्या कर रहा है लेकिन अपनी इच्छा पूर्ति के लिए वह जो भी करता है वह सब उसके वतावरण से प्रभावित होता है।🌻

                          🌸🌼🌸  ” जीन पियाजे ” का मानना है कि  –   बच्चे अपनी मानसिक क्षमता अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं यदि इस समय भी बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो बो उसका सफल और असफल प्रयास जरूर करते हैं।🌸🌼🌸

          शैशवावस्था अवस्था में                   भावनात्मक / सामाजिक विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

🏵️.  शैशवावस्था में बच्चों का भावनात्मक / सामाजिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है  :-

👉   2 – 3 महीने में बच्चा अपनी खुशनुमा मुस्कान दिखाने लगता है।

👉  4 महीने में बच्चा खिलखिला कर हंसने लगता है।

👉  2 – 6 महीने के मध्य तक बच्चा अपना दुख ,  क्रोध , डर ,  खुशी जाहिर करने लगता है।

👉 5- 6  महीने में बच्चा अपने परिवार ( आसपास रहने वालों ) और दूसरों को पहचाने लगता है।

👉 6 महीने के अंत तक बच्चा अपने घर वालों की बोली /  आवाज पहचानने लगता है।

👉 8 – 10 महीने में बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगते हैं जैसे  :- खेलने की इच्छा  , घूमने की इच्छा आदि जाहिर करने लगते हैं।

👉 10 महीने के अंत तक बच्चे जल्दी – जल्दी ( तुरंत ही )  अपनी खुशी,  दुख ( रोना ) ,  नाराजगी आदि प्रतिक्रियाएं बदलने लगते हैं।

  जैसे  :-  बच्चा यदि किसी छोटे कारणवश रो रहा है औऱ हम यदि उसे प्यार से खिलाएंगे, खिलौने देंगे आदि तो वह शांत होकर बहल जाएगा, हंसने लगेगा ।

 👉 11 महीने में बच्चा अपने सामने वालों ( दूसरों )  की भावना को समझने लगता है , जैसे  :-  यदि हम उसे प्यार करते हैं तो वह खुश हो जाता है औऱ यदि डांट देंगे तो वह रोने  लगता है , इसी प्रकार वह हमारी भावना का अंतर समझ लेता है।

👉 12 महीने में बच्चा दूसरों की भावना से निकलने वाले मतलब को समझने लगता है।

💥  अतः इस समय बच्चों में अपनी चीजों के प्रति उत्साह भरा होता है  जैसे  :-  अपने नये खिलौने सबको दिखाने में वह उत्सुकता महसूस करता है ।

💥   वहीं दूसरों से अपनी वस्तुएं बांटने में share करने में वह  जलन और दुख की भावना को महसूस करता है  जैसे  :-   यदि उसके सामने कोई दूसरा उसकी माँ से स्नेह जताता है या उसकी माँ अपने बच्चे के सामने किसी अन्य बच्चे से दुलार करने लगती है तो,  उसे जलन होने लगती है वह रोकर अपनी माँ से लिपटने लगता है ।

👉 13 – 18 महीने में बच्चा समझने लगता है कि कौन अभी बाहर गया है और कौन घर में उनके साथ मौजूद है ,

जैसे  :-  यदि बच्चे से पूछेंगे कि पापा कहां गए हैं तो वह बोलेगा कि ऑफिस , बाहर आदि छोटे शब्द ।

💥   इस अवस्था में बच्चों को अपनी चीजों से लगाव हो जाता है।

👉 18 महीने के अंत तक बच्चा अपनी भावनाओं के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है।

 जैसे :-  हम बोलेंगे कि खाना खालीजिएगा तो हठ करेगा ,  रूठ जाएगा आदि।

👉  21 महीने में बच्चे संज्ञानात्मक और संवेगात्मक रूप से थोड़े स्थिर हो जाते हैं , अतः अपनी उम्र के अनुकूल समझदार हो जाते हैं।

✍️

Notes by – जूही श्रीवास्तव ✍️

🔥🔥शैशवावस्था🔥🔥

            ( Infancy)

    🌸🌸 (संज्ञानात्मक विकास)🌸🌸

🗣️०-२ वर्ष-संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है;

🕵️विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे का विकास उनके रख-रखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है;

🕵️वह नहीं समझता कि वह क्या कर रहा है लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उनके वातावरण से प्रभावित होता है;

👩‍🎓जीन पियाजे का मानना है कि बच्चे अपने मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल सफल प्रयास जरूर करते हैं;

🏵️🏵️(Emotinal and Social Development in Infancy)🏵️🏵️

🌺(शैशवावस्था में भावनात्मक/सामाजिक विकास)🌺

🗣️२- ३ माह -बच्चे के चेहरे पर खुशनुमा मुस्कान आने लगती है;

🗣️४- माह -इस माह में बच्चा हंसना शुरू कर देता है;

🗣️२- ६ माह -इस माह के बीच बच्चा दुख, क्रोध ,डर ,आश्चर्य खुशी जाहिर करने लगता है;

🗣️५- ६ माह – इस माह तक अपने दूसरों को पहचाने लगता है परिचित वहां पर अपरिचित में विभेद करने लगता है;

🗣️६- माह – इस माह तक घर वालों की आवाज पहचाने लगता है;

🗣️८- १० माह -इस माह में बच्चे अपनी भावना व्यक्त करने लगते हैं;

🗣️१० माह- जल्दी-जल्दी नाराज होना खुश होना मत दुख प्रकट करता  है ;

🗣️११-माह -दूसरों की भावना को समझने लगता है;

🗣️१२ माह -इस माह के अंत तक बच्चा भावना से निकले मतलब को भी समझता है 

             ‌            वा 

🌸अपने चीजों के प्रति उत्साह

                 वा

🌸दूसरों से साझा करने में जलन भी होने लगती हैं;

🗣️१३ – १८ माह -अभी उनके कौन से घरवाले हैं जो साथ रहते हैं , और बाहर गए हैं जानने लगता है बच्चा ;

🌸बच्चों को अपनी चीजों से लगाव  बढ़ते जाता है;

🗣️१८ – माह – इस माह में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है;

( अगर खाना या दूध नहीं पीना है तो नहीं पीना है;)

🗣️२१ – माह -इस महीने तक बच्चे थोड़ी स्त्रियों जाते हैं और अपनी उम्र के हिसाब से समझदार भी हो जाते है।

     🧠🧠धन्यवाद 🧠🧠

🌸हस्त लिखित-शिखर पाण्डेय 🌸

💐💐शैशवावस्था( संज्ञानात्मक विकास ,बौद्धिक विकास ,मानसिक विकास)💐💐

0 से 2 ईयर में संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है

विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे का विकास उनके रखरखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है वह यह नहीं समझता कि वह क्या कह रहे हैं लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है उस उनके वातावरण से प्रभावित होता है

प्याजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ ना कुछ सीखते हैं उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल या असफल प्रयास जरूर करते हैं

         💐भावनात्मक सामाजिक विकास💐

 2-3  महीने में बच्चे में खुशनुमा मुस्कान  आने लगती है

4   महीने में बच्चा हंसने लगता है

2 से 6 महीने में बच्चा, दुख ,क्रोध ,डर ,आश्चर्य जाहिर करने लगता है

5 से 6 महीने तक बच्चा अपने और दूसरे को पहचाने लगता है कौन अपना है और कौन पराया यह जानने लगता है

6 महीने तक बच्चा घर वालों के द्वारा बोले जाने वाले आवाजों को पहचानने लगता है

8 से 10 महीने में बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगते हैं

 10 महीने में बच्चा जल्दी जल्दी नाराज खुश और दुखी हो जाता है

11 महीने में बच्चा दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है

 12 महीने में बच्चा भावना से निकले मतलब वह भी समझता है अपनी चीजों को दूसरों को देने में उसे जलन होती है

13 से 18 महीने में बच्चा अपने परिवार वालों को कौन घर में है और कौन बाहर गए हैं यह सब अंदाजा लगा लेता है

बच्चों को अपनी चीजों से लगाओ  बढ़ते जाता  है

18 महीने में बच्चा भावना भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाते हैं

 21 महीने में बच्चा स्थिर हो जाता है और अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाता है

🔰🔰🔰🔰sapna sahu. 🔰🔰🔰🔰🔰🔰

💐💐💐🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃💠💠💠💠💠🔰🔰🔰🔰

*शैशवावस्था संज्ञानात्मक विकास*

*(बौद्धिक विकास मानसिक विकास)*

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

●*0-2 वर्ष में  संज्ञानात्मक विकास  भी चलता रहता है।*

● विशेषज्ञ कहते हैं बच्चे का विकास उनके रखरखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।

 ●वह यह नहीं समझता कि वह क्या कर रहे हैं लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वही उनके वातावरण से प्रभावित होता है।

● *पियाजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ ना कुछ सीखते हैं।*

 ●उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल /असफल प्रयास जरूर करते हैं।

 ★ *शैशवावस्था में भावनात्मक /सामाजिक विकास*

➖➖➖➖➖➖➖➖

● 2-3 महीने में खुशनुमा मुस्कान देता है।😊😊

● 4  महीने तक हंसने लगता है।😂😂

● 2-6    महीने के बीच दुख ,क्रोध, डर ,आश्चर्य जाहिर करने लगता है।😢😟

● 5-6  महीने तक अपने दूसरे को पहचाने रखता है।

● 6  महीने  तक घरवालों के द्वारा बोली गई आवाज को पहचानने लगता है।

● 8 -10  महीने के बीच बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगता है।

●10- महीने जल्दी-जल्दी नाराज व खुश होने  लगता है संवेगों में परिवर्तन होने लगता है।🤣😆☹️🙁🤓🤪

●11  महीने दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है।

● 12 महीने भावना से निकले अर्थों को समझने लगता है।🤔🤔🤔

>अपनी चीजों की प्रति उत्साह होता है ।

      🤩🤩

●दूसरे के साथ बांटने या देने में जलन होती है।.    

               😡😡

● 13-18 महीने में यह समझने लगता है कि उनके  घर वाले बाहर गए है या कौन घर पर है।

बच्चों को अपनी चीजों से  लगाव बढ़ने लगता है।  खिलौनों को अपने पास ही ज्यादातर रखता है।

● 18 महीने में   भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाते हैं जैसे बच्चों को अपनी तरफ गोद में लेना या खाना खिलाना इन सब क्रियाकलापों में बच्चे द्वारा  मना करना।

● *21 महीने तक  बच्चों में थोड़ा  स्थिर  हो जाते है।* 

*अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाते है।*

✒️✒️ *Anand Chaudhary*📋📋

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शैशवास्था में संज्ञानात्मक विकास /बौद्धिक विकास / मानसिक विकास

0 से 2 वर्ष में संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है

विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे का विकास उनके रख-रखाव,

 आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है

 वह यह नहीं समझता कि वह क्या कर रहा हैं लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वह उनके वातावरण से प्रभावित होता है

 पियाजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल या असफल प्रयास जरूर करते हैं।

शैशवावस्था में भावनात्मक/ सामाजिक विकास

2 से 3 महीने में बच्चा खुशनुमा मुस्कान प्रदर्शित करता है

4 महीने तक हंसने लगता है

2 से 6 महीने के बीच दुख ,क्रोध, डर ,आश्चर्य को जाहिर करने लगता है।

5 से 6 महीने तक अपने अर्थात अपने परिचित लोगों को तथा दूसरों अर्थात अपरिचित लोगों को पहचानने लगता है।

6 महीने तक घर वालों के द्वारा बोली गए आवाज को पहचान लेता है अर्थात यह आवाज किसकी है जैसे दादा की है, दादी की है ,मां की है, पिता की है।

8 से 10 महीने में बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगते हैं।

10 महीने में बच्चे अपनी भावनाओं को जल्दी-जल्दी व्यक्त करते हैं जैसे जल्दी नाराज हो जाना और फिर एक ही पल में खुश हो जाना या दुखी हो जाना।

11 महीने में दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है।

12 महीने तक बच्चे भावनाओं से निकलने वाले मतलब या अर्थ को भी समझने लगते हैं।

तथा 

अपनी चीजों के प्रति उत्साह और दूसरों से शेयर या साझा करने में जलन होती है।

13 से 18 महीने में बालक को यह पता रहता है कि अभी उनके कौन से घर वाले जो साथ रह रहे हैं और कौन बाहर गए हैं

अर्थात अभी घर में कौन है

जैसे उससे पूछा जाए कि उसके पापा कहां गए हैं तो वह बता देगा कि पापा ऑफिस या ड्यूटी या काम पर गए हैं।

18 महीने में भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है

21 महीने तक बच्चे थोड़ा स्थिर हो जाते हैं और अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाते हैं।

Notes by Ravi kushwah

💫💫शैशवावस्था संज्ञानात्मक विकास

(बौद्धिक विकास मानसिक विकास)💫💫

🔅0-2 वर्ष में  संज्ञानात्मक विकास  भी चलता रहता है।

🔅 विशेषज्ञ कहते हैं बच्चे का विकास उनके रखरखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।

 🔅वह यह नहीं समझता कि वह क्या कर रहे हैं लेकिन उनकी इच्छा पूर्ति के लिए जो भी करता है वही उनके वातावरण से प्रभावित होता है।

💫पियाजे का मानना है कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार अपने वातावरण से कुछ ना कुछ सीखते हैं।

 उस समय भी अगर बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो उसका सफल /असफल प्रयास जरूर करते हैं।

 शैशवावस्था में भावनात्मक /सामाजिक विकास

🔅 2-3 महीने में खुशनुमा मुस्कान देता है।

🔅 4  महीने तक हंसने लगता है।

🔅2-6    महीने के बीच दुख ,क्रोध, डर ,आश्चर्य जाहिर करने लगता है।

🔅 5-6  महीने तक अपने दूसरे को पहचाने रखता है।

🔅6  महीने  तक घरवालों के द्वारा बोली गई आवाज को पहचानने लगता है।

🔅 8 -10  महीने के बीच बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगता है।

🔅10- महीने जल्दी-जल्दी नाराज व खुश होने  लगता है संवेगों में परिवर्तन होने लगता है।

🔅11  महीने दूसरों की भावनाओं को समझने लगता है।

🔅12 महीने भावना से निकले अर्थों को समझने लगता है।

🔅अपनी चीजों की प्रति उत्साह होता है ।

🔅दूसरे के साथ बांटने या देने में जलन होती है।.    

🔅 13-18 महीने में यह समझने लगता है कि उनके  घर वाले बाहर गए है या कौन घर पर है।

बच्चों को अपनी चीजों से  लगाव बढ़ने लगता है।  खिलौनों को अपने पास ही ज्यादातर रखता है।

🔅18 महीने में   भावना के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाते हैं जैसे बच्चों को अपनी तरफ गोद में लेना या खाना खिलाना इन सब क्रियाकलापों में बच्चे द्वारा  मना करना।

🔅21 महीने तक  बच्चों में थोड़ा  स्थिर  हो जाते है।

अपनी उम्र के हिसाब से समझदार हो जाते है।                

✍🏻✍🏻Notes by raziya khan✍🏻✍🏻

🔆शैशवावस्था में 

संज्ञानात्मक / बौद्धिक / मनिसिक विकास➖

0 – 2 वर्ष में बच्चे का संज्ञानात्मक विकास भी चलता रहता है।   

   विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे का विकास उनके रख –  रखाव और आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है।  

बच्चा यह नहीं समझता है कि वह क्या कर रहा है लेकिन अपनी इच्छा पूर्ति के लिए वह जो भी करता है वह सब उसके वतावरण से प्रभावित होता है।

   ” जीन पियाजे ” का मानना है कि  –   बच्चे अपनी मानसिक क्षमता अनुसार अपने वातावरण से कुछ न कुछ सीखते हैं यदि इस समय भी बच्चे कुछ पाना चाहते हैं तो बो उसका सफल और असफल प्रयास जरूर करते हैं।

 🔆शैशवावस्था अवस्था में                   भावनात्मक / सामाजिक विकास➖

🔅 शैशवावस्था में बच्चों का भावनात्मक / सामाजिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है  :-

▪️   2 – 3 महीने में बच्चा अपनी खुशनुमा मुस्कान दिखाने लगता है।

▪️ 4 महीने में बच्चा खिलखिला कर हंसने लगता है।

▪️  2 – 6 महीने के मध्य तक बच्चा अपना दुख ,  क्रोध , डर ,  खुशी जाहिर करने लगता है।

▪️ 5- 6  महीने में बच्चा अपने परिवार या आसपास रहने वाले लोगो और दूसरों को पहचाने लगता है।

▪️ 6 महीने के अंत तक बच्चा अपने घर वालों की बोली /  आवाज पहचानने लगता है।

▪️ 8 – 10 महीने में बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगते हैं जैसे  :- खेलने की इच्छा  , घूमने की इच्छा आदि जाहिर करने लगते हैं।

▪️10 महीने के अंत तक बच्चे जल्दी – जल्दी या तुरंत ही अपनी खुशी,  दुख  ,  नाराजगी आदि प्रतिक्रियाएं बदलने लगते हैं।

  जैसे  :-  बच्चा यदि किसी छोटे कारणवश रो रहा है औऱ हम यदि उसे प्यार से खिलाएंगे, खिलौने देंगे आदि तो वह शांत होकर बहल जाएगा, हंसने लगेगा ।

 ▪️ 11 महीने में बच्चा अपने सामने वालों ( दूसरों )  की भावना को समझने लगता है , जैसे  :-  यदि हम उसे प्यार करते हैं तो वह खुश हो जाता है औऱ यदि डांट देंगे तो वह रोने  लगता है , इसी प्रकार वह हमारी भावना का अंतर समझ लेता है।

▪️ 12 महीने में बच्चा दूसरों की भावना से निकलने वाले मतलब को समझने लगता है।

▪️अतः इस समय बच्चों में अपनी चीजों के प्रति उत्साह भरा होता है  जैसे  :-  अपने नये खिलौने सबको दिखाने में वह उत्सुकता महसूस करता है ।

▪️  वहीं दूसरों से अपनी वस्तुएं बांटने में वह  जलन और दुख की भावना को महसूस करता है  जैसे  :-   यदि उसके सामने कोई दूसरा उसकी माँ से स्नेह जताता है या उसकी माँ अपने बच्चे के सामने किसी अन्य बच्चे से दुलार करने लगती है तो,  उसे ईर्ष्या होने लगती है वह रोकर अपनी माँ से लिपटने लगता है ।

▪️ 13 – 18 महीने में बच्चा समझने लगता है कि कौन अभी बाहर गया है और कौन घर में उनके साथ मौजूद है ,

जैसे  :-  यदि बच्चे से पूछेंगे कि पापा कहां गए हैं तो वह बोलेगा कि ऑफिस , बाहर आदि छोटे शब्द ।

▪️   इस अवस्था में बच्चों को अपनी चीजों से लगाव हो जाता है।

▪️ 18 महीने के अंत तक बच्चा अपनी भावनाओं के हिसाब से प्रतिरोध करना सीख जाता है।

 ▪️  21 महीने में बच्चे संज्ञानात्मक और संवेगात्मक रूप से थोड़े स्थिर हो जाते हैं , अतः अपनी उम्र के अनुकूल समझदार हो जाते हैं।

✍️

Notes by – Vaishali Mishra

#5. CDP – Language development in Infancy

*🌸शैशवावस्था में भाषा विकास🌸* 

*(language development in infancy stage)* 

*Date-10 february 2021*

 👉जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चें अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं-

जैसे- भूख लगने पर रोना

 -थके होने पर रोना

– आराम महसूस नहीं कर पाते तब भी रोते हैं

– दर्द होने पर रोना, आदि

👉 यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है, 

 खास करके उन ध्वनियों को जिसे उसके माता-पिता या ध्यान रखने वाले उसके सामने प्रायोग करते हैं। 

👉 अगर बच्चे के चेहरे से 8-10 इंच की दूरी पर  किन्हीं शब्दों का प्रयोग होता है तो बच्चा अपने मुंह से दोहराने की कोशिश करता है। 

👉 जब बच्चा 2 से 3 महीने का होता है तब अपनी खुशियां या मन का का इजहार करने के लिए स्वर का प्रयोग करने लगता है। 

👉 3 से 4 महीने में बच्चा व्यंजन वर्णों का प्रयोग करने लगता है। 

👉 4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन वर्णों को मिलाकर शब्द  बोलने लगता है। 

👉 5 महीने में बच्चा घरेलू भाषा भाषा भाषा एवं संगीत समझने लगता है। 

👉 7 महीने तक बच्चा अर्थ वाले शब्द का प्रयोग करने लगता है जो उसकी घरेलू भाषा में उसके सामने प्रयोग किए जाते हैं। 

और जानवरों की आवाज भी निकालने लगता है। 

👉 8 महीने में बच्चा ध्वनियों को और अच्छी तरह समझने लगता है और लगता है और जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है जैसे-खाना, खेलना, घूमना तो वह सहमति में खुशी या या में खुशी या या दुख जाहिर करता है। 

👉 9 से 12 माह में अर्थ पूर्ण शब्द जैसे पापा, दादा, दादी, मामा आदि बोलने लगता है। 

👉 1 वर्ष तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और दो-तीन शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है।  जैसे- मम्मा पानी

👉 18 से 24 महीने में बच्चा दो तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है। 

Notes by Shivee Kumari

🌸🌸🌸🌸🌸

🌟🍁🌟🍁🌟 शैशवावस्था🌟🍁🌟🍁🌟

🌈 भाषा विकास:-

जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चे अपने बाद  पहुंचाते हैं

🪐 भूखे हैं

🪐 थके हैं 

🪐आराम महसूस नहीं कर रहे हैं 

🪐दर्द होने पर

🌸🌞🌸 यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है खास करके उन ध्वनियों को जिसे उनके माता-पिता या ध्यान रखने वाले उनके सामने प्रयोग करते हैं

🌸अगर बच्चे के चेहरे से 8 से 10 इंच की दूरी पर किसी शब्द का इस्तेमाल करता है तो बच्चे अपने मुख से उसे दोहराने की कोशिश करते हैं

💫🌸💫 2 से 3 महीने में बच्चे अपनी खुशियों या मन का इस्तेमाल करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगते हैं

जैसे:- अ, इ, उ 

💫🌸💫 3 से 4 महीने में बच्चा व्यंजन का भी प्रयोग करने लगता है

🌟जैसे:- ब, म, प आदि

💫🌸💫 4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द बोलता है

🌟जैसे:- गा, बा, पा आदि

💫🌸💫 जब बच्चा 5 महीने का होता है घरेलू भाषा /संगीत को समझने लगता है

💫🌸💫 7 महीने तक वह अर्थ वाले शब्द का इस्तेमाल करने लगता है जो उनके घरेलू भाषा में उनके सामने प्रयोग की जाती है

 जानवरों की आवाज भी निकालते हैं

💫🌸💫 8 महीने में बच्चा ध्वनि को और अच्छी तरह से समझने लगता है और जब बच्चे से कोई भी बात या शब्द पूछा जाता है अपने भावों द्वारा प्रदर्शित करता है

🌟जैसे:- खाना , खेलना, घूमना, वह अपनी सहमति सुख, दुख कर जाहिर करता है

🌟 हम देखते हैं जब बच्चे को घूमने के लिए कहते हैं तो वह खुश हो जाता है और खाने को कहने पर बच्चा मन उदास या रोने लगता है इस प्रकार अपनी सहमति व्यक्त करता है

💫🌸💫 9 से 12 महीने मैं बच्चा अर्थपूर्ण शब्द दो जैसे पापा,  मामा बोलने लगता है

1 साल तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और 2 से 3 शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है

💫🌸💫 18 से 24 महीने मे बच्चा 2 से 3 शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है

✍🏻✍🏻✍🏻notes by:- Menka patel ✍🏻✍🏻✍🏻

💫🌸💫🌸💫🌸💫🌸💫🌸💫🌸💫🌸💫🌸💫🌸

💫💫💫शैशवास्था 👼🏻💫💫💫

🗣️ भाषा विकास➖

जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चा अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाता है

🌻 भूखे है

🌻 थके हैं

🌻 आराम महसूस नहीं कर रहे हैं।

🌻 शरीर के किसी अंग में दर्द है।

तो वह ऊपर ही बताता है

यानी शिशु का प्रथम क्रंदन उसकी भाषा विकास की शुरुआत होती है।

🌻🌺 यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों 🗣️को समझना भी सीख जाता है खास करके उन ध्वनियों को जिससे उसके माता-पिता या ध्यान रखने वाले के सामने उपयोग करता है।

🌻🌸 अगर बच्चे के चेहरे से 8 से 10 इंच की दूरी पर किसी शब्द का इस्तेमाल होता है तो बच्चा उसे अपने मुख से दोहराने का प्रयास करता है।

💫🌺 2-3महीने में बच्चे अपनी खुशियों या मन का इस्तेमाल करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगता है।

💫🌸3-4 महीने का बच्चा व्यंजन का प्रयोग करने लगता है।

🌻🌸 4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द बोलता है।

💫🌺 5 महीने में बच्चा अपने घरेलू भाषा /संगीत समझने लगता है।

💫🌸7 महीने तक वह अर्थ वाले शब्द का इस्तेमाल करने लगता है जो उसके घरेलू भाषा में उसके सामने प्रयोग की जाती है और जानवरों की आवाज भी निकालने लगते हैं।

💫🌺8 महीने का बच्चा ध्वनि को और अच्छी तरह से समझने लगता है जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है जैसे खाना, घूमना, खेलना वह सहमति खुशी, दुख जाहिर करता है।

💫🌸 9 से 12 महीने में बच्चा अर्थ पूर्ण शब्द जैसे मामा ,पापा, चाचा ,दादा आदि शब्दों को बोलने लगता है।

💫🌺1 साल तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और 2 से 3 शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है।

💫🌸 18 से 24 महीने तक (2 साल)बच्चा दो तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है।

✍🏻📚📚 Notes by….

