Bloom Taxonomy – Psychomotor Domain

✍Menka patel ✍

🌈क्रियात्मक डोमेन /गत्यात्मक डोमेन/ मनोक्रियात्मक डोमेन/मनोचिकित्सात्मक डोमेन/मनोगत्यात्मक डोमेन🌈

☄क्रियात्मक डोमेन- यह डोमेन क्रियाओं क्रिया पर आधारित है जो हम क्रियाएं करते हैं हमारा जो व्यवहार कुशलता है इसमें परिवर्तन हुआ कि नहीं यह देखा जाता है जब हम कार करते हैं हमारे व्यवहार में परिवर्तन दिखता है उसे हम क्रियात्मक डोमेन कहते हैं इसे मनो क्रियात्मक पक्ष के बिना ज्ञान और भाव अधूरा है यह मन के हिसाब से है इसीलिए इसे मनो क्रियात्मक कहते हैं
ज्ञान होता है और भाव होता है लेकिन क्लियर नहीं करता तो इसका कोई मतलब नहीं होता है इसीलिए ज्ञान और भाव के साथ क्रिया का भी होना आवश्यक है|

⭐ क्रिया /कार्य – इसका केंद्र बिंदु है जो व्यवहार कुशलता में परिवर्तन होता है वह किया है|

⭐ अंगो /मांसपेशी- शारीरिक रूप से कार्य करना इसकी गति करने कार्य के लिए प्रशिक्षित करना जितना कार्य करेंगे उतना ही अधिगम का विकास होगा|

🌈 क्रियात्मक डोमेन के 6 स्तर है-

👉 उत्तेजना /आवेग – हमारे अंदर काम करने की उत्तेजना होनी चाहिए तभी हम कुछ कार्य कर पाएंगे|
👉 परिचालन/ कार्य को करना /अभ्यस्तिकरण- उत्तेजना को अपने कार्य में लगाना और कार को मूर्त रूप देना|

👉 नियंत्रण- जब हम किसी इसी काम को उत्तेजना में कर रहे और परिचालन या काम तो कर रहे हैं लेकिन नियंत्रण नहीं है तो कार्य को पूरा नहीं कर सकते
इसीलिए कार्य को करते समय नियंत्रण होना आवश्यक है तभी कार्य को पूरा कर पाएंगे|

👉 समन्वय/ सामन्जस्य- हम जो अलग-अलग प्रकार के प्यार करते हैं तो हम सर को किस प्रकार करना है उसकी क्या रूपरेखा होगी उस किस प्रकार निर्धारित करेंगे यह सब हम सामंजस करते हैं सामंजस गत्यात्मक होता है और अगर हम किसी कार्य को कर रहे हैं और कोई काम और आए जो उससे भी आवश्यक है तो हम उन कारणों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं यह क्रियात्मक डोमेन आवश्यक है|

👉 अनुकूल/ स्वाभाविक – जब हम किसी कार्य को करने लगती हैं और हमारे समन्वय में स्थापित कर लेते हैं तो वह कार हमारे लिए अनुकूलित हो जाता है उसे हम स्वाभाविक रूप से कर लेते हैं|

👉आदत निर्माण/ उत्पत्ति /गठन- जब हम कार्य को हर तरीके से करने लगते हैं तो उस कार्य हमारी आदत बन जाती है और हम उसे अच्छी तरीके से करने लगते है|

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💫Notes by – Neha Kumari 😊

📚 ब्लूम वर्गीकरण(Bloom’s Taxonomy)Part :- 3

🌳क्रियात्मक डोमेन/मनो – क्रियात्मक डोमेन/मनो – गत्यात्मक डोमेन/मनो – शारीरिक डोमेन/मनो – चिकित्सा डोमेन(Psychomotor/ Psychotherapy/ Psychodynamic) :-

🌟क्रियात्मक डोमेन कर अन्तर्गत हम किसी कार्य को करने के लिए अपने अलग -२ प्रकार के भाव और ज्ञान को अनेक प्रकार से दर्शाते हैं।
🌟क्रियात्मक पक्ष के अन्तर्गत ही भावात्मक और ज्ञानात्मक पक्ष को भी माना जाता है।क्योंकि,भाव और ज्ञान के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
🌟भाव और ज्ञान के द्वारा हम अपने ज्ञान से ही तो कोई कार्य,किसी,गति विषय आदि को क्रिया में लाते हैं।
🌟क्रियात्मक पक्ष के द्वारा ही हमारी शारीरिक,मानसिक, गातिक और भी कई सारे पक्ष जुड़े हुए हैं।
🌟इस पक्ष के अन्तर्गत हमारे मन में चिकित्सा भावना भी उत्पन्न होती है।इसलिए इसे मनो – चिकित्सा डोमेन भी कहा जाता है।
🌟इसके द्वारा हमारे मन में अनेक प्रकार की क्रियाएं जैसे,किसी कार्य को करने की क्षमता – कब,क्यों और कैसे करें,हमारे संज्ञानात्मक मानसिक,शारीरिक गति इत्यादि से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए इसे मनो – गत्यात्मक का भी नाम दिया गया है।

