एडवर्ड एल. थार्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत- A Complete Discussion

एडवर्ड एल. थार्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत के विभिन्न नाम :-

  1. उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धांत
  2. प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत
  3. संयोजनवाद का सिद्धांत
  4. अधिगम का बन्ध सिद्धांत
  5. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत
  6. S-R थ्योरी

महत्वपूर्ण तथ्य :-

=> यह सिद्धांत प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ‘एडवर्ड एल. थार्नडाइक’ द्वारा प्रतिपादित किया गया।

=> यह सिद्धांत थार्नडाइक द्वारा सन 1913 ई. में दिया गया।

=> थार्नडाइक ने अपनी पुस्तक “शिक्षा मनोविज्ञान” में इस सिद्धांत का वर्णन किया हैं।

=> थार्नडाइक ने अपना प्रयोग भूखी बिल्ली पर किया।

=> भूखी बिल्ली को जिस बॉक्स में बन्ध किया उस बॉक्स को “पज़ल बॉक्स”(Pazzle Box) कहते हैं।

=> भोजन या उद्दीपक के रूप में थार्नडाइक ने “मछली” को रखा।

थार्नडाइक का प्रयोग :-
थार्नडाइक ने अपना प्रयोग भूखी बिल्ली पर किया। बिल्ली को कुछ समय तक भूखा रखने के बाद एक पिंजरे(बॉक्स) में बन्ध कर दिया। जिसे “पज़ल बॉक्स”(Pazzle Box) कहते हैं। पिंजरे के बाहर भोजन के रूप में थार्नडाइक ने मछली का टुकड़ा रख दिया। पिंजरे के अन्दर एक लिवर(बटन) लगा हुआ था जिसे दबाने से पिंजरे का दरवाज़ा खुल जाता था। भूखी बिल्ली ने भोजन (मछली का टुकड़ा) को प्राप्त करने व पिंजरे से बाहर निकलने के लिए अनेक त्रुटिपूर्ण प्रयास किए। बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक का काम कर रहा था ओर उद्दीपक के कारण बिल्ली प्रतिक्रिया कर रही थी।उसने अनेक प्रकार से बाहर निकलने का प्रयत्न किया।एक बार संयोग से उसके पंजे से लिवर दब गया। लिवर दबने से पिंजरे का दरवाज़ा खुल गया ओर भूखी बिल्ली ने पिंजरे से बाहर निकलकर भोजन को खाकर अपनी भूख को शान्त किया। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को बार- बार दोहराया। तथा देखा कि प्रत्येक बार बिल्ली को बाहर निकलने में पिछली बार से कम समय लगा ओर कुछ समय बाद बिल्ली बिना किसी भी प्रकार की भूल के एक ही प्रयास में पिंजरे का दरवाज़ा खोलना सीख गई। इस प्रकार उद्दीपक ओर अनुक्रिया में सम्बन्ध स्थापित हो गया।

थार्नडाइक के नियम :-

मुख्य नियम :-

  1. तत्परता का नियम :-
    यह नियम कार्य करने से पूर्व तत्पर या तैयार किए जाने पर बल देता है। यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर या तैयार होता है, तो उसे शीघ्र ही सीख लेता है। तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित होती है। ध्यान केंद्रित करने मेँ भी तत्परता सहायता करती है।
  2. अभ्यास का नियम :-
    यह नियम किसी कार्य या सीखी गई विषय वस्तु के बार-बार अभ्यास करने पर बल देता है। यदि हम किसी कार्य का अभ्यास करते रहते है, तो उसे सरलतापूर्वक करना सीख जाते है। यदि हम सीखे हुए कार्य का अभ्यास नही करते है, तो उसको भूल जाते है।
  3. प्रभाव (परिणाम) का नियम :-
    इस नियम को सन्तोष तथा असन्तोष का नियम भी कहते है। इस नियम के अनुसार जिस कार्य को करने से प्राणी को सुख व सन्तोष मिलता है, उस कार्य को वह बार-बार करना चाहता है और इसके विपरीत जिस कार्य को करने से दुःख या असन्तोष मिलता है, उस कार्य को वह दोबारा नही करना चाहता है।

गौंण नियम :-

  1. बहु-प्रतिक्रिया का नियम :-
    इस नियम के अनुसार जब प्राणी के सामने कोई परिस्थिति या समस्या उत्पन्न हो जाती है तो उसका समाधान करने के लिए वह अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएं करता है,और इन प्रतिक्रियाएं को करने का क्रम तब तक जारी रहता है जब तक कि सही प्रतिक्रिया द्वारा समस्या का समाधान या हल प्राप्त नहीं हो जाता है। प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत इसी नियम पर आधारित हैं।
  2. मनोवृत्ति का नियम :-
    इस नियम को मानसिक विन्यास का नियम भी कहते है। इस नियम के अनुसार जिस कार्य के प्रति हमारी जैसी अभिवृति या मनोवृति होती है, उसी अनुपात में हम उसको सीखते हैं। यदि हम मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो या तो हम उसे करने में असफल होते हैं, या अनेक त्रुटियाँ करते हैं या बहुत विलम्ब से करते हैं।
  3. आंशिक क्रिया का नियम :-
    इस नियम के अनुसार किसी कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करने से कार्य सरल और सुविधानक बन जाता है। इन भागों को शीघ्रता और सुगमता से करके सम्पूर्ण कार्य को पूरा किया जाता है। इस नियम पर ‘अंश से पूर्ण की ओर’ का शिक्षण का सिद्धांत आधारित किया जाता है।
  4. सादृश्यता अनुक्रिया का नियम :-
    इस नियम को आत्मीकरण का नियम भी कहते है। यह नियम पूर्व अनुभव पर आधारित है। जब प्राणी के सामने कोई नवीन परिस्थिति या समस्या उत्पन्न होती है तो वह उससे मिलती-जुलती परिस्थिति या समस्या का स्मरण करता है, जिसका वह पूर्व में अनुभव कर चुका है। वह नवीन ज्ञान को अपने पर्व ज्ञान का स्थायी अंग बना लेते हैं।
  5. साहचर्य परिवर्तन का नियम :-
    इस नियम के अनुसार एक उद्दीपक के प्रति होने वाली अनुक्रिया बाद में किसी दूसरे उद्दीपक से भी होने लगती है। दूसरे शब्दों में, पहले कभी की गई क्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में उसी प्रकार से करना । इसमें क्रिया का स्वरूप तो वही रहता है, परन्तु परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है।थार्नडाइक ने पावलव के शास्त्रीय अनुबन्धन को ही साहचर्य परिवर्तन के नियम के रूप में व्यक्त किया।

Child Development & Pedagogy Important Theories & Definitions for CTET/TETs/KVS etc

Child Development & Pedagogy Important Theories & Definitions for CTET/TETs/KVS etc

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Neetu Rana

Child Development & Pedagogy Important Theories & Definitions for CTET/TETs/KVS etc

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत और प्रतिपादक for CTET/TETs/KVS etc

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत और प्रतिपादक for CTET/TETs/KVS etc

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बाल विकास और शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत और प्रतिपादक for CTET/TETs/KVS etc

अनुकूलन , आत्मसात्करण , समंजन , संज्ञानात्मक संरचना , मानसिक संक्रिया , स्कीम्स , स्कीमा

अनुकूलन , आत्मसात्करण , समंजन , संज्ञानात्मक संरचना , मानसिक संक्रिया , स्कीम्स , स्कीमा

पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण मना है ।

पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -पकियोओं में बॉटा है।

(i) आत्मसात्करण ( Assimilations )
(ii) समंजन ( Accommodation )

(1) आत्मसात्करण एक ऐसी पक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रिमाओं का सहारा लेता है । यह एक जीव – वैज्ञानिक प्रक्रिया है । आत्मसात्करण को हम इस उदाहरण के माध्यम से भी समझ सकते हैं कि जब हम भोजन करते हैँ तो मूलरूप से भोजन हमारे भीतर नहीं रह पाता है बल्कि भोजन से बना हुआ रक्त हमारी मांसपेशियों मे इस प्रकार समा जाता है कि जिससे हमारी मांसपेशियों की संरचना का आकार बदल जाता है । इससे यह बात स्पष्ट होती है कि आत्मसात्करण की प्रक्रिया से संरचनात्मक परिर्वतन होते हैं ।

पियाजे के शब्दों में ” नए अनुभव का आत्मसात्करण करने के लिए अनुभव के स्वरूप में परिवर्तन लना पड़ता है । जिससे वह पुराने अनुभव के साथ मिलजुलकर संज्ञान के एक नए ढांचे को पैदा करना पड़ता है । इससे बालक के नए अनुभवों में परिर्वतन होते है ।

(2) संमजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है , तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है और उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।

समंजन को आत्मसात्करण की एक पूरक प्रकिया माना जाता है । बालक अपने वातावरण या परिवेश के साथ समायोजित होने के लिए आत्मसात् करण और समंजन का सहरा आवश्यकतानुसार लेते हैं ।

संज्ञानात्मक संरचना ( Cognitiive structure ) : पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक संरचना से तात्पर्य बालक का मानसिक संगठन से है । अर्थात् बुद्धि में संलिप्त विभिन्न क्रियाएं जैसे – प्रत्यक्षीकरण स्मृति, चिन्तन तथा तर्क इत्यादि ये सभी संगठित होकर कार्य करते हैं । वातावरण के साथ सर्मयाजन , संगठन का ही परिणाम है ।

मानसिक संक्रिया ( Mental operation ): बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए जाने वाले चिन्तन को ही मानसिक संक्रिया कहते हैं ।

स्कीम्स ( Schemes ) : यह बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए गए चिन्तन का आभिव्यकत रूप होता । अर्थात् मानसिक संक्रियाओं का अभिव्यक्त रूप ही स्कीम्स होता है ।

स्कीमा ( Schema ) : एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्यीकरण किया जा सके, स्कीमा होता है ।

Ink Blot Test / Thematic Apperception Test (T.A.T.) / Children Apperception Test (C.A.T)

हरमन रोर्शा का स्‍याही धब्‍बा परीक्षण – Rorschach’s Ink Blot Test

प्रक्षेपण परीक्षण में सबसे प्रचलित एवं प्रमुख परीक्षण रोर्शा परीक्षण (Rorschach test) है जिसका प्रतिपादन स्विट्जरलैण्‍ड के मनोचिकित्‍सक हरमन रोर्शा ने सन् 1921 में किया।
इस परीक्षण में 10 कार्ड पर स्याही के धब्बे बने होते है।
5 कार्डों पर काले व सफेद तथा बाकी 5 कार्डों पर विभिन्न रंगों के धब्बे बने होते है।
जे. एस. बालिया ने कार्डों पर चित्रों का वर्णन इस प्रकार किया है—5 कार्ड बिल्कुल काले, 2 कार्ड काले + लाल, 3 कार्ड अनेक रंगों के।
यह परीक्षण व्यक्तिगत रूप से किसी भी आयु वर्ग पर प्रयोग किया जा सकता है।
विशेषकर यह परीक्षण 14 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के बालक-बालिकाओं के काम में लिया जाता है।
इस परीक्षण में प्रत्‍येक कार्ड एक – एक करके, उस व्‍यक्ति को दिया जाता है जिसका व्‍यक्तित्‍व मापन किया जाता है। वह व्‍यक्ति कार्ड को जैसे चाहे घुमा – फिरा सकता है और ऐसा करके उसे बताना होता है कि उसे उस कार्ड में क्‍या दिखाई दे रहा है या धब्‍बा का कोई अंश या पूरा भाग उसे किस चीज के समान दिखाई पड़ रहा है।

व्‍यक्ति द्वारा दिए गए अनुक्रियाओं को लिख लिया जाता है और बाद में उनका विश्‍लेषण कुछ खास-खास अक्षर संकेतों के सहारे निम्‍नांकित चार भागों में बाँटकर किया जाता है →

  1. स्‍थान निरूपण (Location) – इस श्रेणी में इस बात का निर्णय किया जाता है कि व्‍यक्ति की अनुक्रिया का संबंध स्‍याही के पूरे धब्‍बे से है या उसके कुछ अंश से है। अनुक्रिया पूरे अक्षर के लिए W से अंकित करते हैं, बड़े धब्‍बे या सामान्‍य अंश के लिये D तथा छोटे धब्‍बे या असामान्‍य के लिऐ Dd का प्रयोग किया जाता है। उजले या सफेद स्‍थानों के लिए अनुक्रिया करने पर S का प्रयोग किया जाता है।
  2. निर्धारक (Determinants) – इस श्रेणी में इस बात का निर्णय किया जाता है कि धब्‍बा का कौनसे गुण के कारण व्‍यक्ति अमुक अनुक्रिया करता है। जैसे कि माना व्‍यक्ति किसी धब्‍बे में चमगादड़ होने की अनुक्रिया करता है। इस श्रेणी में लगभग 24 अक्षर संकेतों का प्रतिपादन किया गया है। आकार के लिए F, रंग के लिए, C मानव गति के लिए M, पशु गति के लिए FM तथा निर्जीव गति अनुक्रिया के लिए m आदि।
  3. विषय-वस्‍तु – इस श्रेणी में देखा जाता है कि व्‍यक्ति द्वारा दी गई अनुक्रिया की विषय-वस्‍तु क्‍या है। विषय-वस्‍तु मनुष्‍य होने पर H, पशु होने पर A, मानव के किसी अंग के विवरण होने पर Hd तथा पशु के किसी अंग के विवरण के लिए Ad, आग के लिए Fi, यौन के लिए Sx तथा घरेलु वस्‍तुओं के लिए Hh का प्रयोग किया जाता है।
  4. मौलिक अनुक्रिया एवं संगठन – मौलिक अनुक्रिया से तात्‍पर्य उस अनुक्रिया से होता है जो अनेक व्‍यक्तियों द्वारा किसी कार्ड के प्रति अक्‍सर दिए जाते हैं। इसे लोकप्रिय अनुक्रिया भी कहते है। इसका संकेत P है। जैसे प्रथम कार्ड के धब्‍बे को चमगादड़ या तितली बताना एक लोकप्रिय अनुक्रिया का उदाहरण है। अनुक्रियाओं के संगठन के लिए Z संकेत का प्रयोग किया जाता है।

रोर्शा परीक्षण पर दी गई अनुक्रियाओं का विश्‍लेषण →
W अनुक्रिया → तीव्र बुद्धि तथा अमूर्त चिन्‍तन का बोध
D अनुक्रिया → स्‍पष्‍ट रूप से देखने व समझने की क्षमता का बोध
Dd अनुक्रिया → चिन्‍तन में स्‍पष्‍टता का बोध
S अनुक्रिया → नकारात्‍मक प्रवृत्ति तथा आत्‍म-हठधर्मी का बोध
F अनुक्रिया → चिन्‍तन के समय एकाग्रता का बोध
A अनुक्रिया → बौद्धिक संकीर्णन तथा सांवेगिक असंतुलन का बोध
P अनुक्रिया → रूढिगत चिन्‍तन एवं सृजनात्‍मकता का बोध
Z अनुक्रिया → उच्‍च बुद्धि, सृजनात्‍मकता तथा निपुणता का बोध