Sakshi Sharma📚📚✍🏻

🌺🌺🌻🌻🌻🌻🌺🌺

शैशवावस्था में भाषा का विकास

🌺🌺🌻🌻🌻🌻🌺🌺

👉जब बच्चे का जन्म होता है तो सबसे पहले वह रोता है। 

🔅रोने के माध्यम से अपनी बात दुसरो तक पहुचते है।

➡️भूख लगना।

➡️तकलीफ होना।

➡️पेट मे दर्द होना । आदि समस्याओं को वह रो कर बताने की कोशिश करते है।

👉यह भी सच्चाई है कि बच्चा शुरुआत मे ही ध्वनियों को समझने लगता है।

🔅खास कर उन ध्वनियों को जो उनके माता पिता के द्वारा या जो उनके ज्यादा करीब होते हैं। उनकी ध्वनियों को पहचानने लगता है।

🔅यदि बच्चे के चेहरे के 8-10 इंच के करीब किसी शब्दो का इस्तेमाल होता है। तो बच्चे अपने मुख से शब्द को दोहराने की कोशिश करते हैं।

👉 2 से 3 महीने में बच्चा अपनी खुशियो या मन को इस्तेमाल करने के लिए स्वर शब्दो  का इस्तेमाल करने लगता है।

👉3 से 4 महीने  में बच्चा व्यंजन का प्रयोग करने लगता है।

और 4 महीने के अंत मे वह स्वर और व्यंजन को जोड़ कर निरर्थक  शब्दो को बोलने लगता है।

👉 5 महीने में बच्चा घरेलू भाषा और संगीत की समझने लगता है।

👉7 महीने में बच्चा अर्थ वाले शब्दों को बोलने लगता है जो उसके आस पास बोली जाती है।

👉जानवरों की आवाज़ भी निकलते हैं।

👉8 महीने में बच्चा ध्वनियों को और अच्छे से समझने लगता है।👉जब कोई शब्द पूछा जाता है जैसे  – खाना, पीना ,खेलना ,घूमना अर्थात वह अपनी इच्छाओं को जाहिर करने लगता है। अपना दुख भी जाहिर करने लगता है।

👉9 से 12 महीने में अर्थपूर्ण शब्द बोलने लगता है।जैसे -मामा, पापा, नाना, बुआ आदि ।1 साल तक बच्चा और भी शब्दो से परिचित हो जाता है।और 2 3 शब्दो को जोड़ कर बोलना सिख जाता है।

👉18 से 24 महीने या शैशवावस्था के पूरे होने तक बच्चा 2 3 शब्दो को मिलाकर साधारण वाक्यो को बोलने लगता है।

🌻🌻🌺🌺Notes by Poonam sharma🌻🌻🌺🌺

💫शैशवास्था💫

🗣️ भाषा विकास:-

जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चा अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाता है

जैसे

1️⃣ जब बच्चा भूखा हो तो वह रोकर अपनी मां तक यह संदेश देने की कोशिश करता है कि वह भूखा है।

2️⃣ जब बच्चा थक जाता है तो वह रोता है इससे उसकी मां या उसके परिवार को समझ आ जाता है कि वह थक गया है।

3️⃣ जब बच्चा आराम महसूस नहीं कर रहा होता है

4️⃣ जब बच्चे के शरीर के किसी अंग में दर्द है।

तो वह रोकर ही बताता है।

🔆 यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है खास करके उन ध्वनियों को जिससे उसके माता-पिता या ध्यान रखने वाले के सामने उपयोग करता है।

🔅 अगर बच्चे के चेहरे से 8 से 10 इंच की दूरी पर किसी शब्द का इस्तेमाल होता है तो बच्चा उसे अपने मुख से दोहराने का प्रयास करता है।

🔅 2-3महीने में बच्चे अपनी खुशियों या मन का इस्तेमाल करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगता है।

🔅3-4 महीने का बच्चा व्यंजन का प्रयोग करने लगता है।

🔅 4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द बोलता है।

🔅 5 महीने में बच्चा अपने घरेलू भाषा /संगीत समझने लगता है।

🔅7 महीने तक वह अर्थ वाले शब्द का इस्तेमाल करने लगता है जो उसके घरेलू भाषा में उसके सामने प्रयोग की जाती है और जानवरों की आवाज भी निकालने लगते हैं।

🔅8 महीने का बच्चा ध्वनि को और अच्छी तरह से समझने लगता है जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है जैसे खाना, घूमना, खेलना वह सहमति खुशी, दुख जाहिर करता है।

🔅 9 से 12 महीने में बच्चा अर्थ पूर्ण शब्द जैसे मामा ,पापा, चाचा ,दादा आदि शब्दों को बोलने लगता है।

🔅1 साल तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और 2 से 3 शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है।

🔅 18 से 24 महीने तक का (2 साल)बच्चा दो तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है।

✍🏻Notes by raziya kha✍🏻

*शैशवास्था* 

📢 *भाषा विकास➖* 

जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चा अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाता है

✍️भूखे है

✍️ थके हैं

✍️आराम महसूस नहीं कर रहे हैं।

✍️शरीर के किसी अंग में दर्द है।

तो वह ऊपर ही बताता है

यानी शिशु का प्रथम क्रंदन उसकी भाषा विकास की शुरुआत होती है।

✍️ यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों 🗣️🙊👄को समझना भी सीख जाता है खास करके उन ध्वनियों को जिससे उसके माता-पिता या ध्यान रखने वाले के सामने उपयोग करता है।

✍️ अगर बच्चे के चेहरे से 8 से 10 इंच की दूरी पर किसी शब्द का इस्तेमाल होता है तो बच्चा उसे अपने मुख से दोहराने का प्रयास करता है।

✍️2-3महीने में बच्चे अपनी खुशियों या मन का इस्तेमाल करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगता है।

✍️3-4 महीने का बच्चा व्यंजन का प्रयोग करने लगता है।

✍️ 4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द बोलता है।

✍️ 5 महीने में बच्चा अपने घरेलू भाषा /संगीत समझने लगता है।

✍️7 महीने तक वह अर्थ वाले शब्द का इस्तेमाल करने लगता है जो उसके घरेलू भाषा में उसके सामने प्रयोग की जाती है और जानवरों की आवाज भी निकालने लगते हैं।

✍️8 महीने का बच्चा ध्वनि को और अच्छी तरह से समझने लगता है जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है जैसे खाना, घूमना, खेलना वह सहमति खुशी, दुख जाहिर करता है।

✍️ 9 से 12 महीने में बच्चा अर्थ पूर्ण शब्द जैसे मामा ,पापा, चाचा ,दादा आदि शब्दों को बोलने लगता है।

✍️1 साल तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और 2 से 3 शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है।

✍️ 18 से 24 महीने तक (2 साल)बच्चा दो तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है।

🧑‍⚕️Notes by Sharad Kumar patkar✍️

🔥🔥 शैशवावस्था🔥🔥

🌸  भाषा विकास🌸

✒️  जब बच्चे का जन्म होता है तो वह अपनी बात को रोने के माध्यम से दूसरों तक पहुंचाता है।

 👉भूख लगना 

👉थकना

👉 आराम महसूस नही करते है।

👉दर्द होने रोते है।

✒️ यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है खासकर के उन ध्वनियों को जिसे उसके माता-पिता या ध्यान रखने वाले उनसे सामने उपयोग करता है।

✒️ अगर बच्चे के चेहरे से 8 से 10 इंच की दूरी पर किसी शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो वह अपने मुख से उसी शब्द को दोहराने की कोशिश करते हैं।

👉 2 से 3 महीने में बच्चे अपनी खुशियां या मन का इजहार करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगते हैं।

🌸 3 से 4 महीने मैं बच्चा व्यंजन का प्रयोग भी करने लगता है तथा 4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द बोलता है।

🌸 5 महीने में बच्चा घरेलू भाषा और  संगीत समझने लगता है लगभग 7 महीने तक वह अर्थ वाले शब्दों का इस्तेमाल करने लगता है।

 वह जानवरों की आवाज भी निकालने लगते हैं।

🌸 8 महीने में बच्चा ध्वनि को और अच्छी तरह से समझने लगता है जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है,  चाहे वह खाने, खेलने या घूमने से संबंधित हो उसमें बच्चे अपनी सहमति खुशी या दुख से जाहिर करते हैं।

🌸 9 से 12 महीने मैं बच्चा अर्थपूर्ण शब्द जैसे मामा पापा दादा बोलने लग जाता है।

🌸 1 साल  तक बच्चे और शब्दों से भी परिचित हो जाते हैं और 2/3  शब्दों को  बोलने लगता है।

🌸  18 से 24 महीने में बच्चे दो या तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है।।

         🙏🙏🙏🙏🙏

NOTES BY

         SHASHI CHOUDHARY

       🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

🌸शैशवावस्था में भाषा विकास🌸

जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से अपनी बात को दूसरो तक पहुंचाते हैं;

जब बच्चे भूख लगती है तो वह रोना शुरू कर देता है;

जब बच्चा आराम महसूस नहीं करता तब भी वह रोने लगता है;

जब बच्चे को किसी प्रकार दर्द होता है तो वह उसे भी रो कर प्कट करता है;

जब बच्चे को थकान लगी रहती है,तब भी वह रो कर ही अपनी बात पहुंचाता है;

बच्चा बहुत सी दुनिया समझता है किंतु वे ज्यादातर वही दुनिया होती है जो उसके माता-पिता या उसका लालन-पालन करने वाला सदस्य प्रयोग करता है;

यह भी सच है कि शुरुआत के दिनों में (०-३ माह ) बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है (शब्द,वर्ण) खासकर उन दोनों को जैसे उनके माता-पिता या उनका  ध्यान रखने वाले ने उनके सामने उपयोग किया है।

अगर बच्चे के चेहरे से (८-१० इंच)की दूरी पर किसी शब्दों का इस्तेमाल होता है तो बच्चा अपने मुख से दोहराने की कोशिश करता है;

🧠२-३ माह – इस माह में बच्चे अपनी खुशियां या मन का इस्तेमाल करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगते हैं;

🧠३ – ४ माह -इस माह में बच्चा व्यंजन का प्रयोग करने लगता है;

🧠४-माह के अंत तक -इस माह के अंत में स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द बोलता है किंतु वे शब्द अर्थपूर्ण (निरर्थक) होते हैं;

जैसे÷आजा, अच्च, गागा , इत्यादि

🧠५-माह ÷इस माह में बच्चा घरेलू भाषा वा  संगीत सीखने लगता है;

🧠७ -माह÷इस माह में बच्चे अर्थ वाले शब्द का इस्तेमाल करने लगता है जो उनके घरेलू भाषा में उनके सामने प्रयोग किए जाते हैं और साथ ही साथ कुछ जानवरों की भी आवाज निकालने लगता है;

जैसे÷ची-ची , म्याऊं म्याऊं, भो-भो इत्यादि

🧠८ – माह ÷ इस माह में बच्चे धनिक और अच्छी तरह समझ लगता है वह जब बच्चे से कोई सबसे बात पूछी जाती है,

जैसे ÷ खाना, पीना, टहेलना ,खेलना , घूमना इत्यादि पूछने पर वह अपनी सहमति-खुशी- दुःख आदि जाहिर करता है;

🧠९ -१२ माह ÷इस माह में बच्चा अर्थपूर्ण शब्द का प्रयोग पूर्णता अच्छे ढंग से करने लगता है;

जैसे ÷मामा, चाचा, दादा, दीदी, पापा, मामा इत्यादि

🧠१-वर्ष तक ÷इस समय में बच्चा और भी शब्दों से 25 हो जाता है और 2 से 3 शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है;

🧠१८ – २४ माह÷ 2 से 3 शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है। 

😃थैंक यू😃

🔥Written by÷ Shikhar pandey🔥

शैशवावस्था में बच्चे का भाषाई विकास

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

शैशवावस्था में बच्चे का भाषाई विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है  :-

👉  “  जब बच्चे का जन्म होता है तो वह ‛ रोने के माध्यम से ’  सामने वालों तक अपनी बात पहुंचाते हैं। ”  जैसे :-

भूखे होंगे तो रोएंगे

थके होंगे तो रोएंगे

आराम महसूस नहीं कर रहे हैं तो भी रोएंगे

यदि उनके शरीर में कहीं दर्द हो रहा है तब भी रोएंगे उनको नींद लगी है / सोना है तब भी रोएंगे

वह ऐसे अपने अनेक कार्यों के लिए रोने के माध्यम से अपनी बात पहुंच जाते हैं।

🌻   अर्थात्  बच्चों का प्राम्भिक भाषाई विकास “ रोने ”      के माध्यम से ही होता है।  🌻

👉  यह भी सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है खासकरके उन ध्वनियों को जो उनके माता-पिता या परिवार वाले / ध्यान रखने वाले उनके सामने उपयोग करते हैं।

👉   अगर बच्चों के चेहरे से 8 – 10 इंच की दूरी पर किसी शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो बच्चा सुने हुये शब्दों को दोहराने की कोशिश करते हैं ।

               🌻  अतः इसीलिए हमें अन्य प्रकार की कोई भी नकारात्मक बातें बच्चों के सामने नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस नाजुक सी उम्र में इस कारण से उनके ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 🌻

 👉   2 – 3 महीने का बच्चा अपनी बात या खुशियों या मन के भावों को प्रकट करने के लिये ” स्वर ” का इस्तेमाल करता है  :-  अ , ई , ऐ आदि।

👉   3 – 4 माह का होने पर बच्चा ” व्यंजन ” का प्रयोग करने लगता है।

 👉    4 महीने के अंत तक बच्चा ” स्वर और व्यंजन ” को मिलाकर बिना अर्थ के शब्द बोलने लगता है जैसे  :-  गगा ,  मम आदि।

👉   5 महीने का होने पर बच्चा अपनी घरेलू भाषा / संगीत को समझने लगता है।

             🌻 अतः जब बच्चा अपनी घरेलू भाषा समझने लगता है तब हमें विभिन्न प्रकार की भाषाओं को मिश्रित प्रयोग न करके किसी एक निश्चित मातृभाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि बच्चा भ्रमित न हो कर बल्कि कोई एक भाषा सीख सके। 🌻

👉   7 महीने तक बच्चा अर्थ वाले शब्द का इस्तेमाल करने लगता है जो उनके घरेलू भाषा में उनके सामने प्रयोग किए जाते हैं तथा इसी समय बच्चा जानवरों की आवाज भी निकालने लगता है।

👉  8 महीने में बच्चा ध्वनियों को और अच्छी तरह से समझने लगता है तथा जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है या किसी बात के प्रति उनकी प्रतिक्रिया ली जाती है जैसे  :-   खाना खाओगे , घूमने चलोगे आदि तब वह अपना दुख – मनाही या खुशी – इच्छा, स्वीकृति एक संकेतात्मक ध्वनियों के रूप में जहिर करने लगता है।

👉  9 – 12 महीनों में वह बच्चा अर्थपूर्ण शब्द बोलने लगता है जैसे :- मामा , पापा , दादा आदि।

👉  1 साल के अंत तक बच्चा और भी अनेक शब्दों से परिचित हो जाता है तथा 2 – 3 शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है जैसे  :-  आ जाओ,  खाना दो आदि।

👉  18 – 24 महीनों तक बच्चा  2 – 3  शब्दों को      मिलाकर साधारण वाक्य बनाकर बोलने लगता है।

✍️  Notes by – जूही श्रीवास्तव  ✍️

शैशवास्था मे भाषा विकास

जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चे अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाते हैं।

जैसे भूख ,थकान ,आराम महसूस नहीं करना, दर्द आदि को रो कर व्यक्त करते हैं।

यह सच्चाई है कि शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना सीख जाता है।

खासकर उन ध्वनियों को जिसे उनके माता-पिता या ध्यान रखने वाले उनके सामने उपयोग करते हैं।

अगर बच्चे के चेहरे से 8 से 10 इंच की दूरी पर किसी शब्दों का इस्तेमाल होता है तो बच्चा अपने मुख से शब्दों को दोहराने की कोशिश करता है।

2 से 3 महीने में बच्चे अपनी खुशियों या मन का इस्तेमाल करने के लिए स्वर का इस्तेमाल करने लगते हैं।

अ आ  ऊ ऊ

3 से 4 महीने में बच्चा व्यंजन का प्रयोग करने लगता है।

ग ब क

4 महीने के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्द ( शब्द निरर्थक होता है।) बोलता है।

गा अगू चा दा मां

5 महीने में बच्चा घरेलू भाषा और संगीत समझने लगता है।

7 महीने तक वह अर्थ वाले शब्दों का इस्तेमाल करने लगता है ( परिचित लोगों द्वारा बोले जाने वाले शब्दों को दोहराता है। )जो उनकी घरेलू भाषा में उनके सामने प्रयोग किए जाते हैं और जानवरों की आवाजें भी निकालने लगता हैं। 

8 महीने में बच्चा ध्वनि को और अधिक तरह से समझने लगता है जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है जैसे खाना, खेलना, घूमना आदि को वह सहमति ,खुशी ,दुख मे जाहिर करने लगता है।

9 से 12 महीने में अर्थपूर्ण शब्द जैसे मामा ,पापा, दादा बोलने लगता है।

1 साल तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और दो से तीन शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है।

18-24 महीने में बच्चा दो तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है।

Notes by Ravi kushwah

*🔆शैशवावस्था में भाषा विकास* 

*(language development in infancy stage)* 

 ✓जब बच्चे का जन्म होता है तो रोने के माध्यम से बच्चें अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं-

जैसे- भूख लगने पर रोने लगता है।

 -थके होने पर रोता है

– आराम महसूस नहीं कर पाते तब भी रोते हैं

– दर्द होने पर रोना, आदि

✓ शुरुआत के दिनों में बच्चा ध्वनियों को समझना भी सीख जाता है, 

 खास करके उन ध्वनियों को जिसे उसके माता-पिता या ध्यान रखने वाले उसके सामने प्रायोग करते हैं। 

✓ अगर बच्चे के चेहरे से 8-10 इंच की दूरी पर  किन्हीं शब्दों का प्रयोग होता है तो बच्चा अपने मुंह से दोहराने की कोशिश करता है। 

✓ जब बच्चा 2 से 3 माह का होता है तब अपनी खुशियां या मन को व्यक्त करने के लिए स्वर का प्रयोग करने लगता है। 

✓ 3 से 4 माह में बच्चा व्यंजन वर्णों का प्रयोग करने लगता है। 

✓ 4 माह के अंत तक बच्चा स्वर और व्यंजन वर्णों को मिलाकर शब्द  बोलने लगता है। 

✓ 5 माह में बच्चा घरेलू भाषा भाषा भाषा एवं संगीत समझने लगता है। 

✓ 7 माह तक बच्चा अर्थ वाले शब्द का प्रयोग करने लगता है जो उसकी घरेलू भाषा में उसके सामने प्रयोग किए जाते हैं। 

और जानवरों की आवाज भी निकालने लगता है। 

✓ 8 माह में बच्चा ध्वनियों को और अच्छी तरह समझने लगता है और लगता है और जब बच्चे से कोई शब्द पूछा जाता है जैसे-खाना, खेलना, घूमना तो वह सहमति में खुशी या या में खुशी या या दुख जाहिर करता है। 

✓ 9 से 12 माह में अर्थ पूर्ण शब्द जैसे पापा, दादा, दादी, मामा आदि बोलने लगता है। 

✓ 1 वर्ष तक बच्चा और भी शब्दों से परिचित हो जाता है और दो-तीन शब्दों को जोड़कर बोलने लगता है।  जैसे- मम्मा पानी

✓ 18 से 24 माह या डेढ़ वर्ष या दो वर्ष  में बच्चा दो तीन शब्दों को मिलाकर साधारण वाक्य बनाने लगता है। 

✍🏻

*Notes by – Vaishali Mishra*

#4. CDP – Stages of Child Development- Pregnancy and Physical development in Infancy

*🌸 विकास की अवस्थाएं🌸*

 (stages of development) 

*9 february 2021*

१. *गर्भावस्था*( गर्भधारण से जन्म तक) 

👉🏻यह अवस्था गर्भधान से 9 महीने या 280 दिन तक होती है। 

👉🏻 इस अवस्था में विकास की गति तीव्र ( सभी अवस्थाओं की अपेक्षा) होती है। 

👉🏻 शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है। 

👉🏻 इस अवस्था में मुख्यतः होने वाले परिवर्तन शारीरिक होते हैं

२. *शैशवावस्था(0-2 वर्ष)*

*शैशवावस्था में शारीरिक विकास*:-

👉🏻 इस अवस्था में विभिन्न तरीके से बेहद तेजी से विकास होता है। 

👉🏻 बच्चा वातावरण को समझने लगता है। 

👉🏻 इस अवस्था में बच्चा शरीर का उपयोग करना सीख जाता है। 

👉🏻 इस अवस्था में बच्चा सबसे पहले 2 से 3 माह में सिर को हाथ व पैरों के बल ऊपर उठाना सीखता है। 

👉🏻 उसके बाद 4 माह में ऊपर जाने की कोशिश करता है।

👉🏻 4 से 5 माह की उम्र में बच्चा खिलौने की समझ रखने लगता है। 

👉🏻 फिर 6 माह में बच्चा बैठना सीख जाता है। 

👉🏻 इसके बाद 8 माह में बच्चा हाथ व पैर के बल घुरकना या सरकना सीख जाता है। 

👉🏻 उसके बाद 10 माह में बच्चा खड़ा होना सीख जाते हैं। 

👉🏻 9 से 12 माह में दो उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगते हैं, बजाय पूरे हाथ के। 

👉🏻 10 से 12 माह में बच्चा चलने लगता है। 

👉🏻 15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियों  या कुर्सी पर चढ़ना सीख जाता है लेकिन उतर नहीं पाता है। 

👉🏻 18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे बच्चा आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है। 

👉🏻 जब बच्चे 2 वर्ष के हो जाते हैं तो उनमें और भी क्षमता विकसित हो जाती है.

 जैसे- सामान फेंकना, पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना-कूदना, घूमना, दौड़ना सब सीख जाता है.

