Theories of Inclusive Education notes by India’s top learners

✍🏻Manisha gupta ✍🏻

🌺 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 🌺 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि शिक्षा का प्रभाव कैसे या किस प्रकार से पड़ रहा है। सिद्धांत यह बताता है प्रत्येक बच्चे को किस प्रकार की शिक्षा की जरूरत है।

📚समावेशी शिक्षा के अंतर्गत 4 महत्वपूर्ण बातें हैं जो इस प्रकार से है➖

1️⃣ बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे के अधिगम स्तर को एक जैसा करना है अर्थात प्रत्येक बच्चे की प्रकृति को सीखने के प्रति एक समान करने का प्रयास करना है। सामान्य शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि सभी बच्चों को पढ़ाने की प्रवृत्ति एक जैसी होनी चाहिए।

2️⃣ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है यदि आपकी प्रवृत्ति है कि किसी चीज को करने के सक्सेस हो सकते हैं तो अन्य बच्चे की प्रवृत्ति भी किसी चीज को करने के लिए सक्सेस हो सकती है।

लेकिन यहां प्रत्येक बच्चे को एक समान शिक्षा देने का अधिकार है। यह निश्चित करना है कि शिक्षक के द्वारा जो भी शिक्षा प्रदान किया जाए वह सभी बच्चों के लिए एक समान हो जो प्रत्येक बच्चे का अधिकार है। सभी बच्चों के लिए समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना है।

3️⃣ सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाए इस सिद्धांत के द्वारा यह बताया गया है कि प्रत्येक बच्चे को सुविधा अनुसार सामग्री उपलब्ध करा कर बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास किया जाए।

जैसे सरकारी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को कपड़े, लैपटॉप, पुस्तक, साइकिल, धन आदि के माध्यम से बच्चों की उनकी गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। विद्यालयों में सभी बच्चों को सामग्री उपलब्ध करा के उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाया जा सकता है।

4️⃣ शिक्षण में सभी वर्गों ,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व यह है कि वह समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें ‌ जितना हो सके बच्चों के समावेशी शिक्षा के लिए परिवार, शिक्षकों तथा समाज का यह दायित्व होना चाहिए कि वह जितना हो सके उतना सहयोग करें अर्थात अपेक्षित सहयोग करें।

🎯 समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां जैसा कि हम जान गए कि समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है अर्थात समेकित शिक्षा के अंतर्गत ही समावेशी शिक्षा को स्थान दिया गया है।

यह शिक्षा किसी व्यक्ति में या बच्चे में अलग-अलग योग्यता ,क्षमता का विकास करके उसमें समाज से समायोजन करने की योग्यता विकसित करते हैं। और व्यक्तियों को अलग-अलग कौशल प्रदान करके स्वालंबन की दिशा में लाने के लिए प्रेरित करते हैं।

✔️ आर्थिक रूप एवं मानसिक रूप से बच्चे को तैयार करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जिससे वे अपनी जिंदगी अच्छे से जी सके और जिम्मेदार बने।

✔️ समाज में प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है और उन्हें समाज में बेहतर रूप से रहने के लिए यह समाज से समायोजन की प्रक्रिया करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी है तो वह व्यक्ति समाज से समायोजन करने में भी कठिनाई महसूस करेगा। उस व्यक्ति को अपने परेशानी को दूर करने के लिए बहुत सारे स्तर को पार करना पड़ेगा तो उससे समाज से समायोजन करने में अधिक मेहनत की जरूरत होती है जो शिक्षा के माध्यम से बेहतर रूप से समाज से समायोजन कर सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में समाज से समायोजन करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है।इसके माध्यम से किसी व्यक्ति को सही दिशा मिलता है।

🍭 समेकित शिक्षा की आवश्यकता क्यों हुई इसे इस प्रकार से समझा सकते हैं

1️⃣ उपागम्यता यदि कोई बच्चा सामान नहीं है या असामान्य है अर्थात किसी न किसी रूप में विशिष्ट है दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना है। अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों के लिए उनकी संख्या के आधार पर (उनके घर के पास , उनके area में) विशिष्ट विद्यालय की स्थापना कर दी जाए। यह बहुत कठिन कार्य है उनके घर के आसपास विशिष्ट विद्यालय जिसमें सुविधा शौचालय हो यह कर पाना कठिन है। सामान्य बालकों हेतु भी विद्यालय की दूरी दूर नहीं होनी चाहिए और यह बात भी की जाती है कि प्राथमिक विद्यालय 1 किलोमीटर के अंदर हो और माध्यमिक विद्यालय 3 किलोमीटर के अंदर होना चाहिए। यह उपलब्ध कराने वाली जो चीज है उसकी आवश्यकता भी है और चुनौती भी है यहां दोनों पक्षों को देखा जा रहा है यहां उपलब्धता कराना कठिन है। ✔️ *कारण*➖ सामान्य और असामान्य बालकों , दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना।

✔️ चुनौती ➖जबकि हर बच्चे के घर के पास विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना एक कठिन कार्य है जो उपलब्ध करा पाना अत्यंत कठिन होता है और यही चुनौती है।

2️⃣ असंवेदनशीलता ✔️कारण➖ सभी बच्चों के साथ संवेदनशील रहना ही कारण है।

✔️ चुनौती➖ समाज, परिवार अध्यापक, नकारात्मक अभिवृत्ति ,मित्र से संवेदनहीनता या नकारात्मक अभिवृत्ति है तो विशिष्ट बालक आगे नहीं बढ़ पाते हैं अर्थात दिशाहीन हो जाते हैं। हमारे शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि अध्यापक और समाज परिवार मित्र को सकारात्मक अभिव्यक्ति नानी चाहिए यह संवेदनशीलता होनी चाहिए यह एक चुनौती है।

📚 उदाहरण➖ जैसे योग्यता होने के बाद भी बालिका शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करना और बालिकाओं को भी एक है ना की पढ़ लिख कर क्या करेंगे तो इस नकारात्मक अभिवृत्ति के कारण संवेदनहीन हो जाते हैं जिससे वे आगे नहीं बढ़ पाती हैं।हम सबको किसी भी चीज के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है और यह संवेदनशीलता तब आएगी जब हम अपने अंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति लाएंगे।
उदाहरण➖ बच्चे के पास शैक्षिक योग्यता होने के बाद भी उसके परिवार वाले विद्यालय भेजने में रुचि नहीं लिया जाता है कई घरों में बच्चों को बोझ समझा जाता है चिंता या दैन्य दृष्टि से देखा जाता है तो यहां पर अध्यापक, समाज और परिवार को सकारात्मक अभिव्यक्ति लाना चाहिए यह एक उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा ✔️कारण➖ समाज में कई बार विभिन्न जानकारियों का अभाव होता है समाज में जो अलग-अलग समस्याएं हैं। समाज में जानकारी के अभाव में उपागम्यता का कारण और संवेदनशील का कारण की पूर्ति नहीं होने से समस्या में वृद्धि हो जाती है या समस्या बढ़ते चली जाती है। यही कारण है।