रोर्शा के समान ही एक दूसरा स्‍याही धब्‍बा परीक्षण होल्‍जमैन ने सन् 1961 में प्रतिपादित किया। जिसमें कुल दो फार्म एवं 45 कार्ड होते है। लेकिन यह रोर्शा के समान लोकप्रिय नहीं हो सका।

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विषय-आत्‍मबोधन परीक्षण [Thematic Apperception Test (T.A.T.)]
इस परीक्षण का निर्माण मर्रे ने सन् 1935 में हारवार्ड विश्‍वविद्यालय, अमेरिका में किया। सन् 1938 में मार्गन के साथ मिलकर इस परीक्षण का संशोधन किया।

· इस परीक्षण को प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण तथा कथा प्रसंग परीक्षण भी कहते है।
· इस परीक्षण में कुल कार्ड = 30 (इनके अलावा एक खाली कार्ड)
· चित्रों से सम्बन्धित कुल कार्ड = 30 (जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को दिखाने वाले कार्ड)
· खाली कार्ड की संख्या=1 (इस पर कहानी लिखने के लिए कहा जाता है)
· इस परीक्षण में जीवन की विभिन्न स्थितियों को दिखाने वाले कार्डों पर चित्र दिखाये गये।
· इस परीक्षण के अन्तर्गत 10 कार्डों पर पुरुषों से सम्बन्धित चित्र एवं 10 कार्डो पर स्त्रियों से सम्बन्धित चित्र तथा अन्य 10 पर दोनों से सम्बन्धित चित्र बने होते है।
· यह परीक्षण व्यक्तिगत व सामुहिक दोनों रूपों में प्रयोग किया जा सकता है।
· यह परीक्षण 14 वर्ष से अधिक आयु वालें बालक-बालिकाओं के लिए विशेष उपयोगी होता है।
· इसमें व्यक्ति को चित्र दिखाया जाता है, उसके उपरान्त कहानी लिखने को कहा जाता है।
· इस विधि में बालक-बालिकाओं को विभिन्न कार्ड दिखाकर कहानी, या कथानंक लिखने को कहा जाता है।
· कार्ड पर अस्पष्ट चित्र बने होते हैं।
· इस परीक्षण के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी खुद की आवश्यकताओं, उद्देश्यों, भावनाओं, कठिनाईयों, समस्याओं, संघर्षों, निराशाओं आदि को प्रस्तुत करता है।
· इस परीक्षण का क्रियान्वयन दो सत्रों में होता है- पहले सत्र में 10 कार्ड तथा दूसरे सत्र में अंतिम 10 कार्ड व्यक्ति को देकर उसे आधार पर कहानी लिखने को कहा जाता है।
· मर्रे के अनुसार दोनों सत्रों में कम से कम 24 घंटों का अन्तर होना चाहिए।
· सभी कार्डों के आधार पर कहानी-लेखन का कार्य समाप्त होने पर साक्षात्कार किया जाता है जिसका उद्देश्य यह जानना हाता है कि कहानी लिखने में व्यक्ति की कल्पनाशक्ति का स्रोत, मात्र चित्र था या कोई बाहर की घटना भी रही।

मर्रे के अनुसार इस परीक्षण का विश्लेषण निम्नांकित प्रसंगों में किया जाता है—

  1. नायक (Hero) → प्रत्येक कहानी में नायक या नायिका का पता लगाया जाता है। ऐसा समझा जाता है कि व्यक्ति इस नायक या नायिका के साथ आत्मीकरण स्थापित कर अपने व्यक्तित्व के शीलगुणों, विशेषकर अपनी महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं को दिखाता है।
  2. आवश्यकता (Need) → प्रत्येक कहानी में नायक या नायिका की मुख्य आवश्यकताएँ क्या – क्या हैं, इसका पता लगाया जाता है। मर्रे के अनुसार TAT परीक्षण के द्वारा मानव की 28 आवश्यकताओं का मापन होता है। इनमें प्रमुख है – उपलब्धि आवश्यकता, संबंधन आवश्यकता तथा प्रभुत्व आवश्यकता।
  3. प्रेस (Press) → प्रेस (शक्ति या बल) से तात्पर्य कहानी के उस वातावरण संबंधी बलों से होता है, जिससे कहानी के नायक की आवश्यकता या तो पूरी होती है या पूरी होने से वंचित रह जाती है। मर्रे के अनुसार ये शक्तियां या बल 30 से भी अधिक है जो वातावरण संबंधी है। जैसे-आक्रामकता या आक्रमण तथा शारीरिक खतरा।
  4. थीमा (Thema) → प्रत्येक कहानी की थीमा का निर्धारण किया जाता है। थीमा से तात्पर्य नायक की आवश्यकता तथा प्रेस अर्थात् वातावरण-संबंधी बल की अन्त:क्रिया से उत्पन्न घटना से होता है। थीमा द्वारा व्यक्तित्व में निरन्तरता का ज्ञान होता है।
  5. परिणाम (Outcome) → परिणाम से तात्पर्य इस बात से होता है कि कहानी को किस तरह समाप्त किया गया है। कहानी का निष्कर्ष निश्चित है या अनिश्चित है। निश्चित एवं स्पष्ट निष्कर्ष होने से व्यक्ति में परिपक्वता तथा वास्तविकता के ज्ञान होने का बोध होता है।

बाल-अन्‍तर्बोध परीक्षण [Children Apperception Test (C.A.T)]

इस परीक्षण का निर्माण ल्‍योपोल्‍ड बेलाक ने सन् 1948-49 में किया तथा इसका प्रकाशन सन् 1954 में तथा संशोधित रूप 1993 में भी किया गया।

· इस परीक्षण को बाल सम्‍प्रत्‍यय परीक्षण भी कहते है।
· इसका अन्य संशोधन एवं विकास डॉ. अरनेष्ट क्रिस ने सन् 1951 में भी किया था।
· इस परीक्षण में 10 कार्डों पर पशुओं के चित्र बने होते है।
· बालकों को कार्ड/चित्र दिखाकर कहानी लिखने के लिए कहा जाता है।
· यह परीक्षण भी व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों रूपों में प्रयोग में लाया जाता है।
· यह परीक्षण 3 से 10 वर्ष के बालक-बालिकाओं के लिए उपयोगी है।
· इस परीक्षण में बालक कहानी बनाते समय अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को भी प्रस्तुत करता है, जो बच्चों की समस्याओं को प्रकट करती हैं।

आकलन एवं मूल्यांकन में अंतर

आकलन एवं मूल्यांकन

आकलन एवं मूल्यांकन दो अलग-अलग पद हैं एवं इन दोनों के अर्थ में भिनता है । आकलन को जहां एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया माना जाता है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं ।
वही मूल्यांकन को योगात्मक प्रक्रिया माना जाता है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठ्यक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात की जाती है ।

आकलन :–का उद्देश्य निदानात्मक होता है । अर्थात शिक्षण अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापकों को पृष्ठपोषण प्रदान करना तथा छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना आदि ।
मूल्यांकन:–का उद्देश्य मूल्य निर्धारण करना होता है । यथा निर्धारित पाठ्यक्रम की समाप्ति पर विद्यार्थियों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है ।

इस प्रकार, आकलन एवं मूल्यांकन दोनों भिन्न-भिन्न उद्देश्य से भिन्न-भिन्न समय पर विद्यार्थियों की उपलब्धि का अनुमान लगाने की प्रक्रिया है ।

भाषा शिक्षण में आकलन एवं मूल्यांकन

–भाषा शिक्षण में आकलन एवं मूल्यांकन का आशय उन प्रक्रियाओं से हैं जिनकी सहायता से एक शिक्षक विद्यार्थियों के भाषा संबंधी समस्त कौशलों के संबंध में शिक्षण अवधि के दौरान एवं पाठ्यक्रम की समाप्ति पर निर्णय करता है ।

आइए अब हम जानते हैं की जब एक भाषा शिक्षक आकलन करता है तब वह अपने विद्यार्थियों में क्या देखता है? –

*–विद्यार्थी कितना पढ़ पाता है?
*– कैसे पढ़ पाता है ?
*–रुक रुक कर पढ़ता है या धारा-प्रवाह पढ़ता है ।
*–ठीक से नहीं पढ़ पा रहा है तो उसका क्या कारण है ? जैसे एक डॉक्टर बिना मरीज के रोग को जाने वह उस रोग का कैसे इलाज करेगा?
*–क्या वह अक्षरों को पहचान नहीं पा रहा है या शब्दों को एक इकाई के रूप में पढ़ने का अभ्यस्त नहीं है ?

*–भाषा को सुनकर कितना समझ पाता है ?
*–कितने आत्मविश्वास से वह स्वयं को अभिव्यक्त कर पाता है?

आइए अब हम जानते हैं भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन के बिंदु कौन-कौन से हैं ?

*सबसे पहले जब हम प्राथमिक स्तर की बात करते हैं जब विद्यार्थी भाषा सीखने की शुरुआत करता है तो उस अस्तर पर हम सबसे पहले विद्यार्थी की प्रवाहिता की जांच करते हैं ।

  • फिर हम प्राथमिक स्तर पर शुद्धता की बात करते हैं कि विद्यार्थी कितना शुद्ध बोल रहा है ? कितना शुद्ध लिख रहा है ? कितना किसी की बातों को सुनकर शुद्ध समझ रहा है ?

अतः सबसे पहले हमें प्रवाहिता पर बल देना चाहिए इसके बाद ही हमें उसके बोलने की शुद्धता पर बल देना चाहिए ।

  • हमें यह देखना चाहिए कि विद्यार्थी की प्रवाहिता तथा शुद्धता दोनों का तालमेल बना रहे । इसके बाद ही भाषाई कौशलों का आकलन होती है ।
  • भाषाई कौशलों का आकलन के अंतर्गत चार प्रमुख कौशल है जो निम्नलिखित है ।
  1. श्रवण कौशल ।
  2. भाषण कौशल ।
  3. पठन कौशल तथा
  4. लेखन कौशल ।

आप तो जानते हैं कि मूल्यांकन की प्रक्रिया निरंतर चलती है परंतु किन तरीकों से चलती है यह जानना बहुत जरूरी है ।

आइए हम जानते हैं अपने विद्यालय में एक शिक्षक के द्वारा भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन के तरीके कौन-कौन से है ? –
सामान्यता दो तरीकों का प्रयोग किया जाता है :–

  1. लिखित परीक्षा एवं ।
  2. मौखिक परीक्षा ।
    इसके लिए बनाए गए प्रश्न पत्र पाठ्यपुस्तकों पर आधारित होते हैं जो भाषाई ज्ञान का आकलन कम एवं विद्यार्थी के स्मरण शक्ति का आकलन अधिक करते हैं ।

लिखित परीक्षा में विद्यार्थी को प्रश्न पत्र दे दिया जाता है जो उसके पाठ्यपुस्तकों पर आधारित होते हैं । अगर विद्यार्थी उन प्रश्न पत्रों का संतुष्टि तक उत्तर दे दिया तो वह उत्तीर्ण हो जाता है । नहीं तो उसे अनुत्तीर्ण कर दिया जाता है ।

क्या इससे विद्यार्थी का भाषा कौशल का मूल्यांकन हुआ नहीं न? चुकी लिखित परीक्षा से हम विद्यार्थी का केवल स्मरण शक्ति का ही मूल्यांकन कर सकते हैं । जो हमारे लिए उद्देश्यहीन मूल्यांकन है ।

आइए अब हम जानते हैं मूल्यांकन का सही तरीका

भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन की निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाना चाहिए ।

  1. मौखिक परीक्षण जो औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों हो सकते हैं ।
    यहां अनौपचारिक का मतलब है कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते किसी विद्यार्थियों से कोई प्रश्न पूछ दिया या किसी शब्द का अर्थ बताने को पूछ दिया ।
    1) प्रश्न-उत्तर का सत्र चलाया जाए
    2) कहानी कथन का सत्र चलवाया जाए ।
    3) विद्यार्थी को बोल बोलकर पढ़ाया जाए । ऐसा करवाने से विद्यार्थी द्वारा किया गया शुद्ध या अशुद्ध उच्चारण शिक्षक के साथ-साथ सभी विद्यार्थियों तक पहुंचता है तथा एक दूसरे को अपनी त्रुटियों से अवगत कराते हैं
    4) विद्यार्थी द्वारा देखी या सुनी बात का वर्णन करवाया जाए । जैसे कि विद्यार्थी से पूछा जाए कि जब आप स्कूल आ रहे थे तो आपने रास्ते में क्या देखा क्या सुना कृपया बताइए । यहां हम उसकी स्मरण क्षमता का मूल्यांकन नहीं करते हैं । यहां हम उसके अभिव्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं उसके विचारों का मूल्यांकन करते हैं कि वह कैसे अपने बातों को व्यक्त करता है ?
  2. लिखित परीक्षा –
    लिखित परीक्षा में सिर्फ प्रश्नों का उत्तर ले लेना ही पर्याप्त नहीं है । इसके लिए हमें निम्नलिखित युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए ।
    जैसे 1. श्रुतलेख :–इसमें एक व्यक्ति बोलता है तो दूसरा व्यक्ति सुनकर लिखता है। ऐसा करने से हम विद्यार्थी के श्रवण तथा लेखन क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  3. आपूर्ति परीक्षण:- जिसे हम अंग्रेजी में क्लोज टेस्ट कहते हैं इसमें हम किसी कहानी या निबंध से कोई अनुच्छेद ले लेते हैं फिर उन अनुच्छेदों में से कुछ–कुछ शब्द निकालकर विद्यार्थियों के सामने रखते है फिर विद्यार्थियों को भरने के लिए कहां जाता है कि उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति करें । ऐसा करने से हम विद्यार्थी के व्याकरण क्षमता, शब्द भंडार,पढ़कर समझने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  4. कहानी का अपनी मातृभाषा में पुनर्लेखन : इसमें हम विद्यार्थी द्वारा पहले से पढ़ा गया पाठ को हम उनकी मातृभाषा में पुनर्लेखन को कहते हैं यहां हम उनकी लेखन क्षमता की जांच कर लेते हैं । साथ ही साथ हम एक भाषा से दूसरी भाषा में उनके द्वारा अनुवाद करने का क्षमता का भी आकलन कर लेते हैं ।
  5. कहानी का शीर्षक लिखना : इसमें हम विद्यार्थी को किसी निबंध,उपन्यास तथा अनुच्छेद का शीर्षक लिखने को कह कर हम उनके पठन की समझ क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  6. कहानी से प्रश्न बनाना: ऐसा करने से हम विद्यार्थी के प्रश्न बनाने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  7. नाटक का मंचन एवं संवाद लेखन : ऐसा करने से हम पाते हैं कि विद्यार्थी को कहां तक समझ आया कि वह किस अभिनय कर्ता को किस समय पर क्या प्रस्तुत करना है नाटक का मंच कैसा हो ? आदि के बारे में आकलन कर लेते हैं
  8. कविता की व्याख्या या उसका भावार्थ लेखन आदि ।

