CTET and TETs Hindi Passage with MCQ Test


CTET Hindi Passage MCQ Test

Passage:

एक आदमी जंगल में एक गाँव बसाने के लिए गया। जंगल में वह अकेला था। उसने एक स्थान पर अपना घर बनाया। लेकिन गाँव के लोग उसकी मदद नहीं कर रहे थे। उसने जंगल में खाने के लिए चालू की और खुद ही काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उसका घर और उसकी जिंदगी बेहतर होने लगी। गाँव के लोग भी उसके साथ मिल गए।

  1. इस कथन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    a) गाँव में अकेले रहने की समस्या
    b) जंगल में गाँव बसाने का विचार
    c) साथी के बिना जिंदगी की चुनौती
    d) खुद के लिए अपना रास्ता खोजना
  2. लेखक ने किसे गाँव में बसाने के लिए जंगल गया?
    a) उसका मित्र
    b) एक परिवार
    c) एक आदमी
    d) एक नौकर
  3. कथा में कौन-कौन से संदेश दिए गए हैं?
    a) एकलता की समस्या को हल करना
    b) संघर्ष करके सफलता प्राप्त करना
    c) खुद के लिए जीना
    d) साथ मिलकर काम करना
  4. कथा में व्यक्त किस प्रकार के भावना के साथ होता है?
    a) उदास
    b) आत्म-विश्वासी
    c) भावुक
    d) अप्रसन्न

Answer Key:

  1. d) खुद के लिए अपना रास्ता खोजना
    Explanation: कथा में मुख्य उद्देश्य है कि व्यक्ति ने अपने लिए नया रास्ता खोजा और सामाजिक दबाव का सामना करते हुए स्वयं को साबित किया।
  2. c) एक आदमी
    Explanation: लेखक ने कथा में एक आदमी को जंगल में एक गाँव बसाने के लिए जाते हुए बताया है।
  3. d) साथ मिलकर काम करना
    Explanation: कथा में संदेश है कि साथ मिलकर काम करने से समस्याएं हल हो सकती हैं और जीवन में सफलता मिल सकती है।
  4. b) आत्म-विश्वासी
    Explanation: पाठ में व्यक्ति अपने कार्य को सम्भालने के लिए आत्म-विश्वासी है।

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CTET – HINDI PEDAGOGY NOTES 2022

अधिगम एवं अर्जन (Learning and Acquisition)

  • अधिगम का अर्थ होता है – सीखना एवं अर्जन का अर्थ होता है- अर्जित करना या ग्रहण करना |
  • भाषा अधिगम से तात्पर्य उस प्रणाली से है, जिसमे बच्चा स्वंय प्रयास करता है, तथा उसके लिए कुछ आवश्यक परिस्थितियाँ होती है। अधिगम विद्यालय या किसी संस्था में होता है
  • भाषा अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है,, बालक अपने आस-पास के लोगो को बोलते लिखते पढ़ने देखता है, तथा अनुकरण के द्वारा उन्हें सीखता जाता है। इसमें बच्चे को कोई प्रयास नही करना पड़ता है। भाषा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है।

भाषा अर्जन से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दु :

* भाषा अर्जन मुख्यतः मातृभाषा का होता है, अर्थात मातृभाषा अर्जित की जाती है, न कि सीखी जाती है।

* भाषा अर्जन व्यवहारिक पुद्धिति है, तथा इसमे अनुकरण को मुख्य भूमिका होती

* भाषा अर्जन मे बच्चे को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता

* भाजा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है।

* इसमें किसी अन्य भाषा का व्याघात ( role ) नहीं होता।

* इसमें किसी व्याकरण की आवश्यकता नहीं होती !

* भाषा अर्जन मे सर्वाधिक महत्व समाज का होता है।

भाषा अधिगम से संबंधित तथ्य

  • भाषा अधिगम औपचारिक शिक्षा के द्वारा किया जाता है।
  •  भाषा अधिगम विद्यालय से प्रारंभ होती है।
  • भाषा अधिगम मे बच्चे को प्रयास करना पड़ता है
  • भाषा के नियम सीखे जाते है।
  • व्याकरण की आवश्यकता होती है?
  • भाषा अधिगम के द्वारा मानक भाषा सीखी जाती है
  • भाषा अधिगम मे शिक्षक विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तके शिक्षण पद्धतियाँ आदि की आवश्यकता रहती है।

 भाषा से संबंधित कुछ मनोवैज्ञानिकों के तथ्य

पावलव और स्किनर→ नकल व रहने से भाषा की क्षमता प्राप्त होती है।

चॉम्सकी                      →   बच्चों में भाषा अर्जन की क्षमता जन्मजात होती है।

पियाजे                         → भाषा अन्य संज्ञानात्मक तंत्रो की भांति परिवेश के साथ अन्तः क्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है।

वाइगोत्सकी                 → बच्चे की भाषा समाज के साथ ●सम्पर्क का ही परिणाम है।

  — अति महत्वपुर्ण बिन्दु–

→इय मानक भाषा अथवा द्वितीय भाषा सीखने मे मातृभाषा का व्याघात होता है ।

→ स्कुलू आने से पूर्व बच्चे अपनी मातृभाषा का प्रयोग जानते है।

→बच्चे स्कूल आने से पूर्व ही अपनी भाषायी पूँजी से लैस होते है।

→गृहकार्य (Homework) बच्चे के सीखने विस्तार देता है।

→प्राथमिक स्तर शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होना चाहिए।

→ प्राथमिक स्तर पर बच्चे की भाषा सिखाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि बच्चा जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग कर पाये |

→ कक्षा मे बच्चे मातृभाषा को सदैव सम्मान देना चाहिए ।

→ कक्षा मे भाषा की विविधता संसाधन के रूप में कार्य करती है।

→ प्राथमिक स्तर बच्चे को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिए। यह भाषा शिक्षण के लिए सबसे अधिक आवश्यक है।

भाषा शिक्षण के सिद्धांत (Theories of Language Teaching) Teaching )

  1. अनुबंध का सिद्धांत:- शैशवावस्था में जब बच्चा किसी शब्द को सीखता है, तो वह उसके लिए अमूर्त होता है, इसलिए किसी मूर्त वस्तु से उसका संबंध जोड़कर उसे शब्द सिखया जाता है, जैसे शब्द बोलने के साथ-साथ उसे दुध भी दिखाया जाता है दुध,
  2. अनुकरण का सिद्धांत (Theory of Imitation) :- बालक अपने परिवार या समाज मे बोली जाने वाली भाषा का अनुकरण करके भाषा अर्जित करता है। इसीलिए यदि परिवार या समाज मे त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग होता है, तो बच्चा त्रुटिपूर्ण  भाषा हीं  सीखता है
  3. अभ्यास का सिद्धांत (Trevey of exercise) :- यॉर्नडाइक ने कहा है, भाषा का विकास अभ्यास पर निर्भर करता है। भाषा बिना  अभ्यास के न तो सीखी  जाती है, और न ही उसकी कुशलता को बरकरार रखा जा सकता है

इनके अलावा भी भाषा के कई अन्य छोटे सिद्धांत  है। , परन्तु ये ज्यादा  महत्वपूर्ण है

भाषा सीखने के साधन
  1. अनुकरण
  2. खेल
  3.  कहानी
  4. वार्तालाप तथा बातचीत
  5.  प्रश्नोत्तर

महत्वपूर्ण बिन्दु –

→ भाषा सिखाने के लिए ऐसी गतिविधियाँ करानी चाहिए जिससे बच्चे को भाषा प्रयोग एवं अभिव्यक्ति के अधिक से अधिक अवसर मिले ।

→ भाषा सीखने का व्यवहारदी दृष्टिकोण अनुकरण पर बल देता है।

→ भाषा शिक्षण मे सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाषा प्रयोग के अवसर देना है

→भाषा शिक्षण की प्रक्रिया अन्य विषयों की कक्षा में भी चलती रहती है, क्योंकि किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है।

→ भाषा शिक्षण में कविता, कहानियों का प्रयोग करना चाहिए ताकि बच्चे भाषा सीखने में रुचि लें।

