Methods of Motivation

✍️✍️Manisha Gupta ✍️❤

अभिप्रेरणा की विधियां ❤ प्रेरणा से ही यह निश्चित होता है कि बच्चे कितनी देर तक इसी चीज को सीख रहे हैं या कितनी अच्छी तरह से सीख सकते हैं । बच्चा प्रेरित होकर ही अपने कार्य में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त कर सकता है प्रेरणा प्रदान करने के लिए निम्नलिखित विधियां हैं ➖ 1⃣ कक्षा का उचित वातावरण➖ कक्षा में उचित वातावरण बनाना बच्चों के लिए अति आवश्यक है कक्षा में उचित वातावरण बनाकर ही बच्चों को पढ़ाई के प्रति ध्यान केंद्रित कराया जा सकता है उचित वातावरण बनाकर ही कक्षा में बच्चों में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है कक्षा कक्ष का उचित वातावरण पर मोटिवेशन निर्भर करता है । 2⃣ आवश्यकता का आइना दिखाना ➖ बच्चों की आवश्यकता के अनुसार ही उन्हें मोटिवेट करना चाहिए , बच्चों को इस प्रकार से प्रेरित किया जाना चाहिए कि उनकी आवश्यकता कितनी है या किस आवश्यकता पर कितना प्रेरित किया जाए। 3⃣ सफलता और असफलता➖ बच्चों को उनके कार्य से सफलता और असफलता दोनों ही मिल सकता है यहा बच्चों को सफलता या असफलता दोनों की अभीप्रेरित करते हैं अर्थात बच्चे की सफलता के लिए उन्हें अग्रसर करना चाहिए, अभिप्रेरणा सफलता और असफलता पर निर्भर करता है यह सफलता और असफलता बच्चों को मोटिवेट ओर डिमोटिवेट दोनों प्रकार से कर सकता है यह बच्चे की सोच पर निर्भर करता है कि वह सफलता या असफलता को किस प्रकार से ले रहा है success and failure bhi motivation par effect karts h। 4⃣ प्रतियोगी वातावरण या सहयोग ➖ किसी बच्चे को अभी प्रेरित करने के लिए प्रतियोगी वातावरण एवं सहयोग का वातावरण या माहौल का निर्माण करना चाहिए जिससे बच्चे एक दूसरे के प्रति एक पॉजिटिव competition environment and cooperative environment बना सके। 5⃣ प्रशंसा और निंदा➖ प्रशंसा और निंदा भी यह दोनों ही बच्चे को अभी प्रेरित कर सकते हैं लेकिन उचित समय या उचित स्थान में प्रशंसा करने से बच्चे अभिप्रेरित हो सकते हैं। प्रशंसा और निंदा भी यह बच्चों की सोच पर निर्भर करता है कि वह बच्चा उस प्रशंसा या निंदा से किस प्रकार से मोटिवेट या डिमोटिवेट हो रहा है। अर्थात प्रशंसा और निंदा हमें मोटिवेट भी कर सकते हैं और डिमोटिवेट भी कर सकते हैं। 6⃣ पुरस्कार और दंड➖ सही जगह सही समय सही स्थान पर दिया जाने वाला पुरस्कार ही बच्चों को अभी प्रेरित कर सकता है पुरस्कार भी एक ऐसा कारक है जिसके द्वारा बच्चों को प्रेरित किया जा सकता है, और दंड भी एक ऐसा कारक है जो नेगेटिव है लेकिन बच्चों को दंड से भी मोटिवेट किया जा सकता है बच्चों को ऐसा दंड दिया जाए जिससे वह उस गलती को दोबारा ना करें और उस दंड से से मोटिवेट हो। 7⃣ आकांक्षा या उम्मीद(expectations) : परिस्थिति के अनुसार ही आकांक्षा होने से बच्चा अभिप्रेरित हो सकता है यह आकांक्षा या उम्मीद किसी को कम या ज्यादा हो सकती है इससे हमारा स्तर का पता चलता है कि हम कितना चाहते हैं यह किस स्तर तक हम उसे पाना चाहते हैं आपको इस चीज की priorty kitni h , समय या परिस्थिति के अनुसार की हममे आकांक्षाएं आती है इसके लिए हमें priorty डिसाइड करना पड़ता है कि हमें कब और किसे कितनी priorty देनी है । 8⃣ रुचि:➖ रुचि भी एक महत्वपूर्ण कारक है जिसके द्वारा बच्चों को अभिप्रेरित किया जा सकता है। जरूरत के हिसाब से हमारी रुचि घटती और बढ़ती रहती है हमारा मूल्य आत्मविश्वास ,स्वाभिमान, पर भी रुचि निर्भर करता है कोई चीज हमें कितनी जरूरत है वह हमारे रुचि पर depend करता है वातावरण का भी रुचि पर प्रभाव पड़ता है। छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी रुचि अत्यंत आवश्यक है। 9⃣नयापन ➖ नयापन भी बच्चों को अभी प्रेरित करता है समय-समय पर बच्चों के पढ़ाई के लिए प्रेरित करने की विधियों में अपडेट करते रहना चाहिए नयापन बच्चों में पढ़ने के लिए उत्तेजित करता है और प्रोत्साहित भी करता है। 🔟 प्रगति का ज्ञान➖ प्रगति का ज्ञान भी एक आवश्यक कारक है जो बच्चों को प्रेरित करें, बच्चों की प्रगति का ज्ञान की जानकारी लेकर प्रेरित किया जाना चाहिए। (ये सभी कारक उचित परिस्थिति में उचित समय पर उचित स्थान पर देकर ही बच्चों को पूर्ण रूप से अभिप्रेरित किया जा सकता है।)


💫 By ➖ रश्मि सावले 💫
अभिप्रेरणा (motivation) ➖अभिप्रेरणा से ही हमें कुछ करने का हौसला प्राप्त होता है और हम उसको सही ढंग से संचालित कर पाते हैं ठीक इसी प्रकार हम बच्चों को अभिप्रेरित कर यह निश्चित कर सकते हैं कि उनमें सीखने की क्षमता कितनी है और यह अलग अलग प्रकार से हो सकता है जैसे पुरुस्कार, रुचि, प्रशंसा आदि…

बच्चों को अभिप्रेरित करने की
मुख्य विधियाँ➖

🔹कक्षा का उचित वातावरण देकर ➖
कक्षा में हम एक बेहत्तर वातावरण उत्पन्न करके बच्चों का mind ko set कर सकते हैं जिससे एक बेहतर अभिप्रेरणा विकसित की जा सकती है…

🔹आवश्यकता का आईना दिखाकर ➖
यदि हम बच्चों को उनकी आवश्यकता बताकर अभिप्रेरित किया जा सकता है जिससे बच्चों को अपने लक्ष्य को पाने में आसानी होगी……

🔹सफलता/असफलता➖
सफलता और असफलता के द्वारा भी अभिप्रेरणा मिलती है ये परिस्थिति पर निर्भर करता है कि उस समय कैसे motivat किया जा रहा है….

🔹प्रतियोगी वातावरण/सहयोगी वातावरण ➖
कक्षा का ऐसा वातावरण बनाया जाये कि बच्चे स्वयं को उससे जोड़ सकें और एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना विकसित कर सकें….

🔹प्रशंसा/ निंदा ➖
प्रशंसा और निंदा दोनों ही एक प्रकार से अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं कभी परिस्थिति हमारे अनुसार नहीं होती है फिर भी हम अभिप्रेरित होते हैं और परिस्थिति हमारे अनुसार होती है तब भी हम अभिप्रेरित होते हैं it’s all about way off think हम प्रत्येक परिस्थिति में अभिप्रेरित होते हैं केवल देखने का नजरिया अलग अलग होता है…

🔹पुरुस्कार /दंड ➖
पुरुस्कार और दंड दोनों ही अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं निर्भर करता है कि सही जगह पर सही समय में सही काम के लिए पुरुस्कार और दंड दिया जाए तभी वह सकारात्मक होगा, अन्यथा अभिप्रेरक नकारात्मक हो सकता है….

🔹आकांक्षा/ उम्मीद➖
जिस प्रकार की आकांक्षा होगी उसी प्रकार का motivation भी होगा अभिप्रेरणा आकांक्षा के अनुसार मिलती है इससे हमारे स्तर का पता चलता है….

🔹रुचि ➖
रुचि हमारी जरुरत, स्वाभिमान, self respect, आकांक्षा और मूल्यों के कारण भी आती है और इससे भी हम अभिप्रेरित होते हैं……

🔹नयापन ➖
हर समय हम अलग अलग पहलुओं से भी अभिप्रेरित होते हैं और इससे हमें और नया करने की अभिप्रेरणा मिलती है……

🔹प्रगति का ज्ञान देकर ➖
प्रगति का ज्ञान समय समय पर बच्चों को बताया जाना चाहिए जिससे कि वो अभिप्रेरित हो सकें जिससे और प्रगति करने की अभिप्रेरणा प्राप्त हो….

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🌈 अभिप्रेरणा की विधियां
🌟 कक्षा का उचित वातावरण बस कक्षा का ऐसा वातावरण बनाया जाए जिसमें बच्चे यह सखी रूप से सीखे और प्रेरित है
⭐आवश्यकता का आइना दिखाना बच्चों को इस प्रकार से सिखाया जाए कि वह सीखने के लिए प्रेरित और उन्हें किस चीज की आवश्यकता है
⭐सफलता और असफलता
जब बच्चे सफलता प्राप्त होती है तो बच्चा सीखने के लिए प्रेरित होता है और जब असफलता होती है तो बच्चा उससे भी सीखने के लिए प्रेरित होता है यह बच्चे की सोच पर निर्भर करता है कि वह सफलता को किस प्रकार से ले रहा है या असफलता को
⭐प्रतियोगिता वातावरण या सहयोग हमें बच्चों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जिससे बच्चा प्रतियोगिता और सहयोग से प्रेरित हो
⭐प्रशंसा और निंदा बच्चे की प्रशंसा उचित समय उचित स्थान में प्रशंसा करना बच्चे को प्रेरित करता है और बच्चे की सोच पर निर्भर करता है कि वह प्रशंसा से अंडा से किस प्रकार से प्रेरित होता है जब कभी बच्चन की निंदा की जाती है तो उसे उससे भी कुछ सीखने के लिए प्रेरित होता है
⭐ पुरस्कार और दंड बच्चे को जब हम पुरस्कार देते हैं तो इससे बच्चा प्रेरित होता है और जब कभी बच्चे के लिए दंड भी मोटिफ किया जाता है जा सकता है बच्चों को ऐसा दंड दिया जाए जिससे उनकी गलती को दोबारा ना करें और ढंग से भी अभी प्रेरित हो
⭐आकांक्षा या उम्मीद बच्चे किस स्तर तक उसे पाना चाहते हैं और इस चीज की कितनी समय परिस्थिति के अनुसार हमें आवश्यक जरूरत है हमें कब कितनी जरूरत है
⭐रुचि
बच्चे को प्रेरित किया जा सकता है और जरूरत के हिसाब से हमारी रुचि करती हो बढ़ती रहती है आत्मविश्वास स्वाभिमान पर सूची निर्भर करती है बच्चे बच्चे को इस प्रकार का वातावरण दिया जाए जिससे वह रुचि उत्पन्न हो और सीखने के लिए प्रेरित हो बच्चे को आकर्षित चीजें भी चीजों को देखकर भी रुचि उत्पन्न होती है वह इससे भी अभी प्रेरित होता है ⭐प्रगति
बच्चे को समय-समय पर बताया जाना चाहिए कि वह प्रगति करने की अभिप्रेरणा
✍Menka patel


◆ अभिप्रेरणा ◆

★ अभिप्रेरणा का शब्दिक अर्थ उत्तेजना है ।
★ ” प्रेरणा कार्य को प्रारम्भ करने जारी रखने और नियमित करने की प्रकिया है ” गुड
★ ” प्रेरणा व्यवहार को जागृत करने , क्रिया के विकास को संपोषित करने और क्रिया के तरीके को नियमित करने की प्रक्रिया है ” .. युंग

◆ प्रेरणा के पक्ष :-
● प्रेरणा के तीन पक्ष है ।

  1. आवश्यकता
  2. अन्तर्नोद
  3. उद्दीपन

◆अभिप्रेरणा के कारण :-
● अभिप्रेरणा के दो कारण हैं ।

  1. स्वभाविक
  2. अर्जित

◆ अभिप्ररेणा के सिद्धान्त :-

  1. वातावरणीय सिद्धान्त
  2. शारीरिक क्रिया सिद्धान्त
  3. मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त
  4. अन्तर्नोद सिद्धान्त
  5. मनोविश्लेषण सिद्धान्त
    6.निस्पत्ति प्रेरणा सिद्धान्त
  6. आन्तरिक प्रेरण सिद्धान्त

◆ अभिप्ररेणा के प्रकार :-
★ सकारात्मक
★ नकारात्मक

✍️ 🇧 🇾 – ᴊᵃʸ ᴘʳᵃᵏᵃˢʰ ᴍᵃᵘʳʸᵃ 💐😊


✍️by ➖ Anamika Rathore

➖अभिप्रेरणा की विधियां ➖

1::कक्षा का उचित वातावरण==
शिक्षक को प्रभावशाली प्रेरणा देने के लिए शिक्षण सामग्री से संपन्न , अर्धपुर्णं , निरन्तर परिवर्तन शील कक्षा कक्ष का वातावरण रखना चाहिए।

2:: आवश्यकता का आईना दिखा कर==
बच्चे की मुख्य आवश्यकता उसके सीखने में अच्छा सहयोग करती है।

3:: सफलता या असफलता==
बच्चो को इस प्रकार से प्रेरित किया जाना चाहिए कि बच्चे को उसकी कितनी आवश्यकता है । सीखने के सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं। वहीं पर असफलता भी बच्चे को फिर से सफल होने के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरणा देती हैं।

4:: प्रतियोगी वातावरण या सहयोग==
शिक्षाशास्त्रय के संपूर्ण इतिहास में प्रतियोगिता को प्रेरणा के लिए प्रयोग किया जाता है। एक ही सितुएशन दो अलग अलग लोग एक दूसरे के लिए पॉजिटिव प्रतियोगी वातावरण बना सके।

5:: प्रशंशा या निंदा==
सही समय और स्थान पर प्रयोग किए जाने पर प्रशंशा , प्रेरणा का कार्य करती है। वहीं कभी कभी निंदा भी बच्चे को अभिप्रेरित के देती है। परन्तु प्रशंशा और निंदा हम मोटिवेट भी के सकती है और डिमोटिवेट भी के सकती हैं।

6:: पुरस्कार और दण्ड==
सही समय , सही जगह , सही काम के लिए दिया गया पुरस्कार , प्रेरणा का कार्य करता हैं। वहीं बच्चो को ऐसा दण्ड देना जिससे वह मोटिवेट हो और वहीं गलती वापिस से ना करे।

7:: आकांक्षा और उम्मीद==
आपको किसी चीज की कितनी आवश्यकता है वहीं आपकी आकांक्षा को दर्शाता है , कि उसका स्तर कितना है। किसी चीज की आवश्यकता ही डिसाइड करती है कि आकांक्षा कैसी होगी।

8:: रुचि==
रुचि से बच्चो को अभिप्रेरित किया जा सकता है यह किसी बच्चे में ज्यादा तो किसी बच्चे में कम होती है। अपनी जरूरत और वातावरण पर रुचि निर्भर करती हैं।

9:: नयापन==
बच्चो द्वारा अलग अलग चीजों को अपनाकर उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है।
10:: प्रगति का ज्ञान देकर ==
बच्चो की प्रगति के ज्ञान की जानकारी लेकर उसे प्रेरित किया जा सकता है।

🍁 यह सभी कारक बच्चे को सही समय , परिस्थिति ऑर स्थान पर देकर बच्चे को पूर्ण रूप से प्रेरित कर सकते हैं।


✍🏻Notes By➖ Vaishali Mishra 🔆अभिप्रेरणा 🔆

अभिप्रेरणा कई तरह से लायी जा सकती है या किसी शिक्षक द्वारा किसी भी बच्चे को कई तरीको से प्रेरित किया जा सकता है।➖

▪️1 उचित वातावरण बनाकर ➖ यहां पर उचित वातावरण का मतलब शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य के दौरान ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जिससे बच्चे बेहतर रूप से अभिप्रेरित रहे।कार्य के दौरान उन्हें समय समय पर किसी न किसी माध्यम से प्रेरित करते रहना चाहिए।क्योंकि कक्षा का उचित वातावरण ही अभिप्रेरणा को बनाए रखता है।

▪️2आवश्यकता का आइना दिखाकर ➖ यहां आवश्यकता का आइना मतलब है कि बच्चो को उनकी जरूरतों को अहसास होने पर भी बेतहर रूप से अभिप्रेरित किया जा सकता है।जब हमे किसी चीज की जरूरत या आवश्यकता होती है तो उसे पाने के लिए हम सदा ही अभिप्रेरित बने रहते है।

▪️3 प्रतियोगी वातावरण और सहयोग देना➖शिक्षण कार्य में शिक्षक को एक प्रतियोगी वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिससे कि बच्चो में एक दूसरे को अच्छा करते हुए देखकर वह भी अच्छा करने के लिए अभिप्रेरित होते है।साथ ही बच्चो के लिए सहयोगी वातावरण का निर्माण भी करना चाहिए।

▪️4 सफलता और असफलता के द्वारा ➖हम सफल और असफल दोनों के होने पर अभिप्रेरित होते है और नहीं भी।
जब हम सफल होते है तभी भी हम अभिप्रेरित होते है कि हमे ओर अच्छा करना है या अभिप्रेरित नहीं भी होते है कि एक बार सफल हो गए तो काफी है।
जब हम असफल होते है तब भी अभिप्रेरित होते है कि इस बार नहीं कर पाए तो अगली बार जरूर करके दिखाएंगे । और कभी कभी अभिप्रेरित नहीं भी होते है जैसे कि यदि असफल होते है तो सोचते है कि रहने दो हम से नहीं हो पाएगा अब।

▪️5 प्रशंशा और निंदा➖बच्चो को प्रसंशा और निंदा दोनों जी अभिप्रेरित करती है। जब बच्चे किसी काम को करते है और उस काम में हमारी तारीफ या प्रशंशा होती है तो उस काम के प्रति बच्चे काफी ज्यादा अभी प्रेरित हो जाते है।
जबकि इसके विपरित शब्द निंदा होने पर भी बच्चे अभिप्रेरित होते है जैसे की यदि बच्चो की काम में निंदा की जाती है या उसकी बुराई की जाती है तो वे सोचने लगते है कि अगली बार इस काम को इतने बेहतर तरीके से कोशिश करेंगे कि निंदा जैसा कोई शब्द ही प्रयोग नहीं होगा।

▪️6 पुरुष्कार और दण्ड➖ बच्चे पुरुष्क़ार और दण्ड दोनों के द्वारा भी हम काफी ज्यादा अभिप्रेरित होते है ।

▪️7 आकांक्षाएं (expectations) और उम्मीद (Desire)➖किसी काम को करने के बाद उस काम की सफलता को पाने में हमारी काफी ज्यादा आकांक्षाएं और उम्मीद होती है लेकिन यह दोनों ही हमारी pririoty या उसकी अहमियत पर निर्भर करती है।

▪️8 रुचि➖ हमारा आत्मसम्मान, स्वभविमान ही हमारी रुचि को अभिप्रेरित करता है और रुचि हमारी जरूरत,वातावरण पर निर्भर करती है।
किसी भी काम को देखकर हमारे अंदर जो भावना जाग्रत होती है वहीं रुचि कहलाती है।किसी भी काम में रुचि होने पर उस काम के प्रति हम पूरी तरह से अभिप्रेरित रहते है।