अतः मूल्यांकन का आकलन करते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसा कि मैंने पहले भी ऊपर में बताया है कि परीक्षण विद्यार्थी की भाषा ज्ञान एवं क्षमता का आकलन एवं मूल्यांकन करने वाला होना चाहिए ना कि उनकी स्मरण शक्ति का ।
दूसरी बात आकलन करते समय हमें विद्यार्थी के मात्र कमजोर पक्षों को ही नहीं देखना चाहिए बल्कि उनकी कारण को भी ढूंढना चाहिए जिनके कारण विद्यार्थी की आपेक्षित पहलू कमजोर है ।

बाल विकास के सिद्धांत और इस के प्रवर्तक

बाल विकास के सिद्धांत और इस के प्रवर्तक

प्रश्‍न 1 – क्षेत्र सिद्धान्‍त किस विद्वान ने दिया था ।
उत्‍तर – कर्ट लविन ने

प्रश्‍न 2 – कर्ट लेविन कहॉ के वैज्ञानिक थे।
उत्‍तर – जर्मनी के

प्रश्‍न 3 – गेस्‍टाल्‍टवादी क्‍या है।
उत्‍तर – जर्मनी के विद्वानों का समूह जिसमे

  1. कोहलर
  2. कोफा
  3. वर्दिमर
    शामिल है

प्रश्‍न 4 – कर्ट लेविन किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 5 – क्षेत्र सिद्धान्‍त को किस-किस नाम से जाना जाता है।
उत्‍तर –

  1. संज्ञानात्‍मक क्षेत्र सिद्धान्‍त
  2. स्‍थान मनोविज्ञान सिद्धान्‍त
  3. बाल दिशा मनोविज्ञान

प्रश्‍न 6 – कर्ट लेविन के क्षेत्र सिद्धान्‍त मे क्षेत्र का अर्थ क्‍या है।
उत्‍तर – जीवन के विभिन्‍न क्षेत्रों से है।
जैसे

  1. शिक्षा का क्षेत्र
  2. स्‍वाथ्‍य का क्षेत्र

प्रश्‍न 7 – अधिगम का श्रेणीक्रम सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – रार्बट गेने ने दिया

प्रश्‍न 8 – रार्बट गेने किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 9 – रार्बट गेने कहॉ के वैज्ञानिक थे।
उत्‍तर – अमेरिका के

प्रश्‍न 10 – रार्बट गेने ने बालकों के विकास को ध्‍यान में रखते हुये अधिगम कि प्रक्रिया को कितने भागो में बांटा है।
उत्‍तर – 8 भागों में बांटा जिसका क्रमिक रूप

  1. संकेत अधिगम
  2. उद्वीपक अधिगम अभिक्रिया (S.R अधिगम भी कहते है)
  3. श्रंखला अधिगम
  4. शाब्दिक अधिगम
  5. बहुविवेदन अधिगम
  6. प्रत्‍यय अधिगम
  7. सिद्धान्‍त अधिगम
  8. समस्‍या समाधान अधिगम

प्रश्‍न 11 – रार्बट गेने के अनुसार अधिगम का सबसे निम्‍न स्‍तर कौन सा है ।
उत्‍तर – संकेत अधिगम

प्रश्‍न 12 – रार्बट गेने के श्रेणीक्रम सिद्धान्‍त के अनुसार अधिगम का सबसे उच्‍चतम स्‍तर कौन सा है।
उत्‍तर – समस्‍या समाधान अधिगम

प्रश्‍न 13 – रार्बट गेने के अनुसार बालक का अधिगम कब पूरा हो जाता है।
उत्‍तर – 12 वर्ष के उपरान्‍त (जब वह अपनी समस्‍याओं का समाधान करने लगता है)

प्रश्‍न 14 – शास्‍त्रीय अनुबन्‍ध का सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – पैवलॉव ने

पश्‍न 15 – पैवलॉव किस सम्‍प्रदाय के सर्मथक थे।
उत्‍तर – व्‍यवहार वादी

प्रश्‍न 16 – डमरू पर बन्‍दर का नाचना किस सिद्धान्‍त पर कार्य करता है।
उत्‍तर – शास्‍त्रीय अनुबन्‍ध का सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 17 – खेत मे बिजूका का खडा करना एवं उसे देखकर पक्षियों का भागना किस सिद्धान्‍त पर कार्य करता है।
उत्‍तर – शास्‍त्रीय अनुबन्‍ध का सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 18 – सुल्‍तान नाम के चिमपान्‍जी पर किसने प्रयोग किये ।
उत्‍तर – कोहलर ने ।

प्रश्‍न 19 – कोहलर किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 20 – चूहे पर अपना प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया।
उत्‍तर – स्किनर ने

प्रश्‍न 21 – स्किनर किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – व्‍यवहार वादी

प्रश्‍न 22 – नये रचनात्‍मक कार्यो को सीखने पर कौन सा सिद्धान्‍त बल देता है।
उत्‍तर – अर्न्‍तद्रष्टि का सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 23 – अर्न्‍तद्रष्टि का सिद्धान्‍त किस वैज्ञानिक ने दिया।
उत्‍तर – कोहलर ने

प्रश्‍न 24 – मानसिक रूप से मन्‍द बालको को सीखने पर कौन सा सिद्धान्‍त उपयोगी है।
उत्‍तर – शास्‍त्रीय अनुबन्‍ध सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 25 – संज्ञानात्‍मक सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – ब्रूनर ने

प्रश्‍न 26 – मानव विकास किन दोनों के योगदान का परिणाम है।
उत्‍तर – वंशानुक्रम एवं वातावरण का

प्रश्‍न 27 – प्राथमिक विद्यालयों के बालकों के लिए निम्‍न में से किसे बेहतर मानते है।
उत्‍तर – स्‍वयं के द्वारा किया गया अनुभव

प्रश्‍न 28 – जिस प्रक्रिया में व्‍यक्ति दूसरों के व्‍यवहार से सीखता है न कि प्रत्‍यक्ष अनुभव से, को कहा जाता है।
उत्‍तर – सामाजिक अधिगम

प्रश्‍न 29 – कौन सा सिद्धांत व्‍यक्‍त करता है कि मानव मस्तिष्‍क एक बर्फ की बड़ी चट्टान के समान है जो कि अधिकांशत: छिपी रहती है एवं उसमें चेतन के तीन स्‍तर है।
उत्‍तर – मनोविश्‍लेषणात्‍मक सिद्धांत

प्रश्‍न 30 – अवधारणाओं का विकास मुख्‍य रूप से हिस्‍सा है।
उत्‍तर – बौद्धिक विकास

प्रश्‍न 31 – व्‍यक्तिगत शिक्षार्थी एक-दूसरे से ………….. में भिन्‍न होते है।
उत्‍तर – विकास की दर

प्रश्‍न 32 – बच्‍चों का मूल्‍यांकन होना चाहिए।
उत्‍तर – सतत एवं व्‍यापक परीक्षा द्वारा

प्रश्‍न 33 – वाइगोट्सकी बच्‍चों को सीखने में निम्‍नलिखित में से किस कारक की महत्‍वपूर्ण भूमिका पर बल देते है।
उत्‍तर – सामाजिक

प्रश्‍न 34 – जब बच्‍चे की दादी उसे उसकी मॉ की गोद से लेती है, तो बच्‍चा रोने लगता है, बच्‍चे के रोने का कारण है।
उत्‍तर – संवेगात्‍मक दुश्चिंता

प्रश्‍न 35 – निम्‍नलिखित में से कौन सा सूक्ष्‍मगतिक कौशल का उदाहरण है।
उत्‍तर – लिखना

प्रश्‍न 36 – किशोर ………………….. का अनुभव कर सकते है।
उत्‍तर – दुश्चिंता और स्‍वयं से सरोकार

प्रश्‍न 37 – नर्सरी कक्षा से शुरूआत करने के लिए कौन सी विषय वस्‍तु सबसे अच्‍छी है।
उत्‍तर – मेरा परिवार

प्रश्‍न 38 – ‘’संवेग व्‍यक्ति की उत्‍तेजित दशा है’’ यह कथन है-
उत्‍तर – वुडवर्थ

प्रश्‍न 39 – भाषा में अर्थ की सबसे छोटी इकाई है।
उत्‍तर – स्‍वनिम

प्रश्‍न 40 – पूर्वाग्रही किशोर/किशोरी अपनी ………………. के प्रति कठोर होगें
उत्‍तर – समस्‍या

प्रश्‍न 41 – बालिकाओं की लम्‍बाई किस अवस्‍था में बालकों से अधिक होती है।
उत्‍तर – बाल्‍यावस्‍था में

प्रश्‍न 42 – दिवास्‍वप्‍न एवं भाषा के कूटकरण की अवस्था है-
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 43 – विकास के संबंध में सही कथन है-
उत्‍तर – विकास सम्‍पूर्ण पक्षों में होने वाला परिवर्तन है।

प्रश्‍न 44 – विकास केवल एक ओर न होकर चारों ओर होता है यह सिद्धांत बताता है-
उत्‍तर – वर्तुलाकार

प्रश्‍न 45 – जन्‍म के समय शिशु रोता है-
उत्‍तर – वातावरण के परिवर्तन के कारण

प्रश्‍न 46 – शैशवावस्‍था में किस ग्रंथि के प्रभाव के कारण बालिकाऍ अपने पिता के प्रति श्रृद्धा का भाव रखती है।
उत्‍तर – इलेक्‍ट्रा

प्रश्‍न 47 – क्‍लार्क और बीर्च ने नर चिम्‍पांजी के शरीर में –
उत्‍तर – स्‍त्री हार्मोन प्रवेश कराये

प्रश्‍न 48 – बालक का विकास वंशानुक्रम व वातावरण का है-
उत्‍तर – गुणनफल

प्रश्‍न 49 – जीवन का सबसे कठिन काल है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 50 – बालक के अस्‍थाई दॉंतों की संख्‍या है-
उत्‍तर – 20

प्रश्‍न 51 – बच्‍चों के बौद्धिक विकास की चार विशिष्‍ट अवस्‍थाओं की पहचान किस विद्वान द्वारा की गई।
उत्‍तर – जीन पियाजे द्वारा ।

प्रश्‍न 52 – डिस्‍कैलकुलि‍या का संबंध है।
उत्‍तर – आंकिक अक्षमता से ।

प्रश्‍न 53 – शिक्षा मे समावेशन का क्‍या अ‍र्थ है।
उत्‍तर – सभी विद्यार्थियों को शिक्षा की मुख्‍य धारा प्रणाली में स्‍वीकारना ।

प्रश्‍न 54 – आ. वी. कैटल की तरल बुद्धि तुल्‍य है।
उत्‍तर – वंशानुगत कारकों के ।

प्रश्‍न 55 – स्‍वयं की भावनाओं तथा संवेगों को नियन्त्रित करने से सम्‍बन्धित बुद्धि को क्‍या कहा जाता है।
उत्‍तर – भाषायी बुद्धि ।

प्रश्‍न 56 – बिने साइमन परीक्षण द्वारा किसका मापन किया जाता है।
उत्‍तर – सामान्‍य बुद्धि का ।

प्रश्‍न 57 – मानसिक आयु के प्रत्‍यय का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया ।
उत्‍तर – बिने – साइमन ।

प्रश्‍न 58 – 140 से अधिक बुद्धिलब्धि (I.Q) वाले बच्‍चों को किस श्रेणी में रखेगे ।
उत्‍तर – प्रतिभाशाली ।

प्रश्‍न 59 – सृजनशीलता मौलिक परिणामों को अभिव्‍यक्‍त करने की मानसिक क्रिया है। यह कथन किसका है।
उत्‍तर – क्रो एण्‍ड क्रो का है।

प्रश्‍न 60 – मानसिक आयु का प्रत्‍यय किस वैज्ञानिक ने दिया ।
उत्‍तर – बिने साइमन ने ।

प्रश्‍न 61 – द्वितत्‍व सिद्धान्‍त के प्रतिपादक कौन है।
`

प्रश्‍न 62 – गिलफोर्ड ने कितनी मौलिक मानसिक योग्‍यताओं के आधार पर बुद्धि की संरचना का वर्णन किया है।
उत्‍तर – तीन ।

प्रश्‍न 63 – किशोर प्रौढों को अपने मार्ग मे बाधा समझता है। जो उसे अपनी स्‍वतन्‍त्रता का लक्ष्‍य प्राप्‍त करने से रोकते है। यह किसने कहा।
उत्‍तर – कॉलसनिक ।

प्रश्‍न 64 – किशोरावस्‍था वह अवस्‍था है जिसके द्वारा एक विकासमान व्‍यक्तित्‍व बाल्‍यावस्‍था से प्रौढावस्‍था तक पहॅुचता है। यह कथन किसका है।
उत्‍तर – जर्सिल्‍ड ।

प्रश्‍न 65 – 25 से कम बुद्धि वाला बालक क्‍या कहलाता है।
उत्‍तर – जड ।

प्रश्‍न 66 – यौन, यदि समस्‍त जीवन का नही तो किशोरावस्‍था का अवश्‍य ही मूल तत्‍व है। यह किसने कहा।
उत्‍तर – रॉस ने ।

प्रश्‍न 67 – कुशाग्रबुद्धि अथवा प्रतिभावन बालक वह है जो निरन्‍तर किसी भी उचित कार्यक्षेत्र में अपनी अद्भुत कार्यकुशलता अथवा प्रवीणता का परिचय देता है। यह कथन किसका है।
उत्‍तर – हैविंग्‍हर्स्‍ट ।

प्रश्‍न 68 – पिछडा बालक वह है जो अपने अध्‍ययन के मध्‍यकाल में अपनी कक्षा का कार्य, जो उसकी आयु के अनुसार एक कक्षा नीचे का है करने मे असमर्थ रहता है यह किसने कहा ।
उत्‍तर – सिरिल बर्ट ने ।

प्रश्‍न 69 – समस्‍यात्‍मक बालक उन बालकों के लिये प्रयोग किया जाता है जिनका व्‍यवहार अथवा व्‍यक्तित्‍व किसी बात मे गम्‍भीर रूप से असामान्‍य होता है। यह कथन किस मनोवैज्ञानिक का है।
उत्‍तर – वेलेन्‍टाइन ।

प्रश्‍न 70 – वह बालक जो समाज द्वारा स्‍वीकृत आचरण का पालन नही करता अपराधी कहलाता है यह किसने कहा।
उत्‍तर – हीली ने ।

प्रश्‍न 71 – बुद्धि के किस सिद्धान्‍त को बालू का ढेर कहा जाता है।
उत्‍तर – बहुतत्‍व सिद्धान्‍त को ।

प्रश्‍न 72 – व्‍यक्ति के चेहरे को देखकर उसकी बुद्धि का पता लगाया जा सकता है। यह कथन किसका है।
उत्‍तर – लेवेटर का ।

प्रश्‍न 73 – वे शिक्षार्थी जो संवृद्ध ज्ञान और शै‍क्षणिक दक्षता को । हार्दिक इच्‍छा प्रदर्शित करते है । उनके पास होता है।
उत्‍तर – निष्‍पादन उपागम अभिविन्‍यास ।

