▪️शिक्षण कौशल कई तरीकों से या अलग-अलग रूपों में या भिन्न-भिन्न रूपों में किया जाता है यदि शिक्षण की तरह का होगा तो वह ना ही प्रभावी या असरदार होगा ।
▪️हम सभी प्राणी में व्यक्तिक भिन्नता पाई जाती है इसमें प्रत्येक प्राणी प्रत्येक कार्य को अलग-अलग तरीके से करते हैं इसीलिए इन व्यक्तिक भिन्नता को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को विभिन्न रूप से या अलग-अलग रूप में शिक्षण कौशल को अपनाना चाहिए।
▪️जिसमे भिन्न-भिन्न तरीकों से समझा जा सके इसीलिए शिक्षण कौशलों को कई प्रकारों में बांटा गया है जिसमें से अलग-अलग प्रकार के बच्चे जैसे कुछ समस्यात्मक, कुछ प्रतिभाशाली कुछ विशिष्ट इत्यादि इन सभी विभिन्नताओ को ध्यान में रखना उतना ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना कि शिक्षक के लिए किसी विषय का ज्ञान।
❇️अलग अलग तरीके के शिक्षण कौशल क्यों अपनाना आवश्यक है? ➖
▪️शिक्षक को मात्र विषय का ज्ञान ही नहीं बल्कि इसके साथ-साथ शिक्षण करने का तरीका या विधि भी जानना तथा उसे अपनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
▪️शिक्षकों अपनी कक्षा कक्ष में शिक्षा का एक ऐसा वातावरण या माहौल तैयार करके रखना होता है जिसमें सभी छात्र की पूर्ण रूप से रूचि हो तथा सभी का ध्यान शिक्षक के कार्यों की ओर आकर्षित हो तथा वह शिक्षक के कार्यों से प्रभावित हो ।
साथ ही साथ शिक्षक द्वारा बच्चों को प्रेरित किया जाए किसी भी व्यक्ति में प्रेरणा आवश्यकता के कारण उत्पन्न होती है लेकिन केवल आवश्यकता मात्र से ही प्रेरणा को उत्पन्न किया जाए यह जरूरी नहीं बल्कि यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो भी कार्य किया जा रहा है उसका तरीका कितना प्रभावी या असरदार या रुचि पूर्ण है।
क्योंकि यदि कार्य प्रभावित असरदार या रुचि पूर्ण होगा तभी हम उसके लिए अग्रसर रूप से प्रेरित रहेंगे।
▪️शिक्षण कौशल को कई प्रकारों में बांटा गया है जो कि निम्न अनुसार है।
⚜️1 खोज परक कौशल :-
▪️खोज प्रकार के प्रश्न पूछकर शिक्षक छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और साथ ही उन्हें प्रेरित कर सकता है।
▪️यदि बच्चे से खोजपरक या अनुसंधान या अन्वेषण प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं तो वह निश्चित ही मानसिक रूप से उस पर चिंतन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
▪️शिक्षक द्वारा एक ऐसा माहौल या वातावरण क्रिएट किया जाना चाहिए जिसमें बच्चे की पूर्ण रूप से सक्रिय भागीदारी रहे तथा किसी कारणवश कक्षा ना होने पर भी वह इतने मजबूर और बेसब्र या सकारात्मक रूप से उस कक्षा का इंतजार करें और उन्हें लगे कि कक्षा कब होगी ?
