Bloom Taxonomy – Psychomotor Domain

✍Menka patel ✍

🌈क्रियात्मक डोमेन /गत्यात्मक डोमेन/ मनोक्रियात्मक डोमेन/मनोचिकित्सात्मक डोमेन/मनोगत्यात्मक डोमेन🌈

☄क्रियात्मक डोमेन- यह डोमेन क्रियाओं क्रिया पर आधारित है जो हम क्रियाएं करते हैं हमारा जो व्यवहार कुशलता है इसमें परिवर्तन हुआ कि नहीं यह देखा जाता है जब हम कार करते हैं हमारे व्यवहार में परिवर्तन दिखता है उसे हम क्रियात्मक डोमेन कहते हैं इसे मनो क्रियात्मक पक्ष के बिना ज्ञान और भाव अधूरा है यह मन के हिसाब से है इसीलिए इसे मनो क्रियात्मक कहते हैं
ज्ञान होता है और भाव होता है लेकिन क्लियर नहीं करता तो इसका कोई मतलब नहीं होता है इसीलिए ज्ञान और भाव के साथ क्रिया का भी होना आवश्यक है|

⭐ क्रिया /कार्य – इसका केंद्र बिंदु है जो व्यवहार कुशलता में परिवर्तन होता है वह किया है|

⭐ अंगो /मांसपेशी- शारीरिक रूप से कार्य करना इसकी गति करने कार्य के लिए प्रशिक्षित करना जितना कार्य करेंगे उतना ही अधिगम का विकास होगा|

🌈 क्रियात्मक डोमेन के 6 स्तर है-

👉 उत्तेजना /आवेग – हमारे अंदर काम करने की उत्तेजना होनी चाहिए तभी हम कुछ कार्य कर पाएंगे|
👉 परिचालन/ कार्य को करना /अभ्यस्तिकरण- उत्तेजना को अपने कार्य में लगाना और कार को मूर्त रूप देना|

👉 नियंत्रण- जब हम किसी इसी काम को उत्तेजना में कर रहे और परिचालन या काम तो कर रहे हैं लेकिन नियंत्रण नहीं है तो कार्य को पूरा नहीं कर सकते
इसीलिए कार्य को करते समय नियंत्रण होना आवश्यक है तभी कार्य को पूरा कर पाएंगे|

👉 समन्वय/ सामन्जस्य- हम जो अलग-अलग प्रकार के प्यार करते हैं तो हम सर को किस प्रकार करना है उसकी क्या रूपरेखा होगी उस किस प्रकार निर्धारित करेंगे यह सब हम सामंजस करते हैं सामंजस गत्यात्मक होता है और अगर हम किसी कार्य को कर रहे हैं और कोई काम और आए जो उससे भी आवश्यक है तो हम उन कारणों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं यह क्रियात्मक डोमेन आवश्यक है|

👉 अनुकूल/ स्वाभाविक – जब हम किसी कार्य को करने लगती हैं और हमारे समन्वय में स्थापित कर लेते हैं तो वह कार हमारे लिए अनुकूलित हो जाता है उसे हम स्वाभाविक रूप से कर लेते हैं|

👉आदत निर्माण/ उत्पत्ति /गठन- जब हम कार्य को हर तरीके से करने लगते हैं तो उस कार्य हमारी आदत बन जाती है और हम उसे अच्छी तरीके से करने लगते है|

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💫Notes by – Neha Kumari 😊

📚 ब्लूम वर्गीकरण(Bloom’s Taxonomy)Part :- 3

🌳क्रियात्मक डोमेन/मनो – क्रियात्मक डोमेन/मनो – गत्यात्मक डोमेन/मनो – शारीरिक डोमेन/मनो – चिकित्सा डोमेन(Psychomotor/ Psychotherapy/ Psychodynamic) :-

🌟क्रियात्मक डोमेन कर अन्तर्गत हम किसी कार्य को करने के लिए अपने अलग -२ प्रकार के भाव और ज्ञान को अनेक प्रकार से दर्शाते हैं।
🌟क्रियात्मक पक्ष के अन्तर्गत ही भावात्मक और ज्ञानात्मक पक्ष को भी माना जाता है।क्योंकि,भाव और ज्ञान के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
🌟भाव और ज्ञान के द्वारा हम अपने ज्ञान से ही तो कोई कार्य,किसी,गति विषय आदि को क्रिया में लाते हैं।
🌟क्रियात्मक पक्ष के द्वारा ही हमारी शारीरिक,मानसिक, गातिक और भी कई सारे पक्ष जुड़े हुए हैं।
🌟इस पक्ष के अन्तर्गत हमारे मन में चिकित्सा भावना भी उत्पन्न होती है।इसलिए इसे मनो – चिकित्सा डोमेन भी कहा जाता है।
🌟इसके द्वारा हमारे मन में अनेक प्रकार की क्रियाएं जैसे,किसी कार्य को करने की क्षमता – कब,क्यों और कैसे करें,हमारे संज्ञानात्मक मानसिक,शारीरिक गति इत्यादि से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए इसे मनो – गत्यात्मक का भी नाम दिया गया है।

🌳क्रियात्मक डोमेन के ६ स्तर बताए गए हैं :-

1️⃣उत्तेजना/आवेग(impulse/excitation/stimulation)
2️⃣परिचालन/कार्य करना/अभ्यस्तिकरण (operations/work/habituation)
3️⃣नियंत्रण (control)
4️⃣समन्वय/सामंजस्य/स्वामित्व(co-ordination)
5️⃣ अनुकूलन/स्वाभाविक (adaptation)
6️⃣ आदत निर्माण/उत्पत्ति/गठन

1️⃣उत्तेजना/आवेग :- उत्तेजना,कार्य करने की क्षमता,हमारे अंदर जितनी क्षमता होगी उसके अनुसार ही कार्य कर पाएंगे।कई बार उत्तेजना में हम कुछ गलत भी के जाते हैं।

2️⃣परिचालन/कार्य को करना/अभ्यस्तिकरण :- परिचालन के द्वारा हम अपनी उत्तेजना को मूर्त रूप में प्रकट करते तथा अपने कार्य में लगाते हैं।

3️⃣नियंत्रण :- जब हमारे अंदर उत्तेजना होती है तो,हम कोई कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं और उसका परिचालन करते हैं।
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि उस कार्य पर हमारा नियंत्रण नहीं होने के कारण कार्य अधूरा भी रह जाता है।

4️⃣समन्वय/सामंजस्य :- जब हम किसी कार्य को करने के लिए अलग -२ प्रकार की नियम – कानून या पद्धति का निर्माण करते हैं कि,कब,क्या,कैसे और क्यों करना है।ये सब निर्धारित करते,सामंजस्य करते हैं, ये सब गत्यात्मक होता है।और हम जब कोई कार्य करते हैं तो उसमें, इन सब में अपने – आप को ढाल लेते हैं,सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं।मतलब की :- उसे अपने स्वभाव/कार्य/मन में समाहित के लेते हैं।इसका भी क्रियात्मक डोमेन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

5️⃣अनुकूलन/स्वाभाविक :- जब हम किसी कार्य को करते समय उसके साथ सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं तो वो कार्य और भी आसान लगने लगता है।जिसके अनुकूल हम अपने स्वाभाविक रूप से स्थापित कर लेते हैं।

6️⃣आदत :- हमें कोई कार्य करना होता है तो,हम उसके प्रति अपनी आदत का निर्माण करते हैं। अगर हमें वो कार्य करने में दिलचस्पी होगी तो अपने – आप उस कार्य में मन लगाने लगेगा तथा हम अपने – आप में अनुकूल आदत निर्माण के लेंगे। इसलिए आदत गठन का भी इसमें महत्वपूर्ण स्थान है।

🌸धन्यवाद्👏


✍🏻Notes By-Vaishali Mishra
ब्लूम की शिक्षण व्यवस्था
(Bloom Taxonomy) (तृतीय पक्ष)_

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क्रियात्मक डोमेन/ मनोकियात्मक डोमेन/मनोचिकित्सा डोमेन/मनोगत्यात्मक डोमेन
*ज्ञान और भाव का प्रदर्शन कार्य को करने से होता है। कार्य को करने की यही क्रिया क्रियात्मक डोमेन या क्रियात्मक क्षेत्र कहलाती है।

  • यह डोमेन क्रियाओं पर आधारित होते है। और इन क्रियाओं का आधार सामान्यतः हमारा व्यवहार और हमारी कुशलता ही है।
    दूसरे शब्दों में कार्य के या क्रिया के होने से हमारे पास जो कुशलता और व्यवहार है उसके साथ कितना अधिगम किया गया है या उसमे कितना परिवर्तन हुआ है या नहीं हुआ है इस बात का पता चलता है ।

*जब हम कोई कार्य या क्रिया करते है तो उस अधिगम से हमारे व्यवहार व हमारी कुशलता में भी परिवर्तन होता है।

  • कार्य को करने के लिए हमारा ज्ञान या भाव जो भी हो लेकिन हमारी उस कार्य को करने में कितनी कुशलता है और उस कार्य से हमारा व्यवहार में परिवर्तन कितना हुआ है यह ज्यादा मायने रखता है।

*कार्य को करने से हमारे मन का भाव और सोच का भी पता चलता है क्योंकि हमारे मन में जो भाव होते है या को सोच होती है हम वैसा ही कार्य करते है अर्थात क्रिया हमारे मन का भी परिचय करवाती है। इसलिए इसे
*मनो क्रियात्मक डोमेन(Psychomotor Domain)* भी बोलते है।

  • जब हम मन से कार्य कर रहे होते है तो उससे हमारे मन की थैरेपी भी हो रही होती है इसी वजह से इसे मनोचिकित्सा डोमेन (Psychothereapy domain) भी बोलते है।

*जब मन से कार्य को के रहे होते है तो कार्य को करने में गति भी कर रहे होते है।
जब क्रिया करते है तो उसके लिए हम शारीरिक रूप से या अपने अंगों या मांशपेशियों के द्वारा ही गति करते है।
इन अंगों और मांशपेशियों की गति की वजह से ही इसे *मनोग्त्यात्मक डोमेन(Psychodynamic or subjective domain)* भी बोलते है।
जब हमारे अंग या मांशपेशियां कार्य के करने पर गति करते है तो कार्य के साथ वह भी प्रशिक्षित हो जाते है।और यही सफल और पूर्ण अधिगम कहलाता है।

*यदि हमारे पास ज्ञान है ,भाव है ,लेकिन हम क्रिया नहीं करेंगे तो कार्य कभी नहीं होगा। क्रिया के करने से ही ज्ञान और भाव का पता चलता है।

*जो भी कार्य या क्रिया होती है उसका केंद्र बिंदु – व्यवहार और कुशलता में परिवर्तन होना है।

जब कोई भी व्यक्ति कार्य करना चाहता है तो उसके लिए उसके व्यवहार व कुशलता में परिवर्तन होना जरूरी होता है। और यह परिवर्तन छ: स्तरों के द्वारा होता है➖
✓1 उतेजना (excitement)/आवेग(Impulse)/Stimulation
✓2 परिचालन(operation)/कार्य को करना(working)/अभयस्तिकरण(Habituation)
✓3 नियंत्रण (Control)
✓4 सामंजस्य/समन्वय (coordination)
✓5 अनुकूलन(adaptation)/ स्वभावित(Neutralisation)
✓6 आदत निर्माण/गठन निर्माण

उपरोक्त स्तरों का वर्णन निम्न प्रकार से है।
◼️
1 उत्तेजना (Excitement)/आवेग(Impulse)/Stimulation➖ जब हमारे अंदर किसी कार्य को करने की उत्तेजना होती है तब हम उस कार्य को कर पाते है।
हम अपने ज्ञान,व्यवहार,कुशलता से ही उत्तेजित होते है।
ज्ञान और भाव के आधार पर मिलने वाला बढ़ावा ही उत्तेजना कहलाता है।
◼️
2 परिचालन(operation)/कार्य को करना(working)/अभयस्तिकरण(Habituation) ➖जो भी कार्य के प्रति उत्तेजना है उसका परिचालन करना भी जरूरी है।
निर्देशित प्रक्रिया के तहत इसे मूर्त रूप दिया जाना चाहिए।
हमारी जो उत्तेजना है उसे कार्य में लगना चाहिए।
कभी कभी हम ज्यादा उत्तेजना में आकर कार्य का परिचालन ठीक प्रकार से नहीं कर पाते जिससे कार्य भी सही तरह से पूरा नहीं हो पाता है।
◼️
3 नियंत्रण (Control)➖ यदि हम कार्य का परिचालन करते है तो उसे नियंत्रित भी किया जाना जरूरी होता है तभी कार्य ठीक प्रकार से हो पता है।
जब उत्तेजना ज्यादा होती है तो उसका नियंत्रण भी जरूरी है क्योंकि सही तरीके से उत्तेजित होने पर कार्य का परिचालन भी ठीक प्रकार से होगा ओर कार्य में भी ठीक प्रकार से सफलता मिलेगी।
◼️
4 सामंजस्य/समन्वय (coordination)
*➖
कोन सा काम जरूरी है कोन सा नहीं,कितना काम करना है कितना नहीं यह सब हम अपनी जरूरत के हिसाब से ही कार्य को करने में सामंजस्य स्थापित करते है अर्थात अपनी जरूरत के अनुसार कार्य के बीच सामंजस्य बैठाने भी जरूरी है।

  • किस काम कि कितनी जरूरत है या कोन सा कार्य हमारे लिए कितना जरूरी है उसके बीच सामंजस्य बैठा लेते है।
    *हम कई सारे कामों में से अपनी प्रायकिता के आधार पर ही कई कार्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं।
    कार्य को पहले या बाद में करने का चयन करने का निर्णय हमारी प्रायकिता पर ही निर्भर करता है।
  • कई बार हम कई कार्यों को एक साथ करते है इसके लिए भी हमे सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है।हमारा सामंजस्य हमारी रुचि , प्रायिकता या हमारी जरूरत पर निर्भर करता है।
    ◼️
    5 अनुकूलन(adaptation)/ स्वभावित(Neutralisation)
    जब उपर्युक्त समस्त क्रियाएं हो जाती है तो उन क्रियाओं के प्रति हम अनुकूलित या स्वभाविक या सहज हो जाते है।
    ◼️
    6 आदत निर्माण/गठन निर्माण➖जब पांचों स्तर पूरे हो जाते है तब हमारे पास कार्य का गठन भी हो जाता है और उस कार्य में हम निपुर्ण भी हो जाते है या हमे उस कार्य को करने की अब आदत बन जाती है।

By Vandana Shukla

❇️ Bloom taxonomy ❇️

❇️ क्रियात्मक क्षेत्र। ❇️

यह डोमेन क्रियाओं पर आधारित है सभी क्रियाओं के आधार पर हमारे व्यवहार कुशलता में अधिगम करके कितना परिवर्तन आया या हुआ क्योंकि यह कार्य करने पर आधारित है।

जब हम क्रिया करते अधिगम करते हैं तो उसके बाद हमारे व्यवहार और कुशलता में कितना परिवर्तन आया।

क्रियात्मक डोमेन में हमारा व्यवहार और कुशलता प्रकट होती है ।
अगर आप एक्टिव होते हैं तो सकारात्मक परिवर्तन कहलाता है।
➖कार्य के द्वारा हमारे मन का पता चलता है या मन के हिसाब से कार्य करता है इसलिए इसे मनो क्रियात्मक भी कहते हैं

➖ मन की चिकित्सा का पता चलता है, मन की जांच होती है, मन के अंदर विकास होता है ,इसे मनोचिकित्सा डोमेन कहते हैं।

➖मन में लर्निंग हो रही है ,हम कुछ काम कर रहे हैं, गति कर रहे हैं इसलिए मनो गत्यात्मक डोमिन कहते हैं।
Psychomotor domain – मनो क्रियात्मक डोमेन

psychotherapy domain- मनोचिकित्सा डोमेन

psychodynamic domain-मनोगत्यात्मक डोमेन

जैसे-जैसे संज्ञान और भावात्मक क्षेत्र में परिवर्तन होता है तो क्रियात्मक क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है, अगर संज्ञान और भाव में परिवर्तन हुआ और क्रिया में परिवर्तन नहीं हुआ तो अधिगम पूरा नहीं माना जाएगा।

-क्रिया और कार्य का केंद्र बिंदु➖ व्यवहार कुशलता में परिवर्तन है।

  • अंग/ मांसपेशी की गति को अलग-अलग कार्य के लिए प्रशिक्षित करना है ।
  • मेंटल फिजिकल में बदलता है तब कहलाता है गत्यात्मक।
  • अंग मांसपेशी गति ➡️प्रशिक्षित ➡️अधिगम ➡️अधिगम डोमेन। साकार

🔸 क्रियात्मक क्षेत्र के 6 स्तर🔸
1️⃣ उत्तेजना /आवेग / excitation /stimulation/ impulse –
किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी आपकी उत्तेजना होती है जो हमारे संज्ञान और भाव होते हैं उनसे हम उत्तेजित होते हैं जब आप उत्तेजित होते हैं तभी कार्य करते हैं।

2️⃣ परिचालन/ कार्य करना/ अभ्यस्तिकरण / habituation – उस कार्य को मूर्त रूप देना। उत्तेजना को परिचालन में आना जरूरी है हमारी उत्तेजना को मूर्त रूप देना। कई बार आप उत्तेजित होते हैं पर परिचालन तक नहीं आ पाते ।
उत्तेजना के बाद परिचालन जरूरी है ।
आपके उत्तेजना के बाद उत्तेजना को कार्य में लगाना चाहिए ।

3️⃣ नियंत्रण /control – हम उस कार्य को ठीक से तब कर पाएंगे जब आप नियंत्रित होंगे जब किसी कार्य को परिचालन कर नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो यह काम ठीक से नहीं होगा। इसलिए किसी कार्य को करने के लिए उसमें उसे नियंत्रित होना आवश्यक है।

4️⃣ सामंजस्य/ समन्वय /तालमेल बिठाना/ coordination – कुछ ऐसे सिस्टमैटिक अप्रोच लगाते हैं कि किसी चीज को कहां तक किया जाए ,उसकी कितनी जरूरत है।
क्रियाओं के साथ सामंजस्य बिठाना जरूरी है प्राथमिकता के आधार पर कामों में सामंजस्य करते हैं।
सामंजस्य हर समय आवश्यक है बिना सामंजस्य के अगर आप काम को कर रहे हैं तो आप कार्य के कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाएंगे , इसलिए आपको सामंजस्य जरूरी है।

5️⃣ अनुकूलन/स्वाभाविक /neutralization /adoptation – जब आप उत्तेजित होकर परिचालन करते हैं और नियंत्रण कर सामंजस्य बिठा लेते हैं, और यह सब करने लगते हैं तब हुआ अनुकूलन ।
अब आपके लिए यह स्वाभाविक हो गया ।
सामंजस्य नहीं होगा तो अनुकूलन नहीं होगा।

6️⃣ आदत निर्माण/ उत्पत्ति/ आदत गठन – अनुकूलन के बाद अब यह आदत का गठन हो जाएगा और आदत बन जाएगी।

उत्तेजना ➡️ परिचालन ➡️ नियंत्रण ➡️ सामंजस्य ➡️ अनुकूलन ➡️ आदत


💫Notes by➖ Rashmi Savle💫

🌻 ब्लूम वर्गीकरण 🌻
(Bloom Texnomi)
Part ➖3
क्रियात्मक डोमेन/ मनोक्रियात्मक डोमेन/मनोगत्यात्मक डोमेन/मनोचिकित्सा डोमेन/conative domain/ Psychomotor domain/Psycho dynamics domain/Psycho therapy domain ➖
ब्लूम का तीसरा डोमेन क्रियाओं पर आधारित है जिसमें व्यवहार कुशलता में परिवर्तन का पता लगाया जाता है इसमें हम मन से कार्य करते हैं क्योंकि ये कार्य करने पर आधारित है जैसे जैसे हम अधिगम करते जाते हैं वैसे ही हमारे मन की क्रियाओं में परिवर्तन होने लगता है |
यदि हमारे पास ज्ञान और भाव है उसके अनुसार क्रिया भी होना चाहिए क्योंकि बिना क्रिया के ज्ञान और भाव बेकार है |
व्यवहार और कुशलता में परिवर्तन , क्रिया या कार्य का केंद्र बिन्दु होता है |
अंगों या मांशपेशियों की गति को प्रशिक्षित करना ही क्रियात्मक कार्य करना है हमारे शरीर की मांसपेशियां ही गत्यात्मक रूप से कार्य करती है जिससे अधिगम में वृद्धि होती है |

क्रियात्मक डोमेन के उद्देश्य के स्तर ➖ ब्लूम ने क्रियात्मक डोमेन के 6 स्तर बताए हैं जो कि निम्न हैं_

🔹 उत्तेजना/आवेग / Exitement/ Stimulation

🔹 परिचालन/ कार्य करना/ अभ्यस्तिकरण/Habituation/Opration/Work

🔹 नियंत्रण /Control

🔹 सामंजस्य/ समन्वय/ Coordination

🔹स्वभाविक/ अनुकूलन/Nutralization/ Adduptation

🔹 आदत निर्माण/ गठन/ उन्नति

1⃣ उत्तेजना/आवेग/Excitement/Stimulation ➖
यदि हमें किसी कार्य को करने की उत्तेजना है या हम उस कार्य को करने के लिए उत्तेजित है तो कार्य को करना आसान हो हो जाता है क्योंकि ये हमारे अन्तर मन की वह मनोदशा है जिसमें हम सब कुछ करने के लिए तत्पर रहते हैं |

2⃣ परिचालन/कार्य करना/अभ्यस्तिकरण/Habituation/Work/Opration ➖
किसी के कार्य के प्रति उत्तेजित होकर उसको मूर्त रूप देते हुए उस कार्य का परिचालन करना, यदि उत्तेजित हुए हैं तो उसके अनुसार कार्य का परिचालन करना भी जरूरी है इसके विपरीत यदि उत्तेजना के अनुसार कार्य नहीं होता है तो उसका असर विपरीत दिशा में होने लगता है और परिणाम विपरीत होने लगता है |

3⃣ नियंत्रण/ Control ➖
जिस प्रकार हम कार्य का परिचालन करते हैं तो उसका सही रूप से नियंत्रण करना भी अनिवार्य है वरना कार्य का प्रभाव कम हो सकता है इसके बाद उत्तेजना का कोई अर्थ नहीं होगा |

4⃣ सामंजस्य/समन्वय/ Coordination ➖
कार्य के प्रति सामंजस या समन्वय स्थापित करना कि उसको कितना महत्व देना है कितना हस्तक्षेप करना है कितना उसको उत्तेजित होकर करना है जरूरत के अनुसार तालमेल बैठाकर परिस्थिति के अनुसार क्रिया के प्रति उत्तेजना का परिचालन कर उसका नियंत्रण कर उस पर सामंजस्य स्थापित करना |
दूसरे पक्ष में हम देखें तो हम अपनी प्राथमिकता के अनुसार कार्य का परिचालन कर उस पर सामंजस्य स्थापित करते हैं ये हमारी रूचि, प्राथमिकता आदि पर निर्भर करता है सामंजस्य dynamic होता है यह हमेशा बदलता रहता है गति करते रहता है |

5⃣ स्वभाविक/अनुकूलन/Nutralization/Adaptation ➖
किसी कार्य को करने की स्वाभाविकता का आना अर्थात जब हम स्वभाविक रूप से किसी कार्य को करने लगते तो वह आदत का रूप ले लेता है हम उसके आदि हो जातें हैं |

6⃣ आदत निर्माण/गठन/उन्नति ➖
किसी कार्य करने की स्वाभाविकता आ जाती है तो हमें उसकी आदत हो जाती है और हम उन्नति की ओर अग्रसर हो जाते हैं |

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Notes by➖Puja kumari 🔅Bloom taxonomy का तीसरा डोमेन है*➖ क्रियात्मक डोमेन ( Activity domain) / मनोक्रियात्मक डोमेन (psycho motor domain) / मनोचिकित्सा डोमेन (psycho tharapy domain) / मनोगत्यात्मक डोमेन ( psycho dynamic domain) *क्रियात्मक डोमेन ( Activity domain)*➖ मनुष्य के व्यवहार या कुश्लता में learning करके कितना परिवर्तन हुआ, यह देखने को मिलता है क्योंकि ये कार्य पर आधारित होता है।इसलिए इसे क्रियात्मक डोमेन कहा जाता है। ★ कार्य या क्रिया करके इसके व्यवहार में जो परिवर्तन होता है।उससे ज्यादा active हुए तो सकारात्मक परिवर्तन हुआ। यदि active नही हुए तो नकारात्मक परिवर्तन होगा।। *मनोक्रियात्मक डोमेन ( psycho motor domain)* ➖ किसी कार्य को करने के लिए हमारे मन / इच्छा का होना आवश्यक है। यदि कोई काम को हम अपने मन केे अनुसार करते है तो हमारे व्यवहार या कुशलता का पता चल जाता है। जिससे कि इसे मनोक्रियात्मक डोमेन भी कहा जाता है। जैसे- कोई छात्र अपने शिक्षक से 6 महीने पहले से जुड़ा है और जो अभी 1 महीने या 1 दिन से जुड़ा है दोनों के मन मे शिक्षक के लिए अलग – अलग व्यवहार या कुशलता होगी जो छात्र 6 महीने से शिक्षक के साथ जुड़े हैं वो शिक्षक को अच्छे से जान पायगे कि शिक्षक का व्यवहार कैसा है और जो छात्र बाद में जुड़े है वो शिक्षक के बारे में कम जानते होंगे। इसलिए क्योंकि दोनों के मन में अपने अपने तरीके से सोचा या क्रिया किया। इसलिए इसे मनोक्रियात्मक डोमेन भी कहा जाता है।। मनोचिकित्सा डोमेन ( psycho tharapy domain)➖ इससे हमारे मन की चिकित्सा होती है। ऐसे में हमारे मन के नई अधिगम का पता लगाया या जाँचा जाता है। इसलिए इसे मनोचिकित्सा डोमेन भी कहा जाता है।। मनोगत्यात्मक डोमेन( psycho dynamic domain)➖जब हमारा अधिगम होता है तब हमारे शारीरिक क्रिया की भी गति होती है। इसलिए इसे मनोगत्यात्मक डोमेन भी कहते है।। ★ संज्ञान या ज्ञान से हमारे भाव मे परिवर्तन होता है तो उससे हमारे क्रिया में भी परिवर्तन होती है। अगर हमारे ज्ञान और भाव दोनो में परिवर्तिन हो रहा है लेकिन क्रिया नही कर रहे है तो हमारा अधिगम का कोई मतलब नही होता है। क्योंकि ज्ञान और भाव के साथ क्रिया होती तभी अधिगम पूरा होगा। ★ क्रिया या कार्य का केंद्र बिंदु से हमारे व्यवहार या कुशलता में परिवर्तन का पता चलता है। इससे हमारे अंगो या मांसपेशियो में भी गति होती है जो अलग – अलग कार्य के लिए प्रशिक्षित करती है। जिससे हमारा अधिगम डोमेन पूरा होता है। 🌸 जब कोई कार्य करना चाहता है तो उसके लिए व्यवहार या कुशलता में परिवर्तन होता है इसके लिए 6 स्तर है➖ 1.उत्तेजना( Exciment )/ आवेग(Impulse)/Stimulation➖ जब हमारे अंदर किसी कार्य को करने में रुचि / उत्तेजना होती है। तब हम उस कार्य को अपने अधिगम या व्यवहार में लाते है। और उस कार्य को करते है। यदि हमारे अंदर उत्तेजना नही होगी तो कोई भी कार्य नही कर पायगे। 2. परिचालन (Operation) / कार्य करना(Work) / अभियस्तिकरण( Habitution / Implement➖ किसी कार्य को उत्तेजना में आकर परिचालन ठीक से नही कर पाते है जिससे कि कई मुश्किलो का सामना भी करना पड़ता है और कार्य भी पूरा नही ही पाता है। 3. नियंत्रण ( Control)➖ जब किसी कार्य के लिए उत्तेजित होते है तब उसके परिचालन करते है तो उस परिचालन को नियंत्रण भी करना आवश्यक होता हैं तभी कार्य सफलता हासिल हो पायेगा और परिणाम भी अच्छा होगा।। 4. समांजस्य / समन्वय ( coordination )➖किसी कार्य को करने के लिए हमे सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है कि कौन सा काम ज्यादा महत्वपूर्ण है किसको पहलें किया जाय जो सब कब systemtic रूप से हो पाए इसके लिए सामंजस्य स्थापित करना बहुत आवश्यक है। जैसे- जब हम पढ़ने बैठते है तब पहले हमारा पढ़ाई ज्यादा important है। अब पढ़ाई के बाद जो काम मेरे लिए ज्यादा important होगा वो काम हम पहले करेगे फिर कोई दूसरा काम करेंगे। ऐसे में हम दो कामो के बीच सामंजस्य स्थापित किये और आसानी से काम को कर पाए । वैसे ही हर काम को करने के लिए सामंजस्य स्थापित करना जरूरी होता है। कभी कभी हम एक साथ कई सारे काम करते है उसके लिए भी सामंजस्य स्थापित करना होता है और इसके लिए हमारी उत्तेजना भी जरूरी होती है तभी कार्य को सही तरीके से कर पायेगे। 5. अनुकूल / स्वाभाविक (Adjust / Adoption/ Nutrelazation )➖ जब हम उत्तेजना के साथ परिचालन करके नियंत्रण करते है उसके बाद सामंजस्य स्थापित करते है। इन सारी क्रियाओं के होने के बाद हम इसके अनुकूल हो जाते है। यह सारी क्रियायें हमारे स्वभाव में आ जाते है। 6. आदत निर्माण / उत्पत्ति / आदत गठन➖ जब कोई कार्य हमारे अनुकूल या स्वाभाविक हो जाती है। तब वह कार्य को हमारी आदत habit में आ जाती है। 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺puja✒️….


Notes By Ashwany Dubey

🌻🌻🌻🌻अधिगम क्षेत्र मे Bloom Taxonomy का क्रियात्मक पक्ष 🌻🌻🌻🌻

✍️ अधिगम द्वारा /अधिगम क्रियाओं द्वारा व्यवहार मे परिवर्तन आना क्रियात्मक क्षेत्र का महत्वपूर्ण कार्य है!

✍️आपका ज्ञान और भाव कैसा है कोई मतलब नहीं आप काम कैसा करते है,आपकी व्यवहार कुशलता, कार्य क्षमता और उसमे कैसा परिवर्तन हो रहा ये देखा जाता है!

👉 परिवर्तन दो प्रकार का हो सकता है! (a) नकारात्मक और (b) सकारात्मक

a) नकारात्मक परिवर्तन :-

जब बच्चा कोई की हुयी क्रिया के अनुरूप परिवर्तन नहीं देता और उसमे कोई क्रियात्मक कुशलता का स्तर मे विकास नहीं देखा जाता है!

b) सकारात्मक परिवर्तन :-

जब बच्चा की हुयी क्रिया अनुरूप अनुभव के आधार पर व्यवहार कुशलता मे विकास को दर्शाता है तब सकारात्मक डोमेन कहा जाता है!

✍️क्रियात्मक क्षेत्र को इन अन्य नामो से भी जाना जाता है! ✍️

👉मनोक्रियात्मक डोमेन :-

🌸इसमे बच्चे की कार्य कुशलता से उसके मन का अनुमान लगाना मतलब बच्चे के कार्य से उसके मन का पता लगाना!

👉मनोचिकित्सात्मक डोमेन :-

🌸मन के कार्यों द्वारा मन की क्रियाओं और ज्ञान की चिकित्सा/विकास!

👉 मनोगत्यातमक डोमेन :-

🌸जब बच्चा किसी कार्य को वास्तव मे कर रहा हो तो वहा क्रियाए गति मे होती है! जिसे मनोगत्यातमक डोमेन कहते है!

🗯️इस को english मे psychomotor domain भी कहा जाता है!

🗯️ये अधिगम क्षेत्र psycho dynamic domain भी कहलाता है! क्योकि इसमे ज्ञान भाव मे परिवर्तनशीलता क्रियाओं द्वारा देखी जाती है!

🗯️इसको कार्योन्मुख / subjective domain भी कहते है!

🌷🌼क्रिया /कार्य का मुख्य बिंदु व्यवहार और कुशलता मे परिवर्तन लाना है जो कि अंगों और मांसपेशियों की गतिविधि मे प्रशिक्षण को दर्शाता है कि कितनी कुशलता से हम किसी कार्य को करना सीख लेते है काम त्रुटियों के साथ!

🌷🌼 किसी कार्य का स्वयं करके अनुभव प्राप्त करना व्यवहार मे लाना होता है!

✍️इस व्यवहार और कुशलता को प्राप्त करने के लिए ब्लूम ने क्रियात्मक डोमेन के 6 स्तर दिये है :-

1)उत्तेजना/आवेग /impulse /excitation :-

👉 किसी भी क्रिया या काम को शुरूआत करने से पहले उसके लिए हमारे अंदर उत्तेजना जैसे कि आवश्यकता /रुचि/उत्सुकता, ऐसा भाव जिसमे हमे कुछ करके ही रहना है ऐसा सोच जरूरी है! इसको ज्यादातर केस मे लोग बस सोचते रह जाते है आगे नहीं बढ़ पाते है!

2) परिचालन /कार्य करना / आत्मसात्करण :-

👉 जिस कार्य के लिए उत्तेजना का भाव आया उसको क्रियान्वित करने की दिशा मे आगे कदम बड़ाना यहां ध्यान दिया जाता है कि हम भावावेश मे आकर कही अनियंत्रित होकर कार्य को ना करे!

3)नियंत्रण :-

👉 कार्य को करते समय पूर्ण नियंत्रण मे करना और परिचालन को सुचारू रूप से आगे बड़ाना आवश्यक है क्योकि अगर नियंत्रण नहीं रहा तो कार्य के दुष्परिणाम भी हो सकते है!

4)सामंजस्य/समन्वय /परियोजित प्रक्रिया :- किसी भी कार्य को उसके विभिन्न भागों मे करना और सुनिश्चित करना की किस भाग को किस समय और कितना समय देकर करना है कौन ज्यादा वरीयता रखता है इन सबके तालमेल को बनाए रखना ही सामंजस्य है! सामंजस्य और स्वाभाविक क्रिया तभी होगी जब परिचालन नियंत्रण मे होगा!

6)अनुकूलन /Adaptation /Naturalization :-

👉 किसी कार्य को करने मे जब हमारी मांसपेशियां और अंग अभ्यषथ हो जाते है और जब हम उत्तेजना के नियंत्रित परिचालन करके सामंजस्य स्थापित करते है तब कार्य को करने मे हमे कोई परेशानी नहीं होती इसको हम अनुकूलन भी कहते है!

6)आदत निर्माण, उत्पत्ति, आदत गठन :-

👉 जब अधिगम करने मे किए हुए कार्य को हम अनुकूलित कर लेते है और उसको सहजता मे लाते है तो वहां हम एक ऐसे संवेग को समझने लगते है कि ये काम हमारे लिए जरूरी इसको नहीं किए तो कुछ अधूरा है मतलब वो कार्य को करने की क्रिया हमारे अचेतन मन मे विकसित हो चुकी है जिसको हम आदत निर्माण और आदत गठन भी कहते है!


❇️ बलूम के वरगीकरण का तीसरा पक्ष…..कि्यात्मक डोमेन……।❇️ ग्यान और भाव के प्रदशर्न से कि्या या activity होती है….. ✳️ यह कि्याओ पर आधारित हैं। ,इसमे कि्या एवं activity के द्वारा व्यवहार और कुशलता पर परिवर्तन होता है। हमारे कार्य करने से मन का पता चलता है ** इसको हम मनोकि्यात्मक भी बोलते है क्योंकि कोई कार्य मन से ही करते हैं ।।।।। इसको हम **** मनोचिकित्सा डोमेन भी कहते हैं इसमे कार्य करते हुए activity का भी पता चलता है।।।।## हमारे शरीर के अलग -अलग अंग /मांसपेशिओ कि गति को मनोगत्यामक या साइकोमीटर कहते है। इसी को हम प्रशिक्षित करते है।…….किसी कार्य को करने के लिए अंगो कि गति करते है फिर भाव आता है फिर कि्या होती है इससे मांसपेशिओ को
प्रशिक्षण मिलता हैं।।। ***** कि्यात्मक डोमेन के 6 स्तर हैं…(ये स्तर एक दूसरे से संबंधित है) …. ……1 उत्तेजना / आवेग :- किसी भी कार्य को करने कि उत्सुकता है । 2 परिचालन/कार्य को करना:- अपने काम मे अभ्यस्थ हो जाना या habitual होना 3 नियंत्रण:- किसी कार्य को सही तरीक़े से करने के लिए नियंत्रण बहुत जरूरी है। 4 सांमजस्य / समन्वय :- किसी चीज को कितना लेवल तक करना है कितनी importance देना है * सांमजस्य हर समय बदलता रहता है।। 5 अनुकूलन / स्वाभाविक :- वातावरण में ढल जाना या वो चीज स्वाभाव मे आना।। 6 आदत निर्माण, गठन, उत्पति …..। notes by pragya shukla


Bloom Taxonomy- Affective Domain

✍🏻manisha gupta ✍🏻 💫 भावात्मक, सकारात्मक, भावनात्मक डोमेन (Affective domain) 💫 ⬇️

जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति में रूचि अलग-अलग होती है यदि दो व्यक्तियों का ज्ञानात्मक पक्ष समान है लेकिन दोनों की रूचि अलग-अलग है तो उस रूचि के आधार पर व्यक्ति की भावना नजरिया भी अलग अलग होता है तो ऐसा हम कह सकते हैं कि हमारी रूचि का ज्ञानात्मक पक्ष पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

➖ जैसे दो बच्चे हैं दोनों का ज्ञान बराबर है लेकिन दोनों की रूचि अलग-अलग है तो दोनों का ज्ञान भी रुचि के आधार पर अलग-अलग होगा।

➖ भावनात्मक डोमेन के अंतर्गत वे सभी उद्देश्य शामिल होते हैं जिनका संबंध बालक की रूचि ,अभिवृत्ति ,भावना, संवेदना, मूल्य से होता है।

🌈भावनात्मक डोमेन को प्रभावित करने वाले कारक🌈
⬇️

🌸 रुचि/ अभिरुचि➖ ‌‌ रुचि अभिरुचि अर्थात नजरिया, सोच अर्थात हम किसी चीज को देखकर एक सोच या इमेज,या नजरिया बना लेते हैं कि वह चीज कैसा है इस आधार पर हम कह सकते हैं कि जैसे ही हमारी सोच होगी वैसे ही हमारी रुचि भी होगी।

➖ यदि किसी व्यक्ति के पास ज्ञान तो बहुत है लेकिन वह अभिरुचि के आधार पर ही उस ज्ञान को इंप्लीमेंट कर सकता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि रुचि भावनात्मक पक्ष के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।हमारी अभिरुचि ही डिसाइड करती है कि हमारा भाव कब, क्या, कैसे होगा। रुचि के आधार पर ही हमारा भाव अलग- अलग होता है।

🌸 अभिवृत्ति/मनोवृति➖ अभिवृत्ति या मनोवृति भावनात्मक पक्ष का अहम हिस्सा है यह हमारे संज्ञानात्मक पक्ष को भी प्रभावित करता है।

➖ जैसे किसी व्यक्ति के पास संज्ञान तो है लेकिन यदि उसके भाव अलग-अलग हैं तो उसकी अभिवृत्ति भी अलग अलग होगी। अतः हम कह सकते हैं कि कि हमारी अभिवृत्ति का संज्ञान पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

➖ जैसा कि हम देखते हैं कि कि हम अलग अलग चीजों को देखकर हमारे मन में अलग-अलग आवृत्ति उत्पन्न होती है तो यह आवृत्ति हमारी भावना से ही आती है।

🌸 भावना➖ भावना भी संज्ञानात्मक पक्ष को प्रभावित करती है। एक ही व्यक्ति में अलग-अलग भावनाएं होती हैं।

➖ जैसे एक मां चाहती है कि उनकी बेटी अपने पति को कंट्रोल कर के रखे लेकिन वही मां यह भी चाहती है कि उनका बेटा अपनी पत्नी के कंट्रोल में ना रहे। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि एक ही व्यक्ति में किसी एक कांसेप्ट को लेकर अलग-अलग भावना होती है।

🌸 संवेदना➖ ‌‌ अगर किसी चीज को लेकर हम संवेदनशील है ।और यदि हमारी संवेदना किसी के साथ हैं उस परिस्थिति के आधार पर उस व्यक्ति के लिए हमारी संवेदनाएं या sympathy भी अलग -अलग हो जाती है।

➖जैसे किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट होता है और उस व्यक्ति के साथ हमारा कोई संबंध नहीं है तो उस व्यक्ति के प्रति हमारी संवेदना भी नहीं होगी, और हम उसी स्थिति में उस व्यक्ति को छोड़ कर चले जाते हैं, लेकिन यदि जिस व्यक्ति के एक्सीडेंट हुआ है उससे हमारा कोई संबंध है तो हमारी संवेदना भी उस व्यक्ति के प्रति होगी। कहने का अर्थ यह है की दो अलग-अलग व्यक्तियों के लिए संवेदना भी अलग अलग हो जाती हैं और यह संवेदना भी ज्ञानात्मक पक्ष पर बहुत अधिक भूमिका निभाती है।

🌸 मूल्य (value, ethics)➖ यदि किसी व्यक्ति के पास संज्ञान तो संपूर्ण हैं लेकिन मूल्य हमें यह बताती है कि वह ज्ञान ठीक है या नहीं मूल्य वह चीज है जो बाह्य कारक से प्रभावित ना हो।