✔️ चुनौती➖ इन सभी समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा करना या awareness लाना समस्याओं के निराकरण की क्या उम्मीद रखते हैं यह awareness फैलाने की जरूरत है। कि कैसे निराकरण करते हैं या क्या उपाय करते हैं निराकरण के संबंधित ज्ञान से ही स्थिरताआती है और यदि समस्या में सुधार आती है तो संबंधित ज्ञान से स्थूलता भी आती है।

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✍ PRIYANKA AHIRWAR ✍

📖 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 📖

समावेशी शिक्षा के चार सिद्धांत दिए गए हैं:-

  1. बालकों में एक सी अधिगम प्रवृत्ति हैं:-
    सभी बालको में पढ़ने की प्रवृत्ति एक समान होती है, प्रत्येक बालक एक समान शिक्षा ग्रहण कर सकता है, हर बच्चे के अंदर क्षमता होती है कि वह भी अन्य व्यक्तियों की समान शिक्षा ग्रहण कर सकता है, एवं अधिगम कर सकता है। बस उस बालक की प्रगति को जागृत करने के लिए हमें प्रयास करने होंगे हमें यह बताना होगा कि वह भी शिक्षा प्राप्त कर सकता है उसके लिए हमें कुछ प्रयास करने होंगे जो कि एक शिक्षक को करना चाहिए।
  2. बालकों को समान शिक्षा का अधिकार:-
    प्रत्येक वर्ग के बालको को समान शिक्षा मिलनी चाहिए, सभी को पढ़ने का समान अधिकार है, शिक्षा को लेकर कभी भी जाति, धर्म, लिंग एवं संप्रदा इत्यादि पर भेद नहीं किया जा सकता है, सभी को एक समान शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है। सभी बच्चों को समान शिक्षा मिले इसके लिए हमारे संविधान में भी कुछ प्रावधान किए गए हैं, जिससे कि सभी बालकों को शिक्षा की प्राप्ति हो।
  3. राज्य के दायित्व:-
    सभी राज्य का यह दायित्व है, कि वह सभी वर्ग के लिए संसाधन, धन, सामग्री इत्यादि स्कूलों के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं। अतः सरकार द्वारा बालकों के लिए प्रयास किए जाते हैं, जो कि स्कूलों के माध्यम से बच्चों तक पहुंचाए जाते हैं, जिससे कि वह भी शिक्षण में आने वाली परेशानियों जैसे धन, सामग्री इत्यादि को लेकर अपनी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न न होने दें।
  4. शिक्षा में सभी वर्ग, शिक्षक, परिवार एवं समाज के दायित्व:-
    बालकों की शिक्षा के लिए शिक्षण प्रक्रिया में सभी वर्गों शिक्षकों परिवारों एवं समाज का दायित्व है कि वह भी समावेशी शिक्षा में अपना अपेक्षित योगदान दें, ताकि सभी बच्चों को शिक्षित किया जाने का प्रयास कर सकें। अतः सभी को प्रयास किए जाने चाहिए।
    उपरोक्त सभी समावेशी शिक्षा के सिद्धांत है, जिसके माध्यम से समावेशी शिक्षा को पूर्ण किया जा सकता है। सभी वर्ग अपना अपना सहयोग पूर्ण रूप से देते हैं, जिससे कि यह प्रक्रिया निरंतर चल सकें।

🎯 समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं एवं चुनौतियां 🎯

  1. उपागम्यता :- ♦️आवश्यकता/कारण :- समावेशी शिक्षा की आवश्यकता इसलिए है कि वर्ग में दो प्रकार के बालक रहते हैं सामान्य एवं असामान्य दोनों को ही समान कर सके ताकि वह दोनों ही शिक्षा की प्राप्ति कर पाए।
    ♦️चुनौती- समावेशी शिक्षा में चुनौतियां यह है कि प्रत्येक विशिष्ट बालक के घर के पास विशिष्ट विद्यालय का निर्माण करना एक कठिन कार्य है। जिसका शिक्षण प्रक्रिया में एक चुनौती रूप में योगदान है। लेकिन सामान्य बालकों लिए 1 किलोमीटर के दायरे में प्रारंभिक शिक्षा के लिए विद्यालय उपलब्ध है
  2. असंवेदनशीलता:- ♦️आवश्यकता/कारण :- समावेशी शिक्षा की इसलिए आवश्यकता भी है, कि हम सभी संवेदनशीलता से प्रभावित हो जाते हैं।
    ♦️चुनौती- समावेशी शिक्षा में यह चुनौती है कि समाज, परिवार, अध्यापक, मित्र सभी संवेदनशीलता या नकारात्मक अभिवृत्ति से प्रभावित है, जिससे विशिष्ट बच्चे दिशाहीन हो जाते है। अतः हमारा दायित्व है कि हम सभी बच्चों को सही दिशा प्रदान करें ना कि उन्हें दिशा से विचलित करे।
  3. समस्या के निराकरण की अपेक्षा:- ♦️ हमारे समाज में जानकारियों का अभाव है जानकारियों के अभाव में हम पिछले दो कारण (उपागम्यता एवं संवेदनशीलता) की पूर्ति नहीं होने से इन समस्याओं में वृद्धि होती रहेगी।
    इन समस्याओं के निराकरणो की अपेक्षा करना/संबंधित जानकारी सभी तक पहुंचाना।
    इसी से स्थिरता/स्थूलता आती है।
    अतः उपरोक्त सभी समस्याएं, चुनौतियां एवं उनकी आवश्यकता क्यों है। इसका वर्णन किया हुआ है एवं हम सभी को भी प्रयास करने चाहिए कि प्रत्येक वर्ग के बालक को शिक्षा प्रदान की जा सके एवं जिस सीमा तक भी हम इन समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं या हमारे द्वारा किया जा सकता है हमें प्रयास किए जाने चाहिए।
    📗 समाप्त 📗
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🍁🍁🍁Menka patel 🍁🍁🍁

🌈 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत🌈

🎆 बच्चों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है — सभी बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है हर बातचीत के अंदर सीखने की क्षमता होती है और वह भी अन्य व्यक्तियों के समान शिक्षा प्राप्तकर्ता करता है सभी बच्चे एक समान सीखते हैं

🎆 बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार — सभी बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार होना चाहिए शिक्षा को लेकर कभी भी बच्चों में जाति लिंग संप्रदाय आदि की भेदभाव नहीं करना चाहिए सभी को एक समान शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है जिससे सभी बच्चे शिक्षा को प्राप्त करें

🎆 सभी राज्यों को दायित्व — सभी राज्यों का दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रयास करें जिससे वह सीखने में आने वाली परेशानियों को बाधाओं को दूर करें

🎆 शिक्षा में सभी वर्ग ,शिक्षक, परिवार और समाज के दायित्व — शिक्षा में सभी शिक्षक परिवार और समाज का दायित्व है कि बच्चों को समावेशी शिक्षा में अपना अपेक्षित योगदान दें

