🔆क्रिया प्रसूत सिद्धांत (Operante Conditioning Theory)
▪️इस सिद्धांत का प्रतिपादन “बी.एफ.स्किनर” जो कि अमेरिका के रहने वाले थे ,के द्वारा हुआ।
▪️इस सिद्धांत का क्रिया प्रसूत सिद्धांत नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि यह सिद्धांत पूरी तरह से क्रियाओं पर आधारित था यह वह क्रियाएं हैं जो किसी व्यक्ति को करनी होती है यह सिद्धांत अधिगम का एक सिद्धांत है।
▪️इस सिद्धांत में शास्त्रीय अनुबंध की सभी सिद्धांत पाए जाते हैं फिर भी इन दोनों सिद्धांतों में भिन्नता पाई जाती है।
▪️शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में कुत्ते को मेज से भली भांति बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था लेकिन इस स्किनर के क्रिया प्रसूत सिद्धांत में जो भी प्रोज्य अर्थात जो कार्य कर रहा होता है वह सक्रिय होता है या क्रियाशील रहता है इसीलिए सिद्धांत को क्रिया प्रसूत अनुबंधन क्रिया मुलक अनुबंध कहते हैं।
▪️इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य क्रिया करना है अतः यह क्रिया पर आधारित है।
स्किनर का शुरुआती प्रयोग चूहे पर किया गया।
✨स्किनर का प्रयोग:-
▪️अपनी प्रयोग प्रक्रिया में इस स्किनर ने जिस मंजूषा का निर्माण किया उसे स्किनर बॉक्स के नाम से जानते हैं कि चूहे को इस बॉक्स में रखा गया तथा भोजन के लिए तश्तरी रखी जिसमे भोजन गिरता था । स्किनर ने चूहे की क्रियाओं पर विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि चूहा इस बॉक्स के चारों ओर घूमता है तथा लगी हुई छड़ो पर खड़ा हो जाता है।
▪️इन गतिविधियों में छड रूपी लीवर दब जाता है और ध्वनि निकलती है और भोजन की तस्करी में भोजन गिरता है जिसे प्रथम वर्ष हुआ देख नहीं पाता ऐसी परिस्थितियों में चूहा अपनी गतिविधियों को जारी रखता है कुछ समय बाद चूहा भोजन को देखता है और उसे प्राप्त करता है।
▪️उसके बाद चूहा लीवर को पुनः दबाता है और भोजन की तश्तरी में भोजन गिरता है चूहा खाना देख लेता है और खा लेता है कुछ प्रयासों के बाद चूहा लीवर दबाकर शीघ्र भोजन प्राप्त कर लेता है इन क्रियाओं का अर्थ यह है कि चूहे ने लीवर को दबाना सीख लिया है इस अधिगम को क्रिया प्रसूत अनुबंधन के अंतर्गत माना जाता है ।
▪️स्किनर मंजूषा में चूहे की क्रिया प्रतिक्रिया को रिकॉर्डिंग यंत्र से मापा जा सकता है।
▪️थोर्नडायक के SR सिद्धांत के अनुसार बिना किसी उत्तेजक के क्रिया नहीं हो सकती इस बात का स्किनर ने विरोध किया उन्होंने कहा कि उत्तेजक के बिना अनुक्रिया घटित हो सकती है।
▪️स्किनर के अनुसार पहले अनुक्रिया बाद में उत्तेजक होना चाहिए।
▪️जो भी हमारी आवश्यक अनुक्रिया है उसके लिए कृत्रिम उत्तेजक द्वारा पुनर्बलन जरूरी है नहीं तो अनुक्रिया कम हो जाएगी ।
इस सिद्धांत के अनुसार उचित अनुक्रिया होने पर ही या उसके बाद ही पुनर्बलन दिया जाना चाहिए।
▪️अधिगम का अनुक्रिया ही मजबूत पक्ष है । और उद्दीपक का अनुक्रिया से संबंध है।
▪️उत्तेजक से अधिगम की अनुक्रिया को बढ़ाया जा सकता है लेकिन मुख्य अनुक्रिया ही है उत्तेजक से अनुक्रिया को गति या सहारा या बढ़ावा मिलता है।
▪️यदि व्यक्ति आंतरिक रूप से कोई अनुक्रिया कर रहा है तब उत्तेजक उसकी अनुक्रिया की गति को बढ़ा देता है जिससे वह क्रिया निरंतर चलती रहती है।
✨स्किनर ने व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया
1 अनु क्रियात्मक व्यवहार
2 क्रियाप्रसूत व्यवहार
🔹1 अनुक्रियात्मक व्यवहार :- किसी भी चीज को करने का अपनी खुद की इच्छा या खुद का मन ही अनुक्रियात्मक है ।
🔹2 क्रियाप्रसूत व्यवहार :- जब हम किसी कार्य को आंतरिक रूप से करते हैं तो हम उस कार्य को करने के लिए कई क्रियाओं को अपने व्यवहार में लाते हैं फिर उसके बाद उस पर क्रिया करते हैं यही क्रिया प्रसूत या मूल क्रिया है।
▪️क्रिया के होने के लिए अनुक्रिया का होना बहुत जरूरी है यदि अनुक्रिया सही ढंग से नहीं होगी तो क्रिया भी सही ढंग से नहीं होगी।
▪️परंपरागत मनोवैज्ञानिक के अनुसार
उद्दीपन के अभाव में अनुक्रिया नहीं हो सकती।
✨अनुक्रिया को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया।
1 प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया या प्रकाशित अनुक्रिया
2 उत्सर्जन प्रतिक्रिया
🔸1 प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया या प्रकाशित अनुक्रिया :-
यदि अपना कोई खुद का विजन या लक्ष्य है तो उस लक्ष्य को कार्य पूरा करने के लिए कोई ना कोई प्रेरक होता है जिससे हम उस लक्ष्य को पूरा कर पाते हैं।
🔸2 उत्सर्जन अनुक्रिया :-
उत्सर्जन प्रतिक्रिया में कोई प्रेरक नहीं होता बल्कि यह खुद से उत्सर्जित होता है। क्रिया प्रसूत व्यवहार को समझने के लिए उत्तेजक दशा का कोई महत्व नहीं है क्योंकि क्रिया प्रसूत व्यवहार उत्तेजक द्वारा प्रकाश में नहीं आता।
