किशोरावस्था में मानसिक विकास

1.संवेदना और प्रत्यक्षीकरण-

👉इस अवस्था में बालको की ज्ञानेंद्रियों की कार्यकुशलता शिखर पर होते हैं
👉प्रत्यक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेक पूर्ण हो जाता है
👉प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है
👉 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती

2.संप्रत्यय निर्माण-

👉संप्रत्यय अब बहुत स्पष्ट रूप से विकसित होता है
👉ज्ञान विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है
👉संपर्क निर्माण की प्रक्रिया में स्थूल से सूक्ष्म अस्पष्टता से स्पष्ट, अनिश्चित से निश्चित ,विशिष्ट से सामान्य की ओर विकसित होने लगती है
जैसे हम बचपन में छोटे होते हैं तब हम अपने किसी दोस्त को क्रिकेट खेलने के लिए बुलाते थे लेकिन जब हम धीरे-धीरे बड़े हुए और 15 से 18 साल के बीच हुए तो हम उसे खेलने के लिए इशारा कर देने पर वह आ जाता है इस प्रकार हमारा व्यवहार विशिष्ट से सामान्य की ओर हो गया है
👉 स्थिति ,दूरी ,गहराई आदि से संबंधित प्रत्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाते हैं
इस अवस्था में हमें यह पता होता है कि कौन सी गली कहां पर हैं कि घर से हमारा खेत या बस स्टैंड कितनी दूरी पर है
आदि बहुत सारी बातों को हम जानने लगते हैं जो कि हम बाल्यावस्था में नहीं जान पाते थे

3.स्मरण शक्ति का विकास-

👉 यह बच्चों की सूझबूझ और तर्क पर आधारित होती हैं
👉 तर्क पर आधारित स्मृति अधिक समय तक रहती हैं

4.समस्या समाधान की योग्यता का विकास –

👉अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास हो जाता है
👉इस अवस्था में तर्क करने की क्षमता का विकास हो जाता है
👉 जटिल समस्याओं को भी अनुभव और वास्तविकता से जुड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समाधान करने की क्षमता आ जाती है

अन्य मानसिक योग्यताऐ-

👉मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है
👉 बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है
👉स्मृति कल्पना चिंतन तक समस्या समाधान का पूर्ण विकास हो जाता है
👉अलग-अलग रूचियों में तीव्रता आती है

Notes by Ravi kushwah

💥 किशोरावस्था में मानसिक विकास💥

🌟 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण :-

🌸 इस अवस्था में ज्ञानेंद्रियों की कार्यकुशलता शिखर पर होती है।
🌸प्रत्यक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेकपूर्ण पूर्ण होता है।
🌸 प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है
🌸 संवेदना प्रत्यक्षीकरण में स्कूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती।

🌟संप्रत्यय निर्माण :-

🌸 संप्रत्यय अब बहुत स्पष्ट रूप से विकसित होता है।
🌸ज्ञान विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है।
🌸 संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में स्थूल से सूक्ष्म,अस्पष्टता से अस्पष्टता,अनिश्चित से निश्चित विकसित होने लगती है।
🌸 स्थिति,दूरी,गहराई आदि से संबंधित प्रत्ययन स्पष्ट रूप से विकसित हो जाती है।

🌟स्मरण शक्ति का विकास :-

🌸 यह बच्चों की सूझबूझ और तर्क पर आधारित होती है।
🌸 तर्क पर आधारित स्मृति अधिक समय तक रहती है।

🌟 समस्या समाधान की योग्यता का विकास :-

🌸 अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास हो जाता है।
🌸 इस अवस्था में तर्क करने की क्षमता का विकास हो जाता है।
🌸 जटिल समस्याओं को भी अनुभव और वास्तविकता से जुड़कर अमूर्त चिंतन तथा तर्क से समस्या समाधान करने की योग्यता आ जाती है।

