Individual Difference for CTET & TET notes by india top learners

📚 वैयक्तिक विभिन्नता के आधार पर शिक्षा प्रक्रिया 📚 1️⃣ डाल्टन प्रणाली ➖ प्रवर्तक➖ अमेरिकी शिक्षाशास्त्रणी मिस. हेलन पार्कहर्स्ट 💫सन् 1920 में हेलन पार्कहर्स्ट ने इस विधि के द्वारा शिक्षण प्रारंभ किया। 👉 इन्होंने बाल केंद्रित शिक्षा व्यक्तिगत शिक्षण स्वाध्याय पर बल अध्ययन और शैक्षिक प्रगति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता शिक्षक का कार्य मार्गदर्शन करना और बच्चों का स्वयं से कार्य करना पर बल दिया था। 👉 इन्होंने शिक्षण में समय सारणी नहीं होने की बात कही है। 👉 बालक को हर विषय में प्रयोगशाला देनी है बालक को स्वतंत्र रहने दीजिए। 2️⃣ प्रोजेक्ट प्रणाली ➖ 💫 मूलाधार ➖जॉन. डी. वी. 💫प्रणाली के जन्मदाता ➖ विलियम हेड किलपैट्रिक 👉 बच्चों के लिए अधिगम की परिस्थितियों उत्पन्न करना । 👉बच्चों को नवीन शिक्षा देना 👉 बच्चे के लिए स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 👉 इसमें शिक्षा वास्तविक जीवन की गहराई में प्रवेश कर सामाजिक जीवन में भी नहीं वरन उस उत्तम जीवन मे भी उसकी आशा करते हैं। 3️⃣ डेक्रोली प्रणाली ➖ प्रवर्तक➖ डॉ. ओविड डेक्रोली 👉 जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा । 👉बालक का विभाजन रुचि क्षमता और योग्यता के हिसाब से किया जाए 👉 इस विधि में शिक्षक स्वयं अपनी सूझबूझ से बालकों की रूचि के अनुसार उनकी आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करवाता रहता है इसमें भाषा संबंधी ज्ञान की आवश्यकता होती है वह बालकों को दिया जाता है। 4️⃣ किण्डर गार्डन प्रणाली ➖ प्रवर्तक ➖ जर्मन शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल । 👉 पुस्तके ज्ञान का विरोध किया 👉 बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली को अपनाया 👉खेल द्वारा शिक्षण की बात कही। 👉 इस विधि में स्वतंत्र वातावरण स्वतः विकास की प्रक्रिया एकता की भावना खेलों के माध्यम से शिक्षा सामूहिक भावना का विकास और प्राकृतिक सौंदर्य का निरीक्षण इसमें बालक को की ज्ञानेंद्रियों को प्रशिक्षित करने शारीरिक शक्तियों का विकास करने एवं भाषा तथा गणित संबंधी प्रारंभिक ज्ञान देने के लिए किया जाता है। 5️⃣ विनेटिका प्रणाली ➖ प्रवर्तक ➖ डॉ. कार्लटन वाशबर्न 👉 बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता । 👉पाठ्यक्रम का विभाजन । 👉छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है। 👉 इस विधि में शिक्षक एक मार्गदर्शक होता है जो बालकों के कार्य का निरीक्षण करता है और उन्हें प्रोत्साहित करता है। 6️⃣ माण्टेसरी प्रणाली ➖ प्रवर्तक ➖ डॉ.मारिया माण्टेसरी 👉 यह विधि मनोवैज्ञानिक प्रणाली है । 👉व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करता है। 👉 इसमें शिक्षक बालकों की इच्छा और आवश्यकता अनुसार ही मार्गदर्शन करता रहता है 👉इस विधि में ने कोई कक्षा व्यवस्था होती है ना कोई समय विभाग चक्र यह एक बाल केंद्रित विधि है जिसमें बालक को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पूरा अवसर मिलता है। 7️⃣ बेसिक शिक्षा प्रणाली ➖ प्रवर्तक ➖ महात्मा गांधी। 👉 बालक के सर्वांगीण विकास पर बल दिया गया। 👉 शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क बनाया गया । 👉हस्तकला पर आधारित मातृभाषा में शिक्षा दी जाए। 8️⃣ गैरी शिक्षा प्रणाली ➖ प्रवर्तक ➖ डब्ल्यू. ए. बर्ट 👉 इन्होंने तीन बातों पर बल दिया- 1. खेल 2. कार्य 3. अध्ययन 🔰 Notes by ➖ ✍️ Gudiya Chaudhary 🍀🍀व्यक्तिक विभिन्नता के आधार पर शिक्षा प्रक्रिया🍀🍀 🏵️🏵️डाल्टन प्रणाली🏵️🏵️ 🌼जन्मदाता-अमेरिकन शिक्षण शास्त्री”मिस हेलेन पार्क हेस्ट। 🌀शिक्षण प्रणाली में समय सारणी नहीं होनी चाहिए; 🌀हर विषय में प्रयोगशाला विधि से पढ़ाना; 🌀छात्र को स्वतंत्र रहने दीजिए; 🏵️🏵️प्रोजेक्ट प्रणाली🏵️🏵️ 🌼मूलाधार जॉन डीवी 🌼प्रणाली के रूप में जन्मदाता-विलियम हेंड किलपैट्रिक। 🌀अधिगम की परिस्थिति उत्पन्न करना। 🌀बच्चे को नवीन शिक्षा देना। 🌀स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 🏵️🏵️डेक्रोली प्रणाली🏵️🏵️ 🌼 जन्मदाता-डॉक्टर ओविड डेक्रोली; 🌀जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा देना; 🌀बालक का विभाजन रुचि क्षमता योग्यता के हिसाब से करिए; 🏵️🏵️किंडर गार्डेन प्रणाली🏵️🏵️ 🌼जन्मदाता -फ्रॉवेल 🌀इन्होंने पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया; 🌀बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली ; 🌀खेल विधि द्वारा शिक्षा देना(बचपन में यह खुद पुस्तक की ज्ञान को संग्रहित करने में कमजोर थे इसलिए उन्होंने पुस्तक विज्ञान का विरोध आगे चलकर भी किया क्योंकि पुस्तक के ज्ञान के बिना भी बच्चा आगे बढ़ सकता है ऐसा इनका मानना था।) 🏵️🏵️बिनेटिका प्रणाली🏵️🏵️ 🌼जन्मदाता-डॉक्टर कार्लटन वासबर्न 🌀बालक के व्यक्तित्व (रुचि, सामाजिक दायरा, अभिप्रेरणा आदि) को प्रधानता दी। 🌀पाठ्यक्रम का विभाजन करना भी जरूरी है; 🌀छात्र अपनी जाति से सीख कर स्वयं की परीक्षा लेता है (स्व मूल्यांकन); 🏵️🏵️मैडम मारिया मांटेसरी प्रणाली🏵️🏵️ 🏵️अन्य नाम-मनोवैज्ञानिक प्रणाली🏵️ 🌀व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा देना। 🏵️🏵️बेसिक शिक्षा प्रणाली🏵️🏵️ 🌼जन्मदाता- मोहनदास करमचंद गांधी (सन् 1933) 🌀बालकों के संग सर्वांगीण विकास पर बल दिया; 🌀अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया। 🌀हस्तकला पर आधारित मातृभाषा। 🏵️🏵️गैरी शिक्षा प्रणाली🏵️🏵️ 🌼जन्मदाता-डब्ल्यू ए बर्ट 🍀तीन बात पर बल दिया- 🌀प्रथम खेल 🌀द्वितीय-कार्य 🌀तृतीय-अध्धयन 🇮🇳हस्तलिखित के द्वारा -शिखर पाण्डेय 🇮🇳 🌀🔥वैयक्तिक विभिन्नता आधारित शिक्षा प्रक्रिया 🔥🌀 🔅 डाल्टन प्रणाली ➖ प्रवर्तक :- अमेरिकन शिक्षा शस्त्रिणी मिस हेलन पार्कहर्स्ट ◼ इसमें समय सारणी नहीं होती है | ◼ हर विषय में प्रयोगशाला होनी चाहिए ◼ छात्र स्वतंत्र रहे अपने हिसाब से कार्य को करें | 🔅 प्रोजेक्ट प्रणाली ➖ ◼मूलाधार :- जॉन डीवी ◼प्रणाली के रूप में जन्मदाताम :- विलियम हेड किलपैट्रिक ◼बच्चों के लिए अधिगम की परिस्थिति और उत्पन्न करना | ◼बच्चों को नवीन शिक्षा देना नए तरीके से पढा़येगे तो बच्चे रुचि लेंगे | ◼बच्चे स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है | 🔥डेक्रोली प्रणाली ➖ प्रवर्तक :- डॉ ओविड डेक्रोली ◼ जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा देना | ◼ बालक का विभाजन रुचि क्षमता और योग्यता के हिसाब से किया जाता है | 🔥किंडरगार्डन प्रणाली ➖ प्रवर्तक :- फ्रोबेल ◼ बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान का विरोध करती है | ◼ बाल केंद्रित प्रणाली है | ◼ खेल के द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है | ◼ यह छोटे बच्चों के लिए उपयोगी होती है | 🔥विनेटिका प्रणाली ➖ प्रवर्तक :- डा० कार्लटन वाशबर्न ◼ बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता देती है | ◼ पाठ्यक्रम का विभाजन करते हैं | ◼ इसमें छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा देता है | 🔥माण्टेसरी प्रणाली ➖ प्रवर्तक :-डा० मारिया माण्टेसरी ◼ एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है | ◼ यह व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है इसमें बच्चे इंद्रियों के द्वारा महसूस कर सकते हैं | 🔥बेसिक शिक्षा प्रणाली ➖ प्रवर्तक:- महात्मा गांधी ◼ सर्वांगीण विकास पर बल देते हैं | ◼ इसमें अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा दी जाती है | ◼ हस्तकला पर आधारित मातृभाषा होती है | 🔥गैरी शिक्षा प्रणाली ➖ प्रवर्तक :- डब्ल्यू ए बर्ट इन्होने तीन बातों पर बल दिया है जो कि निम्न है :- ▪खेल ▪कार्य ▪अध्ययन Notes by ➖Ranjana sen व्यक्तित्व विभिन्नता 🔜🔜🔜🔜🔜🔜🔜🔜🔜 वैयक्तिक विभिन्नता आधारित शिक्षा प्रक्रिया ➖➖➖➖➖➖➖➖➖ 🔰डाल्टन प्रणाली 🔰 प्रवर्तक :—अमेरिकन शिक्षा शस्त्रिणी मिस हेलन पार्कहर्स्ट 🔴 समय सारणी नहीं 🔴हर विषय में प्रयोगशाला 🔴छात्र स्वतंत्र रहे 🔰 प्रोजेक्ट प्रणाली 🔰 मूलाधार :— जॉन डीवी 🟠प्रणाली के रूप में जन्मदाता :— विलियम हेड किलपैट्रिक 🟠अधिगम की परिस्थिति और उत्पन्न करना | 🟠बालक को नवीन शिक्षा देना 🟠स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है | 🔰डेक्रोली प्रणाली 🔰 प्रवर्तक :— डॉ ओविड डेक्रोली 🟡जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा देना | 🟡बालक का विभाजन रुचि, क्षमता, और योग्यता के हिसाब से करीए 🔰किंडरगार्डन प्रणाली 🔰 प्रवर्तक :—फ्रोबेल 🟢पुस्तकीय ज्ञान का विरोध 🟢 बाल केंद्रित प्रणाली 🟢 खेल के द्वारा शिक्षा 🔰विनेटिका प्रणाली 🔰 प्रवर्तक :— डा० कार्लटन वाशबर्न 🔵बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता 🔵 पाठ्यक्रम का विभाजन 🔵 छात्र अपनी गति से सीखकर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है 🔰माण्टेसरी प्रणाली 🔰 प्रवर्तक :—डा० मारिया माण्टेसरी 🟣 मनोवैज्ञानिक प्रणाली 🟣 व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा 🔰बेसिक शिक्षा प्रणाली 🔰 प्रवर्तक:— महात्मा गांधी 🟤सर्वांगीण विकास पर बल 🟤अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा 🟤 हस्तकला पर आधारित मातृभाषा 🔰गैर शिक्षा प्रणाली🔰 प्रवर्तक :— डब्ल्यू ए बर्ट इन्होने तीन बातों पर बल दिया है जो कि निम्न है :— ⚪खेल ⚪कार्य ⚪अध्ययन 🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒 Notes by:—sangita bharti✒ 🌼🌼🌼 वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रणाली—- 🌼🌼1. डाल्टन प्रणाली🌼🌼 🌼 अमेरिकन शिक्षा शास्त्रिणीय miss हेलेन पार्क हस्र्ट 🌼समय सारणी नहीं 🌼 हर विषय में प्रयोगशाला 🌼छात्र स्वतंत्र 🌼🌼2.प्रोजेक्ट प्रणाली—- 🌼 मूलाधार –जॉन डीवी 🌼प्रणाली के रूप जन्मदाता -विलियम हेड किलपैक्ट्रिक 🌼अधिगम की परिस्थितियों उत्पन्न करना 🌼 बालक को नवीन शिक्षा देना 🌼 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करना 🌼🌼3. ड्रेक्रोली प्रणाली—- 🌼 प्रवर्तक- डॉ ओविड ड्रेक्रोली 🌼 जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा 🌼 बालक का विभाजन की रुचि,क्षमता और योग्यता के हिसाब से करिए 🌼🌼4.किंडर गार्डन प्रणाली—- 🌼प्रवर्तक- फ्रोबेल 🌼 पुस्तकीय ज्ञान का विरोध करते हैं 🌼 बाल केंद्रित प्रणाली 🌼 खेल द्वारा शिक्षा दी जानी चाहिए 🌼🌼5. विनेटिका प्रणाली—- 🌼 प्रवर्तक-डॉक्टर . कर्लटन वशबर्न 🌼 बालक की व्यक्तित्व को प्रधानता देते हैं 🌼 पाठ्यक्रम का विभाजन करते हैं 🌼 छात्र अपनी गति से सीख कर अपनी स्वयं की परीक्षा देती लेता है 🌼🌼6. मांटेसरी प्रणाली—- 🌼 प्रवर्तक-डॉक्टर मरिया मांटेसरी 🌼मानोवैज्ञानिक प्रणाली 🌼व्यावहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा 🌼🌼7.बेसिक शिक्षा प्रणाली—- 🌼प्रवर्तक-महात्मा गांधी 🌼 सर्वांगीण विकास पर बल 🌼अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा 🌼हस्तकला और आधारित मातृभाषा 🌼🌼8. गैरी शिक्षा प्रणाली—- 🌼प्रवर्तक-W. A. Burt 🌼 तीन बात पर बल– 🌼1. खेल 🌼2. कार्य 🌼3. अध्ययन 🌼🌼 notes by manjari soni 🌼🌼 🌟 *वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया* 🌟 💫 *डाल्टन प्रणाली:-* डाल्टन प्रणाली को अमेरिकन शिक्षा शास्त्रिणीय मिस हेलेन पार्क हस्र्ट( Helen park hurt) ने दिया। 🌟 *१.डाल्टन प्रणाली की विशेषता:–* डाल्टन प्रणाली की निम्न विशेषता है– ✨ (i).समय सारणी नहीं। ✨ (ii).हर विषय में प्रयोगशाला। ✨ (iii). छात्र स्वतंत्र । 💫 *२.प्रोजेक्ट प्रणाली :–* प्रोजेक्ट प्रणाली के मूलाधार जॉन डीवी है, लेकिन प्रणाली के रूप जन्मदाता विलियम हेड किलपैक्ट्रिक को कहा जाता है। 🌟 *प्रोजेक्ट प्रणाली की विशेषता:–* ✨ (i).अधिगम की परिस्थितियों उत्पन्न करना :– ऐसी परिस्थितियां या माहौल बनाना जिसमें बच्चे खुद से सीखने के लिए तत्पर रहें। ✨ (ii). बालक को नवीन शिक्षा देना:– बच्चे को नए – नए तरीके अपना कर शिक्षा देना। ✨ (iii).स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करना:– जब शिक्षक बच्चे को प्रोजेक्ट विधि से पढ़ाते है तो उस प्रोजेक्ट को जब बच्चा करता है , तो वह खुद उस में शामिल होता है , तो उससे जो वातावरण है , वह बच्चे के समाजिक वातावरण को पूरा करता है। 💫 *३. ड्रेक्रोली प्रणाली:–* डेक्रोली प्रणाली को डॉ.ओविड ड्रेक्रोली (Ovid Decroly) द्वारा दिया गया है। 🌟 *डेक्रोली प्रणाली की विशेषता:–* ✨(i). जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा। ✨(ii). बालक का विभाजन रुचि,क्षमता और योग्यता के हिसाब से करिए । 💫 *३.किंडर गार्डन प्रणाली:-* किंडर गार्डन प्रणाली के जन्मदाता फ्रोबेल है । 🌟 *किंडर गार्डन प्रणाली की विशेषता:–* ✨( i). पुस्तक का विरोध। ✨(ii). बाल केंद्रित शिक्षा। ✨(iii).खेल द्वारा शिक्षा । 💫 *५.विनेटिका प्रणाली:-* इस प्रणाली को अमेरिकन डॉ. कालर्रटन वाशब्रन ने दिया। 🌟 *विनेटिका प्रणाली की विशेषता:–* ✨(i). बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता दी गई है। ✨( ii). पाठ्यक्रम का विभाजन । ✨ (iii). छात्र अपनी गति से सीख कर अपनी स्वयं की परीक्षा देती लेता है। 💫 *६. मांटेसरी प्रणाली :–* डॉ. मारिया मांटेसरी – यह एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है इस विधि के अन्तर्गत जो भी हमारे अंदर व्यावहारिक रूप से है , हमारी इन्द्रिय है , उसी की सहायता से हम सीखते है ,जैसे – हाथ – पैर , आंख– कान , नाक के द्वारा महसूस करके सीखते है। 💫 *७.बेसिक शिक्षा प्रणाली:–* बेसिक शिक्षा प्रणाली महात्मा गांधी जी के द्वारा दी गई है। 🌟 *बेसिक शिक्षा प्रणाली की विशेषता:–* ✨ ( i).सर्वांगीण विकास पर बल । ✨(ii). अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा । ✨ (iii).हस्तकला पर आधारित मातृभाषा में शिक्षा। 💫 *८. गैरी शिक्षा प्रणाली:-* गैरी शिक्षा प्रणाली को W.A.Burt ने दिया है , इन्होंने इस प्रणाली में तीन चीजों पर बल दिया है– ✨(i).खेल। ✨(ii). कार्य। ✨(iii). अध्ययन। ✍🏻Notes, By –Pooja 🍁व्यक्तित्व विभिन्नता➖ 🥀वैयक्तिक विभिन्नता आधारित शिक्षा प्रक्रिया 🎯डाल्टन प्रणाली 🎯🎯🎯 प्रवर्तक ➖अमेरिकन शिक्षा शास्त्रीय मिस Helen parkhurst 🟣समय सारिणी नहीं 🟠हर विषय में प्रयोगशाला 🔵छात्रा स्वतंत्र रहे 🎯प्रोजेक्ट प्रणाली🎯 मूलाधार➖ जॉन डी वी 👉🏻प्रणाली के रूप में जन्मदाता ➖ विलियम हैड किलपैट्रिक 🟠अधिगम की परिस्थिति और उत्पन्न करना ⚫बालक को नवीन शिक्षा देना 🟢स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है 🎯ड्रेकोली प्रणाली 🎯 प्रवर्तक ➖डॉ ओविड डेक्रोली ⚫जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा देना 🟠बालक का विभाजन रुचि क्षमता और योग्यता के हिसाब से करना 🎯किंडरगार्डन प्रणाली 🎯 प्रवर्तक ➖फ्रॉबेल 🔴पुस्तकिय ज्ञान का विरोध 🟡बल केंद्रित शिक्षा प्रणाली 🔵खेल के द्वारा शिक्षा 🎯विनेटिका प्रणाली 🎯 प्रवर्तक ➖ डॉ कार्लटन वाशबरन 🟣बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता 🔴पाठ्यक्रम का विभाजन छात्र अपनी गति से सीखकर स्वं 🟢अपनी परीक्षा लेता है 🎯मांटेसरी प्रणाली🎯 प्रवर्तक ➖डॉ मारिया मांटेसरी 🟡मनोवैज्ञानिक प्रणाली 🔵व्यावहारिक उपकरण और इन्द्रियों के माध्यम से शिक्षा 🎯बेसिक शिक्षा प्रणाली 🎯 प्रवर्तक➖ महात्मा गांधी ⚫सर्वांगीण विकास पर बल 🔴अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा 🟢हस्तकला पर आधारित मातृभाषा 🎯गैर शिक्षक प्रणाली 🎯 प्रवर्तक➖ डब्लयू ए बर्ट 👉🏻इन्होंने 3बातों पर बल दिया है जो कि निम्न है 🍁खेल 🍁कार्य 🍁अध्ययन 📝noyes by 📒 Arti savita 🍁🌻वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रणाली 🌻🍁 🌺 डाल्टन प्रणाली 🌺 🍂 अमेरिकी शिक्षाशास्त्री Miss Helan Parkhurst 🌹समय सारणी नहीं 🐥हर विषय में प्रयोग शाला 🌲 छात्र स्वतंत्र 🌿🌻 प्रोजेक्ट प्रणाली 🌻🌿 🌹मूलाधार ÷ जाॅन डी वी 🍀 प्रणाली के रूप जन्मदाता ÷विलियम हेड किलपैटि्क 🍃 अधिगम की परिस्थिति उत्पन्न करना। 🍂 बालक को नवीन शिक्षा देना। 🌸 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 🕊️☃️डेक्रोली प्रणाली ☃️🕊️ 🌹जन्मदाता ÷ डॉ, ओविड डेक्रोली 🎃शिक्षण प्रणाली के अन्तर्गत इन्होंने जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा प्रदान की। 🌷 बालक का विभाजन रूचि, क्षमता और योग्यता के हिसाब से करिऐ । 🍁🌺 किंडरगार्टन प्रणाली 🌺🍁 🐤जन्मदाता ÷ फ्रोबेल 🌱पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया। 🌿बाल केंद्रित प्रणाली। 🍃 खेल द्वारा शिक्षा। 🍂🌻विनेटिका प्रणाली 🌻🍂 🕊️प्रवर्तक ÷ डॉ कार्लटन वाशवर्न ☃️ बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता। 🍃 पाठ्यक्रम विभाजन करना 🌸 बालक अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है। 🦋🌷माण्टेसरी प्रणाली 🌷🦋 🌱प्रवर्तक ÷ डॉ मारिया माण्टेसरी 🌼यह मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। 🌹 व्यावहारिक उपकरण और इन्द्रियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं। 🌿🌻 बेसिक शिक्षा प्रणाली 🌻🌿 🌺जन्मदाता ÷ महात्मा गांधी जी 🐤 सर्वांगीण विकास पर बल । 🍂 अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा। 🎃 हस्तकला पर आधारित। ☃️🌺गैरी शिक्षा प्रणाली 🌺🍁 🌻प्रवर्तक ÷ डब्ल्यू ए बर्ट 🌷 तीन बात पर बल 🌹 खेल 🍃 कार्य 🌻 अध्ययन 🌸🌸🌸🌸Notes by ÷. Babita yadav 🌸🌸🌸🌸🍁 🔆 वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया➖ 🎯 डाल्टन प्रणाली ➖ डाल्टन प्रणाली को अमेरिकी शिक्षाशास्त्रिणी मिस हेलेन पार्कहर्स्ट ने दिया था | इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं➖ 1) समय सारणी नहीं होना चाहिए | इन के अनुसार समय सारणी कि कोई चर्चा नहीं की गई है क्योंकि इससे बच्चों को घबराहट होती है तथा मस्तिष्क स्थिर नहीं होता है | 2) बच्चे को हर विषय में प्रयोगशाला दी जाए | जिससे उनमें खोज के प्रति बड़े और खुद करके सीखें | 3) इसके अंतर्गत छात्र को स्वतंत्र रहने दिया जाए | ताकि वह अपने अनुसार कार्य कर सकें | 🎯प्रोजेक्ट प्रणाली➖ इस प्रणाली की मूलाधार ➖जॉन डीवी थे | लेकिन इस के जन्मदाता➖ विलियम हैड किलपैट्रिक है | इनके अंतर्गत ➖ 1) बच्चों में अधिगम की परिस्थितियों उत्पन्न करना | एक शिक्षक को बच्चे के सामने ऐसी गतिविधि उत्पन्न करना चाहिए जिससे कि वे पढ़ाई के लिए तत्पर हो सकें | 2) बच्चे को नवीन शिक्षा दी जाए | जिससे बच्चों को पढ़ने में रुचि उत्पन्न हो | 3) बच्चा स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा कर सकता करता है | 🎯 डेक्रोली प्रणाली➖ इस प्रणाली को डाॅक्टर ओविड डेक्रोली ( Dr. Ovide Decroly) ने दिया | उन्होंने कहा कि ➖ 1) बच्चे के जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा दी जाए | 2) बालकों का विभाजन उनकी रूचि, क्षमता ,और योग्यता के अनुसार किया जाए | 🎯 किंडरगार्डन प्रणाली➖ इस प्रणाली के प्रणेता फ्रोबेल को माना जाता है | उन्होंने कहा कि➖ 1) बच्चे के अध्ययन में पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया जाए | 2) शिक्षा बाल केंद्रित प्रणाली पर आधारित हो | 3)बच्चे को खेल द्वारा शिक्षा प्रदान की जाए | 🎯 बिनेटिका प्रणाली ➖ इस प्रणाली के प्रणेता डॉ कार्लटन वाॅशबार्न को माना जाता है | उन्होंने कहा कि ➖ 1) बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता दी जाए | जिसमें बच्चे की रूचि,क्षमता, पारिवारिक दायरा सब कुछ आता हो | 2) पाठ्यक्रम विभाजन किया जाए | क्योंकि पाठ्यक्रम सही तरीके से विभाजित नहीं होगा तो शिक्षण सफल नहीं हो सकता | 3) छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है | 🎯 माण्टेसरी प्रणाली➖ इस प्रणाली के जन्मदाता डॉक्टर मारिया मांटेसरी थे | 1) यह एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है | जो हमारे व्यवहारिक रूप और इंद्रियों के माध्यम से सीखने पर बल देती है | 2) इसमें व्यावहारिक उपकरण और इंद्रियों ( आंख,कान, नाक मुह,गाल , त्वचा आदि) के माध्यम से शिक्षा दी जाए | 🎯 बेसिक शिक्षा प्रणाली➖ इस प्रणाली के जन्मदाता महात्मा गांधी जी को माना जाता है जिन्होंने यह प्रणाली 1993 में दिया था | इसके अंतर्गत ➖ 1) बच्चे के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाए | 2) बच्चे को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा दी जाए | 3) बच्चे को हस्तकला पर आधारित मातृभाषा पर शिक्षा दी जाए | 🎯 गैरी शिक्षा प्रणाली➖ इस प्रणाली के जन्म दाता डब्ल्यू ए. बर्ट को माना जाता है | इसके अंतर्गत ➖ 1) खेल के माध्यम से शिक्षा देना | 2) कार्य ,क्षमता से अधिक बच्चे खुद कार्य करें | 3) अध्ययन ,बच्चों की क्षमता, आवश्यकता, रूचि, योग्यता के अनुसार हो | नोट्स बाॅय➖ रश्मि सावले 🌻🌼🌸🌺🍀🌻🌼🌸🌺🍀🌼🌸🌻🌺🍀🌼🌸🌻🌺🍀 वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षण प्रक्रिया 🔥🔥 1. डाल्टन प्रणाली👉 इस प्रणाली के प्रतिपादक हेलेन पार्क हर्स्ट ने किया इसमें छात्र को समय के बंधन में नहीं बांधा जाता है। 🌟 समय सारणी नहीं है। 🌟 हर विषय में प्रयोगशाला। 🌟 छात्र स्वतंत्र। 2. प्रोजेक्ट प्रणाली👉 मूल आधार जॉन डेवी ने दिया परन्तु इस पद्धति के प्रतिपादक किलपैट्रिक थे।यह प्रणाली करके सीखने के सिद्धांत पर बल देती है। 🌟 अधिगम की परिस्थितियों पर न करना। 🌟 बालक को नवीन शिक्षा देना। 🌟 बालक स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 3. डेक्रोली प्रणाली👉 इस पद्धति के जन्मदाता डॉक्टर ओविड डेक्रोली थे । इस विधि में बालकों का विभाजन उनकी रूचि तथा क्षमता के अनुसार किया जाता है तथा विद्यालय का वातावरण प्राकृतिक होता है। 🌟 जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा। 4. किंडर गार्डन प्रणाली👉 इस पद्धति के जन्मदाता फ्रोबेल है। फ्रोबेल ने शिक्षक को एक माली तथा बच्चे को एक पौधा माना है तथा इस विधि में बालक खेल-खेल में की शिक्षा प्राप्त करता है। 5. विनेटिका प्रणाली👉 इस पद्धति के जन्मदाता डॉक्टर कार्लटन वाशबर्न हैं। 🌟 बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता दी जाए। 🌟 पाठयक्रम विभाजन किया जाए। 🌟 छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परिक्षा लेते हैं। 6. मांटेसरी प्रणाली👉 इस प्रणाली की जन्म दात्री मारिया मांटेसरी हैं इसमें ज्ञानेंद्रियों व कर्मेंद्रियों के आधार पर शिक्षा दी जाती है यह प्रणाली मंदबुद्धि के बालकों के लिए बहुत उपयोगी है। यह मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। 7. बेसिक शिक्षा प्रणाली👉 बेसिक शिक्षा प्रणाली के जन्मदाता महात्मा गांधी थे।यह बालक के सर्वांगीण विकास पर बल देती है इस समय निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है तथा यह हस्तकला पर आधारित है। 8. गैरी शिक्षा प्रणाली👉 इस पद्धति के प्रतिपदाक W.A. बर्ट थे। इसमें तीन बातों पर बल दिया गया है – खेल, कार्य और अध्ययन। नोट्स – श्रेया राय 🙏🙏 💐 वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया💐 ✍🏻 डाल्टन प्रणाली💐 इस प्रणाली को अमेरिकन शिक्षा शास्त्री हेलेन पार्कहर्स्ट ने दी थी 🌸 डाल्टन प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं। 👉 समय सारणी नहीं होनी चाहिए। इस प्रणाली के अंदर अंतर्गत बच्चों को समय सारणी में बांधकर नहीं पढ़ाना चाहिए । 👉 बच्चों को हर विषय को प्रयोगशाला में कराना चाहिए। इसके अंतर्गत बालक खोज करके तथा स्वयं के माध्यम से प्रयोग करके सीखते हैं जब बालक प्रयोग करके सीखता है तो यह ज्ञान स्थाई होता है। 👉 बच्चे को स्वतंत्र रहने दें। 💐 प्रोजेक्ट प्रणाली💐 इस प्रणाली की अवधारणा- जॉन डी. वी. जन्मदाता:- विलियम हेड किलपैट्रिक 👉 अधिगम की परिस्थिति/ माहौल उत्पन्न करना। 👉 बालक को नवीन शिक्षा देना। जिससे बच्चों को पढ़ने में रुचिकर लगे 👉 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 💐डेक्रोली प्रणाली💐 जन्मदाता :- ओविड डेक्रोली 👉 इस प्रणाली में बच्चों के जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा दी जाए। 👉 बालक का विभाजन रुचि ,क्षमता, और योग्यता के हिसाब से करना चाहिए। 💐 किंडर गार्डन प्रणाली💐 जन्मदाता:- फ्रोबेल 👉 इस प्रणाली में फ्रोबेल ने पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया है। 👉 इस प्रणाली में शिक्षा बाल केंद्रित प्रणाली पर आधारित है। 👉 इस प्रणाली में बच्चे को खेल द्वारा शिक्षा देने की बात करता । 💐विनेटिका प्रणाली💐 जन्मदाता :-डॉ. कार्लटन वॉशबर्न 👉 इस प्रणाली में बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता दी गई । 👉 पाठ्यक्रम विभाजन किया गया। 👉 छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है। 💐 मांटेसरी प्रणाली💐 जन्मदाता :- मारिया माण्टेसरी 👉 यह एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। 👉 इस प्रणाली व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है। 💐बेसिक शिक्षा प्रणाली💐 जन्मदाता :- महात्मा गांधी जी 👉 बेसिक शिक्षा प्रणाली में बालक के सर्वांगीण विकास पर बल दिया गया 👉 इस प्रणाली में अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा की बात की गई। 👉 इस प्रणाली में हस्त कला व शिल्प कला पर आधारित मातृभाषा में शिक्षा दी जाए। 💐 गैरी शिक्षा प्रणाली💐 जन्मदाता :- W. A.Burt 👉 इस प्रणाली में तीन बातों पर विशेष बल दिया गया। 1- खेल 2-कार्य 3- अध्ययन 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 ✍🏻NOTES BY ✍🏻Shashi Choudhary 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🏵️ वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया 🏵️ ◾ डाल्टन प्रणाली— ▪️इस प्रणाली को अमेरिकन शिक्षा शास्त्री मिस हेलन पार्क हर्स्ट ने दिया। 🔹 उन्होंने कहा समय सारणी नहीं 🔸 हर विषय में प्रयोगशाला 🔹 छात्रों को स्वतंत्र रहने दीजिए। ◾ प्रोजेक्ट प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली के मूलाधार जॉन डीवी है। ▪️ लेकिन इस प्रणाली के रूप में जन्मदाता विलियम हेड किलपैट्रिक हैं। 🔹 अधिगम की परिस्थिति उत्पन्न करना 🔸 बालक को नवीन शिक्षा देना 🔹 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। ◾ डेक्रोली प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली को डॉक्टर ओविड डेक्रोली ने दिया। 🔹 जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा 🔸 बालक का विभाजन रुचि, क्षमता और योग्यता के हिसाब से करिए। ◾ किंडर गार्डन प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली को फ्रोबेल ने दिया था। 🔸 पुस्तकिय ज्ञान का विरोध 🔹 बाल केंद्रित प्रणाली 🔸 खेल द्वारा शिक्षा ◾ बिनेटिका प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली को डॉक्टर कार्लटन बाशबर्न ने दिया था। 🔸 बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता 🔹 पाठ्यक्रम विभाजन 🔸 छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है। ◾ मांटेसरी प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली के जन्मदाता डॉक्टर मारिया मांटेसरी हैं इस प्रणाली को मनोवैज्ञानिक प्रणाली भी कहते हैं। 🔸 इस प्रणाली में बच्चों को व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है। ◾ बेसिक शिक्षा प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली के जन्मदाता महात्मा गांधी जी हैं। 🔸 सर्वागीण विकास पर बल 🔹 अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा 🔸 हस्तकला पर आधारित मातृभाषा ◾ गैरी शिक्षा प्रणाली— ▪️ इस प्रणाली को डब्ल्यू• ए• बर्ट ने दिया। 🔸 इन्होंने तीन बातों पर बल दिया •खेल •कार्य •अध्ययन 🏵️🔸🔹🔸🏵️ Notes by -Vinay Singh Thakur व्यक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया 1 डाल्टन प्रणाली अमेरिकन शिक्षा शास्त्रनी miss हेलन पार्टहर्स्ट ने दी इस प्रणाली की विशेषता:- समय सारणी नहीं है हर विषय में प्रयोगशाला बनाना है बच्चे को स्वतंत्र रहने दिया जाए 2 प्रोजेक्ट प्रणाली इस प्रणाली के मूलाधार जॉन डीवी हैं इस प्रणाली के जन्मदाता विलियम हेड किलपैट्रिक हैं 1 इसने बच्चे के लिए अधिगम की परिस्थितियों पन्ने करना 2 बालक को नवीन शिक्षा देना 3 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है 3 डेक्रोली प्रणाली इस प्रणाली को डॉक्टर को docter ovide decroly ने दिया 1 जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा 2 बालक का विभाजन जी की क्षमता और योग्यता के हिसाब से करिए 4 किंडर गार्डन प्रणाली इस प्रणाली को फ्रोबेल ने दिया 1 पुस्तकिय ज्ञान का विरोध 2 बाल केंद्रित प्रणाली 3 खेल द्वारा शिक्षा 5 विनेटिका प्रणाली इसे डॉक्टर के कार्लटन basbarn ने दी बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता पाठ्यक्रम विभाजन छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है 6 मांटेसरी प्रणाली इसे डॉक्टर मारिया मांटेसरी ने दिया यह मनोवैज्ञानिक प्रणाली है इसमें व्यावहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है 7 बेसिक शिक्षा प्रणाली इस प्रणाली को महात्मा गांधी जी ने दिया इसका उद्देश्य माननीय विकास पर बल देना है अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा देना हस्तकला पर आधारित मातृभाषा 8 गैरी शिक्षा प्रणाली इस प्रणाली को डब्ल्यू ए बर्ट ने दिया इस पर तीन बातों पर बल दिया गया है 1 खेल 2 कार्य 3 अध्ययन 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 sapna sahu🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🔥🔥 वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया 🌸 डाल्टन प्रणाली➖ अमेरिका शिक्षा शास्त्रिणी हिलेन पार्क ने किया 🌀 समय सारणी नहीं होनी चाहिए 🌀 हर विषय को प्रयोगशाला में करवाना चाहिए 🌀 छात्र स्वतंत्र होना चाहिए। 🌸 प्रोजेक्ट प्रणाली➖ इसके मूलाधार -जॉन डीवी प्रणाली के रूप में जन्मदाता-विलियम हेड किलपैट्रिक 🌀 अधिगम की परिस्थितियों पर कीजिए। 🌀 बच्चों को नवीन शिक्षा देना। 🌀 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करना है। 🌸 डिक्रोली प्रणाली➖ इसके प्रवर्तक डॉक्टर ओविड डेक्रोली 🌀 जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा देना। 🌀 बालक का विभाजन, रुचि, क्षमता और योग्यता के हिसाब से करना चाहिए। 🌸 किंडर गार्डन प्रणाली➖ इस के प्रवर्तक फ्रोबेल है 🌀 पुस्तकी की ज्ञान का विरोध किया। 🌀 बाल केंद्रित प्रणाली अपनाई गई। 🌀 खेल द्वारा शिक्षा देने का प्रावधान किया गया। 🌸 बिनेटिका प्रणाली➖ इसके प्रवर्तक डॉक्टर कार्लटन वाशबर्न 🌀 बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता देनी चाहिए। 🌀 पाठ्यक्रम का विभाजन करना चाहिए। 🌀 छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है। 🌸 मोंटेसरी प्रणाली➖ इसके प्रवर्तक डॉक्टर मारिया मांटेसरी हैं। 🌀 यह एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। 🌀 व्यावहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए। 🌸 बेसिक शिक्षा प्रणाली➖ इसके प्रवर्तक महात्मा गांधी हैं। 🌀 सर्वां गीण विकास पर बल दिया गया। 🌀 अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्रदान की गई। 🌀 हस्तकला पर आधारित मातृभाषा 🌸गैरी शिक्षा प्रणाली➖ इसके प्रवर्तक डब्ल्यू ए बर्ट 🌀 इनमें तीन बातों पर जोर दिया गया➖ 1️⃣ खेल 2️⃣ कार्य 3️⃣ अध्ययन 🖊️🖊️📚📚 Notes by…… Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️ 🌹वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षण प्रक्रिया🌹 1. 🌺 डाल्टन प्रणाली प्रतिपादक :- ” Miss हेलन पार्कहर्स्ट ” जो कि अमेरिकन शिक्षाशास्त्रिणी थीं। डाल्टन प्रणाली का प्रारंभ अमेरिका के डाल्टन नामक नगर से सन 1920 में हुआ था। अन्य नाम :- प्रयोगशाला योजना। इस प्रणाली में बताया गया कि :- 👉बच्चों के शिक्षा ग्रहण की कोई कड़ी समय सारणी नहीं होनी चाहिए। 👉हर विषय में प्रयोगशाला होनी चाहिए। 👉अर्थात बच्चे प्रयोग करके सीखें। 👉शैक्षिक रूप से छात्र स्वतंत्र होने चाहिए। 2. 🌺 प्रोजेक्ट प्रणाली प्रतिपादक / मूलाधार :- जॉन डी. वी. प्रणाली के रूप में जन्मदाता :- विलियम हेड किलपैट्रिक अन्य नाम :- योजना प्रणाली इस प्रणाली में बताया गया कि :- 👉अधिगम / सीखने की परिस्थिति अर्थात वातावरण उत्पन्न करना। 👉बालक को नवीन शिक्षा देना। 👉बालक स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 3. 🌺 डेक्रॉली प्रणाली प्रतिपादक :- डॉ. ओविड डेक्रॉली जो कि बेल्जियम के प्रोफ़ेसर थे। इसमें बताया गया कि :- 👉बालकों के जीवन के लिए जीवन के द्वारा शिक्षा होनी चाहिए। 👉विद्यालय / कक्षा में बालकों का विभाजन रुचि , क्षमता और योग्यता के हिसाब से करना चाहिए। 4. 🌺 किंडरगार्टन प्रणाली प्रतिपादक :- फ़्रॉबेल अन्य नाम :- बालवाड़ी , खेल विधि इस प्रणाली में :- 👉पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया गया। 👉बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया गया। 👉और खेल द्वारा शिक्षा को बढ़ाएं। 5. 🌺 विनेटिका / (इकाई ) प्रणाली प्रतिपादक :- डॉ. कार्लटन वॉशबर्न जो कि ये अमेरिकी निवासी थे, और अमेरिका के ही विनेटिका नामक नगर में इस प्राणली कि शुरुआत की गई थी। 🌲🌻🌲 इनकी पुस्तक [ Adjusting the School To the child ] में इस प्रणाली का पूरा विवरण मिलता है। इस प्रणाली में :- 👉बालक के व्यक्तित्व को प्रधानता दी गई। 👉पाठ्यक्रम विभाजन को बताया गया। 👉और बताया गया कि छात्र अपनी गति से सीख कर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है। 6. 🌺 मॉन्टेसरी प्रणाली प्रतिपादक :- डॉ. मारिया मॉन्टेसरी 👉यह मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। 👉व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए। 7. 🌺 बेसिक / बुनियादी शिक्षा प्रणाली जन्मदाता :- महात्मा गांधी जी इस प्रणाली में :- 👉बच्चों के सर्वांगीण विकास पर बल दिया गया। 👉बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा दी जाने पर बल दिया गया। 👉बच्चों की शिक्षा हस्तकला पर आधारित हो और मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने पर बल दिया गया। 8. 🌺 गैरी शिक्षा प्रणाली जन्मदाता :- W. A. वर्ट इस प्रणाली में तीन बातों पर बल दिया गया है :- 👉 खेल 👉 कार्य 👉 अध्ययन। अर्थात बच्चों के शैक्षणिक व्यवस्था खेल , कार्य , और अध्ययन का बहुत ध्यान रखना चाहिए। 🌻✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️🌻 🎯वैयक्तिक विभिन्नता🎯 (Individual difference) 💫वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षा प्रक्रिया…… 💫डाल्टन प्रणाली …….. 🏵️अमेरिकन शिक्षण शास्त्रीणी Miss Helen Parkhurst ने दिया। 🌼विशेषताएं — 👉इसने शिक्षण प्रणाली में समय सारणी नहीं होने की बात की 👉 बच्चों को हर विषय में प्रयोगशाला देनी है 👉छात्र को स्वतंत्र रहने दीजिए। 💫प्रोजेक्ट प्रणाली ⭐मूलाधार – जॉन डीवी 🍂प्रणाली के रूप में जन्मदाता – विलियम हेड किलपैट्रिक 👉 बच्चों को अधिगम के लिए परिस्थिति उत्पन्न करना । 👉बच्चों को नवीन शिक्षा देना। 👉 स्वयं सामाजिक वातावरण को पूरा करता है। 🍂डेक्रोली प्रणाली — 🌼डेक्रोली प्रणाली को डॉ०ओविड डेक्रोली ने दिया। 🌼जीवन के लिए जीवन द्वारा शिक्षा 🌼बच्चों को विभाजन उनके रुचि, क्षमता और योग्यता के हिसाब से करिए। 💫किंडर गार्डन प्रणाली:- 👉किंडर गार्डन प्रणाली को फ्रोबेल ने दिया। 👉इस प्रणाली में पुस्तकीय ज्ञान का विरोध किया। 👉बाल केंद्रित शिक्षा पर बल दिया। 👉खेल द्वारा शिक्षण में बल दिया। की बच्चों को खेल खेल में सिखाई जाय। 💫विनेटीका प्रणाली ~ 🌷इस प्रणाली को अमेरिका के डॉक्टर कार्लटन वासवर्न ने दिया। 🌷बच्चों के व्यक्तित्व को प्रधानता दिया। 🌺पाठ्यक्रम का विभाजन किया जाना चाहिए। 🌼इस विधि में छात्र अपनी गति से सीखकर स्वयं अपनी परीक्षा लेता है 💫मोंण्टेसरी प्रणाली…… 🍁इस प्रणाली के जन्मदाता डॉक्टर मारिया मोंण्टेसरी। 🍁यह एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। 🍁 व्यवहारिक उपकरण और इंद्रियों के माध्यम से सिखाया जाना चाहिए। 💫बेसिक शिक्षा प्रणाली….. 👉इस प्रणाली के जन्मदाता महात्मा गांधी थे। 👉इन्होंने बच्चे के सर्वांगीण विकास पर बल दिया। 👉अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा की बात की। 👉हस्तकला पर आधारित मातृभाषा में शिक्षा देने की बात करते हैं। 💫गैरी शिक्षा प्रणाली….. 👉इस प्रणाली के जन्मदाता W.A Burt ने दिया। 👉इन्होंने तीन बातों पर बल दिया (1) खेल (2) कार्य (3) अध्ययन 🍁बच्चों को खेल-खेल में से चीजों का अध्ययन करवाना चाहिए। 🍂🌹💮🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