🔸अर्थात प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया ज्ञात प्रेरक द्वारा प्रकाश में लाई जाती हैं जबकि उत्सर्जित अनुक्रिया किसी ज्ञात प्रेरक से संबंधित नहीं होती उसके अनुसार क्रिया प्रसूत व्यवहार में उत्सर्जित क्रिया को पुनर्बलित किया जाता है।
▪️हमारी किसी भी कार्य के प्रति जो सक्रिय होती है उस सक्रियता का संबंध किसी पूर्व उत्तेजक के साथ हो जाता है।
▪️अर्थात सक्रियता का किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध हो सकता है। यह संबंध विभेदीकृत क्रिया प्रसूत कहलाता है।
▪️हम जिस भी वातावरण या माहौल मे पले बड़े होते हैं वही माहौल या वातावरण हमारे भविष्य के किसी पद ,जो हम बनना चाहते हैं उसका निर्णय करता है।
▪️इस सिद्धांत के अनुसार किसी क्रिया के लिए तत्काल उद्दीपक नहीं दिया जाता।
✨अनुक्रिया की तरह अनुबंध भी दो प्रकार के होते हैं
📍1 उद्दीपक अनुबंध (S)
📍2 अनुक्रिया अनुबंध (R)
▪️किसी भी कार्य के सफल होने के लिए उस कार्य के अनुबंध या प्रोविजन के उद्दीपक अनुबंध और अनुप्रिया अनुबंध दोनों का ही होना अत्यंत आवश्यक है।
❇️ स्किनर के सिद्धांत की प्रमुख कमियां
🌀1 कई बार उद्दीपन अनुक्रिया (SR) और अनुक्रिया उद्दीपक (RS) में अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
🌀2 स्किनर का क्रिया प्रसूत सिद्धांत अधिगम एवं क्रियाकलाप इन दोनों के बीच को अंतर को नहीं समझाते हैं।
🌀3 क्रिया प्रसूत के सभी प्रयोग नियंत्रित परिस्थिति में ही संपन्न हुए हैं।
🌀4 क्रिया प्रसूत में प्रयोग के लिए विषय पशुओं व जीवो को ही रखा गया है ।
🌀5 क्रिया प्रसूत सिद्धांत पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थितियों में लागू और उपयोगी हो यह जरूरी या आवश्यक नहीं है।
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Notes By-‘Vaishali Mishra’
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
📛 क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत( Operant conditioning theory) ➖बी.एफ. स्किनर ( Burhnse Frederick Skinar )
इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिका के मनोवैज्ञानिक बी.एफ.स्किनर ने किया था |
यह सिद्धांत क्रियाओं पर आधारित है इसलिए इसको क्रिया प्रसूत सिद्धांत कहा जाता है |
यह वह क्रिया है जो किसी व्यक्ति को करना होता है और यही क्रिया उस व्यक्ति के अधिगम को दर्शाती है |
इसमें शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के सभी गुण पाए जाते हैं फिर भी दोनों में भिन्नता पाई जाती है क्योंकि पावलव के शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में कुत्ते को मेज से बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था | लेकिन स्किनर के प्रयोग में प्रयोज्य अर्थात क्रिया करने वाला क्रियाशील होता है इसलिए इसे क्रिया प्रसूत या क्रिया मूलक कहते हैं |
🉐 स्किनर ने बहुत सारे जानवरों पर प्रयोग किया जैसे चूहे, कबूतर आदि |
🧶 स्किनर ने शुरुआत में अपना प्रयोग चूहों पर किया | उन्होंने शुरू में चूहों पर प्रयोग किया था स्किनर ने भूखे चूहे को एक पेटिका में रखा जिसे “स्किनर पेटिका” कहते हैं | इसमें जब भी चूहे को भोजन पाना होता था तो उसे लीवर दबाना पड़ता था | स्किनर ने अपने प्रयोग में एक ऐसी पेटिका का निर्माण किया था जिसमें भोजन से एक छड़ तथा दस्तरी जुड़ी हुई थी | भूखे चूहे को इस पेटिका में रखा गया जैसे ही चूहा छड़ को दबाता था वैसे ही दस्तरी से भोजन प्राप्त हो जाता था | चूहे के व्यवहार में यह एक पुनर्बलन था और वह बार-बार छड़ को दबाने लगा | लेकिन चूहे को भोजन तभी प्राप्त होता था जब उस पेटिका से एक मीठी ध्वनि निकलती थी |
चूहे ने इसे ध्वनि को समझकर छड़ को तभी दबाना स्टार्ट किया या शुरुआत किया जब उसमें से मीठी ध्वनि थी इसके बाद चूहा तभी छड़ को दबाता था जब उससे मीठी ध्वनि निकलती थी |
स्किनर ने एस – आर थ्योरी को आर – एस थ्योरी कहा | उन्होंने S – R Theory का विरोध किया |
स्केनर के अनुसार अगर किसी को पुनर्बलन मिलता है तो उस पुनर्बलन के द्वारा ही क्रिया होती है |
S – R theory में बिना उत्तेजक की क्रिया नहीं होती है लेकिन आर – एस थ्योरी के अनुसार पहले अनुक्रिया होती है फिर बाद में उत्तेजक होता है जो हमारी जरूरी अनुक्रिया है उसके लिए कृत्रिम उत्तेजक के द्वारा पुनर्बलन जरूरी होता है अन्यथा बिना पुनर्बलन के अनुक्रिया का ह्रास होने लगता है |
उचित अनुक्रिया के बाद ही पुनर्बलन दिया चाहिए क्योंकि अनुक्रिया ही मजबूत पक्ष है अधिगम का और यही उद्दीपन अनुक्रिया संबंध है |
💮 स्किनर ने व्यवहारवाद व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया है ➖
🍀 अनुक्रियात्मक ➖
अनुक्रियात्मक व्यवहार वह व्यवहार है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है |
🍀 क्रिया प्रसूत ➖
क्रिया प्रसूत वह व्यवहार है जिसमें अनुक्रिया के अनुसार क्रिया करना होता है |
💮 ” परंपरागत मनोविज्ञान “के अनुसार उद्दीपन के अभाव में अनुक्रिया नहीं हो सकती है |
💮अनु क्रियात्मक व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया ➖
1) प्रकाश में आने वाली अनुप्रिया ➖
इसके प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया में एक प्रेरक होता है जो उत्तेजक द्वारा प्रकाशित होता है |
2) उत्सर्जक प्रतिक्रिया ➖
उत्सर्जन प्रतिक्रिया के अंतर्गत इसमें कोई प्रेरक नहीं नहीं होता है |
स्किनर ने कहा कि क्रिया प्रसूत को समझने के लिए उत्तेजक दशा का कोई महत्व नहीं है सक्रियता का किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध जरूर हो सकता है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि कोई उत्तेजक होगा तभी सक्रियता होगी और इसे ही” विभेदीकृत क्रिया प्रसूत “कहते हैं |
🧶 अनुक्रिया की तरह अनुबंधन भी दो प्रकार के होते हैं ➖
1) उद्दीपक अनुबंधन अर्थात् Stimulus
2) अनुक्रिया अर्थात Response
🧶 स्किनर के सिद्धांत में कमियां➖
🍀 कई बार (S – R thepry और और (R – S theory ) में अंतर करना मुश्किल हो जाता है |
🍀 अधिगम और क्रियाकलाप में स्किनर अंतर नहीं समझते हैं दी इसको अधिगम कहते हैं |
🍀 क्रिया प्रसूत के सभी प्रयोग नियंत्रित परिस्थिति में हुए है |
🍀 क्रिया प्रसूत में प्रयोग के लिए पशु या जीव रखे गए और इस पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू और उपयोगी हो यह आवश्यक नहीं है |
नोट्स बाय➖ रश्मि सावले
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🌲⚜️🔅क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत🔅⚜️🌲
⚜️इस सिद्धांत के प्रतिपादक बीएफ स्किनर है
अमेरिका के हैं
⚜️🔅इनका नाम के लिए क्यों रखा गया
⚜️क्योंकि यह कुछ क्रिया पर आधारित है और वह क्रिया है जो किसी व्यक्ति को करनी होती है इसलिए इनका नाम क्रिया प्रसूत ही रखा गया
⚜️इसमें शास्त्री अनुबंध के सिद्धांत सभी सिद्धांत पाए जाते हैं फिर भी दोनों में अंतर होता है
🔅पावलव शास्त्री अनुबंध के सिद्धांत में कुत्ते 🐕को मेज मे बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था
इस स्किनर के प्रयोग में प्रयोग प्रयोज्य कार्य करने वाला क्रियाशील होते हैं इसलिए इसे क्रिया प्रसूत “क्रिया मुलक” कहते हैं
⚜️🔅स्किनर का प्रयोग स्क्रीनर ने शुरुआत में चूहों 🐀पर प्रयोग किया
इस स्किनर ने स्किनर पेटीका में चूहे 🐀को रखा भोजन ग्रहण करने के लिए लीवर दबाना पड़ता था इसके बाद उन्होंने अन्य पशुओं पर प्रयोग किया
⚜️🔅स्किनर का चूहे🐀 पर प्रयोग स्किनर में एक ऐसी पेटी का प्रयोग किया जिसमें एक क्षण और एक दस्तरी थी और भूखी चूहे🐀 को इस पेटीका में रखा गया ऐसे ही छड़ को दबाता भोजन दफ्तरी में आ जाता छड़ और भोजन की दस्तरी जुड़ी हुई थी उसके व्यवहार में यह पुनर्वलन मिला लेकिन भोजन जब मिलता तब उसमें एक मीठी ध्वनि भी निकलती मीठी ध्वनि की आवाज आती इसे चूहे🐀 ने समझा कि जब मीठी ध्वनि होती है तभी छड़ दबाने पर खाना मिलेगा तो चूहा तभी छड़ दवा था जब जब ध्वनि की आवाज आती और उसे भोजन मिल जाता था वह किया वह बार-बार करने लगा इससे इस क्रिया को करने में उसने वह अपने दिमाग में बैठा लिया
⚜️इस करना अपने यहां पर कबूतर 🦆पर भी प्रयोग किया हो रहे हैं उस तरह से यह समझा कि क्रिया करने पर अनुबंध होता है
⚜️उन्होंने बोला S-R Theory है वह नहीं होना चाहिए बल्कि R-S theotyहोना चाहिए एस आर में बिना उत्तेजक के अनुक्रिया नहीं हो सकती उन्होंने इस बात का विरोध किया स्किनर का मानना था कि हमारा जो ज्ञान है वह उत्तेजक के बिना अनुक्रिया घटित नहीं हो सकता है
🔅इसके द्वारा पहले अनुक्रिया होगी बाद में उत्तेजक
🔅जो जरूरी अनुपक्रिया के लिए कृत्रिम उत्तेजक द्वारा पुनर्बलन जरूरी है नहीं तो अनुक्रिया कम हो जाएगी उचित अनुपक्रिया जो पहले होती है वह हमारा रिएक्शन है
🔅उचित अनुक्रिया के बाद ही पुनर्बलन दिया जाता है अनुपक्रिया ही मजबूत पक्ष है और अधिगम उद्दीपन अनुक्रिया संबंध नहीं है
⚜️🔅स्किनर के व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया गया है
🔅अनुक्रियात्मक
🔅क्रिया प्रसूत
🌲परंपरागत मनोविज्ञान इसके अनुसार उद्दीपन के अभाव में अनुक्रिया नहीं हो सकती
🌲अनुक्रिया के भाग
🔅प्रकाश में आने वाली अनुपक्रिया
🔅उत्सर्जन प्रतिक्रिया
🔅प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया ➖️प्रेरक द्वारा आने वाली अनुक्रिया प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया है
🔅उत्सर्जन प्रतिक्रिया इसमें प्रेरक नहीं होता स्वयं द्वारा उत्सर्जित होता है
🔅स्किनर ने कहा क्रिया प्रसूत व्यवहार को समझने के लिए उत्तेजक दशा का महत्व नहीं है क्योंकि क्रिया प्रसूत व्यवहार उत्तेजक द्वारा व्यवहार में नहीं आता है सक्रियता जो आती है सक्रियता का किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध होता है ऐसी स्थिति विभेदीकृत क्रिया प्रसूत है
🔅अनुक्रिया की तरह अनुबंध भी दो प्रकार के होते हैं
🌲उद्दीपक अनुबंधन
🌲अनुक्रिया अनुबंधन
🌲इसके सिद्धांत की कमियां ➖️⚜️कई बार S- R और R-Sमें अंतर करना मुश्किल हो जाता है