🌟 अन्य मानसिक योग्यताएं :-

🌸 मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है।
🌸 बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है।
🌸 स्मृति,कल्पना,तर्क,चिंतन,समस्या समाधान योग्यता का भी विकास पूर्ण हो जाता है।
🌸 अलग-अलग सूचियों में तीव्रता आती है।

🔥Notes by :- Neha Kumari ☺️

🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏

💥💥🌸🌸🌟🌟🔥🔥

किशोरावस्था में मानसिक विकास

1.🌸 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण

👉 इस अवस्था में बालक बालिकाओं के ज्ञानेंद्रियां का पूर्ण विकास हो जाता हैl

👉 प्रत्यक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेक पूर्ण हो जाती हैl

👉 प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता हैl

👉 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण मैं स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहींl

🌹2. संप्रत्यय निर्माण🌹

👉 संप्रदाय निर्माण अब बहुत विकसित रूप से स्पष्ट होता हैl

👉 ज्ञान विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता हैl

👉 संप्रदाय निर्माण की प्रक्रिया में स्थूल से सूक्ष्म, अस्पष्टता से स्पष्टता, अनिश्चित से निश्चित विकसित होने लगता l——- अर्थात देखी हुई वस्तुओं के विषय में बालक अपनी सुविधा और आवश्यकता के अनुसार कुछ अनिश्चित विचार रखता है इन्हें अनिश्चित विचारों के आधार पर निश्चित एवं स्पष्ट विचार बनानी चाहिए अस्पष्ट शब्दार्थ से स्पष्ट निश्चित तथा सूक्ष्म शब्दार्थओं की ओर बढ़ा जाए उदाहरण के लिए घटना वर्णन के आधार पर सभी छात्रों की राय जानी जाती है और फिर शिक्षक उस पर अपना स्पष्ट विचार रखते हैं कि यह इस प्रकार हुआ ,और इसका यही परिणाम होता हैl

👉 स्थिति, दूरी, गहराई आदि से संबंधित प्रत्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाता हैl अर्थात ,—इस अवस्था में इन्हें किसी भी स्थिति दूरी और गहराई के बारे में पता होती है

🌹3. स्मरण शक्ति का विकास

👉 यह बच्चों की सूझबूझ और तर्क पर आधारित होती हैl

👉 तर्क पर आधारित स्मृति अधिक समय तक रहती हैl

🌹4. समस्या समाधान करने की योग्यता

👉 इस अवस्था में अमूर्त चिंतन करने की क्षमता का विकास हो जाता हैl

👉 इस अवस्था में तर्क करने की क्षमता का विकास हो जाता है अर्थात— बालकों में तर्क ,कल्पना, चिंतन आदि का विकास हो जाता है

👉 जटिल समस्याओं को भी अनुभव और राष्ट्रीय एकता से जुड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समाधान करने की क्षमता आ जाती हैl

🌄 अन्य मानसिक योग्यताएं➡️

👉 मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है
👉 बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है
👉 कश्मीर की कल्पना करके चिंतन समस्या समाधान योग्यता का भी विकास पूर्ण हो जाता हैl
👉 अलग-अलग सूचियों में tribta आती हैl

📝 Notes by 👉
🙏sangita bharti🙏

🌄🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🌄

🔆 किशोरावस्था में मानसिक विकास🔆

🎯 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➖

1) बच्चे में ज्ञानेंद्रियों की कार्यकुशलता शिखर पर होती है चरम स्तर पर होती है |

2) प्रत्यक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेक पूर्ण हो जाता है बच्चे किसी समस्या के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू पर तर्क वितर्क करना समझ जाते हैं |

3) बच्चों के प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है वह की समस्या को अनुभव के आधार पर दोनों पक्षों पर सोचता है तार्किक चिंतन लगाता है |

3) संवेदना और प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती है वह सूक्ष्म चीजों पर चिंतन करने लगता है |

