शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाएं

(Basic process of teaching and learning)

 शिक्षण सोद्देश्य  प्रक्रिया है| किसी ने किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही शिक्षण की विभिन्न क्रियाओं का आयोजन किया जाता है | शिक्षण का अर्थ है लक्ष्य को साधते हुए किसी को सिखाना| शिक्षण को एक त्रि-ध्रुवीय प्रक्रिया माना गया है| शिक्षण के लिए हमें छात्र अध्यापक और पाठ्यक्रम की जरूरत पड़ती है| इसी वजह से शिक्षण को त्रि ध्रुवीय प्रक्रिया माना गया है|
Teaching is the intended process. Different activities of learning are organized for the attainment of a specific purpose. Teaching means to teach someone while aiming. Teaching is considered a tri-polar process. For teaching, we need a student teacher and a course. For this reason, teaching has been considered as a tri-polar process.

                                  शिक्षण की परिभाषाएं

” हफ  तथा डंकन के अनुसार – शिक्षण चार चरणों वाली प्रक्रिया है योजना, निर्देशन, मापन तथा मूल्यांकन|”
 “बर्टन  के अनुसार – शिक्षण अधिगम हेतु प्रेरणा, पथ प्रदर्शन व प्रोत्साहन है|”

                पाठ्यक्रम की विशेषताएं 

          (characteristics of Curriculum)

  1.  पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए |
  2.  शिक्षा पाठ्यक्रम सामाजिक आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए |
  3.  पाठ्यक्रम अभ्यास पर आधारित होना चाहिए |
  4. पाठ्यक्रम पूर्व ज्ञान पर आधारित होना चाहिए |
  5.  पाठ्यक्रम मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए |
  6. पाठ्यक्रम नैतिक मूल्य पर आधारित होनाचाहिए |

                         शिक्षण सूत्र 

                    (Teaching rules)

1.  ज्ञात से अज्ञात की ओर (Known to unknown) :-  पढ़ाने से पहले अध्यापक को प्रश्न करके पता कर लेना चाहिए कि बच्चों को उस पाठ के प्रति कितना ज्ञान है| पता करने से अध्यापक को कक्षा का स्तर पता चल जाता है| ज्ञान पता होने पर बच्चों को वहां तक पढ़ाना है जो बच्चे नहीं जानते हैं |
Known to unknown: – Before teaching, ask the teacher to know how much knowledge children have about that lesson. By knowing, the teacher gets to know the level of the class. On knowing knowledge, children have to be taught there which children do not know.
2.  सरल से कठिन की ओर  (Easy to complex) :-  पहले अध्यापक को सरल रचनाएं प्रस्तुत करनी चाहिए उसके बाद उससे थोड़ा सा ऊपर का स्तर तथा बिलकुल अंत में मुश्किल रचनाएं प्रस्तुत करनी चाहिए| क्योंकि अगर अध्यापक शुरू में ही कठिन रचनाएं प्रस्तुत करते हैं तो बच्चों का विश्वास डगमगा जाता है|
(Easy to complex: – First the teacher should present simple compositions and then a little higher level than that and at the end should present difficult compositions. Because If the teacher presents tough compositions at the beginning, the faith of children gets staggered)
3.  विशिष्ट से सामान्य की ओर (Specific to general) :-   अध्यापक को सबसे पहले पाठ का विशिष्ट रुप प्रस्तुत करना चाहिए | उसके बाद उसका सामान्य रूप प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि बच्चों को विशेष रुप पर ज्यादा ध्यान देने की आदत होती है|
4 मूर्त से अमूर्त / स्थूल से सूक्ष्म की ओर (Concrete to abstract) :-  बच्चा पहले अपनी सामने रखी हुई वस्तु पर ध्यान केंद्रित करता है| उसके बाद उनको हटाने पर भी ध्यान केंद्रित कर सकता है बच्चा उन चीजों के ऊपर तार्किक रूप से नहीं सोच सकता जो उसने पहले नहीं देखी हुई है अतः पहले बच्चों को वस्तुएँ  दिखानी चाहिए बाद में उन को हटाकर उन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बोलना चाहिए|
5 पूर्ण से अंश की ओर (Whole  to  partial) :-   अध्यापक को पहले पूरे भाग की जानकारी देनी चाहिए बाद में उसके छोटे छोटे भागों की जानकारी देनी चाहिए उदाहरणार्थ – पहले गाड़ी के बारे में फिर उसके भागों के बारे में बताना|
6.  अनिश्चितता से निश्चितता की ओर (Unsure to sure) :- बच्चा किसी भी नए सम्प्रत्य को लेकर हमेशा भ्रांति में रहता है | बच्चों की भ्रांति को ध्यान में रखकर उसको ज्ञान देना चाहिए ताकि उसके प्रति निश्चित हो जाए |
7.  बाल केंद्रित के अनुसार (According to child centered ) :- अध्यापक को बाल केंद्रित शिक्षा को ध्यान में रखकर शिक्षा देने चाहिए | बच्चों को अनुभूतियों व्यवहार तथा रुचियों को ध्यान में रखकर शिक्षा देनी चाहिए |
8.  विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (Differentiation analysis to synthesis) :-  विश्लेषण का अर्थ होता है टुकड़ों में तोड़ना और संश्लेषण का अर्थ होता है जोड़ना |उदाहरणार्थ – जब हम किसी कविता का अनुवाद करते हैं तो एक-एक शब्द को तोड़ कर लिखते हैं और जब हम उसके निष्कर्ष देते हैं तो पूरी कविता का निचोड़ बताते हैं |
9.  मनोविज्ञान से तार्किक की ओर (Psychological to logical) :-  पहले अध्यापक को मनोविज्ञान तरीके से बच्चों को तैयार करना चाहिए कि उसको पढ़ाई करनी है अगर वह मनोवैज्ञानिक आधार बनाकर पड़ेगा तो वे रुचि के साथ पढ़ता हुआ तर्क प्रस्तुत कर सकता है |

