Difference in heredity and environment notes by India’s top learners for CTET and all state TET child development and pedagogy

📖 वृद्धि और विकास में संबंध 📖

🌺🌿🌺 वृद्धि और विकास के संबंध में हम सब यह अच्छी तरह से समझते या जानते हैं, कि दोनों ही एक दूसरे के बिना पूर्ण नहीं है। वृद्धि विकास का ही एक भाग है, इनके संबंध में कुछ महत्वपूर्ण भिन्नताऐ निम्नलिखित है।—

  1. वृद्धि परिमाणात्मक है, जबकि विकास गुणात्मक है।
    🍃इसके अंतर्गत हम यह कह सकते हैं, कि वृद्धि में भार, वजन एवं ऊंचाई के आधार पर हम इसकी पहचान कर सकते हैं।
    🍂लेकिन विकास के संबंध में ऐसा नहीं है विकास कार्य कुशलता, दक्षता एवं व्यवहार के आधार पर देखा जाता है। इसमें भार, वजन व ऊंचाई का कोई संबंध नहीं होता है।
  2. वृद्धि सीमित समय के लिए होती है, जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है।
    🍃वृद्धि एक समय के बाद रुक जाती है अतः वृद्धि सीमित होती है। एक स्थिति आने के बाद में वृद्धि अपनी पूर्णता को प्राप्त कर लेती है। यह संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का केवल एक चरण मात्र है।
    🍂लेकिन विकास सीमित नहीं होता है, इसका क्षेत्र बहुत विस्तृत होता है। वृद्धि विकास का ही एक भाग है। विकास व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तनों को प्रकट करता है। यह संकुचित नहीं होता है। वृद्धि के अलावा भी विकास में कई और अन्य चरण समाहित है।
  3. वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है, जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह जीवन पर्यंत चलती रहती है।
    🍃 वृद्धि का एक समय निश्चित होता है, उस समय के पूर्ण होने पर वृद्धि समाप्त हो जाती हैं। अतः वृद्धि परिपक्वता तक पहुंचने के पश्चात पूर्ण हो जाती है। परिपक्वता के बाद व्यक्ति के जीवन में वृद्धि का कोई संबंध नहीं होता है, यह संबंध केवल परिपक्वता तक ही होता है।
    🍂 लेकिन विकास एक जीवन पर्यंत चलने वाली निरंतर प्रक्रिया है। जो कि मृत्यु के पश्चात ही समाप्त होती है। जब तक मनुष्य का जीवन चलता रहता है। उसके साथ साथ विकास भी चलता रहता है। विकास कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया है। मनुष्य का विकास प्रत्येक क्षण में होता ही रहता है।
  4. वृद्धि में होने वाले परिवर्तन दिखाई देते हैं अतः वृद्धि प्रत्यक्ष होती है बल्कि विकास में होने वाले परिवर्तन दिखाई नहीं देते हैं अतः विकास अप्रत्यक्ष होता है।
    🍃 वृद्धि में होने वाले परिवर्तन दिखाई देते हैं, अर्थात वृद्धि के अंतर्गत वजन, ऊंचाई, आकार इत्यादि हमें प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देते हैं। हम इनको देख पाते हैं। उसके पश्चात हम यह भी कह सकते हैं, कि इस को मापा जा सकता है। अतः वृद्धि प्रत्यक्ष होती है।
    🍂 लेकिन विकास के संदर्भ में हम ऐसा नहीं कह सकते हैं। विकास दिखाई नहीं देता है, बल्कि महसूस किया जा सकता है। यह अप्रत्यक्ष होता है। इसको प्रत्यक्ष देखना कठिन है, बल्कि इसमें व्यवहार का निरीक्षण करके हम इसे ज्ञात कर सकते हैं। इसके माध्यम से हम कह सकते हैं, कि व्यक्ति अपना विकास कर रहा है। अर्थात उच्च स्थिति को प्राप्त कर रहा है। सम्मानित स्थिति को प्राप्त कर रहा है। 👆🏻 उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट किया जा सकता है कि वृद्धि और विकास में काफी हद तक विभिन्नताएं पाई जाती है। यह समान नहीं होते हैं, इन तथ्यों के माध्यम से हम इनको पूर्णता स्पष्ट कर सकते हैं। 🌷🌻🌿🌻🌷 विकास के कारण 🌷🌻🌿🌻🌷

🎀 विकास के दो कारण हैं, परिपक्वता और अधिगम।

👉🏻 परिपक्वता~
🍁 परिपक्वता का संबंध वंशानुक्रम से होता है।
वंशानुक्रम अर्थात वह गुण जो बालक को उसके माता-पिता से प्राप्त होते हैं, उन्हें गुणों के माध्यम से बालक के अंदर परिपक्वता होती है। वह वृद्धि के लिए आगे बढ़ता है।

🍁 परिपक्वता का अर्थ आंतरिक अंगों का प्रौढ या बूढ़ा होना है।
आंतरिक अंगों का प्राण या बूढ़ा होने का अर्थ है, कि बालक के शारीरिक अंग जो कि विकसित हुए थे। जिन्हें हम देख सकते हैं, वह एक निश्चित समय के बाद बूढ़े होने लगते हैं। या कमजोर होने लगते हैं।

🍁 उन गुणों का विकसित होना जो, कि उसे उसके वंशानुक्रम से प्राप्त हुए हैं।
बालक के वह गुण जो कि उसे उसके पूर्वजों से प्राप्त हुए हैं, जिसके अंतर्गत हम बालक का रंग उसका आकार एवं उसकी ऊंचाई इत्यादि को रखते हैं। इन सब की वृद्धि काफी हद तक बालक के वंशानुक्रम पर निर्भर करती हैं।

🍁 परिपक्वता की जो प्रक्रिया है। वह तब तक चलती रहती है जब तक की दृढ़ता और पूर्णता पूर्ण रूप से पाना ले।
लेकिन एक समय के पश्चात यह धीरे-धीरे घटने लगती है जैसा कि हम पूर्व में ही स्पष्ट कर चुके हैं कि परिपक्वता एक समय के बाद रुक जाती है और फिर धीरे-धीरे घटने लगती है।

🍁 परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है, इसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव (जो कि शरीर का भाग है) मे नई क्रियाएं सीखने की क्षमता होती है।
बालक में परिपक्वता आने पर बालक अपने कई शारीरिक अंगों का प्रयोग करके नए कार्य करता है। अर्थात वह अपने आप से कई कार्यों को पूर्ण करने लगता है, जिसमें बालक भोजन करना, स्कूल जाना, खेलना इत्यादि क्रियाएं बालक अपने शरीर के अंगों के माध्यम से ही करता है।

👉🏻 अधिगम~
अपने वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होते हैं, उसे ही अधिगम या सीखना कहते हैं।
बालक या व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कार्य करता है, या जो भी परिवर्तन करता है। वह सभी सीखने के अंतर्गत आता है। बालक प्रत्यक्षण जो नई क्रियाएं करता है, वही सीखना है। उन क्रियाओं के द्वारा बालक के जीवन में जो भी परिवर्तन होते हैं, वह सभी सीखना है। उसकी आदत में परिवर्तन, उसके कार्य करने की स्थिति में परिवर्तन, उसके ज्ञान में परिवर्तन इत्यादि सभी को हम अधिगम के अंतर्गत ही रखते हैं।

🌿🌻🌺🌻🌿परिपक्वता व अधिगम में संबंध🌿🌻🌺🌻🌿
अधिगम एवं परिपक्वता में काफी हद तक विभिन्नताएं होती हैं, इसके पश्चात भी यह दोनों एक दूसरे से संबंधित है। जिनके संबंध में कुछ तथ्य निम्नलिखित हैं:-

👉🏻 परिपक्वता का अधिगम दोनों में घनिष्ठ संबंध होता है।
👉🏻 अधिगम व परिपक्वता परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं।
👉🏻 परिपक्वता का अधिगम दोनों ही एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
👉🏻 विकास के अंतर्गत परिपक्वता अधिगम दोनों ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अतः परिपक्वता वंशानुक्रम से एवं अधिगम वातावरण से संबंधित है। 📚📗 समाप्त 📗📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

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🔰 वृद्धि एवं विकास🔰

👉 वृद्धि:- विभिन्न अंगों का बढ़ना वृद्धि को दर्शाता है वृद्धि में भार वचन ऊंचाई की वृद्धि होती है वृद्धि सीमित समय के लिए होती है परिपक्वता के साथ वृद्धि रुक जाती है वृद्धि वाले परिवर्तनों को हम सामान्यता देख सकते हैं इसमें हमारा शरीर अर्थात शरीर के अंग बड़े होते है
वृद्धि परिमाणात्मक होती है
वृद्धि को नापातोला जा सकता है
वृद्धि संवेग के संप्रत्यय है

👉 विकास:- इसमें कार्यकुशलता क्षमता व्यवहार आदि का विकास होता है
यदि हम किसी प्रकार की ख्याति प्राप्त कर लेते हैं तो हम कह सकते हैं कि हमारा विकास हुआ है
विकास में गुणात्मक परिवर्तन होता है
विकास गर्भावस्था से लेकर मृत्यु पर्यंत तक चलता है
विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन प्रकट
करता है
विकास अप्रत्यक्ष होता है इसे प्रत्यक्ष देखना कठिन है परंतु व्यवहार का निरीक्षण करके देखा जा सकता है
संवेगात्मक बृद्धि नैतिक मानसिक तथा शारीरिक पक्ष में वृद्धि होती है
विकास को मापा नहीं जा सकता

विकास का कारण
1 परिपक्वता heredity
2 अधिगम एनवायरमेंट
परिपक्वता का अर्थ:- आंतरिक अंगों का बूढ़ा होना या प्रौढ़ होना परिपक्वता कहलाता है उम्र के साथ-साथ हमारे अंगों अंगों में शिथिलता आने लगती है और हमारे आंतरिक अंग धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं अर्थात वह प्रौढ़ता की ओर कदम बढ़ा लेते हैं

वैसे गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिले हैं :- वंशानुक्रम से हमें अनेक प्रकार के गुण मिलते हैं जब यह गुण अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं तब हम इन्हें परिपक्वता की अवस्था कह सकते हैं
इसमें तब तक वृद्धि होती है जब तक दृढ़ता और प्रोढता पूर्ण रूप से नहीं पा लेता

परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे के शारीरिक अवयव में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है 🔰 अधिगम एनवायरमेंट 🔰

वातावरण के साथ जो सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक मानसिक क्रिया में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना बोलते हैं

परिपक्वता और अधिगम में घनिष्ठ संबंध है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं दोनों का प्रभाव दोनों पर पड़ता है विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं

अधिगम सिर्फ किसी चीज को जान लेना नहीं होता उसे आत्मसात करना या उसे महसूस करना है

👉 परिपक्वता वंशानुक्रम से अधिक वातावरण से संबंधित है🙏🙏🙏 Sapna Sahu 🙏🙏🙏

📚 वृद्धि एवं विकास में अंतर📚

🌺🌿🌺 वृद्धि और विकास में संबंध होने के साथ-साथ अनेक विभिन्नताएं भी हैं जो इन्हें एक दूसरे से भिन्न करती है लेकिन ये दोनों एक दूसरे को पूर्ण भी करते हैं।

🍃वृद्धि और विकास में निम्नलिखित अंतर है➖

1️⃣ वृद्धि (growth) परिमाणात्मक होता है (मात्रा, भार, लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, आकार में वृद्धि)

जबकि विकास (development) गुणात्मक होता है (कार्यकुशलता ,क्षमता ,व्यवहार, मानसिक वृद्धि ,संवेगात्मक , क्रियात्मक ,संज्ञानात्मक, भाषागत एवं सामाजिक विकास इत्यादि)

2️⃣ वृद्धि सीमित होता है, जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है।

3️⃣ वृद्धि संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण है, जबकि
वृद्धि विकास का भाग है यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन प्रकट करता है।

4️⃣ वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती हैअर्थात वृद्धि एक समय के बाद रुक जाती है,

जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है अर्थात विकास जीवन पर्यंत होते रहता है।

5️⃣ वृद्धि में होने वाले परिवर्तन समान्यत: दिख जाते हैं जैसे किसी व्यक्ति में लंबाई ,वजन ,ऊंचाई ,मोटापा में वृद्धि होता है तो आसानी से देखा जा सकता है

जबकि विकास अप्रत्यक्ष नहीं दिखता है विकास के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तन को प्रत्यक्ष देखना कठिन होता है इसे देखने के लिए किसी व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण करना अत्यंत आवश्यक है।

6️⃣ वृद्धि होने का अर्थ संख्या या आकार में बढ़ना है

जबकि विकास का अर्थ किसी की क्षमता व जरूरतों को पूरा करने की ललक को बढ़ाने के साथ ही उनकी आवश्यकताओं को विधिक बनाना भी है जो कि मात्र उनसे संबंधित ना होकर सभी के लिए हो।

7️⃣ वृद्धि पर अनुवांशिकता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं

जबकि विकास अनुवांशिकता और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है।

8️⃣ वृद्धि को हम माप भी सकते हैं ,
जबकि विकास को सामान्यतः मापना कठिन है।

9️⃣ वृद्धि की प्रक्रिया आंतरिक एवं बाह्य दोनों रूप में होता है ,
जबकि विकास की प्रक्रिया आंतरिक रूप में होता है।

उपर्युक्त अंतर को देखते हुए यह कह सकते हैं कि वृद्धि और विकास एक दूसरे से भिन्न है लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखें तो इन दोनों के अलग अलग रास्ते होते हुए भी वृद्धि विकास के अंदर समाहित होता है और वृद्धि, विकास का ही एक भाग है।

🍃 विकास के कारण 🍃

विकास के मुख्यतः दो कारण हैं परिपक्वता और अधिगम।

परिपक्वता( heredity) ➖ परिपक्वता का संबंध अनुवांशिकता या वंशानुक्रम से होता है। परिपक्वता वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शारीरिक संरचनाओं के विकास और विकास के परिणाम स्वरूप व्यवहार को संशोधित किया जाता है। परिपक्वता व्यक्तिगत विकास और विकास के साथ ही आती है।

☘️ आंतरिक अंगों का प्रौढ़ या बूढ़ा होना ➖ किसी व्यक्ति के आंतरिक अंगों का प्रौढ़ या बूढ़ा होना का अर्थ यह है कि व्यक्ति के शारीरिक अंगों में जो विकास हुआ है जिसे हम देख सकते हैं वह एक निश्चित समय के बाद विकास कमजोर या रुक जाते हैं।

☘️ किसी व्यक्ति के ऐसे गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिले हैं➖ किसी व्यक्ति के ऐसे गुण जैसे रंग ,रूप, आकार ,ऊंचाई ,वजन इत्यादि जो भी माता पिता से विरासत में प्राप्त हुए हैं इन सब की वृद्धि व्यक्ति की अनुवांशिकता पर निर्भर करती है।

(जैसे 18 से 25 साल में व्यक्ति जवानी में प्रौढ़ता पूर्ण रूप से पा लेते हैं। ऐसा कह सकते हैं कि ना तो समय के पहले और ना तो समय के बाद परिपक्वता सही है)

☘️ परिपक्वता विकास की एक आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है➖ परिपक्वता विकास की एक आंतरिक प्रक्रिया है परिपक्वता आने से ही बालक शारीरिक क्रियाएं जैसे खेलना ,कूदना इत्यादि नई क्रियाएं सीखता है बालक में किसी भी नई क्रिया को सीखने की क्षमता परिपक्वता से ही आती है।

🌺 अधिगम ➖ अधिगम का संबंध वातावरण से होता है।

वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना कहते हैं

जैसा कि हम जानते हैं कि मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देते हैं वह जीवन भर कुछ न कुछ सीखता है और क्रियाएं करता है धीरे-धीरे वह वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाएं एवं उप क्रियाएं भी करता है अतः वातावरण का अधिगम की क्रिया में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

🍂 परिपक्वता और अधिगम में संबंध➖ परिपक्वता और अधिगम में घनिष्ठ संबंध है यह एक दूसरे से परस्पर संबंधित होते हैं परिपक्वता और अधिगम एक दूसरे के पूरक हैं दोनों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है विकास के अंतर्गत दोनों ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं परिपक्वता सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है

✔️परिपक्वता व्यक्ति के भीतर से आती है क्योंकि यह बढ़ता और विकसित होता है जबकि सीखना अनुभव ज्ञान और अभ्यास से होता है।

उदाहरण के लिए ऐसे समझ सकते हैं की जैसे 2 साल का बालक किताब पढ़ना नहीं सीख सकता जब तक वह परिपक्व ना हो जाए जबकि जरूरी नहीं है कि 2 साल के बच्चे को मांसपेशियों तथा अंगों के विकास के लिए सीखना पड़े।

उपर्युक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि अगर परिपक्वता और अधिगम दोनों में से एक नहीं होगा तो विकास भी नहीं होगा।

☘️🍂manisha gupta 🍂☘️

⭐🍁⭐🍁⭐ वृद्धि और विकास⭐🍁⭐🍁⭐

🎯 वृद्धि :–
वृद्धि परिमाणात्मक होती है इसके अंतर्गत बजन ,भार ,ऊंचाई शारीरिक बाहरी कारक आते हैं
वृद्धि सीमित समय के लिए होती है संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बल एक चरण है
वृद्धि का क्षेत्र सीमित होता है वृद्धि एक समय पर रुक जाती है परिपक्वता के साथ वृद्धि रुक जाती है वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है वृद्धि संवेग के संप्रत्यय है

🎯 विकास:—

विकास से आता है इसमें कार्यकुशलता क्षमता व्यवहार आदि का विकास होता है विकास गुणात्मक परिवर्तन है विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है विकास कभी खत्म नहीं होता है विकास विस्तृत अर्थ रखता है इसका भाग है या व्यक्ति में होने वाले परिवर्तन को प्रकट करता है विकास अप्रत्यक्ष होता है इसे प्रत्यक्ष देखा नहीं जा सकता है परंतु व्यवहार का निरीक्षण करके देखा जा सकता है विकास संवेगात्मक वृद्धि नैतिक मानसिक तथा सहायक पक्ष में वृद्धि होती है और विकास को मापा नहीं जा सकता है

🌺🌺 विकास के कारण🌺🌺

⭐ परिपक्वता heredity/ वंशानुक्रम

⭐ अधिगम एनवायरमेंट/ वातावरण

🎆 परिपक्वता का अर्थ है परिपक्वता वंशानुक्रम से आती है इसमें आंतरिक अंगों का प्रौढ़ बूढ़ा होना या उसके वैसे गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिले हैं मनुष्य के उम्र के साथ-साथ कमजोर होने लगते हैं वह धीरे-धीरे प्रौढ़ता की ओर बढ़ते जाते है
जब यह गुण अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं

तब हम उन्हें परिपक्वता की अवस्था कहते हैं

गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिलते हैं
एक जटिल परिस्थिति में जब तक बढ़ती जाती है तब तक दृढ़ता और प्रौढ़ता पूर्ण रूप से नहीं पा लेते है
परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव ( शरीर के भाग)
नहीं क्रिया सीखने की क्षमता आती है

🎆अधिगम:—

अधिगम पर्यावरण से प्रभावित होता है यह कभी कम या ज्यादा हो जाता है अधिगम वातावरण के साथ जो सामंजन स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक प्रक्रिया में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम कहते हैं
बालक क्या व्यक्ति अपने जीवन में जो कार्य करते हैं और उसमें जो भी परिवर्तन होता है उसे हम सीखना या अधिगम कहते हैं
बालक प्रत्यक्ष रूप से जो नई क्रिया को करता है
या उन क्रियाओं को सीखता है उनकी आदत में परिवर्तन उसके कार्य करने की स्थिति में परिवर्तन आदि से हम कह सकते हैं कि इसके अंदर का अधिगम या सीखना आता है

⭐🍁⭐ परिपक्वता व अधिगम में संबंध⭐🍁⭐

🎯परिपक्वता और अधिगम एक दूसरे के पूरक होते हैं

🎯 अभी काम और परिपक्वता का घनिष्ठ संबंध होता है

🎯 अधिगम और परिपक्वता दोनों को प्रभाव एक दूसरे का पड़ता है

🎯 विकास के अंतर्गत दोनों का महत्वपूर्ण स्थान होता है

🎯 परिपक्वता वंशानुक्रम से आती है और अधिगम वातावरण से संबंधित है
हम कह सकते हैं कि अधिगम और परिपक्वता दोनों की आवश्यकता होती है मानव विकास के लिए इन दोनों के बिना मानव विकास संभव नहीं है परिपक्वता एवं अधिगम में काफी हद तक भिन्नता होती हैं

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻Menka patel ✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

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🔆 वृद्धि और विकास में अंतर (Growth and Development)

🌀 वृद्धि क्या है:(what is growth)
बालकों की शारीरिक संरचना का विकास जिसके अंतर्गत लंबाई, भार और मोटाई तथा अन्य अंगों का विकास आता है इस प्रकार का विकास वृद्धि के अंतर्गत आता है। वृद्धि की प्रक्रिया आंतरिक एवं बाहरी दोनों रूपों में होती है। वृद्धि भी एक निश्चित आयु तक होती है।वृद्धि पर अनुवांशिकता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभाव पड़ता है।

🌀 विकास क्या है (what is development)

विकास की प्रक्रिया पूरी जीवन भर चलती है। विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक, क्रियात्मक, संज्ञानात्मक ,भाषागत, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास होता है। बालक में क्रमबद्ध रूप से होने वाले सुसंगत परिवर्तन की क्रमिक श्रंखला को ही विकास कहते हैं।

🔆 वृद्धि और विकास में अंतर (Difference between growth and development)

▪️1 वृद्धि परिमाणात्मक
(quantitative) परिवर्तन है जबकि विकास गुणात्मक (qualitative) परिवर्तन है।

व्यक्ति की वृद्धि को अर्थात ऊंचाई, चौड़ाई,वजन और मोटाई को मापा जा सकता है लेकिन व्यक्ति की कार्यकुशलता, व्यवहार, कार्य क्षमता, विकास को मापा नहीं जा सकता।

▪️2 वृद्धि सीमित समय के लिए होती हैं जबकि विकास असीमित समय तक होता है।
संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का वृद्धि बस एक चरण या भाग मात्र है जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है। विकास व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तनों को प्रकट करता है।

▪️3 वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

▪️4 वृद्धि के दौरान होने वाले परिवर्तन में सामान्यत: दिख जाते हैं जबकि विकास के फल स्वरुप होने वाले परिवर्तनों को देखना कठिन है।
दूसरे रूप में हम कह सकते हैं वृद्धि प्रत्यक्ष दिखाई देती है जबकि विकास अप्रत्यक्ष होता है, जिसमें व्यवहार को देखकर निरीक्षण किया जाता है।

वृद्धि एवं विकास एक दूसरे से भिन्न या अलग है लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण की दृष्टि से अलग-अलग रहते हुए दोनों एक दूसरे में समाए हुए हैं।

विकास का कारण दो रूप से होता है।
1 परिपक्वता (Maturity)
2 अधिगम (Learning)

परिपक्वता व अधिगम को निम्नानुसार समझा जा सकता है।

🔅 1 परिपक्वता(Maturity)

इसका संबंध अनुवांशिकता (Heridity) से है।

▪️”हमारे जो आंतरिक अंग है उनका बूढ़ा होना या प्रौढ होना ही परिपक्वता है।”

व्यक्ति की गर्भ से लेकर बुढ़ापा तक की अवस्था तक पहुंचते पहुंचते सभी आंतरिक अंग प्रोढ़ या बूढ़े या परिपक्व होते जाते है यही परिपक्वता कहलाती है।
▪️परिपक्वता में वैसे गुणों का विकास होता है जो वंशानुक्रम से मिले हैं।
▪️जब व्यक्ति जवान होता है तो उसके आंतरिक अंगों धीरे धीरे बूढ़े होते जाते हैं । इसे बदला रोका नहीं जा सकता।
▪️बालक के विकास की परिपक्वता जन्म से लेकर तब तक चलती रहती है जब तक कि उसकी मांसपेशियां बढ़ती है और वह जब तक एक परिपक्व या पूर्ण अवस्था तक नहीं पहुंच जाती।

▪️परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है उसके कारण बच्चे का जो शारीरिक अवयव या भाग या कोशिका में नई क्रिया सीखने कि क्षमता आती है।

▪️परिपक्वता व्यक्ति के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास से भी जुड़ी होती है।

▪️व्यक्ति का यदि मानसिक विकास हो जाए लेकिन शारीरिक विकास ना हो पाए तो वह किसी भी कार्य को स्वयं से करके (प्रैक्टिकली) ही नहीं सीख पाएंगे।
जैसे यदि कोई बच्चे का मानसिक विकास हुआ है लेकिन शारीरिक विकास नहीं हुआ तब इस स्थिति में उसे कोई कार्य करने के लिए जैसे पानी लाने के लिए बोला जाए तो वह खुद से पानी नहीं ला सकता।
हर मानसिक विकास का संतुलन शारीरिक विकास के साथ बना होता है और जब भी कभी यह संतुलन बिगड़ता है तो व्यक्ति को शारीरिक विकास में समस्या आती है।

▪️बच्चे के शारीरिक विकास की क्षमता के हिसाब से ही सीखने की क्षमता आती है ।जैसे हम बताते हैं कि बच्चा बाल्यअवस्था में कुछ सीखता है, कुछ किशोरावस्था में सीखता है अर्थात यहां पर हम शारीरिक विकास के हिसाब से मानसिक विकास को बताते हैं लेकिन जब यह मानसिक और शारीरिक विकास परिवर्तन ठीक समय पर नहीं होता या इसका संतुलन बिगड़ता है तो परेशानी आती है ।

▪️आजकल कुछ बच्चों का मानसिक विकास बहुत जल्दी हो जाता है अर्थात शारीरिक विकास से पहले हो जाता है या शारीरिक विकास उसे मदद या सहयोग नहीं कर पाता तब ऐसे बच्चों को समस्या आती है।
जैसे –
*यदि कोई परिपक्व व्यक्ति कुछ नशीले पदार्थों का सेवन करता है तो उसके शरीर की शारीरिक क्षमता या हार्मोनल कोऑपरेटिव के कारण वह उसे संतुलित कर लेते हैं।

*लेकिन ऐसी स्थिति में जब 11 वर्ष का बालक इन पदार्थों का सेवन करता है तो उस बालक की शरीर की एंटीबायोटिक क्षमता या हारमोनस कॉपरेटिव ना होने के कारण उसे संतुलित नहीं कर पाती है या उसका असर हो जाता है।

▪️यह कार्य या सेवन दोनों ही व्यक्तियों के लिए गलत है लेकिन अधिक उम्र वाले व्यक्ति का शरीर उसे रेसिस्ट कर पाता है जबकि कम उम्र वाले व्यक्ति का शरीर उसे resist नहीं कर पाता जिसकी वजह से समस्या आती है।

▪️यदि कोई भी कार्य परिपक्वता से पहले या परिपक्वता हो रही होती है या पूरी नहीं हुई होती तब हम परिपक्वता पूर्ण जैसे कार्य करते हैं तो उसका हानिकारक प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है ।

▪️यदि किसी भी प्रकार का मानसिक परिवर्तन पहले हो जाता है तो शारीरिक विकास उस हिसाब से रिएक्ट नहीं करता तो ऐसी स्थिति में परेशानी आती है यह हमारे शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

▪️समय के साथ-साथ अर्थात मानसिक विकास के साथ साथ ही शारीरिक विकास होता है तब वह संतुलित बना रहता है। मानसिक परिपक्वता भी शारीरिक परिपक्वता को प्रभावित करती है।

🔆 अधिगम(Learning)

▪️ इसका संबंध वातावरण (Environment) से हैं।
अधिगम वातावरण से प्रभावित होता है।

▪️”वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना कहते हैं ।

🔆 परिपक्वता और अधिगम में संबंध

*दोनों का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है अर्थात दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

*दोनों का प्रभाव एक दूसरे पर या दोनों पर पड़ता है।

*विकास के अंतर्गत परिपक्वता और अधिगम दोनों ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

*परिपक्वता वंशानुक्रम से जबकि अधिगम वातावरण से संबंधित है।

✍🏻
Notes By-Vaishali Mishra

Date ,6/11/2020

📒 वृद्धि और विकास 📒
Growth and development

▪️ विकास और वृद्धि दोनों एक दूसरे से भिन्न
▪️ वृद्धि एक शारीरिक प्रक्रिया है
▪️ विकास एक बहुमुखी की प्रक्रिया है
▪️ शरीर के किसी पहलू में होने वाले परिवर्तन वृद्धि कहलाती हैं
▪️ और समय के साथ व्यक्ति में दिन-प्रतिदिन जो परिवर्तन होता वह विकास कहलाता है

👤 वृद्धि और विकास अंतर ,
Difference in growth and development

🔘 वृद्धि growth

▪️ वृद्धि परिमाणात्मक है शरीर के विभिन्न अंगो में जैसे ऊंचाई ,लंबाई ,कद ,भार , में परिवर्तन होना वृद्धि कहलाती है

▪️वृद्धि सीमित समय के लिए होती है यह संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण है

▪️ वृद्धि में होने वाले परिवर्तन दिख जाते हैं

▪️ वृद्धि व्यक्ति के परिपक्व होने के साथ ही समाप्त हो जाती है

▪️ वृद्धि , संपूर्ण विकास का मात्र एक शारीरिक पहलू है

🔘 विकास development

▪️ विकास गुणात्मक है
▪️ विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है
▪️व्यक्ति के कार्य कुशलता, क्षमता ,व्यवहार में परिवर्तन ,मानसिक ,बौद्धिक, संवेगात्मक रूप से बढ़ना ही विकास कहलाता है

▪️ विकास अपने आप विस्तृत अर्थ रखता है
यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन को यह प्रकट करता है
▪️ व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण करके ही विकास का पता लगाया जा सकता है

▪️विकास को अप्रत्यक्ष रूप से देखना कठिन है इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है

🔘 विकास का कारण Reason for development

👤 परिपक्वता एवं अधिगम

🔹 परिपक्वता Maturity➖ अनुवांशिकता से संबंधित है

▪️ परिपक्वता का अर्थ ➖ व्यक्ति के आंतरिक व शारीरिक अंगों का पूर्ण रूप से स्थाई होना या प्रोढ़ या बूढ़ा होना
▪️18 से 25 तक व्यक्ति पूर्ण रूप प्रोढ़ अवस्था पा लेता है वह मानसिक और शारीरिक दृष्टि से परिपक्व हो जाता है
▪️परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे के शारीरिक अवव्य में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है

🔹 अधिगम Learning ➖ वातावरण से संबंधित है

▪️वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सिखना कहते हैं

▪️ व्यक्ति का विकास अधिगम के द्वारा ही होता है नई ,नई,आदतों का निर्माण , निर्णय ,निर्यात,एंव सौंदर्य की अवधारणा अधिगम के द्वारा ही विकसित होती है

▪️ परिपक्वता और अधिगम में घनिष्ठ संबंध है यह एक दूसरे के पूरक है
▪️दोनों का प्रभाव दोनों पर पड़ता है विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं
▪️ परिपक्वता वंशानुक्रम से और अधिगम वातावरण से संबंधित है

👤 Notes by Sanu sanwle 👤

🦚🍁🦚 वृद्धि और विकास🦚🍁🦚

🌟 जैसा कि हम सभी जानते हैं कि,वृद्धि और विकास एक दूसरे से अंतर संबंधित हैं। यह हर एक व्यक्ति विशेष के जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। हर एक प्राणी विशेष के जीवन में इनका अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होता है। इसके बिना किसी भी प्राणी का जीवन संभव नहीं है। तथा वृद्धि विकास का एक भाग है।

🌳 वृद्धि और विकास के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं निम्नलिखित हैं :-

🌿 वृद्धि परिमाणात्मक होता है जबकि विकास गुणात्मक होता है।
🌿वृद्धि सीमित शब्द रखती है जबकि विकास विस्तृत शब्द रखता है।
🌿 वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है बल्कि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
🌿 वृद्धि दिखाई देती है परंतु विकास को हम देख नहीं सकते।
🌿 और विकास दोनों पर वंशानुक्रम और वातावरण दोनों के प्रभाव पड़ते हैं।

🌿 वृद्धि परिमाणात्मक होती है जबकि विकास गुणात्मक होता है :-

🌟 इसके अंतर्गत,मात्रा,भार,लंबाई,चौड़ाई,मोटाई इत्यादि यह सारे गुण वृद्धि के हैं जिसे हम देख के हम माप – तोल सकते हैं। इसे हम देख माफिया तो सकते हैं इसलिए कहा गया है कि विधि परिमाणात्मक होती है जिसे आसानी से मापा या तोला जा सकता है।

🌟 जबकि विकास के बारे में बिल्कुल इसके विपरीत है। विकास अनेक प्रकार की होती है।
जैसे कि :- मानसिक,शारीरिक,सामाजिक,संवेगात्मक,भावनात्मक और संज्ञानात्मक इत्यादि अनेक प्रकार के विकास होते हैं।जिसे हम देख या माप – तोल नहीं कर सकते।बल्कि हम उन्हें केवल भावनात्मक,संज्ञानात्मक,मानसिक और संवेगात्मक इत्यादि अनेक प्रकार की उनकी कार्यकुशलताओं को देखते हुए इसका अंदाजा लगा सकते हैं। या कहें कि इसे केवल महसूस किया जा सकता हैं।विकास के इसी गुण के कारण इसे गुणात्मक कहा गया है।

🌿 वृद्धि सीमित समय के लिए होता है जबकि विकास विस्तृत् अर्थ रखता है :-

🌟 वृद्धि अत्यंत सीमित समय के लिए होती है एक समय आने के बाद अचानक से वृद्धि रुक जाती है तथा अपनी पूर्णता को प्राप्त कर लेती है।अतः वृद्धि सीमित होती है।

🌟 जबकि विकास सीमित नहीं होता यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जो गर्भावस्था से लेकर जीवन पर्यंत तक चलती रहती है। विकास एक व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तनों को समाहित करती है। तथा वृद्धि विकास का ही एक भाग है।विकास का अत्यंत विस्तृत है।इसमें और भी कई सारे चरण समाहित हैं।

🌿 वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है बल्कि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है :-

🌟 वृद्धि एक सीमित समय तक के लिए होती है।जो कि परिपक्वता अवस्था में जाकर खत्म हो जाती है। तथा इसके बाद प्राणी के जीवन में वृद्धि का कोई स्थान नहीं होता बल्कि या परिपक्वता तक ही सीमित रह जाती है।

🌟 लेकिन विकास निरंतर चलने वाली एक जीवन पर्यंत प्रक्रिया है जो प्रत्येक व्यक्ति में गर्भावस्था से लेकर जीवन पर्यंत तक चलने वाली एक निरंतर प्रक्रिया है। विकास व्यक्ति में होने वाले हर एक प्रकार के परिवर्तनों को प्रकट करता है इसकी दिशा सीमित नहीं होती है

🌿 वृद्धि देखी जा सकती है परंतु विकास हम देख नहीं सकते :-

🌟 वृद्धि में होने वाले परिवर्तन प्रत्यक्ष रूप से होते हैं जिसे हम अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में देखते रहते हैं।
जैसे कि :- आकार मात्र आकार,लंबाई – चौड़ाई,ऊंचाई,मोटाई इत्यादि को आसानी से देखा और मापा – तोला जा सकता है।अतः वृद्धि प्रत्यक्ष और सीमित होती है।

🌟 जबकि विकास वृद्धि के बिल्कुल विपरीत होता है।यह असीमित चलने वाली प्रक्रिया है साथ ही यह का प्रत्यक्ष प्रक्रिया भी है तथा इसे मापा – तोला भी नहीं जा सकता बल्कि इसे हम महसूस करके या व्यक्ति के व्यवहार इत्यादि से निरीक्षण कर सकते हैं। इसके अनुसार हम यह कह सकते हैं कि व्यक्ति कितना विकास कर रहा है तथा कितना सक्षम है।

🌿 वृद्धि और विकास दोनों पर अनुवांशिकता और पर्यावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है :-

🌟 वृद्धि और विकास दोनों पर अनुवांशिकता और पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है इसका मतलब यह है। कि इन दोनों में ही हमारे अनुवांशिकता और पर्यावरण के गुण आते हैं।परंतु वृद्धि में इनके गुण नकारात्मक और सकारात्मक दोनों रूप से आते हैं।तथा विकास में भी इनके गुण नकारात्मक और सकारात्मक रूप में ही आते हैं। परंतु इसमें ज्यादातर सकारात्मक रूप में आते हैं।

🌷🌷 अत: उपरोक्त निष्कर्ष द्वारा यह स्पष्ट होता है कि दोनों एक – दूसरे से सामान्यतः विभिन्न होते हैं। इनमें कुछ समानताएं तथा कुछ और असमानताएं अवश्य पाई जाती है परंतु दोनों एक – दूसरे से अंतः संबंधित होते हैं।अथवा यह कह सकते हैं कि दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे होते हैं।🌷🌷

🦚🍁🦚विकास के कारण 🦚🍁🦚

🌳 विकास के दो कारण होते हैं :-
1️⃣ अधिगम
2️⃣ परिपक्वता

🌷🌷🌷🌷🌷 अधिगम🌷🌷🌷🌷🌷

🌟 अधिगम का संबंध वातावरण से होता है।
🍁अतः वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति में जो शारीरिक मानसिक भावनात्मक प्रक्रियाओं में बदलाव या जो प्रतिक्रियाएं होती है उन्हें सीखने में अधिगम कहते हैं।
जैसा कि हम जानते हैं कि मनुष्य जन्म के बाद से ही सीखना प्रारंभ कर देते हैं। और जीवन भर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं तथा धीरे-धीरे वातावरण में समायोजित होने की क्रिया – प्रतिक्रिया करते रहते हैं। अतः वातावरण का अधिगम प्रक्रिया में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है।

🌷🌷🌷🌷 परिपक्वता🌷🌷🌷🌷

🌟 परिपक्वता का संबंध वंशानुक्रम से होता है।परिपक्वता का अर्थ है कि जो हमें अनुवांशिकता से मिलने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जो कि हमारे आंतरिक विकास या वृद्धि का बढना,प्रौढ़ या बूढ़ा होने या उसके ऐसे गुणों को विकसित करना जो वंशानुक्रम से मिले हैं।तथा दिन-प्रतिदिन उनकी क्षमता का विघटन होना इसके साथ ही शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। तथा परिपक्वता बढ़ने के साथ-साथ ही प्रौढ़ता भी बढ़ती रहती है।अतः परिपक्वता में वंशानुक्रम का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है।

🌳अधिगम और परिपक्वता में संबंध🌳

🌟 परिपक्वता और अधिगम दोनों एक दूसरे घनिष्ठ से संबंध है। दोनों एक दूसरे से अंत: संबंधित होते हैं।
🌟 परिपक्वता और अधिगम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
🌟 परिपक्वता और अधिगम दोनों का एक दूसरे के बिना अस्तित्व नहीं है।
🌟 परिपक्वता का संबंध वंशानुक्रम से होता है तथा अधिगम का संबंध वातावरण से होता है

🌸🌸🌸🌸समाप्त🌸🌸🌸🌸

🌷🌷Notes by :- Neha Kumari 😊

🌷🌷🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏🌷🌷

🔆 वृद्धि और विकास में अंतर🔆

✨वृद्धि:-
बालकों की शारीरिक संरचना का विकास जिसके अंतर्गत लंबाई, भार और मोटाई तथा अन्य अंगों का विकास आता है। इस प्रकार का विकास वृद्धि के अंतर्गत आता है। वृद्धि की प्रक्रिया आंतरिक एवं बाहरी दोनों रूपों में होती है। वृद्धि एक एक सीमा तक होती है और उसके बाद रुक जाती है।

✨विकास:-

विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती है। विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक, क्रियात्मक संज्ञानात्मक ,भाषागत, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास होता है। विकास की प्रक्रिया में रुचि आदतों व्यक्तित्व व्यवहार आदि का विकास भी हो शामिल है।

🔆 वृद्धि और विकास में अंतर:-

  1. वृद्धि परिमाणात्मक परिवर्तन है जबकि विकास गुणात्मक परिवर्तन है।

व्यक्ति की वृद्धि को अर्थात ऊंचाई, चौड़ाई,वजन और मोटाई को मापा जा सकता है लेकिन व्यक्ति की कार्यकुशलता, व्यवहार, कार्य क्षमता, विकास को मापा नहीं जा सकता।

2.वृद्धि सीमित समय के लिए होती हैं जबकि विकास असीमित समय तक होता है।
संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का वृद्धि बस एक चरण या भाग मात्र है जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है। विकास व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तनों को प्रकट करता है।

  1. वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है जबकि विकास निरंतर जारी रहता है।

4.वृद्धि के दौरान होने वाले परिवर्तन सामान्यत: दिख जाते हैं जबकि विकास के दौरान होने वाले परिवर्तनों को देखा नहीं जा सकता। या हम यह कह सकते हैं कि वृद्धि प्रत्यक्ष दिखाई देती है जबकि विकास अप्रत्यक्ष होता है इसे हम व्यवहार को देख कर निरीक्षण कर सकते हैं।

🌟विकास का कारण दो रूप से होता है:-
1 परिपक्वता
2 अधिगम

परिपक्वता व अधिगम को निम्नानुसार समझा जा सकता है।

🔅 परिपक्वता:-

इसका संबंध अनुवांशिकता से होता है
1️⃣आंतरिक अंगो का बूढ़ा होना या प्रौढ होना ही परिपक्वता है।

बालक जन्म लेता है और उसके बाद वह धीरे धीरे बढ़ता चला जाता है उसकी उम्र के बढ़ने के साथ-साथ उसके आंतरिक अंग भी बढ़ते चले जाते हैं और वह बूढ़े या प्रौढ़ होते चले जाते हैं यही परिपक्वता कहलाती हैं।

2️⃣परिपक्वता में वैसे गुणों का विकास होता है जो वंशानुक्रम से मिले हैं:-बालक में परिपक्वता में ऐसे गुणों का विकास होता है जो बालों को वंशानुक्रम से प्राप्त होते हैं जैसे किसी बालक का उसके पिता के समान चलना या बात करने का तरीका।

3️⃣जब व्यक्ति जवान होता है तो उसके आंतरिक अंगों धीरे धीरे बूढ़े होते जाते हैं । इसे बदला रोका नहीं जा सकता।
4️⃣बालक के विकास की परिपक्वता में तब तक वृद्धि होती है जब तक बालक दृढ़ता और प्रौढ़तापूर्वक रूप नहीं पा लेते हैं।

5️⃣परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है उसके कारण बच्चे का जो शारीरिक अवयव में नई क्रिया सीखने कि क्षमता आती है

6️⃣पहले की अपेक्षा अभी के समय में बच्चों का मानसिक विकास बहुत जल्दी हो जाता है अर्थात शारीरिक विकास से पहले हो जाता हैै।

🔆 अधिगम:-

🔅 अधिगम कासंबंध वातावरण से हैं।
✨वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना कहते हैं ।

🔆 परिपक्वता और अधिगम में संबंध:-
दोनों का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं दोनों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है।
विकास के अंतर्गत परिपक्वता और अधिगम दोनों ही महत्व रखते हैं।
परिपक्वता वंशानुक्रम से जबकि
अधिगम वातावरण से संबंधित है।

✍🏻✍🏻Notes by-Raziya khan✍🏻✍🏻

🦚वृद्धि और विकास में अन्तर 🦚

🌺वृद्धि :-
वृद्धि के अन्तर्गत बालकों कि शारीरिक संरचना का विकास होता है जिसके अन्तर्गत लम्बांई, भार , मोटाई तथा अन्य अंगो का विकास होता है वृद्धि परिणात्मक होती है वृद्धि को हम माप सकते हैं वृद्धि कि प्रक्रिया सीमित समय के लिए होती है वृद्धि की प्रक्रिया आंतरिक और बाहय दोनों रुपो में होती है ये सम्पूर्ण प्रक्रिया विकास का एक चरण है और परिपक्वता के साथ ये समाप्त हो जाती है तथा वृद्धि में होने वाले जो परिवर्तन है उसे सामान्य रुप से जीवन में देखा जा सकता है और वृद्धि से होने वाले परिवर्तन सामान्यतः दिख जाते हैं वृद्धि को हम माप सकते हैं |

🏵विकास :-

विकास शब्द का प्रयोग गुणात्मक परिवर्तन के लिए प्रयोग में लाया जाता है
जैसे:- बालक में कार्यकुशलता , कार्यक्षमता आदि कि वृद्धि होती है विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन को प्रकट करता है विकास निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है
विकास अप्रत्यक्ष है इसे प्रत्यक्ष रुप से नहीं देखा जा सकता है विकास को मापना सामान्यतः कठिन है विकास आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है |

🌈विकास का कारण :-

इसके निम्नलिखित दो कारण है –

🌷परिपक्वता :-
शारीरिक एवं मानसिक विकास को ही परिपक्वता कहते हैं
परिपक्वता का अर्थ होता है –
आन्तरिक अंगो का बुढ़ा होना तथा किसी भी कार्य को सीखने के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से सक्षम होनी ही परिपक्वता है बालक का वह गुण जो उसके पुर्वजो से उसे मिलता है आकार , रंग , लम्बार्इ ईत्यादि वृद्धि बालक के वंशानुक्रम पर निर्भर करती है |
परिपक्वता विकास की आन्तरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे का शारीरिक रुप से अवयव में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है तथा परिपक्वता एक समय के लिए रुक जाती है और धीरे- धीरे घटने लगती है और उम्र के साथ इनमें शिथिलता आने लगती है जब यह गुण अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं तब इस अवस्था को परिपक्वता की अवस्था कहेंगे इस अवस्था में बच्चे नई – नई क्रियाएँ सीखने के लिए उत्साहित होते हैं |

🌹अधिगम :-
अधिगम में वातावरण के समय सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक क्रियाएँ जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना बोलते है तथा बालक अपने जीवन में जो भी कार्य करता है जो परिवर्तन आता है वह सीखने के अन्तर्गत आता है इन क्रियाओं के द्वारा ही बालक के जीवन में परिवर्तन आता है परिपक्वता और अधिगम एक – दूसरे के पूरक है दोनों का प्रभाव दोनों पर पड़ता है विकास के अन्तर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं परिपक्वता वंशानुक्रम से अधिगम वातावरण से सम्बन्धित है |

🌹🌹Thank you 🌹🌹

Notes by –
🏵Meenu Chaudhary 🏵

❄ वृद्धि और विकास ( growth and development ) ❄ 🌀 विकास :➖ विकास एक सार्वभौमिक प्रक्रिया हैं। जो जन्म से लेकर मृत्यु तक अविराम चलता रहता हैं। विकास केवल शारीरिक वृद्धि की बात नहीं करता हैं बल्कि यह शारीरिक मानसिक ,सामाजिक, और संवेगात्मक परिवर्तन सम्मिलित होते हैं। विकास गर्भ काल से लेकर मृत्यु तक निरंतर प्राणी में प्रकट होते रहते हैं। प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न पाता है वही विकास की प्रक्रिया के परिणाम होते हैं । 🌀 वृद्धि ➖ वृद्धि में हम शारीरिक संरचना की बात करते हैं। जैसे कि वजन, भार, लंबाई यह हमारे शरीर से संबंधित होता हैं। इस प्रकार के होने वाले परिवर्तन को हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं । वृद्धि की प्रक्रिया बाहृ एवं आंतरिक दोनों रूप से हो सकती हैं। परिपक्वता आने के बाद वृद्धि रुक जाती हैं। अतः यह कह सकते हैं कि एक समय आता है जब वृद्धि रुक जाती है वृद्धि सीमित समय के लिए होती हैं। ▪️ वृद्धि और विकास में अंतर ▪️ ♦️ वृद्धि ( growth ) ♦️ ➖ 1 – वृद्धि परिमाणात्मक ( quantitative) होती हैं। इसमें वजन भार लंबाई इत्यादि शारीरिक संरचना होती है 2 – वृद्धि सीमित समय के लिए होती है वृद्धि संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण मात्र है 3 – वृद्धि परिपक्वता आने के साथ समाप्त हो जाती हैं। 4 – वृद्धि में होने वाले परिवर्तन प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं ♦️ विकास ( development ) ♦️➖ 1- विकास गुणात्मक( qualitative) परिवर्तन होते हैं ।( जैसे जब हम किसी पद या प्रतिष्ठा को प्राप्त करते हैं तो मिलने वाला सम्मान ही विकास हैं। ) कार्यकुशलता क्षमता व्यवहार इत्यादि इसमें आते हैं । 2 – विकास विस्तृतअर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग हैं। यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन प्रकट करता हैं। 3 – विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं। 4 – विकास में होने वाले परिवर्तन अप्रत्यक्ष होते हैं उनको हम देख नहीं पाते व्यवहारों का निरीक्षण करके हम पता करते हैं। विकास मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता हैं। ▪️ विकास का कारण ▪️ विकास का कारण निम्नलिखित दो प्रकार से होता है 1 परिपक्वता (heredity),…2 अधिगम (learning) 1 परिपक्वता ➖ परिपक्वता का अर्थ है हमारा शरीर किसी कार्य को करने के लिए तैयार हो जाता हैं । अ) आंतरिक अंगों का प्रौढ़ या बूढ़ा होना । वैसे गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिलते हैं। इसमें तब तक वृद्धि होती है जब तक दृढ़ता और प्रौढ़ता पूर्ण रूप से नहीं पा लेते हैं परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे के शारीरिक अवयव में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती हैं। 2 अधिगम ➖ वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना बोलते हैं। 👉 ** परिपक्वता और अधिगम का घनिष्ठ संबंध हैं।** दूसरे शब्दों में परिपक्वता और अधिगम एक दूसरे के पूरक हैं दोनों का प्रभाव दोनों पर पड़ता है विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। परिपक्वता वंशानुक्रम से अधिगम वातावरण से संबंधित हैं। धन्यवाद ✍️ notes by Pragya shukla

🎻वृद्धि और विकास में अंतर (Growth and Development)
🌻⛲वृद्धि :-
ःवृद्धी की प्रक्रिया आंतरिक और बाहरी दोनो रूपो में होती हैं।
ःवृद्धि निश्चित आयु के बाद रूक जाती हैं।
ःवृद्धि को मापा नही जा सकता हैं।
ःवृद्धि में ऊँचाई, भार और मोटाई तथा अन्य अंगो का विकास होता है।
ःवृद्धि सकारात्मक और नकारात्मक दोनों होती हैं।

🌻⛲विकास :-
विकास की प्रक्रिया में बालक का संज्ञानात्मक, शारीरिक, संवेगात्मक और सामाजिक विकास होता है।
⛲वृद्धि और विकास में अंतर ( Difference Between Growth and Development)
ःवृद्धी परिमाणात्मक परिवर्तन (Quantitative)होता है वृद्धि में ऊँचाई, भार, मोटापा, को मापा जा सकता है और विकास गुणात्मक (Quantity) परिवर्तन होता है और विकास को मापा नही जा सकता है।
👁‍🗨वृद्धि सीमित समय के लिए होती हैं जबकि विकास जीवन भर चलती रहती हैं।
👁‍🗨वृद्धि परिवक्ता के साथ खत्म हो जाती हैं जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, विकास जितना होता है उतना परिपक्वता बढ़ती रहती हैं।
👁‍🗨वृद्धि में होने वाले परिवर्तन दिख जाते हैं जबकि विकास में परिवर्तन सरल रूप से नहीं दिखते हैं, वृद्धि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती हैं जबकि विकास अप्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती हैं क्योंकि विकास को प्रत्यक्ष रुप से देखना कठिन है, जिसमें व्यवहार को देखकर निरीक्षण किया जाता है।
👁‍🗨वृद्धि एवं विकास दोनों भिन्न है मगर व्यवहारिक दृष्टिकोण से समाहित हैं और दोनों एक दूसरे से अलग होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं
🌻विकास का कारण :-
विकास का कारण दो रूप से होता है:-
1.परिपक्वता (maturity)

  1. अधिगम (Learning)
    1.परिपक्वता (Maturity)
    ःइसका संबंध अनुवांशिकता से है।
    👁‍🗨 आंतरिक अंगों का प्रोढ़ या बुढ़ा होना ही परिपक्वता कहलाता है जैसे :- जैसे जैसे हम बड़े होते हैं तो हमारी परिपक्वता बढ़ती है वैसे वैसे ही उम्र भी हमारी घटती रहती है।
    👁‍🗨 परिपक्वता में वैसे गुणों का विकास होता है जो वंशानुक्रम से मिले हैं जैसे जो हमारे पूर्वजों से मिली है आंखों का रंग बालों का रंग उनके जैसा व्यवहार जो यह सब हमारे पूर्वजों से मिली है।
    👁‍🗨 विकास जब तक बढ़ती है जब तक प्रोढ़ पूर्ण अवस्था तक ना पहुंच जाए प्रोढ़ पूर्ण रूप से पा लेते हैं।
    आजकल बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनका शारीरिक मानसिक विकास उनकी उम्र के पहले ही हो जाता है यह दोनों रूप में हानिकारक है विकास का होना एक सीमित समय पर ही है अगर जल्दी भी होती है तो हानिकारक है अगर लेट से भी होती है तो वह भी हानिकारक है सही समय पर शारीरिक और मानसिक विकास का होना ही सही बालक की पहचान है बच्चे गलत रास्ते पर नहीं जाए इसलिए उन्हें सही रास्ता दिखाना भी हमारा कर्तव्य हैं।
    👁‍🗨 परिपक्वता के पहले ही बहुत पहले ही बच्चे हैं वह नशीली पदार्थों का सेवन करना शुरू कर देते हैं मगर ये किशोरावस्था के नीचे वाले बच्चों के लिए हानिकारक है कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपनी उम्र के अनुसार करते हैं तो उनका हार्मोन एक्सेप्ट कर लेता है मगर बाल्यावस्था किशोरावस्था के जो बच्चे हैं उनके लिए बहुत ही हानिकारक है इसलिए उन्हें सही रास्ता दिखाना भी जरूरी है
    👁‍🗨 अगर किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक विकास समय के पहले भी आता है तो वह भी हानिकारक है।
    🌻अघिगम (Learning)
    इसका संबंध पर्यावरण से है।
    अधिगम वातावरण को प्रभावित करता है।
    ः वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना कहते हैं।
    🌴परिपक्वता और अघिगम में संबंध :-
    परिपक्वता और अधिगम का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है ।परिपक्वता और अधिगम में एक दूसरे के पूरक हैं ।दोनों का प्रभाव दोनों पर पड़ता है ।
    ःविकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
    🌻परिपक्वता का संबंध है वंशानुक्रम से है और अधिगम का संबंध वातावरण से है।

