Teaching Variables and Phases

🔆शिक्षण के चर एवं शिक्षण की अवस्थाएं🔆

🔅 शिक्षण के चर➖ ऐसी चीजे या ऐसे तत्व, जो शिक्षक को चलाने या execute करने के लिए या शिक्षण प्रक्रिया को सही तरीके से पूर्ण करने के लिए जो सहयोग प्रदान करता है या उस प्रक्रिया के लिए काम आता है,शिक्षक के चर कहलाते है ।
यह तीन प्रकार के होते हैं।
1) स्वतंत्र चर
2) आश्रित चर
3) हस्तक्षेप चर

▪️1) स्वतंत्र चर➖ शिक्षण व्यवस्था का या शिक्षण कार्य का नियोजन या इस शिक्षण प्रक्रिया का परिचालन का कार्य एक शिक्षक के द्वारा ही पूरा किया जाता है।, इसलिए इसमें शिक्षक को स्वतंत्र चर कहा जाता है ।शिक्षक अपने शिक्षण कार्य का परिचालन सुव्यवस्थित ढ़ंग से , स्वतंत्र रूप से करता है।
शिक्षक को पूरी स्वतंत्रता रहती है कि वह अपने शिक्षण कार्य के नियोजन या प्रक्रिया के परिचालन को सुव्यवस्थित रूप से संचालन कर सके ।

▪️2) आश्रित चर➖ इसमें छात्र शिक्षक पर आश्रित होते है।छात्र शिक्षक के हिसाब से ही क्रियाशील होते है।शिक्षक द्वारा समझाने , नियोजन करवाने, व्यवस्था करवाना, परिचालन करना जैसे समस्त कार्य शिक्षक करता है और छात्र उस शिक्षक पर निर्भर रहता है।

▪️3) हस्तक्षेप चर➖यह शिक्षक और छात्र दोनों को आपस में बांध कर रखता है।यह सिखाने वाले ओर सीखने वाले के बीच में होने वाली एक अंत क्रिया या प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया के बीच पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियां मदद करती है।इस चर के द्वारा हम अपने शिक्षण कार्य के सही या गलत का पता कर सकते है और यह भी जान सकते है कि बच्चे को क्या जरूरत है और किस प्रकार से सिखाया जाए।

  • उपुर्युक्त वर्णित चर का अपना अपना महत्व होता है या प्रत्येक की अपनी अपनी उपयोगिता है।

🔅 शिक्षण की अवस्थाएं➖
1) पूर्व तत्परता की अवस्था
2) अंत: प्रक्रिया की अवस्था
3) तत्परता के बाद की अवस्था

▪️1) पूर्व तत्परता की अवस्था➖ शिक्षण कार्य करने से पहले शिक्षक को उस कार्य की तैयारी करनी होती है या शिक्षण कार्य के पूर्व से ही तत्परता का आना।इसके लिए –
1 सबसे पहले उद्देश्य का निर्धारण किया जाता हैं।
2 पाठ्यक्रम के संबंध में निर्णय लेना।
3शिक्षण कार्य के लिए क्रमबद्ध व्यवस्था करना।
4 शिक्षण विधि का चुनाव करना।

▪️2) अंत: क्रिया की व्यवस्था➖ वह क्रिया जो शिक्षक व छात्र के बीच आपस में चलती रहती है।
*अंत: क्रिया द्वारा शिक्षक बच्चे की शिक्षा से संबंधित जो भी समस्या है उनको जानकर या निदान करके उन्हें दूर कर पाता है।

  • अंत: क्रिया के माध्यम से शिक्षक कक्षा का आकार या संतुलन बनाकर रख सकता है ।

▪️3) तत्परता के बाद की अवस्था➖ (मूल्यांकन) यह मौखिक व लिखित रूप से कराई जाता है।
शिक्षण प्रक्रिया के पूरा हो जाने के बाद छात्र की intectuality को पता करने फिर उसमें सुधार करने की प्रक्रिया ही तत्परता के बाद की अवस्था कहलाती है।इसके द्वारा शिक्षक यह जान पाता है कि बच्चे ने कितना सीखा या क्या नहीं सीख पाया उन सब के बारे के मूल्यांकन करते है। ✍🏻 वैशाली मिश्रा


