CTET Paper 1 & 2 Free Mock Test-1 with Solution 2024 

Central Teacher Eligibility Test (CTET) Sample Paper

Child Development and Pedagogy (CDP)

  1. Which of the following is not a characteristic of a child-centered classroom?
    a) Teacher-centered learning
    b) Student autonomy
    c) Collaborative learning
    d) Individualized instruction
  2. What does Piaget’s theory of cognitive development emphasize?
    a) Social interactions
    b) Biological factors
    c) Stages of development
    d) Environmental influences

Environmental Studies (EVS)

  1. Which of the following is a renewable source of energy?
    a) Coal
    b) Natural gas
    c) Solar power
    d) Petroleum
  2. Which gas is most abundant in the Earth’s atmosphere?
    a) Oxygen
    b) Carbon dioxide
    c) Nitrogen
    d) Hydrogen

Mathematics

  1. What is the value of 7² – 5²?
    a) 24
    b) 36
    c) 48
    d) 12
  2. What is the perimeter of a rectangle with length 8 cm and width 5 cm?
    a) 13 cm
    b) 18 cm
    c) 26 cm
    d) 40 cm

Science

  1. Which of the following is a non-metallic element?
    a) Iron
    b) Copper
    c) Oxygen
    d) Silver
  2. What is the unit of electric current?
    a) Volt
    b) Watt
    c) Ampere
    d) Joule

Social Science

  1. Who was the first Prime Minister of India?
    a) Mahatma Gandhi
    b) Jawaharlal Nehru
    c) Sardar Vallabhbhai Patel
    d) Subhash Chandra Bose
  2. The Indian National Congress was founded in which year?
    a) 1885
    b) 1905
    c) 1947
    d) 1857

Hindi

  1. “कितने आदमी थे?” किस फिल्म से संबंधित है?
    a) शोले
    b) दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे
    c) दीदार
    d) दो आदमी
  2. ‘कर्मभूमि’ का लेखक कौन हैं?
    a) मुंशी प्रेमचंद
    b) जयशंकर प्रसाद
    c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
    d) सुभद्राकुमारी चौहान

English

  1. Identify the noun in the sentence: “The cat chased the mouse.”
    a) chased
    b) cat
    c) mouse
    d) the
  2. Choose the correct form of the verb to fill in the blank: “She _ to the market yesterday.”
    a) go
    b) goes
    c) went
    d) going

Sanskrit

  1. What is the meaning of “विद्या” in Sanskrit?
    a) Knowledge
    b) Wisdom
    c) Power
    d) Strength
  2. What is the opposite of “अज्ञान” in Sanskrit?
    a) ज्ञान
    b) ध्यान
    c) विचार
    d) शक्ति

Answers with Explanations:

  1. Answer: a) Teacher-centered learning
    Explanation: A child-centered classroom focuses on student autonomy, collaborative learning, and individualized instruction, unlike a teacher-centered approach.
  2. Answer: c) Stages of development
    Explanation: Piaget’s theory emphasizes the stages of cognitive development through which children pass, including sensorimotor, preoperational, concrete operational, and formal operational stages.
  3. Answer: c) Solar power
    Explanation: Solar power is a renewable source of energy derived from the sun. It is sustainable and does not deplete natural resources.
  4. Answer: c) Nitrogen
    Explanation: Nitrogen constitutes about 78% of the Earth’s atmosphere, making it the most abundant gas.
  5. Answer: d) 12
    Explanation: (7^2 – 5^2 = (7 + 5)(7 – 5) = 12)
  6. Answer: a) 13 cm
    Explanation: Perimeter = 2(length + width) = (2(8 + 5) = 2(13) = 26)
  7. Answer: c) Oxygen
    Explanation: Oxygen is a non-metallic element essential for respiration and combustion.
  8. Answer: c) Ampere
    Explanation: Ampere is the unit of electric current, measured using an ammeter.
  9. Answer: b) Jawaharlal Nehru
    Explanation: Jawaharlal Nehru served as the first Prime Minister of India from 1947 to 1964.
  10. Answer: a) 1885
    Explanation: The Indian National Congress was founded in 1885 during the British Raj.
  11. Answer: a) शोले
    Explanation: “कितने आदमी थे?” is a famous dialogue from the Bollywood movie “शोले”.
  12. Answer: c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
    Explanation: “कर्मभूमि” is a famous poem by the renowned Hindi poet रामधारी सिंह ‘दिनकर’.
  13. Answer: c) mouse
    Explanation: “mouse” is a noun in the sentence, as it is the subject of the action.
  14. Answer: c) went
    Explanation: “went” is the correct past tense form of the verb to use in this sentence.
  15. Answer: a) Knowledge
    Explanation: “विद्या” means knowledge in Sanskrit.
  16. Answer: a) ज्ञान
    Explanation: The opposite of “अज्ञान” (ignorance) is “ज्ञान” (knowledge).

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र (सीडीपी)

  1. निम्नलिखित में से कौन सी बाल-केन्द्रित कक्षा की विशेषता नहीं है?
    ए) शिक्षक-केंद्रित शिक्षा
    बी) छात्र स्वायत्तता
    सी) सहयोगात्मक शिक्षा
    डी) व्यक्तिगत निर्देश
  2. पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत किस पर जोर देता है?
    ए) सामाजिक संपर्क
    बी) जैविक कारक
    सी) विकास के चरण
    डी) पर्यावरणीय प्रभाव

पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस)

  1. निम्नलिखित में से कौन सा ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है?
    ए) कोयला
    बी) प्राकृतिक गैस
    सी) सौर ऊर्जा
    डी) पेट्रोलियम
  2. पृथ्वी के वायुमंडल में कौन सी गैस सर्वाधिक प्रचुर मात्रा में है?
    ए) ऑक्सीजन
    बी) कार्बन डाइऑक्साइड
    सी) नाइट्रोजन
    डी) हाइड्रोजन

अंक शास्त्र

  1. 7² – 5² का मान क्या है?
    ए) 24
    बी) 36
    सी) 48
    डी) 12
  2. एक आयत की परिधि क्या है जिसकी लंबाई 8 सेमी और चौड़ाई 5 सेमी है?
    a) 13 सेमी
    b) 18 सेमी
    c) 26 सेमी
    d) 40 सेमी

विज्ञान

  1. निम्नलिखित में से कौन सा एक गैर-धातु तत्व है?
    ए) लोहा
    बी) तांबा
    सी) ऑक्सीजन
    डी) चांदी
  2. विद्युत धारा की इकाई क्या है?
    a) वोल्ट
    b) वॉट
    c) एम्पीयर
    d) जूल

सामाजिक विज्ञान

  1. भारत के पहले प्रधान मंत्री कौन थे?
    a) महात्मा गांधी
    b) जवाहरलाल नेहरू
    c) सरदार वल्लभभाई पटेल
    d) सुभाष चंद्र बोस
  2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
    ए) 1885
    बी) 1905
    सी) 1947
    डी) 1857

हिंदी

  1. “कितने आदमी थे?” किस फिल्म से सम्बंधित है?
    a) शोले
    b) दिलवाले दुल्हनिया लेग्गा
    c) दीदार
    d) दो आदमी
  2. ‘कर्मभूमि’ के लेखक कौन हैं?
    a) मुंशी प्रेमचंद
    b) जयशंकर प्रसाद
    c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
    d) सुभद्राकुमारी चौहान

अंग्रेज़ी

  1. वाक्य में संज्ञा पहचानें: “बिल्ली ने चूहे का पीछा किया।”
    a) पीछा किया गया
    b) बिल्ली
    c) चूहा
    d) द
  2. रिक्त स्थान को भरने के लिए क्रिया का सही रूप चुनें: “वह कल बाज़ार गई थी।”
    ए) जाना
    बी) जाना
    सी) जाना
    डी) जाना

संस्कृत

  1. संस्कृत में “विद्या” का क्या अर्थ है?
    क) ज्ञान
    ख) बुद्धि
    ग) शक्ति
    घ) शक्ति
  2. संस्कृत में “अज्ञान” का विपरीतार्थक क्या है?
    a) ज्ञान
    b) ध्यान
    c) विचार
    d) शक्ति

स्पष्टीकरण के साथ उत्तर:

  1. उत्तर: ए) शिक्षक-केंद्रित शिक्षण
    स्पष्टीकरण: शिक्षक-केंद्रित दृष्टिकोण के विपरीत, एक बाल-केंद्रित कक्षा छात्र स्वायत्तता, सहयोगात्मक शिक्षा और व्यक्तिगत निर्देश पर केंद्रित होती है।
  2. उत्तर: सी) विकास के चरण
    स्पष्टीकरण: पियाजे का सिद्धांत संज्ञानात्मक विकास के उन चरणों पर जोर देता है जिनसे बच्चे गुजरते हैं, जिसमें सेंसरिमोटर, प्रीऑपरेशनल, कंक्रीट ऑपरेशनल और औपचारिक ऑपरेशनल चरण शामिल हैं।
  3. उत्तर: सी) सौर ऊर्जा
    स्पष्टीकरण: सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है। यह टिकाऊ है और प्राकृतिक संसाधनों को ख़त्म नहीं करता है।
  4. उत्तर: सी) नाइट्रोजन
    स्पष्टीकरण: नाइट्रोजन पृथ्वी के वायुमंडल का लगभग 78% हिस्सा है, जो इसे सबसे प्रचुर गैस बनाता है।
  5. उत्तर: डी) 12
    स्पष्टीकरण: (7^2 – 5^2 = (7 + 5)(7 – 5) = 12)
  6. उत्तर: ए) 13 सेमी
    स्पष्टीकरण: परिधि = 2(लंबाई + चौड़ाई) = (2(8 + 5) = 2(13) = 26)
  7. उत्तर: c) ऑक्सीजन
    स्पष्टीकरण: ऑक्सीजन एक गैर-धात्विक तत्व है जो श्वसन और दहन के लिए आवश्यक है।
  8. उत्तर: सी) एम्पीयर
    स्पष्टीकरण: एम्पीयर विद्युत धारा की इकाई है, जिसे एमीटर का उपयोग करके मापा जाता है।
  9. उत्तर: बी) जवाहरलाल नेहरू
    स्पष्टीकरण: जवाहरलाल नेहरू ने 1947 से 1964 तक भारत के पहले प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया।
  10. उत्तर: ए) 1885
    स्पष्टीकरण: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में ब्रिटिश राज के दौरान हुई थी।
  11. उत्तर: a) शोले
    स्पष्टीकरण: “कितने आदमी थे?” यह बॉलीवुड फिल्म “शोले” का एक प्रसिद्ध डायलॉग है।
  12. उत्तर: c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
    स्पष्टीकरण: “कर्मभूमि” प्रसिद्ध हिंदी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक प्रसिद्ध कविता है।
  13. उत्तर: सी) माउस
    स्पष्टीकरण: “माउस” वाक्य में एक संज्ञा है, क्योंकि यह क्रिया का विषय है।
  14. उत्तर: सी) चला गया
    स्पष्टीकरण: “चला गया” इस वाक्य में उपयोग करने के लिए क्रिया का सही भूतकाल रूप है।
  15. उत्तर: ए) ज्ञान
    स्पष्टीकरण: “विद्या” का अर्थ संस्कृत में ज्ञान है।
  16. उत्तर: ए) ज्ञान
    स्पष्टीकरण: “अज्ञान” (अज्ञान) का विपरीत “ज्ञान” (ज्ञान) है।

CTET and TETs Hindi Passage with MCQ Test


CTET Hindi Passage MCQ Test

Passage:

एक आदमी जंगल में एक गाँव बसाने के लिए गया। जंगल में वह अकेला था। उसने एक स्थान पर अपना घर बनाया। लेकिन गाँव के लोग उसकी मदद नहीं कर रहे थे। उसने जंगल में खाने के लिए चालू की और खुद ही काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उसका घर और उसकी जिंदगी बेहतर होने लगी। गाँव के लोग भी उसके साथ मिल गए।

  1. इस कथन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    a) गाँव में अकेले रहने की समस्या
    b) जंगल में गाँव बसाने का विचार
    c) साथी के बिना जिंदगी की चुनौती
    d) खुद के लिए अपना रास्ता खोजना
  2. लेखक ने किसे गाँव में बसाने के लिए जंगल गया?
    a) उसका मित्र
    b) एक परिवार
    c) एक आदमी
    d) एक नौकर
  3. कथा में कौन-कौन से संदेश दिए गए हैं?
    a) एकलता की समस्या को हल करना
    b) संघर्ष करके सफलता प्राप्त करना
    c) खुद के लिए जीना
    d) साथ मिलकर काम करना
  4. कथा में व्यक्त किस प्रकार के भावना के साथ होता है?
    a) उदास
    b) आत्म-विश्वासी
    c) भावुक
    d) अप्रसन्न

Answer Key:

  1. d) खुद के लिए अपना रास्ता खोजना
    Explanation: कथा में मुख्य उद्देश्य है कि व्यक्ति ने अपने लिए नया रास्ता खोजा और सामाजिक दबाव का सामना करते हुए स्वयं को साबित किया।
  2. c) एक आदमी
    Explanation: लेखक ने कथा में एक आदमी को जंगल में एक गाँव बसाने के लिए जाते हुए बताया है।
  3. d) साथ मिलकर काम करना
    Explanation: कथा में संदेश है कि साथ मिलकर काम करने से समस्याएं हल हो सकती हैं और जीवन में सफलता मिल सकती है।
  4. b) आत्म-विश्वासी
    Explanation: पाठ में व्यक्ति अपने कार्य को सम्भालने के लिए आत्म-विश्वासी है।

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CTET – HINDI PEDAGOGY NOTES 2022

अधिगम एवं अर्जन (Learning and Acquisition)

  • अधिगम का अर्थ होता है – सीखना एवं अर्जन का अर्थ होता है- अर्जित करना या ग्रहण करना |
  • भाषा अधिगम से तात्पर्य उस प्रणाली से है, जिसमे बच्चा स्वंय प्रयास करता है, तथा उसके लिए कुछ आवश्यक परिस्थितियाँ होती है। अधिगम विद्यालय या किसी संस्था में होता है
  • भाषा अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है,, बालक अपने आस-पास के लोगो को बोलते लिखते पढ़ने देखता है, तथा अनुकरण के द्वारा उन्हें सीखता जाता है। इसमें बच्चे को कोई प्रयास नही करना पड़ता है। भाषा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है।

भाषा अर्जन से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दु :

* भाषा अर्जन मुख्यतः मातृभाषा का होता है, अर्थात मातृभाषा अर्जित की जाती है, न कि सीखी जाती है।

* भाषा अर्जन व्यवहारिक पुद्धिति है, तथा इसमे अनुकरण को मुख्य भूमिका होती

* भाषा अर्जन मे बच्चे को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता

* भाजा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है।

* इसमें किसी अन्य भाषा का व्याघात ( role ) नहीं होता।

* इसमें किसी व्याकरण की आवश्यकता नहीं होती !