प्रश्‍न 74 – प्रतिभाशाली बालक वह है जो अपने उत्‍पादन की मात्रा दर तथा गुणवत्‍ता में विशिष्‍ट होता है। यह कथन दिया गया है।
उत्‍तर – टर्मन एवं ओडन द्वारा ।

प्रश्‍न 75 – कोहलबर्ग के अनुसार सही और गलत के प्रश्‍न के बारे में निर्णय लेने मे शामिल चिन्‍तन प्रक्रिया को कहा जाता है।
उत्‍तर – नैतिक तर्कणा ।
प्रश्‍न 1 – बुद्धि का संज्ञानात्‍मक सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे ने ।

प्रश्‍न 2 – बुद्धि का संवेगात्‍मक विकास का सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – गोलमैन ने ।

प्रश्‍न 3 – बुद्धि का संरचना सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – आइजेन्‍क ने ।

प्रश्‍न 4 – बुद्धि का पदानुकृत संरचना सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – फिलिप बर्नन ने ।

प्रश्‍न 5 – बुद्धि का एकीकृत संरचना सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – J.P. गिलफोर्ड ने ।

प्रश्‍न 6 – बुद्धि का त्रिक – बिन्‍दु सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – स्‍टर्न वर्ग ने ।
इन्‍होंनं बुद्धि को तीन भागों मे बांटा ।

  1. विशलेषणत्‍मक बुद्धि
  2. व्‍यवहारिक बुद्धि
  3. सृजानात्‍मक बुद्धि

प्रश्‍न 7 – जीनप्‍याजे के अनुसार बुद्धि क्‍या है।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे के अनुसार बुद्धि वातावरण के साथ अनुकूलन करने की प्रक्रिया है।

प्रश्‍न 8 – अल्‍फ्रेड बिने के अनुसार बुद्धि के प्रकार बताईये ।
उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने के अनुसार बुद्धि चार शब्‍दों से मिलकर बनी है।

  1. ज्ञान
  2. अविष्‍कार
  3. निर्देश
  4. आलोचना

प्रश्‍न 9 – टर्मन के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है।
उत्‍तर – टर्मन के अनुसार –
बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्‍यता है।

प्रश्‍न 10 – बुडवर्थ के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है।
उत्‍तर – बुडवर्थ के अनुसार –
बुद्धि कार्य करने की एक विधि है।

प्रश्‍न 11 – स्‍टर्न के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है।
उत्‍तर – स्‍टर्न के अनुसार –
बुद्धि एक सामान्‍य योग्‍यता है। जिसके द्वारा व्‍यक्ति नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करता है।

प्रश्‍न 12 – बकिन्‍घम के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है।
उत्‍तर – बकिन्‍घम के अनुसार –
सीखने की शक्ति ही बुद्धि है।

प्रश्‍न 13 – वैसलर के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है।
उत्‍तर – वैसलर के अनुसार –
बुद्धि किसी कार्य को करने की , तार्किक चिन्‍तन करने की , वातावरण के साथ समायोजन करने की सामूहिक योग्‍यता होती है।

प्रश्‍न 14 – स्‍पीयर मैन के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है।
उत्‍तर – स्‍पीयर मैन के अनुसार –
बुद्धि तार्किक चिन्‍तन करने की योग्‍यता है।

प्रश्‍न 15 – सामान्‍यत: बुद्धि कितने प्रकार की है।
उत्‍तर – सामान्‍यत: बु‍द्धि तीन प्रकार की होती है।

  1. अमूर्त बुद्धि
  2. मूर्त बुद्धि ( यांन्त्रिक बुद्धि )
  3. सामाजिक बुद्धि

प्रश्‍न 16 – अमूर्त बु‍द्धि सामान्‍यत: किन व्‍यक्तियों में पाई जाती है।
उत्‍तर – अमूर्त बुद्धि सामान्‍यत: –

  1. शिक्षक
  2. लेखक
  3. कलाकार
  4. वैज्ञानिक एवं आदि व्‍यक्तियों में ।

प्रश्‍न 17 – यांत्रिक बुद्धि या स्‍थूल बुद्धि किसे कहा जाता है।
उत्‍तर – मूर्त बुद्धि को ।

प्रश्‍न 18 – मूर्त बुद्धि किन व्‍यक्तियों में पाई जाती है।
उत्‍तर – मूर्त बुद्धि निम्‍न व्‍यक्तियों में पाई जाती है –

  1. इंजीनियर
  2. फॉरमैन
  3. कम्‍प्‍यूटर आपरेटर आदि
  4. मैकेनिक
  5. इलैक्‍ट्रीशियन

प्रश्‍न 19 – सामाजिक बुद्धि किन लोगो में पई जाती है।
उत्‍तर – सामाजिक बुद्धि निम्‍न लोगो मे पाई जाती है। –

  1. सामाज सेवक
  2. बीमा का ऐजेन्‍ट
  3. नेताजी
  4. पंडि᷃त जी

प्रश्‍न 20 – एक कारक सिद्धान्‍त को और किस नाम से जाना जाता है।
उत्‍तर – एक कारक सिद्धान्‍त को राज‍कीय सिद्धान्‍त के नाम से जाना जाता है।

प्रश्‍न 22 – बुद्धि का सबसे पुराना सिद्धान्‍त कौन सा है।
उत्‍तर – बुद्धि का सबसे पुराना सिद्धान्‍त एक कारक सिद्धान्‍त है।

प्रश्‍न 22 – बुद्धि का द्विकारक सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – स्‍पीयर मैन ने दिया।

प्रश्‍न 23 – स्‍पीयर मैन कहॉं के निवासी थे।
उत्‍तर – स्‍पीयर मैन फ्रांस के निवासी थे।

प्रश्‍न 24 – स्‍पीयर मैन पहले किस विषय के प्रोफेसर थे।
उत्‍तर – स्‍पीयर मैन पहले संख्‍यकी विषय के प्रोफेसर थे बाद में मनोविज्ञान के प्रोफेसर बने।

प्रश्‍न 25 – स्‍पीयर मैन ने बुद्धि का सम्‍बन्‍ध किस से बताया है।
उत्‍तर – स्‍पीयर मैन ने बुद्धि का सम्‍बन्‍ध चिन्‍तन से बताया है।

प्रश्‍न 26 – पियाजे के अनुसार निम्‍नलिखित में से कौन सी अवस्‍था है जिसमें बच्‍चा अमूर्त संकल्‍पनाओं के विषय में तार्किक चिंतन करना आरंभ करता है।
उत्‍तर – औपचारिक संक्रियात्‍मक अवस्‍था

प्रश्‍न 27 – बच्‍चों में बौद्धिक विकास की चार विशिष्‍ट अवस्‍थाओं की पहचान की गई।
उत्‍तर – पियाजे द्वारा

प्रश्‍न 28 – ‘’विकास कभी न समाप्‍त होने वाली प्रक्रिया है’’ यह विचार किससे संबंधित है।
उत्‍तर – निरन्‍तरता का सिद्धांत

प्रश्‍न 29 – वह अवस्‍था जब बच्‍चा तार्किक रूप से वस्‍तुओं व घटनाओं के विषय में चिंतन प्रारंभ करता है।
उत्‍तर – मूर्त संक्रियात्‍मक अवस्‍था

प्रश्‍न 30 – किस अवस्‍था मे बच्‍चे अपने समवयस्‍क समूह के सक्रिय सदस्‍य हो जाते है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 31 – बच्‍चे के संज्ञानात्‍मक विकास को सबसे अच्‍छे तरीके से कहॉ परिभाषित किया जा सकता है।
उत्‍तर – विद्यालय एवं कक्षा में

प्रश्‍न 32 – पियाजे के अनुसार बौद्धिक विकास का निर्धारक तत्‍व नही है।
उत्‍तर – सामाजिक संचरण

प्रश्‍न 33 – बालकों की सोच अमूर्तता की अपेक्षा मूर्त अनुभवों एवं प्रत्‍ययों से होती है। यह अवस्‍था है।
उत्‍तर – 7 से 12 वर्ष तक

प्रश्‍न 34 – संवेदी पेशीय अवस्‍था होती है।
उत्‍तर – 0 – 2 वर्ष तक

प्रश्‍न 35 – एक 13 वर्षीय बालक बात-बात में अपने बड़ों से झगड़ा करने लगता है और हमेशा स्‍वयं को सही साबित करने की कोशिश करता है वह विकास की कौन सी अवस्‍था है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 36 – ‘खिलौनों की आयु कहा जाता है।‘
उत्‍तर – पूर्व बाल्‍यावस्‍था को

प्रश्‍न 37 – उत्‍तर बाल्‍यावस्‍था में बालक भौतिक वस्‍तुओं के किस आवश्‍यक तत्‍व में परिवर्तन समझने लगता है।
उत्‍तर – द्रव्‍यमान, संख्‍या और क्षेत्र

प्रश्‍न 38 – दूसरे वर्ष के अंत तक शिशु का शब्‍द भंडार हो जाता है।
उत्‍तर – 100 शब्‍द

प्रश्‍न 39 – शर्म तथा गर्व जैसी भावना का विकास किस अवस्‍था में होता है।
उत्‍तर – बाल्‍यावस्‍था

प्रश्‍न 40 – मैक्‍डूगल के अनुसार मूल प्रवृति ‘जिज्ञासा’ का संबंध कौन संवेग से है।
उत्‍तर – आश्चर्य

प्रश्‍न 41 – शैशवावस्‍था की मुख्‍य विशेषता नही है।
उत्‍तर – चिन्‍तन प्रक्रिया

प्रश्‍न 42 – किसी विद्यार्थी कह सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषता है।
उत्‍तर – आज्ञाकारिता

प्रश्‍न 43 – मानवीय मूल्‍यों, जो प्रकृति में सार्वत्रिक हैं, के विकास का अर्थ है-
उत्‍तर – अभिव्‍यक्ति

प्रश्‍न 44 – किस स्‍तर के बच्‍चे अपने समकक्षी वर्ग के सक्रिय सदस्‍य बन जाते है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 45 – विकास शुरू होता है।
उत्‍तर – प्रसवपूर्ण अवस्‍था से

प्रश्‍न 46 – बहुविध बुद्धि सिद्धांत के अनुसार सभी प्रकार के पशुओं, खनिजों और पेड़-पौधों को पहचाने और वर्गीकृत करने की योग्‍यता ……………… कहलाती है।
उत्‍तर – संज्ञानात्‍मक गतिविधि

प्रश्‍न 47 –पियाजे के अधिगम के संज्ञानात्‍मक सिद्धांत के अनुसार, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा संज्ञानात्‍मक संरचना को संशोधित किया जाता है …………….. कहलाती है।
उत्‍तर – समावेशन

प्रश्‍न 48 – कोहलबर्ग के अनुसार सही और गलत प्रश्‍नों के बारे में निर्णय लेने में शामिल चिंतन प्रक्रिया को कहा जाता है।
उत्‍तर – नैतिक तर्कणा

प्रश्‍न 49 – एक व्‍यक्ति अपने समकक्ष व्‍यक्तियों के समूह के प्रति आक्रामक व्‍यवहार करता है और विद्यालय के मानदंडों को नही मानता। इस विद्यार्थी को ………………… में सहायता की आवश्‍यकता है।
उत्‍तर – भावात्‍मक क्षेत्र

प्रश्‍न 50 – शिक्षक को यह सलाह दी जाती है कि वे उपने शिक्षार्थियों को सामूहिक गतिविधियों में शामिल करें, क्‍योंकि सीखने को सुगम बनाने के अतिरिक्‍त, ये……………….. में भी सहायता करती है।
उत्‍तर – समाजीकरण

प्रश्‍न 51 – ब्रूनर किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 52 – कौन सा सिद्धान्‍त जीव विधि के हर क्ष्‍ोत्र पर बल देता है।
उत्‍तर – क्षेत्रीय सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 53 – गेस्‍टाल्‍ट का अर्थ क्‍या है।
उत्‍तर – सम्‍पूर्ण या समग्र

प्रश्‍न 54 – प्रतिस्‍थापन का सिद्धान्‍त किस वैज्ञानिक ने दिया।
उत्‍तर – गुथरी ने

प्रश्‍न 55 – स्‍वसिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – कार्ल रोजर ने

प्रश्‍न 56 –आवश्‍यकता का पद सोपान सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – आब्राहिम मौसले ने

प्रश्‍न 57 – अधिगम का अर्थ क्‍या है ।
उत्‍तर – सीखन

प्रश्‍न 58 – अधिगम से क्‍या तात्‍पर्य है।
उत्‍तर –मानव व्‍यवहार में होने वाला स्‍थाई परिवर्तन अधिगम कहलाता है।

प्रश्‍न 59 – अधिगम पूर्ण कब होगा।
उत्‍तर – मानव व्‍यवहार में स्‍थाई परिवर्तन हो जाये।

प्रश्‍न 60 – संज्ञान किसे कहते है।
उत्‍तर – किसी ज्ञान को ग्रहण करना ही संज्ञान कहलाता है।

प्रश्‍न 61 – व्‍यवहारवादी मनोविज्ञान के जनक कौन है।
उत्‍तर – वाटसन ।

प्रश्‍न 62 – मनोविज्ञान के जनक कौन है।
उत्‍तर – सिंगमड फ्रायड

प्रश्‍न 63 – मनोविशलेषणात्‍मक मनोविज्ञान के जनक कौन है।
उत्‍तर – सिंगमड फ्रायड

प्रश्‍न 64 – अंधो की लिपि के जनक कौन है
उत्‍तर – लुई ब्रेल

प्रश्‍न 65 – L . K . G व U . K . G पद्धति के जनक कौन है।
उत्‍तर – फ्रोबेल

प्रश्‍न 66 – नर्सरी पद्धति के जनक कौन है।
उत्‍तर – मारिया मान्‍टेसरी

प्रश्‍न 67 – भूल एवं प्रयत्‍न सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – थॉर्नडाइक ने

प्रश्‍न 68 – अनुकूलित अनुक्रिया या क्‍लासिकी अुनबन्‍ध सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – पैवलॉव ने

प्रश्‍न 69 – क्रिया प्रसूत अनुबन्‍ध सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – स्किनर ने

प्रश्‍न 70 – जीनप्‍याजे किस विचारधारा के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानात्‍मक

प्रश्‍न 71 – जीनप्‍याजे किस देश के निवासी थे।
उत्‍तर – स्विट्जरलैण्‍ड के

प्रश्‍न 72 – जीनप्‍याजे ने अपने प्रयोग किस-किस पर किये।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे ने अपने प्रयोग अपनी दो पुत्री व एक पुत्र पर किये ।

प्रश्‍न 73 – वह कौन मनोवैज्ञानिक है जो पहले जीवविज्ञान के प्रोफेसर थे बाद मे मनोविज्ञान के प्रोफेसर बने ।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे

प्रश्‍न 74 – स्‍कीमा सिद्धान्‍त के जनक कौन है।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे

प्रश्‍न 75 – कोहलर किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 76 – कोहलबर्ग का विकास सिद्धांत किससे संबंधित है।
उत्‍तर – नैतिक विकास