Notes by Shivee Kumari

🌻🌻बाल विकास की अवस्थाएं🌻🌻

🌻(Stages of Child Development)

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻09,feb2021🌻

➡️बाल विकास की अवस्थाएं मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं ⤵️

🤰गर्भावस्था : गर्भाधान से 9 माह (280 दिन)

🚼शैशवावस्था/संवेदी पेशी अवस्था : 0 से 2 वर्ष तक

🤽बाल्यावस्था/पूर्व संक्रियात्मक अवस्था : 2 से 6 वर्ष

🤼उत्तर बाल्यावस्था/मूर्त संक्रियात्मक अवस्था : 6 से 12 वर्ष

🏇किशोरावस्था/अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था : 12 से 18 वर्ष

✨ गर्भावस्था

↪️ यह अवस्था गर्भाधान से 9 महीने अथवा 280 दिन तक मानी जाती है। इस 9 महीने में बालक का विकास 3+3+3 महीने में शरीर के अलग-अलग भागों का विकास होता है।

↪️ इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है।

↪️ शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है।

↪️ इस अवस्था में मुख्य रूप से शारीरिक परिवर्तन होता है।

✨शैशवावस्था (Infancy) – 0 से 2 वर्ष

↪️⚡ शारीरिक विकास(physical development)

🚼इसमें बालक का शारीरिक विकास विभिन्न तरीके से और बेहद तेजी से होता है।

🚼 इस अवस्था में बालक वातावरण को समझने लगता है।

🚼 इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास होता है तथा बालक समायोजन करना सीख जाता है।

🚼 इस अवस्था में बालक अपने शरीर का उपयोग करना सीख जाता है।

🚼 इस अवस्था में बालक जब 2 से 3 माह का होता है तो सबसे पहले सिर उठाना सीखता है।

🚼 4 महीने में बालक ऊपर जाने की कोशिश करता है।

🚼 6 महीने में बालक बैठना सीख जाता है।

🚼 10 महीने मैं बालक खड़ा होने लगता है।

🚼 10 से 12 माह में बच्चा चलने लगता है।

🚼 4 से 5 माह में बालक खिलौनों की समझ रखने लगता है।

🚼 9 से 12 महीने में बालक दो उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगते हैं बजाए पूरे हाथ पाव के।

🚼 15 महीने के करीब बालक सीढ़ियों या कुर्सी पर चढ़ना सीख जाता है लेकिन उत्तर नहीं पाता।

🚼 18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे बालक आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है।

🚼 जब बच्चे 2 साल के हो जाते हैं तो और भी क्षमता का विकास हो जाता है; और इस अवस्था में बच्चा सामान फेंकना, पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना, कूदना, घूमना, दौड़ना सब सीख जाता है।🔚

📝📝🥀नोट्स by अवधेश कुमार🥀🙏

🌸🌸 *बाल विकास की अवस्थाएं*⬇️

*(STAGE OF DEVELOPMENT)*

 *वर्ष* ➖➖➖ *अवस्था*

*गर्भाधान से 9 महीना  गर्भावस्था*

*0-2* *वर्ष*

*शैशवावस्था (संवेदी पेशीय अवस्था)*

*2-6* *वर्ष*

 *पूर्व बाल्यावस्था (पूर्व संक्रियात्मक)*

*6 -12* *वर्ष*    

 *उत्तर बाल्यावस्था( मूर्त संक्रियात्मक)*

*12-18* *वर्ष*    

*किशोरावस्था(अमूर्त या औपचारिक अवस्था)*

*1> गर्भावस्था*🤰🤰🤰🤰

*● यह अवस्था गर्भाधान से 9 महीने तक मानी जाती है या 280 दिन तक मानी जाती है।*

● *गर्भावस्था के विकास को तीन चरणों में बांटा जाता है-*

*0➖➖3➖➖➖➖6➖➖➖9*

● 0 निषेचन का समय होता है उसी समय जीन और लिंग निर्धारण हो जाता है।

● प्रथम तीन माह में अंगों का विकास होना शुरू हो जाता है।

● इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है।

● शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है।

 *2> शैशवावस्था*🤱🤱🤱🤱

 *0 से 2 वर्ष*

● शैशवावस्था में विभिन्न तरीके से बेहद तेजी से विकास होता है।

● इस अवस्था में बहुत ही ज्यादा परिवर्तन होते हैं ।

●इस अवस्था में बच्चे से कुछ -कुछ  समय पर मुलाकात की जाती है तो बच्चों में कुछ नया देखने को मिलता है।

 ●बच्चा वातावरण को समझता है ।

●शरीर का विकास और समायोजन होता है।

● शरीर का उपयोग करना सीख जाता है।

★ 2 से 3 महीने का बच्चा सबसे पहले सिर को ऊपर उठाना सीखता है ।

★4 से 5 महीने का बच्चा ऊपर की तरफ जाने की कोशिश करता है।

★ 6 माह का बच्चा बैठना सीख जाता है ।

★8 माह का बच्चा घुटनों और कोहनी के के बल से रेंगकर चलना सीख जाता है।

★ 10 माह का बच्चा खड़ा होने लगता है ।

★10 से 12 माह का बच्चा चलना सीख जाता है।

★ 4 से 5 महीने का बालक  खिलौने की समझ रखने लगता है ।

★9 से 12 महीने  का बालक दो उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगाता है बजाय पूरे हाथ  के।

★15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियों या कुर्सी पर चढ़ना सीख तो जाते हैं लेकिन उतर नहीं पाते हैं ।

★18 महीने के करीब बच्चा शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है ।

★जब बच्चे 2 साल के हो जाते हैं तो उनमें और भी क्षमता का विकास हो जाता है जैसे सामान  फेंकना ,पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना, कूदना,  घूमना ,दौड़ना सब सीख जाते हैं।

🖋️🖋️ *Anand Chaudhary* 📋📋

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

🌺 बाल विकास की अवस्थाएं

(STAGES OF DEVELOPMENT)🌺

1-गर्भावस्था🤰🏼(गर्भधारण से जन्म तक)

👉🏼 यह अवस्था गर्भधारण से 9 महीने (280 days) तक मानी जाती है।

👉🏼 इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है।

👉🏼 शरीर में सभी अंगों की संरचना और आकृतियों का निर्माण होता है।

👉🏼 इस अवस्था में मुख्यत: होने वाले परिवर्तन शारीरिक हैं।

2-शैशवास्था (0-2 वर्ष)

🌸शैशवास्था मैं शारीरिक विकास (Physical development)➖

👉🏼 इस अवस्था में विभिन्न तरीकों से बेहतर तेजी से विकास होता है।

👉🏼 बच्चा वातावरण से समझने लगता है।

👉🏼 शरीर का उपयोग करना सीख जाता है।

👉🏼 इस अवस्था में बच्चा सबसे पहले 2 से 3 महीने तक में अपना सिर ऊपर उठाना सीखता है।

👉🏼 4 महीने में बच्चा ऊपर जाने की कोशिश करता है।

👉🏼 6 महीने में बच्चा बैठना सीख जाता है।

👉🏼 8 महीने में बच्चा घुटने के बल सरकना सीख जाता है।

👉🏼10 से 12 महीने में बच्चा चलने लगता है।

👉🏼 बच्चे 4 से 5 महीने की उम्र में खिलौने की समझ रखने लगते हैं।

👉🏼9 से 12 महीने में दो उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगता है बजाय पूरे हाथ से नहीं पकड़ता।

👉🏼15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियों या कुर्सी पर चलना सीख जाता है लेकिन उतर नहीं पाता है।

👉🏼18 महीने के करीब सारी विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है।

👉🏼 जब बच्चा 2 साल का हो जाता है तो उसमें और भी क्षमता विकसित हो जाती है जैसे सामान फेंक ना, पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना, कूदना, घूमना, दौड़ना सब सीख जाता है।

✍🏻📚📚 Notes by…… Sakshi Sharma📚✍🏻

🌺बाल विकास की अवस्थाए🌺(Stages of child development)

👉 गर्भावस्था (0-9)🌺

यह प्रसव से पहले की अवस्था है।

इसे सुरुआत के तीन – तीन भागों में बाटा जाता है।

इस अवस्था मे विकास तीब्र होता है।

शरीर के सभी अंगों की रचना तथा आकृतियों के निर्माण होता है।( इस अवस्था मे माता का पोषण ,अच्छी साहित्य पढ़ना , तनाव मुक्त होना जरूरी होता है।)

🌺👉शैशवावस्था(0-2वर्ष)

🌸इस अवस्था मे बच्चे का शारीरिक विकास बहुत तेज़ी से होता है।

🔅इस अवस्था मे बच्चा अपने आस पास के वातावरण को समझने लगता है।

🔅शरीर का विकास और समायोजन करना सीख लेता है।

🌻(2-3 महीने में बच्चा पेट के बल लेटकर सिर उठाना सिख जाता है।)

🌻4 महीने में बच्चा ऊपर जाने की कोशिश करने लगता है।

🌻6 महीने में बच्चा बैठना सीख जाता है।

🌻8 महीने में घुटने के बल चलने लगता है।

🌻10 महीने में बच्चा खड़ा होना सिख लेता है।

🌻10-12 महीने में बच्चा चलने लगता है।

🌺🌺शैशवावस्था में बच्चे में और भी परिवर्तन होते हैं।🌺🌺

👉बच्चे में 4 5 महीने में खिलौने की समझ आ जाती है। बच्चा खिलौनों से खेलने लगता है।

👉9-12 महीने में बच्चा दो  उंगलियो से चीज़ों को पकाने लगता है बजाय पूरे हाथ के।

👉15 महीने के करीब बच्चा सीढियो या कुर्शी पर चढ़ना सीख लेता है लेकिन उतर नही पाता।

👉18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है। वह आसानी से इधर उधर घूमने लगता है।

👉जब बच्चा 2 साल का हो जाता है तब इसमे और भी  ज्यादा क्षमता विकसित हो जाती है।(जैसे – समान इधर उधर फेकना ,लात से चीज़ों धक्का देना , दौड़ना ,उछालना ,कूदना आदि क्रियाये करने लगता है।)

🌻🌺Notes by Poonam sharma🌻🌺

Stages of child development

0 – 2 year- शैशवास्था (संवेदी पेशीय)

2 – 6 year- पूर्व बाल्यावस्था , पूर्व संक्रियात्मक अवस्था

6 – 12 year – उत्तर बाल्यावस्था ,मूर्त संक्रियात्मक

12 – 18 year – किशोरावस्था ,अमूर्त संक्रियात्मक , औपचारिक अवस्था)

           🔥   गर्भावस्था 🔥

यह अवस्था गर्भाधान से 9 महीने (280 Days)

तक मानी जाती है।

इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है;

शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है;

इस अवस्था में मुख्यता होने वाले परिवर्तन शारीरिक होते हैं;

         🔥  शैशवावस्था। 🔥

शारीरिक विकास ( Physical Development)

विभिन्न तरीकों से बहुत तेजी से विकास होता है;

वातावरण को समझना शुरू हो जाता है;

शरीर का विकास और समायोजन शुरू हो जाता है;

शरीर का उपयोग करना सीख जाता है;

2 – 3 Month- सबसे पहले से ऊपर उठाना;

4 – Month- ऊपर उठने,की कोशिश करता है;

6 – Month- बैठना ,लुढ़कना सीख जाता है;

8 – Month – घुरकना( रेंगना );

10- Month -खड़े होना शुरू कर देता है;

11 – 12 Month -चलना प्रारंभ कर देता है;

बच्चे चार-पांच (4- 5 month) महीने की उम्र में खिलौना की समझ रखने लगता है;

9 से 12 महीने में बच्चे दो उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगता है बजाय पूरे हाथ से पकड़ने के;

15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियों या कुर्सियों पर चढ़ना सीख जाता है लेकिन उत्तर नहीं पाता है;

18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है

जब बच्चे 2 साल के हो जाते हैं तो उनमें और क्षमता विकसित हो जाती है;

                  जैसे-सामान फेंकना कूदना पैरों से चीजों को धकेलना घूमना दौड़ना इत्यादि सब सीख जाता है।

Thank you 

Written by shikhar pandey

🌺बाल विकास की अवस्थाए🌺(Stages of child development)🌺🌻

👉🌺शैशवावस्था 0-2

👉🌺पूर्व संक्रियावास्था2-6

👉🌺मूर्त संक्रियावास्था 6-12

👉🌺अमूर्त संक्रियावास्था 12-18

👉 गर्भावस्था (0-9)🌺

यह प्रसव से पहले की अवस्था है।

इसे सुरुआत के तीन – तीन भागों में बाटा जाता है।

इस अवस्था मे विकास तीब्र होता है।

शरीर के सभी अंगों की रचना तथा आकृतियों के निर्माण होता है।( इस अवस्था मे माता का पोषण ,अच्छी साहित्य पढ़ना , तनाव मुक्त होना जरूरी होता है।)

🌺👉शैशवावस्था(0-2वर्ष)

🌸इस अवस्था मे बच्चे का शारीरिक विकास बहुत तेज़ी से होता है।

🔅इस अवस्था मे बच्चा अपने आस पास के वातावरण को समझने लगता है।

🔅शरीर का विकास और समायोजन करना सीख लेता है।

🌻(2-3 महीने में बच्चा पेट के बल लेटकर सिर उठाना सिख जाता है।)

🌻4 महीने में बच्चा ऊपर जाने की कोशिश करने लगता है।

🌻6 महीने में बच्चा बैठना सीख जाता है।

🌻8 महीने में घुटने के बल चलने लगता है।

🌻10 महीने में बच्चा खड़ा होना सिख लेता है।

🌻10-12 महीने में बच्चा चलने लगता है।

🌺🌺शैशवावस्था में बच्चे में और भी परिवर्तन होते हैं।🌺🌺

👉बच्चे में 4 5 महीने में खिलौने की समझ आ जाती है। बच्चा खिलौनों से खेलने लगता है।

👉9-12 महीने में बच्चा दो  उंगलियो से चीज़ों को पकाने लगता है बजाय पूरे हाथ के।

👉15 महीने के करीब बच्चा सीढियो या कुर्शी पर चढ़ना सीख लेता है लेकिन उतर नही पाता।

👉18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है। वह आसानी से इधर उधर घूमने लगता है।

👉जब बच्चा 2 साल का हो जाता है तब इसमे और भी  ज्यादा क्षमता विकसित हो जाती है।(जैसे – समान इधर उधर फेकना ,लात से चीज़ों धक्का देना , दौड़ना ,उछालना ,कूदना आदि क्रियाये करने लगता है।)

🌻🌺Notes by Poonam sharma🌻🌺

बाल विकास की अवस्थाएं

भ्रूण के निर्माण से जन्म तक (0-9 महीने)- गर्भावस्था

(0-2 वर्ष)- शैशवास्था/संवेदीपेशीय अवस्था

(2-6 वर्ष)- पूर्व बाल्यावस्था/ पूर्व संक्रियात्मक अवस्था

(6-12 वर्ष)- उत्तर बाल्यावस्था/ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

(12-18 वर्ष)- किशोरावस्था /अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था/ औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था

1.गर्भावस्था

भ्रूण के निर्माण से जन्म तक (0-9 महीने)

यह अवस्था गर्भाधान से 9 महीने या 280 दिन तक मानी जाती है 

इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है 

शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है 

इस अवस्था में मुख्यतः होने वाले परिवर्तन शारीरिक है।

जब भ्रूण का निर्माण होता है तो उसी समय अनुवांशिक गुण  आ जाते हैं।

यह अनुवांशिक(जीन) गुण एक बार आ जाने के पश्चात नहीं बदलते हैं।

यह अवस्था 0-3,3-6,6-9 महीनो मे होती है।

यहां शैशवास्था से भी विकास की दर तीव्र होती हैं।

2. शैशवास्था (0-2 वर्ष)

इस अवस्था में विभिन्न तरीके से बेहद तेजी से विकास होता है।

इसमें बालक  वातावरण को समझना शुरू कर देता है।

शरीर का विकास और समायोजन शुरू हो जाता है

शरीर का उपयोग करना सीख जाता है।

1. सबसे पहले सिर ऊपर उठाना सीखता है( 2 से 3 महीने तक)

2. ऊपर जाने की कोशिश करता है (4 महीने तक)

3. बैठना सीख जाता है (6 महीने तक)

4. घुरकना या रेंगना सीख जाता है( 8 महीने तक)

5. खड़े होना (10 महीने तक)

6. 10 से 12 महीने तक चलने लगता है।

बच्चे चार-पांच महीने की उम्र में खिलौने की समझ रखने लगते हैं

9 से 12 महीने में दो अंगुलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगते हैं बजाय पूरे हाथ के।

15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियां या कुर्सी पर चढना सीख जाता है लेकिन उत्तर नहीं पाते हैं

18 महीने की करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है

जब बच्चे 2 साल के हो जाते हैं तो उनमें और भी क्षमता का विकास हो जाता है

सामान फेंकना, पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना, कूदना, घूमना ,दौड़ना आदि सब सीख जाता है।

Notes by Ravi kushwah

*बाल विकास की अवस्थाएं* 

🚸भ्रूण के निर्माण से जन्म तक (0-9 महीने)- गर्भावस्था

(0-2 वर्ष)- शैशवास्था/संवेदीपेशीय अवस्था

(2-6 वर्ष)- पूर्व बाल्यावस्था/ पूर्व संक्रियात्मक अवस्था

(6-12 वर्ष)- उत्तर बाल्यावस्था/ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

(12-18 वर्ष)- किशोरावस्था /अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था/ औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था

1. *गर्भावस्था* 

भ्रूण के निर्माण से जन्म तक (0-9 महीने)

यह अवस्था गर्भाधान से 9 महीने या 280 दिन तक मानी जाती है 

इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है 

शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है 

इस अवस्था में मुख्यतः होने वाले परिवर्तन शारीरिक है।

जब भ्रूण का निर्माण होता है तो उसी समय अनुवांशिक गुण  आ जाते हैं।

यह अनुवांशिक(जीन) गुण एक बार आ जाने के पश्चात नहीं बदलते हैं।

यह अवस्था 0-3,3-6,6-9 महीनो मे होती है।

यहां शैशवास्था से भी विकास की दर तीव्र होती हैं।

2. *शैशवास्था (0-2 वर्ष)* 

इस अवस्था में विभिन्न तरीके से बेहद तेजी से विकास होता है।

इसमें बालक  वातावरण को समझना शुरू कर देता है।

शरीर का विकास और समायोजन शुरू हो जाता है

शरीर का उपयोग करना सीख जाता है।

1. सबसे पहले सिर ऊपर उठाना सीखता है( 2 से 3 महीने तक)

2. ऊपर जाने की कोशिश करता है (4 महीने तक)

3. बैठना सीख जाता है (6 महीने तक)

4. घुरकना या रेंगना सीख जाता है( 8 महीने तक)

5. खड़े होना (10 महीने तक)

6. 10 से 12 महीने तक चलने लगता है।

बच्चे चार-पांच महीने की उम्र में खिलौने की समझ रखने लगते हैं

9 से 12 महीने में दो अंगुलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगते हैं बजाय पूरे हाथ के।

15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियां या कुर्सी पर चढना सीख जाता है लेकिन उत्तर नहीं पाते हैं

18 महीने की करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है

जब बच्चे 2 साल के हो जाते हैं तो उनमें और भी क्षमता का विकास हो जाता है

सामान फेंकना, पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना, कूदना, घूमना ,दौड़ना आदि सब सीख जाता है।

Notes by Sharad Kumar patkar

🌻🌻  बालविकास की अवस्थायें  🌻🌻

                0  –  9   माह

भ्रूण के निर्माणकाल से जन्म तक –  गर्भावस्था

               0  –  2   वर्ष

संवेदीपेशीय अवस्था  /  शैशवावस्था 

              2   –   6  वर्ष

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था / पूर्व बाल्यावस्था

           6  –  12   वर्ष

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था   /  उत्तर बाल्यावस्था 

         12  –   18    वर्ष

अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था  /  औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था  /   किशोरावस्था

 गर्भावस्था  [  0 – 9 माह  ] 

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

यह अवस्था गर्भाधान से [ 40 सप्ताह  /  280 दिन लगभग  /   9 माह ]   तक मानी जाती है।

यह अवस्था [ 0 – 3 ,  3 – 6 ,  6 – 9 ] माह की समयावधि में पूर्ण होती है ।

इस अवस्था में विकास की गति शैशवावस्था की अपेक्षा भी तीव्र होती है।

शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है।

इस अवस्था में मुख्यतः होने वाले परिवर्तन शारीरिक होते हैं।

इसी अवस्था में  [ fertilization  निषेचन ] के दिन ही लिंग निर्धारण , आनुवंशिक गुण निर्धारित हो जाते हैं जो कि फिर किसी भी कारण कभी नहीं बदलते हैं।

यह अवस्था पूर्ण रूप से ही बेहद संवेदी अवस्था होती है विशेषतः  0  – 3  माह  औऱ  6  – 9  माह ।

इस अवस्था में माँ के आसपास पूर्णतः सकारात्मकता 

/  खुशी – प्रसन्नता का वातावरण होना चाहिये, माँ को संतुलित पोषण आहार ग्रहण करना चाहिये , धार्मिक ग्रंथ – ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़नी चाहिये औऱ स्वयं माँ को सकारात्मक सोच रखनी चाहिये  ताकि एक स्वस्थ्य , संस्कारी , ज्ञानवान बच्चा पैदा हो सके ।

🌸  शैशवावस्था  Infancy.  [ 0  –  2   वर्ष ] 🌸

शैशवावस्था में शारीरिक विकास  :-

💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥

शैशवावस्था में विभिन्न तरीके से बेहद तीव्र गति से शारीरिक विकास होता है।

इस अवस्था में बच्चा वातावरण को समझने में अपनी समझ का उपयोग करता है , अपने शरीर का विकास और वातावरण के साथ समायोजन करता है।

🏵️ इस अवस्था में बच्चा अपने शरीर का उपयोग करना सीख जाते हैं जैसे   :-

2 – 3 माह :-  में बच्चा सबसे पहले पेट के बल लेटकर सिर उठाना सीखता है।

4 माह :- में बच्चा ऊपर उठने की कोशिश करता है।

6 माह :-  में बच्चा बैठना सीख जाता है। 

8 माह :- में बच्चा घुटने के बल चलना सीख जाता है।

10 माह :- में बच्चा खड़े होना सीख जाता है।

10 –  12  माह :-  में बच्चा चलने लगता है ।

इस अवस्था में बच्चे 4 – 5  महीने की उम्र में खिलौने की समझ रखने ( खेलने लगते)  हैं, अतः इसी अवस्था को ” ” खिलौनों की उम्र ” कहा जाता है।

9 – 12 महीनों में बच्चा 2 उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगता हैं बजाय पूरे हाथ के।

15 महीनों के करीब बच्चे सीढ़ियों या कुर्सियों पर चढ़ना सीख जाता है लेकिन उत्तर नहीं पाता है।

18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे आसानी से बच्चे इधर उधर चढ़ने उतरने,  घूमने फिरने लगते हैं।

जब बच्चे 2 साल के हो जाते हैं तो उनमें और भी क्षमता का विकास हो जाता है जैसे सामान फेंकना , पैरों से चीजों को धकेलना , उछलना – कूदना , घूमना – दौड़ना आदि सब सीख जाते हैं।

🌹Notes by – जूही श्रीवास्तव🌹

*❇️ विकास की अवस्थाएं*

 (stages of development) 

1 *गर्भावस्था*( गर्भधारण से जन्म तक) 

✓यह अवस्था गर्भधान से 9 महीने या 280 दिन तक होती है। 

 ✓इस अवस्था में विकास की गति तीव्र ( सभी अवस्थाओं की अपेक्षा) होती है। 

✓ शरीर के सभी अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है। 

✓इस अवस्था में मुख्यतः होने वाले परिवर्तन शारीरिक होते हैं

2. *शैशवावस्था(0-2 वर्ष)*

*शैशवावस्था में शारीरिक विकास*:-

✓ इस अवस्था में विभिन्न तरीके से बेहद तेजी से विकास होता है। 

✓ बच्चा वातावरण को समझने लगता है। 

✓इस अवस्था में बच्चा शरीर का उपयोग करना सीख जाता है। 

✓ इस अवस्था में बच्चा सबसे पहले 2 से 3 माह में सिर को हाथ व पैरों के बल ऊपर उठाना सीखता है। 

✓ उसके बाद 4 माह में ऊपर जाने की कोशिश करता है।

✓4 से 5 माह की उम्र में बच्चा खिलौने की समझ रखने लगता है। 

✓ फिर 6 माह में बच्चा बैठना सीख जाता है। 

✓ इसके बाद 8 माह में बच्चा हाथ व पैर के बल घुरकना या सरकना सीख जाता है। 

✓ उसके बाद 10 माह में बच्चा खड़ा होना सीख जाते हैं। 

✓9 से 12 माह में दो उंगलियों के बीच कुछ पकड़ने की क्षमता रखने लगते हैं, बजाय पूरे हाथ के। 

✓ 10 से 12 माह में बच्चा चलने लगता है। 

✓15 महीने के करीब बच्चा सीढ़ियों  या कुर्सी पर चढ़ना सीख जाता है लेकिन उतर नहीं पाता है। 

✓ 18 महीने के करीब शारीरिक विकास ज्यादा मजबूत हो जाता है जिससे बच्चा आसानी से इधर-उधर घूमने लगता है। 

✓ जब बच्चे 2 वर्ष के हो जाते हैं तो उनमें और भी क्षमता विकसित हो जाती है.