कहानी कविता, नाटकों का प्रयोग कक्षा में निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करता है –

  1. बच्चों को इसमें आनन्द आता है।
  2.  बच्चे विषय में रूचि लेते है।
  3. बच्चे अपनी संस्कृति को जानते है।
  4. शब्द भण्डार कल्पना शक्ति चिन्तन, सृजन आदि कौशलों का विकास

भाषा के कार्य एवं इसके विकास में बोलने एवं सुनने भूमिका

भाषा के कार्य

→ भाषा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता अच्छा भावनाएँ आदि अभिव्यक्त करने में सहायता करती है।

→ दुसरा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हेम भाषा का प्रयोग करते है।

→ सामाजिक संबंध बनाने के लिए हम भाषा का प्रयोग करते हैं।

→ नये ज्ञान की प्राप्ति के लिए भाषा बहुत ही आवश्यक है।

→ शिक्षा प्राप्त करने के लिए भाषा को आवश्यकता होती है है

→ दुसरे व्यक्ति की बोलों को समझने के लिए |

→ अपनी कला, संस्कृति, समाज का विकास करने के लिए

भाषा विकास में सुनने की भूमिका

सुनुना भाषा विकास के निम्न क्षेत्रों में भूमिका निभाता है

  1. सुनकर ही बच्चा बोलना सीखता है। वह अपने परिवार व समाज के लोगो को बोलते हुए सुनता है, तथा उनका अनुकरण करता है।
  2. शब्द भण्डार में वृद्धि के लिए
  3. बोलकर ही बच्चा भाषा कुशलता भाषा, प्रवाह प्राप्त करता है।
  4. बातचीत के द्वारा समाजिक संबंधों का निर्माण होता है।

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

  1. स्वास्थ
  2. बुद्धि
  3. यौन भिन्नता
  4. समाजिक आर्थिक स्तर
  5.  परिवार का अकार
  6. जन्मक्रम
  7. बहुजन्म (जुड़वा बच्चे ) जुड़वा
  8. एक से अधिक भाषा का प्रयोग
  9. साथियों के साथ संबंध
  10. माता -पिता द्वारा प्रेरणा

 भाषा अधिगम मे व्याकरण की भूमिका (Role of Grammar in Language Learning)

→ भाषा का व्याकरण ही भाषा का मूल रूप होता है।

→ व्याकरण के बिना भाषा का अस्तिव समाप्त हो जायेगा !

→ भाषा मे सदैव परिवर्तन होता रहता है। भाषा के इस परिवर्तन पर नियंत्रण रखने का कार्य व्याकरण ही करता है।

→ व्याकरण से भाषा में शुद्धता आती है।

→ व्याकरण से विभिन्न ध्वनियाँ व विभिन्न शब्द रूपो का ज्ञान होता है।

→ व्याकरण के बिना भाषा शिक्षण एक कठिन कार्य है।

→बच्चों को भाषा के नियम सिखाने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है।

नोट → प्राथमिक स्तर पर बच्चों को व्याकरण नहीं पढ़ाया जाता है, परंतु शिक्षक को व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक होता है।

→उच्च प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण प्रारंभ हो जाता है।

 व्याकरण शिक्षण की विधियाँ –

नियमन विधि (Declueative Method) =

→यह विधि रहने पर आधारित होती है। इसमें शिक्षक छात्रों को या तो मौखिक रूप से भाषा के नियम बता देता है या फिर लिखित रूप मे पुस्तक आदि) नियम दे देता है। तथा विद्यार्थि उन नियमों व सिद्धांतो को रट लेते है।

→ इस विधि में चिन्तन निरीक्षण उपयोग आदि का अभाव होता है।

आगमन विधि (Inductive Method):

→यह एक व्यवहारिक विधि है, इसमे बच्चे कुछ उदाहरणों के आधार पर स्वयं नियम बनाते है। इस विधि में बच्चे निम्न चरणों से गुजरते है – –

→ सर्वप्रथम बच्चों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किये जाते है।

→ बच्चे उन उदाहरणो का निरीक्षण करते है।

→ निरीक्षण के दौरान बच्चो जो समान्ताएँ मिलती है, वे उन्हें नियम के रूप में स्वीकार करते है इसे सामान्यीकरण कहते है।

→अन्त मे मे वे उन नियमों का परीक्षण करते हैं।

प्रयोग विधि ( Experiment Method )

→भाषा ससग विधिः इस विधि में बच्चों को विद्वान लेखको कडी कृतियाँ तथा पुस्तके पढ़ाई जाती है, ताकि बच्चे भाषा के सही रूप को जान सके ।

प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)

→इस विधि में बच्चों को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किये जाते है अर्थात बच्चों को विद्वान, लेखको तथा लोग जिन्हे भाषा पर पूर्व अधिकार हो, से बातचीत के अवसर प्रदान किये जाते है। यह विधि अनुकरण पर अधारित है। यह एक व्यवहारिक दृष्टिकोण है।

खेल विधि ( Play Method) –

→इस विधि मे बच्चे सबसे ज्यादा रूचि लेते है। खेल के माध्यम से बच्चो को शब्द भेद लिंग-भेद, वचन, संज्ञा आदि सिखाये जाते है।

 भाषा विविधता वाले कक्षा-कक्ष की समस्याएँ

भाषा विविधता (Language Diversation) :

→भाषा विविधता को बहुभाषिकता भी कह सकते है भारत एक बहुभाषिक देश है। यहाँ हर क्षेत्र में अलग मे अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती है। जब एक ही कक्षा मे अलग-अलग स्थानों से बच्चे आते हैं, तो उनकी मातृभाषा अलग-अलग होती है। ऐसी कक्षा को भाषा विविधता वाली कक्षा कहा जाता है।

समस्याएँ या चुनौतियां
  1. यदि बच्चे की मातृभाषा हिन्दी नहीं है, तो उसे हिन्दी पुस्तकें पढ़ने व समझने मे समस्या हो सकती है।
  2. सभी बच्चो के भावो को समझना शिक्षक के लिए कठिन हो सकती हैं।
  3. शिक्षक को इस योग्य बनना होता है, कि वह प्रत्येक बच्चे की अभिव्यक्ति को समझ सके।
  4. बच्चे एक दूसरे से बात करने में झिझकते हैं, क्योंकि उनकी भाषाएँ अलग-अलग है।
भाषा विविधता के लाभ –

→यद्यपि भाषा विविधता वाली कक्षा में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, परंतु फिर भी इसके कुछ लाभ है.

  1. भाषा विविधता या बहुभाषिकता कक्षा में एक संसाधन के रूप में कार्य करती है।
  2. बच्चो को अन्य भाषाओं के शब्दों को जानने का अवसर मिलता है।
  3. शब्द भण्डार में वृद्धि होती है?

भाषा कौशल (Language skills)

→ एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की बातो विचारों को सुनने समझने तथा अपनी बातो, विचारो भावनाओं को त करने में जिन मुख्य कौशलों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें भाषा कौशल कहते है।

भाषा कौशल चार प्रकार के होते है –

  1. श्रवण कौशल (सुनना’
  2. बोलना कौशल
  3. पढ़ना कौशल
  4. लिखना कौशल

नोट – सुनना तथा पढ़ना ग्रहणात्मक कौशल है। – क्योंकि इनके द्वारा अर्थ (सूचना) को ग्रहण किया जाता है। तथा’ बोलना व लिखना अभिव्यक्तात्मक कौशल है। इनके द्वारा अभिव्यक्ति होती है।

श्रवण कौशल की शिक्षण विधियाँ –

  1. सस्वर वाचन → छात्र अध्यापक तथा किसी अन्य छात्र को बातचीत करते हुए सुनता है।
  2. प्रश्नोत्तर :- इसमे शिक्षक छात्रों से प्रश्न पूछता है।
  3. कहानी सुनना
  4. श्रुतलेख (इमला) = इसमे शिक्षक सामग्री को मौरिकक रूप से बोलता है, तथा छात्र सुनकर लिखता जाता है। उसे

