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विकास के सिद्धांत-
🦚विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन प्रत्येक प्राणी का विकास एक निश्चित आधार पर होता है।
और इन्ही नियमो के आधार पर अनेक शारीरिक और मानसिक क्रिया विकसित होता है।
🌼 विकास के कुछ नियम जो इस प्रकार है।
🦚🌴सतत व निरंतर विकास का सिद्धांत- विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती है। लेकिन यह तेज़ व मंद होती रहती है।
बच्चे 2 से 3 वर्ष तक विकास तीव्र गति से होता है।शारीरिक रूप से इंसान कोई आकस्मिक परिवर्तन नही होता है। यह भी धीमी गति से होता है शरीर के कुछ अंगों का विकास तीब्र गति से होता है जैसे हाथ ,पैर आदि ।और कुछ अंगों को विकास मंद गति से होता है।
👨✈️ स्किनर महोदय के अनुसार- ” विकास प्रक्रियाओ का निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति में कोई भी परिवर्तन आकस्मिक नही होता है।
🦚🌴 विकास क्रम का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास एक निश्चित क्रम में होता है।
जैसे कि बच्चा पहले रोने के माध्यम से अपनी बात जाहिर करता है फिर वह विशेष प्रकार की आवाज़ निकालता है। फिर उसके बाद वह स्वर शब्दो का प्रयोग करता है। फिर व्यंजन का फिर स्वर और व्यंजन को मिलाकर शब्दो का प्रयोग करता है फिर वह वाक्य बोलने लगता है।
🦚🌴विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत- व्यक्ति के विकास की गति भिन्न भिन्न होती है विभिन्नता व्यक्ति के जीवन मे सम्पूर्ण काल मे होती है।
🦚🌴 परस्पर संबंध का सिद्धांत- शारीरिक ,मानसिक ,भाषायी,संवेगात्मक, सामाजिक,चारित्रिक इन सभी पक्षो में परस्पर संबंध होता है।
👨✈️👉 गैरिसन एवं अन्य – इन्होंने बताया है व्यक्ति के शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के भिन्न अंगों के भिन्न विकास सामंजस्य और परस्पर संबंध पर बल देती है।
🦚🌴 सामान्य से निश्चित अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सिद्धांत- बच्चा जब शैशवावस्था में होता है तब वह पूरे शरीर के माध्यम से क्रिया करता है मतलब स्थूल गति करता है और जैसे जैसे उसके शरीर का विकास होता है वह अपने शरीर के अंगों पर नियंत्रण करना सीख लेता है। और सूक्ष्म गति करने लगता है।
👨✈️🌻 हरलॉक के अनुसार- विकास की सब अवस्थाओ में बालक की प्रतिक्रिया विशिष्ट बनने से पूर्व सामान्य प्रकार की होती है।
बालक का विकास सामान्य अनुक्रिये से विशिष्ट प्रतिक्रिया तक होता है।
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📚 Notes by Poonam sharma🍄🍄
💫🌻 विकास के सिद्धांत💫🌻
🌼 विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन प्रत्येक प्राणी का विकास निश्चित नियम के आधार पर होता है।
🌼 इन्हीं नियमों के आधार पर अनेक के आधार शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएं विकसित होती हैं विकास के कुछ नियम इस प्रकार है।
🌻 सतत निरंतर विकास का सिद्धांत➖ 🌸विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है लेकिन यह गति तेज या मंद होती रहती है।
🌸 बच्चे के दो-तीन साल तक विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है।
🌸 शारीरिक रूप से भी इंसान में कई आकस्मिक परिवर्तन नहीं आता ।
🌸शरीर के कुछ अंगों का विकास तीव्र गति से होता है और कुछ अंगों का मंद गति से होता है।
🤵🏻♂स्किनर और महोदय ➖ विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि विकास में कोई आकस्मिक परिवर्तन ना हो।
🌻 विकास क्रम का सिद्धांत➖
🌼 इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास एक निश्चित क्रम से होता है।
जैसे बच्चा पहले रो कर अपनी बातों को व्यक्त करता है और फिर विशेष विशेष प्रकार की ध्वनि निकालता है फिर वह स्वर व व्यंजनों को मिलाकर शब्दों और वाक्यों में अपनी बातों को कहता है।
🌻 विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत➖
🌸 व्यक्ति के विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है भिन्नता संपूर्ण काल में बनी रहती है।
🌸शैशवास्था के शुरू के वर्षों में यह गति कुछ तीव्र होती है परंतु बाद के वर्षों में यह मंद पड़ जाती है।
