• भारत विविधता से परिपूर्ण एक विशाल देश है। जाति-सम्प्रदाय, रीति-रिवाज, आर्थिक-सामाजिक स्थिति आदि अनेक आधारों पर यहाँ विविधता देखने को मिलती है। विविध पृष्ठभूमि के बालकों से तात्पर्य भारतीय समाज  के विविध वर्गों जैसे निर्धन, वंचित, पिछड़े, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों से है।
  • समावेशी शिक्षा का तात्पर्य है समाज के सभी वर्गों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में समाविष्ट कर उन्हें शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराना।
  • भारतीय समाज के निर्धन, पिछड़े, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों में साक्षरता दर सामान्य वर्ग से काफी कम है। इन वर्गों के उद्धार के लिए यह आवश्यक है कि इनके बच्चों को सामान्य वर्गों की तरह शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
  • समावेशन का तात्पर्य अधिकतर लोग यह लगाते हैं कि इसमें विकलांग बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा दी जाती है। यह समावेशन का एक संकुचित अर्थ है। वास्तविकता में समावेशन केवल विकलांग लोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका अर्थ किसी भी बच्चे का बहिष्कार न होना भी है।
  • समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधता को प्रोत्साहित करती है, जिससे सभी संस्कृतियों को साथ मिलकर आगे बढ़ने का समुचित अवसर मिलता है।
  • समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सभी विशेष शैक्षिक आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को विद्यालय में प्रवेेश को रोकने की कोई प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए।
  • समावेशन की नीति को हर स्कूल और सारी शिक्षा व्यवस्था में व्यापक रूप से लागू किए जाने की आवश्यकता है।
  • समावेशी शिक्षा उस विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था की ओर संकेत करती है, जो उनकी शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, भाषिक या अन्य विभिन्न योग्यता स्थितियों को ध्यान में रखे बगैर सभी बच्चों को शामिल करती है।
  • सफल समावेशन के लिए बच्चे के जीवन के हर क्षेत्र में वह चाहे स्कूल में हो या बाहर, शिक्षा में सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता हैं।
  • समावेशी शिक्षा के क्षिक्षक के सामाजिक-आर्थिक स्तर का अधिक महत्व नहीं है इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है
  • बच्चों के प्रति उसकी संवेदनशीलता
  • विद्यार्थियों के लिए उसका लगाव और धैर्य
  • विद्यार्थियों की अक्षमताओं का ज्ञान
  • पृथक्-पृथक् समजातीय समूहों के व्यक्तियों के प्रति बच्चों की अभिवृत्ति साधारणतया उनके अभिभावक की चित्तवृत्ति पर आधारित होती है इसलिए इनके समावेशन हेतु यह आवश्यक है कि शिक्षकों में पर्याप्त धैर्य-शक्ति हो, यह तभी होगा जब वे उनके प्रति लगाव महसूस करेंगे।
  • सफल समावेशन में अभिभावकों की भागीदारी, उनके क्षमता संवर्द्धन एवं उन्हें संवेदनशील बनाने की भी आवश्यकता होती है ताकि वे अपने बच्चों को स्कूल आने के अवसर उपलब्ध कराएँ, ताकि उसके हर प्रकार के विकास में सहयोग करें।
  • समावेशन पृथक् हो गए समाज को मुख्य शिक्षा धारा में शामिल किए जाने से सम्बन्धित है।
  • निर्धन, वंचित, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा असंगठित घर में आने वाला बच्चा स्वतन्त्र अध्ययन में सबसे अधिक कठिनाई का अनुभव करता है। इसलिए इनके सफल समावेशन के लिए इस प्रकार के विशेष रूप से जरूरतमन्द बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध दूसरे सामान्य बच्चों के साथ होना चाहिए।

निर्धन एवं पिछड़े वर्ग के बच्चें एवं उनकी शिक्षा  Poor and Backward Classes Children and Their Education

  • निर्धनता का तात्पर्य उस स्थिति से है, जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होता। रोटी, कपड़ा एवं मकान के साथ-साथ शिक्षा भी मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। निर्धन परिवार अपना पेट ही ठीक से नहीं भर पाता, तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था कहाँ से करेगा। निर्धनता का कुप्रभाव इस वर्ग के बच्चों पर पड़ता है। शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किए जाने के बाद से बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा रही है, किन्तु निर्धनता के कारण अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेज देते है, जिससे उनके विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • पिछड़े, वंचित एवं अनुसूचित जाति व जनजाति के बच्चों की सामान्य पहचान यह है कि पारिवारिक निर्धनता एवं पिछड़ेपन के कारण सामान्यतः वे अभावजन्य जीवन व्यतीत करने को बाध्य होते हैं।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, सभी बच्चों की निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा पर जोर देता है समाज के पिछड़े एवं निर्धन वर्ग की आवश्यकताओं को देखते हुए ही मध्याहृ भोजन स्कीम को लागू किया गया है ताकि भूख को शिक्षा से दूर रहने का बहाना न बनाया जाए एवं अभिभावक की बच्चे को काम पर भेजने के बदले स्कूल में भेजें।
  • पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए राज्य सरकारों का द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे है,
  • जिनमें से कुछ प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार है
  • विद्यालयी शिक्षा की सभी अवस्थाओं लिए मुफ्त किताबें एवं सामग्री आश्रम, विद्यालयों और सरकारी अनुमोदन प्राप्त छात्रावासों के बच्चों को मुफ्त पोशाकें
  • सभी स्तरों पर निःशुल्क शिक्षा 

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चे एवं उनकी शिक्षा SC and ST Classes Children and Their Education

  • अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनजाति दोनों ही ऐसे समुदाय हैं, जिन्हें ऐतिहासिक कारणों से औपचारिक शिक्षा व्यवस्था से बाहर रखा गया। पहले को जाति के आधार पर विभाजित समाज में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण एवं दूसरे को उनके भौगोलिक अलगाव, सांस्कृतिक अन्तरों तथा मुख्यधारा कहे जाने वाले प्रबल समुदाय ने अपने हित के लिए हाशिए पर रखा।
  • अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों की शिक्षा के खराब स्तर के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
  • विद्यालयों में अनुसूचित जनजाति के बालकों की कम संख्या
  • अध्यापकों में उनके शिक्षण के प्रति उदासीना रवैया
  • पाठ्यपुस्तकों में उनकी स्थानीय बातों व उदाहरणों का न होना
  • बौद्धिक क्षेत्र में उनका पिछड़ा होना
  • निर्धनता
  • इन वर्गों में शिक्षा के प्रचार-प्रचार का अभाव
  • भारत की स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा एवं अन्य अधिकारों से वंचित समुदायों के उद्धार के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए ताकि इनका समुचित विकास हो सके।
  •  भारतीय संविधान की धाराओं 15(4), 45 और 46 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए शिक्षा मुहैया कराने हेतु राज्यों की प्रतिबद्धता की बात कही गई है।

विविध पृष्ठभूमि के  बच्चों के उचित समावेशन के लिए कुछ सुझाव Some suggestion for Various Background Children’s Proper Inclusive

संस्थानगत सुधार Institutional Improvement

  • अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों की विद्यालयी व्यवस्था को सुविधाओं के कुशल और निःसंकोच प्रावधान की आवश्यकता है।
  • निरन्तर उपेक्षा एवं बहिष्कार झेल रहे जनजाति एवं जाति समूहों और भौगोलक क्षेत्रों की पहचान कर उनके प्रति सकारात्मक व्यवहार अपनाए जाने की आवश्यकता है।
  • प्रायः देखा जाता है कि विद्यालय के कैलेण्डर, अवकाशों एवं समय में स्थानीय सन्दर्भों का ख्याल नहीं रखा जाता। इससे बचना चाहिए एवं स्थानीय सन्दर्भों को भी पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
  • समावेशी कक्षा में कोर्स को ‘पूरा करने लिए‘ शिक्षकों द्वारा प्रयास किए जाने से अधिक आवश्यक यह है कि वह अधिक सहकारी एवं सहयोगात्मक गतिविधि अपनाएँ।
  • समावेशी कक्षा में प्रतियोगिता और ग्रेडों पर कम बल दिया जाना चाहिए तथा विद्यार्थियों के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए।

विद्यालयी पाठ्यचर्या में सुधार Improvement in School’s Syllabus

  • पाठ्यचर्या के उद्देश्य ऐसे होने चाहिएँ जो भारतीय समाज और संस्कृति कि सराहना तथा विवेचनात्मक मूल्यांकन पर बल दें।
  • सुविधाओं से वंचित बच्चों के संवेगात्मक एवं सामाजिक विकार, मानसिक विकास आदि के समान अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिएँ।
  • रचनात्मक प्रतिभा, उत्पादन कौशल और सामाजिक न्याय, प्रजातन्त्र, धर्मनिरपेक्ष, समानता के मूल्यों सहित श्रम के आदर को प्रोत्साहन देना पाठ्यचर्या का लक्ष्य होना चाहिए।
  • पाठ्यचर्या का ऐसा उपागम हो, जोकि विवेचनात्मक सिद्धान्त पर आधारित हो, विशेषकर उपदलित, दलित-महिलावादी और विवेचनात्मक बहु-सांस्कृतिक दृष्टिकोणों का समावेशन और केन्द्रीकरण आवश्यक है। यह विवेचनात्मक भारतीयकरण की प्रक्रिया अन्याय और नायक प्रधान सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्न उठाने, साथ-साथ विविध संस्कृतियों को समाहित करने और मूल्यवान सांस्कृतिक धरोहर का नुकसान होने से बचाने में सहायक होगा।
  • विवेचनात्मक बहु-सांस्कृतिक पाठों और पठन सामग्री के विकास आवश्यकता है।

शिक्षणशास्त्र में सुधार Improvement in Pedagogy

  • अधिगम सन्दर्भों  को बढ़ावा और प्रजातान्त्रिक व समानतावादी कक्षा-कक्ष व्यवहारों की रूपरेखा के विकास के लिए शिक्षणशास्त्र की विविध पद्धतियों और व्यवहारों को समाहित करने की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि पाठ्यचर्या का प्रभावी क्रियान्वय हो सके।
  • शिक्षकों को रचनात्मक, समीक्षात्मक शिक्षणशास्त्र और बच्चों के प्रति लिंग, जाति, वर्ग जनजाति-आधारित और अन्य प्रकारों की पहचान सम्बन्धी इत्यादि भेदभाव को दूर करने और समान आदर और सम्मान को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण के साथ कक्षा-कक्ष व्यवहारों पर विशेष दिशा-निर्देश विकसित करने की आवश्यकता है।
  • विद्यालय के संवेगात्मक वातावरण के सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि शिक्षक एवं बच्चे ज्ञान के निर्माण और अधिगम में खुलकर भाग ले सकें।
  • शिक्षणशास्त्र के ऐसे व्यवहरों का विकास करने की आवश्यकता है जिसका लक्ष्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातिय के आत्म-सम्मान और पहचान में सुधार।

भाषा के सन्दर्भ में सुधार Improvement in Reference of Language

  • स्थानीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। यदि यह सम्भव न हो, तो कम-से-कम व्याख्या एवं संवाद के लिए स्थानीय भाषा को वरीयता देना आवश्यक है।
  • भारतीय समाज की बहुभाषिक विशेषता को विद्यालयी जीवन को समृद्ध बनाने के संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *