🔆 बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक ➖

जब बच्चे पारिवारिक वातावरण से निकलकर बाहर के वातावरण के संपर्क में आते हैं या आगे बढ़ते हैं तो ऐसे कई महत्वपूर्ण कारक हैं जो बच्चों के विकास को प्रभावित करते हैं जो कि निम्नानुसार है।

❇️ 1 नर्सरी स्कूल और बाल विकास :-

▪️अधिकतर जिन बच्चों का समायोजन अपने माता पिता के साथ अच्छा होता है वह अपने विद्यालय में भी उसी प्रकार बेहतर रूप से समायोजन कर पाते हैं।

▪️अर्थात बच्चा अपने माता पिता को जिस प्रकार से घर में समायोजित करता हुआ देखता है ठीक वैसा ही अनुकरण करता है और उसी प्रकार का समायोजन विद्यालय में करना सीखता है।

▪️इस प्रकार की समायोजित बच्चे अपने दोस्त भी जल्दी बना लेते हैं।

तथा विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों या कार्यों में भी बेहतर रूप से और सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी या समायोजन करते हैं और अन्य बच्चों की अपेक्षा अच्छा प्रदर्शन करते हैं।

साथ ही साथ इनका  व्यवहार मित्रवत रहता हैं अपने सहपाठी समूह या साथियों के बीच काफी लोकप्रिय होते हैं।

▪️ इनमें मौलिकता (आधारभूत समझ या सोच या बेसिक अंडरस्टैंडिंग)और निर्माण शीलता(कुछ नया करना) के गुण भी आते हैं।

❇️ 2 प्राइमरी स्कूल और बाल विकास :- 

▪️जिस प्रकार उपरोक्त कथन में बताया कि जिन बच्चों का पारिवारिक वातावरण मैं समायोजन अच्छा होता है उनका नर्सरी विद्यालय में वातावरण समायोजन भी अच्छा होता है उसी पूर्वकथन अनुसार जब बच्चे का  नर्सरी विद्यालय  में अच्छा समायोजन होगा तो वह प्राइमरी विद्यालय में भी बेहतर रूप से समायोजन कर पाते थे।

▪️कई बच्चे इस तरह के भी होते हैं जो पारिवारिक वातावरण से निकलकर  बिना नर्सरी  विद्यालय वातावरण में प्रवेश लिए  सीधे ही प्राइमरी विद्यालय में प्रवेश लेते  हैं।

▪️इस स्थिति में पारिवारिक वातावरण से सीधे ही प्राइमरी विद्यालय के वातावरण में बच्चे को समायोजन करने में कई  तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अर्थात उन्हें समायोजन करने में कुछ ना कुछ परेशानी आती है।

❇️ 3 कक्षा कक्ष का वातावरण :- 

▪️कक्षा कक्ष का वातावरण बच्चों के लिए बहुत हितकर होता है तथा कक्षा कक्ष में बच्चों की सक्रिय भागीदारी भी बच्चों को सृजनात्मक रूप से आगे बढ़ाती है।

▪️यदि कक्षा का वातावरण प्रजातांत्रिक सहयोग पूर्ण है तो विद्यार्थी में कक्षा के अन्य विद्यार्थियों के साथ मित्रवत व्यवहार व सहयोग की भावना विकसित होती है।

▪️जिस कक्षा मैं बच्चों की बातों को या उनके विचारों को महत्व नहीं दिया जाता या बच्चों की शिक्षक के साथ अंतः क्रिया नहीं होती एवम विद्यार्थी की कक्षा कक्ष में भागीदारी नहीं होती तब ऐसी कक्षाएं “निरंकुश कक्षाएं” कहलाती हैं ।

▪️अर्थात ऐसी कक्षाओं का वातावरण निरंकुश वादी होता है।और निरंकुश वादी वातावरण की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले बच्चे कभी भी रचनात्मक कार्य नहीं कर पाते, उन्हें किसी भी काम को करने का हौसला नहीं रहता ,विरोधी ,निष्क्रिय और भयभीत होने लगते हैं।

▪️कक्षा कक्ष के वातावरण को सकारात्मक रखने के लिए शिक्षक को सभी बच्चों को  समान या समरूप से महत्व देना चाहिए एवं बच्चों के विचारों को भी वरीयता देनी चाहिए ।

 शिक्षक द्वारा किसी भी बात का निर्णय तार्किक रूप से मतलब उस बात के सही व गलत दोनों पक्षों को देख कर लेना चाहिए ।

शिक्षक द्वारा कक्षा का वातावरण प्रजातांत्रिक होना चाहिए जिसमें शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को सही मार्ग पर उचित रूप से या सही तरीके से अग्रसर करे।

शिक्षक की यह जिम्मेदारी है कि वह कक्षा के वातावरण को एक तराजू के दोनों पलड़ो को संतुलित रूप से बराबर रखें।

▪️अर्थात शिक्षक द्वारा यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि  छात्र को आवश्यकतानुसार ढीला छोड़ना है एवम् उसकी कौन-कौन सी उचित व सही बातों को महत्व दिया जाना है।

▪️कक्षा का वातारण रूचिपूर्ण और रचनात्मक भी होना चाहिए। इससे बच्चे जाने के लिए और उद्धेश्य पूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्सहित होंगे। उनकी रुचि और रचनात्मकता को संवेग प्रदान करता है, उन्हें स्कूल जाते रहने और सार्थक शिक्षा को हासिल करने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

❇️ 4 अध्यापक विद्यार्थी संबंध :- 

▪️अध्यापक बच्चों के लिए मां का एक प्रतिस्थापन रूप है।

अर्थात घर में मां का जो स्नेह है वही विद्यालय में शिक्षक का स्नेह है ।

▪️शिक्षक का व्यवहार अनुकरणीय होना चाहिए।

बच्चे अध्यापक की सोच, अभिवृत्ति व विचारों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं तथा शिक्षकों द्वारा बच्चों को प्रोत्साहन देना भी बहुत महत्व रखता है जिससे वह समय समय पर सही रूप से सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते रहते हैं

  ▪️शिक्षक द्वारा छात्र की गलतियों को पूरी तरह से अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। और ना ही छात्रों के प्रति बहुत ज्यादा कठोर व्यवहार या रवैया को अपनाया जाना चाहिए। दोनों का संतुलन बहुत ही आवश्यक है।

▪️छात्र का शिक्षक के साथ स्नेह एवं सहज होना भी बहुत आवश्यक है।

▪️स्नेह की आवश्यकता क्यों :- 

किसी भी वस्तु या व्यक्ति को हम तभी स्वीकार करते हैं जब हम उस वस्तु या व्यक्ति के प्रति स्नेह  आत्मीयता होता है। स्नेह के वजह से ही हम उस वस्तु या व्यक्ति की उचित रूप से देखभाल करते है व उसका ध्यान रखते हैं।

▪️इसी तरह शिक्षक और छात्र के बीच स्नेह होना चाहिए यही स्नेह छात्र व शिक्षक को जोड़े रखता है तथा छात्र शिक्षक से जुड़कर ही अपनी सही ज्ञान व समझ को बढ़ाते हैं और साथ ही साथ शिक्षक द्वारा अपने लक्ष्य को पाने में गतिशील रूप से प्रेरित रहते हैं।

▪️सहजता की आवश्यकता क्यों :- 

शिक्षक को आदर्श होना चाहिए लेकिन शिक्षक द्वारा बच्चों को यह भी अनुभव करवाया जाना चाहिए कि वह बेझिझक  अपनी बातों को शिक्षक के सामने सहज रूप से रख पाए।

तथा बच्चों व शिक्षक के बीच उचित दायरे के संतुलन को भी बनाए रखना आवश्यक है तथा शिक्षक को भी अपने छात्र के बीच में सीमाएं या कुछ अनुचित व दायरे का भी ज्ञान होना आवश्यक है।

▪️शिक्षक के पास काफी अनुभव होते हैं लेकिन जो शिक्षक व विद्यार्थी की अंत: क्रिया होती है वह इस प्रकार की हो जिसमे विद्यार्थी सहज रूप से  अपनी बात शिक्षकों के समकक्ष या सामने रख पाए।

▪️प्रत्येक कक्षा कक्ष के वातावरण में व्यक्तिक विभिन्नता होती है अर्थात प्रत्येक बच्चे की सोच उनकी परिस्थिति ,विचार और व्यवहार आदि एक जैसे नहीं हो सकती इसीलिए शिक्षक इस विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए छात्र के साथ इस तरह से समन्वय स्थापित करना चाहिए जिससे बच्चे द्वारा कक्षा के वातावरण में  कोई भी आक्रमक व्यवहार ना हो ,आज्ञा का पालन किया जाए,बच्चा कक्षा में अनुपस्थित ना रहे, तथा बच्चे का विकास भी धीमी गति से ना हो।

अध्यापक का कार्य सिर्फ़ इतना ही नहीं है कि वह   कक्षा में जाकर अपना पाठ पढ़ा दे। उसे यह भी देखना चाहिए कि छात्रों पर उसका कितना प्रभाव   पड़ता है। वह इस बात को तब ही देख सकता है जब उसका विद्यार्थियों के साथ मधुर संबंध स्थापित   हो। इसके लिए उसे प्रत्येक छात्र की ओर व्यक्तिगत   रूप से ध्यान देना चाहिए। उनकी समस्याओं का   उचित समाधान करना चाहिए उनके साथ मित्रता   करें।

❇️ 5 विद्यालय का अनुशासन :-

▪️जो भी नियम या प्रोटोकॉल या तौर तरीका या जो भी सिस्टमैटिक अप्रोच है यह सभी विद्यालय के अनुशासन के अंतर्गत आते है।

▪️बच्चों का अलग-अलग प्रकार का व्यवहार , सोच अभिवृत्ति इन सभी को अनुशासन प्रभावित करता है

▪️बच्चा विद्यालय में पहुंचकर बहुत ही बेहतर रूप से अनुशासन का पालन करने लगता है क्योंकि वह जिस विद्यालय वातावरण में रहते हैं वह उसे  देखते हैं उनका पालन करते हैं  और साथ ही वह सहज रूप से उसको अपना लेते हैं।

▪️यदि बच्चों के साथ अत्यधिक कठोर अनुशासन किया जाएगा तो इसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा इसीलिए अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए।

❇️6 स्कूल और चरित्र :- 

 ▪️विद्यालय में अनेक सामाजिक सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों होती रहती है। इनकी विविध क्रियाओं द्वारा बालक के चरित्र का विकास होता है। नैतिक एवं चारित्रिक विकास भी सामाजिक परिस्थितियों में ही सम्भव होता है। विद्यालय बालकों को इसके योग्य अपेक्षित परिस्थितियां प्रदान करता है।

❇️  7 . स्कूल में सामाजिक विकास :-

▪️जब बच्चे विद्यालय जाता है तो वह दो या दो से अधिक बच्चों के संपर्क में आता है जिससे उसमें सामाजिकता का भाव विकसित होता है बच्चे विद्यालय से ही समायोजन स्थापित करना, खेल के साथियों को अपनी वस्तुओं में साझेदारी बनाना सीख जाते हैं वह जिस भी समूह के सदस्य होते हैं उसके द्वारा स्वीकृति व प्रचलित प्रतिमान के अनुसार स्वयं को बनाने की चेष्टा करने लगते हैं।