🎯 संप्रत्यय निर्माण ➖

1) संप्रत्यय बहुत स्पष्ट रूप से एक विकसित होता है वह किसी भी समस्या को विश्लेषित करके उसको संश्लेषित करना सीख जाता है |

2) इस अवस्था में ज्ञान वशिष्ठ और निश्चित होता चला जाता है अधिक स्पष्ट और अधिक समझदारी वाला होता है |

3) संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में
“स्थूल से सूक्ष्म”,, “अस्पष्टता से स्पष्टता “,, “अनिश्चित से निश्चित”,, “विशिष्ट से सामान्य”
आदि सभी चीजें विकसित होने लगती है |

4) किसी भी चीज की जो स्थिति है ,,उसकी गहराई,, उसकी दूरी ,, आदि से संबंधित प्रत्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाते हैं | अर्थात इस अवस्था में उन्हें किसी भी स्थिति दूरी और गहराई के बारे में पता हो जाता है |

🎯 स्मरण शक्ति ➖

1) बच्चे की स्मरण शक्ति सूझ-बूझ और तर्क पर आधारित होती है अमूर्त चिंतन करने लगते हैं किसी भी समस्या की हर छोटे से छोटे पक्ष को अपने अमूर्त चिंतन के द्वारा हल करने की कोशिश करते हैं |

2) तर्क पर आधारित जो स्मृति है वह अधिक समय तक रहती है अर्थात जो भी वे तर्क करके सोचते हैं वह अधिक समय तक रहता है |

3) क्योंकि वह सब कुछ तार्किक चिंतन के आधार पर करते हैं तो इससे ज्ञान स्थाई हो जाता है और अधिक समय तक स्मृति में छप जाता है |

🎯 समस्या समाधान की योग्यता का विकास➖

1) इस उम्र में अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास हो जाता है |

2) इसके साथ-साथ तर्क करने की क्षमता का विकास भी हो जाता है |

3) जटिल समस्याओं को भी अनुभव और वास्तविकता से जोड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समाधान करने की क्षमता आ जाती है |

4) इस अवस्था में जो ज्ञान होता है वह स्थाई होता है क्योंकि हर चीज को तार्किक चिंतन के आधार पर किया जाता है |

5) इस अवस्था में हर समस्या के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए बच्चा अपने तार्किक क्षमता का उपयोग करता है और उसका उस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश करना है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🍀🌼🌸🌺🌻🍀🌼🌸🌺🌻🍀🌼🌸🌺

🌷 मानसिक विकास 🌷

किशोरावस्था में बच्चों का मानसिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है :-

किशोरावस्था (12 – 18)

1. 🌲 संवेदना या प्रत्यक्षीकरण :-

👉ज्ञानेंद्रियों की कार्यकुशलता शिखर पर

किशोरावस्था में बच्चों की ज्ञानेन्द्रियाँ चरम स्तर पर कार्य करने लगती हैं, इस समय उनकी संवेदनायें प्रबल होती है।

👉प्रत्यक्षीकरण , सुव्यवस्थित और विवेक पूर्ण

इस समय बच्चे जो भी सीखते , करते हैं उसे वे विवेकपूर्ण ढंग से सुव्यवस्थित करके उनका प्रत्यक्षीकरण करते हैं।

👉प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है।

बच्चों में स्वयं कार्य करने के आधार पर उनमे प्रत्यक्ष अनुभव भी शामिल होता है।

👉संवेदना / प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती है।

अर्थात किशोरावस्था में बच्चों को संवेदनाओं का प्रत्यक्षीकरण करने लिए किसी स्थूल वस्तुओं की जरूरत नहीं होती अतः वे सूक्ष्म (गहराई) से समझने लगते हैं।

2. 🌲 संप्रत्यय निर्माण :-

👉संप्रत्यय अब बहुत स्पष्ट रूप से विकसित होता।
बच्चों में किसी भी चीज के प्रति बिल्कुल स्पष्ट संप्रत्यय (Concept) बनता है।

👉ज्ञान , विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है।
इस समय बच्चों का ज्ञान विशिष्ट रूप से निश्चित ( हमेशा याद रहने बाला ) बन जाता है।

👉संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में स्थूल से सूक्ष्म , आस्पष्टता से स्पष्टता , अनिश्चित से निश्चित ये सब विकसित होने लगता है।

👉स्थिति , दूरी , गहराई आदि से संबंधित प्रत्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाती हैं।

3. 🌲 स्मरण शक्ति :-

👉सूझ – बूझ और तर्क पर आधारित होती है।
किशोरावस्था में बच्चों की सूझ – बूझ (सही गलत) उनके तर्क ज्ञान पर आधारित होती है।

👉तर्क पर आधारित स्मृति अधिक समय तक रहती है
अर्थात इस समय किसी भी विषय पर बच्चे जो तर्क करते हैं वह उसे बहुत लम्बे समय तक याद रख
सकते है।

4. 🌲 समस्या समाधान की क्षमता का विकास :-

👉अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास हो जाता है।

👉तर्क करने की क्षमता का विकास हो जाता है।

👉जटिल समस्याओं को अनुभव और वास्तविकता से जोड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समाधान करने की क्षमता आ जाती है।

🌺 अन्य मानसिक योग्यतायें :-

👉मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है ।

👉बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है।

👉स्मृति , कला , चिंतन , तर्क , समस्या , समाधान का पूर्ण विकास हो जाता है।

👉अलग-अलग रुचियों का विकास हो जाता है।

Notes By Juhi Shrivastva

🔆 *किशोरावस्था में मानसिक विकास*

➡️ संवेदना और प्रत्यक्षीकरण

⚜️ इस अवस्था में बालिकाओं के ज्ञानेंद्रियों का पूर्ण विकास हो जाता है।

⚜️ प्रत्याक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेक पूर्ण हो जाती है। बच्चे के समस्या के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू पर तर्क वितर्क करना समझ जाते हैं।

⚜️ प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है। बच्चे समस्या के समाधान पर दोनों पक्षों से तार्किक चिंतन करने लगते हैं।

⚜️ संवेदना इसी कारण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती है वह सूक्ष्म चीजों पर चिंता न करने लगते हैं।

➡️ संप्रत्यय निर्माण—

⚜️ संप्रत्यय बहुत स्पष्ट रूप से विकसित होता है वह किसी भी समस्या को विश्लेषित करके उसका संश्लेषित करना सीख जाते हैं।

⚜️ अवस्था में ज्ञान विशेष और निश्चित होता चला जाता है इस अवस्था में बच्चे की अधिक स्पष्ट और अधिक समझदारी उनमें होता है।

⚜️ संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में स्थूल से सूक्ष्म, अस्पष्टता से स्पष्टता, अनिश्चित से निश्चित, विशिष्ट से सामान्य आदि सभी चीजें विकसित होने लगती है।

⚜️ किसी भी चीज की जो स्थिति है उनकी गहराई उनकी दूरी आदि से प्रत्यक्ष रूप से विकसित हो जाते हैं इस अवस्था में बालक को स्थिति दूरी और गहराई के बारे में पता हो जाता है।

➡️ स्मरण शक्ति—
⚜️ बच्चे की स्मरण शक्ति उनकी सूझबूझ और तर्क पर आधारित होती है ।बालक अमूर्त चिंतन करने लगते हैं किसी भी समस्या को वह छोटे-छोटे पक्ष को अपने अमूर्त चिंतन के द्वारा हल करने लगते हैं।

⚜️ चिंतन या तर्क पर आधारित जो उनकी स्मृति रहती है जो भी बेहतर करते हैं सोचते हैं और उनमें वह अधिक समय लगाते हैं।

⚜️ इस अवस्था में बच्चे ताकि चिंतन के आधार पर ही कार्य को करते हैं और इससे उनका ज्ञान जो अस्थाई हो जाता है और अधिक समय तक उनकी स्मृति उनके दिमाग में छप जाती है।

