प्राथमिक शिक्षा ( Elementary Education) : मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक निरन्तर शिक्षा प्राप्त करता रहता है। वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में  कुछ ना कुछ अवश्य सीखता है। परंतु औपचारिक शिक्षा की प्रक्रिया जन्म से आरंभ होती है और मृत्यु तक चलती रहती है। इसका आरम्भ प्राथमिक स्कूलों से होता है। प्राथमिक शिक्षा का अर्थ – पूर्व का अर्थ है पहले और प्राथमिक का अर्थ है आराम्भिक। शिक्षा से पहले दी जाने वाली शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा कहते हैं अर्थात् प्राथमिक स्कूल में औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने से पहले बच्चा जो शिक्षा प्राप्त करता है उसे प्रारम्भिक व पूर्व प्राथमिक शिक्षा या र्नसरी शिक्षा कहते है।

प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य :

मानव का प्रत्येक कार्य सोद्देश्य होता है। बिना उद्देश्य के वह कोई भी कार्य नहीं करता। शिक्षा का भी कुछ-न-कुध निशिचत उद्देश्य होता है। मिस ग्रेस ओवन ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य की चर्चा की है जिसमें इस प्रकार से स्कूलों की स्थापना पर बल दिया गया है जिनमें रोशनी, धूप, खुला स्थान, ताजी हवा आदि स्वास्थ्यवर्धक बाह्म सुविधाएं होनी चाहिएँ ताकि बच्चे स्वस्थ और प्रसन्न होकर नियमित जीवन जीना सीखें। परंतु कोठारी शिक्षा आयोग ने (1964-1966) प्राथमिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये हैं –

  1. बच्चों में स्वास्थ्य सम्बन्धी अच्छी आदतों का निर्माण करना तथा व्यक्तिगत समायोजन के लिए आवश्यक बुनियादी कुशलताओं को विकसित करना,जैसे वस्त्र पहनना, शौचादि जाना,नहाना, भोजन करना तथा सफाई करना आदि।
  2. वांछित सामाजिक अभिवृत्तियो एवं ढंगो का विकास करना, बच्यों को अपने अधिकारों तथा दूसरों के विशेषाधिकारों के प्रति जागरूक करना।
  3. बच्चों को अपने संवेगों पर नियंत्रण करने हेतु निर्देश देना जिससे संवेगात्मक परिपक्वता का विकास हो।
  4. सौन्दर्यामक प्रशंसा के प्रति प्रोत्साहित करना।
  5. बालक की उसके संसार जिसमें वह रहता है एक वातावरण सम्बन्धी बौद्धिक उत्सुकता पैदा करना तथा उसमें नवीन रूचियां विकसित करने के लिए अवसर प्रदान करना।
  6. अनुसंधान एवं प्रयोग के अवसर प्रदान करके बच्चों में नई रूचियों को निर्मित एवं विकसित करना।
  7. बच्चों को स्वतन्त्रता और सृजनात्मकता के प्रोत्साहन हेतु स्वय अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करना।
  8. बालकों में स्पष्ट तथा सही भाषा द्वारा अपने विचारों तथा भावनाओं को व्यक्त करने की
  9. सामाजिक विकास- प्राथमिक शिक्षा में बच्चों को मुक्त वातावरण में खेलने और पढ़ने के अवसर प्रदान किये जाते हैं जिससे उनका सामाजिक विकास होने लगता है। आगे चलकर बच्चे मिलजुल कर रहना सीख जाते हैं।
  10. भावात्मक विकास- प्राथमिक शिक्षा के फलस्वरूप बच्चें स्नेह, प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, सहनशीलता आदि सद्भावनाओं को सिखाते हैं, जिससे उनका भावात्मक विकास होता है।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि बच्चे के शैक्षिक जीवन में प्राथमिक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है।

प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र

प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्रों की तीन भागों में व्यक्त किया गया है – (क) व्यक्तिगत जीक्न में शिक्षा (ख) सामान्य जीवन में शिक्षा (ग) राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा।