🔆 मानव विकास के विभिन्न आयाम ➖

✓1 शारीरिक विकास

✓2 मानसिक विकास

✓3 भाषाई विकास

✓4 संवेगात्मक विकास

✓5 सामाजिक विकास

✓6 चारित्रिक विकास

इन सभी आयामों का वर्णन निम्नानुसार है।

🌠1 शारीरिक विकास :- 

▪️जन्म से पूर्व भ्रूण के स्थापित होने के साथ ही व्यक्ति का शारीरिक विकास प्रारंभ हो जाता है जो कि एक स्वाभाविक, प्राकृतिक और सतत प्रक्रिया है जिस पर वंशानुक्रम और वातावरण का प्रभाव पड़ता है जीवन की कई अवस्था में शारीरिक विकास को देखा जा सकता है।

🌠 2 मानसिक विकास:-

▪️मानसिक प्रतिमानो की संरचना करने की योग्यता संज्ञान में समाहित है जिसमें विचार, तर्क, स्मृति और भाषा की भूमिका होती है। 

किसी भी कार्य को करने में हम अपने संज्ञान मतलब विचार ,तर्क ,स्मृति और भाषा का प्रयोग करके ही उस कार्य को सफलतापूर्वक कर पाते हैं।

🌠 3 भाषाई विकास :-

▪️भाषा के विभिन्न अंग और उसके प्रयोग के तरीके बहुत हद तक अनुभव या वातावरण पर निर्भर करते हैं भाषा के काफी अंश को सामाजिकरण से सीखा जा सकता है जिन परिवारों में भाषा संप्रेषण सतत रूप व मुक्त रूप से चलता रहता है वहां बच्चे की भाषा का विकास सहजता के साथ होता रहता है।

🌠 4 संवेगात्मक विकास :-

▪️संवेग अर्थात भावना भावो तीव्र या उदीपक अवस्था को कहते हैं । भय, क्रोध, ईर्ष्या, चिंता सभी संवेग के उदाहरण है । संवेग परिस्थितियों की जटिल अवस्था है जो कभी-कभी व्यक्ति के कार्यों में बाधक होती हैं तो कभी प्रेरणापद भी।

▪️बालक की जीवन में भी संवेगो का बड़ा महत्व है संवेग के कारण ही बालक क्रिया करता है और संवेगात्मक क्रियाओं की पुनरावृत्ति धीरे धीरे आदतों में बन जाती है।

🌠 सामाजिक विकास :- 

▪️जन्म के समय बालक इतना असहाय होता है कि वह समाज के सहयोग के बिना मानव प्राणी के रूप में विकसित हो ही नहीं सकता। शिशु का पालन-पोषण प्रत्येक समाज अपनी विशेषताओं के अनुरूप करता है और बालक इसे अपने विभिन्न कार्यों में प्रकट करता है। इसे बालक का सामाजिक विकास कहते है।

▪️बालक का सामाजिक विकास क्रमाश:धीरे-धीरे होता है अतः इसका स्वरूप इस तथ्य पर आधारित होता है की बालक की अन्य व्यक्तियों के प्रति कैसी प्रतिक्रिया है और इस संबंध में उसे विकास के कैसे अवसर प्राप्त हो रहे हैं।

🌠 6 चारित्रिक विकास :-

जीवन की कई अवस्थाओं में व्यक्ति का अलग अलग तरह से चारित्रिक विकास होता है ।

▪️शैशवावस्था में अच्छी और बुरी, उचित और अनुचित बातों का ज्ञान नहीं होता है। वह उन्हीं कार्यों को करना चाहता है जिनमें उसको आनन्द आता है।

 ▪️बाल्यावस्था  में बालक में न्यायपूर्ण व्यवहार, ईमानदारी और सामाजिक मूल्यों की समझ का विकास होने लगता है। 

▪️किशोरावस्था के पहले बालक अच्छी और बुरी, सत्य और असत्य, नैतिक और अनैतिक बातों के बारे में तरह-तरह के प्रश्न पूछता है। लेकिन किशोरावस्था में आने पर वह इन सब बातों पर खुद ही सोंच-विचार करने लगता है। 

और चारित्रिक विकास धीरे-धीरे चलता रहता है।

✍🏻

  Notes By-‘Vaishali Mishra’

💫🌻 बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक🌻💫

🌼 नर्सरी स्कूल और बाल विकास➖नर्सरी कक्षा में बच्चा जिनके माता-पिता का समायोजन अच्छा होता है स्कूल में ऐसे बच्चों का समायोजन अच्छा होता है। जैसे–बच्चों की दोस्त जल्दी बन जाते हैं लोगों से अच्छा तालमेल बैठ जाता है अच्छी तरीके से बात करते हैं ऐसे बच्चे स्कूल के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं इन बच्चों में सहयोग की भावना पाई जाती है कि आसानी से मित्रवत व्यवहार करते हैं साथियों के बीच लोकप्रिय रहते हैं मौलिकता और निर्माण शीलता के गुण होते हैं बालक में बौद्धिक जिज्ञासा होती है।

🌼 प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास➖प्राइमरी स्तर पर बालक शैशवास्था से निकलकर बाल अवस्था में पहुंच जाता है प्राइमरी स्तर पर बालक के विकास की प्रक्रिया का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके अभाव में बालकों का चहुमुखीं विकास में अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकता है।

🌼 कक्षा- कक्ष का वातावरण➖स्कूल का वातावरण सकारात्मक होना चाहिए कक्षा का वातावरण रुचि पूर्ण और रचनात्मक होना चाहिए।

🌼 अध्यापक विद्यार्थी संबंध➖छात्रों के मन में डर को दूर करने की जिम्मेदारी शिक्षक की भी होती है इसलिए दोनों के बीच खुला संवाद होना चाहिए टीचर को अपने छात्रों के साथ खुले माहौल में बातचीत करना चाहिए ताकि बच्चा आसानी से अपनी समस्याओं को शिक्षकों के सामने बता सके।

🌼 विद्यालय का अनुशासन➖विद्यालय का अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए अनुशासन ही बालकों को श्रेष्ठता प्रदान करता है और उसे समाज में उन्नति स्थान दिलाने में सहायता करता है कोई भी बालक अनुशासन के महत्व को समझे बिना सफल नहीं हो सकता है।

🌼 स्कूल और चरित्र➖ स्कूल में बालकों का चारित्रिक विकास होता है बालक बहुत उत्सुकता से सब कुछ देखते हैं और प्रभावशाली होते हैं इसलिए स्कूल का वातावरण बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

🌼 स्कूल में सामाजिक विकास➖विद्यालय का वातावरण भी सामाजिक विकास को प्रभावित करता है यदि विद्यालय का वातावरण मधुर है तो बालक का सामाजिक विकास संतोषजनक ढंग से होगा जनतांत्रिक सिद्धांतों पर चलने वाले विद्यालयों में बालकों का सामाजिक विकास संतोषजनक ढंग से नहीं होता है।

💫🌻मानव विकास के विभिन्न आयाम🌻💫

1-शारीरिक विकास

2-मानसिक विकास

3-भाषायी विकास

4-संवेगात्मक विकास

5-सामाजिक विकास

6-चारित्रिक(नैतिक विकास)

🌼 शारीरिक विकास➖सारे विकास के अंतर्गत शरीर के समस्त आंतरिक एवं बाह्य अंगों का विकास होता है जैसे शरीर की लंबाई ,भार ,शारीरिक अनुपात, अस्थियों का विकास, मांसपेशियों का विकास ,आंतरिक अवयवों का विकास तथा शारीरिक स्वास्थ्य का अध्ययन आता है।

🌼 मानसिक विकास➖मानसिक विकास का केंद्र बिंदु बुद्धि है इसी से मानसिक सजगता आती है एक सामान्य बुद्धि बालक मंदबुद्धि बालक की तुलना में अपने वातावरण के साथ आसानी से समायोजन स्थापित कर लेता है।

🌼 भाषायी विकास➖भाषा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने विचारों का आदान प्रदान कर सकता है मनुष्य सामाजिक प्राणी है इसी नाते से उसे निरंतर अपने विचारों को दूसरों के सामने अभिव्यक्त करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है अतः भाषा और विचारों का घनिष्ठ संबंध है।

🌼 संवेगात्मक विकास➖संवेगात्मक विकास मानव जीवन के विकास व उन्नति के लिए आवश्यक है यह विकास मानव जीवन को बहुत पसंद करता है उसी से उसके व्यक्तित्व निर्माण में सहायता मिलती है जब व्यक्ति अपने समय को जैसे भय, क्रोध, प्रेम आदि का सही प्रकाशन करना सीख लेता है तो उसे संवेगात्मक विकास कहते हैं।

🌼सामाजिक विकास➖सामाजिक विकास का अर्थ है बालक का सामाजिक रन करना समाज में रहकर ही वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और अपनी जन्मजात शक्तियों और प्रवृत्तियों का विकास करता है।

🌼 चारित्रिक विकास➖ बालकों में चारित्रिक का विकास सामाजिकअंतर क्रिया के परिणाम स्वरुप होता है बच्चा समाज के संपर्क में आने पर सामाजिक व्यवहारों का अधिगम करता है और इस अवस्था में उस में चारित्रिक का विकास भी होता रहता है।

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma….

🍀बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक➖🍀

*1.)नर्सरी स्कूल और बाल विकास:-*

अगर ऐसे बच्चे अपने घर में माता-पिता का समायोजन अच्छा देखेगा तभी वह स्कूल जाकर उसी प्रकार से समायोजन कर पाएगा ऐसे बच्चों के दोस्त जल्दी बन जाते हैं और स्कूल के परिवेश में भी वह अच्छी तरीके से घुल -मिल जाते हैं ।यह मित्रवत व्यवहार करते हैं, लोकप्रिय होते हैं ,स्कूल के कार्य में  भी समायोजन आसानी से कर पाते हैं। और अन्य बच्चों से अच्छा करते हैं जिसके कारण उसके अंदर मौलिकता निर्माणशीलता के गुण होते हैं और उनकी बौद्धिक जिज्ञासा भी बढ़ती है।

*2) प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास:-*

जिन बच्चों का पहले से पारिवारिक वातावरण और नर्सरी स्कूल के वातावरण में अच्छे से सामंजस्य और तालमेल बैठाकर उन वातावरण से भली भांति परिचित हो जाते हैं ऐसे बच्चों का पारिवारिक वातावरण भी अच्छा होता है सभी के साथ मिलजुल कर रहते हैं।

*3) कक्षा- कक्ष का वातावरण:-*

अगर कक्षा कक्षा का वातावरण बच्चों के  जिंदगी के लिए हितकर है तभी वह आगे बढ़ सकते हैं अन्यथा बच्चे गलत रास्ते की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं।

              इसलिए हमें हमेशा कक्षा -कक्ष का वातावरण सहयोगात्मक रूप से बना कर रखना चाहिए ताकि बच्चों के अंदर भी मित्रवत व्यवहार उत्पन्न हो अगर जिस कक्षा में वातावरण अच्छा ना हो तो वह कक्षा निरंकुश कक्षा बन जाती है ऐसी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे कभी भी खुद रचनात्मक कार्य नहीं कर पाते ।

   कक्षा- कक्ष के वातावरण को अच्छा बनाने के लिए शिक्षक को तराजू के दोनों पड़लो को एक साथ संतुलित बनाने की आवश्यकता होती हैं।

*4) अध्यापक विद्यार्थी संबंध:-*

अध्यापक एक बच्चे का मां का प्रतिस्थापन रूप है। पारिवारिक परिवेश के बाद एक विद्यार्थी विद्यालय में हीं खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं और शिक्षक का इसमें अहम योगदान होता है कि वह बच्चों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं।