➖ जैसे यदि हम किसी एग्जाम हॉल में बैठकर एग्जाम दे रहे हैं और हमारा कोई दोस्त हमें नकल करने के लिए मजबूर करता है तो हमारा मूल्य हमें यह बताता है कि यह ठीक नहीं है तो कहने का अर्थ यह है कि हमारा मूल्य सही गलत डिसीजन लेना बताती है,कि हमारे लिए क्या सही है और क्या सही नहीं है।
🍁 भावनात्मक पक्ष में यह सारे उद्देश्य शामिल होते हैं🍁

🌈 भावनात्मक पक्षियों के उद्देश्यों के स्तर पर इन्हें 5 वर्गों में विभाजित किया जाता है जो इस प्रकार से हैं🌈

1️⃣ अधिग्रहण करना/ प्राप्त करना(receive )➖ यह भावनात्मक पक्ष का प्रथम या निम्नतम स्तर है यह संज्ञानात्मक पक्ष के प्रथम स्तर ज्ञान के जैसा ही है लेकिन इस ज्ञान में अंतर यह है कि संज्ञानात्मक पक्ष के ज्ञान में अवधारणा ,विचार आदि सम्मिलित होते हैं लेकिन भावनात्मक पक्ष के ज्ञान के अंतर्गत कोई भी चीज हम ग्रहण करते हैं या प्राप्त करते हैं तो उसके प्रति हमारा संवेदनशील होना जरूरी है और सीखने के इच्छुक होना भी आवश्यक है तो हम उस चीज को अवश्य ही प्राप्त कर सकते हैं।

➖ यदि हम किसी से कुछ पूछते हैं या किसी से कुछ जानकारी ग्रहण करना चाहते हैं तो हमें में उस जानकारी को जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए,इच्छा होनी चाहिए।

2️⃣ अनुक्रिया/ प्रतिक्रिया/ जवाब(responding )➖ विद्यार्थी जिस चीज को प्राप्त कर चुके हैं उस चीज के प्रति अनुक्रिया या प्रतिक्रिया स्वयं ही देते हैं तो हमारा पूर्ण तरह से उस चीज के प्रति संलग्न हो जाना आवश्यक है और यदि हम अपनी संतुष्टि के लिए कार्य करते हैं तो उस कार्य में पूर्ण रूप से व्यस्त हो जाना चाहिए या उस कार्य में पूर्ण रूप से अपने आप को involve कर लेना चाहिए तभी हम प्रतिपुष्टि प्रदान कर पाएंगे।

3️⃣ मूल्य निरूपण /बातों का महत्व ➖ मूल्यों का निरूपण दो उद्देश्यों के आधार पर होता है प्रथम -मूल्य आंकना, द्वितीय -मूल्यों का संधारण करना

➖ मूल्य आंकना (judge) :-. जिस परिस्थिति में हम कोई चीज ग्रहण करते हैं और कुछ प्रतिक्रिया देकर वरीयता (Preference)देते हैं उसके प्रति हम वचनबद्धता(commitment) देते हैं। मूल्य व्यक्ति के विश्वास एवं सोच पर आधारित होता है इसका संबंध मूल्यों के प्रति हमारी कितनी स्वीकृति है या हम उस चीज से कितने सहमत हैं इसके अंतर्गत आता है। हम किसी चीज को वरीयता देकर उस चीज पर commitment देकर ही मूल्य को आंक सकते हैं।

➖ मूल्य का संधारण करना:-जो भी हमने पुराना ज्ञान ग्रहण किया है उससे नये ज्ञान नये मूल्यों को पुराने ज्ञान से संबंधित करके maintenance करने का प्रयास करते हैं कोई चीज हमारे लिए कितनी valuable है इसके अंतर्गत हम उस चीज का पता लगा लेते है। किसी भी चीज के बारे में मूल्यों को आंककर और उसके पश्चात मूल्यों का संधारण करके मूल्यों का निरूपण कर सकते हैं।

4️⃣ मूल्यों का संगठन /आयोजन करना (organization)➖ ‌‌ जिन मूल्यों को संधारण करके स्थापित कर लिया गया है उसे संगठित करना आवश्यक है मूल्यों को संगठित करने से ही एक मूल्य प्रणाली का निर्माण होता है तब व्यक्तियों में इन मूल्यों के प्रति अंतर्द्वंद समाप्त हो जाता है और जो हमने मूल्यों के प्रति राय बना ली है तभी हम उस मूल्य से अंर्तसंबंध , सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं।

5️⃣ चरित्रीकरण और निरूपण ➖ यह भावनात्मक स्तर के उद्देश्यों के वर्गीकरण में उच्चतम स्थान रखता है इस स्तर में जो हमने मूल्यों को संगठित किया है उसे पूर्ण रूप से ग्रहण कर चुके होते हैं तो इस आधार पर ही हमारा व्यवहार भी नियंत्रित होता है मूल्यों का निरूपण ही हमारे व्यवहार को नियंत्रित करता है और इससे हमारा सेल्फ कॉन्फिडेंट भी बढ़ जाता है। और हम दृढ़ विश्वास से मूल्यों का निरूपण करके अपने व्यवहार को नियंत्रित या बैलेंस कर पाते हैं।

🌈🌸✍🏻🍁✍🏻🌸🌈🔹


ब्लूम टेक्सनॉमी
Taxonomy of education objective

1956 मे बेंजामीन ब्लूम ने सिखने सिखाने के लक्ष्य (शैक्षिक उद्देश्य) का वर्गीकरण किया। शैक्षिक उद्देश्य को मानकीकृत किया।
कैसे संप्रेषित किया जाए की आसानी से शुद्धता के साथ समझ मे आये की हम क्या सिखाना या सिखना चाहते हैं
हम ज्ञान को भावनात्मक रूप से क्रिया करके प्राप्त करते हैं।
ब्लूम ने शैक्षिक उद्देश्य को तीन भागो ( डोमेन / क्षेत्र) में वर्गीकृत किया

  1. संज्ञानात्मक डोमेन
  2. भावात्मक डोमेन
  3. क्रियात्मक डोमेन
  4. संज्ञानात्मक डोमेन – संज्ञानात्मक डोमेन हमारे मानसिक कौशल से जुड़ा हुआ है। इसके छः स्तर है –
  5. ज्ञान knowledge
  6. समझ /बोध /अवबोध understanding, comprehension
  7. अनुप्रयोग / प्रयोग / आवेदन application
  8. विश्लेषण analysis
  9. संश्लेषण synthesis
  10. मूल्याकंन evaluation
  11. ज्ञान – यह संज्ञानात्मक डोमेन का निम्न स्तर हैं।
    💎 विशिष्ट तत्व का ज्ञान
    💎शब्दावली का ज्ञान
    💎 तथ्यों का ज्ञान
    💎 संकेत का ज्ञान
    💎 परम्पराओ का ज्ञान
    💎प्रवृत्ति या क्रम का ज्ञान
    💎 मापदंड या कसौटी का ज्ञान
    💎 विधि का ज्ञान
    💎 श्रेणीकरण या वर्गीकरण का ज्ञान
    💎नियम और सिध्दांत का ज्ञान
  12. अवबोध – नये ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना ही अवबोध है या नये ज्ञान को ग्रहण करना ही अवबोध है।
  13. अनुप्रयोग – समझे हुए ज्ञान का प्रयोग /उपयोग किसी नयी समस्या का समाधान करने के लिए करते हैं।
  14. विश्लेषण – निर्मित करने वाले तत्वों में विभाजित करना।
  15. संश्लेषण – विभाजित किये हुए तत्वों में से सही गलत को चुन कर जोडना।
  16. मूल्यांकन – यह संज्ञानात्मक डोमेन का सर्वोत्तम / उच्च स्तर है। विचारों या सामग्रियों के मूल्य पर निर्णय या प्रतिपुष्टि देना। यह मानदंड पर आधारित होता है।
  17. भावात्मक डोमेन –
    सकारात्मक, भावनात्मक डोमेन affective domain भावनात्मक डोमेन निम्न कारको से प्रभावित होता है –
    रूचि, अभिवृत्ति, भावना, संवेदना, मूल्य

भावात्मक डोमेन के उद्देश्य के स्तर –

  1. अभिग्रहण करना या प्राप्त करना receive

किसी चीज या जानकारी या तथ्य को हम अपनी इच्छा, रुचि और संवेदनशीलता से ग्रहण करते है।

  1. अनुक्रिया, प्रतिक्रिया, जवाब responding

जानकारी प्राप्त करने के बाद हम अपनी रुचि के अनुसार उस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया या अनुक्रिया करते हैं।

मूल्य निरूपण या बातो का महत्व values

किसी कार्य या चीज से सहमत हैं या नहीं या उसका कितना महत्व है या नहीं उसका मूल्य निरूपण कहलाता हैं।
मूल्य को दो प्रकार से निरूपित कर सकते हैं –

  1. मूल्य को आकना Judge – मूल्य को ग्रहण करेगे
    वरीयता देगे और
    वचनबद्ध करना
  2. मूल्य का संधारण करना maintenance – मूल्यों को बनाये रखना आवश्यक है।
  3. संगठन organization – मूल्यों का निर्धारण करने के बाद मूल्यो संगठित करना बहुत आवश्यक है।

5.निरुपण,चरित्रीकरण characterizing – संगठित हुए मूल्यो को पूर्ण रूप से ग्रहण करना और अपने व्यवहार के नियंत्रण में लाना।

रवि कुशवाह


✍🏻Notes By-Vaishali Mishra

ब्लूम की शिक्षण व्यवस्था (Bloom Taxonomy)

🔅 द्वितीय पक्ष➖

भावनात्मक पक्ष /भावात्मक/सकारात्मक/Affective domain➖
भावनात्मक रूप से कई स्तर या कारक बच्चे को प्रभावित करते है जो निम्न प्रकार है।
1 रुचि
2 अभिवृति
3 भावना
4 संवेदना
5 मूल्य
उपरोक्त पांचों कारकों का वर्णन निम्न प्रकार है।
1रुचि➖रुचि के अनुसार ही हम अपने कार्य को करते है ।यदि हम कुछ सीखते चाहते है तो यह हमारी रुचि और इच्छा पर निर्भर करता है।
रुचि ज्ञान को प्रभावित करता है। यदि किसी व्यक्ति की रुचि अलग अलग प्रकार की है तो उस व्यक्ति का ज्ञान भी अलग अलग प्रकार का होता है।

2 अभिवृति ➖ जैसी हमारी सोच,नजरिया,किसी के प्रति धारणा होगी हम वैसा ही देखते है और उसी प्रकार से ज्ञान अर्जन करते है।
हर व्यक्ति का नजरिया अलग अलग होता है।यदि हमारे पास ज्ञान है और उस ज्ञान के प्रति हमारा नजरिया या अभिवृति अलग है तो उससे हमारा ज्ञान या संज्ञान को भी प्रभावित करेगा।

3 भावना➖अलग अलग भावनाए भी ज्ञान को प्रभावित करती हैं।यदि भावनाए अलग अलग है तो ज्ञान भी अलग अलग प्रकार से होगा।

4 संवेदना➖यदि हमारी किसी कार्य के साथ होती है तो उस स्थिति में उस कार्य के प्रति हमारी प्रतिक्रिया भी अलग अलग हो जाती है।

5 मूल्य➖हमारे मूल्य ही हमारे कार्य के सही या ग़लत होने की पहचान करवाते है।यदि हमारे पास ज्ञान है तो उस ज्ञान का सही जगह प्रयोग ,सही रूप से किस तरह करना है यह हमारे मूल्य ही बताते है।हमारे मूल्य हमे किसी गलत कार्य को करने से रोकते है।
🔅
भावनात्मक पक्ष के उद्देश्य के स्तर
1 अभिग्रहण करना या प्राप्त करना
2 अनुक्रिया /प्रतिक्रिया/ज़बाब देना
3 मूल्य निरूपण या बातो का महत्व
4 संगठन या आयोजन/organization
5 निरूपण/चरित्रिकरण/characterization
उपर्युक्त स्तरो का वर्णन निम्न प्रकार से है।
1️⃣ अभिग्रहण करना/प्राप्त करना➖यदि हम किसी ज्ञान को ग्रहण करना या प्राप्त करना चाहते है तो इसके लिए हमें उस ज्ञान के प्रति हमारी इच्छा ,संवेदना, जिज्ञासा है तो हम उस ज्ञान को ग्रहण कर पाते है।

2️⃣ अनुक्रिया/प्रतिक्रिया/ज़बाब देना/Responding
जो ज्ञान हम प्राप्त या ग्रहण कर लेते है उस ज्ञान पर प्रतिक्रिया देते है।
जैसे जब हम क्लास में होते है तो ज्ञान लेते है और अपनी प्रतिक्रियाएं commnent या feedback के रूप में बताते है। अर्थात हम उस ज्ञान या कार्य में पूरी तरह से शामिल या संलग्न होते है।
3️⃣ मूल्य निरूपण/बातो का महत्व➖ जिस ज्ञान को हम ग्रहण कर लेते है उस पर प्रतिक्रिया देते है और उसका निरूपण दो तरह से करते है।
1 मूल्य को आंकना (value judgement)
2 मूल्य का संधारण करना (value maintenance)

1 मूल्य आंकना- जब हम ज्ञान ग्रहण करते है तो उस समय हम स्थिति या कार्य के अनुसार ज्ञान को महत्व देते है।तीन तरह से –

  • ग्रहण करना
    *वरीयता प्रदान करना
    *वचन वद्धता निभाना।
    मूल्यों को आंकना व्यक्ति के विश्वास ओर सोच पर निर्भर करता है। किसी बात का मूल्य कितना है यह व्यक्ति द्वारा स्वीकार किया गया है या नहीं इस बात पर निर्भर करता है।

2 मूल्य का संधारण करना – जो भी हमारे पास नए मूल्य आए है उन सही मूल्यों को पुराने मूल्यों से पहचान कर अपने दिमाग में व्यवस्थित कर लेते है।

जो भी बात या ज्ञान हम ग्रहण करते हैं फिर उस बात पर प्रतिक्रिया देते है।फिर उस बात का आंकन करते है और अपने दिमाग में कहा पर रखना है या व्यवस्थित करना है उसका निरूपण करते है।
कभी कभी ऐसा भी होता है हम किसी कार्य या बात को ज्यादा महत्व या वरीयता दे देते है और बाद में महसूस करते है कि उस बात की या कार्य की हमारे लिए कोई ज्यादा वैल्यू या मूल्य ही नहीं था।

4️⃣ संगठन/आयोजन/organization
उपर्युक्त समस्त स्तर पूरे होने के बाद हम जो कार्य कर रहे होते है उस कार्य को अपने दिमाग में एक व्यवस्थित और स्पष्ट रूप से संगठित कर लेते है।
संगठन हो जाने के बाद हमारे दिमाग ने जो भी मूल्यों के प्रति मानसिक द्वद
(सही या ग़लत) होते है वह पूरी तरह से खत्म हो जाते है।
संगठन हो जाने पर एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हो जाता है जिसके द्वारा हम एक स्पष्ट ज्ञान को अपना लेते है।

5️⃣ निरूपण / चारित्रिकरण /chatacterization➖अब जो भी मूल्य वर्गीकृत हुआ है उसे पूर्ण रूप से ग्रहण कर लेते है। और यह इसमें लगे मूल्य हमारे व्यवहार में महत्वपूर्ण भूमिका योगदान देते है।
मूल्य ही हमारे व्यवहार का अनुसरण करते है और हमारे गलत या सही व्यवहार को नियंत्रित करते है।
यदि हमारे दिमाग में किसी वस्तु का कोई ज्ञान संगठित हो जाता है तो उस वस्तु की छवि दिमाग में बन जाती है तो उस छवि के अनुसार ही अपने व्यवहार का अनुसरण व नियंत्रण करने लगते है।इससे हमारे अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है कि जब भी हम इस कार्य को करेंगे तो यह हमारे दिमाग में संगठित है और उसका नियंत्रण भी अब हमारे हाथों में है।


✍Menka patel
🌈भावनात्मक
सकारात्मक भावनात्मक डोमेन🌈

जैसे हम जानते हैं कि हर व्यक्ति की अपनी एक जो चीज होती है और व्यक्ति ही सोचने का नजरिया भी अलग अलग होता है उनके ज्ञानात्मक पक्ष समान होता है लेकिन उनकी रुचियां अलग-अलग होती हैं

☄भावनात्मक डोमेन को प्रभावित करने वाले कारक
1 रुचि interest
2 अभिव्यक्ति/ मनोवृत्ति
3 भावना
4 संवेदना
5 मूल्य
🌟 भावनात्मक पक्षयों के उद्देश्यों के स्तर पर इन पांच भागों में विभाजित किया गया है जो निम्न प्रकार है
👉 अधिग्रहण करना/ प्राप्त करना
या भावनात्मक पक्ष के प्रथम स्तर ज्ञान की जैसी ही है लेकिन इस ज्ञान में इतना अंतर है कि इसमें संज्ञानात्मक पक्ष की विचार आदि सम्मिलित होते हैं और भावनात्मक ज्ञान के अंतर्गत कोई चीज को हम सीखते हैं जब उसे प्राप्त करते हैं तो वह हमारे लिए संवेदनशील होती है और उसकी हमें आवश्यकता होती है
👉 अनुप्रिया प्रतिक्रिया जवाब जो हम किसी चीज को प्राप्त करते हैं तो उस चीज के प्रति हम अनुप्रिया करते हैं और जवाब देते हैं यदि हम अपनी संतुष्टि के लिए किसी कार्य को करते हैं तो काम के प्रति अपने आप को पूर्ण रूप से लग जाते हैं हम अपनी पुष्टि प्रधानता देते हैं

👉 मूल्य निरूपण – जब हम किसी चीजों को प्राप्त कर लेते हैं तब हम उसके बारे में सुनते हैं किसको कितनी बारिश आ देनी है या कितना महत्वपूर्ण हैं उसी के आधार पर हम मूल निरूपण करते हैं

👉 संगठन /आयोजन-
हम उस चीज को संगठित कर लेते हैं यह काम हमारा ऐसा होगा
👉 चरित्र करण और निरूपण – है भावनात्मक स्तर के उद्देश्यों का वर्गीकरण करने में आवा बहुत आवश्यक है इस स्थान में जो हम मूल्य को संगठित करते हैं उस रूप में ग्रहण कर चुके होते हैं और हम इस आधार पर व्यवहार का नियंत्रण करते है मूल्य का निरूपण करके अपने व्यवहार को नियंत्रित करते हैं


बलूम के वरगीकरण का दूसरा पक्ष-………-भावनात्मक डोमेन- (सकारात्मक डोमेन, भावात्मक डोमेन) ।….. भावनात्मक रुप से कई कारक बच्चे को प्रभावित करते है जो निम्न प्रकार हैं।…..1 रुचि:- हम अपनी रुचि के अनुसार हि कोई कार्य करते है।…..2 अभिवृत्ति:- अभिवृत्ति हमारी सोच ,हमारा नजरिया हैं।(किसी चीज को हम कैसे देखते है)….3 भावना :- हमारी अभिवृत्ति भावनात्मक पक्ष का एक अहम हिस्सा हैं।…..,,भावना के कारण भी संगयानातमक डोमेन मे प्रभाव पड़ता हैं।……4 संवेदना:- जहाँ पर हमारी संवेदना होती है वहाँ पर संवेदना और भाव के कारण भी प्रभाव पड़ता है।……5 मूल्य:- अपने एथिक्स ,,हमारे मूल्य ये बताते है कि नहीं ये गलत है ऐसा नही कर सकते हैं।….* इसमे अच्छा भी आता है और खराब भी कनडीशन के अनुसार सकारात्मक या नकारात्मक होता है।।…………….//भावनात्मक पक्ष के उद्देश्य के सतर//…💐…..1 अभिग्रहण करना :-(प्राप्त करना या रिसीव करना)….2 अनुक्रिया :- (प्रतिकि्या ,जबाब ,रिसपोडिंग)…..3 मूल्य निरुपण:- (बातों का महत्व )..मूल्य को दो भागों में बाटते है;…..1 मूल्य आंकना ।…2 मूल्य का संधारण करना।…**मूल्य को फिर से तीन भागों में बाटा गया है–1 ग्रहण ..2 वरीयता…3 वचनबद्धता ……।।।।।।।।।।ःःःः …..4 संगठन :- (आयोजन)……5 निरुपण:- (चारित्रीकरण,)…. ….×अभिग्रहण किए , फिर अनुकि्या किए उसके बाद मूल्य निरुपण किए उसको संगठन किए फिर अंतिम मे निरुपण या चारित्रीकरण हुआ । जिसके आधार पर वयवहार मे नियंत्रण किया जा सकता हैं। …….By Pragya shukla…..


ब्लूम texonomy
ब्लूम टेक्सओसोनोम का दूसरा छेत्र भावनात्मक डोमेन है
Affective domen
इसके अन्य नाम है
सकारात्मक डोमेन
भावत्मक डोमेन
भाव व रुछि के अनुसार ये दो दोस्तों में अलग अलग हो सकते है
प्रभावित करने वाले कारक
1 रूचि (अभिरुचि):- हर बच्चे की रुचि अलग अलग होती है जिससे उनका ज्ञान व् अलग अलग होता है
उदाहरण के लिए दो जुड़वाँ बच्चे होते है तो व् उनकी रूचि अलग अलग होती है किसी को खाना खाना पसंद है तो किसी को खाना बनाना
100 बच्चों में किसी को 40 नम्बार वरदान है तो किसी को अभिशाप
2 अभिवृति (सोच ,नजरिया) :- किसी भी विषय के लिए हमरा नजरिया हमारी सोच बहुत मेंटर करता है
एक समस्या को देखने का नजरिया दो लोगो का अलग लग हो जाता है परंतु कभी कभी ऐसी परिस्थितियां अति है कि एक ही व्यक्ति का नजरिया एक ही समस्या के लिए अलग अलग हो जाता है
नोट :- हमारी अभिवृति अहम हिस्सा है ये संज्ञानात्मक को व् प्रभावित करती है
3 भावना :- हमारी भावना का रोल बहुत होता है किसी कार्य को करने सिखनेके लिए हमारी भावनाये जुडी होती है
4 संवेदना:- हमारी संवेदना जिससे जुडी होती है हम उसे दुखी नही देख पाते जैसे यदि सड़क पर कोई हादसा हो गया यदि वो व्यकि हमारी पहचान या हमारा करीबी नही है तो हमे उसके लिए कुछ पल के लिए संवेदना अति है परंतु यदि वः व्यक्ति हमारा करीबी है तो हमे उसके लिए संवेदना अति है हमारी आँखों से आशु आने लगेंगे
5 मूल्य values :- हमारी आंतरिक नैतिकता हमें लागत कार्य करने से रोकती है

नोट:– Ethice अच्छी व अति है बुरी भी

भावनात्मक डोमेन के उद्देश्य या स्तर
1 अभिग्रहण करना ( प्राप्त करना) :– जब हम कोई भी चीज प्राप्त करते है तो हम उसके लिए संवेदनशील होते है
यदि हमारी इच्छा है उस कार्य को सीखने की करने की तो हम ध्यान लगाते है अच्छे से सुनते है और जल्दी सीख जाते
2 अनुक्रिया/प्रतिक्रिया/ जबाब (responding ) :–
जब कोई चीज हमारे लेवल की होती है हमें उसमे र


Notes By Ashwany Dubey

🪕Part – 2- Bloom Taxonomy का भावात्मक क्षेत्र (domain) 🪕

🏵️भावात्मक /सकारात्मक पक्ष :-

✍️इस पक्ष मे बच्चे की अधिगम शैली को भावात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कारक कुछ निम्न प्रकार से है :-

👉रुचि /अभिरुचि (Interest) :-

प्रत्येक बच्चे की रुचि पर यह निर्भर करता है कि वो ज्ञान को कैसे ग्रहण करे! विभिन्न रुचि वाले बच्चों के अधिगम शैली मे भी भिन्नता पाई जाती है जो कि ज्ञान यह दर्शाता है कि रुचि ज्ञान को अपने अनुसार भाव प्रदान करती है!

👉 अभिव्रत्ति(Habitual Thinking) :-

यह बच्चे की उस धारणा या अवधारणा पर बल देती है जो उसने पूर्व से निहित है जिसके बल पर वह नए ज्ञान को सीखने और समझने का दृष्टिकोण रखता है! प्रत्येक बच्चे का दृष्टिकोण भिन्न होता है इसीलिए उनमे ज्ञान का स्तर और प्रकृति भी भिन्न पायी जाती है, जो यह दर्शाती है कि अभिवृति ज्ञान को प्रभावित करती है!

👉भावनाए(Emotions):-

भावनाए ही बच्चे मे निहित उसके ज्ञान का सही प्रयोग उसको सिखलाती है और उनकी कार्य क्षमता मे भिन्नता प्रदर्शित करती है जिसके द्वारा प्रत्येक बच्चा व्यक्तिगत भिन्नता को प्रदर्शित करता है!

👉 संवेदना(sensitivity):-

बच्चे का अधिगम के प्रति सक्रीयता का प्रदर्शन करना और किसी भी कार्य मे संवेदनशील होकर उसको पूरा करना ये हर एक बच्चे मे या अधिगम कर्ता मे विषय अनुसार भिन्न होता है!

👉 मूल्य (Values and Ethics) :-

हमारे भावनात्मक पक्ष मे हमारे सिद्धांतों और मूल्यों का बड़ा महत्व है!भाव ही हमे किसी कार्य को करने का सही या गलत होने का बोध कराते है और हमारे मूल्य निर्धारण करने मे सहायता करते है! भिन्न अधिगम कर्ता मे भिन्न भाव के अनुसार भिन्न मूल्यों का प्रदर्शन देखा जाता है!

🌻🌻🌻भावात्मक पक्ष के उद्देश्य के स्तर 🌻🌻🌻

1)अभिग्रहण करना / प्राप्त करना :-
✍️भावनात्मक रूप से किसी भी ज्ञान प्राप्त करने की जो इच्छा, चाह, और उसके प्रति हमारी सच्ची निष्ठा उस ज्ञान की प्राप्ति का मुख्य साधन बनती है जिसे हम अभिग्रहण करना भी कहते है!

2)अनुक्रिया /प्रतिक्रिया /जवाब (Response) :-

✍️जो ज्ञान हम ग्रहण करते है उसके प्रति हमारी प्रतिक्रियाएं और उसके लिए हमारी ओर से उसके संदर्भ मे अपने ज्ञान को प्रदर्शित करते है!

3)मूल्य निरूपण:-

किसी विषय को कितना महत्व देना है इसका आंकलन हमारे ग्रहण करने और प्रतिक्रिया के दौरान ही आती है!

👉इनको दो भागों मे बांटा गया है!

a)मूल्यआकना(judgement):-

किसी अभिगृहीत ज्ञान पर
अपने द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया को परखना की जो हम प्रतिक्रिया दिए है वो कितना सही है और महत्वपूर्ण है!

इसके तीन चरण है कि किसी ज्ञान को ग्रहण करके उसको कितना वरीयता देना है उसके प्रति हमे कितना सजग और वचन वद्ध रहना है! ये हमारे उस विषय के साथ भावनात्मक जुड़ाव पर निर्भर करता है!

ग्रहण #वरियता # वचनबध्दता

ये व्यक्ति की सोच और विश्वास पर अधारित है!

b) मूल्य संधारण :-

हम जब नए ज्ञान को अपने पुराने मूल्यों के आधार पर अपने सन्ज्ञान मे व्यवस्थित करते है उसको भी उतनी ही वरीयता देते है जितना हम अपने पुराने ज्ञान को देते है, लेकिन हम परखते है कि वो हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है! कभी कभी हमे लगता है कि हम किसी विषय को इतना महत्व दे रहे जितना जरूरी नहीं! इसके लिए फिर हम परिवर्तन करते है जिसको मूल्य संधारण कहा जाता है!

4)संगठन करना / आयोजन करना –
इसमे एक ऐसे मूल्यों का संगठन करते है जिसमे हमारे मूल्यों का अंतरद्वंद समाप्त हो जाता है, जिनके आधार पर हम उनके अनुसार आगामी परिस्थिति से समायोजन करने की क्षमता विकसित कर सकते है!

5)निरूपण / चारित्रिकरण (Characterization):-

जिस ज्ञान को हम भावनात्मक क्षेत्र के द्वारा प्राप्त कर अपने अंदर पूर्ण रूप से समाहित कर लेते है उससे जो परिवर्तन हमारे अंदर आते है उनके अनुसार हम सही और गलत प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करते है जिससे हमारे व्यवहार मे नियंत्रण आता है!

Bloom Taxonomy – Cognitive Domai

Bloom taxonomy {domain}
In 1956 Benjamin S. bloom has derived the concept of bloom taxonomy.
Taxonomy of education objective:- it is also the other name of bloom taxonomy.
He standardized the learning motives.
Universally accepted.
He says-
[How to communicate
Easily understandable
Clarity ]
There are three domains of bloom :-

Domain is the area /way

  1. cognitive domain is divided into 6 parts:-
  2. Knowledge/gyan:-
    • knowledge of any special factor
    • Knowledge of vocabulary/dictionary
    • Knowledge of facts
    • Knowledge of directions
    • Knowledge of tradition
    • Knowledge of nature / sequence
    • Knowledge of any criteria [maapdand/ kasauti]
    • Knowledge of process
    • Knowledge of classification
    • Knowledge of rules and principles
  3. Understanding/ comprehension/bodh /avbodh / samaj
    to develop the understanding of new knowledge
  4. Application/ prayog/ anuprayog/ aavedan
    utilize the knowledge of finding solutions
  5. Analysis/ vishleshan
  6. Synthesis/sansleshan
  7. Evaluation/mulyankan
    BY CHAHITA ACHARYA

Bloom taxonomy ka pirtpadan(1956) me Benjamin s bloom duara dia gaya.ise bloom ka vargikaran bhi kahte hai.
Bloom ne sechik udesyon ko mankikrt kia.
Inka udyesya tha ki balak ko sampresit krna sikhe,sarlta se sikhe or suddhasikhe or kya sikhe.
Bloom ke domen ke antrgut 3 pach ate hai.
1.sangyanatmak pach
2.bhavatmak pach
3.kiriyatmak pach
Domen ka arth hai wo chetra jiske antergut ye teeno pach ate hai.
Inke anusaar ye teeno pach ek dusre pr nirbhar hai yadi hum sangyanatmak pach ko bhavatmak pach me nahi late to hum uska kiriyatmak pach me use nahi kr sakte hai.
Inke anusaar sangyanatmak pach ke 6 istar hote hai.
1.gyan
.visist tatwa ka gyan.
.sabdawali ka gyan
.tathyo ka gyan
.sanketo ka gyan
.parmpara ka gyan
.pirvarti ka gyan
.mapdund ka gyan
.vidhi ka gyan
.sernikarn ya vargikaran ka gyan
.niyam or sidhant ka gyan.
2.bodh,avbodh,samjh
Naye gyan ke pirt samjh viksit krna.
1.gyan
2.avbodh
3.piryog/anupiryog,4.vislesan,5.sanslesan,6.mulyankan.


✍🏻manisha gupta ✍🏻

🌸 ब्लूम टेक्सोनोमी 🌸(bloom texonomy )

बेंजामिन ब्लूम के द्वारा 1956 में टैक्सनॉमी का वर्गीकरण किया गया है।
🍁इसे taxonomy of education of objective भी कहा जाता है🍁

बेंजामिन ब्लूम के द्वारा यह वर्गीकरण शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया गया है इस वर्गीकरण में से सीखने सिखाने का motive क्या है इस पर जोर दिया गया है इसी वर्गीकरण के द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को मानकीकृत भी किया गया है। ब्लूम टैक्सनॉमी के अंतर्गत कैसे संप्रेषित करना है, सरल भाषा का प्रयोग ,भाषा की शुद्धता, क्या पढ़ाना है, निश्चित क्रम आते हैं।

🌸ब्लूम का यह वर्गीकरण विश्व के प्रत्येक देश में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।अर्थात वर्तमान में व्यवहार में लाए गए वर्गीकरण में यह सर्वाधिक व्यापक है। 🌸

उनके वर्गीकरण में यदि हमारा ज्ञान बढ़ रहा है तो हममे भावनात्मक भी आएगी और उसी भावनात्मक के आधार पर हमारा क्रियात्मक क्रिया भी बढ़ेगा।

🌈ब्लूम के वर्गीकरण के अंतर्गत व्यक्ति के व्यक्तित्व को तीन भागों में विभाजित किया गया है➖

ज्ञानात्मक➡️ भावात्मक➡️ क्रियात्मक
💫यदि हमें किसी चीज का ज्ञान है तो तो उस ज्ञान से भावात्मक भी आएगा और भावात्मक के आधार पर हम कुछ क्रिया करते हैं।💫
यदि किसी व्यक्ति में संज्ञान या ज्ञान नहीं है तो भाव के आधार पर क्रिया की पहचान भी नहीं की जा सकती।
1️⃣ संज्ञानात्मक डोमेन
(Cognitive domain)
🌷 संज्ञानात्मक अर्थात ज्ञानात्मक उद्देश्य को 6 भागों में विभाजित किया गया है➖
🌹 ज्ञान(knowledge )
🌹अवबोध ,बोध ,समझ(understandings, comprehension)
🌹 अनुप्रयोग ,प्रयोग ,उपयोग आवेदन(application)
🌹 विश्लेषण (analysis)
🌹 संश्लेषण(synthesis)
🌹 मूल्यांकन(evaluation) 1️⃣ ज्ञान (knowledge)

”जानकारी मिलना”

🔹 विशिष्ट तत्वों का ज्ञान
🔹 शब्दावली का ज्ञान अर्थात शब्दकोश का ज्ञान
🔹 तथ्यों का ज्ञान
🔹 संकेतों का ज्ञान
🔹 परंपराओं का ज्ञान (knowledge of tradition)
🔹 विधियों का ज्ञान
🔹 श्रेणीबद्ध या वर्गीकृत का ज्ञान (classification)
🔹 नियमों और सिद्धांतों का ज्ञान
🌸 ज्ञान का क्षेत्र बहुत ही व्यापक होता है अर्थात यह ज्ञान हमें हर समय किसी न किसी कारण से अवश्य मिलता है🌸 2️⃣ अवबोध /समझ(understanding) 💫 नये ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना ही समझ है। जब हमने कोई ज्ञान लिया है और उसे समझा नहीं है तो वह ज्ञान, ज्ञान ही रहेगा समझ नहीं बनेगा ज्ञान को ग्रहण करना ही समझ है ज्ञान के लिए अवबोध का होना जरूरी है। 3️⃣ अनुप्रयोग (application)

जो नया ज्ञान हमने ग्रहण कर लिया है या समझ लिया है तो उसे अपने लाइफ में अप्लाई करना या प्रयोग करना ही अनुप्रयोग कहलाता है।और इस नए ज्ञान का उपयोग किसी नई समस्या के समाधान में प्रयोग कर सकते हैं। 4️⃣ विश्लेषण (analysis)

किसी स्तर पर जिस ज्ञान की जानकारी लेकर समझ बना लिए हैं और उसका प्रयोग क्या-क्या किए हैं उसे विभिन्न तत्वों में विभाजित करके उसका गहराई तक अध्ययन किया जाना ही विश्लेषण है। 5️⃣ संश्लेषण(synthesis)

विश्लेषण स्तर से जिस ज्ञान को अलग-अलग भागों में विभाजित किए हैं उसका संक्षिप्तीकरण करके ,या एक बिंदु पर इकट्ठा करके ,या जोड़ कर रखना ही संश्लेषण है। 6️⃣ मूल्यांकन (evaluation).