▪️9 नवीन रूप ➖
यदि बच्चे किसी कार्य को बार बार एक ही तरीके से करते रहें तो उस काम के प्रति ज्यादा डर तक प्रेरित नहीं रह पाते है ।इसलिए किसी भी कार्य को करते समय उसमे कई नवीन तरीको का या नवीन चीजों का प्रयोग कर शिक्षक उस कार्य के प्रति बेहतर अभिप्रेरणा को विकसित कर पाते है।

▪️10 प्रगति का ज्ञान देकर ➖शिक्षक द्वारा समय समय पर बच्चो को प्रगति देकर एक बेहतर रूप से अभिप्रेरित किया जा सकता है।

उपर्युक्त तरीको में से किसी भी तरीके के द्वारा हम बच्चे को बेहतर रूप से अभिप्रेरित रख पाते है बस इन सभी के लिए यह तीन बातो का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है सही जगह,सही समय और सही काम के प्रति ही अभिप्रेरणा देनी चाहिए।


🌼अभिप्रेरणा की विधियां 🌼
बच्चों को कई प्रकार से अभिप्रेरित किया जा सकता है।

1) कक्षा का उचित वातावरण बनाकर -कक्षा के वातावरण पर निर्भर भरता करता है कि बच्चे कैसे सिखेगे। यदि कक्षा का वातावरण बच्चों के लिए भय मुक्त, बच्चे अपनी अभिव्यक्ति स्वतंत्र रूप से कर सके। तो बच्चे पढने के लिए अच्छे से प्रेरित होगे। यदि कक्षा का वातावरण अच्छा नही है तो स्वतंत्र होकर अपनी भावनाओं, कार्य को नहीं कर सकते हैं।

आवश्यकता का आइना दिखाकर – बालक को बताना की क्या उसका लक्ष्य हैं, उसे बताना की कैसे लक्ष्य को प्राप्त किया जाए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसे क्या क्या करना चाहिए। उसे आवश्यकता अनुसार प्रेरित करते रहना चाहिए।

सफलता और असफलता – सफलता और असफलता से भी बच्चे प्रेरित होते हैं। यदि हम किसी कार्य को पूरी जी जान से करते हैं और हमे उसमे सफलता मिलती है तो हम प्रेरित होते हैं। कभी कभी हम असफलता से भी प्रेरित होते हैं ।जैसे ही असफल होते हैं तो हम उस कार्य मे सफल होने के फिर ऊर्जावान होकर उस कार्य को करते हैं।

प्रतियोगी वातावरण और सहयोग – हमारा अपने सहपाठीयो से प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या के साथ नही होनी चाहिए बल्कि सहयोगात्मक तरीके से होनी चाहिए जिससे दोनों ही अभिप्रेरित होकर अपने कार्य में सफल हो सके।

प्रशंसा और निंदा – प्रशंसा से भी प्रेरित होते हैं। यदि हमने अपने कार्य को पूरी लग्न और निष्ठा से किया और सफल होते हैं तो लोगो के द्वारा हमारी प्रशंसा होती है जिससे हम फिर से कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। यदि किसी कार्य मे हमारी निंदा होती है तो हम फिर से उस कार्य को अच्छे से करने के लिए प्रेरित होते हैं।

पुरस्कार और दंड – पुरस्कार और दंड सही जगह, सही समय पर और सही काम के लिए देना चाहिए। हमे अच्छा कार्य करने के लिए पुरस्कार दिया जाता है तो हम फिर से कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। किसी कार्य मे हम गलती होने पर दंड मिलता है जिससे हम उस गलती को फिर से नहीं करने के लिए प्रेरित होते हैं।

आकांक्षा, उम्मीद – हमे किसी से आकांक्षा या उम्मीद होती है तो हम उससे प्रेरित होते हैं।

रूचि-जब हमे किसी कार्य मे रुचि होती है तो हम उस कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

नयापन – जब हम किसी नये कार्य को करते हैं तो हम उसे करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

प्रगति का ज्ञान देकर – जब बच्चा किसी काम को करता है तो हम उसे बताना चाहिए की उसने कार्य को ठीक प्रकार से किया या नहीं। इसके बारे मे बताने से वह प्रेरित होते हैं।

Notes by – रवि कुशवाह


By_ Abha
◆अभिप्रेरणा◆
★अभिप्रेरणा एक ऐसी सीढ़ी हैं, जो हमें अपने स्तर से उच्चे बढ़ने में हमारी सहायता प्रदान करती हैं।इसके कारण हम अपनी आवश्यकताओ को पहचान पाते हैं,और उसे आगे बढ़ने के लिए उत्प्रेरित होते हैं।

1)कक्षा का उचित वातावरण:-
कक्षा-कछ में ऐसा महौल होना चाहिए कि बच्चों की मनोवृत्ति को एकाग्रचित्त करें।और उसे अपने भाव को प्रकट करने की स्वतंत्रता मिलती हो,बच्चों में सहयोग की भावना उत्पन्न हो।

2)आवस्यकता की आइना दिखाकर:-
बच्चों की आवश्यकताओ की बारे में चर्चा करना ताकि उसे पता चले कि उसे किस तरफ और किन आवस्यकता की ओर बढ़ना हैं, जो हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद करेगी।

3)सफलता/असफलता:-
इस प्रक्रिया द्वारा बच्चों में भी अभिप्रेरणा उत्पन्न होती हैं, जब किसी कार्य को करने से सफलता मिलेगी हैं तो उन्हें आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान होती हैं।अगर बच्चों को किसी कार्य में असफलता मिलती हैं, तो उसे उस कार्यों को और बेहतर तरीके से करने की उत्सुकता होती हैं।

4)प्रतियोगी वातावरण/सहयोग:-
बच्चों की प्रतियोगी वातावरण से भी इनमें प्रेरणा की भावना आती हैं, जो उन्हें औरों से बेहतर बनाने की कोशिश करती हैं।एक दूसरे की मदद करना और मदद लेना भी इसमें शामिल होता हैं।

5) प्रशंसा/निंदा:-
प्रसंशा से बच्चों को भावना में उतेजना उत्पन्न होती हैं, ठीक उसी प्रकार अगर बच्चों को किसी के द्वारा निंदा किया गया हो या महसूस हुआ हो तब भी बच्चों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती हैं।

6)पुरस्कार/दंड:-
अगर बच्चों को अच्छे कार्य के लिए उन्हें पुरस्कार दी जाती हो,तो उनमें अधिक प्रसन्ता उत्पन्न होती हैं।अगर बच्चों को गलत कार्य करने पर दंड दी जाती हैं, तो उसे अनुभव होता हैं कि हमें ये कार्य नहीं करनी चाहिए और इससे उसको सिख भी मिलती है।

7)उम्मीद/आकांक्षा:-
अभिप्रेरणा द्वारा बच्चों में बहुत सी आकांक्षाये उत्पन्न होती हैं, जिसके कारण वो किसी कार्य को करने के लिए उतेजना उत्पन्न होती हैं।

8)रुचि:-
बच्चों में किसी प्रकार के कार्य करने के लिए उनमें रुचि होना अति आवश्यक है, जो अभिप्रेरणा द्वारा किया जा सकता हैं।
9)नयापन:-
अभिप्रेरणा द्वारा हमेशा कुछ नया करने के बारे में बच्चे को प्रेरित करती हैं।

10)प्रगति का ज्ञान देकर:-
बच्चों को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करके उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सहयोग करती हैं, जो उसे अपने मार्ग पर चलने के लिए उतेजित करती हैं।


Date/ 7/9/2020
Nots_ By shanu sanwle
✏️ अभिप्रेरणा _ प्रेरणा हमें किस प्रकार अभिप्रेरित करती है प्रेरणा से ही हम अपने लक्ष्य को पर्याप्त करने में सफल हो सकते हैं इसके कहीं सारे प्रभावित कारक है।
1️⃣ कक्षा का उचित वातावरण :-
कक्षा में एक ऐसा वातावरण बनाना ,जिसमें बच्चा खुद अभिप्रेरित या मोटिवेट हो ,एक क्रियाशिल वातावरण बच्चों को देना ,जिससे बच्चा खुद सिखता हैं
2️⃣ आवश्यकता का आईना दिखा कर :-
बच्चों अपनी आवश्यकता का आईना दिखाना की आपको पढ़ना क्यो आवश्यक हैं आप क्या करना चाहते , आपकी जरूरत क्या हैं ये सब बातें बता कर बच्चों को अभिप्रेरित कर सकते हैं।
3️⃣ सफलता /असफलता :-
सफलता और असफलता दोनों हि बच्चों को
अभिप्रेरित कर सकती है अभिप्रेरणा साकारात्मक भी और नाकारात्मक भी हो सकती हैं कभी कभी असफलता भी बच्चों को अभिप्रेरित करती है
4️⃣ प्रतियोगिता या वातावरण का सहयोग :-
प्रतियोगिता वातावरण देना बच्चों को सहयोग करता हैं बच्चे पढ़ने में रुचि लेते हैं प्रतियोगिता करवा कर बच्चे मैं ज्ञान प्राप्त करने कि अभिप्रेरणा मिलती है बच्चे बेहतर सिखते ,कुछ करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
5️⃣ प्रशंसा /निंदा : –
प्रशंसा और निंदा दोनों ही बच्चों को मोटिवेशन करती है बच्चा बेहतर कार्य करने लगता ,बच्चे में कार्य करने की क्षमता का विकास होता है। यह बच्चे के उपर है की बच्चा कैसे सोचता है।
6️⃣ पुरस्कार / दण्ड :-
पुरस्कार देना गलत नहीं, पुरस्कार ऐसा हो जो बच्चों को अभिप्रेरणा दे । पुरस्कार सही काम ,सही जगह ,और सही समय पर देना चाहिते , पुरस्कार छोटा बड़ा नहि होता , प्रशंसा करके भी बच्चे को मोटिवेट कर सकते हैं।
दण्ड :- दण्ड भी कहीं प्रकार का हो सकता है एक शब्द भी दण्ड है लेकिन एक समय के बाद दण्ड साकारात्मक भी हो सकता है
7️⃣आकांक्षा :-
किसी काम को करने की जिज्ञासा ,उम्मिद , आकांक्षा होना चाहिए ,हमारी ज़रूर


🖊🖊Notes by Neha Roy🌸

Motivation 🌸🌸🌸🌸
Motivation लेटिन भाषा के
मोटम शब्द से बना है motum means act (गति) ः
Motivation हमे अपने शिक्षक से मिलती है किसी काय् को करने के लिए अभिप्रेरित करते है
1.कक्षा का उचित वातावरण
कक्षा का उचित वातावरण कहने का तातपय् है शिक्षक को कक्षा का ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बच्चा अभिप्रेरित हो
2.आवश्यकता का आयना दिखाकर ःः
आवश्यकता का आयना दिखाकर कहने का तातपय् है बच्चो को शिक्षा का महत्व के बारे में बताना उनहे अभिप्रेरित करना जब हमे किसी चीज के लिए अभिप्रेरित होते हैं तो वो जल्दी सीखते हैं
3.सफलता /असफलता
जब हम किसी काय् को करते हैं तो सफल होते है तो अभिप्रेरित होते है जब हम सफल नही होते हैं तो फिर भी अभिप्रेरित होते हैं जैसे – ctet का परीक्षा दिये तो सफल हुए तो अभिप्रेरित हुए कि और आगे मेहनत करनी है अगर सफल नही हुए तो और जी जान से मेहनत करेगे वो अभिप्रेरित होगा
4.प्रतियोगिता वातावरण /
सहयोग
बच्चों को ऐसा वातावरण में रहना चाहिए जिससे बच्चा प्रतियोगिता वातावरण सहयोग से अभिप्रेरित हो किसी बच्चे के लिए positive or negative दोनों होता है मगर उस स्थिति में भी बच्चा अभिप्रेरित होता है
5.प्रशसा/निदा
किसी काय् में बच्चो प्रशंसा मिलती है तो अभिप्रेरित होते हैं अगर निंदा होती हैं तो तब भी बच्चे अभिप्रेरित होते है करना है करके के दिखाना है
6.पुरस्कार /दंड
बच्चे किसी काय् को करते है तो उन्हें पुरस्कार मिलती है तो वो खुश होते है वो अभिप्रेरित होते है अगर दंड मिलती है तो अभिप्रेरित होते हैं जो काम गलत कि ये है उसे सही तरीके से करते है
7.आकांक्षा (उम्मीद)
बच्चे को जब अभिप्रेरणा मिलती है तो उनकी आकांक्षा बढती है और किसी काय् करने के लिए अभिप्रेरित होते है
8.रुचि
बच्चो मे रुचि बढती है तो अभिप्रेरित होते हैं
9.नयापन
बचचे जब अभिप्रेरित होते है तो कुछ नया करते हैं उसे करने के लिए प्रोतसाहित होते है
10.प्रगति का ज्ञान देकर
जब बच्चा कोई काय् करता है तो हमे उसे सही रास्ता तक पहुंचने में मागदशन करना चाहिए इससे बच्चे अभिप्रेरित होते हैं। 📝📝


Motivation Basics

Motivation and learning:

Internal motivation
Personal motivation
Biological motivation
Primary motivation
By birth motivation
Hunger , rest, anger, happiness , sadness ,fear, cry, sleepy, love, hate, internal emotions , all these are included in above internal motivation.
External motivation
Acquired / earned motivation
Social motivation
Psychological motivation
Secondary motivation
It comes from the outer .
Curiosity, attraction, safety, society, hobbies, all these included in in above external motivation.
Skinner says:- motivation is the best way { national highway} of learning.
Good says:- motivation is to start the work , continue the work with proper schedule
“The word motivation is derived from latin word motum which means to move or motion”.
Motivation can be termed as:

  1. Need = which is necessary to be alive. [if our basic needs doesn’t fulfill then our body doesn’t work properly example medicines , food, sleep etc.]
  2. Drive = the reason/ indication behind the need is drive [if we feel hunger then that hunger is drive]
  3. Appreciation/ incentive= when we complete our desired need then the completion of need is incentive.
  4. Motivator= need+ drive+ appreciation= motivator

Need , drive and appreciation are inter dependent.
Need derives drive, and drive complete/fulfill the appreciation
BY:- CHAHITA ACHARYA


अभिप्रेणा लैटिन भाषा के Motum शब्द से लिया गया है।जिसका अर्थ होता है गति करना।
अभिप्रेणा दो प्रकार के होते हैं।

  1. आंतरिक अभिप्रेणा- जो व्यक्ति के व्यहवार को आंतरिक रूप से अभिप्रेरित करे। जैसे-धूप ,प्यास ,नींद ,प्यार,काम।

2.बाह्य अभिप्रेणा- जो व्यक्ति के व्यहवार को बाह्य रूप से प्रेरित करे।जैसे-रुची, जिज्ञाषा,आत्मसम्मान।

** स्किनर के अनुसार- प्रेरणा सीखने का राजमार्ग है।

**गुड के अनुसार-प्रेरणा किसी काम को आरम्भ करने, जारी रखने, नियमित रखने की प्रक्रिया है।
By kiran kumari


By➖ Anamika Rathore 🥰

✍️ अभिप्रेरणा (motivation)➖

व्यक्ति के सभी प्रकार के एहसास या अनुभूति के माध्यम से अभिप्रेरणा मिलती हैं। अभिप्रेरणा व्यवहार को एक निश्चित दिशा में कार्य करने की शक्ति प्रदान करती है।
मोटीवेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ” मोटम ” शब्द से हुई है जिसका अर्थ – मोशन या गति ।
अभिप्रेरणा को देखा नहीं जा सकता है सिर्फ इस पर आधारित व्यवहार को देखकर इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

✍️अभिप्रेरणा के प्रकार ➖

अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है-
1) आंतरिक प्रेरणा
2) बाह्य प्रेरणा

1:: आंतरिक प्रेरणा==
अन्य नाम — व्यक्तिगत प्रेरणा , जैविक प्रेरणा , प्राथमिक प्रेरणा , जन्मजात प्रेरणा।
व्यक्ति किसी कार्य को अपनी मर्जी से करता है । जब हमें भूख लगती है तो हम अंदर से ( मन से) खाने के लिए प्रेरित होते है, वह आंतरिक प्रेरणा होती है। इसके अन्तर्गत भूख , प्यास , नींद इत्यादि आते हैं।

2:: बाह्य प्रेरणा ==
अन्य नाम– अर्जित प्रेरणा , सामाजिक प्रेरणा , द्वितीयक प्रेरणा , मनोवैज्ञानिक प्रेरणा।

व्यक्ति को किसी दूसरे की इच्छा या प्रभाव के कारण किसी कार्य को करने की प्रेरणा मिलती है उसे बाह्य प्रेरणा कहते है। अतः बाहरी लोगों या समाज से हमारे वातावरण के द्वारा हमारे दिमाग से जो प्रेरणा आती है उसे बाह्य प्रेरणा कहते है। इसके अन्तर्गत स्वयं की रक्षा , जिज्ञासा , सामाजिकता , शौक इत्यादि आते हैं।

✍️स्किनर ➖ “” प्रेरणा , सीखने का एक राजमार्ग है। “”
✍️गुड ➖”” प्रेरणा कार्य को आरंभ करने , जारी रखने , नियमित रखने की प्रक्रिया को कहते है।””

✍️अभिप्रेरणा चक्र या पद ➖
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिको द्वारा अभिप्रेरणा चक्र का प्रतिपादन किया गया , जो निम्न प्रकार से है–
1:: आवश्यकता ➖
हमारी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने की प्रेरणा ही आवश्यकता है। आवश्यकता प्राणी में किसी कमी को दर्शाती है। वह शारीरिक जरूरतों जिससे हम जीवित रह सके । जैसे– भोजन , जल , वायु , नींद और मल मूत्र विसर्जन आदि।

2:: चालक ➖
आवश्यकता , चालक पर निर्भर करती है। अर्थात् वह शारीरिक अवस्था जो किसी आवश्यकता से उत्पन्न हुई हो। चालक , आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्राणी को क्रियाशील करते है। जैसे — भूख लगी है यह बात हम चालक द्वारा पता चलेगी और हम खाना चाहिए यह आवश्यकता ही बताएगा ।

3:: प्रोत्साहन ➖
प्रोत्साहन , चालक को शांत करता है। आवश्यकता , चालक को शांत करना स्टार्ट करती है और प्रोत्साहन , चालक को शांति के अंतिम चरण पर ले जाता है। प्रोत्साहन को उद्दीपन भी कह सकते है।

4:: प्रेरक➖
आवश्यकता , चालक और प्रोत्साहन से मिलकर प्रेरक हुआ है। यह अत्यंत व्यापक शब्द है ।
🙏🙏


☀ By (रश्मि सावले) ☀

🌹अभिप्रेरणा और अधिगम🌹
(Motivation & Learning) :-

हमारे किसी भी प्रकार का संवेग जिससे हम अभिप्रेरित होकर कुछ करना चाहते हैं जिससे हम अभिप्रेरित होते हैं हमारी अभिप्रेरणा है..
अभिप्रेरणा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Motum से हुई है जिसका अर्थ गति करना या act करना है…
अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है आन्तरिक और बाह्य..
आन्तरिक :– ये अभिप्रेरणा जन्मजात होती है ये आंतरिक रूप से आती है इसको हम आंतरिक प्रेरणा, व्यक्तिगत प्रेरणा, जैविक प्रेरणा, प्राथमिक प्रेरणा, या जन्मजात प्रेरणा भी कह सकते हैं ये हमारे शरीर की basic needs है जैसे भूख, प्यास, नींद, यौन करना, आराम करना, काम करना, गुस्सा प्रेम आदि ये सब हमारी प्राथमिक आवश्यकता है जिससे हमारे शरीर का संतुलन बना रहता है..

