बाल विकास के संबंध में प्रचलित धारणाएं और परंपरागत विचार

🌻🌻🌻🌻🌻🌻08 Feb 2021🌻🌻

1️⃣💫बालक प्रौढ़ व्यक्ति का लघु रूप है : समाज में अक्सर लोग बालक से अपनी भावनाओं इच्छा और महत्वाकांक्षा के जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखने लगते हैं और इन उम्मीदों के पूरा ना होने पर दु:खी होते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का खंडन – बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।

2️⃣💫 बालक के जन्म के संबंध में धारणा : समाज में अक्सर धारणाएं देखी जाती है कि शिशु –

 👉शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं, उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी रहता है।

👉 उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

👉 भाग्यशाली बालक मानकर ज्यादा लाड़-प्यार दिया जाता है।

✨मनोवैज्ञानिकों और बाल विशेषज्ञों ने इन धारणाओं को गलत बताया है।

✨ज्योतिष के अनुसार, नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं; लेकिन मंगलकारी-अमंगलकारी भावना को काटती हैं।

🗣️मारिया मांटेसरी के अनुसार, “बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास का आधारशिला है।”

3️⃣💫वंशानुक्रम के संबंध में-

वर्तमान समाज में अक्सर देखा जाता है कि लोग कहावतों से व्यक्ति के आनुवंशिकता की पुष्टि करने की कोशिश करते हैं।

यथा, 

(i)जैसे माता-पिता होते हैं, वैसे ही संतान होती।

(ii) जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष बनेगा।

(iii) बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय।

उपर्युक्त कहावत लोगों के द्वारा बनाई गई धारणाएं और भ्रांतियां है जो प्रायः सत्य नहीं होती। यह सिर्फ तात्कालिक प्रभाव के आधार पर कहीं गई होती हैं।

🗣️वुडवर्थ महोदय ने अनुवांशिकता के संबंध में कहां है कि, “आनुवंशिकता और पर्यावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान होता है।”

Development = Heredity * Environment

🗣️गैरेट के अनुसार, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं हो सकता की आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।”

4️⃣💫 गर्भकालीन प्रभाव

प्रायः देखा जाता है कि जब महिलाएं गर्भ धारण करती है तो परिवार के सदस्यों में झाड़-फूंक, परंपरागत उपचार, पुत्र प्राप्ति की इच्छा इत्यादि की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती; जो कि गलत है। इससे बच्चे के माता के मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

✨संतुलित भोजन, अच्छा साहित्य, अच्छा मनोरंजन, सुखद अनुभूति इत्यादि के प्रभाव से मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है इसका वैज्ञानिक कारण जो कि *विद्युत चुंबकीय प्रभाव* है। अतः यह आवश्यक है कि गर्भावस्था के दौरान प्रत्येक माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए।

🗣️ कॉट, डगलस, स्मिथ और बैंगिन ने इस संबंध में कहा है कि, “इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।”

5️⃣💫 यौन-भेद के संबंध में :

समाज में प्रचलित धारणा यह है कि स्त्री निर्बल होती है, पुरुष सबल; प्रायः यह भी देखा जाता है कि लोग पुत्र को माता पिता को मोक्ष दिलाता है यह मानकर लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा अधिक लाड प्यार देते हैं, जो कि गलत है इससे लड़कियों में हीन भावना का विकास होता है।

🗣️ फ्रोबेल के अनुसार, “बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”

🙏

🥀📝📝नोट्स by अवधेश कुमार🥀🥀

*बाल विकास के संबंध में प्रचलित धारणाएं और परंपरागत विचार*

1️⃣  *बालक प्रौढ़ व्यक्ति का लघु रूप है-* 

 समाज में अक्सर लोग बालक से अपनी भावनाओं इच्छा और महत्वाकांक्षा के जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखने लगते हैं और इन उम्मीदों के पूरा ना होने पर दु:खी होते हैं।

*खंडन*

*मनोवैज्ञानिक के अनुसार- बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।*

2️⃣  *बालक के जन्म के संबंध में-* 

समाज में धारणाएं देखी जाती है कि-

 1-शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं, उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी रहता है।

2-उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

*मारिया मांटेसरी के अनुसार, “बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास का आधारशिला है।”*

3️⃣ *वंशानुक्रम के संबंध में*

लोगों में प्रचालित भ्रांतियां–

1-जैसे माता-पिता होते हैं, वैसे ही संतान होती।

2-जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष बनेगा।

3-बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय।

*वुडवर्थ महोदय के अनुसार – “आनुवंशिकता और पर्यावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान होता है।”*

*Development =Hereditary +Environment ❌*

*Development = Heredity * Environment✅*

*गैरेट के अनुसार, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं हो सकता की आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।”*

4️⃣ *गर्भकालीन प्रभाव* :

1- गर्भवती स्त्री को झाड़ फूंक के द्वारा   बेटा या बेटी होगा ये बताया जाता हैं। 

2- गर्भवती महिलाओं को कई प्रकार के ताबीज पहनाए जाते हैं। 

3- खाने-पीने के लिए – ये खाओ तो बेटा होगा। 

4- घर मे फोटो लगाकर देखने से उसी तरह की संतान प्राप्ति होगा। 

*कॉट, डगलस, स्मिथ और बैंगिन ने इस संबंध में कहा है कि, “इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।”*

5️⃣ *यौन-भेद के संबंध में* :