▪️छात्रों में रुचि और जिज्ञासा को उत्पन्न करने का सबसे उत्तम तरीका छात्र के पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को जोड़ देना है।
▪️पूर्व ज्ञान जो हम दैनिक जीवन से जोड़कर या जो पूर्व में घटित हो चुका है उससे रिलेट करके या जोड़कर बच्चे को नवीन ज्ञान जो कि शिक्षक द्वारा दिया जाना है उसे समझाया या पढ़ाया जाए तो बच्चे में रुचि और जिज्ञासा की भावना उत्पन्न होती है।
▪️क्योंकि जब हम किसी चीज के बारे में पूर्व में जानते हैं तो उस चीज या कार्य या विषय में हमारी विशेष रूचि और जिज्ञासा उत्पन्न रहती है।
▪️जिस भी विषय को समझाना है उसे विधार्थी के पूर्व ज्ञान से जोड़ने के फल स्वरुप विद्यार्थी किसी भी विषय पर चिंतन करने लगते हैं और उस पर अनेक प्रकार से सोचने पर मजबूर हो जाते हैं।
✨ खोज परक प्रश्न कौशल के घटक :-
▪️यहां घटक से तात्पर्य है कि जिसकी मदद से इस खोज प्रश्न कौशल को पूरा किया जा सके।
🔹यह घटक निम्नानुसार है।
🌀 1 संकेत देना
🌀2 विस्तृत सूचना प्राप्ति
🌀3 पुनः केंद्रीकरण
🌀 4 पुनः प्रेषण
🌀 5 आलोचनात्मक सजगता
🌺 1 संकेत देना :-
▪️कक्षा में विद्यार्थी जिस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थता प्रकट करते हैं तो उनसे शिक्षक द्वारा ऐसे प्रश्न पूछे जाए जिसमें पहले प्रश्न का हल ढूंढने में सहायता मिले।
▪️बच्चे को प्रश्न से संबंधित किसी प्रकार का संकेत या हिंट या क्लू या इशारा दिया जा सके जिससे वह उसकी सहायता से इस प्रश्न का उचित व सही उत्तर दे पाए।
🌺 विस्तृत सूचना प्राप्ति :-
▪️विद्यार्थी कक्षा कक्ष में किसी प्रश्न का पूर्ण रूप से उत्तर नहीं दे पाता है और कभी-कभी कुछ हद तक सही होता है तब इस स्थिति में सही उत्तर प्राप्त करने के लिए शिक्षक को इस प्रकार के प्रश्न कर सकता है कि उत्तर तो छात्र दिया बता दिया जाए लेकिन उसका वर्णन विश्लेषित रूप से या विस्तृत रूप से दिया जाए।
▪️अर्थात उत्तर सही है लेकिन विस्तृत नहीं है तो बच्चों को विस्तृत रूप से समझाने के लिए शिक्षक द्वारा प्रेरित किया जाए।
▪️जब शिक्षक द्वारा प्रेरित किया जाता है तो छात्र अपने दिमाग के डेटाबेस या अपने दिमाग में संरक्षित डांटा को खंगालते हैं या उसका विश्लेषण कर कर उस पर चिंतन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
🌺 पुनः केंद्रीकरण:-
▪️कई बार कक्षा कक्ष में छात्र द्वारा किसी भी प्रश्न का उत्तर विस्तृत रूप से दे देने पर भी उनमें गहराई नहीं होती है तथा शिक्षण पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं होते है।
▪️इस समय शिक्षा विद्यार्थियों का ध्यान अपनी परिस्थिति की ओर आकर्षित कर सकते हैं जिससे वैसी समस्या पैदा हो समस्या से तात्पर्य जो हम सीखना चाहते हैं या अधिगम करना चाहते हैं उसके फल स्वरुप अधिगम का स्थानांतरण संभव हो सके।
▪️अर्थात अगर शिक्षक बच्चे की उत्तर से संतुष्ट ना हो तो अपनी परिस्थिति की ओर आकर्षित करें जिसमें वैसी समस्या पैदा हो ताकि अधिगम स्थानांतरण हो सके।
🌺 4 पुनः प्रेषण :-
▪️शिक्षक कक्षा कक्ष में एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर या दोहरा कर छात्र द्वारा अलग-अलग प्रकार के उत्तर को प्राप्त करने की कोशिश करता है।
▪️जिससे शिक्षक हर बार यह देखता है कि किस बार में कुछ नया है ,कुछ बेहतर है। जब बच्चे को किसी चीज पर या विषय पर बार-बार प्रश्न पूछा जाता है तो बच्चे उस पर अपना चिंतन व तर्क लगाते हैं।
▪️जब भी बच्चे किसी चीज को या विषय पर सोचेंगे तब वह अपने आधारित सोच से बाहर निकलकर कुछ अलग तरीके से या नए तरीके से सोचते व चिंतन करते हैं तथा उस पर अपना तर्क लगाते हैं।
▪️हमारे चेतन मन में जो भी चीजें होती हैं हम उसी के हिसाब से मतलब चेतन मन के हिसाब से चीजों का हल निकालते हैं लेकिन जब मुश्किल है या परेशानी या कोई ड्रॉबैक सामने आते हैं तो हम उस परेशानी या मुश्किल या ड्रॉबैक के प्रेशर या दबाब के साथ उस विषय पर सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप बच्चों की चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति को विकसित किया जा सकता है।
