59. CDP – Learning Theories PART- 15

क्षेत्र सिद्धांत

💥💥💥💥

19  April  2021

🌺🌺  प्रतिपादन  :-   जर्मन मनोवैज्ञानिक  कर्ट  लेविन

ने  1988 ई.  में किया था।

👉  गेस्टाल्टवादी सिद्धांत में वर्दीमर,  कोहलर और कौफ़्का के साथ काम करने के कुछ समय पश्चात कर्ट लेविन जर्मनी छोड़कर अमेरिका चले गए ।

          👉   इसके बाद उन्होंने क्षेत्र सिद्धांत / क्षेत्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

क्षेत्र सिद्धांत भी संज्ञानवादी विचारधारा के अंतर्गत आता है।

क्षेत्र सिद्धांत , अधिगम के सिद्धांत के रूप में विकसित नहीं है बल्कि यह मनोविज्ञान की प्रणाली के रूप में विकसित हुआ है।

इसे ही :-

👉 क्षेत्रीय सिद्धांत 

👉 तलरूप सिद्धांत 

 👉 सदिश मनोविज्ञान    कहा जाता है।

क्षेत्र सिद्धांत का प्रतिपादन साहचर्य सिद्धांत की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरुप हुआ है।

क्षेत्रीय सिद्धांत , गेस्टाल्टवाद सिद्धांत के समान ही है , बस थोड़ा सा फर्क है कि  –

सूझ का सिद्धांत  :- अनुभव पर आधारित होता है। और 

क्षेत्र सिद्धांत  :-  मनोविज्ञान से उत्तपन्न व्यवहार पर आधारित है।

अतः यह मानवीय अभिप्रेरणा की बात करता है।

कर्ट लेविन ने वातावरण में व्यक्ति की स्थिति को आधार माना है।

अतः यहाँ व्यक्ति की स्थिति से  तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने वातावरण में किस प्रकार से साहचर्य स्थापित कर पाते हैं।

हांलाकि कर्ट लेविन व्यवहारवादी नहीं है पर 

 इनके अनुसार  व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए व्यक्ति की स्थिति , व्यक्ति के उद्देश्य और स्थिति और उद्देश्य के बीच के सम्बंध को समझना बहुत आवश्यक होता है ।

कर्ट लेविन का मानना था कि हर व्यक्ति का अपना एक कार्य करने का  क्षेत्र निश्चित होता है जहाँ तक पहुँचने के लिये उनके विशेष उद्देश्य और मेहनत होती है।

🌷🌷 कर्ट लेविन के अनुसार क्षेत्र सिद्धांत की व्याख्या :-

🌺 सीखना यांत्रिक नहीं बल्कि एक दूसरे से संबंधित होता है।

सीखना केवल प्रयास और भूल से संबंधित न होकर बल्कि प्रयास – भूल के साथ साथ साहचर्य से भी संबंधित होता है।

🌺 अनुभव से ज्यादा व्यवहार महत्वपूर्ण होता है।

अर्थात् यदि व्यक्ति को कुछ तथ्यों का अनुभव है पर बो अनुभव उनके व्यवहार में नहीं है  तो अनुभव का होना उचित नहीं माना जायेगा , क्योकि व्यवहारिक रूप से अनुभवी होना बेहतर समझा जाता है।

🌺 कर्ट लेविन ने अपने क्षेत्र सिद्धांत में गणितीय शब्दों का बहुतायत प्रयोग किया है जैसे कि –

👉 क्षेत्रफल 

👉जीवन विस्तार 

 👉तलरूप 

👉शक्ति power ( P ) 

👉वेक्टर 

किसी व्यक्ति को अपने क्षेत्र / उद्देश्य / लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अवरोधकों को पार करना आवश्यक होता है।

अवरोधक मनोवैज्ञानिक और भौतिक दोनों हो सकते हैं।

व्यक्ति की सीखने की प्रक्रिया प्रेरणा और प्रत्यक्षीकरण दोनों पर निर्भर होती है ।

अतः यहां प्रत्यक्षीकरण का तात्पर्य है कि  – 

कोई व्यक्ति किसी परिस्थिति को किस प्रकार से देखता है किस प्रकार से उसका प्रत्यक्षीकरण करके आगे बढ़ता है।

