Theories of Inclusive Education notes by India’s top learners

✍🏻Manisha gupta ✍🏻

🌺 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 🌺 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि शिक्षा का प्रभाव कैसे या किस प्रकार से पड़ रहा है। सिद्धांत यह बताता है प्रत्येक बच्चे को किस प्रकार की शिक्षा की जरूरत है।

📚समावेशी शिक्षा के अंतर्गत 4 महत्वपूर्ण बातें हैं जो इस प्रकार से है➖

1️⃣ बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे के अधिगम स्तर को एक जैसा करना है अर्थात प्रत्येक बच्चे की प्रकृति को सीखने के प्रति एक समान करने का प्रयास करना है। सामान्य शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि सभी बच्चों को पढ़ाने की प्रवृत्ति एक जैसी होनी चाहिए।

2️⃣ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है यदि आपकी प्रवृत्ति है कि किसी चीज को करने के सक्सेस हो सकते हैं तो अन्य बच्चे की प्रवृत्ति भी किसी चीज को करने के लिए सक्सेस हो सकती है।

लेकिन यहां प्रत्येक बच्चे को एक समान शिक्षा देने का अधिकार है। यह निश्चित करना है कि शिक्षक के द्वारा जो भी शिक्षा प्रदान किया जाए वह सभी बच्चों के लिए एक समान हो जो प्रत्येक बच्चे का अधिकार है। सभी बच्चों के लिए समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना है।

3️⃣ सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाए इस सिद्धांत के द्वारा यह बताया गया है कि प्रत्येक बच्चे को सुविधा अनुसार सामग्री उपलब्ध करा कर बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास किया जाए।

जैसे सरकारी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को कपड़े, लैपटॉप, पुस्तक, साइकिल, धन आदि के माध्यम से बच्चों की उनकी गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। विद्यालयों में सभी बच्चों को सामग्री उपलब्ध करा के उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाया जा सकता है।

4️⃣ शिक्षण में सभी वर्गों ,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व यह है कि वह समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें ‌ जितना हो सके बच्चों के समावेशी शिक्षा के लिए परिवार, शिक्षकों तथा समाज का यह दायित्व होना चाहिए कि वह जितना हो सके उतना सहयोग करें अर्थात अपेक्षित सहयोग करें।

🎯 समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां जैसा कि हम जान गए कि समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है अर्थात समेकित शिक्षा के अंतर्गत ही समावेशी शिक्षा को स्थान दिया गया है।

यह शिक्षा किसी व्यक्ति में या बच्चे में अलग-अलग योग्यता ,क्षमता का विकास करके उसमें समाज से समायोजन करने की योग्यता विकसित करते हैं। और व्यक्तियों को अलग-अलग कौशल प्रदान करके स्वालंबन की दिशा में लाने के लिए प्रेरित करते हैं।

✔️ आर्थिक रूप एवं मानसिक रूप से बच्चे को तैयार करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जिससे वे अपनी जिंदगी अच्छे से जी सके और जिम्मेदार बने।

✔️ समाज में प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है और उन्हें समाज में बेहतर रूप से रहने के लिए यह समाज से समायोजन की प्रक्रिया करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी है तो वह व्यक्ति समाज से समायोजन करने में भी कठिनाई महसूस करेगा। उस व्यक्ति को अपने परेशानी को दूर करने के लिए बहुत सारे स्तर को पार करना पड़ेगा तो उससे समाज से समायोजन करने में अधिक मेहनत की जरूरत होती है जो शिक्षा के माध्यम से बेहतर रूप से समाज से समायोजन कर सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में समाज से समायोजन करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है।इसके माध्यम से किसी व्यक्ति को सही दिशा मिलता है।

🍭 समेकित शिक्षा की आवश्यकता क्यों हुई इसे इस प्रकार से समझा सकते हैं

1️⃣ उपागम्यता यदि कोई बच्चा सामान नहीं है या असामान्य है अर्थात किसी न किसी रूप में विशिष्ट है दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना है। अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों के लिए उनकी संख्या के आधार पर (उनके घर के पास , उनके area में) विशिष्ट विद्यालय की स्थापना कर दी जाए। यह बहुत कठिन कार्य है उनके घर के आसपास विशिष्ट विद्यालय जिसमें सुविधा शौचालय हो यह कर पाना कठिन है। सामान्य बालकों हेतु भी विद्यालय की दूरी दूर नहीं होनी चाहिए और यह बात भी की जाती है कि प्राथमिक विद्यालय 1 किलोमीटर के अंदर हो और माध्यमिक विद्यालय 3 किलोमीटर के अंदर होना चाहिए। यह उपलब्ध कराने वाली जो चीज है उसकी आवश्यकता भी है और चुनौती भी है यहां दोनों पक्षों को देखा जा रहा है यहां उपलब्धता कराना कठिन है। ✔️ *कारण*➖ सामान्य और असामान्य बालकों , दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना।

✔️ चुनौती ➖जबकि हर बच्चे के घर के पास विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना एक कठिन कार्य है जो उपलब्ध करा पाना अत्यंत कठिन होता है और यही चुनौती है।

2️⃣ असंवेदनशीलता ✔️कारण➖ सभी बच्चों के साथ संवेदनशील रहना ही कारण है।

✔️ चुनौती➖ समाज, परिवार अध्यापक, नकारात्मक अभिवृत्ति ,मित्र से संवेदनहीनता या नकारात्मक अभिवृत्ति है तो विशिष्ट बालक आगे नहीं बढ़ पाते हैं अर्थात दिशाहीन हो जाते हैं। हमारे शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि अध्यापक और समाज परिवार मित्र को सकारात्मक अभिव्यक्ति नानी चाहिए यह संवेदनशीलता होनी चाहिए यह एक चुनौती है।

📚 उदाहरण➖ जैसे योग्यता होने के बाद भी बालिका शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करना और बालिकाओं को भी एक है ना की पढ़ लिख कर क्या करेंगे तो इस नकारात्मक अभिवृत्ति के कारण संवेदनहीन हो जाते हैं जिससे वे आगे नहीं बढ़ पाती हैं।हम सबको किसी भी चीज के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है और यह संवेदनशीलता तब आएगी जब हम अपने अंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति लाएंगे।
उदाहरण➖ बच्चे के पास शैक्षिक योग्यता होने के बाद भी उसके परिवार वाले विद्यालय भेजने में रुचि नहीं लिया जाता है कई घरों में बच्चों को बोझ समझा जाता है चिंता या दैन्य दृष्टि से देखा जाता है तो यहां पर अध्यापक, समाज और परिवार को सकारात्मक अभिव्यक्ति लाना चाहिए यह एक उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा ✔️कारण➖ समाज में कई बार विभिन्न जानकारियों का अभाव होता है समाज में जो अलग-अलग समस्याएं हैं। समाज में जानकारी के अभाव में उपागम्यता का कारण और संवेदनशील का कारण की पूर्ति नहीं होने से समस्या में वृद्धि हो जाती है या समस्या बढ़ते चली जाती है। यही कारण है।

✔️ चुनौती➖ इन सभी समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा करना या awareness लाना समस्याओं के निराकरण की क्या उम्मीद रखते हैं यह awareness फैलाने की जरूरत है। कि कैसे निराकरण करते हैं या क्या उपाय करते हैं निराकरण के संबंधित ज्ञान से ही स्थिरताआती है और यदि समस्या में सुधार आती है तो संबंधित ज्ञान से स्थूलता भी आती है।

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✍ PRIYANKA AHIRWAR ✍

📖 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 📖

समावेशी शिक्षा के चार सिद्धांत दिए गए हैं:-

  1. बालकों में एक सी अधिगम प्रवृत्ति हैं:-
    सभी बालको में पढ़ने की प्रवृत्ति एक समान होती है, प्रत्येक बालक एक समान शिक्षा ग्रहण कर सकता है, हर बच्चे के अंदर क्षमता होती है कि वह भी अन्य व्यक्तियों की समान शिक्षा ग्रहण कर सकता है, एवं अधिगम कर सकता है। बस उस बालक की प्रगति को जागृत करने के लिए हमें प्रयास करने होंगे हमें यह बताना होगा कि वह भी शिक्षा प्राप्त कर सकता है उसके लिए हमें कुछ प्रयास करने होंगे जो कि एक शिक्षक को करना चाहिए।
  2. बालकों को समान शिक्षा का अधिकार:-
    प्रत्येक वर्ग के बालको को समान शिक्षा मिलनी चाहिए, सभी को पढ़ने का समान अधिकार है, शिक्षा को लेकर कभी भी जाति, धर्म, लिंग एवं संप्रदा इत्यादि पर भेद नहीं किया जा सकता है, सभी को एक समान शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। सभी बच्चों को समान शिक्षा मिले इसके लिए हमारे संविधान में भी कुछ प्रावधान किए गए हैं, जिससे कि सभी बालकों को शिक्षा की प्राप्ति हो।
  3. राज्य के दायित्व:-
    सभी राज्य का यह दायित्व है, कि वह सभी वर्ग के लिए संसाधन, धन, सामग्री इत्यादि स्कूलों के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं। अतः सरकार द्वारा बालकों के लिए प्रयास किए जाते हैं, जो कि स्कूलों के माध्यम से बच्चों तक पहुंचाए जाते हैं, जिससे कि वह भी शिक्षण में आने वाली परेशानियों जैसे धन, सामग्री इत्यादि को लेकर अपनी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न न होने दें।
  4. शिक्षा में सभी वर्ग, शिक्षक, परिवार एवं समाज के दायित्व:-
    बालकों की शिक्षा के लिए शिक्षण प्रक्रिया में सभी वर्गों शिक्षकों परिवारों एवं समाज का दायित्व है कि वह भी समावेशी शिक्षा में अपना अपेक्षित योगदान दें, ताकि सभी बच्चों को शिक्षित किया जाने का प्रयास कर सकें। अतः सभी को प्रयास किए जाने चाहिए।
    उपरोक्त सभी समावेशी शिक्षा के सिद्धांत है, जिसके माध्यम से समावेशी शिक्षा को पूर्ण किया जा सकता है। सभी वर्ग अपना अपना सहयोग पूर्ण रूप से देते हैं, जिससे कि यह प्रक्रिया निरंतर चल सकें।

🎯 समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं एवं चुनौतियां 🎯

  1. उपागम्यता :- ♦️आवश्यकता/कारण :- समावेशी शिक्षा की आवश्यकता इसलिए है कि वर्ग में दो प्रकार के बालक रहते हैं सामान्य एवं असामान्य दोनों को ही समान कर सके ताकि वह दोनों ही शिक्षा की प्राप्ति कर पाए।
    ♦️चुनौती- समावेशी शिक्षा में चुनौतियां यह है कि प्रत्येक विशिष्ट बालक के घर के पास विशिष्ट विद्यालय का निर्माण करना एक कठिन कार्य है। जिसका शिक्षण प्रक्रिया में एक चुनौती रूप में योगदान है। लेकिन सामान्य बालकों लिए 1 किलोमीटर के दायरे में प्रारंभिक शिक्षा के लिए विद्यालय उपलब्ध है
  2. असंवेदनशीलता:- ♦️आवश्यकता/कारण :- समावेशी शिक्षा की इसलिए आवश्यकता भी है, कि हम सभी संवेदनशीलता से प्रभावित हो जाते हैं।
    ♦️चुनौती- समावेशी शिक्षा में यह चुनौती है कि समाज, परिवार, अध्यापक, मित्र सभी संवेदनशीलता या नकारात्मक अभिवृत्ति से प्रभावित है, जिससे विशिष्ट बच्चे दिशाहीन हो जाते है। अतः हमारा दायित्व है कि हम सभी बच्चों को सही दिशा प्रदान करें ना कि उन्हें दिशा से विचलित करे।
  3. समस्या के निराकरण की अपेक्षा:- ♦️ हमारे समाज में जानकारियों का अभाव है जानकारियों के अभाव में हम पिछले दो कारण (उपागम्यता एवं संवेदनशीलता) की पूर्ति नहीं होने से इन समस्याओं में वृद्धि होती रहेगी।
    इन समस्याओं के निराकरणो की अपेक्षा करना/संबंधित जानकारी सभी तक पहुंचाना।
    इसी से स्थिरता/स्थूलता आती है।
    अतः उपरोक्त सभी समस्याएं, चुनौतियां एवं उनकी आवश्यकता क्यों है। इसका वर्णन किया हुआ है एवं हम सभी को भी प्रयास करने चाहिए कि प्रत्येक वर्ग के बालक को शिक्षा प्रदान की जा सके एवं जिस सीमा तक भी हम इन समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं या हमारे द्वारा किया जा सकता है हमें प्रयास किए जाने चाहिए।
    📗 समाप्त 📗
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🍁🍁🍁Menka patel 🍁🍁🍁

🌈 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत🌈

🎆 बच्चों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है — सभी बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है हर बातचीत के अंदर सीखने की क्षमता होती है और वह भी अन्य व्यक्तियों के समान शिक्षा प्राप्तकर्ता करता है सभी बच्चे एक समान सीखते हैं

🎆 बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार — सभी बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार होना चाहिए शिक्षा को लेकर कभी भी बच्चों में जाति लिंग संप्रदाय आदि की भेदभाव नहीं करना चाहिए सभी को एक समान शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है जिससे सभी बच्चे शिक्षा को प्राप्त करें

🎆 सभी राज्यों को दायित्व — सभी राज्यों का दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रयास करें जिससे वह सीखने में आने वाली परेशानियों को बाधाओं को दूर करें

🎆 शिक्षा में सभी वर्ग ,शिक्षक, परिवार और समाज के दायित्व — शिक्षा में सभी शिक्षक परिवार और समाज का दायित्व है कि बच्चों को समावेशी शिक्षा में अपना अपेक्षित योगदान दें

🌈 समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां

✍🏻 उपागम्यता

कारण – समेकित शिक्षा में सभी सामान बच्चे या असामान्य बच्चों को किसी ना किसी रूप में विशिष्ट होते हैं समेकित शिक्षा प्रदान करना है इसमें अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों के लिए घर के पास में विद्यालय की स्थापना की जाए यह बहुत कठिन कार्य है

👉 प्राथमिक स्तर पर विद्यालय की दूरी 1 किलोमीटर होनी चाहिए और माध्यमिक स्तर पर विद्यालय की दूरी 3 किलोमीटर होनी चाहिए

🍁 चुनौतियां — हर बच्चे के घर के पास विद्यालय की स्थापना करना एक कठिन कार्य है जो उपलब्ध करा पाना अत्यंत मुश्किल यह चुनौती पूर्ण है

✍🏻 असंवेदनशीलता

🍁 कारण – सभी बच्चों के साथ संवेदनशील रहना ही कारण है

🍁 चुनौतियां – समाज परिवार अध्यापक मित्र संवेदनशीलता या नकारात्मक आवृत्ति है जो इससे विशेष बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं तथा वह दिशाहीन हो जाते हैं इसमें योग्यता वाले बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं

✍🏻 समस्या के निराकरण की अपेक्षा

🍁 कारण — समाज में जानकारी के अभाव होता है और समाज में जो अलग-अलग समस्याएं होती है समाज में जानकारी के अभाव में उपागम्यता में कारण और संवेदनशील का कारण पूर्ति नहीं होने से समस्या में वृद्धि हो जाती है और पहले उपागम्यता म और संवेदनशीलता बढ़ती चली जाती है

🍁 चुनौतियां — इस समस्या का निराकरण करना या अपेक्षा करना या लोगों के पास पहुंचाना समस्या के निराकरण की उम्मीद रखते हैं निराकरण से संबंधित ज्ञान की स्थिरता आती है जो संबंधित ज्ञान या सोच है यह आवश्यक है

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✍🏻Notes By-Vaishali Mishra

🔆 समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त

समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त इस प्रकार हैं-

1.बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है अर्थात सबके सीखने की एक जैसी आदतें हैं।

2.बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है। अर्थात समावेशी शिक्षा कमजोर, प्रतिभाशाली,अमीर गरीब, ऊंच नीच नही देखती है।

3.सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री, धन तथा सभी संसाधन की स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ाएं।

4.शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।

🔅 समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं और चुनौतियां
शिक्षा किसी भी व्यक्ति में उपस्थित अलग-अलग योग्यताओं, क्षमताओं का विकास करके उस व्यक्ति को समाज के साथ समायोजन करने में मदद करती है ।और व्यक्ति को अलग-अलग कौशल विकसित कर स्वावलंबन की दिशा में लाने के लिए भी अभिप्रेरित करती हैं ।

यह आवश्यकताए व चुनौतियां निम्न प्रकार है➖
▪️ 1उपागम्यता

कारण-समेकित शिक्षा से समान व असमान बच्चे या विशिष्ठ बच्चो को पढ़ाना।
चुनौती – हर बच्चो के घर के पास विशिष्ठ विद्यालय हो यह एक बड़ी चुनौती है।
(जबकि समुचित राज्य सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक 1 कि. मी.
कक्षा 6 से 8 तक 3 कि.मी. तक नजदीक के विद्यालय की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।)

▪️ असंवेदनशीलता

कारण– संवेदनशील रहना या सकारात्मक अभिव्यक्ति का विकास करना।
चुनौती– समाज, अध्यापक ,मित्र, परिवार इन सब की असंवेदनहीनता या नकारात्मक अभिवृत्ति से , जो विशिष्ट बच्चे होते हैं वह पीछे हो जाते हैं अर्थात संवेदनहीनता व्यक्ति की संवेदनशीलता की दिशा को बदल देती है।

▪️ समस्या के निराकरण की अपेक्षा
कारण – समाज में जो जानकारी का अभाव है जिनके कारण से उपरोक्त दो कारण (उपागम्यता और असवेदनशीलता) की पूर्ति नहीं होने से समस्या बढ़ती चली जाती है ।

चुनौती – यदि उपरोक्त दोनों कारणों (उपागम्यता और असंवेदनशीलता) की समस्याओं का निराकरण की अपेक्षा की जाए तो समस्या का निराकरण हो जाता है।
और जब समस्या का निराकरण हो जाता है तो समस्या में स्थिरता या ठहराव भी आ जाता है।

इन सभी कारणों की पूर्ति करना ही एक चुनौती है।


🔆समावेशी शिक्षा के सिद्धांत🔆
1.बालकों में एक सी अधिगम की प्रवत्ति हो:- समावेशी शिक्षा का पहला सिद्धांत है कि सभी बालक एक समान रूप से सीख सकते हैं बशर्ते हमे उन्हें एक समान लेवल पर लेना होगा।
2.बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है:- समावेशी शिक्षा का दूसरा सिद्धांत है कि सभी बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है चाहे वह किसी भी जाति ,धर्म,समुदाय आदि से आता हो उसे शिक्षा का अधिकार है।
3.सभी राज्य को यह दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए उचित संसाधन,यथोचित संसाधन,सामग्री,धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुडवता में सुधार करने के लिए लगाए।
4.शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में आपेक्षिक सहयोग करे।
🌟समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां🌟
शिक्षा व्यक्ति में अलग अलग योग्यता में क्षमता का विकास कर उसमे समायोजन करने की योग्यता भी डालता है।
1️⃣ उपागमयता
कारण
1.कोई बच्चा सामान्य है या विशिष्ट है हमें दोनों को समेकित शिक्षा देना है।
चुनौती:- 1km पर प्राथमिक विद्यालय तथा 3km पर उच्च प्राथमिक विद्यालय(6-8) होने के कारण हर विशिष्ट बालकों के घर के आस पास विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना सम्भव नहीं है।
2️⃣असंवेदनशीलता
असंवेदशीलता समाज ,परिवार , अध्यापक तथा मित्रों की असंवेदनशीलता तथा नकारात्मक अभिवृति के फलस्वरूप विशिष्ट बालक का विकास अवरूद्ध हो जाता है।
कारण:- हम यदि चाहते हैं कि बालक आगे बढ़े तो हमे संवेदनशील रहना होगा।
चुनौती:- समाज, परिवार, अध्यापक, मित्र के संवेदनशील या नकारात्मक अभिवृति के कारण विशिष्ट बालक दिशाहीन हो जाता है।
3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा
समाज में जानकारी के अभाव में पहली दो कारण (समस्या यानी उपागमयता और असंवेदनीलता ) से पूर्ति नहीं होने पे पहली दो समस्या बढ़ती चली जाती हैं।
🖊️🖊️ Raziya khan🖊️🖊️


📖Notes by Neha Gupta🖊️ ⭕समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त ⭕ इसके कुल चार सिद्धांत हैं –

1⃣बालकों में एक ही GCअधिगम की प्रवृत्ति होती है l
➖ सभी बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति एक जैसी होती है हर एक बालक एक समान शिक्षा ग्रहण कर सकता है लेकिन उनमें कुछ उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताए भी होती है हर बच्चे के अंदर कुछ ना कुछ विशेषताएं होती है वह भी और और लोग के सामान शिक्षा को ग्रहण कर सकता है लेकिन उस विद्यार्थी की प्रवृत्ति को जागृत करने के लिए हमें कुछ प्रयास करने होंगे हमें उसे बताना होगा की शिक्षा को कैसे प्राप्त किया जा सकता है

2⃣ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है
➖ सभी बालकों को एक समान शिक्षा का अधिकार है शिक्षा को लेकर के कभी भी किसी जाति, धर्म, लिंग ,वर्ग इत्यादि पर भेदभाव नहीं किया जा सकता सभी को अपनी अपनी शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है और हमें यह अधिकार प्राप्त भी है l

3⃣ सभी राज्यों का दायित्व है➖
कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन सामग्री, धन , वस्तुए इत्यादि स्कूलों के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लाए l जिससे कि वह भी शिक्षण में आने वाली परेशानियां जैसे धन की परेशानी सामग्री आदि को लेकर अपनी पढ़ाई में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न ना होने दें
4⃣शिक्षण में सभी वर्गों शिक्षकों का परिवार तथा समाज का दायित्व है ➖कि समावेशी शिक्षा में जितना संभव हो सके अपेक्षित सहयोग करें स्कूलों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए l

⚫️समावेशित शिक्षा की आवश्यकताएं और चुनौतियां ⚫️

🌸शिक्षा जो है किसी व्यक्ति में किसी इंसान में जो अलग-अलग योग्यता या क्षमता है उसका विकास करके उसने समाज से समायोजन की योग्यता विकसित करती है और व्यक्ति के अलग-अलग कौशल को प्रदान करके उसमें स्वावलंबन की दिशा प्रेरित करती है शिक्षा व्यक्ति में उपस्थित अलग-अलग योग्यता में क्षमता का विकास कर उसमें समाज से समायोजन करने की योग्यता का विकास भी करती है व्यक्ति को एक सही दिशा मिलती है
1️⃣उपागमम्यता ( Avalibility) ➖( आवश्यकता/ कारण)- इसमें दो प्रकार के बालक रहते हैं सामान्य एवं असामान्य दोनों को ही समान करके दोनों को एक जैसी शिक्षा की प्राप्ति दी जाए समेकित शिक्षा से जो सामान्य और असामान्य दोनों को पढ़ाएंगे यह इसका कारण है. 🛑चुनौतियां- विशिष्ट विद्यालय हर बच्चे के घर के पास एक कठिन कार्य है प्रत्येक विशिष्ट बालक के घर के पास एक विद्यालय बनाना संभव नहीं है लेकिन सामान्य बालकों के लिए 1 किलोमीटर के दायरे में प्रारंभिक शिक्षा के लिए विद्यालय उपलब्ध है

2️⃣असंवेदनशीलता➖ (आवश्यकता /कारण) हम आप असंवेदनशील हैं हम सभी संवेदनशीलता से प्रभावित हो जाते हैं इसीलिए समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है l
चुनौतियां ➖समाज परिवार अध्यापक तथा मित्र की संवेदनशीलता तथा नकारात्मक अभिवृत्ति के फलस्वरुप विशिष्ट विद्यालय विशिष्ट बालक का जो विकास अवरुद्ध हो जाता है या विकास दिशाहीन हो जाता है इससे जो विशिष्ट बच्चे हैं आगे नहीं बढ़ पाते हैं l

3️⃣समस्या के निराकरण की अपेक्षा (आवश्यकता/ कारण) हमारे समाज में जानकारी का अभाव रहता है तो समस्या और बढ़ने लगती है l 🛑चुनौतियां समाज में जानकारी के अभाव में पहले दो कारण उपागम्यता एवं संवेदनशीलता की पूर्ति नहीं होने से पहले जो समस्याएं बढ़ती चली जाती हैं इन समस्याओं के निराकरणॊ की अपेक्षा करना संबंधित जानकारी सभी तक पहुंचाना इसी में स्थिरता आती है इस प्रकार सभी समस्याएं चुनौतियां एवं उनकी आवश्यकता है एक शिक्षक का कर्तव्य है कि इन समस्याओं का निराकरण करने की कोशिश करें या प्रयास करने चाहिए इस प्रकार यह समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की बात का समर्थन करती है यह सही मायने में सर्व शिक्षा जैसे शब्दों का ही रूपांतरित रूप है l


SHARAD KUMAR PATKAR

🌳 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 🌳 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि शिक्षा का प्रभाव कैसे या किस प्रकार से पड़ रहा है। सिद्धांत यह बताता है प्रत्येक बच्चे को किस प्रकार की शिक्षा की जरूरत है।

👉समावेशी शिक्षा के अंतर्गत 4 महत्वपूर्ण बातें हैं जो इस प्रकार से है➖

👉बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे के अधिगम स्तर को एक जैसा करना है अर्थात प्रत्येक बच्चे की प्रकृति को सीखने के प्रति एक समान करने का प्रयास करना है। सामान्य शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि सभी बच्चों को पढ़ाने की प्रवृत्ति एक जैसी होनी चाहिए।

👉 बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है यदि आपकी प्रवृत्ति है कि किसी चीज को करने के सक्सेस हो सकते हैं तो अन्य बच्चे की प्रवृत्ति भी किसी चीज को करने के लिए सक्सेस हो सकती है।

लेकिन यहां प्रत्येक बच्चे को एक समान शिक्षा देने का अधिकार है। यह निश्चित करना है कि शिक्षक के द्वारा जो भी शिक्षा प्रदान किया जाए वह सभी बच्चों के लिए एक समान हो जो प्रत्येक बच्चे का अधिकार है। सभी बच्चों के लिए समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना है।

👉सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाए➖👇 इस सिद्धांत के द्वारा यह बताया गया है कि प्रत्येक बच्चे को सुविधा अनुसार सामग्री उपलब्ध करा कर बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास किया जाए।

जैसे सरकारी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को कपड़े, लैपटॉप, पुस्तक, साइकिल, धन आदि के माध्यम से बच्चों की उनकी गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। विद्यालयों में सभी बच्चों को सामग्री उपलब्ध करा के उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाया जा सकता है।

👉शिक्षण में सभी वर्गों ,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व यह है कि वह समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें➖👇 ‌ जितना हो सके बच्चों के समावेशी शिक्षा के लिए परिवार, शिक्षकों तथा समाज का यह दायित्व होना चाहिए कि वह जितना हो सके उतना सहयोग करें अर्थात अपेक्षित सहयोग करें।

🕺समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां जैसा कि हम जान गए कि समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है अर्थात समेकित शिक्षा के अंतर्गत ही समावेशी शिक्षा को स्थान दिया गया है।

यह शिक्षा किसी व्यक्ति में या बच्चे में अलग-अलग योग्यता ,क्षमता का विकास करके उसमें समाज से समायोजन करने की योग्यता विकसित करते हैं। और व्यक्तियों को अलग-अलग कौशल प्रदान करके स्वालंबन की दिशा में लाने के लिए प्रेरित करते हैं।

☝️आर्थिक रूप एवं मानसिक रूप से बच्चे को तैयार करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जिससे वे अपनी जिंदगी अच्छे से जी सके और जिम्मेदार बने।

☝️ समाज में प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है और उन्हें समाज में बेहतर रूप से रहने के लिए यह समाज से समायोजन की प्रक्रिया करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी है तो वह व्यक्ति समाज से समायोजन करने में भी कठिनाई महसूस करेगा। उस व्यक्ति को अपने परेशानी को दूर करने के लिए बहुत सारे स्तर को पार करना पड़ेगा तो उससे समाज से समायोजन करने में अधिक मेहनत की जरूरत होती है जो शिक्षा के माध्यम से बेहतर रूप से समाज से समायोजन कर सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में समाज से समायोजन करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है।इसके माध्यम से किसी व्यक्ति को सही दिशा मिलता है।

🤺समेकित शिक्षा की आवश्यकता क्यों हुई इसे इस प्रकार से समझा सकते हैं

1️⃣ उपागम्यता यदि कोई बच्चा सामान नहीं है या असामान्य है अर्थात किसी न किसी रूप में विशिष्ट है दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना है। अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों के लिए उनकी संख्या के आधार पर (उनके घर के पास , उनके area में) विशिष्ट विद्यालय की स्थापना कर दी जाए। यह बहुत कठिन कार्य है उनके घर के आसपास विशिष्ट विद्यालय जिसमें सुविधा शौचालय हो यह कर पाना कठिन है। सामान्य बालकों हेतु भी विद्यालय की दूरी दूर नहीं होनी चाहिए और यह बात भी की जाती है कि प्राथमिक विद्यालय 1 किलोमीटर के अंदर हो और माध्यमिक विद्यालय 3 किलोमीटर के अंदर होना चाहिए। यह उपलब्ध कराने वाली जो चीज है उसकी आवश्यकता भी है और चुनौती भी है यहां दोनों पक्षों को देखा जा रहा है यहां उपलब्धता कराना कठिन है। ✔️ *कारण*➖ सामान्य और असामान्य बालकों , दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना।

✔️ चुनौती ➖जबकि हर बच्चे के घर के पास विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना एक कठिन कार्य है जो उपलब्ध करा पाना अत्यंत कठिन होता है और यही चुनौती है।

2️⃣ असंवेदनशीलता ✔️कारण➖ सभी बच्चों के साथ संवेदनशील रहना ही कारण है।

✔️ चुनौती➖ समाज, परिवार अध्यापक, नकारात्मक अभिवृत्ति ,मित्र से संवेदनहीनता या नकारात्मक अभिवृत्ति है तो विशिष्ट बालक आगे नहीं बढ़ पाते हैं अर्थात दिशाहीन हो जाते हैं। हमारे शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि अध्यापक और समाज परिवार मित्र को सकारात्मक अभिव्यक्ति नानी चाहिए यह संवेदनशीलता होनी चाहिए यह एक चुनौती है।

📚 उदाहरण➖ जैसे योग्यता होने के बाद भी बालिका शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करना और बालिकाओं को भी एक है ना की पढ़ लिख कर क्या करेंगे तो इस नकारात्मक अभिवृत्ति के कारण संवेदनहीन हो जाते हैं जिससे वे आगे नहीं बढ़ पाती हैं।हम सबको किसी भी चीज के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है और यह संवेदनशीलता तब आएगी जब हम अपने अंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति लाएंगे।
उदाहरण➖ बच्चे के पास शैक्षिक योग्यता होने के बाद भी उसके परिवार वाले विद्यालय भेजने में रुचि नहीं लिया जाता है कई घरों में बच्चों को बोझ समझा जाता है चिंता या दैन्य दृष्टि से देखा जाता है तो यहां पर अध्यापक, समाज और परिवार को सकारात्मक अभिव्यक्ति लाना चाहिए यह एक उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा ✔️कारण➖ समाज में कई बार विभिन्न जानकारियों का अभाव होता है समाज में जो अलग-अलग समस्याएं हैं। समाज में जानकारी के अभाव में उपागम्यता का कारण और संवेदनशील का कारण की पूर्ति नहीं होने से समस्या में वृद्धि हो जाती है या समस्या बढ़ते चली जाती है। यही कारण है।

✔️ चुनौती➖ इन सभी समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा करना या awareness लाना समस्याओं के निराकरण की क्या उम्मीद रखते हैं यह awareness फैलाने की जरूरत है। कि कैसे निराकरण करते हैं या क्या उपाय करते हैं निराकरण के संबंधित ज्ञान से ही स्थिरताआती है और यदि समस्या में सुधार आती है तो संबंधित ज्ञान से स्थूलता भी आती है।

🌿🌱🌴🌳🌲🍀🍀


💫 Notes by➖ Rashmi Savle💫

चूंकि समावेशी शिक्षा विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा देने की बात करता है जिसके लिए वह चार प्रकार के सिद्धांतों का अनुकरण करता है जो कि निम्न प्रकार से हैं➖

🔅समावेशी शिक्षा के सिद्धांत➖

(1) बालकों में एक थी अधिगम प्रवृत्ति है :—-

यह सिद्धांत यह निर्देशित या सुनिश्चित करता है की मौत एक प्रत्येक बच्चे मैं अधिगम की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है इसलिए उनको जो शिक्षा की जाए या पढ़ाया जाए वह उनकी प्रवृत्ति के समान हो हॉल उन्हें बराबर करके समान रूप से शिक्षा दी जाए क्योंकि सबको समान शिक्षा दी जाएगी तो सबका अधिगम समान होगा क्योंकि सबके मूल्य और प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न होती है इस प्रकार समावेशी शिक्षा सभी विद्यार्थियों को एक समान अधिगम देकर उनको बराबर शिक्षा देने का प्रयास करता है |

(2) बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है➖

बालकों को समान शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएं तथा सभी विद्यार्थियों को समान रूप से बिना भेदभाव के शिक्षा प्रदान की जाए, अर्थात सभी विद्यार्थियों का समान रूप से शिक्षा पाना अधिकार है क्योंकि समावेशी शिक्षा जाति, धर्म,ऊंच, नीच, लिंग,स्थान, कमजोर, प्रतिभाशाली, अमीर, गरीब आदि नहीं देखती है इसलिए उनको समान शिक्षा उपलब्ध कराया जाना अति आवश्यक है |

(3) सभी राज्यों को भी यह दायित्व मिला है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन, सामग्री ,धन ,इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं |

(4) शिक्षण में सभी वर्गों, शिक्षक, परिवार ,तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग दें |
अर्थात समाज के सभी या प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में सहयोग करें और उस को आगे बढ़ाने में मदद करें |

🔅समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएँ और चुनौतियां➖

शिक्षा के द्वारा किसी भी व्यक्ति में उप उपस्थित अलग-अलग क्षमताओं योग्यताओं आदि का विकास करके उसमें आत्मविश्वास जागृत करके स्वावलंबी बनाकर समाज के साथ समय उज्जैन समायोजन करनी है मदद करती है शिक्षा व्यक्ति को अलग-अलग रूप से समाज में बेहतर तरीके से अंतः क्रिया करके उसको स्वावलंबी बनाने में मदद करती है इसके लिए आवश्यक है उसमें अलग अलग प्रकार के कौशल किए जाएं |
व्यक्ति को समाज में समायोजित होने के लिए कुछ आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है वे निम्न प्रकार से हैं ➖

🔹 उपागम्यता ➖
कारण :–
समेकित शिक्षा के अंतर्गत समान तथा असमान प्रकार के विशिष्ट विद्यार्थियों को पढ़ाया जाए |

चुनौती :–
हर बच्चों की घर के पास विशिष्ट विद्यालय हो यह एक बड़ी चुनौती है | क्योंकि राज्य सरकार द्वारा बच्चों के निवास स्थान से (कक्षा 1 से 5 तक 1 किलोमीटर तथा कक्षा 6 से 8 तक 3 किलोमीटर तक) विद्यालय की सुनिश्चितता करना आवश्यक है |

🔹 असंवेदनशीलता ➖

कारण :–
यदि कोई बच्चा विशिष्ट है तो उसके प्रति संवेदनशील तथा सकारात्मक अभिव्यक्ति का विकास करना आवश्यक है |

चुनौती :—
समाज, परिवार, अध्यापक ,मित्र सभी में संवेदनशीलता और सकारात्मक अभिव्यक्ति
का होना अति आवश्यक है लेकिन समाज की नकारात्मक अभिव्यक्ति और संवेदनहीनता के कारण जो बच्चे विशिष्ट होते हैं वह पीछे रह जाते है जिसके कारण बच्चे में योग्यता होने के बाद भी हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है हमें संवेदनशील रहना चाहिए समावेशी शिक्षा कहता है की संवेदनशीलता किसी बच्चे को आगे बढ़ने में मदद कर सकती है लेकिन समाज में आज संवेदनशीलता नहीं है |
🔹 बालिकाओं में बचपन से ही भर दिया जाता है कि वे घर का काम सीखें क्योंकि यह उन्ही के लिए बना है उनके मन में संवेदनहीनता का बीजारोपण कर दिया जाता है जो कि समाज के लिए अति दुर्भाग्यपूर्ण है और ये सब संवेदनशीलता और सकारात्मक अभिव्यक्ति से दूर किया जा सकता है | इसलिए बालिका शिक्षा समावेशी शिक्षा का अहम हिस्सा है |

🔹 जैसे बच्चे के पास योग्यता होने के बाद भी उनको स्कूल नहीं भेजा जाता है कई घरों में बच्चे को मुझे समझा जाता है चिंता और अचरजता भरी निगाहों से देखा जाता है तब यहां समाज और अध्यापक को अपनी सोच में सकारात्मक अभिव्यक्ति और संवेदनशीलता का लाना अति आवश्यक है और यह उनकी एक बड़ी चुनौती है या हम कह सकते हैं की सबसे बड़ी चुनौती है |

🔹समस्या के निराकरण की अपेक्षा ➖
कारण :–
समाज में जानकारी के अभाव में पहले उपागम्यता और असंवेदनशीलता के कारण की पूर्ति नहीं होने से पहले उपागम्यता और असंवेदनशीलता की समस्या बढ़ती जा रही है क्योंकि संवेदनशील होना अति आवश्यक है |

चुनौती :–

उपागम्यता और असंवेदनशीलता के कारणों के निराकरण की अपेक्षा की जाए तो समस्या का निराकरण उसको हो सकता है इसके लिए उसको जागृत करना उसको ज्ञान में लाने उसको फैलाने की जरूरत है और यहीं से स्थूलता आती है |

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Notes by sapna sahu.
🇮🇳 समावेशी शिक्षा🇮🇳
समावेशी शिक्षा से हमारा तात्पर्य ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें सभी को बिना किसी भेदभाव के सीखने सिखाने के समान अवसर मिले
समावेशी शिक्षा के सिद्धांत
1 बालकों में एक की अधिगम की प्रकृति:- इसका तात्पर्य यह है कि अधिगम का लेवल सब बालकों को एकसा मिले
चाहे वह बालक किसी भी धर्म जाति या लिंग का हो उसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता
2 बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है:- हमारे संविधान ने सभी बालकों को समान शिक्षा का अधिकार दिया है लड़के हो या लड़की किसी भी जाति का हो उस पर हम किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते सभी बालकों को शिक्षा का समान अवसर देना एवं शिक्षा का समान अवसर पाना सभी बालकों का अधिकार है
3 सभी राज्यों को दायित्व है कि वह सभी धर्म के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं
4 शिक्षण में सभी वर्गों शिक्षक परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें
हम सब का कर्तव्य है कि हम सब समावेशी शिक्षा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता और बचुनौतियां
व्यक्ति में अलग-अलग क्षमता का विकास करके उसको एनवायरमेंट में रहना सिखाता है
यदि किसी व्यक्ति को ज्यादा परेशानी है तो वह समाज में समायोजन के लिए बहुत सारे स्तर से गुजरता है परंतु यदि किसी व्यक्ति को कम परेशानी है तो वह कम स्तरों से भी गुजर कर समाज से समायोजन कर लेता है
बच्चे को सलाम बन की और बढ़ाना है समावेशी शिक्षा का उद्देश्य है

1 उपागम्यता :- समेकित शिक्षा में दो प्रकार के बालक होते है सामान्य और असामान्य सभी को समान धारा में जाकर समान प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए समावेशी शिक्षा का यह कारण है
हर बच्चा अपने आपने मैसेज तो होता है परंतु हर विशिष्ट बच्चे के घर के पास स्कूल होना यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जैसे हर 1 किलोमीटर पर एक से पांच तक के लिए विद्यालय तथा हर 3 किलोमीटर पर 6 से 8 तक के लिए विद्यालय होना अनिवार्य है यह एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है जैसे बच्चे के लिए स्कूल में स्पेशल की व्यवस्था होना उसी प्रकार है कि शौचालय की व्यवस्था होना यह एक प्रकार के चुनौतीपूर्ण कार्य है
2 आ संवेदनशीलता:- हम सभी को संवेदनशील होना चाहिए संवेदनशील होना बहुत ही जरूरी है हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखना चाहिए
कारण:- संवेदनशील होना
चुनौती :-समाज परिवार अध्यापक मित्र इन सब के लिए संवेदनशील होना
नकारात्मक अभिवृत्ति विशेष के बच्चे को आगे नहीं बढ़ने देती हमारे नकारात्मक अभिवृत्ति इसे सही नहीं होने दे रही है
3 समस्या के निराकरण की अपेक्षा
समाज में जानकारी का अभाव पहले दो कारण से पूर्ति नहीं होने दे रहा है गसे समस्या और ज्यादा बढ़ती चली जाएगी
इन समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा करना


✍Notes by
LAXMI PATLE
🚸 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत :-

समावेशी शिक्षा में सामान्य विद्यालयों में समान्य बालकों के साथ असमर्थ बालकों को समान शिक्षा प्रदान की जाती है ।इस शिक्षा के द्वारा असमर्थ बालकों को शिक्षा प्राप्त करने का क्षेत्र विस्तृत होता है।समावेशी शिक्षा में जो सुविधाएं सामान्य वालों को को प्राप्त होती हैं वह सुविधा असमर्थ बालकों को भी प्राप्त होती हैं। इसके अंतर्गत शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग बालकों को कुछ विशेष सुविधाएं प्राप्त करके शिक्षा प्रदान की जाती है। इसमें समाज एवं असमर्थ बालकों द्वारा एक दूसरे को समझने की आपसी सूझबूझ का विकास होता है तथा सामान्य बालक असमर्थ बालक की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। जिससे असमर्थ बालको की विशेष अवसर पर ध्यान दिया जाता है।
समावेशी शिक्षा के मुख्यतः चार सिद्धांत है जो कि निम्नलिखित हैं:-
1️⃣ बालकों में एक-सी अधिगम की प्रवृत्ति होती है।

इसके तहत किया कहा गया है कि सभी बालकों में सीखने की एक समान प्रवृत्ति लाना होगा अर्थात सभी बच्चों को एक समान अवसर प्रदान किए जाने योग्य बनाना होगा उनको आवश्यकतानुसार सुविधाएं प्रदान करते हुए एक अधिगम प्रणाली को लाना होगा।

2️⃣ बालको को समान शिक्षा का अधिकार हो।

इसके अंतर्गत यह कहा गया है की हमारे संविधान के अनुसार हमें समानता का अधिकार प्राप्त है। जिसके तहत समावेशी शिक्षा के द्वारा सभी बालकों को समान रूप से सुविधाएं पहुंचाते हुए, समान शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया जाए ताकि सभी बच्चों को आगे बढ़ने का समान अवसर प्राप्त हो। अर्थात सभी बच्चों को एक समान शिक्षा प्रदान की जाए।

3️⃣ सभी राज्यों को यह दायित्व दिया गया है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन, सामग्री ,धन ,इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लाया जाए |

4️⃣ शिक्षण में सभी वर्गों ,शिक्षक ,परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।

🔆 समेकित शिक्षा की आवश्यकता एवं चुनौतियां:-

जैसा कि हम जानते हैं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं मनुष्य को शरीर की विभिन्न मूलभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा भी जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है। शिक्षा मनुष्य में उपस्थित सभी योग्यताओं तथा क्षमताओं का विकास कर उसमें समाज से तालमेल बनाने की योग्यता को विकसित करता है।मनुष्य में विभिन्न कौशल को जागृत कर स्वालंबी बनने की दिशा में प्रेरित करते हुए समाज के लायक बनाता है।

कारण एवं चुनौतियां
✔उपागम्यता :-
कारण :-
समेकित शिक्षा के द्वारा समान्य तथा असमान्य प्रकार के विद्यार्थियों को पढ़ाये जाने की आवश्यकता है | यह इसका मुख्य कारण है।
चुनौतियां :- विभिन्न योग्यता वाले विद्यार्थियों हेतु उनकी संख्या अनुसार घर के पास ही विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना करना अत्यंत कठिन कार्य है।एक ओर हम सामान्य बालको हेतु पड़ोस में विद्यालय की बात करते हैं, जिसके तहत प्राथमिक विद्यालय तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय बालक के घर से अधिकतम 1 किलोमीटर से लेकर 3 किलोमीटर की दूरी पर होना चाहिए किंतु यह भी संभव नहीं हो पा रहा है।

✔ असंवेदनशीलता :-
कारण:- समाज में मनुष्य को संवेदनशील एवं सकारात्मकता के साथ रहना चाहिए ।
चुनौती:- यह समेकित शिक्षा की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है समाज में परिवार, अध्यापकों तथा मित्रों की संवेदनहीनता तथा नकारात्मकता अभिवृत्ति के फलस्वरूप विशिष्ट बालक अवरूद्ध विकास तथा दिशाहीन जीवन का शिकार हो रहे हैं। बालक भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हो लेकिन उसमें शैक्षिक योग्यता होने के बावजूद उसका सामान अर्थात परिवार दोस्त इत्यादि उसके लिए विद्यालय को जरूरी नहीं समझते उनको दया की दृष्टि से देखा जाता है।

✔ समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा :-
कारण:- समाज में व्यक्ति जागरूक नहीं है इसका मुख्य कारण उपरोक्त दोनों समस्याएं हैं। यह तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण है।
चुनौती :- उपागम्यता और असंवेदनशीलता जैसे समस्याओं का निराकरण कर दिया जाए तो इस समस्या का निराकरण उसको हो सकता है इसके लिए समाज में जागरूकता लाना होगा | बालकों की समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा स्थूलता ही उत्पन्न करता है ।इस ज्ञान को जनता तक पहुंचाने की महती आवश्यकता है।

🙏समाप्त 🙏


By Vandana Shukla ☘️ समावेशी शिक्षा ☘️

☘️ Integrated education☘️

हमारे भारतवर्ष में अनेक प्रकार के बच्चे हैं और उन्हें अलग-अलग प्रकार की परेशानियां हैं जैसे किसी को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक आदि। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो समाज के अभाव में अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता इसलिए वह समाज के साथ अंतर क्रिया करता है और सब प्रकार की समस्याओं का निदान भी इस समाज से ही करता है या इस समाज से ही होगा ।

हमारे समाज में व्यक्तिक विभिन्नताए भी हैं ,जाति के आधार पर, आर्थिक स्थिति के आधार पर ,धर्म के आधार पर ऊंच-नीच के आधार पर सभी की अलग-अलग सोच है इस सोच को एक करने के लिए ही समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है।

कई बार जिनकी गलती नहीं होती है फिर भी उनके साथ पक्षपात होता है कई बार आप अपने व्यवहार से जैसे ओहदे की ताकत दिखाना अपनी जाति आदि के द्वारा स्वयं भेदभाव करते हैं, इस स्थिति में भी समावेशी / समावेश की जरूरत होती है ।

शिक्षा में इस तरीके के भेदभाव का कोई स्थान नहीं इसलिए समावेशी /समावेशन की आवश्यकता पड़ी ।
आज हम समानता ,स्वतंत्रता, न्याय की बात करते हैं हमें समाज को संतुलित वातावरण देने की आवश्यकता है।

🍀 समेकित शिक्षा। 🍀

यह शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देती है क्योंकि जितनी भी परेशानियां हैं उसकी खाई को दूर करने के लिए अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे ,अलग-अलग उम्र , अलग-अलग कक्षा के बच्चे, उनको उनकी जरूरत के हिसाब से शैक्षिक उपक्रम को पूर्ण किया जाए सबको मिलाकर किया जाए इसको समेकित शिक्षा बोलते हैं।

क्योंकि यह परिभाषा एकीकृत की भी है इसीलिए इसे एकीकृत शिक्षा भी बोलते हैं , or integrated education का actual term समेकित शिक्षा ही है ।

समेकित शिक्षा और समावेशी शिक्षा में थोड़ा सा ही अंतर है समावेशी शिक्षा बोलता है जितने भी अलग-अलग प्रकार के बच्चे हैं सब को एक समान शिक्षा दी जाए, लेकिन समेकित शिक्षा कहती है कि बच्चे की उम्र के हिसाब से उसे कक्षा में रखेंगे। समावेशी शिक्षा उम्र की बात को नकारती नहीं है पर समावेशी शिक्षा में इसका जिक्र ही नहीं है, वह कहता है कि सब को एक समान शिक्षा बस । लेकिन समेकित कहता है की जरूरत के हिसाब से शिक्षा दो सब को मिला दो एक कर दो समेकित मतलब एकीकृत करना । जो समेकित शिक्षा प्रणाली है उसके द्वारा सामान्य विद्यालय में अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे को सही तरीके से शिक्षा दी जाए उनकी क्षमताओं के अनुसार उनको सुलभ चीज दी जाए जो बच्चे के आत्मविश्वास को जगाए, उनको नई आशा दे ,जीवन के प्रति आकर्षण को पैदा करें।
जब भी ऐसी शिक्षा के बारे में बात करते हैं तो सारे भेदभाव खत्म हो जाते हैं और बच्चा आशा से और आत्मविश्वास से भर जाता है।

🌼 समावेशी शिक्षा 🌼
समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को, प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्रदान की जाती है, और उन्हें एक लेवल पर लाया जाता है।
समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का ही एक भाग है । समेकित शिक्षा हर इंसान को हर मामले में कहता है कि उसकी परेशानी देखो जैसे अगर किसी की स्किल्स कम है तो पहले वह स्किल सीखे फिर उसके बराबर होगा । बराबर करने के लिए कुछ करना पड़ेगा। समावेशी कहेगा भेदभाव नहीं सबको ले के चलो चाहे स्किल हो या ना हो। समेकित डिफरेंस को मिटाने की बात करता है।

🌸 संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 इसमें सभी को समान अवसर के द्वारा शिक्षा दी जाए जितने भी वंचित लोग हैं उनको शिक्षित करने का दायित्व सभी राज्य को सौंपा गया । कि सभी वंचित पिछड़ा जिनको अवसर नहीं मिला है उनको शिक्षा दी जाए वह वंचित शारीरिक विकलांग, मुक बधिर हो , मांसपेशियां ठीक से काम नहीं कर रही है ,बौद्धिक रूप से स्लो लर्नर हो,जाति के आधार पर परेशानी , जेंडर परेशानी, मजदूर हैं ,जितनी भी चीजें हैं जिससे आप पिछड़े हैं उन सभी को समान अवसर तथा समान धारा में लाने के लिए कहा। उनके संपूर्ण विकास के लिए शिक्षा का प्रावधान करना है।

By Vandana Shukla

🌼 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 🌼

1️⃣बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति हैं

सबको जो भी अधिगम कराया जाए उसकी प्रवृत्ति एक सी ही हो। प्रत्येक छात्र को एक ही रूप में अधिगम कराया जाना चाहिए जिससे सभी बच्चे को एक लेवल तक पहुंचाया जा सके।

2️⃣ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार

बच्चों को एक जैसी या एक समान शिक्षा का अधिकार है वह किसी भी क्षेत्र ,जातीय , स्तर के हो पर शिक्षा पाने का उसका अधिकार है ।

3️⃣सभी राज्यों को भी दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन , सामग्री, धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं। यह कहता है कि सारी सुविधाएं बच्चों को मुहैया कराई जाए।

4️⃣शिक्षण में सभी वर्गों शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें ।

🌼समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां🌼

समेकित शिक्षा किसी व्यक्ति की जो क्षमता है या अलग अलग योग्यता है उसका विकास करके उसके समाज के साथ समायोजन करने की क्षमता विकसित करता हैं। और हर व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुरूप अलग-अलग कौशल प्रदान करके उसको स्वावलंबी बनाने की दिशा में प्रेरित करता है।
हम बच्चे को शिक्षा इसलिए देते हैं कि वह बड़ा होकर स्वाबलंबी बने अपने लिए धन कमा सके, आर्थिक रूप से मानसिक रूप से अपने आप वह स्थाई स्टेबल कर सके, अपने भविष्य को संवार सकें, अपनी जिंदगी की चुनौतियों का सामना आसानी से कर सके, उसका एक डायरेक्शन हो।

1️⃣ उपागमयत्ता – कोई बच्चा सामान्य है और कोई बच्चा सामान्य नहीं है विशिष्ट है दोनों को सामान्य शिक्षा देना है। इंटीग्रेटेड एजुकेशन अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों को उनकी संख्या के हिसाब से जैसे सभी विशिष्ट बालकों के घर के पास उनकी विशिष्टता के अनुरूप विद्यालय का निर्माण करना पॉसिबल नहीं है दूसरी तरफ सामान्य विद्यालय के लिए भी कहते हैं कि ज्यादा दूरी ना हो 1 किलोमीटर तक प्राथमिक विद्यालय और 3 किलोमीटर तक उच्च विद्यालय के बारे में कहते हैं, यह दोनों ही प्रक्रिया पॉसिबल नहीं है यह एक समस्या है इसे कहते हैं उपागमयता ।
यह एजुकेशन की आवश्यकता भी है और चुनौती भी है ।समेकित शिक्षा में हमें दोनों को शिक्षा देनी है सामान्य को भी विशिष्ट को भी ।

2️⃣ असंवेदनशीलता –
कारण – संवेदनशीलता
चुनौती – समाज ,परिवार, अध्यापक तथा मित्र के संवेदनहीनता तथा नकारात्मक अभिव्यक्ति के फल स्वरुप विशिष्ट बालक का विकास अवरुद्ध हो जाता है, या उनका दिशाहीन जीवन हो जाता है वह आगे नहीं बढ़ पात।
योग्यता होने के बाद भी परिवार कई बार रुचि नहीं लेता है। समेकित शिक्षा कहती है कि सब को संवेदनशील बनाएं सब एक दूसरे की कमी को पूर्ण करने के लिए अग्रसर रहें।