 जैसे- सामान फेंकना, पैरों से चीजों को धकेलना, उछलना-कूदना, घूमना, दौड़ना सब सीख जाता है.

✍️

*Notes by – Vaishali Mishra*

#3. CDP – Concepts and traditional views regarding child development

बाल विकास के संबंध में प्रचलित धारणाएं और परंपरागत विचार

🌻🌻🌻🌻🌻🌻08 Feb 2021🌻🌻

1️⃣💫बालक प्रौढ़ व्यक्ति का लघु रूप है : समाज में अक्सर लोग बालक से अपनी भावनाओं इच्छा और महत्वाकांक्षा के जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखने लगते हैं और इन उम्मीदों के पूरा ना होने पर दु:खी होते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का खंडन – बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।

2️⃣💫 बालक के जन्म के संबंध में धारणा : समाज में अक्सर धारणाएं देखी जाती है कि शिशु –

 👉शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं, उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी रहता है।

👉 उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

👉 भाग्यशाली बालक मानकर ज्यादा लाड़-प्यार दिया जाता है।

✨मनोवैज्ञानिकों और बाल विशेषज्ञों ने इन धारणाओं को गलत बताया है।

✨ज्योतिष के अनुसार, नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं; लेकिन मंगलकारी-अमंगलकारी भावना को काटती हैं।

🗣️मारिया मांटेसरी के अनुसार, “बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास का आधारशिला है।”

3️⃣💫वंशानुक्रम के संबंध में-

वर्तमान समाज में अक्सर देखा जाता है कि लोग कहावतों से व्यक्ति के आनुवंशिकता की पुष्टि करने की कोशिश करते हैं।

यथा, 

(i)जैसे माता-पिता होते हैं, वैसे ही संतान होती।

(ii) जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष बनेगा।

(iii) बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय।

उपर्युक्त कहावत लोगों के द्वारा बनाई गई धारणाएं और भ्रांतियां है जो प्रायः सत्य नहीं होती। यह सिर्फ तात्कालिक प्रभाव के आधार पर कहीं गई होती हैं।

🗣️वुडवर्थ महोदय ने अनुवांशिकता के संबंध में कहां है कि, “आनुवंशिकता और पर्यावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान होता है।”

Development = Heredity * Environment

🗣️गैरेट के अनुसार, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं हो सकता की आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।”

4️⃣💫 गर्भकालीन प्रभाव

प्रायः देखा जाता है कि जब महिलाएं गर्भ धारण करती है तो परिवार के सदस्यों में झाड़-फूंक, परंपरागत उपचार, पुत्र प्राप्ति की इच्छा इत्यादि की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती; जो कि गलत है। इससे बच्चे के माता के मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

✨संतुलित भोजन, अच्छा साहित्य, अच्छा मनोरंजन, सुखद अनुभूति इत्यादि के प्रभाव से मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है इसका वैज्ञानिक कारण जो कि *विद्युत चुंबकीय प्रभाव* है। अतः यह आवश्यक है कि गर्भावस्था के दौरान प्रत्येक माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए।

🗣️ कॉट, डगलस, स्मिथ और बैंगिन ने इस संबंध में कहा है कि, “इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।”

5️⃣💫 यौन-भेद के संबंध में :

समाज में प्रचलित धारणा यह है कि स्त्री निर्बल होती है, पुरुष सबल; प्रायः यह भी देखा जाता है कि लोग पुत्र को माता पिता को मोक्ष दिलाता है यह मानकर लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा अधिक लाड प्यार देते हैं, जो कि गलत है इससे लड़कियों में हीन भावना का विकास होता है।

🗣️ फ्रोबेल के अनुसार, “बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”

🙏

🥀📝📝नोट्स by अवधेश कुमार🥀🥀

*बाल विकास के संबंध में प्रचलित धारणाएं और परंपरागत विचार*

1️⃣  *बालक प्रौढ़ व्यक्ति का लघु रूप है-* 

 समाज में अक्सर लोग बालक से अपनी भावनाओं इच्छा और महत्वाकांक्षा के जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखने लगते हैं और इन उम्मीदों के पूरा ना होने पर दु:खी होते हैं।

*खंडन*

*मनोवैज्ञानिक के अनुसार- बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।*

2️⃣  *बालक के जन्म के संबंध में-* 

समाज में धारणाएं देखी जाती है कि-

 1-शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं, उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी रहता है।

2-उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

*मारिया मांटेसरी के अनुसार, “बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास का आधारशिला है।”*

3️⃣ *वंशानुक्रम के संबंध में*

लोगों में प्रचालित भ्रांतियां–

1-जैसे माता-पिता होते हैं, वैसे ही संतान होती।

2-जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष बनेगा।

3-बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय।

*वुडवर्थ महोदय के अनुसार – “आनुवंशिकता और पर्यावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान होता है।”*

*Development =Hereditary +Environment ❌*

*Development = Heredity * Environment✅*

*गैरेट के अनुसार, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं हो सकता की आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।”*

4️⃣ *गर्भकालीन प्रभाव* :

1- गर्भवती स्त्री को झाड़ फूंक के द्वारा   बेटा या बेटी होगा ये बताया जाता हैं। 

2- गर्भवती महिलाओं को कई प्रकार के ताबीज पहनाए जाते हैं। 

3- खाने-पीने के लिए – ये खाओ तो बेटा होगा। 

4- घर मे फोटो लगाकर देखने से उसी तरह की संतान प्राप्ति होगा। 

*कॉट, डगलस, स्मिथ और बैंगिन ने इस संबंध में कहा है कि, “इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।”*

5️⃣ *यौन-भेद के संबंध में* :

1- बेटा बुडापे का सहारा होता है,  बेटी परायी होती हैं ।

2- बेटे से वंश चलाता हैं। 

*फ्रोबेल के अनुसार, “बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”*

🌞🌺Noted by – *DeepikaRay* 🌺🌞

*बाल विकास के संबंध में प्रचलित धारणाएं और परंपरागत विचार*

1- *बालक प्रौढ़ व्यक्ति का लघु रूप है-* 

 समाज में अक्सर लोग बालक से अपनी भावनाओं इच्छा और महत्वाकांक्षा के जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखने लगते हैं और इन उम्मीदों के पूरा ना होने पर दु:खी होते हैं।

*खंडन*

*मनोवैज्ञानिक के अनुसार- बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।*

2-*बालक के जन्म के संबंध में-* 

समाज में धारणाएं देखी जाती है कि-

 *-शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं, उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी रहता है।

*-उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

*मारिया मांटेसरी के अनुसार, “बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास का आधारशिला है।”*

3 -*वंशानुक्रम के संबंध में*

लोगों में प्रचालित भ्रांतियां–

*-जैसे माता-पिता होते हैं, वैसे ही संतान होती।

*-जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष बनेगा।

*-बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय।

*वुडवर्थ महोदय के अनुसार – “आनुवंशिकता और पर्यावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान होता है।”*

*गैरेट के अनुसार, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं हो सकता की आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।”*

4 -*गर्भकालीन प्रभाव* :

*- गर्भवती स्त्री को झाड़ फूंक के द्वारा   बेटा या बेटी होगा ये बताया जाता हैं। 

*- गर्भवती महिलाओं को कई प्रकार के ताबीज पहनाए जाते हैं। 

*- खाने-पीने के लिए – ये खाओ तो बेटा होगा। 

*- घर मे फोटो लगाकर देखने से उसी तरह की संतान प्राप्ति होगा। 

*कॉट, डगलस, स्मिथ और बैंगिन ने इस संबंध में कहा है कि, “इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।”*

5 -*यौन-भेद के संबंध में* :

*- बेटा बुडापे का सहारा होता है,  बेटी परायी होती हैं ।

*- बेटे से वंश चलाता हैं। 

*फ्रोबेल के अनुसार, “बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है   

👩‍🦰अंकिता सिंह

🌸 *बाल विकास के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विचार *●*🌸

➖➖➖➖➖➖➖➖

*1-*बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप होता है*➖➖➖➖

 इस भ्रांति में अभिभावक  अपने बाल्यावस्था बालक में प्रौढ़ (व्ययस्क ) व्यक्ति के समान  व्यवहार करने की अपेक्षा करता है । 

●अगर ऐसा नही हो पाता तो बालक को दंड भी देने लगता है।

●बच्चे अगर समान व्यवहार नही कर पाते है तो बच्चों को ताने – बाने या आलोचना करने लगते   है जिससे  बच्चों में हीन -भावना का विकास हो जाता है।

●बच्चें के साथ गलत व्यवहार से वो अपना आत्मविश्वास  खो देते है और साथ में उनका व्यक्तित्व  विकास अवरुद्ध हो जाता है।

● *इसका खंडन  मनोवैज्ञानिक के अनुसार निम्न है* >

” बालक ही प्रौढ बनता है,लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नही होता है”

*2. *बालक के जन्म के संबंध मे*>➖➖➖➖

●”जो बच्चे जन्म के समय शुभ नक्षत्र में पैदा होते है वह बच्चे भाग्यशाली होते है”।- 

●जिस बच्चे को  भाग्यशाली मानते है  उसको परिवार में अलग से व विशेष सुविधा दी जाती है। जिससे अन्य बच्चों में हीन भावना का विकास होने लगता है।

“उच्च कोटि में जो बच्चे पैदा होते है उनको एक तरह से भगवान का रूप मानते है”- 

 ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़िया जीवन को प्रभावित करती है ।लेकिन जन्म के समय बच्चों का मंगलकारी और अमंगलकारी भावना को काटती है 

*उपरोक्त धारणा समाज मे बहुचर्चित है जो कि पूर्ण रूप से असत्य है*

*मारिया मोंटेसरी*⬇️

*बच्चों में सच्ची  शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास ही आधारशिला है।*

3. *वंशानुक्रम के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां*⬇️➖➖➖➖

●जैसे माता -पिता होंगे वैसे ही संतान होगी।

*निम्न  कहावत वंशानुक्रम भ्रांतियां में सटीक बैठती है-*

 ● जैसा बीज होगा वैसा ही वृक्ष बनेगा

●बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से आये।

*वुडवर्थ के अनुसार=*

*”आनुवंशिकता और वातावरण का संबंध  जोड़ के समान नही ,गुणनफल के समान है।”*

*गैरेट के अनुसार=* 

*इससे अधिक निश्चित बात और कोई नही है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे का सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों बालक ही सफलता के लिए अनिवार्य है।*

*4.गर्भकालीन प्रभाव में प्रचलित भ्रांतियां=*➖➖➖➖

●झाड -फूक द्वारा बच्चे के लिंग का बताया जाए कि बेटा होगा या बेटी।

●इस तरह के  कार्य जो भी गर्भकालीन अवस्था में कराए जाते है उससे स्त्री के मानशिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

●खाने-पीने से बच्चों के  लिंग निर्धारण में अहम  भूमिका निभाई जाती है।

● अपने समाज मे सबसे ज्यादा प्रचलित भ्रांति यह है- *पुत्र प्राप्ति के लिए घरों में पुत्रों ( बालको) वाली पोस्टर और मोबाइल के वालपेपर में पुत्रों वाली फ़ोटो लगाना।*

*कुछ मनोवैज्ञानिक -कॉट ,डगलस स्मिथ और बैंगिन के अनुसार*-

   *”इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताज़ा रहने या चमकने वाली संभावना है।*”

*5. यौन भेद के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां*-➖➖➖➖

*इसमें स्त्री निर्बल व पुरुष सबल माना गया है*

● *पुत्र ही अपने माता -पिता  को मोक्ष्य दिलाने में सहायक है।*

● *समाज में लड़के को ज्यादा प्यार दिया जाता और लड़कियों को इतना नही दिया जाता है।*

*यह भेदभाव लड़कियों में हीनभावना का जन्म देता है।*

        *फ्रोबेल =*

*”बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”*।।।।।

☺️☺️☺️

✒️✒️✒️

*Notes By Anand Chaudhary*

📋📋📋

🌀 *बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास*🌀                                  

बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास निम्नलिखित 5 प्रकार से है :-                                         

1️⃣ *बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है –  बाल्यावस्था में वयस्कों के समान सभी व्यवहार करने लगे*  

(हम छोटी उम्र में ही बालकों से ऐसी अपेक्षा रखने लगते हैं  कि वह प्रौढ़ व्यक्तियों के समान व्यवहार करें  यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो हम उन्हें दंड देते हैं उनके प्रति हीन भावना रखने लगते हैं  आत्मविश्वास खो देते हैं व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है  हमें बालकों से ऐसी उम्मीदें रखना गलत है  क्योंकि जो चीज हम वयस्क हो कर या लगभग किशोरावस्था  को   पार कर समझ रहे हैं वह हम उनसे बाल्यावस्था  या छोटी उम्र में ही कैसे उम्मीद रख सकते हैं )                                                    

☑️ *खंडन 👉    

*मनोवैज्ञानिक  दृष्टिकोण*➖   ” *बालक ही प्रौढ़ बनता है “लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता*          

2️⃣   *बालक के  जन्म के संबंध में धारणा*➖                         

👉   शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।                             👉  उसका जन्म स्वयं और  परिवार के लिए मंगलकारी होता है ।                                                           👉  उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते है ।                                                         👉  *भाग्यशाली बालक को ज्यादा लाड़ प्यार दिया जाता है*।                                                   

👉  मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषज्ञ ने इस धारणा को गलत माना है –                                              👉  *ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़िया जीवन को प्रभावित करती हैं लेकिन मंगलकारी, अमंगलकारी भावना को काटती हैं* ।                 

🔅 *मारिया मांण्टेसरी* 🔅    *बच्चों में शक्ति का  आवास  होता है  तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है*  ।                                                  

3️⃣  *वंशानुक्रम के संबंध में*

➖   जैसे माता-पिता होते हैं , वैसी संतान होती है । माता-पिता  सुशिक्षित , सभ्य ,संस्कारी बुद्धिमान   है तो   बच्चे भी उसी तरह होंगे  उदाहरण-  जैसे बीज हैं वैसे ही वृक्ष बनेंगे    बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाए                

🔊  *वुडवर्थ के अनुसार*-  

*अनुवांशिकता  और वातावरण का संबंध  जोड़ के समान नहीं गुणनफल के समान है* *

Development =   Heredity ✖️ Environment*                          *

गैरेट के अनुसार*➖    *

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है  की अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं  जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है*                                                            

4️⃣  *गर्भकालीन प्रभाव*➖     कुछ भ्रांतियां हैं  जैसे झाड़-फूंक  के द्वारा  बेटा या बेटी होगी ऐसा  बताया  जाता है   (परंपरागत उपचार )                                                 ➡️  पुत्र होगा                                 ➡️   मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव                                          

(  बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए संतुलित भोजन ,अच्छा  साहित्य, अच्छा मनोरंजन,  सुखद अनुभूति,  वास्तव में जरूरी है  लेकिन कुछ ऐसे खाने-पीने की चीजें हैं जिनसे ऐसा माना जाता है कि बेटा या बेटी होगी  कुछ  फोटो लगाकर या वातावरण में रखकर  ऐसी भ्रांतियां बनाई गई हैं  की पुत्र या पुत्री होगी जो कि गलत है )                      

🔅 *काँट ,डगलस ,स्मिथ और बैगिन के अनुसार*  ➖   *

इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया  विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या  चमकने वाली संभावना है*                       

5️⃣  *यौन भेद के संबंध में*

➖  स्त्री – निर्बल                             पुरुष – सबल                                    पुत्र माता पिता को मोक्ष दिलाएगा।  (लाड़ प्यार में भेदभाव ) बेटी पराया धन है, no हीन भावना का विकास  होता हैं।     *

फ्रोबेल*⭕  *

बालक स्वयं विकासोन्मुख  होने वाला मानव पौधा हैं*      

✍️✍️ 

notes by Pragya Shukla…

🌺 बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विचार🌺

🌸1- बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप होता है➖

बाल अवस्था में वयस्कों के समान व्यवहार करने की अपेक्षा करता है

👉🏼अगर ऐसा नहीं हो पाता तो बालक को दंड भी देने लगते हैं।

👉🏼 बच्चा अगर समान व्यवहार नहीं कर पाता तो बच्चों की आलोचना की जाती है जिसके कारण बच्चों में हीन भावना जाती है।

👉🏼 बच्चों का आत्मविश्वास खो जाता है और व्यक्तिगत विकास अवरुद्ध हो जाता है।

🌸 इसका खंडन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार निम्न है➖

“बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता।

🌺2-बालक के जन्म के संबंध में (धारणा)➖

👉🏼जो बच्चे शुभ नक्षत्र में पैदा होते हैं वह बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

👉🏼 उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है।

👉🏼 उच्च कोटि की जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

👉🏼 जिस बच्चे को भाग्यशाली मानते हैं उसको परिवार में अलग से वह विशेष सुविधा दी जाती है जिसका उनके छोटे या बड़े भाई बहनों में हीन भावना का विकास होने लगता है।

🌺 मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषताएं इन धारणा को गलत बताती है➖

ज्योतिषी के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती है लेकिन मंगलकारी अमंगल कारी भावना को काटती है।

✍🏻 मारिया मोंटेसरी

बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

🌺3-वंशानुक्रम के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां➖

👉🏼 जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही संतान होगी  । माता-पिता अगर सुशिक्षित सभ्य और संस्कारी और बुद्धिमान है तो बच्चे में भी यह सारे गुण होंगे।

👉🏼 जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा।

👉🏼 बोया पेड़ बबूल का तो आम से होय।

🤵🏻‍♂वुडवर्थ के अनुसार➖

अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं गुणनफल के समान है।

🤵🏻‍♂गैरेट के अनुसार➖

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे का सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों बालक ही सफलता के लिए अनिवार्य है।

🌺4-गर्भ कालीन प्रभाव मैं प्रचलित भ्रांतियां➖

👉🏼 झाड़-फूंक द्वारा बच्चे के लिंग का बताया जाए कि गर्भ में बेटा है या बेटी।

👉🏼 जिसके कारण एक गर्भवती स्त्री का मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

👉🏼 खाने-पीने से बच्चों के लिंग निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाई जाती है।

🌺 कुछ मनोवैज्ञानिक काॅट,डगलस, स्मिथ,और बैगिन के अनुसार➖

“इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है” तथा सदेव तरोताजा या चमकने वाली संभावना है।

🌺5-यौन भेद के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां➖

👉🏼 इसमें स्त्री को निर्बल और पुरुष को सबल माना जाता है।

👉🏼 पुत्र ही अपने माता पिता को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है।

👉🏼 समाज में लड़के को ज्यादा प्यार दिया जाता है और लड़कियों को इतना नहीं दिया जाता।

👉🏼 यह भेदभाव लड़कियों में भी हीन भावना को पैदा करता है।

🤵🏻‍♂फ्रोवेल के अनुसार➖

“बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है”।

📚📚✍🏻 Notes by Sakshi Sharma📚📚✍🏻

🌺🌺बाल विकास के संबंध मे प्रचलित भ्रांतियां औऱ परम्परागत विश्वास 🌺🌺

1️⃣🔅बालक प्रौढ का ही लघु रूप है।–

समाज मे यह महत्वाकांक्ष रखते है  की बालक वयस्को की भाँति व्यवहार करें ,🌺🌺

कम उम्र में बालको से यह अपेक्षा रखते ह की वे प्रौधो के समान व्यवहार करें यदि वे ऐसा नही कर

 पाते तो उन्हें दंड देते है। जिससे उनमें हीन भावना आ जाती है। और उनके व्यक्तित्व विकास में भी प्रभाव पड़ता है।🌸🌸

🌺🌺मनोवैज्ञानिको का खंडन🌺🌺

बालक ही आगे चल कर प्रौढ बनता है,”लेकिन वह बाल्यावस्था में प्रौढ़ के समान परिपक्व नही होता है।🌺🌺

2️⃣🔅बालक के जन्म के संबंध में –

👉समाज मे कुछ धारणाये है कि शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

उनका जन्म परिवार के लिए अच्छा है।उच्च कोटि में जन्मे बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

🌸उन्हें ज्यादा लड़ प्यार दिया जाता है।🌸

👉मनोवैज्ञानिको ने इस धारणा की गलत माना है।

🌸मारिया मांटेसरी के अनुसार-“बच्चे में सच्ची शक्ति का आवास होता है।और उसकी मुस्कुराहट अधिक प्रेम और विकास की आधारशिला है।🌸

3️⃣🔅वंशानुक्रम के संबंध में-

👉इस संबंध में समाज के कई तरह की धारणाये प्रचलित है।

👉 जैसे माता पिता होंगे बच्चे भी वैसे ही होंगे।

,👉जो बीज बोया जाएगा उसी फल की प्राप्ति होगी।

🌸🌸वुड वर्थ के अनुसार-🌸🌸

अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड के समान नही गुणनफल के समान है।

Herridety+environment ❌

Herridety× environment✅

🌸गैरिट के अनुसार🌸

“इससे अधिक निश्चित बात और कोई नही है कि अनुवंशिकता एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं। ये दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

4️⃣🔅गर्भकालीन प्रभाव,–

👉गर्भ काल के समय भी समाज मे झाड़ फूक जादू टोने की धारणाये प्रचलित है। कहा जाता है कि जाड़ फूक करने से लड़का होता है।

👉कहा जाता ह कमरे में कृष्णा की फ़ोटो लगाने से लड़के की प्राप्ति होती है।(ये सभी धारणाये है)

(गर्भावस्था के समय अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित भोजन ,साहित्य ,सुखद की अनुभूति वास्तव में जरूरी है)

🌺काट, डगलस ,स्मिथ ,और बैगिन के अनुसार🌸🌸

“इन्होंने बताया है कि इस संसार मे पैदा होने वाला हर बच्चा भगवान का नया विचार होता है तथा सदैव तरोताज़ा रहने या चमकने वाली संभावना उसमे है।,”

5️⃣🔅यौन भेद-

🌸🌸 समाज मे यह धरना सुरु से चली आ रही है कि स्त्री कमजोर होती है। वो सिर्फ घर गृहस्थी संभालने लायक है।

🌺समाज मे स्त्रियों को निर्बल समझा जाता है।जब कि पुरुषों की सबल समझा जाता है।।

👉इस तरह के भेदभाव से लड़कियों में हीन भावना आ जाती है और इसका प्रभाव उनके विकास पर भी पड़ता है।

🌺🌺फ्रोबेल के अनुसार🌺🌺

“बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है, जो खुद विकसित होता है।”

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

Notes by POONAM SHARMA  🌸🌸🌸🌸

👎 *बाल विकास के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विचार *●*👎

 **1-*बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप होता है* 

 इस भ्रांति में अभिभावक  अपने बाल्यावस्था बालक में प्रौढ़ (व्ययस्क ) व्यक्ति के समान  व्यवहार करने की अपेक्षा करता है । 

●अगर ऐसा नही हो पाता तो बालक को दंड भी देने लगता है।

●बच्चे अगर समान व्यवहार नही कर पाते है तो बच्चों को ताने – बाने या आलोचना करने लगते   है जिससे  बच्चों में हीन -भावना का विकास हो जाता है।

●बच्चें के साथ गलत व्यवहार से वो अपना आत्मविश्वास  खो देते है और साथ में उनका व्यक्तित्व  विकास अवरुद्ध हो जाता है।

● *इसका खंडन  मनोवैज्ञानिक के अनुसार निम्न है* >

” बालक ही प्रौढ बनता है,लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नही होता है”

*2. *बालक के जन्म के संबंध मे🧑‍⚕️👩‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️

●”जो बच्चे जन्म के समय शुभ नक्षत्र में पैदा होते है वह बच्चे भाग्यशाली होते है”।- 

●जिस बच्चे को  भाग्यशाली मानते है  उसको परिवार में अलग से व विशेष सुविधा दी जाती है। जिससे अन्य बच्चों में हीन भावना का विकास होने लगता है।

“उच्च कोटि में जो बच्चे पैदा होते है उनको एक तरह से भगवान का रूप मानते है”- 

 ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़िया जीवन को प्रभावित करती है ।लेकिन जन्म के समय बच्चों का मंगलकारी और अमंगलकारी भावना को काटती है 

*उपरोक्त धारणा समाज मे बहुचर्चित है जो कि पूर्ण रूप से असत्य है*

*मारिया मोंटेसरी*👇

*बच्चों में सच्ची  शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास ही आधारशिला है।*