Notes By:-Neha Roy

🌱🌸🌱 वृद्धि और विकास🌱🌸🌱

🌱 वृद्धि (Growth)– वृद्धि का अर्थ “आगे बढ़ना या समय के साथ परिवर्तन होना” “वृद्धि” कहलाती है। बाल विकास में वृद्धि शब्द का प्रयोग बालक के शारीरिक संरचना जैसे,लंबाई– चौड़ाई, मोटाई, भार–आकर तथा शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तन से होता है। यह आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार से होती है ।वृद्धि विकास का एक भाग है।

🌱 विकास (Development)– विकास शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जा सकता है। जैसे किसी व्यक्ति की कार्यकुशलता का विकास, उनकी कार्य क्षमता का विकास, व्यवहार में परिवर्तन आदि का विकास होना, “विकास” कहलाता है।तथा विकास “जीवन पर्यंत” होता/चलता रहता है ।

🍃🌸🍃 वृद्धि एवं विकास में अंतर– जैसा कि वृद्धि और विकास एक–दूसरे के पर्याय हैं और एक–दूसरे से सम्बंधित होने के साथ–साथ इन दोनों में काफी अंतर भी पाया जाता है,जो निम्नलिखित रूप से है–

🌱 वृद्धि शारीरिक होती है।और विकास शारीरिक के साथ-साथ मानसिक, सामाजिक ,नैतिक व संवेगिक होती है।

🌱 वृद्धि परिमाणात्मक होती है जैसे–लंबाई–चौड़ाई, ऊंचाई, भार, आकार को मापा जा सकता है। जबकि विकास गुणात्मक होता है। जैसे–किसी व्यक्ति की कार्यकुशलता, क्षमता, व्यवहार आदि विकास में परिवर्तन को मापा नहीं जा सकता।अर्थात केवल इसका अनुभव किया जा सकता है।

🌱 वृद्धि एक सीमित समय पर आ कर रुक जाती है। जबकि विकास असीमित समय तक चलता रहता है।

🌱 वृद्धि संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण है। वहीं विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाली सभी परिवर्तन को प्रकट करता है।

🌱 वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

🌱 वृद्धि में होने वाले परिवर्तन सामान्यत: देखे जाते हैं जबकि विकास की प्रगति को प्रत्यक्ष रूप से देखना कठिन है अर्थात् विकास अप्रत्यक्ष होता है जिसमें व्यवहार को देखकर निरीक्षण किया जाता है।

🌱“वृद्धि और विकास एक दूसरे से भिन्न है, लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखें तो यह ज्ञात होगा,कि विकास की अवधारणा में वृद्धि की अवधारणा समयी हुई है।”

🌱🌸🌱 विकास का कारण– विकास को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है–

🌸 १. परिपक्वता (Maturity)
🌸 २. अधिगम (Leraning)

🌱🌸🌱 परिपक्वता ( Maturity)– यहां परिपक्वता का संबंध– “अनुवांशिकता (Heridity)” से है।

🌱 हमारे शरीर के आंतरिक अंगों का बूढ़ा/प्रौढ होना या ऐसे गुणों का विकसित होना जो, वंशानुक्रम से मिले हैं ,“परिपक्वता” कहलाती है।

🌱 जन्म से लेकर बुढ़ापा तक की अवस्था तक, पहुंचते-पहुंचते सभी आंतरिक अंग प्रौढ़ , बूढ़े या परिपक्व हो जाते है , “परिपक्वता” कहलाती है।

🌱 जब व्यक्ति जवान होता है, तो उसके आंतरिक अंग धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं अतः इस प्रक्रिया को बदला या रोका नहीं जा सकता।

🌱 बालक के विकास में तब तक वृद्धि होती रहती है, जब तक कि उनकी मांसपेशियां दृढ़ता और प्रौढ़ता पूर्ण रूप से न पा ले।

🌱 परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है। इसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव (शरीर के भाग) में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है।

🌱 परिपक्वता व्यक्ति के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास से भी जुड़ी होती है।

🌱 शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होना जरूरी है, क्योंकि यदि किसी बच्चे का मानसिक विकास जल्दी हो गया है ,किन्तु उसका शारीरिक विकास अभी नहीं हुआ है या पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं हुआ है तो वह किसी भी कार्य को शारीरिक रूप से नहीं कर पाएगा।जैसे– बच्चे को इस बात ज्ञान है की साइकिल कैसे चलाई जाती है , लेकिन जब उसे साईकिल चलने के लिए बोला जाएगा तो वह उस साईकिल को नहीं चला पाएगा इसलिए बच्चे का मानसिक विकास और शारीरिक विकास दोनों सही समय पर ना हो तो समस्या हो सकती है। इसलिए बच्चे के शारीरिक विकास के साथ–साथ मानसिक विकास या मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास भी होना बहुत आवश्यक है।

🌱🌸🌱 अधिगम ( Lerning)– अधिगम का संबंध “वातावरण (Environment)”है।

🌱“वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक/मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है, उसे “अधिगम” या “सीखना” कहते हैं।

🌱🌸🌱 परिपक्वता और अधिगम का संबंध–

🌱परिपक्वता और अधिगम दोनों का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध रखते है ।तथा एक-दूसरे के पूरक हैं।

🌱 परिपक्वता और अधिगम का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है।

🌱 विकास के अंतर्गत दोनों ही अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

🌱 परिपक्वता वंशानुक्रम से तथा अधिगम वातावरण से संबंधित है।

🌱 अतः वातावरण अधिगम को प्रभावित करता है।
जिससे यह कहा जा सकता है कि, अगर दोनो में से कोई एक नहीं होगा, तो विकास सही से नहीं हो पाएगा। 🍃🌸🍃🌸🍃🌸🍃

✍🏻Notes by–pooja

वृद्धि और विकास👫👫

🍃🍃 साधारण तौर पर कहा जाए तो वृद्धि और विकास के बीच घनिष्ठ संबंध होता है अर्थात् मनुष्य के जीवन में वृद्धि और विकास का एक अहम हिस्सा है इसके कारण ही मनुष्य की शारीरिक मानसिक व्यवहारों में अलग-अलग प्रकार की भिन्नता आती है ।

🔅वृद्धि और विकास में अलग-अलग प्रकार के अंतर देखने को मिलता है जो निम्न प्रकार से हैं:

(1) वृद्धि परिमाणात्मक होती हैं जबकि विकास गुणात्मक:- वृद्धि के अंतर्गत हम शरीर से वृद्धि करते हैं अर्थात् इसमें मात्रा भार लंबाई चौड़ाई मोटापा काला गोरा शरीर की बनावट शारीरिक सुंदरता इत्यादि चीजों की विश्लेषण करते हैं मनुष्य की शारीरिक बनावट को हम माफ -तोल सकते हैं। जबकि दूसरी और *विकास में गुणात्मक परिवर्तन होता है* :➖

इसमें शारीरिक बनावट या सुंदरता से कोई मतलब नहीं होता बल्कि मनुष्य की कार्यकुशलता, क्षमता ,व्यवहार आदि साधारण तौर पर हम कर सकते हैं कि इसके के अंदर हम आंतरिक सुंदरता को परखते हैं।
इसके अंदर हम मनुष्य के हाव-भाव मानसिक शारीरिक सामाजिक और उनके कार्य कुशलता को आंक सकते हैं इसके विकास को हम देख या माप-तोल नहीं सकते हैं बल्कि महसूस कर सकते हैं।

(2) वृध्दि सीमित समय तक होता है जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है:-

🟢वृद्धि संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण हैं। यह सीमित समय के लिए होती है एक समय आने के बाद यह रुक जाती है।

🟢विकास वृद्धि का ही हिस्सा है या विस्तृत अर्थ रखता है तथा व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन को प्रकट करता है।

(3) वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है:-
वृद्धि एक सीमित समय तक ही होती है एक समय के बाद वह रुक जाती है ।

🟢विकास सीमित नहीं होता या निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है यह गर्भावस्था से लेकर मृत्योपरांत तक कुछ ना कुछ प्रक्रिया होती रहती है जो अप्रत्यक्ष होते हैं दिखाई नहीं देते इसके अंदर हम मनुष्य के व्यक्तित्व ,व्यवहारों का निरीक्षण करते हैं।

(4) वृद्धि देखी जा सकती है जबकि विकास को हम देख नहीं सकते:-

🔅साधारण तौर पर हम वृद्धि के शारीरिक संरचना, ऊंचाई ,चौड़ाई, लंबाई ,भार ,मोटापा इत्यादि चीजों को माप तोल या देख सकते हैं।

☘️वहीं दूसरी और विकास में हम मनुष्य की शारीरिक बनावट को देख नहीं सकते बल्कि महसूस कर सकते कि वह कितना विकास कर रहा है और उसके अंदर कौन-कौन सी क्षमताएं हैं।

🟢 विकास के 2 कारण होते हैं:-

1️⃣ परिपक्वता
2️⃣ अधिगम

🌼 परिपक्वता🌼:➖

परिपक्वता का संबंध वंशानुक्रम से होता है या विकास की आंतरिक प्रक्रिया है आंतरिक अंगों का बूढ़ा होना ,प्रौढ़ अवस्था की तरफ बढ़ना।

🌼 वैसे गुणों का विकसित होना जो मानसिक रूप से मिले हैं बालक के विकास के परिपक्वता की प्रक्रिया जन्म से लेकर तब तक चलते रहता है जब तक उसकी मांसपेशी एक परिपक्व या प्रौढ़ पूर्ण अवस्था में नहीं पहुंच जाती है।
इसमें तब तक वृद्धि होती जब तक दृढ़ता और प्रौढ़ता पूर्ण रूप से नहीं पा लेता हैं।

🌼परिपक्वता विकास की आर्थिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे के शारीरिक अवयवों में नई-नई क्रिया को सीखने की क्षमता होती हैं। *मानसिक परिपक्वता ही शारीरिक परिपक्वता को प्रभावित करते हैं*।

🌼 अधिगम🌼:➖
वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति के सामाजिक और वातावरण के कारण शारीरिक और मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम (सीखना या बोलना) कहते हैं। ☘️ उपरोक्त कथन से यह निष्कर्ष निकलता है कि परिपक्वता और अधिगम में घनिष्ठ संबंध( पूरक) है। दोनों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और परिपक्वता वंशानुक्रम से तथा अधिगम वातावरण से संबंधित है।

Notes by ➖Mahima kumari
🤍🤍🤍🤍

🌻 वृद्धि:- वे शारीरिक परिवर्तन जिसमें लंबाई, भार ,मोटाई, ऊंचाई, एवं अन्य अंगों के विकास संबंधी परिवर्तन जिसमें व्यक्ति के आंतरिक एवं बाह्य दोनों में परिवर्तन देखा जाता है, एक निश्चित समय तक होने वाला परिवर्तन जिससे शारीरिक संरचना में बदलाव आता है वृद्धि कहा जाता है।

🌻 विकास:- विकास की वह संपूर्ण प्रक्रिया जिसमें एक बालक के शारीरिक ,संवेगिक, संज्ञानात्मक, क्रियात्मक, नैतिक, सामाजिक विकास होता है विकास जीवन भर निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है क्रमबद्ध रूप से होने वाली सुसंगत परिवर्तन की क्रमिक श्रंखला को विकास कहते हैं।
🍁🍀 वृद्धि और विकास में अंतर🍀🍁
1 वृद्धि परिमाणात्मक होता है जिसे मात्रा,भार लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई के द्वारा मापा जा सकता है जबकि विकास गुणात्मक होता है जिसमें कार्यकुशलता, क्षमता, व्यवहार ,आदि का मापन नहीं किया जा सकता।
2- वृद्धि सीमित समय के लिए होती है संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का एक पहलू है जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन को प्रकट करता है।
3- वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है जबकि विकास निरंतर जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है।
4-वृद्धि के फलस्वरुप होने वाले परिवर्तन प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देते हैं जबकि विकास की प्रक्रिया में ऐसे परिवर्तन दिखाई नहीं देते हैं या अप्रत्यक्ष होते हैं विकास का पता केवल व्यवहार का निरीक्षण करके किया जाता है।
अर्थात हम यह कह सकते हैं कि वृद्धि एवं विकास एक दूसरे से भिन्न होकर भी संबंधित है या एक दूसरे के पूरक है क्योंकि किसी एक पहलू का ना होना बालक की संपूर्ण विकास की प्रक्रिया को प्रक्रिया को बाधित करता है।

✍️ विकास का कारण🍀
1 परिपक्वता
2 अधिगम

🌸 परिपक्वता🌸 व्यक्ति के आंतरिक अंगों का प्रौढ होना या बूढा होना ही परिपक्वता है परिपक्वता का संबंध अनुवांशिकता से होता है।
🌸 परिपक्वता में वैसे गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिले हैं।
🌸 परिपक्वता मे तब तक वृद्धि होती है जब तक दृढ़ता और पूर्णता पूर्ण रूप से नहीं पा लेते हैं अर्थात व्यक्ति की मांसपेशियों एवं शारीरिक संरचना में दृढ़ता का होना परिपक्वता को प्रदर्शित करता है।
🌸 परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे की शारीरिक अवयव में नई क्रिया सीखने की क्षमता या गतिशीलता आती है।

✍️ अधिगम:- अधिगम का संबंध वातावरण से है।
वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम यह सीखना बोलते हैं
व्यक्ति प्राप्त वातावरण में समायोजन स्थापित करता है और उस वातावरण में स्थाई परिवर्तन लाता है उसे अधिगम कहते हैं।।

✍️🌸✍️ परिपक्वता और अधिगम में संबंध:-
🌸 परिपक्वता और अधिगम घनिष्ठ रूप से संबंधित है यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
🌸 परिपक्वता के कारण आए हुए परिवर्तन का प्रभाव अधिगम पर पड़ता है और व्यक्ति जितना अधिक सीखता है उतना अधिक परिपक्व होता है।
🌸 विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
🌸 परिपक्वता का संबंध है जहां वंशानुक्रम से होता है वही अधिगम का संबंध वातावरण से। 🍀 परिपक्वता और अधिगम एक दूसरे से जुड़े हुए हैं दोनों पहलू में से किसी एक का ना होना बालक के विकास को प्रभावित करता है।🍀 Notes by- Abhilasha pandey

🌾🌻वृद्धि और विकास में अंतर (Diffrence between growth and development)🌻🎯

🌹वृद्धि(growth) परिमाणात्मक(Quantitative) होता है। जैसे:
🧚‍♀️भार (weight)
🧚‍♀️उंचाई (height)
🧚‍♀️आकार (size) etc
🧚‍♀️चौड़ाई (breadth)
🍁जबकि विकास (development) गुणात्मक (quality) होता है। जैसे:
🌿कार्य कुशलता
🌿क्षमता
🌿व्यवहार
🌿संज्ञानात्मक etc

🌹वृद्धि(growth) सीमित(limit) होता है।
🍁जबकि विकास(development) विस्तृत(extensive) अर्थ रखता है।

🌹वृद्धि(growth) संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण है।
🍁जबकि वृद्धि विकास का भाग है, यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन प्रकट करता है।

🌹वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है।
🍁जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
अर्थात यह जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है

🌹वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तन सामान्यतः दिख जाती हैं।
🍁जबकि विकास अप्रत्यक्ष रूप से नहीं दिखता है, विकास के फलस्वरूप होने वाले सभी परिवर्तन को प्रत्यक्ष देखना कठिन होता है, इसे देखने के लिए किसी व्यक्ति के व्यवहार का निरिक्षण करना होता है।

🌹वृद्धि आंतरिक(internal) और बाह्य(external) दोनों रूप से होता है।
🍁जबकि विकास आंतरिक(internal) रूप से होता है।

🍂🌳विकास का कारण (Reason for development)🌳🍂

🐒विकास के दो कारण होते है:
🅰️अधिगम Learning
🅱️परिपक्वता Maturity

📒📙📕⚘अधिगम (Learning)⚘📕📙📒

🦜अधिगम का संबंध पर्यावरण(environment) से है।
🦜अधिगम वातावरण को प्रभावित करता है।
🦜अधिगम वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक/मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है, उसे अधिगम/सीखना कहते हैं।

🍃👨‍👧👩‍👦परिपक्वता (Maturity)👩‍👦👨‍👧🍃

🍒Maturity का संबंध अनुवांशिकता (heridity) से है।
🍒हमारे internal part का प्रौढ़/बूढ़ा होना ही परिपक्वता कहलाता है।
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है, वैसे वैसे हमारे उम्र घटती जाती हैं और हमारी परिपक्वता भी बढ़ती जाती हैं।
🍒वैसे गुणों का विकास होता है जो वंशानुक्रम से मिले हो।
जैसे जो कुछ हमारे पूर्वजों से मिली है उनका व्यवहार, उनका रंग- रूप, आदि। यह सब हमे हमारे पूर्वजों से मिलती है।
🍒विकास तब तक वृद्धि होती है, जब तक दृढ़ता और प्रोढ़तापूर्ण रूप से नहीं पा लेते हैं।
जैसे बच्चों में आजकल देखा जा रहा है, जिनका शारीरिक और मानसिक विकास उनके उम्र से पहले/बाद ही आ जा रहा है। जबकि यह सही नहीं होती।
शारीरिक/मानसिक विकास सही समय पर होना ही एक अच्छे बालक की पहचान करता है।
🍒परिपक्वता विकास की एक आतंरिक प्रक्रिया है, इसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव(शरीर के अंग) में नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है।

🍄🍃परिपक्वता और अधिगम का संबंध 🍃🍄

🌾इन दोनों का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है और एक दूसरे के पूरक है।
🌾इन दोनों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है।
🌾विकास के अंतर्गत दोनों ही अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
🌾परिपक्वता वंशानुक्रम से संबंधित है और अधिगम वातावरण से संबंधित है।

🦚🦚🦚अंतः हम यह कह सकते हैं कि दोनों का अपना-अपना स्थान है। दोनों में से कोई एक नहीं होगा, तो development सही से नहीं हो सकता है।🦚🦚🦚

🌸🍃🌸🍃🌻END🌻🍃🌸🍃🌸

📚Noted by🦩 Soni Nikku✍

Difference between growth and development वृद्धि और विकास में अंतर

1.वृद्धि परिमाणात्मक होती हैं इसमें व्यक्ति में हो रहे शारीरिक परिवर्तनों को देखते है जैसे भार में वृद्धि, लंबाई का बढ़ना आदि होता है ,जबकि विकास गुणात्मक परिवर्तन है इसे व्यक्ति के व्यवहार, कार्यकुशलता, क्षमता ,नाम से बड़ा होना आदि को एक लंबे समय तक निरंतर अवलोकन करके दो समय अंतराल के बीच अंतर (भिन्नता) करके महसूस किया जा सकता है ।

2.वृध्दि सीमित समय के लिए होती है अर्थात यह कुछ समय के बाद रुक जाती है वृद्धि संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का एक चरण मात्र है। जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तनों को प्रकट करता है। सभी परिवर्तन मतलब मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक ,संवेगात्मक आदि हो सकते हैं।

3.वृध्दि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है जबकि विकास गर्भावस्था से शुरू होकर मृत्यु तक आजीवन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

4.वृध्दि के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों को सामान्यतः देखा जा सकता है और मापा जा सकता है जैसे हम किसी व्यक्ति की लंबाई को, वजन को माप सकते ।जबकि विकास अप्रत्यक्ष होता है यह दिखाई नहीं देता है इसको महसूस किया जा सकता है प्रत्यक्ष देखना कठिन है इसे लंबे समय तक निरंतर व्यवहार का निरीक्षण या अवलोकन करके महसूस किया जा सकता है। जैसे किसी के व्यवहार में 2 किलो परिवर्तन हुआ उसको मापना असंभव है वैसे ही विकास को मापना कठिन है।

विकास दो कारणों से हो सकता है –
परिपक्वता (heredity)( nature) (आनुवांशिकता )और अधिगम (environment)(nurture) (पर्यावरण)

परिपक्वता का अर्थ –

1.आंतरिक अंगों का प्रोढ़ या बूढ़ा होना ।
2.वैसे गुणों का विकास होना जो वंशानुक्रम से मिले हैं अतः माता-पिता से संतान में उपहार के स्वरुप आए हैं

  1. इसमें तब तक वृद्धि होती है जब तक की दृढ़ता और पूर्णता पूर्ण रूप से नहीं पा लेते ।
    4.परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया है इसके कारण बच्चे के शारीरिक अवयव में नई क्रिया सीखने की क्षमता होती है ।
    अर्थात जब तक बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास समान रूप से नहीं हो जाता तब तक यह प्रक्रिया चलती रहती हैं
    जैसे कोई 5 साल का बच्चा अपने कपड़े को ठीक से पहनना सीख जाता है तो यहां पर बच्चे की शारीरिक और मानसिक परिपक्वता दोनों साथ साथ विकसित हो जाती है लेकिन कभी-कभी बच्चे की मानसिक प्रक्रिया जल्दी विकसित हो जाती है और शारीरिक प्रक्रिया थोड़े समय बाद विकसित होती हैं जैसे 12 साल के बच्चे साइकिल की जगह मोटरसाइकिल को चलाने की कोशिश करते हैं और गिर जाते हैं क्योंकि इस समय उनके अंग उस कार्य को करने के लिए पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं होते हैं लेकिन उनकी मानसिक क्षमता परिपक्व हो जाती है।

अधिगम -वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्रिया में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना बोलते हैं।

💣परिपक्वता और अधिगम में घनिष्ठ संबंध है
यह एक दूसरे के पूरक हैं
दोनों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है।
विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं
परिपक्वता को वंशानुक्रम से तथा अधिगम को वातावरण से संबंधित मान सकते हैं ।

Notes by Ravi kushwah

🔆 वृद्धि और विकास में अंतर

💫 वृद्धि

व्यक्ति या बालकों की शारीरिक संरचना का विकास जिसके अंतर्गत लंबाई, ऊंचाई ,भार, वजन, मोटाई तथा अन्य अंगों का विकास होता है और इस प्रकार का विकास वृद्धि के अंतर्गत आता है वृद्धि की प्रक्रिया शरीर के आंतरिक एवं बाहरी दोनों रूपों में होती है जो कि एक निश्चित समय के पश्चात रुक जाती है वृद्धि का संबंध अनुवांशिकता से है जिसका प्रभाव नकारात्मक एवं सकारात्मक हो सकता है वृद्धि विकास का एक भाग है जो कि एक निश्चित समय के पश्चात रुक जाती है |

💫 विकास

विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो कि बालक के गर्भ से लेकर मृत्यु तक चलती है बालक का विकास मानसिक, संज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक ,संवेगात्मक ,एवं सामाजिक आदि हो सकता है विकास के अंतर्गत नए- नए अवसरों को खोजा जाता है और वही विकास कहलाता है अर्थात विकास हमारे मानसिक रूप से होने वाले क्रमबद्ध परिवर्तन का एक रूप है |

💫 वृद्धि और विकास में अंतर

🔹 वृद्धि परिमाण पर निर्भर करती है जो कि मात्रात्मक होती है अर्थात बालक के लंबाई ,ऊंचाई भार , वजन आदि हो सकते हैं जो कि शरीर के बाहरी कारक होते हैं |
जबकि विकास गुणात्मक परिवर्तन है इसको मापा नहीं जा सकता है जो कि व्यक्ति की कार्यकुशलता ,क्षमता, व्यवहार आदि पर निर्भर करता है विकास व्यक्ति के आंतरिक कारकों पर निर्भर करता है |

🔹 वृद्धि सीमित समय के लिए होती है कुछ समय के पश्चात रुक जाती है यह संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण मात्र है |
जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृद्धि इसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तन को प्रकट करता है |

🔹 वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है वृद्धि निश्चित समय के बाद रुक जाती है |
जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है यह गर्भावस्था से शुरू होकर मृत्यु तक चलता रहता है और दिनों -दिन miture और होता जाता है |

🔹 वृद्धि वृद्धि में होने वाले परिवर्तन दिख जाते हैं क्योंकि वृद्धि शारीरिक बनावट को प्रदर्शित करती है |
जबकि विकास अप्रत्यक्ष होता है दिखता नहीं है इसको प्रत्यक्ष देखना कठिन है व्यवहार का निरीक्षण किया जा सकता है अर्थात विकास व्यावहारिक भी हो सकता है |

🔅 वृद्धि और विकास एक दूसरे से भिन्न है यदि व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो वृद्धि विकास का ही एक भाग है जो कि कुछ समय पश्चात रुक जाती है और विकास निरंतर चलते रहता है |

🔅 बच्चे के विकास का जो कारण है वह परिपक्वता और अधिगम पर निर्भर करता है जो अनुवांशिकता और वातावरण से प्राप्त होते हैं जहां परिपक्वता का संबंध वंशानुक्रम से तथा अधिगम का संबंध वातावरण से होता है |

विकास का कारण दो प्रकार का या दो रूपों में हो सकता है ➖
1) परिपक्वता
2) अधिगम

🍀 परिपक्वता

इस का संबंध अनुवांशिकता से है|

🔸परिपक्वता का अर्थ हमारे जो आंतरिक अंग है उनका प्रौढ़ होना या बूढ़ा होना होता है हमारी शारीरिक स्थिति हर दिन हर समय बदलती रहती है |

🔸परिपक्वता में शारीरिक अंगों का बूढ़ा होने का जो काम है वह चलते रहता है और वैसे गुण विकसित होते हैं जो अनुवांशिकता या वंशानुक्रम से मिले होते हैं |

🔸 “इसमें तब तक वृद्धि होती है जब तक कि वह दृढ़ता या प्रौढ़तापूर्ण रूप नहीं ले लेती है “|
अर्थात बालक के विकास की परिपक्वता जन्म से लेकर तब तक चलती है जब तक की उसकी मांसपेशियां परिपक्व या प्रौढ़ पूर्ण अवस्था तक नहीं पहुंच जाती है और प्रौढ़ तक की स्थिति में नहीं आ जाती है जब तक परिपक्वता चलते रहती है |

🔸 परिपक्वता विकास की आंतरिक प्रक्रिया इसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव या भाग में नई क्रिया सीखने की क्षमता होती है |

🔸 शारीरिक और मानसिक विकास दोनों एक दूसरे से जुड़े होते हैं और यदि दोनों का संबंध नहीं हो पाता है तो उस बालक का विकास नहीं हो सकता यदि दोनों में गड़बड़ी आई तो विकास में समस्या उत्पन्न हो जाती है और दोनों का विकास होना अति आवश्यक है अन्यथा यह उस बच्चे के लिए दुखदाई होगा और इस स्थिति में वह कुछ भी कर सकता है तथा उसका विकास पूर्ण रूप से नहीं होता है इसलिए परिपक्वता ना तो समय से पहले और ना ही समय के बाद आना अच्छा है यदि वह समय पर ही आए तो यह शारीरिक और मानसिक विकास दोनों के लिए ठीक है |

🍀 अधिगम

अधिगम का संबंध वातावरण से है |

🔸 “वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना कहते हैं ये हमारे व्यवहार से भी प्राप्त होता है |

🌻 परिपक्वता और अधिगम में संबंध

∆ परिपक्वता और अधिगम दोनों में बहुत अधिक घनिष्ठ संबंध है अर्थात दोनों एक दूसरे के पूरक हैं |

∆ दोनों का एक दूसरे पर प्रभाव पड़ता है |

∆विकास के अंतर्गत परिपक्वता और अधिगम दोनों ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं |

∆ परिपक्वता वंशानुक्रम से तथा अधिगम वातावरण से संबंधित है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🍀🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🍀🌻

🔆वृध्दि (Growth) and विकास (development)🔆
वृद्धि और विकास एक दूसरे से भिन्न है व्यावहारिक दृष्टि से देखें तू यह दोनों अलग-अलग होते हुए भी वृद्धि विकास के अंदर समाहित हो होता है वृद्धि विकास का एक भाग है वृद्धि और विकास के साथ-साथ बुनियादी सिद्धांतों को भी समझना चाहिए जिससे कि वह बच्चों के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए प्रभावी मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं एक बच्चा अपने आसपास के वातावरण से काफी प्रभावित होता है और निरंतर अपना व्यवहार बदलता रहता है|
वृद्धि और विकास में अंतर
1.वृद्धि – परिमाणात्मक (quantitative) वृद्धि में बच्चों में लंबाई चौड़ाई आकार भार वजन काफी अंतर देखा जा सकता है
जबकि विकास गुणात्मक परिवर्तन(quality) जैसे कार्यकुशलता क्षमता व्यवहार मानसिक सामाजिक संवेगात्मक संज्ञानात्मक वृद्धि आदि आते हैं|
2.वृद्धि सीमित समय के लिए होती है संपूर्ण विकास की प्रक्रिया का बस एक चरण है|
जबकि विकास विस्तृत अर्थ रखता है वृध्दि किसका भाग है यह व्यक्ति में होने वाली सभी परिवर्तन प्रकट करता है

  1. वृद्धि परिपक्वता के साथ खत्म हो जाती है
    जबकि विकास निरंतर चलता रहता है|
  2. वृद्धि में होने वाले परिवर्तन सामान्यतः दिख जाते हैं|
    जबकि विकास एक अप्रत्यक्ष नहीं दिखता है प्रत्यक्ष देखना कठिन है व्यवहार का निरीक्षण करना |
    विकास का कारण हैं|
    ▪ परिपक्वता
    ▪ अधिगम वातावरण
    परिपक्वता का अर्थ –
    शारीरिक और मानसिक दृष्टि से परिपक्व बालक बालिकाएं सीखने के लिए सदा तैयार रहते हैं| परिपक्वता जन्मजात, अभ्यास से अप्रभावित , प्रेरणा जरूरी नहीं, आंतरिक होता है प्रजातीय प्रकिया कुछ समय तक ही रहती है|
    आंतरिक अंगों का प्रोढ़/बुढ़ा होना |
    ऐसे गुणों का विकसित होना जो वंशानुक्रम से मिलते हैं |
    इसमें तब तक वृद्धि होती है जब तक दृढ़ता और प्रोढ़ता पूर्ण रूप से नहीं |
    परिपक्वता विकास की एक आंतरिक प्रक्रिया है जिसके कारण बच्चे का शारीरिक अवयव मे नई क्रिया सीखने की क्षमता आती है |
    अधिगम (environment) –
    अधिगम जो वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक क्रियाओं में जो परिवर्तन होता है उसे अधिगम या सीखना बोलते हैं|
    सीखना अनुभव अर्जित अभ्यास सवस्थिरता प्रेरणा जरूरी बाहा होता है व्यक्तिगत प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक |
    🍁परिपक्वता और अधिगम का दृष्टि संबंध है पूरक है |
    🍁दोनों का प्रभाव दोनों पर पड़ता है |
    🍁विकास के अंतर्गत दोनों महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं |
    🍁परिपक्वता वंशानुक्रम से अधिगम वातावरण संबंधित है| Notes by – Ranjana sen

Introduction of problematic child notes by India’s top learners

📖 समास्यात्मक बालक 📖

🌺 समस्यात्मक बालक वह बालक है, जो बिना कारण के जहा आवश्यकता न हो, हर स्थान पर समस्या उत्पन्न करने के लिए उत्सुक रहता है। कई स्थानों पर वह शिक्षक, माता-पिता इत्यादि सभी को परेशान करने की कोशिश करता रहता है। अर्थात कहने का अर्थ यह है, कि समस्यात्मक बालक हमेशा समस्या उत्पन्न करने के लिए इच्छुक रहता है।
अतः हम कह सकते हैं, कि वे बालक जिनके व्यवहार समस्यात्मक प्रवृत्ति का होता है। या जिनके व्यवहार समस्या उत्पन्न करता है, समस्यात्मक बालक कहलाते हैं।

⚘🌹⚘ वैलेन्टाइन के अनुसार समास्यात्मक बालक की परिभाषा ⚘🌹⚘
” समस्यात्मक बालक वह होता है, जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है।”
अतः जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व सीमा से गंभीर हो, जो समाज, परिवार या विद्यालय में अपेक्षित है।
वह जो अपने व्यवहार से एवं व्यक्तित्व से अपने समाज को, परिवार को एवं विद्यालय को प्रभावित करते हैं।

🌿🌷🌿 समस्यात्मक बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है। अगर इनको उचित मार्गदर्शन न मिले तो बालक अपराधी एवं देशद्रोही का स्वरूप ले लेता है।
👉🏻 •••• एक शिक्षक होने के नाते हमारा कर्तव्य है, कि हमें समस्यात्मक बालक की समस्या को ठीक करना होगा। उसे उचित मार्गदर्शन देना होगा। शिक्षक एवं माता पिता को साथ मिलकर ही बालक की समस्याओं का समाधान करना होगा। बालक की समस्या समाधान न होने पर बालक अपराधी स्वरूप ले लेता है। वह गलत रास्ते पर चल देता है। और वह देशद्रोही व आतंकवादी भी बन जाता है। वह कानून का उल्लंघन करने लगता है। इसके लिए आवश्यक है, कि हमें उसकी इस प्रवृत्ति को हटाना होगा। बालक की समस्यात्मक प्रवृत्ति को जितनी जल्दी हम हटा पाएंगे, उतनी ही जल्दी बालक का समग्र विकास हो पाएगा।

🌺🌿🌻🌿🌺 समस्यात्मक बालक की पहचान🌺🌿🌻🌿🌺
इन बालकों की पहचान करने के लिए 6 विधियां दी गई है, जो कि निम्नलिखित है~

🍂🍃 निरिक्षण पद्धति ~
वह पद्धति जिसके द्वारा हम बालक के कार्यों का निरीक्षण करके उसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस पद्धति के अंतर्गत शिक्षक केवल बालक के कार्य एवं व्यवहारों का निरीक्षण करेगा। इस प्रक्रिया में बालक कार्य करेगा, और शिक्षक उस कार्य का अवलोकन करेगा।

🍃🍂 साक्षात्कार विधि~
इस पद्धति के अंतर्गत शिक्षक बालक से अपने समक्ष बैठा कर उससे प्रश्नों को पूछता है, और बालक पूछे गए प्रश्नों का जवाब देता है।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत शिक्षक बालक के द्वारा दिए गए उत्तरों से यह ज्ञात करता है, कि बालक की प्रवृत्ति समस्यात्मक क्यों है? एवं उन समस्याओं को व कमियों को जांच करने के पश्चात उनका उपचार करता है।

🍂🍃 अभिभावक, शिक्षक एवं मित्रों से वार्तालाप~
इस पद्धति के अंतर्गत शिक्षक या समस्या समाधानकर्ता बालक की समस्याओं को जानने के लिए उसके माता-पिता या अभिभावकों से, शिक्षक से या उसके संबंधित मित्रों से बातचीत करके। उस बालक के व्यवहार के संबंध में जानकारी प्राप्त करता है। प्राप्त जानकारी के माध्यम से बालक की कमियों का पता लगाकर उसके उपचार की प्रक्रिया को संपूर्ण करता है।

🍃🍂 कथात्मक अभिलेख ~
बालक के जो रिकॉर्ड जो उसके माता-पिता एवं उसके संबंधित मित्रों से प्राप्त किए गए हैं। उनके आधार पर शिक्षक या समस्या समाधानकर्ता बालक की समस्याओं का पता लगाता है, एवं पता लगाने के पश्चात उसकी समस्या को दूर करने का भी प्रयास करता है।

🍂🍃 संचयी अभिलेख~
इस पद्धति के अंतर्गत ऐसा रिकॉर्ड जो कि किसी अन्य माध्यम से समस्यात्मक व्यक्ति या बालक के बारे में मिला गया हो। उस रिकॉर्ड के आधार पर हम उस व्यक्ति या बालक की समस्या का पता लगाते हैं। इसके अंतर्गत निरीक्षणकर्ता केवल रिकॉर्ड्स के आधार पर ही बालक के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।इसके अंतर्गत बालक के जो मूल्यांकन किए जाते हैं उसके रिकॉर्ड भी हो सकते हैं ।और उसके पश्चात उसकी कमियों को दूर भी करता है।

🍃🍂 मनोवैज्ञानिक परीक्षण~
मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अंतर्गत हम बालक के मन का परीक्षण करते हैं, उसके व्यवहार को जानते हैं, उसका अवलोकन करते हैं, एवं उसके कार्य करने के तरीकों को देखते हैं, उसके हाव-भाव के माध्यम से हम यह ज्ञात कर सकते हैं। कि बालक को किस प्रकार की समस्या है। इन सभी तथ्यों के आधार पर हम बालक का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर सकते हैं। उपरोक्त सभी पद्धतियों के माध्यम से बालक की समस्यात्मक प्रवृत्ति की पहचान कर सकते हैं। हम यह पता लगा सकते हैं, कि बालक में किस प्रकार की समस्या है। एवं उसकी समस्या को समाधान करने के लिए भी हम उचित उपचार दे सकते हैं। 📚📗 समाप्त 📗📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

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🦚🍁🦚समस्यात्मक बालक🦚🍁🦚

🌟समस्यात्मक बालक,वह होता है जो चोरी करता हो,झूठ बोलता हो,किसी कार्य में बाधा उत्पन्न करता हो, बात – बात पर झगड़ने लगता हो तथा जिनका संवेगात्मक क्षमता स्थिर ना हो,ऐसे बालकों का व्यवहार समस्या उत्पन्न करता है और सामान्य नहीं होता।
ऐसे बालक अपने साथी अपने शिक्षकों और समाज के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं। खुद तो परेशान रहते ही हैं तथा साथ में दूसरों को भी परेशान करते रहते हैं।ऐसे बालक समस्यात्मक बालक कहलाते हैं।

🎄जैसे कि :-

🌿शिक्षक को धमकी देना।
🌿 दोस्तों को धमकी देना।
🌿 नियम कानूनों का उल्लंघन करना।
🌿 स्कूल से भाग जाना
🌿 बात बात पर आक्रामक हो जाना।
🌿 असाधारण व्यवहार इत्यादि गुण समस्यात्मक बालकों में पाए जाते हैं। इसके द्वारा ही समस्यात्मक बालकों की पहचान की जा सकती है।

🌟 वैलेंटाइन के अनुसार :-

🌸 समस्यात्मक बालक वह होता है जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है।
अत: जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज परिवार या विद्यालय में अपेक्षित है।

🌷🌷 ऐसे बालकों को कुछ उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है। जैसे कि उनके माता-पिता के साथ सहयोगात्मक संबंध विकसित कर तथा उनके विद्यालय,शिक्षकों और सहपाठियों के साथ भी सहयोगात्मक संबंध विकसित कर उन्हें सुधारे जाने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे कि उनका सर्वांगीण विकास कर एक अच्छे भविष्य का निर्माण किया जा सके।🌷🌷

🌟 समस्यात्मक बालकों की पहचान :-

🍁 समस्यात्मक बालकों की पहचान हम ६ विधियों द्वारा कर सकते हैं।
जो कि निम्नलिखित हैं :-

🌿 निरीक्षण पद्धति द्वारा।
🌿 साक्षात्कार पद्धति द्वारा।
🌿 अभिभावक, शिक्षक या मित्रों से वार्तालाप द्वारा।
🌿कथात्मक अभिलेखों द्वारा।
🌿 संचयी अभिलेख द्वारा।
🌿 मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा।

🌿 निरीक्षण पद्धति द्वारा :-

🌸 इसके अंतर्गत बालकों के केवल एक पक्ष का ही नहीं बल्कि उनके सामाजिक,सांस्कृतिक,मानसिक और भावनात्मक व्यवहारों के हर एक पक्षों तथा दिन – प्रतिदिन के क्रियाकलापों को निरीक्षण द्वारा ही समझ सकते हैं। जिससे कि समस्यात्मक बालक का पता लगाया जा सके।

🌿 साक्षात्कार पद्धति द्वारा :-

🌸 इस पद्धति के अंतर्गत बालकों को अपने समक्ष बैठा कर उनसे किसी भी विषय या मुद्दे पर चर्चा या वाद-विवाद करके उनके द्वारा दिए गए उत्तरों के अनुसार भी उनके व्यवहार और सोच का अवलोकन कर समस्यात्मक बालक को वर्गीकृत किया जा सकता है।

🌿 अभिभावक,शिक्षक व मित्रों से वार्तालाप द्वारा :-

🌸 इस पद्धति के अनुसार समस्या समाधान कर्ता बालक के अभिभावक,शिक्षक व मित्रों से वार्तालाप द्वारा उनके व्यवहार और कौशलों का बातचीत और निरीक्षण कर पता लगाया जा सकता है। उनके समक्ष समाधान किया जा सके और उनका संपूर्ण विकास सुनिश्चित कियाजा सके।

🌿 कथात्मक अभिलेखों द्वारा :-

🌸 इस पद्धति के अंतर्गत, बालक के माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक या मित्रों द्वारा प्राप्त सूचनाओं या समस्याओं को एकत्र करता है। तथा उन्हीं सूचनाओं के आधार पर बालकों के समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करता है।

🌿 संचयी अभिलेखों द्वारा :-

🌸 इसके अंतर्गत बालकों के पूर्व अनुभव द्वारा या किसी और के द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके व्यवहार,जीवन तथा दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों के आधार पर उनका जो रिकॉर्ड दर्ज किया गया है उसका अवलोकन कर उनके समस्याओं के बारे में पता पता करता है तथा उनका समाधान करने की कोशिश करना है।

🌿 मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा :-

🌸 मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक ऐसी परीक्षण पद्धति है,जिसकेअंतर्गत हम बालकों के व्यवहार को जानते हैं उन का अवलोकन करते हैं उनके कार्य करने के तरीकों को देखते तथा अवलोकन करते हैं। कि उनमें किस प्रकार की कौन सी समस्या है और कितनी क्षमता निहित है। इस आधार पर हम समस्यात्मक बालकों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर सकते हैं।

🌿🌷🌷🌿 अंततः उपरोक्त सभी पद्धतियों का अवलोकन करते हुए यह पता कर सकते हैं कि बालक में कौन सी समस्या है और किस प्रकार की समस्याएं तथा उनका उचित उपचार कर उनके समस्याओं का समाधान करना है।🌿🌷🌷🌿

🌟🌸🌟समाप्त 🌟🌸🌟

🌷🌷Notes by :- Neha Kumari 😊

🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏

🍁समस्यात्मक बालक🍁
बे बालक जो हर समय समस्या उत्पन्न करने के लिए उत्सुक रहते हैं बिना कारण के हर कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं यह बालक का मन स्थिर नहीं होता है इन बालकों का व्यवहार समस्या उत्पन्न करने वाला होता है ऐसे बालक समाज विद्यालय घर परिवार आदि जगहों पर समस्या उत्पन्न करते हैं इनकी संवेगात्मक क्षमता स्थिर नहीं होती हैं झूठ बोलने चोरी करने लड़ाई झगड़ा करने आदि प्रवृत्ति के कारण यह समस्यात्मक बालक की श्रेणी में आते हैं।

🍀 वैलेंटाइन के अनुसार:- समस्यात्मक बालक वे होते हैं जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है
आत: जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज परिवार है विद्यालय में अपेक्षित है

🌺 समस्यात्मक बालक को उचित मार्गदर्शन के द्वारा सुधारा जा सकता है इनकी समस्याओं को समझ कर समस्या को दूर करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है इसके लिए माता पिता विद्यालय अन्य संबंधित पक्ष से बालक के बारे में जानकारी प्राप्त कर उनकी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए समस्यात्मक बालक के लिए सहयोगी योजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए और समस्या का समाधान करना चाहिए जो उनके सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है उनकी समस्याओं को सुधारा जाना अत्यंत आवश्यक है समय रहते अगर समस्या का निराकरण नहीं किया गया तो वह अपराधी बालक देशद्रोही इसी प्रकार की अन्य समस्याओं को पैदा करेगा।

✍️ समस्यात्मक बालक की पहचान:- समस्यात्मक बालक की पहचान हम 6 विधियों के माध्यम से कर सकते हैं जो निम्नानुसार है।
🌻 निरीक्षण पद्धति द्वारा:- निरीक्षण निरीक्षण विधि के माध्यम से बालक के समस्त पहलू सामाजिक ,पारिवारिक, शैक्षिक, संबंधित क्रियाकलापों का निरीक्षण अन्य सभी पहलुओं का अवलोकन करके बालक के मनोभाव को समझा जाता है और उस प्रकार उनकी समस्याओं का निदान कर उसका उचित उपचार किया जाता है
🌻 साक्षात्कार पद्धति:- इस विधि के माध्यम से प्रत्यक्ष तरीके से बालक से संबंधित समस्यात्मक विषय पर चर्चा करके प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके व्यवहार और विचारों का पता लगा कर समस्या को भलीभांति पहचाना जा सकता है।
🌻 अभिभावक, शिक्षक, मित्र ,से वार्तालाप द्वारा:- जो बालक के व्यवहार को भलीभांति जानते और समझते हो जो काफी समय से उनके व्यवहार को अवलोकित कर रहे हो उनसे मिलकर बालक के समस्त पहलुओं को जाना जा सकता है किन कारणों की वजह से बालक समस्यात्मक व्यवहार करता है आदि संबंधित पक्षों का पता करके बालक के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।
🌻 कथात्मक अभिलेख:-बालक से संबंधित जो रिकॉर्ड उसके माता-पिता संबंधित मित्र अन्य संबंधित व्यक्ति से जानकारी प्राप्त कर उस जानकारी के आधार पर समस्या समाधान कर्ता बालक की समस्याओं का पता लगाकर एवं निदान के पश्चात प्राप्त समस्या को दूर करने के उपाय करता है।

🌻 संचयी अभिलेख:- बालक से संबंधित कोई भी ऐसा रिकॉर्ड जो बच्चे के शैक्षिक सह शैक्षिक पक्षो से संबंधित य कोई भी ऐसा रिकॉर्ड जो बालक से संबंधित जानकारी प्रदान करता हो के माध्यम से समस्यात्मक बालक की पहचान की जा सकती है।

🌻 मनोवैज्ञानिक परीक्षण:- इस परीक्षण के माध्यम से हम बालक के व्यवहार का अवलोकन करते हैं उसके हाव-भाव कार्य क्षमता प्रगति सांवेगिक स्थिति आदि का निरीक्षण करके उनके मनोभाव को जाना जाता है और प्राप्त समस्या को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

🍁🌻🍁🌻 इन सभी पद्धति के माध्यम से समस्या को पता कर उचित समाधान किया जाता है जो एक बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।🍀🍀🍀

🍁 धन्यवाद🍁

Notes by – Abhilasha pandey

🌈🌺🌈 समस्यात्मक बालक🌈🌺🌈

समस्यात्मक बालक वह होता है जो सामाजिक सीमा के अनुरूप काम नहीं करता है किसी कार्य में बाधा उत्पन्न करता है बार बार तो झगड़ने लगते हो इनकी संवेदन क्षमता स्थिर ना हो ऐसी बालक समस्यात्मक बालक के अंतर्गत आते हैं ऐसी वाला का अपने साथी अपने शिक्षक और समाज के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं खुद तो परेशान रहते हो और दूसरों को भी परेशान करते रहते हैं समस्यात्मक वाला सामाजिक के अनुरूप किसी भी कार्य को नहीं करते हैं ऐसे समस्यात्मक बाला कहलाते हैं

🌺 स्कूल से भाग जाना

🌺बात-बात पर झगड़ा करना

🌺 नियम कानून का उल्लंघन करना

🌺 किसी भी बात को ना मानना

🌺दोस्तों को धमकी देना

🌺 समाज में उचित व्यवहार ना करना

आशा धाम व्यवहार इत्यादि गुण
समस्यात्मक बालक में पाए जाते हैं इसके द्वारा ही समस्यात्मक बालक की पहचान की जा सकती है

🍁 वैलेंटाइन के अनुसार:–
समस्यात्मक बालक बाय होता है जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से आसान होता है

अतः जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व सीमा से गंभीर हो तो समाज परिवार और विद्यालय में अपेक्षित है

🌺 समस्यात्मक बालकों का मार्गदर्शन करने के लिए उनके माता-पिता के साथ सहयोगात्मक संबंध विकसित कर तथा उसके विद्यालय शिक्षकों और सहपाठियों के साथ ही यह योग्यता संबंधी विकसित कर उन्हें सुधारे जाने की कोशिश करनी चाहिए जिससे समस्यात्मक बालक का सर्वांगीण विकास हो सके और वह अपने भविष्य में विकसित हो

🌈 समस्यात्मक बालकों की पहचान:–

समस्यात्मक बालकों की पहचान हम 6 विधियों द्वारा कर सकते हैं जो निम्नलिखित है —

🎆 निरीक्षण पद्धति द्वारा:–
इसके अंतर्गत समस्यात्मक बालक के केवल एक पक्ष का ही नहीं बल्कि उनकी सामाजिक सांस्कृतिक भावात्मक तथा मानसिक व्यवहारों के हर पक्ष का निरीक्षण द्वारा समस्यात्मक बालक का पता लगाया जा सकता है

🎆 साक्षात्कार पद्धति द्वारा:–
इसके अंतर्गत बालकों को अपने सामने बैठा कर उन्हें किसी भी विषय या चर्चा के बारे में उनके व्यवहार और सोच का अवलोकन कर समस्यात्मक बालक को वर्गीकृत किया जा सकता है

🎆 अभिभावक शिक्षक व मित्रों से वार्तालाप द्वारा:–
इस पद्धति के अनुसार समस्यात्मक बालक के अभिभावक शिक्षक व मित्रों की वार्तालाप द्वारा उनके व्यवहार आचरण प्रश्नों का निरीक्षण कर पता लगाया जा सकता है समाधान किया जा सके और उनका संपूर्ण विकास सुनिश्चित किया जा सके

🎆 कथात्मक अभिलेखों द्वारा:–
इस पद्धति में बालक के माता पिता अभिभावक शिक्षा के यहां मित्रों द्वारा प्राप्त सूचनाओं को एकत्र करना तथा उन सूचनाओं पर बालकों की समस्या का समाधान करने की कोशिश करना इसके द्वारा हम समस्यात्मक बालक की पहचान कर सकते हैं

🎆 संचयी अभिलेखों द्वारा:–

इस पद्धति के द्वारा बालकों के पूरा अनुभव और किसी के द्वारा प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार उनके व्यवहार जीवन तथा क्रियाकलापों के आधार पर उनका जो रिकॉर्ड दर्ज किया जाता है उसका अवलोकन कर सकते हैं समस्यात्मक बालक के बारे में पता करता है तथा उसका समाधान करने की कोशिश करना

🎆 मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा:–
इस पद्धति के द्वारा बच्चों के व्यवहार को जानते हैं और हम उन बालकों का अवलोकन करते हैं उनके कार्य करने के तारीख के को देखते तथा अवलोकन करते हैं इस आधार पर समस्यात्मक बालकों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर सकते हैं

उपरोक्त पद्धति के अनुसार हम कह सकते हैं कि बालक की समस्यात्मक प्रवृत्ति की पहचान कर सकते हैं की बालक में किस प्रकार की समस्या है एवं उसकी समस्याओं का समाधान करने के लिए भी हमें उचित उपचार दे सकते हैं

✍🏻✍🏻✍🏻Menka patel ✍🏻✍🏻✍🏻

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🌻🌴 समस्यात्मक बालक 🌻
🌸समस्यात्मक बालक वह है जो कोइ कार्य में समस्या उत्पन्न करे।
ःक्लास में शिक्षक को पढाने में समस्या उत्पन्न करते हैं और कभी भी शांति से नहीं रहते हैं।
ःइनका व्यवहार समस्या उत्पन्न करना है और सामान्य नही होता है,समस्यात्मक कहलाते है।
ंऐसे बालक खुद तो परेशान होते ही है और सभी को परेशान करते हैं
🌸वेलेन्टाइन के अनुसार 🌸
ः समस्यात्मक बालक वो होता है जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रुप से असाघारण होता है।
अतः जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज परिवार या विघालय में अपेक्षित है।
🌸ऐसे बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुघारा जा सकता है। उन्के माता पिता, शिक्षक को साथ मिलकर उन्हें सुघारे जाने की कोशिश करनी चाहिए नही तो वो आगे जाकर बाल अपराघी, देशद्रोही बालक बन सकते है।
🌸समस्यात्मक बालक की पहचान 🌸
🌸ःनिरीक्षण पद्धति :- इसमें बच्चे के सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक और भावानात्मक व्यवहारो के हर एक पक्ष को बहुत ही बारीकी से अवलोकन करते हैं और समस्यात्मक बालक की पहचान करते है।
🌸ःसाक्षात्कार पद्धति :-इसमें बच्चे से जुड़े सवाल पुछते हैं और उन्के सवाल का जवाब से बच्चे के व्यवहार का पता करते है।
ः बच्चे विचार विमर्श से अपने प्रतिक्रिया देते है उससे बच्चे के समस्या का पता लगाते हैं।
ः 🌸अभिभावक, शिक्षक, मित्रों से वार्तालाप :-इसमें अभिभावक, शिक्षक, मित्रों से वार्तालाप करके उन्के सम्सायाओ का पता लगा सकते हैं क्योंकि बच्चे सबसे ज्यादा अभिभावक, शिक्षक, मित्रों के साथ ही समय बिताते है इनसे पता करने से बच्चे का समस्यात्मक दूर कर सकते हैं।
🌸कथात्माक अभिलेंख 🌸
कथात्माक अभिलेंख में बच्चे का सूचना एकत्र करते हैं जो भी हमें उन्के माता पिता, दोस्तों से जो भी जानकारी मिलती है उसकी सहायता से बच्चे के समस्याओं का समाधान करते है।
🌸संचयी अभिलेख 🌸
इसमें बच्चे का उन्के व्यवहार का, उन्के कार्य का रिकॉर्ड रखा जाता है और उसका अवलोकन करके समस्या के बारे में पता करते है और फिर उसका समाधान करते है।
🌸मनोवैज्ञानिक परीक्षण 🌸
ः बच्चे के मन के बारे में जानेगे, व्यवहार को समझेगे, उनका अवलोकन करते है और कोशिश करते है कि बच्चे कैसे चीजो के बारे में सोचते हैं, किस स्थिति में कैसे रिएक्ट करते हैं हम इस प्रकार से समस्यात्मक बालको का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर सकते हैं।

Notes By :-Neha Roy

🔆 समस्यात्मक बालक🔆

▪️समस्यात्मक बालक वह है जो सामान्य बालकों से असाधारण रूप से भिन्न होते हैं इन बालकों का समायोजन परिवार, समाज तथा विद्यालय में नहीं हो पाता जिसके कारण समस्या उत्पन्न करते हैं ।ऐसे बालक सामान्य व्यवहार, नियमों तथा मान्यताओं का पालन नहीं करते उनका व्यक्तित्व विकृत होता है।

▪️इनकी यह विशेषता है कि यह समस्या उत्पन्न करते हैं अर्थात इनका व्यवहार सामान्य नहीं होता है।

▪️पिछड़े बालक एवं मंदबुद्धि बालक
प्रतिभाशाली और सृजनात्मक बालकों की तुलना में शैक्षिक लब्धि (EQ) में कम होते हैं।