3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा – कई बार समाज में जानकारी का बहुत अभाव रहता है इसके अभाव में पहले के दो कारण की पूर्ति नहीं होने से जिससे समस्या बढ़ती चली जाती है और बच्चे की सोच भी नकारात्मक होती चली जाती है। इस समस्या का निराकरण करना या निराकरण की अपेक्षा करना लोगों के बीच उससे संबंधित ज्ञान को फैलाना ।जिससे जागरूकता बढ़े, कठिनाइयों को दूर करने के बाद ही स्थूलता आती है, स्टेबिलिटी आती है।

धन्यवाद


Overview of Inclusive Education notes by India’s top learners

*️⃣ *समावेशी शिक्षा (inclusive education)*
समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज के बिना खुद को आगे नहीं बढ़ा सकते।

दूसरे शब्दों में :-
समावेशी शिक्षा समिति शिक्षा के तरफ एकत्रित करती है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाजके प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करें और एक स्तर पर लाया जाए।

🔸 संयुक्त राष्ट्र संघ –1993 में
सभी को समान अवसर देने जितने भी वंचित बच्चे हैं उनको समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों को दायित्व दिया गया है।

*️⃣ *समेकित शिक्षा*
समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देती है। सभी जगह अलग-अलग योग्यता उम्र और वर्ग के बच्चे होते हैं सब को उनकी योग्यता , उम्र और वर्ग के अनुसार ही शिक्षा देना। जिससे खुद के अंदर आत्मविश्वास, आशा कर्मठता और जीवन के प्रति आकर्षण बल बढ़ता है।


💫 Notes by ➖Rashmi Savle 💫

🌺 समावेशी शिक्षा 🌺
Inclusive Education

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है प्रत्येक को किसी न किसी रूप में समाज की आवश्यकता होती है जो उनके पर्यावरण के द्वारा प्राप्त होती है लोगों की अलग-अलग प्रकार की स्थिति के कारण लोगों का एक अलग प्रकार से माइंड सेट होता है जो जाति, लिंग,और स्थान के आधार पर होता है लोग अपनी सोच से तय करते हैं कि कौन अच्छा है और कौन बुरा है |

लोग जाति के आधार पर अपने अनुसार अपने आप को दूसरों के सामने या दूसरों को अपने आप से जज (Judage) करते हैं लोग आर्थिक स्थिति की वजह से भी लोगों को judage करते हैं स्थान के नाम पर भी लोगों को आंका जाता है |

इन सभी का शिक्षा में कोई स्थान नहीं है हम उसे आर्थिक स्थिति, लिंग, जाति ,या स्थान ,के आधार किसी बच्चे को वंचित नहीं कर सकते हैं इसी को दूर करने के लिए शिक्षा को लाया गया |✍ समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा ➖

समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देता है क्योंकि जितनी समस्या वर्तमान में है उसको दूर करने के लिए अलग-अलग योग्यताओं वाले बच्चों को अलग कक्षा अलग उम्र के अनुसार उनकी जरूरत के आधार पर शिक्षा देना तथा सबको समान रूप से शिक्षा दी जाए उसी को समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा भी कह सकते हैं |

अलग – अलग प्रकार के बच्चों को एक समान शिक्षा देना समावेशी शिक्षा है क्षमता के अनुसार सुलभ शिक्षा दी जाए समान शिक्षा दी जाए जो बच्चों के ,
आत्मविश्वास को प्रेरित करने वाला हो, ताकि उनमें
आशा,
कर्मठता, तथा
जीवन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो
और आकर्षण तब बढता है जब हम उसको महसूस करें उसके प्रति आत्मविश्वास जागृत हो तभी जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ेगा |

इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों के मनोबल को बढ़ाएं और वह उसके टैलेंट, व्यक्तित्व की आवश्यकता ,प्रोटोकॉल ,आदि के इंपोर्टेंट को समझें क्योंकि व्यक्ति आवश्यक है और यदि वह अपनी importance को समझ ले तो आत्मविश्वास बढ़ सकता है |

बच्चे में जीवन के प्रति आकर्षण तभी होगा जब उसके अंदर आत्मविश्वास, आशा, कर्मठता, आदि हो और वह उसकी सोच या विचार पर निर्भर करता है |

” समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक स्तर पर समझा जाए | “

चूंकि समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक हिस्सा है जो सबको समान करने की कोशिश करता है इसके लिए,

✍ संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 1993 में ➖

वंचित बालकों को समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों को यह कार्य सौंपा गया बिना भेदभाव के समान रूप से शिक्षा देने के प्रावधान किए जाएं |
जिसमें वंचित बालको के अन्तर्गत
विकलांग, अल्पसंख्यक, बालिकाओं की शिक्षा, कई प्रकार के अधिगम विकारों से पीड़ित बच्चे, भाषा, और लिंग के आधार पर इनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो |
और उनको समान रूप से शिक्षा दी जाए |

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✍🏻manisha gupta ✍🏻 🌸 *समावेशी शिक्षा*🌸 [Inclusive education]

💫 परिचय💫

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है प्रत्येक व्यक्ति को इस समाज में अंतःक्रिया करने की आवश्यकता होती है। जाति स्थान लिंग के आधार पर लोगों का व्यक्तियों के प्रति नजरिया होता है आर्थिक स्थिति के आधार पर भी लोगों का नजरिया बदलता जाता है। ‌ जाति ,स्थान ,स्टेटस के आधार पर व्यक्ति दूसरों के सामने या दूसरों को स्वयं से ही जज करने लगते हैं। कि वह आदमी अच्छा है या बुरा है। समाज में ऐसे बहुत से कारक हैं जिससे प्रत्येक लोगों का अन्य व्यक्तियों के प्रति नजरिया होता हैइन्हीं सरकार को के कारण ही समावेशी शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है जितने भी शिक्षा में अंतर या विषम पाए हैं इन सभी चीजों का शिक्षा में कोई स्थान नहीं है। सबको समानता स्वतंत्रता के आधार पर शिक्षा को संतुलित करने की जरूरत है इसी संतुलन को बनाए रखने के लिए समावेशी शिक्षा को लाया गया।

‌💫 समेकित शिक्षा💫

अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे अलग-अलग उम्र के बच्चे उनके जरूरत के हिसाब से शैक्षिक उपक्रम को पूरा किया जाता है इसे ही समेकित शिक्षा कहा जाता है यह परिभाषा एकीकृत के समान है इसलिए इसे एकीकृत शिक्षा भी कहा जाता है सभी को एक समान शिक्षा देना ही समेकित शिक्षा है। क्षमता और योग्यता के अनुसार सभी बच्चों को सुलभ शिक्षा दी जाए जो बच्चों में आत्मविश्वास आशा कर्मठता तथा जीवन के प्रति आकर्षण लाता है बच्चों को अपनी छवि हर दिन बनाने की कोशिश करनी चाहिए तभी स्वत:ही उनमें आत्मविश्वास आशा और जीवन के प्रति आकर्षण आ जाएगा। भले ही इंपैक्ट बाद में हो यह बच्चे की सोच या विचार पर निर्भर करता है।

समावेशी शिक्षा से तात्पर्य

समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है या ऐसा कह सकते हैं कि समेकित शिक्षा ही समावेशी शिक्षा को जन्म देती है और समेकित शिक्षा ही समावेशी शिक्षा की ओर अग्रसर करती है। '' *समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है जहां सभी छात्रों को उनकी जाति धर्म रंग लिंग और विकलांगता के बावजूद बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक समान स्तर पर लाया जाता है और समावेशी शिक्षा सभी विद्यार्थियों के लिए एक समान वातावरण प्रदान करती है। समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है समेकित शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है*'' शिक्षा का समावेशी करण इस बात पर जोर देता है की विशेष शैक्षणिक आवश्यकता ओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक असत्य विकलांग छात्रों को समान शिक्षा का अवसर मिलना चाहिए।

📚समेकित शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का ही एक हिस्सा है जो छात्रों के लिए समान शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने पर जोर देता है इसके लिए

संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 📚 जितने भी वंचित बच्चे हैं उन्हें समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों को यह कार्य *संयुक्त राष्ट्र संघ* के द्वारा सौंपा गया है जिसके अंतर्गत बिना भेदभाव के समान रूप से शिक्षा देने का प्रावधान किया जाएगा।समावेशी शिक्षा के अंतर्गत वंचित समूहों के विद्यार्थियों को सामान्य विद्यार्थियों के साथ साथ पढ़ाया जाएगा।

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✍🏻Notes By-Vaishali Mishra
🔆 समावेशी एवं समेकित (एकीकृत) शिक्षा🔆

🔅 समावेशी शिक्षा का अर्थ🔅 :-
समावेशी शिक्षा को हम कई रूपों में समझ कर सकते हैं-

▪️समावेशी शिक्षा का अर्थ जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है सभी को सम्मलित करके बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के बालकों और बालिकाओं की क्षमता को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना है।

▪️समावेशी शिक्षा के अंतर्गत मंदबुद्धि शारीरिक रूप से दिव्यांगों छात्र एवं छात्राओं को उनकी बुद्धि के आधार पर शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

▪️क्योंकि इस शिक्षा में समाज के सभी वर्ग से आने वाले और विभिन्न क्षमताओं के विद्यार्थियों को सम्मिलित कर के शिक्षा प्रदान की जाती है, इसीलिए इसे समावेशी शिक्षा की संज्ञा दी गई है।

▪️“समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो छात्रों की योग्यता, क्षमता, शरीरिक और आर्थिक स्थितियों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करती है।”

▪️समावेशी शिक्षा से हमारा तात्पर्य वैसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें सभी शिक्षार्थियों को बिना किसी भेद भाव के सीखने सिखाने के सामान अवसर मिले, परन्तु आज भी यह समावेशी शिक्षा उस मुकाम पर नहीं पहुँची है, जहाँ इसे पहुँचना चाहिए|

▪️किसी न किसी रूप में जो भी भेदभाव है उसे दूर करने के लिए समावेशी शिक्षा की जरूरत पड़ती है। हमारे जो भी भेदभाव या स्वतंत्रता ,न्याय या सेवा को एक संतुलित रूप देने की आवश्यकता है।

🔅 समेकित शिक्षा🔅➖

▪️समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देती है।
समावेशी एक प्रकार की एकीकृत या समेकित शिक्षा ही है जिसके अंतर्गत देना किसी भेदभाव या अंतर के समाज के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्रदान की जा सके और उन्हें समान स्तर पर लाया जा सके।

▪️अभी के समय में जितनी भी परेशानी है उन परेशानी को दूर करने के लिए अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे होंगे, अलग-अलग उम्र के बच्चे होंगे, अलग-अलग कक्षा के बच्चे होंगे, इन सभी की जरूरतों के हिसाब से उनको शैक्षिक उपक्रम सब को मिलाकर पूरा किया जाता है क्योंकि इसमें सब को एक साथ मिलाकर पूरा करते हैं इसीलिए इसे एकीकृत शिक्षा भी बोलते हैं।

▪️असमर्थ व्यक्तियों की समेकीकित शिक्षा, असमर्थ/ विकलांग बाल बच्चों/वंचित बच्चो की कक्षाओं में नियमित शिक्षा से प्रारम्भ होती है। प्रत्येक समाज में निर्धारित शैक्षिक गतिविधियों के अनुसार ऐसे असमर्थ बच्चों की विशिष्ट आवष्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुये उन्हें कक्षाओं में सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है।

🔅 संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 द्वारा जो वंचित वर्ग के बच्चे हैं उनके संपूर्ण विकास के लिए सभी को समान रूप से लाने के लिए सभी राज्यों को इसका प्रावधान सौंपा गया है।


✍PRIYANKA AHIRWAR ✍

📖समावेशी शिक्षा 📖

🎯 समावेशी शिक्षा से तात्पर्य उच्च शिक्षा से है जहां सभी प्रकार के बालको को समान रूप से शिक्षा दी जाती है। अर्थात बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक बालक को शिक्षा प्रदान की जाती है।

➡️ हम जानते हैं कि आज भी मनुष्य एक दूसरे से किसी ना किसी आधार पर भेदभाव करते हैं चाहे वह जाति हो, धर्म हो, लिंग हो, स्थान हो इत्यादि पर भेदभाव अभी भी होता है। अतः इसी भेदभाव की समाप्ति करने के लिए समावेशी शिक्षा की प्रक्रिया को जारी रखना आवश्यक है। इसके माध्यम से प्रत्येक वर्गों को शिक्षित किया जाता हैं, जिससे कि वह भी सामान्य वर्ग की भांति शिक्षित होकर अपने जीवन प्रक्रिया को पूर्ण कर सके।

🎯 समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा 🎯
समेकित शिक्षा से आशय उस शिक्षण प्रणाली से है जहां सभी वालों को एक समान शिक्षित तो किया जा सकता है, लेकिन उन्हें एक समान स्तर पर लाकर ताकि सभी वंचित बालक को एक समान अवसर प्राप्त हो सके।

⭐ समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है, जिसमें बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्गों को शिक्षा प्रदान किया जाए,एक स्तर पर लाया जाए और समान अवसर दिए जाएं।
अतः हम यह कह सकते हैं कि समावेशी शिक्षा, समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा का ही भाग है, एवं समावेशी शिक्षा को समेकित शिक्षा के अंतर्गत ही रखा गया है।

➡️ विभिन्न देशों में कई प्रकार की प्रणालियों को चलाया गया है, जिससे कि भेदभाव को दूर किया जा सके। सभी व्यक्तियों को समान स्तर पर लाया जा सके। एवं सभी को समान शिक्षा दी जा सके।

♦️ संयुक्त राष्ट्र संघ 1993♦️
सन् 1993 मे सभी वंचित वर्गों को शिक्षा देने के लिए या सभी को समान स्तर या समान अवसर देने की बात की गई है।
इसके अंर्तगत विभिन्न प्रकार के वर्गों को रखा गया है जैसे कि- शारीरिक रूप से विकलांग, मानसिक रूप से विकलांग, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक इत्यादि को सम्मिलित किया गया है।
इन सभी को समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रयास किए गए हैं,एवं कुछ प्रयास किए भी जा रहे हैं, जिससे कि कोई भी बालक शिक्षा की प्राप्ति से वंचित ना रह सके क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को समाज में रहने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है। समाज में स्थित विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करने के लिए शिक्षित व्यक्ति सदैव तत्परता दिखाता है।


✍🏻Menka patel ✍🏻

🌈 समावेशी शिक्षा🌈

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है व्यक्ति समाज में रहकर ही कुछ ना कुछ सीखता रहता है जाति स्थान और लिंग के आधार पर लोगों का व्यक्तियों के प्रति अपना एक नजरिया होता है व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के आधार पर भी लोगों का नजरिया बदल जाता है हर व्यक्ति का अपना एक नजरिया होता है लोग अपनी सोच से तय करते हैं कि कौन अच्छा है कौन बुरा है

समावेशी शिक्षा का अर्थ है सभी बच्चों को एक साथ शिक्षा देना किसी भी प्रकार का भेदभाव ना करना पिछड़े बच्चे विशेष बच्चे सभी को एक साथ अधिगम कराना

⭐ संयुक्त राष्ट्र संघ – 1993 मे
सभी बच्चों को समान अवसर देना जितने भी वंचित बच्चे हैं उनको समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों का दायित्व दिया गया है

✍🏻 समेकित शिक्षा —
समिति की शिक्षा समावेशी शिक्षा का जन्म देती है सभी जगह अलग-अलग योग्यता और उम्र के बच्चे होते हैं जीवन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो और हाथों से तब तक बढ़ता है जब हम उसको महसूस करें उसके प्रति आत्मविश्वास जागृत हो तभी जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ेगा

समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक स्तर का समझा जाए

समावेशी शिक्षा इस बात पर जोर देती है कि सभी बच्चों को समान शिक्षा समान अधिकार दिया जाए चाहे वह बच्चा वंचित समूह का हो या किसी प्रकार से विकलांग सभी को एक जैसी शिक्षा देने का अधिकार है
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐


✍notes by
Laxmi patle

🚻 समावेशी शिक्षा
📚 Inclusive education📚

👩‍🏫👉 समावेशी शिक्षा से तात्पर्य उस शिक्षा से है,जहां सभी छात्रों को जाति,धर्म,रंग,लिंग की विभिन्नता और विकलांगता के बावजूद समान रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है।

किसी भी समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति, समाज विशेष के ही भाग होते हैं ।व्यक्ति तथा समाज दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं ।यदि किसी व्यक्ति को एक समाज के अनुरूप कार्य की आवश्यकता होती है तो समाज को भी उसकी जरूरत होती है अतः हम यह कह सकते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

परंतु यहां कोई भी व्यक्ति इस बात से अनभिज्ञ नहीं है की हमारा समाज ही जाति, स्थान ,औहदा,रंग, लिंग आदि विभिन्न मानदंडों के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बंटा हुआ है। आधुनिक समय में शिक्षा के प्रसार तथा समाज के परिवर्तित होते मूल्यों के कारण एक नए दृष्टिकोण से शिक्षा प्रणाली को बनाने की आवश्यकता पड़ी जिसे समावेशी शिक्षा कहा गया।

शिक्षा में रंगभेद ,वर्गभेद,जातिभेद,विभिन्न विषमताओं इत्यादि को कोई स्थान नहीं दिया गया है। इसलिए बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार,समानता के अधिकार के साथ ,एक ही स्थान पर ,साथ-साथ शिक्षा के समान अवसर प्रदान करने की योजना समावेशी शिक्षा के तहत बनाई गई।

🚸 समेकित शिक्षा🚸

♾👉 समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है। जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक समान स्तर पर लाया जाए। समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा से निकल कर आती है। अतः समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का भाग है।

अलग-अलग योग्यता,उम्र,कक्षा,वर्ग के लोग समाज में उपस्थित है। लोगों को उनके जरूरत के अनुसार हर संभव शैक्षिक उपक्रम उपलब्ध कराना समेकित शिक्षा कहलाता है।

समेकित शिक्षा में हर प्रकार के योग्यता वाले बच्चों के सभी पक्षों को ध्यान में रखा जाता है और शिक्षा प्रदान की जाती है।इसे एकीकृत शिक्षा भी कहते हैं। इसमें बालकों के अनुसार विद्यालय को परिवर्तन करना होता है ताकि छात्रों को उनके क्षमता के अनुसार अधिक से अधिक विकास के अवसर सुलभ हो। इसकी सहायता से छात्रों को जीवन में विभिन्न लाभ होते हैं जैसे उनमें आत्मविश्वास, आशा ,कर्मठता एवं जीवन के प्रति आकर्षण जागृत होता है।

🔴 संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 में ,सभी वंचित वर्गों को समान शिक्षा प्रदान कराने का सभी राज्यों को आवश्यक दायित्व सौंपा गया जिसके अंतर्गत सभी वंचित वर्ग शारीरिक रूप से अक्षम, दृष्टिहीन, बधिर,विकलांग बौद्धिक स्तर पर वंचित ,जाति, समूह ,धार्मिक अल्पसंख्यक,स्त्री-पुरुष भेदभाव को दूर करके, सर्वजन के संपूर्ण विकास हेतु शिक्षा का प्रावधान किया गया है।

🙏समाप्त 🙏

Complete learning disability notes by India’s top learners-2

By Vandana Shukla

✳️ learning disability✳️
✳️अधिगम विकार✳️

Learning disability अधिगम विकार का पता हमें बॉडी के लेवल पर नहीं चलता है यह विकार माइंड लेवल पर होता है लर्निंग डिसेबिलिटी मानसिक एवं शारीरिक दोनों स्तर पर होती है।

Case 1 🔸 physical जैसे हमने कुछ देखा उसका पिक्चर आंख पर गया और इमेज रेटिना पर ना बन के दूसरी जगह पर बना तो प्रॉपर इमेज नहीं बना, और हमें चित्र सही दिखाई नहीं दिया । इमेज माइंड को संदेश भेजता है माइंड उस संदेश को समझता है image गलत बनेगा तो माइंड उस image/ संदेश को गलत समझेगा।

Case2 🔸 mental – इमेज आया और इमेज एटिना पर बना। सही image बनी माइंड पर ,पर mind उसे प्रॉपर्ली रीड नहीं कर पाता है तो भी संदेश गलत मिलता है माइंड उसकी मोच की प्रॉपर एनालिसिस नहीं कर पाता।

  • सीखने में दिक्कत मस्तिष्क या मानसिक स्तर पर।
  • बॉडी संदेश भेजता है माइंड में माइंड समझकर प्रतिक्रिया देती है। शारीरिक – में बॉडी संदेश ही नहीं भेज पाता माइंड को तो माइंड प्रॉपर एक्शन नहीं करता। मानसिक – में बॉडी तो संदेश भेजती है माइंड को पर mind संदेश को सही से नहीं समझता और उसके अनुसार प्रॉपर एक्शन नहीं करता।

🔅 Book -Supporting students with learning disabilities
( a guide for teacher)

यह book ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय और ब्रिटिश कोलंबिया द्वारा प्रकाशित हुई।

इस बुक में 10 प्रकार की लर्निंग डिसेबिलिटी के बारे में बताया गया।

1️⃣ Dyslexia पठन संबंधी विकार

2️⃣Dysgraphia लेखन संबंधी विकार

3️⃣ Dyscalculia गणितीय कौशल संबंधी विकार

4️⃣ Dysphasia वाक् संबंधी विकार

5️⃣ Dyspraxia लेखन चित्रण संबंधी विकार (चित्रांकन)

6️⃣Disorthographia वर्तनी संबंधी विकार

7️⃣ Auditory processing disorder श्रवण संबंधी विकार

8️⃣ Visual perception disorder दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी

9️⃣Sensory integration of processing इंद्री समन्वय क्षमता विकार

🔟Organisational learning disorder संगठनात्मक पठान संबंधी विकार

➡️ मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिया गया अधिगम विकार 6 प्रकार के हैं
1️⃣Dyslexia
2️⃣Dyscalculia
3️⃣Dysgraphia
4️⃣ Dyspraxia
5️⃣ADHD(attention deficit hyperactivity disorder)
6️⃣Dysphasia

🌸 Dyslexia
खोज – डिस्लेक्सिया की खोज सन् 1887 में नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लिन द्वारा किया गया था
यह ग्रीक भाषा के शब्द डस + लेक्सिस (das +Lexsus)से मिलकर बना है जिसका अर्थ कठिन भाषा difficulty in speech ।

  • इस विकार में पढ़ने में कठिनाई होती है।
    -डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों की परेशानी पढ़ाई से संबंधित है जिससे वह बोलने से भी घबराने लगते हैं इन्हें पढ़ने में डर लगता है।
  • लिखित, भाषा दक्षता ,मौखिक सबको प्रभावित करती है।

🔶 लक्षण
1 वर्णमाला अधिगम में कठिनाई।
2 अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई ।
3एकाग्रता में कमी
4 स्वर वर्णों का लोप ( पढ़ते समय)
5 दृष्टि या स्मृति संबंधित कठिनाई
6शब्दों को उल्टा करके पढ़ना
7 अक्षरों का क्रम इधर-उधर करके पढ़ना
8अक्षर उल्टे ढंग से दिखते हैं।
9 वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ना ।
10वर्तनी दोष से पीड़ित
11समान उच्चारण वाले ध्वनियों को नहीं पहचान पाना।
12शब्दकोश का अभाव भाषा
13भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना
14स्मरण शक्ति क्षीण हो जाना
15 अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना।
16 पढ़ते समय शब्द या पंक्ति को छोड़ देना।

🔸कारण
1 तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकृति 2वंशानुक्रम के कारण भी हो सकता है

🔸निदान
1 इस विकार से ग्रसित बच्चे के परिवारिक इतिहास का अध्ययन करना चाहिए
2भाषा वर्तनी उच्चारण बौद्धिक योग्यता स्मृति संबंधी परीक्षण किया जाना चाहिए ।
3पठन का अभ्यास कराया जाना चाहिए।

🌸 Dysgraphia
यह भी एक अधिगम असमर्थतता है।यह विकार लेखन संबंधी है इस विकार में बच्चों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है जो निम्न प्रकार है
-धीमा
-भद्दा
-त्रुटिपूर्ण
-शीघ्र थकना
-उंगली में दर्द
-वर्तनी संबंधी कठिनाई
-खराब हस्त लेखन
-विचारों को लिपिबद्ध करने में परेशानी

National centre for learning
disabilitism-2006

🔸 लक्षण
1 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई 2 लाइनों के कभी ऊपर कभी नीचे लिखना
3 शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना
4 अपूर्ण अक्षर या शब्द का लिखना
5 अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई
6 पठनीय होने के बाद भी वह हूबहू उतारने में अधिक समय लगाना
7 वर्तनी शुद्ध लिखना
8 अनियमित रूप एवं आकार वाले अक्षर
9 अपठनीय हस्तलेखन
10 कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होता है
11वाक्य या शब्द छोड़कर या पुनरावृति करते हैं ।
12 लिखते समय खुद से बातें करता हैं ।
13 लेखन सामग्री पर सही पकड़ ना होना।

🔸निदान
लेखन का अभ्यास कराया जाना चाहिए ।

🌸 Dyscalculia

  • गणितीय कौशल अक्षमता
  • गणितीय योग्यता की कमी
  • गणितीय संक्रिया में समस्या
  • अंक /संख्या का अर्थ समझ में ही ना आने की योग्यता
  • सूत्र सिद्धांत को ना लगा पाना या प्रयोग में असमर्थतता।
  • जोड़ ,घटाव, गुणा, भाग में बहुत समय लगाना या नहीं कर पाना।
  • ऐसे लोगों को लोग सुस्त एवं आलसी बोलते हैं।

🔸 लक्षण

1 नाम और चेहरा पहचानने में कठिनाई होती है।
Text ➡️ image ➡️ video

Video का ज्यादा इंपैक्ट माइंड में ज्यादा दिन तक रहता है

2 अंक गणितीय संक्रिया के अशुद्ध परिणाम निकालना।
3 अंक गणितीय संक्रिया के चिन्हों को समझने में कठिनाई
4 गिनने के लिए उंगलियों का उपयोग करना
5 गणितीय कार्य करने में कठिनाई
6 संख्या को पहचानने में समस्या
7 वित्तीय योजना /बजट बनाने में परेशानी
8 चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई 9 गणितीय आकृति को पहचानने में कठिनाई
10 दिशा ज्ञान का अभाव
11 नगद भुगतान में डर
12 बड़ा ,छोटा ,परिधि ,क्षेत्रफल, भार समझने में समस्या ।
13 श्रव्य /दृश्य इंद्रियों से संबंधित कमी ।
14 समय, दूरी, गहराई समझने में समस्या।
15 रुपए ,पैसे, लेने देने परेशानी
16 समय सारणी बनाने में कठिनाई

🔸कारण

  • Mind cortex सही से काम नहीं करता
  • गहन चिंतन क्षमता में परेशानी
  • स्मृती संबंधी परेशानी

🔸उपचार
1अभ्यास
2 वास्तविक जिंदगी से जोड़कर
3 उचित शिक्षण रणनीति
4 गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय
5 वीडियो गेम, फ्लैशकार्ड, कंप्यूटर गेम, शतरंज, लूडो का प्रयोग करना।
6 गणित को सरल बना कर पढ़ाना और आसान विषय बताना।

🌸 Dyspraxia

  • चित्रांकन संबंधी विकार अक्षमता
  • इमेज बनाने में प्रॉब्लम
  • हस्तलेखा में परेशानी
  • लेखन /चित्र दोनों बनाने में परेशानी संबंधी विकार
  • खुद का बनाया हुआ पहचानने समझने में असमर्थ
  • माइंड में किसी वस्तु का प्रतिबिंब नहीं बन पाना।

🌸 ADHD
Attention deficit hyperactivity disorder

(ध्यानाभाव अतिक्रियाशीलता विकृति )
-बच्चे का इंपल्स/ आवेग ,
को नियंत्रित करने में असुविधा।
1- बच्चों में आवेग के नियंत्रण में समस्या आती है
2ध्यान केंद्रित नहीं रहता है।
3 अनुशासनहीनता शिक्षण में बाधा
4 स्नायु तंत्र विकृति
5 संवेगात्मक रूप से स्थिर नहीं रहते हैं
6 प्राथमिक स्तर पर लड़की की तुलना में लड़कों में अधिक पाया जाता है
7 भोजन में कलर /जंक फूड से भी एडीएसडी

🔸 लक्षण
1 कार्य खेल में ध्यान में कमी ।
2 भूलने की समस्या ।
3 हाथ पैर उंगलियों को चलाना।
4 स्वचालित व्यवहार करना ।
5 प्रश्न के समाप्त होने के पहले ही उत्तर दे देना
6 दूसरों की बात सुने बिना बीच में काट देना
7 कार्य करने वाली सामग्री को खो देना
8 निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना
9 अपनी बारी का इंतजार नहीं करना
10अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना
11कक्षा में बार-बार सीट बदलना
12 सदैव बेचैन रहना
13 बाहरी उत्तेजना के शीघ्र प्रभाव
14 कही गई बातों को पूरा नहीं सुनना।

🔸उपाय

1खिड़की और दरवाजे से दूर बैठाया जाए ।
2 कार्य करने के लिए अधिक समय देना चाहिए
3विराम, चिंतन, तब कार्य (stop think and than action).
4 सीधे प्रश्न पूछा जाए
5 अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना
6पुनर्बलन देना
7स्टेलिन – एकाग्रता में वृद्धि करता है , यह भी विकार में प्रभावी नहीं है नहीं देना चाहिए।

🌸 Dysphasia

  • यह ग्रीक भाषा के 2 शब्दों डिस तथा फेसिया से मिलकर बना है।
  • वाक् संबंधी विकार है, बोलने संबंधी।
  • विचारों के अभिव्यक्ति की व्याख्या के समय कठिनाई महसूस करते हैं ।

-बोलने में समस्या आती है।

🔸उपाय
मस्तिष्क को क्षति होने से बचाना चाहिए।

धन्यवाद


✨✨ Notes by :- Neha Kumari ✨✨

🌸🌸अधिगम विकार🌸🌸

🖊️अधिगम विकार,से तात्पर्य उन मानिसक या मनोवैज्ञानिक स्थिति से है जिसमें बच्चे को अधिगम के दौरान कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
जैसे कि :- बच्चे को सुनने,देखने,स्वास्थ्य संबंधी कठिनाई, बोलने, पढ़ने, लिखने में एवं अन्य इंद्रिय – जनित अस्थाई समस्याएं आते हैं। परंतु, अधिगम में कठिनाई विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकता है चाहे वह मानसिक स्तर पर हो या शारीरिक स्तर पर दोनों ही अधिगम को प्रभावित करते हैं। इन दोनों कारणों को हम निम्नलिखित तरीके से समझ सकते हैं-

🌟कोई बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग है तो उसे सिखने में व्यवधान उत्पन्न होता है जैसे :- गूंगा,बहरा,अंधा,मानसिक मंदता इत्यादि । इसमें बच्चे को होने वाली कठिनाइयों का स्पष्ट पता चलता है और इसका समाधान निकालने का प्रयास करता है। इसे शारीरिक विकलांगता के कारण होने वाली अधिगम विकार कह सकते हैं ।

📚 अधिगम अक्षमता का वर्गीकरण :
🌟अधिगम अक्षमता,को कई प्रकार से विभेदीकृत किया गया है।जिसमें से इसका सबसे प्रमुख विभेदीकरण,कोलंबिया के एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक Supporting students with learning disabilities & God father teacher’s में दिया गया है।

🌸जो कि निम्नलिखित है :-
1.डिस्लेक्सिया :- पठन विकार
2.डिस्कैलकुलिया :- लेखन विकार
3.डिसग्राफिया :- गणितीय क्षमता संबंधी विकार
4.डिस्प्रेक्सिया :- लेखन/चित्रण संबंधी विकार
5.डिसफेसिया :- वाक् क्षमता संबंधी विकार
6.डिसआर्थोग्राफिया :- वर्तनी संबंधी विकार
7.आॅडिटरी प्रोसेसिंग डिसआर्डर :- श्रवण क्षमता संबंधी विकार
8.विजुअल प्रोसेसिंग डिसआर्डर :- दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार
9.सेंसरी इंटिग्रेशन और प्रोसेसिंग डिसआर्डर :- इन्द्रिय समन्वय क्षमता संबंधी विकार
10.आर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसआर्डर :- संगठनात्मक पठन संबंधी विकार

📚 मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम विकार के 6 मुख्य विकारों का वर्णन किया है जो कि निम्नलिखित है :-

1.डिस्लेक्सिया :- पठन विकार
2.डिस्कैलकुलिया :- लेखन विकार
3.डिसग्राफिया :- गणितीय क्षमता संबंधी विकार
4.डिस्प्रेक्सिया :- लेखन/चित्रण संबंधी विकार
5.डिस्ट्रेक्सिया या
(ADHD – Attention Difect Hyper Activity Disordar) :- (ध्यानाभाव अतिक्रियाशीलता विकृति)
6.डिस्फेसिया :- वाक् क्षमता संबंधी विकार
📚 डिस्लेक्सिया(पठन विकार)

सर्वप्रथम डिस्लेक्सिया की खोज 1887 में हुआ था। इसकी खोज जर्मन नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लीन ने किया था। डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द डस + लेक्सिस से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ कठिन भाषा या पढ़ने में कठिनाई होता है।

📚 डिस्लेक्सिया के लक्षण :-

🌟 वर्णमाला अधिगम में कठिनाई।
🌟 अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई।
🌟 एकाग्रता में कमी।
🌟 पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप कर देना।
🌟 दृष्टि या स्मृति संबंधी कठिनाई।
🌟 शब्दों को उल्टा करके पढ़ना।
🌟 अक्षरों का सही क्रम इधर-उधर करके पढ़ना।
🌟अक्षर का उल्टे ढंग से दिखना।
🌟 वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ना।
🌟 वर्तनी दोष से पीड़ित।
🌟 समान उच्चारण वाले ध्वनियों को नहीं पहचान पाना।
🌟 शब्दकोश का अभाव रहना।
🌟भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना।
🌟 स्मरण शक्ति क्षीण होना।
🌟अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना।
🌟पढ़ते समय सब दया पंक्ति को छोड़ देना।

💫डिस्लेक्सिया के कारण:-
▪️तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है।
▪️ यह वंशानुक्रम द्वारा भी होता है।

💫डिस्लेक्सिया के उपाय:-
▪️ पारिवारिक इतिहास का अध्ययन करके ।
▪️ भाषा ,वर्तनी ,उच्चारण ,बौद्धिक योग्यता, स्मृति इत्यादि संबंधी क्रियाकलाप करा कर।
▪️पठन अभ्यास कराके।

🖊️📝 डिस्ग्राफिया(लेखन विकार ) 📝🖊️

डिसग्राफिया लेखन क्षमता में विकृति को बताता है। जिसमें वर्तनी संबंधी कठिनाई,खराब लेखन एवं अपने विचारों को सही ढंग से प्रस्तुत ना कर पाना बताया गया है,डिसग्राफिया,से संबंधित यह बात (नेशनल सेंटर फॉर लर्निंग डिसेबिलिटी 2006) में कहा गया है।

📚 डिसग्राफिया के लक्षण:
🖊️ लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई ।
🖊️पंक्तियों में कभी ऊपर कभी नीचे लिखना।
🖊️ शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना ।
🖊️अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना ।
🖊️ अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई।
🖊️ पठनीय होने के बाद भी कॉपी करने में अधिक समय लगाना ।
🖊️वर्तनी अशुद्ध लिखना ।
🖊️अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर लिखना ।
🖊️आप पठनीय हस्त लेखन, जो पढ़ा ना जा सके।
🖊️ कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होना।
🖊️वाक्य या शब्द छोड़कर लिखना या पुनरावृति में लिखना ।
🖊️ लिखते समय खुद से बातें करना।
🖊️लेखन सामग्री पर सही पकड़ न होना।

💫डिसग्राफिया के कारण :-
▪️ तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति होना।
▪️ यह वंशानुक्रम द्वारा होता है।

💫 dysgraphia के उपाय:-
▪️ लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करा कर।

🔢 डिस्कैल्कुलिया( गणितीय अक्षमता) :-

“डिसकैल्कुलिया”शब्द का प्रयोग गणितीय कौशल क्षमता या गणिती योग्यता में कमी को दर्शाने के लिए किया जाता है इसके अंतर्गत बच्चों को अंकों,संख्या,जोड़, घटाव, गुणा,भाग इत्यादि अंकगणितीय समस्याओं को हल करने में अधिक समय लगता है।अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिद्धांतों के प्रयोग की अयोग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।

💫 डिस्कैल्कुलिया के लक्षण :-
▪️नाम और चेहरे पहचानने में कठिनाई।
▪️अंकगणितीय संक्रियाओं के अशुद्ध परिणाम निकालना।
▪️अंकगणितीय संक्रियाओं के चिन्हों को समझने में कठिनाई।
▪️गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग।
▪️गणितीय कार्य करने में कठिनाई।
▪️संख्या को पहचानने में समस्या।
▪️वित्तीय योजना/ बजट बनाने में परेशानी।
▪️चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई।
▪️गणितीय आकृति को पहचानने में समस्या।
▪️ दिशा ज्ञान का आभाव।
▪️ नगद भुगतान करने में परेशानी एवं डर।
▪️बड़ा, छोटा, परिधि, क्षेत्रफल पहचानने में कठिनाई आना।
▪️श्रवण / दृश्य इंद्रियों से संबंधित कमी।
▪️समय,दुरी,गहराई, ऊंचाई आदि।
▪️रूपये-पैसे के लेन-देन में परेशानी।
▪️समय- सारणी बनाने में कठिनाई।

💫डिस्कैल्कुलिया के कारण:-
▪️ हमारे मस्तिष्क में सेरीब्रम कॉरटेक्स पाया जाता है जोकि यदि सही से काम नहीं कर पाता तो डिस्केलकुलिया होता है।
▪️ गहन चिंतन में अक्षमता या परेशानी होना।
▪️ स्मृति संबंधी परेशानी होना।

💫 डिस्कैलकुलिया के उपाय :-
▪️ गणितीय अभ्यास करना।
▪️ वास्तविक जिंदगी से जोड़कर उदाहरण प्रस्तुत करना।
▪️ उचित शिक्षण रणनीति बनाकर।
▪️ गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय देना।
▪️ वीडियो गेम फ्लैश कार्ड कंप्यूटर गेम शतरंज लूडो आदि का प्रयोग।
▪️गणित को सरल करना और आसान विषय बताना।

📚 डिस्प्रेक्सिया(चित्र/लेखन संबंधी विकार)
▪️ यह चित्रांकन संबंधी अक्षमता होती है।
▪️ हस्तलेख की क्षमता में कठिनाई आना।
▪️ लेखन एवं चित्रकारी दोनों करने में दिक्कत।
▪️ खुद का लिखा हुआ भी नहीं समझ पाना।
▪️ वस्तुओं को मस्तिष्क में प्रतिबिंबित नहीं कर पाते।

🤔😡 डिस्ट्रेक्सिया (ADHD) 😡🤔

😱😱ADHD का पूरा नाम attention deficit hyperactivity disorder है। इसे हिंदी में ध्यानाभाव अतिक्रियाशीलता विकृति कहते हैं।

🌸 परिचय🌸
🌟 बच्चों में आवेग के नियंत्रण में समस्या आती है।
🌟ध्यान केंद्रित नहीं रहता है।
🌟अनुशासनहीनता ,शिक्षण में बाधा।
🌟स्नायु तंत्र नर्व फाइबर या नर्व टिशु में विकृति से उत्पन्न होता है।
🌟बच्चे संवेगात्मक रूप से स्थिर नहीं रहते हैं।
🌟प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है।
🌟 भोजन में कलर्ड एवं जंक फूड की वजह से एडीएचडी होता है।
🌟 सामाजिक मनोविज्ञान में कारक होते हैं।

🤡ADHD के लक्षण:-
▪️ कार्य या खेल के ध्यान में कमी।
▪️भूलने की समस्या।
▪️ हाथ ,पैर ,उंगलियों को बेवजह चलाना।
▪️स्वचालित व्यवहार करना।
▪️प्रश्न के समाप्त होने से पहले उत्तर दे देना।
▪️दूसरों की बात सुने बिना बीच में काट देना।
▪️कार्य करने की सामग्री को खो देना।
▪️निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना।
▪️अपनी बारी का इंतजार नहीं करना।
▪️ बहुत तेज अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना।
▪️कक्षा में बार-बार सीट बदलना।
▪️सदैव बेचैन रहना।
▪️बाहरी उत्तेजना से शीघ्र प्रभावित होना।
▪️ कही गई बातों को पूरा नहीं सुनना।

💫 ए डी एच डी के उपाय:-
▪️ खिड़कियों या द्वार से दूर बिठाया जाये।
कार्य करने के लिए अधिक समय देना ।
▪️विराम ,चिंतन, कार्य इस क्रम को अपनाना।
▪️ऐसे बच्चों से सीधे प्रश्न पूछा जाना चाहिए।
▪️अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना।
▪️पुनर्बलन देना।
▪️स्टेलिन ,एकाग्रता में वृद्धि करता है लेकिन यह भी इस विकार में प्रभावी नहीं है।

📚डिस्फेशिया(वाक् क्षमता संबंधी विकार) :-
▪️ यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों (dys + phasia ) से मिलकर बना है,जिसका शाब्दिक अर्थ वाक् में अक्षमता है।
▪️ यह वाक् संबंधी विकार है।
▪️ विचारों की अभिव्यक्ति को व्याख्या करने के समय कठिनाई महसूस होना।
▪️ बोलने में समस्या आती है।
▪️ यह मस्तिष्क में क्षति या ब्रेन डैमेज के कारण होता है।

🌟🌟धन्यवाद् 🌟🌟


अधिगम विकार

ब्रिटिश कोलंबिया के द्वारा ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय के द्वारा एक पुस्तक जारी की थी supporting student with learning disability a guide guide for teacher
इस पुस्तक में अधिगम बिकार 10 प्रकार के बताए गए बाद मे इन्हीं में से इनमें से आगे चलकर 6 बिकार बताए गए गए इनमें से कुछ तो यही थे और कुछ marz करके साथ कर दिया
अधिगम विकार के प्रकार
डिस्लेक्सिया पढ़ने का विकार
1 डिसग्राफिया लेखन संबंधी विकार
2 डिस्केलकुलिया गणितीय कौशल संबंधी विकार
3 डिस्प्लेशिया वाह क्षमता संबंधी विकार
4 डिस्प्रेक्सिया लेखन चित्रण संबंधी विकार
5 ऑडिटरी प्रोसेसिंग डिसऑर्डर सवाना संबंधी बिकार auditory processing disorder
6 दृश्य प्रत्याक्षण क्षमतासंबंधी बिकार visible parption disorder
7 केंद्रीय समन्वय क्षमता संबंधी बिकार sensory integration of of processing disorder

8संगठनात्मक पठन संबंधी बिकार orgnaisation learning disorder
मनोविज्ञान के आधार पर 6 प्रकार के अधिगम अक्षमता बताए गए हैं
1डिस्लेक्सिया
2डिसग्राफिया
3डिस्केलकुलिया
4डिस्प्रेक्सिया
5ए डी एच डी
6डिस्फेशियाअधिगम विकार

ब्रिटिश कोलंबिया के द्वारा ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय के द्वारा एक पुस्तक जारी की थी supporting student with learning disability a guide guide for teacher
इस पुस्तक में अधिगम बिकार 10 प्रकार के बताए गए बाद मे इन्हीं में से इनमें से आगे चलकर 6 बिकार बताए गए गए इनमें से कुछ तो यही थे और कुछ marz करके साथ कर दिया
अधिगम विकार के प्रकार
डिस्लेक्सिया पढ़ने का विकार
1 डिसग्राफिया लेखन संबंधी विकार
2 डिस्केलकुलिया गणितीय कौशल संबंधी विकार
3 डिस्प्लेशिया वाह क्षमता संबंधी विकार
4 डिस्प्रेक्सिया लेखन चित्रण संबंधी विकार
5 ऑडिटरी प्रोसेसिंग डिसऑर्डर सवाना संबंधी बिकार auditory processing disorder
6 दृश्य प्रत्याक्षण क्षमतासंबंधी बिकार visible parption disorder
7 केंद्रीय समन्वय क्षमता संबंधी बिकार sensory integration of of processing disorder

8संगठनात्मक पठन संबंधी बिकार orgnaisation learning disorder
मनोविज्ञान के आधार पर 6 प्रकार के अधिगम अक्षमता बताए गए हैं
1डिस्लेक्सिया
2डिसग्राफिया
3डिस्केलकुलिया
4डिस्प्रेक्सिया
5ए डी एच डी
6डिस्फेशिया

1887 मैं नेत्र रोग विशेषज्ञ रुडोल्फ बर्लिन
जर्मनी के नेत्र रोग विशेषज्ञ थे
उन्होंने डिस्लेक्सिया के बारे में बताया
डिस्लेक्सिया शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है dus+lexis
लेक्सिया यह ग्रीक भाषा का शब्द है इसका शाब्दिक अर्थ होता है कठिन भाषा
1पढ़ने में घबराते हैं
2पढ़ने में डर लगता है
डिस्लेक्सिया के लक्षण
1 वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
2अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
3 शब्दों को उल्टा पुल्टा पड़ने के कारण एकाग्रता में कमी आ जाती है लिख नहीं पाता जवाब नहीं दे पाता
4 स्वर वर्णों का लोप पढते समय
5दृष्टि या स्मृति संबंधित कठिनाई
4शब्दों को उल्टा करके पढ़ना
5अक्षरों का क्रम इधर-उधर करके पढ़ना
6अक्षर उल्टे ढंग से देखते हैं 6 को 9 7 ko l l
8वाक्यो में शब्दों को आगे पीछे करता करता पीछे करता करता है
9वर्तनी दोष से पीड़ित
10 समान उच्चारण वाले धनिया को नहीं पहचानता स श ष
11 शब्दकोश का अभाव रहता है
12भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाता है
13 स्मरण शक्ति क्षीण
14अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ता है 15पढ़ते समय शब्द या पंक्ति को छोड़ देता है
डिसग्राफिया 💐💐💐 इसे शब्द विन्यास भी कहते हैं
लेखन विकार
1लिखे गए शब्दों को पढ़ने में कठिनाई
2धीमा लिखना
3भद्दा लिखना
4त्रुटिपूर्ण लिखना
5 लिखते समय उंगलियों में दर्द होना
6वर्तनी संबंधी कठिनाई
7विचारों को lipibadh करने में परेशानी National Centre for learning disabilities 2006
लक्षण 💐💐💐
1लेखन संबंधी कार्य में कठिनाई
2लाइनों के ऊपर कभी नीचे लिखना
3शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना
4अपूर्ण अक्षर या शब्द
5अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई
6 पठनीय होने के बाद भी देखकर ना लिख पाना 7अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर
8वर्तनी अशुद्ध लिखना
9अपठनीय हस्तलेखन
10 कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होता
11 वाक्य शब्द छोड़कर पुनरावृति करते हैं
12लिखते समय खुद से बात करना
13 लेखन सामग्री पर सही पकड़ ना होना
कारण 💐💐💐💐
1तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है
2वंशानुक्रम के द्वारा
निदान 💐💐
1पारिवारिक इतिहास का अध्ययन भाषा वर्तनी उच्चारण बौद्धिक योग्यता स्मृति संबंधी परीक्षण
डिसग्राफिया को लेखन संबंधी विकार के अभ्यास के द्वारा संबंधी विकार के अभ्यास के द्वारा द्वारा ठीक किया जा सकता है
dyscalculia डिस्केलकुलिया 💐💐💐
गणितीय विकार
यदि यह समस्या होती है तो यह हमें एवरी टाइम प्रभावित करता है यह बहुत बड़ा बिकार है
1गणीतिय कौशल अक्षमता
2गणीतिय योग्यता की कमी
3गणितीय संक्रिया में समस्या
4 अंक या संख्या का कोई अर्थ ही समझ ना आए
5सूत्र सिद्धांत नहीं लगा पाते जोड़ घटाव गुणा भाग बहुत समय लगाता है या नहीं कर पाता है तो लोग बोलते हैं सुस्त है आलसी है आलसी है है आलसी है
लक्षण 💐💐💐
1 चेहरा पहचानने में कठिनाई
2नाम और चेहरा पहचानने में कठिनाई
3अंक गणितीय संक्रिया के अशुद्ध परिणाम निकालना
4 ” – “को समझने में कठिनाई
5 गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग
6 गणितीय गणना गणितीय कार्य करने में कठिनाई
7 वित्तीय योजना बजट बनाने में परेशानी है
8 दिशा ज्ञान का अभाव
7 नगद भुगतान में डर लगता है या नहीं कर पाता
8 बड़ा छोटा आकार की परिधि
9श्रवण द्रश्य इंद्रियों से संबंधित कमी
10 चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई के प्रयोग में कठिनाई
11समय से जुड़ी हुई समस्याएं दूरी गहराई
12 रूपए पैसे के लेनदेन में परेशानी में परेशानी में परेशानी
13 समय सारणी के बनाने में कठिनाई
14 संख्याको पहचानने में कठिनाई
कारण 💐💐💐💐
1माइंड सही से काम नहीं करता
2 गहन चिंतन क्षमता में परेशानी
3 स्मृति संबंधी परेशानी
उपचार
1अभ्यास करके
2
वास्तविक जिंदगी से जोड़कर
3 उचित शिक्षण रणनीति रणनीति अपनाने से
4 गणीतिय तथ्यों को याद करने के लिए
लिए अतिरिक्त समय प्रदान करना
5 वीडियो गेम फ्लैश कार्ड कंप्यूटर गेम शतरंज प्रयोग कंप्यूटर गेम शतरंज प्रयोग प्रयोग करना
6 गणित को सरल बना कर पढ़ाना और आसान बताना
डिस्प्रेक्सिया💐💐💐
1डिस्प्रेक्सिया एक चित्रांकन संबंधी क्षमता
2 हैंड राइटिंग राइटिंग
3 लेखन चित्रांकन
4खुद का बनाया हुआ नहीं समझ पाना
ADHD
ए डी एच डी डी एच डी डी अटेंशन बीपीसीएल हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर ध्याना भाव अति क्रियाशीलता विकृति क्रियाशीलता विकृति अति क्रियाशीलता विकृति क्रियाशीलता विकृति
1 बच्चे की आवेग के नियंत्रण में समस्या आती है
2 ध्यान केंद्रित नहीं रहता
3 स्नायु तंत्र {nerve fibers} विकृति
5 संवेगात्मक रूप से स्थिर नहीं रहता है
6प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है
7 भोजन में कलर जंक फूड से एडीएसडी होता है सामाजिक मनोविज्ञान एडीएसडी होता है सामाजिक मनोविज्ञान से एडीएसडी होता है सामाजिक मनोविज्ञान एडीएसडी होता है सामाजिक मनोविज्ञान होता है सामाजिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान के कारण
लक्षण💐💐💐
1 कार या खेल में ध्यान की कमी
2 भूलने की समस्या
3 हाथ पैर उंगलियों को चलाना
4 स्वचालित व्यवहार करना
5 प्रश्न के समाप्त होने से पहले उत्तर दे देना
6दूसरों की बात सुने बिना बीच में काटना
7कार्य करने वाली सामग्री को खो देना
8 निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना
9अपनी बारी का इंतजार नहीं करना
10अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना
11 कक्षा मेंबार-बार सीट बदलना
12 सदैव बेचैन रहना
13बाहरी उत्तेजना से शीघ्र प्रमाद
14 कही गई बातों को पूरा नहीं सुनना
उपाय
3 खिड़कियों व दरवाजों के द्वार से दूर बैठाना
4 कार्य करने के लिए अधिक समय देना
5 विराम stop,चिंतन think ,कार्य action
6 सीधे प्रश्न पूछे जाने पर ध्यान देना
6 पुनर्बलन देना
7 एटेलिन एकाग्रता में वृद्धि रखता है यह भी विकार में प्रभावी नहीं हैं

dysphagia डिस्फेसिया
डिस + फेशिया से मिलकर बना है
1 यह वाक्य संबंधी विकार है
2 विचारों की अभिव्यक्ति को व्याख्या के समय कठिनाई महसूस करता है
3 बोलने में समस्या आती है
4 मस्तिष्क क्षति ब्रेन डैमेज
Nots by sapna sahu


⭐अधिगम अक्षमता( विकार)⭐

Learning disability⭐

🍃अधिगम विकार मतलब अधिगम में कठिनाई
👉अधिगम में कठिनाई शारीरिक और मानसिक रूप से हो सकती है
🍃शारीरिक और मानसिक रूप से होने वाली अक्षमताऐ का परिणाम तो एक ही होता है किंतु इनका रास्ता अलग अलग होता है।

👉शारीरिक स्तर -दूर दृष्टि दोष निकट दृष्टि दोष और जरा दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति की आंख में किसी वस्तु की छवि रेटीना के पहले या बाद में या ऊपर नीचे बनती हैं। इससे रेंटिना छवि भी नहीं भेज पाता है।

👉मानसिक स्तर- मानसिक स्तर पर व्यक्ति के आंख के रेंटिने पर वस्तु की छवि तो पूर्ण रूप से बनती है लेकिन मस्तिष्क तक पहुंचने में गड़बड़ी हो जाती है।

🍃अधिगम विकार का पता शारीरिक स्तर पर नहीं चल पाता है इसका पता मानसिक स्तर पर चल पाता है।