🌈 समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां

✍🏻 उपागम्यता

कारण – समेकित शिक्षा में सभी सामान बच्चे या असामान्य बच्चों को किसी ना किसी रूप में विशिष्ट होते हैं समेकित शिक्षा प्रदान करना है इसमें अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों के लिए घर के पास में विद्यालय की स्थापना की जाए यह बहुत कठिन कार्य है

👉 प्राथमिक स्तर पर विद्यालय की दूरी 1 किलोमीटर होनी चाहिए और माध्यमिक स्तर पर विद्यालय की दूरी 3 किलोमीटर होनी चाहिए

🍁 चुनौतियां — हर बच्चे के घर के पास विद्यालय की स्थापना करना एक कठिन कार्य है जो उपलब्ध करा पाना अत्यंत मुश्किल यह चुनौती पूर्ण है

✍🏻 असंवेदनशीलता

🍁 कारण – सभी बच्चों के साथ संवेदनशील रहना ही कारण है

🍁 चुनौतियां – समाज परिवार अध्यापक मित्र संवेदनशीलता या नकारात्मक आवृत्ति है जो इससे विशेष बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं तथा वह दिशाहीन हो जाते हैं इसमें योग्यता वाले बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं

✍🏻 समस्या के निराकरण की अपेक्षा

🍁 कारण — समाज में जानकारी के अभाव होता है और समाज में जो अलग-अलग समस्याएं होती है समाज में जानकारी के अभाव में उपागम्यता में कारण और संवेदनशील का कारण पूर्ति नहीं होने से समस्या में वृद्धि हो जाती है और पहले उपागम्यता म और संवेदनशीलता बढ़ती चली जाती है

🍁 चुनौतियां — इस समस्या का निराकरण करना या अपेक्षा करना या लोगों के पास पहुंचाना समस्या के निराकरण की उम्मीद रखते हैं निराकरण से संबंधित ज्ञान की स्थिरता आती है जो संबंधित ज्ञान या सोच है यह आवश्यक है

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✍🏻Notes By-Vaishali Mishra

🔆 समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त

समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त इस प्रकार हैं-

1.बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है अर्थात सबके सीखने की एक जैसी आदतें हैं।

2.बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है। अर्थात समावेशी शिक्षा कमजोर, प्रतिभाशाली,अमीर गरीब, ऊंच नीच नही देखती है।

3.सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री, धन तथा सभी संसाधन की स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ाएं।

4.शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।

🔅 समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं और चुनौतियां
शिक्षा किसी भी व्यक्ति में उपस्थित अलग-अलग योग्यताओं, क्षमताओं का विकास करके उस व्यक्ति को समाज के साथ समायोजन करने में मदद करती है ।और व्यक्ति को अलग-अलग कौशल विकसित कर स्वावलंबन की दिशा में लाने के लिए भी अभिप्रेरित करती हैं ।

यह आवश्यकताए व चुनौतियां निम्न प्रकार है➖
▪️ 1उपागम्यता

कारण-समेकित शिक्षा से समान व असमान बच्चे या विशिष्ठ बच्चो को पढ़ाना।
चुनौती – हर बच्चो के घर के पास विशिष्ठ विद्यालय हो यह एक बड़ी चुनौती है।
(जबकि समुचित राज्य सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक 1 कि. मी.
कक्षा 6 से 8 तक 3 कि.मी. तक नजदीक के विद्यालय की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।)

▪️ असंवेदनशीलता

कारण– संवेदनशील रहना या सकारात्मक अभिव्यक्ति का विकास करना।
चुनौती– समाज, अध्यापक ,मित्र, परिवार इन सब की असंवेदनहीनता या नकारात्मक अभिवृत्ति से , जो विशिष्ट बच्चे होते हैं वह पीछे हो जाते हैं अर्थात संवेदनहीनता व्यक्ति की संवेदनशीलता की दिशा को बदल देती है।

▪️ समस्या के निराकरण की अपेक्षा
कारण – समाज में जो जानकारी का अभाव है जिनके कारण से उपरोक्त दो कारण (उपागम्यता और असवेदनशीलता) की पूर्ति नहीं होने से समस्या बढ़ती चली जाती है ।

चुनौती – यदि उपरोक्त दोनों कारणों (उपागम्यता और असंवेदनशीलता) की समस्याओं का निराकरण की अपेक्षा की जाए तो समस्या का निराकरण हो जाता है।
और जब समस्या का निराकरण हो जाता है तो समस्या में स्थिरता या ठहराव भी आ जाता है।

इन सभी कारणों की पूर्ति करना ही एक चुनौती है।


🔆समावेशी शिक्षा के सिद्धांत🔆
1.बालकों में एक सी अधिगम की प्रवत्ति हो:- समावेशी शिक्षा का पहला सिद्धांत है कि सभी बालक एक समान रूप से सीख सकते हैं बशर्ते हमे उन्हें एक समान लेवल पर लेना होगा।
2.बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है:- समावेशी शिक्षा का दूसरा सिद्धांत है कि सभी बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है चाहे वह किसी भी जाति ,धर्म,समुदाय आदि से आता हो उसे शिक्षा का अधिकार है।
3.सभी राज्य को यह दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए उचित संसाधन,यथोचित संसाधन,सामग्री,धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुडवता में सुधार करने के लिए लगाए।
4.शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में आपेक्षिक सहयोग करे।
🌟समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां🌟
शिक्षा व्यक्ति में अलग अलग योग्यता में क्षमता का विकास कर उसमे समायोजन करने की योग्यता भी डालता है।
1️⃣ उपागमयता
कारण
1.कोई बच्चा सामान्य है या विशिष्ट है हमें दोनों को समेकित शिक्षा देना है।
चुनौती:- 1km पर प्राथमिक विद्यालय तथा 3km पर उच्च प्राथमिक विद्यालय(6-8) होने के कारण हर विशिष्ट बालकों के घर के आस पास विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना सम्भव नहीं है।
2️⃣असंवेदनशीलता
असंवेदशीलता समाज ,परिवार , अध्यापक तथा मित्रों की असंवेदनशीलता तथा नकारात्मक अभिवृति के फलस्वरूप विशिष्ट बालक का विकास अवरूद्ध हो जाता है।
कारण:- हम यदि चाहते हैं कि बालक आगे बढ़े तो हमे संवेदनशील रहना होगा।
चुनौती:- समाज, परिवार, अध्यापक, मित्र के संवेदनशील या नकारात्मक अभिवृति के कारण विशिष्ट बालक दिशाहीन हो जाता है।
3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा
समाज में जानकारी के अभाव में पहली दो कारण (समस्या यानी उपागमयता और असंवेदनीलता ) से पूर्ति नहीं होने पे पहली दो समस्या बढ़ती चली जाती हैं।
🖊️🖊️ Raziya khan🖊️🖊️


📖Notes by Neha Gupta🖊️ ⭕समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त ⭕ इसके कुल चार सिद्धांत हैं –