Socialization for ctet and tet notes by india top learners

समाजीकरण (socialization)🔥🔥

जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है।
वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा, मान्यता, आकांक्षा, मूल्य, आदर्श, संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है।

परिभाषाएं 👉

जेम्स ड्रेवर के अनुसार,”सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार उस समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है।”

ग्रीन के अनुसार,”सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं , आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।”

ओगबर्न के अनुसार,”समाजीकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।”

बोगार्ड्स के अनुसार,”समाजीकरण एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है।”

मैकियोनिस के अनुसार, “समाजी- करण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और माननीय विशेषताओं का विकास करता है।”

समाजीकरण का प्रकार (types of socialization)🔥🔥

1. प्राथमिक सामाजिकरण (primary socialization) 🔥🔥

इसमें बालक का समाजी – करण
तत्कालिक परिवार, मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है।

2. द्वितीयक सामाजीकरण(secondary socialization) 🔥🔥

इसमें बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपायुक्त है।

3. प्रत्याशात्मक सामाजीकरण (anticipathy socialization)🔥🔥

व्यक्ति भविष्य के पद , व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्वाभ्यास करता है।

4. पुन :समाजीकरण (re-socialization) 🔥🔥

पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगो व अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

5. संगठनात्मक समाजीकरण (Oganizational socialization)🔥🔥

एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल को सीखता है।

6. समूह समाजीकरण (group socialization) 🔥🔥

सहकर्मी समूह, पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।

7. लैंगिक सामाजीकरण (gender socialization) 🔥🔥

लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यवहार सीखना , लैंगिक सामाजिकरण है। इसमें लड़का लड़कों के गुण सीखता है और लड़कियां लड़कियों के गुण सीखती है।

8. जातीय सामाजिकरण(racial socialization)🔥🔥

एक बच्चा जातीय समूह के व्यवहार, धारणा ,मूल्य ,दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।

समाजीकरण की 4 एजेंसियां 👉

1.परिवार
2.विद्यालय
3.सहकर्मी समूह
4.संचार मीडिया

समाजीकरण के तत्व (Factor of socialization)🔥🔥
1.परिवार
2.आयु समूह
3.पड़ोस
4.नातेदारी समूह
5.विद्यालय
6.खेलने का मैदान
7. जाति
8.समाज
9.भाषा
10.राजनीतिक संस्था
11.धार्मिक संस्था

✍️Notes by Shreya Rai 🙏

🌹सामाजिकरण (socialization )
➖➖➖➖➖➖➖➖

🤟 जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है
🤟वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा, मान्यता, आकांक्षा ,मूल्य ,आदर्श, संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है

👉 जेम्स ड्रेवर➖
सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करते हैं और इस प्रकार के उस समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है

👉 ग्रीन के अनुसार➖ समाजीकरण वा प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं और आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है

👉ओगबर्न के अनुसार➖
समाजीकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है

👉 मैकयोनीस के अनुसार➖
सामाजिकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है

🌹Types of socialization 🌹

1) प्राथमिक समाजीकरण(primary socialization)

तात्कालिक परिवार मित्र से प्रभावित है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है

2) द्वितीयक सामाजिकरण(secondary socialization)

बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्यों के रूप में उपयुक्त है विद्यालय, पार्क, पड़ोसी

3) प्रत्याशात्मक सामाजिकरण(anticipatory socialization)

व्यक्ति भविष्य के पद व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्वाभ्यास करता है

4) पुनः सामाजिकरण(Re:socialization)

पूर्ण व्यवहार पैटर्न और छोड़ने की प्रक्रिया का संदर्भित करता है तथा नए लोगों और अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है

5) संगठनात्मक समाजीकरण (organization socialization)

एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सकता है

6) समूह सामाजिकरण(group socialization)

सहकर्मी,समूह ,पारिवारिक, वातावरण के बजाय व्यवस्था में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है

7) लैंगिक सामाजिकरण(gender socialization)

लिंग के आधार पर उपयोग व्यवहार सीखना लैंगिक सामाजिकरण है

जैसे ➖लड़का -लड़का का गुण सीखे,लड़की -लड़की का गुण सीखे

8) जातीय समीकरण(Racial socialization)

एक बच्चा चाहती है समूह के व्यवहार, धारणा ,मूल्य, दृष्टिकोण को प्राप्त करता है

👉 समाजीकरण के चार एजेंसी➖
1) परिवार
2) विद्यालय
3) सहकर्मी
4) संचार मीडिया

👉Factor of socialization (सामाजिकरण के तथ्य)

1) परिवार
2)आयु
3)समूह
4) परोसी
5) नातेदारी समूह
6)विद्यालय
7)खेल का मैदान
8)जाति
9) समाज
10)भाषा
11)राजनीतिक संस्थाएं
12) धार्मिक संस्थाएं

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Notes by:—sangita bharti✍️🙏

🌺🌺 समाजीकरण ($ocialization)🌺🌺

🌸समाजीकरण की प्रक्रिया
(Process of socialization)

🏵️जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना की विकसित होने लगती है

🏵️वह समाज के द्वारा स्वीकृत परंपरा मान्यता आकांक्षा मूल फादर संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है।

🌻जेम्स ड्राइवर के अनुसार-

🏵️सामाजिकरण व प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है और उस समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है।

🌻ग्रीन के अनुसार-
🌸सामाजिकरण वा प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक में सांस्कृतिक विशेषताएं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।

🌻ओगवर्न के अनुसार
🌸सामाजिकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।

🌻बोगार्ड्स के अनुसार-
🌸सामाजीकरण एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है।

🌻मैकियोनिस के अनुसार-
🌸सामाजिकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय सभी विशेषताओं का विकास करता है।

🌸🌸सामाजिकरण के प्रकार-🌸🌸
(Types of socialization)

🌻प्राथमिक सामाजिकरण
(परिवार, दोस्त)
🌸तात्कालिक परिवार और मित्रों से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक रिश्तो का संबंधों का आधार बनता है।

🌻द्वितीयक सामाजिकरण-
🌸बालक कौन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है।

🌻प्रत्याशात्मक सामाजिकरण-
🌸व्यक्ति भविष्य के बाद व्यवसाय और सामाजिक रिश्तो का पूर्वाभास करता है।

🌸अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

🌻संगठनात्मक सामाजिकरण-

🌸एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है (आना बैठना बोलना करना) में भूमिका।

🌻समूह सामाजिकरण-
🏵️यह वह प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के सहकर्मी समूह,पारिवारिक वातावरण के बजाय व्यस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता हैं।

🌻लैंगिक सामाजिकरण-

🏵️लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यवहार सीखना लैंगिक सामाजिकरण कहलाता है।
लड़की-लड़की
लड़का-लड़का

🌻जातीय समाजीकरण-
🏵️एक बच्चा जाति समूह की अवधारणा मूल्य दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।
Thank you 🌷🌷
🥀🥀Written by shikhar pandey🥀🥀

🌀 सामाजीकरण ( socialization) 🌀

जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा मान्यता आकांक्षा मूल्य आदर्श संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है।

✨ जेम्स ड्रेवर के अनुसार➖
समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार और समाज सामान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है।

✨ ग्रीन के अनुसार ➖
समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।

✨ ओगबर्न के अनुसार ➖
सामाजिकरण समूह और समाज के मापदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।

✨ बोगर्डस के अनुसार ➖
सामाजिकरण एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है।

✨ मैकियोनिस के अनुसार ➖
सामाजिकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।

💞 Types of socialization ➖

1️⃣ प्राथमिक सामाजीकरण➖
तत्कालिक परिवार मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है।

2️⃣ द्वितीयक सामाजीकरण➖
बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उचित हैं जैसे विद्यालय।

3️⃣ प्रत्याशात्मक सामाजीकरण➖
व्यक्ति भविष्य के बाद व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्वाभ्यास करता है।

4️⃣ पुनः सामाजीकरण➖
पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों को अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

5️⃣ संगठनात्मक सामाजीकरण➖
एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

6️⃣ समूह सामाजीकरण➖
सहकर्मी समूह है पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता मैं उनके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।

7️⃣ लैंगिक सामाजीकरण➖
लिंग के आधार पर उचित व्यवहार सीखना लेंगे सामाजीकरण है।

8️⃣ जातीय सामाजीकरण➖
एक बच्चा जातीय समूह के व्यवहार धारणा मूल्य दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।

💞 सामाजीकरण की 4 एजेंसी ➖
1️⃣ परिवार

2️⃣ विद्यालय

3️⃣ सहकर्मी समूह

4️⃣ संचार मीडिया

💫 सामाजीकरण के तथ्य ➖

1. परिवार
2. आयु समूह
3. पड़ोस
4. नातेदारी समूह
5. विद्यालय
6. खेल का मैदान
7. जाति
8. समाज
9. भाषा
10. राजनीतिक संस्था
11. धार्मिक संस्था

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🏵️ सामाजिकरण (socialization) 🏵️
👉 जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना, सामाजिक उत्तरदायित्व, की भावना विकसित होने लगती है वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा, मान्यता, आकांक्षा, मूल्य, आदर्श, संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है।
◾ James drawer के अनुसार~सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार उस समाज का मान सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है।
◾ ग्रीन के अनुसार~सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।
◾ ओगबर्न के अनुसार~सामाजिकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।
◾ बोगार्ड्स के अनुसार~सामाजिकरण एक साथ रहने और काम सीखने की प्रक्रिया है।
◾ मैकेयोंनिस के अनुसार~सामाजिकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।
🔹 Types of socialization 🔸
1️⃣ प्राथमिक सामाजिकरण (primary socialization)
👉तत्कालिक परिवार, मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है।
2️⃣ द्वितीयक सामाजिकरण (secondary socialization)
👉 बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त हो जैसे विद्यालय, पार्क, पड़ोस इत्यादि।
3️⃣ प्रत्याशातमक सामाजिकरण (anticipatory socialization)
👉 व्यक्ति भविष्य के पद, व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्वाभ्यास करता है।
4️⃣ पुनः सामाजिकरण (re-socialization)
👉पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को जोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों व अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।
5️⃣ संगठनात्मक सामाजिकरण (organizational socialization)
👉एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।
6️⃣ समूह सामाजिकरण (group socialization)
👉 सहकर्मी समूह, पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता मे उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।
7️⃣ लैंगिक सामाजिकरण (gender socialization)
👉 लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यवहार सीखना लैंगिक सामाजिकरण है जैसे लड़का-लड़का जैसा व्यवहार सीखें और लड़की -लड़की जैसा व्यवहार सीखें।
8️⃣ जातीय सामाजिकरण (Racial socialization)
👉 एक बच्चा जातीय समूह के व्यवहार धारणा, मूल्य, दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।
◾ सामाजिकरण की चार एजेंसी:~
1️⃣ परिवार
2️⃣ विद्यालय
3️⃣ सहकर्मी समूह
4️⃣ संचार मीडिया
◾ Factor of socialization (सामाजिकरण के तत्व)
1️⃣ परिवार
2️⃣ आयु समूह
3️⃣ पड़ोस
4️⃣ नातेदारी समूह
5️⃣ विद्यालय
6️⃣ खेल का मैदान
7️⃣ जाति
8️⃣ समाज
9️⃣ भाषा
🔟 राजनीतिक संस्थाएं
11-धार्मिक संस्थाएं
🔹🔸🔹
🏵️🌸🏵️✍️ Notes by ☞Vinay Singh Thakur🏵️🌸🏵️

🎯सामाजिकरण(socialization)🌈

जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है तो उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है।

वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा मान्यता आकांक्षा मूल्य आदर्श संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है।
मतलब बच्चा जब सामाजिक परिवेश में आते है तो वह सामाजिक गुणों, महत्वो इत्यादि को समझने लगता है और समाज में घुल मिल जाता है तथा समाज के मर्यादाओं का अनुपालन करते हैं।

💫जेम्स ड्रेवर….. के अनुसार…..

समाजीकरण व प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार उस समाज का मान्य, सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है।

⚡ग्रीन के अनुसार……..

सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।

💐ओगबर्न के अनुसार………

समाजीकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।

🌟बोगार्डस के अनुसार……..

सामाजिक एक साथ रहना और काम करने की प्रक्रिया है।

🌀मैकियोनिस के अनुसार……..

समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन गया और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।

🌾समाजीकरण के प्रकार(types of socialization)…..

⭐(1) प्राथमिक सामाजिकरण… (primary socialization)

इसमें बच्चा जिस परिवार में जन्म लेता है तथा वह जिस समूह में खेलते हैं मतलब…
तत्कालिक परिवार/ मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य में सभी सामाजिक संबंधों का आधार बढ़ता है।

🌼द्वितीयक समाजीकरण (secondary socialization)…

बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है इसमें विद्यालय ,पार्क, पड़ोसी, इत्यादि इस समय बच्चे विद्यालय से आस-पड़ोस से सीखते हैं तथा वह अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है।

🌼प्रत्याशात्मक सामाजिकरण…….

जिसमें व्यक्ति भविष्य के पद व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्वाभ्यास करता है जैसे व्यक्ति भविष्य के पदों के लिए चुनाव में सम्मिलित होते है। चाहे उनका परिणाम कुछ भी क्यो ना हो

💮पुनः सामाजिकरण…….

पूर्व व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नये लोगों वह अनुभवों के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

🌷संगठनात्मक समाजीकरण….

एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सकता है।

🌈समूह सामाजिकरण……

सहकर्मी समूह, परिवार वतावरण के बजाय व्यस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।

🌴लैंगिक सामाजिकरण……

लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यवहार चिकन और लैंगिक सामाजिकरण है जैसे- लड़का – लड़का के गुण सीखते हैं तथा लड़की- लड़की के गुण सीखते हैं।

💐जातीय समाजीकरण …..

एक बच्चा जातीय समूह के व्यवहार धरना मूल्य दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।

🌼समाजीकरण की 4 एजेंसी……
(1) परिवार
(2)विद्यालय
(3)सहकर्मी समूह
(4)संचार मीडिया
इत्यादि यह सभी होते हैं जो कि बच्चे का विकास इन्हीं के माध्यम से होता है।

💮सामाजिकरण के तत्व

परिवार ,आयु सीमा, पड़ोस, नातेदारी, विद्यालय,खेल का, मैदान ,जाति, समाज, समूह, भाषा, राजनीतिक संस्था, धार्मिक संस्था इत्यादि यह सभी व्यक्ति के सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण है।

💫🎯🌾🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

🔆 समाजीकरण Socialization 🔆
जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है |
वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा मान्यता आकांक्षा मूल्य आदर्श संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है |
कोई व्यक्ति सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और विभिन्न समूह के सदस्य बनता है और समाज के नियमों और मानदंडो का पालन करता है समाज के साथ अंत:क्रिया करता है एक इंसान अलग-अलग प्रकार का समाजीकरण करता है |

जेम्स ड्रेवर के अनुसार :➖ समाजीकरण की प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है |

ग्रीन के अनुसार ➖ समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है |

ओगबर्न के अनुसार ➖ समाजीकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है |

बोगार्डस के अनुसार ➖ समाजीकरण की एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है |

मैंकियोनिस के अनुसार ➖ समाजीकरण एक आजीवन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है |

🔥समाजीकरण के प्रकार :- ( type of socialization) ➖

🌀प्राथमिक समाजीकरण (Primary socialization) ➖ समाजीकरण की शुरुआत जब बच्चा जन्म लेता है परिवार मित्र ऐसे मित्र जो साथ रहते हैं पास है तात्कालिक परिवार / मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है |

🌀द्वितीयक समाजीकरण (Secondary socialization) ➖ बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है | जैसे विद्यालय पड़ोस पार्क |

🌀प्रत्याशात्मक समाजीकरण (Anticipatory socialization) ➖ व्यक्ति भविष्य के पद व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्वाभ्यास करता है |

🌀पुन: समाजीकरण (Re-socialization) ➖ पूर्व व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों व अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है |

🌀संगठनात्मक समाजीकरण (Organisational socialization) ➖ यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है |

🌀समूह समाजीकरण (Group socialization) ➖ सहकर्मी समूह परिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है |

🌀लैंगिक समाजीकरण (Gender socialization)➖ लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यवहार सीखना लैंगिक समाजीकरण है लड़को के साथ लड़कों जैसा और लड़की के साथ लड़की जैसा

🌀जातीय समाजीकरण ( Racial socialization)
➖ एक बच्चा जातीय समूह के व्यवहार धरणा मूल्य दृष्टिकोण को प्राप्त करता है |

🔥🔥समाजीकरण की चार एजेंसियां :- (Agency) ➖
1. – परिवार
2. – विद्यालय
3. – सहकर्मी समूह
4. – संचार वीडियो
🔥🔥समाजीकरण की एक महत्वपूर्ण तत्व :- (factor of socialization) ➖
1. – परिवार
2.- आयु समूह
3.- पड़ोस
4.- नातेदारी समूह
5.- विद्यालय
6.- खेल का मैदान
7.- जाति
8.-समाज / समूह
9.- भाषा
10- राजनीतिक संस्थाएं
11.-धार्मिक संस्थाएं

Notes by ➖Ranjana sen

🌼🌼सामाजीकरण🌼🌼
(Socialization)

🌼 जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज में संपर्क में आता है ,उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगते हैं
🌼 वह समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा, मान्यता ,आकांक्षा ,आदर्श ,संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है

🌼🌼जेम्स ड्रेवर के अनुसार— सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार उस समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है

🌼🌼ग्रीन के अनुसार —समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक संस्कृतिक विशेषताओं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है

🌼🌼 ओग् बर्न के अनुसार —समाजीकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है

🌼🌼बोगार्डस के अनुसार —-सामाजिकरण एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है

🌼🌼 मैकियोनिस के अनुसार— समाजीकरण एक अजीवन् प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है

🌼🌼Types of socialization 🌼🌼

🌼🌼1.प्राथमिक समाजीकरण(primary socialization) –तात्कालिक परिवार मित्र और प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है
🌼🌼2.वित्तीय सामाजिकरण ( secondary socialization) –बालक और व्यवहार या कौशल सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त हो!
जैसे-विद्यालय, पार्क ,पड़ोसी ,

🌼🌼3.प्रत्याशात्मक सामाजिकरण ( anticipatory socialization) — व्यक्ति भविष्य के पद,व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते का पूर्व अभ्यास करता है

🌼🌼4.पुनः समाजीकरण ( re- socialization)–पूर्व व्यवहार के पैटर्न छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों व अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है

🌼🌼5.संगठनात्मक सामाजिकरण ( organizational socialization)–एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है

🌼🌼6. समूह समाजीकरण (group socialization)–सहकर्मी समूह पारिवारिक वातावरण की बजाय इस व्यवसाय में उसके वयक्तितव और व्यवहार को प्रभावित करता है

🌼🌼7. लिंग के आधार पर ( gender socialization)– लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यावहारिक सामाजिकरण है

🌼🌼8. जातीय समाजीकरण — एक बच्चा जातिय समूह के व्यवहार दृष्टिकोण को प्राप्त करता है

🌼🌼🌼🌼🌼 समाजीकरण की 4 agency (एजेंसी)
🌼1.परिवार
🌼2.विद्यालय
🌼3. सहकर्मी
🌼4.समूह मीडिया

🌼🌼facter of socialization 🌼🌼🌼1. परिवार
🌼2. आयुसमूह
🌼3.पड़ोस
🌼4.नातेदारी समूह
🌼5.विद्यालय
🌼6.खेल का मैदान
🌼7. जाति
🌼8.समाज
🌼9.भाषा
🌼10.राजनीतिक संस्था
🌼11.धार्मिक संस्था

🌼🌼by manjari soni🌼🌼

💢 समाजीकरण💢
(Socialization)

👉🏼जैसे-जैसे मनुष्य जन्म लेने के बाद समाज में संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है।

👉🏼बच्चा समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा ,मान्यता ,आकांक्षा, मूल्य, आदर्श, संस्कृति आदि का अनुपालन करने लगता है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार➖
समाजीकरण की प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है इस प्रकार उस समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है।

🌺 ग्रीन के अनुसार➖
सामाजिकरण व प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक संस्कृति विशेषताएं आत्म गौरव और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।

🌺ओगबर्न के अनुसार➖ सामाजिकरण समूह और समाज में मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है।

🌺 बागार्डस के अनुसार➖ सामाजिकरण एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है।

🌺मैकियोनिस के अनुसार➖सामाजिकरण एक अधिगम प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का उचित सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है।

💢 समाजीकरण के प्रकार💢
(Types of socialization)

🌺 प्राथमिक सामाजिकरण➖
तत्कालीन परिवार मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है।

🌺 द्वितीयक सामाजिकरण➖बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त हो जैसे विद्यालय, पार्क पड़ोस ।

🌺 प्रत्याशात्मक सामाजिकरण➖ व्यक्ति भविष्य के पद व्यवसाय और सामाजिक रिश्तो का पूर्वा अभ्यास करता है।

🌺 पुनः सामाजिकरण➖पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों का अनुरूप के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

🌺 संगठनात्मक सामाजीकरण➖एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपने संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

🌺 समूह सामाजीकरण➖सहकर्मी समूह पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।

🌺 लैंगिक सामाजिकरण➖ लिंग के आधार पर उपयुक्त व्यवहार सीखना लैंगिक सामाजीकरण है।

🌺 जातीय सामाजीकरण➖ एक बच्चा जातीय समूह के व्यवहार, धारणा, मूल्य और दृष्टिकोण को प्राप्त करता है।

🦚 समाजीकरण के चार एजेंसियां➖

1️⃣ परिवार
2️⃣ विद्यालय
3️⃣ संचार मीडिया
4️⃣ सहकर्मी समूह

🔥 समाजीकरण की एक महत्वपूर्ण तत्व➖

1-परिवार
2-आयु समूह
3-पड़ोस
4-नातेदारी समूह
5-विद्यालय
6-खेल का मैदान
7-जाति
8-समाज /समूह
9-भाषा
10-राजनीतिक संस्थाएं
11-धार्मिक संस्थाएं

🖊️🖊️📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma….

🔆 समाजीकरण 🔆

समाजीकरण मानव विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जैसे-जैसे मनुष्य समाज के संपर्क में आता है उसमें सामाजिक चेतना ,,सामाजिक उत्तरदायित्व,,की भावना अधिक विकसित होने लगती है |

व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा ,मान्यता ,आकांक्षा, मूल्य, आदर्श ,संस्कृति आदि का पालन करने लगता है |

जब व्यक्ति किसी सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में प्रवेश करता है तो उसके नियमों और मानदंडों का भी पालन करता है और समाज के साथ भिन्न-भिन्न प्रकार की अंतः क्रिया करता है और इस प्रकार से समाजीकरण का निर्माण होता है |

☀ समाजीकरण की परिभाषाएं➖

🎯 , जेम्स ड्रेवर के अनुसार ➖

” समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करता है और इस प्रकार उस समाज का मान्य सहयोगी और कुशल सदस्य बन जाता है |

🎯 ग्रीन के अनुसार ➖

“समाजीकरण व प्रक्रिया जिसके द्वारा बालक सांस्कृतिक विशेषताएं ” आत्म गौरव और व्यक्तित्व” को प्राप्त करना है “|

🎯 ओगबर्न के अनुसार➖

” समाजीकरण समूह और समाज के मानदंडों को सीखने की प्रक्रिया है | ”

🎯बोगार्ड्स के अनुसार ➖

” सामाजिकरण एक साथ रहना और काम सीखने की प्रक्रिया है ” |

🎯मैकोनियस के अनुसार ➖

” समाजीकरण एक अजीबन प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज का सदस्य बन जाता है और मानवीय विशेषताओं का विकास करता है ” |

💫 समाजीकरण के प्रकार ➖

🎯 प्राथमिक समाजीकरण ( Primary Socialization)

इस प्रकार के समाजीकरण में परिवार ,दोस्त आदि आते हैं इसमें बच्चा तत्कालिक परिवार और मित्र से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों का आधार बनता है |

🎯 द्वितीयक समाजीकरण ( Secondry Socialization) ➖

यह प्राथमिक समाजीकरण के बाद आता है जिसमें बालक उन व्यवहार या कौशल को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के बीच एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त होते हैं |
इसके अन्तर्गत विद्यालय, पार्क, पड़ोसी आदि आते हैं |

🎯 प्रत्याशात्मक समाजीकरण (Anticipatory Socialization) ➖

व्यक्ति भविष्य के पद व्यवस्था और सामाजिक रिश्तों का पूर्वाभ्यास करता है |

🎯पुनःसमाजीकरण(Re-Socilization ) ➖

पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों व अनुभव के आधार पर अनुभव को स्वीकार करता है |

🎯 संगठनात्मक समाजीकरण(Organizational Socialization) ➖

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनीं संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है |

🎯 समूह समाजीकरण (Group Socialization) ➖

इसमें सहकर्मी समूह या पारिवारिक वातावरण के बजाय वास्तविकता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है |

🎯 लैंगिक समाजीकरण (Gender Socialization ) ➖

लिंग के आधार पर जो उपयुक्त व्यवहार है उसको सीखना भी लैंगिक समाजीकरण हैं इसमें लड़की लड़की के गुण और लड़के लड़के के गुण सीखते हैं और यही आवश्यक है |

🎯 जातीय सामाजिकरण ( Recital Socialization) ➖

इसमें बच्चा जातीय समूह के व्यवहार ,धारणा, मूल्य और दृष्टिकोण को प्राप्त करता है |

🔅 समाजीकरण की 4 एजेंन्सियां ➖

1) परिवार

2) विद्यालय

3) सहकर्मी समूह

4 ) संचार मीडिया |

💫 समाजीकरण के महत्वपूर्ण तत्व या कारक ➖

1) परिवार

2) आयु समूह

3) पड़ोस

4) रिश्ते – नातेदारी समूह

5) विद्यालय

6) खेल का मैदान

7) जाति

8) समाज

9) भाषा

10)राजनीतिक संस्थाएं

11) धार्मिक संस्थाएं

नोट्स बाॅय➖ रश्मि सावले

🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺

Individual Difference for ctet and tet notes by india top learners

➖व्यक्तित्व विभिन्नता➖

👉 किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर या विभिन्नता व्यक्ति भिन्नता कहलाती है

➖ स्वभाव
➖बुद्धि
➖शारीरिक
➖ सामाजिक
➖मानसिक
➖संवेगात्मक
👉 वैसे जुड़वा बच्चे एक तरह दिखते हैं लेकिन उनमें भी विभिन्नता पाए जाते हैं

👉 स्किनर➖
व्यक्तित्व विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलू से है जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है

👉 हेडलर➖
रूप ,रंग, कार्य, ज्ञान, बुद्धि ,अभिरुचि, आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्न नेता को ही व्यक्तित्व विनता कहते है

1)👉 शारीरिक आधार पर व्यक्तित्व विभिन्नता

➖ गोरे ,काले, लंबे ,छोटे, मोटे ,पतले
➖ रंग ,शरीर ,ढांचा ,परिपक्वता
➖ शिक्षक का दायित्व है कि बालकों को शिक्षण अधिगम देने में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य देखें
➖ अगर सारी भिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें

2)👉 योग्यता के आधार पर व्यक्तित्व भिन्नता

➖ सभी बच्चों में किसी न किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है

3)👉 लिंग के आधार पर व्यक्तित्व भिन्नता➖
पुरुष ,महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं
➖ सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता

4)👉 समुदाय के आधार पर व्यक्तित्व विभिन्नता➖ समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है
➖ कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बात करते कुछ बात करने से भी कतराते हैं
➖ जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती उन परिवार के बच्चे सामान्यता निम्न अस्तर के पाए जाते हैं

5)👉 व्यक्तित्व के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता➖ हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है
➖ बच्चा जैसा अनुसरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रमाणित करते है इसलिए व्यक्ति के तौर पर शिक्षक की individuals difference को समझने की जरूरत है

💢व्यक्तिक विभिन्नता के कारण➖

👉 इसके 4 कारण है
1) वंशानुक्रम
2) वातावरण या पर्यावरण
3) परिपक्वता
4) जाति, देश ,प्रजाति

1) वंशानुक्रम➖ वंशानुक्रम के द्वारा अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के गुणों का स्थानांतरण होता है

2) वातावरण➖ आर्थिक सामाजिक भौगोलिक तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार के वातावरण का प्रभाव बालक पर पड़ता है

3) परिपक्वता➖ परिपक्वता सीखने के लिए आवश्यक होती है या कुछ बच्चों में जल्दी आ जाती है और कुछ बच्चों में देर से आती है

4) जाति देश प्रजाति➖ प्रजाति भी व्यक्तित्व भिन्नता को जन्म देती है अलग-अलग देशों के लोगों में व्यक्तित्व भिन्नता पाई जाती है

💢💢💢💢💢💢💢💢💢

Notes by:—sangita bharti✍🙏

वैयक्तिक विभिन्नता (individual difference) 🔥🔥

किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर या विभिन्नता, ”वैयक्तिक विभिन्नता” कहलाती है।

परिभाषाएं 👉

स्किनर के अनुसार,”वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है।”

हैडलर के अनुसार,” रंग रूप कार्य ज्ञान बुद्धि अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही व्यक्तिगत विभिन्नता कहते हैं।”

वैयक्तिक भिन्नता के प्रकार (type of individual differences)

1. शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🔥🔥

रंग ,शरीर ढांचा ,परिपक्वता (काले, गोरे , लंबे , छोटे , मोटे , पतले) आदि के आधार पर शारिरिक विभिन्नताएं।

शिक्षक का दायित्व है कि बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें।

👉 अगर शारीरिक विभिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।

2. योग्यता के आधार पर वैयक्तिगत विभिन्नता 🔥🔥

👉सभी बच्चों में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होती है।
👉 उनकी विशिष्ट योग्यताओं का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।।

3. लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🔥🔥

👉 पुरुष, महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं।
👉 सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है।

4. समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🔥🔥

👉 समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखने लगता है।
👉 कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बात करते हैं तो कुछ बात करने से भी कतराते हैं।
👉 जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती हैं उन परिवार के बच्चे निम्न स्तर के सोच के पाए जाते हैं।

5. व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🔥🔥

हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है। उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है। बच्चा जैसा अनुकरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करते हैं। बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर एक शिक्षक को भी बच्चों में विभिन्नताओं को समझने की जरूरत है।

व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण (cause of individual differences)🔥🔥

व्यक्तिक विभिन्नता कोमलता दो बातें प्रभावित करती हैं –
1.अनुवांशिकता (heredity) और 2.वातावरण (environment)।

1. वंशानुक्रम /अनुवांशिकता (heredity)👉

बच्चे की रंग, रूप, बुद्धि,शारीरिक बनावट,वंशानुक्रम से प्रभावित होते हैं। माता-पिता का जो रंग , रूप होता है वैसे ही बच्चों में भी आ जाता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि माता- पिता के समान गुण बच्चे में भी आए । कई बार बच्चे माता-पिता के गुण नहीं प्राप्त करते बल्कि अपने दादा – दादी ,नाना- नानी के गुण का प्रभाव उनमें दिखाई देता है । एक ही माता-पिता के सभी बच्चे, यहां तक की जुड़वा बच्चे भी समान नहीं होते। उनमें भी विभिन्नताएं होती हैं। कुछ बच्चे में मां का गुण अधिक आता है तो कुछ में पिता का कभी-कभी माता-पिता लंगड़े हो तो जरूरी नहीं कि बच्चा भी लंगड़ा हो।

2. वातावरण / पर्यावरण (environment) 👉

शारीरिक एवं बौद्धिक विभिन्नताओं के अलावा जो सामाजिक, संवेगात्मक ,नैतिक, धार्मिक प्रकार की विभिन्नताएं होती हैं उन पर वातावरण का प्रभाव अधिक होता है।

नोट- इन सभी पर आयु ,परिपक्वता,जाति, देश, प्रजाति इत्यादि का भी प्रभाव पड़ता है।

✍️Notes by “Shreya Rai”🙏

🌱🌱व्यक्तिक विभिन्नता ,🌱🌱

🌴स्किनर के अनुसार-वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से हैं जिसका मापन एवं मूल्यांकन किया जा सकता है।

हैडलर के अनुसार-रूप, रंग, कार्य, ज्ञान ,बुद्धि अभिरुचि ,आदि लक्षणों में पाए जाने वाली विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं।

🌱🌱 आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता

🌴काले ,गोरे, लंबे -छोटे ,मोटे -पतले आदि आकार वा रुप का होना भी वैयक्तिक विभिन्नता कहलाता है;

🌴रंग, शरीर , व परिपक्वता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता;

🌴शिक्षक का दायित्व है कि बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके सहायक विकास का ध्यान अवश्य रखें;

🌴अगर शारीरिक भिन्नता अधिक होता है तो उचित निर्देशन करें;

🌱🌱योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता

🌴सभी बच्चों में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होती है;

🌴उनकी विशिष्ट योग्यता को पता लगाने के लिए शिक्षक को चाहिए कि उनकी रूचि वा क्रियाओं का मूल्यांकन करे ।

🌱🌱लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता

🌴पुरुषो में महिलाओं की अपेक्षा कम कोमलता होती हैं;

🌴शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बालक एवं बालिकाओं में विभिन्नता नहीं होती है;

🌱🌱समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता

🌴समाज ,परिवार ,तथा समुदाय का मानव के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है;

🌴जिन परिवार में बात चीत करने भाषा का प्रयोग अच्छे से नहीं किया जाता , उन परिवार के बच्चे भी निम्न स्तर की सोच के पाए जाते हैं;

🌱अच्छे परिवार के बच्चे का व्यवहार अच्छा होता है तथा अपराधिक परिवार के बच्चों का व्यवहार भी कुप्रभावित हो जाता है;

🌱🌱 के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता

🌴हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है;
उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है (जैसे बच्चा अनुसरण अनुकरण कहता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करते हैं;
बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर एक शिक्षक को भी जरूरी होता है कि वैक्तिक विभिन्नता को भी समझने की जरूरत है;

🌱🌱वैकक्तिक विभिन्नता के कारण-
🌀वंशानुक्रम
🌀वातावरण
🌀परिपक्वता
🌀जाति, देश, प्रजाति, धर्म इत्यादि

धन्यवाद
Written by – Shikhar Pande

📝वैयक्तिक विभिन्नता individual differences

🌸किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर या विभिन्नता वैयक्तिक विभिन्नता कहलाती है

🔵परिभाषाएं ➖

👉🏻स्किनर के अनुसार ➖

🔵वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है किसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है

👉🏻हैंडलर के अनुसार➖

🔴वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य रंग, रूप ,कार्य,ज्ञान बुद्धि ,अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहते है

🥀🥀🥀प्रकार➖

1️⃣शारीरिक आधार पर➖

🌸वैयक्तिक विभिन्नता रंग , शरीर ,मचान/ढांचा ,परिपक्वता आदि के आधार पर शारीरिक विभिन्नता

🌸शिक्षक का दायित्व है के बालको के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान रखे

🌸अगर शारीरिक विभिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करे

2️⃣योग्यता के आधार पर➖

🍁वैयक्तिक विभिन्नता सभी बच्चो में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होती है
🍁उसकी विशिष्ट योग्यता को पता लगाने के लिए शिक्षक उनकी रुचि व क्रियाओं का मूल्यांकन करे

3️⃣लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖

🍁पुरुषों में महिलाओं को अपेक्षा काम कोमलता होती है
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बालक एवं बालिकाओं में विभिन्नता नहीं होती है

4️⃣समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖

🍁समाज, परिवार तथा समुदाय का मानव के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है
🍁जिन परिवार में बात चीत करने में भाषा का प्रयोग अच्छे से नहीं किया जाता उन परिवारों के बच्चे भी निम्न स्तर की सोच के पाए जाते है

5️⃣व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

🍁हर बच्चे का अपना व्यक्तित्व होय है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति करके व्यवहार को दर्शाता है बच्चा जैसा अनुकरण करता है वह उसके व्यवहार को प्रभावित करता है बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए एक व्यक्तिगत तौर पर एक शिक्षक को भी बच्चो में विभिन्नताओं को समझने की जरूरत है

🟡वैयक्तिक विभिन्नता के कारण➖
🥀वांशनुक्रम ➖बच्चे का रंग ,रूप बुद्धि ,शारीरिक बनावट वंशनुक्रम के कारण होते है

🥀वातावरण ➖ सामाजिक , संवेगात्मक ,नैतिक धार्मिक प्रका र की विभिन्नताएं होती है उन पर वातावरण का प्रभाव अधिक पड़ता है और परिपक्वता ,
जाति ,देश प्रजाति इत्यादि पर भी इसका प्रभाव पड़ता है

📒notes by

📝Arti savita

🔆 वैयक्तिक विभिन्नता( individual difference) 🔆

कोई भी व्यक्ति या बालक सभी प्रकार से एक जैसे नहीं होते यहां तक कि दो जुड़वा भाई बहनों में भी पूर्ण रूप से समानता नहीं पाई जाती इनमें रूप रंग शारीरिक गठन विशिष्ट योग्यताओं बुद्धि स्वभाव आदि परस्पर एक दूसरे से कुछ न कुछ अवश्य होते हैं।

एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से रूप रंग शारीरिक गठन बुद्धि विशिष्ट योग्यताओं रुचियां उपलब्धियों स्वभाव व्यक्तित्व के गुणों आदि में भिन्नता ही वैयक्तिक भिन्नता कहलाती हैं।
दो व्यक्तियों की बुद्धि समायोजन अभिक्षमता एवं व्यवहार में जो अंतर होते हैं उन्हें ही वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।

💫 स्किनर के अनुसार ➖
वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है।

💫 हैंडलर के अनुसार ➖
रूप रंग कार्य ज्ञान बुद्धि अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं।

💞 वैयक्तिक विभिन्नता के प्रकार➖

1️⃣ शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖
काले गोरे लंबे छोटे मोटे पतले ।
👉रंग शरीर ढांचा परिपक्वता।
👉 शिक्षक का दायित्व है कि बालक को शिक्षण अधिगम देते समय उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रूप से रखना चाहिए।
👉 अगर शारीरिक विभिनता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।

2️⃣ योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖
सभी बच्चों में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी ।
👉उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।

3️⃣ लिगं के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖
पुरुष महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं।
👉 सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है।

4️⃣ समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖
समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है।👉 कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बात करते हैं कुछ बात करने से भी कतराते हैं।
👉 जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती है उनके परिवार के बच्चे निम्न स्तर के सोच कर पाए जाते हैं।

5️⃣ व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖
हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है।
👉 बच्चा जैसा अनुसरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
👉 बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर शिक्षक को वैयक्तिक विभिन्नता समझना जरूरी है।

🌀 वैयक्तिक विभिन्नता के कारण ➖

1️⃣ वंशानुक्रम➖
वंशानुक्रम व्यक्ति के शरीर अंतः स्रावी ग्रंथियों केंद्रीय स्नायु मंडल एवं उसकी बुद्धि को निर्धारित करते हैं जो निरंतर गतिशील एवं परिवर्तनशील वातावरण में अपने निराले ढंग से परस्पर क्रिया में संलग्न रहता है। बच्चे के रंग रूप बुद्धि शारीरिक बनावट वंशानुक्रम से प्रभावित होते हैं माता-पिता का जो रंग रूप है वैसे ही बच्चे में भी आ जाता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि माता पिता के समान गुण बच्चे में भी आए कई बार बच्चे माता-पिता के गुण प्राप्त नहीं करते बल्कि अपने दादा दादी नाना नानी के गुणों का प्रभाव उनमें दिखाई देता है एक ही माता-पिता के सभी बच्चे यहां तक की जुड़वा बच्चे भी समान नहीं होते उनमें भी विभिन्न विधाएं होती हैं कुछ बच्चे में मां का गुण अधिक आता है तो कुछ में पिता का कभी-कभी माता पिता जैसे हैं बच्चे वैसे नहीं होते हैं।

2️⃣ वातावरण ➖
वातावरण के अंतर्गत सभी कारक आते हैं जो एक प्राणी को प्रभावित करते हैं इन सभी सामाजिक नैतिक आर्थिक राजनीतिक भौतिक कारक से है जो व्यक्ति की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करते हैं एक व्यक्ति में पर्यावरणीय निर्धारकों में माता-पिता घर और परिवार आस-पड़ोस विद्यालय समाज और उनकी संस्कृति आते
हैं।

3️⃣ परिपक्वता

4️⃣ जाति देश प्रजाति इत्यादि

✨ इन सभी पर आयु , परिपक्वता,जाति ,देश, प्रजाति इत्यादि का भी प्रभाव पड़ता है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

💥 वैयक्तिक विभिन्नता💥🌺 (Individual Difference)

👉🏼 दो व्यक्तियों की आदत, शीलगुण बुद्धि एवं अन्य व्यवहारों में जो अंतर होता है उसे वैयक्तिक विभिन्नता कहा जाता है।

👉🏼 इस ढंग की वैयक्तिक विभिन्नता शारीरिक एवं मानसिक गुणों में तो स्पष्टत: झलकती है, परंतु अन्य क्षेत्रों या गुणों में भी वैयक्तिक विभिन्नता परोक्ष रूप से पाई जाती है।

🌀 स्किनर के अनुसार➖
व्यक्तिगत विभिन्नता का ताज पर उन सभी पहलू से है जिस समापन या मूल्यांकन किया जा सकता है।

🌀 टायलर के अनुसार➖ शरीर के आकार संरचना, मापक, क्षमता ,वृद्धि ,रुचि ,अभि वृत्ति तथा व्यक्तित्व के लक्षणों में माफ की जा सकने वाली भिन्नता को व्यक्तिगत भिन्नता कहते हैं।

1️⃣ वैयक्तिक विभिन्नता के प्रकार➖
⚡ शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

👉🏼 रंग शरीर ढांचा परिपक्वता
👉🏼शिक्षक का दायित्व है बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें।
👉🏼 अगर शरीर भिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।

2️⃣ योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

👉🏼 सभी बच्चों में किसी न किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी।
👉🏼उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।

3️⃣ लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

👉🏼 पुरुष, महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं।
👉🏼 सीखने के स्तरीय क्षमता पर अंतर नहीं होता है।

4️⃣ समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖

👉🏼 समुदाय का प्रभाव बचपन से दिखने लगता है।
👉🏼 कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बातें करते हैं कुछ बच्चे करने से कतराते हैं।
👉🏼जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती है समानता निम्न स्तर के सोच के पाए जाते हैं।

5️⃣ व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖
👉🏼हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है बच्चा जैसे अनुसरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करता है।
👉🏼 बच्चा एक शिक्षक जैसे बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर शिक्षक को वैयक्तिक विभिन्नता समझना जरूरी है।

🌺 वैयक्तिक विभिन्नता के कारण➖

⚡ वंशानुक्रम
⚡ वातावरण या परिवेश
⚡ परिपक्वता
⚡ जाति प्रथा एवं राष्ट्र का प्रभाव

1️⃣ वंशानुक्रम➖
प्राय: देखा गया है कि बुद्धिमान एवं उत्तम शीलगुणों वाले माता-पिता के बच्चे भी उत्तम शील गुण होते हैं, तथा उनका भी बुद्धि स्तर श्रेष्ठ होता है। जबकि सामान्य माता-पिता के बालक भी सामान नहीं होते हैं इन बच्चों में विभिन्नता का कारण वंशानुक्रम ही है।

2️⃣ वातावरण या परिवेश➖व्यक्तिगत भिन्नता का कारण वातावरण भी है एक ही मां बाप के सभी संतान एक समान नहीं होते क्योंकि बच्चों के भौतिक वातावरण (physical environment) तथा सामाजिक वातावरण(social environment) का प्रभाव व्यक्तिगत भेदों पर सर्वाधिक पड़ता है।

3️⃣ परिपक्वता➖
व्यक्तिगत भिन्नता का एक स्रोत परिपक्वता में अंतर है कुछ बालक मानसिक एवं शारीरिक रूप से अधिक परिपक्व होते हैं तो उसी आयु के दूसरे बालक मानसिक एवं शारीरिक रूप से कम परिपक्व होते हैं।

4️⃣ जाति प्रथा एवं राष्ट् का प्रभाव➖
व्यक्तिगत भिन्नता का एक स्रोत राष्ट्रीयता है विभिन्न प्रजाति के बालकों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, विकास में कुछ ना कुछ विभिन्नता अवश्य देखने को मिलती है।
एक राष्ट्र के बालक दूसरे राष्ट्र के बालक से किसी न किसी प्रकार से भिन्न होते हैं।

🖊️🖊️📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️

🌼🌼व्यैक्तिक भिन्नता🌼🌼
(Individual difference)

🌼स्वभाव
🌼 बुद्धि
🌼 शारीरिक
🌼 सामाजिक
🌼 मानसिक
🌼संवेगात्मक
🌼🌼 किसी व्यक्ति ने दूसरों की तुलना मे किसी भी पक्ष में अंतर या विभिन्नता वैयाक्तिक विभिन्नता कहलाती है
जुड़वा बच्चे एक तरह देखते हैं उनमें भी विभिन्नता एक तरह देखते हैं उनमें भी विभिन्नता हैं उनमें भी विभिन्नता होती है

🌼🌼स्किनर के अनुसार — वैयक्तिक भिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है जिसका मापन एवं मूल्यांकन किया जा सकता है