1- बेटा बुडापे का सहारा होता है,  बेटी परायी होती हैं ।

2- बेटे से वंश चलाता हैं। 

*फ्रोबेल के अनुसार, “बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”*

🌞🌺Noted by – *DeepikaRay* 🌺🌞

*बाल विकास के संबंध में प्रचलित धारणाएं और परंपरागत विचार*

1- *बालक प्रौढ़ व्यक्ति का लघु रूप है-* 

 समाज में अक्सर लोग बालक से अपनी भावनाओं इच्छा और महत्वाकांक्षा के जैसा व्यवहार करने की उम्मीद रखने लगते हैं और इन उम्मीदों के पूरा ना होने पर दु:खी होते हैं।

*खंडन*

*मनोवैज्ञानिक के अनुसार- बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।*

2-*बालक के जन्म के संबंध में-* 

समाज में धारणाएं देखी जाती है कि-

 *-शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं, उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी रहता है।

*-उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

*मारिया मांटेसरी के अनुसार, “बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास का आधारशिला है।”*

3 -*वंशानुक्रम के संबंध में*

लोगों में प्रचालित भ्रांतियां–

*-जैसे माता-पिता होते हैं, वैसे ही संतान होती।

*-जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष बनेगा।

*-बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय।

*वुडवर्थ महोदय के अनुसार – “आनुवंशिकता और पर्यावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान होता है।”*

*गैरेट के अनुसार, “इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं हो सकता की आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।”*

4 -*गर्भकालीन प्रभाव* :

*- गर्भवती स्त्री को झाड़ फूंक के द्वारा   बेटा या बेटी होगा ये बताया जाता हैं। 

*- गर्भवती महिलाओं को कई प्रकार के ताबीज पहनाए जाते हैं। 

*- खाने-पीने के लिए – ये खाओ तो बेटा होगा। 

*- घर मे फोटो लगाकर देखने से उसी तरह की संतान प्राप्ति होगा। 

*कॉट, डगलस, स्मिथ और बैंगिन ने इस संबंध में कहा है कि, “इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।”*

5 -*यौन-भेद के संबंध में* :

*- बेटा बुडापे का सहारा होता है,  बेटी परायी होती हैं ।

*- बेटे से वंश चलाता हैं। 

*फ्रोबेल के अनुसार, “बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है   

👩‍🦰अंकिता सिंह

🌸 *बाल विकास के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विचार *●*🌸

➖➖➖➖➖➖➖➖

*1-*बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप होता है*➖➖➖➖

 इस भ्रांति में अभिभावक  अपने बाल्यावस्था बालक में प्रौढ़ (व्ययस्क ) व्यक्ति के समान  व्यवहार करने की अपेक्षा करता है । 

●अगर ऐसा नही हो पाता तो बालक को दंड भी देने लगता है।

●बच्चे अगर समान व्यवहार नही कर पाते है तो बच्चों को ताने – बाने या आलोचना करने लगते   है जिससे  बच्चों में हीन -भावना का विकास हो जाता है।

●बच्चें के साथ गलत व्यवहार से वो अपना आत्मविश्वास  खो देते है और साथ में उनका व्यक्तित्व  विकास अवरुद्ध हो जाता है।

● *इसका खंडन  मनोवैज्ञानिक के अनुसार निम्न है* >

” बालक ही प्रौढ बनता है,लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नही होता है”

*2. *बालक के जन्म के संबंध मे*>➖➖➖➖

●”जो बच्चे जन्म के समय शुभ नक्षत्र में पैदा होते है वह बच्चे भाग्यशाली होते है”।- 

●जिस बच्चे को  भाग्यशाली मानते है  उसको परिवार में अलग से व विशेष सुविधा दी जाती है। जिससे अन्य बच्चों में हीन भावना का विकास होने लगता है।

“उच्च कोटि में जो बच्चे पैदा होते है उनको एक तरह से भगवान का रूप मानते है”- 

 ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़िया जीवन को प्रभावित करती है ।लेकिन जन्म के समय बच्चों का मंगलकारी और अमंगलकारी भावना को काटती है 

*उपरोक्त धारणा समाज मे बहुचर्चित है जो कि पूर्ण रूप से असत्य है*

*मारिया मोंटेसरी*⬇️

*बच्चों में सच्ची  शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास ही आधारशिला है।*

3. *वंशानुक्रम के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां*⬇️➖➖➖➖

●जैसे माता -पिता होंगे वैसे ही संतान होगी।

*निम्न  कहावत वंशानुक्रम भ्रांतियां में सटीक बैठती है-*

 ● जैसा बीज होगा वैसा ही वृक्ष बनेगा

●बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से आये।

*वुडवर्थ के अनुसार=*

*”आनुवंशिकता और वातावरण का संबंध  जोड़ के समान नही ,गुणनफल के समान है।”*

*गैरेट के अनुसार=* 

*इससे अधिक निश्चित बात और कोई नही है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे का सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों बालक ही सफलता के लिए अनिवार्य है।*

*4.गर्भकालीन प्रभाव में प्रचलित भ्रांतियां=*➖➖➖➖

●झाड -फूक द्वारा बच्चे के लिंग का बताया जाए कि बेटा होगा या बेटी।

●इस तरह के  कार्य जो भी गर्भकालीन अवस्था में कराए जाते है उससे स्त्री के मानशिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

●खाने-पीने से बच्चों के  लिंग निर्धारण में अहम  भूमिका निभाई जाती है।

● अपने समाज मे सबसे ज्यादा प्रचलित भ्रांति यह है- *पुत्र प्राप्ति के लिए घरों में पुत्रों ( बालको) वाली पोस्टर और मोबाइल के वालपेपर में पुत्रों वाली फ़ोटो लगाना।*

*कुछ मनोवैज्ञानिक -कॉट ,डगलस स्मिथ और बैंगिन के अनुसार*-

   *”इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताज़ा रहने या चमकने वाली संभावना है।*”