पाठ्यवस्तु या विषय सामग्री को इकट्ठा करने के बाद मूल्यांकन से यह पता लगाते हैं कि यह मापदंड पर आधारित है या नहीं। इस क्रिया में विचार, तर्क ,आलोचना भी रहती है जिसके आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। विचारों तथा सामग्रियों के आधार पर निर्णय करना ही मूल्यांकन है। इस स्तर को सर्वोच्च स्तर भी कहा जाता है।

💫 उपर्युक्त 6 ज्ञानात्मक उद्देश्य से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है की जैसे हमें कोई सूचना या जानकारी मिलती है everytime हमें कुछ ना कुछ ज्ञान अवश्य ही प्राप्त होता है उस ज्ञान को समझ कर नए ज्ञान के प्रति समझ विकसित करते हैं इसके पश्चात नए ज्ञान को समझ कर उसका प्रयोग करते हैं प्रयोग किए गए ज्ञान को छोटे-छोटे भाग में बांटकर उसका गहराई तक अध्ययन करके उसे एक बिंदु पर इकट्ठा किया जाता है इसके पश्चात इकट्ठा किए गए पाठ्य सामग्री या विषय वस्तु का मूल्यांकन करते हैं पर यह मूल्यांकन हमारे विचार तर्क के आधार पर किया जाता है💫

✍🏻🌈🌹🌸🌈🌹✍🏻


17/09/2020

💫Notes by➖Rashmi Savle

🌸बुद्धि लब्धि और ब्लूम वर्गीकरण🌸 🌻बुद्धि परीक्षण 🌻

सर्वप्रथम बुद्धि परीक्षण का concept 1879 में जर्मनी के मनोवैज्ञानिक विलियम वुण्ट ने दिया |उन्होंने बुद्धि परीक्षण की प्रयोगशाला स्थापित की |
उनके बाद फ्रांस के दो मनोवैज्ञानिकों अल्फर्ड बिने और सायमन ने सन् 1905 बुद्धि की अवधारणा को स्पष्ट किया इनके अनुसार जब कोई बच्चा कार्य करता है तो उसकी बुद्धि को तथ्यों को समझने के आधार पर अनुमानित किया जा सकता है |
लोगों की निर्णय लेने की क्षमता उनके मानसिक तर्क के आधार पर ज्ञात की जा सकती है और इसी आधार पर उनका बुद्धि परीक्षण भी किया जा सकता है |
बिने सायमन के अनुसार यदि कोई बालक अपनी उम्र के की तुलना में ज्यादा उम्र के प्रश्नों को हल कर लेता है तो वह कुशाग्र बुद्धि और अपनी उम्र के प्रश्नों को हल करता है तो औसत बुद्धि एवं अपनी उम्र से कम उम्र के प्रश्नों को हल करता है तो वह मन्द बुद्धि की श्रेणी में होता है |
इस प्रकार इन्होंने बुद्धि को तीन स्तर
कुशाग्र बुद्धि
औसत बुद्धि
और मंद बुद्धि
में बांटा है |
इनके परीक्षण को बिने सायमन परीक्षण या शाब्दिक परीक्षण भी कहा जाता है

स्टर्न नामक मनोवैज्ञानिक ने सर्वप्रथम बुद्धि लब्धि (IQ) नामक शब्द का प्रयोग सन् 1912 में किया |
इनके अनुसार IQ= MA/CA
MA= Mental Age
CA = Current Age
इनको बुद्धि लब्धि का जन्म दाता भी कहा जाता है लेकिन ये इस परीक्षण में असफल रहे क्योंकि इन्होंने बुद्धि लब्धि को दशमलव में बताया |

टर्मन इंग्लैण्ड के मनोवैज्ञानिक थे|
बिने सायमन और स्टर्न की असफलता के बाद सन् 1916 में मानसिक आयु की गणना की और बुद्धि लब्धि का नया सूत्र
ज्ञात किया |

IQ= MA/CA ×100

इसके पश्चात सन् 1922 में भारत में C. Hc राईस द्वारा सर्वप्रथम बुद्धि परीक्षण किया गया |

18/09/2020

🌻ब्लूम वर्गीकरण 🌻
(Bloom Texnomi)

इनका पूरा नाम बेन्जामिन ब्लूम है|
इनके अनुसार ये हमारे शिक्षण को अभिप्रेरित करता है उसके शैक्षिक उद्देश्य को निर्धारित करता है |
यदि हम ज्ञान को बढ़ाकर उसके भाव को समझते हैं और उसके अनुसार क्रिया करते हैं तो ज्ञान स्थायी हो जाता है |
ब्लूम ने शैक्षिक उद्देश्य के तीन क्षेत्र(domain) बताये हैं..
1⃣ संज्ञानात्मक क्षेत्र
2⃣ भावात्मक क्षेत्र
3⃣ क्रियात्मक क्षेत्र

1⃣ संज्ञानात्मक डोमेन/क्षेत्र➖
इसमें 6 भाग बताये गये हैं
(1) ज्ञान (Knowledge)
(2) बोध/ अवबोध / समझ/Understanding/ Comprehensive
(3) प्रयोग/ अनुप्रयोग/ आवेदन/Application
(4) विश्लेषण (Analysis)
(5) संश्लेषण(Synthesis)
(6) मूल्यांकन(Evaluation) 🌺 ज्ञान 🌺

यह संज्ञानात्मक डोमेन का निम्न स्तर है इसमें किसी माध्यम के जरिये सूचना को ग्रहण किया जाता है जैसे
1 विशिष्ट तत्व का ज्ञान
2 शब्दावली का ज्ञान
3 तथ्यों का ज्ञान
4 संकेतों का ज्ञान
5 परम्पराओं का ज्ञान
6 प्रवृत्ति का ज्ञान
7 मापदंड/कसौटी का ज्ञान
8 विधि/ तरीके का ज्ञान
9 श्रेणीकरण/ वर्गीकरण / Classification का ज्ञान
10 नियम और सिद्धांतों का ज्ञान
ब्लूम के अनुसार ज्ञान का क्षेत्र व्यापक है | 🌺 बोध / अवबोध/ समझ / Understanding/ Comprehensive 🌺 नये ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना ही अवबोध है जब ज्ञान को हम अपने अंदर लेते हैं और उसको ग्रहण करते हैं समझ विकसित होती है

और यदि हम नये ज्ञान को ग्रहण नहीं करते हैं तो वह स्थायी नहीं होता और उसका अवबोध नहीं होता है | 🌺 प्रयोग/अनुप्रयोग/आवेदन/ Application 🌺 नये ज्ञान का अवबोध किये बिना उस उसक प्रयोग नहीं किया जा सकता है ज्ञान का प्रयोग किसी नयी समस्या के समाधान में किया जाता है |

🌺 विश्लेषण/Analysis 🌺
जो ज्ञान था उसे नये ज्ञान की समझ के साथ प्रयोग कर उसका विश्लेषण करना अर्थात
निर्मित करने वाले तत्वों में विभाजित करना |

🌺संश्लेषण/Synthesis 🌺
विषय सामग्री के नये नये भागों को संश्लेषित करना |

🌺मूल्यांकन/Evolution🌺
यह संज्ञानात्मक डोमेन का सर्वोच्च स्तर है इसमें सभी मापदंडों का पालन किया जाता है और हम हर पक्ष से देखते हुए ज्ञान का मूल्यांकन करते हैं |

🌺🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺


✍🏻 Notes By-Vaishali Mishra

ब्लूम की शिक्षण व्यवस्था
(Bloom Taxonomy)

1956 में बेंजामिन ब्लूम ने ब्लूम टैक्सोनमी का वर्गीकरण दिया।

ब्लूम ने शैक्षिक उद्देश्यों के बारे में बात की (Taxonomy of education objective)

▪️शिक्षक के शिक्षण प्रक्रिया में शैक्षिक उद्देश्य होते है ब्लूम ने इन शैक्षिक उद्देश्यों को माननीकृत (Standarize) किया।
▪️ब्लूम टैक्सोनोमी के द्वारा हम यह जान पाते है कि हमे केसे शिक्षक को शिक्षा को संप्रेषित करना है,सरल भाषा, शुद्धता के साथ केसे सीखना है या बताना है , इन सभी पक्षों या डोमेन से ही हम शैक्षिक उद्देश्यों को पूरा कर पाते है।
▪️जब हम किसी विषय या वस्तु ज्ञान प्राप्त कर रहे होते है तो ज्ञान के साथ साथ ही हमे उस विषय या वस्तु से भी भावनात्मक रूप से भी जुड़ जाते है , और उस ज्ञान को जो भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ होता है उसे क्रियात्मक रूप से प्रयोग में लाते है।
▪️अधिगम के दौरान ज्ञान के साथ साथ भावनात्मक व क्रियात्मक चीजे भी बढ़ती है।
▪️ शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सिर्फ हमारा ज्ञान ही भी नहीं बल्कि इसके साथ साथ हम अपने ज्ञान में भाव लगाते है कि हमें प्राप्त ज्ञान कहा लगना ठीक है कहां नहीं , और फिर किस तरह से प्रयोग में लाना है यह सब भी प्राप्त होता है।
(Head Heart Hand)

🔅ब्लूम द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तीन पक्ष बताए गए➖
1
संज्ञानात्मक डोमेन/ ज्ञानात्मक डोमेन (cognitive domain)
“यदि ज्ञान नहीं ,क्रिया नहीं तो भाव की पहचान नहीं”
इसे कुल छ:भागो में बांटा गया-
1 ज्ञान (knowledge)
2 बोध/अवबोध/समझ/(understanding comprehension)
3 प्रयोग/अनुप्रयोग/आवेदन/(Application)
4 विश्लेषण (Analysis)
5 संश्लेषण (Synthesis)
6 मूल्यांकन (Evaluation)
उपर्युक्त भागो का विवरण निम्न प्रकार से दिया गया।
1
ज्ञान. (knowledge) ➖ज्ञान हमे किसी न किसी रूप में या किसी भी तरह से या हर स्थिति में प्राप्त होता है। हमे कई चीज़ों का ज्ञान होता है। जैसे
➖ विशिष्ठ तत्व का ज्ञान
➖ शब्दावली का ज्ञान
➖ शब्दकोश का ज्ञान
➖ तथ्यों का ज्ञान
➖संकेत का ज्ञान
➖ परम्पराओं का ज्ञान
➖ प्रवृति या क्रम का ज्ञान
➖ मापदंड या कसौटी का ज्ञान
➖विधि का ज्ञान
➖ श्रेणीकरण या वर्गीकरण का ज्ञान
➖नियम और सिद्धांतों का ज्ञान
2
बोध / अवबोध/ समझ understanding comprehension)
नए ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना ही अवबोध कहलाता है।

  • जब हम ज्ञान को लेते है तो उस ज्ञान को अपनी समझ से ग्रहण कर लेते है।
    3
    प्रयोग/ अनुप्रयोग/ आवेदन
    application)
    जो ज्ञान प्राप्त हुआ है उसे ग्रहण करने के बाद उसे प्रयोग में लाते है ।
    ज्ञान का प्रयोग हम किसी नई समस्या के समाधान में कर सकते है।

3
विश्लेषण (analysis)
प्राप्त ज्ञान का हम विश्लेषण करते है या कई छोटे छोटे रूपो में देखते है कि क्या क्या सही है और क्या क्या नहीं।

4
संश्लेषण (synthesis)
प्राप्त ज्ञान में क्या सही है उस रूप में
ज्ञान का निर्माण हो जाता है।

5
मूल्यांकन (Evaluation)
मापदंडों का पालन करते है और उस पर आलोचना करते है कि प्राप्त ज्ञान सही तरीके से कार्य करता है या नहीं।


Notes by :- Neha Kumari 😊

📚 ब्लूम वर्गीकरण ( Bloom’s Taxonomy) :-
🌟 इनका पूरा नाम बेंजामिन ब्लूम है।
🌟इन्होंने १९५६ में ब्लूम वर्गीकरण दिया।
ये शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में प्रयोग किए जाते हैं।जो कि,शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को मानकीकृत करती है।
🌟इसके अन्तर्गत हमारे अंदर ये जानने की क्षमता विकसित होती है कि, हमें शिक्षा को कैसे शुद्ध सरल,भाषा में संप्रेषित करना या बताना है। इन वर्गीकरण कौशलों द्वारा है हम अपने शैक्षिक उद्देश्य की पूर्ति कर पाते हैं।
🌟जब,हम किसी विषय वस्तु या स्थान से ज्ञान प्राप्त करते हैं तो ज्ञान प्राप्ति के साथ -२ हम उससे भावनात्मक रूप से भी जुड़ जाते हैं। और जब हम भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं तो,उसे क्रियात्मक रूप से प्रयोग में भी लाते हैं।
🌟कभी भी,किसी भी प्रकार के शैक्षिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हम केवल एक पक्ष से ही नहीं,बल्कि ज्ञानात्मक,भावनात्मक और क्रियात्मक पक्ष से भी जुड़ने की कोशिश करते या जुड़ते हैं,तभी चीजें हमारी समझ में आती हैं। और हम अपने उद्देश्यों में सफल हो पाते हैं।

🌳ब्लूम द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बताए गए तीन पक्ष :-
१.ज्ञानात्मक डोमेन/संज्ञानात्मक डोमेन
२.भावात्मक डोमेन
३. क्रियात्मक डोमेन

🌳ज्ञानात्मक डोमेन/ संज्ञानात्मक डोमेन :-
१.ज्ञान,knowledge
२.समझ,अवबोध,बोध, understanding, comprehensive
३.प्रयोग,अनुप्रयोग,आवेदन, application
४.विश्लेषण,analysis
५. संश्लेषण, synthesis
६.मूल्यांकन, evaluation

🌟 संज्ञानात्मक डोमेन के पक्षों का विवरण इस प्रकार से दिया :-
1️⃣ ज्ञान :-
ज्ञान, हमें हर समय किसी ना किसी रूप में प्राप्त होती रहती है,भले ही हम पता ना चले,हम इसे प्रयोग में नहीं का पा रहे हैं,लेकिन ज्ञान हम हर समय, हर परिस्थिति में अर्जित करते रहते हैं।
🌟जैसे कि :-
🌳विशिष्ट तत्व का ज्ञान
🌳शब्दावली का ज्ञान
🌳शब्दकोश का ज्ञान
🌳तथ्यों का ज्ञान
🌳संकेत का ज्ञान
🌳 परंपराओं का ज्ञान
🌳प्रवृति का ज्ञान
🌳मापदंड या कसौटी का ज्ञान
🌳विधि का ज्ञान
🌳श्रेणीक्रम और वर्गीकरण का ज्ञान
🌳नियम और सिद्धांतों का ज्ञान

2️⃣बोध,अवबोध,समझ, understanding, comprehensive :-
किसी भी नए ज्ञान के प्रति अपनी समझ विकसित करना या ग्रहण करना, समझ कहलाती है।

3️⃣प्रयोग/अनुप्रयोग/आवेदन/application :-
ज्ञान, जो हमने प्राप्त किया है,उसे प्राप्त करके प्रयोग में लाना ही जिससे हमारी जिससे हमारी समस्या समाधान हो जाए उसे समझ कहते हैं।

4️⃣विश्लेषण,analysis :-
हमने जो ज्ञान प्राप्त किया है,उसे कई छोटे -२ टुकड़ों में बांटकर देखते हैं,क्या सही और क्या गलत है,उसे ही विश्लेषण कहते हैं।

5️⃣संश्लेषण, synthesis:-
टुकड़ों में किए गए प्राप्त ज्ञान को जोड़कर,एक नया रूप देकर हम उसे समझने,ज्ञान निर्माण करने के कार्य में लाते हैं,उसे संश्लेषण कहते हैं।

6️⃣मूल्यांकन, evaluation :-
इन सभी मापदंडों के पालन करने के पश्चात् हमे जो निष्कर्ष प्राप्त होता है,जिसके आधार पर हम कार्य के प्रकृति का तुलना करते हैं,उसे मूल्यांकन कहते हैं।


✍🏻Notes by➖ Puja kumari
🔅Bloom Taxonomy / Domain ★ब्लूम का पूरा नाम बेंजामिन एस ब्लूम है। ★बेंजामिन ब्लूम अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे। ★ ब्लूम ने 1956 में Tuxonomy पर वर्गीकरण दिया।
★ब्लूम ने Tuxonomy of education objective की बात की।
★Teaching / learning का motive क्या है?
★किसी भी इंसान का शैक्षिक उद्देश्य होता है, उसका मानकीकृत किया।
🔹ब्लूम ने शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण 3 भागो में किया ➖
1. संज्ञानात्मक / ज्ञानात्मक डोमेन
2. भावनात्मक डोमेन
3.क्रियात्मक डोमेन

➖व्यक्ति हर समय कुछ न कुछ ज्ञान को प्राप्त करता है। ज्ञान के साथ भाव जुड़ता है और उस भाव से क्रिया के रूप में प्रयोग करते है। शिक्षण को पूरा करने के लिए सिर्फ ज्ञान का होना आवश्यक नही है, इसमे भाव और क्रिया भी जरूरी है। क्योंकि जब भाव और क्रिया नही होगा तो इस ज्ञान का कोई मतलब नही है ये बेवजह हो जायगा। इसलिए ये सभी डोमेन से हमारा शैक्षिक उद्देश्य पूरा होता हैं। ex-
(Head , Hert, Hand )

1️⃣ ब्लूम ने संज्ञानात्मक डोमेन को 6 भागो में वर्गीकृत किया
1). ज्ञान ( Knowledge)

2). बोध / अवबोध / समझ /( Understanding / Complihension )

3). प्रयोग / अनुप्रयोग / आवेदन ( Application / Practical )

4). विश्लेषण ( Analysis )

5). संश्लेषण ( Synthesis )

6). मूल्यांक ( Evaluation )

(1). ज्ञान (Knowledge)➖ ज्ञान हमे किसी न किसी रूप में हमेशा प्राप्त होती है। हमे कोई चीजो का ज्ञान होता है लेकिन हम कभी उसपे विचार नही करते हैं actual में वो भी हमारा ज्ञान ही होता है। जैसे-
➖ विशिष्ट तत्व का ज्ञान
➖ शब्दावली का ज्ञान
➖ तथ्यो का ज्ञान
➖ संकेत का ज्ञान
➖ परम्पराओ का ज्ञान
➖ प्रवृति का ज्ञान
➖ मापदंड / कसौटी का ज्ञान (Criteria)
➖ विधि / तरीका का ज्ञान (Process knowledge)
➖ श्रेणी / वर्गीकरण का ज्ञान (Classification)
➖ नियम / सिद्धांत का ज्ञान

2️⃣ बोध / अवबोध / समझ (Understanding / Comprehension ) ➖ नई ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना ही बोध कहलाता है। जैसे- कुछ नया चीज देखने से हमारे mind में ज्ञान में आता है फिर उस ज्ञान को समझ के साथ ग्रहण करते है।

3️⃣. प्रयोग / अनुप्रयोग / आवेदन ( Exprement / Practical / Application ) ➖ जो भी कुछ नया ज्ञान प्राप्त हुआ है उसको हम किसी न किसी चीज में प्रयोग करते है और समाधान भी करते है।

4️⃣. विश्लेषण ( Analysis )➖ ज्ञान से प्राप्त किये गए निर्मित तथ्यों का कई छोटे- छोटे टुकड़ों को विभाजित करते है फिर उसपे विचार या विश्लेषण करते है।

5️⃣. संश्लेषण ( Synthesis)➖ विश्लेषण किये गए टुकड़ों को एक साथ जोड़कर B करते है।

6️⃣. मूल्यांकन ( Evaluation ) ➖ इन सभी मापदंड के आधार पर जो निर्णय करते हैं, उसे मूल्यांकन कहा जाता है। जैसे- शिक्षार्थी के परीक्षा के बाद शिक्षक विचार विमर्श करके जो निर्णय लेते है और उस निर्णय के आधार पर result देते है तो वो result शिक्षार्थी का मूल्यांकन हुआ।

🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅Thank U🙏🏻🙏🏻🙏🏻
✍🏻 PUJA 🖋️


by Vandana Shukla

🌸 Bloom taxonomy (domain)🌸

This domain is given by Benjamin s bloom in 1956

This taxonomy is also known as taxonomy of education objective

इन्होंने शैक्षिक उद्देश्य की बात की।
ब्लूम टैक्सनॉमी डिसाइड करता है कि आपका सीखने और सिखाने का क्या उद्देश्य है क्योंकि टीचिंग लर्निंग का कुछ तो उद्देश्य है।

➖जितने भी शैक्षिक उद्देश्य हैं उनके अंदर क्या-क्या पॉइंट आते हैं या आ सकते हैं या क्या करते हैं किस रूप में काम करते हैं किसी भी इंसान का क्या शैक्षिक उद्देश्य हो सकता है इन सब बातों को इन्होंने एक स्टैंडर्डाइज फॉर्म में बनाया।

➖इससे यह हुआ कि जितने भी कंट्री है उसने इसे व्यापक व्यापक रूप से स्वीकार किया। इस डोमेन से यह क्लियर हुआ है कि हमें कैसे संप्रेषित करना है कैसे शुद्धता से पढ़ाना है क्या पढ़ाना है कि बच्चा आसानी से ग्रहण कर सके समझ सके यह तब होगा जब हमें उद्देश्य पता होगा ।
➖जिस समय पर आप का संज्ञानात्मक पक्ष बढ़ रहा होता है उस वक्त ऑटोमेटिकली आपका भावनात्मक पक्ष भी बढ़ रहा होता है सारी क्रियाएं parallel चलती है ।ब्लूम ने कहा कि इंसान की पर्सनैलिटी 3 आधार पर विभाजित होती है :
1 ज्ञानात्मक पक्ष
2 भावात्मक पक्ष
3 क्रियात्मक पक्ष ।
➖ज्ञान को क्रिया में बदलने के लिए भाव आने चाहिए।
➖सिर्फ ज्ञान को बढ़ाकर कुछ नहीं कर सकते ज्ञान को बढ़ाकर उसके भाव को समझते हुए सब को क्रिया में लगते हैं तब जाकर चक्र पूरा होता है ,ज्ञान को अगर सीधे लगा देंगे बिना भाव के तो वह ठीक नहीं है क्योंकि भाव बताता है कि हमें क्यों करना है क्या करना है उससे क्या होगा।

➖तीनों एक साथ चलते हैं और तीनों को एक दूसरे की जरूरत है तीनों अलग-अलग जगह से आते हैं पर सब एक ही जगह जाते हैं। ➖इनमें सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान है क्योंकि ज्ञान रहेगा तब ही कोई क्रिया हो सकेगी और हम भाव की कल्पना कर सकते हैं क्रिया और भाव का आधार ही ज्ञान है।

🔸Domain : एक ही शैक्षिक
उद्देश्य के तीन एरिया है 1-संज्ञानात्मक क्षेत्र domain
2भावात्मक क्षेत्र domain और
3 क्रियात्मक क्षेत्र domain

1️⃣ संज्ञानात्मक डोमेन/ज्ञानात्मक/ cognitive domain –
संज्ञान नहीं है ज्ञान नहीं है तो क्रिया और भाव का पहचान नहीं है। इसीलिए संज्ञान आवश्यक है संज्ञान को 6 भागों में बांटा गया है:
1️⃣ ज्ञान/knowledge
2️⃣ बोध/अवबोध /समझ /understanding/ comprehension
3️⃣प्रयोग /अनुप्रयोग /आवेदन/ application
4️⃣विश्लेषण /analysis
5️⃣संश्लेषण/synthesis
6️⃣मूल्यांकन/evaluation

1️⃣ ज्ञान — ज्ञान सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट है क्योंकि यहीं से सब कुछ की शुरुआत होती है ।यह संज्ञानात्मक क्षेत्र का निम्न स्तर है। ज्ञान से हमें किसी भी चीज का पता चलता है ज्ञान हमें किसी जानकारी के रूप में मिलती है ।
1 किसी भी विशिष्ट तत्व का ज्ञान 2शब्दावली का ज्ञान हो सकता है 3 तथ्यों का ज्ञान
4 संकेतों का ज्ञान
5परंपराओं का ज्ञान रखने
6 प्रवृत्ति या क्रम का ज्ञान
7 मापदंड या कसौटी का ज्ञान 8विधि का ज्ञान
9श्रेणीकरण / वर्गीकरण का ज्ञान 10नियम और सिद्धांतों का ज्ञान

बेंजामिन ब्लूम के अनुसार यह ज्ञान के अलग-अलग पहलू है यह इसलिए बताए गए हैं क्योंकि जब हम ज्ञान से मूल्यांकन तक पहुंचने की बात करते हैं तो हमारे दिमाग में सिर्फ एक ही बात सामने आती है कि कोई भी चीज हो उसको पढ़ लो ज्ञान ले लो और उसका मूल्यांकन कर लो बस ज्ञान हो गया इसलिए ब्लूम ने यह सारी बातें विस्तार से बताएं हैं।

2️⃣ अबोध – नए ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना ही अबोध है। अब ज्ञान थोड़ा आगे बढ़ गया है। हमने ज्ञान को ग्रहण कर लिया है, ज्ञान के लिए अवबोध होना जरूरी है।

3️⃣ अनुप्रयोग – ज्ञान को समझ कर उसको प्रयोग करना उसको अप्लाई करना है। जब तक ज्ञान का प्रयोग नहीं होगा कैसे पता चलेगा कि हम समझ गए हैं ।ज्ञान बिना ग्रहण किए प्रयोग नहीं हो सकता ,किसी भी ज्ञान की अगर समझ नहीं है अंडरस्टैंडिंग नहीं है तो हम उसे प्रयोग नहीं कर सकते , ज्ञान का उपयोग किसी नई समस्या समाधान में कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास ज्ञान है और उसकी समझ भी है।

4️⃣ विश्लेषण – ज्ञान ले लिया उसकी समझ बना ली, उस समझ का प्रयोग भी कर लिया, अब उस ज्ञान का प्रयोग कैसे किया इसका विश्लेषण करेंगे एनालिसिस करेंगे। इसको निर्मित करने वाले तत्वों में विभाजित करेंगे जैसे हमने ज्ञान ले लिया इसको कितना समझा उसको ठीक से अप्लाई किया कि नहीं , कहीं कुछ छूट तो नहीं किया यह सब चीजों का विश्लेषण करेंगे।

5️⃣ संश्लेषण – विषय सामग्री का जो अलग-अलग अंग है उसको नई समग्रता के साथ संयोजित करते हैं जो विश्लेषण किया है उसको फिर से संयोजित कर लेंगे। फिर से सब कुछ इकट्ठा कर लेंगे।

6️⃣ मूल्यांकन – संश्लेषण के बाद मूल्यांकन आता है ।
सबसे पहले ज्ञान लिया उसको समझ कर प्रयोग किया, प्रयोग के बाद विश्लेषण किया कि ठीक समझ कर प्रयोग किया या नहीं किया, सब चीजों का संश्लेषण किया अब मूल्यांकन कर रहे हैं, कि यह हमारे मापदंड पर आधारित है कि नहीं ,जो हम चाहते हैं जो हम प्राप्त करना चाहते हैं वह हुआ कि नहीं सब कुछ सही तरीके से चला या नहीं यह संज्ञानात्मक क्षेत्र का सर्वोच्च स्तर है।

मूल्यांकन के बाद डिसाइड करते हैं कि फाइनली हमारा ज्ञान काम कर रहा है या नहीं कर रहा जो कुछ भी ग्रहण किया वह काम का है या नहीं है।

धन्यवाद


By Ashwany Dubey

🏵️ Bloom Taxonomy 🏵️

👉 1956 मे बेंजामिन ब्लूम ने शिक्षा को ग्रहण और संप्रेषण के संदर्भ मे शैक्षिक उद्देश्यो का मानकीकृत वर्गीकरण किया!

👉शैक्षिक उद्देश्यों का मूल आधार ज्ञान को माना गया क्योकि ब्लूम Taxonomy से यह जान पाते है कि हमे जो भी ज्ञान संप्रेषित करना है उसका क्या अच्छा और कितना उपयोग किया जा सकता है जो कि उसके भाव को पता करके ही ज्ञात किया जा सकता है!
👉 किसी भी विषय के भाव को समझने के लिए हमे उसका ज्ञानात्मक पक्ष जानना उतना ही आवश्यक जितना बेहतर तरीके से हम उसका उपयोग करना चाहते है!
👉ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि विषय वस्तु समझने मे आसान, शुद्ध और क्रमानुसार होनी चाहिए!

इससे यह पता चला कि सीखने या सिखाने के दौरान ज्ञान के बिना भावनात्मक और क्रियात्मक पक्ष का ज्ञान अधूरा है!

🌺 बेंजामिन ब्लूम ने शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु शिक्षा के किसी भी विषय के 3 क्षेत्रों (domain) को दिया :-

1)ज्ञानात्मक क्षेत्र (cognitive domain)
2)भावनात्मक क्षेत्र (pathetic domain)
3)क्रियात्मक क्षेत्र (applicable domain)

✍️ संज्ञानात्मक क्षेत्र:-

🌺 इनमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ज्ञानात्मक/संज्ञानात्मक क्षेत्र को माना गया क्योकि बिना किसी विषय के ज्ञान के हम उसके सही और गलत प्रयोग का पता नहीं लगा सकते है अर्थात उसमे निहित उसके भाव और भावानुसार उसका प्रयोग का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते है!🌺

🤩संज्ञानात्मक क्षेत्र को 6 भागों मे बांटा गया है जो निम्न है :-

1)ज्ञान(Knowledge) :-
किसी भी विषय का सर्वप्रथम ज्ञान होना आवश्यक है! जो कि सर्वोच्च है!

2)अवबोध /बोध (Understanding/comprehension)

3)प्रयोग /अनुप्रयोग /आवेदन (application)

4)विश्लेषण (Analysis)

5)संश्लेषण (Synthesis)

6)मूल्यांकन (Evaluation)

🌺🌸🏵️ज्ञानात्मक क्षेत्र के इन उप क्षेत्रों को निम्न रूप मे वर्णित किया गया 🌺🌸🏵️

🌸1)ज्ञान:- किसी विषय के बारे मे हमे होना चाहिए

a) विशिष्ट तत्व का ज्ञान
b) शब्दवाली का ज्ञान
c) तथ्यों का ज्ञान
d) संकेतों का ज्ञान
e) परंपराओं का ज्ञान
f) प्रवृति या क्रम का ज्ञान
g) मापदंड या कसौटी का ज्ञान
h) विधि का ज्ञान,
i) वर्गीकरण /श्रेणीकरण करने का ज्ञान

🌸2)अवबोध (understanding) :-

किसी नए ज्ञान के प्रति समझ या ग्रहण करने की कला को स्थापित करना ही अवबोध है!

🌸 3)प्रयोग (application):-

✍️समझ के अनुसार ज्ञान का प्रयोग किसी नयी समस्या के समाधान मे कर सकते है!

🌸4)विश्लेषण (Analysis) :-

✍️प्रयोग करने पर समस्या समाधान से जो परिणाम आए उनके हर पक्ष और भागों का अध्ययन (विश्लेषण)!

🌸5)संश्लेषण (synthesis) :-

✍️विभाजित भागों के अध्ययन मे से क्या सही क्या गलत का एकत्रीकरण और उनका एक निष्कर्ष निकालना!

🌸6)मूल्यांकन (evaluation) :-

✍️इसमे हम प्राप्त परिणाम (निष्कर्ष) का आलोचनात्मक /सर्वोच्चस्तर मापदंड क्रिया से जांच करते है!

👉इन मूल्यांकन के आधार पर हम निर्धारित करते है कि हमारा ज्ञान कितना प्रभावशाली रहा है!


18/9/20
Bloom taxonomy
बेंजामिन ब्लूम वर्गीकरण
Taxonomy of education objective
टेक्नोमी ऑफ़ एजुकेशन ऑब्जेक्टिव
Teaching /learning
शेक्षक उदेद्श्य
2 सरल भाषा
3 शुध्दता के साथ
4 क्या पढाना है
5 कैसे पढाना है
ऐ सब आता है
शैक्षिक उद्वेश्य मे
ज्ञान
.
.
.
भाव ………………….क्रिया
ज्ञान लगाके भाव में जाना ज्ञान बढ रहा है उस भाव को समझते हुए क्रिया मे लाना
3 शैक्षिक उदेश्य ( डोमेन )
ऐ 3 क्षेत्रो में विभाजित किया जाता है
1 संज्ञानात्मक क्षेत्र
2 भावनात्मक क्षेत्र
3 . क्रियात्मक क्षेत्र
यहाँ क्षेत्र का अर्थ है डोमेन
1संज्ञानात्मक डोमेन (ज्ञानात्मक ) cognetive domen
इसके 6 part है
1 ज्ञान (knowledge )
2 बोध ,अवबोध, समझ
3 प्रयोग, अनुप्रयोग,आवेदन (application)
4 विश्लेसन (analysis)
5 सन्सलेसन( synthere)
6 मूल्यांकन(evolution)
कोई चीज हमने कैसे सीखा कहा से सीखा इसकी जानकारी मिलती है
1 ज्ञान
1 विशिष्ट तत्व ज्ञान
2शब्दावलि का ज्ञान
3 तथ्यों का ज्ञान
4 संकेत का ज्ञान
5 परम्पराओ का ज्ञान:- जैसे शिक्षक का सम्मान करना
6 प्रवृति या करा। का ज्ञान :- किसी का नेचर समझना
7 मापदण्ड , कसौटी का ज्ञान( criteria)
8 विधि का ज्ञान या तरीका( process)
9 श्रेणीकरण ,वर्गीकरण का ज्ञान(clasification)
10 नियम और सिद्धांतो का ज्ञान
2 अवबोध
नये ज्ञान के प्रति समझ विकसित करना या ग्रहण करना इससे हमें अवबोध आता है
3 अनुप्रयोग
हम इसमें अपने ज्ञान का प्रयोग किसी नई समस्या का समाधान करने में कर सकते है
4 विश्लेषण
निर्मित किये जाने वाले तत्वों को हम विभाजित करके फिर उसके बारे में सटीक जानकारी निकलते है
5 संश्लेषण
निर्मित किये जाने वाले तत्वों को एकत्र करके कब क्या कैसे करना है ये विचार करना
6 मूल्यांकन
सर्वोत्तम स्तर मापदण्ड हमने जो किया जैसे किया उसका मैल्यांकन करना इससे पता चलता है कि हम किस तरह से कैसे और कितना सीख रहे है

Nots by 💐sapna sahu💐


PART:- 2 BLOOM TAXONOMY

  1. affective / bhavatmak / sakaratmak/ emotional:-
    Factors of affective domain-
    • Interest:-
    Every person have their own interest , if their interest changes then their knowledge is also changes.
    • Attitude / abhivrati/ soch / nazariya:-
    Example:- jese ek lady apne bacche ki school phone krke fees maaf krne k liye bolti hai or usi k just baad wo dusri school me pdhati h whaa ke baccho ko phone krke fees jma krwane k liye bolti hai.
    So, every person changes their attitude according to situation.
    • Emotions / bhavna
    • Sensitivity/ sanvedna/feel/ sensation/ sympathy
    • Values/ mulya/ ethics
    Example: – hacking ka misuse ni krte hai hm . wo hmaari values ke against hota hai
    Sub domains of affective domain-
    1 abhigrahan karna/ prapt krna/ receive karna:- we receive things according to our interest
    2 anukriya / pratikriya/ responding/ response/reply;- whatever we receive , we have respond to it, involve in it.
    3 mulya nirupan/ baato ka mahatv/ valuing
     There are two parts
     A. mulya aakna / judgement/ estimation:-
     [a] grahan /acceptance [ b]variyta /preference [c] vachanbaddhta/commitment
     Mulya ka sandharan karna/ maintenance:-

4 organisation/ sangathan / aayojan
5 characterisation/ nirupan / charitrikaran

BY CHAHITA ACHARYA

Intelligence Quotient

✍🏻Notes By-Vaishali Mishra
🔆बुद्धि लब्धी🔆
▪️1879 में विलियम वुंट ने जर्मनी के लिपजिगं शहर में मानसिक परीक्षण के लिए प्रयोगशाला बनाई
▪️1905 में अल्फ्रेड बिने एवं साइमन ने अपनी एक अवधारणा विकसित की ।
इसमें इन्होंने कई प्रश्न तैयार किए और उन प्रश्नों को बच्चो पर आजमाया इसमें बच्चो से प्रश्न पूछेंगे बच्चे उस प्रश्न का अपने आधार पर ज़बाब देंगे।

  • यदि बच्चो को उनकी उम्र के अनुसार प्रश्न पूछे गए और तब बच्चो ने उनके सही ज़बाब दिए …✓तब वे बच्चे सामान्य बुद्धि में वाले बोले गए
  • यदि बच्चो को उनकी उम्र के अनुसार से प्रश्न पूछे गए और बच्चे उन प्रश्नों का जबाव नहीं दे पाए…✓तो वह बच्चे निम्न बुद्धि वाले बोले गए।
  • यदि बच्चो को उनकी उम्र के अनुसार से अधिक उम्र वाले बच्चो के अनुसार प्रश्न पूछे गए तब उन बच्चो ने सही सही जबाव दिए…✓तब उन्हें उच्च या श्रेष्ठ बुद्धि वाले बच्चे बोला गया।

1905 में बिने व साइमन ने प्रश्नों की संख्या 30 रखी यह प्रश्न 3 से 14 वर्ष के उपयुक्त बच्चो के लिए दिए।
इसे शाब्दिक या व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण या बिने व साइमन बुद्धि परीक्षण कहा गया।
▪️1912 में स्टर्न द्वारा बुद्धि लब्धि शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया
इन्होंने बुद्धि लव्धी पर कई मानसिक परीक्षण किए जिसमे उन्होंने कई तर्क लगाए कई प्रयास किए लेकिन उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई क्योंकि उनके परीक्षण के अंतिम परिमाण दशमलव में प्राप्त हुआ या मानसिक और वास्तविक आयु शुद्घ प्राप्त नहीं हुई।
▪️स्टर्न की असफलता के बाद टर्मन ने 1916 में मानसिक आयु के आधार पर बुद्धि लव्धि परीक्षण सूत्र दिया ।
टर्मन का मानना था कि मानसिक आयु और बुद्धि लब्धि दोनों अलग अलग है।
इन्होने मानसिक आयु को ज्ञात किया और इस आधार पर एक सूत्र प्रस्तुत किया आयु =
मानसिक आयु(MA)
———————– * 100%
वास्तविक आयु(CA)
बाद में इन्होने बुद्धि लब्धी को दिया।उन्होंने अपने परीक्षण में शुद्धता के लिए कई रूपांतरण किए ।

🔅~1911 में बिने व साइमन नेप्रश्नों की संख्या 30 को बढ़ाकर 54 कर दी

~ 1916 में इन प्रश्नों की संख्या टरमन द्वारा 90 कर दी गई।
90 प्रश्नों में से 19 प्रश्न – बिने के ही थे।
शेष 71 प्रश्न को टरमन द्वारा ही दिया गया।
~टर्मन के इस संशोधन में मेरिल ने साथ दिया फिर इस बुद्धि परीक्षण का नाम उन्होंने न्यू स्टर्नफोर्ड बिने परीक्षण दिया

▪️इसके बाद सन् 1922 में सी.एच. राइस ने भारत में बिने परीक्षण का भारतीय अनुकूलन करके हिन्दुस्तानी बिने परीक्षण दिया।


Notes By Ashwany Dubey

🌸मानसिक आयु/ बुद्धि परीक्षण 🌸

✍️ 1879 मे विलियम वुन्ट ने जर्मनी के लिपज़िंग शहर मे बुद्धि परीक्षण के लिए प्रयोगशाला का निर्माण किया था ✍️

🏵️शाब्दिक /व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण 🏵️

✍️1905 मे बिने और साइमन ने फ़्रांस मे 30 प्रश्नो के आधार पर बच्चों के लिए मानसिक आयु परीक्षण तैयार किया जिसका नाम बिने – साइमन बुद्धि परीक्षण भी कह लाया! ✍️

1) जो बच्चे अपनी उम्र के अनुसार सही उत्तर दे पाए उनको सामान्य बुद्धि वाला कहा गया!

2)जो बच्चे अपनी उम्र के अधिक स्तर के प्रश्नों का सही उत्तर दे पाये उनको उच्च बुद्धि वाला कहा गया!

3)जो बच्चे अपनी आयु से कम स्तर के प्रश्नों का सही उत्तर दे पाये उनको मंद बुद्धि वाला कहा गया!
🌸इनका ये परीक्षण 30 प्रश्नों के साथ 3-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए ही सही साबित रहा!

🌸 1911 मे प्रश्नों की संख्या कम पड़ने पर इन प्रश्नों की संख्या 54 कर दी गयी!

✍️ सन् 1912 मे स्टर्न नामक मनोवैग्यानिक ने बुद्धि लब्धि ( Intelligence Quotient) शब्द को इजात किया!
🌸इन्होने बुद्धि लब्धि का अपूर्ण सूत्र दिया जिसमे intelligence quotient का मान दशमलव मे आरहा था!
🌸इनके द्वारा दिया गया सूत्र कुछ इस प्रकार था!

👉IQ=मानसिक आयु /वास्तविक आयु

🌸इन्होने कयी प्रयास किए लेकिन इनको बुद्धि लब्धि का सही मान प्राप्त नहीं हुआ!

✍️Stern Ford Binnet test/ टर्मन परीक्षण ✍️

✍️सन् 1916 मे टर्मन आए! जिन्होने बुद्धि लब्धि का सूत्र दिया! टर्मन खुद एक प्रोफेसर थे जो Stern ford यूनिवर्सिटी मे नियुक्त थे!इन्होने सूत्र कुछ इस प्रकार दिया!

👉IQ=100×मानसिक आयु /वास्तविक आयु

🌸 इनका मानना था कि मानसिक आयु और बुद्धि लब्धि मे भिन्नता है!

🌸टर्मन ने 1916 मे बुद्धि परीक्षण के लिए और कहा जाए तो मानसिक आयु ग्यात करने के लिए 90 प्रश्नों का चुनाव किया जिसमे इन्होने 71 प्रश्न अपनी तरफ से और 19 प्रश्न बिने के परीक्षण से लिए!
🌸 इन्होने अपने इस परीक्षण का नाम Stern Ford – Binnet परीक्षण रखा जो कि Stern Ford University और Binnet परीक्षण की प्रेरणा से इन्होने दिया था ! लेकिन जब इनको लगा कि बिने परीक्षण का योगदान इनके योगदान से कम है तो इन्होने नाम बदल कर टर्मन परीक्षण रख दिया! 🌸
👉टर्मन के इस परीक्षण का प्रचार प्रसार अमेरिका मे गोहार्ड द्वारा किया गया था!
👉जब मैरिल द्वारा टर्मन का समर्थन किया गया तब टर्मन ने इस परीक्षण का नाम न्यू Stern Ford Binnet परीक्षण रख दिया!

🌺भारत मे 1922 मे प्रोफेसर CH Rice ने बिने परीक्षण का भारतीय अनुकूलन कर हिंदुस्तानी बिने परफॉर्मेंस स्केल पॉइंट नाम दिया जिसको हिंदुस्तानी बिने परीक्षण के नाम से भी जाना जाता है!