▪️शिक्षा के क्षेत्र में बच्चे आगे हो या पीछे लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में या कार्य में समस्या उत्पन्न तो करते हैं।

◼️ वैलेंटाइन के अनुसार

“समस्यात्मक बालक वह होता है जिसका “व्यवहार” और “व्यक्तित्व” किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है।”

▪️प्रत्येक बालक कोई ना कोई समस्या किसी न किसी रूप में उत्पन्न करते हैं लेकिन वह समस्यात्मक बालक की श्रेणी में नहीं आते। केवल वही बालक समस्यातमक होंगे जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो, जो समाज परिवार और विद्यालय में अपेक्षित है ।

▪️समस्यात्मक बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है यदि यह उचित मार्गदर्शन नहीं किया गया तो बच्चे अपराधी या देशद्रोही बालक बन जाते है।

◼️ समस्यात्मक बालक की पहचान

▪️समस्यात्मक बालकों की पहचान करने के लिए उसकी समस्या का निश्चित निर्धारण नहीं कर सकते।
कोई भी बच्चा अलग-अलग रूप से समस्या उत्पन्न कर सकते हैं जिसकी पहचान भी हम अलग अलग तरीके या पद्धति से करते हैं।

▪️समस्यात्मक बालक की पहचान इन छह पद्धति या विधियों से की जा सकती है।

✓1 निरीक्षण पद्धति।
✓2 साक्षात्कार पद्धति।
✓3 अभिभावक शिक्षक मित्रों से वार्तालाप।
✓4 कथात्मक अभिलेख।
✓5 संचयी अभिलेख।
✓6 मनोवैज्ञानिक परीक्षण।

इन पद्धतियों का वर्णन निम्नानुसार है।

🌀 निरीक्षण पद्धति(Inspection Method )
*निरीक्षण अर्थात बच्चे की समस्त घटनाओं को, जैसे वे प्रकृति में होती हैं, कार्य तथा कारण से सम्बन्ध की दृष्टि से तथ्य देखते तथा नोट करते है।
इस विधि के द्वारा हमें बच्चे की प्रत्यक्ष व्यवहार का, हर स्तर का या हर पहलू का या प्रत्येक तौर तरीको का अध्ययन करके या देखकर या विश्लेषण द्वारा कुछ तथ्यों का पता लगा सकते है।

🌀 साक्षात्कार पद्धति (Interview Method)

*सामान्यत: दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी विशेष उद्देश्य से आमने-सामने की गयी बातचीत को साक्षात्कार कहा जाता है। साक्षात्कार एक प्रकार की मौखिक प्रश्नावली है जिसमें हम किसी भी व्यक्ति के विचारों और प्रतिक्रियाओं केा लिखने के बजाय उसके सम्मुख रहकर बातचीत करके प्राप्त करते हैं।जिसके माध्यम से हम समस्यात्मक बालक की पहचान की पहचान कर सकते है।

🌀 अभिभावक ,शिक्षक ,मित्रों से वार्तालाप कर (Talk to parents, teachers and friends)
*बच्चे अपना अधिकतर समय अपने अभिभावक शिक्षक और मित्रों के पास व्यतीत करते हैं तो इसके द्वारा हम अभिभावक ,शिक्षक और मित्रों से वार्तालाप कर बच्चों के व्यवहार का पता कर सकते हैं। अर्थात् समस्यात्मक बालकों की पहचान इस तरह से व आसानी से की जा सकती है।
🌀 *कथात्मक अभिलेख (Narrative Records)*➖

*बालकों के कथात्मक अभिलेख को उसके माता पिता या आस पास के लोगों के द्वारा जानकर एकत्रित की कई जानकारी के अध्ययन से भी समस्यात्मक बालक की पहचान की जा सकती है ।

🌀 संचयी अभिलेख (Cumulative Records)

*संचित अभिलेख (Cumulative records) निर्देशन प्रक्रिया में व्यक्ति या विद्यार्थी के अध्ययन के लिए अनिवार्य है। इस अभिलेख (Record) की सहायता से कोई भी अध्यापक या निर्देशन प्रदान करने वाला व्यक्ति किसी भी विद्यार्थी के व्यक्तित्व, उसके व्यवहारों तथा उसकी योग्यताओं से परिचित हो जाता है अतः संचित अभिलेख के द्वारा भी समस्यात्मक बालक की पहचान की जा सकती है ।

*संचित अभिलेख का एक अन्य उद्देश्य या कार्य यह भी है कि यह अभिलेख बच्चे के बारे में अध्यापक को लाभकारी सूचनाएं उपलब्ध कराता है। यह अध्यापक को अपनी प्रवृत्तियों को बच्चों की आवश्यकता के अनुसार समायोजित(Adjust) करने में सहायता देता है।

🌀 मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Pshychology Test)

*संसार का प्रत्येक प्राणी अपनी शारीरिक संरचना एवं व्यवहार के आधार पर एक दूसरे से भिन्न होता है। अत: व्यक्ति अथवा समूहों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।

*मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी मदद से किसी व्यक्ति व उसकी कार्य क्षमताओं का अंदाजा लगाकर भी समस्यात्मक बालक की पहचान कर सकते हैं।

✍🏻
Notes By-Vaishali Mishra

💦 समस्यात्मक बालक 💦

🌼समस्यात्मक बालक वह होता है जिनके व्यवहार में कोई असामान्य बात होती है जिनके व्यवहार से समस्या उत्पन्न होती है जिनका व्यवहार सामान्य नहीं होता है परिवार , समाज, मित्रों के साथ तथा शिक्षकों के साथ जो कक्षा में समस्या उत्पन्न करते हैं
जैसे – चोरी करना , लड़ाई करना, झूठ बोलना ईत्यादि |
जो नियमों का पालन नहीं करते हैं ऐसे बालक समस्यात्मक बालक कहलाते हैं |

🌞लेकिन यह जरूरी नहीं है कि समस्यात्मक बालक पिछड़े हो , बुद्धि औसत से अधिक हो | ऐसे बालकों कि समस्या हमेशा नहीं रहती है अगर इन्हें सही समय पर सही मार्गदर्शन दिया जाये तो इन्हें सुधारा जा सकता है |

🌸वेलेंटाइन के अनुसार :-
समस्यात्मक बालक वे होते हैं जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर से साधारण नहीं होता है
अत: जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जाता है जो समाज , परिवार और विद्यालय में अपेक्षित है
ऐसे बालक देश -द्रोही व अपराधी हो जाते हैं |

🌈समस्यात्मक बालक की पहचान :-
समस्यात्मक बालक कि पहचान की निम्नलिखित 6 विधियाँ है –

1✈ निरीक्षण से पहचान :-
इस विधि के अनुसार शिक्षक को बालक कि क्रिया – कलाप और उसके व्यवहार का निरीक्षण करके बालक कि समस्या का लगा सकता है |

2✈ साक्षात्कार विधि :-
इस विधि के अनुसार बालक को अपने समक्ष बैठाकर कुछ ऐसे प्रश्न बालक से करेंगे जो उसके जीवन से जुड़े हो और हम बालक के उत्तर देने के तरीके से उसके व्यवहार से की वह हमारे समक्ष किस प्रकार अपने प्रश्नों के उत्तर दे रहा है उससे उसकी समस्या की पहचान की सकती है |

3✈ अभिभावक, शिक्षक , मित्रों से वार्तालाप :-
इस विधि के अनुसार बालक के अभिभावक , शिक्षक , मित्रों से बालक के व्यवहार के बारे में पता लगाएंगे कि बालक सभी के साथ कैसा व्यवहार करता है जानकारी इकठ्ठा करेंगे और उसकी समस्या का पता लगाएंगे |

4✈ कथात्मक अभिलेख :-
इसके अनुसार बालक के इकठ्ठा किये गये सूचनाओं के व्यवहार के रिकॉर्ड से पता करेंगे कि बालक को क्या समस्या है |

5✈ सचंयी अभिलेख :-
इस विधि के अनुसार बालक के द्वारा किये गए क्रिया – कलाप के रिकॉर्ड के विभिन्न पहलुओं को समझ समस्यात्मक बालक की पहचान करेंगे |

6✈ मनोवैज्ञानिक :-
इस विधि के अनुसार बालक के मन की बात को पता करना होगा कि बालक के मन में क्या विचार है इसके लिए बालक के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए ताकि बालक के मन में क्या चल रहा वो बता सके उसके अनुसार माहौल बनाएं ताकि बच्चे की मन की बात चल सके और उसकी बातों से पता करेंगे कि बालक को क्या समस्या है |

🏵इन सभी विधियों से बालक का पता लगाएंगे कि बालक को क्या समस्या है और उसके समस्या का उपाय व उपचार करके उसे सूधारने की कोशिश करेंगे |

🎄🎄Thank you 🎄🎄

🦚Meenu Chaudhary🦚

🌈💐🌺🌸🏵🌹🌷🌈

समस्यात्मक बालक:➖

🟢 समस्यात्मक बालक का तात्पर्य ऐसे बालकों से है जिसके बर्ताव और व्यवहारों से हमेशा समस्या उत्पन्न हो! ऐसे बालकों को समस्यात्मक बालक कहा जाता है!

🤷‍♀️ समस्यात्मक बालक अन्य सामान्य बालको से भिन्न होते हैं ऐसे बालक ना समाज में बल्कि परिवारों में भी समस्या उत्पन्न करते रहते हैं सामान्य नियमों व व्यवहारों का भी पालन नहीं करते!

🌸 ऐसे बालक की संवेगात्मक क्षमता स्थिर नहीं रहती जिस कारणवश वह निम्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करते हैं :➖

🎯चोरी करना!
🎯झूठ बोलना!
🎯आक्रमणकारी व्यवहार पैदा करना!
🎯स्कूल से जल्दी भाग जाना!
🎯कक्षा वर्ग में छोटे बच्चों को परेशान करना!
🎯माता-पिता की अवहेलना करना!

🔅ऐसे बच्चे को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है अगर उन्हें उचित मार्गदर्शन ना मिले तो ऐसे बालक
🚫अपराधी बालक
🚫देशद्रोही बालक
की श्रेणी में आएगा! जो उनके भविष्य के लिए बिल्कुल सही नहीं है!

🌼लेकिन यह जरूरी नहीं है कि समस्यात्मक बालक अपने कक्षा में पीछे होते हैं या उनकी बुद्धि लब्धि में कोई कमी होती है बस ऐसे बालक को सही दिशा निर्देश ना मिल पाने के कारण गलत रास्ता अपना लेते हैं! इसलिए ऐसे बालकों के दिमाग को स्थिर करने की जरूरत है तथा सही दिशा निर्देशों और उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है!

वैलेंटाइन के अनुसार:-
” समस्यात्मक बालक वह होता है जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है!”
अर्थात् ऐसे बालक जिसकी समस्या घर, विद्यालय, समाज में स्वीकृत ना हो!
🎍अतः जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज परिवार या विद्यालय में अपेक्षित है!

☘️समस्या पैदा करना भी एक समस्या है लेकिन एक हद तक तक ! अति (हद पार) करने लगे तो वह एक समस्यात्मक बालक कहलाएगा !

💧 समस्यात्मक बालक की पहचान💧

🌻🌻समस्यात्मक बालक की पहचान हम निम्न 6 विधियों द्वारा कर सकते हैं:➖

(1) निरीक्षण पद्धति:- इस पद्धति के द्वारा हम बालकों की विभिन्न गतिविधियों बालक से जुड़े सामाजिक, पारिवारिक ,शैक्षणिक अन्य क्रियाकलापों पर गहराई से अवलोकन कर सकते हैं और उन्हीं के अनुसार हम उस समस्या को हल करने की कोशिश करते हैं!

(2) साक्षात्कार पद्धति:- इस पद्धति के अंतर्गत हम बालक से उसके जीवन में हो रहे अनेक प्रकार की समस्या के बारे में चर्चा कर उनसे जानकारी प्राप्त करते हैं और उनके व्यवहारों विचारों का अध्ययन करते हैं इससे हम उस बालकों का आसानी से अवलोकन कर सकते हैं !

(3) अभिभावक शिक्षक मित्र से वार्तालाप द्वारा:- बालक के अंदर समस्या जन्मजात नहीं होती बल्कि वह किसी कारणवश उस समस्या से ग्रसित हो जाता है इसलिए हमें उस बालक को समझने के लिए ऐसे लोगों से संपर्क करना होगा जिनके साथ वह बालक सदैव संपर्क में रहता हो !

जैसे➖ माता-पिता ,अभिभावक ,अध्यापक ,मित्रों आदि से हम मिलकर उस बालक की समस्या का अध्ययन करेंगे और उसी के अनुरूप हम उस बालक का सर्वांगीण विकास करेंगे!

(4) कथात्मक अभिलेख:- ऐसे बालकों की पहचान उसके समाज में उसके माता-पिता या आस-पड़ोस के लोगों द्वारा दी गई जानकारी को एकत्रित कर उस बच्चे की समस्या का समाधान करेंगे!

(5) संचई अभिलेख:- इस अभिलेख के द्वारा बच्चे की समस्त जानकारी एक अध्यापक को उपलब्ध होती है उसके व्यक्तित्व व्यवहार योग्यता से वह परिचित होते हैं अतः इसी अभिलेख के द्वारा एक समस्यात्मक बालक की पहचान की जाती है!

(6) मनोवैज्ञानिक परीक्षण:- मनोवैज्ञानिक अर्थात मन का विज्ञान! इसके अंतर्गत हम बालकों के मन ,व्यवहार अर्थात हम उसका अवलोकन करते हैं! इसी के आधार पर हम एक बालक की संपूर्ण गतिविधि हाव-भाव का निरीक्षण कर सकते हैं! मनौविज्ञान ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम किसी भी स्थिति में ,किसी भी कार्य को अपने अनुकूल ढाल कर ,वैसा माहौल बना कर ,उस स्थिति को संभाल सकते हैं! जिससे सामने वाला की कमी अच्छाई या बुराई की संपूर्ण जानकारी हमें प्राप्त हो जाती है इसलिए हमें बालकों के सामने से भी ऐसा ही माहौल बनाना होगा जिससे बालक अपनी सारी समस्या को बेझिझक सामने रख पाए और हम उस समस्या को दूर करने के संपूर्ण प्रयास कर सके! 💧💧💧💧💧💧

NOTES BY➖ MAHIMA KUMARI

❄ समस्यात्मक बालक ❄ समस्यात्मक बालक वह है जो समाज या घर परिवार विद्यालय में सामाजिकता के अनुकूल कार्य नहीं करते हैं। और वह सामान्य से भिन्न होते हैं। ऐसे बालक घर में अपने परिवार एवं स्कूल में शिक्षक और बाकी बच्चों के साथ कुछ ना कुछ समस्या उत्पन्न करते रहते हैं । यह बालक किसी भी पारिवारिक ,आर्थिक ,सामाजिक से उपेक्षित होने के कारण या स्वतः ही किसी ना किसी समस्या से ग्रसित होने के कारण उपयुक्त एवं अनुकूलित कार्य नहीं करते हैं । अतः हम कह सकते हैं कि “इनका व्यवहार समस्या उत्पन्न करता हैं। और सामान्य नहीं होता ऐसे बालक समस्यात्मक बालक कहलाते हैं ।” वेलेन्टाइन के अनुसार समस्यात्मक बालक ➖ समस्यात्मक बालक वह होता हैं। जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता हैं। अतः जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज परिवार या विद्यालय में उपेक्षित हैं। ऐसी स्थिति में बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है अन्यथा बालक अपराधी या देशद्रोही बालक बन सकता हैं। समस्यात्मक बालक की पहचान ➖ समस्यात्मक बालक की पहचान निम्नलिखित छ: विधियों में की जाती है :- 1 निरीक्षण पद्धति : – निरीक्षण पद्धति के द्वारा हम बालकों के कार्य व्यवहार इत्यादि से निरीक्षण कर सकते हैं कि बालक कैसा है बालक से कुछ भी प्रश्न पूछकर या बालक से किसी भी विषय में चर्चा करके हम उनको पता कर सकते हैं की बालक समस्यात्मक है या नहीं । 2 साक्षात्कार पद्धति: – ( इंटरव्यू ) इसमें शिक्षक छात्र को सामने बैठाकर आमने – सामने एक दूसरे से वार्तालाप करते हैं और बच्चों का निरीक्षण करते हैं कि बालक किस प्रवृत्ति एवं स्वभाव का हैं। 3 अभिभावक शिक्षक मित्रों से वार्तालाप : – इसमें माता पिता एवं परिवार के सदस्यों और मित्रों से बातचीत करके हम हम बच्चे के बारे में भली-भांति जान सकते हैं कि वह किस स्वभाव का हैं। और आवश्यकतानुसार उस बालक की समस्या का निदान भी कर सकते हैं । 4 कथात्मक अभिलेख : – इसमें बालक के द्वारा कहे गए शैक्षिक दृष्टिकोण में जो कुछ भी रिकॉर्ड हैं या जो कुछ भी वह अपनी भाषा में व्यक्त किया हैं। उन सब का रिकॉर्ड इस अभिलेख में रखा जाता हैं। 5 संचयी अभिलेख – इसमें बालक का जो प्रगति पत्रक होता है या जो भी उसने उपलब्धि हासिल की है जैसे उसकी मार्कशीट या उसके द्वारा कोई भी प्रतियोगी परीक्षा में प्राप्त इनाम इत्यादि आने वाले समय में बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए और उस बच्चे के माता-पिता को उसका रिकॉर्ड दिखाने के लिए संचयी अभिलेख में सुरक्षित एकत्रित करके रखा जाता हैं। 6 मनोवैज्ञानिक परीक्षण : – मनोवैज्ञानिक परीक्षण में हम यह कह सकते हैं कि बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र में किसी बालक का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर लेना यानी कि मनुष्य के शरीर की रीड की हड्डी की तरह मजबूती प्राप्त करने के बराबर हैं।अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम किसी बच्चे की मनोवृति एवं उसके मन को समझ लेते हैं तो उसको पढ़ाना सिखाना बताना हमारे लिए बहुत ही सरल और सुगम हो जाएगा इसलिए अगर हम चाहते हैं कि बच्चों को एक अच्छी एवं उपयोगी शिक्षा दें या उनका संपूर्ण विकास हो उसके लिए हमें उनके मन को समझना बहुत अनिवार्य है अतः पूरी बाल विकास और शिक्षाशास्त्र का हमें यही अर्थ निकालना है कि बच्चों के मन को समझना है और फिर उनके अनुसार उपयुक्त शिक्षा प्रदान करना हैं। धन्यवाद ….. ✍️ notes by Pragya shukla

🤦🏻‍♂️ समस्यात्मक बालक ( problem child)–🤦🏻‍♀️

जैसा कि प्रतिभाशाली बालक और सृजनशील बालक की विशिष्टता ही उनको सामान्य बालक से बेहतर बनाती है तथा वहीं दूसरी तरफ पिछड़े बालक और मंदबुद्धि बालक में उनकी विशिष्टता उन्हें किसी न किसी वजह से कमजोर बनाती है। और जहां समस्यात्मक बालक की बात हो रही है तो,वह ना तो प्रतिभाशाली बालक, सृजनात्मक बालक, पिछड़े बालक और ना ही मंदबुद्धि बालक इन चारों में से वह कहीं नहीं आते है।
अतः समस्यात्मक बालक की विशिष्टता यह है कि उनका व्यवहार समस्या उत्पन्न करता है जो सामान्य नहीं होता तथा ऐसे बालक मानसिक रूप से दिमाग को स्थिर नहीं कर पाते हैं“समस्यात्मक बालक” कहलाते हैं।

◼️ वैलेंटाइन के अनुसार:– “समस्यात्मक बालक वे बालक होते हैं, जिनका का व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है।”

★ अतः जिनका व्यवहार और व्यक्तिगत उस सीमा से ज्यादा गंभीर हो जो परिवार, विद्यालय या समाज में अपेक्षित है।

★ऐसी स्थिति में बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है। वही अगर बालक में उचित समय पर सुधार न किया गया तो, बालक; अपराधी बालक या देशद्रोही बन सकता है।

★अतः एक शिक्षक का यह कर्तव्य है कि समस्यात्मक बालक की समस्या का पता लगाकर उनकी समस्याओं का सही तरीके से उपचार किया जाए ,जिससे बालक का उचित तरीके से विकास हो पाए।

◼️ समस्यात्मक बालक की पहचान– समस्यात्मक बालक की पहचान करने के लिए मुख्य रूप से छ: विधियां है , जो निम्न है–

▪️ १. निरीक्षण पद्धति (Observation Method)–
निरीक्षण पद्धति के माध्यम से हम बालक के हाव–भाव, उनकी गतिविधियां, उनके कर्यो एवं उनके व्यवहारों आदि का अवलोकन करते हैं।

▪️ २. साक्षात्कार पद्धति (Interview Method)– साक्षात्कार पद्धति में शिक्षक बच्चेे के सामने बैठ कर बच्चे के हाव–भाव, विचार, प्रतिक्रिया तथा प्रश्नों के माध्यम से उनके व्यवहार का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करते हैं जिससे बच्चे के व्यवहार का पता चलता है कि उसका व्यवहार किस प्रकार का है,क्यों समस्याएं उत्पन्न करता है इन सभी को समझने में सहायता मिलती है । जो बच्चे को सुधारने में एक दिशा देती है।

▪️ ३. अभिभावक शिक्षक व मित्रों से वार्तालाप– इसमें शिक्षक बच्चे के अभिभावक व मित्रों से वार्तालाप के माध्यम से बच्चे के व्यवहार को जानने की कोशिश करते हैं जैसे कि बच्चा किसके साथ कैसा व्यवहार करता है ,किस तरह से सबके बीच में रहता है ,पसंद ना पसंद तथा दोष –कमियों व संपूर्ण चीजों की जानकारी प्राप्त कर बालक में सुधार करते है।

▪️ ४.कथात्मक अभिलेख (Narrative Record)– कथात्मक अभिलेख में बच्चों के रिकॉर्ड्स के द्वारा बच्चे के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं जो उनके माता-पिता, मित्रों व सगे– संबंधियों से प्राप्त किया जाता है।

▪️ ५. संचयी अभिलेख( cumulative Record)– कोई ऐसा रिकॉर्ड जो बच्चे के बारे में रखा गया हो जैसे:–स्कूल सर्टिफिकेट, पोर्टफोलियो अन्य किसी रिकॉर्ड के माध्यम से हम बच्चे के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं और उनकी समस्या को दूर करते हैं।

▪️ ६. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Test)– मनोवैज्ञानिक परीक्षण से हमें बालक के व्यवहार का पता चलता है जो बालक में सुधार करने में बहुत सहायता प्रदान करती है , मनोवैज्ञानिक परीक्षण के द्वारा हम बालक के शारीरिक व मानसिक रूप से बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है , उसके हाव-भाव, सवाल पूछने पर वह कैसी प्रतिक्रिया करता है आदि प्रवृत्ति की पहचान कर सकते है जो एक समस्यात्मक बालक की समस्या को सुधारने में सहायता करती है।

✍🏻Notes by–Pooja

Date , 4/11/2020
📒 समस्यात्मक बालक problem child

🔘 समस्यात्मक बालक ➖ ऐसे बालक जो किसी ना किसी तरह की समस्या उत्पन्न करता है जिनका व्यवहार असामान्य होता है समस्यात्मक बालक कहलाता है

🔘 सृजनात्मक बालक की परिभाषा

👤 वैलेंटाइन के अनुसार ➖समस्यात्मक बालक वह होता है जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है

🔹अत: जिनका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज, परिवार या विद्यालय में अपेक्षित है

🔹समस्यात्मक बालक कुछ ऐसे गंभीर कार्य करते हैं जो समाज में अमान्य है , जैसे-
🔹 घर परिवार में लड़ाई झगड़ा करना, आज्ञा का उल्लंघन करना।

🔹विद्यालय में बच्चों के साथ मारपीट करना अध्यापक को गाली देना स्कूल से भाग जाना,
चोरी करना , झूठ बोलना किसी को धोखा देना, आदि

🔹 ऐसे बालकों को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता है
🔹नहीं तो वह अपराधी , देशद्रोही बालक बन जाएगा ।

🔘 समस्यात्मक बालक की पहचान

🔹 इन्हें 6 विधियो द्वारा पहचाना जा सकता है

1 निरीक्षण पद्धति
2 साक्षात्कार पद्धति
3 अभिभावक, शिक्षक, मित्रों से वार्तालाप करके
4 कथात्मक अभिलेख
5 संचयी अभिलेख
6 मनोवैज्ञानिक परीक्षण

🔆 समस्यात्मक बालक🔆

🔹 समस्यात्मक बालक वह है जो सामान्य बालकों से व्यवहार में भिन्न होते हैं इन बालकों का अपने परिवार ,समाज या विद्यालय में अच्छा व्यवहार नहीं होता है वे समायोजन नहीं कर पाते हैं | ऐसे बालक समाज, परिवार, या विद्यालय द्वारा बनाए गए नियमों का पालन नहीं करते हैं उनका व्यक्तित्व विकृत या अपेक्षाकृत अलग होता है जो उन्हें सामान्य से अलग बनाता है |

🔹 जी बालक समाचार समस्यात्मक बालक होते हैं जो समस्या को उत्पन्न करते हैं उनका व्यवहार समस्या उत्पन्न करता है |
” अतः इनका व्यवहार समस्या उत्पन्न करता है और सामान्य नहीं होता है समस्यात्मक बालक कहलाते हैं ” |

🔹 चूंकि इनका व्यवहार समस्या उत्पन्न करता है तो यह बालक A(सृजनात्मक या प्रतिभाशाली) एवं B(पिछड़े और मंदबुद्धि) दोनों से अलग होता होते हैं वे पिछड़े नहीं होते हैं यदि सृजनात्मक या प्रतिभाशाली बालक अपनी सीमा को पार कर देते हैं तो वे समस्यात्मक बालक बन जाते हैं और जैसे यदि कोई पिछड़ा बालक और उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो इस समस्या के कारण भी वह बालक समस्यात्मक बालक बन सकता है एवं मंदबुद्धि बालक ,चूंकि मंदबुद्धि बालक अपनी समस्या को सॉल्व नहीं कर पाते हैं वे दूसरों पर आश्रित होते हैं तो इस कारण से वे समस्यात्मक हो सकते हैं अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि यदि कोई भी बालक जो सामान्य हो या विशिष्ट हो यदि वह अपनी सीमा को पार करता है तो वह समस्यात्मक बालक बन जाता है |

🔹प्रतिभाशाली एवं सृजनात्मक बालकों से पिछड़े बालक एवं मंदबुद्धि बालक शैक्षिक स्तर EQ में कम होते हैं किंतु समस्यात्मक बालक की EQ कम हो यह जरूरी नहीं है क्योंकि वह किसी प्रकार की समस्या को उत्पन्न करता है तो समस्यात्मक बालक है |

🔹 शिक्षा के क्षेत्र में चाहे वे आगे हो या पीछे हो लेकिन यदि शिक्षा के क्षेत्र में या उसके कार्य में कोई बाधा या समस्या उत्पन्न करते हैं तो वे समस्यात्मक बालक होते हैं |

🔹 क्योंकि इनका मस्तिष्क स्थिर नहीं होता है इसलिए समस्यात्मक बालकों का व्यवहार समस्या उत्पन्न करने वाला होता है |

🔸समस्यात्मक बालकों के संबंध में वैलेंटाइन का कथन है कि
” समस्यात्मक बालक वो होता है जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है |”

🔸अर्थात उनका व्यक्तित्व ही समस्यात्मक या समस्या से घिरा होता है ऐसा नहीं है कि कोई भी समस्या को उत्पन्न नहीं करते है हम सभी किसी न किसी प्रकार से समस्या उत्पन्न करते हैं लेकिन हम सब समस्यात्मक नहीं होते हैं |

🔸अतः समस्यात्मक बालक वह है “जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व उस सीमा से गंभीर हो जो समाज, परिवार, विद्यालय में अपेक्षित हो जैसे यदि कोई प्रतिभाशाली एवं सृजनात्मक बालक है तो वह क्षअपनी सीमा को पार करता है तो वह समस्यात्मक बालक की श्रेणी में आता है एवं इसी प्रकार यदि कोई पिछड़ा एवं मंदबुद्धि बालक है और वह अपनी सीमा को पार करता है तब वह समस्यात्मक बालक की श्रेणी में आता है |

🔸 ऐसी स्थिति में यदि बालक को उचित मार्गदर्शन दिया जाए उसकी समस्या को सुधारा जा सकता है और यदि उसको उचित समय पर सही मार्गदर्शन नहीं दिया गया तो वह समस्यात्मक की श्रेणी में आ जाता है |
जैसे यदि किसी बच्चे को शुरुआत में चोरी करने से नहीं रोका गया तो वह बाद में समस्यात्मक बालक का रूप धारण कर लेता है |

🔆 समस्यात्मक बालक की पहचान

समस्यात्मक बालकों की पहचान करने की 6 पद्धति या विधियां है जो निम्न प्रकार से है➖

1) निरीक्षण पद्धति ,
2)साक्षात्कार पद्धति ,
3)अभिभावक ,शिक्षक ,मित्रों से वार्तालाप ,
4)कथात्मक अभिलेखन,
5) संचयी अभिलेख, 5)मनोवैज्ञानिक परीक्षण,

💫 निरीक्षण पद्धति

इस पद्धति के अंतर्गत बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निरीक्षण या अवलोकन किया जाता है इसके अनुसार हम बच्चे का संपूर्ण तरीके से निरीक्षण कर सकते हैं जैसे उसके व्यवहार का अवलोकन करना एवं उसके क्रियाकलाप की यह दिनचर्या की हर पहलू का अवलोकन करना और इस प्रकार हम अपने अवलोकन द्वारा विश्लेषण करके समस्यात्मक बालक का पता लगाया जा सकता |

💫 साक्षात्कार पद्धति

जब हम किसी का साक्षात्कार लेते हैं तो उसके व्यवहार द्वारा उसके संपूर्ण क्रियाकलापों के बारे में पता लगाया जा सकता है इस पद्धति के द्वारा हम किसी के व्यवहार का पता कर सकते हैं और वहां से पता किया जा सकता है कि वो समस्यात्मक है या नहीं |

💫 अभिभावक,शिक्षक, या मित्रों से वार्तालाप

यदि ऐसे बच्चों की बात करते हैं जो समस्यात्मक हों तो उसके माता-पिता ,शिक्षक, या मित्र से वार्तालाप करके पता किया जा सकता है क्योंकि ये लोग बच्चे के अपने होते हैं वे सदैव उसके इर्द-गिर्द रहते हैं और यहां से पता लगाया जा सकता है कि बच्चा समस्यात्मक है या नहीं है |

💫 कथात्मक अभिलेखन
कथात्मक अभिलेखन के द्वारा बच्चे के माता-पिता या उसके आस पड़ोस के लोगों से के द्वारा जानकारी को एकत्रित करना या उसके अध्ययन से भी समस्यात्मक बालक की पहचान की जा सकती है |

💫 संचयी अभिलेख

इस पद्धति में बालक का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि इसकी सहायता से कोई भी शिक्षक या अध्यापक बालक के व्यवहार से पूरी तरह अवगत हो जाता है जो कि उसके संपूर्ण व्यवहार एवं उसकी योग्यताओं से परिचित होता है |
अर्थात कोई भी ऐसा रिकॉर्ड जो किसी के बारे में एकत्रित किया गया हो जैसे सर्टिफिकेट ,कहानी, जीवनी ,आत्मकथा, आदि अर्थात किसी के बारे में लिखा गया हो वह संचय अभिलेख के अंतर्गत आता है संचयी अभिलेख के द्वारा शिक्षक को एक आवश्यक सूचना उपलब्ध हो सकती है जो उसको अध्यापन कार्य में सहायता प्रदान कर सकती है |

💫 मनोवैज्ञानिक परीक्षण
इस परीक्षण में बच्चों से ऐसे कार्य करवाना जो कि उनके मन से संबंधित हैं अर्थात उसके मन में क्या चल रहा है ,क्या सोचता है क्या करना चाहता है ,इसका संपूर्ण रूप से परिचय दें लेकिन शर्त यह है कि ऐसा वातावरण तैयार किया जाए ताकि वह अपने मन की बात को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर पाए |
मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी मदद से किसी व्यक्ति का कार्य उसकी क्षमता एवं उसकी सोच का अंदाजा लगाया जा सकता है और इस प्रकार हम समस्यात्मक बालक की पहचान कर सकते हैं |

𝙉𝙤𝙮𝙚𝙨 𝙗𝙮 ➖𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

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🦚🦋🦚समस्यात्मक बालक (problem child)🦚🦋🦚

🐒समसयात्मक बालक, वह बालक होता जो अपने साथी/शिक्षक/समाज के लिए हमेशा एक समस्या उत्पन्नकरता हो। Actual में इनका व्यवहार ही समस्या उत्पन्न करने वाला होता है। और सामान्य नहीं होता है।

📍शिक्षक/दोस्तो को धमकी देना
📍चोरी करना
📍बात-बात पर झगड़े करना
📍स्कूल से भाग जाना
📍नियम क़ानून का उल्लंघन करना।
इत्यादि, गुण के द्वारा ही समस्यात्माक बालकों की पहचान की जा सकती हैं।

🌻According to वैलेंटाइन:-
समस्यात्मक बालक वो होता है, जिसका व्यवहार और व्यक्तितव किसी बात में गम्भीर रूप से असाधारण होता है।
📍अतः हम कह सकते हैं कि, जिनका व्यवहार और व्यक्तितव उस सीमा से गंभीर हो जो समाज/परिवार/विद्यालय में अपेक्षित है।
🌷ऐसे बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता।
अगर नहीं सुधारा गया तो बच्चे अपराधी या देशद्रोही बालक बन सकता है।

🐒🍁🐒समस्यात्माक बालक की पहचान 🐒🐒

🎯निरीक्षण पद्धति (Observstion method) द्वारा –
🌾इस पद्धति के द्वारा हम बालकों के विभिन्न कार्य, व्यवहार, गतिविधियों से जुड़े सामाजिक/ पारिवारिक/ शैक्षणिक इत्यादि से निरीक्षण कर सकते हैं।

🎯साक्षात्कार पद्धति (Interview method) द्वारा:-
🌾इस पद्धति में शिक्षक बालकों को सामने बैठाकर वार्तालाप करते उनके हाव भाव, विचार, प्रतिक्रिया से पता चलता है कि बालक किस प्रवृति एवं स्वभाव का है।

🎯अभिभावक शिक्षक मित्रों से वार्तालाप:-
🌾इसमें शिक्षक बच्चे के अभिभावक/दोस्त से वार्तालाप के माध्यम से बच्चे के व्यवहार को समझने की कोशिश करते है।

🎯कथात्मक अभिलेख (Narrative record)
🌾इसमें बच्चे द्वारा कहे गए शैक्षिक दृष्टिकोण में जो कुछ भी रिकॉर्ड हैं, उन सब का रिकॉर्ड इस अभिलेख में रखा जाता है।

🎯संचयी अभिलेख (Cumulative record)
🌾ऐसा record जो बच्चे के बारे मे रखा गया हो, जैसे-
🍹portfollio
🍹school certificate etc
अन्य किसी रिकॉर्ड के माध्यम से हम बच्चे के बारे में जानकारी प्राप्त करते है।

🎯मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological test):-
🌾यह ऐसी परीक्षण पद्धति है, जिसके अंतर्गत हम बालकों के व्यवहार को जानते हैं, उनका अवलोकन करते है, उनके कार्य करने के तरीकों को देखते/ अवलोकन करते हैं।
इससे यह पता चलता है कि उनमें किस प्रकार की कौन सी समस्या है या कितनी क्षमता निहित हैं।
🌸 समाप्त 🌸
📚Noted by Soni Nikku ✍

💫समस्यात्मक बालक 💫

🔆समसयात्मक बालक, वह बालक होता जो अपने साथी/शिक्षक/समाज के लिए हमेशा एक समस्या उत्पन्न करता हो। इनका व्यवहार ही समस्या उत्पन्न करने वाला होता है। यह जरूरी नहीं है कि प्रतिभाशाली बालक यह सृजनात्मक बालक समस्यात्मक बालक नहीं हो सकता और यह भी जरूरी नहीं है कि मंदबुद्धि बालक व पिछड़ा बालक समस्यात्मक बालक होता है। ऐसे बालक विभिन्न में समस्याएं उत्पन्न करते हैं जो

1️⃣शिक्षक/दोस्तो को धमकी ,चोरी करना
2️⃣बात-बात पर झगड़े करना स्कूल से भाग जाना स्कूल के नियम क़ानून का उल्लंघन करना। आदि गुण के द्वारा ही समस्यात्माक बालकों की पहचान की जा सकती हैं

💫वैलेंटाइन के अनुसार:-
समस्यात्मक बालक वो होता है, जिसका व्यवहार और व्यक्तित्व किसी बात में गम्भीर रूप से असाधारण होता ह।
अतः हम कह सकते हैं कि, जिनका व्यवहार और व्यक्तितव उस सीमा से गंभीर हो जो समाज,परिवार,विद्यालय में अपेक्षित है।
✨ऐसे बालक को उचित मार्गदर्शन द्वारा सुधारा जा सकता।
अगर नहीं सुधारा गया तो बच्चे अपराधी पृवृत्ति के बन सकते हैं

💫समस्यात्माक बालक की पहचान💫
🔆निरीक्षण पद्धति द्वारा :-

🔅इस पद्धति के द्वारा हम बालकों के विभिन्न कार्य, व्यवहार, गतिविधियों से जुड़े सामाजिक/ पारिवारिक/ शैक्षणिक इत्यादि से निरीक्षण कर सकते हैं।

🔆साक्षात्कार पद्धति द्वारा:-

🔅इस पद्धति में शिक्षक बालकों को सामने बैठाकर वार्तालाप करते उनके हाव भाव, विचार, प्रतिक्रिया से पता चलता है कि बालक किस प्रवृति एवं स्वभाव का है।

🔆अभिभावक शिक्षक मित्रों से वार्तालाप:-

🔅इसमें शिक्षक बच्चे के अभिभावक/दोस्त से वार्तालाप के माध्यम से बच्चे के व्यवहार को समझने की कोशिश करते है।

🔆कथात्मक अभिलेख

🔅इसमें बच्चे द्वारा कहे गए शैक्षिक दृष्टिकोण में जो कुछ भी रिकॉर्ड हैं, उन सब का रिकॉर्ड इस अभिलेख में रखा जाता है।

🔆संचयी अभिलेख

🔅ऐसा record जो बच्चे के बारे मे रखा गया हो, जैसे-
1️⃣portfollio:-इसमें हम बालक द्वारा किए गए विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप ड्राइंग पेंटिंग चित्रकारी मासिक मूल्यांकन की उत्तर पुस्तिकाओं का संग्रह करके रखते हैं।
2️⃣school certificate :-स्कूल में होने वाली विभिन्न प्रति प्रतियोगिताओं में बालक जब भाग लेता है तो उन्हें प्रमाण पत्र दिए जाते हैं जिसके माध्यम से हम बालकों का परीक्षण कर सकते।
अन्य किसी रिकॉर्ड के माध्यम से हम बच्चे के बारे में जानकारी प्राप्त करते है।

🔆मनोवैज्ञानिक परीक्षण

🔅यह ऐसी परीक्षण पद्धति है, जिसके अंतर्गत हम बालकों के व्यवहार को जानते हैं, उनका अवलोकन करते है, उनके कार्य करने के तरीकों को देखते हैं। जिससे यह पता चलता है कि उसमें किस प्रकार की समस्या है या कितनी क्षमता निहित हैं।
✍🏻✍🏻Notes by-Raziya khan✍🏻✍🏻

Classification and remedy of of mentally retarded child notes by India’s top learners

📖 मंद बुद्धि बालक का वर्गीकरण 📖

⚡ मंदबुद्धि बालकों का वर्गीकरण मुख्य रूप से चार प्रकार से किया गया है, जो कि निम्नलिखित हैं~

🌻 मंद गति से सीखने वाले~
इन बालकों की बुद्धि लब्धि 70-90 के बीच होती है।
यह बालक मंद गति से सीखते हैं, पर सीख जाते हैं। इस प्रकार के बालकों के लिए हम यह नहीं कह सकते हैं, कि यह बालक सीख नहीं सकते हैं। यह सीख सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे सीखते हैं, इन्हें सीखने में समय अधिक लगता है।

🌻 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना~
इन बालकों की बुद्धि लब्धि 50-70 होती है।
यह बालक मामूली रूप से मंदित होते हैं, इन बालको में कुछ हद तक सीखने की क्षमता नहीं होती है, यह सीख नहीं पाते हैं।

🌻 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना ~
इन बालकों की बुद्धि लब्धि 20-49 के बीच होती है।
इन बालकों में सीखने के गति धीमी होती है, लेकिन इनके लिए विशिष्ट प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। विशिष्ट प्रशिक्षण मिलने पर यह बालक शीघ्र सीख जाते हैं।

🌻 पराश्रित पूर्ण मंदितमना ~
0-20 बुद्धि लब्धि के बालक इस श्रेणी में आते ।
इस श्रेणी के बालक पूर्णता दूसरो पर आश्रित होते हैं, वह स्वयं से कुछ भी नहीं कर पाता है, हमेशा दूसरों पर निर्भर रहते हैं।

🌺🌿🌺🌿🌺 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार🌺🌿🌺🌿🌺

🍂🍃पृथक्करण ~
मानसिक रूप से पिछड़े बालकों को अलग रखा जाए और उन्हें विशेष संस्थानों में रखकर उनकी कमियों को दूर किया जाए। इन बालकों को सामान बालकों से अलग रखकर ही शिक्षा दी जानी चाहिए।

🍂🍃 जन्म दर पर नियंत्रण~
ऐसे माता-पिता जो गंभीर रूप से मानसिक रूप से पिछड़े माता-पिता हैं। उनकी नसबंदी (Sterilization) करा दी जाए, जिससे कि मंद बुद्धि लब्धि के बालक जन्म ना ले पाए। इस तरह से मंदबुद्धि बालकों की जन्म दर में कमी हो जाएगी। इसके लिए सभी को प्रयत्न करने होंगे, सभी माता-पिता एवं अभिभावकों को इसमें साथ देना होगा। तभी यह प्रयास सफल हो पाएगा।

🍂🍃 व्यक्तिगत अध्ययन~
हर बच्चे को विशिष्ट ध्यान की आवश्यकता होती है। विशिष्ट ध्यान देकर ही हम प्रत्येक वाले की कमियों को दूर कर सकते हैं। हर बच्चे पर ध्यान देकर हम उनकी कमियों का पता कर सकते हैं, एवं कमियों को जानने के बाद हम उसका निराकरण कर पाएंगे।
इसके लिए व्यक्तिगत ध्यान की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत ध्यान देने के लिए हमें कक्षा के आकार को छोटा रखना होगा, अधिक बच्चे होने पर हम व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे पाते हैं, अतः कक्षा का आकार भी छोटा होना एक मुख्य पहलू है।

🍂🍃 माता-पिता को शिक्षित करना~
माता-पिता शिक्षित होते हैं, तो उनको अपने मंदबुद्धि बालक के स्तर का ज्ञान होता है, तो वह बच्चों के साथ कैसे व्यवहार करेंगे यह वह जानते हैं।
इसके लिए माता-पिता का शिक्षित होना अति आवश्यक है। अगर माता-पिता शिक्षक नहीं होंगे, तो वह यह नहीं जान पाएंगे, और न ही समझ पाएंगे, कि उनके बालक को किस प्रकार की समस्या है। अतः मंदबुद्धि बालको की समस्या के निराकरण के लिए माता-पिता का शिक्षित होना अति आवश्यक है।

🍂🍃 विशेष स्कूल व अस्पताल~
मंदबुद्धि बालक की सामान्य स्कूल एवं अस्पतालों में इनकी देखरेख आवश्यकता के अनुरूप प्रशिक्षण संभव नहीं है। इसके लिए आवश्यक है, कि हम मंदबुद्धि बालकों को विशेष स्कूल और अस्पताल की आवश्यकता होगी। विशेष स्कूल होने पर इन बालकों को विशेष ध्यान दिया जाएगा, एवं विशेषता अस्पताल अस्पताल होने पर इन बालको की कमियों को दूर किया जा सकता है।

🍂🍃 विशिष्ट शिक्षा विधि~
सामान्य बच्चे की शिक्षण विधियां इन बालकों के लिए ठीक नहीं होती है अतः इन बालकों को उपयुक्त विशिष्ट शिक्षण विधियों की आवश्यकता होती है सामान्य बालक को की शिक्षण विधियों से यह बालक सीख नहीं पाते हैं।

🍂🍃 विशेष पाठ्यक्रम~
मंदबुद्धि बालकों के लिए विशिष्ट पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है। इनके पाठ्यक्रम में हस्तकला से जुड़े पाठ पढ़ाए जाने चाहिए। यह बालक पुस्तकीय ज्ञान मे यह अधिक उन्नति नहीं कर सकते हैं। इनके लिए हस्तकला पाठ्यक्रम का आयोजन किया जाए। ताकि यह समाज पर बोझ न बने। अतः हम उपयुक्त सभी तथ्यो के आधार पर यह कह सकते हैं। कि उपचार ऐसा हो जो कि मंदबुद्धि बालक के लिए उपयुक्त हो। जिससे कि वह बाद में अपने पैरों पर खड़ा हो सके। एवं किसी अन्य व्यक्ति पर बोझ न बने। अपनी जिम्मेदारियों को स्वयं ही पूर्ण कर पाए, इसके लिए सभी माता-पिता एवं अन्य समाज के व्यक्तियों को साथ मिलकर प्रयास करने होंगे। 📗 समाप्त 📗

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

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[11/2, 5:08 PM] : 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

🌈मंदबुद्धि बालक का वर्गीकरण🌈

🎯मंद गति से सीखने वाले:- मंदबुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 70 से 90 के बीच होती है यह बालक मंद गति से सीखते हैं मंदबुद्धि बालक को सीखने में अधिक समय लगता है

🎯 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना :- इन बालकों की बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है यह बालक मामूली रूप से मंदित होते है इन बालकों की सीखने की क्षमता बहुत कम होती है यह सीख नहीं पाते हैं

🎯 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना :-
इन बालकों की बुद्धि लब्धि 20 से 49 के मध्य होती है इन बालकों में सीखने की गति धीमी होती है लेकिन इनके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है

🎯 परश्रित पूर्ण मंदितमना :- इन बालकों की बुद्धि लब्धि 0 से 20 के माध्यम होती है इसमें बालक दूसरों पर आश्रित होते हैं वह आपने काम स्वयं नहीं कर पाते हैं या दूसरों पर आश्रित होते हैं

🌈 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार

⭐पृथक्करण :-
मानसिक रूप से पिछड़े बालकों को अलग रखा जाए और उन्हें विशेष संस्था तथा विशेष सुविधा प्रदान की जाएं जिससे उनकी कमजोरियों का उपचार किया जा सके इन बालकों सामान्य बालकों से अलग रखा रखकर ही शिक्षा दी जाती है

⭐ जन्म दर पर नियंत्रण:-
ऐसे माता-पिता जो गंभीर रूप से मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं उनकी नसबंदी करा दी जाए जिससे कि मंदबुद्धि बालक जन्म ना ले पाए इस तरह से मंदबुद्धि बालक की जन्म दर में कमी हो जाएगी

⭐ माता पिता को शिक्षित :-
माता-पिता होते हैं तो उनको अपने मंदबुद्धि बालक के स्तर का ज्ञान होता है वह बच्चे के व्यवहार को समझ सकते हैं तथा उनका उचित विकास कर पाएंगे इसलिए माता-पिता का शिक्षित होना अति आवश्यक होता है मंदबुद्धि बालक की समस्याओं का निवारण के लिए माता-पिता को शिक्षित होना चाहिए

⭐ विशेष स्कूल व अस्पताल :-
मंदबुद्धि बालक की सामान्य स्कूल या अस्पताल में इनकी देखरेख आवश्यकता के अनुसार नहीं हो पाती है इसीलिए इन बालकों के लिए विशेष स्कूल और अस्पताल की व्यवस्था होनी चाहिए जिस स्कूल में इन बालकों को विशेष ध्यान दिया जाता है तथा विशेष अस्पताल में इन्हीं कमियों को दूर किया जा सकता है इन बच्चों के लिए सामान्य स्कूल में भी विशेष कक्षा की व्यवस्था की जाती है जिससे बच्चे का विकास हो

⭐ विशेष शिक्षा विधि:-
सामान्य बच्चे की शिक्षण विधियां इन बच्चों के लिए ठीक नहीं होती हैं इनके लिए विशेष प्रकार की आवश्यकता होती है यह बालक सामान्य विधियों से नहीं सीख पाते हैं

⭐ विशेष पाठ्यक्रम मंदबुद्धि बालक के लिए विशेष पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है इन बालकों के लिए हस्तकला की सुविधा की जाए हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाए जाने चाहिए यह बालक सुस्त किए ज्ञान से अधिक उन्नति नहीं कर सकते हैं हस्तकला पाठ्यक्रम का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे कि वह बच्चे समाज का बोझ नहीं बन पाए |

✍🏻✍🏻✍🏻Menka patel ✍🏻✍🏻✍🏻

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[11/2, 5:13 PM] : 🔆 मंदबुद्धि बालकों का वर्गीकरण

मंदबुद्धि बालकों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है।

1 मंद गति से सीखने वाले
2 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना
3 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना
4 पराश्रित पूर्ण मंदितमना

▪️ (1) मंद गति से सीखने वाले
यह बालको के सीखने की गति मंद होती है अर्थात यह धीमी गति से सीखते हैं, लेकिन यह मंद गति के साथ धीरे धीरे सीख भी जाते हैं। इनकी बुद्धि लब्धि 70 से 90 के बीच होती है।

▪️ (2) शिक्षा पाने योग्य मंदितमना
सीखने में मामूली रूप से मंद होते हैं इस श्रेणी के बालको की बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है।

▪️ (3) प्रशिक्षण योग्य मंदितमना
इस वर्ग में आने वाले बालको को प्रशिक्षण देना जरूरी या आवश्यक ही होता है।इनकी बुद्धि लब्धि 20 से 49 के बीच होती है।

▪️ (4) पराश्रित पूर्ण मंदितमना
यह पूर्ण रूप से मंद होते है एवम् इन्हे अपने कार्य के लिए इन्हें दूसरों पर आश्रित या निर्भर रहना पड़ता है।इनकी बुद्धि लब्धि 0 से 20 के मध्य होती है।

🔆 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार:➖

मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार निम्न तरीकों से किया जा सकता है।

🔅 पृथक्करण (Segregation)➖:
मानसिक रूप से पिछड़े बालकों को सामान्य बालकों से अलग कर दिया जाए और विशेष संस्थाओं में रखा जाए।
यदि बच्चे मंद बालक है तो हमें उनकी जरूरत या आवश्यकता के अनुरूप विशेष संस्थाओं में रखना चाहिए क्योंकि यह बच्चे मंद गति से सीखने वाले होते है जो सामान्य बच्चो की तरह नहीं सीख सकते है।

🔅 जन्म दर पर नियंत्रण➖:
यदि गंभीर व मानसिक रूप से पिछड़े माता – पिता है तो इनकी नसबंदी (Sterilization) करा दी जाए तो उनकी मंदबुद्धि संतान का जन्म ना हो पाएगा ।

🔅 माता-पिता को शिक्षित करना➖:
माता-पिता यदि शिक्षित होते हैं तो उनको अपनी मंद बुद्धि बालकों की बुद्धि का स्तर पता होता है। जिसके माध्यम से बच्चों के साथ कैसे व्यवहार करना है यह निर्धारित होता है।

🔅 विशेष विद्यालय व अस्पताल➖:
सामान्य स्कूल में या अस्पताल में इनका देख रेख या आवश्यक प्रशिक्षण संभव नहीं।
क्योंकि यह बच्चे मंद गति से सीखने वाले है इसलिए इनकी इस विशेषता या आवश्यकता या जरूरत के हिसाब से विद्यालय व उनकी उचित देख रेख़ के लिए अस्पताल भी विशेष रूप से हो।

🔅 विशेष शिक्षण विधि➖:

सामान्य बच्चों की शिक्षण विधियां ठीक नहीं बल्कि उपयुक्त शिक्षण विधि बनाई जाएं
यह शिक्षण विधि इस तरह कि हो जिनके माध्यम से हम बच्चो को उनकी आवश्यकता या जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समझा पाए।अर्थात बच्चो के आसानी से या सरल रूप से समझने योग्य हो।

🔅 विशेष पाठ्यक्रम➖:
विशेष पाठ्यक्रम के माध्यम के अन्तर्गत हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाएं क्योंकि पुस्तकज्ञान से मंद बुद्धि बालक अधिक उन्नति नहीं कर सकते।
यदि उन्हें हस्तकला का ज्ञान दिया जाएगा तो स्वयं से कुछ कर व्यवसायिक कार्यों के लिए तैयार होंगे और साथ ही साथ वह समाज पर बोझ ना बन सकेगे।

मंदबुद्धि बालको का उपचार ऐसा करना चाहिए जिससे यह बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो सके व किसी पर निर्भर ना रहें।

✍🏻
Notes By-Vaishali Mishra


[11/2, 5:15 PM] 🍁☘️🍁 मंदबुद्धि बालक का वर्गीकरण🍁☘️🍁

🌳मंदबुद्धि बालकों से संबंधित है वर्गीकरण मुख्य रूप से चार प्रकार से किया गया है।
जो कि निम्नलिखित है :-

🌟मंद गति से सीखने वाले
🌟शिक्षा पाने योग्य मंदितपना
🌟प्रशिक्षण योग्य मंदितपना
🌟पराश्रित पूर्ण मंदितपना

🌟मंदगति से सीखने वाले :-

🌿 ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से 90 के बीच होती है।
ऐसे बालक भले ही मंद गति से सीखते हैं लेकिन सिख जाते हैं। इनमें भी सीखने की क्षमता होती है, भले ऐसे बच्चे धीरे सीखते हो। लेकिन इन्हें हम ऐसा नहीं कह सकते कि यह बच्चे सीख नहीं सकते।

🌟शिक्षा पाने योग्य मंदितपना :-

🌿 ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है।
ऐसे बालकों में सीखने की अक्षमता होती है। तथा यह सीख भी नहीं पाते हैं।

🌟प्रशिक्षण योग्य मंदितपना :-

🌿 ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 20 से 49 के बीच होती है
इनमें भी सीखने की मंद गति होती है लेकिन कुछ विशेष कार्यों/उद्देश्यों द्वारा सहायता या प्रशिक्षण देने से यथाशीघ्र सीख लेते हैं,।

🌟पराश्रित पूर्ण मंदितपना :-

🌿 ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 0 से 20 के बीच होता है।
इस श्रेणी के बालक पूर्ण रूप से किसी और पर निर्भर होते हैं उनमें खुद से कुछ करने की क्षमता नहीं होती है।

🌳☘️🌷🌲🦚 मानसिक पिछड़ेपन का रोकथाम व उपचार🦚🌲🌷☘️🌳

🌟पृथक्करण
🌟 जन्म दर नियंत्रण
🌟व्यक्तिगत अध्ययन
🌟माता-पिता को शिक्षित करना
🌟 विशेष स्कूल और अस्पताल
🌟 विशिष्ट शिक्षा
🌟 विधि विशेष पाठ्यक्रम।

🌟 पृथक्करण :-

🌿 इसके अनुसार मानसिक बच्चों को सामान्य रूप से अलग रखकर विशेष व्यवस्था द्वारा ही शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जिससे उनकी मंदता को दूर किया जा सके।

🌟 जन्म दर नियंत्रण :-

🌿 इसके अंतर्गत ऐसे माता-पिता जो मानसिक रूप से पिछड़े हो,उनका नसबंदी करा देना चाहिए ताकि मानसिक रूप से मंदित संतान को जन्म ना दे सके। इस कार्य में माता-पिता और समाज की अहम भूमिका होती है तभी मंदितपना कम करने के पहल में सफल हो सकते हैं।

🌟 व्यक्तिगत अध्ययन :-

🌿 हर एक बच्चे का व्यक्तिगत अध्ययन किया जाना चाहिए जिससे उनके हर एक कमी,गुण – दोषों और उपलब्धि के बारे में जानकारी हासिल कर उनके योग्य उपचार प्रदान किया जा सके तथा उन्हें जिस भी विशिष्ट सहयोग या जानकारी की आवश्यकता हो उसकी पूर्ति की जा सके इससे उनमें प्रेरणा का विकास और भी अपने कार्यों में दिलचस्पी ले ने लगे।

तथा व्यक्तिगत ध्यान देने का एक प्रमुख पहलू यह भी है कि कक्षा यह समुदाय का आकार छोटा होना चाहिए तभी इस श्रेणी के सभी बालक ऊपर हम व्यक्तिगत ध्यान दे सकेंगे,अध्ययन कर सकेंगे। तथा उनके समस्याओं का समाधान कर सकेंगे।
इसलिए उन्हें व्यक्तिगत ध्यान देना तथा उनका व्यक्तिगत अध्ययन करना भी आवश्यक हो जाता है।

🌟 विशेष स्कूल व अस्पताल :-

🌿 मंदबुद्धि बालकों के लिए उनका विशेष रूप से विशेष स्कूल व अस्पताल होना चाहिए। ताकि उनके समस्याओं को जानकर सफलतापूर्वक समाधान किया जा सके। उन्हें विशेष स्कूलों व अस्पतालों की जरूरत इसलिए है कि उनके समस्याओं का समाधान सामान्य बच्चों के हाथ रखकर संभव नहीं हो पाएगी।

🌟 विशिष्ट शिक्षा विधि :-

🌿 मंदबुद्धि बालकों के लिए सामान्य शिक्षण विधियां उपयुक्त नहीं होती। इसमें वे सीख नहीं पाते हैं। ऐसे बालकों की विशिष्ट शिक्षण विधि की आवश्यकता होती है जिसमें उनकी भावनाओं को समझा जाए तथा उसकी पूर्ति की जाए।

🌟विशेष पाठ्यक्रम :-

🌿 मंदबुद्धि बालक को के लिए विशेष पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है।क्योंकि ऐसे बच्चे सामान्य पाठ्यक्रम के साथ समायोजन नहीं कर पाते हैं। इसके कारण सामान्य पाठ्यक्रम उनके लिए बोझ बन कर न रह जाए इटली मंदबुद्धि बालक को विशेष पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है। जिसमें उनकी गुण – दोष क्षमता – अक्षमता,भाव इत्यादि को ध्यान में रखते हुए कार्य किया जाए।

अंततः उपर्युक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है।कि हमें मंदबुद्धि बालकों को सामान्य बालकों से अलग विशिष्ट शिक्षण पद्धति का निष्पादन करना चाहिए। जिससे वे पढ़ने या कार्य करने में रुचि ले और सफल हो सकें।तथा शिक्षण या कोई भी कार्य उनके लिए बोझ कर ना रह जाए।इसलिए उनकी विशिष्टता को देखते हुए उनके लिए विशिष्ट शिक्षण विधियों और कार्यों का निष्पादन किया जाना चाहिए। जिससे वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सफलतापूर्वक कर सके।

🌷🌷 इस कार्य में उनके माता-पिता,अभिभावक,विद्यालय,परिवार,आस-पड़ोस व अन्य और सभी की सहयोग की आवश्यकता होती है।🌷🌷 🌸🌸🌸🌸🌸समाप्त 🌸🌸🌸🌸🌸

🌟Notes by :- Neha Kumari 😊

🌿🌿धन्यवाद् 👏👏

[11/2, 5:45 PM] : ➡️Mand budhi balak ka vargikaran-
🔸️Mand budhi balak ko 4 pirkar se vargikrt kia gaya hai.
1-Mand gati se sikhne wale balak.
inki I.q (70-90) hoti hai.isi karan ye dhire dhire shikte hai.in balko ko sikhne me thoda samye lagta hai.
2-sikcha pane yogya mandit mana.
In balko ki I.q(50-70) hoti hai.ye balak mamoli roop se mandit hote hai.
3-Pirsichan yogya mandit mana.
In balko ki I.q(20-49)hoti hai.in balko ko pirsichan ki jarrort hoti hai.jisse inhe sikhne yogya banaya ja sakta hai.
4-purn mandit mana.
Is pirkar ke balak ki I.q (20 se kum hoti hai).
Yebalak paraasrit hote hai.ye sikhne ke lie dusro pr nirbhar rahte hai.
🔸️ mansik pichhdepan Ki roktham or upchar.
✔ prithakkaran- mansik Roop se Pichde bacche ko Samanya Balak Se Alag kar diya Jaaye aur Vishesh Sansthan Mein Rakha Jaaye.
✔ Janm Dar per niyantran- Gambhir va mansik Roop se Pichde Mata Pita ki nasbandi kara dijiye jisse mandbuddhi bacche ka Janm na ho.isse nai generation me mand budhi balako ki sankhya kum ho.
✔Vyaktigat Dhyan- Saychik Roop Se Har Ek bacche per personal Dhyan Dena chahie. Class ka Aakar Chota rakhkar inper Dhyan Diya Ja sakta hai.pirtyek balak pr vyaktik taur pr dhyan dia ja sakta hai.
✔Mata Pita Ka shikshit Hona- Balak adhiktar Samay Apne maa baap ke sath rahte hai.islie agar maa baap sikchit honge to unhe aise balko ka bhaudhik istar pata hoga.or unhe bacho se kaisa viyvhar krna hai unhe is baat ka dhyan rahega.
✔Vishesh school aur aspataal- Samanya school ya aspataal Mein Inka dekhrekh ya avashyak Prashikshan Sambhav Nahin isliye inke liye vishesh jarurto ko pura krne ke lie vises school or aspatal hone chahiye.
✔ Vishesh Shikshan Vidhi- Samanye Shikshan Vidya ine bacchon ke liye upyukt nahin hai isliye inke liye upyukt Shikshan vidhiyan tayar ki Jaaye jisse inhe sikchan me asani ho.
✔ Vishesh pathykram- hast kala se Jude path padhayn.