भाषण :- इसमे शिक्षक छात्रों के सामने भाषण दिता है, तथा छात्र उसे ध्यान से सुनते है।

पवन (पढ़ना) कौशल की शिक्षण विधियाँ :

→ शिक्षक द्वारा छात्रों को वर्ण बोध कराना |

→ उच्चारण करवाना

→ सम्पूर्ण से अंश विधि :- इस विधि के अनुसार पहले बच्चे को सम्पूर्ण वाक्य सिखाना चाहिए उसके बाद शब्द तथा वर्ण। इसे वाक्य विधि भी कहते है।

→ अनुकरण विधि – इसमे शिक्षक बच्चों के सामने पढ़ता है, तथा बच्चे उसका अनुकरण करते हुए पढ़ते जाते हैं।

  • पाठन के प्रकार :
  1. सस्वर पढन – स्वर सहित अर्थात आवाज के साथ : बोल बोलकर पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर पढ़न कहा जाता है। यह पढ़न बच्चों को वर्णमाला सिखाने मे सर्वाधिक उपयोगी है।
  2. आदर्श पठन:– भाषा के सम्पूर्ण शुद्ध रूप गति यति आरोह-अवरोह स्वराघात व बालघात आदि को ध्यान में रखकर जो पठन किया जाता है, वह आदर्श पढ़न कहलाता है। यह मुख्यतः शिक्षक या भाषा विद्वानों द्वारा होता है।
  3. मौन पाठन :-  जिस लिखित सामग्री को जिना अवाज किए उपचाप मन ही मन मे पढ़ते हैं। तो मौन पहन कहते है। ऐसा पहन गहन अध्ययन तथा अर्थ को गहनता से समझने के लिए किया जाता है।
  1. गम्भीर पठन:– नये ज्ञान की प्राप्ति के लिए या भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिए जो पढ़न किया जाता है। उसे गम्भीर पढ़न कहते है।
  2. द्रुत पठन :- सीखी हुई भाषा का अभ्यास करने के लिए आनन्द के लिए साहित्यिक जानकारी जानकारी के लिए ऐसा पहन किया जाता है। 1.
  3. वैयक्तिक पठन :- ऐक व्यक्ति द्वारा किया जाने वाले सस्वर पढ़न को वैयक्तिक पहन कहते है। यह सस्वर पढ़न का भाग है।
  4. सामूहिक पठन :- दो या दो से अधिक छात्रों द्वारा ‘सुस्तर पढ़न को सामूहिक पढ़न कहते हैं, यह भी सस्वर पहन का भाग है।

बोलना (मौखिक अभिव्यक्ति) कौशल की शिक्षण विधियाँ –

  1. बातचीत / वार्तालाप
  2. सस्वर पढ़न
  3. प्रश्नोत्तर
  4. कहानी सुनना व सुनाना

गुणात्मक परीक्षाएं in Hindi

विद्यालय में गुणात्मक परीक्षाओं का उपयोग आंतरिक मूल्यांकन के लिए किया जाता है तथा गुणात्मक परीक्षाएं पांच प्रकार की होती है:-

1. संचयी अभिलेख–विद्यालयों में प्रत्येक छात्र के संबंध में सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित किया जाता है इसमें शैक्षिक प्रगति, मासिक परीक्षा-फल, उपस्थिति योग्यता तथा अन्य विद्यालयों की क्रियाओं में भाग लेने आदि का आलेख प्रस्तुत किया जाता है छात्र की प्रगति तथा कमजोरियों को जानने के लिए अभिभावकों, शिक्षकों तथा प्रधानाचार्य के लिए यह अधिक उपयोगी आलेख होता है।

2.एनेकडोटल आलेख– इसमें बालकों के व्यवहार से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं तथा कार्यों का वर्णन किया जाता है इन कार्यों तथा घटनाओं का आलेख सही रूप में किया जाता है निरीक्षण करने वाले छात्र की सूचियों तथा झुकाव को उत्पन्न करने वाले घटकों का भी उल्लेख करता है।

3. निरीक्षण–इनका प्रयोग विशेष रूप से छोटे बालकों के मूल्यांकन के लिए किया जाता है क्योंकि उनको अन्य कोई परीक्षा नहीं दी जा सकती है और उनके व्यवहार में वास्तविकता होती है इसका प्रयोग उनकी योग्यता तथा व्यवहारों के संबंध में किया जाता है।

4. जांच सूची–लिखित तथा मौखिक परीक्षाएं छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष की परीक्षा करती है और प्रयोगात्मक परीक्षा कौशल तथा क्रियात्मक पक्ष की जांच करती हैं जांच सूची का प्रयोग अभिरुचि अभिव्यक्तियों तथा भावात्मक पक्ष के लिए किया जाता है।

5. अनुपस्थिति मापनी–इसमें कुछ कथन दिए जाते हैं उनका तीन,पांच,सात बिंदुओं तक सापेक्ष निर्णय करना होता है इनका प्रयोग उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए ही किया जा सकता है क्योंकि निर्णय लेने की शक्ति छोटी आयु के छात्रों में नहीं होती है।

महत्वपूर्ण पर्यायवाची शब्द

Hindi- कवि एवं उनकी रचनाएं – Shikhar Pandey

✍️कवि एवं उनकी रचनाएं✍️ ✍️ संतकबीर दास✍️

जीवन परिचय
संत कबीरदास का जन्म 1440 ईस्वी में हुआ था।
जन्म स्थल- काशी
गुरु-” रामानंद “(शेख तकी नाम के सूफी संत को भी कबीर का गुरु कहा जाता है किंतु उसकी पुष्टि नहीं है।
मृत्यु 1518 के आसपास मानी जाती है।

महत्वपूर्ण तथ्य÷
कबीर ने एकदम सरल और सहज शब्दों में राम और रहीम के एक होने की बात कही है।

कबीर दास जी ने कबीर पंथ चलाया था।।

कबीर की भाषा में पंजाबी राजस्थानी अवधि आदि अनेक प्रांतीय भाषाओं के शब्दों की खिचड़ी मिलती है।

श्लोक-माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर।।

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।।

रचनाएं-बीजक नामक ग्रंथ
साखी ,सबद ,रमैनी ,कबीर ग्रंथावली, और कबीर रचनावली आदि है। ✍️ सूरदास✍️ (वात्सल्य रस सम्राट) (हिंदी साहित्य का सूरज)

जन्म- लगभग 1535 ईसवी माना जाता है।
जन्म स्थान-रुनकता अथवा रेणुका क्षेत्र (वर्तमान जिला आगरा)
“भावप्रकाश” में सूर का जन्म स्थान “सीही”नामक गांव बताया गया है।

महत्वपूर्ण तथ्य-

सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं उन्होंने श्रृंगार और शांत रस का बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

ये शाश्वत ब्राम्हण थे और जन्म से दृष्टिहीन थे।

मृत्यु- संवत् 1620 से 1648 के मध्य मानी जाती है।

महत्वपूर्ण रचनाएं
इनकी रचनाओं में पांच ग्रंथ बताए जाते हैं जो निम्नलिखित हैं÷
१-सूरसागर
२-सूरसरावली
३-साहित्य लहरी
४-नल -दमयंती
५-ब्याहलो

नोट÷नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के १६ ग्रंथो का उल्लेख है (नाग लीला, भागवत ,गोवर्धन लीला, सूरपच्चीसी ,सूरसागर सार, प्राण प्यारी, दशमस्कंधटीका। ✍️ तुलसीदास✍️

पूरा नाम -गोस्वामी तुलसीदास
जन्म-संवत- 1589
जन्म स्थान- राजापुर (उत्तर प्रदेश)
पिता -आत्माराम
माता- हुलसी
विवाह -रत्नावली के साथ
शिक्षा- बचपन से ही वेद पुराण एवं उपनिषदो की शिक्षा मिली थी।
मृत्यु- संवत 1680 में हुआ था