⚜️अधिगम है और क्रियाकलाप इन दोनों में स्किनर अंतर नहीं समझ पाते हैं
⚜️क्रियाप्रसूत के सभी प्रयोग बहुत ही नियंत्रित परिस्थिति में हुए
⚜️क्रिया प्रसूत में प्रयोग के लिए पशु या जीव रखे गए और इन पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू और उपयोगी हो यह जरूरी नहीं है
Notes by sapna yadav 📝📝📝📝📝📝📝
🟢क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत÷( Operant conditioning theory) ➖बी.एफ. स्किनर ( Burhnse Frederick Skinar )
इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिका के मनोवैज्ञानिक 🧑🏻✈️बी.एफ.स्किनर ने किया था |
👉🏻यह सिद्धांत क्रियाओं पर आधारित है इसलिए इसको क्रिया प्रसूत सिद्धांत कहा जाता है |
👉🏻 यह वह क्रिया है जो किसी व्यक्ति को करना होता है और यही क्रिया उस व्यक्ति के अधिगम को दर्शाती है |
👉🏻इसमें शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के सभी गुण पाए जाते हैं फिर भी दोनों में भिन्नता पाई जाती है क्योंकि पावलव के शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में कुत्ते को मेज से बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था | लेकिन स्किनर के प्रयोग में प्रयोज्य अर्थात क्रिया करने वाला क्रियाशील होता है इसलिए इसे क्रिया प्रसूत या क्रिया मूलक कहते हैं |
🧑🏻✈️ स्किनर ने बहुत सारे जानवरों पर प्रयोग किया जैसे चूहा🐁, कबूतर🕊️ आदि |
🧑🏻✈️ स्किनर ने शुरुआत में अपना प्रयोग चूहों पर किया | स्किनर ने शुरू में चूहों पर प्रयोग किया था स्किनर ने चूहों को एक पेटिका में रखा जिसे “स्किनर पेटिका” कहते हैं | इसमें जब भी चूहे को भोजन पाना होता था तो उसे लीवर दबाना पड़ता था | स्किनर ने अपने प्रयोग में एक ऐसी पेटिका का निर्माण किया था जिसमें भोजन से एक छड़ तथा दस्तरी जुड़ी हुई थी | भूखे चूहे को इस पेटिका में रखा गया जैसे ही चूहा छड़ को दबाता था वैसे ही दस्तरी से भोजन प्राप्त हो जाता था | चूहे के व्यवहार में यह एक पुनर्बलन था और वह बार-बार छड़ को दबाने लगा | लेकिन 🐁चूहे को भोजन तभी प्राप्त होता था जब उस पेटिका से एक मीठी ध्वनि निकलती थी |
चूहे ने इसे ध्वनि को समझकर छड़ को तभी दबाना स्टार्ट किया या शुरुआत किया जब उसमें से मीठी ध्वनि थी इसके बाद चूहा तभी छड़ को दबाता था जब उससे मीठी ध्वनि निकलती थी |
🧑🏻✈️स्किनर ने एस – आर थ्योरी को आर – एस थ्योरी कहा |
उन्होंने S – R Theory का विरोध किया |
🧑🏻✈️👉🏻स्किनर के अनुसार ,”अगर किसी को पुनर्बलन मिलता है तो उस पुनर्बलन के द्वारा ही क्रिया होती है |”
S – R theory में बिना उत्तेजक की क्रिया नहीं होती है लेकिन R- S theory के अनुसार पहले अनुक्रिया होती है फिर बाद में उत्तेजक होता है जो हमारी जरूरी अनुक्रिया है उसके लिए कृत्रिम उत्तेजक के द्वारा पुनर्बलन जरूरी होता है अन्यथा बिना पुनर्बलन के अनुक्रिया का ह्रास होने लगता है।
उचित अनुक्रिया के बाद ही पुनर्बलन दिया चाहिए क्योंकि अनुक्रिया ही मजबूत पक्ष है अधिगम का और यही उद्दीपन अनुक्रिया संबंध है |
🧑🏻✈️ स्किनर ने व्यवहारवाद व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया है।
⚫अनुक्रियात्मक ÷
अनुक्रियात्मक व्यवहार वह व्यवहार है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है |
🟢 क्रिया प्रसूत ÷
क्रिया प्रसूत वह व्यवहार है जिसमें अनुक्रिया के अनुसार क्रिया करना होता है |
➡️ ” परंपरागत मनोविज्ञान “के अनुसार उद्दीपन के अभाव में अनुक्रिया नहीं हो सकती है |
🔴अनु क्रियात्मक व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया ÷
🟢प्रकाश में आने वाली अनुप्रिया÷
इसके प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया में एक प्रेरक होता है जो उत्तेजक द्वारा प्रकाशित होता है |
🔴 उत्सर्जक प्रतिक्रिया ÷
उत्सर्जन प्रतिक्रिया के अंतर्गत इसमें कोई प्रेरक नहीं नहीं होता है |
🧑🏻✈️स्किनर ने कहा कि क्रिया प्रसूत को समझने के लिए उत्तेजक दशा का कोई महत्व नहीं है सक्रियता का किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध जरूर हो सकता है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि कोई उत्तेजक होगा तभी सक्रियता होगी और इसे ही” विभेदीकृत क्रिया प्रसूत “कहते हैं |
🔴 अनुक्रिया की तरह अनुबंधन भी दो प्रकार के होते हैं ÷
1) उद्दीपक अनुबंधन ( Stimulus )
2) अनुक्रिया( Response )
🟢 स्किनर के सिद्धांत में कमियां÷
👉🏻 कई बार (S – R theory)
और (R – S theory ) में अंतर करना मुश्किल हो जाता है |
🟢 अधिगम और क्रियाकलाप में स्किनर अंतर नहीं समझते हैं दी इसको अधिगम कहते हैं |
👉🏻 क्रिया प्रसूत के सभी प्रयोग नियंत्रित परिस्थिति में हुए है |
⚫ क्रिया प्रसूत में प्रयोग के लिए पशु या जीव रखे गए और इस पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू और उपयोगी हो यह आवश्यक नहीं है |
🌸🌸notes by shikha tripathi🌲🌲🌴🌴
🌷🌷 क्रिया- प्रसूत का सिद्धांत🌷🌷
