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📛 संज्ञानात्मक सिद्धांत की विशेषताएं ➖
🔥 सभी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है |
🔥 पियाजे के अनुसार सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य करने की मूल आवश्यकता होती है |
🔥 पियाजे कहते हैं कि जो बच्चा खोज या चिंतन करता है उसकी शक्ति जैविक परिपक्वता और अनुभव की अंतः क्रिया द्वारा निर्धारित होती है |
🔥 पियाजे के अनुसार बालक के अमूर्त चिंतन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है |
यदि बच्चे की शिक्षा निम्न स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी निम्न स्तर का होगा और यदि बच्चे की शिक्षा उच्च स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी उच्च स्तर का होगा |
🔥 औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है | बच्चे समस्या समाधान की क्षमता औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद क्रमबद्ध और तार्किक ढंग से कर लेते हैं |
📛 संज्ञानात्मक विकास की कमियां ➖
💠पियाजे ने अपने संज्ञानात्मक सिद्धांत में बच्चों की क्रियाओं का अवलोकन व्यक्तिनिष्ठ आधार पर किया है |
यह सिद्धांत वस्तुनिष्ठ कम है और व्यक्तिनिष्ठ अधिक है |
💠 इस सिद्धांत के अनुसार शरीर के अंगों की तरह बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है जो कि मूल रूप से सत्य नहीं है |
💠 यह सिद्धांत मुख्य रूप से संज्ञानात्मक विकास की बात करता है जबकि कौशलात्मक या भावनात्मक विकास की व्याख्या नहीं करता है |
💠 संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय या अवधारणात्मक ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो कि अधूरा है |
💠 पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास एक विशेष क्रम होता है जो पूर्ण रूप से सत्य नहीं है |
💠 पियाजे के सिद्धांत के अनुसार संज्ञानात्मक विकास जैविक परिपक्वता के अनुक्रमानुपाती होता है |
जैविक परिपक्वता ~ संज्ञानात्मक विकास
लेकिन कई शोध में इसके विपरीत परिणाम देखे गए हैं |
💠 पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार बच्चा मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में तार्किक चिंतन कर पाता है लेकिन कई शोध में यह सिद्ध किया गया है कि बच्चा इससे पहले भी तार्किक चिंतन करता है |
नोट्स बाय➖ रश्मि सावले
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🟢 संज्ञानात्मक सिद्धांत की विशेषताएं
🌸 सभी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है |
🌸 पियाजे के अनुसार सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य करने की मूल आवश्यकता होती है |
🌸 पियाजे कहते हैं कि जो बच्चा खोज या चिंतन करता है उसकी शक्ति जैविक परिपक्वता और अनुभव की अंतः क्रिया द्वारा निर्धारित होती है |
🟢 पियाजे के अनुसार बालक के अमूर्त चिंतन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है |
यदि बच्चे की शिक्षा निम्न स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी निम्न स्तर का होगा और यदि बच्चे की शिक्षा उच्च स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी उच्च स्तर का होगा |
🌸 औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है | बच्चे समस्या समाधान की क्षमता औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद क्रमबद्ध और तार्किक ढंग से कर लेते हैं |
🟢संज्ञानात्मक विकास की कमियां
🌸पियाजे ने अपने संज्ञानात्मक सिद्धांत में बच्चों की क्रियाओं का अवलोकन व्यक्तिनिष्ठ आधार पर किया है |
यह सिद्धांत वस्तुनिष्ठ कम है और व्यक्तिनिष्ठ अधिक है |
