National Policy on Education, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

शिक्षा आयोग (1964-66) में भारतीय शिक्षा के प्रति के स्तर को सुधारने, उसका विकास तथा भारती करण करने तथा छात्रों के चारित्रिक विकास के लिए बड़े उपयोगी सुझाव दिए | इसमें शिक्षा को राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक तथा औद्योगिक आवश्यकता के अनुरूप बनाने की पूरी-पूरी कोशिश की जुलाई 1968 में सर्वप्रथम भारत के राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई, परंतु शिक्षा नीति के प्रस्तावों एवं प्रावधानों को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका |

जनवरी सन 1985 में देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने नए राष्ट्रीय शिक्षा नीति विकसित करके उसे लागू करने की घोषणा की, जिसमें शिक्षा व्यवस्था का विश्लेषण कर समीक्षा की गई |

इस समस्या विश्लेषण के आधार पर शिक्षा की चुनौती- ‘A policy perspective’ प्रमाण पत्र प्रकाशित किया गया | इस सवाल पत्र के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रस्तावित प्रारूप को अंतिम रूप प्रदान करने के लिए केंद्रीय शिक्षा सलाहकार समिति मंडल के सामने प्रस्तुत किया गया तथा मई सन 1986 संसद द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के रूप में स्वीकृति प्रदान कर दी गई | इसमें यह स्पष्ट किया गया कि राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली से अभिप्राय एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था से है, जिसके अंतर्गत जाति, धर्म, लिंग एवं निवास के विभेदीकरण के बिना एक निश्चित स्तर तक सभी को तुलनात्मक गुणवत्ता के साथ शिक्षा प्रदान की जा सके |

राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 1986 में नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई ताकि शिक्षा में व्याप्त कमियों को दूर किया जा सके तथा देश की वर्तमान और भावी राष्ट्रीय आवश्यकता ओं के अनुसार शिक्षा का स्वरूप तैयार किया जा सके | इस नीति के अनुसार शिक्षा को राष्ट्रीय उद्देश्य और राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अग्रसर किया गया, ताकि शिक्षा के लोग व्यतिकरण के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके |

राष्ट्रीय आवश्यकताएं- राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का मूल आधार भारतीय संविधान में वर्णित स्वतंत्रता समानता धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतांत्रिक समाज के आदेशों को माना गया है | शिक्षा प्रणाली में बिना किसी जाति, पाति, धर्म, स्थान या लिंग भेद के प्रत्येक बालक के लिए एक निश्चित स्तर तक तुलनीय कोटी की शिक्षा का प्रावधान करने का निश्चय दोहराया गया है |

दुर्भाग्य से वर्तमान शिक्षा सामान्य जनजीवन उसकी आवश्यकताएं और आकांक्षाओं से सर्वथा असमबंध रही है | इसी कारण उसकी अंतर्वस्तु (Contents) राष्ट्रीय विकास के उद्देश्य और हितों के अनुकूल नहीं है|
अतः उन सब बातों पर विचार करके यह निर्णय लिया गया कि शिक्षा राष्ट्रीय विकास की साधीका ना सके| इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षा को जनता के जीवन से, जनता की आवश्यकताओं से और जनता की आकांक्षाओं से संयुक्त किया जाए ताकि शिक्षा उन सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों का शक्तिशाली वाहन बन सके, जो राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है| इस प्रयोजन से शिक्षा का नियोजन इस प्रकार किया जाए कि वह-

  1. उत्पादकता बढ़ाएं |
  2. सामाजिक राष्ट्रीय एकीकरण को सूजन करें |
  3. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को तेज करें |
  4. सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का पोषण करें|

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के प्रस्ताव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के प्रस्ताव या प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं |

  1. राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 10+2+3 शिक्षा पद्धति की अपनाया गया, जिसमें शैक्षिक संरचना 5 वर्वीय प्राथमिक शिक्षा, 3 वर्षीय उच्च प्राथमिक शिक्षा (मिडिल), 2 वर्षीय माध्यमिक शिक्षा (हाईस्कूल), 2 वर्षीय उच्चतर माध्यमिक शिक्षा तथा 3 वर्षीय प्रथम उपाधि शिक्षा से संयुक्त की गई।
  2. विद्यालय स्तर की 10 वर्षीय शिक्षा का पाठ्यक्रम सारे देश में समानता के आधार पर लागू किया गया, जिसमें आवश्यकतानुसार लचीलेपन के लिए गुंजाइश रखी गयी। भारत के समी भावी नागरिकों से देश की एकता, अखण्डता, भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव की भावना तथा भारतीयता के अनुरूप जीवन मूल्यों को ढालने की दृष्टि से समान पाठ्यक्रम में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन, संवैधानिक दायित्व, राष्ट्रीय पहचान, भारतीय संस्कृति के मूल तत्व, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समानता, पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण सीमित परिवार आदि पहलुओं का समावेश किया गया है।
  3. शिक्षा के क्षेत्र में, विशेष रूप से उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा के सन्दर्म में प्रत्येक प्रतिभाशाली विद्यार्थी को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। शोध और विकास तथा विज्ञान व तकनीकी शिक्षा के बारे में देश की विभिन्न संस्थाओ के बीच व्यापक ताना-बाना स्थापित करने के लिए विशेष उपाय किये जाने के प्रयास प्रारम्भ कर दिये गये हैं।

‘जीवन-पर्यन्त शिक्षा’ शैक्षिक प्रणाली का मूलभूत लक्ष्य है। इसका तकाजा है, सार्वजनिक साक्षरता। अत: प्रोढो, गृहणियों, कृषकों, श्रमिकों, व्यवसायियों आदि को अपनी पसन्द तथा सुविधा के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध कराये जावेंगे। भविष्य में खुली शिक्षा एवं दूर-शिक्षण का महत्व अधिकाधिक बढाया जायेगा।

  1. विश्वविद्यालय अनुदान-आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय चिकित्सा परिषद, शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण की राष्ट्रीय परिषद, अखिल भारतीय समाज- विज्ञान शोध परिषद, आदि संस्थाओ को अधिक सुदृढ बनाया जायेगा, ताकि नवीन राष्टीय शिक्षा प्रणाली को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर सके। शिक्षा के पुनर्निर्माण के लिए, असमानताओं को कम करने के लिए साक्षरता प्रसार के लिए, वैज्ञानिक एवं प्रोद्योगिकी अनुसंधान के लिए तथा इस प्रकार के अन्य लक्ष्यों की पूर्ति हेतु साधन जुटाने के लिए सारा राष्ट्र कटिबद्ध रहेगा।
  2. नवीन शिक्षा नीति के अंतर्गत समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिए विशेष ध्यान देने की व्यवस्था हैं। हमारे देश में पॉच वर्ग विशेष रूप से उपेक्षित रहे है |
    (I) महिलायें, (ii) अनुसूचित जातियाँ, (iii) अनुसूचित जनजातियाँ, (iv) शारीरिक विकलांग तथा अल्पसंख्यक वर्ग |

महिला-वर्ग की सामाजिक असमानता को मिटाने के लिए शिक्षा को साधन बनाया जायेगा। महिलाओं से सम्बन्धित अध्ययनों को पाठ्यक्रम में प्रोत्साहन दिया जाये| उसकी निरक्षरता निवारण के विशेष प्रयास किये जायेंगे। अनुसूचित जाति के लोगों को अन्य सवर्ण जाति के लोगों के समकक्ष लाने हेतु भरसक प्रयास किये जायेगे। ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जायेंगी जिससे कि इस वर्ग के सभी बच्चे कम से कम 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा ग्रहण कर सके। जनजाति वर्ग की शिक्षा को बढावा देने के लिए नवीन प्राथमिक शालायें प्राथमिकता के आधार पर आदिवासी क्षेत्रों में खोली जायेंगी। पढे- लिखें आदिवासी युवकों को प्रशिक्षण देकर शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा। समाज के अल्पसंख्यक वर्ग शिक्षा की दृष्टि से पिछडे हुए हैं। साधारणतया विकलांगता वाले बालकों को आम बालकों के साथ ही पढाया जावेगा, किंतु गंभीर रूप से विकलांग बालको को शिक्षा हेतु विशेष व्यवस्था की जायेगी।

