बालक एक समस्या – समाधान और वैज्ञानिक अन्वेषण | Child As a Problem Solver and Scientific Investigator #ctet #uptet #cdp #pedagogy

समस्या समाधान का अर्थ

साधारण शब्दों में कहें तो किसी भी समस्या का समाधान चाहे समस्या छोटी हो या बड़ी जब भी सामने आती है तब उसके समाधान हेतु कुछ निश्चित सोपानों या कदमों का अनुसरण किया जाता है। बालक जब एक बार किसी समस्या का समाधान कर लेता है तब वह भविष्य में उन्हीं सोपानों का प्रयोग करता है जिससे उसने समस्या का समाधान निकाला था। समस्या समाधान के लिए चिंतन करना जरूरी है। 

बालक का मानसिक विकास

मानसिक विकास से तात्पर्य मानसिक क्षमताओं के विकास से है। मानसिक क्षमता के अंतर्गत चिंतन करने की क्षमता, तर्क करने की क्षमता, याद रखने की क्षमता, सही अर्थ देने की क्षमता आदि सम्मिलित है। जब बालक इन मानसिक क्षमताओं के आधार पर मानसिक कार्य संपन्न करने लगता है तब यह माना जाता है कि बालक का मानसिक विकास सही दिशा में हो रहा है। मानसिक विकास की प्रक्रिया जन्म से पूर्ण परिपक्वता आने तक चलती है। 

बालक एक समस्या-समाधान के रूप में

बालक बचपन से लेकर बड़े होने तक अनेक ऐसी समस्याओं का सामना करता है जिनका उसे स्वयं समाधान ढूंढना पड़ता है। बालक अपनी समस्या का हल ढूंढने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। 

बच्चों को इस स्तर के योग्य बनाने के लिए आवश्यक है कि उसका व्यक्तिगत विकास किया जाए जिससे कि वह सभी प्रकार की परिस्थितियों का सही ढंग से सामना कर सके। 

बालक का एक अच्छा समस्या समाधान कैसे बनाया जाए

  • बालक के सामने छोटी-छोटी समस्या रखनी चाहिए ताकि आत्मविश्वास बढ़े।
  • बालकों को छोटी-छोटी समस्या के समाधान करने पर पुरस्कृत करते रहना चाहिए। 
  • बालकों में चिंतन व तर्क का विकास प्रायोगिक रूप से करना चाहिए। 
  • बालकों में भाषा, कौशल आदि का विकास किया जाना चाहिए।
  • बालकों को बार-बार अभ्यास कराकर अपनी कमियों को दूर करना सीखना चाहिए।
  • बालक में प्रत्यय निर्माण पर बल देना चाहिए।
  • बालकों को स्वावलंबी बनने के लिए प्रोत्साहित तथा आत्मविश्वास का गुण जाग्रत करना चाहिए।
  • बच्चे में आत्म पहचान का गुण विकसित करके
  • अपनी कमियों को स्वीकार करना तथा दूर करना सिखाकर
  • बच्चे को स्वावलम्बी बनाने के लिए प्रोत्साहित करके
  • बच्चे में भाषा का विकास करके
  • बच्चे को बार-बार प्रयास करके 

समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि

जब भी कोई समस्या सामने आती है तब उस वक्त सिर्फ वही एक समस्या हमारे पास नहीं होती है बल्कि कई और समस्याएं भी होती हैं। लेकिन आवश्यकतानुरूप प्राथमिकता के अनुसार समस्या समाधान करने हेतु समस्या का चयन किया जाता है। तत्पश्चात् उस समस्या से संबंधित जानकारी एकत्रित की जाती है। जानकारी, के अनुसार संभावित समाधान पर विचार किया जाता है। चिंतन-मनन के द्वारा जो समाधान सामने आता है, उसका मूल्यांकन व परीक्षण किया जाता है फिर जो निष्कर्ष आते हैं उन पर निर्णय लिया जाता है। एक जैसी समस्या के समाधान में अक्सर पूर्व से मिलते-जुलते समाधान का प्रयोग किया जाता है। 