🌼🌼 हैडलर के अनुसार— रूप, रंग ,कार्य, ज्ञान, बुद्धि ,अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही व्यक्तिक विभिन्नता कहते हैं

🌼🌼1. शारीरिक आधार पर व्यक्तिक भिन्नता–
🌼 काले गोरे लंबे छोटे मोटे पतले इयादि के आधार पर! ।
🌼 रंग, शरीर ,ढांचा ,परिपक्वता के आधार पर!!
🌼शिक्षक का दायित्व है कि बालकों की शिक्षा अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें
🌼अगर शारीरिक विभिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशित करें

🌼🌼2. योग्यता के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता —
🌼सभी बच्चों में किसी न किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होती है
🌼उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है

🌼🌼3. लिंग के आधार पर वैयक्तिक भिन्नता —
🌼 पुरुष,महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं
🌼 सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है

🌼🌼4.समुदाय के आधार पर वैयक्तिक भिन्नता–
🌼 समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है
🌼 कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बातें करते हैं कुछ बातें करने से भी कतराते हैं
🌼परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती और परिवार में बच्चे की सोच निम्न स्तर की पाई जाती हैं

🌼🌼5.व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता —
🌼 हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है
🌼बच्चा जैसा अनुकरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करता है
🌼बच्चा एक शिक्षिक जैसा बनता है इसलिए बच्चे व्यक्तिगत तौर पर शिक्षक को ही Individual different समझने की जरूरत है

🌼व्यक्तिक विभिन्नताओं के कारण🌼
🌼 वंशानुक्रम -बच्चे मे कुछ विभिन्नता वंशानुक्रम से आती है..
🌼वातावरण – बच्चों मे वातावरण का प्रभाव पड़ता है..
🌼परिपक्वता – बच्चे परिपक्वता के आधार पर भी भिन्न होते है!
🌼जाति ,देश ,प्रजाति– बच्चे जाति, धर्म, प्रजाति आदि के आधार पर भी भिन्न होता है…
🌼🌼🌼🌼🌼manjari soni 🌼

🏵️ वैयक्तिक विभिन्नता (individual difference)
👉 स्वभाव, बुद्धि, शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, संवेगात्मक आदि रूप से अंतर होता है किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर या भिन्नता व्यक्तिक भिन्नता कहलाती है।
👉 जुड़वा बच्चे एक तरह दिखते हैं लेकिन उनमें भी भिन्नता होती हैं।
◾ स्किनर के अनुसार~वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलू से है जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है।
◾ हैंडलर के अनुसार~रूप, रंग, कार्य, ज्ञान, बुद्धि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही व्यक्तिक भिन्नता कहते हैं।
1️⃣ शारीरिक आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता:~
👉 काले, गोरे, लंबे, छोटे ,मोटे ,पतले आदि प्रकार से भी व्यक्तिक विभिन्नता होती है।
👉 रंग, शरीर, ढांचा, परिपक्वता इस आधार पर भी व्यक्तिक विभिन्नता होती है।
👉 शिक्षक का दायित्व होता है की बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें।
👉 अगर शारीरिक भिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।
2️⃣ योग्यता के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता:~
👉 सभी बच्चों में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी।
👉 उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।
3️⃣ लिंग के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता:~
👉 पुरुष महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं।
👉 सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है।
4️⃣ समुदाय के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता:~
👉 समुदाय का प्रभाव बचपन से दिखता है।
👉 कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बात करते हैं और कुछ बात करने से भी कतराते हैं।
👉जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती है उन परिवार के बच्चे निम्न स्तर के सोच के पाए जाते हैं।
5️⃣ व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएं:~
👉हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है बच्चा जैसा अनुसरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर शिक्षक को व्यक्तिक भिन्नता को समझने की जरूरत है।
◾ व्यक्तिक विभिन्नता के कारण:~
▪️ वंशानुक्रम:~बच्चों में वंशानुक्रम के आधार पर भी विभिन्नता पाई जाती है। अगर माता-पिता उच्च बुद्धि वाले हैं तो जरूरी नहीं उनके बच्चे भी उच्च बुद्धि वाले होंगे, निम्न बुद्धि के भी हो सकते हैं और यदि एक बच्चा लंबा है तो हो सकता दूसरा बच्चा नाटा हो।
▪️ वातावरण:~बच्चों में वातावरण के आधार पर भी भिन्नता होती है।जहां जैसा बच्चों को वातावरण मिलता है बच्चे उसी प्रकार से अपने आप को ढाल लेते हैं। अगर बच्चों को अच्छा वातावरण मिलेगा तो उस वातावरण के बच्चे भी अच्छे होंगे अगर बच्चों को वातावरण ही खराब मिलेगा तो बच्चे भी खराब होंगे।
▪️ परिपक्वता:~व्यक्तिगत विभिन्नता का एक आधार परिपक्वता भी है कुछ बालक शारीरिक तथा मानसिक रूप से अधिक परिपक्व होते हैं और कुछ बालक शारीरिक और मानसिक रूप से कम परिपक्व होते हैं।
▪️ जाति,देश, प्रजाति :~व्यक्तिगत विभिन्नता का एक माध्यम जाति, देश, प्रजाति भी है संसार में अनेकों प्रकार की जाति, तथा प्रजाति और देश भी है और सभी जाति, प्रजाति तथा देश में अनेक अलग-अलग प्रकार के व्यक्ति पाए जाते हैं कोई काला है, तो कोई गोरा है, कोई लंबा है, तो कोई नाटा है, आदि प्रकार से विभिन्नता पाई जाती हैं।
🔹🔸🔹
🏵️🌸🏵️✍️ Notes by •ᴗ•Vinay Singh Thakur🏵️🌸🏵️

🌻🌾 वैयक्तिक विभिन्नता 🌾🌻

🍁 स्वभाव
🐥शुद्धि
☃️शारीरिक
🌾सामाजिक
🌿मानसिक
🌺सवेगात्मक
किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में किसी भी पक्ष में अन्तर या भिन्नता करना वैयक्तिक विभिन्नता कहलाती है।
जुड़वां बच्चे देखने में एक जैसे ही लगते हैं परन्तु उनमें भी वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है।

🌹🌸स्किनर के अनुसार ÷ वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलु से है, जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है।

☃️🌾हैडलर के अनुसार ÷ रूप, रंग, कार्य, ज्ञान , बुध्दि,अभिरूचि इत्यादि में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं।

🎃☃️ शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ☃️🎃

🍂काले ,गोरे, लंबे, छोटे,मोटे ,पतले इत्यादि के आधार पर।

🐤 रंग,शरीर, ढांचा, परिपक्वता के आधार पर।

🌼 शिक्षक का दायित्व है कि बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान रखें।

🌾 अगर शारीरिक भिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।

🍃🌻 योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🌻🍃

🍂सभी बच्चों में किसी न किसी क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता जरूर होगी।

🌸 उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।

🌲🌷 लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🌷🌲

🌻पुरूष महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं।

🍀 सीखने के स्तर या क्षमता पर अतंर नहीं होता है।

☃️🎃 समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 🎃☃️

🐤 समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है।

🐥 कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बात करते हैं, कुछ करने से भी कतराते हैं।

🍁जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती है,उन परिवारों में बच्चे निम्न स्तर के सोच के पाए जाते हैं।

💫💥 व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता 💥💫

🎃हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है बच्चा जैसा अनुसरण करता है। वह उनके व्यवहार को प्रभावित करता है।
बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तित्व तौर पर शिक्षक Individual Difference समझने की जरूरत है।

🍂🌷 व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण 🌷🌹

🌾 वंशानुक्रम ÷ बच्चों में वैयक्तिक विभिन्नता वंशानुक्रम के माध्यम से आती है।

🌺 वातावरण ÷ वातावरण का बच्चों की वैयक्तिक विभिन्नता पर असर पड़ता है।

🌻 परिपक्वता ÷ परिपक्वता के आधार पर भी वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है।

🐿️जाति ÷ जाति के आधार पर बच्चों में वैयक्तिक विभिन्नता देखने को मिलती है।

☃️ देश ÷ देशों के आधार पर भी विभिन्न प्रकार की वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है।

🐤प्रजाति ÷ प्रजाति वैयक्तिक विभिन्नता को बढ़ाता है।

🌺🌺🌺 Notes by ÷ Babita yadav 🌸🍁🌷

🌺वैयक्तिक विभिन्नता Individual Difference🌺

प्रत्येक व्यक्तियों में अनेक प्रकार की वैयक्तिक भिन्नता पायी जातीं हैं , जैसे :-

🌻 स्वभाव

( Nature! ) स्वभाव के आधार पर भिन्नता।

🌻 बुद्धि

(Intelligence) बुद्धि / ज्ञान के आधार पर भिन्नता।

🌻 शारीरिक

(Physical ) शारीरिक बनावट के आधार पर भिन्नता।

🌻 सामाजिक

(Social) सामाजिक आधार पर भिन्नता।

🌻 मानसिक

(Mental) मानसिक आधार पर भिन्नता।

🌻 संवेगात्मक

(Emotional) संवेगात्मक आधार पर भिन्नता।

ऐसी अनेक विभिन्नता के आधार पर प्रत्येक व्यक्तियों में भिन्नतायें पाई जाती हैं , यहां तक कि जुड़वा व्यक्तियों में भी कुछ-कुछ भिन्नतायें पाई जाती हैं।

” किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर या भिन्नता , वैयक्तिक भिन्नता कहलाती है। ”

🌲 मनोवैज्ञानिकों के द्वारा वैयक्तिक विभिन्नता के आधार पर कथन निम्नलिखित हैं :-

🌺 स्किनर के अनुसार :-

” वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है। ”

🌺 हैडलर के अनुसार :-

” रूप , रंग , कार्य , ज्ञान , बुद्धि , अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं। ”

🌲 वैयक्तिक विभिन्नता के प्रकार 🌲

1.🍁 शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :-

👉काले -गोरे , लंबे -ठिगने , मोटे – पतले

अर्थात कुछ बच्चे/ व्यक्तियों में उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती।

👉रंग , शरीर , ढांचा , परिपक्वता ।

👉शिक्षक का दायित्व है कि बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान रखें।

👉अगर शारीरिक विभिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।

2.🍁 योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :-

👉सभी बच्चों में किसी न किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी।

👉उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है ।

3.🍁 लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :-

👉पुरूष , महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं।

👉सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है।

अर्थात शारीरिक कोमलता और शरीरिक ताकत में पुरूष और महिलाओं में ऐसी कुछ भिन्नतायें जरूर पायी जाती हैं परंतु उनके ज्ञान/ बुद्धि, सोचने समझने , विचार/ तर्क आदि में कोई भिन्नता नहीं पाई जाती, अतः हम ये नही कह सकते हैं कि पुरुषों की अपेक्षा अधिक शारीरिक कोमल होने के कारण महिलाएँ बाकी क्षमताओं में भी भिन्न होती हैं।, इस तथ्य में सभी समान हैं।

4.🍁 समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता :-

👉समुदाय / समाज का प्रभाव बच्चों में बचपन से ही दिखता है।

👉कुछ बच्चे बहुत प्रभावी तौर पर बात करते हैं तथा कुछ बच्चे बात करने से कतराते हैं।

👉जिन परिवारों में अच्छी भाषा का प्रयोग नहीं होता है उन परिवारों के बच्चे निम्न स्तर की सोच के पाए जाते हैं।

अर्थात बच्चों पर अपने समुदाय/ परिवेश का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः सकारात्मक और नकारात्मक परिवेश के आधार पर ही बच्चों में वैयक्तिक विभन्नता पायी जाती हैं।

5.🍁 व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नतायें :-

👉प्रत्येक बच्चे का अपना – अपना व्यक्तित्व होता है , उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है।

👉बच्चे जैसा अनुसरण करते हैं उसी प्रकार से उनका व्यवहार भी प्रभावित होता है।

👉बच्चा एक शिक्षक के जैसा बनता है , अतः इसीलिए व्यक्तित्व तौर पर शिक्षा की वैयक्तिक विभिन्नता को समझने की जरूरत है।

🌲 वैयक्तिक विभिन्नता के कारण 🌲

प्रत्येक व्यक्ति में आनुवंशिकता, वंशानुक्रम, परिवार, वातावरण, अपने परिवेश/समूह , बढ़ती उम्र परिपक्वता, ज्ञान/समझ, देश, जाति, प्रजाति आदि वैयक्तिक विभिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं :-

१. वंशानुक्रम
२. वातावरण
३. परिपक्वता
४. देश , जाति , प्रजाति इत्यादि।

🌺✒️ Notes by- जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

🔆 वैयक्तिक विभिन्नता ( Individual Difference)

प्रत्येक व्यक्ति में स्वभाव ,बुद्धि, शारीरिक ,,सामाजिक,,मानसिक,,संवेगात्मक ,,या इनमें से किसी भी रूप में एक दूसरे व्यक्ति की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर भिन्नता वैयक्तिकक्तिक भिन्नता कहलाती है |

यहां तक की जुड़वा बच्चों में भी किसी ना किसी प्रकार से व्यक्तिक भिन्नता पाई जाती है वर्तमान में वैयक्तिक भिन्नता का महत्व कहीं अधिक बढ़ गया है जिसका संबंध हमारी शिक्षा से है |

वैयक्तिक विभिन्नता किसी भी रूप में हो सकती है चाहे वह व्यक्ति के रंग,,रूप ,,सामाजिक,,मानसिक,,या किसी भी कारण से उनमें व्यक्तिक विभिन्नता पाई जाती है |

🔆 वैयक्तिक विभिन्नता की परिभाषाएं ➖

☀ स्किनर के अनुसार➖

” वैयक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है जिनका मापन एवं मूल्यांकन किया जा सकता है |”

☀ हैलडलर के अनुसार➖

” रूप , रंग, का ज्ञान, बुद्धि, अभिरुचि, इत्यादि लक्षणों में पाई जाने वाली जो विभिन्नता है उसको ही व्यक्तिक विभिन्नता कहते हैं |”

💫 वैयक्तिक विभिन्नता के आधार ➖

🎯 शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

1) शरीर के आधार पर कुछ लोग काले , गोरे, लंबे, छोटे, मोटे, पतले, आदि होते हैं जिनके कारण उनमें भिन्नता पाई जाती है |

2) वैयक्तिक भिन्नता रंग, शरीर, ढांचा, परिपक्वता के आधार पर भी पाई जाती है |

3) शारीरिक विभिन्नता के आधार पर कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होती है इसके लिए शिक्षक का दायित्व है कि बालकों को दी जाने वाली शिक्षा जिस से कि उनकाे शिक्षण अधिगम प्रदान करते समय उनमें शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें |

4) यदि शारीरिक भिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होगा तो वहाँ भेदभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है |

🎯 योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

योग्यता के आधार पर हम देखते हैं कि सभी बच्चों में अलग-अलग क्षमता पाई जाती है जिसको हम अलग नहीं कर सकते हैं जिससे उनकी योग्यताओं का पता लगाना जरूरी है | इसके लिए

1) सभी बच्चों में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होती है |

2) उनकी विशिष्ट योग्यताओं का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है |

🎯 लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

1) पुरुष महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं |

2) उनमें सीखने या क्षमता का स्तर उस में अंतर नहीं होता है | इसलिए एक शिक्षक को समझना चाहिए कि लिंग के आधार पर सीखने के स्तर या क्षमता में अंतर नहीं होता है |

🎯 समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

1) कुछ बच्चों का ऐसा सामाजिक विकास होता है जो आपसी तालमेल से बहुत घबराते हैं और कई बहुत अच्छे से साझेदारी करते हैं इसलिए उस समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है इसलिए उस समुदाय को समझना बहुत आवश्यक है |

2) कुछ बच्चे बहुत प्रभावी रूप से बात करते हैं और कुछ बात करने से भी घबराते हैं |

3) जिन परिवार की भाषा अच्छी नहीं होती है उन परिवारों के बच्चे निम्न स्तर की सोच वाले होते हैं |

🎯 व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता➖

1) व्यक्ति की विभिन्नताएं उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करती हैं बालक जिस अध्यापक अनुकरण करता है उसके जैसा ही व्यवहार करता है |

2) हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनकी व्यवहार को दर्शाती है |

3) बच्चा जैसा अनुसरण करता है उसका व्यवहार उनके व्यवहार को भी प्रभावित करता हैं बच्चा एक शिक्षक बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर शिक्षकों को वैयक्तिक विभिन्नता को समझना अति आवश्यक है |

🌟 व्यक्तिक विभिन्नता के कारण ➖

1) वंशानुक्रम ➖

वंशानुक्रम भी वैयक्तिक विभिन्नता का एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि इसी से व्यक्ति के रंग ,रूप, और शारीरिक बनावट में विभिन्नता पाई जाती है |

2) वातावरण ➖

वातावरण के द्वारा व्यक्ति को एक समुदाय प्राप्त होता है जो व्यक्तिक विभिन्नता को प्रभावित करता है इसी के कारण व्यक्ति में बहुत सारे परिवर्तन होते हैं जैसे भाषा के आधार पर और उनकी शिक्षा के आधार पर उनमें वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है |

3) देश जाति या प्रजाति ➖

सभी बच्चे कि अपनी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि होती है और उसके अनुसार वह अपना व्यवहार प्रदर्शित करता है जिस बच्चे की जाति या भाषा जिस प्रकार की होगी उसका व्यक्तित्व भी उसी प्रकार से निर्मित होगा |

नोट्स बाॅय➖ रश्मि सावले

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🌀🔥वैयक्तिक विभिन्नता (Individual differences)🔥🌀

स्वभाव बुद्धि शारीरिक सामाजिक मानसिक संवेगात्मक ये वैयक्तिक विभिन्नता से संबंधित है|
व्यक्तिगत भेद कई प्रकार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है एक समय था जब व्यक्ति की आवश्यकता सीमित थी जिनको वह सरलता से पूरा कर देता था आधुनिक युग में हमें विभिन्न प्रकार की विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों की आवश्यकता है जो समाज के विभिन्न विकास में योगदान दे सकें व्यक्तिगत भेद विशेष के लिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि उनके विकास में संतोष और आनंद मिलता है और वह अपनी योग्यता के अनुकूल विकास करता है व्यक्तिगत भेदों के अध्ययन से बच्चों की व्यक्तिगत योग्यताओं का पता लगाकर उनका उचित विकास कर सकते हैं |
जो मनुष्य एक दूसरे से मानसिक योग्यताओ, शारीरिक क्षमता तथा शील गुणो के आधार पर भिन्न होते हैं यहां तक कि जुड़वा भाई बहन भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं ये भिन्नताएँ एक व्यक्ति को दूसरे पति से अलग करती है |

🔅 स्किनर के अनुसार :- “व्यक्तिक भिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलुओं से है जिसका मापन एवं मूल्यांकन किया जा सकता है” |

🔅 हेडलर के अनुसार :- रूप रंग कार्य ज्ञान बुद्धि अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली विभिन्नता को ही व्यक्तिगत विभिन्नता कहते हैं |
◼ व्यक्तिगत विभिन्नता के प्रकार :-
1⃣ शारीरिक आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖ इसमें व्यक्तियों मे काले गोरे लंबे छोटे मोटे पतले आदि ऐसे वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है |
रंग शरीर ढांचा परिपक्वता इन सभी के कारण भी वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है शिक्षक का दायित्व है कि बालको के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें | अलग-अलग शारीरिक विभिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें |

2⃣ योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖ सभी बच्चों में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी |
उनकी विशिष्ट योग्यता का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है |
हर व्यक्ति की अलग – अलग योग्यता होती है और वह आगे बढ़ता है |

3⃣ लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖ इसमें पुरुषों महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते है |
सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है |

4⃣ समुदाय के आधार पर वैयक्तिक भिन्नता ➖ इसमें समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है परिवार क्षेत्र |
कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बातें बात करते हैं कुछ बात करने से कतराते हैं |
जिन परिवार में भाषा अच्छी नहीं होती उस परिवार के बच्चे निम्न स्तर की सोच के पाए जाते हैं |

5⃣ व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता ➖ हर बच्चे का अपना – अपना व्यक्तित्व होता है उसी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है तथा बच्चा जैसा अनुसरण करता है वह उनके व्यवहार को प्रभावित करते हैं बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर शिक्षक को समझने की जरूरत है |

वैयक्तिक विभिन्नता के कारण :➖
1.- वंशानुक्रम –
2.- वातावरण –
3.- परिपक्वता –
4.- जाति देश प्रजाति इत्यादि

◼ वंशानुक्रम :- इसमें बच्चों में कुछ विभिन्नता के कारण वंशानुक्रम का प्रभाव भी पड़ता है |
◼ वातावरण :- बच्चो पर वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है | जिसके कारण वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है|
◼ परिपक्वता :- इसमें बच्चों में परिपक्वता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता देखी जाती है|
◼ जाति देश प्रजाति इत्यादि :- जाति देश प्रजाति आदि के आधार पर भी वैयक्तिक विभिन्नता देखी जाती है |
Notes by➖ Ranjana Sen

🌈individual difference🎯 (वैयक्तिक विभिन्नता)🎯

बच्चों में वैयक्तिक विभिन्नता निम्नलिखित कारणों से हो सकती है ।जैसे- स्वाभाविक ,बुद्धि, शारीरिक, सामाजिक ,मानसिक, संवेगात्मक इत्यादि कारणों से व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होते हैं।

👉जुड़वा बच्चे एक तरफ से दिखते हैं लेकिन उनमें भी विभिन्नता होती है। कभी-कभी हम विभिन्नता को परेख नहीं पाते हैं।

सामान्य तौर पर देखे जाते हैं एक या दो व्यक्ति आपस में भाषा का संप्रेषण करते हैं जैसे- कभी-कभी बातचीत करते हैं और बोलते हैं कि आपका भाषा और मेरा भाषा कितना मिलता-जुलता है आपका विचार और मेरा विचार दोनों मिलता-जुलता है आपका वेशभूषा पर मेरा वेशभूषा एक ही जैसा है हम दोनों में कोई अंतर ही नहीं है इत्यादि अनेक तरफ से बातचीत होते हैं लेकिन यह वास्तविकता नहीं है दुनिया में कोई भी बच्चा एक समान नहीं होते हैं किसी न किसी रूप से विभिन्नता होती है।

🌾किसी व्यक्ति में दूसरे की तुलना में किसी भी पक्ष में अंतर या मिलना व्यक्तिक भिन्नता है।

वैयक्तिक विभिनता के संदर्भ में…..

🎯स्किनर का कथन—

व्यक्तिक विभिन्नता से तात्पर्य उन सभी पहलू से है जिसका मापन या मूल्यांकन किया जा सकता है।

💮हैडलर के अनुसार…….

रूप, रंग, कार्य ,ज्ञान, बुद्धि, रुचि इत्यादि इन सभी लक्षणों में पाए जाने वाले विभिन्न हि वैयक्तिक विभिन्नता है।

🌈वैयक्तिक विभिन्नता अन्य कारकों पर निर्भर करता है……

⭐शारीरिक आधार पर व्यक्तिक भिन्नता—-

समाज में अनेक तरह के लोग होते हैं उनमें से कुछ लोग काले, गोरे ,लंबे ,छोटे, मोटे ,पतले इत्यादि रूप से एक- दूसरे से भिन्न होते हैं।

कुछ व्यक्ति में रंग ,शरीर, ढांचा, परिपक्वता इत्यादि प्रकार से वैयक्तिक भिन्नता होती है।

एक शिक्षक का दायित्व होता है कि बालकों के शिक्षण अधिगम में उनके शारीरिक विकास का ध्यान अवश्य रखें।

अगर बालकों में शारीरिक भिन्नता अधिक होती है तो उचित निर्देशन करें।

⚡योग्यता के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता…….

सभी बच्चे में किसी ना किसी क्षेत्र में योग्यता जरूर होगी। जैसे-कोई बच्चा पढ़ने लिखने में अच्छा हैं, तो कोई बच्चा गाना गाने में ,कोई नृत्य करने में, कोई खेल खेलने में अच्छा है तो हर एक बच्चे में कोई न कोई अलग-अलग विशिष्टताएं होती है।

उन्हीं विशिष्ट योग्यताओं का पता लगाने के लिए विशिष्ट परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।

💫लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता……

पुरूष महिलाओं की अपेक्षा कम कोमल होते हैं लेकिन इनके सीखने के स्तर या क्षमता पर अंतर नहीं होता है।

🌷समुदाय के आधार पर व्यक्ति विभिन्नता…..

समुदाय का प्रभाव बचपन से ही दिखता है कुछ बच्चे बहुत प्रभावी बात करते हैं कुछ बच्चे करने से कतराते हैं
जिन परिवार में अच्छी भाषा प्रयोग नहीं होते हैं उन परिवार में बच्चे निम्न स्तर के सोच के पाए जाते हैं। क्योंकि विद्यालय में अलग-अलग समुदाय से परिवार से बच्चे आते हैं तथा उनमें विभिन्न प्रकार के सोच , चीजों को करने का तरीका इत्यादि अलग-अलग प्रकार से होते हैं।

🍁व्यक्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता है…

व्यक्ति के आधार पर व्यक्तिक विभिन्नता हैं अपने अपने personality पर depend करता है हर बच्चे का अपना अपना व्यक्तित्व होता है उसकी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति उनके व्यवहार को दर्शाती है।

व उनके व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
बच्चा एक शिक्षक जैसा बनता है इसलिए व्यक्तिगत तौर पर एक शिक्षक को वैयक्तिक विभिन्नता को समझने की जरूरत है।

वैयक्तिक विभिन्नता के कारण….

(1) वंशानुक्रम –
अपने पूर्वजों से विरासत में मिला हुआ गुण जो हर बच्चे में अलग- अलग होती है उसके आधार पर व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होते हैं।

(2) वातावरण —
हर एक बच्चा अलग-अलग वातावरण से आते हैं जो बच्चा जिस वातावरण में पला बढ़ा है उन बच्चों में वैसे ही गुण विकसित होंगे। तथा इसके आधार पर व्यक्ति में विविधता होती है।

(3) परिपक्वता –
अगर हम विद्यालय की बात करें तो बच्चे की आयु अलग-अलग होती है तथा उन बच्चे में भी परिपक्वता आ जाती है अंतर सिर्फ इतना ही है कि कोई बच्चे में जल्दी और कोई बच्चे में देर से परिपक्वता आती है।

(4)जाति ,देश, प्रजाति —
सब बच्चे एक ही जाति, धर्म, संप्रदाय, प्रजाति के नहीं होते हैं मैं भी उन सभी में जाति, देश, प्रजाति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता होती है।

☘️🍂💐💐🙏Notes by- SRIRAM PANJIYARA🏵️🌹🌾💮🙏

Critical thinking for CTET and state TET notes by India’s top learners

🌈गहन चिंतन( critical thinking) :-🎯

🌾किसी भी उत्तर या निष्कर्ष पाने के लिए संश्लेषण, विश्लेषण, तार्किक कौशल इत्यादि को स्वनिर्देशित रूप से गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाये गए चिंतन गहन चिंतन कहलाते हैं।

💫गहन चिंतन विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।

⭐गहन चिंतन के लक्षण ……..

💮(1) तर्क संगतता :~~~~

👉किसी विषय के गुण/अवगुण दोनों पर विचार करते हैं।

👉इसमें निर्णय तर्क संगत हो जाता है।

💫(2) वैज्ञानिक दृष्टिकोण :~

👉एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करते हैं।

☘️इसी के परिणामस्वरूप एक शिक्षार्थी वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

🌼(3) प्रासंगिकता :~~

👉गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रसांगिक विचारों का चयन किया जाता है।

💐गहन चिंतन के लाभ……

🌻(1) बच्चों को संप्रत्यय निर्माण/आवेदन/विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।

🌾(2) भाषा कौशल, सोच कौशल बढ़ाती है।

🍂(3) तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती हैं।

🍁(4) मान्यताओं को समझने/मूल्यांकन करने में मदद मिलता है।
🌺(5) सही को स्वीकार/ गलत को अस्वीकार करने में मदद करता हैं।

⚡(6) गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

🌼💐☘️💮🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

🏵️ गहन चिंतन (critical thinking) 🏵️
👉 किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए, संश्लेषण, विश्लेषण, तार्किक कौशल इत्यादि को निर्देशित रूप से गुणवत्ता की उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन गहन चिंतन कहलाते हैं।
👉 गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।
🌸 गहन चिंतन के लक्षण ➡️
1️⃣ तर्क संगतता:—
👉 किसी विषय के गुण/अवगुण दोनों पर विचार करते हैं।
👉 इससे निर्णय तर्कसंगत हो जाता है।
2️⃣ वैज्ञानिक दृष्टिकोण:—
👉 एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।
3️⃣ प्रासंगिकता (Relevance)
👉 गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचारधारा का चयन किया जाता है।
◾ गहन चिंतन के लाभ:—–
1️⃣ बच्चे को संप्रत्यय निर्माण /आवेदन/ विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।
2️⃣ भाषा कौशल,सोच कौशल बढ़ती है।
3️⃣ तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
4️⃣ मान्यताओं को समझने/ मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
5️⃣ सही को स्वीकार गलत को अस्वीकार, करने में मदद मिलती है।
6️⃣ गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।
🔹🔸🔹
🏵️🌸🏵️✍️ Notes by (。◕‿◕。)➜Vinay Singh Thakur🏵️🌸🏵️

💞✨ गहन चिंतन (critical thinking)💞✨

जितने भी प्रकार के चिंतन है उन सभी चिंतन का समावेश गहन चिंतन में होता है ।
✨जब हम गहन चिंतन करते हैं गहन चिंतन किसी भी चीज पर पूरी तरह विश्लेषणात्मक किसी चीज को पूरी तरह तैयार करना किसी भी चीज के हर पक्षों को देखना सभी गहन चिंतन में शामिल होते हैं।
✨ चिंतन सोचकर नहीं करते वह ऐसे ही होता है चिंतन के लिए सर्वप्रथम समस्या का होना जरूरी होता है।
✨ किसी भी निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण विश्लेषण तार के कौशल इत्यादि को निर्देशित रूप से गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन को गहन चिंतन कहते हैं ।
✨गहन चिंतन से सलूशन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

💫 गहन चिंतन के लक्षण ➖

1️⃣ तर्क संगतता➖
किसी विषय के गुण अवगुण दोनों पर विचार करते हैं इसमें निर्णय तर्कसंगत होता है।

2️⃣ वैज्ञानिक दृष्टिकोण ➖
एक भी शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक विद्यार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

3️⃣ प्रासंगिकता ➖
गहन चिंतन में उपर्युक्त विचारधारा का चयन कर के छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचारधारा का चयन किया जाता है

🌀 गहन चिंतन के लाभ➖

1️⃣ बच्चे को संप्रत्यय ➖
निर्माण आवेदन विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।
2️⃣ भाषा कौशल सोच कौशल बढ़ती है।
3️⃣ तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है ।
4️⃣मान्यताओं को समझने या मूल्यांकन करने में मदद मिलती है ।
5️⃣सही को स्वीकार गलत को अस्वीकार करने में मदद करता है
6️⃣गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🤔 गहन चिंतन🤔
(Critical thinking)

👉 जितने भी प्रकार के चिंतन है उन सभी चिंतन का समावेश इसमें होता है
👉 हम सब गहन चिंतन करते हैं गहन चिंतन किसी भी चीज पर पूरी तरह विश्लेषणकरना ,किसी चीज को पूरी तरह तैयार करना ,किसी भी चीज के हर पक्षों को देखना यह सब काम चिंतन में आता है
👉 चिंतन सोचकर नहीं करते वह ऐसे ही होता है
👉 किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण ,विश्लेषण, तार्किक कौशल, इत्यादि को निर्देशित रूप से गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन चिंतन कहलाते हैं
👉 गहन चिंतन से सुलेशन और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है

🤔 गहन चिंतन के लक्षण🤔

(1) तर्क संगतता :—
➡️ किसी विषय के गुण अवगुण दोनों पर विचार करते हैं
➡️ इससे निर्णय तर्कसंगत हो जाता है

(2) वैज्ञानिक दृष्टिकोण:—

➡️ एक भी शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है

(3) प्रासंगिकता:—
➡️ गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन कर के छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रसांगिक विचारधारा का चयन किया जाता है

🤔 गहन चिंतन के लाभ🤔

👉1) बच्चे को संप्रत्यय निर्माण ,आवेदन,विचारों का विस्तार करने में मदद करता है
👉2) भाषा कौशल ,सोच कौशल बढ़ती है
👉3) तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है
👉4) मान्यताओं को समझने या मूल्यांकन करने में मदद मिलता है
👉5) सही को स्वीकार /गलत को अस्वीकार करने में मदद करता है
👉6) गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है

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Notes by:—sangita bharti✍

🍁🌼💫गहन चिंतन 💫🌼🍁

किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण, विश्लेषण तार्किक कौशल इत्यादि को स्व निर्देशित रूप से गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन, गहन चिंतन कहलाते हैं।
गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।

🌿🌹🍁 गहन चिंतन के लक्षण 🍁🌹🌿

🍂 तर्क संगतता ÷ किसी विषय के गुण/अवगुण दोनों पर विचार करते हैं इससे निर्णय तर्क संगत हो जाता है।

🐤🌾 वैज्ञानिक दृष्टिकोण ÷ एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच सम्वन्ध विकसित करने में मदद करता है, इसी के परिणामस्वरूप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

🍃🎃 प्रासंगिकता ÷ गहन चिंतन में उपयुक्त विचार धारा का चयन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचार धारा का चयन किया जाता है।

🐥🕊️☃️ गहन चिंतन के लाभ ☃️🕊️🐥

🎃 बच्चें को सम्प्रत्यय निर्माण, आवेदन , विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।

🦋 भाषा कौशल,सोच कौशल बढ़ती है।

🐦 तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।

🐿️ मान्यताओं को समझने व मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।

🌹 सही को स्वीकार तथा गलत को अस्वीकार करने में मदद मिलती है।

🌾 गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

🌻🌻🌻Notes by ÷ Babita yadav 🌻🌻🌻🌸
🥀🥀🥀गहन चिंतन🥀🥀

🌸किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण ,विश्लेषण,तार्किक आदि को स्व निर्देशित रूप में गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन को गहन चिंतन कहते है

गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बताया जाता है

🌸गहन चिंतन के लक्षण ➖

🟣तर्कसंगतता ➖किसी विषय के गुण अवगुण डोनोपर विचार करते है

🟠वैयक्तिक दृष्टिकोण ➖एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टकोण होता है

🔵प्रासंगिकता ➖गहन चिंतन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचार धारा का चयन किया जाता है

🌸गहन चिंतन के लाभ➖

1️⃣बच्चे को संप्रत्याय निर्माण /आवेदन और विचारो का विस्तार करने में मदद करता है

2️⃣भाषा कैशल और सोच कौशल बढ़ती है

3️⃣तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है

4️⃣शिक्षार्थी के दैनिक जीवन में मूर्खतापूर्ण निर्णय से बचने में मदद करता है

5️⃣मान्यताओं को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है

6️⃣तर्क पूर्ण निर्णय लेने और गलत को स्वीकार करने में मदद मिलती है

🌸📒Notes by

📝Arti savita

🌱🌱 गहन चिंतन🌱🌱

🌴किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण विश्लेषण, तार्किक वा आत्मनुभूति के साथ किया गया चिंतन ,गहन चिंतन कहलाता है।

🌴गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।

🍀 गहन चिंतन के लक्षण÷

🌴तर्क संगतता ÷किसी विषय के गुण/अवगुण दोनों पर विचार करते है।

🌴 इससे निर्णय भी तर्कसंगत हो जाता है।

🌴वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक से छाती का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

🌴प्रासंगिकता गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन करके छात्रो को तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचार धारा का चयन किया जाता है।

🍀 गहन चिंतन के लाभ÷

🌴बच्चों को सम्प्रत्यय (अवधारणा) निर्माण/आवेदन/विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।

🌴भाषा कौशल,सोच कौशल,बढ़ता है,(सौम्यता से भरपूर)।

🌴तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद् करता है, सही को स्वीकार गलत को अस्वीकार करने में मदद् करता है ।

🌴गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खता पूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

🌀 धन्यवाद 🌀
✍️✍️लिखित द्वारा – शिखर पाण्डेय ✍️

🌼🌼गहन चिंतन (critical thinking) 🌼🌼
🌼 किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए, संश्लेषण, विश्लेषण, तार्किक कौशल इत्यादि को निर्देशित रूप से गुणवत्ता की उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन गहन चिंतन कहलाते हैं।
🌼 गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।
🌼 गहन चिंतन के लक्षण ➡

🌼🌼1️.तर्क संगतता:—
🌼 किसी विषय के गुण/अवगुण दोनों पर विचार करते हैं।
🌼 इससे निर्णय तर्कसंगत हो जाता है।

🌼🌼2️वैज्ञानिक दृष्टिकोण:—
🌼 एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।
🌼🌼3️.प्रासंगिकता (Relevance)
🌼 गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचारधारा का चयन किया जाता है।

🌼🌼 गहन चिंतन के लाभ:—–
🌼1️.बच्चे को संप्रत्यय निर्माण /आवेदन/ विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।
🌼2️.भाषा कौशल,सोच कौशल बढ़ती है।
🌼3️.तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
🌼4️.मान्यताओं को समझने/ मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
🌼5️.सही को स्वीकार गलत को अस्वीकार, करने में मदद मिलती है।
🌼6️.गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

🌼🌼🌼🌼🌼manjari soni🌼

🔆 गहन चिंतन 🔆

किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण, विश्लेषण, तार्किक कौशल इत्यादि को स्व निर्देशित रूप से गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिंतन गहन चिंतन कहलाते हैं |

गहन चिंतन के द्वारा हम किसी भी समस्या के दोनों पक्षों को देखते हुए उसके बारे में आलोचनात्मक चिंतन करके उस समस्या का समाधान खोज सकते हैं |

गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है | इसके द्वारा बच्चे की भाषा में व्यापक तथा उसका शब्दकोश भी बढ़ता है |

☀ गहन चिंतन के लक्षण ➖

🎯 तर्क संगतता ➖

किसी भी विशेष मुद्दे पर उस विषय के गुण और अवगुण उसके पक्ष विपक्ष दोनों के बारे में विचार करना उस पर अपना आलोचनात्मक चिंतन लगाना,जिससे निर्णय तर्कसंगत हो जाता है |

🎯 वैज्ञानिक दृष्टिकोण ➖

किसी समस्या के कारण और प्रभाव को देखकर उस पर विचार करना या एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में उसके कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है |
इसी के परिणाम स्वरुप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है किसी भी कार्य को करने के लिए उस पर नए तरीकों का प्रयोग करना कि वह कैसे उचित ढंग से होगा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है |

🎯 प्रसांगिकता ➖

सही विचारधारा का चयन करके जो सबसे अधिक प्रसांगिक हो वह हमारी शिक्षण प्रक्रिया में बहुत आवश्यक है |

शिक्षार्थी के लिए उपयुक्त गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सबसे अधिक विचारधारा का चयन किया जाता है |

💫 गहन चिंतन के लाभ ➖

1) बच्चों कके संप्रत्यय निर्माण , आवेदन, और विचारों को विस्तार करने में मदद करता है |

2) गहन चिंतन से भाषा कौशल, सोच कौशल, और शब्दकोश में वृद्धि होती है जिससे समस्या का समाधान करने में आसानी होती है |

3) गहन चिंतन से तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है |

4) गहन चिंतन के द्वारा मान्यताओं को समझने और उनका मूल्यांकन करने में मदद मिलती है |
गहन चिंतन मान्यता और अपने त्योहारों को समझने में और उसका मूल्यांकन करने में मदद करता है जिससे सामाजिक भावना विकसित होती है |

5) गहन चिंतन से सही को स्वीकार करने और गलत को अस्वीकार करने में मदद मिलती है क्योंकि गलत को स्वीकार करना हानिकारक है और सही को गलत कहना भी हानिकारक है इसकी गहन चिंतन में कोई भूमिका नहीं होती है क्योंकि गहन चिंतन में जो सही है वही सामने होता है या उसका अंतिम निर्णय होता है |

6) गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है |

नोट्स बाॅय ➖ रश्मि सावले

🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺

गहन चिन्तन (critical thinking)🔥🔥

किसी भी उत्तर या निष्कर्ष को पाने के लिए, संश्लेषण, विश्लेषण, तार्किक कौशल इत्यादि को स्व निर्देशित रुप से गुणवत्ता के उच्च तम स्तर को पाने के लिए लगाए गए चिन्तन को गहन चिन्तन कहते हैं।
गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।

गहन चिंतन के लक्षण (characteristics of critical thinking)👉👉

🌟 तर्क संगतता-

इसमें बच्चा किसी विषय वस्तु के गुण और अवगुण दोनों पहलुओं पर विचार करते हैं। इससे निर्णय तर्क संगत हो जाता है।

🌟 वैज्ञानिक दृष्टिकोण-

एक विद्यार्थी को विशेष समस्याओं के कारण और उसके प्रभाव के बीच सम्बन्ध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक विद्यार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

🌟 प्रासंगिकता (relevance)-

गहन चिन्तन में उपयुक्त विचार धारा का चयन कर के छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचार धारा का चयन किया जाता है।

गहन चिंतन के लाभ 🔥🔥

1. बच्चे के संप्रत्यय निर्माण/ आवेदन/विचारों का विस्तार करने में मदद करता है।

2. इससे भाषा कौशल, सोचा कौशल का विकास होता है।

3. तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।

4. मान्यताओं को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।

5. सही को स्वीकार और ग़लत को अस्वीकार करने में मदद करता है।

6. गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

Notes by “Shreya Rai”🙏🙏

🌺🌺 गहन चिंतन Critical Thinking 🌺🌺

किसी भी उत्तर यह निष्कर्ष को पाने के लिए संश्लेषण , विश्लेषण , तार्किक कौशल इत्यादि के स्वनिर्देशित रूप से गुणवत्ता के उच्चतम स्तर को पाने के लिए लगाया गया चिंतन , गहन चिंतन कहलाता है।

गहन चिंतन में विश्लेषण और तर्क के माध्यम से समस्या समाधान करके सोच के स्तर को बढ़ाया जाता है।

गहन चिंतन अर्थात किसी भी तथ्यों के बारे में विस्तार और गहराई से जानना, विचार करना होता है।

🌺 गहन चिंतन के लक्षण

1. तर्क संगतता :-

इसमें किसी भी विषय के गुण और अवगुण दोनों पर विचार करते हैं।
इससे निर्णय भी तर्क संगत हो जाता है।

2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण :-

एक शिक्षार्थी को विशेष समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है , इसी के परिणामस्वरुप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।

3. प्रासंगिकता :-

गहन चिंतन में उपयुक्त विचारधारा का चयन करके छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचारधारा का चयन किया जाता है।

🌺 गहन चिंतन के लाभ :-

1. बच्चे को संप्रत्यय निर्माण / आवेदन / विचारों का विस्तार करने में मदद करता है

2. भाषा कौशल , सोच कौशल बढ़ती है।

3. तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।

4. मान्यताओं को समझने / मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।

5. सही को स्वीकार / गलत को अस्वीकार करने में मदद मिलती है।

6. गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है।

🌺✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

🤔गहन चिंतन के लक्षण🤔

1 तर्क संगतता
2 वैज्ञानिक दृष्टिकोण
3 प्रासंगिकता

तर्क संगतता

इसमें हम किसी विषय के गुण और अवगुण दोनों को देखते हैं

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

यह एक शिक्षार्थी को विशेष और प्रमुख समस्या के बारे में कारण और प्रभाव के बीच संबंध विकसित करने में मदद करता है इसी के परिणाम स्वरूप एक शिक्षार्थी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है

प्रासंगिकता
गहन चिंतन में उपयुक्त विचार धारा का चयन कर के छात्रों के तर्क के माध्यम से शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्रासंगिक विचारधारा का चयन किया जाता है

🤔गहन चिंतन के लाभ🤔

1 बच्चे को संप्रत्यय निर्माण आवेदन विचारों का विस्तार करने में मदद करता है

2 भाषा कौशल सोच कौशल बढ़ती है तर्क को समझने और मूल्यांकन करने में मदद मिलती है

3 मान्यताओं को समझने या मूल्यांकन करने में मदद मिलती है

4 सही को स्वीकार गलत को अस्वीकार करने में मदद मिलती हैं

5 गहन चिंतन एक शिक्षार्थी को मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने से बचाता है

🙏🙏🙏🙏 sapna sahu 🙏🙏🙏🙏

Vygotsky and kohalbarg for CTET and state TET notes by India’s top learners

🌺💥 वाइगोत्सकी💥🌺

👉🏼वाइगोत्स्की के अनुसार संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारकों(परिवार, समाज ,विद्यालय ,मित्र मंडली, परिवेश) वह भाषा का प्रभाव पड़ता है इसलिए इस सिद्धांत को सामाजिक संस्कृति सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है
👉🏼 बच्चों का संज्ञानात्मक विकास अतः वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है।

🎯 समीपस्थ विकास का क्षेत्र (ZPD)

👉🏼वायगोत्स्की के अनुसार-बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चों को ऐसा कार्य दिया जाए उनके वर्तमान स्थिति से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख पाते हैं।
👉🏼 वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख पाता है ZPD कहलाता है।

🎯scuffoding (ढांचा निर्माण)

👉🏼विकास के संभावित क्षेत्रों से संबंधित संप्रत्यय संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है यह कार्य अस्थाई होता है।
ज्ञान अर्जन से पहले मदद की जरूरत होती है अर्जन के बाद जरूरत समाप्त हो जाती है।