महत्वपूर्ण तथ्य

तुलसीदास जी अपने प्रसिद्ध दोहे और कविताओं के लिए जाने जाते हैं और साथ ही अपने द्वारा लिखित महाकाव्य”रामचरितमानस “के लिए संपूर्ण भारत में लोकप्रिय हैं, इन्होंने ही रामचरितमानस संस्कृत में रचित रामायण का देसी भाषा में अनुवाद किया था।

रचनाएं एवं कृतियां÷
इनके द्वारा 12 रचनाएं काफी लोकप्रिय हैं, छह उनकी मुख्य रचनाएं हैं और 6 छोटी रचनाएं हैं।
अवधी कार्य-रामचरितमानस, रामलाल नहछू ,बरवै रामायण, पार्वती मंगल ,जानकी मंगल, और रामाज्ञा प्रश्न।
ब्रजकार्य-कृष्ण गीतावली ,गीतावली, साहित्य रत्न दोहावली, वैराग्य संदीपनी, और विनय पत्रिका आदि।

कुछ अन्य रचनाएं-हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक ,हनुमान बहुक ,तुलसी सतसई आदि। ✍️ रसखान✍️

जन्म -1558 ईस्वी
वास्तविक नाम- सैयद इब्राहिम
गुरु -विट्ठलनाथ
मृत्यु- सन 1618 ईसवी के लगभग

महत्वपूर्ण तथ्य

रसखान की गणना भक्तिकाल के कवियों में की जाती है।

रसखान नई परंपरा के जनक माने जाते हैं।

रसखान की संपूर्ण रचना मधुर ब्रजभाषा में है।

रचना एवं कृतियां÷
सुजान रसखान” एवं” प्रेम वाटिका” ✍️मीराबाई✍️

जन्म -संवत् 1573 ईसवी
जन्म स्थल- जोधपुर के चौकड़ी नामक गांव।
विवाह -महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था
मृत्यु सन 15 से 46 ईसवी ।

महत्वपूर्ण तथ्य
यह बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थी।

रचनाएं एवं कृतियां

नरसी जी का मायरा ,”रामगोविंद”
गीत गोविंद का टीका।

written by -Shikhar pandey

नई शिक्षा नीति, 2020

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई जिसे सभी के परामर्श से तैयार किया गया है। इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा के पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई है। शिक्षा के संबंध में गांधी जी का तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। इन्हीं सब चर्चाओं के मध्य हम देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी। साथ ही क्या यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद ने देखा था?

सबसे पहले ‘शिक्षा’ क्या है इस पर गौर करना आवश्यक है। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत किया जाता है। शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है।

गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस नीति द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है। इसके उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य रखा गया है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य
अंतिम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी जिसमें वर्ष 1992 में संशोधन किया गया था।
वर्तमान नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Eurolment Ratio-GER) को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।
नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय का नाम परिवर्तित कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु
स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान
नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है।
पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) – 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2
तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज (Prepatratory Stage)
तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण – ग्रेड 6, 7, 8 और
4 वर्ष का उच (या माध्यमिक) चरण – ग्रेड 9, 10, 11, 12
NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा।
भाषायी विविधता का संरक्षण
NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।
शारीरिक शिक्षा
विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।
पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार
इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।
कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।
‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for School Education) तैयार की जाएगी।
छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा। इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।
छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।
छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।
शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार
शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।
वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।
उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान
NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)।
विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।
नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग
नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commision of India-HECI) की परिकल्पना की गई है जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा।

HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार निकाय-

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatroy Council-NHERC) : यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा।
सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council – GEC) : यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों का ढाँचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा।
राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council – NAC) : यह संस्थानों के प्रत्यायन का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।
उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council – HGFC) : यह निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा।
नोट: गौरतलब है कि वर्तमान में उच्च शिक्षा निकायों का विनियमन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों के माध्यम से किया जाता है।

देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Reserach Universities – MERU) की स्थापना की जाएगी।
विकलांग बच्चों हेतु प्रावधान
इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये क्रास विकलांगता प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा।
डिजिटल शिक्षा से संबंधित प्रावधान
एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’’ (National Educational Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन योजना एवं प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।
डिजिटल शिक्षा संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो डिजिटल बुनियादी ढाँचे, सामग्री और क्षमता निर्माण हेतु समन्वयन का कार्य करेगी।
पारंपरिक ज्ञान-संबंधी प्रावधान
भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा।

विशेष बिंदु

आकांक्षी जिले (Aspirational districts) जैसे क्षेत्र जहाँ बड़ी संख्या में आर्थिक, सामाजिक या जातिगत बाधाओं का सामना करने वाले छात्र पाए जाते हैं, उन्हें ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र’ (Special Educational Zones) के रूप में नामित किया जाएगा।
देश में क्षमता निर्माण हेतु केंद्र सभी लड़कियों और ट्रांसजेंडर छात्रों को समान गुणवत्ता प्रदान करने की दिशा में एक ‘जेंडर इंक्लूजन फंड’ (Gender Inclusion Fund) की स्थापना करेगा।
गौरतलब है कि 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा हेतु एक राष्ट्रीय पाठ‍्यचर्या और शैक्षणिक ढाँचे का निर्माण एनसीआरटीई द्वारा किया जाएगा।
वित्तीय सहायता

एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।
इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये “ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड” लॉन्च किया।
इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।
ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित “ग्रामीण विश्वविद्यालय” मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।

पूर्ववर्ती शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।


नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ
राज्यों का सहयोगः शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।
महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के महँगी होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
शिक्षा का संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।
फंडिंग संबंधी जाँच का अपर्याप्त होनाः कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं।
वित्तपोषणः वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।
मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं।
निष्कर्ष
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु जिस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंज़ूरी दी है अगर उसका क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी। नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है। 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को सार्वभौमिक बनाना है। स्नातक शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, थ्री-डी मशीन, डेटा-विश्लेषण, जैवप्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के समावेशन से अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी कुशल पेशेवर तैयार होंगे और युवाओं की रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी।

HINDI- कुछ प्रचलित लोकोक्तियाँ For CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. अधजल गगरी छलकत जाए-(कम गुणवाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है)- श्याम बातेंतो ऐसी करता है जैसे हर विषय में मास्टर हो,वास्तव में उसे किसी विषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-अधजल गगरी छलकत जाए।

2. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईखेत-(समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ)-सारा साल तुमने पुस्तकें खोलकर नहीं देखीं। अबपछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

3. आम के आम गुठलियों के दाम-(दुगुना लाभ)-हिन्दी पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकरनौकरी पर पदोन्नति कर सकते हैं, दूसरे हिन्दी के उच्च साहित्य का रसास्वादन कर सकते हैं, इसेकहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।

4. ऊँची दुकान फीका पकवान-(केवल
ऊपरी दिखावा करना)- कनॉटप्लेस के अनेक स्टोर बड़े प्रसिद्ध है, पर सब घटिया दर्जे का माल बेचतेहैं। सच है, ऊँची दुकान फीका पकवान।

5. घर का भेदी लंका ढाए-(आपसी फूट के कारण भेदखोलना)-कई व्यक्ति पहले कांग्रेस में थे, अबजनता (एस) पार्टी में मिलकर काग्रेंस की बुराईकरते हैं। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।

6. जिसकी लाठी उसकी भैंस-(शक्तिशाली की विजय होती है)- अंग्रेजों ने सेना के बल पर बंगाल परअधिकार कर लिया था-जिसकी लाठी उसकी भैंस।

7. जल में रहकर मगर से वैर-(किसी के आश्रय मेंरहकर उससे शत्रुता मोल लेना)- जो भारत मेंरहकर विदेशों का गुणगान करते हैं, उनके लिएवही कहावत है कि जल में रहकर मगर से वैर।

8. थोथा चना बाजे घना-(जिसमें सत नहीं होता वहदिखावा करता है)- गजेंद्र नेअभी दसवीं की परीक्षा पास की है, औरआलोचना अपने बड़े-बड़े गुरुजनों की करता है।थोथा चना बाजे घना।