✍🏻Notes by – puja kumari

🌸मानसिक आयु / बुद्धि परीक्षण🌸
⭐ विलियम वुण्ट जर्मन मनोवैज्ञानिक थे । इसने 1879 में सबसे पहले व्यक्ति के बुध्दि परीक्षण के लिए प्रयोगशाला की स्थापना की।

⭐ बिने साइमन बुद्धि परीक्षण ➖अल्फर्ड बिने और उसके साथी साइमन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक थे। 1905 में इन्होंने बच्चे की बुद्धि को मापने के लिए 3 से 14 वर्ष के बालक को रखा। जिसमे हर बच्चे के आयु के अनुसार 30 प्रश्न तैयार किये गए।
👉🏻यदि बच्चा अपनी आयु से अधिक का प्रश्न हल कर देता है, तो बच्चा उच्च बुद्धि / तीव्र बुद्धि को होगा।
👉🏻यदि बच्चा अपने आयु के अनुसार प्रश्न हल करता है,तो वो बच्चा सामान्य बुद्धि का होगा।
👉🏻अगर बच्चा अपने आयु के अनुसार प्रश्न हल नहीं कर पाता है, तो बच्चा निम्न श्रेणी की बुद्धि का होगा।
🔹 1911 में इन्होंने 30 प्रश्न को बढ़ा के 54 प्रश्न तैयार कर दिए।
🔅इन्हें बिने साइमन परीक्षण/शाब्दिक परीक्षण/ व्यक्तिगत बुद्धिपरीक्षण भी कहा जाता है।

विलियम स्टर्न नामक मनोवैज्ञानिक ने सर्वप्रथम बुद्धि मापने के लिए बुद्धिलब्धि (IQ)शब्द का प्रयोग किया।

👉🏻 IQ=MA/CA
यहाँ, MA= Mantel Age
CA= Current Age

👉🏻स्टर्न ने, बुद्धिलब्धि पर कई परीक्षण किए, जिसमे की इनको apropreate answer नही मिला। क्योंकि इसके answer दशमलव में निकल रहा थे। इसलिये इस परीक्षण में असफल हो गए।
👉🏻इन्हें बुद्धिलब्धि का जन्मदाता भी कहा जाता है।

टर्मन इंग्लैंड के मनोवैज्ञानिक थे। 1916 में स्टर्न और बिने साइमन के असफलता के बाद बुद्धि लब्धि के कई दोषो को दूर करके एक नया रूप दिया।
👉🏻इसने प्रश्नो को बढ़ा के 90 प्रश्न तैयार किये। जिसमे से 71 प्रश्न टर्मन के थे और इसमें से बिने साइमन के 54 प्रश्न में से 19 प्रश्न choose कर के लिए थे। (71+19=90)

👉🏻जिसके आधार पर मानसिक आयु ज्ञात किया। और बुद्धिलब्धि का formula सिद्ध किया।
👉🏻 IQ=MA / CA ×100

👉🏻टरमन ने IQ के आधार पर अलग -अलग बुद्धि ज्ञात किये है जो निम्न है➖
👉🏻140 से ऊपर➖प्रतिभाशाली
👉🏻121 – 140 ➖अतिश्रेष्ठ बुद्धि / अतिकुशाग्र बुद्धि
👉🏻111 – 120➖ तीव्र बुद्धि / श्रेष्ठ बुद्धि
🌸👉🏻91–110➖सामान्य बुद्धि 🌸(ma=ca)
👉🏻81 – 90➖ मंद बुद्धि
👉🏻71 – 80➖ निर्बल / क्षीण बुद्धि
👉🏻51 – 70➖ अल्प / मूर्ख बुद्धि
👉🏻26 – 50➖ मूढ़ बुद्धि
👉🏻0 – 25➖ जड़ / महामूर्ख / Idiot

🔷इसे स्टर्नफोर्ड-बिने परीक्षण भी कहा जाता है।

⭐ 1922 में, C. H. RICE ने बिने परीक्षण को भारत लेकर आये थे। इसलिए इसे हिंदुस्तानी बिने परीक्षण भी कहा जाता है।
🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷
🌺🌺🌺 पूजा ✍🏻
🙏🏻🙏🏻Thanku🙏🏻🙏🏻


✍🏻manisha gupta ✍🏻
🌸 बुद्धि लब्धि🌸

बुद्धि लब्धि की शुरुआत जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम वुन्ट (1879)के द्वारा की गई है इन्होंने बुद्धि के मापन के लिए लिपिजंग में एक प्रयोगशाला स्थापित किए।
🌸 शाब्दिक या व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण🌸

इसके पश्चात फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने एवं उनके साथी साइमन ने बुद्धि के मापन के लिए 1905, में व्यक्ति की तर्क शक्ति, सोच ,तथ्यों को समझने की शक्ति, मानसिक प्रक्रिया के द्वारा बुद्धि का मापन किये।

इनके अनुसार बच्चों को कुछ प्रश्न दिए जाएंगे बच्चे के द्वारा दिया गया उत्तर के आधार पर ही बुद्धि का मापन किया जाएगा।
इनके अनुसार बुद्धि को तीन भागों में विभाजित किया गया➖
1️⃣ उच्च बुद्धि➖ जो बच्चे अपनी उम्र के अधिक स्तर के प्रश्नों का उत्तर दे पाते हैं उन्हें उच्च बुद्धि कहा गया।

2️⃣ सामान्य बुद्धि➖ जो बच्चे अपनी उम्र के अनुसार उत्तर दे पाते उनको सामान्य बुद्धि कहा गया।

3️⃣ मंदबुद्धि➖ जो बच्चे अपनी आयु से कम आयु के प्रश्नों का भी उत्तर ना दे पाए उनको मंदबुद्धि कहा गया।

(यह प्रश्न 3 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए उपयुक्त था)
💫 1911 में प्रश्नों की संख्या बढ़ा दी गई💫
🌸 इसके पश्चात सर्वप्रथम 1912, में विलियम स्टर्न के द्वारा बुद्धि के मापन के लिए बुद्धि लब्धि शब्द का प्रयोग किया गया। इनके द्वारा किया गया बुद्धि का मापन सही से नहीं किया जा सका।

➡️IQ =M. A/C. A

🌈 इसके पश्चात जर्मन मनोवैज्ञानिक टरमन ने 1916,मे बुद्धि लब्धि ज्ञात करने की विधि बताएं इनके अनुसार बुद्धि लब्धि को मानसिक आयु को उसकी वास्तविक आयु से भाग करके 100 से गुणा करने पर प्राप्त की जाती है इनके अनुसार बुद्धि लब्धि का सूत्र➖

🍁IQ=M. A/C. A *100🍁

इस परीक्षण को stern ford binnet test भी कहा गया। बाद में इन्होंने नाम बदलकर टर्मन परीक्षण रख दिया ।

टर्मन के अनुसार बुद्धि लब्धि की गणना इस प्रकार से होगी
1️⃣140- above ➖ प्रतिभाशाली बुद्धि (genious)

2️⃣121-140➖ अति श्रेष्ठ बुद्धि(very superior)

3️⃣111-120➖ श्रेष्ठ बुद्धि(superior)

4️⃣91-110➖ सामान्य बुद्धि(average )

5️⃣81-90➖ मंदबुद्धि(dull)

6️⃣71-90➖क्षीण बुद्धि(feeble)

7️⃣51-70➖ मूर्ख बुद्धि(idiot)

8️⃣25-50➖ मूढ़ बुद्धि

9️⃣0-25➖ जड़ या महामूर्ख बुद्धि

🌸इसके पश्चात 1922 ,में सी एच राइस में बिने परीक्षण को भारत लेकर आए जिसे Hindustan binet performance point scale कहां गया।🌸
✨🌈🍁💫🍁🌈✨

Multidimensional and Multiple Intelligence

Date,15/9/2020
📒 Nots , by shanu sanwle 📒
📘. बुध्दि intelligence
💥बुध्दि हमारी प्राथमिक ,मानसिक , शारीरिक योग्यता है यही से बुध्दि का निमार्ण होता है
1) थस्टर्न➖ने कहा बुध्दि प्राथमिक योग्यता का समुह हैं
1 प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता
2 तार्किक तथा वाचिक योग्यता
3 सांख्यिकी योग्यता
4 स्थानिक या दृश्य योग्यता
5 समस्या समाधान की योग्यता
6 स्मृति संबंधित योग्यता
7 आगमनात्मक / निगमनात्मक
2 ) कैली के अनुसार
1 वाचिक योग्यता
2 संगीतात्मक योग्यता
3 स्थानिक संबंधित या उचित व्यवहार करने कि योग्यता
4 रूचि
5 शारीरिक योग्यता
💥 बहुबुध्दि सिध्दांत ➖ गार्डनर 💥
🔸गार्डनर के अनुसार बुध्दि का मूल सिद्धांत
1 ) संगीतिक बुध्दि
🔸ध्वानि ,ताल, लय ,गीत, स्वरो का आरोही, अवरोही क्रम, की समझ हम सभी के अंदर है हमारे सभी में कार्यो में ध्वनि है
2) तार्किक बुद्धि
🔸हर जगह हम तर्क, वितर्क करके ही काम करते हैं आस, पास कि वस्तुओ , घटनाओं को जानने के लिए हम तर्क लगाते हैं ,
जैसे गणितज्ञ, शोधकर्ताओं
3 ) भाषाई बुद्धि
🔸बोलते समय हमें कब ,कहा कैसे बात करना है शब्दो का क्रम , वाक्यो का चयन , उचित शब्दावली ,शब्दो की समझ , अर्थ का ज्ञान होना ।
जैसे➖कवि, लेखक, शिक्षक , पत्रकार, आदि।
4 ) स्थानिक बुद्धि
🔸 स्थान की समझ, अच्छा दिशाबोध , चित्र, चार्ट, ग्राफ, की समझ, वास्तविक वस्तुओ का चित्र, माडल बनाना आदि
जैसे➖ मूर्तिकार, आर्किटेक्चर, पेन्टर,
5 ) शारीरिक बुध्दि
🔸 शारीरिक कार्य ,हाथ पैर कि हलचल से अपने
भावों को अभिव्यक्त करना
जैसे ➖ अभिनेता,
6 ) व्यक्तिगत बुद्धि
🔸 एकांत में प्रिय, स्यंम में रहते हैं।
जैसे ➖ दार्शनिक, संत ,
7 ) अंतर्वैयक्तिक बुद्धि
🔸सामाजिक कार्यकर्ता,बर्हिमुखी व्यक्यिति दूसरों की नजरों से देखते हैं।
जैसे ➖ राजनेता, डॉक्टर, शिक्षक
8 ) प्रकृति वाद बुद्धि ➖1995 में खोज कि
🔸 जिसे प्रकृति से प्रेम हो , जैसे ➖ किसान, माली, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान आदि।
9 ) अस्तित्ववादी बुद्धि ➖2000 में जोड़ी गई
🔸 जीवन की वास्तविकता को जानना ,
जैसे ➖ गोतम बुद्ध , महान ऋषि, मुनि ।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹


🌈 बहुआयामी बुद्धि:- कैली और थसर्टन
🔸कैली के अनुसार:- बुद्धि का निर्माण कई योग्यताओं द्वारा होता है।
1-वाचिक योग्यता
2-संगीतत्मक योग्यता
3-स्थानिक संबंध से उचित व्यवहार करने की योग्यता
4-रूचि और शारीरिक योग्यता
5-सामाजिक योग्यता

🔸थर्स्टन के अनुसार:- बुद्धि मानासिक योग्यताओं का समूह है।
1-प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता
2-तार्किक तथा वाचक योग्यता
3-सांख्यिकी योग्यता
4-स्थानिक दृश्य योग्यता
5-समस्या समाधान की योग्यता
6-स्मृति संबंधी योग्यता
7-आगमनात्मक निगमनात्मक संबंधी योग्यता
✒️ बहु बुद्धि सिद्धांत :- गार्डनर
👉 मूल सिद्धान्त – 7
🔸 संगीतिक बुद्धि :- इसके अन्तर्गत ध्वनि,स्वर,लय, ताल, गति,आरोह अवरोह को पहचानने की समझ होती है।
🔸तार्किक गणितीय बुद्धि:-इसके अन्तर्गत तार्किक रूप से सोचने समझने की क्षमता आती है,इस बुद्धि की हर जगह जरूरत होती है।

🔸भाषाई बुद्धि:- इसमें शब्दो का चयन, वाक्यो का चयन तथा अपने भावो को बोली के माध्यम से प्रदर्शित करते है।

🔸 स्थानिक बुद्धि :- इसके अन्तगर्त स्थान की समझ, दिशा का ज्ञान आदि होता है

🔸शारीरिक गतिसंवेदी:- जब हम किसी बात को अभिव्यक्त करते है तो हमे अपने शरीर की गति या तौर तरीके को भी उसी बात के अनुसार प्रदर्शित करना ही यह योग्यता है।

🔸व्यक्तिगत बुद्धि:- इसमे व्यक्ति स्वयं का व्यवहार और भावनाओ को समझता है। जैसे- दार्शनिक,संत

🔸अंतवैयक्तिक बुद्धि:- इसमे व्यक्ति दूसरो के व्यवहार के समझता है। जैसे-डॉक्टर, शिक्षक, राजनेता।

🔸प्राकृतिक बुद्धि :- 1995
ऐसे लोग जो प्रकृति को अच्छे से समझे
जैसे- किसान, जैव वैज्ञानिक

🔸 अस्तित्ववादी बुद्धि:- 2002
इस बुद्धि में अपने अस्तित्व को पहचान कर वास्तुविकता को जानना है।
जैसे- ऋषि -मुनि, संत।
🙏🙏🙏🙏🙏
✒️ Notes by Shashi choudhary….🌸🌸


🌺बहुआयामी बुध्दि का सिद्धांत 🌺

यह सिध्दांत केली और थर्सटन ने दिया।

केली के अनुसार बुध्दि

  1. वाचिक योग्यता
  2. संगीतात्मक योग्यता
  3. स्थानिक संबंधो के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता
    4.रूचियात्मक योग्यता
    5.शारीरिक योग्यता

थर्सटन के अनुसार बुध्दि

1.प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता

  1. तार्किक तथा वाचिक योग्यता
  2. सांख्यिकी योग्यता
  3. स्थानिक या दृश्य योग्यता
  4. समस्या समाधान की योग्यता
  5. स्मृति संबंधी योग्यता
  6. आगमनात्मक और निगमनात्मक योग्यता

🌺गार्डनर का बहुबुध्दि सिध्दांत 🌺

गार्डनर के मूल सिध्दांत मे सात बुध्दि या मानसिक योग्यता का रखा गया है।

  1. सांगीतिक बुध्दि – केवल गाना गाने वाले यानि गायक या वाद्य यंत्र बजाने वाले मे ही सांगीतिक बुध्दि नही होती है बल्कि सुनने ( श्रोता) वाले भी स्वर, लय, ताल, ध्वनि ,गति आरोह अवरोह की पहचान करने सक्षम होते हैं।

तार्किक गणितीय बुध्दि – इसमे हमारी सोचने समझने की योग्यता आती है। हम सभी कार्यो मे अपना तर्क लगाते हैं परंतु यह आवशयक नही है कि हर कार्य मे हमारा तर्क ( जुगाड) सही हो ।

भाषायी बुध्दि – इसमे हमारी भाषा से संबंधित योग्यता आती है जिसमे हम अपने शब्दो, शब्दावली और वाक्यो को सही जगह सही समय सही तालमेल से दूसरो के सामने प्रस्तुत करते हैं और दूसरो के भावो – विचारो को समझते समझाते है।

स्थानिक बुध्दि – इस मे हम किसी स्थान के बारे में हमे जो जानकारी है उसके छवि हमारे मस्तिष्क मे आ जाती है। इससे हम अपनी स्थानो से संबंधित समस्या ओ का समाधान करते है।

शारीरिक गति संवेदी बुध्दि – इस बुध्दि मे हम अपनी भाषायी बुध्दि की अभिव्यक्ति करते समय हमारे शरीर से हाव भाव व्यक्त करते हैं।

व्यक्तिगत बुध्दि – इसमे व्यक्ति का स्वयं का व्यवहार देखता है। जैसे – दार्शनिक, संत आदि

अंतर्वैयक्तीक बुध्दि – इसमे व्यक्ति दूसरों के व्यवहार को समझने की क्षमता रखता है । जैसे – टीचर बच्चों के व्यवहार को समझते हैं। तथा डाक्टर, राजनेता आदि आते हैं।

प्राकृतिक बुध्दि – इसमे व्यक्ति को प्रकृति को समझने की क्षमता होती है। प्रकृति से प्रेम, लगाव,उसका संरक्षण करते हैं। जैसे – किसान, जैव वैज्ञानिक आदि।

अस्तित्ववादी बुध्दि – इस तरह की बुध्दि रखने स्वयं के और दूसरो के अस्तित्व की पहचान करने मे सक्षम होते हैं। जैसे – दार्शनिक

प्राकृतिक बुध्दि 1995 और अस्तित्व वादी बुध्दि 2000 मे प्रस्तावित की गई ।


🌸: notes by – puja kumari
🌺 Intelligence बुद्धि🌺

बहुआयामी बुद्धि (multi dimensions intelligence)➖ इसके प्रतिपादन केली और थर्सटन ने बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओ से होता है।

🌸 केली के अनुसार :➖ बुद्धि का निर्माण कई योग्यताओ के द्वारा होता है➖

  1. वाचिका योग्यता
    2.संगीतात्मक योग्यता 3.स्थानिक संबंध से उचित व्यवहार करने की योग्यता
  2. रुचि और शारीरिक योग्यता 5.सामाजिक योग्यता।

जैसे – हर इंसान के पास बोलने की योग्यता होनी चाहिये। अपने आप मे संगीत की योग्यता होनी चाहिए। जिस स्थान पर हम है उस स्थान पर सिचुएशन के अनुसार उचित व्यवहार करना चाहिए। ये व्यवहार हमारे चेहरे पर दिखना चाहिए कि कैसा भाव है। ये भाव साइकोलॉजी पूर्ण होने चाहिए। ये हर इंसान में होना चाहिए।इसमें रुचि का होना भी जरूरी है तभी कुछ भी सीख सकते है। इसमें शारीरिक योग्यता की भी अहम भूमिका है किसी के सामने अगर हम जाते है तो हमारी शारीरिक योग्यता भी देखी जाती है हमारी आवाज कैसी है।हमारा भाव का representation कैसा है ये दिखना चाहिए।

🌸थर्सटन के अनुसार➖इसने भी बुद्धि को कई प्रकार में बांटा है-
1). प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता ➖ जो सामने देखकर conform हो जाते है।

2). तार्किक तथा वाचिक योग्यता➖ समस्या को solve करने की capacity होनी चाहिए।

3). सांख्यिकी योग्यता➖संख्या को किस प्रकार बनाना चाहिए।उसको किस प्रकार हल किया जाना चाहिए।

4). स्थानिक / दृश्य योग्यता ➖किसी चीज को देख के या situation के अनुसार planing करते है।

5). समस्या समाधान की योग्यता➖समस्या की किस तरफ हैन्डल करना है ये solve करने की योग्यता होनी चाहिए।

6). स्मृति संबंधी योग्यता ➖memory में कुछ चीजें याद रखनी चाहिए। अगर याद नही होगी तो समस्या create हो सकती है।

7). आगमनात्मक / निगमनात्मक योग्यता➖ दोनो प्रकार की बुद्धि होनी चाहिए,क्योंकि कोई एक बुद्धि अगर हमारे अंदर नही है तो दूसरे को हैन्डल सही तरीके से कर पायेगे।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
✍🏻पूजा कुमारी✍🏻
🌸🌸🌸🌸🌸. हावर्ड गार्डनर के बहु बुद्धि का सिद्धांत (Multiple Intelligence Theory of Haward Gardner. (1983)

गार्डनर ने व्यक्ति के अलग – अलग situation को अलग – अलग तरीके से solve करना जैसे कि अगर हमारे पास कोई समस्या है तो उसमें अलग अलग तरह से सोचेंगे, समझेगे , फिर उसपर reaction क्या होगा ये जानेगे तभी हमारा समस्या solve होगा इसके लिए कई प्रकार से चिंतन या बुद्धि का उपयोग करना पड़ा। हर व्यक्ति के पास खुद में विशिष्ट होता है तो हम यह नही कह सकते है कि किसी दूसरे की अपेक्षा बुद्धि हमारे में कम है, या ज्यादा है। हर व्यक्ति अपने रुचि के अनुसार किसी क्षेत्र में विशिष्ट होते है।
⭐ गार्डनर के मूल सिद्धांत ➖गार्डनर के 7 मूल सिद्धांत है और 2 सिद्धांत जो कि बाद में जुड़े है निम्न है➖

1️⃣ सांगीतिक बुद्ध➖व्यक्ति में विभिन्न प्रकार की ध्वनि, स्वर,गाना,ताल,लय, गति,आरोह,अवरोह सभी मे रहता है, कोई इस चीज में रुचि लेता है तो उसमें ज्यादा होता है तो किसी मे कम ।

2️⃣तार्किक गणितीय बुद्धि➖हम किसी समस्या का समाधान करने के लिए गणितीय तर्क लगाते है। ये जरूरी नही है कि हम सिर्फ गणितीय तर्क का ही उपयोग करेंगे। हमें कोई भी कार्य करने के लिए logical thinking लगते है।और ये भी जरूरी नही है कि जो हम logic लगाते है वो सही ही है इसका गारंटी नही है कभी कभी logic गलत भी हो जाता है।

3️⃣भाषायी बुद्धि➖शब्दो का चयन, वाक्यो का चयन , शब्दावली का चयन भी जरूरी है।क्योंकि यही सब व्यक्ति के आदर्श व्यवहार को दर्शाता है।

4️⃣स्थानिक बुद्धि➖वयक्ति के दिमाग मे किसी जगह के location का ज्ञान होना जरूरी है जब कोई काम आए तो हम मानसिक चित्र के द्वारा location बाता पाए।

5️⃣शारीरिक गतिसंवेदी ➖जब हम किसी बात को अभिव्यक्त करते हैं तो उस समय हमारा शरीर की गतिसंवेदी का पता चलता है। हमारे कार्य के अनुसार हमे अपने शरीर के सही तौर तरीके पर भी ध्यान देना चाहिए।क्योंकि इससे हमारी पर्सनलिटी का पाता चलता है।

6️⃣व्यक्तिगत बुद्धि➖हमारी अपनी बुद्धि से दूसरों की बुद्धि ,सोच की पता चलता है।जैसे- दार्शनिक, संत

7️⃣अन्तरवैयक्तिक बुद्धि ➖इसमे व्यक्ति दूसरे के नजरिये से खुद को उसी व्यवहार में बदलते है। जैसे- राजनेता, डॉक्टर, शिक्षक

8️⃣प्राकृतिक बुद्धि (1995 में )➖जो प्रकृति के बातो को समझते हैं। जैसे- किसान, जैव-वैज्ञानिक

9️⃣अस्तित्ववादी बुद्धि➖इस बुध्दि में स्वयं के अस्तित्व का पहचान कर वास्तविक को जानना ही अस्तित्ववादी बुद्धि कहलाती है। अर्थात
जो दुनिया के मोह माया से दूर हो गए है। जैसे- दार्शनिक, ऋषि- मुनि ,संत।. 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏✒️


💫Notes by :- Neha Kumari 😊

📚बहुआयामी बुद्धि :- कैली और थर्स्टन

📚कैली के अनुसार :- बुद्धि का निर्माण कई योग्यताओं द्वारा होता है।

1.वाचिक योग्यता
2.संगीतत्मक योग्यता
3.स्थानिक संबंध से उचित व्यवहार करने की योग्यता
4.रुचि और शारीरिक योग्यता
5.सामाजिक योग्यता

📚थर्स्टन के अनुसार :- बुद्धि मानसिक योग्यताओं का समूह है।

1.प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता
2.तार्किक तथा वाचक योग्यता

  1. सांख्यिकी योग्यता
    4.स्थानिक – दृश्य योग्यता
    5.समस्या – समाधान की योग्यता
    6.स्मृति संबंधी योग्यता
    7.आगमनात्मक – निगमनात्मक संबंधी योग्यता

📚 गार्डनर का बहू बुद्धि सिद्धांत :-

🌳संगीतिक बुद्धि :- इस बुद्धि के अन्तर्गत स्वर, लय, ताल,ध्वनि,गति,आरोह – अवरोह इत्यादि को पहचानने की योग्यता होती है।इसमें संगीत का भावात्मक ज्ञान होता है।

🌳तार्किक गणितीय बुद्धि :- इसके अन्तर्गत तार्किक रूप से सोचने – समझने की क्षमता आती है। जैसे :- गणितज्ञ🌸

🌳भाषाई बुद्धि :- इसके अन्तर्गत भाषा में निपुणता का विशेष महत्व है।इसमें शब्दों,वाक्यों के चयन,शब्दावली का गुण और योग्यता शामिल होती है।

🌳स्थानिक बुद्धि :- इसमें क्षेत्र विशेष या स्थान इत्यादि का मानसिक चित्रण करना और दिशा का ज्ञान आदि होता है।

🌳शारीरिक गति संवेदी बुद्धि :- इस बुद्धि के अनुसार हमारे शारीरिक – सांस्कृतिक व मानसिक क्षमताओं की प्रक्रिया आती है कि,हम कोई बात और कैसे अभिव्यक्ति कर सकते हैं।

🌳अंतर्वैयक्तिक बुद्धि :- इसमें दूसरों की भावनाओं को समझने की योग्यता होती है। जैसे कि :- डॉक्टर,राजनेता,शिक्षक इत्यादि।

🌳प्राकृतिक बुद्धि :- इसका प्रस्ताव वर्ष १९९५ में किया गया। इसके अन्तर्गत व्यक्ति में प्रकृति प्रेम तथा अनेक प्रकार की वनस्पतियों ,जीव – जंतुओं को पहचानने की क्षमता होती है।जैसे कि :- किसान🤗

🌳अस्तित्ववादी बुद्धि :- इसे वर्ष २००० में प्रस्तावित किया गया। इसके अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं की क्षमता,वास्तविकता,अस्तित्व को जानकर उसके अनुरूप कार्य करता है।जैसे कि :- दार्शनिक 🌸

धन्यवाद् 👏


Notes by ➖✍️ Gudiya Chaudhary
👇👇👇

✳️✳️ थर्स्टन व कैलि का बुद्धि सिद्धांत ✳️✳️

🔷 इन्होंने प्राथमिक मानसिक क्षमताओं के सिद्धान्त प्रतिपादित किया। यह सिद्धांत बताता है कि बुद्धि में सात प्राथमिक क्षमताएं होती है।जो एक क्रियात्मक एकरुपता में कार्य करती है। बुद्धि इन अपेक्षाकृत एक दूसरे से स्वतंत्र मानसिक क्षमताओं के संयुक्त प्रयासों का परिणाम होता है जो स्वयं अपने आप में एक प्रमुख प्राथमिक कारक होता है।
◼️ बुद्धि की सात प्राथमिक क्षमताएं ➖
1️⃣ वाचिक बोध ➖ शब्दों, अवधारणाओं,सम्प्रत्ययो और विचारों के अर्थ को समझने की योग्यता है।
2️⃣ संख्यात्मक क्षमताएं ➖ संख्यात्मक और अभिकलनात्मक कार्यो को तीव्र गति, कुशलता और सटीकता से करने की क्षमता होती है।
3️⃣ स्थानिक क्षमता ➖ प्रतिमानों और रचनाओं के प्रत्यक्षीकरण करने की क्षमता।
4️⃣ प्रात्यक्षिक गति➖ सभी पांचों इंद्रियों का प्रयोग करके वस्तु के सम्पूर्ण विवरण के प्रत्यक्षीकरण करने की गति।
5️⃣ शब्द प्रवाह ➖ किसी विचार या स्थिति का वर्णन करने के लिए धाराप्रवाह और लचीले शब्दों का प्रयोग करने की क्षमता।
6️⃣ स्मृति ➖ सूचनाओं को सटीकता से याद रखने में परिशुद्धता की क्षमता।
7️⃣ आगमनात्मक तर्कना➖ तथ्यों और नियमों से सामान्य नियमों को प्राप्त करने की क्षमता। यह क्षमता इन गतिविधियों में पाई जाती है जो किसी प्रश्र में निहित नियमों और विचारों को खोज करने को आवश्यकता होती है।

🌸🌸 गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत 🌸🌸

🔷 गार्डनर ने 1983 में सात प्रकार की बुद्धि बताई है।
1️⃣ भाषाई बुद्धि ➖
भाषा के विभिन्न कार्यों को जानना, शब्दों की ध्वनियों, उनकी लय वह अर्थो के प्रति संवेदनशीलता होती है।
जैसे ➖ कवि, पत्रकार,लेखक,व्याख्याता, वकील।
2️⃣ तार्किक गणितीय बुद्धि ➖
तार्किक श्रृंखला को समझना,तर्क के प्रति संवेदनशील व तर्क या संख्यात्मक,प्रारुपो को खोजने की क्षमता
जैसे ➖ दार्शनिक, वैज्ञानिक,गणितज्ञ
3️⃣ संगीतात्मक बुद्धि ➖
विभिन्न ध्वनियो व स्वरो को निकालना व श्लाघा करना,संगीतात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का अवबोध करना,लय, गति,अरोह व सौन्दर्यात्मक ध्वनियों का बोध व उन्हें तैयार करना।
जैसे ➖ संगीतकार, वायलिन
4️⃣ स्थानिक बुद्धि ➖
दृश्य बिम्ब तथा प्रतिरुप निर्माण के कौशल में निपुणता।
जैसे ➖ विमान चालक, नाविक, मूर्तिकार
5️⃣ शारीरिक गतिज बुद्धि ➖
अभिव्यक्ति हेतु अपने शरीर का कुशलतापूर्वक प्रयोग करना, लक्ष्य केन्द्रित उद्देश्यों के लिए शारीरिक अंगों को कुशलतापूर्वक प्रयोग करना, वस्तुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करना।
जैसे ➖ एथलीट,तैराक,धावक खिलाड़ी
6️⃣ अन्तर्वैयक्तिक बुद्धि ➖
मनोभावों को पहचानना उनके अनुरूप अनुक्रिया करना,स्वभाव व अभिप्रेरकों को जानना व प्रदान करना।
जैसे ➖ अधिकारी, राजनेता
7️⃣ अन्तःवैयक्तिक बुद्धि ➖
अपनी निजी भावनाओं, अभिप्रेरणाओ व इच्छाओं की अभिज्ञता रखते हैं।
जैसे ➖ आध्यात्मिक नेता संत,योगी
🔷 1998 में 8वां प्रकार व 2000 में 9वां प्रकार जोड़ा गया। इस प्रकार वर्तमान समय में बुद्धि के 9 प्रकार है।
8️⃣ प्रकृतिवादी बुद्धि ➖
प्रकृति को जानने व पहचानने की क्षमता।
जैसे ➖ किसान,जीव वैज्ञानिक
9️⃣ अस्तित्ववादी बुद्धि ➖
मानव संसार के बारे में छिपे रहस्यों को ज़िन्दगी, मौत तथा मानव अनुभूति के वास्तविकता के बारे में जानने की क्षमता।
जैसे ➖ दार्शनिक चिंतक

Thanks 🌸🌸


✍🏻Notes By-Vaishali Mishra

🔆 बहुआयामी और बहुबुद्घि सिद्धांत➖
🔅बहुआयामी बुद्धि सिद्धांत(Multi Dementional inteeligency theory)➖
केली और थस्टर्न के अनुसार- बुद्धि की आधरिय मानसिक योग्यता (प्राथमिक मानसिक योग्यता) से ही बुद्धि का निर्माण होता है।
केली के अनुसार – कई कारक है जो बुद्धि को प्रभावित करते है जैसे

  • वाचिक योग्यता
  • संगीतात्मक योग्यता
  • स्थानिक सम्बन्ध में उचित व्यवहार करने की योग्यता
  • रुचि
    *शारीरिक योग्यता
    थ्रस्टर्न के अनुसार कई कारकों से बुद्धि प्रभावित होती है।
  • प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता
  • तार्किक तथा वाचिक योग्यता
    *सांख्यिकी योग्यता (तर्क लगाने में संख्याओं का प्रयोग करते हैं)
    *स्थानिक/दृश्य योग्यता
    *समस्या समाधान की योग्यता
    *स्मृति संबंधी योग्यता
    *आगमनतमक व निगमनात्मक योग्यता

🔅 बहूबुद्घि सिद्धांत(Multiple intelligence theory)➖
इस सिद्धांत को गार्डनर द्वारा दिया गया ।
व्यक्तियों के अंदर अलग अलग परिस्थिति के अनुसार अलग अलग प्रकार की सोच व बुद्धि होती है। इसी को देखते हुए गार्डनर ने बहु बुद्धि सिद्धांत दिया ।
( विशिष्ठ बुद्धि वहीं होती है जिसमे interest,ego,real talent,ऐसे लोगो को देखकर जिनको सम्मान मिला हो,या उनकी repotation इन सभी को देखकर हमारी जिस काम में विशिष्ठता होती है असल में वहीं हमारी उस काम की विशिष्ठ बुद्धि कहलाती है)
◼️गार्डनर के मूल सिद्धांत ➖ गार्डनर के मूल सिद्धांत में सात प्रकार की बुद्धि को दिया गया। बाद में अन्य दो को शामिल किया गया। सभी प्रकार की बुद्धि के प्रकार निम्नानुसार है।

▪️1) सांगीतिक बुद्धि➖एक अच्छी धुन, ताल, लय,गति,आरोह अवरोह की पहचान या समझ ही सांगीतिक बुद्धि कहलाती है। हमारे बोलने में,कुछ बजाने में इत्यादि में हर एक चीज की ध्वनि ही संगीत है ।

▪️2) तार्किक, गणितीय बुद्धि➖ हम कई समस्याओं का समाधान तर्क से ही खोजते है।
हमारे अंदर जो भी तर्क होता है वह हर जगह लगता है लेकिन जरूरी नहीं है कि वह जो तर्क है हर जगह सही ही हो,वह कभी गलत भी ही सकता है।यदि वह गलत है तो उसमें और ठीक तरीके से तर्क लगाकर उसे सही किया जा सकता है।

▪️3) भाषाई बुद्धि➖ शब्दावली का चयन,वाक्यों का चयन,यह सभी बहुत महत्वपूर्ण होते है।क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही हम किसी के सामने सबसे पहले अपने व्यक्तित्व और व्यवहार को दर्शाते है।

▪️4)स्थानिक बुद्धि➖इस तरह की बुद्धि रखने वाले व्यक्तियो के पास आधिकता में किसी स्थान की छवि दिमाग में बन जाती है।
कभी कभी हम किसी स्थान सम्बन्धी समस्या के समाधान के लिए स्थानिक बुद्धि का प्रयोग करते है।

▪️5) शारीरिक गति संवेदी➖जब हम किसी बात को अभिव्यक्त करते है तो उस बात को हमे मानसिक के साथ साथ शारीरिक रूप से अपने हाव भाव के साथ अभिव्यक्त करना भी जरूरी होता है।
हमारे लक्ष्य के केंद्र के जो भी उद्देश्य वह शारीरिक रूप से भी दिखने चाहिए।

▪️6) व्यक्तिगत बुद्धि➖
वो व्यक्ति जो स्वयं का स्वभाव या संवेग से या खुद के नजरिए से देखकर ही अपने व्यवहार को निर्देशित करते है।
जैसे दार्शनिक लोगो में इस प्रकार की बुद्धि अधिकता में होती है।वह खुद के नजरिए से दुनिया को देखकर अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।

▪️7)अंतर्वैयक्तिक बुद्धि➖जो व्यक्ति दूसरों के व्यवहार को या दूसरों की बुद्धि को देखकर ही अपने व्यवहार का प्रदर्शन करने लगते है।
जैसे शिक्षक,राजनेता, डॉक्टर इत्यादि।

▪️8) प्राकृतिक बुद्धि➖इसे 1995 में बताया गया ।
जो व्यक्ति प्रकृति से प्यार, लगाव,उसकी समझ, रक्षा,उसकी हानि होने पर दर्द,उसकी परवाह कई तरीको से सम्बन्धित होते है तब वह प्राकृतिक बुद्धि की श्रेणी में आते है।
जैसे – किसान, जैव वैज्ञानिक इत्यादि।

▪️अस्तित्ववादी बुद्धि ➖
इस तरह की बुद्धि रखने वाले व्यक्ति दुनिया की वास्तविकता य सच्चाई को जानते है और उसी के अनुसार अपने व्यवहार का प्रदर्शन करते है।
जैसे संत,महत्मा इत्यादि।


✍🏻manisha gupta ✍🏻 बहुआयामी सिद्धांत

यह सिद्धांत ‘केली एवं थर्सटन’ नामक मनोवैज्ञानिकों के द्वारा दिया गया है➖
🌸केली के अनुसार बुद्धि➖
1️⃣ वाचिक योग्यता(वक्ता)
2️⃣ संगीतात्मक योग्यता
3️⃣ स्थानिक संबंधों के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता
4️⃣ रुचियात्मक योग्यता
5️⃣ शारीरिक योग्यता।

🌸थर्सटन के अनुसार बुद्धि के प्रकार ➖ बुद्धि मानसिक योग्यतओं का समूह होता है,
1️⃣ प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता
2️⃣ तार्किक तथा वाचक योग्यता
3️⃣ सांख्यिकी योग्यता
4️⃣ स्थानिक या दृश्य योग्यता
5️⃣ समस्या समाधान की योग्यता
6️⃣ स्मृति संबंधी योग्यता
7️⃣ आगमनात्मक- निगमनात्मक संबंधी योग्यता

🍁 गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत

गार्डनर के मूल सिद्धांत सात प्रकार के होते हैं

🌸 संगीतिक बुद्धि➖
स्वर, लय ,ताल ध्वनि, गति ,आरोह अवरोह, को पहचानने की योग्यता इस क्षेत्र में होती है। इस क्षेत्र में संगीत की भावात्मक का ज्ञान होता है।

🌸 तार्किक गणितीय बुद्धि➖
क्षेत्र में तार्किक रूप से सोचने की क्षमता शामिल होती है जैसे 💫गणितज्ञ💫

🌸 भाषा‌यी बुद्धि➖
इस क्षेत्र में भाषा में निपुण व्यक्ति शामिल होते है। इसमें शब्दों का चयन, वाक्यों का चयन ,शब्दावली के गुणों की योग्यता होती है। जैसे लेखक

🌸 स्थानिक बुद्धि➖ क्षेत्र में स्थान का ज्ञान , दिशा का ज्ञान।

🌸 शारीरिक गति संवेदी बुद्धि➖इस बुद्धि के अंतर्गत शारीरिक क्षमता व मानसिक क्षमताओं के प्रक्रिया आती है। इस बुद्धि के अंतर्गत किसी बात को किस प्रकार से अभिव्यक्त करना है आती है।

🌸व्यक्तिगत बुद्धि➖ इस प्रकार की बुद्धि में अपनी भावनाओं अपनी नजरिया से दूसरे दूसरों को देखने की योग्यता होती है। जैसे- दार्शनिक।

🌸 अंतर्वैयक्तिक बुद्धि ➖ दूसरों की भावनाओं को समझने की क्षमता या योग्यता । जैसे -राजनेता ,डॉक्टर, शिक्षक ।
🌸 प्राकृतिक बुद्धि➖ प्राकृतिक बुद्धि को 1995 में प्रस्तावित किया गया । क्षेत्र के अंतर्गत व्यक्ति में प्रकृति के प्रति प्रेम और वनस्पतियों जीव जंतुओं को पहचानने की योग्यता होती है।

🌸 अस्तित्ववादी बुद्धि➖ बुद्धि को 2000 में प्रस्तावित किया गया था।स्वयं के अस्तित्व को जानकर की वास्तविकता को जानना अस्तित्व वादी बुद्धि है ।जैसे -दार्शनिक

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Notes by ➖ Rashmi Savle

बहुआयामी बुद्धि( multi dimensional Intelligence)➖कैली/थर्सटन

कैली के अनुसार ➖ प्रारंभिक मानसिक योग्यता से बुद्धि का निर्माण होता है और वह प्रारंभिक मानसिक योग्यता
(1) वाचिक योग्यता ➖हमारे पास शब्दों को उचित समय पर कहने की योग्यता होना बहुत आवश्यक है |

(2) संगीतात्मक योग्यता ➖हमारे जीवन के हर पहलू पर संगीत है बस उसका एहसास होना आवश्यक है |

(3) स्थानिक संबंध से उचित व्यवहार करने की योग्यता➖ परिस्थिति के अनुसार स्थान की उचित पहचान की योग्यता होना अति आवश्यक है |

(4) रुचि➖ हमारी बुद्धि रूचि के अनुसार भी निर्भर करती है क्योंकि हम कोई भी कार्य रूचि के अनुसार भी करते हैं |

(5) शारीरिक योग्यता➖ शरीर संबंधी कारक का भी हमारी बुद्धि पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है जैसे शारीरिक रंग रूप गठन आदि |
इन सभी प्रकारों से हमारी बुद्धि बहुत अधिक प्रभावित होती है…….