🌳क्रियात्मक डोमेन के ६ स्तर बताए गए हैं :-

1️⃣उत्तेजना/आवेग(impulse/excitation/stimulation)
2️⃣परिचालन/कार्य करना/अभ्यस्तिकरण (operations/work/habituation)
3️⃣नियंत्रण (control)
4️⃣समन्वय/सामंजस्य/स्वामित्व(co-ordination)
5️⃣ अनुकूलन/स्वाभाविक (adaptation)
6️⃣ आदत निर्माण/उत्पत्ति/गठन

1️⃣उत्तेजना/आवेग :- उत्तेजना,कार्य करने की क्षमता,हमारे अंदर जितनी क्षमता होगी उसके अनुसार ही कार्य कर पाएंगे।कई बार उत्तेजना में हम कुछ गलत भी के जाते हैं।

2️⃣परिचालन/कार्य को करना/अभ्यस्तिकरण :- परिचालन के द्वारा हम अपनी उत्तेजना को मूर्त रूप में प्रकट करते तथा अपने कार्य में लगाते हैं।

3️⃣नियंत्रण :- जब हमारे अंदर उत्तेजना होती है तो,हम कोई कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं और उसका परिचालन करते हैं।
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि उस कार्य पर हमारा नियंत्रण नहीं होने के कारण कार्य अधूरा भी रह जाता है।

4️⃣समन्वय/सामंजस्य :- जब हम किसी कार्य को करने के लिए अलग -२ प्रकार की नियम – कानून या पद्धति का निर्माण करते हैं कि,कब,क्या,कैसे और क्यों करना है।ये सब निर्धारित करते,सामंजस्य करते हैं, ये सब गत्यात्मक होता है।और हम जब कोई कार्य करते हैं तो उसमें, इन सब में अपने – आप को ढाल लेते हैं,सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं।मतलब की :- उसे अपने स्वभाव/कार्य/मन में समाहित के लेते हैं।इसका भी क्रियात्मक डोमेन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

5️⃣अनुकूलन/स्वाभाविक :- जब हम किसी कार्य को करते समय उसके साथ सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं तो वो कार्य और भी आसान लगने लगता है।जिसके अनुकूल हम अपने स्वाभाविक रूप से स्थापित कर लेते हैं।

6️⃣आदत :- हमें कोई कार्य करना होता है तो,हम उसके प्रति अपनी आदत का निर्माण करते हैं। अगर हमें वो कार्य करने में दिलचस्पी होगी तो अपने – आप उस कार्य में मन लगाने लगेगा तथा हम अपने – आप में अनुकूल आदत निर्माण के लेंगे। इसलिए आदत गठन का भी इसमें महत्वपूर्ण स्थान है।

🌸धन्यवाद्👏


✍🏻Notes By-Vaishali Mishra
ब्लूम की शिक्षण व्यवस्था
(Bloom Taxonomy) (तृतीय पक्ष)_

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क्रियात्मक डोमेन/ मनोकियात्मक डोमेन/मनोचिकित्सा डोमेन/मनोगत्यात्मक डोमेन
*ज्ञान और भाव का प्रदर्शन कार्य को करने से होता है। कार्य को करने की यही क्रिया क्रियात्मक डोमेन या क्रियात्मक क्षेत्र कहलाती है।

  • यह डोमेन क्रियाओं पर आधारित होते है। और इन क्रियाओं का आधार सामान्यतः हमारा व्यवहार और हमारी कुशलता ही है।
    दूसरे शब्दों में कार्य के या क्रिया के होने से हमारे पास जो कुशलता और व्यवहार है उसके साथ कितना अधिगम किया गया है या उसमे कितना परिवर्तन हुआ है या नहीं हुआ है इस बात का पता चलता है ।

*जब हम कोई कार्य या क्रिया करते है तो उस अधिगम से हमारे व्यवहार व हमारी कुशलता में भी परिवर्तन होता है।

  • कार्य को करने के लिए हमारा ज्ञान या भाव जो भी हो लेकिन हमारी उस कार्य को करने में कितनी कुशलता है और उस कार्य से हमारा व्यवहार में परिवर्तन कितना हुआ है यह ज्यादा मायने रखता है।

*कार्य को करने से हमारे मन का भाव और सोच का भी पता चलता है क्योंकि हमारे मन में जो भाव होते है या को सोच होती है हम वैसा ही कार्य करते है अर्थात क्रिया हमारे मन का भी परिचय करवाती है। इसलिए इसे
*मनो क्रियात्मक डोमेन(Psychomotor Domain)* भी बोलते है।