बाह्य अभिप्रेरणा:–इसको अर्जित प्रेरक कहा जा सकता है अर्थात हम बाहर से प्राप्त करते हैं इसको सामाजिक, मनोवैज्ञानिक या द्वितीयक प्रेरक भी कहा जाता है बाहरी सामाजिक वातावरण या दूसरों के अनुसार प्राप्त करते हैं यह बाह्य अभिप्रेरणा है जैसे सुरक्षा, जिज्ञासा, सामाजिकता, शौक आदि…
स्किनर के अनुसार :– अभिप्रेरणा सीखने का राजमार्ग है..
अर्थात जिससे हमें कुछ नया करने की राह प्रशस्त हो..
गुड के अनुसार:– अभिप्रेरणा किसी कार्य को आरंभ करना, जारी रखना, या नियमित रखने की प्रक्रिया हैं…

अभिप्रेरणा को चार पदों पर परिभाषित किया गया है
(1) आवश्यकता:– जो हमारे शरीर की प्राथमिक आवश्यकता हो और जिसकी पूर्ति नहीं होने पर शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है जैसे भोजन करना, नींद लेना, आराम करना आदि..
(2) चालक (Drive) :–जो हमारे शरीर को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है अर्थात आवश्यकता चालक पर निर्भर है यह आवश्यकता को निर्देशित करता है जैसे भूख ,प्यास आदि क्योंकि भूख लगने पर हम भोजन करते हैं…

(3) प्रोत्साहन (Incentives) :–जब आवश्यकता होती है तो वह चालक के कारण होती है और वह आवश्यकता की पूर्ति प्रोत्साहन करता है जैसे भूख लगने पर भोजन की प्राप्ति हो जाना ही
प्रोत्साहन है यह चालक को शांत कर देता है और भूख से प्रोत्साहन को शांत किया जा सकता हैं..

(4) प्रेरक (Motivater):–यह आवश्यकता, चालक, और प्रोत्साहन तीनों का योग है या मिश्रण है क्योंकि अभिप्रेरणा इन चारों पदो का योग है..

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


By- Rohit Vaishnav (RV) ✍️ अभिप्रेरणा (Motivation)

*अभिप्रेरणा शब्द को अंग्रेजी में मोटिवेशन कहते हैं।मोटिवेशन शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के मोटम शब्द से हुई है। जिसका अर्थ होता है गति करना।

👉अभिप्रेरणा की परिभाषाएं

स्किनर- प्रेरणा सीखने के लिए राजमार्ग है 🛣️

गुड – अभिप्रेरणा कार्य को आरंभ
करने , जारी रखने, नियंत्रित करने की प्रक्रिया है। 👉अभिप्रेरणा के सोपान

1 आवसक्ता- Need
प्रत्येक प्राणी की कुछ आधारभूत आवश्यकताएं होती हैं जैसे जल, वायु ,भोजन जिनके बिना जीवन संभव नहीं है यह हमारे शरीर की क्रियाशीलता कई प्रमुख अंग हैं।

उदाहरण- जब हमें भूख लगती है तो हमारे शरीर में तनाव उत्पन्न होता है जिसके कारण हम भोजन की खोज करने लगते है।

2 चालक – Drive
जब हमें किसी चीज की आवश्यकता महसूस होती है तो हम उसमें क्रियाशीलता दिखाने लगते हैं।

उदाहरण- जब हमें भूख लगती है तो हम पूजन ढूंढती हैं इसमें भूख लगना चालक है जिसकी वजह से ही हम क्रियाशीलता दिखाते हैं।

3 प्रोत्साहन- Incentive
आवश्यकता की पूर्ति होने पर चालक को शांत करने का कार्य प्रोत्साहन करता है

उदाहरण- जिस प्रकार हमें भूख लेनी थी और भोजन की प्राप्ति होने पर हमारी भूख शांत हो जाते हैं यहां भोजन प्रोत्साहन का कार्य कर रहा है।

4 प्रेरक – Motive
आवश्यकता, चालक, प्रोत्साहन तीनों का योग जी प्रेरक कहलाता है।


Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary
👇👇👇

🔆🔆 अभिप्रेरणा(motivation)🔆🔆
अभिप्रेरणा व्यक्ति में कार्य करने की प्रवृत्ति जाग्रत करना है जिससे एक या अधिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
▪️ अभिप्रेरणा कल्पना को क्रियाशील बनाती है। यह मानसिक शक्ति के गुप्त और अज्ञात स्रोतों को जाग्रत करती है।

🔷 अभिप्रेरणा का अर्थ ➖
अभिप्रेरणा अंग्रेजी शब्द motivation से बना है जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द motum से हुई है जिसका अर्थ है to move अर्थात कोई क्रिया करना।
🔷 अभिप्रेरणा की परिभाषाएं ➖
🔹 स्किनर ➖ अभिप्रेरणा अधिगम का श्रेष्ठतम राजमार्ग है।
🔹गुड ➖ अभिप्रेरणा किसी कार्य को जारी करने या नियमित करने की प्रक्रिया है।
🔹वुडवर्थ ➖ अभिप्रेरणा व्यक्ति की वह दशा है जो किसी निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।
👉 इस प्रकार अभिप्रेरणा सीखने का हृदय, सीखने का राजमार्ग, सीखने का मुख्य कारण और सीखने का प्रमुख साधन है।
🔷 अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है।
1️⃣ सकारात्मक या आन्तरिक अभिप्रेरणा ➖ ऐसी अभिप्रेरणा जो बालक में स्वतः जाग्रत होती है। इसमें बालक लक्ष्य के लिए कार्य नहीं करता अपितु अपने सुख के लिए कार्य करता है।
2️⃣ नकारात्मक या बाहृय अभिप्रेरणा ➖ इस अभिप्रेरणा की आवश्यकता तब होती है जब आन्तरिक अभिप्रेरणा कार्य नहीं करती है । इस प्रकार की अभिप्रेरणा में पुरस्कार,प्रसंन्शा, असफलता का भय, सफलता का ज्ञान,प्रतिद्वन्द्वता इस प्रकार की अभिप्रेरणा में व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करता है। पुरस्कार प्राप्त करने के लिए समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कार्य करता है।

🔷 प्रेरकों के प्रकार➖
1️⃣ आन्तरिक प्रेरक
व्यक्तिगत प्रेरक
जैविक प्रेरक
प्राथमिक प्रेरक
जन्मजात प्रेरक
➡️ भूख, प्यास,भय आदि
2️⃣ बाह्य प्रेरक
अर्जित प्रेरक
सामाजिक प्रेरक
मनौवैज्ञानिक प्रेरक
द्वितीयक प्रेरक
➡️ सुरक्षा, जिज्ञासा, सामाजिकता, शौक आदि।

🔷 अभिप्रेरणा के स्रोत ➖
1️⃣ आवश्यकता (need)➖ प्रत्येक मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। आवश्यकता यानी हमारे शरीर में किसी चीज की कमी होना जैसे ➖ भोजन की कमी, पानी की कमी आदि।
“Need is a some sort of deficiency in the body owing to which one feels tense”
2️⃣ चालक ➖ प्रत्येक आवश्यकता से जुड़ा एक चालक होता है। चालक उत्पन्न होने पर व्यक्ति क्रिया करने हेतु कार्यशील हो जाता है। भोजन की कमी से जुड़ा चालक भूख , पानी की कमी से जुड़ा चालक प्यास।
” Drive is an original source of energy that activities the human origanism”
3️⃣ प्रोत्साहन ➖ जिस चीज से हमारा चालक शान्त होता है उसे प्रोत्साहन या उद्दीपक कहा जाता है। जैसे प्यास लगने पर पानी पी कर प्यास बुझाना।
👉 आवश्यकता, चालक और उद्दीपक में घनिष्ठ संबंध है। आवश्यकताएं चालक को जन्म देती है। चालक एक तनावपूर्ण स्थिति है तथा व्यवहार को एक निश्चित दिशा और रूप प्रदान करती है। उद्दीपक द्वारा आवश्यकता की पूर्ति होती है। पूर्ति हो जाने पर चालक समाप्ति हो जाती है।
आवश्यकता ➡️ चालक ➡️ प्राणी में आन्तरिक तनाव या बाधाएं ➡️ उद्दीपक➡️ लक्ष्य प्राप्ति एवं समायोजन
4️⃣ प्रेरक ➖ आवश्यकता+चालक+प्रोत्साहन
Motive= need + drive + incentive
🌸🌸 Thanks 🌸🌸


वंदना शुक्ला द्वारा
🔅 Motivation and learning🔅
🔅 अभिप्रेरणा और अधिगम🔅

🔸जब हमें किसी भी कार्य को करने का बोध हो उसके पीछे की उत्तेजना को प्रेरणा कह सकते हैं क्योंकि उत्तेजना के अभाव में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया करना संभव नहीं है।

✳️अभिप्रेरणा के प्रकार

प्रेरणा के दो प्रकार होते हैं-

🌸1- आंतरिक प्रेरणा या,व्यक्तिगत प्रेरणा या, जैविक प्रेरणा ,प्राथमिक प्रेरणा, जन्मजात प्रेरणा – यह प्रेरणा दिल से आती है, इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है इसे करने में उसे सुख ,संतोष प्राप्त होता है जैसे -भूख ,प्यास ,नींद ,प्यार ,क्रोध।

🌸2- बाह्य प्रेरणा या,अर्जित प्रेरणा या,सामाजिक प्रेरणा, मनोवैज्ञानिक प्रेरणा, द्वितीयक प्रेरणा- इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी इच्छा से ना करके किसी दूसरे की इच्छा या बाहरी प्रभाव से करता है इस कार्य को करने में उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है ,यह प्रेरणा दिमाग से आती है, यह प्रेरणा हम बाहर से ग्रहण करते हैं, समाज से ग्रहण करते हैं, जैसे सुरक्षा, जिज्ञासा, सामाजिकता, शौक , रुचि।

🔸 स्किनर -प्रेरणा सीखने का राजमार्ग है।

🔸 गुड के अनुसार प्रेरणा कार्य को आरंभ करने जारी रखने एवं नियमित रखने की प्रक्रिया है।

🔸 प्रेरणा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

🔸 प्रेरणा अंग्रेजी शब्द मोटिवेशन के समानार्थी के रूप में है। अंग्रेजी में मोटिवेशन लैटिन भाषा के Motum शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है गति करना, निरंतर चलते रहना, मूव करना, कुछ act करना।

🔸 प्रेरणा के 4 स्रोत हैं-

🌸1-आवश्यकता -आवश्यकता वह चीज है जिसके बगैर हमारा शरीर ठीक से कार्य नहीं करेगा ,शरीर की आवश्यकताएं हैं भोजन , नींद, प्यास जिससे हम जिंदा रह सके ,आवश्यकता के ना पूरा होने पर मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ सकता है, आवश्यकता पूरी नहीं होती तो मनुष्य के शरीर में तनाव उत्पन्न होता है।

🌸2-चालक- हर आवश्यकता से जुड़ा एक चालक होता है जैसे भूख लगी है तो खाने की आवश्यकता है तो भूख चालक है और खाना आवश्यकता है, आवश्यकता चालक पर डिपेंड करता है।

🌸3- प्रोत्साहन भूख लगी है तो आवश्यकता भोजन, पूर्ति खाना आया और खाना खाना प्रोत्साहन।
प्रोत्साहन पूर्ति करता है चालक को शांत करता है और आवश्यकता चालक से जुड़ी है तीनों का आपस में घनिष्ठ संबंध है । चालक है तो आवश्यकता होगी और आवश्यकता है तो प्रोत्साहन की जरूरत होती है।

🌸4-प्रेरक – तीनों को मिलाकर जो बना है वह प्रेरक है। प्रेरक= आवश्यकता+ चालक+ प्रोत्साहन।

धन्यवाद


Det.5/9/2020 – nots by – shanu sanwle
✏️ अभिप्रेरणा और अधिगम
Motivation & learning
✏️ अभिप्रेरणा -motivation
Motivation – लेकिन भाषा के motum शब्द से बना हैं।
✏️ अभिप्रेरणा मतलब कुछ गति करना
✏️ अभिप्रेरणा हमारी एक आंतरिक शक्ति हैं ।
जैसे – भूख ,प्यास , नींद ,गुस्सा ,क्रोध,योन, प्यार, स्नेह ,काम,आराम करना, मल मूत्र त्याग ,ये सब हमारी आंतरिक प्रेरणा हैं।
✏️अभिप्रेरणा के दो प्रकार है।
1️⃣ आंतरिक प्रेरणा
2️⃣ बाह्य प्रेरणा
✏️ आंतरिक प्रेरणा के प्रकार
1️⃣ आंतरिक प्रेरणा
2️⃣ व्यक्तिगत प्रेरणा
3️⃣ जैविक प्रेरणा
4️⃣ प्राथमिक प्रेरणा
5️⃣ जन्मजात प्रेरणा
✏️ बाह्य प्रेरणा के प्रकार
1️⃣ अर्जित प्रेरणा
2️⃣ सामाजिक प्रेरणा
3️⃣ मनोवैज्ञानिक प्रेरणा
4️⃣ द्वितीय प्रेरणा
5️⃣ जिज्ञासा, सुरक्षा,शौक, आदि हमारे बाह्य प्रेरक हैं । जैसे – बच्चे को भूख नहि लगी ,समोसे देख कर बच्चा चिल्लाने लगता हैं भूख लगी ,भूख लगी समोसे दिला दो पापा । ये बाह्य प्रेरक हैं।
✏️ 🔸 स्किनर के अनुसार -प्रेरणा सिखने का राजमार्ग हैं।
✏️🔸 गुड के अनुसार- प्रेरणा ,कार्य को आरम्भ करना , जारी रखना, नियमित करने की प्रेक्रिया हैं।
✏️ अभिप्रेरणा motivation
1 आवश्यकता
2 चालक
3 प्रोत्साहन
4 प्रेरक
1️⃣ आवश्यकता – जो हमारी शारीरिक जरूरत हैं
जैसे- भूख,प्यास, नींद आदि ।
2️⃣ चालक – जो आवश्यकता को चालतीहैं
जैसे- भूख चालक है , खाना ,खाना हमारी आवश्यकता है
3️⃣ प्रोत्साहन – जब हमें आवश्यकता होती तो वह चालक के कारण होती है और उस आवश्यकता की पूर्ती करना प्रोत्साहन हैं
जैसे- चालक ने कहा प्रयास लगी, पानी पिना आवश्यकता है , प्यास शांत हुई प्रोत्साहन हैं।
4️⃣ प्रेरक – आवश्यकता+ चालक+ प्रोत्साहन ,
तीनो का योग हैं ।
Shanu sanwle – mp tet student

Nature and characteristics of Emotions

🌺By रश्मि सावले🌺

संवेग की प्रकृति या विशेषताएं ( Nature and characteristics of emotions) :– (1) संवेग से संज्ञानात्मक विकास का पता चलता है …. (2) संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है लेकिन इसकी प्रबलता प्रत्येक व्यक्ति में अलग अलग होती है (3 ) संवेग के कारण शारीरिक बदलाव आते हैं ये परिवर्तन दो प्रकार से होते हैं (१) आंतरिक परिवर्तन :– सांस बढना , धड़कन तेज चलना, चिंता होना, पाचन क्रिया में बदलाव आदि…. (२) बाहरी परिवर्तन :– आवाज में परिवर्तन, चेहरे के भाव परिवर्तन आदि | (4) संवेग में हम सामान्य स्थिति में नहीं रहतें है उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता विचार प्रक्रिया लुप्त हो जाती है | . . ( 5 ) मूल प्रवृत्ति से संबंध अर्थात संवेग मूल प्रवृत्ति का आधार है | …( 6 ) संवेग से वैयक्तिकता (स्वभाव ,अवस्था, परिस्थिति) आती है | संवेग अस्थिर होता है चिंतन ,सोच, अभिवृत्ति पर निर्भर होता है क्रोध खुशी सब कुछ तत्कालिक होता है… (8) संवेग क्रियात्मक क्षेत्र को रखते हुए कार्य करता है सदैव कार्यात्मक या क्रियात्मक प्रवृत्ति पर कार्य करता है | 🌺🌺 ….


✍️BY➖ Anamika Rathore

==संवेग की प्रकृति और विशेताएं==

✍️संवेग में पाई जाने वाली प्रकृति और विशेषताएं निम्न है–
1: संवेग से संज्ञानात्मक विकास➖
हर व्यक्ति में संवेग के साथ संज्ञान भी होता है। हर संवेग का संज्ञानात्मक से संबंध होता है। व्यक्ति की बुद्धि और विवेक से निकल कर संवेग आता है जो उसके संज्ञान से जुड़ा होता है।

2: संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है ➖
संवेग का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत होता है। सभी प्राणियों में संवेग पाया जाता है, परन्तु किसी व्यक्ति में कम और किसी में ज्यादा होता है ।
3:संवेग से शारीरिक परिवर्तन ➖
व्यक्ति के संवेग के प्रभाव के कारण शारीरिक परिवर्तन भी होते हैं । यह परिवर्तन आंतरिक और बाह्य दोनों होते है।
जैसे – आंतरिक के अन्तर्गत सांस फूलने, धड़कन का तेज होना , पाचन क्रिया पर प्रभाव और सरदर्द का होना आदि ।
बाह्य के अन्तर्गत आवाज का बदलना, पसीना आना, हावभाव में परिवर्तन आदि ।

4: सामान्य स्तिथि ➖
संवेग की स्तिथि अलग अलग जगह पर अलग अलग होती है। जैसे- क्रोध आने पर व्यक्ति को उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता है। सकारात्मक विचार लुप्त हो जाते हैं। सोचने समझने की क्षमता कम हो जाती है।
बहुत ज्यादा खुशी में भी व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है।
5: मूल प्रवृत्ति से संबंध ➖
मूल प्रवृत्ति और संवेग एक दूसरे से जुड़े है। जहां संवेग होगा वहां पर मूल प्रवृत्ति भी अवश्य होगी। मूल प्रवृत्ति, आधार है और संवेग, उसका भाव है।
6: वैयक्तिकता ➖
व्यक्ति के स्वभाव, अवस्था, परिस्थिति के अनुसार संवेग , वैयक्तिकता के रूप में निकलता है।

7: अस्थिरता ➖
संवेग , व्यक्ति में स्थिर नहीं होता है, अर्थात् ज्यादा समय के लिए नहीं होता है। व्यक्ति के अंदर क्रोध या बहुत ज्यादा खुशी तात्कालिक होती है। लंबे समय तक दिमाग में किसी बात का रहना व्यक्ति की सोच, अभिवृति या चिंतन बन जाता हैं।
8: क्रियात्मकता ➖
संवेग कार्यात्मक या क्रियात्मक प्रवृत्ति पर कार्य करता है। व्यक्ति के एक्शन के अकॉर्डिंग संवेग होता है। ✍️


🌼 संवेग की प्रकृति और विशेषता 🌼
➡️व्यक्ति के संवेग से उसकी संज्ञानात्मक विकास को समझ सकते हैं। क्योंकि उसके व्यवहार मे उसकी प्रकृति का पता चल जाता है।
➡️संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक हैं। सभी प्राणियो मे संवेग पाये जाते हैं। सब मे संवेग का प्रभाव अलग अलग होती हैं।
➡️संवेग से शारीरिक परिवर्तन होते हैं। ये शारीरिक परिवर्तन दो प्रकार से हो सकते हैं -आन्तरिक और बाह्य
आन्तरिक परिवर्तन मे श्वास प्रक्रिया, धडकन ,पाचन क्रिया तेज गति से होती है।
बाह्य परिवर्तन मे आवाज मे परिवर्तन हो जाता है, चेहरे के हाव भाव बदल जाते हैं।
सामान्य स्थिति मे नहीं रहते हैं।
उचित -अनुचित का ज्ञान नहीं रहता है।
विचार प्रक्रिया लुप्त सी हो जाती है।
➡️संवेग का प्रदर्शन मूल प्रवृति के आधार पर होता है जैसे हमारी मूल प्रवृति भागने की है तो वहा हमे भय का संवेग उत्पन्न होगा।