*5. यौन भेद के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां*-➖➖➖➖

*इसमें स्त्री निर्बल व पुरुष सबल माना गया है*

● *पुत्र ही अपने माता -पिता  को मोक्ष्य दिलाने में सहायक है।*

● *समाज में लड़के को ज्यादा प्यार दिया जाता और लड़कियों को इतना नही दिया जाता है।*

*यह भेदभाव लड़कियों में हीनभावना का जन्म देता है।*

        *फ्रोबेल =*

*”बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”*।।।।।

☺️☺️☺️

✒️✒️✒️

*Notes By Anand Chaudhary*

📋📋📋

🌀 *बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास*🌀                                  

बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास निम्नलिखित 5 प्रकार से है :-                                         

1️⃣ *बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है –  बाल्यावस्था में वयस्कों के समान सभी व्यवहार करने लगे*  

(हम छोटी उम्र में ही बालकों से ऐसी अपेक्षा रखने लगते हैं  कि वह प्रौढ़ व्यक्तियों के समान व्यवहार करें  यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो हम उन्हें दंड देते हैं उनके प्रति हीन भावना रखने लगते हैं  आत्मविश्वास खो देते हैं व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है  हमें बालकों से ऐसी उम्मीदें रखना गलत है  क्योंकि जो चीज हम वयस्क हो कर या लगभग किशोरावस्था  को   पार कर समझ रहे हैं वह हम उनसे बाल्यावस्था  या छोटी उम्र में ही कैसे उम्मीद रख सकते हैं )                                                    

☑️ *खंडन 👉    

*मनोवैज्ञानिक  दृष्टिकोण*➖   ” *बालक ही प्रौढ़ बनता है “लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता*          

2️⃣   *बालक के  जन्म के संबंध में धारणा*➖                         

👉   शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।                             👉  उसका जन्म स्वयं और  परिवार के लिए मंगलकारी होता है ।                                                           👉  उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते है ।                                                         👉  *भाग्यशाली बालक को ज्यादा लाड़ प्यार दिया जाता है*।                                                   

👉  मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषज्ञ ने इस धारणा को गलत माना है –                                              👉  *ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़िया जीवन को प्रभावित करती हैं लेकिन मंगलकारी, अमंगलकारी भावना को काटती हैं* ।                 

🔅 *मारिया मांण्टेसरी* 🔅    *बच्चों में शक्ति का  आवास  होता है  तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है*  ।                                                  

3️⃣  *वंशानुक्रम के संबंध में*

➖   जैसे माता-पिता होते हैं , वैसी संतान होती है । माता-पिता  सुशिक्षित , सभ्य ,संस्कारी बुद्धिमान   है तो   बच्चे भी उसी तरह होंगे  उदाहरण-  जैसे बीज हैं वैसे ही वृक्ष बनेंगे    बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाए                

🔊  *वुडवर्थ के अनुसार*-  

*अनुवांशिकता  और वातावरण का संबंध  जोड़ के समान नहीं गुणनफल के समान है* *

Development =   Heredity ✖️ Environment*                          *

गैरेट के अनुसार*➖    *

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है  की अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं  जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है*                                                            

4️⃣  *गर्भकालीन प्रभाव*➖     कुछ भ्रांतियां हैं  जैसे झाड़-फूंक  के द्वारा  बेटा या बेटी होगी ऐसा  बताया  जाता है   (परंपरागत उपचार )                                                 ➡️  पुत्र होगा                                 ➡️   मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव                                          

(  बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए संतुलित भोजन ,अच्छा  साहित्य, अच्छा मनोरंजन,  सुखद अनुभूति,  वास्तव में जरूरी है  लेकिन कुछ ऐसे खाने-पीने की चीजें हैं जिनसे ऐसा माना जाता है कि बेटा या बेटी होगी  कुछ  फोटो लगाकर या वातावरण में रखकर  ऐसी भ्रांतियां बनाई गई हैं  की पुत्र या पुत्री होगी जो कि गलत है )                      

🔅 *काँट ,डगलस ,स्मिथ और बैगिन के अनुसार*  ➖   *

इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया  विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या  चमकने वाली संभावना है*                       

5️⃣  *यौन भेद के संबंध में*

➖  स्त्री – निर्बल                             पुरुष – सबल                                    पुत्र माता पिता को मोक्ष दिलाएगा।  (लाड़ प्यार में भेदभाव ) बेटी पराया धन है, no हीन भावना का विकास  होता हैं।     *

फ्रोबेल*⭕  *

बालक स्वयं विकासोन्मुख  होने वाला मानव पौधा हैं*      

✍️✍️ 

notes by Pragya Shukla…

🌺 बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विचार🌺

🌸1- बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप होता है➖

बाल अवस्था में वयस्कों के समान व्यवहार करने की अपेक्षा करता है

👉🏼अगर ऐसा नहीं हो पाता तो बालक को दंड भी देने लगते हैं।

👉🏼 बच्चा अगर समान व्यवहार नहीं कर पाता तो बच्चों की आलोचना की जाती है जिसके कारण बच्चों में हीन भावना जाती है।

👉🏼 बच्चों का आत्मविश्वास खो जाता है और व्यक्तिगत विकास अवरुद्ध हो जाता है।

🌸 इसका खंडन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार निम्न है➖

“बालक ही प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता।

🌺2-बालक के जन्म के संबंध में (धारणा)➖

👉🏼जो बच्चे शुभ नक्षत्र में पैदा होते हैं वह बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

👉🏼 उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है।

👉🏼 उच्च कोटि की जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

👉🏼 जिस बच्चे को भाग्यशाली मानते हैं उसको परिवार में अलग से वह विशेष सुविधा दी जाती है जिसका उनके छोटे या बड़े भाई बहनों में हीन भावना का विकास होने लगता है।

