🔆 ब्रूनर का अधिगम सिद्धांत

🔹” Two word theory of instruction” यह पुस्तक ब्रूनर द्वारा लिखी गई।

🔹इस पुस्तक में ब्रुनरने कुछ संप्रत्य प्रकट किए हैं और बताया कि वृद्धि, विकास एवं अधिगम में कुछ ऐसी चीजें होती है जो हमारे अंदर कई बेहतर रूप में संप्रत्यय का निर्माण करती है।

📍1 बौद्धिक विकास
(i)व्यवस्थापकीय अवस्था
(ii)मूर्ताअवस्था
(iii) प्रतीकात्मक अवस्था

📍2 खोजपूर्ण अधिगम

📍3 संप्रत्यय निर्माण

📍4 भाषा विकास

📍5 मूल अधिगम

🔹ब्रूनर के अधिगम सिद्धांत के अंतर्गत संप्रत्यय निर्माण किस तरह से या किस किस चरण में होता है या किन किन रूपों में होता है उसको इस उपर्युक्त तरह से बांटकर बताया जा सकता है।

🌀1 बौद्धिक विकास बौद्धिक विकास को तीन चरणों में बांटा गया है

✨1 व्यवस्थापकीय अवस्था

🔸बौद्धिक विकास की इस अवस्था में बच्चा बिना बोले क्रियाएं करने लगता है।
जैसे घुटनों के बल चलना
किसी वस्तु को पकड़ने के लिए हाथ पैर चलाना यह लाना।

🔸इस अवस्था में बच्चों को किसी भी प्रकार की क्रिया करने के लिए किसी भी अन्य व्यक्ति के द्वारा बोलना नहीं पड़ता वह बिना बोले ही स्वयं से उन क्रियाओं को करने लगता है।

✨2 मूर्ताअवस्था

🔸इस अवस्था में बालक मूर्त रूप से ज्ञान प्राप्त करता है।
🔸मूर्त रूप से तात्पर्य है कि बच्चा जिस भी चीज को प्रत्यक्ष रूप से देखता है उस चीज को प्रत्यक्ष रूप में देख कर उसकी मूर्त कल्पना कर ज्ञान प्राप्त कर लेता है।।

🔸बच्चा व्यवस्थापकीय अवस्था में प्रत्यक्षीकरण द्वारा क्रिया करता है जबकि मूर्त अवस्था में प्रत्यक्षीकरण द्वारा मूर्त कल्पना कर वह अपने पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त करता है।

🔸अर्थात मूर्तअवस्था में बच्चा किसी भी चीज को मूर्त रूप में देखता है और उस पर अपनी कल्पना या समझ लगाकर उस मुर्त वस्तु के बारे में जानता है।

🔸जैसे बच्चे कई बार कुछ चीजें जैसे लकड़ी या पेंसिल को मुंह में देने लगता है लेकिन जब वह उसे प्रत्यक्ष रूप से देखता है तो उस पर अपनी समझ लगाकर यह जान जाता है कि यह वस्तु खाने योग्य नहीं है।

✨3 प्रतीकात्मक अवस्था
🔸 बच्चा भाषा चिन्ह या संकेतों के द्वारा किसी भी चीज का संबंध वस्तुओं और विचारों से जोड़ता है।

🔸यह बौद्धिक विकास की एक अवस्था है जिसमें बालक अपने अनुभव को भाषा से संबंध करता है अर्थात उस वस्तु को ,उसी वस्तु की भाषा से जोड़ता है और उस आधार पर उसके बारे में बताता है।

🔸अर्थात विशेष रूप में भी समझा जा सकता है की भाषा को अनुभव से जोड़ता है और हमारी भाषा अनुभव से ही बनती है।

🔸अर्थात किसी भी दिए गए संकेतों की मदद से हम अपने अनुभव के माध्यम से चीजों को जोड़ते हैं और अनुभव को अपनी भाषा में परिवर्तित कर लेते हैं और संकेतों के द्वारा अपने विचारों से जोड़ लेते हैं।

🔹ब्रूनर का कहना है कि बालक प्रारंभ में क्रियाओं के द्वारा चिंतन और फिर प्रतिबिंब द्वारा चिंतन और बाद में संकेतों या शब्दों द्वारा चिंतन करते हैं। इस अवस्था में बालक अपनी अनुभूतियों को ध्वन्यात्मक संकेतों (भाषा) के माध्यम से व्यक्त करता है। यह अमूर्त चिंतन की अवस्था होती है।

🌀2 खोजपूर्ण अधिगम

🔹शिक्षा का अन्वेषण विधि मे बहुत महत्व स्पष्ट किया है।

🔹किसी भी कार्य को यदि हम खोज करते हैं या उस कार्य को खुद से या स्वयंसे करते हैं या उस कार्य के पास हमारे अनुभव होते हैं तो उस कार्य के बारे में हमारे अंदर सृजनात्मकता की वृद्धि होती है।

🔹अर्थात अन्वेषण या खोज करने से बालक की सृजनात्मकता में वृद्धि होती है। जिसके फलस्वरूप स्मृति चिंतन या निर्णय शक्ति का भी विकास होता है।