➡️ समस्या समाधान की योग्यता का विकास —

⚜️इस उम्र तक बच्चे में तर्क करने की क्षमता का विकास हो जाता हैं।

⚜️ इस उम्र तक के बालक में अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास हो जाता है।

⚜️इसउम्र तक बालक में जटिल समस्याओं को भी वह अनुभव और वास्तविकता से जोड़कर अपने मूल चिंतन और तर्क के समाधान करने की क्षमता आ जाती है।

⚜️ इस अवस्था में जो ज्ञान होता है वह अस्थाई होता है क्योंकि बालक हर चीज को तार्किक चिंतन करके ही सीखते हैं।

⚜️ इस अवस्था में बालक के हर समस्या के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए अपना तार्किक कक्षमता का उपयोग करते हैं और उसका उस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश करते हैं।

Notes By—Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

💥💥किशोरावस्था में मानसिक विकास💥💥

🍁 संवेदना या प्रत्यक्षकारण

✍️ज्ञाननेंद्रियों की कार्य कुशलता शिखर पर होता हैं। बच्चे अपने तरीके से कार्य करने लगते हैं और व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं।

✍️ प्रत्यक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेक पूर्ण होता है इसमें ज्यादा से ज्यादा खुद से कार्य करने पर जोर देते हैं।

✍️ प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है जिसके कारण आगे के कार्य करना आसान हो जाता है और प्रभावी रूप से किसी भी कार्य को कर पाते हैं।

✍️ संवेदना या प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध की आवश्यकता नहीं होती हैं। बच्चे किसी भी चीजों को गहराई से सोचने और समझने लगते हैं और उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाते हैं।

💥 संप्रदाय निर्माण

✍️ संप्रत्यय बहुत स्पष्ट रूप से विकसित हो जाता है
किसी भी चीज पर खुद से निर्णय ले सकते हैं।

✍️ ज्ञान ,विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है।
इस समय तक बच्चे में सोचने समझने की क्षमता बहुत हो जाती है जिस कारण वह अपने हर निर्णय को लेने में सक्षम होते हैं।

✍️ संप्रदाय निर्माण की प्रक्रिया में
➖ स्कूल से सूक्ष्म में
➖ अस्पष्टता से स्पष्टता
➖ अनिश्चित से निश्चित
इन सभी प्रक्रियाओं का निर्माण हो जाता है।

✍️ स्थिति, दूरी ,गहराई आदि से संबंधित प्रत्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाता है।

💥 स्मरण शक्ति

✍️ स्मरण शक्ति सुनने या तर्क करने या चिंतन करने पर आधारित होता है।

✍️ तर्क द्वारा की गयी स्मरण शक्ति अधिक समय तक बनी रहती है। उसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

💥 समस्या समाधान

✍️ अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास➖ इतने बच्चे विभिन्न प्रकार से सोचने लगते हैं मूर्त ही नहीं बल्कि अमूर्त उन सभी चीजों में अपना तर्क लगाने लगते हैं जो उनके पास उपस्थित नहीं होता है उस बारे में भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की कोशिश करते हैं।

✍️ तर्क करने की क्षमता का विकास➖ इस समय में बच्चों में तर्क करने की क्षमता का विकास सबसे ज्यादा होता है वह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर अनेक प्रकार से अनेकों चीज पर अपना तर्क करने में सक्षम होते हैं।

✍️ जटिल समस्या को भी अनुभव और वास्तविकता से जोड़कर अमूर्त चिंतन का विकास करते हैं। और तर्क से समस्या का समाधान करने की क्षमता आ जाती है।

💥 अन्य मानसिक योग्यताएं

✍️ मानसिक विकास पूर्ण हो जाती हैं।

✍️ बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है। अपनी बुद्धि का इस्तेमाल अपने हिसाब से करने लगते हैं।