अर्थात जैसे कि किसी व्यक्ति के सामने कोई परिस्थिति कोई समस्या आती है या नए वातावरण में आते हैं जिसमें कि उन्हें कुछ सीखना है तो सबसे पहले उस समस्या ,  वातावरण को प्रत्यक्षीकरण करना होगा उसमें साहचर्य स्थापित करना होगा समझना होगा तभी फिर आगे बढ़ सकते हैं और उसके अनुकूल सीख सकते हैं।

और प्रेरणा से तात्पर्य है कि

व्यक्ति अपने लक्ष्य / उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किस प्रकार से प्रेरित है।

अतः यह प्रेरणा धनात्मक शक्ति और ऋणात्मक शक्ति दोनों रूप में हो सकती है।

 जैसे कि हमें कोई कार्य करना है , कुछ हासिल करना है तो हम किस प्रकार से प्रेरित / अभिप्रेरित हैं ये महत्वपूर्ण होता है। इसी के संदर्भ में यदि हम प्रेरित होकर अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल हुए तो ये प्रेरणा हमारे लिए धनात्मक शक्ति का कार्य करती है अन्यथा असफल होने यही प्रेरणा ऋणात्मक शक्ति के रूप में बदल जाती है।

और यदि व्यक्ति का लक्ष्य बेहतर है पर प्रत्यक्षीकरण उचित ढंग से नहीं है तो प्रेरणा में ऋणात्मक शक्ति आ  जाती है।

अतः धनात्मक शक्ति सफलता / लक्ष्य की ओर अग्रसर करती है परंतु 

अवरोधक जरूर मिलते हैं जो कि सफलता / लक्ष्य को हासिल करने में बाधक / कठिनाई लाते हैं। जिससे कि सरलता से लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते हैं।

सीखना जीवन का पुनर्संगठन है।

 जीवन स्थल में व्यक्ति और लक्ष्य के बीच अवरोधको को दूर करने के लिए व्यक्ति मैं सूझ का विकास होता है।

अर्थात व्यक्ति को अपनी सफलता तक पहुंचने के लिए विभिन्न प्रकार के अवरोधकों का सामना करना पड़ता है और इन अवरोधकों का सामना करने के लिए व्यक्ति में सूझ का होना बहुत आवश्यक होता है जिससे कि व्यक्ति अपने सोचने की क्षमता से और सूझ लगाने की क्षमता से अवरोधकों को पार करके लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं।

✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️

19/04/2021।              Monday

           TODAY CLASS…

              क्षेत्र सिद्धांत

 ➖➖➖➖➖➖➖➖➖

      प्रतिपादक :—कर्ट लेविन

   मनोवैज्ञानिक :—संज्ञानवादी

                 सन्:—1988

➖ इन्होंने गेस्टोल्वदी मे भी कार्य किया। कोहलर,कोफ्ता ,वर्दीमर के साथ कार्य करने के पश्चात जर्मनी छोड़कर अमेरिका चले गए

        उसके बाद इन्होंने क्षेत्रीय सिद्धांत/ तलरूप सिद्धांत सदिश सिद्धांत का प्रतिपादन किया

➖ यह सिद्धांत संज्ञानवादी विचारधारा के अंतर्गत आता है

➖ यह सीखने के सिद्धांत के रूप में विकसित नहीं है बल्कि यह मनोविज्ञान की प्रणाली के रूप में विकसित हुआ इसे ही क्षेत्रीय सिद्धांत कहा जाता है

 *अर्थात* 

➖➖➖

           मनोविज्ञान के प्रणाली में आपने सोचा कैसे ,आपकी psychology कैसे हुई सिर्फ उसकी बात करती है

   ➖ *क्षेत्र सिद्धांत के प्रतिपादन* 

साहचर्य सिद्धांत के प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप हुआ है।

