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वृध्दि और विकास में अंतर – 

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🌴 बृद्धि और विकास का विशेष अर्थ को समझने के लिये इनके बीच के अंतर को समझना आवश्यक है।

👨‍✈️ सोरेनसन के अनुसार- ”  सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके आकर ,भार में किया जाता हैं।इसे मापा तौला जा सकता है। विकास का सम्बंध अभिवृद्धि से अवश्य होता है पर यह शरीर मे होने वाले परिवर्तनों को विशेष रूप से व्यक्त करता है।

जैसे हमारे मांसपेशियों या हड्डियों के आकार में बृद्धि होती है लेकिन इन परिवर्तनों के स्वरूप में जो बदलाव आता है वह विकास है।

  अतः हम कह सकते हैं कि विकास जो है उसमें बृद्धि का भाव निहित रहता है।

 सामान्यतः शिक्षाविदों द्वारा दोनो शब्द(बृद्धि और विकास) का प्रयोग जब भी करते हैं।एक ही अर्थ में करते हैं।

🌴🌺 एक बच्चे में वृध्दि और विकास उसी समय आरम्भ हो जाता है जिस समय बच्चा गर्भ में प्रवेश करता है और यह जन्म के बाद तक चलता रहता है।

👨‍✈️🌻 हरलॉक के अनुसार ” विकास अभिवृद्धि तक सीमित नही है इसके बजाय इसमे प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगति शील क्रम निहित रहता है।

           विशेषतः विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषता और योग्यता प्रकट होती है।

🌳👉 बृद्धि-  यह मनुष्य के बनावट या भार में होने वाले परिवर्तन बृद्धि है। 

 🌺 और विकास मनुष्य के मानसिक ,सामाजिक,संवेगात्मक, भावात्मक परिवर्तन विकास होता है।

🌳👉 वृध्दि सीमित होती है औऱ एक परिपक्वता तक रुक जाती है

    🌺विकास इसकी कोई सीमा नही होती है यह जीवन पर्यन्त तक चलता रहता है।

🌳👉 वृध्दि स्थूल होती है

🌺विकास दृश्य तथा अदृश्य दोनो रूप में होता है।

🌳👉वृध्दि मात्रात्मक होती है

  🌺विकास मात्रात्मक और गुणात्मक दोनो होता है।

🌳👉वृध्दि क्रमिक और श्रृंखला बद्ध होती है 

🌺वविकास इसका कोई निश्चित क्रम नही होता यह चहुमुखी होता है।

🌳👉 वृध्दि विकास को प्रभावित करती है

   🌺विकास अभिवृद्धि से कम प्रभावित होता है।

🌳👉 अभिवृद्धि केवल धनात्मक होती है 

      🌺विकास धनात्मक और ऋणात्मक दोनो होता है

🌳👉अभिवृद्धि केवल अनुवांशिक प्रभाव के कारण होती है।

🌺विकास पर अनुवांशिक और वातावरण दोनो का प्रभाव होता है।

📚📚📚Notes by Poonam sharma

🔆 वृद्धि एवं विकास में अंतर 🔆

(Difference between Growth and Development)➖

यदि हमें वृद्धि एवं विकास के अर्थ को समझना है तो उसके लिए अभिवृद्धि व विकास के अंतर को समझना बहुत आवश्यक है, जिसकी सहायता से उस अर्थ को सटीकता से व स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

अर्थात वृद्धि और विकास का विशेष अर्थ या प्रभाव को समझने के लिए उनके बीच के अंतर को समझना जरूरी है।

“वृद्धि एवं विकास में अंतर के संदर्भ में कुछ मनोवैज्ञानिक कथन “

🌟 सोरेनसन के अनुसार ➖

सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंग के आकार और भार में वृद्धि के लिए किया जाता है इस वृद्धि को मापा व ताला जा सकता है।

              विकास का संबंध अभिवृद्धि से अवश्य होता है पर यह शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तनों को विशेष रूप से व्यक्त करता है।

🔹मांसपेशियों हड्डियों के आकार में वृद्धि होती है लेकिन इन परिवर्तन से उनके स्वरूप में भी बदलाव आता है और दिखने वाला यह स्वरूप ही विकास कहलाता है।

🔹विकास में वृद्धि का भाव हमेशा ही निहित रहता है।

🔹किसी व्यक्ति के आकार व माप  एक प्रकार की वृद्धि है लेकिन जब इस आकार व माप के कारण व्यक्ति के स्वरूप में परिवर्तन दिखाई देता है या नजर आता है वह विकास कहलाता है।

