बाल केन्द्रित शिक्षा
बालकेन्द्रित शिक्षा मे शिक्षा का केन्द्र बिन्दु बालक होता है इस शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत बालक रूचियों, प्रवृत्तियो तथा क्षमताओ को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान की जाती है । अत: बाल केन्द्रित शिक्षा व्यक्तिगत शिक्षण को महत्व देती है ।
बाल केन्द्रित शिक्षा पूर्णत: मनोवैज्ञानिक है जिसका मुख्य उद्देश्य बालक का चहुमुखी (सर्वाग्रीण) विकास करना है अत: हम कह सकते है कि बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत बालक की रूचियों , प्रवृत्तियों तथा क्षमताओं का ध्यान रखकर ही सम्पूर्ण शिक्षा का आयोजन किया जाता है ।
बाल केन्द्रित शिक्षा के उद्देश्य
- बच्चों को उनकी योग्यता, क्षमता एवं रूचियों के अनुसार शिक्षा ग्रहण कराना ।
- बच्चों को अधिक से अधिक रचनात्मक कार्य करने के अवसर प्रदान कराना ।
- बच्चों को उनके विद्यायल , धर पड़ोस के जीवन को उनके विषयों से जोड़ने के अवसर प्रदान कराना
- स्वयं से कार्य करने , खोजने एवं नियमो को जानने के अवसर प्रदान कराना
- प्रत्येक बच्चे को उसकी क्षमताओ और कौशलो को व्यक्त करने के समुचित अवसर प्रदान करना ।
बाल केन्द्रित शिक्षा की विशेषताऍ
- बाल केन्द्रित शिक्षा एक आधारभूत शिक्षा है जिसक माध्यम से बालक को हम शुरूआती तौर पर जिधर चाहे उधर ही निर्देशित कर सकते है ।
- बाल केन्द्रित शिक्षा में बालक का चहुमुखी विकास पर बल दिया जाता है
- इसमें बालक को उसकी अभिरूचि, बुद्धि और स्वभाव के अनुसार ही शिक्षा दी जाती है इसके कारण मन्द-बुद्धि और तेज बुद्धि वाले बालक आसानी से अपने स्वभावनुसार आगे बढ़ते है ।
- बालक को शारीरिक और मानसिक तौर पर सही दिशा की ओर निर्देशित करना भी बाल केन्द्रित शिक्षा का ही एक महत्वपूर्ण अंग होता है ।
बाल केन्द्रित शिक्षा का महत्व
- सरल और रूचिपूर्ण शिक्षण प्रदान कराना
- आत्मभिव्यक्ति के अवसर प्रदान कराना
- व्यावहारिक और सामाजिक ज्ञान से साथ जोडना
- क्रियाशीलता पर आधारित शिक्षा प्रदान कराना
- स्वयं करके सीखने पर बल देना
बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका
बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक बालको का सहयोगी तथा मार्गदर्शन के रूप में होता है अत: वह बालको का सभी प्रकार से मार्ग दर्शन करता है । और विभिन्न क्रियाकलापो को क्रियांन्वित करने में सहायता करता है शिक्षक का उद्देश्य बालको को केवल पुस्तकीय ज्ञान प्रदान करना मात्र हीन नही होता बल्कि बाल केन्द्रित शिक्षा का महानतम लक्ष्य बालक का सर्वाग्रीण विकास करना है । अत: यह कहना उचित होगा कि, शिक्षक वह धुरी है जिस पर सम्पूर्ण बाल केन्द्रित शिक्षा कार्यरत है बालकेन्द्रित शिक्षा की सफलता शिक्षक की योग्यता पर निर्भरत करती है ।
बाल केन्द्रित शिक्षा के सिद्धांत
बाल केन्द्रित शिक्षा के सिद्धांत निम्नलिखित है
1.क्रियाशीलता का सिद्धांत किसी भी क्रिया को करने में छात्र के हाथ पैर व मस्तिष्क सब क्रियाशील हो जाते है अथार्त छात्र की एक से अधिक ज्ञानन्द्रियो व एक से अधिक काम इन्द्रियों का प्रयोग होने से छात्र द्वारा किया गया अधिगम बहुत ही प्रभावी हो जाता हे ।
2.प्रेरणा का सिद्धांत नैतिक कहानियों ,नाटको आदि के द्वारा बालक में प्रेरणा भरनी चाहिए इसके लिए महापुरूषो तथा वैज्ञानिक आदि का उदाहरण सदा प्रेरणादायी रहता है ।
3.रूचि का सिद्धांत रूचि कार्य करने की प्रेरणा देती है फलस्वरूप शिक्षण बालक की रूचि के अनुसार दिया जाना चाहिए