 *3. **वंशानुक्रम के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां* 👇

●जैसे माता -पिता होंगे वैसे ही संतान होगी।

*निम्न  कहावत वंशानुक्रम भ्रांतियां में सटीक बैठती है-*

 ● जैसा बीज होगा वैसा ही वृक्ष बनेगा

●बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से आये।

*वुडवर्थ के अनुसार=*

*”आनुवंशिकता और वातावरण का संबंध  जोड़ के समान नही ,गुणनफल के समान है।”*

*गैरेट के अनुसार👇

*इससे अधिक निश्चित बात और कोई नही है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे का सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों बालक ही सफलता के लिए अनिवार्य है।*

*4.गर्भकालीन प्रभाव में प्रचलित भ्रांतियां👇

●झाड -फूक द्वारा बच्चे के लिंग का बताया जाए कि बेटा होगा या बेटी।

●इस तरह के  कार्य जो भी गर्भकालीन अवस्था में कराए जाते है उससे स्त्री के मानशिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

●खाने-पीने से बच्चों के  लिंग निर्धारण में अहम  भूमिका निभाई जाती है।

● अपने समाज मे सबसे ज्यादा प्रचलित भ्रांति यह है- ☝️पुत्र प्राप्ति के लिए घरों में पुत्रों ( बालको) वाली पोस्टर और मोबाइल के वालपेपर में पुत्रों वाली फ़ोटो लगाना।👉

*कुछ मनोवैज्ञानिक -कॉट ,डगलस स्मिथ और बैंगिन के अनुसार🍆🍆

   *”इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताज़ा रहने या चमकने वाली संभावना है।*”

*5. यौन भेद के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां*-➖➖➖➖

*इसमें स्त्री निर्बल व पुरुष सबल माना गया है*

● *पुत्र ही अपने माता -पिता  को मोक्ष्य दिलाने में सहायक है।*

● *समाज में लड़के को ज्यादा प्यार दिया जाता और लड़कियों को इतना नही दिया जाता है।*

*यह भेदभाव लड़कियों में हीनभावना का जन्म देता है।*

        🌺फ्रोबेल 🌺

👉बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”*।।।।।

👉👉👉👉👉👉

नोट्स by sharad Kumar patkar

🙇🙇 विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास÷🙇🙇

🌷बालक  प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है;बाल्यावस्था में व्यस्को के समान सभी व्यवहार करने लगे;

🌷अगर हमारी इच्छा के अनुसार वह कार्य नहीं करता है तो हम उसे दंडित भी करने लगते हैं एवं उनकी आलोचना भी  करते हैं जिससे बच्चों में हीन भावना का बीज धीरे धीरे पनपने लगता है।

🌷हम अपनी क्षमता के अनुसार बालक में गुणों का समन्वयन हो ऐसा सोचते है इससे बच्चा विश्वास खो देता है स्वयं का एवं उसका  व्यक्तित्व विकास अवरूद्ध हो जाता है।

             🧐 खंडन 🧐

🔥मनोवैज्ञानिक विचार

बालक की प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।

🔥बालक के जन्म के संबंध में भ्रांतियां

धारणा÷शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

🌸उसका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है,

🌸उच्च कोटि की जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं,

🌸भाग्यशाली बालक मानकर ज्यादा लाड़- प्यार दिया जाता है, ज्यादा लाड- प्यार देने से बच्चों में अहम की भावना बढ़ती जाती है फिर आगे चलकर  जिदद् करने लगते हैं जिदद् पूरी होने पर रोना ,चिल्लाना,विलाप करना इत्यादि फिर आगे चलकर वही भावना  कुंठा को जन्म देती हैं।

🔥मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषज्ञ इन भावनाओं को गलत कहा है।

🌸ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं किंतु मंगलकारी  व अमंगलकारी भावना को काटती वा नकारती है।

🔥मैडम मारिया मांटेसरी का कथन÷

बच्चों में सच्ची शक्ति का वास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

🔥वंशानुक्रम के संबंध में÷जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही संताने होती हैं,अर्थात माता-पिता सुशिक्षित कसभ्य सरल संस्कारी, इमानदार ,बुद्धिमान है तो उनकी संतानें भी सरल ,सुशिक्षित, संस्कारी, बुद्धिमान व ईमानदार होती है।

🔥वुडवर्थ- अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं, गुणनफल होता है।

 Development=H × E

               Not.     H + E

🔥गैरेट के अनुसार- इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभावों है जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।

🌸गर्भ कालीन प्रभाव

गर्भ काल के दौरान झाड़-फूंक करवाना परंपरागत उपचार करवाना इत्यादि।

🌸पुत्र ही होगा ऐसा मानना वा ऐसा बार बार बोलना कि पुत्र ही आवश्यक है केवल कुल को बढ़ाने में इन सब बातों का गर्भवती की मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे बच्चे पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

🌸बच्चे के स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार  खाना सुखद अनुभूति करना अच्छा साहित्य पढ़ना या अच्छा मनोरंजन हो ,यह इसलिए नहीं कि बच्चे का लिंग परिवर्तन हो बल्कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

🔥काट ,डग्लस, स्मिथ और बैगिन के अनुसार÷

इस संसार में पैदा होने वाला है एक बच्चा भगवान का नया विचार है तथा सदेव तरोताजा रहने में चमकने वाली संभावना है।

🌸यौन भेद के संबंध में भ्रांतियां

🔥स्त्री-निर्मल

🔥पुरुष-सबल

अर्थात यौन भेद  के संबंध में पुरुषों के अपेक्षा में महिलाएं निर्बल वा कमजोर होती है;

🔥🔥 ऐसा पाया गया है कि बालक के जन्म के उपरांत एक एक बच्चे को भौतिक संसार में लाने हेतु इतने दर्द को सहन करना पड़ता है, जितना मनुष्य अपने पूर्ण जीवन में सहन करता है।

🌸पुत्र ही माता पिता को मोक्ष प्राप्त करवाता है भ्रांति  ही है;

🌸पुत्र पुत्रियों के लाड प्यार में भी भेदभाव रखा जाता है इससे हीन भावना का शिकार बच्चा हो जाता है।

फ्रावेल का कथन -बालक स्वयं विकासात्मक होने वाला मानव पौधा है।

🌸Thanku you 

🔥🔥 by shikhar pandey 🥀🥀

बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास

1. बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है।

बाल्यावस्था में बालकों के द्वारा वयस्को के समान व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है। यदि वह ऐसा व्यवहार करने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें दंड दिया जाता है ,तिरस्कृत किया जाता है, आलोचना और निंदा की जाती है।

माता-पिता कहते हैं कि तुम्हारी उम्र में तो हम यह -वह काम कर लेते थे।

प्रभाव-

 इससे बालकों में *हीन भावना* आती है।

 बालक *आत्मविश्वास खो देते* हैं इससे उनका *व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध* हो जाता है।

खंडन-

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से 

*बालक ही प्रौढ़ बनता है।*

 लेकिन बाल्यावस्था में प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं हो सकता है

2. बालक के जन्म के संबंध में।

कुछ लोगों की धारणाओं में ऐसा माना जाता है कि शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं। उसका जन्म ,स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है

उच्च कोटि की जाति पैदा में हुए बच्चे भगवान का रुप होते हैं।

प्रभाव-

ऐसे बालकों को भाग्यशाली मानकर ज्यादा लाड प्यार दिया जाता है

और दूसरे बालक जो खराब नक्षत्र में पैदा हुए उनको तिरस्कृत , निंदा,उपेक्षा की जाती है।

खंडन-

मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषज्ञों के अनुसार यह धारणाएं  गलत है।

ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करते हैं लेकिन मंगलकारी या  अमंगलकारी भावना को काटती है।

मारिया मांटेसरी- 

बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

3. वंशानुक्रम के संबंध में।

जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही संतान होती हैं

यदि माता-पिता सुशिक्षित ,सभ्य ,संस्कारी ,बुद्धिमान है तो उनके भी बच्चे सुशिक्षित, सभ्य, संस्कारी, बुद्धिमान होते हैं।

जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा 

बोया पेड़ बबूल का आम कहां से पाय।

खंडन-

वुडवर्थ- 

अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं है गुणनफल के समान है।

विकास= अनुवांशिकता+वातावरण ❌

विकास= अनुवांशिकता*वातावरण ✔️

गैरेट-

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

4. गर्भकालीन प्रभाव-

जब कोई भी स्त्री गर्भ से होते हैं तो उसके लिए हमारे समाज में परंपरागत उपचार, झाड़-फूंक आदि कार्य किए जाते हैं ताकि इससे उन्हें बेटा प्राप्त हो।

पैदा होने वाली संतान मंगलकारी हो।

प्रभाव- 

इससे मां की मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है और यह प्रभाव बच्चे पर भी पड़ेगा।

खंडन-

काॅट,डगलस,स्मिथ और बैगिन-

इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।

इस अवस्था में मां का संतुलित भोजन करना ,अच्छा साहित्य पढ़ना ,अच्छा मनोरंजन, सुखद अनुभूति उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।

5.यौन भेद के संबंध में-

हमारी समाज में स्त्री को निर्बल और पुरुष को सबल मानते हैं। पुत्र को माता पिता को मोक्ष दिलाने वाला मानते हैं।

यहां लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा अधिक लाड प्यार मिलता है।

प्रभाव- 

इससे लड़कियों में हीन भावना, उनके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता हैं।

फ्रोबेल- बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।

Notes by Ravi kushwah

⚜️⚜️ बालक विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास ⚜️⚜️

🔅 भ्रांति

1️⃣ बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है।

▪️ हमने अपने समाज में देखा है कि जब बालक बाल्यावस्था में आता है तो उसके घर के बड़े लोग उससे व्यस्को जैसा व्यवहार करने लगते हैं और यह उम्मीद करने लगते हैं कि वह भी व्यस्को जैसा  व्यवहार करें। 

🔸प्रभाव

▪️बच्चा ना कर पाए तो उनका तिरस्कार करते हैं ।

▪️उन्हे  दंड देते हैं।

▪️ उन्हें हीन भावना से देखते हैं।

▪️ जिससे बच्चे में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है ।

▪️वह अपना आत्मविश्वास खो देते हैं।

▪️ और उनका व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

🔸 मनोवैज्ञानिकों ने इसका खंडन किया,और उन्होंने कहा कि

▪️ ” बालक ही प्रौढ़ बनता है” लेकिन बाल्यावस्था मे वह प्रौढ़  के समान परिपक्व नहीं होता।

2️⃣ बालक के जन्म के संबंध में

🔸धारणा

▪️शुभ मुहूर्त में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

▪️उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है ।

▪️उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते है।

▪️हमने अपने समाज में अक्सर यह देखा है कि अगर कोई एक बच्चा शुभ नक्षत्र में पैदा हुआ हो या यह कहे कि उसके पैदा होने के बाद उसके घर में कोई मंगल कार्य हुआ हो या अमंगल घटित हुआ हो तो इस आधार पर उस बच्चे को भाग्यशाली और अभाग्यशाली ठहरा दिया जाता है जो कि एक बहुत बड़ी गलत धारणा है हमारे समाज की।

▪️उसे भाग्यशाली बालक मानकर ज्यादा लाड प्यार दिया जाता है।

🔸मनोवैज्ञानिकों और बाल विशेषज्ञों द्वारा इस धारणा को गलत माना गया है।

▪️ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं लेकिन मंगलकारी , अमंगलकारी भावना को काटती है।

♦️इस पर मारिया मांटेसरी का कथन है कि

बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

3️⃣ वंशानुक्रम के संबंध में

🔸धारण

▪️जैसे माता-पिता होते हैं वैसी ही संतान होती है।

▪️अगर माता-पिता सुशिक्षित, सभ्य, संस्कारी ,बुद्धिमान होते हैं तो बच्चा भी वैसा ही होता है।

 इससे जुड़ी हुई कुछ कहावतें हमारे समाज में प्रचलित हैं जैसे कि —

🔹 जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा।

🔹 बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।

इन कहावतों एवं धारणाओं को हम अपने समाज में पाते हैं । समाज में एक बच्चे को इस तरीके से देखा जाता है कि अगर उसके माता-पिता सुशिक्षित है, या स्मरण परिवार से हैं तो वह भी उन्हीं का अनुकरण करते हुए उन्हीं के जैसा ही होगा जबकि हम यह भूल जाते हैं कि 1 बच्चे के व्यक्तित्व के लिए जितना आवश्यक अनुवांशिकता है उतना ही आवश्यक वातावरण है भले ही वह एक परिवार से है लेकिन अगर उस का वातावरण अच्छा नहीं है तो  यह जरूरी नहीं है कि वह अच्छा हो। क्योंकि अनुवांशिकता के साथ-साथ वह अपने वातावरण से भी सीख कर के उस वातावरण जैसा हो सकता है।

🔸इसमें वुडवर्थ का कथन सटीक बैठता है कि ,

“अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं गुणनफल के समान है”

Development = H + E   X (wrong)

Development = H × E.  ✓ (right)

Here,

H = Heredity

E = Environment

🔸गैरेट के अनुसार

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।

4️⃣ गर्भ कालीन प्रभाव

🔸धारणा

जब से एक बालक अपनी मां के गर्भ में आता है तब से उसके घर के बड़े बुजुर्ग उसको झाड़-फूंक परंपरागत उपचार और अलग – अलग नुस्खे बताना शुरू कर देते हैं कि जिससे उसको पुत्र ही प्राप्त हो।

▪️वह या नहीं सोचते हैं कि उनके द्वारा किया गया यह व्यवहार उस गर्भवती स्त्री पर किस प्रकार का प्रभाव प्रकट करेगा।

▪️ इस प्रकार का व्यवहार उसकी मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पैदा करता है जो कि उसकी बच्चे पर भी बुरा प्रभाव डालता है।

▪️गर्भावस्था के दौरान हमें गर्भवती स्त्री को — 

 * संतुलित भोजन 

 * अच्छा साहित्य 

 * अच्छा मनोरंजन एवं 

 * सुखद अनुभूति कराने चाहिए।

 जो कि उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अवश्यक है।

♦️ काॅट , डगगलस , स्मिथ एवं बैगिन के अनुसार 

” इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है

5️⃣ योन भेद के संबंध में

🔸धारणा 

▪️हमारे यहां समाज में आज भी यह व्याप्त है कि स्त्री निर्बल होती है , एवं पुरुष जो होते हैं वह सबल होते हैं।

▪️पुत्र अपने माता – पिता को मोक्ष प्रदान करता है।

▪️ पुत्र को ज्यादा लाड प्यार किया जाता है।

▪️ पुत्री के साथ भेदभाव का व्यवहार किया जाता है , उसे बहुत हीन भावना से देखा जाता है ।

▪️इन सभी के द्वारा हम लड़के हैं एवं लड़कियों के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं ।

▪️हम उनके अंदर हीन भावना का विकास करते हैं।

♦️फ्रोबेल का कथन

” बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है। “

♾️ धन्यवाद वंदना शुक्ला ♾️

🔆 *बाल विकास के संबंध में कुछ प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत अविश्वास*🔆

▪️ भ्रांति – किसी व्यक्ति या बात आदि के प्रति मन में उत्पन्न गलत धारणा।

जब हम किसी विषय के संबंध में क्या माना जाएगा उसे नियम बना लेते है  बल्कि वह एक प्रकार की भांति या अविश्वास है। हर समय जो माना जाए वह हमेशा सही हो यह जरूरी नहीं है ।

 जैसे – जैसे कुछ लोगो का मानना  हैं कि लड़की घर के बाहर नहीं जा सकती और लड़के घर में दुबक कर नहीं बैठ सकते।

 यह बातें हमने मानी है और इन्हीं मानी हुई बातों को ही परंपरागत अविश्वास या भ्रांति कहते है।

ऐसी कई भ्रांतियां या परम्परागत अविश्वास ,जो बालक के विकास के संबंध में प्रचलित हैं निम्नानुसार है –

🔹✨ भ्रांति न. १ ➖

“बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है”

हम चाहते हैं कि बालक बाल्यावस्था में ही वयस्कों के समान सभी व्यवहार करने लगे। इसके लिए हम कभी कभी बालकों को दंड भी देते हैं जिससे उनमें हीन भावना आ जाती है और वे अपना आत्मविश्वास भी खो देते हैं। उनका व्यक्तित्व विकास अवरुद्ध हो जाता है।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि

बालक ही प्रौढ़ बनता है लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता।

🔹✨ भ्रांति न.२➖

       “बालक के जन्म के संबंध में”

यह धारणा है कि- 

* शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

*या उनका जन्म स्वयं व परिवार के लिए मंगलकारी होता है।

*उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

*भाग्यशाली मानकर उन्हें ज्यादा लाड प्यार दिया जाता है।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि – 

कई ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करते हैं लेकिन मंगलकारी और अमंगलकारी भावना को काटती है।

 मारिया मोंटेसरी के अनुसार – बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

🔹✨ भ्रांति न.३ ➖

             “वंशानुक्रम के संबंध में”

यह भ्रांति है कि माता-पिता जैसे होते हैं वैसे उनकी संतान होती है अर्थात सुशिक्षित, सभ्य, और उच्च बुद्धि वाले माता-पिता की संतान भी निश्चित ही सुशिक्षित,सभ्य, संस्कारी और उच्च बुद्धि वाले होती हैं।

उपर्युक्त कथन को इस बात से भी समझा जा सकता है।

*जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा

*बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आएंगे।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि –

वुडवर्थ के अनुसार – अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान है अर्थात अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे का सम्मिश्रण है।

विकास = H × E

गेरेट के अनुसार – इससे अधिक निश्चित बात और कहीं नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक-दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

🔹 ✨भ्रांति न.४➖

     ” गर्भ कालीन प्रभाव के संबंध में”

जैसे कई भ्रांतियां जैसे झाड़-फूंक, परंपरागत उपचार, पुत्र होना इन सभी भ्रांतियों का मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि –

संतुलित भोजन, अच्छा साहित्य पढ़ने से, अच्छा मनोरंजन और सुखद अनुभूति से गर्भ काल के दौरान विकसित होने वाले बच्चे और मां का मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रहता है ।

कॉट , डगलस, स्मिथ और बेगिन के अनुसार –

इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदेव तरोताजा रहने और चमकने वाली संभावना है ।

🔹 ✨भ्रांति न.५ ➖:

         “यौन भेद के संबंध में”

*यह भ्रांति है कि स्त्री को निर्बल और पुरुष को सबल समझा जाता है।

*और यह भी भ्रांति है कि पुत्र माता-पिता को मोक्ष दिलाता है।

* लड़का लड़की के लाड प्यार में भी भेदभाव किया जाता है जिससे उनमें हीन भावना विकसित होती है ।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि –

फ्रोबेल के अनुसार – बालक स्वयं विकास उन्मुख होने वाला मानव पौधा है।

✍🏻 

*Notes By-Vaishali Mishra*

#2. CDP – Definitions and area of child development and pedagogy

👉 बाल विकाश 

बाल विकाश मे बालक के सभी तथ्य का अध्यन किया जाता है बाल विकाश के विकाशात्मक मनोविज्ञान मे बालक के व्यवहार को एक नयी दिशा प्रदान करता है।

कुछ मनोवैज्ञानिक के कथन इस प्रकार है-

🌸 हरलाक के अनुसार- बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकाश इसलिए बदला गया क्योकि बालक के समस्त पहलुओ पर ध्यान दिया जाता है  न कि किसी एक पक्ष पर ।

क्रो और क्रो  के अनुसार- बाल विकाश वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्यन गरभ अवस्था से मृत्यु उपरान्त तक करता है।

डारविन के अनुसार – बाल विकाश व्यवहार का विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्यन गरभा से मृत्यु उपरान्त करता है।

बाल विकाश के विभिन्न अवस्थाओ का अध्यन 

गरभावस्था 

शैशवस्था

बाल्यवस्था

किशोरावस्था

🌸 बाल विकाश के विभीन्न पहलुओ का अध्यन-

शारिरीक मानसिक संवेगात्मक सामाजिक  आध्यात्मिक सांस्कृतिक विकाश आदि।

🌸 बाल विकाश को प्रभावित करने वाले कारक-

प्रत्यक्ष

अप्रत्यक्ष।

🌸 बालक कि विभीन्न असमानताओ का अध्यन-

मानसिक विकार बोध्दिक दूरबलता  बाल अपराध आदि।

🌸 मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्यन- बाल विकाश मनोवैज्ञानिक तरिके से उपचारात्मक अध्यन करता है।

🌸 बाल व्यवहार और अंतक्रिया का अध्यन- अलग-अलग अवस्था मे।

🌸 बाल विकाश कि विभीन्न रूचियो का अध्यन।

🌸बच्चे कि मानशिक प्रक्रिया का अध्यन।

🌸व्यैक्तिक  विभीन्नता का अध्यन।

🌸 बालको के व्यैक्तिक मूल्याकंन का अध्यन।

🌸 बालक-अभिभावक संबंधो का अध्यन।

👉  notes by puja murkhe

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

  🌼🌼बाल विकास का अर्थ 🌼🌼

🌼🌼 बाल विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है,  बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की अलग शाखा बनाई गई जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है तो इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया क्योंकि मनोविज्ञान से व्यवहार का अध्ययन करता है जबकि बाल विकास उन सभी तत्वों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है

🌼🌼 हर लॉक के अनुसार — “बाल मनोविज्ञान “का नाम “बाल विकास” इसलिए बदल दिया गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है किसी एक पक्ष पर नहीं ।।

🌼🌼क्रो एंड क्रो के अनुसार– “बाल विकास” वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भ से मृत्युपरांत् करता है

🌼🌼 डार्विन के अनुसार — बाल विकास व्यवहार का विज्ञान है जो बालक की व्यवहार का अध्ययन गर्भ से मृत्युपरांत तक करता है

🌼🌼” हरलॉक” के अनुसार — बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भधान से मृत्युपरांत होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करता है

🌼Area of child development 🌼

   🌼🌼 बाल विकास का क्षेत्र🌼🌼

🌼1. बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन 

🌼गर्भावस्था

🌼 शैशवावस्था 

🌼बाल्यावस्था

🌼 किशोरावस्था 

🌼2.बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन

🌼 शारीरिक विकास 

🌼मानसिक विकास 

🌼संवेगात्मक विकास 

🌼सामाजिक विकास 

🌼संज्ञानात्मक विकास 

🌼आध्यात्मिक विकास 

🌼सांस्कृतिक विकास 

🌼नैतिक विकास 

🌼3. बाल विकास को प्रभावित करने वाले  तत्वों का अध्ययन 

🌼प्रत्यक्ष 

🌼 अप्रत्यक्ष 

🌼 heridity

🌼environment

🌼 व्यक्तित्व

🌼4.  बालक की विभिन्न आसमानता का अध्ययन

🌼 केवल सामान्य बालक नहीं 

🌼आसमानता / विक्रति

🌼असंतुलित व्यवहार 

🌼मानसिक विकार 

🌼बौद्धिक दुर्बलता 

🌼बाल अपराध 

🌼5.मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन

🌼 बाल विकास  मनोवैज्ञानिक तरीके के उपचार प्रस्तुत करता है 

🌼6.बाल व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन (अलग-अलग अवस्था में )

🌼7.बालक की रूचियों का अध्ययन

🌼8. बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन – तर्क,अधिगम ,कल्पना ,चिंतन, स्मृति 

🌼9. वैयक्तिगत विभिन्नता का अध्ययन

🌼10. बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन

🌼11. बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन

🌼🌼notes by manjari soni🌼🌼

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

🌸 बाल विकास 🌸

🌸 Child development🌸

— बाल विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है।

— बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की अलग-अलग शाखा बनाई गई जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है।

— तो इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया क्योंकि मनोविज्ञान सिर्फ व्यवहार का अध्ययन करता है ।

— जबकि बाल विकास उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है

🔅 बाल विकास के संदर्भ में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए कथन

🔸 हरलॉक

 बाल मनोविज्ञान का नाम ‘बाल विकास’ इसलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है किसी एक पक्ष पर नहीं।

🔸 क्रो एंड क्रो

बाल विकास वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत तक करता है।

🔸 डार्विन

बाल विकास ‘व्यवहार का विज्ञान’ है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत करता है।

🔸 हरलॉक 

बाल विकास मनोविज्ञान की वह 

शाखा है जो गर्भाधान से     मृत्युपरांत होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करता है।

        🏵️ बाल विकास का क्षेत्र 🏵️

🏵️ Area of child development🏵️

♦️1 बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन–

बाल विकास को समझने के लिए हमें बालक की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं निम्न है– ▪️गर्भावस्था 