1⃣बालकों में एक ही GCअधिगम की प्रवृत्ति होती है l
➖ सभी बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति एक जैसी होती है हर एक बालक एक समान शिक्षा ग्रहण कर सकता है लेकिन उनमें कुछ उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताए भी होती है हर बच्चे के अंदर कुछ ना कुछ विशेषताएं होती है वह भी और और लोग के सामान शिक्षा को ग्रहण कर सकता है लेकिन उस विद्यार्थी की प्रवृत्ति को जागृत करने के लिए हमें कुछ प्रयास करने होंगे हमें उसे बताना होगा की शिक्षा को कैसे प्राप्त किया जा सकता है

2⃣ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है
➖ सभी बालकों को एक समान शिक्षा का अधिकार है शिक्षा को लेकर के कभी भी किसी जाति, धर्म, लिंग ,वर्ग इत्यादि पर भेदभाव नहीं किया जा सकता सभी को अपनी अपनी शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है और हमें यह अधिकार प्राप्त भी है l

3⃣ सभी राज्यों का दायित्व है➖
कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन सामग्री, धन , वस्तुए इत्यादि स्कूलों के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लाए l जिससे कि वह भी शिक्षण में आने वाली परेशानियां जैसे धन की परेशानी सामग्री आदि को लेकर अपनी पढ़ाई में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न ना होने दें
4⃣शिक्षण में सभी वर्गों शिक्षकों का परिवार तथा समाज का दायित्व है ➖कि समावेशी शिक्षा में जितना संभव हो सके अपेक्षित सहयोग करें स्कूलों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए l

⚫️समावेशित शिक्षा की आवश्यकताएं और चुनौतियां ⚫️

🌸शिक्षा जो है किसी व्यक्ति में किसी इंसान में जो अलग-अलग योग्यता या क्षमता है उसका विकास करके उसने समाज से समायोजन की योग्यता विकसित करती है और व्यक्ति के अलग-अलग कौशल को प्रदान करके उसमें स्वावलंबन की दिशा प्रेरित करती है शिक्षा व्यक्ति में उपस्थित अलग-अलग योग्यता में क्षमता का विकास कर उसमें समाज से समायोजन करने की योग्यता का विकास भी करती है व्यक्ति को एक सही दिशा मिलती है
1️⃣उपागमम्यता ( Avalibility) ➖( आवश्यकता/ कारण)- इसमें दो प्रकार के बालक रहते हैं सामान्य एवं असामान्य दोनों को ही समान करके दोनों को एक जैसी शिक्षा की प्राप्ति दी जाए समेकित शिक्षा से जो सामान्य और असामान्य दोनों को पढ़ाएंगे यह इसका कारण है. 🛑चुनौतियां- विशिष्ट विद्यालय हर बच्चे के घर के पास एक कठिन कार्य है प्रत्येक विशिष्ट बालक के घर के पास एक विद्यालय बनाना संभव नहीं है लेकिन सामान्य बालकों के लिए 1 किलोमीटर के दायरे में प्रारंभिक शिक्षा के लिए विद्यालय उपलब्ध है

2️⃣असंवेदनशीलता➖ (आवश्यकता /कारण) हम आप असंवेदनशील हैं हम सभी संवेदनशीलता से प्रभावित हो जाते हैं इसीलिए समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है l
चुनौतियां ➖समाज परिवार अध्यापक तथा मित्र की संवेदनशीलता तथा नकारात्मक अभिवृत्ति के फलस्वरुप विशिष्ट विद्यालय विशिष्ट बालक का जो विकास अवरुद्ध हो जाता है या विकास दिशाहीन हो जाता है इससे जो विशिष्ट बच्चे हैं आगे नहीं बढ़ पाते हैं l

3️⃣समस्या के निराकरण की अपेक्षा (आवश्यकता/ कारण) हमारे समाज में जानकारी का अभाव रहता है तो समस्या और बढ़ने लगती है l 🛑चुनौतियां समाज में जानकारी के अभाव में पहले दो कारण उपागम्यता एवं संवेदनशीलता की पूर्ति नहीं होने से पहले जो समस्याएं बढ़ती चली जाती हैं इन समस्याओं के निराकरणॊ की अपेक्षा करना संबंधित जानकारी सभी तक पहुंचाना इसी में स्थिरता आती है इस प्रकार सभी समस्याएं चुनौतियां एवं उनकी आवश्यकता है एक शिक्षक का कर्तव्य है कि इन समस्याओं का निराकरण करने की कोशिश करें या प्रयास करने चाहिए इस प्रकार यह समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की बात का समर्थन करती है यह सही मायने में सर्व शिक्षा जैसे शब्दों का ही रूपांतरित रूप है l


SHARAD KUMAR PATKAR

🌳 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 🌳 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि शिक्षा का प्रभाव कैसे या किस प्रकार से पड़ रहा है। सिद्धांत यह बताता है प्रत्येक बच्चे को किस प्रकार की शिक्षा की जरूरत है।

👉समावेशी शिक्षा के अंतर्गत 4 महत्वपूर्ण बातें हैं जो इस प्रकार से है➖

👉बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे के अधिगम स्तर को एक जैसा करना है अर्थात प्रत्येक बच्चे की प्रकृति को सीखने के प्रति एक समान करने का प्रयास करना है। सामान्य शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि सभी बच्चों को पढ़ाने की प्रवृत्ति एक जैसी होनी चाहिए।

👉 बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है यदि आपकी प्रवृत्ति है कि किसी चीज को करने के सक्सेस हो सकते हैं तो अन्य बच्चे की प्रवृत्ति भी किसी चीज को करने के लिए सक्सेस हो सकती है।

लेकिन यहां प्रत्येक बच्चे को एक समान शिक्षा देने का अधिकार है। यह निश्चित करना है कि शिक्षक के द्वारा जो भी शिक्षा प्रदान किया जाए वह सभी बच्चों के लिए एक समान हो जो प्रत्येक बच्चे का अधिकार है। सभी बच्चों के लिए समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना है।

👉सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाए➖👇 इस सिद्धांत के द्वारा यह बताया गया है कि प्रत्येक बच्चे को सुविधा अनुसार सामग्री उपलब्ध करा कर बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास किया जाए।

जैसे सरकारी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को कपड़े, लैपटॉप, पुस्तक, साइकिल, धन आदि के माध्यम से बच्चों की उनकी गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। विद्यालयों में सभी बच्चों को सामग्री उपलब्ध करा के उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाया जा सकता है।

👉शिक्षण में सभी वर्गों ,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व यह है कि वह समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें➖👇 ‌ जितना हो सके बच्चों के समावेशी शिक्षा के लिए परिवार, शिक्षकों तथा समाज का यह दायित्व होना चाहिए कि वह जितना हो सके उतना सहयोग करें अर्थात अपेक्षित सहयोग करें।

🕺समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां जैसा कि हम जान गए कि समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है अर्थात समेकित शिक्षा के अंतर्गत ही समावेशी शिक्षा को स्थान दिया गया है।

यह शिक्षा किसी व्यक्ति में या बच्चे में अलग-अलग योग्यता ,क्षमता का विकास करके उसमें समाज से समायोजन करने की योग्यता विकसित करते हैं। और व्यक्तियों को अलग-अलग कौशल प्रदान करके स्वालंबन की दिशा में लाने के लिए प्रेरित करते हैं।