  • Ye Balak Pustak Gyan Mein Adhik Unnati nahin kar sakte Aise balkon ko Hasth Kala se Jude Karya karvayen Taki yah samaj me Bojhe na Ban sake.
  • in balkon Ka Aisa upchar Karen Taki Apne Pairon per khade ho sake.
    🖊 Krishna gangwar…

  • [11/2, 6:36 PM] : 🌞मंद बुद्धि बालक का वर्गीकरण :-

🌹मंद गति से सीखना :- ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 70-90 के बीच होती है ये किसी भी कार्य को बहुत ही धीरे – धीरे करते हैं तथा किसी की बात को देरी से समझते हैं लेकिन हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह नहीं कर सकते हैं ये उस कार्य को धीरे – धीरे सीख जाते हैं |

🌹शिक्षा पाने योग्य मदिंतमना :-
ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 50-70 के मध्य होती है ये मूल रूप से मदिंत होते हैं इनमें सीखने की क्षमता बहुत कम होती है यह सीख नहीं पाते हैं |

🌹प्रशिक्षण योग्य मदिंतमना :- ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 20-49 के मध्य होती है इनकी सीखने की गति धीमी होती है लेकिन इनको प्रशिक्षण द्वारा सिखाया जा सकता है जो कि इनके लिए आवश्यक है|

🌹पराश्रित पूर्ण मदिंतमना :- इन बालकों की बुद्धि लब्धि 0-20 के मध्य होती है ये हमेशा दूसरे पर आश्रित होते हैं अपने काम दूसरो से करवाते हैं |

🌞मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार :-

🌷पृथक्करण :- इसमें मानसिक रूप से पिछड़े बालक को सामान्य बालकों से अलग कर दिया जाता है और विशेष संस्थाओं या कक्षाओं में रखा जाये जिससे कि इनकी कमजोरी का पता लगाकर इनका उपचार किया जा सके ताकि इन्हें इनके अनुसार शिक्षा दी जा सके|

🌷जन्मदर पर नियंत्रण :- ऐसे माता – पिता जो कि गंभीर रूप से मानसिक रूप पिछड़े हो उनकी नसबंदी करा दी जाए जिससे कि मंद बुद्धि बालक का जन्म न हो और जन्मदर पर नियंत्रण हो सके |

🌷व्यक्तिगत ध्यान :- माता – पिता को चाहिए कि मंद बुद्धि वाले बालक पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए ताकि उसकी कमियों को जाना जा सके और उसका निवारण किया जा सके तथा कक्षा का आकार छोटा व बच्चे कम होने चाहिए |

🌷माता – पिता को शिक्षित करना :- अगर माता – पिता शिक्षित होगे तो वे बालक की बुद्धि के स्तर का पता लगा पायेंगे और बालक के साथ कैसा व्यवहार करना है कर पायेंगे और उसमें सुधार कर सकेंगे |

🌷विशेष स्कूल व अस्पताल :- ऐसे बालक की देखरेख सामान्य स्कूल व अस्पताल में नहीं हो सकती है इनके लिए विशेष स्कूल व अस्पताल कि व्यवस्था कि जानी चाहिए जिससे कि इनके उपर विशेष रूप से ध्यान दिया जा सके|

🌷विशेष शिक्षण विधि :- सामान्य बच्चे कि शिक्षण विधियाँ इनके लिए ठीक नहीं है इनके लिए उपर्युक्त शिक्षण विधि बनाने जाने चाहिए ताकि जिसको जिस प्रकार कि शिक्षा की आवश्यकता हो , उसे उस प्रकार कि शिक्षा दी जा सके जिससे कि वह आसानी से सीख सके |

🌷विशेष पाठ्यक्रम :- ऐसे बालकों के लिए विशेष पाठ्यक्रम होने चाहिए जिससे कि कि वे खुद का व्यवसाये शुरू कर सके और आत्मनिर्भर बन सके और समाज पर बोझ न बने |
जैसे – हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाए , पुस्तक ज्ञान में ये अधिक उन्नति नहीं कर सकते हैं

🌹🌹Thank you 🌹🌹

👩‍🏫Meenu Chaudhary👩‍🏫

◼️ मंद बुद्धि बालक का वर्गीकरण ( classification of mentally retarded children’s)–

मंद बुद्धि बालक को चार प्रकार से वर्गीकृत किया गया है , जो निम्न है–

▪️ १. मंद गति से सीखने वाले बालक– मंद गति से सीखने वाले बालक किसी भी कार्य को मंद गति से या धीमी गति से सीखते हैं परन्तु सीखते जरूर है । इसमें पूर्ण रूप से यह नहीं कहा जा सकता है ,कि बालक सीख नहीं सकता, बालक मंद गति से ही सीखेगा या उसे सीखने में अधिक से अधिक समय भी लग सकता है लेकिन सीख जाता है । इसमें बालक की बुद्धि–लब्धि 70–90 के बीच की होती है।

▪️ २. शिक्षा पाने योग्य मन्दितमना– इसमें बालक शिक्षा पाने में मामूली रूप से मंदित होते हैं ये बालक कुछ चीजें नहीं सीख सकते , इसलिए इनके सीखने की क्षमता मन्दित और उस योग्य नहीं होती है तथा इनकी बुद्धि–लब्धि 50–70 के बीच होती है ।

▪️ ३. प्रशिक्षण योग्य मन्दितमना– इसमें बच्चा अति मंद गति से सीखता है , इसमें बच्चे को प्रशिक्षण के द्वारा ही ठीक किया जा सकता है इसलिए बच्चे को प्रशिक्षण देना बहुत आवश्यक हो जाता है। इनकी बुद्ध- लब्धि 20 से 49 के बीच होती है।

▪️ ४. पराश्रित पूर्ण मन्दितमना– इसमें बालक पूरी तरह से मंद और ये पूरी तरह से दूसरों पर आश्रित/निर्भर होते हैं , इनकी बुद्धि–लब्धि 0 से 20 होती है , जिसके कारण इनका कुछ नहीं किया जा सकता है।

◼️ मानसिक पिछड़ेपन का रोकथाम व उपचार–

मानसिक रूप से पिछड़ेपन का रोकथाम व उपचार निम्न तरीकों से किया जा सकता है–

▪️ १. पृथक्करण ( Segregation)– यहां पृथक्करण से यह तात्पर्य है कि मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की पहचान कर ,उनको सामान्य बालको से अलग कर दिया जाए और विशेष संस्थाओं में रखा जाए। जिससे मानसिक रूप से मंद बालक को उनके आवश्यकता अनुसार शिक्षा दी जाए और वह सरलता से सीख सके ।

▪️ २. जन्म दर पर नियंत्रण– जो गंभीर व मानसिक रूप से पिछड़े माता-पिता है उनकी नसबंदी (sterilization) करा दी जाए, जिससे उनके मंदबुद्धि बच्चे का जन्म न हो पाए , क्योंकि मानसिक रूप से मंदबुद्धि बच्चे के मंद होने का सबसे ज्यादा कारण अनुवांशिकता ही है, जो बच्चे के माता–पिता या उनके पूर्वजों से प्राप्त होती है ।

▪️ ३. व्यक्तिगत ध्यान– कक्षा में अध्यापक द्वारा प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाए और कक्षा का आकार छोटा तथा बच्चों की संख्या कम रखी जाए , जिससे प्रत्येक बच्चे की छोट– छोटी गतिविधियों पर ध्यान दिया जा सके और बच्चे की कमियों का पता लगाकर उचित तरीके से उपचार किया जा सके।

▪️ ५. माता-पिता को शिक्षित करना– अगर माता– पिता शिक्षित होंगे तो उनको अपने मंद बुद्धि बालक के स्तर का पता होगा , जिससे वह अपने बच्चे के साथ कैसा व्यवहार करेंगे यह निर्धारित कर सकते हैं।

▪️ ५. विशेष स्कूल व अस्पताल– इनकी विशेष आवश्यकताओं और जरूरतों के हिसाब से इनको पढ़ने–लिखने के लिए तथा इनके स्वास्थ्य का उचित ध्यान रखने के लिए विशेष विद्यालय व अस्पताल की व्यवस्था की जाए क्युकी सामान्य स्कूल या अस्पताल में इनकी देख– रेख या प्रशिक्षण संभव नहीं है।

▪️ ६. विशेष शिक्षण विधि– इनके लिए सामान्य बच्चो की शिक्षण विधियों ठीक नहीं इसलिए उपर्युक्त शिक्षण विधि बनाई जाए। जिससे बच्चे को आसानी से शिक्षण प्रक्रिया पूरी की जाय।

▪️ ७.विशेष पाठ्यक्रम – मंद बुद्धि बालक पुस्तक के ज्ञान में अधिक उन्नति नहीं कर सकते है इसलिए इनको ऐसा पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना चाहिए जिसके माध्यम से कुछ व्यवसायिक कार्य या हस्त कला के लिए तैयार करना चाहिए जिससे ये समाज पर बोझ ना बन सके । तथा मंद बुद्धि बालक का उपचार ऐसे करे की ये बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो सके और आत्मनिर्भर बन सके।

✍🏻 Notes by–pooja

💫 मंदबुद्धि बालकों का वर्गीकरण ➖

मंदबुद्धि बालकों का वर्गीकरण चार प्रकार से किया गया है जो कि निम्न प्रकार से है ➖

1) मंद गति से सीखने वाले
2) शिक्षा पाने योग्य मंदितमना
3) प्रशिक्षण योग्य मंदितमना
4) पराश्रित, पूर्ण मंदितमना

🔹 (1) मंद गति से सीखने वाले

ऐसे बालकों की सीखने की गति बहुत मंद होती है सीखने की क्रिया बहुत धीमी होती है अर्थात धीरे धीरे सीखते हैं लेकिन सीख जाते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 70 से 90 के बीच होती है |

🔹 2 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना

ऐसऐसे बालक मामूली रूप से मंद होते हैं अर्थात इनकी सीखने की गति मामूली रूप से मंद होती है या धीमी होती है ऐसे बालक धीमी गति से सिखाने पर भी नहीं सीखते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है |

🔹 (3) प्रशिक्षण योग्य मंदितमना

इस श्रेणी में आने वाले बालकों को प्रशिक्षण देना अनिवार्य या आवश्यक होता है इनके लिए बिना प्रशिक्षण के सीखना मुश्किल होता है इनकी बुद्धि लब्धि 20 से 49 के बीच होती है |

🔹 (4) पराश्रित,पूर्ण मंदितमना

ऐसे बालक पूर्ण रूप से दूसरों पर आश्रित होते हैं ये पूर्ण रूप से मंद होते हैं इन्हें दूसरों पर आश्रित होना पड़ता है क्योंकि इनकी बुद्धि लब्धि 0 से 20 के बीच होती है |

💫 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार

मानसिक रूप से पिछड़े बालकों के मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम वा उपचार निम्न प्रकार से किया जा सकता है ➖

1) पृथक्करण
2) जन्म दर पर नियंत्रण
3) व्यक्तिगत ध्यान
4) माता पिता को शिक्षित करना
5) विशेष स्कूल व विद्यालय
6) विशेष शिक्षण विधियाँ
7) विशेष पाठ्यक्रम

🔸 पृथक्करण(𝙎𝙚𝙜𝙧𝙚𝙜𝙖𝙩𝙞𝙤𝙣) ➖

मानसिक रूप से पिछड़े बालक को सामान्य बालक से अलग कर दिया जाए और उसे विशेष संस्थाओं में रखा जाए |
यदि बालक मंद है तो उसे उसकी जरूरत के अनुसार विशेष संस्थाओं में रखा जाए और उसके अनुसार शिक्षा दी जाए क्योंकि वह सामान्य बच्चे की तरह नहीं सीख सकता है |

🔸 (2) जन्म दर पर नियंत्रण

यदि गंभीर व मानसिक रूप से पिछड़े माता-पिता है तो उनकी नसबंदी करा दी जाए जिससे उनकी पीढ़ी मंदबुद्धि ना हो, या मंदबुद्धि बच्चे का जन्म ना हो |

🔸 (3) व्यक्तिगत ध्यान

ऐसे प्रत्येक बच्चों पर व्यक्तिगत ध्यान देना अति आवश्यक है जो मंदबुद्धि हो एवं उनकी कक्षा का आकार छोटा होना चाहिए जिससे उन पर ध्यान दिया जा सके और उनकी हर गतिविधि पर ध्यान दिया जा सके तथा उचित शिक्षा दी जा सके |

🔸 (4) माता-पिता को शिक्षित करना

यदि माता-पिता शिक्षित होते हैं तो वह अपने मंदबुद्धि बच्चों पर व्यक्तिगत ध्यान देकर उनके स्तर का पता कर सकते हैं जिसके कारण भी मानसिक मंदता को दूर किया जा सकता है तथा इसके माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि उसका साथ कैसा व्यवहार करना है |

🔸 (5) विशेष स्कूल व अस्पताल

ऐसे बालकों को पढ़ने के लिए व स्वास्थ्य के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए जो कि सामान्य स्कूल या अस्पताल मे संभव नहीं है इसलिए उनके लिए विशेष स्कूल व अस्पताल की व्यवस्था अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए जहां पर उचित देखरेख के साथ आवश्यक प्रशिक्षण संभव हो सके |

🔸 (6) विशेष शिक्षण विधियां

ऐसे बालकों लिए सामान्य बालकों की शिक्षण विधियां उपयुक्त नहीं है इसलिए इनके लिए उपयुक्त शिक्षण विधियां बनाई जाएं जिनके माध्यम से प्रत्येक बच्चे को उसकी आवश्यकता के अनुसार समझाया जा सके |
अर्थात ऐसी शिक्षण विधि जो उनको आसानी से या सरल रूप से समझाने योग्य हो सके |

🔸 (7) विशेष पाठ्यक्रम

ऐसे बच्चों को विशेष पाठ्यक्रम के माध्यम से हस्त कला से जुड़े पाठ पढा़ये जाएं, क्योंकि पुस्तकीय ज्ञान में यह अधिक उन्नति नहीं कर सकते हैं इसलिए उन्हें ऐसी शिक्षा दी जाए जो उनके लिए आवश्यक हो ताकि वे समाज पर बोझ ना बन सकें और व्यवसायिक कार्यो के लिए तैयार हो सकें |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

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🌻मंद बुद्धि बालक का वर्गीकरण 🌻
🌱मंदगति से सीखने वाला🌱
मंद गति से सीखने वाला बालक बहुत घीमी से सीखते हैं उन्हें समय लगता है मगर सीख जाते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 70 -90 होता है
🌱शिक्षा पाने योग्य मंदितमना
ःमामूली रूप से मंद होते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती हैं
🌱प्रशिक्षण योग्य मंदितमना
ः मंद बुद्धि बालक को प्रशिक्षण देना जरूरी भी है और आवशयक भी है इनकी बुद्धि लब्धि 20 से 49 होती हैं
🌱पराश्रित, पूर्ण मंदितमना 🌱
ःयह पूरी तरीके से दूसरो पे निर्भर रहते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 0से 20 रहती हैं

🌻मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार
🌱पृथक्करण (segregation)
मानसिक रूप से पिछड़े बच्चे को सामान्य बालक से अलग कर दिया जाए और विशेष संस्थानों में रखा जाए यदि बालक मंद बुद्धि के है तो उन्हें अलग रखा जाए कयोंकि वो सामान्य बालको की तरह नहीं सीखते हैं
🌱जन्म पर नियंत्रण 🌱
ःगंभीर रूप से मानसिक रूप से पिछड़े माता पिता है तो इनकी नसबंदी करा दी जाए जिससे मंद बुद्धि बच्चे का जन्म ना हो
🌱वयक्तिगत घ्यान 🌱
ःहर एक बच्चे पर वयक्तिगत घ्यान देना आवशयक है ।
ःकक्षा का आकार छोटा रखेगे तभी सभी बच्चो पर घ्यान दे पायेगे। प्रत्येक बच्चे का छोटी छोटी बातो का घ्यान रखेगे और समझेगे उन्हें क्या दिक्कत है कैसे समझते है सभी पहलुओं पर घ्यान देगे ।
🌱 माता पिता को शिक्षित करना 🌱
ःमाता पिता शिक्षित होते हैं तो उन्मे मंद बुद्धि बालक के बुद्धि का स्तर पता होता है तो वह बच्चो से कैसे व्यवहार यह निर्धारित होता है
ःमाता पिता बच्चो को समझते हैं कयोंकि सबसे ज्यादा माता पिता के पास ही बच्चा रहता है।
🌱विशेष स्कूल व अस्पताल 🌱
ः सामान्य स्कूल या अस्पताल में इनका देख रेख या आवशयक प्रशिक्षण संभव नहीं कयोंकि ये बच्चे बहुत मंद गति से सीखते हैं इसलिए इन्हें विशेष स्कूल व अस्पताल में भेजेगे।
🌱विशेष शिक्षण विधि 🌱
ः सामान्य बच्चे की शिक्षण विधियां ठीक नहीं बल्कि उपयुक्त शिक्षण विघि बनाये जाए जिसमे बच्चे रुचि ले और आसानी से समझ सके ऐसा शिक्षण विघि अपनायेगे।
🌱विशेष पाठ्यक्रम 🌱
ःहस्त कला से जुड़े पाठ पढाए कयोंकि पुस्तक ज्ञान में अघिक उन्नति नही कर सकते। हस्त कला का ज्ञान मिलने से बच्चे किसी पे निर्भर नही रहेगे और वो आगे वय्वसायिक कार्य के लिए तैयार रहेगे और किसी पे बोझ नही बनेगे।
🌱उपचार 🌱
मंद बुद्धि बालक का उपचार ऐसा करना चाहिए जिससे वो अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

Notes By :- Neha Roy

▪मंदबुद्धि बालक का वर्गीकण▪ मंदबुद्धि बालक को निम्नलिखित चार भागों में बांटा गया है । (क) मंदबुद्धि से सीखने वाला :- इसमें बालक मंद गति से सीखता है । ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से 90 के बीच में होती है । (ख) शिक्षा पाने योग्य मंदित मना :- इसमें बालक मामूली रुप में मंदित होते हैं । इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच में होती है। (स) प्रशिक्षण योग्य मंदित मना :- ऐसे बालकों को प्रशिक्षण देना आवश्यक हैं ।इनकी बुद्धि लब्धि 20 से 49 के बीच में होती है । (द) पराश्रित पूर्ण मंदितमना :- इनकी बुद्धि लब्धि 0 से 20 के बीच में होती है ये पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर होते हैं। ▪मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार :- (1) पृथक्करण :- मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों को सामान्य बालक से अलग कर दिया जाए। और विशेष संस्था में रखा जाए । (2) जन्म दर पर नियंत्रण :- इसमें गंभीर रूप से या मानसिक रूप से पिछड़े माता-पिता की नसबंदी करा दी जाए । जिससे मंदबुद्धि बच्चे का जन्म ना हो। (3) व्यक्तिगत ध्यान :- इसमें हर एक बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान देने की जरूरत है। कक्षा का आकार छोटा रखना है । (4 ) माता-पिता को शिक्षित करना :- माता-पिता शिक्षित होते हैं ।तो उनको अपने मंदबुद्धि बालक की बुद्धि का स्तर पता होता है तो वह बच्चों से कैसे व्यवहार करेंगे यह निर्धारित होता है । ( 5 ) विशेष स्कूल व अस्पताल :- ऐसे बालक की देखरेख सामान्य स्कूल व अस्पताल में नहीं हो सकती है। अतः इनके लिए विशेष स्कूल व अस्पताल की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे कि इनके ऊपर विशेष रुप से ध्यान दिया जा सके। (6) विशेष शिक्षण विधि :- सामान्य बच्चे की शिक्षण विधियां ठीक नहीं है अतः इन बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षण विधि की व्यवस्था की जाए। (7) विशेष पाठ्यक्रम :- हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाएं । पुस्तक ज्ञान में अधिक उन्नति नहीं कर सकते ताकि वह समाज पर बोझ ना बने इसलिए ऐसा उपचार करें कि मंदबुद्धि बच्चे अपने पैरों पर खड़ा हो सके । धन्यवाद ✍️ 📘 notes by pragya shukla …….

🌤️मंदबुद्धि बालकों का वर्गीकरण➖

🌻मंदबुद्धि बालको का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है:-

A} मंद गति से सीखने वाला :➖
मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 70-90 के बीच होती है ऐसे बालको को किसी भी चीज को सीखने या समझने में अधिक समय लगता है अर्थात् यह मंद गति से सीखते हैं इनके लिए हम ऐसा नहीं कह सकते कि यह कोई भी चीज सीख ही नहीं सकता ! सीखता है लेकिन बहुत ही धीमी गति से ।
अर्थात मंदबुद्धि बालकों की सीखने और समझने की क्षमता बहुत ही धीमी गति से होता है लेकिन वह सीख और समझ जाते हैं।

B} शिक्षा पाने योग्य मंदितमना :➖
ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है ऐसे बालक किसी भी चीज को सीखने में बहुत अधिक समय लेते हैं वह मामूली रूप से नहीं सीख पाते ।

C } प्रशिक्षण योग्य मंदितमना :➖
इस वर्ग के बच्चों की बुद्धि लब्धि 20 से 49 के बीच होती है ऐसे बच्चे बिना प्रशिक्षण के कुछ सीख ही नहीं सकते हैं इसलिए एक शिक्षक होने के नाते ऐसे बच्चों की कमियों को जानना तथा उन कमियों के द्वारा उन्हें उचित प्रशिक्षण देना अनिवार्य है ऐसे बच्चे बिना प्रशिक्षण के सीख ही नही पाते हैं।

D} पाश्रित ,पूर्ण मंदितमना :➖
ऐसे बालक पूर्ण रूप से दूसरों पर आश्रित या निर्भर होते हैं बिना दूसरों की मदद लिए वह कुछ भी नहीं कर सकते ऐसे बच्चों की बुद्धि लब्धि 0 से 20 होती है।
अर्थात ऐसे बच्चे खुद से ना लिख पाते हैं पढ़ पाते हैं उनके रोजमर्रा की जिंदगी में हो रहे कार्यों को भी वह खुद से नहीं कर पाते हमेशा किसी ना किसी की मदद का सहारा लेने का प्रयास करते हैं।

🌼मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार :-

1) पृथक्करण (Segeration) :➖
मानसिक रूप से पिछड़े बालकों को हम सामान्य बालकों के साथ रख नहीं सकते या उनके साथ उनकी जैसी शिक्षा नहीं दे सकते। इसलिए ऐसे बालकों को सामान्य बालकों से अलग कर विशेष संस्थान में रखा जाता है क्योंकि यह बच्चा मानसिक रूप से सामान्य बच्चों से अलग होता है।

2) जन्म दर पर नियंत्रण :➖
मंदबुद्धि बालकों का जन्म का कारण अनुवांशिकता (Heredity) ही है। ऐसे माता-पिता जो मानसिक रूप से गंभीर तथा पिछड़े हैं इनके संतान भी अपने माता पिता जैसे ही होंगे जिस कारणवश उस बच्चों को आगे चलकर बहुत ही ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इसलिए हम ऐसे बच्चों की रोकथाम जन्म से पहले ही कर सकते हैं इसके लिए हमें उसके माता पिता की नसबंदी (Sterilization) करा देनी चाहिए जिससे भविष्य में बच्चों के साथ-साथ माता-पिता को भी किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े ।

3) व्यक्तिगत ध्यान :➖
ऐसे बच्चों पर व्यक्तिगत ध्यान देना एक शिक्षक होने के नाते उनका परम कर्तव्य है । शिक्षक को ऐसे बच्चों की हर छोटी-मोटी गतिविधियों पर ध्यान रखना पड़ेगा तथा वह जो पढ़ा रहे हैं ऐसे बच्चे उन्हें आसानी से समझ सके इसके लिए शिक्षक को अपनी कक्षा कक्ष का आकार छोटा रखना पड़ेगा जिससे वह बच्चों की कमियों का पता आसानी से लगाकर की समस्या को दूर कर सकते हैं।

4) माता-पिता को शिक्षित करना :➖
बालक मंदबुद्धि हो या सामान्य माता-पिता का शिक्षित होना बहुत ही अनिवार्य है क्योंकि शिक्षक के बाद माता-पिता का ही वह स्थान है जिसके साथ बच्चे आसानी से घुल मिल जाते हैं और अपनी परेशानियों को रखने का साहस करते हैं।
लेकिन अगर मंदबुद्धि बच्चों के माता-पिता शिक्षित होते हैं तो उनको अपने मंदबुद्धि बालक की बुद्धि का स्तर का पता होता है और वह अपने बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करेंगे यह भी निर्धारित होता है। ऐसे बालकों को कैसा परीक्षण मिल रहा है उनके साथ कैसा व्यवहार हो रहा है शिक्षित होने के नाते उनके माता-पिता को बच्चों के साथ हो रहे सारी गतिविधियों के बारे में पता होता है इसलिए माता-पिता का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है।

5) विशेष स्कूल और अस्पताल :➖
ऐसे बालकों का प्रशिक्षण या उनका देखरेख समान स्कूल या अस्पताल में होना संभव नहीं होता है क्योंकि सामान्य बच्चों के साथ मंदबुद्धि बच्चों को शिक्षित करना संभव नहीं और सामान्य अस्पताल में ऐसे बच्चों का इलाज संभव नहीं होता । ऐसे बच्चों के लिए विशेष प्रकार की विद्यालय या अस्पताल होती है।

6) विशेष शिक्षण विधि :➖
मंदबुद्धि बालकों की शिक्षण विधियां सामान्य बालकों के शिक्षण विधियों से काफी अलग होती है अर्थात हम मंदबुद्धि बच्चों का उसी के अनुरूप शिक्षा या शिक्षण विधि को अपना सकते हैं जैसे – खेलकूद द्वारा ,ड्राइंग प्रतियोगिता अर्थात् किसी भी विधि के द्वारा। ऐसे बच्चे रुचि लेकर सीख या समझ सके और आगे बढ़ सके। इसलिए हमें उन्हीं के अनुरूप शिक्षा देना चाहिए।

7) विशेष पाठ्यक्रम:➖
ऐसे बालक केवल पुस्तक के ज्ञान से उन्नति या आगे नहीं बढ़ सकते हैं बल्कि उन्हें हस्तकला से जुड़े हुए भी पाठ पढ़ाने चाहिए ताकि वह उस माध्यम से खुद के लिए कोई व्यवसाय शुरू कर सकें और खुद को उस व्यवसाय के अनुरूप तैयार कर आगे बढ़ सके ताकि वह समाज पर बोझ ना बन सके।
अर्थात , हम कह सकते हैं कि उपचार ऐसा करें कि मंदबुद्धि बच्चे अपने पैरों पर खड़ा हो सके ।

🌸Notes by➖Mahima kumari🌸

💫मंदबुद्धि बालक का वर्गीकरण💫

🔅 मंदबुद्धि बालक मंद गति से सीखने वाले होते हैं। इनकी बुद्धि लब्धि 70 से 90 के बीच होती हैं।

🔅 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना:-ऐसी बालक की बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती हैं यह बालक किसी विषय को सीखने में अधिक समय देते हैं लेकिन उस विषय को सीख लेते हैं।

🔅 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना:- ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 20 से 49 के बीच होती हैं ऐसे लोगों को विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वह प्रशिक्षण प्राप्त करके आगे बढ़ सके एवं सामान्य बालको की श्रेणी में खड़े हो सकें।

🔅 पराश्रित पूर्ण मंदितमना:-ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि 0 से 20 होती है ऐसे बालक पूर्ण रूप से दूसरों पर आश्रित होते हैं।ऐसी बालक ना ही खुद कुछ लिख पाते हैं और ना ही खुद कुछ पढ़ पाते हैं अतः वह हर कार्य के लिए किसी दूसरे व्यक्ति पर आश्रित होते हैं।

🔆 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार🔆

🔅 पृथक्करण:-मानसिक रूप से पिछड़े बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा बहुत अधिक अलग होते हैं इसलिए हमें कभी-कभी उन्हें सामान्य बालको से पृथक भी करना पड़ता है मानसिक रूप से पिछड़े बालकों को सामान्य बालक के साथ पढ़ाना संभव नहीं है इसलिए हमें पृथक्करण जैसे कदम उठाने पड़ते हैं।

🔅 जन्म दर पर नियंत्रण:-मंदबुद्धि बालक का जन्म का कारण अनुवांशिकता होती है इसलिए अब ऐसे माता पिता जो मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं इसलिए उनके बच्चे भी उनके जैसे ही पैदा होते हैं जिससे आगे चलकर बच्चों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है इसीलिए ऐसे बच्चों की रोकथाम के लिए उसके माता-पिता की नसबंदी करा दी जाती है जिससे भविष्य में बच्चों के साथ साथ माता-पिता को भी किसी प्रकार की परेशानी ना हो।

🔅 व्यक्तिगत ध्यान:- यदि हम शिक्षक हैं और हमारे सामने मंदबुद्धि बालकों की समस्या आती है तो हमें शिक्षक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि कक्षा में प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाए जिससे हमें बालक की खूबियों और कमियों का पता चलेगा और हम उनकी खूबियों और कमियों को अच्छे से उभार सकेंगे यदि कमियां है तो उन्हें हल करने की कोशिश करेंगे और यदि खूबियां हैं तो उन्हें और निखारने की कोशिश करेंगे।
हम व्यक्तिगत ध्यान तभी दे पाएंगे जब हमारी कक्षा का आकार छोटा होगा

🔅 माता-पिता को शिक्षित करना:-माता-पिता शिक्षित होते हैं तो इन्हें बालक के मंदबुद्धि होने का स्तर पता होता है जिससे वह बालक के साथ कैसा व्यवहार करना है यह निर्धारित। कर सकते हैं इसलिए हमें मंदबुद्धि बालक उनके माता-पिता को शिक्षित करना आवश्यक है।

🔅 विशेष स्कूल व अस्पताल की स्थापना:-मंदबुद्धि बालकों के लिए हमें विशेष स्कूल व अस्पताल की स्थापना करना चाहिए क्योंकि हम सामान्य बालकों के साथ मंदबुद्धि बालकों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते यदि मंदबुद्धि बालक विशेष स्कूल में होगा तो वहां का वातावरण उस बालक की अनुकूल होगा वहां पर सारे बच्चे उसके जैसे ही होंगे जिससे उसमें हीन भावना नहीं आएगी वह अपनी समस्या को अपने दोस्तों व शिक्षकों के साथ साझा कर सकेगा सामान्य बालको के साथ रहने पर मंदबुद्धि बालक ऐसा नहीं करता है विशेष अस्पताल होने से जो इलाज हम स्कूलों में नहीं कर सकते उसका उचित उपचार हम अस्पतालों में करवा सकते हैं।

🔅 विशेष शिक्षण विधि का प्रयोग:-मंदबुद्धि बालक उनको सामान्य स्कूलों में सामान्य शिक्षण विधियों से पढ़ाना आसान नहीं होता है इसलिए ऐसे लोगों को विशेष शिक्षण विधियों का प्रयोग करके पढ़ाना चाहिए जिसमें दृश्य श्रव्य सामग्रियों का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए जिससे बालक किसी वस्तु को देखकर या महसूस करके यह सुनकर समझ सके ऐसे वालों को ड्राइंग पेंटिंग खेलकूद आदि प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पढ़ने के लिए कहना चाहिए।

🔅 विशेष पाठ्यक्रम:-हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाना चाहिए ऐसे बालक पुस्तक के ज्ञान से अधिक उन्नति नहीं कर सकते हैं ऐसे बालकों का पाठ्यक्रम सरल एवं लचीला जिससे बालक आसानी से सीख जाए हस्तकला से जुड़ी पाठ पढ़ाने से बालक भविष्य में व्यवसायिक रूप से भी मजबूत हो सकता है।

✍🏻✍🏻Notes by Raziya khan✍🏻✍🏻

🌷मंद बुद्धि बालकों का 🌷
🌷 वर्गीकरण। 🌷

मंद बुद्धि बालकों को निम्नलिखित चार प्रकार से वर्गीकृत किया गया है :-

  1. मंद गति से सीखने बाला :-
    सामान्य बालकों की तरह जल्दी ना सीख कर मंद बुद्धि बालक मंद गति (धीरे) सीखते हैं, पर सीख जरूर लेते हैं। अतः इस श्रेणी के बालकों की IQ [ 70-90 ] के अंतर्गत मानी जाती है।
  2. शिक्षा पाने योग्य मंदितमना :-
    मामूली रूप से मंदित, अर्थात इस श्रेणी के बालक थोड़े कम (न्यून) रूप से मंदित होते हैं और इनको सिखाने में बहुत कठिनाई होती है। अतः इस श्रेणी के बालकों की IQ [ 50-70 ] के अंतर्गत मानी जाती है।
  3. प्रशिक्षण योग्य मंदितमना :-
    इस श्रेणी के बालकों को प्रशिक्षण (सिखाने) की आवश्यकता होती है, अतः इस श्रेणी के बालकों की IQ [ 20-49 ] के अंतर्गत मानी जाती है।
  4. पराश्रित , पूर्ण मंदितमना :-
    इस श्रेणी के बालक पूर्णतः मंदित (मंदबुद्धि) के होते हैं, और ऐसे बालक अपने प्रत्येक कार्य के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं अर्थात ये स्वयं करने में अक्षम होते हैं। अतः इस श्रेणी के बालकों की IQ [ 0-20 ] के अंतर्गत मानी जाती है।

🌷 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम एवं उपचार 🌷

  1. पृथक्करण ( segregation ):-

मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग रखा जाये। ऐसे बालकों को उनके अनुकूल विशेष संस्थानों में रखकर उन्हें उनके अनुकूल वातावरण दिया जाये।

  1. जन्म दर पर नियंत्रण :- जो गंभीर रूप से , मानसिक रूप से ग्रसित माता-पिता है उनकी नसबंदी Sterilization, करा दी जाए जिससे मंदबुद्धि बच्चे का जन्म ना हो सके। और मंद बुद्धि बालकों के जन्म दर पर नियंत्रण हो सके।
    अतः इसके लिये हमारे समाज को व्यर्थ का भावनात्मक रूप से न सोचकर वल्कि वास्तविकता को समझना चाहिए तभी हम इस पर नियंत्रण पा सकेंगे।
  2. व्यक्तिगत ध्यान :-

शिक्षक को प्रत्येक बच्चे पर ( Personal ) व्यक्तिगत रूप से विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, और कक्षा का आकार छोटा रखना चाहिये।
ताकि मंद बुद्धि बालकों को सही और व्यवस्थित वातावरण दे सकें।

  1. माता -पिता को शिक्षित करना :-

जब माता पिता शिक्षित होते हैं तो उनको अपने मंद बुद्धि बच्चे की बुद्धि के स्तर का पता होता है।
यदि माता – पिता शिक्षित होंगे तो वह बच्चे से कैसा व्यवहार करेंगे यह निर्धारित होता है। माता पिता का शिक्षित होना भी मंद बुद्धि बालकों को अनुकूल शिक्षा व्यवस्था आदि देने के लिये बहुत जरूरी है।

  1. विशेष विद्यालय व अस्पताल :- सामान्य विद्यालयों एवं अस्पतालों में इनकी देखरेख या आवश्यक प्रशिक्षण संभव नहीं है इसीलिए , मंदबुद्धि बालकों के लिए विशेष विद्यालय व अस्पताल की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  2. विशेष शिक्षण विधि :-

मंद बुद्धि बालकों के लिये सामान्य बच्चे की शिक्षण विधि न अपनाकर बल्कि मंद बुद्धि बालकों के लिऐ उपयुक्त शिक्षण विधि बनाई जाए , क्योंकि ऐसे बालकों को पढ़ने सीखने आदि में सामान्य बालकों से ज्यादा समस्या होती है इसीलिये इनको विशेष शिक्षण विधि के द्वारा शिक्षा दी जाये।

  1. विशेष पाठ्यक्रम :-

मंद बुद्धि बालकों को हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाएं, पुस्तकीय ज्ञान में ये बालक अधिक उन्नति नहीं कर सकते हैं।
अतः इसीलिये मंद बुद्धि बालकों को हस्त कला आदि से जुड़े प्रशिक्षण दें और उन्हें स्वयं से करना भी सिखायें और उनके अनुकूल उपचार व्यवस्था करें ताकि ऐसे बालक समाज पर बोझ न बनकर बल्कि अपने पैरों पर खड़े हो सकें और सही ढंग से अपना जीवन यापन कर सकें।

🌹 जूही श्रीवास्तव 🌹

🔵 मंद बुद्धि बालक का वर्गीकरण 🔵

➖मंद बुद्धि बालकों को चार भागों में बांटा गया है –

  1. मंद गति से सीखने वाला।
  2. शिक्षा पाने योग्य मंदितमना।
  3. प्रशिक्षण योग्य मंदितमना।
  4. पराश्रित, पूर्ण मंदितमना।

🔷 मंद गति से सीखने वाले बालक ~ मंद बुद्धि बालकों के प्रकार में एक प्रकार यह है। जिसपे बालक की सीखने की प्रक्रिया धीमी होती है। यह बच्चों की समस्या होती है, लेकिन ये बच्चे धीरे – धीरे ही मंद गति से सीख जाते हैं। मंद बुद्धि बालकों में सीखने की प्रक्रिया ही मंद गति से होती है।
“इस श्रेणी के बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से 90 के मध्य होती है।”

🔷शिक्षा पाने योग्य मंदितमना ~ इस वर्ग के बालकों में शिक्षा पाने की योग्यता ‘मामूली रूप से मंदित’ होते हैं। ऐसे बालक की सीखने की गति मंद तो होती ही है लेकिन शिक्षा में इनकी क्षमता मंद होने के कारण ये कुछ स्तर में पिछे भी हो सकते हैं।
” इस श्रेणी के बालकों की बुद्धि लब्धि 50 से 70 के मध्य में होती है।”

🔷 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना ~ इस वर्ग के बालकों को उचित रूप से प्रशिक्षण देना आवश्यक होता है।
“इस श्रेणी के बालकों की बुद्धि 20 से 49 के मध्य में होती है। ” इस श्रेणी में बालक सामान्य बच्चों की अपेक्षा में बहुत कम प्रशिक्षित होते हैं जिससे इन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए पूर्ण रूप से प्रशिक्षण देना जरूरी होता है।

🔷 पराश्रित, पूर्ण मंदितमना ~ “इस श्रेणी में बालक की बुद्धि लब्धि 0 से 20 के मध्य होती है “
इस वर्ग के बालक पूर्ण रूप से मंदित या पराश्रित होते हैं, और पूरी तरह से दूसरों पर आश्रित या दूसरों पर निर्भर होते हैं।

मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार

मानसिक रूप से पिछड़े हुए बालकों के रोकथाम व उपचार को निम्न प्रकार से बताया गया है –

  1. पृथक्करण।
  2. जन्म – दर पर नियंत्रण।
  3. व्यक्तिगत ध्यान।
  4. माता-पिता को शिक्षित करना।
  5. विशेष स्कूल व अस्पताल।
  6. विशेष शिक्षण विधि।
  7. विशेष पाठ्यक्रम।

🔷 पृथक्करण [segregation] ~ पृथक्करण यानि ‘अलग करना’। “मानसिक रूप से पिछड़े बालक को सामान्य बालकों से अलग (separate) कर दिया जाए।” और उन्हें विशेष संस्थाओं में रखा जाए।
मानसिक रूप से ग्रसित बालक सामान्य बच्चों की तरह नहीं सीख सकते है इसलिए उन्हें उनके अनुरूप ही विशेष शिक्षा प्रदान करायी जानी चाहिए।

🔷 जन्म-दर पर नियंत्रण ~मंद बुद्धि बालक के जन्म दर पर नियंत्रण कराया जाना चाहिए ऐसे बालक के माता पिता गम्भीर रूप से, मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं।
ऐसे माता-पिता की नसबंदी [sterilization] करा दी जाए जिससे कि मंद बुद्धि बच्चे का जन्म ही ना हो पाए।

🔷 व्यक्तिगत ध्यान ~ इस वर्ग में बच्चों पर ध्यान विशेष रूप दिया जाना चाहिए। बच्चे की हर छोटी – छोटी बात को जानना, बच्चे किस माहौल में एवं बच्चे कैसे सीखते हैं और बच्चा किस चीज में ज्यादा रुचि रखते हैं ऐसी सभी बच्चे की पूर्ण रूप से जानकारी रखनी चाहिए।
‘हर एक बच्चे का व्यक्तिगत ध्यान रखना आवश्यक हो।’ और कक्षा का आकार छोटा रखना होगा। जिससे हर बच्चे में बेहतर तरीके से ध्यान दिया जा सके और उनकी समस्याओं को दूर किया जा सके।

🔷 माता-पिता को शिक्षित करना ~ यदि माता-पिता शिक्षित होते हैं तो उनको अपने मंद बुद्धि बालक की बुद्धि का स्तर पता होता है। इससे वह बच्चों से कैसे व्यवहार करेंगे यह निर्धारित होता है।
माता-पिता के शिक्षित होने से वातावरण में प्रभाव होता है और बच्चे को अच्छा वातावरण, माहौल मिलता है।

🔷 विशेष स्कूल व अस्पताल ~ मंद बुद्धि बालक का सामान्य स्कूल में और अस्पताल में सही देख-रेख या आवश्यक प्रशिक्षण सम्भव नहीं है, इसलिए इस वर्ग के बच्चों को इनकी जरूरत के अनुसार विशेष प्रकार के स्कूल की व्यवस्था करायी जाए और उपचार के लिए अस्पताल का आयोजन कराया जाए।

🔷 विशेष शिक्षण विधि ~ मंद बालकों के लिए सामान्य बच्चे की शिक्षण विधियां ठीक नहीं होती है।
ऐसे बालकों के लिए उपयुक्त शिक्षण विधि को बनाई जाए जिससे हर बच्चा जिसको अपनी जरूरत के हिसाब से सीखने में सफल हो।
व्यक्तिगत क्षमता ध्यान में रख कर शिक्षा में ऑडियो, वीडियो, ब्रेल इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध करायी जाए।

🔷 विशेष पाठ्यक्रम ~ मंद बुद्धि बालक सामान्य बालक की तरह पुस्तकीय ज्ञान में सुधार या उन्नति नहीं कर सकते हैं इन्हें इनके अनुरूप ही विशेष पाठयक्रम बनाया जाना चाहिए। जेसे हस्तकला से जुड़े हुए पाठ पढ़ाए। इस वर्ग के बालक को व्यावसायिक रूप से भी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे ये समाज पर बोझ न बने।
‘उपचार करें ऐसा की मन्द बुद्धि बच्चे अपने पैरों पर खड़ा हो सके।।

➖ 02/ नवंबर /2020
➖ पूर्वी हल्दकार

धन्यवाद 🌼👏🏻🤟🏻

समाप्त 🌸🌸🙏🏻

🔅(मंदबुध्दिबालक ) 🔅
हर मंदबुध्दि बालक एक जैसा नही होगा | उसका IQ लेविल सोचने समझने का तरीका अलग – अलग होता है|
मंदबुध्दि बालक का वर्गीकरण
मंदबुध्दि बालक को चार प्रकार मे वर्गीकरण किया गया है |

  1. मंद गति से सीखने वाला – बालको में सीखने की गति बहुत धीमी होती है यह मंद गति (धीरे-धीरे) से सीखते हैं लेकिन वह सीख जाता है इनकी बुद्धि लब्धि 70 से 90 तक होती है|
  2. शिक्षा पाने योग्य मंदितमना – यह बालक मामूली रूप से मजबूत होते हैं बहुत ही मंद गति से सीखते हैं वह सीखाने पर भी नहीं सीख रहा है इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 के मध्य होती है|
  3. प्रशिक्षण योग मंदितमना – बालक मंद बुद्धि वाले होते हैं वह नहीं सीख रहे है तो प्रशिक्षण देना आवश्यक या जरूरी है बिना प्रशिक्षण के नहीं सीखेंगे इनकी बुद्धि लब्धि 20 से 49 के मध्य होती है |
  4. पराश्रित पूर्ण मंदितमना – इसमें बच्चों को दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है तो पूर्ण मंदितमना होता है जैसे की कोई बच्चा खुद से कार्य नहीं कर पाता तो दूसरों पर आश्रित रहता है धीरे-धीरे सीखने लगता है इनकी बुद्धि लब्धि 0 से 20 के मध्य होती है |

मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार –
◼ पृथक्करण (segregation) –
मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों को सामान्य बालकों से अलग कर दिया जाए और विशेष संस्थाओं में रखा जाता है मंदबुद्धि बालक है तो हमें उनकी जरूरत है आवश्यकता के अनुरूप विशेष संस्थाओं में रखना है वह मंद गति से सीखने वाले होते हैं जो सामान्य की तरह सीखते है|
◼ जन्म दर पर नियंत्रण – जो सामान्य गंभीर रूप से मानसिक रूप से पिछड़े माता पिता है उनकी नसबंदी (sterilization) करा दी जाए जिससे मंदबुद्धि बच्चे का जन्म ना हो |
◼ व्यक्तिगत ध्यान – मंदबुद्धि बालक पर हर एक बच्चे पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है कक्षा का आकार छोटा रखना होगा तभी बच्चों पर ध्यान दे पाएंगे बच्चों की हर छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना चाहिए |
◼ माता-पिता को शिक्षित करना -जिन बच्चों के माता-पिता शिक्षित होते हैं तो उनको अपने मंदबुद्धि बालक की बुद्धि का स्तर पता होता है तो वह बच्चों को कैसे व्यवहार करेंगे यह निर्धारित होता है
◼ विशेष स्कूल व अस्पताल – बच्चों को पढ़ाने के लिए उनकी आवश्यकता के हिसाब से विद्यालय व उसकी उचित देखरेख के लिए विद्यालय व अस्पताल की विशेष व्यवस्था की जाए सामान्य स्कूल या अस्पताल में इनका देख-रेख या आवश्यक प्रशिक्षण संभव नहीं है उसकी आवश्यकता के अनुसार आगे बढ़ाएंगे |
◼ विशेष शिक्षण विधि – सामान्य बच्चों की शिक्षण विधियां ठीक नहीं है उपर्युक्त शिक्षण विधि बनाई जाए जिसको जिस प्रकार की बच्चों को उनकी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए समझाएं और बच्चों को आसानी और सरल रूप से समझने योग्य हो जाये |
◼ विशेष पाठ्यक्रम – विशेष पाठ्यक्रम के माध्यम से बालक को हस्तकला से जुड़ी पाठ पढ़ाएं जिससे उनको पुस्तक ज्ञान में यह अत्यधिक उन्नति नही कर सकते| इसलिए हस्तकला का ज्ञान देना चाहिए ताकि बच्चे व्यवसाय कार्यों को स्वयं कर सके और समाज पर बोझ ना बने |
उपचार ऐसा करेगी मंदबुद्धि बालक अपने पैरों पर खड़ा हो सके और दूसरों पर निर्भर ना रहे |
Notes by – Ranjana Sen

🔰मंदबुद्धि बालक का वर्गीकरण🔰

मंदबुद्धि बालक का वर्गीकरण चार प्रकार से किया जाता है
1 मंद गति से सीखने वाला बालक
2 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना बालक
3 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना
4 पराश्रित पूर्ण मंदितमना

1 मंद गति से सीखने वाला बालक:- मंद गति से सीखने वाला बालक धीरे-धीरे सीखता है मगर सीख जाता है अर्थात स्पीड कम होती है पर सीख जाता है इनका आई क्यू लेवल 70 से 90 होता है

2 शिक्षा पाने योग्य मंदितमना बालक:- ऐसे बालक मामूली रुप में मंदित होते हैं हमसिखाने पर भी नहीं सीखते हैं इनका आई क्यू लेवल 50 से 70 होता है

3 प्रशिक्षण योग्य मंदितमना :- ऐसे मंद बुद्धि बालक के लिए प्रशिक्षण देना आवश्यक होता है इनका आई क्यू लेवल 20 से 49 होता है

4 पराश्रित पूर्ण मंदितमना:- ऐसे मंदबुद्धि बालक का हमेशा दूसरे पर ही निर्भर रहते हैं वह किसी भी प्रकार का कार्य स्वयं नहीं कर सकते

🔰मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार

1 पृथक्करण(segregation ) :- मानसिक रूप से पिछड़े बालक को सामान्य बालक से अलग करके विशेष शिक्षा दी जाए विशेष संस्थानों में रखा जाए जहां पर सभी बच्चे एक प्रकार की होंगे जिससे बच्चों में हीन भावना नहीं आएगी वह किसी भी प्रकार से अपने आप को कमजोर नहीं समझेंगे

2 जन्म दर पर नियंत्रण:- गंभीर रूप से मानसिक रूप से पिछड़े माता पिता की नसबंदी(sterilization ) करा दी जाए जिससे मंदबुद्धि बच्चे का जन्म ही ना हो और यह सभी को समझना चाहिए सभी को भावनात्मक नहीं होना चाहिए

3 व्यक्तिगत ध्यान:- मानसिक रूप से पिछड़े बालक पर हम व्यक्तिगत ध्यान देना आवश्यक है
a हर एक बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान देना आवश्यक है इससे हमें बच्चों की कमियों के बारे में पता लगेगा और हम उनकी कमियों को दूर करने के उपाय कर सकते हैं एवं बच्चों की क्षमताओं के बारे में पता लगेगा जिससे हम उन्हें उस क्षमता में आगे बढ़ा सकते हैं जिससे और अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं

4 माता-पिता को शिक्षित करना:- माता-पिता शिक्षित होते हैं तो उनको अपने मंदबुद्धि बालक की बुद्धि का स्तर पता होता है वह बच्चों से कैसे व्यवहार करेंगे या निर्धारण होता है उनको पता होता है कि बच्चे को कब किस तरह से ट्रीट करना है

5 विशेष स्कूल और अस्पताल:- सामान्य स्कूल या अस्पताल में इनका देखरेख है या आवश्यक प्रशिक्षण संभव नहीं होता इसलिए इनके लिए विशेष स्कूल और विशेष अस्पताल की आवश्यकता होती है जहां पर उनको आवश्यकता के अनुसार शिक्षा एवं उपचार के साधन उपलब्ध होते हैं

6 विशेष शिक्षण विधि:- सामान्य बच्चों की शिक्षण विधियां उनके लिए ठीक नहीं है उपयुक्त शिक्षण विधि अपनाई जाएं उनकी रूचि जिस पर लगे ऑडियो वीडियो इंटरेस्टेड बनाकर शिक्षा देना चाहिए उन्हें विशेष विधि के अनुसार पढ़ाना चाहिए

7 विशेष पाठ्यक्रम:- मंदबुद्धि बालक को हस्त कला से जुड़े पाठ पढ़ाए जाने चाहिए जिससे वह उनको सीख कर आगे व्यवसाय कर सकता है और अपना जीवन यापन कर सकता है ताकि वह समाज पर बोझ ना बन सके

मंद बुद्धि वाले बालक पुस्तक ज्ञान में से अधिक उन्नति नहीं कर पाते
उपचार ऐसा करें कि मंदबुद्धि बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो सकें 🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏

✍️मंद बुद्धि बालक ✍️

टर्मन के अनुसार ‘वो बालक जिनकी बुद्धि लब्धि <90 है वो मंद बुद्धि की श्रेणी मे आते है!’