▪️शैशवावस्था 

▪️बाल्यावस्था 

▪️किशोरावस्था

♦️2 बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन–

इसके अंतर्गत विकास के पहलुओं का अध्ययन करते हैं। हम यह देखते हैं कि बच्चे का

 ▪️शारीरिक विकास — बालक के शारीरिक विकास में उसके शरीर के बाह्य एवं आंतरिक अंगों का विकास सम्मिलित होता है।

▪️मानसिक विकास —  मानसिक विकास में समस्त प्रकार की मानसिक शक्तियां जैसे कल्पना शक्ति, निरीक्षण शक्ति, सोचने की शक्ति ,स्मरण, एकाग्रता  आदि से संबंधित शक्तियों का विकास सम्मिलित होता है।

▪️संवेगात्मक विकास — इसमें हम विभिन्न अंगों की उत्पत्ति उनका विकास तथा संवेगों के आधार पर संवेगात्मक व्यवहार का विकास का अध्ययन करते हैं।

▪️ सामाजिक विकास — जब बालक छोटा होता है शिशु होता है तब वह  एक असामाजिक प्राणी होता है बस आप अपने  माता-पिता को जानता है लेकिन  जैसे वह बड़ा होता है तो उसमें उचित सामाजिक गुणों का विकास होने लगता है वह समाज के मूल्यों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करना सीख जाता है सामाजिक विकास के अंतर्गत यह आता है।

▪️ संज्ञानात्मक विकास/ बौद्धिक विकास — बालक जैसे जैसे बड़ा होता है उसके संज्ञान में भी परिवर्तन होता जाता है वह अपने वातावरण से बहुत सारी चीजें सीख कर अपने संज्ञान को निर्मित करता है।

▪️अध्यात्मिक विकास

▪️ सांस्कृतिक विकास 

▪️नैतिक विकास — नैतिक भावनाओं , मूल्यों संबंधी विशेषताओं का विकास होता है।

▪️भाषा विकास — अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का जानना और उसके प्रयोग से संबंधित योग्यताओं का विकास भाषात्मक विकास में सम्मिलित होता है।

▪️चारित्रिक विकास — इसके अंतर्गत चरित्र से संबंधित विशेषताएं आती हैं।

♦️3 बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन–

 बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्व दो प्रकार के होते हैं ▪️प्रत्यक्ष तत्व एवं 

▪️अप्रत्यक्ष होते हैं 

प्रत्यक्ष जिनको हम देख सकते हैं एवं अप्रत्यक्ष में ऐसे तत्व आते हैं जो हमें दिखाई नहीं देते पर वह बालक के विकास को बहुत प्रभावित करते हैं ।

▪️अनुवांशिकता 

▪️ वातावरण

अनुवांशिकता एवं वातावरण दोनों बाल विकास को प्रभावित करते हैं जो गुण हमें अपने वंशजों से मिलते हैं उनके द्वारा ही हमारा रंग रूप होता है एवं वातावरण से हम किस प्रकार व्यवहार करना है यह सीखते हैं और इन दोनों का अंत:संबंध ही  बालक के विकास को प्रभावित करता है।

▪️ परिपक्वता 

▪️शिक्षण

♦️4 बालक की विभिन्ना समानताओं का अध्ययन–

 सामान्यतः प्रत्येक बालक दूसरे बालक से भिन्न होता है, इसके बावजूद उनमें कुछ समानताएं भी होती है उन सामानताओं के इतर जो बच्चे आसामान होते हैं किसी भी दृष्टि से उनके विकास का उनमें उनकी विभिन्न असमानताओं का अध्ययन करना भी आवश्यक है।

▪️ केवल सामान्य बालक ही नहीं

▪️असमानता /विकृति का भी अध्ययन 

▪️असंतुलित व्यवहार या 

▪️मानसिक विकार 

▪️बौद्धिक दुर्बलता 

▪️बाल अपराध  का अध्ययन

♦️5 मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन–

बाल विकास मनोवैज्ञानिक तरीकों के उपचार प्रस्तुत करता है।

♦️6 बाल व्यवहार और अंत:क्रिया का अध्ययन–

 अलग-अलग अवस्था में बालक किस प्रकार का व्यवहार करता है एवं अपने वातावरण के साथ कैसे अंत:क्रिया करता है , अपने वातावरण से कैसे समायोजन करता है, अपने बड़ों से और अपने छोटों से किस प्रकार का व्यवहार करता है इसका अध्ययन।

♦️7 बालक की रुचियों का अध्ययन

प्रत्येक बालक की अपनी अलग अलग रुचियां होती है क्योंकि उनका अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है इसलिए बाल विकास को यह भी प्रभावित करती है तो बालक की रुचियों का अध्ययन करना भी आवश्यक होता है।

♦️8 बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन–

तर्क , अधिगम , कल्पना ,चिंतन , स्मृति बालक की मानसिक प्रक्रिया है इसके द्वारा हम बच्चे क्या सोचते हैं इसका अध्ययन करते हैं वह कैसे तर्क करते हैं क्या सोचते हैं उनकी क्या स्मृति है इन सब चीजों का अध्ययन करते हैं जो कि उनके विकास  के लिए महत्वपूर्ण होता है।

♦️9 वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन — 

बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करना भी आवश्यक है।

♦️10 बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन–

बालकों के वैयक्तिक  विभिन्नता का अध्ययन करने के बाद उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना भी आवश्यक है जिसके माध्यम से हम यह जान पाते हैं वह बच्चा कैसे क्या सोचता है उसका व्यक्तित्व क्या है। उसने कितना सीखा।

♦️11 बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन–

इसके माध्यम से हम बालक और उसके अभिभावक के बीच में जो संबंध है उसको जान सकते हैं उसके घर के माहौल को जान सकते हैं कि उसके अभिभावक उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं वह व्यवहार उस पर सकारात्मक या नकारात्मक असर डालता है, माता-पिता अपने बच्चों को कितना समझते हैं वह अपने बच्चों की रुचियों आवश्यकताओं को कितना जान पाते हैं, बच्चों को आनंददायक और स्वतंत्र वातावरण प्रदान करते हैं या नहीं घर का वातावरण   कलहपूर्णतो नहीं आदि है।

🌸 धन्यवाद 🌸

  वंदना शुक्ला

🌸 बाल विकास 🌸

🌸 Child development🌸

— बाल विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है।

— बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की अलग-अलग शाखा बनाई गई जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है।

— तो इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया क्योंकि मनोविज्ञान सिर्फ व्यवहार का अध्ययन करता है ।

— जबकि बाल विकास उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है

🔅 बाल विकास के संदर्भ में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए कथन

🔸 हरलॉक

 बाल मनोविज्ञान का नाम ‘बाल विकास’ इसलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है किसी एक पक्ष पर नहीं।

🔸 क्रो एंड क्रो

बाल विकास वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत तक करता है।

🔸 डार्विन

बाल विकास व्यवहार का विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु उपरांत तक करता है।

🔸 हरलॉक 

बाल विकास मनोविज्ञान की वह 

शाखा है जो गर्भाधान से मृत्यु उपरांत होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करता है।

        🏵️ बाल विकास का क्षेत्र 🏵️

🏵️ Area of child development🏵️

♦️1 बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन–

बाल विकास को समझने के लिए हमें बालक की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं निम्न है– ▪️गर्भावस्था 

▪️शैशवावस्था 

▪️बाल्यावस्था 

▪️किशोरावस्था

♦️2 बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन–

इसके अंतर्गत विकास के पहलुओं का अध्ययन करते हैं। हम यह देखते हैं कि बच्चे का ▪️शारीरिक विकास 

▪️मानसिक विकास 

▪️संवेगात्मक विकास

▪️ सामाजिक विकास

▪️ संज्ञानात्मक विकास/ बौद्धिक विकास 

▪️अध्यात्मिक विकास

▪️ सांस्कृतिक विकास 

▪️नैतिक विकास 

▪️भाषा विकास एवं 

▪️चारित्रिक विकास किस प्रकार से होता है हम इसके माध्यम से बच्चों के व्यवहार को अच्छा कर सकते हैं।

♦️3 बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन–

 बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्व दो प्रकार के होते हैं ▪️प्रत्यक्ष तत्व एवं 

▪️अप्रत्यक्ष होते हैं 

प्रत्यक्ष जिनको हम देख सकते हैं एवं अप्रत्यक्ष में ऐसे तत्व आते हैं जो हमें दिखाई नहीं देते पर वह बालक के विकास को बहुत प्रभावित करते हैं ।

▪️अनुवांशिकता 

▪️ वातावरण

अनुवांशिकता एवं वातावरण दोनों बाल विकास को प्रभावित करते हैं जो गुण हमें अपने वंशजों से मिलते हैं उनके द्वारा ही हमारा रंग रूप होता है एवं वातावरण से हम किस प्रकार व्यवहार करना है यह सीखते हैं और इन दोनों का अंत:संबंध ही  बालक के विकास को प्रभावित करता है।

▪️ परिपक्वता 

▪️शिक्षण

♦️4 बालक की विभिन्ना समानताओं का अध्ययन–

 सामान्यतः प्रत्येक बालक दूसरे बालक से भिन्न होता है, इसके बावजूद उनमें कुछ समानताएं भी होती है उन मान्यताओं के इतर जो बच्चे आसमान होते हैं किसी भी दृष्टि से उनके विकास का उनमें उनकी विभिन्न असमानताओं का अध्ययन करना भी आवश्यक है

▪️ केवल सामान्य बालक ही नहीं

▪️असमानता /विकृति का भी अध्ययन 

▪️असंतुलित व्यवहार या 

▪️मानसिक विकार 

▪️बौद्धिक दुर्बलता 

▪️बाल अपराध  का अध्ययन

♦️5 मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन–

बाल विकास मनोवैज्ञानिक तरीकों के उपचार प्रस्तुत करता है।

♦️6 बाल व्यवहार और अंतक्रिया का अध्ययन–

 अलग-अलग अवस्था में बालक किस प्रकार का व्यवहार करता है एवं अपने वातावरण के साथ कैसे अंत:क्रिया करता है इसका अध्ययन।

♦️7 बालक की रुचियों का अध्ययन

प्रत्येक बालक की अपनी अलग अलग रुचियां होती है क्योंकि उनका अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है इसलिए बाल विकास को यह भी प्रभावित करती है तो बालक की रुचियों का अध्ययन करना भी आवश्यक होता है।

♦️8 बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन–

तर्क , अधिगम , कल्पना ,चिंतन , स्मृति बालक की मानसिक प्रक्रिया है इसके द्वारा हम बच्चे क्या सोचते हैं इसका अध्ययन करते हैंवह कैसे तर्क करते हैं क्या सोचते हैं उनकी क्या स्मृति है इन सब चीजों का अध्ययन करते हैं जो कि उनके विकास  के लिए महत्वपूर्ण होता है।

♦️9 वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन — 

बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करना भी आवश्यक है।

♦️10 बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन–

बालकों के वैयक्तिक  विभिन्नता का अध्ययन करने के बाद उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना भी आवश्यक है जिसके माध्यम से हम यह जान पाते हैं वह बच्चा कैसे क्या सोचता है उसका व्यक्तित्व क्या है। उसने कितना सीखा।

♦️11 बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन–

इसके माध्यम से हम बालक और उसके अभिभावक के बीच में जो संबंध है उसको जान सकते हैं उसके घर के माहौल को जान सकते हैं कि उसके अभिभावक उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं वह व्यवहार उस पर सकारात्मक या नकारात्मक असर डालता है

Notes By-Ankita Singh

बाल विकास का अर्थ

     (  Child Development)

 🏵️बाल विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है;

बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की  अलग शाखा बनाई गई है, जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है

                                                       तो फिर इसलिए बाल विकास में परिवर्तन किया गया क्योंकि मनोविज्ञान से व्यवहार का अध्ययन करता है,जबकि बाल विकास उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है।

🌻हर लॉक के अनुसार÷बाल मनोविज्ञान का नाम “बाल विकास”इसलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है वरन्  किसी एक पक्ष पर नहीं।

🌻क्रो एवं क्रो के अनुसार÷बाल विकास वह विज्ञान है, जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत तक करता है।

🌻डार्विन के अनुसार÷बाल विकास “व्यवहार” का वह विज्ञान है, जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु पर अंतर करता है।

🌻हरलाक के अनुसार÷बाल विकास,मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से मृत्युपरांत तक होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करता है।

       🏵️बाल विकास का क्षेत्र

(Area of child development)

🏵️बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन निम्नलिखित है÷

गर्भावस्था

‌‌         शैशवावस्था

बाल्यावस्था

            किशोरावस्था

🏵️बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन निम्नलिखित है÷

🥀शारीरिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के शारीरिक विकास का भी अध्ययन करते हैं, जिसमें शरीर की संरचना, बनावट, आकार इत्यादि का अध्ययन करते हैं।

🥀मानसिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के मानसिक विकास का भी अध्ययन करते हैं जिसमें उसकी रुचियां, पसंद, कार्य करने की क्षमता,मनन, इत्यादि का विस्तृत अध्ययन करते है।

🥀संवेगात्मक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के संवेगात्मक विकास का भी अध्ययन करते हैं जिसमें उसके सभी आवेगो का अध्ययन करते है।

🥀सामाजिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के सामाजिक विकास का भी अध्ययन करते है, जिसमें बालक के समाज में उसके व्यवहार (खेल -कूद या अन्य कार्यक्रमों में सहभागिता वा प्रर्दशन इत्यादि)का अध्ययन करते हैं।

🥀बालक का नैतिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक का नैतिक विकास का अध्ययन किया जाता है, जिसके अंतर्गत नैतिकता की राह (सत्य बोलना, इमानदारी, सदाचारी आदि) का अध्ययन  करते हैं।

🥀बालक का सांस्कृतिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के सांस्कृतिक विकास का अध्ययन भी करते हैं, जिसके अंतर्गत बालक के सांस्कृतिक गुणों का अध्ययन करते हैं।

🥀बालक का भाषा विकास÷ बाल विकास के अंतर्गत बालक के भाषा विकास का अध्ययनन भी करते हैं, जिसके अंतर्गत उसकी बोलचाल में प्रयोग की जाने वाली भाषा का अध्ययन करते हैं।

🥀बालक का चारित्रिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के चारित्रिक विकास का भी अध्ययन करते हैं, जिसके अंतर्गत उसके चारित्रिक रूप का अध्ययन करते हैं।

🥀बालक का आध्यात्मिक विकास÷बाल विकास के अंतर्गत बालक के आध्यात्मिक विकास का अध्ययन करते हैं, जिसमें बालक का  सचेतना तथा स्वंय के अनुशासन से होता है।

🏵️बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन÷

🥀प्रत्यक्ष कारक÷ (वह कारक जो विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करें प्रत्यक्ष कारक कहलाता है।).  

                        वा

🥀अप्रत्यक्ष कारक÷(वह कारक जो विकास को प्रत्यक्ष रूप से ना प्रवाहित करके अप्रत्यक्ष प्रभावित करता है अप्रत्यक्ष कारक कहलाता  है।)

🥀अनुवांशिकता (Heredity)÷अनुवांशिकता से गुणों का स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होता है;

मधुमेह रोग अगर पहली पीढ़ी में किसी सदस्य को है तो यह आगे भी स्थानांतरित होता रहेगा।

🥀वातावरण(Environment)÷वातावरण  से गुणों का अर्जन किया जाता है।

🏵️बालक की विभिन्न असमानताओं का अध्ययन÷

🥀जीवन विकास में होने वाली असमानताओं  वा विकृति (Problem) का भी अध्ययन किया जाता है; जो केवल सामान्य बाधक नहीं,

                  असंतुलित व्यवहार

मानसिक विकार

              बौद्धिक दुर्बलता

बाल अपराध,

         इत्यादि को ध्यान में रखकर बालकों को पढ़ाते हैं।

🏵️मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन÷

🏵️बाल विकास मनोवैज्ञानिक तरीकों के उपचार प्रस्तुत करते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य अध्ययन के द्वारा बालकों के विकारों एवं उनकी दुश्चिंता को दूर करने का अच्छा तरीका है जिससे उन्हें गलत राह या काम करने से रोक सकते हैं ।

🏵️बाल विकास अंतः क्रिया का अध्ययन÷

बालक के समुचित विकास तथा समायोजन के लिए आ सकता का अध्ययन करता है;

अलग-अलग अवस्था में अंत:क्रिया करता है वह किस प्रकार से कार्य करता है, इसका भी अध्ययन बाल विकास में इसके अंतर्गत अपने परिवेश से करता है।

🏵️बालक की रुचियों का अध्ययन

बालक की रुचि व उसकी क्षमता के अनुसार ही उसको अध्ययन कराना, ही बाल विकास के अंतर्गत की रुचिओं में आता है।

🏵️बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन÷

इसके अंतर्गत अधिगम ,कल्पना, चिंतन स्मृति आदि का अध्ययन किया जाता है।

🌻वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन÷

प्रत्येक बालक की रुचियों, जरूरतों, कल्पना, क्षमताओं, बुद्धि, इत्यादि में अंतर पाया जाता है।

🌻बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन ÷

बालक के व्यक्तित्व मूल्यांकन के अंतर्गत उसके सीखे हुए ज्ञान,कौशल वा अध्ययन करते हैं जिससे यह स्पष्ट होता है बालक कितना सीख या समझ पा रहा है।

🌻बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन÷

जन्म के पश्चात बालक माता-पिता के समर्थन में रहता है, जहां उसका लालन-पालन वा भरण पोषण इत्यादि किया जाता है।

यदि बालक का माता-पिता से अच्छे संबंध नहीं है तो वह कुंठित वा असमायोजित हो जाता है;

                                               किंतु वहीं अगर संबंध अच्छे हैं तो वह अपनी समस्याओं को माता-पिता से कहते विचार-विमर्श करके ही उस समस्या का निराकरण करते है ।

🙏Written by-$hikhar pandey🙏

🏃🏃बाल विकास🏃🏃🏄🏂⛷️🤸🏋️

⛹️(Child Development)🏋️🚴🏋️🏇

🧘🚶🏃🤸🏋️⛹️🚴6 Feb 2021🏌️🏇

बाल विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है। बाल विकास का अध्ययन करने के लिए *विकासात्मक मनोविज्ञान* की अलग शाखा बना है, जो *गर्भ से मृत्यु* तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है। 

↪️तो इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया है क्योंकि मनोविज्ञान सिर्फ व्यवहार का अध्ययन करता है, जबकि बाल विकास उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है, जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर, संपूर्ण विकास में मदद करता है।

↪️बाल विकास से संबंधित कुछ मनोवैज्ञानिकों के कथन निम्नवत हैं-

🗣️हरलॉक के अनुसार, “बाल मनोविज्ञान का नाम *बाल विकास* इसलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाने लगा; किसी एक पक्ष पर नहीं।”

🗣️क्रो & क्रो के अनुसार, “बाल विकास वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन *गर्भावस्था से मृत्युपरांत* तक करता है।”

🗣️डार्विन के अनुसार, “बाल विकास *व्यवहार का विज्ञान* है जो बालक के *व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत* करता है।

🗣️हरलॉक के अनुसार, “बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो *गर्भाधान से मृत्युपरांत* होने वाले *मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन* का अध्ययन करता है।”

🥀🥀 बाल विकास का क्षेत्र

(Area of Child Development)

बालक के विकास का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जाता है-

1️⃣ बाल विकास के विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन-

↪️🍇 गर्भावस्था : इस अवस्था में मां के गर्भ में *भ्रूण विकास* का अध्ययन किया जाता है।

↪️🍇 शैशवावस्था : इस अवस्था में बालक के जन्म के बाद (बाल्यावस्था से पहले) की गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है।

↪️🍇 बाल्यावस्था : इस अवस्था में ऐसे बालकों (6 से 12 वर्ष के बालक) का अध्ययन किया जाता है जो शैशवावस्था के गुणों को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ चुका होता है। इस अवस्था को बालक के विकास का अनोखा काल कहा जाता है।

↪️🍇 किशोरावस्था : इसमें 12 वर्ष से 18 वर्ष के बालकों के विकास का अध्ययन किया जाता है।

2️⃣ बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन-

🍏 शारीरिक विकास : इसके अध्ययन से बालकों के शारीरिक विकास के लिए आवश्यक भोज्य पदार्थों और शरीर की विकृतियों से बचाव के लिए उपचारों का अध्ययन किया जाता है।

🍏 मानसिक विकास : इसमें बालक के मानसिक विकास के लिए आवश्यक तत्व एवं उसकी कमी से होने वाले विकृति का लक्षण, पहचान एवं उपचार का अध्ययन किया जाता है।

🍏 संवेगात्मक विकास : इसके अंतर्गत बालक के भावना, संवेग, इच्छा, आकांक्षा इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।

🍏 सामाजिक विकास : इसके अंतर्गत बालक के सामाजिक वातावरण एवं स्थिति का अध्ययन किया जाता है जिससे बालक को उचित सामाजिक गुणों को विकसित किया जा सके।

🍏संज्ञानात्मक विकास : इसके अंतर्गत बालक के ज्ञान को विकसित किया जाता है। इसे बौद्धिक विकास भी कहते हैं।

🍏आध्यात्मिक विकास : इसके अंतर्गत बालक में अपने कार्य के प्रति श्रद्धा की भावना को विकसित करने के लिए किया जाता है।

🍏सांस्कृतिक विकास : इसके अंतर्गत बालक में सांस्कृतिक गुणों को विकसित करने के लिए उपागम का अध्ययन किया जाता है।

🍏नैतिक विकास : इसके अंतर्गत बालक में समाज के, देश के तथा परिवार के प्रति नैतिक मूल्यों (सम्मान, आदर्श) को विकसित करने के लिए उपागम का अध्ययन किया जाता है।

🍏भाषा विकास : इसके अंतर्गत बालक को केवल बोलना सिखा कर, कब, कितना और किस भाषा का किस तरीके से प्रयोग करना है इत्यादि गुणों का विकास किया जाता है।

🍏चारित्रिक विकास : इसके अंतर्गत बालक के चरित्र निर्माण के उपागम का अध्ययन किया जाता है।

3️⃣ बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन-

⛎प्रत्यक्ष : जो चीजें हमें सीधे प्रभावित करती है उसे हम प्रत्यक्ष कहते हैं। जैसे- वातावरण (Environment) 

⛎अप्रत्यक्ष : जिससे हम प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं होते हैं। जैसे – आनुवांशिकता

इन सब के अतिरिक्त परिपक्वता तथा शिक्षण का भी प्रभाव पड़ता है।

4️⃣ बाल विकास की विभिन्न असमानता ओं का अध्ययन-

🍇 केवल सामान्य बालक नहीं

🍇 असमानता/विकृति

🍇 असंतुलित व्यवहार

🍇 मानसिक विकार

🍇 बौद्धिक दुर्बलता

🍇 बाल अपराध

5️⃣ मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन

बाल विकास मनोवैज्ञानिक तरीके से उपचार प्रस्तुत करता है।

6️⃣ बाल व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन : बालक किसी वस्तु या विषय वस्तु के प्रति कितना सक्रिय है अथवा उसका रवैया कैसा है इत्यादि का अध्ययन कर उचित समाधान किया जाता है।

7️⃣ बालक की रुचियों का अध्ययन : बालक किस विषय वस्तु को सीखने में अधिक समय दे रहा है अथवा इस कार्य को करने में उसका मन लग रहा है इसका पता लगाकर बालक को सही दिशा में मार्गदर्शन किया जाता है।

8️⃣ बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन-

⛎ तर्क(Reasoning) : इसमें बालक के तर्क करने की क्षमता का अध्ययन किया जाता है।

⛎अधिगम(Learning) : बालक किसी विषय वस्तु को कितना सीखा/कितना समझा है आदि का अध्ययन किया जाता है।

⛎कल्पना(Imagination) : इसमें बालक के कल्पना के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों का अध्ययन किया जाता है।

⛎चिंतन(Thinking) : चिंतन से बालक के किसी वस्तु को विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है।

⛎स्मृति(Memory) : स्मृति, बालक के द्वारा पूर्व में सीखे गए ज्ञान का उचित समय व स्थान पर प्रयोग करने की क्षमता है।

9️⃣ वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन-प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अद्वितीय होता है। प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग क्षमताएं, इच्छाएं, योग्यताएं, रुचियां होती हैं। अतः इन सभी विभिन्न नेताओं की समझ को विकसित किया जाता है।