➡️संवेग पर वैयक्तिकता का प्रभाव पडता है। अलग अलग व्यक्तियों के अलग अलग परिस्थिति मे उनके स्वभाव, अवस्था के अनुसार संवेग प्रदर्शित होते हैं।
➡️संवेग अस्थिर होता है अर्थात् यह ज्यादातर समय तक नहीं रहता है जैसे क्रोध, खुशी ज्यादा समय तक नहीं रहता है ।यह क्षणिक होता है। ज्यादा समय रहने पर यह हमारी चिंतन, सोच के रूप परिवर्तित हो जाता है ।
➡️संवेग क्रियात्मक प्रवृत्ति का होता है। मतलब संवेग आने पर हम कुछ न कुछ क्रिया करेगे।

Notes by – रवि कुशवाह


संवेग की विशेषतायें एवं प्रकृति
1)संवेग एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया हैं ।
2) संवेग एक व्यापक प्रक्रिया हैं ।
3)संवेग के कारण विचार लुप्त हो जाता है ।
4)संवेग के कारण शारीरिक और मानसिक परिवरतन होता हैं यह आंतरिक और बाह्य दोनो तरीके से होता हैं जैसे गुस्से मे धड़कन का तेज हो जाना, सांस फूलना,अवाज बदल जाना आदि ।
5)संवेग का मुल्पृवतीयो से भी संबंध होता हैं ।जैसे किसी चीज से भय हुआ तो इन्सान पलायन कर जाता है ।
6) वैयक्तिक भिन्नता भी संवेग मे पाई जाती हैं जैसे प्रतेक बच्चा मे अलग अलग तरह के संवेग होते है ।उनके स्वभाव,अवस्था आदि अलग अलग होते हैं ।
7) संवेग आस्थिर होता हैं कभी कम कभी ज्यादा कभी छड़ भगुर होता हैं संवेग । यह चिंतन,,सोच अभिव्रती पर निर्भित होता है ।
8)संवेग क्रियात्मक प्रव्रति का होता हैं।
9) संवेग मे विवेकशक्ति का विलोपन हो जाता है ।
10)संवेग की मात्रा आनिश्चीत होती है।
11)संवेग सकारत्मक और नकरात्मक दोनो तरीके से होता है।
12)संवेग मे परिवर्तनशिल होता है।
13) सामान्य स्थिति- संवेग की स्थिति अलग अलग जगह पर अलग अलग होती है जैसे गुस्से पर ऐसे😡 😡😠खुशी पर ऐसे 😁😄🤗 प्यार पर ऐसे🥰😍😘 शर्ममाने पर ऐसे🙈🙈और आश्चर्य पर ऐसे🙀🙀😳
🖋 मालती साहू 🖋


✍🏻manisha gupta ✍🏻 संवेग की प्रकृति एवं विशेषताएं:- 🗼(1) किसी के संवेग से हम संज्ञानात्मक विकास को समझ सकते हैं➖ किसी व्यक्ति के प्रकृति व्यवहार के स्वभाव को देखकर उसके मानसिकता या संज्ञान को समझ सकते हैं । संवेगात्मक विकास संज्ञानात्मक विकास पर पूर्ण रूप से निर्भर होता है। संज्ञान अर्थात हमारी बुद्धि या विवेक से निकलकर ही संवेग आती है। 🗼(2):- संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है➖ सभी प्राणियों में अलग-अलग प्रकार के संवेग पाए जाते हैं किसी में कम यह किसी में ज्यादा संवेग पाया जाता है किसी के समय की जानकारी उस स्तर तक ही हम कर पाते हैं जिस स्तर तक हम सोचते हैं ।संवेग का क्षेत्र तो व्यापक होता है लेकिन इसकी प्रबलता हर व्यक्ति में अलग अलग होती है। 🗼(3):- संवेग से शारीरिक परिवर्तन➖ प्रत्येक व्यक्ति में संवेग के प्रभाव के कारण शारीरिक परिवर्तन भी होते हैं यह परिवर्तन आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार से हो सकते हैं आंतरिक परिवर्तन अर्थात (सांस तेज होना, धड़कन बढ़ना, सिर दर्द होना और पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है) बाह्य परिवर्तन अर्थात( आवाज में परिवर्तन ,चेहरे का हाव भाव,रोना) जिंदगी में एक व्यक्ति को (balance) संतुलन बना कर रखना चाहिए या एक सीमा तक ही कोई संवेग करना चाहिए। 🗼🗼(4):- संवेग में सामान्य स्थिति➖व्यक्ति संवेग में सामान्य स्थिति में नहीं रहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को उचित या अनुचित का ज्ञान नहीं रहता है ,विचार प्रक्रिया लुप्त सी हो जाती है, किसी व्यक्ति का सामान्य स्थिति में रहना जरूरी होता है, बहुत ज्यादा गुस्सा थी कुछ गलत करवा जाता है और बहुत ज्यादा खुशी में भी हमारी सोचने समझने की क्षमता छीण हो जाती है। 🗼(5):- मूल प्रवृत्तियों से संबंध➖ संवेगो का संबंध मूल प्रवृत्तियों से होता है प्रत्येक संवेग अपने मूल प्रवृत्ति से जुड़ा हुआ है जैसे जिज्ञासा से आश्चर्य होगा, आत्म गौरव से श्रेष्ठता की भावना उत्पन्न होगी ,स्वामित्व की भावना से संचय प्रकृति होगा। 🗼(6):-वैयक्तिकता ➖ संवेग की प्रकृति व्यक्तिगत होती है प्रत्येक व्यक्ति में परिसि्खति के आधार पर ही संवेग अलग-अलग होते हैं और अलग-अलग व्यक्तियों में भी स्थितियों ,स्वभाव ,अवस्था के आधार पर ही संवेग अलग-अलग होते हैं सामान्य शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि व्यक्ति का स्वभाव ,अवस्था, परिस्थिति संवेग पर निर्भर करता है। 🗼(7)➖संवेग अस्थिर होता है- कोई भी संवेग व्यक्ति में कुछ ही पल के लिए होता है जैसे क्रोध खुशी तत्कालिक ही होते हैं संवेग में व्यक्ति स्थिर नहीं होता है ।यदि कोई संवेग लंबे समय तक दिमाग में रह जाता है तो वह व्यक्ति की सोच या अभिवृत्ति या चिंतन बन जाती है । 🗼(8)क्रियात्मकता➖संवेग क्रियात्मक प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर ही काम करता है इसमें कुछ ना कुछ एक्शन होता ही रहता है व्यक्ति के एक्शन के आधार पर ही संदेश क्रियात्मक प्रकृति को ध्यान रखते हुये कार्य करता है।✍️✍️


💫Notes by :- Neha Kumari

📚 की प्रकृति एवं विशेषताएं( Nature & characteristic of emotions) :-

📚संवेग से होनेवाली अनेक प्रकार की परिवर्तन और उसकी विशेषताएं :-

📚संवेग के अन्तर्गत संज्ञानात्मक विकास :- हर एक व्यक्ति में संवेग तथा संज्ञान दोनों विद्यमान होता है, ये परस्पर रूप से एक – दूसरे से जुड़े हुए होते हैं,क्योंकि हमारी बुद्धि और विवेक से संवेग निकलकर आती है, जो कि संज्ञान से जुड़ा हुआ है। अंततः संवेग एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है।

📚संवेग का क्षेत्र बहुत ही व्यापक होता है :- संवेग प्रत्येक व्यक्ति में पाया जाता है,परंतु किसी में ज्यादा किसी में कम।

📚संवेग परिवर्तनशील होता है।इस से अनेक प्रकार की शारीरिक,मनोवैज्ञानिक,आंतरिक और बाह्य तथा अन्य प्रकार के परिवर्तन भी होते हैं,जैसे कि :-
▪️आंतरिक परिवर्तन के अन्तर्गत :- सांस का फूलना,धड़कने तेज हो जाना,सिरदर्द होना तथा पाचन क्रिया पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
बाह्य परिवर्तन के अन्तर्गत :- आवाज का बदलना मतलब खूब कर्कश आवाज में आंखे घुर -२ कर बोलना🙄 पसीना आना, गुस्से में कोई चीज तोड़ – फोड़ करना,किसी से मार – पिट कर लेना,हावभाव में परिवर्तन तथा चिड़चिड़ापन आदि।

📚संवेग का हमारे वैयक्तिकता से संबंध :- इसमें व्यक्ति के परिस्थिति,स्वभाव और अवस्था के अनुसार संवेग में परिवर्तनशीलता आती है, जो हमारे वैयक्तिकता के रूप में प्रदर्शित होती है।

📚संवेग में अस्थिरता :- संवेग,एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी भी व्यक्ति विशेष में स्थिर नहीं रहती,हमेशा बदलती रहती है।जैसे कि :- किसी चीज को लेकर,कोई भी झगड़ा – लड़ाई इत्यादि से पल में गुस्सा और कुछ ही पलों में स्वयं ही तात्कालिक खुशी/ आंनद की अनुभूति आ जाना। ये अच्छी बात भी है क्योंकि,ज्यादा समय तक व्यक्ति का किसी तनाव,चिंता या क्रोध में होना भी अत्यंत हानिकारक होता है।

📚सामान्य स्थिति में संवेग :- संवेग अनेक प्रकार के होते हैं,तथा सबकी स्थिति अलग – अलग होती है।जैस की :- जब हम क्रोध आती है तो उचित – अनुचित का ज्ञान नहीं रह जाता, हम क्रोध में कुछ भी के जाते हैं लेकिन बाद में पछतावा होने लगी गई कि यार,मैंने ऐसा क्यों किया?? ये नहीं करना चाहिए था? कुछ भी…. जैसे अनेक प्रकार के ख्याल।

📚संवेग का मूल प्रवृत्ति से संबंध :- मूल प्रवृत्ति और संवेग एक – दूसरे से जुड़े हुए है,बोले तो सगे भाई जैसे होते हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा।इसलिए जहां संवेग होती वहां मूल प्रवृत्ति भी अवश्य होगी।क्योंकि संवेग ही मूल प्रवृत्तियां का आधार है,उनका भाव है।

💫 ये ज्ञात होता है कि संवेग के बिना जीवन में कुछ भी संभव नहीं है। जीवन के हर एक परिस्थिति,हर एक पहलू पर संवेग का महत्वपूर्ण स्थान जुड़ा हुए है क्योंकि संवेग के द्वारा ही हम अपने अनुभूति और संवेदनाओं की प्रकट कर पाते हैं।

धन्यवाद्👏


✍🏻Notes By – Vaishali Mishra

“संवेग की प्रकृति एवम् विशेषताएं” (Nature and characteristics of emotion)➖
▪️1) संवेग की मदद से या उसकी प्रकृति से हम संज्ञानात्मक विकास को समझ सकते है।
” संवेग के द्वारा हम किसी व्यक्ति के स्वभाव, मस्तिष्क बुद्धि, उसकी सोच या विचार, व्यवहार के बारे में पता कर सकते हैं।
▪️2) संवेग जा क्षेत्र बहुत ही व्यापक होता है। और यह सभी जीवित प्राणियों में पाया जाता है।

  • संवेग का प्रभाव ओर उसकी प्रबलता सभी में अलग अलग रूप से होती है।शिक्षण कार्य हेतु एक शिक्षक को भी बच्चे के संवेग को ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य सम्पन्न करना चाहिए।
    ▪️3)संवेग के कारण हमारे शरीर में कई शारीरिक परिवर्तन होते है जो बाहरी और आंतरिक दोनों रूपों में नजर आते है।
  • आंतरिक रूप से परिवर्तन में हमारे शरीर की कई अंत: क्रियाएं जैसे सांस जोर से चलना , धड़कन तेज होना , पाचन क्रिया प्रभावित होना,सिरदर्द जैसी आदि क्रियाएं होने लगती है।
  • बाहरी रूप से परिवर्तन में आवाज तेज होना, चेहरे के हाव भाव बदलना, आंखे लाल हो जाना जैसी कई सारी क्रियाएं देखते है
    ▪️4)जब भी हमारे संवेग सामने आते है तब हम सामान्य स्थिति में नहीं रहते है,हमारे अंदर उचित और अनुचित का ज्ञान भी खत्म हो जाता हैं, और हमारे विचार उस संवेग के प्रति ,लुप्त हो जाते है।या हमारे अंदर कोई सकारात्मक विचार नहीं आ पाते है।
    ▪️5) संवेग मूल प्रवृति से ही संबंधित है या इसी से जुड़ा हुआ है दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते है मूल प्रवृति संवेग का ही आधार है।
    ▪️6) संवेग व्यक्तिकता के रूप में होते है हर व्यक्ति में अलग अलग परिस्थिति के अनुसार अलग अलग प्रकार के संवेग आते है।
    हम अपने स्वभाव, अवस्था और परिस्थिति के आधार पर ही संवेग को व्यक्तित्वता के रूप में प्रदर्शित करते है
    ▪️6) संवेग अस्थिर होते हैं। जैसे कि खुशी , क्रोध आदि संवेग तात्कालिक होते है जो बदलते रहते है।
    संवेग वहीं होते है जो हमारे मस्तिष्क में चिंतन ,सोच और अभिवृद्धि से आते है।
    ▪️7) संवेग क्रियात्मक होते है।
    संवेग हमेशा कार्यात्मक प्रवृति पर कार्य करते है।जब हम किसी कार्य को करते है या उस कार्य के लिए कोई क्रिया करते है तो हमारे अंदर संवेग भी आ जाते है।

Note by ➖पूर्वी
संवेग {Emotion} ➖
संवेग (emotion) लैटिन भाषा के शब्द “Emovere” से बना है जिसका अर्थ होता है उत्तेजना, हल चल या उथल-पुथल.
संज्ञान ➖
संवेग हमारे संज्ञान पर आधारित होता है संज्ञान के बिना हम संवेग को प्रदर्शित नहीं कर सकते संज्ञान हमारी मानसिक क्रियाएं, शक्ति, बुद्धि, तर्क, संवेदना के कारण उत्पन्न होता है |
मूल प्रवृत्ति ➖
जो हमारा वास्तविक व्यव्हार होता है यह सबके अंदर होती है संवेग जो हम दिखाते है (represent)करते है.
वुडवर्थ➖”संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है |”
क्रो & क्रो ➖”संवेग वह भावनात्मक अनुभूति (emotional feeling) है जो किसी व्यक्ति की मानसिक /शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है आंतरिक समायोजन के साथ भी जुड़ी होती है|(जो हमारे अंदर की प्रवृत्ति है) जो अभिव्यक्ति द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है |
मैक्डूगल के अनुसार –
संवेग की मूल प्रवृत्ति 14 प्रकार की होती हैं|
1- पलायन (escape) ➖भय (fear)
2- युयुत्सा (cambat) ➖क्रोध (anger)
3- निवृत्ति (repulsion) ➖घृणा (disgust)
4- जिज्ञासा (curiosity) ➖आश्चर्य (wonder)
5- शिशु रक्षा (parental) ➖ वात्सल्य (love)
6- शरणागति (apeal ) ➖ विषाद (distress)
7- रचनात्मक (construction) ➖संरचनात्मक भावना (feeling of construction)
8- संचय प्रवृत्ति (acquisition) ➖स्वामित्व की भावना (ownership)
9- सामुहिकता (gregariousness ➖एकाकीपन (loneliness)
10- काम (sex) ➖कामुक्ता (lust)
11- आत्मगौरव (self asseration) ➖श्रेष्ठता की भावना (positive self feeling)
12- दैन्य (submission) ➖आत्महीनता (negetive self feeling)
13- भोजन अन्वेषण (food seeking) ➖भूख (appetite)
14- हास्य (laughter) ➖आमोद (amusement).

संवेग की प्रकृति और विशेषता ➖
➖संवेग से संज्ञानात्मक विकास – संवेग से ही संज्ञानात्मक विकास होता है जो हमारे अंदर अलग अलग रूप में दिखाई देता है |
➖संवेगात्मक और संज्ञानात्मक एक दूसरे पर निर्भर होते हैं जो व्यक्ति की बुद्धि, तर्क, अभिवृत्ति से सामने आता है |
➖ संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है जो कि यह सभी प्राणियों में पाया जाता है लेकिन यह हर एक व्यक्ति में एक समान नहीं होता है किसी में कम किसी में ज्यादा होता है |
➖संवेग से शारीरिक परिवर्तन – संवेग के कारण व्यक्ति में शारीरिक परिवर्तन भी होता है यह बदलाव आंतरिक और बाह्य दोनों ही रूप में होता है।
आंतरिक परिवर्तन – साँस फूलना, धड़कन तेज होना,सिर दर्द होना, पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है।
बाह्य परिवर्तन – आवाज बदलना, चहरे का हाव भाव बदलना, पसीना आना बाहरी परिवर्तन है।
➖समान्य स्तिथि – संवेग की समान्य स्तिथि में उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता है विचार प्रक्रिया लुप्त हो जाती है।
➖संवेग का मूल प्रवृत्ति से सम्बंध – व्यक्ति के हर संवेग मूल प्रवृत्ति से जुड़े होते हैं। मूल प्रवृत्ति संवेग का आधार है मूल प्रवृत्ति के बिना कोई भी संवेग सम्भव ही नहीं है।
➖वैयक्तिकता – हर व्यक्ति में अपना अलग -अलग स्वभाव, अवस्था, परिस्थित होती है। यह स्वभाव व्यक्ति के संवेग से उत्पन्न होती है।
➖संवेग अस्थिर होता है यह तात्कालिक रूप से आता है जेसे कि व्यक्ति खुश होता है कभी गुस्सा भी होता है यह व्यक्ति की परिस्थिति पर निर्भर होता है।
➖क्रियात्मक प्रवृत्ति व्यक्ति के कार्य करने पर निर्भर होता है जेसे आश्चर्य होना यह व्यक्ति के संवेग के आने से क्रिया होती है।
धन्यवाद 😊


वंदना शुक्ला- द्वारा
✳️Nature and characteristics of emotions✳️
✳️ संवेग की प्रकृति एवं विशेषताएं✳️

1🔸 संवेग से संज्ञानात्मक विकास का पता चलता है संवेगात्मक अनुभव किसी मूल प्रवृत्ति से या उत्तेजना से जुड़े होते हैं बच्चे में उम्र के अनुसार मूल प्रवृत्ति बढ़ती रहती है और मूल प्रवृत्ति के बढ़ने से संवेग में बढ़ोतरी होती है छोटे बच्चों में हर्ष स्नेह ईर्ष्या उत्सुकता यह संवेग पाए जाते हैं और किशोरों में डर क्रोध ईर्ष्या हर्ष जिज्ञासा चिंता दुख संवेग पाए जाते हैं।
2🔸संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है सभी प्रकार के प्राणियों में अलग-अलग प्रकार के संवेग पाए जाते हैं संवेग सभी में उपस्थित होते हैं पर किसी में तीव्रता से प्रदर्शित होते हैं और किसी में धीमी गति से प्रदर्शित होते हैं।

3🔸संवेग से शारीरिक परिवर्तन संवेग से 2 तरह के शारीरिक परिवर्तन होते हैं 1 बाहरी शारीरिक परिवर्तन एवं 2आंतरिक शारीरिक परिवर्तन
1 बाहरी शारीरिक परिवर्तन मे शरीर का हाव-भाव बदल जाता है क्रोध में तौरियां चढ़ जाती हैं सुख होने पर चेहरा दमकने लगता है 2 आंतरिक शारीरिक परिवर्तन सांसे तेज, धड़कन बढ़ जाना, सिरदर्द ,पाचन क्रिया में प्रभाव।

