Inclusive Education

समावेशी शिक्षा की अवधारणा क्या है (Inclusive Education concept)

समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा होती है जिसमें सामान्य बालक-बालिकाएं और मानसिक तथा शारीरिक रूप से बाधित बालक एवं बालिकाओं सभी एक साथ बैठकर एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। समावेशी शिक्षा सभी नागरिकों समानता के अधिकार की बात करता है और इसीलिए इसके सभी शैक्षिक कार्यक्रम इसी प्रकार के तय किए जाते हैं ऐसे संस्थानों में विशिष्ट बालकों के अनुरूप प्रभावशाली वातावरण तैयार किया जाता है और नियमों में कुछ छूट भी दी जाती है जिससे कि विशिष्ट बालकों को समावेशी शिक्षा के द्वारा सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की कोशिश की जाती है।

समावेशी शिक्षा का अर्थ (Inclusive Education meaning)

समावेशी शिक्षा को अंग्रेजी में Inclusive Education कहा जाता है जिसका अर्थ होता है सामान्य तथा विशिष्ट बालक बिना किसी भेदभाव के एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करना।

समावेशी शिक्षा की परिभाषा (inclusive education definition)

स्टीफन एवं ब्लैकहर्ट के अनुसार :- “शिक्षा के मुख्य धारा का अर्थ बालकों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षण व्यवस्था करना है या समान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित है जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा उपयुक्त सामाजिक मानवीकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है।”

यरशेल के अनुसार :- “समावेशी शिक्षा के कुछ कारण योग्यता लिंग, प्रजाति, जाति, भाषा, चिंता का स्तर, सामाजिक और आर्थिक स्तर विकलांगता व्यवहार या धर्म से संबंधित होते हैं।

शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार :- ” समावेशी शिक्षा अधिगम के ही नहीं बल्कि विशिष्ट अधिगम के नए आयाम खुलती है।”

अन्य शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार : – “समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती हैं जिसमें सामान्य बालक बालिकाएं तथा विशिष्ट बालक बालिकाएं एक ही विद्यालय में बिना किसी भेदभाव के एक साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं।” 

समावेशी शिक्षा की विशेषताएं(characteristics of inclusive education in hindi, features of inclusive education )

१. समावेशी शिक्षा व्यवस्था में शारीरिक रूप से बाधित बालक विशिष्ट बालक तथा सामान्य बालक साथ साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं इसमें बाधित बालकों को कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की कोशिश की जाती है।

२. समावेशी शिक्षा विशेष शिक्षा का विकास नहीं बल्कि पूरक है। बहुत कम बाधित बच्चों को समावेशी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश कराया जा सकता है किंतु गंभीर रूप से बाधित बालकों को विशेष शिक्षण संस्थानों में संप्रेषण गुण एवं अन्य आवश्यक प्रतिभा ग्रहण करने के पश्चात ही समावेशी विद्यालयों में इनका प्रवेश कराया जाता है।

३. समावेशी शिक्षण व्यवस्था में शिक्षा का ऐसा प्रारूप तैयार किया गया है जिसमें बालकों को समान शिक्षा का अवसर प्राप्त हो और वह समाज में सामान्य लोगों के तरह ही अपना जीवनयापन कर सके। इसीलिए ऐसे शिक्षण संस्थानों में नियमों में छूट दी जाती हैं और प्रभावशाली वातावरण भी उपलब्ध कराया जाता है जिससे कि विशेषता लिए हुए बालक बहुत कम समय में ही अपने आपको सामान्य बालकों के साथ समायोजित कर लेते हैं।

४. समावेशी शिक्षा समाज में विशिष्ट तथा सामान्य बालकों के मध्य स्वास्थ्य सामाजिक वातावरण तथा संबंध बनाने में जीवन के प्रत्येक स्तर पर सहायक सिद्ध होती हैं। इससे समाज के लोगों में सद्भावना तथा आपसी सहयोग की भावना बढ़ती है।

५. या एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत विशिष्ट बालक भी सामान्य बालकों की तरह ही महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।

६. समावेशी शिक्षा विशिष्ट बालकों को भी उनके व्यक्तिगत अधिकारों के साथ उसी रूप में स्वीकार करती हैं।

७. समावेशी शिक्षा विशिष्ट बालकों की जीवन स्तर को ऊंचा उठाने एवं उनके नागरिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का काम करती है।

८. समावेशी शिक्षा विभिन्न शिक्षाविदों, अध्यापकों, शिक्षण संस्थानों तथा माता-पिताओं के सामूहिक अभ्यास पर आधारित है।

९. समावेशी शिक्षा शिक्षण की समानता तथा अवसर जो विशिष्ट बालकों को अब तक नहीं दिए गए उनके मूल स्वरूप से शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था है।

समावेशी शिक्षा का क्षेत्र (scope of inclusive education in hindi)

समावेशी शिक्षा शारीरिक एवं मानसिक रूप से बाधित सभी बच्चों के लिए है। यह ऐसे प्रत्येक बालक के लिए शिक्षा एवं सामान्य शिक्षक की बात करता है। जो इससे लाभ प्राप्त करने के योग्य है अतः समावेशी शिक्षा का कार्य क्षेत्र ऐसे सभी बालकों के बीच अपनी पहुंच बनाना है एवं उन्हें अधिगम प्रदान कर सामान्य जीवन यापन हेतु अग्रसर करना है।

१. शारीरिक रूप से बाधित बालक

२. मानसिक रूप से बाद बालक

३. सामाजिक रुप से बाधित/विचलित बालक

४. शैक्षिक रूप से बाधित बालक

समावेशी शिक्षा के लाभ (inclusive education benefits)

    १.समावेशी शिक्षा के कारण अक्षम बालक सामान्य बालक के साथ एक ही कक्षा में बैठकर शिक्षा ग्रहण करता है।

    २.समावेशी शिक्षा के कारण वैयक्तिक विभिन्नताओं को दूर करने में मदद मिलती है साथ ही बच्चों के बीच एक लघु समाज का निर्माण किया जाता है ।

    ३.समावेशी शिक्षा की मदद से भेदभाव,छूआ छूत जैसे भाव को दूर किया जा सकता है, क्योंकि कि इसमें सामान्य बालक, अक्षम बालक तथा विशिष्ट बालक सभी को एक समान लाभ मिलता है।

    ४.समावेशी शिक्षा समायोजन का एक विशिष्ट उदाहरण है।

    ५. विशिष्ट बालक, अपंग बालक, या अक्षम बालक की विभिन्न समस्या को जानकर उनके उन समस्याओं की समाधान में समावेशी शिक्षा सहायक होती है।