🏵️( Operant Conditoning Theory) 🏵️
🌸 इस सिद्धांत का प्रतिपादन बीएफ स्किनर ने 1983 में
किया था ।
🌸(B.F.Skinner-Burrhus Federic skinner)
🌸ये अमेरिका के मूल निवासी थे।
🌸इन्होंने क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
🌸कुछ क्रियाओं पर आधारित होने की वजह से इसका नाम क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत रखा गया।
यह वह क्रियाएं होती है जो किसी व्यक्ति को करनी होती है।
इसमें शास्त्रीय अनुबंधन के सभी सिद्धांत पाए जाते हैं, फिर भी दोनों में भिन्नताएं है।
🌻पावलाव के शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत
🌸इसमें कुत्ते पर प्रयोग किया गया और इस कुत्ते को मेज पर बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था।
🌻स्किनर के प्रयोग में
प्रयोज्य(कार्यकर्ता) क्रियाशील होते हैं इसलिए इसे क्रिया प्रसूत क्रिया मूलक कहते हैं।
🌻स्किनर का सफेद चूहों🐁 पर प्रयोग के कुछ बिंदु निम्नलिखित है÷
🗣️स्किनर ने भी एक भूखे चूहे पर प्रयोग किया था इसके लिए उन्होंने एक स्किनर पेटिका बनवाई और उसमें उस भूखे चूहों को रखा;
🐁चूहे को पेटिका में लगे लीवर को दबाना था;
🐁🐁(चूहे पर प्रयोग)🐁🐁
🌸स्किनर ने एक ऐसी पेटिका का निर्माण कराया जिसमें एक छड़ और भोजन के लिए एक तश्तरी उस पेटिका से जुड़ी हुई थी और इस बॉक्स में उस भूखे चूहे को रखा गया,
जब चूहा पेटिका के अंदर घूमते- घूमते छड़ को दबाता तो भोजन तश्तरी में आ जाता था चूहे के लिए वह भोजन पुनर्बलन का कार्य करता था चूहे को लगता था कि जब मैं छड़ को दबाऊंगा तो मुझे भोजन प्राप्त होगा किंतु चूहे को भोजन छड़ दबाने के बाद तभी मिलता था जब उसे मीठी ध्वनि सुनाई पड़ती थी धीरे-धीरे बात समझ गया कि मीठी ध्वनि आने पर ही छड़ दबाने पर भोजन प्राप्त होगा प्रत्येक समय छड़ दबाने पर भोजन प्राप्त नहीं होगा, इससे वह समझ गया और वह तभी छड़ दबाता था जब उसे वा मीठी ध्वनि सुनाई पड़ती थी।
🌸स्किनर ने कबूतरों पर भी प्रयोग किया था।
🌸इन्होंने S-R बंध को नकारते हुए कहा कि R-S बंध होना चाहिए।
🌸S-R Theory के बिना उत्तेजक के अनुक्रिया संभव नहीं जबकि स्किनर ने इसका विरोध किया कहा कि मनुष्य का ज्ञान उत्तेजक के बिना भी अनुक्रिया कर सकता है।
🌸पहले अनुक्रिया बाद में उत्तेजक होना चाहिए।
🌸जरूरी अनुक्रिया के लिए कृत्रिम उत्तेजक द्वारा पुनर्बलन जरूरी है, नहीं तो उन अनक्रियाओ का ह्ास हो जाएगा या अनुक्रिया कम हो जाएगी।
🌸उचित अनुक्रिया के बाद ही पुनर्बलन दिया जाना चाहिए
💦 Different between S-R and R-S💦
🏵️S-R=, इसमें थार्नडाइअ ने कहा कि पहले उद्दीपक दिखा दो फिर अनुक्रिया अपने आप शुरू हो जाएगी,
🏵️R-S इसमें स्किनर ने कहा कि पहले अनुक्रिया को हो जाने दो फिर पुनर्बलन देखकर उस अनुक्रिया को जारी रखेंगे।
🏵️जो अनुक्रिया होती है वही मजबूत पक्ष अधिगम का,
उद्दीपक अनुक्रिया संबंध है बस आगे ले जाने के लिए किया गया है।
🏵️🏵️ ने व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया है÷
🗣️1-अनुक्रियात्मक व्यवहार
🗣️2-क्रिया प्रसूत व्यवहार
🗣️1-अनुक्रियात्मक व्यवहार वह कोई भी कार्य क्रिया जिसको करने के लिए किसी बाहरी उत्तेजक की आवश्यकता नहीं होती बल्कि यह स्वयं की रुचि, अभिप्रेरणा, के आधार पर होता है।
🗣️1-अनु क्रियात्मक व्यवहार को भी दो भागों में विभाजित किया गया है÷
🗣️1a -प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया
इस प्रकार के अनुक्रिया में वह अनुक्रिया आती है जो बिना किसी बाहरी उद्दीपक के के बिना ना होकर स्वयं की रुचि चाहिए कोई भी प्रेरक की वजह से आई हो ऐसे अनुक्रिया को प्रकाश में आने वाली कहते हैं।
🗣️इसमें प्रेरक की आवश्यकता होती है।
🗣️1b-उत्सर्जन प्रतिक्रिया ÷ इस प्रकार की अनुक्रिया करने के लिए प्रेरक की आवश्यकता नहीं होती है
🗣️2-क्रिया प्रसूत को समझना ही उत्तेजक दशा का महत्व नहीं है।
🏵️सक्रियता का किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध हो सकता है यहां किसी बाहरी उत्तेजक की बात नहीं की जाती है बल्कि यह मनुष्य के विचारों से ही निकलताहै।
🌺🌺 “विभेदीकृत क्रिया प्रसूत”🌺🌺
🏵️यह तत्काल किसी उत्तेजक की वजह से ना होकर पूर्व में किसी प्रेरक उत्तेजक से इसका संबंध होता है वह इसी की वजह से घटित भी होता है।
🏵️अनुक्रिया की तरह ही अनुबंधन भी दो प्रकार के होते हैं
🗣️1-उद्दीपक अनुबंधन
🗣️2-अनुक्रिया अनुबंधन
🎶🎶 स्किनर के सिद्धांत में कमियां🎶🎶
🌺 ( Demerits of skinner theory)🌺
🎉कई बार S-R वा R-S में अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
🎉अधिगम से ही क्रियाकलाप निकला है किंतु स्किनर ने इन दोनों में अंतर नहीं समझा हैं इसके अनुसार क्रिया करते ही अधिगम होगा;
🎉क्रिया प्रसूत के सभी प्रयोग नियंत्रित परिस्थिति में हुए (अर्थात यह पहले से ही सब कुछ नियंत्रित किया गया था किस प्रकार का बॉक्स होगा किस प्रकार का छड़ होगा या कैसी स्थिति हम बनाएंगे कि चूहा लीवर को ही दबाए इत्यादि)