🌸 पुनः किशोरावस्था के आरंभ में इस गति में वृद्धि होती है परंतु यह अधिक समय तक नहीं बनी रहती।
🌻 परस्पर संबंध का सिद्धांत➖
🌸विकास के सभी आयाम जैसे- शारीरिक ,मानसिक, सामाजिक ,संवेगात्मक आदि एक दूसरे से परस्पर संबंधित है।
🌸इसमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
🤵🏻 गैरिसन के अनुसार➖शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के विभिन्न अंगों के विकास में सामंजस्य और परस्पर संबंध पर बल देता है।
🌻विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है➖
👨🏻🔬 हरलॉक के अनुसार ➖विकास की सभी अवस्था में बालक की प्रतिक्रिया विशिष्ट बनाने के पूर्व सामान्य प्रकारकी होती है।
🌸 बालक का विकास सामान्य अनुक्रिया से विशिष्ट प्रतिक्रिया तक होता है।
🌸उदाहरण के लिए अपने हाथों के कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर यूं ही हाथ मारने या फैलाने की चेष्टा करता है।
🌸इसी प्रकार शुरू में एक नवजात शिशु के रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग प्रत्यंग भाग लेते हैं परंतु बाद में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के फल स्वरुप यह क्रियाएं उसकी आंखों और वाक् तन्त्र तक सीमित हो जाती है।
✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻🔆 विकास के सिद्धांत 🔆
विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन प्रत्येक प्राणी का विकास निश्चित नियम के आधार पर होगा और इस नियम का कितना पालन हो रहा है और कितने इस नियम में हमारी भागीदारी है यह इस बात पर निर्भर करेगा।
इन्हीं नियमों के आधार पर अनेक शारीरिक व मानसिक क्रिया विकसित होती है।
विकास के कुछ नियम इस प्रकार है।
❇️ 1 सतत या निरंतर विकास का सिद्धांत ➖
विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन यह मंत्र या तेज होती रहती है।
बच्चे के दो-तीन साल तक विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है।
शारीरिक रूप से भी इंसान में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं आता है शरीर के कुछ अंग मंद गति से विकसित होते हैं जबकि कुछ अंग तीव्र गति से।
🔸 स्किनर के अनुसार ➖
विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि विकास में आकस्मिक परिवर्तन ना हो।
❇️2 विकास क्रम का सिद्धांत ➖
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास एक निश्चित क्रम में होता है।
जैसे – भाषा के संदर्भ में देखा जाए तो बच्चा जैसे ही जन्म लेता है रोने लगता है फिर कुछ विशेष धोनी निकालने लगता है धीरे धीरे सर बोलने लगता है और फिर व्यंजन और फिर स्वर व्यंजन को मिलाकर बोलने लगता है धीरे-धीरे शब्दों को फिर शब्दों से वाक्य बनाकर भाषा बोलना सीख जाता है।
यह भाषा विकास एक निश्चित क्रम में होता है।
इसी प्रकार शारीरिक रूप से देखा जाए तो बालक जन्म के कुछ समय बाद सर्वप्रथम अपना सिर ऊपर उठाने की कोशिश करता है फिर धीरे-धीरे सहारा लेकर बैठने लगता है और फिर धीरे-धीरे खिसकर चलते चलते वह पैरों के बल खड़ा हो जाता है।
❇️ 3 विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत ➖
व्यक्ति के विकास की गति भिन्न होती है और यह भिन्नता संपूर्ण काल में भी बनी रहती है।
विकास की गति शेशवावस्था वह किशोरावस्था मैं तीव्र होती है किन्तुबाल्यावस्था में यह गति मंद होती है । इसी प्रकार बालक एवं बालिकाओं में विकास की गति भिन्न भिन्न होती हैं।
❇️ 4 परस्पर संबंध का सिद्धांत ➖
शारीरिक ,मानसिक , भाषायी, संवेगात्मक सामाजिक व चारित्रिक इन सभी पक्षों में परस्पर संबंध होता है।
जैसे – हमारी जैसी भावना होती है मतलब संवेगात्मक रूप से धीरे-धीरे हम वैसे ही संवेग में आकर भाषा का प्रयोग करने लगते हैं जिससे हमारा चरित्र भी अलग दिखाई देने लगता है जिससे हमारा समाज में अलग छाप या पहचान बनती है और इसका प्रभाव मानसिक रूप से पढ़ने लगता है और धीरे-धीरे हम शारीरिक रूप से भी कमजोर या अपने आप को अस्वस्थ महसूस करने लगते हैं अतः सभी आपस में एक दूसरे से परस्पर संबंधित होते हैं।
🔸 गैरीसन के अनुसार
शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के भिन्न अंगों के विकास में सामंजस्य और संबंध पर बल देता है।