    ६ समावेशी शिक्षा उन बालकों के लिए भी लाभप्रद है जो समस्यात्मक बालक होते हैं समावेशी शिक्षा उनके उन कमजोरी को जानकर उनके समस्या को दूर करने का प्रयास करता है तथा उन्हें  समस्यात्मक बालक बनने से रोकता है।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता(need of inclusive education in hindi, inclusive education needs)

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता हर देश में आवश्यक है क्योंकि बालक समावेशी शिक्षा की सहायता से सामान्य रूप से शिक्षा ग्रहण करता है तथा अपने आप को सामान्य बालक के समान बनाने का प्रयास करता है भले ही समावेशी शिक्षा में प्रतिभाशाली बालक, विशिष्ट बालक, अपंग बालक और बहुत सारे ऐसे बालक होते हैं जो सामान्य बालक से अलग होते हैं उन्हें एक साथ इसलिए शिक्षा दी जाती है क्योंकि उन बालकों में अधिगम की क्षमता को बढ़ाया जा सके।

नीचे हम समावेशी शिक्षा की आवश्यकताओं के बारे में बिंदु बद रूप से पढ़ेंगे –

१. समावेशी शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से समावेशी शिक्षा बालकों के लिए एक ऐसा अवसर प्रदान करता है जिसमें अपंग बालकों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति प्राप्त करने का अवसर मिलता है।

२. समावेशी शिक्षा एक ऐसा शिक्षा है जिसमें शिक्षा के समानता के सिद्धांत का अनुपालन किया जाता है साथ ही इस शिक्षा के माध्यम से शैक्षिक एकीकरण भी संभव होता है।

३. जैसे कि ऊपर बताया गया है कि इसमें सामान्य तथा अपंग बालक दोनों ही एक साथ सामान्य रूप से शिक्षा ग्रहण करते हैं जिससे उन दोनों के बीच प्राकृतिक वातावरण का निर्माण होता है जिससे बालकों में एकता, भाईचारा और समानता का भावना उत्पन्न होता है।

४. जहां सामान्य बालक और विशिष्ट बालक एक साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं वहां शिक्षा में भी कम खर्च होता है क्योंकि जहां अलग-अलग शिक्षा के लिए  जितना खर्च किया जाता है वह केवल समावेशी शिक्षा कम खर्च या लागत में कर लेता है।

५.समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती है जहां लघु समाज का निर्माण होता है क्योंकि यहां हर तरह के बालक एक ही साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनमें नैतिकता की भावना, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग जैसे गुण आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

६. समावेशी शिक्षा के द्वारा बच्चों में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा जैसे भावनाओं का भी विकास किया जाता है।

७. आज के युग में समावेशी शिक्षा का विशेष महत्व है क्योंकि यह शिक्षा ही आज के समाज में बदलाव ला सकता है इसलिए समावेशी शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देना चाहिए।

समावेशी शिक्षा का महत्व (importance of inclusive education in hindi)

समावेशी शिक्षा का महत्व निम्नलिखित हैं-

१. समावेशी शिक्षा के द्वारा बालकों में एकता या समानता का विकास होता है

२. जैसे कि ऊपर बताया गया है कि इसमें सामान्य तथा विशिष्ट दोनों ही बालक एक साथ पढ़ते हैं इसलिए या शिक्षा कम खर्चीली भी होती है।

३. समावेशी शिक्षा के द्वारा बालकों का मानसिक विकास उनके अंदर नैतिक विकास सामाजिक विकास और आत्मसम्मान की भावना का विकास सही रूप से किया जाता है।

४. जहां सभी बालक एक साथ शिक्षा ग्रहण करता हो वहां प्राकृतिक वातावरण का विकास होना निश्चित है।

५. यह शिक्षा समायोजन की समस्याओं को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।

समावेशी शिक्षा के सिद्धांत (Theory of inclusive education, theory of inclusive special education)

समावेशी शिक्षा के निम्नलिखित सिद्धांत है-

१. वातावरण नियंत्रण पूर्ण होना

समावेशी शिक्षा में हर तरह के बालक एक ही कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं जिसके कारण उन में विभिन्न तरह के वातावरण उत्पन्न होता है वातावरण को एक ही वातावरण में डालने का काम समावेशी शिक्षा करता है।

२. विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा

समावेशी शिक्षा विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा बालकों को शिक्षा प्रदान करने का सबसे अच्छा तरीका है बालक विशिष्ट कार्यक्रमों में भाग लेकर या उन्हें देखकर उनके अंदर अधिगम की शक्ति को बढ़ाया जाता है। इसलिए समावेशी शिक्षा में विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है।

३. भेदभाव रहित शिक्षा

समावेशी शिक्षा जहां बिना किसी भेदभाव के सामान्य तथा विशिष्ट बालकों को एक साथ शिक्षा दी जाती हैं जिससे उनके अंदर भेदभाव की भावना को मिटाया जाता है समावेशी शिक्षा भेदभाव को दूर करने छुआछूत ओं को दूर करने का एक सबसे अच्छा उदाहरण है।

४. माता-पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना

समावेशी शिक्षा में ना केवल बच्चों की शिक्षा में शिक्षक ही सहायक होते हैं बल्कि उन बच्चों के माता-पिता भी उनके शिक्षा में सहयोग प्रदान करते हैं उनकी सहायता करते हैं। जिससे उनके अंदर अधिगम की शक्ति को और भी ज्यादा बढ़ाया जाता है बच्चे अपने माता-पिता के सहयोग पाकर और अच्छी तरह से अधिगम कर पाते हैं।

५. व्यक्तिगत रूप से विभिन्नता

जो बालक समावेशी शिक्षा ग्रहण करते समय उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी या दिक्कत होती है तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से वे शिक्षा दी जाती है ताकि उन्हें सामान्य बालकों के सामान बनाया जा सके।

६. लघु समाज का निर्माण

समावेशी शिक्षा में हर प्रकार के बालक जैसे सामान्य बालक प्रतिभाशाली बालक विशिष्ट बालक अपंग बालक एक ही विद्यालय में एक ही साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं जिससे उनमें एक लघु समाज का निर्माण होता है।

समावेशी शिक्षा में शिक्षक में किन शिक्षण दक्षताओं का होना आवश्यक है (What are the teaching competencies a teacher should have in inclusive education)

समावेशी शिक्षा में शिक्षक में इन शिक्षण दक्षताओं का होना आवश्यक है:-

1.अभिप्रेरणा सीखने का महत्वपूर्ण आधार होती है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों से संबंध होती है। अतः शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह छात्रों को नकारात्मक प्रेरणा प्रदान ना करें, जिससे कि वे डर जाए। जैसे कक्षा में अपमान निंदा करना, दंड देना क्योंकि कभी-कभी नकारात्मक अभिप्रेरणा से बालक की हानि भी हो जाती है। समावेशी शिक्षा में विभिन्न तरह के विद्यार्थी होते हैं अतः इस बात का ध्यान शिक्षक को हमेशा होना चाहिए और समावेशी शिक्षा में हमेशा सकारात्मक अभिप्रेरणा ही देना चाहिए। एक शिक्षक को बच्चों को अभिप्रेरित करने की पूरी दक्षता होनी चाहिए।

