अनुवांशिकता एवं वातावरण का महत्व अनुवांशिकता एवं वातावरण परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। अनुवांशिकता एवं वातावरण एक दूसरे से इस प्रकार से जुड़े हुए होते हैं कि इन्हें पृथक नहीं किया जा सकता। यह दोनों बाल विकास को गहरे स्तर पर प्रभावित करते हैं। चलिए जानते हैं कि अनुवांशिकता एवं वातावरण का महत्व क्या है?

अनुवांशिकता क्या है?

अनुवांशिकता को वंशानुक्रम(Heredity) तथा अनुवांशिक को वंशानुगत भी कहा जाता है। अनुवांशिक या वंशानुगत गुणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरण को अनुवांशिकता करते है अर्थात माता-पिता का गुण बालकों में पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती रहती है। यह प्रक्रिया अनुवांशिकता कहलाता है। अनुवांशिकता के माध्यम से शारीरिक, मानसिक, सामाजिक गुणों का स्थानांतरण बालकों में होता है।

वातावरण क्या है?

हमारे आस-पड़ोस की वे सारी वस्तुएं जिनसे हम गिरे हुए होते हैं पर्यावरण या वातावरण कहलाता है

वंशानुक्रम का बीजकोष की निरन्तरता का नियम :-

वंशानुक्रम के बीजकोष की निरन्तरता के नियम के अनुसार बच्चे को जन्म देने वाला बीजकोष कभी नष्ट नहीं होता। मतलब माता-पिता से प्राप्त बीजकोष कभी भी नष्ट नहीं होता और बच्चे द्वारा अगली पीढ़ी तक पहुंचा दिया जाता है।

वंशानुक्रम के बीजकोष की निरन्तरता के नियम के बारे में वीजमैन का कथन :-

मनोवैज्ञानिक वीजमैन ने वंशानुक्रम के बीजकोष की निरंतरता के सम्बंध में अपना मत दिया है, जिसे वीजमैन के बीजकोष की निरन्तरता के नियम के रूप में जाना जाता है।

बीजकोष का कार्य केवल उत्पादक कोषों का निर्माण करना है, जो बीजकोष बालक को अपने माता-पिता से मिलता है, उसे वह अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित कर देता है। इस प्रकार, बीजकोष पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।

– वीजमैन

वीजमैन के बीजकोष की निरन्तरता के नियम में विभिन्न वैज्ञानिकों में मतभेद हैं और वीजमैन के बीजकोष की निरन्तरता के नियम को स्वीकार नहीं किया जाता है। इसकी आलोचना करते हुए बी. एन. झा. ने लिखा है कि :-

इस सिद्धान्त (वीजमैन के सिद्धांत) के अनुसार माता-पिता, बच्चे के जन्मदाता न होकर केवल बीजकोष के संरक्षक हैं, जिसे वे अपनी सन्तान को देते हैं। बीजकोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को इस प्रकार हस्तान्तरित किया जाता है, मानो एक बैंक से निकलकर दूसरे बैंक में रख दिया गया हो। वीजमैन का सिद्धान्त न तो वंशानुक्रम की सम्पूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या करता है, और न ही संतोषजनक है। यह मत वंशानुक्रम की संपूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या न कर पाने के कारण अमान्य है।

– बी. एन. झा.(वीजमैन के सिद्धांत के खिलाफ)

वंशानुक्रम का समानता का नियम :-

वंशानुक्रम के समानता के नियम के अनुसार, जैसे माता-पिता होते हैं, वैसी ही उनकी सन्तान होती है। वंशानुक्रम के समानता के नियम के बारे में मनोवैज्ञानिक सोरेनसन ने अपना मत दिया है। सोरेनसन वंशानुक्रम के समानता का नियम का अर्थ और स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि :-

बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे बुद्धिमान, साधारण माता-पिता के बच्चे साधारण और मन्द बुद्धि माता-पिता के बच्चे मन्द बुद्धि होते हैं। इसी प्रकार, शारीरिक रचना की दृष्टि से भी बच्चे माता-पिता के समान होते हैं।

– सोरेनसन

वंशानुक्रम का समानता का नियम भी पूरी तरह से सही नहीं प्रतीत होता है क्योंकि, समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिलते हैं, जिसमें काले माता-पिता की सन्तान गोरी होती है, और ऐसे भी उदाहरण हैं, जिसमें मन्द बुद्धि माता-पिता की सन्तान बुद्धिमान होती है।

इससे सिद्ध होता है कि वंशानुक्रम का समानता का नियम पूरी तरह से सही नहीं है, मतलब संतान और उसके माता-पिता में समानता तो होती है, लेकिन इसके बहुत से अपवाद भी हैं।

वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम :-

वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम के अनुसार, बच्चे अपने माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ भिन्न होते हैं। इसी प्रकार, एक ही माता-पिता के दो बच्चे भी एक दूसरे से भिन्न हो सकते हैं।

वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम के अनुसार, हो सकता है, कि एक ही माता-पिता की संताने रंग में समान हों लेकिन बुद्धि, और स्वभाव में एक-दूसरे से अलग-अलग होते हों। या फिर हो सकता है उनका रंग अलग-अलग हो और उनकी बुद्धि में समानता हो।

वंशानुक्रम के विभिन्नता के नियम के बारे में सोरेन्सन का मत :-

वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम के विषय में सोरेन्सन ने बताया है कि –

एक ही माता-पिता की संतानों में, विभिन्नता के कारण माता – पिता के उत्पादक कोषों की विशेषताएँ हैं । उत्पादक कोषों में अनेक पित्रैक होते हैं, जो विभिन्न प्रकार से संयुक्त होकर एक – दूसरे से भिन्न बच्चों का निर्माण करते हैं।

– सोरेन्सन

वंशानुक्रम के विभिन्नता के नियम के संबंध में डार्विन और लेमार्क का मत :-

डार्विन और लेमार्क ने अनेक प्रयोगों के आधार पर वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम का प्रतिपादन किया है, डार्विन और लेमार्क ने वंशानुक्रम के विभिन्नता के नियम के संबंध में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये हैं –

वंशानुक्रम में उपयोग न करने वाले अवयवों और विशेषताओं का विलोपन आने वाली पीढ़ियों में होता रहता है, और नवोत्पत्ति (नये गुणों और विशेषताओं) और प्राकृतिक चयन द्वारा वंशानुक्रमीय (आनुवंशिक) विशेषताओं और गुणों का उन्नयन (सुधार) होता रहता है।

– डार्विन और लेमार्क

वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम :-

वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम के अनुसार, बच्चों में अपने माता-पिता के विपरीत गुण पाये जाते हैं। वंशानुक्रम के प्रत्यागमन का नियम के बारे में सोरेन्सन ने अपना मत देते हुए कहा है कि–

बहुत प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चों में कम प्रतिभा होने की प्रवृत्ति और बहुत कम प्रतिभाशाली के माता-पिता के बच्चों में कम प्रतिभा होने की प्रवृत्ति ही प्रत्यागमन है।

– सोरेन्सन

वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम, प्रकृति द्वारा विशिष्ट गुणों की जगह सामान्य गुणों का ज्यादा वितरण करके एक जाति के जीवों को एक ही स्तर पर रखने का प्रयास करती है।

प्रत्यागमन नियम के अनुसार, बच्चे अपने माता-पिता के विशिष्ट गुणों को ना अपनाकर सामान्य गुणों को ज्यादा ग्रहण करते हैं। वंशानुक्रम के प्रत्यागमन नियम के कारण ही महान व्यक्तियों की सन्तानें ज्यादातर उनके बराबर महान नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए – बाबर की संतान अकबर में, बाबर की तुलना में बहुत कम प्रभावशाली गुण थे।

प्रत्यागमन के कारण :-

प्रत्यागमन के निम्नलिखित दो प्रमुख कारण–
● माता-पिता के पित्रैकों में से एक कम और एक अधिक शक्तिशाली होता है।
● माता-पिता में उनके पूर्वजों में से किसी का पित्रैक अधिक शक्तिशाली होता है।

वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम :-

वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम के अनुसार, माता-पिता द्वारा अपने जीवनकाल में अर्जित किये जाने वाले गुण उनकी सन्तान को प्राप्त नहीं होते हैं। लेकिन लेमार्क का मत इससे अलग है, लेमार्क ने वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम के बारे में कहा कि–

व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया जाता है, वह उनके द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले संतानों को संक्रमित किया जाता है।

– लेमार्क

लेमार्क ने वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम के लिए अपने मत को साबित करने के लिए उदाहरण के तौर पर कहतें हैं कि–

जिराफ की गर्दन पहले लगभग घोड़े की गर्दन के समान ही होती थी, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी लम्बी हो गई जिससे पता चलता है कि जिराफ की लम्बी गर्दन का गुण अगली पीढ़ी में संक्रमित होने हुआ।

– लेमार्क

लेमार्क के उपरोक्त कथन की पुष्टि मैक्डूगल और पवलव ने चूहों पर एवं हैरीसन ने पतंगों पर परीक्षण करके की है।

आज के समय में विकासवाद या अर्जित गुणों के संक्रमण का सिद्धान्त स्वीकार नहीं किया जाता है। इसके बारे में वुडवर्थ ने अपना मत रखा है जो कि निम्नलिखित है–