* भाषा अर्जन मे सर्वाधिक महत्व समाज का होता है।

भाषा अधिगम से संबंधित तथ्य

  • भाषा अधिगम औपचारिक शिक्षा के द्वारा किया जाता है।
  •  भाषा अधिगम विद्यालय से प्रारंभ होती है।
  • भाषा अधिगम मे बच्चे को प्रयास करना पड़ता है
  • भाषा के नियम सीखे जाते है।
  • व्याकरण की आवश्यकता होती है?
  • भाषा अधिगम के द्वारा मानक भाषा सीखी जाती है
  • भाषा अधिगम मे शिक्षक विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तके शिक्षण पद्धतियाँ आदि की आवश्यकता रहती है।

 भाषा से संबंधित कुछ मनोवैज्ञानिकों के तथ्य

पावलव और स्किनर→ नकल व रहने से भाषा की क्षमता प्राप्त होती है।

चॉम्सकी                      →   बच्चों में भाषा अर्जन की क्षमता जन्मजात होती है।

पियाजे                         → भाषा अन्य संज्ञानात्मक तंत्रो की भांति परिवेश के साथ अन्तः क्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है।

वाइगोत्सकी                 → बच्चे की भाषा समाज के साथ ●सम्पर्क का ही परिणाम है।

  — अति महत्वपुर्ण बिन्दु–

→इय मानक भाषा अथवा द्वितीय भाषा सीखने मे मातृभाषा का व्याघात होता है ।

→ स्कुलू आने से पूर्व बच्चे अपनी मातृभाषा का प्रयोग जानते है।

→बच्चे स्कूल आने से पूर्व ही अपनी भाषायी पूँजी से लैस होते है।

→गृहकार्य (Homework) बच्चे के सीखने विस्तार देता है।

→प्राथमिक स्तर शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होना चाहिए।

→ प्राथमिक स्तर पर बच्चे की भाषा सिखाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि बच्चा जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग कर पाये |

→ कक्षा मे बच्चे मातृभाषा को सदैव सम्मान देना चाहिए ।

→ कक्षा मे भाषा की विविधता संसाधन के रूप में कार्य करती है।

→ प्राथमिक स्तर बच्चे को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिए। यह भाषा शिक्षण के लिए सबसे अधिक आवश्यक है।

भाषा शिक्षण के सिद्धांत (Theories of Language Teaching) Teaching )

  1. अनुबंध का सिद्धांत:- शैशवावस्था में जब बच्चा किसी शब्द को सीखता है, तो वह उसके लिए अमूर्त होता है, इसलिए किसी मूर्त वस्तु से उसका संबंध जोड़कर उसे शब्द सिखया जाता है, जैसे शब्द बोलने के साथ-साथ उसे दुध भी दिखाया जाता है दुध,
  2. अनुकरण का सिद्धांत (Theory of Imitation) :- बालक अपने परिवार या समाज मे बोली जाने वाली भाषा का अनुकरण करके भाषा अर्जित करता है। इसीलिए यदि परिवार या समाज मे त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग होता है, तो बच्चा त्रुटिपूर्ण  भाषा हीं  सीखता है
  3. अभ्यास का सिद्धांत (Trevey of exercise) :- यॉर्नडाइक ने कहा है, भाषा का विकास अभ्यास पर निर्भर करता है। भाषा बिना  अभ्यास के न तो सीखी  जाती है, और न ही उसकी कुशलता को बरकरार रखा जा सकता है

इनके अलावा भी भाषा के कई अन्य छोटे सिद्धांत  है। , परन्तु ये ज्यादा  महत्वपूर्ण है

भाषा सीखने के साधन
  1. अनुकरण
  2. खेल
  3.  कहानी
  4. वार्तालाप तथा बातचीत
  5.  प्रश्नोत्तर

महत्वपूर्ण बिन्दु –

→ भाषा सिखाने के लिए ऐसी गतिविधियाँ करानी चाहिए जिससे बच्चे को भाषा प्रयोग एवं अभिव्यक्ति के अधिक से अधिक अवसर मिले ।

→ भाषा सीखने का व्यवहारदी दृष्टिकोण अनुकरण पर बल देता है।

→ भाषा शिक्षण मे सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाषा प्रयोग के अवसर देना है

→भाषा शिक्षण की प्रक्रिया अन्य विषयों की कक्षा में भी चलती रहती है, क्योंकि किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है।

→ भाषा शिक्षण में कविता, कहानियों का प्रयोग करना चाहिए ताकि बच्चे भाषा सीखने में रुचि लें।

कहानी कविता, नाटकों का प्रयोग कक्षा में निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करता है –

  1. बच्चों को इसमें आनन्द आता है।
  2.  बच्चे विषय में रूचि लेते है।
  3. बच्चे अपनी संस्कृति को जानते है।
  4. शब्द भण्डार कल्पना शक्ति चिन्तन, सृजन आदि कौशलों का विकास

भाषा के कार्य एवं इसके विकास में बोलने एवं सुनने भूमिका

भाषा के कार्य

→ भाषा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता अच्छा भावनाएँ आदि अभिव्यक्त करने में सहायता करती है।

→ दुसरा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हेम भाषा का प्रयोग करते है।

→ सामाजिक संबंध बनाने के लिए हम भाषा का प्रयोग करते हैं।

→ नये ज्ञान की प्राप्ति के लिए भाषा बहुत ही आवश्यक है।

→ शिक्षा प्राप्त करने के लिए भाषा को आवश्यकता होती है है

→ दुसरे व्यक्ति की बोलों को समझने के लिए |

→ अपनी कला, संस्कृति, समाज का विकास करने के लिए

भाषा विकास में सुनने की भूमिका

सुनुना भाषा विकास के निम्न क्षेत्रों में भूमिका निभाता है

  1. सुनकर ही बच्चा बोलना सीखता है। वह अपने परिवार व समाज के लोगो को बोलते हुए सुनता है, तथा उनका अनुकरण करता है।
  2. शब्द भण्डार में वृद्धि के लिए
  3. बोलकर ही बच्चा भाषा कुशलता भाषा, प्रवाह प्राप्त करता है।
  4. बातचीत के द्वारा समाजिक संबंधों का निर्माण होता है।

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

  1. स्वास्थ
  2. बुद्धि
  3. यौन भिन्नता
  4. समाजिक आर्थिक स्तर
  5.  परिवार का अकार
  6. जन्मक्रम
  7. बहुजन्म (जुड़वा बच्चे ) जुड़वा
  8. एक से अधिक भाषा का प्रयोग
  9. साथियों के साथ संबंध
  10. माता -पिता द्वारा प्रेरणा

 भाषा अधिगम मे व्याकरण की भूमिका (Role of Grammar in Language Learning)

→ भाषा का व्याकरण ही भाषा का मूल रूप होता है।

→ व्याकरण के बिना भाषा का अस्तिव समाप्त हो जायेगा !

→ भाषा मे सदैव परिवर्तन होता रहता है। भाषा के इस परिवर्तन पर नियंत्रण रखने का कार्य व्याकरण ही करता है।

→ व्याकरण से भाषा में शुद्धता आती है।

→ व्याकरण से विभिन्न ध्वनियाँ व विभिन्न शब्द रूपो का ज्ञान होता है।

→ व्याकरण के बिना भाषा शिक्षण एक कठिन कार्य है।

→बच्चों को भाषा के नियम सिखाने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है।

नोट → प्राथमिक स्तर पर बच्चों को व्याकरण नहीं पढ़ाया जाता है, परंतु शिक्षक को व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक होता है।

→उच्च प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण प्रारंभ हो जाता है।

 व्याकरण शिक्षण की विधियाँ –

नियमन विधि (Declueative Method) =

→यह विधि रहने पर आधारित होती है। इसमें शिक्षक छात्रों को या तो मौखिक रूप से भाषा के नियम बता देता है या फिर लिखित रूप मे पुस्तक आदि) नियम दे देता है। तथा विद्यार्थि उन नियमों व सिद्धांतो को रट लेते है।

→ इस विधि में चिन्तन निरीक्षण उपयोग आदि का अभाव होता है।

आगमन विधि (Inductive Method):

→यह एक व्यवहारिक विधि है, इसमे बच्चे कुछ उदाहरणों के आधार पर स्वयं नियम बनाते है। इस विधि में बच्चे निम्न चरणों से गुजरते है – –

→ सर्वप्रथम बच्चों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किये जाते है।

→ बच्चे उन उदाहरणो का निरीक्षण करते है।

→ निरीक्षण के दौरान बच्चो जो समान्ताएँ मिलती है, वे उन्हें नियम के रूप में स्वीकार करते है इसे सामान्यीकरण कहते है।

→अन्त मे मे वे उन नियमों का परीक्षण करते हैं।

प्रयोग विधि ( Experiment Method )

→भाषा ससग विधिः इस विधि में बच्चों को विद्वान लेखको कडी कृतियाँ तथा पुस्तके पढ़ाई जाती है, ताकि बच्चे भाषा के सही रूप को जान सके ।

प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)

→इस विधि में बच्चों को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किये जाते है अर्थात बच्चों को विद्वान, लेखको तथा लोग जिन्हे भाषा पर पूर्व अधिकार हो, से बातचीत के अवसर प्रदान किये जाते है। यह विधि अनुकरण पर अधारित है। यह एक व्यवहारिक दृष्टिकोण है।

खेल विधि ( Play Method) –

→इस विधि मे बच्चे सबसे ज्यादा रूचि लेते है। खेल के माध्यम से बच्चो को शब्द भेद लिंग-भेद, वचन, संज्ञा आदि सिखाये जाते है।

 भाषा विविधता वाले कक्षा-कक्ष की समस्याएँ

भाषा विविधता (Language Diversation) :

→भाषा विविधता को बहुभाषिकता भी कह सकते है भारत एक बहुभाषिक देश है। यहाँ हर क्षेत्र में अलग मे अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती है। जब एक ही कक्षा मे अलग-अलग स्थानों से बच्चे आते हैं, तो उनकी मातृभाषा अलग-अलग होती है। ऐसी कक्षा को भाषा विविधता वाली कक्षा कहा जाता है।

समस्याएँ या चुनौतियां
  1. यदि बच्चे की मातृभाषा हिन्दी नहीं है, तो उसे हिन्दी पुस्तकें पढ़ने व समझने मे समस्या हो सकती है।
  2. सभी बच्चो के भावो को समझना शिक्षक के लिए कठिन हो सकती हैं।
  3. शिक्षक को इस योग्य बनना होता है, कि वह प्रत्येक बच्चे की अभिव्यक्ति को समझ सके।
  4. बच्चे एक दूसरे से बात करने में झिझकते हैं, क्योंकि उनकी भाषाएँ अलग-अलग है।
भाषा विविधता के लाभ –

→यद्यपि भाषा विविधता वाली कक्षा में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, परंतु फिर भी इसके कुछ लाभ है.

  1. भाषा विविधता या बहुभाषिकता कक्षा में एक संसाधन के रूप में कार्य करती है।
  2. बच्चो को अन्य भाषाओं के शब्दों को जानने का अवसर मिलता है।
  3. शब्द भण्डार में वृद्धि होती है?