☝️आर्थिक रूप एवं मानसिक रूप से बच्चे को तैयार करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जिससे वे अपनी जिंदगी अच्छे से जी सके और जिम्मेदार बने।

☝️ समाज में प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है और उन्हें समाज में बेहतर रूप से रहने के लिए यह समाज से समायोजन की प्रक्रिया करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी है तो वह व्यक्ति समाज से समायोजन करने में भी कठिनाई महसूस करेगा। उस व्यक्ति को अपने परेशानी को दूर करने के लिए बहुत सारे स्तर को पार करना पड़ेगा तो उससे समाज से समायोजन करने में अधिक मेहनत की जरूरत होती है जो शिक्षा के माध्यम से बेहतर रूप से समाज से समायोजन कर सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में समाज से समायोजन करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है।इसके माध्यम से किसी व्यक्ति को सही दिशा मिलता है।

🤺समेकित शिक्षा की आवश्यकता क्यों हुई इसे इस प्रकार से समझा सकते हैं

1️⃣ उपागम्यता यदि कोई बच्चा सामान नहीं है या असामान्य है अर्थात किसी न किसी रूप में विशिष्ट है दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना है। अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों के लिए उनकी संख्या के आधार पर (उनके घर के पास , उनके area में) विशिष्ट विद्यालय की स्थापना कर दी जाए। यह बहुत कठिन कार्य है उनके घर के आसपास विशिष्ट विद्यालय जिसमें सुविधा शौचालय हो यह कर पाना कठिन है। सामान्य बालकों हेतु भी विद्यालय की दूरी दूर नहीं होनी चाहिए और यह बात भी की जाती है कि प्राथमिक विद्यालय 1 किलोमीटर के अंदर हो और माध्यमिक विद्यालय 3 किलोमीटर के अंदर होना चाहिए। यह उपलब्ध कराने वाली जो चीज है उसकी आवश्यकता भी है और चुनौती भी है यहां दोनों पक्षों को देखा जा रहा है यहां उपलब्धता कराना कठिन है। ✔️ *कारण*➖ सामान्य और असामान्य बालकों , दोनों को समेकित शिक्षा प्रदान करना।

✔️ चुनौती ➖जबकि हर बच्चे के घर के पास विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना एक कठिन कार्य है जो उपलब्ध करा पाना अत्यंत कठिन होता है और यही चुनौती है।

2️⃣ असंवेदनशीलता ✔️कारण➖ सभी बच्चों के साथ संवेदनशील रहना ही कारण है।

✔️ चुनौती➖ समाज, परिवार अध्यापक, नकारात्मक अभिवृत्ति ,मित्र से संवेदनहीनता या नकारात्मक अभिवृत्ति है तो विशिष्ट बालक आगे नहीं बढ़ पाते हैं अर्थात दिशाहीन हो जाते हैं। हमारे शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि अध्यापक और समाज परिवार मित्र को सकारात्मक अभिव्यक्ति नानी चाहिए यह संवेदनशीलता होनी चाहिए यह एक चुनौती है।

📚 उदाहरण➖ जैसे योग्यता होने के बाद भी बालिका शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करना और बालिकाओं को भी एक है ना की पढ़ लिख कर क्या करेंगे तो इस नकारात्मक अभिवृत्ति के कारण संवेदनहीन हो जाते हैं जिससे वे आगे नहीं बढ़ पाती हैं।हम सबको किसी भी चीज के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है और यह संवेदनशीलता तब आएगी जब हम अपने अंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति लाएंगे।
उदाहरण➖ बच्चे के पास शैक्षिक योग्यता होने के बाद भी उसके परिवार वाले विद्यालय भेजने में रुचि नहीं लिया जाता है कई घरों में बच्चों को बोझ समझा जाता है चिंता या दैन्य दृष्टि से देखा जाता है तो यहां पर अध्यापक, समाज और परिवार को सकारात्मक अभिव्यक्ति लाना चाहिए यह एक उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा ✔️कारण➖ समाज में कई बार विभिन्न जानकारियों का अभाव होता है समाज में जो अलग-अलग समस्याएं हैं। समाज में जानकारी के अभाव में उपागम्यता का कारण और संवेदनशील का कारण की पूर्ति नहीं होने से समस्या में वृद्धि हो जाती है या समस्या बढ़ते चली जाती है। यही कारण है।

✔️ चुनौती➖ इन सभी समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा करना या awareness लाना समस्याओं के निराकरण की क्या उम्मीद रखते हैं यह awareness फैलाने की जरूरत है। कि कैसे निराकरण करते हैं या क्या उपाय करते हैं निराकरण के संबंधित ज्ञान से ही स्थिरताआती है और यदि समस्या में सुधार आती है तो संबंधित ज्ञान से स्थूलता भी आती है।

🌿🌱🌴🌳🌲🍀🍀


💫 Notes by➖ Rashmi Savle💫

चूंकि समावेशी शिक्षा विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा देने की बात करता है जिसके लिए वह चार प्रकार के सिद्धांतों का अनुकरण करता है जो कि निम्न प्रकार से हैं➖

🔅समावेशी शिक्षा के सिद्धांत➖

(1) बालकों में एक थी अधिगम प्रवृत्ति है :—-

यह सिद्धांत यह निर्देशित या सुनिश्चित करता है की मौत एक प्रत्येक बच्चे मैं अधिगम की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है इसलिए उनको जो शिक्षा की जाए या पढ़ाया जाए वह उनकी प्रवृत्ति के समान हो हॉल उन्हें बराबर करके समान रूप से शिक्षा दी जाए क्योंकि सबको समान शिक्षा दी जाएगी तो सबका अधिगम समान होगा क्योंकि सबके मूल्य और प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न होती है इस प्रकार समावेशी शिक्षा सभी विद्यार्थियों को एक समान अधिगम देकर उनको बराबर शिक्षा देने का प्रयास करता है |

(2) बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है➖

बालकों को समान शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएं तथा सभी विद्यार्थियों को समान रूप से बिना भेदभाव के शिक्षा प्रदान की जाए, अर्थात सभी विद्यार्थियों का समान रूप से शिक्षा पाना अधिकार है क्योंकि समावेशी शिक्षा जाति, धर्म,ऊंच, नीच, लिंग,स्थान, कमजोर, प्रतिभाशाली, अमीर, गरीब आदि नहीं देखती है इसलिए उनको समान शिक्षा उपलब्ध कराया जाना अति आवश्यक है |

(3) सभी राज्यों को भी यह दायित्व मिला है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन, सामग्री ,धन ,इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं |

(4) शिक्षण में सभी वर्गों, शिक्षक, परिवार ,तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग दें |
अर्थात समाज के सभी या प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में सहयोग करें और उस को आगे बढ़ाने में मदद करें |