4.चयन का सिद्धांत छात्रों की रूचि के अनुसार उन्हे पढ़ाना और यदि उनका मन खेलने का हो तो उसे तो उसे उस स्थिति में कौन पढ़ाये इसका चयन करना तथा बलक की योग्यता के अनुसार विषय वस्तु का चयन करना चाहिए
5.क्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धांत प्रत्येक छात्र की बुद्धि लब्धी अलग-अलग होती है अत: अध्यापन के समय हमें उसकी इस विभिन्नता का ध्यान रखना चाहिए
बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप
बालक के सर्वागीण विकास तथा उसकी दिशा व्यवस्था सुद्रंण बनाने के लिए एक अच्छे पाठ्यक्रम बनाने की आवश्यकता होती है जिसका स्वरूप निम्न प्रकार से होना चाहिए ।
- पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए
- वातावरण के अनुसार होना चाहिए
- पाठ्यक्रम जीवन उपयोगी होना चाहिए
- पाठ्यक्रम पूर्व ज्ञान पर आधारित होना चाहिए
- क्रियाशीलता के सिद्धांत के अनुसार होना चाहिए
- पाठ्यक्रम छात्रों की रूचि के अनुसार होना चाहिए
- पाठ्यक्रम बालको के मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए
- पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत विभिन्नता का ध्यान रखना चाहिए
इसे भी पढ़े – समाजीकरण प्रक्रियाऍं
प्रगतिशील शिक्षा
शिक्षा एक सामाजिक आवश्यकता है जिसका उद्देश्य व्यक्ति और समाज दोनो का विकास करना है ।अत: ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो समाज के लिए प्रगति का रास्ता तैयार करे प्रगतिशील शिक्षा कहलाती है । प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा के विकास में जॉन डी.वी. का विशेष योगदान है । नोट – बाल केन्द्रित शिक्षा का समर्थन जॉन डी.वी. ने किया । प्रगति शील शिक्षा यह बताती है कि शिक्षा बालक के लिए है बालक शिक्षा के लिए नही अत: शिक्षा बालक का निर्माण करेगी न कि बालक शिक्षा का ।इसलिए शिक्षा का उद्देश्य ऐसा वातावरण तैयार करना होना चाहिए जिसमें प्रत्येक बालक को सामाजिक विकास का अवसर मिले ।
प्रगतिशील शिक्षा का महत्व
- बालको की रूचि को ध्यान में रखकर उनका निर्देशन करना चाहिए ।
- बालको को स्वयं करके सीखने पर बल दिया जाना चाहिए ।
- प्रगति शिक्षा के अंतर्गत अनुशासन बनाए रखने के लिए बालको की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को दबाना नही चाहिए ।
- बालक के व्यक्तित्व का विकास बेहतर हो ताकि शिक्षा के द्वारा जनतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की जा सके ।
- प्रगतिशील शिक्षा के उद्देश्य बालको का विकास करना है ।
प्रगतिशील शिक्षा के सिद्धांत
1.मस्तिष्क एवं बुद्धि का सिद्धांत – मस्तिष्क एवं बुद्धि मनुष्य की उन क्रियाओ के परिणाम है जो व्यवहारिक या सामाजिक समस्याओ को सुलझाने के फलस्वरूप तैयार होता है । ज्यौ-ज्यौ वह जीन को दैनिक क्रियाओ को करने में मानसिक शक्तियो का प्रयोग करता हैै त्यौ त्यौ उसका विाकस भी होता जाता है ।
2.चिंतन की प्रक्रिया का सिद्धांत – चिंतन केवल मनन करने से पूर्ण नही होता और ना ही भावना समूह से इसकी उत्पत्ति होती है चिंतन का कुछ कारण जरूर होता है । किसी हेतु के आधार पर ही मनुष्य सोचना आंरभ करता है । यदि मनुष्य की क्रिया सरलता पूर्वक चलती रहती है तो उसके सोचने की आवश्यकता ही नही पड़ती किन्तु जब उसकी प्रगति में बाधार पड़ती है तो वह सोचने के लिए बाध्य हो जाता है ।
3.ज्ञान का सिद्धांत – ज्ञान कर्म का ही परिणाम है कर्म अनुभव से पूर्व आता है तथा अनुभव ज्ञान का स्त्रोत है जिस प्रकार बालक अनुभव से यह समझता है कि अग्नि हाथ जला देती है । उसी प्रकार उसका सम्पूर्ण ज्ञान अनुभव पर आधारित होता है ।