भाषा कौशल (Language skills)

→ एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की बातो विचारों को सुनने समझने तथा अपनी बातो, विचारो भावनाओं को त करने में जिन मुख्य कौशलों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें भाषा कौशल कहते है।

भाषा कौशल चार प्रकार के होते है –

  1. श्रवण कौशल (सुनना’
  2. बोलना कौशल
  3. पढ़ना कौशल
  4. लिखना कौशल

नोट – सुनना तथा पढ़ना ग्रहणात्मक कौशल है। – क्योंकि इनके द्वारा अर्थ (सूचना) को ग्रहण किया जाता है। तथा’ बोलना व लिखना अभिव्यक्तात्मक कौशल है। इनके द्वारा अभिव्यक्ति होती है।

श्रवण कौशल की शिक्षण विधियाँ –

  1. सस्वर वाचन → छात्र अध्यापक तथा किसी अन्य छात्र को बातचीत करते हुए सुनता है।
  2. प्रश्नोत्तर :- इसमे शिक्षक छात्रों से प्रश्न पूछता है।
  3. कहानी सुनना
  4. श्रुतलेख (इमला) = इसमे शिक्षक सामग्री को मौरिकक रूप से बोलता है, तथा छात्र सुनकर लिखता जाता है। उसे

भाषण :- इसमे शिक्षक छात्रों के सामने भाषण दिता है, तथा छात्र उसे ध्यान से सुनते है।

पवन (पढ़ना) कौशल की शिक्षण विधियाँ :

→ शिक्षक द्वारा छात्रों को वर्ण बोध कराना |

→ उच्चारण करवाना

→ सम्पूर्ण से अंश विधि :- इस विधि के अनुसार पहले बच्चे को सम्पूर्ण वाक्य सिखाना चाहिए उसके बाद शब्द तथा वर्ण। इसे वाक्य विधि भी कहते है।

→ अनुकरण विधि – इसमे शिक्षक बच्चों के सामने पढ़ता है, तथा बच्चे उसका अनुकरण करते हुए पढ़ते जाते हैं।

  • पाठन के प्रकार :
  1. सस्वर पढन – स्वर सहित अर्थात आवाज के साथ : बोल बोलकर पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर पढ़न कहा जाता है। यह पढ़न बच्चों को वर्णमाला सिखाने मे सर्वाधिक उपयोगी है।
  2. आदर्श पठन:– भाषा के सम्पूर्ण शुद्ध रूप गति यति आरोह-अवरोह स्वराघात व बालघात आदि को ध्यान में रखकर जो पठन किया जाता है, वह आदर्श पढ़न कहलाता है। यह मुख्यतः शिक्षक या भाषा विद्वानों द्वारा होता है।
  3. मौन पाठन :-  जिस लिखित सामग्री को जिना अवाज किए उपचाप मन ही मन मे पढ़ते हैं। तो मौन पहन कहते है। ऐसा पहन गहन अध्ययन तथा अर्थ को गहनता से समझने के लिए किया जाता है।
  1. गम्भीर पठन:– नये ज्ञान की प्राप्ति के लिए या भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिए जो पढ़न किया जाता है। उसे गम्भीर पढ़न कहते है।
  2. द्रुत पठन :- सीखी हुई भाषा का अभ्यास करने के लिए आनन्द के लिए साहित्यिक जानकारी जानकारी के लिए ऐसा पहन किया जाता है। 1.
  3. वैयक्तिक पठन :- ऐक व्यक्ति द्वारा किया जाने वाले सस्वर पढ़न को वैयक्तिक पहन कहते है। यह सस्वर पढ़न का भाग है।
  4. सामूहिक पठन :- दो या दो से अधिक छात्रों द्वारा ‘सुस्तर पढ़न को सामूहिक पढ़न कहते हैं, यह भी सस्वर पहन का भाग है।

बोलना (मौखिक अभिव्यक्ति) कौशल की शिक्षण विधियाँ –

  1. बातचीत / वार्तालाप
  2. सस्वर पढ़न
  3. प्रश्नोत्तर
  4. कहानी सुनना व सुनाना

Bloom Taxonomy

ब्लूम का वर्गीकरण Bloom Taxonomy बेंजामिन ब्लूम (1913-1999) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे,जिन्होंने 1956 में प्रकाशित अपनी पुस्तक Taxonomy of Educational Objectives में इस वर्गीकरण को दर्शाया। जो Bloom Taxonomy के नाम से प्रचलित हुई। वर्तमान की शिक्षा ब्लूम के वर्गीकरण पर ही आधारित हैं, जैसे एक अध्यापक पढ़ाने से पहले उस प्रकरण से जुड़े ज्ञानात्मक,बोधात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों का चयन करता है यह सब ब्लूम के वर्गीकरण की ही देन हैं।

ब्लूम टैक्सोनोमी 1956 में प्रकाशित हुई। इसका निर्माण कार्य ब्लूम द्वारा हुआ, इसलिये यह bloom taxonomy के नाम से प्रचलित हुई । ब्लूम के वर्गीकरण को “शिक्षा के उद्देश्यों” के नाम से भी जाना जाता हैं अतः शिक्षण प्रक्रिया का निर्माण इस तरीके से किया जाता हैं ताकि इन उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकें।

ब्लूम का वर्गीकरण |Bloom Taxonomy in Hindi

ब्लूम के वर्गीकरण के आधार पर ही कई मनोवैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण किए और वह अपने परीक्षणों में सफल भी हुए। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि ब्लूम का यह सिद्धांत काफी हद तक सही हैं। बेंजामिन ब्लूम के वर्गीकरण (bloom taxonomy) में संज्ञानात्मक उद्देश्य, भावात्मक उद्देश्य, मनोशारीरिक उद्देश्य समाहित हैं। सर्वप्रथम हम संज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive Domain) की प्राप्ति के लिए निम्न बिंदुओं को जानिंगे –

संज्ञानात्मक उद्देश्य Cognitive Domain

1. ज्ञान (Knowledge) – ज्ञान को ब्लूम ने प्रथम स्थान दिया क्योंकि बिना ज्ञान के बाकी बिंदुओं की कल्पना करना असंभव हैं। जब तक किसी वस्तु के बारे में ज्ञान (knowledge) नही होगा तब तक उसके बारे में चिंतन करना असंभव है और अगर संभव हो भी जाये तो उसको सही दिशा नही मिल पाती। इसी कारण ब्लूम के वर्गीकरण में इसकी महत्ता को प्रथम स्थान दिया गया।

2. बोध (Comprehensive) – ज्ञान को समझना उसके सभी पहलुओं से परिचित होना एवं उसके गुण-दोषों के सम्बंध में ज्ञान अर्जित करना।

3. अनुप्रयोग (Application) – ज्ञान को क्रियान्वित (Practical) रूप देना अनुप्रयोग कहलाता हैं प्राप्त किये गए ज्ञान की आवश्यकता पड़ने पर उसका सही तरीके से अपनी जिंदगी में उसे लागू करना एवं उस समस्या के समाधान निकालने प्राप्त किये गए ज्ञान के द्वारा। यह ज्ञान को कौशल (Skill) में परिवर्तित कर देता है यही मार्ग छात्रों को अनुभव प्रदान करने में उनकी सहायता भी करता हैं।

4. विश्लेषण (Analysis) – विश्लेषण से ब्लूम का तात्पर्य था तोड़ना अर्थात किसी बड़े प्रकरण (Topic) को समझने के लिए उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त करना एवं नवीन ज्ञान का निर्माण करना तथा नवीन विचारों की खोज करना। यह ब्लूम का विचार समस्या-समाधान में भी सहायक हैं।

5. संश्लेषण (Sysnthesis) – प्राप्त किये गए नवीन विचारो या नवीन ज्ञान को जोड़ना उन्हें एकत्रित करना अर्थात उसको जोड़कर एक नवीन ज्ञान का निर्माण करना संश्लेषण कहलाता हैं।

6. मूल्यांकन (Evaluation) – सब करने के पश्चात उस नवीन ज्ञान का मूल्यांकन करना कि यह सभी क्षेत्रों में लाभदायक है कि नहीं। कहने का तात्पर्य है कि वह वैध (Validity) एवं विश्वशनीय (Reliability) हैं या नहीं। जिस उद्देश्य से वह ज्ञान छात्रों को प्रदान किया गया वह उस उद्देश्य की प्राप्ति करने में सक्षम हैं कि नही यह मूल्यांकन द्वारा पता लगाया जा सकता हैं।

2001 रिवाइज्ड ब्लूम वर्गीकरण |Revised Bloom Taxonomy

ब्लूम के वर्गीकरण (Bloom Taxonomy) में संशोधित रूप एंडरसन और कृतवोल ने दिया। इन्होंने वर्तमान की आवश्यकताओं को देखते हुए उसमे कुछ प्रमुख परिवर्तन किये। जिसे रिवाइज्ड ब्लूम वर्गीकरण (Revised bloom taxonomy) के नाम से जाना जाता हैं।

1. स्मरण (Remembering)  प्राप्त किये गये ज्ञान को अधिक समय तक अपनी बुद्धि (Mind) में संचित रख पाना एवं समय आने पर उसको पुनः स्मरण (recall) कर पाना स्मरण शक्ति का गुण हैं।

2. समझना (Understanding) – प्राप्त किया गया ज्ञान का उपयोग कब, कहा और कैसे करना है यह किसी व्यक्ति के लिए तभी सम्भव हैं जब वह प्राप्त किये ज्ञान को सही तरीके से समझे।

3. लागू करना (Apply) – जब वह ज्ञान समझ में आ जाये जब पता चल जाये कि इस ज्ञान का प्रयोग कब,कहा और कैसे करना हैं तो उस ज्ञान को सही तरीके से सही समय आने पर उसको लागू करना।

4. विश्लेषण (Analysis) – उस ज्ञान को लागू करने के पश्चात उसका विश्लेषण करना अर्थात उसको तोड़ना उसको छोटे-छोटे भागों में विभक्त करना।

5. मूल्यांकन (Evaluate) – विश्लेषण करने के पश्चात उसका मूल्यांकन करना कि जिस उद्देश्य से उसकी प्राप्ति की गयी है वह उस उद्देश्य की प्राप्ति कर रहा हैं या नहीं इसका पता हम उसका मूल्यांकन करके कर सकते हैं।

6. रचना (Creating) – मूल्यांकन करने के पश्चात उस स्मरण में एक नयी विचार का निर्माण होता हैं जिससे एक नवीन विचार की रचना होती हैं।

भावात्मक उद्देश्य (Affective Domain)

Bloom taxonomy के अंतर्गत भावात्मक उद्देश्य (Affective Domain)का निर्माण क्रयवाल एवं मारिया ने 1964 में किया। इन्होंने छात्रों के भावात्मक पक्ष पर ध्यान देते हुए कुछ प्रमुख बिंदुओं को हमारे सम्मुख रखा। भावात्मक पक्ष से तात्पर्य हैं कि उस प्रत्यय (Topic) के प्रति छात्रों के भावात्मक (गुस्सा,प्यार,चिढ़ना, उत्तेजित होना, रोना आदि) रूप का विकास करना।

1. अनुकरण (Receiving) – भावात्मक उद्देश्य (Affective Domain) की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम बालको को अनुकरण (नकल) के माध्यम से ज्ञान प्रदान करना चाहिए। एक अध्यापक को छात्रों को पढ़ाने के समय उस प्रकरण का भावात्मक पक्ष को महसूस कर उसको क्रियान्वित रूप देना चाहिये जिससे छात्र उसका अनुकरण कर उसको महसूस कर सकें।

2. अनुक्रिया (Responding) – तत्पश्चात अनुकरण कर उस अनुकरण के द्वारा क्रिया करना अनुक्रिया कहलाता हैं।

3. अनुमूल्यन (Valuing) – उस अनुक्रिया के पश्चात हम उसका मूल्यांकन करते है कि वह सफल सिध्द हुआ कि नहीं।

4. संप्रत्यय (Conceptualization) – हम उसके सभी पहलुओं पर एक साथ विचार करते हैं।

5. संगठन (Organization) – उस प्रकरण को एक स्थान में रखकर उसके बारे में चिंतन करते हैं उसमें विचार करना शुरू करते हैं।

6. चारित्रीकरण (Characterisation) – तत्पश्चात हम उस पात्र का एक चरित्र निर्माण करते हैं जिससे हमारे भीतर उसके प्रति एक भाव उत्त्पन्न होता हैं जैसे गुंडो के प्रति गुस्से का भाव हीरो के प्रति सहानुभूति वाला भाव आदि।

मनोशारीरिक उद्देश्य (Psychomotor Domain)

Bloom taxonomy के अंतर्गत मनोशारीरिक उद्देश्य का निर्माण सिम्पसन ने 1969 में किया। इन्होंने ज्ञान के क्रियात्मक पक्ष पर बल देते हुए निन्म बिंदुओं को प्रकाशित किया।

1. उद्दीपन (Stimulation) – उद्दीपन से आशय कुछ ऐसी वस्तु जो हमे अपनी ओर आकर्षित करती हैं तत्पश्चात हम उसे देखकर अनुक्रिया करतें हैं जैसे भूख लगने पर खाने की तरफ क्रिया करते हैं इस उदाहरण में भूख उद्दीपन हुई जो हमें क्रिया करने के लिये उत्तेजित कर रहीं हैं।

2. कार्य करना (Manipulation) – उस उद्दीपन के प्रति क्रिया हमको कार्य करने पर मजबूर करती हैं।

3. नियंत्रण (Control)  उस क्रिया पर हम नियंत्रण रखने का प्रयास करते हैं।

4. समन्वय (Coordination) – उसमें नियंत्रण रखने के लिए हम उद्दीपन ओर क्रिया के मध्य समन्वय स्थापित करते हैं।