🔅समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएँ और चुनौतियां➖

शिक्षा के द्वारा किसी भी व्यक्ति में उप उपस्थित अलग-अलग क्षमताओं योग्यताओं आदि का विकास करके उसमें आत्मविश्वास जागृत करके स्वावलंबी बनाकर समाज के साथ समय उज्जैन समायोजन करनी है मदद करती है शिक्षा व्यक्ति को अलग-अलग रूप से समाज में बेहतर तरीके से अंतः क्रिया करके उसको स्वावलंबी बनाने में मदद करती है इसके लिए आवश्यक है उसमें अलग अलग प्रकार के कौशल किए जाएं |
व्यक्ति को समाज में समायोजित होने के लिए कुछ आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है वे निम्न प्रकार से हैं ➖

🔹 उपागम्यता ➖
कारण :–
समेकित शिक्षा के अंतर्गत समान तथा असमान प्रकार के विशिष्ट विद्यार्थियों को पढ़ाया जाए |

चुनौती :–
हर बच्चों की घर के पास विशिष्ट विद्यालय हो यह एक बड़ी चुनौती है | क्योंकि राज्य सरकार द्वारा बच्चों के निवास स्थान से (कक्षा 1 से 5 तक 1 किलोमीटर तथा कक्षा 6 से 8 तक 3 किलोमीटर तक) विद्यालय की सुनिश्चितता करना आवश्यक है |

🔹 असंवेदनशीलता ➖

कारण :–
यदि कोई बच्चा विशिष्ट है तो उसके प्रति संवेदनशील तथा सकारात्मक अभिव्यक्ति का विकास करना आवश्यक है |

चुनौती :—
समाज, परिवार, अध्यापक ,मित्र सभी में संवेदनशीलता और सकारात्मक अभिव्यक्ति
का होना अति आवश्यक है लेकिन समाज की नकारात्मक अभिव्यक्ति और संवेदनहीनता के कारण जो बच्चे विशिष्ट होते हैं वह पीछे रह जाते है जिसके कारण बच्चे में योग्यता होने के बाद भी हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है हमें संवेदनशील रहना चाहिए समावेशी शिक्षा कहता है की संवेदनशीलता किसी बच्चे को आगे बढ़ने में मदद कर सकती है लेकिन समाज में आज संवेदनशीलता नहीं है |
🔹 बालिकाओं में बचपन से ही भर दिया जाता है कि वे घर का काम सीखें क्योंकि यह उन्ही के लिए बना है उनके मन में संवेदनहीनता का बीजारोपण कर दिया जाता है जो कि समाज के लिए अति दुर्भाग्यपूर्ण है और ये सब संवेदनशीलता और सकारात्मक अभिव्यक्ति से दूर किया जा सकता है | इसलिए बालिका शिक्षा समावेशी शिक्षा का अहम हिस्सा है |

🔹 जैसे बच्चे के पास योग्यता होने के बाद भी उनको स्कूल नहीं भेजा जाता है कई घरों में बच्चे को मुझे समझा जाता है चिंता और अचरजता भरी निगाहों से देखा जाता है तब यहां समाज और अध्यापक को अपनी सोच में सकारात्मक अभिव्यक्ति और संवेदनशीलता का लाना अति आवश्यक है और यह उनकी एक बड़ी चुनौती है या हम कह सकते हैं की सबसे बड़ी चुनौती है |

🔹समस्या के निराकरण की अपेक्षा ➖
कारण :–
समाज में जानकारी के अभाव में पहले उपागम्यता और असंवेदनशीलता के कारण की पूर्ति नहीं होने से पहले उपागम्यता और असंवेदनशीलता की समस्या बढ़ती जा रही है क्योंकि संवेदनशील होना अति आवश्यक है |

चुनौती :–

उपागम्यता और असंवेदनशीलता के कारणों के निराकरण की अपेक्षा की जाए तो समस्या का निराकरण उसको हो सकता है इसके लिए उसको जागृत करना उसको ज्ञान में लाने उसको फैलाने की जरूरत है और यहीं से स्थूलता आती है |

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Notes by sapna sahu.
🇮🇳 समावेशी शिक्षा🇮🇳
समावेशी शिक्षा से हमारा तात्पर्य ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें सभी को बिना किसी भेदभाव के सीखने सिखाने के समान अवसर मिले
समावेशी शिक्षा के सिद्धांत
1 बालकों में एक की अधिगम की प्रकृति:- इसका तात्पर्य यह है कि अधिगम का लेवल सब बालकों को एकसा मिले
चाहे वह बालक किसी भी धर्म जाति या लिंग का हो उसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता
2 बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है:- हमारे संविधान ने सभी बालकों को समान शिक्षा का अधिकार दिया है लड़के हो या लड़की किसी भी जाति का हो उस पर हम किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते सभी बालकों को शिक्षा का समान अवसर देना एवं शिक्षा का समान अवसर पाना सभी बालकों का अधिकार है
3 सभी राज्यों को दायित्व है कि वह सभी धर्म के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं
4 शिक्षण में सभी वर्गों शिक्षक परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें
हम सब का कर्तव्य है कि हम सब समावेशी शिक्षा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता और बचुनौतियां
व्यक्ति में अलग-अलग क्षमता का विकास करके उसको एनवायरमेंट में रहना सिखाता है
यदि किसी व्यक्ति को ज्यादा परेशानी है तो वह समाज में समायोजन के लिए बहुत सारे स्तर से गुजरता है परंतु यदि किसी व्यक्ति को कम परेशानी है तो वह कम स्तरों से भी गुजर कर समाज से समायोजन कर लेता है
बच्चे को सलाम बन की और बढ़ाना है समावेशी शिक्षा का उद्देश्य है

1 उपागम्यता :- समेकित शिक्षा में दो प्रकार के बालक होते है सामान्य और असामान्य सभी को समान धारा में जाकर समान प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए समावेशी शिक्षा का यह कारण है
हर बच्चा अपने आपने मैसेज तो होता है परंतु हर विशिष्ट बच्चे के घर के पास स्कूल होना यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जैसे हर 1 किलोमीटर पर एक से पांच तक के लिए विद्यालय तथा हर 3 किलोमीटर पर 6 से 8 तक के लिए विद्यालय होना अनिवार्य है यह एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है जैसे बच्चे के लिए स्कूल में स्पेशल की व्यवस्था होना उसी प्रकार है कि शौचालय की व्यवस्था होना यह एक प्रकार के चुनौतीपूर्ण कार्य है
2 आ संवेदनशीलता:- हम सभी को संवेदनशील होना चाहिए संवेदनशील होना बहुत ही जरूरी है हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखना चाहिए
कारण:- संवेदनशील होना
चुनौती :-समाज परिवार अध्यापक मित्र इन सब के लिए संवेदनशील होना
नकारात्मक अभिवृत्ति विशेष के बच्चे को आगे नहीं बढ़ने देती हमारे नकारात्मक अभिवृत्ति इसे सही नहीं होने दे रही है
3 समस्या के निराकरण की अपेक्षा
समाज में जानकारी का अभाव पहले दो कारण से पूर्ति नहीं होने दे रहा है गसे समस्या और ज्यादा बढ़ती चली जाएगी
इन समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा करना


✍Notes by
LAXMI PATLE
🚸 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत :-

