उत्तर बाल्यावस्था  6/7 – 12 वर्ष में

     सामाजिक विकास

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👉इस उम्र में बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेता है और उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

 👉इस उम्र में बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

👉इस उम्र में बच्चों में अपने बड़ों की बात न मानने की शिकायत होती है।

👉इस उम्र में बच्चे बड़ों के द्वारा तय किये गये मानकों को अस्वीकार करते हैं।

👉इस उम्र में लड़के ,  लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

👉इस उम्र में लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित हो जाता है।

👉इस उम्र में बच्चों में सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेज से होता है।

🌻   अतः इस उम्र को ” Gang Age /  गिरोह की अवस्था “भी कहा जाता है।  🌻

🌺 उत्तर बाल्यावस्था में बच्चों पर शैक्षिक प्रभाव 🌺

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👉 इस उम्र में बच्चों को अच्छा / बेहतर विद्यालयी वातावरण देना चाहिए जहां उनको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिल सके।

👉 बच्चों को घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

👉 बच्चों को खेल , सांस्कृतिक गतिविधि , पिकनिक / भ्रमण  आदि में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए।

👉 लड़के , लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए।

👉 बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

👉बच्चों को बड़े – बुजुर्गों से मिलने -जुलने का मौका दिया जाना चाहिए।

👉जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हों या क्रोधित हों  तो , उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिये।

👉 बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिये और उनके साथ अपना विश्वास भी व्यक्त करना चाहिये।

👉 याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य तो , बच्चों को प्रयोग के अवसर दिए जाने चाहिये।

🏵️✍️Notes by –  जूही श्रीवास्तव✍️🏵️

*🌸उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास🌸* *(social development in late childhood)* 

*(6-12 वर्ष)*

*या*

*मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास ( social development in concrete operational period)* 

*(7-11 वर्ष)*

*Date-20 february 2021*

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👉 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है. 

( मतलब पूर्व बाल्यावस्था में बच्चा परिवार एवं पड़ोस तक ही सीमित रहता है लेकिन उत्तर बाल्यावस्था मे बच्चे का लोगों से मेल-जोल का दायरा या उसके सामाजिक परिवेश का दायरा बड़ा हो जाता है वह अब परिवार एवम् पड़ोस के अलावा विद्यालय तथा खेल के मैदान में भी जाने लगता है और वह विद्यालय तथा खेल के मैदान में अन्य साथियों के साथ अंतः क्रिया करता है। 

१. बच्चें समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं। 

( समलैंगिक मतलब लड़का, लड़कों के साथ तथा लड़की, लड़कियों के साथ खेलना व रहना पसंद करती हैं।) 

२. बड़ों की बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती हैं। 

( मतलब बच्चा अपने हिसाब से, उसे जो अच्छा लगता है वही करता है। किसी की बात नहीं मानता.) 

३. बच्चा, बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को अस्वीकार करता है।

(बड़े, बच्चों के हित में जो भी अच्छा फैसला लेते हैं बच्चा उसे ना मानकर अपनी ही मनमानी करने लगता है) 

४. इस उम्र में लड़के, लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं। 

( मतलब यह कि लड़कियों को कुछ कहा जाए तो वे मान लेती हैं लेकिन लड़के उसे ना मानकर उसके खिलाफ जाते है।) 

५. इस उम्र में लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है। 

६. सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है। 

( मतलब बच्चा जब तक पूर्व बाल्यावस्था में था वह परिवार तथा पड़ोस में ही अंत:क्रिया करता था लेकिन अब उसका दायरा बढ़ गया है वह बाहर निकलने लगा है तो समाज से अधिक मेल-जोल होने के कारण उसमें सामाजिक चेतना का विकास होने लगता है एवं वह चीजों को और अधिक समझने लगता है) 

👉 इस अवस्था को  *गैंग एज/ गिरोह की अवस्था* भी कहा जाता है। 

( क्योंकि बच्चा बाहरी वातावरण में जाकर विद्यालय एवं खेल के मैदान में दोस्त बनाने लगता है साथियों के साथ रहने लगता है। ) 

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*🌸 शैक्षिक प्रभाव* 🌸

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👉 उत्तर बाल्यावस्था पर पड़ने वाले शैक्षिक प्रभाव निम्नलिखित है-