❇️ 5 सामान्य से विशिष्ट अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सिद्धांत ➖
🔸 हर्लॉक के अनुसार –
विकास की सभी अवस्थाओं में बालक की प्रतिक्रिया विशिष्ट बनने के पूर्व सामान्य प्रकार की होती हैं।
व्यक्ति कई चीजों को सीखने की शुरुआत एक साथ करता है लेकिन अपनी रुचि ,ज्ञान और वैसा वातावरण मिलने पर किसी एक क्षेत्र में आगे बढ़ता है।
अर्थात बालक का विकास सामान्य अनु क्रियाओं से विशिष्ट प्रतिक्रिया पर बल देता है।
बालक का विकास सामान्य क्रियाओं से विशिष्ट क्रियाओं की ओर होता है बालक के विकास के सभी क्षेत्रों में सर्वप्रथम सामान्य प्रतिक्रिया होती हैं उसके बाद वह विशिष्ट रूप धारण करती है।
जैसे – बच्चा किसी भी वस्तु को पकड़ने के लिए बालक सबसे पहले अपने समस्त अंगों का सहारा लेता है किंतु बाद में वह उसके लिए केवल हाथ का ही प्रयोग करने लगता है इसी प्रकार का रूप उसके अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिलता है।
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Notes By-‘Vaishali Mishra’
✨विकास के सिद्धांत✨
विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है प्रत्येक प्राणी का विकास निश्चित नियमों के आधार पर ही होता है
🎉इन नियमों के आधार पर बालक की शारीरिक मानसिक क्रियाएं विकसित होती हैं और विकास के कुछ नियम इस प्रकार हैं
🎄सतत और निरंतर विकास का सिद्धांत➖ सिद्धांत यह बताता है कि विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है लेकिन यह गति तेज और धीमी होती है
बच्चे के दो-तीन साल तक विकास की गति तीव्र होती है शारीरिक रूप से भी इंसान कई प्रकार के आकस्मिक परिवर्तन नहीं होते हैं
शरीर के कुछ अंगों का विकास तीव्र गति से होता है तो कुछ अंगों का विकास मंद गति से होता है शरीर के अंगों का विकास एक गति से नहीं होता है
🎄 skinar और महोदय जी कहते हैं ➖विकास प्रक्रिया की निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि विकास में कोई आकस्मिक परिवर्तन ना हो
🎄विकास क्रम का सिद्धांत ➖इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास एक निश्चित क्रम में होता है जैसे वाला जब जन्म लेता है तो है रोना शुरु करता है रोने के बाद वह हंसना फिर कुछ विशेष ध्वनि निकालना उसके बाद स्वर उसके बाद व्यंजन जाए फिर उसके बाद शब्द और उसके बाद फिर वाक्य करना शुरू कर देता है
🎄विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत➖ है व्यक्ति के विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है संपूर्ण काल से बनी रहती हैं शैशवावस्था से शुरू के वर्षों में यह गति तीव्र होती है परंतु बाद में वर्षों में यह गति धीमी हो जाती है
🎄परस्पर संबंध का सिद्धांत➖ परस्पर संबंध के सिद्धांत में बालक की विशेषताएं होती है जैसे शारीरिक भावनात्मक सामाजिक संवेगात्मक में यह शब्द एक दूसरे से परस्पर संबंध रखते हैं यह एक दूसरे के बिना अधूरी है इसमें से किसी भी एक विकास के ना होने पर अन्य सभी आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता नहीं रखता है
🎄गैरिसन के अनुसार ➖शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के विभिन्न अंगों के विकास में सामान्य स्वर परस्पर संबंध पर बल देता है
🎄विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है विकास में छोटे से बड़े तक पहुंचा जाता है
🎉 हरलॉक के अनुसार ➖विकास की सभी अवस्था में बालक की प्रतिक्रिया विशिष्ट बनाने के पूर्व सामान्य प्रकार की होती है
📝 notes by sapna yadav
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🧗विकास के सिद्धांत (Principle of Development)⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐050321⭐⭐
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विकास चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन प्रत्येक प्राणी का विकास निश्चित नियम के आधार पर होगा। अनेक शारीरिक और मानसिक क्रियाएं विकसित होती हैं।
विकास के कुछ नियम इस प्रकार हैं –
🌾 सतत या निरंतर विकास का सिद्धांत :-
✨विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन यह तेज यार मंद होती रहती है।
✨बच्चों के दो-तीन साल तक विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है।