🌺 भाषा और विचार➖
बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्व निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने ,निर्देश देने और मूल्यांकन में भी करते हैं।

🌺💥 कोहलबर्ग💥🌺

🎯 नैतिक विकास का सिद्धांत➖
👉🏼 कोहलबर्ग ने नैतिकता के तीन स्तर बताए हैं तीनों स्तर को दो भागों में बांटा गया है इस अवस्था का क्रम निश्चित होता है।

🎯 अपरंपरागत स्तर या पूर्व नैतिक स्तर (4-10) वर्ष

🎯 परंपरागत नैतिक स्तर (10-13) वर्ष

🎯 उत्तर परंपरागत नैतिक स्तर (13-ऊपर)

🎯 अपरंपरागत यह पूर्व परंपरागत अवस्था➖
इस आयु में बालक अपनी आवश्यकताओं के संबंध में सोचता है नैतिक दुविधा ओं से संबंधित प्रश्न उनके लाभ या हानि पर आधारित होता है इसके अंतर्गत दो चरण है

1️⃣ आज्ञाकारिता और दंड अभिविन्यास
2️⃣ आत्म अभिरुचि तथा प्रतिफल अभिमुखता

🌺 आज्ञाकारिता और दंड अभिविन्यास (Obedience orientation and punishment)➖बालकों के मन में आज्ञा पालन का भय दंड पर आधारित होता है इस अवस्था में बालक में नैतिकता का ज्ञान होता है बालक स्वयं को परेशानी से बचाना चाहता है यदि कोई बालक स्वीकृत व्यवहार अपना आता है तो इसका कारण दंड से स्वयं को बचाना है।

🌺 आत्मा अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता (self interest and reward orientation)➖इस अवस्था में बालकों का व्यवहार खुलकर सामने नहीं आता है वह अपनी रुचि को प्राथमिकता देते हैं वह पुरस्कार पाने के लिए नियमों का अनुपालन करते हैं।

🎯 परंपरागत नैतिकता➖इस स्तर पर बालक अपनी आवश्यकताओं के साथ दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखता है इस स्तर के दो भाग हैं

1️⃣ अच्छा लड़का अच्छी लड़की नैतिकता
2️⃣ अधिकार संरक्षण अभिमुखता

🌺 अच्छा लड़का या अच्छी लड़की (good boy aur good girl)➖इस अवस्था में बच्चों में एक दूसरे का सम्मान करने की भावना होती है तथा दूसरों से भी सम्मान पाने की इच्छा रखते हैं।

🌺 अधिकार संरक्षण अभिमुखता (Law and Order Orientation)➖इस अवस्था में बच्चे नियम एवं व्यवस्था के प्रति जागरूक होते हैं तथा वह नियम एवं व्यवस्था के अनुपालन के प्रति जिम्मेदार होते हैं।

🎯 उत्तर परंपरागत नैतिक स्तर➖बालक अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के महत्व को प्राथमिकता देते हुए एक स्वीकृत व्यवस्था के अंतर्गत कार्य करता हैइसके अंतर्गत वयस्क वस्तु को निर्धारित कर कार्य करने सीख जाता है इसके अंतर्गत दो चरण हैं।

1️⃣ अनुबंध की अभिमुखता
2️⃣ सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत

🌺 अनुबंध की नैतिकता (Contact Orientation)➖इस अवस्था में बच्चे वही करते हैं जो उन्हें सही लगता है तथा वे यह भी सोचता है कि स्थापित नियमों में सुधार की आवश्यकता तो नहीं है।

🌺 सर्व भौमिक नैतिक सिद्धांत अभिमुखता (Universal Ethical Principal Orientation)➖ इस अवस्था में अंतः करण की ओर अग्रसर हो जाती है अब बच्चा का आश्रम दूसरों की प्रतिक्रियाओं का विचार किए बिना उसके आंतरिक आदर्शों के द्वारा होता है यह बच्चों के अनुरूप व्यवहार करना है

🖊️🖊️📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️

जीन पियाजे कोहल बर्ग वाइगोत्सकी
➖➖➖➖➖➖➖➖➖

💢 वाइगोत्सकी💢

👉वाइगोत्सकी के अनुसार

✍संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारक :— परिवार, समाज, विद्यालय ,और भाषा का प्रभाव पड़ता है
✍ बच्चे का संज्ञानात्मक विकास अंतः व्यक्तित्व सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है

➖ZPD:— zone of proximal development ( समीपस्थ विकास का क्षेत्र):—

✍ वाइगोत्सकी के अनुसार :—बच्चे के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चों को ऐसा कार्य दिया जाए तो वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख पाते हैं
✍ हुआ छेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीखा जाता है समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहलाता है

➖SCAFFOLDING ( ढांचा):—

👉विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रदाय है संवाद ढांचा का निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है यह कार्य अस्थाई होता है
👉 ज्ञान अर्जन से पहले मदद की जरूरत होता है अर्जन के बाद जरूर समाप्त हो जाता है

➖भाषा और विचार➖

बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्वयं निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने, निर्देश देने और मूल्यांकन में भी करते हैं

💢 कोहल बर्ग नैतिक विकास का सिद्धांत💢(moral development theory)

👉 कोहलवर्ग में नैतिकता के तीन स्तर बताए हैं तीनों स्तर के दो भागों में बांटा गया है इस अवस्था का कर्म निश्चय होता है परंतु हर व्यक्ति में समान अवस्था में नहीं होता

👉 व्यक्ति किसी अवस्था को छोड़कर नहीं बढ़ता बहुत लोग नैतिकता के उच्चतम स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते है

LEVEL➖1️⃣ (ID)

💢आपरंपरागत या पूर्व परंपरागत अवस्था💢(4—10years)
जब बालक बाहरी तत्व या घटना पर किसी व्यवहार को नैतिक या अनैतिक मानता है तो उसकी नैतिक तर्क शक्ति आज्ञाकारी और दंड अभिविन्यास कही जाती है इसके दो अवस्थाएं है:—

🅰️ आज्ञाकारी का और दंड अभिविन्यास➖👉इस अवस्था में बालक का व्यवहार बंद के व्यय पर आधारित होता है और इसी डर से वह अच्छा व्यवहार करता है
👉 इस प्रकार नैतिक विकास की शुरू की अवस्था में दंड को ही बच्चे की नैतिकता का मुख्य आधार मानते हैं
👉 बच्चा सोचता है कि बंद से बचने के लिए आदेश का पालन करता है
👉 सही गलत का निर्णय दिए गए दंड या पुरस्कार से करता है

🅱️ अहंकारी अवस्था➖
👉 इस अवस्था में बालक का व्यवहार स्वयं की इच्छा का पूरा करने वाला होता है
👉 उसे लगता है कि वह बात सही है जिसमें बराबरी का लेनदेन हो अर्थात दूसरी की कोई इच्छा पूरी कर दी तो वह भी हमारी इच्छा पूरी करें
👉 इस अवस्था में अहंकार होता है यदि उसका कोई उद्देश्य झूठ बोलने से क्या चोरी करने से होता हो तो वह वह काम करता है इसे अनैतिक नहीं समझता है

LAVEL2️⃣ (IGO)

💢परंपरागत अवस्था💢(10—13):—
इस अवस्था में बच्चों का व्यवहार उनके मां-बाप या किसी बड़े व्यक्ति द्वारा बनाए गए नियमों पर आधारित होता है इसमें दो अवस्थाएं होती है

🅰️ अच्छा लड़का अच्छी लड़की नैतिकता ➖ इस अवस्था में बच्चा जो भी करता है वह प्रशंसा पाने के लिए करता है
👉 इसमें बालक समाज को अच्छा लगने वाले व्यवहार करता है जिससे वह प्रशंसा प्राप्त कर सके
👉 इस अवस्था में बच्चे को चिंतन का स्वरूप समाज और उसके परिवार से निर्धारित किया जाता है

🅱️ अधिकार संरक्षण अभी मुक्ता➖ उत्पादकता में बच्चों के नैतिक विकास की अवस्था सामाजिक, आदेश ,कानून, न्याय, और कर्तव्यों पर आधारित होती है
👉 यह अवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं इस अवस्था में प्रवेश से पहले बालक समाज को केवल प्रशंसा के लिए महत्व देता है
👉 इस अवस्था में सामाजिक नियमों के विरुद्ध प्रत्येक कार्य को अनैतिक कहते हैं

LEVEL 3️⃣ (super igo)

💢उत्तर परंपरागत स्तर💢(13+)

इसे दो अवस्था में बांटा गया है:—
🅰️ अनुबंध की नैतिकता ➖
👉इस अवस्था तक आते-आते वह समझने लगते हैं कि व्यक्ति और समाज के बीच एक समझौता होता है
👉 देखती है मांगने लगता है कि हमारा दायित्व है कि हम समाज के नियमों का पालन करें क्योंकि समाज हमारे हितों की रक्षा करता है
👉 अगर नियमों का पालन नहीं करते हैं तो व्यक्ति और समाज के बीच का समझौता टूट जाता है
👉 परंतु इस अवस्था में यह समझा जाता है कि समाज के सहमति से सामाजिक नियमों को भी बदला जा सकता है
🅱️➖ सार्वभौमिक सिद्धांत की अवस्था:—
👉 इसे विवेक की अवस्था कहा जाता है इस अवस्था तक व्यक्ति के अच्छे बुरे उचित अनुचित आदि विषयों पर स्वयं के व्यक्तिगत विचार विकसित हो जाता है एवं अपने बनाए गए नियमों पर चलता है
👉 इस अवस्था में बालक अपने विवेक का प्रयोग करने लगता है

💢💢💢💢💢💢💢💢💢

Notes by:—sangita bharti✍

🏵️🌸 vygotsky socio culture theory 🌸🏵️
👉 संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारको और भाषा का प्रभाव पड़ता है।
👉 परिवार, समाज, विद्यालय यह सब सामाजिक कारको में आते हैं।
👉 बच्चे का संज्ञानात्मक विकास अंत:वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है।
◾(Z P D)~~~
▪️ Zone of proximal development (समीपस्थ विकास का क्षेत्र)
👉 वाइगोत्सकी के अनुसार,’~बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चे को ऐसा कार्य दिया जाए जो उसके वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख पाते है।”
👉 वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख पाता है ZPD कहलाता है।
👉Scaffalding(ढांचे का निर्माण):~
विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्यय है, संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है। यह कार्य अस्थाई होता है।
👉 ज्ञान अर्जन से पहले मदद की जरूरत होती है। अर्जन के बाद जरूरत समाप्त हो जाती है।
▪️ भाषा और विचार ▪️
👉बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं ,बल्कि स्वनिर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने निर्देश देने और मूल्यांकन में भी करते हैं।
🏵️🌸 नैतिक विकास का सिद्धांत (कोहल बर्ग) (moral development theory)
▪️ कोहल बर्ग ने नैतिकता के तीन स्तर बताए हैं, तीनों स्तर को दो भागों में बांटा गया है, इस अवस्था का क्रम निश्चित होता है, परंतु हर व्यक्ति में समान उम्र में नहीं होती।
▪️ व्यक्ति किसी अवस्था को छोड़कर नहीं बढ़ता है।
▪️ बहुत लोग नैतिकता की उच्च स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते हैं।
◾Level-1 अपरंपरागत या पूर्व परंपरागत अवस्था (pre conventional stage)
👉 इस अवस्था को इदम कहते हैं
👉 इस अवस्था का समय 4-10 वर्ष होता है
1-A-आज्ञाकारीता और दंड अभिविन्यास (obedience and punishment orientation)
👉 यदि बच्चा कोई स्वीकृत व्यवहार करता है तो दंड के कारण करता है।
2-B-आत्म अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता(self interest orientation)
👉 बच्चा अपनी रुचि को प्राथमिकता देता है वह अपनी रुचि या पुरस्कार को पाने के लिए कोई कार्य करता है।
◾Level-2
परंपरागत नैतिकता (conevntional)
👉 इस अवस्था को अहम कहते हैं।
👉 इस अवस्था का समय 10 से 13 वर्ष होता है।
3-A-अच्छा लड़का, अच्छी लड़की नैतिकता (the good boy, girl attitude)
👉 इसमें एक दूसरे की सम्मान करने की भावना आती है, और दूसरे से भी सम्मान पाने की इच्छा होती है।
4-B-अधिकार संरक्षण अभिमुखता(authority and social order maintaing orientatin)
👉 नियमों के प्रति जवाबदेही होती है, नियमों का अनुपालन करते हैं।
◾Level-3
उत्तर परंपरागत (post conventional)
👉 इस अवस्था को परा अहम कहते हैं।
👉 इस अवस्था का समय 13 साल के बाद होता है।
5-A-अनुबंध की नैतिकता (social contract orientation)
👉 इसमें अपनी सोच तथा अपनी शक्ति के अनुसार कार्य करते हैं।
6-B-सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत ( universal ethical principal)
👉 इसमें गांधीजी के बनाए हुए मार्गों पर चलते हैं,
इसमें किसी व्यक्ति के दुर्व्यवहार करने पर भी उसे क्षमा कर देते हैं।

👉 दादी जी के शब्द~
Level-1–जो कहने पर भी ना करें—शैतान (दंड देना पड़े)
Level-2–जो कहने पर करें—इंसान
Level-3–जो बिना कहे करें—भगवान
🔹🔸🔹
🏵️🌸🏵️✍️ Notes by ☞Vinay Singh Thakur🏵️🌸🏵️

🌸 🌸 लेव वाइगोत्सकी एवं कोहलवर्ग का सिद्धांत 🌸🌸(Theories of Lev Vyogatski and Kohlberg)

🌼 संज्ञानात्मक विकास ($ocio-culture theory)-सामाजिक कारकों (परिवार समाज विद्यालय ऑफिस इत्यादि) और भाव का प्रभाव पड़ता है;

✍️बच्चे का संज्ञानात्मक विकास वह अंतः वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है;

🌼🌼समीपस्थ विकास का क्षेत्र(ZPD-Zone of Proximal Development)

✍️वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे का सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चे को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान समय से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह अधिक सीख पाते हैं,वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख जाता है तो वह समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहलाता है।

🌴उदाहरण-जैसे बच्चे को सामान 2 अंकों का जोड़, घटाना,गुणा आता हो उसे तीन या चार अंको का गुणा दिया जाए तो वह उसे हल करने के लिए अपने भाई -बहन एवं अभिभावक की मदद् लेकर उसको हल कर लेता है।

🌼🌼स्कैफोल्डिंग (Scaffolding)(ढांचा निर्मित करना)

🌸विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्यय है,

🌸संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है।

🌸यह कार्य अस्थाई होता है।

🌸ज्ञानार्जन से पहले ही मदद की जरूरत होती है तत्पश्चात समाप्त हो जाती है।

🌴उदाहरण-जैसे बालक को उसके भाई-बहन के द्वारा या अभिभावक के द्वारा की गई मदद से उसने उस समस्या को हल कर लिया उसके बाद उसे उस मदद् की जरूरत नहीं है।

🌼🌼भाषा और विचार(Language and Thought)-

✍️बच्चे भाषा का प्रयोग न सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्व:निर्देशित तरीके से कार्य को करने के लिए भी साथ ही साथ अपने व्यवहार हेतु योजना बनाना ,निर्देश देने, वा मूल्यांकन करने में भी करते हैं।
🌴उदाहरण-भाषा के द्वारा बच्चा अपनी रुचि, आवश्यकता,वा भावो को अभिव्यक्त कर पाता है।

🌼🌼कोहलवर्ग (Kohlberg)(कोहलवर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत)(Moral Development of Kohlberg)

✍️नैतिकता भी एक साथ नहीं आती है जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाएगी कुछ भी हो सकते हैं यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति में नैतिकता की आ ही जाए।

✍️प्रत्येक व्यक्ति को नैतिक विकास की तीन अवस्थाओं से ही होकर गुजरना पड़ता है प्रत्येक स्तर पर 2 उप-अवस्थाएं भी है।

🌀कोहल वर्ग ने नैतिकता के तीन स्तर बताए हैं और उन तीनों स्तरों को दो दो भागों में बांटा है÷
🌀 इन अवस्थाओ का क्रम निश्चित रहता है परंतु हर व्यक्ति में समान उम्र में समान समय पर सामान अवस्था होना जरूरी नहीं होता है।
🌀व्यक्ति किसी अवस्था को छोड़कर भी आगे नहीं बढ़ सकता है।
🌀बहुत से लोग नैतिकता के उच्च स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते हैं इसलिए ऐसा आवश्यक भी नहीं कि सभी नैतिकता की कुछ अवस्था तक पहुंच ही जाएं।

🌀इन अवस्थाओ को निम्नलिखित प्रकार से बांटा गया है÷

🏵️🏵️Level 1-(पूर्व परंपरागत अवस्था)Pre-conventional stage (4-10)
यह नैतिक विकास 4 से 10 वर्ष की उम्र में विकसित होता है।

🏵️🏵️A- (आज्ञाकारी और दंड अभिविन्यास)obedience and punishment orientation)÷
🌱बच्चों में आज्ञाकारिता का भाव दंड पर आधारित होता है।

🌱बच्चा सोचता है कि अगर मैं आज्ञा का उल्लंघन करूंगा तो दंड मिलेगा इसलिए वह आदेश का पालन करता है।

🌱बच्चा अपने गलती को दंड प्राप्त करने के आधार पर वह अपने अच्छे कार्य को पुरस्कार प्राप्त हो जाने के आधार पर ही समझता है(अगर उसे कोई कार्य करने पर अच्छा पुरस्कार मिलता है तो वह उसके लिए अच्छा कार्य है, वहीं पर अगर उसे दंड दे दिया जाता है तो वह समझ जाता है कि उसने कुछ गलत कार्य किया है वह उस कार्य को दोबारा नही करेगा जिससे उसे दंड प्राप्त हो)

🌴उदाहरण-एक विद्यालय का बच्चा होमवर्क
पूरा ना करने पर दंड का भागी हो जाता है, अगले दिन वह इस दंड से बचने के लिए अपना होमवर्क पूर्ण करके जाता है।
🌴इसी दंड के आधार पर उद्दंड बालक की क्रियाओ पर नियंत्रण लगाने का प्रयास किया जाता है।

🏵️🏵️(अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुख्ता)self interest orientation (interaction stage)
🌱इस अवस्था में रुचि को प्राथमिकता देने लगता है और पुरस्कार प्रशंसा सम्मान आदि प्राप्त करने के लिए कार्य करता है।
🌱अपनी रुचि और इच्छा का फल प्राप्त करने के लिए भी कार्य करता है।
🌱इस अवस्था में बालक को लगता है कि जब हम दूसरों की इच्छा पूरी कर देंगे तो वह हमारी इच्छा भी पूर्ण करेगा।

🌴उदाहरण-किसी विद्यालय में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी इसलिए अध्ययन में ज्यादा मेहनत करता है ताकि वह होने वाली वार्षिक परीक्षा में उच्च स्तर को प्राप्त करके कक्षा वा समाज में सम्मान प्राप्त कर सके वा साथ ही अपनी रुचि की वस्तु माता पिता के द्वारा प्राप्त कर सकेगा।

🏵️🏵️Level 2 conventional stage(परंपरागत नैतिकता)(10-13year)

🏵️🏵️A-interpersonal Accord conformity (The Good boy and good girl)(अच्छा लड़का और अच्छी लड़की वाली )
🌱इस अवस्था में लड़का या लड़की दूसरों से आदर के साथ मिलना वा उन्हे सम्मान देता है , क्योंकि उसको पता है कि जब मैं दूसरो के साथ अच्छा व्यवहार करुंगा तभी मुझे भी सम्मान वा आदर प्राप्त कर पाएगा।

🌴उदाहरण-वह अपने से छोटे वा बड़े भाई बहनों एवं बंधुओं से पस्नेह पूर्वक बाते करना वा उनके साथ वैसा ही व्यवहार करता है जिससे उसे भी वही सब प्राप्त हो सके।

🏵️🏵️B-Authority and social order maintaining orientation(अधिकार संरक्षण अभियुख्त्ता)-
🌱इस प्रकार का बच्चा जागरूकता की ओर बढ़ने के साथ-साथ जीवन में नियमों का महत्त्व भी समझने लगता है कि नियम क्यो बनाये गए है, ये हमारी भलाई के लिए ही होंगे ऐसा सोचकर वह उन नियमों का अच्छे से पालन करने की कोशिश करता है;

🌴उदाहरण-जब कभी स्कूलों में “वृक्ष लगाओ पृथ्वी बचाओ”जैसी परियोजनाएं चलाई जाती है जिसमें नियमानुसार प्रत्येक व्यक्ति को 2 से 3 वृक्षो को लगाने से मिट्टी के कटाव का रुकना, वर्षा का होना ओजोन परत का क्षरण होना रुकना इत्यादि होने वाले लाभ को जानकर वह उस कार्य को नियमानुसार पूरी मेहनत वा लगन के साथ करना शुरू कर देता है,

🌴उदाहरण-२-ट्रैफिक नियमों का पालन करना।

🌴उदाहरण-३-बीमार पड़ने पर समय से दवा का सेवन करना इत्यादि।

🏵️🏵️Level 3- post Conventional stage (उत्तर परंपरागत अवस्था)(13वर्ष से ऊपर)
🌱इस अवस्था में सोचने का नजरिया वा मन पूरी तरह से निश्चल हो जाता है।

🌱इस अवस्था में वह जो भी कार्य करने के लिए सोचता है उसमे मात्र अपनी भलाई ना देखकर समाज के बारे मे भी सोचता है।

🏵️🏵️A-Social contract orientation (अनुबंध की नैतिकता)

🌱इस अवस्था में आत्मशक्ति वा आत्म बोध होने लगता है जिसके द्वारा वह उचित अनुचित न्याय- अन्याय को बेहतर ढंग से समझना वह उसके लिए तत्परता के साथ काम करना चाहता है।

🌱यहां पर वह अपनी सोच के अनुसार सही गलत में विभेद करके कार्य करता है;

🌱इस अवस्था में मनुष्य सामाजिक नियमों को उसके संरक्षण को समझता है।

🌴उदाहरण ÷जैसे नमामि गंगे अभियान में बनाए गए नियमों को अच्छे से समझता है कि गंगा को स्वच्छ बनाने में बनाए गए से गंगा को और अधिक रुप से स्वच्छ,निर्मल बनाने में मदद् मिलेगी क्योंकि जब इंसान गंगा में दूषित जल वा कूड़ा कचड़ा डालना बंद कर देगा तो गंदगी बढ़ना रुक जाएगा।

🏵️🏵️B-(universal ethical principal (सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत)

🌱इस अवस्था में वह अपने विवेक का इस्तेमाल भी करने लगता है।

🌱वह पूरी तरह से आदर्शवादी हो जाता है;

🌱यहां पर इंसान पूर्ण रूप से अपनी सभी इंद्रियों पर संयम रखना शुरू कर देता है वह रखता भी है;

🌱किसी भी प्रकार की अनुक्रिया पर तत्काल उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया ना करना समझता है, अर्थात यदि किसी हिंसा वाली जगह पर जाएगा तो स्वयं हिंसा नहीं करेगा वा दूसरो को भी हिंसा ना करने से रोकेगा।

🌴उदाहरण÷इस समय मनुष्य अपने जीवन में अपने आदर्श व्यवहार से सभ्य वा आदर्श समाज का निर्माण करने लगता है,
🌴जैसे ÷एक शिक्षक अपने सरल ,सौम्य ,सभ्य अनुशासन युक्त व्यवहार वा शुद्ध सकारात्मक विचारों संस्कारो से बच्चो में इमानदारी,सरलता,सभ्यता वा सच्चाई के प्रति ढ़ृढता के साथ जीवन जीना सिखाकर समाज कल्याण के प्रति अपना सहयोग समर्पित करता है।

🌼Thank you🌼
✍️Written by -$hikhar pandey ✍️

🌼🌼🌼वाइगोत्सकी 🌼🌼🌼
(Socio -culture theory)

🌼🌼संज्ञानात्मक विकास पर –सामाजिक कारको और भाषा का प्रभाव पड़ता है
जैसे -परिवार, समाज, विद्यालय
🌼 बच्चे का संज्ञानात्मक विकास होता है
🌼 अतः व्यक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है

🌼🌼🌼ZPD🌼🌼
🌼समीपस्थ विकास का क्षेत्र
🌼(zone of proximal development)

🌼वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चे को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान स्तर पर थोड़ा सा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख जाते हैं वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख जाता है ZPD/ समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहलाता है

🌼🌼scaffolding— विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्य है, संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है यह कार्य स्थाई होता है ज्ञान अर्जन से पहले मदद की जरूरत होती है ज्ञान अर्जन के बाद जरूरत समाप्त हो जाती है

🌼🌼भाषा और विचार– बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्वनिर्देशित तरीके से कार्य करते करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने निर्देश देने और मूल्यांकन में भी करते हैं

🌼🌼नैतिक विकास का सिद्धांत🌼🌼
🌼(moral development theory) 🌼

कोहलवर्ग ने नैतिकता के तीन स्तर बताए हैं तीनों स्तर को दो वर्गों में बांटा गया है इस अवस्था में क्रम निश्चित होता है परंतु हर व्यक्ति में सामान उम्र में नहीं होता है
🌼 व्यक्ति किसी अवस्था को छोड़कर नहीं बढ़ता।
🌼 बहुत लोग नैतिकता के उच्च स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते

🌼🌼🌼(LEVEL-1) 🌼🌼🌼

🌼1.परंपरागत या पूर्व परंपरागत अवस्था pre conventional stage (4-10 साल)

(A)आज्ञाकारी का और दंड अभिन्यास (obedience & punishment orientation)
– जब बच्चा कोई कार्य बार बार कहने पर भी नहीं करता और उस बच्चे को दंड देकर कार्य करवाना !

(B)आत्मा अभिरुचि और प्रतिफल अविमुखता (self interest oriented )
इसमे बच्चे अपनी रुचि के अनुसार कार्य करते है वो वह कार्य करना पसन्द करते है जो स्वं का कार्य हो!

🌼🌼🌼LEVEL–2🌼🌼🌼

🌼 परंपरागत नैतिकता(conventional stage)

(A)अच्छा लड़का अच्छा लड़की नैतिकता (the good boy /good girl attitude) -इसमे बच्चे खुद को अच्छा दिखाने की कोशिश करता है की वो श्रेष्ठ है और सबकी आँखे मे अच्छा बनने के लिए वो सभी की help करने का प्रयास करता है जिससे उसकी तारीफ हो

(B)अधिकार संरक्षण अभिमुखता(authority &social order maintaining oriented ) –isme बच्चे अपनी चीजों पर अपना अधिकार जमाने लगते है उन्हे क्या चाहिए कोन सी चीज उनकी है uske लिए वो सब कुछ करने लगते है!

🌼🌼🌼🌼LEVEL-3🌼🌼🌼

🌼🌼3.उत्तर परंपरागत (post conventional)
🌼(A) -अनुबंध की नैतिकता (social contract orientation)
🌼 इसमें अपनी सोच तथा अपनी शक्ति के अनुसार कार्य करते हैं।
🌼(B)-सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत ( universal ethical principal)
🌼 इसमें गांधीजी के बनाए हुए मार्गों पर चलते हैं,
इसमें किसी व्यक्ति के दुर्व्यवहार करने पर भी उसे क्षमा कर देते हैं।

🌼🌼🌼 दादी जी के अनुसार—
🌼Level-1–जो कहने पर भी ना करें—शैतान (दंड देना पड़े)
🌼Level-2–जो कहने पर करें—इंसान
🌼Level-3–जो बिना कहे करें—भगवान

🌼🌼🌼🌼 manjari soni🌼🌼🌼🌼

🔆 वाइगोत्सकी का सामाजिक सांस्कृतिक विकास का सिद्धांत➖

वाइगोत्सकी का सामाजिक सांस्कृतिक विकास का सिद्धांत कहता है कि सामाजिक अंतः क्रिया के बाद विकास होता है यानी पहले सामाजिक अंतः क्रिया होगी फिर विकास होगा |

चेतना और संज्ञान समाजीकरण और सामाजिक व्यवहार का परिणाम है संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारकों परिवार,पड़ोस, मित्र विद्यालय) और भाषा का प्रभाव पड़ता है |

बच्चे का संज्ञानात्मक विकास अंतर वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है |

सामाजिक दृष्टिकोण संज्ञानात्मक विकास का एक प्रगतिशील विश्लेषण प्रस्तुत करता है जीन पियाजे की तरह वाइगोत्सकी भी यह मानते थे कि बच्चे ज्ञान का निर्माण करते हैं किंतु इनके अनुसार संज्ञानात्मक विकास एकांकी नहीं हो सकता है यह भाषा विकास सामाजिक विकास यहां तक कि शारीरिक विकास के साथ तथा सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में होता है सीखने के लिए बच्चा पर्यावरण में रहते हुए भी सोचता है प्रतिक्रिया करता है और सीखता है |

बच्चे की सामाजिक विकास के संदर्भ में वाइगोत्सकी ने दो चरण बताएं हैं ➖

🎯 समीपस्थ विकास का क्षेत्र ( ZPD ) ➖

वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चों को कोई ऐसा कार्य दिया जाए उनके वर्तमान स्थान से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख पाते हैं और बेहतर जुड़ पाते हैं तो वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख पाता है वह समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहलाता है |

🎯 स्कैफोल्डिंग ( ढांचा निर्माण, मचान) ➖

विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्यय या अवधारणा है संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है यह कार्य अस्थायी होता है |
कार्यं अर्जन से पहले मदद की आवश्यकता होती है तथा अर्जन की बात समाप्त हो जाती है |

🎯 भाषा और विचार ➖

बच्चे की भाषा विकास में भाषा एक महत्व कारक है बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्व निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने, मूल्यांकन करने और निर्देश देने में भी करते हैं |
अर्थात भाषा एक महत्वपूर्ण कारक है जो बच्चा खुद के हिसाब से बोलने के लिए भी करता है जिसकी बच्चों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है जब तक वह सामाजिक अंत: क्रिया नहीं करेगा उसका भाषा विकास संभव नहीं है |

🔆 कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत ➖

इनका मानना था कि नैतिकता एक साथ नहीं आती है जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है नैतिकता बढ़ती जाती है लेकिन आवश्यक नहीं है कि नैतिकता बढ़े ही|

नैतिकता के स्तर तक पहुचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को तीन अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है जिनका क्रम निश्चित है लेकिन उम्र निश्चित नहीं है |

इन्होंने नैतिकता के स्तर को तीन भागों में बांटा है प्रत्येक स्तर को दो भागों में बांटा है |

प्रत्येक अवस्था का क्रम निश्चित होता है परंतु हर व्यक्ति में समान नहीं होता है व्यक्ति किसी भी अवस्था को छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता है बहुत लोग नैतिकता के उच्च स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते हैं |

नैतिकता के स्थल निम्न है ➖

A) Pre Conventional stage (पूर्व परंपरागत या आपरंपरागत अवस्था )

1) Obedience and Punishment Orientation (आज्ञाकारिता या दंड की अवस्था)

2) Self Intrest Orientation( आत्मा अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता)

B) Conventional stage (परंपरागत नैतिकता)

1) Inter personal Accared Conformity / The good boy and good girl attitude ( पारस्परिक समझौते की अवस्था या अच्छा लड़का या लड़की नैतिकता )

2) Order maintains Orientation ( अधिकार संरक्षण अभिमुखता)

C) Post Conventional stage ( उत्तर परंपरागत नैतिकता )

1) Social contract orientation ( अनुबंध की नैतिकता)

2) Universal Ethical Principals ( सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत)

🎯 पूर्व परंपरागत या अपरंपरागत नैतिकता ( 4-10 वर्ष )

1) आज्ञाकारिता यार दण्ड अभिविन्यास➖

इस अवस्था में बच्चे के मन में आज्ञा पालन का भाव दंड पर निर्भर करता है वह स्वयं को परेशानियों से बचाना चाहते हैं कि हम ऐसा नहीं करेंगे तो ऐसा होगा वह स्वीकृत व्यवहार करता है |

2) आत्म अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता ➖

इस अवस्था में बच्चे का व्यवहार खुलकर सामने नहीं आता है वह अपनी रुचि को प्राथमिकता देता है वह पुरस्कार पाने के लिए कार्य करता है जो उसकी रूचि है किसी भी चीज के प्रति उसको पाने के लिए उसके प्रति व कार्य करता है |

🎯 परंपरागत नैतिकता (10-13 वर्ष) ➖

1) अच्छा लड़का अच्छा लड़की नैतिकता या पारस्परिक समझौते की अनुरूपता ➖

इस अवस्था में बच्चा एक दूसरे का सम्मान करने और सम्मान पाने के लिए कार्य करता है यह आदान-प्रदान वाली अवस्था है कि वह सोचता है कि सामने वाला व्यक्ति जब उसको सम्मान देगा देगा तभी वह उसको भी सम्मान देगा |

2) अधिकार संरक्षण अभिमुखता ➖

इस अवस्था में बच्चे नियम और व्यवस्था के लिए जागरूक होते हैं वह जागरूक हो जाता है मानदंडों का पालन करने के लिए और उनके प्रति जवाबदेह हो जाता है |

🎯 उत्तर परंपरागत नैतिकता (13 वर्ष के बाद) ➖

1) अनुबंध की नैतिकता ➖

इसमें बच्चे की अपनी सोच और उसकी अपनी शक्ति का निर्माण हो जाता है इसमें व्यक्ति या बच्चे को जो सही लगता है वह समाज में स्वीकार हो | इसमें बालक सामाजिक रुप से स्थिति को समझने लगता है अपने अनुसार निर्णय लेने लगता है चीजों को समझने और करने लगता है |

2) सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत इसमें व्यक्ति आदर्शवादी हो जाते हैं यहां परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना दूसरों के प्रति संवेदनशील होना और खुद में दार्शनिक हो जाता है |

नोट्स बाॅय➖ रश्मि सावले

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वायगोत्सकी और कोहलबर्ग के सिद्धांत

वाइगोत्सकी का सामाजिक विकास का सिद्धांत
Vygitsky Socio-Culture Theroy

संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारको( परिवार,समाज और भाषा) का और भाषा का प्रभाव पड़ता है।

बच्चे का संज्ञानात्मक विकास अंतः वैयक्तिक, सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है।

ZPD – Zone Of Proximal Development

समीपस्थ विकास का क्षेत्र

ZPD= with help- with out help

वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चे को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख पाते हैं ।

वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख पाता है ,जेड पी डी कहलाता है।

स्केफाॅल्डिग- स्केफाॅल्डिग विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्यय हैं, संवाद, ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है यह कार्य अस्थाई होता है।

ज्ञान अर्जन से पहले मदद की जरूरत होती है अर्जन के बाद जरूरत समाप्त हो जाती है।

जैसे बच्चा जब छोटा होता है तो वह चलने के लिए हमारी उंगली पकड़ता है और हम उसे उंगली पकड़ कर चलाना सिखाते हैं धीरे धीरे वह चलना सीख जाता है फिर वह हमारे उंगली छुटका कर तेजी से दौड़ने लगता है।
तो यहां जो हमने बच्चे को उंगली पकड़कर सिखाया वही बच्चे के लिए समीपस्थ विकास का क्षेत्र है और जो हमने बच्चे को चलने में सहारा दिया या मदद की वही हमारी स्केफोल्डिंग या ढांचा निर्माण का औजार है।
और बच्चा जब चलना सीख जाता है तो वह हमारी उंगली नहीं पकड़ता है। अर्थात काम खत्म सहायता की आवश्यकता खत्म।

भाषा और विचार -बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्व: निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए, अपने व्यवहार हेतु ,योजना बनाने ,निर्देश देने और मूल्यांकन में भी करते हैं।
वाइगोत्सकी के अनुसार भाषा संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत
Moral development theory of kohlberg

कोहलबर्ग ने नैतिकता के तीन स्तर बताया है
इन तीनों स्तरों को भी दो- दो भागों में बांटा गया है
इस अवस्था का निश्चित क्रम होता है परंतु हर व्यक्ति में समान उम्र में नहीं होती है
व्यक्ति किसी अवस्था को छोड़कर आगे नहीं बढ़ता है
बहुत से लोग नैतिकता के उच्च स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते हैं।

स्तर-1
पूर्व परंपरागत नैतिकता की अवस्था
Pre conventional stage

यह अवस्था 4 से 10 साल की आयु में हो सकती है।
इसे दो अवस्थाओं में रखा गया है।
इस अवस्था में बालक अपने से बड़े व्यक्तियों द्वारा निर्धारित मानदंडों ,नियमों, रीति-रिवाजों आदि का पालन करना ही अपनी नैतिकता समझता है।

1. आज्ञाकारिता और दंड अभिविन्यास
opedience & punishment orientation

इस अवस्था में बालक का व्यवहार आज्ञाकारीता और दंड के द्वारा संचालित होता है।
इस अवस्था में बालक को आज्ञानुसार सही कार्य करने पर पुरस्कार और गलत कार्य करने पर दंड दिया जाता है।
इस अवस्था में नैतिकता की शुरुआत दंड से होती है।

2. आत्म अभिरूचि और प्रतिफल अभिमुखता / अंहकार
Self interest orientation

इस अवस्था में बालक अपनी आवश्यकताओं, रुचि को पूरा करने के लिए व्यवहार करता है।
इस अवस्था में बालक दूसरों का सम्मान इस आशा में करता है कि दूसरा भी उसे सम्मान देगा अर्थात एक हाथ से देना और दूसरे हाथ से लेना का व्यवहार करता है अर्थात बराबरी का लेनदेन या आदान -प्रदान होना चाहिए।
इस अवस्था में बालक में अंहकार होता है यदि उसका उद्देश्य ,आवश्यकता, रुचि गलत काम करने से पूरी हो तो वह उस काम को करने में कोई अनैतिकता नहीं समझता है।

स्तर-2
परंपरागत नैतिकता की अवस्था
Conventional stage

यह अवस्था 10-13 साल की आयु में आ सकती हैं
इस अवस्था में बालक समाज के द्वारा या समूह के द्वारा निर्देशित नियमों को अपना लेता है और उसी के अनुसार अपना व्यवहार संचालित करता है।

1. अच्छा लड़का या अच्छी लड़की की नैतिकता / प्रशंसा
The good boy girl attitude

इस अवस्था में बालक जो कुछ भी करता है अपनी प्रशंसा पाने के लिए करता है वह समाज में अपनी अच्छी छवि के लिए करता है ताकि उसे प्रशंसा मिले।

2.अधिकार संरक्षण अभिमुखता
Authority and social order maintain orientation/ law and order morality
इस अवस्था में नियम ,कानून तथा व्यवस्थाएं नैतिकता का आधार होती है अर्थात इसमें बालक सोचता है कि नियम हमारे लिए बने हैं और हमें इन्हें नियमित रूप से फॉलो करते रहना चाहिए।

स्तर-3
उत्तर परंपरागत नैतिकता की अवस्था
Post conventional stage

यह अवस्था 13 साल की आयु के पश्चात व्यवहार में आ सकती हैं।
इस अवस्था में व्यक्ति अपने स्वयं के नैतिकता के नियमों, मान्यताओं ,धारणाओं को मानने लगता है।

1. अनुबंध की नैतिकता
Social contract orientation
इस अवस्था में व्यक्ति यह जाने लगता है कि समाज के नियम समुदाय के सभी लोगों की सहमति और हितों के लिए बने हैं।
जो नियम अच्छे हैं उनकी पालना करने लगता है और
यदि कोई नियम व्यक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है तो इसे समुदाय के द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है या संशोधित किया जा सकता है।

2.सार्वभौमिक नैतिकता या सिद्धांत
Universal ethical principle/ interaction stage

इस अवस्था में व्यक्ति स्वयं के नियम बनाकर उनका अनुपालन करता है
वह अपने विवेक का प्रयोग करने लगता है
इस अवस्था को हम परम् अहम की अवस्था भी बोल सकते हैं।

कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धांत को समझने के लिए हम एक उदाहरण ले सकते हैं जो कि अक्सर हमारे बड़े बुजुर्ग प्रयोग में लेते हैं।

स्तर-3
जो बिना कहे काम को करें वह भगवान ( उत्तर परंपरागत)

स्तर-2
और जो कहने पर कर ले वह इंसान (परंपरागत )

स्तर-1
तथा जो कहने पर भी नहीं करें वह शैतान/ हैवान /जानवर होता है ( दंड देने पर ही कार्य को करता है) ( पूर्व परंपरागत)

Notes by Ravi kushwah

वाइगोत्सकी (sociocultural theory)🔥🔥

🌟संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारकों (परिवार, समाज और भाषा) का प्रभाव पड़ता है।

🌟बच्चे का संज्ञानात्मक विकास अंत: व्यक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है।

समीपस्थ विकास का क्षेत्र (zone of proximal development) zpd🔥🔥

वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है। जब बच्चे को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो, तो वह बेहतर सीख पाते हैं । वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख जाता है zpd कहलाता है।

Zpd=with help-without help

ढांचा – निर्माण (स्कैफोल्डिंग) 🔥🔥

Scaffolding, एक प्रकार की शिक्षण प्रक्रिया है जिसमें बच्चों को दिया जाने वाला निर्देश की मात्रा तथा स्वरूप उनके विकास के स्तर के अनुरूप होता है । बच्चों को दिया जाने वाला सहयोग या समर्थन तब वापस ले लिया जाता है जब बच्चा स्वतंत्र रूप से किसी कार्य को करने लगता है।
इस प्रक्रिया में बड़े या शिक्षक की तरफ से उस सहयोग को वापस ले लिया जाता है , जब बच्चा उच्च क्षमता और आत्मविश्वास के साथ कोई काम करना सीख जाता है।
👉 इसमें शुरू में अधिक समर्थन दिया जाता है फिर उससे धीरे-धीरे हटा लिया जाता है।

👉 Scaffolding, विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्य हैं । संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है । यह कार्य अस्थाई होता है। ज्ञान अर्जन से पहले मदद की जरूरत होती है और ज्ञानार्जन के बाद जरूरत समाप्त हो जाती है।

भाषा और विचार 🔥🔥

बच्चे भाषा का प्रयोग ना सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्व निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए, अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने, निर्देश देने और मूल्यांकन में भी करते हैं।

नैतिक विकास का सिद्धांत (moral development theory) 🔥🔥

Story 👉
यूरोप में एक महिला मौत के कगार पर थी । डॉक्टरों ने कहा कि एक दवाई है जिससे शायद उसकी जान बच जाए वह एक तरह का रेडियम था जिसकी खोज उस शहर के एक फार्मासिस्ट ने उस दौरान की थी ।दवाई बनाने का खर्चा बहुत था और दवाई वाला दवाई बनाने के खर्च से 10 गुना ज्यादा पैसे मांग रहा था । उस औरत का इलाज करने के लिए उसका पति हाइनस उन सब के पास गया जिनको वह जानता था फिर भी उससे केवल कुछ पैसे ही उधार मिले जो कि दवाई के दाम से आधे ही थे । उसने दवाई वाले से कहा कि उसकी पत्नी मरने वाली है वह उस दवाई को सस्ते में दे दे वह उसके बाकी पैसे बाद में दे देगा । फिर भी दवाई वाले ने मना कर दिया दवाई वाले ने कहा कि मैंने यह दवाई खोजी है मैं इसे बेचकर पैसा कमाउंगा । तब हाइनस ने मजबूर होकर उसकी दुकान तोड़कर वह दवाई अपनी पत्नी के लिए चुरा ली।

यह कहानी कोहलबर्ग में नैतिक विकास को जानने के लिए इस्तेमाल की थी।बच्चों को यह कहानी सुनाने के बाद उनका साक्षात्कार लिया गया जिन्हें नैतिक दुविधा पर बनाए गए कुछ प्रश्नों के उत्तर देने होते थे। जैसे-
Q- क्या हाइनस को वह दवाई चुरा लेनी चाहिए थी?

Q-क्या चोरी करना सही है या गलत है और क्यों?

Q- क्या यह एक पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी के लिए दवाई चोरी करके ले आए?

Q- क्या दवाई बनाने वाले को हक है कि वह दवाई के इतने पैसे मांगे?

Q-क्या ऐसा कानून नहीं है जिससे दवाई की कीमत पर अंकुश लगाया जा सके , क्यों और क्यों नहीं?