2. समावेशी शिक्षा में एक अध्यापक में यह दक्षता भी होना चाहिए कि किसी कार्य को प्रारंभ करने से पहले छात्रों को यह बता देना चाहिए कि वह कार्य उनकी किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगी क्योंकि उनकी आवश्यकताएं उन्हीं के अधिगम में उद्दीपन के रूप में कार्य करती है और समावेशी शिक्षा में यह बहुत अहम भूमिका निभाती है।

3. समावेशी शिक्षा में शिक्षकों का कार्यभार सबसे अधिक होता है जिससे उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है और वह अत्यंत तनावग्रस्त और निराश हो जाते हैं इसका प्रभाव कक्षा में भी दिखाई देता है अतः शिक्षक में समायोजन करने की दक्षता भी होना चाहिए। प्रत्येक शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो जिससे वह प्रसन्नचित रहकर शिक्षण का कार्य पूर्ण रुचि के साथ कर सकें।

4. शिक्षक का व्यक्तित्व विद्यार्थियों के लिए आदर्श व्यक्तित्व होता है। अतः उसे उच्च चरित्र एवं नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण होना चाहिए। शिक्षक को ऐसे कार्य करने चाहिए जिनमें ईमानदारी, नियमबध्दता, जैसे गुणों का परिचय मिलता हो। एक अध्यापक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों के व्यक्तित्व को नैतिक एवं चारित्रिक रूप से उत्कृष्ट करने का प्रयास करें जिसके लिए उसे स्वयं में इन गुणों का विकास करना पड़ेगा। शिक्षक के निपुणता का प्रभाव विद्यार्थियों पर भी दिखाई पड़ता है।

5. एक दीपक तब तक दूसरे दीपक को प्रज्वलित नहीं कर सकता जब तक वह स्वयं प्रज्वलित नहीं होगा इसलिए शिक्षक में अपने विषय में निपुणता या ज्ञाता या विद्वान होना अत्यंत आवश्यक है। विषय का पूर्ण ज्ञान होने पर शिक्षक कक्षा में पूर्ण आत्मविश्वास के साथ शिक्षण का कार्य कर पाता है।

6. एक शिक्षक में इतनी दक्षता होनी चाहिए कि समावेशी शिक्षा के दौरान वे किस कक्षा में किस प्रकार के सहायक शिक्षण सामग्री(TLM) का उपयोग करें। समावेशी शिक्षा में TLM का विशेष प्रभाव होता है क्योंकि समावेशी शिक्षा ऐसी शिक्षा होती हैं जिसमें हर प्रकार के विद्यार्थी मौजूद होते हैं तो शिक्षक उनके जरूरतों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सहायक शिक्षण सामग्री का उपयोग करें।

7. शिक्षक में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की क्षमता होना अनिवार्य है। शिक्षक को अपने ज्ञान को विद्यार्थियों तक पहुंचाना होता है अतः उसमें अपने भावों को प्रकट करने की ऐसी क्षमता होनी चाहिए जो विद्यार्थियों तक पहुंच सके। इसके अतिरिक्त अच्छी भावाभिव्यक्ति के लिए यह भी आवश्यक है कि शिक्षक का उच्चारण स्पष्ट, प्रभावपूर्ण आवाज, भाषा सरल एवं प्रासंगिक उदाहरण युक्त तथा धारा प्रवाह कथन के रूप में हो।

8. समावेशी शिक्षा में हर प्रकार के विद्यार्थी मौजूद होते हैं जिससे एक लघु समाज का निर्माण होता है अत: शिक्षक में इतनी दक्षता होनी चाहिए कि वह इस लघु समाज को व्यापक समाज में कैसे बदल सकता है। इसके लिए वे विभिन्न प्रकार की उदाहरणों का प्रयोग कर सकते हैं।

9. कोई भी विद्यार्थी शिक्षा क्यों ग्रहण करता है ताकि उनके जो लक्ष्य हैं उसे वे पा सके। समावेशी शिक्षा में भी बच्चों के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर उन्हें उनके भावी जीवन के लिए तैयार करना चाहिए। एक शिक्षक में इन दक्षताओं का होना भी आवश्यक है।

समावेशी शिक्षा की प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए या समावेशी शिक्षा में आने वाली बाधाएं 

समावेशी शिक्षा के दौरान अनेक समस्याओं या बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिसमें से कुछ प्रमुख समस्या या बाधा इस प्रकार हैं-

१. शिक्षक में शिक्षण कौशलों की कमी:

समावेशी शिक्षा में विशिष्ट एवं सामान्य बालक अक्षम बालक सभी एक साथ एक ही कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं और यही कारण है कि एक शिक्षक को उन सभी बालकों को समान रूप से शिक्षा प्रदान करने की क्षमता होनी चाहिए उन्हें कक्षा के अनुरूप विभिन्न शिक्षण विधियों का उपयोग करना आना चाहिए साथ ही एक शिक्षक में इतनी शिक्षण कौशलों का विकास होना चाहिए कि वह विशिष्ट एवं सामान्य बालकों की समस्या को समझ कर उनकी समस्या का समाधान कर सके पर ये क्षमता सभी शिक्षक पर नहीं पाया जाता है। इसलिए समावेशी शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या शिक्षक में शिक्षण कौशलों का विकास में कमी होना है।

२. सामाजिक मनोवृत्ति: 

हम जिस देश या समाज में रहते हैं यहां के लोगों की सामाजिक मनोवृत्ति ही ऐसी है कि अक्षम बालक या विशिष्ट बालको को नकारात्मक भाव से देखते हैं उनके मन में उस बालक के प्रति पहले से ही नकारात्मक भावना बैठ चुका है कि यह बालक आगे अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा साथ ही उनके परिवार या माता-पिता उन्हें यूं ही छोड़ देते हैं। उन्हें समाज से दूर रखते हैं। उन्हें शिक्षा देना भी नहीं चाहते और जो बालक आगे भी बढ़ना चाहते हैं उनके मन में यह बातें बैठा दी जाती हैं कि तुमसे ये नहीं हो पाएगा, तुम नहीं कर पाओगे। ये सामाजिक मनोवृत्ति समावेशी शिक्षा की समस्याओं का एक अहम हिस्सा ही है जो हर एक सामान्य व्यक्ति के दिमाग में घर कर बैठा है।