🌺 मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषताएं इन धारणा को गलत बताती है➖

ज्योतिषी के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती है लेकिन मंगलकारी अमंगल कारी भावना को काटती है।

✍🏻 मारिया मोंटेसरी

बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

🌺3-वंशानुक्रम के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां➖

👉🏼 जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही संतान होगी  । माता-पिता अगर सुशिक्षित सभ्य और संस्कारी और बुद्धिमान है तो बच्चे में भी यह सारे गुण होंगे।

👉🏼 जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा।

👉🏼 बोया पेड़ बबूल का तो आम से होय।

🤵🏻‍♂वुडवर्थ के अनुसार➖

अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं गुणनफल के समान है।

🤵🏻‍♂गैरेट के अनुसार➖

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि आनुवंशिकता और वातावरण एक दूसरे का सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों बालक ही सफलता के लिए अनिवार्य है।

🌺4-गर्भ कालीन प्रभाव मैं प्रचलित भ्रांतियां➖

👉🏼 झाड़-फूंक द्वारा बच्चे के लिंग का बताया जाए कि गर्भ में बेटा है या बेटी।

👉🏼 जिसके कारण एक गर्भवती स्त्री का मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

👉🏼 खाने-पीने से बच्चों के लिंग निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाई जाती है।

🌺 कुछ मनोवैज्ञानिक काॅट,डगलस, स्मिथ,और बैगिन के अनुसार➖

“इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है” तथा सदेव तरोताजा या चमकने वाली संभावना है।

🌺5-यौन भेद के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां➖

👉🏼 इसमें स्त्री को निर्बल और पुरुष को सबल माना जाता है।

👉🏼 पुत्र ही अपने माता पिता को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है।

👉🏼 समाज में लड़के को ज्यादा प्यार दिया जाता है और लड़कियों को इतना नहीं दिया जाता।

👉🏼 यह भेदभाव लड़कियों में भी हीन भावना को पैदा करता है।

🤵🏻‍♂फ्रोवेल के अनुसार➖

“बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है”।

📚📚✍🏻 Notes by Sakshi Sharma📚📚✍🏻

🌺🌺बाल विकास के संबंध मे प्रचलित भ्रांतियां औऱ परम्परागत विश्वास 🌺🌺

1️⃣🔅बालक प्रौढ का ही लघु रूप है।–

समाज मे यह महत्वाकांक्ष रखते है  की बालक वयस्को की भाँति व्यवहार करें ,🌺🌺

कम उम्र में बालको से यह अपेक्षा रखते ह की वे प्रौधो के समान व्यवहार करें यदि वे ऐसा नही कर

 पाते तो उन्हें दंड देते है। जिससे उनमें हीन भावना आ जाती है। और उनके व्यक्तित्व विकास में भी प्रभाव पड़ता है।🌸🌸

🌺🌺मनोवैज्ञानिको का खंडन🌺🌺

बालक ही आगे चल कर प्रौढ बनता है,”लेकिन वह बाल्यावस्था में प्रौढ़ के समान परिपक्व नही होता है।🌺🌺

2️⃣🔅बालक के जन्म के संबंध में –

👉समाज मे कुछ धारणाये है कि शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

उनका जन्म परिवार के लिए अच्छा है।उच्च कोटि में जन्मे बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

🌸उन्हें ज्यादा लड़ प्यार दिया जाता है।🌸

👉मनोवैज्ञानिको ने इस धारणा की गलत माना है।

🌸मारिया मांटेसरी के अनुसार-“बच्चे में सच्ची शक्ति का आवास होता है।और उसकी मुस्कुराहट अधिक प्रेम और विकास की आधारशिला है।🌸

3️⃣🔅वंशानुक्रम के संबंध में-

👉इस संबंध में समाज के कई तरह की धारणाये प्रचलित है।

👉 जैसे माता पिता होंगे बच्चे भी वैसे ही होंगे।

,👉जो बीज बोया जाएगा उसी फल की प्राप्ति होगी।

🌸🌸वुड वर्थ के अनुसार-🌸🌸

अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड के समान नही गुणनफल के समान है।

Herridety+environment ❌

Herridety× environment✅

🌸गैरिट के अनुसार🌸

“इससे अधिक निश्चित बात और कोई नही है कि अनुवंशिकता एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं। ये दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

4️⃣🔅गर्भकालीन प्रभाव,–

👉गर्भ काल के समय भी समाज मे झाड़ फूक जादू टोने की धारणाये प्रचलित है। कहा जाता है कि जाड़ फूक करने से लड़का होता है।

👉कहा जाता ह कमरे में कृष्णा की फ़ोटो लगाने से लड़के की प्राप्ति होती है।(ये सभी धारणाये है)

(गर्भावस्था के समय अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित भोजन ,साहित्य ,सुखद की अनुभूति वास्तव में जरूरी है)

🌺काट, डगलस ,स्मिथ ,और बैगिन के अनुसार🌸🌸

“इन्होंने बताया है कि इस संसार मे पैदा होने वाला हर बच्चा भगवान का नया विचार होता है तथा सदैव तरोताज़ा रहने या चमकने वाली संभावना उसमे है।,”

5️⃣🔅यौन भेद-

🌸🌸 समाज मे यह धरना सुरु से चली आ रही है कि स्त्री कमजोर होती है। वो सिर्फ घर गृहस्थी संभालने लायक है।

🌺समाज मे स्त्रियों को निर्बल समझा जाता है।जब कि पुरुषों की सबल समझा जाता है।।

👉इस तरह के भेदभाव से लड़कियों में हीन भावना आ जाती है और इसका प्रभाव उनके विकास पर भी पड़ता है।

🌺🌺फ्रोबेल के अनुसार🌺🌺

“बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है, जो खुद विकसित होता है।”