9. दूध का दूध पानी का पानी-(सच और झूठका ठीक फैसला)- सरपंच ने दूध
का दूध,पानी का पानी कर दिखाया, असली दोषी मंगूको ही दंड मिला।

10. दूर के ढोल सुहावने-(जो चीजें दूर सेअच्छी लगती हों)- उनके मसूरी वाले बंगले की बहुत प्रशंसा सुनते थे किन्तु वहाँ दुर्गंध के मारे तंग आकर हमारे मुख से निकल ही गया-दूर के ढोलसुहावने।

11. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी-(कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना)- सारा दिन लड़के आमों केलिए पत्थर मारते रहते थे। हमने आँगन में से आमका वृक्ष की कटवा दिया। न रहेगा बाँस, नबजेगी बाँसुरी।

12. नाच न जाने आँगन टेढ़ा-(काम
करना नहीं आना और बहाने बनाना)-जब रवींद्र नेकहा कि कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आजसमय नहीं है’। फिर किसी दिन कहा तो कहने लगा,‘आज मूड नहीं है’। सच है, नाच न जाने आँगनटेढ़ा।

13. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख-(माँगेबिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने परसाधारण भी नहीं मिलती)- अध्यापकों ने माँगों केलिए हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला ? इनसेतो बैक कर्मचारी अच्छे रहे,उनका भत्ता बढ़ा दिया गया। बिन माँगे मोती मिले,माँगे मिले न भीख।

14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती ­किसी का मेहमान बनना)-एक अमेरिकन कहनेलगा, मैं एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अध्ययन करूँगा। मैंने मन में कहा, अजबआदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान।

15. मन चंगा तो कठौती में गंगा-(यदि मन पवित्र हैतो घर ही तीर्थ है)-भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही ईशस्तुति करो। मनचंगा तो कठौती में गंगा।

16. दोनों हाथों में लड्डू-(दोनों ओर लाभ)- महेंद्रको इधर उच्च पद मिल रहा था और उधरअमेरिका से वजीफा उसके तो दोनों हाथों में लड्डू थे।

17. नया नौ दिन पुराना सौ दिन-(नई वस्तुओंका विश्वास नहीं होता, पुरानी वस्तु टिकाऊहोती है)- अब भारतीय जनता का यह विश्वास हैकि इस सरकार से तो पहली सरकार फिर भी अच्छी थी। नया नौ दिन, पुराना नौ दिन।

18. बगल में छुरी मुँह में राम-राम-(भीतर सेशत्रुता और ऊपर से मीठी बातें)-साम्राज्यवादी आज भी कुछ
राष्ट्रों को उन्नति की आशा दिलाकर उन्हें अपनेअधीन रखना चाहते हैं, परन्तु अब सभी देश समझगए हैं कि उनकी बगल में छुरी और मुँह में राम-रामहै।

19. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-
(शरारती समझाने से वश में नहीं आते)- सलीमबड़ा शरारती है, पर उसके अब्बा उसे प्यार सेसमझाना चाहते हैं। किन्तु वे नहीं जानतेकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे किए जानेवाला कार्य स्थायी फलदायक होता है)- विनोबा भावेका विचार था कि भूमि सुधार धीरे-धीरे औरशांतिपूर्वक लाना चाहिए क्योंकि सहज पकेसो मीठा होय।

समास

समास
समास 6 प्रकार के होते है-

  1. अव्ययों भाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. कर्मधारय समास
  4. द्वंद्व समास
  5. द्विगु समास
  6. बहुब्रीहि समास

1.अव्ययी भाव समास :- इस समाज में प्रथम पद अव्यय एवं दूसरा पद संज्ञा होता है सम्पूर्ण पद में अव्यय के अर्थ की ही प्रधानता रहती है पूरा शब्द क्रिया – विशेषण के अर्थ में (अव्यय की भांति )व्यवहत होता है
उदाहरण :-

यथाशक्ति= शक्ति के अनुसार
प्रत्यक्ष =अक्ष के समक्ष
प्रतिदिन = हरेक दिन
नियोग =ठीक तरह से योग
आजानुबाहु = जानू से बहू तक
प्रत्येक = एक एक के प्रति
हाथों -हाथ =हाथ के बाद हाथ
रातों -रात =रात के बाद रात
घर- घर =घर के बाद घर
एक- एक =एक के बाद एक
लूटमलूट =लूट के बाद लूट
मारामारी = मारने के बाद मार
एकाएक =एक के तुरंत बाद एक
आमरण =मृत्यु तक

  1. तत्पुरुष समास :-

जिस समास का अंतिम पद (उत्तर पद ) की प्रधानता रहती है, पहला पद विशेषण होता है | कर्ता कारक और संबोधन को छोड़कर शेष सभी कारकों में विभक्तियां लगाकर इसका समास विग्रह होता है

उदाहरण:-

गगनचुंबी – गगन चूमने वाला
चिड़ीमार -चिड़िया मारने वाला
करुणा -पूर्ण करुणा से पूर्ण

लुप्त पद कारक चिन्ह ;- शब्दों के मध्य I विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है शब्दों का विग्रह करते समय वापस जोड़ देते हैं कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर सभी कारक समास में होते हैं

कर्म कारक तत्पुरुष समास:- इसे कर्म कारक विभक्ति को का लोप कर देते हैं

उदहारण:-

पक्षधर- पक्ष को देने वाला
दिल तोड़ -दिल को तोड़ने वाला
जितेंद्रिय -इंद्रियों को जीतने वाला
शरणागत – शरण को आया हुआ

करण तत्पुरुष समास:- करण कारक विभक्ति से या द्वारा का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

गुणयुक्त:-गुणों से युक्त
आंखों देखी -आंखों द्वारा देखी हुई
रत्नजडित- जड़ित रत्नों से जड़ित
रेखांकित -रेखा द्वारा अंकित
दस्तकारी -दस्त से किया गया कार्य हस्तलिखित- हाथों द्वारा लिखित

संप्रदान तत्पुरुष समास:- संप्रदान कारक की व्यक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-

शपथपत्र- शपथ के लिए पत्र
गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
घुड़शाला -घोड़ों के लिए शाला
हथकड़ी- हाथों के लिए कडी
रंगमंच -रंग के लिए मंच
सत्यग्रह- सत्य के लिए आग्रह
यज्ञशाला -यज्ञ के लिए शाला.
देशभक्ति -देश के लिए भक्ति

अपादान तत्पुरुष समास :-
अपादान कारक की विभक्ति का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
जाति भ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
देश निकला – देश से निकलना
गर्वशून्य -गर्व से शून्य
गुणरहित – गुणों से रहित

सम्बन्ध तत्पुरुष समास :- सम्बन्ध कारक का लोप करके बनाया जाता है

उदाहरण:-
मतदाता – मत का दाता
जगन्नाथ – जगत का स्वामी
फुलवाड़ी – फूलो की वाड़ी
भूकंप – भू का कंपन
नरेश – नर का ईश
लोकनायक- लोक का नायक

अधिकरण तत्पुरुष समास:- अधिकरण कारक की विभक्ति (में ,मैं पर) का लोप करने से बनता है

उदाहरण:-

आप-बीती –अपने पर बीती
गृह -प्रवेश– घर में प्रवेश
सिरदर्द –सर में दर्द
वनवास –वन में वास
कविपुंगल– कवियों में पूंगल विद्वान हरफनमौला– प्रत्येक कला में खुशल

3.कर्मधारय समास:-

इस समाज में विशेषण विशेष्य उपमान उपमेय का संबंध होता है उपमान जिसके द्वारा तुलना की जाए उसमें जिसकी तुलना करते हैं
उदाहरण
नीलकमल नील (विशेषण) कमल (विशेष्य)

खुशबू -खुश है जो बू( अच्छी है जो गंघ) हताश हद है जो आशा

कालीमिर्च -काली है जो मिर्च
पूर्णांक -पूरा है जो अंक
महात्मा -महान है जो आत्मा
सज्जन -सत है जो सज्जन
पितांबर- पीला है जो अंबर
कमलेश -कमल के समान अक्ष
मृगनैनी – मृग की तरह आंखें
राजीवलोचन -राजीव के समान लोचन
चर्मसीमा -चर्म है जो सीमा