🌸शिक्षण के चर ( Teaching variable) :- ऐसी चीजें या ऐसी तत्व जो शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहायक प्रदान करते है, शिक्षण के चर कहते है। इसको तीन वर्ग में बांटा गया है – 1.स्वतन्त्र चर ( Independent variable ) :- हर शिक्षक अपनी शिक्षण व्यवस्था, नियोजन (planing), परिचालन खुद से करते है, क्योंकि बच्चे को कैसे पढ़ाना है उसकी सारी व्यवस्था शिक्षक ही करते है।। 2. आश्रित चर ( Depend variable ) :- छात्र , शिक्षक के बताए गए मार्ग पर क्रियाशील होते है ,जब हमें शिक्षक guide करते है तभी हम छात्र किसी कार्य को समझते है या कर पाते है , इसलिए छात्र शिक्षक पे आश्रित होते है।। 3. हस्तक्षेप चर ( Interference veriable ) :- हस्तक्षेप चर,में पाठ्यविधि, सिलेबस के हिसाब से अधिगम कराना होता है। अगर शिक्षक और छात्र के बीच पाठ्यक्रम विधि या सिलेबस नही होगा तो शिक्षक छात्र को कुछ भी पढ़ा देगे।इसलिए हस्तक्षेप ( सिलेबस ,पाठ्यक्रम) का होना आवश्यक है।। 🌸शिक्षण की अवस्थाये :- 1. पूर्व- ततपरता अवस्था (pre-active stage ) :- शिक्षक कोई भी विषय को पढ़ाने के पहले उसकी तैयारी करनी पड़ती है इसके लिए – उद्देश्य निर्धारित – पाठ्यक्रम के संबंध में निर्णय लेते है।। – पढ़ाने के लिए क्रमबद्ध व्यवस्था करते है।। – शिक्षण विधि का चुनाव करते है।। 2. अन्तः प्रक्रिया अवस्था ( Interactive phase stage ) :- वह प्रक्रिया जो छात्र और शिक्षक के बीच होती है। – इसमें शिक्षक क्रिया करते है और छात्र प्रतिक्रिया करते है। – छात्र को जो भी समस्या आती है शिक्षक उसका निदान करते है। – शिक्षक को कक्षा में आकार ( अनुशासन ) बना के रखना होता है।। 3. ततपरता के बाद की अवस्था ( Post action stage ) :- कक्षा करने के बाद छात्र का out put reaction कैसा होता है या छात्र कितना कुछ समझ पाया उसका लिखित या मौखिक मूल्यांकन करना।। 🌸📝पूजा कुमारी ✒️


🌹🌹🌹𝙏𝙚𝙖𝙘𝙝𝙞𝙣𝙜 𝙑𝙖𝙧𝙞𝙖𝙗𝙡𝙚𝙨 शिक्षण के चर 🌹🌹🌹:- ऐसी चीजें जो शिक्षण को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते हैं या शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं अर्थात जो परिणाम तक पहुँचने में सहायता करते हैं…ये तीन प्रकार के होते हैं 🌼(1) स्वतंत्र चर :- इस प्रकार के चर में शिक्षक आते हैं because शिक्षक शिक्षण व्यवस्था का नियोजन और परिचालन करने में सहायक होता है क्योंकि शिक्षण अपने अनुसार निर्माण करते हैं शिक्षा का परिचालन शिक्षक पर निर्भर करता है 🌼💐 ( 2 ) आश्रित चर :- इस प्रकार के चर के अन्तर्गत छात्र आते है क्योंकि छात्र नियोजन व्यवस्था और परिचालन पर निर्भर होतें है जो कि शिक्षक पर निर्भर करता है कि शिक्षण व्यवस्था का नियोजन कैसे करना है क्योंकि ज्ञान शिक्षक से छात्र पर स्थान्तरण होता है न कि छात्र से शिक्षक पर.💐…🌻 (3) हस्तक्षेप चर :- ऐसा चर जो हस्तक्षेप उत्पन्न करता है जिसके अंतर्गत पाठ्यक्रम ,शिक्षण विधि, विषय वस्तु, एवं शिक्षण का स्वरूप है🌻… शिक्षण की अवस्थाएँ :🌺 (1) पूर्व तत्परता की अवस्था (pree active stage) :- किसी कार्य को करने से पहले उसके उद्देश्य को निर्धारित करना अर्थात (a) शिक्षण का उद्देश्य निर्धारित करना.. (b) पाठ्यक्रम के सबंध में निर्णय लेना.. (c) क्रमबद्ध व्यवस्था 🌺 … (c) शिक्षण विधि को चुनना…🌺 (2) अन्त: क्रिया अवस्था :- जिस समय में हम Inrection करते हैं जिससे शिक्षक और छात्र के बीच समन्वय स्थापित किया जा सकता है (१) क्रिया या प्रतिक्रिया.. (२) छात्रों की समस्या का निदान… (३) कक्षा का आकार..🌺 … 🌸(3) तत्परता के बाद की अवस्था :- यह हमारे परिणाम अर्थात पर निर्भर करता है जिसको मौखिक या लिखित प्रश्नों का संग्रह माना जा सकता है.. 🌸🌹🌹