३. शारीरिक बाधाएं:

समावेशी शिक्षा की और एक बड़ी समस्या यह भी है कि जो बालक शारीरिक रूप से अक्षम है बाधिर है ऐसे बालकों को अधिगम में समस्या होती ही है और वह किसी भी चीज को धीरे धीरे सीखते हैं उन्हें सीखने में बहुत ज्यादा मेहनत की आवश्यकता होती है पर उनके इन समस्याओं को नजरअंदाज कर उनके साथ सामान्य बालक जैसे ही व्यवहार, शिक्षण विधियां, प्रवृत्तियों आदि का प्रयोग किया जाता है। जिससे उनमें समस्या उत्पन्न होने लगती हैं।

४. पाठ्यक्रम :

पाठ्यक्रम निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पाठ्यक्रम लाचीला, उपयोगी एवं सामान्य एवं विशिष्ट बालक या अक्षम बालक सभी के अनुरूप हो।

५. भाषा और संवाद में समस्या:

जैसे की हम सब जानते हैं कि समावेशी शिक्षा में हर तरह के बालक शिक्षा ग्रहण करने आते हैं जिसमें कुछ बालक ऐसे होते हैं जो श्रावण वाचन लेखन पठन में बहुत ही पीछे होते हैं। जिसके कारण भाषा को समझने और संवाद करने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। इससे यह पता चलता है कि समावेशी शिक्षा इतनी आसान नहीं है। इन समस्याओं का सामना सभी शिक्षक नहीं कर पाते है।

६. भारतीय शिक्षा नीतियां से बाधाएं:

भारत में बहुत से ऐसे शिक्षा नीतियां हैं जो समावेशी शिक्षा के बीच रुकावट या बाधा उत्पन्न करती है शिक्षक या स्कूल उन नीतियों के दायरे में रहते हैं जो समावेशी शिक्षा में समस्या उत्पन्न करती है।

आज के इस लेख में हम समावेशी शिक्षा की अवधारणा । समावेशी शिक्षा का अर्थ। समावेशी शिक्षा की परिभाषा । समावेशी शिक्षा की विशेषताएं। समावेशी शिक्षा का क्षेत्र । समावेशी शिक्षा की आवश्यकता। समावेशी शिक्षा के सिद्धांत ।समावेशी शिक्षा का महत्व । समावेशी शिक्षा में शिक्षक में किन शिक्षण दक्षताओं का होना आवश्यक है के बारे में पढ़ा उम्मीद है आप सभी को इस लेख की मदद से काफी कुछ सीखने को मिला होगा। 

समावेश शिक्षा के मुख्य उद्देश्य

समावेशी शिक्षा तथा सामान्य शिक्षा के उद्देश्य लगभग समान होते हैं। जैसे देश का विकास बालको को उपयुक्त शिक्षा के द्वारा मानवीय संस्थानो का विकास, नागरिक विकास, समाज का पुनर्गठन तथा व्यवसायिक कार्यकुशलता आदि प्रदान किया जाना। इन उदेश्यों के अतिरिक्त समावेशी शिक्षा के अन्य उद्देश्यों का वर्णन निम्नलिखित है-

1. शारिरिक अक्षमता वाले बालकों के माता-पिता को निपुणता तथा कार्य कुशलताओं के बारे में समझाना तथा बालकों के समक्ष आने वाली समस्याओं एवं कमियों का समाधान करना।

2. शारीरिक विकृत बालकों की विशेष आवश्यकताओं की सर्वप्रथम पहचान करना तथा उनका निर्धारण करना।

3. शारीरिक दोष की स्थिति के बढ़ने से पूर्व ही उसे रोकने के उपाय करना तथा बालको के सीखने की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कार्य करने की नवीन विधियों द्वारा प्रशिक्षण देना।

4. शारीरिक रूप से अक्षमता वाले बालकों का पुनर्वासन किया जाना चाहिए ।

समावेशी शिक्षा आज के युग में कितनी जरूरी है और क्यों?

अगर हम इस प्रश्न का उत्तर सोचे तो यही कहेंगे कि आज के बदलते परिवेश में कुछ लोगों को ज्यादा महत्व देना तथा कुछ लोगों को बिल्कुल अलग रखना अनैतिक कार्य है। अर्थात कुछ बच्चों को घर के पास ही अच्छे स्कूल में पढ़ाना तथा कुछ बच्चें जिनकी आवश्यकताएं थोड़ी भिन्न हैं उनको दूर किसी विशेष स्कूल में पढ़ाना एक अनैतिक कार्य है। इसके अलावा हम यह कह सकते हैं कि समावेशी शिक्षा इसमें जरूरी है-

१. क्योंकि सभी बच्चे चाहे वह कैसे भी आवश्यकता वाले हो, एक ही समाज में रहना है अतः शुरू से ही एक साथ रखने में उनको समाज में रहने में आसानी होगी।

२. क्योंकि सामान्य विद्यालय सभी जगह है जबकि विशेष विद्यालय दूर शहरों में होते हैं अतः एक ऐसे विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को विद्यालय जाने के लिए दूर तक सफर करना पड़े तो या उस बच्चे के मूल अधिकार का हनन है।

     प्रत्येक राष्ट्र अपने यहां के सभी लोगों को साक्षर बनाने का प्रयास करता है ताकि राष्ट्रीय की उन्नति हो सके। यह बात तो सिध्द है कि जिस राष्ट्रीय के ज्यादातर लोग शिक्षित है वह राष्ट्र ज्यादा उन्नति कर रहा है तथा जिस राष्ट्र के कम लोग पढ़े लिखे हैं वह राष्ट्र गरीब हैं।

       अतः समावेशी शिक्षा होने से सभी प्रकार के बच्चे अपने पास के स्कूल में जाकर पढ़ सकते हैं। जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चे पहले विशेष स्कूल दूर होने के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते थे वे अब समावेशी शिक्षा के आने से पास के स्कूल में ही दूसरे बच्चों के साथ अपनी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं सभी प्रकार के बच्चों के शिक्षा ग्रहण करने पर राष्ट्र की साक्षरता दर बढ़ेगी तथा भविष्य में वह राष्ट्र अवश्य ही विकसित राष्ट्र बनेगा।

        समावेशी शिक्षा इसलिए भी जरूरी है कि जब एक ही स्कूल में विकलांग बच्चे एवं सामान्य बच्चे पढ़ेंगे तो उन्हें बचपन से ही एक दूसरे की कमियां एवं क्षमताएं जानने का मौका मिलेगा तथा सामान्य बच्चों में विकलांग बच्चों के प्रति रूढ़िवादी विचारधारा दूर होगी वही विकलांग बच्चे सामान्य बच्चों के अच्छे व्यवहारों को सीख सकते हैं।