अधिगम अधिकार पर दो शोध प्रकाशित हुए हैं

🤟पहला ब्रिटिश शिक्षा मंत्रालय और ब्रिटिश कोलंबिया द्वारा प्रकाशित किताब
🖐️supporting student with learning disability a guide for teacher 🖐️
में अधिगम विकार के 10 प्रकार बताएं गए हैं
👉डिसलेक्सिया( पठन का विकार)
👉डिसग्राफिया (लेखन संबंधी विकार)
👉डिस्केलकुलिया (गणितीय कौशल संबंधी विकास )
👉डिस्फेसिया (वाक् क्षमता संबंधी विकार)
👉डिस्प्रेक्सिया (लेखन या चित्रांकन संबंधी विकार )
👉डिस् आर्थोग्राफिया (वर्तनी संबंधी विकार )
👉ऑडिटरी प्रोसेसिंग डिसऑर्डर (श्रवण संबंधी विकार)
👉विजुअल परसेप्शन डिसऑर्डर (दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार)
👉 सेंसरी इंटीग्रेशन प्रोसेसिंग डिसऑर्डर (इंद्रिय समन्वय क्षमता संबंधी विकार )
👉ऑर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसऑर्डर (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)

🤟दूसरा मनोवैज्ञानिकों के द्वारा छह प्रकार बताए गए
👉डिसलेक्सिया
👉 डिस्केलकुलिया
👉डिसग्राफिया
👉 डिस्प्रेक्सिया
👉 ए डी एच डी
👉 डिस्फेसिया

🤟ADHD- attention deficit hyperactivity disorder
ध्यानाभाव अति क्रियाशीलता विकृति

⭐डिसलेक्सिया ⭐
⭐(dyslexia)⭐

सबसे पहले डिसलेक्सिया की खोज 1887 में जर्मन नेत्र विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लिन ने की

डिस्लेक्सिया दो शब्दों से मिलकर बना है डस+लेक्सिस(dush+ lexis) जिसका अर्थ होता है कठिन भाषा या पढ़ने में कठिनाई (difficult in speech)
यह ग्रीक भाषा के शब्द है
इससे प्रभावित बच्चे बोलने से घबराते हैं या पढ़ नहीं पाते हैं पढ़ने से डरते हैं

⭐डिसलेक्सिया के लक्षण-

👉वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
👉अक्षरों की ध्वनियो को सीखने में कठिनाई
👉एकाग्रता में कमी
👉पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप कर देता है
👉दृष्टि या स्मृति संबंधित कठिनाई होती हैं
👉शब्दों को उल्टा करके पढ़ता है
👉अक्षरों का क्रम इधर-उधर करके पढ़ना
👉अक्षर उल्टे ढंग से दिखते हैं (6 को 9 समझता है)
👉वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ता है
👉वर्तनी दोष से पीड़ित होता है उच्चारण दोष
👉समान उच्चारण वाली ध्वनियो को नहीं पहचान पाता है।
👉शब्द भंडार या शब्दकोश का अभाव रहता है
👉स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है
👉कोई बालक अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ता है
👉पढ़ते समय शब्द या पंक्ति को छोड़ देता है

डिसलेक्सिया के कारण –

👉तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है
👉 यह वंशानुक्रम द्वारा भी हो सकता है

⭐ डिस्लेक्सिया के उपचार –

👉परिवार के इतिहास का अध्ययन

👉भाषा ,वर्तनी ,उच्चारण ,बौध्दिक योग्यताएं ,स्मृति से संबंधित परीक्षण करना

⭐डिसग्राफिया ⭐
⭐(dysgraphia) ⭐

(लेखन विकार)

👉दिए गए शब्दों को पढ़ने में कठिनाई होती हैं
👉धीमा ,भद्दा ,त्रुटिपूर्ण लिखते हैं
👉लिखते लिखते शीघ्र थक जाता है
👉उंगली में दर्द होता है
🍃यह सब अलग-अलग प्रकार से हो सकता है लेकिन प्रश्न में अधिगम विकार दिया होने पर इसे उपयोग कर सकते हैं।
👉लिखने में वर्तनी संबंधी कठिनाई
👉खराब हस्त लेखन
👉विचारों को लिपिबध्द करने में कठिनाई

🤟डिसलेक्सिया की चर्चा national center for learning disabilitiesm,2006 में की गई।🤟

⭐डिसग्राफिया के लक्षण-

👉 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई होना
👉लाइनों पर कभी ऊपर कभी नीचे लिखना
👉शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना
👉अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना 👉अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई जैसे A का आकार नहीं समझ आना
👉पठनीय होने के बाद भी कॉपी या नकल करने में अधिक समय लगना
👉वर्तनी अशुद्ध लिखना
👉 अक्षरों को अनियमित रूप और आकार में लिखना
👉अपठनीय हस्त लेखन करना
👉कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होना
👉लिखते समय खुद से बात करता है
👉 लेखन सामग्री पर सही से नहीं पकड़ होना

उपचार -लेखन का अभ्यास करना

⭐डिस्केलकुलिया⭐
⭐(dyscalculia)⭐

गणितीय विकार
👉यह गणितीय कौशल से जुड़ी हुई अक्षमता है
👉व्यवहारिक जीवन से जुड़ी हर चीज में गणित है👉 गणित योग्यता की कमी
👉गणितीय संक्रिया में समस्या👉 अंक या संख्या का अर्थ समझने की योग्यता में कमी👉 सूत्र सिद्धांत के प्रयोग में अयोग्यता
👉जोड़ घटाव गुणा बाद में बहुत समय लगाना या नहीं कर पाना सुस्त और आलसी होना

⭐ डिस्केलकुलिया के लक्षण-

👉नाम और चेहरा पहचानने में कठिनाई
text 👉 image 👉 video
यह किसी तथ्य को याद रखने का क्रम और स्थायित्व का क्रम है

👉अंक गणितीय संक्रिया के अशुद्ध परिणाम निकालना
👉 अंकगणितीय संक्रिया के चिन्हों को समझने में कठिनाई होना
👉गिनने के लिए अंगुलियों का प्रयोग करना
👉गणितीय कार्य करने में कठिनाई है
👉संख्या को पहचानने में समस्या आती है
👉 वित्तीय योजना या बजट बनाने में परेशानी
👉 चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई
👉गणितीय आकृति को पहचानने में समस्या
👉दिशा ज्ञान का अभाव होता है
👉नगद भुगतान में हिसाब में समस्या नगद भुगतान में डर लगता है
👉छोटा ,बड़ा, परिधि ,क्षेत्रफल, आकार ,आकृति का पता लगाने में समस्या
👉श्रव्य और दृश्य इंद्रियों से संबंधित कमी
👉समय दूरी गहराई को पहचानने में समस्या
👉रुपए पैसे के लेनदेन में परेशानी
👉समय सारणी बनाने में कठिनाई

⭐डिस्केलकुलिया के कारण-

👉 माइंड में कोरटेक्स या सेरीबेलम कोरटैक्स सही नहीं होना
👉गहन चिंतन क्षमता में परेशानी आना
👉स्मृति संबंधी समस्या या परेशानी

⭐डिस्केलकुलिया केउपचार-

👉 अभ्यास करके
👉वास्तविक जिंदगी से जोड़कर करने से
👉उचित शिक्षण रणनीति के द्वारा
👉गणितीय तथ्यो को याद करने के लिए अतिरिक्त समय देना
👉फ्लैश कार्ड ,वीडियो गेम, कंप्यूटर गेम, शतरंज ,लूडो का प्रयोग करना
👉गणित को सरल बना कर पढ़ाना और आसान विषय बताना

⭐डिस्प्रेक्सिया (dyspraxia)⭐

चित्रांकन संबंधी अक्षमता

👉इसमें चित्र नहीं बनते हैं
👉 हस्त लेखन में समस्या होती है👉 लेखन और चित्र बनाने में समस्या आती है
👉खुद का लिखा हुआ अभी समझ में नहीं आता है
👉मस्तिष्क में छवि नहीं बन पाती है।

⭐एडी एचडी ( ध्यानाभाव अति क्रियाशीलता विकृति)⭐

⭐A D H D (attention difficult hyperactivity disorder) ⭐

👉बच्चों में आवेग के नियंत्रण में समस्या आती हैं
👉ध्यान केंद्रित नहीं रहता है 👉अनुशासनहीनता शिक्षण में बाधा आती है
👉 स्नायु तंत्र( nerve fibres/tissue) में विकृति होती है
👉संवेगात्मक रूप से स्थिर नहीं रहते
👉 प्राथमिक स्तर पर लड़कियों के अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है
👉भोजन में कलर या जंक फूड से ए डी एच डी होता है
👉सामाजिक मनोविज्ञान के कारण होता है

⭐ए डी एच डी के लक्षण-
👉कार्य या खेल में ध्यान में कमी 👉भूलने की समस्या
👉 हाथ पैर उंगलियों को चलाते रहते हैं
👉स्वचालित व्यवहार करना
👉प्रश्नों के समाप्त होने से पहले उत्तर दे देना
👉दूसरों की बात पूरी सुने बिना ही बीच में काट देना
👉कार्य करने वाली सामग्री को खो देना
👉 निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना
👉अपनी बारी का इंतजार नहीं करना
👉 अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना
👉कक्षा मे बार-बार सीट बदलना
👉सदैव बेचैन रहना
👉 बाहरी उत्तेजना के प्रभाव में शीघ्र पड़ता है
👉कही गए बातों को पूरा नहीं सुनता है

उपाय-
👉खिड़कियों या द्वार से दूर बैठना चाहिए
👉कार्य करने के लिए अधिक समय देना चाहिए
👉 विराम लेकर चिंतन करके कार्य करना
👉सीधे प्रश्न पूछे जाए
👉अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना
👉पुनर्बलन देना
👉 स्टेलिन दवा एकाग्रता में वृद्धि करती है लेकिन यह भी विकार में प्रभावी नहीं होती है

⭐Dysphasia( डिस्फेसिया) ⭐

यह शब्दों dys+ phasia से मिलकर बना है
👉वाक् संबंधी विकार
👉विचारों की अभिव्यक्ति मे व्याख्या के समय कठिनाई महसूस करना
👉बोलने में समस्या आते हैं

कारण – मस्तिक क्षति( brain damage)

Notes by Ravi kushwah


Complete learning disability notes by India’s top learners-1

🖋️ Manisha gupta 🖋️ अधिगम अक्षमता‌‌‍‌‍‌ ( learning disability)

अधिगम विकार का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है यह अधिगम अक्षमता मानसिक और शारीरिक दोनों स्तर पर हो सकता है । अधिगम और शारीरिक अक्षमता दोनों ही सीखने में विकार उत्पन्न करते हैं कारण अनेक हो सकते हैं लेकिन इन दोनों का प्रभाव हमारे सीखने में कठिनाई उत्पन्न करता है। इसके दो स्थिति उत्पन्न होती है se

सि्थति १➖ यदि हमारा मस्तिष्क तो सक्षम है लेकिन शरीर अक्षम है तो अधिगम में विकार उत्पन्न हो जाता है कहने का तात्पर्य है कि यदि शरीर अक्षम है लेकिन मस्तिष्क सक्षम है तो शरीर किसी भी सूचना को मस्तिष्क तक नहीं पहुंचाता है जिससेअधिगम में कठिनाई होती है। कारण अलग-अलग प्रकार से हो सकते हैं और हमारा शरीर अक्षम है तो कोई भी कार्य हम नहीं कर सकते हैं।

स्थिति२➖ यदि हमारा मस्तिष्क अक्षम है और शरीर सक्षम है अर्थात मस्तिष्क शारीरिक स्तर से आए हुए सूचना को समझने में अक्षम होता है। तो ऐसे ही स्थिति में हमारे मस्तिष्क स्तर पर अधिगम विकार होता है। जैसे कोई व्यक्ति एल्कोहल के नशे में है तो वह क्या बोलता है क्या करता है उसे कुछ समझ नहीं आता क्योंकि वह शारीरिक स्तर से तो सक्षम होता है लेकिन मस्तिष्क स्तर मे उसे नहीं समझा जाता , इस स्तर में भी अधिगम विकार उत्पन्न होता है।

अधिगम अक्षमता को बृहद प्रकार से विभाजित किया जाता है➖‌ इसका प्रमुख वर्गीकरण ब्रिटिश कोलंबिया एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय के द्वारा एक पुस्तक प्रकाशित हुई ''supporting student with learning disability'' [tag line-a guide for teachers] मैं 10 प्रकार की अधिगम अक्षमता बताई गई है जो इस प्रकार से हैंl

💫 डिसलेक्सिया (पढ़ने में विकार)
💫 डिसग्राफिया (लेखन विकार)
💫 डिस्केलकुलिया(गणितीय कौशल संबंधी विकार)
💫 डिस्फेसिया(वाक् संबंधी विकार)
💫 डिस्प्रेक्सिया(लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार)
💫 डिसआर्थ्रोग्राफिया(वर्तनी संबंधी विकार)
💫 ऑडिटरी प्रोसेसिंग डिसऑर्डर(श्रवण संबंधी विकार)
💫 दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार(visual perception disorder)
💫 इंद्रिय समन्वय क्षमता विकास(sensory integration of processing)
💫 संगठनात्मक पठन संबंधी विकार(organisational learning disorder)

मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम विकारों को छह प्रकार से विभाजित किया है

1️⃣ डिसलेक्सिया
2️⃣ डिस्केलकुलिया
3️⃣ डिसग्राफिया
4️⃣ डिस्प्रेक्सिया
5️⃣ ध्यानाभाव अतिक्रियाशीलता विकार(डिस्टेक्सिया)
6️⃣ डिस्फेशिया *डिस्लेक्सिया* [dyslexia]

डिस्लेक्सिया की खोज 18 सो 87 में नेत्र रोग विशेषज्ञ रुडोल्फ बर्लिन के द्वारा किया गया था। डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द डस और लेकि्सस से मिलकर बना है इसका शाब्दिक अर्थ है -कठिन भाषा[difficult speech]

🍁डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों को पढ़ाई से संबंधित विकार होता है यह बच्चे पढ़ने से डरते या बोलने से घबराते हैं इस विकार से ग्रसित बच्चे में लिखित भाषा दक्षता और मौखिक सबको प्रभावित कर देती है। पढ़ने में कठिनाई मैं मस्तिष्क में जो तनाव चल रहा है वह भी एक कारण बनता है इस विकार में बच्चे लिखे हुए शब्दों को उल्टा पुल्टा दिखाई देताहै साफ साफ शब्द दिखाई नहीं देता है।

डिस्लेक्सिया के लक्षण

🌌 वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
🌌 अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
🌌 एकाग्रता में कठिनाई[शब्दों को उल्टा पुल्टा नहीं पढ़ पाने के कारण एकाग्रता में कठिनाई होती है]
🌌 स्वर वर्णों का लोप
🌌 दृष्टि या स्मृति संबंधी कठिनाई
🌌 शब्दों को उल्टा करके पढ़ना
🌌 अक्षरों को इधर-उधर करके पढ़ना जैसे 59 को 69 पढ़ना
🌌 किस विकार से ग्रसित बच्चे को अक्षर उल्टे ढंग से दिखते हैं जैसे 6 को 9 और B को D
🌌 वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ता है
🌌 वर्तनी दोष से पीड़ित होता है
🌌 समान उच्चारण वाले ध्वनियों में अंतर ना कर पाना
🌌 शब्दकोश का अभाव
🌌 भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना
🌌 अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना
🌌 स्मरण शक्ति क्षीण हो जाना
🌌 पढ़ते समय किसी शब्द या पंक्ति को छोड़ देना

डिस्लेक्सिया के कारण

🔺 यह तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है
🔺 वंशानुक्रम के द्वारा भी हो सकता है।

डिस्लेक्सिया का निदान

♀️ डिस्लेक्सिया से ग्रसित बच्चे के परिवारिक इतिहास का अध्ययन करना चाहिए।
♀️ इस विकार से ग्रसित बच्चे में भाषा ,वर्तनी ,उच्चारण, बौद्धिक योग्यता, स्मृति संबंधित परीक्षण किया जा सकता है। *डिसग्राफिया*

डिसग्राफिया भी एक अधिगम असमर्थता है गरासिया का संबंध लेखन क्षमता में बाधा या कठिनाई होता है इसमें बच्चे को लिखे हुए शब्दों को पढ़ने में कठिनाई होती है इसमें बच्चे धीरे धीरे लिखते हैं और लिखने में गलतियां करते हैं इस विकार में बच्चे भद्दा या त्रुटिपूर्ण शब्दों को लिखते हैं। इस विकार से ग्रसित बच्चा शीघ्र थक जाता है बच्चे की उंगलियों में दर्द होता है डिसग्राफिया से ग्रसित बच्चे को यह बाधा बस नहीं होती अलग-अलग कारणों से भी हो सकती है।

➡️ वर्तनी संबंधी कठिनाई
➡️ खराब हस्त लेखन
➡️ विचारों को लिपि बंद करने में परेशानी[national centre for learning disabitilism,2006]

डिसग्राफिया के लक्षण

🌌 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई
🌌 लाइनों के कभी ऊपर कभी नीचे शब्दों को लिखना
🌌 शब्दों के बीच अनियमित स्थान को छोड़ना
🌌 अपूर्ण अक्षर या शब्द
🌌 अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई
🌌 पठनीय होने के बाद भी कॉपी करने में अधिक समय लगता है
🌌 वर्तनी अशुद्ध लिखना
🌌 अनियमित रूप और अनियमित आकार वाले अक्षर लिखना
🌌 अपठनीय हस्त लेखन
🌌 कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होता है
🌌 वाक्य ,शब्द छोड़कर या पुनरावृति करते हैं
🌌 लिखते समय खुद से बातचीत करता है
🌌 लेखन सामग्री पर सही पकड़ ना होना

डिसग्राफिया के कारण

🔺 लेखन संबंधी विकार
🔺 वंशानुक्रम के कारण भी हो सकता है
🔺 तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकृति है

डिसग्राफिया के निदान

♀️इस विकार से ग्रसित बच्चे के पारिवारिक इतिहास का अध्ययन करना चाहिए।
♀️भाषा वर्तनी उच्चारण बौद्धिक योग्यता स्मृति संबंधी परीक्षण किया जाना चाहिए।
♀️ लेखन का अभ्यास कराया जाना चाहिए।*डिस्केलकुलिया[dyscalculia]*

डिस्केलकुलिया का संबंध गणितीय कौशल क्षमता से होता है इस विकार में बच्चे में गणितीय योग्यता में कमी आती है इसके अंतर्गत अंको ,संख्याओं के अर्थ को समझने की अयोग्यता, दिशा ,वजन ,आकार गणितीय संक्रिया में समस्या आती है सूत्रों एवं सिद्धांतों के प्रयोग में भी अयोग्यता होती है।

➡️ जोड़ घटाव गुणा भाग करने में बहुत समय लगता है या बच्चा नहीं कर पाता है।
➡️ इस विकार से ग्रसित बच्चे सुस्त एवं आलसी होते हैं।

डिस्केलकुलिया के लक्षण

🌌 नाम और चेहरा पहचानने में कठिनाई
🌌अंक गणितीय संक्रियाएं के अशुद्ध परिणाम निकालना
🌌अंक गणितीय संक्रियाओं के चिन्हों को समझने में कठिनाई
🌌 गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग करना
🌌गणितीय कार्य में परेशानी
🌌संख्या को पहचानने में समस्या
🌌वित्तीय योजना या बजट बनाने में परेशानी
🌌चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई
🌌गणितीय आकृति को पहचानने में समस्या
🌌दिशा ज्ञान का अभाव
नगद भुगतान से डर
🌌परिधि क्षेत्रफल बड़ा छोटा पहचानने की समस्या
🌌श्रव्य दृश्य इंद्रियों से संबंधित कमी
🌌समय से संबंधित समस्या दूरी एवं गहराई से संबंधित समस्या

🌌रुपया पैसे के लेनदेन में परेशानी
🌌समय सारणी बनाने में कठिनाई

डिस्केलकुलिया के कारण

🔺 इस विकार से ग्रसित बच्चे के मस्तिष्क मेंcortex होता है जिससे बच्चा सही से काम नहीं करता है।
🔺 गहन चिंतन क्षमता में परेशानी भी इस विकार का कारण है।
🔺 स्मृति संबंधी समस्या भी इस विकार का कारण है

डिस्केलकुलिया के उपचार

♀️ अभ्यास कराया जाना चाहिए
♀️ वास्तविक जिंदगी से जोड़कर बताना चाहिए
♀️ उचित शिक्षण रणनीति अपनाना चाहिए
♀️गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिए
♀️वीडियो गेम्स फ्लैशकार्ड कंप्यूटर गेम शतरंज लूडो का प्रयोग करना चाहिए

♀️गणित को सरल बना कर पढ़ाना और आसान विषय बताना ‌ *डिस्प्रेक्सिया[dyspraxia]*

यह चित्रांकन संबंधी अक्षमता होती है इसमें बच्चों को लिखने या चित्र बनाने में कठिनाई होती है इस विकार से ग्रसित बच्चों में लेखन और चित्रण दोनों में परेशानी होती है इसमें बच्चे स्वयं के द्वारा बनाए गए चित्र या लेखन को भी समझ नहीं पाते हैं। इस विकार से ग्रसित बच्चे के मस्तिष्क में किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब नहीं बन पाता है।

ज्ञानाभाव अति क्रियाशीलता विकृतिattention deficit hyperactivity disorder

🌌 बच्चों में आवेग के नियंत्रण में समस्या आती है।
🌌 इसमें बच्चे का ध्यान केंद्रित नहीं रहता है
🌌इस विकार में बच्चे में अनुशासनहीनता होती है और शिक्षण में बाधा उत्पन्न करते हैं।
🌌इस विकार से ग्रसित बच्चे के स्नायु तंत्र में विकृति होती है।
🌌 इसमें बच्चे संवेगनात्मक रूप से स्थिर नहीं रहते हैं
🌌 प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में यह विकार अधिक पाया जाता है
🌌 भोजन में कलर या जंक फूड से भी ए डी एच डी होता है।
🌌 सामाजिक मनोविज्ञान के कारक भी इस विकार का कारण होता। है।

ए डी एच डी के लक्षण

🌌 कार्य, खेल में ध्यान में कमी
🌌भूलने की समस्या
🌌हाथ पैर उंगलियों को चलाना
🌌स्वचालित व्यवहार करना
🌌प्रश्न के समाप्त होने से पहले ही उत्तर दे देना
🌌दूसरों की बात सुने बिना ही बीच में काट देना
🌌 कार्य करने वाली सामग्री को खो देना
🌌निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना
🌌अपनी बारी का इंतजार नहीं करना
🌌अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना
🌌कक्षा में बार-बार सीट बदलना
🌌सदैव बेचैन रहना
🌌बाहरी उत्तेजना का शीघ्र प्रभाव
🌌कही गई बातों को पूरा नहीं सुनना

ए डी एच डी के उपाय

🔺 खिड़कियों या द्वार से दूर बैठाना चाहिए
🔺 इस विकार से ग्रसित बच्चों को कार्य करने के लिए अधिक समय दिया जाना चाहिए
🔺 विराम, चिंतन, कार्य[stop,think,action]
🔺 इस विकार से ग्रसित बच्चे से सीधे प्रश्न पूछे जाने चाहिए
🔺 अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए
🔺 इस विकार से ग्रसित बच्चे को पुनर्बलन देना चाहिए
🔺 स्टेलिन एकाग्रता में वृद्धि करता है लेकिन यह भी विकार में प्रभावी नहीं है। *डिस्फेशिया[dysphasia]*

यह बात संबंधी विकार है जो बोलने से संबंधित होता है यह ग्रीक भाषा के शब्द डिस और फेसिया से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है -*अक्षमता एवं वाक्

♀️ वाक् संबंधी विकार
♀️ विचारों की अभिव्यक्ति को व्याख्या के समय कठिनाई महसूस करते हैं।
♀️ इस विकार से ग्रसित बच्चे के बोलने में कठिनाई होती है।

डिस्फेशिया के कारण

इस विकार के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क छति[brain damage] को कारण माना जाता है।

➡️🌌🌺♀️🔺♀️🌺🌌


Notes by chahita acharya

Learning disability

अधिगम विकलांगता
पढ़ने लिखने समझने आदि में उत्पन्न समस्या को अधिगम विकार कहते हैं
लर्निंग डिसेबिलिटी का पता आपकी बॉडी लेवल पर नहीं चलता है यह कंपलीटली अपने माइंड लेवल पर चलती है
Types of learning disability according to psychologist

  1. डिस्लेक्सिया :- पठन संबंधित विकार
    सबसे पहले डिस्लेक्सिया की खोज 1887 में की गई थी
    एक नेत्र रोग विशेषज्ञ रुडोल्फ वर्ल्ड इन ने खोज की थी कि जर्मन के रहने वाले थे
    Dyslexia shabd dis+ lexia से मिलकर बना है
    यह Greek भाषा का शब्द है
    कठिन भाषा के संदर्भ में यह वर्ड यूज़ होता है
    Dyslexia ka matlab hai difficulty in speech
    इससे प्रेरित बालक बोलने में घबराते हैं पढ़ने से डर लगता है
    इसी वजह से यह लिखित मौखिक भाषा दक्षता सभी को प्रभावित करती है
    लक्षण
    1 वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
    2 अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
    3 एकाग्रता में कमी
    4 स्वर वर्णों का lope
    5 सृष्टि और स्मृति संबंधित कठिनाई
    6 शब्दों को उल्टा करके पढ़ना या
    7 अक्षरों का क्रम इधर-उधर करके पढ़ना
    8 अक्षरों उल्टे ढंग से दिखते हैं
    9 वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ना
    10 वर्तनी दोष से पीड़ित
    11 समान उच्चारण वाले ध्वनियों को नहीं पहचान पाना जैसे स sh
    12 शब्दकोश का अभाव
    13 भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना
    14 स्मरण शक्ति का क्षीण होना
    15 अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना
    16 पढ़ते समय किसी शब्द या पंक्ति को छोड़ देना
    कारण
    1 . तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है
  2. यह वंशानुक्रम द्वारा भी हो सकता है
    निदान
    1 पारिवारिक इतिहास का अध्ययन
    2 भाषा वर्तनी उच्चारण बौद्धिक योग्यता स्मृति इनसे संबंधी परीक्षण, अभ्यास करके ठीक करवाया जा सकता है
  3. डिसग्राफिया :- लेखन sambandhit vikar
    लिखे गए शब्दों को पढ़ने में कठिनाई हो ना या तो धीरे-धीरे लिख ना भद्दा लिखना या गलतियां ज्यादा करना बच्चे का जल्दी थक जाना जल्दी उंगली में दर्द होना
    वर्तनी संबंधी कठिनाई
    खराब हंसते लेखन
    विचारों को लिपिबद्ध करने में कठिनाई
    National centre for learning disabilities in 2006 मैं इन सभी बातों को लाया गया और इन बातों पर जोर दिया गया
    लक्षण
    1 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई
    2 लाइन के कभी ऊपर कभी नीचे लिखना
    3 शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़कर लिखना
    4 अपूर्ण अक्षर य शब्द लिखना
    5 अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई होना
    6 पटनी होने के बाद भी नकल करने में अधिक समय लगाना
    7 वर्तनी अशुद्ध लिखना
    8 अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर लिखना
    9 apathniy hasth lekhan
    10 कलम पकड़ने का ढंग सही नहीं होता है
    11 वाक्य या शब्द को छोड़कर करते हैं
    12 लिखते समय खुद से बातें करना
    13 लेखन सामग्री पर सही पकड़ना होना
    कारण
    Same as dyslexia

निदान
लेखन का अधिक से अधिक अभ्यास

3 dyscalculia :- गणितीय विकार गणितीय कौशल क्षमता
इनमें गणितीय योगिता की कमी होना गणितीय सक्रिया में समस्या

लक्षण
1 नाम और चेहरा पहचानने में कठिनाई हो ना
2 अंक गणितीय संक्रिया के अशुद्ध परिणाम निकालना
3 अंक गणितीय संक्रिया के चिन्हों को समझने में कठिनाई
4 गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग करना
5 गणितीय कार्य करने में कठिनाई
6 संख्या को पहचानने में समस्या
7 बजट या वित्तीय योजना बनाने में परेशानी
8 चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई
9 दिशा ज्ञान का अभाव
10: नकद भुगतान में गड़बड़ी
11 नकद भुगतान में डर लगता है
12 बड़ा छोटा को पहचानने में समस्या होना
13 श्रवण दृश्य इंद्रियों से संबंधित कमी sense of humour
14 समय दूरी और गहराई को समझने में परेशानी हो ना
15 अनुमान लगाने में कठिनाई हो ना
16 रूपए पैसे के लेनदेन में परेशानी
17 समय सारणी बनाने में कठिनाई

कारण
1 हमारे माइंड में सेरीब्रम कॉर्टेक्स होता है और अगर यह सही से काम ना कर पाए तो इसके कारण भी डिस्केलकुलिया हो सकता है
2 लॉजिकल थिंकिंग में परेशानी होना
3 स्मृति संबंधी विकार

उपचार
1 अभ्यास करके
2 वास्तविक जिंदगी से जुड़कर करने से
3 उचित शिक्षण रणनीति अपनाना
4 गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करना
5 video game flash card computer game chess Ludo ine sab ka prayog Karna brainstorming games
6 गणित को सरल बना कर पढ़ाना और आसान विषय बताना

4 डिस्प्रेक्सिया :- चित्रांकन संबंधी विकार,
इमेज नहीं बनती है
किसी भी चीज या किसी वस्तु का प्रतिबिंब नहीं बन पाता है माइंड में
खुद का लिखा हुआ अभी समझने पाना

  1. ADHD dystesia
    Attention deficit hyperactivity order
    ज्ञान अभाव अति क्रियाशीलता विकृति
  2. बच्चे में आवे के नियंत्रण में समस्या आती है
    2 ध्यान केंद्रित नहीं रहता है
  3. अनुशासनहीनता होती है शिक्षण में बाधा आती है
    4 स्नायु तंत्र में विकृति होना
    5 बच्चे समेत आत्मक रूप से स्थिर नहीं रहते
    6 प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है
    7 भोजन में कलर या जंक फूड से एडीएचबी होने के चांसेस रहते हैं
    8 सामाजिक मनोविज्ञान के कारक

ADHD के लक्षण
1 ऐसे बच्चे कोई कार्य खेल में ध्यान में कमी रहती है
2 भूलने की समस्या रहती है
3 हाथ पैर उंगलियों का चलाना
4 स्वचालित व्यवहार करना
5 प्रश्न के समाप्त होने पर पहले ही उत्तर दे देना
6 दूसरों की बात को सुने बिना बीच में काट देना
7 कार्य करने वाली सामग्री को खो देना
8 निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना
9 अपनी बारी का इंतजार नहीं करना
10 अतिरिक्त वार्तालाप करना
11 कक्षा कक्ष में बार-बार सीट बदलना
12 सदैव बेचैन रहना
13 भारी उत्तेजना का शीघ्र प्रभाव पड़ना
14 कही गई बातों को पूरा न सुनना

उपाय
1 खिड़की या द्वार से दूर बैठा ना
2 कार्य करने के लिए अधिक समय देना
3 विराम लेते चिंतन करें फिर कार्य करें
4 ऐसे बच्चों को सीधे प्रश्न पूछे जाएं
5 अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देन
6 उनके हिसाब से पुनर्बलन देना
7 stalin एक दवाई है यह एकाग्रता में वृद्धि करती है लेकिन यह भी विकार को ठीक नहीं कर पाती है इतनी प्रभावी नहीं है

  1. Dysphasia:- dys+ phasia
    Wak संबंधी विकार बोलने संबंधी विकार
    विचारों की अभिव्यक्ति को व्याख्या के समय कठिनाई महसूस होना
    बोलने में समस्या होना , represent b नहीं कर पाना

कारण
मस्तिष्क क्षति होना brain damage


✍PRIYANKA AHIRWAR ✍ 📖 अधिगम विकार 📖
⭐ अधिगम विकास से तात्पर्य है कि ऐसा समस्या जिसमें बालक को पड़ने एवं लिखते समय कठनाई होती है विकार उत्पन्न होता है। यह समस्या शारीरिक और मानसिक दोनों हो सकती हैं।

🎯 अक्षमता के प्रकार:-

  1. मानसिक अक्षमता,
  2. शारीरिक अक्षमता।

🎯 नोट – सीखने में अक्षमता, कई कारणों से हो सकती है लेकिन मानसिक स्तर पर अक्षमता हो,वही अधिगम विकार के अंतर्गत आता है।

⭐ ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय एवं ब्रिटिश कोलंबिया के द्वारा एक पुस्तक प्रकाशित की गई थी।
Supporting student with learning disability. (A gaide for teacher)

⭐ इनके द्वारा अधिगम विकार 10 प्रकार के बताए गए हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

  1. Dyslexia (पठन विकार),
  2. Disgrafiya (लेखन विकार),
  3. Dyscalculiya ( गणितीय कौशल संबंधी विकार ),
  4. Disphesiya (वाक् क्षमता संबंधी विकार या मौखिक, वाचिक एवं बोलने संबंधी),
  5. Dyspraxia (लेखन/चित्रण संबंधी विकार या चित्र बनाने संबंधी विकार),
  6. Disorthographiya (वर्तनी संबंधी विकार),
  7. Auditory processing disorder-APDO(श्रवण संबंधी विकार),
  8. Visual perception disorder (दृश्य प्रत्यक्ष संबंधी विकार),
  9. Sensory integration processing disorder (इन्द्रिय समन्वय क्षमता संबंधी विकार),
  10. Organisation learning disorder (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)।।

🎯 मनोवैज्ञानिकों के द्वारा 6 प्रकार के अधिगम विकार बताए गए हैं:-

  1. Dyslexia,
  2. Dyscalculiya,
  3. Disgrafiya,
  4. Dispraxia,
  5. Dystexia
    (ADHD-Attention deficit hyperactivity)
    (ध्यान भाव अति क्रियाशीलता विकृति),
  6. Dysphagia.

1️⃣ Dyslexia :- इसकी खोज नेत्र विशेषज्ञ जर्मन के रुडोल्फ बर्लिन ने सन् 1887 में की गई थी।
यह दो शब्दों से मिलकर बना है-
Dush+Lexsis=dislexia
यह ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है, कठिन भाषा।।

🌀 बोलने से डर लगता है,
🌀पड़ने मे डर लगता है,
🌀लिखित, मौखिक, भाषा दक्षता, भी प्रभावित होते हैं। ।

🎯 कारण :- ♦️तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है।
♦️वंशानुक्रम द्वारा भी हो सकता है।

🎯 पठन विकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण लक्षण:-
लक्षण:-

  1. वर्णमाला अधिगम मे कठिनाई
  2. अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई,
  3. एकाग्रता मे भी कमी हो सकती हैं,
  4. स्वर वर्णो का पड़ते समय लोप कर देना,
  5. दृष्टि या स्मृति संबंधित कठिनाई का होना,
  6. शब्दों को उल्टा करके पड़ना,
  7. अक्षरों का क्रम इधर-उधर करके पढ़ना,
  8. अक्षरों उल्टे ढ़ंग से दिखाई देते है,
  9. वाक्य में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ते हैं,
  10. वर्तनी दोष होता है,
  11. समान उच्चारण वाली ध्वनियों को नही पहचानना,
  12. शब्द भण्डार मे कमी/आभाव का होना,
  13. भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाता है,
  14. स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती हैं,
  15. अक्षरों को एक-एक धीमी गति से पढ़ता है,
  16. पढ़ते समय शब्द या पंक्ति को छोड़ देता है।

🎯 निदान :- ♦️ समय के साथ यह विकार ठीक हो जाते हैं।
♦️ पठन संबंधी अभ्यास द्वारा भी निदान किया जा सकता है।
♦️ पारिवारिक इतिहास का अध्ययन करके।
♦️ भाषा, वर्तनी, उच्चारण, बौद्धिक योग्यता, स्मृति संबंधी परीक्षण कराकर।
♦️ उचित शिक्षण रणनीति अपनाकर।

2️⃣ Dysgraphiya :- यह एक प्रकार का लेखन विकार है, जिसमें अधिगमकर्ता किसी कारण से लेखन सही ढ़ंग से नहीं कर पाता है।

🎯 कारण:- ♦️ इसके कारण हो सकते है ,धीमा, भद्दा, ऋटिपूर्ण, शीघ्र धोना, ऊगलिओ मे दर्द इत्यादि।
♦️ लेखन विकार भी तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृतियों से हो सकता है।
♦️ वंशानुक्रम भी इसका कारण हो सकता है।

🎯 लेखन विकार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण लक्षण:-
लेखन विकार से संबंधी कुछ लक्षण निम्नलिखित है-

  1. लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाइयां,
  2. लिखते समय कभी लाइनों के ऊपर लिखना तो कभी नीचे लिखना,
  3. शब्दों के बीच में अनियमित स्थान छोड़ाना,
  4. अपूर्ण अक्षर य शब्द लिखना,
  5. अक्षरों का आकार समझने में कठिनाइयां,
  6. पठनीय होने के बाद भी कॅाफी मे अधिक समय लगता है,
  7. वर्तनी अशुद्ध लिखना,
  8. अनियमित और आकार वाले अक्षर बनाना,
  9. अपठनीय हस्तलेखन,
  10. कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होता है,
  11. वाक्य या शब्द छोड़कर पुनरावृति करते हैं,
  12. लिखते समय खुद से बात करता है,
  13. लेखन सामग्री पर सही पकड़ का न होना।

🎯 निदान :-
♦️ इसमें विकार से ग्रस्त व्यक्ति को लेखन संबंधी अभ्यास कराए जा सकते हैं।
♦️पारिवारिक इतिहास का अध्ययन करके।
♦️ भाषा, वर्तनी, उच्चारण, बौद्धिक योग्यता, स्मृति संबंधी परीक्षण कराकर।
♦️ उचित शिक्षण रणनीति अपनाकर।

3️⃣ Dyscalculiya:- गणितीय कौशल अक्षमता मे गणितीय कौशल में कमी, गणितीय संक्रियाओं में समस्या, अंक एवं संख्याओं का अर्थ समझने की अयोग्यता, गणित के सूत्र एवं सिद्धांतों के प्रयोग व चयन में अयोग्यता, जोड़ घटाव गुणा भाग करने में बहुत अधिक समय लगाना एवं ना कर पाना।

🎯 कारण:- ♦️cortex( कारॅटेक्स) सही से काम ना करना।
♦️ तार्किक चिंतन में परेशानी।
♦️ गहन चिंतन क्षमता में परेशानी।
♦️ स्मृति संबंधी परेशानी।

🎯 लक्षण:- 1. नाम और चेहरा पहचानने में कठिनाइयां।

  1. अंकगणित संक्रियाएं के अशुद्ध परिणाम निकालना।
  2. जोड़ घटाव गुणा भाग के चिन्हों को ना समझना एवं उन में कठिनाई होना।
  3. गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग करना।
  4. गणितीय कार्य करने में कठिनाई होना।
  5. संख्या को पहचानने में समस्या।
  6. वित्तीय योजना या बजट बनाने में परेशानी होती है।
  7. चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई होना।
  8. गणितीय आकृतियों को पहचानने में समस्या।
  9. दिशा ज्ञान का अभाव होता है।
  10. नगद भुगतान नहीं करना एवं डर लगना।
    12, बड़ा, छोटा का ज्ञान ना होना।
    13.परिधि, क्षेत्रफल का ज्ञान ना होना।
    14.दृश्य, श्रव्य इंद्रियों से संबंधित कमी।
  11. समय, दूरी एवं गहराई से संबंधित कठिनाइयां।
  12. रुपये, पैसे के लेनदेन में परेशानी।
  13. समय सारणी बनाने में कठिनाई।

🎯 निदान/उपचार:-♦️ गणितीय संबंधी अभ्यास कराई जाए।
♦️वास्तविक जीवन से जोड़कर कराना।
♦️उच्च शिक्षण राजनीति का होना।
♦️प्रभावी क्रियाओं को करवाना।
♦️गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय देना।
♦️वीडियो गेम, फ्लैश कार्ड, कंप्यूटर गेम, शतरंज, डांस, लूडो आदि का प्रयोग करवाना।
♦️कठिन विषय को सरल विषय बनाकर पढ़ाना एवं आसानी से बताना।

4️⃣ Dyspraxia:-
🎯 लक्षण:- 1.चित्रांकन संबंधी अक्षमता।
2.हस्त लेखन संबंधी विकार।
3.लेखन एवं चित्र संबंधी विकार।
4.खुद का लिखा हुआ नहीं समझ पाते हैं।

5️⃣ Attention deficit hyperactivity disorder :- (ADHD)
🎯 कारण :- 1. बच्चों में आवेग नियंत्रण में समस्या।

  1. ध्यान केंद्रित नहीं रहता है।
  2. अनुशासनहीनता होती है जिसके कारण शिक्षा में बाधा उत्पन्न होती है।
  3. संवेगात्मक रूप से स्थिर नहीं रहता है।
  4. स्नायु तंत्र (Nerve tissue) मैं विकृति होती है।
  5. प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है।
  6. भोजन में color/junk food से भी होता है।
  7. सामाजिक मनोवैज्ञानिक के कारण भी हो सकता है।

🎯 लक्षण :- 1. कार्य खेल में ध्यान में कमी रहती है।

  1. भूलने की समस्या होती है।
  2. हाथ पैर उंगलियों को चलाते रहते हैं।
  3. स्वचालित व्यवहार करना।
  4. प्रश्न के समाप्त होने से पूर्व ही उत्तर देना।
  5. दूसरों की बातें सुने बिना ही बीच में काट देना।
  6. कार्य करने वाली सामग्री को खो देना।
  7. निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना।
  8. अपनी बारी का इंतजार नहीं करना।
  9. अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना।
  10. कक्षा में बार- बार सीट बदलना।
  11. सदैव बेचैन रहना।
  12. बाहरी उत्तेजना का शीघ्र प्रभाव पड़ता है।
  13. कही गई बातों को पूरा नहीं सुनना।

🎯 उपचार/निदान :- ♦️कक्षा कक्ष में खिड़की ♦️एवं दरवाजे से दूर बैठाए।
♦️कार्य करने के लिए अधिक समय दीजिए।
♦️विराम, चिंतन, कार्य,( Stop, think, action ).
♦️सीधे प्रश्न पूछे जाए।
♦️ अनुप्रयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना।
♦️ पुनर्बलन देना।
♦️(स्टालिन दवा) एकाग्रता में वृद्धि करती है, परंतु यह भी बेकार में प्रभावी नहीं है।

6️⃣ Dysphasia :- वाक् संबंधी विकार
Dys+phasia
🎯 लक्षण :-

  1. विचारों की अभिव्यक्ति को व्याख्या के समय कठिनाई महसूस होती है।
  2. बोलने में समस्या आना।

🎯 कारण:- मस्तिष्क क्षति होना।
🎯 निदान/उपचार:- मस्तिष्क क्षति होने से बचाना।
⭐ उपरोक्त सभी अधिगम विकार है जो कि किसी को भी हो सकते हैं।
📗समाप्त 📘
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✍🏻 Notes By-Vaishali Mishra 🔆 *अधिगम विकार* 🔆

अधिगम संबंधी कठिनाई, श्रवण, दृष्टि, स्वास्थ, वाक् एवं संवेग आदि से संबंधित अस्थायी समस्याओं से जुड़ी होती है। समस्या का समाधान होते ही अधिगम सम्बन्धी कठिनाई समाप्त हो जाती हैं।
अधिगम विकार का शारीरिक स्तर पर पता नहीं चलता बल्कि मानसिक स्तर से पता चलती है।

🔸 अधिगम अक्षमता का वर्गीकरण🔸➖

अधिगम अक्षमता एक वृहद् प्रकार के कई आधारों पर विभेदीकृत किया जाता है । इसका प्रमुख विभेदीकरण ब्रिटिश कोलंबिया (201) एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक सपोर्टिंग स्टूडेंट्स विद लर्निंग डिएबलिटी ए गाइड फॉर टीचर्स में दिया गया है, जो निम्नलिखित है –

🔅डिस्लेक्सिया (पढ़ने संबंधी विकार)
🔅डिस्ग्राफिया (लेखन संबंधी विकार)
🔅डिस्कैलकूलिया (गणितीय कौशल संबंधी विकार)
🔅डिस्फैसिया (वाक् क्षमता संबंधी विकार)
🔅डिस्प्रैक्सिया (लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार)
🔅डिसऑर्थोग्राफ़िय (वर्तनी संबंधी विकार)
🔅ऑडीटरी प्रोसेसिंग डिसआर्डर (श्रवण संबंधी विकार)
🔅विजुअल परसेप्शन डिसआर्डर (दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार)
🔅सेंसरी इंटीग्रेशन ऑर प्रोसेसिंग
डिसआर्डर (इन्द्रिय समन्वयन क्षमता संबंधी विकार)
🔅ऑर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसआर्डर (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)

मनोवैज्ञानिकों के आधार पर कुल 6 विकारों का वर्णन निम्नानुसार है-

🔹 डिस्लेक्सिया 🔹➖
डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द डस और लेक्सिस से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है कथन “भाषा (डिफिकल्ट स्पीच)”। वर्ष 1887 में एक जर्मन नेत्र रोग विशेषज्ञ “रूडोल्बर्लिन” द्वारा खोजे गए इस शब्द को शब्द “अंधता” भी कहा जाता है। डिस्लेक्सिया को भाषायी और संकेतिक कोडों भाषा के ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वर्णमाला के अक्षरों या संख्याओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अंकों के संसाधन में होने वाली कठिनाई के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह भाषा के लिखित रूप, मौखिक रूप एवं भाषायी दक्षता को प्रभावित करता है यह अधिगम अक्षमता का सबसे सामान्य प्रकार है।

डिस्लेक्सिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –

✓वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
✓अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
✓एकाग्रता में कठिनाई
✓पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप होना
✓शब्दों को उल्टा या अक्षरों का क्रम इधर – उधर कर पढ़ा जाना, जैसे नाम को मान या शावक को शक पढ़ा जाना
✓वर्तनी दोष से पीड़ित होना
✓समान उच्चारण वाले ध्वनियों को न पहचान पाना
✓शब्दकोष का अभाव
✓भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग का अभाव
✓क्षीण स्मरण शक्ति
✓अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना
✓पढ़ते समय शब्द या पंक्ति को छोड़ देना।

डिस्लेक्सिया का उपचार – डिस्लेक्सिया पूर्ण उपचार अंसभव है लेकिन इसको उचित शिक्षण – अधिगम पद्धति के द्वारा निम्नतम स्तर पर लाया जा सकता है।

🔹 डिस्ग्रफिया 🔹➖
डिस्ग्रफिया अधिगम अक्षमता का वो प्रकार है जो लेखन क्षमता को प्रभावित करता है। यह वर्तनी संबंधी कठिनाई, ख़राब हस्तलेखन एवं अपने विचारों को लिपिवद्ध करने में कठिनाई के रूप में जाना जाता है।

डिस्ग्रफिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –

✓लिखते समय स्वयं से बातें करना।
✓अशुद्ध वर्तनी एवं अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर को लिखना
✓पठनीय होने पर भी कापी करने में अत्यधिक श्रम का प्रयोग करना
[लेखन समग्री पर कमजोर पकड़ या लेखन सामग्री को कागज के बहुत नजदीक पकड़ना
✓अपठनीय हस्तलेखन
[लाइनों का ऊपर – नीचे लिया जाना एवं शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना तथा
✓अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना

डिसग्राफिया का उपचार – चूंकि यह एक लेखन संबंधी विकार है, अत: इसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाय।

🔹 डिस्कैलकुलिया 🔹
यह एक व्यापक पद है जिसका प्रयोग गणितीय कौशल अक्षमता के लिए किया जाता है इसके अन्तरगत अंकों संख्याओं के अर्थ समझने की अयोग्यता से लेकर अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिंद्धांतों के प्रयोग की अयोग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।

डिस्कैलकुलिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –

[नाम एवं चेहरा पहचनाने में कठिनाई
✓अंकगणितीय संक्रियाओं के चिह्नों को समझने में कठिनाई
✓अंकगणितीय संक्रियाओं के अशुद्ध परिणाम मिलना
✓गिनने के लिए उँगलियों का प्रयोग
✓वित्तीय योजना या बजट बनाने में कठिनाई
✓चेकबुक के प्रयोग में कठिनाई
✓दिशा ज्ञान का अभाव या अल्प समझ
✓नकद अंतरण या भुगतान से डर
समय की अनुपयुक्त समझ के कारण ✓समय – सारणी बनाने में कठिनाई का अनुभव करना।

डिस्कैलकुलिया के कारण – इसका करण मस्तिष्क में उपस्थित “कार्टेक्स की कार्यविरूपता” को माना जाता है। कभी – कभी तार्किक चिंतन क्षमता के अभाव के कारण डिस्ग्राफिया उत्पन्न होता है।

डिस्कैलकुलिया का उपचार – उचित शिक्षण- अधिगम रणनीति अपनाकर डिस्कैलकुलिया को कम किया जा सकता है। कुछ प्रमुख रणनीतियां निम्नलिखित हैं –

✓जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से संबंधी उदहारण प्रस्तुत करना
✓गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करना
✓फ्लैश कार्ड्स और कम्प्यूटर गेम्स का प्रयोग करना तथा
✓गणित को सरल करना और यह बताना कि यह एक कौशल है जिसे अर्जित किया जा सकता है।

🔹 डिस्फैसिया 🔹➖
ग्रीक भाषा के दो शब्दों “डिस और फासिया” जिनके शाब्दिक अर्थ अक्षमता एवं वाक् होते हैं से मिलकर बने है, शब्द डिस्फैसिया का शाब्दिक अर्थ “वाक् अक्षमता” से है। यह एक भाषा एवं वाक् संबंधी विकृति है जिससे ग्रसित बच्चे विचार की अभिव्यक्ति व्याख्यान के समय कठिनाई महसूस करते हैं। इस अक्षमता के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क क्षति (ब्रेन डैमेज) को उत्तरदायी माना जाता है।

🔹 डीस्प्रैक्सिया 🔹➖
यह मुख्य रूप से चित्रांकन संबंधी अक्षमता की ओर संकेत करता है। इससे ग्रसित बच्चे लिखने एवं चित्र बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं।

🔹 एडीएचडी 🔹(ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार)Attention deficit hyperactivity disorder (ADHD)➖

एडीएचडी एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जो व्यवहार में अति-सक्रियता पैदा कर सकता है। इससे ग्रस्त लोग एक कार्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने या लंबे समय तक बैठने में परेशानी का सामना कर सकते हैं। एडीएचडी में कई समस्याओं का संयोजन होता है जैसे कि ध्यान बनाए रखने में कठिनाई, सक्रियता और आवेगी व्यवहार।
एडीएचडी के लक्षण
इसके लक्षण निम्नलिखित हैं –

✓ध्यान देने में कठिनाई।
✓अक्सर दिन में सपने देखना।
✓निर्देशों को मानने में कठिनाई और ✓दूसरों को अनसुना करना।
✓अक्सर कार्यों या गतिविधियों को व्यवस्थित करने में समस्याएं आना।
✓अक्सर बातें भूल जाना और आवश्यक वस्तुओं, जैसे पुस्तकें, पेंसिल या खिलौने खो देना।
स्✓कूल के कार्य, काम या अन्य कार्यों को पूरा करने में अक्सर विफल रहना।
✓आसानी से ध्यान भटकना।
[बार-बार विफल होना या घबराना।
✓ज़्यादा देर बैठने में दिक्कत होना और निरंतर गति में रहना। जैसे हाथ पैर चलाना, उंगलियां चलाना
✓अत्यधिक बातूनी होना।
✓अक्सर दूसरों की वार्तालाप के बीच में बोलना।
✓अक्सर अपनी बारी के लिए इंतज़ार करने में परेशान होना।
✓बाहरी उत्तेजनाओं का शीघ्र प्रभाव पढ़ना।
“एडीएचडी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज़्यादा होता है और लड़कों व लड़कियों के व्यवहार भिन्न हो सकते हैं।”

एडीएचडी का उपचार

✓इस प्रकार की क्षमता वाले बच्चों को विद्यालय की खिड़कियों और द्वार से दूर बैठा कर।
✓बच्चों को कार्य के लिए अधिक समय देकर
✓कार्य में विराम, चिंतन फिर कार्य को करने के लिए कहा जाए (विराम- चिंतन- कार्य)
✓सीधे प्रश्न पूछे जाएं
✓अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान ना दिया जाए।
✓पुनर्बलन दिया जाए
✓ stelin नामक दवा (जो की एकाग्रता में वृद्धि करती है)।
लेकिन यह दवा विकार के लिए प्रभावी नहीं है।


Date -15 /10/2020
📒 Nots by shanu sanwle 📒

अधिगम विकार = Learning Disability
🔹शारीरीक अक्षमता या मानसिक अक्षमत दोनों का प्रभाव _ सिखने में कठिनाई
🔹 अधिगम अक्षमता का पता शारीरिक रुप से नही होता यह पूरी तरह मानसिक रुप से होता है

🔹अधिगम अक्षमता को कई आधारों पर वर्गीकृत किया गया है। हैं। ब्रिटिश कोलंबिया एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक _ सपोर्टिंग स्टूडेंट्स विद लर्निंग डिसबिलिटी
Supporting student with learning disability
में दिया गया है।
🔹अधिगम अक्षमता के प्रकार
1 डिस्लेक्सिया (पढ़ने संबंधी विकार)
2 डिस्ग्राफिया (लेखन संबंधी विकार)
3 डिस्कैलकूलिया (गणितीय कौशल संबंधी विकार)
4 डिस्फैसिया (वाक् क्षमता संबंधी विकार)
5 डिस्प्रैक्सिया (लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार)
6 डिसऑर्थोग्राफ़िय (वर्तनी संबंधी विकार)
7 ऑडीटरी प्रोसेसिंग डिसआर्डर (श्रवण संबंधी विकार)
8 विजुअल परसेप्शन डिसआर्डर (दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार)
9 सेंसरी इंटीग्रेशन ऑर प्रोसेसिंग डिसआर्डर (इन्द्रिय समन्वयन क्षमता संबंधी विकार)
10 ऑर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसआर्डर (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)

मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम अक्षमता के 6 प्रकार बताए

Dislexia (डिस्लेक्सिया )
Dyscalculia (डिस्कैलकुलिया )
Dysgraphia (डिसग्राफिया)
Dyspraxia (डीस्प्रैक्सिया)
Dystexia/ADHD
Dysplasia (डिस्फैसिया)