5. स्वाभाविक (Naturalization) – वह समन्वय करते करते एक समय ऐसा आता हैं कि उनमें समन्वय स्थापित करना हमारे लिए सहज हो जाता हैं हम आसानी के साथ हर परिस्थिति में उनमें समन्वय स्थापित कर पाते हैं वह हमारा स्वभाव बन जाता हैं।

6. आदत ( Habit formation) – वह स्वभाव में आने के पशचात हमारी आदत बन जाता है। ऐसी परिस्थिति दुबारा आने के पश्चात हम वही क्रिया एवं प्रतिक्रिया हमेशा करते रहते हैं जिससे हमारे अंदर नयी आदतों का निर्माण होता हैं।

निष्कर्ष Conclusion –

ब्लूम के वर्गीकरण में ब्लूम ने छात्रों के ज्ञान एवं बौद्धिक पक्ष पर पूरा ध्यान केंद्रित किया हैं। वह छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिये बौद्धिक विकास पर अध्यधिक बल देते हैं। उनका यह वर्गीकरण छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने हेतु काफी उपयोगी सिद्ध हुआ हैं। ब्लूम के वर्गीकरण के माध्यम से चलकर ही हम शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकतें हैं।

महत्वपूर्ण पर्यायवाची शब्द

HINDI- कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ For CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. अधजल गगरी छलकत जाए-(कम गुणवाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है)- श्याम बातेंतो ऐसी करता है जैसे हर विषय में मास्टर हो,वास्तव में उसे किसी विषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-अधजल गगरी छलकत जाए।

2. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईखेत-(समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ)-सारा साल तुमने पुस्तकें खोलकर नहीं देखीं। अबपछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

3. आम के आम गुठलियों के दाम-(दुगुना लाभ)-हिन्दी पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकरनौकरी पर पदोन्नति कर सकते हैं, दूसरे हिन्दी के उच्च साहित्य का रसास्वादन कर सकते हैं, इसेकहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।

4. ऊँची दुकान फीका पकवान-(केवल
ऊपरी दिखावा करना)- कनॉटप्लेस के अनेक स्टोर बड़े प्रसिद्ध है, पर सब घटिया दर्जे का माल बेचतेहैं। सच है, ऊँची दुकान फीका पकवान।

5. घर का भेदी लंका ढाए-(आपसी फूट के कारण भेदखोलना)-कई व्यक्ति पहले कांग्रेस में थे, अबजनता (एस) पार्टी में मिलकर काग्रेंस की बुराईकरते हैं। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।

6. जिसकी लाठी उसकी भैंस-(शक्तिशाली की विजय होती है)- अंग्रेजों ने सेना के बल पर बंगाल परअधिकार कर लिया था-जिसकी लाठी उसकी भैंस।

7. जल में रहकर मगर से वैर-(किसी के आश्रय मेंरहकर उससे शत्रुता मोल लेना)- जो भारत मेंरहकर विदेशों का गुणगान करते हैं, उनके लिएवही कहावत है कि जल में रहकर मगर से वैर।

8. थोथा चना बाजे घना-(जिसमें सत नहीं होता वहदिखावा करता है)- गजेंद्र नेअभी दसवीं की परीक्षा पास की है, औरआलोचना अपने बड़े-बड़े गुरुजनों की करता है।थोथा चना बाजे घना।

9. दूध का दूध पानी का पानी-(सच और झूठका ठीक फैसला)- सरपंच ने दूध
का दूध,पानी का पानी कर दिखाया, असली दोषी मंगूको ही दंड मिला।

10. दूर के ढोल सुहावने-(जो चीजें दूर सेअच्छी लगती हों)- उनके मसूरी वाले बंगले की बहुत प्रशंसा सुनते थे किन्तु वहाँ दुर्गंध के मारे तंग आकर हमारे मुख से निकल ही गया-दूर के ढोलसुहावने।

11. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी-(कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना)- सारा दिन लड़के आमों केलिए पत्थर मारते रहते थे। हमने आँगन में से आमका वृक्ष की कटवा दिया। न रहेगा बाँस, नबजेगी बाँसुरी।

12. नाच न जाने आँगन टेढ़ा-(काम
करना नहीं आना और बहाने बनाना)-जब रवींद्र नेकहा कि कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आजसमय नहीं है’। फिर किसी दिन कहा तो कहने लगा,‘आज मूड नहीं है’। सच है, नाच न जाने आँगनटेढ़ा।

13. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख-(माँगेबिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने परसाधारण भी नहीं मिलती)- अध्यापकों ने माँगों केलिए हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला ? इनसेतो बैक कर्मचारी अच्छे रहे,उनका भत्ता बढ़ा दिया गया। बिन माँगे मोती मिले,माँगे मिले न भीख।

14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती ­किसी का मेहमान बनना)-एक अमेरिकन कहनेलगा, मैं एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अध्ययन करूँगा। मैंने मन में कहा, अजबआदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान।

15. मन चंगा तो कठौती में गंगा-(यदि मन पवित्र हैतो घर ही तीर्थ है)-भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही ईशस्तुति करो। मनचंगा तो कठौती में गंगा।

16. दोनों हाथों में लड्डू-(दोनों ओर लाभ)- महेंद्रको इधर उच्च पद मिल रहा था और उधरअमेरिका से वजीफा उसके तो दोनों हाथों में लड्डू थे।

17. नया नौ दिन पुराना सौ दिन-(नई वस्तुओंका विश्वास नहीं होता, पुरानी वस्तु टिकाऊहोती है)- अब भारतीय जनता का यह विश्वास हैकि इस सरकार से तो पहली सरकार फिर भी अच्छी थी। नया नौ दिन, पुराना नौ दिन।

18. बगल में छुरी मुँह में राम-राम-(भीतर सेशत्रुता और ऊपर से मीठी बातें)-साम्राज्यवादी आज भी कुछ
राष्ट्रों को उन्नति की आशा दिलाकर उन्हें अपनेअधीन रखना चाहते हैं, परन्तु अब सभी देश समझगए हैं कि उनकी बगल में छुरी और मुँह में राम-रामहै।

19. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-
(शरारती समझाने से वश में नहीं आते)- सलीमबड़ा शरारती है, पर उसके अब्बा उसे प्यार सेसमझाना चाहते हैं। किन्तु वे नहीं जानतेकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे किए जानेवाला कार्य स्थायी फलदायक होता है)- विनोबा भावेका विचार था कि भूमि सुधार धीरे-धीरे औरशांतिपूर्वक लाना चाहिए क्योंकि सहज पकेसो मीठा होय।

समास

समास
समास 6 प्रकार के होते है-

  1. अव्ययों भाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. कर्मधारय समास
  4. द्वंद्व समास
  5. द्विगु समास
  6. बहुब्रीहि समास

1.अव्ययी भाव समास :- इस समाज में प्रथम पद अव्यय एवं दूसरा पद संज्ञा होता है सम्पूर्ण पद में अव्यय के अर्थ की ही प्रधानता रहती है पूरा शब्द क्रिया – विशेषण के अर्थ में (अव्यय की भांति )व्यवहत होता है
उदाहरण :-

यथाशक्ति= शक्ति के अनुसार
प्रत्यक्ष =अक्ष के समक्ष
प्रतिदिन = हरेक दिन
नियोग =ठीक तरह से योग
आजानुबाहु = जानू से बहू तक
प्रत्येक = एक एक के प्रति
हाथों -हाथ =हाथ के बाद हाथ
रातों -रात =रात के बाद रात
घर- घर =घर के बाद घर
एक- एक =एक के बाद एक
लूटमलूट =लूट के बाद लूट
मारामारी = मारने के बाद मार
एकाएक =एक के तुरंत बाद एक
आमरण =मृत्यु तक

  1. तत्पुरुष समास :-

जिस समास का अंतिम पद (उत्तर पद ) की प्रधानता रहती है, पहला पद विशेषण होता है | कर्ता कारक और संबोधन को छोड़कर शेष सभी कारकों में विभक्तियां लगाकर इसका समास विग्रह होता है

उदाहरण:-

गगनचुंबी – गगन चूमने वाला
चिड़ीमार -चिड़िया मारने वाला
करुणा -पूर्ण करुणा से पूर्ण

लुप्त पद कारक चिन्ह ;- शब्दों के मध्य I विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है शब्दों का विग्रह करते समय वापस जोड़ देते हैं कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर सभी कारक समास में होते हैं

कर्म कारक तत्पुरुष समास:- इसे कर्म कारक विभक्ति को का लोप कर देते हैं

उदहारण:-

पक्षधर- पक्ष को देने वाला
दिल तोड़ -दिल को तोड़ने वाला
जितेंद्रिय -इंद्रियों को जीतने वाला
शरणागत – शरण को आया हुआ

करण तत्पुरुष समास:- करण कारक विभक्ति से या द्वारा का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

गुणयुक्त:-गुणों से युक्त
आंखों देखी -आंखों द्वारा देखी हुई
रत्नजडित- जड़ित रत्नों से जड़ित
रेखांकित -रेखा द्वारा अंकित
दस्तकारी -दस्त से किया गया कार्य हस्तलिखित- हाथों द्वारा लिखित

संप्रदान तत्पुरुष समास:- संप्रदान कारक की व्यक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

शपथपत्र- शपथ के लिए पत्र
गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
घुड़शाला -घोड़ों के लिए शाला
हथकड़ी- हाथों के लिए कडी
रंगमंच -रंग के लिए मंच
सत्यग्रह- सत्य के लिए आग्रह
यज्ञशाला -यज्ञ के लिए शाला.
देशभक्ति -देश के लिए भक्ति

अपादान तत्पुरुष समास :-
अपादान कारक की विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
जाति भ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
देश निकला – देश से निकलना
गर्वशून्य -गर्व से शून्य
गुणरहित – गुणों से रहित

सम्बन्ध तत्पुरुष समास :- सम्बन्ध कारक का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
मतदाता – मत का दाता
जगन्नाथ – जगत का स्वामी
फुलवाड़ी – फूलो की वाड़ी
भूकंप – भू का कंपन
नरेश – नर का ईश
लोकनायक- लोक का नायक

अधिकरण तत्पुरुष समास:- अधिकरण कारक की विभक्ति (में ,मैं पर) का लोप करने से बनता है

उदाहरण:-

आप-बीती –अपने पर बीती
गृह -प्रवेश– घर में प्रवेश
सिरदर्द –सर में दर्द
वनवास –वन में वास
कविपुंगल– कवियों में पूंगल विद्वान हरफनमौला– प्रत्येक कला में खुशल

3.कर्मधारय समास:-

इस समाज में विशेषण विशेष्य उपमान उपमेय का संबंध होता है उपमान जिसके द्वारा तुलना की जाए उसमें जिसकी तुलना करते हैं
उदाहरण
नीलकमल नील (विशेषण) कमल (विशेष्य)

खुशबू -खुश है जो बू( अच्छी है जो गंघ) हताश हद है जो आशा

कालीमिर्च -काली है जो मिर्च
पूर्णांक -पूरा है जो अंक
महात्मा -महान है जो आत्मा
सज्जन -सत है जो सज्जन
पितांबर- पीला है जो अंबर
कमलेश -कमल के समान अक्ष
मृगनैनी – मृग की तरह आंखें
राजीवलोचन -राजीव के समान लोचन
चर्मसीमा -चर्म है जो सीमा

  1. दिगु समास:- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा पद संज्ञा होता है और जिसमें समुदाय का बोध होता है वह दिगु द्विगु समास कहलाता है

उदाहरण:-

पंचानन- पाचन का समाहार
तिराहा -तीन राहों का समाहार
तिरंगा -तीन रंगों का समाहार
त्रिवेदी -तीन वेदों का समूह
तिलोकी- तीन लोगों का समूह
त्रिमूर्ति -तीन मूर्ति का समूह
सप्ताह – 7 दिनों का समूह
सतसई -सात सौ दोहों का समूह
नवरत्न -नौ रत्नों का समूह
शताब्दी- 2 वर्षों का समूह
चौपड़ -चार पड़ेगा समूह
षष्ट भुज- 6 भुजाओं वाला
चौराहा -चारों राहो वाला

  1. द्वंद समास:-

जिसके दोनों पद प्रधान हो दोनों संख्याएं तथा विशेषण हो वह द्वंद्व समास कहलाता है जिसमें दोनों शब्द मुख्य होते हैं पूर्व पद और उत्तरपद दोनों मुख्य होते हैं तथा ग्रह समय इन के मध्य समुच्चयबोधक शब्द का प्रयोग किया जाता है एवं समस्त पद में अधिकतर योजक चिन्ह का प्रयोग करते हैं

उदाहरण:-
रामकिशन राम और किशन
लव कुश लव और कुश
भला बुरा भला और बुरा

इतरेतर द्वंद्व समास:-
इस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं साथ में अपना अलग अलग अस्तित्व रखते हैं जैसे माता पिता मां बाप पढ़ा लिखा भाई बहन इस समाज में और तथा एवं शब्दों का प्रयोग किया जाता है