  1. दिगु समास:- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा पद संज्ञा होता है और जिसमें समुदाय का बोध होता है वह दिगु द्विगु समास कहलाता है

उदाहरण:-

पंचानन- पाचन का समाहार
तिराहा -तीन राहों का समाहार
तिरंगा -तीन रंगों का समाहार
त्रिवेदी -तीन वेदों का समूह
तिलोकी- तीन लोगों का समूह
त्रिमूर्ति -तीन मूर्ति का समूह
सप्ताह – 7 दिनों का समूह
सतसई -सात सौ दोहों का समूह
नवरत्न -नौ रत्नों का समूह
शताब्दी- 2 वर्षों का समूह
चौपड़ -चार पड़ेगा समूह
षष्ट भुज- 6 भुजाओं वाला
चौराहा -चारों राहो वाला

  1. द्वंद समास:-

जिसके दोनों पद प्रधान हो दोनों संख्याएं तथा विशेषण हो वह द्वंद्व समास कहलाता है जिसमें दोनों शब्द मुख्य होते हैं पूर्व पद और उत्तरपद दोनों मुख्य होते हैं तथा ग्रह समय इन के मध्य समुच्चयबोधक शब्द का प्रयोग किया जाता है एवं समस्त पद में अधिकतर योजक चिन्ह का प्रयोग करते हैं

उदाहरण:-
रामकिशन राम और किशन
लव कुश लव और कुश
भला बुरा भला और बुरा

इतरेतर द्वंद्व समास:-
इस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं साथ में अपना अलग अलग अस्तित्व रखते हैं जैसे माता पिता मां बाप पढ़ा लिखा भाई बहन इस समाज में और तथा एवं शब्दों का प्रयोग किया जाता है

उदाहरण :-

माता और पिता
मां और बाप
पढ़ा और लिखा
भाई और बहन

समाहार द्वंद्व समास:-
इस समास में समाहार समूह का बोध करने हेतु दो मुख्य प्रतिनिधि शब्दों का प्रयोग किया जाता है नोट इसमें आदि इत्यादि समुच्चयबोधक होते हैं

उदाहरण:-
चाय-वाय
चाय पानी
कपड़े लेते
अगल बगल
अड़ोस-पड़ोस
हाथ-पांव
खानपान
इसमें चाय आदि ,कपड़े आदि, अड़ोस आदि ,रात आदि

विकल्प द्वंद समास:-
समास में या अथवा समुच्चयबोधक का प्रयोग किया जाता है इस समाज के अधिकतर पद या शब्द विपरीत होते हैं

उदाहरण :-

यश-अपयश

एक-दो
पाप -पुण्य
सुख-दुख
सो -दो सो
लाख -दो लाख

दन्व्द समास के उदाहरण ‌-

समस्त पद समास-विग्रह

माता-पिता माता और पिता

दिन-रात दिन और रात

पिता-पुत्र पिता और पुत्र

भाई-बहन भाई और बहन

पति-पत्नी पति और पत्नी

देश-विदेश देश और विदेश

गुण-दोष गुण और दोष

पाप-पुण्य पाप और पुण्य

राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण

अपना -पराया अपना और पराया

जीवन-मरण जीवन और मरण

अन्न-जल अन्न और जल

चावल-दाल चावल और दाल

चराचर चर और अचर

गंगा-यमुना गंगा और यमुना

हानि-लाभ हानि और लाभ

सुख-दु:ख सुख और दु:ख

भला-बुरा भला और बुरा

नर-नारी नर और नारी

अमीर-गरीब अमीर और गरीब

हाथ-पैर हाथ और पैर

दूध-दही दूध और दही

  1. बहुव्रीहि समास :-

इस समाज में कोई भी शब्द प्रदान नहीं होता है दोनों सब मिलकर एक नया अर्थ प्रकट करते हैं जैसे पितांबर इसके 2 पद है पित्त प्लस अंबर इसमें पहला पद विशेषण दूसरा पद संग है अतः इसे कर्मधारय समास होना चाहिए था लेकिन बहुव्रीहि मैं पितांबर का विशेष अर्थ पीत वस्त्र धारण करने वाले श्रीकृष्ण से लिया जाएगा

उदाहरण:-

लंबोदर लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश
दशमुख 10 है जिसके मुख अर्थात रावण

हिंदी छन्द के प्रश्न for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

1. छन्द सूत्रम किसकी रचना है ?
   (अ) आचार्य विश्वनाथ
   (ब) पाणिनि
   (स) आचार्य पिङ्गल
   (द) इनमें से कोई नहीं
2. छन्द का प्रथम उल्लेख किसमें किया गया है ?
   (अ) ऋग्वेद
   (ब) यजुर्वेद
   (स) महाभारत
   (द) इनमें से कोई नहीं
3. छन्द के कितने अंग होते है ?
   (अ) चार
   (ब) छह
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
4. छन्द के कितने भेद होते हैं  ?
   (अ) दो
   (ब) तीन
   (स) चार
   (द) इनमें से कोई नहीं
5. गणों की संख्या कितनी होती है  ?
   (अ) पाँच
   (ब) चार
   (स) आठ
   (द) इनमें से कोई नहीं
6. रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ ।
    जाहि निकारो गेह ते,  कस न भेद कहि देइ।।
     प्रस्तुत पंक्ति में कौन- सा छंद है ?
   (अ) सोरठा
   (ब) उल्लाला
   (स) रोला
   (द) दोहा
7. कोई भी छंद किसमें विभक्त रहता है  ?
   (अ) चरण
   (ब) यति
   (स) चरण और यति दोनों
   (द) इनमें से कोई नहीं
8. सम मात्रिक छंद का उदाहरण है –
   (अ) दोहा
   (ब) चौपाई
   (स) सोरठा
   (द) उपरोक्त तीनो
9. रचना के आधार पर दोहे से उल्टा छंद  है ?
   (अ) रोला
   (ब) सोरठा
   (स) उल्लाला
   (द) बरवै
10. सुनु सिय सत्य असीस हमारी  है।
      पूजहिं मन कामना तुम्हारी।।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) चौपाई
   (द) इनमें से कोई नहीं
11. जिस छंद के पहले और तीसरे चरण में 11-11 एवं दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं , तुक मध्य में होता है, वह कौन- सा छंद है  ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) रोला
   (द) उल्लाला
12. निम्न में से कौन-सा छंद सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) चौपाई
   (ब) गीतिका
   (स) हरिगीतिका
   (द) दोहा
13. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद का उदाहरण है ?
   (अ) तोमर
   (ब) आल्हा
   (स) राधिका
   (द) उल्लाला
14. विषम मात्रिक छंद नहीं  है –
   (अ) कुण्डलिया
   (ब) छप्पय
   (स) सोरठा
   (द) इनमें से कोई नहीं
15. निम्न में से कौन-सा छंद अर्द्ध सम मात्रिक छंद नहीं है ?
   (अ) बरवै
   (ब) दोहा
   (स) सोरठा
   (द) रोला
16. निम्न में से एक मात्रिक छंद नहीं  है ?
   (अ) अरिल्य
   (ब) तोमर
   (स) रूपमाला
   (द) घनाक्षरी
17. किसको पुकारे यहाँ रोकर अरण्य बीच ,
      चाहे जो करो शरण्य शरण तिहारे हैं। 
      इन पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) घनाक्षरी
   (स) देवघनाक्षरी
   (द) उल्लाला
18. चौपाई छन्द में  कुल कितनी मात्राएँ होती हैं  ?
   (अ) 16
   (ब) 32
   (स) 64
   (द) इनमें से कोई नहीं
19. मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़इ गिरिवर गहन।
      जसु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल दहन।
      प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दोहा
   (ब) सोरठा
   (स) बरवै
   (द) रोला
20. दोहा और रोला को मिलाने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) छप्पय
   (ब) कुण्डलिया
   (स) हरिगीतिका
   (द) गीतिका
21. अवधि शिला का उर पर था गुरु भार।
       तिल-तिल काट रही थी, दृग जल धार।
       प्रस्तुत पंक्तियों में  कौन-सा छंद है –
   (अ) दोहा 
   (ब) उल्लाला 
   (स) बरवै 
   (द) सोरठा
22. निराला की कविता ‘जूही की कली ‘ किस छंद का उदाहरण है ?
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
23. वीर (आल्हा) किस जाति का छंद  है ?
   (अ) वर्णिक 
   (ब) मात्रिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) मिश्रित्त 
24. हम जो कुछ देख रहे हैं, सुन्दर है सत्य नहीं है।
      यह दृश्य जगत भासित है, बिन कर्म शिवत्व नहीं।
   (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (ब) 10-10 वर्णों की यति से 20 वर्णों वाला वर्णिक छंद है। 
   (स) 13-13 मात्राओं की यति से 26 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
25. वर्ण या मात्रा से प्रतिबन्ध रहित छंद कहलाता है –
   (अ) मात्रिक 
   (ब) वर्णिक 
   (स) मुक्तक 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
26. चरण में वर्णों की संख्या (आरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा 
   (ब) मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित-इन्द्रवज्रा-बसंततिलका 
   (स) शार्दूलविक्रीड़ित- इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता
   (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित 
27. चरण में वर्णों की संख्या (अवरोही क्रम) के आधार पर इन वर्णिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) तोटक-मालिनी-बसंततिलका-मत्तगयन्द 
   (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक 
   (स) मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक-बसंततिलका 
   (द) बसंततिलका-मालिनी-मत्तगयन्द-तोटक
28. चरण में मात्राओं की संख्या (कम से अधिक) के आधार पर मात्रिक छंदों का सही अनुक्रम कौन-सा है ?
   (अ) हरिगीतिका-रोला-गीतका-चौपाई 
   (ब) रोला-गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका 
   (स) गीतिका-चौपाई-हरिगीतिका-रोला 
   (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका 
29. सम मात्रिक छंद है –
   (अ) हरिगीतिका 
   (ब) उल्लाला 
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
30.  तुलसी राम  नाम सम मीत न आन।
       जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।
       कवि समाज को बिरवा चले लगाय।
       सींचन की सुधि लीजै मुरझि न जाय।।
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) चौपाई 
   (ब) बरवै 
   (स) दोहा
   (द) इनमें से कोई नहीं 
31.  रोला और उल्लाला के मिलने से कौन-सा छंद बनता है ?
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलियाँ  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
32. 22 से 26 वर्ण तक के छंद को कहते हैं –  
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) कुण्डलिया  
   (स) सवैया 
   (द) कवित्त (घनाक्षरी) 
33.  नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारामंडल है। 
       बंदी विविध बिहंग शेषफण सिंहासन है। 
       हे शरणदायिनी देवि तू करती सबकी त्राण है। 
       हे मातृभूमि संतान हम तू जननी तू प्राण है। 
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) कुण्डलिया  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मत्तगयन्द 
   (द) छप्पय  

34. वह कौन-सा छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 -15 की यति से 31 वर्ण होते हैं और चरण के अंत में गुरु होता   है।  
   (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
   (ब) सवैया  
   (स) छप्पय 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

35.  “धूल भरे अति शोभित स्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।” प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) दुर्मिल सवैया  
   (ब) घनाक्षरी  
   (स) मालती (मत्तगयन्द)
   (द) इनमें से कोई नहीं 

36.  “पुर तै निकासी रघुबीर बधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।”
       प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छंद है ?
   (अ) उपेन्द्रवज्रा  
   (ब) मंदाक्रांता  
   (स) मालती(मत्तगयन्द) 
   (द) दुर्मिल सवैया  

37.  वह कौन-सा छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में 14-12 की यति से 26 मात्राएँ होती है ,अंत में लघु-गुरु होता है ?
   (अ) घनाक्षरी  
   (ब) छप्पय  
   (स) गीतिका 
   (द) हरिगीतिका  

38.  दण्डक छंद का उदाहरण है –
   (अ) मंदाक्रांता  
   (ब) मालती (मत्तगयन्द ) 
   (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
   (द) इनमें से कोई नहीं 

39.  रूपमाला और रोला निम्न में से किस छंद के उदाहरण हैं ?
   (अ) सम मात्रिक छंद  
   (ब) अर्द्धसम मात्रिक छंद  
   (स) विषम मात्रिक छंद 
   (द) इनमें से कोई नहीं 
40.  सेनापति का ऋतु  वर्णन किस छंद में लिखा गया है – 
   (अ) सवैया  
   (ब) छप्पय  
   (स) कवित्त (मनहरण )
   (द) मंदाक्रांता  

छंद प्रश्नावली का उत्तर 
1. (स) आचार्य पिङ्गल
2. (अ) ऋग्वेद
3. (स) आठ
4. (ब) तीन
5. (स) आठ
6. (द) दोहा
7. (स) चरण और यति दोनों
8. (ब) चौपाई
9. (ब) सोरठा
10. (स) चौपाई
11. (ब) सोरठा
12. (द) दोहा
13. (द) उल्लाला
14. (स) सोरठा
15. (द) रोला
16. (द) घनाक्षरी
17. (ब) घनाक्षरी
18. (स) 64
19. (ब) सोरठा
20. (ब) कुण्डलिया
21. (स) बरवै 
22. (स) मुक्तक 
23. (ब) मात्रिक 
24. (अ) 14-14 की यति से 28 मात्राओं वाला मात्रिक छंद है। 
25. (स) मुक्तक 
26. (द) इन्द्रवज्रा-बसंततिलका-मंदाक्रांता-शार्दूलविक्रीड़ित (11,14,17,19 वर्ण)
27. (ब) मत्तगयन्द-मालिनी-बसंततिलका-तोटक (23,15,14,12 वर्ण)
28. (द) चौपाई-रोला-गीतिका-हरिगीतिका (16,24,26,28 मात्राएँ )
29. (अ) हरिगीतिका (प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ)
30. (ब) बरवै ( विषम चरण में 12 मात्राएँ,सम चरण में 7 मात्राएँ )
31. (स) छप्पय 
32. (स) सवैया 
33. (द) छप्पय  
34. (अ) कवित्त (घनाक्षरी) 
35. (स) मालती (मत्तगयंद) (प्रत्येक चरण में 23 वर्ण, 8 भगण, अंत में 2 गुरु )
36. (द) दुर्मिल सवैया  (प्रत्येक चरण में 24 वर्ण, 8 सगण)
37. (स) गीतिका 
38. (स) घनाक्षरी (कवित्त) 
39. (अ) सम मात्रिक छंद  
40. (स) कवित्त (मनहरण )

आकलन एवं मूल्यांकन में अंतर

आकलन एवं मूल्यांकन

आकलन एवं मूल्यांकन दो अलग-अलग पद हैं एवं इन दोनों के अर्थ में भिनता है । आकलन को जहां एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया माना जाता है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं ।
वही मूल्यांकन को योगात्मक प्रक्रिया माना जाता है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठ्यक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात की जाती है ।

आकलन :–का उद्देश्य निदानात्मक होता है । अर्थात शिक्षण अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापकों को पृष्ठपोषण प्रदान करना तथा छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना आदि ।
मूल्यांकन:–का उद्देश्य मूल्य निर्धारण करना होता है । यथा निर्धारित पाठ्यक्रम की समाप्ति पर विद्यार्थियों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है ।

इस प्रकार, आकलन एवं मूल्यांकन दोनों भिन्न-भिन्न उद्देश्य से भिन्न-भिन्न समय पर विद्यार्थियों की उपलब्धि का अनुमान लगाने की प्रक्रिया है ।

भाषा शिक्षण में आकलन एवं मूल्यांकन

–भाषा शिक्षण में आकलन एवं मूल्यांकन का आशय उन प्रक्रियाओं से हैं जिनकी सहायता से एक शिक्षक विद्यार्थियों के भाषा संबंधी समस्त कौशलों के संबंध में शिक्षण अवधि के दौरान एवं पाठ्यक्रम की समाप्ति पर निर्णय करता है ।

आइए अब हम जानते हैं की जब एक भाषा शिक्षक आकलन करता है तब वह अपने विद्यार्थियों में क्या देखता है? –

*–विद्यार्थी कितना पढ़ पाता है?
*– कैसे पढ़ पाता है ?
*–रुक रुक कर पढ़ता है या धारा-प्रवाह पढ़ता है ।
*–ठीक से नहीं पढ़ पा रहा है तो उसका क्या कारण है ? जैसे एक डॉक्टर बिना मरीज के रोग को जाने वह उस रोग का कैसे इलाज करेगा?
*–क्या वह अक्षरों को पहचान नहीं पा रहा है या शब्दों को एक इकाई के रूप में पढ़ने का अभ्यस्त नहीं है ?