प्रोढ शिक्षा एवं सतत् शिक्षा के प्रयास किये जायेगे। विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन किए जायेगा। तकनीकी और प्रबंध शिक्षा का पुनर्गठन करते समय शताब्दी परिवर्तन के बदलाव का ध्यान रखा जायेगा। शिक्षा के व्यवसायकरण को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न स्तरों पढ्यों का पुनर नवीनीकरण किया जायेगा।

  1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में सबको प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करने लक्ष्य की कम से कम समय मे पूरा करने की अनिवार्यता की और ध्यान आकृष्ट कराया था। इसमें सन् 1995 में देश के 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त ओर अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का संकल्प लिमा क्या था। राष्टीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत बनायी गयी वर्ष 1987 की कार्ययोजना में सबको प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किए गये और नवीन पहल की गयी। इसके अन्तर्गत स्कूलो में पढाई-लिखाई के माहौल में सुधार और अध्यापकों की कार्यकुशलता बढाने के साथ-साथ 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के ऐसे बच्चों के लिये वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की गयी थी, जो स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रह गये थे। इस कार्ययोजना में शिक्षा के क्षेत्र मे केन्द्र द्वारा प्रायोजित तीन प्रमुख कार्यक्रम किए गये। इनमें आपरेशन ब्लैक बोर्ड, शिक्षा प्रशिक्षण के क्षेत्र मे सुधार और पुनर्गठन तथा गैर-औपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम सम्मिलित किया गया|
  2. शिक्षा नीति मे विद्यालयो में माध्यमिक स्तर पर गणित, विज्ञान, कफ्यूटर एवं पर्यावरण का ज्ञान दिये जाने की व्यवस्था एवं 1968 की नीति के अनुसार भाषा अध्ययन के मूल्यांक्ल का प्रस्ताव किया गया। विद्यालयों में योग शिक्षा की व्यवस्था के प्रयास किये जाएँगे।
  3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिए प्रस्ताव किया गया। प्राथमिक शिक्षकों के पूर्व सेवा एवं सेवारत प्रशिक्षण के लिए जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के रूप में विकसित करने का प्रावधान किया गया।
  4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा प्रबन्ध पर विचार किया गया, जिसमें शिक्षा, प्रबंध का विकेंद्रीकरण करने और स्वायत्तता की भावना का सृजन करने का प्रस्ताव किया गया।
  5. शिक्षा नीति मे शिक्षा की आर्थिक व्यवस्था का स्वरूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) के राष्ट्रीय आय का 6 प्रतिशत से अधिक शिक्षा पर व्यय करने के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया। शिक्षा पर केंद्रीय बजट का 10 प्रतिशत तथा राज्य बजट पर 30 प्रतिशत व्यय किया जायेगा। शिक्षा के विकास के लिए धन स्रोत सरकारी अनुदान के अतिरिक्त दान को प्रोत्साहित कर वृद्धि करके एवं बचत करके संसाधन जुटाये जायेगे।
  6. राष्ट्रीय शिक्षा नीति मेँ यह भी प्रावधान किया गया कि शिक्षा नीति के आयामों, क्रियान्वयन उपलब्धियों एवं कमियों आदि की समीक्षा प्रत्येक पांच वर्ष बाद की जायेगी।

राट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का क्रियान्वयन संसद ने 1986 में बजट के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 पर विचार-विमर्श किया और उसे अपनी स्वीकृति प्रदान की। उस समय मानव संसाधन विकास मंत्री के द्वारा यह विश्वास दिलाया गया था कि वह वर्षाकालीन सत्र में नीति के क्रियान्वयन के लिये एक कार्यं-योजना प्रस्तुत करेगे। बजट सत्र के शीघ्र बाद मंत्रालय ने कार्य-योजना तैयार करने का कार्य तटस्थता के साथ करना प्रारंभ कर दिया।