  • जब हम मन से कार्य कर रहे होते है तो उससे हमारे मन की थैरेपी भी हो रही होती है इसी वजह से इसे मनोचिकित्सा डोमेन (Psychothereapy domain) भी बोलते है।

*जब मन से कार्य को के रहे होते है तो कार्य को करने में गति भी कर रहे होते है।
जब क्रिया करते है तो उसके लिए हम शारीरिक रूप से या अपने अंगों या मांशपेशियों के द्वारा ही गति करते है।
इन अंगों और मांशपेशियों की गति की वजह से ही इसे *मनोग्त्यात्मक डोमेन(Psychodynamic or subjective domain)* भी बोलते है।
जब हमारे अंग या मांशपेशियां कार्य के करने पर गति करते है तो कार्य के साथ वह भी प्रशिक्षित हो जाते है।और यही सफल और पूर्ण अधिगम कहलाता है।

*यदि हमारे पास ज्ञान है ,भाव है ,लेकिन हम क्रिया नहीं करेंगे तो कार्य कभी नहीं होगा। क्रिया के करने से ही ज्ञान और भाव का पता चलता है।

*जो भी कार्य या क्रिया होती है उसका केंद्र बिंदु – व्यवहार और कुशलता में परिवर्तन होना है।

जब कोई भी व्यक्ति कार्य करना चाहता है तो उसके लिए उसके व्यवहार व कुशलता में परिवर्तन होना जरूरी होता है। और यह परिवर्तन छ: स्तरों के द्वारा होता है➖
✓1 उतेजना (excitement)/आवेग(Impulse)/Stimulation
✓2 परिचालन(operation)/कार्य को करना(working)/अभयस्तिकरण(Habituation)
✓3 नियंत्रण (Control)
✓4 सामंजस्य/समन्वय (coordination)
✓5 अनुकूलन(adaptation)/ स्वभावित(Neutralisation)
✓6 आदत निर्माण/गठन निर्माण

उपरोक्त स्तरों का वर्णन निम्न प्रकार से है।
◼️
1 उत्तेजना (Excitement)/आवेग(Impulse)/Stimulation➖ जब हमारे अंदर किसी कार्य को करने की उत्तेजना होती है तब हम उस कार्य को कर पाते है।
हम अपने ज्ञान,व्यवहार,कुशलता से ही उत्तेजित होते है।
ज्ञान और भाव के आधार पर मिलने वाला बढ़ावा ही उत्तेजना कहलाता है।
◼️
2 परिचालन(operation)/कार्य को करना(working)/अभयस्तिकरण(Habituation) ➖जो भी कार्य के प्रति उत्तेजना है उसका परिचालन करना भी जरूरी है।
निर्देशित प्रक्रिया के तहत इसे मूर्त रूप दिया जाना चाहिए।
हमारी जो उत्तेजना है उसे कार्य में लगना चाहिए।
कभी कभी हम ज्यादा उत्तेजना में आकर कार्य का परिचालन ठीक प्रकार से नहीं कर पाते जिससे कार्य भी सही तरह से पूरा नहीं हो पाता है।
◼️
3 नियंत्रण (Control)➖ यदि हम कार्य का परिचालन करते है तो उसे नियंत्रित भी किया जाना जरूरी होता है तभी कार्य ठीक प्रकार से हो पता है।
जब उत्तेजना ज्यादा होती है तो उसका नियंत्रण भी जरूरी है क्योंकि सही तरीके से उत्तेजित होने पर कार्य का परिचालन भी ठीक प्रकार से होगा ओर कार्य में भी ठीक प्रकार से सफलता मिलेगी।
◼️
4 सामंजस्य/समन्वय (coordination)
*➖
कोन सा काम जरूरी है कोन सा नहीं,कितना काम करना है कितना नहीं यह सब हम अपनी जरूरत के हिसाब से ही कार्य को करने में सामंजस्य स्थापित करते है अर्थात अपनी जरूरत के अनुसार कार्य के बीच सामंजस्य बैठाने भी जरूरी है।

  • किस काम कि कितनी जरूरत है या कोन सा कार्य हमारे लिए कितना जरूरी है उसके बीच सामंजस्य बैठा लेते है।
    *हम कई सारे कामों में से अपनी प्रायकिता के आधार पर ही कई कार्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं।
    कार्य को पहले या बाद में करने का चयन करने का निर्णय हमारी प्रायकिता पर ही निर्भर करता है।
  • कई बार हम कई कार्यों को एक साथ करते है इसके लिए भी हमे सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है।हमारा सामंजस्य हमारी रुचि , प्रायिकता या हमारी जरूरत पर निर्भर करता है।
    ◼️
    5 अनुकूलन(adaptation)/ स्वभावित(Neutralisation)
    जब उपर्युक्त समस्त क्रियाएं हो जाती है तो उन क्रियाओं के प्रति हम अनुकूलित या स्वभाविक या सहज हो जाते है।
    ◼️
    6 आदत निर्माण/गठन निर्माण➖जब पांचों स्तर पूरे हो जाते है तब हमारे पास कार्य का गठन भी हो जाता है और उस कार्य में हम निपुर्ण भी हो जाते है या हमे उस कार्य को करने की अब आदत बन जाती है।