🎉क्रिया प्रसूत में प्रयोग के लिए पशु व जीव रखे गए और इस पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू और उपयोगी हो यह जरूरी नहीं है।
💞💞 Written by shikhar 💞💞
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क्रिया प्रसूत का सिद्धांत–
इस सिद्धांत का प्रतिपादन बीएफ स्किनर ने किया ।अमेरिका के थे। इन्होंने क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
क्रिया प्रसूत अनुबंधन का नाम लिया था इसलिए रखा गया क्योंकि यह क्रिया पर आधारित है। वह क्या है जो किसी व्यक्ति को करनी होती है।
इसमें शास्त्रीय अनुबंध के सभी सिद्धांत पाए जाते हैं फिर भी दोनों में भिन्नता है।
🌍 पावलव का शास्त्रीय अनुबंध मैं कुत्ते को मेज पर बांधा गया था और वह सक्रिय नही था।
🌍 स्पिनर के प्रयोग में जो प्रयोज्य है वह क्रियाशील होते इसलिए इसे क्रिया प्रसूत या क्रिया मूलक कहते हैं ।
💥 स्किनर का प्रयोग–
स्किनर ने शुरू में चूहे पर अपना प्रयोग किया था उस चूहे को पेटीका में रखा। जिसे स्किनर पेटिका कहा जाता है।
♦️ भोजन को ग्रहण करने के लिए लीवर दबाना था।
♦️ स्किनर ने एक पेटिका का निर्माण किया था जिसमें एक क्षण और भोजन के लिए एक तश्तरी जुड़ी हुई थी ।
♦️एक भूखे चूहे को इस पेटिका में रखा।
♦️ भूखा चूहा जैसे इधर-उधर घूमता और छड़ को दबाता था। तो खाना तस्करी में आ जाता था।
♦️ भोजन चूहे की व्यवहार में पुनर्बलन था और जब उसे वह पुनर्बलन मिला वहां से तो वह बार-बार छड को दबाने लगा भोजन के लिए। और चूहे को भोजन उसी समय मिलता जब साथ में मीठी ध्वनि होती। तो उसमें एक स्पीकर अलग से लगा हुआ था। धीरे-धीरे चूहा इस चीज को सामान्य रूप से समझने लगा और वह क्षण को उसी समय दबाने लगा जब मीठी ध्वनि उत्पन्न होती थी। चूहे ने इस लॉजिक को अपने माइंड में बिठा लिया ।
🌍इसी को आगे चलकर आगमन विधि का सिद्धांत दिया गया ।जहां पर हम किसी चीज का प्रयास करते सामान्य करण कर लेते हैं ।उस कांसेप्ट का नियम बना लेते हैं।
💥 इस स्किनर ने कबूतर पर भी अपना प्रयोग किया।
💥 इन सभी प्रयोग में स्किनर महोदय जी ने यही बताया है कि जब किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पुनर्बलन मिल जाता है। तो वह कैसे अपने व्यवहार को परिवर्तित करता है।
🌺 इन्होंने S–R theory को R–S theory मैं बदल दिया।
☘️S –R – इसमें बिना उत्तेजक के अनुक्रिया नहीं होती । स्किनर ने इसका विरोध किया।
☘️R–S – उन्होंने कहा कि ज्ञान उत्तेजित के बिना अनुक्रिया घटित हो सकती है ।
➡️इसमें पहले अनुक्रिया होगी। बाद में उत्तेजक होना चाहिए।
➡️ जो हमारा जरूरी अनुक्रिया के लिए तृतीय उत्तेजक द्वारा पुनर्बलन जरूरी है ।अगर अनुक्रिया नहीं तो अनुक्रिया कम हो जाएगी।
➡️पुनर्बलन तभी दिया जाए जब उचित अनुक्रिया हो।
➡️ यहां पर अनुक्रिया ही मजबूत पक्ष है अधिगम का, उद्दीपन अनुक्रिया संबंध नहीं।
🌼 स्किनर ने व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया है।
🥀 अनु क्रियात्मक
🥀 क्रिया प्रसूत
☘️ परंपरागत मनोविज्ञान के अनुसार उद्दीपन के अभाव में अनुप्रिया नहीं होती है।
🌻अनुक्रिया– यह दो प्रकार की है।
♦️ प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया ।
♦️उत्सर्जन प्रतिक्रिया।
🌼 किसी कार्य के लिए जब हम खुद प्रेरित होते हैं तो यह प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया है।
🌼 उत्सर्जन प्रतिक्रिया में प्रेरक नहीं होता है ।
☘️ क्रिया प्रसूत को समझने के लिए उत्तेजित दशा का महत्व नहीं है।
☘️ क्रिया प्रसूत व्यवहार उत्तेजक द्वारा प्रकाश में नहीं आती।
☘️ इन्होंने कहा जो सक्रियता होती है वह किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध हो सकता है।
🌻 इसे विभेदीकरत क्रिया प्रसूत कहा जाता है।
🌼 अनुक्रिया की तरह अनुबंध( प्रक्रम किस प्रकार से जुड़ा है) भी दो प्रकार के होते हैं।
♦️ उद्दीपक अनुबंध S
♦️ अनुक्रिया अनुबंधनR
🌼 स्किनर के सिद्धांत में कमियां–
♦️ कई बार s–R ,R– S मैं अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
♦️ अधिगम और क्रियाकलाप में स्किनर इन में अंतर नहीं समझाते हैं।
♦️ क्रिया प्रसूत के सभी प्रयोग बहुत नियंत्रित परिस्थिति में हुए।
♦️ क्रिया प्रसूत के प्रयोग चूहे और कबूतर या अन्य जंतुओं पर किया गया ।और इस पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू और उपयोग हो यह जरूरी नहीं है।
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Notes by poonam sharma
02/04/2021. 🙏🙏 Friday
TODAY CLASS…
क्रिया प्रसूत सिद्धांत
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Operant conditioning theory
🌻अन्य नाम…
🔥r-s theory
🔥कार्यात्मक प्रतिबद्धता का सिद्धांत
🔥सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
🔥अभिक्रमित अनुदेशन सिद्धांत
🔥नैमित्तिक अनुबंधन का सिद्धांत
Given by:— B.F SKINER ( Burrhus Ferderic skinner)
From:—-AMERICA