                 शिक्षक का व्यवहार हमेशा अनुकरणीय होना चाहिए बच्चों के प्रति वह संवेदनशील हो एक शिक्षक और छात्र के बीच में और आरामदायक का होना बहुत ही जरूरी है।

                शिक्षक के लिए सभी छात्र एक जैसे होते हैं। उन्हें कभी 1 बच्चों के सामने किसी दूसरे बच्चे कि हमेशा तारीफ या प्रशंसा नहीं करनी चाहिए उन्हें सभी बच्चों को एक साथ लेकर चलना चाहिए।

              शिक्षक  अपने छात्रों के प्रति हमेशा सजग रहें और वह यह भी देखें कि छात्र उनकी आज्ञा का पालन करे,आक्रामक रवैया ना  अपनाएं, अनुपस्थित ना रहे और विकास भी  धीमी गति से ना करें।

*5) विद्यालय का अनुशासन:-*

अनुशासन हमेशा प्रजातांत्रिक होना चाहिए। विधालय का तौर- तरीका अनुशासन कैसा होगा यह भी बच्चे को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है।बच्चे की अपनी-अपनी सोच, मानसिकता, होती है। जो वह विधालय आके ही सीखते हैं। इसलिए हमें विधालय का माहौल बच्चे के अनुरूप ही बनाना चाहिए। 

                          क्योंकि बच्चे विधालय से ही खुद के अंदर बहुत ज्यादा परिवर्तन करते हैं। 

जैसे:-  बड़े- छोटे के प्रति आदर ,बात करने का तौर -तरीके ,पहनावा इत्यादि। 

                      लेकिन वहीं दूसरी ओर ज्यादा अनुशासन भी बच्चों के अंदर गलत प्रभाव डालती है। इसके कारण बच्चों अंदर अकेलापन, हीन भावना, और खुद में ही खोए खोए रहते हैं।

*6) स्कूल और चरित्र:-*

 शिक्षक का पहला दायित्व है कि बच्चों का चरित्र निर्माण करें लेकिन शिक्षक ही नहीं पूरा स्कूल का भी यह कर्तव्य होता है बच्चे एक अच्छे नागरिक बने उन्हें बस किताबी ज्ञान देना जरूरी नहीं आध्यात्मिक ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।

        शिक्षक के व्यवहार ,कुशलता, सामाजिक कुशलता से ही बच्चे सीख कर स्वयं चरित्र निर्माण करते हैं अतः व्यवहारिक रूप से हमें यह ध्यान देना चाहिए कि हम कैसे बोलते हैं ?कैसे पहनते हैं? कैसे प्रतिक्रियाएं देती हैं ?कैसी हमारी सोच है ?इन सारी बातों को एक शिक्षक को भलीभांति ज्ञात होनी चाहिए।

*7) स्कूल में सामाजिक विकास:-*

बालकों की सामाजिक विकास में विद्यालयों का अहम योगदान होता है:-

1- बालकों को दूसरे के साथ रहने एवं व्यवहार की पर्याप्त अवसर मिलते रहना चाहिए।

2- एक बालक को अन्य व्यक्तियों के साथ अपनी भाव के अतिरिक्त दूसरों के भाव को भी समझना चाहिए।

3- बालक को सामाजिक बनने के लिए प्रेरणा देनी चाहिए।

4- बालकों मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए।  

 अतः इन सब बातों के लिए जागरूक बच्चों के लिए स्कूल के माध्यम से ही किया जाना चाहिए।

*🍀मानव विकास के विभिन्न आयाम:*➖

1) शारीरिक विकास:-

परिवार यदि अपने बालकों की पालन पोषण ऐसी स्थानों पर करते हैं जहां बच्चों को शुद्ध वायु, भोजन, प्रकाश, संतुलित और पौष्टिक आहार ,खेल और व्यायाम की सुविधा उपलब्ध कराकर, बच्चों से स्नेह पूर्ण व्यवहार करके और स्वच्छता की समस्या ना हो तो ऐसे  बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

2) मानसिक विकास:-

 परिवार का वातावरण बालक के मानसिक विकास  से घनिष्ठ संबंध रखता है। एक अच्छे परिवार जिसमें माता-पिता के अच्छे संबंध है और वह अपने बच्चों की रुचि व आवश्यकता को समझते हैं एवं जिसमें आनंद और स्वतंत्रता का वातावरण है और प्रत्येक सदस्य के मानसिक विकास बच्चों के मानसिक विकास में अत्यधिक योगदान देता है।

3) भाषाई विकास:-

परिवार के सदस्य शिष्टाचार और अच्छे शब्दों का प्रयोग करते हैं उच्चारण दोष रहित भाषा का प्रयोग करते हैं तो जाहिर सी बात है कि उस परिवार के बच्चे भी उत्तम कोटि की भाषा सीखेंगे अतः हम कह सकते हैं कि बालक की भाषा विकास पर पारिवारिक संबंधों का भी अधिक प्रभाव पड़ता है।

4) संवेगात्मक विकास:-

पारिवारिक वातावरण बालक के संवेगात्मक विकास पर अत्यधिक प्रभाव डालता है ।जिन परिवारों में आपस में  लड़ाई -झगड़े शक्तिशाली पाया जाता है। वहां बालकों का सकारात्मक, संवेगात्मक विकास नहीं हो पाता जिन परिवारों में बालकों को सुरक्षा, शांति तथा आदर सत्कार मिलता है वहां संवेगात्मक विकास होता है।

         जो माता-पिता अपने बालों को तिरस्कार करते हैं उनके बालक झगड़ालू  प्रवृत्ति  और आक्रामक व्यवहार करने वाले हो जाते हैं।

5) सामाजिक विकास:-

  माता-पिता द्वारा पालक के पालन पोषण की विधि उनकी सामाजिक विकास पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं अत्यधिक लाड- प्यार से पाला जाने वाला बालक दूसरे बालकों से दूर रहना पसंद करता है ।

वहीं दूसरी ओर, जिन परिवारों में आपस में मिल-जुलकर रहने की परंपरा, सहयोग की भावना और पारिवारिक माहौल में  लोगों का जैसा आचरण होगा तो वहां के बच्चे वैसा ही सीखेंगे और करेंगे।

6) चारित्रिक विकास:-

परिवार किसी भी बालक की प्रथम पाठशाला होती है। माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों की क्रिया और व्यवहारों काअनुकरण बालक करता है । माता-पिता तथा परिवार अन्य सदस्यों को अपना आदर्श मानता है परिवार के सदस्यों के साथ उनके संबंध और उनकी नैतिक विकास को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं अगर परिवार में प्रेम की भावना हो तो बालक का चारित्रिक विकास होता है।

             🍀🍀Mahima….🍀🍀

बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक

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(1) नर्सरी स्कूल और बाल विकास:–

👉जिनके माता-पिता का समायोजन अच्छा होता है स्कूल में ऐसे बच्चों का समायोजन अच्छा होता है l ऐसे बच्चों के दोस्त जल्दी बन जाते हैं l

🤘 स्कूल के कार्यों में समायोजन अन्य बच्चों से अच्छा करते हैं l

🤘 मित्रवत व्यवहार करते हैं l

🤘साथियों के बीच लोकप्रिय होते हैं 🤘 मौलिकता और निर्माण शीलता के गुण होते हैं l

 🤘बौद्धिक जिज्ञासा होती है

(2) 👉 प्राइमरी विद्यालय और बाल  विकास:—

 (पारिवारिक वातावरण+नर्सरी वातावरण+प्राइमरी  वातावरण)

👉जिनका पारिवारिक वातावरण और नर्सरी वातावरण अच्छा होता है  वह प्राइमरी वातावरण में समायोजन करने में काफी  सहूलियत  मिलती है  इस नए वातावरण में कठिनाई नहीं होती

👉 बहुत सारे ऐसे बच्चे होते हैं जो नर्सरी कक्षा ना जा करके सीधे  प्राइमरी जाते हैं तो इन बच्चों को वह समायोजन की परेशानी अब होगी जो समायोजन की परेशानी नर्सरी में थी

(3) कक्षा कक्ष का वातावरण:—

👉कक्षा कक्ष का वातावरण बच्चों के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है l यदि कक्षा कक्ष का माहौल शांत होगा और पढ़ाने के तरीके में लचीलापन होगा और बच्चों के रूचि के अनुसार उसको शिक्षा दी जाएगी तो बच्चे अधिक सीखेंगे और उनका विकास सही तरीके से होगा ऐसे में शिक्षक को चाहिए कि कक्षा कक्ष का माहौल सकारात्मक रखें l

(4)👉 अध्यापक विद्यार्थी संबंध:—

अभी के चाइल्ड सेंट्रिक एजुकेशन में अध्यापक को मां का प्रतिस्थापन रूप माना जाता है इसलिए अध्यापक का व्यवहार अनुकरणीय होना अनिवार्य है बच्चे के प्रति ना तो नरम और ना तो कड़क  इस बात का ध्यान रखें अपने शिक्षक के प्रति बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं ऐसे में दोनों के बीच स्नेह और सुविधा पूर्ण रिश्ता होनी चाहिए 

(5) 👉विद्यालय का अनुशासन:—

विद्यालय का अनुशासन विद्यालय में छात्रों का शिक्षकों का सबका एक निश्चित कर्म समय होता है जिससे वह उसका पालन कर सके और सही समय पर सही रास्ते पर चल सके विद्यालय का अनुशासन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि एक अनुशासन हीन विद्यालय का विद्यार्थी ना कुछ बन पाता है और ना कुछ कर पाता अतः अनुशासन सकारात्मक और प्रजातांत्रिक होनी चाहिए

🌻 मानव विकास के विभिन्न आयाम

(1) शारीरिक विकास 

(2)मानसिक विकास 

(3)भाषाई विकास

 (4)संवेगात्मक विकास

(5) सामाजिक विकास

(6) नैतिक विकास

1)👉 शारीरिक विकास:— शारीरिक रचना के बारे में स्नायु मंडल, मांसपेशियां, वृद्धि ,अंतः स्रावी

2)👉 मानसिक विकास:— बालक के ज्ञान के भंडार में वृद्धि एवं उपयोग से है मानसिक शक्तियों का विकास तथा वातावरण के प्रति सामंजस्य स्थापित की करने की क्षमता

3)👉 भाषाई विकास:— भाषा विकास एक प्रक्रिया है जिसे मानवीय जीवन की शुरुआत में शुरू किया जाता है

4)👉 संवेगात्मक विकास:— ज्ञान के कारण किसी कमरे का उत्पन्न होना जैसे :—क्रोध, भय ,हर्ष

5) 👉सामाजिक विकास:— बालक का पालन पोषण प्रत्येक समाज अपनी विशेषताओं के अनुरूप करता है और बालक उन्हें अपने विभिन्न कार्यों में प्रकट करता है

6)👉 नैतिक विकास:— बालक का नैतिक विकास आचरण के लिए समाज निर्धारित नियमों के अनुसार चलना ही नैतिकता माना जाता है

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

Notes by:—sangita bharti

🌸बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक निम्नलिखित हैं÷

💞नर्सरी स्कूल और बाल विकास💞

🧠 💦नर्सरी स्कूल में प्रवेश करने वाले बच्चे के घर का वातावरण अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि जिन बच्चों के घर का वातावरण व उनके माता-पिता का बच्चे के साथ अच्छा तालमेल या माहौल या समायोजन होता है ऐसे बच्चे विद्यालय में भी अच्छे से समायोजित कर पाते हैं क्योंकि इस अवस्था में बच्चे अनुकरण के द्वारा सीखते हैं इसलिए उन्हें जैसा घर में माहौल प्राप्त होता है या वातावरण मिलता है वह विद्यालय जाकर वैसा ही व्यवहार करता है।