🔟 बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन – किसी बालक का व्यवहार कैसा है, मित्रों  से संबंध कैसे हैं, भाषा का प्रयोग कैसा है, बालक की प्रकृति (अंतर्मुखी/बहिर्मुखी) कैसी है इत्यादि का अध्ययन कर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

1️⃣1️⃣ बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन – इसके अंतर्गत बालक के अभिभावक के साथ बालक-अभिभावक संबंध, व्यवहार एवं पारिवारिक स्थिति का आकलन कर बालक को उचित परिवेश उपलब्ध कराये जाने के उपागम का अध्ययन किया जाता है।✒️

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📝📝Notes by Awadhesh Kumar 🙏

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बाल – विकास /  Child – Development 

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बाल  –  विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है।

बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की एक अलग शाखा बनाई गई जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करती है। 

अतः विकासात्मक मनोविज्ञान को  ” बाल – विकास ”  में परिवर्तित किया गया है  क्योंकि , …

मनोविज्ञान सिर्फ व्यवहार का अध्ययन करता है जबकि बाल – विकास उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है।

 बाल विकास के संदर्भ में विभिन्न  मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित कथन दिए हैं    –

🌹  हरलॉक के अनुसार   : –

” बाल मनोविज्ञान ”  का नाम  बदलकर  ” बाल – विकास ”  इसलिए किया गया क्योंकि अब बालक के किसी एक पक्ष पर नहीं बल्कि ” बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। “

🌹   क्रो & क्रो   के अनुसार   :-

बाल विकास वह विज्ञान है जो , बालक के व्यवहार का अध्ययन ” गर्भावस्था से मृत्युपरांत तक करता है।

 🌹  डार्विन  के अनुसार   :-

बाल विकास ” व्यवहार  का विज्ञान ” है जो ,  बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत तक करता है।

 🌹  हरलॉक   के अनुसार   :-

बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से मृत्युपरांत होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करती है।

🌻 बाल – विकास का क्षेत्र  🌻

बाल विकास के क्षेत्र का निम्नलिखित प्रकार से अध्ययन किया जाता है   –

🏵️  1.  बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन :-

गर्भावस्था

शैशवावस्था

बाल्यावस्था

किशोरावस्था

अतः बालविकास में उपर्युक्त सभी अवस्थाओं का व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है।

🏵️  2.  बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन  :-

शारीरिक विकास

मानसिक विकास

संवेगात्मक विकास

सामाजिक विकास

संज्ञानात्मक विकास

आध्यात्मिक विकास

सांस्कृतिक विकास

नैतिक विकास

भाषाई विकास

चारित्रिक विकास

बालविकास में इन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

🏵️   3.  बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन   :-

वंशानुगत

वातावरण

परिपक्वता 

शिक्षण

ये सभी तथ्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बालकों को प्रभावित करते हैं।

अतः ये नहीं कहा जा सकता है कि बच्चों के सम्पूर्ण विकास में केवल एक ही प्रकार से विकास होता है बल्कि उपर्युक्त सभी तथ्यों का अपना-अपना महत्व होता है।

अतः बाल विकास के इन सभी तथ्यों से मनुष्य के    “व्यक्तित्व ”  का निर्माण होता है। 

🏵️   4.   बालकों की विभिन्न असमानताओं का अध्ययन   :-

केवल सामान्य बालक ही नहीं बल्कि

असमानता / विकृति

असंतुलित व्यवहार

मानसिक विकार

बौद्धिक दुर्बलता

बाल अपराध

आदि विभिन्न प्रकार के बालकों की असमानताओं का अध्ययन भी बालविकास में करते हैं।

🏵️   5.  मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन   :-

बाल विकास , मनोवैज्ञानिक तरीकों से उपचार प्रस्तुत करता है।

अर्थात्  बालविकास में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का मनोवैज्ञानिक तौर पर उपचार / अध्ययन किया जाता है।

🏵️   6.   बाल व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन  :-

अलग-अलग अवस्था में अपने परिवेश से अंतः क्रिया का अध्ययन करना।

अर्थात्  बच्चे अपनी अवस्था/ उम्र के अनुसार अपने परिवेश में विभिन्न प्रकार की अन्तःक्रियाएँ करते हैं जिसका अध्ययन भी बालविकास के अंतर्गत किया जाता है।

🏵️   7.   बालक की रूचिओं का अध्ययन   :-

बालविकास में बालकों की रुचि , पसन्द / नापसंद का भी अध्ययन किया जाता है।

 🏵️   8.  बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन  :-

तर्क

अधिगम 

कल्पना 

चिंतन 

स्मृति 

आदि सभी मानसिक  प्रक्रियाओं का अध्ययन भी   बालविकास के अंतर्गत करते हैं।

🏵️  9.   वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन   :-

अर्थात् बालविकास में प्रत्येक बच्चे की वैयक्तिक विभिन्नता के आधार पर ही बच्चों की विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं।

🏵️  10.   बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन   :-

अर्थात् हम जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य (बालक) भिन्न- भिन्न होते हैं तो सभी के व्यक्तित्व में भी भिन्नता पायी जाती है जिसका अध्ययन भी बालविकास के अंतर्गत करते हैं।

🏵️  11.   बालक  – अभिभावक संबंधों का अध्ययन  :-

बालविकास के अंतर्गत ही प्रत्येक बच्चों का उनके अभिभावकों के साथ संबंधों का अध्ययन करते हैं।

🌹 Notes by –  जूही श्रीवास्तव 🌹

💫 बाल विकास का अर्थ💫

(Child development)

🌸 बाल विकास से बात पर बालकों के सर्वांगीण विकास से है बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की अलग शाखा बनाई गई है

🌸 परंतु वर्तमान में इसे ‘बाल विकास ‘(child development)में परिवर्तित कर दिया गया क्योंकि बाल मनोविज्ञान में केवल बालकों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जबकि बाल विकास के अंतर्गत उन सभी तत्वों का अध्ययन किया जाता है जो बालक के व्यवहारों को एक निश्चित दिशा प्रदान कर विकास में सहायता प्रदान करते हैं।

🤵🏻‍♂हरलॉक के अनुसार➖ बाल मनोविज्ञान का नाम’ बाल विकास इसलिए बदल दिया गया, क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, किसी एक पक्ष पर नहीं”।

🤵🏻‍♂क्रो एंड क्रो के अनुसार➖

“बाल विकास वह विज्ञान है जो व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु पर्यंत तक करता है”।

🤵🏻‍♂डार्विन के अनुसार➖”बाल विकास व्यवहारों का वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु पर्यंत तक करता है”।

🤵🏻‍♂हरलॉक के अनुसार➖”बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भावस्था से लेकर मृत्यु पर्यंत तक होने मनुष्य की विभिन्न अवस्थाओं में परिवर्तन वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है”।

💫 बाल विकास का क्षेत्र💫

(Scopes of child development)

🌸 बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन (study of various stages of development)

प्राणी के जीवन प्रसार में अनेक अवस्थाएं होती हैं जैसे➖

गर्भ कालीन अवस्था, शैशवास्था, बचपनावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था।

🌸 बाल विकास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन (study of various aspects of child development)

इसके अंतर्गत विकास के विभिन्न पहलुओं जैसे➖ शारीरिक विकास,मानसिक विकास , संवेगात्मक विकास, सामाजिक विकास, क्रियात्मक विकास, भाषा विकास ,नैतिक विकास, चारित्रिक विकास और व्यक्तित्व विकास सभी का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया जाता है।

🌺 बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन➖

👉🏼प्रत्यक्ष कारक-वह कारक जो विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर प्रत्यक्ष कारक कहलाता है

👉🏼 अप्रत्यक्ष कारक➖वह कारक है जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है उसे अप्रत्यक्ष कारक कहते हैं।

👉🏼 अनुवांशिक और वातावरण➖ अनुवांशिकता के गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होते रहते हैं। जबकि वातावरण  से गुणों का आयोजन किया जाता है।

🌸 बालक की विभिन्न असामान्यताओं  का अध्ययन (study of various abnormalities of child)➖बाल विकास के अंतर्गत केवल सामान्य बालकों के विकास का ही नहीं अध्यन किया जाता बल्कि बालकों के जीवन विकास क्रम में होने वाले असमानता ओं और विकृतियों का भी अध्ययन किया जाता है

बाल विकास, असंतुलित व्यवहारों,मानसिक विकारों बौद्धिक दुर्बलताओं तथा बाल अपराधों के कारण को जानने का प्रयास करता है और निराकरण हेतु उपाय भी बताता है।

🌺 मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन(study of mental health)

बाल विकास केवल मानसिक दुर्बलता और रोगों का ही अध्ययन नहीं करता बल्कि विभिन्न मनोवैज्ञानिक तरीकों से उनके उपचार भी प्रस्तुत करता हैं।

🌸 बाल व्यवहार और अंत: क्रिया का अध्ययन ➖ बालक के समुचित विकास तथा समायोजन के लिए अध्ययन करता है

अलग-अलग अवस्थाओं में अंतः क्रिया करता है

🌺 बालक की रूचियों का अध्ययन➖बाल विकास बालकों की सूचियों का अध्ययन कर उन्हें शैक्षणिक और व्यवसायिक निर्देशन प्रदान करता है

रुचियां एक अर्जित व्यवहार है जो जन्मजात नहीं होती है बल्कि सीखी जाती है

🌺 बालकों की विभिन्न मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन➖ इसके अंतर्गत अधिगम ,कल्पना ,चिंतन, स्मृति आदि का अध्ययन किया जाता है।

🌸 व्यक्तिक भिन्नता ओं का अध्ययन➖सभी आयु स्तर पर विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है लेकिन फिर भी प्रत्येक क्षेत्र में सभी बालकों का विकास सामान नहीं होता है।

सारी विकास में कुछ बालक अधिक लंबे, कुछ नाटे तथा कुछ सामान्य लंबाई के होते हैं।

बाल विकास व्यक्तिक भिन्नता ओं का अध्ययन कर उन कारणों को जानने का प्रयास करता है जिससे सामान्य विकास प्रभावित होता है।

🌺 बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन➖बाल विकास के अंतर्गत बालकों के विभिन्न शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का मापन एवं मूल्यांकन किया जाता है।

योग्यताओं के मूल्यांकन के लिए बाल विकास के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकों द्वारा नीति नए वैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण किया जाता है

यह परीक्षण विभिन्न आयु स्तरों पर बालकों की योग्यताओं का मापन पर उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है।

🌺 बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन➖ जन्म के पश्चात बालक माता पिता के संरक्षण प्रधान होता है यदि बालक का माता-पिता से संबंध अच्छा नहीं होता तो वह कुंठित या असामाजिक व्यवहार करता है 

अगर संबंध अच्छा है तो वह अपनी समस्याओं को माता-पिता से कहता विचार-विमर्श करके ही उस समस्या का निराकरण करता है।

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma

📚📚✍🏻

*बाल विकास का अर्थ*

बाल विकास से तात्पर्य बालकों के *सर्वांगीण विकास* से है।

बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की शाखा बनाई गई जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के *व्यवहार का अध्ययन* करता है।

तो इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया क्योंकि मनोविज्ञान *सिर्फ व्यवहार का अध्ययन* करता है

 जबकि बाल विकास उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जो बालक के *व्यवहार को निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है*

हरलाॅक के अनुसार

 बाल मनोविज्ञान का नाम ‘बाल विकास’ इसलिए बदला गया क्योंकि *अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ,किसी एक पक्ष पर नहीं।*

क्रो एंड क्रो के अनुसार 

बाल विकास वह विज्ञान है जो बालक के *व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु उपरांत* तक करता है।

डार्विन के अनुसार 

बाल विकास *व्यवहार का विज्ञान* है जो बालक के *व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु उपरांत* तक करता है।

हरलाॅक के अनुसार

बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से मृत्यु उपरांत *होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन* करता है।

*बाल विकास का क्षेत्र*-

बाल विकास के विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन-

बाल विकास में बालक की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे गर्भावस्था, शैशवास्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था

बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन-

बाल विकास में बालक के विकास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है

 शारीरिक विकास ,मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास, सामाजिक विकास ,संज्ञानात्मक विकास, आध्यात्मिक विकास, सांस्कृतिक विकास, नैतिक विकास, भाषा विकास, चारित्रिक विकास

बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन-

बाल विकास में उन तत्वों का अध्ययन किया जाता है जो बालक के विकास को *प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष* रूप से प्रभावित करते हैं । इसमें अनुवांशिकता और पर्यावरण तथा परिपक्वता और शिक्षण का अध्ययन किया जाता है।

जो बालक के व्यक्तित्व‌ को भी प्रभावित करते हैं।

बालक की विभिन्न असमानताओं का अध्ययन-

बाल विकास में *केवल सामान्य बालक का ही अध्ययन नहीं* किया जाता है बल्कि *असमानता और विकृति से ग्रस्त और असंतुलित व्यवहार वाले बालक, मानसिक  विकार, बौद्धिक दुर्बलता, बाल अपराध* आदि का अध्ययन किया जाता है

मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन-

बाल विकास  मनोवैज्ञानिक तरीकों के उपचार प्रस्तुत करता है

बाल व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन-

बाल विकास में बालक की विभिन्न अवस्थाओं में बालक के व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन किया जाता है

बालक की रुचियों का अध्ययन-

बाल विकास में बालक की रूचियों का अध्ययन किया जाता है

बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन-

बाल विकास में बालक की *तर्क, अधिगम, कल्पना, चिंतन, स्मृति* आदि का अध्ययन किया जाता है

वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन-

प्रत्येक बच्चा अपने आप में यूनिक होता है अतः बाल विकास में बालको की वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है

बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन-

बाल विकास में बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है

बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन-

बालक अपना अधिकांश समय अपने माता -पिता के साथ व्यतीत करता है इसलिए बाल विकास में बालक और अभिभावक के बीच के संबंधों का अध्ययन किया जाता है

Notes by Ravi kushwah

👩‍👦‍👦 बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र 👨‍👦‍👦

♦️ बचपन संपूर्ण मानव जीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण अवस्था है।

♦️ एक बच्चे के विकास की शानदार आधारशिला बनाने का समय है।

♦️ जीवन की प्रारंभिक अवस्था सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है।

               बाल विकास

                 ↙️  ↘️

🔅बाल मनोविज्ञान 🔅विकासात्मक मनोविज्ञान

🟣 बाल मनोविज्ञान➖

                   बाल ➕ मनोविज्ञान

🔅बाल ➖

 वह प्राणी जो अभी प्रोढ़ नहीं हुआ है।

     ( गर्भावस्था से किशोरावस्था)

🔅 मनोविज्ञान➖

▪️ मन का विज्ञान

▪️ आत्मा का विज्ञान

▪️ चेतना का विज्ञान

▪️ व्यवहार का विज्ञान

🔸 फ्राइड के अनुसार ➖

 प्राणी चार- पांच साल की उम्र में जो बनना होता है बन जाता है।

🔸 क्रो एंड क्रो के अनुसार➖

 बाल मनोविज्ञान, वह वैज्ञानिक अध्ययन है जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्वकाल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक करता है।

 🔸 जेम्स ड्रेवर के अनुसार ➖

 बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो प्राणी का अध्ययन जन्म से परिपक्वता तक करते हैं।

    🟣 विकासात्मक मनोविज्ञान 🟣

🔅 इसका क्षेत्र विस्तृत और व्यापक है।

🔅 यह गर्व से लेकर जीवन पर्यंत विकास का अध्ययन करता है।

🔅 रचनात्मक परिवर्तन ही परिपक्वता लाती है।

♦️ बाल मनोविज्ञान और विकासात्मक मनोविज्ञान में अंतर

🔸 क्षेत्र में अंतर ➖

 बाल मनोविज्ञान का क्षेत्र गर्व से लेकर 18 वर्ष तक और विकासात्मक मनोविज्ञान का क्षेत्र गर्व से जीवन पर्यंत तक रहता है।

🔸 उद्देश्य में अंतर ➖

 बाल मनोविज्ञान में बालक के मन और व्यवहार का अध्ययन किया जाता है और विकासात्मक मनोविज्ञान में बच्चे के भूत और भविष्य वर्तमान को जोड़ा जाता है।

🔸 दृष्टिकोण में अंतर ➖

 बाल मनोविज्ञान  में, क्षमता जो बड़ों से अलग है का अध्ययन किया जाता है और विकासात्मक मनोविज्ञान में, क्षमता विकास और मच्योरिटी कैसे पाएं का अध्ययन किया जाता है।

 👨‍👦‍👦 बाल विकास 👩‍👦‍👦

🔅 अर्थ➖

 ➖बाल विकास  का तात्पर्य, बालकों के सर्वांगीण विकास से है, बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की अलग शाखा बनाई गई। जो गर्व से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है।

➖ परंतु वर्तमान में इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया क्योंकि मनोविज्ञान व्यवहार का अध्ययन करता है जबकि बाल विकास उन सभी तत्वों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है।

♦️ क्रो एंड क्रो के अनुसार ➖

 बाल विकास व विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत  तक करता है।

♦️ हरलॉक  के अनुसार ➖

 बाल मनोविज्ञान का नाम ” बाल विकास” इसलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है किसी एक पक्ष पर नहीं।

♦️ डार्विन के अनुसार➖

 बाल विकास, व्यवहार का विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपरांत करता है।

👨‍👦‍👦 बाल विकास का क्षेत्र ( Area of Child Development)👩‍👦‍👦

♦️ बाल विज्ञान के विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन ➖

🔅 गर्भावस्था

🔅 शैशवावस्था

🔅 बाल्यावस्था

🔅 किशोरावस्था

👨‍👦 बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन ➖

🔅 शारीरिक विकास।

🔅 मानसिक विकास।

🔅 संवेगात्मक विकास।

🔅 सामाजिक विकास।

🔅 संज्ञानात्मक विकास।

🔅 आध्यात्मिक विकास ।

🔅 सांस्कृतिक विकास।

🔅 नैतिक विकास।

🔅 भाषा विकास।

🔅 चारित्रिक विकास।

👨‍👦‍👦 बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन ➖

🔅 प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तत्व।

🔅 अनुवांशिकता एवं वातावरण।

🔅 परिपक्वता।

🔅 शिक्षण ।

🔅 बालक का व्यक्तित्व।

♦️ बालक की विभिन्न असमानताओं का अध्ययन➖

🔅 केवल सामान्य बालक नहीं विशिष्ट  बालकों का अध्ययन।

🔅 असमानता और विकृति वाले बालक।

🔅 असंतुलित व्यवहार वाले बालक।

🔅 मानसिक विकास से अवरुद्ध बालक।

🔅 बौद्धिक दुर्बलता वाले बालक

🔅 बाल अपराध करने वाले बालक।

♦️ मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन ➖

 बाल विकास,मनोवैज्ञानिक तरीके के उपचार प्रस्तुत करता है।

♦️ बाल व्यवहार और अंतः क्रिया  का ध्यान ➖

 बालकों की अलग-अलग अवस्था में उनके व्यवहार और अंतःक्रिया का अध्ययन किया जाता है।

♦️ बालकों की रुचियों  का अध्ययन।

♦️ बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन ➖

 बालक के तर्क,अधिगम, कल्पना, चिंता, स्मृति आदि का अध्ययन किया जाता है।

♦️ व्यक्तिक विभिन्नता का अध्ययन ➖

 हर बालक अपने में, अलग होता है, उनके अंदर पाए जाने वाले विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं का अध्ययन किया जाता है।

♦️ बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन।

♦️ बालक- अभिभावक संबंधों का अध्ययन➖

 बालक के विकास में उसके अभिभावक की भूमिका अहम् होती है, अगर किसी परिवार की  पारिवारिक वातावरण सही नहीं है तो ये बालक के विकास को अवरुद्ध करती है। जिससे बालक के मन में, कुंठा पैदा करती है।

Notes By➖”Akanksha”

👨‍👦‍👦📚👩‍👦‍👦🤟🤗🙏

💐 बाल विकास💐

बाल विकास में बच्चों को   कैसे पढ़ाना है।

बाल विकास से बचपन में संपूर्ण मानव जीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण अवस्था है यह एक बच्चे के विकास की शानदार आधारशिला बनाने का साथ है।

🌻 फ्रायड के अनुसार— प्राणी चार-पांच साल की उम्र में जो कुछ है बनना होता है बन जाता है।

अर्थात  जीवन की प्रारंभिक अवस्था सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है।

🌻 बाल विकास

 बाल मनोविज्ञान= बाल +मनोविज्ञान  

1. बाल मनोविज्ञान— बाल मनोविज्ञान में वह प्राणी जो अभी प्रौढ नहीं हुआ है गर्भावस्था से किशोरावस्था तक की अवस्था होती है।

2. विकासात्मक मनोविज्ञान— विकासात्मक मनोविज्ञान में मन का विज्ञान, आत्मा का विज्ञान, चेतना का विज्ञान, व्यवहार का विज्ञान यह सभी आते हैं।

🌻क्रो और क्रो के अनुसार —

बाल मनोविज्ञान वह वैज्ञानिक अध्ययन है जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्भ काल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक करता है।

🌻 जेम्स ड्राइवर के अनुसार— बाल मनोविज्ञान की वह शाखा है जो प्राणी के विकास का अध्ययन से परिपक्वता तक करते हैं।

🌻 विकासात्मक मनोविज्ञान

1. विकासात्मक मनोविज्ञान विस्तृत और व्यापक होता है।

2. गर्व से जीवन प्रयत्न विकास का अध्ययन करता है।

3. रचनात्मक परिवर्तन ही परिपक्वता लाती है।

🌻 बाल मनोविज्ञान और विकासात्मक मनोविज्ञान में अंतर

1. क्षेत्र में अंतर— बाल  मनोविज्ञान में बालक का विकास से गर्भ से लेकर 18 वर्ष तक होता है अर्थात विकासात्मक मनोविज्ञान में विकास  गर्भावस्था से जीवन पर्यटन तक होती है ।

2. उद्देश्य में अंतर— बाल मनोविज्ञान बालक के मन और व्यवहार को समझना है जो की विकासात्मक मनोविज्ञान में बच्चे के भूत और भविष्य वर्तमान को जोड़ता है।

3. दृष्टिकोण में अंतर— बाल मनोविज्ञान में बालक की क्षमता को जाना जाता है जो बड़ों से अलग है जबकि विकासात्मक मनोविज्ञान में उच्च क्षमता के विकास पर बात करता है जिसके आधार पर आज का बालक कल परिपक्व होता है।

🌻 बाल विकास का अर्थ(child  Development) —

बाल विकास से तात्पर्य बालकों के सर्वागीण विकास से है ।

बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की अलग शाखा बनाई गई है।

 जो गर्भ से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है तो इसे बाल विकास में परिवर्तित किया गया क्योंकि मनोविज्ञान सिर्फ व्यवहार का अध्ययन करता है जबकि बाल विकास उन सभी तथ्यों को अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करती है।

🌻 हरलॉक के अनुसार—

बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकास इसलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है किसी एक पक्ष पर नहीं।

🌻क्रो और क्रो के अनुसार —

बाल विकास व मनोविज्ञान वह है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु परांत तक करता है।

🌻 हरलाक के अनुसार—

बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भधारण से मृत्यु परांत होने वाले मनुष्य की विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है।

🌻 बाल विकास का क्षेत्र—

बाल विकास के विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन—

ःबाल विकास में बालक की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था

ः बाल विकास के पहलुओं का अध्ययन— बाल विकास में बालक के विकास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है शारीरिक विकास ,मानसिक विकास, संवेगात्मकता विकास ,अध्यात्मिक विकास, सामाजिक विकास, नैतिक विकास ,संज्ञानात्मक विकास ,शारीरिक विकास ,चारित्रिक विकास, भाषा विकास।

ः बाल विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन—

बाल विकास में उन तत्वों का अध्ययन किया जाता है जो बालको के प्रत्यक्ष  और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं इनमें अनुवांशिकता और पर्यावरण तथा परिपक्वता और शिक्षण का अध्ययन किया जाता है जो बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।

ः बालक की विभिन्न असमनताओं का अध्ययन—

बालक विकास में केवल सामान्य बालक का अध्ययन नहीं किया जाता है बल्कि असमानता विकृति से ग्रस्त और संतुलित व्यवहार वाले बालक मानसिक विकार,  बौद्धिक दुबंलता, बाल अपराध आदि का अध्ययन किया जाता है।