रश्मि सावले 🌹🌹


🌈शिक्षण के चर==×

“”चर वह होते है जो शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग करते हैं।।””
चर शिक्षण की प्रक्रिया को चलाने के लिए फंक्शन पर डिपेंड होते है।।
शिक्षण के चर , शिक्षण की मैथड नहीं होती हैं अर्थात् दोनों टर्म अलग अलग हैं।।
यह तीन प्रकार के होते है=✓
1️⃣ स्वतंत्र चर —<
शिक्षण व्यवस्था के नियोजन या परिचालन की प्रक्रिया एक शिक्षक द्वारा ही किया जाता है।
शिक्षण में शिक्षक को स्वतंत्र चर कहा गया है।
हर शिक्षक अपनी-२ प्लांनिंग से व्यवस्था , परिचालन के अनुरूप शिक्षण करते है।
जैसे — एक चित्रकार अपने अकॉर्डिंग ही चित्रकारी करता हैं।
2️⃣ आश्रित चर–<
इसमें छात्र, शिक्षक पर आश्रित रहता हैं।
एक अच्छे शिक्षण के नियोजन, व्यवस्था, परिचालन। के लिए छात्र, शिक्षक पर ही आश्रित रहता है।
छात्र, शिक्षक के माध्यम से क्रियाशील रहते हैं।
जैसे– शिक्षक के गाइड करने पर ही छात्र उस विषय या ज्ञान को एक्सिक्यूट करेगा।
3️⃣ हस्तक्षेप चर–<
यह चर वह है जो सारी मध्यस्थता की भूमिका निभाता है।
शिक्षक और छात्र के बीच की कड़ी है।
इस प्रक्रिया में पाठ्यक्रम ऑर शिक्षण विधियां कार्य करती हैं।
बच्चे को क्या सिखाना है और कैसे सिखाना है इसके अन्तर्गत आता है।
✍️ वैसे तो सभी चर महत्वपूर्ण हैं और प्रत्येक की अपनी अपनी उपयोगिता है।
तीनों एकदूसरे से बंधे है सभी की उपस्थिति आवश्यक हैं।
शिक्षक को प्राथमिक माना गया हैं।

🌈शिक्षण की अवस्थाएं==
1️⃣पूर्व तत्परता अवस्था–<
शिक्षण कार्य करने से पहले शिक्षक को कार्य की योजना बनानी होती है जो इस प्रकार है–
१: उद्देश्य निर्धारित करना।
२: पाठ्यक्रम के संबंध में निर्णय लेना ३: क्रमबद्ध व्यवस्था करना।
४: विधि का चयन करना।

2️⃣ अतः प्रक्रिया अवस्था–<
शिक्षण कार्य को करते समय शिक्षक और छात्र के बीच की क्रिया , अतः प्रक्रिया कहलाती हैं।
∆ इसमें शिक्षक , छात्र की समस्या को समझकर उसका निदान करता हैं।
∆ इसके माध्यम से शिक्षक कक्षा का संतुलन बना कर रखता हैं।

3️⃣ तत्परता के बाद की अवस्था–<
इसमें मूल्यांकन किया जाता है , जो मौखिक या लिखित रूप में हो सकता है।
यह शिक्षक द्वारा या स्वयं छात्र द्वारा भी किया जाता है।
शिक्षण प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद छात्र ने कितना ग्रहण किया उसका मूल्यांकन करना ही तत्परता के बाद की अवस्था है।।।।
🙏अनामिका राठौर 🙏


🌼शिक्षण के चर 🌼
गणितीय दृष्टिकोण से चर वह होता हैं जिसका मान निश्चित नहीं रहता है अर्थात् बदलता रहता है। चर हमे अपनी मंजिल (उत्तर) तक पहुँचने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं

शिक्षण के चर मतलब शिक्षण विधि से नहीं है

शिक्षण के चर – ऐसी चीजे, तत्व जो शिक्षण प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करता है, शिक्षण चर कहलाते है।

शिक्षण चर के प्रकार –3

1) स्वतंत्र चर – शिक्षण का स्वतंत्र चर शिक्षक होता है।
शिक्षण व्यवस्था, नियोजन और परिचालन शिक्षक स्वयं स्वतंत्रता पूर्वक अपने अनुसार करता है।
शिक्षक की क्वालिटि (गुणवत्ता) निर्धारित करती है कि शिक्षण का परिचालन कैसा होगा।

2) आश्रित चर – शिक्षण का आश्रित चर छात्र होता है।
छात्र शिक्षक के अनुसार क्रियाशील रहते है। शिक्षक शिक्षण व्यवस्था का परिचालन छात्र को ध्यान मे रखते हुए करता है।

3)हस्तक्षेप चर – यह शिक्षक और छात्र के मध्य एक पुल (सेतु ) की तरह कार्य करता है।
यह बताता की शिक्षक छात्र को क्या पढाना है
इसमे पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधि आदि शामिल हैं।

उपरोक्त तीनो मे से सबका अपना अपना महत्व है किसी को भी कम नहीं आका जा सकता है ।

शिक्षण की अवस्था –3

1) पूर्व तत्परता की अवस्था – यह शिक्षण करने के पहली की अवस्था है ।इसमें शिक्षक शिक्षण करने पहले अपनी तैयारी निम्म बातो का ध्यान रखते हुए करता है।
शिक्षण के उद्देश्य क्या है
पाठ्यक्रम के संबंध मे निर्णय
क्रमबद्ध व्यवस्था
विधि को चुनना

2) अंत प्रक्रिया अवस्था
इसमे शिक्षक और छात्र के मध्य क्रिया और प्रतिक्रिया होती है।
शिक्षण छात्रो की कमियो पहचानता है उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।
कक्षा के वातावरण को ठीक ढंग से बनाये रखता है

3) तत्परता के बाद की अवस्था
इसमे शिक्षक शिक्षण कार्य के पश्चात् यह पता लगाता है की छात्र ने कितना सिखा
इसके लिए वह मूल्यांकन करता है
मौखिक और लिखित रूप से छात्रो से प्रश्न पूछता है।

रवि कुशवाह


🌸” शिक्षण के चर “🌸
👉ऐसी चीजे, ऐसे तत्व जो शिक्षण को चलाने में भूमिका निभाते है और शिक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करता है
✒️चर तीन प्रकार के होते है।
🌸1- स्वतंत्र चर- इस चर में शिक्षक आते है। शिक्षक के द्वारा नियोजन, व्यवस्था को परिचालन करने का निर्णय स्वयं लेता है।
🌸2- आश्रित चर- इस चर मे छात्र अपने शिक्षक पर निर्भर रहता है छात्र अपने शिक्षक के अनुसार ही कार्य करता है।
🌸3-हस्तक्षेप चर- यह चर शिक्षक और छात्र क बीच की कडी है। इसमे छात्रो के कैसे ,क्या पढ़ाना है इसी में आता है।
🌸👉 शिक्षण की अवस्था🌸
1️⃣ पूर्व तत्परता का सिद्धांत – किसी भी कार्य को करने के लिए शिक्षक उद्देश्य निर्धारित करता है फिर पाठ्यक्रम के संबन्धमें निर्णय लेता है,क्रमबद्ध व्यवस्था तथा विधि का चयन करता है।
2️⃣ अतः प्रक्रिया अवस्था- शिक्षण करते समय शिक्षक और छात्रमें क्रिया प्रतिक्रिया होती है शिक्षक को बच्चे की समस्या का निदान करना जिसके माध्यम से कक्षा कक्ष को सन्तुलन बनाये रखे
3️⃣ तत्परता के बाद की अवस्था- इसमे शिक्षक छात्र का मूल्यांकन करता है जिससे शिक्षक को छात्र के बारे मे पता चलता है कि छात्रक कितना ग्रहण किया है या कितना सीखा है।।
🌸शशी चौधरी🌸

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