✨ शारीरिक रूप से भी इंसान में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं आता। शरीर के कुछ अंगों का विकास तीव्र गति से होता है और कुछ अंगों की विकास मंद गति से होता है।
✨ स्किनर महोदय ने इस विषय में कहा है कि, “विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत, इस बात पर जोर देता है कि विकास में कोई आकस्मिक परिवर्तन ना हो।”
🌾 विकास के क्रम का सिद्धांत :-
✨ विकास किस सिद्धांत के अनुसार, “बालक का विकास निश्चित क्रम से होता है।”
✨ जन्म के समय बालक रोता है, विशेष आवाज निकालता है और यह आवाज धीरे-धीरे स्वर और फिर व्यंजन में परिवर्तित हो जाता है, इसके बाद सब और फिर वाक्य बन जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि बालक जन्म लेते ही वाक्य नहीं बोलता है अर्थात प्रत्येक बालक का विकास एक क्रम में होता है।
🌾 विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत :-
✨ व्यक्ति के विकास की गति भिन्न भिन्न होता है भिन्नता संपूर्ण काल में बनी रहती है। अर्थात बालक का विकास जो 2 वर्ष की अवस्था में होती है वह 4 वर्ष की अवस्था में हुए विकास से अलग होता है और जो 4 वर्ष की अवस्था में विकास होता है बालक के 10 वर्ष की अवस्था में हुए विकास अलग है। अतः हम यह कह सकते हैं कि बालक के विकास की आधार इसके पूर्व में हुए विकास ही है।
🌾 परस्पर संबंध का सिद्धांत :-
✨ जब बालक जन्म लेता है तो वह संवेग प्रदर्शित करता है और फिर धीरे-धीरे उम्र बढ़ने के साथ ही उसमें भाषा का विकास होता है। भाषा के सिख जाने से धीरे-धीरे बालक चीजों को समझने लगता है अर्थात बालक का मानसिक विकास होता है। मानसिक विकास के साथ ही बालक का सामाजिक विकास होता है और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका *भाषा* का उसके *चरित्र के निर्माण* में होता है। सामाजिक विकास के साथ ही बालक में शारीरिक विकास भी होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि बालक के विकास की यह सभी प्रक्रियाएं परस्पर एक दूसरे से संबंधित है।
इस संबंध में गैरिसन व अन्य ने कहा है कि, “शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति में भिन्न अंगों के विकास से सामंजस्य और परस्पर संबंध पर बल देता है।”
🌾 सामान्य से विशिष्ट अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सिद्धांत :-
✨ जब शिशु जन्म लेता है तो वह रोते समय अपनी संपूर्ण अंग (हाथ और पैर) को हिला कर करके रोता है और जब वही शिशु बड़ा हो जाता है तो वह केवल मुंह खोल के रोता है और उसके पास अपने हाथ देने पर वह अपने उंगलियों से पकड़ लेता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि बालक पहले पूरा शरीर ही लाता है और फिर वह धीरे-धीरे अलग-अलग कार्य को करने के लिए अलग-अलग अंगों का प्रयोग करता है।
इस संबंध में हरलॉक कहा है कि, “विकास किस अवस्था में बालक प्रतिक्रिया विशिष्ट बनाने के पूर्व सामान्य प्रकार की होती है।” अतः बालक का विकास *सामान्य अनुक्रिया से विशिष्ट प्रतिक्रिया* तक होता है।🔚
🙏
📝 By – Awadhesh Kumar 🇮🇳🇮🇳🥀
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✳️ विकास के सिद्धांत✳️
विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन प्रत्येक प्राणी का विकास निशिचत नियम के आघार पर होगा।
इन्हीं नियमों के आधार पर अनेक शारीरिक और मानसिक क्रियाएं विकसित होती हैं।
💐विकास के कुछ नियम है—
1.सतत् या निरंतर विकास का सिद्धांत —
विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन यह गति तेज या मंद होती रहती है।
बच्चे के दो-तीन वर्ष तक विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है ।
शारीरिक रूप से भी इंसान में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं आती है।
शरीर के कुछ अंगों का विकास तीव्र गति से होता है और कुछ अंगों का विकास मंद गति से होता है।
🌻 स्किनर महोदय ने इस विषय में कहा कि विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत है इस बात पर जोर देता है कि विकास में कोई आकस्मिक में परिवर्तन ना हो।
2. विकास के क्रम का सिद्धांत—