१. बच्चे को अच्छा विद्यालयी वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उसकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए। 

२. घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए। 

( ताकि बच्चा बिना डर या झिझक के कुछ नया सीख सके एवं कर सके। ) 

३. खेल, सांस्कृतिक गतिविधि, पिकनिक भ्रमण में में भाग लेने का अवसर दिया जाना चाहिए। 

( ताकि बच्चा नई-नई चीजों को जाने,समझे और उनके प्रति अपनी सोच को विकसित करें।) 

४. लड़के, लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए। 

( लड़का हो या लड़की दोनों के प्रति एक जैसी सोच रखें जिससे उनके नजरिए मे किसी भी प्रकार का कोई मतभेद या द्वन्द्व उत्पन्न ना हो। ) 

५. बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए। 

(  मतलब जिस वक्त शिक्षक/बड़े बच्चों से बात कर रहे हो तो बच्चों को लगना चाहिए कि सबके हित में बात हो रही है, इससे बच्चों में भी लोकतंत्र की भावना का विकास होगा। ) 

६. बच्चों को बड़ों से मिलने-जुलने का मौका देना चाहिए। 

( बड़ों से मिलने- जुलने पर बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास होगा तथा बच्चे मे सही-गलत के बीच अंतर की समझ का विकास होगा।) 

७. जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिए। 

(डांट-फटकार या पिटायी से बच्चा गलत दिशा में भी जा सकता है या उसकी मानसिक स्थिति और भी ज्यादा खराब हो सकती है।) 

८. बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें और उनपे अपना विश्वास व्यक्त करें। 

९. याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य है उन्हें भी अपने अनुसार जीने का हक है। 

१०. बच्चों को प्रयोग के अवसर दिए जाने चाहिए। ताकि वे अपनी खोज प्रवृत्ति का विकास कर सके। 

Notes by Shivee Kumari

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💥  उत्तर बाल्यावस्था ( 6-12 )में बालक का सामाजिक विकास-

🌈💫 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है।

🌈💫 उसका समाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

🌈💫 बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

🌈💫 इस अवस्था मे बात न मानने की शिकायत ज्यादा होती है।

🌈💫 बच्चे बड़ो के तय किये गए मानको को अस्वीकार करते हैं।

🌈💫 लड़के लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

🌈💫 इस अवस्था मे लड़को के समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

🌈💫 इस उम्र में सामाजिक चेतना का विकास अधिक होता है।( गिरोह की अवस्था , स्कूल की अवस्था) 

🌺🌺शैक्षिक प्रभाव 🌺🌺

🌈💫बच्चे को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए । जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका दिया जाए।

🌈💫 घरो औऱ विद्यालयो में सुरक्षा औऱ आज़ादी दी जानी चाहिए।

🌈💫 खेल ,सांस्कृतिक गतिविधि , पिकनिक , भ्रमण आदि में  भी बच्चो को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

🌈💫लड़के और लड़कियों में तुलना नही करना चाहिए इससे बच्चे में हींन भावना पैदा होती है।

🌈💫 बच्चो से बात चीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखिए।

🌈💫 बच्चों को बड़ो से मिलने के मौके दिया जाना चाहिए।

🌈💫 जब बच्चे भावात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति या समझदारी से समझाये।

🌈💫बअच्छे के व्यक्तित्व जा सम्मान करें और उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें।

🌈💫याद रखे बच्चे भी हमारी तरह समाज के सदस्य हैं।

🌈💫 बच्चो को प्रयोग के अवसर प्रदान किये जायें।

📚📚 Notes by POONAM SHARMA🌺🌺🌺🌺

उत्तर बाल्यावस्था/मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बालक का समाजिक इस विकास (mental development in later childhood stage)

⭐इस अवस्था में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है इसलिए इसे ‘School Age’ भी कहते हैं। इस समय बालक सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

⭐ इस अवस्था में बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

⭐ बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती है।

⭐ बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को स्वीकार करता है।

⭐ लड़के लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

⭐ लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

⭐ सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है। इसलिए इस अवस्था को *गिरोह की अवस्था (Gange Age)*कहते हैं।