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

Notes by POONAM SHARMA  🌸🌸🌸🌸

👎 *बाल विकास के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विचार *●*👎

 **1-*बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप होता है* 

 इस भ्रांति में अभिभावक  अपने बाल्यावस्था बालक में प्रौढ़ (व्ययस्क ) व्यक्ति के समान  व्यवहार करने की अपेक्षा करता है । 

●अगर ऐसा नही हो पाता तो बालक को दंड भी देने लगता है।

●बच्चे अगर समान व्यवहार नही कर पाते है तो बच्चों को ताने – बाने या आलोचना करने लगते   है जिससे  बच्चों में हीन -भावना का विकास हो जाता है।

●बच्चें के साथ गलत व्यवहार से वो अपना आत्मविश्वास  खो देते है और साथ में उनका व्यक्तित्व  विकास अवरुद्ध हो जाता है।

● *इसका खंडन  मनोवैज्ञानिक के अनुसार निम्न है* >

” बालक ही प्रौढ बनता है,लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नही होता है”

*2. *बालक के जन्म के संबंध मे🧑‍⚕️👩‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️🧑‍⚕️

●”जो बच्चे जन्म के समय शुभ नक्षत्र में पैदा होते है वह बच्चे भाग्यशाली होते है”।- 

●जिस बच्चे को  भाग्यशाली मानते है  उसको परिवार में अलग से व विशेष सुविधा दी जाती है। जिससे अन्य बच्चों में हीन भावना का विकास होने लगता है।

“उच्च कोटि में जो बच्चे पैदा होते है उनको एक तरह से भगवान का रूप मानते है”- 

 ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़िया जीवन को प्रभावित करती है ।लेकिन जन्म के समय बच्चों का मंगलकारी और अमंगलकारी भावना को काटती है 

*उपरोक्त धारणा समाज मे बहुचर्चित है जो कि पूर्ण रूप से असत्य है*

*मारिया मोंटेसरी*👇

*बच्चों में सच्ची  शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास ही आधारशिला है।*

 *3. **वंशानुक्रम के सम्बंध में प्रचलित भ्रांतियां* 👇

●जैसे माता -पिता होंगे वैसे ही संतान होगी।

*निम्न  कहावत वंशानुक्रम भ्रांतियां में सटीक बैठती है-*

 ● जैसा बीज होगा वैसा ही वृक्ष बनेगा

●बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से आये।

*वुडवर्थ के अनुसार=*

*”आनुवंशिकता और वातावरण का संबंध  जोड़ के समान नही ,गुणनफल के समान है।”*

*गैरेट के अनुसार👇

*इससे अधिक निश्चित बात और कोई नही है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे का सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों बालक ही सफलता के लिए अनिवार्य है।*

*4.गर्भकालीन प्रभाव में प्रचलित भ्रांतियां👇

●झाड -फूक द्वारा बच्चे के लिंग का बताया जाए कि बेटा होगा या बेटी।

●इस तरह के  कार्य जो भी गर्भकालीन अवस्था में कराए जाते है उससे स्त्री के मानशिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

●खाने-पीने से बच्चों के  लिंग निर्धारण में अहम  भूमिका निभाई जाती है।

● अपने समाज मे सबसे ज्यादा प्रचलित भ्रांति यह है- ☝️पुत्र प्राप्ति के लिए घरों में पुत्रों ( बालको) वाली पोस्टर और मोबाइल के वालपेपर में पुत्रों वाली फ़ोटो लगाना।👉

*कुछ मनोवैज्ञानिक -कॉट ,डगलस स्मिथ और बैंगिन के अनुसार🍆🍆

   *”इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताज़ा रहने या चमकने वाली संभावना है।*”

*5. यौन भेद के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां*-➖➖➖➖

*इसमें स्त्री निर्बल व पुरुष सबल माना गया है*

● *पुत्र ही अपने माता -पिता  को मोक्ष्य दिलाने में सहायक है।*

● *समाज में लड़के को ज्यादा प्यार दिया जाता और लड़कियों को इतना नही दिया जाता है।*

*यह भेदभाव लड़कियों में हीनभावना का जन्म देता है।*

        🌺फ्रोबेल 🌺

👉बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।”*।।।।।

👉👉👉👉👉👉

नोट्स by sharad Kumar patkar

🙇🙇 विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास÷🙇🙇

🌷बालक  प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है;बाल्यावस्था में व्यस्को के समान सभी व्यवहार करने लगे;

🌷अगर हमारी इच्छा के अनुसार वह कार्य नहीं करता है तो हम उसे दंडित भी करने लगते हैं एवं उनकी आलोचना भी  करते हैं जिससे बच्चों में हीन भावना का बीज धीरे धीरे पनपने लगता है।

🌷हम अपनी क्षमता के अनुसार बालक में गुणों का समन्वयन हो ऐसा सोचते है इससे बच्चा विश्वास खो देता है स्वयं का एवं उसका  व्यक्तित्व विकास अवरूद्ध हो जाता है।

             🧐 खंडन 🧐

🔥मनोवैज्ञानिक विचार

बालक की प्रौढ़ बनता है, लेकिन बाल्यावस्था में प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता है।

🔥बालक के जन्म के संबंध में भ्रांतियां

धारणा÷शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

🌸उसका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है,

🌸उच्च कोटि की जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं,

🌸भाग्यशाली बालक मानकर ज्यादा लाड़- प्यार दिया जाता है, ज्यादा लाड- प्यार देने से बच्चों में अहम की भावना बढ़ती जाती है फिर आगे चलकर  जिदद् करने लगते हैं जिदद् पूरी होने पर रोना ,चिल्लाना,विलाप करना इत्यादि फिर आगे चलकर वही भावना  कुंठा को जन्म देती हैं।