उदाहरण :-

माता और पिता
मां और बाप
पढ़ा और लिखा
भाई और बहन

समाहार द्वंद्व समास:-
इस समास में समाहार समूह का बोध करने हेतु दो मुख्य प्रतिनिधि शब्दों का प्रयोग किया जाता है नोट इसमें आदि इत्यादि समुच्चयबोधक होते हैं

उदाहरण:-
चाय-वाय
चाय पानी
कपड़े लेते
अगल बगल
अड़ोस-पड़ोस
हाथ-पांव
खानपान
इसमें चाय आदि ,कपड़े आदि, अड़ोस आदि ,रात आदि

विकल्प द्वंद समास:-
समास में या अथवा समुच्चयबोधक का प्रयोग किया जाता है इस समाज के अधिकतर पद या शब्द विपरीत होते हैं

उदाहरण :-

यश-अपयश

एक-दो
पाप -पुण्य
सुख-दुख
सो -दो सो
लाख -दो लाख

दन्व्द समास के उदाहरण ‌-

समस्त पद समास-विग्रह

माता-पिता माता और पिता

दिन-रात दिन और रात

पिता-पुत्र पिता और पुत्र

भाई-बहन भाई और बहन

पति-पत्नी पति और पत्नी

देश-विदेश देश और विदेश

गुण-दोष गुण और दोष

पाप-पुण्य पाप और पुण्य

राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण

अपना -पराया अपना और पराया

जीवन-मरण जीवन और मरण

अन्न-जल अन्न और जल

चावल-दाल चावल और दाल

चराचर चर और अचर

गंगा-यमुना गंगा और यमुना

हानि-लाभ हानि और लाभ

सुख-दु:ख सुख और दु:ख

भला-बुरा भला और बुरा

नर-नारी नर और नारी

अमीर-गरीब अमीर और गरीब

हाथ-पैर हाथ और पैर

दूध-दही दूध और दही

  1. बहुव्रीहि समास :-

इस समाज में कोई भी शब्द प्रदान नहीं होता है दोनों सब मिलकर एक नया अर्थ प्रकट करते हैं जैसे पितांबर इसके 2 पद है पित्त प्लस अंबर इसमें पहला पद विशेषण दूसरा पद संग है अतः इसे कर्मधारय समास होना चाहिए था लेकिन बहुव्रीहि मैं पितांबर का विशेष अर्थ पीत वस्त्र धारण करने वाले श्रीकृष्ण से लिया जाएगा

उदाहरण:-

लंबोदर लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश
दशमुख 10 है जिसके मुख अर्थात रावण

हिंदी छन्द के प्रश्न for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. छन्द सूत्रम किसकी रचना है ?
   (अ) आचार्य विश्वनाथ
   (ब) पाणिनि
   (स) आचार्य पिङ्गल
   (द) इनमें से कोई नहीं
2. छन्द का प्रथम उल्लेख किसमें किया गया है ?
   (अ) ऋग्वेद
   (ब) यजुर्वेद
   (स) महाभारत
   (द) इनमें से कोई नहीं
3. छन्द के कितने अंग होते है ?
   (अ) चार
   (ब) छह
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
4. छन्द के कितने भेद होते हैं  ?
   (अ) दो
   (ब) तीन
   (स) चार
   (द) इनमें से कोई नहीं
5. गणों की संख्या कितनी होती है  ?
   (अ) पाँच
   (ब) चार
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
6. रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ ।
    जाहि निकारो गेह ते,  कस न भेद कहि देइ।।
     प्रस्तुत पंक्ति में कौन- सा छंद है ?
   (अ) सोरठा
   (ब) उल्लाला
   (स) रोला
   (द) दोहा
7. कोई भी छंद किसमें विभक्त रहता है  ?
   (अ) चरण
   (ब) यति
   (स) चरण और यति दोनों
   (द) इनमें से कोई नहीं
8. सम मात्रिक छंद का उदाहरण है –
   (अ) दोहा
   (ब) चौपाई
   (स) सोरठा
   (द) उपरोक्त तीनो
9. रचना के आधार पर दोहे से उल्टा छंद  है ?
   (अ) रोला
   (ब) सोरठा
   (स) उल्लाला
   (द) बरवै
10. सुनु सिय सत्य असीस हमारी  है।
      पूजहिं मन कामना तुम्हारी।।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) चौपाई
   (द) इनमें से कोई नहीं
11. जिस छंद के पहले और तीसरे चरण में 11-11 एवं दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं , तुक मध्य में होता है, वह कौन- सा छंद है  ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) रोला
   (द) उल्लाला
12. निम्न में से कौन-सा छंद सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) चौपाई
   (ब) गीतिका
   (स) हरिगीतिका
   (द) दोहा
13. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद का उदाहरण है ?
   (अ) तोमर
   (ब) आल्हा
   (स) राधिका
   (द) उल्लाला
14. विषम मात्रिक छंद नहीं  है –
   (अ) कुण्डलिया
   (ब) छप्पय
   (स) सोरठा
   (द) इनमें से कोई नहीं
15. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) बरवै
   (ब) दोहा
   (स) सोरठा
   (द) रोला
16. निम्न में से एक मात्रिक छंद नहीं  है ?
   (अ) अरिल्य
   (ब) तोमर
   (स) रूपमाला
   (द) घनाक्षरी
17. किसको पुकारे यहाँ रोकर अरण्य बीच ,
      चाहे जो करो शरण्य शरण तिहारे हैं। 
      इन पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) घनाक्षरी
   (स) देवघनाक्षरी
   (द) उल्लाला
18. चौपाई छन्द में  कुल कितनी मात्राएँ होती हैं  ?
   (अ) 16
   (ब) 32
   (स) 64
   (द) इनमें से कोई नहीं
19. मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़इ गिरिवर गहन।
      जसु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल दहन।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) बरवै
   (द) रोला
20. दोहा और रोला को मिलाने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) कुण्डलिया
   (स) हरिगीतिका
   (द) गीतिका
21. अवधि शिला का उर पर था गुरु भार।
       तिल-तिल काट रही थी, दृग जल धार।
       प्रस्तुत पंक्तियों में  कौन-सा छंद है –
   (अ) दोहा 
   (ब) उल्लाला 
   (स) बरवै 
   (द) सोरठा
22. निराला की कविता ‘जूही की कली ‘ किस छंद का उदाहरण है ?
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
23. वीर (आल्हा) किस जाति का छंद  है ?
   (अ) वर्णिक 
   (ब) मात्रिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) मिश्रित्त 
24. हम जो कुछ देख रहे हैं, सुन्दर है सत्य नहीं है।
      यह दृश्य जगत भासित है, बिन कर्म शिवत्व नहीं।
   (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (ब) 10-10 वर्णों की यति से 20 वर्णों वाला वर्णिक छंद है। 
   (स) 13-13 मात्राओं की यति से 26 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
25. वर्ण या मात्रा से प्रतिबन्ध रहित छंद कहलाता है –
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
26. चरण में वर्णों की संख्या (आरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा 
   (ब) मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा-बसंततिलका 
   (स) शार्दूलविक्रीड़ित- इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता
   (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित 
27. चरण में वर्णों की संख्या (अवरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) तोटक-मालिनी-बसंततिलका-मत्तगयन्द 
   (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक 
   (स) मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक-बसंततिलका 
   (द) बसंततिलका-मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक
28. चरण में मात्राओं की संख्या (कम से अधिक) के आधार पर मात्रिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) हरिगीतिका-रोला-गीतका-चौपाई 
   (ब) रोला-गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका 
   (स) गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका-रोला 
   (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका 
29. सम मात्रिक छंद है –
   (अ) हरिगीतिका 
   (ब) उल्लाला 
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
30.  तुलसी राम  नाम सम मीत न आन।
       जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।
       कवि समाज को बिरवा चले लगाय।
       सींचन की सुधि लीजै मुरझि न जाय।।
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) चौपाई 
   (ब) बरवै 
   (स) दोहा
   (द) इनमें से कोई नहीं 
31.  रोला और उल्लाला के मिलने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलियाँ  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
32. 22 से 26 वर्ण तक के छंद को कहते हैं –  
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलिया  
   (स) सवैया 
   (द) कवित्त (घनाक्षरी) 
33.  नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारामंडल है। 
       बंदी विविध बिहंग शेषफण सिंहासन है। 
       हे शरणदायिनी देवि तू करती सबकी त्राण है। 
       हे मातृभूमि संतान हम तू जननी तू प्राण है। 
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) कुण्डलिया  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मत्तगयन्द 
   (द) छप्पय  

34. वह कौन-सा छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 -15 की यति से 31 वर्ण होते हैं और चरण के अंत में गुरु होता   है।  
   (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
   (ब) सवैया  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

35.  “धूल भरे अति शोभित स्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।” प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दुर्मिल सवैया  
   (ब) घनाक्षरी  
   (स) मालती (मत्तगयन्द)
   (द) इनमें से कोई नहीं 

36.  “पुर तै निकासी रघुबीर बधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।”
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) उपेन्द्रवज्रा  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मालती(मत्तगयन्द) 
   (द) दुर्मिल सवैया  

37.  वह कौन-सा छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में 14-12 की यति से 26 मात्राएँ होती है ,अंत में लघु-गुरु होता है ?
   (अ) घनाक्षरी  
   (ब) छप्पय  
   (स) गीतिका 
   (द) हरिगीतिका  

38.  दण्डक छंद का उदाहरण है –
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) मालती (मत्तगयन्द ) 
   (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

39.  रूपमाला और रोला निम्न में से किस छंद के उदाहरण हैं ?
   (अ) सम मात्रिक छंद  
   (ब) अर्द्धसम मात्रिक छंद  
   (स) विषम मात्रिक छंद 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
40.  सेनापति का ऋतु  वर्णन किस छंद में लिखा गया है – 
   (अ) सवैया  
   (ब) छप्पय  
   (स) कवित्त (मनहरण )
   (द) मंदाक्रांता  

छंद प्रश्नावली का उत्तर 
1. (स) आचार्य पिङ्गल
2. (अ) ऋग्वेद
3. (स) आठ
4. (ब) तीन
5. (स) आठ
6. (द) दोहा
7. (स) चरण और यति दोनों
8. (ब) चौपाई
9. (ब) सोरठा
10. (स) चौपाई
11. (ब) सोरठा
12. (द) दोहा
13. (द) उल्लाला
14. (स) सोरठा
15. (द) रोला
16. (द) घनाक्षरी
17. (ब) घनाक्षरी
18. (स) 64
19. (ब) सोरठा
20. (ब) कुण्डलिया
21. (स) बरवै 
22. (स) मुक्तक 
23. (ब) मात्रिक 
24. (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
25. (स) मुक्तक 
26. (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित (11,14,17,19 वर्ण)
27. (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक (23,15,14,12 वर्ण)
28. (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका (16,24,26,28 मात्राएँ )
29. (अ) हरिगीतिका (प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ)
30. (ब) बरवै ( विषम चरण में 12 मात्राएँ,सम चरण में 7 मात्राएँ )
31. (स) छप्पय 
32. (स) सवैया 
33. (द) छप्पय  
34. (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
35. (स) मालती (मत्तगयंद) (प्रत्येक चरण में 23 वर्ण, 8 भगण, अंत में 2 गुरु )
36. (द) दुर्मिल सवैया  (प्रत्येक चरण में 24 वर्ण, 8 सगण)
37. (स) गीतिका 
38. (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
39. (अ) सम मात्रिक छंद  
40. (स) कवित्त (मनहरण )

संधि-विच्छेद के 50 महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न=01. ‘प्रेरणास्पद’ शब्द का संधि-विच्छेद होगा –
(अ) प्रेरणा + स्पद
(ब) प्रेरणा + आस्पद
(स) प्रेरणा + पद
(द) प्रेरणा + अस्पद
👉(ब)

प्रश्न=02. इनमें कौन सा संधि शब्द सही है –
(अ) दिक् + मंडल – दिग्मंडल
(ब) अन् + ऋत – अनृत
(स) मातृ + इच्छा – मातृच्छा
(द) देवी + अवतरण – देव्यावतरण
👉(ब)

प्रश्न=03. इनमें से कौन सा संधि शब्द सही है –
(अ) एक + एक – एकेक
(ब) रवि + इन्द्र – रविन्द्र
(स) अति + अधिक – अत्याधिक
(द) वर्षा + ऋतु – वर्षर्तु
👉(द)

प्रश्न=04. इनमें से कौन सा संधि-विच्छेद गलत है –
(अ) संस्कृत – सम् + कृत
(ब) तद्धित – तत् + धित
(स) नीरस – निः + रस
(द) अनेक – अन् + एक
👉(ब)

प्रश्न=05. ‘गवाक्ष’ शब्द का सही संधि-विच्छेद होगा –
(अ) गव + अक्ष
(ब) गौ + अक्ष
(स) गो + अक्ष
(द) गवा + अक्ष
👉(स)

प्रश्न=06. इनमें से किस विकल्प में सही संधि-विच्छेद है –
(अ) अपेक्षा = अपि + ईक्षा
(ब) सरोज = सर + ओज
(स) पावक = पौ + अक
(द) जगन्नाथ = जग + नाथ
👉(स)