Integrated Education and Inclusive Education difference

एकीकृत शिक्षा और समावेशी शिक्षा में अंतर (Integrated Education and Inclusive Education difference in Hindi)

  1. एकीकृत शिक्षा में विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को सिर्फ सामान्य छात्रों के साथ पढ़ने-लिखने की अनुमति दी जाती है। जबकि समावेशी शिक्षा में आपस में पढ़ने की अनुमति के साथ-साथ विशेष सुविधाएं भी मुहैया करवाई जाती हैं।
  2. एकीकृत शिक्षा प्रणाली में विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम में कोई बदलाव नहीं किया जाता। वहीं समावेशी शिक्षा प्रणाली में पाठ्यक्रम में बदलाव किया जाता है, जिससे विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को तो मदद मिले ही, साथ ही सामान्य छात्रों को भी कोई नुकसान न हो।
  3. जहां एकीकृत शिक्षा, शिक्षक केंद्रित होती है। वही समावेशी शिक्षा छात्र केंद्रित होती है।
  4. एकीकृत शिक्षा में विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित शिक्षक नहीं होते, बल्कि वहां के शिक्षकों को ऊपरी तौर पर प्रशिक्षित करके विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को पढ़ाने के लिए कहा जाता है। लेकिन समावेशी शिक्षा में विशेष शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था की जाती है।
  5. एकीकृत शिक्षा के तहत विश्वविद्यालयों की बनावट और आधारभूत संरचना विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के अनुकूल नहीं होती। लेकिन समावेशी शिक्षा में विद्यालय की बनावट और आधारभूत संरचना को विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के मुताबिक बनाया जाता है।
  6. एकीकृत शिक्षा में डॉक्टर व मनोवैज्ञानिक की व्यवस्था नहीं होती लेकिन समावेशी शिक्षा में होती है।
  7. विशेष आवश्यकता वाले छात्रों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। लेकिन एकीकृत शिक्षा व्यवस्था में उनके लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की जाती। परंतु समावेशी शिक्षा प्रणाली में छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।
  8. एकीकृत शिक्षा व्यवस्था में प्रशिक्षित शिक्षक न होने की वजह से छात्र प्रभावी शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। लेकिन समावेशी शिक्षा में प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा उन्हें प्रभावी शिक्षा दी जाती है।
  9. एकीकृत शिक्षा का प्रावधान करने वाले स्कूलों में स्कूल की बनावट छात्रों के अनुकूल नहीं होती जिससे उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन समावेशी शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों में इन छात्रों के अनुकूल व्यवस्था की जाती है।
  10. एकीकृत शिक्षा में ज्यादा लागत नहीं लगती। लेकिन समावेशी शिक्षा में प्रशिक्षित शिक्षकों, डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक, स्कूल की बनावट आदि पर काफी पैसा लगता है।

विविध पृष्ठभूमि के बच्चों के उचित समावेशन के लिए कुछ सुझाव Some suggestion for Various Background Children’s Proper Inclusive

विविध पृष्ठभूमि के  बच्चों के उचित समावेशन के लिए कुछ सुझाव Some suggestion for Various Background Children’s Proper Inclusiveसंस्थानगत सुधार Institutional Improvement

  • अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों की विद्यालयी व्यवस्था को सुविधाओं के कुशल और निःसंकोच प्रावधान की आवश्यकता है।
  • निरन्तर उपेक्षा एवं बहिष्कार झेल रहे जनजाति एवं जाति समूहों और भौगोलक क्षेत्रों की पहचान कर उनके प्रति सकारात्मक व्यवहार अपनाए जाने की आवश्यकता है।
  • प्रायः देखा जाता है कि विद्यालय के कैलेण्डर, अवकाशों एवं समय में स्थानीय सन्दर्भों का ख्याल नहीं रखा जाता। इससे बचना चाहिए एवं स्थानीय सन्दर्भों को भी पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
  • समावेशी कक्षा में कोर्स को ‘पूरा करने लिए‘ शिक्षकों द्वारा प्रयास किए जाने से अधिक आवश्यक यह है कि वह अधिक सहकारी एवं सहयोगात्मक गतिविधि अपनाएँ।
  • समावेशी कक्षा में प्रतियोगिता और ग्रेडों पर कम बल दिया जाना चाहिए तथा विद्यार्थियों के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए।

विद्यालयी पाठ्यचर्या में सुधार Improvement in School’s Syllabus

  • पाठ्यचर्या के उद्देश्य ऐसे होने चाहिएँ जो भारतीय समाज और संस्कृति कि सराहना तथा विवेचनात्मक मूल्यांकन पर बल दें।
  • सुविधाओं से वंचित बच्चों के संवेगात्मक एवं सामाजिक विकार, मानसिक विकास आदि के समान अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिएँ।
  • रचनात्मक प्रतिभा, उत्पादन कौशल और सामाजिक न्याय, प्रजातन्त्र, धर्मनिरपेक्ष, समानता के मूल्यों सहित श्रम के आदर को प्रोत्साहन देना पाठ्यचर्या का लक्ष्य होना चाहिए।
  • पाठ्यचर्या का ऐसा उपागम हो, जोकि विवेचनात्मक सिद्धान्त पर आधारित हो, विशेषकर उपदलित, दलित-महिलावादी और विवेचनात्मक बहु-सांस्कृतिक दृष्टिकोणों का समावेशन और केन्द्रीकरण आवश्यक है। यह विवेचनात्मक भारतीयकरण की प्रक्रिया अन्याय और नायक प्रधान सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्न उठाने, साथ-साथ विविध संस्कृतियों को समाहित करने और मूल्यवान सांस्कृतिक धरोहर का नुकसान होने से बचाने में सहायक होगा।
  • विवेचनात्मक बहु-सांस्कृतिक पाठों और पठन सामग्री के विकास आवश्यकता है।

शिक्षणशास्त्र में सुधार Improvement in Pedagogy

  • अधिगम सन्दर्भों  को बढ़ावा और प्रजातान्त्रिक व समानतावादी कक्षा-कक्ष व्यवहारों की रूपरेखा के विकास के लिए शिक्षणशास्त्र की विविध पद्धतियों और व्यवहारों को समाहित करने की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि पाठ्यचर्या का प्रभावी क्रियान्वय हो सके।
  • शिक्षकों को रचनात्मक, समीक्षात्मक शिक्षणशास्त्र और बच्चों के प्रति लिंग, जाति, वर्ग जनजाति-आधारित और अन्य प्रकारों की पहचान सम्बन्धी इत्यादि भेदभाव को दूर करने और समान आदर और सम्मान को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण के साथ कक्षा-कक्ष व्यवहारों पर विशेष दिशा-निर्देश विकसित करने की आवश्यकता है।
  • विद्यालय के संवेगात्मक वातावरण के सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि शिक्षक एवं बच्चे ज्ञान के निर्माण और अधिगम में खुलकर भाग ले सकें।
  • शिक्षणशास्त्र के ऐसे व्यवहरों का विकास करने की आवश्यकता है जिसका लक्ष्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातिय के आत्म-सम्मान और पहचान में सुधार।