4🔸सामान्य स्थिति -उचित अनुचित का ज्ञान नहीं रहता विचार करने की प्रक्रिया लुप्त सी हो जाती है।
5🔸 मूल प्रवृत्तियों से संबंध- संवेगो का मूल संबंध मूल प्रवृत्तियों से सीधा होता है प्रत्येक संवेग अपने मूल प्रवृत्ति के साथ होता है जैसे मूल प्रवृत्ति पलायन से भय संवेग का उत्पन्न होना
, जिज्ञासा से आश्चर्य संवेग का प्रकट होना
6🔸 व्यकि्तकता- संवेग से व्यक्ति के स्वभाव का उसकी स्थिति और मूल प्रवृत्ति का पता चलता है।
7🔸अस्थिरता- संवेग किसी भी व्यक्ति में स्थिर नहीं होता है यह अस्थिर होता है परिस्थिति के अनुसार आता है और थोड़ी देर बाद चला जाता है।

8🔸 क्रियात्मक -संवेग व्यक्ति के क्रियात्मकता के अनुसार होता है जैसा उसका कार्य होगा संवेग उससे प्रभावित होगा।

धन्यवाद


😰संवेग की प्रकृति और उसकी विशेषताएं 🙄1- संवेग से संज्ञानात्मक विकास का संबंध का पता चलता है 2-संवेग का क्षेत्र बहुत व्यापक है संवेग सभी प्राणियों में पाई जाती है
3-संवेग शारीरिक रूप से भी बदलते हैं यह दो तरह के होते हैं
A, आंतरिक 💚 इसमें व्यक्ति का जल्दी जल्दी सांस लेना, पाचन क्रिया प्रभावित होना, धड़कन तेज होना, body temprature बढ़ जाता है
B बाह्य👁️ आंख लाल होना
😍 चेहरे का भाव बदल जाना
आवाज भारी हो जाना
4-संवेग सामान्य स्थिति में उचित या अनुचित का ज्ञान नहीं रहता है
इस समय किसी प्रकार का निर्णय ले लेना या किसी को कुछ भी बोल देना
5-हर संवेग अपने मूल प्रवृत्ति से जुड़ी होती है
6 -संवेग Individuality (व्यक्तिक) हर किसी में अलग अलग होती है
7-संवेग स्थिर नहीं रहता यह हमेशा चिंतन, सोच,मैं बदल जाता है
Notes by ehtasham raj 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

Emotion

संवेग : –
【Emotion】
★ संवेग शब्द का शाब्दिक अर्थ उत्तेजना है ।
★ व्यक्ति की उत्तेजित अवस्था को संवेग कहते हैं ।
★ संवेग की संख्या 14 है ।
● भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, वात्सल्य, कष्ट, कामुकता,
आत्मविभान, अधीनता, एकांकीपन, भूख, अधिकार, कृति, आमोद
★ संवेग और मूल प्रवृत्ति एक दूसरे के पूरक हैं ।
★ संवेग दो प्रकार के होते हैं ।

  1. सकारात्मक संवेग
  2. नकारात्मक संवेग

■ सकारात्मक संवेग

  1. कृति भाव
  2. आश्चर्य
  3. वात्सल्यता
  4. करूणा
  5. आमोद
  6. आत्माभिमान
  7. अधिकार भावना

■ नकारात्मक संवेग :

  1. क्रोध
    2.घृणा
    3.भय
  2. आत्महीनता
  3. एकांकीपन
  4. भूख
  5. कामुकता मूल प्रवृत्ति :-
    【Basic nature】
    ★ मूल प्रवृत्ति शब्द का शाब्दिक अर्थ मुख्य आदत है ।
    ★ ऐसी प्रवृत्ति जो जन्मजात या अनुवांशिकता में पायी जाती है उसे मूल प्रवृत्ति कहते हैं ।
    ★ ” किसी कार्य को करने का बिना सीखा हुआ स्वरूप मूल प्रवृत्ति है ” …. वुडवर्थ
    ★ ” मूल प्रवृत्ति अपने मूल अर्थ में पशु उद्वेग है ” …. जेम्स ड्रेवर
    ★ ” मूल प्रवृत्ति जन्मजात मनो शारीरिक प्रेरक है ” ….. मैक्डूगल
    ★ मूल प्रवृत्ति वह जन्मजात प्रवृत्ति है जो किसी जैविक प्रयोजन को निश्चित तरीके से किया करके पूरा करती है ” ….. वैलेन्टाइन
    ★ मूल प्रवृत्ति के जनक मैक्डूगल हैं ।
    ★ जेम्स ड्रेवर , थार्नडाईक , वुडवर्थ ने भी मूल प्रवृत्ति को परिभाषित किया है ।
    ★ मूल प्रवृत्तियों की संख्या 14 है ।
    ● पलायन , युयुत्सा, निवृत्ति, पैतृक प्रवृत्ति, संवेदना, जिज्ञासा, काम भावना, आत्म स्थापना, दैन्य, सामूहिकता, भोजनान्चेषण, संचय, रचना, हास्य

■ सकारात्मक या धनात्मक मूल प्रवृत्ति : – इनकी संख्या 7 है ।

  1. संतान कामना
  2. सृजनात्मकता
  3. संग्रह प्रवृत्ति
  4. आत्मस्थापना
  5. जिज्ञासा
  6. शरणागति
    7.हास्य

■ नकारात्मक या ऋणात्मक मूल प्रवृत्ति : – इनकी संख्या 7 है ।

  1. सामूहिकता
  2. युयुत्सा
  3. निवृत्ति
    4.पलायन
  4. काम प्रवृत्ति
    6 दैन्य भाव
    7 भोजनान्वेषण

★ प्रत्येक मूल प्रवृत्ति का संबंध संवेग से होता है। –
मूल प्रवृत्ति संवेग

  1. पलायन – भय
  2. युयुत्सा – क्रोध
  3. निवृत्ति – घृणा
  4. पैतृक प्रवृत्ति – वात्सल्य
  5. संवेदना – कष्ट
  6. जिज्ञासा – आश्चर्य
  7. काम भावना – कामुकता
  8. आत्म स्थापना – आत्मभिमान
  9. दैन्य – अधीनता की भावना
  10. सामूहिकता – एकांकीपन
  11. भोजनान्चेषण – भूख
  12. संचय – अधिकार की भावना
  13. रचना – कृति भाव
  14. हास्य – आमोद

✍️ 🇧 🇾 – ᴊᵃʸ ᴘʳᵃᵏᵃˢʰ ᴍᵃᵘʳʸᵃ


संवेग- अंग्रेजी भाषा के इमोशनल का हिंदी रूपांतरण है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इमोवयर से हुई है।जिसका अर्थ है उतेजित होना।

●वुडवर्थ के अनुशार-संवेग व्यक्ति की उतेजित दशा हैं।
●क्रो और क्रो के अनुसार-संवेग ऐसी भावनात्मक अनुभूति ह जो किसी व्यक्ति के मानसिक या शारीरिक उतेजना से जुड़ी होती ह ।
आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी है जो अभिब्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है।

★★मैकडुगल ने संवेग के 14 मूल प्रवित्ति बताई है ।जो निम्न ह :-

  • पलायन – भय
    *युयुत्सा। – क्रोध
    *निवृत्ति। – घृणा
    *जिज्ञासा। -आश्चर्य
    *शिशुरक्षा -वात्सल्य
    *शरणागत। -विषाद
    *रचनात्मक -संरचनात्मक
    *संचायेप्रवृति-स्वमित्व की भावना
    *सामूहिकता -एकाकीपन
    *काम। -कामुक्ता
    *आत्म गौरव- श्रेष्ठ की भावना
    *दैन्य -आत्महीनता
    *भोजन अन्वेषण- भूख
    *ह्रास। -आमोद।

🌈संवेग
संवेग इमोशन की उत्पत्ति लैटिन भाषा की इमोशनल शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ भड़क या उत्तेजना होना है संवेग संज्ञान पर आधारित होते हैं संवेग के लिए संज्ञान का होना आवश्यक है संवेग में मूल प्रवृत्तियां माय बेसिक नेचर होती है जब बच्चे को भूख लगती है तो वह रोने लगता है यह लो ना उसका बेसिक नेचर है उसी को हम मूर्ख व्यक्ति हैं कहते हैं संवेग वास्तव में मानसिक उत्पत्ति की व्यवस्था है जो प्रत्येक व्यक्ति के कार व्यवहार को प्रेरणा शक्ति प्रदान करती है किसी वस्तु को देखकर प्रसन्न होना तथा डरावनी वस्तु को देखकर डर लगना के विपरीत पर होने पर क्रोधित होना या किसी खराब वस्तु को देखकर घृणा हो ना इत्यादि संवेगात्मक स्थितियों के कुछ संवेग हैं
🌈वुडवर्थ के अनुसार संवेग व्यक्ति की भी उत्तेजित दशा है
🌈मैक्डूगल के अनुसार संवेग प्रगति का केंद्र है
🌈Crow and crow के अनुसार
संवेग व भावात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी है जो अभिव्यक्ति द्वारा व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है आंतरिक समायोजन मे हम किस प्रकार कार्य को करना है यह हम अपने आंतरिक व्यवहार से करते हैं इसमें मानसिक शारीरिक उत्तेजना का प्रयोग करते हैं जिस प्रकार हमें किसी चीज को अच्छी लगती है और तो हमारा मानसिक समायोजन होता है लगना हमारा सारिक समायोजन है आंतरिक समायोजन में मानसिक व शारीरिक उत्तेजना का समायोजन बैठाना है
🌈मैक्डूगल ने14 प्रकार की प्रवृत्तियां बताए हैं
⭐ पलायन -भय
⭐ युयुत्सा- क्रोध
⭐ निवृत्ति- घृणा
⭐ जिज्ञासा- आश्चर्य
⭐ शिशु रक्षा- वात्सल्य
⭐ शरणागति- विषाद/करुणा
⭐रचनात्मक- संरचनात्मक भाव
⭐ संचय प्रकृति- स्वामित्वकी भावना
⭐सामुहिकता- एकाकीपन
⭐ काम- कामुकता आत्मगौरव- श्रेष्ठ की भावना
⭐ दैन्य- आत्म हीनता
⭐ भोजन अन्वेषण- भूख
⭐ ह्रास- आमोद
✍Menka patel


✍️ By ➖
Anamika Rathore

🍁संज्ञान➖
संज्ञान का अर्थ जानना है । जानना, ज्ञान का अभिन्न अंग है। संज्ञान हमारे संवेग से जुड़ा हुआ है।

🍁 संवेग ( Emotion)➖
संवेग शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ”एमोवेेर ” ( emovere) से हुई है। जिसका अर्थ है ‘ उत्तेजित होना ‘ या ‘ हलचल होना ‘ ।
“”संवेग को व्यक्ति की ‘ उत्तेजित दशा ‘ कहते है। व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के कारण संवेग होता है।””
✏️व्यक्ति के संज्ञान , बुद्धि के अनुसार ही व्यक्ति को कैसे रिएक्ट करना है वह करता है।
✏️हमारे संवेग हमारे मानसिक स्तर पर निर्भर करते हैं। अर्थात् हमारी मूल प्रवृत्ति को हम चाहे तो छुपा भी सकते है । परिस्थिति के अनुरूप मानसिक संवेगो को नियंत्रित किया जा सकता है।
✏️हमारा भिन्न- भिन्न व्यक्तियों के साथ भिन्न- भिन्न संवेग होता है जिसे आंतरिक समायोजन के द्वारा हम दिखाते है।
जैसे- अगर व्यक्ति घर में माता- पिता के सामने अलग और ऑफिस में अलग संवेग प्रदर्शित करता है और दोस्तो के साथ फिर अलग संवेग व्यक्त करता है।


🍁वुड वर्थ ➖ संवेग , व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।

🍁क्रो & क्रो ➖ संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है। आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी होती है, जो अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है।


,✏️ मूल प्रवृत्ति और संवेग एक – दूसरे से जुड़े है।
✏️मूल प्रवृत्ति आधार ( base) है और संवेग , उसका भाव ( representation) है।

🍁मैक ङुगल ➖
मैक ड्डुगल के अनुसार, संवेग की 14 मुल प्रवृत्ति होती है।
मूल प्रवृत्ति। संवेग

1: पलायन ( escape) —
भय ( fear)

2: युयुत्सा ( combact)–
क्रोध(anger)

3: निवृत्ति (repulsion)–
घृणा(disgust)

4: जिज्ञासा (curiosity)–
आश्चर्य (wonder)

5: शिशुरक्षा (parental)–
वात्सल्य (love)

6: शरणागति (apeal)–
विषाद (distress)

7: रचनात्मक (construct)–
संरचनात्मक भावना (feeling of constructorness)

8: संचय प्रवृति (aequistion)–
स्वामित्व (ownership)

9: सामूहिकता (gregariousness)–
एकाकीपन(lonelyness)

10: काम (sex)–
कामुकता (lust)

11:आत्मगौरव(self asseration)–
श्रेष्ठता की भावना (positive self feeling)

12: दैन्य (submission)–
आत्महिनता (nagative self feeling)

13:भोजन अन्वेषण(food- seeking)–
भूख (appetite)

14: हास(laughter)–
आमोद (amusment)


📝Notes by रश्मि सावले 📝 संवेग (Emotions) :- संवेग व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं एवं मूल प्रव्रतियाओ के द्वारा बाहरी व्यहार में व्यक्त किया जाता है संवेग हमारे मानसिक स्तर पर निर्भर करता है जो कि संज्ञान के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है संज्ञान के बिना संवेग की कल्पना नहीं की जा सकती है… संवेग अंग्रेजी भाषा के शब्द Emotion का हिन्दी रूपांतरण है जो कि लेटिन भाषा के Emovere से बना है जिसका अर्थ है उत्तेजना हलचल या उथल पुथल…. वुडवर्थ के अनुसार :– संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है… क्रो एवं क्रो के अनुसार :– संवेग हमारी भावनात्मक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है और ये आंतरिक समायोजन के साथ अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यहार के रूप में प्रदर्शित होती है….. अर्थात परिस्थिति के अनुसार हम अपनी भावनाओं को समायोजित करते हैं… मेक्डूगल ने संवेग 14 प्रकार के बताये है.. (1) पलायन (Escape) :–भय ( Fear) (2) युयुत्सा ( Combat) :–क्रोध (Anger) (3) निवृत्ति (Replesion) :– घृणा ( Disgnst) (4) जिज्ञासा (Curiosity) :– आश्चर्य(Wonder) (5) शिशु रक्षा (Parental) :–वात्सल्य (Love) (6) शरणागति( Apeal):– विषाद (Distress) (7) रचनात्मक(Construction) :–संरचनात्मक की भावना (Feeling of creativeness) (8) संचय प्रवृत्ति(Acqnistion) :– स्वामित्व(Ownership) (9) सामूहिकता(Gregariouss) :–एकाकीपन (Loneliness) (10) काम ( Sex) :– कामुक्ता (Lust) (11) आत्मगौरव (Self assertion) :–श्रेष्ठता की भावना (Positive self feeling) (12) दैन्य (Submission) :–आत्महीनता (Negative self feeling) (13) भोजन अन्वेषण (Food seening) :–भूख (Appetite) (14) हृस (Laughter) :–अमोद (Amusement)


✍️manisha gupta ✍️

संवेग[emotion ] 🌺 हमारे संज्ञान के कारण ही उत्पन्न होता है संवेग अर्थात मानसिक क्रियाएं संवेदना तर्क ही डिसाइड करते हैं कि हमारा संवेग कैसा होगा। 🔆 ,angreji sabd “emotion” ka हिंदी रूपांतरण है यह ‘इमोशन ‘शब्द लैटिन भाषा के “इनोवेयर” से बना है जिसका अर्थ -उत्तेजना ,हलचल, उथल-पुथल होता है। 🔆woodwoth 🔆 ” संवेद व्यक्ति की उत्तेजित दशा है” 🔆 क्रो एंड क्रो के अनुसार- ” संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति के मानसिक एवं शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है, आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी होती है जो अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है” 🌸 संवेगो का संबंध मूल प्रवृत्तियों से होता है मूल प्रवृत्ति के आधार पर ही हम अपनी भावना को रिप्रेजेंट करते हैं । 🔆 मैक्डूंगल के अनुसार 14 मूल प्रवृत्तियों के 14 संकेत दिए हैं-✏️(1)पलायन{escape}- भय {fear} ✏️(2) युयुत्सा {combat}- क्रोध{angry } ✏️(3) निवृत्ति{repulsion }- घृणा{disgust} ✏️(4) जिज्ञासा{curiasity }- आश्चर्य{wonder} ✏️(5) शिशु रक्षा{ parental}- वात्सल्य{love} ✏️(6)शरणागति{appeal}-विषाद। {distress} ✏️(7) रचनात्मक{construction }- संरचनात्मक भावना{feeling of creativeness} ✏️(8) संचय प्रकृति{acquisition }- स्वामित्व की भावना{ownership } ✏️(9) सामूहिकता{gregariousness}- एकाकीपन{ lonelyness} ✏️(10)काम{sex}-कामुक्ता{lust} ✏️(11) आत्म गौरव {self assertion}-श्रेष्ठता की भावना{positive self feeling} ✏️(12) दैन्य{submission }- आत्महीनता{negative self feeling } ✏️(13) भोजन अन्वेषण{food seeking }-भूख{appetite} ✏️(14)हास{laughter}-आमोद{amusement} 🔆संवेग की प्रकृति या विशेषताएं 🔆 संवेग हमारे प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित करते हैं।


By-#Rohit_Vaishnav✍️

संवेग शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा की इमोशन शब्द से हुई है। इमोशन लेटिन भाषा के Emovear शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है उत्तेजित दशा।

मनुष्य अपने दैनिक जीवन में सुख , दुख, भय , क्रोध,प्रेम आदि का अनुभव करता है, यह उसकी संवेग अवस्थाएं कहलाती हैं। संवेगो के प्रकार

1 सकारात्मक संवेग- यह संवेग प्रायः हमारे लिए सुखदाई होते हैं जैसे- प्रेम, हर्ष, उल्लास, स्नेह आदि।

2 नकारात्मक संवेग- यह संवेग हमारे लिए कष्टकारी या दुखदाई होते हैं जैसे- भय, क्रोध,, चिंता आदि।

“”संवेगों के तुरंत बाद होने वाली प्रक्रिया मूल प्रवृत्ति कहलाती है अर्थात पहले संवेग तथा बाद में मूल प्रवृत्तियां होती हैं””। 👉 मूल प्रवृत्तियों के जन्मदाता मेकडुगल को कहा गया है।
👉इनके अनुसार संवेग की संख्या 14 है।

👉 वुड वर्थ- संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा को प्रस्तुत करता है।

👉 क्रो एंड क्रो- संवेग मनुष्य की वह भावात्मक स्थिति है जो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक उत्तेजना से परस्पर जुड़ी हुई है।


💫 Notes by – Neha Kumari

✍️संवेग :-

▪️संवेग शब्द का शाब्दिक अर्थ उत्तेजना होता है। जो कि अंग्रेजी भाषा के हिंदी इमोशनल शब्द का हिंदी रूपांतरण है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द इमोवेयर से हुई है।
▪️संवेग दो प्रकार के होते हैं :-

  1. सकारात्मक संवेग
    2 नकारात्मक संवेग

🏝️क्रो एवं क्रो के अनुसार :- संवेग एक ऐसी भावनात्मक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति के मानसिक या शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है।

🏝️वूडवर्थ के अनुसार :- संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।

📚ये एक ऐसी दशा है जो व्यक्ति के आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी होती है और हमारी अभिव्यक्ति के द्वारा प्रदर्शित होती है।