👉 व्यक्ति किसी अवस्था को छोड़कर नहीं बढ़ता।
👉 बहुत लोग नैतिकता के उच्च स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाते।

साक्षात्कार द्वारा दिए गए उत्तरों के आधार पर कोलबर्ग ने नैतिक चिंतन की तीन अवस्थाएं बताई हैं, जिन्हें पुनः दो-दो चरणों में विभाजित किया गया है।

Level*1 🌟अपरंपरागत या पूर्व परंपरागत अवस्था(preconventional stage)

यह 4 से 10 वर्ष की आयु में होता है इस आयु में बच्चे का व्यक्तित्व इदम् (idm)में होता है। इस स्टेज को दो भागों में बांटा गया है-

1. आज्ञाकारिता और दंड अभिविन्यास (obedience and punishment orientation)

🌟यह अवस्था में बच्चे की सोच , सजा से बंधी होती है । जैसे बच्चे यह मानते हैं कि उन्हें बड़ों की बातें माननी चाहिए नहीं तो उन्हें दंडित करेंगे।

2. आत्म अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता(self interest orientation)

🌟यहां बच्चा सोचता है कि अपने हितों के अनुसार कार्य करने में कुछ गलत नहीं है पर हमें साथ में दूसरों को भी उनके हितों के अनुरूप काम करने का मौका देना चाहिए । अतः इस स्तर की नैतिक सोच यह कहती है कि वही बात सही है जिसमें बराबरी का लेनदेन हो रहा है । अगर हम दूसरे की कोई इच्छा पूरी कर दे तो वही हमारी इच्छा पूरी कर देंगे।

Level* 2🌟 परंपरागत नैतिकता (conventional stage)

यह 10 से 13 वर्ष की आयु में आ सकती है। इस अवस्था में बच्चा समाज के द्वारा या समूह के द्वारा निर्देशित नियमों को अपना लेता है और उसी के अनुसार अपना व्यवहार प्रदर्शित करता है। इसमें बच्चे का व्यक्तित्व अहम ( ego)में होता है। यह भी दो भागों में बांटा गया है-

1. अच्छा लड़का या अच्छी लड़की की नैतिकता/ प्रशंसा
(The good boy or girl attitude)
इस अवस्था में बच्चो में विश्वास,दूसरों का ख्याल रखना ,दूसरों के निष्पक्ष व्यवहार को अपने नैतिक व्यवहार का आधार मानना आदि बच्चे अपने माता-पिता द्वारा निर्धारित किए गए नैतिक व्यवहार के मापदंडों को अपनाते हैं जो उन्हें उनके माता-पिता की नजर में एक अच्छा लड़का या अच्छी लड़की बनाती है।

2. अधिकार संरक्षण अभिमुखता(authority and social order maintaining orientation)

इसमें बच्चा सामाजिक कानून ,आदेश, न्याय और कर्तव्यों पर आधारित चिंतन करता है । जैसे- किशोर सोचते हैं कि समाज अच्छे से चल सके इसके लिए कानून के द्वारा बनाए गए दायरे के अंदर ही रहना चाहिए। उदाहरण- घर से बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग करना, मोटरसाइकिल चलाते समय हेलमेट का प्रयोग करना, कार चलाते समय सीट बेल्ट का प्रयोग करना आदि।

Level* 3🌟 उत्तर परंपरागत अवस्था (post conventional stage)

यह 13 वर्ष के बाद की अवस्था है। इस अवस्था में बच्चे का व्यक्तित्व परम अहम (supper ego) में आरंभ हो सकता है।अब बच्चा व्यक्तिगत रूप से नैतिक व्यवहार का रास्ता ढूंढता है। यह भी दो भागों में बांटा गया है-

1. अनुबंध की नैतिकता (social contract orientation)

इस अवस्था में बच्चा यह सोचने लगता है कि कुछ मूल्य सिद्धांत और अधिकार कानून से भी ऊपर हो सकते हैं।

2. सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत (universal ethical principle/ interaction stage)

इस अवस्था में बच्चा सार्वभौमिक मानवाधिकार पर आधारित नैतिक मापदंड बनाता है जब भी कोई व्यक्ति अंतरात्मा की आवाज के द्वंद्व के बीच फंसा होता है तो वह व्यक्ति यह तर्क करता है कि अंतरात्मा की आवाज के साथ चलना चाहिए चाहे वह निर्णय जोखिम से भरा ही क्यों ना हो इसलिए उससे कुछ भी करने से पहले अपनी भावनाओं के अलावा औरों की जिंदगी के बारे में भी सोचना चाहिए था।

Notes by “Shreya Rai”🙏🙏

🌈Vygotski sociocultural theory🎯

💫संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारको और भाषा का प्रभाव पड़ता है। अर्थात बिना समाजिक अंतः क्रिया से बच्चों में विकास संभव नहीं है।

🍁सामाजिक कारक जैसे – परिवार, समाज ,विद्यालय इत्यादि।

बच्चों का संज्ञानात्मक विकास अंतःवैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में संपन्न होता है मतलब बच्चे जब तक समाज से, परिवार से, विद्यालय से, अंतः क्रिया नहीं करेंगे तब तक बच्चों मे विकास संभव नहीं हो सकता है

👉वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है जब बच्चे को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वह बेहतर सीख सकते हैं

🌹वह क्षेत्र जो बच्चा किसी की मदद से सीख जाता है उसे ZPD कहते हैं।

🎯स्कैफोल्डिंग (ढांचा निर्माण ,मचान)~

यह विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्यय (अवधारणा) है। संवाद, ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है यह कार्य अस्थाई होता है।
तारी अर्जन से पहले मदद की जरूरत होती है तथा अर्जन के बाद समाप्त हो जाती है।
जैसे- चुनाव के समय प्रचार होती है और चुनाव खत्म होने के बाद प्रचार खत्म हो जाती है।

💫भाषा और विचार:~
भाषा विकास में के लिए महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि भाषा का प्रयोग ना तो सिर्फ संप्रेषण के लिए करते हैं बल्कि स्वर निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने,मूल्यांकन करने और निर्देश देने में भी करते हैं। बच्चा भाषा का प्रयोग खुद के लिए बोलने के लिए करता है तथा इसके दौरान बच्चा भाषा का प्रयोग तब तक नहीं कर सकता है जब तक कि वह सामाजिक अंतः क्रिया नहीं करें। अर्थात भाषा समाजिक अंतः क्रिया से सीखते हैं और उसका उपयोग अनेक जगहों पर करते हैं।

🎯कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत……….

कोहलबर्ग का मानना था की नैतिकता एक साथ नहीं आती हैं जैसे -जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है वैसे- वैसे व्यक्ति में नैतिकता बढ़ती है लेकिन यह जरूरी नहीं है की आयु के हिसाब से नैतिकता बढ़े ही ।

कोहलबर्ग के अनुसार नैतिकता के स्तर तक पहुंचने के लिए तीन अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है जिसका क्रम निश्चित है।

इन्होंने नैतिकता के स्तर को तीन भागों में बांटा है और प्रत्येक भाग को 2-2 भागों में बांटा है।

प्रत्येक अवस्था का क्रम निश्चित होता है व्यक्ति किसी भी अवस्था को छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता है बहुत व्यक्ति नैतिकता के प्रथम चरण में ही रह जाते हैं कभी भी उच्च स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं।

🌈नैतिकता के चरण….

(A) Pre-conventional stage (पूर्व परंपरागत या आपरंपरागत अवस्था)

(1) obedience and punishment orientation (आज्ञाकारिता या दंड की अवस्था)
(2) self interest orientation(आत्मा अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता)

💫B) conventional stage (परंपरागत अवस्था)

(1)‌ interpersonal Accared conformity/the good boy and good girls attitude (पारस्परिक समझौता की अवस्था /अच्छा लड़का या लड़की नैतिकता)

(2) order maintains orientation (अधिकार संरक्षण अभिमुखता)

🌈(C) Post conventional stage (उत्तर परंपरागत नैतिकता)

(1) social contract orientation (अनुबंध की नैतिकता)

(2) universal ethical principles(सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत)

🎯पूर्व परंपरागत या अपरंपरागत नैतिकता (4-10 वर्ष)

(1) आज्ञाकारिता या दंड अभिविन्यास…

इसमें बच्चे आज्ञा का पालन दंड के डर से कराता है अगर कार्य नहीं करेंगे तो दंड मिलेगा । इससे बचने के लिए आज्ञा का पालन करते हैं।

(2) आत्म अभिरुचि और प्रतिफल अभिमुखता…..

इसमें बच्चा अपनी रुचि से कार्य को करते हैं या अपनी रुचि को प्राथमिकता देते हैं कोई चीज, कोई वस्तु को, या पुरस्कार पाने के लिए बच्चे कार्य को करते हैं।

🌈परंपरागत नैतिकता (10-13 बर्ष)……

(1) अच्छा लड़का या लड़की नैतिकता/पारस्परिक समझौते की अनुरूपता–

इस अवस्था में बच्चे सम्मान पाने या सम्मान करने के लिए कार्य को करते हैं इस अवस्था में बच्चे सोचते हैं कि अगर हम उनको सम्मान करेंगे तो फिर वह हमें सम्मान करेंगे।

(2) अधिकार संरक्षण अभिमुखता……
इस अवस्था में बच्चे नियम को पालन करने और उनके प्रति जवाबदेह हो जाता है।

🎯उत्तर परंपरागत नैतिकता (13 बर्ष के बाद)……

( 1)अनुबंध की नैतिकता-

इसमें बच्चे की सोच और शक्ति का निर्माण हो जाता है तथा उन्हें जो सही लगता है उसे स्वीकार करते हैं तथा गलत को गलत मानते हैं इसमें बालक समाज की स्थिति परिस्थिति का समझ विकसित हो जाती हैं।

(2) सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत-

इसमें व्यक्ति आदर्शवादी हो जाते हैं अगर इसमें समाज द्वारा किया गया कार्य गलत है या सही है तो उनकी प्रतिक्रिया न्यूट्रल आती है। जैसे-गलत है तो भी ठीक है और सही है तो भी ठीक है।

परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना, दूसरे के प्रति संवेदनशील होना और खुद में दार्शनिक हो जाता हैं।

💮🌼🌺🍁🍂🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

Cognitive development theory of Jean Piaget notes by India’s top runners

🌀 पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत 🌀 पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में निम्नलिखित चार अवस्थाएं हैं – 1) इंद्रिय जनित गामक अवस्था (0-2) साल 2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 2 से 7 वर्ष 3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7 से 11 वर्ष 4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था 11 से 18 वर्ष 1️⃣ *इंद्रिय जनित गामक अवस्था ( संवेदी पेशीय / संवेदी गामक अवस्था ) 0 – 2 वर्ष*➖ ★ *इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है* 👉 शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना 👉 अपने भाव को रोकर व्यक्त करता है 👉 किसी चीज को पकड़ने लगता है 👉 जो चाहिए उसे दिखा कर अपनी बात कहना चाहता है 👉 शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होता है 👉 धीरे-धीरे 2 वर्ष की समाप्ति होने तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही हैं यही “वस्तु स्थायित्व” है ★ चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है तीन चार महीने तक कोई वस्तु सामने से हटने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है *वस्तु का सामने ना होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है इसे ही वस्तु स्थायित्व कहते हैं* 2️⃣ *पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 2 से 7 वर्ष*➖ 👉 भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है 👉 अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है 👉 वस्तुओं को पहचानने लगता है 👉 5 वर्ष तक यह संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है 👉 इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते होते वह सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है …….. ☑️ *इस उम्र के 2 दोस हैं* 1) जीववाद :- निर्जीव को सजीव समझने लगता है 2) आत्मकेंद्रित( स्वलीनता ) :- सिर्फ अपने विचारों को सत्य मानता है यह 2 से 4 साल तक की अवधि है 4 से 7 साल चिंतन / तर्क पहले से अधिक परिपक्व हो जाता है अर्थात जीववाद या स्वलीनता धीरे-धीरे खत्म होने लगती है 3️⃣ *मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 7 से 11 वर्ष* ➖ 👉 ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है 👉 वस्तु को पहचानना ,विभेद करना, वर्गीकृत करना इत्यादि 👉 समस्या समाधान का अमूर्त रूप विकसित नहीं होता है 👉 (सोच) स्थूल या मूर्त होती है 👉 *दोष*➖ अमूर्त (सोच) विकसित नहीं होती है 👉 चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होता है 4️⃣ *अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था 12 से 18 वर्ष*➖ 👉 चिंतन लचीला प्रभावी हो जाता है 👉 चिंतन क्रमबद्ध होता है 👉 समस्या समाधान काल्पनिक रूप से सोच चिंतन कर सकते हैं 👉 चिंतन वास्तविक होता है 👉 बालक में विकेंद्रण विकसित हो जाता है धन्यवाद नोट्स बाय प्रज्ञा शुक्ला

🏵️पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत🏵️
1️⃣ इंद्रिय जनित गामक अवस्था (sensory motor stage) 0-2 years
2️⃣ पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre operational stage) 2-7 years
3️⃣ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (concrete operational stage) 7-11 years
4️⃣ अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (formal operational stage) 11-18 years
1️⃣ इंद्रिय जनित गामक अवस्था (0-2 years)
👉 संवेदी पेशीय/संवेदी गामक अवस्था
👉 इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करते हैं।
👉 शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना।
👉 बच्चे चीजों को पकड़ने लगते हैं।
👉 बच्चा अपने भाव को रो कर व्यक्त करता है।
👉 बच्चे को जो चाहिए उसे दिखा कर अपनी बात कहना चाहता है।
👉 शुरुआत मैं बच्चे के लिए उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होती है। धीरे धीरे 2 वर्ष की आयु समाप्त होने तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही होती हैं।
👉 चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है 3 से 4 महीने तक कोई वस्तु सामने से हटाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
👉 वस्तु का सामने ना होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है इसी वस्तु स्थायित्व कहते हैं।
2️⃣ पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2-7 years)
👉 बच्चे के अंदर भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है।
👉 अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है।
👉 बच्चा वस्तुओं को पहचानने लगता है।
👉 बच्चा इसी उम्र में वस्तु में विभेद करना सीख जाता है।
👉 5 वर्ष तक यह संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है।
👉 इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते-होते वह सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है।
👉 इसी उम्र में बच्चा जीव बाद, और आत्म केंद्रित होता है।
🔹 जीव बाद:- बच्चा निर्जीव को सजीव समझने लगता है।
🔸 आत्म केंद्रित:- बच्चा सिर्फ अपने विचार को सत्य मानता है।
⬆️2-4 वर्ष की अवधि में यह सब होता है।
➡️4-7 वर्ष में बच्चा चिंतन, तर्क से पहले से अधिक परिपक्व हो जाता है।
3️⃣ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7-11 years)
👉 ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है।
👉 वस्तु को पहचानना, विभेद करना, वर्गीकृत करना
👉 समस्या समाधान का अमूर्त रूप से विकसित ना होना।
👉 स्थूल या मूर्त होती हैं।
▪️दोष:—
👉 अमूर्त विकसित नहीं होती है।
👉 चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होती है।
4️⃣ अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (11-18 years)
👉 चिंतन बहुत ही लचीला, प्रभावी हो जाता है।
👉 चिंतन क्रमबद्ध होता है।
👉 समस्या का समाधान काल्पनिक रूप से सोच कर चिंतन कर सकते हैं।
👉 चिंतन वास्तविक होता है।
👉 बालक में विकेंद्रित पूर्णता विकसित हो जाता है।
🔸🔹🔸
🏵️🏵️🏵️✍️ Notes by~Vinay Singh Thakur🏵️🏵️🏵️

🏵️ पियाजे का संज्ञानात्मक विकास🏵️
🌸( Piaget cognitive development)🌸

1️⃣➡️इंद्रिय जनित गामक अवस्था (संवेदी पेशी अवस्था)
(Sensorimotor stage) (0- 2 year)

2️⃣➡️पूर्व -संक्रियात्मक अवस्था(Preoperational stage) (2-7 year)

3️⃣➡️मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete operational stage)7-11year

4️⃣➡️अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था(formal operational stage)(11-18 year)

1️⃣➡️🏵️इंद्रिय जनित गामक अवस्था🏵️ (
संवेदी पेशी/संवेदी गामक अवस्था (इसमें बच्चा अपनी इंद्रियों का प्रयोग करता है)

✍️इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है।

✍️शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर मुड़ -मुड़कर देखना।
✍️अपने भाव को रो-रोकर व्यक्त करता है।

✍️2 साल के करीब -इस समय बालक को जो चीज चाहिए होती है उसकी तरफ इशारा दिखाकर लेने की चाहत को प्रकट करता है।

✍️शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उन वस्तुओं का अस्तित्व होता है जो उनके सामने होती हैं।

2️⃣➡️ 🏵️पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(Pre operational stage)🏵️

✍️भाषा का विकास ठीक ढंग से प्रारंभ हो जाता है
अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती इशारों की जगह पर अब वह भाषा का इस्तेमाल करके जिस चीज की चाह होती है बता देता है।

✍️वस्तुओं को पहचानने लगता है।

✍️बच्चा इसी उम्र वस्तुओं में विभेद करना शुरू कर देता है।

✍️5 वर्ष तक या प्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है।

✍️इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते-होते वा सजीव; निर्जीव (निर्मित) में विभेद करना लगता है।

🌸जीववाद

✍️निर्जीव वस्तुओं को सजीव समझ कर उनके साथ वार्ता करने लगता है।

🌸आत्मकेंद्रित

✍️सिर्फ अपने विचार को ही सत्य मानता है।

✍️2-4 वर्ष की अवधि में जीवादन केंद्रित पाया जाता हैl

✍️4-7 वर्ष की अवधि में चिंतन तर्क से पहले से ही अधिक परिपक्व हो जाता है।

3️⃣➡️🏵️मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(Concrete operational stage)(7-11 year)🏵️

✍️ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है।
वस्तु को पहचानना विभेद करना वर्गीकृत करना सीख जाता है।

✍️समस्या समाधान का अमूर्त रूप विकसित नहीं होता हैl

✍️चिंतन पूरी तरह से विकसित नहीं होता है (आपसारी चिंतन नहीं कर सकता)।

✍️यह अवस्था बच्चे की प्रारंभिक विद्यालय में अध्ययन करने की अवस्था है।

4️⃣➡️🏵️ अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था(Formal opertaional stage)(12-18year)🏵️

✍️चिंतन लचीला प्रभावी हो जाता है।

✍️चिंतन क्रमबद्ध होता है।

✍️समस्या का समाधान करने के लिए काल्पनिक रूप से ।सोच कर चिंतन कर सकते हैं(अपसारी चिंतन करता है)।

✍️चिंतन वास्तविक होता है।

✍️बालक में विकेंद्रीकरण पूर्णता विकसित हो जाता है।

Written by-$hikhar pandey

🌳पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत:—

(1) इंद्रियाजनित गामक अवस्था (sensory motar stage):—(0–2)

(2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(pre operational stage):—(2—7)

(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(concrete operational stage):—(7—11)

(4) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(formal operational stage):—(11—18)

🌹1) इंद्रियाजनित गामक अवस्था (sensory motar stage):—(0–2)
🌻संवेदी पेशियों संवेदी गामक अवस्था
🌻इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है
🌻 शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना
🌻 किसी चीज को पकड़ने लगता है 🌻अपने भाव को रो कर व्यक्त करता है
🌻 जो चाहिए उसे दिखा कर अपनी बात कहना चाहता
🌻शुरुआत में बच्चे के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होता है धीरे-धीरे 2 वर्ष की समाप्ति तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही है
🌻 चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है
🌻3 से 4 महीने तक कोई वस्तु सामने से हटाए जाने पर उसका अस्तित्व समाप्त होने लगता है
🌻वस्तु का सामने ना होने पर भी अस्तित्व बना रहता है इसे वस्तु स्थायित्व बोलते हैं

🌹2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(pre operational stage):—(2—7)

🌻 भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है
🌻 अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाता है
🌻वस्तुओं को पहचाने लगता है
🌻बच्चा इस उम्र में वस्तु में विभेद करना सीख जाता है
🌻 5 वर्ष तक यह संप्रदाय निर्माण अधूरा रहता है
🌻इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते होते वह सजीव निर्जीव में भेद करना सीख जाता है

🎄🦋🎄 इसके दो दोष हैं:—
(1) जीव वाद:— निर्जीव को सजीव समझना

(2) आत्म केंद्रित:— सिर्फ अपने विचारों को सत्य मानना

👉जीव बाद और आत्म केंद्र
:—2—4 साल की अवधि
:—4—7 चिंतन / तर्क से पहले से अधिक परिपक्व हो जाते हैं

🌹3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(concrete operational stage):—(7—11)

🌻ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है
🌻 वस्तु को पहचानना विभेद करना वर्गीकृत करना
🌻 समस्या समाधान का अमूर्त रूप
🌻 स्थूल या मूर्त होती है

👉 दोष:—

👉अमूर्त विकसित नहीं होती है 👉👉चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होती है

🌹4) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(formal operational stage):—(11—18)

🌻 चिंतन लचीला प्रभावी हो जाता है 🌻चिंतन क्रमबद्ध होती है
🌻समस्या का समाधान काल्पनिक रूप से सोच कर चिंतन कर सकते हैं
🌻 चिंतन वास्तविक होती है
🌻बालक में विकेंद्रीकरण विकसित हो जाता है

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻Notes by:—sangita bharti🙏

🌼🌹पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत 🌹🌼

🐥इन्द्रियजनित गामक अवस्था (Sensory motor Stage)
_ ० से २ बर्ष तक

🍀 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre – Operational Stage )
– 2 से 7बर्ष तक

🐤मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( Concrete Operational Stage)
-7 से 11बर्ष तक

🎃 अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( Formal Operational Stage)
– 11 से 18 बर्ष तक

🍂🌻इन्द्रिय जनित गामक अवस्था/ संवेदी पेशिय / संवेदी गामक अवस्था (0-2बर्ष)

🌷 इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इन्द्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है।

🌲 शारीरिक रूप से चीजों को इधर उधर देखना, किसी चीज को पकड़ने लगता है।

🌹 अपने भाव को रोकर व्यक्त करता है।

🌾जो चाहिए , उसे दिखाकर अपनी बात को चाहता है। शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं देता है।

🐥 बच्चों में वस्तु स्थायित्व का गुण भी पाया जाता है।

🌼🍂 चिंतन धीरे धीरे वास्तविक होने लगता है,3-4 महीने तक कोई वस्तु सामने से हटाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

🌾 वस्तु का सामने न होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है, इसे वस्तु स्थायित्व कहा जाता है।

🐣☃️🍃 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( 2-7 बर्ष)

🌼 भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है

🐥 अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है।

🍀 वस्तुओं को पहचानने लगते हैं।

🎃 बच्चा किस उम्र में वस्तु में विभेद करना सीख जाता है।

🐦5बर्ष तक यह सम्प्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है।

🌹 इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं, परन्तु समाप्त होते-होते वह सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है।

🐦 इसमें दो प्रकार के दोष पाये जाते हैं जो निम्न प्रकार से है÷

🌿जीववाद 🌿
🍁 निर्जीव को सजीव समझता है।

🍂आत्मकेंद्रित (स्वालीनता)🍂
🌾 सिर्फ अपने विचार को सत्य मानता है।

🕊️🦋 जीववाद/ आत्मकेंद्रित 🦋🕊️

🌹 4 साल की अवधि में पाये जाते हैं।

🌺 4 – 7 चिंतन/तर्क से पहले से अधिक परिपक्व हो जाता है।

🌾🍂🌿मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7 – 11बर्ष )

🐥ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है।

🎃 वस्तु को पहचानना, विभेद करना, वर्गीकृत करना सीख जाता है।

☃️ समस्या समाधान का अमूर्त स्वयं करता है।

🐦 स्थूल या मूर्त होती है।

🌹 दोष 🌹

🌾 अमूर्त विकसित नहीं होती है।

🍃 चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होती है।

💫🌺 अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( 12 -18 बर्ष )

🍁 चिंतन लचीला, प्रभावी हो जाता है।

🌾 चिंतन क्रमवध्द होती है।

🍂 समस्या समाधान काल्पनिक रूप से सोचकर, चिंतन कर सकते हैं।

🐤 चिंतन वास्तविक होती है।

🌿बालक में विकेन्द्रण पूर्णतः विकसित हो जाता है।

🌹🌹🌹 Notes by. ÷. Babita yadav

🌼🌼🌼पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत🌼🌼🌼🌼
🌼1. -इंद्रिय जनित गामक अवस्था
(Sensory motor stage) (0-2year)
🌼2.पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (pre-operational stage) (2-7year)
🌼3.मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(concrete operational stage) ( 7-11year)
🌼4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (formal operational stage) (11-18year)

🌼🌼1.इंद्रिय जनित गामक अवस्था /संवेदी पेशीय/ संवेदी गामक अवस्था (0-2year) –🌼इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनत गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है
🌼शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना , फेंकना इत्यादि किसी चीज को पकड़ने लगता है
🌼अपने भाव को रोकर व्यक्त करता है
🌼 जो चाहिए उससे दिखाकर अपनी बात कहना चाहता है
🌼🌼🌼शुरुआत में बच्चे के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होता है धीरे-धीरे 2 वर्ष की समाप्ति तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही हैं उनके अंदर वस्तु स्थायित्व का गुण आ जाता है
🌼🌼चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है तीन चार महीने तक कोई वस्तु के सामने से हटने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है वस्तु का सामने ना होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है इसे वस्तु स्थायित्व कहते हैं

🌼🌼2.पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2-7year)–
🌼 भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है
🌼अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है
🌼 वस्तुओं को पहचाने लगता है
🌼 बच्चा इस उम्र में वस्तु में विभेद करने लगता है
🌼5 वर्ष तक संप्रत्य निर्माण अधूरा रहता है
🌼 इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते होते वह होते वह सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है
🌼🌼जीवबाद
🌼🌼आत्म केंद्रित
🌼जीववाद -निर्जीव को सजीव समझने लगता है
🌼आत्म केंद्रित -सिर्फ अपने विचारों को ही सत्य मानता है

🌼🌼3 . मूर्त संक्रियात्मक अवस्था(7-11year)
🌼 ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है
🌼 वस्तु को पहचाना,विभेद करना ,वर्गीकरण करना
🌼समस्या समाधान का मूर्त रूप विकसित नही जाता है
🌼स्थूल या मूर्त होती है

🌼🌼दोष🌼🌼—-

🌼अमूर्त चिंतन विकसित नहीं होता है
🌼 चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होती है

🌼 🌼🌼अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (11-18)
🌼चिंतन ,लचीला ,प्रभावी हो जाता है
🌼 चिंतन क्रमबंद होती है
🌼समस्या का समाधान काल्पनिक रूप से सोचकर चिंतन कर सकते हैं
🌼चिंतन वास्तविक होती है
🌼बालक में विकेंद्रित करण पूर्णता विकसित हो जाता है

By manjari soni🌼

🔆 पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत➖

पियाजे ने अपने संज्ञानात्मक विकास में 4 अवस्थाओं का वर्णन किया है जो कि निम्न है ➖

1) इन्द्रिय जनित गामक अवस्था ➖ ( 0-2 ) वर्ष

2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ➖ (2 – 7 ) वर्ष

3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ➖

(7 – 11) वर्ष

4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था➖ ( 12 -18 ) वर्ष

🎯 इइन्द्रियजनित गामक अवस्था (0-2 वर्ष) ➖

1) इस अवस्था को संवेदी पेशीय अवस्था और संवेदी गामक अवस्था भी कहा जाता है |

2) शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना और किसी चीज को पकड़ने लगता है |

3) इस अवस्था में बच्चा अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप प्रकट करता है |

4))इस अवस्था में बच्चे अपने भाव को व्यक्त करते हैं जब बच्चा लगभग 2 वर्ष का होने लगता है तो उसे उस चीज को जो उसे चाहिए उस चीज को दिखा कर अपनी बात कहना चाहता है अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट करता है |

5) शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसे के सामने होता है धीरे धीरे उम्र के साथ-साथ 2 वर्ष की समाप्ति तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति अनुक्रिया करने लगता है |

6) जो दिखाई नहीं दे रहा हैं बच्चों का चिंतन धीरे-धीरे होने लगता है वह तीन चार महीने तक कोईवस्तु सामने से हटाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है |

7) वस्तु का सामने ना होने पर उसका अस्तित्व बना रहना ही वस्तु स्थायित्व कहलाता है |

🎯 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2 – 7 ) वर्ष ➖

1) इस अवस्था में बच्चे की भाषा का विकास प्रारंभ हो जाता है |

2) बच्चे की अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है वह इंद्रियों से नहीं बल्कि अपनी भाषा से विचार व्यक्त करने लगता है |

3) वस्तुओं को पहचाने लगता है वह यह समझने लगता है कि यह गिलास है चम्मच है थाली आदि है|

4) इस उम्र में वस्तुओं में विभेद करना सीख जाता है |

5) 5 वर्ष तक संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है |

6) इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होने पर सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है|

7) इस अवस्था में बच्चा जीव वाद और आत्मकेंद्रित होता है |

जीववाद ➖जीववाद चिंतन में पाए जाने वाला एक दोष होता है जिसमें बच्चा निर्जीव को भी सजीव समझने लगता है |

आत्म केंद्रित ➖यह भी एक प्रकार का दोष होता है क्योंकि सिर्फ अपने विचार को सत्य मानना ही आत्म केंद्रित है जो कि बच्चे को एक दोष है |
जो कि आगे बढ़कर बड़ा रूप ले लेता है इसे स्वलीनता भी कहा जाता है |

7) जीव बाद एवं आत्म केंद्रित 2 – 4 वर्ष की अवधि में पाए जाते हैं |

8) 4 – 7 वर्ष में बच्चा का चिंतन/ तर्क तरीके से अधिक परिपक्व हो जाता है |

🎯 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( 7 – 11) वर्ष ➖

1) इस अवस्था में बच्चा ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया करता है |

2) वस्तु को पहचानने लगता है उसमें विभेदीकरण करना और उनको वर्गीकृत करना सीख जाता है |

3)इस अवस्था में समस्या समाधान का मूर्त रूप निर्मित नहीं हो पाता है |

4) उनकी सोच स्थूल और मूर्त होती है |

5) इस अवस्था के दोष में अमूर्त चिंतन विकसित नहीं हो पाता है चिंतन पूरी तरह से विकसित नहीं होता है |

🎯 अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (2 से 18 ) वर्ष➖

1) वर्ष इस अवस्था में चिंतन लचीला तथा प्रभावी हो जाता है |

2) चिंतन क्रमबद्ध होती है किसी भी चीज को क्रम बद्धता के साथ समझकर करने लगता है |

3) इस अवस्था में बच्चा समस्या का समाधान काल्पनिक रूप से सोच कर करता है और उसका
समाधान प्राप्त कर सकता है |

4) इसमें चिंतन वास्तविक होता है |

5) बालक में विकेंद्रीकरण पूर्णतः विकसित हो जाता है |

अर्थात किसी भी चीज को उचित ढंग से सोचने की क्षमता विकसित हो जाती है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺

“जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत”

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार भागों में विभाजित किया है
1 इंद्रिय जनित गामक अवस्था(sunsary motor stage ) 0 se 2 year

2 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(pre opretional stage 2. se 7 year )

3 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (concreate operational stage 7 se 11year)

4 अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था( formal opratnal stage ). 11 se 18

“इंद्रिय जनित गामक अवस्था”

इसे संवेदी पेशीय अवस्था और संवेदी गामक अवस्था भी कहते हैं

इस अवस्था में बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रिय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है

शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना किसी चीज को पकड़ने लगता है

अपने भाव को रोककर व्यक्त करता है

जो चाहिए उसे दिखा कर अपनी बात कहना चाहता है

शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होता है धीरे धीरे जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है 2 वर्ष की समाप्ति होने तक उन वस्तुओं के प्रति भी अनुप्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही हैं

चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है 3 से 4 महीने तक कोई वस्तु सामने से हटाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है

वस्तु स्थायित्व
वस्तु का सामने ना होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है इसे वस्तु स्थायित्व कहते हैं

” पूर्व संक्रियात्मक अवस्था”
यह अवस्था 2 से 7 वर्ष तक होती हैं
भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है

वस्तुओं को पहचानने लगता है

इस उम्र में बच्चा वस्तुओं में विभेद सीख जाता है

5 वर्ष तक यह संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है

इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते होते वह सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है

जीववाद :- बच्चे निर्जीव को सजीव समझते हैं 2 से 4 साल की अवधि में
आत्म केंद्रित:- इसमें बच्चा सिर्फ अपने विचारों को सत्य मानता है 2 से 7 वर्ष में चिंतन तर्क से पहले से अधिक परिपक्व हो जाता है

” मूर्त संक्रियात्मक अवस्था”
7se 11

यह अवस्था 7 से 11 वर्ष तक होती हैं
इसमें वस्तु को पहचानना विविध करना वर्गीकरण करना बच्चा सीख जाता है

इस अवस्था में ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है

समस्या समाधान का अमूर्त रूप है
स्थूल या मूर्ति होती है

दोस :- 1 अमूर्त विकसित नहीं होती
2 चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होता है

” अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था ”
12 से 18
यह अवस्था 12 से 18 वर्ष तक होती है
इस अवस्था में चिंतन लचीलापन प्रभावी हो जाता है
चिंतन क्रम बद्ध होता है
इस अवस्था में समस्या समाधान काल्पनिक रूप से सोच कर चिंतन कर सकते हैं
चिंतन वास्तविक होती है
बालक में विकेंद्रीकरण पूर्णता विकसित हो जाता है

🙏🙏🙏🙏 Sapana sahu 🙏🙏🙏🙏

🌹 जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत🌹

1. इंद्रियजनित गामक अवस्था Sensory motar stage ( 0 -2) ) वर्ष

2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था Pre – Operational stage ( 2 – 7 ) वर्ष

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था Concrate Operational stage ( 7 -11 ) वर्ष

4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था Formal Operational ( 11 – 18 ) वर्ष

जीन पियाजे ने अपने संज्ञानात्मक विकास जे सिद्धांत को निम्नलिखित 4 अवस्थाओं में वर्गीकृत किया है, जैसे :-

1.🌺 इन्द्रियजनित गामक अवस्था / संवेदी पेशीय अवस्था / संवेदी गामक अवस्था ( 0 – 2 ) वर्ष

👉इसमें बच्चे मानसिक क्रियाओं को इंद्रियजनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करते हैं।

👉शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना एवं किसी चीज को पकड़ने लगता है।

👉अपने भाव को रोकर व्यक्त करता है।

👉जो चाहिए उसे दिखाकर अपनी बात कहना चाहता है।

👉शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उन वस्तुओं का अस्तित्व होता है जो उनके सामने होतीं हैं , धीरे-धीरे 2 वर्ष की समाप्ति होने तक बच्चा उन बच्चों के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही हैं।
[ अतः इसी समय बच्चों में वस्तु स्थायित्व Object permanence का गुण आने लगता है। ]

👉चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है।
3 – 4 माह तक कोई वस्तु सामने से हटाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
वस्तु का सामने न होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है , इसे ही वस्तु स्थायित्व कहते हैं।

2.🌺 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( 2 – 7 ) वर्ष

👉भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है।

👉अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है।

👉वस्तुओं को पहचाने लगता है।

👉बच्चा इस उम्र में वस्तुओं में विभेद करना सीख जाता है।

👉5 वर्ष तक यह संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है।

👉इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु , समाप्त होने तक बच्चा सजीव – निर्जीव में विभेद करने लगता है।

🍁 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था के दोष :-

1.🌲 जीववाद :-

इसमें बच्चा निर्जीव को सजीव समझने लगता है।

2.🌲 आत्मकेंद्रित ( स्वलीनता ) :-

सिर्फ अपने विचारों को सत्य मानता है।

🍁 2 – 4 वर्ष की अवधि में, बच्चों में यह दोष आने लगता है।
🍁 4 – 7 वर्ष में चिंतन / तर्क , पहले ये अधिक परिपक्व हो जाता है।

3.🌺 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( 7 – 11 ) वर्ष

👉ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है।

👉वस्तु को पहचानना , विभेद करना , वर्गीकृत करना सही ढंग से सीख जाता है।

👉समस्या समाधान का अमूर्त रूप विकसित नहीं हो पाता है।

👉सोच स्थूल या सूक्ष्म होती है।

👉मूर्त संक्रियात्मक अवस्था के दोष :-

👉अमूर्त सोच विकसित नहीं होती है।
चिंतन पूरी तरह से विकसित नहीं होता है।

4.🌺 अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( 11 – 18 ) वर्ष

👉चिंतन लचीला और प्रभावी हो जाता है।

👉चिंतन क्रमबद्ध हो जाता है।

👉समस्या समाधान काल्पनिक रूप से सोचकर , चिंतन करके , कर सकता है।

👉चिंतन वास्तविक हो जाता है।

👉बालकों में विकेंद्रीकरण पूर्णतः विकसित हो जाता है।

🌻✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️🌻

🎯पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत🎯

🌼प्याजे ने संज्ञानात्मक विकास में 4 अवस्थाओं का वर्णन किया है जो कि नीचे दिया गया है……..

(1) इंद्रिजनित गामक अवस्था (sensory motor stage):- 0-2 year

(2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (pre-operational stage):-> 2-7 year

(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था concrete operational stage:-> (7-11year)

(4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (formal operational stage):- (11-18 year)

💫इंद्रियजनित गामक अवस्था/ संवेदी पेशीय /संवेदी गामक अवस्था ……..

☘️इसमें बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को केंद्रीय जनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है
☁️शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना ,किसी चीज को पकड़ने लगना लगता है

🌹 अपने भाव को रोककर व्यक्त करता है ।

🍂जो चाहिए उसे दिखा कर अपनी बात कहना चाहता है ।

🌴शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होता है धीरे-धीरे 2 वर्ष की समाप्ति तक बच्चा उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही है इसी को (object permanence) वस्तु स्थायित्व कहते हैं।

💫पूर्व संक्रियात्मक अवस्था :- (2-7year)

☘️भाषा का विकास ठीक से आरंभ हो जाता है
🌾अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा बन जाती है

🌻 वस्तुओं को पहचानने लगता है।

🌹 बच्चा इस उम्र में वस्तु में विभेद करना सीख जाता है ।
5 वर्ष तक संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है।
-> इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परन्तु समाप्त होते-होते वह सजीव निर्जीव में भेद करने लगता है

🍁जीववाद :- इसमें बच्चा निर्जीव को सचिव और सचिव को निर्जीव मान लेते हैं।

🍂आत्म केंद्रित :- इसमें सिर्फ अपने विचारों को सत्य मानते हैं।

🌾जीववाद एवं आत्मकेंद्रित बच्चों में 2 से 4 साल की अवधि में पाया जाता है।

💮4-7 साल में बच्चा चिंतन/ तर्क करने लगता है और पहले से अधिक परिपक्व हो जाते हैं।

🏵️मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( 7-11) :-

🌟ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया चलती है।

⭐वस्तु को पहचान , विभेद करना, वर्गीकृत करना सीख जाता है।

⭐समस्या समाधान का अमृत रूप विकसित नहीं हो पाता है।

⚡दोष:-अमूर्त सोच विकसित नहीं होती है ।
🌖चिंतन पूरी तरह से विकसित नहीं होती है।

⭐अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (12-18year):-

🌾इस अवस्था में बच्चों में चिंतन बहुत ही लचीला एवं प्रभावी हो जाता है।
🌼 चिंतन क्रमबद्ध होती है।

☘️ समस्या समाधान काल्पनिक रूप से सोच कर ,चिंतन कर, कर देता है ।

💫चिंतन वास्तविक होने लगता है।
💐बालक में विकेन्दरण पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है।

🌻🌹🍁🍂💮💮🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार भागों में विभाजित किया है
1 इंद्रिय जनित गामक अवस्था(sunsary motor stage ) 0-2
2 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(pre opretional stage ) 2-7
3 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (concreate operational stage )7-11
4 अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था( formal opratnal stage ). 11 – 18

1.इंद्रिय जनित गामक अवस्था-
इसे संवेदी पेशीय अवस्था और संवेदी गामक अवस्था भी कहते हैं
इस अवस्था में बच्चे अपने मानसिक क्रियाओं को इंद्रियजनित गामक क्रियाओं के रूप में प्रकट करता है
शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर देखना किसी चीज को पकड़ने लगता है
अपने भाव को रोककर व्यक्त करता है।

इशारों के द्वारा किसी वस्तु को लेने के लिए रोता है अर्थात्
जो चाहिए उसे दिखा कर अपनी बात कहना चाहता है।

शुरुआत में बच्चों के लिए सिर्फ उस वस्तु का अस्तित्व होता है जो उसके सामने होता है धीरे धीरे जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है 2 वर्ष की समाप्ति होने तक उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करने लगता है जो दिखाई नहीं दे रही हैं

चिंतन धीरे-धीरे वास्तविक होने लगता है 3 से 4 महीने तक कोई वस्तु सामने से हटाने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है

वस्तु स्थायित्व-वस्तु के सामने न होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है इसे वस्तु स्थायित्व कहते हैं

2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था-

इस अवस्था में भाषा का विकास ठीक से प्रारंभ हो जाता है
वस्तुओं को पहचानने लगता है।अर्थोत् वस्तु स्थायित्व का प्रर्दशन करने लगता है।
इस उम्र में बच्चा वस्तुओं में विभेद या अंतर करना सीख जाता है
5 वर्ष तक यह संप्रत्यय निर्माण अधूरा रहता है।
इस अवस्था के प्रारंभ में तो नहीं परंतु समाप्त होते -होते वह सजीव- निर्जीव में भेद करने लगता है

जीववाद – बच्चे निर्जीव को सजीव समझते हैं (2 से 4 साल की अवधि में)

आत्म केंद्रित- इसमें बच्चा सिर्फ अपने विचारों को सत्य मानता है इसे बाद में स्वालीनता भी बोलते हैं।
जैसे बच्चे का अकेले में गेंद को दीवार से मारकर खेलना किसी के साथ नहीं खेलना।

2 से 7 वर्ष में चिंतन तर्क से पहले से अधिक परिपक्व हो जाता है।

3.मूर्त संक्रियात्मक अवस्था-

इसमें वस्तु को पहचानना ,विवेद करना ,वर्गीकरण करना बच्चा सीख जाता है
इस अवस्था में ठोस वस्तु के आधार पर मानसिक क्रिया होती है
समस्या समाधान का अमूर्त रूप है

दोष-
1 अमूर्त सोच विकसित नहीं होती है।
2 चिंतन पूरी तरह विकसित नहीं होता है

4.अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था-
इस अवस्था में चिंतन लचीला,प्रभावी हो जाता है।
चिंतन क्रम बद्ध होता है।
इस अवस्था में समस्या समाधान काल्पनिक रूप से सोच कर चिंतन कर सकते हैं
चिंतन वास्तविक होती है
बालक में विकेंद्रीकरण पूर्णता विकसित हो जाता है।

Notes by Ravi kushwah

Thinking for CTET and state TET notes by India’s top learners

🔆 चिन्तन( thinking)🔆

चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की एक क्रिया है जिसके द्वारा ज्ञान संगठित होता है इस मानसिक प्रक्रिया में स्मृति कल्पना आदि मानसिक प्रक्रिया सम्मिलित होती हैं।
मनुष्य के सामने कोई न कोई समस्या आती रहती है ऐसी स्थिति में बहुत समस्या का समाधान करने के लिए उपायों के बारे में सोचने लगता है वह इस बात पर विचार करना प्रारंभ कर देता है कि समस्या का समाधान किस प्रकार किया जाए इस प्रकार चिंतन प्रक्रिया आरंभ हो जाती है और समस्या का समाधान होते ही यह प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।

💞 रॉस के अनुसार ➖
चिंतन मानसिक प्रक्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है।

💞 गैरेट के अनुसार ➖
चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है।

💞 मोहिसन के अनुसार ➖
चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है।

🌀 चिन्तन के प्रकार➖
चिंतन कई प्रकार के होते हैं-

1️⃣ मूर्त चिन्तन ➖
यह चिंतन की सरलतम विधि है यह चिंतन प्रक्रिया किसी व्यक्ति वस्तु घटना के प्रत्यक्षीकरण से प्रारंभ होती है जैसे बालक के द्वारा आम को देखने के बाद आम का स्वाद या आम रस की इच्छा जाग्रत हो जाती है यह एक मूर्त चिंतन है इसमें प्रत्यक्ष रूप से सोचना वास्तविक तथ्यों पर विचार मूर्त चिंतन का आधार है।

2️⃣ अमूर्त चिन्तन ➖
अमूर्त चिंतन के लिए वस्तु के संपर्क में आना आवश्यक नहीं है यानी कि इसमें वास्तविकता की जरूरत नहीं होती यह मूर्त चिंतन से श्रेष्ठ चिंतन है प्रतीकों चिन्हों शब्दों के आधार पर चिंतन किया जाता है जैसे लाल रंग के क्रॉस को देखकर बालक प्राथमिक सहायता पर रेड क्रॉस संस्था के बारे में सूचना प्रारंभ कर देता है।

3️⃣ तार्किक चिन्तन ➖
यह सबसे उच्च प्रकार का चिंतन होता है इसमें व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करने के लिए प्रत्यय का प्रयोग करते हुए किसी लक्ष्य तक पहुंचता है उच्च कक्षाओं में अध्ययन को इस प्रकार के चिंतन के विकास का प्रयत्न करना चाहिए इस चिंतन में जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर तर्कपूर्ण ढंग से हल निकालने की प्रक्रिया तार्किक चिंतन है।

4️⃣ सृजनात्मक चिन्तन ➖
इस चिंतन का उद्देश्य नवीनता का सृजन करना है इस चिंतन में नए संबंधों व साहचर्या का वर्णन करते हुए वस्तु घटनाओं एवं परिस्थितियों का विश्लेषण करते हैं। यह पूर्व स्थापित नियमों से प्रतिबंधित नहीं होता है व्यक्ति प्राय समस्याओं का निर्माण कर व उससे संबंधित प्रमाणों को जुटाकर समस्याओं का हल समझाते हैं।

5️⃣ अपसारी चिन्तन ➖
ऐसा चिंतन जिसमें हम किसी भी समस्या के बारे में अलग अलग तरीके से सोचते हैं। इसमें एक ही व्यक्ति समस्या का समाधान खोजने के लिए अलग-अलग विधियों को अपनाता है इसका संबंध सृजनात्मकता से है खुले प्रश्नों पर सोचते हैं। जैसे ➖ भिन्न भिन्न व्यक्तियों से पूछने पर कि ईश्वर एक है इसके अलग अलग उत्तर मिलेंगे और इसकी प्राप्ति के साधन भी अलग अलग तरीके से बताते हैं।

6️⃣ अभिसारी चिन्तन ➖
यह एक ऐसा चिंतन है जिसमें हम किसी भी समस्या के बारे में श्रेष्ठ विचार प्रस्तुत करते हैं यह बुद्धि तथ्यों से संबंधित होता है इसमें किसी भी एक बेहतर तरीके पर विचार किया जाता है जैसे ईश्वर की प्राप्ति के अनेक साधन हैं लेकिन इनमें से मनुष्य एक श्रेष्ठ विचार भक्ति के साधन को अपनाता है।