American association of mental deficiency (AAMD) => के अनुसार ‘मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है! जो कि अनुकूल व्यवहार संबंधी दोषों के साथ – 2 ही पायी जाती है! जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है!

👉 मंद बुद्धि बालक की विशेषताएं =>

1)🌼 बौद्धिक न्यूनता =>

ऐसे बालक जिनका
a) शैक्षिक स्तर,
b) बुद्धि लब्धि <70,
c) अधिक विस्मरण,
d) दूसरों से सहायता की अपेक्षा करना

🌷मंद बुद्धि बालक बनने से पहले और मंद बुद्धि बालक की श्रेणी से उबरने और बाहर आने की बुद्धि लब्धि की एक सीमा है अगर बालक 70 से 90 बुद्धि लब्धि का है तो बह ना पूर्ण रूप से मंद बुद्धि है ना ही पूर्ण रूप से सामान्य है! ऐसी स्थिति से बालक को निकाला भी जा सकता है और सामान्य बनाया जा सकता है! अगर ऐसी परिस्थिति पर ध्यान ना दिया गया तो बालक मंद बुद्धि की श्रेणी मे पहुंच सकता है!

2)🌼 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं =>
a)मानसिक क्रियाएं जैसे कि किसी विषय पर विचारों की कोई सीमा नहीं है!
b)अवधान को केंद्रित नहीं करना!
c) ध्यान के विस्तार मे कमी का ये मतलब है कि बालक मे अपने मानसिक एकाग्रता को लंबे समय तक बनाने में अक्षमता महसूस होती है!
d) इन बालकों में शब्दकोश की कमी पायी जाती है जिसकी वजह से ये अपने विचारों को भाषा के रूप मे व्यक्त करने में समर्थ नहीं होते है!

3)🌼 हीन व्यक्तित्व =>

a) उदासीन /खिन्न मिजाज का होना!
b) कुछ भी कार्य करने में शिथिल होना!
c) स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना!
d) उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं करपाते है!

4)🌼 शैक्षिक पिछड़ापन =>

a) शैक्षिक उपलब्धि न के बराबर
b) इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन!
c) रटने की प्रवृत्ति
d) मानसिक आयु, शारीरिक आयु से कम होती है!

5)🌼 सीमित प्रेरणा और संवेग =>
a) कल्पना शक्ति से रहित
b) प्रेरणा साधारण और सीमित
c) मस्तिष्क मे उत्सुकता /जिज्ञासा की कमी
d) क्रोध, लोभ, मोह, इच्छा इत्यादि के संवेग से वंचित!

6)🌼 कुसमायोजन की स्थिति =>

a) बालक द्वारा अलग अलग परिस्थिति मे निम्न स्तर का समायोजन क्षमता का प्रदर्शन!

b) सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञता का प्रदर्शन!
c) उचित – अनुचित का ज्ञान ना होना!
d) समूह में समायोजन ना करपाना!

7)🌼 असामान्य शारीरिक संरचना =>

a) सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन /संरचना
b) कद – काठी में नाटा, पैर ज्यादा छोटे, या ज्यादा बड़े होने, शरीर की त्वचा मोटी होना!
C) उदास चेहरा, और चेहरे में क्रियाशीलता के सामान्य स्तर की कमी होना!
d) शारीरिक अंगों में शिथिलता के लक्षणों का hona!

👉 मंद बुद्धि बालक का वर्गीकरण =>

1)मंद गति से सीखने वाला =>मंद गति से सीखता है सीखने की गति सामान्य से कम होती है जिस कार्य मे सामान्य बच्चा एक घंटा लेता है मंद बुद्धि बालक उसमे दो घंटे लगा देता है!

इनका intelligence quotient (IQ) =>70 से 90 होता है!

2)शिक्षा पाने योग्य मंदितमना –

मंद बुद्धि बालक सिखाने पर भी बहुत कम सीख पाता है या मंद रूप से सीखता है! और किसी किसी क्षेत्र मे कही कही मंदता पायी जाती है! मतलब किसी किसी क्षेत्र मे पूर्ण ज्ञान ना मिल पाना और सीखने मे मंद गति का प्रदर्शन करना!

इनकी बुद्धि लब्धि(IQ) =50 से 70 के बीच में होती है!

3)प्रशिक्षण योग्य मनदितमना – इस प्रकार के बच्चे को शिक्षक के द्वारा प्रशिक्षण देना ही आवश्यक है, इनकी बुद्धि लब्धि 20-49 के बीच में रहती है!

4)पराश्रित, पूर्ण मनदितमना =>

ऐसे बालक जो पूर्ण रूप से मंद होते है जिनको कुछ समझ नहीं आता और ऐसे बालकों का बुद्धि लब्धि 0-20 के बीच में होती है!
साधारण भाषा मे कहे तो पूर्णरूप से किसी योग्य ना होना!

👉 मानसिक पिछड़ेपन की रोकथाम व उपचार 🌷✍️

1)प्रथक्करण {segregation}=>
मानसिक रूप से पिछड़े बालक को सामान्य बालक से अलग कर दिया जाए और उनको अलग संस्थाओं में पढ़ाया जाए और विशेष शिक्षा दी जाए, जिसमे उनके रुचि और सामंजस्य के अनुसार शिक्षण विधि और पाठ्यक्रम अपना कर पढ़ाना चाहिए! ऐसे बच्चों को विशेष संस्थाओं का प्रबंध ना हो पाए तो विशेष कक्षा का प्रबंध कराया जाना चाहिए!

2)जन्म दर पर नियंत्रण =>

गंभीर रूप से मानसिक रूप से पिछड़े माता पिता हुए है ऐसे अभिभावकों की नसबंदी(sterilization) करा दी जाए जिससे मंद बुद्धि बच्चों का जन्म ना हो और उनकी जन्मदर कम हो जाए! क्योकि मंद बुद्धि होने का विशेष कारण अनुवांशिकता ही है!

3)व्यक्तिगत ध्यान =>

मंद बुद्धि हर एक बालक पर व्यक्तिगत ध्यान देना शिक्षक का कर्तव्य है और उनके कक्षा कक्ष का आकार छोटा रखना होगा जिससे हर एक बच्चे की हर व्यक्तिगत छोटी छोटी समस्याओं और गति विधियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए!

4)माता – पिता को शिक्षित करना =>
माता पिता ही ऐसे व्यक्ति है जो बच्चे के साथ ज्यादा समय तक रहते है और माता पिता ही प्रथम गुरु होते है इसलिए अगर माता पिता ही शिक्षित होते तो उनको अपने मंद बुद्धि बालक के बुद्धि का स्तर पता रहता है और वे उसको सही दिशा मे सुधारने का प्रयास करेंगे!

शिक्षित माता पिता का व्यवहार भी अशिक्षित माता पिता से भिन्न होता है!

5)विशेष स्कूल व अस्पताल =>

सामान्य स्कूल या अस्पताल मे इन बच्चों की देखरेख या आवश्यक शिक्षण /प्रशिक्षण संभव नहीं है! क्योकि सामान्य विद्यालय या सामान्य अस्पताल मे इन बच्चों के अनुरूप सुविधाए नहीं होंगी!

6)विशेष शिक्षण विधि (special teaching method) =>

इन बच्चों के लिए विशेष शिक्षण विधि बनायी जाये जिसमें व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान मे रखकर बनायी जाये जिसमे ध्यान रखा जाए कि हर एक बच्चे के कमजोर पक्ष का पता लगा कर उसको दूर किया जा सके!
जो कि सामान्य से भिन्न क्योकि इनके लिए साधारण बच्चे के लिए उपयुक्त शिक्षण विधि ठीक नहीं होती है!

7)विशेष पाठ्यक्रम =>

हस्तपरक से जुड़े पाठ पढ़ाये जाए,जिससे ऐसे बालक व्यावसायिक रूप से सुदृढ़ होकर अपनी अजीविका चला सके और समाज पर बोझ ना बने, इसका आशय यह है कि पुस्तक के ज्ञान मे अधिक उन्नति नहीं कर सकते है इनको व्यावसायिक ज्ञान दिया जाना चाहिए!

🌷🌷🌷🌷मंद बुद्धि बालक के लिए ये सारा जानकारी का सार यही है कि इनको ऐसा उपचार दे या मिले की मंद बुद्धि बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो सके! 🌷🌷🌷🌷

Notes By Ashwany Dubey

Basic concept of child development notes by India’s top learners

🌻🌿🌻 बाल विकास 🌻🌿🌻 बाल विकास का अर्थ यह है, कि बालक का संपूर्ण विकास जो कि जन्म से या जन्म के पूर्व से प्रारंभ होकर मृत्यु तक निरंतर चलती रहती है। बालक के विकास के लिए आवश्यक है, कि शिक्षक को बालक के बारे में संपूर्ण जानकारी हो। इसी के आधार पर शिक्षक बालक को शिक्षण करवाएगा। बालक को क्या पढ़ाना है? कैसे पढ़ाना है? एवं उसकी कमियों का पता लगाना तथा उन कमियों का पता लगाने के पश्चात उन कमियों को दूर करने के लिए भी प्रयास किए जाएंगे। यह एक शिक्षक के लिए आवश्यक होता है। अतः शिक्षक की सर्वप्रथम एवं महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह है कि वह बालक के विकास की प्रक्रियाओं को समझें तभी वह बालक को उचित ढंग से दिक्षित कर पाएगा।

🌿 प्रत्येक बालक समान नहीं होता है, सब बालकों म में किसी न किसी प्रकार की विभिन्नताएं होती है। इन विभिन्नताओं को मध्यस्थ रखकर ही शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया प्रारंभ करनी होगी।
बालकों में विभिन्नता के आधार~
👉🏻 सामाजिक आधार पर विभिन्नताएं,
👉🏻 आर्थिक आधार पर विभिन्नताएं,
👉🏻 सांस्कृतिक आधार पर विभिन्नताऐ,
👉🏻 आयु वर्ग के आधार पर विभिन्नताएं,
👉🏻 निवास स्थान के आधार पर विभिन्नताएं,
इत्यादि कई आधार है जिस पर विभिन्न विधाएं होती है इन सभी को ध्यान में रखकर ही शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया करनी होगी एवं शिक्षक को बालकों को शिक्षित करने के लिए इन सभी विभिन्नताओं को जानना होगा।

🌿 शिक्षक की बालकों के प्रति जिम्मेदारी ~
👉🏻 बालक की विशेषताओं को ध्यान में रखें,
👉🏻 बालक की योग्यताओं को ध्यान में रखें,
👉🏻 बालक की कमियों व समस्याओं को ध्यान में रखें,
👉🏻 बालक की क्षमताओं को ध्यान में रखें।
इन सभी को ध्यान में रखकर ही शिक्षक बालक को शिक्षित कर पाएगा। अध्यापक का यह दायित्व है, कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लाएं। ऐसे परिवर्तन जो कि बालक के लिए लाभदायक हो; जिससे कि बालक को~

• अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके~
जब बालक अपने दायित्व कर्तव्यों को समझ जाएगा, तो वह एक अच्छे नागरिक होने की जिम्मेदारी बखूबी निभा पाएगा। जो कि प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक है।
• राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें
जब बालक अपने कर्तव्य को समझ जाएगा, तो वह अपने राष्ट्र के लिए वह कार्य करेगा। जो कि एक जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए। वह राष्ट्र के हित को लेकर अपने कार्यों का निर्वहन करेगा। जिससे कि वह राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकेगा। अतः इन सभी के लिए आवश्यक है, कि बच्चों को शिक्षित करना होगा। बालक को शिक्षित करने के लिए शिक्षा का माध्यम चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक। बालक को किसी भी माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाए। लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य यही होगा, कि बालक का विकास हो, बालक प्रगति करें।

[ ( औपचारिक शिक्षा- वह शिक्षा जो एक व्यवस्थित तरीके से प्रदान की जाती है, जिसके लिए कुछ नियम, कानून होते हैं। उदाहरण- स्कूल, कोचिंग सेंटर, एवं अन्य संस्थाएं इत्यादि।)
(अनौपचारिक शिक्षा- ऐसी शिक्षा जो कि किसी भी समय दी जा सकती है। इसके लिए किसी भी प्रकार के नियम, कानून या कोई व्यवस्थित तरीके की आवश्यकता नहीं है। उदाहरण- घर, खेल का मैदान, गार्डन इत्यादि अन्य स्थान।) ]

⚡ बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक को सबसे पहले बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना होगा।
जब शिक्षक बालक के वृद्धि एवं विकास के प्रत्येक पहलू को समझ जाएगा। तो उसे यह ज्ञात हो जाएगा, कि बालक को किस प्रकार की आवश्यकता हैं, एवं उसी के आधार पर शिक्षक, बालक को शिक्षा दे पाएगा। अतः आवश्यक है, कि शिक्षक को बालक के वृद्धि एवं विकास के संबंध में जानकारी होना चाहिए।

⚡ इसके लिए शिक्षक को सही दिशा निर्देशन, उपयुक्त शिक्षा देने की आवश्यकता है। जिससे कि बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके।
शिक्षा का बालक की व्यवहार को जान जाएगा तब वह बालक को उचित दिशा निर्देशन दे पाएगा जिससे कि बालक अपना संपूर्ण विकास कर पाएगा।

👉🏻 बालक के विकास की प्रक्रिया जन्म के पूर्व मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है।
इसके पश्चात बालक के जन्म के बाद वह विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए चला जाता है, या चलता रहता है।

🌻 वृद्धि और विकास एक-दूसरे के पर्याय हैं,
🌻 वृद्धि और विकास एक दूसरे से संबंधित होते हैं,
🌻 वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर होते हैं।

🌺 वृद्धि ( Growth) 🌺

👉🏻 कुछ मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धि की परिभाषाऐ दी है, जो कि निम्नलिखित है ~

🍂🍃 सोरेन्सन के अनुसार~
अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर के वाह अंगो के बाल एवं आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।

🍂🍃 फ्रंक के अनुसार~
अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होती है।
शरीर व व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है, उसे ही अभिवृद्धि कहते हैं।

🍂🍃 हरलॉक के अनुसार~
विकास, अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है। इसकी वजह इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है। विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताऐ और नवीन योग्यताएं प्रकट होती है।
📗 समाप्त 📗
✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻
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☘️🍁🦚 बाल विकास 🦚🍁☘️

🌟 बाल विकास का अर्थ बालक के जन्म से आरंभ होकर जीवन पर्यंत तक चलने वाले हर एक प्रक्रियाओं का अध्ययन है जो एक व्यक्ति के दिन प्रतिदिन के जीवन काल में हमेशा गठित होता है उसका अध्ययन करना उसकी समझ विकसित करना तथा उसके समस्याओं का समाधान करना है।

🍁 एक शिक्षक के लिए बालक के सर्वांगीण विकास जैसे कि :- उनमें गुण – दोष,अच्छाई – बुराई और वैयक्तिक विभिन्नताएं इत्यादि को ध्यान में रखकर च्चों को किस क्षेत्र में किस तरह के शिक्षण सामग्री या पाठ्यक्रम की आवश्यकता है कैसे उनकी कमियों को दूर किया जाए तथा कब,कैसे और किस मात्रा में उन्हें शिक्षण कराया जाए ताकि उनके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सुदृढ़ हो सके।अन्य विशेषताओं को ध्यान में रखकर उसके उपयुक्त शिक्षण कराना तथा उनके समस्याओं का समाधान करना है बाल विकास शिक्षण का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

🌳 हर एक बालक व्यक्ति सम्मान नहीं होता हम सब में कोई ना कोई,किसी ना किसी प्रकार की व्यक्तिगत विभिन्नताएं जरूर पाई जाती हैं।जो कि निम्नलिखित है :-

🌿 सामाजिक आधार पर विभिन्नताएं
🌿आर्थिक आधार पर विभिन्नताएं
🌿 सांस्कृतिक आधार पर विभिन्नताएं
🌿 आयु वर्ग के आधार पर विभिन्नताएं
🌿निवास स्थान के आधार पर विभिन्नताएं इत्यादि ।

🍁इसके अलावा हम सब में और भी कुछ न कुछ विभिन्नताएं जरूर पाई जाती हैं।जिसके आधार पर शिक्षण प्रक्रिया कराई जाए तो एक अच्छे शिक्षण-प्रशिक्षण वातावरण का निर्माण होगा।

🌲 इस कार्य के लिए शिक्षकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जो कि निम्नलिखित है:-

🌿 बालक की विशेषताओं को ध्यान में रखना।
🌿बालक की योग्यताओं को ध्यान में रखना।
🌿 बालक की सामाजिक – सांस्कृतिक परिवेश को ध्यान में रखना।
🌿 बालक के व्यवहारों को ध्यान में रखना।
🌿बालक की क्षमताओं को ध्यान में रखना।
🌿बालक की कमियों व समस्याओं को ध्यान में रखना।

🌸 इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखकर कार्य करने से ही एक उपयुक्त शिक्षण अधिगम वातावरण का निर्माण हो सकता है।

🌲 शिक्षकों का भी कर्तव्य होता है कि विद्यार्थियों को उनके वास्तविक जीवन के वांछनीय उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें। जिससे बालक अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें।

🍁 जैसे कि :-
🌿अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सकें।
🌿 राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

🌿 अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सकें :-

🌸 जब बालक अपने दायित्व और कर्तव्य को बखूबी समझने लगेगा तथा उस पर कार्य करना शुरू कर देगा तो वह एक अच्छे और जिम्मेदार नागरिक के रूप में उभर कर आएगा।

🌿 अच्छे राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकें :-

🌸 जब बालक अपने कर्तव्यों को समझ जाएगा तो वह अपने राष्ट्रीय निर्माण के लिए कार्य करेगा जो कि एक जिम्मेदार नागरिक की स्वभाविकता है। जिससे एक अच्छे राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकते हैं।

🌟औपचारिक शिक्षा :-

🌿 इसके अंतर्गत शिक्षा व्यवस्थित और नियमानुसार दी जाती है। इस प्रकार के शिक्षण में कुछ नियम कानून बनाए जाते हैं जिसके अंतर्गत ही हमें कार्य करना होता है। इसे औपचारिक शिक्षण कहते हैं।

🍁 जैसे कि :-
🌿विद्यालय
🌿कोचिंग संस्थान
🌿 शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र इत्यादि।

🌟 अनौपचारिक शिक्षा :-

🌿 ऐसी शिक्षा जो किसी भी प्रकार की,भी समय या किसी भी वेशभूषा में,कोई कार्य करते हुए, अन्यथा कुछ भी करते हुए ली जा सकती है। इसमें कोई नियम कानून नहीं होता इसे अनौपचारिक शिक्षण कहते हैं।

🍁 जैसे कि :-
🌿 घर
🌿खेल का मैदान
🌿 धार्मिक स्थल इत्यादि।

🌷🌷 अर्थात् इसके लिए यह आवश्यक है कि, शिक्षा का माध्यम औपचारिक हो या अनौपचारिक, हमें बच्चों को उनकी विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षित करना चाहिए। जिससे वे एक अच्छे राष्ट्र और भविष्य का निर्वहन/निर्माण कर सकें। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि बालक को एक अच्छे भविष्य और सर्वांगीण विकास के लिए तैयार किया जाए🌷🌷

🌷🌷🌷🌷 विकास🌷🌷🌷🌷

🦚 विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जो कि एक व्यक्ति में जन्म से पहले से ही प्रारंभ हो जाती है। और जीवन पर्यंत चलती है जिसमें इसे विभिन्न स्तरों से गुजरना पड़ता है।

🌿 विकास एक गुणात्मक प्रक्रिया है।
🌿इसे मापा नहीं जा सकता परंतु इसे महसूस किया जा सकता है।
🌿 विकास वर्तुलाकार होता है।
🌿 विकास जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है।

🌷🌷🌷🌷🌷 वृद्धि🌷🌷🌷🌷🌷

🌿 यह एक मात्रात्मक प्रक्रिया है।
🌿 इसमें शरीर के आकार या वजन में वृद्धि होती है।
🌿 वृद्धि को हम देख सकते हैं।
🌿 इसे मापा तोला भी जा सकता है।
🌿 वृद्धि विकास का हीं एक भाग है।

🦚वृद्धि एवं विकास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-

🌸वृद्धि एवं विकास एक दूसरे से अंतः सबंधित होते हैं।
🌸 वृद्धि एवं विकास दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं।
🌸 वृद्धि एवं विकास एक दूसरे पर निर्भर होते हैं।
🌸वृद्धि एवं विकास में परस्पर संबंध होता है।

🌳 वृद्धि के संबंध में कुछ मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की कथन दिए हैं।जो कि निम्नलिखित है :-

🌟 सोरेन्सन के अनुसार :- 🌿अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर के वह अंगो के बाल एवं आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।

🌟 फंक के अनुसार :- 🌿अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होती है। शरीर व व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है। उसे ही अभिवृद्धि कहते हैं।

🌟 हरलॉक के अनुसार :- 🌿 विकास,अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है। इसकी वजह इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है। विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं और नवीन योग्यताएं प्रकट होती है।

🌟🦚🌟समाप्त 🌟🦚🌟

🌸Notes by :- Neha Kumari 😊

🌸🌿🌸🌿🌸धन्यवाद् 🌸🌿🌸🌿🌸

🍁⭐🍁 बाल विकास🍁⭐🍁

बाल विकास का अर्थ है बालक की संपूर्ण विकास से विकास जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक चलता रहता है एक व्यक्ति के दिन प्रतिदिन के जीवन काल में हमेशा गठित होता है उसका अध्ययन करना तथा समस्याओं का समाधान करना

बाल विकास के लिए आवश्यक है कि एक शिक्षक को बच्चे के बारे में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए इसी के आधार पर शिक्षा बालक को शिक्षक प्रदान कर सकता है बच्चे के लिए क्या करना चाहिए क्या पढ़ाना है तथा किस प्रक्रिया का उपयोग करना है जिससे बच्चे की कमियों का पता लगाकर उन कमियों का निदान कर सके शिक्षक के लिए आवश्यक होता है कि वह बाला की जिम्मेदारी तथा विकास की क्रियाओं को समझने बाला को उचित ढंग से शिक्षित कर पाएं

⭐ प्रत्येक बालक एक समान नहीं होता है हर बाला की अपनी एक विशेषता होती है इन विभिन्नताओं को समझते हुए बालक का उचित विकास करना तथा शिक्षण प्रक्रिया आरंभ करनी होगी

🍁 बालकों के विभिन्नताओं के आधार पर

🎯 सामाजिक आधार पर विभिन्नताएं

🎯आर्थिक आधार पर विभिन्नताएं

🎯सांस्कृतिक आधार पर विभिन्नताएं

🎯आयु वर्ग के आधार पर विभिन्नताएं

🎯निवास स्थान के आधार पर विभिन्नताएं

ऐसा भी विभिन्न नेताओं के आधार को ध्यान में रखकर ही शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया करनी होगी एवं शिक्षक को बाल को शिक्षित करने के लिए इन सभी विभिन्नताओं को जानना होगा

🌈शिक्षक की बालकों के प्रति जिम्मेदारी:-

⭐ बालक की योग्यता को ध्यान में रखें

⭐ बालक की कमियों व समस्याओं को ध्यान में रखें

⭐ बाला की क्षमताओं को ध्यान में रखें

⭐ बालक की विशेषताओं को ध्यान में रखें

इन सभी को ध्यान में रखकर ही शिक्षक को बालक को शिक्षित करना होगा

🍁 अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चों मैं वांछनीय परिवर्तन लाएं ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें इसके लिए उस बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है
जब बालक अपने दायित्व कर्तव्य कुछ समझ जाएगा तो वह एक अच्छा नागरिक होने की जिम्मेदारी निभा पाएगा जो कि प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक है अतः इन सभी के लिए आवश्यक है कि बच्चों को शिक्षित करना होगा

🎯 औपचारिक शिक्षा
औपचारिक शिक्षा से आशय है इसमें नियम कानून के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाती है इसे हम औपचारिक शिक्षा कहते हैं जैसे विद्यालय की शिक्षा कोचिंग ओं की शिक्षा इत्यादि

🎯 अनौपचारिक शिक्षा
अनौपचारिक शिक्षा से आता है जिसमें किसी भी प्रकार के नियम कानून नहीं होता है यह दैनिक कार्यों की शिक्षा कहते हैं जैसे घर की शिक्षा खेल के मैदान इत्यादि

” जैसे रास्ते में जाते समय किसी ने रास्ता बताया या अनौपचारिक शिक्षा के अंतर्गत आता है”

⭐ बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षा को सबसे पहले बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलू को समझना अनिवार्य है सही दिशा सही निर्देश उपयुक्त शिक्षा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर पाए

⭐ बालक के विकास की प्रक्रिया मां के गर्भ से लेकर मृत्यु तक चलती है इसने बालक के बाद वह विभिन्न अवस्था में गुजरते हुए चला जाता है या चलता रहता है

🍁 वृद्धि और विकास एक दूसरे के पूरक होते हैं

🍁 वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय होते हैं

🍁 वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर होते हैं

🍁 वृद्धि और विकास एक दूसरे से संबंधित होते हैं

🎯 वृद्धि:-
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धि की परिभाषा दी है जोकि निम्नलिखित है

⭐ सोरेन्सन के अनुसार:-

अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर का वह अंग के भार और आकार के लिए किया जाता है

⭐ फ्रेंक के अनुसार:-
अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होती है शरीर व व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं

⭐ हरलॉक के अनुसार:–
विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यता प्रकट होती है

✍🏻✍🏻✍🏻Menka patel ✍🏻✍🏻✍🏻

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🔆 बाल विकास एवम् शिक्षा शास्त्र

बाल विकास एवम् शिक्षा शास्त्र को हमे तीन रूप में जानना है।

🔅 बाल विकास – बच्चो को शिक्षा देने के लिए हमे बच्चो को जानना व समझना होगा कि बच्चों को किस तरह से पढ़ाया जाए। और इसके लिए बाल विकास का अध्ययन करना आवश्यक है।

🔅 समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की समझ

  • बालक को शिक्षित करने के लिए बालक को जो भी परेशानी है या जो भी समस्या है या जो भी उसे जरूरत है उसके बारे में भी हमें जानना आवश्यक है, जिसे हम समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की समझ से जान सकते हैं।

🔅 अधिगम और शिक्षाशास्त्र
जब हम बच्चे को जानकर और उसकी परेशानियों या समस्या को जानकर यह समझ जाते हैं कि बच्चे को हमें किस तरीके से पढ़ाना है या कैसे पढ़ाना है।

यदि शिक्षक को छात्र के बारे में जानकारी होगी तो शिक्षक को यह आसानी से मालूम चल जाएगा कि बच्चो को कैसे पढ़ाया जाना चाहिए। इसी कारण से शिक्षक को बच्चों के बारे में जानना और समझना अति आवश्यक है।

▪️ जो भी बच्चे होते हैं उनमें कई रूपों में भिन्नताएं पाई जाती हैं।
जैसे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, आयु समूह
हर बच्चे की इन अलग-अलग भी भिन्नताएं के साथ साथ अलग-अलग विशेषताएं, योग्यताएं,समस्याएं और क्षमता भी होती हैं।
एक शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह बच्चे की इन सभी भिन्नताओ के साथ ही या इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक अध्यापन कार्य करें।

▪️अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लेकर आए ताकि वह बच्चा एक अच्छा नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके और राष्ट्र के हित में अपना योगदान दे सकें।

▪️ शिक्षक को इन सब के लिए बच्चों को शिक्षित करना आवश्यक है।
बच्चों को शिक्षित करने के लिए या किसी भी विषय या किसी वस्तु के बारे में शिक्षित करने के लिए शिक्षा को देना है यह शिक्षा “अनौपचारिक और औपचारिक” या किसी भी रूप में या किसी भी तरीके से दी जा सकती है।

• “औपचारिक शिक्षा”- जिसमें निर्धारित नियम व समय के साथ शिक्षा दी जाती है।
• “अनौपचारिक शिक्षा”- वह शिक्षा जो औपचारिक नहीं है या जो चीज हम नहीं जानते हैं यदि वह चीज हमें कहीं भी किसी भी माध्यम से या किसी भी रूप में जानते व सीखते हैं तो वह अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है ।

💠 बच्चों में शिक्षा का विकास करने हेतु –
शिक्षक को बच्चे में शिक्षा का विकास करने के लिए सबसे पहले बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य है।
क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही जानकर शिक्षक बच्चे को “सही दिशा निर्देशन” व “उपयुक्त शिक्षा” देकर बच्चे के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर पाएंगे।
▪️और बच्चे की जो विकास की प्रक्रिया है वह जन्म के पूर्व से ही मां के गर्भ से प्रारंभ हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए चलता रहता है।

▪️ वृद्धि और विकास दोनों एक दूसरे के पर्याय या एक दूसरे पर आधारित या एक दूसरे से संबंधित या एक दूसरे पर निर्भर होते हैं।दोनों का ही अपना अपना योगदान है दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
जैसे यदि हमारे हाथ में (शारीरिक) चोट लगे तो हम मानसिक रूप से भी शिथिल हो जाते हैं।

कई मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धि के बारे में अपने मत प्रस्तुत किए।

🌀 सोरेनसन के अनुसार
अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।

🌀 फ्रैंक के अनुसार
अभिवृद्धि का प्रयोग कोशिय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है और शरीर व व्यवहार में से पहले जिसमे जो भी परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं।

(हमारी उम्र के हिसाब से हमारे शरीर में कई परिवर्तन या कई व्यवहारिक परिवर्तन या इन सभी के कारण सामान्य व्यवहार में जो भी परिवर्तन किसी न किसी रूप में दिखते है वह अभिवृद्धि कहलाती है।
वृद्धि शारीरिक परिवर्तन है विकास परिपक्वता की तरफ धीरे धीरे बढ़ता है यह निश्चित परिवर्तन होता है जो निरंतर चलता रहता है।)

🌀 हरलॉक के अनुसार
विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है ,अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम और विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नवीन विशेषताएं और योग्यताएं प्रकट होती हैं।
(हमारा विकास हमारे प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य पर या हम कैसा जीवन यापन करना या जीना चाहते हैं उसका जो लक्ष्य है, उसे पाने के लिए जो भी हम करते हैं,तो उसके परिणाम स्वरूप जो भी परिवर्तन होता है वही विकास कहलाता है।)
✍🏻
Notes By-Vaishali Mishra

🚣‍♀️🚣‍♀️बाल विकास 🚣‍♀️🚣‍♀️

बाल विकास का अर्थ है जो बालकों के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है परन्तु इसे वर्तमान समय में बाल विकास में परिवर्तित कर दिया गया यह बालक की क्षमताओं का अध्ययन करता है बाल विकास के अन्तर्गत बालकों के विभिन्न शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का मापन व मूल्यांकन किया जाता है
बालक के विकास के लिए शिक्षक को चाहिए कि बालक को क्या पढ़ाना है , कैसे पढ़ाना है और उसकी कमियों का पता लगाए तभी शिक्षक बालक की परेशानी को दूर कर पायेंगे और उचित ढंग से शिक्षित कर पायेगें |

👉सभी बालक समान नहीं होते हैं ये भिन्न – भिन्न प्रकार के होते हैं और सारे बालकों को ध्यान में रखकर ही शिक्षण प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए |

🌈बालकों में भिन्नता के आधार :-
🌷आर्थिक
🌷सामाजिक
🌷सांस्कृतिक
🌷आयु समूह
🌷निवास स्थान

इनके आधार पर कई विभिन्नताएं पायी जाती है इन सब को ध्यान में रखकर ही ही शिक्षक को शिक्षण कार्य प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए बालकों को अच्छी शिक्षा देने के लिए इन सभी विभिन्नताओं को जानना शिक्षक के लिए आवश्यक है

🌈शिक्षक की जिम्मेदारीयां :-
👉बालकों की विशेषता को ध्यान में रखना|
👉उनकी योग्यताओं को ध्यान में रखना |
👉बालकों कि समस्याओं को ध्यान में रखना
👉बालक कि क्षमताओं को ध्यान में रखना

इन सभी जिम्मेदारी को ध्यान में रखकर एक शिक्षक बच्चों को पूर्णरूप से शिक्षित कर पायेंगे |

🌺अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लाए ताकि वे-
👉अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके |
👉राष्ट्र कि सेवा करे और राष्ट्र के विकास व उन्नति में अपना पूर्णरुप से योगदान दे सके |
👉इसके लिए बच्चों को शिक्षित करना आवश्यक है |

अत: इन सभी के लिए बच्चों को शिक्षित करना आवश्यक है चाहे वह औपचारिक हो या अनौपचारिक हो उसका मुख्य उद्देश्य बालक की विकास से होना चाहिए जो दोनों तरीको की शिक्षा से होती है |

🌹औपचारिक शिक्षा :- यह शिक्षा एक नियोजित ढ़ग से दी जाने वाली शिक्षा है जिसे पूरे कठिन परिश्रम के साथ उद्देश्यपूर्ण तरीके से दी जाती है यह शिक्षा कही भी , कभी भी किसी के द्वारा नहीं दी जा सकती है इसके लिए नियम बनाएं जाते हैं
जैसे- विद्यालय, कोचिंग सस्थांन , इत्यादि |

🌹अनौपचारिक शिक्षा :- इसमें नियम व योजना नहीं होती है इसमें बच्चा स्वतंत्रत रूप से सकता है इसमें कुछ भी निश्चित नहीं होता है पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, शिक्षा का उद्देश्य ईत्यादि |

🌞बच्चे में शिक्षा का विकास करे तो विकास करने के लिए एक शिक्षक का सबसे पहले बच्चे के वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य है
जैसे-
🌷सही दिशा निर्देश देना ताकि बालक का सर्वांगीण विकास हो|
🌷ताकि इन्हें पूर्ण शिक्षा मिले |

🌈वृद्धि :–
बच्चे के विकास कि प्रक्रिया जन्म से पूर्व माँ के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरती चली जाती है
वृद्धि और विकास के एक – दूसरे के पूरक है तथा एक- दूसरे पर निर्भर होते हैं |
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार निम्नलिखित परिभाषा है-
🎄सोरेन्सन के अनुसार :- अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगो के भार , आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है |

🎄फ्रैंक के अनुसार :- अभिवृद्धि का प्रयोग कोशिका वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है शरीर और व्यवहार में से पहले जिसमें जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं |

🎄हरलॉक के अनुसार :- विकास , अभिवृद्धि की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं रहती है अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य कि ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है |

🌷🌷 Thank you 🌷🌷

🌹Meenu Chaudhary🌹

💫 बाल विकास💫

बाल विकास का अर्थ है बालक का संपूर्ण विकास। मानव विकास जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है। बाल विकास माता के गर्भ से शुरू हो जाता है तथा जीवन पर्यंत चलता रहता है। मानव का विकास किसी ना किसी रूप में हर दिन हर पल होता रहता है

बाल विकास के लिए आवश्यक है कि एक शिक्षक को बच्चे के बारे में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए इसी के आधार पर शिक्षक बालक को शिक्षा प्रदान कर सकते हैं बच्चे के लिए क्या करना चाहिए क्या पढ़ाना है तथा किस शिक्षण विधि या प्रक्रिया का उपयोग करना है जिससे बच्चे की कमियों का पता लगाकर उन कमियों का निदान कर सके शिक्षक के लिए आवश्यक होता है कि वह बालक की जिम्मेदारी तथा विकास की क्रियाओं को समझे और उनके विचार को समझ के उनका सही ढंग से शिक्षण कर सके।

🔅 प्रत्येक बालक एक समान नहीं होता है हर बालक की अपनी एक विशेषता होती है इन विशेषताओं को समझते हुए बालक का उचित विकास करना तथा शिक्षण प्रक्रिया प्रारंभ करना होगा

💫बालकों के विभिन्नताओं के आधार पर

🔅 सामाजिक आधार पर विभिन्नताएं

🔅आर्थिक आधार पर विभिन्नताएं

🔅सांस्कृतिक आधार पर विभिन्नताएं

🔅आयु वर्ग के आधार पर विभिन्नताएं

🔆निवास स्थान के आधार पर विभिन्नताएं

ऐसा भी विभिन्नताओं के आधार को ध्यान में रखकर ही शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया करनी होगी एवं शिक्षक को बालक को शिक्षित करने के लिए इन सभी विभिन्नताओं की जानकारी रखना आवश्यक है यदि शिक्षक इन सभी विभिन्न नेताओं की जानकारी रखता है तो वह बाल विकास को आसानी से समझ सकता है और विभिन्न बालकों के बीच आने वाली विभिन्न समस्याओं को वह आसानी से हल कर सकता है।

🔆शिक्षक की बालकों के प्रति जिम्मेदारी:-

1️⃣ बालक की योग्यता को ध्यान में रखें

2️⃣बालक की कमियों व समस्याओं को ध्यान में रखें

3️⃣बाला की क्षमताओं को ध्यान में रखें।

4️⃣ बालक की विशेषताओं को ध्यान
में रखे

5️⃣ बालक के व्यवहार को ध्यान में रखें।

6️⃣बालक की सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को ध्यान में रखें।
इन सभी को ध्यान में रखकर ही शिक्षक को बालक को शिक्षित करना होगा

🔅 अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लाएं ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें इसके लिए उस बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है।
जब बालक अपने दायित्व कर्तव्य कुछ समझ जाएगा तो वह एक अच्छा नागरिक होने की जिम्मेदारी निभा पाएगा जो कि हमारे देश के प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक हैं। हमें एक सुदृढ़ भारत तैयार करने के लिए बालक में वांछनी परिवर्तन करना आवश्यक है।

🌱 औपचारिक शिक्षा
औपचारिक शिक्षा वह शिक्षा है इसमें नियम कानून के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाती है इसे हम औपचारिक शिक्षा कहते हैं जैसे विद्यालय की शिक्षा की शिक्षा।
🌱अनौपचारिक शिक्षा
अनौपचारिक शिक्षा वह शिक्षा है जिसमें किसी भी प्रकार के नियम कानून नहीं होता है बालक किसी भी प्रकार से नियमों से बंधा हुआ नहीं होता है इसमें बालक सबसे पहली परिवार आस-पड़ोस से दैनिक कार्यों की शिक्षा लेते हैं जैसे घर की शिक्षा खेल के मैदान इत्यादि।

🔅बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक को बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलू को समझना अनिवार्य है सही दिशा सही निर्देश के द्वारा एक शिक्षक बच्चे के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकता है।

🔅 बालक के विकास की प्रक्रिया मां के गर्भ से लेकर मृत्यु तक चलती है इसके बाद बालक विभिन्न अवस्था से गुजरता जाता है।

💫 वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर होते हैं।

💫 वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय होते हैं

💫वृद्धि और विकास एक दूसरे पर पूरक होते हैं।

💫 वृद्धि और विकास एक दूसरे से संबंधित होते हैं

🔅 वृद्धि:-
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धि की परिभाषा दी है जो निम्नलिखित है

🔆 सोरेन्सन के अनुसार:-

अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर के अंगो और उनके भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।

🔅 फ्रेंक के अनुसार:-
अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होती है
शरीर व व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं।

🔅हरलॉक के अनुसार:–
विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यता प्रकट होती है

✍🏻✍🏻 Notes by Raziya khan✍🏻✍🏻

🌸 बाल विकास🌸
बाल विकास से तात्पर्य बालक के जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया से है बाल विकास में बालक के व्यक्तित्व के समस्त पहलुओं शारीरिक सामाजिक संवेगिक मानसिक इन सबका विस्तृतअध्ययन ही बाल विकास है ।
🍁🍁
🌺 बाल विकास में अत्यंत आवश्यक है कि शिक्षकों को बालक के हर पहलुओं का ज्ञान होना चाहिए अर्थात बच्चों को क्या समस्या है उसका निराकरण कैसे करना चाहिए क्या बालक के लिए उपयुक्त है और क्या अनुपयुक्त है उन बच्चों को कैसे पढ़ाया जाना चाहिए जिससे वह आसानी पूर्वक और जल्दी सीख सकें इन सब का ज्ञान एक शिक्षक को होना अत्यंत आवश्यक है।

🌺प्रत्येक बालक अपने आप में एक विशिष्ट बालक होता है बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनके शिक्षण कार्य की प्रक्रिया को संपन्न कराना चाहिए बच्चे में अनेक विभिन्नता होती हैं उन सभी विभिन्नताओ का आधार निम्नानुसार हो सकता है
✍️ सामाजिक आधार पर विभिन्नताएं,
✍️ आर्थिक आधार पर विभिन्नताएं,
✍️ सांस्कृतिक आधार पर विभिन्न बताएं,
✍️ आयु समूह से संबंधित भिन्नता
इत्यादि विभिन्नताओ को ध्यान में रखकर बालक के शिक्षण कार्य को संपूर्णता की ओर ले जाना चाहिए
✍️ शिक्षक की बालकों के प्रति जिम्मेदारी:-
🍁 बालक की विशेषताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य
🍁 बालक की योग्यताओं को ध्यान में रखना
🍁 बालक की कमियों व समस्याओं को ध्यान में रखना
🍁 बालक में विद्यमान क्षमता को ध्यान में रखकर
इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखकर बालक का अध्यापन कार्य किया जाना चाहिए अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चे में वांछनीय परिवर्तन लेकर आएं ताकि वे 🌺एक अच्छे नागरिक बन सके और अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके
🌸 राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें इसके लिए बच्चों को शिक्षित करना आवश्यक हैअगर बालक शिक्षित होगा तो वह अपने कर्तव्य को समझेगा और उन कर्तव्यों का पालन दृढ़ता पूर्वक करेगा शिक्षा ही भावी जीवन की आधारशिला है अर्थात प्रत्येक बच्चे का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है इस भाव से शिक्षक का शिक्षण कार्य बच्चे को एक जिम्मेदार नागरिक बनाएगा जो राष्ट्र को उन्नत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
🌟 बाल विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका🌟
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए कि बालक समाज में प्रगति करें बालक का संपूर्ण विकास हो वह शिक्षा के माध्यम से नित नए रचनात्मक कार्य कर सकें शिक्षा का माध्यम औपचारिक या अनौपचारिक कुछ भी हो सकता है महत्वपूर्ण यह है कि बालक की प्रगति हो।

🍀1- औपचारिक शिक्षा: निश्चित नियम कानून को ध्यान में रखकर बालक को प्रदान की गई शिक्षा जिसका स्वरूप अनुशासित और व्यवस्थित होता है जिस के नियम सर्व मान्य और सर्व व्यापक है औपचारिक शिक्षा कहलाएगा। जैसे-स्कूल ,कोचिंग संस्थान , अन्य शैक्षणिक संस्थाएं।

🍀2- अनौपचारिक शिक्षा: ऐसी शिक्षा जिसके लिए निश्चित नियम कानूनों की आवश्यकता नहीं होती है किसी भी माध्यम से प्रदान की गई शिक्षा
जैसे- परिवार समाज घर खेल का मैदान इत्यादि।
🍁 बच्चों में शिक्षा का संपूर्ण विकास करने के लिए एक शिक्षक को सबसे पहले बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अत्यंत अनिवार्य है तभी शिक्षक
सही निर्देशन और उपयुक्त शिक्षा के माध्यम से बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर पाएंगे।

🍁बाल विकास🍁

✍️ बच्चे के विकास की प्रक्रिया जन्म के पूर्व से ही मां के गर्भ से प्रारंभ हो जाती है।
🍁विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है यह जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरती चली जाती है।
🍁 वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय हैं।
🍁वृद्धि और विकास एक दूसरे से संबंधित है यह दोनों ही एक दूसरे पर निर्भर है।

🍀 वृद्धि🍀
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धि के संबंध में निम्न परिभाषाएं प्रस्तुत की है-
🍁🌟 सोरेन्सन के अनुसार:-
अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।
🍁🌟 फ्रंक के अनुसार:-
अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
शरीर और व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं।
🍁🌟 हरलॉक के अनुसार:-विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है।
विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यता प्रकट होती है। 🌟 धन्यवाद🌟

Notes by – Abhilasha pandey

👦 BAL VIKAS 👧 🔰 Parichaye 🔰 Bal Vikas ke antargat Ham sikhate Hain Ki Balak ko kaise padhana hai, Balak ko kya padhana hai uski kamjoriyan Ka Pata Laga Kar balak ko kaise Shiksha deni hai.

🔸️ Ek Shikshak ko chahie ki vah Balak ko uske Samajik,sanskritik, Arthik, aur uski ayou ko dhyan me rakhar use Shiksha de.
➡️ Shikshak ki jimmedari
➖Pirtyek balak ki chamta,visheshta yogyata aur samasya bhinn bhinn hoti hai. Islie Shikshak ko chahie ki vah Shikshan prakriya ke dauran Balak ki chamta visheshta, yogyata aur samasya ke anusar hi use Dhyan Mein rakhte Hue Shiksha De jisse Shikshan pirkriya bhalibhati ho sake.
➖ Balak ke sarvangin Vikas ke liye ek Adhyapak ka yah Daitua hai ki wo bachon Mein Aise vanchaniye Parivartan laya taki bache achche Nagrik ki jimmedari Nibha sake aur Rashtra ke Vikas Mein Apna yogdan bhalibhati De sake.iske lie use bacho ko sikchit krne ki avsyakta hai.
🖊Sikcha🖊
➖Aupcharik sikcha
➖Anaupcharik sikcha
✔Aupcharik Sikcha- Kisi Vidyalay yah Sansthan ke madhyem ke dwara Niyamit roop se di jane wali Shiksha aupcharik shiksha ke antargat aati hai.
✔Anaupcharik sikcha
– anopcharik Shiksha Ke Liye hume Kisi VishesMadhyam ki jarurat Nahin Hoti yah Ham Kisi bhi isthan per Kahin bhi kisi bhi madhyam ke duara kisiJagah se grahan kar sakte hain.iske lie hume kisi vises madhyem ki jarrort nahi hoti.
🔰 Virdhi or vikas 🔰
✔Virdhi matratmak ya parinatmak hoti hai. Virdhi se tatparye balak ke saririk badlav se hai.jaise balak ki lambai, bajan sarirk kad etc.
✔Vikas ka arth vyapak hota hai ye niranter chalne wali pirkriya hai. Vikas se tatparye Balak ki gunatmak chamta ka tatprye saririk,mansik or vivharik guno se hai.
Bacho Mein Shiksha ka Vikas karne ke liye ek Shikshak ko sabse pahle Ek bacche ki vridhi aur Vikas ke sabhi pahlon ko samajhna Aasan Hai Tabhi vo bacche ki Sahi Disha nirdeshan or opyukt Shiksha De Payega.
Agr ek sichak Balak ka sarvangin Vikas Chahta Hai to use balak ke virdhi aur Vikas donon pahlu Ko samajhna Hoga.
✔ bacche ke Vikas ki prakriya Janm ke purv maa ke garbh Se hi prarambh Ho Jaati Hai Aur Janm ke bad vibhinn avastha se Gujarte Hue Chalti Hai.
✔ vriddhi Aur Vikas Ek dusre Ke paryae Hain or ek dusre se sammandhit hai aur ek dusre pr nirbhar hai.
✔ sorsen ke anusar➖ sorsen ne vriddhi Shabd ka prayog Sharir or Uske angon ke bhar aur Aakar Mein vriddhi ke liye Kiya hai.
✔ Frank Ke anusar➖ abhvirdhi ka prayog koskiye ki vriddhi ke arth Mein prayog Hota Hai ➖Sarir or vyavhar Mein jismein pahle Parivartan hota hai use hi virdhi ya abhivirdhi Kahate Hain.
✔Harlok ke anusar➖ Vikas ki Seema abhividhi Tak simit Nahin balki pronavastha Ki Lakshya ki aur Parivartan ka pragatisheel Kadam Niharth rahata Hai.Vikas ki Pranam Suaroop vyakti Mein Anek visheshtaen or yogtaye prakat hoti hain.
🖊Krishna gangwar

🌻🌱बाल विकास और शिक्षण शास्त्र 🌻🌱

बाल विकास जन्म से लेकर जीवन पर्यतन चलती रहती हैं बाल विकास में बच्चे को क्या पढाना है कैसे पढाना है उनकी परेशानी को जानना है ताकि उन्की समसयाओ का समाघान कर सके।

ः हर एक बच्चे के वयक्तितव को घ्यान में रखते हुए शिक्षा देनी चाहिए।
🌴प्रत्येक बालक का वयक्तिव समान नहीं रहता है जो कि निम्नलिखित है
🌿सामाजिक आघार पर विभिन्नताएं
🌿आथिंक आघार पर विभिन्नताएं
🌿सांस्कृतिक आघार पर विभिन्नताएं
🌿आयु समुह के आघार पर विभिन्नताएं
🌴निवास के स्थान पर विभिन्नताएं
हर एक बालक विशेष माना जाता है
🌻🌱शिक्षको की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है जो निम्नलिखित हैं।
🌴बालक की विशेषताएँ को घ्यान में रखकर।
🌴बालक की योगयताओं को घ्यान में रखकर।
🌴बालक की समस्याओं को घ्यान में रखकर ।
बालक की क्षमता को घ्यान में रखकर।
🌸🌻इन सभी को घ्यान मे रखकर अध्यापन करे।
🌸अध्यापक का दायित्व है कि वह बच्चे में वांछनीय परिवर्तन लाए ताकि वो एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सके। इनके लिए बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है।
📝🌻शिक्षा औपचारिक और अनौपचारिक दोनों होता है।
🌸औपचारिक और अनौपचारिक दोनों बच्चे के प्रगति को अग्रसर करती हैं
🌸औपचारिक शिक्षा स्कूल में मिलती है जैसे समय से स्कूल जाना, पुरे Dress मे जाना, समय से छुट्टी होगी।
🌸अनौपचारिक शिक्षा में कोइ समय सारणी नही होती हैं।
ः अनौपचारिक शिक्षा उसे कहते है जो हमे घर पे मिलती है।
🌸ः बच्चो मे शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक सबसे पहले बच्चो के बुद्धि और विकास के सभी पहलु को समझना अनिवार्य है।
🌸बच्चो को सही दिशा निदेर्शन देना चाहिए।
ः उपयुक्त शिक्षा देना
ःवयक्तिव का सर्वागुण विकास के लिए तैयार करना।
🌻विकास 🌻
ः🌴 बच्चे के विकास की प्रक्रिया जन्म के पूर्व मां के गर्भ से प्रारम्भ होता है और जन्म के बाद विभिन्न अवसथाओ से गुजरते हुए चलता है।
🌴विकास एक गुणात्मक प्रक्रिया है।
🌴विकास को मापा नही जाता है।
विकास जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है।
🌸वृद्धि 🌸
🌴वृद्धि एक निश्चित समय पे आकर रूक जाती हैं ।
🌴वृद्धि एक मात्रात्मक प्रक्रिया है।
🌴वृद्धि को माप तोल सकते हैं।
🌴वृद्धि विकास का ही भाग है।

🌻🌴वृद्धि और विकास की महत्वपूर्ण बाते निम्नलिखित हैं :-
🌴वृद्धि और विकास एक दूसरे के पूरक हैं।
🌴वृद्धि और विकास दोनों अंतः संबंघित है।
🌴वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर हैं।

🌻सोरेन्स के अनुसार 🌻
🌴अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगो के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।
🌻फ्रेक के अनुसार 🌻
🌴अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
शरीर और व्यवहार में से पहले जिसमे जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते है।
🌻हरलाँक के अनुसार 🌻
🌴विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रोढावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील है।
विकास के परिणाम स्वरूप वयक्ति में अनेक नई विशेषताएँ और योग्यता प्रकट होती हैं।

Notes By :-Neha Roy

👨‍👩‍👧 बाल विकास (Child Development)👨‍👩‍👧

☃️ बाल विकास का अर्थ(Meaning of child Development):➖

🌸किसी बालक के विकास से आशय गर्भाधान
( गर्भ में आने से पहले) से लेकर मरणोपरांत तक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है यह विकास की प्रक्रिया लगातार चलती रहती हैं इसी के फलस्वरूप बालक विकास के विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है।
जिसके अंदर बालक की शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास होती हैं।

🌻एक शिक्षक को बाल विकास की संपूर्ण जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है इसी के आधार पर बालकों की विभिन्न गतिविधियों।
दूसरे शब्दों में ,
बालक के लिए क्या अच्छा है ,क्या बुरा है उन्हें किस वातावरण में कैसी शिक्षा दे और यह भी जानने की कोशिश करना होगा कि कैसे बढ़ाना है क्या पढ़ाना है अर्थात् उसे किताबी ज्ञान की कितनी जानकारी है इसलिए हमें पहले उसको जानना होगा जिसे पढ़ाना है जब जानेंगे कि उसे क्या पढ़ाना है तभी हम उस बच्चे की बातों को आसानी से समझ सकेंगे लेकिन उस बच्चे को पढ़ाई में कुछ ना कुछ परेशानी भी होगी एक शिक्षक होने के नाते हमें उन परेशानियों को समझकर कर उनका समाधान निकालना होगा जिससे बच्चे आसानी से खुद को शिक्षक के साथ ढाल सकें और बेझिझक अपनी अपनी परेशानियों को सामने रख सकें।

सभी बच्चे के अंदर कुछ ना कुछ भी भिन्नताएं होती है➖
🌳सामाजिक भिन्नताएं :-
सभी बच्चे अलग-अलग समुदाय से संबंधित रखते हैं जिसके अंदर सभी तरह के बच्चे रहते हैं और सभी बच्चों को शिक्षित करना उनकी हर एक गतिविधियों की पूरी जानकारी होना शिक्षक का परम कर्तव्य है।

🌳आर्थिक स्थिति:-
ऐसे बालकों के बीच अनेक प्रकार के परिवार के बालक रहते हैं अर्थात् सभी बालकों की परिवार की आर्थिक स्थिति एक समान नहीं रहती।
जैसे ➖अमीर ,गरीब, मध्यम वर्ग के परिवार।

🌳सांस्कृतिक:-
कोई भी बालक एक तरह की संस्कृति से नहीं रहते हैं सभी अलग-अलग धर्म ,संस्कृति को अपनाते हैं।

🌳आयु समूह:-
सभी बच्चों की आयु समूह भी अलग होती है बच्चे जिस आयु के रहते हैं वह उसी प्रकार के समूह में रहना पसंद करते हैं इन सारी गतिविधियों को ध्यान में रखकर एक शिक्षक को बालकों को शिक्षित करना चाहिए। 🌳🌸बालकों की विशेषताएं🌸🌳

🌤️ हर बच्चे में अपनी अलग अलग विशेषताएं योग्यताएं ,क्षमता और समस्या होती हैं एक शिक्षक होने के नाते यह जिम्मेदारी होती है जितने भी तरह के बच्चे हैं उनकी सारी समस्याएं ,विशेषताएं , योग्यता और क्षमता को ध्यान में रखकर उनके अनुसार ही बच्चों को शिक्षा देनी होगी।
अर्थात् बाल विकास को समझना अत्यंत आवश्यक है इसके अंतर्गत :➖
🌿बच्चों के व्यवहार को जानते हैं।
🌿कैसे समझता हैं ।
🌿उन्हें कैसे पढ़ाएं ।
🌿व्यक्तिगत विभिन्नता ।
🌿सही समय पर सही तरह के विकास हो।
🌿सही शिक्षा दी जा सके।
इन सारी गतिविधियों को जानना एक शिक्षक का परम कर्तव्य है।

🍁 इसके अंतर्गत अध्यापक का यह दायित्व होता है कि वह बच्चों में ” वांछनीय परिवर्तन लाएं” ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं।
इसके लिए उस बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है।

💧अगर बच्चा अपने कर्त्तव्यों, परिवार ,समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझेगा और उन सारी जिम्मेदारियों को हल करने में सक्षम होगा तभी वह एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण कर सकेगा।

🔅 शिक्षा के दो प्रकार है:-

🌀औपचारिक शिक्षा:-
इसके अंतर्गत बच्चे को एक सुव्यवस्थित तरीके से शिक्षा दी जाती है।
जैसे :-विद्यालय ,शिक्षण केंद्र।

🌀अनौपचारिक शिक्षा :-
इसके अंतर्गत बच्चों को दिशानिर्देशों के आधार पर शिक्षा देना अनिवार्य नहीं है बच्चे किसी भी रूप में किसी भी तरह ज्ञान अर्जन कर लेते हैं।
जैसे➖ समाज ,आस-पड़ोस, रेडियो , टेलीविजन खेल का मैदान। दूसरे शब्दों में, शिक्षा औपचारिक हो या अनौपचारिक उससे फर्क नहीं पड़ता यह बच्चों को आगे की ओर अर्थात् प्रगति की ओर अग्रसर करती है। यही बहुत बड़ी बात है मतलब शिक्षित होने से हैं फिर वह शिक्षा प्रत्यक्ष (Direct) मिले या अप्रत्यक्ष (indirect) !