📚मैक्डूगल ने संवेग के 14 मूल प्रवृत्तियां बताई है। जो निम्नलिखित हैं :-

➡️ मूल प्रवृत्तियां :-
▪️पलायन (escape) – भय ( fear)
▪️ युयुत्सा (combat) – क्रोध ( anger)
▪️निवृति (repnlsion) – घृणा ( disgust)
▪️जिज्ञासा(curiosity) – आश्चर्य ( wonder)
▪️शिशुरक्षा(parental) – वात्सल्य(love)
▪️शरणागति(apeal) – विषाद ( distress)
▪️रचनात्मक(constructive) – संरचनात्मक(creativity)
▪️संचय प्रवृति(Aquisition) -। स्वामित्व(ownership)
▪️सामूहिकता(gregariousness) – एकाकीपन(loneless)
▪️काम( sex) – कामुकता(lust)
▪️ आत्मगौरव ( self assertion) – श्रेष्ठता की भावना ( positive self feeling)
▪️ दैन्य ( submission) – आत्म हीनता( negative self feeling)
▪️भोजन अन्वेषण ( food services) – भूख( appetite)
▪️ हास्य ( laughter) – आमोद( amusement)
Thanks 👏


संवेग – अंग्रेजी भाषा के Emotional का हिंदी रूपांतरण है। सवेग शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इमोवयर से हुई है।जिसका अर्थ है-उथल पुथल ,, हल चल ,,उतेजित होना हैं ।

📚यह सबसे अधिक किशोरावस्था में होती हैं ।📚
📚इसका पहला अधययन चाल्स डार्विन ने किया।
सवेग की परिभाषाएँ
💕वुडवर्थ के अनुसार –
संवेग व्यक्ति की उतेजित दशा हैं।
💕रास के अनुसार-
संवेग एक मनशिक प्रकिया है जिसमे क्रोध, प्रेम ,हाव भाव तत्व प्रधान होते है।
💕क्रो और क्रो के अनुसार-
संवेग ऐसी भावनात्मक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति के मानसिक या शारीरिक उतेजना से जुड़ी होती ह ।
यह आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी है जो अभियव्क्ती द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है।
मुलप्रवितीया
💕मैकडुगल ने संवेग के 14 मूल प्रवित्ति बताई है ।💕
(1)पलायन(escape) – भय(fear)
(2)युयुत्सा(compat) – क्रोध(anger)
(3)निवृत्ति(repulsion) – घृणा(disgust)
(4)जिज्ञासा(curiosity) -आश्चर्य(wonder)
(5)शिशुरक्षा(perentar) -वात्सल्य(child love)
(6)शरणागत(apeal) -विषाद(distress)
(7)रचनात्मक(constreta) -संरचनात्मक(feeling of creative)
(8)संचयी प्रवृति(aeanistion)-स्वमित्व की भावना(ownership)
(9)सामूहिकता ( gregariousess)-एकाकीपन (loneliness)
(10)काम (sex) -कामुक्ता(lust)
(11)आत्म गौरव( self assertion)- श्रेष्ठ की भावना( positive self feeling)
(12)दैन्य (sunmission) -आत्महीनता (negative self feeling)
(13)भोजन अन्वेषण (food seeking)- भूख (appelite)
(14)ह्रास(laughter) -आमोद( amuse)।।।
😊मालती साहू😊


Notes by :- ✍️ Gudiya Chaudhary 👇👇
🔆🔆 संवेग ( Emotion)🔆🔆
संवेग वस्तुतः ऐसी प्रक्रिया है।जिसे व्यक्ति उद्दीपक द्वारा अनुभव करता है।
🔹 संवेगात्मक अनुभव ➖ संवेग चेतन उत्पन्न करने की अत्यंत प्रारम्भिक स्थिति है। शिशु का संवेग टूटा-फूटा अधूरा होता है जबकि प्रौढ की संवेदना विकृतजन्य होगी।
🔷 संवेग शब्द का अर्थ ➖
संवेग शब्द अंग्रेजी भाषा के Emotion का हिंदी रुपान्तर है। जो लेटिन भाषा के Emovare से बना है जिसका अर्थ है “उत्तेजना या हल चल या उथल-पुथल।
▪️ संवेग एक भावात्मक स्थिति है। जब मनुष्य का शरीर उत्तेजित होता है। इसी अवस्था को संवेग का नाम दिया है। जैसे ➖ भय,क्रोध,चिन्ता,हर्ष,प्रसन्नता आदि।
▪️ संवेग एक उत्तेजित अवस्था है जिस कारण वह अधिक मानसिक सजगता के कारण कोई प्रतिक्रिया करता है। संवेग एक कल्पित प्रत्यय है जिसकी विशेषताओं का अनुमान व्यवहार से लगाया जाता है। संवेग में भाव,आवेश तथा शारीरिक प्रतिक्रियाएं सम्मिलित हैं।
🔷 संवेग की परिभाषाएं ➖
▪️ मैक्डूगल ➖ संवेग मूलप्रवृत्ति का केन्द्रीय अपरिवर्तनशील तथा आवश्यक पहलू है।
▪️ वेलेंटाइन ➖ जब भावात्मक दशा तीव्रता में हो जाए तो उसे हम संवेग कहते हैं।
▪️ आर्थर टी जर्सीलड➖ संवेग शब्द किसी भी प्रकार से आवेश में आने तथा उत्तेजित होने की दशा को सूचित करता है।
▪️वुडवर्थ➖ संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।
क्रो एण्ड क्रो ➖ संवेग हमारी भावनात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक व शारीरिक उत्तेजना से जूडी रहती है। आन्तरिक समायोजन के साथ जुड़ी है जो अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रर्दशित होती है।
🔷मैक्डूगल ने 14 मूलप्रवृत्ति बताई है ➖
1.पलायन(Excape)➖भय(Fear)
2.युयुत्सा(combat)➖क्रोध(anger)
3.निवृत्ति(repulsion)➖घृणा(disgust)
4.जिज्ञासा(curiosity)➖ आश्चर्य(wonder)
5.शिशु रक्षा(parental)➖ वात्सल्य(tenderness)
6.शरणागति(apeal)➖ विषाद(distress)
7.रचनात्मक(construction)➖संरचनात्मक भावना(feeling of creativess)
8.संचय प्रवृत्ति(acquisition)➖स्वामित्व (ownership)
9.सामूहिकता(gregarious)➖एकाकीपन(lonlyness)
10.काम(sex),➖ कामुकता(lust)

  1. आत्मगौरव(self assertion)➖श्रेष्ठता की भावना(postive self feeling)
    12.दैन्य(submission)➖आत्महीनता(nagitive self feeling)
    13.भोजन अन्वेषण(food seening)➖ भूख(appetite)
    14.हास(laugther)➖आमोद(amusement)

🌼संवेग ( Emotion) 🌼
हमारे मन के अलग अलग प्रकार के भाव संवेग होते हैं।
संवेग संज्ञान (मानसिक क्रियाओं) के कारण उत्पन्न होते हैं।
जैसे जैसे संज्ञान बढता जाता है वैसे वैसे संवेग प्रदर्शित करने का तरीका बदल जाता है।
हम संज्ञान के कारण ही अपने संवेगो बाहर प्रकट करते हैं या छिपाते है।
संवेग emotion लैटिन भाषा के शब्द emovere (इमोवेयर) से बना है जिसका अर्थ होता है – उत्तेजना, उथल पुथल, हलचल

वुडवर्थ के अनुसार संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।

क्रो&क्रो के अनुसार संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक या शारीरिक उत्तेजना की अवस्था से जुड़ी होती है, आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी हैं जो अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है।

संवेग का आधार मूल प्रवृति है। जैसी मूल प्रवृति होगी उसके आधार पर संवेग प्रदर्शन होता है।

मेक्डुगल ने 14 मूल प्रवृतियो के 14 संवेग बताये हैं।

मूल प्रवृति (basic nature ) संवेग( emotion )
1)पलायन (escape) – भय(fear)
2) युयुत्सा (combat) – क्रोध (anger)
3) निवृति (repulsion) – घृणा (disgust)
4) जिज्ञासा (curiosity) – आश्चर्य (wonder)
5) शिशुरक्षा(parental ( – वात्सल्य (Love)
6) शरणागति (apeal)- विषाद (distress)
7) रचनात्मक (construction) – संरचनात्मक भावना (feeling of creativeness)
8) संचय प्रवृत्ति(aequistion) – स्वामित्व (ownership)
9) सामूहिकता(gregariousness) – एकाकीपन (loneliness)
10) काम (sex) – कामुकता (lust)
11)आत्मगौरव (self assertion) – श्रेष्ठता की भावना (positive self feeling)
12) दैन्य(submission) – आत्महीनता (negative self feeling)
13) भोजन अन्वेषण( food seeking) – भूख (appetite)
14) ह्रास (laughter) – आमोद (amusement)


📝Notes by- Puja kumari 🖋️
Emotion (संवेग) :-
🔅emotion शब्द लैटिन भाषा के Emovere से बनी है।जिसका अर्थ उत्तेजना/हलचल होता है।
◆ व्यक्ति की उत्तेजना संवेग से जुड़ी होती है।
◆ व्यक्ति का संवेग अपनी संज्ञान या मानसिक क्रिया से जुड़ी है जो सिचुएशन के अनुसार कार्य करती है। संवेग व्यक्ति के मूल-प्रवर्ति से होती है, जिसमे कुछ संवेग जन्मजात होती है,जो हमारे heridity से जुड़ी होती है।
🌸 संवेग और मुलप्रवृति एक दूसरे के पूरक होते है, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनो ही व्यक्ति के अंदर होता है।
🔹वुडवर्थ :- संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।
🔹 क्रो & क्रो :- संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है, जो व्यक्ति की मनसिक या शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी है, आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी है जो अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यहार के रूप में प्रदर्शित होती है।
🔹मैकडुगल ने मूलप्रवृति के 14 प्रकार बताये है ,जो निम्न है:-
➡️मुलप्रवृति ( Basic nature)- (14) :-.
1). पलायन (Esscape)
2).युयत्सा (Combat)
3).निवृत्ति (Repulsion)
4).जिज्ञासा (Curiosity)
5).शिशुरक्षा (Parental)
6).शरणागति (Apeal)
7).रचनात्मक (Structure)
8).संचायप्रवृति(Acquisition)
9).सामूहिकता(Gragariousness)
10). काम (Sex)
11).आत्मगौरव (Selfproud)
12). दैन्य(Submission)
13).भोजन अन्वेषण(Food seeking)
14).ह्रास(Laughter)
➡️ संवेग (Emotion) :-
1). भय ( Fear)
2).क्रोध (Anger )
3). घृणा (Disgust)
4).आश्चर्य (Wonder)
5).वात्सल्य (Love)
6).विषाद (Distress)
7).संरचनात्मक (Felling of creativeness)
8).स्वामित्व (Ownership)
9).एकाकीपन (Loneliness)
10).कामुक्ता (Lust)
11).श्रेष्ठता की भावना (Positive self felling)
12).आत्महीनता (Negative self felling)
13).भूख ( Hungary )
14).आमोद (Amusement)


✍🏻Notes By➖ Vaishali Mishra 🔆संवेग (Emotion)

▪️संवेग या हमारे जो भाव है वो सब हमारे संज्ञान से निकल कर आते है।
▪️जितनी भी हमारी मानसिक क्रियाएं (तर्क, बुद्धि, संवेदनाएं, विचार) होती है वो सब हमारे संज्ञान में होती है और यही संज्ञान हमारे संवेग को जन्म देता है।हम अपने संज्ञान के अनुसार ही अपने संवेग दिखाते या छिपाते है।
▪️यदि कोई व्यक्ति हमारे किसी संवेग को पहचानते लेते है तो वह संज्ञान ही है जो उसको संवेग पहचानने में मदद करते है।
▪️ जैसे जैसे हमारा संज्ञान बढ़ता वैसे वैसे ही हमारे संवेग को पहचानने की क्षमता भी बेहतीन होती चली जाती है।
▪️ संवेग का आधार ही मूल प्रवृति होती है।

🔅मूल प्रवृति (Basic Nature)➖

*हमारे कई संवेग होते है जिसमे से जो सामने से दिखाई देते है वे संवेग कहलाते है और दूसरी तरफ जो संवेग हम नहीं दिखाते है या छिपाते है वहीं मूल प्रवृति कहलाते है।

◼️”संवेग – Emotion शब्द से बना हुआ है जो कि एक लेटिन भाषा के Emovere शब्द से बना है जिसका अर्थ उत्तेजना या हल चल या उथल पुथल होता हैं।

▪️ बुडवर्थ का कथन➖” संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है”
▪️क्रो एंड क्रो का कथन➖”संवेग एक भावनात्मक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक उत्तेजना से आंतरिक रूप से समायोजन के साथ जुड़ी हुई होती है जो कि अभिव्यक्ति द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं।”

हमारी कई सारी भावनात्मक अनुभूति होती है जो कि हमारे शारीरिक और मानसिक रूप से किसी न किसी प्रकार से जुड़ी हुई होती है जिनसे हमारे अंदर उत्तेजना आती है और हम आंतरिक रूप से परिस्थितियों के अनुरूप समायोजन करते है और अपनी अभिव्यक्ति के रूप में प्रदर्शित करने लगते है।

▪️जैसे जब हम किसी शिक्षक के साथ जुड़े हुए होते है तो हमारे मानसिक और शारीरिक क्रियाओं में कई उत्तेजनाएं भी आती है जिसको हम आंतरिक रूप से अपने अंदर समायोजित करते है फिर शिक्षक के प्रति अपनी अभिव्यक्ति के द्वारा अपने भाव या संवेग को प्रदर्शित करते है।
▪️किसी भी चीज के प्रति हमारे जो अच्छे या बुरे संवेग होते है उनका हम आंतरिक समायोजन के द्वारा परिस्थिति के अनुरूप ही अपनी अभिव्यक्ति को दिखाते है।

इन संवेग जा आधार ही मूल प्रवृति होती है या इन मूल प्रवृति से जी संवेग जा जन्म होता है”

🔅मेगडूगल ने कुल 14 मूल प्रवृति दी जो कि संवेग से जुड़ी हुई है।

▪️मूल प्रवृति ▪️संवेग
*1 पलायन (Escape)-भय (Fear)
*2 युयुप्सा(Combat)- क्रोध(Anger)
*3निवृति (Repulsion)- घृणा (Disgnst)
*4 जिज्ञासा (Curiosity)- आश्चर्य (Wounder)
*5 शिशुरक्षा (Parent)- वात्सल्य (Love)
*6 शरना गति (Appeat)- विषाद(Distress)
*7 रचनात्मक (construction)- संरचनात्मक (Feels of creativness)
*8 संचय प्रवृति (Aequistion)- स्वामित्व (Owenership)
*9 सामूहिकता (Gregariousness)- एकाकीपन (Loneliness)
*10 काम(Sex) – कामुकता ( Lust)
*11 आत्मगौरव (Self asseration)- श्रेष्ठता की भावना (Self Fellings)
*12 दैतय (Submission)- आत्महिंता ( Negative self feelings)
*13 भोजन अन्वेषण (Food Seeking) – भूख(Appetite)
*14 हास (Laughter)- अमोद (Amusement)।


वंदना शुक्ला -द्वारा

✳️संवेग Emotion ✳️

🔸संवेग संज्ञान के कारण ही उत्पन्न होता है संज्ञान मानसिक क्रियाए होती है, बुद्धि के हिसाब से संवेग होता है ,उम्र के हिसाब से संवेग होता है।
जैसे जब बच्चा छोटा होता है तो कम मानसिक क्रियाएं होती हैं और संवेग भी कम होते हैं जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है उसकी मानसिक क्रियाओं में वृद्धि होती है और संवेग में भी वृद्धि होती है।
🔸 संवेग मानसिक क्रियाओं के द्वारा उत्पन्न होता है ।
🔸मानसिक स्तर संवेग को प्रभावित करते हैं ।
🔸 संज्ञान के बिना संवेग की कल्पना नहीं की जा सकती।

🔸संवेग Emotion लेटिन भाषा के शब्द से बना है मतलब उत्तेजना, दिशाओं में उथल-पुथल।
🔸वुडवर्थ- ने कहा कि संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।

🔸क्रो एंड क्रो- ने बोला कि संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक शारीरिक उत्तेजना से जुड़ी होती है और यह आंतरिक आंतरिक समायोजन के साथ अभिव्यक्ति के द्वारा बाहरी व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होती है अर्थात परिस्थिति के अनुसार हम अपनी भावनाओं को समायोजित करते हैं।

🔸 मैक्डूगल के अनुसार संवेग 14 तरीके के होते हैं ।
मूल प्रवृत्ति। संवेग 1पलायन escape – भय fear 2युयुत्सा combat – क्रोध anger
3 निवृत्ति repulsion-घृणा disgust
4 जिज्ञासा curiosity- आश्चर्य wonder
5 शिशु रक्षा (parental)- वात्सल्य (love)
6 शरणागत (appeal )-विषाद दुख (distress)
7 रचनात्मक (construction)- संज्ञानात्मक भावना (feeling of creativeness)
8संचय प्रवृत्ति (acquisition)- स्वामित्व (ownership)
9सामूहिकता(gregariousness)- एकाकीपन(loneliness)
10 काम(sex)- कामुकता (last)
11आत्म गौरव (self assertion)-श्रेष्ठता की भावना(positive self feeling)
12 दैन्य (submission)- आत्म हीनता(negative self esteem)
13 भोजन अन्वेषण (food seeking)-भूख ( appetite)
14हास्य (laughter)- आमोद(amusement)

धन्यवाद

Child as Problem solver

समस्या समाधान कर्ता ( Child problem solver) :- अपनी योग्यता के अनुसार किसी समस्या का टिकट समाधान करना ही समस्या समाधानकर्ता होना है इसमें हम अपनी संपूर्ण बुद्धि और क्षमता लगाकर समस्या को समाधान करने की कोशिश करते हैं इसी संदर्भ में वुडवर्थ ने कहा कि ज्ञान को अपने स्वभाव एवं व्यहार में लाना आवश्यक है… यदि कोई बालक निर्णय लेने के लिए संपूर्ण योग्यता के अनुसार अपनी क्षमता का प्रयोग कर समस्या के समाधान तक पहुँच जाता है तो उसके सही मार्गदर्शन में माता – पिता, शिक्षक, संस्कार और मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. 👉. राबर्ट गैने ने अपनी पुस्तक The condition of learning में समस्या समाधान के 8 सोपानों का वर्णन किया है जो कि निम्न प्रकार से है (1) सांकेतिक सीखना (2) उद्दीपन अनुक्रिया (3) सरल श्रंखला (4) शाब्दिक साहचर्य / शाब्दिक अधिगम (5) विभेदीकरण (6) संप्रत्यय (Concept) (7) नियम सीखना (8) समस्या समाधान 👈 अर्थात हमारे पास जब कोई समस्या आती है तो हम सांकेतिक रुप से सीखते हैं फिर उसके प्रति अनुक्रिया व्यक्त करते हैं अनुक्रिया को समझकर उसकी एक सरल श्रृंखला बनाते हैं फिर उसका शाब्दिक रूप से अधिगम कर विभेदीकरण कर संप्रत्यय Concept बनाकर नियम बनाते हैं और अंत में हम समस्या का समाधान कर लेते हैं.🌺🌺 🌹

रश्मि सावले 🌹


🔆समस्या समाधक🔆
” बच्चा एक समस्या समाधक के रूप में” ( child as a problem solver)