 *जैसे* :— किसी sichuaition में जो हम तालमेल स्थापित करते है वह मनोविज्ञान से आता है

➖ क्षेत्रीय सिद्धांत से थोड़ा फर्क है पर गेस्टोलवाद के समान ही है, *सूझ के सिद्धांत में* अनुभव की बात करते हैं

 *वही* 

 *क्षेत्र के सिद्धांत में* मनोविज्ञान से उत्पन्न व्यवहार की मानवीय अभिप्रेरणा पर बल देते हैं

 *कर्ट लेविन ने* “वातावरण में व्यक्ति की स्थिति” को आधार माना है

 *अर्थात* व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए व्यक्ति के स्थिति, व्यक्ति के उद्देश, इसके बीच के संबंध को समझना क्षेत्रीय सिद्धांत का उद्देश्य है

➖ *सिद्धांत की व्याख्या* 

यह सिद्धांत मनुष्य में या उसके सीखने की प्रक्रिया को *यांत्रिक नहीं* मानता है

➖ बल्कि एक दूसरे से *संबंधित* है

➖ अनुभव से ज्यादा *व्यवहार* महत्वपूर्ण है

➖ लेवेने गणितीय शब्द का प्रयोग  ज्यादा किया इन्होंने *क्षेत्रफल, जीवन विस्तार ,तलरूप, शक्ति, वेक्टर* का प्रयोग किया है

➖ किसी व्यक्ति को लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अवरोधक को पार करना जरूरी है या *अवरोधक मनोविज्ञान और भौतिकी* भी हो सकता है

➖ सीखने की प्रक्रिया *प्रेरणा और प्रत्यक्षीकरण* पर निर्भर करती है

➖ *प्रत्यक्षीकरण* :—कोई व्यक्ति किसी परिस्थिति को कैसे देखता है

➖ लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये किस प्रकार प्रेरित करता है

➖ लक्ष्य में धनात्मक शक्ति और ऋणात्मक शक्ति दोनों लगेगी

 *जैसे* किसी को अगर परीक्षा मे अव्वल आना है तो यह दो तरीके से हो सकता है या तो वह खुद मेहनत कर के आगे बढ़े या दूसरे को पीछे करें, दूसरे को पीछे कर रहा है तो वह उसका ऋणात्मक सकती है लेकिन वह खुद आगे बढ़ता है तो वह धनात्मक सकती है

➖ धनात्मक शक्ति लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है अवरोधक अवश्य मिलते हैं जिससे सरलता से लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते हैं

➖ सीखना जीवन का पुनः संगठन है जीवन, स्थल में व्यक्ति और लक्ष्य के बीच अवरोधक को दूर करने के लिए व्यक्ति में सूझ का विकास होता है

🐣🐣🐣🐣🐣🐣🐣🐣🐣

Notes by:— ✍संगीता भारती✍

⛲⛲ (Cognitism )

                    संज्ञानवादी⛲⛲

  🌍🌍 कर्ट लेविन का क्षेत्र का सिद्धांत🌍

🎉प्रतिपादक- कर्ट लेविन

🗣️कोहलर और कोफ्का के साथ कार्य करने के पश्चात उन्होंने जर्मनी छोड़ने का विचार किया और यह अमेरिका आ गए,

यहां आने के बाद इन्होंने अपने संज्ञान से अपने “क्षेत्र के सिद्धांत” का प्रतिपादन किया।

✨लेविन का क्षेत्रीय सिद्धांत भी संज्ञान पर ही आधारित है, या संज्ञानवादी विचारधारा के अंतर्गत आता है

✨इस सिद्धांत का विकास सीखने के सिद्धांत के रूप में ना होकर बल्कि यह सिद्धांत मूल रूप से मनोविज्ञान की प्रणाली के रूप में विकसित हुआ, इसे ही क्षेत्र सिद्धांत या तल रूप सिद्धांत कहते है,वा “सदिश मनोविज्ञान”भी कहा जाता है।