🌿 शैक्षिक प्रभाव (educational effect)

#️⃣बच्चों को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देना चाहिए।

#️⃣ घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

#️⃣ खेल सांस्कृतिक गतिविधियां पिकनिक भ्रमण में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए।

#️⃣ लड़के लड़कियों की तुलना नहीं करनी चाहिए।

#️⃣ बच्चों से बात करने के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

#️⃣बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका दिया जाना चाहिए।

#️⃣ जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाएं।

#️⃣ बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें जिससे उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें।

#️⃣ याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य हैं।

#️⃣ प्रयोग के अवसर दिया जाए।🔚

        🙏

⭐⭐📝 by – Awadhesh Kumar⭐⭐

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🔆 उत्तर बाल्यावस्था/ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (6-12 वर्ष) में सामाजिक विकास ➖

इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उनके सामाजिक परिवेश का दायरा बड़ा हो जाता है वह अलग-अलग लोगों से मिलता जुलता है और उसमें बहुत सारे  बदलाव आने लगते हैं उसके सामाजिक परिवेश में बहुत बड़ा बदलाव आने लगता है समूह बनाने की प्रवृत्ति रखने लगता है और अपने समलिंगी के साथ अपना समय व्यतीत करता है |

🎯 बच्चा समलैंगिक माहौल में रहता है और समूह बनाना सीखता है  |

🎯इस अवस्था में बच्चे में बात ना मानने की शिकायत सबसे ज्यादा होती है |

🎯 बच्चे बड़ों द्वारा तय किए गए मानकों को अस्वीकार करते हैं उन्हें जिस कार्य को करने के लिए मना किया जाता है उसी कार्य को करने में रुचि लेते हैं |

🎯 लड़के, लड़कियों की तुलना में ज्यादा विद्रोही होने लगते हैं |

🎯  लड़कों का समय अधिक व्यवस्थित होता है  |

🎯 इस उम्र में सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है और इसे गैंग एज या गिरोह की अवस्था भी कहते हैं |

🛑 उत्तर बाल्यावस्था में बौद्धिक प्रभाव ➖

🍀 बच्चों को विद्यालय में अच्छा वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका या अवसर दिया जाए |

🍀  घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए ताकि अपने आप को सहज महसूस कर सकें  |

🍀 बच्चों को खेल ,सांस्कृतिक गतिविधियां ,पिकनिक ,भ्रमण, आदि में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए ताकि उनकी प्रतिभा निखर कर आ सके |

🍀लड़की- लड़कियों में तुलना नहीं करना चाहिए अन्यथा उनमें एक दूसरे के प्रति भेदभाव की भावना का जन्म होने लगता है |

🍀  बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए |

🍀 बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका दिया जाना चाहिए ताकि अपने विचार खुलकर व्यक्त कर सकें |

🍀 जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हों  या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिए |

🍀 बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें |

🍀  याद रखें कि बच्चे भी बड़ों की तरह समाज का सदस्य है अन्यथा वे सामाजिक दायरे से अलग भी हो सकते  हैं उनमें  ईर्ष्या का भाव भी उत्पन्न हो सकता है |

🍀  बच्चों को प्रयोग के अवसर दीजिए और उनको सीखने का अवसर अधिक से अधिक मिलना चाहिए |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास💧

          🌊  (उत्तर बाल्यावस्था)  6-12year 🌊

इस उम्र में बच्चे स्कूल में प्रवेश लेता है, तो उनका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है;

💫बच्चे समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं;

(समलैंगिक- समान लिंग के साथ;लड़का -लड़का के साथ खेलना, वा लड़की-लड़की के साथ खेलना पसंद करती है)

💫बात ना मानने की शिकायत किस उम्र में सबसे ज्यादा होती है।

(उदाहरण- एक 14 साल का बालक घर से क्रिकेट खेलने के लिए ग्राउंड जाता है उसके पिताजी आते ही उसको मना करते हैं, डांटते हैं पढ़ाई करो पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ फिर खेलना लेकिन वो बच्चा फिर चुराकर जाता है,)

💫बच्चे बड़ों के द्वारा किया गया मानको  को अस्वीकार करते हैं।

💫लड़के, लड़कियों की तुलना  में विद्रोही होने लगते है;