थर्सटन के अनुसार ➖
(1) प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता
(2) तार्किक तथा वाचिक योग्यता
(3) सांख्यिकीय योग्यता
(4) स्थानिक या दृश्य योग्यता
(5) समस्या समाधान की योग्यता
(6) स्मृति संबंधी योग्यता
(7) आगमनात्मक/ निगमनात्मक योग्यता
यदि इन सभी प्रकार की योग्यताओं से बुद्धि का निर्माण होता है तो वह विशिष्ट और सामान्य दोनों ही प्रकार की योग्यता के अन्तर्गत होती है |

बहुबुद्धि सिद्धांत ( multiple intelligence) ➖गार्डनर
अलग अलग परिस्थिति में अलग अलग प्रकार से सोचना और उसी प्रकार से उपयोग करना ही बुद्धि है प्रत्येक व्यक्ति के पास अपनी एक विशिष्ट योग्यता होती है और यदि उसको पहचानना आ गया तो वह उस क्षेत्र में अच्छा कर सकता है और वह क्या अच्छा कर सकता है उसकी
रूचि (intrest)
अहम् (ego)
वास्तविक telent
ऐसे लोगों को देखा है जो वो कर रहे हैं
और वह किस क्षेत्र में लोकप्रिय है उनकी popularity कितनी है
ये सब परिस्थिति के अनुसार निर्भर करता है और इन सब में हमारा real telent निर्भर करता है |
गार्डनर के अनुसार बुद्धि के 9 सिद्धांत है जिनमें 7 मूल और 2 सिद्धांत बाद में जोडे़ गए हैं जो कि निम्न प्रकार से है➖

(1) सांगीतिक बुद्धि➖
इस प्रकार की बुद्धि जिसमें ध्वनि के सुर, लय, ताल, गति, आरोह, अवरोह आदि को पहचानने की कला ही सांगीतिक बुद्धि है |

(2) तार्किक गणितीय बुद्धि➖
परिस्थिति के अनुसार तर्क लगाना ही तार्किक गणितीय बुद्धि है अर्थात परिस्थिति के अनुसार समस्या का समाधान करना |जैसे वैज्ञानिक

(4) भाषाई बुद्धि➖
शब्दावली के शब्दों का चयन, क्रम, सही शब्दों का चयन आदि सब भाषाई बुद्धि के अन्तर्गत आता है जैसे लेखक ,कवि, पत्रकार |

(4) स्थानिक बुद्धि➖
स्थान का ज्ञान या समझ ही स्थानिक बुद्धि है |

(5) शारीरिक गति संवेदी ➖
परिस्थिति या भाव के अनुसार अपने शरीर के अंगो मे बदलाव या उनका परिचालन करना ही या उनको व्यक्त करने के तरीके को ही शारीरिक गति संवेदी बुद्धि है जैसे अभिनेता, अभिनेत्री आदि |

(6) व्यक्तिगत बुद्धि➖
स्वयं की बुद्धि के अनुसार दूसरों को पहचानना ही व्यक्तिगत बुद्धि है | जैसे साधु संत

(7) अंतर्वैयक्तिक बुद्धि➖
दूसरों की बुद्धि के अनुसार लोगों को पहचानना ही अंतर्वैयक्तिक बुद्धि है | जैसे डाक्टर, मार्केटिंग सेलर, शिक्षक, राजनेता आदि

(8) प्राकृतिक बुद्धि➖
प्राकृतिक को समझना ही प्राकृतिक बुद्धि है | जैसे किसान, जैव वैज्ञानिक आदि

(9) अस्तित्ववादी बुद्धि➖
स्वयं के अस्तित्व को पहचान कर वास्तविकता को जानना ही अस्तित्ववादी बुद्धि है | जैसे दार्शनिक

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🌈 बहु बुद्धि सिद्धांत
प्रतिपादक हावर्ड गार्डनर सन 1983
🌟गार्डनर के अनुसार किसी भी बालक की बुद्धि में 7 प्रकार की बुद्धि में पाई जाती हैं लेकिन बाद में उन्होंने 1998 में आठवां प्रकार प्राकृतिक बुद्धि बताया
✍ संगीत मत बुद्धि यह बुद्धि कुछ ही व्यक्तियों में होती है जिन व्यक्तियों को लाभ वाह गति के साथ ध्वनियों और चोरों को निकाला तथा ध्वनियों की गति में अवरोध आदि के ज्ञान होता है
जैसे बाद यंत्र बजाने वाले संगीतकार
✍ तार्किक बुद्धि मानसिक क्रियाएं तेज वह अर्थात तर्क वितर्क की क्षमता अधिक हो वह इस श्रेणी की बुद्धि में आते हैं
जैसे गणितज्ञ वैज्ञानिक आदि
✍ अंतर व्यक्ति की बुद्धि दूसरों के मनोभावों को पहचानना उनके भाव स्वभाव और अभिप्रेरणा को जानना ही अंतर व्यक्तिक बुद्धि कहलाती है
जैसे राजनेता चिकित्सालय विक्रय अधिकारी आदि
✍शारीरिक गतिक बुद्धि इस बुद्धि में शारीरिक और अधिक होता है
जैसे खिलाड़ी तैराक मुक्केबाज आदि
✍ अस्तित्व आदि बुद्धि मानव संसार के बारे में छिपे रहस्यों को जानना वास्तविकता का पता लगाना अस्तित्व वादी बुद्धि में आता है 0 जैसे चिंतन दार्शनिक आदि
✍ स्थानिक बुद्धि जिन व्यक्तियों में दृश्य आत्मक संचार तत्व प्रत्याक्षीकरण की क्षमता अधिक होती है वह स्थान एक बुद्धि में आते हैं जैसे मूर्तिकार चित्रकार सर्वेक्षण अधिकारी आदि-
✍ अंतरा व्यक्तिक या आत्मन विधि स्वयं की क्षमताओं कमियों और इच्छाओं या बुद्धिमत्ता ओं को जाना अंतरा व्यक्ति बुद्धि के अंतर्गत आते हैं इसमें योगी संत आदि
✍✍Menka patel


Intelligence Theories

12 Sep♦️ बुद्धि♦️ ➖ किसी भी बातो, विचारों, भावनावो, मनोविज्ञानिक सोच को परोक्ष रूप देने की मानसिक प्रक्रिया है। बुद्धि, किसी व्यक्ति के संज्ञान को दर्शाता है। बुद्धि के द्वारा हम अपने जीवन मे, कोई भी निर्णय लेते है। बुद्धि के पक्ष में, अलग-अलग वैज्ञानिको ने अपनी अपनी राय दी।🔅 एक कारक बुद्धि➖ बिने, ने बुद्धि को एक कारक बुद्धि के रूप में बताया। इनके अनुसार, हमारी बुद्धि, अविभाज्य है, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता जो सभी कार्यों का संचालन और व्यवहार को निर्देशित करती है। 🔅द्विकारक बुद्धि ➖ स्पेयरमैन ने द्विकारक बुद्धि को बताया, इन्होंने द्वि मतलब दो भागों में बांटा -1️⃣ सामान्य मानसिक योग्यता➖हर वयक्ति मे कार्य करने की सामन्य बुद्धि होती है। जिसे वो अपनी दैनिक दिनचर्या मे प्रयोग करता है। 2️⃣ विशिष्ट मानसिक योग्यता➖ विशिष्ट मानसिक योग्यता, विशिष्ट कार्य को दर्शाता है जैसे कोई व्यक्ति कला, निर्त्य, इंजीनियर, डॉक्टर, एक कुशल शिक्षक है, यह उसकी विशिष्ट योग्यता है। 🔅 बहु कारक बुद्धि ➖ E.Throndike ने बताया। इन्होने, इन्होंने बुद्धि के एक नहीं, द्वि नहीं, सभी पक्षों की बात की। हमारे अंदर विभिन्न प्रकार की योग्यताएं है, जिसके आधार पर हम कार्य करते हैं। 🔅 ग्रुप तत्व का सिद्धांत ➖ थर्स्टन ने यह सिद्धार्थ दिया, इन्होंने हमारे अंदर विद्यमान, विभिन्न प्रकार की शक्तियों को एक ग्रुप का नाम दे दिया यानी जो हम काम करते हैं वह विभिन्न प्रकार की योग्यताएं का समूह है। 🔅 त्रिआयामी बुद्धि ➖ गिलफोर्ड ने बुद्धि का यह सिद्धांत दिया.. इन्होंने बुद्धि के तीन पक्ष बताएं 1️⃣ विषय वस्तु(content)2️⃣ संक्रिया(operation) 3️⃣उत्पाद(product )……जब हमारे पास कोई कारण या विषय वस्तु होता है तो हम चिंतन करके उसके, रिजल्ट यानि उत्पाद तक पहुंचते है। 🔅 ठोस या द्रव्य बुद्धि➖ रेमंड कैटल ने यह सिद्धांत दिया। 🔹 द्रव्य बुद्धि➖ यह हमारे बेसिक नेचर यानी वंशानुक्रम में होता है, जिसे हम स्वत: करते हैं। 🔹ठोस बुद्धि➖ये हमें ,वातावरण यानि क्रियायों जो हम सीखते है उससे अर्जित होती है। 🖊️🖊️🖊️ इस प्रकार, अलग-अलग वैज्ञानिकों ने बुद्धि के बारे में, अपनी अलग-अलग राय दी जो हमें व्यक्ति के अंदर बुद्धि के विभिन्न पक्षों को समझने मे सहायक भूमिका करता है
♦️🌸🎊 💖…. 🖊️By ➖ 🎊आकांक्षा गुप्ता 🎊


✍🏻 Notes By-Vaishali Mishra 🔆 बुद्धि🔆

▪️बुद्धि हमारे ज्ञान, सोचने समझने की शक्ति,हमारी प्रतिभा,हमारी समझ है।
▪️सभी बौद्धिक, मानसिक और संज्ञानात्मक क्रियाएं बुद्धि ही है।
▪️बुद्धि हमे किसी कार्य को करने के लिए सभी तथ्यों को देखने , समझने, परखने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करती है।
▪️किसी कार्य को भावनात्मक या संवेगात्मक रूप से करने में भी हम बुद्धि का ही प्रयोग करते है।जब हम किसी कार्य भावनात्मक रूप से करते है तो उस स्थिति में हम तात्कालिक निर्णय ले लेते हैं।
▪️ जीवन में हमे किसी परिस्थिति में भावनात्मक और बौद्धिक या मानसिक दोनों ही तरह की बुद्धि के द्वारा ही सामजश्य स्थापित करके उस परिस्थिति को व्यवस्थित कर लेते है।
▪️बुद्धि में ज्ञान के साथ साथ समझ भी आती है।
▪️बुद्धि वास्तव में वहीं है जिसका प्रयोग हम सही रूप से कर पाए जैसे यदि हमारे पास कोई समस्या है तो उसका समाधान निकालने के लिए हम हम सही रूप में बुद्धि का प्रयोग कर पाए।

🔅कई मनोवैज्ञानिक द्वारा बुद्धि के अलग अलग सिद्धांत दिए गए जिसमे से कुछ निम्न प्रकार है➖

🔸बुद्धि का एक कारक सिद्धांत➖
इस सिद्धांत को अल्फ्रेड बिने द्वारा दिया गया।इसमें उन्होंने बताया कि बुद्धि एक कारक है ,जिसको मानसिक शक्ति नाम दिया गया , इसी मानसिक शक्ति के द्वारा हम कार्य का संचालन करते है और यही एक कारक सिद्धांत कहलाता हैं।

  • बुद्धि एक है इसको विभाजित नहीं किया जा सकता है अर्थात बुद्धि अभिवजाज्य है।
  • बुद्धि सभी व्यवहार को निर्देशित करती है।
    *अल्फ्रेड विने के इस एक कारक सिद्धांत का समर्थन टरमन और बिने ने किया ।

🔸 स्पीयमेंन के अनुसार➖ बुद्धि दो कारक है।
✓1 सामान्य मानसिक योग्यता (G-factor)

✓2 विशिष्ठ मानसिक योग्यता(S-factor)

  • हर व्यक्ति में कुछ क्रियाएं सामान्य रूप से होती है जैसे खाना,पीना,सोना,आदि क्रियाएं।
    लेकिन हर व्यक्ति में कुछ न कुछ विशिष्ठ क्रियाए या special भी होता है जैसे चित्रकला,डांस,ड्रामा, पेंटिंग, सिंगिंग इत्यादि ।

🔸थोर्न डाईक के अनुसार➖
बुद्धि को बहू कारक बताया गया ।एक ऐसी बुद्धि जिसे विस्तारित या define नहीं किया जा सकता ।
हर किसी व्यक्ति में सामान्य ओर कोई न कोई विशिष्ठ क्रिया अवश्य होती है और यही दोनों सामान्य और विशिष्ठ क्रियाएं ही स्पेशल या बहू कारक ही कहलाती है।

🔸 थर्स्टन के अनुसार➖ बुद्धि का समूह कारक सिद्धांत दिया गया।
कई ऐसी चीजें,कई ऐसे तत्व, कई ऐसी क्रियाएं है जिनको एक सार करके एक समूह में रख सकते है।इसी आधार पर समूह कारक सिद्धांत दिया गया।

🔸 गिल्फॉर्ड ने ➖ बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत( 3D inteeligency ) दिया गया

जो भी हमारी मानसिक प्रक्रिया है उसको तीन अलग अलग डायमेंशन में विभाजित किया गया ।
बुद्धि तीन अलग अलग चीजों पर निर्भर करती है।
✓1 सांक्रिया
✓2 सूचना( सामग्री या विषय वस्तु)
✓3 उत्पादन

जब भी हमारे पास कोई समस्या या कोई कार्य(सांक्रिया) होती है उस समस्या या कार्य पर हमचिंतन(सूचना) करते है चिंतन करने से उस समस्या का या कार्य जा उचित और बेहतर उपाय निकाल (उत्पादन) लेते है।
यही समस्त क्रिया त्री आयामी बुद्धि सिद्धांत कहलाता हैं।

🔸 केटल के अनुसार➖ बुद्धि का ठोस तरल बुद्धि सिद्धांत दिया गया।

तरल या द्रव्य बुद्धि – जो काम हम आसानी से एक flow में किसी भी परिस्थिति में कर लेते है या दूसरे शब्दो में कहा जाए जो क्रियाएं हम स्वत: रूप से कर लेते है वहीं तरल या द्रव्य बुद्धि कहलाती है।
यह बुद्धि हमारी अनुवांशिकता का ही आधार है यह बुद्धि हमारी प्रकृति है।

ठोस बुद्धि – इस प्रकार की बुद्धि में हमारा वातावरण,अनुभव,हमारा अधिगम में जी भी बुद्धि प्राप्त की जाए या लगाई जाए वही ठोस बुद्धि कहलाती है।

” हमारी जो बुद्धि होती है उसमे शारीरिक और मानसिक रूप में आनुवंशिक और वातावरण का ही योगदान होता है।”


✍notes by ➖Rashmi Savle✍

🌺 बुद्धि (Intelligence) 🌺
किसी भी समस्या के समाधान के लिए जिस मानसिक क्षमता का प्रयोग किया जाता है उसे बुद्धि कहते हैं | या अपने मानसिक क्षमता के रूप में ज्ञान या संज्ञान को विकसित करना ही बुद्धि है…
बुद्धि में ज्ञान के साथ साथ समझ भी विकसित होती है और यह हमारे अनुभव के साथ और अधिगम के रूप में विकसित होती है..
बुद्धि हमारा वह सामान्य व्यवहार है जो किसी समस्या का समाधान निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है..
कई मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि को अलग अलग प्रकार सिद्धांत दिए है जो कि निम्न अनुसार हैं ➖

🌸 बुद्धि के सिद्धांत 🌸

एक कारक सिद्धांत ➖अल्फर्ड बिने
किसी कार्य, व्यवहार को करने के लिए जिस मानसिक क्षमता का प्रयोग किया जाता है वह बुद्धि है जो कि एक ही कारक है इसी मानसिक क्षमता या शक्ति का प्रयोग हम सभी कार्यों के संचालन में करते हैं |
बुद्धि के एक कारक सिद्धांत के अनुसार “बुद्धि एक है इसको विभाजित नहीं किया जा सकता है बुद्धि एक मानसिक शक्ति है जो सभी कार्यों का संचालन करती है बुद्धि अविभाज्य है इसको विभाजित नहीं किया जा सकता |
इस सिद्धांत की सत्यता के लिए अल्फर्ड बिने का समर्थन टर्मन और स्टर्न ने किया….

बुद्धि का द्विकारक सिद्धांत➖ स्पीयरमैन
इस सिद्धांत के अनुसार हम सबके पास एक विशिष्ट योग्यता तथा एक सामान्य योग्यता होती है..
इन्होंने बुद्धि के दो कारक बताया

  1. सामान्य मानसिक योग्यता ➖जैसे इसमें रोजमर्रा के कार्यों को शामिल किया जा सकता है…
  2. विशिष्ट मानसिक योग्यता➖इसके अन्तर्गत सभी व्यक्तियों के पास एक विशिष्ट योग्यता होती है जैसे नृत्य करना, गीत गाना, cooking करना चित्रकारी करना आदि. …

बहुकारक सिद्धांत➖ थार्नडाइक
इस सिद्धांत के अनुसार सामान्य या विशिष्ट बुद्धि नाम की कोई चीज नही होती है सब कुछ अपने आप में विशिष्ट है सभी व्यक्तियों में अलग अलग प्रकार की अपनी विशिष्ट योग्यताएँ होती है जिनसे हम विशिष्ट कार्य करते हैं….

बुद्धि का समूह कारक सिद्धांत➖ थर्सटन
ऐसे कार्य या ऐसी प्रतिकात्मक जो हम कर सकते हैं उनका एक समूह बनाया जा सकता है….

त्रिआयामी बुद्धि ➖गिलफोर्ड
3D intelligence
बुद्धि तीन अलग अलग दिशाओं या तीन अलग अलग चीजों पर निर्भर करती है
१ सूचना सामग्री या विषय वस्तु
२ संक्रिया
३ उत्पादन
अर्थात् मस्तिष्क में कुछ बात आती है तो उस पर चिंतन कर धारणा बनाते हैं और उसके अनुसार हम अपनी बुद्धि को काम में लाते हैं…..
सूचना➡संक्रिया ➡उत्पादन

ठोस और द्रव बुद्धि (Fluid and crystal intelligence) ➖आर बी कैटल
इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि दो प्रकार की होती है ठोस और द्रव
द्रव ➖द्रव में हमारा सामान्य व्यवहार, जो कि वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त होता है यह स्वत: चलते निरंतर चलते रहता है इसमें हमारी सामान्य योग्यताएँ आती हैं….
ठोस➖इसमें हमारी विशिष्ट योग्यताएँ आती है जो कि हमारे वातावरण, अनुभव और अधिगम से प्राप्त होती है इसमें हमें वातावरण को देखते हुए कार्य करना पड़ता है…


Notes by ➖ ✍️ Gudiya Chaudhary
👇👇👇

❇️❇️ बुध्दि (intelligent)❇️❇️

🔶 बुध्दि वह मानसिक शक्ति है जो वस्तुओं और तथ्यों को समझने उनमें आपसी सम्बन्ध खोजने तथा तर्कपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होती है। यह भावना और अन्तःप्रज्ञा से अलग है। बुद्धि ही मनुष्य को नवीन परिस्थितियों को ठीक से समझने और उनके साथ अनुकूलित होने में सहायता करती है।
🔶 बुद्धि मनुष्य की वह जन्मजात शाक्ति एवं मानसिक योग्यता है जो व्यक्ति को समायोजन, समस्या समाधान, तर्क-वितर्क, चिन्तन-मनन की क्षमता प्रदान करती है। बुद्धि अमूर्त योग्यता है। इसका स्त्रोत वंशानुक्रम होता है।

✳️ बुद्धि के सिद्धान्त ➖
🔷 एक कारक सिध्दांत➖ यह सिद्धांत अल्फ्रेड बिने ने दिया है। इनके अनुसार बुद्धि एक ही तत्व से निर्मित है तथा समस्त क्षेत्रो में एक ही बुद्धि व्याप्त है। इन्होंने बुद्धि को अविभाज्य है,जिसे तोड़ा नहीं जा सकता है।जो सभी कार्यों का संचालन और व्यवहार को निर्देशित करती है।
🔷द्वि-कारक सिद्धान्त ➖ यह सिद्धांत स्पीयमैन ने दिया है। इनके अनुसार बुद्धि दो तत्वों से मिलकर बनी है।
1️⃣ सामान्य कारक (General factor)➖ यह सामान्य मानसिक योग्यता को दर्शाता है जिसकी आवश्यकता जीवन के सभी पक्षों में होती है।
2️⃣ विशिष्ट कारक (specific ability)➖ यह विशिष्ट योग्यताओं को दर्शाता है जैसे कला संबंधी योग्यता,संख्यात्मक योग्यता आदि।
🔷 थार्नडाइक के अनुसार ➖
थार्नडाइक ने बुद्धि को बहु-कारक बताया है। एक ऐसी बुद्धि जिसे विस्तारित नहीं किया जा सकता है। इनके अनुसार बुद्धि अनिश्चित,स्वतंत्र तथा प्राथमिक तत्वों का माध्य है। यह सभी तत्व एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।

🔷 थर्स्टन के अनुसार ➖
इन्होंने बुद्धि का समूह कारक सिद्धांत दिया है।
कई ऐसी चीजें, तत्व एवं क्रियाएं हैं।जिनको एक साथ करके एक समूह में रख सकते हैं। इसी आधार पर समूह कारक सिद्धांत दिया गया।

🔷 गिल्फोर्ड के अनुसार ➖
इस सिद्धांत में बुद्धि मूल रूप से तीन तत्वों से निर्मित है ➖संक्रिया , विषय-वस्तु तथा उत्पादन।
बुद्धि एक तार्किक रचना है जिसको विषय सूची के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
जब भी हमारे पास कोई समस्या या कार्य होता है उस समस्या पर हम चिन्तन करते हैं चिन्तन करने से उस समस्या का उचित और बेहतर उपाय निकाल लेते हैं।
यही समस्त क्रिया त्रि-आयामी बुद्धि सिद्धांत कहलाता है।

🔷 केटल के अनुसार ➖
इन्होंने तरल -ठोस बुद्धि का सिद्धांत दिया है।
इनके अनुसार ठोस बुद्धि के विकास में तरल बुद्धि एक सीमा निर्धारित करती है अर्थात अपनी अनुभूतियों से सीखने की क्षमता के विकास सीमा का निर्धारण आनुवांशिक कारकों से किया जाता है।
इस प्रकार बुद्धि में हमारा वातावरण, अनुभव,हमारा अधिगम से प्राप्त किया जाता है।
इस बुद्धि का सम्बंध तर्कणा क्षमता से होता है।


✍️manisha gupta✍🏻
🌸 बुद्धि(intelligence)

💫बुद्धि शब्द का प्रयोग सामान्यतः प्रतिभा ,ज्ञान ,समझष सोचने समझने की शक्ति ,बौद्धिक योग्यता, मानसिक योग्यता, संज्ञानात्मक योग्यता, इत्यादि के अर्थों में किया जाता है बुद्धि के द्वारा ही हम सही निर्णय ले पाते हैं बुद्धि वह शक्ति है जो यह ऑर्गेनाइज करती है कि किस परिस्थिति में कब और कैसे करना है बुद्धि से ही समस्या का समाधान बेहतर रूप से किया जा सकता है बुद्धि ही प्रत्येक व्यक्ति को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। बुद्धि और भावनाओं का समावेश करना अनिवार्य है। बुद्धि अमूर्त चिंतन की योग्यता, वातावरण से सामंजस्य करने की योग्यता ,सीखने की योग्यता को समझने की योग्यता है।

🌈विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि से संबंधित विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है➖

1️⃣ एक -कारक सिद्धांत➖ एक कारक सिद्धांत का प्रतिपादन विनय ने किया इस सिद्धांत का समर्थन करके इस को आगे बढ़ाने का श्रेय टरमन और स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिक को जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि एक मानसिक शक्ति है जिसके द्वारा हम अलग-अलग कार्य को कर सकते हैं बुद्धि एक ऐसी मानसिक सकती है जिससे हम सभी कार्यों का संचालन करते हैं तथा व्यक्ति के समस्त व्यवहारों को निर्देशित करती है इस सिद्धांत में बताया गया है कि बुद्धि अविभाज्य होती है अर्थात बिने के अनुसार बुद्धि को विभाजित नहीं किया जा सकता है।सामान्य शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि पीने के अनुसार बुद्धि को एक शक्ति या कारक के रूप में माना गया है।

2️⃣ द्वि कारक सिद्धांत➖
इस सिद्धांत के प्रतिपादक स्पियरमन हैं इनके अनुसार बुद्धि में दो कारक होते हैं सामान्य कारक(सामान्य मानसिक योग्यता) और विशिष्ट कारक(विशिष्ट मानसिक योग्यता) ,इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी कार्य को करने के लिए दो प्रकार की मानसिक योग्यता की आवश्यकता होती है उसे ही सामान्य मानसिक योग्यता तथा विशिष्ट मानसिक योग्यता कहते हैं प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य मानसिक योग्यता के साथ-साथ कुछ ना कुछ विशिष्ट योग्यताएं भी होती हैं। एक व्यक्ति जिन क्षेत्रों में कुशल होता है उसमें उतनी ही विशिष्ट योग्यताएं पाई जाती हैं और सामान्य मानसिक योग्यता तो स्वतः ही होती है।

3️⃣ बहु कारक सिद्धांत[multifactor theory]➖। इस सिद्धांत के प्रतिपादक ‘थार्नडाइक’ हैं। इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि कई तत्वों से मिलकर बना होता है।प्रत्येक व्यक्ति में विशिष्ट योग्यताएं निहित रहती हैं जिनके कारण व विभिन्न कार्यों को संपादित करता है।

4️⃣ समूह कारक सिद्धांत(group-factor theory)➖. यह सिद्धांत ‘थर्सटन’ के द्वारा दिया गया है इस सिद्धांत के अनुसार विभिन्न क्रियाओं का एक ही समूह होता है ऐसा कह सकते कि काम अलग अलग हो सकता है लेकिन काम करने का तरीका एक ही है इस सिद्धांत में जो तत्व सभी प्रतिभात्मक योग्यता में तो समान नहीं होते हैं परंतु विभिन्न क्रियाओं में सामान्य होते हैं उन्हें समूह तत्व कहा जाता है इस सिद्धांत के द्वारा सामान्य तत्वों का भी खंडन किया गया है।

5️⃣ त्रिआयामी बुद्धि[3d intelligence]➖
‌‌ इस सिद्धांत के प्रतिपादक गिलफोर्ड हैं इनकी सिद्धांत के अनुसार बुद्धि तीन अलग-अलग दिशाओं पर निर्भर करता है
🌸 सूचना सामग्री या विषय वस्तु
🌸 संक्रिया
🌸 उत्पादन
अर्थात किसी भी सूचना सामग्री विषय वस्तु के बारे में हम अपने मस्तिष्क में चिंतन या मनन करते हैं और चिंतन या मनन करते हुए संक्रिया करते हैं संक्रिया का अर्थ तत्परता और क्रियाशीलता से होता है अर्थात हमेशा कह सकते हैं जब हमारे माइंड में कोई सूचना आती है तो हम उस पर चिंतन करते हैं या उस चिंतन के आधार पर एक धारणा बना लेते हैं उसी धारणा के अनुसार उस बुद्धि को प्रयोग में लाने का प्रयास करते हैं।
Information⛔⛔ operation⛔⛔ object ……

6️⃣ ठोस द्रव बुद्धि का सिद्धांत[fluid -crystalized theory]➖
इस सिद्धांत के प्रतिपादक आर. बी .कैटल है।
द्रव बुद्धि➖ द्रव बुद्धि हमारे अनुवांशिकता या सामान्य प्रकृति से संबंधित है यह स्वतः ही निरंतर चलते रहता है। इस बुद्धि में हमारी सामान्य योग्यताएं होती हैं।

ठोस बुद्धि➖ यह बुद्धि हमारे वातावरण, अनुभव ,अधिगम पर आधारित होता है बुद्धि का संबंध तर्क, क्षमता, प्रत्यक्षीकरण से होता है।
🍁🍁✨✨✨🍁🍁


By ➖ Anamika Rathore ✍️ 🍁🍁 बुद्धि 🍁🍁

♟️सभी बौद्घिक , मानसिक , संज्ञानात्मक और संवेग का अच्छे से ऑर्गेनाइज करना , बुद्धि है।
♟️बुद्धि को तात्कालिक सेंस पर डिसीजन लेने के लिए यूज किया जाता है।
♟️बुद्धि में ज्ञान के साथ समझ भी होती है।
♟️यदि हमारे पास कोई समस्या है तो उसका समाधान निकालने के लिए हम बुद्धि का प्रयोग करते है।
♟️किसी भी विषय में सोचने पर हमारी बुद्धि में एक कड़ी से दूसरी कड़ी जुड़ती चली जाती है और उसे हम समझ पाते हैं।

🍁🍁बुद्धि के सिद्धांत ➖

1️⃣ अल्फ्रेड बिने ==
( एक कारक सिद्धांत )

इसके अनुसार , बुद्धि एक कारक है यानी एक ही पॉवर ( मानसिक शक्ति ) है जो सभी कार्यों का संचालन करती है।
बुद्धि अविभाज्य है।
बुद्धि सभी व्यवहार को निर्देशित करती है।
समर्धन — टर्मन और सायमन ।
आलोचक — स्पीयर मेन।

2️⃣ स्पीयर मेन ➖
( द्वि कारक सिद्धांत )

इन्होंने बुद्धि के दो कारक बताए है–

1: सामान्य मानसिक योग्यता
2: विशिष्ट मानसिक योग्यता

@ प्रत्येक व्यक्ति की कुछ सामान्य क्रियाएं होती है , जिसे वह सामान्य रूप से करता है । जैसे – खाना , पीना , सोना आदि।
परन्तु प्रत्येक व्यक्ति में कुछ अलग अलग विशिष्ट क्रियाएं भी होती है जो उनमें अलग से होती है जैसे – चित्रकला , डांस , ड्रामा , सिंगिंग आदि।

3️⃣ थोर्न डाईक ➖
( बहु बुद्धि सिद्धांत )

इन्होंने बुद्धि को बहु कारकों में विभाजित किया।
ऐसी बुद्धि जिसे व्यक्त ( डिफाइन ) नहीं किया जा सकता है।
हर चीज अपने आप में विशिष्ट है।
जैसे – खाना , रोना , चित्रकला , डांस , सिंगिंग सोचना आदि सभी क्रियाएं सब कुछ विशिष्ट है।

4️⃣ थरस्टन ➖
( समूह कारक )

ऐसी चीजे या क्रियाएं जिनको एक साथ करके एक समूह में रख सकते है , समूह कारक कहते है।
जैसे – यदि कोई व्यक्ति पानी उबाल सकता है तो मैगी भी बना सकता है ।
अगर रोटी बना सकता है तो पराठे भी बना लेगा ।

5️⃣ गिलफॉर्ड ➖
( त्रि आयामी सिद्धांत )

बुद्धि तीन अलग अलग चीजों पर डिपेंड करती है।
1:: सूचना सामग्री या विषय वस्तु
2:: संक्रिया
3:: उत्पादन

जब भी हमारे पास कोई सूचना सामग्री समस्या ( इनपुट ) के रूप में आती है उस पर हम चिंतन करके या संकरिया ( प्रोसेस ) करके उसका समाधान निकाल कर उत्पादन ( आउटपुट ) तक पहुंचते है।

6️⃣ केटल ➖
( ठोस तरल बुद्धि )

जो काम व्यक्ति आसानी से किसी भी परिस्थिति में कर लेता है वह “”तरल बुद्धि”” कहलाती है।
यह बुद्धि हमारी प्रकृति और आनुवांशिकता से संबंधित है।

वह बुद्धि जिसके लिए व्यक्ति को एक्स्ट्रा या विशिष्ट चिंतन की जरूरत होती है , “”ठोस बुद्धि”” कहलाती है ।
यह बुद्धि हमारे पर्यावरण , अनुभव , अधिगम आदि से संबंधित है।
🙏


Date, 12/ 9/ 2020
📙 Nots by shanu sanwle 📙
बुध्दि ➖ ( intelligence )
✍️ बुध्दि क्या है
बुध्दि एक शक्ति है एक योग्यता ,एक मानसिक प्रक्रिया ,सभी पक्षों में सोचने ,समझने ,काम करने , निर्णय लेने की ,नवीन ज्ञान नवीन खोज , नवीन कार्य करने की एक चंचल , चुलबुली एक नाजुक सी परी है जो हमें Power full ,बनाती है हमे नवीन परिस्थिति वातावरण के समायोजन में , अनुकूल बनाती है।
💥 कई मनोवैज्ञानिको बुध्दि के अलग अलग सिध्दांत बताते हैं।
1️⃣ बुध्दि का एक कारक सिध्दांत ➖अल्फ्रेड बीने
बीने का साथ ,टर्मन, स्टर्न दिया है।
बीने ने कहा बुध्दि एक है एक ही शक्ति है जो सारे कार्य को संचालित करती है इसे विभाजित नहीं किया जाता ,यह अविभाज्य है बुध्दि कार्य को संचालन करती, व्यवहार को निर्देशित करती है जैसे एक भगवान है वैसे ही एक बुध्दि है।
2️⃣ बुध्दि का द्विकारक सिध्दांत ➖ स्पीयरमैन
( Two _factor theory )
स्पीयरमैन ने कहा बुध्दि का दो कारक है
सामान्य और विशिष्ट ,हर व्यक्ति के पास अपनी अपनी सामान्य और विशिष्ट कला होती है सामान्य
बुध्दि सब के पास होती है अगर कोई व्यक्ति बार बार महनत करके किसी चीज को प्राप्त कर लेता है तो वह उसके लिये विशिष्ट होती है
सामान्य+ विशिष्ट के मिश्रण से एक समुह बनता है इसे ही स्पीयरमेन का त्रिकारक सिध्दांत कहते हैं
🔸 सामान्य – जो हमें जन्म से ही मिलती है
🔸 विशिष्ट- जो हम वातावरण से अर्जित करते हैं
3️⃣ बुध्दि का बहुकारक सिध्दांत➖थार्नडाइक
( Multi – factor theory )
थार्नडाईक ने कहा बुध्दि एक या दो नही है ,
बुध्दि के बहुत कारक है बुध्दि अनिश्चित है सभी जगह बुध्दि एक विशिष्ट है बुध्दि में कई तत्त्व है बुध्दि रेत कि तरह छोटे छोटे अणु में काम करती है
4️⃣ बुध्दि का समुह कारक सिध्दांत / ग्रुप फैक्टर
( Group factor theory )
थस्टर्न ने दिया है
थस्टर्न ने कहा बुध्दि कई मानसिक क्रियाओ का एक ग्रुप या समुह हैं
5️⃣ बुध्दि का त्रि-आयामी सिध्दांत➖ गिलफोर्ड
Three dimensional theory
बुध्दि तीन दिशा में काम करती है हमारी मानसिक क्रिया तीन अलग अलग विमाओं बाटा है
1) सूचना, विषय वस्तु , सामग्री➖ contents – जो हम सोचते ,चिंतन करते ,सूचना इकट्ठी करते हैं वह सामग्री, विषय वस्तु है

2) संक्रिया ➖ opration, इसकी साहयता से हम चिंतन, मनन,सोच , विचार करते वह संक्रिया है process है
3) उत्पाद ➖ prouducts _ हमे जो सोच ,विचार करके ,विश्लेषण जो परिणाम मिलता है वह उत्पाद है
6️⃣ कैटल का तरल ,ठोस बुध्दि सिध्दांत
तरल बुध्दि ➖ जन्म से वंशानुक्रम द्वारा निधारित होती है यह बुध्दि सभी प्रकार कि समस्याओ को हल करने मदद करती है
ठोस बुध्दि _➖ यह वातावरण से अर्जित यह कार्य करने कि क्षमता प्रदान करती है अनुभव पर आधारित होने के करण समय के साथ व्यक्ति में इस बुध्दि का विकास होता है


By. Shashi choudhary…✒️
🌸बुद्धि🌸
🔺 बुद्धि मानसिक,बौद्धिक और संज्ञानात्मक क्रियाएं ही बुद्धि है।
🔺 बुद्धि हमे समस्या समाधान की एवं उद्देश्यो को प्राप्त करने की योग्यता है।
🔺 सीखने की योग्यता का नाम ही बुद्धि है।
🌸बुद्धि के सिद्धांत🌸
1️⃣ एक कारक सिद्धांत➖(अल्फर्ड बिने)- बुद्धि एक मानसिक शक्ति है जो सभी कार्यो का संचालन करती है।
बुद्धि अविभाज्य है।सभी व्यवहार को निर्देशित करती है।
समर्थक -टर्मन और स्टर्न।

2️⃣बुद्धि का द्धि कारक ➖स्पीयरमैन
इनके अनुसार बुद्धि दो कारक से मिलकर बनी है।
1➖ G- factor ( Genral factor)
2➖S- factor( Specific factor)
👉सामान्य मानसिक योग्यता(G)- ऐसी बुद्धि जो रोजमर्रा के कार्यो का संचालन करती है।
👉 विशिष्ट मानसिक योग्यता➖ सभी के पास कोई ना कोई विशिष्ट बुद्धि होती है।जैसे – नृत्य करना, चित्रकारी आदि।
3️⃣ बुद्धि का बहुकारक सिद्धांत ( थार्नडाइक)➖इसको बालू, आणविक सिद्धांक्त भी कहते है।
4️⃣ बुद्धि का समूहकारक सिद्धांत➖(थर्सटन)- ऐसी कई चीजे तत्व एवं क्रियाएं है जिन्हे एक समूह में रख सकते है। जैसे – कोई रोटी बनाना जानता है तो वह पराठा भी बना लेता है। तो इसे अलग ना करके समूह मे रखते है।
5️⃣ बुद्धि का त्रिआयामी, 3D.सिद्धांन्त (गिलफोर्ड)➖बुद्धि को तीन वर्गो में बांटा।1- सूचना सामग्री या विषय वस्तु
2-संक्रिया
3- उत्पादन
6️⃣ ठोस,तरल बुद्धि ➖ कैटल
” तरल बुद्धि”-जो काम आसनी से हो जाये। यह बुद्धि आनुवांशिकता से संबंधित है।
“ठोस बुद्धि”- इस बुद्धि मे व्यक्ति को विशिष्ट चिंतन की जरूरत होती है।
यह हमारे वातावरण, अनुभव और अधिगम आदि से सम्बन्धित है।
🟣🟢⚫🟡


📝Notes by ➖Puja kumari
🌸 Intelligence (बुद्धि)🌸
➡️ बुद्धि एक basic nature(ज्ञान,प्रतिभा एवं समझ) को कहते है। जिससे समस्या समाधान या किसी उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम होते है। इससे व्यक्ति की योग्यता का पता चलता है।

🔆 बुद्धि के संदर्भ में अलग अलग मनोवैज्ञानिक ने statement दिये है➖

🔅एक कारक बुद्धि का सिद्धांत➖अल्फर्ड बिने(1911), ने बुद्धि को एक -कारक बुद्धि कहा है। इसमे मानसिक शक्ति , सभी कार्यों का संचालन अलग-अलग प्रकार से होता है। बुद्धि अविभाज्य है, इसे विभाजित नही किया जा सकता है। और यह सभी व्यवहार को निर्देशित करती है।

🔅द्वि-कारक बुद्धि का सिद्धांत➖इस सिद्धांत का प्रतिपादन स्पीयरमैन ने किया। इसने बुद्धि को द्वि कारक बुद्धि कहा है➖
1).सामान्य मानसिक योग्यता ( G-factor )
2).विशिष्ट मानसिक योग्यता ( S-factor )
▪️हर व्यक्ति में दो अलग -अलग गुण पाए जाते है। सामान्य योग्यता सभी प्रकार की मानसिक कार्यो में पाए जाते है, लेकिन विशिष्ट योग्यता किसी विशेष कार्यो में पाया जाता है। जैसे- dance, singing, panting etc.ये सब गुण हर व्यक्ति के पास नही होती हैं, किसी special व्यक्ति में ही होती है।

🔅बहु कारक बुद्धि का सिद्धांत (multi factor)➖ इस सिद्धान्त का प्रतिपादन E.L.Thorndike ने किया है। इसने बुद्धि को बहुकारक बुद्धि कहा है। इनके अनुसार बुध्दि कई तत्त्वों का समूह है, यह सामान्य या विशिष्ट बुद्धि में नही बाटा जा सकता है ये कई स्वंत्रत या विशिष्ट योग्यता से ऊपर होती है। इसलिए बुद्धि को बहुकारक बुद्धि कहा गया है।

🔅समूह कारक सिद्धान्त➖इसका प्रतिपादन थर्स्टन के द्वारा किया गया है।थोर्स्टन ने बुध्दि को समूह कारक ( Group factor) कहा है। बुद्धि के कई चीजें या तत्व है, लेकिन कई लोगो मे कुछ न कुछ चीजे समान होती है। जो एक group factor में रखा जा सकता है। जैसे- किसी दो कामो में एक जैसे दिमाग लगाके काम कर सकते है।

🔅त्रि-आयामी बुद्धि का सिद्धांत ( 3D Intelligence )➖ बुद्धि का त्रि-आयामी सिद्धान्त J. P. GILFORD ने दिया है। बुद्धि एक मानसिक प्रक्रिया है। जो 3 अलग-अलग dimension में विभाजित किया गया है :-
|1.सूचना सामग्री
|विषय वस्तु
|
|________2.संक्रिया
/
/
/
3.उत्पादन
किसी भी सूचना सामग्री या विषय वस्तु को सुनते या देखते है, फिर चिंतन करके संक्रिया या कोई क्रिया करते है। और चिंतन के आधार पर ही कोई कार्य करते है। जिसे उत्पादन कहा जाता है।

🔅 द्रव,ठोस का सिद्धांत ( Fluid & Crystallised theory )➖ इस सिद्धांत के प्रतिपादक R.B.Cattel है। इनके अनुसार :-
👉🏻द्रव बुद्धि (Fluid intellgence) ➖द्रव बुद्धि हमारे heridity या हमारे basic nature से आता है। यह हम अपने situaction के अनुसार continue चलते रहता है।
👉🏻ठोस बुद्धि ( Crystallised intelligence )➖ इस बुद्धि में हमारी सामान्य योग्यता है, जो हम किसी से सीखते है या अधिगम करते है। इसमें हमारे वातावरण या अधिगम से या अनुभव से सीखते है। यही हमारी ठोस बुद्धि कहलाती है।
बद्धि में हमारे शारीरिक , वातावरण और अनुवांशिकता की अहम भूमिका होती है।

🌸🌸🌸🌸🌸by- puja🖋️📝
Thankyou🙏🙏🙏🙏🙏


Notes by :- Neha Kumari☺️

🌳Intelligence (बुद्धि)🌳
📚बुद्धि,ये एक ऐसी शक्ति,योग्यता,मानसिक प्रक्रिया,सोचने – समझने,कोई कार्य करने,निर्णय लेने,नवीन ज्ञान का खोज करने, तर्क करने तथा एक ऐसी चतुर,चंचल सी शक्ति है,जो हमारे जीवनकाल में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।तथा अनेक परिस्थितियों में हमें समायोजन की क्षमता विकसित करती है।इसके द्वारा है हमें अपने ज्ञान,प्रतिभा और क्षमता का पता चलता है।

📚बुद्धि के बारे में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न -२ प्रकार का सिद्धांत दिया। जो कि निम्नलिखित है :-

📚 सबसे पहले अल्फ़्रेड बिने ने एक – कारक बुद्धि का सम्प्रत्यय दिया।
▪️इनके समर्थक :- टरमन और स्टर्न।
▪️आलोचक :- स्पीयर मैन।

✍️इनके अनुसार,बुद्धि एक कारक यानी एक ऐसी मानसिक शक्ति है,जो सभी कार्यों का संचालन करती है।
▪️बुद्धि अविभाज्य है।
▪️बुद्धि सभी व्यवहारों को निर्देशित करती है।

📚स्पीयर मैन :- द्विकारक् सिद्धांत

✍️इनके अनुसार :- बुद्धि दो प्रकार की होती है।
1.सामान्य बुद्धि
2.विशिष्ट बुद्धि

▪️प्रत्येक व्यक्ति में कुछ सामान्य क्रियाएं होती हैं। जो कि वह सामान्य रुप से करते हैं।
जैसे कि :- खाना,पीना,सोना,रोना,हंसना इत्यादि।
▪️परंतु,प्रत्येक व्यक्ति में अलग – अलग प्रकार की विशिष्ट प्रक्रियाएं भी होती हैं जो उन्हें एक – दूसरे से पृथक बनाती हैं।
जैसे कि :- नृत्य करना,गाना गाना,नाटक करना,चित्रकला इत्यादि।

📚थोर्नडाईक :- बहू – बुद्धि सिद्धांत
▪️इन्होंने बुद्धि को अनेक कारकों में विभाजित किया।
✍️इनके अनुसार :- बुद्धि एक ऐसी विशेषता है,जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। हर एक चीज अपने – आप में विशिष्ट है।
जैसे कि :- खाना – पीना, रोना – हंसना,चित्रकला,नृत्य,गाना,सोचना, तर्क करना इत्यादि। ये सारी अनेक प्रक्रियाएं हैं जो,हर एक मानव जाति में होती है,तथा प्रत्येक को एक – दूसरे से अलग बनाती है।

📚थर्स्टन :- समूह कारक

✍️इनके अनुसार :- बुद्धि एक समूह है,जिसमें विभिन्न प्रकार की मानसिक, तर्किक,सोचने – समझने,निर्णय लेने तथा अनेक प्रकार की क्षमता निहित है।
▪️जैसे कि :- कोई एक कार्य करते समय नई – २ अवधारणाओं का जागृत होना,जिससे हमारा कार्य और भी सुगम बन जाता है।

📚गिलफोर्ड :- त्रिआयामी सिद्धांत

✍️इनके अनुसार :- हमारी बुद्धि तीन दिशाओं में कार्य करती है :-
1.सूचना

  1. संक्रिया
    3.उत्पाद

1.सूचना :- देखना – सुनना,सोचना,चिंतन करना तथा सूचना इक्कठी करना।

  1. संक्रिय :- जिसकी सहायता से सोच – विचार,चिंतन – मनन आदि करते हैं।

3.उत्पाद :- हमें सोच – विचार,विश्लेषण करके हमें जो परिणाम प्राप्त होता है, वो उत्पाद कहलाता है।

📚 कैटल :- तरल – ठोस बुद्धि का सिद्धांत ।
▪️तरल बुद्धि :- ये बुद्धि हमारे वांशानुक्रम से जुड़ा हुआ होता है। जो कि हर एक व्यक्ति में विराजमान है, तथा हमारे अंदर जन्म से ही होता है।ये बुद्धि सभी प्रकार की समस्याओं को हल करने में हमारी मदद करती हैं।

▪️ठोस बुद्धि :- यह बुद्धि हम वातावरण से अर्जित करते हैं, ये अनुभव पर आधारित होती है।जो हमें अपने वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद करती है।

🙇‍♀️धन्यवाद् 🙇‍♀️


Nots by 💐 sapna sahu 💐
💐 बुद्धि 💐 (intelligence)
बुद्धि कई चीजो पर निर्भर करती है ज्ञान समझ प्रतिभा तर्क अदि
समस्या को सुलझाने में बुद्धि का उपयोग होता है
हम कभी भी किसी भी कार्य को करते है तो बुद्धि लगती है
💐 बुद्धि का एक कारक सिद्धान्त ( singal fector theory ) बुद्धि एक ही है परंतु अलग अलग तरीके से अपनाकर लोग इसका अलग अलग उपयोग करता है इसे मानसिक बुद्धि कहते है

बिने – बिने ने कहा है बुद्धि एक है इसे विभाजित नही किया जा सकता
बुद्धि अविभाज्य है
बुद्धि एक मानशिक शक्ति है
एक बुद्धि है जी सभी कार्यो को करती है
सभी व्यवहार को निर्देशित करती है
💐 टर्मन एंड स्टर्न ने इनको सहयोग किया 💐
2 🎂दुकारक बुद्धि (two fectur theory)
💐स्पीयर मेन : इन्होंने कहा कि बुद्धि एक नही दो है
1 सामान्य बुद्धि
2 विशिष्ट मानशिक योग्यता
सामान्य बुद्धि वह होती है जो हम सामान्य कार्य करते है जैसे खाना काम करना अदि
विशिष्ट बुद्धि वह होती है जो हर व्यक्ति में अलग अलगपै जाती है जैसे किसी में चित्रकारी किसी में कोई अच्छा खाना बनाता है कोई अच्छा गायक है ये बुद्धि सभी में अलग अलग होती है
🎂 बहुकारक सिद्धान्त बुद्धि
💐थार्नडाइक :- बुद्धि विशिष्ट योग्यता है
हर चीज अपने में विशिष्ट हो सकती है
कोई भी कार्य हो किसी भी प्रकार का कार्य अपने में विशिष्ट हो सकता है
💐थर्सटन :- कुछ चीजे होती है जी विशिष्ट होती है ऐसे की तत्व है जिसको हम मिलाकर एक संगठन बना सकते है
💐 गिलफोर्ड :- त्रियामी बुद्धि
1 सुचना
2संक्रिया
3 उत्पाद
1सुचना- सामग्री सभी विषय वस्तु आते है
2संक्रिया- सुचना पाकर हम कुछ संक्रिया करते है
3 उत्पाद- संक्रिया से हमें उत्पाद मिलता है
💐 R.b ketal.
फ्लूड एंड क्रिस्टलाइज्ड
ठोस /द्रव बुद्धि
ठोस – इसके अंदर वातावरण आता है
द्रव – इसके अंदर वंशानुक्रम आता है


🌼 बुध्दि 🌼

हम अपनी समस्या को जिस ज्ञान, समझ, प्रतिभा, क्षमता, तर्क आदि से समाधान करते हैं उसे हम बुध्दि कह सकते हैं।

हमारी सभी मानसिक, संज्ञानात्मक, बौध्दिक क्रियाऐ बुध्दि हैं। 🌼 बुध्दि के सिद्धांत 🌼

एक कारक सिध्दांत – बिने

बिने ने बुध्दि को एक मानसिक शक्ति कहा जिससे हमारे सभी कार्य संचलित होते हैं।
बुध्दि अविभाज्य है।
बुध्दि हमारे व्यवहार को निर्देशित करती है।
टर्मन और स्टर्न ने बिने का समर्थन किया।

द्विकारक सिध्दांत – स्पीयरमैन
स्पीयरमैन ने बुध्दि को दो मानसिक योग्यता मे बांटा

1 सामान्य मानसिक योग्यता (G- Factor)
2 विशिष्ट मानसिक योग्यता ( s-factor )

हमे अपने सामान्य कार्यो के हम अपनी सामान्य मानसिक योग्यता का उपयोग करते हैं और अपने विशेष कार्यो को करने के लिए विशिष्ट मानसिक योग्यता का उपयोग करते हैं।

बहुकारक सिध्दांत – थार्नडाइक

थार्नडाइक के अनुसार अलग अलग कार्य को करने के लिए अलग अलग मानसिक योग्यता का उपयोग करते हैं। सामान्य कोई भी कार्य सामान्य नही है।

समूह कारक सिध्दांत -थस्टर्न
हमे अलग अलग कार्य को करने के लिए अलग बुध्दि का उपयोग करते हैं परंतु उनमे से कुछ कार्य समान बुध्दि द्वारा होते हैं कुछ क्रियाऐ समान होती है इसे थस्टर्न ने जिन कार्यो को करने के समान बुध्दि का उपयोग किया जाता है उन्हें एक मे समूह रखा।

त्रिआयामी बुध्दि का सिद्धांत – गिल्फोर्ड

गिल्फोर्ड के अनुसार तीन अलग अलग चीजो पर निर्भर करती है

  1. सूचना या विषयवस्तु
  2. संक्रिया
  3. उत्पादन

जब हमारे पास कोई सूचना होती है तो उस पर हम अपने चिंतन द्वारा संक्रिया करते हैं और उत्पाद का निर्माण करते हैं।
यह सारी प्रक्रिया त्रि आयामी बुध्दि का सिद्धांत कहलाती हैं ।

ठोस और तरल बुध्दि का सिद्धांत – आर बी कैटल

कैटल ने बुध्दि को ठोस और तरल बुध्दि मे बाटा हैं
तरल( द्रव ) बुध्दि – जो काम हम अपनी मूल प्रवृति, वंशानुक्रम ( आनुवंशिकता) से करते हैं उसमे तरल बुध्दि का प्रयोग करते हैं।

ठोस बुध्दि – जो काम हम अपने वातावरण से सिख कर करते हैं या अर्जित करके करते हैं उसमे हमारी ठोस बुध्दि का उपयोग करते हैं।

रवि कुशवाह


💮बुद्धि💮

मष्तिष्क की वो क्षमता जिसके द्वारा हम किसी के संज्ञान मे तर्क और अपनी समझ अनुसार अपना विचार प्रकट करते है या समाधान देते है!

🌸बुद्धि के क्षेत्र मे कुछ महत्वपूर्ण योगदान सिद्धांतों के रूप मे :-

🌸🌻बुद्धि का एक कारक सिद्धांत :-
👉यह सिद्धांत अल्फ्रेड बिने द्वारा प्रस्तुत किया गया था!

इनका कहना था कि बुद्धि एक मानसिक शक्ति है जो हर परिस्थिति मे समान रहती है इनके अनुसार –
1) बुद्धि एक है जो अविभाज्य है!
2)बुद्धि एक है जो समस्त कार्यों को करती है!
3) बुद्धि एक है जो समस्त प्रकार के व्यवहार को प्रदर्शित करती है!

इनका पक्ष टर्मन और बिने भी लिया!

🌺🌻बुद्धि का द्विकारक सिद्धांत :-
👉यह सिद्धांत स्पियरमेन के द्वारा दिया गया था!

इनके अनुसार बुद्धि को दो कराकों मे समझा जा सकता है –
👉बुद्धि का सामान्य कारक(G-Factor) –
जिसके अंतर्गत सामान्य कार्य जैसे कि जो स्वाभाविक है और अवचेतन मन के द्वारा हमारी आदत मे है इनको करने मे सामान्य बुद्धि का प्रयोग होता है!
👉बुद्धि का विशिष्ट कारक (S-factor)- बुद्धि का ऐसा प्रयोग जिसमे हम असामान्य कार्यों को करने मे सक्षम होते है उसे विशिष्ट कारक कहा जाता है!

🌺🌻 बुद्धि का बहु कारक सिद्धांत –
👉 यह सिद्धांत थोर्नडाइक द्वारा दिया गया था!

इस सिद्धांत के अंतर्गत थोर्नडाइक का कहना है कि हर परिस्थिति मे बुद्धि अलग- अलग होती है! और सब अपने आप मे सामान्य एवं विशिष्ट होती हैं!

🌺🌻 बुद्धि का समूह कारक सिद्धांत –

👉यह सिद्धांत थर्स्टन द्वारा दिया गया था!
इन्होने कहा कि ऐसे काम जिनकी क्रियाएं एक समान हो उनको हम ग्रुप मे ले सकते है!

🌺🌻बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत –

👉यह सिद्धांत गिलफोर्ड द्वारा दिया गया था!

गिलफोर्ड के अनुसार बुद्धि के तीन आयाम होते है जो कि निम्न प्रकार है :-
1)सूचना /सामग्री /विषय वस्तु (इनको हम एक input के रूप मे प्रयोग करते है)

2)संक्रिया (इसमे हम दी हुयी input पर प्रतिक्रिया करते है)

3)उत्पादन (input पर प्रतिक्रिया के फल स्वरूप जो परिणाम मिलता है उसे कहते है)

🌺🌻बुद्धि का ठोस एवं द्रव्य सिद्धांत –

👉यह सिद्धांत रेमन्ड बर्नार्ड कैटेल द्वारा दिया गया था!

1)इसमे इन्होने ठोस बुद्धि को वातावरणीय एवं अनुभव आधारित अधिगम से अर्जित बुद्धि को माना है!

2)और द्रव्य बुद्धि को इन्होने अनुवान्शिकता और वंशानूक्रम से संबंधित किया है!


by Vandana Shukla

💠 intelligence. 💠

💠 बुद्धि। 💠

➖बुद्धि एक सामान्य योग्यता है।

➖यह हमको समस्याओं का समाधान करने और उद्देश्यों को हम प्राप्त करने की क्षमता देती है।
➖ बुद्धि कई चीजों पर निर्भर करती है आपकी समझ ज्ञान का implementation आपका talent आपका expressive nature.

➖ बुद्धि व्यक्ति को विभिन्न बातों को सीखने में सहायता देती है।

🔅 बुद्धि के सिद्धांत

1️⃣ एक कारक सिद्धांत➖ बुद्धि का एक कारक सिद्धांत अल्फ्रेड बिने ने दिया।
बुद्धि एक मानसिक शक्ति है यह सभी कार्यों का संचालन करती है इसको विभाजित नहीं किया जा सकता , अविभाज्य होती है ,सभी व्यवहारों को निर्देशित करती है।
इसका समर्थन टर्मन एवं स्टर्न ने किया।

2️⃣ द्वि कारक सिद्धांत➖ यह सिद्धांत स्पियरमन ने दिया इन्होंने बुद्धि के दो तत्व होते हैं कहा 1-सामान्य तत्व या योग्यता-वे कार्य जो प्रत्येक व्यक्ति सामान्य करता है सामान्य तत्व के अंतर्गत आता है जैसे भोजन नीदं आदि।
2-विशिष्ट तत्व या योग्यता- प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशिष्ट योग्यताएं होती हैं जो उसे अन्य से भिन्न बनातीहैं जैसे नृत्य संगीत चित्रकला आदि।

3️⃣ बहु बुद्धि सिद्धांत-यह सिद्धांत थार्नडाइक ने दिया इन्होंने कहा बुद्धि को सामान्य विशिष्ट में नहीं बांटा जा सकता क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में बहुत सारी योग्यताएं होती हैं जिनके कारण वह व्यक्ति बहुत सारे कार्य कर सकता है।

4️⃣ समूह कारक सिद्धांत -इस सिद्धांत को थर्सटन ने दिया ।इनके अनुसार बुद्धि की संरचना मूल कारकों के समूह से होती है दो तीन मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण करते हैं।

5️⃣ त्रिआयामी बुद्धि-इस सिद्धांत का प्रतिपादन गिलफोर्ड ने किया। इन्होंने बुद्धि को तीन तत्वों में बांटा 1संक्रिया 2 विषय वस्तु 3उत्पादन ।सबसे पहले हमारे पास जब कोई समस्या आती है उस समस्या के निदान के लिए हम उस पर चिंतन करते हैं और चिंतन के बाद उस समस्या का हल निकालते हैं।

6️⃣ ठोस बुर्द्धि और तरल बुद्धि – इस बुद्धि के सिद्धांत को रेमंड बी. कैटल ने दीया ।इन्होंने बुद्धि को दो तत्वों में बांटा ठोस बुद्धि और तरल बुद्धि।
बुद्धि की तरल या फ्लूइड बुद्धि सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाइज्ड या ठोस योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है ।

कैटल के अनुसार तरल बुद्धि वंशानुक्रम से संबंधित होती है तथा जन्मजात होती है जबकि ठोस बुद्धि वातावरण से संबंधित होती है जो अर्जित होती है।

धन्यवाद


Larning Factors- System & Environment

Notes by ➖Rashmi Savle
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक➖

1⃣ शिक्षार्थी से संबंधित कारक अभिवृत्ति
बुद्धि
परिपक्वता
सीखने की इच्छा
शैक्षणिक दृष्टिकोण/ पृष्ठभूमि
शारिरिक मानसिक स्वास्थ्य
अधिगम प्रक्रिया
बाल केन्द्रित शिक्षा
बालक ( शिक्षार्थी)

2⃣ शिक्षक से संबंधित कारक
विषय का ज्ञान
शिक्षण विधि
मनोविज्ञान का ज्ञान
शिक्षक का व्यवहार
व्यक्तित्व
व्यक्तिगत विभेद को समझना
अनुशासन
बाल केन्द्रित शिक्षा

3⃣ पाठ्यवस्तु/ पाठ्यक्रम से संबंधित कारक➖
विषय वस्तु की प्रकृति
विषय वस्तु का आकार
विषय वस्तु रुचिपूर्ण
विषय वस्तु की संरचना
दृश्य या श्रव्य सामग्री का प्रयोग
पाठ्यवस्तु की भाषा शैली
उदाहरण प्रस्तुतीकरण
विषय वस्तु का क्रम

4⃣ ✍ अधिगम व्यवस्था✍

अधिगम के लिए जो व्यवस्था की जाती है अधिगम व्यवस्था कहलाती है
🌺 संपूर्ण बनाम खण्ड विधि➖
किसी कार्य को छोटे छोटे टुकड़ों में बाॅटकर उनका विश्लेषण करना ही संपूर्ण बनाम खण्ड विधि के अन्तर्गत है….

🌺 सक्रिय बनाम निष्क्रिय विधि➖
सक्रिय होने के लिए निष्क्रिय होना आवश्यक है क्योंकि यह हमारे मस्तिष्क में ज्ञान की आवश्यकता लाने के लिए आवश्यक है सक्रिय और निष्क्रिय एक ही सिक्के के दो पहलू है….

🌺 अविषय बनाम संकेन्द्रिय विधि➖
किसी कार्य को करने के लिए उस कार्य तक पहुँचना अर्थात एक मुख्य बिन्दु तक पहुँचने के लिए अलग अलग रास्ते को चुनना जो उस बिन्दु तक पहुँचने में मदद करते हैं और वही रास्ते उस बिन्दु के उपविषय है…..

🌺 आयोजित बनाम प्रासंगिक विधि➖
ये विधि बाल केन्द्रित शिक्षा के लिए आवश्यक है इसमें हम अलग अलग विधियों का प्रयोग करते हैं जो कि प्रासंगिक होते हैं |
हमें किसी कार्य को आयोजित करने के पहले यह जानना आवश्यक है कि उसमें नया क्या है अर्थात हमने क्या सीखा और अधिगम को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारक है……

🌺 संकलित बनाम वितरित विधि➖
यदि कोई चीज संकलित है तो उसको अलग अलग करके व्यक्त करना ही वितरण है…….

🌺 वातावरण से संबंधित कारक➖
हमारी आस पास की चीजें जिनसे अधिगम प्रभावित होता है

(1) वंशानुक्रम ➖
वंशानुक्रम अधिगम के लिए एक बाहरी कारक है जो हमें माता पिता से प्राप्त होता है….

(2) सामाजिक वंशानुक्रम➖
ये भी हमें वातावरण से ही प्राप्त होता है जैसे विद्यालय, आस पड़ोस, मित्र आदि ये सब हमारे सामाजिक वंशानुक्रम का हिस्सा है….

(3) वातावरण का प्रभाव ➖
वातावरण का प्रभाव अधिगम को प्रभावित करने का एक मुख्य कारक है जिससे जिससे हमारी बाहरी मानसिकता प्रभावित होती है……

(4) अनौपचारिक साधन ➖
अर्थात हम बाहरी चीजों से सीखते हैं जैसे माता पिता, भाई बहन, दोस्त, रिश्तेदार आदि…..

(5) व्यक्तित्व का विकास ➖
ये भी हमें बाहरी वातावरण से प्रभावित करता है…….

(6) पारिवारिक वातावरण ➖
पारिवारिक वातावरण भी अधिगम को प्रभावित करता है क्योंकि अधिकांश गुण बच्चे को विद्यालय जाने से पूर्व परिवार से ही प्राप्त होतें है…….

(7) कक्षा का भौतिक वातावरण➖ कक्षा का भौतिक वातावरण भी बच्चे के अधिगम का हिस्सा है जैसा कक्षा का वातावरण होगा अधिगम भी वैसे ही होगा……..

(8) मनोवैज्ञानिक वातावरण➖
ऐसा कारक जो मस्तिष्क को प्रभावित करता है और वह हमारे मन में चलते रहता है जो हमारा मनोवैज्ञानिक वातावरण है…….

(9) सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण➖

(10) संपूर्ण परिस्थिति ➖

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✍🏻Notes By- Vaishali Mishra

🔅अधिगम को कई कारक प्रभावित करते है जिसमे से कुछ निम्न प्रकार है।

🔆अधिगम व्यवस्था से संबंधित कारक (Factor related to learnings System)➖ इसमें कई कारक आते है जिनके द्वारा अधिगम प्रभावित होता है।

▪️1 संपूर्ण बनाम खंड विधि (Whole Vs Block method)➖
किसी भी संपूर्ण विषय के ज्ञान को हम छोटे छोट खंडो में बांटकर समस्त ज्ञान को इकट्ठा कर लेते है।
संपूर्णता- केवल संपूर्णता के साथ अधिगम करने से अधिगम कार्य प्रभावित होता है और अधिगम बेहतर रूप से नहीं हो पाता है।
खंड- जो भी संपूर्ण ज्ञान है उस ज्ञान को यदि खंड में बांटकर या छोटे छोटे रूप में अधिगम किया जाए तो अधिगम कार्य को काफी ज्यादा बेहतर और आसान बनाया जा सकता है।

▪️2 सक्रिय बनाम निष्क्रिय विधि
(Active Vs inactive method)➖
यह दोनों ही अधिगम को बहुत प्रभावित करते है।
जब हम सक्रिय होकर अधिगम करते है अधिगम काफी प्रभावी होता है लेकिन हर समय हम सक्रिय नहीं रह सकते है या हर समय सक्रिय बने रहने पर हम एक न एक समय निष्क्रिय हो ही जाते है।
यदि हमे अधिगम को सक्रिय रूप से करना है तो इसके लिए हमें निष्क्रिय भी होना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि जब हमारा शरीर और दिमाग निष्क्रिय या आराम करता है तभी वे बेहतर रूप से सक्रिय रह पाते हैं।

▪️3 उपविषय बनाम संकेंद्रिय विषय (Subtopic Vs Central low)➖

किसी भी उपविष्य का कितना महत्व है, वह कितना संबंधित है हमारे विषय के केंद्र से यह काफी जरूरी होता है।
उप विषय के द्वारा हम अपने विषय के केंद्र को समझ कर एक बेहतर रूप से अधिगम कर सकते है।

▪️4 आयोजित बनाम प्रसंगिक विधि (Conducted Vs Relevant low)
किसी भी कार्य का आयोजन इस तरह से किया जाना चाहिए जिससे हमे उस कार्य की प्रसंगिक्ता या जरूरत या हमारे लिए उसकी उपयोगिता का पता चल सके।
जब किसी भी कार्य का आयोजन किया जाता है तो उसके आयोजन के फलस्वरूप हमे कितना अधिगम हुआ था हम कितना सीख पाए है ,वहीं अधिगम प्रसांगिक होता हैं।
जब कार्य प्रसांगिक हो जाता है तब वह कुछ समय के बाद निष्क्रिय भी हो जाता है या कुछ देर आराम की अवस्था में आ जाता है। फिर बाद में आयोजित होता है क्योंकि जब किसी व्यक्ति द्वारा कार्य को ठीक प्रकार से आयोजित करना है तो उसके लिए उसका निष्क्रिय या आराम होना भी उतना ही जरूरी है जितना कि ठीक प्रकार से आयोजित होना।

▪️6 वातावरण से सम्बन्धित कारक
( Factor related to environment ) यह भी कई रूपो में अधिगम को प्रभावित करता है। जैसे
*1 वंशानुक्रम
*2 सामाजिक वंशानुक्रम
*3 वातावरण का प्रभाव

  • 4 शिक्षा के अनौपचारिक साधन
    ( विद्यालय के साथ साथ अन्य किसी भी तरह जैसे माता पिता,मित्र,या किसी भी रूप में शिक्षा प्राप्त करना)
  • 5 व्यक्तित्व का विकास
  • 6 परिवार का वातावरण
  • 7 कक्षा का भौतिक वातावरण
  • 8 मनोवैज्ञानिक वातावरण ( वातावरण की कई वस्तुओं या घटनाओं या स्थिति को देखकर हम अपने मन में वैसी ही धारणा या बना लेते है या वैसा ही सोचने लगते है जैसा की हमे दिखाई देता है।)
    *7 सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण
    *8 संपूर्ण परिस्थिति उपरोक्त समस्त कारक किसी न किसी रूप में अधिगम को प्रभावित करते है। इन सभी कारकों के द्वारा हम अधिगम को काफी आसान और बेहतर बनाया जा सकता है।

✍🏻notes by- manisha gupta✍🏻

💫 अधिगम व्यवस्था से संबंधित कारक💫

🌈 संपूर्ण बनाम खंड विधि(whole vs block method)➖ किसी भी संपूर्ण कार्य को उसके छोटे-छोटे खंड में बांटकर उसका गहन अध्ययन करके या विश्लेषण करना ही संपूर्ण बनाम खंड विधि कहलाता हैइस विधि में संपूर्णता से छोटे-छोटे खंड की ओर, या छोटे-छोटे पार्ट्स को लेकर
संपूर्णता की ओर जाकर अधिगम कर सकते हैं।

🌈 सक्रिय बनाम निष्क्रिय विधि(active vs inactive method)➖

सक्रियता और निष्क्रियता एक दूसरे के पूरक होते हैं जब हमारा मस्तिष्क या गति एक्टिव होता है तो सक्रियता और जब हमारी गति कम हो जाती है तो हम निष्क्रिय हो जाते हैं इसलिए ऐसा कह सकते हैं कि सक्रिय होने के लिए निष्क्रिय होना भी बहुत जरूरी है। जैसे हम किसी कार्य को करने के लिए एक्टिव होते हैं और जब वह कार्य पूर्ण हो जाता है तब हम निष्क्रिय हो जाते हैं, इसलिए ऐसा कह सकते हैं कि सक्रियता और निष्क्रियता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

🌈 उप विषय बनाम सकेंद्रीय विधि(subtopics vs central law)➖

उप विषय बालक के स्तरीय आयु के आधार पर ही बना कर सकेंद्रीय विधि में उन्ही उप विषयों का अधिगम करा कर एक मुख्य बिंदु तक पहुंचा जा सकता है।

🌈 आयोजित बनाम प्रासंगिक विधि(conducted vs relevant method)➖

किसी भी कार्य के आयोजन से पहले यह याद कर लिया जाना चाहिए कि वह हमारे लिए कितना जरूरी है या प्रासंगिक है इस विधि में इस विधि में उस कार्य को ही कंडक्ट किया जाता है जो बच्चों के लिए जरूरी हो यह विधि पूर्ण रूप से बाल केंद्रित पर आधारित है।

🌈 संकलित बनाम वितरित विधि(compiled vs distributed method)➖

कोई विषय वस्तु को यदि अलग-अलग भाग में है तो उसे संकलित करना और यदि कोई विषय वस्तु संकलित है तो उसे अलग अलग करके वितरित करना ही संकलित बनाम वितरित विधि कहलाता है।

💫 वातावरण से संबंधित कारक💫

हमारे आसपास का वातावरण भी हमारे अधिगम पर प्रभाव डालता है➖

🌸 वंशानुक्रम(heredity)➖ प्रत्येक बच्चे में योग्यताएं ,क्षमता है उसके वंशानुक्रम की ही देन होती है यह एक बाह्य कारक है जो हमें माता-पिता से प्राप्त होती है जिससे हमारा अधिगम प्रभावित होता है।

🌸 सामाजिक वंशानुक्रम(social heredity)➖
प्रत्येक बच्चे में जो आदर्श या संस्कार होते हैं वह हमें सामाजिक वातावरण से ही प्राप्त होता है जैसे आस-पड़ोस विद्यालय मित्र आदि सामाजिक वंशानुक्रम के अंतर्गत आते हैं।

🌸 वातावरण का प्रभाव( effect of environment)➖
प्रत्येक बालक के लिए वातावरण का उचित होना वंशानुक्रम के विकास के लिए अनिवार्य होता है वातावरण का प्रभाव एक महत्वपूर्ण कारक है जो हमारे अधिगम पर प्रभाव डालता है।

🌸 व्यक्तित्व का विकास(development of personality)➖

बच्चा वंशानुक्रम तथा वातावरण से ज्ञान अर्जित कर के ही मानवीय मूल्यों में रुचि लेने लगता है इन्हीं मूल्यों के कारण हमारा व्यक्तित्व का विकास होता है।

🌸 अनौपचारिक साधन(informal resources)➖

बालक अनौपचारिक साधन जैसे माता-पिता से, टीवी से ,समाचार पत्र से, कुछ न कुछ अवश्य सीखता है अनौपचारिक साधन भी बालकों के अधिगम पर गहन प्रभाव डालता है।

🌸 पारिवारिक वातावरण (familiar environment)➖पारिवारिक वातावरण भी एक ऐसा महत्वपूर्ण कारक है जो बालक के अधिगम को प्रभावित करता है यदि परिवार में कलह होता है तो बालक की मस्तिष्क पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और यदि परिवार में खुशियों का माहौल होता है तो बालक का मस्तिष्क भी अधिगम के लिए रुचिकर हो जाता है।

🌸 कक्षा का भौतिक वातावरण(physical environment of classroom)➖

कक्षा में छात्रों को भौतिक वातावरण जैसे प्रकाश, वायु , शोर आदि की समुचित व्यवस्था नहीं मिलती है तो ऐसी स्थिति में छात्रों का अधिगम में मन नहीं लगता है। इसलिए कक्षा का भौतिक वातावरण भी बालक के अधिगम को प्रभावित करता है।

🌸 मनोवैज्ञानिक वातावरण(psychology environment)➖ यह कारक अत्यंत महत्वपूर्ण होता है जो बालक के अधिगम को प्रभावित करता है बच्चों में एक दूसरे के प्रति सहयोग या सहानुभूति की भावना है या नहीं यह सीखने की प्रक्रिया में प्रभाव डालता है।

🌸 सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण(social and cultural environment)➖

सामाजिक वातावरण वह है जो रीति रिवाज मान्यताएं आदर्श मूल्य एवं स्वयं व्यक्ति की परिस्थिति भी व्यक्ति के अधिगम को प्रभावित करती है और सांस्कृतिक वातावरण वह है जो व्यक्ति द्वारा उन समस्त नियमों ,विश्वासों से, अधिगम करता है।

🌸 संपूर्ण परिस्थिति(whole situation)➖

विद्यालय को इस प्रकार से निर्मित किया जाना चाहिए जो विद्यार्थी को संतुष्टि प्रदान करें और उसे उसकी उपलब्धि पाने में मदद करें।

🌸🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌸


By ➖ Anamika Rathore ✍️

🍁 अधिगम को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत या पर्यावरणीय कारक 🍁

1: शिक्षार्थी
2: शिक्षक
3: पाठ्य वस्तु
4: अधि गम व्यवस्था
5: वातावरण

4️⃣ अधिगम व्यवस्था से संबंधित कारक ➖

1:: संपूर्ण बनाम खण्ड विधि ==

किसी विषय को संपूर्ण रूप से बड़े स्तर के ज्ञान को छोटे छोटे भागो में बांटकर विश्लेषण करना फिर संपूर्ण जानकारी को इक्कट्ठा करना।
यदि खण्ड में विभाजित करके छोटे छोटे टुकड़ों में अधिगम किया जाए तो अधिगम को ज्यादा आसान और बेहतर बनाया जा सकता है।

2::सक्रिय बनाम निष्क्रिय विधि==

यह एक ही सिक्के के दो पहलु है।
जब अधिगम चल रहा होता है तब हम सक्रिय रहते है अधिगम होने के बाद निष्क्रिय हो जाते हैं ताकि फिर से दूसरे अधिगम के लिए सक्रिय हो सके ।
अर्थात् हमे अधिगम को सक्रिय रूप से करना है तो हमे निष्क्रिय भी होना पड़ेगा । हम कह सकते हैं कि हमारा शरीर और दिमाग निष्क्रिय या आराम करता है तभी वह अच्छे से सक्रिय हो पाता है।

3:: उपविषय बनाम सकेंद्रिय विधि==

किसी विषय को उसके उप विषय में विभक्त करके पढ़ना फिर उसके सेंटर प्वॉइंट ( विषय ) पर पहुंचना।
उप विषय के द्वारा हम अपने विषय को समझ कर अच्छे से अधिगम के सकते है।

4:: आयोजित बनाम प्रासंगिक विधि==

किसी भी कार्य का आयोजन ऐसे किया जाए कि उस कार्य की जरूरत ( प्रासंगिक ता ) का पता चल सके।
कार्य ऐसे आयोजित किए जाएं जो प्रासंगिक हो।
अधिगम का आयोजन काफी प्रभावपूर्ण और रूचिपूर्ण तरीके से करवा कर वह अधिगम बच्चो के लिए प्रासंगिक बनाया जा सकता है।

5:: संकलित बनाम वितरित विधि==

हमारे पास संकलित रूप से जो भी ज्ञान है उसे कई तरह से बांटकर अलग अलग रूप में अधिगम में उसका उपयोग करना ।
जैसे — हमारे पास वॉट्सएप पर कोई बड़ा मैसेज आता है तो रीड मोर ( read more )
का ऑप्शन आता है जिसे क्लिक करने पर मैसेज वितरित हो जाता है ।

5️⃣ वातावरण से संबंधित कारक ➖

1: वांशानुक्रम == माता पिता से अधिगम पर प्रभाव पड़ता है।

2: सामाजिक वांशनुक्रम== पड़ोसी और समाज की विचार धारा का अधिगम पर प्रभाव पड़ता है।

3: वातावरण == बच्चा किस वातावरण में रहता है उसका प्रभाव भी अधिगम पर पड़ता है।

4: अनोपचारिक साधन == कोई दूसरा ( बाहरी ) व्यक्ति भी आकर हमारे अधिगम को प्रभावित कर सकते हैं।

5: व्यक्तिव विकास == यह भी अधिगम को प्रभावित कर सकता है।

6: परिवार का वातावरण == बच्चे के पारिवारिक वातावरण का अधिगम पर प्रभाव पड़ता है।

7: कक्षा का भौतिक वातावरण == कक्षा कक्ष का वातावरण बच्चे के लिए अच्छा होना चाहिए जिसमें वह स्वयं को फिजिकली समायोजित हो सके ।

8: मनोवैज्ञानिक वातावरण == जैसा हम देखते है या सोचते है उसके अनुरूप मन में धारणा बना लेते है उसका प्रभाव अधिगम पर पड़ता है।

9: सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण == बच्चा कैसे समाज , संस्कृति , पृष्ठभूमि या माहौल में रहता है उसका प्रभाव अधिगम पर पड़ता है।

10: संपूर्ण परिस्थिति == हमारे जीवन में जितनी भी परिस्थितियां आती है या समस्याएं उसका प्रभाव अधिगम पर पड़ता है।
🙏🙏


By Vandana Shukla

🌸learning system 🌸

🌸अधिगम व्यवस्था से संबंधित कारक🌸

1️⃣ संपूर्ण बनाम खंड विधि whole vs block method इस विधि मैं किसी भी विषय की पहले हम संपूर्ण जानकारी बताएंगे फिर उसके खंड करके उस विषय के बारे में बताएंगे जिससे बच्चों का अधिगम सुगम हो जाएगा।

2️⃣ सक्रिय बनाम निष्क्रिय विधि
active vs passive method
जब बच्चा अधिगम करता है तब वह सक्रिय होता है और जब अधिगम नहीं करता तो निष्क्रिय हो जाता है सक्रिय होने के लिए निष्क्रिय होना आवश्यक है जिससे फिर दोबारा अधिगम करें तो पूरी सक्रियता के साथ अधिगम हो।

3️⃣ अविषय बनाम संकेंद्रित विधि subtopic vs centre method
उपविषय से यानी बड़े विषय को छोटे-छोटे उप विषय में विभक्त करना फिर उस विषय को केंद्रीय विषय में जोड़कर अधिगम कराना।

4️⃣ आयोजित बनाम प्रासंगिक
विधि।-
ऐसे विषयों का चुनाव कर उन्हें आयोजित करना चाहिए जो प्रासंगिक हो बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

5️⃣ संकलित बनाम वितरित विधि compiled vs distributed
कोई विषय अगर संकलित है तो उसे टुकड़ों मैं अलग कर के अधिगम करना।

✳️ वातावरण से संबंधित कारक ✳️

1️⃣ वंशानुक्रम – कुछ गुण हमें माता-पिता से प्राप्त होते हैं जो अधिगम में सहायक होते हैं।

2️⃣सामाजिक वंशानुक्रम – हमारे आसपास और रिश्तेदारों के वंशानुक्रम से हैं जो हमारे अधिगम को प्रभावित करते हैं।

3️⃣वातावरण का प्रभाव -बच्चा किस प्रकार के वातावरण में रहता है यह भी उसके अधिगम को प्रभावित करते हैं जैसे विद्यालय से बच्चा घर जाता है लेकिन अगर उसके घर का माहौल के घर का वातावरण अच्छा नहीं है तो वह घर जाकर अधिगम नहीं हो पाएगा।

4️⃣ शिक्षा का अनौपचारिक साधन -बच्चा परिवार में बहुत सारे लोगों के साथ रहता है और उनसे अनौपचारिक तरीके से बहुत सारी चीजें ग्रहण करता है जो उसके अधिगम को प्रभावित करती हैं।

5️⃣व्यक्तित्व का विकास-जिस प्रकार बच्चे के व्यक्तित्व का विकास होता जाता है उस तरीके से उसका अधिगम भी बढ़ता जाता है अगर बच्चा स्वस्थ है तो उसके अधिगम में बाधा नहीं होगी।

6️⃣ परिवार का वातावरण – परिवार का वातावरण भी अधिगम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है अगर वातावरण खुशहाल है तो बच्चा भी खुश रहता है और अच्छे मन से अधिगम करता है और वहीं अगर परिवार में निर्आशा जनक वातावरण है उसका अधिगम नहीं होगा।

7️⃣कक्षा का भौतिक वातावरण- कक्षा का भौतिक वातावरण भी अधिगम को प्रभावित करता है अगर कक्षा छोटी होगी बच्चे पास पास बैठे होंगे उन्हें बैठने में असुविधा होगी गर्मी लगेगी तो उनका ध्यान इधर उधर भटक जाएगा और वह अधिगम नहीं कर पाएंगे ।

8️⃣मनोवैज्ञानिक वातावरण -कई बार बच्चा मनोवैज्ञानिक रूप से कक्षा में उपस्थित नहीं होता है तो यह भी अधिगम में बाधा उत्पन्न करता है जैसे अगर बच्चा घर से डांट खा कर के आया है तो उसका ध्यान उसी डांट में रहेगा अधिगम कर ही नहीं पाएगा।

9️⃣सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण- कई बार हमारा समाज और हमारी संस्कृति हमें बहुत सारे कार्य करने से रोकता है कई समाज में बालिकाओं को शिक्षा नहीं दी जाती है उन्हें उच्च शिक्षा नहीं दी जाती है यह सोच कर कि आगे चलकर उन्हें घर के काम करना है तो उनको पढ़ाने की क्या जरूरत है।

🔟 संपूर्ण परिस्थिति ।

धन्यवाद


Learning Factors- Teacher and Syllabus

🌈🌈शिक्षक से कारक
✍विषय का ज्ञान– शिक्षक को विषय का ज्ञान होना होना चाहिए क्या शिक्षा के लिए अति आवश्यक है कि वह अधिगम कराते समय अधिक महत्वपूर्ण है
✍शिक्षण विधि- शिक्षक को शिक्षण विधि का उपयोग करना चाहिए इससे बाय छात्रों को किस तरह किस प्रकार का अधिगम कराना है शिक्षण विधि से करा सकते हैं
✍ मनोविज्ञान –
मनोविज्ञान का अर्थ मन का विज्ञान है शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए जिससे वह बच्चों के मन को समझ कर उन्हें उचित प्रकार से अधिगम कराने में सहायता प्राप्त होती है हर शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान होना अति आवश्यक है अधिगम के लिए मनोविज्ञान आवश्यक है
✍शिक्षक का व्यवहार- यह निर्भर करता है की वह कक्षा में किस प्रकार के व्यवहार का उपयोग करें जिससे अधिगम प्रक्रिया बेहतर रूप से बनाया जाए इससे बच्चों को अच्छे प्रकार से सीखने के लिए तैयार हो
✍व्यक्तित्व- शिक्षक का व्यक्तित्व पहनावे पढ़ाने के तरीके अनेक प्रकार की स्थितियों से शिक्षक का व्यक्तित्व का पता लग जा सकता है इसीलिए अधिगम में शिक्षक का व्यक्तित्व अति आवश्यक होता है अधिगम के लिए आवश्यक है
✍व्यक्तिगत विभेद का ज्ञान- कक्षा में अनेक प्रकार की छात्र होते हैं सभी बच्चों का अपना एक व्यक्तित्व होता है शिक्षक को सब को ध्यान में रखते हुए उचित प्रकार का अधिगम प्रक्रिया का उपयोग करना चाहिए जिससे सभी छात्रों के लिए उचित हो
✍ अनुशासन शिक्षा को कक्षा में इस प्रकार का अनुशासन बनाना चाहिए जिससे छात्रों को उचित प्रकार से शिक्षा प्राप्त करने तथा उन्हें किसी प्रकार की समस्या ना हो और कठिनाइयां महसूस ना हो
✍ बाल केंद्रित शिक्षा शिक्षा को बाल केंद्रित शिक्षा के द्वारा छात्रों को सिखाना चाहिए जिससे छात्रों को सीखने के लिए उचित वातावरण तथा सीखने में अनेक प्रकार की मदद मिले और बाल केंद्रित शिक्षा के आधार पर अधिगम कराया जा सकता है
🌈 पाठ्यक्रम/ पाठ्य विषय वस्तु से संबंधित-
✍ विषय वस्तु की प्रकृति विषय वस्तु की प्रगति इस प्रकार होनी चाहिए कि बच्चे को पढ़ते समय वह अच्छी तरह से उपयोग कर सके और अधिगम प्रक्रिया प्रभावित हो
✍ विषय वस्तु का आकार वस्तु का आकार इस प्रकार होना चाहिए जिससे छात्रों को उसे देखकर ऐसा न लगे कि यह सीखने में बाधा उत्पन्न हो आकर छात्रों के अधिगम के अनुसार होना चाहिए ऐसे छात्रों को अधिगम करने में सहज रूप से उपयोग कर सकें
✍ विषय वस्तु रुचिकर विषय वस्तु इस प्रकार होनी चाहिए कि जब छात्र उसका उपयोग करें तो वह उससे प्रभावित होगा अधिगम करने के लिए उत्सुक हो अधिगम करते समय उनकी रूचि अधिक प्रभावित हो इसीलिए विषय वस्तु रुचिकर होनी चाहिए
✍ विषय वस्तु की संरचना विषय वस्तु की संरचना इस प्रकार होनी चाहिए जो अधिगम के लिए प्रभावशाली हो
✍ श्रव्य दृश्य सामग्री अधिगम में पाठ्यवस्तु श्रव्य दृश्य सामग्री का उपयोग भी होना चाहिए जिससे छात्रों को रुचि तथा सीखने में आसानी हो इससे छात्र और बेहतर तरीके से सीख सकते हैं अधिगम में पाठ्य सामग्री के लिए अति आवश्यक है
✍ भाषा शैली पाठ्यवस्तु की भाषा शैली इस प्रकार होनी चाहिए कि बच्चे को अधिगम करते समय सरल सहज तरीके से उसका उपयोग कर सकें यह छात्रों की अनुसार हो ना कि कठिन
✍ उदाहरण प्रस्तुत करना पाठ्यक्रम में उदाहरण इस प्रकार प्रस्तुत करने चाहिए जिससे छात्रों को अधिगम करते समय उसका प्रयोग आसानी से कर सके छात्रों के लिए उचित हो
✍ विषय वस्तु का क्रम पाठ्यक्रम में विषय वस्तु का क्रम इस प्रकार हूं कि बच्चे को अधिगम करते समय कठिनाइयां ना ना हो और वह क्रम रूप से उपयोग कर सकें और अधिगम को सरल बनाया जा सके|
✍✍Menka patel