🌻 क्रिया प्रसूत नाम इसलिए रखा गया क्योंकि यह कुछ क्रिया पर आधारित है जो किसी व्यक्ति को करनी होती है ।
🌻 इसमें पावलव के शास्त्रीय अनुबंधन के सभी सिद्धांत पाए जाते हैं ,फिर भी दोनों में भिन्नता है
🤔 क्योंकि पावलव:— के शास्त्रीय अनुबंधन में कुत्ते को मेज से बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था
👨स्किनर :—इन के प्रयोग में प्रयोज्य कार्यशील होते हैं इसलिए इसे क्रिया प्रसूत या क्रिया मुलक कहते हैं
👨स्किनर का प्रयोग
स्किनर ने शुरू में चूहे पर प्रयोग किया । चूहे को स्किनर पेटिका में रखा जाता था
भोजन करने के लिए लिवर दबाया जाता था इसके बाद उन्होंने अन्य पशुओं पर प्रयोग किया जिसमें कबूतर भी थे
➖ इन्होंने स्किनर पेटीका का निर्माण किया जिसमें एक छड़ और भोजन के लिए एक तश्तरी जुड़ी हुई थी और भूखे चूहे को इस पेटिका में रखा जब वह पेटी का में इधर-उधर घूमता और जैसे ही वह छड़ को दबाता भोजन तश्तरी में में आ जाता तो यह चूहे के व्यवहार में पुनर्बलन था और जब यह पुनर्बलन मिला तो वह बार-बार छड़ को दबाने लगा चूहे को केवल उसी समय भोजन उपलब्ध होता जब साथ में मीठी ध्वनि भी होती धीरे-धीरे चूहा ने समझ लिया और वह उसी समय छड़ दबाता जब मीठी ध्वनि होती थी इस प्रकार बार-बार भोजन मिलने से चूहा छड़ को दबाकर भोजन प्राप्त करने की कला को सीख जाता है। भोजन चूहे के लिए प्रबलन एवं भूख उसके लिए प्रणोदक का कार्य करती है।
🔥 निष्कर्ष यह है कि यदि क्रिया के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि होती है स्किनर के मत में प्रत्येक पुनर्बलन अनुक्रिया को करने के लिए प्रेरित करता है
➖थार्नडाइक के एस.आर थ्योरी बिना उत्तेजक के अनुक्रिया नहीं
👨 स्किनर ने इसका विरोध किया
➖R-S :— ज्ञान उत्तेजक के बिना अनुक्रिया घटित हो सकती है
➖ पहले अनुक्रिया बाद में उत्तेजक होना चाहिए जो हमारे जरूरी अनुक्रिया के लिए कुत्रिम उत्तेजक द्वारा पुनर्बलन जरूरी है नहीं तो अनुक्रिया कम हो जाएगी
➖ उचित अनुक्रिया के बाद ही पुनर्बलन दिया जाना चाहिए
➖ अनुप्रिया की मजबूत पक्ष है अधिगम का उद्दीपन अनुक्रिया संबंध है
🌻 स्किनर ने व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया है
(1) अनु क्रियात्मक
(2) क्रिया प्रसूत
➖ (1)अनु क्रियात्मक:—प्रतिक्रियात्मक व्यवहार व्यवहार है, जो किसी उद्दीपक के नियंत्रण में होता है
➖2) क्रिया प्रसूत:—जबकि क्रिया प्रसूत व्यवहार प्राणी की इच्छा पर निर्भर करता है।
🌻 परंपरागत मनोविज्ञान के अनुसार उद्दीपन के अभाव में अनुक्रिया नहीं होती।
➖अनुक्रियात्मक को दो भागों में बांटा गया
(1) प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया
(2) उत्सर्जन प्रतिक्रिया
(1) प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया:—
इसके द्वारा अगर किसी प्रेरक के द्वारा लाई गई है और किसी ना किसी तरह आप खुद प्रेरित हुए तो यह प्रकाशित अनुक्रिया है
(2) उत्सर्जन प्रतिक्रिया:—
इसमें कोई प्रेरक नहीं होते हैं या खुद से होता है
🔥 क्रिया प्रसूत:—
स्किनर ने कहा है कि क्रिया प्रसूत व्यवहार को समझने के लिए उत्तेजक दशाओं का कोई महत्व नहीं है क्योंकि क्रिया प्रसूत व्यवहार उत्तेजक द्वारा प्रकाश में नहीं आता । सक्रियता जो हमारी आती है उसका किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध हो सकता है ऐसी स्थिति को” विभेदीकृत क्रिया प्रसूत” कहते हैं
🔥 अनुक्रिया की तरह अनुबंधन भी दो प्रकार के होते हैं
(1) उद्दीपक अनुबंधन (stimulus)
(2) अनुक्रिया अनुबंधन (Response)
➖👨 स्किनर (R) अनुक्रिया अनुबंधन को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि यह क्रिया प्रसूत व्यवहार का अनुबंधन है जो पुनर्बलन के साथ संबंधित होता है स्किनर उत्सर्जित व्यवहार को अधिक महत्व देते हैं क्योंकि उनके मत में यदि एक क्रिया प्रसूत के घटित होने के बाद पुनर्बलन उद्दीपन प्रस्तुत किया जाता है तो शक्ति में वृद्धि होती है
👨 स्किनर के सिद्धांत में कमियां
➖कई बार ( s-r ),( r-s ) में अंतर करना मुश्किल हो जाता है
➖ अधिगम ↔️क्रियाकलाप➡️ इस दोनों में अंतर नहीं समझते
➖ क्रिया प्रसूत के सारे प्रयोग नियंत्रित परिस्थिति में हुए
➖ क्रिया प्रसूत के प्रयोग में सिर्फ पशु या जीव रखे गए और इस पर आधारित नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू हो और उपयोग हो यह जरूरी नहीं है
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Notes by:— संगीता भारती✍
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क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत
अन्य नाम
R-S theory
सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
नैमित्तिक अनुबंधन का सिद्धांत
साधनात्मक अनुबंधन का सिद्धांत
यांत्रिक अनुबंधन का सिद्धांत
सुदृढ़ीकरण का सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक बी एफ स्किनर (B F SKINNER) ने किया।
इस सिद्धांत का नाम क्रिया प्रसूत ही क्यों रखा गया ??