🧠 💦समायोजित बच्चों के मित्र जल्द बन जाते हैं क्योंकि वह विद्यालय में मैत्रीपूर्ण व्यवहार करता है, ऐसे बच्चे स्कूल के विभिन्न कार्यक्रमों, गतिविधियों मैं अच्छा समायोजन कर पाते है और अपने साथियों के बीच लोकप्रिय होते हैं।

🧠 💦समायोजित बच्चो मैं मौलिकता और निर्माणशीलता के गुण होते हैं।

🧠💦 बौद्धिक जिज्ञासा अधिक होती है।

🧠💦भाषाई प्रयोग भी बालक घर से ही सीखता है, अपनी माता के द्वारा;

   💞प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास💞÷

🧠 💦ऐसे बच्चे जिनका नर्सरी में अच्छा समायोजन रहा है वह प्राइमरी वातावरण में भी आसानी वा सरलता से समायोजन कर लेते हैं क्योंकि वह नर्सरी कक्षा में समायोजित हो चुके रहते हैं,

💦किंतु कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो पारिवारिक वातावरण के बाद नर्सरी विद्यालय या नर्सरी वातावरण में ना जाकर प्राइमरी विद्यालय या वातावरण में प्रवेश ले लेते हैं ऐसे बच्चों को समायोजन में वही परेशानी होती है जो नर्सरी वाले बच्चे को प्रथम बार विद्यालय आने में हुई थी, लेकिन यदी उस बच्चे का पारिवारिक वातावरण अच्छा रहा है तो प्राइमरी विद्यालय वातावरण में भी समायोजन करने में परेशानी नहीं होती है और वह अच्छे से समायोजन कर पाता है।

💞कक्षा कक्ष का वातावरण💞

🧠💦कक्षा कक्ष का वातावरण प्रजातांत्रिक या सहयोग पूर्ण वा मैत्रीपूर्ण होना चाहिए जिससे विद्यार्थी आपस में सहयोग की भावना रखें

🧠💦एक शिक्षक की महत्वपूर्ण योग्यता यह होती है कि वह अपने कक्षा को संतुलित बनाए रखें (जिस प्रकार तराजू के दंड को समान करने के लिए दोनों पलड़ो को बराबर करना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार कक्षा कक्ष का वातावरण भी रखना चाहिए) इससे उनमें ना ही अत्यधिक उच्च कोटि भावना प्रबल हो जिससे कि वे अहंकारी प्रवृत्ति के हो जाए ना ही निम्नकोटी की हीन भावना का शिकार हो जाए, ऐसे में बच्चे निष्क्रिय हो जाते हैं वह उनमें विद्रोह की प्रवृत्ति आ जाती है और उनका अधिगम और अवरूद्ध हो जाता है।

🧠💦कक्षा कक्षके वातावरण का बालक के सीखने की प्रक्रिया उसके विकास के क्रम में महत्वपूर्ण योगदान रहता है यदि कक्षा के शिक्षक का व्यवहार मैत्रीपूर्ण है तो बालक को भी कक्षा में समायोजन होने में समस्या नहीं होती है और और वह आसानी से कक्षा कक्ष के वातावरण के अनुकूल हो जाता है और कक्षा कक्ष की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता है और धीरे-धीरे अन्य बच्चों के साथ घुल मिलकर आपस में समूह गतिविधि, समूह में कार्य करना, साथ साथ खेलना वा अन्य क्रियाएं भी करने लगता है।

💞अध्यापक विद्यार्थी संबंध💞

🧠💦बच्चे अनुकरण द्वारा सीखते हैं आता जैसा अध्यापक व्यवहार करता है बालक वैसा ही सीखता है अध्यापक के अच्छे गुण बालक में अनुकरण द्वारा स्थानांतरित होते हैं,

🧠💦शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच का संबंध मित्रवत होना चाहिए जिससे बालक और शिक्षक के मध्य सुचारू रूप से अंता क्रियाएं होती रहे,

🧠💦शिक्षक विद्यार्थी की किसी भी छोटी या बड़ी गलतियों के लिए ना ही अत्यधिक प्रताड़ित करना चाहिए ना ही छोड़ दें क्योंकि अत्यधिक प्रताड़ना से बालक कुंठित हो सकता है वहीं छोड़ देने से गलती को दोहराने की कोशिश करेगा अतः शिक्षक को बराबर रखना चाहिए ना ही अत्यधिक कठोरता ,बर्बरता  न ही अत्यधिक सरलता रखनी चाहिए।(दंड उतना जिससे दोबारा उस गलती को दोहराए ना जा सके)

🧠💦छात्र का शिक्षक की अभिवृत्ति पर विशेष प्रभाव पड़ता है कि शिक्षक द्वारा दिए गए पुरस्कार व प्रोत्साहन से उसमें आत्मविश्वास जागृत होता है और वह विद्यालय की गतिविधियों कार्यक्रमों व अन्य शैक्षिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है।

🧠💦प्रत्येक छात्र में व्यक्तिक विभिन्नता पाई जाती है वह सांस्कृतिक सामाजिक-आर्थिक नैतिक व अन्य रूपों से भिन्न होता है अतः शिक्षा का कार्य कर तब होता है कि वह प्रत्येक बच्चे को ध्यान में रखकर अधिगम कराएं जिससे सभी बच्चे बिना किसी भेदभाव के एक साथ सीख सकें,और ऐसा अधिगम अपनाया जाए जिससे बच्चे के विकास की धीमी गति से ना हो और ना ही ऐसा अधिगम अपनाया जाए जिससे बच्चा कक्षा कक्ष में अनुपस्थित रहे;

🧠💦बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार ना किया जाए कि वह कक्षा कक्ष में आक्रामक व्यवहार अपनाएं नहीं वह कक्षा कक्ष के नियमों का उल्लंघन करें।

💞विद्यालय का अनुशासन💞

🧠💦विद्यालय के अनुशासन इस प्रकार होना चाहिए कि वह उन्हें ना ही बोझ लगे ना ही बहुत आसान अर्थात अनुशासन ऐसा ना हो जिससे वे उसका  निर्वहन करने में परेशान हो जाएं ना ही इतना आसान हो जिसे वे आसानी से तोड़ सके।

🧠💦विद्यालय का अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए प्रत्येक बच्चे के लिए कोई भी नियम कानून समान होने चाहिए, किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए अनुशासन के प्रति, प्रत्येक बच्चा विद्यालय के अनुशासन के प्रति सजग एवं समर्पित रहे जिससे विद्यालय के वातावरण को सुगम बनाए रखा जा सके।

💞स्कूल और चरित्र💞

🧠💦बालक का के विद्यालय में उसका चरित्र विद्यालय के वातावरण व शिक्षकों के व्यवहार से निर्धारित होता है क्योंकि बालक अनुकरण से सीखता है अर्थात यदि विद्यालय में शिक्षक का व्यवहार व क्रियाकलाप अच्छी नहीं है व गुणवत्तापूर्ण नहीं है तो उसका असर बालक पर अत्यधिक पड़ता है इसलिए विद्यार्थी के साथ साथ एक शिक्षक का भी कर्तव्य होता है कि वह शिष्टाचार के नियमों का पालन करें एवं नैतिक गतिविधियां उचित व्यवहार कक्षा कक्ष में करें।

🧠💦एक शिक्षक को बालकों के सामने आदर्श चरित्र प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि बालक अपने शिक्षक के समान ही बनने की कोशिश करता है।

🌸उदाहरण÷एक अध्यापक यदि धूम्रपान करते कक्षा कक्ष में गतिविधियां कराता है यह अधिगम कराता है तो इसका कुप्रभाव बालकों के मस्तिष्क पर पड़ता है जिससे वह भी आगे चलकर यह गतिविधियां दोहराते हैं।

💞विद्यालय में सामाजिक विकास💞

🧠💦बच्चे विद्यालय में प्रवेश लेने से पूर्व पारिवारिक वातावरण से समायोजित रहते हैं अर्थात उनका सामाजिक वातावरण कुछ निर्धारित लोगों तक ही सीमित रहता है किंतु विद्यालय में आने के बाद वह विभिन्न प्रकार के बालकों, शिक्षकों के साथ अंतः क्रिया करता है अर्थात बालक का विद्यालय के वातावरण का सर्वाधिक असर पड़ता है।

विद्यालय में सामाजिक वातावरण को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि एक स्वस्थ एवं समायोजित वातावरण का निर्माण करें जिससे बालकों के सामाजिक वातावरण का निर्माण अत्यधिक सर व सहज हो जिससे वे अपने भावी जीवन में समाज में जाकर अंतःक्रिया कर सकें एवं उसके अनुकूल समायोजित हो सके।

धन्यवाद

🥀🥀Written by shikhar pandey 🥀🥀

✴️बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक ❇️

इस प्रकार हैं

🌲नर्सरी स्कूल और बाल विकास➖️

 नर्सरी स्कूल का बालक का बहुत ही प्रभाव पड़ता है परिवार के बाद दूसरा विद्यालय ही आता है नर्सरी कक्षा के बच्चे जिस प्रकार का कक्षा में वातावरण देखते हैं उसका ही अनुकरण करते हैं नर्सरी क्लास के बच्चों पर माता-पिता के समायोजन का बहुत असर पड़ता है जिसके माता-पिता का अच्छा समायोजन होता है स्कूल में उन बच्चों का समायोजन भी अच्छा होता है ऐसे बच्चे के जल्दी दोस्त बन जाते हैं लोगों से अच्छी तरीके से तालमेल बैठा पाते  हैं अच्छी तरीके से बातचीत करते हैं स्कूल के कार्यों में भाग लेते हैं आसानी से मित्र बना लेते हैं और ऐसे बच्चे साथियों के लिए लोकप्रिय होते हैं मौलिकता और  शीलता के गुण पाए जाते हैं ऐसे बच्चों में बौद्धिक विकास भी बहुत तीव्र गति से होता है

  🌲 प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास ➖️प्राइमरी स्तर पर बाल विकास से परिवार और नर्सरी विद्यालय के बाद आता है परिवार और नर्सरी कक्षा में बालक जिस प्रकार का वातावरण देखता है सीखता है और फिर वह प्राइमरी स्तर पर जाता है तो वह समझदार हो जाता है और उस समूह में रहने लगता है आपसी संबंध अच्छे हो जाते हैं उसके मित्रता पूर्ण व्यवहार भी करने लगते लगता है

🌲 कक्षा कक्ष का वातावरण बाल विकास में विद्यालय के➖️ वातावरण में कक्षा कक्ष का वातावरण बहुत ही महत्वपूर्ण होता है कक्षा कक्ष का वातावरण जिस प्रकार का वातावरण होगा बालक भी उसी प्रकार से अनुकरण करता है सकारात्मक होना चाहिए कक्षा में विद्यार्थियों द्वारा रचनात्मक कार्य करवाते रहना चाहिए जिससे वह सक्रिय  रह सकें

🌲अध्यापक विद्यार्थी संबंध ➖️अध्यापक और विद्यार्थी के बीच आपसी संबंध बहुत ही अच्छा होना चाहिए इसमें स्नेह और प्रेम  संबंध होने चाहिए इनके बीच कोई भी मतभेद नहीं होना चाहिए आप ही डर नहीं होना चाहिए विद्यार्थी जब भी शिक्षक के कोई बात करें तो उस शिक्षक को विद्यार्थी से अच्छी तरीके से बात करनी चाहिए ऐसा नहीं कि उसे डराना धमकाना चाहिए शिक्षकों मित्रता पूर्वक व्यवहार करना चाहिए इससे विद्यार्थी अपनी मन की बात शिक्षक से कह सकता है और उसकी जो भी समस्याएं हो सकती हैं वह दूर हो जाती हैं अगर विद्यार्थी के मन में कोई भी समस्या रहती है और उसका निदान निरीक्षक द्वारा नहीं हो पाता है तो वह बहुत ही निराश हो जाता है उसके मन में द्वेष भावना उत्पन्न होने लगती हैं शिक्षक को सभी विद्यार्थियों को एक समान व्यवहार करना चाहिए

 🌲विद्यालय का अनुशासन ➖️बालक के विकास में विद्यालय का वातावरण बहुत ही महत्वपूर्ण है विद्यालय का अनुशासन बहुत ही आवश्यक होता है विद्यालय के अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए अनुशासनहीनता प्रदान कराता है अनुशासन द्वारा ही अच्छी तरीके से सीखता है और विद्यालय के अंदर अनुशासन करते रहने से विद्यालय के बाहर जाता है तो वह अपने अनुशासन बनाए रखता है और और प्रतिष्ठा और सम्मान पाता है

 🍀 स्कूल और चरित्र➖️ स्कूल में बालकों के चरित्र का बहुत ही योगदान होता है बालक का चरित्र बहुत अच्छा होना चाहिए नैतिक विकास होना चाहिए इसलिए स्कूल में चरित्र का विकास बहुत ही आवश्यक होता है बालक के विकास में चरित्र का विशेष महत्व होता है बालक का चरित्र अच्छा होना चाहिए बालक को अपनी मर्यादा  पार  नहीं चाहिएस्कूल में सामाजिक विकास स्कूल में सामाजिक विकास विद्यालय का वातावरण भी सामाजिक विकास को प्रभावित करता है यदि विद्यालय का  का सही तरीके से हो पाएगा  विद्यालय में सामाजिक विकास बहुत ही महत्वपूर्ण होता है

🌸मानव विकास के विभिन्न आयाम🍀शारीरिक विकास➖️ मानसिक विकास भाषा विकास संवेगात्मक विकास सामाजिक विकास चारित्रिक विकास

शारीरिक विकास शारीरिक विकास के अंतर्गत सारी की सारी विकास आता है इसमें सभी आंतरिक को बाहरी विकास सही तरीके से होना चाहिए आंतरिक विकास जैसे शरीर की अस्थियां हड्डियां मांसपेशियों का विकास बाहरी विकास में हाथ-पैर नाक कान यह सभी बाहरी विकास का सही तरीके से होना चाहिए

🍀मानसिक विकास ➖️मानसिक मानसिक विकास का संविधान की मांसपेशियों उनकी बुद्धि से होता है बुद्धि  प्रकार की होती है जो बुद्धि मंदबुद्धि तेज बुद्धि बालक की बुद्धि का विकास बहुत सही तरीके से होना चाहिए तभी बालक सही तरीके से सीख पाता है

🍀भाषाई विकास ➖️भाषा विकास का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने विचारों का आदान-प्रदान नहीं कर सकता है मनुष्य के लिए भाषा का बहुत ही महत्व होता है बहुत ही सही तरीके से होना चाहिए

🍀संवेगात्मक विकास ➖️संवेगात्मक विकास ज्ञान से संबंधित होता है इसमें मानव जीवन के विकास और उनकी उन्नति के लिए आवश्यक होता है संवेगात्मक मैं उनसे संबंधित होती है जैसे मैं प्रेम क्रोध घृणा द्वेष संवेगात्मक विकास के अंतर्गत आता है

Notes by sapna yadav

📌मानव विकाश की अवस्थाओ और उनकी प्रमुख विशेषतायें📌    ♦️मानव विकास, विकास की विभिन्न अवस्थाओ से होकर गुजरता है,विकास की प्रत्येक अवस्था विकासात्मक  होती है और यह मनोविज्ञान के अधययन  का महत्वपूर्ण विषय है॥                           🌸 गर्भावस्था 🌸                                   गर्भावस्था प्रायः 9 माह या लगभग 280 दिनों तक रहती है, गर्भावस्था में विकास की गति तीव्र होती है , शरीर के सभी अंगों की आकृतियों का निर्माण इस काल में हो जाता है। गर्भावस्था को तीन भागों में विभाजित किया गया है।                                     1. डिंबावस्था – यह अवस्था गर्भाधान से 2 सप्ताह तक रहती है। इसका आकार अंडे के समान होता है और यह इधर-उधर नलिका में तैरता रहता है, जो मां के गर्भाशय तक जाती है। गर्भनाल के द्वारा मां के रुधिर प्रवाह सेलिंग अपना आहार प्राप्त करता है।                                2. पिंडावस्था – यह अवस्था तीसरे सप्ताह से दूसरे महीने के अंत तक रहती है। इस अवस्था में गर्भ पिंड मानव आकृति धारण कर लेता है । इसे विकास की गति तीव्र होती है  । 6 सप्ताह का गर्भ  पिंड  होने पर उसमें फिर दे की धड़कन प्रारंभ हो जाती है। स्नायु मंडल ,ज्ञानतंतु ,त्वचा, ग्रंथियां, बाल ,फेफड़ा , सांस नली आदि का निर्माण हो जाता है ।                3 . भ्रूणवस्था – यह अवस्था 3 माह से 9 माह तक रहती है। इस अवस्था में किसी नवीन अंग का विकास नहीं होता बल्कि पिंडा वस्था में निर्मित अंगों का विकास होता है। इस अवस्था में मानव शिशु की आकृति का पूर्ण विकास होता है ।                             🌱मानव विकास की प्रमुख अवस्थातएँ इस प्रकार  है-                                                                                              1.शैशवावस्था                             2. पूर्व  बा लयावस्था                                 . उत्तर बाल्यावस्था                         4. किशोरावस्था                          5. प्रौढ़ावस्था                           6. वृद्धावस्था                  💫💫शैशवावस्था- 1 से 5 वर्ष की            होती है । इस अवस्था को बालक का निर्माण काल माना गया है।       अवस्था जन्म से दूसरे वर्ष  तक मानी जाती है।    🌱शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताएं    निम्न है-                 📌-शारीरिक विकास की तीव्रता 📌-मानसिक क्रियाओं की तीव्रता                              📌-सीखने की प्रक्रिया की तीव्रता                               📌-दूसरों पर निर्भरता                 📌- आत्मप्रेम की भावना                 📌-  सामाजिक भावनाओं का तीव्र विकास                             📌- अनुकरण के द्वारा सीखने की प्रवृत्ति                                                   📌- संवेगॊ का प्रदर्शन                                      💫💫 बाल्यावस्था- 🔴यह अवस्था 5 से 12 वर्ष की अवधि तक मानी जाती है। इस अवस्था में बालक में अनेक अनोखे परिवर्तन होते हैं इसलिए विकास की दृष्टि से इस अवस्था को एक जटिल अवस्था माना जाता है।            🔴 इस अवस्था में बालक में नैतिकता भी विकसित हो जाती है। जिससे बालक उचित अनुचित का निर्णय भी कर सकता है। बालक आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ परिपक्व भी होने लगता है ,इस  अवस्था में मित्र बनाने की इच्छा प्रबल होती है ।             🌱 बाल्यावस्था की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है-                    📌 मानसिक योग्यता में वृद्धि                   📌 जिज्ञासा की प्रबलता                                 📌 वास्तविक जगत से संबंध                  📌 सामाजिक गुणों का विकास         📌 नैतिकता के गुणों का विकास 📌बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास                                                          📌सामूहिक खेलों में रुचि                📌शारीरिक एवं मानसिक स्थिति                                                                   💫💫किशोरावस्था-  🔴किशोरावस्था 12 से 18 वर्ष के बीच की अवस्था है यह एक जटिल अवस्था है यह अवस्था         जीवन का संधि काल है। इसे तूफान की अवस्था भी करते हैं ।             🔴 किशोरावस्था की अवधि कल्पनात्मक तथा भावात्मक   होती है ,यहीं पर जीवन साथी की तलाश होती है ।                                                                    🔴 पूर्व किशोरावस्था में    काल्पनिक जीवन अधिक होता है लेकिन उत्तर किशोरावस्था में व्यवहार में स्थायित्व आने लगता है।                                       🔴 इस अवस्था में समायोजन की क्षमता कम पाई जाती है। किशोरावस्था में इच्छाएं पूरी ना  होने पर पलायन वाली प्रवृत्ति होती है जिससे बच्चे  मे आत्महत्या की भावना अधिक  दिखाई पड़ती है ।                         🌱 किशोरावस्था की प्रमुख               विशेषताएं इस प्रकार हैं –            📌 शारीरिक परिवर्तन           📌 व्यक्तिगत मित्रता                📌  स्थिरता  व समायोजन  का अभाव                                       📌 स्वतंत्रता व विद्रोह की भावना                                             📌काम शक्ति की परिपक्वता 📌नशा या अपराध की ओर उन्मुख होने की संभावना        💫💫 प्रौढ़ावस्था – 🔴 यह अवस्था 18 से 40होती है । यह  अवस्था व्यवहारिक जीवन की अवस्था कही जाती है इसमें पारिवारिक जीवन की गतिविधियां   है ।                                                🔴 इस अवस्था में वास्तविक जीवन की अंतर क्रियाएं होती है। व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है उसकी बहुत प्रकार की प्रतिभाएं उभर कर सामने आती है। इस अवस्था में व्यक्ति अपने विशिष्ट क्षेत्र में कौशल दिखाता है।                  🔴 इस अवस्था में उसे अनेकों प्रकार के संघर्ष तथा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह अवस्था सामाजिक तथा व्यवसाय क्षेत्र के विकास की उत्कृष्ट    अवस्था होती है।                       💫💫 वृद्धावस्था  -🔴 यह     अवस्था बाल्यावस्था   की तरह  अत्यधिक संवेदनशील मानी  जाती है।                                   🔴 वृद्धावस्था में शारीरिक क्षमता कम होने लगती है। स्मरण शक्ति का कमजोर होना ,निर्णय क्षमता में कमी जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं ।                🔴 वृद्धावस्था में तरह-तरह के शारीरिक मानसिक परिवर्तन होते हैं । बीमारियां भी इस अवस्था में अधिक होती हैं। तनाव,उच्च रक्तचाप , ज्ञानेंद्रियों  की क्षमता तथा शक्ति की कमी के लक्षण दिखाई देते ।                       🔴 वृद्धावस्था में उत्तरदायित्व समाप्त करने के बाद व्यक्ति इस अवस्था में अत्यधिक चिंतन की ओर बढ़ता है।                    notes by- Babita pandey🖊️

🌼🌼बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक निम्नलिखित है🌼🌼

🌼1. नर्सरी स्कूल और बाल विकास:-

नर्सरी स्कूल में प्रवेश करने वाले बच्चे के घर का वातावरण अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि जिन बच्चों के घर का वातावरण व उनके माता-पिता का बच्चे के साथ अच्छा तालमेल या माहौल या समायोजन होता है ऐसे बच्चे विद्यालय में भी अच्छे से समायोजित कर पाते हैं क्योंकि इस अवस्था में बच्चे अनुकरण के द्वारा सीखते हैं इसलिए उन्हें जैसा घर में माहौल प्राप्त होता है या वातावरण मिलता है वह विद्यालय जाकर वैसा ही व्यवहार करता है।

🌼.समायोजित बच्चों के मित्र जल्द बन जाते हैं क्योंकि वह विद्यालय में मित्रतापूर्ण व्यवहार करता है, ऐसे बच्चे स्कूल के विभिन्न कार्यक्रमों, गतिविधियों मैं अच्छा समायोजन कर पाते है और अपने साथियों के बीच लोकप्रिय होते हैं।

🌼समायोजित बच्चो मैं मौलिकता और निर्माणशीलता के गुण होते हैं।

🌼 बौद्धिक जिज्ञासा अधिक होती है।

🌼भाषाई प्रयोग भी बालक घर से ही सीखता है, अपनी माता के द्वारा।।

🌼2. प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास:-

ऐसे बच्चे जिनका नर्सरी में अच्छा समायोजन रहा है वह प्राइमरी वातावरण में भी आसानी वा सरलता से समायोजन कर लेते हैं क्योंकि वह नर्सरी कक्षा में समायोजित हो चुके रहते हैं

🌼किंतु कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो पारिवारिक वातावरण के बाद नर्सरी विद्यालय या नर्सरी वातावरण में ना जाकर प्राइमरी विद्यालय या वातावरण में प्रवेश ले लेते हैं ऐसे बच्चों को समायोजन में वही परेशानी होती है जो नर्सरी वाले बच्चे को प्रथम बार विद्यालय आने में हुई थी, लेकिन यदि उस बच्चे का पारिवारिक वातावरण अच्छा रहा है तो प्राइमरी विद्यालय वातावरण में भी समायोजन करने में परेशानी नहीं होती है और वह अच्छे से समायोजन कर पाता है।

🌼3. कक्षा कक्ष का वातावरण:-

🌼कक्षा कक्ष का वातावरण प्रजातांत्रिक या सहयोग पूर्ण वा मित्रतापूर्ण होना चाहिए जिससे विद्यार्थी आपस में सहयोग की भावना रखें

🌼एक शिक्षक की महत्वपूर्ण योग्यता यह होती है कि वह अपने कक्षा को संतुलित रख सके  बच्चा  ना ही अत्यधिक  अहंकारी प्रवृत्ति के हो जाए ना ही  हीन भावना का शिकार हो जाए, ऐसे में बच्चे निष्क्रिय हो जाते हैं वह उनमें विद्रोह की प्रवृत्ति आ जाती है और उनका अधिगम और अवरूद्ध हो जाता है।

🌼कक्षा कक्ष के वातावरण का बालक के सीखने की प्रक्रिया उसके विकास के क्रम में महत्वपूर्ण योगदान रहता है यदि कक्षा के शिक्षक का व्यवहार मित्रतापूर्ण है तो बालक को भी कक्षा में समायोजन होने में समस्या नहीं होती है और  वह आसानी से कक्षा कक्ष के वातावरण के अनुकूल हो जाता है और धीरे-धीरे अन्य बच्चों के साथ घुल मिलकर आपस में समूह गतिविधि, समूह में कार्य करना, साथ साथ खेलना वा अन्य क्रियाएं भी करने लगता है।

🌼4. अध्यापक विद्यार्थी संबंध:-

🌼बच्चे अनुकरण द्वारा सीखते हैं  जैसा अध्यापक व्यवहार करता है बालक वैसा ही सीखता है अध्यापक के अच्छे गुण बालक में अनुकरण द्वारा ही आते हैं,

🌼शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच का संबंध मित्रवत होना चाहिए जिससे बालक और शिक्षक के मध्य सुचारू रूप से अंतः क्रियाएं होती रहती हैं,

🌼शिक्षक विद्यार्थी की किसी भी छोटी या बड़ी गलतियों के लिए ना ही अत्यधिक प्रताड़ित करना चाहिए ना ही छोड़ देना चाहिए क्योंकि अत्यधिक प्रताड़ना से बालक कुंठित हो सकता है वहीं छोड़ देने से गलती को दोहराने की कोशिश करेगा अतः शिक्षक को बराबर रखना चाहिए ना ही अत्यधिक कठोरता   न ही अत्यधिक सरलता रखनी चाहिए। दंड उतना ही देना चाहिए जिससे दोबारा उस गलती को दोहराए ना जाए

🌼छात्र का शिक्षक की अभिवृत्ति पर विशेष प्रभाव पड़ता है कि शिक्षक द्वारा दिए गए पुरस्कार व प्रोत्साहन से उसमें आत्मविश्वास जागृत होता है और वह विद्यालय की गतिविधियों कार्यक्रमों व अन्य शैक्षिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है।

🌼प्रत्येक छात्र में व्यक्तिक विभिन्नता पाई जाती है वह सांस्कृतिक, सामाजिक-आर्थिक, नैतिक व अन्य रूपों से भिन्न होता है अतः शिक्षा का कार्य जब होता है जब वह प्रत्येक बच्चे को ध्यान में रखकर अधिगम कराएं जिससे सभी बच्चे बिना किसी भेदभाव के एक साथ सीख सकें,और ऐसा अधिगम अपनाया जाए जिससे बच्चे के विकास की धीमी गति से ना हो और ना ही ऐसा अधिगम अपनाया जाए जिससे बच्चा कक्षा कक्ष में अनुपस्थित रहे;

🌼बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार ना किया जाए कि वह कक्षा कक्ष में आक्रामक व्यवहार न अपनाएं कि वह कक्षा कक्ष के नियमों का उल्लंघन करें।

🌼5. विद्यालय का अनुशासन:-

🌼विद्यालय के अनुशासन इस प्रकार होना चाहिए कि वह उन्हें न ही बोझ लगे न ही बहुत आसान ।।

🌼विद्यालय का अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए प्रत्येक बच्चे के लिए कोई भी नियम कानून समान होने चाहिए, किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए अनुशासन के प्रति, प्रत्येक बच्चा विद्यालय के अनुशासन के प्रति सजग एवं समर्पित रहे जिससे विद्यालय के वातावरण को सुगम बनाए रखा जा सके।

🌼6. स्कूल और चरित्र:-

बालक  के विद्यालय में उसका चरित्र विद्यालय के वातावरण व शिक्षकों के व्यवहार से निर्धारित होता है क्योंकि बालक अनुकरण से सीखता है अर्थात यदि विद्यालय में शिक्षक का व्यवहार व क्रियाकलाप अच्छी नहीं है व गुणवत्तापूर्ण नहीं है तो उसका असर बालक पर अत्यधिक पड़ता है इसलिए विद्यार्थी के साथ साथ एक शिक्षक का भी कर्तव्य होता है कि वह शिष्टाचार के नियमों का पालन करें एवं नैतिक गतिविधियां उचित व्यवहार कक्षा कक्ष में करें। एक शिक्षक को बालकों के सामने आदर्श चरित्र प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि बालक अपने शिक्षक के समान ही बनने की कोशिश करता है।

🌼7. विद्यालय में सामाजिक विकास:-

बच्चे विद्यालय में प्रवेश लेने से पूर्व पारिवारिक वातावरण से समायोजित रहते हैं अर्थात उनका सामाजिक वातावरण कुछ निर्धारित लोगों तक ही सीमित रहता है किंतु विद्यालय में आने के बाद वह विभिन्न प्रकार के बालकों, शिक्षकों के साथ अंतः क्रिया करता है अर्थात बालक का विद्यालय के वातावरण का अधिक असर पड़ता है।

विद्यालय में सामाजिक वातावरण को स्वस्थ बनाए रखने के लिए शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि एक स्वस्थ एवं समायोजित वातावरण का निर्माण करें जिससे बालकों के सामाजिक वातावरण का निर्माण अत्यधिक  सहज हो जिससे वे अपने आने वाले जीवन में समाज में जाकर अंतःक्रिया कर सकें एवं उसके अनुकूल समायोजित हो सके।

🌼🌼🌼🌼manjari soni🌼🌼🌼🌼

बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक

नर्सरी स्कूल और बाल विकास

बच्चे अनुकरण के माध्यम से सीखते हैं इसलिए जिन बच्चों के माता-पिता का आपसी संबंधों में समायोजन अच्छा होगा वह बच्चे विद्यालय में भी अच्छा समायोजन करते हैं

ऐसे बच्चों के विद्यालय में दोस्त जल्दी बन जाते हैं

यह बच्चे स्कूल के कार्यों में समायोजन अन्य बच्चों से अच्छा करते हैं

मित्रवत व्यवहार करते हैं 

साथियों के बीच अधिक लोकप्रिय होते हैं मौलिकता  (अर्थात आधारभूत) और निर्माणशीलता के गुण होते हैं 

इनमें बौद्धिक जिज्ञासा होती हैं।

प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास

जिन बच्चों का पारिवारिक समायोजन अच्छा होता है उनका नर्सरी स्कूल में भी समायोजन अच्छा होता है तो साथ ही उनका प्राइमरी विद्यालय में भी समायोजन अच्छा होता है

परंतु कई बच्चे नर्सरी स्कूल में नहीं पढ़ पाते हैं तो वह सीधे पारिवारिक वातावरण से प्राइमरी वातावरण में समायोजन के लिए जाते हैं।

कक्षा कक्ष का वातावरण

शिक्षक को बालक की कक्षा में ऐसा वातावरण निर्माण करना चाहिए जो प्रजातांत्रिक हो और मित्रवत हो इससे विद्यार्थियों में सहयोग की भावना विकसित होती है

यदि शिक्षक और छात्र अच्छी प्रकार से अंतर क्रिया करते हैं प्रजातांत्रिक अर्थात लोकतांत्रिक या निष्पक्ष वातावरण का निर्माण होता है अर्थात इसमें विद्यार्थी और शिक्षक दोनों ही सक्रिय कार्य करते हैं।

यदि कक्षा में शिक्षक और छात्रों के बीच अच्छी अंतः क्रिया ना हो और शिक्षक अपने अनुसार सब कार्य करेंगे बालकों के बारे में कुछ भी ध्यान नहीं रखेंगे तो ऐसे में कक्षा कक्ष का वातावरण निरंकुश हो जाएगा  ,शिक्षा बाल केन्द्रित न होकर शिक्षक केन्द्रित हो जायेगी और विद्यार्थियों की रचनात्मकता खत्म हो जाएगी 

वह विद्रोही होने लगेगे।

अध्यापक विद्यार्थी संबंध

बालक की प्रथम गुरु उसकी माता होती हैं लेकिन विद्यालय में अध्यापक उसकी मां का प्रतिस्थापन होता है अर्थात अध्यापक उसकी मां का स्थान ले लेता है।

अध्यापक का व्यवहार ऐसा होना चाहिए जो अनुकरणीय हो संवेदनशील व्यवहार हो, स्नेह पूर्ण व मित्रवत् होना चाहिए

शिक्षक आदरणीय और प्रशंसनीय होना चाहिए

शिक्षक का व्यवहार व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार होना चाहिए

शिक्षक का व्यवहार ऐसा होना चाहिए जिससे बालक उसकी आज्ञा का पालन करें 

शिक्षक ज्यादा आक्रामक नहीं होना चाहिए जिससे बालक उसके डर से विद्यालय में अनुपस्थित हो और उदासीन भी नहीं होना चाहिए।