By ➖ Anamika Rathore ✍️

🍁अधिगम को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत या पर्यावरणीय कारक 🍁
1️⃣ शिक्षार्थी

2️⃣शिक्षक ==
शिक्षक से संबंधित अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक निन्न है–

1: विषय का ज्ञान ➖ शिक्षक को विषय का संपूर्ण ज्ञान होना जरूरी है तभी वह बच्चे को सही ज्ञान दे पाएगा।

2: शिक्षण विधि ➖ शिक्षण विधि का भी अधिगम में योगदान होता है । बच्चे को कैसा पढ़ाया जाय की सभी बच्चो को समझ आए , यह ध्यान शिक्षक को होना चाहिए और उसके अनुसार श्रेष्ठ शिक्षण विधि का प्रयोग करना चाहिए।

3: मनोविज्ञान का ज्ञान ➖ शिक्षक द्वारा बच्चे की मन की बातो को समझना और उसको समझ कर उसके हिसाब से ऐसे समझाए की बच्चो को समझ आए।
बच्चे की सोच , उनके व्यवहार को जानकर बच्चे के उचित अनुचित का ज्ञान होना शिक्षक के लिए जरूरी है। शिक्षक का बच्चे के प्रति नजरिया हर भाव पर बदलता है।
यह जरूरी नहीं है कि कोई दिखने में अच्छा है तो उसका व्यवहार , ज्ञान , समझ आदि भी अच्छा हो।

4: शिक्षक का व्यवहार ➖ शिक्षक के व्यवहार में शिष्टाचार होना चाहिए।
शिक्षक के व्यवहार में अनुशासन प्रकट होना चाहिए।
शिक्षक का परिस्थिति के अनुसार सभी बच्चो से जुड़ना या उनको वरीयता देना चाहिए।
किसी भी बच्चे को लेकर व्यवहार में भेदभाव नहीं होना चाहिए।

5: व्यक्तित्व ➖ व्यक्तितव में शिक्षक वाली पर्सनैलिटी या भाव का होना जरूरी है।
बच्चो के सामने शिक्षक की छवि कैसी हो यह महत्वपर्ण है ।
व्यक्तित्व में सादगी होना चाहिए।
उचित जगह पर उचित वेशभूषा , हावभाव , पर्सनैलिटी , ग्रेटिट्यूड और एक्सप्रेशन का होना शिक्षक के व्यक्तित्व को दर्शाता है।

6: व्यक्तिगत विभेद का ज्ञान ➖ ( विभिन्नता )
बच्चे के उचित अनुचित को देखते हुए हर बच्चे को जानना और उनके अकॉर्डिंग शिक्षा देना । अर्थात् बच्चे के मनोविज्ञान को पढ़कर बच्चे को उचित ज्ञान देना उचित तरीके से जरूरी है ।

7: अनुशासन ➖ शिक्षक के अनुशासन का मतलब कठोर नियम नहीं होता है बल्कि सही शिक्षण डायरेक्शन में हो और अपने कार्य को लेकर वह ईमानदार हो।
अनुशासन , एक दिशा प्रदान करता है।
ग़लत दिशा में जाने से रोकने के लिए अनुशासन जरूरी है।
शिक्षक को परिस्थिति और माहौल देखकर प्रतिक्रिया देना चाहिए।
अनुशासन को “” शिक्षण सुगम वातावरण “” भी कह सकते हैं।

8: बाल केंद्रित शिक्षा ➖ शिक्षक को बाल केंद्रित शिक्षा देना जरूरी है ताकि यह सीधे बच्चे को प्रभावित करे । और बच्चे के लिए चीजों को समझना सरल हो जाए।
शिक्षक को बाल केंद्रित शिक्षा देना जरूरी है तथा बच्चे को उससे इंपैक्ट होना जरूरी है।

3️⃣ पाठ्यवस्तु या पाठ्यक्रम ➖ पाठ्यवस्तु से संबंधित अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है–

1: प्रकृति ➖ विषय वस्तु की प्रकृति का अधिगम में प्रभाव पड़ता है , विषय वस्तु की प्रकृति कैसी है इसका बच्चे पर कैसा प्रभाव पड़ेगा यह जरूरी है। बच्चो के अकॉर्डिंग होना चाहिए।

2: आकर ➖ विषय वस्तु का आकार ज्यादा बड़ा नहीं होना चाहिए जिससे बच्चे उससे इंपैक्ट नहीं हो पाते है। विषय वस्तु का आकार , बच्चे के अनुसार सरल , सुव्यवस्थित और संक्षिप्त होना चाहिए जिसमें जरूरी चीजों का संग्रह हो।

3: रूचिपूर्ण ➖ विषय वस्तु का रूचिपूर्ण होना बहुत ज़रूरी है तभी छात्र इंटरेस्ट के साथ पढ़े। बच्चो को प्रभावित करने वाला कंटेंट होना जरूरी है । जैसे – छोटे बच्चो की पुस्तक में कहानियों का होना ।

4: संरचना ➖ पाठ्यवस्तु का आकर्षित भी होना चाहिए । उसकी संरचना बच्चो को प्रभावित कर की वह उसे पढ़े । बाहरी आवरण का आकर्षित होना भी जरूरी है ।

5: दृश्य श्रव्य सामग्री ➖ पाठ्यक्रम में दृश्य श्रव्य सामग्री का भी उपयोग होना चाहिए । जैसे – बच्चो की पुस्तक में रंग बिरंगे चित्रों का होना , चित्र बच्चो को आकर्षित करते है । जिससे बच्चे में रुचि उत्पन्न हो और आसानी से सीख सके ।

6:भाषा शैली ➖ पाठ्यवस्तु में भाषा शैली का सरल , सुगम और सुव्यवस्थित होना चाहिए ।जिससे बच्चे अधिगम करते समय उसका सहजता से उपयोग कर सके। भाषा शैली बच्चो के अनुसार होना चाहिए।

7: उदाहरण प्रस्तुत करना ➖ पाठ्य पुस्तक में उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए जो वास्तविक जीवन के उदाहरण हो जो बच्चो के आयु वर्ग से संबंधित हो जिससे बच्चे सरलता से रिलेट कर सकते है।

8: विषय वस्तु का क्रम ➖ विषय वस्तु का क्रम इस प्रकार हो की बच्चे को अधिगम में कठिनाई नहीं हो और वह सरलता से समझ सके । अर्थात् विषय वस्तु का क्रम सरल से जटिल की ओर होना चाहिए।
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✍ Notes by➖रश्मि सावले ✍

अधिगम को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत और पर्यावरणीय कारक ➖
1 शिक्षार्थी से संबंधित कारक
2 शिक्षक से संबंधित कारक
3 पाठ्यवस्तु
4 वातावरण
5 अधिगम की व्यवस्था

शिक्षार्थी से संबंधित कारक➖
1 अभिवृत्ति
2 बुद्धि
3 परिपक्वता
4 सीखने की इच्छा
5 शैक्षणिक पृष्ठभूमि/दृष्टिकोण
6 शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
7 अधिगम प्रक्रिया
8 बाल केन्द्रित शिक्षा
9 बालक(शिक्षार्थी)

🌺शिक्षक से संबंधित कारक🌺

1⃣ विषय वस्तु का ज्ञान (knowledge of subject) ➖
एक शिक्षक के पास अपने विषय वस्तु का ज्ञान होना आवश्यक है क्योंकि विषय के ज्ञान के बिना वह कुछ नहीं कर सकता है | विषय ज्ञान उसकि एक हथियार के रूप में कार्य करता है…

2⃣ शिक्षण विधि (teaching methods) ➖ विषय के ज्ञान के साथ साथ शिक्षक के पास उस ज्ञान को पेश करने represent करने कु कला होना भी आवश्यक है क्योंकि ये नहीं होगा तो विषय ज्ञान का कोई अस्तित्व नहीं है विषय को प्रभाव पूर्ण बनाना अति आवश्यक है उस ज्ञान को वास्तविक जीवन से जोड़कर सही विधि से पढा़या जाये तो अधिगम प्रभावी होगा…

3⃣ मनोविज्ञान का ज्ञान (psychology knowledge)
बच्चे के मन को पढ़ना अर्थात बच्चे के मस्तिष्क में क्या चल रहा है उसको पहचाना ही एक सफल शिक्षक की विशेषता है यदि हम बच्चों के मन को नहीं पढ़ पा रहे हैं तो हमारा शिक्षण बेकार है मनोविज्ञान से शिक्षक का attitude व्यक्त होता है…

4⃣ शिक्षक का व्यवहार (behavior of teacher) ➖
यदि शिक्षक का व्यवहार अच्छा नहीं है तो subject knowledge, teaching methods, या , psychology knowledge का कोई अर्थ नहीं क्योंकि बच्चे को शिक्षक का व्यवहार पसंद आना आवश्यक है बच्चे को comfortable feel होना आवश्यक है क्योंकि बच्चे comfortable feel नहीं करेंगे तो अधिगम रूचि पूर्ण नहीं होगा |
परिस्थिति के अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन करना आवश्यक है |….

5⃣ व्यक्तित्व (personality) ➖
शिक्षक के व्यक्तित्व का शिक्षण पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है शिक्षक का हाव भाव, पहनावा, झुकाव, आदि सब पर personality बहुत अधिक निर्भर करती है और अधिगम इससे बहुत अधिक प्रभावित होती है…

6⃣ व्यक्तिगत विभेद को समझना (individual different) ➖
हर बच्चे को जानकर, समझकर शिक्षा देना बहुत महत्वपूर्ण है हर बच्चे के व्यवहार को विभेद कर उनके मनोविज्ञान को समझना अति आवश्यक है इसके बिना अधिगम संभव नहीं है क्योंकि सबकी सोच अलग अलग होती है सभी को खुश नहीं किया जा सकता है….

7⃣ अनुशासन (menarsh)➖अनुशासन एक ऐसी मध्य रेखा है जो टूट जाये तो students और teacher के बीच understanding समाप्त हो जायेगी जिसका सीधा असर अधिगम पर निर्भर करेगा….

8⃣ बाल केन्द्रित शिक्षा ( child centrik education) ➖
बाल केन्द्रित शिक्षा स्वयं में एक महत्वपूर्ण कारक है जो शिक्षण विधि को सुगम बनाता है जिससे उनकी रुचि बढ़ती है और अधिगम बेहतर रुप से होता है इसमें विषय का ज्ञान और शिक्षण विधि निर्भर करती है…

🌺 पाठ्यक्रम/पाठ्यवस्तु/ विषय वस्तु से संबंधित कारक

1⃣ विषय वस्तु की प्रकृति (nature of the book) ➖विषय वस्तु की प्रकृति का अधिगम पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है

2⃣ विषय वस्तु का आकार ➖विषय वस्तु का आकार अधिगम को बहुत अधिक प्रभावित करता है यदि विषय वस्तु का आकार बड़ा है तो अधिगम में नीरसता आती है…

3⃣ विषय वस्तु रुचिकर ➖
विषय वस्तु को वास्तविक जीवन से जोड़कर पढा़या जाना चाहिए, जिससे अधिगम अधिक प्रभावी होगा…..

4⃣ विषय वस्तु की संरचना ➖
विषय वस्तु की संरचना को उसके page ,covers और background आदि सब बेहतर बनाते हैं…

5⃣ दृश्य या श्रव्य सामग्री का प्रयोग ➖
शिक्षण में मानचित्र, रेडियो, टेप रिकॉर्डर, चलचित्र आदि का प्रयोग परिस्थिति के अनुसार करते रहना चाहिए जिससे अधिगम बेहतर रुप से हो सके…..

6⃣ पाठ्यवस्तु की भाषा शैली ➖
भाषा शैली सरल, सुबोध, स्पष्ट, और बोधगम्य होनी चाहिए….

7⃣ उदाहरण प्रस्तुतीकरण ➖
उदाहरण वास्तविक जीवन से संबंधित होने चाहिए जिससे बच्चे उसको अनुभव कर सकें….

8⃣ विषय वस्तु का क्रम ➖
विषय वस्तु का क्रम सामान्य से जटिल की ओर होना आवश्यक है जिससे बच्चे उनको समझ सकें अर्थात आगमन विधि पर आधारित होना चाहिए….

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Date , 9/9/2020 – Nots By shanu sanwle
📒 अधिगम – learning 📒
अधिगम एक प्रक्रिया process है हमेशा चलती रहती है हर समय ,हर पल , हम कुछ ना कुछ सिखते रहते हैं सिखना हमारी क्षमताcapacity पर निर्भर है हम कितना सिख रहे हैं
✍️ Better motivation
Better learning
✍️ हमें अगर अच्छा motivation अभिप्रेरणा मिलती है तो हम बेहतर सिखते है
🔸 क्षमता capacity :-
अगर किसी कि क्षमता बहुत ज्यादा है वह बहुत जल्दी सिख जाता है उसे motivation कम भी मिले फिर भी वह बेहतर कर सकता है लेकिन motivation नहीं तो यह नहीं सिख पाते हैं
🔸किसी की क्षमता बहुत कम है लेकिन‌ motivat बहुत ज्यादा है सिखने में रुचि ,सिखने का प्रयास, मेहनत कर रहा है वह बहुत ज्यादा सिखता है और सफल होते हैं।
💥 अगर capacity है motivation भी है ये जल्दी सफल होते हैं।
💥अगर capacity कम है वह खुद ही डरा रहता है हम motivation हो कर करता करेंगे तो वह नहीं सिख पाते हैं कुछ नहीं कर सकते हैं ।
✍️ अधिगम को प्रभावित करने वाले 5 कारक
1) शिक्षार्थी
2) शिक्षक
3) वातावरण
4) पाठ्यक्रम
5) अधिगम व्यवस्था
1️⃣ शिक्षार्थी , learner :-
छात्र कि सोच , अभिवृत्ति, नजरिया कैसा है वह किस प्रकार सिखता है उसकी मानसिक, शारीरिक क्षमता कैसी है ये सब सिखने को प्रभावित करते हैं
1) बुध्दि
2 )परिपक्वता
3) सिखने की इच्छा
4)शैक्षिक पृष्ठभूमि
5)शारीरिक , मानसिक,स्वास्थ्य
6 ) अधिगम प्रक्रिया
7) बालकेन्द्रित शिक्षा
8 ) बालक
2️⃣ शिक्षक , teacher
💥 बच्चों को सिखने में शिक्षक का बहुत बड़ा रोल है शिक्षक कि शिक्षण प्रक्रिया से बच्चो पर गहरा प्रभाव पड़ता है
1 ) विषय वस्तु का ज्ञान
💥एक शिक्षक होने के नाते आपको को अपने विषय का ज्ञान होना चाहिए ,अगर विषय का ज्ञान नहीं है तो बच्चों को नही सिखा पाओगे , बच्चा आपसे पढ़ना नहि चाहेंगे।
2 ) शिक्षण विधि
,💥 शिक्षक को पढ़ाने का तरीका होना चाहिते ,विषय को कैसे सरल ,रोचक , बनाया जाये, जिसे बच्चा समझ सके।
3 ) मनोवैज्ञानिक ज्ञान
💥बच्चे कैसे सोचता है ,कैसे समझता है, बच्चे के मन में क्या चल रहा है बच्चे की शारीरिक मानसिक दशा कैसी है एक शिक्षक को ये पता पता होना चाहिये बच्चे के मन को पढ़ना शिक्षक को आना चाहिए
4) शिक्षक का व्यवहार
💥 अगर शिक्षक का व्यवहार अच्छा नहि है तो बच्चा कभी नहीं सिख पायेगा, चाहे शिक्षक कितना भी अच्छा क्यो ना पढ़ाता हो , कितना भी ज्ञान हो ,कितनी भी अच्छी विधि से पढाता हो ,शिक्षक के व्यवहार के कारण बच्चा शिक्षक से अंत: क्रिया नहि कर पाता ,ऐसे मे सिखना बाधित होता है
5) व्यक्तित
💥 एक शिक्षक का व्यक्तित्व ,सहज ,सरल होना चाहिए, शिक्षक का पहनावा ,तोर तरीका ,हाव ,भाव , गुरू की तरह होना चाहिए ।
6) व्यक्तिगत विभेद का ज्ञान
💥 बच्चे की अलग अलग सोच ,विचार ,करने की क्षमता होती है शिक्षक की मनोवैज्ञानिक सोच समझ होना चाहिए , बच्चे मे विभेद करना आना चाहिए।
7) अनुशासन
💥 शिक्षक को अनुशासित होना चाहिए कहा, कब, कैसे , बात करना है परिस्थितिय,समय के अनुसार कब क्या करना है शिक्षक को अनुशासन बना कर रखना चाहिए , बच्चा शिक्षक से हि सिखते है ।
8) बाल केन्द्रित शिक्षा
💥 बच्चे को बालकेन्द्रित शिक्षा द्वारा पढ़ाया जाये,बच्चे की रूचि, क्षमता ,को ध्यान‌ रखते हुए ,शिक्षा देना चाहिए।
3️⃣ पाठ्यक्रम
1) विषय वस्तु से संबंधित
💥 पाठ्यक्रम विषय वस्तु की प्रकृति से संबंधित हो ,सरल ,और रुचि कर हो।
2) विषय वस्तु का आकार
💥 विषय वस्तु कितनी बड़ी है ,कितने पैसे हैं उनका आकार कैसा है कितना लिखा है आदि।
3) विषय वस्तु रुचि पूर्ण
💥 विषय वस्तु रुचिकर हो बच्चे आसानी से समझ सके ।
4 ) विषय वस्तु की संरचना
💥 विषय की संरचना कैसी है कवर पेज,कवर फोटो रुचि कर हो
5) दृश्य ,श्रव्य सामग्री
शिक्षण में चलचित्र, रेडियो, मेप, माॅडल आदि
6) भाषा शैली
💥 विषय वस्तु की भाषा सरल ,सहज हो बच्चे आसानी से समझ पाये , बच्चे के परिवेश से संबंधित भाषा हो , जिससे बच्चे पढ़ने म रुचि ले ।
7) उदाहरण प्रस्तुत करना
💥 बच्चे के घर परिवार ,आस पास के वातावरण से संबंधित उदाहरण होना चाहिए।
8) विषय वस्तु का क्रम
💥विषय वस्तु को क्रम से पढ़ये ,कब क्या ,
कैसे पढाये ।
ये सब बातो का ध्यान रखना चाहिए।


✍🏻Notes By➖ Vaishali Mishra

अधिगम को कई सारे कारक प्रभावित करते है जिसमे है शिक्षक से संबंधित और पाठ्यवस्तु से संबंधित कारक निम्न प्रकार है।

◼️ शिक्षार्थी से संबंधित कारक( Factor related to teacher)➖ शिक्षक से संबंधित कई कारक है जिनके द्वारा अधिगम प्रभावित होता है।
🔅1 विषय का ज्ञान(Knowledge of subject)
🔅2 शिक्षण विधि( Teaching method)
🔅3 मनोविज्ञान का ज्ञान (psychology knowledge)
🔅4 शिक्षक का व्यवहार (Behaviour of teacher)
🔅5 व्यक्तित्व (Personality of teacher)
🔅6 व्यक्तिगत विभेद का ज्ञान( knowledge of Individual differences)
🔅7 अनुशासन (Decippline)
🔅8 बाल केंद्रित शिक्षा ( child centered education)

उपरोक्त सभी कारक जो कि शिक्षक के द्वारा अधिगम को बहुत प्रभावित करते है।यदि शिक्षक इन समस्त पदो को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य करे तो अधिगम कार्य को काफी बेहतर बना सकता है।

◼️ पाठ्यवस्तु से संबंधित( factor related to curriculum)
पाठ्यवस्तु से संबंधित कई कारक होते है जिसके द्वारा अधिगम प्रभावित होता है।

🔅1 विषयवस्तु की प्रकृति
🔅2 विषयवस्तु का आकार
🔅3 विषय वस्तु का रुचि पूर्ण होना
🔅4 विषय वस्तु की संरचना
🔅5 दृश्य और श्रव्य सामग्री का उपयोग
🔅6 भाषा शैली का प्रयोग
🔅7 उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण
🔅8 विषयवस्तु का क्रम

उपरोक्त कारकों का उचित रूप से प्रयोग करके अधिगम कार्य को काफी बेहतर ओर उपयोगी बनाया जा सकता है।


✍🏻manisha gupta ✍🏻

🌈शिक्षक से संबंधित कारक

1️⃣ विषय का ज्ञान➖ एक शिक्षक को अपने विषय का संपूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है जिससे बच्चों का अधिगम प्रभावित होता है।

2️⃣ शिक्षण विधि➖ प्रत्येक शिक्षा को शिक्षण विधि का भी ज्ञान होना चाहिए और किस शिक्षण विधि को किस प्रकरण के लिए प्रयोग करना है यह भी ज्ञात होना आवश्यक होता है।

3️⃣ मनोविज्ञान का ज्ञान➖ मनोविज्ञान का ज्ञान शिक्षक से संबंधित महत्वपूर्ण कारक है जिसमें शिक्षक को विद्यार्थियों के मन का ज्ञान होना आवश्यक होता है कि बच्चे की मन में क्या चल रहा है या उसका व्यवहार कैसा है यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

4️⃣ शिक्षक का व्यवहार➖ शिक्षक का अच्छा व्यवहार भी बच्चों के अधिगम को प्रभावित करता हैयदि शिक्षक कक्षा में अच्छे से आचरण करते हैं तो बच्चे भी उनसे शालीनता पूर्ण व्यवहार करते हैं और और पढ़ने में रुचि लेते हैं।

5️⃣ व्यक्तित्व ➖ व्यक्तित्व भी एक ऐसा महत्वपूर्ण कारक है जो शिक्षक से संबंधित होता है और बच्चों के अधिगम पर प्रभाव डालता है।

6️⃣ व्यक्तिगत विभिन्नता का ज्ञान➖ जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चे में विभिन्न प्रकार की विभिन्नता पाई जाती हैं तो शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक बच्चे के इस विभिन्नता को जानकर ही अधिगम कराएं।

7️⃣ अनुशासन➖ अनुशासन एक शिक्षक और छात्र के बीच में होना अत्यंत आवश्यक है जिससे कि शिक्षक और छात्र के मध्य understandingबनी रहती है जो छात्र के अधिगम पर निर्भर करता है।

8️⃣ बाल केंद्रित शिक्षा➖प्रत्येक शिक्षा को बालक के रुचि योग्यता क्षमता के अनुसार ही शिक्षा दी जानी चाहिएयदि शिक्षक के द्वारा दिया गया ज्ञान बालक के अनुसार नहीं होगा तो इस ज्ञान का बालक के अधिगम पर प्रभाव पड़ता है।

🌈 पाठ्यक्रम से संबंधित कारक

1️⃣ विषय वस्तु की प्रकृति➖ बालक की अधिगम पर विषय वस्तु का nature ya prakriti कैसा है यह भी बहुत अधिक प्रभावित करता है।

2️⃣ विषय वस्तु का आकार➖ विषय वस्तु का आकार भी बालक के अधिगम को प्रभावित करता है यदि विषय वस्तु का आकार बड़ा होता है तो बच्चों में नीरसता आ जाती है।

3️⃣ विषय वस्तु रुचि पूर्ण➖ विषय वस्तु का रुचि पूर्ण होना भी अधिगम के लिए अत्यंत आवश्यक है।

4️⃣ विषय वस्तु की संरचना➖ विषय वस्तु की संरचना अर्थात उसके पेज, कवर आदि भी बालक की अधिगम को प्रभावित करती है।

5️⃣ दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग➖ दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग करके अधिगम की प्रक्रिया को बेहतर रूप से पूर्ण किया जाता है जैसे रेडियो, टेप रिकॉर्डर ,चलचित्र ,मानचित्र ,चार्ट आदि।

6️⃣ भाषा शैली➖ विषय वस्तु की भाषा शैली सरल, स्पष्ट एवं सुगम होनी चाहिए।

7️⃣ उदाहरण➖ विषय वस्तु में समाविष्ट किए गए उदाहरण भी वास्तविक जीवन से संबंधित ही होना चाहिए।

8️⃣ विषय वस्तु का क्रम➖ विषय वस्तु का क्रमानुसार होना भी बालक की अधिगम को प्रभावित करता है जैसे बच्चे को सामान्य से जटिल की ओर ,सरल से कठिन की ओर ही अधिगम कराया जाना चाहिए।

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By – Vandana Shukla
💠 Factor related to teachers💠
💠 शिक्षक आधारित कारक💠

🔸1-विषय का ज्ञान-एक शिक्षक को उसके विषय का ज्ञान होना आवश्यक है जिससे अधिगम की प्रक्रिया बाधित ना हो। छात्र कई तरीके के प्रश्न शिक्षक से करते हैं अगर उसे अपने विषय का ज्ञान नहीं होगा तो वह छात्रों को उस विषय के बारे में नहीं बता पाएगा जिससे छात्रों अधिगम बाधित होगा।

🔸2-शिक्षण विधि-शिक्षक को शिक्षण के लिए ऐसी विधि का चुनाव करना चाहिए। जिससे वह बच्चों को आसानी से समझा सके उन्हें बच्चों के आसपास के वातावरण से जोड़ सकें जिससे अधिगम सुगम हो।

🔸3-मनोविज्ञान का ज्ञान-शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए जिससे वह अपने छात्रों के बारे में उनके मन में क्या चल रहा है उन्हें किस चीज की परेशानी है उन्हें समझने में कहा दिक्कत आ रही इन सब के बारे में जान सके बच्चे, अगर शिक्षक को मनोविज्ञान का पता होगा तो वह बच्चों को आसानी से समझ सकेगा और अधिगम अच्छा करा सकेगा।

🔸4-शिक्षक का व्यवहार-शिक्षक का व्यवहार भी अधिगम के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है शिक्षक अगर मिलनसार होता है तो बच्चे उससे अपनी परेशानी बेझिझक बता सकते हैं और अगर शिक्षक कठोर रहता है या रूद्र रूप धारण किए रहता है तो बच्चे उससे डरेंगे और अधिगम आसानी से नहीं हो पाएगा।

🔸5-व्यक्तित्व-शिक्षक बच्चों के लिए एक आदर्श होता है इसलिए शिक्षक को भी आदर्श की तरह ही अपना व्यक्तित्व रखना चाहिए बच्चे उनका पहनावा उनका छोटो से बड़ों से बात करने के तरीके को बहुत एकाग्र होकर देखता है अगर शिक्षक का व्यक्तित्व अच्छा होता है तो बच्चे पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है वह भी अपने शिक्षक जैसा बनना चाहता है और वहीं अगर शिक्षक का नकारात्मक व्यवहार रहता है तो छात्रों पर भी इसका असर पड़ता है जो सीधा अधिगम पर असर करता है।

🔸6- व्यक्तिगत विविध का ज्ञान-हर छात्र का अपना व्यक्तित्व होता है सब एक दूसरे से अलग होते हैं शिक्षक को सभी छात्रों को एक साथ लेकर चलना होता है इसलिए वह सब के व्यक्तित्व के अनुसार से अधिगम को सुगम रूप से करवाएं।
🔸7- अनुशासन -अनुशासन कक्षा का अलंकार है जैसे किसी कक्षा में अगर शिक्षक पढ़ा रहा है और सभी बच्चे बात कर रहे हैं तो शिक्षक अधिगम नहीं कर पाएंगे क्योंकि वह बात कर रहे हैं और यही शिक्षक पढ़ा रहा है और छात्र अपने विषय पर आधारित अपने शिक्षक से या अपने साथी छात्र से बात कर रहे हैं तो यह एक अनुशासित कक्षा होगी जिसमें अगर वह बात भी कर रहे हैं तो अपने विषय आधारित प्रश्न कर रहे विषय पर आधारित बातचीत कर रहे हैं जो अधिगम को बढ़ाएगा।

🔸8-बाल केंद्रित शिक्षा-शिक्षा का केंद्र बिंदु बालक होना चाहिए अर्थात शिक्षक को ऐसी विधि का प्रयोग करना चाहिए जिससे बालक आसानी से अपने आप को जोड़ सके और अधिगम कर सके।

🔅 पाठ्यवस्तु या पाठ्यक्रम से संबंधित कारक🔅
1-विषय वस्तु की प्रकृति-विषय वस्तु की प्रकृति आकर्षक होनी चाहिए जिससे बच्चों की देखकर रुचि बड़े और वह उसे पढ़ना चाहे।
2-विषय वस्तु का आकार-विषय वस्तु का आकार बच्चों के हिसाब से उनके उम्र के हिसाब से होनी चाहिए बहुत बड़ी पुस्तक भी बच्चों में नीरसता उत्पन्न करती है 3-विषय वस्तु का रुचि पूर्ण-पाठ्यवस्तु मैं बच्चों की रुचि का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए वह बच्चों में रुचि पैदा करें 4-विषय वस्तु का संरचना – 5-दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग ,चित्र- विषय के अनुरूप पाठ्यवस्तु में दृश्य श्रव्य एवं चित्रों का भरपूर उपयोग होना चाहिए
6-भाषा शैली -भाषा शैली बच्चों की योग्यता के आधार पर होनी चाहिए जैसे छोटे बच्चों की पाठ्यवस्तु में सरल भाषा का प्रयोग एवं बड़े बच्चों की पाठ्यवस्तु में सामान्य भाषा का प्रयोग
7-उदाहरण प्रस्तुत करना -पाठ्यवस्तु में जहां आवश्यक हो वहां उदाहरण को प्रस्तुत करना चाहिए
8-विषय वस्तु का क्रम-विषय वस्तु का क्रम अधिगम के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है हमें पहले सरल विषय को पढ़ाना चाहिए फिर उससे जुड़े हुए विषयों को पढ़ाना चाहिए इस तरीके से धीरे-धीरे हमें बच्चों को सरल से जटिल की ओर ले कर जाना चाहिए।

धन्यवाद

Methods of Motivation

✍️✍️Manisha Gupta ✍️❤

अभिप्रेरणा की विधियां ❤ प्रेरणा से ही यह निश्चित होता है कि बच्चे कितनी देर तक इसी चीज को सीख रहे हैं या कितनी अच्छी तरह से सीख सकते हैं । बच्चा प्रेरित होकर ही अपने कार्य में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त कर सकता है प्रेरणा प्रदान करने के लिए निम्नलिखित विधियां हैं ➖ 1⃣ कक्षा का उचित वातावरण➖ कक्षा में उचित वातावरण बनाना बच्चों के लिए अति आवश्यक है कक्षा में उचित वातावरण बनाकर ही बच्चों को पढ़ाई के प्रति ध्यान केंद्रित कराया जा सकता है उचित वातावरण बनाकर ही कक्षा में बच्चों में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है कक्षा कक्ष का उचित वातावरण पर मोटिवेशन निर्भर करता है । 2⃣ आवश्यकता का आइना दिखाना ➖ बच्चों की आवश्यकता के अनुसार ही उन्हें मोटिवेट करना चाहिए , बच्चों को इस प्रकार से प्रेरित किया जाना चाहिए कि उनकी आवश्यकता कितनी है या किस आवश्यकता पर कितना प्रेरित किया जाए। 3⃣ सफलता और असफलता➖ बच्चों को उनके कार्य से सफलता और असफलता दोनों ही मिल सकता है यहा बच्चों को सफलता या असफलता दोनों की अभीप्रेरित करते हैं अर्थात बच्चे की सफलता के लिए उन्हें अग्रसर करना चाहिए, अभिप्रेरणा सफलता और असफलता पर निर्भर करता है यह सफलता और असफलता बच्चों को मोटिवेट ओर डिमोटिवेट दोनों प्रकार से कर सकता है यह बच्चे की सोच पर निर्भर करता है कि वह सफलता या असफलता को किस प्रकार से ले रहा है success and failure bhi motivation par effect karts h। 4⃣ प्रतियोगी वातावरण या सहयोग ➖ किसी बच्चे को अभी प्रेरित करने के लिए प्रतियोगी वातावरण एवं सहयोग का वातावरण या माहौल का निर्माण करना चाहिए जिससे बच्चे एक दूसरे के प्रति एक पॉजिटिव competition environment and cooperative environment बना सके। 5⃣ प्रशंसा और निंदा➖ प्रशंसा और निंदा भी यह दोनों ही बच्चे को अभी प्रेरित कर सकते हैं लेकिन उचित समय या उचित स्थान में प्रशंसा करने से बच्चे अभिप्रेरित हो सकते हैं। प्रशंसा और निंदा भी यह बच्चों की सोच पर निर्भर करता है कि वह बच्चा उस प्रशंसा या निंदा से किस प्रकार से मोटिवेट या डिमोटिवेट हो रहा है। अर्थात प्रशंसा और निंदा हमें मोटिवेट भी कर सकते हैं और डिमोटिवेट भी कर सकते हैं। 6⃣ पुरस्कार और दंड➖ सही जगह सही समय सही स्थान पर दिया जाने वाला पुरस्कार ही बच्चों को अभी प्रेरित कर सकता है पुरस्कार भी एक ऐसा कारक है जिसके द्वारा बच्चों को प्रेरित किया जा सकता है, और दंड भी एक ऐसा कारक है जो नेगेटिव है लेकिन बच्चों को दंड से भी मोटिवेट किया जा सकता है बच्चों को ऐसा दंड दिया जाए जिससे वह उस गलती को दोबारा ना करें और उस दंड से से मोटिवेट हो। 7⃣ आकांक्षा या उम्मीद(expectations) : परिस्थिति के अनुसार ही आकांक्षा होने से बच्चा अभिप्रेरित हो सकता है यह आकांक्षा या उम्मीद किसी को कम या ज्यादा हो सकती है इससे हमारा स्तर का पता चलता है कि हम कितना चाहते हैं यह किस स्तर तक हम उसे पाना चाहते हैं आपको इस चीज की priorty kitni h , समय या परिस्थिति के अनुसार की हममे आकांक्षाएं आती है इसके लिए हमें priorty डिसाइड करना पड़ता है कि हमें कब और किसे कितनी priorty देनी है । 8⃣ रुचि:➖ रुचि भी एक महत्वपूर्ण कारक है जिसके द्वारा बच्चों को अभिप्रेरित किया जा सकता है। जरूरत के हिसाब से हमारी रुचि घटती और बढ़ती रहती है हमारा मूल्य आत्मविश्वास ,स्वाभिमान, पर भी रुचि निर्भर करता है कोई चीज हमें कितनी जरूरत है वह हमारे रुचि पर depend करता है वातावरण का भी रुचि पर प्रभाव पड़ता है। छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी रुचि अत्यंत आवश्यक है। 9⃣नयापन ➖ नयापन भी बच्चों को अभी प्रेरित करता है समय-समय पर बच्चों के पढ़ाई के लिए प्रेरित करने की विधियों में अपडेट करते रहना चाहिए नयापन बच्चों में पढ़ने के लिए उत्तेजित करता है और प्रोत्साहित भी करता है। 🔟 प्रगति का ज्ञान➖ प्रगति का ज्ञान भी एक आवश्यक कारक है जो बच्चों को प्रेरित करें, बच्चों की प्रगति का ज्ञान की जानकारी लेकर प्रेरित किया जाना चाहिए। (ये सभी कारक उचित परिस्थिति में उचित समय पर उचित स्थान पर देकर ही बच्चों को पूर्ण रूप से अभिप्रेरित किया जा सकता है।)


💫 By ➖ रश्मि सावले 💫
अभिप्रेरणा (motivation) ➖अभिप्रेरणा से ही हमें कुछ करने का हौसला प्राप्त होता है और हम उसको सही ढंग से संचालित कर पाते हैं ठीक इसी प्रकार हम बच्चों को अभिप्रेरित कर यह निश्चित कर सकते हैं कि उनमें सीखने की क्षमता कितनी है और यह अलग अलग प्रकार से हो सकता है जैसे पुरुस्कार, रुचि, प्रशंसा आदि…

बच्चों को अभिप्रेरित करने की
मुख्य विधियाँ➖

🔹कक्षा का उचित वातावरण देकर ➖
कक्षा में हम एक बेहत्तर वातावरण उत्पन्न करके बच्चों का mind ko set कर सकते हैं जिससे एक बेहतर अभिप्रेरणा विकसित की जा सकती है…

🔹आवश्यकता का आईना दिखाकर ➖
यदि हम बच्चों को उनकी आवश्यकता बताकर अभिप्रेरित किया जा सकता है जिससे बच्चों को अपने लक्ष्य को पाने में आसानी होगी……

🔹सफलता/असफलता➖
सफलता और असफलता के द्वारा भी अभिप्रेरणा मिलती है ये परिस्थिति पर निर्भर करता है कि उस समय कैसे motivat किया जा रहा है….

🔹प्रतियोगी वातावरण/सहयोगी वातावरण ➖
कक्षा का ऐसा वातावरण बनाया जाये कि बच्चे स्वयं को उससे जोड़ सकें और एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना विकसित कर सकें….

🔹प्रशंसा/ निंदा ➖
प्रशंसा और निंदा दोनों ही एक प्रकार से अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं कभी परिस्थिति हमारे अनुसार नहीं होती है फिर भी हम अभिप्रेरित होते हैं और परिस्थिति हमारे अनुसार होती है तब भी हम अभिप्रेरित होते हैं it’s all about way off think हम प्रत्येक परिस्थिति में अभिप्रेरित होते हैं केवल देखने का नजरिया अलग अलग होता है…

🔹पुरुस्कार /दंड ➖
पुरुस्कार और दंड दोनों ही अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं निर्भर करता है कि सही जगह पर सही समय में सही काम के लिए पुरुस्कार और दंड दिया जाए तभी वह सकारात्मक होगा, अन्यथा अभिप्रेरक नकारात्मक हो सकता है….

🔹आकांक्षा/ उम्मीद➖
जिस प्रकार की आकांक्षा होगी उसी प्रकार का motivation भी होगा अभिप्रेरणा आकांक्षा के अनुसार मिलती है इससे हमारे स्तर का पता चलता है….

🔹रुचि ➖
रुचि हमारी जरुरत, स्वाभिमान, self respect, आकांक्षा और मूल्यों के कारण भी आती है और इससे भी हम अभिप्रेरित होते हैं……

🔹नयापन ➖
हर समय हम अलग अलग पहलुओं से भी अभिप्रेरित होते हैं और इससे हमें और नया करने की अभिप्रेरणा मिलती है……

🔹प्रगति का ज्ञान देकर ➖
प्रगति का ज्ञान समय समय पर बच्चों को बताया जाना चाहिए जिससे कि वो अभिप्रेरित हो सकें जिससे और प्रगति करने की अभिप्रेरणा प्राप्त हो….