प्रश्न=07. इनमें से किस शब्द का संधि-विच्छेद सही नहीं है –
(अ) न्यून = नि + ऊन
(ब) अजंत = अज + अन्त
(स) मतैक्य = मत + ऐक्य
(द) महर्षि = महा + ऋषि
👉(ब)

प्रश्न=08. ‘अभीप्सा’ का सही संधि-विच्छेद है –
(अ) अभि + इप्सा
(ब) अभी + इप्सा
(स) अभि + ईप्सा
(द) अभी + ईप्सा
👉(स)

प्रश्न=09. ‘यथेष्ट’ का सही संधि-विच्छेद है –
(अ) यथा + इष्ट
(ब) यथ + इष्ट
(स) यथा + ईष्ट
(द) यथ + ईष्ट
👉(अ)

प्रश्न=10. किस शब्द की संधि सही नहीं है –
(अ) परि + ईक्षा = परीक्षा
(ब) अभि + इष्ट = अभिष्ट
(स) वसुधा + एव = वसुधैव
(द) वि + आप्त = व्याप्त
👉(ब)

प्रश्न=11. उद्धार में कोनसी संधि है?
(अ) विसर्ग
(ब) अयादि
(स) व्यंजन
(द) गुण
👉(स)

प्रश्न=12. सूर्योष्मा में कोनसी संधि है?
(अ) यण
(ब) गुण
(स) वृद्धि
(द) यण
👉(ब)

प्रश्न=13.वाड्मय मे कोनसी संधि है?
(अ) वृद्धि
(ब) स्वर
(स) व्यंजन
(द) अयादि
👉(स)

प्रश्न=14. उल्लास मे कोनसी संधि है?
(अ) विसर्ग
(ब) व्यंजन
(स) स्वर
(द) अयादि
👉(ब)

प्रश्न=15. नायक मे कोनसी संधि हे?
(अ) विसर्ग संधि
(ब) अयादि संधि
(स) यण संधि
(द) गुण संधि
👉(ब)

प्रश्न=16.’सरोज ‘का सन्धि विच्छेद है?
(अ) सर:+ज
(ब) सरो+ज
(स) सरो:+ज
(द) सर+ओज
👉(अ)

प्रश्न=17.’दुर्ग ‘शब्द का सन्धि विच्छेद है?
(अ) दुर्+ग
(ब) दु:+ग
(स) दुर+ग
(द) दु:+उर्ग
👉(ब)

प्रश्न=18.दीर्घ संधि का उदाहरण है?
(अ) नरेंद्र
(ब) पृथ्वीश
(स) एकैक
(द) नयन
👉(ब)

प्रश्न=19. ‘सम्+ चय’ का सन्धि पद करता होगा?
(अ) संचय
(ब) सञ्चय
(स) (अ ) तथा (ब )दोनों
(द) केवल (अ)
👉(स)

प्रश्न=20.’उज्ज्वल’ का सन्धि पद होगा?
(अ) उज्+ ज्वल
(ब) उत्+ज्वल
(स) उत:+ज्वल
(द) उ:+ज्वल
👉(ब)

प्रश्न=21. उज्ज्वल का सही संधि विच्छेद होगा?
(अ) उत्+ज्वल
(ब) उज् + वल
(स) उज्+ज्वल
(द) उज+ज्वल
👉(अ)

प्रश्न=22. श्रवण शब्द का सही संधि विच्छेद है?
(अ) शर+वन
(ब) श्रव्+ ण
(स) श्रव् +अन
(द) श्रव+ न
👉(स)

प्रश्न=23. सन्धि विच्छेद जे+ अन्ति से कौनसा शब्द बनता है?
(अ) जयंती
(ब) जयन्ति
(स) जयन्ती
(द) जायन्ति
👉(ब)

प्रश्न=24. मन्वन्तर शब्द में कौनसी संधि है?
(अ) यण संधि
(ब) दीर्घ संधि
(स) गुण संधि
(द) अयादि संधि
👉(अ)

प्रश्न=25. मृदा+ औषधि से बनने वाला सही शब्द है?
(अ) मृदौषधि
(ब) मृदोषधि
(स) मृदौषधी
(द) मृदौषघि
👉(अ)

प्रश्न=26. हरीश में कौन सी संधि है ।
(अ) गुण संधि
(ब) वृद्धि संधि
(स) दीर्घ संधि
(द) यण संधि
👉(स)

प्रश्न=27. अन्वीक्षा शब्द का संधि विच्छेद होगा ।
(अ) अन+ ईक्षा
(ब) अनव + ईक्षा
(स) अनु + ईक्षा
(द) अन + वीक्षा
👉(स)

प्रश्न=28. किस शब्द में विसर्ग संधि है ।
(अ) दिग्दर्शन
(ब) व्याप्त
(स) नीरव
(द) इत्यादि
👉(स)

प्रश्न=29. पवन शब्द का संधि विच्छेद होगा ।
(अ) पव+ वन
(ब) पो+ अन
(स) पौ + अन
(द)पव+ न
👉(ब)

प्रश्न=30. हिंदी संधि को कितने भागों में बांट सकते हैं ।
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पांच
👉(ब)

प्रश्न=31. कामायनी का संधि विच्छेद होगा
(अ) काम+आनी
(ब) काम+अयनी
(स) काम+आयनी
(द) कामय+नी
👉🏻(ब)

प्रश्न=32 मणीन्द्र में कौनसी संधि है
(अ) दीर्घ संधि
(ब) गुण संधि
(स) यण संधि
(द) अयादि संधि
👉🏻(अ)

प्रश्न=33 सम्मोहन का संधि विच्छेद होगा
(अ) स+मोहन
(ब) सम्+मोहन
(स) सम+मोहन
(द) स:+मोहन
👉🏻(ब)

प्रश्न=34 दुष्प्रकृति में संधि है
(अ) स्वर संधि
(ब) व्यंजन संधि
(स) विसर्ग संधि
(द) प्रकृतिभावसंधि
👉🏻(स)

प्रश्न=35.स्वर संधि के कितने भेद होते हैं।
(अ) 3
(ब) 4
(स) 5
(द) 6
👉(स)

प्रश्न=36.विसर्ग संधि कहते हैं:-
(अ) विसर्ग से,स्वर के मेल के कारण हुए विकार को।
(ब) विसर्ग से, व्यंजन के मेल के कारण हुए विकार को।
(स) विसर्ग से ,स्वर या व्यंजन के मेल के कारण हुए विकार को।
(द) विसर्ग, से विसर्ग के मेल के कारण हुए विकार को।
👉(स)

प्रश्न=37.’जगदम्बा ‘ शब्द मे प्रयुक्त संधि हैं।
(अ) स्वर संधि
(ब) अयादि संधि
(स) गुण संधि
(द) व्यंजन संधि
👉(द)

प्रश्न=38. ‘व्यायाम’ मे कौनसी संधि हैं।
(अ) यण संधि
(ब) गुण संधि
(स) व्रृदि संधि
(द) अयादि संधि
👉(अ)

प्रश्न=39.’बहिरंग’ शब्द मे कौनसी संधि हैं।
(अ) व्यंजन संधि
(ब) दीर्घ संधि
(स) विसर्ग संधि
(द) गुण संधि
👉(स)

प्रश्न=40. सौजन्य शब्द का संधि विच्छेद होगा –
(अ) सु + जन्य
(ब) सजन + य
(स) सुजन + य
(द) स : +जन्य
👉(स)

प्रश्न=41. वैभव शब्द में संधि होंगी –
(अ) अयादि
(ब) वृद्धि
(स) गुण
(द) दीर्घ
👉(अ)

प्रश्न=42. नि + अस्त की संधि होगी –
(अ) नि:अस्त
(ब) न्वस्त
(स) न्यस्त
(द) नस्त
👉(स)

प्रश्न=43. दीर्घ संधि का रूप नहीं हैं –
(अ) अ +आ
(ब) इ + इ
(स) उ + उ
(द) ए ए
👉(द)

प्रश्न=44. अ + इ में संधि होती हैं
(अ) दीर्घ
(ब) गुण
(स) वृद्धि
(द) यण
👉(ब)

प्रश्न=45.’ प्रेरणास्पद ‘ शब्द का संधि-विच्छेद होगा
(अ) प्रेरणा+ स्पद
(ब) प्रेरणा + आस्पद
(स) प्रेरणा + पद
(द) प्रेरणा + अस्पद
👉(ब)

प्रश्न=46. ‘ उज्ज्वल ‘ का सही संधि – विच्छेद होगा
(अ) उत, + ज्वल
(ब) उज, + वल
(स) उज, + ज्वल
(द) उज, + जवल
👉(अ)

प्रश्न=47.इनमे से किस शब्द की संधि अशुद्ध हैं
(अ) देवी + अवतरण = देव्यवतरण
(ब) स्त्री + उपयोगी = स्त्रीयोपयोगी
(स) अधि + अधीन = अध्यधीन
(द) सत, + मार्ग = सन्मार्ग
👉(ब)

प्रश्न=48.निम्न में से किस शब्द की संधि सही है
(अ) राम + ईश = रमेश
(ब) उत्तर + अयन = उत्तरायन
(स) ध्वनि + अर्थ = ध्वन्यार्थ
(द) पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
👉(द)

प्रश्न=49.’ यथेष्ट ‘ का सही संधि-विच्छेद हैं
(अ) यथा + इष्ट
(ब) यथ + इष्ट
(स) यथा + ईष्ट
(द) यथ + ईष्ट
👉(अ)

प्रश्न=50. निष्कलंक का संधि विच्छेद
(अ) निष्+कलंक
(ब) निश+ कलंक
(स) निस+ कलंक
(द) निः+ कलंक
👉(द)

Samas – समास Notes for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

समास की परिभाषा (Samas definition in Hindi) Hindi Grammar Samas

अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है। दूसरे अर्थ में- कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना ‘समास’ कहलाता है।

अथवा,

जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समास कहलाता है।

अथवा,

दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द (Samasik Shabd) कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास (Samas) कहलाता है।

समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: ‘एकपदीभावः समासः’।

समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।

समास की प्रक्रिया से बनने वाले शब्द को समस्तपद (samastpad) या सामासिक शब्द कहते हैं; जैसे- देशभक्ति, मुरलीधर, राम-लक्ष्मण, चौराहा, महात्मा तथा रसोईघर आदि।

सामासिक शब्द क्या होता है :-

समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।

जैसे :- राजपुत्र 

समस्तपद का विग्रह करके उसे पुनः पहले वाली स्थिति में लाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह (samas-vigrah)  कहते हैं; जैसे- देश के लिए भक्ति; मुरली को धारण किया है जिसने; राम और लक्ष्मण; चार राहों का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के लिए घर आदि।

समास-विग्रह Samas-Vigrah:

सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किय जाते हैं उसे समास-विग्रह कहते हैं।

जैसे :- माता-पिता = माता और पिता।

समस्तपद में मुख्यतः दो पद होते हैं- पूर्वपद तथा उत्तरपद
पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे-
पूजाघर(समस्तपद) – पूजा(पूर्वपद) + घर(उत्तरपद) – पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र(समस्तपद) – राजा(पूर्वपद) + पुत्र(उत्तरपद) – राजा का पुत्र (समास-विग्रह)

समास और संधि में अंतर

Difference between Samas and Sandhi :- दो या दो से अधिक शब्दो के मेल को समास कहते है । दो वर्ण या अक्षरो के मेल को संधि कहते है । अर्थात शब्दों से बने संक्षिप्त रूप को समास कहते हैं। तथा वर्णों के मेल से बने संक्षिप्त रूप को संधि कहते हैं। समास दो शब्दों का मेल है और संधि दो वर्णों का।

  • संधि में दो वर्णों का योग होता है किन्तु समास में दो शब्दों का।
  • संधि में दो वर्णों के मेल में विकार संभव है किन्तु समास में ऐसा नहीं है।
  • संधि में शब्दों की कमी नहीं की जाती भले ही ध्वनि में परिवर्तन हो जाता है जबकि समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिए जाते हैं।
  • आवश्यक नहीं की जहाँ-जहाँ समास हो वहां संधि भी हो।
  • संधि में शब्दों को अलग करने को संधि-विच्छेद कहते हैं जबकि समास में इसे समास-विग्रह कहते हैं। जैसे कि लम्बोदर का संधि विच्छेद होगा – लम्बा+उदर जबकि समास विग्रह होगा – लम्बा है उदर जिसका।

संधि-विच्छेद और समास-विग्रह में अंतरDifference in Sandhi-Vichched aur Samas-Vigrah:- सन्धि विच्छेद मे जो वर्ण मिले हुए थे उनको अलग अलग कर दिया जाता है। समास विग्रह मे हटाए गये शब्दो को वापस लिखा जाता है।

समास के भेद (Types of Samas in Hindi) Hindi Grammar Samas

समास के मुख्य सात भेद है:-
(1)तत्पुरुष समास Tatpurus Samas
(2)कर्मधारय समास Karmdharay Samas
(3)द्विगु समास Dvigu Samas
(4)बहुव्रीहि समास Bahubreehi Samas
(5)द्वन्द समास Dwand Samas
(6)अव्ययीभाव समास Avyavibhav Samas
(7)नञ समास Nay Samas