▪️बच्चे के सामने जी भी समस्या आती है वह उस उसका समाधान खोजने की कोशिश करता है। चाहे जो भी समस्या हो वह उस पर विश्लेषण कर ,उस परिस्थिति को समझ कर एक उचित समाधान निकलता है ।
▪️हम समस्या के समाधान के लिए अपनी बुद्धि के द्वारा एक बेहतर उपाय ढूंढकर उसका सही प्रकार से तरीके से उपचार करते है या उस समस्या को दूर कर देते है।
▪️जब हमारे पास समस्या आती है तो उसके लिए हम अपने उत्तम मार्गदर्शन और योग्यता का प्रयोग करके ही एक बेहतर समाधान निकालते है। हमारे मस्तिष्क का ज्ञान ही हमारी समस्या के समाधान की खोजने में हमारी मदद करता है।
▪️समस्या जा समाधान निकालने के लिए कई लोग,माता पिता,शिक्षक एक मार्गदर्शक के रूप में तथा इसके साथ ही हमारे संस्कार हमारे मूल्य एक सर्वोत्तम समाधान खोजने में हमारी मदद करते है।

🔅 गेंने के अनुसार➖
हम जिस भी समस्या जा समाधान निकालते है उसके लिए हम सात सोपान को पार कर आठवें सोपान पर पहुंचकर समस्या का समाधान निकाल लेते है।
गेने की पुस्तक- “The condition of learning”➖ में समस्या समाधान के आठ सोपान या चरण बताए गए है।

1 सांकेतिक रूप में सीखना
2 उद्दीपन अनुक्रिया
3 सरल रेखा
4 शाब्दिक सहाचर
5 विभेदीकरण
6 संप्रतय
7 नियम सीखना
8 समस्या समाधान

  • सर्वप्रथम हमारे पास जो समस्या होती है उसके संकेतो की देखकर हम उस समस्या पर अनुक्रिया करते है और अनुक्रिया करते हुए एक सरल श्रंखला बनाते हुए उस समस्या जा शाब्दिक
    सहाचर या उस समस्या की एक
    अधारिय समझ बनाते है,फिर उसे अलग अलग रूप में बांटकर या उस समस्या का विभेदीकरण करते हैं। उपर्युक्त समस्त प्रक्रिया पूरी हो जाने पर हम अपने दिमाग में उसकी एक धारणा या समप्रत्य बना लेते है इसके बाद हम नियम बनाना सीख जाते है कि किस प्रकार से समाधान किया जाना है। और अंत में हम समस्या का सर्वोत्तम समाधान खोज लेते है। ✍🏻 वैशाली मिश्रा

Bchha एक समस्या समाधक के रूप में — समस्या समाधान करते समय हमारे माता पिता शिक्षक संस्कार मूल्य मार्ग दर्शक के रूप में मदद करते हैं
जैसा हमारा मूल्य आदर्श होगे हमारी समस्या समाधान में उनका विशेष प्रभाव देखने को मिलता है
इन सबकी सहायता से हम जो समस्या समाधान के लिए जो सर्वोत्तम विकल्प होता है वहीं चयन करते है
रोबर्ट गेने ने अपनी पुस्तक — समस्या समाधान के 8 चरण बताए है समस्या समाधान करते वक्त एक एक करके सभी चरणों से होकर क्रमानुसार गुजरना पड़ता है
जो निम्न है –(1) सांकेतिक अधिगम
( 2) उद्दीपक अभिक्रिया अधिगम (इसे s-r अधिगम भी कहते है )
(3) सरल स्रखला अधिगम
(4) शाब्दिक अधिगम
(5) विभेदीकरण अधिगम
(6) सम्प्रत्य अधिगम
(7) नियम सीखना
(8) समस्या समाधान

उदहारण — जैसे हम कोई समस्या का समाधान करते है मान लो हम movie देखने जा रहे टिकट नहीं मिल रही तो हम पहले जुगाड करते है पूछते है लोगो से तो लोग अपने इशारों में हमें बताते है ब्लैक में ले लो तो यह हुअा
1– पहला अधिगम सांकेतिक अधिगम
फिर हम उस टिकट के प्रति अपनी अनुक्रिया करते है (जहा टिकट है उद्दीपन) उसके प्रति जो क्रिया है वो है अनुक्रिया यह हुआ (2) दूसरा चरण उद्दिपक अनुक्रिया
अब हमें पता है कहा टिकट मिलनी है और कैसे यह हुआ तीसरा चरण (3) सरल श्रखला अधिगम
अब हम टिकट खरीदने के लिए अपने शब्दों का उपयोग करते है यह हुआ चतुर्थ चरण( 4) शाब्दिक सहचर्या
और हम टिकट लेते वक्त अपने अनुसार अपर लोअर जो भी शीट लेना उसकी टिकट लेते है यह हुआ पांचवां चरण ( 5) विभेदीकरण
अब अपने दिमाग में संप्रत्यय बना के जब टिकट नहीं मिलेगी तो क्या और कैसे करना है यह हुआ (6)चरण कॉन्सेप्ट बनना
जो हमने अपने दिमाग में एक नियम की तरह रख लिया और सीख लिया यह हुआ( 7) चरण नियम सीखना
और पूरी समस्या में हमने जो प्रक्रिया की ओर समस्या को सॉल्व लिया यही है आठवा चरण ,(8) समस्या समाधान

इस प्रकार हम अपनी निजी जिंदगी में समस्या को समाधान करते रहते है ओर पता नहीं नहीं चलता इस thoery को हम शादी के example or कई तरीके से भी समझ सकते है ।


Child -≤ problem solver

*✍️ समस्या ➖ समस्या एक ऐसा काम है जिसमें हम कठिनाई ( उलझन) का अनुभव करते है उसे समस्या कहते है।।
जैसे – एक व्यक्ति को कार चलाना सरल लगता है वहीं दूसरे व्यक्ति को वहीं कार्य बहुत कठिन लगता है

✍️समस्या समाधान ➖ जब व्यक्ति किसी विशेष लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है परन्तु वह लक्ष्य तक आसानी से नहीं पहुंच पाता है तब समस्या समाधान की आवश्यकता होती हैं।।
✍️समस्या समाधान कर्ता ➖ हर व्यक्ति समस्या समाधान कर्ता होता है। कोशिश करते रहने से समस्या का समाधान होता है। समस्या को सुलझाना हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।
*हर व्यक्ति को अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार कोई भी कार्य सरल या कठिन लगता है।
*व्यक्ति अपनी पूरी बुद्धि क्षमता का उपयोग करके समस्या का समाधान करता हैं।
*जब तक व्यक्ति कोई कार्य नहीं करेगा उसे वह कार्य कठिन लगेगा कार्य करने के बाद में वही कार्य उसके लिए आसान ( सरल) हो जाएगा।
*समस्या के लिए हम चिंतन करते है जिसमें अपने पूर्व ज्ञान ( अनुभावों) से समाधान करते हैं।
*समस्या समाधान में बच्चे को मदद की आवश्यकता होती है जैसे – शिक्षक , माता – पिता , मार्गदर्शन, संस्कार, मूल्यों के ज्ञान के माध्यम से बच्चे की समस्या का समाधान करते है ।
*व्यक्ति के संस्कार और मूल्यों का समस्या समाधान में महत्वपर्ण भूमिका होती है इसके आधार पर व्यक्ति सही या ग़लत तरीके से समाधान करता है ।
समाधान का ज्ञान स्थाई होता है।।

  • वुड वर्थ ➖ “”सीखना, आपके व्यवहार और स्वभाव में होना चाहिए।”” *रॉबर्ट गेने ➖ बुक- “”the condition of learning””

इन्होंने समस्या समाधान के 8 चरण ( सोपान) बताए है —
1::सांकेतिक सीखना ➖ व्यक्ति को कोई संकेत ( हिंट) का मिलना ।
2:: उद्दीपन अनुक्रिया ➖ व्यक्ति द्वारा उस संकेत पर क्रिया ( रिएक्ट) करना।
3:: सरल श्रृंखला ➖ उस क्रिया पर विश्लेषण करके कनेक्ट ( श्रृंखला में) करना।
4:: शाब्दिक सहचर्या ➖ विश्लेषण के स्वरूप को कनेक्ट करके उसके सभी पक्षों पर विस्तार से सोचना।
5:: विभेदीकरण ➖ समस्या के संभावित समाधानों को खोजना ।
6:: संप्रत्य ➖ संभावित समाधानों से एक कॉन्सेप्ट तैयार करना।
7::नियम सीखना➖ कॉन्सेप्ट के एक्सिक्यूशन के लिए रुल ( नियम) बनाना।
8:: समस्या समाधान ➖ रुल को एक्जीक्यूट करके समस्या के समाधान तक पहुंचा जाता है ।। ✍️ अनामिका राठौर ✍️


🌼बच्चे समस्या समाधानकर्ता के रुप 🌼
हर बच्चा अपने आप मे एक समस्या समाधानकर्ता है। जैसे बच्चा जब छोटा होता है तो गिलास को पकडकर पानी मे असमर्थ होता है पंरतु धीरे धीरे जैसे वह बडा होता जाता है तो वह गिलास से पानी पीना सिख जाता है।

बच्चे अपनी समस्या का समाधान माता – पिता, शिक्षक ,परिवार के लोगों के मार्गदर्शन पर और अपने संस्कार, मूल्य के अनुसार अपनी समस्या का समाधान करता है।
बच्चा अपनी समस्या का समाधान अपनी और योग्यता के अनुसार करता है।
समस्या का समाधान एक निश्चित क्रम मे होता है।

राबर्ट एम गेने ने इस क्रम को अपनी पुस्तक the condition of learning में बताया है।
इसके अनुसार समस्या का समाधान करने के लिए पहले हमे 7 सोपानो से गुजरना पडता है फिर समस्या का समाधान होता है।
1) सांकेतिक सीखना
2) उद्दीपन अनुक्रिया
3)सरल श्रृंखला
4) शाब्दिक साहचर्य
5)विभेदीकरण
6) सम्प्रत्य (concept )
7) नियम सीखना
8) समस्या समाधान

जैसे हमे किसी समस्या का समाधान करने के लिए बोला गया है तो वह हमारे संकेत का कार्य करता है। फिर हम उसके प्रति अपनी अनुक्रिया करते हैं। फिर समस्या को सरल श्रृंखला के रूप मे बनाते हुए शाब्दिक तालमेल बनाते हैं फिर उसको अलग अलग भागो मे बाटते है तो उसके प्रति हमारे दिमाग मे एक संप्रत्यय का निर्माण होता है जिससे हम नियम बनाते है और समस्या का समाधान कर लेते हैं।

रवि कुशवाह


🌈समस्या समाधान कर्ता
बच्चे के सामने जब समस्या आती है तो उसको समाधान खोजने के लिए अनेक प्रयास करता है और वह नियम नियम बनाता है और अपने परिवार शिक्षक संस्कृति मूल्य आदि की सहायता से समस्या को दूर करता है
☄रॉबर्ट गैने
the condition of learning
⭐1 संकेत
2 , उद्दीपन अनुक्रिया
3 श्रृंखला
4 शाब्दिक
5 विभेदीकरण
6सम्प्रत्य
7नियम
8 समस्या समाधान
हमारे आसपास जब समस्या आती है तो उस समस्या सुन सांकेतिक रूप से सीखते हैं फिर उसे अनुक्रिया व्यक्त है अनुप्रिया को समझ कर उसकी एक सरल संख्या बनाते हैं अधिगम के विविधीकरण संप्रत्यय बनाकर नियम का और अंत में समस्या को समाधान कर लेते हैं
✍ Menka patel


☘️समस्या समाधान कर्ता :- 🔯 जब किसी के पास समस्या आती है तो उस समस्या को समझ कर उसको जानने की कोशिश करते है, छोटे – छोटे भाग से जोड़ते है, कैसे करे कि solve हो जाये। अगर कोई बड़ी समस्या जो हम करने में सक्ष्म नही हो पाते है या हमारे समझ मे नही आता है तो हम अपने माता-पिता, शिक्षक से मार्गदर्शन लेते है, इसमे संस्कार का भी बहुत अहम भाग होता है। हमारा मूल्य हमे यह बताता है कि हम अपनी समस्या को किस तरह solve करते है, कई समस्या को हम दूसरे के माध्यम से रुपये देके solve करवाते है तो ये हमारा संस्कार कैसा है ये बताता है। ⚛️ रोबर्ट गेने के अनुसार समस्या को 8 चरण में बात है :- 1). सांकेतिक अधिगम 2).उद्दीपन अनुक्रिया 3).सरल श्रृंखला 4).शाब्दिक साहचर्य 5).विभेदीकरण 6). संप्रत्य 7).नियम सीखना 8).समस्या समाधान जैसे कोई हमारे बीच आती है, तो समस्या हमारे लिए संकेत का कार्य करती है। फिर उसमें हम उद्दीपन अनुक्रिया करते है, अनुक्रिया करने के बाद एक सरल श्रृंखला तैयार करते है, उस श्रृंखला की शाब्दिक के मूल को समझते है, समझकर उसका पुनःसमंजस्य स्थापना करते है। स्थापना करके उसमें विभेदीकरण करते है। फिर एक concept (संप्रत्य) तैयार हो जाता है। इस concept के basic पे एक नियम बना लेते है। तब नियम के आधार पर समस्या समाधान कर लेते है।। ✒️📝Puja Kumari✒️🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸


🌄समस्या समाधान कर्ता :-

हर एक व्यक्ति (बच्चा) समस्या समाधान कर्ता होता है।कई बार ऐसा होता है कि हमे ऐसा लगता है कि मेरे अंदर ये क्षमता नहीं है, हम ये नहीं कर पाएंगे। लेकिन वास्तव में हम किसी ना किसी कार्य के रूप में अनेक प्रकार की समास्यों का समाधान कर रहे होते हैं।
इस प्रकार जब कोई व्यक्ति अपनी अपनी क्षमताओं के अनुसार किसी कार्य को करने में सक्षम होता है तथा उस समस्या का समाधान करता है तो यह समझा जाता है कि उसमें समस्या समाधान की क्षमता विकसित हो चुकी है।

जैसे कि :-
1.एक बच्चे के सामने अनेक प्रकार की समस्याएं और बाधाएं आती है जिससे की वो अनभिज्ञ होता है,फिर भी वो अनेक प्रकार का विश्लेषण कर आसानी से उस समस्या का समाधान कर पाता है इसका मतलब यह है कि एक छोटा बच्चा भी समस्या समाधान कर्ता होता है।

  1. समस्या समाधान विधि में बुद्धि का भी महत्वपूर्ण योगदान है, अगर हमारे पास जिज्ञासु,तर्क,चिंतन युक्त बुद्धि होगा,तभी समस्या का समाधान करने के लिए हम अपनी बुद्धि का बेहतर तरीके से उपयोग कर अच्छे – से – अच्छा और बेहतर तरीके से सटीक समाधान ढूंढ सकते हैं।
  2. इस प्रक्रिया में एक अच्छे मार्गदर्शक और एक अच्छे माहौल की भी आश्यकता होती है जिसमें उसे महत्व दिया जाय जिससे कि उनमें उत्सुकता विकसित हो और वे अपनी विचारों को उचित तरीके से रख़ सके।तभी बच्चा उस कार्य में रुचि लेगा , और जब रुचि लेगा तभी उसमें समस्या समाधान कौशल सुदृढ़ होगी।

🏝️रॉबर्ट गेने के अनुसार समस्या समाधान के लिए एक व्यक्ति को सात स्तरों से होकर गुजरना पड़ता है,तब जाकर समस्या समाधान हो पाता है। जो की निम्नलिखित है :-
1. संकेत
2. उद्दीपन अनुक्रीया
3. श्रृंखला
4. शाब्दिक
5.विभेदीकरण
6. सम्प्रत्य
7.नियम और
8. समस्या समाधान

🏝️हमारे आस – पास जब कोई समस्या आती है तो हम उस सांकेतिक रूप से ग्रहण करके सीखते हैं फिर उससे अनुक्रिया व्यक्त करते हैं, अनुक्रिया से समझ विकसित कर उसकी श्रृंखला बनाते हैं तथा अधिगम के विविधीकरण कर सम्प्रत्यय बनाकर नियम विकसित कर तब जाकर समस्या समाधान कर लेते हैं।😊 *Neha Kumari*


🔆🔆 समस्या समाधान कर्त्ता🔆🔆
बच्चा एक समस्या समाधाक के रूप में होता है। वह समस्या का समाधान खोजने की कोशिश करता है। वह समस्या का विश्लेषण करने लगता है समस्या को समझकर वह उचित समाधान तक पहुंचता है।
▪️ वह समस्या का समाधान खोजने के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयास करता है और समस्या को हल करता है।
▪️ जब हमारे पास कोई समस्या आती है तो वह उसका अपनी योग्यताओं के आधार पर अपने ज्ञान का प्रयोग कर के एक बेहतरीन हल निकालकर समस्या का समाधान खोजते हैं।
▪️ समस्या का समाधान खोजने में कई लोग माता, शिक्षक हमे एक मार्गदर्शक के रूप में तथा इसके साथ ही हमारे संस्कार हमारे मूल्य एक सर्वोत्तम समाधान खोजने में हमारी मदद करते हैं।
🔆 गेंने के अनुसार ➖
हम जिस समस्या का समाधान खोजते हैं। उसके लिए हम सात सोपानों को पार कर आठवें सोपान तक पहुंचते हैं अर्थात समस्या के समाधान तक पहुंचते हैं।
▪️ गेंदे ने अपनी पुस्तक ” the condition of learning” में समस्या समाधान के आठ सोपान बताए हैं।

  1. सांकेतिक रूप से सीखना
  2. उद्दीपन अनुक्रिया
  3. सरल रेखा
  4. शाब्दिक साहचर्य
  5. विभेदकारण
    6.सम्प्रत्यय
    7.नियम सीखना
    8.समस्या समाधान
    🔹 सर्वप्रथम हमारे पास जो समस्या होती है उसके संकेतों को देखकर ही हम उस समस्या पर अनुक्रिया करते हैं और अनुक्रिया करते हुए एक सरल श्रृंखला बनाते हुए उस समस्या की एक आधारित समझ बनाते हैं, फिर उसे अलग अलग रुप में बांटकर या उस का विभेदीकरण करते हैं। उपर्युक्त समस्त प्रक्रिया पूरी होने पर हम अपने दिमाग में उसकी एक धारणा बना लेते हैं। इसके बाद हम नियम बनाना सीख जाते हैं कि किस प्रकार से समाधान किया जाना है और अंत में हम समस्या का सर्वोत्तम समाधान खोज लेते हैं।
    ✍️ Gudiya Chaudhary

