हरमन रोर्शा का स्‍याही धब्‍बा परीक्षण – Rorschach’s Ink Blot Test

प्रक्षेपण परीक्षण में सबसे प्रचलित एवं प्रमुख परीक्षण रोर्शा परीक्षण (Rorschach test) है जिसका प्रतिपादन स्विट्जरलैण्‍ड के मनोचिकित्‍सक हरमन रोर्शा ने सन् 1921 में किया।
इस परीक्षण में 10 कार्ड पर स्याही के धब्बे बने होते है।
5 कार्डों पर काले व सफेद तथा बाकी 5 कार्डों पर विभिन्न रंगों के धब्बे बने होते है।
जे. एस. बालिया ने कार्डों पर चित्रों का वर्णन इस प्रकार किया है—5 कार्ड बिल्कुल काले, 2 कार्ड काले + लाल, 3 कार्ड अनेक रंगों के।
यह परीक्षण व्यक्तिगत रूप से किसी भी आयु वर्ग पर प्रयोग किया जा सकता है।
विशेषकर यह परीक्षण 14 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के बालक-बालिकाओं के काम में लिया जाता है।
इस परीक्षण में प्रत्‍येक कार्ड एक – एक करके, उस व्‍यक्ति को दिया जाता है जिसका व्‍यक्तित्‍व मापन किया जाता है। वह व्‍यक्ति कार्ड को जैसे चाहे घुमा – फिरा सकता है और ऐसा करके उसे बताना होता है कि उसे उस कार्ड में क्‍या दिखाई दे रहा है या धब्‍बा का कोई अंश या पूरा भाग उसे किस चीज के समान दिखाई पड़ रहा है।

व्‍यक्ति द्वारा दिए गए अनुक्रियाओं को लिख लिया जाता है और बाद में उनका विश्‍लेषण कुछ खास-खास अक्षर संकेतों के सहारे निम्‍नांकित चार भागों में बाँटकर किया जाता है →

  1. स्‍थान निरूपण (Location) – इस श्रेणी में इस बात का निर्णय किया जाता है कि व्‍यक्ति की अनुक्रिया का संबंध स्‍याही के पूरे धब्‍बे से है या उसके कुछ अंश से है। अनुक्रिया पूरे अक्षर के लिए W से अंकित करते हैं, बड़े धब्‍बे या सामान्‍य अंश के लिये D तथा छोटे धब्‍बे या असामान्‍य के लिऐ Dd का प्रयोग किया जाता है। उजले या सफेद स्‍थानों के लिए अनुक्रिया करने पर S का प्रयोग किया जाता है।
  2. निर्धारक (Determinants) – इस श्रेणी में इस बात का निर्णय किया जाता है कि धब्‍बा का कौनसे गुण के कारण व्‍यक्ति अमुक अनुक्रिया करता है। जैसे कि माना व्‍यक्ति किसी धब्‍बे में चमगादड़ होने की अनुक्रिया करता है। इस श्रेणी में लगभग 24 अक्षर संकेतों का प्रतिपादन किया गया है। आकार के लिए F, रंग के लिए, C मानव गति के लिए M, पशु गति के लिए FM तथा निर्जीव गति अनुक्रिया के लिए m आदि।
  3. विषय-वस्‍तु – इस श्रेणी में देखा जाता है कि व्‍यक्ति द्वारा दी गई अनुक्रिया की विषय-वस्‍तु क्‍या है। विषय-वस्‍तु मनुष्‍य होने पर H, पशु होने पर A, मानव के किसी अंग के विवरण होने पर Hd तथा पशु के किसी अंग के विवरण के लिए Ad, आग के लिए Fi, यौन के लिए Sx तथा घरेलु वस्‍तुओं के लिए Hh का प्रयोग किया जाता है।
  4. मौलिक अनुक्रिया एवं संगठन – मौलिक अनुक्रिया से तात्‍पर्य उस अनुक्रिया से होता है जो अनेक व्‍यक्तियों द्वारा किसी कार्ड के प्रति अक्‍सर दिए जाते हैं। इसे लोकप्रिय अनुक्रिया भी कहते है। इसका संकेत P है। जैसे प्रथम कार्ड के धब्‍बे को चमगादड़ या तितली बताना एक लोकप्रिय अनुक्रिया का उदाहरण है। अनुक्रियाओं के संगठन के लिए Z संकेत का प्रयोग किया जाता है।