भाषा के सन्दर्भ में सुधार Improvement in Reference of Language

  • स्थानीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। यदि यह सम्भव न हो, तो कम-से-कम व्याख्या एवं संवाद के लिए स्थानीय भाषा को वरीयता देना आवश्यक है।
  • भारतीय समाज की बहुभाषिक विशेषता को विद्यालयी जीवन को समृद्ध बनाने के संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए।

Overview of Inclusive Education notes by India’s top learners

*️⃣ *समावेशी शिक्षा (inclusive education)*
समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज के बिना खुद को आगे नहीं बढ़ा सकते।

दूसरे शब्दों में :-
समावेशी शिक्षा समिति शिक्षा के तरफ एकत्रित करती है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाजके प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करें और एक स्तर पर लाया जाए।

🔸 संयुक्त राष्ट्र संघ –1993 में
सभी को समान अवसर देने जितने भी वंचित बच्चे हैं उनको समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों को दायित्व दिया गया है।

*️⃣ *समेकित शिक्षा*
समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देती है। सभी जगह अलग-अलग योग्यता उम्र और वर्ग के बच्चे होते हैं सब को उनकी योग्यता , उम्र और वर्ग के अनुसार ही शिक्षा देना। जिससे खुद के अंदर आत्मविश्वास, आशा कर्मठता और जीवन के प्रति आकर्षण बल बढ़ता है।


💫 Notes by ➖Rashmi Savle 💫

🌺 समावेशी शिक्षा 🌺
Inclusive Education

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है प्रत्येक को किसी न किसी रूप में समाज की आवश्यकता होती है जो उनके पर्यावरण के द्वारा प्राप्त होती है लोगों की अलग-अलग प्रकार की स्थिति के कारण लोगों का एक अलग प्रकार से माइंड सेट होता है जो जाति, लिंग,और स्थान के आधार पर होता है लोग अपनी सोच से तय करते हैं कि कौन अच्छा है और कौन बुरा है |

लोग जाति के आधार पर अपने अनुसार अपने आप को दूसरों के सामने या दूसरों को अपने आप से जज (Judage) करते हैं लोग आर्थिक स्थिति की वजह से भी लोगों को judage करते हैं स्थान के नाम पर भी लोगों को आंका जाता है |

इन सभी का शिक्षा में कोई स्थान नहीं है हम उसे आर्थिक स्थिति, लिंग, जाति ,या स्थान ,के आधार किसी बच्चे को वंचित नहीं कर सकते हैं इसी को दूर करने के लिए शिक्षा को लाया गया |✍ समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा ➖

समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देता है क्योंकि जितनी समस्या वर्तमान में है उसको दूर करने के लिए अलग-अलग योग्यताओं वाले बच्चों को अलग कक्षा अलग उम्र के अनुसार उनकी जरूरत के आधार पर शिक्षा देना तथा सबको समान रूप से शिक्षा दी जाए उसी को समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा भी कह सकते हैं |

अलग – अलग प्रकार के बच्चों को एक समान शिक्षा देना समावेशी शिक्षा है क्षमता के अनुसार सुलभ शिक्षा दी जाए समान शिक्षा दी जाए जो बच्चों के ,
आत्मविश्वास को प्रेरित करने वाला हो, ताकि उनमें
आशा,
कर्मठता, तथा
जीवन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो
और आकर्षण तब बढता है जब हम उसको महसूस करें उसके प्रति आत्मविश्वास जागृत हो तभी जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ेगा |

इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों के मनोबल को बढ़ाएं और वह उसके टैलेंट, व्यक्तित्व की आवश्यकता ,प्रोटोकॉल ,आदि के इंपोर्टेंट को समझें क्योंकि व्यक्ति आवश्यक है और यदि वह अपनी importance को समझ ले तो आत्मविश्वास बढ़ सकता है |

बच्चे में जीवन के प्रति आकर्षण तभी होगा जब उसके अंदर आत्मविश्वास, आशा, कर्मठता, आदि हो और वह उसकी सोच या विचार पर निर्भर करता है |

” समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक स्तर पर समझा जाए | “

चूंकि समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक हिस्सा है जो सबको समान करने की कोशिश करता है इसके लिए,

✍ संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 1993 में ➖

वंचित बालकों को समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों को यह कार्य सौंपा गया बिना भेदभाव के समान रूप से शिक्षा देने के प्रावधान किए जाएं |
जिसमें वंचित बालको के अन्तर्गत
विकलांग, अल्पसंख्यक, बालिकाओं की शिक्षा, कई प्रकार के अधिगम विकारों से पीड़ित बच्चे, भाषा, और लिंग के आधार पर इनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो |
और उनको समान रूप से शिक्षा दी जाए |

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✍🏻manisha gupta ✍🏻 🌸 *समावेशी शिक्षा*🌸 [Inclusive education]

💫 परिचय💫

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है प्रत्येक व्यक्ति को इस समाज में अंतःक्रिया करने की आवश्यकता होती है। जाति स्थान लिंग के आधार पर लोगों का व्यक्तियों के प्रति नजरिया होता है आर्थिक स्थिति के आधार पर भी लोगों का नजरिया बदलता जाता है। ‌ जाति ,स्थान ,स्टेटस के आधार पर व्यक्ति दूसरों के सामने या दूसरों को स्वयं से ही जज करने लगते हैं। कि वह आदमी अच्छा है या बुरा है। समाज में ऐसे बहुत से कारक हैं जिससे प्रत्येक लोगों का अन्य व्यक्तियों के प्रति नजरिया होता हैइन्हीं सरकार को के कारण ही समावेशी शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है जितने भी शिक्षा में अंतर या विषम पाए हैं इन सभी चीजों का शिक्षा में कोई स्थान नहीं है। सबको समानता स्वतंत्रता के आधार पर शिक्षा को संतुलित करने की जरूरत है इसी संतुलन को बनाए रखने के लिए समावेशी शिक्षा को लाया गया।