💫लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है;

💫सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है; (गिरोह की प्रवृत्ति या टोली की अवस्था इसी अवस्था को कहते हैं;)

💦🔥मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में शैक्षिक प्रभाव🔥

💫बच्चों को विद्यालय में कक्षा वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देना चाहिए;

💫घर और स्कूल में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए;

💫खेल ,सांस्कृतिक गतिविधियों में या पिकनिक ,भ्रमण इत्यादि जगह में भाग लेने का मौका देना चाहिए;

💫लड़के लड़कियों में  वा  लड़कियां लड़कों में तुलना नहीं करनी चाहिए;

💫बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखिए;

(लोकतांत्रिक-लोकतांत्रिक का अर्थ है यहां अन्य तरीकों से नहीं कि पूरा शिष्टाचार का नियम सिखा दिया जाए बल्कि बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने वह उनसे बातचीत के दौरान अपना नजरिया व शब्द भंडार का उचित व सूझबूझ के साथ प्रयोग करने से है जिससे उनका नजरिया भी वा उनका शब्द भंडार भी उचित वा नैतिक हो।)

💫बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका दीजिए; (उससे प्रत्येक उचित वातावरण से रूबरू करवाइए जिससे वह अपने जीवन में आने वाली हर एक समस्या कठिनाइयों से निपटने में सक्षम हो)

💫जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाएं;

💫बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें, उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें;

               याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य होते हैं।

💫बच्चों को प्रयोग के अवसर अवश्य दीजिए।

💌Notes written by- Shikhar Pandey💌

🌲🌲उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास🌲🌲

                         6-11 वर्ष

 💫 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

💫बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती है।

💫 बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को और अस्वीकार करते हैं।

💫 लड़के  लड़कियों की तुलना में  ज्यादा विद्रोही होने लगते हैं।

💫 लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

💫 सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है इस अवस्था बच्चे अपना गैंग बनाकर रहते हैं। इस लिए  इसलिए इस को गैंग, और गिरोह की अवस्था  कहा जाता है।

             🏵️🏵️ शैक्षिक प्रभाव 🏵️🏵️

✍️बच्चों को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका  दिया जाता हो।

✍️ घर और विद्यालय सुरक्षा को आजादी दी जानी चाहिए।

✍️ खेल संस्कृति गतिविधि पिकनिक , भ्रमण में भाग लेने का मौका देना चाहिए।

✍️ लड़कों लड़कों की तुलना नहीं नहीं करनी चाहिए लोकतंत्र व्यवहार करना चाहिए।

✍️ बच्चों के बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

✍️ बच्चों को बड़ों से  मिलने का मौका देना चाहिए,।

✍️जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से सझाना चाहिए।।

✍️ बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिए हमें उनमें अपना विश्वास व्यक्त करना चाहिए।

✍️ याद रखना  कि बच्चों भी समाज के सदस्य हैं।

✍️ बच्चों को अधिक से अधिक प्रयोग करने के हो अवसर देना चाहिए।

 🏵️🏵️📗📗🖊️notes by Laki✍️✍️📓📓

💫 🌸उत्तर बाल्यावस्था/मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बालक का बौद्धिक प्राप्त🌸💫

🌻 इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उनका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

🌻बच्चे समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं वह अपने समूह में नियमों का पालन करते हैं।

🌻 बच्चों में बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे अधिक होती है।

🌻 बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को स्वीकार करते हैं।

🌻 लड़के लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते है।

🌻 लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित होता है।

🌻 सामाजिक चेतना का विकास बहुत अधिक तेज गति से होता है।

🌻 इस अवस्था को “गैग या गिरोह ‘की अवस्था भी कहा जाता है।

💫🌺 शैक्षिक प्रभाव🌺💫

🪐बच्चे को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया गया चाहिए जहां उसकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिल सके।

🪐 घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

🪐 खेल संस्कृति गतिविधियां पिकनिक, भ्रमण ,में भाग लेने का मौका देना दीजिए।

🪐 लड़के लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए।

🪐जब बच्चा भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांत और समझदारी से समझाना चाहिए।