🌻🌻वृद्धि (अभिवृद्धि) और विकास (Growth and Development)➖

🎯 बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक को सबसे पहले बच्चों की वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य हैं जिससे हम बच्चों को दिशा निर्देशन और उपयुक्त शिक्षा दे सकते हैं।

🎯बच्चों के विकास की प्रक्रिया जन्म के पूर्व मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए चले जाते ।

🎯वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय ( पर्याय अर्थात् हाथ में चोट लगती है तो मन भी प्रभावित होता है )दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं ,निर्भर है, और दोनों का अपना अपना योगदान है।

🌪️ वृद्धि( अभिवृद्धि):-
🔅आकार में वृद्धि।
🔅शरीर में होने वाले परिवर्तन।
🔅निश्चित समय पर रुक जाना।
🔅वृद्धि विकास का ही हिस्सा है।
🔅मापा जा सकता है।
🔅मात्रात्मक होती है।
🔅वृद्धि में परिवर्तन दिखता है।

🌪️ विकास:-
विकास धीरे-धीरे परिपक्वता की तरफ बढ़ता है और निश्चित परिवर्तन होता है कहीं ना कहीं यह गर्भ से ही शुरू हो जाता है।
अर्थात विकास:-
🔅गुणात्मक होती है।
🔅निरंतर चलता है।
🔅मापा नहीं जा सकता।
🔅महसूस किया जा सकता है।
🔅वर्तुलाकार होता है ।

🎭 सोरेन्सन के अनुसार:-
“अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है”।

🎭 फ्रैंक के अनुसार:-
” अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग कोशिकीय वृद्धि के अर्थ में किया जाता है”।

🌀शरीर और व्यवहार में से पहले जिस में परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं।

🔆शरीर के परिवर्तन में वृद्धि अर्थात् हमारे शरीर में जो दिखता है जो परिवर्तन होता है उसे व्यवहार कहते हैं।

🎭 हरलॉक के अनुसार :-
विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं होती बल्कि जो उम्र हमारा बढ़ता है अपितु प्रौढ़ावस्था कि लक्ष्य की ओर प्रगतिशील क्रम है।
अर्थात विकास गर्भ से मृत्यु तक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यताएं प्रकट होती है!🌪️🌪️Notes by➖Mahima kumari

👶 बाल विकास ( Child Devopment):–

बाल विकास का अर्थ–
बाल विकास का अर्थ “बालक के सर्वांगीण” से होता है , जो बालक के जन्म पूर्व या माँ के गर्भधारण से लेकर जीवन पर्यंत या मृत्यु पर्यंत तक चलने वाली प्रक्रिया “बाल विकास” कहलाती है।

🧑🏻‍🏫 एक अध्यापक को बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए बाल विकास का ज्ञान होना आवश्यक है। क्युकी एक शिक्षक के लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक हो जाता है , कि बालक को क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है और क्यों पढ़ाना है और को इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को बाल विकास के साथ-साथ शिक्षा शास्त्र का भी ज्ञान होना आवश्यक है।
इसलिए बाल विकास को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है–

◼️ १. बाल विकास– इसमें बालक को किस प्रकार से शिक्षा दी जाए कि बालक के सर्वांगीण विकास के लिए उचित हो जैसे बालक को क्या पढ़ाना है ,कैसे पढ़ाना है आदि के लिए शिक्षक को बाल विकास का अध्ययन करना आवश्यक है।

◼️ २. समावेशी शिक्षा– समावेशी शिक्षा के अंतर्गत शिक्षक को पहले यह जानना जरूरी है, कि किस प्रकार के बच्चो को
शिक्षा देनी है ,जिससे उनको उनके आवश्यकता अनुसार चाहे वो प्रतिभाशाली बालक , सामान्य बालक , विशिष बालक या शारीरिक/ मानसिक रूप से पिछड़े बालक की श्रेणी में आते हो।सभी को एक समान शिक्षा दी जा सके।

◼️ ३. अधिगम/शिक्षा शास्त्र– शिक्षा शास्त्र के द्वारा हम बच्चों की कमजोरियों , परेशानियों और समस्या को जानकर उनका समाधान या निवारण कर सकते हैं।

▪️ शिक्षक की जिम्मेदारी-

★जब एक अध्यापक बच्चों को पढ़ाता है तो बच्चों में व्यक्तिग रूप से उनमें कई विभिन्नताएं पाई जाती हैं जो अलग-अलग श्रेणी में आते हैं जैसे–सामाजिक , आर्थिक, सांस्कृतिक और आयु समूह इन सभी चीजों के साथ–साथ भिन्न-भिन्न विशेषताएं, योग्यताएं, समस्याएं और क्षमता से भी भिन्न होते हैं तथा इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को शिक्षा देनी चाहिए।

★अध्यापक का यह दायित्व है, कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लाएं ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी को निभा सके और राष्ट्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। इसके लिए बच्चों को शिक्षित करना आवश्यक है।

◼️ शिक्षा के प्रकार– शिक्षा के दो प्रकार हैं–

१. औपचारिक शिक्षा
२. अनौपचारिक शिक्षा

▪️ १. औपचारिक शिक्षा– औपचारिक शिक्षा में बच्चे को किसी निर्धारित समय में व नियमित विद्यालय से शिक्षा दी जाती है ।

▪️ २. अनौपचारिक शिक्षा– वह शिक्षा जो औपचारिक ना हो अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है। अनौपचारिक शिक्षा हमें किसी के भी द्वारा दी जा सकती है या ली जा सकती है ।

★“औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा दोनों रूप से बच्चे की प्रगति को अग्रसर करती है।”

◼️ बच्चे का शिक्षा में विकास करने हेतु– बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक को सबसे पहले बच्चे के “वृद्धि” और “विकास” के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य है । जिससे बच्चे को –”सही दिशा निर्देशन”और “उपर्युक्त शिक्षा” दी जा सके और बच्चे के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सके।

★बच्चे के विकास की जो प्रक्रिया है वह जन्म पूर्व मां के गर्भ में आने से प्रारंभ हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरती रहती है।

★ “वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय हैं”

★“वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर हैं”

★“वृद्धि और विकास एक दूसरे से संबंधित है”

◼️ अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग–

▪️ सोरेन्सन के अनुसार– “सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर के अंग के भार या आकार में वृद्धि” के लिए किया जाता है।”

▪️ फ्रैंक के अनुसार– “ अभिवृद्धि का प्रयोग कोशिय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा शरीर और व्यवहार में सबसे पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं।”

★विकास धीरे-धीरे परिपक्वता की ओर बढ़ता है तथा निश्चित परिवर्तन होते रहता है।

▪️ हरलॉक के अनुसार– “विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है, अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की और परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है।”

Notes by–Pooja

Nots by – Shubha dwivedi
🌺 बाल विकास 🌺
बाल विकास से आशय है कि बालक का विकाश किस दिशा में किस ओर हो यह हमें बलविकास से पता चलता है इसमें बालक को क्या पढ़ाना है , क्या सिखाना है , किस स्तर पर पढ़ाना है , कैसे पढ़ाना है इन सब बातो को जानकारी मिलती है। यह जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है।
बालविकास में यह जरूरी है कि शिक्षक बच्चो के समस्याओें को समझ कर उनका निराकरण करे । बालको की विभिन्नताओं को समझ कर उनको शिक्षा प्रदान करे बालक की विभिन्नता निम्न प्रकार की है –
🩸 सामाजिक आधार पर विभिन्नताएं
🩸 मानसिक आधार पर विभिन्नताएं
🩸 आर्थिक आधार पर विभिन्नताएं
🩸आयु से सम्बंधित विभिन्नताएं
इन सभी विभिन्नताओं को ध्यान में रख कर शिक्षक को शिक्षा देनी चाहिए
🌺 शिक्षक की बालको की प्रति जिम्मेदारियां –
🩸बालको की योग्यताओं को ध्यान में रख कर कार्य करना ।
🩸 बालक की विशेषताओं को ध्यान में रखना
🩸 बालक की छमता को ध्यान में रखना
🩸 बालक की समस्यायों को ध्यान में रखना
इन सभी बातो को ध्यान में रख कर ही शिक्षा देनी चाहिए जिससे बालक में संपूर्ण विकाश हो सके और एक सफल नागरिक बनाया जा सके ।
🌺 राष्ट्र के विकाश में योगदान – 🌺
बालको को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जिससे वह सही गलत को समझ सके को राष्ट्र हित के लिए कार्यों का प्रयास करे ।
🌺 शिक्षा के दो प्रकार है🌺
🩸औपचारिक –
ऐसी शिक्षा जो हमें विभिन्न नियमो ओर सुव्यवस्थित तरीके से मिलती है। जैसे स्कूल , आफिस में समय ओर नियमित जाना आदि ।
🩸 अनौपचरिक – ऐसी शिक्षा जो हमें शैशवास्था में दी जाती है जैसे – सही से बोलना , कपड़े ठीक से पहनना , बड़ों से आदर से बात करना , शौच आदि की क्रिया को सिखाना ।
🌺 विकास 🌺
यह प्रक्रिया गर्भ से जीवन पर्यन्त चलती रहती है इसी में वृद्धि भी सम्मिलित है ।इसे ना तो मापा का सकता ना ही देखा जा सकता है बस महसूस किया जा सकता है इसलिए इसे गुणात्मक क्रिया कहा जाता है ।यह विभिन्न जीवन काल में समान रूप से नहीं चलती है । कभी तेज कभी धीमी प्रक्रिया होती है ।
🌺 वृद्धि🌺
यह प्रक्रिया निश्चित समय तक होती है। इसे मापा जा सकता है और देखा भी का सकता है इसलिए इसे मात्रात्मक प्रक्रिया कहते है जैसे शरीर में वृद्धि
, वजन बढ़ना , आदि
🌺 कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा वृद्धि और विकास के बारे में दिए गए कथन 🌺
👉 सोरेंसन “- अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर में वृद्धि तथा उसके अंगों के भर , आकर के लिए किया जाता है”👈

👉फ्रैंक – ” अभिवृद्धि का प्रयोग कोशिय वृद्धि के लिए प्रयोग होता है तथा शरीर और व्यवहार जिसमें पहले परिवर्तन होता है उसे अभी वृद्धि कहते हैं 👈

हरलॉक -” विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं अपितु यह प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है । 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌷🌷 बाल विकास 🌷🌷

🌷 Child Development 🌷

बाल विकास = एक बालक का विकास
बाल विकास में बच्चे का सर्वांगीण विकास माँ के गर्भ से ही शुरू होकर जीवन पर्यन्त चलता है।

प्रत्येक छात्र एक समान नहीं होते हैं , अर्थात प्रत्येक बालक में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, अलग अलग आयु वर्ग एवं स्थान , परिवेश आदि में अलग- अलग प्रकार की भिन्नताएं पायी जातीं हैं , तथा प्रत्येक बालक की समस्या, क्षमता, योग्यताएं , विशेतायें आदि में भी अन्तर पाया जाता है। परन्तु एक शिक्षक का दायित्व है कि वह बालकों की निम्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक बालक को उनके अनुकूल शैक्षिक वातावरण दें।

शिक्षक का ये दायित्व होता है कि वह बच्चे में वांछनीय परिवर्तन लाए ताकि वह –
👉 एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके। और

👉राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें।

इसके लिए बच्चों को शिक्षित करना अति आवश्यक है।
अतः बच्चों को शिक्षित करने के लिये शिक्षक –
👉 औपचारिक शिक्षा, और

👉अनौपचारिक शिक्षा

के तरीकों को अपनाते हैं।

👉औपचारिक शिक्षा में बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ शैक्षिक वातावरण के नियम भी सिखाये जाते हैं जैसे-
समय पर और नियमित विद्यालय जाना, अपने शिक्षकों का सम्मान करना,व्यवस्थित अपनी शिक्षा ग्रहण करना आदि।

👉अनौपचारिक शिक्षा में पुस्तकीय ज्ञान को न जोड़कर बल्कि बच्चे जो कार्य अपने बाहरी वातावरण से सीखते, ज्ञान अर्जित हैं उसे अनौपचारिक शिक्षा के अंतर्गत रखा जाता है।

शिक्षा चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक हो पर बच्चे के प्रगति को अग्रसर जरूर करती है।

बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक को सबसे पहले बच्चे की वृद्धि और विकास के लिए सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य है। अतः इसी के आधार पर एक शिक्षक बच्चे का

👉सही दिशा निर्देशन कर सकेंगे

और बच्चे को

👉उपयुक्त शिक्षा दे सकेंगे

तथा इसके बाद ही बच्चे का सर्वांगीण विकास होगा।

🌺 बच्चे के विकास की प्रक्रिया जन्म के पूर्व मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए मृत्यु पर्यन्त चलती है। 🌺

वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय हैं , एक दूसरे से संबंधित हैं , और एक दूसरे पर निर्भर है ।

निम्नलिखित मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धि और विकास के संदर्भ में अपने अपने मत प्रस्तुत किये हैं –

🌺 सोरेन्सन के अनुसार :-

‘ अभिवृद्धि ‘ शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है।

🌺 फ्रेंक के अनुसार :-

‘ अभिवृद्धि ‘ का प्रयोग ( कोशीय ) वृद्धि के अर्थ में होता है ,
अर्थात शरीर और व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं।

🌺 हरलॉक के अनुसार :-

विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु , प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है । और विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नवीन विशेषताएं और योग्यताएं प्रकट होती हैं। 🌹 जूही श्रीवास्तव 🌹

🔆बालविकास (child development)🔆
बाल विकास का अर्थ है बालको का संपूर्ण विकास जन्म से मृत्यु तक चलता रहता है| विकास माता के गर्भ से शुरू शुरू हो जाता है जीवन पर्यंत तक चलता रहता है मानव का विकास किसी ना किसी रूप में हर दिन हर पल बदलता रहता है बाल विकास में बच्चों को क्या पढ़ाना चाहिए विषय का ज्ञान होना चाहिए और कैसे पढ़ाना है पहले हमें बच्चों को जानना हमें बच्चों को जानना होगा फिर उसकी परेशानियों को जानेंगे क्या परेशानी या समस्या है उसको दूर करेंगे |
बच्चों में भिन्नता का आधार –
🔹 सामाजिक भिन्नता के आधार पर
🔹 आर्थिक में भिन्नता के आधार पर
🔹 सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर
🔹 आयु समूह भिन्नता के आधार पर
सामाजिक पृष्ठभूमि से आर्थिक दृष्टि से आर्थिक स्थिति अलग अलग होती है सांस्कृतिक आयुसमूह से सारे बच्चों को पढ़ाना चाहिए यह शिक्षक का कर्तव्य होता है|
हर बच्चे की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं शिक्षक की जिम्मेदारी है
🔹 विशेषता
🔹योग्यता
🔹सभी बच्चे की समस्या
🔹क्षमता
विशेषता योग्यता सभी बच्चों को समस्या और उसकी क्षमता के अनुसार ध्यान में रखते हुए हमें बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए|
🔸अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लाएं ताकि एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सकें|
🔸राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें|
🔸 इसके लिए उस बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है|
वांछनीय परिवर्तन लाना है चाहे वह सामाजिक हो या सांस्कृतिक परिवर्तन लाना है और बच्चे को शिक्षित करना है|
शिक्षा ▪ शिक्षा औपचारिक या अनौपचारिक को बच्चों को आगे बढ़ाती है लेकिन बच्चों की प्रगति को अग्रसर करती है|
औपचारिक शिक्षा🔸 इसमें बच्चों को अनुशासन नियम कानून के साथ-साथ जो कार्य समय पर करता हैं वह औपचारिक शिक्षा कह लाती है|
अनौपचारिक शिक्षा🔸 कोई भी बालक जब किसी चीज या वस्तु के बारे में नहीं जानता है या किसी के बताने पर उस कार्य को करता है तो वह अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है|
किसी भी चीज को औपचारिक या अनौपचारिक कह सकते हैं शिक्षा पढ़ने या पढ़ाने का तरीका हो औपचारिक हो या अनौपचारिक दोनों ही बेहतर होते है बच्चों को आगे बढ़ाता है और शिक्षा दी जाती है|
*बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक को सबसे पहले बच्चे में वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य है|

  • बालक को सही दिशा निर्देशन देना|
  • उपर्युक्त शिक्षा इससे बच्चों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करेंगे
    बच्चे के विकास की प्रक्रिया है जो जन्म से पूर्व मां के गर्भ से प्रारंभ हो जाती है जिस समय वह घर में आता है तो विकास शुरू हो जाता है और जन्म के बाद विभिन्न आवश्यकताओं से गुजरती चली जाती है|
    .वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय है|
    .एक दूसरे से संबंधित है|
    .एक दूसरे पर निर्भर है या आधारित है|
    कई मनोवैज्ञानिक ने पृथ्वी के बारे में अपने मत दिए हैं ➖
    🔅 सोरेन्सन के अनुसार – अभिवृध्दि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है|
    🔅 फ्रेंक के अनुसार – अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है शरीर और व्यवहार में से पहले जिसमें जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृत्ति कहते हैं|
    🔅 हरलॉक के अनुसार – विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रौढ़ावस्था की लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है विकास के परिणाम स्वरुप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यताएं प्रकट होती है|
    Notes by- Ranjana Sen

🔆 बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र

बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र को तीन भागों में विभाजित किया गया है➖

🔅 बाल विकास
बाल विकास के अंतर्गत बालक के सर्वांगीण विकास का अध्ययन किया जाता है जोकि बालक के जन्म के पूर्व से लेकर जीवन पर्यंत तक चलता रहता है

समावेशी शिक्षा का अध्ययन
इसके अंतर्गत बच्चे को कैसी शिक्षा देनी है उसे उसे क्या समस्या है या उसकी क्या जरूरत है उसके अनुसार शिक्षा देना जो उसके लिए आवश्यक है तथा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान कर उनको समझना तथा उनकी आवश्यकता के अनुसार उनको शिक्षा देना यह समावेशी शिक्षा के अंतर्गत आता है |

शिक्षाशास्त्र

इसके अंतर्गत बच्चे की समस्या को समझ कर उसको सही रूप से शिक्षा देना कि उसको क्या जरूरत है क्या शिक्षण विधि अपनाने चाहिए और पाठ्यक्रम किस प्रकार का होना चाहिए जिससे शिक्षण किस प्रकार से प्रभाव कारी हो सकता है इसका अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है |

🔹 एक विद्यालय में सभी बच्चों में जो विभिन्नता का आधार है उसमें सभी बच्चे अलग अलग सामाजिक ,आर्थिक, सांस्कृतिक और अलग आयु वर्ग की पृष्ठभूमि से आते हैं जिन्हें शिक्षा देना होता है प्रत्येक बच्चे की अपनी विशेषता होती है चाहे वह सामाजिक ,आर्थिक ,या सांस्कृतिक हो उनकी जिम्मेदारी एक शिक्षक की है कि इनकी विशेषता योग्यता या उनकी समस्या को कैसे समझ कर आगे बढ़ाया जा सकता है उनको किस प्रकार की शिक्षा दी जा सकती है |

🔹 अर्थात प्रत्येक बच्चे की व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देना एक अध्यापक का परम कर्तव्य है |

🔹 अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लेकर आए ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सकें और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें|

🔹 इसके लिए आवश्यक है कि बच्चे को शिक्षित किया जाए | अर्थात बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा देना अनिवार्य है जो उसको प्रगति की ओर अग्रसर करती हो चाहे वह

  • औपचारिक हो
  • या अनौपचारिक हो |

औपचारिक शिक्षा
औपचारिक शिक्षा इस प्रकार की शिक्षा जिसमें समय और स्थान निर्धारित होते हैं जैसे स्कूल की शिक्षा |

अनौपचारिक शिक्षा
ऐसी शिक्षा जिसमें समय और स्थान निर्धारित नहीं होता है | अर्थात किसी भी समय पर शिक्षा दी जा सकती है चाहे वह किसी भी रूप में हो अर्थात जिसमें अनौपचारिक रूप से सीखते हों अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है | उदाहरण परिवारिक शिक्षा या घर में दी जाने वाली शिक्षा |

जो उसकी प्रगति को बढ़ाते हों |

🔹 किसी भी एक चीज को अनौपचारिक और औपचारिक दोनों क्षेत्र में पढ़ाया जा सकता है जो कि बच्चे की प्रगति का कार्य करते हैं |

बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए

🔹 यदि बच्चों में शिक्षा का विकास करना हो तो उनकी शिक्षा का विकास करने के लिए शिक्षक को बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य है जो कि बच्चे की वृद्धि और विकास में उसका सही दिशा निर्देशन ,या उपयुक्त शिक्षा से उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं |

🔹 बच्चे के विकास की जो प्रक्रिया है वह उसके जन्म के पूर्व से ही मां के गर्भ से प्रारंभ हो जाती है और जन्मे के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए चली जाती है |

🔹 वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय हैं या पूरक हैं जो एक दूसरे से संबंधित है तथा एक दूसरे पर निर्भर है |
जैसे यदि हाथ में चोट लगती है तो उससे विकास भी प्रभावित होता है विकास गर्भ से लेकर मृत्यु तक चलता है विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है एवं वृद्धि कुछ समय के पश्चात स्थिर हो जाती है |

🔹 वृद्धि और विकास के संबंध में कई मनोवैज्ञानिकों ने अपने अपने विचार या मत प्रस्तुत किए हैं जो कि निम्नानुसार है➖

🔅 सोरेन्सन के अनुसार

अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है |

जब भी हम वृद्धि की बात करते हैं तो उसमें शरीर के पूरे आकार में वृद्धि होती है |

🔅 फ्रैंक के अनुसार अभिवृद्धि का प्रयोग कोशिय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है अर्थात शरीर और व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं जैसे उम्र के अनुसार शरीर में कई परिवर्तन होते हैं जो व्यवहारिक और शारीरिक दोनों प्रकार के होते हैं |

वृद्धि परिवर्तन है जो कि कुछ समय के पश्चात रुक जाती है लेकिन विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो परिपक्वता की ओर संकेत करती है |

🔅 हरलॉक के अनुसार
विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है बल्कि प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम है और विकास के परिणाम स्वरुप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यताएं प्रकट होती हैं |

अर्थात विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जोकि वृद्धि तक सीमित नहीं है बल्कि वह परिपक्वता की ओर ले जाती है जोकि प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य पर निर्भर करता है कि हम कैसा जीवन यापन करना चाहते हैं जो हमारा लक्ष्य है उसे पाने के लिए हम जो भी करना चाहते हैं उसके परिणाम स्वरूप जो परिवर्तन होता है वह विकास है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚

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🌺 बाल विकास🌺

🌱 बाल विकास अर्थात बालक का विकास बच्चे के जन्म से पूर्वगर्भावस्था के दौरान ही शुरू हो जाता है जन्म लेने के बाद विभिन्न अवस्थाओं में जीवन पर्यंत चलता रहता है

🌱 बाल विकास के अंतर्गत एक शिक्षक को बच्चे को कैसे पढ़ाना है ,
उसको जानना होगा जिस को पढ़ाना है ,और क्या पढ़ाना है उसकी परेशानी को देखना पड़ेगा इन सब बातों को ध्यान में रखकर शिक्षक बच्चों को पढ़ाएंगे तो बच्चे का सर्वांगीण विकास होगा

🌱 बच्चे अलग-अलग प्रकार के होते हैं सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आयु समूह के होते हैं
शिक्षक की जिम्मेदारी है- बालकों की विशेषता, योग्यताएं ,समस्या ,क्षमता इन सब का ध्यान रखें एक अच्छे शिक्षक का यह दायित्व है कि बच्चों में वांछनीय परिवर्तन लाएं ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें
इसके लिए उस बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है

🌱 शिक्षा दो तरह से दी जाती है एक औपचारिक दूसरी अनौपचारिक
1- औपचारिक शिक्षा– इस शिक्षा के अंतर्गत नियम कानून के तहत शिक्षा दी जाती है जैसे स्कूली शिक्षा, college की शिक्षा आदि
2– अनौपचारिक शिक्षा—- इस शिक्षा के अंतर्गत नियम कानून नहीं होता किसी प्रकार की पाबंदी नहीं होती इस प्रकार की शिक्षा को बच्चे मोबाइल ग्रुप में आदि के माध्यम से सीखते हैं घर तथा खेल के मैदान धार्मिक स्थल या फ्रेंड से सीखना आदि

अर्थात हर चीज को औपचारिक और अनौपचारिक रूप में शिक्षा दे सकते हैं
🌱 बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए शिक्षक को सबसे पहले बच्चे के वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को अच्छी तरह से समझ ना अनिवार्य होता है
2 तरह से व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं
1– सही दिशा निर्देशन द्वारा
2– उपयुक्त शिक्षा द्वारा

🌱 विकास-/ विकास की प्रक्रिया बच्चे में जन्म के पूर्व मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरती चली जाती है
🌱 वृद्धि और विकास मैं अंतर

# विकास गुणात्मक होता है जबकि वृद्धि मात्रात्मक होती हैं

वृद्धि और विकास एक दूसरे से संबंधित होते हैं

वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर होते हैं

वृद्धि और विकास एक दूसरे के पूरक होते हैं

विकास निरंतर चलता है जबकि वृद्धि निश्चित समय पर रुक जाती है

विकास को मापा नहीं जा सकता महसूस किया जाता है जबकि वृद्धि को मापा जा सकता है

🌱 सोरेनसन के अनुसार अभिवृद्धि–/ अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उनके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है
🌱 फ्रैंक के अनुसार अभिवृद्धि–/ अभिवृद्धि का प्रयोग कोसीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है शरीर और व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं

🌱 हरलॉक के अनुसार विकास–/ विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील kram है
विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यता प्रकट होती है!

🌺 समाप्त🌺

♦️ रितु योगी♦️
🙏🏻 धन्यवाद🙏🏻

▪बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र ▪ बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र को हमें निम्नलिखित तीन रूप में जानना है 👉 बाल विकास :- बच्चों को शिक्षा देने के लिए हमें उन को जानना होगा समझना होगा कि बच्चों को कैसे और किस तरीके से पढ़ाया जाए ताकि उनका संपूर्ण विकास हो सके इसके लिए हमें बाल विकास का अध्ययन करना आवश्यक है । क्योंकि बाल विकास का अध्ययन करने के बाद ही हम किसी बालक की मनोवृत्ति को समझ पाएंगे और उसको उसकी जरूरत के हिसाब से शिक्षा दे पाएंगे इसलिए बाल विकास का अध्ययन करना आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है । 👉समावेशी शिक्षा:- बालक को शिक्षित करने के लिए हमें समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है इसमें बालक को अगर कोई समस्या है उसे कोई विशेष आवश्यकता है उस समस्या को हमको जानना है और उसकी जरूरत के हिसाब से उसको शिक्षा देना है 👉 अधिगम और शिक्षाशास्त्र :- अधिगम और शिक्षा शास्त्र में बच्चे की परेशानी को समझते हैं फिर हम यह सुनिश्चित करते हैं कि बालक को हमें किस तरीके से पढ़ाना है और कैसे बढ़ाना है अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि हमें बाल केंद्रित शिक्षा देनी हैं बच्चा जिस प्रकार खेलने में रूचि लेता है उसी प्रकार पढ़ाई में भी रुचि ले हमको ऐसी गतिविधियों और तरीकों को अपनाना हैं यही शिक्षा शास्त्र है । अर्थात यदि शिक्षक को छात्र के बारे में जानकारी होगी तो उसको और उसकी मानसिकता को समझने में मदद मिलेगी फिर हम उसको उसकी जरूरत के हिसाब से वह जैसे समझता है उस हिसाब से पढ़ा पढाएगें। 👉बच्चों को कैसे और किस तरह पढ़ाया जाए उनको पढ़ाने के लिए कौन सी विधियां ,टेक्निक सही होगी एक शिक्षक को यह जानना अनिवार्य हैं। **** सामान्यतया देखा गया है कि जो भी बच्चे होते हैं अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं जैसे – सामाजिक ,आर्थिक सांस्कृतिक और आयु समूह इन सभी बच्चों की अलग-अलग विशेषताएं योग्यताएं और क्षमता होती हैं इन सब को हमें ध्यान में रखकर शिक्षा देना हैं। 👉 अध्यापक का यह दायित्व है कि वह बच्चे में बांछनीय परिवर्तन लाए ताकि वह एक अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभा सके और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें इसलिए बच्चों को शिक्षित करना अनिवार्य है बच्चों को शिक्षित करने के लिए हम औपचारिक या अनौपचारिक या विषय वस्तु से संबंधित हैं जो उस बच्चे के लिए उपयुक्त है अतः हम बच्चे को औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों शिक्षा दी जाती है बच्चे की प्रगति को हमें आगे बढ़ाना है वह चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक 👉 बच्चों में शिक्षा का विकास करने के लिए एक शिक्षक सबसे पहले बच्चे की वृद्धि और विकास के सभी पहलुओं को समझना अनिवार्य हैं। बच्चों को सही दिशा निर्देश एवं उपयुक्त शिक्षा देकर बच्चे के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं । 👉 बच्चे की विकास की प्रक्रिया जन्म के पूर्व मां के गर्भ से शुरू हो जाती है और जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए चला जाता है 🌟 वृद्धि और विकास एक दूसरे के पर्याय हैं ( वृद्धि और विकास एक दूसरे पर निर्भर हैं ,,वृद्धि विकास एक दूसरे से संबंधित हैं 👉 सोरेन्सन के कथना अनुसार : – अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि करने के लिए किया जाता है। 👉 फ्रेंक के कथनानुसार :- अभिवृद्धि का प्रयोग कोशीय वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त होता है । शरीर और व्यवहार में से पहले जिस में जो परिवर्तन होता है उसे अभिवृद्धि कहते हैं । वृद्धि – फिजिकल डेवलपमेंट जिस में शारीरिक विकास होता है विकास इसमें मनुष्य धीरे धीरे परिपक्वता की ओर बढ़ता है **** विकास गर्भ से मृत्यु तक चलता है । हरलाँक के कथन अनुसार :- विकास की सीमा वृद्धि तक सीमित नहीं है अपितु प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम हैं। विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएं और योग्यताएं प्रकट होती हैं । धन्यवाद ✍️ notes by pragya shukla….

Basics and the speciality of mentally retarded children notes by India’s top learners

📖 मंद बुद्धि बालक 📖
( Mentally retarded children)

🎯 मंद बुद्धि बालकों के कुछ सामान्य लक्षण 🎯

⚡ शैक्षिक दृष्टिकोण ⚡

  1. बालक में सूझ बूझ की कमी होती है, वह किसी भी तथ्य के प्रति सोच समझ नहीं पाता है।
  2. मंदबुद्धि बालक में किसी भी कार्य को करने के प्रति क्षमता कम होती है। बालक में इतनी क्षमता का विकास नहीं होता है, जितना कि किसी कार्य को करने के लिए उचित हो।
  3. मंदबुद्धि बालकों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता भी कम पाई जाती है। वह विषय वस्तु पर अधिक समय तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।

🌺🌺 A A M D – American association of mental deficiency 🌺🌺
( मानसिक कमी का अमेरिकी संघ)
इनके द्वारा मंद बुद्धि बालकों की परिभाषा ~
मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है। जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ-साथ ही पाई जाती है, जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है।

🌻🌿🌻 मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं 🌻🌿🌻

🍂🍃 बौद्धिक न्यूनता~ मंदबुद्धि वालों को में बौद्धिक न्यूनता के अंतर्गत निम्नलिखित बातें हैं:-
🌿 निम्न शैक्षिक स्तर~
मंदबुद्धि छात्रों का शैक्षिक स्तर बहुत ही कम होता है, वह शिक्षा के क्षेत्र में अधिक प्रगति नहीं कर पाते हैं।

🌿 बुद्धि लब्धि 70 से कम~
मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है।
( हम सभी जानते हैं कि टर्मन के अनुसार मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से 89 के बीच होती है। लेकिन इस बीच में बालक में संभावना रहती है, कि वह उन्नति भी कर सकता है, और अवनति भी कर सकता है। इसलिए हम यह कह सकते हैं, कि मंदबुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है।)

🌿 अधिक विस्मरण~
मंदबुद्धि बालको में विषय वस्तु को याद रखने की अधिक क्षमता नहीं पाई जाती है। वह किसी चीज को अधिक समय तक स्मरण नहीं रख पाते हैं, जिसके कारण इन बालकों में अधिक विस्मरण की शक्ति जन्म ले लेती है।

🌿 दूसरो से सहायता की अपेक्षा ~
यह बालक अपने कार्यों को स्वयं करने की शक्ति नहीं पाते हैं, बल्कि अपने कार्यों की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों एवं अन्य साथियों की सहायता पर आश्रित रहते हैं। वह यह सोचते हैं, कि हम इस कार्य को न करके अन्य व्यक्ति की सहायता से पूर्ण कर पाए हैं। अतः हम कह सकते हैं, कि मंदबुद्धि बालक दूसरों से सहायता की अपेक्षा रखते हैं।

🍂🍃 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं~ अनियंत्रित मानसिक क्रियाओं के अंतर्गत कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-
🍁 मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण न होना~
मंदबुद्धि बालको का अपनी मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है। वह अपने मस्तिष्क की क्रियाओं को अपने अनुसार किसी कार्य के प्रति नहीं लगा पाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि बालकों की मानसिक क्रिया नियंत्रित होती है।

🍁 अवधान (Attention) को केंद्रित नहीं करना~
मंदबुद्धि बालक अपने ध्यान को केंद्रित नहीं कर पाते हैं। किसी एक विषय वस्तु पर अपने ध्यान को नहीं लगा पाते हैं, जिसके कारण कार्य या विषय वस्तु संपूर्ण नहीं होता है। अतः हम कह सकते हैं, कि मंदबुद्धि बालक में अवधान को केंद्रित करने की क्षमता नहीं पाई जाती है या कम पाई जाती है।

🍁 ध्यान के विस्तार में कमी~
मंदबुद्धि बालकों में अवधान को केंद्रित करने की क्षमता नहीं पाई जाती है। जिससे कि वह अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं, एवं जिसके चलते वह अपने ध्यान के विस्तार में भी कमी पाते हैं, वह अपने ध्यान का विस्तार नहीं करते हैं। जिसके कारण वह अपनी समस्या समाधान नहीं कर पाते हैं।

🍁 सीमित शब्द भंडार~
मंदबुद्धि बालकों के शब्द भंडार अधिक विस्तृत नहीं होता है, बल्कि सीमित शब्द भंडार होता है। उनके शब्दकोश में अधिक शब्द नहीं होते हैं, जिसके कारण उनका शब्द भंडार सीमित ही रह जाता है।

🍂🍃हीन व्यक्तित्व ~ मंदबुद्धि बालक का व्यक्तित्व हीन भावना का होता है जिस के संबंध में कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित है:-
🌻 उदासीन/खिल मिजाज~
मंदबुद्धि बालकों का व्यक्तित्व हीन भावना से ग्रसित होता है। जिसके कारण उन बालकों में उदासीनता होने लगती है। वह अपने व्यक्तित्व के कारण किसी कार्य को नहीं कर पाते हैं, जिससे कि उनमें उदासीनता आ जाती है।।

🌻 कुछ भी कार्य करने में शिथिलता~
बालक किसी भी कार्य को करते हैं, या किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान करते हैं। तो वह इस में शिथिलता का अनुभव करते हैं। क्योंकि वह उस कार्य को पूर्ण नहीं कर पाते हैं, और कार्य को पूर्ण न करने का कारण उनका हीन व्यक्तित्व होता है। जिससे कि कार्य की पूर्ति न होने पर या समस्या का समाधान न होने पर बालको में शिथिलता आ जाती है।

🌻 उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करना~
मंदबुद्धि बालक अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं कर पाता है, क्योंकि उसका बौद्धिक स्तर निम्न होता है। उसमें अधिक विस्मरण शक्ति पाई जाती है एवं अवधान केंद्रित नहीं कर पाता है। जिससे कि वह अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं कर पाता है। जिसके कारण वह हीन व्यक्तित्व का हो जाता है, और अपने उत्तरदायित्व को पूर्ति न होने पर उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।

🍂🍃 शैक्षिक पिछड़ापन~ मंदबुद्धि बालक शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए होते हैं, जिसके संबंध में कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-
🌺 मंदबुद्धि बालक में शैक्षिक उपलब्धि न के बराबर होती है, वह शिक्षा से संबंधित कार्यों को नहीं कर पाता है।

🌺 मंदबुद्धि बालकों के लिए शिक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत दिए गए कार्य काफी कठिन होते हैं, क्योंकि वह इन कार्यों को करने में सक्षम नहीं होते हैं। जिससे कि उन्हें लगता है, कि शिक्षण कार्य अत्याधिक कठिन है।

🌺 यह बालक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं, इनके ध्यान के विस्तार में कमी होती है। जिसके कारण यह रटने की प्रवृत्ति को अपनाते हैं। एवं समस्या समाधान के लिए यह रटन प्रणाली का सहारा लेते हैं, कुछ समय के लिए तो इन बालकों में रटने की प्रवृत्ति भी नहीं पाई जाती है

🌺 मानसिक आयु, शारीरिक आयु से कम होती है, क्योंकि यह बालक अपनी शारीरिक आयु की क्षमता के अनुसार भी मानसिक कार्य नहीं कर पाते हैं।अतः हम कह सकते हैं, कि इन में बालकों का मानसिक स्तर उनके शारीरिक स्तर के अनुसार अत्यधिक निम्न होता है।

🍂🍃 सीमित प्रेरणा और संवेग ~ इन बालकों में प्रेरणा, प्रोत्साहन और संवेग सीमित मात्रा में ही होता है। जिनमें से कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-

🌿 कल्पना शक्ति से रहित होते हैं क्योंकि यह बालक गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण इनमें कल्पना शक्ति का विकास नहीं होता है। यह अमूर्त चिंतन से विषय वस्तु के प्रति सोच नहीं पाते हैं।

🌿 इन बालकों में प्रेरणा व प्रोत्साहन बहुत ही साधारण एवं सीमित होता है। वह किसी भी विषय वस्तु को लेकर अधिक प्रेरित नहीं हो पाते हैं, क्योंकि वह किसी भी प्रकार की समस्याओं का समाधान स्वयं से करना ही नहीं चाहते हैं। वह दूसरों की सहायता लेने के लिए आश्रित होते हैं।

🌿मस्तिष्क में सूझ बूझ व जिज्ञासा ~
इन बालकों के मस्तिष्क में सूझ बूझ नहीं होती है, वह किसी विषय वस्तु को समझ नहीं पाते हैं, और न ही उस पर चिंतन कर पाते हैं। जिसके चलते इनमें जिज्ञासा भी कम ही पाई जाती है। या हम कह सकते हैं, कि जिज्ञासा भी नहीं पाई जाती हैं। यह बालक जिज्ञासु प्रवृत्ति के नहीं होते हैं।

🌿 क्रोध व मोह, लोभ इत्यादि संवेग से वंचित ~
मंदबुद्धि बालक को क्रोध मोम एवं लो इत्यादि संविधान से किसी भी प्रकार का फर्क नहीं पड़ता है, वह इन सभी संवेगो से वंचित रहना चाहते हैं।

🍂🍃कुसमायोजन की स्थिति ~ मंदबुद्धि बालक में समायोजन की स्थिति कम पाई जाती है जिस के संबंध में मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-

🍁 निम्न स्तर का समायोजन~
बालको में समायोजन करने की क्षमता बहुत ही निम्न स्तर की पाई जाती है। वह अगर किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, तो समायोजन नहीं कर पाते हैं। अतः इस आधार पर हम कह सकते हैं, कि मंदबुद्धि वालों को में समायोजन की क्षमता कम पाई जाती है।

🍁 सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं~
मंदबुद्धि बालक अपने आपको समाज के वातावरण में समायोजित नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण वह सामाजिक व्यवहारों से अनभिज्ञ रहते हैं। समाज के वातावरण के साथ व्यस्त समय व्यतीत करना या सामाजिक कार्यों में सम्मिलित होना नहीं चाहते हैं।

🍁उचित, अनुचित का ज्ञान न होना~
इन बालकों में विषय वस्तु के प्रति क्या उचित है, एवं क्या उसके लिए अनुचित है। इस बात का निर्णय नहीं ले पाते हैं। वह यह समझ ही नहीं पाते, कि क्या सही है और क्या गलत है। अतः हम यह कह सकते हैं, कि बालक को सत्य-असत्य, सही-गलत, उचित-अनुचित, का ज्ञान नहीं होता है।

🍁 समूह में समायोजन नहीं कर पाना~
बालक अपने समूह में समायोजन नहीं कर पाता है। चाहे वह समूह उसके खेल के मैदान का समूह या फिर उसकी कक्षा का समूह हो। वह अपने इस समूह के साथ अनुकूलित व्यवहार नहीं कर पाता है, क्योंकि मंदबुद्धि बालक में कुछ समायोजन की क्षमता पाई जाती है। वह वातावरण के प्रति समायोजन नहीं कर पाते हैं।

🍂🍃 असामान्य शारीरिक संरचना~ मंदबुद्धि बालकों की शारीरिक संरचना सामान्य से कुछ भिन्न होती है, जिसका वर्णन मुख्य बिंदु के माध्यम से निम्न लिखित है:-

🌻 मंदबुद्धि बालकों का शारीरिक गठन सामान्य बालकों से भिन्न होता है। जैसी शारीरिक संरचना सामान्य बालको की होती है, उस तरह की संरचना मंदबुद्धि बालको में नहीं पाई जाती है। बल्कि किसी न किसी रूप में भिन्नता होती है।

🌻 भिन्नता सामान्य से~
मंदबुद्धि बालक का कद अधिकतर छोटा होता है। कुछ सीमा तक इन बालकों के पैर छोटे एवं त्वचा मोटी होती है।यह लक्षण सामान्यतः मंदबुद्धि बालको में देखे गए हैं। जिसके आधार पर हम यह कह सकते हैं, कि यह बालक सामान बालकों की तुलना में भिन्न होते हैं। न सिर्फ मानसिक स्तर पर बल्कि शारीरिक स्तर पर भिन्नता पाई जाती है।

🌻 मंदबुद्धि बालको का चेहरा उदास होता है। इन बालकों के चेहरे में अधिकतर उदासीनता ही पाई जाती हैं, यह बालक उदासीपन से ग्रसित होते हैं।

🌻 इन बालकों के शारीरिक अंगों में शिथिलता होती है।

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻
📗 समाप्त 📗
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🔆 मंदबुद्धि बालक ( Mentally Retarded Children) ➖

🔹ऐसे बालक जो सामान्य बालको से किसी न किसी रूप से पिछड़े होते हैं चाहे वह मानसिक तौर पर हो यहां शैक्षिक तौर पर हो पिछड़े बालक कहलाते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 90 से कम होती है |

🔹शैक्षिक दृष्टिकोण के अनुसार उनकी
उनकी सूझबूझ की क्षमता कम होती है |
किसी चीज को सीखने की क्षमता कम होती है |सीखने की प्रति नहीं होती है |
ध्यान केंद्रण की क्षमता भी कम होती है अर्थात किसी कार्य को करने में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं या एकाग्रता में कमी होती हैं |

🔹 मंदबुद्धि बालकों के संबंध में AAMD (American Association Of Mental Dificiency) ने परिभाषा दी इनके अनुसार
” मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूल व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय ही स्फुटित होती है | “

अर्थात् एक औसत बच्चा अपनी बुद्धि से कार्य करता है तो ये उस बालक कम ही कार्य कर पाते हैं उनको अनुकूलन की समस्या होती है विकास के समय | और यही से दोष उत्पन्न हो जाता है |

💫 मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं➖ इन की विशेषताएं निम्नलिखित हैं

🔅 बौद्धिक न्यूनता ➖

(1) निम्न शैक्षिक स्तर ➖
इनका शैक्षिक स्तर बहुत ही कम होता है सामान्य बालकों की तुलना में शैक्षिक स्तर किसी न किसी कारणों से पीछे हो जाते हैं हैं या किसी प्रकार से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं |

(2) न्यूनतम बुद्धि लब्धि ➖
ऐसी बालकों की बुद्धि लब्धि सामान्य बालकों की तुलना में बहुत ही कम होती है लगभग 70 से नीचे |

(3) अधिक विस्मरण ➖
भूलने की शक्ति तेज होती है किसी भी चीज को या शिक्षा के क्षेत्र में कुछ भी अधिक समय के लिए याद नहीं कर पाते हैं या याद किया हुआ भी भूल जाते हैं भूलते तेज गति से हैं |

(4) दूसरों की सहायता की अपेक्षा ➖
दूसरों की सहायता की आशा करते हैं अपने ऊपर विश्वास कम रहता है या कम आत्मविश्वास ही होते हैं |

🔅 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं ➖
वे मानसिक रूप से क्रियाएँ करते हैं जो कि अनियंत्रित होती हैं
उनकी क्रियाएँ नियंत्रित नहीं होती है अर्थात

(1)मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता है ➖
जो मानसिक क्रियाएं करते हैं उन पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं उनका मन का क्रिया पर नियंत्रण नहीं नहीं कर पाता है |

(2) अवधान को केंद्रित नहीं करना ➖
इनके मस्तिष्क में सही संदेश नहीं जा पाता है करते करते भूल जाते हैं |

(3) ध्यान के विस्तार में कभी ➖
ऐसे बालकों के ध्यान करने का जो विस्तार है उसमें कमी होती है अर्थात पूर्व ज्ञान से वर्तमान ज्ञान को जोड़ने में कमी होती है ध्यान की क्षमता में कमी होती है |

(4) सीमित शब्द भंडार ➖
इनका शब्द भंडार बहुत ही कम होता है जिससे किसी चीज के बारे में नहीं बोल पाते हैं ध्यान नहीं रहने के कारण ऐसा होता है दूसरों के सामने अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर पाते हैं |

(5) हीन व्यक्तित्व ➖
किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व ही हीन है तो वह व्यक्ति किसी भी कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाता है जिससे वह

(1) उदासीन या खिन्न मिज़ाज के होना ➖
किसी चीज में आकर्षण ,रुचि या किसी कार्य को करने का साहस नहीं होता है जो कि बहुत ही गलत बात है|

(2) कुछ भी कार्य करने में शिथिल होते हैं ➖
कार्य करने का मन नहीं होता यह सुस्त होते हैं आलसी होते हैं सक्रिय नहीं रहते हैं |

(3)स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता का ना होना ➖
किसी बिंदु के बारे में विचार व्यक्त नहीं कर पाते हैं सदैव असमंजस की स्थिति में रहते हैं|

(4) उत्तरदायित्व कि पूर्ति नहीं करना ➖
स्वयं के प्रति जिम्मेदार नहीं होते हैं क्योंकि अपने दायित्व के प्रति सहज नहीं रहते हैं |

🔅 शैक्षिक पिछड़ापन ➖
जो किसी न किसी प्रकार से शिक्षा में पीछे हों जैसे

(1) शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर|

(2) इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है |

(3) इनकी रटने की प्रवृत्ति कम होती है क्योंकि वे समझ ही नहीं पाते रटा हुआ भी याद नहीं रहता है |

(4)इनकी मानसिक आयु, शारीरिक आयु से कम होती है जो उम्र के अनुसार कम होती है जैसे कि कोई बच्चा 15 वर्ष का है तो उसमें 15 वर्ष की बुद्धि नहीं रहती है और पिछड़े होते हैं |

🔅 सीमित प्रेरणा और संवेग ➖
ऐसे बच्चे की प्रेरणा और संवेग में कमी होती है किसी कार्य को करने की प्रेरणा या उस कार्य के प्रति कल्पनाशील नहीं होते हैं| जैसे

(1) कल्पना शक्ति से रहित होते हैं कल्पना शक्ति बहुत कम होती है उनके किसी कार्य के प्रति संवेग ही नहीं होते हैं कि वे उसको सोच पाए और उस कार्य को कर पाए |

(2) प्रेरणा साधारण और सीमित |
(3) मस्तिष्क शुष्क /जिज्ञासा की कमी उनको किसी कार्य उत्सुकता ही नहीं रहती है |

(4) क्रोध ,लोभ, मोह इत्यादि के संवेग से भी वंचित रहते हैं उनको किसी कार्य के प्रति संवेग ही नहीं रहता है तो उस कार्य के प्रति उत्सुक भी नहीं रहते हैं उन्हें उम्मीद ही नहीं रहती है कि वे उसके कार्य को कर भी सकते हैं उसके लिए मोह ही नहीं रहता है तो वे क्रोध भी से भी वंचित रह जाते हैं |

🔅 कुसमायोजन की स्थिति➖
किसी कार्य को करते समय उसको संगठित नहीं कर पाते हैं जिससे

(1)उनका निम्न स्तर का समायोजन रहता है परिस्थिति को समझ नहीं पाते हैं और स्वयं समायोजित नहीं कर पाते हैं |

(2) सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं समाज के व्यवहार को नहीं समझ पाते ,उन्हें पता ही नहीं रहता कि क्या करना है |