रोर्शा परीक्षण पर दी गई अनुक्रियाओं का विश्‍लेषण →
W अनुक्रिया → तीव्र बुद्धि तथा अमूर्त चिन्‍तन का बोध
D अनुक्रिया → स्‍पष्‍ट रूप से देखने व समझने की क्षमता का बोध
Dd अनुक्रिया → चिन्‍तन में स्‍पष्‍टता का बोध
S अनुक्रिया → नकारात्‍मक प्रवृत्ति तथा आत्‍म-हठधर्मी का बोध
F अनुक्रिया → चिन्‍तन के समय एकाग्रता का बोध
A अनुक्रिया → बौद्धिक संकीर्णन तथा सांवेगिक असंतुलन का बोध
P अनुक्रिया → रूढिगत चिन्‍तन एवं सृजनात्‍मकता का बोध
Z अनुक्रिया → उच्‍च बुद्धि, सृजनात्‍मकता तथा निपुणता का बोध

रोर्शा के समान ही एक दूसरा स्‍याही धब्‍बा परीक्षण होल्‍जमैन ने सन् 1961 में प्रतिपादित किया। जिसमें कुल दो फार्म एवं 45 कार्ड होते है। लेकिन यह रोर्शा के समान लोकप्रिय नहीं हो सका।

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विषय-आत्‍मबोधन परीक्षण [Thematic Apperception Test (T.A.T.)]
इस परीक्षण का निर्माण मर्रे ने सन् 1935 में हारवार्ड विश्‍वविद्यालय, अमेरिका में किया। सन् 1938 में मार्गन के साथ मिलकर इस परीक्षण का संशोधन किया।

· इस परीक्षण को प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण तथा कथा प्रसंग परीक्षण भी कहते है।
· इस परीक्षण में कुल कार्ड = 30 (इनके अलावा एक खाली कार्ड)
· चित्रों से सम्बन्धित कुल कार्ड = 30 (जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को दिखाने वाले कार्ड)
· खाली कार्ड की संख्या=1 (इस पर कहानी लिखने के लिए कहा जाता है)
· इस परीक्षण में जीवन की विभिन्न स्थितियों को दिखाने वाले कार्डों पर चित्र दिखाये गये।
· इस परीक्षण के अन्तर्गत 10 कार्डों पर पुरुषों से सम्बन्धित चित्र एवं 10 कार्डो पर स्त्रियों से सम्बन्धित चित्र तथा अन्य 10 पर दोनों से सम्बन्धित चित्र बने होते है।
· यह परीक्षण व्यक्तिगत व सामुहिक दोनों रूपों में प्रयोग किया जा सकता है।
· यह परीक्षण 14 वर्ष से अधिक आयु वालें बालक-बालिकाओं के लिए विशेष उपयोगी होता है।
· इसमें व्यक्ति को चित्र दिखाया जाता है, उसके उपरान्त कहानी लिखने को कहा जाता है।
· इस विधि में बालक-बालिकाओं को विभिन्न कार्ड दिखाकर कहानी, या कथानंक लिखने को कहा जाता है।
· कार्ड पर अस्पष्ट चित्र बने होते हैं।
· इस परीक्षण के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी खुद की आवश्यकताओं, उद्देश्यों, भावनाओं, कठिनाईयों, समस्याओं, संघर्षों, निराशाओं आदि को प्रस्तुत करता है।
· इस परीक्षण का क्रियान्वयन दो सत्रों में होता है- पहले सत्र में 10 कार्ड तथा दूसरे सत्र में अंतिम 10 कार्ड व्यक्ति को देकर उसे आधार पर कहानी लिखने को कहा जाता है।
· मर्रे के अनुसार दोनों सत्रों में कम से कम 24 घंटों का अन्तर होना चाहिए।
· सभी कार्डों के आधार पर कहानी-लेखन का कार्य समाप्त होने पर साक्षात्कार किया जाता है जिसका उद्देश्य यह जानना हाता है कि कहानी लिखने में व्यक्ति की कल्पनाशक्ति का स्रोत, मात्र चित्र था या कोई बाहर की घटना भी रही।