🔷 डिस्लेक्सिया – Dislexia :-

डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों डस और लेक्सिस से मिलकर बना है।

इस प्रकार डिस्लेक्सिया शब्द का शाब्दिक अर्थ डिफिकल्ट इन स्पीच होता है। सर्वप्रथम डिस्लेक्सिया शब्द की खोज 1887 ईस्वी में जर्मनी के नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फबर्लिन द्वारा किया गया था।

,🔹डिस्लेक्सिया से अभिप्राय वर्णमाला के अक्षरों को पढ़ने में कठिनाई से होता है। डिस्लेक्सिया से पीड़ित बालक वाचन से घबराते अर्थात इन्हें पढ़ने से डर लगता है। यह भाषा के लिखित , मौखिक एवं भाषा दक्षता को प्रभावित करता है ।
अधिगम अक्षमता का सबसे सामान्य प्रकार होता है। इसी समस्या से ग्रसित बालक को लिखी हुई सामग्री धुंधली दिखाई पड़ती है या एक विशिष्ट अधिगम असमर्थता का उदाहरण है तथा यह एक गुप्त अधिगम असमर्थता है इसके लक्षण इस प्रकार होते हैं।

डिस्लेक्सिया के लक्षण –

1 वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
2 अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
3 एकाग्रता में कठिनाई
4 पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप होना
5 डिस्लेक्सिया समस्या से ग्रसित बालकों को दृष्टि व 6 स्मृति संबंधित कठिनाई होती है।
7 शब्दों को उल्टा या अक्षरों का क्रम इधर – उधर करके पढ़ना।
8 डिस्लेक्सिया से ग्रसित बालकों को अक्षर उल्टे ढंग से दिखते हैं जैसे saw का was
8 वाक्यों में शब्द को आगे पीछे करके पड़ता है।
9 वर्तनी दोष से पीड़ित होना या उच्चारण दोष
10 समान उच्चारण वाले ध्वनियों को न पहचान पाना
11 शब्दकोश का अभाव
12 भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग का अभाव
13 क्षीण स्मरण शक्ति
14 अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पड़ना
15 पढ़ते समय किसी शब्द या पंक्ति को छोड़ देता है।

डिस्लेक्सिया के कारण :-
डिस्लेक्सिया तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति के कारण होता है।
वंशानुक्रम द्वारा भी हो सकता।
निदान:-
पारिवारिक इतिहास का अध्ययन किया जाए तथा भाषा वर्तनी उच्चारण बौद्धिक योग्यता स्मृति संबंधी परीक्षण तथा व्यवहार का निरीक्षण किया जाए तो इस बीमारी का उपचार किया जा सकता है।

🔷 डिस्ग्रफिया – Dysgraphia

  1. लिखने में कठिनाई आती है।
    1 लिखे गए शब्दों को पढ़ने में कठिनाई आती है
    3 लेखन धीमा, भद्दा व त्रुटिपूर्ण होता है ।
    4 बालक लिखते लिखते शीघ्र थक जाता है तथा उसके उंगलियों में दर्द होता है ।
    डिस्ग्रफिया अधिगम अक्षमता का वो प्रकार है जो लेखन क्षमता को प्रभावित करता है। यह वर्तनी संबंधी कठिनाई, ख़राब हस्तलेखन एवं अपने विचारों को लिपिवद्ध करने में कठिनाई के रूप में जाना जाता है। (नेशनल सेंटर फॉर लर्निंग डिसबलिटिज्म, 2006)।

डिस्ग्रफिया के लक्षण –

1 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई होना

2 लाइनों के ऊपर – नीचे लिखा जाना एवं शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना तथा

3 अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना

4 अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई होना।

5 पठनीय होने पर भी कापी करने में अत्यधिक श्रम का प्रयोग करना।

6 अशुद्ध वर्तनी एवं अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर को लिखना।

7 अपठनीय हस्तलेखन

8 कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होता है।

9 वाक्य छोड़कर या पुनरावृति किया जाता है ।

10 लिखते समय स्वयं से बातें करना।

11 लेखन समग्री पर कमजोर पकड़ या लेखन सामग्री को कागज के बहुत नजदीक पकड़ना।

उपचार

यह एक लेखन संबंधी विकार है, अत: इसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाय।इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाय

🔷 (डिस्कैलकुलिया) : Dyscalculia

यह अधिगम क्षमता है। जिसका प्रयोग गणितीय कौशल अक्षमता के लिए किया जाता है । इस रूप से बाधित बच्चे सीख नहीं पहचाने जाते इन बच्चों में गणितीय योग्यता की कमी होती है ।

डिस्केलकुलिया से ग्रसित बालकों को गणितीय संक्रियाओ में समस्या आती है। इसके अन्तरगत अंकों संख्याओं के अर्थ समझने की अयोग्यता से लेकर अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिंद्धांतों के प्रयोग की अयोग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।

डिस्केलकुलिया से ग्रसित बालकों को जोड़ घटाव गुणा भाग करने में अत्यधिक देर लगती है। माता पिता इन्हें सुस्त , आलसी इत्यादि कहते हैं । गणित के अतिरिक्त अन्य विषयों में इनका कार्य ठीक होता है।

डिस्कैलकुलिया के लक्षण –
नाम एवं चेहरा पहचनाने में कठिनाई
अंकगणितीय संक्रियाओं के चिह्नों को समझने में कठिनाई
अंकगणितीय संक्रियाओं के अशुद्ध परिणाम मिलना
गिनने के लिए उँगलियों का प्रयोग
गणितीय कार्य करने में कठिनाई होती है ।
संख्याओं को पहचानने में समस्याएं आती है।
वित्तीय योजना या बजट बनाने में कठिनाई।
चेकबुक के प्रयोग में कठिनाई
गणितीय आकृतियों के पहचानने में समस्या।
दिशा ज्ञान का अभाव या अल्प समझ
नकद अंतरण या भुगतान से डर
बड़ा-छोटा, परिधि , क्षेत्रफल आदि को समझने में कठिनाई ।
श्रवण व दृश्य इंद्रियों में संबंधित सी कमी होती है।
समय, दूरी और गहराई से जुड़ी समस्याएं।
रुपए पैसे की लेनदेन संबंधी कठिनाई
समय की अनुपयुक्त समझ के कारण समय – सारणी बनाने में कठिनाई का अनुभव करना।

डिस्कैलकुलिया के कारण –

इसका करण मस्तिष्क में उपस्थित कार्टेक्स की कार्यविरूपता को माना जाता है। कभी – कभी तार्किक चिंतन क्षमता के अभाव के कारण उया कर्य्क्रारी स्मिरती के अभाव के कारण भी डिस्ग्राफिया उत्पन्न होता है।
डिस्कैलकुलिया का उपचार – उचित शिक्षण- अधिगम रणनीति अपनाकर डिस्कैलकुलिया को कम किया जा सकता है।

जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से संबंधी उदहारण प्रस्तुत करना

गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करना

फ्लैश कार्ड्स और कम्प्यूटर गेम्स का प्रयोग करना तथा

गणित को सरल करना और यह बताना कि यह एक कौशल है जिसे अर्जित किया जा सकता है।

उपचार:-

इन बच्चों के लिए गणित का अभ्यास व बहू इंद्रिय प्रयोग कराया जाए खेल विधि प्रश्नोत्तर विधि तथा वास्तविक जीवन अनुभव के माध्यम से सिखाया जाए।

🔷 डीस्प्रैक्सिया :Dysphasia

यह मुख्य रूप से चित्रांकन संबंधी अक्षमता की ओर संकेत करता है।इस समस्या से ग्रसित बालकों की हस्तलेख विकृत हो जाता है । इससे ग्रसित बच्चे लिखने एवं चित्र बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं। प्राय: इनको अपना लिखा हुआ भी समझ नहीं आता ।

🔷 ध्यानाभाव अति क्रियाशीलता विकृति
ADHD (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) :

इसे सामान्य भाषा में ADHD कहते हैं। इन बच्चों में आवेगो ( impulsion) के नियंत्रण के समस्या होती है। इनका ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता।

इस कारण कक्षा में अनुशासन हीनता करते हैं तथा शिक्षण में बाधा उत्पन्न करते है । यह स्नायु तंत्र संबंधी विकृति है । जिससे सामान्य स्तर का ध्यान आवेश तथा अति क्रियाशीलता सम्मिलित है ।

ये बच्चे संवेगात्मक रूप से अस्थिर होत हैं । प्राथमिक स्तर के बच्चों तथा लड़कियों कि अपेक्षा में लड़कों में अधिक पाया जाता है ।

यदि प्राथमिक स्तर के लिए जिम्मेदार नहीं होते है। बल्कि कुछ आहार संबंधी कारक विशेष रूप से भोजन के रंग व जंकफूड तथा दूसरी ओर सामाजिक मनोवैज्ञानिक कारक जिम्मेदार माने जाते हैं।

ADHD के लक्षण:-

कार्य व खेल आदि में ध्यान की कमी।
भूलने की समस्या
हाथ पैर की उंगलियों को चलाते रहना।
स्वचालित व्यवहार करना
प्रश्न समाप्त होने से पूर्व भी उत्तर दे देना।
दूसरों की बात को सुने बिना बीच में काट देना।
भूलने की समस्या
अक्सर कार्य करने वाली सामग्रियां जैसे कलम पुस्तक आदि को खो देना
निर्देशों का ठीक से पालन ना करना।
अपनी बारी का इंतजार ना कर पाना।
अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना।
कक्षा में अलग-अलग सीटों को बदलना।
इन्हें सदैव बेचैनी बनी रहती है।
बाहरी उत्तेजना का शीघ्र प्रभाव
कही गई बात को पूरा ना सुनाना

उपचार:-

इन बच्चों के उपचार के लिए निम्न क्रियाएं कराई जानी चाहिए:-
इन बच्चों को खिड़कियों तथा द्वार से दूर बैठाया जाए।
कार्य करने के लिए अधिक समय दिया जाना चाहिए।
यह सूत्र प्रयोग किया जाना चाहिए विराम ले चिंतन करें कार्य करें
(स्टॉप थिंक एक्शन)
सीधे सपाट प्रश्न पूछे जाएं।
अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना।
सकारात्मक व्यवहार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
पुनर्बलन देने चाहिए।
स्टेलिन नामक दवा एकाग्रता में वृद्धि करती है, लेकिन विकार को ठीक नहीं कर पाती।

🔷 डिस्फैसिया:- Dysphasia डिस्फैसिया ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना हैं डिस + फैसिया

डिस्फैसिया का शाब्दिक अर्थ
भाषा एवं वाक् संबंधी विकृति है जिससे ग्रसित बच्चे विचार की अभिव्यक्ति व्याख्यान के समय कठिनाई महसूस करते हैं।

बालकों को बोलने में समस्या आती है । इस अक्षमता के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क क्षति (ब्रेन डैमेज) को उत्तरदायी माना जाता है। अधिगम अक्षमता के प्रकार


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🔸Learning disability (अधिगम विकलांगता) और physical disability (शारीरिक विकलांगता)

🔹 ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा एक पुस्तक प्रकाशित हुई है supporting student with learning disability
🔸 मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से छह प्रकार में बांटा गया है

🅰️ Dislexia (पठान संबंधी विकार)- (पढ़ने में कठिनाई) डिस्प्लेशिया के खोज एक नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बार्लीन ने 1887 मैं इसका आविष्कार किया।

*️⃣डिस्लेक्सिया – डस+ लेक्सिस
यह ग्रीक भाषा के शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ difficult speech या कठिन भाषा है।
🔸 इसलिए सिया से पीड़ित बच्चे:-
▪️ बच्चे पढ़ने और बोलने में घबराते हैं। लिखित मौखिक भाषा दक्षता सबको प्रभावित करते हैं।
▪️ लिखे हुए शब्द clear नहीं देख पाते।
*लक्षण*:-
*1* ) वर्णमाला में अधिगम में कठिनाई।
2) अगर किसी बच्चे को अक्षरों की ध्वनि को सीखने में कठिनाई।
3) पठन विकार के अंतर्गत वर्णमाला और अक्षरों की ध्वनि आते हैं।
4) एकाग्रता में कमी।
5) स्वर वर्णों का लोप (पढ़ते समय)।
6) Memories संबंधी problem
7) दृष्टि या स्मृति संबंधी कठिनाई
8) शब्दों को उल्टा करके या अक्षरों को इधर-उधर करके पड़ता है।
9) अक्षर उल्टे ढंग से दिखते है।
10) वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढता है।
11) वर्तनी दोष से पीड़ित बच्चे।
12) समान उच्चारण वाले ध्वनि को नहीं पहचान पाना।
13) भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाता है।
14) अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से बढ़ता है।
15) पढ़ते समय सब दिया पंक्ति को छोड़ देता है।
कारक
1) तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृत से होता है।
2) वंशानुक्रम द्वारा भी होता है।
निदान
1) पारिवारिक इतिहास का अध्ययन
2) भाषा वर्तनी, उच्चारण बौद्धिक योग्यता, स्मृति संबंधी परीक्षण।
Dysgraphia
(लेखन विकास)

🔸 धीमा गति से लिखता है।
🔸 भद्दा
🔸 त्रुटि पूर्ण
🔸 शीघ्र थक जाता है
🔸 उंगली में दर्द *वर्तनी लिखना*

🔸 वर्तनी संबंधी कठिनाई।
🔸 खराब हस्त लेखन।
🔸 विचारों की को लिपिबद्ध करने में कठिनाई।
इन सब बातों की चर्चा

“National centre for learning disabilitsa m ” – 2006 *लक्षण*

🔸 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई।
🔸 लाइनों ओके कभी ऊपर कभी नीचे लिखना।
🔸 शब्दों के बीच अनियमित अस्थान छोड़ना।
🔸 अपूर्ण अक्षर या शब्द।
🔸अक्षरों का आकार समझाने में कठिनाई।
🔸पठनीय होने के बाद भी कॉपी करने में अधिक समय लगना।
🔸वर्तनी शुद्ध लिखना।
🔸अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर।
🔸अपठनीय हस्त लेखन।
🔸कलम पकड़ने का ढंग नहीं होता।
🔸वाक्य शब्द छोड़कर (पुनरावृति करते हैं। )

उपचार
▪️ अभ्यास
▪️ वास्तविक जिंदगी से जोड़कर।
▪️ उचित शिक्षण रणनीति।
▪️ गणितीय तत्वों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय।
▪️ वीडियो गेम, फ्लैश कार्ड, कंप्यूटर गेम, शतरंज
▪️ आसान विषय बताना
Dypraxia (चित्रांश विकार)
1) चित्रांश संबंधी अक्षमता।
2) Hand Writing।
3) लेखन। चित्र
4) खुद का बनाया हुआ भी नहीं समझ पाते हैं।
ADHD(alternation deficit hyperactive disorder)
(ध्यानभाव अतिक्रियाशील विकृत)
▪️ बच्चों में आवेग के नियंत्रण में समस्या आती।
▪️ ध्यान केंद्रित नहीं रहता
▪️ अनुशासनहीनता। शिक्षण में बाधा।
▪️ स्नायु तंत्र (Nerve fiber) – विकृत
▪️ प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है।
▪️ भोजन में कलर/junk food से भी ADHD के chance सामाजिक रुप से मनोविज्ञान के कारक।
ADHD के लक्षण
▪️ कार्य। लेख में ध्यान में कमी
▪️ भूलने की समस्या
▪️ हाथ पैर उंगलियों में चलना।
▪️ प्रश्न के समाप्त होने से पहले उत्तर दे देना।
▪️ दूसरों की बात सुने बिना बीच में काट देना।
▪️ कार्य करने वाली सामग्री को खो देना।
▪️ निर्दोषों का ठीक से पालन नहीं करना।
▪️ अपनी बारी का इंतजार नहीं करना।
▪️ अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना।
▪️ कक्षा में बार-बार सीट बदलना।
▪️ सदैव बेचैन रहना।
▪️ बाहरी उत्तेजना का शीघ्र प्रभाव पड़ना।
▪️ कही गई बातों को पूरा ना सुनना।
उपाय
▪️ खिड़कियों और द्वार से दूर बैठना।
▪️ कार्य करने के लिए अधिक समय देना
▪️ विराम चिंतन कार्य ( stop, think, Action)
▪️ सीधे प्रश्न पूछे जाए
▪️ अनुप्रयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना।
▪️ पुनर्बलन देना।
▪️ विकार में प्रभावी नहीं है

🌸🌸🌸🌸🌸समाप्त धन्यवाद 🌸🌸🌸🌸🌸🌸


_Notes by
Laxmi patle

💠 अधिगम विकार 💠
Learning disability

📌 अधिगम विकार से तात्पर्य-उस मानिसक या मनोवैज्ञानिक स्थिति से है जिसमें बच्चे को अधिगम के दौरान कठिनाइयां का सामना करना पड़ता है ।
जैसे-बच्चे को सुनने,देखने,स्वास्थ्य संबंधी कठिनाई, बोलने, पढ़ने, लिखने में एवं अन्य इंद्रिय जनित अस्थाई समस्याएं आते हैं।
परंतु, अधिगम में कठिनाई विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकता है चाहे वह मानसिक स्तर पर
हो या शारीरिक स्तर पर दोनों ही अधिगम को प्रभावित करते हैं। इन दोनों कारणों को हम निम्नलिखित तरीके से समझ सकते हैं-
📍कोई बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग है तो उसे सिखने में व्यवधान उत्पन्न होता है जैसे- clept lips clept palate, blind, deaf, dumb, mental retardation, आदि प्रकार की विकलांगता । इसमें बच्चे को होने वाली कठिनाइयों का स्पष्ट पता चलता है और इसका समाधान निकालने का प्रयास करता है। इसे शारीरिक विकलांगता के कारण होने वाली अधिगम विकार कह सकते हैं ।
📍 यदि किसी बच्चे को अधिगम के दौरान लिखने बोलने देखने समझने या महसूस करने आदि में कठिनाइयां आती हैं जिसका संबंध उसके मानसिक स्थिति से होता है परंतु उसे या देखने वाले को इसका कारण स्पष्ट रूप से पता नहीं चलता । इस प्रकार के मानसिक स्तर पर विकार उत्पन्न होना अधिगम विकार का कारण है।

📌 अधिगम विकार का वर्गीकरण :-
⭕अधिगम विकार कई प्रकार के होते हैं इन्हें कई आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। सर्वप्रथम इसका विभेदीकरण ब्रिटिश कोलंबिया एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा किया गया था ।इसके लिए उन्होंने एक पुस्तक प्रकाशित की थी ,जिसका नाम है ~
supporting student with learning disability (a guide for teacher)
उपर्युक्त पुस्तक में अधिगम विकलांगता के 10 प्रकार बताए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. Dyslexia (पढ़ने संबंधी विकार)
  2. Dysgraphia (लेखन संबंधी विकार
  3. Dyscalculia ( गणितीय कौशल संबंधी विकार)
  4. Dysphagia (वाक् संबंधी विकार)
  5. Dyspraxia ( लेखन /चित्रण संबंधी विकार )
  6. disortografia( वर्तनी संबंधी विकार )
  7. auditory processing disorder( श्रवण संबंधी विकार )
  8. visual perception disorder( दृश्य प्रत्यक्ष क्षमता संबंधी विकार )
  9. Sensory integration or processing disorder( इन्द्रिय समन्वय क्षमता संबंधी विकार )
  10. Organisational learning disorder (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार )

⭕मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम विकार के 6 मुख्य विकारों का वर्णन किया है जो कि निम्नलिखित है ➖

1.डिस्लेक्सिया ( Dyslexia) ~ पठन विकार
2.डिस्केलकुलिया (Dyscalculia) ~ लेखन विकार
3.डिसग्राफिया ( Dysgraphia) ~ गणितीय क्षमता संबंधी विकार
4.डिस्प्रेक्सिया(Dyspraxia) ~ लेखन/चित्रण संबंधी विकार
5.डिस्ट्रेक्सिया ( Dystrexia) या
(ADHD – Attention Difect Hyper Activity Disordar)-(ध्यानाभाव अतिक्रियाशीलता विकृति)
6.डिस्फेसिया (Dysphagia) ~ वाक् क्षमता संबंधी विकार
📚 डिस्लेक्सिया(पठन विकार) 📚
सर्वप्रथम डिस्लेक्सिया की खोज 1887 में हुआ था। इसकी खोज जर्मन नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लीन ने किया था। डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द डस + लेक्सिस से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ कठिन भाषा या पढ़ने में कठिनाई होता है।
🔶️dyslexia के लक्षण :-
➡️ वर्णमाला अधिगम में कठिनाई।
➡️ अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई।
➡️ एकाग्रता में कमी।
➡️ पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप कर देना।
➡️ दृष्टि या स्मृति संबंधी कठिनाई।
➡️ शब्दों को उल्टा करके पढ़ना।
➡️ अक्षरों का सही क्रम इधर-उधर करके पढ़ना।
➡️अक्षर का उल्टे ढंग से दिखना।
➡️ वाक्यों में शब्दों को आगे पीछे करके पढ़ना।
➡️ वर्तनी दोष से पीड़ित।
➡️ समान उच्चारण वाले ध्वनियों को नहीं पहचान पाना।
➡️ शब्दकोश का अभाव रहना।
➡️भाषा का अर्थ पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना।
➡️ स्मरण शक्ति क्षिण होना।
➡️अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना।
➡️पढ़ते समय सब दया पंक्ति को छोड़ देना।

💫डिस्लेक्सिया के कारण:-
✔तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति से होता है।
✔ यह वंशानुक्रम द्वारा भी होता है।

💫डिस्लेक्सिया के उपाय:-
✔ पारिवारिक इतिहास का अध्ययन करके ।
✔ भाषा ,वर्तनी ,उच्चारण ,बौद्धिक योग्यता, स्मृति इत्यादि संबंधी क्रियाकलाप करा कर।
✔पठन अभ्यास कराके।

🖊🖋 डिस्ग्राफिया(लेखन विकार ) 🖊🖋
डिसग्राफिया लेखन क्षमता में विकृति को बताता है। जिसमें वर्तनी संबंधी कठिनाई,खराब लेखन एवं अपने विचारों को सही ढंग से प्रस्तुत ना कर पाना बताया गया है ।dysgraphia से संबंधित यह बात (नेशनल सेंटर फॉर लर्निंग डिसेबिलिटी 2006) में कहा गया है।

💫डिसग्राफिया के लक्षण:-💫
📍 लेखन संबंधी कार्यों में कठिनाई ।
📍 पंक्तियों में कभी ऊपर कभी नीचे लिखना।
📍 शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना ।
📍अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना ।
📍 अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई।
📍 पठनीय होने के बाद भी कॉपी करने में अधिक समय लगाना ।
📍वर्तनी अशुद्ध लिखना ।
📍 अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर लिखना । 📍आप पठनीय हस्त लेखन, जो पढ़ा ना जा सके।
📍 कलम पकड़ने का ढंग ठीक नहीं होना।
📍वाक्य या शब्द छोड़कर लिखना या पुनरावृति में लिखना ।
📍 लिखते समय खुद से बातें करना।
📍लेखन सामग्री पर सही पकड़ न होना।

💫डिसग्राफिया के कारण :-
✔ तंत्रिका तंत्र संबंधी विकृति होना।
✔ यह वंशानुक्रम द्वारा होता है।

💫 dysgraphia के उपाय:-
✔ लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करा कर।

🔢 डिस्कैल्कुलिया( गणितीय अक्षमता)🔣
Dyscalculia शब्द का प्रयोग गणितीय कौशल क्षमता या गणिती योग्यता में कमी को दर्शाने के लिए किया जाता है इसके अंतर्गत बच्चों को अंकों,संख्या,जोड़, घटाव, गुणा,भाग इत्यादि अंकगणितीय समस्याओं को हल करने में अधिक समय लगता है।अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिद्धांतों के प्रयोग की अयोग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।

💫डिस्कैल्कुलिया के लक्षण :-
⭕नाम और चेहरे पहचानने में कठिनाई।
⭕अंकगणितीय संक्रियाओं के अशुद्ध परिणाम निकालना।
⭕अंकगणितीय संक्रियाओं के चिन्हों को समझने में कठिनाई।
⭕गिनने के लिए उंगलियों का प्रयोग।
⭕गणितीय कार्य करने में कठिनाई।
⭕संख्या को पहचानने में समस्या।
⭕वित्तीय योजना/ बजट बनाने में परेशानी।
⭕चेक बुक के प्रयोग में कठिनाई।
⭕गणितीय आकृति को पहचानने में समस्या।
⭕ दिशा ज्ञान का आभाव।
⭕ नगद भुगतान करने में परेशानी एवं डर।
⭕बड़ा, छोटा, परिधि, क्षेत्रफल पहचानने में कठिनाई आना।
⭕श्रवण / दृश्य इंद्रियों से संबंधित कमी।
⭕ समय,दुरी,गहराई, ऊंचाई आदि।
⭕रूपये-पैसे के लेन-देन में परेशानी।
⭕समय- सारणी बनाने में कठिनाई।

💫डिस्कैल्कुलिया के कारण:-
✔ हमारे मस्तिष्क में सेरीब्रम कॉरटेक्स पाया जाता है जोकि यदि सही से काम नहीं कर पाता तो डिस्केलकुलिया होता है।
✔ गहन चिंतन में अक्षमता या परेशानी होना।
✔ स्मृति संबंधी परेशानी होना।

💫 डिस्केलकुलिया के उपाय :-
✔ गणितीय अभ्यास करना।
✔ वास्तविक जिंदगी से जोड़कर उदाहरण प्रस्तुत करना।
✔ उचित शिक्षण रणनीति बनाकर।
✔ गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय देना।
✔ वीडियो गेम फ्लैश कार्ड कंप्यूटर गेम शतरंज लूडो आदि का प्रयोग।
✔गणित को सरल करना और आसान विषय बताना।

👨‍🎨 डिस्प्रेक्सिया(चित्र/लेखन संबंधी विकार)👩‍🎨
🔴 यह चित्रांकन संबंधी अक्षमता होती है।
🔴 हस्तलेख की क्षमता में कठिनाई आना।
🔴 लेखन एवं चित्रकारी दोनों करने में दिक्कत।
🔴 खुद का लिखा हुआ भी नहीं समझ पाना।
🔴 वस्तुओं को मस्तिष्क में प्रतिबिंबित नहीं कर पाते।

👿😠 डिस्ट्रेक्सिया (ADHD)😠👿
🔵 ए डी एच डी का पूरा नाम attention deficit hyperactivity disorder है। इसे हिंदी में ध्यानाभाव अतिक्रियाशीलता विकृति कहते हैं।
🔵 परिचय:-
✅ बच्चों में आवेग के नियंत्रण में समस्या आती है। ✅ध्यान केंद्रित नहीं रहता है।
✅अनुशासनहीनता ,शिक्षण में बाधा।
✅स्नायु तंत्र नर्व फाइबर या नर्व टिशु में विकृति से उत्पन्न होता है।
✅बच्चे संवेगात्मक रूप से स्थिर नहीं रहते हैं।
✅प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाया जाता है।
✅ भोजन में कलर्ड एवं जंक फूड की वजह से एडीएचडी होता है।
✅ सामाजिक मनोविज्ञान में कारक होते हैं।

💫ADHD के लक्षण:-
✔ कार्य या खेल के ध्यान में कमी।
✔भूलने की समस्या।
✔ हाथ ,पैर ,उंगलियों को बेवजह चलाना।
✔स्वचालित व्यवहार करना।
✔प्रश्न के समाप्त होने से पहले उत्तर दे देना।
✔दूसरों की बात सुने बिना बीच में काट देना।
✔ कार्य करने की सामग्री को खो देना।
✔निर्देशों का ठीक से पालन नहीं करना।
✔ अपनी बारी का इंतजार नहीं करना।
✔ बहुत तेज अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना।
✔कक्षा में बार-बार सीट बदलना।
✔सदैव बेचैन रहना।
✔बाहरी उत्तेजना से शीघ्र प्रभावित होना।
✔ कही गई बातों को पूरा नहीं सुनना।

💫 ए डी एच डी के उपाय:-
✔ खिड़कीयों या द्वार से दूर बिठाया जाये।
✔ कार्य करने के लिए अधिक समय देना ।
✔विराम ,चिंतन, कार्य इस क्रम को अपनाना।
✔ऐसे बच्चों से सीधे प्रश्न पूछा जाना चाहिए।
✔अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान देना।
✔पुनर्बलन देना।
✔स्टेलिन ,एकाग्रता में वृद्धि करता है लेकिन यह भी इस विकार में प्रभावी नहीं है।

🗣🗣 डिस्फेशिया(वाक् क्षमता संबंधी विकार)🗣🗣
🟣 यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों (dys + phasia ) से मिलकर बना है,जिसका शाब्दिक अर्थ वाक् में अक्षमता है।
🟣 यह वाक् संबंधी विकार है।
🟣 विचारों की अभिव्यक्ति को व्याख्या करने के समय कठिनाई महसूस होना।
🟣 बोलने में समस्या आती है।
🟣 यह मस्तिष्क में क्षति या ब्रेन डैमेज के कारण होता है।

🌸 समाप्त 🌸


*SHARAD PATKAR 🌺 *अधिगम विकार* 🌺

अधिगम संबंधी कठिनाई, श्रवण, दृष्टि, स्वास्थ, वाक् एवं संवेग आदि से संबंधित अस्थायी समस्याओं से जुड़ी होती है। समस्या का समाधान होते ही अधिगम सम्बन्धी कठिनाई समाप्त हो जाती हैं।
अधिगम विकार का शारीरिक स्तर पर पता नहीं चलता बल्कि मानसिक स्तर से पता चलती है।

👉अधिगम अक्षमता का वर्गीकरण🔸➖

अधिगम अक्षमता एक वृहद् प्रकार के कई आधारों पर विभेदीकृत किया जाता है । इसका प्रमुख विभेदीकरण ब्रिटिश कोलंबिया (201) एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक सपोर्टिंग स्टूडेंट्स विद लर्निंग डिएबलिटी ए गाइड फॉर टीचर्स में दिया गया है, जो निम्नलिखित है –

👉डिस्लेक्सिया (पढ़ने संबंधी विकार)
👉डिस्ग्राफिया (लेखन संबंधी विकार)
👉डिस्कैलकूलिया (गणितीय कौशल संबंधी विकार)
👉डिस्फैसिया (वाक् क्षमता संबंधी विकार)
👉डिस्प्रैक्सिया (लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार)
👉डिसऑर्थोग्राफ़िय (वर्तनी संबंधी विकार)
👉ऑडीटरी प्रोसेसिंग डिसआर्डर (श्रवण संबंधी विकार)
👉विजुअल परसेप्शन डिसआर्डर (दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार)
👉सेंसरी इंटीग्रेशन ऑर प्रोसेसिंग
डिसआर्डर (इन्द्रिय समन्वयन क्षमता संबंधी विकार)
👉ऑर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसआर्डर (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)

मनोवैज्ञानिकों के आधार पर कुल 6 विकारों का वर्णन निम्नानुसार है-

🤷 डिस्लेक्सिया 🤷
डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द डस और लेक्सिस से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है कथन “भाषा (डिफिकल्ट स्पीच)”। वर्ष 1887 में एक जर्मन नेत्र रोग विशेषज्ञ “रूडोल्बर्लिन” द्वारा खोजे गए इस शब्द को शब्द “अंधता” भी कहा जाता है। डिस्लेक्सिया को भाषायी और संकेतिक कोडों भाषा के ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वर्णमाला के अक्षरों या संख्याओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अंकों के संसाधन में होने वाली कठिनाई के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह भाषा के लिखित रूप, मौखिक रूप एवं भाषायी दक्षता को प्रभावित करता है यह अधिगम अक्षमता का सबसे सामान्य प्रकार है।

डिस्लेक्सिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –

👉वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
👉अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
👉एकाग्रता में कठिनाई
👉पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप होना
👉शब्दों को उल्टा या अक्षरों का क्रम इधर – उधर कर पढ़ा जाना, जैसे नाम को मान या शावक को शक पढ़ा जाना
👉वर्तनी दोष से पीड़ित होना
👉समान उच्चारण वाले ध्वनियों को न पहचान पाना
👉शब्दकोष का अभाव
👉भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग का अभाव
👉क्षीण स्मरण शक्ति
👉अक्षरों को एक-एक करके धीमी गति से पढ़ना
👉पढ़ते समय शब्द या पंक्ति को छोड़ देना।

डिस्लेक्सिया का उपचार – डिस्लेक्सिया पूर्ण उपचार अंसभव है लेकिन इसको उचित शिक्षण – अधिगम पद्धति के द्वारा निम्नतम स्तर पर लाया जा सकता है।

👇 डिस्ग्रफिया 👇
डिस्ग्रफिया अधिगम अक्षमता का वो प्रकार है जो लेखन क्षमता को प्रभावित करता है। यह वर्तनी संबंधी कठिनाई, ख़राब हस्तलेखन एवं अपने विचारों को लिपिवद्ध करने में कठिनाई के रूप में जाना जाता है।

डिस्ग्रफिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –

👉लिखते समय स्वयं से बातें करना।
👉अशुद्ध वर्तनी एवं अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर को लिखना
👉पठनीय होने पर भी कापी करने में अत्यधिक श्रम का प्रयोग करना
[लेखन समग्री पर कमजोर पकड़ या लेखन सामग्री को कागज के बहुत नजदीक पकड़ना
👉अपठनीय हस्तलेखन
[लाइनों का ऊपर – नीचे लिया जाना एवं शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना तथा
👉अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना

डिसग्राफिया का उपचार – चूंकि यह एक लेखन संबंधी विकार है, अत: इसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाय।

👍डिस्कैलकुलिया 👍
यह एक व्यापक पद है जिसका प्रयोग गणितीय कौशल अक्षमता के लिए किया जाता है इसके अन्तरगत अंकों संख्याओं के अर्थ समझने की अयोग्यता से लेकर अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिंद्धांतों के प्रयोग की अयोग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।

डिस्कैलकुलिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –

[नाम एवं चेहरा पहचनाने में कठिनाई
🌺अंकगणितीय संक्रियाओं के चिह्नों को समझने में कठिनाई
🌺अंकगणितीय संक्रियाओं के अशुद्ध परिणाम मिलना
🌺गिनने के लिए उँगलियों का प्रयोग
✓वित्तीय योजना या बजट बनाने में कठिनाई
✓चेकबुक के प्रयोग में कठिनाई
✓दिशा ज्ञान का अभाव या अल्प समझ
✓नकद अंतरण या भुगतान से डर
समय की अनुपयुक्त समझ के कारण ✓समय – सारणी बनाने में कठिनाई का अनुभव करना।

डिस्कैलकुलिया के कारण – इसका करण मस्तिष्क में उपस्थित “कार्टेक्स की कार्यविरूपता” को माना जाता है। कभी – कभी तार्किक चिंतन क्षमता के अभाव के कारण डिस्ग्राफिया उत्पन्न होता है।

डिस्कैलकुलिया का उपचार – उचित शिक्षण- अधिगम रणनीति अपनाकर डिस्कैलकुलिया को कम किया जा सकता है। कुछ प्रमुख रणनीतियां निम्नलिखित हैं –

✓जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से संबंधी उदहारण प्रस्तुत करना
✓गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करना
✓फ्लैश कार्ड्स और कम्प्यूटर गेम्स का प्रयोग करना तथा
✓गणित को सरल करना और यह बताना कि यह एक कौशल है जिसे अर्जित किया जा सकता है।

🔹 डिस्फैसिया 🔹➖
ग्रीक भाषा के दो शब्दों “डिस और फासिया” जिनके शाब्दिक अर्थ अक्षमता एवं वाक् होते हैं से मिलकर बने है, शब्द डिस्फैसिया का शाब्दिक अर्थ “वाक् अक्षमता” से है। यह एक भाषा एवं वाक् संबंधी विकृति है जिससे ग्रसित बच्चे विचार की अभिव्यक्ति व्याख्यान के समय कठिनाई महसूस करते हैं। इस अक्षमता के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क क्षति (ब्रेन डैमेज) को उत्तरदायी माना जाता है।

🔹 डीस्प्रैक्सिया 🔹➖
यह मुख्य रूप से चित्रांकन संबंधी अक्षमता की ओर संकेत करता है। इससे ग्रसित बच्चे लिखने एवं चित्र बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं।

🔹 एडीएचडी 🔹(ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार)Attention deficit hyperactivity disorder (ADHD)➖

एडीएचडी एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जो व्यवहार में अति-सक्रियता पैदा कर सकता है। इससे ग्रस्त लोग एक कार्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने या लंबे समय तक बैठने में परेशानी का सामना कर सकते हैं। एडीएचडी में कई समस्याओं का संयोजन होता है जैसे कि ध्यान बनाए रखने में कठिनाई, सक्रियता और आवेगी व्यवहार।
एडीएचडी के लक्षण
इसके लक्षण निम्नलिखित हैं –

✓ध्यान देने में कठिनाई।
✓अक्सर दिन में सपने देखना।
✓निर्देशों को मानने में कठिनाई और ✓दूसरों को अनसुना करना।
✓अक्सर कार्यों या गतिविधियों को व्यवस्थित करने में समस्याएं आना।
✓अक्सर बातें भूल जाना और आवश्यक वस्तुओं, जैसे पुस्तकें, पेंसिल या खिलौने खो देना।
स्✓कूल के कार्य, काम या अन्य कार्यों को पूरा करने में अक्सर विफल रहना।
✓आसानी से ध्यान भटकना।
[बार-बार विफल होना या घबराना।
✓ज़्यादा देर बैठने में दिक्कत होना और निरंतर गति में रहना। जैसे हाथ पैर चलाना, उंगलियां चलाना
✓अत्यधिक बातूनी होना।
✓अक्सर दूसरों की वार्तालाप के बीच में बोलना।
✓अक्सर अपनी बारी के लिए इंतज़ार करने में परेशान होना।
✓बाहरी उत्तेजनाओं का शीघ्र प्रभाव पढ़ना।
“एडीएचडी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज़्यादा होता है और लड़कों व लड़कियों के व्यवहार भिन्न हो सकते हैं।”

एडीएचडी का उपचार

✓इस प्रकार की क्षमता वाले बच्चों को विद्यालय की खिड़कियों और द्वार से दूर बैठा कर।
✓बच्चों को कार्य के लिए अधिक समय देकर
✓कार्य में विराम, चिंतन फिर कार्य को करने के लिए कहा जाए (विराम- चिंतन- कार्य)
✓सीधे प्रश्न पूछे जाएं
✓अनुपयुक्त व्यवहार पर ध्यान ना दिया जाए।
✓पुनर्बलन दिया जाए
✓ stelin नामक दवा (जो की एकाग्रता में वृद्धि करती है)।
लेकिन यह दवा विकार के लिए प्रभावी नहीं है।
*


✍️नोट्स by~
💁 *निशा sky यादव
*[अधिगम अक्षमता]*
👇👇👇👇
अधिगम अक्षमता अर्थ और परिभाषा
अधिगम अक्षमता पद दो अलग – अलग पदों अधिगम अक्षमता से मिलकर बना है। अधिगम शब्द का आशय सीखने से है तथा अक्षमता का तात्पर्य क्षमता के अभाव या क्षमता की अनुपस्थिति से है। अर्थात सामान्य भाषा में अधिगम अक्षमता का तात्पर्य सीखने क्षमता अथवा योग्यता की कमी या अनुपस्थिति से है।
अधिगम अक्षमता को वाक्, भाषा, पठन, लेखन अंकगणितीय करण में कठिनाई होना।अत: यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या भी है।
1) डिस्लेक्सिया (पढ़ने संबंधी विकार)
2)डिस्ग्राफिया (लेखन संबंधी विकार)
3)डिस्कैलकूलिया (गणितीय कौशल संबंधी विकार)
4)डिस्फैसिया (वाक् क्षमता संबंधी विकार)
5)डिस्प्रैक्सिया (लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार)
6)डिसऑर्थोग्राफ़िय (वर्तनी संबंधी विकार)
7)ऑडीटरी प्रोसेसिंग डिसआर्डर (श्रवण संबंधी विकार)
8)विजुअल परसेप्शन डिसआर्डर (दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार)
9)सेंसरी इंटीग्रेशन ऑर प्रोसेसिंग डिसआर्डर (इन्द्रिय समन्वयन क्षमता संबंधी विकार)
10)ऑर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसआर्डर (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)

{अब आप बारी – बारी से एक – एक का अध्ययन करेंगे।}👇

(1) पठन अक्षमता:- (reading disabilities)
इससे तात्पर्य पढ़ने में विकार होना या किसी तरह की समस्या या कमी से है।

इसके अंतर्गत निम्न अक्षमताएं आती है।

[1] डिस्लेक्सिया (dyslexia)💁
डिस्लेक्सिया शब्द ‘ग्रीक’ भाषा के दो शब्द “डस और लेक्सिस” से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है कथन भाषा *(डिफिकल्ट स्पीच)। *वर्ष 1887 में एक जर्मन नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्बर्लिन* द्वारा खोजे गए इस शब्द को शब्द अंधता भी कहा जाता है।

डिस्लेक्सिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –👇

1)वर्णमाला अधिगम में कठिनाई
2)अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई
3)एकाग्रता में कठिनाई
4)पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप होना
5)शब्दों को उल्टा या अक्षरों का क्रम इधर – उधर कर पढ़ा जाना,
[जैसे नाम को मान या शावक को शक पढ़ा जाना]
6) उच्चारण/वर्तनी दोष से पीड़ित होना
7)समान उच्चारण वाले ध्वनियों को न पहचान पाना
8)शब्दकोष का अभाव
9)भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग का अभाव तथा
10)क्षीण स्मरण शक्ति
11) अक्षरों को एक एक करके धीमी गति से पढ़ना
12) वाक्यों में शब्दों को आगे पिछे करके पढ़ना

डिस्लेक्सिया की पहचान करने के लिए सं 1973 में अमेरिकन फिजिशियन एलेना बोडर ने बोड टेस्ट ऑफ़ रीडिंग स्पेलिंग पैटर्न नामक एक परिक्षण का विकास किया। भारत में इसके लिए डिस्लेक्सिया अर्ली स्क्रीनिंग टेस्ट और डिस्लेक्सिया स्क्रीनिंगटेस्ट का प्रयोग किया जाता है।

डिस्लेक्सिया का उपचार – 💁डिस्लेक्सिया पूर्ण उपचार अंसभव है लेकिन इसको उचित शिक्षण – अधिगम पद्धति के द्वारा निम्नतम स्तर पर लाया जा सकता है।

[2] लेखन अक्षमता (writing disabilities)
इससे तात्पर्य लिखने में विकार होना या किसी तरह की समस्या या कमी से है।
इसके अंतर्गत निम्न अक्षमताएं आती हैं
[2] डिस्ग्राफिया (dysgraphia)👇
डिस्ग्रफिया अधिगम अक्षमता का वो प्रकार है इसमें या तो बच्चा ठीक से नहीं लिख पाता,जो लेखन क्षमता को प्रभावित करता है।
कारण 👇
सामान्यतः इसका कारण यह वर्तनी संबंधी कठिनाई, ख़राब हस्तलेखन एवं अपने विचारों को लिपिवद्ध करने में कठिनाई के रूप में जाना जाता है। (नेशनल सेंटर फॉर लर्निंग डिसबलिटिज्म, 2006)।

डिस्ग्रफिया के निम्नलिखित लक्षण है–👇

1)लिखते समय स्वयं से बातें करना।
2) वाक्य या शब्द छोड़कर लिखना शब्दों की पुनरावृत्ति करना
3)अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर को लिखना
4)पठनीय होने पर भी कापी/ नकल करने में अधिक समय लगना
5)कलम पकड़ने का तरीका सही नहीं होना
6)अपठनीय हस्तलेखन
7)लाइनों का कभी ऊपर – कभी नीचे लिखा जाना 8)शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना
9)अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना
10) वर्तनी अशुद्घ लिखना
11) लेखन सामग्री पर सही पकड़ ना होना आदि

उपचार कार्यक्रम 💁 चूंकि यह एक लेखन संबंधी विकार है, अत: इसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाय।

[3] डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia)-💁यह ऐसी अधिगम अक्षमता है जिसमें बच्चे गणित को समझने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।
डिस्कल्कुलिया से पीड़ित बच्चे जोड़, घटाव, गुणा, भाग करने में अधिक समय लगाते है सुस्त व आलसी प्रवृति के होते हैं

Dyscalculia के निम्न लिखित लक्षण हैं-👇
1)नाम व चेहरा पहचानने में कठिनाई
2)”+-÷×” के चिन्हों को समझने में कठिनाई होना
3)अंक गणितीय संक्रिया के अशुद्ध परिणाम निकालना
4)गिनने के लिए अंगुलियों का उपयोग करना
5) गणितीय कार्य करने में कठिनाई होना
6) वित्तीय योजना/बजट बनाने में परेशानी होना
7) चैकबुक के प्रयोग में कठिनाई आना
8) गणितीय आकृतियों को पहचानने में कठिनाई होना
9) दिशाज्ञान का अभाव होना
10) नकदी भुगतान से डरना
11) बड़ा, छोटा, परिधी, क्षेत्रफल समझने में कठिनाई होना
13) श्रवण, दृश्य इन्द्रियों से संबंधित कमी होना
14) समय,दूरी,गहराई को जानने में कठिनाई
15) रूपए, पैसे के समझ में कमी
कारण👇
सामान्यत: इसका कारण – स्मृति संबंधी परेशानी , गहन चिंतन क्षमता में परेशानी।

उपचार कार्यक्रम
इसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि गणित को वास्तविक जीवन से जोड़ते हुए , उचित शिक्षण रणनीति, गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय व अभ्यास करवाया जाए इसके अतिरिक्त विडिओ गेम, फ्लेश कार्ड, कम्प्यूटर गेम,शतरंज,लूडो, आदि का प्रयोग करना। गणित को आसान विषय बताकर सरल बनाकर पड़ाना आदि।

[5] डिस्फेसिया
💁ग्रीक भाषा के दो शब्दों “डिस और फासिया” जिनके शाब्दिक अर्थ अक्षमता एवं वाक् होते हैं से मिलकर बने है, शब्द डिस्फैसिया का शाब्दिक अर्थ वाक् अक्षमता से है।
यह एक वाक् संबंधी विकार है,जिससे ग्रसित बच्चे विचारों की अभिव्यक्ति /व्याख्यान के समय कठिनाई महसूस करते हैं।

[6] डीस्प्रेक्सिया
💁यह मुख्य रूप से चित्रांकन संबंधी अक्षमता की ओर संकेत करता है। इससे ग्रसित बच्चे लिखने व चित्र बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं।खुद का लिखा हुआ समझ नहीं पाते हैं

[7] ADHD (ध्यानाभव एवम् अतिसक्रियता संबंधी विकार)
💁एडीएचडी ऐसा मानसिक विकार है जिसके कारण बच्चों में एकाग्रता की कमी हो जाती है और वे बहुत अधिक चंचल एवं शरारती हो जाते हैं और इस विकार के कारण बच्चों के मानसिक विकास एवं उनकी कार्य क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बच्चे पढ़ाई या किसी अन्य काम में अपना ध्यान नहीं लगा पाते, बहुत ज्यादा बोलते हों, किसी भी जगह टिक कर नहीं बैठते हों, छोटी-छोटी बातों पर बहुत अधिक गुस्सा करते हों, बहुत अधिक शरारती और जिद्दी हों तो वे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से ग्रस्त हो सकते हैं। अक्सर माता-पिता इस विकार से ग्रस्त बच्चे को काबू में रखने के लिए उनके साथ डांट-फटकार और मारपीट का सहारा लेते हैं लेकिन इसके कारण बच्चों में नकारात्मPक सोच आ जाती है और वह पहले से भी ज्यादा शरारत करने लगते हैं।


Continuous and Comprehensive Evaluation

✍🏻Menka patel ✍🏻

🌈सतत एवं व्यापक मूल्यांकन🌈

☄सतत एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चे के लिए आवश्यक होता है इसमें बच्चों को तनाव मुक्त होते हैं सतत एवं व्यापक मूल्यांकन हर क्षेत्र में होता है इसमें बच्चे का मूलांक करने में आसानी होती है जब भी हम सीसीई मूल्यांकन करते हैं हमें एक पाठ रचनात्मक होता है

✍🏻 व्यापक मूल्यांकन – जहां पर भी करना चाहते हैं वहां पर हम अपने काम को कर सकते हैं यह मूल्यांकन हर क्षेत्र में होता है इसका क्षेत्र विस्तृत होता है इसमें बच्चों के अनुसार व्यवस्था स्थान होती है तथा बच्चे अच्छे से प्रदर्शन कर सकते हैं

✍🏻 सतत मूल्यांकन – सतत मूल्यांकन किसी काम को निरंतर कार्य करते हैं बच्चे को निरंतर मूल्यांकन करते रहेंगे तो बच्चों का मूल्यांकन कर सकते हैं यह मूल्यांकन निरंतर चलता रहता है

लक्ष्य की प्राप्ति छोटे-छोटे और दूसरों को पूरा करके होती है

🌈 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य निम्न हैं –

⭐ हर पहलू का मूल्यांकन करना
⭐ बच्चे के तनाव को कम करना है
⭐ रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है
⭐ निदान और उपचार में मदद मिलती है
⭐ बेहद कौशल वाले शिक्षार्थियों का निर्माण

🌈 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य निम्न हैं

✍🏻 बाल केंद्रित शिक्षण करना
✍🏻 मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग बना देना
✍🏻 शिक्षार्थी का विकास अधिगम प्रक्रिया, अधिगम की गति और अधिगम परिवेश सही समय पर सही निर्णय लेना
✍🏻 बच्चे को आत्म मूल्यांकन का मौका देना
✍🏻 निदान/ उपचार के माध्यम से बच्चे की उपलब्धि में सुधार वृद्धि

🌈 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं निम्न हैं

☄ निरंतर मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है
☄ व्यापक – बच्चे का सर्वांगीण विकास
☄ सह शैक्षिक मूल्यांकन – जीवन कौशल दृष्टिकोण, मान्यताएं ,गतिविधियां
☄ मूल्यांकन एक मापदंड के आधार पर होता है इसमें कई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है

🌈 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के कार्य निम्न हैं –

⭐ प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में मदद करता है
⭐ कमजोरी का निदान करना व्यक्तिगत शिक्षार्थी की जांच
⭐ बच्चे खुद भी अपनी शक्ति कमजोरी को जान सकते हैं
⭐ दृष्टिकोण ,मान्यता में परिवर्तन की पहचान
⭐ भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान

🌈 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन दो प्रकार का होता है

(1) शैक्षिक मूल्यांकन-

👉 रचनात्मक मूल्यांकन 👉योगात्मक मूल्यांकन

(2) सह शैक्षिक मूल्यांकन –
👉 सामान्य मूल्यांकन
👉 आसपास पर्यावरण
👉 शारीरिक शिक्षा
👉 कला
👉 संगीत
👉 नृत्य
👉 कंप्यूटर आदि

🌈 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में शिक्षक को क्या करना चाहिए

⭐ बच्चे के तनाव को कम करना
⭐ व्यवस्थित तौर पर मूल्यांकन निमितता
⭐ निदान और उपचार कर सकते हैं
⭐ रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका देना
⭐ बेहद कौशल वाले शिक्षार्थी का निर्माण

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✍🏻 Notes By-Vaishali Mishra

🔆 सतत एवम् व्यापक मूल्यांकन🔆
(Continues And Comprehensive Evaluation)

परिचय:

सतत और व्यापक मूल्यांकन (सी.सी.ई) वर्ष 2009 में भारत के शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत अनिवार्य मूल्यांकन प्रक्रिया है। मूल्यांकन का यह दृष्‍टिकोण भारत में छठी से दसवीं कक्षा और कुछ विद्यालयों में बारहवीं के छात्रों के लिए राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा पेश किया गया था।

अभिप्राय:

सतत और व्यापक मूल्यांकन (सी.सी.ई) छात्रों के विद्यालय-आधारित मूल्यांकन की एक प्रणाली है जिसमें छात्रों के विकास के सभी पहलू शामिल हैं। यह मूल्‍यांकन की एक उन्‍नतशील प्रक्रिया है जो दोहरे उद्देश्यों पर बल देती है अर्थात वैविध्‍यपूर्ण अधिगम के मूल्‍यांकन एवं आकलन में निरंतरता और अन्‍य पर व्यवहार के परिणाम।

इस योजना में ‘सतत’ शब्द का अर्थ है छात्रों के विकास के पहचान पहलुओं के मूल्यांकन पर जोर देना, और विकास एक घटना के बजाय निरंतर प्रक्रिया है, जो संपूर्ण शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में निर्मित होती है और पूरे अकादमिक सत्र की अवधि में फैली है।

दूसरे शब्द ‘व्यापक’ का अर्थ है कि यह योजना छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक और सह-शैक्षिक पहलुओं को शामिल करने का प्रयास करती है।

सतत और व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य:

▪️सी.सी.ई का मुख्य उद्देश्य बच्‍चे की विद्यालय में उपस्‍थिति के दौरान उसके हर पहलू का मूल्यांकन करना है।
▪️सी.सी.ई का उद्देश्य बच्चों के तनाव को कम करना है।
मूल्यांकन को व्यापक और नियमित बनाना।
▪️रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को स्‍थान प्रदान करना।
▪️निदान और उपचार के साधन प्रदान करना।
▪️बृहद् कौशल वाले शिक्षार्थियों का निर्माण करना।

सतत और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य:

सतत और व्यापक मूल्यांकन के विविध उद्देश्य हैं:

▪️शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया को एक शिक्षार्थी-केंद्रित गतिविधि बनाना।
▪️मूल्यांकन प्रक्रिया को शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बनाना।
▪️ शिक्षार्थी के विकास, अधिगम की प्रक्रिया, अधिगम की गति और अधिगम के परिवेश के लिए समय पर निर्णय लेना।
▪️आत्म-मूल्यांकन के लिए शिक्षार्थियों को अवसर प्रदान करना।
निदान और उपचार के माध्यम से छात्र की उपलब्धि में सुधार के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया का उपयोग करना।

