शिक्षण विधियां और प्रविधियां  {Teaching methods}

शिक्षण विधियां और प्रविधियां पठन-पाठन को आनन्दमय एवं रुचिकर बनाते हैं| शिक्षण का अर्थ होता है- अध्ययन करना। और विधि का अर्थ है- तरीका। अर्थात वह तरीके जिनका प्रयोग करते हुए शिक्षक छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है उन्हें शिक्षण विधियां कहते हैं शिक्षण विधियों का संबंध विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण से है।

शिक्षण विधियों के निर्धारण एवं चयन का आधार पाठ्यवस्तु होती है। पाठ्यवस्तु की प्रकृति के आधार पर ही  शिक्षण विधियों का प्रयोग होता है। प्रस्तुतीकरण के ढ़ग को शिक्षण विधि कहते हैं । 

शिक्षण विधियों के उपयोग में शिक्षण प्रविधियों की सहायता ली जाती है जैसे कथन करना,  उदाहरण देना, व्याख्या करना आदि| एक शिक्षण विधि में  अन्य  कई शिक्षण प्रविधियों का उपयोग किया जाता है|

प्रमुख शिक्षण विधियां और उनके प्रतिपादक 

शिक्षण को छात्रों हेतु रुचिकर बनाने के लिए शिक्षकों द्वारा अनेक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है। उनमें से कुछ प्रमुख शिक्षण विधियां और उनके प्रतिपादक  निम्नांकित है-

प्राचीन काल से वर्तमान तक शिक्षण विधियों और प्रविधियों का प्रयोग होता आ रहा है तथा नवीन-नवीन शिक्षण विधियों और प्रविधियों का अविष्कार होता आ रहा है।  इनमें प्रमुख शिक्षण विधियां निम्नांकित है-

पाठशाला विधि

यह सबसे प्राचीन शिक्षण विधि है। जिसमें शिष्य गुरु के समीप शिक्षण कार्य करता था। इसमें छात्रों को नियमित दिनचर्या का पालन करना होता था तथा यम-नियम, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि नियमों का पालन करना होता था। पाठशाला विधि को व्यक्तिगत शिक्षण विधि भी कहा जाता है।पाठशाला विधि में संस्कारों की शिक्षा दी जाती है, पुरुषार्थ चतुष्टय की शिक्षा प्रदान की जाती है तथा  जीवन के महत्व को समझाया जाता है।

विश्लेषणात्मक विधि

विश्लेषणात्मक विधि में शिक्षक संपूर्ण पाठ को कुछ भागों में बांट लेता है तथा उसके पश्चात सभी भागों का वर्णन करता है यह विधि पूर्ण से अंत की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है व्याकरण तथा कहानी शिक्षण करते समय इस विधि का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। इस विधि के द्वारा बड़े तथा जटिल विषय भी आसानी से समझाया जा सकते है| विश्लेषणात्मक विधि के द्वारा  विषय को विस्तारपूर्वक समझाया जा सकता है।

संश्लेषणात्मक विधि

संश्लेषण विधि में छोटे-छोटे विषयों को जोड़कर पढ़ाया जाता है संश्लेषण तथा विश्लेषण दोनों विधियां आपस में संबंध रखती हैं। संश्लेषण विधि में हम विषय को खंडों में विभाजित करके उस विषय का अध्ययन करते हैं परंतु विश्लेषण विधि में विषय को खंडों में विभक्त करने के स्थान पर समन्वय किया जाता है। संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर शिक्षण सूत्र का प्रयोग होता है संश्लेषण विधि को मनोवैज्ञानिक विधि भी कहा जाता है।

व्याख्यान विधि

व्याख्यान विधि में शिक्षक मौखिक एवं लिखित रूप से छात्रों को सूचनाएं प्रदान करता है। शिक्षक सक्रिय रूप से अपने विचारों को प्रकट करता है तथा छात्र शिक्षक की सभी बातों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं और जरूरत पड़ने पर संपूर्ण जानकारी लिखते भी हैं।व्याख्यान  विधि में  कथन प्रविधि प्रवचन प्रविधि चॉक तथा वार्ता प्रविधि का  भी प्रयोग किया जाता है। व्याख्यान  विधि में छात्र एवं शिक्षक का संबंध भावात्मक रूप से जुड़ा होता है।  इस विधि विषय की विस्तार पूर्वक व्याख्या हो पाती है। शिक्षक अच्छे उदाहरण देकर विषय को रोचक तथा प्रेरणादायक बना सकते हैं । व्याख्यान विधि के द्वारा विषय को कम समय में पढ़ाया जा सकता है। 

प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि

प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि  आधुनिक विधि मानी जाती है।  शिक्षा में सामाजिक प्रवृत्ति के फल स्वरुप प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि का विकास हुआ है। इसके प्रवर्तक डब्ल्यू एच किलपैट्रिक है, जो जॉन डीवी के शिष्य थे। किलपैट्रिक ने कहा है कि  शिक्षा इस प्रकार दी जानी चाहिए जो जीवन को समर्थ बना सके। प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि अनुभव केंद्रित होती है।  छात्रों  के समाजिक करण पर प्रयोजना शिक्षण विधि या प्रोजेक्ट विधि  विशेष बल देती है। सामाजिक विषयों के शिक्षण में इसे भली प्रकार प्रयुक्त किया जा सकता है। इस विधि से छात्रों को मौलिक चिंतन, क्रियाओं तथा अनुभव द्वारा सीखने का अवसर मिलता है। प्रोजेक्ट विधि में  छात्र अधिक क्रियाशील रहता है और स्वयं अनुभव करके सीखता है।