यदि आप कोई भाषा बोलना सीख लें, तो क्या आप पित्रैकों द्वारा इस ज्ञान को अपने बच्चे को संक्रमित कर सकते हैं? इस प्रकार के किसी प्रमाण की पुष्टि नहीं हुई है। क्षय या सूजाक ऐसा रोग, जो बहुधा परिवारों में पाया जाता है, यह रोग संतानों में परिवार में छुआ-छूत की वजह से होता है, न कि संक्रमण से।

– वुडवर्थ

वंशानुक्रम का मैण्डल का नियम :-

वंशानुक्रम का मैण्डल का नियम के अनुसार, वर्णसंकर प्राणी या वस्तुएँ अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती है। इस नियम को जेकोस्लोवेकिया के मैण्डल नामक पादरी ने प्रतिपादित किया था।

मैण्डल नेे बड़ी और छोटी मटरें बराबर संख्या में मिलाकर बोयीं। उगने वाली मटरों में सब वर्णसंकर जाति की थीं। मैण्डल ने इस वर्णसंकर मटरों को फिर बोया और इस क्रिया को कई बार दोहराया और अंत में मैण्डल को वर्णसंकर के बजाय शुद्ध मटर प्राप्त हुईं।

ग्रेगर जॉन मैण्डल ने जो प्रयोग किये, उनसे प्राप्त निष्कर्षों से वंशानुक्रम तथा वातावरण के प्रभावों के अध्ययन में अत्यधिक उपयोगी साबित हुए।

अधिक जाग्रत या प्रबल गुण, सुप्त गुण को निष्क्रिय कर देता है। सुप्तावस्था में रहने वाले व्यक्त गुण जब प्रकट होकर मुख्य गुण का रूप धारण कर लेते हैं तो यह स्थिति प्रत्यागमन का रूप धारण कर लेती है। उदाहरण के लिए काले माता-पिता से गोरी संतान का जन्म लेना।

– वंशानुक्रम का मैण्डल का नियम

वातावरण

वातावरण को पर्यावरण के नाम से भी जाना जाता है आमतौर पर वातावरण का अभिप्राय व्यक्ति के आस पास की चारो तरफ की परिस्थितियों से है

पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है परी व आवरण, परि का अर्थ होता है चारो ओर व आवरण का अर्थ होता है ढकने वाला, किसी व्यक्ति को के चारो तरफ जो कुछ भी ह वह पर्यावरण है

वंशक्रम का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरण, विकास व वृद्धि में सहायक तत्व ही वातावरण कहलाता है

वातावरण की परिभाषाएं

डगलस व हॉलैंड के अनुसार: वातावरण शब्द का प्रयोग हम समस्त वाह्य शक्तियों, प्रभावों तथा दशाओं का सामूहिक रूप से वर्णित करने के लिए किया जाता है

वुडवर्थ के अनुसार: वातावरण में सभी तत्व आ जाते है जिन्होंने जीवन शुरू करने के समय मनुष्य को प्रभावित किया हो

पी गिल्बर्ट के अनुसार: वातावरण वह वस्तु है जो प्रयत्क्ष है जो प्रयत्क्ष रूप से तुरंत प्रभावित करती है

रॉल्स के अनुसार: यह वह शक्ति है जो सब पर प्रभाव डालती है

बोरिंग व लैंगफील्ड के अनुसार: वह प्रत्येक  वस्तु है जो व्यक्ति के पित्रैक के अतिरिक्त उसकी अन्य सभी बातों पर प्रभाव डालती है

वातावरण के प्रकार

भौतिक वातावरण: भोजन, जल, वायु, घर, विद्यालय, गाँव व शहर

समाजिक व सांस्कृतिक वातावरण: माता पिता ज़ परिवार ज़ समुदाय, समाज, अध्यापक, मित्र, मनोरंजन के साधन आदि सम्मिलित है

वातावरण का महत्व

मनोवैज्ञानिकों ने काफी अध्ययन करने के बाद यह सिद्ध कर दिया है की व्यक्ति के विकास मे वातावरण की आगम भूमिका होती है क्योंकि बालक के विकास मे भौतिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक व सांस्कृतिक का व्यापक प्रभाव पड़ता है बालक का वातावरण गर्भवस्था के दौरान से ही विकसित होने लगता है नौ माह तक भ्रूण का विकास मत के गर्भशय मे ही होता है

शिशु के जन्म के उपरांत मिलने वाला वातावरण ही उसके शारीरिक व मानसिक विकास आदि को प्रभावित करता है उत्तम वातावरण मे पलने वाले बालकों की सामाजिक व बौद्धिक क्षमता अधिक होती है

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