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🌈 अभिप्रेरणा की विधियां
🌟 कक्षा का उचित वातावरण बस कक्षा का ऐसा वातावरण बनाया जाए जिसमें बच्चे यह सखी रूप से सीखे और प्रेरित है
⭐आवश्यकता का आइना दिखाना बच्चों को इस प्रकार से सिखाया जाए कि वह सीखने के लिए प्रेरित और उन्हें किस चीज की आवश्यकता है
⭐सफलता और असफलता
जब बच्चे सफलता प्राप्त होती है तो बच्चा सीखने के लिए प्रेरित होता है और जब असफलता होती है तो बच्चा उससे भी सीखने के लिए प्रेरित होता है यह बच्चे की सोच पर निर्भर करता है कि वह सफलता को किस प्रकार से ले रहा है या असफलता को
⭐प्रतियोगिता वातावरण या सहयोग हमें बच्चों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जिससे बच्चा प्रतियोगिता और सहयोग से प्रेरित हो
⭐प्रशंसा और निंदा बच्चे की प्रशंसा उचित समय उचित स्थान में प्रशंसा करना बच्चे को प्रेरित करता है और बच्चे की सोच पर निर्भर करता है कि वह प्रशंसा से अंडा से किस प्रकार से प्रेरित होता है जब कभी बच्चन की निंदा की जाती है तो उसे उससे भी कुछ सीखने के लिए प्रेरित होता है
⭐ पुरस्कार और दंड बच्चे को जब हम पुरस्कार देते हैं तो इससे बच्चा प्रेरित होता है और जब कभी बच्चे के लिए दंड भी मोटिफ किया जाता है जा सकता है बच्चों को ऐसा दंड दिया जाए जिससे उनकी गलती को दोबारा ना करें और ढंग से भी अभी प्रेरित हो
⭐आकांक्षा या उम्मीद बच्चे किस स्तर तक उसे पाना चाहते हैं और इस चीज की कितनी समय परिस्थिति के अनुसार हमें आवश्यक जरूरत है हमें कब कितनी जरूरत है
⭐रुचि
बच्चे को प्रेरित किया जा सकता है और जरूरत के हिसाब से हमारी रुचि करती हो बढ़ती रहती है आत्मविश्वास स्वाभिमान पर सूची निर्भर करती है बच्चे बच्चे को इस प्रकार का वातावरण दिया जाए जिससे वह रुचि उत्पन्न हो और सीखने के लिए प्रेरित हो बच्चे को आकर्षित चीजें भी चीजों को देखकर भी रुचि उत्पन्न होती है वह इससे भी अभी प्रेरित होता है ⭐प्रगति
बच्चे को समय-समय पर बताया जाना चाहिए कि वह प्रगति करने की अभिप्रेरणा
✍Menka patel


◆ अभिप्रेरणा ◆

★ अभिप्रेरणा का शब्दिक अर्थ उत्तेजना है ।
★ ” प्रेरणा कार्य को प्रारम्भ करने जारी रखने और नियमित करने की प्रकिया है ” गुड
★ ” प्रेरणा व्यवहार को जागृत करने , क्रिया के विकास को संपोषित करने और क्रिया के तरीके को नियमित करने की प्रक्रिया है ” .. युंग

◆ प्रेरणा के पक्ष :-
● प्रेरणा के तीन पक्ष है ।

  1. आवश्यकता
  2. अन्तर्नोद
  3. उद्दीपन

◆अभिप्रेरणा के कारण :-
● अभिप्रेरणा के दो कारण हैं ।

  1. स्वभाविक
  2. अर्जित

◆ अभिप्ररेणा के सिद्धान्त :-

  1. वातावरणीय सिद्धान्त
  2. शारीरिक क्रिया सिद्धान्त
  3. मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त
  4. अन्तर्नोद सिद्धान्त
  5. मनोविश्लेषण सिद्धान्त
    6.निस्पत्ति प्रेरणा सिद्धान्त
  6. आन्तरिक प्रेरण सिद्धान्त

◆ अभिप्ररेणा के प्रकार :-
★ सकारात्मक
★ नकारात्मक

✍️ 🇧 🇾 – ᴊᵃʸ ᴘʳᵃᵏᵃˢʰ ᴍᵃᵘʳʸᵃ 💐😊


✍️by ➖ Anamika Rathore

➖अभिप्रेरणा की विधियां ➖

1::कक्षा का उचित वातावरण==
शिक्षक को प्रभावशाली प्रेरणा देने के लिए शिक्षण सामग्री से संपन्न , अर्धपुर्णं , निरन्तर परिवर्तन शील कक्षा कक्ष का वातावरण रखना चाहिए।

2:: आवश्यकता का आईना दिखा कर==
बच्चे की मुख्य आवश्यकता उसके सीखने में अच्छा सहयोग करती है।

3:: सफलता या असफलता==
बच्चो को इस प्रकार से प्रेरित किया जाना चाहिए कि बच्चे को उसकी कितनी आवश्यकता है । सीखने के सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं। वहीं पर असफलता भी बच्चे को फिर से सफल होने के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरणा देती हैं।

4:: प्रतियोगी वातावरण या सहयोग==
शिक्षाशास्त्रय के संपूर्ण इतिहास में प्रतियोगिता को प्रेरणा के लिए प्रयोग किया जाता है। एक ही सितुएशन दो अलग अलग लोग एक दूसरे के लिए पॉजिटिव प्रतियोगी वातावरण बना सके।

5:: प्रशंशा या निंदा==
सही समय और स्थान पर प्रयोग किए जाने पर प्रशंशा , प्रेरणा का कार्य करती है। वहीं कभी कभी निंदा भी बच्चे को अभिप्रेरित के देती है। परन्तु प्रशंशा और निंदा हम मोटिवेट भी के सकती है और डिमोटिवेट भी के सकती हैं।

6:: पुरस्कार और दण्ड==
सही समय , सही जगह , सही काम के लिए दिया गया पुरस्कार , प्रेरणा का कार्य करता हैं। वहीं बच्चो को ऐसा दण्ड देना जिससे वह मोटिवेट हो और वहीं गलती वापिस से ना करे।

7:: आकांक्षा और उम्मीद==
आपको किसी चीज की कितनी आवश्यकता है वहीं आपकी आकांक्षा को दर्शाता है , कि उसका स्तर कितना है। किसी चीज की आवश्यकता ही डिसाइड करती है कि आकांक्षा कैसी होगी।

8:: रुचि==
रुचि से बच्चो को अभिप्रेरित किया जा सकता है यह किसी बच्चे में ज्यादा तो किसी बच्चे में कम होती है। अपनी जरूरत और वातावरण पर रुचि निर्भर करती हैं।

9:: नयापन==
बच्चो द्वारा अलग अलग चीजों को अपनाकर उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है।
10:: प्रगति का ज्ञान देकर ==
बच्चो की प्रगति के ज्ञान की जानकारी लेकर उसे प्रेरित किया जा सकता है।

🍁 यह सभी कारक बच्चे को सही समय , परिस्थिति ऑर स्थान पर देकर बच्चे को पूर्ण रूप से प्रेरित कर सकते हैं।


✍🏻Notes By➖ Vaishali Mishra 🔆अभिप्रेरणा 🔆

अभिप्रेरणा कई तरह से लायी जा सकती है या किसी शिक्षक द्वारा किसी भी बच्चे को कई तरीको से प्रेरित किया जा सकता है।➖

▪️1 उचित वातावरण बनाकर ➖ यहां पर उचित वातावरण का मतलब शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य के दौरान ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जिससे बच्चे बेहतर रूप से अभिप्रेरित रहे।कार्य के दौरान उन्हें समय समय पर किसी न किसी माध्यम से प्रेरित करते रहना चाहिए।क्योंकि कक्षा का उचित वातावरण ही अभिप्रेरणा को बनाए रखता है।

▪️2आवश्यकता का आइना दिखाकर ➖ यहां आवश्यकता का आइना मतलब है कि बच्चो को उनकी जरूरतों को अहसास होने पर भी बेतहर रूप से अभिप्रेरित किया जा सकता है।जब हमे किसी चीज की जरूरत या आवश्यकता होती है तो उसे पाने के लिए हम सदा ही अभिप्रेरित बने रहते है।

▪️3 प्रतियोगी वातावरण और सहयोग देना➖शिक्षण कार्य में शिक्षक को एक प्रतियोगी वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिससे कि बच्चो में एक दूसरे को अच्छा करते हुए देखकर वह भी अच्छा करने के लिए अभिप्रेरित होते है।साथ ही बच्चो के लिए सहयोगी वातावरण का निर्माण भी करना चाहिए।

▪️4 सफलता और असफलता के द्वारा ➖हम सफल और असफल दोनों के होने पर अभिप्रेरित होते है और नहीं भी।
जब हम सफल होते है तभी भी हम अभिप्रेरित होते है कि हमे ओर अच्छा करना है या अभिप्रेरित नहीं भी होते है कि एक बार सफल हो गए तो काफी है।
जब हम असफल होते है तब भी अभिप्रेरित होते है कि इस बार नहीं कर पाए तो अगली बार जरूर करके दिखाएंगे । और कभी कभी अभिप्रेरित नहीं भी होते है जैसे कि यदि असफल होते है तो सोचते है कि रहने दो हम से नहीं हो पाएगा अब।

▪️5 प्रशंशा और निंदा➖बच्चो को प्रसंशा और निंदा दोनों जी अभिप्रेरित करती है। जब बच्चे किसी काम को करते है और उस काम में हमारी तारीफ या प्रशंशा होती है तो उस काम के प्रति बच्चे काफी ज्यादा अभी प्रेरित हो जाते है।
जबकि इसके विपरित शब्द निंदा होने पर भी बच्चे अभिप्रेरित होते है जैसे की यदि बच्चो की काम में निंदा की जाती है या उसकी बुराई की जाती है तो वे सोचने लगते है कि अगली बार इस काम को इतने बेहतर तरीके से कोशिश करेंगे कि निंदा जैसा कोई शब्द ही प्रयोग नहीं होगा।

▪️6 पुरुष्कार और दण्ड➖ बच्चे पुरुष्क़ार और दण्ड दोनों के द्वारा भी हम काफी ज्यादा अभिप्रेरित होते है ।

▪️7 आकांक्षाएं (expectations) और उम्मीद (Desire)➖किसी काम को करने के बाद उस काम की सफलता को पाने में हमारी काफी ज्यादा आकांक्षाएं और उम्मीद होती है लेकिन यह दोनों ही हमारी pririoty या उसकी अहमियत पर निर्भर करती है।

▪️8 रुचि➖ हमारा आत्मसम्मान, स्वभविमान ही हमारी रुचि को अभिप्रेरित करता है और रुचि हमारी जरूरत,वातावरण पर निर्भर करती है।
किसी भी काम को देखकर हमारे अंदर जो भावना जाग्रत होती है वहीं रुचि कहलाती है।किसी भी काम में रुचि होने पर उस काम के प्रति हम पूरी तरह से अभिप्रेरित रहते है।

▪️9 नवीन रूप ➖
यदि बच्चे किसी कार्य को बार बार एक ही तरीके से करते रहें तो उस काम के प्रति ज्यादा डर तक प्रेरित नहीं रह पाते है ।इसलिए किसी भी कार्य को करते समय उसमे कई नवीन तरीको का या नवीन चीजों का प्रयोग कर शिक्षक उस कार्य के प्रति बेहतर अभिप्रेरणा को विकसित कर पाते है।

▪️10 प्रगति का ज्ञान देकर ➖शिक्षक द्वारा समय समय पर बच्चो को प्रगति देकर एक बेहतर रूप से अभिप्रेरित किया जा सकता है।

उपर्युक्त तरीको में से किसी भी तरीके के द्वारा हम बच्चे को बेहतर रूप से अभिप्रेरित रख पाते है बस इन सभी के लिए यह तीन बातो का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है सही जगह,सही समय और सही काम के प्रति ही अभिप्रेरणा देनी चाहिए।


🌼अभिप्रेरणा की विधियां 🌼
बच्चों को कई प्रकार से अभिप्रेरित किया जा सकता है।

1) कक्षा का उचित वातावरण बनाकर -कक्षा के वातावरण पर निर्भर भरता करता है कि बच्चे कैसे सिखेगे। यदि कक्षा का वातावरण बच्चों के लिए भय मुक्त, बच्चे अपनी अभिव्यक्ति स्वतंत्र रूप से कर सके। तो बच्चे पढने के लिए अच्छे से प्रेरित होगे। यदि कक्षा का वातावरण अच्छा नही है तो स्वतंत्र होकर अपनी भावनाओं, कार्य को नहीं कर सकते हैं।

आवश्यकता का आइना दिखाकर – बालक को बताना की क्या उसका लक्ष्य हैं, उसे बताना की कैसे लक्ष्य को प्राप्त किया जाए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसे क्या क्या करना चाहिए। उसे आवश्यकता अनुसार प्रेरित करते रहना चाहिए।

सफलता और असफलता – सफलता और असफलता से भी बच्चे प्रेरित होते हैं। यदि हम किसी कार्य को पूरी जी जान से करते हैं और हमे उसमे सफलता मिलती है तो हम प्रेरित होते हैं। कभी कभी हम असफलता से भी प्रेरित होते हैं ।जैसे ही असफल होते हैं तो हम उस कार्य मे सफल होने के फिर ऊर्जावान होकर उस कार्य को करते हैं।

प्रतियोगी वातावरण और सहयोग – हमारा अपने सहपाठीयो से प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या के साथ नही होनी चाहिए बल्कि सहयोगात्मक तरीके से होनी चाहिए जिससे दोनों ही अभिप्रेरित होकर अपने कार्य में सफल हो सके।

प्रशंसा और निंदा – प्रशंसा से भी प्रेरित होते हैं। यदि हमने अपने कार्य को पूरी लग्न और निष्ठा से किया और सफल होते हैं तो लोगो के द्वारा हमारी प्रशंसा होती है जिससे हम फिर से कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। यदि किसी कार्य मे हमारी निंदा होती है तो हम फिर से उस कार्य को अच्छे से करने के लिए प्रेरित होते हैं।

पुरस्कार और दंड – पुरस्कार और दंड सही जगह, सही समय पर और सही काम के लिए देना चाहिए। हमे अच्छा कार्य करने के लिए पुरस्कार दिया जाता है तो हम फिर से कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। किसी कार्य मे हम गलती होने पर दंड मिलता है जिससे हम उस गलती को फिर से नहीं करने के लिए प्रेरित होते हैं।

आकांक्षा, उम्मीद – हमे किसी से आकांक्षा या उम्मीद होती है तो हम उससे प्रेरित होते हैं।

रूचि-जब हमे किसी कार्य मे रुचि होती है तो हम उस कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

नयापन – जब हम किसी नये कार्य को करते हैं तो हम उसे करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

प्रगति का ज्ञान देकर – जब बच्चा किसी काम को करता है तो हम उसे बताना चाहिए की उसने कार्य को ठीक प्रकार से किया या नहीं। इसके बारे मे बताने से वह प्रेरित होते हैं।

Notes by – रवि कुशवाह


By_ Abha
◆अभिप्रेरणा◆
★अभिप्रेरणा एक ऐसी सीढ़ी हैं, जो हमें अपने स्तर से उच्चे बढ़ने में हमारी सहायता प्रदान करती हैं।इसके कारण हम अपनी आवश्यकताओ को पहचान पाते हैं,और उसे आगे बढ़ने के लिए उत्प्रेरित होते हैं।

1)कक्षा का उचित वातावरण:-
कक्षा-कछ में ऐसा महौल होना चाहिए कि बच्चों की मनोवृत्ति को एकाग्रचित्त करें।और उसे अपने भाव को प्रकट करने की स्वतंत्रता मिलती हो,बच्चों में सहयोग की भावना उत्पन्न हो।

2)आवस्यकता की आइना दिखाकर:-
बच्चों की आवश्यकताओ की बारे में चर्चा करना ताकि उसे पता चले कि उसे किस तरफ और किन आवस्यकता की ओर बढ़ना हैं, जो हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद करेगी।

3)सफलता/असफलता:-
इस प्रक्रिया द्वारा बच्चों में भी अभिप्रेरणा उत्पन्न होती हैं, जब किसी कार्य को करने से सफलता मिलेगी हैं तो उन्हें आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान होती हैं।अगर बच्चों को किसी कार्य में असफलता मिलती हैं, तो उसे उस कार्यों को और बेहतर तरीके से करने की उत्सुकता होती हैं।

4)प्रतियोगी वातावरण/सहयोग:-
बच्चों की प्रतियोगी वातावरण से भी इनमें प्रेरणा की भावना आती हैं, जो उन्हें औरों से बेहतर बनाने की कोशिश करती हैं।एक दूसरे की मदद करना और मदद लेना भी इसमें शामिल होता हैं।

5) प्रशंसा/निंदा:-
प्रसंशा से बच्चों को भावना में उतेजना उत्पन्न होती हैं, ठीक उसी प्रकार अगर बच्चों को किसी के द्वारा निंदा किया गया हो या महसूस हुआ हो तब भी बच्चों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती हैं।

6)पुरस्कार/दंड:-
अगर बच्चों को अच्छे कार्य के लिए उन्हें पुरस्कार दी जाती हो,तो उनमें अधिक प्रसन्ता उत्पन्न होती हैं।अगर बच्चों को गलत कार्य करने पर दंड दी जाती हैं, तो उसे अनुभव होता हैं कि हमें ये कार्य नहीं करनी चाहिए और इससे उसको सिख भी मिलती है।

7)उम्मीद/आकांक्षा:-
अभिप्रेरणा द्वारा बच्चों में बहुत सी आकांक्षाये उत्पन्न होती हैं, जिसके कारण वो किसी कार्य को करने के लिए उतेजना उत्पन्न होती हैं।

8)रुचि:-
बच्चों में किसी प्रकार के कार्य करने के लिए उनमें रुचि होना अति आवश्यक है, जो अभिप्रेरणा द्वारा किया जा सकता हैं।
9)नयापन:-
अभिप्रेरणा द्वारा हमेशा कुछ नया करने के बारे में बच्चे को प्रेरित करती हैं।

10)प्रगति का ज्ञान देकर:-
बच्चों को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करके उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सहयोग करती हैं, जो उसे अपने मार्ग पर चलने के लिए उतेजित करती हैं।


Date/ 7/9/2020
Nots_ By shanu sanwle
✏️ अभिप्रेरणा _ प्रेरणा हमें किस प्रकार अभिप्रेरित करती है प्रेरणा से ही हम अपने लक्ष्य को पर्याप्त करने में सफल हो सकते हैं इसके कहीं सारे प्रभावित कारक है।
1️⃣ कक्षा का उचित वातावरण :-
कक्षा में एक ऐसा वातावरण बनाना ,जिसमें बच्चा खुद अभिप्रेरित या मोटिवेट हो ,एक क्रियाशिल वातावरण बच्चों को देना ,जिससे बच्चा खुद सिखता हैं
2️⃣ आवश्यकता का आईना दिखा कर :-
बच्चों अपनी आवश्यकता का आईना दिखाना की आपको पढ़ना क्यो आवश्यक हैं आप क्या करना चाहते , आपकी जरूरत क्या हैं ये सब बातें बता कर बच्चों को अभिप्रेरित कर सकते हैं।
3️⃣ सफलता /असफलता :-
सफलता और असफलता दोनों हि बच्चों को
अभिप्रेरित कर सकती है अभिप्रेरणा साकारात्मक भी और नाकारात्मक भी हो सकती हैं कभी कभी असफलता भी बच्चों को अभिप्रेरित करती है
4️⃣ प्रतियोगिता या वातावरण का सहयोग :-
प्रतियोगिता वातावरण देना बच्चों को सहयोग करता हैं बच्चे पढ़ने में रुचि लेते हैं प्रतियोगिता करवा कर बच्चे मैं ज्ञान प्राप्त करने कि अभिप्रेरणा मिलती है बच्चे बेहतर सिखते ,कुछ करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
5️⃣ प्रशंसा /निंदा : –
प्रशंसा और निंदा दोनों ही बच्चों को मोटिवेशन करती है बच्चा बेहतर कार्य करने लगता ,बच्चे में कार्य करने की क्षमता का विकास होता है। यह बच्चे के उपर है की बच्चा कैसे सोचता है।
6️⃣ पुरस्कार / दण्ड :-
पुरस्कार देना गलत नहीं, पुरस्कार ऐसा हो जो बच्चों को अभिप्रेरणा दे । पुरस्कार सही काम ,सही जगह ,और सही समय पर देना चाहिते , पुरस्कार छोटा बड़ा नहि होता , प्रशंसा करके भी बच्चे को मोटिवेट कर सकते हैं।
दण्ड :- दण्ड भी कहीं प्रकार का हो सकता है एक शब्द भी दण्ड है लेकिन एक समय के बाद दण्ड साकारात्मक भी हो सकता है
7️⃣आकांक्षा :-
किसी काम को करने की जिज्ञासा ,उम्मिद , आकांक्षा होना चाहिए ,हमारी ज़रूर


🖊🖊Notes by Neha Roy🌸

Motivation 🌸🌸🌸🌸
Motivation लेटिन भाषा के
मोटम शब्द से बना है motum means act (गति) ः
Motivation हमे अपने शिक्षक से मिलती है किसी काय् को करने के लिए अभिप्रेरित करते है
1.कक्षा का उचित वातावरण
कक्षा का उचित वातावरण कहने का तातपय् है शिक्षक को कक्षा का ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बच्चा अभिप्रेरित हो
2.आवश्यकता का आयना दिखाकर ःः
आवश्यकता का आयना दिखाकर कहने का तातपय् है बच्चो को शिक्षा का महत्व के बारे में बताना उनहे अभिप्रेरित करना जब हमे किसी चीज के लिए अभिप्रेरित होते हैं तो वो जल्दी सीखते हैं
3.सफलता /असफलता
जब हम किसी काय् को करते हैं तो सफल होते है तो अभिप्रेरित होते है जब हम सफल नही होते हैं तो फिर भी अभिप्रेरित होते हैं जैसे – ctet का परीक्षा दिये तो सफल हुए तो अभिप्रेरित हुए कि और आगे मेहनत करनी है अगर सफल नही हुए तो और जी जान से मेहनत करेगे वो अभिप्रेरित होगा
4.प्रतियोगिता वातावरण /
सहयोग
बच्चों को ऐसा वातावरण में रहना चाहिए जिससे बच्चा प्रतियोगिता वातावरण सहयोग से अभिप्रेरित हो किसी बच्चे के लिए positive or negative दोनों होता है मगर उस स्थिति में भी बच्चा अभिप्रेरित होता है
5.प्रशसा/निदा
किसी काय् में बच्चो प्रशंसा मिलती है तो अभिप्रेरित होते हैं अगर निंदा होती हैं तो तब भी बच्चे अभिप्रेरित होते है करना है करके के दिखाना है
6.पुरस्कार /दंड
बच्चे किसी काय् को करते है तो उन्हें पुरस्कार मिलती है तो वो खुश होते है वो अभिप्रेरित होते है अगर दंड मिलती है तो अभिप्रेरित होते हैं जो काम गलत कि ये है उसे सही तरीके से करते है
7.आकांक्षा (उम्मीद)
बच्चे को जब अभिप्रेरणा मिलती है तो उनकी आकांक्षा बढती है और किसी काय् करने के लिए अभिप्रेरित होते है
8.रुचि
बच्चो मे रुचि बढती है तो अभिप्रेरित होते हैं
9.नयापन
बचचे जब अभिप्रेरित होते है तो कुछ नया करते हैं उसे करने के लिए प्रोतसाहित होते है
10.प्रगति का ज्ञान देकर
जब बच्चा कोई काय् करता है तो हमे उसे सही रास्ता तक पहुंचने में मागदशन करना चाहिए इससे बच्चे अभिप्रेरित होते हैं। 📝📝


Motivation Basics

Motivation and learning:

Internal motivation
Personal motivation
Biological motivation
Primary motivation
By birth motivation
Hunger , rest, anger, happiness , sadness ,fear, cry, sleepy, love, hate, internal emotions , all these are included in above internal motivation.
External motivation
Acquired / earned motivation
Social motivation
Psychological motivation
Secondary motivation
It comes from the outer .
Curiosity, attraction, safety, society, hobbies, all these included in in above external motivation.
Skinner says:- motivation is the best way { national highway} of learning.
Good says:- motivation is to start the work , continue the work with proper schedule
“The word motivation is derived from latin word motum which means to move or motion”.
Motivation can be termed as:

  1. Need = which is necessary to be alive. [if our basic needs doesn’t fulfill then our body doesn’t work properly example medicines , food, sleep etc.]
  2. Drive = the reason/ indication behind the need is drive [if we feel hunger then that hunger is drive]
  3. Appreciation/ incentive= when we complete our desired need then the completion of need is incentive.
  4. Motivator= need+ drive+ appreciation= motivator

Need , drive and appreciation are inter dependent.
Need derives drive, and drive complete/fulfill the appreciation
BY:- CHAHITA ACHARYA


अभिप्रेणा लैटिन भाषा के Motum शब्द से लिया गया है।जिसका अर्थ होता है गति करना।
अभिप्रेणा दो प्रकार के होते हैं।

  1. आंतरिक अभिप्रेणा- जो व्यक्ति के व्यहवार को आंतरिक रूप से अभिप्रेरित करे। जैसे-धूप ,प्यास ,नींद ,प्यार,काम।

2.बाह्य अभिप्रेणा- जो व्यक्ति के व्यहवार को बाह्य रूप से प्रेरित करे।जैसे-रुची, जिज्ञाषा,आत्मसम्मान।

** स्किनर के अनुसार- प्रेरणा सीखने का राजमार्ग है।

**गुड के अनुसार-प्रेरणा किसी काम को आरम्भ करने, जारी रखने, नियमित रखने की प्रक्रिया है।
By kiran kumari


By➖ Anamika Rathore 🥰

✍️ अभिप्रेरणा (motivation)➖

व्यक्ति के सभी प्रकार के एहसास या अनुभूति के माध्यम से अभिप्रेरणा मिलती हैं। अभिप्रेरणा व्यवहार को एक निश्चित दिशा में कार्य करने की शक्ति प्रदान करती है।
मोटीवेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ” मोटम ” शब्द से हुई है जिसका अर्थ – मोशन या गति ।
अभिप्रेरणा को देखा नहीं जा सकता है सिर्फ इस पर आधारित व्यवहार को देखकर इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

✍️अभिप्रेरणा के प्रकार ➖

अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है-
1) आंतरिक प्रेरणा
2) बाह्य प्रेरणा

1:: आंतरिक प्रेरणा==
अन्य नाम — व्यक्तिगत प्रेरणा , जैविक प्रेरणा , प्राथमिक प्रेरणा , जन्मजात प्रेरणा।
व्यक्ति किसी कार्य को अपनी मर्जी से करता है । जब हमें भूख लगती है तो हम अंदर से ( मन से) खाने के लिए प्रेरित होते है, वह आंतरिक प्रेरणा होती है। इसके अन्तर्गत भूख , प्यास , नींद इत्यादि आते हैं।

2:: बाह्य प्रेरणा ==
अन्य नाम– अर्जित प्रेरणा , सामाजिक प्रेरणा , द्वितीयक प्रेरणा , मनोवैज्ञानिक प्रेरणा।

व्यक्ति को किसी दूसरे की इच्छा या प्रभाव के कारण किसी कार्य को करने की प्रेरणा मिलती है उसे बाह्य प्रेरणा कहते है। अतः बाहरी लोगों या समाज से हमारे वातावरण के द्वारा हमारे दिमाग से जो प्रेरणा आती है उसे बाह्य प्रेरणा कहते है। इसके अन्तर्गत स्वयं की रक्षा , जिज्ञासा , सामाजिकता , शौक इत्यादि आते हैं।

✍️स्किनर ➖ “” प्रेरणा , सीखने का एक राजमार्ग है। “”
✍️गुड ➖”” प्रेरणा कार्य को आरंभ करने , जारी रखने , नियमित रखने की प्रक्रिया को कहते है।””

✍️अभिप्रेरणा चक्र या पद ➖
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिको द्वारा अभिप्रेरणा चक्र का प्रतिपादन किया गया , जो निम्न प्रकार से है–
1:: आवश्यकता ➖
हमारी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने की प्रेरणा ही आवश्यकता है। आवश्यकता प्राणी में किसी कमी को दर्शाती है। वह शारीरिक जरूरतों जिससे हम जीवित रह सके । जैसे– भोजन , जल , वायु , नींद और मल मूत्र विसर्जन आदि।

2:: चालक ➖
आवश्यकता , चालक पर निर्भर करती है। अर्थात् वह शारीरिक अवस्था जो किसी आवश्यकता से उत्पन्न हुई हो। चालक , आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्राणी को क्रियाशील करते है। जैसे — भूख लगी है यह बात हम चालक द्वारा पता चलेगी और हम खाना चाहिए यह आवश्यकता ही बताएगा ।

3:: प्रोत्साहन ➖
प्रोत्साहन , चालक को शांत करता है। आवश्यकता , चालक को शांत करना स्टार्ट करती है और प्रोत्साहन , चालक को शांति के अंतिम चरण पर ले जाता है। प्रोत्साहन को उद्दीपन भी कह सकते है।

4:: प्रेरक➖
आवश्यकता , चालक और प्रोत्साहन से मिलकर प्रेरक हुआ है। यह अत्यंत व्यापक शब्द है ।
🙏🙏


☀ By (रश्मि सावले) ☀

🌹अभिप्रेरणा और अधिगम🌹
(Motivation & Learning) :-

हमारे किसी भी प्रकार का संवेग जिससे हम अभिप्रेरित होकर कुछ करना चाहते हैं जिससे हम अभिप्रेरित होते हैं हमारी अभिप्रेरणा है..
अभिप्रेरणा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Motum से हुई है जिसका अर्थ गति करना या act करना है…
अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है आन्तरिक और बाह्य..
आन्तरिक :– ये अभिप्रेरणा जन्मजात होती है ये आंतरिक रूप से आती है इसको हम आंतरिक प्रेरणा, व्यक्तिगत प्रेरणा, जैविक प्रेरणा, प्राथमिक प्रेरणा, या जन्मजात प्रेरणा भी कह सकते हैं ये हमारे शरीर की basic needs है जैसे भूख, प्यास, नींद, यौन करना, आराम करना, काम करना, गुस्सा प्रेम आदि ये सब हमारी प्राथमिक आवश्यकता है जिससे हमारे शरीर का संतुलन बना रहता है..

बाह्य अभिप्रेरणा:–इसको अर्जित प्रेरक कहा जा सकता है अर्थात हम बाहर से प्राप्त करते हैं इसको सामाजिक, मनोवैज्ञानिक या द्वितीयक प्रेरक भी कहा जाता है बाहरी सामाजिक वातावरण या दूसरों के अनुसार प्राप्त करते हैं यह बाह्य अभिप्रेरणा है जैसे सुरक्षा, जिज्ञासा, सामाजिकता, शौक आदि…
स्किनर के अनुसार :– अभिप्रेरणा सीखने का राजमार्ग है..
अर्थात जिससे हमें कुछ नया करने की राह प्रशस्त हो..
गुड के अनुसार:– अभिप्रेरणा किसी कार्य को आरंभ करना, जारी रखना, या नियमित रखने की प्रक्रिया हैं…

अभिप्रेरणा को चार पदों पर परिभाषित किया गया है
(1) आवश्यकता:– जो हमारे शरीर की प्राथमिक आवश्यकता हो और जिसकी पूर्ति नहीं होने पर शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है जैसे भोजन करना, नींद लेना, आराम करना आदि..
(2) चालक (Drive) :–जो हमारे शरीर को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है अर्थात आवश्यकता चालक पर निर्भर है यह आवश्यकता को निर्देशित करता है जैसे भूख ,प्यास आदि क्योंकि भूख लगने पर हम भोजन करते हैं…

(3) प्रोत्साहन (Incentives) :–जब आवश्यकता होती है तो वह चालक के कारण होती है और वह आवश्यकता की पूर्ति प्रोत्साहन करता है जैसे भूख लगने पर भोजन की प्राप्ति हो जाना ही
प्रोत्साहन है यह चालक को शांत कर देता है और भूख से प्रोत्साहन को शांत किया जा सकता हैं..

(4) प्रेरक (Motivater):–यह आवश्यकता, चालक, और प्रोत्साहन तीनों का योग है या मिश्रण है क्योंकि अभिप्रेरणा इन चारों पदो का योग है..

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


By- Rohit Vaishnav (RV) ✍️ अभिप्रेरणा (Motivation)

*अभिप्रेरणा शब्द को अंग्रेजी में मोटिवेशन कहते हैं।मोटिवेशन शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के मोटम शब्द से हुई है। जिसका अर्थ होता है गति करना।

👉अभिप्रेरणा की परिभाषाएं

स्किनर- प्रेरणा सीखने के लिए राजमार्ग है 🛣️

गुड – अभिप्रेरणा कार्य को आरंभ
करने , जारी रखने, नियंत्रित करने की प्रक्रिया है। 👉अभिप्रेरणा के सोपान

1 आवसक्ता- Need
प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकताएं होती हैं जैसे जल, वायु ,भोजन जिनके बिना जीवन संभव नहीं है यह हमारे शरीर की क्रियाशीलता कई प्रमुख अंग हैं।

उदाहरण- जब हमें भूख लगती है तो हमारे शरीर में तनाव उत्पन्न होता है जिसके कारण हम भोजन की खोज करने लगते है।

2 चालक – Drive
जब हमें किसी चीज की आवश्यकता महसूस होती है तो हम उसमें क्रियाशीलता दिखाने लगते हैं।

उदाहरण- जब हमें भूख लगती है तो हम पूजन ढूंढती हैं इसमें भूख लगना चालक है जिसकी वजह से ही हम क्रियाशीलता दिखाते हैं।

3 प्रोत्साहन- Incentive
आवश्यकता की पूर्ति होने पर चालक को शांत करने का कार्य प्रोत्साहन करता है

उदाहरण- जिस प्रकार हमें भूख लेनी थी और भोजन की प्राप्ति होने पर हमारी भूख शांत हो जाते हैं यहां भोजन प्रोत्साहन का कार्य कर रहा है।

4 प्रेरक – Motive
आवश्यकता, चालक, प्रोत्साहन तीनों का योग जी प्रेरक कहलाता है।


Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary
👇👇👇

🔆🔆 अभिप्रेरणा(motivation)🔆🔆
अभिप्रेरणा व्यक्ति में कार्य करने की प्रवृत्ति जाग्रत करना है जिससे एक या अधिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
▪️ अभिप्रेरणा कल्पना को क्रियाशील बनाती है। यह मानसिक शक्ति के गुप्त और अज्ञात स्रोतों को जाग्रत करती है।

🔷 अभिप्रेरणा का अर्थ ➖
अभिप्रेरणा अंग्रेजी शब्द motivation से बना है जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द motum से हुई है जिसका अर्थ है to move अर्थात कोई क्रिया करना।
🔷 अभिप्रेरणा की परिभाषाएं ➖
🔹 स्किनर ➖ अभिप्रेरणा अधिगम का श्रेष्ठतम राजमार्ग है।
🔹गुड ➖ अभिप्रेरणा किसी कार्य को जारी करने या नियमित करने की प्रक्रिया है।
🔹वुडवर्थ ➖ अभिप्रेरणा व्यक्ति की वह दशा है जो किसी निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।
👉 इस प्रकार अभिप्रेरणा सीखने का हृदय, सीखने का राजमार्ग, सीखने का मुख्य कारण और सीखने का प्रमुख साधन है।
🔷 अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है।
1️⃣ सकारात्मक या आन्तरिक अभिप्रेरणा ➖ ऐसी अभिप्रेरणा जो बालक में स्वतः जाग्रत होती है। इसमें बालक लक्ष्य के लिए कार्य नहीं करता अपितु अपने सुख के लिए कार्य करता है।
2️⃣ नकारात्मक या बाहृय अभिप्रेरणा ➖ इस अभिप्रेरणा की आवश्यकता तब होती है जब आन्तरिक अभिप्रेरणा कार्य नहीं करती है । इस प्रकार की अभिप्रेरणा में पुरस्कार,प्रसंन्शा, असफलता का भय, सफलता का ज्ञान,प्रतिद्वन्द्वता इस प्रकार की अभिप्रेरणा में व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करता है। पुरस्कार प्राप्त करने के लिए समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कार्य करता है।

🔷 प्रेरकों के प्रकार➖
1️⃣ आन्तरिक प्रेरक
व्यक्तिगत प्रेरक
जैविक प्रेरक
प्राथमिक प्रेरक
जन्मजात प्रेरक
➡️ भूख, प्यास,भय आदि
2️⃣ बाह्य प्रेरक
अर्जित प्रेरक
सामाजिक प्रेरक
मनौवैज्ञानिक प्रेरक
द्वितीयक प्रेरक
➡️ सुरक्षा, जिज्ञासा, सामाजिकता, शौक आदि।

🔷 अभिप्रेरणा के स्रोत ➖
1️⃣ आवश्यकता (need)➖ प्रत्येक मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। आवश्यकता यानी हमारे शरीर में किसी चीज की कमी होना जैसे ➖ भोजन की कमी, पानी की कमी आदि।
“Need is a some sort of deficiency in the body owing to which one feels tense”
2️⃣ चालक ➖ प्रत्येक आवश्यकता से जुड़ा एक चालक होता है। चालक उत्पन्न होने पर व्यक्ति क्रिया करने हेतु कार्यशील हो जाता है। भोजन की कमी से जुड़ा चालक भूख , पानी की कमी से जुड़ा चालक प्यास।
” Drive is an original source of energy that activities the human origanism”
3️⃣ प्रोत्साहन ➖ जिस चीज से हमारा चालक शान्त होता है उसे प्रोत्साहन या उद्दीपक कहा जाता है। जैसे प्यास लगने पर पानी पी कर प्यास बुझाना।
👉 आवश्यकता, चालक और उद्दीपक में घनिष्ठ संबंध है। आवश्यकताएं चालक को जन्म देती है। चालक एक तनावपूर्ण स्थिति है तथा व्यवहार को एक निश्चित दिशा और रूप प्रदान करती है। उद्दीपक द्वारा आवश्यकता की पूर्ति होती है। पूर्ति हो जाने पर चालक समाप्ति हो जाती है।
आवश्यकता ➡️ चालक ➡️ प्राणी में आन्तरिक तनाव या बाधाएं ➡️ उद्दीपक➡️ लक्ष्य प्राप्ति एवं समायोजन
4️⃣ प्रेरक ➖ आवश्यकता+चालक+प्रोत्साहन
Motive= need + drive + incentive
🌸🌸 Thanks 🌸🌸


वंदना शुक्ला द्वारा
🔅 Motivation and learning🔅
🔅 अभिप्रेरणा और अधिगम🔅

🔸जब हमें किसी भी कार्य को करने का बोध हो उसके पीछे की उत्तेजना को प्रेरणा कह सकते हैं क्योंकि उत्तेजना के अभाव में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया करना संभव नहीं है।

✳️अभिप्रेरणा के प्रकार

प्रेरणा के दो प्रकार होते हैं-

🌸1- आंतरिक प्रेरणा या,व्यक्तिगत प्रेरणा या, जैविक प्रेरणा ,प्राथमिक प्रेरणा, जन्मजात प्रेरणा – यह प्रेरणा दिल से आती है, इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है इसे करने में उसे सुख ,संतोष प्राप्त होता है जैसे -भूख ,प्यास ,नींद ,प्यार ,क्रोध।

🌸2- बाह्य प्रेरणा या,अर्जित प्रेरणा या,सामाजिक प्रेरणा, मनोवैज्ञानिक प्रेरणा, द्वितीयक प्रेरणा- इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी इच्छा से ना करके किसी दूसरे की इच्छा या बाहरी प्रभाव से करता है इस कार्य को करने में उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है ,यह प्रेरणा दिमाग से आती है, यह प्रेरणा हम बाहर से ग्रहण करते हैं, समाज से ग्रहण करते हैं, जैसे सुरक्षा, जिज्ञासा, सामाजिकता, शौक , रुचि।

🔸 स्किनर -प्रेरणा सीखने का राजमार्ग है।

🔸 गुड के अनुसार प्रेरणा कार्य को आरंभ करने जारी रखने एवं नियमित रखने की प्रक्रिया है।

🔸 प्रेरणा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

🔸 प्रेरणा अंग्रेजी शब्द मोटिवेशन के समानार्थी के रूप में है। अंग्रेजी में मोटिवेशन लैटिन भाषा के Motum शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है गति करना, निरंतर चलते रहना, मूव करना, कुछ act करना।

🔸 प्रेरणा के 4 स्रोत हैं-

🌸1-आवश्यकता -आवश्यकता वह चीज है जिसके बगैर हमारा शरीर ठीक से कार्य नहीं करेगा ,शरीर की आवश्यकताएं हैं भोजन , नींद, प्यास जिससे हम जिंदा रह सके ,आवश्यकता के ना पूरा होने पर मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ सकता है, आवश्यकता पूरी नहीं होती तो मनुष्य के शरीर में तनाव उत्पन्न होता है।

🌸2-चालक- हर आवश्यकता से जुड़ा एक चालक होता है जैसे भूख लगी है तो खाने की आवश्यकता है तो भूख चालक है और खाना आवश्यकता है, आवश्यकता चालक पर डिपेंड करता है।

🌸3- प्रोत्साहन भूख लगी है तो आवश्यकता भोजन, पूर्ति खाना आया और खाना खाना प्रोत्साहन।
प्रोत्साहन पूर्ति करता है चालक को शांत करता है और आवश्यकता चालक से जुड़ी है तीनों का आपस में घनिष्ठ संबंध है । चालक है तो आवश्यकता होगी और आवश्यकता है तो प्रोत्साहन की जरूरत होती है।

🌸4-प्रेरक – तीनों को मिलाकर जो बना है वह प्रेरक है। प्रेरक= आवश्यकता+ चालक+ प्रोत्साहन।

धन्यवाद


Det.5/9/2020 – nots by – shanu sanwle
✏️ अभिप्रेरणा और अधिगम
Motivation & learning
✏️ अभिप्रेरणा -motivation
Motivation – लेकिन भाषा के motum शब्द से बना हैं।
✏️ अभिप्रेरणा मतलब कुछ गति करना
✏️ अभिप्रेरणा हमारी एक आंतरिक शक्ति हैं ।
जैसे – भूख ,प्यास , नींद ,गुस्सा ,क्रोध,योन, प्यार, स्नेह ,काम,आराम करना, मल मूत्र त्याग ,ये सब हमारी आंतरिक प्रेरणा हैं।
✏️अभिप्रेरणा के दो प्रकार है।
1️⃣ आंतरिक प्रेरणा
2️⃣ बाह्य प्रेरणा
✏️ आंतरिक प्रेरणा के प्रकार
1️⃣ आंतरिक प्रेरणा
2️⃣ व्यक्तिगत प्रेरणा
3️⃣ जैविक प्रेरणा
4️⃣ प्राथमिक प्रेरणा
5️⃣ जन्मजात प्रेरणा
✏️ बाह्य प्रेरणा के प्रकार
1️⃣ अर्जित प्रेरणा
2️⃣ सामाजिक प्रेरणा
3️⃣ मनोवैज्ञानिक प्रेरणा
4️⃣ द्वितीय प्रेरणा
5️⃣ जिज्ञासा, सुरक्षा,शौक, आदि हमारे बाह्य प्रेरक हैं । जैसे – बच्चे को भूख नहि लगी ,समोसे देख कर बच्चा चिल्लाने लगता हैं भूख लगी ,भूख लगी समोसे दिला दो पापा । ये बाह्य प्रेरक हैं।
✏️ 🔸 स्किनर के अनुसार -प्रेरणा सिखने का राजमार्ग हैं।
✏️🔸 गुड के अनुसार- प्रेरणा ,कार्य को आरम्भ करना , जारी रखना, नियमित करने की प्रेक्रिया हैं।
✏️ अभिप्रेरणा motivation
1 आवश्यकता
2 चालक
3 प्रोत्साहन
4 प्रेरक
1️⃣ आवश्यकता – जो हमारी शारीरिक जरूरत हैं
जैसे- भूख,प्यास, नींद आदि ।
2️⃣ चालक – जो आवश्यकता को चालतीहैं
जैसे- भूख चालक है , खाना ,खाना हमारी आवश्यकता है
3️⃣ प्रोत्साहन – जब हमें आवश्यकता होती तो वह चालक के कारण होती है और उस आवश्यकता की पूर्ती करना प्रोत्साहन हैं
जैसे- चालक ने कहा प्रयास लगी, पानी पिना आवश्यकता है , प्यास शांत हुई प्रोत्साहन हैं।
4️⃣ प्रेरक – आवश्यकता+ चालक+ प्रोत्साहन ,
तीनो का योग हैं ।
Shanu sanwle – mp tet student