                 शिक्षण की विशेषताएं 

           (Characteristics of teaching)

  1.  शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है |
  2.  शिक्षण एक भाषाई प्रक्रिया है |
  3.  शिक्षण एक अंतक्रिया है |
  4.  शिक्षण एक कला है  |
  5.  शिक्षणिक विकास की प्रक्रिया है |
  6.  शिक्षण एक त्रि ध्रुवीय प्रक्रिया है |

                   सूक्ष्म शिक्षण 

              (Micro teaching) 

एलन के अनुसार – सूक्ष्म शिक्षण से तात्पर्य शिक्षण क्रिया के उस सरलीकरण लघु रूप से है जिसे थोड़े विद्यार्थियों वाली कक्षा के सामने अल्प समय में संपन्न किया जाता है |
 बी के पासी एवं M S ललिता के अनुसार – जिसमें छात्राध्यापकों से यह अपेक्षा की जाती है कि उनके द्वारा किसी एक सम्प्रत्य  के थोड़े से विद्यार्थियों को अल्प समय में विशिष्ट शिक्षण कौशलों का प्रयोग करके पढ़ाया जाए |  
सूक्ष्म शिक्षण अध्यापकों का शिक्षण कौशलों का अभ्यास कराने हेतु अपनाई गई एक प्रशिक्षण तकनीक है | यह शिक्षण एक अति छोटा रूप है जिसमें वास्तविक शिक्षण की जटिलताओं को कम करने के हर संभव प्रयत्न किए जाते हैं | यह शिक्षण छात्रों के छोटे छोटे समूहों में होता है |

 सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Cycle of microteaching)

 एनसीईआरटी के अनुसार :-

  1.  शिक्षण सूत्र (Teaching sessions) = 6  मिनट
  2.  प्रतिपुष्टि सत्र (Feedback session) = 6  मिनट
  3.  पुनर्योजना सत्र (Re-Plan Session) = 12  मिनट
  4.  पुनः अध्यापन सत्र (Re-Teach session) = 6  मिनट
  5.  पुनः प्रतिपुष्ठी सत्र (Re-Feedback session) = 6  मिनट

           कुल समय = 36  मिनट

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