By Vandana Shukla

❇️ Bloom taxonomy ❇️

❇️ क्रियात्मक क्षेत्र। ❇️

यह डोमेन क्रियाओं पर आधारित है सभी क्रियाओं के आधार पर हमारे व्यवहार कुशलता में अधिगम करके कितना परिवर्तन आया या हुआ क्योंकि यह कार्य करने पर आधारित है।

जब हम क्रिया करते अधिगम करते हैं तो उसके बाद हमारे व्यवहार और कुशलता में कितना परिवर्तन आया।

क्रियात्मक डोमेन में हमारा व्यवहार और कुशलता प्रकट होती है ।
अगर आप एक्टिव होते हैं तो सकारात्मक परिवर्तन कहलाता है।
➖कार्य के द्वारा हमारे मन का पता चलता है या मन के हिसाब से कार्य करता है इसलिए इसे मनो क्रियात्मक भी कहते हैं

➖ मन की चिकित्सा का पता चलता है, मन की जांच होती है, मन के अंदर विकास होता है ,इसे मनोचिकित्सा डोमेन कहते हैं।

➖मन में लर्निंग हो रही है ,हम कुछ काम कर रहे हैं, गति कर रहे हैं इसलिए मनो गत्यात्मक डोमिन कहते हैं।
Psychomotor domain – मनो क्रियात्मक डोमेन

psychotherapy domain- मनोचिकित्सा डोमेन

psychodynamic domain-मनोगत्यात्मक डोमेन

जैसे-जैसे संज्ञान और भावात्मक क्षेत्र में परिवर्तन होता है तो क्रियात्मक क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है, अगर संज्ञान और भाव में परिवर्तन हुआ और क्रिया में परिवर्तन नहीं हुआ तो अधिगम पूरा नहीं माना जाएगा।

-क्रिया और कार्य का केंद्र बिंदु➖ व्यवहार कुशलता में परिवर्तन है।

  • अंग/ मांसपेशी की गति को अलग-अलग कार्य के लिए प्रशिक्षित करना है ।
  • मेंटल फिजिकल में बदलता है तब कहलाता है गत्यात्मक।
  • अंग मांसपेशी गति ➡️प्रशिक्षित ➡️अधिगम ➡️अधिगम डोमेन। साकार

🔸 क्रियात्मक क्षेत्र के 6 स्तर🔸
1️⃣ उत्तेजना /आवेग / excitation /stimulation/ impulse –
किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी आपकी उत्तेजना होती है जो हमारे संज्ञान और भाव होते हैं उनसे हम उत्तेजित होते हैं जब आप उत्तेजित होते हैं तभी कार्य करते हैं।

2️⃣ परिचालन/ कार्य करना/ अभ्यस्तिकरण / habituation – उस कार्य को मूर्त रूप देना। उत्तेजना को परिचालन में आना जरूरी है हमारी उत्तेजना को मूर्त रूप देना। कई बार आप उत्तेजित होते हैं पर परिचालन तक नहीं आ पाते ।
उत्तेजना के बाद परिचालन जरूरी है ।
आपके उत्तेजना के बाद उत्तेजना को कार्य में लगाना चाहिए ।

3️⃣ नियंत्रण /control – हम उस कार्य को ठीक से तब कर पाएंगे जब आप नियंत्रित होंगे जब किसी कार्य को परिचालन कर नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो यह काम ठीक से नहीं होगा। इसलिए किसी कार्य को करने के लिए उसमें उसे नियंत्रित होना आवश्यक है।

4️⃣ सामंजस्य/ समन्वय /तालमेल बिठाना/ coordination – कुछ ऐसे सिस्टमैटिक अप्रोच लगाते हैं कि किसी चीज को कहां तक किया जाए ,उसकी कितनी जरूरत है।
क्रियाओं के साथ सामंजस्य बिठाना जरूरी है प्राथमिकता के आधार पर कामों में सामंजस्य करते हैं।
सामंजस्य हर समय आवश्यक है बिना सामंजस्य के अगर आप काम को कर रहे हैं तो आप कार्य के कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाएंगे , इसलिए आपको सामंजस्य जरूरी है।

5️⃣ अनुकूलन/स्वाभाविक /neutralization /adoptation – जब आप उत्तेजित होकर परिचालन करते हैं और नियंत्रण कर सामंजस्य बिठा लेते हैं, और यह सब करने लगते हैं तब हुआ अनुकूलन ।
अब आपके लिए यह स्वाभाविक हो गया ।
सामंजस्य नहीं होगा तो अनुकूलन नहीं होगा।