समस्या समाधान की क्षमता बालक के तार्किक योग्यता पर निर्भर करती है, क्योंकि समस्या आने पर उसके समाधान के लिए क्रमबद्धता के साथ प्रयास करना तार्किक क्षमता को स्पष्ट करता है वहीं समस्या आने पर कई बालक समाधान का प्रयास न कर चिंता में बेवजह डूब जाते हैं, परेशान होते हैं तथा गलत कदम उठा लेते हैं। बालक के माता-पिता व शिक्षक को चाहिए कि बालकों को मानसिक रूप से मजबूत और उनमें तार्किक क्षमता का भी विकास करें जिससे वो समस्या समाधान कर सकें।

समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि निम्नलिखित है :-

  • समस्या का चयन
  • समस्या से संबंधित जानकारी 
  • संभावित समाधानों का निर्माण
  • संभावित समाधानों का मूल्यांकन
  • संभावित समाधानों का परीक्षण
  • निष्कर्षों का निर्णय
  • समाधान का उपयोग/प्रयोग

बालक, एक वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में

  1. निरीक्षण:-  बालक सबसे पहले विषय-वस्तु की परिस्थितियों का निरीक्षण करता है। 
  2. तुलना:-  विषय-वस्तु और परिस्थितियों में तुलना करता है।
  3. प्रयोगः- तुलना के आधार पर विचारों का प्रयोग करता है। 
  4. प्रदर्शन:-  फिर उस प्राप्त प्रयोग का प्रदर्शन या निरीक्षण करते हैं।
  5. सामान्यीकरण:-  परिणाम आने पर सिद्धांत निर्मित होते हैं, जो सामान्यीकरण को बताते हैं।
  6. प्रमाणीकरण:-  पुनः प्रयोग करके समस्या का सामान्यीकरण करना।

समस्या समाधान और वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में बालक

1.अन्वेषण का अर्थ है खोज . नए तथ्यों का संकलन , वैज्ञानिक द्रष्टिकोण , जाँच-पड़ताल का गुण .
2. वैज्ञानिक अन्वेषण: वैज्ञानिक विधि से या द्रष्टिकोण से तार्किक ढंग से नयी चीजों की खोज करना , या पहले से स्थापित तथ्यों की खोजपूर्ण पुनः पहचान करना.
3. विद्यार्थी को कक्षा से बाहर समाज में जाकर अपने इस गुण से जीवन का समायोजन प्राप्त करना होता है .
4. इसके लिए छोटे-छोटे प्रयोग शिक्षक कर सकते है . जैसे-दैनिक जीवन में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के व्यवसाय , कार्यकलाप आदि की जानकारी का प्रयास , जैसे डॉक्टर , अख़बार, डाकिया, वकील, बढाई, मोची, सुनार आदि .
5. बच्चो को वैज्ञानिक अन्वेषक बनाने के लिए उसे अलग-अलग जगह पर भ्रमण पर ले जाना ताकि वे उन चीजों के बारे में जान सके.
6. बच्चों को दुकानदारी , बैंकिंग, आदि के खेल खिलाना.
7. ऐसी परिस्थिति का निर्माण करना ताकि बच्चे वैज्ञानिक यंत्रों, धातुओं, वायु संचार आदि के बारे में स्वयं जानकारी प्राप्त कर सकें .
8. वैज्ञानिक अन्वेषक बालक की पहचान : जब बालक अपने ज्ञान और अनुभव के माध्यम से किसी समस्या के प्रत्येक पहलु के बारे में जिज्ञासापूर्वक जानने लगता है . इसके लिए आवश्यक है की उसके सामने वैज्ञानिक विधि से दैनिक संभाव्य परिस्थिति या समस्याओं को रखा जाएँ.

खोजपूर्ण परियोजना विद्यालय में बच्चे को या समूह को मिलकर दी जानी चाहिए . विशेषकर अवकाश के दिनों में समूह में मनोरंजक प्रोजेक्ट दिया जा सकता है .

शिक्षक को स्वय भी खोज परियोजना का समन्वय करना होता है . वह स्वयं जब अन्वेषक के रूप में वैज्ञानिक विधि प्रस्तुत करता है तभी बालक में अन्वेषण का गुण विकसित होता है जैसे -क्वेस्ट परियोजना में ऑन्लाइन  जुड़कर समूह में खोजपूर्ण प्रोजेक्ट का संचालन करना . 

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