🌸 इस सिद्धांत के अनुसार शरीर के अंगों की तरह बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है जो कि मूल रूप से सत्य नहीं है |
🌸 यह सिद्धांत मुख्य रूप से संज्ञानात्मक विकास की बात करता है जबकि कौशलात्मक या भावनात्मक विकास की व्याख्या नहीं करता है |
🌸 संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय या अवधारणात्मक ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो कि अधूरा है |
🌸 पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास एक विशेष क्रम होता है।जो पूर्ण रूप से सत्य नहीं है |
🟢 पियाजे के सिद्धांत के अनुसार संज्ञानात्मक विकास जैविक परिपक्वता के अनुक्रमानुपाती होता है |
🌸जैविक परिपक्वता संज्ञानात्मक विकास।
👉🏻लेकिन कई शोध में इसके विपरीत परिणाम देखे गए हैं |
🟢 पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार बच्चा मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में तार्किक चिंतन कर पाता है लेकिन कई शोध में यह सिद्ध किया गया है कि बच्चा इससे पहले भी तार्किक चिंतन करता है |
Notes by shikha tripathi
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,🌲🔅⚜️ संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की विशेषताएं ⚜️🔅🌲
🌲 सभी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है |
🌲 पियाजे के अनुसार सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य करने की मूल आवश्यकता होती है |
🌲 पियाजे कहते हैं कि जो बच्चा खोज या चिंतन करता है उसकी शक्ति जैविक परिपक्वता और अनुभव की अंतः क्रिया द्वारा निर्धारित होती है |
🌲 पियाजे के अनुसार बालक के अमूर्त चिंतन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है |
यदि बच्चे की शिक्षा निम्न स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी निम्न स्तर का होगा और यदि बच्चे की शिक्षा उच्च स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी उच्च स्तर का होगा |
🌲औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है | बच्चे समस्या समाधान की क्षमता औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद क्रमबद्ध और तार्किक ढंग से कर लेते हैं |
🌲🔅संज्ञानात्मक विकास की कमियां ➖️
🌲 अपने संज्ञानात्मक सिद्धांत में बच्चों की क्रियाओं का अवलोकन व्यक्तिनिष्ठ आधार पर किया है |
यह सिद्धांत वस्तुनिष्ठ कम है और व्यक्तिनिष्ठ अधिक है |
🌲इस सिद्धांत के अनुसार शरीर के अंगों की तरह बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है जो कि मूल रूप से सत्य नहीं है |
🌲 यह सिद्धांत मुख्य रूप से संज्ञानात्मक विकास की बात करता है जबकि कौशलात्मक या भावनात्मक विकास की व्याख्या नहीं करता है |
🌲संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय या अवधारणात्मक ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो कि अधूरा है |
🌲 पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास एक विशेष क्रम होता है।जो पूर्ण रूप से सत्य नहीं है |
🌲पियाजे के सिद्धांत के अनुसार संज्ञानात्मक विकास जैविक परिपक्वता के अनुक्रमानुपाती होता है |
🌲जैविक परिपक्वता संज्ञानात्मक विकास।
🌲लेकिन कई शोध में इसके विपरीत परिणाम देखे गए हैं |
🌲 पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार बच्चा मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में तार्किक चिंतन कर पाता है लेकिन कई शोध में यह सिद्ध किया गया है कि बच्चा इससे पहले भी तार्किक चिंतन करता है |
Notes by sapna yadav📝📝📝📝📝📝
*संज्ञानात्मक सिद्धांत की विशेषताए*⬇️
▪️ सभी मनोवैज्ञानिक का मानना है कि सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है।
▪️ पियाजे के अनुसार सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य करने की मूल आवश्यकताएं हैं।
▪️ पियाजे के अनुसार बालक की अमूर्त चिंतन और खोज की शक्ति जैविक परिपक्वता और अनुभव के आंतरिक द्वारा निर्धारित होती है।
▪️ पियाजे के अनुसार अमूर्त चिंतन पर शिक्षा का प्रभाव होता है।
*निम्न शिक्षा* होगी तो *अमूर्त चिंतन भी कम* होगा ।
*उच्च शिक्षा* होगी तो *अमूर्त चिंतन ज्यादा* होगा।
▪️औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।
बच्चे समस्या समाधान की क्षमता औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद *क्रमबद्ध* और *तार्किक* ढंग से कर लेते हैं।
*संज्ञानात्मक सिद्धांत की कमियां*➡️➡️
▪️ बच्चों की क्रियाएं का अवलोकन *व्यक्तिनिष्ठ* ज्यादा है किया है और *वस्तुनिष्ठ* पर कम है।
▪️शरीर के अंगों की तरह *बुद्धि का विकास धीरे-धीरे* होता है । यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
यह सिद्धांत *संज्ञानात्मक विकास* की बात नहीं करता है।
▪️कौशलात्मक /भावनात्मक की व्याख्या नहीं करता है।
▪️संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो अधूरा है।
▪️ संज्ञानात्मक एक विशेष क्रम में होता है पूर्ण रूप से सरल नहीं है।
संज्ञानात्मक विकास ♾️जैविक परिपक्वता लेकिन कई शोध ने इसके विपरीत परिणाम दिए है।
▪️इसके अनुसार *मूर्त अवस्था से बच्चा तार्किक चिंतन नहीं करता है* लेकिन कई शोध में बच्चा इससे पहले भी *तार्किक चिंतन करता है ।*
📋📋 *NOTES By* *Anand Chaudhary*
14/04/2021
🖋️🖋️🖋️
*संज्ञानात्मक सिद्धांत की विशेषताएं* 💫💫
संज्ञानात्मक सिद्धांत की निम्नलिखित विशेषताएं हैं………
1. सभी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि, सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है।
2. पियाजे के अनुसार, सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य मूल आवश्यकता है।
3. पियाजे के अनुसार, बच्चों में चिंतन और खोज की शक्ति जैविक परिपक्वता और अनुभव के अंतः क्रिया द्वारा निर्धारित होती है।
4. अमूर्त चिंतन पर शिक्षा का प्रभाव होता है।
यदि बच्चे को निम्न स्तर ( उचित शिक्षा का अभाव) की शिक्षा दी जाती है तो बच्चे में अमूर्त चिंतन कम होती है वही यदि बच्चे को उच्च स्तर ( उत्तम श्रेणी/तार्किक/ उचित शिक्षा) की शिक्षा दी जाती है तो बच्चे में अमूर्त चिंतन ज्यादा होती है। इस प्रकार से हम समझ सकते हैं कि बच्चे की संज्ञान / चिंतन में environment का प्रभाव भी पड़ता है क्योंकि उनको जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है बच्चे वैसे ही अमूर्त चिंतन करते हैं।
5. पियाजे के अनुसार, औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।
बच्चे समस्या समाधान 18 साल के बाद क्रमबद्ध और तार्किक ढंग से कर सकते हैं।
*संज्ञानात्मक विकास की कमियां* 💫💫
इस सिद्धांत की निमनलिखित कमियाँ हैं…….
1. बच्चों की क्रियाओं का अवलोकन व्यक्तिनिष्ठ ज्यादा है, वस्तुनिष्ठ कम है।
2. शरीर के अंगों की तरह बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
3. यह सिद्धांत संज्ञानात्मक विकास की बात करता है, कौशलात्मक/ भावनात्मक की व्याख्या नहीं करता है।
4. संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो अधूरा है।
5. संज्ञानात्मक एक विशेष क्रम में होता है यह पूर्णत: सत्य नहीं है।
6. संज्ञानात्मक विकास जैविक परिपक्वता के अनुक्रमानुपाती होता है लेकिन कई शोध में इसके विपरीत परिणाम भी दिए हैं।
7. इसके अनुसार, मूर्त अवस्था में बच्चा तार्किक चिंतन करता है लेकिन कई शोध में बच्चा इससे पहले भी तार्किक चिंतन करता है।
Notes by Shreya Rai 📝🙏
संज्ञानात्मक सिद्धांत की विशेषताएं
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14 April 2021
1. विभिन्न मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है।
अर्थात अधिगम एक क्रम में और आरोही तरीके से चलने बाली प्रक्रिया है।
2 . जीन पियाजे के अनुसार सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य मूल की आवश्यकता होती है।
3. जीन पियाजे के अनुसार बालकों में चिंतन और खोज की शक्ति जैविक परिपक्वता और अनुभव की अंतःक्रिया द्वारा निर्धारित होती है।
अर्थात बच्चे जब जैविक परिपक्वता और अपने अनुभव के आधार पर कुछ कार्य करते हैं या सीखते हैं तब उनमें चिंतन करने और नई चीजें खोजने की शक्ति जैविक और बौद्धिक रूप से निर्धारित होती है।
4. अमूर्त चिंतन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है।
निम्न शिक्षा पर अमूर्त चिंतन का कम प्रभाव पड़ता है।
अर्थात् बच्चों को यदि उचित शैक्षिक वातावरण उपलब्धता का अभाव रहेगा तो बच्चों की शिक्षा पर और उनकी सोच या खोज पर अमूर्त चिंतन का कम प्रभाव पड़ता है मतलब कि वह अपनी अमूर्त सोच का विकास नहीं कर पाते हैं । और वहीं
उच्च शिक्षा पर अमूर्त चिंतन का ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
अर्थात बच्चों को यदि उचित और आवश्यकता अनुसार शैक्षिक वातावरण उपलब्ध हो पाएगा तो बच्चे बेहतर ढंग से सीख सकेंगे , और अपने अमूर्त चिंतन का पूर्ण रूप से विकास कर सकेंगे ।
अंततः बच्चे अपनी शिक्षा पर अमूर्त चिंतन का विकसित प्रभाव अनुभव कर सकते हैं।
5. पियाजे अनुसार , औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।
बच्चे अपनी समस्याओं का समाधान 18 साल की उम्र के बाद क्रमबद्व और तार्किक ढंग से करने लगते हैं।
🍂🍂 संज्ञानात्मक विकास की कमियां :-
1. बच्चों की क्रियाओं का अवलोकन व्यक्तिनिष्ठ ज्यादा है , और वस्तुनिष्ट कम है।
2. शरीर के अंगों की तरह बुद्धि का विकास भी धीरे-धीरे होता है। ये पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
3. यह सिद्धांत संज्ञानात्मक विकास की बात करता है।
कौशलयात्मक या भावनात्मक की व्याख्या नहीं करता है।
4. संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो कि अधूरा है।
5. संज्ञानात्मक एक विशेष क्रम में होता है , अतः ये पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
6. संज्ञानात्मक विकास एक जैविक परिपक्वता के अनुक्रमानुसार है , लेकिन अनेक शोध ने इसके विपरीत परिणाम दिये हैं।
7. अतः इसके अनुसार , मूर्त अवस्था में बच्चे तार्किक चिंतन करते हैं , परंतु कई शोध में पाया है कि बच्चे इससे पहले भी तार्किक चिंतन करने लगते हैं।
✍️ Notes by जूही श्रीवास्तव ✍️
14 / 04 / 2021
Wednesday
🌀🌊🌸 संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत की विशेषताएं🌸🌊🌀
❄️ जीन पियाजे ने कहा कि सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है , यह एक क्रमबद्ध रूप से आगे की ओर बढ़ती जाती है।
यह बात सभी वैज्ञानिकों ने आगे चलकर मानी।
❄️ जीन पियाजे के अनुसार सीखने के लिए पर्यावरण और कार्य मूल आवश्यकता है।
अच्छा पर्यावरण तो जरूरी है लेकिन पर्यावरण के साथ-साथ कार्य करना भी उतना ही जरूरी है।
❄️ जीन पियाजे ने कहा जो बच्चा चिंतन करता है या किसी चीज की मन में खोज करता है इसकी यह जो शक्ति है वह अनुवांशिकता, जैविक परिपक्वता और अनुभव के अंत:क्रिया द्वारा निर्धारित होती है।
🧩 जैविक परिपक्वता -: सब में अनुवांशिकता के गुण रहते हैं लेकिन यह गुण उम्र के साथ ही प्रदर्शित होते हैं ।