📝 Notes by ➖

✍️ Gudiya Chaudhary

🏵️ चिंतन🏵️
🌸 (Thinking)🌸

✍️चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है;

✍️किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है;

✍️समस्या समाधान में मदद् करता है;

✍️रास के अनुसार- चिंतन मानसिक क्रिया का ;भावात्मक वा मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है।

✍️गैरेट के अनुसार चिंतन एक प्रकार का अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार होता है जिसमें सामान्य रूप से प्रतीको, विंंबो,विचारों, प्रत्यय ,का प्रयोग किया जाता है।

✍️मोहसिन के अनुसार-चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है।

✍️मूर्त चिंतन

🥧🍕➡️यह चिंतन का बहुत ही सरल रूप है।
➡️इस प्रकार के चिंतन में वस्तु के प्रस्तुत होने पर ही चिंतन कर सकता है।

➡️इसमें बालक किसी वस्तु का भार उसका आकार आदि उस वस्तु के होने पर ही सीख सकता है (प्रत्यक्ष अनुभव होने पर ही सीखेगा)

✍️अमूर्त चिंतन

➡️इस प्रकार के चिंतन वस्तु का प्रस्तुत होना महत्वपूर्ण नहीं होता हैं।

➡️इस प्रकार के चिंतन में भाषा का बहुत बड़ा हाथ होता है क्योंकि बिना भाषा के चिंतन करना मुश्किल हैं;

➡️इस प्रकार के चिंतन से खोज एवं अविष्कारों में सहायता मिलती है (भू वैज्ञानिक जब किसी जगह की खुदाई करवाते हैं तो पहले उस जगह के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करके वा उसके बारे में चिंतन करते हैं कि ये वस्तु इतने वर्षों पूर्व थी क्या आज भी यहा होगी ,होगी तो किस दशा में होगी आदि चीजों का चिंतन करके ही खोज , खुदाई करवाते है।

✍️तार्किक चिंतन- जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संपत्ति से जोड़कर तर्कपूर्ण ढंग से हल निकालने की प्रक्रिया तय की जाती है।

✍️सृजनात्मक चिंतन(Creative Thinking) -किसी ने जीत का निर्माण करना या वस्तु घटनाओं तथा विभिन्न प्रकार की स्थिति की प्रवृत्ति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों की खोज करता है।

✍️अभिसारी चिंतन(convergent Thinking)
➡️बुद्ध बुद्धि
➡️प्रतिभा
➡️किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता है
➡️बंद प्रश्न पर आधारित है

✍️अपसारी चिंतन(Divergent Thinking)
➡️सृजनात्मकता
➡️विभिन्न समाधान खोजने लगता है किसी एक समस्या के लिए
➡️यह खुले प्रश्न पर सोचने की क्षमता देता है

Written by -$hikhar pandey

🌹चिंतन🌹(thinking)

🌻 चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की चिड़िया है किसी लक्ष्य उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है
🌻 समस्या समाधान में मदद करता है
👉ROSS:— चिंतन मानसिक क्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पद से संबंधित क्रिया है
👉 गैरेट:— चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है जिसमें प्रतीकों का प्रयोग होती है
👉 मोहिसन:— चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है

🌹मूर्त चिंतन🌹

प्रत्यक्ष रूप से सोचना वास्तविक तथ्यों पर विचार करना मूर्त चिंतन का आकार है

🌹अमूर्त चिंतन🌹

इसमें वास्तविक की जरूरत नहीं होती इसमें विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं

🌹 तार्किक चिंतन🌹

जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संप्रदाय से जोड़कर हल निकालने की प्रक्रिया तार्किक चिंतन है

🌹 सृजनात्मक चिंतन🌹

किसी नई चीज का निर्माण करना यह वस्तुओं घटनाओं तथा स्थिति की प्रवृत्ति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों का खोज करता है

🌹 अभिसारी चिंतन🌹
👉बुद्धि
👉प्रतिभा
👉किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करना
👉बंद प्रश्न पर आधारित है

🌹 अपसारी चिंतन🌹
👉विभिन्न समाधान किसी एक समस्या के लिए
👉यह खुले प्रश्न पर सोचना की क्षमता देती है

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹Notes by:—sangita bharti🙏

💫🌷 चिंतन (Thinking)🌷💫

चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है, जो किसी लक्ष्य के उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है।

🌹 समस्या समाधान में भी मदद करता है।

🍂🌻राॅस (Ross) के अनुसार÷ चिंतन मानसिक क्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से सम्बन्धित क्रिया है।

🌺🍁गैरेट के शब्दों में÷ चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है, जिसमें प्रतीकों का प्रयोग होता है।

🌿🌹मोहिसन के अनुसार ÷ चिंतन समस्या समाधान सम्वन्धी अव्यक्त व्यवहार है।

🍂☃️मूर्त चिंतन ☃️🍂

प्रत्यक्ष रूप से सोचना, वास्तविक, तथ्यों पर विचार करना,मूर्त चिंतन का आधार है।

🌿🌺 अमूर्त चिंतन 🌺🌿

इसमें वास्तविक की जरूरत नहीं होती है, इसमें विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं।

🍃🌻 तार्किक चिंतन 🌻🍃

जटिल समस्याओं को अलग -अलग मानसिक सम्प्रत्यय से जोड़ कर तर्क पूर्ण ढंग से निकालने की प्रक्रिया है, तथा तार्किक चिंतन है।
इसमें माध्यम से हमें क्यों का जबाव प्राप्त होता है।

🌸🍁🌿 सृजनात्मक चिंतन (Creative Thinking)🌿🍁🌸

किसी नई चीज का निर्माण करना है,यह वस्तुओं घटनाओं, तथा अलग-अलग प्रकार की स्थिति की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए नये-नये सम्वन्धो की खोज करता है।

🌻🍂अभिसारी चिंतन 🍂🌺

☃️बुध्दि से सम्वन्धित है।

🌹 प्रतिभा से सम्बन्धित है।

🌻 किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता है।
🌿यह बन्द प्रश्नों पर आधारित है।

🍂🌻अपसारी चिंतन 🌻🍂

🌹सृजनात्मक से सम्बन्धित है।

🍃 विभिन्न समाधान निकालते हैं।

🌷खुले प्रश्नों पर आधारित है।

🌸🌸Notes by ÷ Babita yadav 🌸🌸

🌸🌸चिंतन➖
संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है किसी उद्देश्य या लक्ष्य के प्रति अग्रसर करता है
🟡 रास के अनुसार ➖ चिंतन मानसिक भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है

🔵 गैरिट के अनुसार➖ चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है

🟢 मोहिसन के अनुसार➖चिंतन समस्या समाधान संबधी अव्यक्त व्यवहार है

🥀 चिंतन के प्रकार

👉🏻 मूर्त चिंतन ➖प्रत्यक्ष रूप से सोचना ,वास्तविक तथ्यों पर विचार करना ,मूर्त चिंतन का आधार है

👉🏻 अमूर्त चिंतन➖ इसमें वास्तविकता की जरूरत नहीं होती इसमें विचारो के माध्यम से तर्क करते है

👉🏻तार्किक चिंतन/विचारक चिंतन➖ ये ऊचे स्तर का चिंतन है जिसका कोई निश्चित लक्ष्य होता है कठिन समस्याओं को अलग अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर तर्क पूर्ण हल निकालने की प्रक्रिया है

👉🏻 सृजनात्मक चिंतन ➖किसी नई चीज का निर्माण करना ,यह वस्तुओं घटनाओताथा स्तिथि की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों की खोज करता है

👉🏻अभिसरी चिंतन ➖ बुद्धि से संबंधित है

🟢 प्रतिभा से संबंधित है

🟡यह बंद अंत प्रश्नों पर आधारित है

🔵यह प्रतिभा से संबंधित है

👉🏻अपसरी चिंतन➖ 🟠सृजनात्मक से संबंधित

🟣विभिन्न समाधान निकलते है

⚫मुक्त अंत वाले प्रश्नों पर आधारित होते है

📝 Notes by

📒 Arti savita

🔆 चिंतन (Thinking) 🔆

चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है एवं चिंता नकारात्मक भाव को जन्म देती है |

चिंतन किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है एवं चिंता पीछे करती है |

किसी समस्या के दोनों पक्ष पर तर्क वितर्क करके उसके आलोचनात्मक पक्षों पर व्यक्ति अपनी सोच लगाता है वह उसका संज्ञानात्मक चिंतन है |

चिंतन हमें किसी समस्या का समाधान खोजने में मदद करता है यदि हमारे चिंतन में भाव नहीं है तो समस्या का समाधान चिंता में बदल सकता है तथा उस समस्या का समाधान खोजा नहीं जा सकता है |

चिंतन के संदर्भ में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं जो कि निम्न है ➖

🔅 राॅस के अनुसार➖

” चिंतन मानसिक क्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है “|

🔅 गैरेट के अनुसार ➖

” चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है जिसमें प्रतीकों का प्रयोग होता है ” |

🔅 मोहिसन के अनुसार➖

” चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्य्वहार है ” |

🔆 चिंतन के प्रकार ➖

1) मूर्त चिंतन

2) अमूर्त चिंतन

3) तार्किक चिंतन

4) सृजनात्मक चिंतन

5) अपसारी चिंतन

6) अभिसारी चिंतन

🎯 मूर्त चिंतन ➖

प्रत्यक्ष रूप से सोचना प्रत्यक्ष तथ्यों पर विचार करना ही मूर्त चिंतन है |

अर्थात जो हमारे सामने हैं उस पर अपनी प्रत्यक्ष सोच के लगाना और उसके आधार पर चिंतन करना है ही मूर्त चिंतन का आधार है |

मूर्त चिंतन में प्रत्यक्ष चीजों पर विचार किया जाता है यहां कल्पनाशीलता का कोई स्थान नहीं रहता है |

🎯 अमूर्त चिंतन ➖

अमूर्त चिंतन इसमें वास्तविकता की आवश्यकता नहीं होती है इसमें विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं |

अमूर्त चिंतन का क्षेत्र व्यापक होता है तथा मूर्त चिंतन का क्षेत्र संकीर्ण होता है क्योंकि अमूर्त का वास्तविक होना बहुत आवश्यक है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि जो हमारा अमूर्त चिंतन है वह वास्तविक ही हो |

🎯 तार्किक चिंतन ➖

जटिल समस्याओं को अलग अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर हल को तर्कपूर्ण ढंग से निकालने की प्रक्रिया है तार्किक चिंतन है |
इसमें हमें क्यों और कैसे का उत्तर मिलता है |

🎯 सृजनात्मक चिंतन ➖

किसी नई चीज का निर्माण करना सृजनात्मकता कहलाती है यह वस्तुओं, घटनाओं या अलग-अलग प्रकार की स्थिति की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों की व्याख्या करता है |
क्योंकि जब भी भी हम सृजनात्मकता की बात करते हैं तो उसमें हमेशा नई चीजों की खोज की जाती है और यही सृजनात्मकता है और इस चिंतन को सृजनात्मक चिंतन कहते हैं |

🎯 अपसारी चिंतन ➖

यह सृजनात्मकता पर आधारित है प्रत्येक समस्या के विभिन्न समाधानो पर सोचते हैं और अलग-अलग प्रकार की सोच लगाते हैं इसमें खुले विचारों पर चिंतन किया जाता है और इसमें खुले प्रश्नों पर विचार किए जाते हैं |

🎯 अभिसारी चिंतन ➖

यह बुद्धि से संबंधित है और प्रतिभा से संबंधित है किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करके प्रतिभा का उपयोग किया जाता है इस प्रकार के चिंतन में रिस्क नहीं लिया जाता है | इसमें बंद अंत वाले प्रश्नों के बारे में चिंतन किया जाता है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🌼🍀🌺🌸🌻🌼🍀🌺🌸🌻🌼🍀🌺🌸🌻🌼🍀🌸🌺
🌼🌼चिंतन(thinking) 🌼🌼
🌼 चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है.।।
🌼किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है
🌼समस्या समाधान में मदद करता है

🌼🌼🌼रॉस के अनुसार–चिंतन मानसिक क्रिया का भावनात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है

🌼🌼 गैरिट के अनुसार- चिंतन अव्यक्त व आदर्श व्यवहार है जिससे प्रतीकों का प्रयोग होता है

🌼 🌼 मोहिसन के अनुसार- चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है

🌼🌼🌼 मूर्त चिंतन — प्रत्यक्ष रूप से सोचना, वास्तविक तथ्यों तथा विचार करना मूर्त चिंतन का आधार है
🌼🌼🌼 अमूर्त चिंतन— इसे वास्तविकता की जरूरत नहीं होती इसमें विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं

🌼🌼🌼तर्किक चिंतन (logical thinking) — जटिल समस्याओं से अलग-अलग मानसिक संप्रत्य से जोड़कर तर्कपूर्ण ढंग से हल निकालने की प्रक्रिया, तार्किक चिंतन कहलाती है

🌼🌼🌼सृजनात्मक चिंतन( creative thinking) — किसी नई चीज का निर्माण करना यह वस्तु ,घटनाओं तथा स्थिति की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों की खोज करता है

🌼🌼🌼अभिसारी और अपसारी चिंतन
(Convergent or divergent thinking) 🌼🌼🌼
🌼🌼 अभिसारी चिंतन( convergent thinking) -किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता है किसी भी जबाब को सीमित शब्दो मे व्यक्त करना जितना पूछा गया बस उतना ही उत्तर देना
यह सीमित चिंतन होता है इसमे अपनी ओर से कोई creativity नही लगाई जाती हैं..उदाहरण के लिए पूछा गया –
Question. -स्वतंत्रता दिवस कब मनाया जाता है
उत्तर- 15 अगस्त

🌼🌼🌼अपसारी चिंतन(divergent thinking) — इसमें बच्चे creative सृजनात्मक होता है इसमें खुले प्रश्न पर सोचते हैं इसमे अपने ideas को व्यक्त कर सकते है.. Ye मुक्त अंत वाले प्रश्न जैसे कि किसी चीज पर निबंध लिखना ,अपनी टिप्पणी देना, इत्यादि और नए नए तरीके से अपनी thinking को व्यक्त कर सकते है!

🌼🌼🌼🌼🌼🌼
By manjari soni🌼

🌸🌸 चिंतन (thinking)
👉 चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है जो किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है।
👉 चिंतन समस्या समाधान में हमारी मदद करता है।
🌺 Ross के अनुसार~’”चिंतन मानसिक क्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है”।
🌺 गैरेट के अनुसार~’चिंतन अव्यक्त एव अदृश्य व्यवहार है जिसमें प्रतीकों का प्रयोग होता है”।
🌺 मोहिसन के अनुसार ~’चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है”।
🌸 मूर्त चिंतन ~प्रत्यक्ष रूप से सोचना, वास्तविक तथ्यों या विचार करना, मूर्त चिंतन का आधार है।
🌸 अमूर्त चिंतन ~इसमें वास्तविकता की जरूरत नहीं होती है इसमें विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं।
🌸 तार्किक चिंतन (logical thinking)~जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर हल निकालने की प्रक्रिया तार्किक चिंतन है।
🌸 सृजनात्मक चिंतन (creative thinking)~किसी नई चीज का निर्माण करना यह वस्तुओं, घटनाओं तथा स्थिति की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों की खोज करता है।
🌸 अभिसारी चिंतन~इसमें बुद्धि, प्रतिभा का प्रयोग किया जाता है यह किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता है।
🌸 अपसारी चिंतन~यह चिंतन सृजनात्मक होता है इसमें विभिन्न समाधान होते हैं किसी समस्या के खुले प्रश्न पर सोचते हैं।
🔸🔹🔸
🌸🌺🌸 ✍️Notes by ☞Vinay Singh Thakur 🌸🌺🌸

🤔चिंतन (thinking)🤔

1 चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है
2 किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करना है
3 समस्या समाधान में मदद करता है

Ross के अनुसार. ” चिंतन मानसिक क्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है”

गैरेट के अनुसार. ” चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है जिसमें प्रतीकों का प्रयोग होता है”

मोहिसन के अनुसार ” चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है”

मूर्त चिंतन:- प्रत्यक्ष रूप से सूचना वास्तविक तथ्य पर विचार करना मूर्त चिंतन का आधार है

अमूर्त चिंतन:- इसमें विचारों की आवश्यकता नहीं होती इसे विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं

तार्किक चिंतन( logical thinking ):- जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर तर्कपूर्ण ढंग से हल निकालने की प्रक्रिया तार्किक चिंतन है

रचनात्मक चिंतन( creative thinking ) :- किसी नई चीज का निर्माण करना यह वस्तुओं घटना और स्थिति की प्रवृत्ति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों को खोज करता है

अभिसारी चिंतन एंड अपसारी चिंतन

अभिसारी चिंतन:- यह बुद्धि प्रतिभा है
यह किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता है
इसमें चिंतन का केवल एक ही मार्ग होता है

अपसारी चिंतन:- सृजनात्मकता को बढ़ाता है
एक समस्या के समाधान विभिन्न तरीके से निकालते हैं

🙏🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏🙏

💧चिंतन (thinking)🎯

💫चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है क्योंकि हम चिंतन ,बुद्धि, संज्ञान ,व्यवहार, मस्तिष्क से करते हैं ।

🔭यह किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करती है।

🌷यह समस्या समाधान में मदद करती है।

🌼🌻Ross के अनुसार :~
चिंतन मानसिक क्रिया का भावनात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है।

🍂🍁गैरेट के अनुसार :~
चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है प्रतीकों का प्रयोग होता है।

🌾🌼मोहिसन के अनुसार :~
चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है।

चिंतन के अलग-अलग प्रकार हैं।

(1) मूर्त चिंतन :~
प्रत्यक्ष रूप से सोचना, वास्तविक तथ्यों पर विचार करना इत्यादि मूर्त चिंतन का आधार हैं।

(2) अमूर्त चिंतन : ~
इसमें वास्तविकता की जरूरत नहीं होती हैं इसमें विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं। अमूर्त चिंतन कहलाते हैं।

(3) तार्किक चिंतन :~
इसमें जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर, तर्कपूर्ण ढंग से हल को निकालने की प्रक्रिया है। तार्किक चिंतन हैं।

🌾🍂🌻,(4)सृजनात्मक चिंतन :~

🌼💐🌴(5) किसी नई चीज का निर्माण करना सृजनात्मक चिंतन कहलाते हैं। यह वस्तुओं, घटनाओं तथा विभिन्न प्रकार की स्थति प्रकृति की व्यख्या करने के लिए नए- नए संबंधों की खोज करता है।

🌾🌻(5)अभिसारी चिंतन :~
यह बुद्धि, प्रतिभा से संबंधित है किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता है। इसमें रिस्क लेने वाली बात नहीं आती है, बिना रिस्क लिए काम पूर्ण रूप से हो जाता हैं।

(6)🌺🌀अपसारी चिंतन :~
ये सृजनात्मक होते हैं तथा विभिन्न समस्याओं का समाधान निकालते हैं कुछ चीजें पर रिस्क उठाना पड़ता है।खूले प्रश्न पर सोचते हैं।

🙏🙏🙏🌻🌴🍂🌹🥀Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏

चिंतन (thinking)

1 चिंतन संज्ञानात्मक व्यवहार की क्रिया है
2 चिंतन किसी लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति अग्रसर करता है
3 चिंतन हमें समस्या समाधान में मदद करता है

*Ross -चिंतन मानसिक क्रिया का भावात्मक पक्ष या मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबंधित क्रिया है*

* गैरेट – चिंतन अव्यक्त एवं अदृश्य व्यवहार है जिसमें प्रतीकों ( बिंबों, विचारों, संप्रत्ययो) का प्रयोग होता है*

*मोहिसन -चिंतन समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है*

चिन्तन के प्रकार-

मूर्त चिंतन- प्रत्यक्ष रूप से सूचना वास्तविक तथ्य पर विचार करना मूर्त चिंतन का आधार है। इसमें हम इंद्रियों की संवेदनात्मक अनुभूति का प्रत्यक्षीकरण करते हैं।

अमूर्त चिंतन- इसमें हम मूर्त चिंतन के समान प्रतयक्षीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें विचारों की आवश्यकता नहीं होती। इसे विचारों के माध्यम से तर्क करते हैं।

तार्किक चिंतन- जटिल समस्याओं को अलग-अलग मानसिक संप्रत्यय से जोड़कर तर्कपूर्ण ढंग से हल निकालने की प्रक्रिया तार्किक चिंतन है।

रचनात्मक चिंतन- किसी नई चीज का निर्माण करना। यह वस्तुओं घटना और स्थिति की प्रवृत्ति की व्याख्या करने के लिए नए नए संबंधों को खोज करता है।

अभिसारी चिंतन- यह बुद्धि, प्रतिभा संबंधित है। इसमें हम बहुविकल्पी प्रश्नो के उत्तर देते हैं।
यह किसी एक बेहतर तरीके से चिंतन करता ह
इसमें समस्या का समाधान निकालने का केवल एक ही मार्ग होता है।
इसमें हम बंद अंत वाले प्रश्न के उत्तर देते हैं।

अपसारी चिंतन- यह सृजनात्मकता को बढ़ाता है।इस प्रकार के चिंतन में हम किसी समस्या के एक से अधिक समाधान पर कार्य करते हैं और जो अच्छा तरीका होता है उसे अपनाते हैं।
यह खुले विचारों वाला होता है
इससे हम खुले अंत वाले प्रश्न के जवाब देते हैं

Notes by Ravi kushwah

Inductive deductive method and progressive education notes by India’s top learners