6️⃣ आदत निर्माण/ उत्पत्ति/ आदत गठन – अनुकूलन के बाद अब यह आदत का गठन हो जाएगा और आदत बन जाएगी।

उत्तेजना ➡️ परिचालन ➡️ नियंत्रण ➡️ सामंजस्य ➡️ अनुकूलन ➡️ आदत


💫Notes by➖ Rashmi Savle💫

🌻 ब्लूम वर्गीकरण 🌻
(Bloom Texnomi)
Part ➖3
क्रियात्मक डोमेन/ मनोक्रियात्मक डोमेन/मनोगत्यात्मक डोमेन/मनोचिकित्सा डोमेन/conative domain/ Psychomotor domain/Psycho dynamics domain/Psycho therapy domain ➖
ब्लूम का तीसरा डोमेन क्रियाओं पर आधारित है जिसमें व्यवहार कुशलता में परिवर्तन का पता लगाया जाता है इसमें हम मन से कार्य करते हैं क्योंकि ये कार्य करने पर आधारित है जैसे जैसे हम अधिगम करते जाते हैं वैसे ही हमारे मन की क्रियाओं में परिवर्तन होने लगता है |
यदि हमारे पास ज्ञान और भाव है उसके अनुसार क्रिया भी होना चाहिए क्योंकि बिना क्रिया के ज्ञान और भाव बेकार है |
व्यवहार और कुशलता में परिवर्तन , क्रिया या कार्य का केंद्र बिन्दु होता है |
अंगों या मांशपेशियों की गति को प्रशिक्षित करना ही क्रियात्मक कार्य करना है हमारे शरीर की मांसपेशियां ही गत्यात्मक रूप से कार्य करती है जिससे अधिगम में वृद्धि होती है |

क्रियात्मक डोमेन के उद्देश्य के स्तर ➖ ब्लूम ने क्रियात्मक डोमेन के 6 स्तर बताए हैं जो कि निम्न हैं_

🔹 उत्तेजना/आवेग / Exitement/ Stimulation

🔹 परिचालन/ कार्य करना/ अभ्यस्तिकरण/Habituation/Opration/Work

🔹 नियंत्रण /Control

🔹 सामंजस्य/ समन्वय/ Coordination

🔹स्वभाविक/ अनुकूलन/Nutralization/ Adduptation

🔹 आदत निर्माण/ गठन/ उन्नति

1⃣ उत्तेजना/आवेग/Excitement/Stimulation ➖
यदि हमें किसी कार्य को करने की उत्तेजना है या हम उस कार्य को करने के लिए उत्तेजित है तो कार्य को करना आसान हो हो जाता है क्योंकि ये हमारे अन्तर मन की वह मनोदशा है जिसमें हम सब कुछ करने के लिए तत्पर रहते हैं |

2⃣ परिचालन/कार्य करना/अभ्यस्तिकरण/Habituation/Work/Opration ➖
किसी के कार्य के प्रति उत्तेजित होकर उसको मूर्त रूप देते हुए उस कार्य का परिचालन करना, यदि उत्तेजित हुए हैं तो उसके अनुसार कार्य का परिचालन करना भी जरूरी है इसके विपरीत यदि उत्तेजना के अनुसार कार्य नहीं होता है तो उसका असर विपरीत दिशा में होने लगता है और परिणाम विपरीत होने लगता है |

3⃣ नियंत्रण/ Control ➖
जिस प्रकार हम कार्य का परिचालन करते हैं तो उसका सही रूप से नियंत्रण करना भी अनिवार्य है वरना कार्य का प्रभाव कम हो सकता है इसके बाद उत्तेजना का कोई अर्थ नहीं होगा |

4⃣ सामंजस्य/समन्वय/ Coordination ➖
कार्य के प्रति सामंजस या समन्वय स्थापित करना कि उसको कितना महत्व देना है कितना हस्तक्षेप करना है कितना उसको उत्तेजित होकर करना है जरूरत के अनुसार तालमेल बैठाकर परिस्थिति के अनुसार क्रिया के प्रति उत्तेजना का परिचालन कर उसका नियंत्रण कर उस पर सामंजस्य स्थापित करना |
दूसरे पक्ष में हम देखें तो हम अपनी प्राथमिकता के अनुसार कार्य का परिचालन कर उस पर सामंजस्य स्थापित करते हैं ये हमारी रूचि, प्राथमिकता आदि पर निर्भर करता है सामंजस्य dynamic होता है यह हमेशा बदलता रहता है गति करते रहता है |