▪️तथा साथ ही साथ शिक्षक द्वारा बच्चों की अधिक से अधिक प्रतिभागिता को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं।
▪️जब बच्चे की प्रतिभागिता रहती है तो वह एक ही प्रश्न के लिए वह सभी चीजों को देखता है और उस पर अपना दिमाग लगाता है और उचित तरीके से विचार करके उसका विश्लेषण करते हुए उसका उत्तर दे देता है।
▪️अर्थात शिक्षक एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर उनमें चिंतन और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं जिससे विद्यार्थियों की प्रतिभागिता को प्रोत्साहन मिलता है।
🌺 5 आलोचनात्मक सजगता:-
▪️क्यों? कैसे ?क्यों नहीं? इन सभी बातों पर बच्चे को अपनी टिप्पणी करने के लिए बोला जाता है।
▪️बच्चे से पूछा जाए कि क्यों ऐसा लगता है? कैसे यह ऐसे हो सकता है ? और क्यों नहीं हो सकता इस तरह के प्रश्न पूछे जाए।
▪️ बच्चे इन सभी बातों का उत्तर अपने किसी ना किसी सकारात्मक सोच या मानसिक स्थिति के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयुक्त कर ता है।
▪️आलोचनात्मक सजगता से यह पता किया जा सकता है कि किसी भी विषय में छात्र की कितनी परिपक्वता है और उस परिपक्वता को धीरे धीरे किस ओर या किस प्रकार से विकसित किया जा सकता है।
▪️अर्थात बच्चों में क्यों? कैसे? इन बातों से प्रश्न पूछने से विश्लेषण की क्षमता बढ़ती है।
✍️ Notes By-'Vaishali Mishra'
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📛 शिक्षण कौशल के प्रकार
🎾 खोजक प्रश्न कौशल➖
खोजक प्रश्न कौशल को अन्वेषण, खोज या अनुसंधान विधि के नाम से भी जाना जाता है |
इसमें शिक्षक बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछता है जिसमें बच्चों को खोज करना पड़ता है या उनके मन या मस्तिष्क में अमूर्त प्रकार से कार्य करने की शक्ति का विकास होता है |
खोजक प्रश्न कौशल के माध्यम से शिक्षक छात्रों के ध्यान को अपनी ओरआकर्षित कर सकते हैं और बच्चों को प्रेरित कर सकते हैं |
बच्चों में रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए बच्चे के पूर्व ज्ञान को नए ज्ञान से जोड़ सकते हैं और उनमें रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न की जा सकती है यदि ऐसा हुआ तो विद्यार्थी चिंतन करने लगते हैं और अनेक प्रकार से सोचने पर मजबूर हो जाती है अर्थात उनके मन में अमूर्त रूप से तर्क करने की शक्ति का विकास हो जाता है |
🎯 खोजक प्रश्न कौशल के घटक ➖
💠 संकेत देना➖
कक्षा में विद्यार्थी जिन प्रश्नों को हल करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करता है या प्रश्न को करने में विद्यार्थी चिंतन या तर्क नहीं कर पाता है |
तो ऐसी स्थिति में शिक्षक बच्चों से ऐसे प्रश्न पूछे जिससे बच्चे को अपने पहले प्रश्न का हल खोजने में सहायता मिले |
ऐसी स्थिति में बच्चों के मन में अपने स्वयं के प्रति दृढ़ निश्चय और शिक्षक के प्रति एक विश्वास उत्पन्न होता है |
💠 विस्तृत सूचना प्राप्ति ➖
शिक्षक कक्षा में बच्चों से यदि प्रश्न करता है और बच्चे उस प्रश्न को हल नहीं कर पाते हैं तो शिक्षक बच्चों को संकेत देते हुए यदि बच्चों से कहता है कि आपका उत्तर सही है लेकिन विस्तृत नहीं है और बच्चे को विस्तृत रूप से समझाने के लिए प्रेरित करते हैं |
तब बच्चे अमूर्त चिंतन के माध्यम से प्रश्न का विस्तारित रूप खोजने में अपनी सोच/ तर्क का प्रयोग करते हैं उस प्रश्न को अपने अनुसार अपने स्तर पर खोजने का प्रयास करते हैं और प्रश्न का विस्तारित रूप प्राप्त करते है |
💠 पुनः केन्द्रीकरणं ➖
