व्यक्तिगत भिन्नता के कारण (vyaktik bhinnata ke karan)

व्यक्तिगत भिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं–

1. वंशानुक्रमण

व्यक्तिगत भिन्नता का प्रमुख कारण वंशानुक्रमण है क्योंकि बच्चे को आधे गुण अपनी मां से और आधे गुण अपने पिता से प्राप्त होते हैं, अतः जो गुण उसके माता पिता में होंगे वही गुण बच्चे में आयेंगे। माता-पिता का प्रभाव न केवल बालकों की शारीरिक सरंचना पर पड़ता है बल्कि उसके मानसिक गुणों पर भी अपने माता पिता का प्रभाव होता है। अक्सर देखा गया है कि तीव्र बुद्धि वाले माता-पिता की सन्तान तीव्र बुद्धि वाली होती है और मन्द बुद्धि वाले माता-पिता की सन्तान मन्द बुद्धि होती है। मन के अनुसार,” हमारा सभी का जीवन एक ही प्रकार से प्रारम्भ होता है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होत जाते है हम में अन्तर आता जाता है। इस अन्तर का कारण हमारा वंशानुक्रमण ही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि केवल वंशानुक्रमण ही व्यक्तिगत भिन्नताओं का एक कारण नहीं है। यदि ऐसा होता तो एक माता-पिता की सभी सन्ताने समान होती जबकि एक माता-पिता की सभी सन्तानों में भी भिन्नतायें देखने को मिलती है। फिर भी यह सत्य है कि वशानुक्रमण शारीरिक तथा मानसिक विभिन्नताओं को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

2. वातावरण 

वुडवर्थ के मतानुसार,” व्यक्ति वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण की उपज है।” इस अर्थ में जो व्यक्तिगत भिन्नतायें हम व्यक्ति में देखते है उसका कारण वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण की उपज हैं। इस अर्थ में जो व्यक्तिगत भिन्नतायें हम व्यक्ति में देखते है उसका कारण वंशानुक्रमण तो है ही साथ-साथ वातावरण भी इसके लिए उत्तरदायी है। बालक के चारों ओर का वातावरण उसे प्रभावित करता है और अपने अनुकूल ढ़ालने का प्रयास करता है। बालक के विकास पर भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है और वातावरण की विभिन्नतायें बालक में भिन्नताओं को जन्म देती हैं। 

3. यौन भेद  

स्त्री और पुरूष की शारीरिक संरचना में पर्याप्त अन्तर है और इस अन्तर के कारण ही दोनों की कार्य क्षमता भी भिन्न-भिन्न होती है। शारीरिक भिन्नताओं के कारण बालक बालिकाओं के शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा परिपक्वता शीघ्र आती है। बालकों में बालिकाओं की अपेक्षा शारीरिक कार्य करने की क्षमता अधिक होती हैं और घरेलू कार्य करने में बालिकायें बालकों की तुलना में अधिक दक्ष एवं कुशल होती हैं। बालिकाओं की तुलना में बालक अधिक साहसी होते है। यह सब भिन्नतायें वास्तव में उनके लिंग भेद का परिणाम हैं। 

4. जाति एवं प्रजाति 

वंशानुक्रमण के माध्यम से एक जाति या प्रजाति अपने गुणों को अपनी आने वाली सन्तानों को हस्तान्तरिक करती रहती है। परिणामस्वरूप उस जाति या प्रजाति की कुछ विशिष्ट विशेषतायें उस जाति या प्रजाति में बनी रहती हैं जो इस जाति या प्रजाति को किसी अन्य जाति या प्रजाति से भिन्न करती हैं। उदाहरण के लिए, पहाड़ी जातियां व प्रजातियां मैदानी जातियों एवं प्रजातियों की तुलना में अधिक परिश्रमी होती हैं। इसी प्रकार नीग्रो जाति के लोग श्वेत जाति के लोगों से अधिक कुशल एवं परिश्रमी होते है। भारत में क्षत्रिय जाति अधिक युद्ध निपुण जबकि वैश्य जाति व्यापार में अधिक निपुण होती है। 

5. आयु 

आयु के साथ-साथ बालकों के मानसिक तथा शारीरिक विकास में भिन्नता स्पष्ट देखी जा सकती है। जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे उसकी बुद्धि परिपक्व होती जाती है । यही करण है कि बालक और वृद्ध व्यक्ति की क्रियाओं में स्पष्ट अन्तर  को अधिक देखा जा सकता है।

6. आर्थिक दशा 

निर्धन तथा अमीर व्यक्तियों में भी अन्तर देखने को मिलता है। निर्धन व्यक्तियों का निम्न आर्थिक परिस्थितियों के कारण समुचित विकास नहीं हो पाता, जिसकी वजह से वह जीवन के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं। उनमें आत्म विश्वास की कमी रहती है। इसके विपरीत अमीर व्यक्तियों के बच्चों में आत्म-विश्वास अधिक रहता है जिसके कारण वह जीवन के क्षेत्र में आगे निकल जाते है  निर्धन और अमीर परिवार के बच्चों को आसानी से पहचाना जा सकता है। 

7. प्रशिक्षण 

प्रशिक्षण भी व्यक्तिगत भिन्नता का एक प्रमुख कारण है। एक ही आयु तथा समान बुद्धि के बालकों में भी अन्तर देखने को मिलता है। यह अन्तर उनको मिलने वाले प्रशिक्षण का परिणाम है। कम बुद्धि वाला बालक भी प्रशिक्षण के माध्यम से तीव्र बुद्धि वाले बालक की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ हो सकता है। शारीरिक प्रशिक्षण के द्वारा व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं को विकसित किया जा सकता है।