शिक्षक का अनुशासन ना तो अधिक सख्त और ना  ही अधिक लचीला  नहीं होना चाहिए।

विद्यालय का अनुशासन

बालक के विकास की प्रक्रिया में बच्चों की सोच अनुशासन से प्रभावित होती हैं

विद्यालय का अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए ना तो अधिक कठोर और ना ही अधिक लचीला।

स्कूल और चरित्र

विद्यालय में बालक का सर्वांगीण विकास होता है विद्यालय से ही बालक के अच्छे चरित्र का निर्माण होता है

स्कूल में सामाजिक विकास

स्कूल में बालक का सामाजिक विकास होता है क्योंकि वहां पर अनेक बच्चे अलग-अलग परिवारों से ,समाज से आते हैं और एक दूसरे के साथ सीखते हैं।

मानव विकास के विभिन्न आयाम

शारीरिक विकास 

इसमें बालक का बाहरी और आंतरिक अंगों का विकास होता है

मानसिक विकास

इसमें बालक का बौद्धिक विकास होता है

भाषा विकास

संवेगात्मक विकास 

सामाजिक विकास 

चारित्रिक विकास

Notes by Ravi kushwah

🌴🌴🌴🌻🌻🌻🌻🌼

💥 बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक🌞

🌈💫नर्सरी और बाल विकास― नर्सरी कक्षा में बाख है कि विकास में बहुत प्रभाव पड़ता है। बच्चे के समाजीकरण का दूसरा स्तर है विद्यालय । नर्सरी विद्यालय आने वाले बच्चे का समाजीकरण सबसे पहले परिवार के द्वारा होता है बच्चा परिवार से,अपने माता पिता से जो सीखता है जिसका अनुकरण करता है।,उसी के अनुसार वह विद्यालय में अन्य बच्चों या शिक्षक के साथ व्यवहार करता है। यदि बच्चे के माता और पिता के बीच अच्छा तालमेल है तो बच्चा भी विद्यालय में बच्चों के साथ अच्छे से समायोजन कर पायेगा। उसके दोस्त भी बनने लगते है। और यही पर यदि बच्चे के माता और पिता के बीच आपसी संबंध अच्छे नही है और दोनों लोगो के बीच मे झगड़े ,अशब्दो का प्रयोग किया जाता है तो वह बच्चे को मानसिक रूप से प्रभावित करता है।और विद्यालय में बच्चा अन्य बच्चों के साथ अच्छा तालमेल नही बिठा पाता है।

   इस लिए बच्चे सामने अच्छा व्यवहार करें ताकि बच्चा विद्यालय में आपसी तालमेल अच्छे से बिठा पाए तथा स्कूल के कार्यो में भाग ले । ऐसे बच्चे साथियो तथा शिक्षकों के लिए लोकप्रिय होते हैं। इनमे मौलिकता तथा निर्माण शील गुण पाए जाते हैं ऐसे बच्चों का बौध्दिक विकास तीब्र होता है।

🌈💫 प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास ― प्राइमरी स्तर पर बालक नर्सरी के बाद आता है तो नर्सरी कक्षा में बच्चा अन्य बच्चों तथा शिक्षक के साथ सहज हो जाता है और वह अपने दोस्त भी बना लेता है अब जब बच्चा प्राइमरी में आता है तो कक्षा तथा विद्यालय के वातावरण से कुछ परिचित हो जाता है और इस स्तर पर आस पास की चीज़ों को समझने लगता है। और सभी साथियों के साथ मित्रता पूर्वक व्यवहार करने लगता है।

🌈💫 कक्षा कक्ष का वातावरण और बाल विकास― बच्चे के विकास का सबसे महत्वपूर्ण होता है कक्षा का वातावरण। कक्षा का जिस प्रकार का वातावरण होगा बच्चा भी वैसे ही अनुकरण करता है । कक्षा का वातावरण शिक्षक पर भी निर्भर करता है कि वह बच्चे के साथ कि प्रकार का व्यवहार करते हैं। बच्चे के साथ शिक्षक की सकारात्मक होना चाहिए तथा उनसे कुछ रचनात्मक कार्य भी करवाते रहना चहिये।

🌈💫 अध्यापक तथा विद्यार्थी के बीच संबंध― बच्चे के विकास में अध्यापक तथा विद्यार्थियों के बीच संबंध भी महत्वपूर्ण होता है शिक्षक को बच्चे के साथ स्नेह और प्रेम के साथ व्यवहार करना चाहिए । बच्चो के साथ मतभेद नही करना चाहिए और बच्चे को डरना या धमकाना नही चाहिए इससे बच्चे में एक डर पैदा हो जाता है और बच्चा अध्यापक के साथ सहज नही हो पाता है और न ही वह अपने मन मे उठ रहे सवालो को पूछ पाता है इस लिए एक शिक्षक को अपने बच्चो के साथ मित्रता पूर्वक व्यवहार करना चाहिए । उनकी प्रत्येक समस्या का निदान निरीक्षक द्वारा नही हो पाता जिससे बच्चे में निराशा उत्पन्न हो जाती है ।

🌈💫 विद्यालय का अनुशासन― एक बालक के विकास में विद्यालय का वातावरण बहुत ही महत्वपूर्ण पूर्ण होता है क्योंकि बच्चा परिवार के बाद विद्यालय में ही ज्यादा समय व्यतीत करता है। इसलिए विद्यालय का वातावरण बच्चे के अनुकूल होना चाहिये विद्यालय का अनुशासन प्रजातांत्रिक होना चाहिए । 

      विद्यालय का अनुशासन ऐसा नही होना चाहिए कि बच्चे को निर्वहन करने में कठिनाई हो और बहुत लचीला भी नही हो जिससे कि बच्चा लापरवाह हो जाये ।

 विद्यालय के अनुशासन सभी विद्यार्थी के लिए समान होना चाहिए। ताकि प्रत्येक बच्चा अनुशासन के प्रति समर्पित रहे और विद्यालय के वातावरण को सुगम बनाये रखा जा सके।

🌈💫 स्कूल और चरित्र―  एक बच्चे का चरित्र विद्यालय के वातावरण तथा शिक्षक के व्यवहार पर निर्धारित होता है। कि शिक्षक बच्चे के साथ किस प्रकार का व्यवहार करता है क्योंकि जो बच्चा होता वह नर्सरी और प्राइमरी तक तो अनुकरण के द्वारा ही सीखते हैं अर्थात विद्यालय के शिक्षक का यदि व्यवहार तथा उनकी क्रियाये आचि नही है तो यह बच्चे को प्रभावित करती है और बच्चे में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिए शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार करें तथा अच्छे क्रियाकलाप करे जिससे विद्यार्थियों में भी सकारात्मक गुण आये और बच्चा विद्यालय में नैतिक गतिविधियों का पालन करे। एक शिक्षक को बच्चे के सामने आदर्श चरित्र का प्रदर्शन करे जिससे बच्चे उन्हें अनुकरण करे।

 🌼 जैसे यदि कोई शिक्षक बच्चे के सामने उसके साथ आक्रामकता का व्यवहार करता है या किसी प्रकार का कोई नशा करता है तो इसका प्रभाव बच्चे पर पड़ेगा और बच्चा भी इन गतिविधियों को दोहराने का प्रयत्न करेगा ।

🌈💫 विद्यालय में सामाजिक विकास―  विद्यालय आने से पहले बच्चे परिवार द्वारा उनका सामाजिक विकास होता है जो कि कुछ सीमित लोगो के बीच के होता हैं उन लोगो से बच्चा आचे से परिचित होता है उनकी भाषा उनके व्यवहार से  किन्तु जब बच्चा विद्यालय में जाता है तो उसका सामाजिक स्तर बढ़ने लगता है वह विद्यालय में अलग प्रकार की भाषा अलग लोगों के संपर्क में आता है । अन्य बच्चे जो अलग अलग संस्कृति के है अलग पृष्ठभूमि के है उनके सम्पर्क में आता है उनके बीच अन्तःक्रिया होती है  अर्थात बालक के विकास में विद्यालय के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है।

 विद्यालय के वातावरण को सुचारू तथा सुनियोजित ढंग से चलाना एक शिक्षक का कर्तव्य होता है  जिससे बच्चे विद्यालय में सहज हो पाए ।

🌈💫 मानव विकास के विभिन्न आयाम―🌻🌴

📚 शारीरिक विकास― शारीरिक विकास के अंतर्गत शरीर की हड्डियों, मांसपेशियों आदि वाह्य तथा आंतरिक संरचना का विकास होता है।

 📚 मानसिक विकास― मानसिक विकास के अंतर्गत  बालक के ज्ञान का भंडारण होता है। मानसिक शक्ति के द्वारा समस्या का समाधान करना वातावरण से संबंध स्थापित करना है।

📚 भाषाई विकास ― बच्चे का जैसे जैसे सामाजिक स्तर बढ़ता है वैसे बैसे उसके भाषा का भी विकास होता है । शब्द भंडार भी होता है।

📚 संवेगात्मक विकास―  संवेग  भावात्मक विकास से संबंधित है जैसे भय क्रोध , हर्ष,प्रेम।

📚 सामाजिक विकास ― बच्चे के सामाजिक विकास सबसे पहले परिवार के द्वारा ही किया जाता है । परिवार के नियम ,रीतिरिवाज के हिसाब से बच्चे का समाजीकरण होता है।

📚 नैतिक विकास―  बालक का नैतिक विकास परिवार और समाज के द्वारा ही किया जाता है जिससे बच्चे में सही और गलत की समझ आ जाती है।

🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚

  Notes by Poonam sharma🌴🌴🌴🌴🌴

बाल – विकास को प्रभावित करने वाले

       विद्यालय सम्बन्धी कारक

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10 march 2021

1. नर्सरी विद्यालय और बाल विकास  :-

जिनके माता-पिता का समायोजन घर परिवार और आपस में अच्छा होता है उनके बच्चों का भी विद्यालय में अन्य बच्चों और शिक्षकों आदि के साथ बेहतर समायोजन रहता है।

तथा ऐसे बच्चों के जल्दी मित्र भी बन जाते हैं।

ऐसे बच्चे विद्यालय के कार्यों में समायोजन अन्य बच्चों की अपेक्षा बेहतर करते हैं।

सभी से मित्रवत व्यवहार करते हैं।

अपने साथियों के बीच लोकप्रिय होते हैं।

ऐसे बच्चों में मौलिकता और निर्माणशीलता के गुण होते हैं तथा बौद्धिक स्तर तीव्र और जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं।

2. प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास :-

 जो बच्चे अपनी नर्सरी कक्षा में बेहतर ढंग से समायोजन करना सीख जाते हैं तथा इनका पारिवारिक रूप से भी सकारात्मक समायोजन , बेहतर पालन पोषण होता है वह बच्चे अपने प्राइमरी कक्षा/  विद्यालयों में भी बेहतर ढंग से समायोजित हो जाते हैं।

 परंतु कुछ बच्चे नर्सरी विद्यालय में ना जाकर सर्वप्रथम प्राइमरी विद्यालय में प्रवेश लेते हैं जो कि समायोजन करने में अर्थात नए वातावरण में खुद को ढालने में,  नए वातावरण में समायोजन करने में कठिनाई होती है।