प्रारंभ मे 23 कार्यदल गठित किये गये तथा प्रत्येक कार्यदल को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक विषय सौपा गया। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, विशेषज्ञ एवं केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के वरिष्ठ प्रतिनिधि इन कार्य दलो से सम्बद्ध थे।

इन कार्यदलों को निम्मलिखित विषय सौपे गये थे |

(1) विद्यालय शिक्षा की विषयवस्तु और प्रक्रिया।
(2 ) नागरिकों की समानता के लिये शिक्षा।
(3) अल्पसंख्यकों की शिक्षा।
(4) शिक्षा प्रणाली को लागू करना।
(5) विकलांगो की शिक्षा।
(6) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछडे वगों की शिक्षा|
(7) प्रारंभिक शिक्षा (अनौपचारिक शिक्षा एवं ऑपरेशन ऑफ़ ब्लैक बोर्ड)
(8) प्रौढ तथा सतत् शिक्षा।
(9) शिशु देखभाल एवं शिक्षा।
(1०) व्यावसायीकरण |
(11) माध्यमिक शिक्षा एवं नवोदय विद्यालय|
(12) उच्च शिक्षा।
(13) अनुसंधान एवं विकास |
(14) खुला विश्वविद्यालय एवं दूरस्थ शिक्षा।
(15) तकनीकी एवं प्रबन्ध शिक्षा।
(16) उपाधियों को नौकरियों से पृथक करना एवं जनशक्ति आयोजन |
(17) संचार माध्यम एवं शैक्षिक प्रोद्योगिकी।
(18) खेल, शारीरिक शिक्षा एवं युवा।
(19) सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य तथा भाषा नीति का कार्यान्वयन |
(2०) शिक्षक तथा उनका प्रशिक्षण |
(21) मूल्यांकन प्रणाली एवं परीक्षा सुधार |
(22) ग्रामीण विश्वविद्यालय या संस्थाएं।
(23) शिक्षा का प्रबन्ध |

कार्यदलों से उनको सौपे गये विषयों की वर्तमान स्थिति की जाँच करने एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विशिष्ट विवरणों का संक्षेप में उल्लेख करने का अनुरोध किया गया था। इसके अन्तर्गत कार्यदलों से यह आशा की गयी थी कि वे आवश्यक कार्यवाही और कार्यक्रमों के व्यापक लक्ष्यों एवं चरणों का भी उल्लेख करें । इसके अतिरिक्त उनसे प्रत्येक चरण के सन्दर्भ में विस्तृत वित्तीय दायित्वों को निर्दिष्ट करने का भी अनुरोध किया गया था।

कार्यदलों ने समय की कमी के बाद भी अपना कार्य बडी सावधानीपूर्वक पूरा किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट जुलाई, 1986 में प्रस्तुत कर दी। इन रिपोर्टों पर मानव संसाधन विकास मंत्री के द्वारा आयोजित की गयी बैठकों में चर्चा की गयी। इन चर्चाओं के पूरा हो जाने के बाद 20 जुलाई, 1986 क्रो राज्य सरकारों या संघ शासित क्षेत्रों के शिक्षा सचिवों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस बैठक के दौरान प्राप्त सुझावों पर सावधानीपूर्वक विचार किया गया तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख विषयों को ध्यान में रखकर कार्य योजना बनाकर तैयार की गयी। केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक नई दिल्ली में एक और दो अगस्त 1986 को हुई। इस बैठक में कार्ययोजना दस्तावेज पर चर्चा की गयी तथा चर्चा में भाग लेने वाले राज्य सरकारों एवं संघ शासित क्षेत्रों के शिक्षा मंत्रियों एवं शिक्षाविदों ने अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये। कार्ययोजना में इन सभी सुझावों पर विचार किया गया तथा उसे संसद के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

संसद ने उसे पारित करके क्रियान्वयन के लिये दे दिया। इसका कार्यान्वयन सन् 1987- 88 से विभिन्न योजनाओं के माध्यम से हुआ।