✨इन्होंने अधिगम की बात ना कह के अपने सिद्धांत में समझ व व्यक्ति के मनोविज्ञान की बात की, अर्थात व्यक्ति अपने समझ वा व्यावहारिक मनोविज्ञान के स्वरूप ही सीखता है जिस प्रकार से उसकी बुद्धि या मनोविज्ञान है उसी के अनुरूप ही  सीखता है व अन्य कार्य करता है।

✨क्षेत्र सिद्धांत का प्रतिपादन साहचर्य सिद्धांत के प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप हुआ है।

✨एक कार्य में प्रयोग की गई अनुक्रियाओं। का अन्य गतिविधियों के साथ संबंध स्थापित करने मे प्रयोग करता है,

📷जैसे – एक बालक ने संख्याओ का जोड़ सीख लिया तो उसे अब गुणा करने की संकल्पना सिखायी जा सकती है।

✨(साहचर्य अर्थात अन्य के साथ संबंध या तालमेल स्थापित करना)

✨(किसी परिचित या मनुष्य के साथ तालमेल करके क्षेत्र का निर्माण करना) यह तालमेल भी मनोविज्ञान या सूझ से ही निकलता है। 

⛲”क्षेत्रीय सिद्धांत”*गेस्टाल्टवादी (पूर्णाकार) सिद्धांत के समान ही है किंतु क्षेत्र सिद्धांत थोड़ा सा   भिन्न है सूझ का सिद्धांत अनुभव की बात करता है ,वही क्षेत्र का सिद्धांत मनोविज्ञान से उत्पन्न व्यवहार मानवीय अभिप्रेरणा के बारे मे बल देता है।

⛲क्षेत्र सिद्धांत मनुष्य के मनोविज्ञान के अनुसार जिससे वह अन्य व्यक्तियों के साथ व्यवहार करता है वह उनके साथ अधिगम का संबंध स्थापित करता है वा मानवीय गुणों वा सामाजिक मानदंडों के को स्वीकार करता है।

✨लेविन का मत”वातावरण में व्यक्ति की स्थिति को आधार माना है।

⛲यदि वातावरण में व्यक्ति की स्थिति वा उसका मनोविज्ञान सकारात्मकता से प परिपूर्ण है तो वह मनुष्य वातावरण के अनुकूल अपना संबंध स्थापित कर लेता है वा उसका अधिगम भी सफलता पूर्वक चलता है।

मनुष्य का मनोविज्ञान व्यक्ति की व्यवहार को समझने के लिए व्यक्ति को व्यक्ति के उद्देश्य को समझना महत्वपूर्ण व आवश्यक मानता है।

✨यदि व्यक्ति का उद्देश्य उसके मनोविज्ञान से मेल नहीं खाता है तो अधिगम प्रक्रिया अवरुद्ध हो सकती है, क्योंकि निरर्थक उद्देश्य  के प्रति रुचि तात्कालिक होती है 

          ⛲⛲  सिद्धांत की व्याख्या ⛲⛲

,✨सीखना यांत्रिक नहीं है, बल्कि एक दूसरे से संबंधित है, अर्थात मनुष्य कोई मशीन नहीं है जो कि एक निश्चित दिशा में व एक निश्चित नियम वा निश्चित गति के अनुसार ही कार्य करता रहे मनुष्य अपने मनोविज्ञान के द्वारा एक अधिगम प्रक्रिया का दूसरी अधिगम प्रक्रिया में हस्तांतरण भी करता है।

✨अनुभव से ज्यादा व्यवहार महत्वपूर्ण है विषय-वस्तु का पूर्ण ज्ञान होना ही महत्वपूर्ण नहीं बल्कि उस विषय का अधिगम करना भी महत्वपूर्ण वा आवश्यक है ,

📷उदाहरण÷(अर्थात यदि किसी व्यक्ति को नृत्य करना आता है, किंतु वह शादी-विवाह वा अन्य मनोरंजन स्थानो पर जाकर वह नृत्य नही करता है,)