🌀3 संप्रत्यय निर्माण

🔹ब्रूनर के अनुसार बच्चे में संप्रत्यय निर्माण शैश अवस्था में होने लगता है।

🔹लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे संप्रत्यय के संगठन में सामंजस्य होने लगता है।
अर्थात किसी भी चीज के प्रति एक समय के बाद नजरिया बदलने लगते हैं या उस चीज का संप्रत्यय निर्माण के संगठन में सामंजस्य धीरे-धीरे होने लग जाता है।

🌀4 भाषा विकास

🔹भाषा का विकास विचारों को सुगमता देता है

🔹भाषा विकास पर संस्कृतिकरण अर्थात व्यक्ति के रहन-सहन खान-पान वातावरण रीति रिवाज समाज के नियम आदि का विशेष प्रभाव पड़ता है।या यह सभी भाषा विकास को प्रभावित करते हैं।

🔹भाषा ज्ञान नहीं है बल्कि ज्ञान को दिखाने या व्यक्त करने या बताने या जताने का एक तरीका है।

🔹भाषा से विचारों का मौखिककरण होता है।

🔹अर्थात हम अपने विचारों को भाषा के माध्यम से ही मौखिक रूप से या बोलकर व्यक्त कर पाते हैं।

🌀5 मूल अधिगम

🔹मूल अधिगम का अर्थ नवीन संप्रत्यय एवं तर्क वाक्य का ज्ञान होता है।

🔹ब्रूनर के सिद्धांत में ज्ञान की सर्वोत्तम विधि खोज पूर्ण या अन्वेषण विधि है।

❇️ब्रूनर के शिक्षण सिद्धांत की विशेषताएं

⚜️1 अधिगम आधारित

🔸इस सिद्धांत में हर समय अधिगम के आधार पर बात की गई है कि किस प्रकार से अधिगम को बेहतर किया जाए।

⚜️2 ज्ञान की संरचना

🔸ज्ञान व विषय वस्तु से अधिगम को सरल बनाते हैं अर्थात जिस व्यक्ति के पास ज्ञान व विषय वस्तु नहीं है उसके लिए सीखना मुश्किल होगा और जिसके पास ज्ञान और विषय वस्तु है उसके लिए सीखना आसान होगा।

⚜️3 तारगम्यता या क्रमबद्धता

🔸एक क्रम में या एक चरण में स्टेप बाय स्टेप चीजों को सीखना।

⚜️4 पुनर्बलन

🔸शिक्षण में पुनर्बलन करने के लिए कई चीजों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे कई चीजें जब हम अपने पर्यावरण से जोड़कर या उसके साथ संबंध स्थापित करते हैं जिससे हमें पुनर्बलन प्राप्त होता है।

❇️ब्रूनर के सिद्धांत की शैक्षिक उपादेयता

🌺1 बच्चे की ज्ञान और आयु का ध्यान रखेंगे
शिक्षक जिस भी प्रकार का शिक्षण कार्य करेगा उसमें बच्चे के ज्ञान और आयु का पूर्ण रुप से ध्यान रखा जाए।

🌺2 पूर्व अधिगम
शिक्षण कार्य के दौरान शिक्षक को बच्चे के पूर्व अधिगम से नवीन अधिगम जोड़कर शिक्षण कार्य करा सकते हैं।

🌺3 सक्रिय इस सिद्धांत के द्वारा अन्वेषण या खोज विधि का उपयोग करके बच्चों की सक्रिय भागीदारी रहती हैं। अर्थात बच्चे स्वयं किसी भी कार्य को करके सीख सकते हैं।

🌺4 प्रतीक रूप मे अवलोकन
शिक्षण कार्य के दौरान किसी भी पाठ या विषय को पढ़ाते समय उसको समझाने के लिए कई प्रतीको से या कई संकेतों का प्रयोग करके छात्रों द्वारा अवलोकन करने पर ज्ञान प्रदान किया जा सकता है

🌺5 ज्ञान की संरचना
किसी भी ज्ञान की रचना में ज्ञान व विषय वस्तु से अधिगम को सरल बनाया जा सकता है।

🌺6 क्रमबद्धता किसी भी विषय वस्तु के बारे में बताते वक्त उस वस्तु के ज्ञान को एक क्रमबद्ध रूप में अर्थात एक चरण के रूप में यह स्टेप बाय स्टेप बच्चों के समकक्ष प्रस्तुत किया जाए ।

🌺7 पुनर्बलन

शिक्षण में पुनर्बलन करने के लिए कई चीजों का प्रयोग किया जाता है यह चीजें बच्चे अपने पर्यावरण से जोड़ कर उसके साथ संबंध स्थापित कर लेते हैं जिससे उन्हें पुनर्बलन प्राप्त होता है।

🌺8 अन्वेषण
अन्वेषण विधि के माध्यम से बच्चे किसी भी कार्य को खुद करके या स्वयं के द्वारा करके सक्रिय रूप से सीखते हैं।

🌺9 नए शिक्षण कौशल या नई शिक्षण रणनीतियां

🌺10 अनुभव के आधार पर अभ्यास

✍️Notes By-'Vaishali Mishra'

By admin

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