🔹सामान्यतः शिक्षाविदों द्वारा वृद्धि और विकास दोनों शब्दों का प्रयोग जब भी करते हैं तब वह एक ही अर्थ में करते हैं।

🔹वृद्धि और विकास उसी समय आरंभ हो जाता है जब गर्भाधान होता है और यह जन्म के बाद भी निरंतर चलता रहता है।

🌟 हरलॉक के अनुसार ➖

विकास अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है इसकी वजह इसमें प्रौढ़ावस्था की लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम भी इसमें निहित रहता है।विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषता और योग्यता प्रकट होती है।

विकास को वृद्धि से अलग नहीं किया जा सकता या विकास को ही संपूर्ण नहीं बोला जा सकता क्योंकि वृद्धि जब होती है  तो उसके रूप को विकास द्वारा ही दिखाया जाएगा।

▪️वृद्धि एवं विकास के अंतर को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

❇️ वृद्धि से तात्पर्य मनुष्य के आकार बनावट या भार में होने वाले वृद्धि से है।

                                      जबकि विकास से तात्पर्य मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक ,चारित्रिक इत्यादि परिवर्तनों से होता है।

❇️ वृद्धि सीमित होती है और परिपक्वता के स्तर तक होती है।

                 जबकि विकास की कोई सीमा नहीं होती यह जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर चलता रहता है।

❇️ वृद्धि मात्रात्मक होती है।

                                      जबकि विकास मात्रात्मक व गुणात्मक दोनों प्रकार का होता है।

❇️ वृद्धि क्रमिक और श्रंखलाबद्ध होती है।

                                                           जबकि विकास का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है।

❇️ वृद्धि को स्थूल रूप में देखा जा सकता है।

                                                               जबकि विकास दृश्य और अदृश्य दोनों रूपों में देखा जा सकता है।

❇️ अभिवृद्धि विकास को प्रभावित करती है।

                                                               जबकि विकास अभिवृद्धि को बहुत कम प्रभावित करता है।

(जैसे हम मानसिक रूप से स्वास्थ्य नहीं है तो इसका प्रभाव अपने शरीर पर देख सकते हैं या शारीरिक रूप से भी हम थका हुआ या अस्वस्थ महसूस करते हैं।

                     जबकि इसके विपरीत यदि हम शारीरिक रूप से अस्वस्थ महसूस करते हैं तो हम इसका प्रभाव मानसिक रूप पर देख सकते हैं अर्थात मानसिक रूप से अस्वस्थ और आत्मविश्वास  में भी कमी को भी महसूस करते हैं ।

अर्थात वृद्धि में शरीर – मन या मस्तिष्क को प्रभावित करता है।

जबकि विकास में मन या मस्तिष्क –  शरीर को प्रभावित करता है।

❇️ अभिवृद्धि केवल धनात्मक होती है।

                                                    जबकि विकास धनात्मक व ऋणात्मक दोनों होता है।

( शरीर की वृद्धि हो जाने पर उसने किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता अर्थात जब हम छोटे से बड़े हो जाते हैं तो वापस से छोटे नहीं हो सकते ।

जब हम मानसिक रूप से किसी कार्य का परिणाम वातावरण या कई कारकों के प्रभाव से बेहतर प्राप्त करते है  तब यह धनात्मक विकास होगा।

जबकि इसके विपरीत जब हम मानसिक रूप से किसी कार्य का परिणाम वातावरण या कई कारकों के प्रभाव से बुरा प्राप्त करते है तब वह  ऋणात्मक   विकास होगा।

जब भी किसी कारण या वजह से किसी कार्य में क्षति होती है या हमारे संवेग, विचार व समझ में नकारात्मकता आती है तब वह नकारात्मक विकास होगा ।और जब दिन प्रतिदिन किसी कारण या वजह से हमारे संवेग ,विचार व  समझ में परिपक्वता आती है तब वह धनात्मक विकास होगा।

❇️ वृद्धि केवल अनुवांशिक प्रभाव के कारण होती है।

     जबकि विकास पर अनुवांशिकता और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है।

✍️

     Notes By-‘Vaishali Mishra’

⛲𝘿𝙞𝙛𝙛𝙚𝙧𝙚𝙣𝙘𝙚 𝙗𝙚𝙩𝙬𝙚𝙚𝙣 𝙂𝙧𝙤𝙬𝙩𝙝 𝙖𝙣𝙙         𝘿𝙚𝙫𝙚𝙡𝙤𝙥𝙢𝙚𝙣𝙩

         ⛲  (वृद्धि और विकास में अंतर)