सतत और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं:
▪️सी.सी.ई का ‘सतत’ पहलू मूल्यांकन के ‘निरंतर’ और ‘आवधिक’ पहलू का ध्‍यान रखता है।
▪️सी.सी.ई का ‘व्यापक’ घटक बच्चे के व्यक्‍तित्‍व के सर्वांगीण विकास के मूल्‍यांकन का ध्‍यान रखता है।

▪️इसमें विद्यार्थी के विकास के शैक्षिक के साथ-साथ सह-शैक्षिक पहलुओं का मूल्यांकन शामिल है। शैक्षिक पहलुओं में पाठ्यक्रम संबंधी क्षेत्र या विषय विशिष्‍ट क्षेत्र शामिल हैं, जबकि सह-शैक्षिक पहलुओं में जीवन कौशल, सह-पाठ्यक्रम संबंधी गतिविधियां, दृष्‍टिकोण और मान्‍यताएं शामिल हैं।

*सह-शैक्षिक क्षेत्रों में मूल्‍यांकन पहचान मानदंडों के आधार पर
*कई तकनीकों का उपयोग करके किया जाता है,

  • जबकि जीवन कौशल में आकलन और परीक्षण सूची के संकेतकों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।

सतत और व्यापक मूल्यांकन के कार्य:
▪️सी.सी.ई शिक्षक को प्रभावी शिक्षण की रणनीतियों को व्यवस्थित करने में सहायता करता है।
▪️सतत मूल्यांकन कमजोरियों का निदान करने में सहायता करता है और शिक्षक को कुछ व्यक्‍तिगत शिक्षार्थियों की जांच की अनुमति देता है।
▪️सतत मूल्यांकन के माध्यम से छात्र अपनी शक्‍तियों और कमजोरियों को जान सकते हैं।
▪️सी.सी.ई दृष्‍टिकोण और मान्‍यता प्रणाली में परिवर्तन की पहचान करने में मदद करता है।
▪️सी.सी.ई छात्रों की शैक्षिक और सह-शैक्षिक क्षेत्रों में प्रगति पर जानकारी प्रदान करता है जिसके परिणामस्वरूप शिक्षार्थियों की भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान।

🔅सतत और व्यापक मूल्यांकन शैक्षिक और सह-शैक्षिक दोनों पहलुओं पर विचार करता है।🔆

शैक्षिक मूल्यांकन: शैक्षिक पहलुओं में पाठ्यक्रम संबंधी क्षेत्र या विषय विशिष्‍ट क्षेत्र शामिल हैं। ये क्षेत्र लेखन और वादन कौशल में सुधार के लिए मौखिक और लिखित कक्षा परीक्षण, चक्रीय परीक्षण, गतिविधि परीक्षण और सभी विषयों के दैनिक कक्षा कार्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं। शैक्षिक मूल्यांकन रचनात्‍मक और योगात्‍मक दोनों होने चाहिए।

सह-शैक्षिक मूल्यांकन:
मूल्‍यांकन के सह-शैक्षिक क्षेत्र: सह-शैक्षिक मूल्यांकन के क्षेत्र छात्र के सामान्य ज्ञान, पर्यावरण शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कला, संगीत और नृत्य और कंप्यूटर के कौशल विकास पर केंद्रित हैं। इन्हें क्विजों, प्रतियोगिताओं और गतिविधियों के माध्यम से मूल्यांकित किया जाता है।

विद्यालय आधारित सतत और व्यापक मूल्यांकन प्रणाली एक शिक्षार्थी की निम्नलिखित प्रकार से सहायता करती है:

▪️यह बच्चों के तनाव को कम करना है।
▪️यह मूल्यांकन को व्यापक और नियमित बनाता है।
▪️ निदान और उपचार के साधन प्रदान करता है।
▪️ रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को स्‍थान प्रदान करता है।
▪️यह बृहद् कौशल वाले शिक्षार्थियों का निर्माण करता है।


✴️ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन✴️ 🔆 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चे की संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है इससे बच्चे के अंदर जो डर होता है परीक्षा को लेकर वह कम हो जाता है वह तनाव मुक्त हो जाता है सतत एवं व्यापक मूल्यांकन हर क्षेत्र में होता है ◾ सतत मूल्यांकन ➖ सतत व्यापक मूल्यांकन में सतत का अर्थ लगातार एवं वार वार से है सतत मूल्यांकन का अर्थ सीखने सिखाने की प्रक्रिया के अंतर्गत निरंतर अवलोकन करने से है जिसमें हम बच्चों के काम करने की प्रक्रिया को देखकर सतत रूप से मूल्यांकन करते हैं ◾ व्यापक मूल्यांकन ➖ व्यापक मूल्यांकन में पूरी तरह से हर क्षेत्र में मूल्यांकन करना अनिवार्य है 🔅 सतत रूप से मूल्यांकन करने पर ही हम व्यापक मूल्यांकन कर पाएंगे ✴️ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन सी सी ई आर टी ई के एक्ट के तहत 2009 में आया है ◾सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य ➖ 1️⃣ बच्चे के हर पहलू का मूल्यांकन करते हैं 2️⃣ यह बच्चे के तनाव को कम करता है 3️⃣ व्यापक और नियमित मूल्यांकन करता है 4️⃣ रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है 5️⃣ निदान और उपचार में मदद मिलती है 6️⃣ बृहद कौशल वाले शिक्षार्थी का निर्माण होता है ◾ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य ➖1️⃣ बाल केंद्रित शिक्षण करवाना 2️⃣ मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग बना लेना 3️⃣ शिक्षार्थी का विकास अधिगम प्रक्रिया अधिगम की गति अधिगम परिवेश सही समय पर सही निर्णय लेना 4️⃣ बच्चों को आत्म मूल्यांकन का भी मौका देना 5️⃣ निदान / उपचार के माध्यम से बच्चे की उपलब्धि में सुधार के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया की जाती है ◾ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं ➖ 1️⃣ निरंतर मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है 2️⃣ व्यापक ➡️ सर्वांगीण विकास करने पर बल देता है 3️⃣ सह शैक्षिक मूल्यांकन ➡️ सह शैक्षिक मूल्यांकन के अंतर्गत जीवन कौशल दृष्टिकोण मान्यताएं गतिविधियां आदि हैं 4️⃣ मूल्यांकन एक मानदंड के आधार पर होता है जिसमें कई तकनीकों का प्रयोग होता है ◾ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के कार्य ➖ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के कार्य निम्नलिखित हैं 1️⃣ प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में मदद करता है जिससे हम व्यवस्थित तरीके से पढ़ा सकें 2️⃣ कमजोरी का निदान करने में मदद करता है और व्यक्तिगत शिक्षार्थियों की जांच करता है 3️⃣ इससे बच्चे खुद भी अपनी शक्ति कमजोरी को जान पाते हैं 4️⃣ दृष्टिकोण / मान्यता में जो परिवर्तन है उसकी पहचान करने में मदद करता है 5️⃣ भविष्य में सफलता का पूर्वानुमान हो जाता है ✴️ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन शैक्षिक एवं सहस शैक्षिक दोनों प्रकार से होता है ◾ सह शैक्षिक ➖ इसमें सामान्य ज्ञान आसपास पर्यावरण की जानकारी होनी चाहिए शारीरिक शिक्षा कला संगीत नैतिक शिक्षा नृत्य कंप्यूटर एक्टिविटी आदि ◾ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का महत्व ➖ 👉यह बच्चों के तनाव को कम करता है 👉व्यवस्थित तौर पर मूल्यांकन करने से नियमितता आती है 👉 इसमें यह अवसर रहता है कि निदान उपचार हो जाए 👉 रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका मिलता है 👉 बृहद कौशल वाले शिक्षार्थी का निर्माण करता है ✍️notes by pragya shukla


NOTES BY:- chahita acharya 🙏

Continuous and comprehensive evaluation
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
Key points –
सीसीई अगर नहीं होगा तो इंप्रूवमेंट का कोई चांस नहीं है
सीसी में जमीनी तौर पर जान पाते हैं कि प्रॉब्लम क्या है
Is mein Mehandi intention important hai
Scene action perform karna different different work mein
फीडबैक देना
जो एक्शन हमें पसंद है हम हर काम में उसी एक्शन को ढूंढते हैं
व्यापक-
हर एंगल से देखना
सतत करेंगे तो ऑटोमेटिक अली व्यापक हो जाएगा

CCE – RTE ACT 2009 मैं लागू हुआ
CCE के लक्ष्य-
1 बच्चे के हर पहलू का मूल्यांकन करना
2 बच्चे के तनाव को कम करना
3 यह मूल्यांकन को व्यापक और नियमित बनाता है
एक अच्छे विजन के साथ आगे बढ़ना
4 रचनात्मक शिक्षण
टीचर को क्रिएटिविटी से पढ़ाने का मौका भी मिलता है
5 निदान व उपचार में मदद मिलती है
प्रॉब्लम का पता चलता है
6 वृहद कौशल से कई स्किल्स का डेवलपमेंट हो सकता है

(छोटे-छोटे उद्देश्य के माध्यम से लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है)
उद्देश्य-
1 बाल केंद्रित शिक्षण करवाना
2 मूल्यांकन प्रक्रिया को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग बना लेना
3 शिक्षार्थी का विकास, अधिगम प्रक्रिया, अधिगम की गति, अधिगम परिवेश, इनका सही समय पर सही निर्णय लेना
4 बच्चे को आत्म मूल्यांकन का मौका देना
5 निदान का उपचार के माध्यम से बच्चे की उपलब्धि में सुधार करने के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है

रचनात्मक मूल्यांकन/ formative assessment व CCE मैं अंतर –

रचनात्मक में यह कहीं नहीं कहा गया है कि हर पहलू का मूल्यांकन करना है रचनात्मक किसी पर्टिकुलर पॉइंट पर होता है
जबकि CCE मैं हर एंगल में मूल्यांकन किया जाता है

CCE की विशेषताएं-
1 यह निरंतर चलता है
मूल्यांकन के आवधिक ( इंटरवल) पहलू का ध्यान रखा जाता है
2 यह व्यापक है अर्थात यह सर्वांगीण विकास पर बल देता है
3 so shaikshik mulyankan जीवन कौशल, दृष्टिकोण, मान्यताएं, कल्चरल एक्टिविटीज, कैपेसिटी

4 मूल्यांकन एक मानदंड के आधार पर होता है और इसमें कई तकनीक का उपयोग किया जाता है
जैसे बच्चा कैसा परफॉर्म कर रहा है कैसे क्वेश्चन पूछ रहा है कैसा आंसर कर रहा है इसमें बच्चे के स्टैंडर्ड को मेंटेन कैसे रखा जा सकता है टेक्निक का यूज करके हर एंगल को समझ जा सकता है

CCE के कार्य-
1 प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में मदद करता है
2
कमजोरियों का निदान करने में मदद करता है व्यक्तिगत शिक्षार्थियों की जांच भी करता है,
बच्चे खुद भी अपनी शक्ति या कमजोरी को जान सकते हैं सेल्फ इवेलुएशन कर सकते हैं
3 अति मान्यताएं दृष्टिकोण में बदलाव हो रहा है या नहीं यह देखना इसमें परिवर्तन को पहचानना
4 भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान.


✍🏻 मनीषा गुप्ता✍🏻

सतत और व्यापक मूल्यांकन
[Continuous and comprehensive evaluation]

🌸 सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) जिसे 2009 में भारत के शिक्षा का अधिकार अधिनियम के द्वारा निर्देशित किया गया था। सतत और व्यापक मूल्यांकन का प्रस्ताव भारत में राज्य सरकारों ,केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के द्वारा लाया गया था।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन इनिशियल स्टेज से लेकर फाइनल टेस्ट या रिजल्ट देता है। प्रत्येक परिस्थिति में हर समय लगातार मूल्यांकन करना आवश्यक होता है तभी हम व्यापक मूल्यांकन कर पाएंगे।

🌈 सतत मूल्यांकन➖ अधिगम के दौरान होने वाला मूल्यांकन यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें शिक्षार्थी का मूल्यांकन निरंतर होता रहता है। सतत अर्थात निरंतर बच्चे का शिक्षण सत्र की पूरी अवधि में मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। सतत मूल्यांकन के अंतर्गत बच्चे के संपूर्ण पक्षों का मूल्यांकन करना बच्चे की कमियों को पहचानना आता है जिसे संपूर्ण शिक्षण अधिगम के सत्र में निरंतर या लगातार मूल्यांकन किया जाता है।

🔹 सतत मूल्यांकन के अंतर्गत शिक्षार्थियों की अधिगम संबंधी समस्याओं का विश्लेषण करने के लिए इस मूल्यांकन का प्रयोग किया जाता है और इसके उपरांत उपचारात्मक शिक्षण भी प्रदान किया जाता है इस मूल्यांकन के अंतर्गत शिक्षार्थियों को शीघ्र प्रतिपुष्टि भी प्रदान कर दी जाती है।

🌈 व्यापक मूल्यांकन➖ ‘व्यापक ‘मूल्यांकन के अंतर्गत शिक्षार्थियों के वृद्धि और विकास प्रगति के साथ-साथ अन्य गतिविधियों को भी शामिल किया जाता है।
🍁 सतत और व्यापक मूल्यांकन➖ सतत और व्यापक मूल्यांकन छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर मूल्यांकन किया जाता है सतत और व्यापक मूल्यांकन में छात्रों के अधिगम के सभी पक्षों का आकलन किया जाता है यह सबसे ज्यादा प्रभावी आकलन होता है। सतत और व्यापक मूल्यांकन एक स्कूल आधारित मूल्यांकन की प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें छात्र के प्रगति, गुण, और विशेषताओं को भी शामिल किया जाता है जिसमें बच्चों का निरंतर मूल्यांकन के साथ-साथ शिक्षार्थियों के अन्य गतिविधियों का भी मूल्यांकन किया जाता है।

🌈 सतत और व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य➖

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन का मुख्य लक्ष्य बच्चे का कक्षा में अधिगम के दौरान ही उसके हर पहलू पक्षों का मूल्यांकन करना है।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन का यह भी लक्ष्य है कि यह मूल्यांकन बच्चे के तनाव को कम करता है।

🔹 यह मूल्यांकन को व्यापक और नियमित बनाता है।

🔹 इस मूल्यांकन से रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन की मदद से बच्चे का निदान और उपचार किया जा सकता है।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन का यह भी लक्ष्य है जिसमें बृहद कौशल वाले शिक्षार्थी का निर्माण भी किया जा सकता है। बृहद कौशल से तात्पर्य यह है कि बच्चे का निरंतर मूल्यांकन करने से बच्चे अपनी कमियों को पहचान कर इन कमियों को दूर करके और विभिन्न कौशल विकसित करके अन्य गतिविधियों के माध्यम से गुणों को विकसित कर लेते हैं जिससे एक ऐसे शिक्षार्थी का निर्माण होता है जो बृहद कौशल से परिपूर्ण होता है।

🌸लक्ष्य और उद्देश्य में अंतर🌸

लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे उद्देश्य बनाए जाते हैं और इन्हीं उद्देश्यों के आधार पर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

🍁 सतत और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य🍁

🔹 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को बाल केंद्रित करवाना।

🔹 मूल्यांकन की प्रक्रिया को अधिगम शिक्षण का अंग बना लेना।

🔹 शिक्षार्थी का विकास अधिगम की प्रक्रिया अधिगम गति अधिगम परिवेश के लिए सही समय पर सही निर्णय लेना।

🔹 बच्चे को आत्म मूल्यांकन का अवसर देना।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन का उपयोग विद्यार्थी का निदान और उपचार के माध्यम से छात्र की उपलब्धि में सुधार करने के लिए किया जाता है।

🌸 सतत और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं🌸

🔹’ निरंतर’ -CCE का निरंतर पहलू और मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखता है।

🔹 ‘व्यापक’ -व्यापक पहलू के अंतर्गत विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास ,व्यक्तित्व के हर पक्ष या पहलू का विकास ,क्योंकि प्रत्येक बच्चे का व्यक्तित्व अलग-अलग क्षेत्र में अलग अलग होता है।

🔹 इसमें विद्यार्थी के शैक्षिक पहलुओं के साथ-साथ सहशैक्षिक पहलुओं का मूल्यांकन शामिल किया गया है।

🌸 शैक्षिक पहलुओं के अंतर्गत पाठ्यक्रम क्षेत्रों या विशिष्ट विशेष क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है।
🌸 सहस शैक्षिक पहलुओं के अंतर्गत जीवन कौशल, दृष्टिकोण, मान्यताएं, गतिविधि, क्षमता, मूल्य आदि शामिल किया जाता है।

🔹 यह मूल्यांकन एक मानदंड के आधार पर होता है जिसमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

🌸 सतत और व्यापक मूल्यांकन के कार्य🌸

🔹 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन शिक्षकों को प्रभावी शिक्षण रणनीति व्यवस्थित तरीके से करने में मदद करता है‌।

🔹 निरंतर मूल्यांकन के द्वारा बच्चे की कमजोरियों का निदान या कमजोरियों का पता लगाने के लिए कार्य करता है और शिक्षकों को व्यक्तिगत बच्चे की जांच करने में मदद करता है।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन के माध्यम से छात्र भी अपनी शक्ति और कमजोरियों को जान सकते हैं।

🔹सतत एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चे के दृष्टिकोण और मान्यता में परिवर्तन की पहचान करने में भी मदद करता है।

🔹 सतत और व्यापक मूल्यांकन छात्रों को शैक्षिक और सह शैक्षिक क्षेत्रों में छात्रों की प्रगति के बारे में जानकारी प्रदान करके इसके परिणाम स्वरूप शिक्षार्थियों के भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लगाने का कार्य करता है।

🌸 उपरोक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सतत और व्यापक मूल्यांकन शैक्षिक और सह शैक्षिक दोनों पहलुओं पर विचार करता है। शैक्षिक मूल्यांकन के अंतर्गत रचनात्मक मूल्यांकन, योगात्मक मूल्यांकन, निदानात्मक मूल्यांकन अधिगम के लिए आकलन अधिगम का आकलन किया जाता हैं जिसके अंतर्गत मौखिक परीक्षा लिखित परीक्षण यूनिट टेस्ट त्रैमासिक परीक्षा अर्धवार्षिक परीक्षा वार्षिक परीक्षा और बच्चे के कक्षा में प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाता है।

जबकि सह शैक्षिक मूल्यांकन के अंतर्गत सामान्य ज्ञान पर्यावरण की जानकारी शारीरिक शिक्षा कला शिक्षा संगीत नैतिक शिक्षा नृत्य कंप्यूटर शिक्षा मूल्य शिक्षा को शामिल किया जाता है।

🍁 सतत और व्यापक मूल्यांकन निम्न तरीकों से सहायता करती है🍁➖

1️⃣ यह मूल्यांकन विद्यार्थी को आगे बढ़ने में मदद करती है।

2️⃣ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के माध्यम से बच्चे के तनाव को कम किया जा सकता है

3️⃣ यह मूल्यांकन व्यवस्थित तौर पर मूल्यांकन करने में मदद करती है जिससे नियमितता भी आती है।

4️⃣इस मूल्यांकन में निदान और उपचार होने का मौका मिलता है।

5️⃣इस मूल्यांकन से रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को अवसर प्राप्त होता है।

6️⃣ इस मूल्यांकन की सहायता से वृहद कौशल वाले शिक्षार्थियों का निर्माण होता है।

🌈🌸🍁💐🍁🌸🌈


✍ PRIYANKA AHIRWAR ✍️

📖सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन 📖

👉बच्चो के अधिगम का जब लगातार व्यापक मूल्यांकन किया जाता है तो उसे ”सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन” कहते हैं।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चे के लिए आवश्यक है इसके माध्यम से बच्चो मे जो भय होता है, परिक्षा के प्रति वह भय दूर हो जाता है।

👉सतत् मूल्यांकन :- सतत् किसी कार्य को निरंतर करते रहने वाली प्रकिया है।

👉व्यापक मूल्यांकन :-व्यापक का अर्थ है विस्तृत करना होता है।

🌀सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य :- 1️⃣बच्चे के हर पहलू का मूल्यांकन करना ।
2️⃣बच्चे के तनाव को कम करना ।
3️⃣ किसी कार्य को व्यापक और नियमित करना ।
4️⃣ रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है।
5️⃣ निदान एवं उपचार में मदद मिलती है।
6️⃣ वृहद् कौशल वाले छात्रों का निर्माण होता है।

🌀 सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य :-
1️⃣बालक केन्द्रित शिक्षण रखना।
2️⃣मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रकिया का अंग बनाना ।
3️⃣शिक्षार्थी का विकास, अधिगम प्रकिया अधिगम गति, अधिगम परिवेश, सही समय एवं सही निर्णय लेना ।
4️⃣बच्चो को आत्म मूल्यांकन का मौका देना ।
5️⃣निदान एवं उपचार के माध्यम से बच्चो की उपलब्धि मे सुधार करना ।

🌀सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताऐ :-
1️⃣निरंतर मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखना।
2️⃣व्यापक बच्चे का सर्वांगीण विकास करना।
3️⃣मूल्यांकन एक मापदंड के आधार पर होता है। एवं कई तकनीकों का उपयोग करना ।
4️⃣शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक पहलूओ का होना ।

🌀सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के कार्य :-
1️⃣प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने मे मदद करता है ।
2️⃣छात्रों की कमजोरी का निदान करना एवं व्यक्तिगत शिक्षार्थी की जांच करना ।
3️⃣बच्चे खुद भी अपनी शक्ति, कमियों की जानना ।
4️⃣दृष्टिकोण , मान्यता प्रकिया में परिवर्तन की पहचान करने मे मददगार हो ।
5️⃣भाविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लगाना ।

🌀 शिक्षक द्वारा किए जाने वाले प्रयास:-
1️⃣बच्चो के तनाव को कम करना।
2️⃣मूल्यांकन को व्यापक व नियमित बनाना है।
3️⃣निदान एवं उपचार कर सकते हैं।
4️⃣रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक द्वारा छात्रों को मौका दिया जाए ।
5️⃣वृहद् कौशल वाले छात्रों का निर्माण।


Date – 8/10 / 2020
📒 Nots by shanu sanwle 📒
सतत और व्यापक मूल्यांकन – CCE
Continuous and comprehensive
Evaluation
🔸🔷 CCE – RTE -ACT 2009
🔸 सतत और व्यापक मूल्यांकन _छात्रों के विद्यालय आधारित अवलोकन की एक प्रक्रिया हैं ।
🔸🔷 सतत का अर्थ
निरंतर चलने वाली प्रक्रिया ।
जिसमें छात्रों के हर दिन , हर समय, हर पल , के सभी पहलुओं को देखा जाता है बच्चा कैसे सीखते है क्या सोचता है उसकी सिखने क्षमता कैसी हैं सभी बातों को ध्यान‌ में रखकर । अवलोकन किया जाता है
🔸🔷 व्यापक का अर्थ
किसी कार्य को बड़े स्तर पर या विस्तुत रुप से करना । अगर हम किसी काम को व्यापक रूप से करना जानते हैं तो हम दूसरा काम भी कर लेंगे। चाहे हम उस काम को नहीं जानते हैं
व्यापक मूल्यांकन करने के लिए हमें सतत मूल्यांकन करना ही होगा।
व्यापक मूल्यांकन करने से ही बच्चे के बारे में पता चलेगा कि बच्चा किस विषय में कमजोर है किस विषय में अच्छा है तभी जाकर बच्चे को आगे बढ़ाया जाएगा अगर बच्चा कमजोर है तो उसका उपचार या निदान करेगें ।
🔸 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन तभी तक होगा जब तक फाइनल एग्जाम ना हो जाए ।
🔷 CCE goal / लक्ष्य
1) हर पहलुओं का मूल्यांकन करना
2) यह बच्चे के तनाव को कम करता हैं
3 ) रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है
4 ) निदान और उपचार में मदद मिलती है
निदान में बच्चों की कमियों का पता लगाया जाता है
उपचार बच्चों के कमियों को दूर किया जाता है
5 ) व्यापक और नियमित रूप से किया जाता है
6 ) बृहद कौशल वाले विद्यार्थियों का निर्माण 🔷CCE – purpose / उद्देश्य
1 बाल केंद्रित शिक्षण करना
2 मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग बना लेना
3 शिक्षार्थियों का विकास , अधिगम प्रक्रिया ,अधिगम गति, अधिगम परिवेश, इसके लिए सही समय पर सही निर्णय लेना ।
4 बच्चे को आत्म मूल्यांकन का मौका देना
5 निदान उपचार के माध्यम से बच्चों की उपलब्धि में सुधार के लिए मूल्यांकन प्र�


Date – 8/10 / 2020
📒 Nots by shanu sanwle 📒
सतत और व्यापक मूल्यांकन – CCE
Continuous and comprehensive
Evaluation
🔸🔷 CCE – RTE -ACT 2009
🔸 सतत और व्यापक मूल्यांकन _छात्रों के विद्यालय आधारित अवलोकन की एक प्रक्रिया हैं ।
🔸🔷 सतत का अर्थ
निरंतर चलने वाली प्रक्रिया ।
जिसमें छात्रों के हर दिन , हर समय, हर पल , के सभी पहलुओं को देखा जाता है बच्चा कैसे सीखते है क्या सोचता है उसकी सिखने क्षमता कैसी हैं सभी बातों को ध्यान‌ में रखकर । अवलोकन किया जाता है
🔸🔷 व्यापक का अर्थ
किसी कार्य को बड़े स्तर पर या विस्तुत रुप से करना । अगर हम किसी काम को व्यापक रूप से करना जानते हैं तो हम दूसरा काम भी कर लेंगे। चाहे हम उस काम को नहीं जानते हैं
व्यापक मूल्यांकन करने के लिए हमें सतत मूल्यांकन करना ही होगा।
व्यापक मूल्यांकन करने से ही बच्चे के बारे में पता चलेगा कि बच्चा किस विषय में कमजोर है किस विषय में अच्छा है तभी जाकर बच्चे को आगे बढ़ाया जाएगा अगर बच्चा कमजोर है तो उसका उपचार या निदान करेगें ।
🔸 सतत एवं व्यापक मूल्यांकन तभी तक होगा जब तक फाइनल एग्जाम ना हो जाए ।
🔷 CCE goal / लक्ष्य
1) हर पहलुओं का मूल्यांकन करना
2) यह बच्चे के तनाव को कम करता हैं
3 ) रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है
4 ) निदान और उपचार में मदद मिलती है
निदान में बच्चों की कमियों का पता लगाया जाता है
उपचार बच्चों के कमियों को दूर किया जाता है
5 ) व्यापक और नियमित रूप से किया जाता है
6 ) बृहद कौशल वाले विद्यार्थियों का निर्माण 🔷CCE – purpose / उद्देश्य
1 बाल केंद्रित शिक्षण करना
2 मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग बना लेना
3 शिक्षार्थियों का विकास , अधिगम प्रक्रिया ,अधिगम गति, अधिगम परिवेश, इसके लिए सही समय पर सही निर्णय लेना ।
4 बच्चे को आत्म मूल्यांकन का मौका देना
5 निदान उपचार के माध्यम से बच्चों की उपलब्धि में सुधार के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया करना ।
🔷 CCE , featurse / विशेषताएं
1 निरंतर चलता है मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है
2 व्यापक रूप से सर्वागीण विकास पर बल देता है
3 सहस शैक्षिक मूल्यांकन ,जीवन कौशल, दृष्टिकोण मान्यताएं , अलग-अलग गतिविधि क्षमता आदि बातो का पता चलता है ।
4 मूल्यांकन एवं मापदंड के आधार पर होता है
इनमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है
🔷 CCE , work / कार्य
1 प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में मदद करता है व्यवस्थित तरीके से।
2 कमजोरी का निदान करता है व्यक्तिगत शिक्षार्थियों की जांच करता हैं
3 बच्चे खुद भी अपनी शक्ति या कमजोरियों को जांच कर सकते हैं
4 दृष्टिकोण या मान्यता में परिवर्तन की पहचान
5 भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लगता है
🔷 सतत और व्यापक मूल्यांकन का शैक्षिक एवं सहस शैक्षिक पहलू
🔸 शैक्षिक मूल्यांकन
यह पाठ्यक्रम संबंधी पहलू है यह लेखन पठन के कौशलों में सुधार के लिए है
मौखिक एवं लिखित परीक्षण ,चक्रिय परीक्षण,
गतिविधि परीक्षण सभी विषयों के दैनिक कक्षा कार्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं
शैक्षिक मूल्यांकन रचनात्मक और योगात्मक दोनों तरह से होना चाहिए ।
🔸🔷 सह शैक्षिक मूल्यांकन
सामान्य ज्ञान की शिक्षा , आसपास पर्यावरण की शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कला संगीत नृत्य आदि की शिक्षा, कंप्यूटर के कौशल विकास पर केंद्रित है इन्हें
क्यूज प्रतियोगिता और गतिविधि के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है
🔷CCE, Student Help / छात्रों की मदद करता है।
1 बच्चे के तनाव को कम करता है
2 व्यवस्थित मूल्यांकन नियमिता में ।
3 निदान और उपचार का मौका मिलता है
4 रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका देता
5 बृहद कौशल वाले शिक्षार्थियों का निर्माण करता है


🟢 सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन🟢
🌟सतत्:- सतत् का अर्थ है लगातार । सतत् मूल्यांकन का मतलब है सीखने की प्रकिया का निरंतर अवलोकन करना।
🌟व्यापक:-इसमें हर अलग अलग क्षेत्र में मूल्यांकन होता है। इसका क्षेत्र विस्तृत होता है।
♦️लक्ष्य की प्राप्ति छोटे छोटे उद्देश्यों से होती है♦️
☄️सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य☄️
1️⃣हर पहलू का मूल्यांकन।
2️⃣बच्चों के तनाव को कम करना।3️⃣व्यापक और नियमित।
4️⃣ रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है।
5️⃣निदान और उपचार में मदद मिलती हैं।
6️⃣ वृहद कोशाल वाले शिक्षाथी का निर्माण।
🌟 सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य🌟
1️⃣बाल केंद्रित शिक्षण करवाना।
2️⃣ मूल्लाएंकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग बना लेना।
3️⃣ शिक्षार्थी का विकास,अधिगम प्रक्रिया,अधिगम की गति अधिगम परिवेश, के लिए सही समय पर सही निर्णय लेना।
4️⃣बच्चों को आत्म मूल्यांकन का मौका देना।
5️⃣निदान/उपचार के माध्यम से बच्चे की उपलब्धि में सुधार करना।
🗯️ सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं🗯️
1️⃣इसमें निरंतर मूल्यांकन के आवेधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है।
2️⃣व्यापक सर्वांगीण विकास पर बल देता है।
3️⃣सहशेक्षिक मूल्यांकन- जीवन कोसल, दृष्टिकोण, मानताए, गतिविधि
4️⃣मूल्यांकन मानदंड के आधार पर होता है इसमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
🌅 सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के कार्य🌅
1️⃣प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में मदद करता है।
2️⃣यह कमजोरी का निदान करने में मदद करता है इसमें शिक्षक व्यक्तिगत शिक्षार्थी की जांच भी करता है।
3️⃣बच्चे खुद भी अपनी कमजोरी या शक्ति की जांच कर सकता है।
4️⃣दृष्टिकोण/ मान्यता में परिवर्तन को पहचानने में मदद करता है कि परिवर्तन हो रहा है कि नहीं।
5️⃣ भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लगता है।
🌈 सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन दो प्रकार का होता है।🌈
1️⃣शैक्षिक मूल्यांकन
🅰️ रचनात्मक मूल्यांकन🅱️ योगात्मक मूल्यांकन
2️⃣ साहशेक्षिक मूल्यांकन
🔸 सामान्य मूल्यांकन
🔹आस पास का पर्यावरण
🔸शारीरिक शिक्षा
🔹कला
🔸संगीत
🔹 डांस
🔸 संस्कृति।
🌅🌅सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के दौरान शिक्षक को क्या करना चाहिए🌅🌅
1️⃣बच्चे के तनाव को कम करना।
2️⃣व्यवस्थित तौर पर मूल्यांकन करना।
3️⃣निदान व उपचार करना।
4️⃣ रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका दे ता है।
5️⃣वृहद कोशा ल वाले शिक्षार्थी का निर्माण करना।………. Raziya khan


🔆सतत व्यापक मूल्यांकन🔆 (continues and comprehensive evaluation)
सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) मूल्यांकन की एक प्रक्रिया थी जिसे 2009 में भारत की शिक्षा का अधिकार अधिनियम द्वारा निर्देशित किया गया था जैसे छठी से दसवीं कक्षा दसवीं कक्षा की छात्राओं के लिए और कुछ स्कूलों में 12वीं के लिए भारत में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा पेश किया गया था
सतत और व्यापक मूल्यांकन सीसीई छात्रों के स्कूल आधारित मूल्यांकन की एक प्रणाली को संदर्भित करता है यह मूल्यांकन की एक एक एक विकासात्मक प्रक्रिया है जो दो दोगुना उद्देश्यों पर जोर देती है व्यापक रूप से सीखने और दूसरों के व्यवहार और दूसरों के व्यवहार के और दूसरों के व्यवहार के व्यवहार के परिणामों पर निरंतरता निरंतरता है
इस योजना के अनुसार के अनुसार सतत शब्द छात्रों की वृद्धि और विकास को समझने और मूल्यांकन करने की निरंतर प्रक्रिया है

व्यापक का अर्थ है कि यह योजना छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक और सह शैक्षिक दोनों पहलुओं में होती है होती है व्यापक हर क्षैत्रो में होता है
◼ लक्ष्य और उद्देश्य में अंतर ◼
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे उद्देश्य बनाए जाते हैं और इन्हें उद्देश्यों के आधार पर लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य-
◾सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में हर पहलू का मूल्यांकन होता है
◾बच्चे के तनाव को कम करना
◾मूल्यांकन व्यापक और नियमित बनाता बनाता नियमित बनाता है
◾रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है
◾निदान और उपचार में मदद मिलती है
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य –
◾बाल केंद्रित शिक्षण रखना
◾मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग बनाना
◾शिक्षार्थी का विकास अधिगम प्रक्रिया अधिगम गति अधिगम परिवेश सही समय एवं सही निर्णय लेना
◾बच्चों को आत्म मूल्यांकन का मौका देना
निदान एवं उपचार के माध्यम से बच्चों की उपलब्धि में सुधार करना
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं-
◾निरंतर मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है
◾व्यापक सर्वांगीण विकास
◾सह शैक्षिक मूल्यांकन जीवन कौशल दृष्टिकोण मान्यताएं मान्यताएं गतिविधि |
◾मूल्यांकन एक मानदंड के आधार पर होता है ◾इसमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है
सतत व्यापक मूल्यांकन की कार्य-
◾प्रभावी शिक्षण रणनीति व्यवस्थित तरीके से करना
◾कमजोरी का निदान व्यक्ति का का का शिक्षार्थी की जांच करना
◾ बच्चे खुद भी अपनी शक्ति कमजोरी को जान सकते हैं
◾दृष्टिकोण मानवता में परिवर्तन को पहचान सकते हैं
◾ भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लग जाता जाता है
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के दो पहलू पहलू हैं
शैक्षिक – रचनात्मक योगात्मक सहशैक्षिक – सामान्य ज्ञान ,आस-पास , पर्यावरण शारीरिक शिक्षा कला संगीत नैतिक शिक्षा नित्य कंप्यूटर आदि आते हैं
🔶शिक्षक द्वारा किए जाने वाले प्रयास-
◾बच्चे के तनाव को कम करता है
◾व्यवस्थित मूल्यांकन नियमितता मे किया जाता है
◾ निदान और उपचार करता है
◾रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका देता है
◾बृहद कौशल बानी शिक्षार्थी शिक्षार्थी का निर्माण करना |


☀️ सतत और व्यापक मूल्यांकन☀️
continue comprehensive evaluation

⏺ सतत मूल्यांकन- सतत का अर्थ होता है लगातार या निरंतर या बार-बार, हर समय ।बालकों का सतत मूल्यांकन हम कक्षा अवलोकन के दौरान, कक्षा शिक्षण के दौरान हर समय करते हैं ।

⏺व्यापक मूल्यांकन- व्यापक मतलब हर क्षेत्र, हर पहलू, हर तरीके से ,संपूर्ण रुप से। बालक का हर क्षेत्र में हर पहलू में मूल्यांकन किया जाता है।

☀️ सतत और व्यापक मूल्यांकन बालक के सर्वांगीण विकास के लिए करते हैं ।

⏺ बालक को प्रतिपुष्टि देने के लिए सतत और व्यापक मूल्यांकन की जरूरत होती है ।

⏺सतत और व्यापक मूल्यांकन परिणाम के पहले होता है। इसमें यह जानने की कोशिश की जाती है कि क्या समस्या है इसका क्या कारण है और उसे कैसे ठीक करेंगे ।

⏺किसी कार्य को करने की शुरुआत से लेकर अंतिम चरण जहां तक की कार्य समाप्त नहीं हो जाता और परिणाम नहीं आ जाता तब तक हम हर समय, हर पल ,हर क्षेत्र का मूल्यांकन करते हैं।

⏺सतत और व्यापक मूल्यांकन शैक्षिक के साथ-साथ सह शैक्षिक पहलु का भी किया जाता है

⏺हम उस कार्य को बेहतर ढंग से कर पाते हैं जिसमें हमारा एक्शन या क्रिया अच्छी प्रकार से संचालित होती है ।

एक्शन या क्रिया- जिसे करने पर हमें मजा आता है।

☀️सतत और व्यापक मूल्यांकन शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत आया ।

☀️सतत और व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य –
1⃣बच्चे के हर पहलू का मूल्यांकन करते हैं ।

2⃣यह बच्चे के तनाव को कम करता है क्योंकि बार-बार करते हैं इसलिए।

3⃣ व्यापक और नियमित होता है।

4⃣ रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है क्योंकि कमियों को देखते हैं और स्थिति को देखकर आगे बढ़ते हैं।

5⃣ निदान और उपचार में मदद मिलती है।

6⃣वृहद् कौशल वाले शिक्षार्थी का निर्माण कर सकते हैं क्योंकि इसमें विद्यार्थी का हर जगह ,हर समय ,हर पहलू का मूल्यांकन किया जाता है ।बालक के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखा जाता है।

☀️ किसी भी लक्ष्य को हम छोटे-छोटे उद्देश्य स प्राप्त करते हैं।

☀️ सतत और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य

1⃣बाल केंद्रित शिक्षण करना।

2⃣ मूल्यांकन को अधिगम प्रक्रिया का अंग बना लेना।

3⃣ शिक्षार्थी का विकास, अधिगम प्रक्रिया, अधिगम गति, अधिगम प्रवेश के लिए सही समय पर सही निर्णय लेना।

4⃣ बच्चे को आत्म मूल्यांकन या सो मूल्यांकन का मौका देना।

5⃣ निदान या उपचार के माध्यम से बच्चे की उपलब्धि ,उसमे सुधार के लिए मूल्यांकन करना।

☀️ सतत और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं

1⃣निरंतर मूल्यांकन के अवधिक पहलु का ध्यान रखा जाता है क्योकि क्योंकि कभी-कभी एक ही कार्य को करते रहने पर हमारी उत्तेजना में कमी होने लगती है इसलिए समय-समय पर हमारी उत्तेजना को बढ़ाने के लिए हमें अपनी क्रियाविधि में परिवर्तन करते रहना चाहिए

2⃣व्यापक मूल्यांकन हमारे सर्वांगीण विकास पर बल देता है। सह शैक्षिक मूल्यांकन किया जाता है जीवन कौशल ,दृष्टिकोण, मान्यता, गतिविधि क्षमता का ध्यान रखा जाता है ।

4⃣मूल्यांकन एक मानदंड के आधार पर होता है ।इसमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है ।

☀️सतत और व्यापक मूल्यांकन के कार्य

1⃣प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में और व्यवस्थित तरीके से संचालित करने में मदद करता है ।

2⃣कमजोरी का निदान, व्यक्तिगत शिक्षार्थी की जांच करता है ।

3⃣बच्चे खुद भी अपनी शक्ति या कमजोरी को जान सकते हैं।

4⃣ दृष्टिकोण या मान्यता में परिवर्तन की पहचान करता है। भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लग जाता है।

☀️ सतत और व्यापक मूल्यांकन शैक्षिक और सह शैक्षिक दोनों प्रकार से होता है

⏺शैक्षिक में दो प्रकार से रचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन

⏺सह शैक्षिक मूल्यांकन में बालक के सामान्य ज्ञान ,अपने आसपास और पर्यावरण की जानकारी, शारीरिक शिक्षा की जानकारी, कला ,संगीत ,नैतिक शिक्षा ,कंप्यूटर आदि का टेस्ट, क्विज ,प्रतियोगिता और क्रिया के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है

⏹ सतत और व्यापक मूल्यांकन बच्चे के विकास में कैसे सहायता करता है ?

1⃣बच्चे के तनाव को कम करता है

2⃣व्यवस्थित तौर पर मूल्यांकन करने में मदद करता है और नियमितता लाता है

3⃣ निदान और उपचार का मौका रहता है ।

4⃣रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका देता है ।

5⃣वृहद् कौशल वाले शिक्षार्थी का निर्माण करता है।

Notes by – Ravi kushwah


💫 Notes by➖ Rashmi Savle 💫

सतत और व्यापक मूल्यांकन
Continuous and Comprehensive Evaluation

सतत और व्यापक मूल्यांकन कहता है कि यदि आप जिस कार्य को को करते हैं और उस कार्य के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं या Action करते हैं तो उस एक्शन से जुड़े सभी कार्य को हम अच्छे से कर सकते हैं चाहे वह कार्य पहले किया गया हो या न किया गया हो |

यदि हमें पर्यावरण ऐसा दिया जाए जैसा कि हम चाहते हैं तो वो हमारे एक्शन का सबसे अच्छा पार्ट होता है और यही सतत् मूल्यांकन है और यदि सतत् मूल्यांकन किया जाता है तो स्वत: ही व्यापक मूल्यांकन हो जाता है जरूरत है उस व्यापक मूल्यांकन की |

जब सतत् रूप से व्यापक मूल्यांकन किया जाता है तो उसके हर एक पक्ष को देखते हुए, उसके हर एक पक्ष के बारे में सोचते हुए राय बनाते हैं और उसके अनुसार तय करते हैं कि क्या आवश्यक है और क्या आवश्यक नहीं है |

शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत CCE की बात कही गई जिसमें बच्चे का हर पक्ष से मूल्यांकन करना आवश्यक है और ये तब तक चलता है जब तक कि उद्देश्य पूरा न हो जाए |

सतत् और व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य ➖

(1) इसके अन्तर्गत बच्चे के हर पहलू का हर पक्ष से मूल्यांकन किया जाता है कि बच्चे को क्यों , कैसे और क्या सिखाना है |

(2) ये बच्चे के तनाव को कम करता है उन्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है उनकी कमियों का पता चलता रहता है और उनको दूर किया जाता है |

(3) ये मूल्यांकन को व्यापक और नियमित बनाता है जो कि अच्छा तरीका है |

(4) इसमें शिक्षक को रचनात्मकता से पढा़ने का मौका मिलता है और रुचि उत्पन्न होती है तथा रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है |

(5) इसमें निदान और उपचार में मदद मिलती है बच्चे की कमियों को दूर करके उनका उपचार किया जाता है |

(6) इसमें हम वृहद कौशल विद्यार्थी का निर्माण कर सकते हैं तथा बच्चे के हर पक्ष का हर क्षेत्र का मूल्यांकन किया जाता है |

सतत् और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य➖

(1) बाल केन्द्रित शिक्षण करवाना तथा बच्चे की रूचियों का और उनके विचारों का ध्यान रखना |

(2) मूल्यांकन की प्रक्रिया को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का हिस्सा या अंग बना लेना |

(3) अधिगम की गति, अधिगम की प्रक्रिया, अधिगम का विकास और अधिगम परिवेश इन सभी चीजों के लिए सही समय पर सही निर्णय लेना |

(4) बच्चे को आत्म मूल्यांकन का अवसर प्रदान करना कि वे अपने तथ्यों को स्वंम समझकर उनको इम्पलीमेन्ट कर सकें |

(5) इसके माध्यम से बच्चे की उपलब्धि में सुधार होता है क्योंकि इसमें बच्चे की हर समस्या का निदान और उपचार किया जाता है अर्थात
” निदान और उपचार के माध्यम से बच्चे की उपलब्धि में सुधार के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है |

सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं ➖

ये निरंतर चलता है और बच्चे के आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है और बच्चे के हर क्षेत्र का मूल्यांकन किया जाता है और इसके लिए आवश्यक है कि बच्चे मे रूचि कैसे उत्पन्न की जाए |

(2) ये व्यापक मूल्यांकन है जो बच्चे के सर्वांगीण विकास का कार्य करता है बच्चे में क्या, कितना और कैसे विकास होगा इसका मूल्यांकन किया जाता है |

(3) इसके द्वारा बच्चे का सह-शैक्षिक मूल्यांकन किया जाता है जिसमें बच्चे के जीवन कौशल, दृष्टिकोण, मान्यताएँ, गतिविधियों और सोच आदि सभी पहलू से मूल्यांकन किया जाता है |

(4) ये मूल्यांकन का एक मानदण्ड (Standard) के आधार पर होता है इसमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है जैसे पुरूस्कार देना, दण्ड देना, उत्सुकता लाना, रूचि उत्पन्न करना आदि |
इसमें अलग अलग तकनीकों का प्रयोग करके बच्चे का इम्प्रूवमेंट किया जाता है |

सतत् और व्यापक मूल्यांकन के कार्य ➖

(1) ये प्रभावी शिक्षण रणनीति बनाने में मदद करता है कि बच्चे को कैसे पढा़ना है |

(2) ये बच्चे की कमजोरियों का निदान करने में मदद करता है और शिक्षक को बच्चे के व्यक्तिगत व्यवहार की जांच करने में मदद करता है |

(3) बच्चे खुद भी अपनी शक्ति व कमजोरी को जान सकते हैं और उसे दूर कर सकते हैं |

(4) दृष्टिकोण और मान्यता मे जो परिवर्तन है इसकी पहचान करने में मदद करता है कि परिवर्तन हो रहा है या नहीं |

(5) भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और ये तय किया जा सकता है कि बच्चे की क्षमता क्या है वह आगे क्या कर सकता है |

(6) ये शैक्षिक मूल्यांकन और सह-शैक्षिक मूल्यांकन दोनों करता है —-
शैक्षिक अर्थात जो स्कूली शिक्षा या शिक्षण से जुड़ा होता है दो प्रकार का होता है
रचनात्मक
योगात्मक

तथा सह-शैक्षिक मतलब जो शिक्षण के दौरान किया जाता है जिसमें,

🔹 सामान्य ज्ञान

🔹 अपने आस पास के पर्यावरण की जानकारी

🔹 शारीरिक शिक्षा की जानकारी

🔹 कला शिक्षा की जानकारी

🔹 संगीत

🔹 नैतिक शिक्षा

🔹 नृत्य

🔹 कम्प्यूटर

आदि के लिए टेस्ट ,काम्पीटिशन क्विज , एक्टिविटी आदि का आयोजन किया जाता है |

ये एक शिक्षक की मदद या सहायता कैसे कर सकता हैं➖

(1) ये बच्चे के तनाव को कम करता है |

(2) व्यवस्थित मूल्यांकन में नियमितता लाता है |

(3) इसमें अवसर रहते हैं कि निदान और उपचार कैसे करना है |

(4) रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को अवसर प्रदान करता है |

(5) यह वृहद या बड़े कौशल वाले विद्यार्थी का निर्माण करता है |

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Notes by-Ranjana sen
🔆सतत व्यापक मूल्यांकन🔆
(continues and comprehensive evaluation)
सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) मूल्यांकन की एक प्रक्रिया थी जिसे 2009 में भारत की शिक्षा का अधिकार अधिनियम द्वारा निर्देशित किया गया था जैसे छठी से दसवीं कक्षा दसवीं कक्षा की छात्राओं के लिए और कुछ स्कूलों में 12वीं के लिए भारत में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा पेश किया गया था
सतत और व्यापक मूल्यांकन सीसीई छात्रों के स्कूल आधारित मूल्यांकन की एक प्रणाली को संदर्भित करता है यह मूल्यांकन की एक एक एक विकासात्मक प्रक्रिया है जो दो दोगुना उद्देश्यों पर जोर देती है व्यापक रूप से सीखने और दूसरों के व्यवहार और दूसरों के व्यवहार के और दूसरों के व्यवहार के व्यवहार के परिणामों पर निरंतरता निरंतरता है
इस योजना के अनुसार के अनुसार सतत शब्द छात्रों की वृद्धि और विकास को समझने और मूल्यांकन करने की निरंतर प्रक्रिया है

व्यापक का अर्थ है कि यह योजना छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक और सह शैक्षिक दोनों पहलुओं में होती है होती है व्यापक हर क्षैत्रो में होता है
◼ लक्ष्य और उद्देश्य में अंतर ◼
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे उद्देश्य बनाए जाते हैं और इन्हें उद्देश्यों के आधार पर लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के लक्ष्य-
◾सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में हर पहलू का मूल्यांकन होता है
◾बच्चे के तनाव को कम करना
◾मूल्यांकन व्यापक और नियमित बनाता बनाता नियमित बनाता है
◾रचनात्मक शिक्षण को बढ़ावा मिलता है
◾निदान और उपचार में मदद मिलती है
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य –
◾बाल केंद्रित शिक्षण रखना
◾मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग बनाना
◾शिक्षार्थी का विकास अधिगम प्रक्रिया अधिगम गति अधिगम परिवेश सही समय एवं सही निर्णय लेना
◾बच्चों को आत्म मूल्यांकन का मौका देना
निदान एवं उपचार के माध्यम से बच्चों की उपलब्धि में सुधार करना
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं-
◾निरंतर मूल्यांकन के आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है
◾व्यापक सर्वांगीण विकास
◾सह शैक्षिक मूल्यांकन जीवन कौशल दृष्टिकोण मान्यताएं मान्यताएं गतिविधि |
◾मूल्यांकन एक मानदंड के आधार पर होता है ◾इसमें कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है
सतत व्यापक मूल्यांकन की कार्य-
◾प्रभावी शिक्षण रणनीति व्यवस्थित तरीके से करना
◾कमजोरी का निदान व्यक्ति का का का शिक्षार्थी की जांच करना
◾ बच्चे खुद भी अपनी शक्ति कमजोरी को जान सकते हैं
◾दृष्टिकोण मानवता में परिवर्तन को पहचान सकते हैं
◾ भविष्य की सफलता का पूर्वानुमान लग जाता जाता है
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के दो पहलू पहलू हैं
शैक्षिक – रचनात्मक योगात्मक सहशैक्षिक – सामान्य ज्ञान ,आस-पास , पर्यावरण शारीरिक शिक्षा कला संगीत नैतिक शिक्षा नित्य कंप्यूटर आदि आते हैं
🔶शिक्षक द्वारा किए जाने वाले प्रयास-
◾बच्चे के तनाव को कम करता है
◾व्यवस्थित मूल्यांकन नियमितता मे किया जाता है
◾ निदान और उपचार करता है
◾रचनात्मक शिक्षण के लिए शिक्षक को मौका देता है
◾बृहद कौशल बानी शिक्षार्थी शिक्षार्थी का निर्माण करना |


Socialization

Notes by-Ranjana sen

💥 समाजीकरण (SOCIALIZATION) 💥
समाजीकरण वह प्रक्रिया है जब कोईसमाजीकरण व्यक्ति सामाजिक / सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और विभिन्न समूह का सदस्य बनता है और समाज के नियमो और मानदंडो का पालन करता है | समाज के साथ अन्त: क्रिया करता है|
एक इंसान (व्यक्ति) अलग- अलग प्रकार का समाजीकरण करता है|

समाजीकरण के प्रकार –

🔶प्राथमिक समाजीकरण (primary socilaization )
🔶दितीयक समाजीकरण (Secondery socialization)
🔶प्रत्याशात्मक समाजीकरण (Anticipatory socialization )
🔶पुन: समाजीकरण ( Re-socialization )
🔶संगठनात्मक समाजीकरण ( Organisational )
🔶समूह समाजीकरण ( Group socialization )
🔶लैंगिक समाजीकरण (Gender socialzation )
🔶जातीय समाजीकरण (Racial socialization )

1.प्राथमिक समाजीकरण (Primary socialization)-
समाजीकरण की शुरूआत जब बच्चा जन्म लेता है| तो समाजीकरण शुरू हो जाता है| और परिवार , मित्रो से प्रभावित होता है| भविष्य के सभी सामाजिक संबंधो के लिए आधार निर्धारित करता है|

  1. द्वितीयक समाजीकरण ( Secondery socialization ) – बालक उन व्यवहारो और कौशलो को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है इसमें विद्यालय पार्क पड़ोस आदि शामिल हैं
  2. प्रत्याशात्मक समाजीकरण (Anticipatory socialization)
    समाजीकरण को संदर्भित करता है जिसमें एक व्यक्ति भविष्य के पदों व्यवसाय और सामाजिक रिश्तों के लिए पूर्वाभ्यास करता है
  3. पुन: समाजीकरण ( Resocialization)
    पुन: सामाजीकरण पूर्ण व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों का अनुभव के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है
  4. संगठनात्मक समाजीकरण (Organisational socialization)
    संगठनात्मक समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है
    6.समूह समाजीकरण (Group socialization )
    समूह समाजीकरण जो किसी व्यक्ति के सहकर्मी समूह पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता हमें उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है
    7.लैंगिक समाजीकरण (Gender socialization )
    लैंगिक समाजीकरण उस व्यवहार और व्यवहार के शिक्षण को संदर्भित करता है जो बालक या बालिका के लिंग के आधार पर उपयुक्त माना जाता है लड़के लड़कों के गुण और लड़कियां लड़कियों की घटती हैं
  5. जातीय समाजीकरण (Racial socialization )
    जातीय समाजीकरण एक वह प्रक्रिया है प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चे एक विशिष्ट जातीय समूह के व्यवहार धारणा मूल्यों और दृष्टिकोण को प्राप्त करते है|