*–भाषा को सुनकर कितना समझ पाता है ?
*–कितने आत्मविश्वास से वह स्वयं को अभिव्यक्त कर पाता है?

आइए अब हम जानते हैं भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन के बिंदु कौन-कौन से हैं ?

*सबसे पहले जब हम प्राथमिक स्तर की बात करते हैं जब विद्यार्थी भाषा सीखने की शुरुआत करता है तो उस अस्तर पर हम सबसे पहले विद्यार्थी की प्रवाहिता की जांच करते हैं ।

  • फिर हम प्राथमिक स्तर पर शुद्धता की बात करते हैं कि विद्यार्थी कितना शुद्ध बोल रहा है ? कितना शुद्ध लिख रहा है ? कितना किसी की बातों को सुनकर शुद्ध समझ रहा है ?

अतः सबसे पहले हमें प्रवाहिता पर बल देना चाहिए इसके बाद ही हमें उसके बोलने की शुद्धता पर बल देना चाहिए ।

  • हमें यह देखना चाहिए कि विद्यार्थी की प्रवाहिता तथा शुद्धता दोनों का तालमेल बना रहे । इसके बाद ही भाषाई कौशलों का आकलन होती है ।
  • भाषाई कौशलों का आकलन के अंतर्गत चार प्रमुख कौशल है जो निम्नलिखित है ।
  1. श्रवण कौशल ।
  2. भाषण कौशल ।
  3. पठन कौशल तथा
  4. लेखन कौशल ।

आप तो जानते हैं कि मूल्यांकन की प्रक्रिया निरंतर चलती है परंतु किन तरीकों से चलती है यह जानना बहुत जरूरी है ।

आइए हम जानते हैं अपने विद्यालय में एक शिक्षक के द्वारा भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन के तरीके कौन-कौन से है ? –
सामान्यता दो तरीकों का प्रयोग किया जाता है :–

  1. लिखित परीक्षा एवं ।
  2. मौखिक परीक्षा ।
    इसके लिए बनाए गए प्रश्न पत्र पाठ्यपुस्तकों पर आधारित होते हैं जो भाषाई ज्ञान का आकलन कम एवं विद्यार्थी के स्मरण शक्ति का आकलन अधिक करते हैं ।

लिखित परीक्षा में विद्यार्थी को प्रश्न पत्र दे दिया जाता है जो उसके पाठ्यपुस्तकों पर आधारित होते हैं । अगर विद्यार्थी उन प्रश्न पत्रों का संतुष्टि तक उत्तर दे दिया तो वह उत्तीर्ण हो जाता है । नहीं तो उसे अनुत्तीर्ण कर दिया जाता है ।

क्या इससे विद्यार्थी का भाषा कौशल का मूल्यांकन हुआ नहीं न? चुकी लिखित परीक्षा से हम विद्यार्थी का केवल स्मरण शक्ति का ही मूल्यांकन कर सकते हैं । जो हमारे लिए उद्देश्यहीन मूल्यांकन है ।

आइए अब हम जानते हैं मूल्यांकन का सही तरीका

भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन की निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाना चाहिए ।

  1. मौखिक परीक्षण जो औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों हो सकते हैं ।
    यहां अनौपचारिक का मतलब है कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते किसी विद्यार्थियों से कोई प्रश्न पूछ दिया या किसी शब्द का अर्थ बताने को पूछ दिया ।
    1) प्रश्न-उत्तर का सत्र चलाया जाए
    2) कहानी कथन का सत्र चलवाया जाए ।
    3) विद्यार्थी को बोल बोलकर पढ़ाया जाए । ऐसा करवाने से विद्यार्थी द्वारा किया गया शुद्ध या अशुद्ध उच्चारण शिक्षक के साथ-साथ सभी विद्यार्थियों तक पहुंचता है तथा एक दूसरे को अपनी त्रुटियों से अवगत कराते हैं
    4) विद्यार्थी द्वारा देखी या सुनी बात का वर्णन करवाया जाए । जैसे कि विद्यार्थी से पूछा जाए कि जब आप स्कूल आ रहे थे तो आपने रास्ते में क्या देखा क्या सुना कृपया बताइए । यहां हम उसकी स्मरण क्षमता का मूल्यांकन नहीं करते हैं । यहां हम उसके अभिव्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं उसके विचारों का मूल्यांकन करते हैं कि वह कैसे अपने बातों को व्यक्त करता है ?
  2. लिखित परीक्षा –
    लिखित परीक्षा में सिर्फ प्रश्नों का उत्तर ले लेना ही पर्याप्त नहीं है । इसके लिए हमें निम्नलिखित युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए ।
    जैसे 1. श्रुतलेख :–इसमें एक व्यक्ति बोलता है तो दूसरा व्यक्ति सुनकर लिखता है। ऐसा करने से हम विद्यार्थी के श्रवण तथा लेखन क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  3. आपूर्ति परीक्षण:- जिसे हम अंग्रेजी में क्लोज टेस्ट कहते हैं इसमें हम किसी कहानी या निबंध से कोई अनुच्छेद ले लेते हैं फिर उन अनुच्छेदों में से कुछ–कुछ शब्द निकालकर विद्यार्थियों के सामने रखते है फिर विद्यार्थियों को भरने के लिए कहां जाता है कि उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति करें । ऐसा करने से हम विद्यार्थी के व्याकरण क्षमता, शब्द भंडार,पढ़कर समझने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  4. कहानी का अपनी मातृभाषा में पुनर्लेखन : इसमें हम विद्यार्थी द्वारा पहले से पढ़ा गया पाठ को हम उनकी मातृभाषा में पुनर्लेखन को कहते हैं यहां हम उनकी लेखन क्षमता की जांच कर लेते हैं । साथ ही साथ हम एक भाषा से दूसरी भाषा में उनके द्वारा अनुवाद करने का क्षमता का भी आकलन कर लेते हैं ।
  5. कहानी का शीर्षक लिखना : इसमें हम विद्यार्थी को किसी निबंध,उपन्यास तथा अनुच्छेद का शीर्षक लिखने को कह कर हम उनके पठन की समझ क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  6. कहानी से प्रश्न बनाना: ऐसा करने से हम विद्यार्थी के प्रश्न बनाने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  7. नाटक का मंचन एवं संवाद लेखन : ऐसा करने से हम पाते हैं कि विद्यार्थी को कहां तक समझ आया कि वह किस अभिनय कर्ता को किस समय पर क्या प्रस्तुत करना है नाटक का मंच कैसा हो ? आदि के बारे में आकलन कर लेते हैं
  8. कविता की व्याख्या या उसका भावार्थ लेखन आदि ।

अतः मूल्यांकन का आकलन करते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसा कि मैंने पहले भी ऊपर में बताया है कि परीक्षण विद्यार्थी की भाषा ज्ञान एवं क्षमता का आकलन एवं मूल्यांकन करने वाला होना चाहिए ना कि उनकी स्मरण शक्ति का ।
दूसरी बात आकलन करते समय हमें विद्यार्थी के मात्र कमजोर पक्षों को ही नहीं देखना चाहिए बल्कि उनकी कारण को भी ढूंढना चाहिए जिनके कारण विद्यार्थी की आपेक्षित पहलू कमजोर है ।