प्रश्‍न 77 – ……………. के अतिरिक्‍त बुद्धि के निम्‍नलिखित पक्षों को स्‍टर्नबर्ग के त्रितंत्र सिद्धांत में संबोधित किया गया है।
उत्‍तर – सामाजिक

प्रश्‍न 78 – थ, फ, च ध्‍वनियॉं है।
उत्‍तर – स्‍वनिम

प्रश्‍न 79 – बालकों की सोच अमूर्तता की अपेक्षा मूर्त अनुभवों एवं प्रत्‍ययों से होती है। यह अवस्‍था है-
उत्‍तर – 7 से 12 वर्ष तक

प्रश्‍न 80 – मानव विकास किन दोनों योगदान का परिणाम है।
उत्‍तर – वंशानुक्रम एवं वातावरण का

प्रश्‍न 81 – निम्‍न में से कौन पियाजे के अनुसार बौद्धिक विकास का निर्धारक तत्‍व नही है।
उत्‍तर – सामाजिक संचरण

प्रश्‍न 82 – समस्‍या के अर्थ को जानने की योग्‍यता, वातावरण के दोषों, कमियों एवं रिक्तियों के प्रति सजगता वि‍शेषता है।
उत्‍तर – सृजनशील बालकों की

प्रश्‍न 83 – एक क्रिकेट खिलाड़ी अपनी गेंदबाजी के कौशल को विकसित कर लेता है, पर यह उसके बल्‍लेबाली के कौशल को प्रभावित नही करता। इसे कहते है-
उत्‍तर – शून्‍य प्रशिक्षण अंतरण

प्रश्‍न 84 – गिलफोर्ड ने ‘अभिसारी चिंतन’ पद का प्रयोग किसके समान अर्थ में किया जाता है।
उत्‍तर – सृजनात्‍मकता

प्रश्‍न 85 – व्‍यक्ति एवं बुद्धि में वंशानुक्रम की –
उत्‍तर – नाममात्र की भूमिका है।

प्रश्‍न 86 – जिन इच्‍छाओं की पूर्ति नही होती, उनमें से भंडारगृह किसका है।
उत्‍तर – इदम्

प्रश्‍न 87 – बालक के सामाजिक विकास में सबसे महत्‍वपूर्ण कारक कौन सा है।
उत्‍तर – वातावरण

प्रश्‍न 88 – लड़कियों में बाह्य परिवर्तन किस अवस्‍था में होने लगता है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 89 – भाषा विकास के क्रम में अंतिम क्रम है-
उत्‍तर – भाषा विकास की पूर्णावस्‍था

प्रश्‍न 90 – विकासात्‍मक बालमनोविज्ञान का जनक किसे माना गया है।
उत्‍तर – जीन पियाजे को

प्रश्‍न 91 – संवेगात्मक स्थिरता का लक्षण है-
उत्‍तर – समायोजित

प्रश्‍न 92 – संवेग शब्‍द का शाब्दिक अर्थ है-
उत्‍तर – उत्‍तेजना या भावों में उथल पुथल

प्रश्‍न 93 – लैमार्क ने अध्‍ययन किया था –
उत्‍तर – वंशानुक्रम का

प्रश्‍न 94 – बालक के सामाजिकरण का प्रथम घटक है।
उत्‍तर – परिवार

प्रश्‍न 95 – प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का संबंध है।
उत्‍तर – डार्विन से

प्रश्‍न 96 – अब शिक्षा हो गई है।
उत्‍तर – बाल केन्द्रित

प्रश्‍न 97 – पैतृक गुणों के हस्‍तांतरण के सिद्धांतों को स्‍पष्‍ट किया था।
उत्‍तर – मैण्‍डल ने

प्रश्‍न 98 – ‘बालक की अभिबृद्धि जैवकीय नियमों के अनुसार होती है’ यह कथन है-
उत्‍तर – क्रोगमैन का

प्रश्‍न 99 – बालविकास का अर्थ है।
उत्‍तर – बालक का गुणात्‍मक परिमाणात्‍मक परिवर्तन

प्रश्‍न 100 – अधिगम का पुनरावृत्ति का सिद्धांत दिया है।
उत्‍तर – पैट्रिक पावलाव ने
: प्रश्‍न 1 – बालको का भाषायी विकास का क्रम क्‍या है।
उत्‍तर – बालको के भाषायी विकास का क्रम –

  1. रोना ( रूदन , क्रदन )
  2. बबलाना
  3. हावभाव

प्रश्‍न 2 – बालक सबसे पहले क्‍या बोलता है।
उत्‍तर – व्‍यंजन
वह सबसे पहले मॉं शब्‍द बोलता है।

प्रश्‍न 3 – बालक सबसे पहले किसकी भाषा को पहचानता है।
उत्‍तर – बालक सबसे पहले अपनी मॉं की आवाज ( भाषा ) को पहचानता है।
( इसे ही मात्रभाषा कहते है। )

प्रश्‍न 4 – बालक किस उम्र में वाक्‍यो द्वारा अपनी बात को कह पाता है।
उत्‍तर – 5 वर्ष की उम्र में ।

प्रश्‍न 5 – बच्‍चे को सबसे पहले भाषा का ज्ञान कहॉ से होता है।
उत्‍तर – अपने परिवार से ।

प्रश्‍न 6 – 6वी कक्षा में पढ़ने वाले बालक का शब्‍द भंण्‍डार लगभग कितना होता है।
उत्‍तर – 50 हजार शब्‍दों तक ।

प्रश्‍न 7 – 10 वी कक्षा में पढने वाले बालक का शब्‍दा भंण्‍डार लगभग कितना होता है।
उत्‍तर – 80 हजार शब्‍दों तक ।

प्रश्‍न 8 – लडका एवं लडकियों में से किसका शब्‍दा भंण्‍डार अधिक होता है।
उत्‍तर – लडकियों का शब्‍द भंण्‍डार अधिक होता है।

प्रश्‍न 9 – भाषा को सीखने के साधन कौन – कौन से है।
उत्‍तर – भाषा को सीखने के साधन निम्‍न है।

  1. अनुकरण द्वारा ( दोहराकर )
  2. खेल – खेल विधि द्वारा
  3. कहानी सुनकर
  4. वार्तालाप द्वारा
  5. प्रश्‍नोत्‍तर विधि से

प्रश्‍न 10 – लडकियॉ संकेतो द्वारा बात करना किस उम्र तक सीख जाती है।
उत्‍तर – 6 वर्ष की उम्र तक ।

प्रश्‍न 11 – भाषा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन – कौन से है।
उत्‍तर – भाषा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्‍न है ।

  1. लिंग
  2. बुद्धि
  3. स्‍वास्‍थ्‍य
  4. जनसंचार का माध्‍यम
  5. सम समूह का प्रभाव
  6. सामाजिक आर्थिक स्थिती
  7. पारिवारिक सम्‍बन्‍ध
  8. विद्यालय
  9. आसपडोस के वातावरण का प्रभाव

प्रश्‍न 12 – मनुष्‍य और पशु में मुख्‍य अन्‍तर क्‍या है।
उत्‍तर – बुद्धि का ।

प्रश्‍न 13 – बुद्धि को सबसे पहले परिभाषित किसने किया था।
उत्‍तर – बुद्धि को सबसे पहले परिभाषित यूनान के दार्शनिकों ने किया ।

प्रश्‍न 14 – आधुनिक काल में बुद्धि को सबसे पहले किसने समझाया।
उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने ने 1904 में बताया ।

प्रश्‍न 15 – मानसिक आयु के माध्‍यम से बुद्धि को परिभाषित किसने किया।
उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने ने ।
इन्‍होनें बताया कि बुद्धि दो प्रकार की हाती है।

  1. मानसिक आयु बुद्धि
  2. वास्‍तविक आयु बुद्धि

प्रश्‍न 16 – अल्‍फ्रेड बिने किस देश के निवासी थे ।
उत्‍तर – फ्रांस के

प्रश्‍न 17 – अल्‍फ्रेड बिने किस बिषय के प्रोफेसर थे।
उत्‍तर – मनोविज्ञान के ।

प्रश्‍न 18 – बुद्धि का एक कारक सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने ने ।
सहयोगी –

  1. स्‍टर्न
  2. टरमन
  3. साइमन

प्रश्‍न 19 – बुद्धि के दो कारक सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – स्‍पीयर मैन ने ।

प्रश्‍न 20 – बुद्धि के दो कारक सिद्धान्‍त कौन – कौन से है।
उत्‍तर – बुद्धि के दो कारक सिद्धान्‍त

  1. G कारक सिद्धान्‍त
  2. S कारक सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 21 – बुद्धि का समूह कारक सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – थस्‍टर्न ने
इनके अनुसार बुद्धि के 7 कारक है।

प्रश्‍न 22 – बुद्धि का बहु कारक सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – थार्नडाइक ने

प्रश्‍न 23 – बुद्धि का बहु बुद्धि सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – गार्डनर ने ।

प्रश्‍न 24 – बुद्धि का तरल व ठोस सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – R.B. कैटल ने ।

प्रश्‍न 25 – बुद्धि का प्रतिदर्श नमूना (सैम्‍पल) सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – थामसन ने ।

प्रश्‍न 26 – सीमा हर पाठ को बहुत जल्‍दी सीख लेती है जबकि लीना उसे सीखने में ज्‍यादा समय लेती है। यह विकास के ………………. सिद्धांत को दर्शाता है।
उत्‍तर – वैयक्तिक सिद्धांत

प्रश्‍न 27 – निम्‍नलिखित में से ………………. कें अतिरिक्‍त सभी वातावरणीय कारक विकास को आकार देते है।
उत्‍तर – शारीरिक गठन

प्रश्‍न 28 – एक अच्‍छी पाठ्य पुस्‍तक बचाती है।
उत्‍तर – लैंगिक पूर्वाग्रह

प्रश्‍न 29 – पियाजे के अनुसार संज्ञानात्‍मक विकास के किस चरण पर बच्‍चा ‘वस्‍तु स्‍थायित्‍व’ को प्रदर्शित करता है।
उत्‍तर – पूर्व संक्रियात्‍मक चरण

प्रश्‍न 30 – वह विचारात्‍मक प्रक्रिया जिसमें नूतन, वास्‍तविक तथा उपयोगी अवधारणाओं का प्रस्‍तुतीकरण निहित हो, कही जाती है।
उत्‍तर – रचनात्‍मकता

प्रश्‍न 31 – माता पिता से वंशजों में स्‍थान्‍तरित होने वाले लक्षणों को कहा जाता है।
उत्‍तर – आनुवांशिकता

प्रश्‍न 32 – बुद्धि का कौन सा सिद्धांत सामान्‍य बुद्धि ‘g’ और विशिष्‍ट बुद्धि ‘s’ की उपस्थिति का समर्थन करता है।
उत्‍तर – स्‍पीयरमैन का द्विखंड सिद्धांत

प्रश्‍न 33 – प्रतिबिंब, अवधारणा, प्रतीक एवं संकेत, भाषा, शारीरिक क्रिया और मानसिक क्रिया अंतर्निहित है-
उत्‍तर – विचारात्‍मक प्रक्रिया

प्रश्‍न 34 – वह प्रक्रिया जिसके द्वारा माता-पिता यह अनुमान लगाते हैं कि उनके बच्‍चें में सभी सकारात्‍मक गुण हैं क्‍योंकि एक गुण सकारात्‍मक है, कहलाता है।
उत्‍तर – परिवेश का प्रभाव

प्रश्‍न 35 – रमेश और अंकित की समान बुद्धिलब्धि 120 है। रमेश अंकित से दो वर्ष छोटा है। यदि अंकित की आयु 12 वर्ष हो, तो रमेश की मानसिक आयु होगी।
उत्‍तर – 12 वर्ष

प्रश्‍न 36 – छात्र की प्रयोगात्‍मक दक्षता के आकलन का यथोचित रूप है।
उत्‍तर – अवलोकन

प्रश्‍न 37 – कक्षा नायक द्वारा प्रयुक्त मूल्‍यांकन का प्रकार अनुदेशन के समय सीखने के विकास में किया जाता है, कहलाता है-
उत्‍तर – फॉर्मेटिव मूल्‍यांकन

प्रश्‍न 38 – पियाजे के अनुसार मूर्त संक्रियाओं का स्‍तर किस अवधि में घटित होता है।
उत्‍तर – 7 – 11 वर्ष

प्रश्‍न 39 – बालक में अपराधी प्रवृत्ति के विकसित होने का मुख्‍य कारण है।
उत्‍तर – परिवार का वातावरण

प्रश्‍न 40 – किस मनोवैज्ञानिक के अनुसार, ‘विकास एक सतत और धीमी प्रक्रिया है।’
उत्‍तर – स्किनर

प्रश्‍न 41 – बाल्‍यावस्‍था होती है-
उत्‍तर – 12 वर्ष तक

प्रश्‍न 42 – व्‍यक्तित्‍व विकास की अवस्‍था है-
उत्‍तर – अधिगम एवं बृद्धि

प्रश्‍न 43 – विकास में बृद्धि से तात्‍पर्य है-
उत्‍तर – आकार, सोच, समझ कौशलों में बृद्धि

प्रश्‍न 44 – परिपक्‍वता का संबंध है।
उत्‍तर – विकास

प्रश्‍न 45 – तनाव और क्रोध की अवस्‍था है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 46 – बालक का विकास परिणाम है।
उत्‍तर – वंशानुक्रम व वातावरण की अंत:क्रिया का

प्रश्‍न 47 – एक बच्‍चे की मानसि‍क आयु 12 वर्ष एवं वास्‍तविक आयु 10 वर्ष है, तो उसकी बुद्धिलब्धि क्‍या होगी।
उत्‍तर – 120

प्रश्‍न 51 – ब्रूनर किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 52 – कौन सा सिद्धान्‍त जीव विधि के हर क्ष्‍ोत्र पर बल देता है।
उत्‍तर – क्षेत्रीय सिद्धान्‍त

प्रश्‍न 53 – गेस्‍टाल्‍ट का अर्थ क्‍या है।
उत्‍तर – सम्‍पूर्ण या समग्र

प्रश्‍न 54 – प्रतिस्‍थापन का सिद्धान्‍त किस वैज्ञानिक ने दिया।
उत्‍तर – गुथरी ने

प्रश्‍न 55 – स्‍वसिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – कार्ल रोजर ने

प्रश्‍न 56 –आवश्‍यकता का पद सोपान सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – आब्राहिम मौसले ने

प्रश्‍न 57 – अधिगम का अर्थ क्‍या है ।
उत्‍तर – सीखन

प्रश्‍न 58 – अधिगम से क्‍या तात्‍पर्य है।
उत्‍तर –मानव व्‍यवहार में होने वाला स्‍थाई परिवर्तन अधिगम कहलाता है।

प्रश्‍न 59 – अधिगम पूर्ण कब होगा।
उत्‍तर – मानव व्‍यवहार में स्‍थाई परिवर्तन हो जाये।