5⃣ स्वभाविक/अनुकूलन/Nutralization/Adaptation ➖
किसी कार्य को करने की स्वाभाविकता का आना अर्थात जब हम स्वभाविक रूप से किसी कार्य को करने लगते तो वह आदत का रूप ले लेता है हम उसके आदि हो जातें हैं |

6⃣ आदत निर्माण/गठन/उन्नति ➖
किसी कार्य करने की स्वाभाविकता आ जाती है तो हमें उसकी आदत हो जाती है और हम उन्नति की ओर अग्रसर हो जाते हैं |

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Notes by➖Puja kumari 🔅Bloom taxonomy का तीसरा डोमेन है*➖ क्रियात्मक डोमेन ( Activity domain) / मनोक्रियात्मक डोमेन (psycho motor domain) / मनोचिकित्सा डोमेन (psycho tharapy domain) / मनोगत्यात्मक डोमेन ( psycho dynamic domain) *क्रियात्मक डोमेन ( Activity domain)*➖ मनुष्य के व्यवहार या कुश्लता में learning करके कितना परिवर्तन हुआ, यह देखने को मिलता है क्योंकि ये कार्य पर आधारित होता है।इसलिए इसे क्रियात्मक डोमेन कहा जाता है। ★ कार्य या क्रिया करके इसके व्यवहार में जो परिवर्तन होता है।उससे ज्यादा active हुए तो सकारात्मक परिवर्तन हुआ। यदि active नही हुए तो नकारात्मक परिवर्तन होगा।। *मनोक्रियात्मक डोमेन ( psycho motor domain)* ➖ किसी कार्य को करने के लिए हमारे मन / इच्छा का होना आवश्यक है। यदि कोई काम को हम अपने मन केे अनुसार करते है तो हमारे व्यवहार या कुशलता का पता चल जाता है। जिससे कि इसे मनोक्रियात्मक डोमेन भी कहा जाता है। जैसे- कोई छात्र अपने शिक्षक से 6 महीने पहले से जुड़ा है और जो अभी 1 महीने या 1 दिन से जुड़ा है दोनों के मन मे शिक्षक के लिए अलग – अलग व्यवहार या कुशलता होगी जो छात्र 6 महीने से शिक्षक के साथ जुड़े हैं वो शिक्षक को अच्छे से जान पायगे कि शिक्षक का व्यवहार कैसा है और जो छात्र बाद में जुड़े है वो शिक्षक के बारे में कम जानते होंगे। इसलिए क्योंकि दोनों के मन में अपने अपने तरीके से सोचा या क्रिया किया। इसलिए इसे मनोक्रियात्मक डोमेन भी कहा जाता है।। मनोचिकित्सा डोमेन ( psycho tharapy domain)➖ इससे हमारे मन की चिकित्सा होती है। ऐसे में हमारे मन के नई अधिगम का पता लगाया या जाँचा जाता है। इसलिए इसे मनोचिकित्सा डोमेन भी कहा जाता है।। मनोगत्यात्मक डोमेन( psycho dynamic domain)➖जब हमारा अधिगम होता है तब हमारे शारीरिक क्रिया की भी गति होती है। इसलिए इसे मनोगत्यात्मक डोमेन भी कहते है।। ★ संज्ञान या ज्ञान से हमारे भाव मे परिवर्तन होता है तो उससे हमारे क्रिया में भी परिवर्तन होती है। अगर हमारे ज्ञान और भाव दोनो में परिवर्तिन हो रहा है लेकिन क्रिया नही कर रहे है तो हमारा अधिगम का कोई मतलब नही होता है। क्योंकि ज्ञान और भाव के साथ क्रिया होती तभी अधिगम पूरा होगा। ★ क्रिया या कार्य का केंद्र बिंदु से हमारे व्यवहार या कुशलता में परिवर्तन का पता चलता है। इससे हमारे अंगो या मांसपेशियो में भी गति होती है जो अलग – अलग कार्य के लिए प्रशिक्षित करती है। जिससे हमारा अधिगम डोमेन पूरा होता है। 🌸 जब कोई कार्य करना चाहता है तो उसके लिए व्यवहार या कुशलता में परिवर्तन होता है इसके लिए 6 स्तर है➖ 1.उत्तेजना( Exciment )/ आवेग(Impulse)/Stimulation➖ जब हमारे अंदर किसी कार्य को करने में रुचि / उत्तेजना होती है। तब हम उस कार्य को अपने अधिगम या व्यवहार में लाते है। और उस कार्य को करते है। यदि हमारे अंदर उत्तेजना नही होगी तो कोई भी कार्य नही कर पायगे। 2. परिचालन (Operation) / कार्य करना(Work) / अभियस्तिकरण( Habitution / Implement➖ किसी कार्य को उत्तेजना में आकर परिचालन ठीक से नही कर पाते है जिससे कि कई मुश्किलो का सामना भी करना पड़ता है और कार्य भी पूरा नही ही पाता है। 3. नियंत्रण ( Control)➖ जब किसी कार्य के लिए उत्तेजित होते है तब उसके परिचालन करते है तो उस परिचालन को नियंत्रण भी करना आवश्यक होता हैं तभी कार्य सफलता हासिल हो पायेगा और परिणाम भी अच्छा होगा।। 4. समांजस्य / समन्वय ( coordination )➖किसी कार्य को करने के लिए हमे सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है कि कौन सा काम ज्यादा महत्वपूर्ण है किसको पहलें किया जाय जो सब कब systemtic रूप से हो पाए इसके लिए सामंजस्य स्थापित करना बहुत आवश्यक है। जैसे- जब हम पढ़ने बैठते है तब पहले हमारा पढ़ाई ज्यादा important है। अब पढ़ाई के बाद जो काम मेरे लिए ज्यादा important होगा वो काम हम पहले करेगे फिर कोई दूसरा काम करेंगे। ऐसे में हम दो कामो के बीच सामंजस्य स्थापित किये और आसानी से काम को कर पाए । वैसे ही हर काम को करने के लिए सामंजस्य स्थापित करना जरूरी होता है। कभी कभी हम एक साथ कई सारे काम करते है उसके लिए भी सामंजस्य स्थापित करना होता है और इसके लिए हमारी उत्तेजना भी जरूरी होती है तभी कार्य को सही तरीके से कर पायेगे। 5. अनुकूल / स्वाभाविक (Adjust / Adoption/ Nutrelazation )➖ जब हम उत्तेजना के साथ परिचालन करके नियंत्रण करते है उसके बाद सामंजस्य स्थापित करते है। इन सारी क्रियाओं के होने के बाद हम इसके अनुकूल हो जाते है। यह सारी क्रियायें हमारे स्वभाव में आ जाते है। 6. आदत निर्माण / उत्पत्ति / आदत गठन➖ जब कोई कार्य हमारे अनुकूल या स्वाभाविक हो जाती है। तब वह कार्य को हमारी आदत habit में आ जाती है। 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺puja✒️….


Notes By Ashwany Dubey

🌻🌻🌻🌻अधिगम क्षेत्र मे Bloom Taxonomy का क्रियात्मक पक्ष 🌻🌻🌻🌻

✍️ अधिगम द्वारा /अधिगम क्रियाओं द्वारा व्यवहार मे परिवर्तन आना क्रियात्मक क्षेत्र का महत्वपूर्ण कार्य है!

✍️आपका ज्ञान और भाव कैसा है कोई मतलब नहीं आप काम कैसा करते है,आपकी व्यवहार कुशलता, कार्य क्षमता और उसमे कैसा परिवर्तन हो रहा ये देखा जाता है!

👉 परिवर्तन दो प्रकार का हो सकता है! (a) नकारात्मक और (b) सकारात्मक

a) नकारात्मक परिवर्तन :-

जब बच्चा कोई की हुयी क्रिया के अनुरूप परिवर्तन नहीं देता और उसमे कोई क्रियात्मक कुशलता का स्तर मे विकास नहीं देखा जाता है!

b) सकारात्मक परिवर्तन :-

जब बच्चा की हुयी क्रिया अनुरूप अनुभव के आधार पर व्यवहार कुशलता मे विकास को दर्शाता है तब सकारात्मक डोमेन कहा जाता है!

✍️क्रियात्मक क्षेत्र को इन अन्य नामो से भी जाना जाता है! ✍️

👉मनोक्रियात्मक डोमेन :-

🌸इसमे बच्चे की कार्य कुशलता से उसके मन का अनुमान लगाना मतलब बच्चे के कार्य से उसके मन का पता लगाना!

👉मनोचिकित्सात्मक डोमेन :-

🌸मन के कार्यों द्वारा मन की क्रियाओं और ज्ञान की चिकित्सा/विकास!

👉 मनोगत्यातमक डोमेन :-

🌸जब बच्चा किसी कार्य को वास्तव मे कर रहा हो तो वहा क्रियाए गति मे होती है! जिसे मनोगत्यातमक डोमेन कहते है!

🗯️इस को english मे psychomotor domain भी कहा जाता है!

🗯️ये अधिगम क्षेत्र psycho dynamic domain भी कहलाता है! क्योकि इसमे ज्ञान भाव मे परिवर्तनशीलता क्रियाओं द्वारा देखी जाती है!

🗯️इसको कार्योन्मुख / subjective domain भी कहते है!

🌷🌼क्रिया /कार्य का मुख्य बिंदु व्यवहार और कुशलता मे परिवर्तन लाना है जो कि अंगों और मांसपेशियों की गतिविधि मे प्रशिक्षण को दर्शाता है कि कितनी कुशलता से हम किसी कार्य को करना सीख लेते है काम त्रुटियों के साथ!

