Jean Piaget’s- Adaptation , Assimilation , Accommodation , Cognitive structure , Mental operation, Schemes , Schema

संज्ञानात्मक विकास के सम्बन्ध में जीन पियाजे का योगदान सर्वोपरि है। जीन पियाजे (1896-1980) स्विट्जरलैण्ड के एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने प्राणि-विज्ञान में शिक्षा प्राप्त की थी, इनकी रुचि यह जानने की थी कि बालकों में बुद्धि का विकास किस ढंग से होता है। इसके लिए उन्होंने अपने स्वयं के बच्चों को अपनी खोज का विषय बनाया। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते गये, उनके मानसिक विकास सम्बन्धी क्रियाओं का वे बड़ी बारीकी से अध्ययन करते रहे। इस अध्ययन के परिणामस्वरूप उन्होंने जिन विचारों का प्रतिपादन किया उन्हें पियाजे के मानसिक या संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। जीन पियाजे ने 1923 से 1932 के बीच पाँच पुस्तकों को प्रकाशित कराया, जिनमें संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। जीन पियाजे का मानना था कि बच्चे खेल प्रक्रिया के माध्यम से सक्रिय रूप से सीखते हैं, उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चे को सीखने में मदद करने में वयस्क की भूमिका बच्चे के लिए उपयुक्त सामग्री प्रदान करना है। अल्फ्रेड बिने के साथ (1922-23) बुद्धि-परीक्षणों पर कार्य करते समय ही उन्होंने बालकों के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त की अवधारणा प्रस्तुत की। जीन पियाजे ने बालक के संज्ञानात्मक विकास के संदर्भ में शिक्षा मनोविज्ञान में क्रांतिकारी संकल्पना को प्रस्तुत किया है, जिसके परिणामस्वरूप इन्हें प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जीन पियाजे ने अधिगम के व्यवहारवादी सिद्धान्तों की आलोचना करते हुए संज्ञानात्मक विकास का गत्यात्मक माॅडल प्रस्तुत किया, जिसे ‘कन्स्ट्रटिविजम’ के नाम से जाना जाता है।
अपने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में पियाजे दो पदों का उपयोग करते है । संगठन और अनुकूलन हालांकि इन पदों के अलावा भी पियाजे ने कुध अन्य पदों का प्रयोग अपने संज्ञानात्मक विकास मे किया है।
(1) अनुकूलन ( Adaptation ) : पियाजे के अनुसार बच्चों में अपने वातावरण के साथ समायोजन की प्रवृति जन्मजात होती है I बच्चे की इस प्रवृति को अनुकूलन कहा जाता है । पियाजे के अनुसार बालक आने प्रारभिंक जीवन से ही अनुकूलन करने लगता है । जब को बच्चा वातावरण में किसी उद्दीपक परिस्थितियो के समाने होता है । उस समय उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाए अलग – अलग कार्य न करके एक साथ संगंठित होकर कर्या करती है , और ज्ञान अर्जित करती है । यही क्रिया हमेशा मानसिक – स्तर पर चलती है। वातावरण के साथ मनुष्य का जो संबंध होता है उस संबंध को संगठन आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है जबकि अनुकूलन बाहरी रूप से ।पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण मना है ।
पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -पकियोओं में बॉटा है।
(i) आत्मसात्करण ( Assimilations )
(ii) समंजन ( Accommodation )
(1) आत्मसात्करण एक ऐसी पक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रिमाओं का सहारा लेता है । यह एक जीव – वैज्ञानिक प्रक्रिया है । आत्मसात्करण को हम इस उदाहरण के माध्यम से भी समझ सकते हैं कि जब हम भोजन करते हैँ तो मूलरूप से भोजन हमारे भीतर नहीं रह पाता है बल्कि भोजन से बना हुआ रक्त हमारी मांसपेशियों मे इस प्रकार समा जाता है कि जिससे हमारी मांसपेशियों की संरचना का आकार बदल जाता है । इससे यह बात स्पष्ट होती है कि आत्मसात्करण की प्रक्रिया से संरचनात्मक परिर्वतन होते हैं ।
पियाजे के शब्दों में ” नए अनुभव का आत्मसात्करण करने के लिए अनुभव के स्वरूप में परिवर्तन लना पड़ता है । जिससे वह पुराने अनुभव के साथ मिलजुलकर संज्ञान के एक नए ढांचे को पैदा करना पड़ता है । इससे बालक के नए अनुभवों में परिर्वतन होते है ।
(2) संमजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है , तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है और उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।
समंजन को आत्मसात्करण की एक पूरक प्रकिया माना जाता है । बालक अपने वातावरण या परिवेश के साथ समायोजित होने के लिए आत्मसात् करण और समंजन का सहरा आवश्यकतानुसार लेते हैं ।
संज्ञानात्मक संरचना ( Cognitiive structure ) : पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक संरचना से तात्पर्य बालक का मानसिक संगठन से है । अर्थात् बुद्धि में संलिप्त विभिन्न क्रियाएं जैसे – प्रत्यक्षीकरण स्मृति, चिन्तन तथा तर्क इत्यादि ये सभी संगठित होकर कार्य करते हैं । वातावरण के साथ सर्मयाजन , संगठन का ही परिणाम है ।
मानसिक संक्रिया ( Mental operation ): बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए जाने वाले चिन्तन को ही मानसिक संक्रिया कहते हैं ।
स्कीम्स ( Schemes ) : यह बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए गए चिन्तन का आभिव्यकत रूप होता । अर्थात् मानसिक संक्रियाओं का अभिव्यक्त रूप ही स्कीम्स होता है ।
स्कीमा ( Schema ) : एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्यीकरण किया जा सके, स्कीमा होता है ।
साम्यधारण (Equilibrium)- साम्यधारण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक आत्मसात्करण तथा समायोजन की प्रक्रियाओं के बीच एक संतुलन कायम करता है। इस तरह से साम्यधारण एक तरह के आत्म-नियन्त्रक प्रक्रिया है।
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