प्रश्‍न 60 – संज्ञान किसे कहते है।
उत्‍तर – किसी ज्ञान को ग्रहण करना ही संज्ञान कहलाता है।

प्रश्‍न 61 – व्‍यवहारवादी मनोविज्ञान के जनक कौन है।
उत्‍तर – वाटसन ।

प्रश्‍न 62 – मनोविज्ञान के जनक कौन है।
उत्‍तर – सिंगमड फ्रायड

प्रश्‍न 63 – मनोविशलेषणात्‍मक मनोविज्ञान के जनक कौन है।
उत्‍तर – सिंगमड फ्रायड

प्रश्‍न 64 – अंधो की लिपि के जनक कौन है
उत्‍तर – लुई ब्रेल

प्रश्‍न 65 – L . K . G व U . K . G पद्धति के जनक कौन है।
उत्‍तर – फ्रोबेल

प्रश्‍न 66 – नर्सरी पद्धति के जनक कौन है।
उत्‍तर – मारिया मान्‍टेसरी

प्रश्‍न 67 – भूल एवं प्रयत्‍न सिद्धान्‍त किसने दिया।
उत्‍तर – थॉर्नडाइक ने

प्रश्‍न 68 – अनुकूलित अनुक्रिया या क्‍लासिकी अुनबन्‍ध सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – पैवलॉव ने

प्रश्‍न 69 – क्रिया प्रसूत अनुबन्‍ध सिद्धान्‍त किसने दिया ।
उत्‍तर – स्किनर ने

प्रश्‍न 70 – जीनप्‍याजे किस विचारधारा के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानात्‍मक

प्रश्‍न 71 – जीनप्‍याजे किस देश के निवासी थे।
उत्‍तर – स्विट्जरलैण्‍ड के

प्रश्‍न 72 – जीनप्‍याजे ने अपने प्रयोग किस-किस पर किये।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे ने अपने प्रयोग अपनी दो पुत्री व एक पुत्र पर किये ।

प्रश्‍न 73 – वह कौन मनोवैज्ञानिक है जो पहले जीवविज्ञान के प्रोफेसर थे बाद मे मनोविज्ञान के प्रोफेसर बने ।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे

प्रश्‍न 74 – स्‍कीमा सिद्धान्‍त के जनक कौन है।
उत्‍तर – जीनप्‍याजे

प्रश्‍न 75 – कोहलर किस समप्रदाय के समर्थक थे।
उत्‍तर – संज्ञानवादी

प्रश्‍न 76 – कोहलबर्ग का विकास सिद्धांत किससे संबंधित है।
उत्‍तर – नैतिक विकास

प्रश्‍न 77 – ……………. के अतिरिक्‍त बुद्धि के निम्‍नलिखित पक्षों को स्‍टर्नबर्ग के त्रितंत्र सिद्धांत में संबोधित किया गया है।
उत्‍तर – सामाजिक

प्रश्‍न 78 – थ, फ, च ध्‍वनियॉं है।
उत्‍तर – स्‍वनिम

प्रश्‍न 79 – बालकों की सोच अमूर्तता की अपेक्षा मूर्त अनुभवों एवं प्रत्‍ययों से होती है। यह अवस्‍था है-
उत्‍तर – 7 से 12 वर्ष तक

प्रश्‍न 80 – मानव विकास किन दोनों योगदान का परिणाम है।
उत्‍तर – वंशानुक्रम एवं वातावरण का

प्रश्‍न 81 – निम्‍न में से कौन पियाजे के अनुसार बौद्धिक विकास का निर्धारक तत्‍व नही है।
उत्‍तर – सामाजिक संचरण

प्रश्‍न 82 – समस्‍या के अर्थ को जानने की योग्‍यता, वातावरण के दोषों, कमियों एवं रिक्तियों के प्रति सजगता वि‍शेषता है।
उत्‍तर – सृजनशील बालकों की

प्रश्‍न 83 – एक क्रिकेट खिलाड़ी अपनी गेंदबाजी के कौशल को विकसित कर लेता है, पर यह उसके बल्‍लेबाली के कौशल को प्रभावित नही करता। इसे कहते है-
उत्‍तर – शून्‍य प्रशिक्षण अंतरण

प्रश्‍न 84 – गिलफोर्ड ने ‘अभिसारी चिंतन’ पद का प्रयोग किसके समान अर्थ में किया जाता है।
उत्‍तर – सृजनात्‍मकता

प्रश्‍न 85 – व्‍यक्ति एवं बुद्धि में वंशानुक्रम की –
उत्‍तर – नाममात्र की भूमिका है।

प्रश्‍न 86 – जिन इच्‍छाओं की पूर्ति नही होती, उनमें से भंडारगृह किसका है।
उत्‍तर – इदम्

प्रश्‍न 87 – बालक के सामाजिक विकास में सबसे महत्‍वपूर्ण कारक कौन सा है।
उत्‍तर – वातावरण

प्रश्‍न 88 – लड़कियों में बाह्य परिवर्तन किस अवस्‍था में होने लगता है।
उत्‍तर – किशोरावस्‍था

प्रश्‍न 89 – भाषा विकास के क्रम में अंतिम क्रम है-
उत्‍तर – भाषा विकास की पूर्णावस्‍था

प्रश्‍न 90 – विकासात्‍मक बालमनोविज्ञान का जनक किसे माना गया है।
उत्‍तर – जीन पियाजे को

प्रश्‍न 91 – संवेगात्मक स्थिरता का लक्षण है-
उत्‍तर – समायोजित

प्रश्‍न 92 – संवेग शब्‍द का शाब्दिक अर्थ है-
उत्‍तर – उत्‍तेजना या भावों में उथल पुथल

प्रश्‍न 93 – लैमार्क ने अध्‍ययन किया था –
उत्‍तर – वंशानुक्रम का

प्रश्‍न 94 – बालक के सामाजिकरण का प्रथम घटक है।
उत्‍तर – परिवार

प्रश्‍न 95 – प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का संबंध है।
उत्‍तर – डार्विन से

प्रश्‍न 96 – अब शिक्षा हो गई है।
उत्‍तर – बाल केन्द्रित

प्रश्‍न 97 – पैतृक गुणों के हस्‍तांतरण के सिद्धांतों को स्‍पष्‍ट किया था।
उत्‍तर – मैण्‍डल ने

प्रश्‍न 98 – ‘बालक की अभिबृद्धि जैवकीय नियमों के अनुसार होती है’ यह कथन है-
उत्‍तर – क्रोगमैन का

प्रश्‍न 99 – बालविकास का अर्थ है।
उत्‍तर – बालक का गुणात्‍मक परिमाणात्‍मक परिवर्तन

प्रश्‍न 100 – अधिगम का पुनरावृत्ति का सिद्धांत दिया है।
उत्‍तर – पैट्रिक पावलाव ने

Individual Differences

वैयक्तिक विभिन्‍नता प्रकृति का नियम है कि संसार में कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतया एक-जैसे नहीं हो सकते, यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चों में भी कई समानताओं के बावजूद कई अन्य प्रकार की विभिन्नताएँ दिखाई पड़ती हैं। जुड़वाँ बच्चे शक्ल-सूरत से तो हू-ब-हू एक जैसे दिख सकते हैं, किन्तु उनके स्वभाव, बुद्धि, शारीरिक-मानसिक क्षमता, आदि में अन्तर होता है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में इस प्रकार की विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहा जाता है।

स्किनर के अनुसार, ‘वैयक्तिक विभिन्नताओं से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओं से है जिनका मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार, ‘‘कोई व्यक्ति अपने समूह के शारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।

टॉयलर के अनुसार,‘शरीर के रूप-रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि, रुचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।”प्रत्येक शिक्षार्थी स्वयं में विशिष्ट है। इसका अर्थ है कि कोई भी दो शिक्षार्थी अपनी योग्यताओं, रुचियों और प्रतिभाओं में एकसमान नहीं होते।

वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकारवैयक्तिक विभिन्नताओं को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया गया है।

भाषा के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएँअन्य कौशलों की तरह ही भाषा भी एक कौशल है। प्रत्येक व्यक्ति में भाषा के विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं। यह विकास बालक के जन्म के बाद ही प्रारम्भ हो जाता है। अनुकरण, वातावरण के साथ अनुक्रिया तथा शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति की माँग इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका विकास धीरे-धीरे परन्तु एक निश्चित क्रम में होता है।कोई बालक भाषा के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त करने में अधिक कुशल होता है, जबकि कुछ बालक इस मामले में उतने कुशल नहीं होते।

लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नतासामान्यतः स्त्रियाँ कोमलांगी होती हैं, किन्तु अधिगम के क्षेत्रों में बालकों एवं बालिकाओं में भिन्नता नहीं होती।स्त्रियों का शारीरिक गठन पुरुषों से अलग होता है। सामान्यत: पुरुष स्त्रियों से अधिक लम्बे होते हैं।

बुद्धि के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता(1) परीक्षणों के आधार पर ज्ञात हुआ है कि सभी व्यक्तियों की बुद्धि एकसमान नहीं होती।(2) बालकों में भी बुद्धि के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता दिखाई पड़ती है।(3) कुछ बालक अपनी आयु की अपेक्षा अधिक बुद्धि को प्रदर्शित करते हैं, इसके विपरीत कुछ बच्चों में सामान्य बुद्धि पाई जाती है।(4) बुद्धि-परीक्षण के आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि कोई बालक किसी अन्य बालक से कितना अधिक बुद्धिमान है?

परिवार एवं समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता मानव के व्यक्तित्व के विकास पर उसके परिवार एवं समुदाय का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इसलिए समुदाय के प्रभाव को वैयक्तिक विभिन्नता में भी देखा जा सकता है। अच्छे परिवार एवं समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले बच्चों का व्यवहार सामान्यतः अच्छा होता है। यदि किसी समुदाय में किसी प्रकार के अपराध करने की प्रवृत्ति हो, तो इसका कुप्रभाव उस समुदाय के बच्चों पर भी पड़ता है। यद्यपि आर्थिक-सामाजिक स्तर तथा बुद्धि-लब्धि का सम्बन्ध तो है, किन्तु यह बहुत उच्च स्तर का नहीं है। इन दोनों में सह-सम्बन्ध अवश्य पाया गया है, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि निम्न सामाजिक-आर्थिक समूह से आने वाले बच्चे कम बुद्धिमान एवं उच्च सामाजिक-आर्थिक समूह के बच्चे अधिक बुद्धिमान होते हैं। इसके विपरीत निम्न स्तर के आर्थिक एवं सामाजिक समूह में अनेक उच्च बुद्धि-लब्धि वाले बालक पाए जाते हैं और उच्च स्तर के आर्थिक-सामाजिक समूह में निम्न बुद्धि-लब्धि वाले बालक पाए जाते हैं।बालकों के पोषण पर परिवार एवं समुदाय का प्रभाव अवश्य पड़ता है एवं इस प्रकार की विभिन्नता में परिवार एवं समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

संवेग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नतासंवेगात्मक विकास विभिन्न बालकों में विभिन्नता लिए हुए होता है, जबकि यह भी सत्य है कि मोटे तौर पर संवेगात्मक विशेषताएँ बालकों में समान रूप से पाई जाती हैं।कुछ बालक शान्त स्वभाव के होते हैं, जबकि कुछ बालक चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।कुछ बालक सामान्यतः प्रसन्न रहते हैं, जबकि कुछ बालकों में उदास रहने की प्रवृत्ति होती है। शारीरिक विकास के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताशारीरिक दृष्टि से व्यक्तियों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।शारीरिक भिन्नता रंग, रूप, आकार, भार, कद, शारीरिक गठन, यौन-भेद, शारीरिक परिपक्वता आदि के कारण होती है।

अभिवृत्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नतासभी बालकों की अभिवृति में भी समानता नहीं होती।कुछ बालक किसी विशेष प्रकार के कार्य में रुचि लेते हैं, जबकि अन्य बालक किसी और कार्य में रुचि लेते हैं।कुछ बालकों में पढ़ाई में मन लगाने की प्रवृत्ति होती है, जबकि कुछ अन्य बालक किन्हीं कारणों से इससे दूर भागते हैं।

व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताप्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता देखने को मिलती है।कुछ बालक अन्तर्मुखी होते हैं और कुछ बहिर्मुखी।एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलने पर उसकी योग्यता से प्रभावित हो या न हो परन्तु उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है।

टॉयलर के अनुसार, ‘सम्भवतः व्यक्ति, योग्यता की विभिन्नताओं के बजाय व्यक्तित्व की विभिन्नताओं से अधिक प्रभावित होता है।

गत्यात्मक कौशलों के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता कुछ व्यक्ति किसी कार्य को अधिक कुशलता से कर पाते हैं, जबकि कुछ अन्य लोगों में पूर्ण कुशलता का अभाव पाया जाता है।क्रो एवं क्रो ने लिखा है, ‘शारीरिक क्रियाओं में सफल होने की योग्यता में एक समूह के व्यक्तियों में भी बहुत अधिक विभिन्नता होती है।

शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक विभिन्‍नता का महत्‍व मनोविज्ञान इस बात पर जोर देता है कि बालकों की रुचियों, रुझानों, क्षमताओं, योग्यताओं आदि में अन्तर होता है। अत: सभी बालकों के लिए समान शिक्षा का आयोजन सर्वथा अनुचित होता है। इसी बात को ध्यान में रखकर मन्दबुद्धि, पिछड़े हुए बालक तथा शारीरिक दोष वाले बालकों के लिए अलग-अलग विद्यालयों में अलग-अलग प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।सह-शैक्षणिक क्षेत्रों में निष्पादन के आधार पर शैक्षणिक क्षेत्रों में निष्पादन के स्तर को बढ़ाना इसलिए उचित होता है, क्योंकि यह वैयक्तिक विभिन्नताओं को सन्तुष्ट करता है। वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए पिछड़े एवं मन्दबुद्धि के बालकों की शिक्षा के लिए भिन्न प्रकार के शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है।वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान शिक्षकों एवं विद्यालय प्रबन्धकों को कक्षा के वर्गीकरण में सहायता प्रदान करता है। शिक्षार्थी वैयक्तिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। अतः एक शिक्षक को सीखने के विविध अनुभवों को उपलब्ध कराना चाहिए।कक्षा का आकार तय करने में भी वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान विशेष सहायक होता है। यदि कक्षा के अधिकतर बालक अधिगम में कमजोर हों, तो कक्षा का आकार कम होना चाहिए। वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धान्त व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर डालता है। इसके अनुसार बालकों की आवश्यकता को व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि उसका सर्वागीण विकास हो सके। वैयक्तिक विभिन्नता के ज्ञान के आधार पर शिक्षक यह तय कर पाते हैं कि लड़कियाँ किसी कार्य को विशेष ढंग से एवं लड़के किसी कार्य को विशेष ढंग से क्यों कर पाते हैं? पाठ्यक्रम के निर्धारण एवं विकास में भी वैयक्तिक विभिन्नता की प्रमुख भूमिका होती है। बालकों की आयु, कक्षा आदि को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कक्षा के लिए अलग प्रकार की पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है एवं उन्हें अलग प्रकार से लागू भी किया जाता है। उदाहरणस्वरूप बच्चों की पुस्तकें अधिक चित्रमय एवं रंगीन होती हैं, जबकि जैसे-जैसे कक्षा एवं आयु में वृद्धि होती जाती है, उनकी पुस्तकों के स्वरूप में भी अन्तर दिखाई पड़ता है। इसी प्रकार प्राथमिक कक्षा के बच्चों को खेलकूद के जरिए शिक्षा देने पर जोर दिया जाता है। बच्चों को गृहकार्य देते समय भी उनकी वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखा जाता है। बालकों के निर्देशन में भी वैयक्तिक विभिन्नता की विशेष भूमिका होती है।