यदि शिक्षक कक्षा में बच्चों से प्रश्न करता है और बच्चे प्रश्न का उत्तर देते हैं लेकिन शिक्षक बच्चे के उत्तर से संतुष्ट नहीं हो पाता है तो ऐसी स्थिति में शिक्षक बच्चों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए कक्षा में ऐसा माहौल तैयार करता है , बच्चों के समक्ष ऐसी समस्या या परिस्थिति उत्पन्न करति है ताकि बच्चे प्रश्न की खोज कर सकें ,चिंतन कर सके विचार विमर्श कर सकें अर्थात कक्षा में एक्टिव हो सकें |
तो ऐसी परिस्थिति में यदि शिक्षक बच्चों के समक्ष ऐसी समस्या उत्पन्न करता है जिससे कि बच्चे समस्या का हल खोजने में चिंतन करते हैं अपनी अमूर्त शक्ति का प्रयोग करते हैं तो उनकी अधिगम का स्थानांतरण होता है |
अर्थात शिक्षक को बच्चों के समक्ष ऐसी समस्या उत्पन्न करना चाहिए जिससे कि उनके अधिगम का स्थानांतरण हो सके |
💠 पुनः प्रेषण ➖
यदि शिक्षक बच्चों से एक ही प्रश्न को बार बार नए तरीके से पूछ कर उन्हें चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं जिससे विद्यार्थियों की प्रतिभागिता, सृजनात्मकता या रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है या उनकी प्रतिभागिता को प्रोत्साहित करते हैं तो बच्चों का तर्क और अमूर्त चिंतन होता है |
💠 आलोचनात्मक चिंतन ➖
आलोचनात्मक चिंतन के माध्यम से बच्चों में शिक्षक क्यों, कैसे या अन्य प्रकार के प्रश्नों को बढ़ावा देकर वह आलोचनात्मक सजगता को बढ़ावा दे सकता है अर्थात प्रश्न के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए उन प्रश्नों को हल करने में शिक्षक बच्चों की मदद करता है जिससे शिक्षक उनमें आलोचनात्मक सजगता को विकसित करता है |
नोट्स बाय➖ रश्मि सावले
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शिक्षण कौशल के प्रकार
शिक्षण कौशल कई प्रकार के होते हैं
शिक्षण कौशल कई प्रकार के क्यों होते हैं?🤔🤔
एक शिक्षक को बच्चों को पढ़ाते समय दो बातें आवश्यक हैं पहली कि वह जिस विषय वस्तु को पढ़ा रहा है उसका शिक्षक को ज्ञान है या नहीं
दूसरी कि वह विषय वस्तु को जिस तरह पढ़ाता है बच्चों को किस तरह सिखाता है उसका सिखाने का तरीका क्या है।
अर्थात क्या पढ़ाना है और कैसे पढ़ाना है?
वैयक्तिक विभिन्नता के कारण प्रत्येक बच्चा अलग-अलग प्रकार से सीखता है। इसीलिए शिक्षक को पढ़ाते समय अलग-अलग प्रकार के तरीकों का उपयोग करना होता है ताकि सभी बच्चे को समझ में आए और सभी सीख सकें।
इसी कारण शिक्षण कौशल अनेक प्रकार के होते हैं।
- खोजक प्रश्न कौशल- इस कौशल में अध्यापक खोजक प्रकार के प्रश्न पूछ कर छात्रों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं।
अध्यापक छात्रों को प्रेरित कर सकता है।
इस कौशल के द्वारा छात्रों में रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए उनके पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को जोड़ा जाता है।
जब बच्चों से अनेक प्रकार के खोजक प्रश्न पूछते हैं तो बच्चे उनका जवाब देने के लिए विभिन्न प्रकार से चिंतन करते हैं और वह अनेक प्रकार से सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
खोजक प्रश्न कौशल के घटक
- संकेत देना- जब कक्षा में विद्यार्थी जिस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थता जताते हैं तो शिक्षक द्वारा ऐसे प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिससे कि पहले प्रश्न का हल ढूंढने में मदद मिले।
अर्थात् संकेत देने को हम अपनी भाषा में हिंट देना भी बोल सकते हैं।
जैसे बचपन में अध्यापक हमसे पूछते थे कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का नाम क्या है तो हम बताते थे कि डॉ राजेंद्र प्रसाद
लेकिन उसी समय हमारे अध्यापक हमसे दूसरा प्रश्न पूछते थे किस देश के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे तब हम जवाब देते कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इस प्रकार हमें देश के प्रथम प्रधानमंत्री का नाम पंडित जवाहरलाल नेहरू याद आ जाता था।
- विस्तृत सूचना प्राप्ति- अध्यापक द्वारा पूछे गए प्रश्न का विद्यार्थी द्वारा प्रश्न का उत्तर सही दिया गया है लेकिन विस्तार से नहीं बताया गया है।