🌺💥 आगमन विधि💥🌺 (Inductive method) 👉🏼 जब कभी हम बालकों के समक्ष बहुत से तथ्य,उदाहरण या वस्तुएं प्रस्तुत करते हैं और फिर उनसे स्वयं के निष्कर्ष निकलवाने का प्रयास करते हैं, तब हम शिक्षा की आगमन विधि का प्रयोग करते हैं। 👉🏼यह प्रक्रिया लंबी होती है थकान वाली शिक्षण विधि बोलते हैं इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है। 👉🏼 बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि आगमन विधि है। 🎯 उदाहरण➖ नियम 🎯 मूर्त➖ अमूर्त 🎯 ज्ञात➖ अज्ञात 🎯 प्रत्यक्ष➖ प्रमाण 🎯 विशिष्ट➖ सामान्य 🎯 स्थूल➖ सूक्ष्म 💥🌺 निगमन विधि🌺💥 (Deductive method) 👉🏼 निगमन विधि में पहले नियम बता दिया जाता है उसके बाद उदाहरण कराया जाता है। 🎯 नियम➖ उदाहरण 🎯 सूक्ष्म➖ स्थूल 🎯 सामान्य➖ विशिष्ट 🎯 अज्ञात➖ ज्ञात 🎯 प्रमाण➖ प्रत्यक्ष 💥🌺 प्रगतिशील शिक्षा🌺💥 (Progrssive Education) 👉🏼 प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा को अमेरिका के मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी ने दिया। 👉🏼 शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है। 👉🏼 समग्र विकास करना व्यक्तित्व भिन्नता का ध्यान रखना ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए। 👉🏼 बच्चों को परियोजना विधि, समस्या समाधान विधि, क्रियाकलाप विधि से सिखाया जाता है। 💥 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक 4 है।➖ 1-मस्तिष्क और बुद्धि 2-ज्ञान 3-मौलिक प्रवृतियां 4-चिंतन की प्रक्रिया 🎯 मस्तिष्क और बुद्धि➖ मस्तिष्क के तीन रूप होते हैं चिंतन अनुभूति और संकल्प मस्तिष्क एवं बुद्धि मनुष्य की उम्र क्रियाओं के परिणाम है,जो वह दैनिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए करता है। 🎯 ज्ञान➖ज्ञान क्रम का ही परिणाम है क्रम से अनुभव करता है और अनुभव ज्ञान का प्रमुख स्रोत है। 🎯 मौलिक प्रवृतियां➖सभी प्रकार का ज्ञान व्यक्तियों की उन क्रियाओं का फल देता है जो वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष में करता है। 🎯 चिंतन की प्रक्रिया➖चिंतन केवल मनन करने से ही पूर्ण नहीं होता और न ही भावना से उसकी उत्पत्ति होती है चिंतन का कुछ कारण होता है, जिससे मनुष्य सोचना आरंभ करता है। 🌺💥 बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं➖ 🎯 बालकों को स्वयं करके सीखने पर बल दिया जाना चाहिए। 🎯 बालकों को समस्या का समाधान करने का मौका देना चाहिए। 🎯 बालकों की रुचि को ध्यान में रखकर उनका निर्देशन करना चाहिए। 🎯 सामाजिक कार्य कुशलता पर बल देना चाहिए। 🎯 प्रजातांत्रिक रूप से बच्चों को आगे बढ़ाना चाहिए। 🎯 सहयोगी अधिगम योजना बनाना चाहिए। 🎯 प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश बालकों का विकास करना है। 🎯बालकों के व्यक्तित्व का विकास बेहतर हो सके ताकि शिक्षा के द्वारा जनतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की जा सके। 🎯प्रगतिशील शिक्षा के अंतर्गत अनुशासन बनाए रखने के लिए बालकों के स्वाभाविक प्रवृत्तियों को दबाना नहीं चाहिए। 🎯 उनके कार्यों की प्रधानता होनी चाहिए। 🎯 बालकों में खोज विधि से अधिगम करने पर बल देना चाहिए। 🖊️🖊️📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️ 📚आगमन और निगमन विधि📚 (Inductive and deductive method) आगमन विधि( इंडक्टिव मेथड):- इस विधि में पहले उदाहरण दिया जाता है उसके बाद नियम बताए जाते हैं यह विधि बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है यह एक लंबी प्रक्रिया है परंतु यह विधि हमें परिपक्व बनाती हैं उदाहरण 👉 नियम मूर्ति 👉. अमूर्त प्रत्यक्ष 👉प्रमाण ज्ञात 👉 अज्ञात विशिष्ट 👉 सामान्य स्थूल 👉 सूक्ष्म निगमन विधि( डिडक्टिव मेथड):- इस विधि में पहले नियम बता दिए जाते हैं उसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं निगमन विधि हमें स्मार्ट बनाती है नियम से उदाहरण सूक्ष्म से स्थूल सामान्य से विशिष्ट ज्ञात से अज्ञात अमूर्त से मूर्त प्रमाण से प्रत्यक्ष 🗯️🍃 प्रगतिशील शिक्षा🍃🗯️ progressive education इसे अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन डीवी ने दिया शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है व्यक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए परियोजना विधि समस्या समाधान विधि क्रियाकलाप विधि प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक:- 1 मस्तिष्क और बुद्धि चंदन अनुभूति संकल्प 2 ज्ञान 3 मालिक प्रवृत्ति 4 चिंतन की प्रक्रिया बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषता 1 करके सीखने पर बल:- इसमें बच्चों को स्वयं करके सीखने का अनुभव प्राप्त होता है जिससे बच्चा किसी भी चीज को लंबे समय तक याद रख सकता है 2 समस्या समाधान का मौका:- प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को समस्या समाधान करने का मौका दिया जाता है 3 आलोचनात्मक चिंतन पर बल:- प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया जाता है किसी भी विषय के अच्छाई और बुराई दोनों पहलू को देखा जाता है 4 सामाजिक कार्य कुशलता पर बल:- प्रगतिशील शिक्षा में सामाजिक कार्य के प्रति बच्चे अपना प्रदर्शन कुशलतापूर्वक करते हैं 5 सामाजिक दायित्व की शिक्षा:- प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को सामाजिक दायित्व के बारे में बताया जाता है 6 प्रजातांत्रिक शिक्षा:- प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को प्रजातांत्रिक विधि से शिक्षा दी जाती है 7 सहयोगी अधिगम योजना:- प्रगतिशील शिक्षा में जो अधिगम कराया जाता है उसकी योजना और सहयोग किया जाता है 8 लचीला पाठ्यक्रम:- प्रगतिशील शिक्षा में लचीला पाठ्यक्रम होता है इसमें समय के अनुसार बदलाव किया जा सकता है 9 खोज विधि से अधिगम:- प्रगतिशील शिक्षा में खोज विधि से अधिगम कराया जाता है जिससे बच्चों को अन्वेषण करने का मौका मिलता है और बच्चे अपनी सृजनात्मकता को बढ़ाते हैं 10 क्रिया की प्रधानता:- प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों की क्रिया की प्रधानता पर बल दिया जाता है 🙏🙏🙏🙏 sapna sahu🙏🙏🙏🙏 🧸आगमन और निगमन विधि🧸 🪁आगमन विधि:— यह प्रक्रिया लंबी होती है 🎄हम इसे थकान वाले शिक्षा विधि बोलते हैं 🎄इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है 🎄बच्चे के लिए सीखने की सर्वोत्तम विधि है 🎄 आगमन विधि हमें परिपक्व को बनाता है 🌳 इसमें:— 🦋 उदाहरण से नियम 🦋मूर्त से अमूर्त 🦋प्रत्यक्ष से प्रमाण 🦋ज्ञात से अज्ञात 🦋विशिष्ट से सामान 🦋 स्थूल से सूक्ष्म 🪁 निगमन विधि:— निगमन विधि में पहले नियम बता दिए जाते हैं उसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं 🎄अतः हम इसे कह सकते हैं कि निगमन विधि हमें स्मार्ट बनाते हैं 🌳निगमन विधि में 🎄 नियम से उदाहरण 🎄 सूक्ष्म से स्थूल 🎄 सामान्य से विशिष्ट 🎄 अज्ञात से ज्ञात 🎄 अमूर्त से मूर्त 🎄 प्रणाम से प्रत्यक्ष 🌳प्रगतिशील शिक्षा🌳 🧸 इसे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी ने प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा दिया है 🦉शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों में समग्र विकास कराना है 🦉 व्यक्तित्व भिन्नता का ध्यान रखना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए 👉ऐसे में शिक्षक परियोजना विधि, समस्या समाधान विधि ,क्रियाकलाप विधि ,अपना कर बच्चे को प्रगतिशील शिक्षा दे सकते हैं 🦉 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले 4 कारक:— (1)👉 मस्तिष्क और बुद्धि इसके अंतर्गत:– चिंतन/ अनुभूति/ संकल्प/ (2)👉 ज्ञान (3)👉 मौलिक प्रवृत्ति (4)👉चिंतन की प्रक्रिया 🧸🧸 बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं:— (1) करके सीखने पर बल देता है:— इसमें बालक को स्वयं करके सीखने पर जोर दिया जाता है (2) समस्या समाधान का मौका देता है (3) आलोचनात्मक चिंतन पर बल देता है (4) सामाजिक कार्य कुशलता पर बल (5) सामाजिक दायित्व के लिए शिक्षा (6) प्रजातांत्रिक रूप से शिक्षा (7) सहयोगी अधिगम योजनाi (8) लचीला पाठ्यक्रम (9)खोज विधि से अधिगम:— (10) क्रिया का प्रधानता :— 🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄 NOTES BY:—SANGITA BHARTI 🙏 🎯आगमन विधि और निगमन विधि🎯 (Inductive method and deductive method) 🌴आगमन विधि (Inductive method) :~ 🍂यह प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है। 🍂 इसे थकान वाली शिक्षण विधि बोलते हैं , इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है। 🍂यह विधि बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है आगमन विधि में……. 👉उदाहरण -> नियम की ओर 👉मूर्त -> अमूर्त की ओर 👉 प्रत्यय -> प्रमाण की ओर 👉ज्ञात -> अज्ञात की ओर 👉 विशिष्ट -> सामान्य की ओर 👉स्थूल -> सूक्ष्म की ओर होती हैं। 🌻आगमन विधि- परिपक्व बनाती है। 💫 निगमन विधि (deductive method) :~ 👉नियम से उदाहरण की ओर 👉 सूक्ष्मस स्थूल की ओर 👉 सामान्य से विशिष्ट की ओर 👉 अज्ञात से ज्ञात की ओर 👉अमूर्त से मूर्त की ओर 👉 प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर 🥀निगमन विधि में पहले नियम बता देते हैं उसके बाद उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं। ☀️निगमन विधि -स्मार्ट बनाती है। ☀️निगमन विधि से शिक्षक बच्चों को शिक्षा देते हैं। 🌈प्रगतिशील शिक्षण (progressive education) :- 👉इससे संबंधित अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन डीवी है। ☘️शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य, बालकों का समग्र विकास करना है। जैसे :- परियोजना विधि ,समस्या समाधान विधि, क्रियाकलाप विधि इनके महत्वपूर्ण कारक है। 🌾प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक —- (1) मस्तिष्क और बुद्धि – इसके अंदर तीन चीजें होती है। चिंतन, अनुभूति, संकल्पना *चिंतन – किसी भी कार्य के प्रति बच्चे जो अलग अलग तरीके से सोचते हैं वह चिंतन है। *अनुभूति – बच्चे चिंतन करते हैं तथा अपने विचारों से पैदा होने वाली भावनाओं से उत्पन्न होती है। *संकल्प – चिंतन अनुभूति करने के बाद बच्चे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं या उनकी कल्पना करते हैं अपने मस्तिष्क में एक लक्ष्य को निर्धारित करते हैं। यह समय के साथ बदलता है। (2) ज्ञान – चिंतन ,अनुभूति, संकल्प इत्यादि से ज्ञान का निर्माण होता है अगर जिसके पास चिंतन ,अनुभूति, संकल्पना करने की क्षमता नहीं है तो उसका ज्ञान नहीं बढ़ेगा। (3) मौलिक प्रवृत्ति – भोजन, सुरक्षा, आवास, जल इन सब चीजों की संपूर्णता बहुत जरूरी है, बच्चे का भावना पूरा होने पर बच्चे आगे की सोच सकते हैं। (4) चिंतन की प्रक्रिया – चिंतन से डिसाइड करते हैं कि बच्चे कि लक्ष्य किस ओर उन्मुख हो रहे हैं 💫बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषता……. 👉करके सीखने पर बल देते हैं। 👉बच्चों को समस्या समाधान का मौका मिलता है। 👉आलोचनात्मक चिंतन पर बल देते है। 👉सामाजिक कार्य कुशलता पर बल देते हैं। 👉सामाजिक दायित्व के शिक्षा को समझेगा। 👉प्रजातांत्रिक शिक्षा के रूप में आगे बढ़ता है। 👉सहयोगी अधिगम योजना – बाल केंद्रित और प्रगति से होती है। 👉लचीला पाठ्यक्रम 👉खोज विधि से अधिगम 👉क्रिया की प्रधानता – जिससे बच्चा एक्टिव रहे। ,🙏💫💐🌹🥀🌻Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏 1️⃣🏞️आगमन विधि( Inductive method)-उदाहरण से नियम की ओर(Example to Rule)🏞️ 2️⃣🌊निगमन विधि (Deductive method)-नियम से उदाहरण की ओर(Rule to Example)🌊 🏵️आगमन विधि (Inductive method)🏵️ 🌸दिन प्रतिदिन देखकर अनुभव करने के आधार पर (प्रत्यक्ष से प्रमाण पर) भविष्य में होने वाली घटना को पहले ही बता देना। 🧠जैसे÷एक व्यक्ति जेसीबी(JCB machine) खुदाई मशीन को देखता था कि किस प्रकार की क्रिया कर रही है उसी के आधार पर एक दिन उसने अपने मित्र को बताया कि मैं पहले से ही बता सकता हूं कि यह जेसीबी (JCB machine)मशीन कैसे कैसे क्रियाए करेगी , अतः उसने भूतकाल में क्रियाओं को देखा था किस प्रकार खुदाई कर रही है। 🏵️उदाहरण से नियम🏵️ 🏵️मूर्त से अमूर्त की ओर🏵️ 🏵️प्रत्यक्ष को प्रमाण की ओर🏵️ 🏵️ज्ञात से अज्ञात की ओर🏵️ 🏵️विशिष्ट से सामान की ओर🏵️ 🏵️स्थूल से सूक्ष्म की ओर🏵️ 🌸यह प्रक्रिया लंबी होती है जिससे थकान वाली शिक्षण विधि बोलते हैं इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है। 🌊निगमन विधि(Deductive method)🌊 🌸अनुभव की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि भविष्य में होने वाली क्रिया पहले से ही निर्धारित होती है; 🏵️नियम से उदाहरण की ओर🏵️ 🏵️सूक्ष्म से स्थूल की ओर🏵️ 🏵️ सामान्य से विशिष्ट की ओर🏵️ 🏵️अज्ञात से ज्ञात की ओर🏵️ 🏵️ प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर 🌸इसमें पहले नियम बता दिया जाता है उसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं । 🧠जैसे÷ खुदाई मशीन वाले को पहले से ही पता था कि किस प्रकार की क्रिया करने पर मशीन से सही ढ़ंग से खुदाई हो सकेगी । 🎯प्रगतिशील शिक्षा🎯 🌼(Progressive Education)🌼 🌸प्रगतिशील शिक्षा में अमेरिका के मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी का महत्वपूर्ण योगदान है; 🌸शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है व्यक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए। 🌸शिक्षा के लिए ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिसमें हर बच्चे को सामाजिक विकास करने का भरपूर मौका मिले वा अपना विकास अच्छे से कर सके। 🏵️परियोजना विधि का प्रयोग करना;🏵️ 🏵️समस्या समाधान विधि;🏵️ 🏵️क्रिया कलाप विधि;🏵️ 🌈प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक÷ 🌈मस्तिष्क और बुद्धि- मस्तिष्क और बुद्धि के आधार पर आप कितना अधिक सीख सकते हैं और कितनी तीव्रता के साथ और कितने लंबे समय तक याद रख सकते हैं इसका निर्धारण किया जाता है। 🌈ज्ञान- मस्तिष्क, बुद्धि और संकल्प तीनों होगा जब ज्ञान बढ़ेगा अन्यथा नहीं अर्थात यदि किसी क्रिया को अच्छे से हमें करना आता है और कुछ समय बाद उसको करना छोड़ दें तो ज्ञान नहीं बढ़ता है। 🌈मौलिक प्रवृत्ति -व्यक्ति अच्छा भोजन ,अच्छा वस्त्र और समाज में अच्छा सम्मान पाने के लिए अपने जीवन में संघर्ष करता है,उसके द्वारा किये गये संघर्ष से मौलिक भावनाओं पर असर पड़ता है,; 🌈चिंतन की प्रक्रिया-मन में कुछ सोच लेना ही चिंता नहीं होता ना ही मनन मात्र करने से चिंतन होता है; 🌼चिंतन करने का कुछ ना कुछ कारण अवश्य होता है जिसके कारण मनुष्य चिंतन करना शुरू करता है यदि मनुष्य किसी क्रिया को आरंभ करता है और उसकी क्रिया सुचारू रूप से चलती चिंतन की जरूरत नहीं पड़ती किंतु जैसे ही कोई गलती या क्रिया में रुकावट आती है तो चिंतन की जरूरत अवश्य पड़ती है बिना चिंतन और मनन के द्वारा किये गये कार्य में सफलता प्राप्त होने की संभावना अत्यधिक निम्न होती है। 🌈बाल केन्द्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं÷ 🏵️करके सीखने पर बल ;🏵️ 🏵️समस्या समाधान का मौका ;🏵️ 🏵️अलोचनात्मक चिंतन पर बल;🏵️ 🏵️सामाजिक कार्य कुशलता पर बल;🏵️ 🏵️ सामाजिक दायित्व की शिक्षा ;🏵️ 🏵️प्रजातांत्रिक शिक्षा;🏵️ 🏵️ सहयोगी अधिगम योजना ;🏵️ 🏵️लचीला पाठ्यक्रम;🏵️ 🏵️खोज विधि से अधिगम ;🏵️ 🏵️क्रिया की प्रधानता।🏵️ Written by-$hikhar pandey 🔆 आगमन और निगमन विधि (inductive and deductive method) 🔆 📚 आगमन विधि (inductive method)📚 इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है इस विधि में बच्चे थकान महसूस करते हैं इसलिए इसे थकान वाली विधि भी बोलते हैं यह प्रक्रिया लंबी होती है इसमें कई प्रकार के उदाहरण प्रस्तुत कर के नियम बनाया जाता है। इस विधि में बच्चे के सीखने पर बल दिया जाता है यह विधि बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है। 👉 उदाहरण ➖ नियम 👉मूर्त ➖ अमूर्त 👉 प्रत्यक्ष ➖ प्रमाण 👉 ज्ञात ➖ अज्ञात 👉 ‌विशिष्ट ➖ सामान्य 👉 स्थूल ➖ सूक्ष्म ♨️ निगमन विधि (deductive method) ♨️ इस विधि में पहले नियम बना दिए जाते हैं इसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं निगमन विधि हमें स्मार्ट बनाती है। 👉 नियम ➖ उदाहरण 👉 सूक्ष्म ➖ स्थूल 👉 सामान्य ➖ विशिष्ट 👉 अज्ञात ➖ ज्ञात 👉 प्रमाण ➖ प्रत्यक्ष 👉 अमूर्त ➖ मूर्त 🎓✨ प्रगतिशील शिक्षा ✨🎓. (progressive education) 🌸🌸 प्रगतिशील शिक्षा अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी ने दी शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है व्यक्तिगत विभिन्नता ओं का ध्यान रखना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए प्रगतिशील शिक्षा में परियोजना विधि समस्या समाधान विधि क्रियाकलाप विधि आदि आते हैं। 💫 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक ➖ 👉 मस्तिष्क और बुद्धि ➖ चिन्तन/अनुभूति/संकल्प 👉 ज्ञान 👉 मौलिक प्रवृत्ति 👉 चिन्तन प्रक्रिया 📚 बाल केंद्रित शिक्षा और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषता ➖ 1️⃣ करके सीखने पर बल ( learning by doing) ➖ इसमें बच्चों को स्वयं करके सीखने का अनुभव प्राप्त होता है जिससे बच्चा किसी भी चीज को लंबे समय तक याद रख सकता है। 2️⃣ समस्या समाधान का मौका (problem solving)➖ प्रगतिशील शिक्षा में बच्चे को समस्या समाधान करने का मौका दिया जाता है जिसमें बच्चा खुद से करके समस्या का समाधान करता है। 3️⃣ आलोचनात्मक चिन्तन पर बल ➖ प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया जाता है किसी भी विषय के बारे में अच्छाई और बुराई दोनों पक्षों को देखा जाता है। 4️⃣ सामाजिक कार्य कुशलता पर बल ➖ प्रगतिशील शिक्षा में सामाजिक कार्य के प्रति बच्चे अपना प्रदर्शन कुशलतापूर्वक करते हैं। 5️⃣ सामाजिक दायित्व की शिक्षा ➖ प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को सामाजिक दायित्व के बारे में बताया जाता है। बच्चों का समाज के प्रति क्या दायित्व है और उस दायित्व को किस तरह निभाना है यह बताया जाता है। 6️⃣ प्रजातांत्रिक शिक्षा ➖ प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों को प्रजातांत्रिक विधि से शिक्षा दी जाती है। 7️⃣ सहयोगी अधिगम योजना ➖ प्रगतिशील शिक्षा में जो अधिगम कराया जाता है उसमें योजना और सहयोग किया जाता है। 8️⃣ लचीला पाठ्यक्रम ➖ प्रगतिशील शिक्षा में पाठ्यक्रम लचीला होता है इसमें समय के अनुसार बदलाव किया जा सकता है जिससे कि छात्रों की रुचि शिक्षा के प्रति अच्छी रहे और वह अधिक से अधिक शिक्षा ग्रहण कर सके। 9️⃣ खोज विधि से अधिगम ➖ प्रगतिशील शिक्षा में खोज विधि से अधिगम कराया जाता है जिससे बच्चों को अन्वेषण करने का मौका मिलता है और बच्चे अपनी सृजनात्मकता को बढ़ाते हैं और खुद से करके देखते हैं और अनुभव प्राप्त करते हैं। 🔟 क्रिया की प्रधानता ➖ प्रगतिशील शिक्षा में बच्चों की क्रिया की प्रधानता पर बल दिया जाता है इसमें बच्चे खुद से क्रिया करके ज्ञान प्राप्त करते हैं। 📝 Notes by ➖ ✍️ Gudiya Chaudhary 🌼🌼आगमन और निगमन विधि🌼🌼 🌼inductive and deductive method) 🌼1. आगमन विधि (inductive method) — 🌼इस विधि मे उदाहरण से नियम की ओर जाते हैं 🌼आगमन विधि यह प्रक्रिया लंबी होती है 🌼 यह थकान वाली शिक्षा विधि बोलते हैं 🌼 इससे पहले उदाहरण दिया जाता है फिर इससे सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है 🌼 बच्चे के सीखने के लिए सर्वोत्तम विधि है उदाहरण के लिए जब शाम को 7:00 बजे बिजली जाती है हम देखते हैं कि बिजली कट गई फिर हम दूसरे दिन देखते हैं कि 7:00 बजे फिर से बिजली कट गई है यही प्रोसेस 3 दिन 4 दिन तक देखते रहते हैं फिर हम एक specific rule बना देते हैं कि आज शाम 7:00 बजे बिजली कट जाएगी 🌼उदाहरण —— नियम 🌼मूर्त———— अमूर्त 🌼 प्रत्यक्ष ———– प्रमाण 🌼 ज्ञात ———– अज्ञात 🌼विशिष्ट ———- सामान्य 🌼स्थूल ————— सूक्ष्म 🌼🌼निगमन विधि (deductive method) 🌼🌼 इस विधि में पहले नियम बता दिए जाते हैं उसके बाद उदाहरण दिए जाते हैं यह विधि हमे smart बनाती है 🌼नियम ——उदाहरण की ओर 🌼सूक्ष्म ——- स्थूल की ओर 🌼सामान्य —— विशिष्ट की ओर 🌼 अज्ञात —– ज्ञात की ओर 🌼मूर्त ——- अमूर्त की ओर 🌼प्रमाण —– प्रत्यक्ष के ओर 🌼🌼 उदाहरण के लिए जब बिजली विभाग से एक मैसेज आता है कि आज शाम 7:00 बजे बिजली कट जाएगी तो यह एक रूल हुआ और जब यह धीरे-धीरे देखते हैं कि शाम 7:00 बजे बिजली कट जाती है तो यह उसका उदाहरण देखने को मिलता है 🌼🌼प्रगतिशील शिक्षा (progressive education)🌼🌼 🌼इसे अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन डीवी ने दिया था 🌼शिक्षा एक मात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है 🌼व्यक्ति विभिन्नता को ध्यान रखना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रहे Ex. -परियोजना विधि, समस्या समाधान विधि ,समस्या समाधान विधि, क्रियाकलाप विधि 🌼🌼🌼प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक निम्नलिखित हैं— 🌼1. मस्तिष्क और बुद्धि –इसके अंतर्गत चिंतन करना ,अनुभूति करना, संकल्प करना इत्यादि आता है 🌼2. ज्ञान 🌼3. मौलिक प्रगति 🌼4.चिंतन की प्रक्रिया 🌼🌼बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं — 🌼1.करके सीखने पर बल — इसमें बच्चों को करके सीखने पर बल दिया जाता है कि वह हर चीज स्वयं करके सीखे!! 🌼2.समस्या समाधान का मौका – इसमें बच्चे को स्वयं से समस्या समाधान करने का मौका दिया जाता है जिससे बच्चे अपनी संस्याओ का समाधान कर सके!! 🌼3.आलोचनात्मक चिंतन पर बल– इसमें आलोचनात्मक चिंतन पर बल दिया जाता है ताकि बच्चा स्वम को जान सके , 🌼4.सामाजिक कुशलता पर बल — इसमें बच्चों की सामाजिक को कुशलता पर बल दिया जाता है जिससे कि बच्चे सामाजिक चीजों को समझ सकें !! 🌼5. सामाजिक दायित्व की शिक्षा- इसमें बच्चों को सामाजिक दायित्व की शिक्षा दी जाती है जिससे कि वे अपने कर्तव्यों को निष्ठा पूर्वक पूर्ण कर सकें! 🌼6. प्रजातांत्रिक शिक्षा – को प्रजातांत्रिक शिक्षा देनी चाहिए जिससे कि उन्हे अच्छे और बुरे की समझ हो सके! 🌼7.सहयोगी अधिगम योजना- इसमें सहयोग अधिगम होना चाहिए जिससे कि बच्चे के अंदर एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना आ सके।। 🌼8.लचीला पाठ्यक्रम -बच्चे को पढ़ाने वाला पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए जिससे कि बच्चों को समझने में आसानी हो ।। 🌼9.खोज विधि से अधिगम- बच्चे को स्वम् से चीजों को करना चाहिए छोटी छोटी चीजों की खोज करने देना चाहिए जिससे बच्चा creative ho सके.. ।। 🌼10. क्रिया की प्रधानता- बच्चे को क्रिया करने देना चाहिये जिससे बच्चा कोई भी कार्य करे तो उसका प्रोत्साहन करना 🌼🌼🌼🌼 🌼by manjari soni 💫आगमन और निगमन विधि💫 🍂 आगमन विधि 🍂 आगमन विधि की प्रक्रिया लंबी होती है। इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत प्रस्तुत किया जाता है । इसे थकान वाली शिक्षण भी कहा जाता है। बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है 🌹 उदाहरण – नियम 🍃मूर्त – अमूर्त 🍂 प्रत्यक्ष – प्रमाण 🌻 ज्ञात – अज्ञात 🌿 विशिष्ट – सामान्य 🌺 स्थूल – सूक्ष्म 🌸☃️निगमन विधि ☃️🌸 निगमन विधि में पहले नियम बताए दिये जाते हैं उसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं 🌷 नियम – उदाहरण ☃️ सूक्ष्म – स्थूल 🌻 सामान्य – विशिष्ट 🍁 अज्ञात – ज्ञात 🌹 अमूर्त – मूर्त 🍂 प्रमाण – प्रत्यक्ष 💥🌻 प्रगतिशील शिक्षा ( Progressive Education)🌻💥 इसे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जांन डीवी है। शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है। व्यक्तिगत विभिन्नता का ध्यान रखना है। परियोजना विधि , समस्या समाधान विधि और क्रियाकलाप विधि आदि इसमें आते हैं। 🌺🍁 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक🍁🌺 🌀 मस्तिष्क और वुध्दि ÷ चिंतन, अनुभूति, संकल्प 🍂 ज्ञान 🌻 मौलिक प्रवृत्ति 🌺 चिंतन की प्रक्रिया ☃️🌿🌹बालकेन्द्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषता 🌹🌿☃️ 🍂करके सीखने पर बल 🌲 समस्या समाधान का मौका 🍃 आलोचनात्मक चिंतन पर बल 🌹 सामाजिक कार्यकुशलता पर बल 🌻 सामाजिक दायित्व की शिक्षा 🌸 प्रजातांत्रिक शिक्षा 🌺 सहयोगी अधिगम योजना 🍁 लचीला पाठ्यक्रम 🌷खोज विधि से अधिगम 🌿 क्रिया की प्रधानता Notes by ÷ Babita yadav 🌸 आगमन और निगमन विधि आगमन विधि – इस विधि में पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिध्दांत प्रस्तुत किए जाते है इस विधि को थकान वाली विधि भी कहते कई क्योंकि बच्चे थकान महसूस करते है यह प्रक्रिया लबी चलती है इस विधि में सिखाने पर बल दिया जाता है यह विधि बच्चो के सीखने की अच्छी विधि है ,👉 उदाहरण से नियम 👉 मूर्त से अमूर्त 👉ज्ञात से अज्ञात 👉 प्रत्यक्ष से प्रमाण 👉 विशिष्ट से सामान्य 👉स्थूल से सूक्ष्म 🌸 निगमन्न विधि🌸 इस विधि में पहले नियम बता दिए जाते है बाद में उदाहरण दिए जाते है यह विधि उच्च कक्षाओं के लिए है 👉नियम से उदाहरण 👉 अज्ञात से ज्ञात 👉 सूक्ष्म से स्थूल 👉सामान्य से विशिष्ट 👉प्रमाण से प्रत्यक्ष 🌸 प्रगतिशील शिक्षा🌸 अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जोन डी वी ने ये शिक्षा डी इसका एक मात्र उद्देश्य बालको का समग्र विकास करना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रहा सके इस शिक्षा में परियोजना विधि समस्या समाधान विधि क्रिया कलाप आदि आते है 💮प्रगतिशील शिक्षा में योगदान देने वाली करके➖ 1️⃣ मस्तिष्क और बुद्धि ➖चिंतन , अनुभूति , संकल्प 2️⃣ ज्ञान➖ 3️⃣मौलिक प्रब्रती➖ 4️⃣चिंतन प्रक्रिया➖ 🌸 बल केंद्रित शिक्षा और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं➖ 1️⃣ करके सीखने पर बल 2️⃣ समस्या समाधान का मौका 3️⃣आलोचनात्मक चिंतन पर बल 4️⃣सामाजिक कार्य कुशलता पर बल 5️⃣सामाजिक दायित्व की शिक्षा 6️⃣प्रजातांत्रिक शिक्षा 7️⃣सहयोगी अधिगम योजना 8️⃣लचीला पाठ्यक्रम 9️⃣खोज विधि से अधिगम 🔟क्रिया की प्रधानता 📝 Notes by 📚Arti savita : 🌸 नुभूति , संकल्प 2️⃣ ज्ञान➖ 3️⃣मौलिक प्रवृति➖ 4️⃣चिंतन प्रक्रिया➖ 🌸 बाल केंद्रित शिक्षा और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं➖ 1️⃣ करके सीखने पर बल 2️⃣ समस्या समाधान का मौका 3️⃣आलोचनात्मक चिंतन पर बल 4️⃣सामाजिक कार्य कुशलता पर बल 5️⃣सामाजिक दायित्व की शिक्षा 6️⃣प्रजातांत्रिक शिक्षा 7️⃣सहयोगी अधिगम योजना 8️⃣लचीला पाठ्यक्रम 9️⃣खोज विधि से अधिगम 🔟क्रिया की प्रधानता 📝 Notes by 📚Arti savita : 🌸 📚Arti savita आगमन और निगमन विधि आगमन विधि- यह विधि अरस्तू ने दी है। इस विधि में पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत या नियम को प्रस्तुत किया जाता है बच्चों के लिए सीखने की सर्वोत्तम विधि है क्योंकि बच्चा इसमें स्वयं अनुभव करके, प्रत्यक्ष जान कर सीखता है और प्रत्यक्ष अनुभव ज्यादा स्थाई होता है। इस विधि में उदाहरण से नियम की ओर मूर्त से अमूर्त की ओर प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर ज्ञात से अज्ञात की ओर विशिष्ट से सामान्य की ओर स्थूल से सूक्ष्म की ओर अध्ययन कराया जाता है। क्योंकि इस विधि में हम लंबे समय तक अनुभव करते हैं तो यह काफी लंबी प्रक्रिया होती है इसलिए इसे हम थकान वाली शिक्षण विधि बोलते हैं। शिक्षकों के लिए यह कठिन विधि है। निगमन विधि- यह विधि भी अरस्तु के द्वारा दी गई। इस विधि में शिक्षक के द्वारा पहले नियम को बताया जाता है फिर उदाहरण दिया जाता है शिक्षकों के लिए यह आसान विधि हैं। इस विधि में नियम से उदाहरण की ओर सूक्ष्म से स्थूल की ओर सामान्य से विशिष्ट की ओर अज्ञात से ज्ञात की ओर अमूर्त से मूर्त की ओर प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर अध्ययन कराया जाता है यह विधि विज्ञान और गणित शिक्षण के लिए महत्वपूर्ण विधि है। इस विधि में समय कम लगता है। लेकिन इस विधि से बालकों में रटने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। प्रगतिशील शिक्षा- प्रगतिशील शिक्षा एक शैक्षिक आंदोलन है इसके जनक जाॅन डी वी है। प्रगतिशील शिक्षा में, शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है इसमें व्यक्तिगत विभिन्नता का ध्यान रखते हैं ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए। इसमें परियोजना विधि, समस्या समाधान विधि ,क्रियाकलाप विधि अर्थात उन विधियों पर जोर दिया जाता है जिसमें बालक सक्रिय रहता है ,बालक स्वयं करके सीखता है। प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक- मस्तिष्क और बुद्धि- हम जो भी कार्य करते हैं अपनी बुद्धि और मस्तिक से के प्रयोग से करते हैं। इसमें हमारा किसी समस्या पर चिंतन ,उस पर अनुभूति और संकल्प जुड़ा होता है। ज्ञान- व्यक्ति जो कुछ भी सीखता है अपने अनुभव के आधार पर सीखता है और व्यक्ति का संपूर्ण ज्ञान अपने अनुभव पर आधारित होता है। मौलिक प्रवृति- हम जो भी सीखते हैं हमारी मौलिक या सहज प्रवृत्ति के अनुसार सिखते है। चिंतन की प्रक्रिया- हम वातावरण से विभिन्न स्रोतों के माध्यम से सूचना या ज्ञान या जानकारी को प्राप्त करते हैं फिर उसको मस्तिष्क में संगठित करके अपनी मानसिक योग्यता या चिंतन शक्ति के द्वारा उस पर चिंतन मनन या विचार मंथन या विश्लेषण करते हैं और जो जरूरी है उसे अपनाते हैं और जो जरूरी नहीं है उसे रहने या छोड़ देते हैं। बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषता करके सीखने पर बल समस्या समाधान का मौका आलोचनात्मक चिंतन पर बल सामाजिक कार्य कुशलता पर बल सामाजिक दायित्व की शिक्षा प्रजातांत्रिक शिक्षा सहयोगी अधिगम योजना लचीला पाठ्यक्रम खोज विधि से अधिगम क्रिया की प्रधानता। Notes by Ravi kushwah 🔆आगमन और निगमन विधि➖ 🎯 आगमन विधि➖ यह विधि करके सीखने पर बल देती है लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी होती है इसे हम थकान वाली शिक्षण विधि भी कहते हैं इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है | फिर सिद्धांत प्रस्तुत किए जाते हैं बच्चों के सीखने की यह एक सर्वोत्तम विधि है क्योंकि इसमें बच्चे स्वयं अवलोकन करके उसका अनुभव करते हैं | यह बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है इस विधि के जनक अरस्तु को माना जाता है | इस विधि के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं जो कि निम्न है ➖ 1) उदाहरण से नियम की ओर | अर्थात पहले उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं फिर उदाहरणों के अनुसार एक नियम बनाया जाता है | 2) मूर्त से अमूर्त की ओर | अर्थात पहले मूर्त चीजो को देखकर उन का अवलोकन करते हैं फिर उसके अनुसार हम उस मूर्त चीज से अमूर्त की ओर चलते हैं | 3) प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर | अर्थात किसी प्रत्यक्ष समस्या का हल खोजकर उसका प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है | 4) ज्ञात से अज्ञात की ओर | अर्थात ज्ञात चीजों के आधार पर ही अज्ञात चीजों का पता लगाया जाता है | 5) विशिष्ट से सामान्य की ओर | अर्थात बहुत सारे विशिष्ट विशिष्ट उदाहरणों के अनुसार हम चीजों का अवलोकन करते हैं और उसके अनुसार एक सामान्य सा नियम बनाया जाता है | 6) स्थूल से सूक्ष्म की ओर | अर्थात बहुत से बहुत से बड़े-बड़े उदाहरणों की सहायता से एक छोटे से नियम को सामान्यीकृत किया जाता है | 🎯 निगमन विधि ➖ इस विधि में पहले ही नियम बता दिए जाते हैं उसके बाद उदाहरण दिया किए जाता हैं यह विधि भी कक्षा शिक्षण की एक महत्वपूर्ण विधि है | यह 1) नियम से उदाहरण की ओर चलती है | 2) सूक्ष्म से स्थूल की की ओर | 3) सामान्य से विशिष्ट की ओर | 4) अमूर्त से मूर्त की ओर | 5) प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर| 6) अज्ञात से ज्ञात की ओर | निगमन विधि व्यक्ति को समझदार बनाती है जबकि आगमन विधि परिपक्व बनाती है | 🔆 प्रगतिशील शिक्षा ➖ प्रगतिशील शिक्षा को विकसित करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन डीवी है | प्रगतिशील शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है | बालकों के समग्र विकास के लिए प्रगति होना जरूरी है हर व्यक्ति की वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को बच्चे की प्रगति पर ध्यान देना अत्यावश्यक है | इसलिए शिक्षक को बच्चे का समग्र विकास करना है उनकी वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखना है उनका सम्मान करना है ताकि कोई बच्चे पीछे ना रह जाए इसके अंतर्गत शिक्षक बच्चों को सिखाने में परियोजना विधि, समस्या समाधान विधि, क्रियाकलाप विधि, आदि का उपयोग कर सकता है ताकि बच्चे सीख सके क्योंकि बच्चे करके सीखते हैं तो उनका ज्ञान स्थाई हो जाता है | 🎯 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक ➖ 1) मस्तिष्क और बुद्धि ➖ प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बुद्धि अलग-अलग होती है वह अलग-अलग क्षेत्र में अपना मस्तिष्क है अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है इसके अंतर्गत मस्तिष्क और बुद्धि के तीन भेद है चिंतन ,अनुभूति ,संकल्प | जैसी हमारी अनुभूति रहेगी वैसा हमारा चिंतन और मन संकल्पित होगा | 2) ज्ञान ➖ जैसा हमारा चिंतन, अनुभूति और संकल्प होगा ज्ञान भी वैसा ही रहेगा यदि किसी कार्य के प्रति अनुभूति , चिंतन या संकल्प नहीं है तो प्रगतिशील शिक्षा हो नहीं सकती | 3) मौलिक प्रवृत्ति ➖ जैसी हमारी मौलिक प्रवृत्ति होती है वैसे ही हमारी भावनाएं भी प्रकट होती हैं क्योंकि मौलिक प्रवृत्ति ही भावनाओं को जन्म देती है और प्रगतिशील शिक्षा में मौलिक प्रवृत्ति की एक बहुत ही बड़ी भूमिका है | 4) चिंतन की प्रक्रिया ➖ हमारी सोच प्रगति को बढ़ावा देती है जैसे मेरी सोच रहेगी वैसे ही हमारी प्रगति होगी | क्योंकि एक स्वस्थ मन में ही अच्छे चिंतन का विकास होता है और चिंतन की प्रक्रिया लक्ष्य को निर्धारित करती है | 🔆 बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं ➖ 🎯 करके सीखने पर बल ➖ बाल केंद्रित शिक्षा और प्रगतिशील शिक्षा में बच्चे को करके सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है जिससे बच्चे का ज्ञान स्थाई और सुदृढ़ होता है | 🎯 समस्या समाधान का अवसर ➖ इसमें बच्चे को अपनी समस्या समाधान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे वे अपनी समस्या को स्वयं हल कर सकते हैं जिससे उनमें खोज प्रवृत्ति का विकास होता है | 🎯 आलोचनात्मक चिंतन पर बल ➖ इसमें बच्चे को किसी समस्या के आलोचनात्मक चिंतन करने पर बल दिया जाता है इसके अंतर्गत वह समस्या के दोनों सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष को देखते हुए उस पर अपनी राय प्रस्तुत करते हैं | 🎯 सामाजिक कार्य कुशलता पर बल ➖ इसके माध्यम से बच्चे में सामूहिक क्रियाकलाप के द्वारा शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता है जिससे उनमें सामाजिक कार्य की भावना विकसित होती है तथा एक दूसरे के साथ सहगामी अंतः क्रिया स्थापित की जाती है 🎯 सामाजिक दायित्व की शिक्षा ➖ क्योंकि इसमें बच्चे सामूहिक कार्य भी करते हैं जिससे उनमें समूह के सदस्यों के प्रति और समूह के प्रति कुछ दायित्व होते हैं जिनका वह निर्वहन करता है इससे उनमें सामाजिक दायित्व की भावना का विकास होता है | 🎯 प्रजातांत्रिक शिक्षा ➖ प्रजातांत्रिक शिक्षा में बच्चे और शिक्षक दोनों सक्रिय अधिगम का कार्य करते हैं दोनों सक्रिय रहते हैं प्रत्येक बच्चे को करके सीखने का अवसर दिया जाता है | 🎯 सहयोगी अधिगम योजना ➖ इसमें बच्चे एक-दूसरे के साथ अंतः क्रिया करते हैं जिससे उनमें सहयोग की भावना विकसित होती है तथा उनमें सहयोगी अधिगम का विकास होता है बच्चे अपने समूह में एक दूसरे की कमियों और उनकी अच्छाइयों को खोज कर उनको सुधारने की कोशिश करते हैं | 🎯 लचीला पाठयक्रम ➖ बाल केंद्रित शिक्षा और प्रगतिशील शिक्षा में पाठ्यक्रम को लचीला बनाया जाता है जिससे बच्चे उसको अधिक आसानी ग्रहण कर पाए क्योंकि यदि पाठ्यक्रम लचीला नहीं होगा कठोर होगा तो बच्चे को अधिगम करने में समस्या भी उत्पन्न हो सकती है | 🎯 खोज विधि से अधिगम ➖ इसमें बच्चे को खोज विधि के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती है क्योंकि बच्चे स्वयं करके सीखते हैं और उसको स्वयं अनुभव करते हैं तो उनके अनुभव में स्थिरता आती है तथा उनका ज्ञान अधिक स्थाई होता जाता है | 🎯क्रिया की प्रधानता ➖ इसमें बच्चों को क्रिया करने पर बल दिया जाता है जब तक बच्चे कुछ करेंगे नहीं कुछ सीखेंगे नहीं इसलिए शिक्षकों को यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि बच्चे निष्क्रिय तो नहीं है यदि बच्चे निष्क्रिय होंगे तो उनका अधिगम सही प्रकार से नहीं हो पाएगा और वे पीछे हो जाएंगे इसलिए बच्चे को क्रियाशील होना आवश्यक है और यही प्रगतिशील शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है कि बच्चे की प्रगति हो | 𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚 🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸🌺🌻🌼🍀🌸 🌺 आगमन विधि और निगमन विधि 🌺 Inductive Method & Deductive Method 🌲 आगमन विधि Inductive Method :- यह प्रक्रिया लंबी होती है , अतः इसे हम थकान वाली शिक्षण विधि बोलते हैं। इसमें पहले उदाहरण दिए जाते हैं फिर सिद्धांत (नियम) प्रस्तुत किए जाते हैं। यह बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है। आगमन विधि परिपक्व बनाती है। उदाहरण 👉 नियम मूर्त 👉 अमूर्त प्रत्यक्ष 👉 प्रमाण ज्ञात 👉 अज्ञात विशिष्ट 👉 सामान्य स्थूल 👉 सूक्ष्म 🌲 निगमन विधि Deductive Method :- निगमन विधि में पहले नियम बता दिए जाते हैं उसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं। निगमन विधि हमें स्मार्ट सोच वाला बनाती है। नियम 👉 उदाहरण सूक्ष्म 👉 स्थूल सामान्य 👉 विशिष्ट अज्ञात 👉 ज्ञात अमूर्त 👉 मूर्त प्रमाण 👉 प्रत्यक्ष 🌲🌹 प्रगतिशील शिक्षा 🌹🌲 Progressive Education 👉प्रगतिशील शिक्षा के जनक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ” जॉन डी. वी. ” है। 👉शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है। 👉व्यक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखना है ताकि कोई भी बच्चा शैक्षणिक रूप से पीछे ना रह जाए। निम्नलिखित विधियों के आधार पर बच्चों को प्रगतिशील शिक्षा के अनुसार पर शैक्षणिक व्यवस्था दी जा सकती है :- 🌻 परियोजना विधि 🌻 समस्या समाधान विधि 🌻 क्रियाकलाप विधि 🌲🌹 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक 🌹🌲 1. 🌷 मस्तिष्क और बुद्धि :- प्रत्येक बच्चे में मस्तिष्क (दिमाग) और बुद्धि भिन्न-भिन्न प्रकार से होती है और इसी भिन्नता के आधार पर ही बच्चे अलग अलग प्रकार से अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं। इसमें मस्तिष्क और बुद्धि को तीन प्रकार से बताया है, जैसे :- चिंतन / अनुभूति / संकल्प बच्चों में ज्ञान , उनके चिंतन, अनुभूति और संकल्प के आधार पर ही विकसित होता है। 2. 🌷 ज्ञान :- बच्चे अपनी बुद्धि, चिंतन कौशल आदि से अपने ज्ञान का विकास करते हैं। 3. 🌷. मौलिक प्रवृत्ति :- बच्चों में मौलिक प्रवृत्ति ही प्रगतिशील शिक्षा को बढ़ाती है। अपनी मौलिक प्रवृतियों से ही बच्चे अपनी भावनाओं का विकास और अनुभव (अहसास) करने लगते हैं, अपनी मौलिक प्रवृत्ति से ही अपने चिंतन कौशल , ज्ञान का अनुभव करते हैं। 4. 🌷 चिंतन की प्रक्रिया :- बच्चों को अपने कार्य, अपने कर्तव्यों के बारे में चिंतन मनन करना चाहिए और सकारात्मक चिंतन प्रक्रिया को अपनाना चाहिये। 🌲🌺 बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं :- 1. करके सीखने पर बल 2. समस्या समाधान का मौका 3. आलोचनात्मक चिंतन पर बल 4. सामाजिक कार्य कुशलता पर बल 5. सामाजिक दायित्व के लिए शिक्षा 6. प्रजातांत्रिक शिक्षा 7. सहयोगी अधिगम योजना 8. लचीला पाठ्यक्रम 9. खोज विधि से अधिगम 10. क्रिया (काम) करने की प्रधानता। 🌻✒️ Notes by- जूही श्रीवास्तव✒️ ✒️🌻 🏵️ आगमन और निगमन विधि 🏵️ Inductive method and deductive method 🏵️ आगमन विधि— यह प्रक्रिया लंबी होती है इसमें पहले उदाहरण दिया जाता है फिर सिद्धांत या नियम प्रस्तुत किया जाता है। यह विधि बच्चों के सीखने की सर्वोत्तम विधि है 👉 आगमन विधि— 🔸उदाहरण—–नियम 🔹 मूर्त—–अमूर्त 🔸 प्रत्यक्ष—–प्रमाण 🔹 ज्ञात—–अज्ञात 🔸 विशिष्ट—–सामान्य 🔹 स्थूल—–सूक्ष्म 🏵️ निगमन विधि — निगमन विधि में पहले नियम बता दिए जाते हैं उसके बाद उदाहरण निकाले जाते हैं 👉 निगमन विधि— 🔹 नियम—–उदाहरण 🔸 सूक्ष्म—–स्थूल 🔹 सामान्य—–विशिष्ट 🔸 अज्ञात—–ज्ञात 🔹 अमूर्त—–मूर्त 🔸 प्रमाण—–प्रत्यक्ष 👉 प्रगतिशील शिक्षा(progressive education) के जनक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी हैं। 👉 शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है। 👉 प्रगतिशील शिक्षा में व्यक्तिगत विभिन्नता ओं का ध्यान रखना है ताकि कोई बच्चा पीछे ना रह जाए। 🔹 निम्नलिखित विधियों के आधार पर बच्चों को प्रगतिशील शिक्षा दी जा सकती है— 🔹 परियोजना विधि 🔸 समस्या समाधान विधि 🔹 क्रियाकलाप विधि 👉 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले कारक— 1️⃣ मस्तिष्क और बुद्धि~ प्रत्येक बच्चे में मस्तिष्क और बुद्धि अलग-अलग प्रकार की होती है इसी भिन्नता के आधार पर बच्चे अलग-अलग प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करते हैं •इसके अंदर तीन रूप आते हैं चिंतन, अनु अनुभूति, संकल्प 2️⃣ ज्ञान~ बच्चे अपने बुद्धि और चिंतन के आधार पर अपने ज्ञान का विकास करते हैं 3️⃣ मौलिक प्रवृत्ति~ बच्चों में मौलिक प्रवृत्ति के माध्यम से ही प्रगतिशील शिक्षा का विकास होता है के माध्यम से ही बच्चों के अंदर चिंतन कौशल ज्ञान का अनुभव तथा समझ स्थापित होती है 4️⃣ चिंतन की प्रक्रिया~ चिंतन के माध्यम से ही बच्चे अपने कर्तव्यों का पालन कर पाते हैं तथा अपने अंदर समझ स्थापित कर पाते हैं 👉 बाल केंद्रित और प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं—- 1️⃣ करके सीखने पर बल 2️⃣ समस्या समाधान का मौका मिलता है 3️⃣ आलोचनात्मक चिंतन पर बल 4️⃣ सामाजिक कार्यकुशलता पर बल 5️⃣ सामाजिक दायित्व की समझ 6️⃣ प्रजातांत्रिक रूप से बच्चा आगे बढ़ता है 7️⃣ सहयोगी अधिगम योजना 8️⃣ लचीला पाठ्यक्रम 9️⃣ खोज विधि से अधिगम 🔟 क्रिया (कार्य) करने की प्रधानता 🔹🔸🔹 🏵️🏵️🏵️✍️ Notes by~Vinay Singh Thakur

Adaptation assimilation accommodation it is easy notes by India’s top learners

🌹जीन पियाजे
🌹 कोहलबर्ग
🌹वाइगोत्सकी

🌷 मानव के वृद्धि विकास के अलग अलग आयाम है
🌷 जीन पियाजे वाइगोत्सकी संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं
🌷 कोहल बर्ग नैतिक विकास की बात करते हैं

🌹 जीन पियाजे का सिद्धांत🌹

:— जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे
:— अल्फार्ड देने के साथ बुद्धि परीक्षण पर काम शुरू किया था
:— बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया
:— संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रतिपादित किया

(बालक)

(चिंतन) ( खोज)
⬇️
परिपक्वता. + अनुभव
⬇️. ⬇️
Age. Experience

🌷 बालक में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने या खोज करने की शक्ति ना सिर्फ परिपक्वता के स्तर पर निर्भर करती है ना सिर्फ अनुभवों पर बल्कि दोनों में अंतर क्रिया पर निर्भर करती है

🌹 चिंतन करने खोज की शक्ति= परिपक्वता +अनुभव

Age. Experience

2. वस्तु स्थायित्व

7-12. मूर्त चिंतन

🌹संज्ञानात्मक विकास के संप्रत्यय

👉( अनुकूलन):— बालक वातावरण में सामंजस्य स्थापित करने की जन्मजात प्रवृत्ति ही अनुकूलन है
⬇️
↩↪
आत्मसातकरण. समायोजन
⬇️. ⬇️
पूर्व ज्ञान. योजना व्यवहार/
परिवर्तन

🌷 आत्मसातकरण :—जब बालक समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए पूर्व में सीखी हुई क्रियाओं का सहारा लेता है आत्मसात करण कहलाता

🌷 समायोजन :—पूर्व में सीखी क्रिया काम नहीं आती यहां अपनी योजना व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करते हैं

🌷 सामयधारण अवधारणा:— बच्चा आत्मसात करण और समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करता है

🌷 संरक्षण:— वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचानने और समझने की क्षमता संरक्षण है

🌷संज्ञानात्मक( मानसिक) संरचना:— मानसिक संगठन +मानसिक क्षमता

🌷मानसिक संक्रिया:— समस्या का समाधान पर चिंतन करना मानसिक संक्रिया करना माना जाता है

🌷 स्कीम्स :—व्यवहार के संगठित पैटर्न जिसको आसानी से दोहराया जा सके वही संगठित पटेल स्कीम्स कहलाता

🌷 स्कीमा:— स्कीमा मानसिक संरचना है जिसका समानीकरण करना है

🌷 विकेंद्रीकरण:— किसी भी वस्तु या चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचना विकेंद्रीकरण कहलाता है

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Notes by:—sangita bharti

🌺🌺जीन पियाजे (Jean piaget)लारेंस कोहलबर्ग(Lohrens kohlberg)और वाइगोत्सकी (Vyogatski)🌺🌺

➡️मानव के वृद्धि विकास के अलग-अलग आयाम हैं।
जीन पियाजे/वाइगोत्सकी- संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं।
कोहलवर्ग-नैतिक विकास की बात करते हैं।

🌺🌺 जीन पियाजे का सिद्धांत🌺🌺

➡️जीन पियाजे और वाइगोत्सकी संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं;

➡️लॉरेंस कोहलबर्ग के नैतिक विकास की बात करते हैं;

➡️जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे;

➡️अल्फ्रेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण भी किया था;

➡️बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया;

➡️संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रतिपादित किया;

➡️बालक में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने या खोज करने की शक्ति, ना सिर्फ परिपक्वता के स्तर पर निर्भर करती है, और ना ही सिर्फ अनुभव पर बल्कि दोनों के अंतः क्रिया पर निर्भर करती है।

➡️चिंतन/खोज की शक्ति=परिपक्वता+अनुभव

🎯🎯संज्ञानात्मक विकास के सम्प्रत्यय🎯🎯

🌈अनुकूलन( Adaptation)( वातावरण के साथ सामान्य स्थापित करने की जन्मजात प्रवृत्ति अनुकूलन है।

🌈आत्मसातकरण(Assimilation) करने जा बालक समस्या समाधान के लिए या वाला लिए वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए पूर्व में सीखी गई क्रियाओ का सहायता लेता है।

🌈 समायोजनAccomodation)÷परिस्थिति के अनुसार तत्काल योजना बनाकर काम करना; इसमें पूर्व सीखी गई क्रिया काम नहीं आती जहां पर अपनी योजना/व्यवहार में परिवर्तन से नये वातावरण में सामंजस्य स्थापित करते हैं।

🌈साम्यधारण(Equilibrium)- साम्यधारण में बच्चा आत्मसातकरण और समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करता है।

🌈संरक्षण(Protection)÷
वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचानने और समझने की क्षमता को ही संरक्षण कहते हैं।

🌈संज्ञानात्मक संरचना ÷(Cognitive structure) मानसिक संगठन मानसिक क्षमता के बीच संबंध स्थापित करके किया गया कार्य संज्ञानात्मक संरचना कहलाता है।
(मानसिक संगठन+मानसिक क्षमता=संज्ञानात्मक संरचना)

🌈मानसिक संक्रिया (Mental operation)÷ समस्या का समाधान निकालना उस पर चिंतन करना मानसिक संक्रिया करना माना जाता है।

🌈स्कीम्स (Schemes)÷व्यवहार के संगठित पैटर्न जिसको आसानी से दोहरा जा सके वही संगठित पैटर्न स्कीम्स कहलाता है

🌈स्कीमा(Schema) ÷एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्य करण करना है जिस पर कार्य कर सकते हैं स्कीमा कहलाता है ।

🌈विकेंद्रीकरण(Decentralization)÷
किसी भी वस्तु प्रसिद्ध चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचने समझने की क्षमता ही व्यंजन कहलाता हैं।
Thank you 💞☺️
Notes written by ,➡️ $hikhar pandey

🌈 जीन पियाजे का सिद्धांत🌈

👉🏼जीन पियाजे स्विजरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे।
👉🏼 जीन पियाजे अल्फेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण पर काम किया।
👉🏼 जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत का प्रतिपादन किया बालक में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने या खोज की शक्ति ना सिर्फ अनुभवों पर बल्कि दोनों पर होता है

🎯 संज्ञानात्मक विकास के संप्रत्यय➖

🎯 अनुकूलन (Adaptation)
पियाजे के अनुसार बच्चे में अपने आसपास के वातावरण से अंतर क्रिया करने तथा वातावरण के साथ समंजन करने की जन्मजात प्रवृत्ति होती है

🎯 आत्मसात्करण(Assimilation➖
जब बालक समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए पूर्व में सीखी क्रियाओं का सहारा लेना है

🎯 समायोजन (Accommodation)➖
पूर्व में सीखी क्रिया काम नहीं आती यह अपनी योजना व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करते हैं
इस प्रक्रिया के द्वारा नए स्कीमा कभी विकास होता है

🎯 साम्यधारण (Equilibration)➖

शाम में धारण में बच्चा आत्मसात्करण और समय नियोजन के बीच संसद करने का प्रयास करता है जैसे एक तंत्र के द्वारा प्राप्त किया जाता है इसे ही पियाजे साम्याधारण कहते हैं

🎯 संरक्षण (Conservation)➖
संरक्षण से तात्पर्य वातावरण में परिवर्तन और स्थिति दोनों को पहचानने और समझने की क्षमता तथा किसी वस्तु के रूप रंग में परिवर्तन को उस वस्तु के तत्व में परिवर्तन से अलग करने की क्षमता होती है।

🎯 संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive structure)➖
संज्ञानात्मक संरचनाएं एक आधारभूत मानसिक प्रक्रिया के रूप में लोगों द्वारा सूचना या जानकारी की समाज बनाने में अनुपयोगी होती है एक संज्ञानात्मक संरचना में कई मानसिक प्रक्रियाओं का समुच्चय निहित रहता है।

🎯 स्कीम्स (Schemes)➖
इससे दांत पर व्यवहारों के संगठित पैटर्न से है स्कीम्स का संबंध मानसिक संक्रियाओं से होता है।

🎯 स्कीमा (Schema)➖
स्कीमा से तात्पर्य एक ऐसे मानसिक संरचना से ले जाता है जिसका सामान्यीकरण किया जा सके।

🎯 विकेंद्रीकरण (Decentering)➖
किसी भी वस्तु या चीजों के बारे में वास्तविक ढंग से सोचने की क्षमता विकेंद्रीकरण कहलाती है।

🖊️🖊️📚📚 Notes by…….. Sakshi
Sharma📚📚🖊️🖊️

🔆जीन पियाजे कोहलबर्ग, वाइगोत्सकी 🔆

🌀 मानव में वृद्धि विकास के अलग अलग आयाम है।

🌀 जीन पियाजे वाइगोत्सकी संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं।

🌀 कोहलबर्ग नैतिक विकास की बातें करते हैं।

🎯जीन पियाजे का सिद्धांत ➖

✨ जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे ।
✨जीन पियाजे अल्फार्ड विने के साथ बुद्धि परीक्षण पर कार्य किया ।
✨ बच्चों के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया।
✨जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रतिपादन किया ।
💠बालक में वास्तविकता केजरीवाल स्वरूप के बारे में चिंतन करने की शक्ति ना सिर्फ़ अनुभवों पर, ना सिर्फ परिपक्वता पर आधारित है बल्कि दोनों के अंतः क्रिया पर आधारित है।

बालक

चिन्तन खोज
⬇️ ⬇️

परिपक्वता + अनुभव
⬇️ ⬇️
Age Experience

♨️ चिन्तन करने खोज की शाक्ति = परिपक्वता+अनुभव

Age Experience

2 – वस्तु स्थायित्व

7-12 – मूर्त चिन्तन

♨️ संज्ञानात्मक विकास के संप्रत्यय ➖

💫 अनुकूलन(assimilation)➖
बालक वातावरण में सामंजस्य स्थापित करने की जन्मजात प्रवृत्ति ही अनुकूलन है

⬇️
⏭️ ⏮️

आत्मसातकरण समायोजन

⬇️ ⬇️

पूर्व ज्ञान योजना व्यवहार
/ परिवर्तन

💫 आत्मसातकरण➖
जब बालक के समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए पूर्व में सीखी गई क्रियाओं का सहारा लेता है आत्मसात करण कहलाता है।

💫 समायोजन ➖
पूर्व में सीखी गई क्रिया काम नहीं आती यहां अपनी योजना व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करते हैं।

💫सामयधारण अवधारणा➖

बच्चा आत्मसात करण और समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करता है।

💫 संरक्षण ➖
वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचानने और समझने की क्षमता संरक्षण कहलाती है।

💫 संज्ञानात्मक (मानसिक) संरचना ➖
मानसिक संगठन+मानसिक क्षमता

💫 मानसिक संक्रिया➖
समस्या का समाधान पर चिंतन करना मानसिक संक्रिया करना माना जाता है।

💫स्कीम्स➖
व्यवहार के संगठित पैटर्न जिसको आसानी से दोहराया जा सके वही संगठित पैटर्न स्कीम्स कहलाता है।

💫स्कीमा➖
स्कीमा मानसिक संरचना है जिसका सामान्यीकरण करना है।

💫 विकेंद्रीकरण ➖
किसी भी वस्तु या चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचना विकेंद्रीकरण कहलाता है।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🌼 Jean piaget (जीन पियाजे)
🌼कोहलवर्ग ( kohalberg)
🌼वाइगोत्सकी (vygotsaki)

🌼मानव में वृद्धि विकास के अलग-अलग आयाम हैं
🌼जीन पियाजे/ वाइगोत्सकी– संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं
🌼 कोहलवर्ग — नैतिक विकास की बात करते हैं

🌼🌼जीन पियाजे का सिद्धांत🌼🌼
🌼 1.जीन पियाजे स्विजरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे
🌼2. अल्फ्रेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण पर कार्य किया
🌼3. बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया
🌼4. संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रतिपादित किया

🌼🌼👉 बालक में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करके या खोज करने की शक्ति नासिर परिपक्वता के स्तर पर निर्भर करती है ना सिर्फ अनुभवों पर बल्कि दोनों के अंतः क्रिया पर निर्भर करता है
🌼🌼 चिंतन खोज की शक्ति= परिपक्वता + अनुभव

🌼जब बच्चा 2 साल का होता है तो वस्तु स्थायित्व का गुण आ जाता है
🌼 जब बच्चा 7 से 14 वर्ष का होता है तो वह मूर्ति चिंतन करने लगता है

🌼 संज्ञानात्मक विकास के संप्रतत्य 🌼

🌼1. अनुकूलन ( adaptation) – बालकों में वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की जन्मजात प्रगति अनुकूलन है
🌼(A) आत्मसात्करण — बालक समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए पूर्व में सीखी क्रियाओं का सहारा लेता है

🌼(B) समायोजन — पूर्व में सूची क्रियाओं का काम नहीं आती है यहां अपनी योजना व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण का सामंजस्य स्थापित करते हैं

🌼2. साम्यधारण — साम्यधारण में बच्चे आत्मसात करण और समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करता है

🌼3. संरक्षण (protection) -वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचाने और समझने की क्षमता संरक्षण है

🌼🌼संज्ञानात्मक संरचना( cognitive structure mental) 🌼🌼
मानसिक संगठन+ मानसिक क्षमता

🌼🌼मानसिक संक्रिया- समस्या का समाधान पर चिंतन मानसिकता करना माना जाता है

🌼🌼स्कीम्स(schemes) -व्यवहार की संगठित पैटर्न ,जिसको आसानी से दोहराया जा सके, वही संगठित पैटर्न स्कीम्स कहलाता है

🌼🌼स्कीमा ( schema) -स्कीमा मानसिक संरचना है जिसका सामान्यकरण करना है

🌼🌼 विकेंद्रीकरण — किसी भी वस्तु या चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचने की क्षमता विकेंद्रीकरण कहलाती हैं!!!!

🌼🌼🌼🌼

Notes by manjari soni🌼

🔆 जीन पियाजे, कोहलबर्ग, वायोगोत्सकी, ➖

मानव की वृद्धि और विकास के अलग-अलग आयाम हैं मानव की वृद्धि और विकास में वंशानुक्रम तथा वातावरण का गुणनफल है |

मानव की वृद्धि और विकास के संदर्भ में वैज्ञानिकों ने अपने अनुसार कुछ सिद्धांत और नियम दिए |

जिसमें जीन पियाजे और वायोगोत्सकी संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं तथा कोहलबर्ग नैतिक विकास की बात करते हैं |

🎯 जीन पियाजे के सिद्धांत➖

विकास के संदर्भ में जीन पियाजे ने अपने कुछ सिद्धांत बताए हैं जो कि निम्न है ➖

1) जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे |

2) इन्होंने अल्फ्रेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण किया |

3) इन्होंने बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया |

4) संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रतिपादित किया |

5) बालक की वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने के लिए खोज करने की शक्ति न सिर्फ परिपक्वता के स्तर पर और ना ही अनुभव पर निर्भर करती है बल्कि दोनों की अंतः क्रिया पर निर्भर करती है |

चिंतन/ खोज की शक्ति➖ परिपक्वता+ अनुभव

जैसे जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है वैसे ही उसका अनुभव भी बढ़ता है यदि बच्चा बड़ा होता है तो उससे उम्मीदें भी बढ़ती जाती है जो अनुभव से प्राप्त होती हैं यदि उस का अनुभव नहीं बढ़ेगा तो उससे उम्मीदें भी पूरी नहीं हो सकती है जो भी समाज के द्वारा ही पूरी हो सकती है|

पियाजे ने बताया कि बच्चा 2 वर्ष तक वस्तु स्थायित्व प्राप्त कर लेता है तथा 2 से 7 वर्ष की आयु में मूर्त चीजों पर प्रत्यक्ष अनुभव करने लगता है |

🎯 संज्ञानात्मक विकास के संप्रत्यय ➖

💫 अनुकूलन (Adaptation) ➖

बालकों में वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की जन्मजात प्रवृत्ति अनुकूलन है |

अनुकूलन को दो भागों में बांटा गया है ➖

1) आत्मसातकरण

2) समायोजन

🔅 आत्मसातकरण ➖

पूर्व अनुभव के आधार पर नए अनुभव के साथ सामंजस्य स्थापित करना ही आत्मसातकरण है |

या पूर्व में सीखे हुए ज्ञान को नए ज्ञान में प्रयोग करना |

अर्थात कह सकते हैं कि जब

” बालक समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ संबंध स्थापित करने के लिए पूर्व में की गई क्रियाओं का सहारा लेता है तो उसे आत्मसातकरण कहते हैं |

🔅 समायोजन ( Accomodation) ➖

इसमें बच्चा तत्काल परिस्थिति के अनुसार योजना बनाता है या व्यवहार में परिवर्तन करता है |

अर्थात इसमें पूर्व में सीखी हुई क्रिया काम नहीं आती है बल्कि अपनी योजना या व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करना ही समायोजन कहलाता है |

🎯 साम्यधारण ( Equilibrium) ➖

आत्मसातकरण और समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करना भी साम्यधारण है |

🎯 संरक्षण( Protection) ➖

किसी वस्तु के रूप, रंग में परिवर्तन को अपने पूर्व अनुभव के आधार पर समझते हैं तो वह संरक्षण है और यदि पूर्व ज्ञान का प्रयोग नहीं कर पाए तो पूर्व ज्ञान कोई काम का नहीं है |

या वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचानने और समझने की क्षमता ही संरक्षण है |

🎯संज्ञानात्मक/ मानसिक संरचना ( Cognative Structure) ➖

किसी भी बच्चे की अंदर मस्तिष्क में जो चीजें संगठित हैं वह मानसिक संरचना है |

मानसिक संरचना➖ मानसिक संगठन+ मानसिक क्षमता |

🎯 मानसिक संक्रिया (Mental Opration) ➖

किसी समस्या के समाधान पर चिंतन करना मानसिक संक्रिया करना माना जाता है |

🎯 स्कीम्स ( schemes) ➖

व्यवहारर का जो संगठित पैटर्न है उसको आसानी से दोहराया जा सके वही संगठित पैटर्न स्कीम्स कहलाता है |

🎯 स्कीमा (Schema) ➖

स्कीमा एक ऐसी मानसिक संरचना है जिसका सामान्यीकरण किया जाता है |

🎯 विकेन्द्रीकरण ( Decentralization) ➖

किसी भी वस्तु एक चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचने की क्षमता विकेंद्रीकरण कहलाती है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

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🌹 जीन पियाजे , कोहलवर्ग और वाइगोत्सकी 🌹
🌹 Jean Piaget , Kohlberg & Vygotsaki 🌹

🌲मानव की वृद्धि / विकास के अलग अलग आयाम है।

👉जीन पियाजे / वाइगोत्सकी संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं।

👉कोहलवर्ग नैतिक विकास की बात करते हैं।

🌺 जीन पियाजे 🌺
Jean Piaget.