Important Theories of Child Development & Pedagogy

Important Theories of Child Development & Pedagogy


=> मनोविज्ञान के जनक = विल्हेम वुण्ट
=> आधुनिक मनोविज्ञान के जनक = विलियम जेम्स
=> प्रकार्यवाद(Functionalism) सम्प्रदाय के जनक = विलियम जेम्स
=> आत्म सम्प्रत्यय(Self concept) की अवधारणा = विलियम जेम्स

=> शिक्षा-मनोविज्ञान के जनक = एडवर्ड थार्नडाइक
=> प्रयास एवं त्रुटि(Trial and error Method) सिद्धांत = थार्नडाइक
=> प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> संयोजनवाद का सिद्धांत (Connectionism) = थार्नडाइक
=> उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धांत(Stimulus-Response Theory)= थार्नडाइक
=> S-R थ्योरी के जन्मदाता = थार्नडाइक
=> अधिगम का बन्ध सिद्धांत = थार्नडाइक
=> संबंधवाद का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> प्रशिक्षण अंतरण का सर्वसम अवयव(Identical Elements) का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> बहुखंड या बहुतत्व बुद्धि का सिद्धांत (Multi-factor Theory, मूर्त, अमूर्त और सामाजिक बुद्धि ))= थार्नडाइक

=> बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक = अल्फ्रेड बिने एवं साइमन
=> बुद्धि परीक्षणों के जन्मदाता (1905) = अल्फ्रेड बिने
=> एकखंड बुद्धि का सिद्धांत(Unifactor Theory) = अल्फ्रेड बिने

=> दो खंड बुद्धि का सिद्धांत(Two factor Theory)= स्पीयरमैन
=> तीन खंड बुद्धि का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> सामान्य व विशिष्ट तत्वों के सिद्धांत के प्रतिपादक(g-s factor, general-specific) = स्पीयरमैन
=> बुद्धि का द्वय शक्ति का सिद्धांत = स्पीयरमैन

=> त्रि-आयाम बुद्धि का सिद्धांत ( 180 ) =JP गिलफोर्ड
=> बुद्धि संरचना का सिद्धांत(Structure of Intellect) = गिलफोर्ड

=> समूह खंडबुद्धि का सिद्धांत(Group Factor Theory) = थर्स्टन
(7 मानसिक योग्यताओं का समूह
=> युग्म तुलनात्मक निर्णय विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन
=> क्रमबद्ध अंतराल विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन
=> समदृष्टि अन्तर विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन व चेव

=> न्यादर्श या प्रतिदर्श(वर्ग घटक) बुद्धि का सिद्धांत = थॉमसन
=> पदानुक्रमिक(क्रमिक महत्व) बुद्धि का सिद्धांत(Hiearchy) = बर्ट एवं वर्नन
=> तरल-ठोस बुद्धि का सिद्धांत(Fluid and Crystallized Intelligence) = आर. बी.केटल
=> प्रतिकारक (विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक (16 Personality Factor Theory-16PF)= आर. बी.केटल

=> बुद्धि ‘क’ और बुद्धि ‘ख’ का सिद्धांत = D O हैब
=> बुद्धि इकाई का सिद्धांत = स्टर्न एवं जॉनसन
=> बुद्धि लब्धि(IQ-Intelligence Quotient) ज्ञात करने के सुत्र के प्रतिपादक = विलियम स्टर्न
=> संरचनावाद(Structuralism) सम्प्रदाय के जनक = Wilhelm Maximilian Wundt के शिष्य टिंचनर (Edward B. Titchener)
=> प्रयोगात्मक मनोविज्ञान(Experimental Psychology) के जनक=विल्हेम वुण्ट-1879 में लिपजिग जर्मनी में पहली प्रयोगशाला

=> विकासात्मक मनोविज्ञान(Developmental Psychology) के प्रतिपादक = जीन पियाजे
=> संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Cognitive Development Theory-4 Stages) = जीन पियाजे

=> मूल प्रवृत्तियों(Basic Instnicts)के सिद्धांत के जन्मदाता = विलियम मैक्डूगल
=> हार्मिक का सिद्धांन्त = विलियम मैक्डूगल

=> मनोविज्ञान – मन मस्तिष्क का विज्ञान = पोंपोनोजी
=> क्रिया-प्रसूत अनुबंधन(Operant Condioning) का सिद्धांन्त =B F स्किनर
=> सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांन्त = B F स्किनर

=> अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव (I P Pavlov)
=> संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत = I P पावलव
=> शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत(Classical Conditioning)= इवान पेट्रोविच पावलव
=> प्रतिस्थापक का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव

=> प्रबलन (पुनर्बलन) का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> व्यवस्थित व्यवहार का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> सबलीकरण का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> संपोषक का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> चालक / अंतर्नोद(प्रणोद(Drive Reduction Theory) का सिद्धांत = सी. एल. हल

=> अधिगम का सूक्ष्म सिद्धान्त = कोहलर ( Sultan Chimpanzee )
=> सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धांत(Insight Learning) = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
=> गेस्टाल्टवाद सम्प्रदाय(Gestalt-German Word-Whole/form)के जनक = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का

=> क्षेत्रीय सिद्धांत (Field Theory)= Kurt लेविन
=> तलरूप कासिद्धांत = Kurt लेविन

=> समूह गतिशीलतासम्प्रत्यय के प्रतिपादक = Kurt लेविन
=> सामीप्य संबंधवाद का सिद्धांत = Kurt गुथरी

=> साईन(चिह्न) का सिद्धांत = टॉलमैन
=> सम्भावना सिद्धांत के प्रतिपादक = टॉलमैन

=> अग्रिम संगठकप्रतिमान के प्रतिपादक = डेविड आसुबेल
=> भाषायीसापेक्षता प्राक्कल्पना के प्रतिपादक = व्हार्फ
=> मनोविज्ञान के व्यवहारवादी(Behaviourism) सम्प्रदाय के जनक = जोहन बी. वाटसन
=> अधिगम या व्यव्हार सिद्धांत के प्रतिपादक = क्लार्क Hull
=> सामाजिक अधिगम(Social Learning) सिद्धांत के प्रतिपादक = अल्बर्ट बण्डूरा
=> पुनरावृत्ति का सिद्धांत = G स्टेनले हॉल
=> अधिगम सोपानकी के प्रतिपादक = गेने (Gagne)
=> मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत(Psychosocial Development) = एरिक एरिक्सन

=> प्रोजेक्ट प्रणाली(योजना विधि ) से करके सीखना का सिद्धांत = जान ड्यूवी के student किल्पैट्रिक
=> अधिगम मनोविज्ञान का जनक = हर्मन इबिनघौस (Hermann Ebbinghaus )

=> अधिगम अवस्थाओं के प्रतिपादक = जेरोम ब्रूनर
=> संरचनात्मक अधिगम का सिद्धांत(Constuctivism)= जेरोम ब्रूनर

=> सामान्यीकरण का सिद्धांत(Generalization)= सी. एच.जड
=> शक्ति मनोविज्ञान का जनक = वॉल्फ
=> अधिगम अंतरण का मूल्यों के अभिज्ञान का सिद्धांत= बगले
=> भाषा विकास का सिद्धांत(Language Development) = नोआम चोमस्की

=> माँग-पूर्ति(आवश्यकता-पदानुक्रम-Hiarchy of Needs) का सिद्धांत = अब्राहम मैस्लो (मास्लो)
=> स्व-यथार्थीकरण अभिप्रेरणा का सिद्धांत = अब्राहम मैस्लो (मास्लो)
=> आत्मज्ञान का सिद्धांत = अब्राहम मैस्लो (मास्लो)

=> उपलब्धि-अभिप्रेरणा का सिद्धांत( अचीवमेंट Motivation) = डेविड सी.मेक्लिएंड
=> प्रोत्साहन का सिद्धांत = बोल्स व काफमैन
=> शीलगुण(विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक(Trait Theory ) = आलपोर्ट

=> व्यक्तित्व मापन का माँग का सिद्धांत = हेनरी मुरे
=> कथानक बोधपरीक्षण विधि के प्रतिपादक = मोर्गन व मुरे
=> प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (TAT-Thematic Apperception Test,) विधि के प्रतिपादक = मोर्गन व मुरे

=> बाल -अन्तर्बोध परीक्षण (C.A.T.-Children Apperception Test) विधि के प्रतिपादक = लियोपोल्ड बैलाक
=> रोर्शा स्याही ध्ब्बा परीक्षण (I.B.T.-Ink Blot Test) विधि के प्रतिपादक = हरमन रोर्शा
=> वाक्य पूर्ति परीक्षण (Sentence Completion Test) विधि के प्रतिपादक = पाईन व टेंडलर

=> व्यवहार परीक्षण विधि के प्रतिपादक = मे एवं हार्टशार्न

=> किंडरगार्टन(बालोद्यान ) विधि के प्रतिपादक = फ्रोबेल
=> खेल प्रणाली के जन्मदाता = फ्रोबेल

=> मनोविश्लेषण(Psychoanalysis) विधि के जन्मदाता = सिगमंड फ्रायड
=> स्वप्न-विश्लेषण(Interpretation of Dreams विधि के प्रतिपादक = सिगमंड फ्रायड

=> प्रोजेक्ट(प्रयोग) विधि के प्रतिपादक = विलियम हेनरी क्लिपेट्रिक (जान ड्यूवी के शिष्य)
=> मापनी भेदक विधि के प्रतिपादक = एडवर्ड्स व क्लिपेट्रिक

=> डाल्टन विधि की प्रतिपादक = मिस हेलेन पार्कहर्स्ट
=> मांटेसरी विधि की प्रतिपादक = मेडम मारिया मांटेसरी
=> डेक्रोली विधि के प्रतिपादक(Teaching in Natural environment)= ओविड डेक्रोली
=> विनेटिका(इकाई) विधि के प्रतिपादक = कार्लटन वाशबर्न
=> ह्यूरिस्टिक(खोज) विधि के प्रतिपादक = एच.ई. आर्मस्ट्रांग
=> समाजमिति(Sociometry) विधि के प्रतिपादक = जे. एल. मोरेनो
=> योग निर्धारण विधि के प्रतिपादक = लिकर्ट
=> स्केलोग्राम विधि के प्रतिपादक = गटमैन
=> विभेद शाब्दिक विधि के प्रतिपादक = आसगुड
=> स्वतंत्र शब्द साहचर्य परीक्षण विधि के प्रतिपादक = फ़्रांसिस गाल्टन
=> स्टेनफोर्ड- बिने स्केल परीक्षण के प्रतिपादक = टरमन
=> पोरटियस भूल-भुलैया परीक्षण के प्रतिपादक = एस.डी. पोरटियस
=> वेश्लर-वेल्यूब बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक = डी.वेश्लवर

=> आर्मी अल्फा परीक्षण के प्रतिपादक = आर्थर एस. ओटिस
=> आर्मी बिटा परीक्षण के प्रतिपादक = आर्थर एस. ओटिस