(3)उचित / अनुचित का ज्ञान नहीं उन्हें सही या गलत का पता नहीं रहता अंतर समझ नहीं पाते हैं या अंतर समझ नहीं आता है |

(4) समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं उनको यह पता ही नहीं रहता है कि किसके साथ कैसा व्यवहार करना है |

🔅 असामान्य शारीरिक संरचना शारीरिक संरचना में सामान्य बच्चे से भिन्न होते हैं जैसे,

(1)सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन होता है |

(2) कद नाटा, पैर छोटा, और त्वचा मोटी होती है |

(3)उदास चेहरा होता है |

(4) शारीरिक अंग शिथिल होते हैं| और ज्ञानेंद्रियां ठीक से कार्य नहीं करती हैं |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙨𝙖𝙫𝙡𝙚


🔰मंदबुद्धि बालक🔰

मंद गति से सीखने वाले बालक ऐसे बच्चे होते हैं जिनके बुद्धि लब्धि औसत से कम होती है ऐसे बालकों के विचारशीलता की क्षमता संवेदना का विकास अपेक्षाकृत कम होता है मंद गति से सीखने वाले बालक विद्यालय के कार्य सामान्य रूप से प्रगति करने में असमर्थता दिखाते हैं जब उनकी तुलना उन्हीं की आयु के समकक्ष बच्चों से की जाती है तो उन्में शैक्षिक कमी दृष्टिगत होती है 🙏 शैक्षिक दृष्टिकोण🙏

1 सूझ बूझ :- मंद बुद्धि बालक की सूझबूझ की सामान्य बालको से कम होती है

2 क्षमता:- मंदबुद्धि बालक की क्षमता सामान्य बुद्धि बालक से कम होती है

3 ध्यान केंद्रित:- मंदबुद्धि बालक में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बहुत कम होती है

AAMD American Association of mental deficiency इन्होंने मंदबुद्धि बच्चे की परिभाषा दी

AAMD ” मानसिक मंदन मुख्य रूप से और औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है”

अर्थात् एक औसत बच्चा जितना कर सकता है उससे कम मंदबुद्धि बालक करता है

1 बौद्धिक न्यूनता

a निम्न शैक्षिक स्तर:- मंदबुद्धि बालक शैक्षिक स्तर निम्न होता है बस सीखने में बहुत अधिक समय लेते हैं

b बुद्धि लब्धि <70 :- मंदबुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है

c अधिक विस्मरण:- मंदबुद्धि बालक अधिक विस्मरण होते हैं मंदबुद्धि बालक किसी भी चीज को याद तो कर लेते हैं परंतु वह जल्दी भूल जाते हैं

d दूसरों की सहायता की अपेक्षा:- मंदबुद्धि बालक दूसरों से सहायता लेने की अपेक्षा रखता है वह स्वयं में आत्मनिर्भर नहीं होता

2 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं :-

a मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है

b अवधान( अटेंशन )को केंद्रित नहीं करता:- मंदबुद्धि बालक में किसी कार्य में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बहुत कम होती है वह कार्य को करते करते भूल जाता है

c मंदबुद्धि बालकों के ध्यान में विस्तार में कमी होती है

d सीमित शब्द भंडार:- मंदबुद्धि बालकों में शब्द सीमा की कमी होती है उन्हें क्या बोलना है कैसे बोलना है यह स्पष्ट रूप से समझ नहीं आता

3 हीन व्यक्तित्व

a उदासीन या खिन्न मिजाज का होना:-
मंदबुद्धि बालकों में किसी भी कार्य के प्रति आकर्षण नहीं होता रुचि नहीं होती है किसी भी कार्य को करने का उन्हें साहस नहीं होता है ऐसे बच्चे चिड़चिड़े भी होते हैं

b कुछ भी कार्य करने में शिथिल:- मंदबुद्धि बालक किसी भी कार्य करने में शिथिलता दिखाते हैं किसी भी कार्य को करने में आलस्य दिखाते हैं यदि वह किसी कार्य को करते भी हैं तो वह ध्यान से नहीं करते किसी भी चीज को हाथ से गिरा देते हैं

c स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना:- मंदबुद्धि बालकों में अपने विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती शब्दकोश कम होने के कारण उन्हें यह पता नहीं होता कि कौनसी सी बात किस ढंग से सही जाए

d उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते:- मंदबुद्धि बालक किसी भी कार्य को अपनी जिम्मेदारी से नहीं करते वह अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझते

4 शैक्षिक पिछड़ापन
a मंदबुद्धि बालकों में शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है

b मंदबुद्धि बालकों के लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है

c मंदबुद्धि बालकों की मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है

5 सीमित प्रेरणा और संवेग
a कल्पना शक्ति से रहित:- मंदबुद्धि बालक में कल्पना शक्ति की कमी होती है वह किसी भी चीज पर अपने कल्पनात्मक सकती को नहीं दिखा सकते
b प्रेरणा साधारण और सीमित:- मंदबुद्धि बालकों की प्रेरणा साधारण और सीमित होती हैं

c मस्तिष्क सूझ और जिज्ञासा

d मंदबुद्धि बालक क्रोध लोभ मोह इत्यादि के संवेग से वंचित रहते है

6 कुसमायोजन की स्थिति:- a मंदबुद्धि बालकों में निम्न स्तर का समायोजन होता है वह हर जगह पर अपने आप को सामंजस्य की स्थिति मैं नहीं ढाल सकते अर्थात वह हर जगह पर समायोजन नहीं कर सकते

b मंदबुद्धि बालक सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ होते हैं

c मंदबुद्धि बालकों में उचित अनुचित का बोध नहीं होता है वह बिना सोचे समझे कुछ भी बोल सकते हैं

d मंदबुद्धि बालक समूह में समायोजन नहीं कर पाते

7 मंदबुद्धि बालकों की असामान्य शारीरिक संरचना

a सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन
b कद नाटा पर छोटा त्वचा मोटी होती है
c चेहरा उदास होता है
d शारीरिक अंग शिथिल होते हैं

🙏🙏 sapna sahu 🙏🙏🙏


🌈🌈 मंदबुद्धि बालक🌈🌈

ऐसे बालक जो शैक्षिक दृष्टिकोण से जिन बच्चे की सूझबूझ तेज नहीं होती है किसी भी चीज को समझने की क्षमता कम होती है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती है ऐसे बच्चों को मंदबुद्धि वाला कहते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 90 से कम होती है और मानसिक गति की क्षमता भी कम होती है यह मंदबुद्धि बालक की श्रेणी में आते है
🎯A A M D-( American association of mental deficiency)
मानसिक कमी का अमेरिकन संघ ने मंदबुद्धि बालक की परिभाषा दी
” मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूलन व्यवहार के संबंधी दोषों के साथ-साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है”
🍁🍁 मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं

⭐ बौद्धिक न्यूनता :-

🌺 मंदबुद्धि बालकों में शैक्षिक स्तर की कमी होती है वह शिक्षा के क्षेत्र में अधिक प्रगति नहीं कर पाते हैहै

🌺 मंदबुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है लेकिन इस बीच में बालक की संभावना रहती है कि वह उन्नति भी कर सकता है

🌺 मंदबुद्धि बालक में विशाल को याद करने की क्षमता कम पाई जाती है वह किसी भी चीज को ज्यादा समय तक स्मरण नहीं रखता है विस्मरण की शक्ति अधिक होती है

🌺 मंदबुद्धि बालक दूसरों की सहायता की अपेक्षा करते हैं वह अपने काम सब नहीं कर पाते हैं बल्कि अपने कार्यों की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों सहायता पर आश्रित रहते है

⭐ अनियंत्रण मानसिक क्रियाएं

🌺 मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण न होना –
मंदबुद्धि बालकों में अपनी मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है वह अपने मस्तिष्क की क्रियाओं को अपने अनुसार कार्य नहीं कर पाते हैं

🌺 अवधान को केंद्रित नहीं करना –
मंदबुद्धि बालक अपने ध्यान को केंद्रित नहीं कर पाते हैं वह किसी काम को करते – करते भूल जाते हैं जिसके कारण कार्य वस्तु संपूर्ण नहीं होता अच्छा हम कह सकते हैं कि मंदबुद्धि बालक मे अवधान को केंद्रित करने की क्षमता नहीं पाई जाती है

🌺 ध्यान के विस्तार में कमी :–
मंदबुद्धि बालक में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते है जिसके कारण वह अपनी समस्या समाधान नहीं कर पाते है

⭐ हीन व्यक्तित्व:–

🌺 उदासीन :- मंदबुद्धि बालक का व्यक्तित्व हीन भावना से ग्रसित होता है जिसके कारण वह उदासीनता होने लगती है वह अपने व्यक्तित्व के कारण किसी कार्य को नहीं कर पाते है

🌺 कुछ भी कार्य करने में शिथिल :–
मंदबुद्धि बालक किसी भी कार्य को करते समय किसी प्रकार की समस्या का समाधान करते है तो वह इसमें शिथिलता का अनुभव करते है

🌺 स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना :–
मंदबुद्धि बालक में अपने विचार को व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती है वह किसी भी प्रकार के विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं रखते है

🌺 उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते है:–
मंदबुद्धि बालक अपने दायित्व को पूर्ति नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनका बौद्धिक स्तर निम्न होता है जिसके कारण वह अपने दायित्व की पूर्ति नहीं कर पाते हैं और आत्मविश्वास की कमी होती है

⭐ शैक्षिक पिछड़ापन

🌺 शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर:-
मंदबुद्धि बालक में शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है वह शिक्षा से संबंधित कार्य नहीं कर पाते हैं

🌺 इन बालकों के लिए शैक्षिक कार्य काफी कठिन होता है क्योंकि वह इन कार्यों को करने में सक्षम नहीं होते

🌺 रटने की प्रवृत्ति :-
मंदबुद्धि बालक में रटने की प्रवृत्ति होती है लेकिन वह किसी चीज को रख लेते हैं लेकिन कुछ समय पश्चात वह भूल जाते हैं

🌺 मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है :–
मंदबुद्धि बालक की मानसिक आयु शारीरिक आयोग से कम होती है अगर बच्चे की शारीरिक आयु 10 वर्ष है तो मानसिक आयु 8 वर्ष की होती है

⭐ सीमित प्रेरणा और संवेग

🌺 कल्पना शक्ति से रहित होते है :-
मंदबुद्धि बालक गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं इनमें कल्पना शक्ति का विकास नहीं होता है और किसी विषय वस्तु के बारे में सोच नहीं पाते हैं

🌺 प्रेरणा साधारण और सीमित:- मंदबुद्धि बालकों में प्रेरणा और प्रोत्साहन बहुत ही साधारण और सीमित होता है वह किसी भी विषय वस्तु को लेकर अधिक प्रेरित नहीं हो पाते हैं और समस्या समाधान स्वयं से करना ही नहीं चाहते है

🌺 मस्तिक में सूझ -बूझ और जिज्ञासा:- इन बालकों में सूझबूझ और जिज्ञासा नहीं होती है वह किसी विषय वस्तु के बारे में सोच नहीं पाते इनमें जिज्ञासा की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है

🌺 क्रोध , मोह ,लोभ इत्यादि संवेग से वंचित :-
मंदबुद्धि बालक में क्रोध मोह लोभ इत्यादि संवेग नहीं पाए जाते है इन सभी वह वंचित होते है

⭐ कुसमायोजन की स्थिति :–

🌺 निम्न स्तर का समायोजन :-
मंदबुद्धि बालक में समायोजन करने की क्षमता कम पाई जाती है अगर वह किसी स्थान दूरी पर जाते हैं तो समायोजन नहीं कर पाते है

🌺 सामाजिक व्यवहार में अनभिज्ञ :–
मंदबुद्धि बालक में अपने समाज के वातावरण और समायोजन करने की क्षमता नहीं होती है व सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं और सामाजिक कार्यों में शामिल नहीं हो पाते है

🌺 उचित अनुचित का ज्ञान नहीं :-
मंदबुद्धि बालक में विषय वस्तु के प्रति उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता वह किसी समस्या के बारे में सही गलत पर निर्णय नहीं ले पाते है

🌺 समूह में समायोजन नहीं कर पाते है :-
मंदबुद्धि बालक अपने समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं चाहे वह समूह उनके खेल के मैदान का हो या कक्षा का हो वह अपने समूह के साथ अनुकूलित व्यवहार नहीं कर पाते है

⭐ असामान्य शारीरिक संरचना

🌺 सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन :- मंदबुद्धि बालक का शारीरिक गठन सामान्य बालक से भिन्न होता है

🌺 मंदबुद्धि बालक का कद छोटा होता है जिन्हें हम नाटा कहते हैं या बोना कहते हैं क्या सामान बालको से छोटे होते है

🌺 मंदबुद्धि बालक के पैर छोटे और त्वचा मोटी होती है यह बालक शारीरिक रूप से भिन्न पाए जाते है

🌺 मंदबुद्धि बालकों का चेहरा उदास होता है इन बालकों के चेहरे में अधिकतर उदासीनता दिखाई देती है

🌺 मंदबुद्धि बालक के शारीरिक अंगों में शिथिलता होती है

✍🏻✍🏻✍🏻Menka patel ✍🏻✍🏻✍🏻

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🔰Mand budhi balak🔰
🔸️Mandbuddhi Balak Aise Balak ko Kahte Hain Jiski mansik Aayu Saman aayu ke balak se kam hoti hai ya.inka IQ level samanye balak ki apecha kum hota hai.
🔸️ shaikshik drishtikon
Ke anusar

➖ Aise Balko me sojh boojh ki chamta kam Hogi.
➖ Kisi bhi chij ko sikhane yah samajhne ki chamta kam hoti hai.
➖ Kisi bhi Karya ko karne mein Inki Dhyan Kendrit karne ki chamta kam hoti hai.
🔸️AAMD➡️American Association of Mental Deficiency-ke anusar mansik mundan mukhya Roop se ausat se kam baudhik karye nishpadan ka Sanket Deti Hai joki anukulan vyavhar sambandhit doso Ke Saath Saath Ho Pai jaati hai jo ki Vikas Kal ke Samay isphutit hoti hai.
🔸️ mandbuddhi Balak ki visheshta-
1- baudhik newnta
(a) Aise balkon ka Sachik istar nimn hota Hai
(b)aise balko ki budhi labdhi samnye balko ki budhi labdhi se kum hoti hai inki buddhi labdhi 70 se kum hoti hai.
(c)aise balko ki me vismaran sakti adik hoti hai ye kisi bhi yaad ki gai chij ko juldi bhul jate hai.
(d)aise balko ko dusro se sahayta ki apecha adik hoti hai inhe apne uper viswas nahi hota hai.
2-Aniyantrit mansik kiryaye
(a) Aise balko ki mansik Kriyao Me niyantran Nahin Hota Hai.
(b)Kisi bhi kaam me ye dhyan ko kendrit nahi kr pate.
(c)aise balako me dhyan ke vistar me kami hoti hai.ye porv gyan ko naye gyan se jodne me asmarth hote hai.
(d)inke sabdbhndar me kami hoti hai.jiske karan ye apni baat sahi se viyakt nahi kr pate.
3- Heen vyaktitva
(a)aisye balak udaseen ya khinn mijaj ka hai.
(b)Kisi bhi karye ko krne me sithil hote hai.
(c)aise balako me apne vicharo ko ispasth roop se viyakt krne ki chamta nahi hoti hai.
(d)aise balak apne uttardaitua ke pirt laprvaha hote hai.ye utterdaitua ki porti nahi krte hai.
4-saychik pichrapan-aise balak saychik roop se pichre hote hai.
(a)inki saychik uplabdhi na ke baraber hoti hai.
(b)inke lie sikchan karye kafi kathin hota hai.
(c)ratne ki pirvarti kum hoti hai.
(d)inki mansik aayo saririk aayo se kum hoti hai.inka iq level kum hota hai.
5-simit pirerna or sanveg-
(a)aise balko me kalpna sakti bahut kum hoti hai.
(b)pirerna sadharan or simit hoti hai
(c) Krodh lobh Moh Ityadi ke sanveg se vanchit Hote Hain.
(d)mastisk me sujh bujh or jigyasa me kami hoti hai.
6-Kusamayojan ki isthti-
(a)aise balko me samayojan(adjust)krne ki chamta nimn istar ki hoti hai.ye kisi nai paristhti samayojan nahi kr pate.
(b)samajik viyvhar se anbhigya rahte hai.
(c)aise balako ko uchit or anuchit ka gyan nahi hota.
(d)aise balak samho(group)me samayojit nahi ho pate.
7-Saririk sanrachna asamanya hoti hai-
(a)aise balko ki saririk sanrachna samanya balko ki apecha bhinn hoti hai.
(b)inki saririk banvat me bhinnta hoti hai inka kad chota,tange choti or tuacha moti hoti hai.
(c)aise balak humesha udas or asaant rahte hai.
(d)sarir ke ang sithil hote hai,inki gyanendriya thik se kaam nahi krti hai.
Krishna gangwar 🙏🙏🙏


मंदबुद्धि बालक
(Mentally Retarded Children)

ऐसे बालक से है जो ” मानसिक” रूप से कमजोर होते है, जिनके मानसिक और बुद्धि इतनी कम विकसित हैं कि उनमें मानसिक क्षमताएँ भी कम विकसित हो पाती है, ऐसे बालको को मन्द-बुद्धि बालक, धीमी गति से सीखने वाले बालक, मानसिक रूप से पिछड़ा बालक तथा मानसिक रूप से विकलांग बालक इन सभी नामों का प्रयोग किया जाता है।

शैक्षिक दृष्टिकोण के आधार पर मुख्य रूप से मंद बुद्धि बालकों में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं।
जैसे
✓बच्चे की सूझबूझ बहुत तेज नहीं होती है।
✓ किसी भी विषय या वस्तु को समझने की क्षमता कम होती है।
✓ध्यान केंद्रण की क्षमता में कमी होती है।

American association of mental deficiency (AAMD) संस्थान में मंदबुद्धि बालकों के विषय में बताया कि –
“मानसिक मंदता मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है, जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथ ही पाई जाती है, जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है।”

मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं निम्न लिखित है ।

🔅 1 बौद्धिक न्यूनता – निम्न रूप में देखी जाती है।

*✓निम्न शैक्षिक स्तर – शिक्षा का स्तर काफी निम्न होता है।

*✓बुद्धि लब्धि 70 से कम

*✓अधिक विस्मरण करने की क्षमता
किसी भी कार्य को या बात को अधिक समय तक याद नहीं रख पाते है या अपने भूतकाल के अनुभवों को चेतन मन में लाने में असफल होते हैं या पूर्व अनुभव या सीखे हुए कार्य को करने में असफल रहते हैं।

*✓दूसरों की सहायता की अपेक्षा
अपने किसी भी सामान्य कार्य को करने के लिए दूसरों से मदद की अपेक्षा या उम्मीद रखते हैं।

🔅 2 अनियंत्रित मानसिक क्रियाए –

*✓ मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता।

*✓अवधान (Attention) को केंद्रित नहीं कर पाते।
किसी वस्तु पर चेतना केंद्रित करना ही ध्यान है जोकि मंदबुद्धि बालक में नहीं कर पाते है।

*✓ध्यान की विस्तार में कमी रहती है।

*✓सीमित शब्द भंडार

🔅 3 हीन व्यक्तित्व –

व्यक्ति का व्यक्तित्व ही उस व्यक्ति के व्यक्ति होने की संभावना को दर्शाता है,
लेकिन मंदबुद्धि बालकों का हीन व्यक्तित्व होता है।

*✓उदासीन या खिन्न मिजाज का होना।

*✓कुछ भी कार्य करने में शिथिल।

*✓स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं रहती।

*✓उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं कर पाते।

🔅 4 शैक्षिक पिछड़ापन –
शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रहते है।

*✓शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर
शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर ही छात्र द्वारा ग्रहण किए हुए ज्ञान का अथवा किसी कौशल में निपुणता का मापन होता है, लेकिन मंदबुद्धि बालक शैक्षिक उपलब्धि नहीं हासिल कर पाते ।
*✓इनके लिए शिक्षण कार्य आयोजित करना काफी कठिन होता है।

*✓रटने की प्रवृत्ति अधिक होती है।

*✓मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है।

🔅 5 सीमित प्रेरणा और संवेग –

*✓कल्पना शक्ति से रहित।
कल्पना वह शक्ति है जिसके द्वारा हम अपनी प्रतिमाओं का नया प्रकार से प्रयोग करते हैं।कल्पना के द्वारा हम को पूर्व अनुभव को किसी ऐसी वस्तु का निर्माण करने में सहायता मिलती है जो पहले कभी नहीं थी।
मंदबुद्धि बालकों में कल्पना शक्ति नहीं पाई जाती है।

*✓प्रेरणाएं साधारण और सीमित।

*✓मस्तिष्क सुप्त/जिज्ञासा कम

*✓क्रोध ,लोभ, मोह इत्यादि के संवेग से वंचित।

🔅 6 कुसमायोजन की स्थिति –

व्यक्ति अपने आप को परिवेश के अनुकूल बनाने में असमर्थ या अपने विकास में ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जो उनकी इच्छा आवश्यकता की पूर्ति में बाधक होती है यही कुसमयोजन कहलाता है।

*✓निम्न स्तर का समायोजन
-समायोजन करने में की प्रवृत्ति काफी कम होती है।

*✓सामाजिक व्यवहार में अनभिज्ञ
समाज के द्वारा होने वाले व्यवहार से अनभिज्ञ या अपरिचित या अनजान रहते हैं।

*✓उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता
क्या सही है या क्या गलत इसका ज्ञान नहीं रहता है।

*✓समूह में समायोजन नहीं कर पाते।
समूह समायोजन से हम सभी एक दूसरे के प्रति अपने विचारों में समायोजन के माध्यम से परिवर्तन लाकर परस्पर सहयोग की दिशा में आगे बढ़ पाते हैं ,लेकिन मंदबुद्धि वालों को में समूह समायोजन की क्षमता नहीं होती है।

🔅 7 असामान्य शारीरिक संरचना-
*✓सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन

*✓कद नाटा , पैर छोटे ,त्वचा मोटी

*✓उदास चेहरा

*✓शारीरिक अंग शिथिल होता है।

✍🏻
Notes By-Vaishali Mishra


🍁 मंदबुद्धि बालक🍁
Mentally retarded children

🌈 ऐसे बालक जिनका शैक्षिक दृष्टिकोण जैसे सूझबूझ ,क्षमता तथा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं ,इनके सीखने की गति धीमी होती है, और सीखकर भूल भी जाते हैं, अर्थात् इनके स्मरण क्षमता का अभाव होता है, नवीन समस्याओं पर विचार नहीं कर सकते हैं और इनमें मौलिकता का अभाव भी पाया जाता है, ऐसी बालक मंदबुद्धि बालक कहलाते हैं।

🍁AAMD- ( American Association of mental Deficiency)
के द्वारा मंदबुद्धि बालक की परिभाषा दी गई है

🖊️ मानसिक मंडल मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ-साथ ही ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फुटित होता है।

🌈मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं:-

🌺बौद्धिक न्यूनता:-

✍🏻 मंदबुद्धि बालकों में शैक्षिक स्तर की कमी होती है वह शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति नहीं कर पाते हैं।

✍🏻 मंदबुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है लेकिन अगर उन्हें शिक्षा अच्छी तरह से दी जाए तो यह संभावना रहती है कि वह भविष्य में उन्नति भी कर सकता है।

✍🏻 मंदबुद्धि बालक में याद करने की या याद रखने की क्षमता कम पाई जाती है वह किसी भी चीज को याद रखने के लिए उसे रटते हैं तथा उसको जल्दी ही भूल जाते हैं अर्थात इनकी विस्मरण क्षमता बहुत ही कम होती है।

✍🏻 मंदबुद्धि बालक को मे दूसरों की सहायता की अपेक्षा करते हैं वह अपने काम को खुद नहीं कर पाते हैं बल्कि अपने कार्य को करने के लिए दूसरों का सहारा लेते हैं।

🌺 अनियंत्रण मानसिक क्रियाएं:-

✍🏻 मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण ना होना- मंदबुद्धि बालको में अपनी मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है।
✍🏻 अवधान /ध्यान को केंद्रित नहीं करना:- मंदबुद्धि बालक अपने ध्यान को केंद्रित नहीं कर पाते हैं किसी एक विषय वस्तु को अपने ध्यान को नहीं लगा पाते हैं जिसके कारण कार्य या विषय वस्तु संपूर्ण नहीं होती है इनमें ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का अभाव होता है।

✍🏻 ध्यान में विस्तार में कमी:- मंदबुद्धि बालकों में ध्यान का विस्तार की छमता का जवाब होता है जिससे वह अपना ध्यान केंद्रीय नहीं कर पाते हैं जिसके कारण वह अपनी समस्या समाधान नहीं कर पाते है।

✍🏻 सीमित शब्द भंडार:- मंदबुद्धि बालकों में सीमित शब्द भंडार पाया जाता है, इन बालों को के शब्द भंडार अधिक विस्तृत नहीं होते हैं इनके कारण शब्दकोश में अधिक शब्द नहीं पाए जाते हैं।

🌺 हीन व्यक्तित्व :-

✍🏻 उदासीन खिन्न मिजाज का होना:-

मंदबुद्धि बालक हीन भावना से ग्रसित होते हैं जिसके कारण उनमें उदासीनता आ जाती है और उनके स्वभाव भी खिन्न मिजाज का हो जाता है।
✍🏻 कुछ भी कार्य करने में शिथिलता/ सुस्त :- बालों किसी कार्य को करते हैं या किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान करते हैं तो वह इस शिथिलता का अनुभव करते हैं क्योंकि वह उस कार्य को पूर्ण नहीं कर पाते हैं और कार्य को पूर्ण ना करने का कारण उसका हीन व्यक्तित्व है।
जैसे कि किसी कार्य को अगर करवाएं भी तो उस कार्य में शिथिलता होती है और अगर कोई चीज मंगाई भी जाए तो उसको गिरा देते हैं।

✍🏻 स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना:- मंदबुद्धि बालक अपने विचारों को दूसरों के सामने स्पष्ट नहीं रख पाते हैं जिससे उनकी मन की बात दूसरों तक नहीं पहुंच पाती है जिससे उनमें हीन व्यक्तित्व का विकास होता है।

✍🏻 उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करना:- मंदबुद्धि बालकों में विस्मरण शक्ति पाई जाती है तथा वह किसी चीज को लंबे समय तक याद नहीं रख पाते हैं क्योंकि उनका बौद्धिक स्तर निम्न होता है अगर मंदबुद्धि बालक को कोई कार्य दिया जाए तो वह उसको करने में असमर्थ रहते हैं और वह किसी भी कार्य के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर पाते हैं।

🌺 शिक्षक पिछड़ापन:- मंदबुद्धि बालक शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए होते हैं।

✍🏻 मंदबुद्धि बालकों की शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है वह शिक्षा से संबंधित कार्य को नहीं कर पाते हैं।

✍🏻 मंदबुद्धि बालक के लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होते हैं क्योंकि वह इन कार्यों को करने मे असमर्थ होते हैं।

✍🏻 मंदबुद्धि बालकों में रटने की प्रवृत्ति पाई जाती है, क्योंकि ऐसे बालकों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता नहीं होती है वह कुछ समय के लिए तो इन बालकों में रटने की प्रवृत्ति पाई जाती है लेकिन वह कुछ समय बाद ही याद करे हुए को भी भूल जाते हैं।
✍ मंदबुद्धि बालक की मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है क्योंकि यह बालक अपनी शारीरिक आयु की क्षमता के अनुसार मानसिक कार्य करने में असमर्थ होते हैं तथा इनका मानसिक स्तर निम्न कोटि का होता है।

🌺 सीमित प्रेरणा और संवेग:-

🍁 कल्पना शक्ति से रहित होते हैं क्योंकि यह बालक गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं जिसके कारण इनमें कल्पना शक्ति का विकास नहीं होता है।
🍁 मंदबुद्धि बालक को में प्रेरणा व प्रोत्साहन बहुत ही साधारण और सीमित होता है, यह किसी भी विषय वस्तु या क्षेत्र को लेकर अधिक प्रेरित नहीं होते हैं, वह दूसरों की सहायता लेने के लिए आश्रित होते हैं।

🍁 मंदबुद्धि बालकों के मस्तिष्क में सूझबूझ मैं कमी तथा जिज्ञासा या उत्सुकता नहीं होती है सूझबूझ ना होने के कारण यह किसी भी चीज पर विचार या गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं यह बालक बिल्कुल भी जिज्ञासु नहीं होते है।

✍🏻 मंदबुद्धि बालक में क्रोध लोभ व मोह इत्यादि के संवेग से वंचित होते हैं।

🌺 कुसमायोजन की स्थिति:-

✍🏻 निम्न स्तर का समायोजन:- मंदबुद्धि बालक अगर किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो वहां समायोजन नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनमें समायोजन करने की क्षमता बहुत ही निम्न स्तर पर होती है।

✍🏻 सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहना:- मंदबुद्धि बालक अपने आपको समाज के वातावरण में समायोजित नहीं कर पाते हैं जिसके कारण वह समाज के व्यवहार से अनभिज्ञ (नहीं पता होना) रहते हैं वह किसी भी प्रकार से सामाजिक कार्य में अपना सहयोग नहीं देना चाहते हैं।

✍🏻 उचित- अनुचित का ज्ञान न होना:- इन बालकों में उचित और अनुचित करने की निर्णय शक्ति नहीं होती है कौन इनके साथ उचित व्यवहार करता है और कौन इनके साथ अनुचित व्यवहार करता है इसका निर्णय किए नहीं कर पाते हैं और क्या गलत है क्या सही है इसके बारे में भी इनको कोई ज्ञान नहीं होता है।

✍🏻 समूह में समायोजन ना कर पाना:- मंदबुद्धि बालक अपनी समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं क्योंकि इनमें समायोजन करने की क्षमता का अभाव होता है मंदबुद्धि बालक चाहे समूह खेल के मैदान का हो चाहे कक्षा का किसी में भी समायोजन नहीं करते है।

🌺 असामान्य शारीरिक संरचना:-

✍🏻 सामान्य से बिना शारीरिक गठन:- मंदबुद्धि बालकों का शारीरिक गठन सामान्य बालक से भिन्न होता है जैसी शारीरिक संरचना सामान्य बालकों की होती है उससे अलग संरचना इन बालकों की होती है मंदबुद्धि बालक किसी ना किसी रूप में सामान्य बालक से भिन्न होता।

✍🏻 मंदबुद्धि बालक की शारीरिक संरचना मे कद नाटा, पैर छोटे,त्वचा मोटी तथा उदासी चेहरा होता है।

✍🏻 मंदबुद्धि बालकों के शारीरिक अंगों में शिथिलता पाई जाती है।

🌺🌺 Notes by Shashi Choudhary🌺🌺 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


🌼 मंदबुद्धि बालक 🌼
(Mentally Retarted Children)
ऐसी बालक जो मानसिक रूप से कमजोर हैं अर्थात जिसमें मानसिक क्षमताएं कम विकसित होती हैं! ऐसे बालकों को मंदबुद्धि बालक, धीमी गति से सीखने वाला बालक, मानसिक रूप से पिछड़ा बालक और मानसिक रूप से विकलांग बालक कहा जाता है!

🌸 शैक्षिक दृष्टिकोण से:➖
1~ सूझबूझ तेज नही होती है:➖
ऐसे बालकों में सूझबूझ की कमी होती है वह किसी भी चीज को गहराई से सोच समझ नहीं सकता है!
2~ समझने की क्षमता कम होती है:
ऐसे बालक किसी भी चीज को आसानी से नहीं समझ सकता उसके अंदर किसी भी कार्य को करने के लिए उचित सोच क्षमता का विकास नहीं होता
3~ ध्यान केंद्रन:
मंदबुद्धि बालक किसी भी चीज के लिए एकाग्र ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते उसके दिमाग में अधिक समय तक कोई भी बात टिक नहीं पाती कभी कुछ तो कभी कुछ चलते रहता है।

“AMARICAN ASSOCIATION OF MENTAL DIFICIENCY “(AAMD)
इस संस्थान के अनुसार➖
” मानसिक मंदन मुख्य रूप से और सबसे कम बौद्धिक कार्य का निष्पादन का संकेत देती है जोकि अनुकूल व्यवहार संबंधी दोषों के साथ-साथ साथ ही पाई जाती हैं जो विकास काल के समय स्फुटित होती हैं!”

🎯 मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं🎯

1- बौद्धिक न्यूनता:➖
A)बच्चे का निम्न शैक्षिक स्तर:-
ऐसे बालक सामान्य बालकों की तुलना में शैक्षिक स्तर से काफी पीछे होते हैं किसी ना किसी कारणवश शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

B) न्यूनतम बुद्धि लब्धि<70:-
ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि सामान्य बालकों से कम होती है अर्थात 70 से नीचे !

C) अधिक विस्मरण:-
ऐसे बोलक किसी भी चीज को ज्यादा देर तक याद नहीं रख सकते हैं अगर वह याद करती भी है तो वह तुरंत भूल जाते हैं अर्थात याद किया वह भी तुरंत भूल जाना।

D) दूसरों की सहायता की अपेक्षा:-
मंदबुद्धि बालक हमेशा दूसरों पर आश्रित रहते हैं और हमेशा दूसरों की सहायता पर उम्मीद रखते हैं।

2) अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं:➖

A )मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं:-
ऐसे बालकों को मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होते हैं उसे क्या करना है नहीं करना है उसे खुद पर नियंत्रण ही नहीं होता करना कुछ और करते कुछ और हैं बाद में सोचते हैं ऐसा नहीं होना था।

B )अवधान को केंद्रित नहीं करना:-
अवधान अर्थात ध्यान इसे बालकों के मस्तिष्क में सही संदेश ना जाने के कारण वह किसी चीज को सही ढंग से नहीं कर पाते हैं या करते करते भूल जाते हैं कि करना क्या है?

C) ध्यान के विस्तार में कमी:-
ऐसे बोला किसी भी काम को कहीं ना कहीं किसी और काम में जोड़ देते हैं आधार पूर्व ज्ञान को वर्तमान में जोड़ना।

D )सीमित शब्द भंडार:-
ऐसे बालों को के पास शब्द का भंडार बहुत कम होता है इनको कोई भी चीज जानने के बावजूद इनके पास शब्द की कमी के कारण ध्यान ही नहीं रहता।

3) हीन व्यक्तित्व:➖

A )उदासीन / खील मिजाज का होना :-
ऐसे बालक हमेशा परेशान रहते हैं उन्हें किसी भी चीज में ना रुचि आकर्षण या किसी भी काम के प्रति उत्सुकता ही नहीं होती अगर कुछ गलत हो भी रहा है इसके अंदर इतना साफ ही नहीं होता है कि वह उस गलती का साहस या सामना करें
अर्थात ऐसे बालकों को खुद के जीवन के प्रति कोई आकर्षण ही नहीं रहता।

B) कार्य करने में शिथिल होते हैं:-
बालकों को किसी भी काम में मन नहीं लगता आलसी होते हैं किसी भी कार्य को करने से पहले यह 10 बार सोचते हैं करें या नहीं करें या करें भी तो कैसे वह सक्रिय नहीं होते हैं।

C) स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने में क्षमता ना होना:-
वह अपने विचार भाव अपने अंदर की अच्छाई या बुराई कमी को जल्दी किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं सदैव असमंजस में रहते हैं।

D)उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं करते:-
ऐसे बालकों के अंदर खुद के प्रति अपनी जिम्मेदारी ही नहीं होती हैं अगर कोई इसे कोई उत्तरदायित्व दे भी तो आत्मविश्वास की कमी के कारण वह उस उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर पाता है।

4 शैक्षिक पिछड़ापन:➖
A )मंदबुद्धि बालक ने शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती हैं ऐसे बालकों को कभी भी कोई बड़ा कामयाबी नहीं मिल पाता।

B) ऐसे बालकों के लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है क्योंकि वह उस शिक्षण कार्य को करने के लिए सक्षम ही नहीं होते हैं।

C )वह हमेशा रटने की प्रवृत्ति का सहारा लेते हैं वह सोच कर चलत है कि हम कोई भी समस्या का समाधान रटने की प्रक्रिया से पूरी कर लेंगे लेकिन ध्यान केंद्र ना होने के कारण वह रटे हुए चीज को भी जल्दी भूल जाते हैं।

D) मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती हैं अर्थात ऐसे बालकों की मानसिक आयु उम्र के हिसाब से काफी कम होती है।

5)सीमित प्रेरणा और संवेग:➖
A )कल्पना शक्ति से रहित:-
ऐसे बालकों में कल्पना शक्ति बहुत कम होती हैं उनके अंदर किसी भी चीज को सोचने की गहन क्षमता नहीं होती है।

B )प्रेरणाए साधारण और सीमित होती हैं।

C) मस्तिष्क की सूझबूझ या जिज्ञासा नहीं:-
ऐसे बालकों के मस्तिष्क में ना जिज्ञासा और ना ही सूझबूझ होती है। वह किसी भी चीज को आसानी से नहीं समझ पाते ना उन पर गहन चिंतन कर पाते हैं अतः इन सब के कारण ऐसे बालक जिज्ञासु नहीं होते।

D क्रोध लोभ मोह आदि के संवेग से भी वंचित रहते हैं:~
ऐसे बालकों को क्रोध ,लोभ ,मोह, ईष्या, घमंड से कोई मतलब ही नहीं होता क्योंकि इसके अंदर कोई संवेग ही नहीं होता है।

6] कुसमायोजन की स्थिति ➖

A )निम्न स्तर का समायोजन:-
ऐसे बालकों का समायोजन निम्न स्तर का होता है अर्थात परिस्थिति के अनुरूप। जिसके कारण यह समाज में हो रहे गतिविधियों में या कोई सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेना नहीं चाहते हैं।

B) सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहना:➖
ऐसे बालक समाज से दूर रहते हैं वह समाज के अनुसार खुद को ढाल नहीं पाते जिसके कारण वह सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं समाज में हो रहे क्रियाकलाप को वह समझ नहीं पाते और जिस कारणवश वह समाज से दूर होते चले जाते हैं।

C उचित अनुचित का ज्ञान:➖
मंदबुद्धि बालक में खुद के प्रति उचित अनुचित का कोई ज्ञान ही नहीं होता उसके लिए क्या सही है क्या गलत यह निर्णय नहीं ले पाता है।

D समूह में समायोजन नहीं:➖
वह अपने आप को हमेशा समूह से दूर रखता है फिर वह विद्यालय हो या घर हो या फिर कोई सामाजिक वातावरण ।वह खुद को समूह में समायोजित नहीं कर पाता है।

7 शारीरिक संरचना असामान्य:➖
मंदबुद्धि बालक की शारीरिक संरचना असामान्य होती हैं। अर्थात अगर कहीं सामान्य बालक और मंदबुद्धि बालक दूर खड़ा हो तो मंदबुद्धि बालक की पहचान उसकी शारीरिक बनावट के अनुसार ही कर ली जाती है।

ऐसे बालकों की शारीरिक संरचना असामान्य होने के निम्न कारण है:➖
A➖ सामान्य बच्चे की शारीरिक गठन अलग होती है।

B➖ कद नाटा, पैर छोटी ,त्वचा मोटी होती है। लेकिन इसकी तुलना हम सामान्य बालकों में नहीं कर सकते हैं।

C ➖चेहरा उदास होता है!

D ➖शारीरिक अंग शिथिल होती है! 🌸🌸MAHIMA KUMARI🌸🌸🌸


मंदबुद्धि बालक🍁🌲

🌸 ऐसे बालक जो सामान्य बच्चों से किसी भी क्षेत्र में अन्य सामान्य बालको से किसी ना किसी रूप में पिछड़े होते हैं।चाहे,वो शारीरिक,मानसिक,सामाजिक,शैक्षिक व अन्य किसी भी क्षेत्र में हो।
ऐसे बच्चों कि बुद्धि लब्धि ७० से कम होती है।ऐसे बालक मंद बुद्धि बालकों की श्रेणी में आते हैं।

🍀अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं🍀

🌳शैक्षिक दृष्टिकोण :-

🌿 सूझ – बुझ :-
मंद बुद्धि बालकों में सूझ – बुझ की कमी होती है।जिसके कारण वो किसी भी चीज,व्यक्ति या वस्तु के बारे में सोच – समझ और स्मरण नहीं कर पाता है।

🌿क्षमता :-
ऐसे बालकों में किसी भी कार्य को करने की क्षमता कम होती है।इनमें क्षमता की विकास नहीं हो पाती।जो कि उनके कार्य करने के लिए उचित हो।

🌿 ध्यान केन्द्रण :-
मंद बुद्धि बालकों में ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति भी कम होती है।इनका ध्यान कभी भी एक जगह नहीं रहता।ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।

🌸🌸AAMD :- American association of mental deficiency🌸🌸

🎄🎄मंद बुद्धि बालकों के विषय में AAMD ने परिभाषा दिया।

🦚इनके अनुसार :-

🌟”मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है। जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ -२ ही पाई जाती है। जो कि विकास काल के समय स्फूटित्त होती है।”

🌳मंद बुद्धि बालक की विशेषता यें :-

1️⃣ बौद्धिक न्यूनता :-

🌿निम्न शैक्षिक स्तर :-
अन्य बालकों की तुलना में इनका शैक्षिक स्तर बहुत ही कम होता है।जिसके कारण इन्हें शिक्षा ग्रहण करने में कठिनाई आती है और पीछे रह जाते हैं।

🌿 न्यूनतम बुद्धि लब्धि :-
ऐसे बालकों की बुद्धि सामान्य बालकों की अपेक्षा बहुत कम होती है।
यानी कि :- इनकी बुद्धि …… ७० से कम होती है।

🌿 अधिक विस्मरण :-
मंद बुद्धि बालकों में भूलने की क्षमता बहुत ही अधिक होती है।ये किसी भी चीज,कार्य,विषय,क्षेत्र और अन्य चीजों में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते तथा कोई भी चीज जल्दी भूल जाते हैं।

🌿 दूसरों की सहायता की अपेक्षा :-
ऐसे बालकों को खुद पर विश्वास नहीं होता है।वे दूसरों से सहायता की अपेक्षा रखते हैं।उनका खुद पर नियंत्रण नहीं होता।

2️⃣ अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं :-

🌟वे मानसिक रूप से ऐसी क्रियाएं करती हैं।जो कि अनियंत्रित होती है।उन्हें अपनी खुद की क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता।

🦚जैसे कि :-
🌿 मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है।
🌿 अवधान को केंद्रित नहीं कर सकते।
🌿 ध्यान के विस्तार में कमी।
🌿 सीमित शब्द भंडार।

3️⃣हीन व्यक्तित्व :-

🌿उदासीन/खिन्न मिजाज होना :-
मंद बुद्धि बालक हीन भावना से ग्रसित होते हैं।जिसके कारण उनमें उदासीनता होने लगती है।
उनका अपने खुद के व्यक्तित्व पर नियंत्रण नहीं होता तथा उदासीनता आ जाती है।

🌿कुछ भी कार्य करने में शिथिल :-
ऐसे बालक किसी भी कार्य को करने या समस्या समाधान करने में अगर वो कार्य पूर्ण नहीं कर पाते तो शिथिलता का अनुभव करते हैं।इस कारण भी उनमें हीन भावना आती है।अंत: उनमें शिथिलता आ जाती है।

🌿स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना :-
मंद बुद्धि बालक अपने विचारों को खुलकर प्रकट नहीं कर पाए अर्थात् ये कहा जाए कि ऐसे बालक अंतर्मुखी होते हैं।इनमें विचारों को व्यक्त करने की क्षमता की कमी के कारण स्पष्ट रूप से विचाराभिव्यक्ति नहीं कर पाते।

🌿 उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं कर पाना :-

4️⃣ शैक्षिक पिछड़ेपन :-

🌿 इनमें शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है :-
किसी भी व्यक्ति के उपलब्धि के आधार पर ही उसके ग्रहण किए गए ज्ञान का मापन या अनुमान लगाया का सकता है। कि उन्होंने ने किस क्षेत्र में कितनी निपुणता प्राप्त की या नहीं की।
लेकिन मंद बुद्धि बालक इस प्रकार की शैक्षिक मानसिक उपलब्धि हासिल नहीं कर पाते हैं।

🌿 इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है :-
मंद बालकों में इनके कम मंद मानसिक प्रक्रिया और उनकी मंद प्रक्रियाओं के कारण उन्हें कोई भी कार्य अन्यमनास्क भाव से करते हैं।जिससे उन्हें हर कार्य कठिन लगता है।

🌿 इनमें रटने की प्रवृत्ति होती है :-
मंद बुद्धि बालकों में सोचने – समझने की क्षमता कम होने के कारण ये रट्टा मारकर ही अपना कार्य करते हैं।इस प्रकार इनमें रटने की प्रवृत्ति अधिक होती है।

🌿किसी भी अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा इनकी मानसिक आयु,शारीरिक आयु से कम होती है।

5️⃣ सीमित प्रेरणा और संवेग :-

🌿 कल्पना शक्ति से रहित :-
🌟कल्पना शक्ति एक ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा हम अपने विचारों,भावनाओं, संवेगों और अपने प्रतिमाओं का नया प्रयोग करते हैं।कल्पना एक ऐसी अनुभव है।जिसके द्वारा हम अपने पूर्व अनुभव को किसी ऐसी नई अनुभव या वस्तु से जोड़ने की कोशिश करते है।जिसमे हम सहायता मिलती है,जो कि इसके पहले शायद कभी ना रही हो।

🌿 प्रेरणा साधारण और सीमित।
🌿 मस्तिष्क सूझ/जिज्ञासा।
🌿 क्रोध,मोह,लोभ आदि के संवेग से वंचित रह जाना।

6️⃣ कुसमायोजन की स्थिति :-
🌟अगर व्यक्ति खुद को किसी भी परिवेश,कार्य या समस्याओं के प्रति उनके अनुकूल समायोजन ना के पाए या असमर्थ हों तो,ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जो उनके इच्छा या आवश्यकता पूर्ति में बाधा उत्पन्न करती है उसे कु समायोजन कहते हैं।

🦚जैसे कि :-
🌿 निम्न स्तर का समायोजन :-
मंद बुद्धि बालकों में सामान्य से निम्न स्तर का समायोजन क्षमता पाई जाती है।

🌿समाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ :-
मंद बुद्धि बालकों में सामाजिक स्तर में भी कमी पाई जाती है।ऐसे बालक किसी भी समाज या व्यवहार में भाग लेना नहीं चाहते।तथा इन सब से अनभिज्ञ होते हैं।

🌿उचित – अनुचित का ज्ञान नहीं होता है :-
ऐसे बालकों में उचित – अनुचित का ज्ञान नहीं होता है।

🌿समूह में समायोजन नहीं कर पाते :-
ऐसे बालकों को एकांत में रहने की आदत होती है।इनमें अन्य सामान्य बालकों के तरह परस्पर सहयोग द्वारा सामाजिक क्रिया करना या समाज में रहकर उसके नियमों का पालन करना या किसी समूह विशेष में रहकर समायोजन करने की क्षमता नहीं होती है।

7️⃣ असामान्य शारीरिक संरचना :-

🌿 सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन।
🌿 कद नाटा,पैर छोटा, त्वचा मोटी।
🌿 उदास चेहरा।
🌿अंग शिथिल होती है।

🌟Notes by :- Neha Kumari☺️

🌸🌿🌸 धन्यवाद्🌸🌿🌸




मंद बुद्धि बालक (Mentally Retarded Children’s)–

मंदबुद्धि बालक वे बालक होते हैं ,जो मानसिक रूप से कमजोर तथा जिनकी बुद्धि –लब्धि सामान्य बालक से कम होती है ऐसे बालक “मंदबुद्धि बालक” कहलाते हैं।

◼️ शैक्षिक दृष्टिकोण से मंदबुद्धि बालक के निम्न लक्षण है–

▪️ १. सूझ–बूझ में कमी –

ऐसे बच्चे की सूझ– बूझ बहुत कम होती है वह किसी चीज पर सरलता से सोच समझ नहीं सकते हैं।

▪️ २. कम समझने की क्षमता–

मंदबुद्धि बालक में किसी चीज को समझने की क्षमता भी कम होती है , जिससे वह किसी कार्य को सही तरीके से नही कर पाते है।

▪️ ३. ध्यान केंद्रण करने की क्षमता में कमी–

मंदबुद्धि बालक अपने एक विचार पर एकाग्रित नहीं हो पाते हैं, जिससे उनमें ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती है।

◼️ AAMD=(American Association Of Mental Dificiency) के द्वारा मंद बुद्धि की यह परिभाषा अपने शब्दों में स्पष्ट की है कि–“मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम”बौद्धिक कार्य निष्पादन”का संकेत देती है, जो कि“अनुकूल व्यवहार संबंधी ” दोषों के साथ– साथ ही पाई जाती है, जो कि विकास काल के समय “स्फूटित” होती है।”

◼️ मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं– मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं निम्नलिखित हैं–

▪️ १.बौद्धिक न्यूनता–

(i).निम्न शैक्षिक स्तर का कम होना– मंदबुद्धि बालक शैक्षिक स्तर मैं बहुत ही पिछड़े होते है, अपनी कक्षा के बच्चों से पढ़ाई –लिखाई व शिक्षा के अन्य क्षेत्र में भी बहुत ही पीछे रहते है ।

(ii).IQ कम होना– मंदबुद्धि बालकों में बुद्धि–लब्धि 70 से कम पाई जाती है।
( वही टर्मन के अनुसार–मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि–लब्धि 70–90 के बीच की होती है परंतु इसमें यह संभावना रहती है कि बालक उन्नति कर सकता है इसीलिए मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि –लब्धि 70 से कम रखी गई है।)

(iii).अधिक विस्मरण–
इसमें बच्चा चीजों को बहुत जल्दी भूल जाता है किसी चीज को ज्यादा समय के लिए याद नहीं रख पाता है।

(iv). दूसरों की सहायता की अपेक्षा– बच्चा हमेशा दूसरों की सहायता पर निर्भर रहता है, बच्चे को खुद अपने आप पर भरोसा/ विश्वास नहीं होता है । इसलिए वह दूसरों की सहायता पर निर्भर रहता हैं।

▪️ २. अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं– मंदबुद्धि बच्चे में अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं भी पाई जाती हैं जो निम्न है–

(i). मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण न कर पाना– जैसे बच्चे को कब ,क्या और कैसे करना है इन सभी चीजों पर मानसिक रूप से नियंत्रण नहीं कर पाते हैं।

(ii). अवधान/ध्यान को केंद्रित न कर पाना– इसमें बच्चे का ध्यान हमेशा इधर-उधर चीजों पर भटकता रहता है जिसके कारण वह एक जगह ध्यान केंद्रित करने में असफल रहते हैं।

(iii). ध्यान के विस्तार में कमी– मंदबुद्धि बालक किसी चीज को या अपने नए ज्ञान को पुराने ज्ञान से जोड़ने में असमर्थ रहते है।

(iv). सीमित शब्द भंडार– मंदबुद्धि बालकों के शब्द भंडार में भी कमी रहती है ये ज्यादा सीख भी नहीं पाते हैं क्योंकि इनके ध्यान में ही नहीं रहेगा और जिसके कारण अपने विचार को दूसरों के सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं।

▪️ ३. हिना व्यक्तित्व– जब किसी इंसान या व्यक्ति का व्यक्तित्व ही हीन है तो वह चीजों को सही तरीके से नहीं कर पाता है , जैसे–अपने काम को सही तरीके से न कर पाना, अपने शरीर की साफ-सफाई न कर पाना , किसी से सही ढंग से बात न कर पाना इत्यादि हीन व्यक्तित्व के लक्षण है जो निम्न है –
(i). उदासीन/खिन्न मिजाज का होना– किसी भी कार्य के प्रति रुचि , उत्साहित या अभिप्रेरित न होना , हमेशा निराश व उदास रहना , किसी कार्य को करने का साहस न कर पाना आदि।

(ii). किसी भी कार्य को करने में शिथिल होते हैं– मंदबुद्धि बालकों में किसी भी कार्य करने की इच्छा नहीं होती है , हमेशा सुस्त अवस्था में पाए जाते हैं । चंचल प्रवृत्ति के नहीं होते हैं।

(iii). स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता न होना– भाषा कौशल /संप्रेषण के ज्ञान में कमी ,जिसके कारण इनमें अपने विचारों की अभिव्यक्ति दूसरों के सामने सही तरीके से व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती है।

(iv). उत्तरदायित्व की पूर्ति न करना– मंदबुद्धि बालक अपने कार्य के प्रति लापरवाह होते हैं जिसके कारण ये अपनी जिम्मेदारियों की पूर्ति ठीक से नहीं कर पाते हैं।

▪️ ४. शैक्षिक पिछड़ापन– शैक्षिक क्षेत्र में किसी न किसी रूप से पिछड़े होते हैं –

(i). मंदबुद्धि बालकों की शैक्षिक उपलब्धि न के बराबर होती है , ऐसे बच्चों को किसी भी रूप में सफलता प्राप्त नहीं होती है। जिससे ये पिछड़े रह जाते है ।

(ii). ऐसे बच्चों के लिए शिक्षण कार्य करना काफी कठिन होता है।

(iii). इनमें रटने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है क्योंकि ये चीजों को आसानी से समझ नहीं पाते हैं और रटा हुआ ज्ञान भी शीघ्र ही भूल जाते हैं।

(iv). मंदबुद्धि बालकों की मानसिक आयु उनके शारीरिक आयु या उम्र के हिसाब से कम होती है ।

▪️ ५. सीमित प्रेरणा और संवेग– मंदबुद्धि बालकों में और संवेग की कमी होती है जो किसी कार्य को करने के लिए बहुत ही आवश्यक होती है ।

(i). जैसे इनमें सोच , विचार या किसी चीज को इमैजिनेशन, विजुलाइज नहीं कर पाते हैं कल्पना शक्ति से रहित होते हैं।

(ii). इनकी प्रेरणा साधारण और सीमित होती है।

(iii). मस्तिष्क सुप्त/जिज्ञासा में कमी होती है।

(iv). क्रोध, लोभ , मोह इत्यादि के संवेग से भी वंचित रहते है ।

▪️ ६. कुसमायोजन की स्थिति– मंदबुद्धि बालक अपने सामान्य व्यवहार अपनी परिस्थितियों सही तरीके से समायोजित नहीं कर पाते है,जो कुसमायोजन कहलाता है।

(i). निम्न स्तर का समायोजन– बहुत ही कम समायोजन करने की क्षमता होती है।

(ii). सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं– समाज में होने वाले व्यवहार या कार्यों से अनजान होते हैं और समाज के नियम , कानून व्यवस्थाओं से भी अपरिचित रहते हैं।

(iii). उचित–अनुचित का ज्ञान न होना – सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते हैं।

(iv). समूह में समायोजित न कर पाना– मंदबुद्धि बालक समूह में खुद को समायोजित नहीं कर पाते हैं जिसके कारण वे सबसे अलग रहने लगते हैं।

▪️ ७. असामान्य शारीरिक संरचना– ऐसे बच्चों की शारीरिक संरचना सामान्य बच्चों की शारीरिक संरचना की तुलना में भिन्न होती है जैसे–

(i). सामान्य बच्चों से भिन्न होते हैं।

(ii). इनका कद नाटा या बौना हो सकता है तथा पैर छोटे –छोटे , त्वचा मोटी होती है।

(iii). चेहरा उदास , आंखें बड़ी –बड़ी, अजीब सी होती है।

(iv). शारीरिक अंग शिथिल होता है।

✍🏻Notes by – Pooja


♦️ 📗मंदबुद्धि बालक📗♦️

🌺 मंदबुद्धि बालकों के सामान्य गुण🌺

📖 शैक्षणिक दृष्टिकोण📖

1️⃣ मंदबुद्धि बालक sujh-bujh के मामले में कमजोर होते हैं, वह किसी भी टॉपिक पर गहराई से चिंतन नहीं कर सकते ,उनके अंदर सूझबूझ से तर्क लगाने की इतनी क्षमता नहीं होती है!