वैयक्तिक विभिन्नता के प्रकार (vyaktik bhinnata ke prakar)

भिन्न व्यक्तियों में जो अंतर पाया जाता हैं, वह मुख्यतः निम्न प्रकार का होता हैं– 

1. बुद्धि स्तर पर आधारित विभिन्नता

सभी व्यक्ति एक-सी बुद्धि वाले नहीं होते, कुछ प्रतिभाशाली होते हैं तथा कुछ पिछड़े हुये। बुद्धि परीक्षणों के आधार पर हम यह पता लगा सकते हैं कि अमुक बालक या व्यक्ति प्रतिभाशाली है या तीव्र बुद्धि बालक है या सामान्य है या मंद बुद्धि अथवा जड़ बुद्धि बालक हैं।

2. शारीरिक विकास में विभिन्नता

सभी व्यक्तियों का शारीरिक विकास समान रूप से नहीं होता। कुछ व्यक्ति मोटे होते हैं तो कुछ पतले, कुछ लम्बे होते हैं तो कुछ नाटे, किसी का रंग गोरा होता है किसी का साँवला, तो किसी का बिल्कुल काला, कोई बहुत सुंदर तथा आकर्षक होता है तो कोई कुरूप और भद्दा। कोई सबल होता है तो कोई निर्बल। इस तरह व्यक्तियों में शारीरिक दृष्टि से विभिन्नतायें होती हैं। शारीरिक विभिन्नता प्रायः जन्म से ही होती हैं, जैसे– किसी व्यक्ति के छ: अंगुलियों का होना, नाक का चपटा या लम्बा होना, ओठों का बड़ा होना आदि। पर कभी-कभी यह प्राप्त की जाती है जैसे– दुर्घटना से हाथ या पैर का टूट जाना, मुँह का विकृत हो जाना आदि आदि। 

3. संवेगात्मक विभिन्नता 

भिन्न-भिन्न बालकों या व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न तरह के संवेगों का विकास होता है। कुछ व्यक्ति सदैव प्रसन्न रहते हैं, कुछ सुदैव उदास रहते हैं। कुछ अत्यधिक क्रोधी तथा चिडचिड़े होते हैं, कुछ शांत एवं गंभीर होते हैं, कुछ में बहुत भावुकता होती है तथा कुछ में कम। कुछ संवेगात्मक दृष्टि से स्थिर होते हैं उनका व्यवहार सामान्य होता जबकि कुछ व्यक्तियों में संवेगात्मक अस्थिरता पाई जाती है। उनका व्यवहार तनावपूर्ण रहता तथा वे व्याकुल से रहते हैं। 

4. गतिवाही योग्यता में विभिन्नता

विभिन्न बालकों तथा व्यक्तियों में गतिवाही योग्यता में विभिन्नता दिखाई देती है। कुछ बालकों में गति-कौशल का विकास शीघ्रता से हो जाता है एवं कुछ में देर से होता है। एक ही आयु के कुछ बालक गतिवाही कार्य शीघ्रता तथा कुशलता से करने में सफल हो जाते हैं जबकि दूसरे उन कार्यों को करने में असफल रहते हैं। 

5. रुचियों में विभिन्नता 

प्राय : प्रत्येक व्यक्ति की रुचियाँ दूसरे व्यक्तियों से भिन्न होती हैं किसी को पढ़ने में अधिक रुचि होती है तो किसी की खेलने में। किसी की रुचि अच्छे वस्त्र पहनने की होती है तो किसी को अच्छा भोजन करने में। किसी की संगीत में रुचि होती है तो किसी की नाटक अथवा चलचित्र देखने में। पारिवारिक पृष्ठ-भूमि और विकास के स्तर आदि कई कारक बालक की रुचियों को प्रभावित करते हैं। 

6. सीखने में विभिन्नता

सीखने के संबंध में बालकों में बड़ा अंतर देखा जाता है। विभिन्न आयु के बालकों में ही नहीं, समान आयु के बालकों में भी सीखने की गति, सीखने की रुचि तथा सीखने की तत्परता में अंतर पाया जाता है। कुछ बालक सीखने में बड़े कुशल होते है तो कुछ देर से सीख पाते हैं।  वे किसी चीज को बहुत शीघ्रता से सीख लेते हैं जबकि कुछ बालक उसी चीज को काफी देर में सीख पाते हैं।

7. विशिष्ट योग्यताओं में विभिन्नता  

विशिष्ट योग्यताओं की दृष्टि से व्यक्तियों में विभिन्नतायें पाई जाती हैं। कोई बालक अंग्रेजी में अच्छा होता है, कोई गणित अथवा हिन्दी। कुछ बालक वाचन में श्रेष्ठ होते है, कुछ लेखन में अच्छे होते हैं। एक तो सभी व्यक्तियों में विशिष्ट योग्यतायें नहीं पाई जाती दूसरे जिन में पाई जाती हैं उनमें इनकी मात्रा में अंतर होता है। जैसे सभी खिलाड़ी समान स्तर के नहीं होते। 

8. सामाजिक विभिन्नता 

बालक तथा बालिकाओं दोनों के सामाजिक विकास में अंतर पाया जाता है। किसी बालक में सामाजिक परिपक्वता शीघ्र आ जाती है और किसी में बहुत दर में आती है। सामाजिक गुणों की दृष्टि से भी बालकों में अंतर होता है। कुछ बालकों में नेतृत्व के गुण होते हैं, जबकि कुछ में अनुकरण की प्रधानता होती है। कुछ बहिर्मुखी होते हैं तो कुछ अंतर्मुखी। बालकों के लड़ने में और मित्र बनाने में भी विभिन्नता पाई जाती है।

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