मर्रे के अनुसार इस परीक्षण का विश्लेषण निम्नांकित प्रसंगों में किया जाता है—

  1. नायक (Hero) → प्रत्येक कहानी में नायक या नायिका का पता लगाया जाता है। ऐसा समझा जाता है कि व्यक्ति इस नायक या नायिका के साथ आत्मीकरण स्थापित कर अपने व्यक्तित्व के शीलगुणों, विशेषकर अपनी महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं को दिखाता है।
  2. आवश्यकता (Need) → प्रत्येक कहानी में नायक या नायिका की मुख्य आवश्यकताएँ क्या – क्या हैं, इसका पता लगाया जाता है। मर्रे के अनुसार TAT परीक्षण के द्वारा मानव की 28 आवश्यकताओं का मापन होता है। इनमें प्रमुख है – उपलब्धि आवश्यकता, संबंधन आवश्यकता तथा प्रभुत्व आवश्यकता।
  3. प्रेस (Press) → प्रेस (शक्ति या बल) से तात्पर्य कहानी के उस वातावरण संबंधी बलों से होता है, जिससे कहानी के नायक की आवश्यकता या तो पूरी होती है या पूरी होने से वंचित रह जाती है। मर्रे के अनुसार ये शक्तियां या बल 30 से भी अधिक है जो वातावरण संबंधी है। जैसे-आक्रामकता या आक्रमण तथा शारीरिक खतरा।
  4. थीमा (Thema) → प्रत्येक कहानी की थीमा का निर्धारण किया जाता है। थीमा से तात्पर्य नायक की आवश्यकता तथा प्रेस अर्थात् वातावरण-संबंधी बल की अन्त:क्रिया से उत्पन्न घटना से होता है। थीमा द्वारा व्यक्तित्व में निरन्तरता का ज्ञान होता है।
  5. परिणाम (Outcome) → परिणाम से तात्पर्य इस बात से होता है कि कहानी को किस तरह समाप्त किया गया है। कहानी का निष्कर्ष निश्चित है या अनिश्चित है। निश्चित एवं स्पष्ट निष्कर्ष होने से व्यक्ति में परिपक्वता तथा वास्तविकता के ज्ञान होने का बोध होता है।

बाल-अन्‍तर्बोध परीक्षण [Children Apperception Test (C.A.T)]

इस परीक्षण का निर्माण ल्‍योपोल्‍ड बेलाक ने सन् 1948-49 में किया तथा इसका प्रकाशन सन् 1954 में तथा संशोधित रूप 1993 में भी किया गया।

· इस परीक्षण को बाल सम्‍प्रत्‍यय परीक्षण भी कहते है।
· इसका अन्य संशोधन एवं विकास डॉ. अरनेष्ट क्रिस ने सन् 1951 में भी किया था।
· इस परीक्षण में 10 कार्डों पर पशुओं के चित्र बने होते है।
· बालकों को कार्ड/चित्र दिखाकर कहानी लिखने के लिए कहा जाता है।
· यह परीक्षण भी व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों रूपों में प्रयोग में लाया जाता है।
· यह परीक्षण 3 से 10 वर्ष के बालक-बालिकाओं के लिए उपयोगी है।
· इस परीक्षण में बालक कहानी बनाते समय अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को भी प्रस्तुत करता है, जो बच्चों की समस्याओं को प्रकट करती हैं।

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