🪐 बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करें।

🪐 याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य होते हैं।

🪐 बच्चों को प्रयोग के अवसर देने चाहिए।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚✍🏻

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में सामाजिक विकास

इस उम्र में बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है उनका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

बच्चे समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

अर्थात लड़के लड़कों के साथ रहते हैं और लड़की लड़कीयों के साथ रहती हैं।

बात ना मानने की शिकायत इस उम्र में सबसे ज्यादा होती है

अर्थात जैसे किसी बच्चे से बोला जाए कि तुम्हें शाम को केवल आधा घंटा खेलना है लेकिन बच्चा आधा घंटे की जगह डेढ़ घंटे तक खेलता है।

बच्चे बड़ों के द्वारा तय किए गए मानकों को अस्वीकार करते हैं।

लड़के ,लड़कियों की तुलना में अधिक विद्रोही होने लगते हैं।

लड़कों के समूह अधिक व्यवस्थित होते हैं

सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेजी से होता है।

इससे बच्चे समूह में रहते हैं उनके समूह को गिरोह कहते हैं

और इस अवस्था को गैंग एज या गिरोह की अवस्था भी कहते हैं।

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था के शैक्षिक  प्रभाव

बच्चों को अच्छा विद्यालय वातावरण दिया जाना चाहिए जहां उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देना चाहिए।

घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

खेल, सांस्कृतिक गतिविधि, पिकनिक, भ्रमण में भाग लेने का मौका देना चाहिए।

लड़के लड़कियों मे तुलना नहीं करनी चाहिए।

बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

बच्चों को बड़ों से मिलने जुलने का मौका देना चाहिए।

जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हो या क्रोधित हो तो उन्हें शांति और समझदारी से समझाएं।

बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करें। उनमें अपना विश्वास व्यक्त करें।

याद रखेगी बच्चे भी समाज के सदस्य हैं

बच्चों को प्रयोग के अवसर देना चाहिए।

Notes by Ravi kushwah

🔆उत्तर बाल्यावस्था या 6/7 – 12 वर्ष में

     सामाजिक विकास➖

💠इस उम्र में बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेता है और उसका सामाजिक परिवेश बड़ा हो जाता है।

💠इस उम्र में बच्चे अपने समलैंगिक माहौल में रहना और समूह बनाना सीखते हैं।

💠इस उम्र में बच्चों में अपने बड़ों की बात न मानने की शिकायत होती है।

💠इस उम्र में बच्चे बड़ों के द्वारा तय किये गये मानकों को अस्वीकार करते हैं।

💠इस उम्र में लड़के ,  लड़कियों की तुलना में विद्रोही होने लगते हैं।

💠इस उम्र में लड़कों का समूह अधिक व्यवस्थित हो जाता है।

💠इस उम्र में बच्चों में सामाजिक चेतना का विकास बहुत तेज से होता है।

 अतः इस उम्र को ” Gang Age /  गिरोह की अवस्था “भी कहा जाता है।  

🔆उत्तर बाल्यावस्था में बच्चों पर शैक्षिक प्रभाव 

💠इस उम्र में बच्चों को अच्छा / बेहतर विद्यालयी वातावरण देना चाहिए जहां उनको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका मिल सके।

💠 बच्चों को घर और विद्यालय में सुरक्षा और आजादी दी जानी चाहिए।

💠 बच्चों को खेल , सांस्कृतिक गतिविधि , पिकनिक / भ्रमण  आदि में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए।

💠लड़के , लड़कियों में तुलना नहीं करनी चाहिए।

💠बच्चों से बातचीत के दौरान अपना दृष्टिकोण लोकतांत्रिक रखना चाहिए।

💠बच्चों को बड़े – बुजुर्गों से मिलने -जुलने का मौका दिया जाना चाहिए।

💠जब बच्चे भावनात्मक रूप से परेशान हों या क्रोधित हों  तो , उन्हें शांति और समझदारी से समझाना चाहिये।

💠 बच्चों के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिये और उनके साथ अपना विश्वास भी व्यक्त करना चाहिये।

💠याद रखें कि बच्चे भी समाज के सदस्य तो , बच्चों को प्रयोग के अवसर दिए जाने चाहिये।

✍️Notes by – Vaishali Mishra

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