🌸 समस्या समाधान करता🌸 हर बच्चा समस्या समाधान करता होते हैं वह अपनी हर समस्या का समाधान करने के लिए प्रयास करते हैं वह बच्चा कोशिश तो करता है समस्या समाधान करने की बच्चे के सामने जो शिक्षण होता है एक निश्चित क्रम में होता है प्रत्येक बच्चे में हर समय किसी ना किसी समस्या का समाधान करने की आदत या प्रकृति होती है। 🌸उदाहरण के लिये- यदि एक बच्चा किसी एक समस्या का समाधान नहीं कर पाता है तो बच्चा failure नहीं कहलाएगा वह बच्चा समस्या समाधान करता ही कहलाएगा| 🔆 समस्या का समाधान निकालना हमारे जीवन का अभिन्न अंग है प्रत्येक कार्य किसी के लिए आसान भी हो सकता है और कठिन भी हम किसी समस्या का समाधान करने के लिए विश्लेषण करते रहते हैं जब हम कोई भी कार्य या निर्णय लेते हैं तो हम यह बुद्धि से करते हैं बुद्धि में जितनी भी चीजें उन सभी में सबसे अच्छी सोच को समस्या समाधान करने में लगाते हैं और बच्चे को जो कार्य आसान लगता है वह उसके लिए स्वभाविक हो जाता है| ♻️ किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए बच्चे अपने संपूर्ण योग्यताएं, क्षमता या बुद्धि का प्रयोग करते हैं| ❇️ समस्या के आधार पर ही बुद्धि के सबसे बेस्ट सोच के द्वारा अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करते हैं| ♻️ समस्या का समाधान करने के लिए सर्वोत्तम गुरु या विकल्पों का प्रयोग करके कार्य को अंजाम देते हैं और समाधान तक पहुंच जाते हैं| 🌺 किसी भी परिस्थिति में यदि बच्चा एक समस्या समाधान करता के रूप में कार्य करता है तो वह अपनी क्षमता योग्यता के आधार पर ही उस समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है| ♻️ समस्या समाधान करता अर्थात बालक को मदद की या सही दिशा की आवश्यकता होती है जैसे माता-पिता शिक्षक मार्गदर्शन हमारे संस्कार एवं मूल्यों के माध्यम से ही बच्चे समस्या का समाधान कर सकते हैं| ❇️ कोई भी बच्चा समस्या का समाधान अपने मूल्य संस्कार को खोकर नहीं कर सकता है उसे अपने मूल्यों या संस्कारों के आधार पर ही समस्या का समाधान करना चाहिए| 🌺 यदि बच्चे को सही मार्गदर्शक के रुप में शिक्षक माता-पिता या सही दिशा मिल जाता है तो बच्चे उस समस्या का समाधान अवश्य ही निकाल लेते हैं| ❇️ हमारी मूल्य एवं संस्कार समस्या समाधान में बहुत बड़ा योगदान देते हैं| 🌺Robert gene ➡️” इनके अनुसार समस्या समाधान तक पहुंचने के लिए 7 सोपान को पार करना होता है। इनकी बुक ➡️”the conditioning of learning ” 1st ⏩ संकेत अधिगम। 2nd ⏩ उद्दीपक अधिगम अभिक्रिया। 3rd ⏩सरल श्रृंखला। 4th⏩ शाब्दिक साहचर्य। 5 th⏩ विभेदीकरण। 6th ⏩ संप्रत्यय अधिगम। 7th ⏩ नियम सीखना। 8th ⏩ समस्या समाधान। 🌸🌸 सर्वप्रथम हमारे पास जो समस्या होती है उसके संकेतों को देखकर ही हम उस समस्या के अनुक्रिया करते हैं, उसके बाद समझते के आधार पर अनुप्रिया करके उस पर एक सरल श्रृंखला बनाते हुए उस समस्या की एक समझ बना लेते हैं फिर उसे अलग-अलग रूप में बाटकर उसका विभेदीकरण करते हैं विभेदीकरण के पश्चात मस्तिष्क 🧠में एक संप्रत्यय का निर्माण करते हैंअवधारणा का निर्माण करने के पश्चात नियम बनाना सीख जाते हैं कि किस प्रकार से समाधान किया जाना है और कैसे किया जाना है और अंतिम में समस्या का समाधान तक पहुंच जाते हैं। ✍️✍️Manisha gupta 🌸🌸


Teaching Variables and Phases

🔆शिक्षण के चर एवं शिक्षण की अवस्थाएं🔆

🔅 शिक्षण के चर➖ ऐसी चीजे या ऐसे तत्व, जो शिक्षक को चलाने या execute करने के लिए या शिक्षण प्रक्रिया को सही तरीके से पूर्ण करने के लिए जो सहयोग प्रदान करता है या उस प्रक्रिया के लिए काम आता है,शिक्षक के चर कहलाते है ।
यह तीन प्रकार के होते हैं।
1) स्वतंत्र चर
2) आश्रित चर
3) हस्तक्षेप चर

▪️1) स्वतंत्र चर➖ शिक्षण व्यवस्था का या शिक्षण कार्य का नियोजन या इस शिक्षण प्रक्रिया का परिचालन का कार्य एक शिक्षक के द्वारा ही पूरा किया जाता है।, इसलिए इसमें शिक्षक को स्वतंत्र चर कहा जाता है ।शिक्षक अपने शिक्षण कार्य का परिचालन सुव्यवस्थित ढ़ंग से , स्वतंत्र रूप से करता है।
शिक्षक को पूरी स्वतंत्रता रहती है कि वह अपने शिक्षण कार्य के नियोजन या प्रक्रिया के परिचालन को सुव्यवस्थित रूप से संचालन कर सके ।

▪️2) आश्रित चर➖ इसमें छात्र शिक्षक पर आश्रित होते है।छात्र शिक्षक के हिसाब से ही क्रियाशील होते है।शिक्षक द्वारा समझाने , नियोजन करवाने, व्यवस्था करवाना, परिचालन करना जैसे समस्त कार्य शिक्षक करता है और छात्र उस शिक्षक पर निर्भर रहता है।

▪️3) हस्तक्षेप चर➖यह शिक्षक और छात्र दोनों को आपस में बांध कर रखता है।यह सिखाने वाले ओर सीखने वाले के बीच में होने वाली एक अंत क्रिया या प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया के बीच पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियां मदद करती है।इस चर के द्वारा हम अपने शिक्षण कार्य के सही या गलत का पता कर सकते है और यह भी जान सकते है कि बच्चे को क्या जरूरत है और किस प्रकार से सिखाया जाए।

  • उपुर्युक्त वर्णित चर का अपना अपना महत्व होता है या प्रत्येक की अपनी अपनी उपयोगिता है।

🔅 शिक्षण की अवस्थाएं➖
1) पूर्व तत्परता की अवस्था
2) अंत: प्रक्रिया की अवस्था
3) तत्परता के बाद की अवस्था

▪️1) पूर्व तत्परता की अवस्था➖ शिक्षण कार्य करने से पहले शिक्षक को उस कार्य की तैयारी करनी होती है या शिक्षण कार्य के पूर्व से ही तत्परता का आना।इसके लिए –
1 सबसे पहले उद्देश्य का निर्धारण किया जाता हैं।
2 पाठ्यक्रम के संबंध में निर्णय लेना।
3शिक्षण कार्य के लिए क्रमबद्ध व्यवस्था करना।
4 शिक्षण विधि का चुनाव करना।

▪️2) अंत: क्रिया की व्यवस्था➖ वह क्रिया जो शिक्षक व छात्र के बीच आपस में चलती रहती है।
*अंत: क्रिया द्वारा शिक्षक बच्चे की शिक्षा से संबंधित जो भी समस्या है उनको जानकर या निदान करके उन्हें दूर कर पाता है।

  • अंत: क्रिया के माध्यम से शिक्षक कक्षा का आकार या संतुलन बनाकर रख सकता है ।

▪️3) तत्परता के बाद की अवस्था➖ (मूल्यांकन) यह मौखिक व लिखित रूप से कराई जाता है।
शिक्षण प्रक्रिया के पूरा हो जाने के बाद छात्र की intectuality को पता करने फिर उसमें सुधार करने की प्रक्रिया ही तत्परता के बाद की अवस्था कहलाती है।इसके द्वारा शिक्षक यह जान पाता है कि बच्चे ने कितना सीखा या क्या नहीं सीख पाया उन सब के बारे के मूल्यांकन करते है। ✍🏻 वैशाली मिश्रा


🌸शिक्षण के चर ( Teaching variable) :- ऐसी चीजें या ऐसी तत्व जो शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहायक प्रदान करते है, शिक्षण के चर कहते है। इसको तीन वर्ग में बांटा गया है – 1.स्वतन्त्र चर ( Independent variable ) :- हर शिक्षक अपनी शिक्षण व्यवस्था, नियोजन (planing), परिचालन खुद से करते है, क्योंकि बच्चे को कैसे पढ़ाना है उसकी सारी व्यवस्था शिक्षक ही करते है।। 2. आश्रित चर ( Depend variable ) :- छात्र , शिक्षक के बताए गए मार्ग पर क्रियाशील होते है ,जब हमें शिक्षक guide करते है तभी हम छात्र किसी कार्य को समझते है या कर पाते है , इसलिए छात्र शिक्षक पे आश्रित होते है।। 3. हस्तक्षेप चर ( Interference veriable ) :- हस्तक्षेप चर,में पाठ्यविधि, सिलेबस के हिसाब से अधिगम कराना होता है। अगर शिक्षक और छात्र के बीच पाठ्यक्रम विधि या सिलेबस नही होगा तो शिक्षक छात्र को कुछ भी पढ़ा देगे।इसलिए हस्तक्षेप ( सिलेबस ,पाठ्यक्रम) का होना आवश्यक है।। 🌸शिक्षण की अवस्थाये :- 1. पूर्व- ततपरता अवस्था (pre-active stage ) :- शिक्षक कोई भी विषय को पढ़ाने के पहले उसकी तैयारी करनी पड़ती है इसके लिए – उद्देश्य निर्धारित – पाठ्यक्रम के संबंध में निर्णय लेते है।। – पढ़ाने के लिए क्रमबद्ध व्यवस्था करते है।। – शिक्षण विधि का चुनाव करते है।। 2. अन्तः प्रक्रिया अवस्था ( Interactive phase stage ) :- वह प्रक्रिया जो छात्र और शिक्षक के बीच होती है। – इसमें शिक्षक क्रिया करते है और छात्र प्रतिक्रिया करते है। – छात्र को जो भी समस्या आती है शिक्षक उसका निदान करते है। – शिक्षक को कक्षा में आकार ( अनुशासन ) बना के रखना होता है।। 3. ततपरता के बाद की अवस्था ( Post action stage ) :- कक्षा करने के बाद छात्र का out put reaction कैसा होता है या छात्र कितना कुछ समझ पाया उसका लिखित या मौखिक मूल्यांकन करना।। 🌸📝पूजा कुमारी ✒️


🌹🌹🌹𝙏𝙚𝙖𝙘𝙝𝙞𝙣𝙜 𝙑𝙖𝙧𝙞𝙖𝙗𝙡𝙚𝙨 शिक्षण के चर 🌹🌹🌹:- ऐसी चीजें जो शिक्षण को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते हैं या शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं अर्थात जो परिणाम तक पहुँचने में सहायता करते हैं…ये तीन प्रकार के होते हैं 🌼(1) स्वतंत्र चर :- इस प्रकार के चर में शिक्षक आते हैं because शिक्षक शिक्षण व्यवस्था का नियोजन और परिचालन करने में सहायक होता है क्योंकि शिक्षण अपने अनुसार निर्माण करते हैं शिक्षा का परिचालन शिक्षक पर निर्भर करता है 🌼💐 ( 2 ) आश्रित चर :- इस प्रकार के चर के अन्तर्गत छात्र आते है क्योंकि छात्र नियोजन व्यवस्था और परिचालन पर निर्भर होतें है जो कि शिक्षक पर निर्भर करता है कि शिक्षण व्यवस्था का नियोजन कैसे करना है क्योंकि ज्ञान शिक्षक से छात्र पर स्थान्तरण होता है न कि छात्र से शिक्षक पर.💐…🌻 (3) हस्तक्षेप चर :- ऐसा चर जो हस्तक्षेप उत्पन्न करता है जिसके अंतर्गत पाठ्यक्रम ,शिक्षण विधि, विषय वस्तु, एवं शिक्षण का स्वरूप है🌻… शिक्षण की अवस्थाएँ :🌺 (1) पूर्व तत्परता की अवस्था (pree active stage) :- किसी कार्य को करने से पहले उसके उद्देश्य को निर्धारित करना अर्थात (a) शिक्षण का उद्देश्य निर्धारित करना.. (b) पाठ्यक्रम के सबंध में निर्णय लेना.. (c) क्रमबद्ध व्यवस्था 🌺 … (c) शिक्षण विधि को चुनना…🌺 (2) अन्त: क्रिया अवस्था :- जिस समय में हम Inrection करते हैं जिससे शिक्षक और छात्र के बीच समन्वय स्थापित किया जा सकता है (१) क्रिया या प्रतिक्रिया.. (२) छात्रों की समस्या का निदान… (३) कक्षा का आकार..🌺 … 🌸(3) तत्परता के बाद की अवस्था :- यह हमारे परिणाम अर्थात पर निर्भर करता है जिसको मौखिक या लिखित प्रश्नों का संग्रह माना जा सकता है.. 🌸🌹🌹

रश्मि सावले 🌹🌹


🌈शिक्षण के चर==×

“”चर वह होते है जो शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग करते हैं।।””
चर शिक्षण की प्रक्रिया को चलाने के लिए फंक्शन पर डिपेंड होते है।।
शिक्षण के चर , शिक्षण की मैथड नहीं होती हैं अर्थात् दोनों टर्म अलग अलग हैं।।
यह तीन प्रकार के होते है=✓
1️⃣ स्वतंत्र चर —<
शिक्षण व्यवस्था के नियोजन या परिचालन की प्रक्रिया एक शिक्षक द्वारा ही किया जाता है।
शिक्षण में शिक्षक को स्वतंत्र चर कहा गया है।
हर शिक्षक अपनी-२ प्लांनिंग से व्यवस्था , परिचालन के अनुरूप शिक्षण करते है।
जैसे — एक चित्रकार अपने अकॉर्डिंग ही चित्रकारी करता हैं।
2️⃣ आश्रित चर–<
इसमें छात्र, शिक्षक पर आश्रित रहता हैं।
एक अच्छे शिक्षण के नियोजन, व्यवस्था, परिचालन। के लिए छात्र, शिक्षक पर ही आश्रित रहता है।
छात्र, शिक्षक के माध्यम से क्रियाशील रहते हैं।
जैसे– शिक्षक के गाइड करने पर ही छात्र उस विषय या ज्ञान को एक्सिक्यूट करेगा।
3️⃣ हस्तक्षेप चर–<
यह चर वह है जो सारी मध्यस्थता की भूमिका निभाता है।
शिक्षक और छात्र के बीच की कड़ी है।
इस प्रक्रिया में पाठ्यक्रम ऑर शिक्षण विधियां कार्य करती हैं।
बच्चे को क्या सिखाना है और कैसे सिखाना है इसके अन्तर्गत आता है।
✍️ वैसे तो सभी चर महत्वपूर्ण हैं और प्रत्येक की अपनी अपनी उपयोगिता है।
तीनों एकदूसरे से बंधे है सभी की उपस्थिति आवश्यक हैं।
शिक्षक को प्राथमिक माना गया हैं।

🌈शिक्षण की अवस्थाएं==
1️⃣पूर्व तत्परता अवस्था–<
शिक्षण कार्य करने से पहले शिक्षक को कार्य की योजना बनानी होती है जो इस प्रकार है–
१: उद्देश्य निर्धारित करना।
२: पाठ्यक्रम के संबंध में निर्णय लेना ३: क्रमबद्ध व्यवस्था करना।
४: विधि का चयन करना।

2️⃣ अतः प्रक्रिया अवस्था–<
शिक्षण कार्य को करते समय शिक्षक और छात्र के बीच की क्रिया , अतः प्रक्रिया कहलाती हैं।
∆ इसमें शिक्षक , छात्र की समस्या को समझकर उसका निदान करता हैं।
∆ इसके माध्यम से शिक्षक कक्षा का संतुलन बना कर रखता हैं।

3️⃣ तत्परता के बाद की अवस्था–<
इसमें मूल्यांकन किया जाता है , जो मौखिक या लिखित रूप में हो सकता है।
यह शिक्षक द्वारा या स्वयं छात्र द्वारा भी किया जाता है।
शिक्षण प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद छात्र ने कितना ग्रहण किया उसका मूल्यांकन करना ही तत्परता के बाद की अवस्था है।।।।
🙏अनामिका राठौर 🙏


🌼शिक्षण के चर 🌼
गणितीय दृष्टिकोण से चर वह होता हैं जिसका मान निश्चित नहीं रहता है अर्थात् बदलता रहता है। चर हमे अपनी मंजिल (उत्तर) तक पहुँचने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं

शिक्षण के चर मतलब शिक्षण विधि से नहीं है

शिक्षण के चर – ऐसी चीजे, तत्व जो शिक्षण प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करता है, शिक्षण चर कहलाते है।

शिक्षण चर के प्रकार –3

1) स्वतंत्र चर – शिक्षण का स्वतंत्र चर शिक्षक होता है।
शिक्षण व्यवस्था, नियोजन और परिचालन शिक्षक स्वयं स्वतंत्रता पूर्वक अपने अनुसार करता है।
शिक्षक की क्वालिटि (गुणवत्ता) निर्धारित करती है कि शिक्षण का परिचालन कैसा होगा।

2) आश्रित चर – शिक्षण का आश्रित चर छात्र होता है।
छात्र शिक्षक के अनुसार क्रियाशील रहते है। शिक्षक शिक्षण व्यवस्था का परिचालन छात्र को ध्यान मे रखते हुए करता है।

3)हस्तक्षेप चर – यह शिक्षक और छात्र के मध्य एक पुल (सेतु ) की तरह कार्य करता है।
यह बताता की शिक्षक छात्र को क्या पढाना है
इसमे पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधि आदि शामिल हैं।

उपरोक्त तीनो मे से सबका अपना अपना महत्व है किसी को भी कम नहीं आका जा सकता है ।

शिक्षण की अवस्था –3

1) पूर्व तत्परता की अवस्था – यह शिक्षण करने के पहली की अवस्था है ।इसमें शिक्षक शिक्षण करने पहले अपनी तैयारी निम्म बातो का ध्यान रखते हुए करता है।
शिक्षण के उद्देश्य क्या है
पाठ्यक्रम के संबंध मे निर्णय
क्रमबद्ध व्यवस्था
विधि को चुनना

2) अंत प्रक्रिया अवस्था
इसमे शिक्षक और छात्र के मध्य क्रिया और प्रतिक्रिया होती है।
शिक्षण छात्रो की कमियो पहचानता है उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।
कक्षा के वातावरण को ठीक ढंग से बनाये रखता है

3) तत्परता के बाद की अवस्था
इसमे शिक्षक शिक्षण कार्य के पश्चात् यह पता लगाता है की छात्र ने कितना सिखा
इसके लिए वह मूल्यांकन करता है
मौखिक और लिखित रूप से छात्रो से प्रश्न पूछता है।

रवि कुशवाह


🌸” शिक्षण के चर “🌸
👉ऐसी चीजे, ऐसे तत्व जो शिक्षण को चलाने में भूमिका निभाते है और शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करता है
✒️चर तीन प्रकार के होते है।
🌸1- स्वतंत्र चर- इस चर में शिक्षक आते है। शिक्षक के द्वारा नियोजन, व्यवस्था को परिचालन करने का निर्णय स्वयं लेता है।
🌸2- आश्रित चर- इस चर मे छात्र अपने शिक्षक पर निर्भर रहता है छात्र अपने शिक्षक के अनुसार ही कार्य करता है।
🌸3-हस्तक्षेप चर- यह चर शिक्षक और छात्र क बीच की कडी है। इसमे छात्रो के कैसे ,क्या पढ़ाना है इसी में आता है।
🌸👉 शिक्षण की अवस्था🌸
1️⃣ पूर्व तत्परता का सिद्धांत – किसी भी कार्य को करने के लिए शिक्षक उद्देश्य निर्धारित करता है फिर पाठ्यक्रम के संबन्धमें निर्णय लेता है,क्रमबद्ध व्यवस्था तथा विधि का चयन करता है।
2️⃣ अतः प्रक्रिया अवस्था- शिक्षण करते समय शिक्षक और छात्रमें क्रिया प्रतिक्रिया होती है शिक्षक को बच्चे की समस्या का निदान करना जिसके माध्यम से कक्षा कक्ष को सन्तुलन बनाये रखे
3️⃣ तत्परता के बाद की अवस्था- इसमे शिक्षक छात्र का मूल्यांकन करता है जिससे शिक्षक को छात्र के बारे मे पता चलता है कि छात्रक कितना ग्रहण किया है या कितना सीखा है।।
🌸शशी चौधरी🌸