2️⃣ मंदबुद्धि बालकों में शैक्षणिक क्षमता कम होती है ,किसी भी कार्य के प्रति उपर्युक्त क्षमता का अभाव होता है!

3️⃣ मंदबुद्धि बालकों में ध्यान केंद्रन का आभाव पाया जाता है, वह किसी भी कार्य में पर्याप्त समय तक ध्यान केंद्रित नहीं रख सकते!

🌺AAMD🌺 = ‘American association of mental deficiency’ यह मानसिक मंदता का अमेरिकी संघ है! AAMD - के अनुसार मानसिक मंदता वाले बालकों के संदर्भ में परिभाषा दी गई है जो अग्रलिखित है - 'मानसिक मंथन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जोकि अनुकूल व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय isfutit होती है'..!

🌺मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं🌺

1️⃣ बौद्धिक न्यूनता = (a)- निम्न शैक्षिक स्तर / शैक्षिक स्तर निम्न दर्जे का होता है,जिससे वह शिक्षा के क्षेत्र में खरे नहीं उतर पाते,कुछ विशेष प्रगति हासिल नहीं कर पाते !

(b)- मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि/
टर्मन के अनुसार 70 – 89 बताइ है, लेकिन बुद्धि लब्धि का 70 से 8 9 स्तर होने पर बालक उन्नति और अवनति करने में सक्षम रहता है,
तो हम मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से कम कह सकते हैं!

(C) अधिक विस्मरण/ मंदबुद्धि बालकों में स्मरण शक्ति का अभाव होता है वह अधिक समय तक किसी भी चीज को याद नहीं रख सकते ,जिसके कारण इन बालकों में विस्मरण शक्ति पनपती है! अतः धीरे-धीरे विस्मरण की अधिकता होने लगती है!

(D) दूसरों से सहायता की अपेक्षा/ मंदबुद्धि बालकों में किसी भी कार्य को खुद से करने की क्षमता नहीं रहती है,वह हमेशा इसी उम्मीद में रहते हैं कि उनकी सहायता उनका साथी कर देगा! अपनी सहायता के लिए दूसरों पर आश्रित रहते हैं,उन्हें अपने आप पर भरोसा नहीं रहता,उनकी मानसिक धारणा रहती है कि हम किसी भी काम को दूसरों की सहायता से ही कर पाए हैं! उपरोक्त लाइनों को पढ़ने के बाद हम कह सकते हैं कि मंदबुद्धि बालक दूसरों से सहायता की अपेक्षा रखते हैं!

2️⃣ नियंत्रित मानसिक क्रियाएं=
(A) मंदबुद्धि बालकों का मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है,वह अपनी मानसिक गतिविधि पर काबू नहीं पा सकते .
अर्थात ऐसे बालक अपने अनुसार कार्य के प्रति अपना मन नहीं लगा सकते!

(B) अवधान को केंद्रित नहीं कर पाना=
मंदबुद्धि बालकों में अवधान अर्थात ध्यान को एकाग्र करने की क्षमता नहीं पाई जाती, वह किसी कार्य में अपना ध्यान केंद्रित नहीं रख सकते हैं, उनका ध्यान भटकता रहता है!
इससे स्पष्ट है कि मंदबुद्धि बालक अवधान को केंद्रित नहीं कर सकते!

(C). ध्यान के विस्तार में कमी/ जैसा कि हमने उपरोक्त point मैं पढ़ा की मंदबुद्धि बच्चों में अवधान केंद्रित करने की क्षमता नहीं होती, इसी कारणवश वह अपना ध्यान केंद्रित नहीं रख सकते अर्थात हम कह सकते हैं की जब वह ध्यान ही केंद्रित नहीं रख सकते तो ध्यान का विस्तार कैसे हो सकता है ! अतः ध्यान के विस्तार में कमी पाई जाएगी!

(D) सीमित शब्द भंडार/ मंदबुद्धि बालकों के शब्द भंडार में कमी पाई जाती है, ऐसे बालक गिने चुने शब्दों का ही प्रयोग करते हैं , उच्च ग्रेड के शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते! अतः सीमित शब्द भंडार पाया जाता है!

3️⃣ हीन व्यक्तित्व=
मंदबुद्धि बालकों में हीन व्यक्तित्व का समावेशन होता है जिसके संदर्भ में निम्न बिंदु दिए गए हैं
(A) उदासीन/khinn का होना/
मंदबुद्धि बालकों में हीन व्यक्तित्व पाया जाता है ,जिसके चलते वह अपने आपको दूसरों की अपेक्षा बहुत ही निम्न श्रेणी का समझते हैं ,जिसके कारण वह उदास रहते हैं!

(B) कुछ भी कार्य करने में शिथिल होना/
मंदबुद्धि बच्चों में हीन व्यक्तित्व के रहते हुए कार्य करने की शिथिलता पाई जाती है ,जिसके रहते वह किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते, वह किसी कार्य को पूरा नहीं कर सकते और उनमें कार्य करने की शिथिलता उत्पन्न हो जाती है!

(C) स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता का ना होना/
मंदबुद्धि बालक अपने अंदर जागृत हो रहे विचारों को स्पष्ट तौर पर व्यक्त नहीं कर पाते ऐसे बालकों में अपने भाव विचार दूसरों के सामने रखने में झिझक या शब्दों का अभाव रहता है
वह असमंजस में रहते हैं कि हम अपने विचारों को किस प्रकार रखें!

(D) उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते/
मंदबुद्धि बालक दिए हुए उत्तरदायित्व की पूर्ति करने में सक्षम नहीं रहते क्योंकि उनके अंदर जिम्मेदारियों को पूरा करने की क्षमता नहीं होती!

4️⃣ शैक्षिक पिछड़ापन= मंदबुद्धि बालकों में शैक्षिक पिछड़ापन पाया जाता है जो इस प्रकार है- (A) शैक्षिक उपलब्धि न के बराबर होती है/ मंदबुद्धि बालकों में शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर पाई जाती है, वह शिक्षा में अच्छी उपलब्धि हासिल नहीं कर पाते उनमें शिक्षा से जुड़े हुए कार्यों को करने की क्षमता भी नहीं होती है!

(B) शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है/
जैसा कि आप जानते हैं,मंदबुद्धि बालक शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े होते हैं,जिससे कि उनके लिए शिक्षण संबंधी कार्य काफी कठिन हो जाता है!

(C) ratne की प्रवृत्ति/
ऐसे बालकों में सोचने ,समझने , तर्क करने की क्षमता नहीं पाई जाती है, इस कारण वह किसी भी विषय वस्तु को समझकर नहीं सीख सकते अर्थात उन्हें ratne की प्रवृत्ति प्रयोग में लानी पड़ती है!

(D) मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम/
मंदबुद्धि बालकों में मानसिक आयु कम पाई जाती है ,उनका बुद्धि स्तर कम रहता है, ऐसे बालकों की शारीरिक वृद्धि होती रहती है पर मानसिक आयु स्तर सीमित ही रहता है!

5️⃣ सीमित प्रेरणा और संवेग=
मंदबुद्धि बालकों में सीमित मात्रा में प्रेरणा और संवेग रहता है इस संदर्भ कुछ खास बिंदु इस तरह हैं-
(A) कल्पना शक्ति से रहित/
मंदबुद्धि बालकों में कल्पना शक्ति का अभाव रहता है, वह किसी भी विषय पर अमूर्त चिंतन नहीं कर पाते क्योंकि उनमें इतनी बौद्धिक क्षमता नहीं होती है!

(B) प्रेरणा साधारण और सीमित/
ऐसे बालकों में प्रेरणा साधारण तरीके की और सीमित मात्रा में होती है , उनमें अत्यधिक प्रोत्साहन नहीं रहता है, जिसके कारण वह कम जिज्ञासु भी होते हैं!

(C) मस्तिष्क sujh/ जिज्ञासा / मंदबुद्धि बालकों के मस्तिष्क में सोचने समझने तथा जिज्ञासा की कमी होती है, जिस वजह से वह किसी विषय वस्तु पर तर्क व गहन चिंतन नहीं कर पाते और जिज्ञासु भी नहीं रहते हैं!

(D) क्रोध , लोभ, मोह इत्यादि के संवेग से वंचित/
मंदबुद्धि बालकों के जीवन पर संवेग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता वह इन सब के परे होते हैं!

6️⃣ कुसमायोजन की स्थिति = मंदबुद्धि बालकों में समायोजन ना कर पाने की स्थिति पाई जाती है-

(1) निम्न स्तर का समायोजन/
मंदबुद्धि बालकों में किसी भी परिस्थिति में समायोजन करने की योग्यता नहीं पाई जाती!

(2) सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ/
ऐसे बालक समाज से ज्यादा लगाव नहीं रखते वे सामाजिक कार्यों में भाग लेना नहीं चाहते ,समाज के वातावरण में समायोजन नहीं कर पाते जिसके कारण वह सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं!
(3) उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता/
ऐसे बालकों को उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता क्या अच्छा है और क्या सही यह जानने में उनकी बुद्धि काम नहीं करती!
(4)समूह में समायोजन ना कर पाना/
ऐसे बालक समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं चाहे वह खेल का मैदान हो कक्षा कक्ष या किसी भी प्रकार का समूह उसमें समायोजन नहीं कर पाते क्योंकि उनमें इस क्षमता का अभाव होता है!
7️⃣ असामान्य शारीरिक संरचना=
मंदबुद्धि बालकों में शारीरिक संरचना सामान्य नहीं पाई जाती-
(1) सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन/
मंदबुद्धि बच्चों में सामान्य बालकों की अपेक्षा शारीरिक गठन अलग पाया जाता है जैसे कि सिर बड़ा गर्दन छोटी और भी कई प्रकार की भिन्नता पाई जाती है!
(2) कद छोटा होता है/
ऐसे बालकों में सामान्य बालकों की अपेक्षा कद छोटा पाया जाता है उनकी शारीरिक वृद्धि /ग्रोथ अच्छी नहीं हो पाती!

(3) pair छोटे तथा त्वचा मोटी/
ऐसे बालकों में सामान्य बालकों की अपेक्षा पैर छोटे -छोटे होते हैं तथा त्वचा मोटी होती है!

(4) उदासीन चेहरा/ ऐसे बालकों का चेहरा उदासीन रहता है क्योंकि वह हीन व्यक्तित्व के कारण सुस्त रहते हैं!

(5) शारीरिक अंग स्थिर/
मंदबुद्धि बालकों में शारीरिक अंग स्थिर रहते हैं उनमें अधिकाधिक स्थिरता देखी जाती है!
🌺RITU YOGI🌺
🙏🏻 समाप्त🙏🏻


💫मंदबुद्धि बालक💫

शैक्षिक दृष्टिकोण:-ऐसे बालकों की सूझबूझ बहुत तेज नहीं होती है। ऐसी बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा पढ़ने में बहुत ही धीमे होते हैं।
२)ऐसे बालकों की शैक्षिक क्षमता बहुत ही कम होती है
३) ऐसी बालकों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती हैं।

AAMD(American association of mental deficiency) के अनुसार मंदबुद्धि बच्चों की मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूल व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है।

🔅 मंद बालक की विशेषताएं🔅

  1. बौद्धिक न्यूनता:-
    i. निम्न शैक्षिक स्तर:-ऐसी बालकों का शैक्षिक स्तर निम्न होता है।
    ii. बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है।
    iii. अधिक विस्मरण:-मंद बुद्धि बालकों में भूलने की क्षमता बहुत ही अधिक होती है ये किसी भी चीज कार्य विषम क्षेत्र और अन्य चीजों में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते तथा कोई भी चीज जल्दी भूल जाते है।

2) अनियंत्रित मानसिक क्रिया:-
1) मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है:-ऐसे बालकों की मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता है।
2) अवधान को केंद्र नहीं करना
3)ध्यान से विस्तार में कमी।
4) ऐसे बालक का शब्द भंडार सीमित होता है।

💫हीन व्यक्त्तिव💫
1)ऐसा बालक उदासीन खिन्न मिजाज का होता है।
2) ऐसी बालक कोई भी काम करने में शिथिल रहते हैं।
3)स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना।
4) उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं कर सकते है।

🔆शैक्षिक पिछड़ापन🔆

  1. शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है।
    2.इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होती है।
    3.ऐसे बालक की रटने की प्रवृत्ति होती थी।
  2. मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है।

🔆सीमित प्रेरणा और संवेग🔆

  1. कल्पनाशक्ति से रहित होते है।
    2.प्रेरणाएं साधारण व समिति होती है।
  2. मस्तिष्क सूक्ष्म जिज्ञासा होती है।
    4.क्रोध लोभ मोह,इत्यादि के संवेग से वंचित

🔅 कुसमायोजन की स्थिति🔅

  1. ऐसी बालक निम्न स्तर का समायोजन कर पाते हैं।
  2. मंदबुद्धि का बालक सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहता है।
  3. ऐसे बालकों को उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं रहता है।
  4. समूह में समायोजन:- ऐसे बालक को समूह में समायोजन करने में दिक्कत होती है वह समाज में रहकर भी समाज के नियमों का पालन करने में हिचकीचाता है।
  5. असामान्य शारीरिक संरचना:-
    1) सामान्य बच्चों से भिन्न होते हैं।
    2) ऐसे बाला को का कद नाका हो सकता है पर छोटे तथा त्वचा मोटी होती है।
    3) मंदबुद्धि बालकों के चेहरे में हमेशा उदासी रहती है।
    4) मंदबुद्धि बालकों के शारीरिक अंग शिथिल होते हैं।

✍🏻✍🏻 Notes by Raziya khan✍🏻✍🏻


🌻मंद बुद्धि बालक 🌻
मंद बुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 90से कम होता है मंद गति से सीखने वाला बालक अपने कार्य को करने में संक्षम नही हो पाता है और उन्हें दिक्कतो का सामना करना पड़ता है
🌱शैक्षिक दृष्टिकोण के कारण मंद बुद्धि बालक में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं जैसे –

मंद बुद्धि बालक की सुझ बुझ कम होती है

मंद बुद्धि बालक में किसी कार्य को करने में क्षमता कम होती हैं

ध्यान केंद्र की क्षमता कम होती हैं

American Association of Mental Dificiency (AAMD) परिभाषा दी है मंद बुद्धि के बालको के बारे में बताया हैं
“मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषो के साथ साथ ही पाई जाती हैं, जो कि विकास काल के समय स्फुटित होता है
🌻मंद बुद्धि बालक की विशेषताएँ 🌻
🌸बौद्धिक न्यूनता🌸 बौद्धिक न्यूनता कम पायी जाती हैं।

निम्न शैक्षिक स्तर -मंद बुद्धि बालक शैक्षिक स्तर पर निम्न होते है

बुद्धि लब्धि <70- मंद बुद्धि बालक की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती हैं

अघिक विस्मरण -मंद बुद्धि बालक अघिक विस्मरण होते हैं किसी भी चीज को जल्दी याद करते है और उतनी ही जल्दी भूल जाते हैं

दूसरो की सहायता की अपेक्षा -मंद बुद्धि बालक दूसरो की सहायता लेने चाहते हैं वो खुद से काम करने में असमर्थ होते है उन्हें आत्म विश्वास की कमी होती हैं

🌸अनियंत्रित मानसिक क्रियाए

मानसिक क्रियाओ पर नियंत्रण नही होता है

अवघान (टेशन) को केंद्रित नही करते पाते हैं -मंद बुद्धि बालक में घ्यान देने की क्षमता कम होती हैं

मंद बुद्धि बालक के घ्यान में विस्तार की कमी होती हैं

सीमित शब्द भंडार -मंद बुद्धि बालक में शब्द सीमा कम होती हैं वो बहुत सोचकर बोलते हैं

🌸हीन व्यक्तित्व 🌸
वयक्तति का हाव भाव से ही हम पता कर लेते हैं जैसे –
ःउदासीन, खीन मिजाज का होना
ःकुछ भी कार्य में शिथिल (सुस्त होते है) घीरे घीरे करते है
ः स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती हैं
ःउतरदायितव की पूर्ति नही कर पाते
🌸शैक्षिक पिछड़ापन 🌸
ःशैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती हैं शिक्षा में बहुत पीछे रहते हैं वो ज्ञान उपलब्ध नहीं कर पाते हैं
ःइनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है
ःरटने की प्रवृति अधिक होती हैं
ःमानसिक आयु से शारीरिक आयु से कम होती हैं
🌸सीमित प्रेरणा और संवेग 🌸
ःकल्पना सहित से रहित
क्लपना शक्ति मंद बुद्धि बालक में नहीं होती हैं वो उतना सोच ही नहीं पाते है
ःप्रेरणा साघारण और सीमित रहती हैं
ःमसितष्क सुझ बुझ में कमी /जिज्ञासा उत्सुकता ना होना
ःक्रोघ ,लोभ ,मोह इत्यादि के संवेग से वंचित रह जाते है
🌸कुसमायोजन की स्थिति 🌸
जब बालक कोई काम करता है तो उन्हें ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जो सोचते भी नहीं है उनके अनुकूल कुसमायोजन होती हैं
ःनिम्न स्तर का समायोजन कम होती हैं
ःसामाजिक व्यवहार में अनभिज्ञ (नही पता होना) रहते हैं -समाज में जो कार्य होते है उससे वो अनभिज्ञ रहते हैं
ः उचित अनुचित का ज्ञान नहीं – क्या सही है क्या गलत है इसका उनको ज्ञान नही होता है
ःसमुह में समायोजन नही कर पाते है – समुह समयोजन से बच्चे बहुत कुछ सीखते है एक साथ रहना सीखते है अपने विचार को वयक्त करते है मगर मंद बुद्धि बालक ऐसा करने में सक्षम नही होते है
🌸असामान्य शारीरिक संरचना
ः सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन
ःकद नाटा, पैंड़ छोटा, त्वचा मोटी
ःउदासीन चेहरा
ःशारीरिक अंग शिथिल होती हैं
🖊
Notes By -Neha Roy


मंदबुद्धि बालक
*शैक्षिक दृष्टिकोण
-सूझबूझ से काम नहीं लेते हैं (जैसे-किसी भी कार्य करने की कैपेसिटी कम होती है)
ध्यान केंद्रण की क्षमता कम होती है
*American association of mental deficiency
-मानसिक मतदान मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो के अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ- साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फूटित होती है
मंदबुद्धि बालक की विशेषता-
बौद्धिक न्यूनता
निम्न शैक्षिक स्तर
बुद्धि लब्धि Less then 70 होती है
अधिक विस्मरण
दूसरों से सहायता की अपेक्षा
अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं-
(1) मानसिक क्रियाएं पर नियंत्रण नहीं है
(2) अवधान या ध्यान को केंद्रित नहीं करना
(3) ध्यान के विस्तार में कमी (जैसे-ध्यन कैसे भी लिंक करके बढ़ाएं)
(4) सीमित शब्द भंडार (जैसे-जानने पर भी शब्द का भंडार नहीं हो पाता है)

हीन व्यक्तित्व-
(1) उदासीन, खिन्न मिजाज का होना (जैसे-अपने जिंदगी में उदास रहना या upset रहना
(2) कुछ भी कार्य करने में शिथिल होते हैं (जैसे-शुस्थ रहता है, बालक आलसी होता है, लेजी रहता है, सक्रिय नहीं होता है)
(3) स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना
(4) उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं कर पाता है

शैक्षिक पिछड़ापन-
(1) शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है(मतलब-ऐसे बच्चों को कोई भी उपलब्धि नहीं मिलती है)
(2) ऐसे बच्चों के लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होते हैं (शिक्षक समझाते -समझाते परेशान हो जाते हैं फिर भी बचा नहीं समझते है)
(3) रखने की प्रवृत्ति रहती है (समझने की क्षमता नहीं होती है)
मानसिक आयु शारिरिक आयु से कम होती है (जैसे बच्चा 10 साल का है तो 10 साल की तरह बुद्धि होनी चाहिए)

सीमित प्रेरणा और संवेग
(1) किसी भी कार्य के प्रति इमेजिंग नहीं कर पाते हैं
(2) कल्पना शक्ति से रहित होते हैं
(3) प्रेरणा साधारण और सीमित होती है
(4) मस्तिष्क की सूझबूझ या जिज्ञासा नहीं होती है
(5) क्रोध, लोभ, मोह, इत्यादि।
संवेग से वंचित रहते हैं।

कुसमायोजन की स्थिति-
(1) निम्न स्तर का समायोजन (कोई भी चीज को एडजस्ट नहीं कर पाना)
(2) सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं।
(3) उचित अनुचित का ज्ञान नहीं है (मतलब अच्छा बुरा का ज्ञान नहीं होता)
(4) समूह में समायोजन नहीं हो पाना

असामान्य शारीरिक संरचना-
(1) सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन (मतलब और असामान्य रहती है)
(2) कद नाटा, पैर छोटे व त्वचा मोटी हो सकती है
(3)उदास चेहरा (फेस अजीब रहता है)
(4) अंग शिथिल होता है।

Notes By-Sriram Panjiyara


🌷 मंद बुद्धि बालक 🌷
🌷 ( Mentally Retarded Children ) 🌷

ऐसे बच्चे मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं, एवं मानसिक रूप से अक्षम होने के साथ-साथ इनकी बुद्धि लब्धि भी सामान्य से कम होती है।

मंद बुद्धि बालकों में शैक्षिक रूप से निम्न लक्षण देखने को मिलते हैं –

👉मंदबुद्धि बालकों में सूझबूझ की क्षमता तेज नहीं पाई जाती है;
👉 मंदबुद्धि बालकों में सोचने और समझने की क्षमता न्यून पाई जाती है;
👉मंदबुद्धि बालकों का ध्यान केंद्रित नहीं रह पाता है।

🌺( American Association of Mental Deficiency, (AAMD) )🌺
द्वारा मंदबुद्धि बालकों के विषय में परिभाषा दी गई कि –

🌺” मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है, जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ-साथ ही पाई जाती है, जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है।”🌺

🌲🌲🌷 मंद बुद्धि बालकों की विशेषताएं 🌷🌲🌲

  1. 🌺 बौद्धिक न्यूनता :-🌺

👉 निम्न शैक्षिक स्तर , मंदबुद्धि बालकों का शैक्षिक स्तर सामान्य से भी निम्न होता है।

👉मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि IQ 70 से भी कम होती है।

👉अधिक विस्मरण , अर्थात मंदबुद्धि बालक न तो जल्दी सीख ही पाते हैं और यदि कुछ सीख भी लिया तो इनमें जल्दी भूलने की प्रवृत्ति होती है। अपनी पूर्व ज्ञान और अनुभवों को याद रखने में और दोहराने में अक्षम होते हैं

👉 दूसरों की सहायता की अपेक्षा , अर्थात् मंदबुद्धि बालक अपने हर कार्य में दूसरों की सहायता की उम्मीद रखते हैं।

  1. 🌺 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं :-🌺

👉 मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता है।

👉 अवधान ( Attention ध्यान )को केंद्रित नहीं कर पाते हैं। चूँकि ऐसे बालकों में स्मरण की क्षमता कम पाई जाती है इसीलिए ये किसी भी चीजों, बातों आदि पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
👉 ध्यान विस्तार में कमी। अतः ऐसे बालकों के साथ जब कुछ नया होता है तो उस समय बो सामान्य बालकों की तरह अपने पुराने ध्यान को वर्तमान समय से जोड़ ( Link) ) नहीं कर पाते हैं।

👉 सीमित शब्द भंडार । ये मानसिक और शैक्षिक स्तर से पिछड़े होने के कारण इनके पास शब्द भंडार ( Vocabulary ) की कमी होती है।

  1. 🌺 हीन व्यक्तित्व :- 🌺 ‘व्यक्तित्व ( Personality ) ही एक व्यक्ति को समाज में एक विशेष रूप प्रदान करता है परंतु , …
    मंद बालकों में व्यक्तित्व की हीनता पाई जाती है।’

👉 उदासीन या मिजाज का खिन्न होना , ये उदास और एकाकी स्वभाव के होते हैं।

👉 ये कुछ भी कार्य करने में शिथिल और आलसी होते हैं।

👉 ऐसे बालकों में स्पष्ट रूप से अपने विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती है।

👉 उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते, अर्थात ये ( Irresponsible गैर जिम्मेदार ) होते हैं।

  1. 🌺 शैक्षिक पिछड़ापन :- 🌺 👉 शैक्षिक उपलब्धि न के बराबर , ऐसेबालकों का मानसिक स्तर और बुद्धि लब्धि कम होने के कारण इनकी शैक्षिक उपलब्धि बहुत कम होती है।

👉 ऐसे बच्चों के लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है क्योंकि इनका IQ बुद्धि लब्धि बहुत कम होती है इसलिए इनको शिक्षा देना सामान्य से बहुत कठिन होता है।

👉 मंदबुद्धि बालकों में रटने की प्रवृत्ति होती है।

👉 मंदबुद्धि बालकों की मानसिक आयु, शारीरिक आयु से कम होती है।

  1. 🌺 सीमित प्रेरणा और संवेग🌺 👉 कल्पना शक्ति से राहित, चूँकि मंदबुद्धि बालक मानसिक रूप से निम्न स्तर के होते हैं तो इनकी सोचने , कल्पना ( Imagination ) करने की क्षमता बहुत ही कम होती है।

👉 ऐसे बालकों की प्रेरणायें साधारण और सीमित होतीं हैं।

👉 ऐसे बलकों का मस्तिष्क सुप्त और जिज्ञासा ( Curiosity ) कम होती है।

👉 मंद बुद्धि बालक क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि के संवेग से वंचित होते हैं।

  1. 🌺 कुसमायोजन की स्थिति 🌺

👉 निम्न स्तर का समायोजन, मंदबुद्धि बालक( Adjustment )करने में अक्षम होते हैं।
👉 सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ, ऐसे बालक सामाजिक व्यवहार और सामाजिक वातावरण से अपरचित होते हैं।

👉 उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता, मंद बुद्धि बालक सही और गलत में ठीक से विभेद नहीं कर पाते हैं।

👉 समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं, अर्थात मंद बुद्धि बालक किसी भी समूह में खुद को समायोजित करने में असमर्थ होते हैं।

7, 🌺 असामान्य शारीरिक संरचना 🌺

👉 सामान्य से भिन्न , शारीरिक गठन, अर्थात मंदबुद्धि बालक सामान्य बालकों से शारीरिक रूप से भी भिन्न होते हैं।

👉 मंद बुद्धि बालकों का कद छोटा, त्वचा मोटी और पैर छोटे होते हैं।

👉 मंद बुद्धि बालकों का चेहरा अधिकतर उदास रहता है।

👉 मंद बुद्धि बालकों का शारीरिक अंग शिथिल होता हैं। ✍️🏼 जूही श्रीवास्तव ✍️🏼


🎯मन्द- बुद्धि बालक🎯
ऐसे बालक से है जो ” मानसिक” रूप से कमजोर होते है, जिनके मानसिक और बुद्धि इतने कम विकसित हैं कि उनमें मानसिक क्षमताएँ कम विकसित होती है, ऐसे बालको को मन्द-बुद्धि बालक, धीमी गति से सीखने वाले बालक, मानसिक रूय से पिछड़ा बालक तथा मानसिक रूप से विकलांग बालक इन सभी नामों का प्रयोग किया जाता है
🎯शैक्षिक दृष्टिकोण🎯
🌸इनकी सूझ- बुझ की क्षमता में कमी होती हैं।
🌸इनकी समझने की क्षमता में कमी होती हैं।
🌸इनकी ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता में कमी।

🎯 AAMD(American Association_of_mental_Deficiency) 🎯
🌸मानसिक मंदता मुुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती हैं जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ-साथ ही पाई जाती हैं जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती हैं🌸

🎯 मन्द बुद्धि बालक की विशेषताएं🎯
मन्द बुद्धि बालक की विशेषताओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-

🌸 बौद्धिक न्यूनता_🌸
💫इनका शैक्षिक स्तर निम्न प्रकार का होता है।
💫इनकी बुद्धि लब्धी 70 से कम होती हैं।
💫इनमे दूसरों से सहायता की अपेक्षा रहती हैं।
💫 ये अधिक समय तक किसी भी चीज़ को याद नहीं रख पाते।

🌸 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं_🌸
💫इनमे ध्यान के विस्तार में कमी होती हैं।
💫इनका शब्द-भण्डार सीमित होता है।
💫इनका मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता।
💫ये अवधान को केन्द्रित नहीं कर पाते।

🌸हीन व्यक्तित्व🌸_
💫 उदासीन व खिन्न मिजाज़ का होना।
💫कोई भी कार्य करने में शिथिल होना।
💫 स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना।
💫 उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं कर पाना।

🌸 शैक्षिक पिछड़ापन🌸
💫इनकी शैक्षिक-उपलब्धि ना के बराबर होना।
💫इनके लिए शिक्षण कार्य काफ़ी कठिन होता है।
💫इनके अन्दर रटने की प्रवृति होती है।
💫इनकी मानसिक आयु , शारीरिक आयु से कम होती हैं।

🌸 सीमित प्रेरणा और संवेग🌸
💫 कल्पना शक्ति से रहित।
💫 प्रेरणा साधारण और सीमित।
💫 क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि के संवेग से वंचित।

🌸कुसमायोजन की स्थिति🌸
💫निम्न स्तर का समायोजन होता है।
💫 सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ होते है।
💫 उचित व अनुचित का ज्ञान नहीं होता है।
💫 समुह में समायोजन नहीं कर पाते हैं।

🌸असामान्य शारीरिक संरचना🌸
💫इनका शारीरिक गठन सामान्य से भिन्न होता है।
💫 इनका चेहरा उदास दिखाई देता है।
💫इनका शारीरिक अंग शिथिल होता है।
💫इनका कद्द नाटा, पैर छोटे, त्वचा मोटी होती हैं।

📚✍🏻
Notes by NishaYadav
🙏🏻🙏🏻 धन्यवाद् 🙏🏻🙏🏻


🔸मंदबुद्धि बालक ( mentally retarded children )🔸 मंदबुद्धि बालक वह बालक होते हैं जो मानसिक रूप से कमजोर तथा जिन की बुद्धि लब्धि सामान्य बालक से कम होती हैं। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि मंदबुद्धि बालक वह है जो सामान्य बालक से भिन्न है वह बालक कोई भी कार्य सामान्य बालक की तरह नहीं कर सकता और यदि करता भी है तो बहुत समय लगाएगा । मंदबुद्धि बालक सामान्य बालक की तुलना में शैक्षिक एवं मानसिक दोनों दृष्टिकोण से कमजोर होता है । ➡शैक्षिक दृष्टिकोण :- अ) इनकी सूझ – बूझ कम होती है ब) क्षमता कम होती है स) ध्यान केंद्रण की कमी होती है *** A A M D — American Association of mental deficiency ↔ के अनुसार – मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत करती है। जो की अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ ही पाई जाती है ।जो कि विकास काम के समय स्फुटित होती है । मंदबुद्धि बालक की विशेषता :- 1 बौद्धिक क्षमता :– अ) निम्न शैक्षिक स्तर । ब) बुद्धि लब्धि 70 से कम । स) अधिक विस्मरण करने की क्षमता । द)दूसरों की सहायता की अपेक्षा । 2 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं :– अ) मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है। ब) अवधान को केंद्रित नहीं कर पाता है । स) ध्यान के विस्तार में कमी होती है। द ) सीमित शब्द भंडार होता है। 3 हीन व्यक्तित्व :– अ) उदासीन ,खिन्न मिजाज का होना ।ब) कुछ भी काम करने में शिथिल । स) स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना। द) उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करना । 4 शैक्षिक पिछड़ापन :– अ) शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर। ब) इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है। स)ये रटने की प्रवृत्ति रखते हैं ।द) मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है। 5 सीमित प्रेरणा और संवेग :– अ) कल्पना शक्ति से रहित। ब) प्रेरणा साधारण और सीमित होती है। स) मस्तिष्क की सूझ – बूझ में कमी / जिज्ञासु प्रवृत्ति का ना होना द)क्रोध , लोभ ,मोह इत्यादि से वंचित होना । 6 कुसमायोजन की स्थिति :– अ) निम्न स्तर का समायोजन। ब)सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ स) उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता है ।द) समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं। 7 असामान्य शारीरिक संरचना :– अ )सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन । ब) कद नाटा, पैर छोटा, त्वचा मोटी स) उदास चेहरा । द) अंगों में शिथिलता होती है । ✍️notes by Pragya shukla…… धन्यवाद 🙏🙏


मंदबुद्धि बालक

शैक्षिक दृष्टिकोण-

👉ऐसे बालकों की सूझ बूझ तेज नहीं होती हैं
👉इनमें समझने की क्षमता कम होती है
👉इनकी ध्यान केंद्रण की क्षमता कम होती है

💥AAMD-American association of mental deficiency

💥AAMD ने मंदबुद्धि बालक की परिभाषा निम्न प्रकार दी
मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती हैं ,जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ ही पाई जाती है, जो कि विकास के काल के समय स्फुटित होती है

💥मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं –

1.बौद्धिक न्यूनता-

👉निम्न शैक्षिक स्तर -मंदबुद्धि बालकों का शैक्षिक स्तर बहुत निम्न होता हैं।
👉बुद्धि लब्धि -मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है ।टर्मन के अनुसार मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 90 से कम बतायी है। लेकिन 70 से ऊपर की बुद्धि लब्धि वाले बालकों की उन्नति हो सकती हैं ,शैक्षिक प्रगति हो सकती है परंतु 70 से नीचे वाले की बहुत कम प्रगति हो सकती है।
👉अधिक विस्मरण -ऐसे बालकों को ज्यादा बातें याद नहीं रह पाती है यह बातों को जल्दी भूल जाते हैं
👉दूसरों की सहायता की अपेक्षा -ऐसे बालक अपने कार्यों को करने के लिए ज्यादातर दूसरों पर निर्भर रहते हैं, दूसरों से अपेक्षा रखते हैं

2.अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं-

👉ऐसे बालकों का मानसिक क्रिया पर नियंत्रण नहीं होता है अर्थात जैसे इन्हें साबुन लेने के लिए भेजा गया था लेकिन साबुन की जगह यह टूथपेस्ट लेकर आ गया। इस प्रकार इनकी मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रहता है।

👉अवदान या ध्यान को केंद्रित नहीं कर पाते –
ऐसे बालक किसी कार्य में अपना ध्यान ज्यादा समय के लिए नहीं लगा सकते हैं

👉ध्यान के विस्तार में कमी होती है।

👉सीमित शब्द भंडार होता है -ऐसे बालकों के पास शब्द भंडार की कमी होती है। अपने विचारों को प्रकट करने के लिए इनके पास लिपिबद्ध तरीके से शब्द नहीं होते हैं

3.हीन व्यक्तित्व-

👉उदासीन, खिन्न मिजाज का होना -ऐसे बालक किसी भी कार्य में रुचि नहीं लेते हैं ,उदासीन बैठे रहते हैं
👉कुछ भी कार्य करने में शिथिल होते हैं अर्थात यह किसी का कार्य को करने करने में सुस्ताते हैं, आलस करते हैं, सक्रिय नहीं रहते हैं
👉स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना अर्थात अपने विचारों को व्यक्त करने में यह असमंजस में पड़े रहते हैं।
👉उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते हैं -ऐसे बालक किसी भी कार्य का उत्तरदायित्व लेने से पीछे हटते हैं उसमें ज्यादा रुचि नहीं लेते हैं ,सक्रिय होकर कार्य नहीं करते है

4.शैक्षिक पिछड़ापन-

👉ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है 👉इनके लिए शिक्षण कार्य करना काफी कठिन होता है 👉यह रटने की प्रवृत्ति रखते हैं
👉इनकी मानसिक आयु ,शारीरिक आयु से कम होती है

5.सीमित प्रेरणा और संवेग-

👉यह कल्पना शक्ति से रहित होते हैं
👉 इनकी प्रेरणा साधारण और सीमित होती है ज्यादा उत्साहित नहीं होते हैं।
👉 मस्तिष्क में सूझ -बूझ, उत्सुकता, जिज्ञासा में कमी होती है
👉 क्रोध ,लोभ ,मोह इत्यादि संवेग से वंचित होते अर्थात इनकी किसी कार्य को करने में जिज्ञासा नहीं होती है इस कारण यह क्रोध ,खुशी जैसे सभी अवसरों पर समान रहते हैं।

6.कुसमायोजन की स्थिति-

👉निम्न स्तर का समायोजन-ऐसे बालक किसी भी परिस्थिति में अपने आप को समायोजित नहीं कर पाते हैं।
👉 सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ (अनजान) रहते हैं
👉ऐसे बालकों को उचित -अनुचित का ज्ञान नहीं होता है
👉 समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं।

7.सामान्य शारीरिक संरचना –

👉ऐसे बालकों की शारीरिक संरचना सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन की होती है।
👉 इनका कद नाटा या छोटा, पैर छोटे तथा त्वचा मोटी होती है
👉चेहरा उदास होता है इनके चेहरे पर उत्सुकता का तेज कभी दिखाई नहीं देता है
👉 इनके शारीरिक अंग शिथिल होते हैं।

Notes by Ravi kushwah


🔘 मंदबुद्धि बालक
mentally retarded children
🔹 मंदबुद्धि बालक मानसिक रूप से कमजोर होते हैं वह किसी भी कार्य को नहीं कर पाते हैं ऐसे बालकों का जीवन एक समस्या बन जाता है यह दूसरों पर निर्भर होते हैं ऐसे बालकों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है

🔘 मंदबुद्धि बालक शैक्षिक दृष्टिकोण से

🔹 मंदबुद्धि बालक अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं ऐसे बालक सूझबूझ से काम नहीं लेते हैं और सोचने समझने की क्षमता कम होती है

🔘 मंदबुद्धि बालकों की परिभाषा
🔹AAMD के अनुसार
American association of mental deficiency
मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथी पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है

🔘 मंदबुद्धि बालक की विशेषता

1️⃣ बौध्दिक न्यूनता
🔹मंदबुद्धि बालक की बौद्धिक क्षमता निम्न स्तर की होती है
ऐसे बालक की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है अधिक विस्मरण की क्षमता होती है ऐसे बालक दूसरों पर आश्रित होते हैं उन्हें अधिक सहायता की जरूरत होती है

2️⃣ अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं
🔹 मन बुद्धि बालक मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं
🔹 वह अवधान या ध्यान को अधिक देर तक केंद्रित नहीं कर पाते
🔹 ऐसे बालकों का शब्द भंडार बहुत ही कम या सीमित होता है

3️⃣ हीन व्यक्तित्व
🔹 मंदबुद्धि बालक का व्यक्तित्व बहुत हीन भावना से ग्रस्त होता है
🔹 वह हमेशा उदासीन एवं खिन्न मिजाज के होते हैं
🔹 ऐसे बालक अपनी जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर पाते हैं
🔹 मंदबुद्धि बालक अपने विचार को स्पष्ट रूप से किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं
🔹 ऐसे बालक में कुछ भी कार्य करने में शिथिलता होती है

4️⃣ शैक्षिक पिछड़ापन
🔹 मंदबुद्धि बालक की शिक्षा या उपलब्धि ना के बराबर होती है
🔹इनके लिए शिक्षण कार्य बहुत ही कठिन काम होता है
🔹ऐसे बालक में रटने की प्रवृत्ति होती है और कुछ समय बाद भूल जाते हैं
🔹 ऐसे बालको की मानसिक आयु , शारीरिक आयु से बहुत ही कम होती हैं

5️⃣ सीमित प्रेरणा और संवेग
🔹 ऐसे बालों को में कल्पना करने की शक्ति नहीं होती है
🔹प्रेरणा साधारण और सीमित होती है
🔹 मस्तिक में सूझबूझ या जिज्ञासा उत्पन्न करने की शक्ति नहीं होती है
🔹ऐसे बालकों में क्रोध, लोभ ,मोह, इत्यादि से उन्हें कोई मतलब नहीं होता हैं वह इससे वंचित होते हैं

6️⃣ कुसमायोजन की स्थिति
🔹 मंदबुद्धि बालकों में निम्न स्तर का समायोजन होता है वह सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ होते हैं उचित ,अनुचित का उन्हें ज्ञान नहीं होता है समूह में समायोजन नहीं कर पाते हैं

7️⃣ असामान्य शारीरिक संरचना
🔹ऐसे बालकों को की शारीरिक संरचना सामान्य बच्चों से भिन्न होती है कद नाटा ,पैर छोटे , त्वचा मोटी होती है उदास चेहरा अंग शिथिल होता है
Nots by sanu sanwle

—–🌺 मंदबुद्धि बालक🌺
ऐसे बालक जो मानसिक रूप से कमजोर है जो सामान्य बालकों की तुलना में अत्यंत पिछड़े हैं जिनका मानसिक विकास सुचारू रूप से संचालित नहीं हुआ है जो कार्य को अति धीमी गति से करते हैं यह बालक मानसिक रूप से मंद बालक , मानसिक रूप से विकलांग बालक, धीमी गति से सीखने वाले बालक, के रूप में जाने जाते हैं यह मंदबुद्धि बालक कहलाते हैं🌺
🌺 सूझबूझ का अभाव🌺– ऐसे बालकों की सूझबूझ एवं तर्कशक्ति का अभाव होता है वह गहराई से तर्क विश्लेषण करने में सक्षम नहीं होते हैं।
🌺 समझने की क्षमता का कमजोर होना–मंदबुद्धि बालक में समझने की क्षमता का विकास नहीं होता है वह चीजों को जल्दी नहीं समझ पाते।
🌺 ध्यान केंद्रण– मंदबुद्धि बालक में ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है वह अपनी एकाग्रता को अधिक समय तक नहीं बनाए रख पाते हैं एकाग्रता न होने से समझ का विकास नहीं हो पाता।
🌺AAMD:- American Association of mental deficiency 🌺🌺🌺
मंदबुद्धि बालक के संबंध मेंAAMD ने निम्न परिभाषा प्रस्तुत की है:-
✍🏻 मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषो के साथ -साथ ही पाई जाती है जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है।
🌺 मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं🌺
(1)बौद्धिक न्यूनता:-मंदबुद्धि बालक का शैक्षिक स्तर निम्न होता है सामान्य बालकों की तुलना में शिक्षा में काफी पीछे रह जाते हैं।
🌺 बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है:- मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है जो मानसिक मंदता का एक प्रमुख कारण है।
🌺 अधिक विस्मरण🌺 मंद बुद्धि बालक सीखी हुई बातों को लंबे समय ताकि स्मृति में भंडारित नहीं कर पाते हैं अर्थात यह कह सकते हैं कि सीखी हुई बातें इन्हें कुछ ही समय मे विस्मृत हो जाती हैं यह ज्यादा समय तक याद नहीं रख पाते हैं।
🌺 दूसरों की सहायता की अपेक्षा:- मंदबुद्धि बालक हमेशा दूसरों पर आश्रित रहते हैं उन्हें लगता है कि वह यह कार्य खुद से नहीं कर सकते जब उनका दूसरा कोई सहयोग करेगा तभी वह कार्य को संपन्न कर पाएंगे इस सोच की वजह से वह हर वक्त दूसरे पर आश्रित रहते हैं और स्वयं के द्वारा कोई कार्य नहीं करना चाहते।
(2)🌺 अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं🌺:-
🌺 मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होना:-मंदबुद्धि बालकों का मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता है वह क्या कार्य करते हैं और क्यों करते हैं इसका ज्ञान ही नहीं होता वह किसी कार्य को सही तरीके से नहीं कर पाते मंदबुद्धि बालक सोचते अलग है और करते कुछ अलग है अर्थात कार्य में सामंजस्य और नियंत्रण नहीं होता।
🌺 अवधान को केंद्रित नहीं करना:- मंदबुद्धि बालक ज्यादा देर तक किसी कार्य पर अवधान नहीं बना पाते कोई किसी कार्य को अगर कर रहे तो क्यों कर रहे हैं या उन्होंने कितना कार्य किया और कितना नहीं किया इन सब में अंतर स्थापित नहीं कर पाते।
🌺 ध्यान विस्तार में कमी🌺
🌺 सीमित शब्द भंडार:- सामान्य बालकों की तुलना में मंदबुद्धि बालक का शब्द भंडार बहुत कम होता है अपनी बातों को अभिव्यक्त करने के लिए नए-नए शब्दों एवं विचारों को प्रयोग नहीं कर पाते उनके पास ज्यादा शब्द भंडार नहीं होता है कि वह उन शब्दों का उचित प्रयोग कर अपनी बातों को अभिव्यक्त कर सकें।
(3)🌺 हीन व्यक्तित्व:-
✍🏻 मंदबुद्धि बालक उदासीन एवं खिन्न मिजाज के होते हैं उनके अंदर किसी कार्य को करने का साहस नहीं होता है वह किसी कार्य को मन लगाकर नहीं कर पाते
✍🏻 कोई भी कार्य करने में शिथिल होते हैं।
✍🏻 स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना।
✍🏻 उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते हैं।
(4)🌺 शैक्षिक पिछड़ापन🌺:- शैक्षिक उपलब्धि निम्न स्तर की होती है जिसके कारण ग्रहण किए हुए ज्ञान कौशल और कार्य के प्रति निपुणता का अभाव होता है यह बालक शैक्षिक उपलब्धि नहीं हासिल कर पाते।
🌺 इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है
🌺 मंदबुद्धि बालकों में रटने की प्रवृत्ति अधिक होती है वह चीजों को समझने की बजाय रटने पर अधिक बल देते हैं और रटे हुए बातों को ज्यादा समय तक याद भी नहीं कर पाते।
🌺 मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है अगर बालक की आयु 15 वर्ष है तो इनकी मानसिक आयु 5 वर्ष के बालक के समान होना।
(5)🌺🌺 सीमित प्रेरणा और संवेग:- मंद बुद्धि बालकों में कल्पना शक्ति नहीं पाई जाती हैं कल्पना के माध्यम से हम अपने अनुभवो के द्वारा नए विचारों का निर्माण करते हैं और हमें आगे क्या करना है या भविष्य की योजनाएं कैसी होगी इसके बारे में समझ पाते हैं जो कि मंदबुद्धि बालक नहीं कर सकते।
🌺 ऐसे बालकों की प्रेरणाएं साधारण और सीमित होती हैं।
🌺 जिज्ञासा और संवेग का सीमित होना:-ऐसे बालक की जिज्ञासा सीमित होती है वह अधिक जानने के इच्छुक नहीं होते हैं संवेग सीमित होने की वजह से अधिक सूझबूझ नहीं कर पाते
🌺 क्रोध लोभ मोह इत्यादि के संवेग से वंचित होते हैं।
(6)✍🏻✍🏻 कुसमायोजन की स्थिति:-
🌺 निम्न स्तर का समायोजन:-परिस्थिति के अनुसार समायोजन स्थापित नहीं कर पाते हैं उन्हें किस समय पर क्या निर्णय लेना चाहिए क्या उनके लिए सही होगा और क्या नहीं इन सब बातों में अंतर नहीं कर पाते अर्थात सामंजस्य का अभाव होता है।
🌺 सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ रहते हैं:-समाज के नीति नियमों का ज्ञान नहीं होता है समाज के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए क्या समाज के लिए सही है और क्या नहीं इन सब का ज्ञान मंदबुद्धि बालकों को नहीं होता
🌺 उचित अनुचित का ज्ञान न होना
(7)✍🏻✍🏻 असामान्य शारीरिक संरचना:-
🌺 सामान्य बालकों की तुलना में भिन्न शारीरिक गठन।
🌺 कद नाटा पैर छोटे त्वचा मोटी।
🌺 उदास चेहरा।
🌺 अंग शिथिल होते हैं। 🌺 धन्यवाद🌺

Notes by- Abhilasha pandey
—-

🍁 मंदबुद्धि बालक 🍁

शैक्षिक दृष्टिकोण से मंदबुद्धि बालकों की सूझबूझ बहुत तेज नहीं होती है।
यह धीमी गति से सोचते हैं किसी भी चीज को समझने की क्षमता कम होती है ।
ध्यान केंद्रित करने की क्षमता भी कम होती है।

🍁AAMD — American association of mental deficiency.
इस संस्था ने मंदबुद्धि बालकों की परिभाषा दी । जो है➖

⛔मानसिक मंदन मुख्य रूप से औसत से कम बौद्धिक कार्य निष्पादन का संकेत देती है, जो कि अनुकूलन व्यवहार संबंधी दोषों के साथ साथ ही पाई जाती है ,जो कि विकास काल के समय स्फुटित होती है।

🍁 मंदबुद्धि बालक की विशेषताएं

1️⃣ बौद्धिक न्यूनता
▪️ बच्चे का निम्न शैक्षिक स्तर — मंदबुद्धि बालकों का शैक्षिक स्तर बहुत कम होता है।
▪️ बुद्धि लब्धि < 70 — बुद्धि लब्धि 70 से कम होना।
टर्मन के अनुसार मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि 90 से कम होती है ,0 से 90 के बीच में मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि होती है। किंतु 70 से 90 के बीच के बालक अपने अभ्यास से या प्रयास से सामान्य श्रेणी में आ सकते हैं इसीलिए 70 से कम वाले बच्चों को मंदबुद्धि की श्रेणी में रखा जाता है।

▪️ अधिक विस्मरण — बहुत जल्दी ही चीजों को भूल जाते हैं स्मृति अच्छी नहीं होती।

▪️दूसरों की सहायता की अपेक्षा–ऐसे बालक दूसरों से अपेक्षा रखते हैं कि वह उनकी आकर मदद करें। पढ़ाई में और अन्य कामों में दूसरों की मदद चाहते हैं।

2️⃣ अनियंत्रित मानसिक क्रियाएं
▪️ मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता — ऐसे बालक अपनी क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। वह करना कुछ और चाहते है और कर कुछ और देते हैं।

▪️अवधान को केंद्रित नहीं करना –ऐसे बालक अपने ध्यान को केंद्रित नहीं कर पाते, किसी एक विषय में लगातार सोच नहीं पाते एवं अधिगम नहीं कर पाते।
▪️ध्यान के विस्तार में कमी — किसी एक कार्य को करने में इनका ध्यान नहीं लगता है बहुत देर तक किसी एक विषय के बारे में चिंतन नहीं कर पाते‌।

▪️सीमित शब्द भंडार — क्योंकि यह किसी भी कार्य में ध्यान नहीं लगा पाते , अधिगम में ध्यान नहीं लगा पाते एवं इनके स्मृति भी कमजोर होती है इसलिए यह किसी भी शब्द को बहुत देर तक याद नहीं रख पाते और इनके शब्दकोश में कमी आती है।

3️⃣ हिन व्यक्तित्व
▪️उदासीन या खिन्न मिजाज स्वभाव का होना
▪️कुछ भी कार्य करने में शिथिल होते हैं।
▪️ स्पष्ट रूप से विचार व्यक्त करने की क्षमता ना होना ।
▪️उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं करते।

4️⃣ शैक्षिक पिछड़ापन
▪️ शैक्षिक उपलब्धि ना के बराबर होती है — क्योंकि यह मंद गति से सीखते हैं एवं ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते इसलिए इनकी कोई शैक्षिक उपलब्धि नहीं होती।

▪️इनके लिए शिक्षण कार्य काफी कठिन होता है — ध्यान केंद्रित ना कर पाने के कारण इनका अधिगम बहुत लंबा हो जाता है और स्मृति कम होने के कारण किया गया अधिगम भूल जाते हैं।

▪️इनको शिक्षा देना काफी मुश्किल होता है — लगातार एक ही पाठ को पढ़ाने से शिक्षक भी थक जाते हैं और उनके लिए अधिगम कराना कठिन हो जाता है।

▪️रटने की प्रवृत्ति — रटा हुआ भी भूल जाते हैं याद नहीं रहता पर सोचते यहीं है कि रट ले। पर रट नहीं पाते।
▪️ मानसिक आयु शारीरिक आयु से कम होती है।

5️⃣ सीमित प्रेरणा और संवेग
▪️कल्पना शक्ति से रहित होते हैं — कल्पना शक्ति बहुत कम होती है
▪️ प्रेरणा साधारण और सीमित ▪️मस्तिष्क सूझबूझ में कमी/ जिज्ञासा में कमी /उत्सुकता ना होना
▪️ क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि के संवेग से वंचित रहते हैं।

6️⃣ कुसमायोजन की स्थिति
▪️निम्न स्तर का समायोजन — यह किसी भी वातावरण में आसानी से समायोजित नहीं हो पाते हैं, वातावरण के अनुसार अपने आप को बदल नहीं पाते हैं।
▪️सामाजिक व्यवहार से अनभिज्ञ — समाज के बीच कैसा आचरण , कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका ज्ञान नहीं होता है।
▪️उचित अनुचित का ज्ञान नहीं — क्या सही है क्या गलत है , किस जगह पर क्या बोलना है, किसी से कैसी बात करनी है इन सब चीजों का ज्ञान नहीं होता है

▪️समूह में समायोजन नहीं कर पाते — यह किसी भी समूह में आसानी से समायोजित नहीं हो पाते हैं ।

7️⃣ असमान्य शारीरिक संरचना
▪️ सामान्य से भिन्न शारीरिक गठन — मंदबुद्धि बालकों का शारीरिक गठन सामान्य बालकों की तुलना में अलग होता है।
▪️ कद नाटा , पैर छोटा, त्वचा मोटी होती है ।
▪️उदास चेहरा
▪️शारीरिक अंग में शिथिलता होती है।

धन्यवाद

द्वारा
वंदना शुक्ला