‌💫 समेकित शिक्षा💫

अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे अलग-अलग उम्र के बच्चे उनके जरूरत के हिसाब से शैक्षिक उपक्रम को पूरा किया जाता है इसे ही समेकित शिक्षा कहा जाता है यह परिभाषा एकीकृत के समान है इसलिए इसे एकीकृत शिक्षा भी कहा जाता है सभी को एक समान शिक्षा देना ही समेकित शिक्षा है। क्षमता और योग्यता के अनुसार सभी बच्चों को सुलभ शिक्षा दी जाए जो बच्चों में आत्मविश्वास आशा कर्मठता तथा जीवन के प्रति आकर्षण लाता है बच्चों को अपनी छवि हर दिन बनाने की कोशिश करनी चाहिए तभी स्वत:ही उनमें आत्मविश्वास आशा और जीवन के प्रति आकर्षण आ जाएगा। भले ही इंपैक्ट बाद में हो यह बच्चे की सोच या विचार पर निर्भर करता है।

समावेशी शिक्षा से तात्पर्य

समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है या ऐसा कह सकते हैं कि समेकित शिक्षा ही समावेशी शिक्षा को जन्म देती है और समेकित शिक्षा ही समावेशी शिक्षा की ओर अग्रसर करती है। '' *समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है जहां सभी छात्रों को उनकी जाति धर्म रंग लिंग और विकलांगता के बावजूद बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक समान स्तर पर लाया जाता है और समावेशी शिक्षा सभी विद्यार्थियों के लिए एक समान वातावरण प्रदान करती है। समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का एक भाग है समेकित शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है*'' शिक्षा का समावेशी करण इस बात पर जोर देता है की विशेष शैक्षणिक आवश्यकता ओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक असत्य विकलांग छात्रों को समान शिक्षा का अवसर मिलना चाहिए।

📚समेकित शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का ही एक हिस्सा है जो छात्रों के लिए समान शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने पर जोर देता है इसके लिए

संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 📚 जितने भी वंचित बच्चे हैं उन्हें समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों को यह कार्य *संयुक्त राष्ट्र संघ* के द्वारा सौंपा गया है जिसके अंतर्गत बिना भेदभाव के समान रूप से शिक्षा देने का प्रावधान किया जाएगा।समावेशी शिक्षा के अंतर्गत वंचित समूहों के विद्यार्थियों को सामान्य विद्यार्थियों के साथ साथ पढ़ाया जाएगा।

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✍🏻Notes By-Vaishali Mishra
🔆 समावेशी एवं समेकित (एकीकृत) शिक्षा🔆

🔅 समावेशी शिक्षा का अर्थ🔅 :-
समावेशी शिक्षा को हम कई रूपों में समझ कर सकते हैं-

▪️समावेशी शिक्षा का अर्थ जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है सभी को सम्मलित करके बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के बालकों और बालिकाओं की क्षमता को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना है।

▪️समावेशी शिक्षा के अंतर्गत मंदबुद्धि शारीरिक रूप से दिव्यांगों छात्र एवं छात्राओं को उनकी बुद्धि के आधार पर शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

▪️क्योंकि इस शिक्षा में समाज के सभी वर्ग से आने वाले और विभिन्न क्षमताओं के विद्यार्थियों को सम्मिलित कर के शिक्षा प्रदान की जाती है, इसीलिए इसे समावेशी शिक्षा की संज्ञा दी गई है।

▪️“समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जो छात्रों की योग्यता, क्षमता, शरीरिक और आर्थिक स्थितियों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करती है।”

▪️समावेशी शिक्षा से हमारा तात्पर्य वैसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें सभी शिक्षार्थियों को बिना किसी भेद भाव के सीखने सिखाने के सामान अवसर मिले, परन्तु आज भी यह समावेशी शिक्षा उस मुकाम पर नहीं पहुँची है, जहाँ इसे पहुँचना चाहिए|

▪️किसी न किसी रूप में जो भी भेदभाव है उसे दूर करने के लिए समावेशी शिक्षा की जरूरत पड़ती है। हमारे जो भी भेदभाव या स्वतंत्रता ,न्याय या सेवा को एक संतुलित रूप देने की आवश्यकता है।

🔅 समेकित शिक्षा🔅➖

▪️समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा को जन्म देती है।
समावेशी एक प्रकार की एकीकृत या समेकित शिक्षा ही है जिसके अंतर्गत देना किसी भेदभाव या अंतर के समाज के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्रदान की जा सके और उन्हें समान स्तर पर लाया जा सके।

▪️अभी के समय में जितनी भी परेशानी है उन परेशानी को दूर करने के लिए अलग-अलग योग्यता वाले बच्चे होंगे, अलग-अलग उम्र के बच्चे होंगे, अलग-अलग कक्षा के बच्चे होंगे, इन सभी की जरूरतों के हिसाब से उनको शैक्षिक उपक्रम सब को मिलाकर पूरा किया जाता है क्योंकि इसमें सब को एक साथ मिलाकर पूरा करते हैं इसीलिए इसे एकीकृत शिक्षा भी बोलते हैं।

▪️असमर्थ व्यक्तियों की समेकीकित शिक्षा, असमर्थ/ विकलांग बाल बच्चों/वंचित बच्चो की कक्षाओं में नियमित शिक्षा से प्रारम्भ होती है। प्रत्येक समाज में निर्धारित शैक्षिक गतिविधियों के अनुसार ऐसे असमर्थ बच्चों की विशिष्ट आवष्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुये उन्हें कक्षाओं में सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है।

🔅 संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 द्वारा जो वंचित वर्ग के बच्चे हैं उनके संपूर्ण विकास के लिए सभी को समान रूप से लाने के लिए सभी राज्यों को इसका प्रावधान सौंपा गया है।


✍PRIYANKA AHIRWAR ✍

📖समावेशी शिक्षा 📖

🎯 समावेशी शिक्षा से तात्पर्य उच्च शिक्षा से है जहां सभी प्रकार के बालको को समान रूप से शिक्षा दी जाती है। अर्थात बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक बालक को शिक्षा प्रदान की जाती है।

➡️ हम जानते हैं कि आज भी मनुष्य एक दूसरे से किसी ना किसी आधार पर भेदभाव करते हैं चाहे वह जाति हो, धर्म हो, लिंग हो, स्थान हो इत्यादि पर भेदभाव अभी भी होता है। अतः इसी भेदभाव की समाप्ति करने के लिए समावेशी शिक्षा की प्रक्रिया को जारी रखना आवश्यक है। इसके माध्यम से प्रत्येक वर्गों को शिक्षित किया जाता हैं, जिससे कि वह भी सामान्य वर्ग की भांति शिक्षित होकर अपने जीवन प्रक्रिया को पूर्ण कर सके।

🎯 समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा 🎯
समेकित शिक्षा से आशय उस शिक्षण प्रणाली से है जहां सभी वालों को एक समान शिक्षित तो किया जा सकता है, लेकिन उन्हें एक समान स्तर पर लाकर ताकि सभी वंचित बालक को एक समान अवसर प्राप्त हो सके।