🌊वृद्धि और विकास का विशेष पर क्या प्रभाव समझने के लिए उनके बीच के अंतर को समझना जरूरी है,

👥सोरेनसन के अनुसार ÷ सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंग के आकार और भार में वृद्धि के लिए किया जा सकता है और इस वृद्धि को नापा और  तौला जा सकता है विकास का संबंध वृद्धि से अवश्य होता है पर यह  शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करता है”

🌊उदाहरण÷ शरीर की मांसपेशियों या हड्डियों के आकार में वृद्धि होती है लेकिन इन परिवर्तन से उसके स्वास्थ्य में भी बदलाव आता है।

🌊विकास में वृद्धि का भाव हमेशा ही निहित  रहता है।

🌊सामान्यता शिक्षाविदों द्वारा दोनों शब्द (वृद्धि और विकास) का प्रयोग एक ही अर्थ में करते हैं।

🌊वृद्धि और विकास उसी समय आरंभ हो जाता है जब गर्भाधान होता है यह जन्मोपरांत भी सतत रूप से चलती रहती है।

👥हरलाक के अनुसार÷ विकास अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है, इसके बजाय इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है, विकास के परिणाम स्वरूप वक्त में नवीन विशेषता और योग्यता प्रकट होती है।

⛲वृद्धि और विकास में अंतर निम्नलिखित हैं÷

🎊वृद्धि÷मनुष्य के आकार , संरचना ,बनावट या भार में होने वाला परिवर्तन वृद्धि ही होती है;

🎉विकास÷विकास का तात्पर्य मानसिक शारीरिक संवेगात्मक, चारित्रिक, भावात्मक,से होता है;

🎊वृद्धि÷वृद्धि सीमित होती है और परिपक्वता के स्तर तक होती है;

🎉विकास÷ विकास की कोई निश्चित सीमा नहीं होती है यह जन्म से मृत्यु तक चलती है;

🎊वृद्धि ÷वृद्धि मात्रात्मक होती है;

🎉विकास÷विकास मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार का होता है;

🎊वृद्धि÷ वृद्धि क्रमिक और श्रृंखलाबद्ध होती है;

🎉विकास÷विकास क्रमिक या श्रृंखलाबद्ध नहीं होता है;

🎊वृद्धि ÷वृद्धि स्थूल रूप से दिखती है;

🎉विकास÷ विकास दृश्य और अदृश्य दोनों रूपों में दिखता है;

🎊वृद्धि ÷वृद्धि विकास को प्रभावित करता है;

🎉विकास÷ अभिवृद्धि को बहुत कम प्रभावित करती है;

🎊वृद्धि÷ केवल धनात्मक होती है;

🎉विकास÷ विकास धनात्मक और ऋण आत्मक दोनों होता है;

🎊वृद्धि ÷केवल अनुवांशिक प्रभाव के कारण होती है;

🎉विकास÷ विकास पर अनुवांशिक और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है;

💐💐𝕎𝕣𝕚𝕥𝕥𝕖𝕟 𝕓𝕪 ~𝓢𝓱𝓲𝓴𝓱𝓪𝓻 𝓹𝓪𝓷𝓭𝓮𝔂💐💐

🔆 वृद्धि और विकास में अंतर➖

विकास वृद्धि और विकास का विशेष अर्थ या प्रभाव समझने के लिए उनके बीच के अंतर को समझना जरूरी है |

⭕  सोरेन्सन के अनुसार➖ समान रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर  और उसके अंगों के आकार और भार में वृद्धि के लिए किया जाता है इस वृद्धि को नापा और तौला जा सकता है विकास का संबंध अभिवृद्धि से अवश्य होता है पर यह शरीर में होने वाले परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करता है |

 उदाहरण के लिए➖

 मांसपेशियों या हड्डियों के आकार में वृद्धि होती है लेकिन इन परिवर्तन से उनके स्वरूप में भी परिवर्तन आता है विकास में वृद्धि का भाव हमेशा ही निहित रहता है सामान्यतः शिक्षाविदों द्वारा वृद्धि और विकास शब्द का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है |

 वृद्धि और विकास उसी समय से प्रारंभ हो जाता है जब गर्भाधान होता है ये प्रक्रिया जन्म के बाद भी चलती रहती है |

हरलॉक के अनुसार ➖

 विकास अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है इसके बजाय इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है और विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और योग्यताएं प्रकट होती है |