👉जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे।

👉जीन पियाजे ने अल्फ्रेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण पर कार्य किया।

👉बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया।

👉जीन पियाजे ने ” संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत ” प्रतिपादित किया।

👉जीन पियाजे ने अपने सिद्धांत का प्रयोग अपने ही बच्चों पर किया था।

बालक में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने या खोज करने की शक्ति ना सिर्फ परिपक्वता के स्तर पर निर्भर करती है ना सिर्फ अनुभवों पर , बल्कि परिपक्वता और अनुभव दोनों के अंतःक्रिया पर निर्भर करती है।

अर्थात्

🌲[ चिंतन / खोज की शक्ति = परिपक्वता + अनुभव ]

🌺परिपक्वता + अनुभव 🌺
Age + Experience

जीन पियाजे के अनुसार 2 वर्ष में , बच्चों में वस्तु स्थायित्व का गुण आ जाता है और बच्चे मूर्त चीजों में अपने प्रत्यक्ष अनुभवों को भी शामिल करलेता है।

🌷🌷 संज्ञानात्मक विकास के संप्रत्यय :-

🌲🌺 अनुकूलन ( अपनाना ) Adaptation :-

बालकों में वातावरण के साथ सामंजस करने की जन्मजात प्रवृत्ति ही “अनुकूलन ” कहलाती है।

🌷 अनुकूलन के निम्नलिखित दो प्रकार हैं :-

1. आत्मसात्करण

2. समायोजन

🌲 आत्मसात्करण ( पूर्व ज्ञान ) Assimilation :-

जब बालक समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए ” पूर्व में सीखी हुई क्रियाओं या ज्ञान” का सहारा लेता है,
इसे ही “आत्मसात्करण” कहते हैं।

🌲 समायोजन ( योजना व्यवहार परिवर्तन ) Accommodation :-

पूर्व में सीखी हुई क्रिया हमेशा काम नहीं आती,अतः यहां अपनी योजनाओं, व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करते हैं, इसे ही समायोजन कहते हैं।

🌷 साम्यधारण Equilibrium :-

साम्यधारण में बच्चा “आत्मसात्करण” और “समायोजन” के बीच संतुलन स्थापित करता है।

🌷 संरक्षण Protection :-

वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचानने और समझने की क्षमता ही संरक्षण कहलाता है।

🌷 संज्ञानात्मक / मानसिक संरचना
Cognitive/ Mental Structure :-

संज्ञानात्मक/ मानसिक संरचना में मानसिक संगठन और मानसिक क्षमता को महत्वपूर्ण माना जाता है।

[ मानसिक “संगठन” + मानसिक “क्षमता” ]

🌷 मानसिक संक्रिया Mental Operation :-

किसी भी समस्या के समाधान पर चिंतन मानसिक संक्रिया करना ही माना जाता है।
अर्थात दिमाग से सोचना/ दिमाग लगाना

🌷 स्कीम्स Schems :-

व्यवहार के संगठित पैटर्न , जिसको आसानी से दोहराया जा सके वही संगठित पैटर्न ” स्कीम्स ” कहलाता है।

🌷 स्कीमा Scheme :-

स्कीमा एक मानसिक संरचना है जिसका सामान्यीकरण करना ही ” स्कीमा ” कहलाता है।

🌷 विकेंद्रीकरण Decentralization :-

किसी भी वस्तु या चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचने की क्षमता ही “विकेंद्रीकरण ” कहलाती है।

🌺✒️ Notes by – जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

🔥जीन पियाजे , कोहलबर्ग और वाइगोत्सकी 🔥

🌟मानव के वृद्धि/ विकास के अलग अलग आयाम हैं ।

🌟 पियाजे और वाइगोत्सकी संज्ञानात्मक क्षेत्र से जुड़े हैं।

🌟 कोहलवर्ग नैतिक विकास की बात करते हैं।

*जीन पियाजे का सिद्धांत* 🔥🔥

🌟जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे ।

🌟अल्फ्रेड बिने के साथ बुद्धि परीक्षण पर कार्य किया था।

🌟 बच्चे के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया।

🌟 संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रतिपादित किया।

👉 बालक में वास्तविकता के स्वरूप के बारे में चिंतन करने या खोज करने की शक्ति ना सिर्फ परिपक्वता के स्तर पर निर्भर करती है ना सिर्फ अनुभव पर बल्कि दोनों के अंत: क्रिया पर निर्भर करती है। अर्थात्

✌️चिंतन /खोज की शक्ति
=परिपक्वता+ अनुभव

👉जीन पियाजे के अनुसार जब बच्चा 2 वर्ष का होता है तो उस में वस्तु स्थायित्व का गुणा जाता है।

👉 जब बच्चा 7 से 14 वर्ष का होता है तो वह मूर्त चिंतन करने लगता है।

संज्ञानात्मक विकास के संप्रत्यय 🔥👉

अनुकूलन (adaptation) 🔥

बालकों में वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की जन्मजात प्रवृत्ति ,”अनुकूलन” कहलाती है।यह दो प्रकार के होते हैं- आत्मसात्करण तथा समायोजन।

1.आत्मसात्करण (assimilation) 🔥

जब बालक समस्या समाधान के लिए या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए पूर्व में ही सीखी क्रियाओं का सहायता लेता है, आत्मसात्करण कहलाता है।

2.समायोजन (accomodation)🔥

समायोजन में पूर्व में सीखी गई क्रिया काम नहीं आती बल्कि अपनी योजना या व्यवहार में परिवर्तन से नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करते हैं।

साम्यधारण (equilibrium) 🔥

साम्यधारण में बच्चा आत्मसात्करण और समायोजन के बीच संतुलन स्थापित करता है।

संरक्षण (protaction)🔥

वातावरण में परिवर्तन तथा स्थिरता को पहचानने और समझने की क्षमता संरक्षण है।

संज्ञानात्मक संरचना/मानसिक संरचना (cognitive structure/mental structure) 🔥🔥

मानसिक संगठन+मानसिक क्षमता=
संज्ञानात्मक संरचना

मानसिक संक्रिया (mental operation)🔥🔥

समस्या का समाधान पर चिंतन करना, मानसिक संक्रिया कहलाता है।

स्कीम्स (schemes)🔥

व्यवहार के संगठित पैटर्न जिसको आसानी से दोहराया जा सके, वही संगठित पैटर्न स्कीम्स कहलाता है।

स्कीमा (schema)🔥

Schema मानसिक संरचना है जिसका सामान्यीकरण करना है।

विकेंद्रीकरण (decentralisation)🔥

किसी भी वस्तु या चीज के बारे में वास्तविक ढंग से सोचने की क्षमता विकेंद्रीकरण का लाती है।

नोट्स- श्रेया राय 🙏🙏

Child Centric Education Notes by India’s top learners

🌷बाल केंद्रित शिक्षण🌷

🌹NCF:— मुख्य रूप से ncf-2005 में बाल केंद्रित शिक्षा की विवरण की गई लेकिन प्रकृतिवाद के समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्रित शिक्षा पर चर्चा की

👉राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 — NPE
👉 प्रोग्राम ऑफ एक्शन 1992–POA

👉 14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चे का नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूल में टिकाए रखने तथा स्कूली शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार किया गया था

👉 भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजुभाई की है

👉 बहुत पुस्तकों की रचना इन्होंने की है

👉 बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र, किशोर साहित्य

🌹 बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत:—

(1) क्रियाशीलता का सिद्धांत बच्चे:— को क्रियाशील करके ज्ञान प्रदान किया जाता है हाथ पर मस्तिष्क सक्रिय होकर

(2) प्रेरणा का सिद्धांत:— पढ़ाई क्यों करनी है ,महापुरुषों की जीवनी, वैज्ञानिकों का उदाहरण देकर प्रेरित किया जाना, अनुकरण करा कर

(3) जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत :—ज्ञान जो है जीवन से संबंधित होनी चाहिए

(4) रुचि का सिद्धांत :—बालक को कैसे रुचि है ,वह रूचि कार्य करने की प्रेरणा देती है

(5 ) निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत:— बालक की शिक्षा उद्देश परक होनी चाहिए अर्थात बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश पूर्ण होनी चाहिए

(6) चयन का सिद्धांत:— क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना

(7) व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत:—वैयक्तिक भिन्नता के अनुरूप शिक्षण प्रक्रिया में भी अंतर रखकर इस उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है.

(8) लोकतांत्रिक सिद्धांत:—

(9) विभाजन का सिद्धांत:— पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट कर शिक्षण

(10) निर्माण व मनोरंजन का सिद्धांत:— रचनात्मक कार्य जैसे हस्तकला आदि के द्वारा शिक्षण

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Notes by:—sangita bharti

🌺🌺बाल केन्द्रित शिक्षा(Child Centered Education)🌺🌺
पूर्व में बाल मनोविज्ञान की जानकारी ना होने के कारण शिक्षक मारपीट कर बच्चों को पढ़ाते थे * बाल केंद्रित शिक्षा होने के बाद शिक्षक का कर्तव्य हो गया कि यह बालक के मानसिक सामाजिक वह मनोवैज्ञानिक स्तर वा आवश्यकताओं को वा उनकी क्षमता को समझ कर पढ़ाएं एवं उनके अनुकूल, गतिविधि ,शिक्षण सहायक सामग्री इत्यादि का प्रयोग करें।

🌺🌺According to Ncf-2005🌺🌺
➡️🌈मुख्य रूप से ncf-2005 में बाल केंद्रित शिक्षा का विवरण किया गया लेकिन प्रकृति वादी के समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्र के शिक्षा संकल्पना की गई थी।

🌈14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों का नामांकन (किसी भी जाति धर्म आधार पर नामांकन से दूर ना किया जाए)और उन्हें सार्वभौमिक रुप से टिकाएं रखने तथा स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में ठोस सुधार लाने के लिए “बाल केंद्रित शिक्षा का उपागम का विचार प्रस्तुत किया गया है।

🌺🌺 बाल केंद्रित शिक्षा में भूमिका🌺🌺
🌈भारत में बालक केंद्र शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजुभाई बधेका ने निभाई (यह बाल मनोविज्ञान एवं शिक्षा शास्त्र से संबंधित है)।

,🌈इन्होंने कई प्रकार की पुस्तकों की रचना भी की कुछ निम्नलिखित हैं÷
,➡️दिवा-स्वपन
➡️प्राथमिक विद्यालय में भाषा शिक्षा

🌺🌺बाल केन्द्रित शिक्षा के सिद्धांत🌺🌺

1️⃣ 🧠क्रिया शीलता का सिद्धांत🧠

🌈,इस सिद्धांत के द्वारा बच्चों को क्रियाशील रखकर ज्ञान प्रदान किया जाता है,इस क्रिया में बालक के मस्तिष्क के साथ हाथ,पैर भी भी सक्रिय होगा।(बालक इसमें क्रियाए भी करता रहेगा,
🎯जैसे÷क्लास के दौरान नोट्स बनाना।
🎯 मानसिक खेल के साथ शारीरिक खेल भी खिलवाना।

2️⃣🧠प्रेरणा का सिद्धांत🧠÷

🌈इसमें बालको को पढ़ाई क्यो करनी चाहिए;
🌈महापुरुषों की जीवनी वा महान वैज्ञानिकों के उदाहरण देकर प्रेरणा विकसित कर सकते हैं क्योंकि बच्चों को बचपन से ही महापुरुषों की वीर कथाओं कविताओं को पढ़ने के कारण उनकी जीवनी की तरफ आकर्षित रहते है।

3️⃣🧠जीवन से संबंधित में करने का सिद्धांत🧠

,🌈इसमें हम बच्चों के जीवन से जोड़कर उनको पढ़ाते है, इससे वह उस ज्ञान को अच्छे से समझ जाते है।

4️⃣🧠रुचि का सिद्धांत🧠
🌈बालको को किस प्रकार की क्रियाओ में रुचि है, यह जानकर शिक्षण देने से ज्ञान को अच्छे से समझते हैं वा लंबे समय तक याद रख सकते है,

🎯 जैसे÷बालकों को खेल-खेल में पढ़ा देना;

5️⃣🧠निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत🧠

🌈बालकों को दी जाने वाली शिक्षा बालकों के उद्देश्य को पार करने वाली होनी चाहिए क्योंकि उद्देश निश्चित होगा तो सफलता तभी मिलेगी।

,6️⃣🧠चयन का सिद्धांत🧠
🌈बालको की रुचि के अनुसार पढ़ाने के लिए विभिन्न क्रियाओं का चयन करके पढ़ाना ,उनकी आवश्यकता के अनुसार विषय वा शिक्षण अधिगम सामग्री का चयन करके पढ़ाना।

7️⃣🧠व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत🧠
प्रत्येक बालक की मानसिक क्षमता अलग-अलग होती है अत: शिक्षण करते समय प्रत्येक बालक की मानसिक क्षमता को ध्यान में रखकर अधिगम करने से अधिक प्रभावी होता है क्योंकि प्रत्येक बालक विशिष्ट है और उनको समझाना शिक्षक का कर्तव्य।

8️⃣🧠निर्माण व मनोरंजन का सिद्धांत🧠

🌈बच्चो से हस्तकला ( बच्चों से छोटी मिट्टी की गोलियां बनवाना या मूर्तियां बनवाना ,या गत्ते से खिलौने वा अन्य महत्वपूर्ण चीजें बनवाना) रचनात्मक कार्य( नाट्क , एकांकी वा अंताक्षरी आदि करवाना) भी करवाएं ।

9️⃣🧠विभाजन का सिद्धांत🧠
– बच्चों को किसी भी विषय के पाठ को पढ़ाने के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर पढ़ाने से बालक पाठ को अच्छे से समझते है वा इसी के आधार पर अपनी समस्याओं को टुकड़ों में बाटकर हल करना सीखते है।
Thank you 💞☺️
Notes by- $hikhar pandey

🦚💥 बाल केंद्रित शिक्षा💥
(Child Centred Education)

👉🏼बाल केंद्रित शिक्षा में बच्चों के मूल प्रवृत्ति , प्रणाम और संवेग ऊपर आधारित शैक्षणिक योजना का स्वरूप निर्धारित किया जाता है।
👉🏼साथ ही साथ इस में शिक्षा के उन नूतन व नवीन रचनाओं को सम्मिलित करने का प्रयास किया जाता है जो बच्चों के आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति में सहायक हो।
👉🏼 और उनके शारीरिक मानसिक ,सामाजिक, संवेगात्मक व आध्यात्मिक पक्षों का संतुलित व समुचित विकास किया जा सके।
👉🏼 मुख्य रूप से NCF2005 में बाल केंद्रित शिक्षा की विवरण की गई हैलेकिन प्रगतिवादी के समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्रित शिक्षा पर चर्चा की गई।
👉🏼सामान्य शब्दों में प्राथमिक स्तर तक के विद्यालयों में बालकों को दी जाने वाली शिक्षा को ही बाल केंद्रित शिक्षा कहा जाता है।

💥 राष्ट्रीय शिक्षा नीतिNPE 1986
💥 कार्यकारी योजना 1992

👉🏼14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों का नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूलों में टिकाए रखने तथा स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार प्रस्तुत किया गया था।
👉🏼भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका कि जो भाई की थी उन्होंने बहुत पुस्तकों की रचना की।

🎯 बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र
🎯 किशोर साहित्य

🌺 बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत➖

🎯 क्रियाशीलता का सिद्धांत➖
बालकों को क्रियाशील रखकर शिक्षा प्रदान करना इससे किसी भी कार्य को करने में बालक के हाथ पैर और मस्तिष्क सब क्रियाशील हो जाते हैं

🎯 प्रेरणा का सिद्धांत➖इसके अंतर्गत बालकों को महापुरुषों, वैज्ञानिकों का उदाहरण देकर प्रेरित किया जाना शामिल है।

🎯 जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत➖ अनुकरणीय व्यवहार नैतिक कहानियां व घटनाओं आदि द्वारा बालक का शिक्षण किया जाता है।

🎯 रुचि का सिद्धांत➖ रूचि कार्य करने की प्रेरणा देता है।

🎯 निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत➖बालक की शिक्षा उद्देश्य परखो अर्थात बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश को पूर्ण करने वाली हो।

🎯 चयन का सिद्धांत➖ बालक की योग्यता और रूचि के अनुसार विषय वस्तु का चयन करना।

🎯 व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत➖व्यक्तिगत विभिन्नता ओं का सिद्धांत प्रत्येक बालक का आइक्यू अलग अलग होता है अतः उनकी विशेषताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

🎯 लोकतांत्रिक सिद्धांत➖
लोकतांत्रिक सिद्धांत हमारे लिए कक्षा में सभी विद्यार्थी समान हैं सभी से सामान प्रश्न पूछना चाहिए उनसे कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

🎯 विभाजन का सिद्धांत➖ विभाजन का सिद्धांत जो भी पढ़ाई उसे कुछ भागों में बांटकर पढ़ाई ताकि वह सरल हो सके।

🎯 निर्माण और मनोरंजन का सिद्धांत➖ निर्माण व मनोरंजन का सिद्धांत हस्तकला एवं रचनात्मक कार्यों को करवाना है इन कार्यों से बालक की अध्ययन में रुचि बढ़ती है।

🖊️🖊️📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚🖊️🖊️

🔆 बाल केंद्रित शिक्षा (child center education)🔆

प्राचीन काल में शिक्षा का उद्देश्य केवल बालक को जानकारी देना मात्र था लेकिन आधुनिक शिक्षा शास्त्र के अनुसार बालक के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाता है उसके विकास के सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर शिक्षा दी जाती है।

👉 बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम संबंधी कठिनाइयों को दूर करना बाल केंद्रित शिक्षा कहलाता है अर्थात बालक की रुचियां प्रवृत्तियों तथा क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना ही बाल केंद्रित शिक्षा कहलाता है।

इसमें बालक का व्यक्तिगत निरीक्षण करके उसकी कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

पूर्व में बाल मनोविज्ञान की जानकारी ना होने के कारण शिक्षक बच्चों को मारपीट कर शिक्षा प्रदान करते थे लेकिन बाल केंद्रित शिक्षा आने के बाद शिक्षक का कर्तव्य हो गया है कि वह बालक के मानसिक सामाजिक मनोवैज्ञानिक स्तर आवश्यकताओं उसकी क्षमता को समझ कर शिक्षा प्रदान करें एवं उसके अनुकूल प्रतिक्रिया या गतिविधि शिक्षण सहायक सामग्री आदि का प्रयोग करें।

🔰 According to NCF – 2005➖
मुख्य रूप से NCF – 2005 मैं बाल केंद्रित शिक्षा का विवरण दिया गया लेकिन प्रकृति वादी समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्र शिक्षा संकल्पना की गई थी।

✨14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों का नामांकन किसी भी जाति धर्म के आधार पर नामांतरण से दूर नहीं किया जाए और उन्हें सार्वभौमिक रूप से टिकाऊ रखने तथा स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में ठोस सुधार लाने के लिए बाल केंद्रित शिक्षा का उपागम का विचार प्रस्तुत किया गया है।

🎯 भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजुभाई भाई ने निभाई यह बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र एवं किशोरशास्त्र से संबंधित थे।

✨ इन्होंने कई प्रकार की पुस्तकों की रचना भी की कुछ पुस्तकें निम्न हैं ➖

– दिवा-स्वपन
– प्राथमिक विद्यालय में भाषा शिक्षा

📚 बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धान्त ➖

1️⃣ क्रियाशीलता का सिद्धांत ➖
इस सिद्धांत के द्वारा बच्चों को क्रियाशील रखकर ज्ञान प्रदान किया जाता है इसमें बालक के मस्तिष्क के साथ हाथ पैर भी सक्रिय होने चाहिए बालक इसमें क्रियाएं भी करता रहेगा जैसे शिक्षा देते समय बालक को कुछ पॉइंट नोट करने चाहिए।

2️⃣ प्रेरणा का सिद्धांत ➖

इसमें बालक को पढ़ाई क्यों करनी चाहिए इसमें बालक को महापुरुषों की जीवनी महान वैज्ञानिकों के उदाहरण देकर प्रेरणा विकसित करके शिक्षा दी जाती है क्योंकि बच्चों को बचपन से ही महापुरुषों की कहानियां कविताओं को पढ़ने में रुचि होती है और बच्चे महापुरुषों की जीवनी एवं महान वैज्ञानिकों के कार्यों से प्रेरित होकर रुचि के साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं और उन से प्रेरित होकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं।

3️⃣ जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत ➖
इसमें बच्चों को जीवन से जोड़कर शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे वह उस ज्ञान को अच्छे से समझ जाते हैं।

4️⃣ रूचि का सिद्धांत ➖
बालक को यदि उसकी रूचि के अनुसार शिक्षा मिलेगी तो वह सीखने के प्रति अधिक उत्सुक एवं जागरूक होंगे शिक्षा में बालक की रुचि को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे वह शिक्षण में दिए गए ज्ञान को अच्छे से समझे एवं लंबे समय तक याद रख सकें।

5️⃣ निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत ➖
बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश्य को ध्यान में रखकर दी जानी चाहिए क्योंकि उसके उद्देश्य निश्चित होगा तो सफलता तभी प्राप्त होगी।

6️⃣ चयन का सिद्धांत ➖

बालक की योग्यताओं के अनुसार ही विषय वस्तु का चयन होना चाहिए बालक की मानसिक दशा का भी शिक्षक को ध्यान रखना चाहिए बाल केंद्रित शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम रूचि के अनुसार लचीला ज्ञान पर केंद्रित राष्ट्रीय भावना का विकास करने वाला बालक के मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए जिससे बालक अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकें।

7️⃣ व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत ➖
एक बालक की मानसिक क्षमता अलग-अलग होती है अतः शिक्षण कराते समय प्रत्येक बालक की मानसिक क्षमता को ध्यान में रखकर अधिगम कराना चाहिए जिससे अधिगम प्रभावशाली हो सके क्योंकि प्रत्येक बालक विशिष्ट है और उनको समझना शिक्षक का कर्तव्य होता है।

8️⃣ निर्माण एवं मनोरंजन का सिद्धांत ➖
बच्चे को हस्तकला जैसे छोटी मिट्टी की गोलियां बनाकर या मूर्ति बनाकर एवं गत्ते के खिलौने या अन्य महत्वपूर्ण चीजें बनवाकर रचनात्मक कार्य जैसे नाटक अंताक्षरी आदि कराकर भी शिक्षा प्रदान करानी चाहिए।

9️⃣ विभाजन का सिद्धांत ➖

बच्चों को किसी भी विषय के पाठ को पढ़ाने के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर पढ़ाने से बालक पाठ को अच्छे से समझते हैं उसी के आधार पर अपनी समस्याओं को टुकड़ों में बांटकर हल करना सीखते हैं।

🔟 लोकतंत्रीय सिद्धांत ➖

शिक्षक को सभी छात्रों को एक समान दृष्टिकोण से देखना चाहिए ना कि भेदभाव पूर्ण तरीके से प्रश्न पूछने पर उत्तर देने के संदर्भ में शिक्षा में बदलाव नहीं करना चाहिए सभी को समान शिक्षा दी जानी चाहिए।

📝 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

👉 बाल केंद्रित शिक्षा (child centric education) मुख्य रूप से ncf -2005 में बाल केंद्रित शिक्षा का विवरण दिया गया है। लेकिन प्रकृति वादी के समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्रित शिक्षा पर चर्चा की गई है~ *राष्ट्रीय शिक्षा नीति- (N P E) 1986 program of action-(P O A) 1992 14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों का नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूल में टिकाए रखने तथा स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार प्रस्तुत किया था ◾ भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजुभाई की है इनके द्वारा कई पुस्तकों की रचना भी की गई है – 🔸 बाल मनोविज्ञान और शिक्षा शास्त्र 🔹 किशोर साहित्य 👉 बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत *1️⃣क्रियाशीलता का सिद्धांत-*अध्यापक बच्चे को क्रियाशील करके ज्ञान प्रदान करता है हाथ पैर तथा मस्तिष्क को सक्रिय रखकर ज्ञान प्रदान करना ही क्रियाशीलता है। 2️⃣*प्रेरणा का सिद्धांत-* छात्रों को बताया जाता है पढ़ाई क्यों करनी है, महापुरुषों की जीवनी, अनुकरण करके आदि तरीकों से छात्रों को प्रेरणा दी जाती है 3️⃣*जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत*- ज्ञान को जीवन से संबंधित कराके छात्रों को पढ़ाना चाहिए। 4️⃣* रुचि का सिद्धांत-* रुचि कार्य करने की प्रेरणा देती है जब बच्चों में रुचि होगी तो वह कार्य को क्रियाशील होकर कर पाएंगे। 5️⃣*निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत*- पढ़ाने से पहले एक शिक्षक के अंदर निश्चित उद्देश्य का होना अति आवश्यक है इससे शिक्षक को पता होता है। उसको क्या पढ़ाना है तथा किस माध्यम से पढ़ाना है । 6️⃣*चयन का सिद्धांत*- शिक्षण कार्य कराने से पहले हमें यह चयन कर लेना चाहिए कि बच्चों के लिए क्या जरूरी है क्या नहीं फिर उस माध्यम से शिक्षण कार्य कराना चाहिए। 7️⃣*व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत*- व्यक्तिगत विभिन्नताओ को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य कराना चाहिए सभी छात्रों को सीखने के समान अवसर मिलने चाहिए। 8️⃣*लोकतंत्रीय सिद्धांत*सभी छात्रों को एक साथ लोकतंत्र के आधार पर शिक्षा ग्रहण करानी चाहिए । 9️⃣*विभाजन का सिद्धांत*- छात्रों को पाठ्यक्रम छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित करके पढ़ाना चाहिए। 🔟*निर्माण और मनोरंजन का सिद्धांत*- बच्चों के अंदर ज्ञान का निर्माण कराकर तथा मनोरंजन के माध्यम से उन्हें खेल खेल में शिक्षा देकर उनके ज्ञान को स्थाई कर सकते हैं। ✍️*Written by – Vinay Singh Thakur

🌼🌼बाल केंद्रित शिक्षा 🌼🌼
🌼(child centric education ) 🌼
🌼(Progressive education) 🌼

ncf (national curriculum framework –2005 )

🌼मुख्य रूप से ncf-2005 में बाल केंद्रित शिक्षा की विवरण की गई, लेकिन प्रकृतिवादी के समय से ही बाल केंद्रित शिक्षा और क्रिया केंद्रित शिक्षा पर चर्चा करें

🌼🌼 बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत🌼🌼
🌼🌼1. क्रियाशीलता का सिद्धांत — बच्चे को क्रियाशील करके ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा हाथ, पैर , मस्तिष्क सब सक्रिय होते हैं

🌼🌼2. प्रेरणा का सिद्धांत — पढ़ाई क्यों करनी है महापुरुषों की जीवनी से प्रेरित होते है अनुकरण के द्वारा सीखते है

🌼🌼3. जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत– बच्चे को जीवन से जोड़कर पढ़ाना पढ़ाना चाहिए

🌼🌼4.रुचि का सिद्धांत — रुचि सिद्धांत रुचि कार्य करने की प्रेरणा देती है

🌼🌼5. निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत — बालक को दी जाने वाली उद्देश्य पूर्ण होनी चाहिये!

🌼🌼6.चयन का सिद्धांत व्यक्तिगत – बच्चों को पढ़ाने से पहले यह चयन करते है कि बच्चे को क्या पढ़ना है क्या सिखाना है.. इसका चयन कर लेना चाहिए!!

🌼🌼7. व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत — सभी बालक अलग-अलग भिन्नाताओ, क्षमताओं तथा अलग-अलग रुचि वाले होते हैं इसलिए उनमें व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए

🌼🌼8.लोकतंत्र सिद्धांत — बच्चों को लोकतांत्रिक शिक्षा देनी चाहिए

🌼🌼9.विभाजन का सिद्धांत — बच्चे के पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके शिक्षण कराना चाहिए

🌼🌼10.निर्माण और मनोरंजन का सिद्धांत–बच्चे को रचनात्मक कार्य कराना चाहिए बच्चों के अंदर ज्ञान का निर्माण कराकर मनोरंजन के माध्यम से तथा खेल के माध्यम से बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए

🌼🌼 राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NEP) -1986

🌼🌼program of action (POA)-1992
14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चे का नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूल में टिकाए रखने तथा स्कूल शिक्षा गुणवत्ता में ठोस सुधारने के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार प्रस्तुत किया था

🌼🌼भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजु भाई की है
बहुत पुस्तकों की रचना की है
🌼1.बाल मनोवैज्ञानिक शिक्षा शास्त्र
🌼2. किशोर साहित्य

🌼🌼Notes by manjari soni 🌼

🔆बाल केन्द्रित शिक्षा (Child Centric Education/ प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) ➖

बाल केंद्रित शिक्षा को बाल केंद्रित एवं क्रिया केंद्रित करने की बुनियादी नीव की चर्चा प्रकृतिवाद के समय से ही की गई थी |

लेकिन मुख्य रूप से ncf-2005 या राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में बाल केंद्रित शिक्षा का विवरण किया गया |

बाल केंद्रित शिक्षा में बच्चे की क्षमता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रदान की जाती है |

इसके अंतर्गत बच्चे के सामाजिक सांस्कृतिक संज्ञानात्मक आदि सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए और उनकी व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रदान की जाती है |

बाल केंद्रित शिक्षा मुख्य रूप से प्राथमिक विद्यालयों में दी जाती है लेकिन इसका प्रावधान हाईस्कूल तक कर दिया गया है बाल केंद्रित शिक्षा में बच्चे को खोजकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है बच्चे की सोच में वैज्ञानिक तर्क का विकास किया जाता है जिससे वह किसी भी समस्या का समाधान स्वयं कर सकता है |

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और कार्यकारी योजना ( Program of Action POE) 1992 में कहा गया कि
” 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को बिना भेदभाव के साथ नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूल में टिकाए रखने तथा स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार प्रस्तुत किया था” |

यदि हम बाल केंद्रित शिक्षा की बात करते हैं तो उसका मुख्य उद्देश्य बच्चों को ध्यान में रखते हुए उनकी क्षमता के अनुसार शिक्षा देने की बात कही जाती है |

बाल केंद्रित शिक्षा के संदर्भ में भारतीय शिक्षाविद् गिजुभाई ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इन्होंने
“बाल मनोविज्ञान शिक्षाशास्त्र और किशोर साहित्य ”
नामक पुस्तकों की रचना की |

🔆 बाल केन्द्रित शिक्षा के सिद्धांत ➖

🎯 क्रियाशीलता का सिद्धांत➖

इस सिद्धांत के अनुसार छात्र को क्रियाशील होना जरूरी है इसमें बच्चे को क्रियाशील करके ज्ञान प्रदान किया जाता है बच्चे के हाथ पैर मस्तिष्क आदि सब सक्रिय होना चाहिए |

🎯 प्रेरणा का सिद्धांत➖

यदि बच्चा क्रियाशील है तभी वह सीख सकता है जो प्रेरणा के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि बच्चे अनुकरण करते हैं और अनुकरण से प्रेरित होकर सीखते हैं शिक्षक बच्चों को कुछ महापुरुषों की जीवनी, आत्मकथा ,कहानी, कविताएं ,आदि सुना कर भी प्रेरित कर सकते हैं |

🎯जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत➖

बच्चों को दैनिक जीवन से जोड़कर पढ़ाया जाना चाहिए जिससे बच्चे का ज्ञान स्थाई हो सके |

🎯 रूचि का सिद्धांत➖

रुचि कार्य करने की प्रेरणा देती है शिक्षण में बच्चों को रुचि होना चाहिए अन्यथा पढ़ाई नीरस हो जाएगी और बाल केंद्रित शिक्षा नहीं हो पाएगी |

🎯 निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत➖

जब तक निश्चित उद्देश्य नहीं होगा तब तक बाल केंद्रित शिक्षा का कोई मतलब नहीं है क्योंकि बच्चों को एक निश्चित लक्ष्य के साथ पढ़ाना चाहिए जिससे उनका शिक्षण प्रभावी हो सके |

🎯चयन का सिद्धांत➖

एक शिक्षक को बच्चे के शिक्षण का उद्देश्य उनके शिक्षण विधियों का चयन आदि के बीच एक संतुलन बनाकर अवश्य रखना चाहिए | अन्यथा शिक्षण रुचिकर नहीं होगा और इससे बाल केंद्रित शिक्षा की अवधारणा कोई अर्थ नहीं है |

🎯 व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत ➖

सभी बच्चों की सीखने की क्षमता उनके तौर-तरीके ,ऊंची सब अलग-अलग होती है और उस व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है अन्यथा उनकी विभिन्न व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान नहीं हो पाएगा |

🎯 लोकतांत्रिय सिद्धांत➖

लोकतांत्रिय रूप से बच्चे को शिक्षा देना बहुत आवश्यक है जिससे बच्चे की शिक्षा में प्रगति होगी तथा इससे बच्चे और शिक्षक दोनों के बीच एक अंतः क्रिया होगी दोनों सक्रिय रुप से उपस्थित रहेंगे |

🎯 विभाजन का सिद्धांत ➖

आवश्यकता के अनुसार शिक्षण का विभाजन बहुत आवश्यक है इससे बच्चों को क्या पढ़ाना है, क्या नहीं पढ़ाना है,क्या आवश्यक है, क्या नहीं आवश्यक है, इन सभी का निर्धारण हो जाता है और शिक्षण प्रक्रिया उचित ढंग से सुचारू रुप से चलती है |

🎯 निर्माण और मनोरंजन का सिद्धांत➖

बच्चों में निर्माण जरूरी है जो कि मनोरंजन से हो सकता है क्योंकि मनोरंजन से प्रेरणा मिलती है और रुचि भी बढ़ती है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

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💐💐 बाल केंद्रित शिक्षा💐💐
Child centeric education

▫️ बाल केंद्रित शिक्षण में व्यक्तिगत शिक्षण को महत्व दिया जाता है इसमें बालक का व्यक्तिगत निरीक्षण कर उसकी दैनिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
बालक के व्यवहार और व्यक्तित्व में सामान्यता के लक्षण होने पर बौद्धिक दुर्बलता समस्यात्मक बालक योगी बालक अपराधी बालक इत्यादि का निदान बाल केंद्रित शिक्षा से किया जाता है।

🌸 मुख्य रूप से ncf-2005 में बाल केंद्रित शिक्षा का विवरण किया, लेकिन प्रगतिवादी के समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्रित शिक्षा पर चर्चा करते हैं।

🌺 इसमें 14 वर्ष तक की आयु के “सभी बच्चों का नामांकन” और सार्वभौमिक रूप से “स्कूल में टिकाए रखने” तथा स्कूली “शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार” के लिए बाल केंद्रित शिक्षा का उपागम का विचार प्रस्तुत किया।

🌺राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE)– 1986
🌺 Program of Action–1992

💐 भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजू बधेका भाई है।

▫️ इन्होंने कई प्रकार की पुस्तकों की रचना की है।
👉 बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र
👉 किशोर साहित्य

💐 बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत💐

1– क्रियाशीलता का सिद्धांत:-
इस सिद्धांत मैं बच्चे को क्रियाशील करके ज्ञान प्रदान किया जाता है किसी भी क्रिया को करने में छात्र के हाथ पैर और मस्तिष्क सभी क्रियाशील हो जाते हैं।

2– प्रेरणा का सिद्धांत:- छात्र अनुकरणीय व्यवहार नैतिक कहानियां व नाटकों आदि के द्वारा बालक अच्छी तरह से सीखते हैं इसमें हम लोगों को महापुरुषों की जीवनी वैज्ञानिकों के उदाहरण आदि के माध्यम से प्रेरित करके आगे बढ़ा सकते हैं।

3– रुचि का सिद्धांत:- रुचि कार्य करने की प्रेरणा देती है अगर बालकों को किसी कार्य को करने में रुचि होती है तो वह उसको करने को उत्सुक होते हैं।

4– निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत:-
बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर देनी चाहिए क्योंकि उसका उद्देश्य निश्चित होगा तभी सफलता प्राप्त होगी।

5– चयन का सिद्धांत:- बालक की योग्यता के अनुसार ही विषय वस्तु का चयन करना चाहिए बाल केंद्रित शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम रूचि के अनुसार लचीला होना चाहिए।

6– व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत:-
प्रत्येक बालक की मानसिक क्षमता अलग-अलग होती हैं अतः उनकी विभिन्न नेताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा को अधिगम या पढ़ाना चाहिए जिससे अधिगम अत्यधिक रुचिकर और प्रभावशाली होगा।

7– लोकतंत्रीय सिद्धांत:- शिक्षा के लिए कक्षा में सभी विद्यार्थी समान है एक शिक्षक का कर्तव्य है कि वह सभी विद्यार्थियों को समान रूप से देखें।
उनसे कोई भेद भाव नही होना चाहिए।

8– विभाजन का सिद्धांत:- शिक्षक द्वारा जो भी पाठ पढ़ाया जाये उसे कुछ भागों में बांटकर सरल करके पढ़ाएं।

9– निर्माण व मनोरंजन का सिद्धांत:-

बाल केंद्रित शिक्षा करके सीखने पर अत्यधिक बल देता है तुम हमें बच्चों को हस्तकला एवं रचनात्मक कार्य भी करवाने चाहिए इन कार्यों से बालक के अध्ययन में रुचि बढ़ती है।

10– जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत:- ज्ञान, बालक के जीवन से संबंधित होना चाहिए जिससे बालकों को सीखने में सरलता अनुभव होती है।

💐💐💐💐💐

✍🏻 NOTES BY
💐Shashi Choudhary

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बाल केंद्रित शिक्षा (child centred education/progressive education) 🔥🔥

मुख्य रूप से ncf-2005 में बाल केंद्रित शिक्षा की विवरण की गई, लेकिन प्रकृतिवादी के समय से ही बाल केंद्रित और क्रिया केंद्रीय शिक्षा पर चर्चा की गई थी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 1986 (national policy on education)🔥🔥

संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति -1992
(Program of action)🔥🔥

14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चे का नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूल में टिकाए रखने तथा स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार प्रस्तुत किया गया था।

🌟 भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजुभाई बधेका की है। इन्होंने बहुत सारे पुस्तकों की रचना की जिनमें से “बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र” और “किशोर साहित्य”से सम्बन्धित पुस्तकों की रचना की।

बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत 🔥🔥

1. क्रियाशीलता का सिद्धांत(law of productivity)🔥🔥

बालकों को क्रियाशील रखकर शिक्षा प्रदान करना इससे किसी भी कार्य को करने में बालक के हाथ, पैर और मस्तिष्क क्रियाशील हो जाते हैं।

2. प्रेरणा का सिद्धांत 🔥🔥

इसके अंतर्गत बालकों को महापुरुषों, वैज्ञानिको, आदिं का उदाहरण देकर प्रेरित किया जाना शामिल है।

3. जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत 🔥🔥

बच्चों को जीवन से जुड़े हुए ज्ञान से संबंधित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जिससे बच्चे अपने पूर्व अनुभव के आधार पर नए ज्ञान को सीख सकें।

4. रुचि का सिद्धांत 🔥🔥

रूचि कार्य करने की प्रेरणा देती है। जब बच्चे को किसी कार्य को करने में रुचि होगी तभी वह उससे संबंधित किसी ज्ञान को रुचि के साथ सीखेगा।

5. निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत🔥🔥

बालक की शिक्षा उद्देश्य परक हो अर्थात बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश्य को पूर्ण करने वाली हो।

6. चयन का सिद्धांत🔥🔥

छात्रों को उनकी क्षमता,योग्यता और रूचि के अनुसार विषय वस्तु का चयन किया जाना चाहिए।

7. व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत🔥🔥

हर बच्चा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक आदि रूपों में अन्य बालकों से भिन्न होते हैं इसलिए हर बच्चों की विभिन्नताओं के अनुसार अलग-अलग विधियों से उनको शिक्षा दी जानी चाहिए। जिससे हर बच्चा सीख सके।

8. लोकतंत्र के सिद्धांत🔥🔥

शिक्षकों को चाहिए कि शिक्षार्थियों को समान रूप से शिक्षा प्रदान करें किसी भीे बच्चे में भेदभाव ना करें।

9. विभाजन का सिद्धांत🔥🔥

बच्चों को पाठ्य पुस्तक पढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनको क्या,कैसे और कितना पढ़ाना है इसके लिए विषय को छोटे-छोटे इकाइयों में विभाजित करके पढ़ाना चाहिए जिससे बच्चे को बोझ भी ना लगे और वह कक्षा में सक्रिय रूप से भाग ले सकें।

10. निर्माण और मनोरंजन का सिद्धांत🔥🔥

हर बच्चों को खेलो और गतिविधियों का हिस्सा बनने का अधिकार है जो उनके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक विकास की अनुमति देते हैं इसलिए शिक्षक को चाहिए कि शिक्षा में खेल भी शमिल करें जिससे बच्चे मे सर्वांगीण विकास हो सके।

Notes by-Shreya Rai🙏🙏

🎯बाल केंद्रित शिक्षा (child centric education)/प्रगतिशील शिक्षा (progressive education)🌈

💫मुख्य रूप से ncf-2005 में बाल केंद्रित शिक्षा की विवरण की गई, लेकिन प्रकृतिवादी से ही बालकेंद्रित और क्रियाकेंद्रित शिक्षा पर चर्चा की गई है।

💫 बाल केंद्रित शिक्षा में बच्चे के सभी पहलू को ध्यान में रखा जाता है जैसे- सामाजिक, सांस्कृतिक, संज्ञानात्मक इत्यादि।

👉इसमें बच्चों को सक्रिय खोजकर्ता के रूप में देखा जाता हैं। इसमें बच्चों के तर्क – वितर्क एवं समस्या समाधान इत्यादि का गुण विकसित होते हैं।

🌈राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE)- 1986

🌾कार्यकारी योजना(PROGRAM OF ACTION-(POE)1992

🍂14 वर्ष की आयु तक जितने भी बच्चे हैं सभी बच्चे का नामांकन और उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्कूल में टिकाए रखने तथा स्कूली शिक्षा के ठोस गुणवत्ता में ठोस सुधार के लिए बाल केंद्रित उपागम का विचार प्रस्तुत किया गया था।

🌹भारत में बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका गिजूभाई की थी।

🌿 गिजूभाई ने बहुत पुस्तकों की रचना की। जैसे:-
बाल मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र किशोर साहित्य इत्यादि।

💫बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत

🌴(1) क्रियाशीलता का सिद्धांत :-
छात्र को क्रियाशील करके शिक्षा प्रदान किया जाता है ।
जब बच्चा सक्रिय रहेगा तब वह मेहनत करेगा और सीखेगा।

हाथ पैर मस्तिष्क को सक्रिय होंगे जरूरत के अनुसार।

🌾(2) प्रेरणा का सिद्धांत :-

बचा अलग-अलग तरह से प्रेरणा मिलना चाहिए।
जैसे – पढ़ाई क्यों करनी है, महापुरुषों की जीवनी , वैज्ञानिक इत्यादि का उदाहरण देकर बच्चे प्रेरित किया जाना शामिल हैं।

🌻(3) जीवन से संबंधित करने का सिद्धांत:-

बच्चे अपने दैनिक जीवन में जो भी किए रहते हैं उनसे जोड़कर शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। ताकि बच्चे पूर्व अनुभव के आधार पर नए ज्ञान को सीख सकें।

🌀(4)रुचि का सिद्धांत :-

रुचि आएगी तब बच्चों में प्रेरणा आएगी बच्चों को काम के प्रति रुचि होनी चाहिए तो बच्चे प्रेरित होते हैं और रुचि के अनुरूप सीखते हैं।

रुचि कार्य करने की प्रेरणा देती है।

🥀(5) निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत :-

बालक की शिक्षा उद्देश्य परक, यानी बालक को दी जाने वाली शिक्षा बालक के उद्देश्य को पूर्ण करती हो।

🌺(6) चयन का सिद्धांत :-

बच्चों को किस तरीके से पढ़ाना है ,किस चीज में कितना समय देना है, चीजों को संतुलित करना अति आवश्यक है।

💐(7) व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत :-
विद्यालय में विभिन्न समूह ,जाति, धर्म ,लिंग के बच्चे होते हैं जिनको समझाना और सबको संतुलित करना बहुत जरूरी है।

☀️(8) लोकतंत्रीय सिद्धांत :-

शिक्षक बच्चों को साथ रखें, सबको साथ बढ़ाना है शिक्षार्थी को समान रूप से शिक्षा प्रदान करें।

🌴(9)विभाजन का सिद्धांत :-

शिक्षक को चाहिए कि बच्चों को क्या पढ़ना है, कैसे पढ़ाना है ,किस चीजों को कब ,कैसे, कितना समय देना है ।सब को लेकर चलना है।

🌹(10)निर्माण और मनोरंजन का सिद्धांत :-

रचनात्मक करने से बच्चे गेहूं निर्माण करते हैं कला कौशल इत्यादि से सीखते हैं तथा बच्चे में रुचि जागृत होती है प्रेरणा मिलता है और वह चीजों को आसानी से करने में सक्षम होते हैं।

🌴☘️🌻💫🙏Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