⭐ समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है, जिसमें बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्गों को शिक्षा प्रदान किया जाए,एक स्तर पर लाया जाए और समान अवसर दिए जाएं।
अतः हम यह कह सकते हैं कि समावेशी शिक्षा, समेकित शिक्षा या एकीकृत शिक्षा का ही भाग है, एवं समावेशी शिक्षा को समेकित शिक्षा के अंतर्गत ही रखा गया है।

➡️ विभिन्न देशों में कई प्रकार की प्रणालियों को चलाया गया है, जिससे कि भेदभाव को दूर किया जा सके। सभी व्यक्तियों को समान स्तर पर लाया जा सके। एवं सभी को समान शिक्षा दी जा सके।

♦️ संयुक्त राष्ट्र संघ 1993♦️
सन् 1993 मे सभी वंचित वर्गों को शिक्षा देने के लिए या सभी को समान स्तर या समान अवसर देने की बात की गई है।
इसके अंर्तगत विभिन्न प्रकार के वर्गों को रखा गया है जैसे कि- शारीरिक रूप से विकलांग, मानसिक रूप से विकलांग, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक इत्यादि को सम्मिलित किया गया है।
इन सभी को समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रयास किए गए हैं,एवं कुछ प्रयास किए भी जा रहे हैं, जिससे कि कोई भी बालक शिक्षा की प्राप्ति से वंचित ना रह सके क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को समाज में रहने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है। समाज में स्थित विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करने के लिए शिक्षित व्यक्ति सदैव तत्परता दिखाता है।


✍🏻Menka patel ✍🏻

🌈 समावेशी शिक्षा🌈

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है व्यक्ति समाज में रहकर ही कुछ ना कुछ सीखता रहता है जाति स्थान और लिंग के आधार पर लोगों का व्यक्तियों के प्रति अपना एक नजरिया होता है व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के आधार पर भी लोगों का नजरिया बदल जाता है हर व्यक्ति का अपना एक नजरिया होता है लोग अपनी सोच से तय करते हैं कि कौन अच्छा है कौन बुरा है

समावेशी शिक्षा का अर्थ है सभी बच्चों को एक साथ शिक्षा देना किसी भी प्रकार का भेदभाव ना करना पिछड़े बच्चे विशेष बच्चे सभी को एक साथ अधिगम कराना

⭐ संयुक्त राष्ट्र संघ – 1993 मे
सभी बच्चों को समान अवसर देना जितने भी वंचित बच्चे हैं उनको समान शिक्षा देने के लिए सभी राज्यों का दायित्व दिया गया है

✍🏻 समेकित शिक्षा —
समिति की शिक्षा समावेशी शिक्षा का जन्म देती है सभी जगह अलग-अलग योग्यता और उम्र के बच्चे होते हैं जीवन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो और हाथों से तब तक बढ़ता है जब हम उसको महसूस करें उसके प्रति आत्मविश्वास जागृत हो तभी जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ेगा

समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक स्तर का समझा जाए

समावेशी शिक्षा इस बात पर जोर देती है कि सभी बच्चों को समान शिक्षा समान अधिकार दिया जाए चाहे वह बच्चा वंचित समूह का हो या किसी प्रकार से विकलांग सभी को एक जैसी शिक्षा देने का अधिकार है
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✍notes by
Laxmi patle

🚻 समावेशी शिक्षा
📚 Inclusive education📚

👩‍🏫👉 समावेशी शिक्षा से तात्पर्य उस शिक्षा से है,जहां सभी छात्रों को जाति,धर्म,रंग,लिंग की विभिन्नता और विकलांगता के बावजूद समान रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है।

किसी भी समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति, समाज विशेष के ही भाग होते हैं ।व्यक्ति तथा समाज दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं ।यदि किसी व्यक्ति को एक समाज के अनुरूप कार्य की आवश्यकता होती है तो समाज को भी उसकी जरूरत होती है अतः हम यह कह सकते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

परंतु यहां कोई भी व्यक्ति इस बात से अनभिज्ञ नहीं है की हमारा समाज ही जाति, स्थान ,औहदा,रंग, लिंग आदि विभिन्न मानदंडों के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बंटा हुआ है। आधुनिक समय में शिक्षा के प्रसार तथा समाज के परिवर्तित होते मूल्यों के कारण एक नए दृष्टिकोण से शिक्षा प्रणाली को बनाने की आवश्यकता पड़ी जिसे समावेशी शिक्षा कहा गया।

शिक्षा में रंगभेद ,वर्गभेद,जातिभेद,विभिन्न विषमताओं इत्यादि को कोई स्थान नहीं दिया गया है। इसलिए बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार,समानता के अधिकार के साथ ,एक ही स्थान पर ,साथ-साथ शिक्षा के समान अवसर प्रदान करने की योजना समावेशी शिक्षा के तहत बनाई गई।

🚸 समेकित शिक्षा🚸

♾👉 समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा है। जिसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके एक समान स्तर पर लाया जाए। समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा से निकल कर आती है। अतः समावेशी शिक्षा समेकित शिक्षा का भाग है।

अलग-अलग योग्यता,उम्र,कक्षा,वर्ग के लोग समाज में उपस्थित है। लोगों को उनके जरूरत के अनुसार हर संभव शैक्षिक उपक्रम उपलब्ध कराना समेकित शिक्षा कहलाता है।

समेकित शिक्षा में हर प्रकार के योग्यता वाले बच्चों के सभी पक्षों को ध्यान में रखा जाता है और शिक्षा प्रदान की जाती है।इसे एकीकृत शिक्षा भी कहते हैं। इसमें बालकों के अनुसार विद्यालय को परिवर्तन करना होता है ताकि छात्रों को उनके क्षमता के अनुसार अधिक से अधिक विकास के अवसर सुलभ हो। इसकी सहायता से छात्रों को जीवन में विभिन्न लाभ होते हैं जैसे उनमें आत्मविश्वास, आशा ,कर्मठता एवं जीवन के प्रति आकर्षण जागृत होता है।

🔴 संयुक्त राष्ट्र संघ 1993 में ,सभी वंचित वर्गों को समान शिक्षा प्रदान कराने का सभी राज्यों को आवश्यक दायित्व सौंपा गया जिसके अंतर्गत सभी वंचित वर्ग शारीरिक रूप से अक्षम, दृष्टिहीन, बधिर,विकलांग बौद्धिक स्तर पर वंचित ,जाति, समूह ,धार्मिक अल्पसंख्यक,स्त्री-पुरुष भेदभाव को दूर करके, सर्वजन के संपूर्ण विकास हेतु शिक्षा का प्रावधान किया गया है।

🙏समाप्त 🙏