✍️ स्मृति ,कल्पना, चिंतन करके समस्या समाधान का पूर्ण विकास हो जाता है।

✍️ विभिन्न प्रकार के कार्यों में रुचि रखने लगते हैं और उसे बहुत अच्छे तरीके से करने का भी कोशिश करते हैं।

✍️✍️ Notes By –Abha kumari✍️✍️

✍️

किशोरावस्था

मेंटल डेवलपमेंट
संवेदना या प्रत्यक्षीकरण
1 ज्ञानेंद्रियों की कार्य कुशलता शिखर पर होती है :- किशोरावस्था में बच्चों की ज्ञानेंद्रियां कुशलता प्राप्त कर लेती है किसी भी विषय पर वह अपना ध्यान लगा सकते हैं

2 प्रत्यक्षीकरण (समझ कर अर्थ निकालना) सुव्यवस्थित एवं विवेक पूर्ण हो जाता है :- किसी भी विषय पर हम सोच समझ कर उसका अर्थ निकाल कर उसको अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं

3 प्रत्यक्षीकरण में अनुभव सामिल होता है :- बच्चे ने पूर्व में जो अनुभव प्राप्त किए हैं उनसे भी बच्चा प्रत्यक्षीकरण करके आपने आगे के कार्य कर देता है

4 संवेदना प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता होती है

संप्रत्यय निर्माण

1 संप्रत्यय अब बहुत स्पष्ट रूप से विकसित हो जाता है
2 ज्ञान विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है
हमारे ज्ञान में विशेषता आने लगती है एवं हम किसी निश्चित चीज पर है अपना तर्क वितर्क करते हैं

3 संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में
a स्थूल से सूक्ष्म की ओर:- बच्चा अब बड़ी वस्तुओं को लेकर उनकी छोटी से छोटी चीजों को भी समझ सकता है
b अस्पष्टता से स्पष्टता की ओर :- इसमें बच्चा बॉडी के हाव भाव से भी समझ जाता है.
c अनिश्चित से निश्चित विकसित होती है:- बच्चों में अनिश्चितता से निश्चित विकसित आती है

4 स्थिति दूरी गहराई आदि से संबंधित प्रत्त्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाते हैं:- जैसे बच्चा कभी कहीं पैदल जाता है तो वह अनुभव कर सकते हैं कि यह कितनी दूरी पर है

स्मरण शक्ति
किशोरावस्था मे तर्क पर आधारित मेमोरी होती है तर्क पर आधारित मेमोरी अधिक समय तक रहती है
अर्थात जो कर हम अपनी सूझबूझ से करते हैं उसका समय देते हैं तो वह हमारे मन में बैठ जाता है और हमें हमेशा के लिए याद रह जाता है

समस्या समाधान

1 किशोर अवस्था में बच्चे की अमूर्त क्षमता का विकास हो जाता है :- यदि कोई वस्तु सामने नहीं है तो उसके बारे में सोचने लगता है कल्पना करने लगता है
2 तर्क करने की क्षमता का विकास हो जाता है:- बच्चे अपना तर्क वितर्क लगाकर सही गलत का निर्णय ले सकते हैं

3 जटिल समस्या को भी अनुभव और वास्तविकता से जोड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समाधान करने की क्षमता आ जाती है

4 अन्य मानसिक योग्यताएं

मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है
बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है
संस्कृति कल्पना चिंतन तर्क समस्या समाधान का पूर्ण विकास हो जाता है
अलग-अलग रूपों में तीव्रता आने लगती है

🙏🙏🙏 sapna sahu 🙏🙏🙏

💫Mental development🌟
🌲Adolesence(किशोरावस्था)
🌾
🌊संवेदना या प्रत्यक्षीकरण……
🍂(1) बच्चे में ज्ञानेंद्रियों का जो रियल कार्य कुशल है वह चरम स्तर पर होता है।