 प्रमुख समासपद की प्रधानता
1.अव्ययी भाव समासपूर्व पद प्रधान होता है |
2.तत्पुरुष समास मेंउत्तर पद प्रधान होता है |
3.कर्मधारय समास मेंउत्तर पद प्रधान होता है |
4.द्विगु समास मेंउत्तर पद प्रधान होता है |
5.द्वंद समास मेंदोनों पद प्रधान होते है |
6.बहुव्रीहि समास मेंदोनों पद अप्रधान होते हैं |

(1)तत्पुरुष समास :-

Tatpurus Samas – जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।

जैसे- Example of Tatpurus Samas

तुलसीकृत= तुलसी से कृत
शराहत= शर से आहत
राहखर्च= राह के लिए खर्च
राजा का कुमार= राजकुमार

Tatpurush Samas Examples in Hindi

तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।

तत्पुरुष समास के भेद Types of Tatpurus Samas

तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i)कर्म तत्पुरुष Karm Tatpurus Samas
(ii)करण तत्पुरुष Karan Tatpurus Samas
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष Sampradan Tatpurus Samas
(iv)अपादान तत्पुरुष Apadan Tatpurus Samas
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष Sambandh Tatpurus Samas
(vi)अधिकरण तत्पुरुष Adhikaran Tatpurus Samas

(i)कर्म तत्पुरुष या (द्वितीया तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ कर्म कारक के चिह्न (को) लगे हों। उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Example of Karm Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग (को) प्राप्त
कष्टापत्र – कष्ट (को) आपत्र (प्राप्त)
आशातीत – आशा (को) अतीत
गृहागत – गृह (को) आगत
सिरतोड़ – सिर (को) तोड़नेवाला
चिड़ीमार – चिड़ियों (को) मारनेवाला
सिरतोड़ – सिर (को) तोड़नेवाला
गगनचुंबी – गगन को चूमने वाला
यशप्राप्त – यश को प्राप्त
ग्रामगत – ग्राम को गया हुआ
रथचालक – रथ को चलाने वाला
जेबकतरा – जेब को कतरने वाला

(ii) करण तत्पुरुष या (तृतीया तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ करण कारक की विभक्ति (से/द्वारा) लगी हो। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Example of Karan Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
वाग्युद्ध – वाक् (से) युद्ध
आचारकुशल – आचार (से) कुशल
तुलसीकृत – तुलसी (से) कृत
कपड़छना – कपड़े (से) छना हुआ
मुँहमाँगा – मुँह (से) माँगा
रसभरा – रस (से) भरा
करुणागत – करुणा से पूर्ण
भयाकुल – भय से आकुल
रेखांकित – रेखा से अंकित
शोकग्रस्त – शोक से ग्रस्त
मदांध – मद से अंधा
मनचाहा – मन से चाहा
सूररचित – सूर द्वारा रचित

(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष या (चतुर्थी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ सम्प्रदान कारक के चिह्न (को/के लिए) लगे हों। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Examples of Sampradan Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
देशभक्ति – देश (के लिए) भक्ति
विद्यालय – विद्या (के लिए) आलय
रसोईघर – रसोई (के लिए) घर
हथकड़ी – हाथ (के लिए) कड़ी
राहखर्च – राह (के लिए) खर्च
पुत्रशोक – पुत्र (के लिए) शोक
स्नानघर – स्नान के लिए घर
यज्ञशाला – यज्ञ के लिए शाला
डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
गौशाला – गौ के लिए शाला
सभाभवन – सभा के लिए भवन
लोकहितकारी – लोक के लिए हितकारी
देवालय – देव के लिए आलय

(iv)अपादान तत्पुरुष या (पंचमी तत्पुरुष)- जिसका प्रथम पद अपादान के चिह्न (से) युक्त हो। उसे अपादान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Example of Apadan Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
दूरागत – दूर से आगत
जन्मान्ध – जन्म से अन्ध
रणविमुख – रण से विमुख
देशनिकाला – देश से निकाला
कामचोर – काम से जी चुरानेवाला
नेत्रहीन – नेत्र (से) हीन
धनहीन – धन (से) हीन
पापमुक्त – पाप से मुक्त
जलहीन – जल से हीन

(v)सम्बन्ध तत्पुरुष या (षष्ठी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ संबंधकारक के चिह्न (का, के, की) लगी हो। उसे संबंधकारक तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Examples of Sambandh Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
विद्याभ्यास – विद्या का अभ्यास
सेनापति – सेना का पति
पराधीन – पर के अधीन
राजदरबार – राजा का दरबार
श्रमदान – श्रम (का) दान
राजभवन – राजा (का) भवन
राजपुत्र – राजा (का) पुत्र
देशरक्षा  – देश की रक्षा
शिवालय – शिव का आलय
गृहस्वामी – गृह का स्वामी

(vi)अधिकरण तत्पुरुष या (सप्तमी तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ अधिकरण के चिह्न (में, पर) लगी हो। उसे अधिकरण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-

Examples of Adhikaran Tatpurus Samas

समस्त-पद विग्रह
विद्याभ्यास – विद्या का अभ्यास
गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
नरोत्तम – नरों (में) उत्तम
पुरुषोत्तम – पुरुषों (में) उत्तम
दानवीर – दान (में) वीर
शोकमग्न  – शोक में मग्न
लोकप्रिय – लोक में प्रिय
कलाश्रेष्ठ – कला में श्रेष्ठ
आनंदमग्न  – आनंद में मग्न

(2)कर्मधारय समास:-

Karmdharay Samas : जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- वह समास जिसमें विशेषण तथा विशेष्य अथवा उपमान तथा उपमेय का मेल हो और विग्रह करने पर दोनों खंडों में एक ही कर्त्ताकारक की विभक्ति रहे। उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
सरल शब्दों में- कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।

पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के समान’ आदि आते है।

समानाधिकरण तत्पुरुष का ही दूसरा नाम कर्मधारय है। जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ ‘कर्मधारयतत्पुरुष’ समास होता है।

कर्मधारय समास की निम्नलिखित स्थितियाँ होती हैं-
(a) पहला पद विशेषण दूसरा विशेष्य : महान्, पुरुष =महापुरुष
(b) दोनों पद विशेषण : श्वेत और रक्त =श्वेतरक्त
भला और बुरा = भलाबुरा
कृष्ण और लोहित =कृष्णलोहित
(c) पहला पद विशेष्य दूसरा विशेषण : श्याम जो सुन्दर है =श्यामसुन्दर
(d) दोनों पद विशेष्य : आम्र जो वृक्ष है =आम्रवृक्ष
(e) पहला पद उपमान : घन की भाँति श्याम =घनश्याम
व्रज के समान कठोर =वज्रकठोर
(f) पहला पद उपमेय : सिंह के समान नर =नरसिंह
(g) उपमान के बाद उपमेय : चन्द्र के समान मुख =चन्द्रमुख
(h) रूपक कर्मधारय : मुखरूपी चन्द्र =मुखचन्द्र
(i) पहला पद कु : कुत्सित पुत्र =कुपुत्र

Examples of Karmdharay Samas

समस्त-पद विग्रह
नवयुवक – नव है जो युवक
पीतांबर – पीत है जो अंबर
परमेश्र्वर – परम है जो ईश्र्वर
नीलकमल – नील है जो कमल
महात्मा  -महान है जो आत्मा
कनकलता – कनक की-सी लता
प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
देहलता – देह रूपी लता
लालमणि – लाल है जो मणि
नीलकंठ – नीला है जो कंठ
महादेव – महान है जो देव
अधमरा  -आधा है जो मरा
परमानंद – परम है जो आनंद

(Karmdharay Samas Examples in Hindi)

कर्मधारय तत्पुरुष के भेद

Types of karmdharay Samas

कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है-
(i)विशेषणपूर्वपद
(ii)विशेष्यपूर्वपद
(iii)विशेषणोभयपद
(iv)विशेष्योभयपद

(i)विशेषणपूर्वपद :- इसमें पहला पद विशेषण होता है।
Examples of Visheshanpurva pad Karmdharay Samasजैसे- पीत अम्बर= पीताम्बर
परम ईश्वर= परमेश्वर
नीली गाय= नीलगाय
प्रिय सखा= प्रियसखा

(ii) विशेष्यपूर्वपद :- इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है।
Examples of Visheshyapurva Pad Karmdharay Samasजैसे- कुमारी (क्वाँरी लड़की)
श्रमणा (संन्यास ग्रहण की हुई )=कुमारश्रमणा।

(iii) विशेषणोभयपद :-इसमें दोनों पद विशेषण होते है।
Examples of Visheshanobhaya Pad Karmdharay Samasजैसे- नील-पीत (नीला-पी-ला ); शीतोष्ण (ठण्डा-गरम ); लालपिला; भलाबुरा; दोचार कृताकृत (किया-बेकिया, अर्थात अधूरा छोड़ दिया गया); सुनी-अनसुनी; कहनी-अनकहनी।

(iv)विशेष्योभयपद:- इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।

Examples of Visheshyobhaya Pad Karmdharay Samas
जैसे- आमगाछ या आम्रवृक्ष, वायस-दम्पति।

कर्मधारयतत्पुरुष समास के उपभेद (Subtypes of karmdharay Samas)

कर्मधारयतत्पुरुष समास के अन्य उपभेद हैं- (i) उपमानकर्मधारय (ii) उपमितकर्मधारय (iii) रूपककर्मधारय

जिससे किसी की उपमा दी जाये, उसे ‘उपमान’ और जिसकी उपमा दी जाये, उसे ‘उपमेय’ कहा जाता है। घन की तरह श्याम =घनश्याम- यहाँ ‘घन’ उपमान है और ‘श्याम’ उपमेय।

(i) उपमानकर्मधारय- इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता हैं। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद, चूँकि एक ही कर्ताविभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय-लक्षण का होता है।
अन्य उदाहरण- विद्युत्-जैसी चंचला =विद्युच्चंचला।

(ii) उपमितकर्मधारय- यह उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है, अर्थात इसमें उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा। जैसे- अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव; नर सिंह के समान =नरसिंह।

किन्तु, जहाँ उपमितकर्मधारय- जैसा ‘नर सिंह के समान’ या ‘अधर पल्लव के समान’ विग्रह न कर अगर ‘नर ही सिंह या ‘अधर ही पल्लव’- जैसा विग्रह किया जाये, अर्थात उपमान-उपमेय की तुलना न कर उपमेय को ही उपमान कर दिया जाय-
दूसरे शब्दों में, जहाँ एक का दूसरे पर आरोप कर दिया जाये, वहाँ रूपककर्मधारय होगा। उपमितकर्मधारय और रूपककर्मधारय में विग्रह का यही अन्तर है। रूपककर्मधारय के अन्य उदाहरण- मुख ही है चन्द्र = मुखचन्द्र; विद्या ही है रत्न = विद्यारत्न भाष्य (व्याख्या) ही है अब्धि (समुद्र)= भाष्याब्धि।

(Hindi Grammar Samas)

(3)द्विगु समास Dvigu Samas :-

जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु कर्मधारय समास कहलाता है।
इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा जाता है। इसका पहला पद संख्यावाची और दूसरा पद संज्ञा होता है। Examples of Dvigu Samas जैसे-

समस्त-पद विग्रह
सप्तसिंधु – सात सिंधुओं का समूह
दोपहर – दो पहरों का समूह
त्रिलोक – तीनों लोको का समाहार
तिरंगा – तीन रंगों का समूह
दुअत्री  – दो आनों का समाहार
पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समूह
पंजाब – पाँच आबों (नदियों) का समूह
पंचरत्न  -पाँच रत्नों का समूह
नवरात्रि  – नौ रात्रियों का समूह
त्रिवेणी – तीन वेणियों (नदियों) का समूह
सतसई – सात सौ दोहों का समूह

(Dvigu Samas Examples in Hindi)

द्विगु के भेद

Types of Dvigu Samas

इसके दो भेद होते है- (i)समाहार द्विगु और (ii)उत्तरपदप्रधान द्विगु।

(i)समाहार द्विगु:- समाहार का अर्थ है ‘समुदाय’ ‘इकट्ठा होना’ ‘समेटना’ उसे समाहार द्विगु समास कहते हैं।
Examples of Samahar Dvigu Samas जैसे- तीनों लोकों का समाहार= त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार= पंचवटी
पाँच सेरों का समाहार= पसेरी
तीनो भुवनों का समाहार= त्रिभुवन

(ii)उत्तरपदप्रधान द्विगु:- इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्यावाची। इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता।
उत्तरपदप्रधान द्विगु के दो प्रकार है-
(a) बेटा या उत्पत्र के अर्थ में; जैसे- दो माँ का- द्वैमातुर या दुमाता; दो सूतों के मेल का- दुसूती;
(b) जहाँ सचमुच ही उत्तरपद पर जोर हो; जैसे- पाँच प्रमाण (नाम) =पंचप्रमाण; पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)= पँचहत्थड़।

द्रष्टव्य- अनेक बहुव्रीहि समासों में भी पूर्वपद संख्यावाचक होता है। ऐसी हालत में विग्रह से ही जाना जा सकता है कि समास बहुव्रीहि है या द्विगु। यदि ‘पाँच हत्थड़ है जिसमें वह =पँचहत्थड़’ विग्रह करें, तो यह बहुव्रीहि है और ‘पाँच हत्थड़’ विग्रह करें, तो द्विगु।