🔥मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषज्ञ इन भावनाओं को गलत कहा है।

🌸ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं किंतु मंगलकारी  व अमंगलकारी भावना को काटती वा नकारती है।

🔥मैडम मारिया मांटेसरी का कथन÷

बच्चों में सच्ची शक्ति का वास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

🔥वंशानुक्रम के संबंध में÷जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही संताने होती हैं,अर्थात माता-पिता सुशिक्षित कसभ्य सरल संस्कारी, इमानदार ,बुद्धिमान है तो उनकी संतानें भी सरल ,सुशिक्षित, संस्कारी, बुद्धिमान व ईमानदार होती है।

🔥वुडवर्थ- अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं, गुणनफल होता है।

 Development=H × E

               Not.     H + E

🔥गैरेट के अनुसार- इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभावों है जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।

🌸गर्भ कालीन प्रभाव

गर्भ काल के दौरान झाड़-फूंक करवाना परंपरागत उपचार करवाना इत्यादि।

🌸पुत्र ही होगा ऐसा मानना वा ऐसा बार बार बोलना कि पुत्र ही आवश्यक है केवल कुल को बढ़ाने में इन सब बातों का गर्भवती की मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे बच्चे पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

🌸बच्चे के स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार  खाना सुखद अनुभूति करना अच्छा साहित्य पढ़ना या अच्छा मनोरंजन हो ,यह इसलिए नहीं कि बच्चे का लिंग परिवर्तन हो बल्कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

🔥काट ,डग्लस, स्मिथ और बैगिन के अनुसार÷

इस संसार में पैदा होने वाला है एक बच्चा भगवान का नया विचार है तथा सदेव तरोताजा रहने में चमकने वाली संभावना है।

🌸यौन भेद के संबंध में भ्रांतियां

🔥स्त्री-निर्मल

🔥पुरुष-सबल

अर्थात यौन भेद  के संबंध में पुरुषों के अपेक्षा में महिलाएं निर्बल वा कमजोर होती है;

🔥🔥 ऐसा पाया गया है कि बालक के जन्म के उपरांत एक एक बच्चे को भौतिक संसार में लाने हेतु इतने दर्द को सहन करना पड़ता है, जितना मनुष्य अपने पूर्ण जीवन में सहन करता है।

🌸पुत्र ही माता पिता को मोक्ष प्राप्त करवाता है भ्रांति  ही है;

🌸पुत्र पुत्रियों के लाड प्यार में भी भेदभाव रखा जाता है इससे हीन भावना का शिकार बच्चा हो जाता है।

फ्रावेल का कथन -बालक स्वयं विकासात्मक होने वाला मानव पौधा है।

🌸Thanku you 

🔥🔥 by shikhar pandey 🥀🥀

बाल विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास

1. बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है।

बाल्यावस्था में बालकों के द्वारा वयस्को के समान व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है। यदि वह ऐसा व्यवहार करने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें दंड दिया जाता है ,तिरस्कृत किया जाता है, आलोचना और निंदा की जाती है।

माता-पिता कहते हैं कि तुम्हारी उम्र में तो हम यह -वह काम कर लेते थे।

प्रभाव-

 इससे बालकों में *हीन भावना* आती है।

 बालक *आत्मविश्वास खो देते* हैं इससे उनका *व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध* हो जाता है।

खंडन-

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से 

*बालक ही प्रौढ़ बनता है।*

 लेकिन बाल्यावस्था में प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं हो सकता है

2. बालक के जन्म के संबंध में।

कुछ लोगों की धारणाओं में ऐसा माना जाता है कि शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं। उसका जन्म ,स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है

उच्च कोटि की जाति पैदा में हुए बच्चे भगवान का रुप होते हैं।

प्रभाव-

ऐसे बालकों को भाग्यशाली मानकर ज्यादा लाड प्यार दिया जाता है

और दूसरे बालक जो खराब नक्षत्र में पैदा हुए उनको तिरस्कृत , निंदा,उपेक्षा की जाती है।

खंडन-

मनोवैज्ञानिक और बाल विशेषज्ञों के अनुसार यह धारणाएं  गलत है।

ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करते हैं लेकिन मंगलकारी या  अमंगलकारी भावना को काटती है।

मारिया मांटेसरी- 

बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

3. वंशानुक्रम के संबंध में।

जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही संतान होती हैं

यदि माता-पिता सुशिक्षित ,सभ्य ,संस्कारी ,बुद्धिमान है तो उनके भी बच्चे सुशिक्षित, सभ्य, संस्कारी, बुद्धिमान होते हैं।

जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा 

बोया पेड़ बबूल का आम कहां से पाय।

खंडन-

वुडवर्थ- 

अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं है गुणनफल के समान है।

विकास= अनुवांशिकता+वातावरण ❌

विकास= अनुवांशिकता*वातावरण ✔️

गैरेट-

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

4. गर्भकालीन प्रभाव-

जब कोई भी स्त्री गर्भ से होते हैं तो उसके लिए हमारे समाज में परंपरागत उपचार, झाड़-फूंक आदि कार्य किए जाते हैं ताकि इससे उन्हें बेटा प्राप्त हो।

पैदा होने वाली संतान मंगलकारी हो।

प्रभाव- 

इससे मां की मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है और यह प्रभाव बच्चे पर भी पड़ेगा।

खंडन-

काॅट,डगलस,स्मिथ और बैगिन-

इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है।

इस अवस्था में मां का संतुलित भोजन करना ,अच्छा साहित्य पढ़ना ,अच्छा मनोरंजन, सुखद अनुभूति उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।