समावेशी शिक्षा में सामान्य विद्यालयों में समान्य बालकों के साथ असमर्थ बालकों को समान शिक्षा प्रदान की जाती है ।इस शिक्षा के द्वारा असमर्थ बालकों को शिक्षा प्राप्त करने का क्षेत्र विस्तृत होता है।समावेशी शिक्षा में जो सुविधाएं सामान्य वालों को को प्राप्त होती हैं वह सुविधा असमर्थ बालकों को भी प्राप्त होती हैं। इसके अंतर्गत शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग बालकों को कुछ विशेष सुविधाएं प्राप्त करके शिक्षा प्रदान की जाती है। इसमें समाज एवं असमर्थ बालकों द्वारा एक दूसरे को समझने की आपसी सूझबूझ का विकास होता है तथा सामान्य बालक असमर्थ बालक की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। जिससे असमर्थ बालको की विशेष अवसर पर ध्यान दिया जाता है।
समावेशी शिक्षा के मुख्यतः चार सिद्धांत है जो कि निम्नलिखित हैं:-
1️⃣ बालकों में एक-सी अधिगम की प्रवृत्ति होती है।

इसके तहत किया कहा गया है कि सभी बालकों में सीखने की एक समान प्रवृत्ति लाना होगा अर्थात सभी बच्चों को एक समान अवसर प्रदान किए जाने योग्य बनाना होगा उनको आवश्यकतानुसार सुविधाएं प्रदान करते हुए एक अधिगम प्रणाली को लाना होगा।

2️⃣ बालको को समान शिक्षा का अधिकार हो।

इसके अंतर्गत यह कहा गया है की हमारे संविधान के अनुसार हमें समानता का अधिकार प्राप्त है। जिसके तहत समावेशी शिक्षा के द्वारा सभी बालकों को समान रूप से सुविधाएं पहुंचाते हुए, समान शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया जाए ताकि सभी बच्चों को आगे बढ़ने का समान अवसर प्राप्त हो। अर्थात सभी बच्चों को एक समान शिक्षा प्रदान की जाए।

3️⃣ सभी राज्यों को यह दायित्व दिया गया है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन, सामग्री ,धन ,इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लाया जाए |

4️⃣ शिक्षण में सभी वर्गों ,शिक्षक ,परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।

🔆 समेकित शिक्षा की आवश्यकता एवं चुनौतियां:-

जैसा कि हम जानते हैं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं मनुष्य को शरीर की विभिन्न मूलभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा भी जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है। शिक्षा मनुष्य में उपस्थित सभी योग्यताओं तथा क्षमताओं का विकास कर उसमें समाज से तालमेल बनाने की योग्यता को विकसित करता है।मनुष्य में विभिन्न कौशल को जागृत कर स्वालंबी बनने की दिशा में प्रेरित करते हुए समाज के लायक बनाता है।

कारण एवं चुनौतियां
✔उपागम्यता :-
कारण :-
समेकित शिक्षा के द्वारा समान्य तथा असमान्य प्रकार के विद्यार्थियों को पढ़ाये जाने की आवश्यकता है | यह इसका मुख्य कारण है।
चुनौतियां :- विभिन्न योग्यता वाले विद्यार्थियों हेतु उनकी संख्या अनुसार घर के पास ही विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना करना अत्यंत कठिन कार्य है।एक ओर हम सामान्य बालको हेतु पड़ोस में विद्यालय की बात करते हैं, जिसके तहत प्राथमिक विद्यालय तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय बालक के घर से अधिकतम 1 किलोमीटर से लेकर 3 किलोमीटर की दूरी पर होना चाहिए किंतु यह भी संभव नहीं हो पा रहा है।

✔ असंवेदनशीलता :-
कारण:- समाज में मनुष्य को संवेदनशील एवं सकारात्मकता के साथ रहना चाहिए ।
चुनौती:- यह समेकित शिक्षा की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है समाज में परिवार, अध्यापकों तथा मित्रों की संवेदनहीनता तथा नकारात्मकता अभिवृत्ति के फलस्वरूप विशिष्ट बालक अवरूद्ध विकास तथा दिशाहीन जीवन का शिकार हो रहे हैं। बालक भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हो लेकिन उसमें शैक्षिक योग्यता होने के बावजूद उसका सामान अर्थात परिवार दोस्त इत्यादि उसके लिए विद्यालय को जरूरी नहीं समझते उनको दया की दृष्टि से देखा जाता है।

✔ समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा :-
कारण:- समाज में व्यक्ति जागरूक नहीं है इसका मुख्य कारण उपरोक्त दोनों समस्याएं हैं। यह तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण है।
चुनौती :- उपागम्यता और असंवेदनशीलता जैसे समस्याओं का निराकरण कर दिया जाए तो इस समस्या का निराकरण उसको हो सकता है इसके लिए समाज में जागरूकता लाना होगा | बालकों की समस्याओं के निराकरण की अपेक्षा स्थूलता ही उत्पन्न करता है ।इस ज्ञान को जनता तक पहुंचाने की महती आवश्यकता है।

🙏समाप्त 🙏


By Vandana Shukla ☘️ समावेशी शिक्षा ☘️

☘️ Integrated education☘️

हमारे भारतवर्ष में अनेक प्रकार के बच्चे हैं और उन्हें अलग-अलग प्रकार की परेशानियां हैं जैसे किसी को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक आदि। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो समाज के अभाव में अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता इसलिए वह समाज के साथ अंतर क्रिया करता है और सब प्रकार की समस्याओं का निदान भी इस समाज से ही करता है या इस समाज से ही होगा ।

हमारे समाज में व्यक्तिक विभिन्नताए भी हैं ,जाति के आधार पर, आर्थिक स्थिति के आधार पर ,धर्म के आधार पर ऊंच-नीच के आधार पर सभी की अलग-अलग सोच है इस सोच को एक करने के लिए ही समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है।

कई बार जिनकी गलती नहीं होती है फिर भी उनके साथ पक्षपात होता है कई बार आप अपने व्यवहार से जैसे ओहदे की ताकत दिखाना अपनी जाति आदि के द्वारा स्वयं भेदभाव करते हैं, इस स्थिति में भी समावेशी / समावेश की जरूरत होती है ।

शिक्षा में इस तरीके के भेदभाव का कोई स्थान नहीं इसलिए समावेशी /समावेशन की आवश्यकता पड़ी ।
आज हम समानता ,स्वतंत्रता, न्याय की बात करते हैं हमें समाज को संतुलित वातावरण देने की आवश्यकता है।

🍀 समेकित शिक्षा। 🍀

यह शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देती है क्योंकि जितनी भी परेशानियां हैं उसकी खाई को दूर करने के लिए अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे ,अलग-अलग उम्र , अलग-अलग कक्षा के बच्चे, उनको उनकी जरूरत के हिसाब से शैक्षिक उपक्रम को पूर्ण किया जाए सबको मिलाकर किया जाए इसको समेकित शिक्षा बोलते हैं।

क्योंकि यह परिभाषा एकीकृत की भी है इसीलिए इसे एकीकृत शिक्षा भी बोलते हैं , or integrated education का actual term समेकित शिक्षा ही है ।