(4)बहुव्रीहि समास Bahuvreehi Samas :-

समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो, तब उसे बहुव्रीहि समास कहते है।

दूसरे शब्दों में- जिस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही प्रधान हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
जैसे- दशानन- दस मुहवाला- रावण।

जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। ‘नीलकंठ’, नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद ‘शिव’ का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।

इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।

Examples of Bahuvreehi Samas

समस्त-पद विग्रह
प्रधानमंत्री – मंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
पंकज – (पंक में पैदा हो जो (कमल)
अनहोनी – न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)
निशाचर – निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
चौलड़ी – चार है लड़ियाँ जिसमे (माला)
विषधर – (विष को धारण करने वाला (सर्प)
मृगनयनी – मृग के समान नयन हैं जिसके अर्थात सुंदर स्त्री
त्रिलोचन – तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव
महावीर – महान वीर है जो अर्थात हनुमान
सत्यप्रिय  – सत्य प्रिय है जिसे अर्थात विशेष व्यक्ति

(Bahuvreehi Samas Examples in Hindi)

तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर-

Difference in Tatpurush and Bahuvreehi Samas तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है।
जैसे- ‘पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )’ कर्मधारय तत्पुरुष है तो ‘पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)’ बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। ‘पीताम्बर’ का तत्पुरुष में विग्रह करने पर ‘पीला कपड़ा’ और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर ‘विष्णु’ अर्थ होता है।

बहुव्रीहि समास के भेद Types of Bahuvreehi Samas

बहुव्रीहि समास के चार भेद है-
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहि
(iv) व्यतिहारबहुव्रीहि

(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि :- इसमें सभी पद प्रथमा, अर्थात कर्ताकारक की विभक्ति के होते है; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति-रूपों में भी उक्त हो सकता है।

Examples of Samanadhikaran Bahuvreehi Samas

जैसे- प्राप्त है उदक जिसको =प्राप्तोदक (कर्म में उक्त);
जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त);
दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त);
निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त);
पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर;
मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला;
नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त);
चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी;
सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।

(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि :-समानाधिकरण में जहाँ दोनों पद प्रथमा या कर्ताकारक की विभक्ति के होते है, वहाँ पहला पद तो प्रथमा विभक्ति या कर्ताकारक की विभक्ति के रूप का ही होता है, जबकि बादवाला पद सम्बन्ध या अधिकरण कारक का हुआ करता है।

Examples of vyadhikaran Bahuvreehi Samas

जैसे- शूल है पाणि (हाथ) में जिसके =शूलपाणि;
वीणा है पाणि में जिसके =वीणापाणि।
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहिु:- जिसमें पहला पद ‘सह’ हो, वह तुल्ययोगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि कहलाता है।
‘सह’ का अर्थ है ‘साथ’ और समास होने पर ‘सह’ की जगह केवल ‘स’ रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो ‘सह’ (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है।

Examples of Tulyayog Bahuvreehi Samas

जैसे- जो बल के साथ है, वह=सबल;
जो देह के साथ है, वह सदेह;
जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार;
जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।

(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि:-जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो, उसे व्यतिहारबहुव्रीहि कहा जाता है।
इ समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि ‘इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई’।

Examples of vyatihaar Bahuvreehi Samas

जैसे- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्का-मुक्की;
घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी;
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती।
इसी प्रकार, खींचातानी, कहासुनी, मारामारी, डण्डाडण्डी, लाठालाठी आदि।

इन चार प्रमुख जातियों के बहुव्रीहि समास के अतिरिक्त इस समास का एक प्रकार और है। जैसे-
प्रादिबहुव्रीहि- जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है।
जैसे- कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप;
नहीं है रहम जिसमें = बेरहम;
नहीं है जन जहाँ = निर्जन।

तत्पुरुष के भेदों में भी ‘प्रादि’ एक भेद है, किन्तु उसके दोनों पदों का विग्रह विशेषण-विशेष्य-पदों की तरह होगा, न कि बहुव्रीहि के ढंग पर, अन्य पद की प्रधानता की तरह। जैसे- अति वृष्टि= अतिवृष्टि (प्रादितत्पुरुष) ।

द्रष्टव्य- (i) बहुव्रीहि के समस्त पद में दूसरा पद ‘धर्म’ या ‘धनु’ हो, तो वह आकारान्त हो जाता है।
जैसे- प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा;
सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा;
आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा।

(ii) सकारान्त में विकल्प से ‘आ’ और ‘क’ किन्तु ईकारान्त, उकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्र्चितरूप से ‘क’ लग जाता है।
जैसे- उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क;
अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क;
ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक;
साथ है पति जिसके; सप्तीक;
बिना है पति के जो = विप्तीक।

बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ

बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है-

(i) यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है।
(ii)इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
(iii)इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
(iv)इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
(v) इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।

बहुव्रीहि समास-संबंधी विशेष बातें

(i) यदि बहुव्रीहि समास के समस्तपद में दूसरा पद ‘धर्म’ या ‘धनु’ हो तो वह आकारान्त हो जाता है। जैसे-
आलोक ही है धनु जिसका वह= आलोकधन्वा

(ii) सकारान्त में विकल्प से ‘आ’ और ‘क’ किन्तु ईकारान्त, ऊकारान्त और ॠकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्चित रूप से ‘क’ लग जाता है। जैसे-
उदार है मन जिसका वह= उदारमनस्
अन्य में है मन जिसका वह= अन्यमनस्क
साथ है पत्नी जिसके वह= सपत्नीक

(iii) बहुव्रीहि समास में दो से ज्यादा पद भी होते हैं।

(iv) इसका विग्रह पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है। यानी पदों के क्रम को व्यवस्थित किया जाय तो एक सार्थक वाक्य बन जाता है। जैसे-
लंबा है उदर जिसका वह= लंबोदर
वह, जिसका उदर लम्बा है।

(v) इस समास में अधिकतर पूर्वपद कर्त्ता कारक का होता है या विशेषण।

(5)द्वन्द्व समास Dwand Samas:-

जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ लगता हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।

Examples of Dwand Samas

समस्त-पद विग्रह
रात-दिन = रात और दिन
सुख-दुख = सुख और दुख
दाल-चावल = दाल और चावल
भाई-बहन  = भाई और बहन
माता-पिता = माता और पिता
ऊपर-नीचे = ऊपर और नीचे
गंगा-यमुना = गंगा और यमुना
दूध-दही = दूध और दही
आयात-निर्यात = आयात और निर्यात
देश-विदेश = देश और विदेश
आना-जाना  =आना और जाना
राजा-रंक = राजा और रंक

(Dwand Samas Examples in Hindi)

पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (Hyphen (-) का प्रयोग होता है।

द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है। द्वन्द्व और तत्पुरुष से बने पदों का लिंग अन्तिम शब्द के अनुसार होता है।

द्वन्द्व समास के भेद

Types of Dwand Samas द्वन्द्व समास के तीन भेद है-
(i) इतरेतर द्वन्द्व
(ii) समाहार द्वन्द्व
(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व

(i) इतरेतर द्वन्द्व-: वह द्वन्द्व, जिसमें ‘और’ से सभी पद जुड़े हुए हो और पृथक् अस्तित्व रखते हों, ‘इतरेतर द्वन्द्व’ कहलता है।

इस समास से बने पद हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते है; क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने होते है।
Examples of Itaretar Dwand Samas जैसे- राम और कृष्ण =राम-कृष्ण
ऋषि और मुनि =ऋषि-मुनि
गाय और बैल =गाय-बैल
भाई और बहन =भाई-बहन
माँ और बाप =माँ-बाप
बेटा और बेटी =बेटा-बेटी इत्यादि।

यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद न केवल प्रधान होते है, बल्कि अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रखते है।

(ii) समाहार द्वन्द्व-समाहार का अर्थ है समष्टि या समूह। जब द्वन्द्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़े होने पर भी पृथक-पृथक अस्तित्व न रखें, बल्कि समूह का बोध करायें, तब वह समाहार द्वन्द्व कहलाता है।

समाहार द्वन्द्व में दोनों पदों के अतिरिक्त अन्य पद भी छिपे रहते है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते है।
Examples of Samahar Dwand Samas जैसे- आहारनिद्रा =आहार और निद्रा (केवल आहार और निद्रा ही नहीं, बल्कि इसी तरह की और बातें भी);
दालरोटी=दाल और रोटी (अर्थात भोजन के सभी मुख्य पदार्थ);
हाथपाँव =हाथ और पाँव (अर्थात हाथ और पाँव तथा शरीर के दूसरे अंग भी )
इसी तरह नोन-तेल, कुरता-टोपी, साँप-बिच्छू, खाना-पीना इत्यादि।

कभी-कभी विपरीत अर्थवाले या सदा विरोध रखनेवाले पदों का भी योग हो जाता है। जैसे- चढ़ा-ऊपरी, लेन-देन, आगा-पीछा, चूहा-बिल्ली इत्यादि।

जब दो विशेषण-पदों का संज्ञा के अर्थ में समास हो, तो समाहार द्वन्द्व होता है।
जैसे- लंगड़ा-लूला, भूखा-प्यास, अन्धा-बहरा इत्यादि।
उदाहरण- लँगड़े-लूले यह काम नहीं कर सकते;
भूखे-प्यासे को निराश नहीं करना चाहिए;
इस गाँव में बहुत-से अन्धे-बहरे है।

द्रष्टव्य- यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दोनों पद विशेषण हों और विशेषण के ही अर्थ में आयें तब वहाँ द्वन्द्व समास नहीं होता, वहाँ कर्मधारय समास हो जाता है। जैसे- लँगड़ा-लूला आदमी यह काम नहीं कर सकता; भूखा-प्यासा लड़का सो गया; इस गाँव में बहुत-से लोग अन्धे-बहरे हैं- इन प्रयोगों में ‘लँगड़ा-लूला’, ‘भूखा-प्यासा’ और ‘अन्धा-बहरा’ द्वन्द्व समास नहीं हैं।

(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व:-जिस द्वन्द्व समास में दो पदों के बीच ‘या’, ‘अथवा’ आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे हों, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते है।

इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय ‘वा’, ‘या’, ‘अथवा’ का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है।

Examples of vaikalpik Dwand Samas जैसे-
धर्म या अधर्म= धर्माधर्म
सत्य या असत्य= सत्यासत्य
छोटा या बड़ा= छोटा-बड़ा

(6) अव्ययीभाव समास Avyavibhav Samas:-

अव्ययीभाव का लक्षण है- जिसमे पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।

इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रतिदिन, यथासम्भव, यथाशक्ति, बेकाम, भरसक इत्यादि।

अव्ययीभाववाले पदों का विग्रह- ऐसे समस्तपदों को तोड़ने में, अर्थात उनका विग्रह करने में हिन्दी में बड़ी कठिनाई होती है, विशेषतः संस्कृत के समस्त पदों का विग्रह करने में हिन्दी में जिन समस्त पदों में द्विरुक्तिमात्र होती है, वहाँ विग्रह करने में केवल दोनों पदों को अलग कर दिया जाता है।

जैसे- प्रतिदिन = दिन-दिन
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम- क्रम के अनुसार
यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
बेखटके- बिना खटके के
बेखबर- बिना खबर के
रातोंरात- रात ही रात में
कानोंकान- कान ही कान में
भुखमरा- भूख से मरा हुआ
आजन्म- जन्म से लेकर
पूर्वपद-अव्यय + उत्तरपद = समस्त-पद विग्रह
प्रति + दिन = प्रतिदिन प्रत्येक दिन
आ + जन्म = आजन्म जन्म से लेकर
यथा + संभव = यथासंभव जैसा संभव हो
अनु + रूप = अनुरूप रूप के योग्य
भर + पेट = भरपेट पेट भर के
हाथ + हाथ = हाथों-हाथ हाथ ही हाथ में

(Avyavibhav Samas Examples in Hindi)

अव्ययीभाव समास की पहचान के लक्षण:- अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जा सकती हैं-
(i) यदि समस्तपद के आरंभ में भर, निर्, प्रति, यथा, बे, आ, ब, उप, यावत्, अधि, अनु आदि उपसर्ग/अव्यय हों। जैसे-
यथाशक्ति, प्रत्येक, उपकूल, निर्विवाद अनुरूप, आजीवन आदि।

(ii) यदि समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करे। जैसे-
उसने भरपेट (क्रियाविशेषण) खाया (क्रिया)

(7)नञ समास Nay Samas:-

जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। इसमे नहीं का बोध होता है।
इस समास का पहला पद ‘नञ’ (अर्थात नकारात्मक) होता है। समास में यह नञ ‘अन, अ,’ रूप में पाया जाता है। कभी-कभी यह ‘न’ रूप में भी पाया जाता है।
जैसे- (संस्कृत) न भाव=अभाव, न धर्म=अधर्म, न न्याय= अन्याय, न योग्य= अयोग्य

समस्त-पद विग्रह
अनाचार  -न आचार
अनदेखा  – न देखा हुआ
अन्याय – न न्याय
अनभिज्ञ – न अभिज्ञ
नालायक – नहीं लायक
अचल – न चल
नास्तिक – न आस्तिक
अनुचित – न उचित