3. कक्षा  – कक्ष का वातावरण :-

कक्षा – कक्ष का वातावरण प्रजातांत्रिक,  मित्रवत और शांतिपूर्ण हो ताकि बच्चों के विकास में बेहतर समझ और सहयोग की भावना जागृत हो सके क्योंकि बच्चों पर उनकी कक्षा के वातावरण का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है जिनसे बच्चों की समझ और ज्ञान पर भी प्रभाव पड़ता है अतः कक्षा का वातावरण सकारात्मक प्रजातांत्रिक और सद्भाव / सहयोग का होना चाहिए।

 4. अध्यापक  – विद्यार्थी संबंध :-

 घर परिवार में बच्चों की पहली गुरु बच्चे की मां होती है तथा जब बच्चे परिवार से बाहर विद्यालय के परिवेश में प्रवेश लेते हैं तब उनके गुरु ही मां का प्रतिस्थापित रूप हो जाते हैं अर्थात मां के समान ही गुरु को बताया गया है।     

           अतः अध्यापक और विद्यार्थी में सम्मान,  मित्रवत,  अनुकरणीय और ज्ञानवर्धक संबंध होना चाहिए ताकि बच्चे अपने गुरु से अपने प्रश्न कर सकें किसी तथ्य पर चर्चा कर सकें और अपने ज्ञान अर्जित कर सकें।

5.  विद्यालय का अनुशासन  :-

मानव जीवन या बच्चों का जीवन अनुशासित और सीमाओं से संबंधित होना चाहिए।

 अतः विद्यालय में ना तो बहुत कठोर और ना ही बिल्कुल लचीला अनुशासन हो बल्कि ऐसा अनुशासित विद्यालय का वातावरण होना चाहिए ताकि बच्चे अपने सभी समस्याओं अपनी चर्चा अपने प्रश्न उचित ढंग से शिक्षक के समक्ष प्रस्तुत कर सकें और अनुशासित भी रह सकें  और अपने जीवन में विद्यालय परिवेश से बाहर जाने पर भी एक अनुशासित व्यक्ति का परिचय दे सकें।

6.  विद्यालय और चरित्र  :-

बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक में विद्यालय और चरित्र काफी महत्वपूर्ण स्थान होता है अतः विद्यालय से भी एक बेहतर चरित्र का निर्माण होता है जो कि विद्यालय से दिए गए ज्ञान , समाज और उचित – अनुचित की समझ को बच्चे अपने जीवन में अपना आते हैं और अपने ज्ञान के आधार पर ही बच्चे अपने चरित्र का निर्माण करते हैं अतः चरित्रवान व्यक्ति का ही दुनिया में महत्व होता है।

7. विद्यालय में सामाजिक विकास :-

विद्यालय में बच्चे अनेक संस्कृति , समाज , व्यक्तिगत विभिनताओं के बच्चों से मिलते – जुलते हैं तथा अपने घर परिवार के परिवेश से बाहर आकर एक विद्यालय परिवेश में प्रवेश करते हैं जिससे बच्चों का सामाजिक विकास बेहतर होता है और व्यापक रूप से होता है जिसमें बच्चे के संज्ञान में उसके सामाजिक विकास के बारे में विद्यालय तौर पर उचित ढंग से समझ विकसित की जाती है।

मानव विकास के विभिन्न आयाम

शारीरिक विकास

इसके अंतर्गत व्यक्ति के बाहरी और आंतरिक, शारीरक विकास को समझा जाता है।

मानसिक विकास 

इसमें व्यक्ति की समझ को परखा जाता है।

भाषाई विकास 

इसमें व्यक्ति की भाषाई विकास को आगे बढ़ाया जाता है।

संवेगात्मक विकास 

इसके अंतर्गत व्यक्ति के भय, क्रोध, डर, प्रेम आदि को परख कर विकास किया जाता है।

सामाजिक विकास 

इसमें व्यक्ति के मानवता का सामाजिक रूप का विकास किया जाता है।

चारित्रिक विकास

इसके अंतर्गत व्यक्ति के ज्ञान और समझ के साथ साथ  ही व्यक्ति का चारित्रिक विकास होता है ।

✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️

🌸बाल विकास को प्रभावित करने वाले विद्यालय संबंधी कारक🌸

 बच्चा परिवार से निकलकर विद्यालय जाता है तो उसके सामने एक नया वातावरण होता है। 

कई कारक होते हैं जो बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं जिनमें कुछ अच्छे कारक तथा कुछ बुरे भी हो सकते हैं, जिसमें बच्चे सामंजस्य करके आगे बढ़ते जाते है। 

प्रमुख विद्यालय संबंधी कारक जो बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं निम्नलिखित है-

1. नर्सरी स्कूल और बाल विकास –

जिन बच्चों के माता-पिता का समायोजन अच्छा होता है स्कूल में ऐसे बच्चों का समायोजन भी अच्छा होता है क्योंकि बच्चें अनुकरण से सीखते हैं। बच्चें का व्यवहार माता-पिता के व्यवहार पर निर्भर करता है। 

👉जो बच्चे जल्दी समायोजित हो जाते हैं ऐसे बच्चों के दोस्त जल्दी बन जाते हैं। 

👉 समायोजित बच्चे स्कूल के कार्यों में अन्य बच्चों की अपेक्षा अच्छा समायोजन करते हैं। 

👉 स्कूल के बच्चों से मित्रवत व्यवहार करते हैं। 

👉 अपने साथी सहपाठियों के बीच लोकप्रिय होते हैं। 

👉 इन बच्चों में मौलिकता और निर्माणशीलता के गुण होते हैं।

👉 बौद्धिक जिज्ञासा  होती है । 

2. प्राइमरी विद्यालय और बाल विकास  –

 जो  बच्चा परिवार से निकलकर नर्सरी स्कूल में  जाता है, फिर प्राइमरी स्कूल में जाता है तो ऐसे बच्चे का प्राइमरी स्कूल में समायोजन अच्छा होता है वहीं दूसरी ओर कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो परिवार से सीधे प्राइमरी स्कूल में जाते हैं अर्थात नर्सरी स्कूल में नहीं जा पाते हैं, उन बच्चों को प्राइमरी स्कूल में समायोजन करने में  कठिनाई होती है। 

3. कक्षा-कक्ष का वातावरण-

 कक्षा कक्ष का वातावरण बच्चे के विकास को बहुत प्रभावित करता है। 

 शिक्षण के दौरान जहां एक ओर सिर्फ शिक्षक ही बोले और  बच्चे शांति से सुनते रहे तो यह निरंकुश शिक्षण कहलाता है। इससे बच्चों में हीनता की भावना आ जाती हैं, बच्चे में नकारात्मकता व विद्रोह की भावना का जन्म होता है।  

वहीं दूसरी ओर अगर शिक्षक बच्चों को पूरी तरह से छूट दे दे तो यह भी गलत बात है इससे भी बच्चे अपनी मनमानी करने लगते हैं और सही तरह से नहीं सीख पाते। 

अतः शिक्षक को ना तो बच्चों को ज्यादा छूट देनी चाहिए और ना ही उन्हें निरंकुशता वाला वातावरण देना चाहिए बल्कि इन दोनों के बीच सामंजस्य बनाकर  शिक्षण कार्य कराना चाहिए। 

4.  अध्यापक-विद्यार्थी संबंध –

👉 शिक्षक का व्यवहार अनुकरणीय होना चाहिए। 

👉बच्चे के प्रति शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चे की गलती को ना तो ज्यादा नजरअंदाज करें और ना बहुत ज्यादा सख्ती बरतें बल्कि इनके बीच सामंजस्य बनाकर शिक्षण कार्य कराएं।

 👉शिक्षक को चाहिए कि बच्चों से स्नेह तथा सुविधाजनक व्यवहार करें।

 👉प्रत्येक बच्चा अलग पृष्ठभूमि से तथा विशिष्ट होता है इसलिए शिक्षक को चाहिए कि बच्चे का व्यवहार आक्रामक ना हो, बच्चा उदास ना हो, बच्चा अच्छा व्यवहार करें और सही तरह से सीख सके। 

5. विद्यालय का अनुशासन –

 अनुशासन के अंतर्गत वे सभी बातें है जो स्कूल के नियम, तौर-तरीके के अनुसार होता है जो बच्चों को बताया जाता है उसके अनुसार रहकर सीखता है। 

👉बच्चे की अभिवृद्धि व व्यवहार को अनुशासन प्रभावित करता है। बहुत ज्यादा अनुशासन अच्छी बात नहीं क्योंकि इससे बच्चे में नकारात्मकता आ सकती हैं। 

👉विद्यालय का वातावरण प्रजातांत्रिक होना चाहिए। 

6. विद्यालय और चरित्र-

 बच्चे के चरित्र  विकास में विद्यालय का बहुत बड़ा योगदान होता है। 

👉चरित्र के निर्माण में शिक्षक तथा सहपाठियों का बहुत बड़ा योगदान होता है विद्यालय में बच्चा अगर अच्छे बच्चों की संगति में रहता है तो उसके चरित्र का निर्माण अच्छा होगा और अगर किसी गलत बच्चे की संगति में पड़ जाए जाए तो उसके चरित्र का निर्माण बुरा होगा। 

👉बच्चा विद्यालय में अनुशासन में रहकर शिक्षक के बताएं गए नियम व तौर-तरीकों पर चलकर अपने चरित्र का निर्माण करता है। 

7 विद्यालय में सामाजिक विकास-

 पारिवारिक जीवन से बाहर निकल कर जब बच्चा विद्यालय पहुंचता है तो उसका सामाजिक दायरा बढ़ जाता है अंतः क्रिया के लिए अनेक साथी व शिक्षक मिलते हैं जिनसे वह बहुत कुछ सीखता है और उसका विकास होता है। 

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🌸 मानव विकास के विभिन्न आयाम🌸

मानव विकास के आयाम निम्नलिखित है –

 1.शारीरिक विकास-

 शारीरिक विकास से तात्पर्य शरीर के विकास से हैं जिसके अंतर्गत हड्डियों व मांसपेशियों का विकास, लंबाई, भार, व कार्यक्षमता आदि में विकास। 

2. मानसिक विकास-

 मानसिक विकास से तात्पर्य मानसिक योग्यताओ  की समझ से है। चिंतन, मनन,समस्या का समाधान आदि मानसिक विकास के अंतर्गत आता है। 

3. भाषाई विकास- 

 भाषाई विकास से तात्पर्य अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाना वह दूसरों की बात को समझ पाना आता है।

बच्चे का भाषाई विकास इस बात पर निर्भर करता है कि जितना अधिक उसका शब्द भंडार होगा उसका उसका भाषाई विकास उतना ही अच्छा होगा। 

4. संवेगात्मक विकास-

 संवेगात्मक विकास से तात्पर्य बच्चे के खुद के हाव भाव को जताना व दूसरे के हावभाव दूसरे के हावभाव को समझ पाना आता है किसी समस्या को लेकर कोई बच्चा कितना सक्रिय होता है यह उसके हाव-भाव से देखा जा सकता है। 

5. सामाजिक विकास- 

 सामाजिक विकास से तात्पर्य समाज में बच्चा लोगों से मिलजुल कर जो अंतः क्रिया करता है उससे बच्चे का सामाजिक विकास निर्धारित होता है। जैसा उसका अंतः क्रिया होगा वैसा ही बच्चे का सामाजिक विकास होगा। 

6. चारित्रिक विकास-

 चारित्रिक विकास से तात्पर्य समाज में कुछ नियम व कानून होते हैं जिन्हें सब को मानना होता है और इनके  आधार पर  ही बच्चे के चरित्र का निर्माण होता है। 

Notes by Shivee Kumari

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