(क) व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा

  1. जीवन की आवश्यकतओं की पूर्ति – मानव के जीवन की आवश्यकताएँ हैं। मानव के जीवन में रोटी, कपड़ा और मकान के अतिरिक्त और भी अनेक आवश्यकताएँ होती हैं। शिक्षा द्वारा ही इन आवश्यकतओं की पूर्ति हो सकती है।
  2. आत्म निर्भर बनाने में समर्थ – शिक्षा व्यक्ति को आत्म निर्भर बनाती है। फलस्वरूप वह भावी जीवन मे प्रस्तुत होने वाली प्रत्येक समस्या का सामना करता है और उसका समाधान निकालता है।
  3. सुविधाओं की प्राप्ति – अच्छी शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति अपनी पसंद का अच्छा व्यवसाय चुन सकता है और जीवन में अधिक में अधिक से अधिक सुविधाएँ प्राप्त कर सकता है।
  4. व्यावसायिक कुशलताओं की प्राप्ति – शिक्षा मनुष्य को व्यावसायिक कुशलता प्रदान करती है। इससे व्यक्ति लोगों के व्यवहारों को समझ जाता है और सोच समझ कर उनके साथ सम्बन्ध स्थापित करता है।
  5. व्यक्तित्व का विकास – प्राथमिक शिक्षा बच्चों के व्यक्तित्व का विकास करती है। फलस्वरूप बच्चे बड़े होकर आर्थिक, सामाजिक धार्मिक तथा राजनीतिक दृष्टि से समुचित विकास करने में समर्थ होते हैं।
  6. भावी जीवन का निर्माण – प्राथमिक शिक्षा बच्चे के भावी जीवन का निर्माण करने में सहायक है। यह शिक्षा बच्चों को भावी जीवन के लिए तैयार करती है और उन्हें समर्थ बनाती है।
  7. अच्छे नागरिकों का निर्माण – आज के बच्चे काल के नागरीक बनते हैं। प्राथमिक शिक्षा द्वारा ही बच्चों में अच्छी नागरिकता के गुण उत्पन्न किए जाते हैं।

(ख) सामान्य जीवन में शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा द्वारा बालक सामान्य जीवन सम्बन्धी कार्यो को कुशलतापूर्वक कर सकता है।

  1. बच्चों का सामाजिक विकास – बच्चा समाज का महत्वपूर्ण सदस्य है। उसे समाज में रहकर ही विकास करना होता है। प्राथमिक शिक्षा द्वारा उसमें सामाजिक गुणों का विकास किया जाता है और यही सामाजिक गुण उसे समाज के साथ जोड़ते हैं।
  2. सभ्यता और संस्कृति का विकास – प्राथमिक शिक्षा द्वारा बच्चों में अपनी संस्कृति का समुचित विकास किया जा सकता है। क्योंकि आने वाली पीढ़ी उनके अनुभवों से ही लाभ उठाकर अपने जीवन में आगें बढ़ सकती है।
  3. राष्ट्रीय भावना का विकास – प्रत्येक देश को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ा है। हमारा देश भी कोई अपवाद नहीं है। हमें इस स्वतन्त्रता को बनाए रखना है। यही कारण है कि प्राथमिक शिक्षा द्वारा हम बच्चों में राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करते हैं।
  4. सामाजिक सुधार – प्राथमिक शिक्षा द्वारा बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि वे समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं। उन्हें केवल अपने बारे में ही नहीं समाज के बारे में भी सोचना है। अतः उन्हें समाज के नियमों का समुचित पालन करना चाहिए।

(ग) राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा

राष्ट्रीय जीवन में भी प्राथमिक शिक्षा का अत्यधिक आयोग है। इसका विवरण इस प्रकार है-

  1. नेतृत्व का विकास – प्राथमिक शिक्षा से ही बच्चों में नेता बनने के गुणों का विकास किया जा सकता है। बड़े होकर बच्चे शिक्षा के कारण ही सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में उचित नेतृत्व कर सकते हैं तथा समाज को उचित दिशा दे सकते हैं।
  2. कर्तव्यों की पूर्ति – प्राथमिक शिक्षा बच्चों को उनके कर्त्तव्य से अवगत कराती है। जिससे बड़े होकर वे अपने कर्तव्यों का समुचित पालन करते है।
  3. कुशल श्रमिकों का विकास – प्राथमिक शिक्षा में बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा दी जाती है ताकि वे आगे चलकर कुशल श्रमिक बन सकें तथा व्यापार, उद्योग को बढ़ाकर वे अपनी आय की वृद्धि कर सकते हैं।
  4. समाज कल्याण की भावना – प्राथमिक शिक्षा द्वारा बच्चों को यह भी शिक्षा दी जाती है कि वह निजी स्वार्थी को छोड़कर समाज के हित को समझें और अनुशासन में रहकर समाज कल्याण का प्रयास करें।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र व्यापक हैं परन्तु प्राथमिक शिक्षा पाकर विद्यार्थी अपने भावी जीवन में समुचित विकास कर सकते हैं तथा देश के सफल नागरिक बन सकते हैं।

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