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास एक निश्चित क्रम से होता है बच्चा पहले रोता है किर विशेष आवाज निकालता है फिर स्वर का उच्चारण करता है फिर वह व्यंजन का उच्चारण करता है वह स्वर और व्यंजन दोनों का उच्चारण करता है फिर शब्द का उच्चारण करता है फिर वाक्य का उच्चारण करता है।
💐💐3. विकास की विभिन्न गति का समान —
व्यक्ति के विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है इनका संपूर्ण काल में बनी रहती है।
4. परस्पर संबंध का सिद्धांत—
शारीरिक, मानसिक, भाषाई ,संवेगात्मक,सामाजिक,चारित्रिक इन सभी पक्षों में परस्पर संबंध होता है।
💐 गैरिसन व अन्य —
शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के अंगों के विकास में सामंजस्य और परस्पर संबंध पर बल देता है।
5. सामान्य से विशिष्ट अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सिद्धांत—
💐 हरलाक के अनुसार —
विकास को सब अवस्था में बालक की प्रतिक्रिया विशिष्ट बनने के पूर्व सामान्य प्रकार की होता है।
⚜️बालक का विकास से सामान्य अनुप्रिया से विशेष प्रतिक्रिया तक होता है।
जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके बाद में उसमें पहले सामान्य क्रिया करता है जैसे जब शैशवावस्था में होता है तो पूरे शरीर के अंगों को एक साथ चलता है जैसे कि पूरा हाथ पर एक साथ चलता है लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता है वैसे वैसे उसमें विकसित गुण आने लगता है तो अब अपनी उंगलियों का सूक्ष्म मोटर कौशल का प्रयोग करने लगता है।
Notes by:- Neha Roy🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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विकास के सिद्धांत
➪विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन प्रत्येक प्रणाली का विकास निश्चित नियम के आधार पर होता है,
➪इन्हीं नियमों के आधार पर अनेक शारीरिक और मानसिक क्रियाएं विकसित होती हैं।
☞︎︎︎विकास के कुछ निम्नलिखित प्रकार है;
☞︎︎︎1️⃣➡️-सतत् या निरंतर विकास का सिद्धांत
विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन यह गति तेज या मंद होती रहती है,
☞︎︎︎बच्चों में 2 से 3 साल तक विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है,
☞︎︎︎शारीरिक रूप से भी इंसान में कोई आकस्मिक परिवर्तन नहीं आता शरीर के कुछ अंगों का विकास तीव्र गति से होता है और कुछ अंकों का मंद गति से होता है,
➪स्किनर महोदय ने इस विषय में कहा है कि÷
☞︎︎︎विकास प्रक्रियाओं के निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि विकास में कोई आकस्मिक परिवर्तन ना हो।
➪💐2️⃣➡️-विकास क्रम का सिद्धांत÷
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास एक निश्चित क्रम में होता है;
☞︎︎︎जैसे÷शुरू में बच्चा अपना सिर ऊपर उठाने की कोशिश करता है, फिर लुढ़कना शुरू करता है, फिर एक निश्चित कर्म के बाद सीढ़ी पर चढ़ना या उतारना सीख जाता है, फिर उछलना कूदना दौड़ना एवं भागना इत्यादि।
➪3️⃣÷विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत÷
व्यक्ति के विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है भिन्नता संपूर्ण काल में बनी रहती है;
ᴥ︎︎︎जैसे÷ जिस प्रकार मनुष्य के पैर की लंबाई बढ़ती है,उसी प्रकार से उसके अन्य अंगों की लंबाई या विकास नहीं होता है बल्कि अंगो का अंगो के अनुसार ही विकास होता है।
☞︎︎︎4️⃣-परस्पर संबंध का सिद्धांत÷
☞︎︎︎शारीरिक ,मानसिक, भाषायी,संवेगात्मक ,सामाजिक चारित्रिक, इन सभी पक्षों में परस्पर संबंध होता है।
➪जैसे÷जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है वैसे ही व्यक्ति के अन्य पक्षो का विकास भी ठीक उसी प्रकार से होता है।
✍︎गैरिसन के अनुसार÷
➡️शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के विभिन्न अंगों के विकास के सामान्य और परस्पर संबंध पर बल देता हैं।
➪5️⃣-सामान्य से विशिष्ट अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सिद्धांत-
✍︎हरलाक के अनुसार÷विकास की सब अवस्थाओं में बालक की प्रतिक्रिया विशिष्ट बनने के पूर्व सामान्य प्रकार की होती है;
➪बालक का विकास सामान अनुक्रिया से विशिष्ट प्रतिक्रिया तक होता है।
✍︎हस्तलिखित÷ शिखर पाण्डेय✍︎✍︎ 🌸