ः मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन—

 मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन में बालक विकास मनोविज्ञानी के तरीकों के उपचार प्रस्तुत करता है।

ः  बाल व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन—

बाल विकास में बालक की विभिन्न अवस्थाओं में बालक के व्यवहार औरअंतः क्रिया का अध्ययन किया जाता है।

ः   बालक की सूचियों का अध्ययन — बाल विकास में बालक की रुचि ओ का अध्ययन किया जाता है।

ः  बाला की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन— बाल विकास में बालक की तर्क अधिगम, कल्पना, चिंतन ,स्मृति आदि का अध्ययन किया जाता है। 

ः व्यक्तित्व विभिनता का अध्ययन—

प्रत्येक बच्चे का व्यक्तित्व अलग अलग होता है हर एक बच्चे का व्यक्तित्व उनका अलग होता है अतः बाल विकास में बालक को व्यथित विविधताओं का अध्ययन किया जाता है।

ः  बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन— बाल विकास में बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

ः।  बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन — बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन में बालक के अपना अधिकांश समय अपने माता-पिता अपने परिवार के साथ व्यतीत करता है इसलिए बाल विकास में बालक और अभिभावक के बीच संबंधों का अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण है।

Notes  By:-Neha Roy

🔆 बाल विकास (Child Development)➖

बाल विकास से तात्पर्य बच्चे के सर्वागीण विकास से है ।

बाल विकास का अध्ययन करने के लिए विकासात्मक मनोविज्ञान की एक अलग शाखा बनाई गई है जिसमें हम गर्भ  से मृत्यु तक बालक के व्यवहार का अध्ययन कर सकते है।

बाल विकास – सभी तत्वों का अध्ययन करता है जो बालक के व्यवहार को एक निर्धारित दिशा प्रदान कर संपूर्ण विकास में मदद करता है।

विकासात्मक मनोविज्ञान – जिसमें केवल बालक के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

इसीलिए विकासात्मक मनोविज्ञान को बाल विकास में परिवर्तित किया गया।

बाल विकास के संदर्भ में कुछ मनोवैज्ञानिक कथन –

🔹हरलॉक के अनुसार –  बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकास इसीलिए बदला गया क्योंकि अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ना कि किसी एक पक्ष पर ।

🔹क्रो एंड क्रो के अनुसार – बाल विकास वह विज्ञान है जिसमें बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्यु उपरांत तक किया जाता है।

🔹डार्विन के अनुसार – बाल विकास व्यवहार का विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन करता है।

🔹 हरलॉक के अनुसार –  बाल मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से मृत्यु उपरांत होने वाले मनुष्य की विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है।

🔅  बाल विकास का क्षेत्र (Area of Child Development)-

किसी भी कार्य या गतिविधि को करने का अपना एक क्षेत्र या एरिया होता है।

 कुछ ऐसी चीजें जो बाल विकास के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं या ऐसी कौन-कौन सी चीजें हैं जिसका अध्ययन हम बाल विकास के अंदर करते हैं ।

जो निम्न है 

▪️ बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन – बालक के विकास में कई अवस्थाएं आती हैं जैसे

गर्भावस्था

शैशवावस्था

बाल्यावस्था

किशोरावस्था

इन सभी अवस्थाओं के अध्ययन से हम बालक की क्षमता तथ्यों और उस में होने वाले परिवर्तनों या परिस्थितियों को जानते वह समझते या उनका अध्ययन करते हैं।

▪️ बाल विकास की विभिन्न पहलुओं का अध्ययन – बालकों के निम्न पहलू जैसे  बालक के शारीरिक विकास, मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास, नैतिक विकास ,सामाजिक विकास, सांस्कृतिक विकास ,भाषा विकास, चारित्रिक विकास आदि का अध्ययन करते हैं।

▪️ बाल विकास को प्रभावित करने वाले कई कारको का अध्ययन – 

कई ऐसे कारक हैं जो बालक को प्रत्यक्ष (जो हमारे सामने है) और अप्रत्यक्ष ( जो हमारे सामने नहीं है ) 

रूप से  प्रभावित करते है ।

 बालक के विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण का प्रभाव पड़ता है ।

वंशानुक्रम और वातावरण से मिलकर जो परिपक्वता आती है। तथा जो शिक्षण होता है वह भी बालक के विकास को प्रभावित करता है।

बाल विकास के विकास में यह सभी प्रक्रिया या इन सभी प्रक्रियाओं का मिश्रण ही बालक के व्यक्तित्व का निर्माण करता है।

व्यक्ति के व्यक्तित्व में वातावरण का और अनुवांशिक का कितना कितना योगदान है इसे मापा या बताया या व्यक्त नहीं किया जा सकता ।

▪️ बालक की विभिन्न और असमानताओ का अध्ययन – 

बाल विकास के अंतर्गत केवल सामान्य बालक के विकास का अध्ययन ही नहीं किया जाता बल्कि इसके साथ-साथ बालक की जीवन विकास क्रम में होने वाली असमानता ओं या विकृति या असंतुलित व्यवहार या बौद्धिक दुर्बलता इन सभी को ध्यान में रखकर अध्ययन किया जाता है ।

प्रत्येक बच्चे एक जैसा नहीं होता सब की अलग अलग क्षमता ,अलग-अलग सीखने की गति ,अलग-अलग व्यवहार, किसी भी कार्य को करने का अलग अलग तरीका या ढंग होता है यही विभिन्नता या  असमानता जो हर एक व्यक्ति में होती है , इसी विभिन्नता या असमानता को ध्यान में रखकर ही शिक्षण कार्य ऐसा किया जाए जिसमें प्रत्येक बच्चे की आवश्यकता या जरूरत या उसकी जरूरत के अनुरूप अर्थात प्रत्येक बच्चे की विभिन्नता को ध्यान में रखकर अर्थात समावेशी शिक्षा दी जाए।

▪️ मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का अध्ययन – 

बालक केवल मानसिक दुर्बलता या रोगों की या समस्या का सामना नहीं करता बल्कि कभी-कभी वह कई मनोवैज्ञानिक तरीकों या समस्याओं अर्थात  कई तरह किमानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का सामना भी करता है।

इसीलिए बाल विकास इस समस्या के लिए कई मनोवैज्ञानिक तरीके  उपचार प्रस्तुत करते हैं।

▪️ बाल व्यवहार और अंतः क्रिया का अध्ययन – अलग-अलग अवस्था में बच्चों की जो अलग-अलग गतिविधियां है उसमें होने वाली अंतर क्रिया और उसमे बालक के व्यवहार के  का अध्ययन करते हैं

▪️ बालक की रुचियों का अध्ययन- 

हर बच्चे की रूचि को जानकर भी हम व्यक्ति की रूचि के अनुसार कार्य करते हैं जिससे वह बच्चे किसी भी कार्य करने में अपनी  सक्रिय भागीदारी निभाते है और  कार्य को सफलतापूर्वक कर पाते हैं ।

▪️ बालक की मानसिक प्रक्रिया- 

बालक के तर्क ,अधिगम ,कल्पना, चिंतन और स्मृति इन सभी तथ्यों को जानकर भी बालक की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन किया जा सकता है।

क्योंकि यह सभी तथ्य बालक को समझने में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

▪️ व्यक्तिक विभिन्नता का अध्ययन – 

हर व्यक्ति की आवश्यकताए और उनकी रुचि ,सीखने की क्षमता  या तरीका या ढंग सभी में अलग अलग होता है जिसका अध्ययन करना भी आवश्यक है क्योंकि यह सभी कार्य को प्रभावी और सफल बनाया जा सकता है।

▪️ बालकों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना – सभी व्यक्ति का अलग अलग व्यक्तित्व है और इसीलिए हर व्यक्ति के व्यक्तित्व का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है।

▪️ बालक अभिभावक संबंधों का अध्ययन- हर बालक का संबंध अपने माता-पिता से होता है यदि यह संबंध अच्छा नहीं होता है तो बालक कुंठित या परेशान या अपराधी प्रवृत्ति के हो जाते हैं या कुसमायोजित हो जाते हैं 

जबकि इसके विपरीत यदि बालक के अभिभावक से संबंध अच्छे हैं मतलब माता-पिता की बात सुनते ही अपनी बात कहते वह समझते हैं तो बेहतर रूप से समायोजित हो जाते हैं।

इसीलिए बाला का युवा वाक्य संबंधों का अध्ययन करना भी अत्यंत आवश्यक है।

✍🏻

  *Notes By-Vaishali Mishra*

#1. CDP – Introduction of child development and pedagogy

मनोविज्ञान का परिचय

बचपन-मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है,यह बच्चे के विकास की शानदार आधारशिला बनाने का समय है।

सिग्मन फ्रायड का कथन “प्राणी चार पांच साल की उम्र में जो कुछ बनना होता है बन जाता है”
जीवन की प्रारंभिक अवस्था सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है।

बाल विकास को दो भागों में विभाजित किया गया है;
🏵️1-पहला- बाल मनोविज्ञान-
🌻2-दूसरा -विकासात्मक मनोविज्ञान

1-बाल+मनोविज्ञान। =बालमनोविज्ञान;
बाल का अर्थ है- वह प्राणी जो अभी प्रौण नहीं हुआ हैं।(गर्भावस्था से किशोरावास्था तक)

मनोविज्ञान का अर्थ-
आत्मा का विज्ञान;
मस्तिष्क का विज्ञान;
चेतना का विज्ञान;
व्यवहार का विज्ञान इत्यादि से है;

क्रो एवं क्रो के अनुसार-
बाल मनोविज्ञान,वह वैज्ञानिक अध्ययन या जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन कार्यकाल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक रहता है।

जेंम्स ड्रेवर के अनुसार÷
“मनोविज्ञान की वह शाखा है ,जो प्राणी के विकास का अध्ययन जन्म से परिपक्वता तक करते हैं।

🌻2– दूसरा विकासात्मक मनोविज्ञान

🌻@ विकासात्मक मनोविज्ञान जन्म के पूर्व से लेकर जीवनपर्यंत तक के विकास का अध्ययन करता है।

@ विस्तृत और व्यापक होता है।

@ गर्भ से जीवन पर्यन्त तक विकास का अध्ययन करता है।

@ रचनात्मक परिवर्तन हीं परिपक्वता लाती है।

🌺🌺 मनोविज्ञान एवं विकासात्मक मनोविज्ञान में अंतर निम्नलिखित हैं÷

🏵️1-क्षेत्र में अंतर-
🌸बाल मनोविज्ञान-गर्भ से लेकर किशोरावस्था तक
🌻विकासात्मक मनोविज्ञान-गर्भ से जीवन पर्यन्त तक;

🏵️2 उद्देश्य मे अंतर
🌸बाल मनोविज्ञान में बालक के मन और व्यवहार को समझना;
🌻विकासात्मक मनोविज्ञान में बच्चे के भूत और भविष्य से वर्तमान को जोड़ना;

🏵️3-दृष्टिकोण-
🌸बाल मनोविज्ञान ÷इसमें बालक की क्षमता को जानने की कोशिश, जो कि बड़ो से अलग है;
🌻विकासात्मक मनोविज्ञान÷ इसमें क्षमता बढ़ाने की ,वा बच्चे उस परिपक्वता तक कैसे पहुंचे;

🌷धन्यवाद🌷

Written by -shikhar pandey 🥀

🌸 Introduction of child development and pedagogy🌸

🌺 बाल मनोविज्ञान का परिचय🌺
बचपन-संपूर्ण मानव जीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण अवस्था है, यह एक बच्चे के विकास की शानदार आधारशिला बनाने का समय है।

🤵🏻‍♂सिग्मंड फ्रायड के अनुसार➖ प्राणी चार पांच साल की उम्र में जो कुछ बनना होता है बन जाता है।
जीवन की प्रारंभिक अवस्था सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है।

💫 बाल विकास को दो भागों में बांटा गया है

♦️ 1-बाल मनोविज्ञान
♦️2- विकासात्मक मनोविज्ञान

1-बाल मनोविज्ञान =बाल+मनोविज्ञान

बाल का अर्थ है-वह प्राणी जो अभी प्रौढ़ नहीं हुआ है। (गर्भावस्था से किशोरावस्था)

मनोविज्ञान का अर्थ- मन का विज्ञान
आत्मा का विज्ञान
व्यवहार का विज्ञान

🤵🏻‍♂क्रो एंड क्रो के अनुसार➖बाल मनोविज्ञान वह वैज्ञानिक अध्ययन है जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्भ काल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक करता है।

🤵🏻‍♂जेम्स ड्रेवर के अनुसार➖ बाल मनोविज्ञान वह शाखा है जो प्राणी के विकास का अध्ययन जन्म से परिपक्वता तक करता है।

🌸 2-दूसरा विकासात्मक मनोविज्ञान

💫 विकासात्मक मनोविज्ञान जन्म से पूर्व से लेकर जीवन पर्यंत तक के विकास का अध्ययन करता है।

💫 विस्तृत और व्यापक होता है।
💫 रचनात्मक परिवर्तन ही परिपक्वता लाती है।

🌸🌺 मनोविज्ञान एवं विकासात्मक मनोविज्ञान में अंतर निम्नलिखित है।

💫 क्षेत्र में अंतर
🌸 बाल मनोविज्ञान- गर्भ से लेकर किशोरावस्था तक

🌺 विकासात्मक मनोविज्ञान- गर्भ से जीवन पर्यंत तक

💫 उद्देश्य में अंतर

🌸 बाल मनोविज्ञान में मन और व्यवहार का अध्ययन किया जाता है

🌺 विकासात्मक मनोविज्ञान में बच्चे के भूत और भविष्य से वर्तमान को जोड़ना

💫 दृष्टिकोण में अंतर

🌸 बाल मनोविज्ञान-इसमें बालक की क्षमता को जानने की कोशिश जो कि बड़ों से अलग है

🌺 विकासात्मक मनोविज्ञान-इसमें क्षमता बढ़ाने की वह बच्चे उस परिपक्वता तक कैसे पहुंचे,

✍🏻📚📚 Notes by…..
Sakshi Sharma📚📚✍🏻

बालविकास / बाल मनोविज्ञान का उद्भव / परिचय
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बचपन संपूर्ण मानव जीवन की अत्यंत ही महत्वपूर्ण अवस्था होती है।

बचपन एक बच्चे के विकास के शानदार आधारशिला बनाने का सबसे सुनहरा समय होता है।

🌺 सिग्मंड फ्रायड के अनुसार- :

” प्राणी चार – पांच साल की उम्र में जो कुछ बनना होता है बन जाता है। “

अर्थात् मनुष्य को भविष्य में जो बनना होता है उसके लक्षण प्रारम्भिक जीवन के 4 – 5 वर्ष में ही दिख जाते हैं।

” जीवन की प्रारंभिक अवस्था सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। “

🌺 क्रो & क्रो के अनुसार – :

बाल मनोविज्ञान , वह वैज्ञानिक अध्ययन है जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्भकाल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक करता है।

🌺 जेम्स ड्रेवर के अनुसार – :

बाल मनोविज्ञान , मनोविज्ञान की वह शाखा है जो प्राणी के विकास का अध्ययन जन्म से परिपक्वता तक करती है। 🌻 बाल विकास 🌻

बाल विकास को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है -:

👉 1. बाल मनोविज्ञान

👉 2. विकासात्मक मनोविज्ञान

👶👩 बालमनोविज्ञान 👩👶 बाल + मनोविज्ञान

👉 यहाँ बाल का अर्थ है :-

वह प्राणी जो अभी प्रौढ़ नहीं हुआ है अर्थात -: बालक अवस्थागत रूप से गर्भावस्था से किशोरावस्था तक

👉 मनोविज्ञान का अर्थ है :-

प्राणी / बालक के

मन का विज्ञान
आत्मा का विज्ञान
चेतना का विज्ञान
व्यवहार का विज्ञान

विकासात्मक मनोविज्ञान

Development psychology
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

विकासात्मक मनोविज्ञान का क्षेत्र विस्तृत / व्यापक होता है।

इसके अंतर्गत गर्भ से सम्पूर्ण जीवन तक विकास का अध्ययन करते हैं।

रचनात्मक परिवर्तन ही व्यक्ति में परिपक्वता लाती है।

बाल मनोविज्ञान / विकासात्मक मनोविज्ञान में अंतर :-
🌺💥💥🌺💥💥🌺💥

  1. क्षेत्र में अंतर :-

बालमनोविज्ञान :- गर्भ से 18 वर्ष तक

विकासात्मक मनोविज्ञान :- गर्भ से जीवन पर्यन्त

  1. उद्देश में अंतर :-

बालमनोविज्ञान :- बालक के मन और व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

विकासात्मक मनोविज्ञान में :- बच्चे के भूत और भविष्य से वर्तमान को जोड़ना

  1. दृष्टिकोण में अंतर -: बालविकास :- इसमें बलकों की क्षमता को जानने की कोशिश करते हैं जो कि क्षमता से बड़ों से अलग है।

विकासात्मक :- क्षमता विकास capacity development , Maturity कैसे पायें।

🌺✍️🏻Notes by जूही श्रीवास्तव✍️🏻🌺

बाल विकास का परिचय

अध्यापक को छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाना होता है

पढ़ाना कैसे हैं
इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है
इसके लिए पढ़ाने से पहले अध्यापक को बच्चों को समझना होता है।
कि बच्चे कैसे सोचते हैं बच्चे कैसे सीखते हैं बच्चे का व्यवहार कैसा है बच्चे कब अधिक सीखते हैं बच्चे कब कम सीखते हैं बच्चे की बुद्धि क्या है आयु स्तर क्या है
आदि को जानने के लिए अध्यापक को बाल विकास का अध्ययन करना होता है।

बचपन संपूर्ण मानव जीवन का अत्यंत ही महत्वपूर्ण अवस्था है।
यह एक बच्चे के विकास की शानदार आधारशिला बनाने का समय है।

फ्रायड के अनुसार- प्राणी चार- पांच साल की उम्र में जो कुछ बनना होता है ,बन जाता है।
अर्थात्
जीवन की प्रारंभिक अवस्था, सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती हैं।

बाल विकास

बाल विकास को दो भागों में बांटा गया है
1.बाल मनोविज्ञान
2.विकासात्मक मनोविज्ञान

बाल मनोविज्ञान-

बाल+ मनोविज्ञान= बाल मनोविज्ञान

बाल- वह प्राणी जो अभी प्रौढ नहीं हुआ है अर्थात्
गर्भावस्था से किशोरावस्था में है

मनोविज्ञान- मन का विज्ञान ,चेतना का विज्ञान, आत्मा का विज्ञान , व्यवहार का विज्ञान

क्रो एंड क्रो के अनुसार –
बाल मनोविज्ञान, वह वैज्ञानिक अध्ययन है, जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्भकाल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक करता है।

की पोइंट- गर्भकाल की प्रारंभिक अवस्था से किशोरावस्था तक का अध्ययन

जेम्स ड्रेवर के अनुसार-
बाल मनोविज्ञान ,मनोविज्ञान की वह शाखा है, जो प्राणी के विकास का अध्ययन जन्म से परिपक्वता तक करते हैं।

की पोइंट- जन्म से परिपक्वता तक का अध्ययन

विकासात्मक मनोविज्ञान

इसका क्षेत्र बहुत व्यापक और विस्तृत होता है
यह गर्भ से जीवन पर्यंत विकास का अध्ययन करता है
रचनात्मक परिवर्तन ही परिपक्वता लाती है। अर्थात व्यक्ति को हमेशा अपने कार्य को कुछ नए ढंग से करते रहना चाहिए जिससे कि उसे उस कार्य को करने में मजा आये।और हमेशा सिखता रहे।

बाल मनोविज्ञान और विकासात्मक मनोविज्ञान में अंतर

क्षेत्र में अंतर –
बाल मनोविज्ञान में गर्भ से लेकर किशोरावस्था तक का अध्ययन किया जाता है जबकि विकासात्मक मनोविज्ञान में गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत चलने वाले विकास का अध्ययन किया जाता है।

उद्देश्य में अंतर-
बाल मनोविज्ञान का उद्देश्य बालक के मन और व्यवहार को समझना है जबकि विकासात्मक मनोविज्ञान का उद्देश्य बच्चे के भूत और भविष्य से वर्तमान को जोड़ना है

दृष्टिकोण में अंतर –
बाल मनोविज्ञान में बालक की क्षमता को जाना जाता है जो बड़ों से अलग हैं जबकि विकासात्मक मनोविज्ञान में उस क्षमता के विकास पर बात करता है जिसके आधार पर आज का बालक कल परिपक्व हो सके।

Notes by Ravi kushwah

Different teaching methods for all subject CTET and TET notes by Priyanka Ahirwar

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

🌺🌿🌺 शिक्षण विधिया 🌺🌿🌺
( हिन्दी व संस्कृत )

👉🏻 पद्य शिक्षण/ कविता शिक्षण की विधियाँ ~
# गीत विधि,
# अभिनय विधि,
# अर्थबोध / उद्बोधन विधि, ( सबसे उपयुक्त ),
# खण्डान्वय विधि,
# दण्डान्वय विधि,
# व्याख्यान विधि,
# तुलना विधि,
# समीक्षा विधि,
# परम्परागत विधि,
# व्यास विधि,

👉🏻 व्याकरण शिक्षण की विधियाँ ~
# व्याकरण अनुवाद / भण्डारकर विधि, ( सबसे उपयुक्त),
# भाषा संसर्ग / अव्यक्त विधि,
# सूत्र विधि,
# आगमन विधि,
# निगमन विधि,
# समवाय विधि,
# परायण विधि,
# ह्यूरिस्टिक विधि,
# प्रदर्शन विधि,
# समस्या समाधान विधि,

👉🏻 रचना शिक्षण की विधियाँ ~
# प्रश्नोत्तर विधि,
# चित्र वर्णन विधि,
# देखो और कहो विधि,
# रूपरेखा विधि,
# खेल विधि,

👉🏻 नाटक शिक्षण की विधियाँ ~
( नोट:- नाटक , गद्य व पद्य शिक्षण के बीच की विधा है। )
# आदर्श नाट्य विधि,
# अभिनय विधि :-
* कक्षा अभिनय विधि,
* रंगमंच अभिनय विधि,
# व्याख्या विधि,

👉🏻 कथा शिक्षण / गद्य शिक्षण की विधियाँ ~
# कथा कथन विधि,
# चित्र विधि,
# प्रश्नोत्तर विधि,
# संवाद विधि,
# कक्षा अभिनय विधि,
# गहनाध्ययन विधि,

👉🏻 उच्चारण शिक्षण की विधियाँ ~
# अनुकरण विधि,
# आवृति विधि,
# अवरोह विधि,
# पूर्णता विधि,
# टीका विधि,
# प्रवचन विधि / कोष विधि,
# स्पष्टीकरण विधि,
# व्युत्पत्ति विधि,

👉🏻 अनुवाद शिक्षण की विधियाँ ~
# पाठ्य पुस्तक विधि,
# द्विभाषी विधि / श्रेष्ठ विधि,
# तुलना विधि / अनुकरण विधि,

👉🏻 अनुवाद के प्रकार 👈🏻
” तीन प्रकार के होते हैं ”
@ अक्षरशः अनुवाद,
@ छायानुवाद / भावानुवाद / मर्मानुवाद,
@ तथ्यानुवाद / श्रेष्ठानुवाद,

👉🏻 परंपरागत विधि / प्राचीन विधि ~
# पाठशाला विधि / गुरूकुल परंपरा/ पण्डित प्रणाली,
# व्याकरण अनुवाद विधि,

👉🏻 पाठशाला विधि ~
# सूत्र विधि,
# परायण विधि,
# वाद विवाद विधि,
# मौखिक व व्यक्तिगत विधि,
# व्याख्या विधि,
# प्रश्नोत्तर विधि,
# कथा कथन विधि,
# कक्षा नायक विधि,
# भाषण विधि,
# व्याकरण विधि,

👉🏻 नवीन/ आधुनिक विधियाँ ~
( शुरूआत लार्ड मैकाले के समय से )
# पाठ्य पुस्तक विधि,
# प्रत्यक्ष विधि / निर्बाध विधि/ सुगम विधि,
# हरबर्ट विधि,
# विश्लेषण विधि,
# संरचना विधि,
# समवाय व समन्वय विधि,
# मूल्यांकन विधि,

👉🏻 नवीनतम विधि / नवीनतम उपागम ~
# दल शिक्षण,
# प्रयोज कार्य,
# पर्यवेक्षण विधि,
# संगणक शिक्षण प्रतिमान,
# सूक्ष्म शिक्षण,
# आगमनोपागम,
# संप्रेषण आधारित उपागम,

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