तो बच्चे को विस्तृत उत्तर देने के लिए प्रेरित करना चाहिए। - पुनः केंद्रीकरण- अगर शिक्षक बच्चे के उत्तर से संतुष्ट नहीं हो तो शिक्षक द्वारा वैसी परिस्थिति उत्पन्न करके बच्चे का ध्यान आकर्षित करें जिससे वैसी समस्या पैदा होगी और बच्चा दोबारा से चिंतन करके उसका उत्तर संगठित रूप से दे और बच्चे में अधिगम का स्थानांतरण हो सके।
- पुनः प्रेषण- एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर उनमें चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं।
अर्थात एक ही प्रश्न के अलग-अलग प्रकार से उत्तर पूछना।
इससे विद्यार्थी की प्रतियोगिता को प्रोत्साहन मिलता है। - आलोचनात्मक सजगता- आलोचना में हम किसी भी तथ्य के गुण और दोष के बारे में चर्चा करते हैं जानकारी प्राप्त करते हैं
इससे बालकों में विश्लेषण क्षमता बढ़ती है।
Notes by Ravi kushwah
शिक्षण कौशल के प्रकार
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1. खोजक प्रश्न कौशल /अनुशीलन प्रश्न कौशल/खोज विधि/ अन्वेषण विधि
(Proving /discovery /explore question skill)
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जब शिक्षक शिक्षार्थियों से पाठ्यवस्तु से संबंधित कोई प्रश्न पूछते हैं और शिक्षार्थी प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ रहते हैं तो सही उत्तर प्राप्त करने के लिए शिक्षक जिन प्रश्नों की सहायता लेते हैं उन्हें खोजक प्रश्न कहते हैं।
अर्थात्
➡️ शिक्षक इस प्रकार के प्रश्नों को पूछ कर छात्रों का ध्यान कक्षा कक्ष में आकर्षित कर सकते हैं।
➡️ शिक्षक को चाहिए कि छात्रों को प्रश्नों के उत्तर को ढूंढने के लिए प्रेरित करें।
➡️ इस प्रकार के प्रश्न से छात्रों में रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए उसके पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को जोड़ देते हैं। जिससे विद्यार्थी चिंतन करने लगते हैं और अनेक प्रकार से सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और बच्चों में सृजनात्मकता/रचनात्मकता आती हैं।
उदाहरण,
- शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब शिक्षार्थियों द्वारा देने पर शिक्षक को चाहिए कि क्यों, कैसे आदि प्रश्न पूछे ( जैसे ऐसा क्यों हुआ? , यदि ऐसा नहीं होता तो क्या होता?)
- यदि आप अपने उत्तर से संतुष्ट हैं तो उसकी पुष्टि/ सत्यापन कीजिए।
खोजक प्रश्न कौशल के घटक
(Component of proving question skill)
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1. संकेत देना/अनुमोदन करना
जब छात्र, अध्यापक द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थता प्रकट करता है तो शिक्षक को छात्रों का आत्मविश्वास बनाए रखने एवं उनकी सहायता के लिए कुछ संकेत देता है अर्थात् इस प्रश्न का थोड़ा सा उत्तर बताते हुए छात्रों को प्रेरित करते हैं कि वह उस उत्तर को पूरा बताएं।
2. विस्तृत/अधिक सूचना प्राप्ति
जब छात्र, अध्यापक के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का अपूर्ण या आंशिक रूप से उत्तर देता है अध्यापक को चाहिए कि छात्र से कहें उत्तर सही है लेकिन विस्तृत नहीं है और प्रश्न के उत्तर को पूर्ण करने के लिए प्रेरित करें।
3. पुनः केंद्रीकरण
अगर शिक्षक बच्चों के उत्तर से संतुष्ट नहीं हो तो उस परिस्थिति की ओर आकर्षित करें जिससे वैसी समस्या पैदा हो ताकि अधिगम स्थानांतरण हो सके।
4. पुनः प्रेषण
शिक्षक, छात्रों से एक ही प्रश्न को बार-बार पूछ कर उनमें चिंतन और तर्क शक्ति का विकास करने की कोशिश करते हैं।अर्थात एक ही प्रश्न के अलग-अलग उत्तर पूछना।
5. आलोचनात्मक सजगता
जब छात्रों के द्वारा सही उत्तर प्राप्त होने लगे तो शिक्षक को चाहिए कि क्यों, कैसे आदि प्रश्न पूछ कर छात्रों की सजगता का विकास करे। इससे छात्रों की चिंतन शक्ति /तर्कशक्ति का विकास होता है और उनमें आलोचनात्मक सजगता विकसित होती है।
Notes- by Shreya Rai ✍️🙏