=> हिन्दुस्तानी बिने क्रिया परीक्षण के प्रतिपादक = सी.एच.राइस
=> प्राथमिक वर्गीकरण परीक्षण के प्रतिपादक = जे. मनरो
=> बाल अपराध विज्ञान का जनक = सीजर लोम्ब्रसो
=> वंश सुत्र के नियम के प्रतिपादक = जोन ग्रैगर मैंडल
=> ब्रेल लिपि के प्रतिपादक = लुई ब्रेल
=> साहचर्य सिद्धांत के प्रतिपादक = एलेक्जेंडर बैन
=> “सीखने के लिएसीखना” सिद्धांत के प्रतिपादक = हर्लो
=> शरीर रचना का सिद्धांत = शैल्डन
=> व्यक्तित्व मापन के जीव सिद्धांत के प्रतिपादक = गोल्डस्टीन
=> मनोविज्ञान के जनक = विल्हेम वुण्ट
=> आधुनिक मनोविज्ञान के जनक = विलियम जेम्स
=> प्रकार्यवाद सम्प्रदाय के जनक = विलियम जेम्स
=> आत्म सम्प्रत्यय की अवधारणा = विलियम जेम्स
=> शिक्षा-मनोविज्ञान के जनक = एडवर्ड थार्नडाइक
=> प्रयास एवं त्रुटि सिद्धांत = थार्नडाइक
=> प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> संयोजनवाद का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> उद्दीपन-अनुक्रिया का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> S-R थ्योरी के जन्मदाता = थार्नडाइक
=> अधिगम का बन्ध सिद्धांत = थार्नडाइक
=> संबंधवाद का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> प्रशिक्षण अंतरण का सर्वसम अवयव का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> बहुखंड या बहुतत्व बुद्धि का सिद्धांत = थार्नडाइक
=> बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक =अल्फ्रेडबिने एवं साइमन
=> बुद्धि परीक्षणों के जन्मदाता =अल्फ्रेडबिने
=> एकखंड बुद्धि का सिद्धांत =अल्फ्रेडबिने
=> दो खंड बुद्धि का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> तीन खंड बुद्धि का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> सामान्य व विशिष्ट तत्वों के सिद्धांत के प्रतिपादक = स्पीयरमैन
=> बुद्धि का द्वय शक्ति का सिद्धांत = स्पीयरमैन
=> त्रि-आयाम बुद्धि का सिद्धांत ( 150 ) = गिलफोर्ड
=> बुद्धि संरचना का सिद्धांत = गिलफोर्ड
=> समूह खंडबुद्धि का सिद्धांत = थर्स्टन
=> युग्म तुलनात्मक निर्णय विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन
=> क्रमबद्ध अंतराल विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन
=> समदृष्टि अन्तर विधि के प्रतिपादक = थर्स्टन व चेव
=> न्यादर्श या प्रतिदर्श(वर्ग घटक) बुद्धि का सिद्धांत = थॉमसन
=> पदानुक्रमिक(क्रमिक महत्व) बुद्धि का सिद्धांत = बर्ट एवं वर्नन
=> तरल-ठोस बुद्धि का सिद्धांत = आर. बी.केटल
=> प्रतिकारक (विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक = आर. बी.केटल
=> बुद्धि ‘क’ और बुद्धि ‘ख’ का सिद्धांत = D O हैब
=> बुद्धि इकाई का सिद्धांत = स्टर्न एवं जॉनसन
=> बुद्धि लब्धि ज्ञात करने के सुत्र के प्रतिपादक = विलियम स्टर्न
=> संरचनावाद साम्प्रदाय के जनक = WilhelmMaximilianWundtके शिष्यटिंचनर(Edward B. Titchener)
=> प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक = विल्हेम वुण्ट-1879 में लिपजिग जर्मनी में पहली प्रयोगशाला
=> विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रतिपादक = जीन पियाजे
=> संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत = जीन पियाजे
=> मूल प्रवृत्तियों के सिद्धांत के जन्मदाता = विलियम मैक्डूगल
=> हार्मिक का सिद्धांन्त = विलियम मैक्डूगल
=> मनोविज्ञान – मन मस्तिष्क का विज्ञान = पोंपोनोजी
=> क्रिया-प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांन्त =B F स्किनर
=> सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांन्त = B F स्किनर
=> अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव (I P Pavlov)
=> संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत = I P पावलव
=> शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव
=> प्रतिस्थापक का सिद्धांत = इवान पेट्रोविच पावलव
=> प्रबलन (पुनर्बलन) का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> व्यवस्थित व्यवहार का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> सबलीकरण का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> संपोषक का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> चालक / अंतर्नोद(प्रणोद) का सिद्धांत = सी. एल. हल
=> अधिगम का सूक्ष्म सिद्धान्त = कोहलर ( Sultan Chimpanzee )
=> सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धांत = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
=> गेस्टाल्टवाद सम्प्रदाय के जनक = कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
=> क्षेत्रीय सिद्धांत =Kurtलेविन
=> तलरूप कासिद्धांत =Kurtलेविन
=> समूह गतिशीलतासम्प्रत्यय के प्रतिपादक =Kurtलेविन
=> सामीप्य संबंधवाद का सिद्धांत =Kurtगुथरी
=> साईन(चिह्न) का सिद्धांत = टॉलमैन
=> सम्भावना सिद्धांत के प्रतिपादक = टॉलमैन
=> अग्रिम संगठकप्रतिमान के प्रतिपादक = डेविड आसुबेल
=> भाषायीसापेक्षता प्राक्कल्पना के प्रतिपादक = व्हार्फ
=> मनोविज्ञान के व्यवहारवादी सम्प्रदाय के जनक = जोहन बी. वाटसन
=> अधिगम या व्यव्हार सिद्धांत के प्रतिपादक = क्लार्क Hull
=> सामाजिक अधिगम सिद्धांत के प्रतिपादक = अल्बर्ट बण्डूरा
=> पुनरावृत्ति का सिद्धांत = G स्टेनले हॉल
=> अधिगम सोपानकी के प्रतिपादक = गेने
=>मनोसामाजिकविकासकासिद्धांत =एरिकएरिक्सन
=> प्रोजेक्ट प्रणाली से करके सीखना का सिद्धांत = जान ड्यूवी
=> अधिगम मनोविज्ञान का जनक =हर्मन इबिनघौस(Hermann Ebbinghaus )
बुद्धि का सिद्धान्त :
1. नवीन परिस्थितियों से चेतन अनुकूलन ही बुद्धि है उक्त परिभाषा है?
रोस ने
2. वुडवर्थ के अनुसार बुद्धि की परिभाषा है?
बुद्धि कार्य करने की एक विधि है|
3. बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है – ये कथन किसका है?
टरमन
4. बुद्धि कितने प्रकार की है?
तीन प्रकार : 1- मूर्त 2- अमूर्त 3- सामाजिक ।
5. 1904 में दो कारक सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
स्पीयरमैन ने ।
6. श्रमिक के लिए कितनी बुद्धि – लब्धि पर्याप्त है?
70 से 85 बुद्धि – लब्धि ।
7. बालक का वह गुण जिसमे किसी नवीन वस्तु का निर्माण किया जाता है, वह कहलाती है?
सृजनात्मकता |
8. जालोटा ने परीक्षण दिया है?
सामूहिक बुद्धि परीक्षण ।
9. किस आयु में बालक की मानसिक योग्यता का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है?
14वर्ष ।
10. बहुखण्ड सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
थार्नडाइक ने ।
11. बुद्धि – लब्धि को ज्ञात करने का सर्वप्रथम सूत्र किस मनोवैज्ञानिक ने दिया है?
स्टर्न ने ।
12.बुद्धि – लब्धि निकालने का सही फार्मूला क्या है?
मानसिक आयु / वास्तविक आयु ×100
13. थस्टर्न का समूह तत्व सिद्धान्त बुद्धि के कितने प्राथमिक कारकों का वर्णन करता है?
सात कारकों का ।
14. बुद्धि परीक्षण का जनक किसे माना जाता है?
बिने – साइमन ।
15. भारत में सर्वप्रथम बुद्धि परीक्षण का प्रारम्भ कब हुआ?
1922 में ।
16. बुद्धि ओर विकास पूरक है –
एक – दुसरे के ।
17. वर्नन. ने किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया?
क्रमिक महत्व सिद्धान्त का ।
18. प्रतिदर्शन सिद्धान्त के प्रतिपादक है?
थोमसन
19. त्रि – अायाम सिद्धान्त के प्रवर्तक है?
गिलफर्ड
20. बुद्धि परीक्षण को कितने भागो में बाटाँ है?
दो भागों में ।
21. बुद्धि पहचानने तथा सुनने कि शक्ति है, यह मत है?
बिने का ।

अभिप्रेरणा (Motivation)

प्रेरणा शब्द लैटिन भाषा के “मौटम” शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- motor तथा motion इसके अनुसार प्रेरणा में गति होना अनिवार्य है|
मनोवैज्ञानिक क्रेच तथा क्रेचफील्ड के अनुसार प्रेरणा हमारे ‘क्यों’ का उत्तर देती हैं|
हम किसी से क्यों प्यार करते हैं?
हम किसी से क्यों घृणा करते हैं?
तारे दिन में क्यों दिखाई नहीं देते हैं?

शिक्षा एक जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है अर्थात क्रिया है|
किसी भी क्रिया के पीछे एक बल कार्य करता है जिसे हम प्रेरक बल कहते हैं| उसी प्रकार शिक्षा प्राप्त करने की प्रक्रिया में कार्य करने वाला बल अभिप्रेरणा है|

प्रेरकों का वर्गीकरण(Classification of motives)

आंतरिक अभिप्रेरक

जिन्हें हम व्यक्तिगत, जैविक, प्राथमिक, जन्मजात अभिप्रेरक आदि भी कहते हैं
| भूख,प्यास,आराम,नींद,प्यार,क्रोध,सेक्स,मल-मूत्र त्याग आदि|

बाह्य अभिप्रेरक

जिन्हें हम सामाजिक,मनोवैज्ञानिक,द्वितीयक,अर्जित अभिप्रेरक कहते हैं|
सुरक्षा,प्रदर्शन,जिज्ञासा,सामाजिकता,ज्ञान
प्रेरक= आवश्यकता+ चालक+ प्रोत्साहन

आवश्यकता ( need)

यह हमारे शरीर की कोई जरूरत या अभाव है जिसके उत्पन्न होने पर हम शारीरिक असंतुलन या तनाव महसूस करते हैं|
जैसे-भूख लगने पर खाने की आवश्यकता|
बीमार पड़ने पर दवा की आवश्यकता|
अकेले रहने पर साथी की आवश्यकता|
थक जाने पर आराम की आवश्यकता|
“आवश्यकता प्राणी की वहां आंतरिक अवस्था है जो किसी उद्दीपन हो अथवा लक्ष्यों के संबंध में जीवो का क्षेत्र संगठित करती हैं और उन की प्राप्ति हेतु क्रिया उत्पन्न करती हैं |”

चालक/अंतर्नोद/प्रणोदन ( drive)

प्रत्येक आवश्यकता से जुड़ा हुआ एक चालाक होता है|
जैसे- खाने की आवश्यकता से भूख,
पानी की आवश्यकता से प्यास|
जब तक चालक शांत नहीं हो जाता तब तक हम तनाव में रहते हैं|

उद्दीपन/प्रोत्साहन(Incentive)

प्रोत्साहन वातावरण में उपस्थित तत्व है जो हमारे चालक को शांत कर देते हैं|
जैसे- प्यास लगने पर जीव तालाब,झरना,नदी-नाले का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता है|
“उद्दीपन वह वस्तु परिस्थितियां अथवा प्रक्रिया है जो व्यवहार को उत्तेजना प्रदान करती हैं उसे जारी रखती हैं तथा उसे दिशा देती हैं|”
वास्तव में आवश्यकता चालक एवं उद्दीपन में घनिष्ठ संबंध है|
आवश्यकता चालको को जन्म देती हैं| चालक एक तनावपूर्ण स्थिति हैं तथा व्यवहार को एक निश्चि

मनोवैज्ञानिकों ने मानवीय व्यवहार में होने वाले परिवर्तन व विविधता को ही अभिप्रेरणा का नाम दिया है।

जेंमस ड्रेवर-अभिप्रेरणा एक भावात्मक क्रियात्मक कारक है जो कि चेतन व अचेतन लक्ष्य की ओर होने वाले व्यक्ति के व्यवसाय की दिशा को निश्चित करने का कार्य करता है

विटिंग व विलियम तृतीय-अभिप्रेरणा अवस्थाओं का एक ऐसा समूचय है जो व्यवहार को सक्रिय करता है निर्देशित करता तथा किसी लक्ष्य की और उसे बनाए रखता है।

अभिप्रेरणा का स्वरूप

यह क्रियाएं लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्राणी को प्रेरित करती है।
अभिप्रेरणा जन्मजात नहीं होती।
अभिप्रेरणा एक बाहय कारक है जो व्यक्ति में आंतरिक भावना पैदा करती है।
अभिप्रेरणा व्यक्ति को लक्ष्य की तरफ निर्देशित करते हैं।
अभिप्रेरणा के मौलिक अभिप्रेरणा संप्रत्यय

1 आवश्यकता 2 प्रणोद 3 प्रोत्साहन

अभिप्रेरणा चक्र

आवश्यकता➡ अंतरनोद➡ संज्ञान ➡लक्ष्य निर्देशित व्यवहार ➡लक्ष्य की प्राप्ति ➡अंतरनाेद में कमी

अभिप्रेरणा के प्रकार

1 -जैविक अभिप्रेरक,प्राथमिक,जन्मजात,शारीरिक

वह अभिप्रेरक जो व्यक्ति में जन्म से ही उपस्थित होते हैं प्राथमिक अभिप्रेरित कहलाते हैं।

शरीफ के अनुसार अभिप्रेरक अर्जित नहीं होते,इनकी अभिव्यक्ति में एक ही प्रजाति के सभी सदस्य में समरूपता होती है,वे व्यक्ति में उत्तेजना उत्पन्न करते हैं तथा व्यक्तिगत मांगों के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं।

मुख्य जैविक अभिप्रेरक-भूख,प्यास,नींद ,मल मूत्र त्यागना,काम

कैनन ने भूख का स्थानीय उद्दीपक सिद्धांत प्रस्तुत किया इनके अनुसार भूख अमस्या में संकुचन के कारण लगती है।

अन्य कारक

रक्त में ग्लूकोज की मात्रा का कम होना
फ्रीडमैन व स्टीकर के अनुसार-ईधन की आपूर्ति में कमी के कारण मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस के एक हिस्से लेटरल हाइपोथैलेमस(जागृति केंद्र) को भूख का अनुभव होता है।
जबकि वेंट्रोमेडियल हाइपोथैलेमस भोजन संतृप्ति का अनुभव करवाता है।

इप्सटीन का डबल डिफ्लेशन सिद्धांत-इनके अनुसार प्यास दो शारीरिक क्रियाओं -कोशिका में पानी की कमी हो जाना और रक्त की मात्रा में कमी होने का परिणाम है। हाइपोथैलेमस व पीयूष ग्रंथि से स्रावित हार्मोन एंटीड्यूरेटिक हॉरमोन किडनी द्वारा पानी को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखता है।

इसके अलावा रानी नामक पदार्थ स्रावित होता है जो वक्त ने मिलकर एंजियोटेंशिन द्वितीय बनाता है जो व्यक्ति में प्याज की अनुमति करता है।

नींद-तीव्र आंख गतिक नींद व मंद आंख गतिक नींद(क्लिंट मैन के अनुसार)

Posterior हाइपोथैलेमस को नींद का केंद्र माना जाता है।

2 द्वितीय,अर्जित,मनोवैज्ञानिक,सामाजिक अभिप्रेरक

कराउनी और मारलों के अनुसार – उच्च अनुमोदन वाला व्यक्ति निमन अनुमोदन वाले व्यक्तियों की तुलना में समूह के प्रति अधिक अनुरूपता प्रदर्शित करता है।
शेशटर के अनुसार संबंध अभिप्रेरक-इसमें व्यक्ति को दूसरों के साथ रहने व संबंध बनाने में संतोष प्राप्त होता है
जे वीराॅफ का सत्ता अभिप्रेरक-इस अभी प्रेरक में व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने वाले संसाधनों पर नियंत्रण कर संतुष्टि प्रदान करता है।इसी को डोलॉर्ड ने कुंठा आक्रमणता कल्पना कहा गया है।मैकदुग्गल ने इसे युयुत्सु मूल प्रवृत्ति,फ्रायड ने मृत्यु मूल प्रवृत्ति,लारेंज ने इसे अभियोजनआत्मक मूल प्रवृत्ति माना है।
अभिप्रेरक(मैक्लीलैंड के अनुसार)
उच्च उपलब्धि प्रेरक वाले व्यक्ति व्यवहार के चुने हुए क्षेत्रों में कार्य करना पसंद करते हैं,ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रतियोगिता में सर्वोच्च स्थान पाने के लिए प्रयासरत होते हैं अगर वह असफल होते हैं तो इसके लिए हम को जिम्मेदार ठहराते हैं।

उपलब्धि अभिप्रेरणा सिद्धांत का प्रतिपादन एटकिंसन विर्क ने किया था।i
अभिप्रेरित व्यवहार के प्रतिमान-

मनोविश्लेषणात्मक प्रतिमान-इस मॉडल के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड थे,इन के अनुसार मूल प्रवृत्तियों के दो प्रकार हैं जीवन मूल प्रवृत्ति(लिबिडो) व मृत्यु मूल प्रवृत्ति(माटिडो)
उदोलन प्रतिमान-इसके समर्थक फिक्स एवं माडी है
संज्ञानात्मक प्रतिमान इस मॉडल की अवधारणा टोलमैन व लेविन ने रखी थी-टोलमैन के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार का स्त्रोत आवश्यकता व अंतरनाेद जबकि लेविन के अनुसार व्यवहार में उपस्थित तनाव है। इसे एटकिंस व विरूम ने प्रोत्साहन प्रत्याशा सिद्धांत भी कहा है।
मानवतावादी प्रतिमान के प्रतिपादक अब्राहम मैस्लो है इन्होंने मानव आवश्यकता के आधार पर पांच वर्गीकरण की है।
मूलपरवर्ती प्रतिमान-मैक्डूगल के अनुसार-‘संवेग उत्पन्न होने पर जो क्रिया होती है उसे मूल प्रवृत्ति कहलाती है’
प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के साथ एक संवेग जुड़ा रहता है।