बेसिक शिक्षा विधि

बेसिक शिक्षा विधि को वर्धा योजना भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश में वर्धा शिक्षा या बेसिक शिक्षा तथा मध्य प्रदेश में विद्या मंदिर योजना सब इसी प्रकार के  ही नामांतर है। बेसिक शिक्षा विधि के प्रतिपादक महात्मा गांधी हैं। गांधी जी ने अनुभव किया कि प्रचलित शिक्षा प्रणाली हमारे देश की समस्याओं का निदान करने में असमर्थ है। उन्होंने एक ऐसी शिक्षा योजना का निर्माण किया जो देश के निर्धनता, निरक्षरता, परतंत्रता और शिक्षा प्रणाली की नीरसता को मिटा डाले इस पृष्ठभूमि में उन्होंने चार मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का अवलंबन किया-

(१) आत्म शिक्षण

(२) क्रिया द्वारा सीखना

(३) अव्ययिक शिक्षा

(४) श्रम के प्रति आदर।

खेल विधि

खेल विधि का श्रेय श्री कार्डवेल कुक को है कुक ने अपनी पुस्तक प्ले-वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी पढ़ाने के संबंध में की है। खेल विधि में खेल के विषय में अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।शीलर और हरबर्ट का  अतिरिक्त शिक्षा का सिद्धांत लॉर्ड क्रिम्स का  शक्ति वर्धन का सिद्धांत कार्लग्रूस का भावी जीवन की तैयारी का सिद्धांत तथा यूनान के प्राचीन दार्शनिक अरस्तु का रेचन का सिद्धांत आदि खेल के प्रसिद्ध सिद्धांत है। खेल को परिभाषित करते हुए ग्यूलिक ने अपनी पुस्तक फिलासफी आफ प्ले मे लिखा है- जो कार्यक्रम अपनी इच्छा से स्वतंत्रता पूर्वक करें वही खेल है।

आगमन विधि

आगमन विधि में अध्यापक विभिन्न उदाहरण देते हुए, सिद्धांत अथवा संप्रत्यय का स्पष्टीकरण करता है और इस आधार पर निश्चित परिणाम निष्कर्षों की व्याख्या करता है। इस विधि का प्रयोग व्याकरण शिक्षण में अधिक किया जाता है। आगमन विधि के जनक फ्रांसिस बेकन को माना जाता है। आगमन विधि में मूर्त से अमूर्त, विशेष से सामान्य, स्थूल से सूक्ष्म आदि शिक्षण सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है।

निगमन विधि

निगमन विधि का जनक अरस्तु को माना जाता है। निगमन विधि में अध्यापक पहले संप्रत्यय अथवा सिद्धांत बतलाता है, फिर संबंधित उदाहरणों और दृष्टांतों के सहारे उसकी व्याख्या करता है। निगमन विधि आगमन विधि के विपरीत है । निगमन विधि में शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय होते हैं।

हरबर्ट विधि

हरबर्ट विधि के सम्बन्ध में यह धारण है कि, समस्त ज्ञान बाहर से शिक्षार्थी को दिया जाता है और वह ज्ञान संचित  होता रहता है। यदि नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बंधित कर दिया जाये, तो शिक्षार्थी को सीखने में सुगमता होती है। सीखने की परिस्थितियों में इकाइयों को तर्कसंगत प्रस्तुत करना चाहिए। इकाई की क्रियाओं को एक क्रम में सम्पादित करना चाहिए। इसके लिए हरबर्ट ने पाँच सोपानों को दिया है इन सोपानों को पंचपदी भी कहा जाता है-  

हरबर्ट विधि में पंचपदी
  प्रस्तावना     प्रस्तुतिकरण
  व्यवस्था   तुलना
  मूल्यांकन 

मांटेसरी विधि

मांटेसरी विधि के जन्मदाता मारिया मांटेसरी है । इन्होंने अपने  विधि में इस बात पर अधिक बल दिया है, कि छात्रों को अपने अधिगम उद्देश्यों का स्पष्ट रूप से बोध होना चाहिए। शिक्षण में छात्रों की आवश्यकताओं को प्रधानता दी जानी चाहिए, जिससे वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें। मांटेसरी विधि के शिक्षण के चक्रीय योजना के प्रारुप में पाँच सोपानो का अनुसरण किया जाता है-  (१) योजना    (२) प्रस्तुतिकरण    (३) परिपाक     (४) व्यवस्था    (५) वर्णन। 

मारीसन के इन सोपानों का उपयोग बोध स्तर के शिक्षण के लिए किया जाता है, जबकि हरबर्ट के पाँच पदो का उपयोग स्मृति स्तर पर ही किया जाता है। 

मूल्यांकन विधि

मूल्यांकन विधि का प्रतिपादन  बी.एस. ब्लूम ने दिया है। इसमें शिक्षण तथा परीक्षण उद्देश्य केन्द्रित होता है। शिक्षण के लिए आयोजित सभी शिक्षकों की क्रियायें उद्देश्य केन्द्रित होनी चाहिए।

मूल्यांकन विधि अर्थ विद्यालय द्वारा हुए बालकों के व्यवहार परिवर्तन के विषय में साक्षियों का संकलन करना  तथा उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया है।

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