जैसे शेशवावस्था में शैशवावस्था वाले गुण प्रदर्शित होंगे ना कि किशोरावस्था वाले गुण दिखेंगे।
तो उचित उम्र आने पर ही उस उम्र के अनुसार गुण प्रदर्शित होंगे।
🧩 अनुभव -: इस तरह अनुभव भी अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रकार से आएगा ।
❄️ पियाजे के अनुसार बालक के अमूर्त चिंतन पर उनकी शिक्षा का प्रभाव होता है।
अगर बालक की शिक्षा निम्न होगी या निम्न स्तर की होगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी कम होगा या निम्न स्तर का होगा।
और अगर बालक को उच्च स्तर की शिक्षा मिलेगी तो उसका अमूर्त चिंतन भी उच्च स्तर का होता है।
❄️ पियाजे ने कहा जब बालक 18 वर्ष का हो जाता है या औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था के बाद ही संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।
और बालक किसी समस्या का समाधान 18 साल के बाद क्रमबद्ध और तार्किक ढंग से कर सकता है।
⚜️ ⚜️ संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत की कमियां ⚜️⚜️
❄️ जीन पियाजे ने बच्चे की क्रियाओं का अवलोकन करके कहा कि यह क्रियाएं व्यक्तिनिष्ठ ज्यादा है वस्तुनिष्ठ कम है।
❄️ पियाजे ने कहा जिस प्रकार हमारे शरीर के अंगों का विकास होता है उसी की तरह ही बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
❄️ जीन पियाजे का यह सिद्धांत मुख्य रूप से संज्ञानात्मक विकास की बात करता है कौशलात्मक / भावनात्मक की व्याख्या नहीं करता।
❄️ जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय ज्ञान की व्याख्या की जाती है जो अधूरा है।
❄️ जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत में संज्ञानात्मक एक विशेष क्रम में होता है यह बात पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
❄️ पियाजे के सिद्धांत के अनुसार संज्ञानात्मक विकास जैविक परिपक्वता के डायरेक्टली प्रोपोर्शनल है लेकिन कई शोध ने इसके विपरीत परिणाम दिए हैं।
❄️ पियाजे हमेशा कहते हैं कि बच्चा मूर्त अवस्था में तार्किक चिंतन करता है लेकिन कई शोध में बच्चा इससे पहले भी तार्किक चिंतन करता हुआ दिखाई देता है।
🌸 धन्यवाद
वंदना शुक्ला🌸
15/04/2021. Wednesday
LAST CLASSE….
🔥जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं (Steps of piaget’s coginitive development )
➖पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की कुल *4अवस्थाएँ* हैं,जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
(1) संवेदी पेशीय अवस्था / इन्द्रिय जनित गामक अवस्था / संवेदी गत्यात्मक अवस्था / संवेगीगात्मक अवस्था(Sensori-mofor stage) – (0-2 वर्ष)
(2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational stage) –(2-7 वर्ष)
(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था/ स्थूल संक्रियात्मक अवस्था (concrete – operational stage)-(7-11 वर्ष)
(4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था / औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था/ औपचारिक क्रियात्मक अवस्था ( Formal -operatinal stage) –(11-15 वर्ष)
जीन पियाजे के अनुसार संवेदी पेशीय अवस्था को 6 उप अवस्थाओं है…
(1) प्रथम उप-अवस्था सहज क्रियाओं की अवस्था 0-1 माह (Stage I)
(2) द्वितीयउप-अवस्था: प्रमुख वितीय अनुक्रियओ की अवस्था 1-4 माह (Stage II)
(3) गौण वृतीय अनुक्रियओ की अवस्था:–(4-8 माह)
(4) गौण सिक्मेटा की समन्वय की अवस्था:—(8-12 माह)
(5) तृतीय अनुक्रियओ की अवस्था:–(12-18 माह)
(6) मानसिक सहयोग द्वारा नये साधनों की खोज की अवस्था:—(18-24 माह)
(2) पूर्व संक्रियात्मक /पाक अवस्था (Pre-operational stage) –(2-7 वर्ष)
➖पुर्व संक्रियात्मक अवस्था के दोष.