✍🏻manisha gupta✍🏻

🌈 समाजीकरण 🌈

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है एवं समाज के मानदंडों का पालन करता है समाज के साथ मानवीय अंतः क्रिया करता है और समाज के अपेक्षाओं को सीखता है। यही समाजीकरण है। समाजीकरण आवश्यक इसलिए है क्योंकि यदि यदि समाजीकरण नहीं होगा तो हम किसी से बात कैसे कर पाएंगे यह एक दूसरे के साथ खुलकर कैसे रह पाएंगे।समाज में रहकर ही हमे समाजीकरण के द्वारा ज्ञान एवं कौशलों को सीख कर समाज के अन्य लोगों के साथ व्यवहार करने में मदद करता है।

🌸प्रत्येक व्यक्ति का समाज को देखने का नजरिया अलग अलग होता है जिससे व्यक्तियों का सामाजिकरण भी अलग अलग होता है।

🌸 जैसे कोई बच्चा प्रारंभ में जन्म लेता है तो वह नहीं जानता है घर के बारे में समाज के बारे में समाज में किस प्रकार से व्यवहार करना है वह यह सब अपने परिवार के लोगों ,रिश्तेदारों के द्वारा,अंतः क्रिया करके अच्छा आचरण करना ,व्यवहार करना बताने से ही सीखता है।बच्चे के अच्छे आचरण एवं व्यवहार कौशल ज्ञान को सिखाने के लिए सामाजिकरण अत्यंत आवश्यक है।

🌸समाज में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अपनी भूमिका होती है इसे समाजीकरण की प्रक्रिया में प्ले करना है यही सामाजिकरण है।

🌸 समाजीकरण के प्रकार🌸

1️⃣ प्राथमिक सामाजिकरण[primary socialization]➖ समाजीकरण की शुरुआत प्राथमिक समाजीकरण से ही होता है जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके साथ उसके माता- पिता भाई-बहन मित्र और आसपास जो व्यक्ति साथ में रहते हैं उससे बच्चा प्रभावित होता है , अर्थात बच्चे के प्रारंभिक समय में जो उनके साथ रहते हैं उनसे सीखता है। प्राथमिक समाजीकरण ही बच्चे के भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों के लिए आधार निर्धारित करता है इसीलिए प्राथमिक सामाजिकरण आवश्यक है।

2️⃣ द्वितीयक सामाजिकरण[secondary socialization]➖ बच्चा परिवार के बाद विद्यालय, पार्क, आस-पड़ोस के लोगों से व्यवहार करना सीखता है वह विद्यालय में शिक्षा के साथ व अन्य लोगों के साथ अंतर किया कर के समाजीकरण करता है परिवार एक छोटे-छोटे समाज के रूप में जबकि विद्यालय पार्क पड़ोस एक बड़े समाज के रूप में होता है बच्चा परिवार के बाद विद्यालय में ही कैसे व्यवहार करना है वह सीखता है और यही सीखने की प्रक्रिया द्वितीयक सामाजिकरण कहलाती है।🔹 जैसे विद्यालय पार्क, पड़ोस इत्यादि🔹

3️⃣ प्रत्याशात्मक समाजीकरण[anticipatory socialization]➖ भविष्य के लिए जो हम किसी पद कार्य या व्यवसाय के लिए जो कार्य करते हैं या प्रत्याशा रखते हैं और यही कार्य करके समाजीकरण करते हैं यही प्रत्याशात्मक समाजीकरण है।

4️⃣ पुनः समाजीकरण[re-socialization]➖.
पूर्व व्यवहार को छोड़कर ने व्यवहार करने की प्रक्रिया पुनःसामाजिकरण कहलाती है नए अनुभवों के आधार पर जो परिवर्तन होता है इस परिवर्तन को वह स्वीकार करता है।

5️⃣ संगठनात्मक समाजीकरण[organisational socialization]➖ समाजीकरण के अंदर व्यक्ति समाज में एक संगठन के पद पर अपनी संगठनात्मक भूमिका का निर्वाहन करके व्यवहार करते हैं यही संगठनात्मक सामाजीकरण है।

6️⃣ समूह सामाजीकरण[group socialization]➖ समूह सामाजिकरण के अंतर्गत किसी ने किसी आधार पर व्यक्तित्व के आधार पर ही एक समूह का निर्माण होता है जैसे पसंद के आधार पर ,रुचि के आधार पर। समूह सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति का पारिवारिक वातावरण के साथ-साथ व्यक्तित्व और व्यवहार भी प्रभावित होता है।

7️⃣ लैंगिक सामाजिकरण[gender socialization]➖. समाजीकरण के अंतर्गत लिंग के आधार पर ही सामाजिकरण किया जाता है इस सामाजिकरण का मुख्य आधार ही लिंग है।

लिंग के आधार पर ही व्यक्तियों में विभिन्नताये देखने को मिलती हैं लिंग के आधार पर ही पुरुष पुरुषों के गुण एवं महिला महिला के गुण के आधार पर ही सामाजिकरण करते हैं।

8️⃣ जातीय समाजीकरण[recital socialization]➖ जातीय समाजीकरण के अंतर्गत रहन-सहन और तरीका दृष्टिकोण मूल्य या किसी चीज के प्रति व्यवहार को प्रदर्शित करना है और उसके अनुसार भूमिका निभाना ही जातीय सामाजिकरण कहलाता है।

🌸🍁🌈🍁🌸


🔸 समाजीकरण/ socialization 🔸 व्यक्ति सामाजिक / सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है समाज के नियमों मानदंडों का पालन करता है और समाज के साथ अंतः क्रिया करता है समाजीकरण के प्रकार ➡️ 1️⃣ प्राथमिक समाजीकरण ➖ इसमें समाजीकरण की शुरुआत होती है बच्चा जन्म के बाद जिसके साथ रहता है वही है प्राथमिक समाजीकरण और भविष्य के सामाजिक संबंधों को निर्धारित करता है 2️⃣ द्वितीयक समाजीकरण➖ द्वितीयक समाजीकरण में बच्चा उन व्यवहारों और कौशलों को सीखने की प्रक्रिया में दर्शाता है इसमें बच्चा बड़े समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में रहता है जैसे विद्यालय पार्क पड़ोस गांव कॉलोनी में कैसा व्यवहार किया जाए यह द्वितीयक समाजीकरण कहलाता है 3️⃣ प्रत्याशात्मक सामाजिकरण ➖ भविष्य में पद व्यवसाय नौकरी के लिए करता है यह सामाजिकरण वह है जिसमें पहले जो हम पूर्व में अभ्यास करते हैं और बाद में उसे हम प्राप्त कर लेते हैं 4️⃣ पुनः सामाजिकरण ➖ इसमें पुराने व्यवहार को छोड़कर नए लोग या नए व्यवहार को हम स्वीकार करते हैं इस परिवर्तन को हम स्वीकार करते हैं और लागू करते हैं यही पुनः सामाजिकरण है 5️⃣ संगठनात्मक समाजीकरण ➖ संगठनात्मक सामाजिकरण वह है जिसमें हम अपना पद या रोल निभाते हैं 6️⃣ समूह सामाजिकरण ➖ समूह सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसमे परिवार या वातावरण के अलावा उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है 7️⃣ लैंगिक समाजीकरण ➖ जिसमें बालक या बालिका के लिंग को आधार माना जाता है जिसमें लड़की लड़कियों के गुण और लड़का लड़कों के गुण सीखता है 8️⃣ जातीय समाजीकरण ➖ इसके द्वारा हम एक बच्चे के विशिष्ट जाति समूह के व्यवहार धारणा मूल्यों और दृष्टिकोण ओं को जानते हैं notes by pragya shukla


वंदना शुक्ला
🌸 सामाजिकरण socialization🌸

समाजीकरण पर प्रक्रिया जिसके द्वारा कोई व्यक्ति सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है समाज के नियमों मानदंडों का पालन करता है समाज के साथ अंतर क्रिया करता है ।
समाजीकरण आवश्यक है क्योंकि अगर आज हम एक साथ रह रहे हैं तो सिर्फ समाजीकरण की वजह ही क्योंकि हमारे मानदंड नियम व्यवहार आपस में मिलकर के ही बनते हैं और आपस में ही हम चीजों का निर्माण करते हैं।

🔆समाजीकरण के प्रकार

1️⃣ प्राथमिक सामाजिकरण primary socialization

सामाजिकरण की शुरुआत प्राथमिक सामाजिकरण से ही होती है ।
शुरुआत में जब बच्चा जन्म लेता है तो सबसे पहले अपने आसपास माता-पिता को देखता है उनके साथ रहता है ।
इसमें परिवार और मित्र आते हैं।
जहां जब बच्चा जन्म लेता है तब परिवार में या परिवार का कोई मित्र जो उस बच्चे के पास ज्यादा रहता है वह प्राथमिक सामाजिकरण में आता है क्योंकि बच्चा उस को नियमित देखता है उस से सीखता है ।
प्राथमिक सामाजिकरण से ही बच्चे का भविष्य निर्धारित होता है इसलिए प्राथमिक सामाजिकरण महत्वपूर्ण होता है।
प्राथमिक सामाजिकरण से ही बच्चे के भविष्य के संबंधों का निर्धारण होता है ।
बच्चे को आधार मिलता है ।
इसमें परिवार इसलिए आता है क्योंकि ज्यादातर बच्चा जन्म के बाद अपने परिवार अपने माता पिता के साथ रहता है।

2️⃣ द्वितीयक समाजीकरण secondary socialization – अब बच्चा बड़ा हो रहा है और तब परिवाद के बाद जो आता है यानी आस-पड़ोस ,पार्क, विद्यालय अद्वितीय सामाजिकरण में आता है।
परिवार के बाद बच्चा विद्यालय जाता है जहां अध्यापक और छात्रों के साथ उसका समाजीकरण होता है।
परिवार के बाद बच्चा अपना ज्यादा समय विद्यालय में व्यतीत करता है ।

3️⃣ प्रत्याशात्मक सामाजिकरण anticipatory socialization

अपने भविष्य के लिए जब हम कुछ चाहते हैं और उसके लिए कुछ करते हैं तब जो सामाजिकरण बनता है उसे इस प्रत्याशात्मक सामाजिकरण कहते हैं ।
जैसे फ्यूचर में कोई पोस्ट जॉब पावर चाहिए तो आज जो हम और आप एक प्रत्याशा के साथ सामाजिकरण करते हैं वह इस सामाजिकरण के अंतर्गत आता है।
इस सामाजिकरण में आज तो आपको कुछ नहीं मिलेगा लेकिन अपने उद्देश्य की तैयारी आज से ही कर रहे हैं ।

4️⃣ पुणे सामाजिकरण resocialization – पुराने व्यावहार को छोड़कर नए लोग या व्यवहार को करते हैं यह पुनः सामाजिकरण कहलाता है।

5️⃣ संगठनात्मक सामाजिकरण organisational socialization – इस सामाजिकरण के अंदर जो व्यक्ति किसी संगठन में किसी पद पर कार्य करता है तो वह अपने पद के हिसाब से या उस पद की गरिमा को देखते हुए उस संगठन में सामाजिकरण करता है या अंत: क्रिया करता है।

6️⃣ समूह सामाजिकरण group socialization – हम सब कहीं ना कहीं एक समूह में रहते हैं एक कार्य करते हैं और उस समूह के हिसाब से अंत: क्रिया करते हैं सामाजिकरण करते हैं जैसे दोस्तों का समूह जहां हम मस्ती करते हैं घूमते हैं लेकिन जो व्यवसाय होता उसमें उसके आधार पर अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।

7️⃣ लैंगिक सामाजिकरण gender socialization – बालक एवं बालिका अपने लिंग के आधार पर अपने उपयुक्त व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं।

जैसे लड़के लड़कों के गुण को प्रदर्शित करता और व्यवहार करता है और लड़की एक लड़की के गुण को प्रदर्शित करती है और व्यवहार करती है।

8️⃣ जातिय समाजीकरण racial socialization – जाति के आधार पर सामाजिकरण होता है ।
मनुष्य जाति के अनुसार अपने मूल्यों ,व्यवहार, दृष्टिकोण को धारण करता है ।और अपने जातीय के अनुसार अपने रहन-सहन मैं परिवर्तन करता है ।

🔅 धन्यवाद


Notes by➖ Rashmi Savle🌺 समाजीकरण 🌺 **************

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति सामाजिक या सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा बहुत से अलग अलग समूहों का सदस्य बनता है इसके साथ साथ वह समाज के नियमों और मानदंडों का पालन करता है एवं समाज के साथ अन्त: क्रिया करता है | समाज में प्रत्येक व्यक्ति अलग अलग समूहों से जुड़े होने के कारण अपनी भूमिका का निर्वाहन करता है और उस भूमिका का निर्वाहन करते हुए समाज के व्यक्तियों के साथ अपने मत व्यक्त करता है अपने विचार साझा करता है एक प्रकार से समाज के व्यक्तियों के साथ अन्त: क्रिया करता है या हम ऐसा कह सकते हैं कि सामाजिक अन्त: क्रिया करता है |

समाजीकरण के प्रकार :➖
समाजीकरण के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं——

(1) प्राथमिक समाजीकरण
Primary Socialization

बच्चा जन्म लेने के बाद जब बाहरी वातावरण में प्रवेश करता है तो उसके परिवार से उसकी समाजीकरण की शुरुआत होती है जिसके अंतर्गत ऐसे लोग आते हैं जो उसके साथ है या पास है जैसे मित्र, परिवार आदि | और यही एक ऐसा आधार है जो यह निर्धारित करता है कि भविष्य में आपका सामाजिक संबंध कैसा होगा |

(2) द्वितीयक समाजीकरण
Secoundry Socialization

परिवार के बाद बच्चा जिनसे घुलता मिलता है वह द्वितीयक समाजीकरण है जिसके अंतर्गत विद्यालय ,पार्क, आस पड़ोस आदि |
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि चीजें उल्टी हो जाती है जिनके साथ साझेदारी करना अत्यंत कठिन हो जाता है और बच्चा अपना नया नियम बना लेता है वह परिस्थिति के बीच समझौता करने में कन्फ्यूज हो जाता है |

(3) प्रत्याशात्मक समाजीकरण
Anticipatory Socialization

किसी न किसी रुप में अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए अपने भविष्य के विचारों को एक रूप में अपनी प्रत्याशा में व्यक्त करना ही प्रत्याशात्मक समाजीकरण है |

(4) पुनः समाजीकरण
Resocialization

पुराने व्यवहार को छोड़कर नये लोगों के साथ अपना व्यवहार स्थापित करना | जैसे नये दोस्त बनाना, लड़की शादी के बाद नये घर में जाकर अपना पुनः समाजीकरण करती है आदि |और नये अनुभव को स्वीकार करते हुए उनका क्रियान्वयन करना | यही पुनः समाजीकरण है |

(5) संगठनात्मक समाजीकरण
Organizational Socialization

समाज के किसी संगठन के पद के अनुसार अपनी भूमिका का निर्वाहन करना और उस संगठनात्मक भूमिका का निर्वाहन करने के लिए जो व्यवहार सीखते हैं और उसी व्यवहार के साथ अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं यही संगठनात्मक समाजीकरण है |

(6) समूह समाजीकरण
Group Socialization

किसी न किसी चीज का समूह बनाकर उस समूह में चलने के लिए अपने व्यक्तित्व को बनाना और उसके अनुसार अपनी भूमिका का निर्वाह करना ही समूह समाजीकरण है |

(7) लैंगिक समाजीकरण
Gender Socialization

इस प्रकार के समाजीकरण में लिंग को आधार माना जाता है जिसमें लिंग मुख्य होता है |

(8) जातीय समाजीकरण
Recital Socialization

किसी चीज के प्रति अपना व्यवहार, अपनी धारणा, अपना दृष्टिकोण या अपने मूल्यों के प्रति अपने व्यवहार को प्रदर्शित करना और उसके अनुसार भूमिका का निर्वाह करना ही जातीय समाजीकरण है |
जब हम किसी पार्टीकुलर जाति से विलोंग करते हैं जिसमें हम व्यवहार, धारणा, दृष्टिकोण, और मूल्यों को प्राप्त करते हैं वह जातीय समाजीकरण है |

🌺🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌺


Notes by➖ Puja kumari

🔅 समाजीकरण (Socialization)

समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमे कोई व्यक्ति समाजिक / सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है। संमुहो के सदस्य बनाता है। समाज के नियमो, मानदंडों का पालन करता है। समाज के साथ अन्तःक्रिया (interaction) लरत है।

समाजीकरण के प्रकार
समाजीकरण के अलग अलग प्रकार है जो निम्न है➖

  1. प्राथमिक समाजीकरण (primary socialization)
  2. द्वितीयक समाजीकरण ( secondery socialization )
  3. प्रत्याशात्मक समाजीकरण ( Anticipatory socialization )
  4. पुनः समाजीकरण ( Resocialization)
  5. संगठनात्मक समाजीकरण ( Oraganisation socialization )
  6. समूह समाजीकरण ( Group socialization )
  7. लैंगिक समाजीकरण (Gender socialization)
  8. जातिय समाजीकरण (Racial socialization)

1.प्राथमिक समाजीकरण(Primery socialization) ➖
बच्चा जब जन्म लेता है, उसके बाद से समाजीकरण शुरू हो जाता है। जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, मित्र आदि। भविष्य के जो सामाजिक संबंध है, वो समाजीकरण पर ही decide होते है।

  1. द्वितीयक / गौण समाजीकरण (Secondery socialization)➖
    द्वितीयक / गौण समाजीकरण में बच्चे उस व्यवहार को सीखते है, जो बच्चे को व्यवहारिक रूप से सभ्य बनाते है। जैसे- विद्यालय, खेल का मैदान, पास-पड़ोस।
  2. प्रत्याशात्मक समाजीकरण (Anticipatory socialization)➖
    प्रत्याशात्मक समाजीकरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है।जिसमें व्यक्ति भविष्य के पदों, व्यवसाय करना चाहते है। उसको आगे बढ़ाने के लिये अभी से practice करते है। 4.पुनःसमाजीकरण( Resocialization) ➖
    पुराने समाज को छोड़कर नए समाज मे रहने जाते है, तो वहाँ के समाज मे अपना पुनः समाजीकरण की स्थापना करते है।
  3. संगठनात्मक समाजीकरण (Organisation socialization)➖
    इस समाजीकरण में व्यक्ति किसी न किसी पद पर रहता है, तो उस पद के हिसाब में अपना organisation करते है। जैसे – मैनेजर, clerk, चपरासी आदि सब अपने हिसाब से कार्य करते है।
  4. समूह समाजीकरण (Group socialization)➖
    हम सब एक समूह में रहते है। इसमें हर जगह पर अपनी एक persionality होती है जिसके आधार पर लोगो का व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है।
  5. लैंगिक समाजीकरण ( Gender socialization)➖
    लिंग के आधार पर भी विभिन्न प्रकार की भिन्नताये पाई जाती है। जैसे लड़का है, तो लड़के का गुण अपनायेगा। यदि लड़की है तो लड़की के गुण को अपनाएगी। 8.जातिय समाजीकरण ( Racial socialization) ➖
    जाति के आधार पर भी समाजीकरण होता है। जाति के आधार पर व्यवहार, मुल्य, धरना, दृष्टिकोण भी अलग-अलग होता है। जैसे- कोई हिन्दू है तो वो अपने भगवान को नाम पुकारते हैं, कोई मुस्लिम है तो वो अपने अलाह को पुकारते है।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸Thank you 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


✍🏻Notes By-Vaishali Mishra

🔆 सामाजिकरण (socialization)🔆➖

यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और विभिन्न समूह के सदस्य बनाता है।
समाज के नियमों और मापदंडों का पालन करता है।
और समाज के साथ अंतर क्रिया करता है।
किसी भी कार्य को करने में समाज को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

🔅 सामाजिकरण के प्रकार
(Types of socialization)

सामाजिकरण के अलग-अलग प्रकार हैं*➖

✓1 प्राथमिक सामाजिकरण (primary socialization)
✓2 द्वितीयक सामाजिकरण (secondary socialization)
✓3 प्रत्याशात्मक सामाजिकरण (Anticipatery socialization)
✓4 पुनः सामाजिकरण( re socialization)
✓5 संगठनात्मक सामाजिकरण ( organisational socialization)
✓6 समूह सामाजिकरण ( group socialization)
✓7 लैगिक सामाजिकरण (sexual socialization)
✓8 जातीय सामाजिकरण (cast socialization)

▪️1 प्राथमिक सामाजिकरण (primary socialization)

प्राथमिक सामाजिकरण तात्कालिक परिवार और मित्रों से प्रभावित होता है और भविष्य के सभी सामाजिक संबंधों के लिए आधार निर्धारित करता है।

▪️2 द्वितीयक सामाजिकरण (secondary socialization)
द्वितीयक सामाजिकरण बालक की उन व्यवहारों व कौशलों को सीखने की प्रक्रिया को दर्शाता है जो समाज के भीतर एक छोटे समूह के सदस्य के रूप में उपयुक्त है इसमें विद्यालय, पार्क, पड़ोस आदि शामिल है।

▪️3 प्रत्याशात्मक सामाजिकरण (Anticipatery socialization)
सामाजिकरण की उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें एक व्यक्ति भविष्य के पदों व्यवसाय और सामाजिक रिश्ते के लिए पूर्वा अभ्यास करता है।

▪️4 पुनः सामाजिकरण (re socialization)
पुनः सामाजिकरण पूर्व व्यवहार पैटर्न और सजगता को छोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है तथा नए लोगों व अनुभवों के आधार पर परिवर्तन को स्वीकार करता है।

▪️5 संगठनात्मक सामाजिकरण (organisational socialization)
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कर्मचारी अपनी संगठनात्मक भूमिका ग्रहण करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल सीखता है।

▪️6 समूह सामाजिकरण ( group socialization)
यह वह प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के सहकर्मी समूह, पारिवारिक वातावरण के बजाय वयस्कता में उसके व्यक्तित्व और व्यवहार को प्रभावित करता है।

▪️7 लैगिक सामाजिकरण (sexual socialization)
यह उस व्यवहार और व्यवहार के शिक्षण को संदर्भित करता है जो बालक या बालिका के लिंग के आधार पर उपयुक्त माना जाता है। लड़के, लड़कों के गुण सीखते हैं और लड़कियां,लड़कियों के गुण सीखती हैं।

▪️8 जातीय सामाजिकरण(cast socialization)
जातीय सामाजिकरण को एक विकासात्मक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके द्वारा बच्चे एक जातीय समूह के व्यवहार, धारणाओं,मूल्यों और दृष्टिकोण ओं को प्राप्त करते हैं।


Samjikran(socialization)=iska arth hota hai samj ke sath anthkriya krna
Samjikrn ek aisi pirkriya hai jiske duara viyakti samajik tha Sanskritk chetra me pirvesh krta hai tha samho ka ek sakriye sadasye bun jata hai or samj ke sath anthkriya krke samaj ke niyamo or mapdando ka palan krta hai.
}Samaj me sabka ek apna role hota hai jisko wo nibhata hai.
}Samajikran ke pirkar》
1>pirathmik Samajikran- Balak me samajikran ki suruat yahi se hoti hai.jo log balak ke janam se hi uske saath hote hai wo uske pirathmik samajikrn ka hissa hote hai jaise maa-baap,dada-dadi,parivaar or mitra.bhavisya ke samajik sambandh isi se nirdahrit hote hai.
2>dutiyak Samajikran-school, park, padosh ye dutiyak samajikrn ke under ate hai.
3>pirtyastmak Samajikran-iske under hum bhavisye ko dekhte hue jo karye krte hai.jiski suruwat hum abhi se krte hai jaise job pane hum ctet ki tyari hum unacdamy se kr rahe hai.
4>punhasamjikran-purane vyvhaar ko chodkar naye logo se jo vyvhaar sikhte hai.jaise hum jub job ke lie ek rajya se dusre rajya me jate hai to hum waha ki bhasa or Sanskriti seekh jate hai.
5>sangthnatmak samajikran-kisi sangathan me rahkar samajikran krna kisi ek role ko nibhana.
6>samhoo Samajikran-jaha hum kisi samho me rahkar.vyaktitua ke adhar pr pirbhavit krna.jaise whatsapp group,frnds group,society ke group me.
7>langik Samajikran-ye ling ke adhar pr hota hai.
8>jatiye Samajikran-iske under hum kisi chij ke pirt vyvhar,dharna,mulye,dirstikon ko apnate hai.


सामाजिकरण socialization
सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है
समाज के नियमों और मानदंडों का पालन करता है
समाज के साथ अंतर क्रिया interaction करता है
सामाजिकरण के प्रकार
1 प्राथमिक सामाजिकरण primary socialization
इसमें सामाजिकरण की शुरुआत होती है
जैसे परिवार मित्र
वे सब लोग जो जन्म से बच्चे के साथ रहते हैं वह प्राथमिक सामाजिकरण का हिस्सा माने जाएंगे
भविष्य के सामाजिक संबंध इसी से डिसाइड होते हैं
2 द्वितीयक सामाजिकरण secondary socialization
Jaise Vidyalay Pak pados
Ismein confliction hota hai जैसे बच्चे को स्कूल में सिखाया जाता है कि टोबैको इज इंजीनियर्स टू हेल्थ और बच्चा घर पर पापा आया भैया को टोबैको को खाता देखता है
3 प्रत्याशआत्मक सामाजिकरण anticipatory socialization
भविष्य में पद व्यवसाय के लिए जो हम कार्य करते हैं
जिसके लिए अभी से प्रैक्टिस की जाती है
4 Puna samajikaran resocialization
Bring a change in behaviour
पुराने व्यवहार को छोड़कर नए लोगों का आना नए व्यवहार को अपनाना परिवर्तन को अपनाना
5 sangathanatmak samajikaran organisational socialization
Ek sangathan ke liye Gyan ya Kaushal sikhana
Ek organisation mein apna roll nibhaanaa
Har organisation mein apna ek pad aur usi pad per Apne roll ko nibhaanaa
6 समूह सामाजिकरण group socialization
जहां दो या दो से अधिक लोग समूह बनाकर कोई कार्य करते हैं
सिंपल तौर तरीका या किसी बेसिस पर ग्रुप को बनाना
किसी ना किसी पर्सनालिटी व्यक्तित्व के आधार पर प्रभावित करना

  1. लैंगिक सामाजिकरण gender socialization
    लिंग के आधार पर विभिन्नता है
    लड़की लड़कों वाले गुण सीखते हैं और लड़कियां लड़कियों के गुण सीखते हैं
    8 jatiy samajikaran racial socialization
    प्रत्येक समाज की मान्यताएं कल्चर होता है उसी के आधार पर व्यवहार धारणा मूल्य दृष्टिकोण को रखना और अपना ना

By:- chahita acharya


ASSESSMENT AND EVULATION

Notes by➖Puja kumari

🌸 आकलन और मूल्यांकन ( ASSESSMENT AND EVULATION )

आकलन ( Assessment )

◆ आकलन आँकड़ो का विश्लेषण है।
◆ आकलन छोटे-छोटे स्तर पर होता है।
◆ आकलन कक्षा के हर सप्ताह में किया जा सकता है।
◆ आकलन में बच्चों की कमियों का पता लगाकर उसे सुधार लाया जाता है।

आकलन का मुख्य उद्देश्य

▪️अधिगम में सुधार लाना।
▪️बच्चे की कमियों के पता लगाना।
▪️अभिभावकों को बताना।
▪️समस्याओं को दूर करना।
▪️आकलन रचनात्मक या निर्माणात्मक से जुड़ा होता है।
▪️आकलन सतत एवं मूल्यांकन से जुड़ा होता है।
▪️आकलन में, जैसे- mock test देते है तो हमारा आकलन होता है, फिर उसमें कहाँ कमी है उसको सुधार करने का मौका मिलता है।

मूल्यांकन ( Evulation )
◆ मूल्यांकन का संबंध बच्चे की उपलब्धि से है।
◆ इसे योगात्मक ( Summative ) भी कहा जाता है।
◆ मूल्यांकन में बच्चे ने किस सीमा तक ज्ञान प्राप्त किया। ये जानकारी प्राप्त करते है।
◆बच्चे ने अधिगम में कितना उन्नति और प्रगति का पता करते है।
◆शैक्षिक उद्देश्य कितनी सफल हुई है।
◆बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का और अधिगम प्रक्रिया का मूल्यांकन होता है।

🔅 मूल्यांकन का उद्देश्य

▪️इसमे व्यक्तित्व विभिन्नता का पता चलता है।
▪️शिक्षक की प्रभावशीलता का भी पता चलता है।
▪️इसमे बच्चे के आगे के विकास में मदद मिलती है।
▪️जो ज्ञान प्राप्त किया है,उसे जांचना।
▪️विकास की रुकावट का पता चलता है।
▪️बच्चे के अधिगम हेतु प्रेरित करता है।
▪️पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय करना ।
▪️शिक्षण विधि में सुधार करना।
▪️सहायता सामग्री की उपयोगिता को जाँचना।
▪️छात्रो की योग्यता आधरित वर्गीकरण करना।

🔅 रचनात्मक / निर्माणात्मक आकलन और योगात्मक आकलन में अंतर ( Difference Between Creative / Formative assessment & Summative assessment )

■रचनात्मक आकलन का प्रयोग शिक्षण प्रक्रिया की दशा को ज्ञात करने के लिए होता है, जबकि योगात्मक आकलन में शिक्षण प्रक्रिया को सफलता या असफलता का पता लगाने में किया जाता है।

▪️रचनात्मक आकलन अधिगम के दौरान किया जाता है, जबकि योगात्मक आकलन में एक निश्चित अवधि के बाद या अंत मे किया जाता है।

▪️रचनात्मक आकलन में अधिगम के लिए आकलन होता है, लेकिन योगात्मक आकलन में अधिगम का आकलन होता है।

▪️रचनात्मक आकलन में छात्रों को पृष्ठपोषण प्रदान करते है, लेकिन योगात्मक आकलन में छात्रों को ग्रेड में परिणाम देते है।

▪️रचनात्मक आकलन में कहाँ समस्या है? वहाँ सुधार की करवाते है, लेकिन योगात्मक आकलन में कितना सुधार हुआ है final result के रूप में बताते है।

🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅Thank you 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


03/10/2020

Notes by➖ Rashmi
Savle

आकलन और मूल्यांकन
Assessment & Evolution

आकलन ➖
आकलन के द्वारा आंकडो़ं का विश्लेषण किया जाता है आकलन का उद्देश्य अधिगम में सुधार करना ,तथा छात्रों की कमियों को समझना, अभिभावकों को बताना और उन कमियों को दूर करना आकलन है ये निर्माणात्मक मूल्यांकन से जुड़ा होता है |
आकलन एक प्रकार से छोटा छोटा मूल्यांकन ही है आकलन सतत और व्यापक मूल्यांकन के अन्तर्गत आता है |

मूल्यांकन ➖
मूल्यांकन छात्रों की उपलब्धि से जुड़ा है मूल्यांकन आकलन का अंतिम चरण है जिसमें हम विश्लेषित करते हुए संश्लेषित करते हैं मूल्यांकन योगात्मक का एक रूप है |

मूल्यांकन क्यों करते हैं➖

🌸 मूल्यांकन से ये पता लगाया जा सकता है कि छात्र ने या बच्चे ने किस प्रकार से किस स्तर पर ज्ञान प्राप्त किया है |

🌸 इससे बच्चे की उन्नति और प्रगति का पता लगाया जा सकता है |

🌸 शैक्षिक उद्देश्य कितनी सफल हुई है शिक्षा का ढंग कितने अच्छे से परिपक्व हुए है बच्चे के समस्त क्षेत्र समस्त शारीरिक अंगों का मूल्यांकन किया जाता है उसके संपूर्ण व्यक्तित्व का एंव समस्त अधिगम प्रक्रिया का पता लगाने के लिए मूल्यांकन किया जाता है |

मूल्यांकन के प्रकार➖

1⃣ रचनात्मक मूल्यांकन➖

कक्षा में अधिगम के रूप में आकलन तथा अधिगम के लिए आकलन किया जाता है इसमें बच्चे की क्षमता का पता लगाया जाता है इसको संरचनात्मक निर्माणात्मक आदि नामों से जाना जाता है |

(1) रचनात्मक मूल्यांकन में शिक्षण प्रक्रिया की दशा और उसकी स्थिति का पता लगाया जाता है |

(2) रचनात्मक मूल्यांकन अधिगम के दौरान कक्षा में किया जाता है |

(3) इसमें अधिगम के लिए आकलन किया जाता है |

(4) इसका कार्य छात्रों की पृष्ठभूमि का पालन किया जाता है|

(5) बच्चे में कहाँ सुधार की आवश्यकता है इसका पता लगाया जाता है |

2⃣ योगात्मक मूल्यांकन➖

(1) यह अधिगम का आकलन करता है यह वर्ष के अंत में किया जाता है |

(2) इसमें शिक्षण प्रक्रिया कितनी असफल या सफल रही इसका अध्ययन किया जाता है |

(3) इसका कार्य बच्चे को ग्रेड या परिणाम प्राप्त करवाना है |

(4) यह बच्चे में कितना सुधार हुआ है इसका आकलन करता है |

🌸 मूल्यांकन के उद्देश्य➖

(1) इससे बच्चों की वैयक्तिक भिन्नता का पता चलता है

(2) वैयक्तिक भिन्नता के साथ साथ यह शिक्षण की प्रभाशालीता को भी बताता है कि शिक्षण कितना सीखा गया है |

(3) बच्चों के मूल्यांकन से बच्चे के अग्रिम विकास में भी मदद मिलती है |

(4) इसके साथ साथ बच्चे ने जो ज्ञान हासिल किया है उस ज्ञान को जांचने में मदद मिलती है |

(5) हासिल ज्ञान को जांचने के बाद ज्ञान के विकास में जो रुकावट है उसका पता चलता है |

(6) अधिगम हेतु बच्चों को कैसे प्रेरित किया जाता है
इसका पता लगाया जाता है उनके कमजोर हिस्से को आंककर उसके संपूर्ण विकास का पता लगाया जाता है |

(7) यह पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय करता है |

(8) शिक्षण विधि में सुधार करना कि कैसे हम अपने तरीके को अच्छे से व्यक्त कर सकते हैं बच्चे को कैसे समझ आता है बच्चे के डाउट पाइन्ट को दूर करना और अनुभव को अन्य रूप देना |

(9) शिक्षण सहायक सामग्री की उपयोगिता का पता लगाना, जो सहायक हो उसका प्रयोग करना |

(10) छात्रों की योग्यता के आधार पर वर्गीकरण करना कि क्या आधार है और क्यों आवश्यक है उसके अनुसार उनको उस समूह में रखना |

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✍🏻Menka patel ✍🏻
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🌈आकलन और मूल्यांकन🌈

🌈आकलन-
आकलन आंकड़ों का विश्लेषण है आकलन का मुख्य उद्देश्य अधिगम में सुधार लाना बच्चों की कमियों को समझना तथा ⭐आकलन सतत एवं व्यापक मूल्यांकन से जुड़ा हुआ है
⭐आकलन हम हर समय करते हैं
⭐आकलन को रचनात्मक में निर्माणात्मक के आकलन भी कहते हैं

🌈 मूल्यांकन –
⭐मूल्यांकन का संबंध बच्चों की उपलब्धि से है
⭐मूल्यांकन को योगात्मक भी कहते हैं ⭐इसमें हम यह पता करते हैं कि बच्चे ने किस सीमा तक ज्ञान प्राप्त किया है

👉उद्देश्य की प्राप्ति उन्नति और प्रकृति का पता करते हैं
👉 शैक्षिक उद्देश्य कितनी सफल हुई है
👉 बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व अधिगम प्रक्रिया का मूल्यांकन आवश्यक है

🌈 मूल्यांकन के उद्देश्य

⭐ व्यक्तिक विभिन्नता का पता चल जाता है
⭐ यह शिक्षा की प्रभावशीलता
⭐ आगे के विकास में मदद मिलती है
⭐ विकास के रुकावट का पता चलता है
⭐ अधिगम को प्रेरित करना
⭐ पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय करना
⭐ शिक्षण विधि में सुधार करना
⭐ सहायक सामग्री की उपयोगिता को जांचना
⭐ योग्यता आधारित वर्गीकरण

🌈 रचनात्मक मूल्यांकन – क्या मूल्यांकन कक्षा के दौरान होता है ऐसे हम अधिगम के रूप में आकलन कहते हैं और अधिगम के लिए आकलन कहते हैं इसमें बच्चे की क्षमता का विकास करना इसे रचनात्मक मूल्यांकन संरचनात्मक मूल्यांकन सृजनात्मक मूल्यांकन कहते हैं
बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है और शिक्षण प्रक्रिया की दशा क्या है या ज्ञात करना आसान रहता है यह ह मूल्यांकन में अधिगम के दौरान करते हैं तथा पृष्टि पोषण का ध्यान रखना बच्चे को आगे लेकर चलना

🌈 योगात्मक मूल्यांकन – इसमें शिक्षण प्रक्रिया कितने सफल रही या कितना असफल रही इस मूल्यांकन के अंत में निश्चित अवधि के बाद ज्ञात किया जाता है तथा अधिगम का आकलन भी कहते है इसमें ग्रेड परिणाम से निश्चित करते हैं और इसमें क्या पता चलता है कि कितना सुधार हुआ है

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आकलन और मूल्यांकन
Assessment & Evaluation

आकलन-आंकड़ों का विश्लेषण करना

आकलन का उद्देश्य-

अधिगम में सुधार लाना,
बच्चों की कमियों को पहचानना और
सुधार करना
अभिभावकों को बताना
आकलन छोटा-छोटा मूल्यांकन है
मूल्यांकन – बच्चे की उपलब्धि का पता लगाना लगाता है

मूल्यांकन क्यों करते हैं

बच्चे ने किस सीमा तक या किस स्तर तक ज्ञान प्राप्त किया
कितनी उन्नति और कितनी प्रगति की इसका पता चलता है शैक्षिक उद्देश्य कितना सफल हुआ है
बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व का और संपूर्ण अधिगम प्रक्रिया का मूल्यांकन होना चाहिए

मूल्यांकन का उद्देश्य क्या है

वैयक्तिक विभिन्नता का पता चलता है
शिक्षण की प्रभावशीलता का पता चलता है
बच्चे के आगे के विकास में मदद मिलती है
बच्चे ने जो ज्ञान हासिल किया उसे जांचता हैं।
विकास की रुकावट का पता चलता है
बच्चों को अधिगम हेतु प्रेरित करता है
पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय करना
शिक्षण विधि में सुधार करना सहायक सामग्री की उपयोगिता की जांच करना
बच्चों की योग्यता आधारित वर्गीकरण करना

रचनात्मक /निर्माणात्मक
मूल्यांकन (creative /formative)

अधिगम के रूप में आकलन अधिगम के लिए आकलन शिक्षण प्रक्रिया की दशा ज्ञात करना
अधिगम के दौरान आकलन
छात्रों का पृष्ठ पोषण करना
कहां सुधार की आवश्यकता है

योगात्मक मूल्यांकन( summarize)

अधिगम का आकलन
अंतिम परिणाम
शिक्षण प्रक्रिया कितनी सफल या असफल रही
अंत , निश्चित अवधि के बाद अधिगम का आकलन
ग्रेड, परिणाम देना
कितना सुधार हुआ है

Notes by- Ravi kushwah


✍🏻Notes By-Vaishali Mishra

🔆 आकलन और मूल्यांकन🔆
[Assessment and Evaluation]

🔅 आकलन➖ सूचना संग्रहण तथा उस पर विचार विमर्श की प्रक्रिया है, जिन्हें हम विभिन्न माध्यमों से प्राप्त कर ये समझा सकते हैं कि विद्यार्थी क्या जानता है, समझता है, अपने शैक्षिक अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को परिणाम के रूप में व्यक्त कर सकता है जिसके द्वारा छात्र अधिगम में वृद्धि होती है ।

  • यह आंकड़ों का विश्लेषण है।
  • यह सतत एवम् व्यापक आंकलन से जुड़ा होता है।
    *आंकलन एक छोटा छोटा मूल्यांकन ही है।
  • यह रचनात्मक एवम् निर्मानत्मक होता हैं।

🔅 आकलन के उद्देश्य

*अधिगम में सुधार लाना
*बच्चे की कमियों को समझना एवम् अभिभावकों को बताना ।

  • कमियों को दूर करना।

🔅 मूल्यांकन➖ मूल्यांकन अवलोकन मापन या प्रदर्शन परीक्षण से प्राप्त आंकड़ों के द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया है।
मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधिगम की उपलब्धि का पता लगाया जा सकता है।
मूल्यांकन आकलन प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है या शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंतिम सोपान मूल्यांकन है।

मूल्यांकन अध्यापन एवं अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।

🔅 मूल्यांकन के उद्देश्य➖ निम्न प्रकार है।

1 मूल्यांकन प्रक्रिया से शिक्षकों को छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नता के बारे में पता चलता है।

2 शिक्षण की प्रभावशीलता का पता चलता है।

3 मूल्यांकन से बच्चों के अग्रिम विकास में मदद मिलती है।

4 छात्रों को जो ज्ञान हासिल हुए हैं उन्हें जांच ने में शिक्षकों को मदद मिलती है।

5 विकास में आने वाली रुकावटो या अवरोधों का पता चलता है।

6बच्चों के कमजोर पहलुओं का मालूम चलता है जिससे अधिगम को ठीक तरह से प्रेरित किया जा सकता है।

7 पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय किया जा सकता है।

8 शिक्षण विधि में सुधार करना या प्रभावी या उपयुक्त शिक्षण विधि को प्रयोग में लाने का ज्ञान (शिक्षक को अपने अनुभव को नया रूप देना)

9 सहायक सामग्री की उपयोगिता का ज्ञान।

10 छात्रों की योग्यता आधारित वर्गीकरण करना।

🔅 मूल्यांकन क्यों किया जाता है
यह जानने के लिए कि

*बच्चे नहीं कितनी सीमा तक ज्ञान प्राप्त किया।

  • बच्चे की उन्नति एवं प्रगति।
  • शैक्षिक उद्देश्य कितना सफल हुआ।
  • बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व और पूरी अधिगम प्रक्रिया का मूल्यांकन।

🔆 रचनात्मक तथा योगात्मक आकलन) Formative & Summative Assessment Difference➖🔆

रचनात्मक आकलन क्या है | What is Formative Assessment

रचनात्मक आकलन का कार्य शिक्षण प्रक्रिया की दशा का ज्ञान कराना होता है. ये आकलन शिक्षण प्रक्रिया के दौरान लगातार होता है. इसका प्रयोग अधिगम के लिए आकलन के रूप में किया जाता है. रचनात्मक आकलन का कार्य छात्रों का पृष्ठपोषण प्रदान करना है. इसके द्वारा विद्यार्थी को ये पता लगता है कि उसे कहाँ सुधार की आवश्यकता है.

योगात्मक आकलन क्या है | What is the Summative Assessment

योगात्मक आकलन का कार्य शिक्षण प्रक्रिया कितनी सफल रही इसका ज्ञान कराना होता है. ये सदैव एक निश्चित अवधि के पश्चात होता है. योगात्मक आकलन “अधिगम के आकलन” के रूप में किया जाता है. इसका कार्य छात्र को ग्रेड व परिणाम प्रदान करना होता है. इसके द्वारा विद्यार्थी को यह पता लगता है कि उसमे कितना सुधार किया गया है.

रचनात्मक तथा योगात्मक आकलन में क्या अंतर है | Difference between Formative and Summative

रचनात्मक आकलन का प्रयोग शिक्षण प्रक्रिया की दशा का ज्ञान करने के लिए होता है जबकि योगात्मक आकलन का प्रयोग शिक्षण प्रक्रिया कितनी सफल रही इसका ज्ञान करने के लिए होता है.

रचनात्मक आकलन शिक्षण प्रक्रिया के दौरान लगातार होता है जबकि योगात्मक आकलन निश्चित अवधि के बाद होता है.

रचनात्मक आकलन का प्रयोग “अधिगम के लिए आकलन” के रूप में किया जाता है जबकि योगात्मक आकलन का प्रयोग “अधिगम का आकलन” करने लिए किया जाता है.

रचनात्मक आकलन का कार्य छात्रों का पृष्ठपोषण प्रदान करना है जबकि योगात्मक आकलन का कार्य छात्रों को ग्रेड और परिणाम प्रदान करने का होता है.

रचनात्मक आकलन द्वारा विद्यार्थी को ये पता लगता है कि उसे कहाँ सुधार की आवश्यकता है जबकि योगात्मक आकलन द्वारा विद्यार्थी को ये पता लगता है कि उसने कितना सुधार किया है।


आकलन एवं मूल्यांकन
Assessment and evaluation

  1. आकलन
    इसमें आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है
    शिक्षा में सुधार किया जा सकता है
    कमियों को समझ सकते हैं एवं अभिभावक से बात करके सुधार कर सकते हैं
    आकलन एक छोटा मूल्यांकन है
    जैसे
    रचनात्मक निर्माणात्मक सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
  2. मूल्यांकन
    इसमें यह देखा जाता है है कि कितनी उपलब्धि हासिल हुई है
    Evaluation is the end process of assessment
    जैसे
    योगात्मक आकलन
    मूल्यांकन क्यों करते हैं?
    1.Ismein yah dekha jata hai ki bacche ne kis Seema Tak Gyan prapt Kiya hai
  3. बच्चे की कितनी उन्नति और प्रगति हुई है
  4. Shekshik uddeshy kitne Safal hue hain
    4 इसमें संपूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है
    5 पूरी अधिगम प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जाता है

मूल्यांकन का उद्देश्य
1 बच्चों में व्यक्तिक भिन्नता का पता चलता है individual differences
2 effective teaching kitni Hui hai ya batata hai
जैसे अगर सारे बच्चे फेल हो रहे हैं तो यह सिस्टम का फेलियर है
3 बच्चे की आगे की विकास में मदद करता है
4 बच्चे ने जो ज्ञान हासिल किया है उसको जांचने में मदद करता है performance evaluation
5 बच्चे के विकास में जो परेशानी है उसका पता चलता है
6 अधिगम हेतु बच्चे को किस जगह प्रेरित करना है वह बताता है
बच्चे को कमजोर पॉइंट पर मोटिवेट करना
7 पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय करना
8 शिक्षण विधि में सुधार करना, अनुभव को एक नया रूप देना teaching methods
9 सहायक सामग्री की उपयोगिता को जांचना
10 छात्रों की योग्यता आधारित वर्गीकरण करना जैसे सीटेट में 9 प्लस हो तो क्वालीफाई हो अगर उससे कम है तो अनक्वालिफाइड माना जाएगा

रचनात्मक /संरचनात्मक/ निर्माणात्मक/ creative/ formative assessment
1अधिगम के रूप में आकलन
2अधिगम के लिए आकलन, assessment for learning
3 shikshan prakriya ki dasha gyat karna
4 अधिगम के दौरान छात्रों का पृष्ठ पोषण करना उनको पालना आगे बढ़ाना
5 कहां सुधार की आवश्यकता है यह देखना

योगात्मक/ summative assessment

  1. Shikshan prakriya kitni Safal ya asafal Rahi yah dekha jata hai
  2. अधिगम का आकलन, assessment of learning
  3. अधिगम के अंत में या निश्चित अवधि के बाद आका जाता है
    4 बच्चे को ग्रेड परिणाम देना
  4. यह देखना कि बच्चे में कितना सुधार हुआ है

By- chahita acharya


🔅 आकलन और मूल्यांकन🔅 आकलन ➖ इसमें आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है आकलन का उद्देश्य – सुधार लाना ,कमियों को समझना अभिभावक को बताना आकलन एक छोटा मूल्यांकन है आकलन रचनात्मक निर्माणात्मक है यह सतत व्यापक मूल्यांकन है कक्षा के दौरान भी किया जा सकता है मूल्यांकन ➖ मूल्यांकन वास्तव में बच्चों की उपलब्धि है मूल्यांकन निर्धारित पाठ्यक्रम की समाप्ति पर किया जाता है मूल्यांकन क्यों करते हैं ◼️ ▪️ बच्चे ने किस सीमा तक ज्ञान प्राप्त किया है ▪️ बच्चे की उन्नति और प्रगति कितनी हुई है ▪️ शैक्षिक उद्देश्य कितनी सफल हुई है ( बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन होना चाहिए ) मूल्यांकन का उद्देश्य ➖ व्यक्तिक विभिन्नता का पता चलता है यह शिक्षण की प्रभावशीलता को बताता है बच्चों के आगे विकास में मदद मिलता है बच्चे ने जो ज्ञान हासिल किया है उसे हम जानते हैं विकास की क्या रुकावट है यह पता चलता है अधिगम को प्रेरित करना ( प्रॉब्लम कहां है और बच्चे को कहां पर प्रेरित करना है कमजोर फैक्टर के बारे में बताएंगे या सुझाव देंगे ) पाठ्यक्रम में सुधार का आधार तय करना शिक्षण विधि में सुधार करना सहायक सामग्री में उपयोगिता यह मूल्यांकन या उपलब्धि है जिसमें छात्रों को योग्यता आधारित वर्गीकरण किया जाता है जैसे पास फैल और उनकी योग्यता आधारित ग्रेड देना ✴️ रचनात्मक मूल्यांकन और योगात्मक मूल्यांकन में अंतर ✴️ रचनात्मक मूल्यांकन ➖ यह कक्षा के दौरान होता है इसमें अधिगम के लिए आकलन होता है इसको रचनात्मक क्रिएटिव फॉर्मेटिव मूल्यांकन भी कहते हैं रचनात्मक में शिक्षण प्रक्रिया की दशा क्या है वह ज्ञात करना जो शिक्षण के दौरान करते हैं इसमें छात्रों को पृष्ठ पोषण मिलता है अर्थात पढ़ाई में आगे बढ़ाना काम है कहां सुधार की आवश्यकता है यह पता चलता है योगात्मक मूल्यांकन ➖ योगात्मक मूल्यांकन सत्र के अंत में होता है इसमें अधिगम का आकलन होता है शिक्षण प्रक्रिया कितना सफल या असफल रहा इसका पता चलता है इसको अंत में निश्चित अवधि के बाद करते हैं इसमें बच्चों को ग्रेड या परिणाम देते हैं योगात्मक में कितना सुधार हुआ है यह पता चलता है notes by pragya shukla

Erik Erikson’s Stages of Psychosocial Development

✍🏻Menka patel ✍🏻
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🌈🌈 एरिक्सन 🌈

⭐ व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धांत
जो अपने मन का विश्लेषण है

मनोविश्लेषण संरचना का निर्माण विस्तार हुआ
मनोविश्लेषण उम्र के हिसाब से भी बदलता है जैविक कारक और सामाजिक कारक के बीच अंतर क्रिया होती है उसे व्यक्तित्व विकास कहते हैं

☄ एरिक्सन ने इसे कुछ अवस्था में विभाजित किया है जो
निम्नलिखित हैं

✍🏻 विश्वास बनाम अविश्वास ( जन्म से 1 वर्ष) – यह सबसे पहली अवस्था है इसमें बच्चा अपनी क्रियाओं के प्रति विश्वास और अविश्वास की भावना होती है अगर बच्चे को नींद आती है तो वह दैनिक कार्य अपने हिसाब से करता है जो इंद्रियों का अनुभव करता है इससे लोगों के प्रति सकारात्मक क्रिया होती है तो विश्वास की भावना होती है इसमें धीरे धीरे पहचानने की क्षमता भी आ जाती है इस अवस्था के अंतर्गत निरंतरता एकरूपता या स्थिरता होती है तो वह में विश्वास करना सीख जाता है अगर बच्चे के अनुरूप व्यवहार ना हो तो बच्चे में अविश्वास की भावना उत्पन्न होने लगती है बच्चे अपने अविश्वास को शारीरिक क्रिया द्वारा दिखाएगा जैसे रोना चिड़चिड़ा ना आदि|

✍🏻 स्वतंत्रता बनाम शर्म(1-3 की अवस्था) –
इस अवस्था में बालक सीखता है कि उस से क्या अपेक्षा है उससे क्या उम्मीद है बच्चा अपने कर्तव्य अधिकार और सीमा को समझता है तथा बच्चा नए-नए प्रयास करता है किसी चीज को तोड़ना तथा सहयोग की भावना आने लगती है और बच्चे स्व नियंत्रण की भावना या जाती है अगर बच्चे को स्वतंत्रता और स्व नियंत्रण नहीं होता तो उसमें संदेह की भावना बढ़ जाती है इस अवस्था में इच्छा शक्ति आती है अगर बच्चे को संदेह हुआ तो वह नए-नए प्रयास नहीं करेगा इससे शर्म की भावना आ जाती है