वृद्धि और विकास ➖

1) वृद्धि से तात्पर्य मनुष्य के आकार, भार ,और बनावट आदि में होने वाली वृद्धि से है जबकि विकास का तात्पर्य मानसिक ,शारीरिक, संवेगात्मक, एवं चारित्रिक परिवर्तन से होता है |

1) अभिवृद्धि सीमित होती है और परिपक्वता के स्तर तक पूरी हो जाती है जबकि विकास की कोई सीमा नहीं होती है यह जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है |

3) वृद्धि मात्रात्मक होती है जबकि विकास मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों होता है |

4) वृद्धि क्रमिक परिवर्तनों की क्रमबद्ध श्रंखला है जबकि विकास का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है |

5) वृद्धि स्थूल रूप से दिखती है जबकि विकास सूक्ष्म होता है देखा नहीं जा सकता है यह दृश्य और अदृश्य दोनों रूप से होता है |

6) वृद्धि विकास को प्रभावित करती है लेकिन विकास अभिवृद्धि को बहुत ही कम प्रभावित करता है |

7) वृद्धि केवल धनात्मक होती है जबकि विकास धनात्मक और ऋणात्मक दोनों होता  है |

8) वृद्धि केवल अनुवांशिक प्रभाव के कारण होती है जबकि विकास पर अनुवंशिकता और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है |

नोटस बाय ➖ रश्मि सावले

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🌎 वृद्धि और विकास में अंतर🌎

वृद्धि और विकास 

 समझने के लिए उनके बीच के अंतर को समझना जरूरी है,

🖊सोरेनसन के अनुसार ÷ सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंग के आकार और भार में वृद्धि के लिए किया जा सकता है और इस वृद्धि को नापा और  तौला जा सकता है विकास का संबंध वृद्धि से अवश्य होता है पर यह  शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करता है”

🎄विकास में वृद्धि का भाव हमेशा ही निहित  रहता है।

🎄सामान्यता शिक्षाविदों द्वारा दोनों शब्द वृद्धि और विकास का प्रयोग एक ही अर्थ में करते हैं।

🎄वृद्धि और विकास उसी समय आरंभ हो जाता है जब गर्भाधान होता है यह जन्मोपरांत भी सतत रूप से चलती रहती है।

🖊हरलाक के अनुसार÷ विकास अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है, इसके बजाय इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है, विकास के परिणाम स्वरूप वक्त में नवीन विशेषता और योग्यता प्रकट होती है।

🖊वृद्धि और विकास में अंतर निम्नलिखित हैं÷

🖊वृद्धि➖मनुष्य के आकार , संरचना ,बनावट या भार में होने वाला परिवर्तन वृद्धि ही होती है;

🖊विकास➖विकास का तात्पर्य मानसिक शारीरिक संवेगात्मक, चारित्रिक, भावात्मक,से होता है;

♻️वृद्धि➖वृद्धि सीमित होती है और परिपक्वता के स्तर तक होती है;

♻️विकास➖ विकास की कोई निश्चित सीमा नहीं होती है यह जन्म से मृत्यु तक चलती है;

♻️वृद्धि ➖वृद्धि मात्रात्मक होती है;

Notes by sapna yadav

वृद्धि और विकास में अंतर

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3 march 2021

वृद्धि और विकास का विशेष अर्थ या प्रभाव समझने के लिए इनके बीच के अंतर को समझना आवश्यक होता है।

वृद्धि और विकास के संदर्भ में कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपने कथन प्रस्तुत किए है  :-

👉 ” सोरेनसन  ”  के  अनुसार   :-

सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंग के आकार और भार में वृद्धि के लिए किया जाता है तथा इस वृद्धि को नापा या तोला जा सकता है।

                विकास का संबंध अभिवृद्धि से अवश्य होता है पर यह विकास के अंगों में होने वाले परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करता है।

🌺 उदाहरणस्वरूप  :-

मांसपेशियों या हड्डियों के आकार में वृद्धि होती है लेकिन इन परिवर्तनों से उनके स्वरूप में भी बदलाव आता है।

अंततः विकास में वृद्धि का भाव हमेशा ही निहित रहता है।

सामान्यतः शिक्षाविदों द्वारा वृद्धि और विकास दोनों शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है।

वृद्धि और विकास उसी समय आरंभ हो जाता है जब गर्भाधान होता है तथा यह जन्म के बाद भी चलता रहता है।

👉  ” हरलॉक ” के अनुसार :-

विकास अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है वरन् इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है ।

               विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं और योग्यतायें प्रकट होती हैं।