5.यौन भेद के संबंध में-

हमारी समाज में स्त्री को निर्बल और पुरुष को सबल मानते हैं। पुत्र को माता पिता को मोक्ष दिलाने वाला मानते हैं।

यहां लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा अधिक लाड प्यार मिलता है।

प्रभाव- 

इससे लड़कियों में हीन भावना, उनके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता हैं।

फ्रोबेल- बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है।

Notes by Ravi kushwah

⚜️⚜️ बालक विकास के संबंध में प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत विश्वास ⚜️⚜️

🔅 भ्रांति

1️⃣ बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है।

▪️ हमने अपने समाज में देखा है कि जब बालक बाल्यावस्था में आता है तो उसके घर के बड़े लोग उससे व्यस्को जैसा व्यवहार करने लगते हैं और यह उम्मीद करने लगते हैं कि वह भी व्यस्को जैसा  व्यवहार करें। 

🔸प्रभाव

▪️बच्चा ना कर पाए तो उनका तिरस्कार करते हैं ।

▪️उन्हे  दंड देते हैं।

▪️ उन्हें हीन भावना से देखते हैं।

▪️ जिससे बच्चे में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है ।

▪️वह अपना आत्मविश्वास खो देते हैं।

▪️ और उनका व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

🔸 मनोवैज्ञानिकों ने इसका खंडन किया,और उन्होंने कहा कि

▪️ ” बालक ही प्रौढ़ बनता है” लेकिन बाल्यावस्था मे वह प्रौढ़  के समान परिपक्व नहीं होता।

2️⃣ बालक के जन्म के संबंध में

🔸धारणा

▪️शुभ मुहूर्त में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

▪️उनका जन्म स्वयं और परिवार के लिए मंगलकारी होता है ।

▪️उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते है।

▪️हमने अपने समाज में अक्सर यह देखा है कि अगर कोई एक बच्चा शुभ नक्षत्र में पैदा हुआ हो या यह कहे कि उसके पैदा होने के बाद उसके घर में कोई मंगल कार्य हुआ हो या अमंगल घटित हुआ हो तो इस आधार पर उस बच्चे को भाग्यशाली और अभाग्यशाली ठहरा दिया जाता है जो कि एक बहुत बड़ी गलत धारणा है हमारे समाज की।

▪️उसे भाग्यशाली बालक मानकर ज्यादा लाड प्यार दिया जाता है।

🔸मनोवैज्ञानिकों और बाल विशेषज्ञों द्वारा इस धारणा को गलत माना गया है।

▪️ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं लेकिन मंगलकारी , अमंगलकारी भावना को काटती है।

♦️इस पर मारिया मांटेसरी का कथन है कि

बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

3️⃣ वंशानुक्रम के संबंध में

🔸धारण

▪️जैसे माता-पिता होते हैं वैसी ही संतान होती है।

▪️अगर माता-पिता सुशिक्षित, सभ्य, संस्कारी ,बुद्धिमान होते हैं तो बच्चा भी वैसा ही होता है।

 इससे जुड़ी हुई कुछ कहावतें हमारे समाज में प्रचलित हैं जैसे कि —

🔹 जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा।

🔹 बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।

इन कहावतों एवं धारणाओं को हम अपने समाज में पाते हैं । समाज में एक बच्चे को इस तरीके से देखा जाता है कि अगर उसके माता-पिता सुशिक्षित है, या स्मरण परिवार से हैं तो वह भी उन्हीं का अनुकरण करते हुए उन्हीं के जैसा ही होगा जबकि हम यह भूल जाते हैं कि 1 बच्चे के व्यक्तित्व के लिए जितना आवश्यक अनुवांशिकता है उतना ही आवश्यक वातावरण है भले ही वह एक परिवार से है लेकिन अगर उस का वातावरण अच्छा नहीं है तो  यह जरूरी नहीं है कि वह अच्छा हो। क्योंकि अनुवांशिकता के साथ-साथ वह अपने वातावरण से भी सीख कर के उस वातावरण जैसा हो सकता है।

🔸इसमें वुडवर्थ का कथन सटीक बैठता है कि ,

“अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं गुणनफल के समान है”

Development = H + E   X (wrong)

Development = H × E.  ✓ (right)

Here,

H = Heredity

E = Environment

🔸गैरेट के अनुसार

इससे अधिक निश्चित बात और कोई नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव हैं जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।

4️⃣ गर्भ कालीन प्रभाव

🔸धारणा

जब से एक बालक अपनी मां के गर्भ में आता है तब से उसके घर के बड़े बुजुर्ग उसको झाड़-फूंक परंपरागत उपचार और अलग – अलग नुस्खे बताना शुरू कर देते हैं कि जिससे उसको पुत्र ही प्राप्त हो।

▪️वह या नहीं सोचते हैं कि उनके द्वारा किया गया यह व्यवहार उस गर्भवती स्त्री पर किस प्रकार का प्रभाव प्रकट करेगा।

▪️ इस प्रकार का व्यवहार उसकी मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पैदा करता है जो कि उसकी बच्चे पर भी बुरा प्रभाव डालता है।

▪️गर्भावस्था के दौरान हमें गर्भवती स्त्री को — 

 * संतुलित भोजन 

 * अच्छा साहित्य 

 * अच्छा मनोरंजन एवं 

 * सुखद अनुभूति कराने चाहिए।

 जो कि उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अवश्यक है।

♦️ काॅट , डगगलस , स्मिथ एवं बैगिन के अनुसार 

” इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदैव तरोताजा रहने या चमकने वाली संभावना है

5️⃣ योन भेद के संबंध में

🔸धारणा 

▪️हमारे यहां समाज में आज भी यह व्याप्त है कि स्त्री निर्बल होती है , एवं पुरुष जो होते हैं वह सबल होते हैं।