✍🏻 पहल बनाम अपराध (3-6 की अवस्था) – यह अवस्था स्कूल जाने की अवस्था होती है जीवन की जो चुनौतियां होती हैं उससे निपटने के लिए सीखने लगता है और वह रिश्ते सामान्य नहीं लगता है संबंधों में अनुमोदन मतलब संबंधों को समझ रहा है इस अवस्था में गति कौशल का विकास होता है अपने बराबर के लड़कों के साथ गति कौशल करने लगते हैं इस अवस्था में लड़के लड़कियों में अंतर करने लगते हैं और पहल करने लगता है उत्तरदायित्व ग्रहण करने लगते हैं जैसे किसी को बुलाना खिलौनों को संभालना आदि अगर बच्चे निर्धारण नहीं कर पाते हैं और उनमें सकारात्मक सोच नहीं आती है तो बोध की भावना आने लगती है 4-6 की अवस्था में बालक की सर्वाधिक गतिविधि इसी अवस्था में होती है खोज प्रवृत्ति कार्य करता है इस समय में हताश भी होता है और प्रयोग करता है
✍🏻 परिश्रम /उधमिता बनाम हीन भावना (6-11 कीअवस्था) — बच्चों के अंदर औपचारिक शिक्षा इस समय में होती है अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग की भावना आ जाती है तथा तर्कशक्ति में वृद्धि होती है स्वा अनुशासन होने लगता है और खुद की चीजें कैसे किया जाए निर्णय के हिसाब से व्यवहार करने लगते हैं इस अवस्था में संस्कृति के तकनीकी पक्षों को समझता है जिससे उसमें उधमिता परिश्रम की सोच आ जाती है उत्तर दायित्व ग्रहण करने लगते हैं मानवीय कुशलता लगते हैं संगीत भी सीखने लगते हैं लेकिन जब बच्चा अगर इन चीजों को नहीं कर पाते हैं तो उनमें हीन भावना आने लगती है हीनता से अक्षमता का शिकार हो जाता है यही इस अवस्था का दुष्परिणाम है और सबसे बड़ा गुण क्षमता का विकास होता है कार्य के प्रति समर्पित रहते हैं
✍🏻 पहचान बनाम भूमिका भ्रम (12-20 की अवस्था) — इस अवस्था के अंतर्गत वयस्कता की चुनौतियों का सामना करने के लिए उनकी अपनी पसंद ना पसंद होती है भविष्य के जो पूर्व अनुमानित लक्ष्य के प्रति जागरूक होने लगता है भविष्य पर जो नियंत्रण की शक्ति है इस शक्ति की पहचान होने लगती है इस अवस्था में यह बताता है कि वह वर्तमान मैं क्या है भविष्य में क्या बनना चाहता है यह पहचान निर्माण की अवस्था है अगर भूमिका निर्वाहन में भ्रम होता है बड़ा बदलाव होता है वह नकारात्मक सोच आने लगती है इस अवस्था में घृणात्मक पहचान बनने लगती है इस अवस्था में कर्तव्य का विकास होता है लैंगिक रूप से परिपक्व और जिम्मेदार भी होते हैं बड़ों के जैसे व्यवहार की उम्मीद करते हैं लेकिन बड़ों जैसी लैंगिक स्वतंत्रता नहीं देते हैं और आंतरिक ज्ञान में खोजने की कोशिश करते हैं

✍🏻 आत्मीयता बनाम एकाकीपन (20-24 की अवस्था) – इस अवस्था में विवाह के संबंध में बनने लगते हैं प्रारंभिक जीवन की शुरुआत करने का सही समय है सामाजिक आत्मीयता आने रखती है और लैंगिक आत्मीयता होने लगती है अच्छा बुरा समझने लगते हैं विश्वास के साथ संबंध बनाते हैं अगर यह संबंध नहीं होता तो अलगाव होने लगता है वह संबंधों से दूर रहना आत्मीयता मैं नहीं आना समझौता नहीं करना
✍🏻 जननात्मक बनाम स्थिरता/ उत्पादकता बनाम स्थिरता /प्रजनन बनाम निश्चिता(24-65 की अवस्था) – इस अवस्था मेआने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचने लगते हैं समाज के बारे में सोचना जहां उनकी भावी पीढ़ी जीवन बताएगी इस अवस्था में जिम्मेदारी निभाने लगते हैं उत्पादकता करते हैं और विचार करते हैं की आगे के लिए जब उत्पादकता नहीं करते और ना ही विचार करते हैं तो स्थिरता आ जाती है इस अवस्था में जो भी करना है वह 35 वर्ष तक कर लेना चाहिए
✍🏻 संपूर्ण बनाम निराशा (65 से आगे की अवस्था) – सफलता असफलता के समायोजन पर पहुंचने की क्या किया क्या नहीं किया इस अवस्था में भूतकाल के बारे में सोचते हैं इस समय व्यक्ति अपने आप अनेक चीजों से गिरा पाता है शारीरिक क्षमता गिर जाती है और आय में कमी आ जाती है

“यह उम्र मानव विकास की पिछली सभी अवस्थाओं का संकलन समेकन और मूल्यांकन है”
जो करना चाहते थे वह मिला संपूर्ण और अगर कुछ करने में बहुत समय लग गया तो निराशा का भाव आ जाता है इस अवस्था में लोगों को मृत्यु का भय होने लगता है इस अवस्था मैं आज सफलता होती है तो इसे आ परिवर्तना सफलता कहते हैं
” वृद्धा अवस्था में ही सच्ची परिपक्वता विकास होता है”
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व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धांत

प्रवर्तक – ऐरिक्सन

मनोविश्लेषण के साथ जो सामाजिकता होती हैं उसे मनोसामाजिकता हैं।
मनोसामाजिकता उम्र के हिसाब से बदलती जाती है।

पहले देख के छुपते थे अब छुप के देखते हैं वह दौर था बचपन का यह दौर है जवानी का
जैविक कारक – बचपन
सामाजिक कारक – जवानी या किशोरावस्था

जैविक कारक और सामाजिक कारक के बीच अंतः क्रिया ही व्यक्तित्त्व विकास है।

एरिक्सन ने व्यक्तित्व विकास को 8 चरणो मे विभाजित किया है –

1) विश्वास बनाम अविश्वास (0-1) trust vs mistrust

इसमें बच्चा मे अपनी क्रियाओं के प्रति या स्थिति के प्रति विश्वास या विश्वास की भावना उत्पन्न होती है ।
अगर बच्चे को अच्छी नींद आती है
दैनिक कार्य ठीक से होते हैं
इंद्रियों का अनुभव ठीक से करता है
लोगों के प्रति सकारात्मक क्रिया करता है
पहचानने की क्षमता में वृद्धि होती हैं तो बच्चे में मूल विश्वास की भावना की स्थापना होती है।
निरंतरता ,एकरूपता, स्थिरता से अन्य लोगों में विश्वास करना सीख जाता है जैसे मां पिता दादी आदि पर

यदि यह सभी क्रियाएं उसके व्यवहार के अनुरूप नहीं होने पर उस में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाती है। जैसे रोना चिल्लाना आदि

2) स्वतंत्रता ( स्वायत्तता) बनाम शर्म (1-3 वर्ष) antonomy VS shame –

इस अवस्था में बालक यह सीखता या समझता है कि उस से क्या अपेक्षा है
उस के क्या अधिकार हैं
उसके क्या कर्तव्य हैं
क्या सीमाएं है
नये नये प्रयास करता है
इच्छा शक्ति आ जाती है।
बालक में स्वनियंत्रण का विचार आने पर वह स्वतंत्रता का अनुभव करता है
बालक में स्वनियंत्रण का विचार नहीं आने पर संदेह की भावना या शर्म की भावना आ जाती है।

3) पहल बनाम अपराध (4-6) या नर्सरी एज या आयु initiative VS guilt –

इस अवस्था में बालक चुनौतियों से निपटने के तरीके सीखता है संबंधों में अनुमोदन करना सीखता हैं अतः लोगों से संबंधों को समझने लगता है
अपने बराबर या बड़े बच्चों के साथ गतिक कौशल करने लगता है
इस अवस्था में बच्चा लड़के और लड़के में अंतर समझने लगता है अनुकरण और पहल करने लगता है
उत्तरदायित्व को समझने लगता है
उद्देश्य और लक्ष्य निर्धारित या नियोजित करके कार्य करता है
यह सभी कार्य नहीं होने पर बालक में अपराध या अपराध बोध की भावना या गुण आ जाते हैं
बालक की सर्वाधिक गतिविधि इसी अवस्था में होती है इस अवस्था में बालक में खोज प्रवृत्ति होती है अलग-अलग कार्य करता है हताश भी होता है और प्रयोग भी करता है

4) परिश्रम ( उद्यमिता) बनाम हीनता (6-11 वर्ष) industry VS inferiority –

इस अवस्था में बालक औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय जाता है
अन्य व्यक्ति के साथ सहयोग करता है
तर्कशक्ति में वृद्धि होती हैं
स्व अनुशासन आता है
नियमों के हिसाब से व्यवहार करता है
संस्कृति के तकनीकी पक्षों को समझता है
उद्यमिता या परिश्रम की सोच आती है
स्कूल घर पर काम करता है उत्तरदायित्व लेता है
संगीत में रुचि लेता है
मानवीय कुशलता आती हैं

यदि बालक यह सभी बातें नहीं कर पाता है तो उसमें हीनता की भावना आ जाती है

हीनता से अ अक्षमता का शिकार हो जाता है यह इसका दुष्परिणाम है
क्षमता का विकास करने के लिए कार्य के लिए समर्पित होना पड़ता है।

5) पहचान बनाम भूमिका भ्रम ( 12-20 वर्ष) identity VS role confusion –

सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अवस्था है
बचपन ( बाल्यावस्था) और वयस्क के बीच का समय किशोर / वयसंधि / वयस्कसंधि कहलाती है।

इस अवस्था में बालक यह समझता है कि समाज की उस से क्या मांग है
समाज में उसकी क्या भूमिका है इस इस अवस्था में बालक वयस्कता की चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक परिवर्तनों का सामना करता है अपनी पसंद नापसंद को चुनता है भविष्य के पूर्व अनुमानित लक्ष्य के अनुसार काम या जागरूक होने लगता है
भविष्य पर नियंत्रण की शक्ति की पहचान हो जाती है
वर्तमान में क्या है और भविष्य में क्या बनना चाहता है
पहचान की निर्माण की अवस्था भूमिका निर्माण की अवस्था

नकारात्मक तथ्य
भूमिका निर्वहन में भ्रम महत्वपूर्ण कारक है
अकेलापन ,खाली , चिंतित और अनिश्चित होना
निर्णय लेने के लिए मजबूर किया जा रहा हूं ऐसा भ्रम होता है विरोधी बन जाता है
अवस्थित अवस्था होती है
घृणात्मक पहचान( स्वयं को अयोग्य मानने लगता है

वयसंधि (12-16)

कर्तव्य ईमानदारी का विकास होता है।
लैंगिक रुप से परिपक्व या जिम्मेदार होता है लेकिन वयस्क के समान संतान उत्पत्ति नहीं कर सकता है।
वयस्को जैसा व्यवहार करने की उम्मीद करते हैं लेकिन वयस्को जैसी लैंगिक स्वतंत्रता नहीं होते हैं।
आंतरिक ज्ञान से नहीं समझ को खोजने की कोशिश करता है

6) आत्मीयता बनाम एकाकीपन (20-24 वर्ष)affinity VS isolation –

इस अवस्था में
भविष्य की जिम्मेदारियों पर ध्यान
विवाह के बंधन में बंधना प्रारंभिक पारिवारिक जीवन सामाजिक आत्मीयता आने लगती हैं
लैंगिक आत्मीयता आने लगते हैं अपने जीवन और कैरियर के प्रति स्थायित्व आता है
जिनके साथ विश्वास होता है उन से जुड़ते है
यह सब नहीं होने पर अलगाव, एकाकीपन ,संबंधों से दूर रहने की भावना आती हैं
आत्मीयता से समझौता नहीं करता है।

7) जननात्मक / प्रजनन / उत्पादकता बनाम स्थिरता / निश्चिंतता ( 24-65 वर्ष) productivity VS stability –

इस अवस्था में
आने वाली पीढ़ियों के विषय में चिंतित होते हैं
समाज के बारे में सोचता है जहां भावी पीढ़ी जीवन बताएगी जिम्मेदार होता है
इस समय उत्पादकता के साथ विचार भी करते हैं
इस अवस्था मे 25-35 की उम्र महत्वपूर्ण होती है
इस समय एक पहलू अपनी शारीरिक सुन्दरता, व्यक्तित्व, अच्छे कपडे, बहुत अच्छा बोलने का होता है। यह समय(25-35 )सीमित होता है। या कुछ निश्चित समय तक ही रह पाती है बाद में बचे हुए जीवन मे बहुत कम काम आती है।
दूसरा पहलू अपनी आन्तरिक / आत्मा / मन की सुन्दरता का होता है यह बचे हुए जीवन भर साथ देती है।

35- 40 की उम्र मे जो काम कर रहे हैं उसे स्थिर करने का प्रयास करते है।
दूसरो के प्रति चिंतित होते हैं जैसे अपने बच्चो के बारे में

8) संपूर्णता बनाम निराशा (65 से जीवन के अंतिम क्षण तक) wholeness VS frustration –

यह मानव जीवन की अंतिम अवस्था होती है इसमे व्यक्ति भविष्य के बारे में न सोच कर अपने बीते हुए जीवन के बारे मे सोचता है ।
इसमें सफलता और असफलता के समायोजन पर पहुंचते हैं
यहां भूतकाल के बारे में सोचते हैं पीछे की जिंदगी को देखते हैं
शारीरिक क्षमता गिर जाती हैं आय में कमी हो जाती हैं
🌞🌞🌞यह अवस्था मानव विकास की पिछली सभी अवस्थाओं का संकलन समेकन और मूल्यांकन है🌞🌞🌞

वर्तमान ( अंतिम क्षण) 🤔🤔🤔 👉👉 भूतकाल (बिताया हुआ जीवन)

जो कार्य आप करना चाहते थे वह पूरा होने पर संपूर्णता और पूरा नहीं होने पर निराशा आ जाती है
मृत्यु का भय होता है अपरिवर्तनीय असफलता होते हैं

🌞🌞🌞एरिक्सन यह विश्वास करते हैं कि वृद्धावस्था में ही सच्ची परिपक्वता का विकास होता है

Notes by – Ravi kushwah


✍🏻 Notes By-Vaishali Mishra

एरिक्सन का व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धांत

*इसमें मानसिक विश्लेषण का निर्माण व विस्तार हुआ ।

*हमारे मन का जो विश्लेषण है उससे बीते समय की आधुनिकता और आज के समय की आधुनिकता को भी समझते है।हमारी जो मनो संरचना है उसका निर्माण व विस्तार हम खुद से करते है।

*एरिक्सन ने बताया कि जो हम अपने मन में दुनिया की समझ लाते है और समय के हिसाब से उस दुनिया की समझ को भी सुधारने या बदलने की कोशिश करते है।यही बात मनोसामाजिक कही जाती हैं।
समाज बदलता है तो मन में जो मनोविश्लेषण की संरचना है वो भी बदल जाती हैं।

*बीते समय की आधुनिकता में मनो विश्लेषण संरचना के निर्माण या विस्तार से हम नए समय की आधुनिकता में मनोविश्लेषण संरचना का निर्माण और विस्तार करते है।

*समय के साथ साथ हमारी मनोसामाजिक बदल जाती है।

*उम्र के बदलने या बढ़ने से भी हमारी मनोसमाजिक्ता बदल जाती है या जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है वैसे वैसे ही हम समाज को देखते है या समझते है या यह भी कह सकते है कि उम्र के साथ हमारा मन का विश्लेषण या नजरिया समाज के प्रति भी बदलता जाता है।

कई जैविक कारकों के बदल जाने पर सामाजिक कारक भी बदल जाते है और यही हमारा व्यक्तित्व विकास कहलाता है अर्थात व्यक्तित्व विकास का मनोसामाजिक सिद्धांत कहलाता है।

एरिक्सन ने आठ प्रकार की मनोसामाजिक अवस्थाएं दी है।

➡️1 विश्वास बनाम अविश्वास*
(Trust vs Mistrust) (0से 1 वर्ष) ➡️2 स्वतंत्रता बनाम शर्म
*(Autonomy Vs Shame)
*(2 से 3 वर्ष)
➡️3 पहल बनाम अपराध
(Initiative Vs Guilt)
(3 से 6 वर्ष)
➡️4 उधमिता (परिश्रम) बनाम हीनता ( Industry Vs Inferiority) (6 से 11 वर्ष)
➡️5 पहचान बनाम भूमिका भ्रम (Identity Vs Confusion) (12 से 20 वर्ष)
➡️6 आत्मीयता बनाम एकाकीपन (Affinity Vs Isolation)* *( 20 से 24 वर्ष)
➡️7 उत्पादकता बनाम स्थिरता /जन्नात्मक बनाम स्थिरता /प्रजनन बनाम स्थिरता (Productivity Vs Stability) (24 से 65 वर्ष)

➡️8संपूर्णता बनाम निराशा (wholeness Vs Frustration)
65 से जीवन के अंत तक
जिनका विवरण निम्न प्रकार है।

1️⃣
विश्वास बनाम अविश्वास
(Trust vs Mistrust) (0से 1 वर्ष)

*इस अवस्था में बच्चो में अपनी क्रियाओं के प्रति,काम के प्रति ,अपनी स्थिति के प्रति विश्वास या अविश्वास की भावना होती है।
जैसे यदि बच्चा अच्छे से सोता है या पूरी नीद लेता है तो उसके अंदर मूल विश्वास की स्थापना होती है।
बच्चा अपनी इन्द्रियों से सकारात्मक क्रियाओं को अनुभव करता है और उनको पहचानने की क्षमता रखता है।
और उन क्रियाओं के प्रति विश्वास बना लेता है।
*बच्चे के जो दैनिक कार्य(रोना,हंसना,सोना आदि) को अपने हिसाब से करता है जिसमे बच्चे की इंद्रिया उसकी मदद करती है या इंद्रियो के अनुभव से दूसरों के प्रति सकारात्मक क्रिया करता है।

  • बच्चा स्थिरता, निरंतरता और एकरूपता की वजह से अन्य लोगो के साथ विश्वास करना सीख जाता है।

*लेकिन दूसरी स्थिति में यदि अन्य लोगो के द्वारा बच्चो के प्रति अनुरूप व्यवहार ना किया जाए तो बच्चो में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाती है यह अविश्वास वह कई रूप से दिखाता है जैसे रोककर,चिड़चिड़ाहट, शरीर स्थिर न रखकर,परेशान होकर कई तरीको से।

*यही विश्वास और अविश्वास के बीच का संघर्ष है।
जैसे ही एक साल में किसी बच्चे के अंदर विश्वास या अविश्वास की भावना होती रहती है तो वह अलग अलग रूप से दिखाई देने लगती हैं।

2️⃣
स्वतंत्रता बनाम शर्म
(Autonomy Vs Shame)
(2 से 3 वर्ष)
*इस अवस्था में बालक यह सीखता है कि उससे क्या उपेक्षाएं है या क्या उम्मीदें , कर्तव्य,अधिकार , सीमाएं रखी जा रही है।

*किसी अन्य व्यक्ति की अनुक्रिया से ही बच्चा यह सीखता है कि उससे क्या उपेक्षाएं रखी जाती है।

▪️जब बच्चा कुछ करना चाहता है तो उस कार्य को करने में बच्चे की इच्छा शक्ति होती है जिससे उसमे स्व नियंत्रण काफी ज्यादा बढ़ जाता है या स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता या कार्य को करने की स्वतंत्रता आ जाती है।

▪️लेकिन जब बच्चे यदि काम में कुछ संदेह होता है तो इससे उनकी इच्छा शक्ति में भी कमी आती है जिससे बच्चा नए प्रयास ,अधिकार या कर्तव्य पर जोर नहीं देता है।और इस स्थिति में बच्चो में शर्म की भावना उत्पन्न हो जाती है कि वह उन उपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाया ।

3️⃣ पहल बनाम अपराध
(Initiative Vs Guilt)
(3 से 6 वर्ष)

  • जिंदगी में जो भी चुनौतियां आती है उससे निपटने के तरीके इस अवस्था में सीखते है। या उन चुनौतियों से निपटने के लिए कई रूप में पहल करता है।

*सम्बन्धों में अनुमोदन (अंत क्रिया)
बच्चे के लोगो (माता,पिता,भाई बहन आदि) के साथ जो सम्बन्ध है वो उन्हें समझने लगता है। अथवा बच्चा अपने गति संवेदी कौशल क्रिया अपनी उम्र के साथियों या अपने से बड़े उम्र के लोगो के साथ करने लगता है।

*बच्चे इस उम्र में लड़के और लड़की में अंतर करने लगते है या उन्हें समझने लगते है।

  • इस अवस्था में बच्चो में उत्तरदायित्व की भावना भी विकसित होने लगती है।जैसे बच्चा अपने खिलौनों कि संभालना जैसे कई कार्यों के प्रति जिम्मेदार हो जाता है।
  • अपने उद्देश्य और लक्ष्य को निर्धारित या नियोपित करने लगता है उनका यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है।

यदि बच्चो में पहल करने की भावना विकसित नहीं हो पाती है तो उनमें अपराध की भावना आ जाती है या वह किसी भी स्थिति के अनुसार नकारात्मक क्रियाएं करने लगता है।

बच्चे के सर्वाधिक गतिविधियां भी इसी अवस्था में होती है।

खोज प्रवृत्ति,अलग अलग तरह के कार्य ,कभी हताश होता है ,प्रयोग करता है ।
यह बच्चो के खेल की भी अवस्था होत

पहल और अपराध की मात्रा वातावरण। पर निर्भर करती हैं।
बच्चे को जैसा वातावरण दिया जाता है वह वैसी ही पहल और अपराध करने लगते हैं।

4️⃣ उधमिता (परिश्रम) बनाम हीनता ( Industry Vs Inferiority) (6 से 11 वर्ष)

*बच्चो में औपचारिक शिक्षा का विकास होता है अर्थात वह नियमो के अनुसार व्यवहार करने लगते है।

*अन्यव्यक्तियो के साथ सहयोग करने लगता है ।

  • बच्चो की तर्क शक्ति में वृद्धि होने लगती है।
    बच्चो में अनुशासन आता है।

बच्चे अपनी संस्कृति के तकनीकी पक्षों को समझता है।इससे उनमें उधमिता या परिश्रम की सोच आती है।जैसे वे स्कूल या घर के कामों में उत्तरदायित्व ग्रहण करने लगते है ।

बच्चे इन सभी मानवीय कुशलता को नहीं कर पाते है तो उनके अंदर हीनता की भावना आ जाती है कि वो इस कार्य को नहीं कर सकते है।
हीनता से बच्चे अक्षमता का शिकार हो जाते हैं जो की दुष्परिणाम है।

इस अवस्था का सबसे बड़ा गुण क्षमता का विकास होना है।इस अवस्था में किसी भी कार्य को करने के लिए उसमे समर्पित रहना पड़ता है।

5️⃣ पहचान बनाम भूमिका भ्रम (Identity Vs Confusion) (12 से 20 वर्ष)
यह सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है ।
इसमें ना तो बचपन होता है ना ही वयस्क बल्कि यह किशोर होता है।

*इसमें किशोर के अंदर उसकी समाज की मांग और समाज में भूमिका देना चाहते है

किशोर को कई परिवर्तनों या चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
उनकी अपनी पसंद या नापसंद होती है।

  • किशोर के जो भी भविष्य के पूर्व अनुमानित लक्ष्य है उनके हिसाब से अपने आप को जागरूक करने लगता है। या भविष्य पर जो नियंत्रण की शक्ति है,उनकी पहचान करने लगता है या उनके लिए जागरूक होने लगता है।

बचपन से वयस्कता के बीच के समय को बचपन से वयस्कता का वय:संधि काल कहलाता है।

इसमें किशोर एक निर्माण की अवस्था में होता है जिससे किशोर की समाज में पहचान बनती है इसलिए यह पहचान निर्माण की अवस्था कहलाती है।
जब पहचान बन जाती है तो समाज में अपनी भूमिका का निर्माण करने लगता है।
भूमिका निर्वहन में यदि कोई भ्रम आता है तो वह बहुत ज्यादा प्रभावित होता है जिससे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
। भूमिका निर्वहन में यह भ्रम बहुत प्रभाव शील होता है जैसे वह अकेलापन या खाली पन महसूस करता है ,चिंतित रहता है या अनिश्चित रहता है या किसी कार्य को करने या ना करने में निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे
भ्रम में कई गलत कदम उठा लेता है ।

भ्रम में बच्चे विरोधी बन जाते है।
किशोर अव्यवस्थित अवस्था में चले जाते है
इस समय में किशोर में कुछ घृणात्मक पहचान भी जन्म लेती है जिसमे वह यह मानने लगते हैं कि वह खुद में अयोग्य है।

*इस अवस्था में किशोर के अंदर कर्तव्य ,ईमानदारी का भी विकास होता है।
*वे लैंगिक रूप से परिपक्व या जिम्मेदार होने लगते है लेकिन वह संतान उत्पत्ति के लिए पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते है।

*कई बार लोग किशोरों के साथ वयस्क जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखते है लेकिन वयस्कों की जी लैंगिक स्वतंत्रता है वो नहीं देते है।

  • इस अवस्था में किशोर नई समझ को खोजने की कोशिश करता है।

6️⃣ आत्मीयता बनाम एकाकीपन (Affinity Vs Isolation) ( 20 से 24 वर्ष)

*इस अवस्था में भविष्य की जिम्मेदरियो पर ध्यान केंद्रित रहता है।

  • विवाह के बंधन में बंधने के लिए तैयार हों जाते हैं।या प्रारम्भिक पारिवारिक जीवन की शुरआत होने लगती है।
  • सामाजिक आत्मीयता आने लगती है।
    *लैंगिक आत्मीयता के बारे में भी सोचने लगते है ।
    *अपने कामों में स्थिरता को खोजने लगते है
    *जिन लोगो पर विश्वास करते है उनके साथ जुड़ने की कोशिश करते हैं।

यदि यह सब नहीं कर पाते या नहीं हो पाता है तो एकाकीपन महसूस होता है या अलगाव, सम्बन्धों से दूर रहना,किसी को भी स्वीकार ना करना , ऐसी कई चीजों में बाधा आने लगती हैं।

7️⃣ उत्पादकता बनाम स्थिरता /जन्नात्मक बनाम स्थिरता /प्रजनन बनाम स्थिरता (Productivity Vs Stability) (24 से 65 वर्ष)

*इस अवस्था में अपनी आने वाली पीढ़ियों या *उत्पादकों * के विषय में चिंतित होते है।

  • उस समाज के बारे में सोचने लगते है जहां उनकी भावी पीढ़ियां जीवन बिताएंगी।
  • अपने लक्ष्य या जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद स्थिर होना चाहते है ।
  • दिमाग में कई तरह के विचार आते है और एक समय बाद इन विचारो में स्थिरता आने लगती है।
  • इस अवस्था में 25 से 35 वर्ष के बीच कई तरह की चीजों जैसे व्यक्तित्व बोलने,या पहनावे को ज्यादा महत्व देते है। अर्थात बाह्य रूप से
    जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है तो लोगो में मन की सुंदरता को देखने लगते है।
    अर्थात आंतरिक रूप से
    *दूसरों के प्रति ज्यादा चिंतित होने लगते है।

8️⃣ संपूर्णता बनाम निराशा (wholeness Vs Frustration)
(65 से जीवन के अंत तक)

  • इस अवस्था में जीवन की सफलता या असफलता के समायोजन (संपूर्णता) पर पहुंचते है।
  • भूत काल के बारे में सोचते है।
    *शारीरिक क्षमता गिर जाती है।
    *आय में कमी आ जाती है।
  • अपने उम्र के लोगो के साथ जुड़ने लगते है।
    *मृत्यु का भय या या अपरिवर्तनीय असफलता आ जाती है ।

“यह उम्र मानव विकास की पिछली सभी अवस्थाओं का संकलन,समेकन और मूल्यांकन है।
यदि कोई कार्य नहीं कर पाते है और उस कार्य के बारे में सोचते है की काश यह कर पाते तो ऐसी स्थिति में निराशा आने लगती हैं।और इस बात का अहसास होने लगता है कुछ नया काम करने की संभावना नहीं है जो है बस उसी के साथ चलते है।

“एरिक्सन यह विश्वास करते है कि वृद्धावस्था में ही सच्ची परिपक्वता का विकास होता हैं।”


🌺🌺एरिक्सन🌺🌺

व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धांत

🖊️ उम्र के बदलने या बढ़ने से हमारी मनोसामाजिकता भी बदलती है जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है वैसे वैसे हम समाज को देखकर ,समझकर अपने मन को और नज़रिये को भी समाज के लिए बदलता है।
🔸एरिक्सन व्यक्तित्व विकास को 8
अवस्थाओं में विभाजित किया है।
(1)- विश्वास बनाम अविश्वास
( Trust VS Mistrust)
( 0 से 1 वर्ष)
🌈इस स्तर पर बालक अपनी क्रियाओं के प्रति ,दैनिक कार्य के प्रति विश्वास या अविश्वास की भावना रखते है।
यदि बच्चे को नींद आ रही है तो उसे सोने दिया जाया तो उसके मन मे विश्वास की स्थापना होगी वह अपनी इन्द्रियों से सकारात्मक अनुभव करता है और उनको पहचानने की क्षमता रखता है।
यदि उसके दैनिक कार्य हंसना, रोना, सोना आदि उसके इन्द्रियों के हिसाब से ना हो तो उसमे अविश्वास की भावना उत्पन्न होती है।

🌺स्वतंत्रता बनाम शर्म
(Autonomy Vs Shame)
(2 से 3 वर्ष )

🌺पहल बनाम अपराध
(Initiative Vs Guilt)
(3 से 6 वर्ष)

🌺 उद्यमिता बनाम हीनता
(Industry Vs inferiority)
(6 से 11 वर्ष)

🌺पहचान बनाम भूमिका भ्रम
(Identity Vs Confusion)
(12 से 20 वर्ष)

🌺आत्मीयता बनाम एकाकीपन
(Affinity Vs Isolation)
(20 से 24 वर्ष )

🌺उत्पादकता बनाम स्थिरता
(Productivity Vs Stability)
(24से 65 वर्ष)
अन्य नाम- जन्नात्मक बनाम स्थिरता
प्रजनन बनाम स्थिरता

🌺संपूर्णता बनाम निराशा
(Wholeness Vs Frustration)
(65 से जीवन के अंत तक)

नोट :- “एरिक्सन यह विश्वास करते है कि वृद्धावस्था में ही सच्ची परिपक्वता का विकास होता है।”

🌺 By Shashi choudhary🌺


✨✨Notes by :- Neha Kumari 😊

🌸🌸 एरिक एरिक्सन – व्यक्तित्व का मनो – सामाजिक सिद्धांत🌸🌸

🌟मनो – विश्लेषण के साथ जो समजिकता होती है उसे,मनो – सामाजिकता कहते हैं।

🌟ये हमारे,अपने खुद के मन का विश्लेषण है।जो, बीते समय ओर आज के दौर की आधुनिकता को भी समझते हैं।अत: ये हमारी मनो – संरचना है।

🌟जैविक कारक और सामाजिक कारक के बीच परस्पर अंत: क्रिया ही व्यक्तित्व का विकास है।

🌟 समय के साथ -२,उम्र बढ़ने के साथ -२ हमारी मानसिक,शारीरिक,मानसिक व सामाजिक आवश्यकताएँ बढ़ती जा रही हैं उसके अनुसार खुद को उन परिस्थितियों में ढालना,उस स्थिति के अनुसार खुद में सामंजस्य करना तथा कुछ अलग सोचना – समझना,सुधार करना इत्यादि भी मनो – सामाजिक प्रक्रिया के अंतर्गत आती है।

🌟एरिक्सन जी ने इसे ८ अवस्थाओं में विभाजित किया है :-

1️⃣विश्वास बनाम अविश्वास(०-२)
2️⃣स्वतंत्रता बनाम शर्म(२-४)
3️⃣पहल बनाम अपराध(४-६)
4️⃣परिश्रम बनाम हीनता(६-११)
उद्यमिता बनाम हीनता
5️⃣पहचान बनाम भूमिका भ्रम (१२-१०)
6️⃣ आत्मीयता बनाम एकाकीपन(२०-२५)
7️⃣उत्पादकता बनाम स्थिरता(२४-६५)
जन्नात्मक बनाम स्थिरता
प्रजनन बनाम स्थिरता
8️⃣संपूर्णता बनाम निराशा(६५ से लेकर मरणोपरांत)

📚इन सभी ८ स्तरों को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है :-

1️⃣विश्वास बनाम अविश्वास :-
🌟इस अवस्था में बच्चे अपनी क्रिया – प्रतिक्रिया सारी चीजें इन्द्रियों की सहायता से करते हैं। इन्द्रियां सकारात्मक भूमिका निभाती है।उसके द्वारा है अपनी भावनाओं को प्रकट कर पाते हैं।जैसे कि :- रोना,हंसना,सोना,हाथ – पैर पटकना,आंखे घूमाना, सर हिलाना इत्यादि।

🌟इस अवस्था में बच्चे को अपनी क्रियाओं,काम और अपनी स्थिति के प्रति विश्वास या अविश्वास की भावना होती है।
▪️जैसे कि :- अगर बच्चा सो रहा होता है तो उसे हम छेड़छाड़ नहीं करते,उसे उसके इच्छानुसार पूरी नींद लेने देंगे तो उनमें उस व्यक्ति और कार्य के प्रति सकारात्मकता आ जाएगी और उनमें विश्वास की भावना उत्पन्न होगी।

▪️लेकिन, वहीं दूसरी तरफ हम बच्चे की उसके इच्छानुसार कार्य ना करें तथा उसे परेशान करते रहे तो उनमें नकारात्मकता और अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाती है।तथा ये कई रूपों में बाहर भी आने लगती है।जैसे कि :- बच्चे का रोना,चिड़चिड़ापन होना,इसकी वजह से शरीर स्थिर ना रहना,परेशान होना इत्यादि। कई तरीकों से दिखता है।

2️⃣स्वतंत्रता बनाम शर्म :- ,
🌟इस अवस्था में बालक अपने कर्तव्य,अधिकार,अपेक्षाएं,उम्मीद आदि की सीमाओं के बारे में सीखता है।
▪️ये सारी चीजें बड़ों का अवलोकन करके सीखता है कि,उससे क्या अपेक्षाएं की जा रही है।

🌟इस अवस्था में जब बच्चा कुछ करना चाहता/करता है तो उस वस्तु,कार्य विशेष के प्रति उसका लगाव बढ़ जाता है।तथा वो स्वतंत्रतापूर्वक बिना किसी रोक – टोक के,स्वतंत्र रूप उनकी इच्छानुसार से कार्य करना चाहते हैं।जिससे उनमें स्व – नियंत्रण और स्वयं निर्णय लेने की क्षमता काफी हद तक बढ़ जाती है।जिससे उनमें स्वतंत्रता की भावना प्रबल हो जाती है।ये बच्चे में सकारात्मकता लाती है।
▪️लेकिन उसी परिस्थिति में जब बच्चे को उस कार्य,कर्तव्य,अधिकार,अपेक्षा आदि के प्रति कुछ संदेह उत्पन्न होता है,जिससे वो नए -२ कार्यों में रुचि नहीं ले पाता तथा सामंजस्य नहीं कर पाता है।तब उनमें शर्म कि भावना विकसित होने लगती है।जो कि उनके अंदर नकारात्मकता भावना विकसित के जाती है,कि वो काम हमने पूरा नहीं किया।

3️⃣पहल बनाम अपराध :-
🌟ये बच्चे के स्कूली अवस्था है।
▪️इस अवस्था में बच्चे नए -२ चुनौतियों को स्वीकार करने लगते हैं।तथा उनसे निपटने का तरीका भी सीखने लगते हैं।
सामाजिक अंत: क्रिया करने लगते हैं।

▪️ संबंधों में अनुमोदन :-
इसमें बच्चा अपने घर – परिवार,माता – पिता,भाई – बहन,आस – पड़ोस इन सबसे परिचित होने लगता है।तथा समझने और अपने से बड़े – छोटे, सगे – संबंधियों से, सबके साथ अंत: क्रिया भी करने लगता है।

▪️बच्चे इस उम्र में लड़का – लड़की में अंतर भी समझने लगता है।
▪️इस उम्र में उनमें अपने कार्यों,वस्तुओं के प्रति उत्तरदायित्व की भावना विकसित होने लगती है कि हमें अपने खिलौने को कैसे और कहां रखना है।कार्यों के प्रति जिम्मेदार होने लगता है।

🌟यदि बच्चों में पहल करने की भावना विकसित नहीं हो पाती तो उनमें अपराध कि भावना आ जाती है।जिससे उनमें नकारात्मकता उत्पन्न हो जाती है।

4️⃣उद्यमिता (परिश्रम)बनाम हीनता :-
🌟इस अवस्था में बच्चा औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने लायक हो जाता गई और विद्यालय भी जाने लगता है।तथा उसके तर्कशक्ति में भी वृद्धि होने लगती है।

▪️ उसमें स्व – अनुशासन और स्व – नियंत्रण की अभिवृति का भी विकास हो जाता है।
▪️नियमों के अनुसार व्यवहार करता है।
▪️सभ्यता और संस्कृति को समझने लगता है।
▪️अपने उत्तरदायित्वों कि बखूबी निभा ने लगता है।
▪️मानवीय कुशलता आ जाती है तथा संगीत में भी रुचि लेने लगता है।

🌟वहीं,दूसरी तरफ अगर हम बच्चे को इसके लिए अभिप्रेरित ना करके उससे बातें ना के पाएं या उनकी अवधारणों को समझ ना सकें तो उनमें हीनता की भावना आ जाती हैं।

5️⃣पहचान बनाम भूमिका भ्रम :-
🌟🌟सबसे महत्वपूर्ण :- ये अवस्था सबसे महत्वूर्ण है।
▪️ इस अवस्था को वय: संधि काल भी कहा जाता है।क्योंकि,ये बाल्यावस्था और किशोरावस्था के बीच का समय है।जो दोनों में संधि करती हैं।

🌟इस अवस्था में बालक समाज की भूमिकाओं,नियम,तौर – तरीकों आदि को समझने लगता है।तथा चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर हो जाता है।

▪️अपनी पसंद – नापसंद के आधार पर भी कार्य करने लगता है।तथा भविष्य के अनुमानित लक्ष्यों के लिए भी सजग होकर कार्य करने लगता है।

▪️भविष्य के कार्यों पर नियंत्रण और उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए भविष्य,वर्तमान का विभेदीकरण कर पहचान निर्माण करने लगता है।

🌟वहीं अगर दूसरी तरफ उसके भावनाओं को स्थान ना दिए जाने के कारण उनमें,तनाव,अकेलापन,खालीपन,चिंता,भ्रम,अनिश्चितता और निर्णय लेने के लिए मजबूर किया जाना ही आगे चलकर विरोधी बन जाता है।

6️⃣आत्मीयता बनाम एकाकीपन :-
🌟इस अवस्था में व्यक्ति भविष्य की जिम्मेदारियों के प्रति सजग होने लगता है।

▪️विवाह बंधन में बंधना,पारिवारिक,सामाजिक जीवन में आगे बढ़ना आदि के भाव विकसित होने लगते हैं।

▪️अपने कैरियर और जीवन के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह करने लगते हैं।तथा जिनके साथ विश्वास जुड़ा होता है उनसे जुड़ने लगते हैं।

7️⃣उत्पादकता बनाम स्थिरता :-

🌟इस अवस्था में आनेवाली पीढ़ियों के बारे में चिंतित होने लगता है।

▪️समाज में भावी- पीढ़ी के लिए चिंतित होने लगता है।जहां उनकी आनेवाली पीढ़ी जीवन बिताएंगी।उनका भविष्य उज्ज्वल करने के लिए भी क्रियाशील होने लगते हैं।

▪️अपने लक्ष्य को पूरी होने के बाद स्थिरता की भी उम्मीद करते हैं।

▪️इस अवस्था में कई प्रकार के विचार आते हैं।एक समय के बाद उनकी विचारों में स्थिरता आने लगती है।

▪️इस अवस्था में लोग अपने व्यक्तित्व,बोलने,पहनने – ओढ़ने की शैली को भी महत्व देने लगते हैं।मतलब,बाह्य रूप से अभिप्रेरित होते हैं।

🌟अंत: जैसे -२ उम्र बढ़ने लगती है अपने मन की सुंदरता को देखने लगते हैं।और दूसरों के प्रति ज्यादा चिंतित होने लगते हैं।

8️⃣संपूर्णता बनाम निराशा :-

🌟इस अवस्था में व्यक्ति जीवन की सफलता/असफलता का समायोजन कर संपूर्णता पर पहुंचते हैं।
▪️भूतकाल के बारे में सोचते हैं।
▪️शारीरिक क्षमता गिरने लगती है।
▪️मृत्यु का भय तथा अपरिवर्तनीय सफलता आ जाती है।
▪️अपने उम्र के लोगों के साथ जुड़ने लगते हैं।
▪️आय में कमी आ जाती है।
▪️ये इस व्यक्तित्व के मनो – सामाजिक पहलू का आखिरी स्तर है।

🌟🌟ये अवस्था मानव जीवन के विकास की वो अवस्था है,जो पिछली सभी अवस्थाओं का आकलन और मूल्यांकन है।🌟🌟

📚 अगर जो कार्य हम करना चाहते हैं,वो सम्पूर्ण हो जाए तो ठीक। वरना पूर्ण ना हो तो,निराशा होने लगती है।मृत्यु और अन्य दुष्परिणामों का भय होने लगता है। तथा अपरिवर्तनीय सफलता होने लगते हैं।

🌳एरिक्सन जी,यह विश्वास रखते हैं कि” वृद्धावस्था ही सच्ची परिपक्वता की अवस्था होती है।”

🌸🌸 धन्यवाद्🌸🌸


Notes by ➖Rashmi Savle

एरिक्सन का व्यक्तित्व का
मनोसामाजिक सिद्धांत
Psychological theory of personality

एरिक्सन के अनुसार
समाज और मन के विश्लेषण द्वारा आधुनिक दुनिया को समझना सुधारना या फिर बदलाव करना |
मनोविश्लेषण का निर्माण या विस्तार करना ही आधुनिक है समाज उम्र के अनुसार भी बदलता है जब भी मन के विश्लेषण की बात करें तो जो क्रमिक विकास है वह बहुत से कारणों पर निर्भर करता है और मन का विश्लेषण समय के अनुसार परिवर्तित होना चाहिए |
इसमें समय के अनुसार जैविक और सामाजिक कारकों के बीच जो अन्त: क्रिया होती है वही से व्यक्तित्व का विकास होता है जिसका व्यक्तित्व विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है |

एरिक्सन ने अपने सिद्धांत के आठ चरण बताये हैं➖

1⃣ विश्वास बनाम अविश्वास ( 0-1 वर्ष )
Trust vs Mistrust (0-1year) ➖

बच्चे को अपने क्रियाओं के प्रति किसी के ऊपर विश्वास और अविश्वास की भावना को विकसित करता है जैसे
बच्चा अच्छी नींद लेता है तो वह खुद को परिस्थिति में समायोजित करता हैउसके अन्दर मूल विश्वास उत्पन्न होता है |
वह अपनी क्रियाओं को इन्द्रियों के द्वारा पहचान कर विश्वास विकसित करता है|
इन्द्रियों का अनुभव करता है और लोगों के प्रति सकारात्मक क्रिया करता है |
उसके अंदर लोगों को पहचानने की क्षमता का विकास होता है |
निरंतरता, एकरूपता, स्थिरता के कारण लोगों पर विश्वास करना सीख जाता है |
इसके विपरीत यदि उसके विपरीत या अनुरूप व्यवहार नहीं किया जाये तो बच्चे में अविश्वास की भावना विकसित होती है |

2⃣ स्वतंत्रता बनाम शर्म ( 1 – 3 वर्ष)
Autonomy vs Shame ( 1-3 years)

इस अवस्था में बच्चे में शर्म और स्वतंत्रता की भावना विकसित होती है |
इस अवस्था में बच्चा सीखता है कि उससे क्या उपेक्षाएं है |
वह अपने कर्त्तव्य, अधिकार, सीमाएँ आदि की पहचान कर उन पर कार्य करता है |
बच्चा नये नये प्रयास करता है उसमें स्वनियंत्रण की भावना का विकास होता है |
इसके विपरीत यदि बच्चा स्वंय को स्वतंत्र अनुभव नहीं करता है तो उसमें संदेह की भावना उत्पन्न होने लगती है |
बच्चे में ईच्छाशक्ति का विकास होता है यदि ऐसा नहीं होता है तो उसके अंदर शर्म की भावना विकसित होने लगती है |

3⃣ पहल बनाम अपराध (3-6 वर्ष)
Initiative vs Guilty (3-6 years)

इस अवस्था में बच्चा लाइफ की चुनोतियों से निपटने के तरीकों को सीखता है |
यह अवस्था स्कूल जाने से पहले की अवस्था है इस अवस्था में वह परिवार से ही अनुकरण करता है |
बच्चा अपने संबधियों से अनुमोदन करता है उनकी अन्त: क्रियाओं से सीखता है यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चा गतिक कौशल करता है |
वह अपने बराबर या बड़े लड़कों के साथ गतिक कौशल करता है |
इस उम्र में बच्चा लड़का या लड़की में अन्तर समझने लगता है |
वह अनुकरण या पहल करना सीख जाता है |
इस अवस्था में बच्चा ज्ञान प्राप्त करके अपने उत्तरदायित्व को समझकर ग्रहण करने लगता है |
वह अपने उद्देश्य या लक्ष्य को को प्राप्त करने के लिए नियोजन करने लगता है उनके प्रति संकल्पित हो जाता है |
यदि बच्चे में positive गुण नहीं आतें है तो उसमें अपराध के गुण विकसित होने लगते हैं |
इस अवस्था में बालक सर्वाधिक गतिविधि करता है |
इस अवस्था में खोज प्रवृत्ति, कार्य, हताश प्रयोग, कल्पनाशीलता आदि सभी गुणों की प्रवृत्ति बच्चे में इसी अवस्था में आती है इस अवस्था को खेल की अवस्था भी कहा जाता है क्योंकि बच्चा गतिक कौशल करने लगता है |
यदि इसके विपरीत पर्यावरण मिला तो उसमें अपराध के गुण विकसित हो जातें हैं |

4⃣ उद्यमिता बनाम हीनता (6-11 वर्ष)
Industry vs Inteiroty ( 6-11years)

इस अवस्था में बालक के अन्दर औपचारिक शिक्षा प्रारंभ होती है यह स्कूल जाने की अवस्था है |
इति अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग की भावना भी इसी अवस्था मे होती है उसके अंदर तर्क शक्ति में वृद्धि होने लगती है |
स्वअनुशासन आता है और नियमों के हिसाब से लहर दूसरों के प्रति व्यवहार को समझने लगता है कि किससे कैसे व्यवहार करना है |
संस्कृति के तकनीकी पक्षों को समझने लगता है जिससे उसमें परिश्रम की सोच आती है |
वह स्कूल जाने लगता है घर के काम करने लगता हैं उत्तरदायित्व का विकास, संगीत सीखना, मानवीय कुशलताओं को सीखने लगता है |

यदि बच्चा इन सब क्रियाओं को करना चाहते हैं और नहीं कर पाते हैं तो उनके अंदर हीनता की भावना आ जाती है और अक्षमता का शिकार हो जाता है और यही इस अवस्था का दुष्परिणाम है और यदि हीनता की भावना विकसित हो गयी तो सब बेकार है |

5⃣ पहचान बनाम भूमिका भ्रम (12-20 वर्ष)

इस अवस्था में बच्चा स्वयं को खोजने की कोशिश में रहता है वह समाज के साथ अपनी समझ को विकसित करता है |

वह पूर्व अनुमानित लक्ष्य के लिए जागरूक होता है उसको अपनी पसंद नापसंद का भी ख्याल आने लगता है |
यह जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है क्योंकि इसमें भविष्य को नियंत्रण की शक्ति की पहचान होने लगती है उसकी समझ आने लगती है |

वर्तमान में वह क्या है और उसे क्या बनना है उसकी समझ विकसित होने लगती है |

” बचपन से वयस्कता के बीच के समय को बचपन से वयस्क का वयसंधि काल या वयस्क संधि काल कहते हैं “|

ये पहचान के निर्माण की अवस्था है भूमिका का निर्माण भी इसी अवस्था में होता है यदि उसके अनुसार काम नहीं होता है तो वह बहुत खतरनाक होता है और हीन भावना आ जाती है |

भूमिका निर्वाहन में भ्रम ➖

  • यदि भूमिका निर्वाहन में भ्रम उत्पन्न हो जाता है तो बच्चा अपने आपको गलत ,खाली, अकेला, चिंतित, और अनिश्चित महसूस करता है जो कि बहुत खतरनाक है और बच्चे ये सोचने लगते हैं कि उनको निर्णय लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है |
  • वे विरोधी प्रवृत्ति के हो जातें हैं और अव्यवस्थित की अवस्था में चले जाते है और उनके अंदर स्वयं के प्रति घृणात्मक पहचान बनती है और स्वयं को आयोग्य समझने लगते हैं |

पहचान और भूमिका की बराबरी की सहभागिता रहती है जैसे ➖

  • इसी उम्र में कर्त्तव्य और ईमानदारी का विकास होता है |
  • लैगिक रूप से जिम्मेदार और परिपक्व हो जाता है उसके अंदर समझदारी विकसित हो जाती है लेकिन लैगिकता की समझ नहीं आ पाती है |
  • वयस्कों जैसी उम्मीदें लैगिक स्वतंत्रता न होने के कारण बच्चा खुद अपने से सोचता है और अपनी स्वयं की धारणा बनाकर गलत और सही राह बनाकर चलने लगता है |
  • इस अवस्था में बच्चा आंतरिक ज्ञान को खुद से खोजने की कोशिश करते हैं और उसके अनुसार उनकी पहचान बनती है और वह उसी रूप में आगे बढ़ता है |
  • वयस्कता की चुनौतियों के लिए यह आवश्यक है कि बच्चे को इस अवस्था में सही मार्गदर्शन मिले तभी उससे कोई उम्मीद की जा सकती है |

6⃣ आत्मीयता या अल्पवयस्कता बनाम एकाकीपन (20-24 वर्ष)

इस अवस्था में भविष्य की जिम्मेदारी पर ध्यान आकर्षित होने लगता है इस अवस्था में वैवाहिक जीवन की शुरुआत होने लगती है |

प्रारंभिक पारिवारिक जीवन की शुरुआत की सही उम्र माना जाता है |

इस अवस्था में सामाजिक आत्मीयता आने लगती है सामाजिक रूप से लोगों से जुडा़व होने लगता है |

लैंगिक रूप से भी परिपक्वता आ जाती है और Stability खोजने लगते हैं और अलग अलग क्षेत्र में लोगों को पहचानने लगते हैं |

इस अवस्था में लोग उन्ही के साथ जुड़ते है जिनसे विश्वसनीय संबंध होता है जैसे जीवन साथी |

यदि इसके विपरीत ये सब नहीं होता है तो वे अलगाव एकाकीपन में रहते हैं और संबंधो से दूर रहने की कोशिश करते हैं अपनी आत्मीयता में किसी को नहीं आने देतें हैं वे अपनी आत्मीयता से समझौता नहीं करते हैं और ये सब परिस्थिति पर निर्भर करता है कि उनकी शुरुआत कैसी हुई है |

7⃣ उत्पादकता बनाम स्थिरता , जननात्मक बनाम स्थिरता, प्रजनन बनाम निश्चितता (24-65 वर्ष)

इस अवस्था में व्यक्ति आने वाली पीढ़ी के लिए चिंतित होता है वह सोचता है कि जिम्मेदारी का निर्वाहन कैसे किया जाए |

व्यक्ति उस समाज के बारे में भी सोचता है जहाँ उनकी भावी पीढ़ी समय बितायेगी | वह चिंतित रहता है कि उसको कैसे स्वीकार करेगी |

उसको जिम्मेदारी का अनुभव होने लगता है कि जैसे स्वयं का घर ,जमीन, कार, बाईक आदि |

इस अवस्था में उत्पादकता के साथ साथ विचार करना भी जरूरी है कि कैसे अपने भविष्य को संवारा जाये |

इस अवस्था में व्यक्ति कुछ भी कर सकता है इसी अवस्था में व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दो तरीके के इम्प्रेशन बना सकता है
🔹 एक अपने शारीरिक रूप को निखार सकता है जैसे अच्छे कपड़े, अच्छी बोली, Style Beauty personality आदि
🔹 और दूसरी आंतरिक सुंदरता या मन की सुंदरता यदि मन की सुंदरता है तो व्यक्ति अपने जीवन को अच्छा बना सकता है |

इस अवस्था में व्यक्ति दूसरों के प्रति भी चिंतित रहता है जैसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता |

8⃣ संपूर्णता बनाम निराशा (65 – मृत्यु तक)
Wholeness vs Frustration

यदि इस अवस्था से पहले व्यक्ति ने कुछ अच्छा कर लिया तो उसके मन में संपूर्णता का भाव होता है अन्यथा निराशा उत्पन्न हो जाती है अर्थात

सफलता या असफलता के समायोजन में व्यक्ति अपने भूतकाल के बारे में सोचता है व्यक्ति अपने को अनगिनत चीजों से घिरा हुआ पाता है उसकी

🔹 शारीरिक क्षमता में कमी हो जाती है वह जिदंगी के अंतिम पड़ाव में होता है |
🔹उसकी आय में कमी हो जाती है अपनी उम्र के लोगों के साथ जुडा़व होता है |

यह अवस्था मानव विकास की पिछली सभी अवस्थाओं का संकलन, समायोजन, और मूल्यांकन है | कि आखिरकार हमने किया क्या है |
इस अवस्था में पूरे तरीके से जो करना चाहते थे और वो मिला तो संपूर्णता और नहीं मिला तो निराशा |

इस उम्र में लोगों को भूतकाल के साथ साथ मृत्यु का भी भय होता है और अपरिवर्तनीय अवस्था का अहसास होता है |

एरिक्सन ये विश्वास करते हैं कि वृद्धावस्था में ही सच्ची परिपक्वता का विकास होता है क्योंकि उस समय जब आप कुछ नहीं कर सकते तब आप सोचते हैं |

इस प्रकार यदि व्यक्ति कुछ अच्छा कर लेता है तो संपूर्णता और नहीं कर पाते हैं तो निराशा का भाव उत्पन्न हो जाता है |

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✍🏻Notes by➖Puja Kumari🖋️

🔅 एरिक्शन : व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धान्त

एरिक्सन के अनुसार समाज और मन का विश्लेषण के सिद्धांत का निर्माण या विस्तार किया। इसके द्वारा दुनिया को समझ कर अपने मानसिक विश्लेषण के संरचना पर खुद में परिवर्तन करते है।
★जैसेकि 10 साल पहले के युग मे तभी के आधुनिक सामाजिक पहलू या स्थिति के अनुसार था लेकिन अभी 10 साल बाद यानि अभी के सामाजिक स्थिति के अनुसार खुद में परिवर्तन लाये।
★ उम्र के हिसाब से मनोविश्लेषण या मनोसामाजिक➖इनके अनुसार समय के साथ अलग – अलग प्रतिक्रिया करते है। उम्र के अनुसार हमारी समझ भी बढ़ती है। जैसे- कोई बच्चा जब छोटा होता है, तभी की समझदारी और बड़े होने के बाद कि समझदारी दोनों अलग-अलग होती है। इसलिए मन के साथ समझ का विश्लेषण भी बढ़ता है।
★ उम्र के साथ – साथ जैविक कारक और सामाजिक कारक के बीच अन्तःक्रिया होती है। जैसे बचपन मे हम लोगो को देखके छीप जाते थे लेकिन अभी बड़े होकर छुपकर लोगो को देखते है।इसलिए कहा जाता है- वो दौर था बचपन का ( जैविक कारक ), यह दौर जवानी का ( समाजिक कारक )। यही व्यक्तित्व विकास है।
★ उम्र के साथ या समय के अनुसार हमारी मनोविश्लेषण या मनोसामाजिक को देखने का नजरिया भी बदलता है। वह नजरिया समाज को सुधारने या बदलने की हो,यहि personality development है।

🌸 एरिक्सन ने अपने सिद्धान्त में 8 प्रकार की अवस्थाओ पर बात की है,जो निम्न है

1️⃣ विश्वास बनाम अविश्वास (Trust vs Mistrust )【0 – 1year】

★बच्चे अपनी क्रियाओ के प्रति, काम के प्रति, अपनी स्थिति के प्रति विश्वास या अविश्वास की भावना का विकास होता है। जैसे- कोई बच्चा जब सोता है, तो उसके अंदर मूलविश्वाश की स्थापना होती है। उसकी अच्छी नींद में सोने की क्षमता से हम समझ सकते है कि वह अपने इंद्रियों से सकारात्मक चीजो को अनुभव करता है और उसको पहचान कर विश्वास या अविश्वास करता है।
★ बच्चे अपने शरीर के साथ 3 से 6 महीने में वातावरण के अनुकूल हो जाता है और खुद को उस वातावरण में समायोजित करने लग जाता है।
★ बच्चे अपने दैनिक कार्य को स्थिति अनुसार करते है।जैसे- हँसना, रोना, चिल्लाना, भूख लगना इन सभी कार्य को अपने इंद्रियों से अनुभव करता है और विश्वास करता है।
★ बच्चा दूसरे के प्रति सकारात्मक क्रिया करता है। बच्चे में लोगो को पहचानने की क्षमता आ जाती है। जिसके कारण निरंतरता या एकरूपता या स्थिरता उत्पन्न होती है और विश्वास करना सीखने लगता है।
★ Neg. Factor ➖यदि इसके अनुरूप behave नही करते है तो बच्चे में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाती है। जैसे बच्चे का रोना, चिल्लाना, चिड़चिड़ापन, ये सारी क्रियायें उसके activity से पता चलता है। बच्चे का अपनी माँ के गोद से दूसरे के गोद मे न जाना ये अविश्वास के कारण होती है।

2️⃣ स्वतंत्रता बनाम शर्म ( Autonomy vs Shame )【1 to 3 year】

★बच्चा इस अवस्था मे स्वतंत्रता और शर्म की भावना का विकास हो होता है।
★बालक सीखता हैं कि उससे क्या अपेक्षा या उम्मीद है। बालक अपने कर्तव्य, अधिकार की सीमायें को feel करने लगता है।
★ इस अवस्था मे नई नई चीजों पर क्रिया करने लगता है,क्योंकि उससे रिलेटेड कार्य को देखता है और सीखता है फिर उस काम को खुद से करने लगता है।
★ इससे बच्चा के अंदर स्वनियंत्रण की भावना का विकास होता है। लेकिन यदि बच्चें को स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न नही हुई तो उसमें संदेह की भावना आने लगती है।
★ इस अवस्था मे इच्छा शक्ति का भी विकास होता है इससे स्वनियंत्रण की भावना और भी बढ़ जाती है। यदि बच्चे में अपने काम को लेकर कोई भी संदेह रहता है तो इससे बच्चे की इच्छा शक्ति में कमी आने लगती है और स्वनियंत्रण की भावना नही रह पाती है, जिससे कि शर्म की भावना भी उत्पन्न होने लगती है।और बच्चा अपना कार्य पूरा नही कर पाता है।

3️⃣ पहल बनाम अपराध/ अपराध बोध ( Initictive vs Guilt )【 3 to 6 years 】

★ इस stag में बच्चे अपने चुनौतियो से निपटने के तरीके को सीखने लगता है।
★ बच्चे का जो संबंध होता है उसे समझने लगता है।जैसे दादा-दादी, मामा-मामी, भाई-बहन, मौसा-मौसी, नाना-नानी आदि।
★इस उम्र में बच्चे का लगाव जिसके साथ ज्यादा होता है उसके साथ comfertable feel करता है। जिसको नही पहचानता है उसके साथ uncomfertable feel करने लगता है। इसलिए बच्चों में संबंधो में अनुमोदन / लगाव/ अन्तःक्रिया होने लगता है।
★इसी अवस्था मे बच्चे अपने उम्र या अपने से बड़े उम्र वाले लोगो के साथ गतिविधि करने लगता है। जैसे एक बच्चा जब mirror को देखता है,तो उसे लगता है कि कोई दूसरा बच्चा मेरा नकल है।इससे बच्चे में सोचने और समझने की कौशल का विकास होता है।
★ इस अवस्था मे बच्चे में लैंगिकता समझ भी आ जाती है जिससे वो बता पाता है कि वो लड़का है या लड़की है।
★ इसमें बच्चा अनुकरण / पहल करने है, दूसरे के किये हुए चीज को दुहराने लगता है। इसमें छोटे बच्चे जल्दी अनुकरण करने लगते है।
★ इस अवस्था मे बच्चे ज्ञान प्राप्त करने लगते है और अपने उत्तरदायित्व को समझने लगते है।जैसे- अपनी खिलौने को संभाल कर रखना, किसी की बात को सुनके उस काम को पूरा करना आदि ।
★ इस उम्र में बच्चे अपनी उद्देश्यों या लक्ष्य के प्रति गुणवत्ता को समझने लगते है। और नियोजन निर्धारित करके काम करने लगता है। जैसे बच्चे अपने दौड़ को लक्ष्य बना लेते है या किसी बच्चे को कोई game खेलने में अपना लक्ष्य बना लेते है।
★ यदि बच्चे में इनसब के प्रति सकारात्मक गुण नही आती है तो बच्चा में अपराधबोध गुण आने लगते है।
★ हर बच्चे में या बड़े में पहल और अपराध दोनो ही गुण होते है, इसमें जिसका लक्षण ज्यादा होगा। उसके आधार पर उसमे पहल या अपराध का बोध होगा।
★ बच्चे में पहल या अपराध उसके environment पर भी निर्भर करता है।
★4से6 साल में बच्चे की सर्वाधिक गतिविधि होती है इस समय मे बच्चा खेल -खेल में अपना कार्य पूरा कर लेते है।
★ यदि ये सब नही हुई तो बच्चे इसका उल्टा काम करने लगते है जिसे अपराध कहा जाता है।

4️⃣ उद्दीमता / परिश्रम बनाम हीनता ( Indisting / Infeirorty )【6 to 11 years】

एरिक्सन का ये चौथा अवस्था है।
★ इस अवस्था मे बच्चे का औपचारिक शिक्षा शुरू हो जाती है। जैसे स्कूल जाना, पढ़ना, लिखना।
★ अन्य व्यक्ति के साथ सहयोग की भावना आ जाती है, दुसरो की मदद करने लगते है।
★ तर्क शक्ति में वृद्धि होने लगती है।किसी भी समस्या में सोचने लगते है और अपना तर्क देते है।
★ स्वअनुशासन करने लगते है। कहाँ पर कैसे व्यवहार करना है।और अपने नियमो के हिसाब से व्यवहार करने लगते है।
★ संस्कृति के पक्षो को समझने लगता है, जिससे कि उद्दीमता या परिश्रम की सोच आती है। इस अवस्था मे बच्चे अपने रुचि के अनुसार aim बना लेते हैं मुझे आगे क्या बनना है।इंजीनियर, डॉक्टर, संगीतकार,लेखक ,कवि etc
★ यदि ये सारी क्रियायें करना चाहते है, और नही कर पाते है तो हीनता की भावना आ जाती है। जिससे कि अक्षमता का शिकार हो जाते है और दुष्परिणाम दिखने लगता है।

5️⃣ पहचान बनाम भूमिका भ्रम /भ्रांति ( Identity vs Role confusion ) 【12 to 20 years 】

★ इस stag में न तो बच्चा होता है न तो वयस्क रहता है। इस अवस्था को किशोर कहा जाता है। इस उम्र को transition fej भी कहा जाता है। ये सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इसी उम्र में समाज की मांग और भूमिका में कई परिवर्तन का सामना करना पड़ता है। क्योंकि ये परिवर्तन हमारे वयस्क की चुनौतियों का सामना करने के जरूरी / आवश्यक होती है।
★ इस उम्र में अपना पसंद ,नापसंद होने लगती है।
★भविष्य के प्रति पूर्वानुमानित लक्ष्य पर जागरूक होने लगते है।
★इस समय भविष्य पर नियंत्रण की शक्ति और उद्देश्य का पता रहता है। जिससे कि present में क्या है? भविष्य में क्या कर सकते है? इस बात को जानने लगता है।
★बचपन के बाद ( बाल्यावस्था ) और वयस्कता से पहले ( किशोरावस्था ) के काल को संधिकाल या वयस्कसंधि कहते है। इस काल का उम्र 12 से 16 तक माना गया है।
★ इस अवस्था मे हमारी पहचान का निर्माण होता है और भूमिका का भी निर्माण होता है।
★ इसके negative factor➖यदि बच्चे अपने रुचि के अनुसार कुछ बनना चाहते है और नही बन पाते हैं तो बच्चे के अंदर भ्रम उत्पन्न होना लगती है। जो भूमिका निर्वहन में बहुत Impactfull होता है। जिससे बच्चा के अंदर अकेलापन/खाली/ चिंतित/अनिश्चितता महसूस करने लगता है और निर्णय लेने पर मजबूर हो जाते है। और ऐसा feel करता है जिससे कि बच्चा बहुत विरोधी बन जाता है।और अब वह अव्यवस्थित अवस्था मे चले जाते है।
★इस समय बच्चे में घृणात्मक पहचान बनने लगती है, जिससे कि खुद को अयोग्य मानने लगता है।
★ 12 से 20 की उम्र में कर्तव्य और ईमानदारी का विकास होता है।
★इसी उम्र में लैंगिक रूप से परिपक्व या जिम्मेदार हो जाते है।इस उम्र में बच्चे में muture हो जाते है और इससे व्यस्को जैसा व्यवहार की उम्मीदे की जाती है, लेकिन लैंगिक स्वतंत्रता नही दी जाती है। जिससे कि बच्चे अपने घर परिवार से बाहर निकलकर आंतरिक ज्ञान को खोजने की कोशिश करते है।

6️⃣ आत्मीयता बनाम एकाकीपन / अलगाव ( Intimacy / Isolation ) 【20 to 24 years】

★इस उम्र को अल्प वयस्क भी कहा जाता है। इस अवस्था मे भविष्य के प्रति जिम्मेदार हो जाती है।
★ इस उम्र में विवाह के बंधन में बंध जाते है।और वैवाहिक जीवन की शुरूआत करते करते है।
★ प्रारंभिक पारिवारिक जीवन की शुरुआत होने का यह सही समय माना जाता है।
★ इस अवस्था मे सामाजिक आत्मीयता आने लगती है। सामाजिक रूप से लोगो से जुड़ने लगते है।
★इस अवस्था मे लैंगिक परिपक्वता आ जाती है, और stability
★इस अवस्था मे उन्ही लोगो से जुड़े रहते हैं जिनपर उसका विश्वास रहता है। जैसे – lifepartner
★इसके Neg. Factor भी होते है➖अगर ये सब नही होता है तो अकेलापन, एकाकीपन आ जाता है। वह किसी के संबंधों में नही आने लगता है और संबधो से दूर रहने लगता है। अब आत्मीयता से समझौता नही करना चाहते है। किसी पर विश्वास नही रहता है खुद में अकेले रहने की आदत बन जाती है।

7️⃣ जननात्मक / उत्पादक / प्रजनन बनाम स्थिरता / निश्चितता ( Productivity vs Stabality ) 【24 to 65years】

★ इस अवस्था मे जो व्यक्ति होते है, वो अपने आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचने लगते है।
★ इस उम्र में समाज के बारे में चिंतित रहता है,कहाँ उसकी भावी पीढ़ी जीवन बिता पायगी। कैसे समाज मे वो अपना सामंजस्य स्थापित कर पायेगे।
★ उसे उसके सारी जिम्मेदारी का अनुभव होने लगता है। वो सोचने लगते है कि एक अपना घर हो, जमीन जायदाद हो।
★इस उम्र में उत्पादकता के साथ-साथ विचार करना भी जरूरी होता है। कि कैसे भविष्य को सवारा जाय।
★इसी उम्र में व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दो तरह का धारणा या impression बना सकते है। जैसे कि कोई व्यक्ति अपनी शरीरिक रूप से खुद को निखरता है – बाहरी सुंदरता, अच्छा कपड़ा, अच्छा बंगलागाड़ी इत्यादि। और दूसरा व्यक्ति आंतरिक मन की सुंदरता को निखरता है।
★ इसी अवस्था मे व्यक्ति दूसरे के प्रति और अपने बच्चों के भविष्य के प्रति ज्यादा चिंतित होते हैं।

8️⃣ सम्पूर्णता बनाम निराशा ( Wholeness vs Frustration ) 【65years से मृत्यु तक 】

★इसमें सिर्फ सफलता या असफलता के बारे में सोचता है यदि अपनी past में कुछ अच्छा किया तो सफलता महसूस करता है, यदि past में कुछ अच्छा नही किया रहता है तो असफलता महसूस करता है।
★ इस उम्र में शरीरिक क्षमता में कमी आ जाती है।
★ उसकी आय में भी कमी आ जाती है। अपनी उम्र के लोगो के साथ जुड़े रहते है।
★ मानव विकास की पिछली सभी अवस्थाओ का संकलन, समायोजन, समेकन और मूल्यांकन करने लगते है।
★ इस पूरे जीवन मे कुछ अच्छा काम किया तो सम्पूर्णता का एहसास होता है, अगर वैसा नही हुआ तो निराशा होने लगती है।
★ मृत्यु का भय भी होने लगता है। ये अपरिवर्तनीय असफलता हो जाती है। इस समय को कोई नही बदल सकता है।
★ एरिक्सन का ये मानना है कि वृद्धावस्था में ही सच्ची परिपक्वता का विकास होता है। क्योंकि इस समय मे व्यक्ति खुद से कुछ नही कर सकता है तो पूर्व जीवनकाल के बारे में सोचते रहता है।
★ इस अवस्था मे यदि व्यक्ति कुछ अच्छा करता है तो उसके भाव मे संपूर्णता होती है, यदि कुछ नहीं कर पाता है तो निराशा की भावना आती है।

🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅 Thank you🙏🏻


By Vandana Shukla

🌸🌸 व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धांत🌸🌸
🌸 Psycho social theory of personality🌸

यह सिद्धांत एरिक एरिकसन द्वारा प्रतिपादित किया गया था

यह सिद्धांतअलग-अलग समय /स्तर में बच्चे की जो पर्सनालिटी को और बिहेवियर को डिफाइन करता है बताता है।

उनके सामाजिक पक्षों पर ध्यान दिया, उनकी सोच पर ध्यान दिया

यह जो समाज है और मन है
इनको कैसे नियोजित होता है इस पर बात किया हूं
मानसिक विश्लेषण का सिद्धांत का निर्माण किया।
जो मनोविश्लेषण संरचना है उसका निर्माण और विस्तार आप खुद करते हैं और वह दुनिया की समझ लाते हैं। अपने मन में और समय के हिसाब से उस दुनिया के समझ को सुधारते हैं और उसके अनुसार स्वयं में परिवर्तन करते हैं।
समय के अनुसार मनोविश्लेषण का और संरचना का निर्माण या विस्तार होता है और यह निर्माण विस्तार जरूरी भी है मनोविश्लेषण के साथ जो सामाजिकता होती है उसी को मनोसामाजिक सिद्धांत कहते हैं।

जैविक कारक +सामाजिक कारक के बीच जो अंत:क्रिया है वही व्यक्तित्व विकास है।

इन्होंने 8 मनोसामाजिक अवस्थाएं दी है।

1️⃣ विश्वास बनाम विश्वास
Trust vs mistrust
0-1

नींद, अच्छी नींद आना, अगर बच्चा अच्छी नहीं लेता है तो उसमें मूल विश्वास की भावना का जन्म होता है अच्छी नींद मूल विश्वास की स्थापना करती हैं
बच्चों में समझदारी नहीं है लेकिन वह अपनी इंद्रियों से अनुभव करता है ,अपनी इंद्रियों से वह सकारात्मकता का अनुभव करता है और उसको पहचानने की क्षमता रखता है।

3 से 6 महीने तक में बच्चा वातावरण में समायोजन करने लगता है , अपने मूल अंग में सामंजस (coordination)करने लगता है।
(बच्चा समय पर सोना दूध पीना रोना नहीं सारी क्रियाएं करने लगता है)
दैनिक कार्य सिस्टमैटिकली करता है और जब सिस्टमैटिकली करने लग जाता है तो उसकी इंद्रियां वह अनुभव करती हैं और धीरे-धीरे वह विश्वास करने लगता है लोगों के प्रति सकारात्मक क्रिया करता है और अगर वह यह सब कार्य नहीं किया अच्छी नींद नहीं ली दूध नहीं पिया दैनिक कार्य नहीं किया अनुभव नहीं किया तो अविश्वास पैदा होगा और नकारात्मक क्रिया करेगा।

बच्चे में पहचानने की क्षमता विकसित हो जाती है जैसे बच्चा मां को सबसे पहले पहचानता है फिर पिता को और बाद में बाकी परिवार के सदस्य को वह जिन लोगों को देखता है उन्हें पहचानने लगता है उन पर विश्वास करने लगता है जैसे बच्चा यदि रो रहा है और अगर उसकी मां आ जाती है तो बच्चा रोना बंद कर देता है या उसका विश्वास है कि मां आ गई और सब दुख दूर हो गए, रोना बंद कर देता है निरंतरता, एकरूपता, स्थिरता इनकी वजह से वह अन्य लोगों में विश्वास करना सीख जाता है लेकिन अगर परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चे को आरामदायक स्थिति ना दी जाए अनुरूप व्यवहार ना दिया जाए तो बच्चे में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाती है और अविश्वास उसके शरीर द्वारा प्रदर्शित होगा जैसे बच्चा रोने लगेगा चिड़चिड़ा ने लगेगा और उसका शरीर का अस्थिर हो जाएगा।

2️⃣ स्वतंत्रता बनाम शर्म
Autonomy vs shame
1-3 year

इस उम्र में बच्चा यह सीखता है कि उस से क्या अपेक्षाएं हैं जैसे आप बच्चों को कहते हो कि ऐसा नहीं करते ऐसा नहीं बोलते या यह काम करो यह मत करो या यह बोलो यह नहीं बोलो। बच्चे को उसकी लिमिटेशंस बताते हैं। पर जब बच्चा यह सब नहीं जानता लेकिन हमारी प्रतिक्रिया से उसके अंदर व्यवहार आते जाते हैं ।भाव क्या होता है यह बच्चा नहीं जानता ,भाव ,कर्तव्य, अधिकार, सीमाएं इसको बच्चा नहीं जानता लेकिन प्रदर्शित करता है उसको भाव आते हैं ।
वह नए नए प्रयास करता है और उन प्रयास के द्वारा स्व नियंत्रण की भावना उत्पन्न होती है स्व नियंत्रण करने लगता है तब स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न होने लगती है और अगर स्वतंत्रता की भावना या स्वनियंत्रण की भावना उत्पन्न नहीं होगी तो संदेह आता है और बच्चा झिझकने लगता है या शर्माने लगता है ।
स्व नियंत्रण के द्वारा बच्चा छोटे-छोटे कार्य करने लगता है

बच्चों में इच्छाशक्ति इसी उम्र में आती है ,जैसे इच्छा शक्ति से ही बच्चों में किसी बात को मनवाने की जिद पैदा होती है कि हमें यह चाहिए मुझे खाना नहीं खाना मुझे मोबाइल चाहिए। इच्छाशक्ति से ही स्व नियंत्रण उत्पन्न होता है और बच्चा निर्णय भी लेता है।

3️⃣ पहल बनाम अपराध
Initiative vs guilt
4-6
चुनौतियों से निपटने के तरीके।
बच्चा अपनी छोटी-छोटी परेशानियों , अपनी समस्या को खुद सुलझाने में सक्षम हो जाते हैं।
संबंधों में अनुमोदन अपने। बराबर या बड़े लड़कों के साथ गतिक कौशल -बच्चा अपने बड़े हम उम्र के बच्चों के साथ खेलने में बात करने में सहज महसूस करने लगते हैं उनसे अपनी परेशानियां बताते हैं।
लड़के लड़की में अंतर समझने लगते है -इस उम्र में बच्चे अपने सामान लिंग वाले बच्चों के साथ खेलना पसंद करते हैं वह जानते हैं कि यह लड़की है या लड़का ।
अनुकरण/ पहल ।
उत्तरदायित्व ग्रहण करने लगते है।
उद्देश्य /लक्ष्य की गुणवत्ता को समझता है ।
नियोजित होकर कार्य करता है।
अगर बच्चे में पॉजिटिव गुण नहीं हुए तो उसका उसके बदले में अपराध के गुण आ जाएंगे ।
जैसे जैसे वातावरण बदलता है वह उसके अनुसार प्रतिक्रिया करता है ।
बालक की सर्वाधिक गतिविधि इसी अवस्था में होती है।
खोज प्रवृत्ति ,अलग-अलग प्रकार के कार्य करता है।
बच्चा इस अवस्था में हताश भी होता है प्रयोग भी करता है लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खेल लिए तत्पर रहता है।
खेल की अवस्था बच्चे के अंदर अपराध की भावना रहती है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में।

4️⃣ उद्यमिता बनाम हीनता
या परिश्रम बनाम हीनता
Industry vs inferiorty
6-11

औपचारिक शिक्षा ।
अन्य व्यक्ति के साथ सहयोग ।
तर्क शक्ति में वृद्धि ।
स्वानुशासन आता है।
नियमों के हिसाब से कार्य व्यवहार।
संस्कृति के तकनीकी पक्षों को समझता है जिससे उसमें उद्यमिता/ परिश्रम की सोच आती है ।
स्कूल जाने लगते हैं, घर पर काम में हाथ बंटाते हैं।
उत्तर दायित्व निभाते हैं ,संगीत सीखना शुरू कर देते हैं ।
मानवीय कुशलता आती है।
अगर यह सारे काम यह बच्चे नहीं कर पाते या यह काम यह काम आप करना चाहते हैं और नहीं कर पाते तो हीनता की भावना आ जाती है।
हीनता – अक्षमता का शिकार सबसे बड़ा दुष्परिणाम है।
क्षमता का विकास कार्य के लिए समर्पित।

5️⃣ पहचान बनाम भूमिका भ्रम
Identity vs role confusion
12-20
यह सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है।
ना तो बचपन ना ही व्यस्क। बचपन -किशोर – व्यस्क
-इस अवस्था में बच्चों को बहुत सारे परिवर्तन का सामना करना पड़ता है। समाज की मांग के अनुसार अपने आपको डालना पड़ता है।
भूमिका- समाज में अपनी भूमिका अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद रहती है।
-व्यस्कता की चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है।

  • अपना पसंद नापसंद (अपने लिए चॉइस करने लगते हैं)।
  • पूर्व अनुमानित लक्ष्य के लिए कार्य करने लगते हैं, जागरूक हो जाते हैं ।भविष्य पर नियंत्रण की शक्ति इसी अवस्था में डिफाइन करता है कि वह वर्तमान में क्या और भविष्य में क्या बनना चाहता है।
    बचपन से व्यस्कता के बीच काल के समय को व्यसंधि काल कहा जाता है। बच्चे का ऐसा विकास हो रहा है जिससे बच्चे की पहचान हो रही है, पहचान का निर्माण ।
    अगर पहचान में कोई भ्रम होता है तो नेगेटिव सोच का जन्म होता है।
    भूमिका निर्वहन में भ्रम- यह भ्रम बहुत इंपैक्टफुल होता है तो बच्चा अपने आप को अकेला महसूस करता है खाली ,चिंतित ,अनिश्चित।
    यह सोचता है कि उनको निर्णय लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है । और वह बहुत अधिक विरोधी बन जाते हैं।
    अव्यवस्थित अवस्था में आ जाते हैं धनात्मक पहचान भी बनती है उसे लगता है कि वह अयोग्य है।
    इस स्टेज में बच्चों को उनके कर्तव्यों का पता चलता है।
    फंस ईमानदारी का विकास होता है लैंगिक रूप से जिम्मेदार होते हैं।
    अभिभावक वयस्को जैसा व्यवहार की उम्मीद करते हैं लेकिन वयस्को जैसी लैंगिक स्वतंत्रता नहीं देते।

6️⃣

आत्मीयता बनाम एकांकीपन
Affinity vs isolation
20-24

-अल्प व्यस्कता
-फ्यूचर रिस्पांसिबिलिटी

  • विवाह के बंधन में बनने लगते हैं -प्रारंभिक परिवारिक जीवन -सामाजिक आत्मीयता
  • लैंगिक आत्मीयता
    -स्टेबिलिटी ,विश्वास
  • बाधा- अगर यह सब नहीं होता तो अलगाव फील होता है, अकेला रहना पसंद करते हैं, संबंधों से दूर रहते हैं, आत्मीयता से समझौता नहीं करना।

7️⃣ उत्पादकता बनाम स्थिरता productivity vs stability
25-65
-आने आने वाली पीढ़ियों के विषय में चिंतित होते हैं।
समाज के बारे में सोचना की भावी पीढ़ी अपना जीवन कैसे बिताएगी ।

(पहले जो पैरंट्स अपने बच्चों के लिए सोचते थे आज वह बच्चा अपने बच्चों के बारे में सोचता है।)

जिम्मेदारी ,उत्पादकता विचार।
जो लोग यह नहीं कर पाते उनमें स्थिरता आ जाती है निराशा आ जाती है।
इस अवस्था की पिक स्टेज पर -25 से 35 वर्ष सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है यह जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण पड़ाव है।
25 से 35 वर्ष में दो चीजें आती हैं 1 beauty ,personality , dressing sense बोलना आपकी परफॉर्मेंस यह सब आते हैं 25 -35 वर्ष तक रहेंगे उसके बाद नश्वर हो जाते हैं
2मन की सुंदरता , आंतरिक सुंदरता होती यह आपके मृत्यु अंत तक आपके साथ रहती है। यह नश्वर नहीं होती।

आप इस उम्र में दूसरों के प्रति चिंतित रहते हैं।
35वर्ष तक जॉब शुरू कर देते हैं जो 65 वर्ष तक रहती है ।और जब आप कुछ नया करना बंद कर देते हैं या यह सोचते हैं कि आपने संपूर्णता पाली। या जो आप करना चाहते थे आप वहां तक पहुंच गए हैं तब आप में स्थिरता आ जाती है ।या आप जो भी पाना चाहते हैं अगर वह नहीं पाते या यह सोचने लगते हैं कि यह अब मुझसे नहीं हो पाएगा मैं इस चीज को नहीं प्राप्त कर सकता तो भी आप में स्थिरता की भावना आ जाती है।

8️⃣ संपूर्णता बनाम निराशा
Polis vs firstration integrity vs disappear
65 – Above

सफलता /असफलता के समायोजन पर पहुंचते हैं ।
यहां हम पास्ट के बारे में सोचते हैं यह सोचते हैं कि हमने अभी तक क्या किया।
अपने आप को अन्य चीजों से गिरा हुआ पाते हैं ।
शारीरिक क्षमता गिर जाती है।
आय में कमी आ जाती है।
या अवस्था मानव विकास की पिछली सभी अवस्थाओं का संकलन , समीकन और मूल्यांकन है। आखिरकार हमने क्या किया क्यों हुआ, जो करना चाहते थे वह मिला तो संपूर्णता और अगर नहीं नहीं मिल पाता या नहीं प्राप्त किया तो निराशा कि काश उस समय हमने यह कर लिया होता तो यह हो जाता ।
Now it’s not the time to start something new.

मृत्यु का भय ।
अपरिवर्तनीय असफलता।

एरिकसन यह विश्वास करते थे कि वृद्धावस्था में ही सच्ची परिपक्वता का विकास होता हैं।

धन्यवाद🔆


Erik erikson’s psychosocial development theory
Ericsson ne fried ke manoranjak Siddhant mein sudhar karke manosamajik Siddhant Diya
एरिक्सन ने अपने सिद्धांत में साइकोसोशल क्राइसिस बताएं
एरिक्सन ने अपने सिद्धांत में 8 stages बताई है
1☑️ infancy stage
0-1 yrs trust vs mistrust
विश्वास बनाम और विश्वास
इसमें बच्चों में दुनिया के प्रति एक विश्वास उत्पन्न होता है जैसे कि अगर उनकी केयर अच्छे से की जाए उनकी feeding अच्छे से हो तो उनमें एक trust create हो जाता है
बच्चा अपनी मां को पहचानने लगता है उनके प्रति बच्चे का लगाव बढ़ता है

2☑️ pre childhood age
1-3 yrs autonomy vs shame
स्वतंत्रता बनाम संदेह
जैसे इस एज में अगर बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग ढंग से दी जाए या ऐसा कोई भी काम जिससे बच्चे बच्चे का शर्म ना आए बच्चे की संदेह दूर हो तो उनमें किसी भी काम को करने की इच्छा जागरुक होती है बच्चा शर्म आता नहीं है और अपनी इच्छा से काम करता है
3☑️ play age
3-6 initiation vs guilt
पहल बनाम अपराध
इस आयु में बच्चा अपने आसपास की चीजों को explore करना सीखता है इससे उसका एक purpose बनता है , उद्देश्य स्थापित होता है
4☑️ school age
6-12 industry vs inferiority
उद्यमिता बनाम हीनता
ise mein baccha school activities may involve hona shuru kar deta hai jaise ki homework karna sports main part Lena CCE activities main part lena tu ine sab se bacche ke andar competence ki Bhavna aati hai baccha involve hona shuru kar deta hai
5☑️ adoloscence
12-20 yrs identity vs role confusion
पहचान बनाम भूमि का भ्रमण
इस अवस्था में बच्चा सोशल रिलेशनशिप्स डिवेलप करता है जीवन के प्रति बच्चे में निष्ठा उत्पन्न होती है और अगर बच्चा इस में नाकामयाब रहता है तो उससे रोल कन्फ्यूजन होता है उसे अपनी भूमिका समझ में नहीं आती है कि वह क्या करना चाहता है
6☑️ early adulthood
Intimacy vs isolation
आत्मीयता बनाम एकाकीपन
इस अवस्था में बच्चा permanent रिलेशनशिप डिवेलप करने के बारे में सोचता है
ऐसे व्यक्ति के साथ रहने के बारे में सोचता है जिसके साथ वह अपने आने वाली जिंदगी गुजार सकें
अगर बच्चा इस में नाकामयाब रहता है तो वह अकेला अकेला रहने लग जाता है
7☑️ mid adulthood
Generativity vs stagnation
उत्पादकता बनाम स्थिरता
Is stage mein main baccha vah Apne kam ke prati सजग रहता है दूसरों की केयर करता है और अपना पैरंट होने का दायित्व अच्छे से निभाता है
8☑️ late adulthood
65 – end. Ego integrity vs despair
संपूर्णता बनाम निराशा
Is avastha mein vyakti apni Puri jindagi ke upar uh ek jhalak dalta hai hai aur dekhta hai hai ki usne aakhir Puri zindagi mein kya Kiya hai hai agar sab kuchh Sahi Raha to vyakti mein main ego integrity aati hai hai vah wisdom ki tarah kam Karta hai per dusron ko advice deta hai hai aur yadi यदि अंत में व्यक्ति को निराशा हाथ लगी तो वह चाह कर भी अब कोई बदलाव नहीं कर पाता क्योंकि उसका पूरा जीवन समाप्ति पर है

Chahita acharya


✍🏻 मनीषा गुप्ता✍🏻

🌈एरिक्सन का व्यक्तित्व का मनोसामाजिक सिद्धांत➖

🍁एरिक्सन के अनुसार जो हमारे मन में विश्लेषण होता है उसमें बीते समय की आधुनिकता को अपने मन में विश्लेषण करके ऐसे डिजाइन किया जाता है कि उसका निर्माण और विस्तार और उसे समझ कर आज की आधुनिकता को समझने का प्रयास किया जा सके।

🍁एरिक्सन के अनुसार बीते हुए समय के अनुसार ही हम मानसिक क्रिया मनोविश्लेषण की संरचना के आधार पर आज के समय को समझने का प्रयास करते हैं।

🍁जैविक कारक और सामाजिक कारक के मध्य जो लेनदेन यह अंतर क्रिया होता है यही व्यक्तित्व विकास है।

🍁उम्र के अनुसार ही हमारी मनोविश्लेषण यमन की सामाजिकता भी परिवर्तित होती है उम्र के अनुसार ही बच्चे समाज को देखते और समझने का प्रयास करते हैं उम्र के आधार पर ही समाज को देखने का नजरिया भी बदल जाता है।

🍁जैसे बचपन में छोटे बच्चे शिक्षक को देखकर शुभ जाते थे लेकिन बड़े होने के बाद शिक्षक को चुप चुप कर देखते हैं कहने का सामान्य अर्थ यह है कि जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं वैसे वैसे उनकी सोच मन में विश्लेषण नजरिया भी समाज के प्रति परिवर्तित हो जाता है।

🍁परीक्षण के अनुसार कोई भी समस्या संकट नहीं होती है बल्कि सामर्थ्य को बढ़ाने वाली महत्वपूर्ण बिंदु होता है समस्या का व्यक्ति जितनी सफलता के साथ समाधान करता है उतना ही अधिक उस व्यक्ति का विकास होता है।

🌸 एरिक्सन के अनुसार व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास 8 चरणों से होकर गुजरता है➖

1️⃣ विश्वास बनाम अविश्वास➖(trust v/s mistrust)[0-1 year]
🌸यह परीक्षण का प्रथम मनोसामाजिक चरण है इसके अंतर्गत बच्चों को अपने अनुप्रिया ओं के प्रति विश्वास या अविश्वास की भावना आती है जैसे बच्चा अच्छे से नींद लेता है या भविष्य के प्रति चिंता कम करता है तो विश्वास की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

🌸 इस अवस्था में बच्चा दैनिक कार्य करता है इंद्रियों के द्वारा अनुभव करता है लोगों के प्रति सकारात्मक क्रिया करता है और आसपास के लोगों को पहचानने की क्षमता रखता है इन सब चीजों के प्रति बच्चे में विश्वास की स्थिति आ जाती है।

🌸बच्चा निरंतरता, एकरूपता ,स्थिरता के कारण अन्य लोगों के प्रति भी विश्वास करना सीख जाता है।

🌈लेकिन अविश्वास की स्थिति में यदि बच्चे के अनुरूप व्यवहार नहीं किया जाता तो बच्चे के मन में अविश्वास पैदा होता है और यदि बच्चे के अनुरूप कार्य नहीं किया जाता तो वह बच्चा रोने लगता है बच्चा अविश्वास की स्थिति में विभिन्न क्रियाएं करके दिखाता है जैसे रो कर ,चिड़चिड़ा कर ,परेशान होकर आदि।

2️⃣ स्वतंत्रता बनाम शर्म (autonomy v/s shame)[1-3year]➖ एरिक्सन का यह द्वितीय मनोसामाजिक चरण है इसमें बच्चा 1 से 3 वर्ष के बीच में होता है इस चरण में बच्चे को अन्य लोगों के प्रति विश्वास हो जाने के बाद बच्चा यह समझ लेता है कि वह अपने आप में स्वतंत्र है इस अवस्था में बालक यह सीखता है कि उस से क्या अपेक्षाएं हैं क्या उम्मीद है क्या कर्तव्य है क्या अधिकार है और क्या सीमाएं उसके लिए रखी जा रही हैं।

🍁 वह बालक ने नए प्रयास करने की कोशिश करने लगता है बच्चा अपनी इच्छा शक्ति के अनुसार ही स्वयं में स्व नियंत्रण करना भी सीख जाता है।

🌈ठीक इसके विपरीत यदि बालक को काम में संदेह रहता है तो उसकी इच्छा शक्ति में कमी आ जाती है और स्वयं में स्व नियंत्रण भी नहीं रख पाता और नए नए प्रयास भी नहीं कर पाता है जिससे बच्चे में शर्म की भावना उत्पन्न हो जाती है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाया।

3️⃣ पहल बनाम अपराध(initiative v/sguilt)[4-6]➖ यह अवस्था विद्यालय जाने की अवस्था है इस अवस्था में बच्चा जिंदगी की चुनौतियों से निपटने के तरीके सीखता है।

🍁जैसे कोई भी चीज करना है तो क्या करना है यह कोई भी चीज नहीं करना है तो क्या नहीं करना है बच्चा विभिन्न चुनौतियों से निकलने के लिए तैयार हो जाता है या सीखने लगता है।

🍁 वह बच्चा लोगों से उसका क्या संबंध है समझने लगता है अर्थात वह लोगों से संबंध स्थापित करने लगता है और इनके संबंधों में अनुमोदन दिखाई देने लगता है।

🍁 इस अवस्था में बच्चा गतिक कौशल करता है अपनी उम्र के बराबर या बड़े लड़कों के साथ कुछ कुछ गतिविधियां करने लगता है।

🍁 इस अवस्था में बच्चे नहीं सोच कल्पना करना भी प्रारंभ हो जाता है चाहे वह कुछ भी देख रहे हो वैसा कुछ भी ना हो जो वह देखता है उसी के आधार पर कल्पना करना प्रारंभ कर देता है।

🍁इस अवस्था में बच्चा लड़के और लड़कियों में भी अंतर करने लगता है वह यह समझ जाता है कि मैं लड़का हूं या लड़की। बच्चा अनुकरण या पहल भी करने लगता है।

🍁 इस आयु में बच्चे ज्ञान प्राप्त करना और उत्तरदायित्व ग्रहण करने लगता है [जैसे अपने खिलौना संभालना]।

🍁 बच्चा लक्ष्य की गुणवत्ता को समझने लगता है वह बच्चा लक्ष्य व उद्देश्य के प्रति दृढ़ संकल्पित हो जाता है और लक्ष्य को निर्धारित करके पूर्ण नियोजन से काम और उस काम को क्रमबद्ध रूप से करने लगता है।

🍁 यदि बच्चे में लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति सकारात्मक गुण नहीं आता है तो हो सकता है कि बच्चों में अपराध की भावना विकसित हो जाए अगर बच्चे कोई लक्ष्य के प्रति क्रमबद्ध रूप से पूर्ण नियोजन करने में उससे सकारात्मक गुण ना हो तो उस बच्चे में अपराध का गुण भी विकसित हो जाता है अर्थात बच्चे इस स्तर का भी कार्य करने लगते हैं जो बच्चे के लिए सही नहीं है। बच्चे में अपराध बोध की भावना भी आ जाती है और यह अपराध बोध भी वातावरण पर निर्भर करता है।बच्चे के अंदर अपराध की भावना का भी स्तर अलग अलग होता है।

🍁 बालक की सर्वाधिक गतिविधि इसी अवस्था में होती है। जैसे खोज प्रवृत्ति, कार्य, प्रयोग ,हताश आदि।

4️⃣ परिश्रम बनाम हीनता(industry v/s inferiority)[6-11]➖ . इस अवस्था में औपचारिक शिक्षा प्रारंभ हो जाती है बच्चे में अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग करने की भावना भी विकसित हो जाती है इस अवस्था में बच्चे में तर्क करने की शक्ति में वृद्धि,स्व अनुशासन ,नियमों के हिसाब से व्यवहार करने लगता है।

🍁 इस अवस्था में बच्चे संस्कृति के तकनीकी पक्षों को भी समझने लगता है बच्चे में परिश्रम /उद्यमिता की सोच भी आ जाती है।

🍁 इस उम्र के बच्चे स्कूल जाने लगते हैं और घर में भी कुछ काम करने लगते हैं बच्चे में कुछ उत्तरदायित्व भी संभालने का गुण आ जाता है बच्चे संगीत भी सीखने लगते हैं और बच्चे में मानवीय कुशलता भी आ जाती है।

🌈 इसके विपरीत यदि बच्चे में उत्तरदायित्व या या अन्य लोगों के साथ सहयोग या अंतः क्रिया नहीं कर पाते हैं तो बच्चे में हीनता की भावना आ जाती है। चिंता से बच्चे अक्षमता के शिकार हो जाते हैं यही इस अवस्था का बहुत बड़ा दुष्परिणाम है।

🌈 इस अवस्था का सबसे बड़ा गुण है कि बच्चे की क्षमता का विकास करना और बच्चे में कार्य के प्रति समर्पित होने का गुण विकसित करना। और यदि बच्चे में हीन भावना आ जाती है तो बच्चा कुछ नहीं कर सकता और वह यह सोचने लगता है कि मुझसे कुछ नहीं हो पाएगा।

5️⃣ पहचान बनाम भूमिका भ्रम(identity v/s role confusion)[12-20 year]➖ यह बच्चे की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस अवस्था में बच्चा बचपन और व्यस्क के बीच की अवस्था अर्थात किशोरावस्था में रहते हैं।

🍁 इस आयु के बच्चों में समाज के मांग के आधार पर अलग-अलग रोल को निभाने के लिए खुद में परिवर्तन लाना पड़ता है और समाज में हो रहे परिवर्तन का सामना करना पड़ता है।

🍁 इस अवस्था में लोगों को उस बच्चे से उम्मीद बढ़ जाती है इस अवस्था में बच्चे को वयस्क अवस्था के चुनौती को पार करने के लिए तैयार किया जाता है यह अवस्था व्यस्कता की चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है।

🍁 इस अवस्था में बच्चे में पसंद या नापसंद का गुण भी आ जाता है और वह पूर्व अनुमानित लक्ष्य के प्रति जागरूक होने लगता है।

🍁 इस आयु के बच्चे भविष्य पर नियंत्रण की शक्ति को पहचान करने लगते हैं या भविष्य के प्रति जागरूक होने लगते हैं कि मुझे क्या करना है मैं actually में क्या कर सकता हूं।

🍁बचपन से व्यस्कता के बीच के इस समय को व्यस्कता का संधि काल या वय संधि काल कहा जाता है। बाल्यावस्था से वयस्क अवस्था के बीच की अवस्था को ही वय संधि काल कहते हैं।

🍁 इस अवस्था में बच्चे की अपनी पहचान का निर्माण होता है और भूमिका का भी निर्माण होता है कि बच्चा किस स्तर पर है।

🌈 इसके ठीक विपरीत यदि बच्चे में भूमिका निर्वाहन का काल या पहचान में कोई भ्रम होता है तो वह बहुत ज्यादा नकारात्मक सोच या प्रभावित हो जाता है। 🍁भूमिका निर्वाहन में भ्रम

भूमिका निर्वहन में भ्रम हो जाता है तब बच्चा अपने आप को अकेला, खाली ,चिंतित ,अनिश्चित निर्णय लेने के लिए मजबूर या विरोधी बन जाता है और बच्चा अव्यवस्थित अवस्था में चला जाता है ।

🍁 इसी अवस्था में बच्चे में कर्तव्य, ईमानदारी का विकास विकसित होता है इस आयु में बालक लैंगिक रूप से परिपक्व हो जाता है।

🍁 इस अवस्था में हम बालक से यह उम्मीद करते हैं कि वह वयस्कों की तरह व्यवहार करें लेकिन वयस्कों जैसी लैंगिक स्वतंत्रता नहीं देना चाहते हैं।

🍁 इसी अवस्था में बच्चे में आंतरिक ज्ञान में नयी समझ को खोजने की कोशिश करने लगता है।

6️⃣ आत्मीयता बनाम एकाकीपन(affinity v/s isolation)➖[20-24year] इस अवस्था में बच्चे में भविष्य के प्रति जिम्मेदारी आती है वह बालक विवाह के बंधन में बंधने के लिए तैयार हो जाता है प्रारंभिक पारिवारिक जीवन की शुरुआत हो जाती है।

🍁 इस आयु के बालक में सामाजिक आत्मीयता भी आने लगती है और वह बालक लैंगिक आत्मीयता के लिए भी तैयार हो जाता है और इसी अवस्था में बालक जिंदगी में स्थिरता खोजने लगते हैं।

🍁 इस आयु के बालक में विश्वास जिनके साथ होता है उन्हीं के साथ जुड़ना चाहते हैं।

🌈 और यदि बालक में भविष्य के प्रति जिम्मेदारियां नहीं आती है तो वह बालक एकाकीपन या अलगाव का एहसास करने लगता है उसमें विश्वास की भावना नहीं रहती है।

🍁 इस परिस्थिति में वह संबंधों से दूर रहना, आत्मीयता में किसी को ना आने देना ,समझौता नहीं करना ,स्वावलंबी में नकारात्मकता आ जाती है‌।

7️⃣ उत्पादकता बनाम स्थिरता /जननात्मक बनाम स्थिरता /प्रजनन बनाम स्थिरता(productivity v/s stability)[24-65]➖ इस अवस्था में बच्चे अपने काम के प्रति सजग हो जाते हैं और अपना दायित्व भी अच्छे से निभाते हैं और इस अवस्था में बालक अपने आने वाली पीढ़ियों के प्रति भी चिंतित होने लगते है। कि वह भावी पीढ़ी अपना जीवन कैसे व्यतीत करेगा।

🍁 जिम्मेदारी ,उत्तरदायित्व, विचार यदि वह बालक यह नहीं कर पाता है तो उनमें स्थिरता की भावना आ जाती है। यह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है।

🍁 यदि वह बालक जो भी पाना चाहता है अगर नहीं पाता है तो वह सोचने लगता है कि अब मैं कुछ नहीं कर सकूंगा, मुझसे कुछ नहीं हो पाएगा तो उसमें स्थिरता की भावना आ जाती है।

8️⃣ संपूर्णता बनाम निराशा(ego integrity v/s despair)[65 above]➖ इस आयु में व्यक्ति सफलता/ असफलता के समायोजन पर पहुंच जाते हैं। वह व्यक्ति अपने बीते हुए कल के बारे में सोचने लगता है की उसने अभी तक क्या किया है तो वह स्वयं को अन्य लोगों से निम्न स्थिति में देखने लगता है।

🍁 इस अवस्था में व्यक्ति की शारीरिक क्षमता भी कम हो जाती है और आय में भी कमी आ जाती है।

🌈 ठीक इसके विपरीत यदि व्यक्ति अपने बीते हुए कल के बारे में सोच कर यह अनुभव करता है कि वह अभी तक कुछ नहीं कर पाया है जो करना चाहता था वह भी नहीं कर पाया और मिला भी नहीं तो वह निराशा की स्थिति में आ जाता है और यदि जो वह पाना चाहता था या करना चाहता था उसे मिल जाता है तो संपूर्णता की स्थिति आ जाती है।

🍁🍁🌈💐🌈🍁🍁

Learning – curve, plateau, and transfer of learning

अधिगम -वक्र,पठार, एवं अधिगम का स्थानांतरण

  (1)अधिगम के वक्र-

अधिगम के वक्र सीखने की मात्रा, गति, उन्नति, अवनति को दर्शाते है।
परिभाषाये-

स्किनर- अधिगम का वक्र किसी दी हुई क्रिया में उन्नति या अवनति का कागज पर विवरण है।
गेट्स एवं अन्य- अघिगम वक्र सीखने की क्रिया से होने वाली गति और प्रगतिबको व्यक्त करता  है।

रैमर्स- सीखने का वक्र किसी दी हुई क्रिया की आंशिक रूप से सीखने की पद्धति है।

सीखने के वक्र की विशेषताए-

(1)उन्नति की गति समान नही होती है।(2)प्रारम्भिक अवस्था मे अंतिम अवस्था की तुलना में उन्नति की गति बहुत अधिक होती है।(3)प्रारम्भ में गति तीव्र होती है पर यह सार्वभौमिक विशेषता नही है।(4)सीखने में प्रतिदिन उतार चढ़ाव आता है पर सीखने की प्रगति एक निश्चित दिशा में होती है।

वक्र के उतार -चढ़ाव के कारण-

  • उत्तेजना
  • थकान
  • प्रोत्साहन
  • संतुलन

अधिगम वक्र के प्रकार-

चार प्रकार है-
(1)सरल रेखीय/समान निष्पादन वक्र-  इसमे सीखने की प्रगति को लागातर बढ़ते हुए दिखाया जाता है।


(2)ह्रास निष्पादन /उन्नतोदर/ऋणात्मक/convex वक्र-  इसमे प्रारम्भ में गति तीव्र तथा बाद में मंद होती है।सबसे लोकप्रिय वक्र यही है । कला विषयो मे यही वक्र बनता है।

(3)धनात्मक/वर्धमान/नतोदर/concave वक्र-  इसमे प्रारम्भ में गति धीमी तथा बाद में तीव्र होती है।

गणित तथा विज्ञान विषय के वक्र यही होते है ।

(4)मिश्रित/अवग्रहास/S type वक्र–  प्रारम्भ में गति तीव्र फिर धीमे फिर तेज फिर धीमे होती रहती है।

वक्र को प्रभावित करने वाले कारक-

(1)पूर्वानुभव
(2)अभ्यास
(3) सरल से कठिन की ओर
(4)कौशल
(5)उत्साह एवं रुचि


(2)अधिगम के पठार

जब सीखने में उन्नति व अवनति का बोध नही होता तो पठार आ जाते है ।

सीखते समय या अधिगम करते समय जब हमारी सीखने की गति अचानक रुक जाती है तो इसे अधिगम का पठार कहते है

जब अधिगम की दर में लंबे समय तक स्थिरता की स्थिति हो अर्थात ना तो अधिगम वक्र में चढ़ाव आ रहा है और ना अधिगम वक्र में उतारा रहा है इस स्थिरता को अधिगम पठार कहते हैं

यह अधिगम का पठार नई चीजों को सीखने में ; एक अवस्था से दूसरी अवस्था में सीखने पर ; काम की जटिलता होने पर ; रुचि का अभाव थकान कार्य की उदासीनता ; गलत आदतों से सीखने पर आदि कारणों से होता है

परिभाषाये-

स्किनर– अधिगम पठार वह स्थिति है जिसमे उन्नति का बोध नही होता हैं।

रैक्स व नाईट– सीखने में पठार तब आते है जब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुँचकर दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है।

सोरेनसन-सीखने की अवधि मे पठार कुछ दिनों, सप्ताहों या कुछ महीनों तक रहते है।

पठार के कारण

(1)विषय रुचि का अभाव
(2)थकान
(3)मानसिक अस्वास्थ्यता
(4)सीखने की अनुचित विधि
(5)अभ्यास का अभाव
(6)उपयुक्तता न होना
(7)आवश्यकता के अनुरूप नही
(8)कार्य की जटिलता
(9)मनोशारीरिक दशा
(10)पुरानी आदतों का नई आदतों से संघर्ष
(11)जटिल कार्य के केवल एक पक्ष पर ध्यान
(12)व्यवधान व प्रेरणा का अभाव
(13)नकारात्मक कारक जैसे-आलस,ध्यान भंग
(14) उत्साहहीनता
(15)ज्ञान का अभाव

पठार का निराकरण-

(1)सीखने के समय का वितरण
(2)उत्साह के साथ सीखना
(3)पाठ्य सामग्री का संगठन
(4)शिक्षण विधि मे परिवर्तन
(5)प्रेरणा तथा उद्दीपन
(6)विश्राम
(7)अच्छी आदतें


(3)अधिगम का स्थानांतरण-

पूर्व में सीखे हुए ज्ञान का नई जगह प्रयोग ही अधिगम का स्थानांतरण है।

परिभाषाये
क्रो एंड क्रो– सीखने के एक क्षेत्र से सीखने के दूसरे क्षेत्र में स्थानान्तरित होने वाले ज्ञान को अधिगम का स्थानान्तरण कहते है।

कल्सनिक– शिक्षा के स्थानांतरण से आशय एक परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान,आदतों,निपुणता, अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।

अधिगम स्थानांतरण के प्रकार-

(1)धनात्मक/सकारात्मक– यदि नया ज्ञान सीखने में पुराना ज्ञान मदद करे तो इसे अधिगम का धनात्मक स्थानांतरण कहते है।
जैसे-हिंदी का ज्ञान संस्कृत सीखने में उपयोगी होता है,
साईकल का ज्ञान मोटर बाइक सीखने में उपयोगी होता है।

(2)ऋणात्मक/नकारात्मक– यदि नया ज्ञान सीखने में पुराना ज्ञान रुकावट पैदा करे तो इसे अधिगम का ऋणात्मक स्थानांतरण कहते है।
जैसे-अंग्रेजी की गिनती सीखने में हिंदी की गिनती रुकावट पैदा करती है।

(3) शून्य स्थानांतरण– जब नया ज्ञान सीखने में पुराना ज्ञान कोई मदद न करे न ही रुकावट पैदा करे ।
विद्वानों ने इसे अधिगम का स्थानांतरण नही माना है ।

अधिगम के स्थानांतरण के सिद्धांत-इसके दो सिद्धान्त प्रचलित है-

(1)प्राचीन सिद्धान्त– मानसिक शक्तियो का सिद्धांत, औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण आदि प्राचीन सिद्धान्त है।

(2)आधुनिक सिद्धान्त– इसके अंतर्गत निन्म आते है-
(i)समरूप तत्वों का सिद्धांत- थार्नडाइक ने दिया
(ii)सामान्यीकरण का सिद्धांत- सी. एच. जड ने दिया
(iii)आदर्श एवं मूल्यों का सिद्धांत- बाग्ले ने दिया।