यह सिद्धांत कुछ क्रियाओं पर आधारित है
क्रिया वह है जो किसी व्यक्ति को करनी होती है।
इस सिद्धांत में शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के सभी गुण पाए जाते हैं।
फिर भी दोनों में भिन्नता है।
पावलव के शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में कुत्ते को मेज से बांधा गया था और वह सक्रिय नहीं था जबकि
इस स्किनर के प्रयोग में प्रयोज्य अर्थात किसी क्रिया को करने वाला, क्रियाशील होता है।
इसीलिए इसे क्रिया प्रसूत या क्रिया मूलक सिद्धांत कहते हैं।
स्किनर ने इसके लिए शुरू में एक चूहे पर प्रयोग किया।
चूहे को पेटिका का में रखा जाता था। जिसे स्किनर पेटिका कहते हैं।
पेटिका ऐसी थी जिसमें भोजन से एक छड़ तथा तस्तरी जुड़ी हुई थी
इसमें जब भी चूहे को भोजन पाना होता था तो उसे लीवर दबाना पड़ता था |
भूखे चूहे को इस पेटिका में रखा गया जैसे ही चूहा छड़ को दबाता था वैसे ही तस्तरी से भोजन प्राप्त हो जाता था | चूहे के व्यवहार में यह एक पुनर्बलन था और वह बार-बार छड़ को दबाने लगा | लेकिन चूहे को भोजन तभी प्राप्त होता था जब उस पेटिका से एक मीठी ध्वनि निकलती थी |
चूहे ने इस ध्वनि को समझकर छड़ को तभी दबाना स्टार्ट किया या शुरुआत किया जब उसमें से मीठी ध्वनि निकली थी ।
इस प्रकार चूहे ने ध्वनि के साथ सामान्यीकरण कर लिया।
स्किनर ने कबूतर पर भी प्रयोग किया
एस आर S-R मे बिना उत्तेजक के अनुक्रिया नहीं हो सकती है।
आर एस R-S में स्किनर ने इसका विरोध किया कि
ज्ञान उत्तेजक के बिना अनुक्रिया घटित हो सकती हैं।
पहले अनुक्रिया, बाद में उत्तेजक होना चाहिए।
जरूरी अनुक्रिया के लिए कृत्रिम उत्तेजक द्वारा पुनर्बलन जरूरी है नहीं तो अनुक्रिया कम हो जाएगी
उचित अनुक्रिया के बाद ही पुनर्बलन दिया जाना चाहिए
अनुक्रिया ही अधिगम का मजबूत पक्ष है उद्दीपन अनुक्रिया संबंध नहीं।
स्किनर ने व्यवहार को दो भागों में विभाजित किया है
1. अनुक्रियात्मक – अनुक्रियात्मक व्यवहार वह व्यवहार है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है।
2. क्रिया प्रसूत- क्रिया प्रसूत वह व्यवहार है जिसमें अनुक्रिया के अनुसार क्रिया करनी होती है।
परंपरागत मनोविज्ञान के अनुसार उद्दीपन के अभाव में अनुक्रिया नहीं होती हैं।
अनुक्रियात्मक व्यवहार को भी दो भागों में विभाजित किया गया है
1. प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया या प्रकाशित अनुक्रिया
इस अनुक्रिया में एक प्रेरक होता है जो उत्तेजक को प्रदर्शित करता है।
2. उत्सर्जन प्रतिक्रिया
इसमें कोई प्रेरक नहीं होता है
क्रिया प्रसूत व्यवहार को समझने के लिए उत्तेजक दशा का महत्व नहीं है।
क्रिया प्रसूत व्यवहार उत्तेजक के कारण प्रकाश में नहीं आता है।
सक्रियता का किसी पूर्व उत्तेजक के साथ संबंध जरूर हो सकता है।
इसे विभेदीकृत क्रिया प्रसूत कहते हैं।
जैसे किसी व्यक्ति को यदि शिक्षक बनना है । तो उसने पहले किसी दूसरे शिक्षक का व्यवहार देखा होगा तभी तो वह उस व्यवहार का अनुकरण करने के लिए उत्तेजित या पुनर्बलित या प्रेरित हुआ होगा तभी वह शिक्षक बनने की राह में अग्रसर हुआ।
अर्थात यहां दूसरे शिक्षक का व्यवहार पूर्व उत्तेजक हैं।
जिसका संबंध व्यक्ति के शिक्षक बनने की सक्रियता को दर्शाता है।
अनुक्रिया की तरह अनुबंधन भी दो प्रकार के होते हैं।
1. उद्दीपक अनुबंधन -stimulus
2. अनुक्रिया अनुबंधन-response
स्किनर के सिद्धांत में कमियां
1. कई बार एस आर s-R , आर एस R-S में अंतर करना मुश्किल हो जाता है
2. अधिगम और क्रियाकलाप इन दोनों में स्किनर अंतर नहीं समझाते हैं।
3. क्रिया प्रसूत के सभी प्रयोग नियंत्रित परिस्थितियों में हुए थे।
4. क्रिया प्रसूत में प्रयोग के लिए पशु या जीव रखे गए और इस आधार पर नियम सामाजिक परिस्थिति पर लागू और उपयोगी हो जरूरी नहीं है।
Notes by Ravi kushwah