🍁(2) प्रत्यक्षीकरण सुव्यवस्थित और विवेकपूर्ण-इस अवस्था मैं किसी कार्य को करने के रीजन (region) को लॉजिक से डिफाइन करता है।

🌾(3) प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहता है जैसे -किसी भी कार्य का अर्थ निकालने में लॉजिक के साथ-साथ अनुभव भी काम करता है।

🌿(4) संवेदना या प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती है।

💐संप्रत्यय निर्माण……

🌴(1) संप्रत्यय अब बहुत स्पष्ट रूप से विकसित होता है। जैसे-किशोरावस्था में बच्चों का कांसेप्ट स्पष्ट रूप से विकसित होता है।

🌼(2) ज्ञान विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है या कांसेप्ट बहुत ही दृढ़, मजबूत, क्लियर, और उच्च स्तर के होते हैं।

🌲(3) संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में…… स्थूल से सूक्ष्म।
…… अस्पष्टता से स्पष्टता।
…… अनिश्चित से निश्चित।
…….. विशिष्ट से सामान्य।
विकसित होने लगती है।

⚡(4) जो बच्चे की पोजीशन ,गहराई, दूरी इत्यादि इन सब के बारे में जो सोच है वह स्पष्ट रूप से विकसित हो जाते हैं।

💫स्मरण शक्ति

जैसे बच्चों में संप्रत्यय निर्माण होती है वैसे ही बच्चों में स्मरण शक्ति का विकास होता है।

⚡(1) सूझबूझ और तर्क पर आधारित होती है मतलब कोई बच्चा भी ना रखें लॉजिक से अपने -अपने चीजों को आगे बढ़ाते हैं तर्क पर आधारित जो स्मृति है वह अधिक समय तक बना रहता है।

💫समस्या समाधान🌠

⚡बच्चों में तर्क करने की क्षमता का विकास – इस उम्र में बच्चा अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास करते हैं।

✨जटिल समस्या को अनुभव और वास्तविकता से जोड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समस्या समाधान करने की योग्यता आ जाती है।

🌈अन्य मानसिक योग्यताएं.…

👉(1) किशोरावस्था में बच्चे का मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है।
👉(2) इस अवस्था में बच्चों के बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है।

👉(3) इस अवस्था तक बच्चों में स्मृति, कल्पना ,चिंतन ,तर्क, समस्या समाधान का पूर्ण विकास हो जाता है।
👉(4) बच्चों के अलग-अलग रूपों में तीव्रता होती है।
🌿🌊Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌻🌲

🔆किशोरावस्था में मानसिक विकास

⚜️1 संवेदना या प्रत्यक्षीकरण➖

▪️ ज्ञानेंद्रियों की कार्यकुशलता शिखर पर होती है।
(किशोरावस्था में बच्चों की ज्ञानेंद्रियां की कार्य क्षमता बहुत ही उच्च स्तर पर होती है यह बहुत तीव्र विकसित होती है किसी भी चीज को अपनी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से आसानी से उसकी अनुभूति कर लेते हैं या उसका एहसास कर लेते हैं।)
▪️प्रत्यक्षीकरण में अनुभव भी शामिल रहते हैं।
(प्रत्यक्षीकरण मतलब किसी चीज का अर्थ निकालने में उस चीज के अनुभव भी शामिल रहते हैं या उन्हें पता रहता है कि वह चीज किस तरह की है या किस प्रकार से कार्य करती है।)

▪️संवेदना प्रत्यक्षीकरण में स्थूल वस्तुओं से संबंध करने की आवश्यकता नहीं होती है ।
(किशोरावस्था में किसी भी चीज की अनुभूति या उसका अर्थ जानने के लिए हमें उस वस्तु की स्थूल व बड़े रूप से संबंध स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होती है कम शब्दों या छोटे रूप में कही गई बातों को बहुत गहराई से या सूक्ष्मता से समझने लगते है।

2 संप्रत्यय निर्माण ➖

*संप्रत्यय अब बहुत स्पष्ट रूप से विकसित होता है।
(किसी भी वस्तु या किसी भी कार्य के प्रति किशोरो में संप्रत्यय का निर्माण बहुत स्पष्ट रूप से अर्थात किसी भी कार्य या वस्तु के बारे में केसी धारणा या कैसी समझ है या वह केसे कार्य करती है यह स्पष्ट हो जाती हैं।)

▪️ज्ञान विशिष्ट और निश्चित होता चला जाता है।
(जब बच्चे किसी कार्य को करते हैं तो उस कार्य का ज्ञान या उस कार्य के बारे में विशिष्टता और निश्चितता को नहीं जानते लेकिन किशोरावस्था में किसी भी कार्य को करने में ज्ञान विशिष्ट और निश्चित हो जाता है अर्थात कार्य के ज्ञान की विशेषता और कार्य की निश्चितता ,कि कार्य होगा या नहीं ,यह विकसित हो जाता है।)

▪️ संप्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में स्थूल से सूक्ष्म, अस्पष्टता से स्पष्टता, अनिश्चित से निश्चित, विशिष्ट से सामान्य संप्रत्यय निर्माण विकसित होने लगते हैं।
(जितनी भी चीजें किशोरों के विचारों में थी जो किशोर नहीं जानते थे वह अब विशिष्ट रूप लेने लगते हैं और कम शब्दों में भी किसी भी बात की गहराई या गहनता या उस बात का मकसद समझ लेते हैं
कोई भी बात जिस उद्देश्य कहीं जा रही हैं वह उद्देश्य या उस बात का मुख्य फोकस बिंदु क्या है, उसे समझने लग जाते हैं।)

▪️जो हमारी किसी भी चीज की गहराई या जो दूरी है या जो सोच है वह हमारे अंदर विशिष्ट रूप से विकसित हो जाती है।
अर्थात दूरी ,स्थिति ,गहराई आदि से संबंधित प्रत्यय स्पष्ट रूप से विकसित हो जाते हैं।

⚜️4 स्मरण शक्ति ➖
▪️जैसा संप्रत्यय होता है वैसे ही स्मरण शक्ति विकसित होते हैं।
▪️यह बच्चे की सूझबूझ और तर्क पर आधारित है।
तर्क पर आधारित जो स्मृति है वह अधिक समय तक रहती है क्योंकि जिस भी चीज पर हम तर्क लगाते हैं तो उसके हर पक्ष को देखते हैं या उसके किसी न किसी उदाहरण से सम्बन्धित करके या जोड़कर समझते है जिससे यह आसानी से समझ आ जाती है और लंबे समय तक स्मरण में बनी रहती है।

⚜️4 समस्या समाधान➖ इस उम्र तक बच्चों में बुद्धि तो परिपक्व हो जाती है और साथ ही तर्क भी विकसित हो चुका होता है। इसीलिए

▪️अमूर्त चिंतन की क्षमता का विकास।
▪️तर्क करने की क्षमता का विकास।
▪️जटिल समस्याओं को भी अनुभव व वास्तविकता से जोड़कर अपने अमूर्त चिंतन और तर्क से समाधान करने की क्षमता आ जाती हैं।
अर्थात जो भी जटिल समस्या है उसकी हर एक भाग को या उसके हर भाग का विश्लेषण कर उस पर अमूर्त चिंतन लगाकर उसमें अनुभव से समझ कर और वास्तविकता से जोड़कर समस्या का समाधान निकलते हैं।

⚜️अन्य मानसिक योग्यता➖

▪️किशोर अवस्था में मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है।
▪️बुद्धि का पूर्ण विकास होता है।
▪️स्मृति ,कल्पना, चिंतन, तर्क,समस्या समाधान का पूर्ण विकास।
▪️अलग-अलग रुचियों में तीव्रता।

✍🏻
*Notes By-Vaishali Mishra*

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