समेकित शिक्षा और समावेशी शिक्षा में थोड़ा सा ही अंतर है समावेशी शिक्षा बोलता है जितने भी अलग-अलग प्रकार के बच्चे हैं सब को एक समान शिक्षा दी जाए, लेकिन समेकित शिक्षा कहती है कि बच्चे की उम्र के हिसाब से उसे कक्षा में रखेंगे। समावेशी शिक्षा उम्र की बात को नकारती नहीं है पर समावेशी शिक्षा में इसका जिक्र ही नहीं है, वह कहता है कि सब को एक समान शिक्षा बस । लेकिन समेकित कहता है की जरूरत के हिसाब से शिक्षा दो सब को मिला दो एक कर दो समेकित मतलब एकीकृत करना । जो समेकित शिक्षा प्रणाली है उसके द्वारा सामान्य विद्यालय में अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे को सही तरीके से शिक्षा दी जाए उनकी क्षमताओं के अनुसार उनको सुलभ चीज दी जाए जो बच्चे के आत्मविश्वास को जगाए, उनको नई आशा दे ,जीवन के प्रति आकर्षण को पैदा करें।
जब भी ऐसी शिक्षा के बारे में बात करते हैं तो सारे भेदभाव खत्म हो जाते हैं और बच्चा आशा से और आत्मविश्वास से भर जाता है।

🌼 समावेशी शिक्षा 🌼
समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को, प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्रदान की जाती है, और उन्हें एक लेवल पर लाया जाता है।
समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का ही एक भाग है । समेकित शिक्षा हर इंसान को हर मामले में कहता है कि उसकी परेशानी देखो जैसे अगर किसी की स्किल्स कम है तो पहले वह स्किल सीखे फिर उसके बराबर होगा । बराबर करने के लिए कुछ करना पड़ेगा। समावेशी कहेगा भेदभाव नहीं सबको ले के चलो चाहे स्किल हो या ना हो। समेकित डिफरेंस को मिटाने की बात करता है।

🌸 संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 इसमें सभी को समान अवसर के द्वारा शिक्षा दी जाए जितने भी वंचित लोग हैं उनको शिक्षित करने का दायित्व सभी राज्य को सौंपा गया । कि सभी वंचित पिछड़ा जिनको अवसर नहीं मिला है उनको शिक्षा दी जाए वह वंचित शारीरिक विकलांग, मुक बधिर हो , मांसपेशियां ठीक से काम नहीं कर रही है ,बौद्धिक रूप से स्लो लर्नर हो,जाति के आधार पर परेशानी , जेंडर परेशानी, मजदूर हैं ,जितनी भी चीजें हैं जिससे आप पिछड़े हैं उन सभी को समान अवसर तथा समान धारा में लाने के लिए कहा। उनके संपूर्ण विकास के लिए शिक्षा का प्रावधान करना है।

By Vandana Shukla

🌼 समावेशी शिक्षा के सिद्धांत 🌼

1️⃣बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति हैं

सबको जो भी अधिगम कराया जाए उसकी प्रवृत्ति एक सी ही हो। प्रत्येक छात्र को एक ही रूप में अधिगम कराया जाना चाहिए जिससे सभी बच्चे को एक लेवल तक पहुंचाया जा सके।

2️⃣ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार

बच्चों को एक जैसी या एक समान शिक्षा का अधिकार है वह किसी भी क्षेत्र ,जातीय , स्तर के हो पर शिक्षा पाने का उसका अधिकार है ।

3️⃣सभी राज्यों को भी दायित्व है कि वह सभी वर्ग के लिए यथोचित संसाधन , सामग्री, धन इत्यादि स्कूल के माध्यम से बच्चों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाएं। यह कहता है कि सारी सुविधाएं बच्चों को मुहैया कराई जाए।

4️⃣शिक्षण में सभी वर्गों शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें ।

🌼समेकित शिक्षा की आवश्यकता और चुनौतियां🌼

समेकित शिक्षा किसी व्यक्ति की जो क्षमता है या अलग अलग योग्यता है उसका विकास करके उसके समाज के साथ समायोजन करने की क्षमता विकसित करता हैं। और हर व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुरूप अलग-अलग कौशल प्रदान करके उसको स्वावलंबी बनाने की दिशा में प्रेरित करता है।
हम बच्चे को शिक्षा इसलिए देते हैं कि वह बड़ा होकर स्वाबलंबी बने अपने लिए धन कमा सके, आर्थिक रूप से मानसिक रूप से अपने आप वह स्थाई स्टेबल कर सके, अपने भविष्य को संवार सकें, अपनी जिंदगी की चुनौतियों का सामना आसानी से कर सके, उसका एक डायरेक्शन हो।

1️⃣ उपागमयत्ता – कोई बच्चा सामान्य है और कोई बच्चा सामान्य नहीं है विशिष्ट है दोनों को सामान्य शिक्षा देना है। इंटीग्रेटेड एजुकेशन अलग-अलग योग्यता वाले बच्चों को उनकी संख्या के हिसाब से जैसे सभी विशिष्ट बालकों के घर के पास उनकी विशिष्टता के अनुरूप विद्यालय का निर्माण करना पॉसिबल नहीं है दूसरी तरफ सामान्य विद्यालय के लिए भी कहते हैं कि ज्यादा दूरी ना हो 1 किलोमीटर तक प्राथमिक विद्यालय और 3 किलोमीटर तक उच्च विद्यालय के बारे में कहते हैं, यह दोनों ही प्रक्रिया पॉसिबल नहीं है यह एक समस्या है इसे कहते हैं उपागमयता ।
यह एजुकेशन की आवश्यकता भी है और चुनौती भी है ।समेकित शिक्षा में हमें दोनों को शिक्षा देनी है सामान्य को भी विशिष्ट को भी ।

2️⃣ असंवेदनशीलता –
कारण – संवेदनशीलता
चुनौती – समाज ,परिवार, अध्यापक तथा मित्र के संवेदनहीनता तथा नकारात्मक अभिव्यक्ति के फल स्वरुप विशिष्ट बालक का विकास अवरुद्ध हो जाता है, या उनका दिशाहीन जीवन हो जाता है वह आगे नहीं बढ़ पात।
योग्यता होने के बाद भी परिवार कई बार रुचि नहीं लेता है। समेकित शिक्षा कहती है कि सब को संवेदनशील बनाएं सब एक दूसरे की कमी को पूर्ण करने के लिए अग्रसर रहें।

3️⃣ समस्या के निराकरण की अपेक्षा – कई बार समाज में जानकारी का बहुत अभाव रहता है इसके अभाव में पहले के दो कारण की पूर्ति नहीं होने से जिससे समस्या बढ़ती चली जाती है और बच्चे की सोच भी नकारात्मक होती चली जाती है। इस समस्या का निराकरण करना या निराकरण की अपेक्षा करना लोगों के बीच उससे संबंधित ज्ञान को फैलाना ।जिससे जागरूकता बढ़े, कठिनाइयों को दूर करने के बाद ही स्थूलता आती है, स्टेबिलिटी आती है।

धन्यवाद


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