✨लेविन ने “गणितीय शब्द का प्रयोग ज्यादा किया।

जैसे क्षेत्रफल जीवन विस्तार तलरुप व शक्ति,वेक्टर -विश्लेषण ,सदिश -अदिश राशि इत्यादि शब्द का प्रयोग किया है।

✨किसी व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्त के लिए अवरोधक को पार करना जरूरी है यह अवरोधक  मनोविज्ञान और भौतिक दोनों हो सकता है, यह कहा जा सकता है कि अवरोधक  के बगैर अधिगम होना कठिन है,

✨यदि किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए छोटे-छोटे लक्ष्यों को अधिगम कर्ता प्राप्त करते जाता है तो इसके फल स्वरुप उसको उपलब्धि के स्वरूप में प्रोत्साहन मिलता है जिससे अधिगम और अधिक रुचिकर, ढृंढ, वा सुगम हो जाता है और वह अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अधिक सुढ़ृढं वा सरलतम होता जाता है।

✨लेविन के सीखने की प्रक्रिया प्रेरणा और प्रत्यक्षीकरण पर निर्भर करती है ,

✨(प्रत्यक्षीकरण ÷प्रत्यक्षीकरण से तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति किसी परिस्थिति को किस प्रकार से  देखता है)

✨अर्थात यदि किसी व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति के फल स्वरुप सकारात्मक प्रेरणा प्राप्त होती है तो वह उस कार्य को अधिक सजगता के साथ पूर्ण करता है।

✨व्यक्ति को लक्ष्य की ओर ले जाने में धनात्मक शक्ति मिलती है और अवरोधक तक भी अवश्य मिलते हैं सरलता से लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं किंतु परिश्रम और लगन से अवरोधक को पार कर सकते हैं।

✨अवरोधक के बगैर मनुष्य मनुष्य किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति को प्राप्त करने के बाद भी प्रोत्साहन व अभिप्रेरित नहीं रह सकता है,क्योकि लक्ष्य प्राप्त करना ही पूर्ण अधिगम नहीं है, अपितु लक्ष्य प्राप्ति के अंतर्गत की गई विभिन्न प्रकार की गतिविधियां वा क्रियाएं भी महत्वपूर्ण है इसी के द्वारा मनुष्य अपने भावी जीवन में अन्य परिस्थितियों में भी संघर्ष पूर्ण व्यवहार से सफलता को प्राप्त करता है।

✨सीखना जीवन का पुर्नसंगठन है, जीवन स्थल में व्यक्ति और लक्ष्य के बीच के अवरोध को दूर करने के लिए व्यक्ति में सोच का विकास होता है।

✨यदि जीवन के पुर्नसंगठन में या लक्ष्य की प्राप्ति करने में अवरोध ना होता तो मनुष्य में चिंतन शक्ति, तर्कशक्ति, वा मूर्त और अमूर्त विचारों का विकास ही ना होता।

✨✨Thank you

✨written by-Shikhar pandey✍️

🌲⚜️🔅कर्ट लेविन का क्षेत्र सिद्धांत🔅⚜️🌲

⚜️  प्रतिपादन  :-   जर्मन के मनोवैज्ञानिक  कर्ट  लेविन

ने  1988 ई.  में किया था।

👉  गेस्टाल्टवादी सिद्धांत में वर्दीमर,  कोहलर और कोफ़्का के साथ काम करने के कुछ समय पश्चात कर्ट लेविन जर्मनी छोड़कर अमेरिका चले गए ।

            इसके बाद उन्होंने क्षेत्र सिद्धांत / क्षेत्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

यह क्षेत्र सिद्धांत भी संज्ञानवादी विचारधारा के अंतर्गत आता है।

यह क्षेत्र सिद्धांत , अधिगम के सिद्धांत के रूप में विकसित नहीं है बल्कि यह मनोविज्ञान की प्रणाली के रूप में विकसित हुआ है।

इसे ही :-

➖️ क्षेत्रीय सिद्धांत 

➖️ तलरूप सिद्धांत 

 ➖️सदिश मनोविज्ञान    कहा जाता है।

क्षेत्र सिद्धांत का प्रतिपादन ❇️साहचर्य सिद्धांत❇️ की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरुप हुआ है।