🌷🌼 किसी कार्य का स्वयं करके अनुभव प्राप्त करना व्यवहार मे लाना होता है!

✍️इस व्यवहार और कुशलता को प्राप्त करने के लिए ब्लूम ने क्रियात्मक डोमेन के 6 स्तर दिये है :-

1)उत्तेजना/आवेग /impulse /excitation :-

👉 किसी भी क्रिया या काम को शुरूआत करने से पहले उसके लिए हमारे अंदर उत्तेजना जैसे कि आवश्यकता /रुचि/उत्सुकता, ऐसा भाव जिसमे हमे कुछ करके ही रहना है ऐसा सोच जरूरी है! इसको ज्यादातर केस मे लोग बस सोचते रह जाते है आगे नहीं बढ़ पाते है!

2) परिचालन /कार्य करना / आत्मसात्करण :-

👉 जिस कार्य के लिए उत्तेजना का भाव आया उसको क्रियान्वित करने की दिशा मे आगे कदम बड़ाना यहां ध्यान दिया जाता है कि हम भावावेश मे आकर कही अनियंत्रित होकर कार्य को ना करे!

3)नियंत्रण :-

👉 कार्य को करते समय पूर्ण नियंत्रण मे करना और परिचालन को सुचारू रूप से आगे बड़ाना आवश्यक है क्योकि अगर नियंत्रण नहीं रहा तो कार्य के दुष्परिणाम भी हो सकते है!

4)सामंजस्य/समन्वय /परियोजित प्रक्रिया :- किसी भी कार्य को उसके विभिन्न भागों मे करना और सुनिश्चित करना की किस भाग को किस समय और कितना समय देकर करना है कौन ज्यादा वरीयता रखता है इन सबके तालमेल को बनाए रखना ही सामंजस्य है! सामंजस्य और स्वाभाविक क्रिया तभी होगी जब परिचालन नियंत्रण मे होगा!

6)अनुकूलन /Adaptation /Naturalization :-

👉 किसी कार्य को करने मे जब हमारी मांसपेशियां और अंग अभ्यषथ हो जाते है और जब हम उत्तेजना के नियंत्रित परिचालन करके सामंजस्य स्थापित करते है तब कार्य को करने मे हमे कोई परेशानी नहीं होती इसको हम अनुकूलन भी कहते है!

6)आदत निर्माण, उत्पत्ति, आदत गठन :-

👉 जब अधिगम करने मे किए हुए कार्य को हम अनुकूलित कर लेते है और उसको सहजता मे लाते है तो वहां हम एक ऐसे संवेग को समझने लगते है कि ये काम हमारे लिए जरूरी इसको नहीं किए तो कुछ अधूरा है मतलब वो कार्य को करने की क्रिया हमारे अचेतन मन मे विकसित हो चुकी है जिसको हम आदत निर्माण और आदत गठन भी कहते है!


❇️ बलूम के वरगीकरण का तीसरा पक्ष…..कि्यात्मक डोमेन……।❇️ ग्यान और भाव के प्रदशर्न से कि्या या activity होती है….. ✳️ यह कि्याओ पर आधारित हैं। ,इसमे कि्या एवं activity के द्वारा व्यवहार और कुशलता पर परिवर्तन होता है। हमारे कार्य करने से मन का पता चलता है ** इसको हम मनोकि्यात्मक भी बोलते है क्योंकि कोई कार्य मन से ही करते हैं ।।।।। इसको हम **** मनोचिकित्सा डोमेन भी कहते हैं इसमे कार्य करते हुए activity का भी पता चलता है।।।।## हमारे शरीर के अलग -अलग अंग /मांसपेशिओ कि गति को मनोगत्यामक या साइकोमीटर कहते है। इसी को हम प्रशिक्षित करते है।…….किसी कार्य को करने के लिए अंगो कि गति करते है फिर भाव आता है फिर कि्या होती है इससे मांसपेशिओ को
प्रशिक्षण मिलता हैं।।। ***** कि्यात्मक डोमेन के 6 स्तर हैं…(ये स्तर एक दूसरे से संबंधित है) …. ……1 उत्तेजना / आवेग :- किसी भी कार्य को करने कि उत्सुकता है । 2 परिचालन/कार्य को करना:- अपने काम मे अभ्यस्थ हो जाना या habitual होना 3 नियंत्रण:- किसी कार्य को सही तरीक़े से करने के लिए नियंत्रण बहुत जरूरी है। 4 सांमजस्य / समन्वय :- किसी चीज को कितना लेवल तक करना है कितनी importance देना है * सांमजस्य हर समय बदलता रहता है।। 5 अनुकूलन / स्वाभाविक :- वातावरण में ढल जाना या वो चीज स्वाभाव मे आना।। 6 आदत निर्माण, गठन, उत्पति …..। notes by pragya shukla


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