जीववाद
आत्मकेन्द्रित/ स्व केंद्रित (स्वलिंता)
➖पुर्व संक्रियात्मक अवस्था की 2 उप अवस्थाएँ:–
1 पुर्व संक्रियात्मक अवस्था:–(2-4 वर्ष)
2 अन्तर्दर्शी अवस्था:–(4-7 वर्ष)
(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था:–(7-11 वर्ष)
(4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (12-18 वर्ष)
*TODAY CLASS..*
संज्ञानात्मक विकास की विशेषताए
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➖सीखना एक क्रमिक और आरोही प्रक्रिया है
➖ यह बात संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में बोली गई है और यह बात सभी मनोवैज्ञानिक ने भी माना है
➖ पियाजे के अनुसार सीखने के लिए *पर्यावरण* की आवश्यकता होती है और *कार्य* करने की भी आवश्यकता होती है
➖ प्याजे ने कहा जो बच्चा चिंतन करता है या जो चीजें जिसके बारे में खोज करता है या उसे जानने की उत्सुकता होती है यह उनकी अनुवांशिक और जैविक परिपक्वता पर भी निर्भर करता है
➖ *जैविक परिपक्वता* :— आप उम्र के साथ बढ़ते हैं जिस हेरेडिटी का *प्रदर्शन बचपन* में करते हैं उसे हेरिडिटी का *प्रदर्शन बड़े* उम्र में तो उन *दोनों में फर्क* होगा और *अनुभव* कई प्रकार से प्रभावित करेगा जो अलग-अलग समय पर अलग लगेगा तो *इन दोनों का अंत:क्रिया* है यह अंत:क्रिया निर्धारित करेगा कि आपकी *चिंतन* कैसी है और *खोज* कैसी होगी
🔥 प्याजे ने कहा बालक के अमूर्त चिंतन पर उसकी शिक्षा प्रभावित करता है
➖ यदि बच्चे की शिक्षा *निम्न प्रकार से हुई तो अमूर्त चिंतन कम* होगा और अगर किसी बच्चे में *उच्च शिक्षा मिले तो उसका अमूर्त चिंतन ज्यादा होगा*
➖ क्या जी ने बोला कि जब बच्चा 18 साल (अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था) का हो जाता है तो इसके बाद संपूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास होता है
➖ समस्या समाधान 18 साल के बाद क्रमबद और तार्किक ढंग से कर सकते हैं
🧐संज्ञानात्मक विकास की कमियां
➖➖➖➖➖➖➖➖➖
प्याजे ने संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत कुछ बच्चों पर क्रियाओं का अवलोकन का आकलन करके किया और उन्होंने इस को एक जनरिक रूप से बताने की कोशिश की लेकिन सच्चाई यह है कि इनका सिद्धांत *व्यक्तिनिष्ठ है /वस्तुनिष्ठ नहीं
➖ शरीर के अंगों के तरह बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है/ *यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है*
➖ यह सिद्धांत में प्रयोग से संज्ञानात्मक विकास की बात करता है लेकिन संज्ञान से जुड़ी *कौशलआत्मक और भावनात्मक की व्याख्या नहीं करता है*
➖ संज्ञानात्मक विकास में केवल प्रत्यय ज्ञान की व्याख्या की जाती है
/ जो अधूरा है क्योंकि किसी भी चीज को *जानने* में और *समझने* में *फर्क* होता है
➖ संज्ञानात्मक एक विशेष कर्म में होता है/ यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है
क्योंकि कई बार आपके अंदर कई गुण आ जाते हैं लेकिन छोटे छोटे गुण नहीं आई होती है
पियाजे के सिद्धांत के अनुसार आपका जो संज्ञानात्मक विकास है यह आपके जैविक परिपक्वता के परस्पर जुड़ा है /लेकिन कई शोध ने इसके विपरीत परिणाम दिखाएं
➖ इनके अनुसार मूर्त अवस्था में बच्चा तार्किक चिंतन करता है /लेकिन कई शोध में यह बताया कि बच्चा इससे पहले भी तार्किक चिंतन करता है
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Notes by:— ✍संगीता भारती✍
Thank you 🙏🙏