🌿🌷🌿   वृद्धि और विकास के अंतर को निम्नलिखित रुप से बताया गया है  :-

🌺 वृद्धि  :-

मनुष्य के आकार , भार या बनावट में होने वाले परिवर्तन को वृद्धि कहते हैं।

🌺  विकास  :-

विकास का तात्पर्य मनुष्य के मानसिक , शारीरिक ,  संवेगात्मक , भावनात्मक एवं चारित्रिक आदि परिवर्तनों से होता है।

🌸  वृद्धि :-

वृद्धि सीमित होने साथ ही और परिपक्वता के स्तर तक होती है ।

🌸  विकास  :-

विकास की कोई निश्चित सीमा नहीं होती है यह जन्म से मृत्यु तक चलता रहता है।

🏵️ वृद्धि :-

वृद्धि मात्रात्मक होती है।

🏵️ विकास :- 

विकास मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों रूप में होता है।

🌼  वृद्धि :-

वृद्धि क्रमिक और श्रृंखलाबद्ध होती है।

🌼 विकास :-

विकास का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है क्योंकि विकास चहुँमुखी रूप से होता है।

🌹 वृद्धि :-

वृद्धि मूल रूप से दिखती है ।

🌹 विकास :-

विकास दृश्य और आदृश्य दोनों रूप से होता है।

💐 वृद्धि :-

वृद्धि विकास को प्रभावित करती हैं।

💐  विकास :-

विकास , वृद्धि को बहुत कम प्रभावित करता है।

🍁 वृद्धि :-

वृद्धि केवल धनात्मक होती है।

 🍁 विकास :-

विकास धनात्मक और ऋणात्मक दोनों रूप में होता है।

💮 वृद्धि :-

वृद्धि केवल आनुवांशिक प्रभाव के कारण होती हैं ।

💮विकास :-

विकास पर आनुवांशिकता और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है।

✍️ Notes by –  जूही श्रीवास्तव ✍️

💐💐  वृद्धि और विकास में अंतर💐💐

 वृद्धि और विकास का विशेष अर्थ या प्रभाव समझने के लिए इनके बीच के अंतर को समझना जरूरी है

  सोरेनसन  के अनुसार:-  सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उनके अंग के आकार और भार में वृद्धि मैं किया जाता है इस वृद्धि को नापा या तौला  जा सकता है विकास का संबंध अभिव्यक्ति से अवश्य होता है पर यह शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करता है

 जैसे:- मांसपेशियों या हड्डियों के आकार में वृद्धि होती है  लेकिन इन परिवर्तन से उनके स्वरूप में भी बदलाव आता है

विकास में वृद्धि का भाव हमेशा ही निहित रहता है समानता शिक्षाविदों के द्वारा वृद्धि और विकास दोनों शब्द का प्रयोग एक ही अर्थ में होता है

 वृद्धि और विकास उसी समय प्रारंभ हो जाता है जब गर्भाधान होता है यह जन्म के बाद भी चलता रहता है

 हरलॉक के अनुसार:- विकास अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है इसके बजाय इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषता और योग्यता प्रकट होती है

        💐 वृद्धि और विकास में अंतर💐

 वृद्धि👉 मनुष्य के आकार भार बनावट में वृद्धि होना

 विकास👉 विकास का तात्पर्य मानसिक शारीरिक संवेगात्मक एवं चारित्रिक आदि परिवर्तनों से होता है

 वृद्धि👉 वृद्धि सीमित होती है और परिपक्वता के स्तर तक होती है

 विकास👉 विकास की कोई सीमा नहीं होती है

 यह जन्म से मृत्यु तक चलता है

 वृद्धि👉 वृद्धि मात्रात्मक होती है

 विकास👉 विकास मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों होता है

 वृद्धि👉 वृद्धि क्रमिक  और  श्रृंखलाबद्ध होती  है

 विकास👉 विकास का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है

वृद्धि 👉स्थूल रूप से दिखती है

 विकास 👉दृश्य और अदृश्य दोनों रूप से होता है

वृद्धि 👉विकास को प्रभावित करती है

विकास👉 अभिवृद्धि को बहुत कम प्रभावित करता है

 वृद्धि👉 केवल धनात्मक होती है

विकास👉 धनात्मक और  ऋण आत्मक दोनों होता है

वृद्धि👉 केवल अनुवांशिक प्रभाव के कारण होती हैं

विकास👉 पर अनुवांशिक और वातावरण दोनों प्रभाव पड़ता है

nots by sapna sahu 🙏🙏🙏🙏🙏

By admin

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