▪️पुत्र अपने माता – पिता को मोक्ष प्रदान करता है।

▪️ पुत्र को ज्यादा लाड प्यार किया जाता है।

▪️ पुत्री के साथ भेदभाव का व्यवहार किया जाता है , उसे बहुत हीन भावना से देखा जाता है ।

▪️इन सभी के द्वारा हम लड़के हैं एवं लड़कियों के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं ।

▪️हम उनके अंदर हीन भावना का विकास करते हैं।

♦️फ्रोबेल का कथन

” बालक स्वयं विकासोन्मुख होने वाला मानव पौधा है। “

♾️ धन्यवाद वंदना शुक्ला ♾️

🔆 *बाल विकास के संबंध में कुछ प्रचलित भ्रांतियां और परंपरागत अविश्वास*🔆

▪️ भ्रांति – किसी व्यक्ति या बात आदि के प्रति मन में उत्पन्न गलत धारणा।

जब हम किसी विषय के संबंध में क्या माना जाएगा उसे नियम बना लेते है  बल्कि वह एक प्रकार की भांति या अविश्वास है। हर समय जो माना जाए वह हमेशा सही हो यह जरूरी नहीं है ।

 जैसे – जैसे कुछ लोगो का मानना  हैं कि लड़की घर के बाहर नहीं जा सकती और लड़के घर में दुबक कर नहीं बैठ सकते।

 यह बातें हमने मानी है और इन्हीं मानी हुई बातों को ही परंपरागत अविश्वास या भ्रांति कहते है।

ऐसी कई भ्रांतियां या परम्परागत अविश्वास ,जो बालक के विकास के संबंध में प्रचलित हैं निम्नानुसार है –

🔹✨ भ्रांति न. १ ➖

“बालक प्रौढ़ व्यक्ति का ही लघु रूप है”

हम चाहते हैं कि बालक बाल्यावस्था में ही वयस्कों के समान सभी व्यवहार करने लगे। इसके लिए हम कभी कभी बालकों को दंड भी देते हैं जिससे उनमें हीन भावना आ जाती है और वे अपना आत्मविश्वास भी खो देते हैं। उनका व्यक्तित्व विकास अवरुद्ध हो जाता है।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि

बालक ही प्रौढ़ बनता है लेकिन बाल्यावस्था में वह प्रौढ़ के समान परिपक्व नहीं होता।

🔹✨ भ्रांति न.२➖

       “बालक के जन्म के संबंध में”

यह धारणा है कि- 

* शुभ नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं।

*या उनका जन्म स्वयं व परिवार के लिए मंगलकारी होता है।

*उच्च कोटि के जाति में पैदा हुए बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

*भाग्यशाली मानकर उन्हें ज्यादा लाड प्यार दिया जाता है।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि – 

कई ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र और घड़ियां जीवन को प्रभावित अवश्य करते हैं लेकिन मंगलकारी और अमंगलकारी भावना को काटती है।

 मारिया मोंटेसरी के अनुसार – बच्चों में सच्ची शक्ति का आवास होता है तथा उसकी मुस्कुराहट ही सामाजिक प्रेम और उल्लास की आधारशिला है।

🔹✨ भ्रांति न.३ ➖

             “वंशानुक्रम के संबंध में”

यह भ्रांति है कि माता-पिता जैसे होते हैं वैसे उनकी संतान होती है अर्थात सुशिक्षित, सभ्य, और उच्च बुद्धि वाले माता-पिता की संतान भी निश्चित ही सुशिक्षित,सभ्य, संस्कारी और उच्च बुद्धि वाले होती हैं।

उपर्युक्त कथन को इस बात से भी समझा जा सकता है।

*जैसा बीज है वैसा ही वृक्ष बनेगा

*बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आएंगे।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि –

वुडवर्थ के अनुसार – अनुवांशिकता और वातावरण का संबंध जोड़ के समान नहीं बल्कि गुणनफल के समान है अर्थात अनुवांशिकता और वातावरण एक दूसरे का सम्मिश्रण है।

विकास = H × E

गेरेट के अनुसार – इससे अधिक निश्चित बात और कहीं नहीं है कि अनुवांशिकता और वातावरण एक-दूसरे को सहयोग देने वाले प्रभाव है जो दोनों ही बालक की सफलता के लिए अनिवार्य है।

🔹 ✨भ्रांति न.४➖

     ” गर्भ कालीन प्रभाव के संबंध में”

जैसे कई भ्रांतियां जैसे झाड़-फूंक, परंपरागत उपचार, पुत्र होना इन सभी भ्रांतियों का मानसिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि –

संतुलित भोजन, अच्छा साहित्य पढ़ने से, अच्छा मनोरंजन और सुखद अनुभूति से गर्भ काल के दौरान विकसित होने वाले बच्चे और मां का मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रहता है ।

कॉट , डगलस, स्मिथ और बेगिन के अनुसार –

इस संसार में पैदा होने वाला हर एक बच्चा भगवान का एक नया विचार है तथा सदेव तरोताजा रहने और चमकने वाली संभावना है ।

🔹 ✨भ्रांति न.५ ➖:

         “यौन भेद के संबंध में”

*यह भ्रांति है कि स्त्री को निर्बल और पुरुष को सबल समझा जाता है।

*और यह भी भ्रांति है कि पुत्र माता-पिता को मोक्ष दिलाता है।

* लड़का लड़की के लाड प्यार में भी भेदभाव किया जाता है जिससे उनमें हीन भावना विकसित होती है ।

🔱लेकिन इस भ्रांति का मनोवैज्ञानिक नजरिए से खंडन किया गया है कि –

फ्रोबेल के अनुसार – बालक स्वयं विकास उन्मुख होने वाला मानव पौधा है।

✍🏻 

*Notes By-Vaishali Mishra*

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