क्षेत्रीय सिद्धांत , गेस्टाल्टवाद सिद्धांत के समान ही है , बस थोड़ा सा फर्क है कि  –

⚜️सूझ का सिद्धांत  :- अनुभव पर आधारित होता है। और 

⚜️क्षेत्र सिद्धांत    ➖️मनोविज्ञान से उत्तपन्न व्यवहार पर आधारित है।

अतः यह मानवीय अभिप्रेरणा की बात करता है।

कर्ट लेविन ने वातावरण में व्यक्ति की स्थिति को आधार माना है।

अतः यहाँ व्यक्ति की स्थिति से  तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने वातावरण में किस प्रकार से साहचर्य स्थापित कर पाते हैं।

हांलाकि कर्ट लेविन व्यवहारवादी नहीं है पर 

 इनके अनुसार  व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए व्यक्ति की स्थिति , व्यक्ति के उद्देश्य और स्थिति और उद्देश्य के बीच के सम्बंध को समझना बहुत आवश्यक होता है ।

कर्ट लेविन का मानना था कि हर व्यक्ति का अपना एक कार्य करने का  क्षेत्र निश्चित होता है जहाँ तक पहुँचने के लिये उनके विशेष उद्देश्य और मेहनत होती है।

🔅🔅 कर्ट लेविन के अनुसार क्षेत्र सिद्धांत की व्याख्या :-

⚜️सीखना यांत्रिक नहीं बल्कि एक दूसरे से संबंधित होता है।

⚜️अनुभव से ज्यादा व्यवहार महत्वपूर्ण होता है।

इसका मतलब यह है कि व्यक्ति अनुभव से ज्यादा व्यवहार महत्वपूर्ण होता है व्यक्ति अनुभव द्वारा अपने अनुभव प्राप्त करता लेकिन व्यापार को वह अपने जीवन में उतारता है

🔅 कर्ट लेविन ने अपने क्षेत्र सिद्धांत में गणितीय शब्दों का बहुतायत प्रयोग किया है जैसे कि –

🔅 क्षेत्रफल 

🔅जीवन विस्तार 

 🔅तलरूप 

🔅शक्ति

किसी व्यक्ति को अपने क्षेत्र / उद्देश्य / लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अवरोधकों को पार करना आवश्यक होता है।

अवरोधक मनोवैज्ञानिक और भौतिक दोनों हो सकते हैं।

व्यक्ति की सीखने की प्रक्रिया प्रेरणा और प्रत्यक्षीकरण दोनों पर निर्भर होती है ।

यहां प्रत्यक्षीकरण का तात्पर्य है कि  ➖️ 

कोई व्यक्ति किसी परिस्थिति को किस प्रकार से देखता है किस प्रकार से उसका प्रत्यक्षीकरण करके आगे बढ़ता है

जैसे कोई व्यक्ति के सामने जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तो वह है उस समस्या का समाधान किस प्रकार से करता है और वह उस समस्या को किस प्रकार से देखता है यह प्रत्यक्षीकरण कहलाता है

अतः यह प्रेरणा धनात्मक शक्ति और ऋणात्मक शक्ति दोनों रूप में हो सकती है।

सीखना जीवन का पुनर्संगठन है।

 जीवन स्थल में व्यक्ति और लक्ष्य के बीच अवरोधको को दूर करने के लिए व्यक्ति मैं सूझ का विकास होता है।

अर्थात व्यक्ति को अपनी सफलता तक पहुंचने के लिए विभिन्न प्रकार के अवरोधकों का सामना करना पड़ता है और इन अवरोधकों का सामना करने के लिए व्यक्ति

 में सूझ का होना बहुत आवश्यक होता है जिससे कि व्यक्ति अपने सोचने की क्षमता से और सूझ लगाने की क्षमता से अवरोधकों को पार करके लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं।

✍️Notes by – sapna yadav

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